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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
कुमुद दौड़ी-दौड़ी आई और भौजी के कान में राकेश की तरफ इशारा करती हुई बोली- “भौजी उनको घसीटो…”
भौजी और कुमुद दोनों ने दौड़कर राकेश को पकड़कर नांद में गिरा दिया। उसके बाद तो सब की बारी आ गई। आदमी लोग भी पीछे रहने वाले नहीं थे। सुनीता, कुमुद, मिसेज़ अग्रवाल, मिसेज़ मलहोत्रा सब पानी में तरबतर हो गईं। कपड़े उनके बदन से चिपक गये थे। उभारों पर साड़ी चिपकी थी, चूतड़ों की दरार में साड़ी फँस गई थी, रानों से पेटीकोट साड़ी चिपक गये थे जिससे टांगों की आकृति और गहराई दिख रही थी। सब कपड़ों में भी नंगी थीं।
सब ललचाई नजरों से देख रहे थे। फिर गुलाल मलने का दौर चला। सबने सब औरतों के अंग छुये। उनको चिपका कर उनके बदन की आग ली। जिनकी आपस में रजामंदी थी उन्होंने लण्ड चूत पर भी हाथ फेरे। कुमुद ने राकेश का लण्ड साहला दिया। सुनीता ने अपनी रानें एकदम सटाकर शिशिर के लण्ड पर अपनी चूत दबा दी। मिसेज़ अग्रवाल और मिसेज़ मलहोत्रा ने तो सबके लण्ड का लुफ्त लिया। पूरे चेहरे रंग गुलाल में सन गये। वह भूतनियों जैसी लग रही थीं।
अग्रवाल और मलहोत्रा ने भौजी को पकड़कर नांद में धकेला तो भौजी अग्रवाल को भी अपने संग खींच ले गईं। उनकी साड़ी उघड़ गई थी और उन्होंने अपनी दोनों टांगें अग्रवाल की कमर के ऊपर बाँधकर उनको पानी में जकड़ रखा था। उन्होंने न तो चड्ढी पहन रखी थी न ही अंगिया। अगर अग्रवाल भी चड्ढी न पहने होते तो उनका लण्ड भौजी की चूत में घुस गया होता। अग्रवाल जब पानी से निकले तो उनका लण्ड तना हुआ था जिससे पैंट में टेंट बन गया था।
मिसेज़ अग्रवाल ने उसको देखा, सबने देखा। वास्तव में सभी आदमियों की यही हालत हो रही थी। गीले पैंटों से उनके लण्ड सर उठा रहे थे जिनको वह बड़ी मुश्किल से पैंट में हाथ डालकर दबा पा रहे थे।
भौजी जब पानी से निकलीं तो उनकी चूचियां तन गई थीं, गीले ब्लाउज़ से दो नुकीली चोंचें निकल रही थीं। साड़ी ऊपर तक चिपक गई थी, दो पुष्ट जांघें दिख रही थीं। वह बड़ी मादक दिख रही थीं। दोंनों हाथों में गुलाल भर के वह अग्रवाल से चिपक गईं उनको तबीयत से गुलाल मला।
मुश्कुराकर आँख नचाकर बोलीं- “लाला फिर खेलियो होली…”
अकेला मिलने पर वह अग्रवाल से बोलीं- “लाला तुम को शरम नईं आवत अपना खूंटा हमरी ऊके मुँह पे लगा दिये। तुमारे सारे से हम का कहैं तुमने तो हमें खराब कर दियो…”
अग्रवाल- “कहो तो हम माफी मांग लेहैं पर का करें भौजी तुम हो ही ऐसी कि हमहूं वो काबू में नई रहे…”
भौजी इतरा के- “सबर रखो ननदी से अच्छी हम थोड़े ही हैं…”
अग्रवाल- “तुमारे से उनका का मुकाबला। भौजी जब मुँह पर रख ही लियो तो भीतर भी ले लो न…”
भौजी आँखें दिखाते हुये- “लाला तुम बहुत बदमाश हो मैं ननदी से कहूँगी…”
अग्रवाल- “भौजी आप जो चाहो करो, हम तो दिल की बात कह दई…”
भौजी मस्ती से आँख नचाकर बोलीं- “रात में जबई मौका मिले आ जइयो, तुमरी इच्छा पूरी कर देंहैं…”
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Next update "औरतों की होली"
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
औरतों की होली
इस बीच औरतों का ग्रुप जमा हो गया था तो औरतें उधर चली गईं। कुछ औरतें बातचीत से, हाव-भाव से हरकतों से बेकाबू हो रही थीं, फूहड़ से फूहड़ बातें कर रही थीं। बदन खोल-खोलकर के दिखा रही थीं। इन सबमें आगे मिसेज़ वर्मा थी। वह एक बहुत बड़ा डिल्डो लिये थीं। हरकतों से ऊपर से अपने में लगा कर दिखाती थीं। किसी औरत से चिपक जाती थीं, उसको चूमने लगती थीं, ऊपर से डिल्डो लगाने लगती थीं।
ढोलक पर थाप पड़ने लगी। कोई स्वांग भर रहा था, कोई नाच रहा था, कोई गा रहा था। मिसेज़ वर्मा की मंडली ने सामूहिक गाना शुरू किया-
“झड़ते हैं जिसके लिये चूत को याद करके,
ढूँढ़ लाया हूँ वही लण्ड मैं तेरे लिये,
बुर में रख लेना इसे हाथों से ये छूटे न कहीं,
पड़ा रहेगा यूँ ही झांटों के बाल तले,
झड़ते हैं जिसके लिये रोज ही उठ-उठ के।
लण्ड मोटा है मेरा चूत पे फिसले न कहीं,
कसके ले लेना इसे चूत उठा-उठाकर के,
लगाये जायेगा यही धक्के धकाधक से,
झड़ते हैं जिसके लिये मूठ मल-मल के,
मिसेज़ वर्मा ने शेर सुनाना चालू किया:
दिला तो दिया है तुझे पर एक शर्त लगाई है,
लेनी है वो चीज़ जो तूने टांगों में छिपाई है।
और उन्होंने टांगों के बीच में हाथ कर लिया। फिर…
बेदर्द जामाना क्या जाने क्या चीज़ जुदाई होती है,
मैं चूत पकड़कर बैठी हूँ घर-घर में चुदाई होती है।
चूत को उन्होंने मुट्ठी में जकड़ लिया। फिर…
मुड़कर जरा इधर भी देख जालिम, कि तमन्ना हम भी रखते हैं
लण्ड तेरे पास है तो क्या, चूत तो हम भी रखते हैं।
यह कहते हुये उन्होंने साड़ी ऊपर उठा दी, नीचे कुछ भी नहीं पहने थीं।
शेर कहे शायरी कहे या कहे कोई खयाल,
बीवी उसकी चूत उठाये चोदे उसका यार।
यह कहकर टांगें फैलाकर उन्होंने ऐसी हरकत की जैसे चुदवा रही हों।
अचानक भौजी ने जोर से कहा- “ऐसी गरम हो रई है तो खोल के सड़क पे खड़ी हो जा कोई लगा देगो…”
मिसेज़ वर्मा को ऐसी उम्मीद नहीं थी, उन्होंने चौंक कर भौजी को देखा और बोलीं- “लगता है तुम सड़क पर ही लगवाती होगी, तेरा आदमी नामर्द होगा…”
भौजी ने जावाब दिया- “मेरा आदमी तेरी जैसी चार को एक साथ करे और तेरा आदमी तेरी भी भूख न मिटा पाये…”
मिसेज़ वर्मा भौजी के पास आ गईं बोली- “तू कितनों का एक साथ ले सकती है? ला देखूं क्या छिपाया है?” यह कहते हुये उन्होंने धक्का देकर भौजी को चित्त गिरा दिया और आदमी की तरह उन पर पसर गईं।
भौजी ने चट से पलटी खाकर मिसेज़ वर्मा को अपने नीचे कर लिया। एक हाथ से उनकी दोनों कलाइयां जकड़ लीं।
मिसेज़ वर्मा ने छुड़ाने की बड़ी कोशिश की पर भौजी की मजबूत जकड़ से न छूट सकीं।
मिसेज़ वर्मा की साड़ी पलटते हुये भौजी ने कहा- “बछिया जैसी गरमा रही है, ले मैं लगाती हूँ बैल का तेरे में…” अपने दोनों घुटने फँसाकर भौजी ने मिसेज़ वर्मा की टांगें चौड़ा दी। चूत मुँह खोले सामने थी। अच्छा खासा बड़ा सा छेद था, भोसड़ी हो गई थी। लगता था खूब इश्तेमाल की गई थी। भोसड़ी गीली हो रही थी। गुलाबी नरम गहराइयों में पानी और गाढ़ी सी सफेदी चमक रही थी। मालूम होता था हाल में ही लण्ड का रस चखा था जो थोड़ा अंदर रह गया था। पानी बाहर रिस रहा था। सब लोग गौर लगाकर मज़े लेकर देख रहे थे। भौजी ने सुपर साइज़ का डिल्डो उठा लिया।
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
होली की महफिल
होली की शाम को सब लोग नहा-धोकर शिशिर के यहां इकट्ठे हुये। मलहोत्रा परिवार न आ सका, उनके यहां मेहमान आ गये थे। कुमुद ने सेब, पापड़ी, गुझिया, भांग की बरफी और भांग मिली ठंडाई का इंतेजाम कर रखा था। होली के माहौल का असर था ऊपर से भांग का शुरूर, सब बहक रहे थे। राकेश ने सुझाया कि सब लोग अपने-अपने पहले सेक्स का अनुभव सुनायें।
सब एक साथ बोले- हाँ सब लोग अपनी अपनी बीती बतायें। सबसे पहले मेजबान शिशिर से कहा गया कि वह अपना अनुभव बाताये।
***** ***** शिशिर की कहानी
होली का दिन था। मैं इंटरमीडियेट मैं रहा हूँगा। मेरी भाभी मुहल्ले में होली खेलकर आईं। वह बड़ी खुश थीं, कुछ गुनगुना रही थीं। मैं यह बता दूं कि भाभी मेरे से छः-सात साल बड़ी थीं, मेरे से बड़ा लाड़ करतीं थीं, जिसमें सेक्स बिल्कुल नहीं था। जब वह ब्याह के आईं तो मैं दस साल का रहा हूँगा। वह बिल्कुल भीग गईं थीं, साड़ी बदन से चिपक गई थी। उनके उभार और कमर की गोलाइयां पूरी तरह उभर आईं थीं। मेरी भाभी में बहुत ग्रेस था। अच्छी उंचाई की आकर्षक मुखछबि थी और शादी के छः-सात सालों में बदन बड़ी समानता से सुडौल हो गया था।
आते ही वह बाथरूम में चली गईं। बाथरूम में दो दरवाजे थे, एक उनके कमरे की तरफ खुलता था एक मेरे कमरे की ओर जो अक्सर बंद रहता था क्योंकी मैं नीचे का बाथरूम इश्तेमाल करता था। लेकिन इस समय मेरी तरफ का दरवाजा खुला हुआ था।
उन्होंने भी ध्यान नहीं दिया क्योंकी होली के लिये मुझे अपने दोस्त के यहां जाना था और दूसरे दिन वापिस आना था। लेकिन मेरा प्रोग्राम ऐन मौके पर कैंसिल हो गया था। मैं यहीं होली खेलकर वापिस आ गया था और उसी बाथरूम में नहा धो लिया था। गलती से अपनी तरफ का दरवाजा खुला छूट गया था। मैं कमरे मैं आराम से लेटा हुआ था जहां से बाथरूम का नजारा साफ नजर आ रहा था।
भाभी ने सबसे पहले अपनी साड़ी उतार के फेंक दी फिर पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी पैंटी खींच ली। वह रंग से तर हो रही की जैसे उसपर ही निशाना लगाकर रंग फेंका गया हो। जैसे-जैसे वह ब्लाउज़ के बटन खोल रही थीं मेरी सांसें गरम होती जा रही थीं। ब्लाउज़ उनके शरीर से फिसलकर नीचे गिर गया। वह मेरे सामने केवल ब्रेजियर और पेटीकोट में खड़ी थीं। ब्रेजियर उनके सीने से चिपक गई थी बादामी शहतूत से चूचुक और उनके घेरे साफ नजर आ रहे थे। पेटीकोट आगे से उनकी रानों से बुरी तरह चिपक गया था और चूतड़ों के बीच में दरार अ फँस गया था। सामने झांट के बाल नजर आ रहे थे। उत्तेजित होकर मेरा लण्ड एकदम खड़ा हो गया।
उन्होंने पीछे हाथ करके जैसे ही हुक खोलकर ब्रेजियर अलग की कि स्प्रिंग की तरह दो सफेद गेंदें सामने आ गईं। बहुत ही मतवाले भरे हुये जोबन थे। भाभी ने अपना हाथ पेटीकोट के नाड़े की तरफ बढ़ाया तो मेरा लण्ड और ऊपर होकर हिलने लगा। उन्होंने एक झटके में नाड़ा खींचा और पेटीकोट नीचे गिर गया। माई गोड मेरे सामने भाभी पूरी नंगी खड़ी थीं। बड़े-बड़े उभार, बादामी फूले-फूले चूचुक, चिकनी सुडौल जांघें, भरे-भरे उभार लिये चूतड़ों की गोलाइयां और जांघों के ऊपर तराशे हुये बादामी बाल। मैंने अपना लण्ड पकड़कर लिया नहीं तो वह हिल-हिल के बुरा हाल कर देता।
भाभी की जांघों और चूतड़ों पर रंग के धब्बे लगे हुये थे। चूत के बाल भी रंग में चिपक गये थे। उन्होंने साबुन से मलकर रंग को छुड़ाया। इसके बाद उन्होंने जो कुछ किया मैं उठ के खड़ा हो गया।
भाभी ने साबुन का ढेर सारा झाग बनाया और अपनी टांगें चौड़ी करके उंगली से साबुन का झाग अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगीं। मेरे सामने उनकी चूत का मुँह खुला हुआ था। छेद के ऊपर फांकों के बीच की और अंदर की साबुन मिली लाल गहराई मेरे सामने थी। लगता था वह रात के लिये तैयारी कर रही थीं। मेरे से न रहा गया और मैं दरबाजे के सामने जा खड़ा हुआ, लण्ड एकदम तना हुआ।
भाभी ने मुझे देखा और उनके मुँह से चीख निकली- “उई माँ…” फिर एक हाथ से उन्होंने अपनी चूत ढंक ली और दूसरे से अपनी चूचियां छिपाते हुये बोलीं- “ऐसे क्या देखते हो जाओ न…” फिर खुद ही भागकर अपने कमरे में चली गईं।
मैं बहुत गरम हो चुका था। उत्तेजना मैं मेरा लण्ड फड़फड़ा रहा था। आँखों के सामने भाभी का नंगा बदन नाच रहा था। मैं बाथरूम में घुस गया। पैंट उतारकर लण्ड को कस-कस के झटके दिये जि कि गाढ़ा गाढ़ा सफेद पदार्थ काफी देर तक उगलता रहा। भाभी की पैंटी उठा के उससे पोंछा। पता नहीं भाभी ने यह सब देखा या नहीं।
शाम को भाभी मिलीं तो शर्म से लाल हो रही थीं। आँखें नहीं मिला रही थीं।
हिम्मत करके मैंने उनसे से कहा- “भाभी, आप अंदर से भी उतनी सुंदर है जितनी बाहर से…”
भाभी बोलीं- “तुम बहुत बेशरम हो गये हो, जल्दी तुम्हारी शादी करना पड़ेगी…”
उसके बाद बहुत दिनों तक वह मुझसे शर्माती रही। मैं भी उनसे बहुत दिनों तक सहज न हो पाया।
सुनीता सोच रही की कि शिशिर उसमें अपनी भाभी को देखता है और इसीलिये शुरू से उसको ताकता है और भाभी-भाभी कहता है। जैसे अपनी भाभी के सामने न बढ़ा उसी तरह उसके आगे भी नहीं बढ़ता है। सुनीता ने निश्चय कर लिया कि इसका यह बैरियार तोड़ना ही पड़ेगा।
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
राकेश की कहानी
अब बारी राकेश की थी। उसने कहा:
मेरी शादी की तैयारियां हो रही थीं। कालेज के मेरे दोस्त जमा हो गये थे। शादी के कामों में नाइन का काफी रोल होता है, बहुत सारे नेगों में नाइन का अहम काम होता है। भाभी ने उबटन की रश्म की तो मेरे को हल्दी बेसन और चंदन से अच्छी तरह उबटन लगाने के लिये नाइन बैठी। कलावती उसका नाम था। कलावती दुबली पतली थी, सांवला रंग था, बड़ी बड़ी आँखों वाले उसके चेहरे में बेहद आकर्षण था। कामकाजी शरीर एकदम चुस्त और छरहरा था कहीं भी बेकार की चर्बी नहीं थी। उसके लंबे बदन की कशिश किसी को भी बाँध लेती थी। वह एकदम जवान थी।
उबटन लगाते हुये जब मेरे दोस्तों ने देखा तो कइयों का दिल उस पर आ गया। शाम को जब हम सब लोग बैठे तो रमेश ने जो शादीशुदा था कहा- “वह नाइन की लेना चाहता है…”
उसके बाद तो एक-एक करके सब शादीशुदा और कुँवारे दोस्तों ने अपनी मंशा जता दी कि वह कलावती को चोदना चाहते हैं। डर था कि नाइन कहीं उनकी बात सुनकर भड़क न उठे और जंजाल खड़ा कर दे।
रमेश बोला- “मैं रह नहीं सकता मैं नाइन से बात करूंगा…”
मेरे को बड़ा डर लगा कि कहीं बवंडर न उठ खड़ा हो। रमेश ने समझाया कि तुम मत घबड़ाओ मैं सीधे पूछ लूंगा, वो नहीं चाहेगी तो बात खतम।
नाइन को एक नौकरानी के जरिये यह कहकर बुलाया गया कि दूल्हे राजा बुलाते हैं। मैं और सब दोस्त अंदर के दूसरे कमरे में बैठ गये। केवल रमेश उस कमरे में रहा। कलावती आई तो मुझे पूछने लगी।
रमेश बड़ी नम्रता से बोला- “कलावती दूल्हे राजा तुमसे शर्मा रहे हैं। मुझसे कहा है कि तुमसे बात करूं। देखो कलावती मेरी बात तुम्हें अच्छी न लगे तो नाराज न होना। मैं दूल्हेराजा की तरफ से तुमसे माफी मांग लूंगा लेकिन बात आगे मत बढ़ाना…”
कलावती सहम गई- “आप क्या बात करते हैं, बाबूजी बोलिये क्या है?”
रमेश- “कलावती तुम बहुत अच्छी हो तुम्हारा घरवाला बहुत ही भाग्यवान है। बात यह है कि तुमने हम लोगों का दिल जीत लिया है। हम लोग चाहते हैं कि तुम हमें शुख दे दो कि हम हमेशा तुम्हें याद करते रहें…”
कलावती कुछ समझी कुछ नहीं, बोली- “मैं क्या सेवा कर सकती हूँ?”
रमेश को सीधा कहना पड़ा- “हम लोग तुमको भोगना चाहते हैं…”
मेरा दिल धकधक कर रहा था।
कलावती के चेहरे पर लाजभरी खुशी दौड़ गई। मस्ताकर बोली- “सबसे पहले दूल्हेराजा को करना होगा। अपनी दुल्हन से पहले मेरे साथ सुहागरात मनांयें। उनसे सोने का गहना लूंगी, फिर तुम सब लोगों की तबीयत खुश कर दूंगी…”
शर्त बड़ी टेढ़ी थी। शादी शुरू हो गई थी नेग हो रहे थे। मैं सुनीता के लिये बेकरार था। कलावती से संभोग नहीं कर सकता था। उसको बहुत समझाया ज्यादा पैसे का लालच दिया लेकिन वह टस से मस न हुई। यहां मेरे दोस्त मेरे ऊपर दबाव डाल रहे थे, वह कलावती को चोदने को उतावले थे। कहने लगे कि नाम के लिये डाल देना बस। उतने सारे दोस्तों का मन रखने के लिये मुझे उनकी बात मानना पड़ी।
तय हुआ कि बारात उठने के पहले जब मुझे तैयार होने के लिये एक कमरे में अकेला छोड़ दिया जायेगा तब कलावती चुपचाप कमरे में आ जायेगी। नाइन होने से उसका आना जाना आसान था। शादी के बाद जब मैं सुनीता के साथ रात रंगीन कर कहा हूँगा, उस समय मेरे दोस्त भी कलावती के संग आनंद मनायेंगे।
जब कलावती कमरे में आई तो मैं उसे देखता ही रह गया। लगता है उसने अपना भी उबटन कर डाला था। चेहरे पर गजब की लुनाई थी। बहुत कीमती न सही लेकिन उसने एक अच्छी साड़ी और राजस्थानी चोली पहन रखी थी जो उसके ऊपर खूब फब रही थी। आते ही उसने मेरे पैर छुये।
मैंने यह कहते हुये कि ये क्या करती हो, अपने से चिपका लिया। उसकी कमनीय देह बेला की लता सी मेरे से चिपक गई। उसका बदन मेरे वदन के उतार चढ़ाव में फिट हो गया था। मेरी रानों में उसकी जांघें समा गईं थीं। लण्ड के ऊपर चूत फिट हो गई थी। सीने पर उसके सख्त स्तनों और चूचुकों की चुभन महसूस कर रहा था। वह और भी चिपकती हुई खड़ी रही। जल्दी से निपटने के लिये मैंने चूत छूने के लिये साड़ी में हाथ डालना चाहा।
तो वह बोली- “राजाजी इत्ते बेसब्र न हो। लो इनसे खेलो…” हाथ पीछे करके उसने चोली की डोरी खींच दी। नीचे उसने कुछ भी नहीं पहन रखा था।
लपक कर मैंने दोनों गोलाइयों को मुट्ठी में दबा लिया। उसकी छातियां छोटी पर सख्त थीं। छातियों को मसलते ही कलावती ‘आह आह’ कर उठी। मैंने सिर झुका कर उसकी बाईं चूची मुँह में ले करके धीरे से दांतों से दबा ली।
कलावती जोर-जोर से ‘उइईईईई‘ कर उठी। जल्दी ही वह गरम हो गई थी। उससे अब रहा न गया तो लण्ड को पकड़ के हिलाते हुये बोली- “इसे निकालो न…”
मैंने पाजामा और अंडरवेर का नाड़ा खोलकर नीचे गिरा दिया।
उसने मेरा तना हुआ लण्ड देखा तो मुँह से निकल गया- “उई दैय्या… इत्ता बड़ा हथियार है… मेरी लिल्ली मैं कैसे घुसेगा?”
मैंने कहा- “तो फिर अपनी लिल्ली दिखाओ न…” और उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया तो साड़ी समेत पेटीकोट नीचे गिर गया।
जैसे ही वह नंगी हुई भाग के बिस्तर पर लेट गई। मैं भी पूरा नंगा होकर उसके ऊपर जा गिरा। कलावती ने मेरे से पूछा- “राजाजी, तुमने पहले किसी को चोदा है?”
मैंने झूठ बोला- “नहीं तो…”
कलावती का चेहरा चमक उठा- “ओ मइया… मैं ही इसका पहला रस लूंगी। मैं ही आपकी सही औरत बनूंगी…” फिर बोली- “इसका प्रसाद चखना होगा…”
मेरे को पलटा कर वह दोनों टांगों के बीच बैठ गई। दोनों हाथों से लण्ड को छूकर हाथ माथे पर लगा लिये जैसे यह भी कोई पूजा की चीज़ हो। दांईं मुट्ठी में लण्ड को बंद करके उसके मालिश के अभ्यस्थ हाथों ने मुट्ठी पूरे लण्ड पर इस तरह आगे पीछे की कि मैं हवा में तैरने लगा। फिर अगले हिस्से की खाल हटाकर सुपाड़ा उसने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी। मेरा लण्ड फड़फड़ाने लगा। फिर वो पूरे लण्ड को चचोरने लगी।
मैं बेकाबू हो गया। चूतड़ उठा-उठाकर लण्ड उसके मुँह में ही पेलने लगा।
मेरे से उसने कहा- “जब झड़ो तो रुकना नहीं। ज्यादा से ज्यादा आने देना…” इसके बाद उसने जो लय चालू की कि मेरे चूतड़ हवा में ही उठे रह गये और बढ़-बढ़ के धकाधक धक्के मारने लगे।
कलावती भी मुँह से पसंदगी जता रही थी- “उऊं ऊं ऊं ऊं…”
मेरे से रुका न गया। लण्ड ने एक झटका दिया और जैसे ही वीर्य उगलना चालू किया तो उसने फिर सुपाड़े को दांतों में थाम लिया और निकलते हुये रस को पीती गई।
जब लण्ड ठंडा हो गया तो आखिरी बार चाटती हुई बोली- “अपने मर्द के अलावा बस मैंने तुम्हारा प्रसाद लिया है। उनका भी बस चखा भर था। आपके किसी भी दोस्त का नहीं चखूंगी…”
मैंने खींच करके उसको अपने सीने से चिपका लिया।
कलावती ने मेरे सीने की चूचुक को मुँह में ले लिया और हाथ नीचे ले जाकर मेरे लण्ड के ऊपर ढक लिया। सीने से चिपके-चिपके ही वह धीरे-धीरे मेरी चूचुक चूसने लगी और बड़े अच्छे तरीके से लण्ड सहलाने लगी। मेरा लण्ड बढ़ता ही गया और थोड़ी ही देर में पत्थर की तरह सख्त हो गया।
कलावती- “लो अपनी सुहागरात मना लो…” कहकर पलट कर चित्त लेट गई। फिर बोली- “मैं बाताती हूँ, कल अपनी दुल्हन की सील कैसे तोड़ोगे?”
टांगें चौड़ा करके उनके बीच में मुझे घुटनों के बल बैठा लिया। फिर अपनी टांगें मेरे दोनों कंधों पर रख लिये। उसके चूतड़ हवा में उठ गये थे। मेरे सीधे सामने चूत का मुँह खुल गया था। छेद अंदर तक दिख रहा था। अंदर तक चूत गीली थी और पानी रिसकर रानों पर फैल रहा था।
कलावती ने अपनी मुट्ठी से लण्ड पकड़कर चूत के मुँह से सटा दिया और बोली- “इसे धीरे-धीरे घुसेड़ दो…”
मैंने जोर लगाया। उसकी चूत टाइट थी पर मेरा पूरा लण्ड आसानी से उसमें चला गया। चूत की पकड़ में उसको बहुत आनंद मिल रहा था।
कलावती कहने लगी- “राजाजी, हमारी इसमें तो आराम से चला गया लेकिन कल ऐसा नहीं कर पाओगे। दुल्हन की फुद्दी में घुसेगा नहीं और फिसलकर ऊपर खिसक जायेगा। और जब घुसने लगेगा तो दुल्हन अपनी फुद्दी पीछे हटाती जायेगी क्योंकी उनको दर्द होगा। इस आसान में तुम दुल्हन पर पूरा काबू रख सकते हो। अगर टांगें कस के जकड़ लोगे तो वह पीछे नहीं हट पायेगी। रुक-रुक करके डालना लेकिन वह मना करें, चीखें भी तो मत रुकना, पूरा अंदर कर ही देना…”
मैं इस बीच धीरे-धीरे अंदर बाहर कर रहा था।
कलावती कहने लगी- “मेरी इसको तो कूटो न कसके कि इसकी सारी गरमी निकल जाये…”
मैंने लण्ड को बाहर तक निकाला और झटके से पूरा अंदर कर दिया।
कलावती के मुँह से निकला- “हाय राजा क्या लौड़ा है… अंदर तक हिला दिया और लगाओ कस के…”
उसके मुँह से खुला-खुला सुनकर मैं और उत्तेजित हो गया। पिस्टन की तरह धकम-पेल करने लगा। बड़ी दूर तक बाहर निकालता और खड़ाक से अंदर कर देता।
उसने कस के बांहों से मेरी पीठ को जकड़ रखा था। हर चोट पर वो पीठ में नाखून गड़ा देती और जोर से चिल्लाती- “ओ रज्जा फाड़ दो इसको छोड़ना नहीं…” उसकी जबान गंदी से गंदी होती जा रही थी- “रज्जा इसकी भोसड़ी बना दो आज, बड़ा सताती है मुझे…”
मेरे को उसकी गंदी बातें बुरी नहीं लग रही थीं बल्की मैं आनंदित हो रहा था और अपनी चोटें बढ़ाता जा रहा था।
अचानक उसने कसके चूत चिपका दी- “ओ ओ ओ रज्ज्जा मैं… मैं तो झ्झड़ गईईई…” और अपने दांत मेरे सीने में गड़ा दिये। मैंने भी लण्ड अंदर रहते हुये ही उसकी क्लिटोरिस के ऊपर लण्ड की जड़ को कस के रगड़ा और सारा का सारा वीर्य छोड़ दिया।
काफी देर तक हम लोग वैसे ही पड़े रहे। फिर वह उठी। उकड़ू हो करके उसने अपना सिर मेरे पैरों पर रखा दिया। मैंने उठकर के एक सोने का हार उसके गाले में डाल दिया।
वह बोली- “राजाजी मेरे को भूल मत जाना। मैं भी आपकी औरत की तरह हूँ। सुहागरात आपने मेरे साथ मनाई है…” और वह कपड़े पहनकर चली गई।
कहां तो मैं जल्दी निपटना चाहता था और कहां एक घंटे से ऊपर उसके साथ हो गया।
कुमुद अपना क्षोभ न छुपा सकी, कहा- “हाउ इनसेंसिटिव… बेचारी सुनीता…”
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***** ***** To be contd... ...
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सुनीता की कहानी
अब सुनीता की बारी थी। सुनीता ने कहा:
मेरा पहला और आखिरी सेक्स बस राकेश से ही है। लेकिन मैं अपनी कहानी तब कहूँगी जब राकेश यहां से चले जायेंगे।
राकेश ने जाने से मना कर दिया। सब लोगो के जोर देने पर आखिर राकेश को वहां से जाना ही पड़ा।
सुनीता ने कहना शुरू किया:
राकेश से मेरी मुलाकात की शुरूआत देखने दिखाने के सिलसिले मैं औपचारिक रूप से हुई थी। हम लोग एक ही शहर में रहते थे। बाद में मेरी एक सहेली के जरिये जो उनकी कालोनी में रहती थी हम लोंगों का संपर्क बन गया था। हम लोग मिलते रहते थे लेकिन एक दूसरे को बांहों में लेने या चुंबन लेने से आगे नहीं बढ़े थे। मैंने ही नहीं बढ़ने दिया था।
यह प्रसंग मेरी और राकेश की शादी का ही है। राकेश के रिश्तेदार और दोस्त इकट्ठे हो गये थे। मेरे यहां भी मेरी सहेलियां और मेहमान जमा थे। विवाह के पहले के नेग हो रहे थे।
बारात आने के एक दिन पहले सहेली के जरिये मुझे राकेश का एक गुप्त नोट मिला- “आज रात होटल ताज के इस रूम में जरूर से हमसे मिलो…”
हल्दी बगैरह चढ़ने के बाद मैं घर से कैसे निकल सकती थी लेकिन जरूर मिलो की खबर सुनकर जाना तो था ही। बड़ी मुश्किल से अकेले कमरे में आराम करने का बहाना करके सहेली की सहायता से छुप छुपा कर बाहर निकल पाई। होटल पहुँची तो सिहरन होने लगी। ऐसा लग रहा था कि इस राकेश से मैं पहली बार मिलने जा रही हूँ। मिलन की कामना से शरीर गरम हो गया। कमरे में पहुँची तो शर्म से दुहरी हो रही थी। गहने और शादी के जोड़े के अलावा मैं सब तरह से दुल्हन थी।
कमरे में पहुँचते ही राकेश ने मुझे दबोच लिया और कसकर होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मैंने भी उसे कस कर जकड़ लिया। वैसे ही ले जाकर उसने मुझे बेड पर गिरा दिया और खुद मेरे ऊपर गिर गया। ब्लाउज़ के ऊपर से ही दायें उरोज पर उसने मुँह रख दिया और बांयें को मुट्ठी में दबोच लिया। मुझे न करने की इच्छा ही नहीं हुई। वह धीरे-धीरे बात करता रहा और मेरे बटन और हुक खोलता रहा। फिर उसने जो बताया मैं शर्म से गड़ गई।
दो दिन पहले मेरे यहां मेंहदी की रश्म हुई थी। मैं एक चौकी पर बैठी मेंहदी लगवा रही थी घुटनों पर हथेलियां फैलाये, तभी राकेश और उसके दोस्त वहां आ गये थे। उस दिन रिवाज के अनुसार मैंने लहंगा पहना था। आदत न होने के कारण लहंगे का ऊपर का हिस्सा मुड़े हुये घुटनों के ऊपर चढ़ गया था और नीचे का हिस्सा जमीन पर गिर गया था। टांगों के बीच का नजारा साफ दिख रहा था। मैंने गुलाबी सिल्क की पैंटी पहन रखी थी। शायाद मैं आने वाली रंगीनियों को याद करके बहुत गरमा रही थी क्येांकि पैंटी पर चूत के ठीक ऊपर एक बड़ा गीला धब्बा फैला हुआ था।
उसके सब दोस्तों ने उसको देखा। मेंहदी लगाने वाला भी बार-बार वहां देख रहा था। राकेश ने आँखों से इशारा किया लेकिन मैंने ध्यान ही नहीं दिया था। राकेश ने उठे लहंगे को नीचे करने की कोशिश भी की थी लेकिन सबके सामने छू भी नहीं सकता था और सबने देख तो लिया ही था।
यह सही है कि इन दिनों दिमाग में राकेश की याद करके मेरी चूत रिस रही थी और मैं लगवाने के लिये बेकरार थी। मैंने राकेश से कहा- “मुझे माफ कर दो मैं…”
पूरा बोलने के पहले ही राकेश कहने लगा- “डार्लिंग, क्या बात करती हो… तुमने जानबूझ कर थोड़ी किया। चलो उसी बहाने दोस्तों को भी मजा मिल गया, वैसे तो तुम दिखाती नहीं…”
मैंने कहा- “धत्त बेशरम…”
राकेश फिर बोला- “एक बात है कि उस दिन मेरा लण्ड एकदम खड़ा हो गया था और अब रोज खड़ा हो जाता है। उसी का इलाज करने के लिये तुम्हें बुलाया है…”
मैंने कहा- “कल शादी की रश्म तो पूरी हो जाने दो…”
राकेश ने प्रश्न किया- “मान लो मैं तुमको आज करना ही चाहूँ तो?”
मैंने सहज भाव से कहा- “मैं तुम्हारी हूँ, यह शरीर तुम्हारा है, जो चाहे करो। लेकिन रीति निभाने के लिये एक दिन का सब्र रखो न…”
तब राकेश ने कलावती और दोस्तों की सब बात मुझे बता दी और कहा- “मैं तुमसे पहले किसी को नहीं भोगूंगा। सुहागरात तो तुम्हारे साथ ही मनेगी। बोलो क्या कहती हो?”
मैंने बाहें और टांगें फैला दी और कहा- “लो मनाओ अपनी सुहागरात…”
राकेश धीरे-धीरे चूमता हुआ आगे बढ़ने लगा।
मैंने उसके कान में कहा- “मुझे जल्दी से जल्दी वापिस पहुँच जाना चाहिये। मैं तो तैयार ही हूँ। मेरी यह गीली ही बनी रहती है। लगा दो न इसमें…”
राकेश ने एक झटके में पेटीकोट और साड़ी खींच दी। फिर अपने कपड़े उतार फेंके। मैं उसके मजबूत लण्ड से खेलना चाहती थी, वह भी मेरी चूचियों से और चूत से खिलबाड़ करना चाहता था लेकिन समय नहीं था।
मैंने उसका लण्ड पकड़ करके चूत से सटाया और जैसे ही उसने जोर लगाया मैं चिल्ला उठी। मेरी तबीयत हो रही थी, लेकिन लण्ड का घुसना इतना आसान नहीं था जितना मैं समझ रही थी। जब भी वह लगाता मैं चिल्ला उठती और वह हटा लेटा।
मैं कहने लगी- “बस रहने दो लण्ड चूत का मिलना तो हो ही गया है…”
इस बार राकेश ने अपने थूक से लण्ड को गीला किया, अपने हाथ से पकड़कर घुमाकर सुपाड़ा थोड़ा छेद में फँसाया और मेरी कमर पकड़ करके पूरे जोर से पेल दिया। मैं चिल्लाती रही लेकिन वह रुका नहीं… जब तक पूरा लण्ड अंदर तक नहीं घुस गया। मैं रोने लग गई थी।
उसने मेरे आंसू पोंछते हुये कहा- “डार्लिंग तुमको जो सजा देना हो दे लो…”
लण्ड के आगे पीछे होने से अब भी चूत के भीतर छुरी जैसी चल रही थी। मैंने कहा- “अब और मत सताओ…”
वह बोला- “अच्छा…” और घुसे हुये लण्ड पर ही जोर लगाकर अपनी इच्छा शक्ति से उसने पानी छोड़ दिया। पानी निकलने के पहले उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
जब मैं उठी तो बेड पर ख़ून देखकर घबड़ा उठी। राकेश ने समझाया कोई बात नहीं होटल वाले को वह चादर के पैसे दे देगा और उसने वह चादर लपेटकर अपने पास रख ली जो आज भी हमारे पास है। जब मैं होटल से निकली तो शादी के पहले ही लुट चुकी थी।
कुमुद की भावना अब राकेश के बारे में बदल चुकी थी। वह उसे और भी सराहने लगी थी।
सुनीता ने आगे कहा:
जहां तक कलावती का सवाल है, कलावती ने खुद सुनीता को सब बता दिया और कभी अपना हक नहीं जताया। सुनीता उसकी सहायता करती रहती थी। तीज त्योहार पर उसको साड़ी गहने आदि भी देती रहती थी। होली दिवाली वह राकेश के साथ मनाती थी। उस समय वह राकेश से चुदवाती भी थी। एक होली को जब राकेश उसको चोद रहा था तो राकेश का लण्ड फच्च-फच्च कर रहा था।
राकेश ने पूछा- “क्या बात है?”
तो कलावती ने बताया- “यहां आने के पहले उसने अपने मर्द से होली मनाई की जो अंदर ही झड़ गया था…”
राकेश ने कहा- “अगली बार से वह होली दिवाली उसके संग पहले मनाये फिर अपने मर्द के साथ…”
आखिरी बारी मिसेज़ संगीता अग्रवाल की थी।
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01-19-2018, 01:14 PM,
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
मिसेज़ संगीता अग्रवाल की कहानी:
यह घटना शादी के काफी बाद की है। शादी के पहले मैं गाँव में पली बढ़ी। वहां ऐसा कुछ खास नहीं घटा सिवाये इसके कि मेरी बगल में एक लड़का रहता था। जब मैं छत पर जाती थी तो वह अपना लण्ड खोलकर के खड़ा हो जाता था। शादी होने के बाद मैं शहर में आ गई। संयुक्त परिवार था।
सास ससुर थे, दो जिठानियां थीं। मैं सबसे छोटी थी, सबसे सुंदर और सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी। परिवार मैं सब लोग मेरी सुनते, थे लाड़ भी करते थे, खासतौर पर बड़ी जेठानी। पति भी बात मान लेते थे क्योंकी चुदाई में मैं उनको खुश कर देती थी। मैं बहुत सेक्सी थी। सेक्स की कहानियां पढ़कर मन बहलाती थी। मैं काफी दबंग हो गई थी। जो चाहती थी कर लेती थी।
गर्मियों के दिन थे। बड़ी जेठानी के मैके में उनके छोटे भाई की शादी थी। बड़ी जेठानी मैके जाने के लिये बहुत उत्साहित थीं। उनको लिवाने उनके भाई आ रहे थे। हमारे यहां का रिवाज था कि शादी व्याह के मौके पर खास रिश्तेदारों को लिवाने के लिये उनके मैके से कोई आता था। उनका वही भाई आया जिसका व्याह था। ऊँचा अच्छा खासा गबरू जवान, नाम था प्रदीप। मैके जाने के उत्साह मैं सीढ़ियां उतरते हुये जेठानी का पैर फिसला और उनके पैर की हड्डी टूट गई। अब वह तो जा नहीं सकतीं थीं, इसलिये तय हुआ कि उनकी जगह मैं जाऊँगी।
हम लोगों के यहां यह भी रिवाज है बल्की इसको अच्छा भी माना जाता है। इससे यह भावना बनती है कि परिवार की सब बहुयें बहनें हैं। उनका अपना घर ही मायका नहीं है बल्की देवरानियों जिठानियों के घर भी उनके मायके हैं।
ट्रेन का लंबा सफर था। ग्वालियर से दोपहर में ट्रेन चलती थी और दूसरे दिन दोपहर में जबलपुर पहुँचती थी। मेरे मन में शरारत सुझी कि क्यों न सफर का मजा लिया जाये। सबसे पहले मैंने संबोधन ठीक किया। कहा- “मैं तुमसे छोटी होऊँगी, मुझे संगीता कहकर पुकारो…” और खुद मैं उसे प्रदीप जी कहने लगी।
टू-टियर में हम दोंनों का रिजर्वेशन था लेकिन दिन में तो हम लोग नीचे की बर्थ पर ही बैठे। जगह ज्यादा थी फिर भी मैं उससे सटकर बैठी। गरमी होने का बहाना करके मैंने अपना पल्लू गिरा दिया। सामने की बर्थ पर बूढ़े आदमी औरत बैठे थे जो आराम कर रहे थे। वैसे भी मुझे उनकी चिंता नहीं थी। मेरे बड़े-बड़े मम्मे ब्लाउज़ को फाड़ते हुये खड़े थे। मैंने नीचे तक कटा ब्लाउज़ पहन रखा था जिसमें से मेरी गोलाइयां झांक रही थीं। वह दबी आँखों से मेरे गले के अंदर झांक रहा था। मुझे छका कर मजा आ रहा था। सामान उठाने रखने के लिये झुकने के बहाने मैं अपनी चूचियां उससे चिपका देती थी।
पहले तो वह सिमट जाता था। पर थोड़ी देर में प्रदीप की झिझक जाती रही कि मैं उसकी बहन की देवरानी हूँ और उसकी बहन की जगह जा रही हूँ। उससे मेरी रिश्तेदारी तो थी नहीं। उसे भी मजा आने लगा और वह अपनी बांहों से ही मेरी चूचियां रगड़ने लगा। सोने का बहाना कर उसने आँखें बंद कर रखी थीं।
उसकी आँखें खोलने के लिये मैंने कहा- “ओह कितनी गरमी है…” और ब्लाउज़ के ऊपर का बटन खोल दिया। अब मेरे फूले-फूले चूचुक भी दिखाई देने लगे थे।
वह टकटकी लगाकर मेरे हिलते हुये मम्मे देख रहा था। उसकी टांगों के बीच में भी हलचल दिखाई दे रही थी। और ज्यादा चिढ़ाने के लिये मैंने कहा- “प्रदीप जी मैं तो अंदर तक भीग गई हूँ…” और उसके सामने ही साड़ी में हाथ डालकर चड्ढी बाहर खींच ली।
वह अचकचा गया। गोद में हाथ रखकर उसने अपने लण्ड के उठान को छुपा लिया।
मैं भी मानने वाली नहीं थी। जब उसने हाथ हटा लिये तब हाथ में पकड़ी मैगजीन को उसकी गोद में गिराकर उठाने के बहाने उसके मोटे लण्ड को अच्छी तरह टटोल लिया। अब स्थिति साफ थी। उसके खड़े पोल से टेंट जैसा बन गया। मैंने इशारा करते हुये कहा- “ये क्या है? अपने को काबू में भी नहीं रख सकते, ऐसी बेशरमी करते हो…”
झेंपने के बजाये उसने चट से जवाब दिया- “जब उसकी अपनी चीज़ सामने हो तो मिलने को बेकरार तो होगा ही…”
मैंने चोट की- “उसकी चीज़ 16 तारीख तक दूर है…” 16 तारीख को उसकी शादी थी।
उसने कहा- “उससे भी अच्छी चीज़ सामने है…”
मैंने कहा- “मुँह धोकर रखो…”
लेकिन हम छूने छुलाने का उपक्रम करते रहे। रात के करीब आठ बजे गाड़ी बीना पहुँची। प्रदीप सामान उठाते हुये बोला- “यहां उतरना है…”
मैंने सोचा यहां ट्रेन बदलानी है। हम लोग नीचे उतर आये। कुली से सामान दूसरे प्लेटफार्म पर ले जाने की बाजाये प्रदीप सामान स्टेशन से बाहर निकाल ले गया। एक आटो से हम लोग कहीं चल दिये। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। जब आटो एक होटल के सामने रूका तो मेरी समझ में कुछ आया।
प्रदीप बोला- “आज की रात यहीं रुकेंगे…” उसने अचानक प्रोग्राम बदल दिया था। नहले पर दहला लगा दिया था। कहां तो मैं मजा चखा रही थी अब वह मजा चखा रहा था।
मैंने पूछा- “यहां क्यों रुक गये हैं?”
तो मुश्कुराके बोला- “तुमको ज्यादा गरमी लग रही है, उसको निकालना है…”
मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि प्रदीप ऐसा कर सकता है। कमरा उसने मिस्टर और मिसेज़ प्रदीप के नाम से बुक कराया। खाना कमरे में ही मंगाया। अपने लिये शराब भी।
मैंने शराब के लिये मना कर दिया। मैंने कहा- “मैं नहा लूं…”
तो बोला- “संगीता डार्लिंग एक राउंड नहाने के पहले हो जाये फिर नहाने के बाद में। आज तो रात भर जश्न मनायेंगे…” फिर मुझे पकड़कर मम्मे दबाते हुये बोला- “तुम्हारे इन रस कलसों ने ट्रेन में बड़ा तड़पाया है इनसे तृप्ति तो कर लूं…”
उसने मेरा ब्लाउज़ और अंगिया उतार फेंकी। कस-कस के चूची मर्दन करने लगा। मैं धीमी धीमी आवाजें करने लगी। चूचियां मेरी कमजोरी हैं। उन पर मुँह रखते ही मैं काबू में नहीं रहती। कोई भी मेरी इस कमजोरी को जानकर मुझे चोद सकता है। प्रदीप ने मेरे चूचुक मुँह में लिये तो मैं उत्तेजना से ‘उंह उंह’ करने लगी और उसका लण्ड थाम लिया। उसने नाड़ा खींचकर मुझे पूरा नंगा कर दिया। और खुद ही अपने सब कपड़े उतार फेंके।
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