Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:38 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"क्या बात है, आज बड़े चिंतित लग रहे हो...क्या बात है, चुदाई भी नहीं की ठीक से तो आज तुमने.." स्नेहा ने अपना एक हाथ चूत पे रखते हुए कहा



"कुछ नहीं.. बस ऐसे ही.." राजवीर ने स्नेहा को देखा तक नहीं और अपना जाम पीते पीते जवाब दिया



"ओह हो.. कहीं मेरे ससुर का जी तो नहीं भर गया मेरे जिस्म से ह्म्म्मऔ..." स्नेहा ने भी अपना जाम पीते हुए कहा



"नहीं ऐसी कोई बात नहीं.. बस..."



"बस क्या, बता भी दीजिए मेरे चोदु ससुर जी, आपकी यह रंडी बहू जिस्म के अलावा दिमाग़ भी चलती है, शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ.." स्नेहा ने फिर अपने सीने को तान के जवाब दिया



"स्नेहा.. रिकी , बहुत जल्दी ही बेट्टिंग सीख रहा है.." राजवीर ने स्नेहा को अपने मन की बोली



"मतलब.." स्नेहा को कुछ समझ नहीं आया



"मतलब यह स्नेहा, आज तक जो चीज़े विक्रम ने या मैने कभी नहीं सोची थी , कभी नहीं की थी.. वो रिकी बिना बताए, बिना सिखाए करता है.. हाला की उससे फ़ायदा ही है लेकिन फिर भी, कोई लड़का चार महीने में बेट्टिंग के बारे में इतना जल्दी सब सीख जाए, यह विश्वास नहीं होता मुझे.."



"ऐसा क्या कर दिया उसने जो इतने शॉक में हो"



"आज तक हम ने कभी किसी खिलाड़ी से मिलके बात तक नहीं की, आज रिकी ने वो कर दिया.. उसके बात करने के तरीके से मुझे कहीं नहीं लगा कि वो इस काम में नया है, वो ऐसे बात कर रहा था जैसे वो सामने वाले के सब सवालों को जानता था..." विक्रम ने स्नेहा को देख के कहा.. जब स्नेहा कुछ नहीं समझी तब राजवीर ने उसे सब बता दिया, शुरू से लेके.. कैसे रिकी ने एक मामूली चीज़ को बड़ा किया, कैसे खुद ही अपने पैसे लगाने लगा, कैसे खिलाड़ियों से मिलना भी शुरू कर दिया..





"ओह हो... फिर तो तुम्हारी चिंता ठीक है, मैने कभी विक्रम से भी नहीं सुना कि उसने ऐसा कुछ किया हो..." स्नेहा ने पूरी बात समझ के कहा



"चिंता का निवारण तुम करोगी.." राजवीर के दिमाग़ में एक बात आ गयी अचानक से



"वो कैसे.."



"तुम रिकी के कॉलेज या हॉस्टिल फोन करो.. लंडन, पता करो कोई उसका दोस्त कोई ऐसा था जिसके साथ वो बेट्टिंग करता था वहाँ..लंडन में यह सब लीगल है, तो शायद वहाँ कुछ करता हो, तभी यहाँ आके यह सब कर रहा है.."



"यह तो तुम भी कर सकते हो..मैं क्यूँ"



"इतने सालों में चाचा ने कभी फोन नहीं किया, भाभी करेगी तो अजीब नहीं लगेगा.."



"पर वो खुद यहाँ है, तो फिर कैसे.."



"अब सब मैं समझाऊ.. खुद तो अपना दिमाग़ इस्तेमाल करो थोड़ा..." राजवीर ने झल्ला के कहा




"हां ठीक है, करती हूँ कुछ मेरे चोदु ससुर जी.. पहले मेरी प्यास तो बुझा दीजिए.."
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07-03-2019, 04:38 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"ड्राइवर.. प्लीज़ गाड़ी इस अड्रेस पे ले लो, थोड़ा समान लेना है वहाँ से.." ज्योति ने ड्राइवर के हाथ में एक कार्ड पकड़ाते हुए कहा



"ओके मॅम..." ड्राइवर ने कार्ड लिया और गाड़ी को बताए हुए अड्रेस पे ले जाने लगा...



शाम के 8 बजे ऑफीस से घर जाने वाले लोगों का ताँता लगा हुआ था, औडी क्यू7 की नरम सीट पे बैठी, ठंडी हवा का आनंद उठाते हुए ज्योति चढ़े हुए शीशे से बाहर की भीड़ को देख रही थी.. मुंबई की 75% जनता लोकल ट्रेन से सफ़र करती, हार्ट बीट ऑफ मुंबई लोकल ट्रेन्स और उसमे सफ़र करती जनता.. बोरीवली से होती हुई ज्योति की गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी.. ज्योति ने एक नज़र घुमाई और फिर उसे एहसास हुआ कि वो कितनी खुश नसीब है कि ऐसी लाइफ स्टाइल मिली है.. जब दिमाग़ थोडा रीवाइंड हुआ, तो दिल ही दिल में उसने भगवान को शुक्रिया किया कि वो अनाथ नहीं रही ज़िंदगी भर, और फिर से बाहर के लोगों को देखने लगी..



"ह्म्म...यह है मुंबई...मुंबई मेरी जान..." ज्योति ने एक बार फिर बाहर देखा और खड़े लोगों को देख खुद से कहा.. जैसे जैसे ट्रॅफिक छँटने लगा वैसे वैसे गाड़ी की गति बढ़ने लगी और वैसे वैसे लोकल ट्रेन की पब्लिक के बदले, ज्योति की आँखों के सामने फिर से उँची उँची बिल्डिंग्स आने लगी..जगमग रोशनी, उँची बिल्डिंग्स, साँस लेने की फ़ुर्सत नही, लोग कहते हैं यह मुंबई की पहचान है..ज्योति जब भी मुंबई आती, ज़्यादा से ज़्यादा समय वो बांद्रा और जुहू के साइड बिताती, वहाँ उसे असली मुंबई नही दिखता, जब से महाबालेश्वर मुंबई ट्रॅवेल करने लगी, तब उसे एहसास हुआ कि मुंबई की असली पहचान कुछ हाइ प्रोफाइल लोग और सेलेब्स नहीं, बल्कि यह लोग हैं जिनकी वजह से मुंबई चलता है..जिनमे मुंबई बस्ता है..



"यू कॅन टेक मी आउट ऑफ मुंबई.. बट यू कन्नोट टेक मुंबई आउट ऑफ मी..." यह लाइन ज्योति ने काफ़ी बार सुनी थी, लेकिन आज खुद इसे महसूस करके अंदर से काफ़ी खुश हो रही थी...




"मॅम.. वी आर हियर..." ड्राइवर की इस आवाज़ से ज्योति अपने ख़यालों से बाहर आई और बाहर देखने लगी.. गाड़ी इस वक़्त एक डिज़ाइनर स्टोर के बाहर खड़ी थी.. ज्योति जल्दी से उतरी और अपना समान कोलेक्ट करके वापस आने लगी...





"भाई..आज ज्योति को लेट हो गया है...कहाँ है वो.." शीना ने रिकी से पूछा जब दोनो आगे के गार्डेन में बैठे बतिया रहे थे



"पता नही यार, मैं कॉल कर रहा हूँ फोन आन्सर नही कर रही." रिकी ने शीना को जूस दिया और खुद कॉफी पीने लगा



"या आइ नो, मैने भी 7 कॉल्स किए बट.." शीना ने इतना ही कहा कि सामने से ज्योति आती हुई दिखी



"यह लो.. आ गयी.." शीना ने रिकी से इशारा किया ज्योति सामने ही आ रही थी..



"हे ज्योति.. कम हियर.." शीना ने इस बार चिल्ला के ज्योति को अपने पास बुलाया




ज्योति कुछ सोच में डूबी हुई थी कि अचानक शीना की आवाज़ से वो अपनी सोच से बाहर निकली.. चेहरे पे झूठी मुस्कान लेके आगे बढ़ी लेकिन दिमाग़ अभी भी कहीं और था..




"हाई डार्लिंग.. गुड ईव्निंग.." शीना ने खुशी खुशी गले लगाया ज्योति को और अपने साथ बिठा दिया



"गुड ईव्निंग डियर, भैया..हाउ आर यू.." ज्योति ने बुझे हुए मन से दोनो से पूछा लेकिन चेहरे पे झूठी मुस्कान अभी भी थी



"यह लो, मेरा जूस, पहले तुम पियो, फिर मैं पियूंगी.." शीना ने ग्लास आगे बढ़ाते हुए कहा, लेकिन ज्योति ने कुछ रिएक्ट नहीं किया और बस नज़रें नीचे घास पे ही गाढ़े रखी



"ज्योति...आर यू फाइन" शीना ने ज्योति के कंधों को थोड़ा हिलाया जिससे ज्योति फिर होश में आई



"उः..क्या.." ज्योति ने जवाब दिया



"ज्योति, सब ठीक है ना..कुछ हुआ है क्या" शीना ने फिर ज्योति का हाथ पकड़ के पूछा



"यस यस.. सब ठीक है डियर, " ज्योति ने फिर जवाब दिया लेकिन दिमाग़ अभी भी कहीं और था.. शीना ने रिकी को इशारे से चुप रहने के लिए कहा और खुद भी चुप हो गयी.. दोनो खामोश करीब 10 मिनट तक ज्योति को देखते रहे, लेकिन ज्योति थी कि वो वहाँ थी ही नहीं, दिमाग़ तो उसका कहीं और ही था...



"ऐसा कैसे हो सकता है.." ज्योति ने खुद से धीरे से कहा, जिसे रिकी और शीना ने भी सुन लिया



"ह्म्‍म्म... अच्छा तो ऐसा है..." शीना ने आख़िर अपना मूह खोल के कहा, उसकी आवाज़ सुन ज्योति फिर होश में आई और शीना को देख फिर खामोश हो गयी..



"भाई..प्लीज़, एक्सक्यूस अस ..प्लीज़.." शीना ने हँस के रिकी से कहा



"ओह यस... कॅरी ऑन गर्ल्स.." रिकी ने बस इतना ही कहा और वहाँ से निकल गया, क्यूँ कि वो जानता था कि अगर कुछ बात हुई भी तो ज्योति शीना से कहने में ज़्यादा कंफर्टबल फील करेगी..



"ह्म्‍म्म... अब बताओ..क्या हुआ, क्या नहीं होना चाहिए..." शीना ने ज्योति के हाथ को पकड़ के उससे पूछा



"शीना... मैने आज भाभी को देखा..." ज्योति ने दबी हुई और परेशानी वाली आवाज़ में कहा



"ओके, वो मैं रोज़ देखती हूँ..आंड चिल मार, ऐसे रोज़ देखेगी तो डर नहीं लगेगा.." शीना ने हँस के कहा लेकिन ज्योति अभी भी खामोश थी



"ओके सॉरी.. बॅड जोक..बताओ, देखा तो क्या हुआ" शीना ने सिचुयेशन को समझ के पूछा



"मैने भाभी को पापा के साथ देखा.." ज्योति ने शीना की आँखों में आँखें डाल के कहा.. ज्योति की यह बात सुन शीना के चेहरे का रंग भी बदल गया, उसके हाव भाव भी बदल गये और उसके चेहरे पे मुस्कान के बदले हैरानी के भाव आने लगे...

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07-03-2019, 04:38 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा

"यू श्योर..." शीना ने आँखें छोटी करके ज्योति से पूछा, उसके आवाज़ में भी अभी वोही परेशानी थी जो ज्योति की आवाज़ में थी



"मैने भाभी को पापा के साथ होटेल के बाहर निकलते हुए देखा.." ज्योति की यह बात सुन शीना का मूह खुला का खुला रह गया और ज्योति उसे ही घूर्ने लगी...



"ओह माइ गॉड.....तूने पक्का भाभी और चाचू को देखा.." शीना ने फिर ज्योति से पूछा



"हां....पहले मुझे भी यही लगा लेकिन जब मैने देखा तो दोनो भाभी की गाड़ी में बैठे, उनकी वोल्वो को मैं दूर से भी पहचान सकती हूँ.." ज्योति की आवाज़ में धीरे धीरे विश्वास और बुलंदी आ रही थी



"हाउ ईज़ दिस....." शीना ने इतना ही कहा और खुद भी ज्योति की तरह हैरान हो गयी.. दोनो के चेहरे पे हैरानी के भाव अब परेशानी के भाव में बदलने लगे, दोनो एक तनाव से महसूस कर रही थी लेकिन दोनो खामोश बैठी बस एक दूसरे के चेहरे को घुरती रही.. बेते बेते दोनो को जब कुछ समझ नही आया तो बिना कुछ कहे ज्योति वहाँ से निकल गयी अपने कमरे की तरफ.. ज्योति के जाने से शीना का चेहरा और पीला पड़ गया..



"व्हाट दा फक ईज़ दिस बिच अप्ट नाउ.." शीना ने खुद से गुस्से में कहा




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"आहाहहा मेरे चोदु ससुर जी अहहहहा....धीरे मस्लो ना ज़रा मेरे चुचों को अहहा उफ़फ्फ़.फ...." स्नेहा इस वक़्त राजवीर की गोद में बैठी थी और राजवीर एक हाथ से उसके चुचे को मसल रहा था और दूसरे चुचे को मूह में लेके चूस रहा था...




"आहाहा उफ़फ्फ़ ना.. प्यार से करो मेरे राअज्जज आहह उफफफ्फ़....." स्नेहा चूसा से ही पागल होने लगी थी आज...देखते देखते राजवीर का दूसरा हाथ जो अब तक स्नेहा की कमर पे था वो नीचे फिसलकर उसके चुतड़ों पे गया और अपने कठोर हाथों से राजवीर उन्हे भी ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगा




"आहाहमम्म... उम्म्म्म उफफफ्फ़... तेरा शरीर ही ऐसा है मेरी बहू रानी अहहहा .... उम्म्म स्लूर्रप्पाहाहहहाः.." राजवीर निपल चूस्ते हुए स्नेहा से बोला




"अहहाः तो चूस लीजिए ना ससुर जी... आपकी बहू तो अहहहाआ आपकी ही रानी हाआहहिईिइ... आहहहह और ज़ोर से मस्लो ना अहहहाआ" स्नेहा ने राजवीर के हाथों पे अपने हाथ को रखा और अपने चुचे दबवाने लगी...




"आहाहाहा हां ऐसे ही चाचिया ससुर जी अहहाहा और ज़ोर से अहाहहाहा दबाओ ना अहाहहाअ....ईसस्साहहह.." स्नेहा अब पूरे मज़े में आ चुकी थी...




"बहुत बोल रही है मेरी रंडी बहू अहहहहा.. आजा तेरे होंठ ही बंद कर दूं बेन्चोद अहाहहाअ.." राजवीर ने यह कहके स्नेहा के चुचे को अपने मूह से निकाला और अपने होंठ स्नेहा के होंठों से मिला लिए और दोनो एक दूसरे के होंठों को ऐसे चूसने लगे जैसे एक दूसरे को काट खाएँगे आज..




"उम्म्म अहहहहः उम्म्म्म सस्शशहाहहहूम्म.... किस्सहहहहाः हार्डर आहह ससुर अहहहहा...उम्म्म्ममम मेरे आहहहहाहा राजा आहह" स्नेहा बीच बीच में कुछ बोलने के लिए मूह खोलती तो राजवीर फिर उसके होंठों को दबोच लेता अपने होंठों से...




"अहहहहा हां राजा मेरे अहहहाओंम्म्म... आम कुम्मींगगगग आहह.....चाचा जीए अहाहहाहा" स्नेहा अपनी चूत राजवीर की जांघों पे ज़ोर ज़ोर से घिसने लगी और आगे पीछे होके अपनी चूत की खुजली को शांत करने लगी...





"अहहहः हर्दरर अहहहौमम्म......" स्नेहा ने इतना ही कहा के उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया




"अहहाहा ईसस्स..........उम्म्म्मममम....." स्नेहा ने जैसे एक ढील सी महसूस की अपने बदन में और जो किस इतनी देर से चल रही थी, उसे अब हल्का करके राजवीर की जीभ से जीभ मिला के उसे चूसने लगी...




"रंडी जात ससुर हो आप तो हिहिहीही.." स्नेहा ने राजवीर के होंठों से अलग होके कहा




"मेरी बहू भी तो रंडी है ना... अब ज़रा मेरे तूफान को भी शांत कर दो..." राजवीर ने स्नेहा को कंधों से नीचे धकेला जिसे समझ के स्नेहा ने अपने हाथ राजवीर की पॅंट पे रखे और आँखों में आँखें डाल के उसे उतारने लगी....पॅंट उतार के स्नेहा ने अपने दांतो को राजवीर के अंडरवेर की एलास्टिक में फसाया और उसे भी नीचे उतार दिया..




"आआहहहह मयययी...." स्नेहा ने राजवीर के लंड को देख के कहा जो अभी अपने पूरे शबाब पे था और भट्टी से निकले लोहे की तरह गरम था...




"हर बार देखती हूँ, हर बार से बड़ा ही लगता है...मेरे चोदु ससुर जी कहीं टॅब्लेट्स तो नहीं ले रहे कोई हिहिहीही.." स्नेहा ने फिर अपनी रंडी हँसी हास के राजवीर को देखा और अपने हाथों से धीरे धीरे कर उसके सुपाडे को आगे पीछे करने लगी




"आआहहूंम्म्म... जिसके पास तेरे जैसी रंडी हो अहहहहाअ... उसे टॅबलेट की क्या ज़रूरत मेरी रखैल बहू...अहहहहा" राजवीर ने मज़े में सिसकते हुए स्नेहा से कहा और धीरे धीरे अपनी शर्ट भी उतार फेंकी.. स्नेहा ने धीरे धीरे लंड के सुपाडे को अपने अंगूठे से सहलाया और एक हाथ से अपनी कच्छि के अंदर हाथ डाल के अपनी चूत को हल्के हल्के से घिसने लगी...



"आहाहहहाअ......" स्नेहा की सिसकी निकली और राजवीर के लंड को मूह में लेके उसे धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी.. नीचे से राजवीर ने भी अपने पेर के अंगूठे से उसकी चूत पे दस्तक दे दी और थोड़ा घुमा के उसकी एलास्टिक में पेर फसाया और उसे नीचे करने लगा.. यह देख स्नेहा भी थोड़ी उपर हुई और एक ही झटके में उसकी कच्छि नीचे आ गयी..




"आहाहहओमम्म.... गुल्ल्ल्लर्रप्प्प्प्प्प्प्प्प गुल्लप्प्प्प्प्प अहहहाहौमम्म्ममम..." स्नेहा राजवीर के लंड को तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी अब और कभी कभी उसके टट्टों को भी सहला लेती




"अहहहहौमम्म्म अहहाहा उम्म्म स्लूर्र्रप्प्प्प्प्प स्लूर्र्रप्प अहहहा... मेरे चोदु अहहहहाः ससुर जीए अहहाहा उफफफ्फ़.फ...... क्या रंडी हाहाआआवमम्म्म... बनाया है मुझे अहहहाआ.... आपके लंड उम्म्म्म स्लूर्र्ररप्प्प अहहहहाा... के बिना तो उम्म्म्म अहहहहा गुल्ल्लप्प्प्प गुल्ल्ल्लप्प्प्प्प अहहहहाअ एक पल अहहाहा भी नहीं रहती उम्म्म्म गुल्लप्प्प्प गुल्ल्लप्प्प्प्प" स्नेहा लंड को बीच बीच में बाहर निकाल लेती और हाथ से उसे हिला के राजवीर से कहने लगती... स्नेहा की यह हरकत देख नीचे से राजवीर ने भी अपने पेर के अंगूठे को स्नेहा की चूत पे रखा और धीरे धीरे घिसने लगा...




"आहाहाहा हाआँ ऐसे ही कर ना भडवे अहहहहाआ उफफफ्फ़... गुल्ल्लप्प्प गुल्लप्प्प्प उम्म्म्म उम्म्म्म उम्म्म्ममम स्लूर्रप्प्प आहह गुल्लप्प्प्प्प" अपनी चूत पे प्रहार देख स्नेहा भी ज़ोर ज़ोर से सिसकने लगी और राजवीर की आँखों में देख के उसके लोड्‍े को तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी
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07-03-2019, 04:38 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"अहाहहाः चाचा अहाहमम्म्मम और ज़ोर से करो अहाहाआ... यीयेस्स्स उफफफ्फ़..... पैरो से ही झडा दोगे अहहाहा उफफफ्फ़..... हां और ज़ोर से रंडी की औलाद अहहहहा और ज़ोर से अहहाहा उफ़फ्फ़.फ.. हाआन्ं हाआंन्न रुकना नही आहाहा ईआहह..." स्नेहा ज़ोरों से चीखने लगी और अपने बदन को पीछे ले जाके आने वाले पल का मज़ा लेने लगी.. राजवीर ने जब यह देखा तो जल्दी से पैर वहाँ से हटा लिया.. राजवीर की इस हरकत से स्नेहा जो मज़े की उम्मीद में थी उसने उपर की तरफ देखा तो राजवीर ने इशारा करके उसे बिस्तर पे बुलाया और खुद उठके वहाँ जाके लेट गया




"अहहाहा मेरी रंडी बहू, आज ज़रा लंड की सवारी कर ले... ससुर से मेहनत नहीं करवा आज..." राजवीर ने अपने लंड को पकड़ा और उसे धीरे धीरे हिलाने लगा..




"अरे मेरे भडवे ससुर... उफ़फ्फ़ अहहाहा क्या लंड है, इसके लिए तो कुछ भी करूँ ...." स्नेहा ने आगे बढ़ते हुए कहा और अपनी चूत रगड़ती हुई बिस्तर पे कूद के पहले राजवीर के टट्टों को मूह में लिया और उन्हे चूसने लगी और फिर नाख़ून से उन्हे दबाने लगी...




"अब जल्दी भी कर मेरी रंडी उफफफ्फ़ अहहहा....." राजवीर ने मज़े में आके कहा.. राजवीर की उतावला देख स्नेहा से भी नहीं रहा गया और अपनी चूत के छेद को राजवीर के लंड पे सेट करके हल्के से उसपे बैठने लगी..




"आआहाहः उफ़फ्फ़......." स्नेहा दर्द में थोड़ी कराही





"आहहाहा आपका तो दिन ब दिन आहह बड़ा होता जा रहा है....य्आहह" स्नेहा ने राजवीर के लंड पे सेट होके कहा और धीरे धीरे उपर नीचे होने लगी....




"तू तो खुली हुई है ना मेरी रंडी बहू फिर कैसा दर्द..." राजवीर बस लेटे लेटे मज़ा लेने के मूड में था आज...




"आहाहहाहा हाआन्न खुली तो हुई हूँ अहहहााअ लेकिन फिर भी अहहहाआ... तेरा लंड अहहाहा उफफफ्फ़.... मेरी चूत की दीवारों पे लगने लगा है अभी तो अहहहहहाआह" स्नेहा उछलते उछलते बोलने लगी.... उछलते उछलते स्नेहा के चुचों को देख कर राजवीर से रहा नहीं गया और स्नेहा को कमर से पकड़कर अपने पास खींचा और उसके चुचों को मूह में लेके भरने लगा




"अहहहा हां ऐसे ही चूस ना भडवे ससुर मेरे आहाहहा.." स्नेहा भी अपने चुचों की चूसा से जोश में आ गयी और लंड पे तेज़ी से उछल उछल के चुदवाने लगी




"अहहहः हां ऐसे ही चोदो ना अपनी रखैल को आहा अहहहहाअ,, और ज़ोर से चूसो मेरे अहहहहा हाआँ और ज़ोर से कर बेन्चोद ससुर स्साले अहहहा...एआहह फक मी हार्डर अहहाहा ओह्ह्ह नूओ अहाहाआ....." स्नेहा अब एक नंबर की रंडीपने पे उतर आई थी और अनाप शनाप बोलने लगी... राजवीर बस उसके चुचों को चूसने में लगा हुआ था और एक हाथ पीछे ले जाके उसके चुतड़ों पे थप्पड़ मार देता




"अहाहहा और ज़ोर से मार ओउुउउफफफ्फ़... मैं हूँ ही रंडी अहहहाआ..... ऑश येस्स्स्साहह्हा..." स्नेहा भी अपने चुचे को राजवीर के मूह में धकेलने लगी और ज़ोर ज़ोर से कूदने लगी... पूरे रूम में उनकी चुदाई की आवाज़ें ही थी...




"तपप्प्प ठप्प्प्प्प.... अहाहहाहहाहा नूऊ ईससस्स..... हार्डर अहाहाहाहा... ठप्प्प्प ठप्प्प्प्प..." लंड पे चूत पड़ने की आवाज़ और उससे निकलते हुए मज़े में स्नेहा की यह आवाज़ें, माहॉल को बहुत गरम कर रही थी....





"अहहहाहा रुकना नहीं.. मैं आ रही हूँ अभी ससुर जीए अहहहहा ईीस्स......." स्नेहा ने एलान किया और इसकी वजह से उसने बेड पे हाथ रखे और तेज़ी से उछलने लगी ताकि इस बार राजवीर ना रुक जाए और उसे अधूरा छोड़ दे...



"हाए मैं गाइिईई ससूर्र्र्ररर जीए.ए. अहहहाा ईसस्स......" स्नेहा झड गयी और अपना सारा पानी राजवीर के लंड पे छोड़ दिया और झड़ते ही बेड पे निढाल होके गिर गयी...





"तेरे बाप को कौन झड़ाएगा भाडवी बहू अहाहाा..." राजवीर स्नेहा के उपर आ गया और अपने हाथों से उसके चुचों को मसला और लंड उसकी चूत में घुस्सा के फिर धक्के लगाने लगा...





"अहहाहा हां ससुर जी अहहहः चाचा चोदिये ना अहहहा नूऊऊओ.... आज तो अहाओफफफ्फ़... हार मान गयी मैं आपके ओह्ह्ह नूऊओ...." स्नेहा ने यह कहा ही कि राजवीर को अपने लंड में उबाल महसूस हुआ




"ओह्ह्ह्ह नूओ... मैं भी आ रहा हूँ मेरी रंडी बहू उफ़फ्फ़..." राजवीर ने जैसे ही यह चिल्लाया, स्नेहा ने अपनी चूत को उसके लंड की गिरफ़्त से छुड़ाया और लंड को मूह में लेके पूरा का पूरा रस अपने अंदर गटक लिया

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"नाआहिंन्नननननननणणन्........" ज्योति चिल्लाके अपने कमरे में जागी और अपने इस ख़याल से बाहर आई... वक़्त देखा तो रात के 2 बजे थे... आस पास देखा तो कोई नहीं था, वो अपने कमरे में अकेली थी, उसकी साँसें तेज़ चल रही थी और चेहरे से बहता हुआ पसीना उसकी हालत बयान कर रहा था..



"यह कैसा सपना देख रही थी मैं..." ज्योति ने उखड़ती हुई साँसों से खुद को कहा और पानी पीने लगी...


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"ह्म्‍म्म... अगर शीना को मारता हूँ तो रिकी बच जाएगा... पर मैं शीना को ज़िंदा भी नहीं रखना चाहता.. अब अगर रिकी को मारु तो शीना को ज़िंदा रखना पड़ेगा, ज़बान जो दे दी है... ठीक है, यही करता हूँ, रिकी को मार देता हूँ.. उसके दुख में शीना खुद ब खुद मर जाएगी.. हाहहाा... यह प्यार भी क्या क्या करवाता है लोगों से" सिगरेट के धुएँ के बीच से फिर एक डरावनी आवाज़ आई
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07-03-2019, 04:38 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"सो... आर यू .. लाइक चेकिंग मी आउट..."



"नो नो.. आइ वाज़ जस्ट वंडरिंग, यू हॅव पुट ऑन आ बीट ऑफ वेट हाँ"



"वेरी फन्नी.. भाई यू ना, मूड खराब कर देते हो.." शीना ने चिढ़ के कहा और संभाल के बिस्तर पे बैठ गयी..



"जबसे तुम रिकवर करने लगी हो, तब से बहुत गुस्सा आ रहा है हाँ.." रिकी ने चिढ़ाने के लिए शीना से कहा और उसके पास बैठा



"भाई.. वैसे एक बात बतानी थी आपको.." शीना ने थोड़ा सीरीयस होके कहा और बेड पे टेका दे दिया



"ह्म्म. बोलो," रिकी ने जवाब दिया



"भाई.. यू रिमेंबर, कुछ दिन पहले, हम नीचे गार्डेन में बैठे थे तो ज्योति कुछ परेशान दिख रही थी.."



"यस, याद है, फिर तुमने मुझे निकाल दिया था वहाँ से.." रिकी ने अजीब चेहरा बना के कहा



"ओफफो भाई.. सुनो तो, डॉन'ट आक्ट सो क्यूट.."



"अच्छा, बोलो चलो..हां उस दिन ज्योति आई थी और वो परेशान थी"



"हां, उस दिन आपको गेट आउट करने के बाद, उसने मुझे बताया कि वो क्यूँ परेशान थी"



"क्यूँ थी बताओ, क्या हुआ अचानक"



"भाई..हुआ यूँ के..." शीना ने उसे बताना शुरू किया जो ज्योति ने उस दिन देखा था..



"व्हाट.... यू श्योर अबाउट दिस..."



"अववव..हम कितने सेम हैं ना, समेपिंच.." शीना ने हंस के रिकी को पिंच किया



"हां, मैने भी उससे पहला सवाल यही किया था, कि यूआर शोर अबाउट दिस.. शी वाज़ वेरी कॉन्फिडेंट, उसका कॉन्फिडेन्स देख के मुझे उसकी बात का यकीन करना पड़ा" शीना ने अपनी बात जारी रखी



"आंड ऑल्सो, उसने यह भी कहा कि भाभी की वोल्वो को वो दूर से पहचान सकती है, लाइक इससे पता चला मुझे कि हां यह सही बोल रही होगी.." शीना ने फिर रिकी से कहा जो कुछ सोच रहा था



"अच्छा टेल मी... कौन्से होटेल में देखा था ज्योति ने.." रिकी ने कुछ सोच के पूछा



"बताया तो इरीटा मराठा.. वोही जो अंधेरी में है, उः.. ईस्ट शायद.." शीना ने अपनी आँखें गोल घुमा कर जवाब दिया



"ह्म्म्मो... चलो, कितने दिन हो गये तुम ड्राइव पे नहीं गयी..आज मैं तुम्हे बाहर की हवा खिलाने ले जाता हूँ.." रिकी ने शीना के गाल सहला के कहा



"रियली.... अरे , चलो चलो..." शीना ने खुश होके कहा



"चलो चलो..उससे पहले गेट रेडी ना.. उः , नर्स...." रिकी ने थोड़ा उँची आवाज़ में कहा जिसे सुन बाहर बैठी नर्स अंदर आ गयी



"प्लीज़ असिस्ट हर इफ़ यू कॅन.." रिकी ने नर्स को कहा



"टेक युवर टाइम ओके..ड्रेस सोबर्ली प्लीज़, पार्टी पे नही जा रहे ओके.."



"डू आइ नीड ड्रेसिंग टिप्स फ्रॉम यू.." शीना ने अपना मूह बनाते हुए कहा जिसके जवाब में रिकी सिर्फ़ हंस कर वहाँ से निकल गया



बाहर आके रिकी अपने रूम में गया और वॉर्डरोब के ड्रॉयर में कुछ ढूँढने लगा और साथ ही फोन करने लगा किसी को..



"हां, हेलो..."



"ह्म्म, बोल.."



"सुन, यह राजवीर स्नेहा का सीन कब सेट किया तूने, आइ मीन इससे हमें क्या फ़ायदा.."



"सीन मैने सेट नही किया, लेकिन उसका फ़ायदा है हमें..वो तू खुद सोच लेना, जवाब आसान है..पर क्यूँ पूछ रहा है"



"ज्योति ने दोनो को एक साथ देख लिया और अब शीना को.."



"फिर शीना.. यार तू नहीं समझेगा जो मैं इतने दिन से कह रहा हूँ..अब अगर..." सामने वाले ने रिकी की बात काट के कहा



"अब मुझे भाषण नहीं दे.." रिकी ने ड्रॉयर में से कुछ निकाल के कहा



"हां, मिल गया.." रिकी ने अपने पॉकेट में कुछ रख के कहा



"क्या मिल गया.. और क्या करने जा रहा है तू" सामने वाले ने घबरा के कहा



"तेरा कुछ नही है, मेरा काम है"



"हां, अब तो आप शीना के साथ हैं, हमारी बातें भाषण लगेगी, मुझे तो यकीन था ही कि तू ज़रूर फिसलेगा उसे देख"



"हां तो किसी और से यह काम करवाता, अगर मुझ पे इतना यकीन था"



"वोही तो.. अब तेरी रगों में मेरा खून है ना, इसलिए तुझे चुना हाहाहा.." सामने वाले ने मज़किया अंदाज़ में कहा



"चल चल, अब पका मत..बाइ, मेरी स्वीटहार्ट शीना वेट कर रही होगी.."



"हां चल बाइ, ध्यान से करना कुछ भी, तू.." सामने वाला आगे कुछ कह पाता इससे पहले फोन कट हो गया



"यह साला..." सामने वाले ने फिर खुद से कहा और मुस्कुराने लगा



"चलें..." रिकी ने शीना के रूम में जाते हुए कहा



"हाउ डू आइ लुक.. पहले तारीफ़ करो, फिर आगे बढ़ूंगी मैं.."




"यह क्या पहना है... फॅशन कॉंटेस्ट में जा रहे हैं क्या." रिकी ने आगे बढ़ के कहा



"क्या यार, थोड़ी तारीफ़ तो करते, आप ना.." शीना ने मूह फूला के कहा



रिकी आगे बढ़ते हुए मुस्कुराने लगा, शीना की यही अदा, यही मासूमियत उसके दिल को छू गयी थी.. वो थी तो बड़ी, लेकिन उसका बच्पना अभी तक नहीं गया था.. रिकी के लिए शीना सिर्फ़ एक प्यार का माध्यम नहीं था, रिकी शीना में अपनी ज़िंदगी ढूंढता था..शीना के साथ हँसना खेलना रोना..उसे सब अच्छा लगता था, शीना के प्यार में रिकी काफ़ी बदल चुका था, पहले रिकी जो काफ़ी कम बात करता था, आज घंटो बैठ के शीना के साथ बातें करता था और अपने दिल का हाल सुनाता था पर साथ ही शीना भीहमेशा ध्यान रखती कि वो अपने नखरे सिर्फ़ रिकी को ही दिखा सकती थी क्यूँ कि और कोई तो घर पे था ही नहीं.. प्यार सबसे ज़्यादा घर पे ही मिलता है, शीना ने बचपन से यह सुना लेकिन देखा सिर्फ़ रिकी मे.. प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती, भाई बहेन का प्यार या भाई बहेन के बीच प्यार..काफ़ी फरक था लेकिन उस फरक की शीना को परवाह नहीं थी..



"मोहब्बत मैं करने लगा हूँ... उलझनो में जीने लगा हूँ....
दीवाना तो मैं था नहीं...लेकिन तेरा दीवाना बनने लगा हूँ.."

रिकी ने आगे बढ़ के शीना के चेहरे को अपने हाथों में थाम के यह चन्द पंक्तियाँ कही और उसके मस्तक
को हल्के से चूम लिया... शीना का सारा गुस्सा छू मंतर हो गया यह सुनके, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक आ गयी..



"तुम्हारी आँखों की चमक ने तो दिन को और भी सुहाना कर दिया.." रिकी ने शीना की बिखरी हुई ज़ुल्फो को उसके चेहरे से हटा के कहा. यह सुन शीना के चेहरे पे भी लाली छा गयी और चेहरे को झुका के मुस्कुराने लगी...
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07-03-2019, 04:39 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"फ़िज़ा में महकती शाम हो तुम...प्यार में छलकता जाम हो तुम...
सीने में छुपाए फिरते हैं हम याद तुम्हारी..मेरी ज़िंदगी का दूसरा नाम हो तुम.."



शीना ने यह दो पंक्तियों में अपने दिल की बात यूँ रखी कि रिकी चारो खाने चित हो गया.. खुशी से फूला नहीं समा रहा था वो, इस बार शीना ने अपना चेहरा उठाया और रिकी के हाथों को थाम के उसे चूम लिया



"अब चलें भी के यूही लाइन मारते रहोगे आप.." शीना ने शरमा के कहा



"तुम जो बोलो मैं वो करने के लिए रेडी हूँ.." रिकी ने आँख मार के कहा



"हिम्मत है इतनी.." शीना ने इठला के कहा



"हुहह.. यू टॉकिंग टू मी.. बेबी, मुझे चॅलेंज नहीं करो, हार जाओगी.." रिकी ने अपनी बाहें शीना के गले में डाल के कहा



"ओह हो.. तो चलो, यहाँ से लेके गाड़ी तक मुझे गोद में उठा के ले चलो, मान जाउन्गी आपकी हिम्मत को.."



"बस इतनी बात.. अभी लो..." रिकी ने कहके अपना एक हाथ शीना की कमर पे रखा और दूसरा टाँगों के निचले हिस्से में रखा और देखते ही देखते उसे अपनी मज़बूत बाहों से लगा लिया



"ओउक्च....." शीना ने हल्के कराह के चिल्लाया



"धीरे उठाओ ना, आइ एम स्टिल रिकवरिंग.." शीना ने अपनी आँखें बंद कर कह



"वैसे मसल्स तो अच्छे बनाए हैं आपने." इस बार शीना ने अपने हाथ रिकी के गले में डाल के कहा



"अब ऐसे चलोगि तो घर वाले कहीं मुझे.."



"यही तो चॅलेंज है, अब चलो भी" शीना ने रिकी की बात बीच में काट के कहा.. रिकी शीना को अपनी गोद में लेके बाहर निकला और धीरे धीरे यह देखता हुआ आगे बढ़ रहा था के कहीं कोई नीचे बैठा ना हो.. शीना अच्छे से समझ रही थी उसकी हालत को और अंदर ही अंदर उसे देख मुस्कुरा रही थी.. सीडीयों से होता नीचे रिकी पहुँचा ही था कि सामने उसे अमर और सुहसनी भी दिखे...



"अरे, शीना बेटी क्या हुआ.. और रिकी ऐसे क्यूँ उठा रखा है रिकी तुमने..." अमर ने थोड़ा कड़क आवाज़ में दोनो से कहा



"वो डॅड, थोड़ा पेर में मोच आ गयी, लड़खड़ा गयी तो दर्द बढ़ गया, इसलिए भाई को उठाने को कहा..आप उनपे गुस्सा ना हो प्लीज़..." शीना ने बात संभालते हुए कहा



"वो सब ठीक है, पर जाना कहाँ है, तुम उपर रेस्ट करो चलो.." अमर ने हिदायत देते हुए कहा



"क्या आप भी बच्चों के साथ गुस्सा होते हैं, कोई बात नहीं बेटा, जाओ थोड़ी फ्रेश एर ख़ाके आओ, अच्छा लगेगा.. कब तक अंदर बैठी रहोगी.. रिकी, ध्यान रखना ठीक है.." सुहसनी ने अमर को टोकते हुए कहा



"अरे पर ऐसी हालत में"



"कैसी हालत में, यह अभी ठीक हो रही है, अच्छा है जल्दी से रिकवर हो रही है.. और बाहर थोड़ा माहॉल बदलेगा, मन खुश होगा तो और भी जल्दी ठीक होगी.. आप नहीं समझोगे, चलो अब तुम दोनो जाओ नहीं तो यह फिर कुछ बोल पड़ेंगे.." सुहसनी ने हँसकर शीना और रिकी से कहा और वो दोनो भी फटाक से अपने माँ बाप की नज़रों से ओझल हो गये



"क्या आप भी इन्हे टोकते रहते हैं..चलिए, हम भी थोड़ा गार्डेन में हवा खाते हैं.." सुहसनी ने अमर से कहा और अमर कुछ ना कर सका सिवाय आगे बढ़ने के



"हाहहहा..आपकी हालत हिहिहिहहीी.." शीना ने रिकी के चेहरे को देख कहा, रिकी ने कुछ जवाब नही दिया और बस उसे ही देखता रहा



"मुझे मत देखो... यह तो डॅड मेरे स्वीटहार्ट हैं, नहीं तो आज आप इतनी डाँट खाते... और दूसरी बात, इस गाड़ी में क्यूँ चल रहे हैं, आपको जो गिफ्ट मिली उसमे चलो ना.." शीना ने सीट पे बैठ के कहा



"नहीं, तुम ठीक हो जाओ..सबसे पहले तुम चलाना वो कार... अब आपकी इजाज़त हो तो चलें.." रिकी ने मुस्कुरा के कहा



"हां जी चलो, पर कहाँ चलें वो तो नहीं बताया आपने.." शीना ने जवाब दिया जिसे सुन रिकी ने गाड़ी स्टार्ट की और वहाँ से निकल गये.. काफ़ी दीनो बाद घर से बाहर निकली शीना एसी की हवा के बदले बाहर की हवा को महसूस करना चाहती थी, बाहर आके उसने जैसे खुल के साँस ली, आती जाती ट्रॅफिक को देख , लोगों को देख वो मंन ही मन खुशनुमा महसूस कर रही थी



"यह लो आ गये..." रिकी ने गाड़ी रोक के कहा



"यह तो वही होटेल है..यहाँ क्यूँ आए हैं.." शीना ने अपनी नज़रें उठाई तो नज़र इरीटा मराठा के बोर्ड पे गयी



"चलो अंदर.. और कीप मम, आंड आक्ट आ बिट लो ओके.." रिकी ने गाड़ी वलेट को दी और शीना का हाथ पकड़ के धीरे धीरे अंदर चलने लगा और साथ ही शीना भी हल्के हल्के लिंप करके अंदर जाने लगी..



"इससे अच्छा तो आप की गोद लग रही थी.." शीना ने हल्के रिकी के कान में कहा जिसका जवाब रिकी ने कुछ नहीं दिया और उसे खामोश रहने का इशारा किया...



"यस सर.. वेलकम तो मराठा..हाउ मे आइ हेल्प यू.." रिसेप्षनिस्ट ने रिकी और शीना को देख मुस्कुरा के कहा.. जवाब में रिकी ने कुछ नहीं कहा और अपने जेब से एक कार्ड निकाल के उसे पकड़ाया.. रिसेप्षनिस्ट ने कार्ड देखा और चेक करके उसे वापस दे दिया..



"सर.. दिस वे प्लीज़..." रिसेप्षनिस्ट ने उन्हे एक ओर इशारा करके कहा



"यू वेट हियर...आइ विल बी बॅक, कॅन यू प्लीज़ गेट सम्वन टू हेल्प हर.." रिकी ने रिसेप्षनिस्ट से कहा, तुरंत एक दूसरी लड़की आई और शीना को कंधा देके पास बने सोफा पे बिठाया और रिकी रिसेप्षनिस्ट के साथ सामने मॅनेजर की कॅबिन में चला गया..



"यस सर.. बताइए, हम क्या मदद कर सकते हैं पोलीस की.." मॅनेजर ने सामने बैठे रिकी से कहा


"उः, कुछ दिन पहले..करीब एक हफ़्ता, एक यंग लेडी और एक तकरीबन 40-45 यियर्ज़ का मर्द.. आपके होटेल में आए थे.. हमे शक है दे आर लिंक्ड टू सम आंटी सोशियल ग्रूप

आंड दे र प्लॅनिंग बिग... क्यूँ कि हमारी इन्फर्मेशन अब तक फर्स्ट स्टेज पे है इसलिए इनफॉर्मल मदद चाहिए आपसे.." रिकी ने सीधे बैठते हुए कहा



"ओके, बट वी वुड नीड सम्तिंग इन रिटन फ्रॉम यू ऑर युवर डिपार्टमेंट.. आइ मीन, आइ कन्नोट शेयर एनिबडी'स इन्फो डाइरेक्ट्ली सर.." मॅनेजर ने जवाब दिया



"नो नो.. आइ डॉन'ट नीड एनितिंग डाइरेक्ट्ली, एक काम कीजिए, यू स्पीक टू कमिशनर सर..फिर तो आप देंगे.." कहके रिकी ने फोन लगाया और एक नंबर घुमाया...



"सर.. जस्ट आ सेकेंड.." रिकी ने फोन पे कहा और फोन मॅनेजर को पकड़ाया



"यस, हू ईज़ दिस.." मॅनेजर ने मज़ाक समझ के कहा



"पोलीस कमिशनर हियर, " सामने वाले ने सिर्फ़ इतना ही कहा कि मॅनेजर की हालत खराब हो गयी



"ओह सॉरी सॉरी सर...आइ विल गिव देम इन्फो राइट अवे.." कहके मॅनेजर ने फोन कट किया और रिकी को वापस दे दिया.. उधर सामने कमिशनर अब तक नही समझ पाया कि रिकी ने उसे कॉल क्यूँ किया..



"सर, टेल मी क्या चाहिए आपको.." मॅनेजर ने पानी का ग्लास पीते हुए कहा



"लास्ट नेम आइ डॉन'ट नो, बट फर्स्ट नेम स्नेहा आंड राजवीर.. इन नामो से पिछले 7 दिनो में कोई बुकिंग है, मुझे वो जानना है..कौन्से रूम में थे.." रिकी ने अकड़ के कहा



"आइ विल गेट इट डन सर.. गिव मे 10 मिनिट्स.." मॅनेजर ने रिकी से कहा और इंटरकम पे फोन करके डीटेल्स मँगवाई.. करीब 10 मिनिट में उसके पीसी में एक मैल आया जिसमे सब डीटेल्स थी पिछले 10 दिनो की.. मैल आते ही मॅनेजर ने जल्दी से बताए नामो पे सर्च किया...



"यस सर..देयर दे आर.. यह लोग प्रेसिडेन्षियल सूयीट में रुके थे.." मॅनेजर ने पीसी पे देख के कहा



"ठीक है.. अभी वो रूम ऑक्युपाइड है या वेकेंट है"



"अभी वेकेंट है सर, काफ़ी कम लोग प्रेसिडेन्षियल सूयीट में रुकते हैं.."



"ठीक है, मैं वो रूम देखना चाहूँगा" रिकी ने चेर से खड़े होके कहा और साथ ही मॅनेजर भी खड़ा होके उसके साथ बाहर आया.. बाहर आते ही रिकी ने एक नज़र शीना को देखा और आँखों से उसे खामोश रहने को कहा और मॅनेजर के पीछे चलता रहा.. 5 मिनट में रिकी प्रेसिडेन्षियल सूयीट में खड़ा था मॅनेजर के साथ..
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07-03-2019, 04:39 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
रिकी ने फोन निकाला और बात करने की आक्टिंग करने लगा..



"यस सर... नो देयर आर नो कॅम्स हियर.." रिकी ने फोन पे कहा और साथ ही नज़रों से मॅनेजर की पुष्टि भी ले ली इस बात की



"कॅन यू प्लीज़ एक्सक्यूस मी.. आइ वॉंट टू डिसकस सम कॉन्फिडेन्षियल थिंग्स, गिव मी 2 मिनट" रिकी ने मॅनेजर से धीरे से कहा , मॅनेजर बिना कुछ कहे बाहर गया और दरवाज़ा लॉक करके बाहर ही वेट करने लगा..



"चलो जी, सोलंकी साब.. अब काम पे लगो" रिकी ने फोन जेब में रखा और खुद रूम को देखने लगा.. बेड के पास एक फ्लवर वेस पड़ा था.. रिकी ने जल्दी से अपनी पॉकेट से एक माइक निकाला और उसे उसमे छुपा दिया.. माइक को सही पोज़िशन मे रख के खुद बाहर निकला



"नेक्स्ट टाइम इफ़ दे एवर कम टू यू.. उन्हे यही रूम देना, और पहचान तो आप कर ही लेंगे, रिसेप्षन पे कॅमरा तो है, रन दट, मॅच युवर टाइम आंड युवर गुड टू रेकग्नाइज़ देम.." रिकी ने मॅनेजर से कहा जिसका जवाब मॅनेजर ने सिर्फ़ गर्दन को हां में हिला के दिया..



"ठीक है सर, थॅंक्स आ लॉट. मुंबई पोलीस आपकी आभारी है.." रिकी ने मॅनेजर से अलविदा कहा और शीना को चलने का इशारा किया.. शीना भी बिना कुछ कहे उसके साथ बाहर जाने लगी और गाड़ी का इंतेज़ार करने लगी..



"तो क्या हुआ... वो कौनसा कार्ड था, " शीना आगे कुछ कहती इससे पहले रिकी ने उसे वो कार्ड दिया और गाड़ी में बैठ गये दोनो.



"ओह हो.. डीएसपी कदम साहेब.. यह कैसे आया आपके पास वो बाद में देखूँगी.. बट बताओ, क्या पता चला.."



"नतिंग.. यह दोनो यहाँ नहीं थे.. ज्योति को ग़लत फहमी हुई है.." रिकी ने जवाब दिया और गाड़ी आगे बढ़ने लगा


"नहीं ज्योति.. हम सही कह रहे हैं, भाई ने खुद जाके उधर चेक किया.." शीना ने ज्योति से कहा.. होटेल से आने के बाद रिकी और शीना सीधा ज्योति से मिलने उसके कमरे में गये..



"ऐसा नहीं हो सकता शीना, मैने खुद पापा और भाभी को देखा है गाड़ी से बाहर निकालते हुए.." ज्योति ने फिर वोही चीज़ कही जो पिछले आधे घंटे से वो दोनो को कह रही थी



"अच्छा ज्योति एक बात बताओ..तुमने चाचू और भाभी को कितनी दूरी से देखा.." इस बार रिकी ने सवाल किया



"डिस्टेन्स तो शायद..भैया, तकरीबन 40-50 फीट का था, शायद, एग्ज़ॅक्ट नहीं कह सकती मैं" ज्योति की आवाज़ में पहली बार विश्वास नीचा होता हुआ दिखा



"ओके.. और क्या वो लोग वॉक कर रहे थे, आइ मीन पैदल निकल रहे थे क्या होटेल से, या एनितिंग लाइक दट.." रिकी ने फिर सवाल पूछा



"नहीं, मैं मेरी ड्रेस लेने के लिए उतरी ही थी कि मैने सामने एक वोल्वो गाड़ी जाते देखी.. पहले तो उसका नंबर देखा, फिर जब रीकॉल हुआ तो याद आया यह गाड़ी हमारे घर की है, लेकिन फिर आगे जाके गाड़ी ने एक राइट टर्न घुमाया जिससे मुझे भाभी और पापा का चेहरा दिखा..."



"ज्योति, 40-50 फीट का डिस्टेन्स और उसपर गाड़ी की स्पीड भी कम से कम 50 की तो होगी.. ऐसी स्पीड और इतना ज़्यादा फासला, कोई भी ग़लत फहमी खा सकता है यार.."



"नहीं भैया, आइ आम श्योर के वो पापा और भाभी ही थे.."



"ओके, चल इस बात पे भी आइ अग्री..." शीना ने बीच में कहा



"बट टेल मी डार्लिंग, अगर तूने गाड़ी मेन रोड पे देखी तो यह कहाँ से आया के गाड़ी होटेल से निकली थी.. ऐसा भी हो सकता है कि वो लोग कहीं और गये हो, या कहीं जा रहे थे किसी काम से, तब तूने देखा हो.. तेरे पूरे इन्सिडेंट में मुझे तो एक बार भी नहीं दिखा के यह लोग होटेल से निकले.." शीना ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा... शीना की यह पॉइंट सुनकर ज्योति खामोश हो गयी और उसके चेहरे पे भी अब असमंजस के भाव थे..



"देखा, कि ना वालिद पॉइंट..कब्से हम कह रहे हैं कि भाई ने होटेल चेक किया लेकिन वहाँ यह दोनो थे ही नहीं..." शीना ने इस बार ज्योति के गले में हाथ डाल कहा



"हां, वो ठीक है..पर..."



"पर वर कुछ नहीं यार.. हम ने कहा ना अब वो फाइनल है.. और हां मेरी बात, कि वो दोनो कहीं जा रहे थे या कहीं से आ रहे थे, तो वो भाई पता कर लेंगे..है ना भाई..." शीना ने बड़े विश्वास से रिकी की तरफ देखा



"अब तुमने कह दिया है तो करना ही पड़ेगा, मेरे पास कोई चाय्स थोड़ी है.. बट आइ विल नीड सम टाइम.." रिकी ने ज्योति को आश्वासन देते हुए कहा



"नहीं भैया, दट'स ओके.. अगर आप लोग इतने श्योर हैं तो लेट इट बी..वैसे भी पापा पूरा दिन खुद में बिज़ी रहते हैं, अगर वो कहीं गये भी भाभी के साथ तो दट'स ओके..उसमे इतनी बड़ी प्राब्लम नहीं होनी चाहिए मुझे.." ज्योति ने खुद को संभालते हुए कहा



"नही, वो सब ठीक है..बट फिर भी भाई, आपको जो कहा है वो करना..." शीना ने रिकी से कहा और उसके जवाब का वेट किए बिना ज्योति की तरफ रुख़ कर दिया..



"अच्छा, अब एक काम करो, कल वीकेंड है ना...भाई, आप तो रिज़ॉर्ट जाएँगे ही कल, मुझे भी ले चलिए ना प्लीज़..मैं भी देखूं तो कैसा है, आज 3 मंत्स होने आए हैं.."



"2 मंत्स.. 3 मंत कैसे.. आंड तुम्हारी हालत देखो, पापा मम्मी से हम क्या कहेंगे..." रिकी ने जवाब दिया



"कोई बात नहीं भैया, ताऊ जी से मैं बोल दूँगी, वो मुझे मना नहीं करेंगे.." ज्योति ने शीना को फिर गले लगा लिया और दोनो बहने हँसने लगी..



"यो.. दट माइ सिस.." शीना ने जवाब में सिर्फ़ इतना कहा और दोनो अपनी अपनी बातों में लग गये.. दोनो को यूँ देख रिकी को काफ़ी खुशी हुई, कुछ ज़्यादा कहे बिना, वो वहाँ से निकला और अपने कमरे में चला गया



"क्या हुआ..." सामने वाले ने रिकी को फोन करके सबसे पहले यह सवाल पूछा



"कुछ भी नहीं..क्या होगा" रिकी ने सुस्त अंदाज़ में कहा



"तो फिर , ऐसी आवाज़ क्यूँ"



"थक गया हूँ.. पता नहीं यह सब कब ख़तम होगा..."



"अभी से थक गया.. अभी तो काफ़ी चीज़े बाकी हैं, पर सबसे ज़रूरी बात वो रिज़ॉर्ट का बनना.. वो सब हो जाए, फिर काम पूरा कर देंगे.."



"वो सब ठीक है, बस दिमाग़ को शांति चाहिए..कुछ दिन बाहर होके आउ"



"घुमके आ..मैं जानता हूँ तू एक जगह ज़्यादा टाइम नहीं रह सकता, और यह सब मेरे कहने पे कर रहा है.. एक काम कर, ऐसी जगह जा जहाँ पे तेरे दिमाग़ को सुकून मिले, और हां, हो सके तो मेरे पास आजा.."



"दिमाग़ की शांति चाहिए, दिमाग़ का झंड नहीं करना.. वैसे भी तेरे पास आउन्गा तो दारू और सिगरेट के अलावा कुछ करवाएगा नहीं.. मैं यह सब छोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ.."



"करता रह भाई, मैं क्या कहूँ.. एक काम कर, ज्योति को अपने साथ ले जा, सुलझी हुई लड़की है, तुझे अच्छी लगेगी उसकी कंपनी.."



"उसको क्यूँ भाई, और रही बात कंपनी की.. तो आप तो उसके आशिक़ हो, कहीं ग़लती हो गयी मुझसे तो"



"नहीं करेगा तू ऐसा कुछ काम..आइ ट्रस्ट यू स्वीटहार्ट..और उसकी बात इसलिए कि क्यूँ की काफ़ी दिन से स्ट्रेस्ड आउट है, अपने बाप और भाभी की बात को लेके..अबे भैन..के भाई.. यह बता उन दोनो के सीन का पूछ रहा था, क्या हुआ उसका.." सामने वाले को अचानक जैसे याद आया कि उसने क्यूँ फोन किया था



"हां यार, वो मैने चेक किया.. दोनो होटेल में तो थे, पर उससे आगे कुछ नहीं मिला.. और हां, आपकी प्यारी स्नेहा तो उसके साथ भी सो ली.. टॉप की रंडी लाए हो, मान गये आपको.." रिकी ने उखड़े हुए स्वर के कहा



"हां, वो तो है, वैसे तू जबसे आया है, तबसे मैने उससे कुछ नहीं करवाया.. शी ईज़ यूस्लेस.. अंत में उसे भी निपटाना पड़ेगा"



"सब को निपटा देना भाई..सब को, किसी को नहीं छोड़ना..चल अब मैं रखता हूँ.." कहके रिकी ने बिना कुछ सुने फोन कट किया और राजवीर और स्नेहा के बारे में सोचने लगा..



"आख़िर क्या बात हो सकती है.. दोनो का यूँ मिलना, जिस्मानी संबंध बनाना.... स्नेहा जितनी चालाक दिखाती है खुद को, उतनी वो है नहीं, लेकिन मैं जानता हूँ राजवीर जैसे मर्द को बहकने में उसे वक़्त नहीं लगेगा..." रिकी ने खुद से कहा और एक पल के लिए कमरे के बाहर जाके बाल्कनी में खड़ा हो गया..कुछ देर हल्की ठंडी हवा ख़ाके उसके दिमाग़ को सुकून मिला...
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07-03-2019, 04:39 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यस.." रिकी ने फिर खुद से कहा और अंदर आके स्नेहा के लॉकर से निकले हुए पेपर्स देखने लगा.. पेपर्स देखते देखते उसे यह तो पता चला कि राजवीर ने अपनी सारी जयदाद स्नेहा के नाम की है, और ज्योति की केरेटेकिंग का क्लॉज़ भी है.. लेकिन सबसे ज़्यादा दिमाग़ उसका यह सोच सोच के खराब हो रहा था कि आख़िर राजवीर ऐसा क्यूँ करेगा, आख़िर ऐसी क्या मजबूरी है कि राजवीर यह सब कर रहा है.. ना तो स्नेहा कोई उसकी रिश्तेदार है, ना ही कोई दूसरा रिश्ता, फिर कोई बाप अपनी बेटी को छोड़ अपने भतीजे की बीवी के नाम सारी जायदाद क्यूँ करेगा.. सोचते सोचते उसे ख़याल आया क्यूँ ना उसी से पूछा जाए, फोन उठाया और नंबर डाइयल भी करने लगा कि फिर कट कर दिया



"नहीं..फिलहाल रहने देता हूँ..पर क्यूँ आख़िर.." रिकी ने खुद से कहा और पेपर्स वापस अपने ड्रॉयर में रख दिए... करीब आधे घंटे में रिकी नींद की आगोश में चला गया..




"हे रिकी..." यह आवाज़ आते ही रिकी पीछे मुड़ा तो अपने अज़ीज़ दोस्त को देख काफ़ी खुश हुआ..



"अरे भाई, क्या हाल.. कहीं दिखता ही नहीं आज कल" रिकी ने उसे गले लगाते हुए कहा



"बस यार, थोड़ा सा बिज़ी चल रहा हूँ, वैसे तू सुना.. कितने दिन बाद आया कॉलेज हाँ..लंडन की गोरियों में बिज़ी उम्म्म्म.."



"अबे ना रे, मुझे लड़कियों में फिलहाल कोई इंटेरेस्ट नहीं है.. वो तो डॅड आए थे इधर, तो उनके साथ रहता था... आंड वैसे भी अभी कुछ वक़्त ही हूँ मैं इधर, फिर वापस घर जाउन्गा.."



"क्यूँ घर...अचानक क्या हुआ, सब ठीक है"



"अरे हां भाई, एवेरितिंग फाइन, न्यू एअर'स पार्टी है हर साल की तरह तो इस बार हमेशा के लिए जाउन्गा..वहीं से कोर्स कंप्लीट कर दूँगा मैं.." रिकी ने हँस के जवाब दिया



"ओह हो.. तू चला जाएगा यार, फिर हम सब क्या करेंगे इधर.. तेरे बिना फुटबॉल में बिल्कुल मज़ा नही आएगा यार.." उसके दोस्त ने उदास होके कहा



"यह तू कह रहा है.. फॉर्वर्ड की पोज़िशन का चॅंप, भाई तू कॅप्टन बनने वाला है अभी डिक्लेर होने वाली लिस्ट में.." रिकी और उसका दोस्त आगे बढ़ने लगे



"ओह शिट... चल चल देखते हैं , लिस्ट आई क्या..." उसके दोस्त ने कहा और रिकी की कोई बात बिना सुने उसे वहाँ से लॉकर रूम की तरफ ले जाने लगा..



जैसे ही दोनो लॉकर रूम के नज़दीक बढ़ने लगे वैसे वैसे उन्हे भीड़ जमा होती हुई दिखी.. भीड़ में से किसी ने रिकी और उसके दोस्त को देखा तो चिल्लाया



"ओह हे.. हियर ईज़ दा न्यू कॅप्टन.." कहके सब लोग रिकी के दोस्त को कंधे पे उठा के उछालने लगे और रिकी भी उनकी मस्ती में उनके साथ जुड़ गया




"ओककक ओके... प्लीज़ लेट मी डाउन विल यू.." रिकी के दोस्त ने सब को हल्के से उँचे स्वर में कहा तो कुछ देर में उन्होने उसे नीचे उतार दिया




"ह्म्म्म्म ....सो बिली, अरेंज दा बियर्स टुनाइट... 8 पीएम और हॉस्टिल मेस्स्स ओके..." जैसे ही रिकी के दोस्त ने यह कहा वहाँ खड़े सब गोरे, एशियन्स और फुटबॉल टीम का हर मेंबर चिल्लाने लगे



"कपटांन्न्न्.... कपटांन्न.." ऐसी चीखों से लॉकर रूम का माहॉल में एक अलग ही एग्ज़ाइट्मेंट पैदा हो गयी..



"ओह यस मॅन... आइ विल अरेंज दा चिक्स ऐज वेल... आंड कॅप्टन... युवर न्यू गर्लफ्रेंड बब्बययययी..." दूसरे गोरे ने चिल्ला के कहा



"माइ न्यू गर्लफ्रेंड..... उम्म्म्म, टेक हर टुनाइट.." जैसे ही रिकी के दोस्त ने यह कहा रिकी हैरान रह गया लेकिन बाकी सब मज़े में दौड़ने लगे...



"ओह्ह्ह येस्स्स.... आइ मस्ट से स्पॅनिश चिक ईज़ वेरी हाव्वत्त्तत्त..थॅंक्स मॅन... सी या टुनाइट ऑलराइट.. वूऊओह.." उस गोरे बंदे ने कहा और धीरे धीरे कर सब वहाँ से निकल गये..




"अब तुझे क्या हुआ.." रिकी के दोस्त ने देखा जो अभी भी शॉक में खड़ा था..



"यार, तू ऐसा केसे कर सकता है.. तू उस लड़की से प्यार करता है.. फिर भी" रिकी अब तक उस बात को लेकर परेशान था




"कोई प्यार नहीं भाई... देख एक ही चीज़ है, मैं सब में प्यार ढूंढता हूँ और इस चक्कर में फ्रेंच, स्पॅनिश, इंग्लीश, हॉलॅंड, बेल्जियम... यार सब लड़कियों को पटा के देखा बट प्यार कहीं नहीं दिखा.. इसलिए अब जब प्यार दिखा नहीं तो मैं कैसे उसे रोक सकता हूँ, और वैसे भी आज अगर वो लड़की खुद करेगी तो ओके, मैं कुछ फोर्स नहीं करूँगा..."



"तुम लोग ने डेफिनेशन ही बदल दी है प्यार की...एनीवेस, चल मैं निकलता हूँ" कहके रिकी आगे बढ़ने लगा और उसका दोस्त पीछे पीछे चलने लगा



"अबे सुन तो मेरे राइचंद..शाम को 8 बजे से लेट आया ना तो याद रखना"



"कोशिश करूँगा यार..." रिकी ने सिर्फ़ इतना कहा



"बेटा अगर तू हॉस्टिल में रह रहा होता ना, तो सच्ची में दिखाता तुझे स्टूडेंट लाइफ क्या होती है.. लेकिन आप महाशय रहते हैं काउंटी में वो भी यहाँ से कितनी दूर, और वो भी एक बड़े से बंगले में.. साला अकेला रहते रहते डर नहीं लगता तुझे"



"डर कैसा भाई, आंड वैसे भी हॉस्टिल में पापा ने मना किया यार, नहीं तो मेरी दिल हॉस्टिल में रहने की ही थी" रिकी ने हल्की सी उदासी दिखाते हुए कहा



"ठीक है, अब सेनटी ना हो..शाम को 8 से लेट नही ओके..चल बाइ, बेकी वेट कर रही होगी.."



"बेकी...आइ थॉट वो स्पॅनिश लड़की का नाम तो शायद मरीया है ना.." रिकी ने आँखें घुमा के जवाब दिया



"बेकी यूएस की है, अरे वो बंदी नहीं जो अभी दो महीना पहले ही यहाँ आई थी.. अरे वो ही, जिसको लाइब्ररी का रास्ता नहीं मिल रहा था उस दिन.."



"अरे किस दिन, एनीवेस, तू लगा रह.. चल मैं शाम को आता हूँ.." रिकी कहके वहाँ से निकल गया और उसका दोस्त भी वहाँ से अपने कमरे की तरफ निकला...
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07-03-2019, 04:39 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यू स्पिन माइ हेड राइट राउंड.. राइट राउंड... व्हेन यू गो डाउन...." फ्लोरिडा के इस गाने ने हॉस्टिल के मेस में तबाही मचा रखी थी, फुटबॉल टीम के सब प्लेयर्स इकट्ठा होके पार्टी मना रहे थे अपने नये कप्तान की खुशी में.. और खुश हो भी क्यूँ ना, नये कॅप्टन की वजह से वो लोग काफ़ी मॅचस भी जीते थे.. बेस्ट प्लेयर ऑफ दा एअर का अवॉर्ड भी मिला हुआ था, इंटर कॉलेज चॅंपियन्षिप में फाइनल तक सिंगल हॅंडेड्ली ले जाना कोई मज़ाक थोड़ी है.. फाइनल्स में हार से सबको एक बड़ा झटका लगा.. लेकिन फिर भी उनका पर्फॉर्मेन्स हर साल के मुक़ाबले काफ़ी तगड़ा था... कप्तान बनाए जाने की खुशी में सब को एक उम्मीद दिखी के इस बार की फाइनल वोही जीतेंगे..इसलिए इनकी खुशी की कोई सीमा नहीं थी.. कोई टी शर्ट उतार के नाच रहा था, कोई बिना पॅंट के सिर्फ़ बॉक्सर में था.. लड़कियाँ भी थी, जिनमे से आधी रिकी के दोस्त की क्ष बन चुकी थी और अभी नये बाय्फ्रेंड के साथ वहाँ आई थी..



"हे मॅन.. आइ आम गोयिंग बॅंगिंग हर. हहाआ" एक गोरे ने रिकी के दोस्त से कहा जो अभी रिकी के साथ बियर पीने में लगा हुआ था



"यो बॉय.. शी ईज़ ऑल युवर्ज़..मरीया, प्लीज़ टेक गुड केर, "



"फक यू.. मदर फकर..." लड़की ने रिकी के दोस्त को जवाब दिया और वहाँ से निकल गयी




"यार यह साली को कभी ऐसी गाली दूँगा ना मेरी मातृ भाषा में, ज़िंदगी साली की निकल जाएगी मतलब ढूँढते ढूँढते" रिकी के दोस्त ने रिकी से कहा जो अभी कुछ तकलीफ़ में लग रहा था..




"हेलो.. भाई, ठीक है ना तू." रिकी के दोस्त ने बियर की बॉटल को साइड रख के कहा



"हां.. बसस्सस्स..थोड़ा साअ चक्कर..." रिकी ने इतना ही कहा के वो सर पकड़ के बैठ गया..



"चल भाई, वॉशरूम चल..जाके मूह धोके आ ठीक हो जाएगा...हे बेकी.. " रिकी के दोस्त ने चिल्ला के कहा



"बेकी, माइ फ्रेंड.. कॅन यू प्लीज़ टेक हिज़ केर बेबी, आइ विल बी बॅक इन आ मिनिट"



"श्योर..." बेकी ने सिर्फ़ इतना ही कहा और रिकी का दोस्त वहाँ से निकल के दूसरे दोस्तों से मिलने गया



"आइ सजेस्ट यू मस्ट हेड टू गेट फ्रेश, कम वित मी" बेकी ने अपना हाथ आगे बढ़ा के कहा



"नो नो.. दट'स ओके.. आइ विल मॅनेज... थॅंक्स " रिकी ने जवाब में कहा और सर पकड़ के वहाँ से बाथरूम की तरफ जाने लगा...



"ओह नूओ.... शिट " रिकी ने खुद से कहा और बाथरूम जाके अपने चेहरे को पानी से धोने लगा.. करीब 5 मिनिट तक वो बाथरूम में रहा..



"थॅंक गॉड.." रिकी ने जब ठीक महसूस किया तब खुद से कहा और बाहर जाने लगा.. बाथरूम का दरवाज़ा खोलते ही सामने एक शक्स खड़ा दिखाई दिया और अपने दोनो हाथ बढ़ा के रिकी के चेहरे पे रुमाल से क्लॉरोफॉर्म सूँघाने लगा... कुछ ही देर में रिकी की छटपटाहट कम हुई और वो बेहोश होके ज़मीन पे गिर गया.. जब होश आया तो रिकी एक अंधेरे कमरे में एक कुर्सी पे बैठा हुआ था और उसका पूरा शरीर रसी से बँधा हुआ था...



"हेलो राइचंद..." अंधेरे से एक आवाज़ प्रकट हुई और धीरे धीरे एक साया रिकी की तरफ बढ़ने लगा



"हू आर यू... कौन.." रिकी ने बस इतना ही कहा के सामने खड़े शक्स को देख उसकी आँखें बड़ी होती चली गयी...



"तूमम्म...."




"नतिंग'स गॉना चेंज माइ लव फॉर यू..." रिकी का फोन बजा तो उसकी आँखें एक झटके में खुल गयी और वो अपने इस डरावने ख़याल से बाहर आ गया..रिकी पूरा पसीने से भीग चुका था, नज़र घुमा के देखा तो सुबह के 5 बजे थे..एक नज़र फोन पे मारी तो 2 मिस कॉल्स थे..



"5 बजे कौन कॉल करेगा मुझे.." रिकी ने खुद से कहा और फोन चेक करने लगा
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07-03-2019, 04:41 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"इतनी सुबह सुबह फोन..क्या हो गया स्वीटहार्ट." रिकी ने शीना के कमरे में जाते हुए धीरे से कहा...



"ऐसे ही भाई..मेरी आँख खुल गयी, आंड आइ वाज़ फीलिंग अलोन.." शीना ने उतनी ही धीरे जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में एक थोड़ा सा रूखापन भी था..



"व्हाट हॅपंड..नोट फीलिंग गुड.." रिकी शीना के पास गया और उसके चेहरे की तरफ झुकते हुए बोला..



"नो...मेरे होंठ बहुत सुख गये हैं कुछ दिन से...." शीना की आवाज़ में इस बार तड़प सॉफ झलक रही थी



"सुबह सुबह..इसलिए बुलाया तुमने..." रिकी ने अपने चेहरे को और नीचे झुकाया और अपने होंठ शीना के होंठों से हल्की सी दूरी पे रोक दिए



"मैं भी तुमको इतना ही मिस कर रहा हूँ.." रिकी ने फिर कहा और अपना हाथ शीना के बालों के पीछे ले जाके उसे हल्का सा आगे किया..दोनो के होंठ एक दूसरे के इतने करीब थे के वो दोनो उस गर्मी को महसूस कर सकते थे जो उनके अंदर काफ़ी वक़्त से थी...दोनो के शरीर ऐसे जल रहे थे जैसे भट्टी की आग होती है..देखते ही देखते शीना और रिकी की साँसें तेज़ हो गयी..ज़्यादा देर ना करते हुए रिकी ने शीना के चेहरे को हल्का सा पीछे से ज़ोर दिया और अपने होंठों से उसके होंठ मिला दिए...



"उम्म्म्मममममम........आअहहूंम्म्मममममममममम....." शीना की ऐसी सिसक सुन रिकी को अंदाज़ा आ गया के इतने वक़्त से जो गर्मी उसके शरीर के अंदर थी वो कैसे कम होगी



"उम्म्म्मम्युंमम्मम हाआँ भाई आहमम्म्मम....सक मी हार्डर अहहहः उम्म्म्ममम........बाकी फ्यू डेज़ आहहूंम्म्ममम.....आंड देन अहहहूंम्म्मम ईएसस्स्स्स्सस्स...फिर मैं आपकी बाहों में अहहहूंम्म्मम....." शीना किस करते करते बोलती और रिकी बस उसके होंठों को चूस्ता ही जाता.....




"अहहहा ईएसस्स्सुम्म्म्ममममम..." शीना अभी थोड़ी रिलॅक्स हो गयी और बेड पे लेट के रिकी को अपने उपर खींच लिया लेकिन दोनो के होंठ अलग नहीं हुए




"ओह उम्म्म्मममम आहहाहहाहा ईआहह...." शीना और रिकी अभी भी एक दूसरे के होंठों में खोए हुए थे



शीना और रिकी अपने मज़े में यह भूल गये कि दरवाज़ा खुला था , भले ही सुबह का वक़्त हो लेकिन कोई भी आ सकता था..और शायद कोई देख रहा था दोनो को




"आहहमम्म्म....आइ लव यू आ लॉट शीनाअ......." रिकी ने शीना के होंठों से अलग होके उसकी आँखों में देख कहा और उसके मस्तक को चूमने लगा.. धीरे धीरे उसके मस्तक को चूमते चूमते रिकी ने अपनी जीभ नीचे लाना शुरू की, मस्तक से होते हुए उसके नाक, आँखों , और चेहरे से लेके होंठों तक, उसके पूरे गालों को गीला करने लगा...शीना पागल सी हुई जा रही थी ऐसे अनुभव से...





"अहााहहूंम्म्म.....आइ लव यू टू भाइईइ.....उम्म्म्मम आहह ईसस्स......" शीना ने आँखें बंद की और अपने हाथों से रिकी की शर्ट को उतारने लगी....शीना के पूरे चेहरे को अपनी जीभ से गीला कर रिकी होंठों के नीचे उसकी सुरहीदार गर्दन पे बढ़ने लगा और पूरी तरह अपनी थूक से गीला करने लगा उसकी गर्दन को भी...




"ओह्ह्ह्ह आअहह भाई.....य्स्स्स.स....." शीना ने रिकी की गर्दन को पकड़ा और उसे ज़ोर देने लगी




"उम्म्म्म....." रिकी बस इतना ही कह पाता और पूरी गर्दन को अपनी जीभ से चाट चाट के गीला करता... जब रिकी से और बर्दाश्त नहीं हुआ तो गर्दन से नीचे बढ़ के शीना के चुचों की गलियों तक पहुँचा और छाती के बीच वाले हिस्से को चाटने लगा...जलती हुई आग में शीना ने भी रिकी का साथ दिया और अपने टॉप को साइड कर अपने चुचों को आज़ाद कर दिया... हवा में झूलते शीना के रसीले चुचे देख रिकी से रहा नहीं गया और वो एक एक कर उसके चुचों को अपने मूह में लेकर उन्हे चूसने लगा




"आआहहाहा भाई.. मेक लव टू मी आहहाहा उम्म्म्म येस्स्स्स....." शीना मज़े में आके अपनी आँखें बंद की और रिकी के चेहरे को अपने चुचों में धसाने लगी...



"ओह्ह्ह उम्म्म भाइी....सक देम हार्डर आहहहूंम्म्ममम..." शीना अपने शरीर को काफ़ी हल्का महसूस करने लगी थी और आनंद रूपी सागर में गोते खाने लगी थी...




शीना के चुचे चूस्ते चूस्ते रिकी ने शीना की चूत पे हाथ रखा तो कपड़े के उपर से ही उसे गीलापन महसूस होने लगा... इस मौके पर दोनो की नज़रें मिली तो दोनो एक दूसरे को ही देखने लगे, आँखों से रिकी ने कुछ इजाज़त माँगी तो शीना ने ना में गर्दन हिला दी..




"इट माइट पेन मी भाई, आइ आम स्टिल रिकवरिंग...यू कॅन सक मी इफ़ यू वॉंट टू हहेहेः..." शीना ने जैसे उसे तड़पाने के लिए यह कहा और टॉप खोल के बेड पे वापस लेट गयी...लेट के हल्की सी अपनी टाँगें खोली और रिकी को आँखों से निमंत्रण दिया...




"गो स्लोली भाई... इट स्टिल पेन्स इन आंकल..." शीना ने आँखें बंद कर कहा और रिकी की जीभ का इंतेज़ार करने लगी... रिकी ने हल्के से उसकी टाँगों को पकड़ा और उसकी चूत के पास अपने चेहरे को ले गया....चूत रस से भीगी हुई, उसकी महक ही रिकी को पागल करने लगी...एक लंबी सी साँस खींच के रिकी शीना की चूत की खुश्बू का मज़ा लेने लगा और धीरे से जाके अपनी जीभ की टिप शीना की चूत पे रखी




"आहाहहओमम्म्ममम....उफफफ्फ़......" शीना मज़े में चहेक उठी, कितने दिन बाद चूत पे कुछ महसूस किया था यह उसी की उतेज्ना थी




"आहहा हाआना भाई..... गो स्लॉववव एसस्स्शह...उम्म्म्म" शीना की सिसकियाँ तेज़ होने लगी, लेकिन अपने होंठों को अपने दाँतों तले दबा के आवाज़ नीची करने लगी और मज़े लेने लगी...खुद ब खुद उसके हाथ अपने चुचों पे चले गये और उन्हे धीरे धीरे मसल के रिकी की जीभ का मज़ा अपनी चूत पे लेने लगी..




"अहहः भाई....उम्म्म्मम ईएअहह" शीना पूरी कोशिश कर रही थी के उसकी आवाज़ नीची ही रहे




"ससलुऊर्रप्प्प्प्प्प्प्प आअहह ससलुउर्र्रप्प्प्प्पपुंमम्मममममम..." रिकी शीना को आनंदित करने में ही लगा रहा और पूरे प्यार से, आराम से शीना की चूत के मज़े लेने लगा




"आहाहहौमम्म्म...... भाई आहहह युवर सो गुड आहाहहहहहा अट इट उउम्म्म्ममम उफफफ्फ़......." शीना अपने हाथ खोल के बिस्तर के साइड पे ले गयी और बिछी हुई चादर को पकड़ने लगी
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