RE: muslim sex kahani खानदानी हिज़ाबी औरतें
“अब किया प्रोग्राम है?” ज़ाहिद ने पूछा.
“एक दफ़ा और मज़े करें गे.” मैंने कहा.
“अभी तुम्हारा दिल नही भरा लड़को?” फूफी शहनाज़ ने मुस्कुरा कर कहा. उनकी शरम हया और शराफ़त अब कहीं नज़र नही आ रही थी. एक ही दिन में दो लंड ले कर वो कुछ से कुछ बन गई थीं .
“अब हम चाहते हैं के आप तीनो हम से अपनी गांड़ मरवायें.” मैंने कहा.
“गांड़ कैसे दी जाती है?” फूफी शहनाज़ ने हैरान होते हुए जवाब दिया और फूफी खादीजा की तरफ देखा.
“मैंने भी ये काम कभी नही किया.” फूफी खादीजा ने बड़ी दीदा-दलैरी से मेरे सामने सफ़ेद झूठ बोला. वो बे-शुमार दफ़ा मुझ से अपनी गांड़ मरवा चुकी थीं मगर अब ऐसे मासूम बन रही थीं जैसे उनके छेद ने कभी लंड की शकल ही नही देखी. फूफी शहनाज़ ने तो शायद वाकई कभी अपनी गांड़ नही दी थी.
में शुरू से ही फूफी खादीजा की गांड़ मार रहा था और वो खुशी खुशी मुझ से गांड़ मरवया करती थीं लेकिन शायद चाची फ़हमीदा के सामने इस बात का इक़रार नही करना चाहती थीं के वो गांड़ भी देती हैं.
पहले तो फिर भी उन्हे गांड़ मरवाने पर थोड़ा बहुत ऐतराज़ होता था लेकिन बाद में उन्होने कभी मुझे अपना गांड का सुराख मारने से नही रोका. उन्हे गांड़ मरवाने में अब अच्छी ख़ासी महारत हासिल हो गई थी. लेकिन वो इस बात का इक़रार नही करना चाहती थीं . अजीब मंताक़ थी. चाची फ़हमीदा के सामने चूत देना ठीक था मगर गांड़ देना नही.
“छोड़ें ना बाजी खादीजा किया आप ने कभी गांड़ नही मरवाई? आज कल ब्लू फिल्मों के ज़माने में कौन सी औरत है जो अपनी गांड़ बचा सकती है. पहले तो शायद बहुत कम मर्द ऐसा करते थे मगर अब तो ब्लू फ़िल्मै देख देख कर उन्हे पता चल गया है के औरत की गांड़ भी मारी जा सकती है. किया अमजद ने आप की गांड़ नही मारी?” चाची फ़हमीदा ने मानी-खैीज़ अंदाज़ में मेरी तरफ देख कर कहा.
“में कह रही हूँ ना के मैंने कभी अमजद को गांड़ नही दी और ना ही मुझे इस का तरीक़ा आता है.” फूफी खादीजा ने रूखा सा जवाब दिया.
“ये कैसे हो सकता है बाजी खादीजा के आप ने आज तक किसी से गांड़ ना मरवाई हो. मै ये मान ही नही सकती के आप अमजद से चुदवाती रही हैं लेकिन उस ने अभी तक आप को गाँडू नही बनाया. आप के तो चूतड़ ही ऐसे हैं के कोई मर्द आप को गाँडू बनए बगैर नही माने गा.” चाची फ़हमीदा बोलीं.
“तुम कैसी बातें कर रही हो फ़हमीदा? किस क़िसम के बे-हूदा अल्फ़ाज़ बोल रही हो. किया तुम ने सब को अपनी तरह का समझ रखा है. तुम गाँडू हो तो किया सारी औरतें गाँडू हैं. मै बिल्कुल गाँडू नही हूँ. मुझे मेरे खाविंद और अमजद के अलावा किसी ने नही चोदा और इन दोनो को मैंने अपनी गांड़ नही दी. ये ठीक है के कल मुझे ज़ाहिद ने चोदा था मगर उस ने भी मेरी गांड़ नही मारी. रंग रंग के लौड़े अपनी गांड़ में लेने का शोक़् तुम्हे है मुझे नही.” फूफी खादीजा ने गुस्से से कहा.
में सोच रहा था के ठीक ठाक घरैलू औरतें ये किस क़िसम की बातें कर रही थीं . अपने घरों में उन्हे देख कर कोई सोच सकता था के ये ऐसी गुफ्तगू भी कर सकती हैं.
फूफी खादीजा की बात सुन कर चाची फ़हमीदा ने नफी में सर हिलाया.
“ना-जाने क्यों आप को लफ्ज़ गाँडू पर एतेराज़ है. गाँडू औरत वो होती है जो अपनी गांड़ मरवाती है. ये कोई गाली तो नही है जो आप गुस्से में आ रही हैं.” चाची फ़हमीदा ने हंस कर कहा.
“बहरहाल हम ये हरकतें नही करते.” फूफी खादीजा अपनी बात पर क़ायम रहीं. उन्हे चाची फ़हमीदा को हंसता देख कर और गुस्सा आ रहा था.
“बाजी खादीजा आप जिस तरह ज़ाहिद और अमजद के लंड पर बैठ कर अपनी चूत दे रही थीं और जिस तरह अपने चूतड़ों को हरकत दे रही थीं उस से साफ़ पता चल रहा था के आप को लंड अपनी गांड़ में भी लेना अच्छी तरह आता है. मै तो आप को चुदवाते हुए देख कर ही समझ गई थी के आप भी अपनी गांड़ देती रहती हैं. इस लिये तो में कह रही हूँ के आप भी गाँडू हैं. और अगर ऐसा नही है तो यक़ीन करें आप बेहतरीन गाँडू बन सकती हैं. बाजी शहनाज़ के साथ भी यही है लेकिन मुझे नही लगता के उन्होने कभी गांड़ मरवाई है. रह गई में तो हाँ में तो अपने मरहूम शौहर से भी गांड़ मरवाती थी और अब मेरा बेटा भी मेरी गांड़ लेता है. मुझे इस में कोई शरम नही है.” चाची फ़हमीदा उनकी बात नही मान रही थीं .
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