Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
05-18-2019, 01:09 PM,
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सुरेश चाचा ने मेरी गांड का मर्दन अब निसंकोच भीषण पर अत्यंत कामानंद उपजाते हुए धक्कों से करते हुए मुझे एक बार फिर से झाड़ दिया। मेरी चूत रति रस से लबालब भरी हुई थी और मेरा रस मेरी गुदाज़ झांगों पर फिसलने लगा। मैं अब पूरे भ्रमांड से कट चुकी थी। मेरा अस्तित्व अब तो सुरेश चाचा के विकराल लंड और मेरी तड़पती गांड पर स्थिर हो गया था। सुरेश चाचा के लंड की भयंकर ठोकरों ने, और उनकी मेरे भग-शिश्न को सहलाती अनुभवी उँगलियों ने मुझे कामोन्माद के कगार पर फिर से पहुंचा दिया। जब मैं झड़ रही थी और मेरी सिस्कारियां मेरे कम्पित शरीर की स्तिथी अंकित कर रही थीं तब ही सुरेश चाचू ने गुर्रा कर तीन बार मेरी प्रताड़ित गांड में निर्ममता से ठूँस कर अपने गरम जननक्षम वीर्य से मेरी सुलगती गांड को सींचने लगे। मेरे लम्बे निर्दयी गांड मर्दन और अनिगिनत रति-निष्पति से थका मेरा अल्पव्यस्क शरीर शिथिल हो कर बिस्तर पर गिर जाता यदि चाचू ने अपनी मजबूत भुजाओं से मुझे जकड़ ना रखा होता। सुरेच चाचा मुझे पकड़े हुए बिस्तर पर लेट गए। उनका लंड अभी भी मेरी गांड में समाया हुआ था। ************************************** जब मुझे 'होश' आया तो मैंने अपने आप को चाचू के विशाल शरीर की गुफा में बेशकीमत मोती के सामान सुरक्षित पाया। मैंने मुस्कुरा कर अपने सर को चाचू के सीने तीन चार बार रगड़ा। "नेहा बेटा, आप तो मुझे प्रस्सन लग रहें हैं," सुरेश चाचा ने मेरे दोनों कुचले हुए स्तनों को प्यार से सहलाया। "ह्म्म्ममम्म! चाचू, आपने हमें आज रात कितना आनंद दिया है," मैंने सुरेश चाचा के साथ अविश्वसनीय सम्भोग के आनंद के लिए उन्हें धन्यवाद देने का प्रयास किया। "नेहा बिटिया अभी रात तो और भी बाकी है।" चाचू ने मेरे दोनों चूचुक को होले से मसला। मैं खिलखिला कर हंस दी, "तब तो मेरी गांड की खैर नहीं है।" सुरेश चाचा ने भी अपनी भारी आवाज़ में कहकहा लगया कर मुझे अपने विशाल शरीर से जकड़ लिया। मैं अपनी गांड को चाचा के लंड के ऊपर घुमाने लगी। सुरेश चाचा के मजबूत हाथ मेरे उरोजों के ऊपर कस गए। आधे घंटे की वासना भरी चुहलबाजी से चाचू का लंड फिर से हिनहिना कर ताना उठा। मेरी गांड की संवेदनशील कोमल दीवारों ने उनके फड़कते लंड की विकराल विशालता को कस कर जकड़ा कर उसे निचोड़ने के प्रयास से उसका स्वागत सा किया। सुरेश चाचा ने मेरी गांड में अपना लंड धीरे धीरे अंदर बाहर हिलाना शुरू कर दिया। उनके हाथ मेरी दोनों चूचियों को मसल कर उन्हें सम्वेंदंशील उत्तेजना से भरने लगे। मेरी कोमल पीठ की त्वचा उनकी बालों भरी सीने और पेट से रगड़ खा कर मुझे एक विचित्र से आनंद से भर रही थी। सुरेश चाचू ने ने मेरी गांड पीछे से मारना शुरू कर दिया। मैं भी अपनी गांड मटका कर उनके लंड को और भी अधिक आनंद देने का प्रयास करने लगी। इस बार चाचू ने मेरी गांड धीरे हलके धक्कों से मारी। मेरी गांड का मर्दन में इस बार कोई भी बेताबी, निर्ममता नहीं थी। इस के बावजूद भी मेरी सिस्कारिया अविरत मेरे अध्-खुले मूंह से उबलने लगीं। चाचू के वृहत स्थूल लंड ने मुझे चरम-आनंद के द्वार पर पहुंचा दिया। मैं एन्थ कर झड़ उठी। सुरेच चाचा ने मेरे बालों पर चुम्बन दे कर मेरे स्खलन को प्यार से स्वीकार सा किया। उनका विशाल लंड लम्बे पर सुस्त रफ़्तार के प्रहरों से मेरी गांड में अपनी लम्बाई और मोटाई को नापते हुए मेरी गांड की जलती हुई कोमल रेशमी सुरंग की गहराइयों को अपने से अवगत करा रहा था। मैं शीघ्र ही दो बार और झड़ गयी। सुरेश चाचे ने अपना खुला मूंह मेरे बिखरे घुंघराले बालों में छुपा कर अब थोड़ी तेज़ी से मेरी गांड मारने लगे। मेरे अवयस्क लड़की के शरीर में छुपी स्त्री ने उनके सन्निकट स्खलन को आसाने से महसूस कर लिया। "चाचू, मेरी गांड में अपना लंड खोल दीजिये।मारी गांड को अपने वीर्य से भर दीजिये," मैंने सुबक कर कहा। मेरे कहने की देर थी कि सुरेश का लंड ज्वालामुखी के तरह फुट उठा। उनके थरकते हुए लंड की हर थड़कन ने प्रचुर मात्रा में अपने फलदायक मर्दाने शहद से मेरी मलाशय की रेशमी दीवारों को नहला दिया। "आं ...आं ...आं ...आं ऊऊंं ... ऊम्म ...चा ...आ .....आ ....आ .... चू ...ऊ ....ऊ ....ऊ ," मैं सिसकारी मार कर बुदबुदाई, "मैं फिर से झड़ गयी चाचू। " मेरी आँखें आनंद के अतिरेक से बंद होने लगी और मैं कामोन्माद के थकन की निंद्रा के आगोश में समा कर सो गयी। उस रात सुरेश चाचा और मैं एक बार और रात में जग गए। सुरेश चच का लंड मेरी गांड में तनतना कर तय्यार था। मैंने भी कुनमुना कर अपनी गांड का मर्दन के स्वीकृति दे दी। उस बार चाचू ने लगभग घंटे भर मेरी गांड को अहिस्ता और प्यार से मार कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया। जब तक उनका लंड मेरी गांड में स्खलित हो पाता तब तक मेरे अल्पव्यस्क शरीर ने चाचू के काम-क्रिया के अनुभव के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। मेरी शिथिल काम-आनन्द से अभिभूत कमसिन शरीर बेहोशी से भी गहरी नींद की गोद में छुप गया।

सुरेश चाचा और मैं सुबह देर तक सोते रहे। जब नम्रता चाची और बड़े मामा ने हमें उठाया तब भी मैं सुरेश चाचा की बाँहों में थी। उनका लंड अभी भी मेरी गांड में घुसा हुआ था। सुबह सवेरे भी उनका लंड तन कर मेरी गांड को प्रताड़ित करने के लिए उत्सुक था। मैं अभी भी निद्रालु थी पर नम्रता चाची की चहकती मदुर अव्वाज़ ने मेरी नींद खोलने में मदद की। "नेहा बेटी, मैं तो आपसे बहुत ही प्रभावित हूँ। आपने अपने चाचू का लंड अभी भी गांड में छुपा रखा है," बड़े मामा और नम्रता चाची बिलकुल नग्न थे। नम्रता चाची का भरा गदराया हुआ शरीर और अत्यंत आकर्षिक चेहरा रात की प्रचंड चुदाई से निखरा हुआ था। उनके विशाल विपुल स्तन बड़े भारी और उनके छाती के ऊपर ढलक रहे थे। गोल थोड़े उभरे हुए पेट के के साथ उनकी भरी कमर के ऊपर दो तहों के बीच में एक गहराव था। उसके नीचे उनके दो विशाल, गदराये, विपुल नितिन्म्ब उनकी भारी गुदाज़ नारी सुलभ जाँघों और गोल भरी-भरी टखनों को और भे सुंदर बना रहे थे। उनके छोटे कोमल पैर एक सम्पूर्ण नारी का चित्रण करते प्रतीत हो रहे थे। नम्रता चाची के पेट, नितिम्बों और जाँघों पर दो गर्भों के बाद के खिंचाव के निशाँ उन्हें और भी नारीत्व का आकर्षण प्रदान कर रहे थे। नम्रता चाची के रोम रोम से जनक्षम ईश्वरीय सुन्दरता के द्योतक था। जब तक मैं नम्रता चाची की देवितुल्य सुन्दरता के मोहक समोहन से बहार निकल पाई तब तक उन्होंने मुझे अपने पति से छीन कर अपने बाँहों में भर लिया था। उनके गुलाबी होंठ मेरे होंठो से चिपक गए। उनके मूंह सोने के बाद के सवेरे का मीठा स्वाद मेरे उसे स्वाद से मिल गया। मैंने भी अपनी बाहें चाची के इर्द-गिर्द दाल दीं। चाची ने मेरे निचले होंठ को चूसते हुए कहा, "नेहा बेटी, मुझे आपकी चूत और गांड में अपने पति के वीर्य चाहिए।" मेरे मूंह से मेरे बिना समझे शब्द निकल गए, "चाची यदि आप भी मुझे अपनी चूत और गांड में भरे बड़े मामा के मर्दाने शहद देंगीं।" नम्रता चाची ने मेरी नाक की नोक को प्यार से काट कर कहा, "मेरी बेटी तो दो तीन दिन ही में इतनी चुदक्कड़ बन गयी है।"
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मैंने भी इठला कर कहा, "आप और सुरेश चाचा जैसे शिक्षक मिलने का कमाल है यह तो।" पर मैं ऐसी अश्लील वार्तालाप से शर्म के मारे लाल हो गयी। "नेहा बेटी आप अपने बड़े मामा को तो भूल ही गयीं," सुरेश चाचा ने मुझे और भी शर्म से लाल कर दिया। मेरी उलझी हुई हालत देख कर नम्रता चाची, बड़े मामा और सुरेश चाचू जोर से हंस दिए। नम्रता चाची ने मेरे दोनों दर्दीले चूचियों को मसल कर कहा, "नेहा बेटी अब मुझे अपनी चूत और गांड का प्रसाद दे दो। आज मुझे दो मोटे लंडो से एक साथ चुदना है।" मैं नम्रता चाची के मूंह के ऊपर अपनी चूत रख कर उनके खुले मूंह के अंदर अपने योनी में भरे सुरेश चाचा के मर्दाने शहद को बाहर धकेलने लगी। नम्रता चाची ने टपकती बूंदों के रिसाव को प्यार से अपने मूंह में भर लिया। नम्रता चाची ने मेरी चूत में अपनी जीभ अंदर तक दाल कर मेरे रतिरस और सुरेश चाचा के लंड के जननक्षम द्रव्य को चाट कर सटक गयीं। उन्होंने मेरे नितिन्म्ब खींच कर अपने मूंह के ऊपर मेरी गांड रख ली। मैंने ज़ोर लगा कर अपनी बेदर्दी से चुदी सुरेश चाचा के वीर्य से भरी गांड को नम्रता चाची के मूंह में खाली करने का प्रयास करने लगी। नम्रता चाची ने अपनी गीली जीभ से मेरे झपकते हुए गुदा के छिद्र को चाट कर मुझे और भी उत्साहित करने लगीं। आखिर कार मेरी गांड में से एक मोटी लिसलिसी धार फिसल कर नम्रता चाची की मूंह में टपकने लगी। नम्रता चाची ने मेरे गांड से सुगन्धित अपने पति के गाड़े वीर्य को लपक कर अपने मूंह में भर लिया। मैंने ज़ोर लगा कर और भे भीतर से सुरेश चाचा के वीर्य को नीचे धकेल कर अपनी गांड से बाहर निकाल कर नम्रता चाची के अधीर मूंह में भर दिया। नम्रता चाची ने सारा पदार्थ इच्छुक उत्साह से सटक लिया। अब मेरी बारी थी। नम्रता चाची के विशाल गदराये नितिन्म्बओं ने मुझे बहुत मोहक लगे। उन्होंने अपनी घने रेशमी बालों से ढकी चूत को के भगोष्ठों को फैला कर अपनी गुलाबी चूत के द्वार को मेरे मूंह के ऊपर टिका दिया। शीघ्र ही बड़े मामा के जनक्षम वीर्य की धार नम्रता चाची की योनी की सुरंग से फिसल कर मेरे मूंह में टपकने लगी। मुझे बड़े मामा के वीर्य की तीव्र सुगंध अत्यंत मादक लगी। जब नम्रता चाची की चूत से सारा बड़े मामा का रस मेरे मूंह में समां गया तब मैंने उसे लालचपन दिखाते हुए सटक लिया। नम्रता चाची ने अपने प्रचुर विशाल नितिम्बों को अपने कोमल हाथों से फैला कर अपनी भूरी गुदा का छिद्र मेरे मूंह के ऊपर टिका कर नीचे की ओर ज़ोर लगाया। उनकी मेहनत का पुरूस्कार जल्दी ही मेरे मूंह में टपकने लगा। बड़े मामा ने भी, सुरेश चाचा की तरह, चाचीजी की गांड बहुत बार मारी होगी। उनकी गांड में से उनकी चूत से भी अधिक वीर्य मेरे मूंह में भर गया। मैंने सारा स्वादिष्ट पदार्थ सटक कर नम्रता चाची की गांड को प्यार से चाट कर उन्हें धन्यवाद दे दिया। ****************************************** नम्रता चाची ने उठ कर एक गहरी अंगड़ाई ली। उनके विशाल मुलायम पर भरी उरोज़ उनके बदन के साथ मचल कर हिल उठे। बड़े मामा नम्रता चाची को अपनी बाँहों में भर कर प्यार भरे अधिकार से चूमने लगे। "रवि भैया, क्या आप और सुरेश मेरे दोनों छेंदो को चोदने के लिए तय्यार हैं?" नम्रता भाभी ने बड़े मामा के बालों भरी सीने को अपने कोमल हाथों से सहलाया। सुरेश चाचा ने भी अपनी अर्धांगनी को पीछे से बाँहों में भर कर उनके गुदाज़ नितिम्बों को मसलने लगे, "रवि, आपको अपनी भाभी की गांड चाहिये या चूत?" "सुनियेजी, इसमें मेरा कोई कहन नहीं है?" नम्रता चाची दो मर्दों के बीच पिसी हुईं थीं पर फिर भी उनकी चंचलता में कोई कमी नहीं आई थी। बड़े मामा ने नम्रता चाची की सुंदर नाक को मूंह में भर कर चूसा और फिर प्यार से उनके दोनों निप्पलों को मसल कर बोले, "भाभी आपको तो दो लंड चाहियें। कौन सा लंड किस छेद में जाता है वो निर्णय तो हम दोनों का है।" नम्रता चाची की सिसकारी निकल गयी, "ठीक है रवि भैया। जैसे आप दोनों ठीक समझें मुझे बाँट ले पर मुझे मेरी चूत और गांड का मर्दन पूरी निर्ममता से चाहिए। दर्द के मारे मेरी चीखें निकलनी चाहिए।" नम्रता चाची ने बड़े मामा और सुरेश चाचा को अपनी काम-इच्छाओं से आगाह कर दिया। बड़े मामा बिस्तर पर चित लेट गए और नम्रता चाची को अपने ऊपर खींचने लगे। नम्रता चाची ने अपनी मुलायम रेशमी चूत बड़े मामा के विशाल लोहे जैसे सख्त लंड पर रख कर उसे धीरे धीरे अपने अंदर निगलने लगीं। मैं जल्दी से बड़े मामा जांघों के पास अपना सर रख कर उनके विकराल लंड का नम्रता चाची की चूत में प्रवेश का चित्ताकर्षक दृश्य बिना पलक झपकाए एक टक देखने लगी। नम्रता चाची की चूत अविश्वसनीय आकार में चौड़ी हो कर बड़े मामा के भीमकाय लंड के ऊपर फ़ैल गयी। नम्रता चाची का सुंदर मूंह थोडा सा खुला हुआ था, उनकी भूरी कजराली आँखें आधी बंद थीं। उनके अत्यंत आकर्षक नथुने उनकी तीव्र साँसों के साथ फड़क रहे थे। नम्रता चाची का दैविक रूप उनकी वासना के ज्वार में और भी सुंदर हो चला था। स्त्री के सुन्दरता जब वो कामाग्नि में जल रही होती है तो उसका रूप और भी निखर जाता है। यदि स्त्री नम्रता चाची जैसी परिपक्व दिव्य- रूपसी हो तो उसके नैसरगिक आकर्षण से कोई भी उन्मुक्त नहीं रह सकता। सुरेश चाचा ने अपनी अर्धांगनी के प्रचुर गदराये नितिम्बो को अपने विशाल हाथों से फैला कर मेरी तरफ देखा। मुझे उनका मंतव्य एक क्षण में ही समझ आ गया। मैंने अपना मूंह नम्रता चाची की विशाल गहरी नितिम्बों के बीच की दरार में डाल कर उनकी गांड को चाटने और चूसने लगी। नम्रता चाची की सिसकारी ने मुझे और भी उत्साहित कर दिया।मैंने अपनी जीभ को गोल करके नम्रता चाची की गांड के छिद्र को कुरेदने लगी। शीघ्र ही मुझे सफलता मिल गयी। नम्रता चाची का गुदा-द्वार धीरे धीरे फड़क कर खुल गया और मेरी जीभ उसके अंदर प्रविष्ट हो गयी।मैंने जितना हो सकता था उतनी अपनी लार नम्रता चाची की गांड में जमा कर दी। सुरेश चाचा ने मुझे होले से अलग कर अपने विकराल लंड के सूपाड़े को नम्रता चाची की गांड के अधखुले गुदा द्वार पर रख कर कस कर अंदर दबाने लगे। नम्रता चाची के नन्हे से गुदा द्वार के छिद्र को मैंने धीरे धीरे अमानवीय आकार की और चौड़ते हुए देख कर मेरी सांस मनो रुक गयी। सुरेश चाचा ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा नम्रता चाची की गांड के अंदर डाल कर एक गहरी सांस ली। बड़े मामा ने अपनी शक्तिशाली बाहों से नम्रता चाची की छाती को जकड़ कर अपने सीने से चिपका लिया। सुरेश चाचा ने नम्रता चाची की भरी कमर को कास कर पकड़ कर अपने भारी नितिम्बों की ताकत से अपने मोटे लंड को भीषण धक्के से नम्रता चाची की गांड में निर्ममता से धकेल दिया। नम्रता चाची की चीख कमरे में गूँज उठी, "हाय ऊंऊंऊंऊंह ह्हहूम।" सुरेश चाचा ने अपना आधा घोड़े जैसा लंड एक ठोकर में अपनी पत्नी की गांड में बेदर्दी से ठूंस कर शीघ्र दूरे धक्के से उसे जड़ तक नम्रता चाची की गांड में घुसेड़ दिया। नम्रता चाची की दूसरी चीख और भी ऊंची थी। बड़े मामा ने नम्रता चाची के हिलते डोलते चूचियों के चूचुक को अपने होंठों में कस कर पकड़ लिया। उन्होंने अपने शक्तिशाली हाथों से नम्रता चाची के चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपने लंड को एक भयानक धक्के से उनकी चूत में आखिरी इंच तक धकेल दिया। सुरेश चाचा और बड़े मामा ने नम्रता चाची की चूत और गांड भीषण ठोकरों से मारनी शुरू कर दी। नम्रता चाची की आनंद और दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज उठीं। *********************************************
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सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंड भयानक तेज़ी और ताकत से नम्रता चाची दोनों गलियारों को अपने भीमकाय लंदों से मर्दन करने लगे। नम्रता चाची के सिस्कारियां और चीखें मिल कर काम-वासना का संगीत बन गयीं। पांच दस मिनट के बाद ही नम्रता चाची घुटी घुटी चीख के साथ झड़ गयीं,"हाय, कितना दर्द ... मैं झड़ने वाली हूँ ... ओओओओः और जोर से आह ...आ ...आ ....आं ,...आँ ...हाय माँ।" बड़े मामा ने मुझे अपनी चूत में उंगली करते हुए देख कर अपने मूंह की तरफ खींचा। मैंने अपनी चूत बड़े मामा के मूंह पर टिका दी। उनके होंठो और जीभ ने बिना देर किये मुझे भी रति-निष्पति के द्वार पर ला पटका। मैं भी सिस्कार मार कर झड़ गयी। नम्रता चाची ने मेरे फड़कते हुए चूचियों के ऊपर अपना बिलखता हुआ मूंह दबा दिया। उनके दांत और होंठों ने मेरी चूचियों को चूसना और काटना शुरू कर दिया। बड़े मामा के मूंह और जीभ ने मेरी चूत की तंग सुरंग और भग-शिश्न को तरसा तड़पा कर मेरी चूत को फिर से उत्तेजित कर दिया। नम्रता चाची की चूत और गांड का मर्दन निर्ममता से चलता रहा। जैसे ही मैं और नम्रता चाची फिर से झड़ने वाले थीं, सुरेश चाचा और बड़े मामा ने अपने लंड सुपाड़े तक निकाल कर एक ही धक्के से नम्रता चाची की चूत और गांड में मोटी जड़ तक ठूंस दिये। नम्रता चाची दर्द और आनंद के अतिरेक से बिलबिला उठीं और उन्होंने मेरी चूचुक को अपने दातों से कस कर दबोच लिया। मेरी भी चीख उबल उठी। हम दोनों कामानंद से अभिभूत कांपते हुए फिर से झड़ गयीं। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अगले घंटे तक बिना धीमे हुए और रुके नम्रता चाची के दोनों गलियारों को बेदर्दी से कुचल दिया। नम्रता चाची की आनंद से भरी सिस्कारियां और चीखें कमरे की दीवारों से टकरा कर हम सबकी काम -वासना को और भी उत्तेजित करने लगीं। मैं भी न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरा शरीर अनगिनत रति-निष्पति की थकन से शिथिल हो चला। बड़े मामा ने मेरे क्लिटोरिस को अपने होंठो और दांतों से मसल कर फिर से मुझे झाड़ दिया। नम्रता चाची भी मेरे साथ हाँफते हुए झड़ रहीं थीं। सुरेश चाचा ने एक खूंखार धक्के के साथ अपने लंड का गरम वीर्य के अनेकों फुव्वारों से नम्रता चाची की गांड को नहला दिया। बड़े मामा ने भी अपने जननक्षम वीर्य से नम्रता चाची के गर्भाशय को सराबोर कर दिया। मैं शिथिल अवस्था में बिस्तर पर गिर कर गहरी नींद में डूब गयी। ***************************************************** ******************************** हम चारों फिर से थकी उनींदी अवस्था में बिस्तर पर लेट गये. नम्रता चाची सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंदों को अभी भी अपनी गांड और चूत में दबाये हुए उनकी बलशाली भुजाओं में समा कर होले होले अध्र-निंद्रा में भी मुस्कुरा रहीं थीं। मैंने उनके दैवत्य सुंदर वासना की त्रिप्ती से उज्जवलित मुंह को देख कर अपने से वचन लिया कि मैं भी नम्रता चाची की तरह संसार और सम्भोग के हर कृत्य को खुली बाँहों से सत्कार करूंगी। आखिर स्त्री के रूप में इतना निखार लाने वाले सम्भोग से अच्छा और क्या श्रृंगार हो सकता है। मैंने अपना चेहरा बड़े मामा की बलिष्ठ चौड़ी कमर से चुपका कर अपनी आँखें बंद कर दीं। सुबह की मंद निर्मल शीतल वायु फूलों की सुगंध से भरी थी। मैंने एक गहरी सांस से रजनीगंधा और चमेली की सुगंध को अपने अंदर भर कर बड़े मामा की पसीने से महक रही कमर की त्वचा को चूम कर सो गयी। जानकी दीदी की मधुर आवाज़ सुन कर मेरी आँख खुली। जानकी दीदी खिलखिला कर हंसी, "लगता है नम्रता भाभी का आखिर में सुरेश भैया और रवि भैया के विकराल लंडों ने समर्पण करवा ही लिया।" नम्रता चाची भी खिलखिला कर हंस दीं, "जानकी, दो मर्द जो इतना प्यार करतें हों और उनके विशाल भीमकाय लंड जब दोनों विवरों में घुसें हो तो कोई भी भाग्यवान स्त्री*किसी भी भी समय समर्पण के लिए तैयार हो जायेगी।" जानकी दीदी ने प्यार से नम्रता चाची का हँसता हुआ मुंह अपने गुलाबी होंठों से चूम लिया। "जानकी, क्या तुम्हें अपने भाइयों का गाढ़ा वीर्य चाहिए? मेरे दोनों विवर उनके वीर्य से लबालब भरे हुए हैं।" नम्रता चाची ने जानकी दीदी को अमृत समान द्रव्य का उपहार पेश कर दिया। "नेकी और बूझ बूझ?" जानकी दीदी ने नम्रता चाची के विशाल थरकते हुए कलशों को सहला कर सुरेश चाचा और बड़े मामा को भी प्यार से चुम्बन दिए। दोनों पुरुषों ने अपने अभी भी आधे खड़े लंड नम्रता चाची की गांड और चूत से धीरे से बाहर निकाल लिये. जानकी दीदी ने प्यार से पहले सुरेश चाचा के नम्रता चाची की मदभरी गांड और सुरेश चाचू के मर्दाने फलदायक वीर्य से लंड को चूम चाट के अपने थूक से चमका दिया। फिर उन्होंने बड़े मामा के लंड को भी उतने ही प्यार से चाट चाट कर साफ़ कर दिया। नम्रता चाची ने पहले अपनी चूत के रस को जनके दीदी के अधीर मुंह में एक लम्बी धार के रूप में टपका दिया. जानकी दीदी ने लोभ भरी उत्सुकता से उसे निगल लिया। जानकी दीदी ने अपना खुला मुंह नम्रता चाची के भरे नितिम्बों के बीच में स्थिर कर दिया। नम्रता चाची ने अपने हाथों से अपने वृहत गदराये मुलायम नितिम्बों को चौड़ा कर अपनी से चुदी गांड के नाज़ुक छोटे से छिद्र को जोर लगा कर खोल दिया. शीघ्र ही उनकी निर्मम चुदाई से सूजी गांड खुल गयी और जानकी दीदी के मुंह में नम्रता चाची की गांड के रस से मिले सुरेश चाचू का गाढ़ा जननक्षम वीर्य एक भारी लिसलिसी धार से बहने लगा। जानकी दीदी बेसब्री से नम्रता चाची की गांड से सारा मीठा रस अपने मुंह में टपकने का इंतज़ार रहीं थीं। उन्होंने चटकारे ले कर सारा मीठा नमकीन रस सटक लिया। सुरेश चाचा और बड़े मामा ने जानकी दीदी को अपनी बाँहों में भर कर उनके भारी कोमल उरोज़ों को कस कर दबाते हुए उन्हें चुम्बनों से सराबोर कर दिया। जानकी दीदी खिलखिला कर हंस रहीं थीं, "भैया, प्लीज़, भैया! आप लोगों ने मुझे ज़रूरी बात तो भुलवा ही दी। नम्रता भाभी ऋतू का फोन आया था। ऋतू, नानाजी, संजू, मीनू और राज भैया इकठ्ठे हैं पहाड़ वाले बंगले पे। ऋतू ने आपको उन्हें वापस फोन करने को कहा है।" नम्रता चाची की प्रसन्नता ने उन्हें और भी सुंदर बना दिया।
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सुरेश चाचा और बड़े मामा ने फिर से जानकी दीदी के यौवन का मर्दन शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनके ढीली कमीज़ के बटन खुल गए। उनकी गदराई हुई भारी धोरी से अपने ही वज़न से ढलकी अत्यंत सुंदर वक्ष बाहर आ कर सुरेश चाचा और बड़े मामा के हाथों में मचलने लगे। "भैया आप दोनों और नेहा को तैयार हो जाना चाहिए। पिताजी ने सारे नौकरों की छुट्टी कर दी है और रामू ने ताज़े कबाब बनाने की तैय्यारी कर ली है। सिर्फ आप लोगों का इंतज़ार है।" जानकी दीदी सिसक उठीं। सुरेश चाचा और बड़े मामा ने उनके दोनों चूचुक को अपनी चुटकी में निर्ममता से मसल कर जानकी दीदी के नाज़ुक लोलकी [इअर लोब्स] को काट लिया। "जानकी हमारी तो इस कबाब में ज़्यादा रूचि है। यदि आपको बहुत जल्दी है तो आप ही हमें तैयार कर दीजिये, " बड़े मामा ने अपने विशाल हाथों से जानकी दीदी के प्रचुर भरे नितिम्बों को कस कर मसल दिया। "नेहा, अब तुम ही इन दोनों को समझाओ ना!" जानकी दीदी ने मेरी और दुहाई फेंकी। "दीदी आपके इन्द्रप्रस्थ की देवी सामान सौन्दर्य के सामने सुरेश चाचू और बड़े मामा असहाय हैं। आप को ही इनकी विनती माननी पड़ेगी।" मैंने मुस्कुरा कर जानकी दीदी के लहंगे का नाड़ा खोल दिया। उनका लहंगा सरक कर फर्श पर ढल गया। उनके गोल भारी उचंड नितिम्ब और मांसल झांगें सुरेश चाचा और बड़े मामा के अधीर हाथों के लिए नग्न हो गयीं। "नेहा तुम भी दोनों भैय्या के साथ मिल गयी," जानकी दीदी ने मुझे प्यार से उल्हाना दिया। "दीदी, मैं भी तो आपके रूप से अभिभूत हूँ।" मैंने अपने नन्हें हाथों से जानकी दीदी के सुंदर चेहरों को पकड़ कर उनके गुलाबी मुस्कराते होंठों को कस कर चूम लिया। बड़े मामा ने जानकी दीदी की कमीज़ तो उतार कर उन्हें बिलकुल नग्न कर उन्हें अपनी बाँहों में उठ लिया। सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा कर स्नानगृह की और चल दिये। सुरेश चाचा*और बड़े मामा बारी बारी से जानकी दीदी और मुझे अपनी बाँहों में भर कर हमारे शरीर को मसल रहे थे।जानकी दीदी और मेरी सिस्कारियां सुरेश चाचा और बड़े मामा को और भी उत्तेजित कर रहीं थीं। नम्रता चाची बहुत प्रसन्न लगती हुईं स्नानगृह में तेज़ी से प्रविष्ट हुईं। "सुनिए जी, " उन्होंने अपने पति सुरेश चाचा को संबोधित किया, "डैडी, राज, ऋतू और बच्चे कल आने वाल हैं। हमें एक पिछले साल वाली पार्टी का इंतज़ाम करना चाहिये।" जानकी दीदी खुशी से उछल पडीं। "नेहा, बेटा आप को और रवि भैया को तो रुकना ही पड़ेगा," नम्रता चाची की आवाज़ में एक विशेष प्रकार का आवेदन था। बड़े मामा ने मेरी उत्सुक आँखों में झाँक कर अपना सर हिला दिया। नम्रता चाची का सुंदर चेहरा खुशी से दमक उठा। "मैं अब बहुत खुश हूँ। मुझे मीनू और संजू के साथ नेहा बेटी का साथ इकठ्ठे मिलने के विचार से ही मुझे सिहरन हो उठती है। मुझे अब आप सबके मूत्र से स्नान करना है।" नम्रता चाची ने सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंडों को प्यार से सहलाया। नम्रता चाची स्नानगृह के फर्श पर बैठ गयीं। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अपने लंड को नम्त्रता चाची के मुंह पर लक्ष्य साध कर गरम सुनहरे मूत्र की धार से उन्हें नहलाना शुरू कर दिया। नम्रता चाची ने अपना मुंह खोल कर कई बार अपने पति और बड़े मामा के मूत्र से भर कर उसे नदीदे बेसब्री से गटक लिया। जानकी दीदी ने भी अपनी कोमल घुंघराली झांटों को फैला कर अपनी चूत की गुलाबी पाटों को खोल कर जोर से अपनी सुनहरे मूत्र की धार को सीधे नम्रता चाची के मुंह पे सरसराहट की ध्वनी से खोल दी। नम्रता चाची का सारा शरीर गरम मूत्र से नहा गया। उन्होंने ना जाने कितनी बार अपना मुंह गरम मूत्र से भर कर उसे बेसब्री से निगल लिया। आखिर में मेरी बारी थी। नम्रता चाची ने मुझे प्यार से अपनने और खींच लिया और मेरी चिकनी छूट पर अपना मुंह लगा दिया। मैंने झिझकते हुए अपने मूत्र की धार को नम्रता चाची के मुंह में खोल दिया। नम्रता चाची ने नादीदेपन से मेरे मूत को पीने लगीं। मेरे गरम मूत की तेज़ धार ने, उनके जल्दी जल्दी के बावज़ूद उनके मुंह और सीने को भी नहला दिया। हम सब एक दुसरे को प्यार से सुगन्धित साबुन लगा कर नहलाने लगे। छेड़-छाड़ और चुहलबाज़ी की वजह से स्नान काफी लंबा हो गया। हम सब हलके वस्त्रों में तैयार हो कर दोपहर के खाने के लिए निकल पड़े।



हम सब को लम्बे सम्भोग के मेराथन के श्रम की वजह से बहुत भूख लगी थी। गंगा बाबा ने स्त्रियों के लिए सफ़ेद मदिरा और पुरुषों के लिए बियर का प्रयोजन किया था। मुझे भी मदिरा के दो गिलास मिल गए। स्वादिष्ट भोजन और मदिरा के प्रभाव से शीघ्र ही मेरा अल्पव्यस्क मस्तिष्क चकराने लगा। नम्रता चाची ने हंस कर कहा, "चलिए आप सबने ने मेरी नन्ही नेहा को शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया। इस अवस्था में तो बेचारी किसी को भी चोदने से मना नहींकर पायेगी।" मैं थोड़ा सा शर्मायी पर शराब के आगोश में मैंने थोड़ी सी नम्रता चाची जैसी शरारत भरी हिम्मत पा ली थी, " चाची मुझे शराब का सहारा नहीं चाहिए अपनी चुदाई के निमंत्रण के लिये। मैं तो अब चुदने के लिए पूरी तैयार हूँ।" मेरे गाल अपनी बेशर्मी भरी बातों से सुर्ख लाल हो गये। नम्रता चाची ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी मुझे अपनी गोद में खींच लिया, "देखा आप सबने। मेरी छोटी सी बिटिया कितनी निखर गयी है।" नम्रता चाची ने मेरे सूजे हुए होंठो को प्यार से चूम कर मेरे दोनों उरोजों को हलके झीने सूती लगभग पारदर्शी कुर्ते के ऊपर से मसल दिया, "नेहा बेटी, यहाँ तीन विकराल लंड चूत और गांड की गहरायी नापने के लिये बहुत उत्सुक हैं। थोड़ा सावधानी से बोलो कहीं लेने के देने ना पड़ जाएँ।" मैं अब थोड़ा शराब और बड़े मामा और सुरेश चाचा के भीषण*सम्भोग के प्रभाव से शायद बेशर्म हो चली थी, "नम्रता चाची, मैं तो अब किसी भी विकराल लंड के लिये तैयार हूँ पर मुझे आप और जानकी दीदी का भी तो ध्यान रखना है। आखिर में कम से कम एक लंड तो आप दोनों के लिए भी छोड़ना पड़ेगा।" नम्रता चाची ने तब तक मेरे कुर्ते के सारे बटन खोल दिए थे। उनके कोमल हाथों ने मेरे दोनों अविकसित पर भारी उरोजों को सहलाने लगे, "नेहा बेटी अभी आपने सारे लंड कहाँ लिए हैं?," नम्रता चाची ने प्यार से मेरी नाक की नोक को हलके से काट कर मुस्करा कर कहा, "गंगा भैया के लंड से तो अभी तक आपका परिचय नहीं हुआ।" मैं थोडा सा शर्मा कर बोली, "मैं तो तैयार हूँ। गंगा बाबा ने अब तक पूछा ही नहीं। मैं शायद जानकी दीदी जैसी सुंदर नहीं हूँ।" सब मेरी बचकानी मासूम बातों से हंस दिये। "नेहा बिटिया। हमारी नज़र में तो हमारी सारी बेटियों से सुंदर कोई कहीं भी नहीं है", गंगा बाबा ने भी हंस कर मुझे और शर्म से लाल कर दिया। मै शर्मा कर नम्रता चाची की गोद से उठ कर गंगा बाबा की भारी भरकम गोद में समा गयी। उनके भरी शक्तिशाली बाँहों ने मुझे कस कर जकड लिया। "जानकी चलो, हमारी नेहा ने तो अपनी चूत की मरम्मत का इंतज़ाम कर लिया हमें भी तो एक लंड का इंतजाम कर लेना चाहिये।" नम्रता चाची ने खिलखिला कर कहा। सुरेश चाचा ने अपनी खाली गोद को दिखा कर हँसते हुए कहा, "भाई हमारी गोद तो तैयार है। कोई बैठने वाली चाहिये।" जानकी इठला कर झट से सुरेश चाचा की गोद में बैठ गयीं। नम्रता चाची भी अधीरता दिखाते हुए बड़े मामा की गोद में बैठ गयीं, "मुझे तो अपने रवि भैया की गोद और उसमे बसे दानव मिल जाये तो मैं तो बहुत खुश हूँ ." हम सब पेट की क्षुदा शांत होने के बाद कामवासना की क्षुदा से विचलित हो चले थे। मेरी *दोनों बाहें गंगा बाबा की मोटी बलवान गर्दन के इर्द गिर्द जकड़ गयीं। शीघ्र ही उनके मोटे होंठ मेरे नाज़ुक होंठो से चिपक गए। हमारी जीभ एक दुसरे की जीभ से लड़ने लगी। गंगा बाबा की जिव्हा के ऊपर से फिसलते हुए उनकी लार से मेरा मुंह भर गया।
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05-18-2019, 01:10 PM,
#55
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मैंने गंगा बाबा के गरम थूक को निगल कर और भी कामुकता से उनके होंठो को चूसने लगी। गंगा बाबा के बड़े भारी खुरदुरे हाथों ने मेरे फड़कते उरोज़ों का मर्दन करना शुरू कर दिया था। मेरी सिस्कारियां गंगा बाबा के मुंह में समा गयीं। मैं गंगा बाबा के मर्दाने चुम्बन और स्तनमर्दन से काम वासना से जल उठी थी। गंगा बाबा का लिंग मेरे नितिम्बों के नीचे धीरे धीरे सख्त हो चला था। हम दोनों नम्रता चाची की सिसकती आवाज़ से वापस धरती पर आ गए, "हम लोगों को वापस हाल में अंदर चलना चाहिये।" मैंने देखा कि नम्रता चाची के दोनों विशाल स्तन बड़े मामा की बेदर्द रगड़ाई से लाल हो गए थे। सुरेश चाचा ने भी जानकी दीदी के सुंदर बड़े भारी उरोज़ों को मसल मसल कर उन्हें सख्त और लाल कर दिया था। तीनों मर्दों ने अपनी गोद में बैठी वासना से जलती सम्भोग की साझीधार को अपनी बाँहों में उठा लिया और भीतर हाल की ओर त्वरित कदमों से चल पड़े। गंगा बाबा ने मुझे दीवान के ऊपर लिटा दिया और मेरा कुरता शीघ्र फर्श पर था। मेरा जांघिया मेरे रतिरस से गीला हो गया था। गंगा बाबा ने उसे अपने मुंह से लगा कर ज़ोर से सूंघा और फिर उसे चाटने लगे। गंगा बाबा के व्यवहार से मैं और भी कामुकता से जल उठी। मैंने उठ कर बाबा के कुर्ते के बटन खोल कर उसे उतारने की अधीरता से मचलने लगी। गंगा बाबा ने हंस कर अपना कुरता उतार दिय. तब तक मेरे अधीर हांथों ने उनके पजामे के नाड़े को खोल कर उसे उनकी जांघो से नीचे गिरा दिया। अब गंगा*बाबा का विशाल लंड मेरे मुंह के ठीक सामने था। मैंने अपने छोटे छोटे हाथों से उनके विकराल लंड को उठा कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को बाद मुश्किल से अपने मूंह में भर लिया। गंगा बाबा का लंड पहले से ही तन्ना रहा था। मेरे मुंह की गर्मी से कुछ ही क्षणों में उनका भीमकाय लंड लोहे की तरह सख्त हो गया और एक सपाट के खम्बें की तरह छत की तरफ उन्नत हो गया। मैं अब बड़ी मुश्किल से उसे चूसने के लिये नीचे कर पा रही थी। गंगा बाबा ने मुझे अपने लंड से अलग कर दीवान पर लिटा दिया। कमरे में अलग दीवानों पर अब नम्रता चाची और जानकी दीदी पूरी नग्न लेटी हुईं थी। सुरेश चाचा जानकी दीदी की मांसल झांघों में अपना मुंह दबा कर उनके मीठी रतिरस को चाट रहे थे। उनकी कुशल जीभ अविरत जानकी दीदी की सिस्कारियां उत्पन्न कर रही थी। बड़े मामा नम्रता चाची के विशाल गद्देदार स्तनों पर अपना पूरा वज़न डाल कर बैठे हुए थे। उन्होंने अपने हाथों से नम्रता चाची के सर तो ऊपर उठाया हुआ था जिस से वो उनके मूसल दानवीय लंड को चूस सकें। मेरा ध्यान शीघ्र ही अपनी कसमसाती चूत पे वापस आ गया। गंगा बाबा ने अपने मूंह में मेरी चूत को भर का निर्ममता से उसे चूसने लगे। मेरी सिसकारी कामवासना और थोड़े दर्द से भरी हुई थी। गंगा बाबा ने अपनी खुरदुरी जीभ से मेरे भगशिश्न को तरसाने लगे।मेरे नितिम्ब स्वतः दीवान से उठ कर मेरी चूत को गंगा बाबा के मुंह में दबाने लगे। "गंगा बाबा अब मुझे चोदिये, प्लीज़," मैं कामवासना से छटपटा रही थी। गंगा बाबा ने मेरे सुडौल टखनों को पकड़ मेरी मांसल झांघों को पूरा फैला कर मेरे अविकसित योनी द्वार को अपने वृहत लंड के आक्रमण के लिए खोल दिया। गंगा बाबा का लंड बड़े मामा के लंड की तरह विशाल, लंबा और मोटा था। गंगा बाबा ने मेरे पैर दीवान पर रख कर मेरी खुली मांसल झांगों के बीच अपने घुटनों पर बैठ गए।



गंगा बाबा ने अपने भीमकाय लिंग के सुपाड़े को मेरी गीली फड़कती हुई चूत के तंग रेशम जैसे नर्म मुहाने पे पांच छे बार रगड़ कर उसे स्थिर कर धीरे से मेरी चूत के अंदर दबाने लगे। मैं धीरे से सिसक उठी। मेरी कमसिन अविकसित चूत गंगा बाबा के सेब जैसे सुपाड़े के दवाब से चौड़ी होने लगी। मैंने कस कर अपना निचला होंठ अपने दांतों के बीच दबा लिया। अचानक एक झटके से गंगा बाबा का पूरा सुपाड़ा मेरी नन्ही चूत के अंदर समा गया। मेरी चूत एक बार फिर से मोटे लंड के ऊपर अमानवीय आकार में फ़ैल गयी। गंगा बाबा अपने लंड के सुपाड़े को मेरी चूत में फंसा कर मेरे ऊपर लेट गए। मैंने अपनी दोनों बाँहों से उनकी गर्दन को कस कर जकड़ लिया। गंगा बाबा ने अपने खुले मूंह को मेरे सिसकते मूंह से कस कर चुपका दिया। उन्होंने अपने लंड के सुपाड़े को धीरे धीरे गोल गोल घुमा कर मेरी तंग योनि के द्वार को ढीला करने लगे। मेरी सिस्कारियां मेरी तड़पती चूत की हालत बयान कर रहीं थीं। मेरे कानों में पहले एक फिर दूसरी चीख भर गयीं। पहली चीख जानकी दीदी की थी और दूसरी नम्रता चाची की। स्पष्टः यह सुरेश चाचा और बड़े मामा के विशाल लंड का उनकी कोमल चूत पर बेदर्दी से आक्रमण का परिणाम था। अगले दो तीन मिनटों तक जानकी दीदी और नम्रता चाची की दर्द और वासना भरी चीखें हाल में गूँज रहीं थीं। पर शीघ्र ही उनकी चूत विकराल लंडों के ऊपर फ़ैल गयीं। अब हाल में उनकी सिस्कारियां गूंजने लगीं। मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी। मेरा धैर्य निरस्त हो चुका था, "गंगा बाबा मुझे चोदिये। अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल दीजिये।" जैसे गंगा बाबा मेरी प्रार्थना का इंतज़ार कर रहे थे। उनके विशाल शक्तिशाली कुल्हे पहले एक बार सुकड़े फिर उनकी मज़बूत कमर के मिलेजुले प्रयास से उन्होंने अपना विकराल भीमकाय लंड निर्ममता से मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मेरी चीख जानकी दीदी और नम्रता चाची से भी ऊंची थी। "गंगा ......... बा आआआअ बा आआआआआ। आआआआह धीरे ऎऎऎऎए ........ ऊं*ऊं*ऊं ऊं ऊं ऊं ............ बहुत दर्द आआआह ............. ," मैं दर्द से तड़प उठी। पर गंगा बाबा ने सुरेश चाचा और बाद मामा की तरह जितनी निर्ममता से अपना लंड मेरी कमसिन चूत में ठूंसा था उन्होंने उसे बाहर खींच कर एक बार फिर*उतनी बेदर्दी से से उसे मेरी योनि में जड़ तक डाल दिया। गंगा बाबा ने मेरी चूत मर्दन जानलेवा भयंकर धक्कों से करना शुरू कर दिया। मेरी चूत मुझे लगा की मानों फट जायेगी। पर अब मुझे ज्ञान हो चला था कि मेरी चूत पहले जितना भी दर्द करे पर थोड़ी देर में गंगा बाबा मोटे लम्बे लंड के आनंद से अभिभूत हो जायेगी। गंगा बाबा ने मेरे होंठो को चूस कर उन्हें सुजा दिया। मैं अब सिसक सिसक कर गंगा बाबा के लंड का स्वागत कर रही थी। उनका लंड मेरी रस से भरी चूत में सपक सपक की आवाज़े पैदा करते हुए रेल इंजन के पिस्टन की तरह अविश्वसनीय रफ़्तार से मेरी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। मैं गंगा बाबा से कस कर लिपट गए और मेरी जाँघों ने उनकी कमर को अपनी गिरफ्त में लेने का असफल प्रयास किया। गंगा बाबा के वृहत भीमकाय मूसल ने पांच मिनटों में मुझे कामोन्माद के द्वार पर ला पटका। "आआआआह ......... गंगा बाबा .......... आआआआअ मैं आने वाली हूँ," मैं वासना के ज्वार से सुलगते हुए बुदबुदाई। गंगा बाबा ने मेरे सुबकते मुंह को अपने मर्दाने मुंह से दबोच लिया और उनका लंड अब दनादन मेरी चूत को बेरहम धक्कों से छोड़ रहा था। शीघ्र ही मैं झड़ने लगी। मेरी सिसकारी हल्की सी चीख में बदल गयी। गंगा बाबा ने बिना धीरे हुए मेरी चूत का मर्दन निरंतर अविरत भीषण धक्कों से करते हुए मेरे दुसरे रतिविसर्जन को तैयार कर दिया। मैं अब वासना की आग से पागल सी हो उठी। मैं सुबक सिअक कर अपनी चुदाई के आनंद के अधिक्य से बिलबिला रही थी। मेरे कान अब जानकी दीदी और नम्रता चाची की सिस्कारियों की तरफ बहरे हो गए थे। अब मेरा पूरा ब्रह्म्बांड मेरी चूत में पिस्टन की तरह चलते गंगा बाबा के विकराल लंड के ऊपर सिमट चुका था। गंगा बाबा ने अपने धक्कों में और भी ज़ोर लगाना शुरू कर दिया। मेरा पूरा शरीर उनके भारी विशाल शरीर के नीचे दबे होने के बावज़ूद उनके हर भीषण धक्कों से सर से पैर तक हिल रहा था। मैं अब तक ना जाने कितने बार झड़ चुकी थी। मैं अब कामानंद के अविरत आक्रमण से हवा में डोलते पत्ते की तरह कांप रहे थी। गंगा बाबा का लंड मेरी चूत में अभी भी एक बेदर्द धक्के के बाद दूसरा धक्का लगा रहा था। मैं थोड़ी देर में नए रतिविसर्जन के आनंद से डोल उठी। मेरा मस्तिष्क उत्तेजना और कामानंद के प्रभाव से शिथिल हो जा रहा था। मेरा आखिरी कामोन्माद इतना तीव्र गहन और प्रचंड था कि मैं एक चीख मार कर दीवान पर शिथिल हो कर निसहाय लेट गयी। मैंने अपने आप को गंगा बाबा और उनके भीमकाय लंड के ऊपर न्यौछावर कर उनके रहम और उनकी करुणा के ऊपर छोड़ दिया। **************************************************************
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05-18-2019, 01:10 PM,
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मुझे कुछ देर बाद होश सा आया। गंगा बाबा का विशाल लोहे जैसे सख्त खम्बे की तरह मेरी चूत में जड़ तक समाया हुआ था। मैंने गंगा बाबा के मुस्कुराते मुंह को लगभग मात्र-वात्सल्य सामान प्रेम से चुम्बनों से भर दिया। आखिर उन्होंने सुरेश चाचा, बड़े मामा के बाद मेरे सम्भोग ज्ञान को और भी परवान चड़ा दिया था।
गंगा बाबा धीरे से बोले, "नेहा बेटी, अब हमें आपकी चूत पीछे से घोड़ी बना कर मारनी है।" मैं धीमे से मुस्कुराई और फुसफुसाई, "गंगा बाबा आप जैसे भी चाहें मेरी चूत मार लें।" गंगा बाबा बड़े नाटकीय रूप से हँसे, "सिर्फ चूत, नेहा बेटा?" मेरे शरीर में रोमांच की सिहरन दौड़ पड़ी। गंगा बाबा अपने अमानवीय विकराल लंड से मेरी गांड मारने का सन्देश दे रहे थे। मैं सिर्फ उनकी आँखों में झांक कर मुस्कुरा दी, "गंगा बाबा, मैं तो लाचार आपके नीचे दबी हुई हूँ। मैं आपके जैसे शक्तिशाली पुरुष की किसी भी इच्छा का विरोध करने में बिलकुल असमर्थ हूँ।" मेरी लज्जा भरी स्वीकृति सुन कर गंगा बाबा की आँखों में एक अजीब सी आदिमानव जैसे वहशी पुरुष की हवस की चमकार फ़ैल गयी। गंगा बाबा ने मुझे अपनी इच्छा अनुसार पेट पर लिटा कर मेरे कन्धों को दीवान पर दबा दिया। मैंने अपना चेहरा अपने मुड़े हुए हांथों पर रख कर अपनी गांड हवा में ऊपर उठा दी। मेरे घुटने दीवान पर टिके हुए थे। मैंने देखा कि अब जानकी दीदी सुरेश चाचा के ऊपर सवारी करते हुए उनके मोटे लम्बे लंड से अपनी चूत मरवा रहीं थीं।सुरेश चाचा उनके उछलते मचलते बड़ी बड़ी चूचियों को बेरहमी से मसल रहे थे पर जानकी दीदी सिसक सिसक कर उन्हें और भी प्रोत्साहित कर रहीं थीं। बड़े मामा ने भी नम्रता चाची को घोड़ी बना कर, पीछे से भयानक हिंसक धक्कों से उनकी चूत मार रहे थे। नम्रता चाची के विशाल मुलायम भारी उरोज़ बड़े मामा के हर धक्के से गदराये खरबूज़ों की तरह लटक लटक कर आगे पीछे झूल रहे थे। बड़े मामा ने अपने फावड़े जैसे हाथों से नम्रता चाची के डोलते स्तनों को दबोच लिया और उन्हें कस कर मसलने लगे. बीच बीच में बड़े मामा नम्रता चाची के तने हुए मोटे लम्बे चूचुकों को भी बेदर्दी से खींच कर मसल देते थे। नम्रता चाची भी सिसकारी मार कर बड़े मामा को अपनी विशाल चूचियों का मर्दन और भी निर्ममता से करने के लिए उत्साहित कर रहीं थीं। बड़े मामा का हर धक्का नम्रता चाची को सर से पैर तक हिला रहा था। मेरा ध्यान अपनी चूत पर गंगा बाबा के लंड के स्पर्श से फिर से अपनी चुदाई पर केन्द्रित हो गया। गंगा बाबा ने अपने दानवीय सुपाड़े को मेरी रतिरस से भरी चूत में फंसा कर मेरे दोनों नितिम्बों को अपने मर्दाने शक्तिशाली हांथों से जकड़ कर मुझे अपने लंड के आक्रमण के लिए बिलकुल स्थिर कर लिया। मैं अब हिल भी नहीं सकती थी। मैं गंगा बाबा के भीमकाय लंड के निर्दयी धक्के के लिए अपनी तरफ से बिलकुल तैयार थी पर फिर भी जैसे ही उन्होंने एक गहरी साँस ले कर एक क्रूर धक्के में अपना विकराल मूसल मेरी फड़कती चूत में जड़ तक ठूंसा तो मेरे हलक से एक चीख उबल पड़ी। गंगा बाबा ने मेरी चूत का मर्दन पहले की तरह बहुत तेज़ और बहुत ही भारी धक्कों से करना प्रारंभ कर दिया। उनके लंड का हर धक्का मानो मेरे अस्थिपंजर हिलाने के लिए ढृढ़ संकल्पी था। पर मेरी चूत अब गंगा बाबा के हिंसक धक्कों का हार्दिक स्वागत कर रही थी। एक बार जब गंगा बाबा मेरी चुदाई की लय से संतुष्ट हो गए तो उन्होंने आगे झुक कर मेरे कमसिन स्तनों को अपने बड़े हात्नों में भर कर उन्हें मसलने लगे। मेरी सिस्कारियां जब शुरू हुईं तो उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया। मैं सिसक सिसक कर गंगा बाबा को अपने रति विसर्जन का हाल सुना रही थी, "आआअह ..... गंगा आआआआ .....बाआआआआ .......... बाआआआआआआ मैं फिर से झड़ रही हूँ। बाबा आआआअ ....अन .... अन .... अन ....अन अर्ररर आरर नन्न ....... मेरी चूत .......आआअह। मैं तो मर जाऊंगी बाबा आआआअ।"
मेरे वासना से लिप्त अनर्गल बकवास की गंगा बाबा ने पूर्ण रूप से उपेक्षा कर मेरी घनघोर चुदाई की तेज़ी और प्रचंडता बिलकुल भी कम नहीं होने दी। एक के बाद एक मेरे रति विसर्जन मेरे अल्पव्यस्क शरीर को तड़पा रहे थे। मेरा शरीर आनंद भरे कामोन्माद के दर्द से करहा उठा। "गंगा बाबा मेरी चूत में अब झड़ जाइये। आपने मुझे बिलकुल ही थका दिया।" मैंने ने अपने नए ताज़े रति विसर्जन के अतिरेक से कांपते शरीर को बड़ी मुश्किल से घोड़ी की अवस्था में रख पा रही थी। पर गंगा बाबा ने जैसे मेरे अनुरोध को बिलकुल उन्सुना कर दिया और वो और भी ज़ोर से मेरी चूत मारने लगे। घंटे से भी ऊपर की भीषण चुदाई से मेरा अविकसित शरीर थक कर चूर हो चला था।
आखिर जब गंगा बाबा ने अपना पूरा लंड मेरी चूत से बाहर निकाल कर असीम क्रूरता से मेरी चूत में धकेला तो मेरे शिथिल होता शरीर की मांसपेशियों ने गंगा बाबा के भयंकर चूत-मर्दन धक्के के बल के सामने समर्पण कर दिया। मैं दीवान पर पेट के बल लुढ़क पड़ी। गंगा बाबा का लंड मेरे आगे गिरने से मेरी चूत से निकल पड़ा। गंगा बाबा ने किसी अदि मानव की गुर्राहट जैसे आवाज़ निकाल कर अधीरता से मेरे कांपते नितिम्बों और झांघों को फैला कर मेरे ऊपर अपना पूरा वज़न डाल कर लेट गए। उनका विकराल अस्तुन्ष्ट लंड ने अपने आप से मेरी जलती चूत के द्वार को ढूंढ लिया। गंगा बाबा ने दो भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड मेरी चूत में आखिरी इंच तक ठूंस दिया। उस अवस्था में मेरी अल्पव्यस्क तंग योनि और भी कस गयी थी। मुझे लगा जैसे गंगा बाबा का लंड और भी मोटा हो गया था। मेरे थके शरीर ने सिर्फ हल्की सी दर्द भरी सिसकारी मार कर अपनी झांघें और भी फैला दीं। गंगा बाबा ने बेदर्दी से मेरी चूत मारते हुए मेरे गालों को चुम्बनों से गीला कर दिया। "नेहा बेटा, मैं अब आपकी चूत में झड़ने वाला हूँ।' गंगा बाबा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना लंड मेरी छूट में जड़ तक ठूंस दिया। मैं सिर्फ अनर्गल बुबुदाहत के अलावा कुछ और बोल क्या सोच भी नहीं पा रही थी। मेरा सारा आनंद अब गंगा बाबा के गरम जनक्षम वीर्य की फुहार के लिए उत्तेजित और उत्सुक था। गंगा बाबा के चुदाई के लय अब अनियमित हो चली। उनकी बालों भरी महाकाय पेड़ के तने जैसी झांघें मेरे गुदाज़ नितिम्बों के ऊपर थप्पड़ जैसे प्रहार करते हुए उनके लंड को मेरी चूत में अपनी संतुष्टी की तलाश में बेदर्दी से अंदर बाहर कर रहीं थीं। अचानक गंगा बाबा ने अपना मुंह मेरे बिखरे सुगन्धित घुंघराल बालों में दबा कर मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में भींच लिया। उनके लंड का हर स्पंदन मेरी चूत में सिहरन भर देता था। उनके पेशाब के छेड़ से फूटी पहली वीर्य की मोटी भारी धार ने मेरे योनि की दीवारों को नहला दिया। मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहार के प्रभाव से सिसक उठी। गंगा बाबा के लंड ने एक के बाद एक अपने गरम गाढ़े वीर्य की मोटी धार से मेरी चूत को लबालब भर दिया। मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहारों फुहारों से अपनी चूत के स्नान से विचलित एक बार फिर से झड़ गयी। मेरे सुबकते मुंह से एक ऊंची सिसकारी उबल उठी और मेरा शिथिल शरीर बेहोशी के आलम में दीवान पर ढलक गया। मुझे याद नहीं की गंगा बाबा के लंड ने कितनी देर तक उनके गरम वीर्य की बारिश से मेरी चूत को सराबोर किया। मैंने अपनी आँखे बंद कर अपना शरीर बिलकुल ढीला छोड़ दिया।


कुछ देर बाद मुझे होश सा आया और मैंने संसर्ग में लिप्त सुरेश चाचू, बड़े मामा, नम्रता चाची और जानकी दीदी की तरफ ध्यान दिया। गंगा बाबा का वृहत लंड थोड़ा सा नर्म हो चला था। पर उसका अमानवीय आकार मेरी कमसिन चूत को अभी भी बेदर्दी से फाड़ सकता था। बड़े मामा ने नम्रता चाची को चोद कर बिलकुल निश्चेत कर दिया था। नम्रता चाची गहरी गहरी साँसे ले कर आँखे बंद किये हुए अपनी शरीर की अशक्त हालत को पुनः स्थिर करने का प्रयास कर रहीं थीं।
सुरेश चाचा के जादू भरे हाथ जानकी दीदी की चूचियों और चूचुक मसल सहला कर तरसा रहे थे। उनका विशाल लंड जानकी दीदी की चूत को बिजली की रफ़्तार से मार रहा था। उनकी सिस्कारियां कभी फुसफुसाहट और कभी हल्की चीख के रूप में निरंतर कमरे में गूँज रहीं थीं। बड़े मामा ने अपना विकराल नम्रता चाची के रति रस से सने हुए लंड को उनकी थकी योनी से बाहर निकाल कर सुरेश चाचा के लंड के ऊपर अटकी जानकी दीदी की भरी गांड की तरफ इन्द्रित कर दिया। "रवि, जानकी की गांड खुली हुई है, इंतज़ार किस बात का है," सुरेश चाचा ने बेदर्दी से एक बार फिर नीचे से जानकी दीदी की चूत में अपना लंड निर्मम वासनादायक उत्तेजक धक्के से जड़ तक ठूंस दिया। जानकी दीदी सिसक कर बोलीं, "हाय, सुरेश भैया, एक तो बेदार्दी से पहले ही अपनी बहिन की चूत मार रहे हैं और ऊपर से दुसरे भाई को उस बिचारी की गांड फाड़ने के लिए निमंत्रित कर रहे हैं।" सुरेश चाचा ने जानकी दीदी के दोनों चूचुक को वहशियों की तरह खींच कर कस के उमेठ दिया। जानकी दीदी की चीख निकल गयी।
बड़े मामा ने भोलेपन से दर्द से मचलती जानकी दीदी से पूछा ," क्या हमें अपनी छोटी बहिन की गांड नहीं मिलेगी?" जानकी दीदी सिसकीं और फुसफुसा कर बोलीं, "रवि भैया, क्या आपकी बहिन ने आपको छोड़ने से कभी भी रोका है? मेरी गांड आप जैसे भी मन करे मार लीजिये।" बड़े मामा नेकी और बूझ-बूझ के अंदाज़ में जल्दी से जानकी दीदी के भारी फूले हुए नितिम्बो को सुरेश चाचा के बड़े बलवान हाथों में थमा कर उनकी नाज़ुक तंग गांड के हलके गुलाबी-भूरे छिद्र के ऊपर अपने लंड के विशाल सेब जैसे मोटे सुपाड़े टिका दिया। सुरेश चाचा ने जानकी दीदी की चूत को अपने लंड की जड़ तक फाँस कर उनकी गांड को अपने मित्र और भाई के लिए तैयार कर दिया। बड़े मामा ने ने बलपूर्वक ज़ोर से जानकी दीदी के मलाशय के द्वार को अपने विकराल लंड के सुपाड़े से धीरे-धीरे चौड़ा कर खोल दिया। अचानक जानकी दीदी के नन्हे तंग गुदा-छिद्र ने हथयार डाल दिए। जानकी दीदी के गले से चीत्कार उबल उठी। बड़े मामा का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा जानकी दीदी की गर्म मुलायम अँधेरी मलाशय की गुफा में प्रविष्ट हो गया। बड़े मामा ने जानकी दीदी को कुछ क्षण दिए उनकी गांड में उपजे दर्द को कम होने के लिए। सुरेश चाचा ने अपनी जीभ दर्द से मचलती जानकी कान की सुंदर नाक में डाल उसे अपने थूक से भिगो दिया। जानकी दीदी उत्तेजना से कसमसा उठी,
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05-18-2019, 01:10 PM,
#57
RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
"इसका मतलब है आपको गांड मरवाने की कामना थी ?"
जानकी दीदी सुरेश चाचा की बाहों में मचल गयी, "मैं तो सिर्फ आप का दिल रखने के लिए रवि भैया से अपनी गांड मरवा रहीं हूँ। क्या कोई भी समझदार लड़की आपके और रवि भैया के घोड़े जैसे लंड से इकट्ठे अपनी गांड और चूत फटवाना चाहेगी?"
बड़े मामा ने हंस कर अपने लंड को जानकी दीदी की गांड में और भी अंदर तक धकेल दिया। जानकी दीदी चिहुक उठी। सुरेश चाचा ने जानकी दीदी को अपने बहुशाली हाथों से जकड़ कर स्थिर कर रखा था। बड़े मामा ने जानकी दीदी की मुलायम गोल भरी कमर को कस कर तीन चार भयंकर धक्कों से अपना विशाल खम्बे जैसा लंड जड़ तक बिलखती जानकी दीदी की गांड में ठूंस दिया। बड़े मामा और सुरेश चाचा पहले धीरे धीरे बिलखती सिसकती जानकी दीदी की दोहरी चुदाई करनी प्रारंभ की। थोड़ी देर में ही जानकी दीदी की सिसकियाँ ने दूसरा रूप अंगीकृत कर लिया। उनकी सिस्कारियों में अब दर्द कम और कामवासना का अधिकाय हो उठा था। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने जानकी दीदी की गांड और चूत इकट्ठे मारने की लय बना कर चुदाई की रफ़्तार बड़ा दी। ******************************************
बड़े मामा के लंड की रगड़ जानकी दीदी की गांड को अब बहुत भा रही थे। उनकी गांड और चूत की भीषण चुदाई उन्हें शीघ्र एक बार फिर से चर्म-आनंद के द्वार पर ले आयी। जानकी दीदी जोर से सीत्कार कर चिल्लायी, "भैया मैं झड़ने वाली हूँ।" सुरेश चाचा ने उनकी चूत को को और भी निर्मम रफ़्तार से मारना शुरू कर दिया। बड़े मामा ने जानकी दीदी के दोनों उरोज़ों को बेदर्दी से मसल मसल कर अपने अमानवीय विकराल लंड से उनकी रेशमी मुलायम गांड का मर्दन और भी हिंसक धक्कों से करना शुरू कर दिया। जानकी दीदी दो भाइयों के वृहत लंडों के निर्मम धक्कों से सर से पैर तक हिल रहीं थीं। बड़े मामा और सुरेश चाचा को जानकी दीदी की चुदाई करने का पहले से बहुत अभ्यास था और दोनों जानकी दीदी के अस्थिपंजर हिला देने वाले धक्कों से चोदने लगे। जानकी दीदी दोनों भाइयों की बेदर्द चुदाई से पूरे तरह परिचित थीं। उनके रति-विसर्जन एक के बाद एक उनके शरीर में पटाकों की तरह विस्फोटित होने लगे।
जानकी दीदी हर नए चर्म -आनंद के अतिरेक से कपकपा उठीं। उन्होंने वासना से अभिभूत हो अनर्गल बोलना शुरू कर दिया, "अपनी की चूत फाड़ दो भैया। आः आह ...ऊँ .... ऊँ ...ऊँ ...आं ....आं ....उम्म्म ..... मर गयी माँ मैं तो। और ज़ोर से चोदिये मुझे भैया। रवि भैया आप मेरी मेरी गांड अपने मोटे लंड से फाड़ दीजिये। मेरी गांड में कितना दर्द कर रहे हैं आप। ऊई माँ .... चोदिये मुझे .... मुझे फिर से झाड़ दीजिये। जानकी दीदी अब लगातार कुछ ही मिनटों में बार बार झड़ रहीं थीं। सुरेश चाचा ने जानकी दीदी की चूत को और भी ज़ोरों से मारने लगे। गंगा बाबा अपनी प्यारी बेटी की निर्मम चुदाई कर उत्तेजित हो उठे। उनका बड़े मामा जैसा विकराल मोटा लंड मेरी चूत में लोहे के खम्बे से भी सख्त हो मेरी चूत को और भी चौड़ा कर दिया। नम्रता चाची अब अपनी चुदाई की थकान से जग गयीं थीं। गंगा बाबा ने उन्हें उनके हाथ से मेरे नीचे खींच लिया। नम्रता चाची ने शीघ्र ही गंगा बाबा की इच्छा समझ ली। उनका मूंह लालची से मेरी चूत से चुपक गया। गंगा बाबा ने अपना धड़कता हुआ लंड मेरी वीर्य और रति से भरी चूत से बाहर निकाल लिया। नम्रता चाची ने लपक कर सारा स्वादिष्ट मिश्रण नदीदेपन से सटक लिया। मैंने गंगा बाबा के लंड के मोटे सुपाड़े को अपनी छोटी सी गांड के ऊपर महसूस किया। जानकी दीदी अपने रतिनिश्पति की प्रबलता से अभिभूत हो कर अत्यंत शिथिल हो गयी। सुरेश चाचा के अगले भयंकर धक्के से उनकी चूत में अपना लंड जड़ तक फांस कर अपना गर्म जननक्षम वीर्य की बौछार उनके गर्भाशय के ऊपर खोल दी। । बड़े मामा ने बिना लय तोड़े अपने लंड से जानकी दीदी की गांड अविरत मारते रहे। अचानक सुरेश चाचा गले से गुर्राहट के अव्वाज़ उबली और उनके हाथों ने जानकी दीदी चूचुक और भग-शिश्न बेदर्दी से मसल दिया। उनके लंड की हर धड़कन और उसके पेशाब के छिद्र से उबलता गरम जननक्षम मरदाना शहद तेज़ फव्वारों के सामान उनकी चूत की कोमल दीवारों को नहलाने लगा। जानकी दीदी की आँखे वासना की संतुष्टी की थकान से बंद कर सुरेश चाचा के लंड के वीर्य की पिचकारियों का मीठा आनंद लेने लगी | सुरेश चाचा भी भारी भारी साँसें ले रहे थे। उनके सशक्त बाहों ने जानकी दीदी को अपने शरीर से कस कर जकड़ लिया। मेरे जैसे ही जानकी दीदी सम्भोग
के बाद बड़े मामा और सुरेश चाचा से लिपटना बहुत अच्छा लगता प्रतीत हो रहा था।बड़े मामा भी अचानक जानकी दीदी की गांड में झड़ उठे। सुरेश चाचा और जानकी दीदी बड़ी देर तक अपने चरमोत्कर्ष का आनंद में डूबे रहे। बड़े मामा ने जानकी दीदी पकड़ कर करवट पर लेट गए। जानकी
दीदी की चूत सुरेश चाचा के लंड से 'सपक' की आवाज़ कर मुक्त हो गयी।वो अभी भी बड़े मामा लंड के खूंटे के ऊपर अपनी गांड से अटकी हुई थी। आखिर में बड़े मामा ने उनके चूचुकों को मज़ाक में चुटकी से भींच कर पूछा, "जानकी, क्या गांड मरवाने की शुरूआत का दर्द बाद के मज़े से बुरा था?" जानकी दीदी शर्म से लाल हो गयी, "भैया, आपको मेरा जवाब पता है। आप मुझे बस चिड़ा रहे हैं" "जानकी , तुम्हारे मूंह से सुन कर हमें और भी प्रसन्नता होगी," बड़े मामा ने उनका मूंह अपनी तरफ मोड़ कर जानकी दीदी लाल होंठों को चूम लिया। "भैया , गांड मरवाने में मुझे बाद में बहुत ही आनंद आया। आपका लंड जब बहुत तेज़ी से मेरी गांड के अंदर बाहर जा रहा था तो वो बहुत ही विशाल और शक्तिशाली लग रहा था। मेरी तो सांस भी मुश्किल से आ रही थी," जानकी दीदी ने बड़े मामा के हांथों को प्यार से चूमा।
"भैया , क्या आप अभी भी नहीं थके? आपका लंड अभी भी पूरा शिथिल नहीं हुआ," जानकी दीदी अपनी करुण गांड की छल्ली को उनके लंड के ऊपर कसने की कोशिश की। "जानकी, यदि आप ऐसे ही करतीं रहीं तो मेरा लंड शीघ्र ही फिर से तैयार हो जाएगा," बड़े मामा ने जानकी दीदी के कान की लोलकी [इअर लोब] को मूंह में ले कर चूसने लगे। लगता था की जानकी दीदी के कान मेरी तरह अत्यंत कामोत्तेजक हैं। बड़े मामा के चूसने से उनकी सिसकारी निकल गयी, "रवि भैया, अपना लंड मेरी गांड के अंदर ही रखिये। कम से कम अंदर डालने का दरद तो नहीं होगा।" इधर जैसे ही नम्रता चाची के मूंह ने मेरी बेहत चुदी चूत के ऊपर कब्ज़ा कर लिया गंगा बाबा ने मेरे फूले हुए नितिम्बों को चौड़ा कट मेरी अत्यंत कसी हुई मलाशय के छोटे से द्वार के ऊपर अपना अविश्विस्नीय मोटा सुपाड़ा रख कर उसे मेरी गांड के छेद पर कस कर दबाने लगे।
मैं कसमसा उठी। गंगा बाबा ने बेदर्दी से अपने लंड की शक्ती से मेरी कोमल गांड के नन्हे से द्वार के प्रतिरोध को अभिभूत कर लिया। जैसे ही नम्रता चाची ने मेरी गांड के समर्पण का अहसास किया उन्होंने मेरी भग-शिश्न को अपने होंठों में कस कर जकड़ लिया। उसी समय गंगा बाबा का अमानवीय लंड ने मेरी गांड को चौड़ा कर उसके प्रतिरोध को विव्हल कर अपने विकराल लंड की विजय की पताका की घोषणा करते हुए मेरी कमसिन गांड में बिना विरोध के रेलगाड़ी के इंजन की तरह अंदर दाखिल हो गए। मेरी दर्द भरी चीख से शयनकक्ष गूँज उठा। बड़े मामा का लंड थोड़ी चुहल बाजी से थोड़े ही क्षणों में तनतना के लोहे के खम्बे की तरह जानकी दीदी की गांड में फड़कने लगा। बड़े मामा ने उन्हें अपनी और खींच कर अपना लंड फिर से उनकी गांड में फिसलाने लगे। इस बार उन्होंने जानकी दीदी की गांड धीमे, प्यार भरे रीति से मारी। बड़े मामा का लंड उनकी गांड में अब आसानी से अपना लंबा सफ़र तय करने लगा।
मेरी गांड में उपजे अविश्नायी दर्द से मैं तड़प उठी। पर गंगा बाबा ने एक बार अपने पूरे लंड को मेरी गांड में जड़ तक नहीं गाड़ दिया तक उन्होंने बेदर्दी से एक के बाद और भी ज़ोर से दूसरा धक्का लगाया। थोड़ी देर में ही उनका लंड मेरी गांड की गहराइयां नापने लगा। मैं कुछ ही देर में सिसकने लगी। गंगा बाबा अपने हांथों से मेरी चूचियों और नम्रता चाची ने मेरे भग-शिश्न को छेड़ मेरी गांड के चुदाई के आनंद को और भी आल्हादित कर दिया। उधर बड़े मामा ने जानकी दीदी की गांड तेज़ी से मारनी शुरू कर दी। उनकी सिस्कारियां मेरी सिस्कारियों से प्रतिस्पर्धा कर रहीं थीं। आधे घंटे में हम दोनों तीन बार झड़ गयीं । बड़े मामा ने भी अपना बच्चे पैदा करने में सक्षम वीर्य से जानकी दीदी की गांड में बारिश कर दी।
उसी समय गंगा बाबा ने मेरी गांड में अपने प्रचुर बच्चे पैदा करने में अत्यंत सक्षम वीर्य की फुव्व्हार मेरी गांड में खोल दी। हम दोनो आँखे बंद कर एक बार फिर कामानंद की संतुष्टि से भर गए। काम वासना भी अत्यंत चंचल आनंद है। कभी तो लगता है कि हम सब संतुष्टि से सराबोर हो गए पर थोड़ी से देर में अधीर कामोत्तेजना अपना सर फिर से उठा कर हम सब के शरीर में बिजली सी दौड़ा देती थी। एक घंटे के भीतर ही गंगा का लंड मेरी गांड के अंदर फिर से फड़कने लगा। इस बार बड़े मामा ने जानकी दीदी को पेट के बल पलट कर उनके ऊपर अपना सारा भार डाल कर उनकी गांड मारने लेगे। ठीक उसी तरह गंगा बाबा ने मुझे नम्रता चाची के ऊपर से खींच कर पलंग पर चित पटक कर मेरे नितिम्बों को फैला कर फिर से अपना लंड मेरी दर्द भरी गांड में तीन जान-लेवा धक्कों से जड़ तक डाल कर मेरी सांस बंद कर देने वाली तेज़ी से गांड मारने लगे। मुझे अपने शरीर के ऊपर उनके भारीभरकम शरीर के वज़न बहुत ही अच्छा लग रहा था। गंगा ने शुरू में लम्बे और धीरे धक्कों से मेरी गांड का मर्दन किया। जब मैं दो बार झड़ गयी तो उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार बड़ा दी। जब मैं तीसरी बार झड़ रही थी तो उनके लंड ने भी अपनी गरम गाड़ा फलदायक उर्वर मर्दानी मलाई से मेरी गांड को निहाल कर दिया। मैंने गंगा बाबा से न हिलने का निवेदन किया। सम्भोग के बाद उनके लंड को अपने शरीर में रख कर उनके भरी बदन के भार के नीचे लेटने में भी मुझे एक विचित्र सा सुख मिल रहा था। हम दोनो की आँख न जाने कब लग गयी।
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05-18-2019, 01:10 PM,
#58
RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
हम सब वासना की अग्नि के ही रति सम्भोग की मीठी थकान के आलिंगन में समा कर गए। मैं सुबह देर से उठी। मेरे सारे शरीर में फैला मीठा-मीठा दर्द मुझे रात की प्रचंड चुदाई की याद दिलाने लगा। मेरे होंठों पर स्वतः हल्की सी मुस्कान चमक उठी। ख़िड़की से देर सुबह की मंद हवा ने चमेली, रजनीगंधा और अनेक बनैले फूलों की महक से मेरा शयनकक्ष महका दिया। मैंने गहरी सांस भर कर ज़ोर से अंगड़ाई भरी। कमरे में पुष्पों की सुगंध के साथ रति रस और सम्भोग की महक भी मिल गयी। मेरा अविकसित कमसिन शरीर में उठी मदमस्त ऐंठन ने मेरे अपरिपक्व मस्तिष्क में एक बार फिर से सिवाए संसर्ग और काम-क्रिया के अलावा कोई और विचार के लिए कोइ अंश नहीं बचा था। नासमझ नेहा की जगह अब मैं स्त्रीपन की ओर लपक रही थी। मैं अपने ख्यालों में इतनी डूबी हुई थी कि कब मीनू कमरे में प्रविष्ट हो गयी। उसने मेरे बिस्तर में कूद कर मुझे सपनों से वापिस यथार्थ में खींच लिया। मीनू खिलखिला कर हंस रही थी, "क्या नेहा दीदी? अभी तक रात की चुदायी याद आ रही है? कोइ फ़िक्र की बात नहीं अब तो पापा, चाचा और गंगा बाबा गंगा बाबा के अलावा नानू, संजू और राजन भैया भी हैं। आपके लिए अब लंड की कोई कमी नहीं है। " मैंने भी हँसते हुए मीनू को अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "मीनू की बच्ची तू कैसी गंदी बातें करने लगी है ? तू तो ऐसे कह रही है जैसे न जाने कितने सालों से चुद रही है ?" मीनू ने मेरे होंठों को चूम लिया, "नेहा दीदी, आपकी छोटी बहन का कौमार्य तो तीन साल पहले ही भंग हो गया था। आप आखिरी कुंवारी थीं सारे परिवार में।" मीनू नम्रता चाची की बड़ी बेटी है. मीनू मुझसे छोटी है. उसका छरहरा शरीर देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि मीनू इतनी चुदक्कर है। उसके लड़कपन जैसे शरीर पे अभी स्तन भी अच्छी तरह नहीं विकसित हुए थे। लेकिन नम्रता चाची और ऋतु दीदी की तरह मीनू का शरीर अपनी मम्मी और मौसी के जैसे ही भरा गदराया हुआ हो जायेगा। उन दोनों का भी विकास देर किशोर अवस्था में हुआ था। "अच्छा मीनू की बच्ची यह बता कि अपने डैडी का लंड अभी तक नहीं मिस किया," मैंने मीनू को कस कर भींच ज़ोर से उसकी नाक की नोक को काट कर उसे छेड़ा। "नेहा दीदी डैडी के लंड का ख़याल तो रहीं थीं। मुझे और ऋतु दीदी को तीन लंडों की सेवा करनी पड़ी थी। अब तो संजू का लंड भी चला है। " मीनू मेरे दोनों उरोज़ों को मसल कर मेरे होठों को चूसने लगी। संजू मीनू से डेढ़ साल छोटा है। मुझे संजू शुरू से ही बहुत प्यारा लगता है। उसके अविकसित शरीर से जुड़े वृहत लंड के विचार से ही मैं रोमांचित हो गयी। मीनू ने मेरे सूजे खड़े चूचुकों को मसल कर कुछ बेसब्री से बोली, "अरे मैं तो सबसे ज़रूरी बात तो भूल गयी। दीदी संजू को जबसे आपके कौमार्यभंग के बारे में पता चला है तबसे मेरा प्यारा छोटा नन्हा भाई अपनी नेहा दीदी को चोदने के विचार से मानों पागल हो गया है। बेचारा सारे रास्ते आपको चोदने की आकांशा से मचल रहा था। उसने मुझे आपसे पूछने के लिए बहुत गुहार की है। " मेरी योनि जो पहले से ही मीनू से छेड़छाड़ कर के गीली हो गयी थी अब नन्हे संजू की मुझे चोदने की भावुक और तीव्र तृष्णा से मानों सैलाब से भर उठी। मीनू ने मेरे गालों को कस कर चूम कर फिर से कहा, "दीदी चुप क्यों हो। हाँ कर दो ना," मीनू ने धीरे से फुसफुसाई, "बेचारा संजू बाहर ही खड़ा है। " मैं अब तक कामोन्माद से मचल उठी थी। मैंने धीरे से मीनू को संजू को अंदर बुलाने को कहा. "संजूऊऊ," मीनू चहक कर ज़ोर से चिल्लायी," नेहा दीदी मान गयीं हैं। " संजू कमरे के अंदर प्रविष्ट हो गया। उसकी कोमल आयु के बावज़ूद उसका कद काफी लम्बा हो गया था। उसका देवदूत जैसा सुंदर चेहरा कुछ लज्जा और कुछ वासना से दमक रहा था। संजू शर्मा कर मुस्कराया और हलके से बोला, "हेलो नेहा दीदी। " मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निचल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।" मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निष्चल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।" संजू ने शर्माते हुए पर लपक कर अपने कपड़े उतार कर फर्श पर दिए। उसका गोरा लम्बा शरीर उस समय बिलकुल बालहीन था। मेरी आँखे अपने आप ही संजू के खम्बे जैसे सख्त मोटे गोरे लंड पर टिक गयीं। उसके अंडकोष के ऊपर अभी झांटों का आगमन नहीं हुआ था। मेरा मुँह संजू के जैसे गोरे औए मक्खन जैसे चिकने लंड को देख कर लार से भर गया। "संजू, जल्दी से बिस्तर पर आ जाओ न अब, " मुझसे भी अब सब्र नहीं हो रहा था। संजू को हाथ से पकड़ कर मैंने उसे बिस्तर पर बैठ दिया। मैंने उसके दमकते सुंदर चेहरे को कोमल चुम्बनों से भर दिया। संजू अब अपने पहले झिझकपन से मुक्त हो चला। संजू ने मुझे अपनी बाँहों में कस कर पकड़ कर अपने खुले मुँह को मेरे भरी साँसों से भभकते मुँह के ऊपर कस कर चिपका दिया। संजू के मीठे थूक से लिसी जीभ मेरे लार से भरे मुँह में प्रविष्ट हो गयी। मीनू मेरी फड़कती चूचियों को मसलने लगी। मेरा एक हाथ संजू के मोटे लंड को सहलाने को उत्सुक था। मेरी तड़पती उंगलियां उसके धड़कते लंड की कोतलकश को नापने लंगी। मेरा नाज़ुक हाथ संजू के मोटे लंड के इर्दगिर्द पूरा नहीं जा पा रहा था। पर फिर भी मैं उसके लम्बे चिकने स्तम्भ को हौले-हौले सहलाने लगी। संजू ने मेरे मुँह में एक हल्की से सिसकारी भर दी। मैं संजू के लंड को चूसने के लिए बेताब थी। मैंने हलके से अपने को संजू के चुम्बन और आलिंगन से मुक्त कर उसके लंड के तरफ अपना लार से भरा मुँह ले कर उसे प्यार से चूम लिया। संजू का लंड इस कमसिन उम्र में इतना बड़ा था। इस परिवार के मर्दों की विकराल लंड के अनुवांशिक श्रेष्ठता के आधिक्य से वो सबको पीछे छोड़ देगा। मैंने संजू के गोरे लंड के लाल टोपे को अपने मुँह में भर लिया। मीनू मेरे उरोज़ों को छोड़ कर मेरे उठे हुए नीतिमबोन को चूमने और चूसने लगी। मीनू मेरे भरे भरे चूतड़ों को मसलने के साथ साथ मेरे गांड की दरार को अपने गरम गीली जीभ से चाटने भी लगी। मेरी लपकती उन्माद से भरी सिसकी ने दोनों भाई बहिन को और भी उत्तेजित कर दिया। संजू ने मेरे सर तो पकड़ कर अपने लंड के ऊपर दबा कर मापने मोटे लंड को मेरे हलक में ढूंस दिया। मेरे घुटी-घुटी कराहट को उनसुना कर संजू ने अपने लंड से मेरे मुँह को चोदने लगा। मीनू ने मेरी गुदा-छिद्र को अपनी जीभ की नोक से चाट कर ढीला कर दिया था और उसकी जीभ मेरी गांड के गरम अंधेरी गुफा में दाखिल हो गयी।
मीनू ने ज़ोर से सांस भर कर मेरी गांड की सुगंध से अपने नथुने भर लिए। "दीदी, अब मुझे आपको चोदना है," संजू धीरे से बोला। मैंने अनिच्छा से उसके मीठे चिकने पर लोहे के खम्बे जैसे सख्त लंड तो अपने लालची मुँह से मुक्त कर बिस्तर पे अपनी जांघें फैला कर लेट गयी। संजू घुटनो के बल खिसक कर मेरी टांगों के बीच में मानों पूजा करने की के लिए घुटनों पर बैठा था। मीनू घोड़ी बन कर मेरे होंठों को चूस थी। पर उसकी आँखे आँखें अपने भाई के मोटे लम्बे चिकने लंड पर टिकी थीं। संजू का मोटा फड़कता सुपाड़ा मेरी गुलाबी चूत के द्वार पे खटखटा रहा था। मेरी चूत पे पिछले दो सालों में कुछ रेशम मुलायम घुंघराले उग गए थे। संजू ने सिसकी मार कर अपने मोटे लम्बे हल्लवी लंड के सुपाड़े को मेरी गीली योनि की तंग दरार पर रगड़ा। मेरी भगशिश्न सूज कर मोटी और लम्बी हो गयी थी। संजू के लंड ने उसे रगड़ कर और भी संवेदनशील कर दिया। मेरी हल्की सी सिसकारी और भी ऊंची हो चली। "संजू मेरी चूत में अपना लंड अंदर तक दाल दो, मेरे प्यारे छोटे भैया। अपनी बड़ी बहिन की चूत को अब और तरसाओ," मैं अपनी कामाग्नि से जल उठी थी। संजू ने मेरे दोनों थरकते चूचियों को अपने बड़े हाथों में भर कर अपने मोटे सुपाड़े को हौले हौले मेरी नाजुक चूत में धकेल दिया। मेरी तंग योनि की सुरंग संजू के मोटे लंड के स्वागत करने के लिए फैलने लगी। संजू ने एक एक इंच करके अपना लम्बा मोटा लंड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मैं संजू के कमसिन लंड को अपनी चूत में समा पा कर सिहर उठी। मेरा प्यारा छोटा सा भैया अब इतने बड़े लंड का स्वामी हो गया था। "संजू, तेरा लंड कितना बड़ा है। अब अपनी बहिन को इस लम्बे मोटे खम्बे जैसे लंड से चोद डाल," मैं वासना के अतिरेक से व्याकुल हो कर बिलबिला उठी। मीनू ने भी मेरी तरफदारी की, "संजू, कितने दिनों से नेहा दीदी की चूत के लिए तड़प रहे थे। अब वो खुद कह रहीं हैं की उनकी चूत को चोद कर फाड़ दो। संजू नेहा दीदी की चूत तुम्हारे लंडे के लिए तड़प रही है। " संजू ने हम दोनों को उनसुना कर अपने लंड को इंच इंच कर मेरी फड़कती तड़पती चूत के बाहर निकल उतनी ही बेदर्दी से आहिस्ता-आहिस्ता अंदर बाहर करने लगा।
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05-18-2019, 01:10 PM,
#59
RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
17
मैंने अपनी बाहें में कस कर मीनू को जकड लिया। हम दोनों के होंठ मानों गोंद से चिपक गए थे। मैं अब तड़प गयी थी। अब तक बड़े मामा, सुरेश चाचा और 
गंगा बाबा मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। संजू किसी जालिम की तरह मेरी चूत को अपने चिकने मोटे लंड से धीरे धीरे मेरी चूत को मार रहा था। 
मेरी चूत झड़ने के लिए तैयार थी पर उसे संजू के मोटे लंड की मदद की ज़रुरत थी। 
मैं कामाग्नि से जल रही थी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब किसी ने मीनू को बिस्तर के किनारे पर खींच लिया। 
मैंने मीनू की ऊंची कर उसकी तरफ देखा। सुरेश चाचा ने अपनी कमसिन अविकसित बेटी की चूत में अपना दैत्याकार लंड एक बेदर्द धक्के से जड़ तक ठूंस 
दिया था। 
"डैडी, आअह आप कितने बेदर्द हैं। अपनी छोटी बेटी की कोमल चूत में अपना दानवीय लंड कैसी निर्ममता से ठूंस दिया है आपने। मिझे इतना दर्द करने में 
आपको क्या आनंद आता है?" मीनू दर्द से बिलबिला उठी थी। 
"मेरी नाजुक बिटिया इस लंड को तो तुम तीन सालों से लपक कर ले रही हो। अब क्यों इतने नखरे करने का प्रयास कर रही हो। मेरी बेटी की चूत तो वैसे भी 
मेरी है। मैं जैसे चाहूँ वैसे ही तुम्हारी चूत मारूंगा," सुरेश चाचा ने तीन चार बार बेदर्दी से अपना लंड सुपाड़े तक निकल कर मीनू की तंग संकरी कमसिन 
अविकसित चूत में वहशीपने से ठूंस दिया। 
"डैडी, आप सही हैं। आपकी छोटी बेटी की चूत तो आपके ही है। आप जैसे चाहें उसे चोद सकते हैं," मीनू दर्द सी बिलबिला उठी थी अपर अपने पिताजी के प्यार 
को व्यक्त करने की उसकी इच्छा उसके दर्द से भी तीव्र थी। 
"संजू, भैया, देखो चाचू कैसे मीनू की चूत मार रहें हैं। प्लीज़ अब मुझे ज़ोर से चोदो," मैंने मौके का फायदा उठा कर संजू को उकसाया। 
शीघ्र दो मोटे लम्बे लंड दो नाजुक संकरी चूतों का मर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। कमरे में मेरी और मीनू की सिस्कारियां गूंजने लगीं। 
संजू मेरे दोनों उरोज़ों का मर्दन उतनी ही बेदर्दी से करने लगा जितनी निर्ममता से उसका लंड मेरी चूत-मर्दन में व्यस्त था। सुरेश चाचा और संजू के लंड के 
मर्दाने आक्रमण से मीनू और मेरी चूत चरमरा उठीं। उनके मूसल जैसे लंड बिजली की तीव्रता से हमारी चूतों के अंदर बाहर रेल के पिस्टन की तरह अविरत चल रहे 
थे। सपक-सपक की आवाज़ें कमरे में गूँज उठीं। 
मेरी सिस्कारियां मेरे कानों में गूँज रहीं थीं। मीनू की सिस्कारियों में वासनामय दर्द की चीखें भी शामिल थीं। सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू 
सम्भाल पा रही थी? सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू सम्भाल पा रही थी? चाचू के विशाल भरी-भरकम शरीर के नीचे हाथों में फांसी नन्ही 
बेटी किसी चिड़िया जैसी थी. 
चाचू मीनू को दनादन जान लेवा धक्कों से चोदते हुए उसके सूजे चूचुकों को बेदर्दी से मसल रहे थे। अभी मीनू के उरोज़ों का विकास नहीं हुआ था। 
"डैडी,चोदिये अपनी लाड़ली बेटी को। फाड़ डालिये अपनी नन्ही बेटी की चूत अपने हाथी जैसे लंड से," मीनू कामवासना के अतिरेक से अनाप-शनाप बोलने 
लगी। 
मेरी चूत को संजू का मोहक चिकना लंड रेल के इंजन के पिस्टन की तरह बिजली के तेजी से चोद रहा था, 'आअह्ह संजू ऊ.…… ऊ........ ऊ.…… 
उउन्न्न ....... मैं आने वाली हूँ ,भैया प्लीज़ और ज़ोर से मेरी चूत चोदो |" 
संजू ने मेरे दोनों चूचियों भी निर्मम शुरू कर दिया।मेरी साँसे भरी हो चली। मेरी सिस्कारियां और भी उत्तेजक हो उठीं और उनमे मीनू की आनंदमय दर्द से 
उपजी घुटी घुटी चीखें मिल कर कमरे में सम्भोग का संगीत बजा थीं। 
हम चारों विलासमय अगम्यगमनी समाज के नियमों के विपरीत कामवासना में लिप्त बेसब्री से रति-निष्पति की और प्रगतिशील हो रहे थे। 
अचानक मेरे शरीर में बिजली कौंध गयी। मेरा गरम कामाग्नि से जलता बदन धनुषाकार होने लगा। पर संजू ने मुझे अपने नीचे परिपक्व पुरुष की तरह अच्छे 
से दबा रखा था। उसका लंड सपक-सपक की आवाज़ें पैदा करता हुआ मेरी फड़कती चूत का अविरत मर्दन में सलग्न था। 
कुछ हे देर में मीनू और मैं हल्की सी कर झड़ने लगीं। पर हमारे दोनों सम्भोगी अभी कौटुम्बिक व्यभिचार से संतुष्ट नहीं हुए थे। 
मीनू और मैं दोनों हांफ रहे थे। सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व बेटी को बेसब्री से पीठ पे लिटा कर बिस्तर के किनारे पे खींच लिया और खुद फर्श पर खड़े हो गए। 

उन्होंने ने अपनी बेटी के रति रस से लबालब भरी गुलाबी अविकसित चूत में अपना अमानवीय विकराल लंड तीन अस्थी-पंजर हिला देने वाले 
धक्कों से जड़ तक दाल दिया। और फिर पहली चुदाई की तरह मीनू को जानलेवा धक्कों से चोदने लगे। 
संजू ने भी अपने पिता की तरह मुझे दुसरे आसान में चोदने के लिए उत्सुक था। उसने मुझे पलट कर पेट के बल लिटा दिया औए मेरी जांघें फैला 
दीं। उसने अपना मूसल मेरी रस भरी चूट में जड़ तक दल कर फिर से मेरी चूट की दनादन धक्कों से चोदने लगा। 
कमरे में एक बार फिर से सहवास की आग में जलती दो लड़कियों की सिस्कारियां और दो के मालिक पुरूषों की गुरगुराहटें गूँज उठीं। 
संजू अपने पिता से मानो होड़ लगा रहा था। मेरे पट लेटने से और उसके पीछे से मेरी चूत के मर्दन से मेरी चूत और भी तंग और संकरी महसूस हो 
रही थी। संजू का मोटा लंड अब मुझे और भी मोटा लगने लगा। संजू के गले से 'हूँ हूँ' की घुटी घुटी गुरगुराहट से उबलने लगीं। 
संजू अब अपने धक्कों में और भी ज़ोर लगा रहा था। मेरी सिस्कारियों में हल्की से चीखें भी शामिल हो चलीं। मैंने मुलायम चादर को दाँतों के 
बीच लिया। संजू के हर तक्कड़ मेरे सारे शरीर को हिला रहे थी। सुरेश चच ने भी मीनू की चुदाईकी रफ़्तार और आधिक्य को और भी परवान 
चढ़ा दिया था। 

मीनू मेरी तरह अब अनगिनत बार झड़ चुकी थी। उसका अपरिपक्व छोटा हल्का सा शरीर अपने विशाल पिता के नीचे दबा था पर फिर भी उनके 
हर धक्के से बेचारी सर से पाँव तक हिल रही थी। पर अब मुझे पुरुषों की बेदर्दी से उपजे आनंद का अभ्यास हो गया था। मीनू हालांकि मुझसे तीन 
साल छोटी थी पर उसका सम्भोग का अनुभव मुझसे तीन साल अधिक था। 
"डैडी, आपका घोड़े जैसे लंड मेरी चूत फाड़ कर ही मानेगा। मुझे और भी ज़ोर से चोदिये, डैडी ई …………ई …………ई ………… मैं फिर से 
झड़ने वाले हूँ। आह आआन्न चो ……… ओ …………ओ …………दिये मर गयी मैं तो ………… हाय मम्मी………… ई …………ई …………ई," 
अगम्यगमनात्मक आग में जलती मीनू ने अपने नविन चरम-आनंद की घोषणा कर दी। 
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05-18-2019, 01:11 PM,
#60
RE: Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार
मैं भी एक बार से कामोन्माद के पराकाष्ठा पे पहुँच कर कौटुम्बिक व्यभिचार की आनद की घाटी में लुड़क गयी। 
संजू और चाचू ने मीनू और मुझे आधा घंटा और चोदा। तब तक हम दोनों रति-निष्पति के उन्माद के अतिरेक से अभिभूत हो कर शिथिल हो गयीं 
थीं। हम दोनों की सिस्कारियां बहुत मंद हो चलीं थीं। 
कुछ क्षणों में संजू ने गुर्रा कर ज़ोर से अपना लंड मेरी चूत में ढूंस कर मेरे बिखरे रेशमी केशों में अपना हांफता हुआ सुंदर मुखड़ा छुपा लिया। 
उसके लंड ने मेरी योनि के भीतर जननक्षम वीर्य की बौछार कर दी। मैं, अपने गर्भाशय के ऊपर संजू के उबलते वीर्य की हर पिचकारी के संवेदन 
से सुबक गयी। मैं निरंतर रति-निष्पति से थक कर निश्चेत हो गयी। उसके पिता ने उसकी अविकसित चूत और गर्भाशय को अपने उर्वर फलदायक 
गरम वीर्य से नहला दिया। मीनू एक बार फिर से अपने डैडी के लिंग स्खलन के प्रभाव से चीखे बिना न रह सकी। 

मैंने संजू को अपनी बाँहों में भरकर उसके गुलाबी मीठे होंठो को चूस चूम कर सुजा दिया। संजू के उसके लार से लिसी जीभ 
गुलबजामुम से भी मीठी थी। 
सुरेश चाचे भी अपनी बेटी को गोद में भर कर कामवासना के के अनुराग और वात्सल्य से भरे चुम्बनों से उसे पिता के अनुराग से 
आन्दित कर रहे थे। 
तभी नम्रता चाची और दीदी भरभरा कर कमरे में दाखिल हुईं। 
"अरे, ये आप यहाँ व्यस्त हो गए। आप को तो पता है कि आज का क्या कार्यक्रम है?" नम्रता चाची ने प्यार भरा अपने पति को 
उलहाना दिया। 
"सॉरी मम्मी डैडी मेरी चूत मारने में व्यस्त हो गए थे," मीनू ने अपने पिता की तरफदारी में कोइ देर नहीं लगाई। 
"मुझे पता है बिटिया रानी। तेरी चूत देख कर तेरे डैडी का लंड काबू में नहीं रहता। मैं शिकायत कहाँ ही कर रहीं हूँ ?" चाची ने अपनी 
भीषण चुदाई से थकी-मांदी बेटी को प्यार से चूमा। 
"बेगम, मीनू के हवा में उठी गांड और उसकी गुलाबी चूत को देख कर तो भगवान् भी बेकाबू हो जायेंगें," सुरेश चाचा ने भी प्यार से 
अपनी बेटी तो चूमा। 
मीनू शर्मा कर लाल हो गयी। 
"संजू बेटा आखिर में अपनी नेहा दीदी को चोद ही लिया तूने। अब तो खुश है ? अपने माँ के लिए भी कुछ बचा रखा है कि नहीं? " 
नम्रता चाची ने कमसिन संजू को भी उलहाना देने में कोई देर नहीं की। 
"मम्मी क्या कोई बेटा अपने माँ की चूत के लिए दुनिया की दूसरी तरफ तक नहीं दौड़ जायेगा। मैं तो आप के लिए हमेशा तैयार 
रहता हूँ ," संजू ने अपने प्यार का आश्वासन अपने मम्मे को जल्दी से दे दिया। 
"मैं तो मज़ाक कर रहीं हूँ, मेरे लाल ,तू तो हीरा है. तेरे लंड के ऊपर तो मैं स्वर्ग भी न्यौछावर दूंगी," चाची ने संजू के मेरे थूक से 
लिसे गुलाबी होंठो को कस कर चूम लिया, "पर अब आप लोगों को हम लड़कियों से अलग हो जाना है। चलिए बाहर के कुछ काम 
वाम भी तो करने हैं।" 
संजू और चाचू नाटकीय उदास मुंह बना कर बाहर चले गए। 
"नेहा बेटी आज आपके कौमार्यभंग की पार्टी है," चाची का उत्साह उनसे समाये नहीं बन रहा था। मेरे चेहरे पे अज्ञानता के भाव को 
देख कर दोनों चाची और जमुना दीदी खिलखिला कर हंस दी। 
मैं और मीनू जल्दी से स्नानगृह की और चल दिए। 
मैं मीनू के नाजुक छरहरे शरीर से मंत्रमुग्ध और उसकी छोटी जैसे सुंदर चेहरे से अभिभूत हो गयी थी। 
"दीदी मुझे बहुत ज़ोर से मूत आया है," मीनू ने मचल कर कहा। 
ना जाने कहाँ से मेरे शब्द मेरे मुंह से उबाल पड़े , " मीनू क्या तू मुझे अपना मीठा पेशाब पिलाएगी ?" 
मीनू चहक कर बोली, "नेहा दीदी क्या आप अपनी छोटी बहिन को भी अपना सुनहरी प्रसाद दोगी? जब संजू को पता चलेगा कि मैंने 
आप का मूत्र उससे पहले पी लिया है तो वो बहुत जलेगा। " 
मैं मीनू को खींच कर विशाल खुले स्नानघर के फौवारे के नीचे गयी। मैंने उसकी एक टांग अपने कंधे पर रख अपना खुला मुंह उसकी 
छोटी तंग गुलाबी झांटरहित चूत के निकट कर दिया। मीनू का मूत्राशय वाकई भरा हुआ था। उसकी सुनहरी गरम धार झरने की 
आवाज़ करते हुए मेरे मुंह पर वर्षा की बौछार के तरह गिरने लगी। पहली मूत्र-वर्षा में सुरेश चाचा का सफ़ेद गाड़ा वीर्य मिला हुआ था 
जिसे मैं प्यार से सतक गयी। 
मैंने नदीदेपन से मीनू का तीखा पर फिर भी मीठा मूत जितना भी हो सकता था पीने लगी। मीनू के पेशाब की वर्षा बड़ी देर तक चली। 
मैं तो उसके सुनहरे मीठे मूत से बिलकुल नहा गयी। फिर भी मैंने न जाने कितनई बार अपना मुंह उसके पेशाब से पूरा भर कर बेसब्री 
से निगल लिया और फिर से मुंह खोल कर तैयार हो गयी। 
आखिर में मीनू की वस्ति खाली हो गयी। 
मैंने अपनी जीभ से उसके गुलाबी भगोष्ठों के ऊपर सुबह की ओस जैसे चमकती बूंदे चाट ली। 
अब मीनू की बारी थी। 
मैंने अपनी चूत के भगोष्ठों को फैला कर अपने मूत्राशय की संकोचक पेशी तो ढीला कर दिया और मेरे गरम मूत्र की बौछार मीनू के 
सुंदर चेहरे पर गिर पड़ी। 
मीनू ने लपक कर अपना मुंह भर लिया और जल्दी से मेरा सुनहरी द्रव्य सतक कर फिर से अपने मुंह को मेरी मूत्र-वर्षा के नीचे लगा 
दिया। 
मीनू ने भी अनेक बार अपना मुंह भरने में सफल हो गयी। 
"नेहा दीदी, आपका मूत बहुत ही प्यारा और मीठा है। संजू को भी प्लीज़ पिलाना ,"मीनू ने मुझे प्यार से चूमा। 
"मीनू मेरा तेरे पेशाब जितना मीठा नहीं हो सकता। यदि संजू को मेरा मूत अच्छा लगेगा तो मुझे बहुत खुशी होगी। क्या तुम दोद्नो 
भी एक दुसरे का मूत्र-पान करते हो?" मैंने मीनू के मुस्कराते होंठो को चूसा और अपने पेशाब के स्वाद तो चखा। 
मीनू खिलखिला कर हंसी , "बहुत बार दीदी न जाने कितनी बार। " 

मैंने मीनू को छोटी बालिका की तरह नहलाया और खुद भी नहा कर पहले उसे फिर अपने को सुखाने लगी। 
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