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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
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अबकी बार सामने और बेतकल्लुफी से बैठीं। टांगें चौड़ाये दोनों पैर सोफे पर रख लिये। टांगों के ऊपर की साड़ी ऊपर हो गई की नीचे की नीचे गिर गई थी। सामने चूत को केवल सिलिकन अंडरवेर ढके हुये थी जिसके ऊपर एक धब्बा उभर आया था। दो एकदम फक्क गोरी सुडौल रानें उनके बीच फँसी हुई पतली खाली पट्टी… वह दोनों उत्तेजित होने लगे थे। लण्ड उठने लगे थे जिनको वह बड़े ध्यान से देख रही थीं।
राकेश कहने लगा- “भाभी, तुम गजब हो, ऐसी चीज़ को अग्रवाल कैसे छोड़कर चले जाते हैं?”
मिसेज़ अग्रवाल- “जाने के पहले अपनी पूरी कसर निकाल लेते हैं, बाकी आने पर पूरी कर लेते हैं। हाथ लगाने से दुख रही है। पहले से तुम लोगों से वायदा न किया होता तो आज मैं आराम कर रही होती…”
रूपेश ने कहा- “भाभी ऐसा भी क्या तड़पाना? ना ही छुपाते हो ना ही मुँह दिखाते हो…” [/b]
मिसेज़ अग्रवाल ने आँख नचाई- “मुँह दिखाई की रश्म होती है…”
राकेश उठते हुये- “लो मैं रश्म पूरी किये देता हूँ…”
मिसेज़ अग्रवाल जल्दी से उठते हुये- “ना ना पहले दूल्हे मियां को तो देखने दो…” वह रूपेश और राकेश के बीच मैं सटकर बैठ जातीं है। दोनों तरफ हथेलियों से दोनों लण्ड थाम लेती हैं।
राकेश कमर में हाथ डालकर अपनी तरफ खींच लेता है।
वो सामने से छातियां पूरी गड़ा के कस के चिपक जाती हैं, उसके होंठों को अपने होठों से दबा लेती हैं और नीचे हाथ डालकर उसका लण्ड बाहर निकाल के फुसफुसाती हैं- “ये तो बहुत ज्यादा दबंग है…”
राकेश पीठ पर ब्लाउज़ के बटन और ब्रेजियर के हुक खोल देता है। रूपेश उठकर के उनकी साड़ी खींच लेता है और आगे हाथ डालकर नाड़ा खोल के पेटीकोट खींच लेता है। वह उतारने के लिये पैंटी पकड़ता है कि मिसेज़ अग्रवाल उठकर के खड़ी हो जाती हैं- “इसको अभी रहने दो…”
उनका पूरा बदन दमकता है। उम्र के बावजूद उनकी भरी-भरी छातियां गोल-गोल और सख्ती से खड़ी हुई हैं। खाली घुंडियां तन करके आधा इंचा ऊँची हो गईं। बदन पर कोई थुलथुल मांस नहीं। वो बोलीं- “पहले आप लोगों की बारी है…”
इसके साथ ही वह राकेश का पैंट उतारने को बढ़ती हैं लेकिन इसकी जरूरत नहीं पड़ती। वह दोनों अपने-अपने कपड़े उतार फेंकते हैं। दोनों का तन्नाया लण्ड खड़ा होता है।
मिसेज़ अग्रवाल के मुँह से निकल जाता है- “हे मां, आप दोनों तो एक दूसरे से होड़ ले रहे हैं मैं कैसे लूगी ये?”
उत्तेजना में राकेश उनको बांहों में बाँध लेता है। वह राकेश को लिये हुये सोफे पर गिर जाती हैं फिर फिसला कर नीचे कालीन पर घुटने के बल बैठ जाती हैं। राकेश के लण्ड की सुपाड़ी खोलकर अपने होठों मैं दबाकर उसको चूसने लगती हैं। राकेश का शरीर एकदम तन जाता है।
रूपेश पीछे से उनकी चूचियां जकड़ लेता है तो दूसरा हाथ बढ़ाकर वह उसका लण्ड पकड़ लेती हैं और लण्ड पकड़े हुये राकेश के बगल में बैठा लेती हैं। राकेश को अब पूरा का पूरा निगलती जाती हैं और रूपेश के लण्ड की मुट्ठी मारती जाती हैं। मिसेज़ अग्रवाल ने दोनों गोलाइयां राकेश के पैरों पर दबा ली हैं। राकेश हाथ डालकर उनकी चूचियों को मुँह और हथेलियों में ले लेता है और अपने होंठ उनकी चिकनी सुडौल पीठ पर चिपका देता है।
मिसेज़ अग्रवाल की घुटी-घुटी चीख निकल जाती है। वह बुदबुदाती जाती है जिसमें आनंद मिला हुआ है। वो पीछे से पैंटी के अंदर हाथ ले जाके बीच की उंगली उनकी चूत के अंदर कर देता है जो तर हो रही है। मिसेज़ अग्रवाल एकदम उछल जाती हैं, राकेश के लण्ड पर दांत गड़ा देती हैं, रूपेश का लण्ड बहुत कस के मुट्ठी में जकड़ लेती हैं। वह दोनों चीख उठते हैं। मिसेज़ अग्रवाल की रफ्तार बहुत तेज हो जाती है साथ ही वह अपनी चूत भी रूपेश की उगली पर ऊपर नीचे करती जाती हैं, क्योंकी रूपेश उंगली ज्यादा अंदर नहीं कर सकता है। तीनों लोग जोर-जोर से आवाजें निकाल रहे हैं।
सबसे पहले मिसेज़ अग्रवाल चिल्लाती हैं- “ओ मांँ… मैं तो गइई…” वह बड़ी जोर से राकेश के लण्ड को चूसती हैं। रूपेश के लण्ड पर कस के मुट्ठी मारती है। वह बड़ी देर तक झड़ती रहती हैं साथ ही जोरों से सीईई… की आवाज करती रहती हैं।
राकेश अपना गाढ़ा रस उनके मुँह में उगल देता है।
रूपेश की धार हवा में फौवारे की तरह छूट जाती है।
मिसेज़ अग्रवाल अपना मुँह हटा लेती हैं। रिस-रिस करके सफेदी नीचे गिरती जाती है। मिसेज़ अग्रवाल ने सोफे पर दोनों के बीच बैठकर उनके सिर को अपनी छातियों से चिपका लिया। तीनों देर तक निढाल से पड़े रहे। फिर दोनों को चूमकर उन्होंने बेडरूम में चलने को कहा।
बेडरूम में शानदार किंग साइज़ का बेड पड़ा था और एक दीवाल पर सोफे लगे हुये थे। मिसेज़ अग्रवाल बाथरूम से आकर बोलीं- “अब मैं अपनी दिखाने को तैयार हूँ… लेकिन दूंगी तब जब आप अपनी मस्त चुदाई की कहानी सुनायेंगे…”
राकेश और रूपेश वैसे ही नंग-धड़ंग सोफे पर बैठ गये थे। उनके सामने पलंग पर बैठकर मिसेज़ अग्रवाल ने एक झटके से अपनी कच्छी खींचकर उतार दी। वह उनके जूस से तर हो रही थी। फिर उन्होंने उंगली में घुमाकर उन लोगों की ओर फेंका।
वह रूपेश के मुँह पर पड़ी। उसने बड़े प्यार से मस्ती से उसे चूमा और लंबी सांसों से सूँघा।
मिसेज़ अग्रवाल ने टांगें चौड़ी कर दीं। माई गोड… डबलरोटी की तरह फूली उनकी फुद्दी थी एकदम सफाचट… पैर फैलाने से संतरे की फांक से होंठ खुल गये थे, बीच में तितली सी क्लिटोरिस उठी हुई थी और उसके नीचे चूत का छेद खुला हुआ था, एकदम गुलाबी, गहराई तक गीला और चमकता हुआ। एकदम पकी हुई प्रौढ़।
रूपेश के मुँह से निकल गया- “ओ माई गोड ऐसी चूत तो मैंने आज तक नहीं देखी…”
दोनों के लण्ड जो उठे हुये थे तन्नाकर सीधे ऊपर हो गये। उठकर वे पलंग की तरफ बढ़े।
मिसेज़ अग्रवाल ने टोका- “पहले सुनीता और रजनी की चुदाई की बातें…”
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
“अभी बताते हैं…” उन्होंने कहा।
पर राकेश ने उनको पलंग पर खींच लिया और टांगें दोनों ओर कर अपना मुँह उनकी चूत के ऊपर रख दिया। होठों के बीच क्लिट लेकर चूसने लगा।
मिसेज़ अग्रवाल के मुँह से किलकारी निकल गई। रूपेश ने सिरहाने पहुँचकर उनकी एकं चूची मुँह में ले ली और दूसरी हथेली में कस के दबा ली। उसका बड़ा सा लण्ड मिसेज़ अग्रवाल के मुँह के सामने लाटक रहा था जो उन्होंने आगे बढ़कर मुँह में ले लिया। राकेश उनकी चूत को बहुत बुरी तरह से चूस रहा था। उनकी रानों को दोनों हाथों के जोर से पूरा फैला लिया था और अपना मुँह जितना घुसा सकता था घुसा लिया था। बीच-बीच में जीभ उनकी चूत में करता था।
मिसेज़ अग्रवाल अपनी चूत उठा-उठा दे रही थी। रूपेश का लण्ड काफी बड़ा था जो वह पूरा नहीं ले पा रही थीं। लेकिन जब राकेश चूत को चाटता था तो वो सिर ऊंचा करके रूपेश का लण्ड पूरा गपक लेती थीं। गाय की बछिया की तरह चटखारे लेकर चूस रही थीं। चूतड़ बेचेनी से रगड़ रही थीं।
जब राकेश ने फिर से जीभ चलाई तो उन्होंने रूपेश के लण्ड से मुँह खींच लिया- “हुहु ऊऊऊऊ ओ माँ तुमने तो आग लगा दी है। लण्ड डाल दो अपना…”
राकेश- “पर वो चुदाई की कहानी तो…”
“कहानी फिर कभी… पहले मेरीई चुदाई…” और उन्होंने खुद उसका लण्ड पकड़कर चूत पर लगाया और चूतड़ उठाकर के गप्प से अंदर ले लिया। फिर बोलीं- “लगाओ धक्के कस-कस के…”
राकेश ने तीन चार बार उनको कस-कस के पेला। हर झटके पर वह और जोर से लगाने को उकसाती थीं। राकेश ने लण्ड बाहर निकाल लिया और उनसे कहा- “आप घुटनों के बल उकड़ू हो जाइये, मैं पीछे से लगाऊँगा। आगे से आप रूपेश का लण्ड ले लीजिये…”
मिसेज़ अग्रवाल पलट के घुटनों और बांहों के बल उकड़ू हो गईं। पीछे से राकेश ने लण्ड लगाया। जैसे ही पेला वह सड़ाक से उनकी चूत में घुस गया। उसने हाथ डालकर उनकी दोनों चूचियां पकड़ लीं। रूपेश उनके ठीक मुँह के सामने लण्ड तन्नाके खड़ा था।
मिसेज़ अग्रवाल ने एक मुट्ठी में लण्ड पकड़ के मुँह में ले लिया। राकेश चूचुकों को ऊँगालियों में रगड़-रगड़ के लण्ड अंदर-बाहर शंट कर रहा था। हर चोट पर मिसेज़ अग्रवाल का धड़ आगे हो जाता था और रूपेश का लण्ड उनके तालू तक घुस जाता था। जितनी चूत पर चोट पड़ती थी उतनी ही तेजी से वह रूपेश के लण्ड को मुँह में ले रही थीं। रूपेश अपने दोनों हाथों से उनके दोनों गोल-गोल चूतड़ मजबूती से जकड़े था और अपना लण्ड ऐसे पेल रहा था जैसे चूत में धकापेल कर रहा हो। उसकी जकड़ से मिसेज़ अग्रवाल की पीछे की दरार फैल गयी थी। आगे पीछे गति से सटासाट हो रहा था।
मिसेज़ अग्रवाल पूरी तरह आनंद में थीं- “ओ मेरी मां… दो-दो लण्ड मेरे अंदर हो रहे हैं। इतना मजा ता मैंने कभी नहीं लिया…”
राकेश और रूपेश के ऊपर वासना का भूत सवार था। राकेश पूरा लण्ड घच्च से घुसेड़ता और आवाज निकालता- “ले, पूरा ले ले…”
रूपेश आगे बढ़ के मुँह में घुसेड़ देता- “ले, मेरा ले अब…”
मिसेज़ अग्रवाल अलग से चिल्ला रही थीं- “हाँ हाँ लगाओ, छोड़ना नहीं आज इसको फाड़ के रख दो पूरा…”
राकेश ने गति बढ़ा दी। एकाएक चिल्लाया- “मैं झड़ा… लो लो लो और लो…”
मिसेज़ अग्रवाल- “नहीं नहीं, अभी मत झड़ना। इस को फाड़ के रख दो… मेरे को बीच में मत छोड़ो…”
लेकिन राकेश ने सफेदी उगलना चालू कर दी थी।
मिसेज़ अग्रवाल ने जल्दी से अपनी चूत बाहर खींच ली।
राकेश को किसका कर रूपेश तेजी से उस ओर आया। कमर में हाथ डालकर उसने मिसेज़ अग्रवाल को चित्त कर दिया और अपना लण्ड धपाक से पेल दिया। राकेश ने जबर्दस्त चुदाई की थी। वह बुरी तरह पशीने से लथफथ था। वो बाथरूम में घुस गया।
मिसेज़ अग्रवाल ने रूपेश को कखींचकर कसके भींच लिया। दोनों बाहें उसकी पीठ पर बाँध लीं और टांगें उसकी कमर के इर्द-गिर्द जकड़ लीं, और बोलीं- “ओ मेरे लाला, अब मेरी इसकी पूरी मरम्मत कर दो…”
रूपेश ने बाहर करके अचानक धक्के से अंदर करते हुये कहा- “लो भौजी, तुम भी क्या याद रखोगी किस लौड़े से पाला पड़ा था…”
बिसात बिछी हुई थी, खेल चालू था। दोनों एक दूसरे से चिपके हुये चुदाई किये जा रहे थे और बतिया रहे थे।
मिसेज़ अग्रवाल- “हाँ, लौड़ा तो तुम्हारा जबर्दस्त है। अंदर तक धुनाई कर देता है। आज तो मजा आ गया, पहले वनीला अब चाकलेट आइसक्रीम…”
रूपेश- “और अग्रवाल साहब क्या हैं?”
मिसेज़ अग्रवाल- “इटैलियन बार क्रंची और मजेदार…”
रूपेश- “और कितने स्वाद चखे हैं?”
मिसेज़ अग्रवाल- “बहुत पहले चखा था देसी बरफ, पत्थर की तरह। बड़ी तकलीफ हुई थी…”
रूपेश- “कम आन भौजी, इतनी चटोरी चीज़ और स्वाद न ले…”
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01-19-2018, 01:17 PM,
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
संगीता अग्रवाल की कहानी
राकेश और रूपेश को चिपकते हुये मिसेज़ अग्रवाल बोलीं:
मैं अपनी कहानी सुनाती हूँ। यह मेरी पहली खराबी की कहानी तो नहीं है लेकिन मेरी प्यार की पहली चुदाई की कहानी है जिससे शरीर और मन को बड़ी संतुष्टि मिली थी। बात उन दिनों की है जब हम लोगों को पैसे की काफी तंगी थी। इन्होंने अपना नया काम शुरू किया था। अमित बेटा करीब 6 साल का था। हम लोग दिल्ली में तीसरे मंजिल की एक बरसाती में रहते थे। कुल एक कमरा था और बस खुली हुई छत जिस पर किचेन और बाथ। सास-सासुर साथ में रहते थे। चुदाई का मौका ही नहीं मिल पाता था। कभी कभार ही चुदाई हो पाती थी वह भी जल्दी-जल्दी।
शरीर में सेक्स की भूख सी भरी रहती थी जिसको अग्रवाल साहब और उभार देते थे। वह सेक्स में माहिर थे और चुदाई में मज़ा करने की उन्होंने आदत डाल दी थी।
मकान मालिक एक बूढ़े दंपति थे जो नीचे की मंजिल पर रहते थे। दूसरी मंजिल काफी हवादार थी। तीन कमरे थे, छत थी। इस मंजिल में एक कम्पनी का बड़ा आफिसर रहता था। जवान मियां बीवी थे, बीवी दूसरे शहर में काम करती थी। छुट्टी में वह आ जाती थी या फिर मियां वहां चला जाता था। वह भी अग्रवाल ही थे, नाम थे शेखर और माया। शेखर सुदर्शन था, कद-काठी से अच्छा, देखने में खूबसूरत, लंबा। माया भी ठीक थी लेकिन ऐसी कोई खास बात नहीं। दोनों ही खुशमिजाज थे।
मकान मालिक और शेखर माया से हम लोगों की अच्छी मेल मुलाकात होती रहती थी। साथ-साथ ताश खेलते थे। एक दूसरे से खुलकर मजाक करते रहते थे।
शेखर मुझे संगीता भाभी और मेरे पति को भाई साहब कहकर बुलाता था। मेरे सास-ससुर का आदर करता था, उन्हें आये दिन घुमाने ले जाता था क्योंकी मेरे पति का काम नया होने से काफी व्यस्त रहते थे। अमित के लिये भी चाकलेट और गिफ्ट लाता था। अमित उससे काफी घुलमिल गया था। मेरे सास-ससुर उसको बड़ा पसंद करते थे। जब भी घर में कोई खास चीज़ बनती थी तो उसको भिजवाते थे। मैं देने जाती थी तो वह काफी हिचक दिखाता था। मैं खाना अच्छा बनाती थी और उसको मेरा खाना बेहद पसंद था।
लेकिन एक बात मैं देखती थी। जब मैं छत पर कपड़े डालने या किसी और काम के लिये होती थी तो शेखर मुझे घूरता रहता था। उसके कमरे की खिड़की से छत एकदम सामने पड़ती थी। उसकी आँखों में वासना साफ नजर आती थी। वह भी भूखा ही रहता था।
मैं जानबूझ कर लापरवाह रहने लगी जैसे मुझे मालूम ही न हो। अपना पल्लू गिरा देती और रस्सी पर कपड़े डालने के लिये पंजों के बल खड़ी होकर दोनों हाथ ऊपर तान देती जिससे मेरी चूचियां उसके सामने एकदम खड़ी हो जातीं। कभी मैं अकेले पेटीकोट में आ जाती और उसकी तरफ चूतड़ करके पैर फैलाकर झुक जाती जिससे मेरी दोनों गोलाइयां और बीच की दरार उसके सामने आ जाये।
इस तरह से खिझाने में तो मुझे हमेशा से मजा आता है। जितनी ही उसकी वासना भड़काती उतना ही ज्यादा मजा आता था। मेरी तबीयत खुश रहती थी। जब कभी इनसे चुदाई कराती थी तो उसमें भी ज्यादा मजा आता था। कई बार तबीयत होती कि नंगी ही छत पर आ जाऊँ या कम से कम ब्रा और पैंटी में चली जाऊँ लेकिन इतनी हिम्मत नहीं पड़ती थी। जब भी मिलते थे तो अब ज्यादा मजाक करने लगे थे। मजाक में सेक्स का पुट भी आने लगा था।
अग्रवाल साहब को भी यह सब कुछ बुरा नहीं लगता था। वह शेखर को पसंद करते थे। मैं भी ज्यादा खुल गई थी। जब तब सेक्स का तीर छोड़ देती थी। जैसे एक शाम मकान मालिक के यहां सब लोग ताश खेल रहे थे। पड़ोस के और भी मियां-बीवी आ जाते थे।
बाजी हारने पर मेरे मुँह से निकल गया- “मैं लूज हो गई…”
शेखर शरारत से बोला- “अरे भाई साहब ने इतनी जल्दी लूज कर दिया…”
मैं भी कहां चूकने वाली थी- “तुम्हारे बस का तो है नहीं किसी को लूज करना…”
और सब हँस दिये जिनमें मेरे पति भी शामिल थे।
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01-19-2018, 01:17 PM,
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
खेल में मैं और शेखर पार्टनर रहते थे। खूब घुलमिल गये थे, खुलकर हँसी मजाक करते थे। लेकिन मैं शरारत से बाज नहीं आती थी। जितना मैं शेखर को निसहाय पाती उतना ही मैं बोल्ड होती जा रही थी। खेल में उसके सामने बैठती। जब मौका पाती सबकी निगाह बाचाके अनजानी बनकर पल भर के लिये अपनी टांगें इस तरह खोल देती कि उसे मेरी कच्छी तक दिख जाये। कभी-कभी तो मैं कच्छी भी न डालती और फट्ट से टांगें चौड़ा देती कि उसे अंदर का नजारा दिख जाये, लेकिन सेंटर पीस न दिखे।
उसके चेहरे पर तनाव उभर आता, आँखें जलने लगती और वह ताव खाकर रह जाता। अजीब बात थी कि पति बगल में बैठा होता था और मैं चूत किसी और को दिखाती थी। लेकिन देर सबेर जब पति से चुदवाने को मिलता था तो ज्यादा आनंद आता था।
इन दिनों शेखर के लिये मुझे तरह-तरह का खाना बनाना बहुत अच्छा लगता था। कभी-कभी जो कम चीज़ हो तो खुद न खाती थी उसको दे देती थी। मैं खाना लेकर कम जाती थी क्योंकी जब मैं उसके सामने अकेली होती थि तो इतनी उत्तेजित हो उठती थी कि मेरी चूत गीली हो जाती थी। ज्यादातर मैं अमित से खाना भिजवा देती थी। चूत की जब प्यास मिटी होती थी तब ही जाती थी और जल्दी से वापिस आ जाती थी। उसका ख्याल रखने में मुझे कुछ-कुछ सेक्स का शुख मिलता था।
ताश के समय बड़ा ही हलका-फुलका माहौल रहता था। किसका बर्थ-डे है, किसकी हालगिरह है सब बातें होती रहती थीं, साथ में वधाइयां भी और पार्टी का इसरार भी। ऐसे ही एक बार मेरी बर्थ-डे पर सबने खूब वधाइयां दी, शेखर ने जिद की कि मैं तो पार्टी लेकर ही रहूँगा।
शेखर की बात रखने के लिये दूसरे दिन मैंने खीर पकवान बनाये। सबसे पहले उसके लिये ही लेकर गई। शेखर के सामने खाना रखते हुये मैं बोली- “लो बर्थ-डे की पार्टी…”
वह बोला- “भाभी तुम्हारे जैसा नहीं देखा… फाइव स्टार रोस्टोरेंट में पार्टी होना चाहिये…”
जैसे उसने मेरी दुखती नश पर हाथ रख दिया हो, मेरी आँखों में आंसु आ गये- “लाला तुम जानते हो कि तुम्हारी भाभी गरीब है इसलिये मजाक उड़ाते हो…”
शेखर ने अपने दोनों कान पकड़ लिये- “भाभी, ये क्या कहती हो? इतनी खूबसूरती की मालकिन इतने गु्णों वाली कैसे गरीब हो सकती है? तुम्हारे देवर में जब शामर्थ है तो तुम कैसे गरीब हो? मुझे अपना देवर मानती हो तो आगे से अपने को गरीब मत समझना…”
आगे बढ़ कर भावना में मैंने उसे अपने से चिपका लिया। वह कुर्सी पर बैठा था। उसका सिर मेरी दोनों टांगों के बीच में फँस गया… ठीक मेरी बुर के ऊपर। मुझे ध्यान आया तो मैं वहां से भाग आई।
इसके बाद हम लोगों का रवैया बदल गया। शेखर अमित के लिये ढेर सारी चीजें लाता। अमित उसके वहुत नजदीक हो गया। उसके घर में ही एक कमरे में पढ़ने का ठिकाना बना लिया। एक चाभी उसने हमें दे दी थी। मेरे लिये भी शेखर तरह-तरह की गिफ्टे लाता। मैं भी उसका ख्याल रखने लगी थी। घर साफ कर देती, चीजें जमा देती, बिस्तर बदल देती जिसकी तरफ से वह लापरवाह था और माया ही आने पर कुछ-कुछ कर पाती थी। अब मुझमें सकुचाहट आ गई थी और उसमें खुलापन।
एक बार उसने एक पैकेट मुझे दिया और कहा- “भाभी तुम्हारे लिये…”
अपने बाथरूम में जाकर खोला क्योंकी वही एक अकेली जगह होती थी। बड़ी मंहगी और खूबसूरत ब्रेजियर और पैंटी के 6-6 आइटम थे। मन तो बहुत खुश हुआ लेकिन नीचे आकर मैंने शेखर से कहा- “भाभी को ऐसी गिफ्ट दी जाती है कहीं…”
वह बोला- “भाभी आपके पास अच्छी ब्रा और पैंटी नहीं है इसलिये सोचा दे दूं…”
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
यह शेखर के बारे में नई बात जानी थी। मुझे भी उन नंगी फोटो और चुदाई की कहानियां पढ़ने की लत लग गई। बहुत सोचती नहीं पढ़ूँगी लेकिन जब भी बेड ठीक करने जाती तो उसी के बिस्तर पर लेकर बैठ जाती। उसके बाद चूत में जो आग लगती उसे बुझाने के लिये अग्रवाल साहब का लौड़ा लेने के लिये जतन करने पड़ते। तबीयत होती शेखर के पास जाकर प्यास बुझा आऊँ।
जब कभी नई मैगजीन न पा पाती तो बड़ी बेचैन रहती। सेाचा शेखर के अंडरवेर बनियान भी क्यों न धोकर डाल दूं पूरे हफ्ते के जमा हो जाते हैं। जब अंडरवेर साफ कर रही की तो देखा कइयों पर झड़ा हुआ वीर्य सूख गया है। उस पर साबुन लगाते समय कंपकंपी आ गई।
शाम को जब उसने देखा कि मैंने अंडरवेर बनियान भी धोये हैं तो उसे बहुत खेद हुआ। उसने बड़ा जोर लगाया कि मैं ऐसा हर्गिज न करूं, लेकिन मैं भी जिद पर अड़ गई कि इसमें कोई बुराई नहीं। जब भी मैं अंडरवेर साफ करती किसी न किसी पर झड़ने के दाग होते। बेचारा वाकई औरत के लिये भूखा था। मैं उससे बाहर-बाहर के मजाक के लिये तो तैयार थी लेकिन चुदवाना केवल अग्रवाल साहब से चाहती थी। मैं उसके लिये कुछ नहीं कर सकती थी।
संबंध दोनों परिवारों में गहरे हो गये थे। माया और मेरे परिवार के सब लोग एक दूसरे को पसंद करते थे। लेकिन मैं शेखर की तरफ रोमांटिक तौर पर महसूस करती थी और शायद वह भी। एक बार उसके दफ्तर में पार्टी थी। उसने अग्रवाल साहब के सामने ही मुझसे पूछा- क्या मैं उसके साथ पार्टी में चल सकती हूँ?
अग्रवाल साहब ने ही कहा- इसमें पूछने की क्या बात है?
शेखर के साथ पहली बार अकेली जा रही थी पार्टी के लिये के लिये तो मैं अच्छी तरह से सजी-संवरी। नीचे आई तो शेखर टकटकी बाँधकर देखता ही रह गया। उसने मेरा हाथ थाम लिया। दबाते हुये धीरे से बोला- “भाभी तुम बाकई बहुत खूबसूरत हो…”
सुनकर बड़ा प्यारा लगा। मैं उससे और सट गई।
आलीशान पार्टी थी एकदम भव्य। मेरा हाथ पकड़कर खींचता प्रेसिडेंट, वाइस-प्रेसिडेंट के पास ले गया। बड़े अधिकार से बोला- “ये संगीता है…”
मैं मुँह देखती रह गई। कहां तो भाभी-भाभी कहते जबान नहीं थकती थी अब सीधा संगीता पर उतर आया लेकिन भाया बहुत। अपने साथियों से बड़ी बेतकल्लुफी से उसी तरह मिलवाया- “संगीता से मिलो…”
जल्दी ही समझ में आ गया कि पार्टी में पति-पत्नियों को बुलाया गया था और शेखर मुझे अपनी पत्नी की तरह मिलवा रहा है हालांकि मुँह से नहीं कह रहा है। अकेला होने पर मैंने उससे कहा- “मुझसे क्यों झूठ कर रहे हो?”
वह बोला- “मैं सबको दिखाना चाहता हूँ कि मेरी बीवी भी किसी से कम खूबसूरत नहीं है…”
मैं- “लेकिन मैं तो शायद उम्र में भी तुमसे बड़ी हूँ, एक बच्चे की मां हूँ…”
शेखर- “तुम्हें देखकर कौन कह सकता है। देखो वह औरतें तुमसे ज्यादा बड़ी दिख रही हैं। तुम बिल्कुल कमसिन हो…”
मेरे बदन में रोमांचा हो आया। तबीयत हुई कि उसको जकड़ के चूम लूं। बस हाथ पकड़कर उससे सथ गई। शेखर की पोजीशन अच्छी थी। उसके जूनियर की बीवियां मेरे आगे पीछे घूम रही थीं। मैं बड़ा गौरव महसूस कर रही थी।
पार्टी तो मेरी जान है। मुझे माहौल मिल गया था और मैं बहुत ईजी महसूस कर रही थी। डांस चालू हुआ तो उसमें खूब भाग लिया। लोग तारीफ कर रहे थे। पार्टनर के संग डांस में शेखर से एकदम चिपक गई, दूसरी बीवियों से भी ज्यादा। मेरी छातियां उसके सीने में घुसी जा रही थीं। मैंने अपनी दोनों रानें उसकी जाघों से चिपका दीं। टांगों के बीच के गड्ढे को उसकी टांगों के ऊपर के उभार से सटा दिया और डांस की थिरकन के साथ रगड़ने लगी।
शेखर के लण्ड मियां रंग लाने लगे थे और मेरी बुर के दरवाजे पर दस्तक देने लगे थे। लेकिन समय की नजाकत को देखते हुये सब्र करके मैंने अपने बीच थोड़ा फासला कर लिया। पार्टी खतम होने तक मेरी हिचकिचाहट जाती रही थी। घर लाने की जगह वह कहीं और ले जाकर पति का अपना असली हक वसूला करना चाहता तो मैं तैयार थी। लेकिन उसने जरूरत से ज्यादा सराफत दिखाई और मैं रात भर तड़पती रही। पर पार्टी से मैं खुश थी, मेरा सजना-सवंरना सार्थक हो गया था।
दूसरे दिन मैंने निश्चित कर लिया कि मैं शेखर से लगवाऊँगी, आखिर वह अपना है। दूसरे दिन खाना लेकर गई तो मेरा स्वागत करता हुआ वह बोला- “आइये भाभी…”
मैंने व्यंग से कहा- “अब भाभी कहते हो, कल तो संगीता-संगीता रटे जा रहे थे…”
शेखर- “वह तो ड्रामा था…”
मैंने चिढ़कर कहा- “हाँ तुम बड़े ड्रामेबाज हो… ढोंगी पति बनते हो पर रोल भी पूरा नहीं करते…”
शेखर- “हाँ तुम्हारे जैसी एक्टिंगा जो नहीं कर सकता…”
मैं बार बार उसे हिंट दे रही की और वह आगे ही नहीं बढ़ रहा था।
कभी पूरे जोबन सामने कर देती- “आज मैंने तुम्हारी चीज़ पहनी है…” कभी- “ओहो आज तो बेहद गरमी है, मैंने तो नीचे भी कुछ नहीं डाला है…” यहां तक की अपनी पहनी हुई पैंटी भी उसके बिस्तर पर छोड़ आई जिस पर रिसती चूत का पानी लगा था।
लेकिन शेखर ने तो जैसे कशम ले ली थी। जितना वह अंजान बन रहा था उतना ही मैं बेकाबू होती जा रही थी। मैंने सीधा वार करने का सोच लिया।
एक शाम जब वह आफिस से आया तो मैं उसी के बिस्तर पर अधलेटी होकर नंगी मैगजीन पढ़ रही थी। केवल ब्लाउज़ पहन रखा था जिसके नीचे ब्रेजियर नहीं थी और पेटीकोट डाला था जिसके नीचे पैंटी नहीं थी। टांगें मोड़ रखी थीं, जिससे अंदर का काफी कुछ दिखता था। दरवाजा खोलकर शेखर अंदर आया। कुछ देर तक मैं वैसे ही लेटी रही। फिर उठकर खड़ी हो गई। गुस्से से एक फोटो दिखाते हुये बोली- “छीः कैसी गंदी किताबें पढ़ते हो…”
थोड़ी देर के लिये वह सहम गया, धीरे से बोला- “भाभी, मेरी अपनी भी तो जरूरत है…”
मैंने पोज बनाते हुये कहा- “तुम्हारी भाभी क्या इनसे कम है?”
उसकी बोली मैं तलखी आ गई- “भाभी तुम हमेशा खिझाती हो। पहले फ्लर्ट करती हो, फिर पीछे हट जाती हो। पार्टी में भी तुमने यही किया। तुम्हारी वजह से ही मैं भड़का रहता हूँ। ऊपर से कहती हो कि भाई साहब के अलावा आप किसी को भी नहीं दिखा सकतीं…”
मैंने चकित होकर कहा- “जब तुम कह सकते हो कि जब तक देवर है मैं किसी चीज़ की कमी महसूस न करूं तो मैं क्यों नहीं कह सकती कि भाभी भी तुम्हारी हर जरूरत के लिये है…”
शेखर का चेहरा चमक उठा- “तो भाभी फोटो में जो है दिखाओ…”
“मेरी बला से…” और मैं बाथरूम की तरफ भागी।
वह बोला- “अब मैं नहीं छोड़ूंगा…” और दौड़कर बाथरूम में पहुँचने के पहले ही उसने मुझे दबोचा लिया। शेखर ने मुझे पीछे से पकड़ लिया था। उसने दोनों हथेलियों में मेरे दोनों उभार कस के दवा लिये थे और कसके चिपक गया था।
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01-19-2018, 01:19 PM,
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
मैं उसका लण्ड चूतड़ों की दरार पर महसूस कर रही थी। मैंने मुँह पीछे करके उसको चूम लिया। उसने घुमाकर मुझको सामने कर लिया। अपने होंठ मेरे होंठों पर जोर से गड़ा कर चूसने लगा और इतने जोर से जकड़ा कि मेरी पसलियां चरमरा उठीं। फिर एक हाथ सामने लाकर मेरा ब्लाउज़ खोलने लगा।
मैंने कहा- “इसको मत उतारो…”
लेकिन उसने बटन खोलकर उसे अलग कर दिया। अब उसने हाथ पेटीकोट के नाफै पर बढ़ाया।
मैंने मिन्नत की- “प्लीज़्ज़ इसको रहने दो…”
वह बोला- “तुमने मुझे इतना सताया कि अब कोई दया नहीं…” और नाड़ा खींचकर उसने मेरा पेटीकोट नीचे गिरा दिया।
अब मैं बिल्कुल नंगी की। शर्म से एक हाथ से अपने दोनों सीनों को ढक लिया और एक हाथ जहां टांगें मिलती है उसके ऊपर रख लिया। उसने सख्ती से मेरे दोनों हाथ अलग कर दिये। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। जब कुछ देर तक कुछ न हुआ तो मैंने अपनी आँखें खोलीं। वह एकटक मेरे को निहारे जा रहा था।
मैंने कहा- “क्या बात है पहले माया को नहीं देखा क्या?”
लेकिन शेखर तो भरपूर गोलाइयों में डूबा था। दोनों उभार छोटे सख्त खरबूज से जो आगे से मोड़ लेकर ऊपर हो गये थे, जिनके ऊपर चूचुक गहरे बादामी सहतूत से उठे हुये थे। नीचे तराशी जांघें केले के तने सी, उसके बीच में चूत का जबर्दस्त उभार डबलरोटी सा, बाल अच्छी तरह तराशे गये थे एकदम सेव नहीं किये गये थे। बीच से झांकती दो रसभरी नारंगी की फांकें। उसके सामने पूरी औरत खड़ी थी। बाहर से छरहरी अंदर से भरपूर। दमकते शरीर पर पूर्ण गोलाइयां अर्ध-गोल उठे हुये भरे-भरे मांसल नितम्ब जो गद्दे की तरह आदमी का बोझ संभाल सकते थे और सफाचट तने पेट के नीचे जांघों के बीच फूली-फूली खुलने को आतुर जगह।
शेखर सम्मोहित सा मुंह बाये देख रहा था।
संगीता ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रखकर झझोड़ा तो उसे सुध हुई। मुँह से निकल गया- “अद्भुत… भाभी तुम बाहर से जितनी खूबसूरत हो अंदर से उससे भी ज्यादा खूबसूरत हो…” और फिर चुंबक सा चिपक गया और चिकनी मांशल कमर में हाथ डालकर ले जाकर बेड पर बिठा दिया। वो अभी भी पूरे कपड़े सूर्तटाई पहने हुये था।
चूमने को झुका तो संगीता ने टाई से पकड़कर खींचते हुये कहा- “मेरे को तो निर्लज्ज कर दिया और खुद बाबूजी बने हुये हैं…” संगीता तो उतारने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
शेखर ने खुद सब कपड़े निकालकर एक तरफ फर्श पर फेंक दिये। अब वह संगीता के सामने एकदम नंगा था। संगीता ने उसकी ओर देखा। अच्छी सुदर्शन देह थी। अग्रवाल साहब की तो थोड़ी सी तोंद थी लेकिन शेखर का पेट सफाचट था। अग्रवाल का लण्ड अच्छा खासा था लेकिन शेखर का भी उनसे कम नहीं था, मोटाई में ज्यादा ही होगा। झांट के बाल जरूर बेतरतीब हो रहे थे, जैसे वहां ध्यान न दिया गया हो। शेखर ने बढ़ करके उसे बांहों में ले लिया और धकेलता हुआ उसको बेड पर अपने नीचे गिरा लिया। पहले मुँह पर सब जगह चूमा फिर संगीता के रसीले होंठ अपने होंठों में दबोच लिये।
संगीता ने अपनी बांहों में उसका सिर जकड़ लिया और टांगें थोड़ी चौड़ी कर दीं जिससे शेखर के नीचे के भाग को जगह मिल जाये। शेखर का लण्ड उसको गड़ रहा था।
शेखर नीचे को खिसक गया। संगीता की छोटी-छोटी उभरी चूचियां शेखर को बहुत अच्छी लग रही थीं। वह उनको पूरी मुट्ठी में सहलाने लगा फिर उनको भींचने लगा। संगीता के शरीर में बिजली सी दौड़ गई जो उसकी चूत तक चली गई। वह सिसकने लगी। उसके चूचुक एकदम सख्त हो गये थे। जब शेखर न घुंडियों को ऊँगलियों में मसला।
तो संगीता सीत्कार कर उठी- “उइइईई…” उसकी चूत से पानी निकलने लग गया था।
शेखर ने मुँह नीचे करके एक चूचुक को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे को ऊँगलियों से मसल रहा था। यह संगीता के लिये ज्यादा था। वह तो पूरी तरह गर्मा चुकी थी। उसने नीचे हाथ डालके उसका लण्ड पकड़ लिया और खींचकर अपनी चूत पर लगाने लगी।
लेकिन शेखर इतनी जल्दी उसको देना नहीं चाहता था, पहले उसकी चूत से खेलना चाहता था। वह अपने को पीछे कर लेता था। वह सिगीता को खिझा रहा था।
जब वह खींचकर अंदर डालने में कामयाब नहीं हुई तो संगीता ने पलटी खाई। शेखर नीचे आ गया और वह उसके ऊपर। उसने एक हाथ से उसका लण्ड पकड़करके अपनी चूत के छेद पर लगाया और धप्प से उसके ऊपर बैठ गई और पूरा का पूरा लण्ड लील लिया। जैसे चैन मिल गया हो सांस बाहर निकाली- “हुऊऊऊऊऊ…” फिर चूत को ऊपर किया फिर धप्प से पूरा लण्ड अंदर- “हिईईईईईईई…”
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
शेखर आनंद ले रहा था। उसने दोनों हथेलियां बाँध के सिर के नीचे रखकर सिर ऊपर कर लिया था और पैर सीधे तान लिये थे, जिससे लण्ड और उठ गया था।
संगीता शेखर की जांघें पर बैठी थी। दायें हाथ का कप जैसा बनाकर उसने बेड का सहारा लिया था और बायें हाथ से चूत के ऊपर का हिस्सा दबा रखा था। वह कमान जैसी तन गई थी और ऊपर नीचे हो रही थी। छातियां ऊपर नीचे हो रही थीं। चूत लण्ड के बाहर कर लेती थी फिर एक झटके में पूरा अंदर कर लेती थी। अब उसकी गति काफी बढ़ गई थी। वह चूत पर लण्ड से चोटें लेने लगी थी। साथ ही तेज आवाजें निकालने लगी थी- “हिंहिमांहिं आंहिं आंहूँ आांहु हूँ आंहूँआंहूँहूँ…”
चूत लण्ड के बहुत ऊपर तक उठा लेती और सीधी लण्ड के ऊपर गिरती। लण्ड चूत में धक्क से चोट करता। बड़ी तेजी से सांस होठों से- “हुहुहु ऊऊहुहुहुऊऊऊहु रोरोऐै…” फिर एक बार जो चूत धप्प से गिरी तो कस के चिपक गई। उसने अपना सिर शेखर के सीने में गड़ा लिया। बांहों से उसे जकड़ लिया- “उईईई माँ मरीईईईई… मैं क्याआ करूंरू मैं मैं मैं…” वह बड़ी देर तक झड़ती रही।
उसने अपना सिर शेखर के सीने में गड़ाया तो फिर उठाया ही नहीं। शेखर उसको चूमना चाहता था।
लेकिन नहीं में सिर हिलाते हुये संगीता बोली- “पता नहीं आप मेरे बारे में क्या सोचते होंगे?”
शेखर बड़े प्यार से उसके बालों में उंगलियां फेरता हुआ बोला- “ऐसा कुछ नहीं। सोचता हूँ बहुत भूखी थी…” फिर उसने दोनों हथेलियों में सिर उठाते हुये पूछा- “है न?”
संगीता ने हाँमी में सिर हिला दिया।
शेखर ने शरारत से कहा- “लेकिन तुम्हारी एपेटाइत बहुत अच्छी है…”
संगीता का चेहरा लाल हो गया।
शेखर फिर बोला- “लेकिन यह तो अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है…”
वह फिर से शेखर से चिपक गई। शेखर ने उसे बांहों में बाँध लिया। उसके होंठ संगीता के होंठों पर चिपक गये। शेखर का लण्ड उसकी चूत में ही था। वह उसे बहुत धीरे-धीरे अंदर बाहर कर रहा था। वह वैसे ही पड़ी रही। थोड़ी देर में उसकी गाण्ड हिलने लगौ। शेखर थोड़ी जल्दी-जल्दी लण्ड आगे पीछे करने लगा, साथ ही उसके होंठों को जोर से चूसने लगा।
संगीता को मजा आने लगा था और उसकी चूत ने भी साथ देना चालू कर दिया। जब शेखर अंदर करता तो वह अपनी चूत लण्ड पर दबा देती और जब बाहर करता तो उसको आगे बढ़ा देती। शेखर बाकायदा लय से चोदने लगा। संगीता भी अब गर्मा चुकी थी। वह उसी लय से जवाब दे रही थी।
अब शेखर ने संगीता को बांहों में लिये हुये ही पलटा खाया। संगीता चित्त नीचे आ गई और वह उसके ऊपर था। लण्ड अभी भी अंदर था। शेखर खिसक कर उकड़ू बैठ गया। हथेलियों में उफनते हुये जोबनों को भर कर दबाते हुये लण्ड को गहराइयों तक पेलने लगा।
संगीता सी सी कर उठी। उसने दोनों हाथों से शेखर की कमर को जकड़ लिया। वह बेकाबू थी। चूत पानी-पानी हो रही थी। जब लण्ड चूत की दीवारों को चीरता गहराई में घुसता तो वह भी चूत को अपनी तरफ से धकेलती। संगीता जोरों से सांसें निकाले जा रही थी- “ऊ हुहुहु… हुहुहु… ओह्ह ऊऊऊऊ… हुह… हुऊ… ऊऊऊ… रिरिरीईई…” साथ ही बुदबुदा रही थी- “लगा तो पूरे जोर से… कचूमर निकाल दो इसका… शेखर देखें तुम्हारा जोर… आज छोड़ना नहीं इसे…”
शेखर और जोर से शंटिंग करता था- “लो भाभी, ये लो तुम भी क्या याद रखोगी… लो भाभी ये लो पूरा अंदर तक…” और एक कस के धक्का और लण्ड की मुठ चूत पर बैठ गई।
संगीता बोल उठी- “भाभी नहीं, तुम्हारी संगीता उसी दिन जैसी…”
शेखर- “भाई साहब का वह हक मैं नहीं लूंगा। तुम तो मेरी प्यारी सी भाभी डार्लिंग हो, इतनी खूबसूरत। लेकिन भाभी तुमने चूत के दर्शन का तो मौका ही नहीं दिया…”
उसने लण्ड बाहर खींच लिया। संगीता ने टांगें जितनी खोल सकती थी खोल दी थीं। लण्ड ने चूत का छेद फैला दिया था। चूत का भाग फूला हुआ बड़ा मस्त लग रहा था। चूत के होंठ रसीली फांकों से मुँह फैलाये थे। चूत की तितली ने उत्तेजना में पंख फैला दिये थे। गहराई तक छेद खुला हुआ था, एकदम गुलाबी पर्त-दर-पर्त भरपूर स्पंज की तरह नरम, भरा हुआ। छेद से रस टपक रहा था, गहराई तक पानी चमक रहा था। शेखर तो पागल हो गया- “हुऊऊ माई गोड… भाभीई मैंने तो ऐसी चूत नहीं देखी… इसको तो चूसूंगा। देखें तुम्हारी झड़ी हुई चूत का क्या स्वाद है?”
संगीता जल्दी से बोल पड़ी- “शेखर, नहीं चूसना नहीं…” और उसने चूत पर अपना हाथ रख लिया।
शेखर ने जोर लगाकर उसका हाथ एक तरफ कर दिया और अपना मुँह खुली चूत पर रख दिया। संगीता हाथ पैर झटक कर अलग होने की कोशिश करने लगी। लेकिन शेखर ने उसकी जांघें को कस के जकड़ रखा था और मुँह चूत पर कसके जमा रखा था। उसके दोनों पैर अपने कंधों पर ले रखे थे। संगीता अपनी दोनों टांगें पटक-पटक कर उसकी पीठ पर मारने लगी- “नई नई चूसो मत न… हटो मुँह हटाओ…”
लेकिन शेखर ने उसकी क्लिटोरिस को होठों में दबाकर चूसना शुरू कर दिया।
संगीता के ऊपर एकाएक असर पड़ा। वह एकदम आनंद में भर गई। उसने टांगें पटकना बंद कर दीं। चिल्ला उठी- “ओ माई ईईई ऊऊऊ हुहुहु ये क्या करते हो ओओओह्ह…”
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