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RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
दीदी- “अरे नहीं, नहीं... इनसे दुबारा... ना बाबा ना... मेरी मत नहीं मार रखी है। रात से ही सूज रखी है मेरी बुर।
और नहीं सुजवाना है। और आज तो मैं अपने सैंया से ही चुदवाऊँगी। हाँ कल की बात और थी और कल की बात और रहेगी...”
झरना- “कल की बात और रहेगी। इसका मतलब क्या है भाभी?”
दीदी- “इसका मतलब ये है मेरी प्यारी ननद की मैं इतने मस्त लण्ड से चुद चुकी हूँ। आज तो अपने सैंया से चुदवाऊँगी। पर कल मौका देखकर चौका जरूर लगाना चाहूँगी...”
झरना- "इसका मतलब कि आप अपने ही भाई से फिर से चुदवाओगे?”
दीदी- “क्यों क्या हुआ? आप भी तो अपने भाई से पहली बार चुदाई थी... तो क्या फिर से नहीं चुदवा रही हो?”
झरना- “हाँ, ये तो है भाभीजी। क्या है कि पहली बार थोड़ी शर्म आती है। फिर शर्म मर जाती है। अब तो मुझे अपने भैया से चुदवाने में मजा भी खूब आता है। खैर, वो सब छोड़ो, मुझे अभी इसी वक्त आपके भाई से चुदवाना है...”
मेरा लण्ड खड़ा होकर कड़क हो चुका है। मैंने घड़ी की तरफ देखा और बोला- “दीदी, प्लीज फिर कभी। अभी मुझे इंटरव्यू के लिए जाना है...”
झरना का मुँह सुख गया।
मैंने कहा- “मैं नाश्ता कर लेता हूँ। फिर इंटरव्यू के लिए जाना है...”
झरना- “फिर मेरी फुद्दी का क्या होगा? जो आपके इस लण्ड को खाने के लिए पानी छोड़ रही है...”
मैं- “अरे झरना दीदी, मैं कहीं भागा थोड़े ही जा रहा हूँ। दोपहर तक आ जाऊँगा...”
दीदी ने मुझे नाश्ता दिया। मैं बैठकर खाने लगा। इतने में मुझे टेबल के नीचे अपनी जाँघ के पास किसी का हाथ महसूस हुआ। मैंने नीचे झाँका तो झरना थी।
मैंने कहा- क्या हुआ झरना दीदी?
झरना- “कुछ नहीं रामू भैया, आप नाश्ता करो मैं आपका जूस पियूँगी। समय की कोई बर्बादी भी नहीं होगी...”
मैं नाश्ता करने लगा और झरना मेरे लण्ड को मुँह में लेकर लोलीपोप की तरह चूसने लगी। मेरे लिए नाश्ता करना दूभर हो गया। इतने में दीदी ने पराठा मेरे प्लेट में डाला। मेरा मुँह कुछ अजीब सा हो गया था।
दीदी- “अरे रामू, क्या हुआ तुझे? ऐसे मुँह क्यों बना रहा है? क्या पराठा अच्छा नहीं बना है?”
मैं- “अरे नहीं दीदी, पराठा तो अच्छा बना है...”
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RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
दीदी- “फिर ऐसे क्यों मुँह बना रखा है? और झरना कहाँ गई? अभी तो तुझसे चुदवाऊँगी बोल रही थी। लगता है। तुमसे निराश होकर अपने भैया से लण्ड पेलवा रही होगी। जानता है रामू, मेरी ननद महा-चुदक्कड़ है, पर है। बहुत ही प्यारी। आज उसे भी अपने लण्ड का पानी पिला ही देना...”
मैं- “वो तो अपना हिस्सा अभी ले रही है दीदी..."
दीदी- “अपना हिस्सा अभी ले रही है... क्या मतलब है तुम्हारा? कहीं टेबल के नीचे से तेरा लण्ड तो नहीं चूस रही है?”
मैं- “हाँ, दीदी हाँ... पर अपने ऐसा कैसे अनुमान लगाया?”
दीदी- “अरे पहले मैं भी ऐसे ही करती थी, दमऊ के साथ...” कहती-कहती रुक गई मेरी दीदी। पर क्या करे तीर कमान से निकल चुका था, जुबान फिसल चुकी थी।
मैं- “दमऊ के साथ? इसका मतलब है दीदी की आप अपने सगे भाई के साथ चुदवा चुकी हैं?”
दीदी- “अरे नहीं, नहीं... सिर्फ लण्ड चूसा है...”
झरना- “क्यों झूठ बोल रही हो भाभी... मैंने अपनी आँखों से देखा है आपको अपने भैया से चुदवाते...” तभी टेबल के नीचे से आवाज आई।
दीदी- “अरे मैं सही बोल रही थी ना। मेरी प्यारी ननद जरूर तुम्हारा लण्ड चूस रही होगी.”
मैं- “वो सब छोड़ो दीदी... पर आप दमऊ के साथ?”
दीदी- “वो सब छोड़ो, वो सब आपको बिस्तार से बाद में बताऊँगी। अभी अपना ध्यान नाश्ते में केंद्रित करो... और झरना दीदी आप अपना ध्यान मेरे भैया के लण्ड पर केंद्रित करो। और आप... ओ सैंया जी... हाँ हाँ मैं इनके सामने कुछ नहीं बोल रही तो इसका मतलब ये नहीं की आप मेरी साड़ी के भीतर ही अपना हाथ घुसा दो। अभी चुपचाप आप भी नाश्ता करो। फिर मेरे भैया को उनके इंटरव्यू वाली जगह पर छोड़ते हुए आफिस जाना...”
जीजाजी शर्माते हुए बोले- “ठीक है रानी। पर आज रात को नहीं छोडूंगा तुम्हें...”
दीदी- “अरे आप क्या मुझे नहीं छोड़ेंगे? उल्टा मैं ही आपको नहीं छोड़ेंगी। और कहे देती हैं कि आज अपनी दीदी को आँख उठाकर भी मत देखना। उसकी आज रात के लिए मेरे भैया के लिए बुकिंग है...”
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RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
उत्तेजना के कारण मेरा बुरा हाल था। नीचे झरना लगी हुई थी। ऊपर दीदी की बातें सुनकर मैं सातवें आसमान में था। अब तीन दिन मेरी मौज ही मौज है। इतने में ही मेरी धार छूटी। वाह री झरना वाह... एक बूंद को भी जाया नहीं किया उसने। सारा ही माल अपने गले में उड़ेल लिया।
मैं- “बस-बस हो गया झरना दीदी, अब तो छोड़ दो...”
झरना- “पहले सपथ लो की रात को मुझे जी भरके चोदोगे...”
मैं- “मैं तुम्हारी फुद्दी की और अपने लण्ड की कसम खाकर कहता हूँ की आज रात सिर्फ और सिर्फ तुम्हें ही चोदूंगा। बस हो गया अब तो छोड़ दो...”
झरना- “हाँ, अब ठीक है...”
मैंने चैन की सांस ली। ठीक आधे घंटे बाद मैं और जीजाजी तैयार होकर घर से निकले।
जीजाजी ने कहा- साले साहब आज तुम बाइक चलाओ। हम भी तो देखें कि तुम कैसी सवारी करते हो?
मैंने कहा- आपकी गाड़ी दो-दो सवारी बर्दस्त कर लेगी?
जीजाजी ने कहा- “कभी एक साथ सवारी की तो नहीं है। आज देखते हैं कि सह लेगी की नहीं? वैसे आज तो तुम मेरी बहन की सवारी करने वाले हो ना... मेरी बीवी की तरफ आज आँख उठाकर मेरा मतलब है लण्ड उठाकर भी ना देखना..”
मैं- “ओहो जीजाजी, आप भी ना कहाँ की बात कहाँ जोड़ लेते हो। मैं तो आपके बाइक की बात कर रहा था..”
जीजाजी- “मैं सब समझता हूँ साले साहब। कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना। मेरी बीवी की फुद्दी में था कल रात भर तेरा लण्ड का ठिकाना...”
मैं- “अरे जीजाजी, रात गई बात गई। अब रास्ता बताओ..”
जीजाजी- “ठीक है पहले बायें चलते रहो...”
मैंने बाइक को आगे बढ़ाया। जीजाजी का हाथ मेरे कमर से सटा हुआ था। धीरे-धीरे उनका हाथ मेरे पैंट के ऊपर से मेरे लण्ड को सहलाने लगा।
मैंने हँसते हुए उनसे पूछा- क्यों जीजाजी, खाने को मन कर रहा है?
जीजाजी- “हाँ साले साहब, जब से तेरा ये लण्ड देखा है ना। मेरी गाण्ड में न जाने क्यों खुजली होने लगी है...”
मैं- इसका मतलब है जीजू आप पहले भी ले चुके हो?
जीजाजी- “अरे साले साहब, कालेज के जमाने में। लड़की मिली तो मिली नहीं तो एक-दूसरे की मूठ मारना। एकदूसरे की गाण्ड मारना। ये सब हमारे लिए अच्छा टाइम पास वाला काम था...”
मैं- “पर जीजाजी, मैं नहीं मरवाने वाला गाण्ड...”
जीजाजी- “अरे साले साहब, आपको कौन बोल रहा है मरवाने को। वो तो आपका गधे जैसा लण्ड देखकर मेरा मन मचल उठा। वैसे भी आपकी बहन मुझे कहाँ छोड़ने वाली है। सारी रात उसकी चुदाई करनी पड़ेगी। पता नहीं तुम्हारे लण्ड ने उसकी फुद्दी को मेरे लण्ड के लायक रखा है की नहीं?”
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RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
दोनों ही लड़कियां रुक गई- “अच्छा-अच्छा तुम झरना के मेहमान हो? चलो ठीक है, हम दोनों का घर भी उसके बगल में ही है। चलो चलते हैं."
मैं उनके साथ चलने लगा। वो दोनों मुझे देखती हुई मुश्कुरा रही थी और आपस में बातें कर रही थीं- “आज इस बच्चू की खैर नहीं... झरना बड़ी लण्डखोर है। रात भर में इसे निचोड़ डालेगी...”
मैं उनकी बातों के मजे ले रहा था। इतने में ही हमारा घर आ गया। मैंने देखा मेरी दीदी का घर बीच में है। एक का घर बाईं तरफ तो दूसरे का दायें तरफ। दोनों ने मुझे बाइ किया मुश्कुराते हुए, और मैं अपने दीदी के घर की तरफ बढ़ा।
दरवाजे की घंटी बजाने से पहले ही दरवाजा खुला। दरवाजे पे झरना गुस्से में थी- “ये दोनों लण्डखोरनी आपको कहाँ से मिल गई? साली बड़ी ही लण्डखोर हैं। इनसे दुबारा नहीं मिलना। नहीं तो लण्ड को पूरा ही उखाड़ लेंगी। वैसे दोनों मिली कहां तुम्हें?”
मैंने सारा वाकया उसे सुनाया।
तब झरना हँस के लोटपोट हो गई।
मैं- “वैसे झरना तुम्हारे नाम से बच पाया हूँ आज। नहीं तो दोनों मुझे पीटने वाली थीं..”
झरना- अच्छा, कैसे?
मैंने जब दूसरा वाकया सुनाया तो झरना की हँसी रुकी ही नहीं।
थोड़ी देर के बाद जब वो नार्मल हुई तो कहा- “अच्छा हुआ जो तुमने मेरा नाम लिया। नहीं तो तुमको डरा धमका कर अपने घर ले जाती और जी भरकर चुदवाती...”
मैं- “अच्छा, ऐसी चुदक्कड़ हैं दोनों..."
झरना- “दोनों... दोनों नहीं उनकी मम्मियां भी तो हैं। वो उनसे भी बड़ी लण्डखोर हैं। लड़कियां लड़के पटाकर लाती हैं और सारा खानदान चुदवाता है। मुझसे थोड़ा डरती हैं। वैसे मेरे बारे में कुछ उल्टा पुल्टा तो नहीं बोल रही थी ना."
मैं- “नहीं नहीं... आपका नाम सुनते ही दोनों पीछे हट गई और थोड़े ही देर में अपना घर आ गया...”
झरना- “चलो ठीक है, अब फ्रेश हो जाओ। मैं चाय बना देती हूँ..”
मैं- दीदी... दीदी कहाँ गई?
झरना- दीदी... कौन दीदी?
मैं- “अरे मेरी दीदी... आपकी भाभी...”
झरना- “अच्छा भाभी... यार मैं इन रिश्तों से कन्फ्यू ज हो जाती हैं। मुझे तो बस एक रिश्ता समझ में आता है..."
मैं- कौन सा रिश्ता?
झरना- “बस अपना तो एक ही रिश्ता से वास्ता पड़ता है। वही पसंद भी आता है...”
मैं- अरे बताओ भी, कौन सा रिश्ता?
झरना- “वही... लण्ड और फुद्दी का। मेरे हिसाब से हर लड़का लड़का होता है और लड़की लड़की। याने रिश्ते में कुछ भी लगे...”
मैं- “अच्छा, याने आपको लण्ड लेने में आसानी हो...”
झरना- “हाँ, चलो चलो फ्रेश हो जाओ, चाय पी लो... और इससे पहले की भाभी पड़ोस से आ जायें, तुम शुरू हो जाओ..."
मैं जल्दी से बाथरूम में घुसा और फ्रेश होकर तुरंत ही बाहर निकला। बाहर चाय की प्याली लिए झरना दीदी मेरा इंतेजार कर रही थी। उसने अपना ड्रेस निकलकर नाइटी पहन ली थी। नाइटी के नीचे उसकी काले रंग की ब्रा और पैंटी उसके गोरे बदन पर खूब जम रही थी। हमने जैसे तैसे चाय खतम की। झरना किसी भूखी शेरनी। की तरह मेरे ऊपर टूट पड़ी। मेरी बाहों में आकर चुंबन की झड़ी लगा दी उसने। मैं भी कहाँ पीछे हटने वाला था। मैं भी उसे अपनी बाहों में लेकर उसकी चूचियों को दबाने लगा।
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RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
झरना सिसकारियां निकालने लगी- “रामू भैया... सुबह से खूब तड़पी हूँ, तुम्हारा ये लण्ड खाने के लिए। अब और ना तड़पाओ मेरे भैया। बन जाओ मेरे सैंया। कर लो था था थइया हेहेहे...” झरना दीदी खूब तड़प रही थी। मुझे चूमती ही जा रही थी। मैं सोफे के ऊपर और वो मेरे ऊपर। मेरी लुंगी कब की खुल चुकी थी। लण्ड अंडरवेर की कैद से आजाद होना चाहता था। इससे पहले की मैं अंडरवेर निकालता। झरना ने एक झटके से उसे निकल फेंका- “हे भैया... ये क्या है?
मैं- “मेरी प्यारी झरना, यही तो है मेरा प्यारा गहना, जो चाहता है तेरी फुद्दी में घुसना, प्लीज अब मना मत करना। इसे पहले थोड़ा सा अपने मुँह में ले लेना..."
झरना- “ना बाबा ना... ये अगर मेरी फुद्दी में घुस गया तो समझो की मेरा कबाड़ा हो गया। ये लण्ड नहीं लण्ड राज है। मेरी फुद्दी की सामत आज आई है.."
मैं- “तो क्या बहना, मुझे बिना फुद्दी के ही रहना होगा। लगता है आज भी मुट्ठी मारकर ही कम चलाना होगा।
झरना- “नहीं मेरे प्यारे भाई... ऐसा गजब क्यों सोचते हो... आज तुमसे चुदवाना है। भले फुद्दी को फटना हो...” हम दोनों बातें भी कर रहे थे और एक-दूसरे के कपड़े भी खोलते जा रहे थे। थोड़ी ही देर में हम दोनों जनमजात नंगे हो चुके थे।
मैंने कहा- “झरना दीदी, आपका बदन तो बहुत खूबसूरत है...”
झरना- क्या मेरा बदन भाभी से भी ज्यादा खूबसूरत है?
मैं- “भाभी की चूचियां मस्त हैं तो आपके कूल्हे मस्ताने हैं। चूत अभी चखी नहीं... चख कर स्वाद बताता हूँ..” मैं नीचे झुका। झरना की फुद्दी के ऊपर मखमली झाँटें उगी हुई थीं। लगता था हफ्ते भर पहले साफ किए होंगे।
झरना दीदी ने कहा- “क्या बताऊँ भैया। जबसे भाभी मैके गई, भैया ने मुझे यहाँ बुला लिया और रात दिन मेरी फुद्दी की चुदाई करते रहते हैं। इसी चक्कर में बाल साफ करना ही भूल गई...”
मैंने एक प्यारा सा चुम्मा फुद्दी के ऊपर दिया तो झरना ऊपर से नीचे तक गनगना गई।
झरना- हे रामू, ये क्या कर रहे हो? पहले चुंबन में ही मैं कैसे हो गई हूँ?
मैं- “दीदी ये तो शुरुवात है। आगे-आगे देखो क्या होता है?” मैंने नाक सटाकर सँघा तो बुर में से भीनी-भीनी महक आ रही थी, जो मुझे और ज्यादा मादक बना रही थी। मैंने चूत के दाने के ऊपर जीभ सटाया, तो झरना दीदी के मुँह से- “ओह... आह्ह...” जैसी आवाजें निकलनी शुरू हो गई। मैं अब चपर-चपर करके उनकी बुर को चाटने लगा।
मेरे प्यारे पाठकों। आप सबने कभी ना कभी कहीं ना कहीं कुत्ते को कुतिया की बुर चाटते हुए जरूर देखा होगा। मैं भी आज इस कुतिया का कुता ही बना हुआ था।
झरना- “हाँ हाँ... ऐसे ही भैया। ऐसे ही चाटते रहो। बहुत मजा आ रहा है। ऐसा मजा तो पहली बार आ रहा है...”
मैं- क्यों जीजाजी आपकी बुर ऐसे नहीं चाटते क्या?
झरना- “जीजाजी? अरे कौन से जीजाजी? आपकी दीदी के पति या मेरे पति? मेरे भैया को तो चूत चाटने का शौक है नहीं, उनको तो लण्ड चाटने का शौक है। हाँ मेरे पति को थोड़ा बहुत चूत चटाई आती है, जितनी की मैंने उन्हें ट्रेनिंग दी है...”
मैं- क्या मतलब है आपका दीदी? हमारे जीजाजी लण्डखोर हैं?
झरना- “क्या मैं झूठ बोल रहीं हूँ? मैंने अपनी आँखों से दमऊ भैया का लण्ड चूसते हुए देखा है उनको...”
मैं- “अरे, राम राम राम...”
झरना- “अरे भैया वो सब छोड़ो और लगे रहो। हाँ हाँ... ऐसे ही। बस मैं गई। मैं तो गई मेरे प्यारे भैया..” और झरना दीदी का बदन अकड़कर शांत हो गया।
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RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
मैं समझ गया की उनका तो बस हो गया। झरना दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और बेडरूम में ले गई। मुझे पलंग पर धकेलते हुए अब वो मेरे ऊपर आ गई। चुंबनों की बौछार करते हुए धीरे-धीरे वो नीचे और नीचे बढ़ने लगी। और मेरी सांसें रुकने लगी।
झरना- “हे भैया, मैं तो इससे खा जाऊँगी...”
मैं- अरी बहना खा जा.. फिर अपनी तड़पती हुई बुर में रसोई घर से बैगन लाकर घुसा लेना।
झरना- “छीः भैया, आप भी कैसी बातें करते हैं? बैगन भी कोई घुसाने की चीज होती है भला। हाँ गाजर हो, मूली हो तो बात दूसरी है.. तो भैया जन्नत में जाने के लिए अपनी आँखें बंद कर लो...”
और थोड़ी ही देर में मैं सचमुच में जन्नत में पहुँच चुका था। लण्ड चुसाई में उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकती थी। कम से कम आज तक जितनी भी लड़कियां मेरा लण्ड चूस चुकी हैं, उनमें वो टापर थी। मेरे मुँह से सिसकियां उबल रही थी- “हे मेरी झरना दीदी... हाँ, ऐसे ही लगे रहो। हाँ..."
झरना दीदी मेरे लण्ड को चूसती हुई मेरे अंडकोषों से खेल रही थी। मेरे अंडकोषों में खून जमा होने लगा। मेरा बदन अकड़ने लगा।
मैं- “हे दीदी, अपना मुँह हटा लो... मेरा पानी निकलने वाला है। अरे दीदी हटा लो। मेरा पानी निकलने ही वाला है। दीदी... हटा लो दीदी... हे निकल गया अब तो। साली दीदी, ये क्या कर रही हो? मेरा पानी पी रही हो। हे दीदी, तुम सचमुच में महान हो। आज तक किसी ने भी मेरे लण्ड का पानी नहीं पिया था...”
झरना दीदी ने मेरे लण्ड का आखिरी बूंद तक निचोड़ ली। मेरे लण्ड को नहीं छोड़ रही थी। मेरी आँखें बंद थीं। लग रहा था की जैसे मैं आसमान में उड़ रहा हूँ। थोड़े ही देर में मेरा लण्ड फिर से तनतना गया।
झरना- “भैया, आपका लण्ड वाह... आपके लण्ड का पानी तो बहुत ही मजेदार था भैया..."
मैं- झरना दीदी, आज तक आप कितने लण्ड चूस चुकी हो?
झरना- मेरे को क्या रंडी सोच रखे हो भैया? बस मेरा सैंया का, मेरा भैया का, और आज आपका।
मैं- और दमऊ का? उनका नहीं चूसा है क्या आपने?
झरना- दमऊ भैया का? आपको किसने कहा? जरूर भाभी ने मेरी पोल-पट्टी खोली होगी?
मैं- “अरे नहीं झरना दीदी... मेरी दीदी ने कुछ नहीं बताया। वो तो मैंने अंधेरे में तीर छोड़ा और निशाने पे लग गया..."
झरना- “हाँ हाँ... उनका भी चूसा है, हो गया... बस इतना ही लण्ड चूसा है। पर आपका उन सबसे अनोखा, सबसे मजेदार, सबसे दमदार... अरे सबसे दमदार है की नहीं वो तो थोड़ी ही देर में पता चल जाएगा?
मैं- “ये मेरा लण्ड है झरना दीदी। आज आपकी फुद्दी फाड़ नहीं दिया तो बोलना...”
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RE: non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन
झरना- “अरे जाओ जाओ भैया.. आप क्या मेरी फुद्दी फाड़ोगे? भाभी की फुद्दी समझा है क्या? उनकी फुद्दी तो बस मेरे भैया से और आज पहली बार आपके लण्ड से चुदी है। मैं पक्की लण्डखोर हूँ। ससुराल में किसी को नहीं छोड़ा है मैंने.....”
कहती-कहती रुक गई झरना दीदी, और मेरी छाती पे मुक्के मारने लगी।
झरना- “बदमाश कहीं के... मेरे मुँह से उगलवा ही लिया की मैं खेली खाई हुई हैं। हाँ मैं मानती हूँ की मैंने बहुत लण्ड खाए हैं पर सच कहती हैं कि उनमें से कोई भी लण्ड आपके लण्ड की बराबरी का नहीं है। आपका लण्ड तो लण्डों का सरदार है सरदार...”
अब मेरी बारी थी। मैं उसकी फुद्दी में अपना मुँह फिर से लगा बैठा।
झरना दीदी ने मुझे प्यार से झिड़का- “यूँ ही फुद्दी को चाटते रहोगे क्या? भैया, लण्ड का इश्तेमाल कब करोगे? देखो भैया, इससे पहले की भाभी आ जाएं और हमें इस अवस्था में देख लें। प्लीज आ जाओ... और ना तड़पाओ..."
मैं झरना की दोनों जांघों के बीच घुटनों के बल बैठ गया। झरना दीदी ने पहले से ही अपने चूतड़ों के नीचे एक मोटा सा तकिया लगा लिया था। मेरा लण्ड घुसने के लिए पूरी तरह तैयार था। मैंने लण्ड के सुपाड़े को फुद्दी के मुहाने पे सटाया। एक हल्का सा धक्का लगाया। जोश में आकर झरना दीदी ने नीचे से अपना चूतड़ उछाला औरं... मेरे लण्ड का सुपाड़ा बड़ी ही तेजी के साथ सरसराते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ा और फुद्दी में दस्तक देते हुए, दोनों दीवारों को चीरते हुए अंदर घुस गया।
झरना- “हे राम रे.. क्या है ये? भैया, लण्ड घुसाओ, अपना हाथ नहीं? पर आपके दोनों हाथ तो मेरी दोनों चूचियों को दबा रहे हैं...”
मैंने दूसरा धक्का लगा दिया था। मेरे प्यारे लण्ड ने चूत की दीवारों को चीरते हुए अंदर घुसने की कोशिश में कामयाबी हासिल कर ली।
झरना- “हे भैया, निकालो... ऐसे थोड़े ही घुसाते हैं लण्ड?”
मैं- “ना ना... मेरी झरना दीदी। मेरे लण्ड से आपका क्या होगा? आप तो पक्की लण्डखोर हैं ना...”
झरना- “भैया, मुझे माफ करो। पर ये लण्ड को निकालो...”
मेरा तीसरा और दमदार धक्का लग चुका था।
झरना- “हे राम रे, मरी मैं... मम्मी बचाओ... प्लीज भैया, निकल लो वरना मैं तो गई काम से...”
मैंने लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला।
झरना- “हाँ हाँ भैया, निकाल लो अपना लण्ड। मैं तो बस अपने भैया से, अपने सैंया से, कभी अपने ससुर से, कभी जेठ से, कभी अपने नौकर से, कभी अपने नंदोई से चुदवाकर अपनी फुद्दी की प्यास मिटा लूंगी। अरे राम रे, ए क्या भैया? लण्ड निकलते हुए ही धक्का मारके फिर घुसा दिया रे... हाय मेरी फुद्दी आज फट के रहेगी। हाँ निकालो, बस चोदो मुझे... हाय फिर से घुसा दिया, निकालो... अरे मत घुसाओ, निकालो... अरे मत निकालो, घुसाओ। हाँ हाँ घुसाओ मेरे सैंया... हाँ मेरे भैया, हाँ अब मजा आने लगा है...” झरना दीदी अब मजे से चूतड़ उछालने लगी थी।
मैंने भी अपने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी। कमरे में फछ-फछ की आवाजें गूंजने लगी।
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झरना- “हे भैया, मेरा तो पानी निकला... निकला मेरे सैंया...” और झरना दीदी शांत हो गई।
मेरा पानी अभी नहीं निकला था। मैं ताबड़तोड़ धक्का लगाए जा रहा था। थोड़ी ही देर में मेरा पानी निकलने का टाइम हुआ तो मैंने पूछा- “झरना दीदी, मेरा पानी कहाँ निकालूं?”
झरना- भैया मेरे अंदर ही डाल दो।
मैं- आपके अंदर? कहीं आप?
झरना- “तो क्या हुआ? प्रेगनेन्ट हो जाऊँगी ना? तब तो मेरी सास खुश की उन्हें पोता मिलेगा, मेरा पति खुश की वो बाप बनने वाला है, मेरा ससुर भी खुश की उनकी बहू एक साथ उन्हें दादाजी भी बनाने वाली है और पिताजी भी, वैसे ही जेठ जी भी एक साथ बाप और ताऊ बनकर खुश, तो देवर बाप और चाचा बनकर खुश और मैं तो खुश ही खुश... बस अपने धक्कों की स्पीड कम ना करना मेरा राजा। मेरा भी निकलने वाला है। हे निकला...”
मैं- “हाँ दीदी, मेरा भी निकला, निकला...”
झरना- “हाँ हाँ भैया, गिरा दो सब पानी मेरे अंदर...”
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झरना ओ झरना... बहू ओ बहू... अरे कहाँ मर गये सबके सब। हे झरना, ये क्या कर रही है तू? जमाई राजा के साथ दिन में ही शुरू हो गई... अरे ये तो हमारे जमाई राजा नहीं हैं? कौन है ये?”
हम दोनों चौंक गये। झरना चद्दर को अपने चारों ओर लपेट ली। मैं चुपचाप नंगा ही खड़ा रह गया।
झरना- “वो... वो... क्या है माँ?”
मम्मी- “वो... वो... क्या कर रही है? ये कौन है बता? जिससे तू अपनी बुर चुदाई करवा रही थी। तुझे शर्म नहीं आई, शादी के बाद भी बुर चुदाई करवाते हुए। तुझे कितना समझाया था मैंने की भले अपने ससुर, जेठ, देवर, नंदोई किसी से भी चुदवा ले। पर किसी बाहर वाले को अपनी बुर मत दियो... मेरी लाडो, जमाना बहुत खराब है
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