non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्रेम कहानी )
12-27-2018, 01:41 AM,
#11
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
अनु ने आवाज़ देकर वासू से पुछा क्या हुआ, वासू ने आँख मारते हुए एक फ्लाइयिंग किस अनु को भेज दी, अनु फ्लॅट हो गया पानी पर. अनु ने भी वापस फ्लाइयिंग किस देने के लिए पोज़िशन मे आया ही था कि आँखे फटी की फटी रह गयी.


बड़ी स्टाइल से वासू ने अपना टी-शर्ट खोला और हवा मे एक बार रोल की टी-शर्ट को. फिर धीरे से जीन्स के बटन खोलती जिप नीचे की, और अनु की तरफ पीठ कर के, अपनी कमर को रोल करती, जीन्स को अपने पैरों से निकाल दी.


उफफफ्फ़ ! क्या गोरा चिकना बदन था काली, ब्रा और पैंटी मे, अनु के बदन मे तो आग सी लग गयी.... ज़ोर से चिल्लाता हुआ अनु .... बेबी ये क्या कर रही हो, पानी मे आग जैसा लग रहा है.


वासू कुछ ना बोली, बस अनु की ओर सीधी मूड गयी. आँखों के सामने क्या नज़ारा था... ब्रा के उपर के क्लीवेज के उभार, सुडोल टाँगे, और होंठ पे होंठ रख कर अनु को देखने का एक्सप्रेशन, भला अनु क्यों ना पागल हो.


अनु जल्दी से अब वासू के पास आना चाहता था, वासू भी अपने हाथों के इशारे से बुला रही थी, पर अनु अभी किनारे पहुँचने ही वाला था कि वासू दौड़ कर उस से दूर हो गयी, और वो भी झील मे छलाँग लगा दी.


अनु किनारे पहुँच कर पानी मे पाँव डाल कर बैठ गया, हांफता वो बस वासू को देख रहा था जो पानी मे उल्टी तैर रही थी. पानी के बाहर जो बदन का हिस्सा था, वो था वासू का चेहरा और उसके सीने के उभार और क्लीवेज़ की गहराई, जो कि किसी भी मर्द को आकर्षित करने का सबसे मजबूत ज़रिया होता है.


अनु आँखें फाडे बस वासू के मखमली बदन का दीदार कर रहा था, पर अनु से बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था, दिल मे तरंगे उठ रही थी और सरीर तपने लगा था. अनु ने दोबारा झील मे छलाँग लगा दिया और वासू को पकड़ने की कोशिस करने लगा.


तकरीबन आधे घंटे तक ये पकड़ा पकड़ी का खेल चला पानी मे. वासू का स्टेमिना जबाव दे गया, और वो हाँफती अपनी फूली साँसे लेकर किनारे पर आकर लेट गयी. 


अभी लेटकर तेज साँसे धीमी भी नही हुई थी कि, तेज साँसों की गर्मी वासू को अपनी गर्दन पर महसूस हुई, आँखे खोल कर एक बार देखी और फिर अपनी आँखों को मूंद ली. 


तेज चलती सांसो के साथ अनु अपना सिर वासू के सीने से लगा कर लेट गया. थोड़ी देर मे वासू नॉर्मल हुई तो अपना हाथ अनु के सिर पर ले जाकर धीरे से फिराने लगी. अनु, वासू के सीने से लग कर, आँखें मुन्दे बस पड़ा रहा.


वासू... उठो ना अनु, चलो अब .....


पर लेटे ही अनु ने अपना एक हाथ वासू के मुँह पर डाल कर उसे चुप करा दिया. उसके पास उसे हटकर अपना सिर खुली सपाट पेट पर लाया और प्यार से चूम लिया. अनु अपने होंठो की छुअन को नाभि पर देते हुए उपर तक बढ़ा.


वासू एक मादक आवाज़ मे कह उठी .... आह ! ये क्या कर रहे हो.


अनु बिना कुछ बोले उपर तक आया और होंठों से होंठों को छुअन दिया. वासू भी अनु का साथ देती उसके होंठो को चूमने लगी. वासू लेटी गर्दन लेफ्ट की हुई थी और अनु राइट करवट पर उसके होंठों को चूम रहा था.


अनु ने हाथ अंदर पीठ पर ले जाकर लिया, वासू को थमा और चूमते हुए ही अपने उपर ले आया. अब अनु नीचे लेता था और वासू उसके उपर लेट कर उसके होंठों को चूम रही थी, उसके बलों पर हाथ फेर रही थी.


काम की मादक लहरें वासू के तन बदन मे दौड़ रही थी. पानी मे भीगे बदन पर हल्की हवा जब लग रही थी तो ठंड की एक सिहरन का एहसास हो रहा था, और जो किस करने से अंदर हलचल पैदा हो रही थी वो एक अलग ही गर्मी का एहसास दे रही थी. ऐसा मिश्रण वासू को एक साथ मिल रहा था कि, वो तो बिल्कुल मस्ती मे आ गयी और अनु के होंठों को बड़े प्यार से लगातार चूम रही थी.


अनु लगातार अपना हाथ वासू की खुली पीठ पर चला रहा था और पीठ से लेकर कमर तक ले जा रहा था. अनु का हाथ बार-बार उपर जब आता तो ब्रा की स्ट्रिप मे फँस जाता. आराम से अनु ने अपने हाथो से ब्रा की स्ट्रिप को खोल दिया.


ब्रा खुलने के बाद अनु ने हल्का खींचा, बूब्स सीने पर दबे थे जिस से ब्रा फँसी थी, वासू, अनु का साथ देती थोड़ी उपर हुई और अनु ने ब्रा को खींच कर निकाल दिया.


वासू रिलॅक्स से उसके उपर लेटी होंठ को चूमने लगी, और अनु बिना किसी रुकावट के पीठ पर हाथ फिराने लगा, और दबे बूब्स की साइड जो दोनो ओर से खुली थी उसे अपने अंगूठे से हल्का प्रेस करने लगा.


चूमते कभी जब ज़्यादा उतेज्ना होती तो वासू, अनु के बाल खींच देती और होंठो पर एक बाइट दे देती. अनु ने हाथ नीचे ले जाकर पेंटी के अंदर डाल दिया और उसके बॅक के दोनो पार्ट्स को अपने पंजो मे भर कर दबाने लगा.


आह ! एक मधुर आवाज़ निकली और वासू ने अनु की गर्दन पर एक लव बाइट दी. अनु ने अपने हाथो को थोड़ा उपर किया और पैंटी को खिसकाता घुटनो तक ले आया.


अब कपड़े की ज़रूरत भी किसे थी. वासू इतनी उत्तेजित थी कि एक पाँव के अंगूठे से थोड़ा इधर तो थोड़ा उधर से खिसकाती बाहर निकाल दी पैंटी को.


खुले बॅक को अनु लगातार सहला रहा था दबा रहा था. वासू बस अपनी मस्ती मे कल्पनाओ की उड़ान पर थी. अब तक जितनी उत्तेजना राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर कहानियाँ पढ़ कर मिला करती थी, अपने बदन पर पहली बार किसी मर्द का हाथ पड़ने से उस से कहीं ज़्यादा वो काम सागर मे गोते लगा रही थी.


अनु ने वासू की पीठ को अपने हाथो से थामे, उसे लिटाए हुए ही बैठ गया. अनु के कंधे से अपना दोनो हाथ टिकाए वासू थोड़ा उपर हुई, और अनु की आँखों और होंठों के सामने सबसे मादक करने वाले वासू के बूब्स थे.


अनु ने दोनो हाथों से दोनो बूब्स को थामा और एक को अपने होंठों से लगा लिया. अनु के होंठ उसके निपल से लगते ही वासू मस्ती के महासागर मे तैर गयी. आनद ही आनंद उठा रही थी वासू.


वासू अब अपना हाथ ले जाकर अनु की बेल्ट को खोलने लगी, अनु ने भी अपने दोनो हाथ ज़मीन से टिकाए और कमर को हवा मे किया.


वासू ने जल्द ही बेल्ट को निकाल दी, और पैंट के बटन को खोलते ही, पैंट को अनु की कमर से सरका कर नीचे कर दी. धीरे धीरे जीन्स के साथ अनु की अंडरवेअर भी खिसक कर जांघों तक आ गया. 


इतना खोलने के बाद जो आँखों के सामने था उसे देख कर पहली बार वासू थोड़ी शरमाई और थोड़ी लजा गयी. अपनी चोर नज़रों से उसे देख रही थी. पहली बार उसने किसी मर्द के खुले अंगू को देखा होगा और उसे देख कर वासू पानी पानी हो गयी. 


हाथ से बॉडी का भार उठाए अनु थक गया था, इसलिए उसने कमर को ज़मीन पर और हाथ को अपने पेट पर डाल कर आगे क्या होना है वो वासू पर छोड़ दिया.


वासू थोड़ी शरमाती हुई उसे धीरे से अपने हाथों का एक टच दी. नरम ठंडे हाथ जब पहली बार उसे छुए तो अनु कसमसा गया. ये अनु के लिए भी पहली बार का ही अहसास था जब किसी लड़की का हाथ उसके अंगो से लगा था. 


तुरंत ही एरेक्ट हुआ अनु का हथियार, और अनु तो अंदर से हिल गया. पहले एक टच दी वासू, फिर उंगली फिराई फिर अंत मे पूरी मुट्ठी मे ले लिया.


ऐसा करने से वासू पहली बार महसूस की, कि अबतक तो उतेज्ना क्या होती है वो जानती ही नही थी. मुट्ही मे लेना किसी मर्द का लिंग उसे अपने अंगों से खेलने से ज़्यादा उत्तेजित कर रहा था, और उत्तेजना भी ऐसी की वासू उसे पकड़ कर उपर नीचे करने लगी.


अनु इस समय मानो इस दुनिया मे ही नही था. अनु अपने मुँह से, साँसें छोड़ रहा था क्योंकि जितनी तेज वो साँसें खींच रहा था उससे तेज वो अपने मुँह से छोड़ रहा था. अहह ! हााआआ !


दोनो को एक दूसरे के अंगो को छुने का ये अहसास बिल्कुल नया था. काम की उतेजना सारे संयम कब का खो चुकी थी. अब तो बस अपनी इस उत्तेजना को दोनो शांत करने मे लगे थे.

वासू का हाथ लगातार अनु के लिंग पर चल रहा था और उसे आगे पीछे करने मे अलग ही आनंद मिल रहा था. मस्ती मे उसे वो ज़ोर-ज़ोर से उपर नीचे कर रही थी और अनु तो अपने मज़े के सातवे आसमान पर था.


यूँ तो खुद भी अनु कयि बार अपने हाथों से कर चुका था, पर आज किसी लड़की के हाथों से जब ऐसा हो रहा था तो वो अपने मज़े की उँचाइयों पर था.


गरम चिपचिपा वासू के हाथ पर पड़ा, अनु का काम हो गया था, और वो तेज साँसें छोड़ता निढाल हो गया. वासू झील मे जाकर अपना हाथ धोयि, एक नज़र अनु को देखी और वापस आकर उसके सीने पर सिर रख कर सो गयी.


उमर का तक़ाज़ा और नंगे बदन की गर्मी, धीरे धीरे एक बार फिर अनु के अंदर जोश भर रहा था, वासू खुद भी अब इस खेल का पूरा आनंद उठाना चाह रही थी.


नंगे जिस्म जब आपस मे रगडे तो अनु फिर से तैयार होने लगा. एक बार फिर उसके हाथ पीठ से होते हुए बॅक पर थे, और उसे धीरे से सहला रहे थे. अनु ने अपने हाथों को वासू की बॅक की दरारों मे दिया और पिछे से ही योनि तक पहुँचा उसका हाथ.


वो पहली छुअन जब वासू ने महसूस की तो बदन मे एक लहर सी दौड़ गयी. मस्ती सी छाई थी दिमाग़ पर, और काम लीला मे वासू खोने को बेकरार थी.


अनु, वासू को अपने उपर से हटा नीचे लिटा दिया. अनु ने थोड़ी घास तोड़ कर इकट्ठा की और वासू के बदन पर उसे फिराने लगा. उसकी इतनी प्यारी सी छुअन मे वासू को एक खो जाने वाली अनुभूति होने लगी, वासू की मादक अहह ! ईश्ह्ह्ह्ह्ह्ह ! से महॉल मे समा बँध गया. 


होंठों को अनु ने एक बार फिर होंठो से जोड़ा और काम मे डूबी इस किस मे इतनी कशिश थी कि ज़ुबान एक दूसरे को चाट रही थी. होंठ नीचे आकर गर्दन को चूमने लगे और हाथ बूब्स को दबा रहे थे.


गर्दन से फिर होन्ट वासू के नंगे जिस्म को छुअन देते हुए उसके ब्रेस्ट तक पहुँचे. पहले बारी-बारी से दोनो बूब्स को चूमा, फिर अपनी जीभ फिराई और फिर एक निप्पल को होंठ लगा कर सक करने लगा.


ये पहला अहसास किसी मर्द का वासू को दीवाना बना रहा था. जब ब्रेस्ट को अपने होंठों से चूस रहा था अनु, तो वासू की साँसें इतनी तेज थी कि छातियाँ जोरों से उपर नीचे हो रही थी. 


ब्रेस्ट चूस्ते हुए अनु अपना हाथ वासू की योनि तक ले गया. अनु के लिए भी ये पहला मौका था जब वो किसी लड़की के नंगे जिस्म के साथ खेल रहा था. अनु ने हाथ को योनि के अंदर हल्का पुश कर के एक बार रब किया.


अहह ! करती अंपनी चुचियों को उपर की जिसमे अभी भी अनु का मुँह लगा था. अनु के हाथ पहले धीरे फिर ज़ोर से रब करने लगे वासू की योनि को. वासू आहह ! करती कभी ज़ोर से अनु के बालों को अपने हाथों से दबोचती तो कभी अनु की पीठ पर नाख़ून से खरॉच देती.


वासू की कामाग्नी को संभालना अब मुश्किल था. वासू बड़े जोरों से अनु की पीठ पर हाथ जमाए थी जिस से नाख़ून कभी-कभी अनु की पीठ को छिल देते और अनु एक प्यार भरे दर्द से कर्राह कर रह जाता.


अब अनु के लिए भी रुकना मुश्किल था. अनु ने नीचे पोज़िशन पर सबकुछ सेट करते पहला झटका दिया......
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12-27-2018, 01:41 AM,
#12
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
ये एहसास दोनो का, अनु अंदर से इतना उत्तेजित था कि उसे लगा पूरा ज़ोर डाले, और बस करता ही रहे. वहीं वासू को जब पहला अनुभव हुआ अपनी योनि पर अनु का लिंग तो वो फडफडा गयी. वासू को ऐसा लगा जैसे ये पल ऐसे ही रहे सदा और कभी ये ना रुके इतना मज़ा.... आहह ! पहले क्यों नही किया ये.


पर दोनो का पहला अनुभव था, जोश को अनु कंट्रोल नही कर पाया, पहला झटका इतने जोरो का था कि वासू को पेन फील होने लगा, जो मज़ा था वो गायब हो गया .. और "अनुउऊुुुउउ" कहती वो चिहुक उठी.


दर्द की शिकन चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी, अनु ने जब चेहरा देखा वासू का तो वो रुक गया, उसे थोड़ा अफ़सोस हुआ कि मैं तो मज़े कर रहा हूँ ये दर्द मे है, एक ख़याल उसे अपने पार्ट्नर के लिए आया और वो खुद पर काफ़ी संयम बढ़ाते हुए रुका.


अनु.... वासू सॉरी जान, दर्द हो रहा है क्या ?


वासू ने आँखों की सहमति दी. अनु उसी स्थिति मे रुका रहा और प्यार से वासू के माथे को चूम लिया. प्यार की इसी फीलिंग के साथ उसने वासू के होंठों को चूमा और धीरे से हाथ वासू के बदन पर फिराने लगा, उसके अंगों से खेलने लगा.


पर अनु की हालत बहुत ही खदाब थी, उस से रुक पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था इसलिए मन को थोड़ा मारते, बिल्कुल स्लो मोशन मे अंदर डालने लगा. 


उपर वासू के बदन से खेल रहा था और नीचे बिल्कुल हौले से वो अपना काम कर रहा था. धीरे धीरे कुछ ही पलों मे वासू को अपनी योनि मे लिंग के होने का एहसास मज़ा देने लगा. मस्ती फिर से जोरों पर थी. वासू की कमर खुद ही उपर की ओर पुश करने लगी वो भी बड़े बड़े झटकों मे. 


अनु भी आउट ऑफ कंट्रोल हुआ ... आहहें चारों ओर गूंजने लगी और स्पीड बिल्कुल बुलेट ट्रेन की तरह हो गयी. आलम ये था कि अब यदि दोनो मे से कोई एक रुकता तो दूसरा उसका खून कर देता.


उत्तेजना से भरी एक काम लीला उस जंगल मे चल रही थी. थोड़े ही देर मे, दोनो अपनी काम क्रिया से संतुष्ट होकर एक दूसरे के उपर निढाल लेट गये.


एक अलग ही शांति का प्रवाह दोनो के सरीर मे हो रहा था और दोनो बिल्कुल खुमारी मे एक दूसरे के उपर लेटे रहे. काफ़ी समय दोनो सुकून के साथ पड़े रहे वहीं उस जंगल मे.


अनु, वासू के सिर पर हाथ फेरते .... वासू उठो ना चलो


वासू.... अनु, अच्छा लग रहा है थोड़ी देर और


अनु.... बेबी हमे चलना चाहिए, प्लीज़ उठ जाओ हम खुले मे पड़े हैं


जैसे ही "खुले" शब्द वासू के कान मे पड़े, उसकी घंटी बजी दिमाग़ की, आँख घुमा कर चारों ओर देखी और हड़बड़ा कर उठी.


बिना कुछ बोले जल्दी से पानी मे गयी, बाल को बचा करा खुद को साफ की, अनु अब भी वासू को ही देख रहा था ... वासू का ध्यान जब अनु की ओर गया तो तेज चिल्लाते हुए...


"अनु दूसरी ऑर घुमो, और मुझे घूर्ना बंद करो"


अनु हंसते हुए .... बेबी अब हमारे बीच छिपाने लायक कुछ बचा कहाँ


वासू... तुम घूमते हो या मैं खून कर दूं तुम्हारा 


अनु हंसता हुआ दूसरी ओर घूम गया. वासू बाहर निकली पानी के, पर उसके पास अब दो समस्याएँ थी.... एक तो टवल नही था और दूसरी की उसके भींगे इन्नरवेअर ज़मीन पर थे और पूरा काम उसी के उपर हो गया तो वो पहन'ने के लायक नही बचे.


वासू खुद को कोस्ती .. "कि ये पागलपन मे कहाँ कौन सी घटना हो गयी" और इधर उधर देखने लगी. कुछ ना मिला तो वो अनु की टी-शर्ट ही अपने बदन को पोछने मे इस्तेमाल कर ली. और अपने कपड़े पहन कर रेडी हो गयी. वासू के कपड़े पहनते ही जल्दी ही अनु भी नहा धो कर रेडी हो गया. दिन ढलना शुरू हो चुका था, दोनो फिर वहाँ से निकले वापस वाराणसी के लिए.


वासू की अभी की मनोदशा थोड़ी सी लज्जा भरी और थोड़ा संतुष्टि भरी थी. जहाँ अभी कुछ देर पहले हुए अपने इस सेक्स के लिए खुद मे थोड़ी खिली-खिली महसूस कर रही थी वहीं दूसरी ओर जगह को देख कर उसे रोना आ गया कि "ये कहाँ मैने क्या कर दिया. मुझे खुद पर तो कंट्रोल रखना था"

खैर वासू अपनी ग़लती को एक प्यारी सी भूल समझ कर उसके एहसासों मे डूब गयी. अनु का साथ उसे अच्छा लग रहा था. आज इतने दिनो मे पहली बार कोई एमोशन्स थे अनु को लेकर बसु के दिल मे थे.


वासू, अनु के साथ वाराणसी शाम के 5 बजे तक पहुँचे. थोड़ी खिली थोड़ी खोई, आज उसे शॉपिंग मे भी मज़ा नही आ रहा था. बस कुछ ज़रूरत का समान खरीदा, खुद के हुलिए को परफ़ेक्ट किया और वापस आ गयी अपने घर.


घर आकर लेट गयी बिस्तर पर, आज हुई प्यारी सी घटना के बारे मे सोच कर मुस्कुराने लगी. वासू का दिन खुश्मय बीतने लगा, अनु का साथ उसे बहुत अच्छा लगने लगा था, वहीं अनु की चाहत भी वासू के प्रति कम ना हुई.


ऐसे ही एक शाम वाशु मोबाइल पर ऑनलाइन चेक कर रही थी, और अपनी रश्मि की प्रोफाइल से ऑनलाइन थी. इनबॉस मे कयि मेसेज जीत के थे वो एक-एक कर के पढ़ने लगी.


जैसे-जैसे वो मेसेज पढ़ती गयी, उसे बड़ा फन्नी लगा ये बंदा और वासू ने उसे रिप्लाइ मेसेज कर दिया ..."यू आर फन्नी"


मसेज करने के तुरंत बाद वासू के मोबाइल पर मेसेज आया .... थॅंक्स मिस, मुझे तो लगा आप का कभी रिप्लाइ नही आएगा.


रश्मि .... ह्म्‍म्म ! अभी तो आ गया


जीत... जी शुक्रिया आप की इस नज़रें इनायत का, वैसे तस्वीर की जो लड़की हैं वो आप ही हैं क्या ?


रश्मि.... हहे, आप जान कर पुच्छ रहे है ना, जानते नही ये हेरोइन है.


जीत... जी मन मे तो आप की ऐसी ही तस्वीर बनी है ना, आप बिल्कुल काजल अगरवाल की तरह होंगी.


रश्मि... लोल, पर मैं वैसी बिल्कुल भी नही आवरेज दिखती हूँ


जीत... वॉववव ! फिर तो मेरा काम बन गया


रश्मि... कैसा कम


जीत.... अर्रे वही कि आप अभी सिंगल होंगी और मेरा कोई तो चान्स बनता है.


रामी.... ओह्ह्ह हूओ फ्लर्टिंग, बट मुन्ना, मेरा पहले से बाय्फ्रेंड है


जीत.... नहियिइ, नहिी ... ये क्या हो गया .... वो किसी और, किसी और से मिलकर आ रहे है , फिर भी हम उनका इंतज़ार कर रहे हैं.


काफ़ी ज़ोर से हँसी वासू, जीत की इस अल्हड़ अदा पर, हस्ती हुई वासू ने रिप्लाइ दिया....


"हहे, बस करो, मैं हँसते हँसते कहीं गिर ना जाउ"


जीत.... आप क्या छत की बौंड्री पर बैठ कर मेसेज कर रही हैं क्या, जो गिर जाएँगी.


वासू... जी नही, ओके बाइ जीत जी, बाद मे बात करती हूँ.


जीत से बात कर के वासू काफ़ी हँसी, उसके लिए काफ़ी फन्नी था वो. वासू फिर लग गयी अपने कामो मे. दिन ख़ुसनूमा था वासू का कहीं कोई शिकन नही किसी बात की. अपनी जिंदगी से जो कल्पना की थी वो लगभग पूरी ही थी.


बात सिर्फ़ एक खेल से शुरू हुआ था वासू के लिए अनु का पुर्पिसल, पर अनु से वो एमोशनली अटॅच हो गयी. अनु भी काफ़ी केरिंग था और प्यार करता था वासू से. वासू का एक अंजान रीलेशन राकेश के साथ भी था जिसे वो कभी छोड़ नही पाई.


वासू ने दोनो को एक दूसरे के बारे मे बता दिया. राकेश जब अनु से मिला तो उसका चेहरा उतर गया क्योंकि अब तक राकेश इसी आशा मे था कि वासू कभी ना कभी तो उसे पसन्द करेगी ही, पर वो सहारा भी ना रहा.


राकेश उस दिन काफ़ी मायूस था, वासू, राकेश को देख कर समझी कि...... उसे इस बात का बुरा लगा कि मैने उस से पहले कही थी मेरा बाय्फ्रेंड पहले से है, और अनु की एंट्री इस वाकये के बाद हुई थी.


राकेश की मायूसी थोड़ी सी खाटकी, पर कुछ दिनो बाद जब एक दिन कॉलेज जाने के लिए राकेश के साथ गयी तो उसे वापस लौटाने के बदले अपने साथ कॉलेज मे ले आई. राकेश उसके साथ गया, दोनो कॉलेज के ग्राउंड मे बैठे थे, राकेश थोड़ा शांत-शांत सा था...


वासू... राकेश हद्द है, तुम तो मेरे दोस्त हो ना फिर अनु के लिए ये रियेक्शन क्यों.


राकेश... मैं थोड़े ना कोई हूँ, मैं तो बस एक ड्राइवर हूँ जो तुम्हे रोज कॉलेज ड्रॉप करता है, इस से ज़्यादा कुछ नही.


वासू... क्या बोला राकेश, ज़रा फिर से कहना


राकेश... यही कि मैं बस तुम्हे कॉलेज ड्रॉप करने वाला एक लड़का हूँ बस इस से ज़्यादा कुछ नही.


वासू... ठीक है तुम जा सकते हो फिर, कल से कोई ज़रूरत नही मुझे कॉलेज छोड़ने की.


वासू की बात सुनकर अपना रोया सा मुँह लेकर राकेश चला गया. राकेश की उदासी छिपि नही थी, पर यदि आप किसी को अपना मानो तो उसकी बात भी ज़्यादा चुभती है. राकेश की जलाने वाली बात पर वासू को काफ़ी गुस्सा था और गुस्से मे वो भी उसे जाने के लिए बोल दी.


पर जाते वक़्त का उसका चेहरा देख कर वासू को थोड़ा अफ़सोस भी हुआ. काफ़ी उखड़ी सी थी वासू, कॉलेज के बाद जब अनु उसे पिक करने आया तो अनु के साथ भी नही गयी वासू. 


वासू के अचानक ऐसा चेंज अनु के समझ से परे था. अनु भी परेशान हो गया कि आख़िर ऐसा हुआ क्या जो वासू इतनी भड़की थी, मैने तो कुछ किया भी नही.


तीन चार दिन ऐसे ही गुजर गये, पर वासू का बिहेवियर बदला ही रहा. अंत मे अनु ने ही वासू से पुछ दिया, आख़िर बात क्या है आज कल वो गुम्सुम क्यों रहती है, क्यों वो उसके साथ आना नही चाहती.


वासू ने बड़ा अजीब तरह का आन्सर दिया अनु को .... "कुछ नही जान, बस अब अच्छा नही लगता कोई मुझे कॉलेज ड्रॉप करे और पिक करे"


इतनी ही बात हुई और वासू वापस लौट गयी अपने घर. पर जाते जाते हिंट कर गयी कि ये बात राकेश से जुड़ी है. वैसे तो राकेश को लेकर कभी भी अनु के मन मे सेकेंड थॉट नही आया, लेकिन वो जानता था कि वासू का ये एक अच्छा दोस्त है जिसके लिए ये परेशान हो जाती है.


और पता भी क्यों ना हो, जब भी कभी अनु मज़ाक मे कुछ ऐसा बोलता तो वासू चिढ़ जाती, उसपर काफ़ी गुस्सा हो जाती थी. इसलिए अनु को अपनी सुखी प्यार भरे जीवन के लिए राकेश और वासू का कम्प्रोमाइज करवाना ज़रूरी था.


अनु ने राकेश को, सनडे को ठीक उसी समय इन्वाइट किया जब वासू उसके साथ होती है. राकेश जब रेस्टोरेंट मे आया तो वासू को देख कर थोड़ा मायूस हो गया, और वासू ने जब राकेश को देखी तो चिढ़ गयी, क्योंकि उस दिन की बात का गुस्सा आज भी था.


राकेश बैठ ते हुए पहले वासू को ही पुच्छ दिया ... "कैसी हो वासू"


वासू... मैं मरूं या जियुं, इस से किसी लड़के को क्या फ़र्क पड़ने वाला है


अनु... हद है दोनो इतने सालों को एक दूसरे को जानते हो फिर भी ऐसे लड़ रहे हो.


राकेश... लड़ थोड़े ना रही है, ये तो सच बोल रही है. मैं हूँ ही कौन जो सच बताती.


अनु... कैसा सच राकेश


राकेश ... कुछ नही अनु, जाने दो बात को


वासू... उस दिन ग्राउंड मे मैं वही बताने बैठी थी, पर तुमने उस से पहले अपनी सोच बता दी, भाड़ मे जाओ मुझे कोई मतलब नही.


इतना सुन'ने के बाद राकेश उठ कर जाने लगा, लेकिन अनु ने हाथ पकड़ कर रोक लिया राकेश का. वासू की बात सुनकर राकेश की आँखें छलक आई, और वो किसी से नज़र नही मिला पा रहा था.


एक बार फिर से वासू को वही फील हुआ, गुस्से मे कुछ भी बोल गयी और राकेश को उदास देख गिल्टी फील करना. अनु, वासू की ओर देखते ही बोल पड़ा...


"अनु बहुत ही रूड बोल गयी तुम, तुम्हे ऐसा नही बोलना था, अब बताओगी हुआ क्या है"


वासू ने फिर शुरू से बात बताई कि कैसे राकेश ने उसे प्रपोज किया, फिर राकेश से झूट कहना, अनु का मोहल्ले मे मिलना, झगड़ा और बाद मे अनु के साथ लव रीलेशन का राकेश को बताना.


अंदाज-ए-बयाँ कौन क्या करेगा. जो दर्द राकेश का था उसे समझे कौन. राकेश तो दुखी अपने प्यार को लूट जाने से था, पर बहाना तो झूट बोलने का कर रहा था अपनी मायूसी को लेकर.


बड़ी मुश्किल से ही सही पर दोनो का आपस मे कम्प्रोमाइज हुआ. सारी बातें क्लियर हुई, यहाँ तक कि वासू ने अपने व्यवहार के लिए सॉरी भी कही, उधर राकेश ने भी कम्प्रोमाइज कर लिया, झगड़े से नही अपने मन के रीलेशन से क्योंकि वासू अब उसकी जिंदगी नही थी.


धीरे धीरे सब नॉर्मल हो गया. राकेश के साथ क्या जुड़ाव था वासू का इसका जस्टिफिकेशन कर पाना काफ़ी मुश्किल होगा, क्योंकि वो दोस्त से बढ़कर था पर प्यार नही था, और ना ही वासू के अंदर कभी फीलिंग रही ऐसी.


वासू की बाहरी लाइफ मे कुल चार लोग थे, उसकी बेस्ट फ्रेंड नीमा, राकेश, उसका प्यार अनु जिसे वो दिल से चाहती थी और एक फन्नी बॉय जीत जो कि फ़ेसबुक पर मिला था.


वासू अपने फाइनल एअर मे थी, तब अनु को वाराणसी से निकल कर 4 साल को विदेश पढ़ने जाना था. और ये वही वक़्त था जब किस्मत वासू को देल्ही लेकर आई और उसे नॅशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ फेशन डेज़ाइनिंग देल्ही जाय्न करने पर मजबूर किया.
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12-27-2018, 01:41 AM,
#13
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
वासू तो कहीं नही जाना चाहती थी पर अनु के इन्सिस्ट करने पर वासू मान गयी, अड्मिशन की सारी रेस्पोंसिबिलिटी अनु ने अपने ज़िम्मे लिया और मेनेजमेंट कोटा पर अड्मिशन दिलवाया तोड़ा जुगाड़ लगाकर.


वासू अपने बीते दिनो की यादें समेटे वाराणसी से देल्ही की ओर निकली अपने एक अंजान से सफ़र पर.

सपने जो आँखों ने देखे थे वो सच होने जा रहे थे. श्रयलीन राजधानी एक्सप्रेस मे, अपने एक प्यारे दोस्त के साथ बैठी बस अपने आने वाले दिनो के बारे मे सोच रही थी, और उसकी कल्पना कर रही थी.


ईन्दोर के एक बिज़्नेसमॅन की बेटी, जो हाइ-सोसाइटी से बिलॉंग करती थी, काफ़ी इनडिपेंडेंट और कॉन्फिडेंट लड़की थी. अपने माँ बाप की एकलौती बेटी और स्वाभाव से काफ़ी चंचल. माँ बाप की एकलौती बेटी थी इसलिए स्वाभाव से थोड़ा जिद्दी और थोड़ी घमंडी भी थी.


नैन नक्श कभी आकर्षित करने वाले थे उसके और श्रयलीन के नखरे हज़ार. खाने से लेकर ड्रेस हर चीज़ मे काफ़ी चूज़ी थी शायद इसलिए अब तक कोई इसे मिस्टर परफ़ेक्ट नही मिला था. खुले विचार की थी और फॅशन डेज़ाइनिंग इसका सपना.


श्रयलीन का सपना था कि फेशन डेज़ाइनिंग मे इसका भी अपना एक नाम हो, बेरी-बेरी ब्रॅंड्स की कंप्रोमाइज़ के ऑफर्स भी इसके पास आए.


श्रयलीन का ये सपना शुरू उसके कॉलेज के दिनो से हुआ. 12थ पास कर चुकी थी और ग्रॅजुयेशन के लिए सारे दोस्त एक ही कॉलेज मे दाखिला करवा चुके थे. पहला दिन श्रयलीन के कॉलेज का.


"उफ़फ्फ़ ! क्या पहना जाए, स्कर्ट-टॉप, या जीन्स पहनु या फॉरमल सा कुछ"


पिच्छले आधे घंटे से श्रयलीन चूज़ नही कर पा रही थी कि क्या पहन कर जाए. तभी हॉल से आवाज़ आई ....


"सैली .... सैली ... आज ही कॉलेज जाना है, जल्दी करो"


श्रयलीन के स्कूल का दोस्त जो घर के ही पास रहता था, अंकित ... उसे आवाज़ देते हुए.


श्रयलीन.... रुक जा मोटू कितनी जल्दी रहती है तुझे कहीं भी जाने की, तैयार तो हो जाने दे


अंकित.... मैं तेरा खून कर दूँगा यदि कॉलेज मे तूने मुझे मोटू कहा तो, और तू क्या शादी मे जा रही है जो इतना समय लगा रही है.


श्रयलीन फाइनली एक जीन्स और टॉप अपने उपर डाल चुकी थी और तैयार होकर बाहर आई, अब तक अंकित के बुलाने के 15 मिनट हो चुके थे. अंकित फूला सा मुँह लेकर सोफे पर इंतज़ार कर रहा था.


"हो गया चल"


अंकित... ना ना, अभी तो मेक-अप बंकी है वो भी कर ले, और ये क्या हाथों मे नेल पोलिश नही लगाई ये तो रह ही गया.


श्रयलीन ने अपने नाख़ून को देखी और अपना हाथ अपने माथे पर मारती .. ओह्ह्ह्ह ! ये तो रह ही गया, थॅंक्स मोटू रुक मैं अभी आई.


अंकित पूरा चिढ़ गया, "अन्ह्ह्ह्ह ! पागल लड़की" करते बैठ गया सोफे पर, श्रयलीन नेल पोलिश लगा कर वापस आई. इस बार अंकित ने कुछ नही बोला, अपने मुँह को बंद ही रखने मे भलाई समझा.


दोनो बाइक पर चल दिए अपने नये कॉलेज की तरफ जहाँ इनके स्कूल के कुछ और दोस्तों ने भी आदमिशन लिया था.


"अच्छा सुन मोटू आज पहला दिन है, हमारी रगिन्ग तो होगी ना, बहुत तैयारियाँ कर रखी है रगिन्ग के लिए"


अंकित... तू क्या पागल है, रगिन्ग की तैयारी, हद है यार, ऐसा कुछ नही होने वाला है. सरकार. ने बॅन किया है रगिन्ग, और मैने पता कर लिया है उस कॉलेज मे ऐसा कुछ नही होता.


श्रयलीन.... क्यों ? आख़िर क्यों बॅन किया सरकार. ने, बच्चों की खुशी नही देखी जाती. कितने सारे सपने सजाए थे, कि फिल्मों की तरह सीनियर्स हमारी रगिन्ग लेंगे. मुझे कुछ उल्टा कहेंगे, मैं गुस्से मे आ जाउन्गी, फिर तुम लोगों की लड़ाई होगी, कॉलेज दो ग्रूप मे बँट जाएगा, आए दिन कोल्ड वॉर होता रहेगा, कभी कभी मारा-मारी भी.


अंकित... पागल, चुप हो जा, तूने क्या दंगे करने की ठानी है. इतनी लंबी प्लॅनिंग. तू ना एक काम कर, उस पोल के पास मैं बाइक रोकता हूँ, तू ना उसपे अपना सिर पटक शायद कुछ अकल आ जाए. ये तो मार करवाने के ख़याल से कॉलेज जा रही है.


श्रयलीन... चुप कर मोटू मेरे अरमानो पर यहाँ पानी फिर गया और तुझे मज़ाक सूझ रहा है. रोक जल्दी, बाइक रोक.


अंकित... पर हुआ क्या जो बाइक रोकने के लिए कह रही है.


श्रयलन.... हुआ कुछ नही बस बाइक रोक अभी, नही तो मैं कूद जाउन्गी.


अंकित, श्रयलीन को कोस्ता अपनी बाइक रोका...


श्रयलन.... हॅट तू ज़रा साइड


अंकित चुप-चाप साइड हो गया, श्रयलीन जा कर आगे की सीट पर बैठ गयी और अंकित को पिछे बैठने के लिए बोली.


अंकित.... पागल हो गयी तू सैली, फिर तुझे भूत चढ़ा बाइक चलाने का. पिच्छली बार जो गिराई थी वो कम नही था क्या, जो फिर मारने पर लगी है, उतर जल्दी तू नही चलाएगी बाइक.


श्रयलन.... नही मैने बोल दिया बस, मैं ही चलाउन्गी, तू पिछे बैठ. डर मत मैने बहुत प्रॅक्टिसस की है. 


अंकित.... ठीक है तू जा बाइक से, मैं ऑटो से आ जाउन्गा. रास्ते मे कहीं गिरी-पड़ी मिली तो अड्मिट भी करवा दूँगा, लेकिन मैं बाइक पर नही बैठूँगा.


श्रयलन.... फटतू, मोटू. अब बैठता है बाइक पर या मैं आंटी को बता दूं, कि तू सिगरेट भी पीने लगा है.


हा-ना, हाँ-ना होते होते अंत मे अंकित को पिछे बैठना ही पड़ा. भगवान का नाम लेकर अंकित पिछे बैठ गया और श्रयलीन बाइक ड्राइव करने लगी. जान बुझ कर काफ़ी तेज अक्सीलेटर ले कर चला रही थी, बाइक की स्पीड देख कर अंकित बस भगवान का ही नाम ले रहा था.


सुरक्षित दोनो कॉलेज पहुँचे, गाड़ी पार्किंग मे लगी और कुछ स्टूडेंट्स ने जब ये नज़ारा देखा तो अंकित को देख कर हंस रहे थे. दोनो वहाँ से प्रिन्सिपल ऑफीस गये और बी.कॉम फर्स्ट एअर की क्लास और टाइम शेड्यूल का पता कर, अपने क्लास की ओर चले गये.


क्लास मे पहुँचते ही दोनो का स्वागत उनके तीन और मित्रों ने किया. विवेक, सीमा और अर्चना ये तीन और दोस्त थे जो इनके साथ थे स्कूल के दिनो मे थे.


श्रयलीन पूरे ग्रूप से... यार बोरिंग जगह है, बड़ा ठंडा महॉल है इस कॉलेज का


अंकित... ये पागल फिर शुरू हो गयी


सीमा... चुप कर मोटू, क्या हुआ सैली आज पहले दिन ही इतना अब्ज़र्वेशन कॉलेज का


अंकित.... सिर फोड़ दूँगा, यदि किसी ने मुझे मोटू कहा तो. और तू खुद की तो हालत देख हवा महल, ऐसा लगता है जैसे हॅंगर मे कपड़ा टंगा है.


विवेक... पागलों, आते ही शुरू ना हो जाओ, सुन तो लो सैली बोल क्या रही है.


अर्चना.... मतलब क्या है सैली, कहना क्या चाह रही है


श्रयलीन... अर्रे तुम सब भी ना ज़रा चुप करो. यार सच ही तो कही ये वैसा कॉलेज नही जैसा हम सोच कर आए थे.


सब ने जब ये सुना तो सबके दिमाग़ मे बस यही ख्याल आया कि इस कॉलेज का रेप्युटेशन ज़्यादा अच्छा नही, और सब की नज़रें श्रयलीन पर टिक गयी...


श्रयलीन अपनी बात पूरी करती....

"ना तो यहाँ एक कपल दिखा और ना ही यहाँ हमारा किसी ने रगिन्ग लिया, ये कैसे कॉलेज मे अड्मिशन दिला दिया तुम लोगों ने"


श्रयलीन की बातें सुन'ने के बाद सबने खूब दुतकारा, और इतना कह कर माथा पीट लिया सबने ... "सैली तेरे ये पागल ख़यालात"


कॉलेज का पहला दिन, सब काफ़ी उत्साहित थे. ये ऐसा वक़्त था जब यूथ अपने आगे के पड़ाव की ओर बढ़ते हैं, और कॉलेज की लाइफ जीते हैं. पहला एअर मे अक्सर स्टूडेंट अपने लड़कपन मे ही रहते हैं, कॅरियर का ख्याल तो दूसरे एअर या उसके बाद आता है.


ये पाँचों भी अपने कॉलेज का पहला दिन एंजाय कर रहे थे. इनकी तरह कयि और स्टूडेंट थे जिन्होने अपने मित्रों के साथ अड्मिशन लिया था, वो सब भी कॅंटीन और कॉलेज को एंजाय कर रहे थे. कॉलेज का पहला एअर और पहला दिन एक प्यारा सा अनुभव था सब के लिए.


पाँचो दोस्तो मे चार पहले से आपस मे बँधे थे.... दोनो "ए" अपने राशि के हिसाब से इज़हार-ए-मोहब्बत कर चुके थे, यानी कि अंकित और अर्चना, विवेक और सीमा का भी लव बाउंड हो गया था और सब अधिकारिक रूप सब से गर्लफ्रेंड/बाय्फ्रेंड घोषित थे. रह गयी थी तो बस श्रयलीन.


ऐसा नही है कि श्रयलीन पर कोई फिदा नही हुआ या श्रयलीन का कोई बाय्फ्रेंड नही बना. वास्तविकता ये थी कि जितनी शार्लीन लड़को को आकर्षित करती थी उतना कसिस किसी के पास नही था. एक खूबसूरत हुस्न की मल्लिका.


कई प्रपोज़ल आए श्रयलीन के पास, उसके स्कूल के दिनो मे जब वो 11थ, 12थ मे थी. कितनो को सॅंडल से जबाव दी, तो फॅंटेसी मे दो तीन को हाँ भी कही .. केवल इस ख्याल से कि चलो एक बाय्फ्रेंड मेरा भी हो. लेकिन कोई भी रीलेशन 5 दिन से ज़्यादा नही टिका, कारण था श्रयलीन के तेवर, जो किसी से संभले ही नही.


अब तक जिंदगी ने उसे सब कुछ दिया था, माँ बाप का प्यार, काफ़ी अच्छे दोस्त, सिर उठा कर जीने का तरीका, एक व्हौक हृदय जिसमे प्यार था अपनो के लिए और उसके लिए कुछ भी ग़लत ना होते देखने की चाह. पर कहते है ना कोई पूर्ण नही होता, वही हाल श्रयलीन का भी था. श्रयलीन की सारी खूबियाँ उसके कुछ अव-गुण के कारण बिल्कुल पिछे रह जाती थी.


उसका गुस्सा, किसी की बात को ना सुन'ना, नतीजा गलतफहमी और उस ग़लतफहमी मे कुछ भी बोल देना. सुन'ना उसे बिल्कुल भी पसंद नही था, हां दोस्तों मे थोडा बर्दास्त कर लेती, लेकिन थोड़ा ही, ज़्यादा होने पर फिर तो शामत आई.


हर दिन कुछ नया नही होता, घटनाए रोज-रोज नही होती, और आप के हर ग़लत अव-गुण को किसी ना किसी दिन जबाव ज़रूर मिलता है. श्रयलीन का गुस्सा भरा तेवर, और ना बर्दास्त कर पाने वाली भाव किसी से छिपि नही थी, पर जब कभी भी कोई मसला होता तो उसके दोस्त और परिवार संभाल लेते थे. लेकिन आने वाला वक़्त किसने देखा, जिंदगी कब किस मोड़ पर उलझ जाए.


मार्च 2008, थियेटर मे क्राइम थ्रिल रिलीस हुई थी "रेस", और सारे दोस्तों का प्रोग्राम बना इस पिक्चर को देखा जाए. पीवीआर मे सबकी बुकिंग हुई और कॉलेज से सारे दोस्त उस पिक्चर देखने गये. 


सभी जोड़े एक वर्गीकरण श्रेणी मे बैठे थे, अंकित, उसके दाहिने अर्चना फिर विवेक और सीमा और सबसे आखरी मे श्रयलीन. श्रयलीन को मूवी के दौरान चिट-चॅट पसंद नही थी, इसलिए वो आखरी मे बैठी थी, बाकी दोस्त मूवी को लेकर आपस मे विचार-विमर्श वहीं पर करते थे. 


श्रयलीन के साइड से दो लड़के बैठे थे, और फिर रो ख़तम. मूवी चल रही थी और सारे दोस्त एंजाय कर रहे थे, तभी मूवी मे एक हॉट सॉंग प्रदर्शित हुआ, बिपसा वासू और सैफ अली ख़ान का, बगल के दोनो लड़के मे से एक ने हूटिंग सुरू कर दी, हूटिंग इतनी ज़ोर की थी और इनडाइरेक्ट शब्दों से भरी की श्रयलीन चिढ़ गयी.


खैर, उस समय तो चुप ही रही पर मूवी के एंड मे जब सब निकले तो श्रयलीन ठीक उन दोनो के पिछे थी और बाकी के उसके दोस्त आगे बीच मे दोनो लड़के ... सिनिमा हॉल से बाहर निकलते ही श्रयलीन..... "हेलो, मिस्टर ज़रा सुनिए"


दोनो लड़के पिछे मुड़े, एक काफ़ी सोफिस्टिकाटेड लड़की को यूँ पुकारते सुना, फिर आगे मूड गये, उन्हे लगा शायद किसी और को पुकार रही है .... श्रयलीन, इस बार थोड़ी तेज आवाज़ मे बोली ...... "तुम दोनो से ही कह रही हूँ"


इस बार दोनो को वाकई लगा, इतनी मस्त लड़की हमे ही पुकार रही है, दोनो अंदर ही अंदर काफ़ी खुश हुए, तेज आवाज़ ने श्रयलीन के दोस्तों का भी ध्यान अपनी ओर खींचा.


स्थिति कुछ ऐसी थी कि, श्रयलीन खड़ी थी, उसके सामने दोनो लड़के खड़े थे और पिछे से चारो दोस्त शरलीन की ओर मुड़े, देखने लगे मामला क्या है.


दोनो मे से एक लड़के ने श्रयलीन की बातों का जबाव देते हुए कहा .... हेलो मिस, आप ने मुझ से कुछ कहा क्या ?


श्रयलीन.... हां गटर छाप, तुम से ही कही


ऐसी भाषा, वो भी इतनी सुंदर लड़की के शब्दो मे, बेज़्जती सी महसूस हुई उस लड़के को, वो तो आश्चर्य मे अपनी आँखे बड़ी किए, समझने की कोशिस करने लगा कि आख़िर हुआ क्या है, मामला क्या है...


श्रयलीन अपनी बातों को और तूल देती और उसे आगे बढ़ती हुई कहने लगी....


"ठर्कि कहीं के, घर मे लोगों ने संस्कार ही नही दिया हैं, कमिने, ऐसे सीन एंजाय कर रहे थे जैसे बिपासा और सैफ के साथ ये भी वहाँ माजूद हो. शरम नही आती तुम को, इस तरह से हूटिंग करते, ये भी नही देखते कि तुम्हारी वजह से दूसरे डिस्ट्रब होते हैं"


अंकित.... सैली, अब क्या हुआ, कुछ किया क्या इसने, बोल तो अभी बताता हूँ


इतना बोल कर अंकित ने उस लड़के का कॉलर पकड़ लिया जो खड़ा सुन रहा था, और उस पर अपना गुस्सा दिखाते हुए.... हरामजादे, तू सिनिमा हॉल लड़की छेड़ने आता है, रुक तुझे मैं अभी बताता हूँ.


इतनी बातें हुई ही थी .. कि साथ खड़ा उस लड़के का दूसरे साथी ने अंकित को धक्का देकर हटाया, और काफ़ी गुस्से मे बोलते हुए ..... सुन ओये, जो तू कर रहा है ना उसमे बहुत बच्चा है, कोई चुप है इसका मतलब वो ग़लत नही, लड़की के सामने हीरो मत बन नही तो औकात सामने ला दूँगा. ये हमारी सराफ़त है कि छोड़ रहा हूँ नही तो इस बदतमीज़ी के लिए तुम्हारे हाथ तोड़ देता और जबड़े की बत्तीसी बाहर लाकर उसी टूटे हाथ मे थमा देता.
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12-27-2018, 01:42 AM,
#14
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
महॉल गरम हो रहा था, गहमा-गहमी बढ़ रही थी, लोग जुटने लगे थे उन सब के पास. विवेक ने अपना विवेक लगाते हुए बीच बचाव मे आया, अंकित को शांत किया, उस लड़के से भी शांत रहने की इलतज़ा की, फिर श्रयलीन से "बात क्या हुई" पुछ्ने लगा.


श्रयलीन.... अंकित शांत हो जा, मुझे कुछ करता तो, मैं इसे जिंदा ना जला दूं. मैं इनके ठीक बगल मे बैठी पिक्चर देख रही थी और ये गंदे-गंदे कॉमेंट कर रहा था (उसी पहले लड़के की ओर इशारा करती हुई बोली जिसने श्रयलीन को पहले टोका था). संस्कारहीन कहीं के, माँ बाप ने संस्कार की नही दिया.


इतना कह कर श्रयलीन गुस्से मे आगे बढ़ गयी, और सब थोड़े थोड़े धुत्कार्ते हुए, दोनो को निकाल ले गये. और दोनो बेचारे खड़े ये सोचने मे लगे थे कि बिना बात के एक लड़की और जमा इतने सारे लोग बेज़्जती कर के चले गये .. साला करेक्टर और माँ-बाप को भी घसीट दिया. 


बात आगे ना बढ़े, भीड़ इकट्ठी हो गयी थी, इसलिए दोनो ने सुन लिया बात, लेकिन अंदर ही अंदर पूरा सुलग चुके थे. सुलगे भी क्यों ना, क्योंकि शार्यलन जिन दो लड़को को सुनना चाहती थी वो तो कोई और थे, जो मोविए ख़तम होते ही भीड़ के साथ निकले, और श्रयलीन ने जिसे ट्रेस किया, वो तो कोई और थे.


दोनो ज़िल्लत सी महसूस करते हुए, अपना छोटा सा मुँह लिए मल्टिपलेक्स से निकल आए, पर रह-रह कर दोनो को, श्रयलीन द्वारा की गयी भरी भीड़ मे बेज़्जती याद आती रही.

श्रयलीन बड़ी भड़की हुई गुस्से मे तेज़ी से निकली थी. खैर, सारे दोस्त अपनी योजना के मुताबिक मूवी के बाद डिन्नर करने रेस्टोरेंट पहुँचे. लेकिन श्रयलीन के भड़के भाव-दशा (मूड) को देख कर सब शांत बैठे, एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे.


विवेक.... सैली, अंकित, तुम दोनो ने जो वहाँ किया वो बिल्कुल ग़लत था. तुम दोनो को ऐसा नही करना चाहिया था.


अंकित.... यार मुझे लगा उसने सैली के साथ कोई बदतमीज़ी किया है, इसलिए यार थोड़ा गुस्सा मे आ गया.


विवेक.... बिना बात जाने किसी का गिरेवान यूँ सारे आम पकड़ लेना, यदि उस लड़के की जगह किसी ने तुम्हारा कॉलर पकड़ा होता तो तुम्हे कैसा लगता.


श्रयलीन..... अब प्लीज़, तुम दोनो बंद करोगे उन नीच लड़कों की बात करना.


विवेक.... सैली, तुम्हे अंदाज़ा भी, है कि तुम ने पूरी भीड़ के सामने उसे उल्टा-पुल्टा बोल आई हो. अकेले मे किसी को बोली गयी बात और वही बात भीड़ मे बोलना, दोनो मे बहुत अंतर होता है. अर्रे वो तो अजनबी था, उसकी जगह तुम्हारा कोई अपना होता और उसे तुम ऐसे बोलती तब देखती. महफ़िल की बेज़्जती तो कोई अपना नही बर्दास्त कर पता तुम दूसरों को सुना आई.


विवेक की बातों से सॉफ झलक रहा था, कि वो श्रयलीन की इस बचकाना हरकत से काफ़ी नाराज़ था, और झुंझलाहट साफ उसकी भाषा से समझ मे आ रही थी. पर श्रयलीन तो श्रयलीन ठहरी, भला वो कैसे ग़लत हो सकती है.


श्रयलीन..... ग़लत और मैं, माइ फुट, मुझे कोई डिन्नर नही करना तुम लोगों के साथ.


श्रयलीन घर लौटने के लिए बड़ी गुस्से मे मे खड़ी हो गयी, काफ़ी मशक्कत और मनाने के बाद श्रयलीन मानी, पर विवेक के दिमाग़ मे अब भी ये बात थी, कि श्रयलीन ग़लत है. मूवी मे हूटिंग और कॉमेंट करना आम बात है, और कोई इश्यू था तो यूँ सरे-आम किसी को बेज़्जत करना ठीक नही.



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इधर मल्टिपलेक्स मे श्रयलीन और उसके दोस्तों के निकलने के बाद......



दोनो लड़के वहीं खड़े इस आए तूफान के बड़े मे सोच रहे थे थे. जिस लड़के को सैली ने अपने प्यारे शब्दों से उसका मान बढ़ाया था वो गौरव था, और उसका जो उसके साथ खड़ा था, गौरव का हमदर्द, बचपन का साथी नैन.


गौरव ज़िल्लत और गुस्से से बस इसी घटना के बारे मे सोच रहा था, भरी भीड़ मे उसकी बेज़्जती की गयी थी. रह-रह कर सैली की बातें चुभ रही थी उसे... गौरव गुस्से से अपनी लाल आँखें करते हुए अपने दोस्त से ......


"नेनू, उस कमीनी ने भरी सभा मे मेरा चीर हरण कर दिया. मुझ से बर्दास्त नही हो रहा है अब. मुझे कुछ करने का मन कर रहा है"


नेनू, अपने दोस्त की बात पर एक बनावटी गुस्सा बनाते हुए ...... सही कहा क्रेज़ीबॉय (गौरव का निक नेम). खून का बदला खून, और इज़्ज़त का बदला इज़्ज़त. हम बदला लेंगे, उस लड़की ने भरी महफ़िल मे तुम्हारा चीर हरण किया, तुम भी उसका चीर हरण कर दो. गो क्रेज़ी बॉय गो. क्रेज़ी होना तो बनता है.


गौरव गुस्से से आग बाबूला होते.... नाइनुउऊउउ, मुझे कोई बेज़्जत कर के चली गयी, और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है. दिमाग़ की दही मत कर. 


तेज सांसो और गुर्राती आँखों से गौरव ने अपनी बात रखी. गौरव का गुस्सा लाज़मी था.


नेनू..... वाहह ! दही जम गयी दिमाग़ मे, चल उसका मट्ठा बनाते हैं. चिल कर क्रेज़ी बॉय. चल तेरा मुगालत-ए-गम मिटाते हैं और दो पॅक मार के आते हैं.


गौरव.... मुझे कहीं नही जाना, मुझे उस से अपने अपमान का बदला लेना है.


नेनू.... हां, बदला ले लेंगे भाई, और किसी ने भरी सभा मे हमारे करेक्टर को उछाला है, उसे हम यूँ ही नही छोड़ सकते. वैसे ये बता, उसे इतनी भीड़ मे तू ही क्यों दिखा, कहीं इंटेरवेल मे तो तूने कुछ नही किया था.


गौरव.... मज़े लेना बंद कर नेनू नही तो तेरा ही सिर फोड़ दूँगा. मुझे बस अब उस लड़की से बदला लेना है, उसे सबक सिखाना है.


नेनू.... हां मेरे भाई, उसे हम ज़रूर सबक सिखाएँगे. लेकिन तू गुस्से मे अपना खून जलाएगा तो ऐसा लगेगा कि वो तो खुद है अपनी लाइफ मे मस्त है, और उसके बारे मे सोच-सोच कर तुम खुद से ही बदला ले रहे हो.



नेनू की बात सुन गौरव कुछ नही बोला. ईव्निंग शो देख कर 9पीएम बज चुके थे. वहीं से दोनो पहुँचे मैखाने. गुस्से मे गौरव ने ना जाने कितने पॅक लगा दिए, उसे होश कहाँ, नेनू बस एक पॅक को ही हाथ मे रखे उसका साथ निभा रहा था, क्योंकि उसे पता था ये टल्ली होगा और ले जाने की ज़िम्मेदारी नेनू पर ही आने वाली है.



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सामान्य रूप से ही जिंदगी सबकी चलती रही. सैली, उसका ग्रूप और कॉलेज लाइफ. सैली अपनी दिनचर्या मे मस्त हो गयी, पर उसे क्या पता था कि कोई भूत की तरह उसके पिछे पड़ने वाला है.


कुछ दिनो बाद आख़िर वही हुआ जो नही होना था, गौरव को श्रयलीन दिखी. रोजाना एक ही रास्ते से अंकित और श्रयलीन कॉलेज जाते थे, गौरव भी उसी रास्ते पर घूम रहा था और उसकी नज़र पड़ी श्रयलीन पर.


गौरव उसे देख कर बौखला गया और तुरंत फोन लगाया नेनू को....


नेनू... हां क्रेज़ी बॉय कोई खास बात जो सुबह-सुबह फोन लगाए.


गौरव...... विजानगर रोड आ जा जल्दी बिना कोई समय गवाए


नेनू.... यार, मुझ से सुबह ना उठा जाएगा, जानता तो है मैं लेट सोता हूँ. क्या हो गया जो मेरी नींद खराब कर रहा है.


गौरव... वो दिखी मुझे विजयनगर रोड पर...


नेनू.... तू अब सड़कों पर लड़कियाँ भी ताड़ने लगा. लड़का जवान हो गया. अब तो आना ही पड़ेगा. अभी आया मैं ... वूहूऊओ


गौरव...... आररीए वो बात .... लेकिन तबतक नेनू का फोन फोन काट हो चुका था.


दोनो मिले विजयनगर चौराहे पर, चाय की दुकान मे बैठा गौरव, उसके कुछ और होस्टल के साथी और नेनू. सब चाय की चुस्कियाँ लेकर उस दिन की हुई घटनाओं पर लोटपोट हो रहे थे. मज़ाक के बाद सारे दोस्तों ने फिर एक फ़ैसला लिया ...


"इस नकचाढ़ि कमीनी को हम सबक सीखा कर रहेंगे"


ऐसा बोले जैसे कोई फौज की टुकड़ी, अपने मिशन पर निकली हो. सारे ख़ुफ़िया एजेंट्स को एक ही काम के पिछे लगाया गया ... मिशन सैली के रूटीन का पता लगाना.

चाय की टॅपाडी से सब एक विजन के साथ निकले, रोज सुबह जमघट होती रही विजयनागर चोराहे पर, सैली पर नज़र रखी जाने लगी. लड़के अदला-बदली मे रोज पिछा करते, कभी कोई एक पिछे जाता तो कभी दूसरा.


आख़िर जाते भी क्यों ना, इंजिनियरिंग कॉलेज के स्टूडेंट थे, और एम.प के इंजिनियरिंग स्टूडेंट यूनियन का तो नाम चलता था. सारा डेटा रेडी था अगले 10 दिनो मे. कहाँ रहती थी, कौन-कौन से दोस्त हैं उनके, कहाँ-कहाँ जाना पसंद है. लगभग पूरा बायो-डेटा, फोन नंबर और सोशियल प्रोफाइल के साथ रेडी था.


इधर इन सब बातों से अंजान सैली अपनी दुनिया मे मस्त थी, ना तो उसे ज़रा भनक लगी इस पिछा करने का, और ना ही कभी उसने गौर किया, बस अपनी ही दुनिया मे मस्त थी. 


सारी डीटेल पहुँची नेनू और गौरव के पास...


नेनू.... क्रेज़ीबॉय, टाइम टू मेक सम क्रेज़ीयेस्ट


गौरव.... पर हम करेंगे क्या


नेनू.... चीर-हरण भरी सभा मे.......


गौरव..... ऊऊऊऊऊऊ, तेरा दिमाग़ तो सही है ना, तुझ से ये उम्मीद नही थी. तू पूरा पागल हो गया है.

नेनू.... मुँह तो बंद करो अंकल और तेरे लिए कुछ भी भाई, तेरा चीर हरण हुआ भरी सभा मे, अब उसका भी होगा ....


सारे लड़के एक साथ हूटिंग करते ... ईईईई, ईईईई, चीर हरण चीर हरण, क्रेज़ी बॉय अब बनेगा दुशाशन.... चीर हरण .... चीर हरण ..


गौरव.... जाहीलों, ऐसा बोलते शरम नही आती. किसी लड़की के साथ ऐसा व्यवहार. हॅट, मुझे कोई बदला, वदला नही लेना. और यदि किसी ने कोई उल्टी हरकत किया तो सोच लेना मैं ही ज़हर खा लूँगा. फिर मेरे मरने के बाद जो जी मे आए करना.


सारे मित्र हँसने लगे गौरव की बात पर. गौरव अपनी बात बोलकर, सबसे नाराज़गी दिखाते वहाँ से उठा कर कोने मे खड़ा हो गया.


नेनू उसके कंधे पर हाथ रखे.... पागल है क्या गौरव, कुछ भी उल्टा समझता है. इतनी सेन्स हम मे भी है. तेरे मे अकल है की नही. अर्रे डफर, चीर हरण का मतलब हम भी कुछ ऐसा करेंगे जिस से उसे भरी महफ़िल मे बेज़्जती महसूस हो.


गौरव.... पर वो बेज़्जती भी तुम लोग एक लड़की पर अभद्र तरीके का व्यंग करके ही करोगे.


नानउ.... क्रेज़ी बॉय, इतने भी गिरे नही कि ऐसा व्यवहार करें, पर जो भी करेंगे वो दायरे मे रह कर करेंगे विस्वास रखो. 


गौरव... नेनू, नेनू..


नानउ.... हां बोल..


गौरव.... तो पागल रुका क्यों है, जल्दी से चलो बदला पूरा करते हैं ....


फिर से सारे लड़के एक साथ हूटिंग करते हुए..... ईईईईई, ईईईई .. हम बदला लेंगे, ईईई ईईईईई.


इतना तेज शोर हॉस्टिल मे, सुनकर वॉर्डन इनके कमरे मे आते हुए ..... यहाँ तुम मे से किसी की शादी हो रही है, जो पागलों की तरह हंगामा कर रहे हो, अब अगर ज़रा भी आवाज़ आई तो उठा कर बाहर फेंक दूँगा तुम्हे नेनू, मैं जानता हूँ सब तुम्हारा ही किया कराया है.


सारे लड़के मुँह पर ताला लगाए, बस नेनू को देख रहे थे, और अंदर ही अंदर हंस रहे थे. क्योंकि कोई भी घटना हो, आख़िर सबका इलज़ाम उसी के सिर जो आता था. वॉर्डन के जाते ही, सब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे.


नेनू.... भागो कमीनो, अगली बार जिसका मॅटर होगा, मीटिंग उसी के कमरे मे होगी. साले किसी दिन तुम सब के चक्कर मे मैं ही ना बाहर हो जाउ.


सारे लड़के ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे. कुछ भी हो मीटिंग तो होनी थी नेनू के ही कमरे मे, इसलिए मीटिंग दबी आवाज़ मे ही सही, पर होती रही रही वहीं. और आख़िर सैली को जलील करने का मास्टर आइडिया आ ही गया नेनू के दिमाग़ मे... और जैसे ही योजना का खुलासा हुआ ... सारे लड़के ...


वूहूऊऊऊओ, वूहूऊऊऊओ .... चलो पार्टी करें, चलो पार्टी करें.


निकल लिया नेनू कमरे से बिल्कुल, जैसे ही लड़कों का शोर हुआ और इस बार बलि का बकरा बना गौरव, क्योंकि दूसरा हाइलाइटेड वही बच्चा था. 


अगले दिन सुबह-सुबह, जैसे ही अंकित और सैली विजयनगर चौराहे से आगे निकले, हॉस्टिल के चार लड़के, अचानक से सड़क पर दौड़ गये. तकरीबन 10 फिट की दूरी पर हुई इस हलचल से अंकित का बाइक अन्बेलेन्स हो गया. दिमाग़ की बत्ती गुल हो गयी. जितनी तेज़ी से हो सकता था अंकित ब्रेक लगाया.


इधर प्लॅनिंग के तहत, बाइक की स्पीड जब धीमी हो चुकी हो, तब एक लड़के को बाइक के सामने आना था और एक धक्का खाना था बाइक से. मान'ना पड़ेगा काफ़ी यूनिटी थी, तभी उन मे से एक ये हिम्मत कर गया. और धक्का खा कर सड़क पर गिर गया.


इधर तेज ब्रेक लगाने से सैली लगभग अंकित के उपर आ गयी थी, और अंकित पूरा अनबॅलेन्स हुआ, जिस कारण से बाइक नीचे गिर गयी, पर तबतक सैली बाइक के साथ ना गिर कर, नीचे उतर चुकी थी.
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12-27-2018, 01:42 AM,
#15
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
अब वहाँ का महॉल ये था, एक लड़का चोट खाया नीचे पड़ा, अंकित बाइक के साथ गिरा था और सैली बगल मे खड़ी, अपनी हताश मे बढ़ी साँसों को काबू मे करती दिख रही थी, कि हो क्या गया.


गौरव मन मार कर रह गया, गिरना सैली को भी था पर गिरी नही बच गयी. नेनू और गौरव दोनो दूर से बस देख रहे थे, प्लान का 25% पार्ट फैल हो गया था, खैर अब बारी थी नेक्स्ट स्टेप की.


जैसे ही लड़के को टक्कर लगी, 20/25 इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स ने दोनो को घेर लिया. नेनू और गौरव इस समय बिल्कुल पिक्चर से बाहर थे और पूरी प्लॅनिंग एक्सेक्यूशन उनके एक दोस्त अमित के हाथ मे थी.


सब मारने को तैयार थे अंकित को, ऐसा दिखावा कर रहे थे हालाँकि, और सैली, अंकित का बचाव कर रही थी. मामले को सीरीयस बनाते हुए एक लड़के ने अंकित का गिरेवान पकड़ कर खींच कर एक थप्पड़ जड़ दिया.


सैली गुस्से मे पागल हो गयी, अंकित को भी बहुत गुस्सा आया, क्योंकि ग़लती अंकित की ज़रा भी नही थी, पर मामला आक्सिडेंट का था और अंकित असहाय लड़कों के बीच फँसा. तभी बीच-बचाव मे अमित आ गया. अमित ने पहले सबको साइड हटने का इशारा किया.


अमित की बात मानकर सारे लड़के गुस्से भरी नज़र से अंकित को देखते हुए साइड हो गये. बेचारा अंकित, एक तो बाइक से गिरने की चोट उपसर से एक थप्पड़. खैर, अब अमित कमान संभालता पहले अंकित से माँफी माँगा. और कहा...


"सॉरी बॉस, आक्सिडेंट देख कर ये लोग कंट्रोल मे ना रह सके. आप की कोई ग़लती नही है आप जाइए यहाँ से. और प्लीज़ जल्दी जाइए, क्योंकि आक्सिडेंट का मामला है कुछ भी हो सकता है"


अंकित ने अहसान भरे शब्दों मे थॅंक्स कहा और वहाँ से सैली को लेकर जल्दी से निकला. चोट खाए लड़के के हाल का जायज़ा लिया गया, थोड़ा बहुत छिला था बस, बाकी लड़का तंदुरुस्त और रेस मे दौड़ने के लायक था.


उनके जाने के बाद नेनू और गौरव बाहर आए, एक विजयी मुस्कान के साथ, अपनी छाती चौड़ी किए. एक को गिरेवान पकड़ने का सबक मिल चुका था, अब बारी दूसरे की थी.

विजयनगर चौराहे से सभा टूटी, आज गौरव काफ़ी खुश था. उसकी खुशी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता था, कि आज उसने अपने महीने के खर्च के पैसों मे से 5000 निकाल कर दोस्तों को पार्टी देने मे लगा दिए.


इधर अंकित और सैली जैसे ही वहाँ से निकले, सीधे अपने घर गये. दोनो मे से कोई कॉलेज जाने की स्थिति मे नही था. आज बाल-बाल बचे थे दोनो, नही तो आक्सिडेंट के केस मे, एक्सीडेंट करने वाले का क्या हाल होता है ये भली-भाँति समझते थे दोनो. 


अंकित के घर मे सैली ने सुबह की घटना बता दी. अंकित को तेज बाइक चलाने के लिए डाँट पड़ी और तय ये हुआ कि अंकित, सैली के साथ उसकी स्कूटी से कॉलेज जाएगा. अंकित के पेरेंट को अब गवारा नही उसका बाइक चलाना. 


अंकित पर तो ज़ुल्म पर ज़ुल्म आज हो रहा था. सैली, अंकित पर लगा ये अनोखा प्रतिबंध सुनकर काफ़ी हंस रही थी, और अंकित अंदर ही अंदर काफ़ी चिढ़ रहा था. शाम तक सारे दोस्त भी अंकित के घर पहुँचे. मामलात के बारे मे जानकार सब ने भगवान का सुक्रिया अदा किया कि बच गये.


विवेक ने तो अमित की तारीफों के पुल बाँध दिए, क्योंकि उसका मान'ना था, किसी राहगीर को भी धक्का लगे तो लोगों की भीड़ मे फँसे उस आक्सिडेंट करने वाले को बक्श्ते नही, फिर तो ये इंजीनियरिंग के स्टूडेंट थे. अमित इन लोगों की नज़रों मे किसी हीरो की तरह उभरा.


अगले दिन से ही जिंदगी सामान्य थी. सैली के साथ अब अंकित था उसकी स्कूटी पर, और सैली, अंकित का मज़ाक उड़ाती रास्ते भर हँसते हुए जा रही थी कि "देखा तेरी बाइक छुड़वा दी ना, अंकल आंटी को बोलकर, क्या बोला था, मैं लड़का हूँ लड़की के पिछे बैठना मेरी तौहीन है, अब रोज ये तौहीन तू सह"


अंकित बेचारा चुप-चाप अपना मुँह लटकाए सफाई मे इतना ही कहा.... "तेरी आग लगाई है घर मे, वरना जानती तू भी है मेरी कोई ग़लती नही थी. अब कोई एकदम से बाइक के आगे कूद आए मरने के लिए, तो चलाने वाले का क्या कसूर".


सैली.... कुछ भी हो, पर ग़लती तो लोग चलाने वाले को ही देते हैं. और मोटू तुमने ग़लती की अब सज़ा भुग्तो.


दोनो चल दिए कॉलेज, अपनी खींचा-तानी वाली बातों को आगे बढ़ाते हुए. दो तीन दिन मे सब भूल भी गये कि कोई ऐसी घटना भी हुई थी.


आक्सिडेंट के तकरीबन चार पाँच दिन बाद, अंकित को कॉलेज मे वही अमित दिख गया जिसने उस दिन इसे वहाँ से निकाला था. अंकित अमित के पास पहुँच कर, एक बार फिर थॅंक्स कहा और उसके कॉलेज आने का कारण पुच्छने लगा.


अमित..... कुछ नही भाई, बस यहाँ कुछ पेपर सब्मिट करने थे, इसलिए चला आया. तुम सूनाओ, उस दिन चोट तो ज़्यादा नही लगी थी.


अंकित ने "ना" मे जबाव देता हुआ उसे अपने सारे दोस्तों से मिलाने चला आया. सबने अमित का अभिवादन किया, और उस दिन की घटना मे अंकित को निकालने के लिए सुक्रिया अदा भी किए.


कुछ समय उनके पास बिताने के बाद, अमित वहाँ से वापस हॉस्टिल लौट आया, जिसका इंतज़ार हॉस्टिल के लड़के पहले से कर रहे थे.


अमित, नेनू के कमरे मे आकर, महफ़िल को जाय्न किया और अपनी रिपोर्ट देने लगा...


"भाई तीर निशाने पर है, उनलोगों ने अपने फ्रेंड सर्कल से मुझे मिलवाया, पर मैने ऐसा ज़ाहिर होने दिया जैसे पहली मुलाकात है, और बस दो-चार लाइन बात कर के चला आया.


नेनू... वो सब तो ठीक है, पर ये बताओ अपना काम कबतक होगा.


अमित... भाई दो तीन रॅंडम मुलाकात के बाद, जब हम थोड़े और क्लोज़ होंगे फिर अपना काम भी हो जाएगा


नेनू..... पहले सब सुनो हरामखोरो, एक तो ये कि अभी कोई हूटिंग किया तो मैं उसका यहाँ जीना हराम कर दूँगा, और दूसरी ये कि यदि ये बात लीक हुई तो उल्टा टाँग दूँगा सबको. और अमित, जितनी बातें अभी जिस कॉन्फिडेन्स से किए हो, काम वैसा ही होना चाहिए. इन्हे भी तो पता चले कि बेज़्जती क्या होती है.


नेनू के इस बदले सुर ने सबको चौंका दिया, क्योंकि नेनू बहुत कम ऐसे सीरीयस होता है पर जब कभी होता है, मतलब सब चुप-चाप काम करदो वरना क्लास तो सबकी पक्की है. शायद उसके मज़किया अंदाज से किसी ने ये तय नही किया था कि नेनू उस दिन की बात को लेकर कितना सीरीयस है. पर आज जिस तरह से उसने अमित को कड़े शब्दों मे हिदायत दिया, मॅटर की सीरीयसनेस को सब ने भापा.


गौरव.... नेनू आराम से, अमित कर रहा है अपना काम. और ये कैसे बोल दिया जो कहा है वो कर, भाई जाने दे, वो तो कोशिस ही करेगा ना.


नेनू... नही, इसने जिम्मा लिया है ये करेगा. क्रेज़ीबॉय हँसी मज़ाक अपनी जगह, पर कोई तुम्हारा गिरेवान पकड़ कर भरी सभा मे, ना सिर्फ़ तुम्हे बल्कि पूरे परिवार को घसीटे, और उसे ऐसे ही सिर्फ़ इसलिए जाने दूं, कि अपना ही एक साथी ठीक से काम को अंजाम नही दे सका. नोप, अमित ने ज़िम्मेदारी लिया है तो उसे करना ही होगा.


बदले महॉल को भाँपते हुए, अमित ने एक बार फिर नेनू को अस्वासन दिया "कैसे भी कर के काम हो ही जाएगा".


अगले दिन सम को जान-पहचान बढ़ाने के हिसाब से अमित, सैली की कॉलोनी के पार्क पहुँच गया. सैली हर शाम अपने पेट के साथ आधे घंटे आती थी. सैली अपने टाइम के हिसाब से पहुँची और पार्क मे अमित को देख उसके पास पहुँच गयी.


अमित... व्हाट अन को-इन्सिडेंट, आप यहाँ कैसे सैली जी


सैली.... उन्न्ञणन्, मिस्टर. आप यहाँ मेहमान है, और ये हमारी कॉलोनी की पार्क है. सच सच बताओ यहाँ क्यों आए हो.


अमित को एक पल लगा कि जैसे सैली को सब खबर लग चुकी हो, थोड़ा घबराया वो जबाव देने लगा.... नही, मैं वो थोड़ा सा रेस्ट कर रहा था. यहीं से गुजर रहा था तो पार्क मे आकर बैठ गया. आप को अच्छा ना लगा हो तो जा रहा हूँ.


सैली... हहे, सुनिए मज़ाक कर रही थी, मैने सोचा क्यों ना आप को थोड़ा डराया जाए. किसी से मिलने आए थे क्या ?


अमित.... हां, इधर आरबी कॉलोनी मे अपना एक दोस्त रहता है, उसी के पास आया था. 


सैली.... अच्छा है इसी बहाने आप से मुलाकात भी हो गयी. हम भी यही रहते हैं, वो मेरा मकान है, और वो जो ग्रीन कलर का घर देख रहे हैं, वो अंकित का है. आप रुकिये मैं अंकित को कॉल करती हूँ.


सॅली कॉल लगाती हुई..... उधर से अंकित कम रेस्पॉंड ... हेलो सैली


सैली.... मोटू पार्क आ जा अमित जी हमारी कॉलोनी मे आए हैं. 


इतना बोल कॉल ड्सिकनेक्ट कर दी....


अमित... ये मोटू कौन है


सैली... हहे, हम अंकित को मोटू बुलेट हैं


अमित... लेकिन वो तो फिट है, कहीं से भी मोटा नही लगता


सैली.... अभी ना फिट है, वो तो अंकल-आंटी ने उसे जबर्जस्ती एक्सर्साइज़ करवा-करवा के बना दिया है, वरना कुछ साल पहले तक तो छोटा हाथी था.


अमित... हा हा हा, छोटा हाथी


अंकित... क्या हुआ, किस बात पर इतनी हँसी आ रही है अमित भाई


सैली... छोटा हाथी पर, और किस पर


अंकित... सैली मैं तेरा सर फोड़ दूँगा, अमित भाई एक नंबर की झूठी है, विस्वास नही कीजिएगा इसकी बातों पर. मैं जैसा हूँ सुरू ही वैसा ही हूँ.


तीनो के बीच बातें होती रही, फिर अंकित ने अपना नंबर भी दिया अमित को और सब अपने अपने घर वापस हो गये.

दो-तीन दिन तक अक्सर ही अमित टकराता इन लोगों से कहीं ना कहीं, अब तो बातें भी होने लगी थी. अमित अब घुल-मिल गया था इन लोगों के बीच.


एक शाम नेनू ने अमित को अकेले हॉस्टिल की छत पर बुलाया...


अमित... हां भाई बोल


नेनू.... कल का डटे फिक्स करूँ या परसो का.


अमित.... जाने दे यार ग़लतफहमी हो गयी दोनो से पर दिल के सॉफ हैं. माफ़ भी कर दे.


नेनू.... लड़की देख कर फिसल गया क्या अमित, सुन भाई तुझे पूरा मौका मिलेगा फिर हम बीच मे नही आएँगे, बस 2 घंटे हमे दे दे, भाई की बात मान ले नही तो वो दर्द मुझे जलाता रहेगा.


अजीब दुविधा मे फसे अमित ने नेनू के काम के लिए हामी भर दिया और परसो का दिन मुक्करर हो गया अमित की तरफ से. अमित, नेनू को सुनिस्चित करने के बाद वहाँ से चला गया और नेनू वहीं छत पर बैठा एक कॉल लगा दिया....


दूसरी तरफ से.... हां भाईजान बोलिए.


नेनू... आदिल भाई सब रेडी है ना.


आदिल... हां भाई सब रेडी है, किसी बात की चिंता मत करो, बस काम कब होगा ये बताओ.


नेनू.... काम परसो होगा, पर आप श्योर हो ना अंधेरा रहेगा और किसी को कुछ पता भी नही चलेगा.


आदिल... यदि किसी को पता चल गया तो, आप का जूता मेरा सिर. और पूरा सेट-अप मेरा है तो आप बेसक मुझे ही सारे मामलो का दोषी बना देना.


नेनू.... ठीक है आदिल भाई आप की बात पर भरोसा कर के मैं ये काम करने जा रहा हूँ. बाकी पूरा मॅनेज आप को ही करना है.


आदिल.... फिकर नही कीजिए भाई जान, और कोई भी मसला हो, तो मैं हूँ ना. इंसाह अल्लाह जीत हमारी ही होगी.


नेनू, आदिल से बात करने के बाद कॉल डिसकनेक्ट किया, और खुद मे नाचते हुए.... तुम ने मेरे दोस्त के चरित्र पर हाथ डाला ना, अब मैं तेरा मुँह काला करूँगा, बस देखती जाओ.
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12-27-2018, 01:42 AM,
#16
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सब कुछ अपनी जगह पर सही चल रहा था, नेनू के प्लान का हर स्टेप उसके मुताबिक था, और अमित के वादे ने पूरी कहानी को सॉफ कर दिया, अब तो बस इंतज़ार था उस रात का जब दिल की आग ठंडी हो.


अगले दिन सुबह कॉलेज के टाइम पर अमित ने सुबह सुबह अंकित को कॉल लगाया....


अंकित.... कैसे हैं अमित भाई सुबह सुबह कॉल किए, सब ठीक तो है ना


अमित.... हां सब ठीक ही है, बस सोचा थोड़ा बात कर लूँ आप से इसलिए कॉल किया. डिस्ट्रब तो नही किया.


अंकित .... नही सर बिल्कुल नही, पर आप इतने उदास क्यों हैं, गर्लफ्रेंड छोड़ कर भाग गयी क्या.


अमित..... हहे, क्या अंकित भाई एक तो पहले से उलझा पड़ा हूँ उपर से सुबह सुबह आप भी कहाँ गर्लफ्रेंड की चर्चाओं मे लगे हैं. भाई यहाँ कोई फ्रेंड नही गर्लफ्रेंड तो दूर की बात है.


अंकित.... क्या हो गया इतने परेशान, बात क्या है वो तो बताइए.


अमित... कुछ खास नही रहने दीजिए ये समस्या कुछ हट कर है, मुझे ही कुछ सोचना होगा.


अंकित... अर्रे कैसी बातें करते हैं, आप हमारे दोस्त हैं आप की समस्या हमारी समस्या, अब चुपचाप बताते हैं या धरना दूं मैं आप के हॉस्टिल.


अमित.... नही भाई. शाम को मिलते हैं आप की कॉलोनी के पार्क मे और वहीं बैठ कर बातें करते हैं.


अंकित ..... ठीक है मिलते हैं शाम को अमित भाई. 


जाल बिच्छा दिया अमित ने, तीर निशाने पर था और अंकित तैयार होने वाला था काम करने के लिए. शाम को दोनो वहीं कॉलोनी पार्क मे मिले जहाँ अंकित के साथ सैली भी थी. अमित के आने के बाद सब ने एक दूसरे को गुड ईव्निंग विश करते हुए समस्या पर बातें करनी शुरू की...


अंकित ..... अमित भाई, क्या परेशानी हो गयी बताइए हमे, हम मिलकर सॉल्व करेंगे.


सैली.... हां अमित जी, बताएए तो


अमित.... बात कुछ सीरीयस जैसा नही है. दरअसल कल एक फंक्षन होने वाला है हम लोगों का. और वहाँ एक स्टेज परफॉर्म करना है, और मेरे पास कोई ग्रूप नही.


सैली .... वॉववववववव ! आप स्टेज पार्फमेन्स भी करते हैं. इंप्रेस्सिव अमित जी. तो इसमे समस्या क्या है. और टीम तो कॉलेज से ही मिल जाएगी ना.


स्टेज शो के प्रति सैली की रूचि देख अमित खुश हो गया क्योंकि टारगेट ऑडियेन्स तो वही थी, अमित को विस्वास हो गया कि उसका काम बन गया.


अमित... वही तो समस्या है, स्टेज पर हमारा काम ही कितना था, मेरी लिखी कुछ कविता थी जिसे स्टेज पर पढ़ना था. एक मेल पार्ट था और एक फीमेल पार्ट. पहली एक कविता फीमेल की और उसके ख़तम होते ही मेल की ... और इसी क्रम मे 5 कविता दोनो पढ़ते. 

"वहाँ दिखाना ऐसा था कि उन दोनो मे कविता का द्वंद चल रहा हो. लेकिन मेरे दोनो साथी गायब हो गये. पता नही अचानक से दोनो को काम आ गया, या मेरा पार्फमेन्स ना हो इसलिए दोनो ने इनडाइरेक्ट्ली मना कर दिया. जितनो को जानता हूँ सब ने मना कर दिया ये करने से, कहते हैं स्टेज पर जाते ही उनकी आवाज़ नही निकलती. अब बताइए मैं क्या करूँ. फसा दिया सबने"....


अंकित.... अर्रे इतनी सी बात, इसका सल्यूशन है ना हमारे पास. आप वो कविताएँ दे दो हम दोनो तैयार कर लेंगे टेन्षन क्यों लेते हो आप.


सैली.... हां बस इतना ही ना, मुझे लगा कोई डॅन्स शो होगा, पर कविताएँ पढ़ने मे क्या परेशानी है.


अमित... हा हा हा हा, स्टेज शो किसी का भी हो शायद आप दोनो को पता नही कि एक ही समस्या होती है हेसिटेशन. जब स्टेज पर लोग पहली बार जाते हैं तो कितना भी परफ़ेक्ट क्यों ना रहे डगमगा ज़रूर जाता है.


अंकित... हां आप सही कह रहे हैं, पर हम कौन सा पहली बार स्टेज पर होंगे. हम तो पहले भी परफॉर्म कर चुके हैं.


सारी बातें अमित के अनुसार ही मुड़ती चली गयी. अमित ने कहीं से जाहिर नही होने दिया कि वो जान बुझ कर इन दोनो से करवाना चाहता है. सैली और अंकित भी काफ़ी खुश थे, क्योंकि स्टेज पॅर्फॉर्मेन्स .... दोनो सोच कर ही एग्ज़ाइटेड थे.


एक बदले की इतनी लंबी प्लॅनिंग, अमित ने सारा तय समय बता दिया कि कब प्रोग्राम शुरू होना है, और जो मेटीरियल है वो कल रास्ते से विजयनगर चौराहे से कलेक्ट करता चला जाए.


सब कुछ प्लान के हिसाब से ही था. इधर नेनू आंड कंपनी .. अपने दोस्त गौरव के साथ हुए इस वाकये का बदला लेने को तैयार थे और उनकी तैयारी पूरी हो चुकी थी. अमित के पास बस अब इस ड्रामे के दो काम बचे थे. 


एक तो वो मेटीरियल देना और दूसरा शाम को को-ऑर्डिनेट कर के दोनो को पार्टी हॉल तक लाना .. जहाँ के स्टेज पर उन्हे ये परफॉर्म करना था. सुबह होते ही अमित ने उन्हे सारी कविताएँ दे दी और वापस अपने हॉस्टिल लौट आया.


अमित किसी मोहरे की तरह हुकुम की तामील कर रहा था, पर ना जाने क्यों अंदर उसे एक संकोच सा था कि कहीं कुछ ग़लत ना हो जाए इस बदले के चक्कर मे. 


वापस हॉस्टिल लौटा तो सारे दोस्त एक साथ बैठे थे और सब आज शाम की ही चर्चा कर रहे थे. सारे दोस्त बस ये जान'ना चाह रहे थे कि आख़िर हमारा बदला किस तरह का होगा, और अमित से ज़िद कर रहे थे वो ये राज खोल दे.


अमित... पता नही यार ये नेनू के मन मे क्या चल रहा है. सच मे मुझे भी पता नही पर डर लग रहा है कहीं कुछ.....


तभी उनके बीच से एक बोला....

"अब्बे खुल कर बोल, कि कहीं कुछ डिंग-डॉंग ना कर दे नेनू उस लड़की के साथ और जो तू इतना लट्तू हुआ जा रहा है हाथ मल्ता रह जाए"


दूसरा इसी बात पर और मज़े लेते...

"हां अच्छा प्लान है नेनू का, वैसे बदले के नाम पर अपने मज़े का पूरा बंदोबस्त किया है. ऐसा ना हो कि 9 महीने बाद हम सब चाचा बन जाए और ये अमित मामू".


तीसरे ने अब अमित पर हमला बोलते हुए कहा ...

बेचारा अमित, पूरा खाना पकाया इसने और खा कोई और रहा है. तुम्हारी दोस्ती को सलाम दोस्त. हम इस दोस्ती की मिसाल को इस कॉलेज के इतिहास मे दर्ज करवाएँगे .. ताकि आने वाली पीढ़ी ये जान सके ..... एक था घोनचू..... अमित


सारे लड़के एक साथ फिर से हूटिंग शुरू किए .... ईईए ईईई .. अमित की .. ज़य हो ... अमित की .. ज़य हो

उसने सोच भी लिया कि फोन करूँ फिर दूसरे मॅन ख्याल सा आया कि "यार इतनी मेहनत से नेनू ने प्लाननिग किया है, वादा भी किया कि कुछ भी ग़लत नही करेगा, क्या करूँ, करूँ कि ना करूँ बात"


हां ... ना .... सोचते सोचते अंत मे अमित ने सब सच बताने का फ़ैसला कर लिया. रूम मे जहाँ वो फोन चार्ज पर रखा था वहाँ से फोन लेने गया, पर ये क्या फोन की जगह स्लिप था ... एक संदेश नेनू का ..... 


"जब तू भीड़ मे बैठा था और लोग उकसा रहे थे, तभी तेरा मोबाइल गायब कर दिया. डफर अब ज़्यादा सोचना मत, यदि तू नही सोच रहा तो गुड, और यदि तू सोच भी रहा है, कि सब सच बड़ा दूं, तो भी गुड" 

"तू चाह कर भी नही कर सकता क्योंकि तेरा फोन मेरे पास है, और बेड पर एक लड़का बैठा है, जो आज की पार्टी तक तुम्हारे साथ रहेगा. क्या कहता है .. देखा ज़्यादा पिक्चर देखने का फ़ायदा ... अब तुम आराम करो बस"


अमित तो फडफडा गया.. नेनू को कोसते हुए ... "कमीना कहीं का, किसी को नही छोड़ता, यदि तुमने कुछ उल्टा किया तो मैं तुम्हरा वो हाल करूँगा की देखना"


"क्या बड़बड़ा रहे हो अमित भाई, नेनू को गालियाँ" ... अमित के रूम मे निगरानी रख रहे लड़के ने हँसते हुए पुछा.


अमित..... चुप कर चम्चे, यदि आज कुछ उल्टा हुआ तो सबको उल्टा टाँग कर पिच्छवाड़े मे डंडा घुसेड दूँगा.


लड़का... पागल है तू अमित, यदि कुछ हुआ तो तू भी हाथ सॉफ कर लेना.


अमित चिढ़ कर दौड़ा उसे मारने और वो लड़का बचता रहा. आलम ये था कि पूरा दिन अमित के साथ छेड़-छाड़ होती रही, और वो इतना चिड गया कि एक बार तो सुसाइड तक की कोशिस कर डाली.


पर आज हॉस्टिल से नेनू कहाँ गायब था, ये किसी को समझ मे नही आ रहा था. दिन ढलने को आया था, ना तो गौरव नज़र आया ना नेनू. सबको आसंका होने लगी कि ज़रूर कुछ खिचड़ी पक रही है, जिसकी खुसबू तो लोग महसूस कर रहे थे पर खाना नसीब हो कि नही हो.


खैर शाम ढली, और वक़्त भी आ गया. पार्टी के अर्रेज्मेंट की कोई परेशानी ही नही थी, क्योंकि इंजीनियरिंग पढ़ने वाले कुछ लोकल लड़के टाइम पास के लिए थे और पार्टियों के किए तो उनके पास पैसा ही पैसा था.


होटेल सयाजी के एक हॉल मे पार्टी और स्टेज की बुकिंग की गयी. स्टेज का पूरा काम और बॅक डोर से स्टेज तक लाने आ अरेंज्मेंट सब आदिल का था. जो जानते थे उनके लिए प्लॅनिंग और बाकियों के लिए सिर्फ़ पार्टी थी, जिसे वो एंजाय करने आए थे.


स्टेज पर म्यूज़िक ड्ज लगा था, लड़के-लड़कियों के नाचने के लिए, और जिसे जो परफॉर्म करना है वो करे कोई परेशानी नही थी. 


8पीएम बजे से सबने आना शुरू कर दिया, अमित को भी आना पड़ा, लेकिन उसे बस ये चिंता थी कि कहीं कुछ ग़लत ना हो, और वो बस नज़र देने आया था.


सारे लड़के लड़कियाँ पहुँच रहे थे, अंकित और सैली को 8.30पीयेम का समय दिया गया था, और तय समय पर बिना कोई रिमाइंडर के वो दोनो पहुँचे.


क्या रियेक्शन था लड़कों का सैली को देख कर, सिल्वर कलर की सिंगल ड्रेस जो डीप नेक की थी बॅक भी काफ़ी खुला और नीचे घुटनों से थोड़ा उपर. सारे लड़कों का मुँह खुला का खुला रह गया. कुछ तो ये सोचने लगे कि इतनी खूबसूरत हसीना ने उनकी बेज़्जती क्यों नही की.


सैली और अंकित, अमित से मिले .. अमित खिंचा सा चेहरा लेकर मानो जबरसती की हसी हंस रहा हो, ठीक वैसे ही दोनो का स्वागत किया. अमित कहीं भावनाओ मे बह कर कोई राज ना खोल दे इसलिए लड़के पहले से उसके आस पास मौजूद थे. 


अमित ... सैली से .... काफ़ी सुंदर दिख रही हैं आप.


सैली (हँसती हुई) .... सिर्फ़ सुन्दर, जाइए अमित जी आप तो बेज़्जती कर रहे हैं, इस मोटू से पुछो कैसी दिख रही हूँ.


अंकित धीमे स्वर मे कहते हुए ... अब यहाँ तो ना कहो प्लीज़, भरी महफ़िल मे मुझे बेबज़्जत तो ना करवाओ.


अमित... हा हा हा, अर्रे कहाँ डरने लगे, सब दोस्तों की पार्टी है और यहाँ के निक नेम इस से कहीं ज़्यादा फन्नी है, सो चिल.


अंकित ... अमित भाईईइ ! हा ! ये मेरा निक नेम नही.


खड़े बात ही कर रहे थे कि स्टेज से अनाउसमेंट शुरू हो गयी.....

"हेलो फ्रेंड्स, सारे दोस्त लोग इधर ध्यान दे. कविता का नया नज़राना अब हमारे अमित के नेतृत्व मे उनके कुछ साथी पेश करेंगे अगले कुछ हे देर मे. पार्टी का आगाज़ कुछ आज सायराना अंदाज़ मे हो जाए".

लोगों के चिल्लाने की आवाज़ ....... जल्दी शुरू किया जाए, वूऊ हूऊ, ओूऊऊ , ईईई, 


अमित ने सारी बातों पर विराम देते हुए कहा ... ह्म्‍म्म ! जाइए आख़िर वो घड़ी आ ही गयी. बेस्ट ऑफ लक (अपने लिए मत सोचना ये तो मेरे लिए था)


इतना कह कर बॅक डोर की ओर चला गया, जहाँ के गेट पर आदिल खड़ा था. आदिल ने दोनो को रिसीव किया और अमित को चलता कर दिया. अमित की धड़कने बढ़ गयी थी ये सोच सोच कर कि अब इस लड़की के साथ क्या होगा.



जितने भी उनके साथी खड़े थे सब से पूछ लिया कि क्रेजी बॉय और नेनू कहाँ है, पर किसी को पता नही था. आज दिन से दोनो नही दिखे. ये खबर सुन कर तो अमित के पसीने निकल आए. 


अमित भाग कर हॉल मे आया, और अपनी कोशिस जारी रखते हुए ज़ोर से चिल्लाया ..... "प्रोग्राम शुरू किया जाए". अमित की हूटिंग सुन कर दूसरे लड़के लड़कियाँ भी चिल्लाने लगे. इधर इतनी तेज आवाज़ सुनकर, और अपने इस वॉर्म वेलकम को देख अमित और सैली दोनो स्टेज एंट्री गेट के पास खड़े खुश हो रहे थे.


लाइट ऑफ पूरे हाल की, लोग चिल्लाने लगे, हल्की धीमी लाइट पूरे हॉल मे जली, एक स्पॉट लाइट स्टेज के एंट्री गेट पर. तालियों की गड़गड़ाहट और लोगों का चिल्लाना शुरू.


अब बारी थी सैली और अंकित के स्टेज पर आने की, जैसे ही पहला कदम चले सैली और अंकित की दोनो ज़ोर से चीन्खे. ऐसा लगा दोनो को जैसे कोई स्प्रे कर रहा हो, शायद स्टेज डेकोरेशन मे हो ऐसा सोचते दोनो आगे बढ़ गये.

दो डिस थी और अपने पेपर समेटे दोनो अपनी जगह पकड़ लिए. पर जब से आए थे दोनो स्टेज पर सब उनको देख कर हंस रहे थे. खूब ज़ोर ज़ोर से पागलों की तरह. 


अमित ने जब दोनो को देखा तो अपना सिर पीट लिया और तेज़ी से स्टेज की ओर बढ़ा .. पर स्टेज तक पहुँचना उसका मुमकिन ना हो सका क्योंकि लड़कों ने उसे पकड़ कर कोने मे चुप चाप बैठे रहने की हिदायत दिया.


अंधेरी स्टेज से फिर एक अनाउन्स्मेंट की गूँज हुई .... शांति मित्रों, अब आप इनकी कविता का लुफ्त उठाइए.


पहली बार इस हॉल मे पार्टी ऑर्गनाइज़र यानी कि नेनू की आवाज़ गूँजी, और इस आवाज़ को सुन ने के बाद हॉल मे शांति छा गयी.


अंकित और सैली ने थोड़ी राहत की सांस ली वरना दोनो नर्वस ही हो गये थे, कि अब वो अपनी कविता कैसे पढ़े. स्पॉटलाइट अब फोकस हुई सैली पर और शांति से इस हाल मे धीमे धीमे हँसने की आवाज़ सॉफ सुनी जा सकती थी....


सैली...... आप सब श्रोतागन का स्वागत है इस शाम मे. मैं श्रयलीन .....


इतना ही बोली थी कि, तेज़ सी आवाज़ मे एक कॉमेंट आई ... "और श्रयलीन ने अपना मुँह काला करवा लिया". 


ये आवाज़ गौरव की थी और ये कॉमेंट गौरव ने किया. गौरव के इस कॉमेंट के बाद तो जैसे हँसने की किलकरियाँ शुरू हो गयी हो उस हॉल मे.


हर कोई हंस रहा था. अचानक से हॉल के चारो ओर लगे पर्दों पर अंकित और सैली लाइव आने लगे. उनका हँसना वाकई दोनो के अपमान की हँसी ही थी. क्योंकि स्टेज एंट्री की जो छीक थी वो उनके चेहरे पर काला स्प्रे किया गया था, और लोग उसे देख-देख हंस रहे थे.


जब सैली ने अपना खुद का ऐसा चेहरा देखा तो रोती हुई स्टेज से भाग गयी, जाते जाते भी लोग कह रहे थे... मुँह काला करा कर भागी सैली. अमित बेचारा, उसकी तो इज़्ज़त ही चली गयी क्योंकि आख़िर इस पूरे कांड मे सबसे अहम रोल तो उसी का था.


अंकित और सैली के जाते ही लाइट ऑन हो गयी, ड्ज की बीट पर डॅन्स होना शुरू हो गया. शराब की बोतलें खुल गयी और पार्टी शुरू.


गौरव.... नेनू मेरे भाई दिल खुश हो गया आज ... यएह ले पी मेरे भाई. दिल को सुकून मिला है.


नेनू.... क्यों नही क्रेज़ी बॉय ... मिलाओ हाथ और उठाओ जाम ... 


सब झूम रहे थे नाच गा रहे थे. पार्टी करते करते 11 बज गये थे, धीरे धीरे सारे लोग जाने लगे. फिर भी पार्टी अपने सबाब पर थी और जिनकी बेज़्जती सैली ने की, वो सबसे ज़्यादा नाच गा रहे थे और लोगों को इनकोवरेज कर रहे थे.


तकरीबन 11.15 पीएम पर सैली के दोस्त और उनके इकट्ठा कयि लड़के पहुँचे पार्टी की जगह पर, अपने दोस्त की बेज़्जती का बदला लेने के लिए.
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12-27-2018, 01:43 AM,
#17
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
अचानक से ही 20/21 लड़के घुसे और सब के सब तोड़-फोड़ के मूड मे थे. पर उन्हे क्या पता था यहाँ की तैयारी उस से ज़्यादा पुख़्ता है. जैसे ही सारे लड़के घुसे उनके पिछे इंजीनियरिंग कॉलेज के करीब 30 स्टूडेंट और पार्टी हॉल के तकरीबन 15 लड़के, और सबके हाथ मे कुछ ना कुछ.


आलम ये हो गया क़ि जो बाहर से मार करने आए थे लड़के, वो बीच मे फसे थे और चारो ओर से उसे इंजीनियरिंग कॉलेज के स्टूडेंट घेरे थे. और जिनका दब-दबा ज़यादा होता है उनकी बोली भी ज़्यादा. महॉल तो पूरा गरम था, पर जो मार करने आए थे वो असहाय हो गये और जो मार खाने वाली पार्टी थी वो भारी पड़ गयी. 


बीच बचाओ मे इस बार अपने पक्षों को शांत कर साइड किया नेनू और गौरव ने, उधर अमित ने विवेक को पकड़ा और समझाने लगा "इनसे मार करने का कोई मतलब नही, अभी इतने है एक फोन कॉल गया तो कुछ देर मे पूरा हॉस्टिल होगा".


हालात को शायद विवेक तो समझ गया पर अंकित के गुस्से ने नही समझा. अंकित & फ्रेंड्स जान चुके थे कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ, इसलिए अंकित सीधा गया और गौरव की कॉलर पकड़ा और हाथ मारने की पोज़िशन मे किया ही था...


ताड़ ..... एक तमाचा पूरे ज़ोर का पड़ा अंकित के गाल पर. तेज वो थप्पड़ इतना था कि उंगलियों के निशान उभर कर आए.


नेनू..... बस, चुप उस दिन भी थे चुप आज भी हैं. हरकत कुछ ऐसी मत करना कि अफ़सोस हो कि इन्हे छेड़ा ही क्यों.


अंकित को थप्पड़ पड़ते ही विवेक भी तैश मे आ गया, पर जो उनके साथ वाले थे बदलते महॉल और वक़्त को देखते हुए निकल लिए. मार कभी भी हो सकती थी, और फालतू के दूसरों के झमेले मे क्यों पड़ें, बस ये सोचते हुए आधे से ज़्यादा निकल गये थे.


कोई वहाँ कुछ नही कर सकता था... विवेक जैसे गुस्से से जल रहा हो....


गौरव.... शांत हो जाओ सब .. और सब पिछे हटो, इन दोनो को बिठाओ कुर्सी पर अब हम ज़रा इन्हे आयना दिखाते हैं.


गौरव की तेज चींख ने जैसे सबको शांत कर दिया हो, बाकी बचे लड़कों को उस जगह को छोड़ने के आदेश मिल गये और ना चाहते हुए भी उनको आना पड़ा. दो कुर्सियाँ हाल के बीच मे उसके सामने नेनू और गौरव की कुर्सियाँ और एक डिस्टेन्स पर बाकी दोस्त, शराब की ग्लास नीचे रखे और हाथो की प्लेट मे तंदूरी मुर्गे लिए इस वार्तालाप का लुफ्त उठाने लगे.


गौरव..... 

"क्यों बे, तुम सब अपने आप को समझते क्या हो. याद है वो सिनिमा हॉल. क्या ग़लती थी ज़रा बता हमे. बोल ना.....


एक तो पहली बात हम हूटिंग नही करते, नही करते मतलब नही करते और दूसरी बात सिनिमा हॉल मे हूटिंग नही करेंगे तो क्या भजंन मंडली मे हूटिंग करेंगे कुत्ते.


सालो जब बोल्ड सीन तुम लड़के-लड़कियाँ एक साथ देखते हो, 100 लोगों के बीच मे तब ऑड नही लगता, तब तुम संस्कारी हो गये और माँ बाप के अग्याकारी, और उसी बोल्ड सीन पर जब कोई हूटिंग कर दे, तो हरामजादे तुम तो सो कॉल्ड हाई-सोसाइटी के लोग उनकी औकात और संस्कार पुच्छने लगते हो.


पता चला भरी सभा की बेज़्जती क्या होती है. कैसा लगता है जब कोई तुम्हारी इज़्ज़त उतारे उस काम के लिए जो काम तुमने किया ही ना हो. 


और तुझे कॉलर पड़कने का बहुत शौक है क्यों. उतर गयी सारी हीरोगिरी. सोच अभी हम ने कुछ नही किया, तुम्हारे जैसे हम भी उस दिन अपने अपमान का बदला लेने आते तो तुमलोगों का क्या होता. 


बात आई हो समझ मे तो ठीक वरना आ जाना अपने सगे संबंधी को लेकर, हम रोज सुबह विजयनगर चौराहे पर मिल जाएँगे, और हां शायद हर रोज हम इतने शांत ना हों ....



द्वेष और बदला दो मन की ऐसी अवस्थाएं हैं, कि जबतक इसे संतुष्ट ना किया जाए इंसान जलते रहता है. कितना सुकून और कितना राहत इस समय गौरव और नेनू महसूस कर रहे थे ये तो दोनो को ही पता था.


सुबह इनकी पूरी मंडली जमा थी विजयनगर चौराहे पर, जब सामने से सैली चल कर उस चाय की टपरी मे आई, साथ ही साथ उसके सभी दोस्त भी आए थे. 


उस दिन भी नेनू और गौरव को जब पहली बार सैली ने आवाज़ दी तो दोनो उसके रूप को देख कर अवाक रह गये थे, पर पहली मुलाकात ही ऐसी गुज़री कि फिर रूप छोड बदले के पिछे पर गया.


हालाँकि कल मे और आज मे सैली के लुभावन रूप मे कोई अंतर नही था, पर बदला जो था वो सिर्फ़ देखने का नज़रिया, और जब नज़रिया बदलते हैं तो दिलों के सूरत-ए-हॉल भी बदल जाते हैं. 


नेनू थोड़ा मुस्कुरा कर देख रहा था क्योंकि बदले के बाद सैली के रियेक्शन का इंतज़ार कर रहा था, वहीं गौरव कुछ ज़्यादा ही मुस्कुरा कर देख रहा था, अब बेचारा क्रेज़ीबॉय का हाल जो दिल का था वो तो वही जाने, पर मुस्कुरा ज़रूर दिल से रहा था.


सभी लड़के खड़े थे, और सबको ऐसा लगा कि कोई कोल्ड वॉर कि इस्थिति पैदा होने वाली है, पर वहाँ जो हुआ वो सोच के विपरीत थी....


सैली.... मैं माफी चाहती हूँ, उस दिन विवेक ने भी मुझे टोका था, कि ऐसे भरी महफ़िल मे किसी को नही बोलना चाहिए. इनफॅक्ट, वो बोलना नही था एक बहुत ही ग़लत हरकत थी, कि मैने आप की बेज़्जती की. कल जो आप लोगों ने किया उसने मुझे एहसास कराया कि गुस्से मे मैं कितनी ग़लत थी.


गौरव .... कोई बात नही मिस .. अब सब बराबर है. वैसे आप ने सॉरी बोल दिया तो हम भी कल के लिए सॉरी कहते हैं, (अंकित की ओर इशारा करते हुए) और तुम भाई... दिल पर मत लेना कोई भी बात.

सैली.... लगता है आप के दोस्त अब भी नाराज़ हैं, इसलिए कुछ बोल नही रहे.

नेनू ...... ना ना मेडम ... कोई गिला कोई शिकवा नही. इस बात को पिछे छोड़ दिया जाए तो मेरे ख्याल से बेहतर होगा.

"तो मिलाइए हाथ, मैं श्रयलीन हूँ, और दोस्त मुझे सैली कहते है" .... "मैं नैन, और दोस्त मुझे कुछ भी कहे सब प्यारा लगता है" .... "हाई मैं गौरव"


पीछे से लड़को के कॉमेंट्स आना शुरू हुए ... अर्रे मिस, गौरव नाम से कभी इसे ढूंड'ना नही, क्योंकि इसे सब क्रेज़ीबॉय बुलाते हैं.


तेज आँधी की उथल-पुथल के बाद जैसे सब शांत हुए हो, उधर की सारी मित्र मंडली गौरव और नेनू से माफी माँगी और अपने किए की शर्मिंदगी जाहिर की. पर इस घटना के बाद आगे कुछ गुस्ताख़ी होनी बाकी थी, एक प्यारी गुस्ताख़ी.


गौरव और नेनू को सैली की ओर से निमंत्रण मिला डिन्नर का, नेनू कम मगर गौरव काफ़ी एग्ज़ाइटेड था इस डिन्नर के लिए, जब शाम को तैयार हुआ निकलने के लिए तो आख़िर नेनू बिना बोले रह नही पाया....

"क्यों क्रेज़ीबॉय, लगता है शादी मे जा रहे हो, बात क्या है बाबू इतना बन ठन के"


गौरव.... हुरर्र, ये मेरा नॉर्मल ड्रेसिंग है, तेरे तरह कबाड़ी नही, कि कुछ भी पहन कर कहीं भी चले गये.


नेनू..... चल चल, मुझे ना ड्रेस के बारे मे ज्ञान नही दे, मैं जो भी पहनता हूँ वो ब्रांड बन जाता है.


रात 8 बजे, सैली और अंकित, रेस्टोरेंट मे दोनो का इंतज़ार कर रहे थे, जब दोनो पहुँचे. नेनू अपनी चेयर पर बैठ'ते हुए, "हम लेट तो नही हुए"


अंकित थोड़ा आगे झुक कर .... भाई पर हम कौन, आप अकेले ही बैठो हो. 


एक नज़र अपने साइड मे डाल चेक किया, अभी तो गेट तक साथ था, और जब स्थिति का जायज़ा लिया तो सिर पर हाथ रख कर मुस्कुराने लगा....


सैली के चहरे पर जैसे अजीब सी मुस्कान आई हो, और वो गौरव को देख कर मुस्कुरा रही थी, गौरव अभी भी गेट के पास खड़ा बस बगुले की नज़र से अपनी सैली मछ्ली को देख रहा था.


गेट पर खड़ा होकर यूँ घूर्ना काफ़ी एंबॅरसिंग था. नेनू, गौरव के पास पहुँचकर उसके सिर पर मारता उसे होश मे जल्द वापस लाया, और जब गौरव को समझ मे आया कि वो क्या कर रहा था तो इधर उधर गर्दन घुमा कर देखने लगा.


नेनू..... करज़ीबॉय पब्लिक प्लेस मे ऐसे कोई घूरता है क्या ?


गौरव.... मैं, मैं ... मई तो रेस्तरा की साफ सफाई देख रहा था, आख़िर खाना और सेहत की बात है.


नेनू.... हां वो तो समझ मे आ रहा है तू कौन सी सेहत बना रहा था. चल अब, और उसे घूर्ना बंद कर.


गौरव जब टेबल पर आया तो अंकित और सैली दोनो हंस रहे थे, साथ मे नेनू को भी हसी आ गयी, गौरव छोटा सा मुँह बनाए चुपचाप बैठ गया पर रह-रह कर नज़र बस सैली के हुस्न पर ही टिकी हुई थी.


सैली.... क्रेज़ीबॉय काफ़ी जच रहे हो आप इस ड्रेस मे.


गौरव सिर झुकाए चोर नज़रों से सैली को देख रहा था और अचानक से जब सैली के मुँह से अपनी तारीफ सुनी तो चेहरा उठा कर पूरी नज़रों से देखते हुए ..... 

उसके हुस्न की तारीफ में क्या कहिए
कोई सहज़ादी जमी पर उतर आई है
ए बनाने वाले लगता जैसे
कोई संगमरमर की मूरत तूने बनाई है

उसकी ज़ुलफो की तारीफ में क्या कहिए
जैसे दिन ढलते ही छाई अंधियारी है
हो चली है पवन भी पागल
उसकी ज़ुल्फ लहर-लहर लहराई है

आँखें उसकी या मैकशी के प्याले
देखकर ही हम पे खुमारी सी छाई है
होंठ कहूँ या फूलो की फांके
जिसकी खुश्बू ने हमारी सासो को महकाई है
अबर कहूँ उसके गालो को मैं
दूध से जैसे वो नहाई है
चाँद कहूँ फिर भी कम होगा
आसमान के नक्षत्रो में वो ही जग-मगाई है

उसके हुस्न की तारीफ में क्या कहिए
कोई सहज़ादी जमी पर उतर आई है
ए बनाने वाले लगता है जैसे
कोई संगमरमर की मूरत तूने बनाई है



बेवक अदा से गौरव के शब्दों मे निकले सैली के रूप वर्णन, सुनकर सबकी आँखें फटी रह गयी और मुँह खुला. जब अपनी कविता पूरी कर दी गौरव ने तो सबको इस तरह से घूरते देख .... "क्या हुआ सबको, ऐसे क्यों देख रहे हो"


सब बस हँसते हुए तालियाँ बजाने लगे ... एक प्यारी सी मुस्कान गौरव के चेहरे पर आ गयी, और थोड़ा सा शरमाता हुआ अपनी जगह पर बैठ गया.


सैली.... वॉवववववव क्रेज़ीबॉय आप पोवेट्री भी करते हो ...


गौरव ..... नही ये किसी की कही कविताएँ थी, जो आप को देख कर ना जाने कैसे खुद-व-खुद बाहर आ गयी. वैसे हर खूबसूरत चीज़ का हक़ है, कि उसकी तारीफ हो.


सैली.... ह्म्म्म ! इंटरेस्टिंग क्रेजीबॉय , वैसे आप ऐसे ही बात करते हो या कोई स्पेशल अकॅशन है.


नेनू..... बस यूँ समझिए कदरदान है जी, और आप के रूप पर फिदा हो गया.


सैली.... टाइम तो गो दोस्तों, लगता है कुछ देर और रही तो एक अनार और दो बीमार हो जाएँगे, चल मोटू.


इतना कह दोनो वहाँ से निकल गये, गौरव टेबल पर हाथ अडाये और उसपर अपना चेहरा टिकाए, ठंडी साँसे भरते.... "याररर ! क्या बला की खूबसूरत है"


नेनू... ओईए मजनू ! और खरनाक भी है, ज़्यादा ख्याली पुलाव ना पका, यदि उसका पहले से कोई बाय्फ्रेंड हुआ तो.


गौरव.... तो मेरी जान तू किस मर्ज की दवा है, आख़िर इलाज़ तो तुम्हे ही करना है मेरे भाई.


नेनू.... अच्छा, और कहीं मैं ही उसका बाय्फ्रेंड रहूं तो....


गौरव.... तो तुझे रास्ते से हटा दूँगा, कौन सी बड़ी डील है. वैसे भी तो कहता है, "अपनो के लिए जान ले भी सकता हूँ और दे भी"

नेनू.... तौबा तौबा, ये लड़का भी ना. तू इतनी सीरियस्ली लेता है मेरी बातों को. ठीक भाई .... ले लेना जान, सुन मज़ाक बहुत हो गया अब सीरियस्ली कहता हूँ, देख ये लड़की का चक्कर छोड़ और पढ़ाई मे ध्यान लगा. वैसे भी तेरे 3 पेपर बॅक है, इस बार गड़बड़ हुआ तो तेरा बाप तुझे जो करेगा है सो करेगा ही, लेकिन मुझे भी मुझे नही छोड़ेगा. सुन रहा कि नही ......

गौरव.... यार, समेस्टर तो बाद मे भी निकाल लूँगा पर लड़की गयी तो बाद मे कहाँ से लाउन्गा......"मैनू इशक़ दा लगिया रोग, मैनु बचने दी नययो उम्मीद"

"हद हो गयी है, ये छोरा तो बावरा हो गया है, चल ओये मजनू, अभी तो कुछ दिन पहले आग लगती थी इसके बारे मे सोच कर, मुझे क्या पता था .. बाद मे भी आग लगने वाली है इसे सोच कर. भगवान बचाए इसे, ये तो गया काम से"


हॉस्टिल पहुँचने के बाद तो जैसे रात भारी हो गयी हो, और गौरव की आँखों से नींद कोसो दूर हो. गौरव बस खुली आँखों से उपर छत को देखते हुए.....


"हाय्यी ! क्या मुस्कान थी, उफ़फ्फ़ ये क्या कोमल निर्मल होंठ, और हँसने की वो अदा ... मैं तो लुट गया. आह ! आज तक किसी का क्रेजीबॉय बोलना अच्छा नही लगा, और आज लगता है काश मेरा ओर्जीनल नाम ही क्रेज़ीबॉय होता. पता नही मेरे बापू को क्यों ना ये नाम सूझा. जानू तुम कब इस दिल की धड़कन बनी पता ही नही चला, अब तो लगता है ये जीना मरना तेरे संग".


गौरव के दिल के अरमानो ने ऐसी आन्ह्ह्ह भरी की रात उसकी पूरी करवटें बदल-बदल गुज़री. ख्यालों का दामन इतना गहरा था कि नींद का साथ छूट गया, और जब दिन मे क्लास अटेंड करने गया तो नीनी रानी ने बसेरा डाल लिया. क्योंकि रिंग, पिस्टन और एंजिन सुन'ना वैसे ही बोरिंग था उपर से रात भर का जागा.


फॅकल्टी ने भी क्या खूब पनिश किया, गौरब को अपने जगह पर खड़े होकर अटेंड करने के आदेश मिले, और साथ मे मिला एक्सट्रा असाइनमेंट. बेचारा, आज रात छत को देखते अपनी हुस्सन-ए-मल्लिका को याद भी नही कर सकता था.
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12-27-2018, 01:43 AM,
#18
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
इधर अंकित और सैली वापस लौट'ते वक़्त कॉलेज से अपनी जब बहस कर रहे थे तो अंकित की चर्चाओं मे बस गौरव ही था, और वो सैली को छेड़ते हुए ...


"क्यों जंगली, लगता है तेरे बाय्फ्रेंड की तलाश ख़तम हो गयी."

सैली....... ज़्यादा बोला तो तेरे बाप को तेरी और अर्चना की कहानी बता दूँगी. मोटे तू क्या सोच कर बोला ये.


अंकित ..... अर्रे सोचना क्या है, तू भी पागल और वो तेरा नया पोवेट दोस्त, उसका तो नाम ही क्रेज़ी बॉय है. दोनो पागल, कुंडली तो भगवान ने ही उपर से बना कर भेजी है.


सैली.... चुप कर ज़्यादा उल्टा बोला तो, मुँह तोड़ दूँगी. 


शाम के 7.30पीयेम के करीब नेनू, गौरव को साथ लेने पहुँचा उसके कमरे, दोनो शाम के इस वक़्त साथ घुमा करते थे, पर आज गौरव ने असाइनमेंट पूरा करने की दुहाई देकर घूमना टाल दिया.


रात भर का जगा हुआ और उसके बाद पढ़ाई करना काफ़ी मुश्किल काम था, गौरव ना तो सो पा रहा था और ना ही असाइनमेंट पूरी कर पा रहा था, 8पीयेम बजते-बजते गौरव ने घड़ी का आलराम 1आम बजे का सेट किया और फाइनली सोने की तैयारी मे लग गया.


अभी बिस्तर पर लेटा ही था कि गौरव के मोबाइल की घंटी बजी, चार गालियाँ देता फोन को लिया हाथ मे, और डिसप्ले पर नाम देख कर तेज़ी के उठ कर बैठ गया और दो बार आँखे मीजते फिर से देखा डिस्ले ह ......


डिसप्ले भी सही था और नाम भी, मगर कुछ जो नही सही था वो था वो गौरव के दिल का आलम. जिसकी उम्मीद उसके जहन मे भी नही थी वही हो रहा था, सैली का फोन.... गौरव फोन पिक करते हुए ....


"मैं क्या सपना देख रहा हूँ, या आप वही खूबसूरत मोह्तर्मा हैं, जिसका नाम श्रयलीन है"


सैली.... हे हे हे हे, जी बिल्कुल मिस्टर. क्रेज़ी बॉय.


गौरव.... उम्मीद से परे है आप का कॉल, मेरे ख़यालों के भी कभी ऐसा नही था कि आप का कॉल आने वाला है.


सैली.... ठीक है, मैं कॉल डिसकनेक्ट कर रही हूँ.


गौरव... क्या कोई भूल हो गयी, जो आप नाराज़ हो गयी.


सैली.... नही ऐसी कोई बात नही, लेकिन जब से कॉल पिक किए हैं, एक ही सवाल पर बात किए जा रहे है, कि कॉल कैसे आ गया. मॅटर ये नही कि कॉल कैसे आया मॅटर ये है कि कॉल क्यों आया, और आप है कि मुख्य मुद्दे को छोड़ कर ग़लत मुद्दे उठाए हुए है.


गौरव.... ऊप्सस्स ! डफर ही हूँ मैं. सूओ सॉरी मिस. बताइए बंदा आप की क्या खिदमत करे.


सैली.... ट्रेषर आइलॅंड (शॉपिंग माल) आई थी, और मेरा बॅग उठाने वाला कोई नही. फीलिंग लोंलिनएस्स, सोचा क्यों ना क्रेज़ी बॉय को याद कर लिया जाए.


गौरव.... वू हूओ ! बिल्कुल सही नंबर डाइयल की हैं आप. अट युवर सर्विस मिस. अभी आयाअ....


सैली हस्ती हुई फोन रखी और अकेली माल के गेट पर फुल्की का आनंद लेने लगी. बाहर खड़ी आते जाते कपल्स को देख रही थी और कुछ खोई थी. पीछे से ऐसा लगा जैसे उसके गर्दन पर कोई फूँक रहा हो. सैली पलटी ... और गौरव को देख कर मुस्कुराती हुई ...


"थॅंक्स, थोड़ा अकेली फील रही थी. सॉरी यदि आप को डिस्ट्रब किया हो तो"


गौरव..... मेरे होते हुए आप अकेली फील कैसे कर सकती हैं, बुरा तो तब लगता जब आप ये खुद को अकेली फील करती. मेरे होते हुए खबरदार जो कभी अकेली फील किया तो.

ना जाने गौरव की बात सुन कर क्या हुआ सैली को, जैसे लगा कि इसी तरह की बातों की नज़ाने कब से तलाश थी. कोई हो उसका भी, जो उसकी केयर करे. उसे पता नही क्या हुआ गौरव की इस एक बात से. आँखों मे दो बूँद आँसू आ गये और सीने से लग गयी गौरव के.


गौरव को तो ना जाने क्या हुआ, उसके लिए ये अद्भुत क्षण था, शायद दिल के हाल ने इतनी भी शिद्दत नही दिखाई थी कि चन्द मुलाक़ातों मे उसकी हुस्न की मल्लिका उसके सीने से लग जाए. जैसे कोई चमत्कार हो रहा हो या फिर कुछ चाहतें सैली की भी थी.


गौरव खो सा गया इस पल मे, पर कुछ ही देर मे एहसास हुआ कि वो दोनो किसी पब्लिक प्लेस पर है, और लोग उन्हे देख रहे हैं, कंधे को सहलाते हुए एक खुमारी भरे स्वर मे गौरव ने सैली को वास्तविकता से अवगत कराया.


खामोश सैली अलग हुई, पलकें उपर कर के एक बार गौरव को देखी, और नज़रें झुकाते हुए शांति के भाव से सिर्फ़ सॉरी बोल कर दोनो खामोश एक दूसरे को देखते रहे.


गौरव.... अर्ररी, हम यहाँ बाहर खंबे की तरह क्यों खड़े हैं.


सैली..... मतलब...


गौरव... मतलब ये मिस कि मुझे लगा आप कुछ शॉपिंग करेगी, और मैं बॅग उठा कर आप के पिछे-पिछे चलूँगा, पर आप हैं कि बाहर खड़ी हैं.


सैली प्यारी सी एक मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेरती हुई.... ऊ, भूल ही गयी, चलें शॉपिंग पर.


दोनो ने 10पीयेम बजे तक शॉपिंग किया. गौरव की बातों पर पूरे समय सैली हँसती ही रही, और पूरे शॉपिंग के दौरान सैली को एंटरटेन करता रहा गौरव.


सैली को उसके घर के पास छोड़ कर गौरव वापस हॉस्टिल जाने के लिए निकला, दो कदम आगे जाकर एक बार पिछे मूड कर देखा, सैली अपने दरवाजे पर खड़ी उसे ही जाते देख रही थी.


गौरव जब ये देखा कि सैली अब भी दरवाजे पर खड़ी उसे ही जाते देख रही है, तो उसने अपने बालों पर हाथ फेरते चेहरे पर एक क्यूट सा एक्सप्रेशन दिया, और हाथ हिला कर बाइ बोलते फिर मूड गया. 


कुछ दूर फिर आगे गया, और फिर एक बार पिछे मुड़ा. दोनो ही मुस्कुरा रहे थे एक दूसरे को देख कर, और दोनो के दिल के हाल का अंदाज-ए-बयाँ उसनकी प्यारी सी मुस्कान कर रही थी.


हाल क्या जाने दिलों का, जो इश्क की कसक पैदा हो गयी इस दिल मे. अब तो किसी के ना होने पर भी गौरव मुस्कुराते चला जा रहा था. जब जब याद करता कि सैली उसके सीने से लिपटी रोई थी, अंदर के भाव ऐसे उमड़ते कि सड़क पर ही खड़ा नाचने लगता.


आज तो गौरव के लिए सारा जहाँ झूम रहा था, और मस्ती मे नाचता गौरव हॉस्टिल पहुँचा.

ख्यालों मे ही डूबा रहा वो सैली के, अपने कमरे मे पहुच कर भी. बीती रात भर का जागा था, शाम को हालत ऐसी ना थी कि वो जाग सके, और ज़ज़्बा ये भी कमाल था जबसे वो सैली से मिल आया था, फिर आज रात आँखों मे काट रहा था. रात के 12 बजे होंगे जब उसके मोबाइल पर सैली का मेसेज आया... "जाग रहे हैं क्या"


गौरव ने जब मेसेज पढ़ा तो फोन उठाकर चूम लिया, और जितनी जल्दी टाइप कर सकता था किया.... ह्म्म्मो, नींद नही आ रही.


सैली एसएमएस .... आप फेसेबूक पर है क्या 


गौरव रिप्लाइ .... हां, अकाउंट है पर ऑनलाइन नही आ पवँगा. डब्बा मोबाइल 


सैली .... कोई बात नही, क्या कर रहे थे 


गौरव रिप्लाइ ..... क्या कर सकता हूँ आप बताएए 


सैली..... रात को वैसे आप जाग कर, कर भी क्या सकते हैं 


मसेज पढ़ कर गौरव हँसते हुए....... आररी, रात मे मैं वही कर रहा था जो इंडिया के ऑलमोस्ट सभी यूत करते हैं... 


सैली .... :ओ क्या :ओ


गौरव.... पढ़ाई और क्या, पर ये शॉकिंग एक्सप्रेशन, 8)


सैली.... हहे, मुझे लगा अपनी गर्लफ्रेंड के ख़यालों मे खोए होंगे, लॉल


गौरव.... हां, कुछ ऐसा ही था, पर 50% सिर्फ़ मेरी तरफ से, उसके दिल का हाल पता नही. 


सैली.... शायद उसका भी 50% हो, पर आप ने पुछ्ने की कोशिस नही किए हो. 


गौरव...... कसम से कोई ब्लड प्रेशर की रीडिंग ले तो अभी 1200/900 हो, और धड़कनें 72/मिनट के बदले इन्फिनिट काउंट से धड़क रही हो. 


सैली.... ऐसा क्यों भला :ओ


गौरव.... कुछ कुछ होता है सैली तुम नही समझोगी :'(


सैली..... किसी को समझने के लिए मुलाक़ातों की नही एहसासों की ज़रूरत होती है, तुम नही समझोगे क्रेज़ीबॉय ..... :'( . कल मिलती हूँ 


गौरव.... गुड नाइट 

ये उम्र, और लव अट फर्स्ट साइट, और आग दोनो तरफ बराबर. गौरव फोन को चूमते हुए सीने से लगाए खोया ही रहा. ख्वाब एक प्यारा सा जिसे खुली आँखों से देखते, कब गौरव नींद की आगोश मे गया पता ही नही चला.

सुबह जब सैली तैयार हुई, तो आज बिल्कुल अलग ही दिख रही थी. हां ! था तो परिधान रोज के ही जैसा पर आज उसके उपर जो मेक-अप किया था उस से इरादे सॉफ जाहिर हो रहे थे कि, किसी को अपने रूप से घायल करने निकली है. 

यही होता है अक्सर जब प्यार होता है, आईने के पास घंटो बैठ कर लड़किया खुद को निहारते हुए ये सोचती हैं, आज इस रूप को वो पसंद तो करेंगे ना. पर उन्हे क्या पता वो सँवर्ती एक के लिए हैं और घायल पूरा जहाँ होता है.

अंकित जब कॉलेज ले जाने के लिए सैली के यहाँ पहुँचा तो उसे देख कर देखता ही रह गया.


सैली.... क्या हुआ मोटू, ऐसे क्यों रिएक्ट कर रहा है जैसे पहली बार देखा है.


अंकित.... सैली, तू पागल हो गयी है क्या, जा मुँह धो कर आ.


सैली बिल्कुल चौुक्ते हुए .... क्या हुआ चेहरे पर कुछ लगा है क्या ?


अंकित थोड़े गुस्से मे झुँझलाकर बोलते हुए .... क्यों तू आईना नही देखती क्या ? क्या हम कोई पार्टी मे जा रहे हैं, या शादी मे जो ऐसे मेक-अप कर के निकली है.


सैली मुस्कुराती हुई.... हहे, खूबसूरत दिख रही हूँ ना.


अंकित.... तू पागल दिख रही है, ऐसे तैयार होकर क्या कोई कॉलेज जाता है ?


अंकित का कहना अपनी जगह बिल्कुल सही था, सैली का इस तरह से तैयार होकर निकलना उसे अच्छा नही लग रहा था, पर सैली ने काफ़ी गुस्सा जाहिर किया उसकी फालतू की मेनटॅलिटी पर और मुँह चढ़ाते बस इतना कह दी ... तुझे चलना है तो चल वरना मैने भी कॉलेज का रास्ता देखा है.


अंकित भी बिना कुछ बोले चुप-चाप उसे लेकर कॉलेज के रास्ते चल पड़ा. अंकित को ज़िद कर के सैली विजयनगर चौराहे पर रुकी, और बड़ी ही बेवाक अदा से वो चाय की तपरी मे गयी......


एक तो रूप लुभावन उपर से ये रिझाने का मेक-अप, ऐसा लग रहा था जैसे आज चाय की तपरी मे दो चार लड़कों का कतल हो जाए. मुस्कुराती वो एक नज़र सबको देखी, और गौरव को वहाँ ना देख कर खिला सा चेहरा मुरझा गया.


इधर चाय की तपरी मे सारे लड़के सैली को ही देख रहे थे, देख क्या रहे थे आए मिनिट भर भी नही हुआ होगा सैली को और सबने ना जाने कैसे-कैसे ख्वाब भी देख लिए थे.


नेनू अपने चाय का ग्लास टेबल पर रखते हुए... क्या हुआ सैली, क्या बात है, बिल्कुल कतल के इरादे से आज.


सैली..... हहे, नेनू ये टॉंट था या कॉंप्लिमेंट.


नानउ.... अब जो समझिए मेडम. वैसे यहाँ किसी खास वजह से आई हैं क्या ?


सैली को ना जाने क्यों, पर नेनू की बातें टॉंट ही लग रही थी, और जब ऐसा लगा तो चिड़ी सी आवाज़ मे कहने लगी..... कुछ नही नेनू, क्रेज़ीबॉय आज नही आया क्या ?


नेनू.... क्या बात है सैली, गौरव को ढूंड रही हो, बस चन्द मुलाक़ातों मे ही बात क्या है, वो भी ऐसे मेक-अप के साथ. उसपर बिजली गिराने का इरादा तो नही.


ना जाने क्या हुआ सैली को, इस तरह से बात सुनकर बिल्कुल जैसे चिढ़ गयी हो .... माइंड युवर ओन बिज़्नेस नेनू, तुम होते कौन हो इस तरह से मुझे कहने वाले.


नेनू.... ऊप्स ! लगता है भड़क गयी मिस, सो सॉरी मैं तो ऐसे ही पुच्छ रहा था.


सैली.... मैं सब समझती हूँ कैसे पुच्छ रहे थे. सॅडू सी सोच है ना तुम्हारी, तो ख्यालात गंदे ही होंगे ना.


नेनू.... सुनो सैली, जो मुँह मे आया बक रही हो, इतना भी नादान नही जो मैं इशारे नही समझता. दूर ही रहो मुझसे तो बेहतर होगा. और एक बात याद रखना गौरव मेरा दोस्त है, और मैं जो कहूँगा वो वही करेगा.


सैली चिढ़ती हुई उस चाय की तपरी से निकली, गुस्सा जैसे अंदर का बाहर तक फुट रहा हो, कॉलेज भी नही गयी और गुस्से मे लाल होकर वापस घर लौट आई.


4पीयेम बजे के करीब गौरव ने सैली को कॉल किया, और पुछ्ने लगा कॉलेज से वापस आई कि नही. सैली ने अनमने ढंग से सिर्फ़ इतना कही आज घर पर काम था इसलिए कॉलेज नही जा सकी.


आज की बातों मे गौरव को वो हलचल मचाने वाली सैली नही मिली, बल्कि एक शांत और खामोश अपने स्वाभाव के विपरीत वाली सैली दिखी. उसे जब ये एहसास हुआ कि सैली कुछ परेशान सी दिख रही है तब उसने मिलने की ज़िद किया.
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12-27-2018, 01:43 AM,
#19
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
सैली ना ना करती आख़िर राज़ी हुई और दोनो मिले. गौरव ने जब सैली को देखा तो अवाक रह गया. जैसे दिल मे बेचैनी सी हो गयी हो, उसका चेहरा बिल्कुल उतरा हुआ और आँखें ऐसी लग रही थी जैसे बैठ कर कितनी देर रोई हो.


गौरव जैसे ही उसके पास पहुँचा, सैली का हाथ थाम कर बड़ी बेचैनी से पुच्छने लगा कि "क्या हुआ सैली, और तुम रो क्यों रही थी? 


सैली बिना कोई जवाब दिए बस उस से लिपट कर रोने लगी. बहुत पुछा गौरव ने लेकिन सैली सिर्फ़ इतना कही..... "घर मे डाँट दिया मुझे, इसलिए रोना आ रहा है. सॉरी मैने आप की शाम बिगड़ दी. अब प्लीज़ मुझे जाने दीजिए".


इतना कह कर सैली चली गयी. यूँ तो चाय की तपरी पर उतनी भी सीरीयस बातें नही हुई थी, पर कभी-कभी छोटी-छोटी बातें भी बड़ा दर्द दे जाती है, और शायद यही वजह हो कि सैली बस उन बातों को याद कर कॉलेज भी नही गयी और रोना भी आ रहा हो.


गौरव बहुत आवाज़ लगाता रहा लेकिन सैली ने कोई रेस्पॉंड नही की. जैसे कोई तीर चुभो रहा हो गौरव के सीने मे, और सीने से उठती दर्द की लहर पूरे बदन मे दौड़ रही हो. 


दो दिन की ही तो मुलाकात थी, और ये कैसा जादू था सैली का, या उसके प्यार का, कि दिलों दिमाग़ पर सैली ही हावी थी. दर्द का भंवर जैसे सिने मे उठ रहा हो गौरव के, और उसी दर्द मे मायूस हॉस्टिल वापस आकर लेट गया.

आज फिर से नेनू शाम के टाइम गौरव को लेने आया, पर गौरव की हालत देख कर, वो उसके पास बैठ गया....


नेनू.... क्या हुआ तुझे, तेरी तबीयत तो ठीक है ना ?


गौरव..... कुछ नही यार बस यूँ ही, मैं आज साथ नही चल पाउन्गा, तू चला जा घूमने.


नेनू..... गौरव मैं कल से देख रहा हूँ तुझे ऐसे, आख़िर बात क्या है, कहीं तू सैली के चक्कर मे तो नही पड़ा.


गौरव थोड़ा अस्चर्य से देखते हुए.... चक्कर से क्या मतलब नेनू, तू ज़रा खुल कर बताएगा ?


नेनू.... खुल कर क्या बताना, बस इतना जान ले कि तू जैसा सोचता है वैसी बिल्कुल बात नही है, वो बस ... बस तुम्हे अपना टाइम पास समझती है. 


फिर नेनू ने सुबह हुई सारी घटनाओ को बता दिया. गौरव बहुत ध्यान से सुन रहा था. जब नेनू ने अपनी पूरी बात समाप्त किया तो गौरव को लगने लगा कहीं ना कहीं सैली सुबह की बात को दिल से लगाए बैठी है, और जब ये ख्याल आया, उसे नेनू किसी जला हुआ इंसान की शक्ल मे नज़र आया जो उसका प्यार बस्ता नही देखना चाहता.


गौरव... नेनू तुमने ठीक नही किया, तुम्हे उस पर चिल्लाना नही चाहिए था.


नेनू.... वाह दोस्त, तुम्हे मेरी ही ग़लती नज़र आई. उसने तेरे कान भर दिए और तुम भी उसी की बोली बोलने लगे.


गौरव..... नेनू पता है तुम्हारी प्राब्लम क्या है, तुम्हे लगता है कि तुम जो सोचते हो और करते हो वो सब सही है. पर दोस्त हर बात अपनी राय कायम ना करो. और रही बात सैली की, यदि तुम्हे लगता है कि उसने मुझे कुछ कही है तुम्हारे बारे मे, तो तुम ग़लत हो. एक बार भी उसके ज़ुबान पर ना तो तुम्हारा और ना ही सुबह की घटना का कोई वर्णन था.

"यही अंतर है तुम दोनो मे, तुम्हे सैली मे अब भी वो बदतमीज़ लड़की नज़र आती है. जबकि बुरा तो हम ने भी उसके साथ किया, पर उसके दिल मे पिच्छली बातों की कोई धारणा नही. सॉरी बाद मे बात करता हूँ, अभी थोड़ा काम से जाना है".


गौरव की जानकारी मे सुबह की बात आते ही वो भी नेनू पर थोड़े गुस्से मे निकला, पर जैसे-जैसे आगे बढ़ता रहा नेनू और अपनी पुरानी बातें याद आती गयी, ग़लतफहमी का मामला ज़्यादा नज़र आया और थोड़ा सा अफ़सोस करता हुआ वो अपनी सोच मे आगे बढ़ता रहा.


पहुँच गया फिर एक बार ट्रेषर आइलॅंड, जहाँ कल के हुए वाकये ने दिल मे हलचल मचा दी, वहीं सैली का रोना देख कर आज दिल मे कसक सी उठी थी. गौरव मोबाइल निकालता हुआ सैली को कॉल करने लगा ....


सैली .... हां गौरव जी बोलिए


सैली के ज़ुबान से गौरव सुन कर जैसे कोई तीर चुभा हो, अजीब ही फीलिंग है जब प्यार करने वाले की भाषा मे कोई बदलाव हो, ख़ासकर वो बदलाव आप को एहसास करता हो कि आप की चाहत आप से दूर जा रही है.


गौरव खुद को संभालता हुआ..... सैली आज मैं अकेला हूँ उसी जगह जहाँ कल तुम थी, क्या तुम मुझे शॉपिंग करवा दोगि.


सैली.... सॉरी गौरव, मैं शायद आ ना पाऊ, तबीयत ठीक नही लग रही.


गौरव.... सैली प्ल्ज़ ना.......


सैली.... बात तो समझिए, आज थोड़ी अपसेट हूँ. कल का प्रॉमिस.


गौरव मायूस मन से "ठीक है" कहता हुआ फोन रख दिया. हालात को सोचते हुए उसने थोड़ा स्पेस देने का ही फ़ैसला किया. खुद मे थोड़ा उलझा थोड़ा खाली सा महसूस करते हुए हॉस्टिल पहुँचा.


आज तो जैसे भूख प्यास ही मिट गयी हो, बिना खाए बिस्तर पर लेटा रहा. रात मे जब तक जगा रहा तबतक सैली के मेसेज आने का इंतज़ार करता रहा ... 


आज कस्टमर केर को गौरव खूब गालियाँ दे रहा था क्योंकि जब भी कस्टमर केयर के मेसेज आए गौरव का दिल जोरों से धड़कने लगता .. "कहीं ये मेसेज सैली का तो नही". और कसमर केर का नंबर देख कर .. दिल से 3/4 गालियाँ देकर फोन रख देता.


सुबह गौरव की नींद खुली और सुबह-सुबह वो पहुँचा विजानगर चौराहा. चाय वाले को आश्चर्य भी हुआ .. क्योंकि गौरव सुबह के 4.30 बजे पहुँच गया था. खैर, 8/10 कप चाय पीता गौरव किसी तरह 6.30आम बजे तक का समय काटा, फिर उसके सारे दोस्त भी पहुँचे उस चाय की तपरी पर.


गौरव का थोड़ा सा टाइम पास होने लगा. गौरव सब से बात कर रहा था पर नेनू को बिल्कुल इग्नोर कर रहा था. ऐसा नही था कि बात नही कर रहा था, पर उतना ही जितना पुछा गया हो.


समय बीत'ते-बीत'ते अंकित भी कॉलेज के लिए जाता नज़र आया पर उसके साथ सैली नही थी. गौरव को लगा शायद अकेली जाएगी इसलिए वो वहीं राह तकते इंतज़ार करने लगा. एक-एक करके उसके सारे दोस्त चले गये पर गौरव रुका रहा.


सुबह से दिन और दिन से शाम होने वाली थी. गौरव के लिए हर पर जैसे सदियों इंतज़ार मे काट रहा हो. वहीं बिता दिया पूरा दिन, फिर जब उसे लगा कि शायद सैली आज नही आई होगी,तो चिंताओं मे डूबा उठा और आहिस्ते कदमो से चल पड़ा.


बस सोच मे डूबा चला जा रहा था, तभी अंकित की बाइक गौरव के सामने रुकी.....


अंकित..... गौरव भाई, कहाँ खोए हुए हो...

गौरव ने एक बार अंकित को देखा .. "कुछ नही होस्टल जा रहा हूँ" .. कहते हुए आगे बढ़ गया.


अंकित फिर टोका उसे .... गौरव भाई उल्टे रास्ते पर हो, हॉस्टिल तो आप का उस तरफ है.


लेकिन अंकित की बातों का कोई भी असर नही था गौरव पर, वो बस अपनी चिंताओं मे डूबा चला जा रहा था. 


अंकित बस मन मे सोचता.. "इसे क्या हुआ" ... और चल पड़ा अपने रास्ते. जब लौट कर आया अंकित अपने घर, तो सैली भी वहीं बैठी थी, और उसके पेरेंट से बात कर रही थी. अंकित भी महफ़िल मे शामिल हो गया".


बातों के दौरान अंकित ने हँसते हुए गौरव की भी हालत बयान कर दिया ये कहते हुए .... "हमारा एक दोस्त पागल हो गया"


सैली चौुक्ति हुई पुच्छने लगी .... कौन, क्यों


अंकित... क्यों का तो पता नही सैली, पर क्रेज़ीबॉय को देख कर लगा जैसे मानसिक संतुलन खो दिया हो. कह रहा था हॉस्टिल जा रहा हूँ और जा उल्टी दिशा मे रहा था. हा हा हा हा.....


भौह चढ़ाती सैली, अंकित को घूर्ने लगी, मानो ऐसा कह रही हो ... "चुप हो जा नही तो खून कर दूँगी" ..... सैली काम का बहाना कर के वहाँ से निकली, और बिना कोई देरी किए विजानगर रोड पर चल दी. 


सैली ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही निकला. गौरव एक एक कदम, हर 5 सेकेंड पर जैसे रख रहा हो, चिन्ताओ और चेतनाओ मे डूबा बस खोया चला जा रहा था. सैली दूर से ही देखी, स्कूटी को बिल्कुल उसके सामने ब्रेक लगाई और रास्ता रोक कर गौरव को गुस्से मे देखने लगी.

"बैठो चुप-चाप".......


सैली को देखते जैसे थोड़ा सुकून सा महसूस किया हो गौरव ने, बिना कुछ बोले वो स्कूटी पर बैठ गया. सैली भी बिना कुछ बोले चल पड़ी. तकरीबन 10मिनट के बाद गाड़ी इंडियन कॉफी हाउस के पास रुकी और दोनो ने अपनी जगह ले ली एक टेबल पर.


गौरव, सैली के सामने चुप-चाप बैठा रहा, और सैली भी बैठ कर बस गौरव को ही देख रही थी.....


"अब कुछ कहोगे, या यूँ ही बैठे रहे" ... सैली थोड़ी चिढ़'ती हुए बोलने लगी.


गौरव.... मैं क्या कहूँ, तुम बताओ तुम कैसी हो ?


घुर्राती हुए सैली बोल पड़ी...... अनन्नह ! मुझे से ही पुच्छ लो मैं कैसी हूँ, मिस्टर. क्रेज़ीबॉय जाओ पहले वॉशरूम, आएने मे चेहरा देखना और हो सके तो मुँह धोकर आना.


गौरव ने सवालिया नज़रों से सैली को देखा, कि आख़िर वो कहना क्या चाह रही है, सैली ने भी प्रति-उत्तर मे कहने उसे ज़ोर से बोल पड़ी .... अब जाओ भी ! मेरा मुँह क्या तक रहे हो ?


गौरव कप-चाप उठकर वॉशरूम गया, अब तो दिल थोड़ा शांत था, तो अपनी सूरत भी देखी एक बार आईने मे ..... "यक्क, ये कौन है, छ्हि... इतना ब्क्वास लुक" .. गौरव ने चेहरे पर पानी मारा, बालों पर हल्का पानी डाल कर उसे थोड़ा सेट किया .... "नाउ लुक बेटर क्रेज़ीबॉय" ... मुस्कुराता खुद से कहता हुआ वापस चल दिया.


आकर सीधा सामने बैठ'ते हुए पुच्छ ने लगा..... "नाउ इट'स फाइन"


सैली..... हां, पहले से ठीक है. अब जर्रा ये बताओगे कि ये सब चल क्या रहा है ?


गौरव.... क्या सब, थोड़ी डीटेल प्लीज़, समझा नही.


सैली..... क्या डीटेल क्रेज़ीबॉय, जान कर भी अंजान ना बनो. ये पागलों की तरह दिन भर सड़क की खाक क्यों छान रहे थे और खुद का ऐसा हाल क्यों बनाए रखा है ?


गौरव....... कुछ नही, बस ऐसे ही. तुम कल क्यों रो रही थी ?


सैली आँखे गुर्राते हुए ...... पहले मैं पुछि इसलिए मेरे सवालों का जवाब दो, सवाल का जवाब सवाल से मत दो.


गौरव.... जवाब इसी बात से जुड़ा है, इसलिए सवाल किया.


गौरव की बात से सैली चिढ़ती हुई..... रहने दो मुझे कोई बात हे नही करनी इस पर अब, सुबह से कुछ खाए कि नही, सच बताना, झूट बोला तो खून कर दूँगी तुम्हारा.


गौरव.... अर्रे हंस कर एक नज़र इधर प्यार से देख लो मर तो वैसे ही जाएँगे, तुम खून कर के जैल क्यों जाना चाहती हो.


सैली.... मज़ाक सूझ रहा है तुम्हे, क्रेज़ीबॉय प्लीज़, इस वक़्त मैं मज़ाक के मूड मे बिल्कुल नही हूँ, तुम किसी भी बात का सीधे-सीधे क्यों नही जवाब देते....



गौरव.....

सूरत-ए-हाल वो सब मालूम किए, अंजाने से बैठे
वो सवालों मे खुद की ख्वाइश का, जवाब ढूँढ'ते हुई
हम बेसबरे कि उन्हे देख बस, दिल की आवाज़ सुनते हैं
और वो हैं कि, झूठी नाराज़गी से अंदर ही अंदर मुस्कुराते हैं


मूलयज़ा फरमाईएगा हुजूर ...

जब से देखी तेरी सूरत, खुद का होश कहाँ रहा बकीन
हम तो देख आप की इस सूरत, खुद को भूल जाते हैं
तेरी सूरत ऐसी कि देखते, कोई बात समझ नही आती
बस फिर दिल से जो आवाज़ निकली, वही सुना जाते हैं



सैली क्या रिएक्ट करती थोड़ी सी मुस्कुराइ, गौरव के बालों पर हाथ फेरी, और कहने लगी .... "पागल कहीं के, सच मे तुम्हे लोग क्रेज़ीबॉय क्यों कहते हैं मुझे समझ मे आ रहा है".


दोनो हँसने लगे, वहाँ फिर थोड़ा सा अल्पाहार लिया, और वापस से स्कूटी पर बैठ उड़ लिए दोनो.
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12-27-2018, 01:43 AM,
#20
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
गौरव..... इतनी तेज क्यों चला रही हो, धीमे चलाओ, और हम जा कहाँ रहे हैं


सैली.... क्या ?


गौरव..... अर्रीयी मेडम स्कूटी तो धीमे करो, तब तो आवाज़ सुनाई देगी.


सैली स्कूटी रोकती हुई ... क्या है, क्यों चिल्ला रहे पिछे से.


गौरव दोनो हाथ जोड़ते .... देवी जी कृपा कर आप अपनी वहाँ की गति धीमे रखिए, मेरे हृदय-पटल पर डर की अजीब सी कंपन होती है.


सैली.... प्लीज़, कवि सम्मेलन वाली भाषा मे बोलना बंद करो क्रेज़ीबॉय, नही तो अगली बार बोले तो सिर फोड़ दूँगी, अब बैठो चुपचाप, नो आवाज़ अब एक भी, जो भी कहना-सुन'ना है वो पहुँच कर.


गौरव.... लेकिन हम जा कहाँ रहे हैं ?


सैलीय.... सीईईईईई, एक दम साइलेंट, और बैठो चुप-चाप.


गौरव बेचारा शांति से बैठ गया. इश्स बार जब स्कूटी स्ट्रॅट हुई तो पहले से ज़्यादा तेज थी. इतना डर गया गौरव की पिछे के गार्ड को मजबूती से थामे बस "हे भगवान, हे भगवान" कर रहा था.


दोनो एक पार्क मे पहुँचे, शाम ढाल रही थी, और पार्क की सुनहेरी रौशनी जल रही थी. गौरव और सैली एक कोने की बेंच पर जाकर बैठे.





गौरव.... मेरा हार्ट-बीट अब भी बढ़ा हुआ है, लड़की होकर इतनी तेज स्कूटी क्यों चलाती हो ?


सैली... क्या तेज ड्राइव करना लड़कों का ही ट्रेडमार्क है. प्रियंका की चेली हूँ, वाइ शुड ओन्ली बाय्स हॅव फन.


सैली इतना बोलकर ज़ोर से हँसने लगी, और गौरव उसकी इस अदा पर एक बार फिर जैसे घायल हो गया. बस एक टक उसका हसना ही देख रहा था.


सैली.... ह्म्‍म्म ! सो मिस्टर. क्रेज़ीबॉय बहुत हसी मज़ाक हो गयी, अब आप क्या बताएँगे अपने इस खूबसूरत हुलिए का राज. आख़िर हुआ क्या था जो सुबह से भूखे प्यासे भटक रहे थे सड़कों पर.


गौरव... लेकिन तुम्हे कैसे पता सुबह से मैं भटक रहा था ?


सैली.... मुझे अंकित ने सब बताया, अब बोलॉगे भी......


सैली गुर्राती हुई उस से पुच्छने लगी, गौरव थोड़ा संजीदा होते हुए अपने अंदर हो रहे हाल को बयान करने लगा .....



गौरव.... अब जाने दो ना, अभी तो हॅपी हूँ ना, अब क्या बीती बातें याद करना.


सैली.... बताते हो या मैं जाउ, कब से देख रही हूँ, बस मेरे सवाल को टाल कर इधर उधर की बातें कर रहे हो.


गौरव मन मे कहता हुआ..... "यार, मैने अपना दिल रख दिया इसके सामने, पर जिद्दी लड़की, इसे तो बस मेरी बेबसी की कहानी मे इंटरेस्ट है, बता दे क्रेज़ीबॉय, नही तो रूठ कर भाग गयी तो फिर आज जागना पर सकता है"


गौरव, फिर बोलना शुरू किया..........


"सैली, जब तुम कल परेशान सी मेरे पास रो रही थी, तो मुझे अंदर से दर्द हो रहा था, पता नही क्या हो गया मुझे पर तुम्हे उदास देख कुछ भी अच्छा नही लग रहा था. मैं रूम पर आ कर बस लेटा था".

"शाम मे नेनू आया, और इस तरह से लेटे होने का कारण पुच्छने लगा, मैने बात को टाल दिया, तब उसने सीधे शब्दों मे कहा, कि ये सब तुम्हारी वजह से हो रहा है". 

"मैने कारण पिच्छा तो उसने फिर कल के सुबह की घटना बताई, वो जैसे ही बताया मुझे लग गया कि तुम नेनू की बातों को दिल से लगाई हो, और इसी वजह से उदास भी हो. झूठ नही कहूँगा लेकिन इस बात के लिए मैने नेनू से नाराज़गी भी जताई, कि उसे तुम पर चिल्लाना नही चाहिए था".

"मैं उसके तरफ से माफी माँगता हूँ. कल सुबह वाली घटा का भी ज़िम्मेदार शायद मैं ही हूँ, क्योंकि दो दिनो से मैं नेनू के साथ कहीं नही जा रहा और तो और यदि कल सुबह मैं वहाँ होता तो इतनी बातें भी नही होती".

"हम दोनो एक दूसरे से काफ़ी जुड़े हैं, और सच तो ये है कि दो तीन दिनो से मुझे वो खोया-खोया देख कर, उसे लगा मैं उस आए दूर जा रहा हूँ और फिर तुम्हे इन सब का कारण मानते हुए, जो उसके मन मे आया वो कह दिया. मुझ से बहुत प्यार करता है ना, और उसका हक़ पहला है, पर शायद मैने ही उस से अलग हो रहा हूँ"

"और हां सुबह मैने नेनू को सज़ा भी दे दिया, वो अब दोबारा नही कुछ कहेगा तुम्हे, सुबह मैं बस तुम दोनो का कोल्ड-वॉर ख़तम करना चाह रहा था इसलिए वहाँ गया था, पर जब तुम नही आई तो मुझे लगा अब भी बात को शायद दिल से लगाई हो... और मैं .........

सैली बड़े गौर से सुन रही थी गौरव को, बस जो सैली को समझ मे आया वो उसके लिए काफ़ी था. थोड़ा उलझा था दोस्त को लेकर, और दोनो को चाहता था इसलिए दोनो से शायद दूर नही जाना चाहता था. पर दो बातें क्लियर थी... एक वो सैली को चाहता था और दूसरी कि नेनू सिर्फ़ दोस्त नही उस से बढ़ कर था.


सैली.... पागल, दो लोगों के बीच तो झगड़े होते रहते हैं, तुम्हारा सुलह करना भी जायज़ है ये भी मानती हूँ, पर ऐसे भिकारियों की तरह भूखे प्यासे दिन भर घूमने से क्या सल्यूशन मिलेगा. जल्दी बताओ ये पागलपन क्या सोच कर किए ....



"सैली तुम इसे पागलपन कहती हो पर ये मेरे दिल को सुकून दे रहा था. मैं तुम्हे रोता देख बर्दास्त नही कर पाया". 

"क्या तुम्हे पता है, जब भी मैं तुम्हे देखता हूँ, ये यहाँ, मिड्ल ऑफ हार्ट एक अजीब सा फ्लो पैदा होता है. ये क्या है पता नही, पर जब भी तुम पास होती हो कुछ-कुछ होता है".

"हर समय बस तुम्हारा हे चेहरा आँखों के सामने होता है, मैं समझा नही पा रहा अब भी की आक्च्युयली अंदर से क्या होता है, बस इतना कहना चाहूँगा तुम जब साथ होती हो तो सब हॅपी-हॅपी हो जाता है, मेरा मॅन झूमने को करने लगता है, नाचने को करने लगता है. तुम्हे बाहों मे भरने का दिल करता है".


इतना बोलने मे मगन था क्रेज़ीबॉय, कि जो दिल मे आया बोल दिया. सैली चकित नज़रों से देखती बस उसके मुँह से निकला .... "किययाया"


गौरव को जब ध्यान आया तो बड़ी प्यारी मुस्कान देते मुँह से धीमे निकल गया "आररीए", क्या जवाब देता वो, इसलिए चुप रहने मे ही अपनी भलाई समझा, और शांत होकर बैठा रहा...


सैली...... फ्लीर्टिन हुन्न्ं ! मुझे पटा रहे हो मिस्टर क्रेज़ीबॉय, आख़िर तुम जानते ही कितना हो मुझे, मैं जैसी दिखती हूँ वैसी बिल्कुल नही, पहले मेरे साथ कुछ समय तो बिता लो... ख़तनाक हूँ मैं.


गौरव..... मेडम, कयि सालों की मुलाकात नही, प्यार की बस एक नज़र चाहिए दिल मे उतरने के लिए. रही बात तुम्हे जान'ने की, तो दिल जिसे चाहता है उसे अपना बना लेता है, इसमे अफीशियल जान पहचाहन की क्या ज़रूरत. और रही बात आप के खरनाक होने की तो आइ फील रियली आवेसम ... जब तुम खरनाक सा रूप दिखओगि. 


सैली.... अच्छा सीरियस्ली बताओ, कितने दिन हुए मिले और कितनी मुलाक़ातें हुई हैं ?


गौरव.... रूको जोड़ने दो.... उम्म्म्मम, 1,2, 3, 4, 5 .... हां पाँच बार मिले हैं, और फोन कॉल मेसेज इंक्लूड कर दो तो 8 बार.


सैली.... ब्रावो, आप को तो ऑडिटर होना चाहिए. शांत रहो, और ये बताओ, कि क्या इतने मुलाक़ातों मे किसी का भरोसा किया जा सकता है ? 


गौरव के पास कोई जवाब नही था, वो बस इस सवाल का जबाव ढूँढने की कोशिस कर रहा था, प्रॅक्टिकली "नही" जवाब था, और दिल अंदर से चींख-चींख कर कह रहा था, "क्यों नही विस्वास किया जा सकता, हां बिल्कुल, तुम सोच भी नही सकती कि मैं तुम पर कितना विस्वास करता हूँ"


गौरव को शांत देख सैली एक बार फिर बोल पड़ी.... "अच्छा बहुत हुई इधर उधर की बातें, मैं डाइरेक्ट पॉइंट पर आती हूँ ... क्या तुम मुझे चाहते हो, क्या तुम मुझ से प्यार करते हो" ?


गौरव कुछ देर बस शांत रहा, सैली की बातों को सोचता रहा और थोड़ा स्पेस लेने के बाद कहने लगा .... 


यदि इसी को चाहत कहते हैं तो .... हाआंणन्न् ! यदि इसी को प्यार कहते हैं तो .... हान्णन्न् ! ... .. आइ आम इन लव .. और दिल के मामले मे दिमाग़ नही निपटा'ते, फिर क्या हुआ जो मैं तुम्हारे बारे मे नही जानता, या तुम से मुलाक़ातें नही हुई, पर एक अटूट विस्वास मुझे पहली मूलककत से थी"


"और मेरा क्या" ..... इतना कह कर सैली बिकुल शांत हो गयी. इतनी शांत बैठी थी की गौरव के दिल मे एक दर्द पैदा करने के लिए काफ़ी था, उसे लगा "कहीं अपने बारे मे हे तो केवल नही सोच लिया..... सैली का ख्याल क्यों नही रहा,..... क्या कोई और है उसकी जिंदगी मे........ मैं कोई ज़बरदस्ती तो नही कर रहा"....


पल मे आए मॅन मे इतने सारे सवालों ने गौरव को बिल्कुल हिला दिया, उसे फिर सैली दूर नज़र आने लगी. अजीब हाय्यी रे इश्क़, बोलने से ज़्यादा शांत रहना दिल मे दर्द का एहसास करा जाता है.....


गौरव.... आइ आम सॉरी सैली, पर क्या करूँ जब भी तुम्हे देखता हूँ खुद पर काबू नही रहता. यदि तुम्हे मैं पसंद नही तो कोई बात नही, मैं वादा करता हूँ कि तुम्हे कभी परेशान नही करूँगा .... बस जैसा तुमने पुछा मैं भी एक बार जान'ना चाहता हूँ...... क्या तुम्हारे दिल मे भी मेरे लिए फीलिंग्स है ?


दिल की धड़कनो को सुन'ना था "हां", मन कह रहा था कहीं "ना" ना कहे. कह तो दिया गौरव की दूर हो जाएगा, पर दूर होकर रहेगा कैसे ... मॅन ऐसा विचलित हुआ कि पिस कर रह गया हाँ-ना मे. 


सैली भी शांत, बिल्कुल मौन थी, चेहरे पर बिना कोई भाव के, जिस से गौरव और दुविधा मे चला जा रहा था ... हर पल बीत'ता, और हर पल मे जैसे गौरव की घुटन बढ़'ती जा रही हो........
गौरव के दिल की धड़कन जैसे धक-धक कर रही हो, और नज़रें बस सैली पर टिकी जवाब के इंतज़ार मे. सैली शांत बिल्कुल नज़रें ज़मीन पर गढ़ाए बैठी थी. 


गौरव से आख़िर बेचैनी बर्दास्त नही हुई, और बोझिल से आवाज़ मे कहने लगा .... "ठीक है सैली, तुम्हारी चुप्पी ने सब कह दिया. तुम्हे परेशान किया उसके लिए माफ़ कर देना".


इतना कहने के बाद गौरव पिछे मुड़ा और दो कदम चला ही होगा कि पिछे से सैली की आवाज़ आई ... "सुनो, साथ तो लिए चलो बुद्धू"


गौरव रुआंसी आँखों से जब मूड कर सैली को देखा, तो वो मुस्कुराती हुई खड़ी थी. फिर कुछ कहने की ज़रूरत नही पड़ी, गौरव तेज़ी से उसके पास पहुँचा और ज़ोर से गले लगाते हुए .. "तुम्हारी चुप्पी जान निकालने वाली थी, मैं तुम से दूरी बर्दास्त नही कर सकता"


सैली .... मैं भी मिस्टर. क्रेज़ीबॉय, तुम्हे क्या लगा जो मुझे छोड़ कर जा रहे थे.


गौरव... कुछ नही माइ लव, आइ लव युयुयूवयू, आइ लव यू सूओ मच.


सलिली..... हो गया बाबा बससस्स, हम पब्लिक प्लेस पर हैं, अब छोड़ो भी.


गौरव.... नई नई, अभी तो पकड़ा हूँ, अभी तो अच्छा लग रहा. आहह ! कितनी सुकून है. प्लीज़ कुछ देर.


सैली मुस्कुराती हुई यूँ ही गौरव से लिपटी रही, कुछ देर बाद दोनो अलग हुए एक दूसरे से, और दोनो लव बर्ड्स उड़ने को रेडी थे.


लेकिन उड़ने से पहले एक को बुखार चढ़ने लगा था, गौरव ने स्कूटी और सैली को देख कर सिर पीट लिया. गौरव बैठ तो गया पिछे, पर मिन्नते भी करने लगा.. "सैली प्लीज़, धीरे ड्राइव करना". 


लेकिन सुनता कौन है, सैली की स्पीड उतनी ही बढ़'ती जाती जितना गौरव पिछे से आवाज़ देता. गौरव का मुँह तो डर से सुख गया था और सैली ज़ोर-ज़ोर से हंस रही थी....


गौरव ज़ोर से चिल्लाते हुए ... सैली स्कूटी धीमे करो, नही तो मैं कूद जाउन्गा.


सैली ने दोनो ब्रेक एक साथ लगाया, इतनी तेज ब्रेक लगी कि गौरव पूरा लड़ गया सैली के उपर, सैली गाड़ी रोक कर उतरती हुई बरस पड़ी .....


"क्या है चिल्ला क्यों रहे हो, मैं डिस्ट्रब हो रही हूँ, आक्सिडेंट भी हो सकता है"


गौरव.... पर तुम इतनी तेज क्यों चला रही हो, धीमे भी तो चला सकती हो.


सैली... मुझे लग रहा है मैं अकेली बैठी हूँ, इसलिए ऐसे चला रही हूँ.


गौरव.... क्या मैं समझा नही.


सैली .... आनन्नह ! कुछ नही बैठ जाओ, समझ जाते पहले तो पार्क मे मुझ से सवाल ही क्यों करते. 


सैली चिढ़'ती हुई बैठी स्कूटी पर, और गौरव इस बार मुस्कुराता बैठा, स्कूटी स्पीड पकड़ते गयी, और गौरव बिल्कुल शांत बैठा था. अचानक से सैली की कमर के चारो ओर गौरव की बाहें लिपटी महसूस होने लगी, सैली के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गयी.


उसके कंधे पर अपना चेहरा गौरव टिकाते हुए..... तो मैने, मेडम को नही पकड़ के गार्ड को पकड़ा इसलिए पार्क मे मुझे आप सज़ा दे रही थी.


इस बार कुछ कहने की ज़रूरत नही थी, सैली ने खुद गाड़ी की स्पीड धीमी कर दी, धीमी भी नही कह सकते, साइकल से थोड़ी हे ज़्यादा होगी .. 15/20 के स्पीड मे. सैली अपना चेहरा थोड़ा राइट घूमती गौरव के गालों को चूमती हुई .... "यस, स्कूटी पर पहले तुमने मुझे सताया था, इसलिए पार्क मे मेरी बरी थी".


गौरव.... ओ' मेडम मैं तो नही साँझ पाया था, और तुम ने जान बुझ कर किया, ये तो चीटिंग है.


सैली..... तो सज़ा दे दो कोई भी प्यारी सी क्रेज़ीबॉय, मैं बिल्कुल बुरा नही मानूँगी.


गौरव एक बार सैली के गाल को चूमते हुए ... ह्म्‍म्म ! दे दिया सज़ा. इतनी सज़ा ठीक है आज के लिए.


सैली.... हाय्यी ! ऐसी सज़ा मिले तो, हम तो रोज खट्टा करने को तैयार हैं.


गौरव..... अच्छा, ऐसी बात है, एक काम करता हूँ, कुछ सज़ा अड्वान्स खाते मे जमा कर देता हूँ, तुम बाद मे खट्टा करती रहना.


"मुऊऊउ .... धम्म्म" ..... 

गौरव राइट कंधे से खुद को लेफ्ट पर लाया था, और कान के बगल से एक किस की पोज़िशन बनाई था, साँसों के गरम हवा जब टकराई कानो और गालों पर तब सैली की आँखें हल्की बंद हुई .... और... और .. स्कूटी फूतपाथ पर लगे एक ठेले मे जाकर घुस गयी.
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