Sex Hindi Kahani फूफी फ़रहीन
06-30-2017, 11:26 AM,
#1
Sex Hindi Kahani फूफी फ़रहीन
फूफी फ़रहीन 

उस दिन में और फूफी फ़रहीन घर में अकेले थे क्योंके डैड अपने बैंक के हेड ऑफीस कराची गए हुए थे जबके हमारी नौकरानी 3 दिन की छुट्टी पर थी. दरअसल उससे छुट्टी देना भी मेरी ही कारिस्तानी थी क्योंके जो कुछ में करना चाहता था उस के लिये घर का खाली होना बहुत ज़रूरी था. मेरा कोई भाई बहन नही है जिस की वजह से में अक्सर-ओ-बैस्तर घर में तन्हा ही होता था. मेरी अम्मी तब ही इंतिक़ाल कर गई थीं जब में 3 साल का था. डैड ने दूसरी शादी नही की और हम दोनो अकेले ही रहते थे. वो एक गैर-मुल्की बैंक में एक आला ओहदे पर फॅया'इज़ थे और ज़ियादा तार अपने काम में मसरूफ़ रहते थे.

मेरी चारों फुफियों में फूफी फ़रहीन का नंबर दूसरा था यानी वो फूफी नीलोफर से तीन साल छोटी थीं और 40 बरस की थीं . वो लाहोर में रहती थीं और 2/3 महीने के बाद पिंडी हमारे घर कुछ दिन ठहरने के लिये आया करती थीं . दूसरी फुफियों के मुक़ाबले में उनका हमारे हाँ सब से ज़ियादा आना जाना था. अब की बार डैड ने खुद ही उन्हे लाहोर से पिंडी बुलवा लिया था. मेरी बाक़ी फुफियों की तरह फूफी फ़रहीन की तबीयत भी ज़रा गुस्से वाली ही थी और जब उनका दिमाग खराब होता तो मर्दों की तरह बड़ी गलीज़ गालियाँ दिया करती थीं . उनकी गालियाँ सारे खानदान में मशहूर थीं .

अम्मी के ना होने की वजह से फूफी फ़रहीन मुझ से बहुत शफक़त से पेश आया करती थीं लेकिन मेरी नियत उनके बारे में बहुत बचपन से ही खराब थी. मै उनके साथ अपनी इस क़ुरबत का फायदा उठा कर उन्हे चोदना चाहता था. वो खानदान की उन औरतों में से थीं जिन को में बालिग़ होने से भी पहले से पसंद करता था. मुझे उस वक़्त सेक्स का ईलम नही था मगर ये ज़रूर मालूम था के फूफी फ़रहीन को देख कर मेरा लंड खड़ा हो जाया करता था और में उनके मम्मों और चूतड़ों को छुप छुप कर देखा करता था. फिर जब में बालिग़ हुआ तो फूफी फ़रहीन और खानदान की दूसरी औरतों के बारे में अपने जिन्सी जज़्बात का एहसास हुआ.

आज उनको आये हुए पहला दिन था और मेरी शदीद खाहिश थी के किसी तरह फूफी फ़रहीन की फुद्दी मार लूं. उनके आने के बाद मेरा लंड बार बार बिला-वजा खड़ा हो जाता था. मोक़ा भी बेहतरीन था क्योंके अगले 3/4 दिन उन्होने मेरे साथ घर में बिल्कुल अकेले ही होना था. अगर में इस दफ़ा उन्हे चोदने में नाकाम रहता तो शायद ऐसा सुनेहरा मोक़ा मुझे फिर कभी नसीब ना होता.

फूफी फ़रहीन का शुमार खूबसूरत औरतों में किया जा सकता था. उनके 2 बच्चे थे दो दोनो कॉलेज में पढ़ते थे. लेकिन अब भी वो जिस्मानी तौर पर इंतिहा भरपूर औरत थीं . लंबी चौड़ी दूध की तरह सफ़ेद और निहायत ही सहेत्मंद. उनके मम्मे कुछ ज़रूरत से ज़ियादा ही मोटे थे जिन को वो हमेशा बड़े बड़े रंग बरंगी ब्रा में बाँध कर रखती थीं . मैंने कभी भी उनके मम्मे ब्रा के बगैर नही देखे थे यहाँ तक के वो रात को भी ब्रा पहन कर ही सोती थीं . शायद इस वजह से भी फूफी फ़रहीन के मम्मे इतने मोटे और बड़े थे.

उनकी गांड़ भी बहुत मोटी और चौड़ी थी और जब वो चलतीं तो उनके इंतिहा मज़बूत और वज़नी चूतड़ एक दूसरे के साथ रगड़ खाते रहते. वो चाहे जो मर्ज़ी कपड़े पहन लें मगर उनके चूतड़ों का हिलना नही छुपता था. अपने सेहतमंद बदन की वजह से उनकी कमर पतली तो नही थी मगर मोटे मोटे चूतड़ों और काफ़ी ज़ियादा उभरे हुए मम्मों के मुक़ाबले में छोटी नज़र आती थी. सोने पर सुहागा ये के उनका पेट बाहर निकला हुआ नही था और दो बच्चों की पैदा’इश् के बाद भी साइड से नज़र नही आता था. पेट ना होने से उनकी गांड़ और मम्मे और भी नुमायाँ हो गए थे. उनके बाल बहुत लंबे और घने थे जो अब भी उनके मोटे मोटे चूतड़ों से कुछ ऊपर तक आते थे.

रात के खाने के बाद में अपने कमरे में आ गया और फूफी फ़रहीन अपने कमरे में सोने चली गईं. वो इस बात से बे-खबर थीं के मैंने खाने के वक़्त उनके कोक में नींद की गोली पीस कर मिला दी थी ताके वो गहरी नींद सो ज़ाइन. ये मेरे प्लान के लिये बहुत ज़रूरी था. उन्हे कोक कुछ कडुवा भी लगा था लेकिन बाहरहाल वो उससे पी गई थीं . रात तक़रीबन दो बजे में खामोशी से उनके कमरे में दाखिल हुआ. मुझे अंदाज़ा हो गया के वो गहरी नींद सोई हुई हैं. मेरे पास छोटी सी एक टॉर्च थी जो मैंने जला कर फूफी फ़रहीन के बेड पर डाली.

वो करवट लिये सो रही थीं और उनके लंबे बाल तकिये पर बिखरे थे. उनके खुले हुए गिरेबान से उनके मोटे मम्मे और सफ़ेद ब्रा का कुछ हिस्सा दिखाई दे रहा था. लगता था जैसे उनके सेहतमंद मम्मे ब्रा और क़मीज़ फाड़ कर बाहर निकालने ही वाले हैं. मुझ से रहा नही गया और मैंने आहिस्ता से उनके एक मम्मे को क़मीज़ के ऊपर से ही हाथ लगा कर दबाया. ब्रा की वजह से मेरा हाथ उनके मम्मों तक तो नही पुहँच पाया मगर मुझे ये ज़रूर महसूस हुआ के ब्रा के नीचे बहुत मोटे और बड़े बड़े मम्मे मोजूद हैं. मैंने उनकी क़मीज़ के गिरेबान में उंगली डाल कर उससे ज़रा नीचे किया तो देखा के ब्रा के अंदर उनका एक मम्मा दूसरे मम्मे के उपर पडा हुआ था. टॉर्च की सफ़ेद रोशनी में उनके गोरे मम्मों पर नीली नीली रगै साफ़ नज़र आ रही थीं .

फूफी फ़रहीन मेरे सामने कभी दुपट्टा नही लिया करती थीं और इस लिये मैंने कम-आज़-कम क़मीज़ के ऊपर से उनके मम्मे हज़ारों दफ़ा देखे थे. मगर आज पहली दफ़ा मुझे उनके मम्मों का कुछ हिस्सा नंगा नज़र आया था. होश उड़ा देने वाला मंज़र था. मैंने अपने मंसूबे के मुताबिक़ एल्फी की ट्यूब निकाली और बड़ी आहिस्तगी से उनके बांया मम्मे के बिल्कुल नीचे ब्रा के साथ क़मीज़ पर 6/7 कतरे टपका दिये. फिर मैंने इसी तरह उनके लेफ्ट चूतड़ से क़मीज़ का दामन हटाया और उस के ऊपर भी 9/10 कतरे एल्फी डाल दी. एल्फी चीजें जोड़ने के काम आती है और फॉरन ही सख़्त हो जाती है. मै चाहता था के एल्फी खुश्क हो कर फूफी फ़रहीन के बदन से उनकी क़मीज़ और शलवार को चिपका दे और चूँके जिसम के ऊपर से इससे हटाना आसान नही होता इस लिये उनका परेशां होना यक़ीनी था. मै उसी तरह खामोशी से अपने कमरे में वापस आ गया.

में जानता था के फूफी फ़रहीन ज़रा जल्दी घबरा जाने वाली औरत थीं और बहुत मुमकिन था के वो कपड़ों को अपने बदन से चिपका देख कर मुझ से ज़रूर बात करतीं क्योंके और तो घर में कोई था ही नही. वो खुद कभी भी एल्फी को अपने बदन से साफ़ नही कर सकती थीं . ऐसी सूरत में इंकान यही था के मुझे उनके बदन को बहुत क़रीब से देखने और उससे हाथ लगाने का मोक़ा मिल जाता. फिर अगर हालात थोड़े से भी साज़गार होते तो में उनकी फुद्दी मारने की कोशिश भी कर सकता था. यही बातें सोचते सोचते मेरी आँख लग गई.

सुबह 9 बजे के क़रीब मुझे फूफी फ़रहीन की आवाज़ सुनाई दी.
“अमजद देखो ये किया हो गया है?” वो मुझे उठाते हुए कह रही थीं .
पहले तो मुझे नींद की वजह से उनकी बात समझ नही आई लेकिन फिर अचानक अपनी रात वाली हरकत याद आ गई.
“किया हुआ फूफी फ़रहीन?” मैंने अंजान बनते हुए पूछा.
“मेरी क़मीज़ और शलवार जिसम से चिपक गए हैं. मैंने हटाने की कोशिश की तो दर्द होने लगा. ज़ोर से खैंचने पर ज़ख़्मी ही ना हो जाओ’ओं. ज़रा देखो ये किया है?” उन्होने ज़रा परैशानी से कहा.

में फॉरन उतर कर उनके क़रीब आ गया और जहाँ एल्फी लगी थी वहाँ नज़रें जमा दीं. फूफी फ़रहीन के बांया मम्मे के नीचे एल्फी ने खुसक हो कर 3/4 इंच का दाग सा बना दिया था और उनकी क़मीज़ उनके बदन के साथ बड़ी सख्ती से चिपकी हुई थी. इसी वजह से उनकी क़मीज़ एक तरफ से थोड़ी सी ऊपर भी उठी हुई थी. उनके ब्रा का निचला हिस्सा भी उनके बदन के साथ चिपक गया था. मैंने एल्फी वाली जगह पर उंगली फेरी तो वो बहुत खुरड्र और सख़्त महसूस हुई. मैंने पीछे आ कर उनके चूतड़ों को देखा तो वहाँ इस से भी बड़ी जगह पर एल्फी खुसक हो चुकी थी और उनकी शलवार उनके मोटे चूतड़ के साथ चिपक कर टखने से कुछ ऊपर उठ गई थी.

“फूफी फ़रहीन आप के जिसम के साथ कोई छिपकने वाली चीज़ लग गई है. बहुत सख़्त है खैंचने से खून निकल सकता है. लेकिन आप फ़िकरमंद ना हूँ सोचते हैं के किया करें.” मैंने उनके मोटे और उभरे हुए मम्मों की तरफ देखते हुए कहा.
“लेकिन ये है किया और अब कैसे हटे गी?” उन्होने पूछा. फूफी फ़रहीन परेशां थीं और उनकी समझ में नही आ रहा था के किया करें.
“आप यहाँ बैठाइं में इस पर पानी लगा कर देखता हूँ शायद उतार जाए.” मैंने तजवीज़ दी.
“हन ये ठीक है तुम रूको में पानी ले कर आती हूँ.” उन्होने जवाब दिया.

फिर वो घूम कर पानी लेने शायद डिन्निंग रूम की तरफ चली गईं. मैंने उनके हिलते हुए चौड़े चूतड़ देखे और मेरे मुँह में पानी भर आया. उनके चूतरों में चलते वक़्त अजीब सी लरज़िश आ जाती थी. मै सोचने लगा के फूफी फ़रहीन के मोटे चूतड़ कितने सफ़ेद और मजेदार हूँ गे और अगर उनकी गांड़ मारी जाए तो किस क़िसम का पागल कर देने वाला मज़ा आये गा. मुझे ख़याल आया के उनके शौहर फ़ूपा सलीम जो बहुत दुबले पतले से आदमी थे भला इतनी हटती कटती और सेहतमंद औरत को कैसे चोदते हूँ गे. फूफी फ़रहीन तो तब ही ठंडी हो सकती थीं जब कोई मज़बूत और जवान लंड उनकी मोटी चूत का भुर्कस निकालता.

वो थोड़ी देर बाद एक जग में पानी ले आईं और टेबल पर रख दिया.
“फूफी फ़रहीन हमें एहतियात करनी चाहिये अगर कुछ गलत हो गया तो आप ज़ख़्मी हो सकती हैं और फिर जिसम पर दाग भी हमेशा के लिये रह जाए गा.” मैंने कहा. मुझे मालूम था के अपने आप से फूफी फ़रहीन को कितनी मुहाबत थी और अपने गोरे बदन पर दाग तो उन्हे किसी सूरत में भी क़बूल नही था. उन्हे डराना ज़रूरी था ताके में जो कुछ करना चाहता था कर सकूँ और वो मुझे ना रोकैयन
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फूफी फ़रहीन -2

उन्हे डराना ज़रूरी था ताके में जो कुछ करना चाहता था कर सकूँ और वो मुझे ना रोकैयन.

“पता नही ये है किया बला और कहाँ से मुझे चिमत गई है?” वो घबर्राहट में अपने माथे पर हाथ मार कर बोलीं. जिसम पर दाघों वाली बात ने उन्हे और भी परेशां कर दिया था.
“मैरा ख़याल है के ये किसी कीर्रे ने किया है. आप उस जगह हाथ ना लगा’यान कहीं हाथ पर भी ना लग जाए.” मैंने कहा.
“मैंने तो आज तक ऐसा कोई कीररा नही देखा. कीरे बदन पर फिर जांयें तो खारिश ज़रूर होती है लेकिन मुझे तो कोई खारिश नही हो रही.” उन्होने कहा और फॉरन अपने हाथ पीछे कर लिये.

अब मुझे अपना काम शुरू करना था. मैंने दिल बड़ा कर के कहा:
“फूफी फ़रहीन मुझे इस चीज़ को ख़तम करने के लिये आप की क़मीज़ के अंदर हाथ डालना पड़े गा.”
“तुम मेरे बच्चों की तरह हो तुम से मुझे कोई शरम नही. बस किसी तरह इस मुसीबत से मेरी जान छुड़ाव” उन्होने जल्दी से कहा. उस वक़्त उनकी जेहनी हालत ऐसी नही थी के वो शरम के बारे में सोकछतीं.

मैंने फ़रश पर बैठ कर फूफी फ़रहीन की क़मीज़ ऊपर उठाई और अपना हाथ अंदर कर के उनके पेट की तरफ ले गया. क़मीज़ टाइट थी इस लिये मेरा हाथ उनके नरम गरम पेट पर लगा. मैंने उनके पेट की गर्मी महसूस की और मेरा लंड अकड़ने लगा. उनके मम्मे मोटे होने की वजह से इतने बाहर निकले हुए थे के नीचे से मुझे उनका चेहरा नज़र नही आ रहा था क्योंके मम्मे सामने थे. मैंने ख़यालों ही ख़यालों में उनकी फुद्दी के अंदर अपना लंड घुसते हुए देखा और कोशिश की के उनकी क़मीज़ बदन से अलग हो जाए लेकिन ज़ाहिर है ऐसा नही हुआ. फिर में उनके चूतड़ों की तरफ आ गया और उस जगह पर उंगली फेरी जहाँ एल्फी लगी थी.

“फूफी फ़रहीन आप के कपड़े सख्ती से जिसम के साथ चिपके हुए हैं क़ैंची से काट कर ही अलग करना पड़े गा फिर शायद कोई हाल निकले.” मैंने मायूसी का इज़हार करते हुए कहा.
“ठीक है यही कर लो.” उन्होने बे-सबरी का इज़हार किया.

में भाग कर दूसरे कमरे से क़ैंची लाया और फूफी फ़रहीन की क़मीज़ के दामन को एहतियात से काट कर सीधा उनके मम्मों की तरफ ले गया. फिर मैंने जल्दी से उनकी क़मीज़ मुख्तलीफ़ जगहों से काट कर उनके जिसम से पूरी तरह अलग कर दी और उस का सिरफ़ एक छोटा सा तुकर्रा ही उनके मम्मों के नीचे चिपका रह गया. अब उनके ब्रा के अंदर क़ैद मम्मे मुझे नज़र आने लगे. फूफी फ़रहीन के मम्मे बे-इंतिहा मोटे थे और इतने बड़े साइज़ का ब्रा भी उन्हे पूरी तरह छुपाने में नाकाम था. कमरे में लगी हुई तीन ट्यूब लाइट्स की रोशनी में उनके गोरे मम्मे जैसे चमक रहे थे. दोनो मम्मों की गोलाइयाँ बिल्कुल एक जैसी लगती थीं और वो जैसे ब्रा से उबले पड़ रहे थे.

मैंने फूफी फ़रहीन की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर कोई ऐसा ता’असुर नही था के मेरे सामने अपनी क़मीज़ उतारने से उन्हे कोई परैशानी हो रही थी. और होती भी क्यों में उनका सागा भतीजा था और वो ये सोच भी नही सकती थीं के में अपनी फूफी की फुद्दी लेना चाहता था. इस से पहले मैंने उनके साथ ऐसी कोई हरकत की भी नही थी जिस से उन्हे मुझ पर शक़ होता.

फूफी फ़रहीन के ब्रा का निचला हिस्सा भी एल्फी के साथ जिसम से चिपका हुआ था. मैंने हिम्मत कर के उनके भारी भर्कूं बांया मम्मे को हाथ में पकड़ा और हल्का सा खैंचा. जहाँ एल्फी लगी हुई थी में वो जगह देखता रहा और उनका मम्मा मुसलसल मेरे हाथ में ही रहा जिस को मैंने थोड़ा दबा कर पकडे रखा. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उनका मम्मा अभी ब्रा से बाहर आ जाए गा.

फूफी फ़रहीन के मम्मे ना सिर्फ़ बहुत बड़े थे बल्के अच्छे झासे सख़्त भी थे. फ़ूपा सलीम को शायद वो अपने मम्मों को चूसने नही देती थीं क्योंके जहाँ तक उनके मम्मे मुझे ब्रा में से नंगे नज़र आ रहे थे बिल्कुल बे-दाग थे.

"फूफी फ़रहीन मुझे आप का ब्रा भी काटना पड़े गा क्योंके ये भी क़मीज़ की तरह जिसम से अलग नही हो रहा.” मैंने फूफी फ़रहीन का मोटा मम्मा हाथ में पकडे पकडे कहा.

“हन तुम रूको में इस का हुक खोलती हूँ फिर एहतियात से काटना ताके क़ैंची की नोकैयन मुझे ज़ख़्मी ना करें.” मैंने फॉरन उनका मम्मा छोड़ दिया. उन्होने हाथ पीछे कर के अपने ब्रा का हुक खोल कर उससे उतार दिया जो ढीला हो कर उनके हाथों में आ गया. उनके मम्मों पर से ब्रा का दबाव हटा तो वो काफ़ी हद तक नंगे हो गए लेकिन अभी तक मुझे उनके निप्पल नज़र नही आ रहे थे. मैंने फूफी फ़रहीन के बांया मम्मे को दोबारा हाथ में पकड़ा और उस के ऊपर से ब्रा को काट दिया. उनके एक मोटे ताज़े मम्मे को अपने हाथ में महसूस कर के मेरे जिसम में आग सी लग गई और मेरा लंड तन कर लोहा बन गया.

फूफी फ़रहीन के रवये की वजह से मेरा दिल बढ़ गया था. ब्रा के काटने के बाद मैंने फॉरन उनके दांयें मम्मे के ऊपर से उससे हटाया और उस मम्मे को भी नंगा कर दिया. अब मैंने उनके सेहतमंद नंगे मम्मों पर नज़र डाली तो मेरे होश अर गए. इस में कोई शक नही के उनके मम्मे मेरे तसववर से भी ज़ियादा ज़बरदस्त थे. उनके मम्मों के निप्पल मोटे और लंबे थे और निप्पल के आस पास का हल्का ब्राउन हिस्सा बहुत बड़ा था. मम्मे इतने बड़े और वज़नी होने के बावजूद लटके हुए नही थे बल्के तने तने लगते थे.

में जानता था के खुश्क एल्फी को माल्टे के छिलके की तरह जिसम से बड़ी आसानी से उतारा जा सकता है. मैंने आहिस्ता से फूफी फ़रहीन के मम्मे के नीचे लगी हुई खुश्क एल्फी उतार ली.
“ये है किया?” उन्होने पूछा.
“पता नही फूफी फ़रहीन लेकिन बहरहाल उतार तो गया है.” मैंने जवाब दिया. मै उन्हे किया बताता के उनके बदन से चिपकी हुई चीज़ किया थी.
“अमजद मेरा सीना तो छोड़ो किया पकडे ही रहो गे.” फूफी फ़रहीन ने अचानक कहा लेकिन उनके लहजे में सख्ती या नागावारी नही थी. मै इस दोरान ये भूल गया था के फूफी फ़रहीन का एक मम्मा अभी तक मेरे हाथ में है.
मैंने उन का मम्मा फॉरन छोड़ दिया.
उन्होने एक हाथ अपने मम्मों पर रखा और दूसरे हाथ की उंगली बांया मम्मे के नीचे फेरी.
“हन लगता है ये चीज़ बदन से उतार गई है और कोई निशान भी नही चौड़ा क्योंके खुर्द्रा-पन ख़तम हो गया है.” उन्होने इतमीनान का साँस लेते हुए कहा.
“चलें अब पीछे भी ऐसा ही करते हैं.” मैंने कहा. “किया शलवार उतारों?” उन्होने पूछा.
“हन फूफी फ़रहीन तब ही तो में उससे काट सकूँ गा.” मैंने जवाब दिया. उन्होने अपनी शलवार का नाड़ा खोल दिया और उनकी शलवार नीचे गिरी लेकिन एक साइड से चूतड़ों के साथ चिपकी रही. मैंने पीछे जा कर उससे काट कर उनके बदन से अलग कर दिया.

फूफी फ़रहीन के गोल चूतड़ बड़े मोटे और चौड़े थे. मैंने पहले ही की तरह फूफी फ़रहीन के बांया चूतड़ के ऊपर का हिस्सा एल्फी से साफ़ कर दिया. मेरा हाथ उनके चूतड़ के साथ मुसलसल लगता रहा. उनके सफ़ेद उभरे हुए चूतड़ पर जहाँ एल्फी लगी थी हल्के लाल रंग का निशान पड़ गया था. मैंने कोशिश की मगर उनकी गांड़ का सुराख मोटे मोटे तवाना चूतड़ों के अंदर था इस लिये मुझे नज़र नही आ सका.

फूफी फ़रहीन की मोटी ताज़ी गांड़ मारने की खाहिश पता नही कब से मेरे दिल में थी और आज वो अपने नंगे चूतड़ों के साथ मेरे सामने खड़ी थीं . मेरा दिल कर रहा था के में उनके मोटे और भारी चूतड़ों पर हाथ फायरून और उन्हे दबाऊं मगर मैंने खुद पर क़ाबू रखा. फिर में उनके आगे आ गया और उनकी नंगी चूत की तरफ देखा. उनकी चूत कसी हुई थी और उस पर छोटे छोटे सियाह बाल थे. फूफी फ़रहीन का रंग बहुत गोरा था और चूत और नाफ़ के दरमियाँ के हिस्से की सफआयदी सियाह बालों के अंदर से भी झलक रही थी. वो नंगी खड़ी थीं और मुझे अपने सामने देख कर थोड़ा सा सटपटा गईं.
“अमजद बेटा अब जा कर मेरे कमरे से कपड़े ले आओ में नंगी खड़ी हूँ.” उन्होने अपनी चूत और मम्मों के सामने अपनी कटी हुई शलवार का परदा करते हुए कहा.

मैंने सोचा के अब मज़ीद देर करना गलत होगा. मै अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था के अगर में उन पर हाथ डालता तो फूफी फ़रहीन किया कर सकती थीं . मुझे यक़ीन था के वो अपने साथ होने वाली किसी हरकत के बारे में किसी को ना बता सकतीं. शायद हर औरत यही करती. फ़ूपा सलीम को तो वो वैसे भी किसी क़ाबिल नही समझती थीं इस लिये मुझे उनका खौफ तो बिल्कुल भी नही था.

“फूफी फ़रहीन आप का बदन बहुत शानदार है.” मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा और उनके क़रीब जा कर उनके कंधों पर अपने दोनो हाथ रख दिये. वो हैरान रह गईं मगर एक लम्हे के हजारवें हिस्से में जान गईं के में किया चाहता हूँ.
“अमजद तुम पागल तो नही हो गए. किया करना चाहते हो?” उन्होने ज़रा तेज़ आवाज़ में कहा और थोड़ा सा पीछे हट कर अपनी शलवार और ज़ियादा अपने बदन के सामने कर ली.

मैंने अपना एक हाथ नीचे कर के उनकी शलवार हटाई और दूसरा हाथ उनकी हरी भरी फुद्दी के ऊपर रख दिया. वो मेरे हाथ पर हाथ रखते हुए कुछ और पीछे हटीं मगर मैंने उनकी शलवार उन से छ्चीन कर फैंक दी और उन्हे गले से लगा कर उनके मुँह के बोसे लेने लगा. मैंने उनके वज़नी मम्मे पकड़ लिये और उन्हे आते की तरह गूंधने लगा. फूफी फ़रहीन दोहरी हो गईं और उनके मुँह से गुस्से में तेज़ घुरहट सी निकली. वो अपने आप को चुर्रने की कोशिश कर रही थीं . लेकिन मैंने उनका एक मम्मा मज़बूती से पकड़ लिया और अपना हाथ उनकी गर्दन में डाल कर उनके चेहरे को ऊपर कर के चटाख चटाख चूमने लगा.

फूफी फ़रहीन बेड के क़रीब खड़ी थीं और जब मुझ से बचने के लिये पीछे की तरफ गईं तो बेड से लग कर अपना तवाज़ून बार-क़रार ना रख सकीं और बेड पर बैठ गईं. उनकी मज़बूत पिंदलियान मेरे सामने थीं . मैंने झुक कर घुटनो के नीचे से उनकी टांगें उठा दीं और उनकी मोटी चूत में मुहन दे कर उससे चाटने की कोशिश करने लगा. वो बेड पर कमर के बल गिरीं लेकिन अपनी मज़बूत टाँगों से मुझे बड़ी बे-दरदी से पीछे ढकैलती रहीं. मेरा मुँह उनकी फुद्दी के बिल्कुल ऊपर था और वो मुझे खुद से दूर हटाने की कोशिश कर रही थीं .
“कुत्ते के बचे, मादरचोद, हरामी ये किया कर रहे हो किया तुम अपनी माँ को भी चोदते.” वो मुझे गालियाँ देने लगीं.
“फूफी फ़रहीन अगर मेरी माँ आप जैसी शानदार औरत होती तो उससे भी ज़रूर चोदता.” मैंने दोनो हाथों से उनकी टाँगें पकड़ कर ज़बरदस्ती खोलीं और उनकी फुद्दी पर मुँह रख दिया.
“कमीने अपनी फूफी को भी कोई चोदता है किया? तुम्हारी माँ की चूत.” वो गुस्से में चीखीं. घर खाली था इस मुझे उनकी तेज़ आवाज़ का कोई खौफ नही था.
में खामोशी से उनकी चूत चाटने में मसरूफ़ रहा.

उन्होने मुँह से तेज़ आवाजें निकालते हुए कई दफ़ा मुझे अपनी चूत के ऊपर से हटाने की कोशिश की मगर में उनकी मोटी रानों को पकड़ के उनकी चूत के ऊपर तेज़ी से ज़बान फेरता रहा. उन्होने अपनी दोनो टांगें बंद करनी चाहीं मगर उनके बीच में मेरा सर था. मै उनकी चूत का ज़ा’ऐइक़ा चख कर बयखुद हो गया था और पागलों की तरह उनकी चूत को ऊपर नीचे और साइड्स से चाट रहा था.

फूफी फ़रहीन ने कुछ देर में ही पानी चॉर्रणा शुरू कर दिया था और वो कमज़ोर पड़ती जा रही थीं . उनकी ज़ोर-आज़माई कम हुई तो में उनके ऊपर चढ़ गया और उनके बड़े बड़े मम्मों को दोनो हाथों में ले कर चूसने लगा. उन्होने मेरी कमर पर दो तीन मुक्के मारे मगर फिर गोया हार मान ली और मुझे रोकने की कोशिश तारक कर दी. वो अब मुझ से आँखें नही मिला रही थीं . मैंने बेड पर ही झट पाट अपने कपड़े उतारे और दोबारा अपनी अलिफ नंगी फूफी के ऊपर सवार हो गया. मेरा खड़ा हुआ लंड उनकी चूत के ऊपर आ गया और मैंने बड़ी बे-रहमी से उनके मम्मों के निप्पल चूसने शुरू कर दिये. उनके बदन को झटके से लग रहे था और साफ़ पता चल रहा था के मम्मे चुसवाना उन्हे बहुत ज़ियादा लुत्फ़ दे रहा है. मैंने उनका एक मम्मा मुँह में ले कर अपना लंड उनकी पानी से भरी हुई चूत के ऊपर रगड़ा. फूफी फ़रहीन के बदन ने एक झटका खाया और उन्होने कहा:
”कुत्ते के बच्चे, तुम्हारी माँ में लूआर्रा जाए क्यों मुझे पागल कर रहे हो मैंने तो कई सालों से चूत नही दी. उउउफफफफफ्फ़….तुम्हारी माँ पे कुत्ते छर्र्हैं, तुम्हारी माँ में खोते का लूँ डालूं.” उन्होने हमेशा मुझ से बड़े प्यार से बात की थी और कभी दांता तक नही था मगर इस वक़्त वो मुझे बड़ी गंदी गालियाँ दे रही थीं .

मुझे उसी लम्हे ये एहसास हुआ के गालियाँ उन्हे और भी गरम कर रही थीं और इसी लिये वो गालियाँ दे भी रही थीं . बाज़ औरतों को चूत मरवाते हुए गालियाँ दें तो उन्हे बहुत अच्छा लगता है और वो मज़ीद गरम होती हैं. फूफी फ़रहीन की तो वैसे भी गालियाँ देने की आदत थी. वो भी शायद ऐसी ही औरत थीं जिन्हे गालियाँ और गंदी बातें गरम करती हैं क्योंके उस वक़्त उनकी गालियों में मुझे नफ़रत और गुस्से का अंसार शामिल नही लग रहा था. मैंने सोचा के मुझे भी उन्हे गालियाँ देनी चाहिया’आन.

मैंने उनके मम्मे के निप्पल के इर्द गिर्द ब्राउन हिस्से को चाटा और फिर उनके होंठ चूम कर कहा:
”फूफी फ़रहीन आप का मोटा फुदा मारूं. आप का फुदा छोड़ों. आज मुझे अपनी फुदा दे कर आप खुश हो जांयें गी. आप की गांड़ में लंड दूँ. आप के मोटे और ताक़तवर फुद्दे को चोदना फ़ूपा सलीम के बस की बात नही है. आप जैसी मोटी ताज़ी गश्ती को जिस का इतना मोटा फुदा हो एक जवान लंड चाहिये.”
मुझे हैरत हुई के फूफी फ़रहीन को गालियाँ देने से मेरे जज़्बात भी बारँगाखहता हो रहे थे.

मैरा अंदाज़ा सही निकला. मेरे मुँह से ऐसी बातें सुन कर फूफी फ़रहीन बे-क़ाबू हो गईं. “तुम बहुत ही खनज़ीर के बच्चे हो, कंज़र, तुम्हारी माँ में खोते का लूँ डून” कह कर पहली बार उन्होने अपना मुँह मेरे मुँह में दे दिया. मैंने थोड़ी देर उनकी ज़बान अपने मुँह में रख कर चूसी और फिर उठ कर इस तरह उनके ऊपर लेट गया के मेरा लंड उनके मुँह की तरफ था और मुँह उनकी चूत की तरफ.

अब मैंने उनकी चूत को दोबारा चाटना शुरू कर दिया. वो मचलने लगीं और उनके मुँह से ऊँची ऊँची आवाजें निकालने लगीं. मेरा लंड बिल्कुल उनके मुँह के पास उनके गालों से टकरा रहा था. “फ़रहीन कंजड़ी, तेरा भोसड़ा मारूं, तारे फुद्दे में लंड डून, चल मेरा लंड चूस. कुतिया तेरी चूत के बड़े खाब देखे हैं में ने, तेरी बहन की मोटी चूत लूं. आज कुतिया की तरह अपने भतीजे से चूत मरवा ले और मज़े कर.” मैंने उन्हे मज़ीद गंदी गालियाँ दीं तो उनके शोक़् की आग और ज़ियादा भर्रक आती. “तुम्हारी माँ की चूत में लूँ मारूं, किसी रंडी की औलाद, गश्ती के बच्चे.” उन्होने भी जवाबन मुझे गालियाँ दीं. मै उनकी चूत चाटने के दोरान उनके मुँह के साथ अपने लंड को लगाता रहा. फिर कुछ कहे बगैर ही उन्होने मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और उससे तेज़ तेज़ चूसने लगीं. मेरे टट्टे उनकी नाक और गालों पर लग रहे थे और लंड मुँह के अंदर था. उनका थूक मुझे अपने लंड पर महसूस हो रहा था.

कुछ देर फूफी फ़रहीन की चूत चाटने और उन से अपना लंड चुसवाने के बाद में सीधा हो कर उनके ऊपर लेट गया और उनकी टांगें खोल कर अपना लंड उनकी मोटी ताज़ी चूत के अंदर डाल दिया.

फूफी फ़रहीन की चूत अब भी ज़ियादा नही खुली थी और मुझे महसूस हुआ जैसे मेरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अंदर जा रहा हो. उन्होने ज़ोर की आवाज़ निकाली. "उफ़फ्फ़……. अमजद हरामी की नेज़ल मत छोड़ो मुझे में तुम्हारा लौड़ा बर्दाश्त नही कर सकती. किसी कुतिया रंडी के बच्चे, ऊऊओ एयाया में छ्छूटने वाली हूँ.” मुहजहे कुछ हैरानी हुई के वो इतनी जल्दी खलास हो रही थीं . शायद उन्होने बहुत अरसे बाद अपनी चूत में लंड लिया था और इस लिये उनकी क़ुवत-ए-बर्दाश्त काफ़ी कम हो गई थी. वो मेरे घस्सों की वजह से बेड पर आगे पीछे हिल रही थीं . वो ज़ियादा देर तक अपनी चूत के अंदर मेरे लंड को संभाल ना सकीं और आठ डूस ज़बरदस्त घस्सों के बाद ही खलास हो गईं. “हन, हाँ अमजद इधर ही झटके मारो….इधर ही…….इधर ही, इधर ही अपना लौड़ा रखो.” वो भारी आवाज़ में कहे जा रही थीं . मै उनकी फुद्दी में घस्से मारता रहा और वो लेतीं अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे हिलाती रहीं.

तक़रीबन तीन चार मिनिट के बाद वो एक दफ़ा फिर खलास होने के क़रीब हो गईं और उनकी चूत ने पहले से भी ज़ियादा पानी छोड़ दिया. लेकिन में ये नही जान पाया के वो पूरी तरह खलास हुई हैं या नही. भरहाल मैंने अपना हाथ उनके चूतड़ों के नीचे किया और उनकी गांड़ के सुराख पर उंगली फेरने लगा. इस पर वो जैसे बिफर सी गईं और खुल खुला कर अपनी चूत मरवाने लगीं. अब वो ये भूल चुकी थीं के वो मेरी सग़ी फूफी हैं. भतीजे के जवान लंड ने फूफी की चूत को अच्छा मज़ा दिया था. मेरा लंड अब जड़ तक फूफी फ़रहीन की फुद्दी में जा रहा था. उनके मम्मे मेरी मुठियों में थे और में उन्हे कस कस कर भींच रहा था. वो अपनी मोटी भारी भरकम गांड़ उठा उठा कर मेरे घस्सों का पूरा पूरा मुक़ाबला करती रहीं और मेरे लंड को एक दफ़ा फिर पूरी तरह से अपनी चूत में लेने लगीं.

फिर में उनके ऊपर से हट गया और उन्हे अपने लंड पर बैठने को कहा. वो अपने क़ावी और जानदार जिसम को मेरे ऊपर ले आईं और मेरा लंड हाथ में पकड़ कर अपनी फुद्दी के अंदर डाल लिया. मैंने उनके मम्मों से खेलता रहा और उनका भरपूर बदन मेरे लंड पर ऊपर नीचे होता रहा. मेरी सग़ी फूफी मेरे लंड पर बैठ कर चूत मरवा रही थीं और में खुशी और हैरत के मिले जुले एहसास के साथ उनके गोरे बदन को देख रहा था. मुझे यक़ीन नही था के में कभी फूफी फ़रहीन को चोद सकूँ गा मगर खुश-क़िस्मती से वो दिन आ ही गया था. अचानक उनकी फुद्दी मेरे लंड के गिर्द कस गई और वो मेरे मुँह पर झुक गईं. उनके लंबे बाल मेरे कंधों को गुदगुदाने लगे. मैंने उनके होठों पर प्यार किया तो उन्होने तेज़ सिसकी ली और फिर तेज़ी से खलास होने लगीं.
फूफी फ़रहीन के मोटे मोटे चूतड़ों पर से में अपनी आँखें हटा नही पा रहा था. ना-जाने मेरे दिल में किया आया के में उनके भारी चूतड़ों पर अच्छा ख़ासा ज़ोरदार ठप्पर दे मारा. कमरे में धाप की तेज़ आवाज़ गूँजी और फूफी फ़रहीन ने भी आईं उसी वक़्त एक तेज़ चीख मारी. उनके दोनो सफ़ेद सफ़ेद चूतड़ों के दरमियाँ मेरे हाथ की उंगलियों का लाल निशान पड़ गया. कुछ देर उनके चूतड़ों को मसलने के बाद मैंने उन्हे चारों हाथों पैरों पर कुतिया बना कर पीछे से उनकी मोटी चूत में अपना लंड डाल दिया. “ज़लील के बच्चे, कंज़र तू ने मुझे वाक़ई कुतिया बना दिया है. उूउउफफफ्फ़….. कुत्ते, बहनचोद, रंडी के बच्चे मार दिया मुझे हरामी. तेरा लंड बहुत मोटा है, बहुत मोटा है तेरा लंड.” लज़्ज़त के उन लम्हो में फूफी फ़रहीन के मुँह से बे-तकान गालियाँ निकल रही थीं . रिश्ते नाते, इज़्ज़त एहतीराम, प्यार मुहब्बत सब ख़तम हो चुके थे. सिरफ़ लंड और चूत का खेल रह गया था. मुझे भी मज़ा आ रहा था क्योंके मेरे लिये भी ये एक बिल्कुल नया तजर्बा था. मै उनकी चूत मारता रहा.

उनकी गांड़ का गांड का सुराख मेरे सामने था जिस पर में उंगली फेरता जा रहा था. हर घस्से के साथ जुब मेरा लंड उनकी चूत के अंदर जाता तो उनके दूध की तरह गोरे और मोटे चूतड़ मेरी रानों से टकराते. कुछ ही देर में में फूफी फ़रहीन की चूत के अंदर खलास हो गया और मेरे लंड से मनी की पिचकारियाँ निकल कर उनकी गरम फुद्दी के अंदर चली गईं. वो बेड पर तक कर धायर हो गईं. यों अपनी खूबसूरत फूफी को चोदने का मेरा बरसों का अरमान पूरा हो गया.


फूफी फ़रहीन की चूत मार लेने के बाद अब एक और बड़ा अहम मरहला दरपाश था और वो था उनकी गांड़ लाना. उन्होने अगले दो दिन हमारे घर ही रहना था और मुझे इसी दोरान उनकी गांड़ मारनी थी जो बा-ज़ाहिर इतना आसान काम नही था. इस वक़्त भी हालात कुछ ऐसे अच्छे नही थे. अगर अपनी सग़ी फूफी को चोद लिया जाए तो टेंशन का होना बिल्कुल क़ुदरती अमर है. फूफी फ़रहीन एहसास-ई-जुर्म का शिकार थीं और अपने भतीजे से चूत मरवाने पर उन्हे बड़ी सख़्त नादामात महसूस हो रही थी. इस का साबोट ये था के कल वाले वाक़ई’आय के बाद उन्होने ना मेरा सामना किया था और ना ही मुझ से कोई बात की थी. मुझे उन्हे इस जेहनी पेरैशानि और एहसास-ए-जुर्म से निजात दिलानी थी ताके बात आगे चल सके और में उनकी गांड़ मार सकूँ.
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06-30-2017, 11:26 AM,
#3
RE: Sex Hindi Kahani फूफी फ़रहीन
फूफी फ़रहीन -3

दूसरे दिन बहुत सोच बिचार के बाद में उनके कमरे में गया ताके उन से बात कर सकूँ और हालात बेहतर हो सकैं. जब में उनके कमरे में दाखिल हुआ तो वो बेड कवर ठीक कर रही थीं और बड़ी सजी सज्जई, बनी सवरी लग रही थीं . उनके रवये को देखते हुए ये बात मुझे कुछ अजीब और मंताक़ के खिलाफ लगी. उन्होने काले रंग की शलवार क़मीज़ पहनी हुई थी जिस में से उनका गुलाबी या लाल रंग का ब्रा झलक रहा था. उनके मोटे और सेहतमंद मम्मे देख कर जिनको मैंने एक दिन पहले ही खूब चूसा और चाटा था मेरे लंड में सनसनी सी होने लगी. उनके दूध की तरह गोरे बदन पर काले कपड़े बहुत सज रहे थे. मैंने दिल ही दिल में ये फ़ैसला किया के फूफी फ़रहीन की चूत और गांड़ आज फिर ज़रूर मारूं गा.

"फूफी फ़रहीन आप क्यों परेशां हैं?" मैंने बात शुरू की.

"अमजद तुम ने जो हरकत मेरे साथ की किया वो परेशां करने वाली नही? में तो हैरान हूँ के तुम मेरे बारे में ऐसा सोचते थे और में बे-वक़ूफ़ हमेशा से बे-खबर थी. किया अपने बाप की बहन के साथ ज़ीना करना मुनासिब है?" उन्होने बेड पर बैठते हुए थोड़े से गुस्से से कहा.
"फूफी फ़रहीन में मानता हूँ के मुझ से बहुत बड़ा गुनाह सर्ज़ाद हुआ है. लेकिन में किया करूँ मुझे वोही औरत अच्छी लगती है जो सेहतमंद हो और कम-उमर ना हो. आप में वो सब कुछ है जो में किसी औरत में देखना चाहता हूँ. खूबसूरत चेहरा, सेहतमंद बदन और फिर सब से बड़ी बात ये के आप मेरी सग़ी फूफी हैं यानी मेरी अपनी हैं. मै तो आप को पसंद करने पर मजबूर था." मैंने अपनी सफाई पेश करते हुए उनकी तारीफ भी की.
"किया दुनिया भर के भतीजे अपनी फ़ुपिओं को चोदते फिरते हैं? किया यही ज़माने का दस्तूर है? बाक़ी सारी औरतें मर गई हैं किया?" उन्होने उसी तरह बहेस जारी रखी.
"फूफी फ़रहीन मुझे जो मज़ा अपनी सग़ी फूफी को चोदने में आया है वो किसी बाहर की औरत के साथ नही आता. ये मेरी कमज़ोरी है. मै बहुत बचपन से ही इन्सेस्ट का शोक़ीं हूँ." मैंने उन्हे बताया.
"लेकिन मुझे अपने आप से जो नफ़रत महसूस हो रही है उस का किया करूँ?" वो नाक सिकोड़ कर बोलीं.
मैंने सोचा के अगर फूफी फ़रहीन को खुद से इतनी ही नफ़रत महसूस हो रही है तो मेकप क्यों कर रखा है और इतनी बनी सवरी क्यों हैं. वो अगर चाहतीं तो नाराज़गी के इज़हार के तौर पर सुबा ही अपने घर लाहोर वापस चली जातीं. लेकिन उन्होने ऐसा नही किया. ये सब बातें इस हक़ीक़त का सबूत थीं के जो उनकी ज़बान पर था वो दिल में नही था.

"किया आप एक भरपूर औरत नही हैं फूफी फ़रहीन? किया आप को एक मज़बूत और ताक़तवर लंड की ज़रूरत नही? मुझे ईलम है के फ़ूपा सलीम आप जैसी खुऊबसूरत और तंदरुस्त औरत की जिस्मानी ज़रूरियात पूरी नही कर सकते. बाहर किसी से चुदवाने से ये बेहतर नही है के आप मुझे अपनी चूत दे दें ताके किसी को उंगली उठाने का मोक़ा ना मिल सके. और फिर ये भी सच बताएं के किया आप को मुझ से चुदवा कर मज़ा नही आया?" मैंने बिल्कुल खुले अल्फ़ाज़ में दलील पेश की.
"अपनी ज़िंदगी से खुश ना होते हुए भी मैंने कभी किसी मर्द से ता’अलुक़ात कायम करने का नही सोचा. और तुम्हे तो कोई हक़ है ही नही के तुम मेरी खराब ज़िंदगी का फायदा उठा कर मुझे चोदना शुरू कर दो. तुम मेरे भतीजे हो तुम्हे तो ऐसी बातें सोचानीं भी नही चाहिए." वो बोलीं.

उनकी बात बिल्कुल सही थी लेकिन मुझे कोई जवाब तो देना ही था. "आप किया समझती हैं के आप दुनिया की वाहिद औरत हैं जिस ने इन्सेस्ट की है. फूफी फ़रहीन इस सोसाइटी में छुप छुपा कर हर तरफ यही हो रहा है. हम इस से परदा पोशी करें तो और बात है मगर ऐसा करने से हक़ीक़त बदल तो नही जाए गी और ना ही इन्सेस्ट ख़तम हो जाए गी. बाहर के कई मुल्कों में बालिग़ मर्द और औरत की इन्सेस्ट जुर्म नही है." मैंने कहा.
"मगर बेटा….." मुझे बेटा कहते हुए उनके चेहरे का रंग एक लम्हे को बदल गया क्योंके मेरा लंड लेने के बाद अब उनके ख़याल में मेरा और उनका रिश्ता पहले वाला नही रहा था. और किसी हद तक ये था भी सही. जब मर्द और औरत सेक्स कर लें तो उनके दरमियाँ ता’अलुक़ात की नौेयात किसी ना किसी हद तक तब्दील ज़रूर होती है. तमाम पर्दे उठ जाते हैं और तमाम भरम खुल जाते हैं. मेरे और फूफी फ़रहीन के साथ भी ऐसा ही हुआ था. अब वो सिरफ़ मेरी फूफी नही रही थीं बल्के महबूबा भी बन गई थीं .

"फूफी फ़रहीन अप फज़ूल परेशां हो रही हैं. आप अब भी मेरी फूफी हैं और हमेशा रहें गी. इसी तरह में भी आप का भतीजा ही रहूं गा. अगर मैंने आप की चूत मारी है तो उस से हमारे रिश्ते पर किसी क़िसम का कोई असर नही पड़ा. और फिर वैसे भी जब एक मर्द एक औरत की चूत लेता है तो दोनो में मुहब्बत बढ़ती है कम नही होती." मैंने उन्हे दिलासा दिया. वो मेरी बातें गौर से सुन रही थीं .
"अच्छा बेटे में तुम्हारी दलील मान लेतीं हूँ. इस के अलावा अब किया भी किया जा सकता है?" वो बोलीं.

“अच्छा एक बात तो बताओ. तुम कब से सेक्स कर रहे हो?” उन्होने बात बदलते हुए पूछा.
में इस बात का जवाब देने में ज़रा झिजक.
“लगता है तुम्हे सेक्स का काफ़ी तजर्बा है.” उन्होने फिर कहा.
“फूफी फ़रहीन मुझे ज़ियादा तो नही मगर कुछ ना कुछ तजर्बा ज़रूर है.” मैंने जवाब दिया.
“अगर इस मामले में तुम्हारा तजर्बा कम है तो डिसचार्ज होने में इतनी देर कैसे लगाते हो. मै ज़ियादा इन चीज़ों को नही जानती लेकिन इतना तो मुझे भी पता है के मर्द तजरबे और प्रॅक्टीस से ही सेक्स के दोरान अपना टाइम बढ़ा सकता है.” उन्होने हंस कर कहा

“आप ठीक कह रही हैं सेक्स जिस्मानी से ज़ियादा जेहनी गेम है. अगर मर्द को अपने ज़हन पर कंट्रोल हो तो वो अपने जिसम को भी कंट्रोल कर सकता है. उससे सेक्स के बारे में काफ़ी सारा नालेज भी होना चाहिये. हम जिन चीज़ों के बारे में बिल्कुल नही जानते या थोड़ा जानते हैं उन्हे गलत तरीक़े से करते हैं. सेक्स के साथ भी यही होता है. फिर जो मर्द ज़ियादा सेक्स करती हैं उन्हे अपने ऊपर ज़ियादा कंट्रोल होता है और वो अपनी मर्ज़ी से डिसचार्ज हो सकते हैं.” मैंने कहा. “हन ये तो ठीक है.” वो बोलीं.

“लेकिन इस में और भी कई फॅक्टर्स हैं. सेक्स करते हुए मर्द को कोई टेंशन या खौफ नही होना चाहिये. टेंशन में तो कोई भी काम सही तौर से नही किया जा सकता. उससे ये खौफ भी नही होना चाहिये के वो औरत को सॅटिस्फाइ नही कर सकेगा. एक मज़े की बात आप को और बताऊं. हमारे जिसम में एक ख़ास मसल्स होते हैं जो केगेल मसल्स कहलाते हैं. ये वोही मसल्स हैं जो मर्द पैशाब को रोकने के लिये इस्तेमाल करते हैं और इन मसल्स ही की वजह से मनी लंड में से तेज़ पिकचकार्यों की सूरत में बाहर निकलती है. अगर मर्द इन मसल्स को दबा दबा कर मज़बूत करता रहे तो वो अपने डिसचार्ज होने को बहुत देर तक कर सकता है.” मैंने उन्हे बताया.
"पता नही तुम ने इस क़िसम की बातें और हरकतें कहाँ से सीख लीं." उन्होने अजीब से अंदाज़ में कहा. मैंने नहाज़ मुसूराने पर इक्तीफ़ा किया.
कुछ देर खामोशी रही और फिर वो दोबारा ज़रा रिलॅक्स होते हुए बोलीं:
“अच्छा ये बताओ के तुम मेरे साथ ये सब करते हुए मुझे गालियाँ क्यों दे रहे थे.”
“पता नही फूफी फ़रहीन आप को चोदते हुए गालियाँ देने से मेरे जज़्बात और भर्राकते थे. इस का मक़सद आप की बे-इज़्ज़ती करना नही था.” मैंने हंस कर कहा. मैंने उन से तो नही कहा मगर में जानता था के चूत देते वक़्त गालियाँ उन्हे भी बहुत गरम करती थीं . उन्होने ही पहले मुझे गालियाँ दी थीं . मैंने तो सिरफ़ जवाब दिया था मगर अब वो इस बात का सारा मलबा मुझ पर डाल रही थीं .
“आप सच कहीन किया गालियों से आप भी गरम नही हुई थीं .” मैंने सवाल किया.
“हन कुछ कुछ.” उन्होने गोल मोल जवाब दिया और हंस पड़ीं. फिर वो बेड से उठ कर खड़ी हो गईं.

इसी को मुनासिब मोक़ा जानते हुए मैंने आगे बढ़ कर फूफी फ़रहीन को गले से लगा लिया और उनके मोटे और चौड़े चूतरों की गोलाइयों पर अपने दोनो हाथ फैरना शुरू कर दिये. उनके उभरे और तने हुए मम्मों पर चढ़ा हुआ टाइट ब्रा मेरे सीने के अंदर घुस रहा था और मुझे उनके मम्मों का वज़न और नर्मी महसूस हो रही थी. उनके चेहरे और जिसम से साबुन, पर्फ्यूम, लिपस्टिक और शॅमपू की मिली जुली खुश्बू उठ रही थी. मैंने स्लीपिंग सूट के पाजामे से अपना सख़्त होता हुआ लंड बाहर निकाल लिया और अपना हाथ उनकी क़मीज़ के नीचे कर के उनके चूतरों के बीच में उनकी गांड़ के सुराख में उंगली दी. उन्होने अपने छेद पर मेरी उंगली और चूत के साथ मेरे लंड को टकराता हुआ महसूस किया तो अपने बदन को थोड़ा सा पीछे कर के मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उससे सहलाने लगीं
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06-30-2017, 11:26 AM,
#4
RE: Sex Hindi Kahani फूफी फ़रहीन
फूफी फ़रहीन -4

अपने बदन को थोड़ा सा पीछे कर के मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उससे सहलाने लगीं.

उनका हाथ लगते ही मेरा लंड पठार की तरह सख़्त हो गया. मुझे अंदाज़ा हो गया के अपने हाथ में मेरे लंड का अकड़ जाना उन्हे अच्छा लगा है. मेरे लंड पर उनके हाथ का लांस नर्म और मुलायम था. मैंने उनके मुँह में अपनी ज़बान डाल दी जिससे वो फॉरन चूसने लगीं. कुछ देर मेरे लंड पर हाथ फेरने के बाद उन्होने अपनी उंगली और अंगूठे में मेरे लंड का टोपा पकड़ा और उससे आहिस्ता आहिस्ता दबाने लगीं. मेरे लंड से सफ़ेद लैइस्डार पानी की चंद बूँदें निकलीं जिन्हे फूफी फ़रहीन ने अपने अंगूठे से साफ़ कर दिया. उनका बदन गरम था और साफ़ ज़ाहिर था के फूफी फ़रहीन अब फिर चूत मरवाने के लिये तय्यार हो चुकी थीं .

में बड़े जोशीले अंदाज़ में उनके मुँह के बोसे लेता रहा और उनके गालों, आँखों और थोड़ी को चूमता रहा. वो और ज़ियादा गरम होने लगीं और मेरे हाथों ने उनके बदन की गर्मी महसूस की. मुझे पता चल गया था के उनका ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है और साँस तेज़ चलनी शुरू हो गई है. उनका सीना साँस लेते वक़्त ऊपर नीचे हो रहा था. मैंने उनका गिरेबां नीचे खैंचा और सर झुका कर उनके ब्रा में बंद मम्मों के बीच में ज़बान डाल दी. मेरी ज़बान उनके आपस में जुड़े हुए मम्मों के अंदर चली गई और में उन्हे चाटने लगा. वो हंस पड़ीं. शायद उन्हे गुदगुदी हो रही थी.

में उस वक़्त फूफी फ़रहीन के कमरे में उन्हे चोदने नही आया था मगर अब मेरी अपनी हालत भी खराब होने लगी थी. मैंने उन्हे चूमते चूमते उनकी शलवार का नाड़ा टटोला और उस का एक सिरा खैंच कर खोल दिया. नाड़ा खुलते ही उनकी शलवार ढीली हो कर उनके क़दमों में गिर पड़ी. मै उनके पेट पर हाथ फेरता हुआ उनके पीछे आ गया. पहले मैंने अपने कपड़े उतारे और फिर उनके चूतड़ों पर से उनकी क़मीज़ उठाई और उनकी कमर पर दबाव डाल कर उन्हे नीचे झुका दिया. उन्होने कोई बात नही की और बेड के ऊपर अपने दोनो हाथ रख कर झुक गईं. उनकी चूत को अब एक दफ़ा फिर मेरा लंड दरकार था.

मैंने उनके चूतरों को दोनो हाथों की मदद से खोल कर उनके अंदर उनकी गांड़ के सुराख पर मुँह रख दिया और उससे चाटने लगा. वो उसी लम्हे ऊऊओं ऊऊओं करने लगीं. कुछ देर बाद मैंने उनकी रानों पर हाथ फैरे और फिर आगे हाथ ले जा कर उनकी मोटी और रसीली चूत के ऊपर रख दिया. अब मेरी हथेली उनकी चूत और उस के ऊपर वाले पोर्षन पर थी और उंगलियाँ चूत के निचले हिस्से और गांड़ के सुराख के बीचों बीच रखी हुई थीं . फूफी फ़रहीन की चूत पर छोटे छोटे लेकिन सख़्त बाल थे जिन को सहलाते हुए मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. वो सीधी हो गईं.

"तुम पर तो फिर चोदने का भूत सवार है. घर की खबर भी है. कोई आ ना जाए." उन्होने ऐसे कहा जैसे चुदवाने का भूत उन पर सवार नही था.
"घर में कौन होता है फूफी फ़रहीन नोकरानी तो छुट्टी पर है. मैं गेट बंद है. अगर कोई आया तो पता चल जाए गा." मैंने उनकी फुद्दी के बाल उंगलियों में पाकाररते हुए जवाब दिया.
वो अपनी चूत पर मेरे हाथ की हरकत से एक दफ़ा फिर आगे को झुक गईं और में अब ज़रा दबाव डाल कर उनकी चूत पर हाथ फेरता रहा. फिर मैंने उन्हे सीधा कर के उनकी क़मीज़ उतारनी शुरू की. अपने लंबे और घने बालों को उन्होने प्लास्टिक की एक बड़ी सी चुटकी में बाँध रखा था. क़मीज़ उनके सर से नही उतार रही थी इस लिये मैंने उनकी चुटकी खोल कर हटा दी और उनके बाल आज़ाद हो कर बिखर गए. अब उनकी क़मीज़ सर से आसानी से उतार गई और फूफी फ़रहीन ब्रा के अलावा बिल्कुल नंगी हो गईं.

मैंने उनका ब्रा नही उतारा और वैसे ही उनके मम्मों को जो ब्रा में भी बड़े खूबसूरत लग रहे थे चूमने और चाटने लगा. फूफी फ़रहीन ने फिर मेरा लंड पकड़ लिया और उस पर अपना हाथ आगे पीछे करने लगीं. मैंने उनके ब्रा का हुक खोला और बेड पर लेट कर उन्हे अपने ऊपर घसीट लिया. उन्होने अपना ब्रा बाजुओं से निकाला और बेड पर आ गईं. बेड पर छर्रहटे ही उन्होने अपने दोनो हाथ मेरे सर के दोनो तरफ रख दिये. अब मेरा सर उनके हाथों के बीच में आ गया और उनके मोटे ताज़े मम्मे मेरे मुँह से कुछ फ़ासले पर झूलने लगे.

मैंने उनके रेशमी गोल मम्मों को नर्मी से हाथों में पकड़ लिया और उनके निपल्स पर अपनी हतैलियाँ फेरने लगा. उनकी आँखें बंद थीं , होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट थी और वो खामोशी से अपने मम्मों के साथ होने वाले खेल का लुत्फ़ ले रही थीं . मै इसी तरह थोड़ी देर उनके भारी मम्मों का मसाज करता रहा. फिर मैंने ज़रा ज़ियादा ताक़त से उनके मम्मों को हाथों में भर भर कर मसलना शुरू कर दिया. फूफी फ़रहीन ने कई सिसकियाँ लीं और अपने मम्मे मेरे मुँह के और क़रीब कर दिये. मै उनके मम्मे मुँह में ले कर चूसने लगा. मैंने उनके मम्मों के निपल्स दाँतों में पकड़ लिये और उनकी नरम गोलाइयों को आहिस्तगी से काटा और उन पर ज़बान फेरी.
"आहिस्ता काटो दुखा रहे हो मेरे निपल्स को." उन्होने मेरे माथे पर हाथ रख कर कहा और अपना मम्मा मेरे मुँह में घुसा दिया.

कुछ देर तक फूफी फ़रहीन के मम्मों के निपल्स चूसने के बाद मैंने उनके मोटे मम्मों को साइड से मुँह में डाला और अच्छी तरह चूसा. मै उनका एक मम्मा चूसता और दूसरे को हाथ में रख कर उसका मसाज करता रहता. वो बहुत गरम हो गई थीं और मम्मे चूसने के दोरान जब वो नीचे ऊपर होतीं तो उनके पेट और चूत का ऊपरी हिस्सा मेरे सीधे खड़े हुए लंड के साथ लगने लगता.

अब में उनके सारे पेट को चाटने लगा. मैंने उनकी नाफ़ के गहरे और गोल सुराख के इर्द गिर्द ज़बान फेरी तो वो और ज़ियादा सिसीकियाँ लेने लगीं. मैंने उनका पेट चूमते चूमते सर उठा कर ऊपर देखा तो उनके मोटे मम्मों के निपल्स तीर की तरह खड़े हुए थे और हर सिसकी के साथ उनके दोनो मम्मे अजीब तरह से हिलते थे.
"फूफी फ़रहीन लंड चूसें गी?" मैंने उनके पेट और मम्मों पर हाथ फेरते हुए पूछा. उन्होने कुछ कहा नही बस सीधी हो कर बैठ गईं और मेरे सीने पर अपना हाथ रख कर मेरा लंड मुँह में ले लिया. थोड़ी देर लंड चूसने से उनके मुँह में थूक भर गया जो सारा मेरे लंड पर लगने लगा. आज वो बड़ी चाबुक्ड़स्ती और महारत से मेरा लंड चूस रही थीं और में सोच रहा था के एक ही दिन में फूफी फ़रहीन लंड चूसने में इतनी माहिर कैसे हो गईं हैं. उनका अपना कहना था के उन्होने कभी भी फ़ूपा सलीम का लंड नही चूसा था और ये बात सॅकी भी लगती थी क्योंके फ़ूपा सलीम उन से हमेशा डाबते थे और उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ करने की जर’अट उन में नही थी. लेकिन अब एक ही दिन में फूफी फ़रहीन ने लंड चूसने में अच्छी ख़ासी महारत हासिल कर ली थी.

में बेड पर लेटा हुआ था और वो मेरे लंड के टोपे की गोलाई को चूमे और चूसे जा रही थीं . उन्होने अपनी ज़बान मुँह से बाहर निकाल कर मेरे लंड को ऊपर और नीचे से चाटा. वो मेरे सारे के सारे लंड को चाट रही थीं . उन्होने एक हाथ से मेरे टट्टों को सहलाना शुरू कर दिया. वो मेरे टट्टों को कभी ऊपर करतीं और कभी नीचे खैंचतीं. उनके इस तरह करने से मुझे बे-इंतिहा लज्ज़त महसूस हो रही थी. मेरा पूरा लंड उनके मुँह के अंदर चला जाता और उनकी नोकीली नाक मेरे पेट के निचले हिस्से में चुभने लगती.

फिर अचानक उन्हे ख्ँसी आने लगी और उन्होने थूक से लिथड़ा हुआ मेरा लंड अपने मुँह से निकाल दिया. शायद मेरा लंड उनके हलक़ में लगा था. खैर मैंने उठ कर फूफी फ़रहीन को कंधों से पकड़ कर उठाया और बेड पर लिटा दिया. फिर उनकी ताक़तवर टांगें खोलीं और उनकी तगड़ी चूत चाटने लगा. मेरी ज़बान उनकी चूत के मुख्तलीफ़ हिस्सों को चाटने लगी और फूफी फ़रहीन जैसे पागल हो गईं. मै उनकी सूजी हुई चूत को जैसे ही ज़बान लगाता वो अपने चूतरों को आगे धकेल कर अपनी चूत मेरे मुँह में घुसाने की कोशिश करतीं.

“उफफफ्फ़….. कंजड़ी के बच्चे, तू ने फिर मुझे पागल करना शुरू कर दिया है. गश्ती के बच्चे, तेरी माँ की चूत में खोते का लूँ डून…..ऊऊओं…..उूउउफफफफफ्फ़. तेरी कुतिया माँ को चोदुं.” वो बे-खुदी के आलम में फिर गालियाँ देने लगी थीं .
“फ़रहीन तू भी तो किसी कंजड़ी से कम नही है. तेरी चूत मारूं. तेरा मोटा भोसड़ा मारूं, कुतिया. तेरी मोटी चूत में टट्टों तक अपना लंड डालूं. तेरी मोटी फुद्दियों वाली बहनों की चूत मारूं गश्ती औरत.” मैंने भी तुर्की-बा-तुर्की जवाब देते हुए कहा. “हन, हाँ मेरी बहनें भी गश्टियाँ हैं, हरमज़ाडियाँ.” उन्होने दाँत पीसते हुए कहा. “फ़रहीन तेरी बहनें रंडियाँ हैं सारी और तेरी तरह ही चूत मरवाती हूँ गी.” मैंने उनकी चूत पर ज़बान फेरने का अमल जारी रखा.
लज़्ज़त के शदीद एहसास ने उनके चेहरे को बदल कर रख दिया था. वो तेज़ी से अपने बदन को आगे पीछे कर के अपनी चूत चत्वाती रहीं.

में फूफी फ़रहीन की मोटी ताज़ी गांड़ मारना चाहता था मगर लग रहा था के आज तो इस की नोबट नही आए गी क्योंके वो और में दोनो ही बहुत गरम हो चुके थे. ये वक़्त उनकी चूत मार कर उन्हे मज़ा देने का था. अच्छी तरह से उनकी चूत चाट लेने के बाद में उनके ऊपर आ गया और अपना लंड उनकी चूत के अंदर बे-दरदी से घुसेड़ दिया. उन्होने अपने बदन को थोड़ा बहुत हिला कर अपना ज़ाविया दरुस्त किया और मेरे लंड को पूरी तरह अपनी चूत के अंडे जगह देनी की कोशिश की. मेरा लंड सारा का सारा उनकी भूकि चूत में चला गया.

मैंने अब उनकी फुद्दी में घस्से मारने शुरू किये. घस्से मारते हुए मैंने नीचे देखा. जब में आगे को घस्सा मारता तो मेरा लंड पूरा का पूरा फूफी फ़रहीन की चूत के अंदर गुम हो जाता और वो अपने चूतर थोड़े से उठा कर अपनी चूत को और खोलतीं और लंड अंदर करने में मेरी मदद करतीं. हर घस्से के साथ वो अपनी मोटी रानों से मेरी कमर को सख्ती से पकड़ लेतीं. मैंने उन्हे चोदते हुए अपने बदन का वज़न उनके ऊपर डाल दिया और दोनो हाथों से उनके कंधे पकड़ लिये. वो बड़े तंदरुस्त बदन की मालिक थीं मगर इस वक़्त मेरे मीचे दबी हुई थीं .

उनकी चूत में घस्से मारते हुए अब मेरा मुँह उनकी गर्दन के अंदर घुसा हुआ था और में उनकी गर्दन, कंधे और बाज़ू चूम रहा था. मैंने उनके सीने पर अपना सर रखा तो मुझे उनके दिल की धडकनें साफ़ महसूस हुई जो बहुत तेज़ हो चुकी थी. इस तरह चुदने से फूफी फ़रहीन की फुद्दी बहुत ज़ियादा भीग चुकी थी. फिर वो तेज़ आवाज़ में कराहने लगीं और उनकी चूत मेरे लंड के गिर्द टाइट हो गई. उनके छूटने का वक़्त क़रीब था.
देखते ही देखते उन्होने सख्ती से मुझे दबोच लिया और बड़े ज़बरदस्त अंदाज़ में खलास होने लगीं. मैंने देखा के उनकी आँखें घूम कर ऊपर चढ़ गईं और चेहरा टमाटर की तरह सुर्ख हो गया. उनका मुँह खुला हुआ था और वो ऐसे साँस ले रही थीं जैसे कमरे में ऑक्सिजन की कमी हो. शायद वो अभी पूरी तरह खलास नही हुई थीं क्योंके अचानक उन्होने अपने हाथ मेरी कमर में डाल कर अपने लंबे नाख़ून मेरे जिसम में गार्र दिये और अपने बदन को ऊपर कर के मेरे घस्सों का जवाब देने लगीं. उस वक़्त फूफी फ़रहीन यक़ीनन अपने खलास होने का पूरा पूरा मज़ा ले रही थीं .

चन्द मिनिट तक मज़ीद घस्से मारने के बाद मैंने अपना लंड उनकी चूत में से निकाल लिया.
"फूफी फ़रहीन अब आप मेरे लंड पर बैठाइं प्लीज़." मैंने उनकी टाँगों में हाथ डालते हुए कहा. वो उखरर उखरर साँसें लेतीं हुई उठीं और मेरे ऊपर आ कर दोनो टांगें मेरे जिसम के दोनो तरफ् कर लीं. अब उन्होने अपनी चूत मेरे लंड के टोपे से क़रीब कर दी. मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुँह पर रखा तो उन्होने अपने भारी भर्कूं चूतर आहिस्तगी से नीचे किये और मेरे लंड को अपने अंदर ले लिया. मैंने उनकी मज़बूत कमर को दोनो हाथों से पकड़ा और उन्हे अपने लंड पर उठाने बिठाने लगा. फूफी फ़रहीन के मम्मे इस उठक बैठक की वजह से बुरी तरह उछल रहे थे जिन पर में नज़रायण जमा कर उन्हे चोद रहा था.

मैंने हाथ पीछे कर के उनके मोटे चूतड़ों को पाकर्रा और उनकी चूत में घस्से मारता रहा. वो निहायत आसानी से घुटनो पर ज़ोर डालते हुए अपने बदन को मेरे लंड पर आगे पीछे कर के चुदवाती रहीं. ज़रा देर बाद उनकी फुद्दी में फिर हलचल होने लगी और वो ऊऊऊऊः आआआः करने लगीं. वो नीचे से मेरा लंड लेते लेते आगे झुक गईं और अपने तन्डरस्ट मम्मे मेरे मुँह के पास ले आईं. मैंने उनके मम्मे हाथों में भर लिये और उन्हे चूसने लगा. उन्होने ऊँची आवाज़ में “उफफफफफफ्फ़ में मार गई” कहा और उनकी चूत मेरे लंड के गिर्द एक दफ़ा फिर कसने लगी. गीली होने के बावजूद उनकी चूत की गिरफ्त मेरे लंड के गिर्द काफ़ी मज़बूत थी. इसी तरह ज़ोर ज़ोर से लंड लेते हुए फूफी फ़रहीन एक बार फिर खलास हो गईं.

"मुझे मारो गे किया." वो निढाल हो कर मेरे ऊपर गिरते हुई बोलीं.
उनका बदन वज़नी था और जब उन्होने मेरे लंड पर ऊपर नीचे होना बंद किया तो में इस हालत में उनकी चूत में घस्से नही मार सकता था. मैंने उनको कमर से पकड़ कर साइड पर कर दिया. वो बे-सुध सी बेड पर लेट गईं. मैंने अपना लंड उनकी चूत के अंदर ही रखा और उनके ऊपर आ गया. फिर मैंने फूफी फ़रहीन का एक मम्मा मुँह में लिया और जाम कर उन्हे चोदने लगा.
"अब डिसचार्ज हो जाओ में तक गई हूँ." उन्होने कहा.

मैंने अपने घस्से तेज़ कर दिये और उनके हिलते हुए मम्मे पकड़ कर चूसने लगा. उनका गोरा और गुन्दाज़ बदन पसीने में भीगा हुआ था और दो तीन दफ़ा डिसचार्ज होने से उनके चेहरे पर थकान के आसार थे. उनके होठों पर लगी लिपस्टिक मेरे चूमने चाटने से ऐसे घायब हुई थी जसे कभी थी ही नही और आँखों में लगा हुआ हल्का हल्का सूरमा माथे, गर्दन और गालों पर फैल चुका था.

लेकिन में अभी पीछे से उनकी फुद्दी लेना चाहता था. इस तरह कुछ देर और उन्हे चोदने के बाद में उन से अलग हो गया. फिर मैंने उन्हे बेड से नीचे खड़ा किया और कमर पर हाथ रख कर झुका दिया. उन्होने थोड़ा सा एहटेजाज किया मगर में कहाँ मान ने वाला था. अब उनकी गीली चूत मोटे ताज़े चूतरों के दरमियाँ साफ़ दिखाई देने लगी. मैंने अपना लंड उनकी चूत के दहाने पर रख कर ऊपर नीचे रगड़ा. फूफी फ़रहीन ने मुँह से आवाज़ निकाली और मैंने एक नापा तुला घस्सा लगा कर अपना लंड उनकी चूत में डाल दिया.

वो मुझे जल्दी डिसचार्ज करना चाहती थीं इस लिये फॉरन ही मेरे लंड पर अपनी चूत को आगे पीछे करने लगीं. मेरा लंड किसी लोहे की सल्लख की तरह उनके मोटे लेकिन नरम चूतरों के बीच में उनकी फुद्दी में आ जा रहा था. मैंने उनकी कमर पर दोनो हाथ रखे और उनकी चूत में जल्दी जल्दी घस्से मारने लगा. मेरे घस्सों के साथ उनके चूतरों का गोश्त भी जैसे लहरें ले रहा था.
"में फिर च्छुत्त रही हूँ अब बस भी कर दो." उन्होने बे-बसी से कहा और और अपनी भारी गांड़ को तेज़ी से हरकत देने लगीं. मै उनके चूतरों पर हाथ फेरने लगा तो वो अपने आप पर कंट्रोल ना रख सकीं और फिर खलास हो गईं. मैंने उनके छेद पर उंगली लगाई तो उन्हे डिसचार्ज होने में और ज़ियादा मज़ा आने लगा और उनकी चूत में से जैसे पानी का सैलाब निकालने लगा.

लगता था के अब वो मज़ीद चुदने के क़ाबिल नही रह गई थीं क्योंके जिस जोश-ओ-ख़रोश से वो कुछ देर पहले तक मेरा साथ दे रही थीं वो अब बहुत कम हो गया था. मैंने उनको फिर बेड पर लिटा दिया और टाँगों के बीच उनकी चूत में लंड घुसेड़ कर उन्हे चोदने लगा. मैंने अपना लंड फूफी फ़रहीन की चूत में थोड़ा सा घुमाया तो में भी बे-क़ाबू हो गया और दो तीन घस्सों के बाद ही में भी उनकी चूत में डिसचार्ज होने लगा.

फूफी फ़रहीन ने मुझे डिसचार्ज होते देखा तो अपनी टांगें बंद कर लीं और मेरी सारी मनी अपनी चूत में ले ली. मैंने खलास होने के बाद भी अपना लंड उनकी चूत के अंदर ही रखा और अपनी मनी उनके अंदर डालता रहा यहाँ तक के मेरी मनी का आखरी क़तरा भी फूफी फ़रहीन की चूत में चला गया. जब मेरा लंड बैठ गया तो मैंने उससे फूफी फ़रहीन की चूत में से बाहर निकाला और उनके साथ बेड पर लेट गया. उन्होने मेरी तरफ देखा और अपनी आँखें बंद कर लीं.

आज में फूफी फ़रहीन की गांड़ नही मार सका था और अब मुझे ये काम अगले दिन करना था. मुझे यक़ीन था के में उनकी गांड़ लेने में भी कामयाब हो जाऊं गा.
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06-30-2017, 11:26 AM,
#5
RE: Sex Hindi Kahani फूफी फ़रहीन
फूफी फ़रहीन -5

फूफी फ़रहीन और मेरे दरमियाँ जिस्मानी ता’अलुक़ात क़ायम होने से मेरे लिये इन्सेस्ट के मवाक़े और ज़ियादा बढ़ गए थे. उनके रवये से भी लगता था के वो अब मुझ से चूत मरवाती रहें गी. लेकिन जैसा के मैंने पहले बताया अब उनकी गांड़ मारने का मरहला दरपाश था और मुझे फॉरी तौर पर इस सिलसिले में कोई क़दम उठाना था.

फूफी फ़रहीन जैसी औरतों की गांड़ मारना इतना आसान नही होता. ख़ास तौर पे जब उन से खूनी रिश्ता भी हो. उन्हे चूत देने पर तो निसबतन आसानी से रज़ामंद किया जा सकता है मगर गांड़ मरवाने पर वो बहुत ज़ोर-ओ-शोर से कई क़िसम के ऐतराज़ात करती हैं. एक तो उनका ख़याल है के गांड़ देने से उन्हे बहुत तक़लीफ़ होगी क्योंके गांड़ के छोटे और तंग सुराख में लंड लेना और फिर उस मैं मुसलसल घस्से बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल काम है. दूसरा ये के वो समझती हैं के गांड़ मरवाने से उन्हे कोई मज़ा नही मिले गा क्योंके ये औरत को चोदने का एक गैर-फिट्री तरीक़ा है जिस में सिर्फ़ मर्द ही खलास हो कर मज़ा ले सकता है. चूँके औरत को गांड़ मरवा कर कुछ हासिल नही होता इस लिये उससे ऐसा करना ही नही चाहिये.

फिर ऊए भी है हमारे मा’आश्रय में औरतें गांड़ देने को कोई अच्छा अमल नही ख़याल करतीं क्योंके उनके मुताबिक़ ये बड़ा बुरा काम है. इसी लिये हमारी औरतों की एक बहुत बड़ी तद्दाड़ अपनी गांड़ में लंड लेने से कतराती है. इस के अलावा यहाँ की औरतों को गांड़ देने का सालीक़ा और तरीक़ा भी बिल्कुल नही आता और उनकी गांड़ मारना एक बहुत बड़े मसले से कम नही होता. लेकिन इन मुश्किलाट के बावजूद मैंने बहरहाल फूफी फ़रहीन को गांड़ देने की तरफ राघिब तो करना ही था.

इस मक़सद के लिये में रात को डैड के सो जाने के एक घंटे बाद फूफी फ़रहीन के कमरे में जा पुहँचा. वो बेड पर लेतीं सो रही थीं . मैंने कमरे का दरवाज़ा लॉक किया और उनके साथ बेड पे लेट गया. फूफी फ़रहीन अपनी आदत के मुताबिक़ ब्रा पहन कर ही लेतीं हुई थीं . वो अपने बेड पर मेरे जिसम की जुम्बिश से जाग गईं. मैंने कुछ कहे बगैर उनके मम्मों को दोनो मुठियों में भर लिया और उनके होंठ चूमने लगा. उनके सेहतमंद जिसम के लांस और खुश्बू से मेरा लंड फॉरन खड़ा हो गया और मैंने आनन फानन अपना पाजामा उतार दिया.
"इस वक़्त में कुछ नही कर सकती क्योंके में काफ़ी तक गई हूँ." फूफी फ़रहीन ने मेरे अकड़े हुए लंड की तरफ देख कर आहिस्ता से कहा.
में उनके होठों और गालों को चूमता रहा और मम्मों को हाथों से दबाता रहा. मुझे उनका गोरा गोरा नरम पेट कुछ ज़ियादा ही पसंद था लिहाज़ा मैंने उनकी क़मीज़ पेट पर से उठा दी और उनके ब्रा में गिरिफ्टार मम्मों के नीचे पेट को चूमने लगा. मैंने उनके पेट के गुन्दाज़ गोश्त को चाटा और मुँह में ले ले कर चूसा तो उन्होने मेरे सर पे हाथ रख के मुझे ऐसा करने से रोक दिया.
"अमजद मत करो में अभी दोबारा तुम्हे चूत नही दे सकती." उन्होने मेरे कान के पास मुँह ला कर कहा.
"फूफी फ़रहीन देखने तो दें में सिरफ़ आप की मोटी ताज़ी फुद्दी देखना चाहता हूँ. और कुछ नही करूँ गा." मैंने बड़ी संजीदगी से जवाब दिया और उनकी शलवार का नाड़ा खोल दिया ताके लेते लेते ही उनकी शलवार टाँगों पर से उतार सकूँ.
"नही अमजद मत करो तुम से सबर नही होगा और में नही चुदवा सकती. सुबह कर लाना. इस वक़्त तो मेरी तबीयत भी कुछ ठीक नही है और जिसम में भी दर्द है." उन्होने अपनी टांगें जल्दी से मोड़ कर बेंड कर लीं और उठ कर मेरा हाथ पाकाररते हुए अपनी शलवार मुझ से ले लानी की कोशिश की.
उनकी नींद अब पूरी तरह अर चुकी थी.

"फूफी फ़रहीन में कुछ नही कर रहा सिर्फ़ आप की फुद्दी के दर्शन करना चाहता हूँ. इस से तो आप को कुछ नही होगा." मैंने ज़बरदस्ती शलवार नीचे करते हुए उनकी रानों के बीच में उनकी चूत का ऊपरी हिस्सा नंगा करते हुए कहा. शलवार उनके गोरे घुटनों तक नीचे आ गई और उनकी चूत के काले घने बाल नज़र आने लगे. मैंने उनकी चूत के बालों पर आहिस्ता से हाथ फेरा तो उन्होने मुँह से हल्की सी आवाज़ निकाली.
"तुम अपने आप को रोक नही सको गे और फिर मुझे चोदने लागो गे. ज़रा अपना हाल तो देखो." वो मेरे फर्राकते हुए लंड की तरफ इशारा करते हुए बोलीं.
"ओहो फूफी फ़रहीन आप चौड़ान तो सही." मैंने उनकी शलवार उनके तख़नों तक नीचे कर के उन्हे नंगा कर दिया. उन्होने फॉरन अपनी टांगें बंद कर लीं मगर मैंने उनकी टांगें घुटनों से पकड़ कर खोलीं और उनकी मोटी ताज़ी बुलावा देती चूत पर नर्मी से हाथ फेरा.
"उूुुउऊफ़…उूुुउउफफफ्फ़ मत करो में कह रही हूँ." मेरा हाथ उनकी चूत से लगते ही बे-इकतियार उनके मुँह से निकला. मैंने फूफी फ़रहीन के मम्मों पर हाथ रख कर उन्हे वापस बेड पे गिरा दिया और खुद उनके उपर 69 की पोज़िशन में आ गया. मैंने अपना लंड उनके मुँह के सामने कर दिया और उनकी रानों के अंदर उनकी चूत में मुँह घुसा कर उससे चाटने लगा.
"ऊऊओ उफफफफफफफफफ्फ़ अमजद बाज़ आओ में इस वक्त नही चुदवा सकती. मुझे तक़लीफ़ हो रही है. मैंने बहुत अरसे बाद लंड लिया था अब दोबारा चोदने से पहले थोड़ा वक़्त तो गुज़रने दो." उन्होने झुंझला कर ज़रा तेज़ आवाज़ में कहा. मैंने उनकी चूत के बीच में अपनी ज़बान ज़ोर ज़ोर से फेरता रहा. उनका पेट मेरे सीने के नीचे हरकत करता महसूस हो रहा था.
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06-30-2017, 11:27 AM,
#6
RE: Sex Hindi Kahani फूफी फ़रहीन
फूफी फ़रहीन -6

मैंने उनकी चूत के बीच में अपनी ज़बान ज़ोर ज़ोर से फेरता रहा. उनका पेट मेरे सीने के नीचे हरकत करता महसूस हो रहा था.

"फूफी फ़रहीन में आप की फुद्दी चाट रहा हूँ आप बस थोड़ी देर मेरा लंड चूस लें तो मेरे लिये काफ़ी है. मै आप के मम्मों पर खलास हो जा’आऊँ गा." में उसी तरह लेते लेते अंदाज़े से अपना लंड उनके होठों के बिल्कुल क़रीब करते हुए बोला. चार-ओ-नचार उन्होने मेरा लंड हाथ में पकड़ के अपने मुँह में डाला और उससे बे-दिली से चूसने लगीं.
"तुम मेरी चूत ना छातो में तुम्हारा लौड़ा चूस कर तुम्हे डिसचार्ज कर देती हूँ लेकिन मुझे उठने दो में ऐसे लूआर्रा मुँह में नही ले सकती." उन्होने कहा.

में उनके ऊपर से उतार गया और उन्हे गले से लगा कर खूब चूमा.
"फूफी फ़रहीन आप का बदन ही ऐसा है के में आप को चोदे बगैर नही रह सकता. आप जानती हैं के हमारे पास टाइम भी थोड़ा है. लेकिन आप के जिसम दर्द आयी और फुद्दी भी दुख रही है. मै आप को तक़लीफ़ में भी नही देख सकता." मैंने बात शुरू की. उन्होने अपनी क़मीज़ का दामन अपनी फुद्दी के सामने किया और मेरी बात सुन ने लगीं.
"में ये भी जानता हूँ के आज की चुदाई से आप को तक़लीफ़ हुई है और इस वक़्त आप दोबारा मुझे फुद्दी नही दे सकतीं. मगर प्लीज़ आप भी मेरा कुछ ख़याल करें मेरा लंड खड़ा है और में डिसचार्ज ना हुआ तो रात गुज़ारनी मुश्किल हो जाए गी." मैंने अपनी मजबूरी बयान की.

"अमजद में आज तो कम-आज़-कम तुम्हे चूत नही दे सकती सारी सूजी हुई है." उन्होने ज़रा हंदर्दाना लहजे में अपनी चूत की तरफ देख कर जवाब दिया.
"फूफी फ़रहीन में भी किया करूँ. आप के मम्मे, आप की चूत और आप की गांड़ ने मुझे पागल कर रखा है. मै आप को चाहे जितना मर्ज़ी चोद लूं मेरा दिल नही भरता." मैंने उनके गोरे और गुन्दाज़ बाज़ू पर हाथ फेरते हुए जज़्बात से भरी हुई आवाज़ में कहा. जब उन्होने ये सुना तो उनके चेहरे पर खुशी की हल्की सी लहर दौड़ गई.
“तो कल सुबह तक सबर कर लो ना.” उन्होने अपनी बात दुहरई.
“मगर इस वक़्त किया करें?” मैंने फिर सवाल किया.
"अच्छा आओ में तुम्हारा लौड़ा चूस कर तुम्हे डिसचार्ज कर देती हूँ. अगले हफ्ते तुम लाहोर आ जाना वहीं पर जो करना हो कर लाना." उन्होने दरमियानी रास्ता निकालने की कोशिश की.
"फूफी फ़रहीन चॅपलेन में आज आप की फुद्दी नही मारता मगर इस के बदले में आप को कुछ और करना पड़े गा." मैंने उनकी आँखों में देखा.
"वो किया?" उन्होने पूछा.
"अगर आप को कोई ऐतराज़ ना हो तो में आज आपकी गांड़ मार लूं और यों मेरा काम भी हो जाए गा और आप को भी तक़लीफ़ नही हो गी." में मतलब की बात ज़बान पर ले आया.
वो हैरात्ज़ादा रह गईं और तेज़ी से नफी में सर हिलाने लगीं.

"नही नही अमजद गांड़ देना बहुत बड़ा गुनाह है और मैंने कभी भी गांड़ में लौड़ा नही लिया. तुम्हारा तो लौड़ा भी बहुत मोटा है मेरी तो गांड़ फॅट जाए गी. वो सुराख इस काम के लिये तो नही बना. वैसे भी ये वक़्त गांड़ देने का नही है."
“फूफी फ़रहीन आप प्लीज़ बस एक दफ़ा मुझे अपनी गांड़ लेने दें. प्लीज़ किया आप मेरी अच्छी फूफी नही हैं.” मैंने इल्तिज़ा-आमीज़ लहजे में उनके गालों को हाथ लग्गाते हुए कहा.
“में बिल्कुल तुम्हारी फूफी हूँ लेकिन जो तुम चाहते हो वो मुझ से कभी नही हो सकेगा. फिर इस की आख़िर ज़रूरत भी किया है. चूत तो दे रही हूँ ना तुम्हे.” उन्होने कहा.
“लेकिन मुझे आप की गांड़ मारने का बहुत शोक़् है फूफी फ़रहीन.” मैंने इसरार किया.
“ये किस क़िसम का शोक़् है जिस में औरत की जान ही निकल जाए. चूत देते हुए अच्छी ख़ासी तकलीफ़ होती है तो गांड़ देते हुए किया हाल होगा.” वो सर हिला कर बोलीं.
“में आप को यक़ीन दिलाता हूँ के आप को तकलीफ़ बिल्कुल नही हो गी.” मैंने बड़ी संजीदगी से कहा.
“कैसे नही हो गी. मेरी गांड़ में आख़िर तुम्हारा इतना मोटा लौड़ा जाए गा कैसे.” उन्होने हाथ से इशारा कर के बताया.
“टेल लगा कर में अपना लंड आसानी से आप की गांड़ में ले जा सकता हूँ. आप राज़ी तो हूँ. बिल्कुल थोड़ी तकलीफ़ हो गी.” मैंने उन्हे का’आइल करने की कोशिश जारी रखी.
“देखो में तुम्हे गांड़ कैसे दे दूँ. मुझे सलीम के अलावा और किसी ने हाथ नही लगाया. तुम दूसरे मर्द हो जिस ने मेरी चूत ली है. सलीम ने तो पिछले 21 साल में कभी मेरी गांड़ को उंगली तक नही लगाई. मुझे गांड़ देने का कुछ पता ही नही है. मै ये नही कर सकती.” उन्होने कहा.

मैंने मज़ीद बहस नही की और उनके नंगे चूतड़ों के नीचे हाथ घुसा कर उनकी गांड़ के सुराख तक पुहँछने की कोशिश की लेकिन उन्होने अपनी गांड़ पर सारे जिसम का वज़न डाल दिया और और मेरे हाथ को अपने चूतड़ों के नीचे अपने छेद तक जाने का मोक़ा नही दिया. मेरा हाथ उनके भारी और मोटे चूतड़ों के नीचे दब गया.
"में गांड़ में तुम्हारा लूआर्रा बर्दाश्त नही कर सकती अमजद में सच कह रही हूँ." उन्होने मेरे लंड को हाथ में ले कर जैसे टटोलते हुए कहा.

"में गांड़ में तुम्हारा लूआर्रा बर्दाश्त नही कर सकती अमजद में सच कह रही हूँ." उन्होने मेरे लंड को हाथ में ले कर जैसे टटोलते हुए कहा.
"बस ठीक है फूफी फ़रहीन में अपने कमरे में जाता हूँ किया फायदा आप की मिनाताईं करने का." मैंने खफ्गी का इज़हार किया और उनके हाथ से अपना लंड छुड़ा लिया. फूफी फ़रहीन ने जल्दी से मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा:
"किया सिर्फ़ यही एक तरीक़ा है तुम्हे डिसचार्ज करने का?"
"हन बस यही एक तरीक़ा है." मैंने उसी खफा लहजे में जवाब दिया.

में उनकी मजबूरी समझ रहा था. वो मुझे गांड़ देने की तक़लीफ़ के बदले अपनी चूत मरवाने के मज़े को नही गँवाना चाहती थीं और इसी लिये अब गांड़ देने पर राज़ी हो रही थीं . वो कुछ सोचने लगीं.
"अच्छा चलो तुम मेरी गांड़ ले लो मगर पहले ये वादा करो के तुम मेरी गांड़ बहुत आराम से मारो गे और मुझे दुखाओ गे नही." उन्होने दोबारा मेरा लंड हाथ में लेते हुए मुझ से गॅरेंटी चाही.
"बिल्कुल वादा है मैरा. अगर आप को ज़ियादा तक़लीफ़ हुई तो में आप की गांड़ नही मारूं गा." मैंने कहा और उनकी क़मीज़ और ब्रा उतार कर साइड टेबल पर पडा हुआ लॅंप जला दिया ताके में उनकी गांड़ मारते हुए उनके दूधिया बदन को साफ़ तौर पर देख सकूँ.

वो बेड पर फिर लेट गईं. मैंने उन्हे करवट दिला कर लिटाया और अपना चेहरा उनके पैरों की तरफ कर के उनके बिल्कुल साथ जुड़ कर लेट गया. मैंने उनकी एक टाँग उठा कर उनकी रानों के दरमियाँ मोजूद चूत में अपना मुँह घुसा दिया और उससे चाटने लगा. मैंने उनके चूतरर्रों पर हाथ रखा हुआ था. मुझे महसूस हुआ के उनके चूतरर्रों और रानों के मसल अकड़ने लगे थे. उन्होने बिल्कुल दबी आवाज़ में अया….ऊऊओह शुरू कर दी थी. मेरा लंड उनके मुँह के साथ लगा हुआ था.

जब मैंने उनकी चूत चाटते हुए अपने लंड को उनके मुँह में घुसा या तो वो मेरा मतलब समझ गईं. उन्होने मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में लिया और चूसने लगीं. वो बड़े एहतेमां से लंड चूस रही थीं . इस तरह लेट कर भी मुझे उनके दाँत अपने लंड पर एक दफ़ा भी महसूस नही हुए. वो मेरे लंड को अपने मुँह के अंदर रखते हुए उस के टोपे पर बहुत तेज़ी से ज़बान फेरतीं और मेरी हालत खराब हो जाती. मैंने दिल ही दिल में एक दफ़ा फिर फूफी फ़रहीन के लंड चूसने की महारत की दाद दी.

थोड़ी देर और उनकी फुद्दी चाटने और अपना लंड उन से चटवाने के बाद मैंने फूफी फ़रहीन से कहा के वो अपनी कुहनियों पर वज़न डाल कर सर नीचे करें और अपने चूतड़र ऊपर उठा कर मेरी तरफ कर दें. उन्होने इसी तरह किया और अपने वज़नी चूतरर्रों का रुख़ मेरी तरफ कर दिया. उनके चूतड़ ऊपर उठे तो उनके बाल फिसल कर उनकी गर्दन के पास एक बड़े से गुकचे की शकल में जमा हो गए. ये सब करते हुए वो हल्का सा मुस्कुराईं. शायद अभी जो उनके स्ाआत होने वाला था वो उस के बारे में सोच रही थीं . अब उनकी गांड़ मेरे सामने थी. मैंने उके गोरे चूतरर्रों को फैला दिया और उनकी गांड़ के टाइट सुराख पर उंगली फेरी जो बहुत छोटा था.

"फूफी फ़रहीन आप के छेद में तो दर्द नही है ना." मैंने उन्हे छेड़ा.
"टोबा टोबा कितना फज़ूल लफ्ज़ है ये गांड का सुराख. तुम अनस क्यों नही कहते और अब जब तुम मेरी गांड़ मारो गे तो यहाँ भी दर्द हो ही जाए गा." वो अब अच्छे मूड में थीं .
"जो मज़ा छेद में है वो अनस या अशोल में कहाँ फूफी फ़रहीन और फिर गांड़ का इतना शानदार सुराख अनस नही हो सकता सिर्फ़ गांड का सुराख ही हो सकता है." में उनकी गांड़ के सुराख को चूमते हुए बोला.

"उउउफफफफ्फ़……..." फूफी फ़रहीन ने अपने गरम छेद से मेरे होंठ लगते ही झुरजुरी सी ली और उनके चौड़े चूतड़ हिल कर रह गए.
"गुदगुदी होती है." उन्होने दबी दबी आवाज़ में हंसते हुए कहा. मै उनका गांड का सुराख चाटने में मसरूफ़ रहा जिस से अब वो भी मज़ा लेने लगी थीं .
मैंने अपनी ज़बान रुक रुक कर उनके छेद के ऊपर फैरनी शुरू की और उस के तनाओ का मज़ा लेने लगा. चूतड़ों के बेपनाह गोश्त के अंदर उनके छेद को चाटना मुझे पागल कर देने वाली लज़्ज़त दे रहा था. मेरा थूक फूफी फ़रहीन के सारे छेद पर लग चुका था और अब नीचे उनकी चूत की तरफ बहने लगा था. उन्हे भी अपना गांड का सुराख चटवाने में मज़ा आ रहा था. औरत की गांड़ के सुराख में लाखों की तादाद में नर्व एंडिंग्स होती हैं जिन को अगर उंगली लगाई जाए या चाटा जाए तो उससे बे-पहाः मज़ा आता है. यही कुछ फूफी फ़रहीन के साथ भी हो रहा था.

मैंने उनके चूतड़ों को मज़ीद खोला और उनका गांड का सुराख चाटने की स्पीड बढ़ा दी.
“आअहहूऊंणन्न् आनंहूऊंन्न." उनके मुँह से तसालसूल के साथ आवाजें बरामद हो रही थीं .
“अच्छा लग रहा है ना फूफी फ़रहीन.” मैंने अपना सर उनके गांड़ के सुराख पर से उठाया और उन से पूछा.
"उउउफफफफफ्फ़ बहुत अच्छा लग रहा है ये किया कर रहे हो तुम मेरे साथ. मै तो डर रही हूँ के कहीं मेरे मुँह से तेज़ आवाज़ ना निकल जाए और तुम्हारा बाप जाग ना जाए." उन्होने कपकापाती हुई आवाज़ में कहा.
“आप डैड की फिकर ना करें वो रात को एक दो ग्लास शराब पी कर सोते हैं. आप बे-शक ढोल भी बजा कर देख लें लेकिन वो सुबह से पहले नही उठाईं गे.” मैंने जवाब दिया और दोबारा उनकी गांड़ का सुराख पर ऊपर नीचे ज़बान फेरने लगा. वो मज़े लेते हुए अपने चूतड़ों को आहिस्ता आहिस्ता हरकत देने लगीं. मैंने एक हाथ आगे कर के उनकी चूत के बालों के अंदर उनकी छोटी सी क्लिटोरिस को मसल दिया.
उन्हाय जैसे बिजली का करेंट लगा और उन्होने अपना मुँह बिस्टार में घुसा कर अपनी आवाज़ दबाने की कोशिश की. ऐसा करते हुए उनके मोटे चूतड़र ज़ोर से लरज़े. वो नही चाहती थीं के रात के इस पहर में उनके मुँह से कोई तेज़ आवाज़ निकले. मै अपनी ज़बान से उनका गांड का सुराख चाट ता रहा और एक हाथ से उनकी क्लिटोरिस को मसलता रहा.

औरत के लिये क्लिटोरिस बड़ी खौफनाक चीज़ होती है. ये इंसानी जिसम का वाहिद हिस्सा है जिस का काम सिरफ़ और और सिरफ़ मज़ा देना है. औरत और मर्द दोनो में इस क़िसम का कोई जिस्मानी उज़व नही जो कुदरत ने सिरफ़ मज़े के लिये बनाया हो. लंड औरत की फुद्दी चोद कर उस के अंदर मनी डालता है और मर्द को बहुत मज़ा देता है. लेकिन इसी में से पैशाब की नाली भी गुज़रती है. लहाज़ा ये दो दो काम करने के लिये बना है. फुद्दी सेक्स के दोरान मर्द का लंड अपने अंदर लेटी है और उस से निकालने वाली मनी को आगे पुहँचाने का काम करती है. इस के अलावा फुद्दी बच्चा पैदा करने के अमल में अहम किरदार अदा करती है क्योंके बच्चा इसी रास्ते से माँ के पेट से बाहर आता है. मेंसस के वक़्त भी खून और और दीगर फासिद मादा फुद्दी के रासती ही औरत के बदन से बाहर निकलता है. लेकिन क्लिटोरिस का बस यही काम है के वो औरत को सेक्स के दोरान लुत्फ़ दे.

क्लिटोरिस फुद्दी के बिल्कुल ऊपर मुत्तर के दाने के साइज़ की होती है और औरत के बदन का सब से ज़ियादा हस्सास हिस्सा है. अगर फुद्दी के होठों पर अंगूठा रख कर उससे ऊपर की जानिब फेरें तो एक छोटा सा दाना महसूस होगा. यही क्लिटोरिस है. सेक्स करते हुए या वैसे भी अगर क्लिटोरिस को मसला या चाटा जाए तो औरत खलास होने में देर नही लगाती. वो अपनी फुद्दी में लंड ले कर भी इतना मज़ा नही लेटी जितना क्लिटोरिस को मसलने या चाटने से लेटी है. इसी लिये क्लिटोरिस को हाथ लगाते ही वो बे-क़ाबू होने लगती है.

जब मैंने फूफी फ़रहीन की क्लिटोरिस को मसला तो उनके साथ भी यही हुआ था. कुछ देर में ही उनका पूरा बदन ऐंठ गया और वो मुँह से दबी दबी आवाज़ में ऊऊओहूऊऊन्न्णोणन् न्न्न्ना हाहाऊ अहह ऊऊऊवन्न्न्नह करने लगीं. मै उनका गांड का सुराख ज़ोर ज़ोर से चाट तार आहा और उनकी क्लिटोरिस को मसलता रहा. कुछ देर बाद ही वो बेड पर उछल कूद करती हुई खलास हो गईं. मै इसी तरह उनकी चूत पर हाथ फेरता रहा जो अब काफ़ी ज़ियादा भीग चुकी थी.

मैंने उनको खलास होने के बाद संभालने का मोक़ा नही दिया. यही उनकी गांड़ मारने का बेहतरीन वक़्त था. उनके कमरे में आते वक़्त में अपने साथ सरसों के टेल की बॉटल ले आया था. मैंने उनकी सफ़ेद कमर पर ऊपर से नीचे हाथ फेरा और उन्हे वैसी ही पोज़िशन में रहने को कहा. खलास होते वक़्त उन्होने अपने चूतड़ कुछ नीचे कर लिये थे मगर मेरी बात सुन कर फिर उन्हे ऊपर उठा दिया. मैंने बॉटल में से टेल निकाल कर उनके छेद को अच्छी तरह भिगो दिया. फिर मैंने फूफी फ़रहीन से कहा के वो अपने दोनो चूतड़ों को हाथों से पकड़ कर खुला रक्खें ताके में अपना लंड उनकी गांड़ के सुराख के अंदर डाल सकूँ.
"आहिस्ता अंदर डालना." उन्होने उखरर उखरर आवाज़ में मुझे याद दहानी कराई.

उन्होने दोनो हाथों से अपने चूतड़ों को मेरे लिये खोल दया. उनका गांड का सुराख अब पूरी तरह मेरे सामने आ गया. मै भी उनके मोटे और ताक़तवर चूतड़ों को पकड़ कर बेड पर खड़ा हो गया और अपना लंड उनके छेद के मुँह तक ले आया. उनका गांड का सुराख टेल से मुकमल तौर पर भीगा हुआ था. मैंने उनके चूतड़ों पर हाथ फेरा और अपना लंड उनकी गांड़ के सुराख पर रखा जो अब टेल की वजह से चमक रहा था. फिर मैंने उनकी गांड़ में अपना लंड बड़ी आहिस्तगी से डालना शुरू किया. दो तीन दफ़ा फूफी फ़रहीन के छेद पर से इधर उधर स्लिप होने के बाद आख़िर मैंने अपने लंड को उनकी गांड़ में डालना शुरू कर दिया. ऐसा लगता था जैसे मेरे लंड को किसी मज़बूत रुकावट का सामना हो क्योंके वो फूफी फ़रहीन की गांड़ के सुराख के अंदर नही जा पा रहा था. मैंने उनके चूतरर्रों को कस कर पकड़ा ताके वो एक ही जगह पर रहें और अपने लंड को उनके छेद में मज़ीद अंदर करने की कोशिश करता रहा.

पहले मेरे लंड का टोपा बड़ी ही मुश्किल से फँसता फनसाता फूफी फ़रहीन के टाइट छेद के अंदर गायब हुआ और फिर आहिस्ता आहिस्ता आधा लंड उनकी गांड़ में चला गया. अब मेरा आधा लंड उनकी गांड़ के अंदर था और आधा बाहर नज़र आ रहा था. उनके छेद ने मेरे लंड को इतनी बुरी तरह दबा रखा था के लंड के उस हिस्से पर जो उनकी गांड़ से बाहर था खून की रगैन बहुत ज़ियादा फूलई हुई नज़र आ रही थीं . जब मेरा लंड उनकी गांड़ में गया और मेरे टोपे ने उनके छेद को चियर कर फैला दिया तो फूफी फ़रहीन का सारा बदन जैसे काँपने लगा. उन्होने अपना एक हाथ अपने मुँह पर रखा और बेडशीट को दूसरे हाथ में सख्ती से पकड़ लिया. लगता था के अपनी गांड़ में मेरा लंड उन से बर्दाश्त नही हो रहा. ज़ाहिर है इतने छोटे से छेद में लंड जाए तो तक़लीफ़ तो हो गी.

मैंने अब फूफी फ़रहीन की गांड़ के सुराख में बिल्कुल आहिस्ता आहिस्ता और रुक रुक कर घस्से मारने शुरू किये और उनकी गांड़ लेने लगा. काफ़ी टेल के बा-वजूद मेरे लंड को उनकी गांड़ चोदते हुए बड़ी मुश्किल पेश आ रही थी. मै खुल कर घस्से नही लगा सकता था क्योंके उनका गांड का सुराख बहुत ही तंग था और उस के अंदर इतना फैलाओ ही नही पैदा हो रहा था जिस में मेरा लंड समा सकता और में उससे आगे पीछे कर के घस्से मार सकता. मैंने बड़ी एहतियात से आहिस्ता आहिस्ता उनकी गांड़ लेना जारी रखा. इसी तरह करते करते आख़िर फूफी फ़रहीन के छेद में मेरा पूरा लंड चला गया और उनका दर्द भी किसी हद तक क़ाबिल-ए-बर्दाश्त हो गया. उनकी हालत भी बेहतर होने लगी और वो अपने चूतड़ों को लंड लसिंसी क्सी लिसी बेहतर पोज़िशन में लाने की कोशिश करने लगीं.

रफ़्ता रफ़्ता मेरे घस्सों में थोड़ी सी तेज़ी आ गई और फूफी फ़रहीन के मुँह से नित नई आवाजें निकलनाय लगीं. मेरा लंड उनके छेद को चीरता हुआ उन्हे चोदता रहा. कभी वो भारी आवाज़ में कराहतीं, कभी उनकी आवाज़ पतली हो जाती जैसे वो हलाक से निकालने वाली चीख को दबाने की कोशिश कर रही हूँ और कभी उनकी तेज़ तेज़ चलती हुई साँस की आवाज़ अचानक बंद हो जाती और बिल्कुल खामोशी छा जाती. उस वक़्त सिरफ़ मेरे लंड की उनकी गांड़ में जाने की ‘शॅप शॅप’ सुनाई देने लगती. लेकिन कुछ देर बाद वो दोबारा कराहने लगतीं. मै उनकी गांड़ में जचे तुले घस्से मारता रहा. जब मेरा लंड फूफी फ़रहीन के छेद में जाता तो ना-क़ाबिल-ए-बयान मज़े का तूफान लंड से होता हुआ मेरे पूरे जिसम में फैल जाता. औरत की गांड़ मारना मुश्किल है लेकिन शायद इस से ज़ियादा पूर-लुत्फ़ चीज़ और कोई नही.

अब मेरा लंड ज़रा मुश्किल से मगर पूरा का पूरा उनकी गांड़ के सुराख में घुस जाता लेकिन फिर बा-अससनी बाहर आ जाता. उनके मोटे और भारी चूतड़ों के गोश्त में पड़े हुआ छोटे छोटे गर्रहे मेरे हर घस्से के दोरान कुछ और गहरे हो जाते. इतने बड़े चूतड़ों को तो संभालना भी मुश्किल था और में तो उनकी गांड़ में घस्से भी मार रहा था. मैंने उनके चूतड़ों को दोनो हाथों से पकड़ा हुआ था और उनकी गांड़ मार रहा था.
“फूफी फ़रहीन किया गांड़ देते हुए आप को मज़ा आ रहा है?” मैंने उनके भारी चूतड़ों पर चुटकी काटते हुए पूछा.
“नही मुझे तो कोई मज़ा नही आ रहा. गांड़ देने में किया मज़ा हो सकता है.” उन्होने बड़ी मुश्किल से जवाब दिया.

मुझे मालूम नही के इस जवाब में कितनी सचाई थी क्योंके बहुत कम औरतें इस बात का ाईतेराफ़ करती हैं के उन्हे गांड़ मरवाने में मज़ा आता है. बहरहाल में फूफी फ़रहीन की गांड़ लेता रहा और उनका बदन मेरे घस्सों के ज़ोर से बेड पर आगे पीछे होता रहा. मेरा लंड उनकी गांड़ के सुराख के अंदर बाहर होता रहा और टेल लगा होने की वजह से अजीब सी ‘शॅप शॅप’ और 'ष्हवप' ष्हवप' की आवाजें बराबर सुनाई देती रहीं. टेबल लॅंप की रोशनी में बेड पर हमारे जिस्मों के सा’ईए नज़र आ रहे थे.

में अब फूफी फ़रहीन को चोदते चोदते लुत्फ़ की आखरी मंज़िल पर था और इस में उनका भी बड़ा हाथ था. वो मेरे लंड को अपनी गांड़ में लेतीं तो अपने छेद को टाइट कर लेतीं और जब मैं अपना लंड उनकी गांड़ से बाहर निकालता तो वो उनकी गांड़ से ज़ियादा रगड़ खा कर बाहर आता जिस से मुझे अपने आप को कंट्रोल करना मुश्किल होने लगा. मैंने उनके सफ़ेद चूतड़ों में उंगलियाँ खूबो कर थोड़े तेज़ घस्से मारे तो उनकी गांड़ के अंदर ही मेरे लंड ने मनी चॉर्र्णी शुरू कर दी. गांड़ में खलास होना चूत में खलास होने से बहुत मुख्तलीफ़ होता है. यके बाद डीगरे च्छे सात छोटी छोटी पिचकारियाँ फूफी फ़रहीन की गांड़ में निकालने के बाद मेरा लंड सकूँ से हुआ और मैंने उससे उनकी गांड़ से बाहर निकाल लिया.

फूफी फ़रहीन तक हार कर बेड पर उल्टी ही लेट गईं और में उनके चूतरर्रों पर अपना लंड दबाते हुए उनके ऊपर लेट गया. अपने और उनके जिस्मों के बीच में मुझे टेल और अपनी मनी का गीलापन महसूस हो रहा था.--------- xxx ----------
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