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RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
माँ ने दीदी को चुदवाया
हैलो दोस्तो.. घर पर मेरी माँ, मेरी दीदी और मैं सब साथ रहते थे। मेरी उम्र करीब 18-19 के आस-पास थी.. मेरी दीदी की उम्र 22 साल की थी.. उसकी स्पोर्ट्स में रूचि थी और वो स्टेडियम जाती थी।
मेरी माँ टीचर है.. उसकी उम्र 37-38 की होगी.. मगर देखने में किसी भी हालत में 31-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी, माँ और दीदी एकदम गोरी हैं, माँ मोटी तो नहीं.. लेकिन भरे हुए शरीर वाली थीं और उनके चूतड़ चलने पर हिलते थे।
उनकी शादी बहुत जल्दी हो गई थी। मेरी माँ बहुत ही सुंदर और हँसमुख है.. वो जिंदगी का हर मज़ा लेने में विश्वास रखती हैं।
हालाँकि वो सबसे नहीं खुलती हैं.. पर मैंने उसे कभी किसी बात पर गुस्साते हुए नहीं देखा है।
जब मैं पढ़ता था और हर चीज को जानने के बारे में मेरी जिज्ञासा बढ़ रही थी.. ख़ासतौर से सेक्स के बारे में.. मेरे दोस्त अक्सर लड़की पटा कर मस्त रहते थे, उन्हीं में से दो-तीन दोस्तों ने अपने परिवार के साथ सेक्स की बातें भी बताईं.. तो मुझे बड़ा अज़ीब लगा।
मैंने माँ को कभी उस नज़र से नहीं देखा था.. पर इन सब बातों को सुन-सुन कर मेरे मन में भी जिज्ञासा बढ़ने लगी और मैं अपनी माँ को ध्यान से देखने लगा।
चूँकि गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं और मैं हमेशा घर पर ही रहता था।
घर में मैं माँ के साथ ही सोता था और दीदी अपने कमरे में सोती थीं। माँ मुझे बहुत प्यार करती थीं। माँ, दीदी और मैं आपस में थोड़ा खुले हुए थे.. हालाँकि सेक्स एंजाय करने की कोई बात तो नहीं होती थी.. पर माँ कभी किसी चीज का बुरा नहीं मानती थीं और बड़े प्यार से मुझे और दीदी को कोई भी बात समझाती थीं।
कई बार अक्सर उत्तेजना की वजह से जब मेरा लंड खड़ा हो जाता था और माँ की नज़र उस पर पड़ जाती.. तो मुझे देख कर धीरे से मुस्कुरा देतीं और मेरे लंड की तरफ इशारा करके पूछतीं- कोई परेशानी तो नहीं है?
मैं कहता- नहीं..
तो वो कहतीं- पक्का.. कोई बात नहीं?
मैं भी मुस्कुरा देता.. वो खुद कभी-कभी हम दोनों के सामने बिना शरमाए एक पैर पलंग पर रख कर साड़ी थोड़ा उठा देतीं और अन्दर हाथ डाल कर अपनी बुर खुजलाने लगतीं।
नहाते समय या हमारे सामने कपड़े बदलते वक़्त.. अगर उसका नंगा बदन दिखाई दे रहा हो.. तो भी कभी भी शरीर को ढकने या छुपाने की ज़्यादा कोशिश नहीं की।
ऐसा नहीं था कि वो जानबूझ कर दिखाने की कोशिश करती हों.. क्योंकि इन सब बातों के बाद भी मैंने उसकी या दीदी की नंगी बुर नहीं देखी थी। बस वो हमेशा हमें नॉर्मल रहने को कहतीं और खुद भी वैसे ही रहती थीं।
धीरे-धीरे मैं माँ के और करीब आने की कोशिश करने लगा और हिम्मत करके माँ से उस वक़्त सटने की कोशिश करता.. जब मेरे लंड खड़ा होता।
मेरा खड़ा लंड कई बार माँ के बदन से टच होता.. पर माँ कुछ नहीं बोलती थीं।
इसी तरह एक बार माँ रसोई में काम कर रही थीं और माँ के हिलते हुए चूतड़ देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया। मैंने ने अपनी किस्मत आज़माने की सोची और भूख लगने का बहाना करते हुए रसोई में पहुँच गया।
मैं माँ से बोला- माँ भूख लगी है.. कुछ खाने को दो।
यह कहते हुए माँ से पीछे से चिपक गया.. मेरा लंड उस समय पूरा खड़ा था और मैंने अपनी कमर पूरी तरह माँ के चूतड़ों से सटा रखी थी.. जिसके कारण मेरा लंड माँ के चूतड़ों के बीच थोड़ा सा घुस गया था।
माँ हँसते हुए बोलीं- क्या बात है आज तो मेरे बेटे को बहुत भूख लगी है।
‘हाँ माँ.. बहुत ज्यादा.. जल्दी से मुझे कुछ दो…’
मैंने माँ को और ज़ोर से पीछे से पकड़ लिया और उनके पेट पर अपने हाथों को कस कर दबा दिया। कस कर दबाने की वज़ह से माँ ने अपने चूतड़ थोड़ी पीछे की तरफ किए.. जिससे मेरा लंड थोड़ा और माँ के चूतड़ों के बीच में घुस गया। उत्तेजना की वज़ह से मेरा लंड झटके लेने लगा.. पर मैं वैसे ही चिपका रहा और माँ ने हँसते हुए मेरी तरफ देखा.. पर बोलीं कुछ नहीं…
फिर माँ ने जल्दी से मेरा खाना लगाया और थाली हाथ में लेकर बरामदे में आ गईं।
मैं भी उसके पीछे-पीछे आ गया.. खाना खाते हुए मैंने देखा.. माँ मुझे और मेरे लंड को देख कर धीरे-धीरे हँस रही थीं।
जब मैंने खाना खा लिया तो माँ बोलीं- अब तू जाकर आराम कर.. मैं काम कर के आती हूँ।
पर मुझे आराम कहाँ था.. मैं तो कमरे में आ कर आगे का प्लान बनाने लगा कि कैसे माँ को चोदा जाए.. क्योंकि आज की घटना के बाद मुझे पूरा विश्वास था कि अगर मैं कुछ करता भी हूँ.. तो माँ अगर मेरा साथ नहीं देगीं.. तो भी कम से कम नाराज़ नहीं होंगी।
फिर यही हरकत मैंने 5-6 बार की और माँ कुछ नहीं बोलीं.. तो मेरी हिम्मत बढ़ गई।
एक रात खाना खाने के बाद मैं कमरे में आकर लाइट ऑफ करके सोने का नाटक करने लगा.. थोड़ी देर बाद माँ आईं और मुझे सोता हुआ देख कर थोड़ी देर कमरे में कपड़े और सामान ठीक किया और फिर मेरे बगल में आकर सो गईं।
करीब एक घंटे के बाद जब मुझे विश्वास हो गया कि माँ अब सो गई होगीं.. तो मैं धीरे से माँ की ओर सरक गया और धीमे-धीमे अपना हाथ माँ के चूतड़ों पर रख कर माँ को देखने लगा।
जब माँ ने कोई हरकत नहीं की.. तो मैं उनके चूतड़ों को सहलाने लगा और उनकी साड़ी के ऊपर से ही दोनों चूतड़ों और गाण्ड को हाथ से धीमे-धीमे दबाने लगा। जब उसके बाद भी माँ ने कोई हरकत नहीं की तो मेरी हिम्मत थोड़ा और बढ़ी और मैंने माँ की साड़ी को हल्के हल्के ऊपर खींचना शुरू किया।
साड़ी ऊपर करते-करते जब साड़ी चूतड़ों तक पहुँच गई.. तो मैंने अपना हाथ माँ के चूतड़ों और गाण्ड के ऊपर रख कर.. थोड़ी देर माँ को देखने लगा.. पर माँ ने कोई हरकत नहीं की। फिर मैं अपना हाथ उनकी गाण्ड के छेद से धीरे-धीरे आगे की ओर करने लगा, पर माँ की दोनों जाँघें आपस में सटी हुई थीं.. जिससे मैं उन्हें खोल नहीं पा रहा था।
फिर मैंने अपनी दो ऊँगलियाँ आगे की ओर बढ़ाईं तो मेरी साँस ही रुक गई।
मेरी ऊँगलियाँ माँ की बुर के ऊपर पहुँच गई थीं। फिर मैं धीरे-धीरे अपनी ऊँगलियों से माँ की बुर सहलाने लगा.. माँ की बुर पर बाल महसूस हो रहे थे।
चूँकि मेरे लंड पर भी झांटें थीं तो मैं समझ गया कि ये माँ की झांटें हैं। इतनी हरकत के बाद भी माँ कुछ नहीं कर रही थीं.. तो मैंने धीरे से अपनी पूरी हथेली माँ की बुर पर रख दी और बुर के दोनों होंठों को एक-एक कर के छूने लगा.. तभी मुझे महसूस हुआ कि माँ की बुर से कुछ मुलायम सा चमड़े का टुकड़ा लटक रहा है।
जब मैंने उसे हल्के से खींचा तो पता चला कि वो माँ की बुर की पूरी लम्बाई के बराबर यानि ऊपर से नीचे तक की लंबाई में बाहर की तरफ निकला हुआ था और जबरदस्त मुलायम था।
उस समय मेरा लंड इतना टाइट हो गया था कि लगा जैसे फट जाएगा.. मैं धीरे से उठ कर बैठ गया और अपनी पैन्ट उतार कर लंड को माँ के चूतड़ से सटाने की कोशिश करने लगा… पर कर नहीं पाया। तो मैं एक हाथ से माँ की बुर में ऊँगली डाल कर बाहर निकले चमड़े को सहलाता रहा और दूसरे हाथ से मुठ मारने लगा.. 2-3 मिनट में ही मैं झड़ गया।
पर जब तक मैं अपना गाढ़ा जूस रोक पाता.. वो माँ के चूतड़ों पर पूरा गिर चुका था। ये देख कर मैं बहुत डर गया और चुपचाप पैन्ट पहन कर.. माँ को वैसा ही छोड़ कर सो गया।
सुबह जब मैं उठा तो देखा.. कि माँ रोज की तरह अपना काम कर रही थीं और दीदी हॉकी की प्रैक्टिस.. जो सुबह 6 बजे ही शुरू हो जाती थी.. के लिए जा चुकी थीं।
मैं डरते-डरते बाथरूम की तरफ जाने लगा तो माँ ने कहा- आज चाय नहीं माँगी तूने?
तो मैंने बात पलटते हुए कहा- हाँ.. पी रहा हूँ.. पेशाब करके आता हूँ।
जब मैं बाथरूम से वापस आया तो माँ को देखा, माँ बरामदे में बैठी सब्जी काट रही थीं और वहीं पर मेरी चाय रखी हुई थी।
मैं चुपचाप बैठ कर चाय पीने लगा तो माँ मेरी तरफ देख कर हँसते हुए बोलीं- आज बड़ी देर तक सोता रहा।
‘हाँ माँ नींद नहीं खुली..’
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RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
तो माँ बोलीं- एक काम किया कर.. आज से रात को और जल्दी सो जाया कर..’
यह कह कर वो हँसते हुए रसोई में चली गईं।
जब मैंने देखा कि माँ कल रात के बारे में कुछ भी नहीं बोलीं.. तो मैं खुश हो गया।
उस दिन पूरे दिन मैंने कुछ भी नहीं किया.. मैंने सोच रखा था कि अब मैं रात को ही सब कुछ करूँगा.. जब तक या तो माँ मुझसे चुदाई के लिए तैयार ना हो या मुझे डांट नहीं देती।
रात को मैं खाना खाकर जल्दी से कमरे में आकर सोने का नाटक करने लगा।
थोड़ी देर में माँ भी दीदी के साथ आ गईं, उस दिन माँ बहुत जल्दी काम ख़त्म करके आ गई थीं।
खैर.. मैं माँ के सोने का इंतजार करने लगा।
थोड़ी ही देर में दीदी के जाने के बाद माँ धीरे से पलंग पर आकर लेट गईं। करीब एक घंटे तक लेटे रहने के बाद मैंने धीरे से आँखें खोलीं और माँ की तरफ सरक गया।
थोड़ी देर में जब मैंने बरामदे की हल्की रोशनी में माँ को देखा तो चौंक पड़ा.. माँ ने आज साड़ी की जगह नाईटी पहन रखी थी और उन्होंने अपना एक पैर थोड़ा आगे की तरफ कर रखा था।
फिर मैंने सोचा कि अगर यह किस्मत से हुआ तो अच्छा है और अगर माँ जानबूझ कर यह कर रही हैं तो माँ जल्दी ही चुद जाएगी।
उस रात मेरी हिम्मत थोड़ी बढ़ी हुई थी.. थोड़ी देर नाईटी के ऊपर से माँ का चूतड़ सहलाने के बाद मैंने धीरे से माँ की नाईटी का सामने का बटन खोल दिया और उसे कमर तक पूरा हटा दिया और धीरे से माँ के चूतड़ों को सहलाने लगा।
मैं जाँघों को भी सहला रहा था.. माँ के चूतड़ और जाँघें इतनी मुलायम थे कि मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था।
फिर मैंने अपना हाथ उनकी जाँघों के बीच डाला तो मैं हैरान रह गया।
आज माँ की बुर एकदम चिकनी थी.. उनके बुर पर बाल का नामोनिशान नहीं था.. उनकी बुर बहुत फूली हुई थी और बुर के दोनों होंठ फैले हुए थे। शायद एक जाँघ आगे करने के कारण, उनकी बुर से निकला हुआ चमड़ा लटक रहा था।
मेरे कई दोस्तों ने गपशप के दौरान इसके बारे में बताया था कि उनके घर की औरतों की बुर से भी ये निकलता है और उन्हें इस पर बड़ा नाज़ होता है। मैं तो उत्तेजना की वज़ह से पागल हो रहा था.. मैंने लेटे-लेटे ही अपना शॉर्ट्स निकाल दिया और माँ की तरफ थोड़ा और सरक गया.. जिससे मेरा लंड माँ के चूतड़ों से टच करने लगा।
थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद जब मैंने देखा कि माँ कोई हरकत नहीं कर रही हैं.. तो मेरी हिम्मत और बढ़ी।
अब मैं लेटे-लेटे ही माँ की बुर को सहलाने का पूरा मज़ा लेने लगा। थोड़ी ही देर मे मुझे लगा कि माँ की बुर से कुछ चिकना-चिकना पानी निकल रहा है।
ओह्ह.. क्या खुश्बू थी उसकी…
मेरा लंड फूल कर फटने की स्थिति में हो गया.. मैं अपना लंड माँ की गाण्ड के छेद.. उनकी जाँघों पर धीमे-धीमे रगड़ने लगा।
तभी मुझे एक आइडिया आया कि क्यों ना आज थोड़ा और बढ़ कर माँ की बुर से अपना लंड टच कराऊँ।
जब मैंने अपनी कमर को आगे खिसका कर माँ की जाँघों से सटाया तो लगा जैसे करेंट फैल गया हो.. मुझे झड़ने का जबरदस्त मन कर रहा था, पर मैंने सोचा कि एक बार माँ की बुर में लंड डाल कर उनकी बुर के पानी से चिकना कर लूँगा और फिर बाहर निकाल मुठ मार लूँगा।
यह सोच कर मैंने अपनी कमर थोड़ा ऊपर उठाया और अपना लंड माँ की बुर से लटके चमड़े को ऊँगलियों से फैलाते हुए उनके छेद पर रखा.. तो माँ की बुर से निकलता हुआ चिकना पानी मेरे सुपारे पर लिपट गया और थोड़ा कोशिश करने पर मेरा सुपारा माँ की बुर के छेद में घुस गया।
जैसे ही सुपारा अन्दर गया.. उफ़फ्फ़ माँ की बुर की गर्मी मुझे महसूस हुई और जब तक मैं अपना लंड बाहर निकालता मेरे लंड से वीर्य का फुहारा माँ की बुर में पिचकारी की तरह निकलने लगा।
मैं घबरा तो गया.. पर ज्यादा हिलने से डर भी रहा था कि कहीं माँ जाग ना जाएँ।
जब तक मैं धीरे से अपना लंड माँ की बुर से निकालता.. तब तक मेरे लंड का पानी माँ की बुर में पूरा खाली हो चुका था और लंड निकालते वक़्त वीर्य की गाढ़ी धार माँ के गाण्ड के छेद पर बहने लगी।
मुझे लगा अब तो मैं माँ से पक्का पिटूंगा। मैं डर के मारे जल्दी से शॉर्ट्स पहन कर सो गया.. मुझे नींद नहीं आ रही थी.. पर मैं कब सो गया, पता ही नहीं चला।
अगले दिन उठा तो देखा कि हमेशा की तरह माँ सफाई कर रही थीं.. पर दीदी स्टेडियम नहीं गई थी।
मुझे देखते ही माँ ने दीदी से कहा- वीना.. जा चाय गरम करके भाई को दे दे और मुझे प्यार से वहीं बैठने के लिए कहा।
मैंने चोरी से माँ की ओर देखा तो माँ मुझे देख कर पूछने लगीं- आज नींद कैसी आई?
मैंने कहा- अच्छी..
तो माँ हँसने लगीं और मेरी पैंट की ओर देख कर बोलीं- अब तू रात में सोते समय थोड़े ढीले कपड़े पहना कर। हाफ-पैन्ट पहन कर नहीं सोते हैं।
अब तू बड़ा हो रहा है.. देख मैं और वीनू भी ढीले कपड़े पहन कर सोते हैं। मैं यह सुन कर बड़ा खुश हुआ कि माँ ने मुझे डांटा नहीं।
उस दिन मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि अब माँ मुझे रात में पूरे मज़े लेने से मना नहीं करेगीं.. भले ही दिन में चुदाई के बारे में खुल कर कोई बात ना करें।
अब तो मैं बस रात का ही इंतजार करता था।
खैर.. उस रात फिर जब मैं सोने के लिए कमरे में गया तो मुझे माँ की ढीले कपड़े पहनने वाली बाद याद आई.. पर मेरे पास कोई बड़ी शॉर्ट्स नहीं थी।
मैंने अल्मारी में से एक पुरानी लुँगी निकाली और अंडरवियर उतार कर पहन लिया और सोने का नाटक करने लगा।
तभी मेरे मन में माँ की सुबह वाली बात चैक करने का विचार आया और मैंने अपनी लुँगी का सामने वाला हिस्सा थोड़ा खोल दिया.. जिससे मेरा लंड खड़ा होकर बाहर निकल गया और अपने हाथों को अपनी आँखों पर इस तरह रखा कि मुझे माँ दिखाई दे।
थोड़ी ही देर में माँ कमरे में आईं और नाईटी पहन कर पलंग पर आने लगीं और लाइट ऑफ करने के लिए जैसे ही मुड़ीं.. एकदम से वे मेरे लंड को देखते ही रुक गईं.. थोड़ी देर वैसे ही मेरे लंड को जो की पूरे 6′ लम्बा और 1.5′ व्यास बराबर मोटा था.. को देखती रहीं।
फिर पता नहीं क्यों उन्होंने लाइट बंद करके नाईट-बल्ब जला दिया और पलंग पर लेट गईं।
वो मेरे लंड को बड़े प्यार से देख रही थीं.. पर मेरे लंड को उन्होंने छुआ नहीं.. फिर दूसरी तरफ करवट बदल कर एक पैर को कल की तरह आगे फैला कर लेट गईं।
मुझे पक्का विश्वास था कि आज माँ ने जानबूझ कर नाईट-बल्ब ऑन किया है ताकि मैं कुछ और हरकत करूँ।
आधे-एक घन्टे के बाद जब मैं माँ की ओर सरका.. तो लुँगी की गाँठ रगड़ से अपने आप ही खुल गई और मैं नंगे ही अपने खड़े लंड को लेकर माँ की तरफ सरक गया और नाईटी खोल कर कमर तक हटा दिया।
उस रात मैंने पहली बार माँ के चूतड़.. गाण्ड और बुर को देख रहा था.. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।
मैं झुक कर माँ की जाँघों और चूतड़ के पास अपना चेहरा ले जाकर बुर को देखने की कोशिश करने लगा। मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई चीज इतनी मुलायम, चिकनी और सुन्दर हो सकती है। माँ की बुर से बहुत अच्छी से भीनी-भीनी खुश्बू आ रही थी.. मैं एकदम मदहोश होता जा रहा था।
पता नहीं कैसे.. मैं अपने आप ही माँ की बुर को नाक से सटा कर सूंघने लगा.. उफ…बुर से निकले हुए चमड़े के दोनों पत्ते.. किसी गुलाब की पंखुड़ी से लग रहे थे।
माँ की बुर का छेद थोड़ा लाल था और गाण्ड का छेद काफ़ी टाइट दिख रहा था.. पर सब मिला कर उनके पूरे चूतड़ और जाँघें बहुत मुलायम थे।
मैंने उसी तरह कुछ देर सूंघने के बाद माँ की बुर के दोनों पत्तों को मुँह में भर लिया और चूसने लगा। उनकी बुर से बेहद चिकना लेकिन नमकीन पानी निकलने लगा.. मैं भी आज चुदाई के मज़े लेना चाहता था।
फिर मैंने माँ की बुर से निकलते हुए पानी को अपने कड़े सुपारे पर लपेटा और धीरे से माँ की बुर में डालने की कोशिश करने लगा… पर पता नहीं कैसे आज मेरा लंड बड़ी आसानी से माँ की बुर के छेद में घुस गया।
मैं वैसे ही थोड़ी देर रुका रहा.. फिर मैंने लंड को अन्दर डालना शुरू किया, दो-तीन प्रयासों में मेरा लंड माँ की बुर में घुस गया।
ओह.. क्या मज़ा रहा था.. माँ की बुर काफ़ी गरम थी और मेरे लंड को चारों ओर से जकड़े हुए थी।
थोड़ी देर उसी तरह रहने के बाद मैंने लंड को अन्दर-बाहर करना शुरू किया। ओह.. जन्नत का मज़ा मिल रहा था..
4-5 मिनट अन्दर-बाहर करते ही मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ.. तो मैंने अपनी रफ़्तार और तेज़ कर दी और अपना गाढ़ा गाढ़ा वीर्य माँ की बुर में उड़ेल दिया और थोड़ी देर तक उसी तरह माँ से चिपका हुआ लेटा रहा कि अभी आराम से सो जाऊँगा।
पर पता नहीं कैसे आँख लग गई और मैं वैसे ही सो गया।
सुबह जब उठा तो देखा.. मेरी लुँगी की गाँठ लगी हुई है और एक पतली चादर मेरी कमर तक उढ़ाई गई है.. मैं समझ गया कि यह काम माँ ने किया है.. पर कब और कैसे..?
खैर.. जब मैं बाहर निकला तो दीदी स्टेडियम जा चुकी थीं और माँ रसोई में थीं।
मुझे देखते ही वो मेरी और अपनी चाय लेकर मेरे पास आईं और देते हुए बोलीं- आजकल तू बड़ी गहरी नींद में सोता है और अपने कपड़ों का ध्यान भी नहीं रखता है.. सुबह तेरी लुँगी जाने कैसे खुल गई थी और तू वैसे ही मुझ से चिपक कर सो रहा था..
और वे हँसने लगीं।
तो मैंने कहा- तो ठीक है ना माँ.. इसी बहाने तुम मेरा ध्यान रख लेती हो..
पर इसके आगे की कोई बात माँ ने नहीं की.. तो मैंने भी कुछ नहीं कहा। मैंने सोचा जब रात में सब कुछ ठीक हो रहा है.. तो मज़े लो.. बाकी बाद में देखेंगे और मैं उठ कर फ्रेश होने चला गया।
माँ भी काम करने चली गईं।
इसी तरह 8-10 दिन बीत गए और मैं माँ की चुदाई के मज़े लेता रहा और माँ भी कुछ खुलने लगी थीं।
मैं भी रात को माँ की नाईटी ऊपर से नीचे तक पूरा खोल कर उसे पूरा नंगा कर देता.. फिर थोड़ी देर उसकी गाण्ड और चूत चाटने के बाद उसकी चूचियों को और पेट के नीचे वाले हिस्से को पकड़ कर पूरा ज़ोर लगा कर लंड अन्दर डाल कर चुदाई करता और झड़ने के बाद माँ की बुर से लंड बिना बाहर निकाले हुए उसकी चूचियों को पकड़ कर सो जाता था।
माँ भी सुबह कमरे से बाहर जाते समय मुझे नंगा ही छोड़ देतीं और दरवाज़ा चिपका देतीं.. ताकि दीदी अन्दर ना आ जाए।
अब वे दीदी के जाने के बाद नहाते वक़्त बाथरूम का दरवाजा नहीं बंद करतीं और हमेशा दिन में भी नाईटी पहने रहतीं.. जिसमें से उनका पूरा जिस्म लगभग दिखाई पड़ता था.. पर मैं कुछ ज्यादा ही करना चाहता था।
लगभग 10-12 दिन बाद रात को जब मैं पलंग पर गया तो मेरे दिमाग में यही सब बातें घूम रही थीं कि कैसे माँ को दिन में चुदाई के लिए तैयार किया जाए।
खैर.. मैं अपना लंड लुँगी से बाहर निकाल कर लेट गया.. थोड़ी देर में माँ कमरे में आईं और थोड़ा सामान ठीक करने के बाद नाइट-बल्ब ऑन करके लेट गईं.. लेटने से पहले उन्होंने मेरे माथे पर चुम्बन किया और मुस्कुरा कर सो गईं।
अब तक मैं ये जान चुका था कि माँ को सब पता है और वो जागी रहती हैं पर चूँकि वो कुछ नहीं कहतीं और चुपचाप मज़े लेती थीं.. तो मैं भी मस्त हो कर मज़े लेता।
अब तो मैं माँ के लेटने के 4-5 मिनट बाद ही शुरू हो जाता और नाईटी खोल कर हटा देता था।
आज भी केवल 5 मिनट के बाद मैंने फिर अपनी लुँगी हटा कर माँ की नाईटी को पूरा उतार दिया, थोड़ी देर तक माँ की गाण्ड और बुर को चाटने और खेलने के बाद जब मैंने लंड को माँ के चूतड़ों से रगड़ना शुरू किया चूँकि माँ आज थोड़ा सा पेट के बल लेटी हुई थीं.. तो मेरे मन में एक आइडिया आया कि क्यों ना आज माँ की गाण्ड में लंड डाला जाए।
ये सोचते ही मैं उत्तेजना से और भर गया और मैं माँ के चूतड़ों को हाथों से थोड़ा खोलते हुए उनकी गाण्ड के छेद को चाटने लगा।
मुझे महसूस हुआ कि माँ की बुर और गाण्ड का छेद खुल और बंद हो रहा था और बुर से पानी निकल रहा था। थोड़ी देर चाटने के बाद मैं ऊँगली से गाण्ड के छेद को खोलने लगा.. फिर सुपारे पर माँ की बुर का पानी लगाया फिर थोड़ा सा पानी उनकी गाण्ड के छेद पर भी लगाया और छेद पर सुपारा रख कर उसकी कमर को पकड़ कर अन्दर डालने की कोशिश करने लगा.. पर उनकी गाण्ड का छेद बुर के छेद से काफ़ी तंग था।
थोड़ी कोशिश करने पर सुपारा तो अन्दर घुस गया पर मैं लंड पूरा अन्दर नहीं डाल पा रहा था.. तो मैंने थोड़ा रुक कर उसके चूतड़ों को हाथों से फैलाते हुए फिर से लंड अन्दर डालना शुरू किया।
पर पता नहीं क्यों मेरे लंड में जलन सी होने लगी.. मैंने लंड बाहर निकाल लिया और नाइट-बल्ब की रोशनी में देखा तो मेरे सुपारे के पास से जो चमड़ा सटा था.. वो एक तरफ से फट गया था और वहीं से जलन हो रही थी।
मेरे दोस्तों ने बताया तो था कि चुदाई के बाद लंड का टांका टूट जाता है और सुपारा पूरा बाहर निकल जाता है।
अब जलन के मारे मैं चुदाई नहीं कर पा रहा था और मारे उत्तेजना के मैं बिना झड़े रह भी नहीं सकता था।
मैं उत्तेजना के मारे लंड को हाथ में पकड़ कर माँ के जिस्म पर रगड़ने लगा।
मेरे दिमाग़ में कुछ भी नहीं सूझ रहा था। मैं तो बस झड़ना चाहता था.. तभी मेरे मन में माँ के मुँह में लंड डालने का विचार आया और मैं अपना लंड माँ के चेहरे से रगड़ने के लिए पलंग से नीचे उतर कर.. माँ के चेहरे के पास खड़ा हो गया।
अपना लंड हाथ में पकड़ कर सुपारा माँ के गालों और होंठों से धीमे-धीमे रगड़ने लगा.. मैं बस उत्तेजना की वज़ह से पागल हो रहा था।
अगर उस वक़्त माँ उठ भी जाती तो भी मैं नहीं रुक पाता।
फिर मैं माँ के होंठों से सुपारे को सटाते हुए मुठ मारने लगा.. पर उनके मुँह पर झड़ने की हिम्मत नहीं हुई और मैं वहाँ से हट कर उनकी गाण्ड और बुर के छेद पर लंड रख कर मुठ मारने लगा।
मैं तेज़ी से मुठ मार रहा था और थोड़ी देर में माँ की गाण्ड के और बुर के छेद पर ऊपर से ही पूरा वीर्य पिचकारी की तरह छोड़ने लगा। माँ की पूरी बुर.. चूतड़ और गाण्ड मेरे वीर्य से भर गई थी और पूरा गाढ़ा पानी उनकी जाँघों पर भी बहने लगा।
जब मेरी उत्तेजना शांत हुई तो मैंने लंड में एक तेज़ जलन महसूस की.. मैंने देखा कि मेरा लंड पूरा छिल गया था और चमड़े पर सूजन आ गई थी।
मैं ये देख कर परेशान हो गया और माँ को उसी तरह छोड़ कर चुपचाप सो गया।
जब सुबह उठा तो मैंने देखा कि मेरे लंड का चमड़ा काफ़ी सूज गया था और छिला हुआ था।
मैं बाहर निकला तो माँ रसोई से निकल रही थीं और मुझे देखते ही वापस चाय लेकर चली आईं.. पर मेरा मुँह उतरा हुआ था।
माँ मुझे देख कर मुस्कुराईं.. पर मैं कुछ नहीं बोला।
माँ थोड़ी देर बैठने के बाद काम करने चली गईं और मैं नहाने चला गया। नहाते वक़्त मैं सोच रहा था की अब तो बस चुदाई बंद ही करनी पड़ेगी। लंड को देख कर मुझे रोना आ रहा था।
तभी मुझे एक आइडिया आया कि क्यों ना माँ को ही लंड दिखा कर उनसे इलाज़ पूछा जाए और हो सकता है इसी बहाने माँ मुझे दिन में भी खुल जाएं।
मैं तौलिया लपेटे बाहर निकला और कमरे में जा कर माँ को आवाज़ दी.. तो माँ कमरे में आईं और पूछा- क्या हुआ बेटा?
मैंने कहा- माँ मेरे पेशाब वाली जगह में दर्द हो रहा है.. सूज भी गया है।
तो माँ ने मुझे ऐसे देखा जैसे कह रही हों.. ये तो एक दिन होना ही था और बोलीं- बेटा तौलिया खोलो.. मैं देखूँ?
और वे बाहर बरामदे में दिन की रोशनी में आ गईं।
मैं भी बाहर आ गया और उनके पास खड़ा होकर तौलिया खोल दिया.. मेरा लंड वाकयी में सूज कर मोटा हो गया था।
जब माँ ने लंड को देखा तो धीमे से मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा- इसके साथ क्या कर रहा था?
मैंने बड़े भोलेपन से कहा- कुछ नहीं, इसमें से खून भी निकल रहा है..
तो माँ मेरे लंड को हाथ में लेकर चमड़ा पीछे करने लगीं.. तो मुझे दर्द होने लगा।
तो माँ ने कहा- ओह ये तो छिल गया है.. लग रहा है रगड़ लगी है..
और वे चमड़ा पीछे कर के सुपारा देखने लगीं, फिर बोलीं- अच्छा मैं इस पर बोरोलीन लगा देती हूँ.. पर तू इसे खुला ही रहने दे और अभी कुछ पहनने की ज़रूरत नहीं है.. बस मैं ही तो हूँ.. तू ऐसे ही रह ले।
यह कह कर माँ कमरे से बोरोलीन लेने चली गईं।
मैं उनके चूतड़ों को हिलते हुए देख रहा था.. तभी वो बोरोलीन लेकर आ गईं और मेरे लंड को हाथ में लेकर सुपारे पर लगाने लगीं। जिसकी वज़ह से मेरा लंड खड़ा होने लगा और करीब 6 लम्बा हो गया.. सूजन की वज़ह से वो और मोटा लग रहा था.. यह देख कर माँ
मेरे चूतड़ पर थप्पड़ मारते हुए बोलीं- यह क्या कर रहा है?
मैं बोला- माँ, यह अपने आप हो गया है.. मैंने नहीं किया है।
तो माँ बोलीं- अच्छा ये भी अपने आप हो गया है और रगड़ भी अपने आप ही लग गई है.. सच बता ये रगड़ कैसे लगी?
मैं हँसने लगा तो माँ खुद ही बोलीं- बेटा ये एक बहुत नाज़ुक अंग होता है.. इसकी देखभाल बड़ी संभाल कर करनी पड़ती है.. जब तू शादी के लायक बड़ा हो जाएगा.. तब तुझे इसकी अहमियत पता चलेगी।
माँ बोलती जा रही थीं और सुपारे और लंड पर बोरोलीन लगाती जा रही थीं।
मेरा हाथ माँ के कंधे पर था और खड़े होने की वजह से मुझे नाईटी के खुले भाग से माँ की बड़ी-बड़ी चूचियाँ आधे से ज़्यादा दिखाई पड़ रही थीं।
मैं अपने हाथों को माँ की चूचियाँ की तरफ बढ़ाते हुए बोला- क्यों माँ शादी के बाद ऐसा क्या होता है कि इसकी इतनी ज़रूरत पड़ती है?
ये सुन कर माँ ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा और बोलीं- ये तो शादी के बाद ही पता चलेगा..
तो मैं थोड़ा और मज़े लेते हुए माँ से पूछा- माँ क्या तुम औरतों की भी ये इंपॉर्टेंट होती है?
‘ये क्या?’ माँ ने पूछा।
तो मैं हँसते हुए बोला- अरे यही जो तुमने मेरा हाथ में पकड़ा हुआ है।
माँ मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोलीं- मेरा ऐसा नहीं है..
तो मैंने धीरे से उनकी नाईटी का ऊपर वाला बटन खोल दिया.. जिससे उनकी चूचियाँ बाहर दिखने लगी और धीमे से लंड को उससे सटाते हुए पूछा- तो फिर कैसा है?
पर माँ कुछ नहीं बोलीं.. मेरा लंड उत्तेजना में और टाइट हुआ जा रहा था और खिंचाव के कारण सुपारे के टांके वाली जगह पर दर्द होने लगा।
मैं बोला- उह.. माँ ये तो बहुत दर्द कर रहा है।
तो माँ बोलीं- बेटा रगड़ की वजह से तेरे सुपारे का टांका खुल गया है और ऊपर से तूने ही तो इसे फुला रखा है.. चल मैंने क्रीम लगा दी है.. 7-8 दिन में ठीक हो जाएगा और ये कह कर माँ सुपारे को सहलाने लगीं।
मैंने ध्यान से देखा तो माँ का भी चेहरा उत्तेजना की वजह से लाल हो गया था और उसकी चूचियाँ और निप्पल एकदम खड़े हो गए थे।
मैंने सोचा कि यह मौका अच्छा है माँ को और गरम कर देता हूँ.. तो माँ शायद खुल जाएँ।
यह सोच कर मैं बोला- माँ यह टांका क्या होता है और मेरा कैसे खुल गया?
माँ भी थोड़ा खुलने लगीं और बोलीं- बेटा ये जो चमड़ा है ना.. ये सुपारे के पीछे वाले हिस्से से चिपका रहता है.. तूने ज़रूर इसे तेज़ रगड़ दिया होगा। तो मैं माँ के निप्पल छूते हुए बोला- पहले ये बताओ कि इसे नीचे कैसे करूँ.. बहुत दर्द हो रहा है।
तो माँ मेरे चूतड़ों पर चिकोटी काटते हुए पूछने लगीं- पहले कैसे करता था?
तो मैं हँसने लगा और माँ की चूचियों पर हाथ से दबाव बढ़ाते हुए कहा- वो तो बस ऐसे ही।
;इसलिए आजकल कुछ ज़्यादा ही रगड़ रहा है.. तेरी वज़ह से मुझे भी परेशानी होने लगी है।’
माँ ने चूचियों पर बिना ध्यान देते हुए कहा।
‘तो तुम बताओ ना कि क्या करूँ..?” मैंने कहा और अपनी कमर थोड़ा और आगे बढ़ा दी.. जिससे मेरा लंड माँ की दोनों चूचियों के बीच में घुस गया और अपनी ऊँगलियों के बीच में निप्पल को फँसा लिया।’
तो माँ बोलीं- ये क्या कर रहा है?
मैं शरारात से हँसते हुए बोला- माँ तुम्हारी चूचियाँ बड़ी मुलायम हैं।
पर माँ हँसते हुए उठने लगीं.. जिससे मेरा लंड उनकी चूचियों में दब गया और मेरे सुपारे पर लगा क्रीम उनकी चूचियों पर भी लग गया।
तो माँ अपनी चूचियों को हाथों से फैलाते हुए मुझे दिखा कर बोलीं- ये देख तेरी क्रीम मेरी चूचियों में लग रही है.. चल अभी खाना बनाना है.. देर हो रही है.. बाद में बताऊँगी।
माँ रसोई में से सामान ला कर वहीं बरामदे में चौकी पर बैठ कर काम करने लगीं।
उसकी चूचियाँ वैसे ही खुली हुई थीं। पर मेरे दिमाग में तो माँ को दीदी के आने से पहले नंगा करने का प्लान चल रहा था।
यह सोच कर मैं भी माँ के बगल में ही उसकी तरफ मुँह करके चौकी पर बैठ गया।
मैंने अपना एक पैर मोड़ कर माँ की जाँघों पर रख दिया.. मेरा लंड उस समय एकदम टाइट था।
माँ ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा और सब्जी काटने लगीं।
मैं माँ के सामने ही अपने लंड को हाथ में लेकर सहलाने लगा.. जिससे सुपारा और फूल गया था।
माँ बोलीं- ये क्या कर रहा है?
तो मैंने कहा- माँ बहुत खुजली हो रही है।
फिर माँ कुछ नहीं बोलीं और अपना काम करने लगीं।
मैं जानबूझ कर लंड माँ के सामने करके सहला रहा था। मैंने देखा माँ का ध्यान भी मेरे सुपारे पर ही था और वो बार-बार अपनी जाँघों को फैला रही थीं.. चूँकि नाईटी का आगे का भाग खुला हुआ था.. जिससे मुझे कई बार उसकी बुर दिखाई दी.. मैं समझ गया कि माँ एकदम गरम हो गई है.. मैं उसे और उत्तेजित करने के लिए हिम्मत बढ़ाते हुए एकदम खुल कर बात करने लगा।
मैं बोला- माँ तुम कह रही हो कि मेरा लंड ठीक होने में 7-8 दिन लगेंगे और तब तक मुझे ऐसे ही लंड खुला रखना पड़ेगा।
तो माँ बोलीं- हाँ.. खुला रखेगा तो घाव जल्दी सूखेगा और आराम भी मिलेगा।
‘लेकिन माँ खुला होने की वजह से मेरा लंड पूरा तना जा रहा है.. जिससे चमड़ा खिंचने के कारण दर्द हो रहा है और खुजली भी बहुत हो रही है।’
मैंने लंड माँ को दिखाते हुए बोला.. तो माँ ने कहा- बेटा लंड खड़ा रहेगा तो खुजली होगी ही..
तो मैं बोला- माँ क्या तुम्हारे उधर भी खुजली होती है?
‘हाँ.. होती है..’ माँ बोलीं।
‘क्यों.. क्या तुम्हारे भी टांका टूटता है?’
मैंने पूछा.. तो माँ हँसने लगीं और बोलीं- नहीं हमारे में टांका-वांका नहीं होता है.. बस छेद होता है।
माँ अब काफ़ी खुल कर बातें करने लगी थीं, तो मैंने जानबूझ कर अंजान बनते हुए माँ की जांघों के ऊपर से नाईटी का बटन खोल कर हटा दिया जिससे उनके कमर के नीचे का हिस्सा नंगा हो गया और उनकी बुर को हाथों से छूते हुए कहा- अरे हाँ.. तुम्हारे तो लंड है ही नहीं.. लेकिन छेद कहाँ है.. यहाँ तो बस फूला-फूला सा दिखाई दे रहा है और इसमें से कुछ बाहर निकल कर लटका भी है।
तो माँ ने तुरंत मेरा हाथ अपनी बुर से हटा कर उसे ढकते हुए बोलीं- छेद उसके अन्दर होता है।
‘तो तुम खुजलाती कैसे हो?’ मैंने कहा।
तो वो बोलीं- उसे रगड़ कर और कैसे।
मैं बोला- लेकिन मैंने तो तुम्हें कभी अपनी नंगी बुर खोल कर सहलाते हुए नहीं देखा है।
माँ खूब तेज हँसते हुए बोलीं- बुर.. बुर.. ये तूने कहाँ से सुना।
‘मेरे दोस्त कहते हैं उनमें से कई तो अपने घर में नंगे ही रहते हैं और सब औरतों की बुर देख चुके हैं।’
यह सुन कर माँ बोलीं- अच्छा तो ये बात है.. तभी मैं कहूँ कि तू आज कल क्यूँ ये हरकतें कर रहा है?
मैंने हँसते हुए कहा- कौन सी हरकत? तो माँ मेरे लंड को हाथों से पकड़ कर हल्के से हिलाते हुए बोलीं- रात वाली और कौन सी.. जिसके कारण यह हुआ है.. खुद तो जैसे-तैसे करके सो जाता है और मुझे हर तरफ से गीला कर देता है।
तो मैं हँसने लगा और कहा- तुम भी तो मज़े ले रही थीं।
तब तक शायद माँ की बुर काफ़ी गीली हो चुकी थी और खुजलाने भी लगी थी.. क्योंकि वो अपने एक हाथ से नाईटी का थोड़ा सा हिस्सा जो केवल उसकी बुर ही ढके हुए था।
क्योंकि बाकी का हिस्सा तो मैं पहले ही नंगा कर चुका था। उन्होंने नाईटी को हल्का सा हटा कर बुर से निकले हुए चमड़े के पत्ते को मसलने लगीं।
माँ धीमे-धीमे हँस रही थीं.. पर कुछ बोली नहीं।
‘माँ कितना अच्छा लगता है ना.. रात वाली हरकत दिन में भी करें.. देखो ना मेरा लंड कितना फूल गया है और तुम्हारी बुर भी खुज़ला रही है.. प्लीज़ मुझे दिन में अपनी बुर देखने दो ना और वैसे भी मैं अभी तो लंड तुम्हारे छेद में डाल नहीं पाऊँगा।’
मैंने एक हाथ से अपने लंड को सहलाते हुए कहा और दूसरे हाथ से उसकी नंगी जाँघ को सहलाते हुए उसकी बुर के होठों को ऊँगलियों से खोलने लगा।
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RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
ससुर बहू की पेलमपेली
मैं आपको एक बहुत ही रोचक घटना बताने जा रहा हूँ। मैंने कैसे अपनी नई नवेली बहू की चुदाई कर डाली। मेरा नाम मस्ताना सिंह है और मेरी उम्र 48 साल है। मेरी पत्नी का देहांत करीब 5 साल पहले हो गया था। फिटनेस फ्रीक होने की वजह से मैं अभी तक बहुत फिट रहता हूँ। पत्नी के जाने के बाद मेरे कई औरतों और कम उम्र की लड़कियों से शारीरिक सम्बन्ध रहे हैं।
मेरा एक ही बेटा है और कोई औलाद नहीं। घर में हम दो लोग ही थे। पर अभी दो महीने पहले मैंने मेरे बेटे रमेश की शादी करवा दी। मेरी बहू रीटा बहुत सुन्दर, आकर्षक और अच्छे स्वाभाव की लड़की है। अब चूंकि रमेश अपने काम में इतना व्यस्त है कि रीटा पूरे दिन में कई घंटे मेरे साथ ही बिताती है।
रीटा-रमेश की शादी को दो महीने ही हुए थे, एक दिन रीटा ने मुझसे पूछा भी कि क्या वह मेरे साथ मेरे जिम में, टेनिस, तैराकी में साथ आ सकती है?
तो मुझे उसे अपने साथ रखने में कुछ ज्यादा ही खुशी का अनुभव हुआ। हम अक्सर साथ-साथ शापिंग के लिए भी जाते। तो एक बार क्या हुआ कि हमलोग, मतलब रीटा और मैं एक माल में स्विम-सूट देख रहे थे।
थोड़ा मुश्कुराते हुए, थोड़ा शरमाते हुए रीटा ने मुझे एक छोटी सी टू-पीस बिकिनी दिखाई और पूछा- “यह कैसी है पापा?” और जिस तरह से यह पूछते हुए उसने मेरी ओर देखा।
तो दोस्तों, मेरे जीवन में शायद इससे उत्तेजक अदा किसी लड़की या औरत ने नहीं दिखाई थी। उसके चेहरे पर मुश्कान थी, आँखों में शरारत भरा प्रश्न था, उसकी यह कामुक अदा मुझे मेरे अन्दर तक हिला गई। मैंने बिना एक भी पल गंवाए उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ रखे और दबाते हुए कहा- “हाँ, इसमें तुम लाजवाब लगोगी, तुम्हारी फिगर है ही इसे पहनने के लिए एकदम उपयुक्त…”
वो खिलखिलाई- “मैं तो बस मजाक कर रही थी पापा। मैं इसे आम स्विमिंगपूल में कैसे पहन सकती हूँ?”
“लेकिन जान, मैं मजाक नहीं कर रहा…” फिर मैंने अपना एक हाथ उसकी कमर के पीछे लेजाकर, दूसरा हाथ उसके कूल्हे पर रखकर उसे अपनी तरफ दबाते हुए कहा- “हमारा क्लब एक विशिष्ट क्लब है और यहाँ पर काफी लड़कियां और महिलाएं ऐसे कपड़े पहनती हैं। और सप्ताहांत को छोड़कर अंधेरा होने के बाद तो शायद ही कोई क्लब में होता हो। तुम इसे उस वक्त तो पहन ही सकती हो…” अब तक मेरा ऊपर वाला हाथ भी नीचे फिसलकर उसके चूतड़ों पर आ टिका था। फिर मैंने सेलगर्ल की ओर घूमते हुए वो बिकिनी भी पैक करने को कह दिया।
अगली सुबह रीटा मेरे साथ जिम में थी, उसकी छरहरी-सुडौल काया से मेरी नजर तो हट ही नहीं रही थी। उसने भी शायद मेरी घूरती नजरों को पहचान लिया था, तभी तो उसके गुलाबी गाल और लाल-लाल से हो गए थे, और ज्यादा प्यारे हो गए थे।
वो मेरे पास आकर मेरे गले में एक बाजू डालते हुए बोली- “जब आप मेरी तरफ इस तरह से देखते हैं ना पापा, तो मुझे बहुत शर्म आती है पर अच्छा भी बहुत लगता है…” कहकर उसने अपना चेहरा मेरी छाती में छिपा लिया।
मैं उसकी पीठ थपथपाते हुए उससे जिम में रखी मशीनों के बारे में बात करने लगा कि उन्हें कैसे इश्तेमाल करना है? और उनसे क्या नहीं करना है?
उसे मेरी बातें तुरन्त समझ आ जाती थी और अपनी बात भी मुझसे कह देती थी।
हमने जिम में थोड़ी वर्जिश करने के बाद आराम किया, फिर नाश्ता करके टेनिस के लिये क्लब आ गये। उसे टेनिस बिल्कुल नहीं आता था तो मैंने उसे रैकेट पकड़ना आदि बताकर शुरू में अलीशार पर कुछ शाट मारकर कुछ सीखने को कहा। गयारह बजे तक हम वापिस घर आ गए और आते ही वो तो बगीचे में ही कुर्सी पर ढेर हो गई।
मैं उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया और पूछा- क्या मैंने तुझे ज्यादा ही थका दिया?
उसने कहा- “नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं…” पर उसके चेहरे के हाव-भाव से साफ नजर आ रहा था कि वो थक चुकी है।
मैं उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा हुआ और उसके कंधे और ऊपरी बाजुओं को सहलाते हुए बोला- “टेनिस की प्रैक्टिस कुछ ज्यादा हो गई…”
वो बोली- पापा, कई महीनों से मैंने कसरत आदि नहीं की थी ना, शायद इसलिए।
मैंने कुछ देर उसकी बाजू, कन्धे और पीठ सहलाई तो वो कुर्सी छोड़कर खड़े होते हुए बोली- “पापा, आप कितने अच्छे हैं…” और यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया।
मैंने भी उसके बदन को अपनी बाहों के घेरे में ले लिया और कहा- “मेरी रीटा भी तो कितनी प्यारी है…” कहते हुए मैंने उसके माथे का चुम्बन लिया और जानबूझकर अपनी जीभ से मुख का थोड़ा गीलापन उसके माथे पर छोड़ दिया।
“पापा, मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो मैं आपकी बहू बनकर इस घर में आई… आप यहीं बैठकर आराम कीजिए, मैं चाय बनाकर लाती हूँ…” कहते हुए रीटा मुड़ी।
मैं कुर्सी पर बैठकर सोचने लगा कि मैं भी कितना खुश हूँ रीटा जैसी बहू पाकर। आज कितना अच्छा लगा रीटा के साथ। तभी मन में यह विचार भी आया कि उसके वक्ष कैसे मेरी छाती में गड़े जा रहे थे जब वो मेरी बाहों में थी। ओह्ह… जब रीटा चाय बनाने के लिए जाने लगी तो मेरी नजर उसके चूतड़ों पर पड़ी, उसका टाप थोड़ा ऊपर सरक गया था और शायद टेनिस खेलने से उसकी सफेद निक्कर थोड़ी नीचे होकर मुझे उसके चूतड़ों की घाटी का दीदार करा रही थी। अब या तो उसने पैंटी पहनी ही नहीं था या फिर पैन्टी निक्कर के साथ नीचे खिसक गई थी। अब तो यह देखते ही छलांगें मारने लगी।
मैं भूल गया कि यह मेरी पुत्र वधू है। मैं उठकर उसके पीछे रसोई में गया, उसके पीछे खड़े होकर उसे चाय बनाते देखने लगा। मेरी निक्कर का उभार उसके कूल्हों के मध्य में छू रहा था।
उसने पीछे मुड़कर अपने कन्धे के ऊपर से मेरी आँखों में झांका और बोली- “पापा, मैं तो चाय लेकर बाहर ही आने वाली थी…” और उसने मेरे लिंग के पड़ रहे दबाव से मुक्त होने के लिए अपने चूतड़ थोड़े अन्दर दबा लिए।
और मैं उसकी टाप और निक्कर के बीच चमक रही नंगी कमर पर अपनी दोनों हथेलियां रखकर बोला- मैं कुछ मदद करूँ?
मेरे इस स्पर्श से उसे एक झटका सा लगा और वो मेरी ओर देखने के लिए मुड़ी कि उसके चूतड़ मेरे लिंग पर दब गए। मेरा उत्थित लिंग उसके पृष्ठ उभारों के बिल्कुल बीच में जैसे घुस सा गया। उसे मेरी उत्तेजना का आभास हो चुका था पर कोई प्रतिक्रिया दिखाए बिना वो बोली- “चलिए पापा, चाय तैयार है…” कहकर वो मेरे आगे-आगे चलने लगी।
मैं भी उसके पीछे-पीछे उसकी नंगी कमर और ऊपर-नीचे होते कूल्हों पर नजर गड़ाए चलने लगा। बाहर पहुँचते-पहुँचते मैं अपने को रोक नहीं पाया और जैसे ही रीटा चाय स्टूल पर रखने के लिए झुकी, मैं अपनी दोनों हथेलियां उसके कूल्हों पर टिकाते हुए बोला- “नाइस बम्स…” और इसी के साथ मैंने अपनी दोनों कन्नी उंगलियां कूल्हों की दरार में दबा दी।
रीटा- “ओह पापा, आप भी ना… अभी चाय छलक जाती…” चाय रखने के बाद वो मेरी तरफ घूमते हुए बोली।
और मेरे हाथ फिर से उसकी कमर पर आ गये- “तुम्हारे कूल्हे बहुत लाजवाब हैं रीटा। मुझे बहुत पसंद हैं…” पता नहीं मैं कैसे बोल गया और इसी के साथ मेरी आठों उंगलियां उसकी निक्कर की इलास्टिक को खींचते हुए उसके चूतड़ों के नंगे मांस में गड़ गईं।
रीटा के बदन में जैसी बिजली सी दौड़ गई और थोड़ी लज्जा मिश्रित मुश्कान के साथ बोली- सच में पापा?
मैं- “हाँ रीटा, तुम्हारे चूतड़ एकदम परफेक्ट हैं। इससे बढ़िया चूतड़ मैंने शायद किसी के नहीं देखे…” कहले हुए मैंने अपनी हथेलियां कुछ इस तरह नीचे फिसलाई कि सफेद निक्कर उसकी जांघों में लटक गई।
रीटा अपनी जगह से हिली नहीं और अब मैं उसके नंगे चूतड़ों को अपने हाथों में मसल रहा था। मैंने फुसफुसाते हुए उससे कहा- “रीटा, मैंने बहुत सारे चूतड़ इस तरह नंगे देखे हैं, सहलाए हैं, चाटे भी हैं पर…” कहते-कहते मैंने अपनी उंगलियों के पोर उन दोनों कूल्हों के बीच की दरार में घुसा दिए।
रीटा- “हाँ पापा, मैंने सुना है कि आपने खूब…” कहते हुए वो कामुक मुश्कान के साथ शरमा गई।
मैं- “तुम्हें किसने बताया?”
उसने कनखियों से मेरी तरफ देखा और अर्थपूर्ण मुश्कुराहट के साथ बोली- “काम्या ने। वो मेरे साथ कालेज में पढ़ती थी, वो मेरी सहेली थी और चटखारे ले-लेकर आपकी रसीली कहानियां मुझे सुनाया करती थी…” इसी के साथ वो खिलखिलाकर हँस पड़ी।
अब यह मेरे लिए परेशानी वाली बात थी, मैंने पूछा- “काम्या ने तुम्हें क्या-क्या बताया?” अब मेरे हाथ खुल्लमखुल्ला रीटा के चूतड़ों से खेल रहे थे।
वो फिर खिलखिलाई- “ये लड़कियों की आपस की बातें हैं, मैं आपको नहीं बताऊँगी…”
मैं- “लेकिन ना कभी काम्या ने, ना कभी तुमने बताया कि तुम सहेलियां थी?”
रीटा- “रमेश से मेरी शादी करवाने में काम्या का ही तो हाथ है। दो साल पहले जब एक बार आप लन्दन गये हुए थे तो काम्या मुझे यहाँ इस घर में लेकर आई थी। उस समय सुमन मौसी भी यहीं थी। तो काम्या ने ही मौसी को बीच में डालकर रमेश की शादी मुझसे करवाई…”
मैं- “ओह्ह… तो सुमन भी तुम्हारे साथ मिली हुई है?”
रीटा- “तो क्या पापा? सुमन मौसी तो आपके साथ भी… है ना?
मैं- “ह्म्म…”
रीटा- “सुमन मौसी ने ही तो बताया था कि…”
मैं- “क्या बताया था उसने? बोलो…”
रीटा- “उन्होंने बताया था कि आप किसी भी लड़की को अपने चुम्बन से पागल कर सकते हो…”
मैं- “सुमन से भी ना… चुप नहीं रहा जाता… तो अब तुम भी पागल… उंह्ह…” मैंने उसके टाप के अन्दर उसकी पीठ पर एक हाथ फिराते हुए कहा।
रीटा- “हाँ पापा, मुझे भी अपने होंठों का जादू दिखाईए ना…” रीटा ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर अपने होंठों को गोल करते हुए कहा।
मैं अपना हाथ उसकी पीठ से सरका कर गर्दन तक ले आया और उसके सिर को पीछे से जकड़ते हुए अपने होंठ उसके रसीले होंठों पर रख दिये। मेरे हाथ के उसके सिर पर जाने से हुआ यह कि उसका टाप भी मेरे हाथ के साथ रीटा के कन्धों में आकर रुका। मेरा दूसरा हाथ जो अभी तक उसके चूतड़ों पर था, वो फिसल कर उसकी जांघों तक चला गया और उसकी जांघ को उठाकर मैंने अपनी बाजू पर ले लिया।
रीटा ने अपने को मुझसे छुड़ाते हुए कहा- “पापा, अन्दर चलते हैं…”
मैंने उसे छोड़ते हुए कहा- “चलो, ड्राइंग रूम में चलो…”
जैसे ही वो सीधी खड़ी हुई, उसकी निक्कर उसके पैरों में ढेर हो गई।
मैंने निक्कर को पकड़कर उसके पैरों से निकालकर कहा- “चलो, मैं इसे सम्भालता हूँ…”
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RE: Real Chudai Kahani रंगीन रातों की कहानियाँ
अब वो आगे आगे, और मैं पीछे-पीछे उसकी निक्कर को हाथ में लेकर सूंघते हुए चल रहा था, उसकी जांघों और योनि की गन्ध उस निक्कर में रमी हुई थी। कपड़ों के नाम पर रीटा के गले में उसका टाप एक घेरा सा बनाए पड़ा था। निक्कर मेरे हाथ में थी, ब्रा-पैन्टी पहनना शायद उसे भाता नहीं था। अन्दर ड्राइंग रूम में जाकर रीटा ने ए॰सी॰ और सारी बत्तियां जला दी, तो पूरा कमरा रोशनी से नहा गया। और जैसे ही रीटा बत्तियां जलाकर मेरी तरफ घूमी, उसने अपने गले से वो टाप निकालकर मेरे मुँह पर फ़ेंक दिया।
लेकिन मेरी नजर तो उसकी नाभि पर थी, उसमें उसने एक बाली पहनी हुई थी। उसके बाद मेरी निगाहें सरक कर नीचे गई तो देखा योनि ने घने सुनहरे-भूरे बालों का घूंघट ओऔढ़ा हुआ था।
रीटा ने मेरी तरफ अपनी बाहें फैलाते हुए कहा- “आओ ना पापा। मुझे अपने होंठों से पागल करो ना…” कहकर रीटा अपने होंठों पर जीभ फिरा रही थी, और उसके गीले होंठ मुझे निमंत्रण दे रहे थे।
मैंने उसके गालों को अपनी हथेलियों में पकड़कर उसकी गहरी आँखों में झांका और अपने होंठ उसके होंठों पर हल्के से रगड़ दिये।
उसके मुख से सिसकारी फूटी- “पापा, और करो प्लीज…”
मैं- “जानू… अब तुम्हारी बारी है…” मैं उसके नंगे चूतड़ों को अपने हाथों में सहेजते हुए फुसफुसाया।
रीटा- “पापा… प्लीज आप करो ना… प्लीज पापा करो…” वो एक छोटे बच्चे की तरह मचलते हुए बोली- “जन्नत का मजा तो आप ही मुझे देंगे ना पापा?”
मैं- “ओह्ह… ठीक है। मेरे सिर को अपने हाथों में थाम लो रीटा…
बिना एक भी शब्द बोले उसने मेरा सिर पकड़कर अपने चेहरे पर झुका लिया। हमारे होंठों ने एक दूसरे को छुआ और मैं उसे अपने होंठों से सताने लगा।
रीटा का पूरा बदन कांप रहा था और उसके मुख से कामुक सीत्कारें निकल रही थीं, और तभी अचानक एकदम से उसने मेरे होंठों को चाकलेट की तरह चूसना-खाना शुरू कर दिया।
रीटा की इस हरकत ने मुझे भी पागल सा कर दिया, मैंने उसके चूतड़ों के नीचे अपने दोनों हाथ लेजाकर उसे ऊपर को उठाया तो उसने अपनी टांगें मेरे कूल्हों के पीछे जकड़ लीं। इससे उसके चूतड़ों के बीच की दरार चौड़ी हो गई और मेरी मध्यमा उंगली उसकी गाण्ड के छेद को कुरेदने लगी। लड़की मेरे बदन पर सांप की तरह लहरा कर रह गई और मेरी उंगली उसके कसे छेद को भेदते हुए लगभग एक इंच तक अन्दर घुस गई।
रीटा हांफ रही थी- “ऊह्ह… पापा… उह्ह पा… आह्ह… ना…”
मुझे याद नहीं हम कितनी देर तक इस हालत में रहे होंगे कि तभी उसका मोबाइल घनघना उठा। और इस आवाज से हमारे प्यार के रंग में भंग हो गया। उसने एक हल्के से झटके के साथ अपनी टांगें मेरी कमर से नीचे उतारी और बोली- “पापा, जरा उंगली निकालो, मैं फोन देख लूँ…”
जैसे ही मैंने अपनी उंगली उसकी गाण्ड से निकाली उसने मेरा हाथ पकड़ा और उसे अपनी नाक तक लेजाकर मेरी उंगली सूंघने लगी। उसने पीछे हटकर फोन उठाकर देखा तो उसके पति यानि मेरे बेटे रमेश का फोन
था।
मैंने रीटा की आँखों में देखा तो वो शर्म के मारे मुझसे नजरें चुराने लगी। मैं उसके पास गया और रीटा से सटकर फोन पर अपना कान लगा दिया।
रमेश उससे पूछ रहा था- सुबह क्या-क्या किया?
रीटा ने भी अभी आखिर की कुछ घटनाओं को छोड़कर उसे सब बता दिया।
रमेश ने पूछा कि वो हांफ क्यों रही है?
तो रीटा ने बताया कि वो नीचे थी और फोन ऊपर, फोन की घंटी सुनकर वो भागकर ऊपर आई तो उसकी सांस फूल गई।
सच में मेरी पुत्र-वधू काफी चतुर है। मैंने मन ही मन भगवान को इसके लिये धन्यवाद किया। मैं अपने बीते अनुभवों से जानता था कि गर्म लोहे पर चोट करने का कितना फायदा होता है। मेरे बेटे का फोन बहुत गलत समय पर आया था, बिल्कुल उस समय जब मैं अपनी बहू की योनि तक पहुँच ही रहा था और वो भी मेरी हरकतों का माकूल जवाब दे रही थी। अगर रमेश का फोन बीस मिनट भी बाद में आया होता तो मेरी बहू अपने ससुर के अनुभवी लौड़े का पूरा मजा ले रही होती। लेकिन शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं था। मैं फोन पर कान लगाए सुन रहा था।
मेरे बेट-बहू लगातार फोन पर ‘लव यू’ कह रहे थे और चुम्बनों का आदान प्रदान कर रहे थे।
और मुझे महसूस हो रहा था कि जितनी देर फोन पर मेरे बेटे बहू की यह रासलीला चलती रहेगी, मेरे लण्ड और मेरी बहू रीटा की चूत के बीच की दूरी बढ़ती जाएगी। और शायद रमेश को बातचीत खत्म करने की कोई जल्दी भी नहीं थी। मुझे आज मिले इस अनमोल अवसर को मैं व्यर्थ ही नहीं गंवा देना चाहता था, तो मैंने अपनी बहू को उसके पीछे आकर अपनी बाहों में जकड़ लिया।
रीटा मेरे बेटे के साथ प्यार भरी बातों में मस्त थी और उसने मेरी हरकत पर ज्यादा गौर नहीं किया, वो अपने पति से बिना रुके बातें करती रही, लेकिन उसकी आवाज में एक कंपकंपाहट आ गई थी
“क्या हुआ? तुम ठीक तो हो ना?” मेरे बेटे रमेश ने थोड़ी चिन्ता जताते हुए पूछा।
थोड़ा रुकते हुए रीटा ने जवाब दिया- “उंह्ह… हाँ ठीक हूँ… जरा हिचकी आ गई थी…”
मैंने रीटा के जवाब की प्रशंसा में उसके एक उरोज को अपनी मुट्ठी में भींचते हुए दूसरा हाथ उसके गाल पर फिरा दिया।
रमेश अपनी पत्नी और मेरी बहू रीटा से कुछ इधर-उधर की बातें करने लगा। लेकिन उसे लगा कि रीटा की आवाज में वो जोश नहीं है जो कुछ पल पहले था क्योंकी रीटा ‘हाँ हूँ’ में जवाब दे रही थी और अपने बदन को थिरकाकर, लचकाकर मेरी तरफ देख-देखकर मेरी हरकतों का यथोचित उत्तर दे रही थी।
इससे मुझे यकीन हो गया था कि वो वास्तव में अपने पति के साथ मेरे सामने प्रेम-प्यार की बातें करने में आनन्द अनुभव कर रही थी। जरा सोचकर देखिए जिस लड़की की शादी को अभी दो महीने ही हुए हों वो अपने पति से प्यार भरी बातें करते हुए अपने ससुर के सामने पूर्ण नग्न हो और उसका ससुर उसकी चूचियों से खेल रहा हो।
अब मैं समझ चुका था कि मेरी बहू मुझसे इसके अलावा भी बहुत कुछ पाना चाह रही है, तो मैंने भी और आगे बढ़ने का फैसला कर लिया। मैंने फोन के माउथपीस पर हाथ रखा और फुसफुसाया- “बात चालू रखना, फोन बंद मत होने देना। ठीक है?”
उसने मेरी तरफ वासनामयी नजरों से देखा और ‘हाँ’ में सर हिलाया। रीटा भी अब खुलकर इस खेल में घुस गई थी।
अब मैं उसके सामने आया और नीचे अपने घुटनों पर बैठकर अपने हाथ उसके चूतड़ों पर रखकर उसे अपने पास खींचा और अपने होंठ उसकी योनि लबों पर टिका दिए।
“ओअ अयाह ऊउह…” रीटा के होंठों से प्यास भरी सिसकारी निकली।
मैं सुन नहीं पाया कि उसके पति ने क्या कहा।
लेकिन वो उत्तर में बोली- “ना… नहीं, मैं ठीक हूँ। बस मुझे ऐसा लगा कि मेरी जांघ पर कुछ रेंग रहा था…”
एक बार रमेश ने शायद कुछ कहा जिसके जवाब में रीटा ने कहा- “शायद मेरी पैंटी में कुछ घुस गया है… चींटी या और कुछ? मैं टेनिस लान में घास पर बैठ गई थी तो…”
मेरे बेटा जरूर कुछ गन्दी बात बोला होगा, तभी तो रीटा ने कहा- “धत्त… गंदे कहीं के। अच्छा ठीक है, मैं पैंटी उतारकर अंदर देखती हूँ… तो मैं पांच मिनट बाद फोन करूँ?”
उसने हाँ कहा होगा तभी तो उसके बाद रीटा ने मेरे बेटे को फोन पर एक चुम्मी देकर फोन बन्द कर दिया और फोन को सोफे पर उछालते हुए मुझसे बोली- “पापा…”
मैं खड़ा हो गया और रीटा को अपनी बाहों में ले लिया।
रीटा भी मेरी छाती पर अपना चेहरा टिकाकर मुझे बाहों के घेरे में लेते हुए धीमी आवाज में बोली- “आप बहुत गन्दे हैं पापा…” कहकर उसने अपने कूल्हे आगे की तरफ धकेलकर मेरी पैन्ट के उभार पर अपनी योनि टिका ली थी।
मैंने अपने हाथों से उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसके होंठों को चूमते हुए बोला- “हाँ। सही कह रही हो रीटा, मैं असल में बहुत गन्दा हूँ जान। अगर मैं गन्दा ना होता तो अपनी प्यारी बहू रीटा को मजा कैसे दे पाता?”
रीटा मेरी आँखों में झांकते हुए बोली- अगर रमेश को पता लगा तो क्या होगा?
मैंने उसके चूतड़ों को थपथपाते हुए कहा- “तुम बहुत समझदार हो जानम। तुम उसे हमेशा खुश और संतुष्ट रखोगी…” कहकर मैंने उसके होंठों को फिर चूमा, और बोला- “और मैं तुम्हें हमेशा खुश और संतुष्ट रखूँगा…”
रीटा- “मुझे पता है पापा…” कहकर उसने मुझे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया, और कहा- “मैं रमेश से फोन पर बात कर रही थी और आप मुझे वहाँ चूम रहे थे। कितने उत्तेजना भरे थे ना वो पल? मैं तो बस ओर्गैस्म तक पहुँचने ही वाली थी…”
मैंने रीटा को सुझाव दिया- “अपना फोन उठाओ और बेडरूम में चलो। वहाँ जाकर आराम से रमेश से फोन पर बातें करना…”
रीटा खिलखिलाते हुए बोली- “मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी पापा…” फिर उसने मेरी आँखों में झान्कते हुए कहा- “पापा, मुझे सुमन मौसी ने बताया था कि आप किसी भी लड़की के मन की बात जान सकते हैं। अब मुझे पता लगा कि मौसी सही कह रही थी…”
हम दोनों खूब हंसे और हँसते-हँसते रीटा ने मेरी पैन्ट के उभार को अपनी मुट्ठी में पकड़ते हुए कहा- क्या मैं इस शरारती को देख सकती हूँ?
मैं- “हाँ बिल्कुल, यह तुम्हारा ही तो है…” कहकर मैंने फटाफट अपनी पैंट उतारी।
रीटा ने लपक कर नीचे बैठकर मेरा अन्डरवीयर नीचे खींच दिया। एक झटके से अन्डवीयर उरतने से मेरा सात इन्च लम्बा तने हुये लिंग ने जोर से उठकर सलामी दी, तो वो सामने बैठी रीटा के नाक से जा टकराया। रीटा जैसे घबरा कर पीछे हटी, फिर तुरन्त आगे बढ़कर उसने एक हाथ से मेरे लटकते अण्डकोषों को सम्भाला और बहुत हल्के से अपने होंठ लिंग की नोक पर छुआ दिए।
काफी समय से खड़े लण्ड को गीला तो होना ही था, उसके होंठ छुआने से मेरे लण्ड का लेस उसके होंठों पर लग गया और एक तार सी उसके होंठों और मेरे लण्ड की नोक के बीच बन गई।
रीटा ने दूसरे हाथ से मेरे लण्ड की लम्बाई को पकड़ा और अपने होंठों पर जीभ फिराती हुए बोली- “अम्मांह… बहुत प्यारा है…”
मैं- “जानू, तुम्हें पसन्द आया?” मैं थोड़ा आगे होकर फिर से अपने लण्ड को उसके होंठों पर रखते हुए बोला।
रीटा- “हाँ पापा…” कहते हुए उसने अपनी जीभ मेरे लिंग के अगले मोटे भाग पर फिराई। फिर एक लम्बी सांस भरकर उसे सूँघते हुए बोली- “और इसमें से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है…”
मैंने उसे कन्धों से पकड़कर उठाया और कहा- चलो बिस्तर पर चलते हैं।
रीटा- “एक मिनट…” रीटा ने मेरी शर्ट ऊपर उठाकर उतार दी, फिर मेरे लण्ड को पकड़कर मुझे बिस्तर की तरफ खींचते हुए बोली- “अब चलो…”
अब हम दोनों बिल्कुल प्राकृतिक अवस्था में थे, मैंने उसके कूल्हे पर एक हाथ रखकर उसे बिस्तर की तरफ धकेलते हुए कहा- चलो।
हम दोनों बिस्तर पर आ गए, रीटा के हाथ में फोन था, वो बिस्तर पर अपनी टाँगें थोड़ी फैलाकर पीठ के बल लेट गई और अपनी जांघों के बीच में उंगली से इशारा करते हुए मुझसे बोली- “पापा, थोड़ा चाटो ना प्लीज…”
मैंने अपना चेहरा उसकी चिकनी जाँघों के बीच में टिका लिया और अपने होंठों में उसकी झाँटे दबाकर खींचने लगा।
रीटा- “ओह्ह… पापा, आप बाद में खेल लेना, मेरी… गीली हो रही है, एक बार मेरे अन्दर से चाट लीजिए…”
मैं थोड़ा सीधा हुआ और अपनी उंगलियों से बालों के जंगल में उसकी योनि के लबों को खोजने लगा, कहा- “तुम इन्हें साफ क्यों नहीं करती रीटा?”
रीटा- “रमेश को ऐसे ही पसंद है ना…”
मैंने रीटा को जांघों से पकड़कर ऊँचा उठाया तो उसकी योनि मेरे होंठों के पास थी और वो खुद अपने कन्धों के ऊपर टिकी हुई थी, उसका सिर और कन्धे बिस्तर पर शेष बदन मेरी बाहों में मेरे ऊपर था। मैंने अपने दोनों अंगूठों और दो साथ वाली उंगगियों से उसकी योनि के लबों को अलग-अलग किया तो अन्दर गुलाबी भूरी पंखुड़ियां कामरस से भीग कर आपस में चिपक गई थी। मैंने अपनी जीभ से उनपर लगे रस को चाटा और उनकी चिपकन हटाकर जीभ अन्दर घुसा दी। मेरी जीभ एक इन्च से ज्यादा अन्दर चली गई थी।
रीटा के मुख से निकला- “पापा… ओ पापा… आपका जवाब नहीं अम्मंअह…”
मेरी बहू रीटा के बदन और योनि की मिली-जुली गंध मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी।
तभी रीटा ने रमेश का नम्बर मिला दिया। रमेश ने एकदम से फोन उठाया, जैसे वो रीटा के फोन का ही इन्तजार कर रहा था, वो भी अपनी पत्नी से काम-वार्ता को उत्सुक लग रहा था। मेरी चतुर बहू ने फोन का लाउडस्पीकर आन कर दिया ताकि मैं भी उन दोनों की पूरी बात सुन सकूँ।
रमेश ने पूछा- बताओ कि क्या हुआ था?
रीटा हँसते हुए बोली- वही हुआ था जानू। मेरी पैंटी में चींटी घुस गई थी, वो तो शुक्र है कि काली वाली थी, अगर कहीं लाल चीटी होती तो पता नहीं मेरा क्या हाल होता?
रमेश- “तुम्हारा या तुम्हारी चूत का?” मेरे बेटे ने पूछा।
रीटा- “हाँ हाँ… चूत का। पता है कि मैंने चीटी को कहाँ से निकाला?”
रमेश- “कहाँ से?”
रीटा- “बिल्कुल क्लिट के ऊपर से…”
रमेश- “ओह्ह… साली चीटी, मेरी घरवाली की चूत का मजा ले रही थी? रीटा… तुमने अच्छी तरह देख तो लिया था ना कि वो चीटी ही थी? कहीं चीटा हुआ तो? और उसने तुम्हें… हाँ… हाँ…”
रीटा- “सुनो रमेश, इस समय मैं बिल्कुल नंगी बिस्तर में लेटी हुई हूँ और उस जगह को रगड़ रही हूँ जहाँ उस चीटी… ना… ना… उस चीटे ने मुझे काटा था…”
रमेश- “ओअह्ह… तो तुम अपने हाथ से अपनी क्लिट मसल रही हो? अपनी फुद्दी में उंगली कर रही हो?”
रीटा- “हाँ मेरे यार… अगर तुम होते तो उंगली की जगह तुम्हारा लौड़ा होता, और तुम्हारा लण्ड मेरी चूत की खुजली मिटा रहा होता…” मेरी चालू बहू ने कहा- “लेकिन अभी तो मुझे सिर्फ़ उंगली से ही गुजारा करना पड़ेगा…”
रमेश- “और वो डिल्डो कब काम आएगा जो हमने पेरिस में खरीदा था? तुम उसे इश्तेमाल करो ना…” मेरे बेटे ने सुझाव दिया।
रीटा- “अरे हाँ… वो तो मैं भूल ही गई थी। अभी निकालती हूँ उसे…” रीटा ने मुश्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर फोन के माइक को हाथ से ढकते हुए मुझसे फुसफुसाई- “आप ही मेरे डिल्डो हो आज। घुसा दो अपना डिल्डो मेरे अन्दर। मैं आपके बेटे से कहूँगी कि मैंने डिल्डो ले लिया अपने अन्दर…” कहकर मेरी समझदार बहू ने कनखियों से मुझे देखा और फिर कुछ देर बाद फोन में बोली- “हाँ जानू, ले आई मैं। डाल लूँ अन्दर?”
रमेश- “हाँ… हाँ… घुसा ले ना। पूरा बाड़ना…”
रीटा ने मुझे इशारा किया कि अब घुसाना शुरू करो।
रीटा- “लेकिन रमेश, यह तो बहुत बड़ा है। मेरी चूत जरा सी है, यह कैसे पूरा जाएगा अन्दर?” उसने सिसियाते हुए कहा।
रमेश- “अरे चला जाएगा रानी… पूरा जाएगा… तू कोशिश तो कर। बड़ा है तभी तो तुझे असली मजा आएगा ना… घुसाकर देख। सुमन मौसी के पास तो इससे भी बड़ा डिल्डो है। तुमने तो देखा है कि वो कैसे चला जाता है मौसी की चूत में…”
रीटा- “अरे, सुमन मौसी की चूत को तो तुम्हारे पापा ने चोद-चोदकर फुद्दा बना रखा है। मौसी बता रही थी ना कि तुम्हारे पापा का तुमसे भी बड़ा है। चलो… फिर भी कोशिश करके देखती हूँ…”
मैं तो रमेश और रीटा का वार्तालाप सुनकर हतप्रभ रह गया। मैं तो खुद को ही चुदाई का महान खिलाड़ी समझ रहा था, पर यहाँ तो सभी एक से बढ़कर एक निकल रहे हैं। लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि मैं कुछ ना कह पाया और चुपचाप मैंने बिल्कुल शान्ति से बिना कोई आवाज किए रीटा की जाँघों को फैलाया और अपने लिंगमुण्ड को योनि के मुख पर टिका।
तो रीटा ने लिंगदण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और उसे अपने अन्दर सरकाने का यत्न करने लगी। रीटा की चूत खूब गीली होकर चिकनी हो रही थी, उसने मेरे लिंग के सुपाड़े को अपनी योनि-लबों के बीच में रगड़कर उन्हें फैलाया और मेरे हल्के से दबाव से मेरा सुपाड़ा अन्दर फिसल गया।
रीटा- “अओह… हाँ… आ… अई…” रीटा ने जोर से एक चीख मारी।
उधर से आवाज आई रमेश की- “वाह रीटा… बहुत अच्छे, कितना अन्दर गया?
रीटा- “ऊओह… रमेश, अभी तो बास आगे का मोटा सा नाब ही अन्दर घुसा है… उफ़्फ़् कितना मोटा है यह? तुम्हारे लण्ड से तो डेढ़ गुना मोटा और शायद डेढ़ गुना ही ज्यादा लम्बा है यह…” रीटा मेरी आँखों में झांकते हुए बोली।
और फिर एक बार माइक को हाथ से ढकते हुए फुसफुसाई- “मैं सही कह रही हूँ पापा। आपका सच में रमेश के से ड्योढ़ा तो है ही…”
इस बात से बिल्कुल बेखबर कि उसकी पत्नी उसके पिता के लण्ड की बात कर रही है, रमेश ने उसे और अंदर तक घुसाने के लिये उकसाया- “और अन्दर तक ले ना रीटा। पूरा अन्दर घुसा ले…”
रीटा- “हाँ मेरे राजा हाँ…” रीटा हांफते हुए से बोली और मुझे अपना लण्ड उसकी चूत में और अन्दर घुसाने के लिए इशारा किया।
मैंने अपनी जांघों को एक झटका दिया और मेरा आधे से ज्यादा लौड़ा मेरी बहू रीटा की चूत के अन्दर था।
रीटा- “ओह्ह माँ… मर गई मैं… पापा जी आह्ह… मम्मा…” रीटा जोर से सीत्कारते हुए असली दर्द से चिल्लाई तो उसके मुँह से पापा निकल गया। और शायद अपनी इस भूल को छिपाने के लिये बाद में मम्मा बोली थी।
उधर मेरे बेटा खिलखिलाकर हँसते हुए बोला- “अपने मम्मी-पापा को क्यों बुला रही हो? बुलाना है तो मेरे पापा को बुला ले ना… तेरी फाड़कर रख देंगे वो…”
रीटा- “हट बेशरम… गन्दे कहीं के। तुम्हारे पापा क्या फाड़ेंगे मेरी चूत। अब तो बुड्ढे हो गये वो…” मेरी तरफ तिरछी नजर से देखकर आँख मारते हुए रीटा बोली।
रमेश- “अरे, इस गलतफहमी में मत रहना। मेरे पापा का लौड़ा इस डिल्डो का भी बाप है…”
रीटा- “तो सुनो रमेश। अब मैं यह कल्पना कर रही हूँ कि मेरी चूत में यह डिल्डो नहीं, तुम्हारे पापा का लौड़ा है…”
रमेश खिलखिलाया- “ठीक है। तुम यही सोचकर डिल्डो से चुदो कि तुम मेरे पापा से चुद रही हो। मैं भी सुनूँ कि मेरी रानी कैसे चुदती है अपने ससुर से?” रमेश इस मजाक पर मजा लेकर खूब जोर से हँसा।
रीटा ने एक वासना भरी सिसकारी लेते हुए कहा- “अब मैं अपनी आँखें बन्द करके तुम्हारे पापा को अपने अन्दर महसूस कर रही हूँ। वो अब मेरे नंगे बदन के ऊपर लेटे हुए हैं, उनका लण्ड मैं अपनी चूत में महसूस कर रही हूँ, पापा के हाथ मेरी चूचियों पर हैं…”
अब रीटा ने मेरी तरफ अधीरता से देखा- “हाँ पापा, और पेलिये ना… रुक क्यों गये? घुसाइए, पूरा बाड़ दीजिए… अपने मोटे लौड़े से अपने बेटे की पत्नी की चूत की धज्जियां उड़ा दीजिए…”
मुझे फोन पर अपने बेटे की वासना भरी सिसकारती आवाज सुनाई दी- “ओह्ह… मेरी रानी, तुमने मेरा लण्ड पूरा सख्त कर दिया। क्या कल्पना की है तुमने?”
रीटा ने बोलना जारी रखा- “नील… तुम सही कह रहे थे… तुम्हारे पापा का लण्ड सच में लाजवाब है। इसने मेरी बुर फैलाकर रख दी है, और यह अभी भी थोड़ा मेरी फुद्दी से बाहर दिख रहा है…”
तब रीटा ने मुझे देखते हुए कहा- “पेलिये ना अपना पूरा लौड़ा मेरी चूत के अन्दर पापा। यह बाकी क्या मेरी ननदों के लिए बचा कर रखा हुआ है? पापा आप बड़े हरामी हैं। आपने अपनी दोनों सालियों की चूत फाड़ी और
अब अपनी बहू की फुद्दी को भी नहीं छोड़ा। आपको शर्म आनी चाहिए पापा। आप बहूचोद बन गए…”
उधर रमेश सुन-सुनकर पागल हुए जा रहा था। फोन पर उसकी आह्ह… ऊह्ह… साफ-साफ सुनाई दे रही थी।
रीटा- “जब आपने अपने बेटे की दुल्हन पर हाथ साफ कर ही दिया तो अब अपना पूरा लौड़ा दे दीजिए ना उसे…”
रमेश उधर से बोला- “अरे रीटा, दरवाजे खिड़कियां तो अच्छी तरह बन्द कर लिए थे ना? पापा घर में ही होंगे। कहीं उन्होंने यह सब सुन लिया तो वे सच में ही ना…”
रीटा- “घबराओ मत डार्लिंग…” मेरी शातिर बहू ने उत्तर दिया- “कोई भी गैर मर्द हमारी बातें नहीं सुन सकता…”
रमेश- “रानी… तुम्हारी कल्पना शक्ति नायाब है। मेरा लौड़ा तो तुम्हारी बातें सुनकर ऐसे टनटना गया कि क्या बताऊँ…”
रीटा- “अरे रमेश राजा… यह तो अभी शुरूआत है। आगे-आगे देखो कि तुम्हारा चुदक्कड़ बाप अपनी बहू को कैसे-कैसे चोदता है…”
रमेश- “ठीक है रीटा… अपनी कल्पना चालू रखो, और चुदो मेरे पापा से। उनसे कहो कि तुम्हारी पूरी तसल्ली कर दें…”
अब रीटा ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा- “पापा मेरी चूचियां अपने मुँह से चूसो ना…”
मैंने रीटा की चूचियों को आपस में इस तरह दबाया कि उनके निप्पल पास पास हो जाएं और फिर मैंने दोनों चुचूकों को एक साथ अपने मुँह में ले लिया।
रीटा चहकी- “अबे ओ रमेश, देख तेरा बाप कैसे मेरे दोनों निप्पल एक साथ चूस रहा है। देख कैसे सालीचोद अपनी बहू की चूचियां चूस-चूसकर उसे चोद रहा है अपने मोटे लौड़े से…”
रमेश से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, बोला- “आज तुम मुझे मार ही दोगी रीटा। मैं यहाँ अपने आफिस में बैठकर मुट्ठ मार रहा हूँ। पर रुकना मत। तुम बहुत बढ़िया ड्रामा कर रही हो…”
रीटा- “आई पापा, काटो मत… दुखता है…” जैसे ही मैंने रीटा के एक निप्पल को अपने दाँतों से काटा तो वो चिल्लाई- “पापा… ये अक्षरा या सुमन मौसी के नहीं मेरे चुचूक हैं। इन्हें प्यार से चूसो, और मेरे होंठों को भी तो चूसो पापा। अपनी जीभ मेरे मुंह में डालकर मेरे मुँह की चुदाई करो…”
फिर रीटा ने रमेश से कहा- “सुनो रमेश, तुम्हारे पापा अब मेरी चुम्मी ले रहे हैं…” और सच में रीटा ने ऐसी आवाजें निकाली जैसी चूमा-चाटी में आती हैं। और मैं यह सोच रहा था कि कितनी शैतान दिमाग की है मेरी बहू। अपने ससुर से सच में चुद रही है और अपने पति को फोन पर अपनी चुदाई का आँखों देखा हाल सुना रही है। कैसे बाप बेटे दोनों को एक साथ सेक्स का मजा दे रही है। अब वो खुलकर सिसकारियां भर रही थी, आनन्द से चीख रही थी, खुलकर मुझसे चुद रही थी बिना किसी डर के।
मुझे लग रहा था कि वो अब उस शिखर पर पहुँच रही है जिसे प्राप्त करने के लिये उसने इतने पापड़ बेले थे। अपनी बहू के चरमोत्कर्ष का भान होते ही मेरे अन्दर भी जैसे एक ज्वालामुखी फटने को हुआ और मेरा लण्ड और गर्म हो गया और फूलने लगा।
मेरे लण्ड की यह हलचल मेरी बहू रीटा ने भांप ली और वो फोन पर बोली- “रमेश, तेरे पापा मेरी चूत में झड़ना चाहते हैं, क्या करूँ? झड़ने दूँ अन्दर या बाहर निकालने को कहूँ?”
मेरे बेटे ने आनन्द से कहा- “रीटा, झड़ने दे पापा को अपनी चूत में ही…”
रीटा- “मगर मेरे को बच्चा ठहर गया तो?” फिर आगे बोली- “फिर तो मेरी चूत से तुम्हारा भाई पैदा हो जाएगा। सोच लो?”
रमेश खुलकर हंसा, फिर बोला- कोई बात नहीं। तू अपनी चूत से मेरा भाई पैदा कर या मेरा बेटा। जोरू तो तू मेरी ही रहेगी ना…”
रीटा- “तो ठीक है…”
फिर रीटा मुझे देखते हुए और अपने पति को सुनाते हुए बोली- “पापा, आपके बेटे ने मुझे इजाजत दे दी कि मैं अपनी फुद्दी में से उसका भाई पैदा करूँ। आप मेरे गर्भ में अपना बीज बो दीजिए। मेरी चूत अपने वीर्य के सराबोर कर दीजिए। मुझे गर्भवती कर दीजिए, मुझे मेरे पति के भाई की माँ बना दीजिए…” ऐसा कहते हुए रीटा ने अपने पैर बिस्तर पर टिकाकर अपने कूल्हे ऊपर झटकाए ताकि मेरा पूरा लण्ड उसकी चूत की पूरी गहराई में जाकर अपना बीज छोड़ सके।
फिर जानबूझ कर जोर से चीखते हुए भद्दी आवाज में बोली- “आह्ह… पापा, आपने मुझे चोद दिया आज। चुदाई का इतना मजा मुझे कभी नहीं मिला। मुझे आपसे प्यार हो गया है पापा। मुझे आपके लौड़े से प्यार हो गया है पापा। अब से रमेश के सामने मैं आपकी बहू हूँ और रमेश के पीछे आपकी रखैल…” यह बोलते-बोलते रीटा एक बार फिर झड़ गई।
और साथ ही मेरे लण्ड ने अपना झरना उसकी योनि के सबसे गहरे स्थान में बहा दिया।
उसने मुझे अपनी बाहों में जोर से जकड़ लिया और चिल्लाई- “रमेश… देखो… तुम्हारे पापा ने अपना वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया। तेरे बाप ने मुझे चोद दिया…”
मैं फोन की दूसरी तरफ से अपने बेटे की वासना भरी सिसकारियां सुन पा रहा था, जाहिर था कि वो मुट्ठ मार रहा था। मैं बड़े आराम से यह अनुमान लगा सकता था कि आज का दिन मेरे लिए, मेरे बेटे के लिये और सबसे ज्यादा मेरी बहू रीटा के लिए पूरे जीवन में कभी ना भूलने वाला दिन होगा।
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***** THE END समाप्त *****
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