01-19-2018, 01:11 PM,
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
अगले दिन शनिवार को मिसेज़ मलहोत्रा ने एक पार्टी रखी थी। पास पड़ेस के आठ दस लोगों को बुलाया था। शिशिर से मेरा और राकेश का परिचय मिसेज़ मलहोत्रा ने कराया। कितनी अजीब बात थी की हम लोगों को एक दूसरे के अंदर का सब कुछ मालूम था और हम एक दूसरे को जानते तक न थे। शिशिर की आँखों में शरारत झांक रही थी। मैं दबंग होने के बावजूद भी झिझक रही थी। मिलते ही राकेश और शिशिर एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। ऐसे घुल मिल के बातें कर रहे थे जैसे अरसे से एक दूसरे को जानते हों।
शिशिर और कुमुद का स्वभाव सरल था। आसानी से सबसे घुल मिल गये। थोड़ी ही देर में एक ग्रुप सा बन गया जिसमें राकेश, मैं, शिशिर, कुमुद, मिसेज़ अग्रवाल और मिसेज़ मलहोत्रा शामिल थे। मिस्टर अग्रवाल अभी आये नहीं थे। पार्टी में आना जाना उनका ऐसा ही होता था, हर समय धंधे की धुन सवार रहती थी। मिस्टर मलहोत्रा मेजबानी में सबसे मिलने में ही व्यस्त थे। ग्रुप में खूब हँसी मजाक चल रहा था। जोकस सुनाये जा रहे थे जिनमें सेक्स का पुट था। मिसेज़ अग्रवाल बढ़ चढ़ के भाग ले रही थीं।
मिसेज़ अग्रवाल कुछ-कुछ भारी बदन की गदराई जवानी की प्रौढ़ औरत थीं। पीलापन लिये गोरा रंग, फैले हुये चूतड़, जो चलते समय बड़े मादक तरीके से हिलते थे, और भरी हुई खरबूजे सी छातियां। सेक्स की बात करती थीं तो नथुने फड़कने लगते थे, छातियां और फैल जाती थीं। सब एक दूसरे को सहज तरीके से संबोधित कर रहे थे। राकेश कुमुद को भाभी कह रहा था। केवल मैं और शिशिर एक दूसरे को सीधा संबोधित नहीं कर रहे थे। शिशिर अकेले मौके की तलाश में था जो नहीं मिल पा रहा था और न ही मिल पाया। पार्टी से जाते समय उसने मेरी आँखों में झांका तो उसके चेहरे पर निराशा थी। जाते-जाते उन लोगों को राकेश ने दूसरे दिन अपने यहां निमंत्रित कर लिया।
जिस मौके की उसे तलाश थी दूसरे दिन उसको मिल गया। अकेले पाते ही वह मेरे से चिपट गया। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। घबड़ा के मैं पीछे हट गई, मेरा चेहरा पीला पड़ गया। मेरा चेहरा देखकर उसने एकदम से मेरा हाथ छोड़ दिया। बोला- “सारी, मैंने सोचा तुम मेरा लेना चाहती हो…”
उसके बाद उसका वर्ताव एकदम शालीन हो गया और सहजता से उस शाम से वह मुझे भाभी कहकर बुलाने लगा। दोनों घरों में बहुत निकटता हो गई। अक्सर मिलना-जुलना होने लगा। लेकिन मैं अभी तक उसे ठीक से संबोधित नहीं कर पा रही थी।
ग्रुप भी आये दिन मिलने लगा। कभी मलहोत्रा के यहां, कभी अग्रवाल के यहां, कभी शिशिर के यहां, तो कभी मेरे यहां। अब खुलकर सेक्स की बातें होने लगी थीं। मिसेज़ मलहोत्रा जितनी छुपा-छुपा के कहती थीं, मिसेज़ अग्रवाल उतनी ही साफ-साफ जबान में जिनमें हाव भाव और चेष्टायें भी सामिल होती थीं। राकेश और शिशिर अब बेधड़क बोलने लग गये थे, जिसमें मजाक भी करने लग गये थे। कुमुद अनसुनी सी करती थी, लेकिन मैं बड़े ध्यान से सुनती थी। मुझे बड़ा ही आनंद आता था।
शिशिर सचमुच में मेरा और अपनी बीवी का बड़ा ख्याल रखता था। दोनों परिवार साथ जाते तो मेरे उठने बैठने चाय पानी और जरूरतों के लिये तैयार रहता। वो मुझे भाभी-भाभी कहता और उसी तरह मानने लगा था। एक बार हम ग्रुप में बैठे थे।
किसी बात पर मेरा ध्यान बटाने के लिये वो पुकार उठा- “भाभी भाभी…”
मेरे मुँह से अचानक निकल पड़ा- “हाँ बोलिये देवर जी…”
सबने तालियां बजाई- “अब सही माने में देवर भाभी हुये…”
उसके बाद मैं उस देवर कहकर ही बुलाने लगी। पहली बार की हाथ पकड़ने की घटना के बाद उसने फिर कोई चेष्टा नहीं की।
लेकिन अब मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे वह अनजाना शिशिर ही भा रहा था। मैं उसका लण्ड देखने को तरस रही थी। उसके द्वारा कुमुद की चुदाई देखना चाहती थी। जब भी वह सेक्स की बात करता था तो मैं गरम हो जाती थी।
आखिर मेरे से न रहा गया और एक दिन दबी जबान से कह दिया- “देवरजी तमाशा दिखाओ न…”
वह चौंक गया। देर तक मेरी तरफ देखता रहा लेकिन बोला कुछ नहीं।
उस रात उसकी खिड़की के पट खुले हुये थे। देर रात कमरे की बत्ती जली तो शिशिर पलंग के किनारे नंगा खड़ा था। मोटा लंबा लण्ड मुँह बाये सामने तन्नाया हुआ था और सामने टांगें चौड़ी किये हुये कुमुद पलंग के किनारे पड़ी हुई थी। उसकी चूत का मुँह खुला हुआ था। शिशिर ने झुक कर लण्ड उसकी चूत में लगा के जैसे ही पेला, मैं धक्क से रह गई। उधर शिशिर पेले जा रहा था और कुमुद चूत उठा-उठा करके उसको झेल रही थी और मैं छटपटा रही थी। फिर राकेश को जगा करके मैं अपनी चूत खोल करके उसके ऊपर सवार हो गई और उससे कस-कस कर झटके लगाने को कहा। झड़ जाने के बाद भी मैं पूरी तरह शांत नहीं हुई थी।
उसके बाद मैं शिशिर की तरफ झुकान दिखाने लगी। जानबूझ कर आंचल गिरा देती और अपना ब्लाउज़ ठीक करने लगती, कामुक पोज बना देती, उसके सेक्स के जोक पर मुँह बना देती और आये दिन ‘तमाशा’ दिखाने की मांग करती।
महफिल
मिसेज़ अग्रवाल के यहां ग्रुप की महफिल जमी हुई थी। आदत के अनुसार मिस्टर अग्रवाल आकर के काम धंधे पर चले गये थे। मिसेज़ मलहोत्रा का जोक चल रहा था-
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01-19-2018, 01:12 PM,
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
होली के रंग
फाग का दिन… सेक्स भरा माहौल, पूरी मस्ती वाला दिन। सुबह से दोपहर तक रंग गुलाल से होली चहेतियों के साथ। मौका मिलते ही चहेती पर जितना हाथ साफ कर सके किया। फिर नहा-धो कर घर-घर जाकर गुझिया पपड़ियां। शाम को एक जगह जमावड़ा जहां भांग की तरंग में खुलकर तानाकसी, छेड़-छाड़, खुले आम सेक्स की बातें। रात तक पति पत्नी दोनों ही आनंद में होते और जम कर मस्त-मस्त चुदाई करते। यह है होली का मदभरा त्योहार।
कालोनी में औरतें अपना ग्रुप बना लेतीं थीं और आदमी लोग अलग इकट्ठे हो जाते थे। फिर बेझिझक दोनों अलग से होली खेलते रहते थे, फागें और अश्लील गाने गाते रहते थे और मनमानी हरकतें करते रहते थे। मालूम पड़ा था कि औरतें ऐसे गाने गातीं थीं और ऐसी-ऐसी हरकतें करतीं थीं कि आदमी भी दांतों तले उंगली दबा लें। औरतों की लीडर एक मिसेज़ वर्मा थीं, बिहार की। मिस्टर वर्मा थुलथुल थे और अपनी इंजीनियरी के रोबदाब में रहते थे। मिसेज़ वर्मा चुस्त थीं, बिहार का सांवला रंग और प्रौढ़ अवस्था में भी छरहरी देह, आगे को उभरे हुये जोबन और पीछे को उभरे हुये कूल्हे। सब मिला के बड़ी सेक्सी फीगर और उतनी ही सेक्सी उनकी बातें। उनको देखे बिना अंदाजा भी नहीं हो सकता कि औरत में कितना सेक्स भरा हो सकता है और उसको वह कितने खुलेआम प्रदर्शित कर सकती है।
औरतों और आदमियों के अलग इकट्ठे होने के पहले मिसेज़ मलहोत्रा ने अपने पिछवाड़े आपस में होली खेलने का प्रोग्राम बनाया। उनके यहां एक पूरानी नाद थी जिसमें उन लोगों ने पानी भरकर रंग मिला दिया। जैसे-जैसे लोग आते गये उनको रंग से सराबोर कर दिया गया और गुलाल से चेहरा मला दिया गया। लिहाज़ का पर्दा उठ गया था। आदमी लोग भाभियों को यानि कि दूसरों की बीवियों को पकड़-पकड़कर रंग मल रहे थे।
कुमुद अपने को बचाये हुये दूर खड़ी थी। उसने नई धानी साड़ी पहन रखी थी जो शिशिर के कहने पर नहीं बदली थी। काफी खूबसूरत लग रही थी। राकेश का मन उसके ऊपर था। वह गुलाल लेकर उसकी ओर बढ़ा। कुमुद भागी, राकेश उसके पीछे भागा।
दीवाल के पास राकेश ने उसे पकड़ लिया। गुलाल से बचने के लिये कुमुद मुँह यहां वहां कर रही थी। राकेश ने कस के उसको चिपका लिया, यहां तक कि उसकी चूचियों का दबाव वह महसूस कर रहा था। रानों से रानें चिपक गई थीं। उसने तबीयत से कुमुद के गालों पर मुँह से मुँह रगड़कर अपना गुलाल छुड़ाया। मुट्ठी का गुलाल उसके दोनों उभारों पर मला और नीचे हाथ डालकर टांगों के बीच गुलाल का हाथ रगड़ दिया। गुलाल की लाली में उसकी शर्म की लाली छुप गई। दूर से लोगों ने सब कुछ नहीं देखा। न जाने क्यों कुमुद को राकेश पर गुस्सा नहीं आ रहा था बल्की इस सब से उसके मन में मिठास भर गई थी।
सुनीता ने बहैसियत भाभी के शिशिर को खूब गुलाल मला लेकिन सबसे घाटे में वही रही। क्योंकी उसके और शिशिर के मन में जो था, सबके देखते कुछ न कर पाये। मिसेज़ अग्रवाल वापिस जाने लगीं क्योंकी गाँव से उनकी भौजी आई हुई थीं, जिनको वह घर में छोड़कर आई थीं।
सबने कहा कि भौजी को यहीं ले आओ। मिसेज़ मलहोत्रा मिसेज़ अग्रवाल को पकड़कर ले गईं और वह लपक कर भौजी को खींच लाये। भौजी अच्छी जवान थीं, गदराया शरीर था, चेहरे पर लुनाई थी, मांसल थीं लेकिन मोटापा नहीं था, मेहनती देह थी, हाथों पैरों में बल था, सीने पर भी अच्छा मांस था। भौजी ने अग्रवाल जी को देखा तो घूँघट खींच लिया और उनकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गईं।
मलहोत्रा ने अग्रवाल को उकसाया- “पलट दो घूँघट… अपनी सलहज के संग होली नहीं खेलोगे?”
भौजी सिर हिलाती रही पर अग्रवाल ने उनका घूँघट उघाड़ दिया और यह कहते हुये- “भौजी हमसे होली नहीं खेलोगी?” और उनके दोनों गालों पर ढेर सा गुलाल मल दिया। मलहोत्रा ने उन्हें रंग से भिगो दिया।
भौजी बोलीं- “बस हो गई होली?”
वह उस क्षेत्र की थीं जहां औरतें कोड़ामार होली खेलतीं हैं। पानी में भिगो-भिगोकर आदमियों पर कोड़े मारती है। भौजी ने अग्रवाल को उठा लिया और सीधा ले जाकर नांद में गिराती हुई बोलीं- “लाला जी होली का मजा तो लो…”
सब लोगों में खुशी भर गई।
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