Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:35 PM,
#61
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मुझे एक तलब सी लगने लगी की काश मेरे पंख होते तो झट से उड़ कर उसके पास पहूँच जाऊ , वो कुछ बोले उस से पहले ही भर लू उसको अपने आगोश में किसी बादल की तरह टूट कर बरस जाऊ उस पर, सीने में दर्द सा होने लगा था रात के ढाई बज रहे थे सब लोग दुबके थे बिस्तर में, खोये थे अपने अपने सपनो में और एक हम परेशान बिना किसी बात के ये दिलो के मसले भी बड़े अजीब होते है समझ कुछ नहीं आता बस एक दर्द से जूझना पड़ता है कुछ मिलता नहीं इसमें पर फिर भी करना पड़ता है 


सुबह होने को आई मुझे करार नहीं आया चार बजे चाची उठी उन्होंने मुझे देखा और बोली- नींद नहीं आई 

मैं- पता नहीं कुछ परेशानी सी है 

वो- होता है बेटा होता है 

मैं- क्या होता है 

वो- खुद ही समझ जाओगे 

मैं- पहेलियाँ न बुझाओ आप 

वो- थोड़ी देर में नीचे आ जाना चाय पीने 

मैं- ठीक है 

नीचे गया तो मम्मी भी जाग चुकी थी वो बोली- आज तो जल्दी जाग गया 

मैं- जी 

वो- रोज ही जल्दी जगा कर स्वास्थ्य पर ध्यान दिया कर 

मैं मन ही मन सोच रहा था की घर वाले भी अजीब है , घर की क्या अहमियत क्या होती है ये बहुत बाद में जाकर पता चला चाय की चुस्किया लेते हुए मैं अपनी और नीनू की ही तस्वीर को देख रहा था उसकी वो प्यारी सी मुस्कान मुझे बहुत अच्छी लगती थी ,ये बड़ा ही अजीब सा रिश्ता था उसका और मेरा की लिखने का जो सोचु तो शब्द कम पड़ जाये पर बतया ना जाये की वो मेरी क्या लगती थी , दिन निकल आया था नाश्ता पानी करके मैं जो मोहल्ले की दूकान पर आया तो पता चला की लड़के लोग आज नहर में नहाने जा रहे थे , अपना भी मन था पर आज पिताजी की भी छुट्टी थी तो रिस्क नहीं ले सकता था पर मेरा बागी मन नहीं माना तो मैं भी हो लिया उनके साथ 


वो नादान उम्र, वो अल्हडपन न कोई चिंता ना फ़िक्र, रगड़ रगड़ कर मजा लिया नहर में नहाने का, समय का कुछ भान नहीं रहा जब घर आये तो दिल घबरा रहा था बाल मेरे बिखरे से थे चेहरे पर खुश्की थी पिताजी आँगन में ही बैठे थे पुछा उन्होंने- कहा गए थे 

मैं- जी यही था 

वो- यहाँ तो हम थे 

मैं- खेलने गया था 

वो- शकल से तो कुछ और लग रहा है ,नहर में नहा के आये हो ना कितनी बार मना किया है मानते क्यों नहीं तुम 

मैं- जी नहाने नहीं गया था 

वो – झूट मत बोलो 

मैंने फिर से मन किया और कान पे एक रेह्प्ता आ टिका, आँखों के आगे सितारे नाच गए , रंगाई शुरू हो गए तीन चार थप्पड़ टिकते गए एक के बाद एक पिताजी को गुस्सा इस बात का था की झूठ क्यों बोलता हूँ मैं , किसे ने नहीं छुटाया , मार पड़ती रही जब देखो मारते ही रहते थे घरवाले समझ क्या रखा मुझे पर चुप रहना ही बेहतर समझा कुछ बोलता तो और मार पड़ती गाल लाल हो गया था मैं अपने कमरे में आके बैठ गया , मन कर रहा था की भाग जाऊ यहाँ से कही दूर पर अपना यही फ़साना था यही दास्ताँ थी रोज़ का था तो कुछ कर नहीं सकती थे 


जब कुछ मूड ठीक हुआ तो मैं घर सी बाहर निकला और मोहल्ले के तरफ चल पड़ा तो रस्ते में ही मंजू मिल गयी आँखे चार हुई उसने धीरे से एक कागज़ निकाला और गिरा कर चली गयी हमारी चाल हम पर ही बड़े चाव से मैंने उसे उठाया और जेब में रख लिया
अब लेटर था उसका हाथ में कुछ तो लिखा ही होगा खुद को किसी नवाब से कम न समझते हुए मैं घर आया भागकर और कागज को खोल कर देखा तो मेरा तो माथा ही घूम गया पूरा कागज़ कोरा था बस कोना मुड़ा हुआ था , ये कैसा मजाक था या फिर उसका कोई इशारा था मुझे कुछ समझ ना आये ये कैसी मुश्किल थी कैसा फ़साना था कुछ तो था ही वर्ना ऐसे ही कोना मोड़ कर वो कागज न देती पर ये क्या इशारा था , कभी कभी तो मैं सोचता था की ज़माने के हिसाब से मैं मंदबुद्धि तो न रह गया 


हमे तो उम्मीद थी मंजू दो बात कहेगी चाहे कडवी ही सही पर उसने तो उलझा ही डाला था , रात हो गयी खूब दिमाग लगाया पर कुछ समझ आये ही ना , मोका देख कर मैंने पिस्ता को फ़ोन किया तीन बार मिलाया पर हर बार उसकी माँ ही हेल्लो हेल्लो करती रही तो वो आस भी गयी , समस्या बहुत गंभीर कोई उपाय न मिले एक और रात मेरी अब ऐसे ही कटने वाली थी , एक बार मैं छत की मुंडेर पर बैठा चाँद को ताक रहा था चांदनी एक बार फिर से मेरी बेबसी पर हंस रही थी सवाल तो बहुत थे पर जवाब कोई न मिले 


पता नहीं कितनी रात बीत गयी चाची के कमरे का दरवाजा खुला , उठी होंगी पानी- पेशाब के लिए मुझे फिर से उसी हाला में देख कर वो मेरे पास आई और बोली- आज भी नींद नहीं आ रही क्या , कोई परेशानी है क्या शाम को भी कुछ उलझे उलझे से लग रहे थे 

मैं- जी कुछ नहीं बस ऐसे ही थोड़ी सी बेचैनी है 

वो- आज कल तुम कुछ ज्यादा ही बेचैन नहीं हो रहे हो 

मैं- बस जा ही रहा हूँ सोने को 

वो मेरे बालो में हाथ फिराते हुए बोली- चलो बताओ क्या परेशानी है 

मैं- पहले आप वादा करोगी की किसी को बताओगी नहीं 

वो- चल ठीक है वादा 

मैंने वो कोरा कागज़ उनकी आँखों के सामने कर दिया 

चाची ने उसको देखा कुछ देर और फिर उनको हँसी आ गयी , मुझे हुई उलझन 

वो- किसने दिया है तुम्हे ये 

मैं- वो नहीं बता सकता 

चाची- तो ठीक है मैं भी तुम्हारी उलझन नहीं सुल्झाउंगी 

मैं- चाची, मेरा विश्वास करो, मैं अभी नहीं बता सकता पर वादा करता हूँ सही समय पर कुछ छुपाऊ भी नहीं गा 

वो- बेटा, सो जाओ जाकर रात बहुत आ गयी है , जवान लडको का बिना बात के रातो को यु जागना ठीक नहीं रहता 

मैं- मुझे नींद नहीं आती 

वो- उस कागज़ को मुझे थमाती हुई- बेटा ये तुम्हारी परीक्षा है देखो तुम पास होते हो या फ़ैल 
चाची पानी पीकर गयी सो हम रह गए चुतिया की तरह , खैर, सुबह हुई दो रातो की नींद से आँखे होवे बोझिल पर मन बावरा कहा माने किसी को उलझा था उस डोर से जो मंजू ने जोड़ दी थी बिना बात के साली दो शब्द ही लिख देती पर जैसा की चाची ने कहा था , कुछ तो था ही उस कोरे कागज़ में ही पिताजी और चाचा अपने अपने काम पर चले गए थे मम्मी गयी थी मंदिर, मैं चाची के पास रसोई में गया 

वो- हां भई, बताओ कैसे दर्शन दिए रसोई में 

मैंने फिर से वो कागज़ उनको दे दिया 

वो- बेटा, मैंने कहा न जब तक तुम न बताओगे की किसने दिया मैं तुम्हारी मदद नहीं करुगी
अजीब उलझन में उलझा दिया रे मंजू तूने , अब कौन मेरी परेशानी दूर करे मैंने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और बैठक में आके बैठ गया और गहरी सोच में डूब गया , चाची भी थोड़ी देर बाद आ गयी और मेरी और देख कर मुस्कुराने लगी, ले लो मेरी बेबसी का मजा 

चाची- वैसे कब तक देना है जवाब तुमको 

मैं- किस चीज़ का 

वो- मुझे बना रहे हो 

मैं- चाची, मेरी टांग मत खीचो मैं बहुत परेशां हूँ 

वो- बेटा, तुम्हारी हरकतों से एक दिन कुनबे को परेशानी होने वाली है हमे लगता तो था की तुम जवान हो गए हो पर इतने हो गए हो ये सोचा नहीं था 

मैं कुछ नहीं बोला और उठने लगा तो उन्होंने मुझे बिठा दिया और बोली-पढाई कैसी चल रही है इस बार पास तो हो जाओगे ना 

मैं- जी बिलकुल हो जाऊंगा कोई दिकत नहीं है 

वो- बेटा तुम्हारी हरकतों से कभी कभी शक होता है वैसे कहो तो तुम्हारी मम्मी को बता दू वो दे देंगी तुम्हे जवाब 

मैं- कल ही तो पिताजी ने ने खाल उतारी थी , आपको ठीक नहीं लग रहा तो कर दो शिकायत और मार खा लूँगा मेरा कौन सा कुछ घिस जाना है वैसे भी आजतक मार ही तो खाई है मैंने 

चाची- सब तुम्हारी भलाई के लिए ही है 

मैं- हां जी सब समझता हूँ मैं 

वो- समझते हो तो जवाब दो पत्र का 

मैं- पहले सवाल तो पता चल जाये 
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12-29-2018, 02:35 PM,
#62
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाची ने अपना पेट पकड़ लिया और खिलखिला के हंसने लगी , बाह रे दुनिया किसी की परेशानी किसी के हंसने का कारण बन जाते है 

मैं- ठीक है आप मत बताओ मैं सवाल करने वाली से ही बोल दूंगा की मुझे समझ ना आया 

वो- हां ये सही रहेगा वो भी समझ लेगी की किस मुर्ख से बात करने चली है वो 

मैं- चाची ये अहसान करदो, आप जो कहोगे वो करूँगा चाहे कितना भी काम करवा लेना कर दो ना मेरी मदद 

चाची- जा एक कलर पेन लेकर आ केसरिया वाला 

मैं दोड़ कर गया और पेन लेकर आया उन्होंने कागज़ पे कुछ लिख दिया और बोली- दे देना जिसे देना है 

मैंने देखा उस पर कुछ भी ना लिखा था बस आधे से ज्यादा कागज़ को उन्होंने रंग दिया था 

मैं- ये कैसा जावाब है 

वो- जैसा उसका सवाल है 

मैं- सवाल क्या है वो तो बता दो 

वो- वो पूछ रही है की कोरे कागज़ सी है मेरी जिंदगी तुम क्या लिखोगे 

मैं- और आपने क्या लिखा ये 

वो- यही की तुम्हारे जीवन में रंग लेकर आया हूँ 

मैंने अपना सर पीट लिया हाय रे मंजू तुझे क्या गम हो गया जो हमे भी उलझा डाला इस तरह से तूने सीधे सीधे ना पुछ लेती की बात क्या है , खैर चलो बात तो आगे बढ़ी जैसे तैसे करके 


Chachi-खाना बनाने जा रही हूँ क्या खाओगे 

मैं- जो रोज खाता हूँ वो ही खाऊंगा कौन सा मेरे लिए कुछ स्पेशल बनेगा 

वो- आज तो बना ही दूंगी , बेटा प्रेम की राह जो चल पड़ा है 

- ये मजाक था या आपका ताना 

वो- बता क्या खायेगा 

मैं- ऐसी बात है तो बना दो नमकीन चावल और बूंदी का रायता 

वो- ठीक है बनाती हूँ

चाची रसोई में चली गयी मैं बिमला की तरफ चला गया पर फिर से उसके घर पर ताला लटका हुआ था ये रोज रोज ताले को देख कर मेरा दिमाग सटकने लगा मैं घर आया और चाची से पुछा तो उन्होंने बताया की बिमला एक स्कूल में लग गयी है तो दोपहर बाद ही आती है , साला जिसे देखो तरक्की कर आहा है एक मैं ही हूँ बस नाकाबिल चाची रसोई में लगी थी मैंने अचानक से ही पूछ लिया की आपको कैसे पता चला की वो कोरे कागज़ के सवाल का तो उनकी सांस अटक गयी वो बोली- तेरा काम हो गया न तो निकल ले खाना बन जायेगा तो बोल दूंगी पर मैं ढीठ एक नुम्बर का पर वो कैसे बताती मुझे सबके अपने अपने दिन होते है जवानी के तो फिर जाने दिया

खाने के टाइम तक मम्मी भी आ गयी थी उन्होंने बताया की उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं है तो मैं चाची के साथ प्लाट में चला जाऊ, तो दोपहर बाद मैं और चाची दोनों प्लाट में चल दिए सर पर बाल्टी रखे चाची मटकते हुए मेरे आगे आगे चली जा रही थी साडी में वो बहुत ही कमाल की लगती थी या मुझे ही लगती थी ऊपर से उनकी हाइट करीब 5फूट थी तो वो भी एक फैक्टर था , उनके पैरो में पड़ी पायल उनके हर कदम के साथ साथ बजती थी मैं सोचने लगा चाचा ही सही है ऐसे मस्त माल को हथिया लिया थोड़ी जलन सी हो रही थी 


रस्ते में मुझे पिस्ता मिल गयी वो भैंसों को पानी पिलाने लायी थी , मुझे देख कर वो मुस्कुराई और इशारा किया मैंने भी जवाब दिया की चाची साथ है तो थोडा हिसाब से पर उसको तो ऐसे मोको पर ही शरारत सूझती थी 

चाची- क्या हुआ जल्दी जल्दी चल ना 

मैं- चल तो रहा हूँ 

पिस्ता बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए बड़ी अदा से मेरे पास से अपनी चोटी को लहराते हुए निकल गयी मेरे दिल पर बिजलिया गिराते हुए ये ख्वाब बड़ा हसीं लगा करता था पर ये भी पता था की हर ख्वाब की तरह इसको भी कभी ना कभी टूटना ही था , मुझे डर लगता था की क्या होगा उस दिन जब ये ख्वाब टूट जायेगा , अब मैं क्या करता ख्वाब की तक़दीर में तो टूटना ही लिखा होता है देखो कब तक जिया जाये इस ख्वाब को कब तक मियाद इसकी 

चाची भैंसों को चारा मिलाने लगी मैं घास काटने लगा मुझे ये काम कभी भी पसंद नहीं थे पर मेरी बहुत ही मजबुरिया थी घास काटते काटते मैं थक गया पर घास उतनी के उतनी मेरे बदन में खुजली मचने लगी चाची मेरे पास आई और बोली- इधर लकड़ी ख़तम होने को आई है, कल जाके काट लाना 

मै- ना जाऊंगा मैं, आप और मम्मी चले जाना मेरे कोई लिख दी है 

चाची- ठीक है मैं या तेरी मम्मी में से कोई तेरे साथ चलेगा हर बात पे रोया मत कर अब घर के काम भी तो जरुरी है अब तुम थोड़ी मदद कर दो तू हमारी भी मदद भी हो जाती है और वैसे भी काम करने में कभी शर्म नहीं होनी चाहिए 

मैं- ठीक है जी 

चाची थोड़ी देर बाद दूध निकालने लगी वो बैठी हुई थी उनके बैठने का तरीका ऐसा था की उनके घुटने पेट से लग रहे थे, जिस से उनके बोबे ऊपर को हो गए थे उनका बिलाउज़ भी थोडा खुले गले का था उनके आधे से ज्यादा बोबे को ऊपर को हो गए थे मुझे दिख रहे थे, उनके उभारो की घाटी जैसे मुझे खुला आमंत्रण दे रहे थे पर क्या करू बस ठंडी आह ही भर सकते थे उस माल पर अपना कोई हक़ नहीं था और कोशिश् मैं कर नहीं सकता था तो बस आँखों से निहार ही सकता था 


चाची को भी पूरा आभास था की मेरी नजरे कहा पर है पर घर में इतना तो होता ही रेहता है तो उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया वहा के काम को निपटा कर मैंने कहा मैं घुमने जा रहा हूँ और कट लिया वहा से , चक्कर जो लगाना था मंजू के घर का , और किस्मत की बात देखिये मंजू अपने घर के बहार कुर्सी पर बैठी थी मैं इस तरह से उसके पास से निकला उसकी गोदी में अपने पत्र गिरा गया बिना उसकी तरफ देखे मैं गली में मुड गया धड़कने कुछ बढ़ सी गयी थी 

अब अपना कोई ठिकाना तो नहीं था तो पैरो को मोड़ लिया घर की तरफ घर के कोने की तरफ मुडा तो देखा की चाचा किसी औरत से हस हस के बात कर रहे थे मैं कोने पर ही ही खड़े होकर देखा तो पता चला की चाचा बिमला से बड़ा हस हस के बात कर रहे थे , बिमला से मैं आश्चर्य से भर गया , बिमला के वो चाचा ससुर लगते थे मैंने देखा की बिमला ने उनसे घूँघट भी नहीं किया हुआ था और बड़ा रस लेके बात कर रही थी चाचा ने बिमला के कंधे को थप थापाया मुझे ये बात बहुत अजीब लगी क्योंकि पहले तो उनका रिश्ता इस टाइप का नहीं था और फिर अंदाज दोस्ताना 


मैं तेजी से घर की तरफ बढ़ा उन्होंने जैसे ही मुझे देखा तो बिमला ने झट से बड़ा सा घूँघट निकाल लिया और अपने घर में अन्दर चली गयी चाचा मेरे पास आये और बोले- पूछ रहा था की किसी चीज़ की कोई जरुरत तो नहीं अब इसके भाई साहब और भाभी जी तो चंडीगढ़ है और इसका पति तो विदेश है , तो ये हमारी जिमेवारी है 

मैं- पर चाचा जी मैंने तो कुछ पुछा ही नहीं 

चाचा आगे बढ़ गए मैं वाही रुक गया पता नहीं क्यों मुझे कुछ ठीक सा नहीं लगा उस पल दिमाग में कुछ टेंशन सी हो गयी थी घर पे भी मैंने चाचा को देखा वो नार्मल से ही दिख रहे थे , पता नहीं क्या बात थी या मुझे ही बस कुछ ऐसा लग रहा था की बिमला से जैसे वो हस हस कर बात कर रहे थे अब इतना तो मैं भी नासमझ नहीं था ना उस रात रोटिया बड़ी मुस्किल से गले से उतरी मेरी खाने के बाद मैंने अपनी साइकिल ली और घर से निकल रहा था की चाचा ने मुझे टोक दिया 

वो- कहा जा रहे हो 

मैं-जी सब्जियों में पानी देना है तो खेत में जा रहा हूँ 

वो- बेटा, तू अपनी पढाई पे ध्यान दे, मैं पानी दे दूंगा तू घर रह खेत में मैं जाऊंगा 
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12-29-2018, 02:35 PM,
#63
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं चौंक गया क्योंकि चाचा इस से पहले खेत में तभी जाते थे जब फस जाते थे वो वर्ना कभी काम का कभी थकन का बहाना मार देते थे, मेरे अन्दर का जासूस जागने लगा मैंने साइकिल को अन्दर कर दिया और अपने कमरे में आ गया घंटे भर में सब लोग सो गए थे घर में घोर अँधेरा छाया हुआ था मेरे मन में बहुत कुछ चल रहा था एक बार फिर से वोही छत थी वो ही चाँद था और वो ही मैं था रात फिर से खामोश थी मेरे मन में भावनाए उमड़ रही थी कुछ सोच कर मैं घर से बाहर आया और अपने खेत की तरफ चल पड़ा दबे पांव मैं कुएँ पर गया तो मैंने देखा की कुएँ पर कमरे में ताला लगा था चाचा तो थे नहीं यहाँ पर 


अब ये कहा गए, दूर दूर तक बस ख़ामोशी की चादर फैली हुई थी , मेरे दिमाग में तभी जैसे लट्टू जल गया मैं वहा से तेजी से बिमला के घर की तरफ चला, मेन गेट अन्दर से बंद था मैं अपनी छत से उसकी छत पर उतर गया सब कुछ शांत ही लग रहा था मैं नीचे की तरफ गया ख़ामोशी जो थी वो मुझे बड़ा परेशान कर रही थी मैं अन्दर को पंहूँचा चारो तरफ अँधेरा था हर बल्ब बुझा हुआ था , मेरा दिल बड़ी जोर जोर से धड़क रहा था सब ठीक ही लग रहा था मैंने सोचा खामखा ऐसे ही शक नहीं करना चाहिए था चल अब घर तो मैं वापिस सीढियों की तरफ बढ़ा ही था की मेरे कानो में जो खनक गूंजी उसे मैं बहुत अच्छे से पहचानता था आऔच ”

ओह आह , क्या करते है थोडा आराम से चूसिये ना 

ये शब्द सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए , कमरे का दरवाजा तो बंद था पर खिड़की खुली थी अँधेरे से कुछ दिख तो रहा नहीं था पर सुन तो सकता ही था 

चाचा- ओह बिमला कितना कसा हुआ माल हो तुम , तुम्हारा पति एक नुम्बर का गांडू है जो तुम्हे यहाँ छोड़ कर कमाने चला गया वहा पर 

बिमला- चाचा जी, आह्ह्ह्हह्ह मैं चिंता करू आप हैं ना मेरा ख्याल रखने को आह थोडा सा आराम से चूसिये ना बोबो पर निशाँ हो जायेंगे 

चाचा- आज मत रोक मुझे मेरी जान आज पूरी रात तबियत से चोदुंगा तुझे जरा मेरे लंड को अपने हाथ में तो ले 

मुझे समझ नहीं आ रहा था की ये क्या हो रहा है , दिल तो कर रहा था की दोनों की गांड पर एक एक लात दू पर मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकता था पर उसी टाइम सोच लिया था की बिमला की तो गांड लाल करूँगा ही जरुर , पता था की बस अब चुदाई ही चलेगी पूरी रात मुझमे और वहा पर खड़े रहने की शक्ति नहीं थी मुझे पता नहीं क्यों विशवास नहीं हो रहा था की चाचा ऐसे निकलेंगे मैं वहा से खिसक लिया और वापिस घर आ गया दिल में पता नहीं क्यों ऐसे लगता था की जैसे ज़माने भर का दुःख भर दिया हो किसी ने 


हालाँकि कायदे की बात तो ये थी की बिमला की अपनी मर्ज़ी थी की वो किसी से भी चुदे, पर चाचा जो धोखा चाची को दे रहे थे वो गलत था , मेरी आँखों के सामने मेरा ही अक्स आ गया मैं जो पिस्ता के साथ करता था मैंने जो रति के साथ किया वो भी तो किसी और की अमानत थी ना शायद दुनिया का कुछ ऐसा ही दस्तूर रहा हो आज जब खुद को दर्द हुआ तो अच्छे बुरे का ख्याल आया मैं रगड़ रगड़ कर पिस्ता को चोदता तह उसकी कल को शादी होगी वो क्या सोचेगा जब उसको पता चलेगा की उसके चेक पर कोई और साइन कर गया , रति को भी मैं खूब चोदा था मेरे मन में तमाम वो लोग घुमने लगी सर फटने को आया कहा तक भागता मैं सच तो यही था बदलने वाला नहीं था जरा सा भी 


मैं क्या कर सकता था बिमला की चूत में आग लगी थी , उसके शरीर की जरूरते थी , वो बहार भी चुदवा सकती थी पर ठीक था की घर की भीत घर में ही गिर रही थी , पर मुझे उस बात का डर था जब ये बात खुलेगी मुश्क कभी छुपते भी तो नहीं मैं उस चाँद को घूर रहा था बिना बात के , मेरी तन्हाइयो का वो ही तो साथी था कभी कुछ बोलता नहीं था पर फिर भी मेरा साथी था 


“लगता है अभी तक तुम्हारी उलझन सुलझी नहीं है ” मैंने पलट कर देखा तो चाची खड़ी थी बदन पर ढीली सी मैक्सी खुले बाल कमर तक आते हुए, ऊपर से चांदनी रात 

मैं- क्या करू चाची, ये नींद भी मेरी दुश्मन होई पड़ी है , कमबख्त आती ही नहीं 

वो- ये लगातार तीसरी रात है जब मैंने तुम्हे यहाँ देखा है 

मैं- जी सो जाऊंगा थोड़ी देर में 

चाची- मेरे साथ आओ 

मैं उनके कमरे में आ गया उन्होंने मुझे बेड पर बिठाया और बोली- मुझे अपनी चाची नहीं दोस्त समझो और बताओ की वास्तव में तुम्हे क्या परेशानी है 

मैं- मुझे नहीं पता 

वो- क्या गर्लफ्रेंड से कुछ बोल चाल हुई 

मैं- मेरी कोई गर्लफ्रेंड है ही नहीं 

वो- झूट मत बोलो 

मैं- सच हो बोल रहा हूँ 

वो- चलो मान लिया फिर क्यों परेशानी है क्यों जागते हो रातो को 

मैं- बस ऐसे ही 

वो- ऐसे ही क्यों , मैं तो नहीं जागती ऐसे ही किसी और घरवाले को देखा है ऐसे ही जागते हुए 

मैं चुप रहा 

वो- मुझे तुमपे पूरा विशवास है , पर तुम बताओ की क्या तुम्हे ऐसा लगता है की तुम्हे किसी से प्यार हो गया है 

मैं- कभी लगता है कभी नहीं लगता 

वो- मतलब तुम किसी लड़की की वजह से परेशान हो 

मैं- बिलकुल नहीं 

अब मैं उनको क्या बताता की समस्या उनकी है समाधान वो मुझे बता रही है 

वो- तो पढाई का टेंशन है 

मैं- नहीं जी नहीं है 

वो- कोई भूत प्रेत का पंगा है क्या , कोई दीखता है क्या 

मैं- आजतक तो नहीं दिखा 

वो- बेटे, तुम मेरी बात को समझो पहले इस तरह सी जागना गलत है शरीर को नींद की भी आवश्यकता होती है कल को तुम्हारी मम्मी पिताजी जो पता चलेगा तो क्या सोचेंगे और फिर तुम डांट खाओगे वो अलग 

मैं- अब नींद नहीं आती तो मैं क्या करू 

वो- तो ठीक है दिन उगते ही तैयार रहना तुम्हे डॉक्टर को दिखाउंगी 

मैं- उसकी जरुरत नहीं है 

वो- तुम कल चल रहे हो बस और अभी तुम इधर ही सो जाओ मेरे पास में ही क्या पता फिर से बची खुची रात को भटकते फिरोगे 
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12-29-2018, 02:35 PM,
#64
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था तो मैं जाके सो गया मन में उलझने थी , माथे पर परेशानियों की शिकन थी दर्द भी अपना था पीड़ा भी अपनी थी कहते भी तो किस से कहते हमाम में सब नंगे जो थे आँखों को मींच लिया था देर सवेर नींद आ ही जानी थी, सुबह आँख खुली ओ देखा चाची कमरे में थी नहीं मेरी नजर घडी पर पड़ी थो टाइम ज्यादा हो रहा था मैं तुरंत भगा नीचे को , नहाने धोने का भी टाइम न था तो बस मुह को ही धोकर बालो को भिगोकर मैं दोड़ पड़ा शहर को , आज मुझे मेरे सारे पीरियड्स अटेंड करने थे 



नीनू आज भी ना आई थी , अब उसको क्या हुआ कहा बिजी हो राखी है वो दिमाग ही खराब करके रखा है उसने तो, पूरा दिन मेरा बस पढाई में ही बीता , फिर मैं लाइब्रेरी गया कुछ किताबे चाहिए थी मुझे लाइब्रेरी के पास एक पेड़ के नीचे ही मुझे मंजू बैठी मिल गयी , हाथो में ढेर सारी किताबे उठाये मैं उसके पास गया , उसने मुझे देखा और बोली- “तुम पढ़ते भी हो ”


मैं- ना मैं तो यहाँ बस टाइम पास करने को आता हूँ, वैसे तुम यहाँ कर क्या रही हो , तुम्हारी क्लास तो दोपहर से पहले ही खतम हो जाती है 


वो- मेरा आई कार्ड, गम हो गया था , तो दूसरा बनवाने की एप्लीकेशन दी है बीस दिन हो गए बाबूजी चक्कर कटवा रहा है आज आना कल आना 

मैं- तो पहले बोलना था ना , आ मेरे साथ 

मैं मंजू को लेकर बाबूजी के पास गया और पुछा- की इसका कार्ड क्यों न बना रहे आप 

वो- तू के इसका वकील है, टाइम नहीं है , फुर्सत में आना 

मैं- सर, कितने दिन से ये चक्कर काट रही है कार्ड तो आज ही बनाओगे आप 

वो- धमकी देता है मुझे 

मैं- जो भी समझ लो कार्ड अभी बनेगा 

वो- नहीं देता क्या कर लेगा 

मैं- ना, बनता तो लिख के दे दो , 

वो- जा अपना काम कर 

मैं- बाबूजी, ये लड़की बहुत परेशां है कार्ड के बिना , और फिर आपको देर भी कितनी लगनी है दो मिनट का ही तो काम है 

वो- कहा न टाइम नहीं है बाद में आना 

मैं- बाद में कब 

वो- बाद में चल निकल यहाँ से 

मेरा दिमाग खराब हो गया वैसे मुझे गुस्सा बहुत कम आता था पर उस दिन कण्ट्रोल नहीं हुआ 

मैं- बस बहुत बाबूजी बाबूजी कह लिया कार्ड अभी बना के दे वर्ना ठीक न रहेगी 

वो- धमकी देता है , चल अभी ले चलता हूँ प्रिंसिपल के पास 

मैंने साले की गुद्दी पकड़ ली और बोला- बहन के लंड, बाबूजी तू लेके चलेगा, भोसड़ी के मैं ले चलता हूँ तुजे साले, मैंने उसको रख के दिया एक उसकी आँखे घूम गयी , दो तीन खीच के दिए साले को और घसीट ते हुए लेके गया प्रिंसिपल के पास, स्टूडेंट्स जमा होने लगे, और भी स्टाफ मेम्बेर्स आ गए और पूछने लगे की क्या हुआ क्या हुआ 

मैं- सर, ये बाबूजी इस स्टूडेंट का कार्ड नहीं बना के दे रहा और इसके साथ अश्लील हरकत करने की कोशिश कर रहा था 

ये बात सुनते ही स्टूडेंट्स का पारा गरम हो गया और नारे बाज़ी करने लगे , कुछ लड़के बाबूजी को मारने को चढ़ गए, प्रिंसिपल भागते हुए आये और मामले को शांत करने का प्रयास करने लगे , मैंने मंजू को कह दिया की तू बोल दियो की बाबूजी ने तेरा हाथ पकड़ लिया अकेल्रे में 


बाबूजी के सिट्टी –पिट्टी गम हो गयी प्रिंसिपल ने सबको अपने ऑफिस में बुलाया और मामले को रफा दफा करने का प्रयास करने लगे 

मैं- नहीं सर ,अ अप पुलिस को बुलाओ इस बाबूजी को डालो जेल में 

बात इज्ज़त की थी , प्रिंसिपल ने दुसरे बाबूजी को बुलाया और मंजू के कार्ड को तुरंत बनाने को कहा और उस घटिया बाबु को ससपेंड करने की और विभागीय जांच की बात कही , अपने को क्या लेना देना था मंजू का कार्ड बन गया अपना काम हो गया था तो आगे कुछ भी हो क्या फरक पड़ना था , करीब घंटे भर बाद मैं और मंजू घर चलने को थे , मैं साइकिल पर किताबो का घट्ठाद लाद रहा था , मंजू बोली- उसने कब मेरा हाथ पकड़ा था वैसे 

मैं- तेरा कार्ड बन गया ना मोज कर 

वो- हां , पर बदनामी तो हुई न कल को सब सोचेंगे की क्या पता ये लड़की हो ही ऐसी , कार्ड तो देर सवेर बन ही जाता

मैं- साला कोई भी तेरी तरफ ऊँगली भी कर दे न तो मेरे पास आ जाना तेरे को कहा ना मोज कर 

वो- हो गयी मेरी मौज तो , दिमाग खराब हो गया है मेरा तो
मैं- घर चलते है वैसे ही आज बहुत लेट हो गया है 

हम लोग साइकिल को घसीट ते हुए गाँव की तरफ चल पड़े, अक्सर हम कच्चे रस्ते से आते- जाते थे ताकि थोडा टाइम बच जाये पर आज साला दिन ही खराब था , ऊपर से थोड़ी देर बाद मंजू की साइकिल हो गयी पंक्चर , हुई मुसीबत , अब साला वापिस जाये पंक्चर लगवाने को तो और देर लग जानी थी तो मैं भी उसके साथ पैदल पैदल हो लिया गाँव की तरफ अजीब सी फीलिंग हो रही थी 

मैं उस से बात करते हुए- मंजू एक बात कहनी थी 

वो- तो कह दो 

मैं- वो उस दिन मेरे घर पे जो हुआ, माफ़ कर देना मुझे 

वो- तुम मेरी जगह होते तो माफ़ कर देते 

मैं चुप रहा 

वो- चल ठीक है मुह मत लटकाओ 

मैं- तुमने उस लैटर का जवाब नहीं दिया 

वो- क्या जवाब देना था 

मैं- कुछ तो दे देती 

वो- तुम्हारे सामने हूँ, तो अभी जवाब दे देती हूँ, लैटर की क्या जरुरत है 

मैं- ना, तुम लैटर में ही दे देना 

वो- क्यों, सामने हिम्मत नहीं होती है क्या, उस दिन तो हवस जाग रही थी 

मैं- अब जाने भी दे उस बात को

वो- क्या जवाब दू, तुमको तुमने माफ़ी मांगी थी मैंने माफ़ किया बात ख़तम 

मैं- बस ऐसे ही 

वो- तो तुम क्या चाहते हो मुझसे , दोस्ती करना चाहते हो 

मैं- तुम्हे क्या लगता है

वो- मेरे लगने ना लगने से क्या होता है आजकल सब को हर लड़की से बस एक ही ऊम्मीद होती है 

मैं- क्या उम्मीद 

वो- अब इतने भी नासमझ भी नहीं हो तुम देखो ये बाते है तो बहुत कुछ है और नहीं तो कुछ भी नहीं है , तुम्हारे और मेरे चाहने से क्या होता है कुछ भी नहीं , एक लड़की और एक लड़का जब बात चीत शुरू करते है तो बहुत परेशानिया होती है , चाहे कुछ भी भावनाए हो पर किसी को पता चल जाये तो फिर मुसीबत हो जाती है कोई समझता ही नहीं है , दोस्ती करो फिर प्यार हो जाता है फिर और परेशानिया हो जाती है साथ रहने को जी करे पर बंदिशे इतनी होती है की आदमी उलझ कर ही रह जाता है, खुद की नजरो में गिर जाए, घरवालो की नजरो में गिर जाये तुम बताओ तो क्या किया जाये 


मैं- पर, मंजू मैंने तो कुछ कहा ही नहीं ऐसा 

वो- जब तुमने मुझे किस किया था तो तुमने अपने इरादे बता दिए थे पर मंजू इतनी सस्ती नहीं है की कोई भी उसको इस्तेमाल कर जाये, हँसी- मजाक अपनी जगह होता है हर लड़की ऐसे ही किसी के नीचे नहीं लेट जाती 
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12-29-2018, 02:35 PM,
#65
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
उसकी बात मेरे मन में उतर गयी थी बहुत गहरी , मुझे ऐसे लगा की जैसे किसी ने चाकू से काट दिया हो मुझे धीरे से , कितनी सरलता से उसने मुझे आइना दिखा दिया था , 

मैं- मंजू , तू एक बार मुझे आजमा तो ले 

वो- तुम क्या कोई वादा हो जो किसी कसोटी पर परख लू 

मैं- तो क्या तुम मेरी मित्रता के निवेदन को स्वीकार नहीं करोगी

वो- मैं सोच के बताउंगी, कुछ समय देना मुझे और चाहे मैं हां कहू या ना मेरे निर्णय का सम्मान करना 

मैं- ठीक है 

वो हल्का सा मुस्कुरा पड़ी 

वो- वैसे, मैं पहले तुम्हे बस पढ़ाकू टाइप ही समझती थी पर तुम तो बड़े चालु हो 

मैं- अब जो भी हूँ, जैसा भी हूँ बस ऐसा ही हूँ 

वो- हां देखा मैंने 

मैं- तो फिर कब दोगी

वो- क्या 

मैं- जवाब और क्या 

वो- कहा न थोडा वक़्त दो 

मैं- वैसे उस दिन तुम्हे किस किया तो अच्छा लगा 

वो- बेशरम, इंसान हो तुम एक नंबर के 

मैं- बता भी दो न 

वो- तुम्हारी मम्मी को शिकायत कर दूंगी 

मैं- एक किस दे दो, फिर चाहे कितनी ही मार पड़ जाये 

वो- कहो तो अभी कपडे उतार दू, तुम्हारे लिए घटिया सोच के प्राणी 

मैं- चल ठीक है मजाक अपनी जगह तू अपनी जगह जाने दे , गाँव आने वाला है तेज तेज चल वैसे ही आज लेट में लेट हो गए है 

मैं अपनी गली के मोड़ पर रुक गया मंजू अपनी गांड को हिलाती हुई आगे को बढ़ गयी घर के बाहर ही बिमला मिल गयी वो मुझे देख के हँसी, पर मैंने उसे अनदेखा कर दिया और घर में चला गया किताबो को टेबल पर रखा कपडे निकाले और कच्छे- बनियान में ही मैं खाट पर पसर गया , थोड़ी देर सुस्ताने के बाद मैं नीचे आया तो मम्मी बोली- कामचोर, आज लकड़ी काटने जाना था तो तुम जान के लेट आया है ना 
मैं- एक नोकर रख लो आप लोग, और भी काम होते है मुझे, अब पढाई छोड़ दू और पिल जाऊ इस घर में ही 
मम्मी- कितनी पढाई करते हो वो तो रिजल्ट बता ही देगा तुम्हारा , 

मैं- कल काट लाऊंगा काफी लकडिया फिर काफ़ी दिन की गई आज माफ़ी दो 

हम बात कर ही रहे थे की चाची भी प्लाट में से आ गयी , और हमारी बातो में शामिल हो गयी 

मैं- कुछ पैसे दे दो मुझे , 

वो- क्या करोगे 

मैं- रेडियो के सेल लाने है 

चाची- हां, तो ले आना कौन मन कर रहा है 

मम्मी- इसको इतनी छुट मत दे, दिन दिन इसकी फरमाइश बढती ही जा रही है , वैसे परसों जो पचास का नोट लिया था उसका क्या किया 

मैं जेब से वो नोट निकालते हूँ- ये रहा लो वापिस ले लो चैन आ जायेगा आपको जब देखो बस पीछे हो पड़े रहते है चैन नहीं लेने देंगे कभी 

घर से निकल कर मैं मंजू के बाप की दूकान पर चला गया और वाही टाइम पास करने लगा एक साला पिस्ता का भाई ड्यूटी पता नहीं कब जायेगा ताकि वो फ्री हो और मेरे सुख के दिन आये मैं पिस्ता के बारे में सोच रहा ही था की तक़दीर देखो सामने से वो ही चलती हुई आ रही थी दुकान की तरफ , उसने बिना मेरी तरफ देखे अपना सामान लिया और मुड पड़ी मैं भी रस्ते सिर हो लिया पास से गुजरते हुए मैंने पुछा- कब मिलोगे सरकार 

पिस्ता धीरे से बोली- नानी बीमार है ज्यादा, कल हम सब वाही जा रहे है देखो कब तक आना होगा 
मैं सुनके तेजी से आगे चल पड़ा, एक और बुरी खबर बिमला से तो मुझे नफरत ही हो गई थी पर मेरा ही नुक्सान था हाथ से एक चूत जो निकल गयी थी पर मैंने सोच ही लिया था की उसकी तरफ तो अब नहीं जाना है तो करे क्या कहा से लाके दे लंड को जुगाड़ , रात के खाने के बाद चाचा ने फिर से खेत में जाने का प्रोग्राम बना लिया मैं मन में- हां, मुझे तो पता ही है की आप कहा पानी दोगे मुझे हँसी आ गयी 
चाचा- क्या हुआ बिना बात के क्यों हस रहा है 

मैं- वैसे ही 

उन्होंने मुझे घूरा और चले गए हाथ में चादर, और बैटरी लेकर जैसे किसान नंबर वन का अवार्ड इनको ही मिलेगा मैं अपने कमरे में आ गया आज कुछ नोट्स बनाने थे तैयारिया करनी थी मैंने रेडियो चलाया काफ़ी दिनों बाद आज , इसको सुनकर भी बड़ा मस्त लगता था एक लगाव सा होता था उस से किताबो में मन जो लगाने की भरपूर कोशिश की पर हर पन्ने में मुझे बस रति का चेहरा नजर आये, उसकी यादे भी कभी दिन में नहीं आती थी बस रात को ही हमला करती थी मुझ पर
अब मैं दुनिया से तो भाग सकता था पर अपने आप से कहा जाता , वो एक हफ्ता जो रति के साथ जिया था मैंने वो भुलाये ना भूले मुझे करू तो क्या करू याद बहुत आये उसकी पर वो दूर इतनी की भागकर मिलने भी नहीं जा सकता ये मासूम का दिल मेरा और हज़ार मुश्किलें कापी में कहा तो मुझे नोट्स बनाने थे कहा मैं रति के बारे इ लिखने लगा, मेरा खुद पर तो कोई काबू था ही नहीं बस जी रहा था मैं तो खामखा में ही ११-१२-१-२-३ बज गए एक दो झपकी आई के न आई कुछ पता नहीं 


चाची उठी पानी –पेशाब को मेरे कमरे में जलती लाइट, खुला दरवाजा देख कर वो अन्दर आ गयी मैं टेबल अपर ही सर रखे पड़ा था , उन्होंने वो कॉपी देखि और ले गयी अपने साथ , सुबह मैं उठा 7 बजे, अपनी हालात में गोर फ़रमाया तो पता चला की कॉपी कहा गयी इधर- उधर ढूँढा पर मिले कैसे कमरे में हो तो मिले, यार कोई देख ले तो समस्या हो जाये जाड़ा सा चढ़ गया मेरे को घनी गर्मी में , पता नहीं क्या सारी मुसीबतों को किसी ने मेरा ही पता बता दिया हो जैसे अपने दिमाग में थोड़ी टेंशन हो रही थी इसलिए बिना रोटी खाए ही शहर के लिए निकल लिए 


नीनू आज भी ना आई थी मुझे उस पर बहुत गुस्सा आने लगा था वो होती तो उस से अपने मन की बात कर लेते पर चलो जैसा हमारा नसीब , जो है ठीक है एक दो टॉपिक थे जो क्लियर न हो रहे थे तो मास्टर को पकड़ लिया मैंने अब पढाई पे भी ध्यान देना बहुत जरुरी था , दोपहर हो गयी थी मेरी तीन क्लास और बची थी भूख लगी वो अलग इच्छा तो दो समोसे खाने की थी पर जेब में बस 5 का ही सिक्का था तो उस से चने खरीद लिए और उनको ही चबाने लगा 

की मंजुबाला के दर्शन हुए, अपनी सहेलियों को छोड़कर वो मेरे पास आई और बोली- चने खा रहे हो 

मैं- तुम भी खा लो 

वो- ना क्लास है मेरी 

मैं- कहा जाओगी इतना पढ़ कर, 

वो- तुम कहा जाओगे 

मैं- मैं कहा पढता हूँ 

वो- मैं क्लास में जाती हूँ आधे घंटे बाद मुझे मिलना 

मैं- ठीक है 
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12-29-2018, 02:35 PM,
#66
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं भी अपनी किताबे देखने लगा पर मेरा मन बार बार चाचा और बिमला की तरफ जा रहा था मैंने सोचा की क्या मुझे चाची को बता देना चाहिए , पर जब बात खुलेगी तो बिमला मुझे भी लपेट सकती थी क्योंकि मैं भी तो उस से आशिकी मार चूका था ,मैं हर बार सोचता था की माँ चुदाय दुनिया दारी मैं क्यों टेंशन लू पर घूम फिर कर बात वाही आ कर अटक जाती थी 


उधेड़बुन में समय बीत गया मंजुबाला भी आ गयी और बोली- चल अब एक हफ्ते की तो टेंशन हटी 

मैं- क्या हुआ 

वो- तुझे ना पता के 

- क्या 

वो- कल से वार्षिक- उत्सव शुरू हो रहा है तो काफ़ी कार्यक्रम होंगे एक हफ्ते पढाई तो होगी ना तो मैं तो आने से रही 

मैं- मैं भी ना आऊंगा 

मैं- मंजू तूने जवाब ना दिया 

वो- किस बात का 

मैं- वो जो उस दिन ............ 

वो- अच्छा अच्छा, तो देख बड़ी विकट समस्या है की तुम्हे क्या जवाब दू, 

मैं- समस्या क्या होनी है या तो हां या न बस इतनी तो बात है 

वो- इतनी बात होती तो बता ही देती तेरे से 

मैं- तो कैसी बात है 

वो- देख तू मुझे अच्छा तो लगता है पर तू विश्वास लायक नहीं है 

मैं- कैसे 

वो- तेरा पहले से ही पिस्ता से चक्कर चल रहाहै और तू मुझे भी फ़साना चाहता है क्या पता और कोई लड़की भी सेट हो तेरे से बता फिर कैसे फीलिंग आएगी 

मैं- तू के कसम बनावेगी मने 

वो- ना जी ना, पर थम तो मेरे से लुगाई सुख की उम्मीद लगाये हो 

मैं- तो मन कर दे ख़तम कर बात को तू अपने रस्ते मैं अपने रस्ते 

वो- यार बात ख़तम भी तो न हो रही, जब जब अकेली होऊ हूँ तो तेरा ख्याल आता है 

मैं- तो हां कर दे 

वो- कर दूंगी, पर तू वादा कर तू मेरे सिवा किसी और लड़की को न देखेगा, खासकर उस पिस्ता को 

मैं- मैंने तो सुना था की दोस्ती में शर्ते नहीं होती 

वो- मेरे से दोस्ती करनी है तो मेरी बात मान ले 

मैं- तो मेरा जवाब सुन , की ठीक है मुझे तुझसे और सबसे उस चीज़ की आस है पर कही ना कही मेरे अन्दर ज़मीर भी है , तुझ से दोस्ती के लिए मैं पिस्ता को छोड़ दू, वो न हो पायेगा वो लाख ख़राब है हज़ार ऐब है उसमे पर दोस्त है वो मेरी , और जो सच्ची दोस्ती होती है ना वो कभी रिश्तो को तोलती नही है , मंजू बेशक मैं लम्पट टाइप हूँ पर दिल बहुत साफ़ है सोने सा खरा तेरा शुक्रिया जो तूने मुझे इस असमंजस से निकाल दिया 

मैंने अपनी साइकिल उठाई और घर आ गया आते ही मैंने कपडे बदले और जंगल में चला गया सीधा आज लकडिया काटनी थी मुझे मेरे साथ चाची भी आई हुई थी मैं फटाफट से लकडियो को मचका रहा था वो इकठ्ठा कर रही थी दो जने होने से थोडा टाइम की बचत हो जानी थी और तो क्या था चाची ने आज हलकी नीली साड़ी पहनी हुई थी एक दम पटाखा लग रही थी मैं पेड़ पर चढ़ा हुआ था वो नीचे थी तो उनकी चूचियो का भरपूर दर्शन हो रहा था मुझे मेरा लंड बार बार परेशान कर रहा था मुझे 


चाची- थोड़ी फ़ालतू लकडिया काट लेटे है कुछ साइकिल पर ले चलेंगे और कुछ मैं सर पर 

मैं- जैसी आपकी मर्ज़ी 

मैं तेजी से लकड़ी काट रहा था शाम हो गयी थी वैसे ही अभी करीब आधा पोना घंटा और लग ही जाना था मैं जो डाली काट रहा था वो थोड़ी भारी सी थी मैंने चाची से कहा की आप थोडा दूर हो जाओ पता नहीं किस तरफ को गिरेगी , वो हट गयी और नीचे से छड़ियो को सलीके से लगाने लगी वो एक भारी लकड़ी को उठा रही थी की पास से एक दम से एक खरगोश निकल भगा चाची एक दम से थोडा सा डर गयी और उनका बैलेंस बिगड़ गया वो छड़ियो पर गिर गयी 


“”आह, रे मरी रे आह रे “

वो चिल्लाई तो मेरा ध्यान उन पर गया मैं तेजी से नीचे उतरा और भगा उनकी तरफ चाची पीठ के बल छड़ियो पर गिरी पड़ी थी उनकी कोहनी कांटो से बुरी तरह चिल गयी थी, बदन में काफ़ी जगह कांटे चुभ गए थे आँखों से उनकी आंसू टपकने लगी मैंने जल्दी स उनको उठाया उनके पैर के तलवे में एक बड़ा सा काँटा पार हो गया था मैंने तुरंत उसको निकाला चाची की सुबकिया चालू होने लगी थी मैंने उनके काफ़ी कांटे निकाले पेट पर भी झार्रात लगी थी वो खड़ी थी 


मैं उनके टांगो को देखने लगा जहा जहा कांटे थे निकालने लगा कमबख्त उस छड़ी में कांटे भी बहुत थे मेरे हाथ धीरे धीरे से ऊपर आते जा रहे थे उनकी मांसल जांघो को हलके से सहला रहा था मैं काँटों को ढूंढ रहा था इसी कोशिश में मेरे हाथ उनके कुलहो पर पहूँच गए थे, अब सिचुएशन कोई भी हो हम पर किसका जोर , मैं उनकी गांड को दबाने लगा तो चाची सिसक पड़ी, वहा पर भी चार पांच कांटे थे मैंने वो भी निकाले एक को खीच रहा था तो चाची को तेज दर्द हुआ , कांटे की नोक गांड में धंसी पड़ी थी “आह, आराम से ”


काँटों के बहाने से मैंने दो तीन बार और उनकी गांड को मसला मेरा लंड तो खड़ा ही रहता था एक बार और प्यार से मैंने गांड पर हाथ फेरा और फिर बोला- हो गया , और कही है तो बताओ 


चाची ने अपने पैर को बढ़ाया पर उसमे से खून निकल रहा था उनको बहुत दर्द हो रहा था मैंने थोड़ी सी मिटटी वहा पर लगायी ताकि खून बंद हो जाये, ये देसी कीकर के कांटे भी बहुत तकलीफ पहूँचाते है , चाची वाही जमीं पर बैठ गयी मैं समझ गया की वो चल तो ना पाएंगी मैंने सोचा पहले इनको घर छोड़ के आऊंगा फिर लकड़ी ले जाऊंगा , मैंने उनको जैसे तैसे करके साइकिल पे बिठाया और घर को चल पड़ा गाँव के अड्डे पर ही चाची के पाँव में पट्टी करवाई और दवाई भी ली
चाची को घर छोड़ कर मैं वापिस आया अब लकडिया ज्यादा थी तो मुझे तीन चक्कर लगाने पड़े इन सब में थकन बहुत हो गयी मुझे पर काम तो करना ही पड़े, ना करे तो किसको कहे, घर आया तो मम्मी चाची के पास ही बैठी थी मैंने कहा अब ठीक हो तो वो बोली- हां, थोडा दर्द हो रहा है 

मैं- दवाई ले लो ठीक हो जायेगा 

चाची को दर्द में कराहते हुए देख कर मेरे गले से रोटी ना उतरी उस शाम , चाचा ने चाची को डांटा की थोडा ध्यान से काम करना चाहिए, आजकल उनके रवैये में बहुत परिवर्तन हो गया था , मुझे उनकी बात सुनकर गुस्सा आया जिसे मैंने बहुत मुस्किल से रोका , मैं और मम्मी चाची के कमरे में बैठे थे तो मम्मी बोले तेरे चाचा तो खेत में गए तू मेरा बिस्तर इधर ही कर दे मैं सो जाती हूँ तेरी चाची के पास रात को इसे मेरी जरुरत पड़ेगी 


मैं- आप तकलीफ ना करो मेरा कमरा भी तो इधर ही है मैं खाट इधर बिछा लूँगा वैसे भी मुझे कुछ नोट्स बनाने है तो सोना तो है नहीं 

मम्मी थोड़ी देर बाद नीचे चली गयी , मैं सोचने लगा की परायी चूत के चक्कर में इंसान कितना बदल जाता है थोड़े दिन पहले चाची कितनी प्राण प्यारी लगती थी चाची उनको और बिमला तो सुन्दरता में चाची के आगे कही नहीं ठहरती थी पर चूत का चक्कर ही ऐसा होता है, क्या करे दवाई के असर से चाचि की आँख लग गयी मैं उनके चेहरे को देखने लगा वैसे थी वो माल एक नंबर का मेरा लंड खड़ा होने लगा उनके बारे में सोच ते सोचते पर मैंने अपने दिल से इन बुरे ख्यालो को दूर किया 
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12-29-2018, 02:35 PM,
#67
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
सोचने लगा की जब चाची को पता चलेगा की चाचा और बिमला में अवैध संबध है तो क्या होगा , बार बार मुझे ये सवाल बहुत परेशान करता था उस रात मैंने सोचा की मैं चाचा से बात करूँगा कल के कल और फिर भी बात न बनी तो बिमला को लाइन पे लाना होगा ये एक बहुत ही विकट समस्या थी जिसका समाधान इतना भी आसन नहीं था अपने को पहले चाहिए था सबूत ताकि वो लोग ऐन टाइम पर मना ना कर सके की हम तो जी पाक साफ़ है 

अगले दिन सब लोग अपने अपने काम धंधे पर चले गए चाची अन्दर आराम कर रही थी मम्मी को कुछ काम था तो वो पिताजी के साथ शहर चली गयी थी मैं बिमला के घर गया और जाते ही उसको अपनी बाहों में भर लिया और चूमने लगा पर उसने मुझे परे कर दिया और बोली- हटो, अभी नहीं मुझे बहुत काम है 
उसकी आँखे थोड़ी सूजी सूजी लग रही थी अब पूरी रात जो गांड मरवाए तो नींद कहा से पूरी हो 
मैं- भाभी कितने दिन हुए आज करने दो 

वो- कहा न अभी नहीं 

बिमला से मुझे इतने कठोर व्यवहार की उम्मीद थी नहीं और मैं तो वैसे भी उसको जांच रहा था मैं अपने घर आ गया और बहार चबूतरे पर बैठ गया बिमला ने अपना किवाड़ बंद कर लिया मैंने सोचा साली एक बार सबूत का जुगाड़ कर लू फिर तेरी गांड तो ऐसी तोडूंगा याद रखेगी बस समय की बात है मैंने सोचा की कपडे ही धो लू तो मैंने चबूतरे पर लग गया मैं कपडे धो रहा था की मंजू दिखी सामने से आते हुए , मैंने कपड़ो पे ध्यान दिया मैं उसको नहीं देखना चाहता था 

पर वो तो आई ही थी मेरे पास 

मंजू- बात करनी है तुझसे 

मैं- उस दिन कर तो ली थी 

वो- तू तो मेरी बात का बुरा मान गया 

मैं- ना बुरा किस लिए मान ना, तू अपनी जगह सही मैं अपनी जगह सही 

वो- देख सच में कुछ बात करनी है 

मैं- तो कर ले किसने रोका है 

वो- यहाँ नहीं खुले में 

मैं- अन्दर आ जा 

चाची ऊपर थी तो मैं उसको मम्मी पापा के कमरे में ले आया और बोला= बता के कहना है 

वो- मुझे तेरी दोस्ती मंजूर है 

मैं- देख ले फिर शर्त लगाती फिरे गी 

वो- ना वो तोमैं तुझे देख रही थी 

मैं- देख लिया या कसर है 

वो- अब कितनी शर्मिंदा करेगा 

मैं- मंजू, देख ले सोच ले समझ ले , कल तो तू कहेगी ये मत कर वो मत कर वो मुझ से ना होगा 

वो- सब सोच के तेरे पास आई हूँ 

मैं – ठीक है फिर अब किस करू 

वो-ना कोई आ जायेगा 

मैं- आने दे फिर 

वो- मैं अब चलती हूँ पर जल्दी ही मिलूंगी तुझसे 

वो चलने को हुई तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और मंजू को बिस्तर पर गिरा दिया और चढ़ गया उसके ऊपर 

वो- जाने देना 

मैं- थोड़ी देर तो रुक जा 

मैंने मंजू के होंठो को अपने होंठो मेंदबा दिया थोड़ी ना नुकुर के बाद वो मेरा साथ देने लगी काफ़ी दिन बाद मोका मिला था तो मुझसे कण्ट्रोल नहीं हो रहा था किस के बाद मैं उसकी छातियो को मसलने लगा मंजू गरम होने लगी मैंने उसकी सलवार के नाड़े में अपनी उंगलिया फसाईं तो उसने मुझे रोक दिया और बोली-अभी नहीं फिर कभी 

मैंने उसकी चूत को कस के मसला और फिर उसको जाने दिया मन तो नहीं था पर क्या कर सकते थे 

मैं- कब मिलोगे 

वो- बता दूंगी मैंने फिर से उसको किस किआ वो शरमाते हुए भाग गयी 

थोड़ी देर बाद चाची नीचे आ गयी और बोली- कोई आया था क्या 

मैं- नहीं तो 

वो- कुछ आवाजे आ रही थी 

मैं- नहीं तो , मैं तो कपडे धो रहा था बस पानी पीने आया था 

चाची- तेरी कॉपी मैंने वापिस रख दी है 

मैं- आपको बिना पूछे दुसरे की चीज़ नहीं लेनी चाहिए 

वो- तू दूसरा थोड़ी न है , वैसे नाम अच्छा है तेरी गर्लफ्रेंड का रति 

मैं- वो मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है, वो मेरी कोई नहीं है कुछ नहीं लगती मेरी 

चाची- झगडा हुआ क्या उस से 

मैं- नहीं तो उस से और झगडा कभी नहीं 

तो- मानते क्यों नहीं 

मैं- कुछ बाते मानी नहीं जाती है 

वो- दो लगाऊंगी तो सारा दर्शनशास्त्र बाहर निकल आएगा 

मैं- छोड़ो, इस बात को वो कौन है क्या लगती है मेरी ये बात ऐसी है की आप समझ नहीं पाओगे मैं बता नहीं पाउँगा 

वैसे आपको आराम करना चाहिए 

वो- मैं ठीक हूँ अब ,चल अब बता रति के बारे में मेरा भी थोडा टाइम पास हो जायगा 

मैं- वो कोई टाइम पास करने की चीज़ नहीं है वो बस एक अहसास है और मैं कुछ नहीं बताने वाला क्योंकि कुछ राज़ राज़ ही ठीक रहते है 

वो- तो फिर ठीक है आने दे जीजी को , आज तेरे सारे राज़ वो ही उगाल्वएँगी 

मैं- बस आप धमकी ही देते रहा करो कुछ भी पूछ लो पर रति के बारे में मत पूछो बस इतना ही कह सकता हूँ की किसी इबादत जैसे है मेरे लिए 

वो- बेटा, तू कुनबे का नाम रोशन करेगा एक दिन 

मैं- चाची, मैं आपसे एक वादा करता हूँ,की जिस दिन वाकाफ़ी में मेरे पास कुछ होगा ना मैं आपसे नहीं छिपाऊंगा आप मेरे लिए चाची कम दोस्त ज्यादा है , पर रति का नाम फिर से कभी अपनी जुबान पर ना लाना 

वो हसने लगी मैं वापिस कपडे धोने लगा
५-६ दिन ऐसे ही गुजर गए चाचा बीच में बस एक दिन घर रहे थे बाकी फुल टाइम बिमला की चुदाई चालु थी बीच में मैंने एक बार फिर से बिमला को ट्राई किया था पर बंदी ने साफ़ मना कर दिया की आजकल उसे बहुत काम रहता है मैं समझ गया की उसका काम चाचा से चल रहा है तो वो मुझे घास क्यों डालेगी चलो कोई ना मैं हर मुमकिन कोशिश कर रहा था की कैसे उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करू पर किस्मत साथ नहीं दे रही थी , उस दोपहर को जब मैं खेत से घर आ रहा था तो मंजू खुद से दरवाजे पर खड़ी थी गली सुनसान पड़ी थी उसने मुझे इशारा किया तो मैं झट से घर में घुस गया 



मंजू की साँसे बड़ी तेज चल रही थी मैंने पुछा- कोई नहीं है क्या 


वो- नहीं है तभी तो तुमको बुलाया 


मैं- कहा गए- 

वो- बाबा दिल्ली गए है माँ भी 


मैं- तेरा भाई 

वो- दूकान पे है रात ही आएगा 

मैं- तो क्या इरादा है 

वो- तुझे ना पता क्या 

मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और उसको किस करने लगा मंजू की चूत आज मिलने वाली थी मंजू बोली- यहाँ नहीं पीछे चल गोदाम में 
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12-29-2018, 02:36 PM,
#68
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
हम दोनों वहा पर आ गए , काफ़ी देर तक उसको चूमने के बाद मैंने उसके कपडे उतारने शुरू किया जल्दी ही वो ब्रा- कच्छी में थी उफ्फ्फ साली ग़दर पीस थी मंजू तो मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और चूची को दबाने लगा मंजू की गरम साँसे उबलने लगी , उसकी ३२” की चूचिया बहुत ही नरम थी धीरे से मैंने उसकी कच्छी को भी उतार दिया वो अपने हाथो से अपनी चूत को छुपाने लगी मैं भी नंगा हो गया मेरे लंड को देख कर वो बोली- बहुत मोटा है ये तो 


मैं- तभी तो तुझे मजा आएगा मैंने मंजू को बोरी पर लिटा दिया और उसके अंग अंग को चूमने लगा मंजू अपनी आहो को रोकने की कोशिश करने लगी पर आज कहा उसकी आहे रुकने वाली थी आज तो आग लगने वाली थी उसके गोदाम में, मैंने उसकी चूत को जो चूमना शुरू किया मंजू की हालात पतली हो हो गयी उसके जबड़े भींच गए आँखे बंद होने लगी “ओह!मंजू क्या गरम चूत है तेरी” मेरी जीभ उसकी चूत के खट्टे पानी को पीकर तृप्त होने लगी मंजू अपनी टांगो को लगातार पटक रही थी मैं काफ़ी दिनों बाद आज चूत के रस को चख रहा था 


मंजू-जल्दी से करलो ना 

मैं- क्या हुआ 

वो- आह कही कोई आ ना जाये 

मैं ठीक है 

मैंने लंड पर थूक लगाकर उसको अच्छे से चिकना किया और उसकी चूत की फानको पर रगड़ने लगा मंजू आहे भरने लगी , गीली चूत चिकना लंड मेरे पहले धक्के में ही आधा लंड उसकी चूत में चला गया मंजू ने एक आह सी भरी उसकी टाँगे खुलती चली गयी मैं समझ गया की ये भी सील्पैक ना मिली पपर ज्यादा ध्यान चूत मारने में था मैंने दो तीन झटके मार कर लंड को पूरा ठेल दिया अन्दर तक 

मंजू- आह कितना मोटा है तुम्हारा , दर्द होने लगा है चीर ही डाला तुमने तो 

मैं- बस अभी सेट हो जायेगा 

मैं मंजू के ऊपर लेट गया वो मेरे बोझ से दबने लगी मैं थोड़ी देर बाद लंड को आगे पीछे करने लगा चूत में चिकनाई की कोई कमी नहीं थी तो जल्दी ही मंजू भी चुदाई का लुत्फ़ उठाने लगी उसने खुद अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए उसकी टांगो से रगड़ खाते हुए मैं उसको चोदने लगा उसका बदन हल्का हल्का सा कांप रहा था उसकी चूत में लंड मजे ले रहा था मैं काफ़ी दिन बाद चूत मार रहा था तो जोश भी ज्यादा चढ़ रहा था मंजू की टाँगे अपने आप ऊपर को होने लगी थी fuchcccccccc फुछ्ह्ह्हह्ह्ह्ह करते हुए चूत के पानी में सना हुआ मेरा लंड कोहराम मचाये हुए था 



गोदाम में बहुत गर्मी थी पर चूत की गर्मी के आगे वो भी फीकी लग रही थी मैं मंजू के गले पर आये पसीने क चाट रहा था मंजू किसी नागिन की तरह बल खा रही थी aaahhhhhhhhhhhhh aahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh थोदाआआआआआआ धिरीईईईईईई धिरीईई आह मैं तूऊऊऊओ मरीईईईईईईईईईईईईईईईइ रीईईईईईईए अआः 

aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa आः रे आह आह 
करते हुए मंजू चुदाई के सागर में डुबकी पे डुबकी लगा रही थी मुझे साथ लिए लिए मैंने अब उसकी दोनों टांगो को अपने कंधो पर रखा और फिर से गप गप मंजू की लेने लगा जब जब मेरा लंड चूत में जाता मंजू की चूचिया हिलती पसीने में चूर हम दोनों अपने जिस्मो की आग को शांत करने में लगे हुए थे मंजू थोडा सा उठ सी गयी थी तो चूत और अच्छे तरीके से लंड पर कस गयी चुदाई में और मजा आने लगा हाय रे मंजू क्या मस्त माल है तू पहले क्यों नहीं चुदवा लिए तूने रीईईईईईईईईईईईए 



मंजू के कुलहो को मजबूती से थामे हुए मैं अब तेजी से उसको चोदने लगा था मंजू की आँखे बंद हो गयी थी होठ कांप रहे थे चूत की फांके दो विपरीत कोनो पर अटकी पड़ी थी मंजू 
की चूत से कामरस धीरे धीरे करके रिस रहा था मंजू-“ पैर दुखने लगे है , टाँगे नीचे कर दो ना आआहा ”


मैंने उसको नीचे किया और मंजू को थोड़ी से टेढ़ी कर दिया उसने अपनी टांग को ऊपर उठा लिया मैंने एक हाथ से उसकी चूची पकड़ी और अपने लंड को चूत के मुलायम दरवाजे लगा दिया मंजू ने अपने चुतद पीछे को कर लिए मैं उसके बोबे को मसलते हुए उसकी फिर से लेने लगा , मंजू मस्त होने लगी और मैं भी उसकी रसीली चूत को बड़े मजे से मैं चोद रहा रहा था uffffffffffffffff ये जिस्मो की गर्मी कितनी आग भरी होती है जिस्मो में कितना बुझाऊ मैं इसको ये बुझती ही नहीं 


मंजू के कमर को कसके पकडे मैं ताबड़तोड़ लंड को चूत में घिस रहा था ,तभी मंजू ने एक गहरी ठंडी आह भरी और उसका बदन अकड गया उसका बदन धम्म से निढाल हो गया जैसे उसमे सांस ही ना बची हो मंजू स्खलित हो गयी थी वो लम्बी लम्बी सांस ले रही थी थोड़ी देर बाद वो धीमे से बोली- अब उठ भी जाओ ना 
मैं- कैसे उठ जाऊ मेरा तो हुआ ही नहीं है 

वो- नहीं हुआ है अभी तक ,मेरी तो जान निकलने आई है अब सहन नहीं हो रहा है 

मैं- बीच ने मत छोड़ , बस कुछ देर कि तो बात है 

मंजू की चूत जैसे सूख ही गयी पर मैं तो चोदुंगा ही जबतक मेरा काम ना हो, मंजू अपने पैर पटकने लगी अब कभी बालो को नोचे कभी अपने नाखूनों को मेरी पीठ पर रगड़े मंजू मेरे नीचे पड़ी पड़ी हुई बावरी पर उस दिन साला मुझे क्या हो गया था , मेरा पानी छुट ही न रहा था मंजू रोने को आई उसकी चूत में दर्द सा होने लगा था पर अपनी भी तो मज़बूरी थी ना, मंजू बोली- दो मिनट सांस तो लेने दे फिर कर लियो 


मैंने लंड को बहार निकाल लिया और मंजू की चूची पीने लगा मैं फिर से उसको गरम करने की कोशिश करने लगा सुपुद सुपद करके मैं उसको अपनी गोदी में बिठाये हुए अपने लबो को उसकी चूचियो पर रगड़ने लगा जल्दी ही मंजू मेरे बालो में प्रेमपूर्वक हाथ फिराने लगी उसके बदन में फिर से वासना की तरंगे दोड़ने लगी थी , मैंने मंजू को घोड़ी बनाया और अपने मुह को उसके कुलहो में दे दिया 


उसकी चूत मेरी जीभ को महसूस करते ही फिर से लपलपाने लगी , मंजू की गांड के छेद को अपनी ऊँगली से सहलाते हुए मैं उसकी रसीली चूत को पिए जा रहा था किसी मय के प्याले की तरह उसकी गांड में मैं अपनी ऊँगली घुसाने लगा तो मंजू आहे भरने लगी थोड़ी सी ऊँगली जो गांड में घुसी तो मंजू ने चुतड को भींच लिया और बोली वहा नहीं वहा नहीं उसकी चूत फिर से गीली हो गयी थी, तो मैंने उसे घोड़ी बनाये ही अपने लंड को चूत पर रख दिया और उसके कुलहो पर दोनों हाथ रख लिए और लगा दिया धक्का मंजू थोडा सा आगे को सरकी पर मैंने सरकने नहीं दिया 
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12-29-2018, 02:36 PM,
#69
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
इस बार जैसे ही मेरा लंड चूत में घुसा करार ही आ गया मुझे तो चूत का छेद लंड की मोटाई के हिसाब से खुला हुआ था बहुत ही सुन्दर लग रहा था वो मैंने वाही पर थोडा सा थूक टपका दिया और चिकनाई हो गयी चुदाई में और मजा आने लगा मंजू तो जैसे मस्ती में बावली सी ही हो गयी थी , ओहा आः उह आः आआआअह्ह्ह की आवाजे गोदाम में चारो तरफ गूँज रही थी मंजू बार बार अपनी गांड को पीछे करके मेरा पूरा सहयोग कर रही थी उसकी पीठ कंधो पर पसीने को अपनी जीभ से चाटने लगा मैं और उसको चोद रहा था हाय रे मंजू तेरा बहुत बहुत धन्यवाद 



आज तो तूने मेरा दिन ही बना दिया वह मेरी जानेमन जैसे जैसे मेरी स्पीड बढती जा रही थी मेरे शरीर में खून का दौरा बढ़ता जा रहा था मंजू के पैर जवाब दे गए थे वो वैसे ही औंधी बोरी पर गिर गयी थी पर मैं रुकने वाला नहीं था मुझे अब मेरे बदन में जैसे शोले भड़क गए हो , ऐसे लग रहा था बस अब कुछ ही पलो की बात थी अन्डकोशो से मेरा खून वीर्य बनकर बिखरने को चल पड़ा था बस थोड़ी देर और , और तभी मंजू फिर से झड़ने लगी उसके मुह से तरह तरह की अव्वाजे निकल रही थी और उसके झड़ते झड़ते ही मेरा वीर्य भी निकल गया उसकी चूत को भरने लगा दोनों का रस जो मिला मजा ही आ गया 



करीब आधे घंटे तक उसको अपनी बाहों में लिए मैं पड़ा रहा वहा पर बार बार चूमा उसको मैं एक बार और मंजू को रगड़ना चाहता था पर उसने दी नहीं हमने अपने कपडे पहने और घर में आ गये, मंजू ने मुझे ठंडी पेप्सी पिलाई और वादा किया की जल्दी ही फिर देगी वो मुझे , फिर मैं अपने घर आ गया
बड़े दिनों बाद मैंने तबियत से चूत मारी थी तो शरीर जैसे निचुड़ ही गया था घर जाते ही मैं सो गया फिर शाम को ही उठा, उठते ही मम्मी ने बताया की पिताजी खेत में है तुझे बुलाया गया है पहूँच जल्दी से मैं पंहूँचा वहा पर पिताजी जैसे आज मुआयना कर रहे थे हर चीज़ का 

मुझे देख कर उन्होंने पुछा- पानी क्यों नहीं दिया सब्जियों को टाइम से 

मैं- पिताजी, मेरा कोई दोष नहीं , चाचा की जिम्मेदारी है ये वो ही रहते है खेत पर 

मुझे तो मजा ही आ गया अपना पल्ला तो झड गया अब चाचा जाने , पर मेरी ख़ुशी जल्दी ही काफूर हो गयी पिताजी ने उनसे बस इतना ही कहा की थोडा ध्यान से काम किया करो, फसल का नुकसान अपना नुकसान है , कम से कम दो डांट तो मारनी ही थी , 

मैंने पुछा- चाचा, पानी क्यों नहीं दिया ध्यान कहा है आपका 

वो हडबडा से गए और बोले- तू तेरे काम से काम रख 

मैंने भी सोच लिया था की जल्दी ही इनकी गांड पे लात मारनी है कुछ भी करके पर क्या वो समझ नहीं आ रहा था बिमला भी आजकल कुछ ज्यादा ही खुश रहने लगी थी ऊपर से चाचा के बदले बदले व्यवहार को अब चाची भी समझने लगी थी , कभी कभी वो बहुत चिडचिडा महसोस करने लगती थी मैं उनके हाल को बहुत अच्छे से समझता था पर मैं चाह कर भी उन्हें कुछ बता नहीं सकता था उनकी हालात भी मुझसे देखि नहीं जाती थी उनकी उदासी की वजह से मैं भी बुझा बुझा सा रहने लगा था 


पढाई में भी मन नहीं लगता था नीनू काफ़ी बार पूछती थी क्या परेशानी है पर मैं टाल जाता था तो भी मेरी वजह से दुखी थी , मंजू की चूत मिल जाती थी तो गुजरा हो रहा था पिस्ता भोसड़ी की जैसे मामा के यहाँ ही बस गयी थी दस दिन से ज्यादा हो गए थे उसको आई ही नहीं थी वर्ना उस से मदद ले लेता , पर वो कहते है ना की कोई ना कोई रास्ता जरुर मिलता है उस दिन नोटिस बोर्ड पे सुचना पढ़ी की एक स्कीम आई है जिसमे कोई भी स्टूडेंट अगर एक घंटे काम करेगा तो उसको पचास रूपये मिलेंगे बहुत कम लोगो ने नाम लिखवाया जिसमे मैं भी था पर लोग जल्दी ही उकता गयी पर मैं हर दिन सो का एक नोट कमाता था 


उस दिन मैं और नीनू क्लास बंक करके बैठे थे तो उसने जिद करली की आज तो बताना ही पड़ेगा तो मैंने उसको पूरी बात बता दी पर उसे कोई भी उपाय ना सूझा और ये बात तो तय थी की चाची को जब पता चलेगा तो घर में कलेश मचना ही था , तो बहुत विचार किया , नीनू ने भी यही कहा की बात तब बने जब चाची उनको रंगे हाथ पकडे वर्ना क्या पता बिमला खुद को बचने के लिए चाचा पर भी जबरदस्ती करने का इल्जाम लगा दे बात में दम था पर क्या करू कुछ समझ नहीं आ रहा था 


उस दिन शाम को करीब चार बज रहे थे आज मेरा काम मास्टरों के शोचालय को चमकाना था , उसकी सफाई करनी थी हाथ में झाड़ू पोंचा और फिनाइल की बोतल लेकर मैं पंहूँचा उधर कैंपस तक़रीबन इस समय तक खाली हो ही जाया करता था तो मैं पंहूँचा और सफाई करने लगा एक पोर्शन को चमकाने के बाद मैं महिला शोचालय में गया और सफाई करने लगा तभी मुझे लगा की परले कोने की तरफ से किसी औरत की आवाज आ रही है मेरे कान खड़े हो गए मैंने पोचा छोड़ा और दबे पाँव उधर गया तो देखा की एक बाथरूम में गणित के मास्टर ने शांति मैडम को घोड़ी बनाया हुआ था मैडम की सलवार घुटनों पर पड़ी थी और मास्टर मजे से चोद रहा था 


मैंने कहा ओह मास्टर जी बस शो खत्म,

मुझे देख कर दोनों हक्के बक्के रह गए मास्टर ने अपनी पेंट सम्हाई और भाग गया रह गयी मैडम और मैं मैडम अपनी सलवार बाँधने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला- मैडम, शर्म नहीं आती आपको ऐसे ये सब करते हुए 

मैडम ने नजरे नीची कर ली और बोली- किसी ...... को किसी को कुछ बताना मत तुम जो चाहे वो मैं करुँगी मेरी बहुत बदनामी हो जाएगी 

मैं- थोड़ी देर पहले तो आपको गोल्ड मैडल मिल रहा था ना 

मैडम कुछ ना बोली- 

मैं – मैं तो सबको बताऊंगा 

वो- नहीं मैं तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ , किसी को मत बताना तुम जो चाहो मेरे साथ कर लो, 

मैं- मुझे कुछ नहीं करना 

मैडम- प्लीज् मैं बदनाम हो जाउंगी, मेरी नोकरी चली जाएगी 

मैं- ठीक है पर आपको मेरा एक छोटा सा काम करना पड़ेगा 


मैडम- जो तुम चाहो, 
मैं- ठीक है जी, मैं कल आपको बताऊंगा 

मैडम ने अपने कपडे सही किये बाल वाल बनाये और निकल गयी मैं सफाई करने लगा और तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया आईडिया क्या आया बस समझो बात बन ही गयी मुझे खुद पर यकीन था पर ये एक रिस्क था जिसमे चाची का घर आँगन टूट जाना ही था , आग से खेलने वाली बात थी मैंने सोचा था की किसी को बताना तो है नहीं पर सबूत जरुर होना चाहिए क्या पता कब जरुरत हो जाये , मेरे एक तरफ चाचा की बेवफाई थी तो दूसरी तरफ चाची की दोस्ती थी उलझ कर रह गए थे बस अपने आप में
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12-29-2018, 02:36 PM,
#70
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
उस शाम चाचा और चाची में किसी बात को लेकर थोड़ी सी बहस हो रही थी तो मैंने अपने कान लगा दिए चाची कुछ गिले शिकवे कर रही थी पर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था , पता नहीं मेरे कान काम की बात को सुन ही नहीं पाते थे क्यों , अब सीधा उनके कमरे में भी तो नहीं जा सकता था न तो क्या करे बस आईडिया ही लगा सकते थे की क्या बात है पर जल्दी ही उनकी आवाजे बंद हो गयी तो मैं भी नीचे चला गया थोड़ी देर टीवी देखा एक साला दूरदर्शन पर कभी कुछ आता नहीं था और केबल टीवी घर वाले लगवाते नहीं थे हम तो दुखी ही दुखी थे 


फिर मैं खाना खाकर सीधा सोने ही चला गया , रेडियो सुनते सुनते कब नींद आई पता नहीं चला पर रात को मेरी आँख खुली तो मैं देखा रेडियो बज ही रहा है तो बंद किया उसको और पानी पीने के लिए बहार आया तो देखा की आज छत पर चाची खड़ी है , अक्सर तो वहा मैं पाया जाता था था पर आज वो थी , मुझे तो उनके दिल का हाल पता था ही मैं उनके पास गया और बोला- नींद नहीं आ रही क्या 

वो- शायद तुम्हारी बीमारी लग गयी मुझे भी 

मैं- क्या बात है 

वो- कुछ नहीं 

मैं- चाची, कभी कभी मुझे लगता है की आप और मैं एक ही कश्ती के सवार है आप भी बातो को छुपाती है मैं भी वैसे ना तो एक दोस्त होने के नाते ही बता दो, वैसे भी बताने से दिल का बोझ कुछ कम हो जाया करता है 

वो- कुछ बाते तू अभी नहीं समझेगा 

मुझे हँसी आ गयी 

मैं- चाचा से झगडा हुआ उसी का टेंशन है ना 

वो- ना वो सब तो चलता रहता है 

मैं- वो ही तो बात है , 

वो- आजकल ये कुछ बदले बदले से लग रहे है 

मैं- वो तो है 

वो- न पहले की तरह बात करते है ना और कुछ बस ऑफिस से आते है खाना खाया और खेत में , पहले तो बहुत मन मार कर जाते थे पर आजकल बड़ा दिल लगने लगा है इनका खेत में कुछ समझ में नहीं आता मुझे , आज मैंने पूछ लिया तो झगडा कर बैठे 


मैं- शायद काम का बोझ हो आप तो जीवन साथी हो उनको मुझसे बेहतर जानते हो 

वो- बात तेरी शायद ठीक हो पर उन्हें भी तो इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए था , कोई परेशानी हो तो बता भी सकते है 

मैं- आप मिया-बीवी सुलझाओ अपने मामले को अपने को क्या है , रात बहुत हुई है सो जाओ 

वो अपने कमरे में चली गयी मैं अपने कमरे में
अगले दिन मैंने सुबह सुबह ही शांति मैडम को पकड़ लिया और उनको अपना प्लान बताया की कैसे चाचा को वो अपने जाल में फ़साये और मैं उनकी मैडम को चोदते हुए तस्वीरे ले सकू , मैडम बहुत नखरे कर रही थी की मैं ना दूंगी पराये आदमी को ये हो जायेगा वो हो जायेगा तो मुझे थोडा गुस्सा आ गया मैंने कहा बहन की लोडी मास्टर जी से तो लपालप चुद रही थी और अब नखरे कर रही है , देख ले वैसे भी तू लंड की भूखी है तेरा काम भी हो जायेगा और मेरा भी , राज़ी हो जा वर्ना आज के आज सबको तेरी कहानी पता चल जाएगी 


तो बुझे मन से शांति मैडम ने हां, कर दी मैंने उसको समझाया की तू चाचा के ऑफिस में जा एक फर्जी काम करवाने को और उनको फसा ले तू बेशक उनको चूत मत देना बस मैं तेरे साथ उनकी कुछ फोटो खीच लू तो भी काम चल जायेगा 

शांन्ति\- पर उन तस्वीरों में मैं भी आउंगी 

मैं- तुजे कौन जानता है , तेरा बस इतना ही रोल है और मेरी जबान है तुझे, मेरी इतनी मदद कर दे मैं तेरे राज़ को सीने में दबा लूँगा 

तो आखिर मैडम मान ही गयी तो मैं उनको लेकर चाचा की ऑफिस में आया चाचा का नाम बताया और प्लान समझाया मैडम ऑफिस में चली गयी मैं बाहर ही रह गया

दस मिनट, बीस मिनट बाद बीत गयी, मेरी बेचैनी बढ़ी करीब आधे घंटे बाद वो आई हम वहा से निकले और साइड में बैठ गए 

मैं- क्या हुआ , 

वो- मैंने उनको वो कहानी बताई जो तुमने कहा था , पहले तो वो माने ही नहीं पर फिर मैंने थोड़ी अदाए दिखाई तो वो बोले- की काम थोडा मुस्किल होगा आपको भी मदद करनी पड़ेगी मुझे एक घंटे बाद इस रेस्टोरेंट में बुलाया है 

मैं- चाचा बड़ी जल्दी में है तुम टेंशन मत लेना और वो जो भी कहे तुम हा कर देना 


हमने और थोडा समय काटा, मैंने देखा की करीब घंटे भर बाद चाचा ऑफिस से निकले और सामने वाले रेस्तौरेंट में घुस गए, थोड़ी देर बाद मैंने शान्ति को भी भेज दिया और इंतज़ार करने लगा ये इंतज़ार करना भी बड़ा कठिन काम होता है पर क्या करे करना ही था करीब एक घंटे बाद वो लोग वहा से बहार आये चाचा ऑफिस में चले गए मैडम मेरी तरफ आने लगी , 

मैं- क्या हुआ 

वो- तुम्हारा कहना सही था, तेरा चाचा पूरा ठरकी है मैंने कल उसे अपने घर आने का बोल दिया है 

मैं- इतनी भी क्या जल्दी थी , कही उन्हें शक ना हो जाये 


वो- तू टेंशन मत लेना सब काम सेट कर दिया है बस तू कल रात टाइम से पहूँच जाना 

मैंने अपना माथा पीट लिया और बोला- जे तो चाह रहा है की तुम्हारी गांड पर लात दू, मैं रात को कैसे आ पाउँगा और तुम्हारे घरवाले भी तो रहेंगे ना 

शान्ति- मैं तो अकेली रहती हूँ इसलिए रात का बोला ताकि पूरा काम आराम से हो सके 

मैं- चल कोई ना मैं करूँगा कुछ ना कुछ जुगाड़, पर रात को फोटू कैसे खीचूँगा कैमरा का फ़्लैश भी तो होगा 
मैडम-मेरे पास नए ज़माने का डिजिटल कैमरा है वो फ़्लैश बंद करके भी ठीक फोटो खीच लेता है , देखो मैं तुम्हारे लिए इतना कर रही हूँ, तुम भी अपने वादे पर रहना 

मैं- टेंशन ना लो मेरी तरफ से 

रात को गाँव से शहर आना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल था बहुत सोचने के बाद मैने घर पे फ़ोन किया और कहा की कुछ काम से मैं कैंपस में ही रुकुंगा , मम्मी ने काफ़ी सवाल पूछे पर मैंने बस उतना ही कह के फ़ोन काट दिया और शान्ति के साथ उसके घर आ गया ,मैडम का दो कमरों का घर था मैडम ने मुझे बैठने को कहा और मेरे लिए पेप्सी ले आई

पिटे पीते मैं मैडम को पूरी बात समझाने लगा की कैसे क्या क्या करना है , अब मैंने मैडम पे थोडा गौर किया मैडम ३६-37 साल की तो होंगी रंग भी ठीक ठाक था थोड़ी पतली सी थी पर फिगेर मस्त था मैडम ने साड़ी पहनी हुई थी मुझे वैसे भी साडी वाली औरते बहुत पसंद थी मेरे मन में विचार आया की क्यों ना मैडम को ही चोद लिया जाए एक बार अब चूत की तलब किसे नहीं होती वैसे भी उस समय हम दोनों ही थे तो कोई परेशानी वाली बात नहीं थी 


मैं- आपके परिवार में कौन कौन है 

वो- मैं मेरे पति है और दो बचे है 

मैं- यही रहते है 

वो- नहीं पति दुसरे स्टेट में मास्टर है और बच्चे बोर्डिंग में है 

मैं- आप ऐसे काम क्यों करती हो 

वो- पता नहीं कैसे मुझे लत लगगई अब तो आदत हो चली है 

मैं उनके पास गया और उनकी जांघ को सहलाने लगा मैडम भी समझ रही थी पर वो मुझ से दूर होने लगी मैं –“मैडम जी मुझे भी एक बार गोता लगा लेने दो आपकी झील में ”

वो- देखो तुम ............. 

मैं मैडम की छाती पर हाथ लगाते हुए- मैडम जो आपको तो मजे लेने की आदत है तो कर्लोना मेरे साथ भी 
मैडम बस मुस्कुराने लगी 

मैंने उसकी साडी का पल्लू हटाया और उसके बोबो को दबाने लगा मैं धीरे धीरे चूचियो से खेलने लगा तो मैडम भी जल्दी ही अपने रंग में आने लगी मैंने ऊनके ब्लाउज के हूँक खोलने शुरू किये और उसको उतार दिया मैडम ने सफ़ेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी मैंने उसे भी उतार दिया मैडम ने एक आह भरी मीठी सी मैंने उसकी पीठ पर एक चुम्बन अंकित किया वो मेरे आगे खड़ी थी मैं धीरे धीरे उसकी गेंदों से खेलने लगा मेरा लंड उनकी गांड से लगातार रगड खा रहा था 

बोबो को सहलाते सहलाते मैं उनकी साडी को उतारने लगा फिर मैंने धीरे से उनके पेटीकोट ने नाड़े को खीच दिया नीली कच्छी मैडम की कसी हुई टांगो पर खूब फब रही थी मैंने उनकी जांघो पर अपना हाथ फेरा और मैडम को गोद में उठा कर उनके बेड की तरफ ले चला उन्होंने अपनी बाहे मेरे गले में डाल दी मैंने अब उनको पटका बेड पर अपने कपडे उतारने लगा जल्दी ही मेरा लंड खुली हवा में झूल रहा था मैडम की आँखे मेरे लंड पर जैसे जम सी गयी थी उन्होंने खुद ही अपनी कच्छी उतार दी और मुझे बोली- जरा मेरा पर्स ले आओ 
मैं- दोड़ कर गया और दोड़ कर वापिस आया 
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