rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
06-16-2017, 11:32 AM,
#21
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज़यादा हो ही जाती है"

"हा, बरी थकावट लग रही है, जैसे पूरा बदन टूट रहा हो"

"मैं दबा दू, थोरी थकान दूर हो जाएगी"

"ऩही रे, रहने दे तू, तू भी तो थक गया होगा"

"ऩही मा उतना तो ऩही थका की तेरी सेवा ना कर सकु"

मा के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और वो हस्ते हुए बोली....."दिन में इतना कुच्छ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ़ गई होगी"

"ही, दिन में थकान बढ़ने वाला तो कुच्छ ऩही हुआ था". इस पर मा थोरा सा और मेरे पास सरक कर आई, मा के सरकने पर मैं भी थोरा सा उसकी र सरका हम दोनो की साँसे अब आपस में टकराने लगी थी. मा ने अपने हाथो को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथो से मेरी कमर और जाँघो को सहलाने लगी. मा की इस हरकत पर मेरे दिल की धरकन बढ़ गई और लंड अब फुफ्करने लगा था. मा ने हल्के से मेरी जाँघो को दबाया. मैने हिम्मत कर के हल्के से अपने कपते हुए हाथो को बढ़ा के मा की कमर पर रख दिया. मा कुछ ऩही बोली बस हल्का सा मुस्कुरा भर दी. मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं अपने हाथो से मा के नंगे कमर को सहलाने लगा. मा ने केवल पेटिकोट और ब्लाउस पहन रखा था. उसके ब्लाउस के उपर के दो बटन खुले हुए थे. इतने पास से उसकी चुचियों की गहरी घाटी नज़र आ रही थी और मन कर रहा था जल्दी से जल्दी उन चुचियों को पकर लू. पर किसी तरह से अपने आप को रोक रखा था. मा ने जब मुझे चुचियों को घूरते हुए देखा तो मुस्कुराते हुए बोली, "क्या इरादा है तेरा, शाम से ही घूरे जा रहा है, खा जाएगा क्या"

"ही, मा तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहा घूर रहा था"

"चल झूते, मुझे क्या पाता ऩही चलता, रात में भी वही करेगा क्या"

"क्या मा"

"वही जब मैं सो जौंगी तो अपना भी मसलेगा और मेरी च्चातियों को भी दबाएगा"

"ही, मा"

"तुझे देख के तो यही लग रहा है की तू फिर से वही हरकत करने वाला है"

"ऩही, मा" मेरे हाथ अब मा की जाँघो को सहला रहे थे.

"वैसे दिन में मज़ा आया था" पुच्छ कर मा ने हल्के से अपने हाथो को मेरे लूँगी के उपर लंड पर रख दिया. मैने कहा "ही मा, बहुत अच्छा लगा था"

"फिर करने का मन कर रहा है क्या"

"है, मा"

इस पर मा ने अपने हाथो का दवाब ज़रा सा मेरे लंड पर बढ़ा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी. मा के हाथो का स्पर्श पा के मेरी तो हालत खराब होने लगी थी. ऐसा लग रहा था की अभी के अभी पानी निकल जाएगा. तभी मा बोली, "जो काम तू मेरे सोने के बाद करने वाला है वो काम अभी कर ले, चोरी चोरी करने से तो अच्छा है की तू मेरे सामने ही कर ले" मैं कुच्छ ऩही बोला और अपने काँपते हाथो को हल्के से मा की चुचियों पर रख दिया. मा ने अपने हाथो से मेरे हाथो को पकर कर अपनी च्चातियों पर कस के दबाया और मेरी लूँगी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लंड को सीधे अपने हाथो से पकर लिया. मैने भी अपने हाथो का दवाब उसकी चुचियों पर बढ़ा दिया. मेरे अंदर की आग एकद्ूम भारक उठी थी और अब तो ऐसा लग रहा था की जैसे इन चुचियों को मुँह में ले कर चूस लू. मैने हल्के से अपने गर्दन को और आगे की र बढ़ाया और अपने होतो को ठीक चुचियों के पास ले गया. मा सयद मेरे इरादे को समझ गई थी. उसने मेरे सिर के पिच्चे हाथ डाला और अपने चुचियों को मेरे चेहरे से सता दिया. हम दोनो अब एक दूसरे की तेज़ चलती हुई सांसो को महसूस कर रहे थे. मैने अपने होतो से ब्लाउस के उपर से ही मा की चुचियों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा मेरा दूसरा हाथ कभी उसकी चुचियों को दबा रहा था कभी उसके मोटे मोटे ****अरो को. मा ने भी अपना हाथ तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया था और मेरे मोटे लंड को अपने हाथ से मुठिया रही थी. मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. तभी मैने सोचा ऐसे करते करते तो मा फिर मेरा निकल देगी और सयद फिर कुच्छ देखने भी ऩही दे जबकि मैं आज तो मा को पूरा नंगा करके जी भर के उसके बदन को देखना चाहता था. इसलिए मैने मा के हाथो को पकर लिया और कहा "ही मा रूको"
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06-16-2017, 11:32 AM,
#22
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
"क्यों मज़ा ऩही आ रहा है क्या, जो रोक रहा है"

"ही मा, मज़ा तो बहुत आ रहा है मगर"

"फिर क्या हुआ,"

"फिर मा, मैं कुच्छ और करना चाहता हू, ये तो दिन के जैसे ही हो जाएगा"

इस पर मा मुस्कुराते हुए पुछि " तो तू और क्या करना चाहता है, तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना और कैसे निकलेगा"

"ही ऩही मा, पानी ऩही निकलना मुझे"

"तो फिर क्या करना है"

"ही मा, देखना है"

"ही, क्या देखना है रे"

"ही मा, ये देखना है" कह कर मैने एक हाथ सीधा मा के बुर पर रख दिया.

"ही, बदमाश, ये कैसी तमन्ना पल ली तूने"

"ही, मा बस एक बार दिखा दो ना"

"ऩही, ऐसा ऩही करते मैने तुम्हे थोरी च्छुत क्या दे दी तुम तो उसका फयडा उठाने लगे"

"ही, मा ऐसे क्यों कर रही हो तुम, दिन में तो कितना अcचे से बाते कर रही थी"

"ऩही, मैं तेरी मा हू, बेटा"

"ही, मा दिन में तो तुमने कितना अक्चा दिखाया भी था, थोरा बहुत"

"मैने कब दिखाया?, झूट क्यों बोल रहा है"

"ही, मा तुम जब पेशाब करने गई थी तब तो दिखा ही था"

"है, राम कितना बदमाश है रे तू, मुझे पाता भी ऩही लगा और तू देख रहा था, ही दैया आज कल के लौंदो का सच में कोई भरोसा ऩही, कब अपनी मा पर बुरी नज़र रखने लगे पाता ही ऩही चलता"

"ही मा ऐसा क्यों कह रही हो, मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मुझे दिखा रही हो इसलिए मैने देखा"

"चल हट मैं क्यों दिखौँगी, कोई मा ऐसा करती है क्या"

"ही, मैने तो सोचा था की रात में पूरा देखूँगा"

"ऐसी उल्टी सीधी बाते मत सोचा कर, दिमाग़ खराब हो जाएगा"

"ही मा, ओह मा दिखा दो ना, बस एक बार, खाली देख कर सो जौंगा" पर मा ने मेरे हाथो को झटक दिया और उठकर खरी हो गई. अपने ब्लाउस को ठीक करने के बाद छत के कोने की तरफ चल दी. च्चत का वो कोना घर के पिच्छवारे की तरफ परता था और वाहा पर एक नाली (मोरी) जैसा बना हुआ था जिस से पानी बह कर सीधे नीचे बहने नाली में जा गिरता था. मा उसी नली पर जा के बैठ गई अपने पेटिकोट को उठा के पेशाब करने लगी. मेरी नज़रे तो मा का पिच्छा कर ही रही थी. ये नज़ारा देख के तो मेरा मन और बहक गया. दिल में आ रहा था की जल्दी से जाके मा के पास बैठ के आगे झनाक लू और उसके पेशाब करते हुए चूत को कम से कम देख भर लू. पर ऐसा ना हो सका. मा ने पेशाब कर लिया फिर वो वैसे ही पेतकोट को जाँघो तक एक हाथ से उठाए हुए मेरी तरफ घूम गई और अपने बुर पर हाथ चलाने लगी जैसे की पेशाब पोच्च रही हो और फिर मेरे पास आके बैठ गई. मैने मा के बैठने पर उसका हाथ पकर लिया और पायर से सहलाते हुए बोला "ही मा बस एक बार दिखा दो ना फिर कभी ऩही बोलूँगा दिखाने के लिए"

"एक बार ना कह दिया तो तेरे को समझ में ऩही आता है क्या"

"आता तो है मगर बस एक बार में क्या हो जाएगा"

"देख दिन में जो हो गया सो हो गया, मैने दिन में तेरा लंड भी मुठिया दिया था, कोई मा ऐसा ऩही करती, बस इससे आगे ऩही बढ़ने दूँगी"

मा ने पहली बार गंदे साबद का उपयोग किया था, उसके मुँह से लंड सुन के ऐसा लगा जैसे अभी झार के गिर जाएगा. मैने फिर धीरे से हिम्मत कर के कहा "ही मा क्या हो जाएगा अगर एक बार मुझे दिखा देगी तो, तुमने मेरा भी तो देखा है, अब अपना दिखा दो ना" "तेरा देखा है इसका क्या मतलब है, तेरा तो मैं बचपन से देखते आ रही हू, और रही बात चुचि दिखाने और पकरने की वो तो मैने तुझे करने ही दिया है ना क्यों की बचपन में तो तू इसे पाकर्ता चूस्ता ही था, पर चूत की बात और है, वो तो तूने होश में कभी ऩही देखा ना, फिर उसको क्यों दिखौ". मा अब खुलाम कुल्ला गंदे सबदो का उपयोग कर रही थी.
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06-16-2017, 11:32 AM,
#23
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
जब इतना कुच्छ दिखा दिया है तो उसे भी दिखा दो ना ऐसा कौन सा कम हो जाएगा". मा ने अब तक अपना पेटिकोट समेत कर जाँघो बीच राक लिया था और सोने के लिए लेट गई थी. मैने इस बार अपना हाथ उसके जाँघो पर रख दिया, मोटी मोटी गुदाज़ जाँघो का स्पर्श जानलेवा था. जाँघो को हल्के हल्के सहलाते हुए मैं जैसे ही हाथ को उपर की तरफ ले जाने लगा, मा ने मेरा हाथ पकर लिया और बोली "ठहर अगर तुझसे बर्दस्त ऩही होता तो ला मैं फिर से तेरा लंड मुठिया देती हू" कह कर मेरे लंड को फिर से पकर कर मुठियाने लगी पर मैं ऩही माना और एक बार केवल एक बार बोल के ज़िद करता रहा. मा ने कहा "बरा जिद्दी हो गया रे तू तो, तुझे ज़रा भी शरम ऩही आती अपनी मा को चूत देखने को बोल रहा है, अब यहा छत पर कैसे दिखौ अगाल बगल के लोग कही देख लेंगे तो, कल देख लियो"

"ही, कल ऩही अभी दिखा दे, चारो तरफ तो सुन-सान है फिर अभी भला कौन हमारे छत पर झकेगा"

"छत पर ऩही, कल दिन में घर में दिखा दूँगी, आराम से"

तभी बारिस की बूंदे तेज़ी के साथ गिरने लगी, ऐसा लग रहा था मेरी तरह आसमान भी बर ऩही दिखाए जाने पर रो परा है. मा कहा "ओह बारिश शुरू हो गई, चल जल्दी से बिस्तरा समेत नीचे चल के सोएंगे" मैं भी झट पट बिस्तेर समेटने लगा और हम दोनो जल्दी से नीचे की भागे. नीचे पहुच कर मा अपने कमरे में घुस गई मैं भी उसके के पिच्चे पिच्चे उसके कमरे में पहुच गया. मा ने खीरकी खोल दी और लाइट जला दिया. खीरकी से बरी अच्छी ठंडी ठंडी हवा आ रही थी मा जैसे ही पलंग पर बैठी मैं भी बैठ गया. और मा से बोला "ही, अब दिखा दो ना, अब तो घर में आ गये हम लोग" इस पर मा मुस्कुराते हुए बोली "लगता है आज तेरी किस्मत बरी आक्ची है आज तुझे मालपुआ खाने को तो ऩही पर देखने को ज़रूर मिल जाएगी". फिर मा ने अपने अपना सिर पलंग पे टिका के अपने दोनो पैर सामने फैला दिए और अपने निचले होंठो को चबाते हुए बोली "इधर आ मेरे पैरो के बीच में अभी तुझे दिखती हू. पर एक बात जान ले तू पहली बार देख रहा है देखते ही तेरा पानी निकल जाएगा समझा" फिर मा ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पाकारा और धीरे धीरे उपर उठाने लगी. मेरी हिम्मत तो बढ़ ही चुकी थी मैने धीरे से मा से कहा "ओह मा ऐसे ऩही" "तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा"
"ही मा, पूरा खोल के दिखाओ ना"

"पूरा खोल के से तेरा क्या मतलब है"

"ही पूरा कपरा खोल के, मेरी बरी तम्माना है की मैं तुम्हारे पूरे बदन को नंगा देखु, बस एक बार"

इतना सुनते ही मा ने आगे बढ़ के मेरे चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया और हस्ते हुए बोली "वाह बेटा अंगुली पकर के पूरा हाथ पकरने की सोच रहे हो क्या"

"है मा, छ्होरो ना ये सब बात बस एक बार दिखा दो, दिन में तुम कितने अcचे से बाते कर रही थी और अभी पाता ऩही क्या हो गया है तुम्हे, सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं की आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो की......." "अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भूल गया, दिन में तो बरा भोला बन रहा था और ऐसे दिखा रहा था जैसे कुच्छ जनता ही ऩही, पहले कभी किसी को किया है क्या, या फिर दिन में झूट बोल रहा था"

"है कसम से मा, कभी किसी को ऩही किया, करना तो दूर की बात है कभी देखा या छुआ तक ऩही"

"चल झुटे, दिन में तो देखा ही था और छुआ भी था"

"ही कहा मा, कहा देखा था"
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06-16-2017, 11:32 AM,
#24
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
जब इतना कुच्छ दिखा दिया है तो उसे भी दिखा दो ना ऐसा कौन सा कम हो जाएगा". मा ने अब तक अपना पेटिकोट समेत कर जाँघो बीच राक लिया था और सोने के लिए लेट गई थी. मैने इस बार अपना हाथ उसके जाँघो पर रख दिया, मोटी मोटी गुदाज़ जाँघो का स्पर्श जानलेवा था. जाँघो को हल्के हल्के सहलाते हुए मैं जैसे ही हाथ को उपर की तरफ ले जाने लगा, मा ने मेरा हाथ पकर लिया और बोली "ठहर अगर तुझसे बर्दस्त ऩही होता तो ला मैं फिर से तेरा लंड मुठिया देती हू" कह कर मेरे लंड को फिर से पकर कर मुठियाने लगी पर मैं ऩही माना और एक बार केवल एक बार बोल के ज़िद करता रहा. मा ने कहा "बरा जिद्दी हो गया रे तू तो, तुझे ज़रा भी शरम ऩही आती अपनी मा को चूत देखने को बोल रहा है, अब यहा छत पर कैसे दिखौ अगाल बगल के लोग कही देख लेंगे तो, कल देख लियो"

"ही, कल ऩही अभी दिखा दे, चारो तरफ तो सुन-सान है फिर अभी भला कौन हमारे छत पर झकेगा"

"छत पर ऩही, कल दिन में घर में दिखा दूँगी, आराम से"

तभी बारिस की बूंदे तेज़ी के साथ गिरने लगी, ऐसा लग रहा था मेरी तरह आसमान भी बर ऩही दिखाए जाने पर रो परा है. मा कहा "ओह बारिश शुरू हो गई, चल जल्दी से बिस्तरा समेत नीचे चल के सोएंगे" मैं भी झट पट बिस्तेर समेटने लगा और हम दोनो जल्दी से नीचे की भागे. नीचे पहुच कर मा अपने कमरे में घुस गई मैं भी उसके के पिच्चे पिच्चे उसके कमरे में पहुच गया. मा ने खीरकी खोल दी और लाइट जला दिया. खीरकी से बरी अच्छी ठंडी ठंडी हवा आ रही थी मा जैसे ही पलंग पर बैठी मैं भी बैठ गया. और मा से बोला "ही, अब दिखा दो ना, अब तो घर में आ गये हम लोग" इस पर मा मुस्कुराते हुए बोली "लगता है आज तेरी किस्मत बरी आक्ची है आज तुझे मालपुआ खाने को तो ऩही पर देखने को ज़रूर मिल जाएगी". फिर मा ने अपने अपना सिर पलंग पे टिका के अपने दोनो पैर सामने फैला दिए और अपने निचले होंठो को चबाते हुए बोली "इधर आ मेरे पैरो के बीच में अभी तुझे दिखती हू. पर एक बात जान ले तू पहली बार देख रहा है देखते ही तेरा पानी निकल जाएगा समझा" फिर मा ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पाकारा और धीरे धीरे उपर उठाने लगी. मेरी हिम्मत तो बढ़ ही चुकी थी मैने धीरे से मा से कहा "ओह मा ऐसे ऩही" "तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा"
"ही मा, पूरा खोल के दिखाओ ना"

"पूरा खोल के से तेरा क्या मतलब है"

"ही पूरा कपरा खोल के, मेरी बरी तम्माना है की मैं तुम्हारे पूरे बदन को नंगा देखु, बस एक बार"

इतना सुनते ही मा ने आगे बढ़ के मेरे चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया और हस्ते हुए बोली "वाह बेटा अंगुली पकर के पूरा हाथ पकरने की सोच रहे हो क्या"

"है मा, छ्होरो ना ये सब बात बस एक बार दिखा दो, दिन में तुम कितने अcचे से बाते कर रही थी और अभी पाता ऩही क्या हो गया है तुम्हे, सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं की आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो की......." "अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भूल गया, दिन में तो बरा भोला बन रहा था और ऐसे दिखा रहा था जैसे कुच्छ जनता ही ऩही, पहले कभी किसी को किया है क्या, या फिर दिन में झूट बोल रहा था"

"है कसम से मा, कभी किसी को ऩही किया, करना तो दूर की बात है कभी देखा या छुआ तक ऩही"

"चल झुटे, दिन में तो देखा ही था और छुआ भी था"

"ही कहा मा, कहा देखा था"
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06-16-2017, 11:32 AM,
#25
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
"है, रे मेरी मा निकला रे निकला मेरा निकल गया ओह मा सारा सारा का सारा पानी तेरे मुँह में ही निकल गया रे". मा का हाथ अब और टर गति से चलने लगा ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे पानी को गाता-गत पीते जा रही है. मेरे लंड के सुपरे से निकले एक-एक बूँद पानी चूस जाने के बाद मा ने अपने होंठो मेरे को मेरे लंड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई मुझे देखने लगी और बोली कैसा लगा. मैने कहा "बहुत अक्चा और बिस्तेर पर एक तरफ लुढ़क गया. मेरे साथ साथ मा भी लुढ़क के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठो और गालो को थोरी देर तक चूमती रही.

थोरी देर तक आँख बंद कर के परे रहने के बाद जब मैं उठा तो देखा की मा ने अपनी आँखे बंद कर रखी है और अपने हाथो से अपने चुचियों को हल्के हल्के सहला रही थी. मैं उठ कर बैठ गया और धीरे से मा के पैरो के पास चला गया. मा ने अपना एक पैर मोरे रखा था और एक पैर सीधा कर के रखा हुआ उसका पेटिकोट उसके जेंघो तक उठा हुआ था. पेटिकोट के उपर और नीचे के भागो के बीच में एक गॅप सा बन गया था. उस गॅप से उसकी झांग अंदर तक नज़र आ रही थी. उसकी गुदज जेंघो के उपर हाथ रख के मैं हल्का सा झुक गया और अंदर तक देखने के लिए हालाँकि अनादर रोस्नी बहुत कम थी परंतु फिर भी मुझे उसके काले काले झतो के दर्शन हो गये. झतो के कारण चूत तो ऩही दिखी परंतु चूत की खुसबु ज़रूर मिल गई. तभी मा ने अपनी आँखे खोल दी और मुझे अपने जेंघो के बीच झकते हुए देख कर बोली "है दैया उठ भी गया तू मैं तो सोच रही थी अभी कम से कम आधा घंटा शांत परा रहेगा, और मेरी जेंघो के बीच क्या कर रहा है, देखो इस लरके को बुर देखने के लिए दीवाना हुआ बैठा है," फिर मुझे अपने बाँहो में भर कर मेरे गाल पर चुम्मि काट कर बोली "मेरे लाल को अपनी मा का बुर देखना है ना, अभी दिखती हू मेरे छ्होरे, है मुझे ऩही पाता था की तेरे अंदर इतनी बेकरारी है बुर देखने की"

मेरी भी हिम्मत बढ़ गई थी "है मा जल्दी से खोलो और दिखा दो"

"अभी दिखती हू, कैसे देखेगा, बता ना"

"कैसे क्या मा, खोलो ना बस जल्दी से"

"तो ले ये है मेरे पेटिकोट का नारा खुद ही खोल के मा को नंगा कर दे और देख ले"

"है, मा मेरे से ऩही होगा, तुम खोलो ना"

"क्यों ऩही होगा, जब तू पेटिकोट ऩही खोल पाएगा तो आगे का काम कैसे करेगा"

"है मा आगे का भी काम करने दोगि क्या?"

मेरे इस सवाल पर मा ने मेरे गालो को मसालते हुए पुच्छ, "क्यों आगे का काम ऩही करेगा क्या, अपनी मा को ऐसे ही पायसा छ्होर देगा, तू तो कहता था की तुझे ठंडा कर दूँगा, पर तू तो मुझे गरम कर छ्होर्ने की बात कर रहा है"

"है मा, मेरा ये मतलब ऩही था, मुझे तो अपने कानो पर विस्वास ऩही हो रहा की तुम मुझे और आगे बढ़ने दोगि"

"गढ़े के जैसा लंड होने के साथ साथ तेरा तो दिमाग़ भी गढ़े के जैसा ही हो गया है, लगता है सीधा खोल के ही पुच्छना परेगा, बोल छोड़ेगा मुझे, छोड़ेगा अपनी मा को, मा की बुर चतेगा, और फिर उसमे अपना लॉरा डालेगा, बोल ना"

"है मा, सब करूँगा, सब करूँगा जो तू कहेगी वो सब करूँगा, है मुझे तो विस्वश ऩही हो रहा की मेरा सपना सच होने जा रहा है, ओह मेरे सपनो में आने वाली पारी के साथ सब कुच्छ करने जा रहा हू"

"क्यों सपनो में तुझे और कोई ऩही मैं ही दिखती थी क्या"

"हा मा, तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी, पूरे गाओं में तुमसे सुंदर कोई ऩही"

"है, मेरे 16 साल का जवान छ्होकरे को उसकी मा इतनी सुंदर लगती है क्या?"
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06-16-2017, 11:32 AM,
#26
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
"हा मा, सच में तुम बहुत सुंदर हो और मैं तुम्हे बहुत दीनो से चू...."

"हा, हा बोल ना क्या करना चाहता था, अब तो खुल के बात कर बेटे, शर्मा मत अपनी मा से अब तो हुमने शर्म की हर वो दीवार गिरा दी है जो जमाने ने हमारे लिए बनाई है"

"है मा मैं कब से तुम्हे चॉड्ना चाहता था पर कह ऩही पाता था"

"कोई बात ऩही बेटा अभी भी कुच्छ ऩही बिगरा है वो भला हुआ की आज मैने खुद ही पहल कर दी, चल आ देख अपनी मा को नंगा और आज से बन जा उसका सैययान"

कह कर मा बिस्तेर नीचे उतार गई और मेरे सामने आके खरी हो गई और धीरे धीरे करके अपने ब्लाउस के एक बटन को खोलने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे चाँद बदल में से निकल रहा है. धीरे धीरे उसकी गोरी गोरी चुचिया दिखने लगी. ओह गजब की चुचिया थी, देखने से लग रहा था जैसे की दो बरे नारियल दोनो तरफ लटक रहे हो. एक डम गोल और आगे से नुकीले तीर के जैसे. चुचियों पर नासो की नीली रेखाए स्पस्त दिख रही थी. निपल थोरे मोटे और एकद्ूम खरे थे और उनके चारो तरफ हल्का गुलबीपन लिए हुए गोल गोल घेरा था. निपल भूरे रंगे के थे. मा अपने हाथो से अपने चुचियों को नीचे से पकर कर मुझे दिखती हुई बोली "पसंद आई अपनी मा की चुचि, कैसी लगी बेटा बोल ना, फिर आगे का दिखौँगी"

"है मा तुम सच में बहुत सुंदर हो, ओह कितनी सुंदर चुउ..हिय है ओह"

मा ने अपने चुचियों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मुझे दिखाते हुए हल्का सा हिलाया और बोली "खूब सेवा करनी होगी इसकी तुझे, देख कैसे शान से सिर उठाए खरी है इस उमर में भी, तेरे बाप के बस का तो है ऩही अब तू ही इन्हे संभालना" कह कर वो फिर अपने हाथो को अपने पेटिकोट के नारे पर ले गई और बोली "अब देख बेटा तेरा को जन्नत का दरवाजा दिखती हू, अपनी मा का स्पेशल मालपुआ देख, जिसके लिए तू इतना तरस रहा था". कह कर मा ने अपने पेटिकोट के नारे को खोल दिया. पेटिकोट उसके कमर से सरसरते हुए सीधा नीचे की गिर गया और मा ने एक पैर से पेटिकोट को एक तरफ उच्छल कर फेक दिया और बिस्तर के और नज़दीक आ गई फिर बोली "है बेटा तूने तो मुझे एक डम बेशरम बना दिया", फिर मेरे लंड को अपने मुति में भर के बोली "ओह तेरे इस सांड जैसे लंड ने तो मुझे पागल बना दिया है, देख ले अपनी मा को जी भर के" मेरी नज़रे मा के जेंघो के बीच में टिकी हुई थी. मा की गोरी गोरी चिकनी रनो के बीच में काले काले झतो का एक तिकोना बना हुआ था. झांट बहुत ज़यादा बरे ऩही थे. झांतो के बीच में से उसकी गुलाबी चूत की हल्की झलक मिल रही थी, मैने अपने हाथो को मा के जेंघो पर रखा और थोरा नीचे झुक कर ठीक चूत के पास अपने चेहरे को ले जा के देखने लगा. मा ने अपने दोनो हाथ को मेरे सिर पर रख दिया और मेरे बालो से खेलने लगी फिर बोली "रुक जा ऐसे ऩही दिखेगा तुझे आराम से बिस्तर पर लेट के दिखती हू"

"ठीक है, आ जाओ बिस्तेर पर, मा एक बार ज़रा पिच्चे घुमओ ना"
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06-16-2017, 11:33 AM,
#27
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
"ओह, मेरा राजा मेरा पिच्छवारा भी देखना चाहता है क्या, चल पिच्छवारा तो मैं तुझे खरे खरे ही दिखा देती हू ले देख अपनी मा के ****आर और गांद को". इतना कह कर मा पिच्चे घूम गई. ओह कितना सुंदर ड्रिस्या था वो. इसे मैं अपनी पूरी जिंदगी में कभी ऩही भूल सकता. मा के ****आर सच में बरे खूसूरत थे. एक डम मलाई जैसे, गोल-मटोल, गुदज, मांसल. और उस ****आर के बीच में एक गहरी लकीर सी बन रही थी. जो की उसके गांद की खाई थी. मैने मा को थोरा झुकने को कहा तो मा झुक गई और आराम से देवनो मक्खन जैसे ****अरो को पकर के अपने हाथो से मसालते हुए उनके बीच की खाई को देखने लगा. दोनो ****आर को बीच में गांद की भूरे रंग की च्छेद फुकफुका रही थी. एकद्ूम छ्होटी सी गोल च्छेद, मैने हल्के से अपने हाथ को उस च्छेद पर रख दिया और हल्के हल्के उसे सहलाने लगा, साथ में मैं ****अरो को भी मसल रहा था. पर तभी मा आगे घूम गई

"चल मैं थक गई खरे खरे अब जो करना है बिस्तर पर करेंगे". और वो बिस्तेर पर चाड गई. पलंग की पुष्ट से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनो पैरो को मेरे सामने खोल कर फैला दिया और बोली "अब देख ले आराम से, पर एक बात तो बता तू देखने के बाद क्या करेगा कुच्छ मालूम भी है तुझे या ऩही" "है, मा चो....दुन्गाआअ"

"अक्चा छोड़ेगा, पर कैसे ज़रा बता तो सही कैसे छोड़ेगा"

"है मैं पहले तुम्हारी चु..हि चुस्स्स...ंअ चाहता हू"

"चल ठीक है चूस लेना, और क्या करेगा"

"ओह और और्र्ररर..... चूत देखूँगा और फिर्र......ंउझे पाता ऩही"

"पाता ऩही ये क्या जवाब हुआ पाता ऩही, जब कुच्छ पाता ऩही तो मा पर डोरे क्यों दाल रहा था"

"ओह मा मैने पहले किसी को किया ऩही है नाआअ इसलिए मुझे पाता ऩही है, मुझे बस थोरा बहुत पाता है, जो की मैने गाओं के लार्को के साथ सीखा था"

"तो गाओं के छ्होक्रो ने ये ऩही सिखाया की कैसे किया जाता है, खाली यही सिखाया की मा पर डोरे डालो"

"ओह मा तू तो समझती ही ऩही अर्रे वो लोग मुझे क्यों सीखने लगे की तुम पर डोरे डालो, वो तो... वो तो तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो इसलिए मैं तुम्हे देखता था"

"ठीक है चल तेरी बात स्मझ गई बेटा की मैं तुझे सुंदर लगती हू पर मेरी इस सुंदरता का तू फयडा कैसे उठाएगा उल्लू ये भी तो बता दे ना, की खाली देख के मूठ मार लेगा"

"है मा, ऩही मैं तुम्हे छोड़ना चाहता हू, मा तुम सीखा देना, सीखा दोगि नाअ" कह कर मैने बुरा सा मुँह बना लिया"

"है मेरा बेटा देख तो मा की लेने के लिए कैसे तरप रहा, आजा मेरे पायारे मैं तुझे सब सीखा दूँगी, तेरे जैसे लंड वाले बेटे को तो कोई भी मा सीखना चाहेगी, तुझे तो मैं सीखा पढ़ा के चुदाई का बादशाह बना दूँगी, आजा पहले अपनी मा की चुचियों से खेल ले जी भर के फिर तुझे चूत से खेलना सिखाती हू बेटा"

मैं मा के कमर के पास बैठ गया और मा तो पूरी नंगी पहले से ही थी मैने उसकी चुचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे धीरे सहलाने लगा. मेरे हाथ में सयद दुनिया की सबसे खूबसूरत चुचिया थी. ऐसी चुचिया जिनको देख के किसी का भी दिल मचल जाए. मैं दोनो चुचियों की पूरी गोलाई पर हाथ फेर रहा था. चुचिया मेरी हथेली में ऩही समा रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत में घूम रहा हू. मा की चुचियो का स्पर्श ग़ज़ब का था. मुलायम, गुदज, और सख़्त गतिलापन ये सब अहसास सयद आक्ची गोल मटोल चुचियों को दबा के ही पाया जा सकता है. मुझे इन सारी चीज़ो का एक साथ आनंद मिल रहा था. ऐसी चुचि दबाने का सौभाग्या नसीब वालो को ही मिलता है इस बात का पाता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला जब मैने दूसरी अनेक तरह की चुचियों का स्वाद लिया.
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06-16-2017, 11:33 AM,
#28
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मा के मुँह से हल्की हल्की आवाज़े आनी शुरू हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खीच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठो का पहला अनूठा स्पर्श मेरे होंठो को दिया. हम दोनो के होंठ एक दूसरे से मिल गये और मैं मा की दोनो चुचियों को पाकरे हुए उसके होंठो का रस ले रहा था. कुच्छ ही सेकेंड्स में हमारे जीभ आपस में टकरा रहे थे. मेरे जीवन का ये पहला चुंबन करीब दो तीन मिनिट्स तक चला होगा. मा के पतले होंठो को अपने मुँह में भर कर मैने चूस चूस कर और लाल कर दिया. जब हम दोनो एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हाँफ रहे थे. मेरे हाथ अब भी उसकी दोनो चुचिया पर थे और मैं अब उनको ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था. मा के मुँह से अब और ज़यादा तेज सिसकारिया निकलने लगी थी. मा ने सीस्यते हुए मुझसे कहा " ओह ओह स्स्सि......शबश ऐसे ही पायर करो मेरी चुचियो से, हल्के हल्के आराम से मस्लो बेटा, ज़यादा ज़ोर से ऩही, ऩही तो तेरी मा को मज़ा ऩही आएगा, धीरे धीरे मस्लो".मेरे हाथ अब मा की चुचियों के निपल से खेल रहे थे. उसके निपल अब एक डम सख़्त हो चुके थे. हल्का कालापन लिए हुए गुलबी रंग के निपल खरे होने के बाद ऐसे लग रहे थे जैसे दो गोरे गुलाबी पाहरियों पर बादाम की गिरी रख दी गई हो. निपल के चारो ओर उसी रंग का घेरा थे. ध्यान से देखने पर मैने पाया की उस घेरे पर छ्होटे छ्होटे दाने से उगे हुए थे. मैं निपपलो को अपनी दो उंगलियों के बीच में लेकर धीरे-धीरे मसल रहा था और पायर से उनको खींच रहा था. जब भी मैं ऐसा करता तो मा की सिसकिया और तेज हो जाती थी. मा की आँके एक डम नासीली हो चुकी थी और वो सिसकारिया लेते हुए बुदबुदाने लगी "ओह बेटा ऐसे ही, ऐसे ही, तुझे तो सीखने की भी ज़रूरत ऩही है रे, ओह क्या खूब मसल रहा है मेरे पयरे, ऐसे ही कितने दिन हो गये जब इन चुचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या पायर किया है, कैसे तरसती थी मैं की काज़ कोई मेरी इन चुचियों को मसल दे पायर से सहला दे, पर आख़िर में अपना बेटा ही काम आया, आजा मेरे लाल" कहते हुए उसने मेरे सिर को पकर कर अपनी चुचियों पर झुका लिया. मैं मा का इशारा साँझ गया और मैने अपने होंठ मा की चुचियों से भर लिए. मेरे एक हाथ में उसकी एक चुचि और दूसरी चुचि पर मेरे होंठ चिपके हुए थे. मैने धीरे धीरे उसके चुचियों को चूसना सुरू कर दिया था. मैं ज़यादा से ज़यादा चुचि को अपने मुँह में भर के चूस रहा था. मेरे अंदर का खून इतना उबाल मरने लगा था की एक दो बार मैने अपने दाँत भी चुचियों पर गर्अ दिए थे, जिस से मा के मुँह से अचानक से चीख निकल गई थी. पर फिर भी उसने मुझे रोका ऩही वो अपने हाथो को मेरे सिर के पिच्चे ले जा कर मुझे बालो से पकर के मेरे सिर को अपनी चुचियों पर और ज़ोर ज़ोर से दबा रही थी और डाँट काटने पर एक डम से घुटि घुटि आवाज़ में चीकते हुए बोली "ओह धीरे बेटा, धीरे से चूसो चुचि को ऐसे ज़ोर से ऩही काट ते है", फिर उसने अपनी चुचि को अपने हाथ से पकरा और उसको मेरे मुँह में घुसने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी चुचि को पूरा का पूरा मेरे मुँह में घुसा देना चाहती हो और सीस्यसी "ओह राजा मेरे निपल को चूसो ज़रा, पूरे निपल को मुँह में भर लो और कस कस के चूसो राजा जैसे बचपन में दूध पीने के लिए चूस्ते थे". मैने अब अपना ध्यान निपलेस पे कर दिया और निपल को मुँह में भर कर अपनी जीभ उसके चारो तरफ गोल गोल घूमते हुए चूसने लगा. मैं अपनी जीभ को निपल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था. निपल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए निपल को चूसने पर मा एक डम मस्त हो जा रही थी और उसके मुँह से निकलने वाली सिसकिया इसकी गवाही दे रही थी. मैं उसकी चीखे और सिसकिया सुन कर पहले पहल तो डर गया था पर मा के द्वारा ये समझाए जाने पर की ऐसी चीखे और सिसकिया इस बात को बतला रही है की उसे मज़ा आ रहा है तो फिर दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था. जिस चुचि को मैं चूस रहा था वो अब पूरी तरह से मेरे लार और थूक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी फिर भी मैं उसे चूसे जा रहा था, ताभ मा ने मेरे सिर को अपनी वाहा से हटा के अपनी दूसरी चुचि की तरफ करते हुए कहा "है खाली इसी चुचि को चूस्ता रहेगा, दूसरी को भी चूस, उसमे भी वही स्वाद है", फिर अपनी दूसरी चुचि को मेरे मुँह में घुसते हुए बोली "इसको भी चूस चूस के लाल कर दे मेरे लाल, दूध निकल दे मेरे सैय्या, एक डम आम के जैसे चूस और सारा रस निकल दे अपनी मा की चुचियों का, किसी काम की ऩही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आएँगी" मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहली वाली चुचि दबाते हुए दूसरी को पूरे मनोयोग से चूसने लगा. मा सिसकिया ले रही थी और चुस्वा रही थी कभी कभी अपना हाथ मेरे कमर के पास ले जा के मेरे लोहे जैसे ताने हुए लंड को पकर के मारोर रही थी कभी अपने हाथो से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी. इस तरह काफ़ी देर तक मैं उसकी चुचियों को चूस्ता रहा, फिर मा ने खुद अपने हाथो से मेरा सिर पकर के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की र देखने लगी. मेरे होंठ मेरे कुध के थूक से भीगे हुए थे. मा की बाए चुचि अभी भी मेरे लार से चमक रही थी जबकि दाहिनी चुचि पर लगा थूक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचिया लाल हो चुकी थी, और निपपलो का रंग हल्का कला से पूरा कला हो चुका था (ऐसा बहुत ज़यादा चूसने पर खून का दौरा भर जाने के कारण हुआ था).
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06-16-2017, 11:33 AM,
#29
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
मा ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खीच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुंबन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेकटे हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली "खाली दूध ही पिएगा या मालपुआ भी खाएगा, देख तेरा मालपुआ तेरा इंतेज़ार कर रहा है राजा" मैने भी मा के होंठो का चुंबन लिया और फिर उसके भरे भरे गालो को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा और फिर उसके नाक को चूमा और फिर धीरे से बोला "ओह मा तुम सच में बहुत सुंदर हो" इस पर मा ने पुचछा

"क्यों मज़ा आया ना चूसने में"

"हा मा, गजब का मज़ा आया, मुझे आज तक ऐसा मज़ा कभी ऩही आया था". तब मा ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा " नीचे और भी मज़ा आएगा, यहा तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है, आजा बेटे आज तुझे असली मालपुआ खिलती हू" मैं धीरे से खिसक कर मा के पैरो पास आ गया. मा ने अपने पैरो को घुटने के पास से मोर कर फैला दिया और बोली "यहा, बीच में, दोनो पैर के बीच में आ के बैठ तब ठीक से देख पाएगा अपनी मा का खजाना" मैं उठ कर मा के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बाल बैठ गया और आगे की र झुका, सामने मेरे वो चीज़ थी जिसको देखने के लिए मैं मारा जा रहा था. मा ने अपनी दोनो जंघे फैला दी और अपने हाथो को अपने बुर के उपर रख कर बोली "ले देख ले अपना मालपुआ, अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा" मेरी खुशी का तो ठिकाना ऩही था. सामने मा की खुली जाँघो के बीच झांतो का एक तिकोना सा बना हुआ था. इस तिकोने झांतो के जंगल के बीच में से मा की फूली हुए गुलाबी बुर का चीड़ झाँक रहा था जैसे बदलो के झुर्मुट में से चाँद झकता है. मैने अपने कपते हाथो को मा के चिकने जाँघो पर रख दिया और थोरा सा झुक गया. उसके बुर के बॉल बहुत बरे बरे ऩही थे छ्होटे छ्होटे घुंघराले बॉल और उनके बीच एक गहरी लकीर से चीरी हुई थी. मैने अपने दाहिने हाथ को जाँघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुचछा "मा मैं इसे च्छू लू......."

"च्छू ले, तेरे छुने के लिए ही तो खोल के बैठी हू"

मैने अपने हाथो को मा की चूत को उपर रख दिया. झांट के बॉल एक डम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे और ऐसा लग रहा थे, हालाँकि आम तौर पर झांट के बॉल थोरे मोटे होते है और उसके झांट के बॉल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे. हल्के हल्के मैं उन बालो पर हाथ फिरते हुए उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रहा था. अब चूत की दरार और उसकी मोटी मोटी फांके स्पस्त रूप से दिख रही थी. मा का बुर एक फूला हुआ और गद्देदार लगता था. छूट की मोटी मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी. मेरे से रहा ऩही गया और मैं बोल परा "ओह मा ये तो सच मुच में मालपुए के जैसा फूला हुआ है".

"हा बेटा यही तो तेरा असली मालपुआ है आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे यही खाना"

"हा मा मैं तो हमेशा यही मालपुआ ख़ौँगा, ओह मा देखो ना इस से तो रस भी निकल रहा है" (छूट से रिस्ते हुए पानी को देख कर मैने कहा).

"बेटा यही तो असली माल है हम औरतो का, ये रस मैं तुझे अपनी बुर की थाली में सज़ा कर खिलौंगी, दोनो फाँक को खोल के देख कैसा दिखता है, हाथ से दोनो फाँक पकर कर खीच कर बुर को चिदोर कर देख"
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06-16-2017, 11:33 AM,
#30
RE: rajsharmastories धोबन और उसका बेटा
सच बताता हू दोनो फांको को चियर कर मैने जब चूत के गुलाबी रस से भीगे च्छेद को देखा तो मुझे यही लगा की मेरा तो जानम सफल हो गया है. छूट के अंदर का भाग एक डम गुलाबी था और रस भीगा हुआ था जब मैने उस चीड़ को च्छुआ तो मेरे हाथो में चिप छिपा सा रस लग गया. मैने उस रस को वही बिस्तर के चादर पर पोच्च दिया और अपने सिर को आगे बढ़ा कर मा के बुर को चूम लिया. मा ने इस पर मेरे सिर को अपने चूत पर दबाते हुए हल्के से सिसकते हुए कहा "बिस्तर पर क्यों पोच्च दिया, उल्लू, यही मा का असली पायर जो की तेरे लंड को देख के चूत के रास्ते छलक कर बाहर आ रहा है, इसको चक के देख, चूस ले इसके"

"है मा चुसू मैं तेरे बुर को, है मा चतु इसको"

"हा बेटा छत ना चूस ले अपनी मा के चूत के सारे रस को, दोनो फांको को खोल के उसमे अपनी जीभ दाल दे और चूस, और ध्यान से देख तू तो बुर के केवल फांको को देख रहा है, देख मैं तुझे दिखती हू" और मा ने अपने चूत को पूरा चिदोर दिया और अंगुली रख कर बताने लगी "देख ये जो छ्होटा वाला च्छेद है ना वो मेरे पेशाब करने वाला च्छेद है, बुर में दो दो च्छेद होते है, उपर वाला पेशाब करने के काम आता है और नीचे वाला जो ये बरा च्छेद है वो छुड़वाने के काम आता है इसी च्छेद में से रस निकालता है ताकि मोटे से मोटा लंड आसानी से चूत को छोड़ सके, और बेटा ये जो पेशाब वाले च्छेद के ठीक उपर जो ये नुकीला सा निकला हुआ है वो क्लिट कहलाता है और ये औरत को गर्म करने का अंतिम हथियार है. इसको च्छुटे ही औरत एक डम गरम हो जाती है, समझ में आया"

"हा मा, आ गया साँझ में है कितनी सुंदर है ये तुम्हारी बुर, मैं चतु इसे मा.." "हा बेटा, अब तू चाटना शुरू कर दे, पहले पूरी बुर के उपर अपनी जीभ को फिरा के चाट फिर मैं आगे बेटाटी जाती हू कैसे करना है"

मैने अपनी जीभ निकल ली और मा की बुर पर अपने ज़ुबान को फिरना शुरू कर दिया, पूरी चूत के उपर मेरी जीभ चल रही थी और मैं फूली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी ज़बान से उपर से नीचे तक छत रहा था. अपनी जीभ को दोनो फांको के उपर फेरते हुए मैं ठीक बुर के दरार पर अपनी जीभ रखी और धीरे धीरे उपर से नीचे तक पूरे चूत की दरार पर जीभ को फिरने लगा, बुर से रिस रिस कर निकालता हुआ रस जो बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मेरे मुझे मिल रहा था. जीभ जब चूत के उपरी भाग में पहुच कर क्लिट से टकराती थी तो मा की सिसकिया और भी तीज हो जाती थी. मा ने अपने दोनो हाथो को शुरू में तो कुच्छ देर तक अपनी चुचियों पर रखा था और अपनी चुचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही मगर बाद में उसने अपने हाथो को मेरे सिर के पिच्चे लगा दिया और मेरे बालो को सहलाते हुए मेरे सिर को अपनी चूत पर दबने लगी. मेरी चूत चूसा बदस्तूर जारी थी और अब मुझे इस बात का अंदाज़ा हो गया था की मा को सबसे ज़यादा मज़ा अपनी क्लिट की चूसा में आ रहा है इसलिए मैने इस बार अपने जीभ को नुकीला कर के क्लिट से भीरा दिया और केवल क्लिट पर अपनी जीभ को तेज़ी से चलाने लगा. मैं बहुत तेज़ी के साथ क्लिट के उपर जीभ चला रहा था और फिर पूरे क्लिट को अपने होंठो के बीच दबा कर ज़ोर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा, मा ने उत्तेजना में अपने ****अरो को उपर उच्छल दिया और ज़ोर से सिसकिया लेते हुए बोली "है दैया, उईईइ मा सी सी..... चूस ले ओह चूस ले मेरे भज्नसे को ओह, सी क्या खूब चूस रहा है रे तू, ओह मैने तो सोचा भी ऩही थऽआअ की तेरी जीभ ऐसा कमाल करेगी, है रे बेटा तू तो कमाल का निकला ओह ऐसे ही चूस अपने होंठो के बीच में भज्नसे को भर के इसी तरह से चूस ले, ओह बेटा चूसो, चूसो बेटा......"

मा के उत्साह बढ़ने पर मेरी उत्तेजना अब दुगुनी हो चुकी थी और मैं दुगुने जोश के साथ एक कुत्ते की तरह से लॅप लॅप करते हुए पूरे बुर को छाते जा रहा था. अब मैं चूत के भज्नसे के साथ साथ पूरे चूत के माँस (गुड्डे) को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था और, मा की मोटी फूली हुई चूत अपने झांतो समेत मेरे मुँह में थी. पूरी बुर को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुँह में भर कर चूसने के बाद मैने अपने होंठो को खूल कर चूत के छोड़ने वाले च्छेद के सामने टिका दिया और बुर के होंठो से अपने होंठो को मिला कर मैने खूब ज़ोर ज़ोर से चूसना सुरू कर दिया. बर का नशीला रस रिस रिस कर निकल रहा था और सीधा मेरे मुँह में जा रहा था. मैने कभी सोचा भी ऩही था की मैं चूत को ऐसे चुसूंगा या फिर चूत की चूसा ऐसे की जाती है, पर सयद चूत सामने देख कर चूसने की कला अपने आप आ जाती है. फुददी और जीभ की लरआई अपने आप में ही इतनी मजेदार होती है की इसे सीखने और सीखने की ज़रूरत ऩही पार्टी, बस जीभ को फुददी दिखा दो बाकी का काम जीभ अपने आप कर लेती है. मा की सिसकिया और शाबाशी और तेज हो चुकी थी, मैने अपने सिर को हल्का सा उठा के मा को देखते हुए अपने बुर के रस से भीगे होंठो से मा से पुचछा, "कैसा लग रहा है मा, तुझे अक्चा लग रहा है"
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