Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
09-08-2018, 01:43 PM,
#51
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे...................... जब प्रेम हवेली पहुँचता है तो रुद्र प्रताप गुस्से से तिलमिला उठता है. “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहा आने की” – रुद्र प्रताप ने गुस्से में पूछा “ठाकुर मेरे मन में कुछ सवाल हैं जो मुझे यहा खींच लाए हैं” – प्रेम ने कहा “कैसे सवाल और तुम्हारे सवालो से मेरा क्या लेना देना” – रुद्र ने पूछा “लेना है ठाकुर, तभी तो मैं यहा आया हूँ” – प्रेम ने गंभीरता से कहा “भैया ये क्या बकवास कर रहा है, मुझे लगता है हमें इसकी खाल खींच कर गाँव के किसी पेड़ पर टाँग देनी चाहिए ताकि लोगो को सबक मिले कि हमारे खिलाफ बोलने का अंजाम क्या होता है” – जीवन जो अब तक चुपचाप खड़ा था अचानक बोला. “अबबे ओये स्वामी जी तुम सबकी खाल खिंचवा देंगे, ज़्यादा बकवास मत करो” – धीरज ने कहा “धीरज तुम शांत रहो और मुझे बात करने दो” प्रेम ने कहा “ठीक है स्वामी जी.” “हवेली में आकर इस तरह बकवास करने की किसी की हिम्मत नही हुई, कौन है ये लंडा.” ऱुद्र ने प्रेम से पूछा. “ये सब छोड़ो ठाकुर और मेरे कुछ सवालो का जवाब दो.” प्रेम ने कहा “तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब देना हम ज़रूरी नही समझते, इस से पहले की हम तुम्हारी खाल खीँचवा दें दफ़ा हो जाओ यहा से.” ठाकुर के आदमी हरकत में आ जाते हैं. बलवंत बोलता है, “मालिक आप बस होकम कीजिए, इसका मैं वो हाल करूँगा की दुनिया देखेगी.” लेकिन अगले ही पल प्रेम फुर्ती से आगे बढ़ कर रुद्र प्रताप को दबोच लेता है. उसका बायां हाथ उसकी गर्देन को जाकड़ लेता है और दायें हाथ से वो एक नुकीली सुई जैसी चीज़ को उसकी गर्देन से सटा देता है. “किसी ने भी कोई बेहूदा हरकत की तो ठाकुर की खैर नही. ये छोटी सी सुई इसे पल में मौत की नींद सुला देगी.” प्रेम ने सभी को चेतावनी दी. “हां ये मामूली सुई नही है…जंगल के कुछ कबीले इसे शिकार के लिए इस्तेमाल करते हैं.” धीरज ने कहा “तुम चाहते क्या हो?” जीवन ने पूछा. “वर्षा और मदन कहा है?” प्रेम ने सवाल किया. “हमे पता होता तो अब तक मदन की लाश तुम्हारे सामने होती.” ऱुद्र ने हन्फ्ते हुवे कहा. वो प्रेम की जाकड़ में छटपटा रहा था. रुद्रा बहुत शक्ति शालि था. उसको प्रेम की जाकड़ में इस हालत में देख कर सब हैरान-परेशान थे. “रघु कहा हैं, ठाकुर?” प्रेम ने फिर पूछा “कौन रघु, हम किसी रघु को नही जानते.” ऱुद्र ने छटपटाते हुवे कहा. “अजीब बात है, खेतो में काम करता था वो तुम्हारे.” “अछा वो रघु, वो तो कब से गायब है, किसी को नही पता वो कहा गया, शायद वो ये गाँव छोड़ कर कहीं चला गया.” जीवन ने जवाब दिया. “तुम लोग झूठ बोल रहे हो.” प्रेम ने गुस्से में कहा. और रुद्र की गर्देन पर प्रेम का शीकांजा कसता चला गया. ऱुद्र की आँखे बाहर निकलने को हो गयी. “छोड़ दीजिए सवमी जी ये बेचारा मर जाएगा.” धीरज ने रुद्र की हालत देखते हुवे कहा. “मर जाने दो, वैसे भी अंग्रेज़ो के पालतू कुत्तो को जिंदा रहने का अधिकार नही है.” धीरज ने पहली बार प्रेम को इतने क्रोध में देखा था. वो समझ नही पा रहा था कि क्या कहे क्या ना कहे. “पिता जी…पिता जी.” रेणुका दौड़ते हुवे वाहा आती है. वो अब तक वाहा के द्रिश्य से अंजान थी. सभी उसकी और देखने लगते हैं. प्रेम की जाकड़, रुद्र के गले पर ढीली पड़ जाती है. “क्या हुवा चिल्ला क्यों रही हो?” जीवन ने पूछा. रेणुका रुद्र को प्रेम के शीकन्जे में देख कर हैरान रह जाती है. वो प्रेम को देख कर उसके पैरो में गिर जाती है, “स्वामी जी मेरे पति को बचा लीजिए.” “तुम इसे कैसे जानती हो” जीवन ने पूछा. “पिछले साल जब में मायके गयी थी तो ये हमारे गाँव में पधारे थे” रेणुका ने एक साँस में जवाब दिया. “क्या हुवा तुम्हारे पति को.” “वो कमरे में बंद हैं और दरवाजा नही खोल रहे. अंदर से अजीब अजीब आवाज़े आ रही हैं. हमारे घर पर किसी भूत का साया है स्वामी जी.. हमें बचा लीजिए..शायद वर्षा को भी ये भूत ही कहीं ले गये हैं…मुझे बहुत डर लग रहा है.” प्रेम एक झटके से रुद्र को एक तरफ धकेल देता है. ऱुद्र दूर ज़मीन पर जा कर गिरता है. “तुम्हारी इतनी जुर्रत..” रुद्र ने चिल्ला कर कहा. ……………………………………………..
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09-08-2018, 01:44 PM,
#52
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इधर जंगल में :----- किशोरे समझ चुक्का था कि इन गोरो की नियत ठीक नही है. पर वो समझ नही पा रहा था कि वो क्या करे. दूर एक पेड़ के पीछे से मदन और वर्षा भी ये सब देख रहे थे. “मदन इन गोरो ने क्या रूपा और किशोरे को बंधक बना लिया है?” – वर्षा ने पूछा “लगता तो ऐसा ही है, मुझे कुछ करना होगा” – मदन ने कहा “पर उनके पास बंदूक है” – वर्षा ने चिंता में कहा “चिंता मत करो, मुझ पर भरोसा रखो, तुम ऐसा करो यहीं रूको, यहा से हिलना मत” – मदन ने धीरे से कहा “पर तुम क्या करना चाहते हो मुझे बताओ तो सही” – वर्षा ने पूछा “समझाने का वक्त नही है, जैसा कहा है, वैसा करो वरना उन दोनो की जींदगी मुस्किल में पड़ जाएगी” – मदन ने कहा मदन चुपचाप आगे बढ़ा और एक मोटा पत्थर उठाया और रॉबर्ट के सर को निशाना बना कर फेंक दिया. पत्थर निशाने पर लगा. रॉबर्ट के सर से खून बह निकला और वो लड़खड़ा कर नीचे गिर गया. उसके गिरने की आवाज़ सभी ने सुनी और उसके सभी साथ घबरा गये कि क्या हुवा. “वॉट हॅपंड रॉबर्ट?” – टॉम आस्क्ड लेकिन रॉबर्ट अपने होश खो बैठा था. सिमोन, टॉम, जूलीया और कॅरोल, तीनो ने रॉबर्ट को घेर लिया. मोके का फ़ायडा उठा कर किशोरे और रूपा जंगल की घनी झाड़ियो में घुस्स गये और उनकी आँखो से औझल हो गये. किशोरे और रूपा उसी और भागे थे जिस तरफ मदन और वर्षा छुपे थे. मदन और वर्षा को देख कर रूपा और किशोरे खुश हुवे. “मैने तुम्हे देख लिया था जब तुमने पत्थर से उस गोरे के सर का निशाना लगा रहे थे, धन्यवाद दोस्त वरना आज ना जाने हमारा क्या होता. ” – किशोरे ने कहा “ये वक्त बाते करने का नही है, उन्हे अब तक शक हो गया होगा, चलो चुपचाप आगे बढ़ते हैं” – मदन ने कहा मदन के पत्थर का वार इतना भयानक था की रॉबर्ट मर चुक्का था. “ओह गॉड, हे इस डेड, वी मस्ट लीव दिस फोरेस्ट इमीडीयेट्ली, दिस ईज़ नोट फन एनी मोर” – कॅरोल सेड. यू आर राइट कॅरोल, आइ आम विथ यू. दोज़ टू इंडियन्स आर ऑल्सो मिस्सिंग. “ओह…माइ गॉड! वॉट ईज़ दट?” कॅरोल शाउटेड. “व्हाट?” सभी ने एक साथ कहा कॅरोल के चेहरे पर डर के भाव थे उसने काँपते हाथो से इशारा किया. सभी ने पीछे मूड़ कर देखा. सभी के होश उड़ गये. “लेट्स गेट दा हेल आउट ऑफ हियर,” टॉम सेड. लेकिन अगले ही पल उन सभी की चीन्ख वाहा गूँज रही थी. पेड़ के पीछे से चुप कर वर्षा,मदन,किशोरे और रूपा ये सब देख रहे थे. “ये क्या है मदन?” वर्षा ने पूछा. “जो भी है बहुत भयानक है. इस से पहले की इसकी नज़र हम पर पड़े हमें यहा से निकल जाना चाहिए.” मदन ने कहा. “मुझे एक गुफा का पता है…चलो जल्दी वाहा चलते हैं. वो सुरक्षित रहेगी.” “कितनी दूर है वो.” “बस थोड़ी ही दूर है…जल्दी चलो अगर उसकी नज़र हम पर पड़ गयी तो वो हमें भी नोच-नोच कर खा जाएगा.” किशोरे ने कहा. वो चारो चुपचाप वाहा से निकल पड़े और थोड़ी ही देर में गुफा के पास पहुँच गये. “चलो जल्दी अंदर” किशोरे ने कहा सभी के अंदर आ जाने पर किशोरे ने अंदर से एक बड़ा सा पत्थर गुफा के दरवाजे पर लगा दिया. “वो क्या था किशोरे…उसने उन अंग्रेज़ो को नोच-नोच कर खा लिया.” रूपा ने कहा “अछा हुवा ये गोरे इसी लायक हैं.” किशोरे ने कहा. “हां पर भगवान ऐसी मौत किसी को ना दे.” मदन ने कहा “ऐसा जानवर मैने पहले कभी नही देखा. पता नही क्या था वो…” किशोरे ने कहा “कहीं रात को खेतो में भी यही तो नही था?” रूपा ने सवाल किया “हो सकता है…क्योंकि वो साया भी इतना ही भयानक था. अगर ये वही है तो हमें तुरंत गाँव लौट कर गाँव वालो को चोक्कना करना होगा.” किशोरे ने कहा. “पर हम गाँव वापिस नही जा सकते. वो ठाकुर हमें जींदा नही छोड़ेगा.” मदन ने कहा. “और अगर हम यहा जंगल में रहे तो वैसे भी कब तक बच पाएँगे. देखा नही कैसे एक मिनिट में सब अंग्रेज़ो को चीर दिया था उस जानवर ने.” “मैं वर्षा को लेकर दूसरे गाँव जा रहा हूँ.” मदन ने कहा. “पागल मत बनो मदन…तुम्हे क्या लगता है तुम दूसरे गाँव जा कर ठाकुर से बच जाओगे. अरे हमारे गाँव में तुम दोनो का साथ देने के लिए बहुत लोग आगे आ जाएँगे. वाहा तुम्हे कौन पूछेगा.” किशोरे ने कहा. “पर हम रास्ता भी तो भटक गये हैं…हम वापिस गाँव पहुँचेंगे कैसे.” वर्षा जो कि अब तक चुपचाप बैठी थी अचानक बोली. “क्या तुम गाँव वापिस जाना चाहती हो?” मदन ने पूछा. “मदन कोई और चारा भी तो नही है...” वर्षा ने कहा. “बस इतना ही साथ निभाना था तुमने…” मदन ने कहा. “मदन देखो वर्षा ठीक कह रही है. हम घने जंगल में फँसे हैं. और मुझे पूरा यकीन है कि हम अपने गाँव के ज़्यादा नज़दीक हैं. हम बस दिशा भूल गये हैं.” रूपा ने कहा. हवेली में: “मुझे उस कमरे तक ले चलो.” प्रेम ने रेणुका से कहा. रेणुका प्रेम को उस कमरे तक ले आई जिसमे वीर बंद था. प्रेम ने ज़ोर से दरवाजा खड़काया पर किसी ने दरवाजा नही खोला. ऱुद्र और जीवन भी वाहा आ गये थे. “ठाकुर अपने आदमियों से कहो ये दरवाजा तौड दे.” प्रेम ने कहा. “क्यों तौड दे…तुम कौन होते हो ये कहने वाले.” जीवन ने कहा. “अगर वीर को जिंदा देखना चाहते हो तो जैसा कहता हूँ वैसा करो.” “बलवंत तौड दो दरवाजा” रुद्र ने कहा जैसे ही दवाजा खुलता है प्रेम कमरे में ढाकिल होता है. “मैने तुम्हे यहा से चले जाने को कहा था.” एक आवाज़ आई. “हाँ पर मैं तुम्हारी बात क्यों मानु...रघु” प्रेम ने कहा. “तुम भूले नही मुझे हां” “कैसे भूल सकता हूँ…मुझे बताओ तुम ये सब क्यों कर रहे हो.” “मैं कुछ नही कर रहा जो कुछ किया है इस कामीने वीर ने किया है.” “क्या मतलब रघु मुझे सॉफ-सॉफ बताओ और वीर कहा है.” “इस खाट के नीचे छुपा है वो…पर ज़्यादा देर तक बच नही पाएगा तडपा-तडपा कर मारूँगा इसे में.” “तुम ऐसा क्यों कर रहे हो” प्रेम ने पूछा. “वो चीन्खे सुनी तुमने खेतो में” “हां सुनी…किसकी चीन्खे हैं वो.” “मेरी जान से प्यारी राधा की.” “राधा कौन राधा?” “तुम उसे नही जानते “इस कमिने वीर की वजह से वो तड़प-तड़प कर मरी…मैं इसे भी तडपा-तडपा कर मारूँगा.” रघु ने कहा. “देखो मैं तुम्हारा दर्द समझ सकता हूँ…लेकिन इस तरह खून ख़राबे से कुछ हाँसिल नही होगा.” “तो क्या मैं इस कमिने को यू ही छोड़ दू….तुमने देखा होता ना कि क्या हुवा मेरी राधा का तो ऐसी बात ना करते.” “मैने उसे नही मारा ये झूठ बोल रहा है…मुझे बचा लो” वीर खाट के नीचे से बोला. “तुमने नही मारा तो और किसने मारा…तुम्हारी वजह से ही हम जंगल में भागे थे और उस दरिंदे ने नोच-नोच कर खा लिया मेरी राधा को…मेरी आँखो के सामने हुवा ये सब..कितना दर्द हुवा होगा मुझे ये बस मैं ही जानता हूँ” रघु ने कहा. “ह्म्म…किस दरिंदे की बात कर रहे हो तुम” प्रेम ने पूछा. “मुझे बस इतना पता है कि वो बहुत भयानक है….राधा खेतो में बार-बार चीन्ख रही है क्योंकि उसे लग रहा है कि वो दरिन्दा कही आस पास ही है. अगर इस गाँव को बचाना चाहते हो तो जाओ
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सब गाँव वालो को इक्कथा करके उन्हे चेतावनी दो वरना कोई नही बचेगा. इस वीर को तो मैं नही छोड़ूँगा.” रघु ने कहा. “ये कौन बोल रहा है दीखाई तो कोई नही दे रहा” जीवन ने कहा. “दीखाई देगा कैसे भूत जो है….और अगर दीख गया ना तो यही मूत दोगे तुम” धीरज ने कहा. “खामोश हमारी हवेली में आकर हमारा मज़ाक उड़ाते हो” जीवन चिल्ला कर बोला. “स्वामी जी ये अंकल संभाल लेंगे भूत जी को चलो हम चलते हैं.” धीरज ने कहा. “नही स्वामी जी मेरे पति को बचा लीजिए…मैं मानती हूँ कि इन्होने ग़लत किया होगा…पर एक बार उन्हे मोका दीजिए वो आगे से ऐसा नही करेंगे.” रेणुका ने कहा. “बेचारी सरिता को नंगा घसीट कर लाया था ये इस हवेली में…चलिए स्वामी जी इसके पापो की यही सज़ा है कि इसे भूत निगल जाए.” धीरज ने कहा. “धीरज तुम थोड़ा धीरज रखो….मैं हूँ ना यहा.” प्रेम ने कहा. “जी स्वामी जी आप तो हैं ही मैं तो बस यू ही” धीरज ने कहा. “रघु हमारे रहते तुम यहा कोई अनहोनी नही कर सकते” प्रेम ने कहा. “तो तुम चले जाओ मैने तुम्हे यहा नही बुलाया….वीर की मौत तो निश्चित है..जब तक ये जींदा रहेगा मेरी और राधा की आत्मा भटकती रहेगी.” रघु ने कहा. “मेरे रहते तुम ये काम नही कर सकते” प्रेम ने कहा. “प्रेम…..मेरी मदद करो…..नही आहह” एक आवाज़ आती है. प्रेम घूम कर देखता है पर कोई नज़र नही आता. “ये तो साधना की आवाज़ है” प्रेम ने सोचा. “स्वामी जी ये आवाज़ कहीं पीछे से आ रही है” “पीछे तो खेत हैं” रेणुका ने कहा. “सोच क्या रहे हो प्रेम जाओ और बचा लो अपनी साधना को….इस पापी वीर के लिए यहा क्यों खड़े हो” रघु ने कहा. “ये ठीक कह रहा है स्वामी जी आओ चलें” धीरज ने कहा. “नही प्लीज़ मेरे पति को बचा लीजिए..” रेणुका गिड़गिडाई. पर अगले ही पर रघु वीर को पीछे दरवाजे से घसीट कर खेतो की ओर ले गया. “छोड़ो मुझे…मैने तुम्हारी राधा को नही मारा था..फिर मेरे पीछे क्यों पड़े हो.” वीर गिड़गिदाया “चल ठीक है फिर तुझे जंगल में पटक देता हूँ…वो दरिन्दा तुझे भी चीर कर खाएगा तो पता चलेगा.” रघु ने कहा. “स्वामी जी कुछ कीजिए ना” रेणुका बोली. “कुछ समझ नही आ रहा कि हो क्या रहा है” प्रेम ने कहा. “चलो स्वामी जी खेतो में चलतें हैं…साधना की आवाज़ भी तो उधर से ही आई थी.” धीरज ने कहा. “ठीक है चलो” जब तक प्रेम और धीरज खेतो में पहुँचते हैं रघु वीर को लेकर जंगल में घुस्स चुका होता है. “यहा तो कोई नही है…कहा ले गया वो वीर को…और साधना भी कही नज़र नही आ रही” धीरज ने कहा. “शायद वो वीर को जंगल में ले गया है…चलो” प्रेम ने कहा. “पर स्वामी जी साधना का क्या?” “यहा कोई साधना नही थी…ये सब इन भूतो की चाल थी हमारा ध्यान बटाने के लिए” “ह्म्म….चलो फिर इस भूत को मज़ा चखाते हैं स्वामी जी” प्रेम और धीरज के पीछे-पीछे रुद्र, रेणुका और जीवन भी आ गये. “कहा ले गया वो मेरे पति को” रेणुका ने कहा. “शायद जंगल में ले गया है…फिर भी पहले हम यहा खेतो में देख लेते हैं…ठाकुर अपने आदमियों से कहो खेत के हर कोने में तलास करें.” ……………………….. इधर जंगल में. “देखो हमें देर नही करनी चाहिए और जल्द से जल्द यहा से निकलना चाहिए” किशोरे ने कहा. “ठीक है...जैसी तुम सब की मर्ज़ी लेकिन किस रास्ते से जाएँगे और अगर वो भयानक चीज़ कही रास्ते में मिल गयी तो” मदन ने कहा. “देखो कुछ तो ख़तरा हमें उठाना ही होगा…चलो मेरे पीछे-पीछे मुझे लगता है कि मैं गाँव का रास्ता जानता हूँ.” किशोरे ने कहा. “ठीक है चलो फिर, हमें ज़्यादा देर नही करनी चाहिए.” मदन ने कहा. सभी गुफा से निकल कर किशोरे के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं. “मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं यहा आ चुका हूँ” किशोरे ने कहा. “देखो कोई ग़लती मत करना वरना सब मारे जाएँगे” मदन ने कहा. “हां याद आ गया वो पेड़ मैने पहले देखा है….आओ मेरे पीछे-पीछे हम गाँव से ज़्यादा दूर नही हैं.” किशोरे ने कहा. आख़िर कार भटकते-भटकते वो सब गाँव के नज़दीक पहुँच ही जाते हैं. “वो देखो…वो रहा अपना गाँव…पहुँच गये ना हम” किशोरे ने कहा. “तुम अपने घर जाओगी?” मदन ने वर्षा से पूछा. “घर क्यों जाउन्गि…मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जाउन्गि.” वर्षा ने मदन का हाथ पकड़ कर कहा “ठीक है आओ फिर.” मदन ने वर्षा का हाथ भींच कर कहा. “मेरी बात सुनो….अभी मेरे घर चलो…गाँव का माहॉल देख कर घर जाना ज़रूर ठाकुर ने तूफान मचा रखा होगा. मेरा घर अलग थलग है…कोई चिंता की बात नही रहेगी” वर्षा ने मदन की और देखा और इशारो इशारो में किशोरे की बात मान-ने को कहा. “तुम ठीक कह रहे हो…तुम्हारा घर सुरक्षित रहेगा…वर्षा तुम अपना मूह ढक लो ताकि कोई तुम्हे पहचान ना सके.” मदन ने कहा. “रूपा तुम घर जाओ और किसी को भी मदन और वर्षा के बारे में कुछ मत बताना..अपने भाई बलवंत को तुम कोई कहानी बता देना..मेरा नाम मत लेना वरना वो यहा पहुँच जाएगा.” किशोरे ने कहा. “तुम चिंता मत करो…मैं संभाल लूँगी” रूपा ने कहा. रूपा ने वर्षा को गले लगाया और बोली, “भगवान तुम्हारा प्यार सलामत रखे…अपना ख़याल रखना.” “तुम भी अपना ख्याल रखना” वर्षा ने कहा. “मदन तुम यही रूको अभी पहले मैं वर्षा को छोड़ आउ…तुम सबकी नज़रो से बचते बचाते थोड़ी देर में आ जाना.” किशोरे ने कहा. “ठीक है मैं यही खड़ा हूँ तुम निकलो…और हां गाँव वालो को उस भयानक जानवर के बारे में भी तो सचेत करना है” मदन ने कहा. “वो काम तुम मुझपे छोड़ दो…मैं संभाल लूँगा…अभी तुम्हे बस ठाकुर से बच के रहना है” वर्षा मूह पर दुपपता लपेट कर चुपचाप किशोरे के साथ चल पड़ती है. किशोरे वर्षा को अपने घर ले आता है. “तुम आराम करो…बहुत थक गयी होगी…मैं मदन को भी यहा तक सुरक्षित लाने का इंटेज़ाम करता हूँ.”
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“तुम इतना कुछ क्यों कर रहे हो.” वर्षा ने पूछा. “तुम दोनो के प्यार की खातिर.” किशोरे ने कहा. मदन भी किसी तरह से किशोरे के घर तक पहुँच जाता है. मदन के आते ही वर्षा उस से लिपट जाती है. “कल तो मुझसे दूर भाग रही थी आज क्या हुवा?” “मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी.” वर्षा ने कहा. “मैं कुछ खाने का इंटेज़ाम करता हूँ तुम दोनो आराम करो” किशोरे ने पीछे से आवाज़ दी. किशोरे की आवाज़ सुनते ही वर्षा मदन से अलग हो गयी. मदन किशोरे के पास गया और बोला, “तुम हमारी बहुत मदद कर रहे हो…कैसे चुकाउंगा इस अहसान का बदला मैं.” मदन ने कहा. “ये अहसान नही है, ये मेरा दो प्यार करने वालो के प्रति फ़र्ज़ है…और वैसे भी तुमने भी तो मेरी और रूपा की जान बचाई थी उन गौरो से… तुम आराम करो मैं कुछ खाने को लाता हूँ” किशोरे ने कहा …………………….. इधर ठाकुर के आदमियों ने पूरा खेत छान मारा पर वीर का कोई पता नही चला. शाम घिर आई थी सभी हतास और निराश थे. “अब तो बात सॉफ है…वो वीर को जंगल में ही ले गया है.” प्रेम ने कहा. “अब तक तो उसने वीर की चटनी बना दी होगी….स्वामी जी रहने दीजिए..उसे उसके पापो की सज़ा मिल गयी हमें क्या लेना देना.” “तुम समझ नही रहे मेरा इरादा उसे बीच गाँव में सज़ा देने का था ताकि गाँव वालो के दिल से ठाकुर का ख़ौफ़ कम हो….वो ऐसी चुपचाप मरेगा तो क्या फ़ायडा….और उसके मरने से कुछ हाँसिल नही होगा…बात तो तब थी जब वो पूरे गाँव के आगे जलील होता और माफी माँगता वो सज़ा उसके लिए ज़्यादा अछी होती” प्रेम ने कहा. “पर भूतो का अपना क़ानून है…वो उसे जंगल में मारेगा तो हम क्या करे.” धीरज ने कहा. “स्वामी जी अब क्या होगा…कुछ तो बोलिए?” रेणुका गिड़गिडाई. “देखो स्वामी जी जो कर सकते थे उन्होने किया…..अब वो वीर को जंगल में ले गया तो हम क्या करें. इतने बड़े जंगल में उसे कहा ढूंदेंगे.” धीरज ने कहा. “धीरज तुम चुप रहो….इनकी परेशानी भी तो समझो.” प्रेम ने कहा. “देखिए अब वीर के बचने की संभावना बहुत कम है….अब तक शायद…” प्रेम ने कहा. दो आँसू रेणुका की आँखो से टपक गये. “मुझे पता था कि एक ना एक दिन भगवान उनके साथ न्याय ज़रूर करेंगे पर इस तरह से करेंगे सोचा नही था.” रेणुका ने कहा और अपने आँसू पोंछ कर वापिस हवेली की तरफ चल दी. ऱुद्र और जीवन वही खड़े रहे. “चलो स्वामी जी हम चलते हैं….इनको अपने किए की सज़ा मिल गयी.” धीरज ने कहा. ऱुद्र और जीवन ने धीरज की बात पर कोई रिक्ट नही किया. प्रेम और धीरज भी वाहा से चल दिए, साधना के घर की तरफ. ………………………………… वर्षा और मदन खाना खा कर किशोरे के घर की खिड़की पर खड़े हैं. मदन ने वर्षा को पीछे से बाहों में भरा और बोला, “क्या सोच रही हो.” “कुछ नही….घर में सब परेशान होंगे.” “हाँ मेरे घर पे भी सब परेशान होंगे…साधना तो रो रो कर पागल हो गयी होगी.” मदन ने कहा. “बहुत प्यार करते हो तुम अपनी बहन से.” “हां बिल्कुल ये भी क्या पूछने की बात है.” “मुझे शरम आ रही है.” वर्षा ने कहा. “शरम….वो क्यों.” “समझा करो हटो पीछे.” “नही हटूँगा…बड़ी मुस्किल से तो ये पल नसीब हुवे हैं…मैं नही हटूँगा.” वर्षा को अपने नितंबो पर मदन का लिंग महसूष हो रहा था इसलिए वो शर्मा रही थी. “हटो ना कुछ चुभ रहा है.” “क्या चुभ रहा है…बताओ ना.” “मुझे नही पता लेकिन कुछ है.” “इस कुछ का कोई नाम तो होगा.” “मुझे नाम नही पता…तुम हट जाओ.” “अछा…ये लो अब और ज़्यादा चुभावँगा.” मदन ने वर्षा के नितंबो पर धक्का मारा. “बदमास क्या कर रहे हो.” “वही जिसके लिए ये प्यार हुवा है.” “प्यार क्या ये सब करने की लिए किया था तुमने.” “नही…पर इसके बिना प्यार अधूरा रहेगा.” मदन ने कहा मदन ने वर्षा की गर्दन को बड़े प्यार से किस किया. “आहह…हट जाओ…तन्हाई का फ़ायडा मत उठाओ.” मदन ने वर्षा के उभारो को अपने दोनो हाथो में जाकड़ लिया और उन्हे ज़ोर से मसल्ने लगा. “आहह….नही मदन…अभी नही…शादी के बाद…” “शादी तक हम जींदा ना रहे तो.” मदन ने कहा. “नही…नही ऐसा नही होगा.” वर्षा ने कहा और दो बूंदे उष्की आँखो से टपक गयी. “जो वक्त है हमारे पास उस में एक दूसरे में डूब जाते हैं…बाकी जींदगी का कोई भरोसा नही.” “ऐसा मत कहो…मुझे डर लग रहा है.” मदन ने वर्षा को अपनी तरफ घुमाया और उसके होंटो पर अपने होन्ट टिका दिए. दो प्यार से भरे होन्ट प्यार के सागर में डूब गये. एक बार उनके होन्ट क्या मिले…मिले ही रह गये. पूरे आधा घंटा वो एक दूसरे को चूमते रहे. “बस बहुत हो गया प्यार क्या सारी रात चूस्ते रहोगे मेरे होन्ट.” “नही अभी कुछ और भी करना है?” “क्या?” मदन ने अपना लिंग कपड़ो की क़ैद से बाहर खींच लिया और बोला, “इसे भी प्यार चाहिए.” वर्षा ने अपनी नज़रे झुकाई और मदन के लिंग को देखा. कमरे में दिया जल रहा था उसकी रोशनी इतनी तो थी ही कि मदन और वर्षा नज़दीक से एक दूसरे को देख सकें. “यही है वो बदमाश जो मेरे पीछे चुभ रहा था.” “हां…लो पकड़ लो…तुम्हारा ही है ये.” मदन ने वर्षा को कहा. “ना बाबा ना मुझे शरम आती है…अंदर डालो इसे.” “अंदर भी डालेंगे पहले थोड़ा कुछ और तो कर लें.” “क्या मतलब मैने कहा जनाब इसे वापिस अंदर डालो…जहा से निकाला है…मेरा अभी कोई इरादा नही है.” “ऐसा मत कहो….ये वक्त ये रात दुबारा नही आएगी.” “ऐसी रात रोज आएगी चिंता मत करो.” “समझा करो…पाकड़ो ना.” मदन ने कहा और वर्षा का हाथ खींच कर अपने लिंग पर रख दिया. वर्षा को जैसे करंट लग गया उसने फॉरन अपना हाथ वापिस खींच लिया. “क्या हुवा…क्या मेरे लंड को प्यार नही करोगी.” “क्या कहा तुमने?” “लंड…यही नाम है इस बेचारे का.” मदन ने हंसते हुवे कहा. “लंड….ये कैसा नाम है.” वर्षा हैरान हो कर बोली. शायद उसे किसी ने ये नाम नही बताया था. “यही नाम है लो पाकड़ो अब.” “पकड़ तो लूँगी पर लंड…हे..हे..हा..हा.” “इसमें हस्ने की क्या बात है…ज़्यादा मत हँसो वरना अभी चूत में डाल दूँगा.” “हाई राम ऐसी बाते मत करो.” “अछा चूत का तुम्हे पता है और लंड का तुम्हे कुछ नही पता…सिर्फ़ अपना अपना ख्याल रखती हो हा…” मदन ने कहा. तभी अचानक दरवाजा खड़का. “अफ अब कौन आ गया.” मदन ने कहा. “बड़े अच्छे वक्त आया है कोई…हे..हे” वर्षा मुस्कुराइ. “देखता हूँ कब तक बचाओगि अपनी चूत मुझसे….आज की रात उसकी खैर नही.” मदन ने वर्षा के उभारो को दबा कर कहा. “पहले दरवाजा खोलो…देखो तो सही कौन है.” मदन ने दरवाजा खोला. "मदन गाँव में माहॉल बहुत खराब है...मैं बाहर से ताला मार देता हूँ...तुम अंदर शांति से रहना." "हम तो शांति से ही हैं...अछा ये बताओ मेरे घर का का कुछ हाल चाल पता चला" किशोरे गहरी साँस ली, "अभी तुम्हारे घर नही जा पाया...चिंता मत करो सब ठीक ही होगा." किशोरे को मदन की बहन सरिता और मा के बारे में सब पता चल गया था लेकिन उसने जानबूझ कर मदन को कुछ नही बताया. शायद वो प्यार से भरे दो दिलो को परेशान नही करना चाहता था. क्रमशः.....................
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09-08-2018, 01:44 PM,
#55
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे...................... "क्या ठाकुर को पता चल गया कि वर्षा मेरे साथ है" मदन ने पूछा. "ठाकुर को ही नही पूरे गाँव को पता है...कुछ भी हो तुम यहा से बाहर मत निकलना.." किशोरे ने कहा. "सच-सच बताओ मेरे घर पे सब ठीक है ना." मदन ने पूछा. "सब ठीक ही होगा...मुझे तुम्हारे घर के बारे में किसी ने कोई ऐसी वैसी बात नही बताई...तुम चिंता मत करो...आराम करो अब...और हां ध्यान रखना ज़्यादा आवाज़ मत करना अंदर. बाहर से ताला लगा रहा हूँ...ध्यान रखना" "ठीक है, मैं ध्यान रखूँगा" मदन ने कहा. किशोरे के जाने के बाद मदन गहरी चिंता में खो जाता है. "क्या हुवा परेशान क्यों हो" वर्षा ने मदन के कंधे पर हाथ रख कर पूछा. "पता नही क्यों ऐसा लग रहा है कि घर पर सब ठीक नही है" "ऐसा क्यों सोच रहे हो?" "पता नही पर किशोरे मुझसे कुछ छुपा रहा है" "ज़्यादा मत सोचो....सब ठीक ही होगा...देखो हम जंगल से यहा सुरक्षित आ गये. भगवान सब ठीक ही रखेंगे" "ह्म्म तुम कहती हो तो मान लेता हूँ....पर अब तुम्हे बदले में छूट देनी पड़ेगी" "ये क्या बात हुई भला तुम मेरी बात मानो या ना मानो मेरी वो बीच में कहा से आ गयी" "आज तो तुम्हे देनी ही होगी देखो ना बंद कमरे में हम दोनो तन्हा हैं. बाहर से ताला लगा है. तुम्हारे पास चूत देने के सिवा कोई चारा नही" "तुमने तो अचानक रंग बदल लिए...प्यार क्या यही सब है" "प्यार तो बहुत कुछ है वर्षा पर प्यार में चूत में लंड तो देना ही पड़ता है" "हाई राम तुम तो बहुत बदमास हो कैसी बाते करते हो" "अच्छा लो अब पाकड़ो मेरे लंड को" मदन ने अपने लिंग को बाहर खींच कर कहा "ना बाबा ना मैं नही पाकडूँगी...मुझे तो नींद आ रही है...उस जंगल में रात भर जागती रही...अब मुझे परेशान मत करो." मदन ने वर्षा को बाहों में भर लिया और उसके नितंबो पर हाथ रख कर उसे अपनी और खींचा. वर्षा को अपनी योनि पर मदन का लिंग महसूस हुवा तो वो सिहर उठी. "छोड़ दो मुझे...अकेली लड़की का फ़ायडा मत उठाओ" मदन ने वर्षा के नितंबो को सहलाया और उन्हे मसल्ते हुवे बोला, "तुम्हारी गांद बहुत सुंदर है" "कैसी बात करते हो तुम हटो छोड़ो मुझे." "अक्सर तुम्हे मंदिर से जाते वक्त पीछे से देखता था मैं. बहुत गांद मटका कर चलती थी तुम" "मंदिर के बाहर क्या तुम ये सब देखते थे...शरम नही आई तुम्हे." "प्यार में कैसी शरम. एक प्रेमी को प्रेमिका के हर अंग को देखने का हक़ है" "मंदिर में भी हा" वर्षा ने कहा. "मंदिर में नही देखता था, तुम्हे मंदिर के बाहर देखता था." "मुझे ही देखते थे या किसी और को भी" "पागल हो क्या...तुम्हारे शिवा किसी और को क्यों देखूँगा.." "फिर ठीक है" "तुम्हारे चाचा पर बहुत गुस्सा आ रहा है...उसने बहुत हाथ फेरे हैं इस गांद पर" "मुझे दुबारा वो सब याद मत दिलाओ...मेरा मन खराब होता है." "ओह ग़लती हो गयी...वैसे ही मूह से निकल गया...तुम्हारे चाचा की तो मैं किसी दिन ऐसी धुनाई करूँगा कि वो याद रखेगा" "छोड़ो ये सब अपनी बाते करो" "ह्म्म तो कैसा लगा तुम्हे मेरा लंड" "लंड हे..हे..हे....अछा लगा...लंड" "फिर से मज़ाक उड़ा रही हो मेरे लंड का...तुम्हारी चूत फाड़ देगा वो ऐसे बोलॉगी तो" "अरे बाबा कुछ और नाम नही मिला क्या...लंड...हे..हे" "खोलो नाडा अभी मज़ा चखाता हूँ" मदन ने कहा. मदन वर्षा का नाडा पकड़ कर खोलने लगा. "रूको...मैं तो मज़ाक कर रही थी.." "इस नाडे को क्या हो गया...कैसे खुलेगा ये...खोलो इसे" "मैं नही खोलने वाली जनाब...आप में दम है तो खोल के दीखाओ" "अपनी चूत सामने लाओ अभी घुस्साता हूँ उसमे तब पता चलेगा कि लंड क्या होता है" "पहले नाडा तो खोल लो फिर घुस्साने की बात करना...ये खुलने वाला नही है" वर्षा ने हंसते हुवे कहा. "लंड तो मैं घुस्सा के रहूँगा चाहे कुछ हो जाए" "ऐसे कैसे घुस्सा दोगे...मेरी मर्ज़ी के बिना कुछ नही होगा" "अछा ये लो तुम्हारा नाडा खुल गया...अब तुम्हारी चूत की खैर नही." मदन ने कहा. "उऊयईी मा तुमने तो सच में खोल दिया....देखो ये सब अभी नही...फिर कभी" "आज क्या व्रत है तुम्हारी चूत का जो फिर कभी पर टाल रही हो" "सब कुछ अचानक हो रहा है...मैं तैयार नही हूँ" मदन ने वर्षा की योनि पर हाथ रखा और बोला, "झूठ बोल रही हो....तुम्हारी चूत तो लार टपका रही है और तुम कह रही हो की मैं तैयार नही हूँ" "मुझे वो सब नही पता....क्या पता मेरी वो क्यों लार टपका रही है" "लंड लेने के लिए तैयार है तुम्हारी चिकनी चूत...इतना भी नही समझती." मदन वर्षा के उभारो को मसलना शुरू कर दिया. "ऊऔच्च... इतनी ज़ोर से क्यों दबा रहे हो...तुम तो पागल हो गये हो आज" "तुम्हारे प्यार में पागल हुवा हूँ वर्षा गुस्सा मत करो" "धीरे से नही दबा सकते फिर" मदन ने बाते करते-करते अचानक अपना लिंग वर्षा की योनि पर रख दिया. वर्षा बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी. "आअहह तुम्हारा लंड महसूस हो रहा है मुझे" "अभी ये लंड बाहर है अभी थोड़ी देर में तुम्हारे अंदर घुस्सेगा...आअहह" "लगता है तुम नही मानोगे" "अगर तुम सच में मुझे रोकना चाहती हो तो मुझे अपने उपर से धकैल दो मैं दुबारा नही आउन्गा" "ये क्या बात हुई...मैं ऐसा कभी नही करूँगी" "डाल दू फिर क्या तुम्हारी चूत में" "मुझे नही पता था कि तुम ऐसी कामुक बाते करोगे." "मैं तो रोज तुम्हारी गांद देख-देख कर जीता था." "क्या मतलब...ऐसा क्या है उसमे" "तुम्हारी गांद मटकती देखता था तो लंड मचल उठता था." "ह्म्म...मुझे नही पता था कि तुम मुझे ऐसी नज़रो से देखते हो वरना ख्याल रखती." मदन अपने लिंग को हाथ में पकड़ कर वर्षा की योनि पर रगड़ने लगा. "आअहह ये क्या कर रहे हो" वर्षा कराह उठी "लंड को रास्ता दीखा रहा हूँ...एक बार रास्ता मिल गया तो घुस्स जाएगा...हे..हे" "तुम तो इसे कही और ही रगड़ रहे हो ऐसे कैसे रास्ता मिलेगा." वर्षा बोली.
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09-08-2018, 01:44 PM,
#56
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"तो तुम मदद कर दो वैसे भी तुम्हारी चूत है तुम आछे से जानती हो इसके रास्ते हे.हे.." "मैं अजनबी को रास्ता नही दीखाती...खुद ढूंड लो." अगले ही पल वर्षा चीन्ख उठी... "आआय्य्यीईइ.....नही" वो इतनी ज़ोर से चीन्खि की मदन घबरा गया. "ज़्यादा ज़ोर से मत चील्लाओ...किसी ने शुन लिया तो मुसीबत हो जाएगी" "घुस्साने से पहले मुझे बता तो देते...जान निकाल दी मेरी...निकालो बाहर वरना मैं फिर चील्लाउन्गि" "कैसी बात करती हो...तुम तो ऐसे फसवा दोगि" "मुझे दर्द हो रहा है..तुम समझते क्यों नही...हटो" मदन ने अपना लिंग बाहर खींच लिया और वर्षा के उपर से हट कर करवट ले कर लेट गया. वर्षा थोड़ी देर चुपचाप पड़ी रही. थोड़ी देर बाद उसे अहसास हुवा कि मदन नाराज़ है. "मदन क्या हुवा...क्या तुम नाराज़ हो गये पर मैं क्या करती बहुत दर्द हो रहा था." "रहने दो, क्या कोई ऐसे अंदर डलवा कर बाहर निकलवाता है?" मदन ने कहा. "मैने नही डलवाया था...तुमने अचानक डाल दिया मैं तैयार नही थी" "चूत तो तुम्हारी गीली पड़ी है और फिर वही मज़ाक कर रही हो." "मदन तुम्हारा लंड भी तो इतना मोटा है....क्या पता उसके लिए मेरी वो छोटी हो" "ऐसा कुछ नही है सब बहाने हैं तुम्हारे." मदन ने कहा. "कितना डाला था तुमने?" वर्षा ने पूछा. "अभी आधे से भी बहुत कम घुस्साया था और तुम नाटक करने लगी" "ये नाटक नही था मदन...सच में बहुत दर्द हो रहा था...अछा आओ तुम दुबारा डालो मैं मूह से छू भी नही करूँगी" "पक्का" मदन ने कहा. "हां बिल्कुल पक्का." मदन फिर से वर्षा के उपर चढ़ गया. इस बार उसने अपने लिंग पर ढेर सारा थूक लगा लिया. "ये क्या कर रहे हो?" वर्षा ने पूछा. "लंड को चिकना कर रहा हूँ ताकि आराम से अंदर जाए." "ह्म्म पहले क्यों नही किया था ये काम..बेकार में मेरी जान निकाल दी" "तुम्हारी चूत बहुत गीली थी मुझे लगा थूक की कोई ज़रूरत नही है" "अब जब डालो तो बता देना." "मैं डालने ही जा रहा हूँ...तैयार हो जाओ" मदन ने कहा. मदन ने वर्षा की योनि पर लिंग रख कर ज़ोर से खुद को आगे की ओर धकेला. "म्‍म्म्ममम" वर्षा ने अपनी मुथि दातों में भींच ली. "क्या पूरा गया...आहह" "नही अभी आधा ही गया है" "क्या पूरा डालना ज़रूरी होता है...आधे से काम नही चलेगा क्या?" "नही....मेरा पूरा डालने का मन है आअहह लो सम्भालो" "आहह.....म्‍म्म्ममम" वर्षा बहुत धीरे से कराह रही थी. "घुस्स गया पूरा....बस अब सब ठीक है" "क्या ठीक है...मेरी हालत खराब हो रही है" "तो क्या निकाल लू बाहर" "नही-नही इतनी मुस्किल से तो एक बार अंदर लिया है" "ह्म्म....वर्षा मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ" "तभी इतना दर्द दे रहे हो." "ये दर्द तो एक पल का है प्यार की खुसबू जो इसके बाद बीखरेगी उसका तुम्हे अंदाज़ा नही" "अछा तुम्हे कैसे पता ये सब" "बस पता है....लड़को को सब पता होता है" "ह्म्म...अब इसके बाद क्या होगा?" वर्षा ने बड़ी मासूमियत से पूछा. "कुछ नही अब मैं बस तुम्हारी चूत मारूँगा" मदन ने वर्षा के उभारो को मसल्ते हुवे कहा. "तुम तो बहुत बदमास निकले" वर्षा ने कहा. "प्रेमिका के साथ बदमासी करनी पड़ती है वरना कुछ नही मिलता" "शुरू भी करो अब काम..तुम तो बातो में लग गये" "लगता है मेरी वर्षा का दर्द गायब हो गया." "हां अब आराम है" "इसका मतलब मैं अब अपनी वर्षा की चूत मार सकता हूँ" "बिल्कुल" वर्षा ने अपने चेहर को अपने हाथो मे ढक कर कहा. मदन ने बिल्कुल सुनते ही वर्षा के उपर हलचल शुरू कर दी. "आअहह मदन....थोड़ा धीरे आअहह" "ठीक है" मदन ने रफ़्तार कम कर दी. वो अपने लिंग को बहुत धीरे धीरे वर्षा की योनि में अंदर बाहर करने लगा. "इतनी धीरे भी नही....आहह थोड़ा तेज" "ह्म्म मेरी वर्षा को अब तेज चाहिए ये लो फिर." "उउम्म्म्मम........ आअहह मदन अछा लग रहा है ऐसे ही करते रहो....आअहह" "थोड़ा धीरे बोलो किसी ने शुन लिया तो ये काम बीच में ही रोकना पड़ जाएगा" मदन ने कहा.
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09-08-2018, 01:44 PM,
#57
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
वर्षा ने फिर से अपने दांतो में मुति दबा ली कोई आधा घंटे बाद मदन बहुत तेज तेज धक्के लगा कर वर्षा पर गिर गया. "आअहह अछा हुवा तुम रुक गये वरना मैं तुम्हे अब धक्का देने वाली थी?" "काम ख़तम हुवा तो रुकना ही था. बहुत मज़ा आया...कसम से." "बिन फेरे मैं तुम्हारी पत्नी बन गयी" "बिल्कुल वर्षा....ये जो हमने किया वो फेरो से भी ज़्यादा मजबूती देगा हमारे रिश्ते को.....आराम कर लो एक बार फिर करेंगे." "क्या....नही अब मुझे सच में नींद आ रही है...कल भी नही सोई...आज भी नही सोने दोगे तो बीमार पड़ जाउन्गि" वर्षा ने कहा. "ह्म्म ठीक है चलो अब सोते हैं" "पहले अपना लंड तो बाहर निकाल लो" "ओह...भूल ही गया....ये लो" "अछा नाम है लंड....हे..हे काम भी अछा करता है...." वर्षा ने कहा. "ये काम हर रोज कर देगा ये तुम बस अपनी चूत को गीली रखना" "मुझे नही पता वो कैसे गीली होती है....ये काम भी तुम ही करना." "हा...हा...हे..हे...बहुत अछा मज़ाक कर लेती हो." "सस्शह चुप बाहर कुछ हलचल हो रही है" वर्षा ने कहा. "आधी रात को कौन घूम रहा है बाहर मैं खिड़की से देखता हूँ." "रहने दो ना..मुझे डर लग रहा है मेरे पास ही रहो." तभी कमरे का दरवाजा हल्का सा हिला, जैसे की बाहर किसी ने हल्का सा धक्का मारा हो. "मैं देखता हूँ खिड़की से" मदन ने कहा और उठ कर खिड़की के पास आ गया. "हे भगवान ये तो वही दरिन्दा है जो हमने जंगल में देखा था." मदन ने मन ही मन कहा. मदन फॉरन वर्षा के पास आ गया और बोला, "बिल्कुल आवाज़ मत करना...वो दरिन्दा घूम रहा है बाहर." "हे भगवान अब क्या होगा?" वर्षा ने कहा. "बिल्कुल चुप रहो..." मदन ने कहा. दोनो बिल्कुल शांत पड़े रहे...बाहर हलचल होती रही. "ये सब हमारे साथ ही क्यों हो रहा है मदन" वर्षा ने पूछा. "मुझे तो हमारा गाँव ख़तरे में लग रहा है." मदन ने कहा. "अब तो बाहर कोई आवाज़ नही है" वर्षा ने कहा "बाहर हलचल तो कुछ नही हो रही लेकिन फिर भी हमें शांत रहना होगा" रात बीत जाती है और सुबह की किरण खिड़की से अंदर आती है तो वर्षा की आँख खुल जाती है. "उठो खिड़की बंद कर्लो...दिन निकल आया है कही कोई झाँक के देख ले" वर्षा ने कहा. मदन उठ कर खिड़की बंद करने लगता है लेकिन बाहर की हलचल देख कर रुक जाता है. "ये सब लोग कहा भागे जा रहे हैं इतनी सुबह" मदन ने कहा. "तुम खिड़की बंद करो ना पहले बाद में सोचना" वर्षा ने कहा. मदन खिड़की बंद करके वर्षा के पास आ गया. "ज़रूर कुछ गड़बड़ है....रात को उस दरिंदे ने कही यहा गाँव में भी किसी को मार तो नही दिया?" मदन ने कहा. "मुझे तो अभी नींद आ रही है...बहुत हो लिया ये तमासा रात भर वैसे ही नींद नही आई" "लगता है रात का नशा अभी तक नही उतरा" मदन ने कहा "नशा तो तभी उतर गया था जब रात बाहर हलचल हो रही थी...बड़ी मुस्किल से नींद आई थी सोने दो अब." "ठीक है तुम सो जाओ.....ये किशोरे कब आएगा?" ...................................................... साधना के घर के बाहर प्रेम और साधना खड़े बाते कर रहे हैं. "साधना मैने अपने साथ आए लोगो को भेज दिया है.....उन्हे दूसरे गाँव जाना है वाहा कुछ काम है" प्रेम ने कहा. "तुम क्यों नही गये प्रेम?" साधना ने पूछा. "पिता जी की तबीयत खराब है और अभी गाँव में माहॉल खराब है सोचा थोड़े दिन यही रुक जाउ." "शूकर है कोई तो कारण है तुम्हारे पास यहा रुकने का." "ऐसी बात नही है...मुझे तुम्हारी भी चिंता है" "अगर ऐसा है तो क्या तुम हमेशा मेरे साथ रह सकते हो?" "तुम हमेशा इस रिस्ते को बंधन में क्यों बाँधना चाहती हो, समझने की कोशिस क्यों नही करती...मैं अब सन्यासी हूँ" "क्योंकि मैं तुम्हे प्यार करती हूँ इश्लीए...और मुझे तुम्हारा ये सन्यास समझ नही आता...जो की किसी का दिल तोड़ देता है" साधना ने कहा. साधना ने प्रेम का हाथ पकड़ा और अपने दिल पर रख दिया और बोली, "देखो हर वक्त इस दिल में बस तुम्हारा ही प्यार बस्ता है और तुम हो कि मेरी कोई परवाह नही करते अब. पहले तो तुम ऐसे नही थे...सब इस सन्यास के कारण हुवा है...कैसा सन्यास है ये जो प्यार को ख़तम कर देता है" क्रमशः........................
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09-08-2018, 01:44 PM,
#58
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे...................... प्रेम का हाथ साधना के दिल के साथ-साथ उसके उभारो के उपर भी था. साधना के उभारो की गोलाई महसूस होते ही प्रेम ने अपना हाथ वापिस खींच लिया.उसका हाथ काँप रहा था. "ये क्या कर रही हो....ये सब मेरे लिए पाप है" प्रेम थोडा गुस्से में बोला. "मैं तो आपको अपना दिल दीखा रही थी स्वामी जी आपने कुछ और ही महसूस किया शायद...कैसा सन्यास है ये" साधना ने कहा. "मैं तुमसे कोई बात नही करना चाहता...मैं जा रहा हूँ" प्रेम ने कहा. "प्रेम मेरी बात सुनो मेरा वो मतलब नही था...रुक जाओ" साधना गिड़गिडाई. प्रेम साधना की बात उन्शुनि करके आगे बढ़ गया लेकिन अभी वो चार कदम ही बढ़ा था कि, सामने से भीमा भागता हुवा आया और बोला, "स्वामी जी अनर्थ हो गया" "क्या हुवा भीमा?" प्रेम ने पूछा. "आपके साथ जो लोग थे.." भीमा बोलते-बोलते चुप हो गया. "हां-हां बोलो क्या हुवा?" "वो सब मारे गये स्वामी जी... हवेली के नज़दीक जो सड़क गाँव से बाहर की ओर जाती है वाहा सब की लाश बहुत बुरी हालत में पड़ी हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी शेर ने उनको नोच-नोच कर खाया हो" भीमा ने कहा एक पल को प्रेम स्तब्ध रह गया. "ये क्या कह रहे हो...होश में तो हो" "मैं खुद अपनी आँखो से देख के आ रहा हूँ स्वामी जी" "हे भगवान धीरज और नीरज के मा बाप को मैं क्या जवाब दूँगा." प्रेम ने कहा. साधना भी भाग कर प्रेम के नज़दीक आ गयी और बोली, "क्या हुवा प्रेम?" प्रेम ने कोई जवाब नही दिया. "स्वामी जी के साथ जो लोग थे उनके साथ अनर्थ हो गया." भीमा ने कहा. "काश मैं उन्हे रोक लेता कल...कह रहे थे रात-रात में पहुँच जाएगे अगले गाँव...मुझे उन्हे रोकना चाहिए था...मेरा दीमाग कहाँ है आजकल" प्रेम बड़बड़ाया "प्रेम तुम्हारी ग़लती नही है...." साधना ने कहा. "चुप रहो तुम सब तुम्हारे कारण हुवा है....मेरा दीमाग खराब कर दिया तुमने" प्रेम गुस्से में बोला. ये सुनते ही साधना की आँखे भर आई और वो वापिस मूड कर अपने घर की तरफ चल दी. प्रेम को जल्दी ही अहसास हो गया कि उसने कुछ ग़लत बोल दिया लेकिन उसके पास साधना के पीछे जाने का वक्त नही था. "चलो भीमा मैं खुद देखना चाहता हूँ कि उनके साथ क्या हुवा." "आओ स्वामी जी पूरा गाँव वही मौजूद है" भीमा ने कहा. प्रेम भीमा के साथ वाहा पहुँच जाता है. सड़क पर हर तरफ चिथड़े पड़े थे. बहुत ही भयानक मंज़र था. "आपको क्या लगता है स्वामी जी क्या ये किसी शेर का काम है?" भीमा ने पूछा. "हो भी सकता है और नही भी" प्रेम ने कहा. बहुत ही दर्दनाक मंज़र था जिसने भी देखा उसकी रूह काँप उठी. ऱुद्र और जीवन भी वही मौजूद थे. प्रेम को देख कर वो उसके पास आ गये. "लगता है कोई बुरी बला तुम्हारे और तुम्हारे साथियो के पीछे पड़ी है...वक्त रहते चले जाओ यहा से कही तुम्हारा भी यही हाल हो जाए" रुद्र ने कहा. "बुरी बला तो तुम्हारे उपर भी है ठाकुर भूल गये कैसे घर से खींच कर ले गये थे वीर को भूत कल. रही बात मेरा ऐसा हाल होने की तो मैं इन बातो से नही डरता. तुम बच कर रहो...तुम्हारी हवेली के बहुत नज़दीक है ये सड़क...कल कही ऐसा मंज़र तुम्हारी हवेली में ना हो जाए" "तुम्हारी इतनी जुर्रत" रुद्र गुस्से में बोला. "मेरी जुर्रत तो तुम देख ही चुके हो कल...मेरा दीमाग वैसे ही घूम रहा है चले जाओ चुपचाप वरना अभी तुम्हे यही जींदा गाढ दूँगा" प्रेम ने कहा. "चलो भैया सब गाँव वाले इसके साथ हैं कही कोई गड़बड़ हो जाए" जीवन ने कहा. "तुम्हे तो मैं देख लूँगा....और भीमा तू...मेरे टुकड़ो पर पलता था... आज इसके तलवे चाट रहा है" रुद्र ने कहा. भीमा ने कुछ नही कहा. ऱुद्र और जीवन वाहा से चले गये. "भीमा सभी गाँव वालो को कहो कि मंदिर के बाहर इक्कथा हो जायें. मुझे सभी से बहुत ज़रूरी बात करनी है" "जी स्वामी जी" प्रेम मंदिर के बाहर खड़ा गाँव वालो का इंतेज़ार कर रहा था. पर उसे दूर-दूर तक कोई भी आता दीखाई नही दिया.
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09-08-2018, 01:45 PM,
#59
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
"कहा रह गये सब लोग...भीमा ने सबको बोला है कि नही." तभी प्रेम को भीमा आता दीखाई दिया. "क्या बात है सब गाँव वाले कहा हैं?" प्रेम ने पूछा. "कोई भी आने को तैयार नही हुवा स्वामी जी...गाँव वालो को लगता है कि कोई बुरी बला आपके साथ इस गाँव में घुस्स आई है और वो आपके यहा से जाने के बाद ही यहा से जाएगी...लगता है ठाकुर के आदमियों ने ये अफवाह फैलाई है" भीमा ने कहा. "अपना भी तो कोई दीमाग होता है...क्या हो गया इन लोगो को...मैं तो इनको इस मुसीबत से बचाने के बारे में ही बात करना चाहता था...खैर चलो छोड़ो मुझे अकेले ही कुछ करना होगा" "मैं आपके साथ हू स्वामी जी." भीमा ने कहा. "देख लो हमें अभी नही पता कि हम किसका सामना करने वाले हैं. वो जो कुछ भी है बहुत ख़तरनाक चीज़ है. क्योंकि जो भूतो की भी चीन्ख निकाल दे वो मामूली चीज़ नही हो सकती." "भूतो की चीन्ख!...कुछ समझ नही आया स्वामी जी" "जो चीन्ख खेतो में गूँज रही थी वो किसी इंसान की नही भूत की थी" "ब...ब..भूत की" "क्या हुवा अभी से डर गये?" प्रेम ने पूछा. "नही स्वामी जी ऐसी बात नही है...आपके होते कैसा डर...हां मुझे भूतो की बाते सुन कर थोड़ा डर ज़रूर लगता है" "हमारा सामना भूतो से नही बल्कि किसी और ही चीज़ से है" "क्या शेर भूतो से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं" "ये शेर का काम नही है भीमा...ये कुछ और ही बला है." "ये जो भी हो स्वामी जी मैं आपके साथ हूँ" ............................................................................. "भैया हमारा पासा बिल्कुल सही पड़ा है...सुना है की कोई भी गाँव वाला नही पहुँचा उस प्रेम के पास." जीवन ने कहा. "वो तो ठीक है पर ये जो कुछ भी हुवा अछा नही हुवा...ज़रूर कोई ख़तरा इस गाँव पर मंडरा रहा है" रुद्र ने कहा "हमें क्या लेना देना भैया...हमारी हवेली तो सुरक्षित है...कोई यहा नही घुस्स सकता." "हवेली से ही खींच कर ले गये भूत वीर को...अभी तक कुछ नही पता कि वो कहा है कैसा है. वर्षा का भी कुछ आता-पता नही...कुछ मनहूसियत सी चाय है चारो तरफ" "भैया अब जो हो गया सो हो गया...बाद में तो कोई भूत नही दीखा यहा." "फिर भी कुछ अजीब सा लग रहा है यहा." तभी रेणुका वाहा आ जाती है. "पिता जी मैं अपने घर जा रही हूँ...अब जब वीर ही नही रहे तो मैं यहा क्या करूँगी." "कुलच्छणी तूने वीर को मरा मान लिया अभी से. बहुत सारे आदमी भेजे हुवे हैं मैने जंगल में वीर को ढूँडने के लिए...और तू उशे अभी से मरा मान रही है" "भैया इश्कि अकल भी ठीकाने लगानी बाकी है...भीमा के साथ मिल कर इसी ने भगाया था उस लौंडिया को यहा से" "इसका जो करना है करो...मार कर गाड़ दो जिंदा ज़मीन में पर इसे मेरी आँखो से दूर करदो" रुद्र ने कहा. जीवन ने रेणुका की बाह पकड़ी और बोला, "चल तुझे तमीज़ सीखाता हूँ" "चाचा जी छोड़ दो मेरा हाथ...मैं अब यहा नही रुकूंगी" "तुझे यहा रखेगा भी कौन अब...चल तेरी गांद की गर्मी उतारता हूँ...बहुत बोलती है." जीवन ने कहा. "जीवन इसे हवेली से दूर ले जाओ...यहा कुछ मत करना" "पिता जी ये आप क्या कह रहे हैं...रोकिए चाचा जी को" "बहुत हो लिया तेरा नाटक...जीवन ले जाओ इसे यहा से." "आप चिंता मत करो भैया...इसे तो मैं वो सबक सीक्खाउन्गा की याद रखेगी" जीवन रेणुका को घसीट कर हवेली के पीछे के खेतो में ले आया. उसने उसे ज़मीन पर पटक दिया. रेणुका का पेट ज़मीन से टकराया तो वो कराह उठी. जीवन रेणुका के उपर लेट गया. "इतनी जल्दी नही मारूँगा मैं तुझे...पहले तेरी गांद मारूँगा फिर तुझे मारूँगा....बोल अब कैसी रही." "तुम्हे इसकी सज़ा मिलेगी" "कौन देगा मुझे सज़ा...तुम दोगि...हे..हे..पहले अपनी गांद तो बचा लो हा..हा.." जीवन ने रेणुका की साड़ी नीचे से उपर सरका दी और उसके निर्वस्त्र नितंबो को मसल्ने लगा. "वर्षा की तो नही मिल पाई....तेरी गांद भी वर्षा की गांद से कम सुंदर नही" "त..त..तुम अपनी भतीजी को ऐसी नज़रो से देखते थे...कामीने कही के." "मैं तो तुझे भी ऐसी नज़रो से ही देखता था...पर वीर के कारण चुप था वरना कब का ठोक देता तुझे." "ये बाते पिता जी को पता चल गयी तो तुम्हे जींदा नही छोड़ेंगे वो." "कौन बताएगा भैया को....तू तो ये गांद मरवाने के बाद खुद भी मरने जा रही है." जीवन ने अपना लिंग निकाल कर रेणुका के नितंब पर रख दिया. रेणुका शरम और डर से काँप उठी. "ऐसा अनर्थ मत करो...तुम्हे भगवान भी माफ़ नही करेगा" "ऐसे अनर्थ तो मैं रोज कर लेता हूँ और रोज माफी भी मिल जाती है...हे...हे...तुम मेरी चिंता मत करो अपनी गांद की चिंता करो" जीवन अपने लिंग को रेणुका के अंदर डालने ही लगता है कि उसके सर पर वार होता है और वो खून से लठ..पथ एक तरफ गिर जाता है. "कामीने तू फिर से मेरे रास्ते में टाँग अड़ा रहा है...मैं तुझे जींदा नही छोड़ूँगा" भीमा ने रेणुका की साड़ी नीचे की और उसे ज़मीन से उठाया. "आज तो हद ही कर दी तुमने...मुझे ख़ुसी है कि मैं अब तुम लोगो के लिए काम नही करता." "भीमा मार दो इसे...मेरी खातिर मार दो इसे." रेणुका ने कहा. "जैसा आपका हूकम." भीमा ने कहा और जीवन की तरफ बढ़ने लगा. "मुझसे दूर रहो तुम....वरना अछा नही होगा" जीवन गिड़गिदाया. "छोड़ना मत इस कमिने को भीमा मार दो इसे." रेणुका ने कहा. भीमा ने एक बहुत भारी पत्थर उठाया और जीवन के सर पर दे मारा. तुरंत ही उसकी मौत हो गयी. "तुम यहा कैसे आए..भीमा" रेणुका ने पूछा. बोलते बोलते उसकी आँखे भर आई और उसे पता भी नही चला की वो कब भीमा के सीने से लग गयी. भीमा एक मूर्ति की तरह खड़ा रहा और रेणुका सुबक्ती रही. "मेम्साब सम्भालो खुद को" भीमा ने कहा. रेणुका फ़ौरन भीमा से अलग हो गयी. "ओह मैं भावुक हो गयी थी....पर आज तुम ना आते तो अनर्थ हो जाता." "सब स्वामी जी की कृपा है...उन्होने ही आपकी आवाज़ सुनी थी" "कहा है स्वामी जी." "उस पेड़ के पीछे खड़े हैं" रेणुका भाग कर वाहा पहुँच गयी. "स्वामी जी मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?" "सब भगवान की माया है...हम तो बस खिलोने हैं" "स्वामी जी मुझे अपने घर जाना है" रेणुका ने कहा. "कैसे जाओगी?" प्रेम ने पूछा. "चली जाउन्गि जैसे भी पर अब यहा नही रुकूंगी" "ह्म्म....देखो अभी गाँव में माहॉल खराब है अभी यात्रा करना ठीक नही...कुछ अजीब सी बाते हो रही हैं यहा. अभी अभी पता चला है कि कुछ दिन पहले अगले गाँव में भी किसी जानवर ने एक पति-पत्नी को चीर-चीर कर खा लिया. ऐसे माहॉल में कही भी जाना ठीक नही होगा." "पर मैं वापिस हवेली नही जा सकती" रेणुका ने कहा.
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09-08-2018, 01:45 PM,
#60
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
"आप मेरे घर चलिए...वाहा आराम से रहिए...मैं तो वैसे भी ज़्यादा वक्त स्वामी जी के साथ ही रहूँगा." "हाँ ये ठीक रहेगा तुम भीमा के घर में रुक जाओ...माहॉल ठीक होने पर चली जाना." भीमा रेणुका को अपने घर ले आता है. "मेम्साब आप यहा आराम से रहो." "भीमा मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे करू समझ नही आता...अछा कैसी है वो लड़की जिसे हमने हवेली से भगाया था." "सरिता ठीक है...चली गयी वो अपने ससुराल. उसका पति पहले बहुत बुरा भला बोल रहा था लेकिन गाँव वालो के समझाने पर वो उसे ले गया." "तुम प्यार करते थे सरिता से हा.." "हां बहुत पुरानी बात हो गयी मेम्साब...आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बोल दो मैं ला दूँगा...बाकी यहा खाने पीने का सब समान है...आपकी हवेली जैसा तो नही है बस काम चलाने भर को है" "ये सब उस मनहूस हवेली से अछा है...मैं यहा खुश हूँ तुम चिंता मत करो." "ठीक है मेम्साब मैं निकलता हूँ मुझे वापिस स्वामी जी के पास जाना है." भीमा ने कहा. “कुछ तो हुवा है गाँव में सब लोग सहमे सहमे से घूम रहे हैं, ये किशोरे कहा रह गया…वो आए तो कुछ पता चले” मदन ने कहा. “आ जाएगा तुम परेशान क्यों हो रहे हो.” वर्षा ने कहा. तभी उन्हे दरवाजे का ताला खुलने की आहट सुनाई दी. “लो आ गया किशोरे.” वर्षा ने कहा. किशोरे दरवाजा खोल कर अंदर आ गया और दरवाजा पीछे से बंद कर दिया. “क्या हो रहा है गाँव में सब लोग इतने परेशान से क्यों घूम रहे हैं.” मदन ने पूछा. “बस पूछो मत…कल रात वैसा ही हादसा हुवा है जैसे हमने जंगल में देखा था.” किशोरे ने कहा. “मुझे लग ही रहा था…कल रात मैने उसी दरिंदे को देखा था.” मदन ने कहा. “प्रेम लौट आया है मदन” “क्या…प्रेम आ गया..कहा था वो इतने दिन?” “वो तो पता नही पर स्वामी बन कर लौटा है वो…पर बहुत बुरा हुवा उसके साथ” “क्या हुवा?” मदन ने पूछा. “कल रात प्रेम के साथ जो लोग आए थे वही मारे गये…बहुत भयानक मौत मिली है उनको” किशोरे गाँव की सारी बाते मदन को बताता है. इस बार वो मदन के घर की सारी बाते उसे बता देता है. वो वर्षा के भाई वीर के बारे में भी सब बता देता है. वो ये भी बता देता है कि वर्षा की भाभी हवेली छ्चोड़ कर भीमा के घर में आ गयी है. मदन अपने घर की खबर सुन कर काँप उठता है. “इतना कुछ हो गया मेरे पीछे…अछा हो कि वो वीर कुत्ते की मौत मारे.” “वर्षा ने मदन के कंधे पर हाथ रखा और बोली, “ऐसा मत कहो मेरा भाई है वो.” “उसने मेरी बहन को गाँव में नंगा घुमाया और उसका बलात्कार किया…वो किसी का भाई नही हो सकता…मेरा बस चले तो मैं खुद उसे जान से मार दू.” मदन ने कहा. वर्षा कुछ और नही बोल पाई. “मुझे घर जाना होगा किशोरे…क्या कुछ हो सकता है.” “रात को ही मुमकिन हो पाएगा ये. मैं दिन ढलने पर आउन्गा फिर चलते हैं तुम्हारे घर.” किशोरे ने कहा. ……………………………………………………………………………………. रात ढाल चुकी है और गाँव में ऐसा सन्नाटा हो गया है जैसी की कब्रिस्तान में होता है. दूर-दूर तक कोई भी दीखाई नही देता. बस दो लोग ऐसे हैं जो इस वक्त गाँव में घूम रहे हैं. “इतना सन्नाटा मैने गाँव में कभी नही देखा स्वामी जी.” भीमा ने कहा. “लोग बहुत डर गये हैं…डरना लाजमी भी है. ऐसा मंज़र मैने भी कभी नही देखा.” प्रेम ने कहा. “आपको क्या लगता है…गाँव में दुबारा आएगी वो चीज़.” भीमा ने कहा. “खून मूह लग चुका है उसके…कुछ भी हो सकता है” प्रेम ने कहा. भीमा के हाथ में तलवार थी और प्रेम के पास विश्वास दोनो बाते करते हुवे गाँव में घूम रहे थे. अचानक उन्हे दूर कोई साया दीखाई दिया. “स्वामी जी वो क्या है.” भीमा ने हाथ में तलवार तान ली. “हे कौन हो तुम?” प्रेम ने पीछे से आवाज़ दी. वो साया उनकी आवाज़ सुन कर भागने लगा. “चलो पकड़ते हैं इसे” प्रेम ने कहा. भीमा और प्रेम उसके पीछे भागे. पर वो साया चकमा दे कर कही गुम हो गया. “तुम इधर से जाओ मैं उधर देखता हूँ” प्रेम ने भीमा से कहा. “ठीक है स्वामी जी.” भीमा ने कहा. तभी एक बहुत भयानक चीन्ख पूरे गाँव में गूँज उठी. “ये तो वैसी ही चीन्ख है जैसी खेतो में गूँज रही थी...इसका मतलब वो भयानक चीज़ आस पास ही है” प्रेम ने भागते हुवे सोचा. भीमा भी चीन्ख सुन कर रुक गया. उसके हाथ पाँव काँपने लगे. “स्वामी जी कहा गये…अफ मैं क्या करूँ अब” किस्मत से वो अपने घर के नज़दीक था. उसने फ़ौरन अपने घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. उसने घर का दरवाजा खड़काया. अंदर रेणुका ने भी वो चीन्ख सुनी थी और वो थर थर काँप रही थी. “क..कौन है?” रेणुका ने कहा. “मेम्साब मैं हूँ भीमा दरवाजा खोलिए.” भीमा ने कहा. रेणुका ने फ़ौरन दरवाजा खोल दिया. भीमा ने अंदर आ कर दरवाजे की कुण्डी लगा दी. रेणुका इतनी डरी हुई थी कि वो भीमा से चिपक गयी “अछा हुवा जो तुम आ गये मुझे यहा अकेले बहुत डर लग रहा था. वो चीन्ख शुनि तुमने.” रेणुका ने कहा. “हां शुनि तभी तो यहा आया हूँ…मैं बाहर स्वामी जी को अकेला छ्चोड़ आया क्या करूँ मैं मेरे हाथ पाँव काँप रहे हैं.” भीमा ने कहा. “चिंता मत करो स्वामी जी खुद को संभाल लेंगे.” रेणुका ने कहा. क्रमशः........................
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