06-08-2020, 11:32 AM,
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hotaks
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RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
डॉली अपनी पीड़ाओं को न दबा सकी और बोली- 'कुछ नहीं रखा जीने में। हर पल दुर्भाग्य का विष पीने से तो बेहतर है कि जीवन का गला घोंट दिया जाए! मिटा दिया जाए उसे।'
'आपका दुर्भाग्य...?'
'यही कि अपनों ने धोखा दिया। पहले हृदय से लगाया और फिर पीठ में छुरा भोंक दिया। बेच डाला मुझे। पशु समझकर सौदा कर दिया मेरा।'
'अ-आप...।'
डॉली सिसक पड़ी। सिसकते हुए बोली- 'मैं पूछती हूं आपसे। मैं पूछती हूं-क्या मुझे अपने ढंग से जीने का अधिकार न था? क्या मैं क्या मैं आपको पशु नजर आती हूं?'
'नहीं डॉलीजी! नहीं।' जय ने तड़पकर कहा 'आप पशु नहीं हैं। संसार की कोई भी नारी पशु नहीं हो सकती और यदि कोई धर्म, कोई संप्रदाय और कोई समाज नारी को पशु समझने की भूल करता है-उसका सौदा करता है तो मैं ऐसे धर्म, समाज और संप्रदाय से घृणा करता हूं।'
डॉली सिसकती रही।
जय ने सहानुभूति से कहा- 'डॉलीजी! आपके इन शब्दों और इन आंसुओं ने मुझसे सब कुछ कह डाला है। मैं जानता हूं-दुर्भाग्य आपको शहर से उठाकर गांव ले गया। वहां कोई अपना होगा-उसने आपको आश्रय दिया और फिर आपका सौदा कर दिया। इस क्षेत्र में ऐसा ही होता है-लोग तो अपनी बेटियों को बेच देते हैं-फिर आप तो पराई थीं और जब ऐसा हुआ तो आप रात के अंधेरे में रामगढ़ से चली आईं। सोचा होगा-दुनिया बहुत बड़ी है-कहीं तो आश्रय मिलेगा। कहीं तो कोई होगा-जिसे अपना कह सकेंगी।'
डॉली की सिसकियां हिचकियों में बदल गईं।
एक पल रुककर जय फिर बोला- 'मत रोइए डॉलीजी! मत रोइए। आइए-मेरे साथ चलिए।'
'न-नहीं।'
'भरोसा कीजिए मुझ पर। यकीन रखिए संसार में अभी मानवता शेष है। आइए-आइए डॉलीजी!' जय ने आग्रह किया।
डॉली के हृदय में द्वंद्व-सा छिड़ गया।
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RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
जमींदार यह सुनते ही एक झटके से उठ गए और क्रोध से दांत पीसकर बोले- 'तू झूठ बोलता है हरामजादे!'
'सरकार!'
'हरामजादे! तूने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी। दो कौड़ी का न छोड़ा हमें। अभी थोड़ी देर बाद हमारी बारात सजनी थी। शहर से बीसों यार-दोस्त आने थे, दूल्हा बनना था हमें और तूने हमारे एक-एक अरमान को जलाकर राख कर । दिया। किसी को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहे हम।'
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'म-मुझे माफ कर दीजिए हुजूर!'
'नहीं माफ करेंगे हम तुझे। हम तेरी खाल खींचकर उसमें भूसा भर देंगे। हम तुझे इस योग्य न छोड़ेंगे कि तू फिर कोई धोखा दे सके।' इतना कहकर उन्होंने निकट खड़े एक नौकर से कहा 'मंगल! इस साले को इतना मार कि इसकी हड्डियों का सुरमा बन जाए। मर भी जाए तो चिंता मत करना और लाश को फेंक आना।'
'नहीं हुजूर नहीं!' दीना गिड़गिड़ाया।
जबकि मंगल ने उसकी बांह पकड़ी और उसे बलपूर्वक खींचते हुए कमरे से बाहर हो गया।
उसके जाते ही जमींदार बैठ गए और परेशानी की दशा में अपने बालों को नोचने लगे।
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06-08-2020, 11:33 AM,
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RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
'फिर क्या बात है?'
डॉली इस प्रश्न पर मौन रही।
जय फिर बोला- 'बताइए न फिर आप मुझसे दूर क्यों जाना चाहती हैं?'
'अपने दुर्भाग्य के कारण।' डॉली बोली- 'मैं नहीं चाहती कि मेरे दुर्भाग्य की छाया आप पर भी पड़े।'
'और यदि मैं यह कहूं कि आपका मुझसे मिलना मात्र एक संयोग ही नहीं मेरा सौभाग्य है तो?'
'फिर भी मैं चाहूंगी कि आप मुझे भूल जाएं।
आप तो जानते ही हैं कि रामगढ़ यहां से दूर नहीं। उन लोगों को जब पता चलेगा कि मैं यहां हूं तो।' 'तो यह बात है।' जय की आंखें सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गईं। एक पल मौन रहकर वह बोला- 'फिर तो आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं। रामगढ़ में ऐसा कोई नहीं जो हमारे विरुद्ध जुबान भी खोल सके।'
तभी बाहर से नौकर की आवाज सुनाई पड़ी 'छोटे मालिक! स्नान का पानी रख दिया है।'
'ठीक है हरिया!' जय ने कहा। इसके पश्चात वह डॉली से बोला- 'अब आप स्नान कर लीजिए और हां, मैं एक घंटे के लिए रामगढ़ जाऊंगा। बात यह है कि पापा के दिमाग में कुछ कमी आ गई है। सुना है वो शादी कर रहे हैं-यूं मुझे उनके इस निर्णय से कोई दिक्कत नहीं। मैं तो पिछले पांच वर्षों से रुद्रपुर रहता हूं। वहीं पढ़ाई की और वहीं बिजनेस भी शुरू कर दिया। यूं समझिए पापा के व्यक्तिगत जीवन से मेरा कोई लेना-देना नहीं। फिर भी साठ वर्ष की आयु में शादी-यह मुझे पसंद नहीं। मैं उन्हें समझाने का प्रयास करूंगा।'
डॉली पत्ते की भांति कांप गई।
'जय फिर बोला- 'मैंने यह भी निर्णय लिया है कि मैं आपको लेकर आज ही रुद्रपुर चला जाऊंगा। न-न-मेरे इस निर्णय में पापा की स्वीकृति-अस्वीकृति कोई बाधा न बनेगी।'
'ल-लेकिन जय साहब!'
'ऊं!' जय ने अनजाने में ही डॉली के होंठों पर अपनी हथेली रख दी और बोला- 'अब बातें खत्म। अब आप स्नान करके आराम कीजिए। मेरे लौटने तक हरिया खाना बना देगा।'
डॉली चाहकर भी कुछ न कह सकी किन्तु न जाने क्यों-उसकी आंखों में आंसुओं की बूंदें झिलमिला उठीं।
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