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Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"मैं मैड हाउस में जाना चाहता हूं । मैनेजमेंट पार्टनर के बिना किसी को भीतर नहीं जाने देता ।"
"तो फिर किसी ऐसे रेस्टोरेन्ट में चले जाओ जहां का मैनेजमेंट ऐसा बन्धन नहीं लगाता ।"
"लेकिन और जगह मुझे मजा नहीं आता। ऐट अदर प्लेसिज आई डू नाट फील माईसैल्फ ए पार्ट आफ असैन्ट्रिक ट्वन्टियथ सैन्चुरी ।"
लड़की मुस्कराई ।
"तो फिर ?" - सुनील ने आग्रहपूर्ण स्वर में पूछा ।
"तुम इतने खूबसूरत आदमी हो । तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड नहीं है ?"
"एक थी" - सुनील उदास स्वर में बोला - "लेकिन वह मुझे धोखा दे गई । मुझे छोड़ गई ।"
"कोई दूसरी तलाश कर दो ।"
"उसमें तो समय लगेगा न !"
"बस वह एक ही गर्लफ्रैंड थी तुम्हारी ।"
"हां । मैं शरीफ आदमी हूं । एक समय में एक से ज्यादा गर्लफ्रैंड कैसे रख सकता हूं ।"
युवती मुस्कराई ।
"सो ?"
"आई एम सारी, मैन ।" - युवती खेदपूर्ण स्वर में बोली - "मेरे पास तुम्हारे लिये पांच मिनट का भी समय नहीं है । मैं यहां किसी का इन्तजार कर रही हूं ।"
"मेरा काम दो मिनट में भी हो सकता है ।" - सुनील बोला - "आप मेरे साथ चलिये । जब हम 'मैड हाउस' में प्रविष्ट हो जायें तो आप उल्टे पांव वापिस आ जाइयेगा ।"
युवती हिचकिचाई, उसने सड़क के दोनों ओर दूर तक दृष्टि दौड़ाई और फिर सुनील से बोली - "चलो ।"
"थैंक्यू वैरी मच, मैडम ।" - सुनील हर्षित स्वर में बोला ।
दोनों मैड हाउस की ओर बढे ।
मैड हाउस के समीप पहुंचकर सुनील ने युवती की कमर में हाथ डाल दिया ।
युवती तनिक कसमसाई लेकिन मुंह से कुछ न बोली ।
गेटकीपर ने लोहे का गेट एक ओर सरका दिया ।
दोनों भीतर प्रविष्ट हो गये।
युवती उसके साथ-साथ सीढियां उतर कर नीचे हॉल में आई ।
"ओके ?" - नीचे पहुंचकर उसने पूछा ।
"ओके । थैंक्यू वैरी मच । आई एम वैरी ग्रेटफुल टू यू ।"
युवती मुस्कराई और उल्टे पांव वापिस लौट गई ।
सुनील ने हाल में चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ।
बैंज बज रहा था और डांस फ्लोर पर कुछ जोड़े बैंड में से निकलती हुई धुन पर नाच रहे थे ।
सुनील मेजों में से गुजरता हुआ सारे तहखाने का चक्कर लगा गया ।
फ्लोरी उसे कहीं दिखाई न दी ।
न ही उसे कहीं मुकुल व बिन्दु के दर्शन हुए ।
खाली मेज कहीं भी नहीं थी । एक मेज के इर्द गिर्द चार पीपेनुमा स्टूल पड़े थे । उनमें से एक खाली था तीन पर एक युवक और दो युवतियां बैठी थीं ।
सुनील खाली स्टूल पर बैठ गया ।
उन तीनों ने एक उचटती-सी दृष्टि उस पर डाली और फिर अपनी बातों में मग्न हो गये ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
साढे आठ बज गये ।
फ्लोरी, मुकुल व बिन्दु में से कोई वहां आता दिखाई न दिया ।
उसने अपनी बगल में बैठे युवक को टोका और पूछा - "आज मुकुल नहीं आया ?"
"नहीं ।"
"क्यों ?"
"मालूम नहीं । आम तौर पर तो वह सात बजे से ही यहां पर मौजूद होता है ।"
"और वह फोटोग्राफर भी नहीं दिखाई दे रही ।"
"कौन फोटोग्राफर ?"
"वही ऐंग्लो इन्डियन लड़की फ्लोरी जो यहां तसवीरें खींचा करती है ।"
"मुझे उसके बारे में कुछ नहीं मालूम ।"
उसी क्षण वेटर वहां आया ।
सुनील ने उसे कॉफी और हॉट-डॉग का आर्डर दिया और फिर पूछा - "आज फ्लोरी नहीं आई !"
"फ्लोरी मेमसाहब नौ बजे के आसपास आती हैं ?" - वेटर बोला ।
नौ बजे गये ।
फ्लोरी नहीं आई ।
दस बज गये ।
फ्लोरी नहीं आई ।
साढे दस बजे सुनील ने वेटर को दुबारा बुलाया ।
"क्या फ्लोरी रोज नहीं आती यहां ?"
"बिल्कुल रोज आती हैं, साहब । आज ही पता नहीं क्यों नहीं आई । शायद तबीयत खराब हो गई हो ।"
"हां, शायद । सुनो, तुम्हें फ्लोरी के घर का पता मालूम है ?"
वेटर ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
"देखो । यहां बहुत-से ऐसे लोग होंगे जिनकी फ्लोरी ने तस्वीरें खींची हैं । तस्वीरों वाले लिफाफे पर भी फ्लोरी का पता छपा होता है । किसी न किसी को उसके घर का पता जरूर मालूम होगा ।"
"होगा साहब लेकिन मुझे इतनी फुरसत नहीं कि मैं हर किसी से पूछताछ करता फिरूं ।"
"इसका मतलब यह हुआ कि तुम दस रुपये नहीं कमाना चाहते ।"
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रिसैप्शन डैस्क के समीप वह एक क्षण को ठिठका ।
"मेरा कोई फोन तो नहीं आया था, रेणु ?" - उसने रिसैप्शनिस्ट-कम तो टेलीफोन आपरेटर से पूछा ।
"नहीं ।" - रेणु बोली ।
और फिर इससे पहले कि रेणु अपनी ओर से कोई बात आरम्भ कर पाती सुनील आगे बढ गया । एक ओर रेलिंग लगे लम्बे गलियारे में होता हुआ वह अपने केबिन में पहुंच गया ।
पहले उसने रमाकांत को फोन करने का इरादा किया लेकिन फिर उसने वह इरादा छोड़ दिया ।
वह 'ब्लास्ट' के ईवनिंग एडीशन के लिये सोहन लाल की हत्या की घटना की रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया । जिस समय वह भगत सिंह रोड से आया था, उस समय तक किसी भी अन्य समाचार-पत्र का रिपोर्टर घटनास्थल पर नहीं पहुंचा था । इसीलिए इस बात की पूरी सम्भावना थी कि शाम को केवल 'ब्लास्ट' ही ऐसा पेपर होता जिसमें सोहन लाल की हत्या का समाचार होता ।
उसकी कलम तेजी से कागजों पर चलने लगी ।
***
सुनील यूथ क्लब में पहुंचा ।
रमाकांत अपने दफ्तर में मौजूद था । वह अपनी विशाल मेज के पीछे घूमने वाली कुर्सी पर अधलेटा-सा बैठा था । उसने अपने दोनों पांव मेज पर रखे हुए थे और कमरा चारमीनार के कडुवे धुयें से भरा पड़ा था ।
सुनील के कमरे में प्रविष्ट होने की आहट सुनकर उसने नेत्र खोले लेकिन उसके पोज में कोई अन्तर नहीं आया ।
"आओ, प्यारयो ।" - रमाकांत बोला ।
"जब यूं रेल के इन्जन की तरह इस बेहूदा सिगरेट का धुआं उगलना हो तो कम-से-कम खिड़की तो खोल लिया करो ।" - सुनील बोला ।
"मुझे इस धुयें से कोई एतराज नहीं ।" - रमाकांत शांति से बोला ।
"लेकिन आने वाले को तो हो सकता है ।"
"तो आने वाला खिड़की खोल ले ।"
सुनील ने अपने होंठ काटे, कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर इरादा बदल दिया । उसन आगे बढकर खिड़की खोल दी ।
धुआं बाहर निकलने लगा ।
वह वापिस आकर रमाकांत के सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
"आओ जी, जी आया नूं, मोतियावालयो, क्या हाल है ?" - रमाकांत टेप रिकॉर्डर की तरह भावहीन स्वर में बोलने लगा - "मुकुल के बारे में मुम्बई से कोई रिपोर्ट नहीं आई है । यह बात मालूम नहीं हो सकी है कि राम ललवानी और सेठ मंगत रात में कोई रिश्ता है या नहीं । मैं तुम्हें चाय हरगिज नहीं पिलाऊंगा । और सुनाओ, क्या-क्या हाल चाल है ? अच्छा, नमस्ते । जाती बार दरवाजा बन्द करते जाना ।"
"आज बहुत उखड़ रहे हो, प्यारेलाल !" - सुनील बोला - "क्या कल रात रमी में हारे गये रुपयों का गम अभी तक सता रहा है ?"
"वह गम भी अभी पैंडिंग पड़ा है लेकिन ज्यादा गम तो मुझे इस बार सता रहा है कि जो काम मैं तुम्हारे लिये करवा रहा हूं, उसने नगदऊ कतई हासिल नहीं होने वाला है ।"
"शायद हो जाये ।"
रमाकांत के नेत्रों में चमक आ गई । उसने मेज से पांव हटा लिये और सुनील की ओर झुकता हुआ बोला - "सच ?"
सुनील ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
"कोई नई बात हो गई है क्या ?"
"नहीं ।"
"तो फिर नगदऊ कहां से मिलेगा ?"
"मैं कहा था कि 'शायद' नगदऊ मिल जाये ।"
"दुर फिटे मूं ।" - नगदऊ के नाम पर जितनी तेजी से रमाकांत की आंखों में चमक पैदा हुई थी, उतनी ही तेजी से गायब हो गई ।
"आखिर तुम इतने लालची क्यों हो ?"
"आज की दुनिया में जिस आदमी को रुपये का लालच नहीं, वह इन्सान कहलाने का हकदार नहीं ।"
"मुझे रुपये का लालच नहीं ।"
"मैं इन्सानों का जिक्र कर रहा था ।"
"और मैं क्या हूं ?"
"तुम तो गधे हो और वह भी निहायत घटिया किस्म के ।"
सुनील चुप रहा ।
"अब क्या इरादा है ?"
"मेरा असली इरादा तुम्हारी तन्दुरुस्ती के लिये अच्छा साबित नहीं होगा ।"
"धमकी दे रहे हो ?" - रमाकांत आंखें निकालकर बोला ।
"हां ।"
रमाकांत कसमसाया और फिर बोला - "पुराने यार हो इसलिये छोड़ देता हूं वर्ना..."
सुनील ने यह नहीं पूछा कि वर्ना वह क्या करता ।
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Thriller विक्षिप्त हत्यारा
प्रभूदयाल उठ खड़ा हुआ । वह बैडरूम के सीमित क्षेत्रों में चहलकदमी करने लगा । वह बेहद गम्भीर था । वह बेहद चिन्तित था । लगता था जैसे वह जल्दी किसी नतीजे पर पहुंचने के लिये अपने दिमाग पर बहुत जार दे रहा था ।
कुछ क्षण यूं ही चहल-कदमी करते रहने के बाद एकाएक यह रुक गया और सुनील के सामने आ खड़ा हुआ ।
"सुनील" - वह गम्भीर स्वर में बोला - "मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं । इसलिये नहीं क्योंकि मुझे तुम्हारी कहानी पर विश्वास आ गया है या मैं तुम्हें बुनियादी तौर पर एक ऐसा आदमी मानता हूं जो हत्या जैसा जघन्य अपराध नहीं कर सकता । मैं तुम्हें इसलिए छोड़ रहा हूं क्योंकि मैं तुम्हें बहुत अरसे से जानता हूं और मुझे इस बात पर विश्वास नहीं होता कि तुम किसी की हत्या कर दो और इतनी आसानी से पुलिस की पकड़ाई में आ जाओ । अगर तुमने हत्या की होती तो पहले तो पुलिस का तुम्हारी ओर ध्यान ही नहीं जाता । अगर ध्यान जाता तो इतनी आसानी से तुम पकड़ाई में नहीं आ जाते । अगर पकड़ाई में आ जाते तो अपनी निर्दोषिता इतनी शानदार कहानी सुनाते कि हमें उस मे एक भी कमजोर धागा दिखाई न देता । तुमने जो कहानी मुझे सुनाई है, वह बहुत कमजोर है, इसलिये वह मुझे सच्ची लग रही है ।"
प्रभूदयाल एक क्षण रुका और फिर बोला - "अगर सोहन लाल की लाश के पास कोई दूसरी रिवाल्वर मिलती, कोई और हथियार मिलता, एक छोटा-सा चाकू तक मिलता तो मैं मान लेता कि शायद तुमने उस पर गोली चलाई हो । मुझे इस बात पर विश्वास नहीं होता कि तुमने यूं दिन दहाड़े केवल उसका कत्ल करने की खातिर ही उसको शूट कर दिया हो और इसीलिये में तुम्हें छोड़ रहा हूं । सुनील, जरा सोचो । एक आदमी की हत्या हो जाती है । अगले ही क्षण एक दूसरा आदमी रिवाल्वर हाथ में लिये घटनास्थल पर मौजूद पाया जाता है । पुलिस इन्स्पेक्टर आता है, और दूसरे आदमी को छोड़ देता है । जब मेरे आला अफसर यह बात सुनेंगे तो वे शायद मुझ पर बुरी तरह बरसेंगे । मेरे मातहत जब यह बात सुनेंगे तो शायद वे मुझे परले सिरे का अहमक करार देंगे । लेकिन... खैर ।"
सुनीज मेज से उतर गया ।
"और अपनी कुशलता का समाचार देते रहना ।" - प्रभूदयाल बोला ।
"मतलब यह कि तुम मुझे चेतावनी दे रहे हो कि मैं फरार न हो जाऊं ?"
"ऐसा ही समझ लो । दरअसल पुलिस के कोड आफ कन्डक्ट में फरार होना जुर्म का इकबाल करना माना जाता है ।"
"मैं ध्यान रखूंगा ।"
"और अगर तुम्हें ऐसा लगे कि कोई महत्वपूर्ण बात तुम पुलिस को बताना भूल गये हो तो तुम्हें मालूम ही है कि मैं कहां मिल सकता हूं ।"
"थैंक्यू ।" - सुनील बोला और द्वार की ओर बढा । द्वार के समीप पहुंचकर वह ठिठका और प्रभूदयाल की ओर घूमकर बोला - "आज जब कि तुम मुझ पर इतने मेहरबान हो तो एक बात और बता दो ।"
"पूछो ।" - प्रभूदयाल बोला ।
"तुम ने राम ललवानी का नाम लिया था !"
"हां ।"
"पुलिस की उसमें क्या दिलचस्पी है ?"
प्रभूदयाल कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - "हमें विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ है कि फोर स्टार नाइट क्लब में एक बहुत ऊंचे दर्जे का गैरकानूनी वेश्यालय चलाया जा रहा है । राम ललवानी का सोहन लाल मार्का लोगों से सम्पर्क यह तो जाहिर करता ही है कि वह कोई भला आदमी नहीं है । ऐसा कोई धन्धा वह करता हो तो इसमें कोई हैरानी की बात तो है नहीं ।"
"पुलिस इस बारे में कुछ करती नहीं ?"
"करना चाहती है लेकिन कर नहीं पाती ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि राम ललवानी को नगर के एक बहुत बड़े व्यक्ति की सरपरस्ती हासिल है ।"
"सेठ मंगत राम की ?"
प्रभूदयाल ने हैरानी से उसकी ओर देखा ।
"मुझे मालूम है कि लिबर्टी बिल्डिंग सेठ मंगत राम की है" - सुनील जल्दी से बोला - "इसी से मैंने अनुमान लगाया था ।"
"हां । सेठ मंगत राम मालूम नहीं क्यों राम ललवानी जैसे घटिया आदमी पर मेहरबान है ? गृहमन्त्री तक सेठ मंगत राम के निजी मित्र हैं । केवल संदेह के आधार पर राम ललवानी पर चढ दौड़ने की हिम्मत तो आई.जी. में भी नहीं है, हम तो किस खेत की मूली हैं ! और अभी तक कोई शत-प्रतिशत ठोस बात मालूम हो नहीं पाई है । इसी सिलसिले में हम सोहन लाल को भी चैक करवा रहे थे ।"
सुनील चुप रहा ।
"ओके ।" - प्रभूदयाल ने कहा ।
सुनील ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया । वह सीधा फ्लैट से बाहर जाने वाले द्वार की ओर बढा ।
सब-इन्स्पेक्टर ने आगे बढकर उसे रोकने का प्रयत्न किया ।
"जाने दो ।" - पीछे से प्रभूदयाल की तीव्र स्वर सुनाई दिया ।
सब-इन्सेक्टर के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे लेकिन वह तत्काल एक ओर हट गया ।
इमारत से बाहर निकल कर सुनील ने अपनी मोटरसाइकल सम्भाली और सीधा 'ब्लास्ट' के आफिस में पहुंचा ।
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"मैं सारी कहानी बाहर सब-इन्सपेक्टर को सुना चुका हूं ।" - सुनील हथियार डालता हुआ बोला । उसे मालूम था कि प्रभूदयाल कोई धमकी नहीं दे रहा था । वह जो कुछ कह रहा था, उसे कर गुजरने का इरादा भी रखता था ।
"कोई बात नहीं ।" - प्रभूदयाल बोला - "वह कहानी फिर दोहरा दो ।"
"कल रात मैं मैजेस्टिक सर्कल पर लिबर्टी बिल्डिंग में स्थित मैड हाउस में गया था ।"
"क्यों ?"
"यूं ही । तफरीह के लिये ।"
"फिर ?"
"वहां से सोहन लाल नाम का जो आदमी बाहर मरा पड़ा है, मेरे पीछे लग रहा था । मैड हाउस में मुझे फ्लोरी नाम की अपनी एक जानकार मिल गयी थी । उसकी सहायता से मैंने अपनी ओर से सोहन लाल से पीछा छुड़ा लिया था, लेकिन मेरा ख्याल गलत था । सोहन लाल अपने दो आदमियों के साथ बदस्तूर मेरे पीछे लगा हुआ था । मेरे फ्लैट में प्रविष्ट होते ही ये मुझ पर टूट पड़े और फिर मेरी जेब में कितने रुपये मौजूद थे, सब निकालकर भाग गये ।"
"तुम्हारी जेब में कितने रुपये थे ?"
"लगभग दो सौ रुपये ।"
"और कुछ भी चोरी गया ?"
"नहीं ।"
"क्यों ? जब वे तुम्हारे फ्लैट में घुस ही आये थे तो उन्होंने और चीजों पर हाथ साफ क्यों नहीं किया ?"
"मेरी उनसे मार कुटाई हो गई थी । मार कुटाई से जो धमाधम मची थी उसकी वजह से मेरे फ्लैट के एकदम नीचे वाला किरायेदार चिल्लाने लगा था । शायद वे लोग उसी के डर से जो हाथ लगा था वही लेकर रफूचक्कर हो गये थे । शायद उन्हें भय था कि कहीं नीचे वाला किरायेदार ऊपर न आ जाये ।"
"तुमने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई थी ?"
"नहीं ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि दो सौ रुपये की मामूली रकम की चोरी के लिए मैं पुलिस को परेशान नहीं करना चाहता था ।"
"वैरी गुड । पुलिस का बड़ा ख्याल है तुम्हें और दो सौ रुपयें की रकम भी तुम्हारे लिये मामूली है । मेरी तो वह आधे महीने की तनख्वाह होती है ।"
सुनील चुप रहा ।
"खैर फिर ?"
"फिर मैंने सोहन लाल के घर का पता लगा लिया ।"
"कैसे ?"
"वह मैड हाउस से मेरे पीछे लगा था । मैं इस आशा में दुबारा कहां पहुंच गया कि शायद वो फिर दिखाई दे जाये ।"
"और वह तुम्हें दिखाई दे गया ।"
"हां ।"
"और फिर तुमने उसकी हत्या कर दी क्योंकि वह तुमसे तुम्हारे दो सौ रुपये छीनकर भाग गया था ?"
"मैंने उसकी हत्या नहीं की, मेरे बाप ।" - सुनील झल्लाकर बोला ।
"तो फिर वह कैसे मर गया ?"
सुनील ने बाकी की कहानी सारांश में सुना दी ।
"और यह मेरी खोपड़ी देखो ।" - सुनील उसके सामने अपनी खोपड़ी का पिछला भाग करता हुआ बोला - "मेरी खोपड़ी पर जो अंडे जितना गूमड़ दिखाई दे रहा है इसकी अपने डाक्टर को बुलाकर चाहो तो अच्छी तरह मुआयना करवा लो । यह असली है और ताजा है और इस बात का सबूत है कि फ्लैट में मेरे और सोहन लाल के अतिरिक्त कोई तीसरा व्यक्ति भी था जिसने मुझ पर पीछे से आक्रमण किया था और फिर मेरी रिवाल्वर से सोहन लाल की हत्या कर दी थी ।"
"कहानी अच्छी है और काफी हद तक विश्वसनीय भी लगती है ।"
"यह कहानी नहीं है, हकीकत है ।"
"अच्छा, हकीकत ही सही । अब तुम मेरी एक आध बात का जवाब दो ।"
"पूछो ।"
"तुम सोहन लाल को कल रात से पहले नहीं जानते थे ?"
"सवाल ही नहीं पैदा होता था ।"
"लेकिन मैं सोहन लाल को बड़े लम्बे अरसे से जानता हूं । पहले वह धर्मपुरे के इलाके का मामूली-सा दादा था और नकली शराब का धन्धा करता था फिर एकाएक राजनगर से गायब हो गया । कई साल गायब रहने के बाद जब राजनगर में दोबारा प्रकट हुआ तो इसका काया पलट हो चुका था । इसने अपना पुराना धन्धा छोड़ दिया था और बड़ी मान-मर्यादा के साथ फ्लैट में रहने लगा था । हमें मालूम है कि सोहन लाल फोर स्टार नाईट क्लब के मालिक राम ललवानी के लिये काम करता है और राम ललवानी इसे काफी पैसा देता है । इस फ्लैट के ठाठ तुम देख ही रहे हो । एक-एक चीज से रईसी टपक रही है और इस फ्लैट का किराया चार सौ रुपये महीना है । अब तुम मुझे यह समझाओं कि इतना सम्पन्न आदमी इतना बड़ा बखेड़ा क्यों करेगा कि दो सौ रुपये की तुच्छ रकम के लिये अपने दो साथियों के साथ तुम्हारे फ्लैट पर आकर तुम्हें दबोच ले और फिर एक बार तुम्हारे प्लैट में घुस आने के बाद भी तुम्हारे फ्लैट की किसी कीमती चीज को हाथ न लगाये और तुम्हारी फ्लैट की किसी कीमती चीज को हाथ न लगाये और तुम्हारी कलाई पर बन्धी हुई कीमती घड़ी उतार लेने की और भी उसका ध्यान न जाये ?"
सुनील को तत्काल कोई उत्तर न सूझा । उसकी कहानी वाकई कमजोर थी ।
"मैं तुम्हें बहुत मुद्दत से जानता हूं सुनील । पहले तो तुम बड़ी विश्वसनीय कहानियां सुनाया करते थे ।"
"अगर मैंने कहानी सुनाई होती तो वह जरूर-जरूर विश्वसनीय होती । यह बात इस लिये कमजोर लग रही है क्योंकि यह सच्ची है । अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो तुम फ्लोरी नाम की उस लड़की से पूछ लो जिसका मैंने तुम से जिक्र किया था । मैंने उसे बताया था कि एक आदमी मेरा पीछा कर रहा है और अपनी ओर से कोलाबा रेस्टोरेन्ट में उसके साथ खाना खाते समय मैंने सोहन लाल से पीछा छुड़ाने की बड़ी अच्छी स्कीम बना ली थी और उस पर अमल भी किया था लेकिन..."
सुनील ने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
"फ्लोरी का पता बताओ ।" - प्रभूदयाल बोला ।
"फ्लोरी का पता तो मुझे मालूम नहीं लेकिन वह फोटोग्राफर है और हर शाम को मैड हाउस में आती है ।"
प्रभूदयाल ने सन्दिग्ध नेत्रों में उसकी ओर देखा ।
"मैं सच कह रहा हूं ।" - सुनील बोला ।
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