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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
ये बात करीब एक साल पहले की है, मेरे इम्तेहान का रिज़ल्ट आ चुका था. मैने बी.ए. पास कर लिया था, घर मे सब ने राहत की साँस ली. ऐसा नही था कि मेरी पढ़ाई पर ज़्यादा खर्चा हो रहा था लेकिन लड़कियो की पढ़ाई से फ़ायदा ही क्या होता है.
मैं खुश थी.
मेरी मा मुझे पढ़ाने के लिए बिल्कुल राज़ी ना थी. मैने भी ज़्यादा ज़िद्द नही की.
मा मेरी शादी के लिए बाबा को रोज़ कहने लगी,मेरे भी अरमान थे कि मैं कुछ बन जाउ लेकिन फिर मैं खामोश हो गयी.
फिर एक दिन ऐसा आया जब मुझे देखने के लिए लड़के वाले आने वाले थे. मैं थोड़ा घबरा सी गयी, मा तो मुझसे भी ज़्यादा घबराई हुई थी. मेरे पहनने के लिए कोई नये कपड़े भी ना थे. मैने अपनी खाला ज़ाद बहेन जो मेरी ही उमर और मेरे ही डील डौल की थी उससे कपड़े लिए. मेरी खाला जो मुझसे कई मकान दूर रहती थी घर पर आ गयी. उनका नाम हिना है. मेरी मा हयात उनको बहुत मानती हैं. खाला हिना पैसे के मामले मे हम से थोड़ा बेहतर हैं. उनके शौहर दिलशाद की सेमेंट की एजेन्सी है. मेरी खाला ने मेरी मा से कहा कि मुझसे कस्बे के ब्यूटी पार्लर भेज दें ताकि मैं खूबसूरत लगूँ. सुबह के 9 ही बजे थे. मेरी मा ने मुझे मेरे भाई के साथ कस्बे के एकलौते ब्यूटी पार्लर भेज दिया. मैं पहली बार ब्यूटी पार्लर गयी थी. वहाँ पर पहले से ही दो लड़किया थीं जिनके चेहरे पर कुछ लगा हुआ था. मैं अंदर दाखिल हुई तो, ब्यूटी पार्लर की लड़किया मुझे देखने लगी. उन्होने मुझे सर से पैर तक देखा और उनके चेहरे पर एक हसी सी आ गयी. शायद वो मुझपर और मेरी ग़रीबी पर हंस रही थी. एक लड़की जो लंबी सी थी उसने मुझे पूछा क्या करवाना है? क्या शादी के लिए तैय्यार होना है? मैने कहा की नही लड़के वाले देखने आ रहे हैं. मेरी इस बार पर वो दो लड़किया वो पहले ही से कुर्सी पर बैठी थीं खिलखिला कर हंस पड़ी. मैं शर्मसार सी हो गयी. जाने क्यूँ हम लोवर मिड्ल क्लास के लोग हर बात पर शर्मिंदा हो जाते हैं.चाहे हमारी ग़लती हो या ना हो. ये अमीर लोग और रुतबे वाले अगर कोई बात ज़ोर से कहें तो हम उनकी बात मान लेते हैं. हमारा मुल्क चाहे गुलामी से आज़ाद हो गया हो लेकिन हम अपनी ग़रीबी से अभी तक आज़ाद नही हुए.
मुझे कोने मे पड़े एक सोफे बार बैठ कर इंतेज़ार करना का इसारा किया गया. कुछ देर बाद एक और लड़की पार्लर मे दाखिल हुई. मुझसे एक खाली पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहा गया. उस लड़की ने मुझसे वही सवाल किया ही था कि पहले से मौजूद दो लड़कियो मे से एक ने कहा कि मेडम को लड़के वाले देखने आ रहे हैं लेकिन इस बात पर इस लड़की हो हसी नही आई. वो तुनक कर बोली कि इन "लोगो ने लड़कियो को बाज़ार मे सजी हुई एक चीज़ समझ रखा है".
फिर वो शुरू हो गयी मेरी चेहरे,गर्दन,पैर के नाख़ून, हाथ के नाख़ून, पॅल्को और ना जाने क्या क्या. मुझे एहसास ही नही था कि ये सब भी होता है.
खैर काफ़ी टाइम बाद उन्होने मुझे 850 रुपये माँगे, जो मैने अपने भाई आरिफ़ जो बाहर खड़ा था उससे ले कर पार्लर वाली लड़कियो को दे दिए.
घर पहुँची तो घर को पहचान ना पाई, घर मे कुछ फूलों के गमले, नयी चद्दर,नया फर्निचर था. ये सब मेरी खाला के यहाँ से आया था.
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
कुछ ही देर मे लड़के वाले आ गये, मेरा तो मारे घबराहट के बुरा हाल था,
ये एक ऐसी फीलिंग होती है जो सिर्फ़ एक लड़की ही जान सकती है, ऐसा महसूस होता है कि हम लड़कियो की ज़िंदगी बाज़ार मे बिकती किसी बकरी की तरहा होती है जिसे देख कर टटोल का कोई कसाई पसंद करता है और अगर कसाई को ना पसंद आए तो बकरी का मालिक बकरी को ही लताड़ लगता है.
मुझे अपनी होने वाली सास और ननद के पास चाइ लेकर जाना था. मुझे सब कुछ मेरी खाला ने समझा दिया था, मैं जब जनानखाने मे पहुँची तो सब ही मुझे घूर कर देख रहे थे. मैने नाश्ता वगेरा रख और पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गयी.
मेरी होने वाली सास एक मोटा चस्मा लगाए मेरी तरफ घूर रही थी, उसकी आँखे बड़ी बड़ी थीं और वो एक मोटी औरत थी, बालो मे सफेदी आ चुकी थी, सूट सलवार कुछ ख़ास नही था, हाथो मे सोने के कंगन और कानो मे मोटी मोटी बालिया. आँखो मे एक दम रुबाब, उसको अपनी तरफ घूरता हुआ देखा तो ऐसा लगा जैसे कोई दारोगा किसी मुजरिम की पहचान कर रहा हो.
उसके साथ उसी की शक्ल की उसकी बेटी थी जो बहुत ज़्यादा सज धज के आई थी, ये पतली दुबली सी लड़की थी जिसकी गोद मे कोई 2 साल का एक बच्चा था. ये थोड़ा खुश मिजाज़ लग रही थी, अपनी मा की तरहा इसके नयन नक्श तीखे थे.
इतने मे उसकी मा ने मुझसे पूछा कि "बेटी आरा कहाँ तक पढ़ी हो"
इसका जवाब मेरी खाला ने दिया "जी बी.ए किया है"
इसपर उस औरत ने मेरी खाला को घूरा जैसे कोई नापसंद बात कह दी गयी हो और लगभग फटकार लगाते हुए जवाब दिया की "बहेनजी ज़रा बच्ची को भी बोलने दीजिए"
फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर कहा कि "बताओ मेरी बच्ची कहाँ तक पढ़ी हो"
मैने जवाब दिया "जी बी.ए. कर चुकी हूँ"
मेरी होने वाली सास "प्राइवेट किया है"
मैं: "जी"
मेरी होने वाली सास "आगे पढ़ना नही चाहती हो"
मैं: "जी इतना काफ़ी है"
मेरी होने वाली सास "क़ुरान पढ़ी हो"
मैं: "जी"
मेरी होने वाली सास: "खाना पकाना, कढ़ाई सिलाई जानती हो"
मैं: "जी"
मेरी होने वाली सास: "बहुत अच्छी बात है, अच्छा ज़रा मेरे लिए थोड़ा ठंडा पानी ले आओ"
मैं : "जी अभी लाती हूँ"
ये कहकर मैं बाहर आ गयी.
कुछ घंटो बाद वो लोग चले गये. मैं अपनी मा से जानना चाहती थी कि वो लोग क्या कह गये हैं लेकिन शर्म की वजह से कुछ ना पूंछ पाई. मा ना तो खुश थी और ना ही परेशान लग रही थी.
इसी तरहा कुछ दिन बीत गये और एक सुबह मेरी खाला हिना मेरी अम्मा के पास आई और बड़ी खुश लग रहीं थी. उन्होने आते ही मेरी मा को गले से लगा लिया और कहा "उन लोगो ने हां कह दी है और वो लोग जल्द तारीख पक्की करना चाहते है"
इसपर मेरी मा ने पूछा "उन लोगो की कोई ख़ास माँग वगेरा",
खाला "अर्रे नही, उन लोगो का यही कहना है कि बच्ची बड़ी खूबसूरत और सेहतमंद है और उन्हे कुछ ख़ास नही चाहिए".
अम्मा "चलो बड़े खुशी की बात है"
खाला "" और क्या, वरना आज कल तो 4 पहिए की गाड़ी का चलन निकल आया है"
मेरे आबू जो दूर बैठे थे कहने लगे "वो लोग तो हां कह गये लेकिन हमको भी एक बार लड़के को देख लेना चाहिए कि कैसा है"
मेरा भाई भी इस चर्चा मे जुड़ गया "बाबा बिकुल सही कह रहे हैं"
खाला "ठीक है तो मैं उनसे कहलवा देती हूँ कि हम लड़के से मिलना चाहते हैं"
कुछ दिनो बाद हमारे यहाँ के लोग वहाँ गये और शाम को जब लौट कर आए तो ज़्यादा खुश नही दिख रहे थे.
मैं कुछ पूछना मुनासिब नही समझा. रात को खाने के वक़्त भाई बोल पड़ा
"बाबा मुझे वो लड़का अच्छा नही लगा"
बाबा "क्यूँ,क्या ऐब है बेचारे में?"
आरिफ़ मेरा भाई "बाबा उसकी आँखें देखी, पूरा चरसी लगता है वो"
बाबा "तुझे कैसे यकीन है"
आआरिफ :"बाबा मैं कई ऐसे लड़को को जानता हूँ जो इसी आदत मे मुब्तिल हैं"
बाबा "अच्छा अच्छा खाना खा ले,बड़ा डाक्टर बना फिरता है"
अम्मा: "लड़के की बहेन बड़ी चालाक और लालची लग रही थी,कह रही थी कि लड़के के बड़े भाई के यहाँ से उसके मिया के लिए मोटर साइकल आई थी"
बाबा: "अर्रे खाक डालो उसपर, हमारे पास इतनी रकम नही है कि लड़के की बहेन को दहेज दे दें, मेरी आरा के ससुर से बात हो चुकी है वो सिर्फ़ लड़के के लिए मोटर साइकल और तमाम चीज़ें जो चलन मे है वही चाहते हैं"
अम्मा : "तो तारीक़ क्या तय हुई है?"
बाबा: "अगले महीने की 25 तारीख"
अम्मा: "यही लगभग एक महीना?"
बाबा: "हां इतना काफ़ी है,एक हफ्ते मे फसल के पैसे आ जायें गे और फिर तैयारी सुरू हो जाएगी"
अम्मा: "चलो ऊपर वाला खैर करे मेरी बच्ची पर"
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
फिर वो दिन भी आ गया जब मैं दुल्हन बनी थी, सुबह से ही कलेजा मूह को आ रहा था. मेरी खाला की शादी शुदा लड़की यानी मेरी बहेन मेरा पास अकेले मे कुछ कहने आई उसका नाम रीना है.रीना मुझसे 2 साल बड़ी है
रीना "आरा मैं तुझ से वो कुछ कहना चाहती हूँ जो तुझे मालूम होना चाहिए"
मैं: "ऐसा क्या कहना चाहती है कि मुझे अकेले मे ले आई"
रीना: "ध्यान से सुन और अपनी गाँठ बाँध ले"
मैं: "अब बक भी क्या कहना चाह रही है"
रीना: "आज की रात के बारे में" ये कहकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी.
मैं: "चल पगली, हट यहाँ से"
रीना: "ये कोई मज़ाक नही है अगर ये नही जानेगी तो हो सकता है रोना पड़े"
मैं:"मुझे नही जानना ये सब, तू दिमाग़ मत खा"
रीना: "शूकर कर मैं तुझे बता रही हूँ, ये बात मुझे मेरी सहेलियो ने बताई थी"
मैं "क्या बताई थी?"
रीना: "आज की रात मियाँ बीवी का मिलन होता है"
मैं : "तो इसमे कौनसी नयी बात है"
रीना: "पगली, दो जिस्मो का मिलन होता है और तुझे मालूम होना चाहिए कि मिया क्या क्या करता है और उसको क्या नही करना चाहिए"
मैं:"क्या बक रही है?"
रीना:"देख, आज की रात के बाद तू कुँवारी नही रहेगी और आज तेरा कुँवारापन चला जाएगा"
मुझे ठीक से तो नही पता था लेकिन रीना की बातो से मैने कुछ कुछ अंदाज़ा लगा लिया था.
रीना: "आज तेरी गुलाबो से हो सकता है खून निकल पड़े या थोड़ा ज़्यादा दर्द हो लेकिन तुझे आज सब बर्दाश्त करना पड़ेगा"
हम लड़किया अपनी शरमगाह को गुलाबो कह कर पुकारती थी, रीना पहले से ही मुझसे खुली हुई थी और अपनी सुहागरात की दास्तान मुझे पहले ही सुना चुकी थी, मैं ये सब नही सुनना चाहती थी लेकिन फिर भी मुझे सुनना पड़ा.
मैं: "मुझे तू पहले ही ये सब बता चुकी है"
रीना: "इतना ध्यान रखना कि तेरा मिया तेरे पिछवाड़े मे शरारत ना करे"
मैं: "तू जा अब, बहुत हो चुकी ये सब बातें"
शाम को शादी की सारी रस्मे ख़तम हो चुकी थीं और मैं विदा होकर अपने ससुराल के सजे हुए कमरे मे बैठी थी और वहाँ पर पहले से ही काफ़ी औरतें मौजूद थी, सब मुझे मूह दिखाई के नेग दे कर एक एक करके जा रहीं थी,
ये कमरा काफ़ी सज़ा हुआ था, ये कमरा घर के कोने मे था, ये एक बड़ा सा खुला हुआ घर था, जिसमे कई कमरे थे वो बरामदे मे आकर जुड़ते है,सभी कमरे एक ही लाइन मे थे और सबका एक ही कामन किचन था. घर के कई बाथरूम और टाय्लेट थे.
मुझे अपने मिया का नाम ही मालूम था. उनका नाम शौकत था और वो बॅटरी और इनवेर्टर का काम करते थे.
आख़िर देर रात तक मैने अपने मिया का इंतेज़ार किया करीब 12 बजे वो मेरे कमरे मे दाखिल हुए. वो एक औसत दर्जे की हाइट के दुबले पतले से इंसान थे.
जैसी ही वो कमरे मे दाखिल हुए मेरी साँसें तेज़ हो गयी,मुझे इतना याद है कि वो आते ही मेरी तरफ बैठ गये,
उनका पास से सख़्त बू आ रही थी जो शराब की थी.
मुझे शराब से नफ़रत थी लेकिन मैं आज की रात को बर्बाद नही करना चाहती थी.
उन्होने मेरा घूँघट हटाया और कहा "बला की खूबसूरत हो"
मैं ये सुनकर थोड़ी की खुश हुई और शर्म से लाल हो गयी लेकिन इससे पहले की कुछ हो पाता वो लुढ़क कर बिस्तर पर गिर गये.
मुझे एक झटका सा लगा और मैं सोच मे पड़ गयी कि क्या यही वो रात है जिसका हर लड़की इंतेज़ार करती है. अब मैं रोना चाहती थी लेकिन रो भी ना सकी, मेरे बेचारे मा बाप जिन्होने इतनी मेहनत के साथ मेरी शादी की रकम जमा की थी, मेरी मा जो बेचारी डाइयबिटीस की मरीज़ है, अपना इलाज करवाने की बजाई मेरे लिए कुछ ना कुछ जोड़ती रहती थी, बड़े अरमान से मेरी शादी कर चुकी थी, मेरा बाबा जिनके कंधे मे अक्सर दर्द रहता था क्यूंकी वो जब खेती का काम नही होता था तो ट्रक चलाया करते थे और दिन रात मेहनत करते थे.
उन सब लोगो का चेहरा मेरे सामने घूम रहा था. बड़ा भाई भी अपनी पढ़ाई बीच मे रोक कर मेरे दहेज के सामान के लिए काम कर रहा था, रात भर वो भी
अपनी कलम घिस कर अपनी किताबों मे गुम रहता.
इन सब लोगो की ज़िंदगी हमसे जुड़ी हुई थी. मैं किसी तरह अपने शराब मे डूबे शौहर को सुला कर सो गयी.
सुबह जब दरवाज़े पर मेरी ननद ने दस्तक दी तो मैं जाग गयी.
मैने उसे अंदर आने को कहा.उसका नाम सबा था.
ये वही लड़की थी जो मुझे मेरे घर मे अपनी मा के साथ देखने आई थी.
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
सबा ने आते ही अंदर बिस्तर पर चारो तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखा, उसके चेहरे पर मायूसी और थोड़ी परेशानी नज़र आई फिर मेरी पास आकर कहा कि नाश्ता तैयार है आप नाश्ता कर लीजिए.
मैं उठी और कमरे से जुड़े बाथरूम की तरफ बढ़ गयी, इस बाथरूम के लिए मुझे अपने कमरे से थोड़ा बाहर जाना पड़ा. बाहर मेरी सास तख्त पर बैठी क़ुरान पढ़ रही थीं.
मेरी नज़र उनसे मिली फिर मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गयी. शादी वाला घर था, दूर से आए हुए मेहमान अभी भी घर मे ही थे, मैं अपने साथ कुछ कपड़े लाई थी जो मैने नहा कर पहेन लिए और जब कमरे मे वापस गयी तो मेरे मिया अभी भी सो रहे थे. मैं खामोश होकर बिस्तर के कोने मे बैठी रही. कुछ देर बाद मेरी सास मेरे कमरे मे आ गयी और अपने बेटे को उठाने लगी. लेकिन वो कहाँ उठने वाले थे.
मेरी सास मुझे दूसरे कमरे मे ले गयी और वहाँ मैने उनके साथ नाश्ता किया.
वालीमा का दिन था. ये दावत लड़के वालो की तरफ से लड़की वाले और तमाम रिश्तेदारो के लिए होती है. इसमे मेरी मा और मेरे घरवाले सभी आए.
मेरी बहन रीना मुझसे मिलने के लिए बेताब थी. लेकिन मैने किसी पर ये ज़ाहिर नही होने दिया कि मेरे साथ रात मे क्या हुआ था. ये एक शर्म और सदमे वाली बात थी जिसे मैं किसी से शेअर नही करना चाहती थी. बनावटी मुस्कान के पीछे रात की खलिख और भयानक अंधेरा छुप गया. रात के राज़ राज़ ही रहे और दुनिया मे एक और लड़की सब की खातिर क़ुरबान हो गयी. लड़किया हमेशा से ही क़ुरबान होती रही हैं, क़ानून और मज़हब चाहे कितना ही क्यूँ ना उन्हे हक़ दे लेकिन मर्दो के इस समाज मे औरतें हमेशा क़ुरबान ही होती रही हैं.
धीरे धीरे सब मेहमान जाने लगे. मेरी सास ज़्यादा तर खामोश ही रही.
शाम हो चुकी थी,मेरे मियाँ अब अपने दोस्तो के साथ आँगन मे बैठे बात चीत कर रहे थे.
रात को मेरी ननद सबा मेरे कमरे आ आई और कहने लगी.
"भाभी मैं जानती हूँ कि शायद आपकी पिछली रात ख़ुशगवार नही गुज़री थी,हमारे यहाँ मेरे भाई बड़ी परेशानी से गुज़र रहे है और शायद इसलिए वो शराब पी लेते हैं लेकिन यकीन मानो वो शराबी नही हैं, अब्बा तो उन्हे कई बार पीट भी चुके हैं लेकिन वो कभी कभी अपनी शराब वाली हरकत दोहरा ही देते हैं"
मैं: "शायद मेरी यही किस्मत है"
और मैं ये कहकर फूट फूट कर रोने लगी.सबा मेरे करीब आई और मुझे अपने सीने से लगा कर मुझे चुप करने लगी.
सबा "भाभी हम सब इस बात पर खुश नही हैं, अम्मा पर जैसे कहेर ही टूट पड़ा है, सुबह से उन्होने कुछ नही खाया है, हम ने ये सोचा कि एक खूबसूरत बीवी के प्यार से शायद शौकत (मेरे मिया का नाम) सुधर जाए,"
मैं "आप परेशान ना हो, शायद ऐसा ही हो"
सबा: "मेरी प्यारी भाभी, आप का कितना बुलंद हौसला हैं"
मैं: "और इस हालत मे एक लड़की कर भी क्या सकती है"
इतने मे बाहर से मेरी सास की आवाज़ आई तो मैं आँसू पोछ कर सही तरीके से बैठ गयी.
मेरी सास मेरे करीब आकर बैठ गयी, उन्होने इस वक़्त अपना मोटा चस्मा नही पहना था और वो बड़ी शर्मिंदा सी लग रहीं थी, ये वो औरत नही लग रहीं थी जो मुझे देखने आई थी, ये तो कोई मज़लूम बेसहारा सी एक ख़ौफजदा सी ज़माने की सताई औरत की तरहा लग रही थीं, उन्होने मेरी तरफ इस तरहा देखा जैसे वो अपने किसी गुनाह के माफी माँग रही हों.
उन्होने आते ही सबा को बाहर जाने का इशारा किया.
सबा के जाते ही वो भी मुझसे लिपट गयी. और एक मा की तरहा मेरे सर पर बोसा दिया.
फिर कहने लगी
"मेरी बच्ची मैं तुझे यकीन दिलाती हूँ कि मैं तेरी ज़िंदगी बर्बाद नही होने दूँगी बस यकीन रख और थोड़ा वक़्त दे"
मैं: "अम्मी आप इस तरहा रोए नही और कुछ खा लें , मुझे उम्मीद है कि मेरे साथ बुरा नही होगा"
सास "शाबाश बेटा, तुझसे यही उम्मीद है"
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
फिर रात आ गयी और मेरे शौहर फिर मेरे कमरे मे दाखिल हुए. मैं अभी लेटी ही थी कि उनकी आवाज़ आई "सो गयी क्या तुम?"
और मैं घबरा कर उठ गयी और उनकी तरफ देखा. आज मुझे कोई और इंसान नज़र आया. ये तो मेरे शौहर ही थे लेकिन आज नशे मे नही लग रहे थे. नशा इंसान को क्या से क्या बना देता है.
ये इंसान औसत कद काठी का था. नाक बिल्कुल लंबी और सीधी, आँखें लाल और बड़ी बड़ी और चेहरे पे हल्की सी मुस्कुराहट. ऐसा लगता था कि वो मुझसे कह रहा हो कि कहाँ सो गयी थीं. उनकी मुस्कुराहट ने जैसे मेरे सारे घाव भर दिए.
एक औरत को अपने शौहर से चाहिए ही क्या होता है, बस रो जून की रोटी और थोड़ा सा प्यार. इसमे ही वो अपनी जन्नत ढूँढ लेती है और इसके सिवा उसे किसी और चीज़ की चाहत नही होती.
मेरे शौहर मेरे सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे और मैं सर झुकाए बिस्तर पर खामोशी से दिल की धड़कन को रोकने मे लगी थी.
पता ही नही चला कि कब वो मेरे सामने आकर बैठ गये और मेरी ठोडी उठा कर मेरी गहरी डूबी हुई आँखो को फिर से उभारने लगे.
मैं खुश थी लेकिन थोड़ी घबराई हुई थी. एक एक पल जैसे पहाड़ मालूम पड़ रहा था,मैं कमरे मे सुई के गिरने की आवाज़ सुन सकती थी,
एक हसीन लम्हा धीरे धीरे मेरी पॅल्को के नीचे से गुज़र रहा था.इतने मे मुझे मेरे हसीन ख्वाब से मेरे शौहर ने जगा दिया.
उन्होने हल्के से लहजे मे कहा
"कितना बेवकूफ़ हूँ मैं जो शराब का नशा करता हूँ मुझे तो इन आँखो का नशा करना चाहिए"
"आरा हैं ना तुम्हारा नाम"
मैं: जी
शौकत: मुझे कल पी कर नही आना चाहिए था, दर असल मेरे दोस्तो ने मुझे ज़बरदस्ती पिला दी, कम्बख़्त कहीं के, तुम मुझसे नाराज़ तो नही हो?
मैं: नही तो
शौकत: "झूठी कहीं की, ऐसा भी कभी होता है कि,बीवी शौहर के पीने पर नाराज़ ना हो"
मैं:"मैं आपके शराब पीने पर नही बल्कि आपके मुझे गौर से देखे बिना ही सो जाने पर परेशान थी"
शौकत: "हां, होना भी चाहिए, आख़िर बीवी बन कर आई हो, लेकिन जानती हो मैं शराबी नही हूँ और किसी को मारना पीटना गाली गलोच करना मेरी फ़ितरत नही है"
मैं: जी
शौकत: बचपन से ही मैं लगातार हारता रहा हूँ, कई चीज़ें मैं जानबुझ कर हारा,कई चीज़ें ना चाहते हुए भी लेकिन मैं हारता ज़रूर रहा हूँ.
मैं: क्या मैं आपसे एक सवाल कर सकती हूँ
शौकत: क्यूँ नही, पूछो
मैं: क्या आप किसी और से मोहब्बत करते हैं?
शौकत: हां.
ये सुनकर मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गयी, अब यही इंसान जो मुझे प्यारा लगने लगा था, जो दो जुमलो से मुझे जन्नत दिखा रहा था, एक ही हां से मुझे और मेरे वजूद को हिला गया, मैं बेशख्ता ही अचानक सर उठा कर उन्हे देखने लगी,इसपर वो खिल खिला कर हंस पड़े और
शौकत: अर्रे भाई मैं अपने मा बाप, भाई बहेन, रिश्तेदार सब से मोहब्बत करता हूँ.
मैं: नहीं मैं कुछ और पूछ रही थी.
शौकत: जानता हूँ, मैने मोहब्बत की थी अपने स्कूल की एक लड़की से, लेकिन कभी ज़बान पर नयी आ पाई,वो बड़े घर की लड़की थी और दूसरे मज़हब की, बस दिल मे
था कि उससे बात करूँ, वो थी ही इतने खूबसूरत.
मैं: तो क्या मैं खूबसूरत नही हूँ
शौकत: तुम तो एक बला हो, मुझे तो यकीन ही नही होता कि एक इतनी खूबसूरत हसीन लड़की मेरी ज़िंदगी मे आई है, अब दिल चाहता है कि तुम्हारे दामन मे सर रख कर खूब रोया जाए और अपने दिल के सारे राज़ खोल दिए जायें, मैं तुममे अपनी ख़ुसी और ज़िंदगी तलाश करना चाहता हूँ, बोलो दोगि मेरा साथ
मैं: जी बिल्कुल
शौकत: मुझे इतनी जल्दी समझना आसान नही है, खैर अगर तुम्हे नींद आ रही है तो सो जाओ.
मैं खामोश रही.
शौकत: क्या तुम,,,,क्या मैं,,,
मैं: क्या कहना चाहते हैं?
शौकत: मुझसे नही कहा जाता,,उफ़फ्फ़
मैं: क्या नही कहा जाता
शौकत: मैं तुम्हे अपने सीने से लगा कर सोना चाहता हूँ.
मैं खामोश रही.
शौकत: शायद लड़की की खामोशी मे हां होती है.
ये बात उन्होने इतनी मासूमियत से कही कि मुझे हसी आ गयी.
शौकत: हँसी तो फँसी.
मैं अब खिल खिला का हंस पड़ी.
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
उन्होने मुझे अचानक से अपनी बाहों मे खींच लिया और सीधा मे गालो को चूमने लगे और फिर मुझे बिस्तर पर लिटा कर मुझसे कस कर चिपक गये, मैं इस के लिए तैयार ना थी और उनसे कहने लगी कि मैं अपने गहने उतार लेती हूँ.
इस पर उन्होने मुझे अलग कर दिया और मेरी तरफ देखने लगे, मैने उन्हे देखे बिना अपने सारे ज़ेवर उतार कर अलमारी मे रख दिए और बिस्तर पर उनके करीब आ कर लेट गयी. उन्होने मुझे फिर से बाहों मे कस लिया और उनके हाथ मेरी पीठ पर थे और धीरे धीरे वो मेरे टॉप के बटन खोलने लगे.मैने हाथ पीछे लेजकर उन्हे रोकना चाहा ही था कि उन्होने अपने एक हाथ से मेरे हाथ रोक लिए. अब चेहरे से अपने होंठ हटा कर उन्होने मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए और मेरे निचले होंठ को अपने उपर के होंठ से चूसने लगे, मेरे सारे बदन मे झुरजुरी सी होने लगी, आज तक किसी ने मेरे होंटो पर इस तरहा किस नही किया था, मैं भी उनका साथ देने लगी, अब उन्होने मेरे टॉप के सारे बटन खोल दिए थे और अब मेरे टॉप को निकालना चाहते थे,इसके लिए उन्होने मुझे थोड़ा दूर किया तो मेरी आँखें उनकी आँखो से मिली और मैने शरमा कर अपनी आँखें बंद कर दी. एक झटके मे मेरा टॉप उतर गया और फिर दोबारा उन्होने उसी तरहा मेरी ब्रा के हुक भी खोल दिए और मेरी ब्रा को मेरे बदन से आज़ाद किया. मैने अपने दोनो हाथ अपने सीने पे लगा लिए लेकिन उन्होने फिर बड़ी तेज़ी से मेरे हाथ हटा दिए. मैं बहुत शर्म महसूस कर रही थी,
लेकिन अब उनका ध्यान मेरी आँखो पर नही बल्कि मेरे नंगे सीने पर था.
अब उनके हाथ मेरे नर्म सीने पर आ गये, जिससे मेरी मूह से अया सीईईईईई की आवाज़ आई.
अब उन्होने मुझे मेरी पीठ के बल लिटा दिया और मेरे निपल्स पर अपना मूह रख दिया, ऐसा अहसास मुझे पहले नही हुआ था, अब मैं अपने आपे मे ना रही और उनके सर को अपने सीने मे दबाने लगी ऐसा लगा जैसे मैं किसी तेज़ धारा मे बही जा रही हूँ. उनका एक हाथ मेरे दूसरे सीने पर था.
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी शर्म गाह मे से कुछ रिस रहा है. अब उन्होने मेरी लहगे के नाडे मे हाथ डाला जिसके लिए मैं तैयार ना थी, एक झटके मे मेरा लहगा खुल गया.
वो अब उठ गये और मेरे लहगे को नीचे कर दिया. मेरे जिस्म पर पर मेरी पैंटी के अलावा कुछ ना था, उन्होने एक नज़र मेरी सफेद टाँगो को देखा और फिर मेरी पैंटी की एलास्टिक को पकड़ कर मेरी पैंटी नीचे करने लगे, मैने कस कर अपनी पैंटी को पकड़ लिया लेकिन उनकी ज़िद के आगे कुछ ना कर सकी.
तुरंत उन्होने मेरी टाँगो के बीच बैठ कर मेरी पैंटी नीचे सरका दी.
अब मैं बिस्तर पर बिल्कुल नंगी लेटी थी और दोनो हाथो से अपना मूह छिपाए थी. मैं शर्म से गढ़ी जा रही थी. आज तक मुझे किसी ने ऐसी हालत मे देखो हो ये मुझे याद नही है. कुछ देर वो इसी तरहा देखते रहे और एक उंगली मेरी टाँगो के बीच मे ले गये.मैं एक दम सिसक उठी, हाअइईई,उफफफफफफफफफ्फ़,सीईईईईई
शौकत: तुम्हारी चूत तो बड़ी शानदार है. इतनी गुलाबी और भरी हुई.
मैं कुछ बोल ही ना सकी, कुछ देर तक कोई हरकत ना हुई तो मैने अपने हाथ हटा कर देखना चाहा तो क्या देखती हूँ कि मेरे शौहर अपने सारे कपड़े उतार चुके
थे और बिल्कुल नंगे मेरी टाँगो के बीच मे आकर बैठ गये. मुझे अंदाज़ा नही था कि आदमी लोगो का इतना बड़ा हो सकता है.
अब उन्होने मेरी टाँगो को हवा मे उठाया और अपना औज़ार मेरे मुहाने पर रख दिया.
कुछ देर वो उसे इसी तरहा रगड़ते रहे और फिर अचानक उन्होने एक ज़ोर का झटका मारा और पूरी तरहा मेरे अंदर दाखिल हुए, ये इतनी ज़ोर का धक्का था कि मैं चीख उठी,ऐसा लगा कि किसी तेज़ ब्लेड ने मेरी खाल को चाक कर दिया हो. शौकत शायद इस बात के लिए तैय्यार थे और उन्होने धक्का देते ही मेरे मूह पर हाथ रख दिया जिससे मेरी चीख कमरे मे ही रही.अब वो लगातार धक्के दिए जा रहे थे और मैं जैसे सातवे आसमान मे थी, अब मैं खुल कर आवाज़ निकाल रही थी,, उफफफफफफफफफफफफफ्फ़,हइई
,आआआआआआअहह, सीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई
ये लगभग कुछ देर चला होगा कि मुझे लगा की मुझमे से कोई फव्वारा फूटने वाला हो और अचानक मेरे अंदर से गाढ़ा चिपचिपा पानी निकल पड़ा, इस अनोखे से एहसास ने ना जाने मुझे शुरुआत मे हुआ दर्द भुला दिया था, मुझे अपनी बहेन रीना की बात याद आई कि "आज की रात के बाद तू कुँवारी नही रहेगी"
कुछ देर मे शौकत ने भी एक फव्वारे मेरे अंदर छोड़ दिया और मुझपर ही लेट कर वो अपनी सांसो को अपने क़ब्ज़े मे करने लगे. हम कुछ देर इसी तरहा लेटे रहे और
फिर अपने कपड़े पहेन कर सो गये.
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मेरी ज़िंदगी की ये सुबह एक नया रंग और रूप लेकर आई थी.सुबह हो चुकी थी लेकिन फिर भी ये एक हसीन ठंडी रात की तरहा थी जिसमे चाँद और तारे चारो तरफ मीठी ठंडी रोशनी हर तरफ फैला रहे होते हैं. हर तरफ कोई रात रानी का पौधा खुसबु फैला रहा होता है. ठंडी हवा जैसे कोई मीठा राग गा रही होती है और जैसे कोई जोड़ा
बहुत दिनो बाद मिला होता है और उस रात मे बाहों मे बाहें डाले एक दूसरे से लिपटा हुआ चाँद की तरफ देख रहा होता है. वो ऐसा नज़ारा होता है जैसे वक़्त अब कोई
मायने नही रखता और ऐसा लगता है जैसे दुनिया की भाग दौड़ और दुख तकलीफे हमेशा के लिए ख़तम हो चुकी हैं. ऐसा लगता है कि जैसे अब दुख, तकलीफ़,घबराहट,बेचैनी,डर,दर्द सब फनाह हो चुके हैं और अब सिर्फ़ दो प्यार करने वाले जन्नत मे एक दूसरे के साथ हमेशा हमेशा के लिए खुश रहेंगे.
मैं इन्ही ख़यालों मे खोई हुई थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई तो मैं जाग गयी. देखती हूँ कि मेरी ननद दरवाज़े पर पर्दे के पीछे खड़ी दरवाज़ा नॉक कर रही है.
मैने ये भी देखा कि मेरे शौहर जा चुके हैं, मैने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 10 बज चुके थे. मुझे ख़याल आया कि ना जाने घर वाले सब क्या सोचते होंगे.मैने अपनी ननद को अंदर आने को कहा.वो अंदर आई तो उसके चेहरे पर एक सवालिया निशान था लेकिन जब उसने मेरे चेहरे पर सुकून देखा तो वो थोड़ा सा मुस्कुरा दी. मेरी ननद ने अपने हाथ मे रखी चाइ की ट्रे वो बेड के साइड टेबल पर रख कर मेरे करीब बैठ कर सवाल किया.
ननद: क्यूँ भाभी आज तो चेहरे पर सुकून नज़र आ रहा है लगता है सफ़र की सारी थकान मिट गयी है और इसलिए देर तक सोती रही आप.
मैं: क्या मतलब.
ननद: रात बड़ी हसीन गुज़री है आप की.
मैं शरमा सी गयी, हलाकी की ये लड़की मुझसे उमर मे थोड़ी बड़ी होगी लेकिन अभी भी मैं इसके लिए नयी थी तो थोड़ा झिझक रही थी, इसलिए मैं कुछ बोल ना सकी.
ननद: बताओ ना भाभी कल रात क्या हुआ, क्या ये कली फूल बन पाई.
मैं अभी भी सर झुकाए अपने घुटने पर सर रखे अपना सर छुपा रही थी कि अचानक मुझे अपनी सफेद चद्दर पर खून के लाल धब्बे दिखाई दिए. ये वही खून के
धब्बे थे वो रात की कहानी कह रहे थे. ये निशान मेरे कली से फूल बनने की थे. मेरे चेहरे पर बेतहाशा शर्म और थोड़ी घबराहट के आसार नज़र आ गये जिसको
देख कर मेरी ननद की नज़रे जैसे मेरी नज़रो को टटोलते हुए उन धब्बो पर पहुँच गयी. मैने उसके चेहरे को देखा तो वो अब खुल कर हंस पड़ी.
ननद: तो ये बात है.चलो अच्छा हुआ खैर मैं आपको और परेशान नही करूँगी. आप नहा लीजिए और फिर नाश्ता कर लीजिए. बाद मे बात करेंगे.
मैं अब ये नही जानती थी कि इस चद्दर को बदलू कैसे और इसको छुपाऊ कहाँ. खैर मैं उसपर अपना तालिया रखकर फ्रेश होने चली गयी और जब लौट कर आई तो देखा कि
वो चद्दर गायब थी और उसकी जगह एक दूसरी नयी चद्दर बिछी हुई थी. मुझे एक झटका सा लगा. खैर नाश्ता किया और थोड़ा सा लेट गयी. ये बाहर का मौसम था, बाहर ठंडी मीठी हवा चल रही थी. इस घर के चारो तरफ एक बड़ी सी दीवार थी और अंदर बड़े बड़े दरख़्त थे. ये एक बड़ा सा पुश्तैनी घर था. चिड़ियो के चहकने की
आवाज़ आ रही थी और ये दिन आम दिनो से अलग बड़ा ही ख़ुशगवार लग रहा था.मैने आँखें बंद कर ली और मैं नींद मे जा चुकी थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई के मैं
जाग गयी. ये मेरी सास थी. मैने अपने आप को संभाला और उठ बैठी. मेरी सास मेरे करीब आकर बैठी और उन्होने मेरे माथे को चूम लिया और मेरे सर पर हाथ
रख कर बोली "शौकर चला गया काम पर ?"
मैं: हां शायद.
सास: अच्छा, और तुम बताओ ठीक हो?
मैं: हां खाला (दर असल हमारे यहाँ एक दस्तूर है सास को खाला कहने का)
सास: अच्छा लगा बेटी तुम्हारा चेहरा देख कर, दिल को तसल्ली सी हो गयी. तुमने नाश्ता कर लिया क्या?
मैं: जी
सास: तुम्हारी मा का फोन आया था सुबह,वो तुम्हे बाकी की रस्मो के लिए घर बुलाना चाहती हैं. मैने सोचा पहले तुमसे और शौकत से मशविरा ले लिया जाए. शौकत शाम को आएगा तो मैं उससे भी पूंछ लूँगी. तुम्हारे ससुर की भी यही राई है. तुम क्या कहती हो इस बारे में?
मैं: जैसा आप लोग ठीक समझें.
सास: तो ठीक है, तुम हो आओ अपने घर और इन्ही रस्मो के बहाने थोड़ा मज़ा भी कर लो.हम बूढो को तो ये सब खेल तमाशा ही लगता है.
मैं: जी
सास: अच्छा,अगर तुम चाहो तो मेरे साथ बैठक मे बैठ सकती हो, वहाँ बड़ी ठंडी हवा आती है और औरतो के सिवा वहाँ कोई आता भी नही है.
मैं: ठीक है.
और मैं फिर उनके पीछे चल पड़ी.
रात को शौकत आए और वो मुझे मेरे घर भेजने के लिए राज़ी थे. अगले दिन मैं घर पहुँच गयी.
घर पर मेरी मा, मेरा भाई,मेरे बाबा और मेरी खाला और उनकी बेटी सब मौजूद थे. शौकत को बैठक मे बिठाया गया. फिर वही सब रस्मो रिवाज और वही सब चीज़े.
सब लोग बहुत खुश थे. मैं गौर किया कि मेरी मा भी बड़ी खुश थी,बड़े दिनो के बाद उनके माथे की सिलवटें मिट गयी थी और उनका चेहरा ताज़ा ताज़ा सा लग रहा था.
एक लड़की का बोझ जो उनके सर से उतर गया था. अब मुझे अपना ही घर थोड़ा अंजाना सा लग रहा था. मैं पलट पलट कर हर चीज़ को देख रही थी. आज ये मुझे बेगाना बेगाना सा लगता था. मुझे अपने उपर यकीन नही आ रहा था. मेरे बाबा अब भी शौकत से बात कर रहे थे और मेरी खाला मेरी मा के साथ बैठ कर बातें कर रही थीं. इसी तरह शाम हो गयी और शौकत मुझे मेरे घर छोड़ कर अपने घर चले गये. मैं लगभग कुछ दिन ही अपने घर रही. ये दिन इतनी जल्दी बीत गये कि पता
ही ना चला. अब मुझे पहली बार की तरहा घर से जाते हुई रोना नही आ रहा था. एक हलचल सी ज़रूर हो रही थी अपने शौहर के साथ अपने ससुराल जाते हुए.
सब इसी तरहा चल रहा था. एक साल बीत गया. हर तरफ से बच्चे की फरमाइश होने लगी. शौकत धीरे धीरे फिर शराब पीने लगे. मिया बीवी मे ख़त फॅट सुरू हो गयी. मेरे सास ससुर उनको बहुत समझाते लेकिन वो कहाँ समझने वाले थे. आख़िर वो खौफनाक रात आ ही गयी जिसका किसी भी लड़की को इंतेज़ार नही होता. ये बारिश का महीना था और तेज़ बारिश हो रही थी. मैं अब भी शौकत का इंतेज़ार कर रही थी. वो आज भी पी कर आए थे. जैसे ही उनके छोटे भाई ने उन्हे मेरे कमरे मे अपने
कंधो के सहारे दाखिल किया मैं उनपर बरस पड़ी. लेकिन वो नशे मे इतने डूबे थे कि बिस्तर पर गिर कर सो गये.
मैं भी ना जाने कब सो गयी और सुबह उठते ही उनसे उलझ पड़ी ये ना जानते हुए कि आज जी मेरी क़यामत आने वाली हैं. हम दोनो की आवाज़ें चार दीवारो से टकरा रही थीं.
मेरी सास और ननद भी अब कमरे मे दाखिल हो चुकी थीं. अब मैं चुप हो चुकी थी और मेरी सास और मेरी ननद मेरी तरफ से शौकत से सवाल कर रही थीं उनके
पीने के मुतलिक. मुझे याद नही कि मेरी सास ने ऐसा क्या कहा कि मेरे शौहर ने अपना रिश्ता मुझसे तोड़ लिया. वो तीन लफ्ज़ ही मैं सुन पाई की धडाम से मुरझा कर
सख़्त फर्श पर गिर पड़ी. मुझे जब होश आया तो मेरे शौहर सर पकड़े सिसक रहे थे और मैं अपनी सास की गोद मे सर रखे अपने बिस्तर पर पड़ी थी. मेरी ननद भी
रो रही थी. मैने आँखें खोली और मुझे वो ज़हरीले लफ्ज़ याद आए तो मैं भी फफक कर रो पड़ी. मेरी सास उस औरत की तरहा आँसू बहा रही थी जिसकी गोद मे उसका बच्चा
आखरी साँसे गिन रहा होता है. रोते रोते शाम हो गयी थी.
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मुझे रोते हुए ना जाने कितना वक़्त हो चला था. शाम हो आई थी. ना जाने कब मैं सो गयी. जब नींद से
जागी तो देखती हूँ कि मेरे बगल मे मेरे ही कमरे मे मेरी सास सो रही थी. लेकिन जब कल रात को हुई
बेरहम दास्तान याद आई तो मेरी आँखो मे फिर आँसू भर आए. मैं सोच रही थी कि काश मैं नींद से
जाग ही ना पाती. नींद के बहाने ही सही कम से कम मैं इस तकलीफ़ से तो दूर थी. नींद की अच्छाई का पहली
बार मुझे इतना एहसास हुआ था.
अब तो रोने की ताक़त भी ना थी. बस मैं अपने घुटने अपनी सर पर टिकाये खामोशी से उस बदसूरत सुबह को देख
रही थी. ये घर फिर से मेरे लिए पराया हो चुका था और अब फिर मुझे वापस लौट कर अपने ही घर वापस जाना
था. वहाँ एक बेचारा बाप और एक बेचारी मा हो सकता है मुझे वापस देख कर सदमे और तकलीफ़ की सूरत
ना बन जायें. मैं यही सोच रही थी कि मेरे सर पर किसी ने हाथ फेरा तो मैं यकायक अपने उबलते तूफ़ानो
से वापस दुनिया मे आ गयी. देखती क्या हूँ कि मेरी मा अपने प्यारे हाथ मेरे सर पर फेर रही है. मा को
देख कर मेरी हालत उस बच्चे की तरहा हो गयी जो अपनी मा से किसी मेले मे बिछड़ जाने के बाद मिला हो. मैं एक
बार फिर फूट फूट कर रो पड़ी. इस बार ऐसा लगा जैसे मेरी रूह मेरे जिस्म के बाहर आने को बेताब है. मैं
फिर बेहोश हो गयी, ये शायद दूसरी बार था के मैं बेहोश हो गयी थी. जब होश आया तो खुद को अपने घर
मे अपने बाबा, अम्मा और भाई के पास पाया.
मेरे बाबा मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे, उनकी आँखें ऐसी लग रही थी जैसे कोई अंधेरे कुएें में अपनी
कोई गुम हुई चीज़तलाश करता हो. उनके काँपते हुए होंटो से बस यही बात निकल पाई कि "बेटी कैसी हो, अब कैसे
महसूस हो रहा है" इसके ज्वाब में मेरी आँखो ने दो आँसू बहाकर उनका जवाब दिया.
मैने कल से ही कुछ ना खाया था. जिस्म एक भोझ की तरहा लग रहा था और सर किसी छाले की तरहा फट जाना चाहता
था दर्द की वजह से. आँखें शायद सूज गयी थीं रोते रोते. अब मुझे ज़बरदस्ती चिकन का सूप पिलाया
गया. जो मैने थोड़ा ही पिया लेकिन उससे मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई.
अब मेरे बाबा चिल्ला पड़े "हरम्खोर ने मेरी बेटी की क्या हालत कर दी है, ज़लील कहीं का"
मेरी खाला और उनकी बेटी भी मुझे देखने आए. लेकिन खाला के मूह से अब कुछ नही निकलता था. वो शायद इस
तकलीफ़ मे मुबतिला थीं कि उन्ही की वजह से मेरा उस घर मे रिश्ता हुआ था.
खैर दिन इसी तरहा बीत रहे थे, मैं एक पहाड़ की तरहा एक बोझ बन के अपने घर मे वापस आ चुकी थी. बाबा
और अम्मा कभी भी मेरे सामने कुछ ना कहते लेकिन उनके चेहरो से ये बात मालूम करना मुश्किल ना था कि
मैं अब उनके जिस्म का नासूर बन चुकी हूँ.
थोड़े दिनो के बाद खाला फिर सुबह सुबह मेरे घर आई, इस वक़्त मेरे बाबा घर पर नही थे और मेरा छोटा
भाई कॉलेज गया हुआ था.
खाला: " कहाँ पर हो?"
अम्मा: "अस्सलामवालेकुम आपा"
खाला: "वालेकुम सलाम और ख़ैरियत तो है"
अम्मा: "हां अब जो है सो है"
खाला : "और आरा कैसी है"
अम्मा:"बस बेचारी जी रही है"
खाला: "तो कब तक तुम उसे ऐसी हालत मे रखो गी , उसके मुस्तकबिल के बारे मे कुछ सोचा है भी या नही"
अम्मा: "अभी कैसे कुछ सोचा जाए, उसकी हालत ऐसी कहाँ है"
खाला: "उसकी हालत कैसे दुरुश्त होगी जब तुम उसके बारे में कुछ सोच ही नही रही हो"
अम्मा: "क्या मतलब?"
खाला: "अर्रे जवान बेटी के हाथ पीले करने के बारे मे सोचो"
अम्मा: "अब इस ख़याल से ही डर लगता है"
खाला: "हां मैं जानती हूँ, लेकिन सुरुआत तो करनी चाहिए ना"
अम्मा :"हां वो तो है, लेकिन इतनी जल्दी क्या है"
खाला: "जल्दी, ह्म्म्म अब इतनी देर भी ना करो, शौकत के अब्बू हमारे घर आए थे, वो कह रहे थे कि वो फिर
से आरा को अपने निकाह मे लेना चाहता है"
अम्मा: "क्या? उनकी इतनी हिम्मत हो चली, और आप को उनसे कुछ बोलते ना बन पड़ा,और फिर उनकी ये बात आप हम तक पहुचाने भी आ गयी, हैरत है"
खाला: ""मेरी पूरी बात तो सुनो"
अम्मा: "देखो आपा आपका लिहाज़ है मुझे लेकिन आप उस मनहूस घर की बात दोबारा ना करना, आपका मालूम
नही था कि वो कमीना शराबी है"
खाला: "मेरा यकीन करो, मुझे हरगिज़ ना मालूम था, मैं अपनी बच्ची को क्यूँ जहन्नुम मे धकेल्ति?"
अम्मा: "अब यकीन का सवाल ही नही रहा आपा, अब तो हम सब झुलस गये हैं आग में, अब पानी डालने से क्या
होगा"
खाला: "देखो कई बार इंसान बड़ी ग़लती कर बैठा है, शौकत दिन रात रोता रहता है, वो बहुत ज़्यादा शर्मिंदा
है और वो,,,...."
अम्मान: शर्मिंदा हो या जहुन्नम मे जाए, मुझे क्या करना है, उसकी बात अब इस घर मे बिल्कुल ना होगी, आप
जायें इस वक़्त , मुझे बहुत काम पड़ा है"
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RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
ये शायद पहली बार इस घर मे हुआ था कि खाला को अम्मा ने जाने के लिए कहा था. खाला भी बिल्कुल ना रुकी और
बस मेरे सर पर हाथ फेर कर अपने घर को चलती बनी. शाम को जब बाबा आए तो अम्मा ने खाला के आने
के बारे मे बताया. अम्मा की बात सुनकर जैसे बाबा किसी अंगारा के जलने की तरहा बिफर पड़े
"तुम्हारी बड़ी बहेन ने पहले तो हम को बर्बाद किया अब इतनी भी शर्म नही है कि कम से कम हमारे ज़ख़्मो का
मखौल तो ना उड़ायें, उनसे कह देना अगर उस मनहूस घर ही हिमायत करना है तो हमारे दरवाज़े पर ना
आए, ये तुमने अच्छा किया जो उनको जाने के लिए कह दिया"
मेरा भाई जो इस मसले पर कुछ ना बोला था अब वो भी बाबा को देख कर बोल पड़ा
"ये आग उनकी नही आप लोगों की लगाई हैं जब मैं लड़के के बारे मे आपको बताता था तो आप लोग मुझे ही उल्टी
दो चार सुना दिया करते थे और अब खाला को इल्ज़ाम दे रहे हैं, वाह क्या खूब घर है मेरे"
भाई की बात सुनकर बाबा और अम्मा खामोश हो गये. भाई इतने दिनो बाद कुछ बोला था. वो भी मेरी हालत पर
आँसू बहाया करता था.
एक दिन कुछ औरतें आई और उनके साथ हमारी पड़ोसन थी. ये पड़ोसन हमेशा हमारी चुगली और इधर की
उधर वाली आदत से मजबूर थी.
अम्मा उसे देख कर थोड़ा चौंक गयी क्यूंकी वो कभी हमारी खैर ख्वाह नही रही थी.
अम्मा ने उन सबको बिठाया. पहले तो वो सब इधर उधर की बात करती रही , फिर मेरी हालत पर अफ़सोस ज़ाहिर करती
रही, फिर मुद्दे की बात पर आ गयी. ये औरतें मेरे रिश्ते के ताल्लुक से आई थी. मेरी मा थोड़ा सुकून मे लग ही
रही थी कि एक बात के जवाब ने उनको सकते मे डाल दिया. हुआ ये कि मेरी मा ने सब कुछ पूछने के बाद
लड़के की उमर पूछी. जिसके जवाब मे वो औरतें कहने लगी कि लड़के की ये दूसरी शादी होगी, उसकी उमर 45 साल
है. इतना सुनते ही मेरी मा ने उनको चलता किया. वो औरतें भी दरवाज़े तक उल्टा सीधा बकती ही गयी.
"कमाल देखो चुड़ेलो का, कमीनी कहती हैं कि 45 साल का लड़का है, कम्बख़्त कहीं की शर्म नही आती
मुन्हूसो को"
इसी तरहा ना जाने कितने दिन बीत गये. मैने हर खुशी की उम्मीद छोड़ दी थी, अब इसी तरहा के रिश्ते आया करते
थे. मेरा बाबा और अम्मा अब इस तरहा के रिश्तो से उकता चुके थे. अब वो खामोश रहना चाहते थे. मेरे बाबा
की तबीयत खराब रहने लगी और अम्मा जो दिल की मरीज़ थी वो भी कुछ बेहतर ना थीं.
अब मैने रोना धोना बिल्कुल छोड़ दिया था.
एक शाम को मेरी खाला फिर आई और इस दफ़ा उनके साथ खलू भी थे. अम्मा ने उन्हे बिठाया और खाने के लिए
रोक लिया. सब लोग बातो मे मसगूल थे.
मेरी खाला कुछ हिचक सी रही थी कुछ बोलने मे लेकिन फिर अपनी आदत के मुताबिक बोल ही पड़ी
खाला: "मैने सुना है कि आरा के लिए रिश्ते आ रहे हैं"
बाबा: "अर्रे ऐसे रिश्तो पर खाक डालो"
खाला: "तो कैसे रिश्तो की तलाश है आपको, क्या कोई बिन ब्याहा लड़का चाहिए आपको"
बाबा: "हां, तो इसमे बुराई क्या है"
खाला: "भाई साहब, ज़रा अपनी आँखें खोलें, अब हक़ीक़त को देखें, आरा अब तलाक़शुदा है,ये नही जानते क्या
आप"
अम्मा: "तो इसमे उसकी क्या ग़लती है"
खलू: "लेकिन ग़लती तो हमारे यहाँ हमेशा लड़की की ही होती है"
अम्मा: "तो अब क्या करें भाई साहब"
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