Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
07-22-2018, 11:47 AM,
#31
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
अशोक की मुश्किल
भाग 9
मिलन की रात…


गतांक से आगे…
करीब रात के दो बजे पहले अशोक फ़िर महुआ की नींद खुली दोनों ने मुस्कुरा के एक दूसरे की तरफ़ देखा।
महुआ –“कहो कैसी रही। क्या ख्याल है मेरे बारे में?”
अशोक –“भई वाह तुमने तो आज कमाल कर दिया।”
महुआ –“कमाल तो चाचा के मलहम का है।”
अशोक –“भई इस कमाल के बाद तो मेरे ख्याल से इनका नाम चन्दू वैद्य के बजाय चोदू वैद्य होना चाहिये।
इस बात पर महुआ को हँसी आ गई, अशोक भी हँसने लगा। तभी चाची के कमरे से हँसने की आवाज आई।
अशोक –“लगता है ये लोग भी जाग रहे हैं चलो वहीं चलते हैं।
महुआ कपड़े पहनने लगी तो अशोक बोला –“कपड़े पहनने का झंझट क्यों करना जब्कि तेरा सब सामान चाचा ने और मेरा सब सामान चाची ने देखा और बरता है।”
सो दोनों यूँ ही एक एक चादर लपेट के चाची के कमरे में पहुँचे। चन्दू चाचा पलंग पर नंगधड़ग बैठे थे और चम्पा चाची उनकी गोद में नंग़ी बैठी उनका लण्ड सहला रही थी चाचा उनकी एक चूची का निपल चुभला रहे थे और दुसरी चूची सहला रहे थे। इन्हें देख चाची चन्दू चाचा की गोद से उठते हुए बोलीं –“आओ अशोक बेटा अभी तेरी ही बात हो रही थी।“
चन्दू चाचा – “आ महुआ बेटी मेरे पास बैठ।” कहकर चाचा ने उसे गोद में बैठा लिया।
अशोक –“मेरे बारे में क्या बात हो रही थी चाची?”
चाची (खींच के अशोक को अपनी गोद में बैठाते हुए)–“अरे मैंने इन्हें बताया कि मेरे अशोक का लण्ड दुनियाँ का शायद सबसे लंबा और तगड़ा लण्ड नाइसिल के डिब्बे के साइज का है। इसीपर ये हँस रहे थे कि धत पगली कही ऐसा लण्ड भी होता है। अब तू इन्हें दिखा ही दे।”
कहकर चाची ने अशोक की चादर खींच के उतार दी। इस कमरे में घुसते समय का सीन देख अशोक का लण्ड खड़ा होने लगा ही था फ़िर चम्पा चाची के गुदाज बदन से और भी टन्ना गया। चम्पा चाची ने अशोक का फ़नफ़नाता लण्ड हाथ में थाम के चन्दू चाचा को दिखाया –“ये देख चन्दू।”
चन्दू चाचा – “भई वाह चम्पा तू ठीक ही कहती थी, तो महुआ बेटी तूने आज ये अशोक का पूरा लण्ड बर्दास्त कर लिया या आज भी कसर रह गई।”
इस बीच महुआ अपने बदन से चादर उतार के एक तरफ़ रख चुकी थी, चन्दू चाचा के गले में बाहें डालते हुए बोली –“नही चाचा मैने पूरा धँसवा के जम के चुदवाया आपका इलाज सफ़ल रहा।”
चन्दू चाचा(उसके गाल पर चुम्मा लेते हुए) –“शाबाश बेटी!”
चाची (अशोक का लण्ड सहलाते हुए) –“अब तो तेरे इस चोदू लण्ड को मेरी भतीजी से कोई शिकायत नहीं।”
अशोक ने मुस्कुरा के चाची के फ़ूले टमाटर से गाल को होठों में दबा जोर का चुम्मा लिया और बायाँ हाथ उनके बाँये कन्धे के अन्दर से डाल उनका बाँया स्तन थाम दाहिने हाथ से उनकी चूत सहलाते हुए बोला- “जिसे एक की जगह दो शान्दार चूतें मिलें वो क्यों नाराज होगा।”
चाची (मुस्कुराकर अशोक का लण्ड अपनी चूत पर रगड़ते हुए) –“हाय इस बुढ़ापे में मैंने ये अपने आप को किस जंजाल में फ़ँसा लिया। चन्दू मैं तेरी बहुत शुक्रगुजार हूँ जो जो तू ने मेरी भतीजी का इलाज किया। जब भी इस गाँव के पास से निकलना सेवा का मौका जरूर देना। पता नहीं तेरे बाद मेरे गाँव की लड़कियों का कौन उद्धार करेगा ।”
चन्दू (महुआ के गुदाज चूतड़ों की नाली में लण्ड फ़ँसा के रगड़ते हुए)-“ मेरा बेटा नन्दू सर्जन डाक्टर है, उसे मैंने ये हुनर भी सिखाया है उसने पास के गाँव में दवाखाना खोला है वो न सिर्फ़ आस पास के गाँवों की लड़कियों की चूते सुधारता है बल्कि जवान औरतों की बच्चा होने के बाद या शौकीन चुदक्कड़ औरतों, बुढ़ियों की ढीली पड़ गई चूतें भी आपरेशन और मेरे मलहम की मदद से सुधार कर फ़िर से सोलह साल की बना देता है।”
ये सुन सबके मुँह से निकला वाह कमाल है तभी चन्दू चाचा मुस्कुराये और अशोक को आँख के इशारे से शुरू करने इशारा किया अशोक भी मुस्कुराया और अचानक चन्दू चाचा और अशोक ने चम्पा चाची और महुआ को बिस्तर पर पटक दिया और लण्ड ठाँस कर दनादन चुदाई शुरू कर दी, दोनों औरतें मारे आनन्द के किलकारियाँ भर रही थी। उस रात चन्दू चाचा और अशोक ने चूतें बदल बदल के धुँआदार चुदाई की।
अगले दिन अशोक और महुआ लखनऊ लौट गये चन्दू चाचा, चम्पा चाची के बचपन के बिछ्ड़े यार थे सो उस जुदाई के एवज में एक हफ़्ते तक रुक जी भरकर उनकी चूत को अपना लण्ड छकाते रहे।
अब सब की जिन्दगी मजे से कट रही है जिन दिनों महुआ महीने से होती है वो चम्पा चाची को लखनऊ बुला लेती है और उन दिनों चम्पा चाची अशोक के लण्ड की सेवा अपनी चूत से करती हैं महुआ के फ़ारिग होने के बाद भी अशोक दो एक दिन उन्हें रोके रखता है और एक ही बिस्तरे पर दो दो शान्दार गुदाज बदनों से एक साथ खेल, एक साथ मजा लेता है और चूतें बदल बदल कर चोदता है। इसके अलावा अशोक जब भी काम के सिलसिले में चम्पा चाची के गाँव जाता है और वादे के अनुसार चाची की चूत को अपने लण्ड के लिए तैयार पाता है । चम्पा चाची भी काफ़ी बेतकल्लुफ़ हो गई हैं चु्दवाने की इच्छा होने पर मूड के हिसाब से अशोक को या चन्दू चाचा को बुलवा भी लेती हैं या उनके पास चली भी जाती हैं।
तो पाठकों! जैसे अशोक और चम्पा चाची के दिन फ़िरे वैसे सबके फ़िरें।
समाप्त
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07-22-2018, 11:47 AM,
#32
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
फ्रेंड्स पेश है सलीम जावेद मस्ताना की तीसरी कहानी आपके लिए 

मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -1
चचा-भतीजा


तरुन 17 साल का छोकरा था उसका लण्ड हरदम खड़ा रहता था कुदरत ने उसके लण्ड में बड़ी ताकत भर दी है साला बड़ी मुश्किल से शांत होता था। पड़ोस में एक बल्लू नाम का जवान रहता था उन्हें तरुन और पूरे मुहल्ले के लड़के चाचा कहते थे, तरुन और बल्लू दोनो बड़े गहरे दोस्त थे। कई चालू लड़कियाँ भी उनकी दोस्त थीं जिन्हें दोनो साथ साथ चोदते थे।
उन्हीं में एक मोना नाम की लड़की थी। स्कूल बस में आते जाते; लड़कों के कंधों की रगड़ खा खा कर मोना को पता ही नही चला की कब कुल्हों और छातियो पर चर्बी चढ़ गयी.. जवानी चढ़ते ही मोना के नितंब बीच से एक फाँक निकाले हुए गोल तरबूज की तरह उभर गये. मोना की छाती पर भगवान के दिए दो अनमोल 'फल' भी अब 'अमरूदों' से बढ़कर मोटे मोटे 'बेलों' जैसे हो गये थे । मोना के गोरे चिट्टे बदन पर उस छोटी सी खास जगह को छोड़कर कहीं बालों का नामो-निशान तक नही था.. हलके हलके रोयें मोना की बगल में भी थे. इसके अलावा गर्दन से लेकर पैरों तक वो एकदम चिकनी थी. लड़कों को ललचाई नज़रों से अपनी छाती पर झूल रहे ' बेलों ' को घूरते देख मोना की जांघों के बीच छिपी बैठी हल्के हल्के बालों वाली, मगर चिकनाहट से भरी तितली के पंख फड़फड़ाने लगते और बेलों पर गुलाबी रंगत के 'अनार दाने' तन कर खड़े हो जाते.
दरअसल उसे अपने उन्मुक्त उरोजों को किसी मर्यादा में बाँध कर रखना कभी नही सुहाया और ना ही उनको चुन्नी से पर्दे में रखना. मौका मिलते ही ब्रा को जानबूझ कर बाथरूम की खूँटी पर ही टाँग जाती और मनचले लड़कों को अपने इर्द गिर्द मंडराते देख मज़े लेती.. अक्सर जान बूझ अपने हाथ ऊपर उठा अंगड़ाई सी लेती और बेल तन कर झूलने से लगते, उस वक़्त मोना के सामने खड़े लड़कों की हालत खराब हो जाती... कुछ तो अपने होंटो पर ऐसे जीभ फेरने लगते मानो मौका मिलते ही मुँह मार देंगे.
उसे पूरी उम्मीद थी तरुन पढ़ाने ज़रूर आयेगा । इसीलिए रगड़ रगड़ कर नहाते हुए मोना ने खेत की मिट्टी अपने बदन से उतारी और नयी नवेली कच्छी पहन ली जो उसकी मम्मी 2-4 दिन पहले ही बाजार से लाई थी," पता नही मोना! तेरी उमर में तो मैं कच्छी पहनती भी नही थी. तेरी इतनी जल्दी कैसे खराब हो जाती है" उसकी मम्मी ने लाकर देते हुए कहा था. मोना ने स्कूल वाली स्कर्ट डाली और बिना ब्रा के शर्ट पहन कर बाथरूम से बाहर आ गयी.
“निकम्मी! ये हिलते हैं तो तुझे शर्म नही आती?" उसकी मम्मी की इस बात को मोना ने नज़रअंदाज किया और अपना बैग उठा सीढ़ियों से नीचे उतरती चली गयी.
लड़के ने घर में घुस कर आवाज़ दी. उसे पता था कि घर में कोई नही है. फिर भी वो कुछ ना बोली. दर-असल पढ़ने का मन था ही नही, इसीलिए सोने का बहाना किए पड़ी रही. मोना के पास आते ही वो फिर बोला
"मोना!"
उसने 2-3 बार आवाज़ दी. पर उसे नही उठना था सो नही उठी. हाए ऱाम! वो तो अगले ही पल लड़कों वाली औकात पर आ गया. सीधा नितंबों पर हाथ लगाकर हिलाया,"मोना.. उठो ना! पढ़ना नही है क्या?"
बेशर्मी से वो चारपाई पर उसके सामने पसर गयी और एक टाँग सीधी किए हुए दूसरी घुटने से मोड़ अपनी छाती से लगा ली. सीधी टाँग वाली चिकनी जाँघ तो उसे ऊपर से ही दिखाई दे रही थी.. उसको क्या क्या दिख रहा होगा, आप खुद ही सोच लो.
"ठीक से बैठ जा! अब पढ़ना शुरू करेंगे.. " हरामी ने मोना की जन्नत की ओर देखा तक नही। एक डेढ़ घंटे में जाने कितने ही सवाल निकाल दिए उसने, मोना की समझ में तो खाक भी नही आया.. कभी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट को कभी उसकी पॅंट के मर्दाने उभार को देखती रही।
पढ़ते हुए उसका ध्यान एक दो बार मोना की चूचियो की और हुआ तो उसे लगा कि वो 'उभारों' का दीवाना है. मोना ने झट से उसकी सुनते सुनते अपनी शर्ट का बीच वाला एक बटन खोल दिया.
मोना की गदराई हुई चूचियाँ, जो शर्ट में घुटन महसूस कर रही थी; रास्ता मिलते ही सरक कर साँस लेने के लिए बाहर झाँकने लगी.. दोनो में बाहर निकलने की मची होड़ का फायदा उनके बीच की गहरी घाटी को हो रहा था, और वह बिल्कुल सामने थी.
तरुण ने जैसे ही इस बार उससे पूछने के लिए मोना की और देखा तो उसका चेहरा एकदम लाल हो गया.. हड़बड़ाते हुए उसने कहा," बस! आज इतना ही..
वो थक जाने का अभिनय कर के लेट गई। वो एक बार बाहर की तरफ़ गया मोना समझी कमबखत सारी मेहनत को मिट्टी में मिला के जा रहा है । पर वो बाहर नज़र मार कर वापस आ ग़या और मोना के नितंबों से थोड़ा नीचे उससे सटकर चारपाई पर ही बैठ गया.
वो मुँह नीचे किताब पर देख रही थी पर उसे यकीन था कि वो चोरी चोरी मोना के बदन की मांसल बनावट का ही लुत्फ़ उठा रहा होगा!
"मोना!"
इस बार थोड़ी तेज बोलते हुए उसने मोना के घुटनों तक के लहँगे से नीचे मोना की नंगी गुदाज पिंडलियों पर हाथ रखकर उसे हिलाया और सरकते हुए अपना हाथ मोना के घुटनो तक ले गया. अब उसका हाथ नीचे और लहंगा ऊपर था.
उससे अब सहन करना मुश्किल हो रहा था. पर शिकार हाथ से निकलने का डर था. चुप्पी साधे उसको जल्द से जल्द अपने पिंजरे में लाने के लिए दूसरी टाँग घुटनो से मोड़ और अपने पेट से चिपका ली. इसके साथ ही स्कर्ट ऊपर सरकता गया और मोना की एक जाँघ काफ़ी ऊपर तक नंगी हो गयी. मोना ने देखा नही, पर मोना की कच्छी तक आ रही बाहर की ठंडी हवा से उसे लग रहा था कि उसको मोना की कच्छी का रंग दिखने लगा है.
"मोना" इस बार उसकी आवाज़ में कंपकपाहट सी थी.. वो शायद! एक बार खड़ा हुआ और फिर बैठ गया.. शायद स्कर्ट उसके नीचे फँसा हुआ होगा. वापस बैठते ही उसने स्कर्ट को ऊपर पलट कर मोना की कमर पर डाल दिया..
उसका क्या हाल हुआ होगा ये तो पता नही. पर मोना की बुर में बुलबुले से उठने शुरू हो चुके थे. जब सहन करने की हद पार हो गयी तो अपना हाथ मूडी हुई टाँग के नीचे से ले जाकर अपनी कच्छी में उंगलियाँ डाल 'वहाँ' खुजली करने करने के बहाने उसको कुरेदने लगी. मोना का ये हाल था तो उसका क्या हो रहा होगा? सुलग गया होगा ना?
मोना ने हाथ वापस खींचा तो अहसास हुआ जैसे मोना की बुर की एक फाँक कच्छी से बाहर ही रह गयी है.
वो तो मोना की उम्मीद से भी ज़्यादा शातिर निकला. अपना हाथ स्कर्ट के नीचे सरकते हुए मोना के चूतड़ों पर ले गया....
कच्छी के ऊपर थिरकती हुई उसकी उंगलियों ने तो मोना की जान ही निकल दी. कसे हुए मोना के चिकने चूतड़ों पर धीरे धीरे मंडराता हुआ उसका हाथ कभी 'इसको' कभी उसको दबा कर देखता रहा. मोना की चूचियाँ चारपाई में दबकर छॅट्पटेने लगी थी. मोना ने बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाया हुआ था..
अचानक उसने मोना के स्कर्ट को वापस ऊपर उठाया और धीरे से अपनी एक उंगली कच्छी में डाल दी.. धीरे धीरे उंगली सरकती हुई पहले नितंबों की दरार में घूमी और फिर नीचे आने लगी.. मोना ने दम साध रखा था.. पर जैसे ही उंगली मोना की 'फूल्कुन्वरि' की फांकों के बीच आई; वो उच्छल पड़ी.. और उसी पल उसका हाथ वहाँ से हटा और चारपाई का बोझ कम हो गया..
मोना की छोटी सी मछ्ली तड़प उठी. उसे फ़िर लगा, मौका हाथ से गया.. पर इतनी आसानी से वो भी हार मान'ने वालों में से नही हूँ... सीधी हो मोना ने अपनी जांघें घुटनों से पूरी तरह मोड़ कर एक दूसरी से विपरीत दिशा में फैला दी. अब स्कर्ट मोना के घुटनो से ऊपर था और उसे विश्वास था कि मोना की भीगी हुई कच्छी के अंदर बैठी 'छम्मक छल्लो' ठीक उसके सामने होगी.
थोड़ी देर और यूँही बड़बड़ाते हुए मैं चुप हो कर पढ़ने का नाटक करने लगी. अचानक उसे कमरे की चिट्कनी बंद होने की आवाज़ आई. अगले ही पल वह वापस चारपाई पर ही आकर बैठ गया.. धीरे धीरे फिर से रेंगता हुआ उसका हाथ वहीं पहुँच गया. मोना की चूत के ऊपर से उसने कच्छी को सरककर एक तरफ कर दिया. मोना ने हल्की सी आँखें खोलकर देखा. उसने चस्मा नही पहना हुआ था. शायद उतार कर एक तरफ रख दिया होगा. वह आँखें फ़ाड़ मोना की फड़कती हुई बुर को ही देख रहा था. उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव अलग ही नज़र आ रहे थे..
अचानक उसने अपना चेहरा उठाया तो मोना ने अपनी आँखें पूरी तरह बंद कर ली. उसके बाद तो उसने उसे हवा में ही उड़ा दिया. चूत की दोनो फांकों पर उसे उसके दोनो हाथ महसूस हुए. बहुत ही करीब उसने अपने अंगूठे और उंगलियों से पकड़ कर मोटी मोटी फांकों को एक दूसरी से अलग कर दिया. जाने क्या ढूँढ रहा था वह अंदर. पर जो कुछ भी कर रहा था, उससे सहन नही हुआ और मोना ने काँपते हुए जांघें भींच कर अपना पानी छोड़ दिया.. पर आश्चर्यजनक ढंग से इस बार उसने अपने हाथ नही हटाए...
किसी कपड़े से (शायद मोना के स्कर्ट से ही) उसने चूत को साफ़ किया और फिर से मोना की चूत को चौड़ा कर लिया. पर अब झाड़ जाने की वजह से उसे नॉर्मल रहने में कोई खास दिक्कत नही हो रही थी. हाँ, मज़ा अब भी आ रहा था और मैं पूरा मज़ा लेना चाहती थी.
अगले ही पल उसे गरम साँसें चूत में घुसती हुई महसूस हुई और पागल सी होकर मोना ने वहाँ से अपने आपको उठा लिया.. मोना ने अपनी आँखें खोल कर देखा. उसका चेहरा मोना की चूत पर झुका हुआ था.. मैं अंदाज़ा लगा ही रही थी कि उसे पता चल गया कि वो क्या करना चाहता है. अचानक वो मोना की चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा.. मोना के सारे बदन में झुरझुरी सी उठ गयी..इस आनंद को सहन ना कर पाने के कारण मोना की सिसकी निकल गयी और मैं अपने नितंबों को उठा उठा कर पटक'ने लगी...पर अब वो डर नही रहा था... मोना की जांघों को उसने कसकर एक जगह दबोच लिया और मोना की चूत के अंदर जीभ डाल दी..
"अयाया!" बहुत देर से दबाए रखा था इस सिसकी को.. अब दबी ना रह सकी.. मज़ा इतना आ रहा था की क्या बताउ... सहन ना कर पाने के कारण मोना ने अपना हाथ वहाँ ले जाकर उसको वहाँ से हटाने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया," कुछ नही होता मोना.. बस दो मिनिट और!" कहकर उसने मोना की जांघों को मोना के चेहरे की तरफ धकेल कर वहीं दबोच लिया और फिर से जीभ के साथ मोना की चूत की गहराई मापने लगा...
फिर क्या था.. उसने चेहरा ऊपर करके मुस्कुराते हुए मोना की और देखा.. उसका उतावलापन देख तो मोना की हँसी छूट गयी.. इस हँसी ने उसकी झिझक और भी खोल दी.. झट से उसे पकड़ कर नीचे उतारा और घुटने ज़मीन पर टिका उसे कमर से ऊपर चारपाई पर लिटा दिया..," ये क्या कर रहे हो?"
"टाइम नही है अभी बताने का.. बाद में सब बता दूँगा.. कितनी रसीली है तू हाए.. अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर कर ले.."
"पर कैसे करूँ?..
दर असल मोना के तो घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे
"तू भी ना.. !" उसको गुस्सा सा आया और मोना की एक टाँग चारपाई के ऊपर चढ़ा दी.. नीचे तकिया रखा और उसे अपना पेट वहाँ टिका लेने को बोला.. मोना ने वैसा ही किया..
"अब उठाओ अपने चूतड़ ऊपर.. जल्दी करो.." बोलते हुए उसने अपना मूसल जैसा लण्ड पॅंट में से निकाल लिया..
मोना अपने नितंबों को ऊपर उठाते हुए अपनी चूत को उसके सामने परोसा ।
तभी दरवाजे पे दस्तक हुई और उसने नज़रें चुराकर एक बार और मोना की गोरी चूचियो को देखा और खड़ा हो गया....
उसकी मम्मी अन्दर आई और उसे साथ ले गईं।
मोना कमरे से बाहर आयी । मम्मी के कमरे के पास से निकलते हुए उसने अन्दर से आती आवाज सुनी-
"तुमने दरवाजे पर दस्तक दे कर सब गड़बड़ की है इसे अब तुम ही निबटाओ। 15 मिनिट से ज़्यादा नही लगाऊँगा..... मान भी जा चाची अब....
मोना ने झाँका भ्रम टूट गया.. नीचे अंधेरा था.. पर बाहर स्ट्रीट लाइट होने के कारण धुँधला धुँधला दिखाई दे रहा था...
"पापा तो इतने लंबे हैं ही नही..!" मोना ने मॅन ही मॅन सोचा...
वो उसकी मम्मी को दीवार से चिपकाए उस'से सटकार खड़ा था.. उसकी मम्मी अपना मौन विरोध अपने हाथों से उसको पिछे धकेलने की कोशिश करके जाता रही थी...
"देख चाची.. उस दिन भी तूने उसे ऐसे ही टरका दिया था.. मैं आज बड़ी उम्मीद के साथ आया हूँ... आज तो तुझे देनी ही पड़ेगी..!" वो बोला.....
"तुम पागल हो गये हो क्या तरुन? ये भी कोई टाइम है...तेरा चाचा जान से मार देगा..... तुम जल्दी से 'वो' काम बोलो जिसके लिए तुम्हे इस वक़्त आना ज़रूरी था.. और जाओ यहाँ से...!" उसकी मम्मी फुसफुसाई...
"काम बोलने का नही.. करने का है चाची.. इस्शह.." सिसकी सी लेकर वो वापस उसकी मम्मी से चिपक गया...
"नही.. जाओ यहाँ से... अपने साथ उसे भी मरवाओगे..." उसकी मम्मी की खुस्फुसाहट भी उनकी सुरीली आवाज़ के कारण साफ़ समझ में आ रही थी....
"वो लुडरू मेरा क्या बिगाड़ लेगा... तुम तो वैसे भी मरोगी अगर आज मेरा काम नही करवाया तो... मैं कल चाचाको बता दूँगा की मैने तुम्हे बाजरे वाले खेत में अनिल के साथ पकड़ा था...." तरुन हँसने लगा....
"मैं... मैं मना तो नही कर रही तरुन... कर लूँगी.. पर यहाँ कैसे करूँ... तेरी दादी लेटी हुई है... उठ गयी तो?" उसकी मम्मी ने घिघियाते हुए विरोध करना छोड़ दिया....
"क्या बात कर रही हो चाची? इस बुधिया को तो दिन में भी दिखाई सुनाई नही देता कुछ.. अब अंधेरे में इसको क्या पता लगेगा..."
तरुन सच कर रहा था....
"पर छोटी भी तो यहीं है... मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ..." मोना की मम्मी गिड़गिडाई...
" आज तो वो ये सुपाड़ा ले के बड़ी हो गई होती अगर तुम गड़बड़ न करतीं..... किसी को नही बताएगी... अब देर मत करो.. जितनी देर करोगी.. तुम्हारा ही नुकसान होगा... मेरा तो खड़े खड़े ही निकलने वाला है... अगर एक बार निकल गया तो आधे पौने घंटे से पहले नही छूटेगा.. पहले बता रहा हूँ..."
"तुम परसों खेत में आ जाना.. तेरे चाचा को शहर जाना है... मैं अकेली ही जाउन्गी..
समझने की कोशिश करो तरुन..मैं कहीं भागी तो नही जा रही....."उसकी मम्मी ने फिर उसको समझाने की कोशिश की....
क्रमश:…………………
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07-22-2018, 11:47 AM,
#33
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -2
चचा भतीजा


" तुम्हे मैं ही मिला हूँ क्या? चूतिया बनाने के लिए... बल्लू बता रहा था कि उसने तुम्हारी उसके बाद भी 2 बार मारी है... और मुझे हर बार टरका देती हो... परसों की परसों देखेंगे.... अब तो मोना के लिए तो एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा है.. तुम्हे नही पता चाची.. तुम्हारे भारी चूतड़ देख देख कर ही जवान हुआ हूँ.. हमेशा से सपना देखता था कि किसी दिन तुम्हारी चिकनी जांघों को सहलाते हुए तुम्हारी रसीली चूत चाटने का मौका मिले.. और तुम्हारे मोटे मोटे चूतड़ों की कसावट को मसलता हुआ तुम्हारी चूत में उंगली डाल कर देखूं.. सच कहता हूँ, आज अगर तुमने मुझे अपनी मारने से रोका तो या तो मैं नही रहूँगा... या तुम नही रहोगी.. लो पकड़ो इस्सको..."
उनकी हरकतें इतनी साफ़ दिखाई नही दे रही थी... पर ये ज़रूर साफ़ दिख रहा था कि दोनो आपस में गुत्थम गुत्था हैं... मैं आँखें फ़ाडे ज़्यादा से ज़्यादा देखने की कोशिश करती रही....
"ये तो बहुत बड़ा है... मैंने तो आज तक किसी का ऐसा नही देखा...." उसकी मम्मी ने कहा....
"बड़ा है चाची तभी तो तुम्हे ज़्यादा मज़ा आएगा... चिंता ना करो.. मैं इस तरह करूँगा कि तुम्हे सारी उमर याद रहेगा... वैसे चाचा का कितना है?" तरुन ने खुश होकर कहा.. वह पलट कर खुद दीवार से लग गया था और मोना की मम्मी की कमर उसकी तरफ कर दी थी........
"धीरे बोलो......" उसकी मम्मी उसके आगे घुटनो के बल बैठ गयी... और कुछ देर बाद बोली," उनका तो पूरा खड़ा होने पर भी इस'से आधा रहता है.. सच बताउ? उनका आज तक मेरी चूत के अंदर नही झड़ा..." मोना की मम्मी भी उसकी तरह गंदी गंदी बातें करने लगी.. वो हैरान थी.. पर उसे मज़ा आ रहा था..
"वाह चाची... फिर ये गोरी चिकनी दो फूल्झड़ियाँ और वो लट्तू कहाँ से पैदा कर दिया.." तरुन ने पूछा... पर मोना की समझ में कुछ नही आया था....
"सब तुम जैसों की दया है... मेरी मजबूरी थी...मैं क्या यूँही बेवफा हो गयी...?"
कहने के बाद उसकी मम्मी ने कुछ ऐसा किया की तरुन उच्छल पड़ा....
"आआआअहह... ये क्या कर रही हो चाची... मारने का इरादा है क्या?" तरुन हल्का सा तेज बोला.....
"क्या करूँ ?इतना बड़ा देख शरारात करने को मन किया । मरोड़ दूँ थोड़ा सा!" उसके साथ ही उसकी मम्मी भद्दे से तरीके से हँसी.....
उसे आधी अधूरी बातें समझ आ रही थी... पर उनमें भी मज़ा इतना आ रहा था कि मोना ने अपना हाथ अपनी जांघों के बीच दबा लिया.... और अपनी जांघों को एक दूसरी से रगड़ने लगी... उस वक़्त उसे नही पता था कि उसे ये क्या हो रहा है.......
अचानक घर के आगे से एक ट्रॅक्टर गुजरा... उसकी रोशनी कुछ पल के लिए घर में फैल गयी.. उसकी मम्मी डर कर एक दम अलग हट गयी.. पर मोना ने जो कुछ देखा, रोम रोम रोमांचित हो गया...
तरुन का लण्ड गधे के की तरह भारी भरकम, भयानक और काला कलूटा था...वो साँप की तरह सामने की और अपना फन सा फैलाए सीधा खड़ा था... "क्या हुआ? हट क्यूँ गयी चाची.. कितना मज़ा आ रहा है.. तरुन ने उसकी मम्मी को पकड़ कर अपनी और खींच लिया....
"कुछ नही.. एक मिनिट.... लाइट ऑन कर लूँ । बिना देखे उतना मज़ा नही आ रहा... " उसकी मम्मी ने खड़े होकर कहा...
"कोई दिक्कत नही है... तुम अपनी देख लो चाची...!" तरुन ने कहा....
"एक मिनिट...!" कहकर मोना की मम्मी घुटनो के बल बैठ तरुन का भयानक लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर अपनी चूत से रगड़ने लगी।
तरुन खड़ा खड़ा सिसकारियाँ भरते हुए पपीते जैसी बड़ी बड़ी चूचियाँ पकड़कर दबाते और मुँह मारते हुए तरह तरह की आवाजें निकाल रहा था.. और मोना की मम्मी बार बार नीचे देख कर मुस्कुरा रही थी... तरुन की आँखें पूरी तरह बंद थी...
"ओहूँऊ... इष्ह... मेरा निकल जाएगा...!" तरुन की टाँगें काँप उठी... पर उसकी मम्मी बार बार ऊपर नीचे नीचे ऊपर अपनी चूत से रगड़ती रही.. तरुन का पूरा लण्ड उसकी मम्मी के रस से गीला होकर चमकने लगा था..
"तुम्हारे पास कितना टाइम है?" उसकी मम्मी ने लण्ड को हाथ से सहलाते हुए पूछछा....
"मेरे पास तो पूरी रात है चाची... क्या इरादा है?" तरुन ने साँस भर कर कहा...
"तो निकल जाने दो..." उसकी मम्मी ने कहा और लण्ड के सुपाड़े को अपनी चूत से रगड़ अपने हाथ को लण्ड पर...तेज़ी से आगे पीछे करने लगी...
अचानक तरुन ने अपने घुटनो को थोड़ा सा मोड़ा तरुन का लण्ड गाढ़े वीर्य की पिचकारियाँ सी छोड़ रहा था.. ..
"कमाल का लण्ड है तुम्हारा... उसे पहले पता होता तो मैं कभी तुम्हे ना तड़पाती..."
मोना की मम्मी ने सिर्फ़ इतना ही कहा और तरुन की शर्ट से लण्ड को साफ़ करने लगी.....
"अब मेरी बारी है... कपड़े निकाल दो..." तरुन ने मोना की मम्मी को खड़ा करके उनके नितंब अपने हाथों में पकड़ लिए....
"तुम पागल हो क्या? परसों को में सारे निकाल दूँगी... आज सिर्फ़ लहंगा नीचे करके 'चोद' ले..." उसकी मम्मी ने नाड़ा ढीला करते हुए कहा...
"मन तो कर रहा है चाची कि तुम्हे अभी नंगी करके खा जाऊँ! पर अपना वादा याद रखना... परसों खेत वाला..." तरुन ने कहा और उसकी मम्मी को झुकाने लगा.. पर उसकी मम्मी तो जानती थी... हल्का सा इशारा मिलते ही उसकी मम्मी ने उल्टी होकर झुकते हुए अपनी कोहानिया फर्श पर टिका ली और घुटनो के बल होकर जांघों को खोलते हुए अपने नितंबों को ऊपर उठा लिया...
तरुन मोना की मम्मी का दीवाना यूँ ही नही था.. ना ही उसने मोना की मम्मी की झूठी तारीफ़ की थी... आज भी मोना की मम्मी जब चलती हैं तो देखने वाले देखते रह जाते हैं.. चलते हुए मोना की मम्मी के भारी नितंब ऐसे थिरकते हैं मानो नितंब नही कोई तबला हो जो हल्की सी ठप से ही पूरा काँपने लगता है... कटोरे के आकर के दोनो बड़े बड़े नितंबों का उठान और उनके बीच की दरार; सब कातिलाना थे...मोना की मम्मी के कसे हुए शरीर की दूधिया रंगत और उस पर उनकी कातिल आदयें; कौन ना मर मिटे!
खैर, मोना की मम्मी के कोहनियों और घुटनो के बल झुकते ही तरुन उनके पीछे बैठ गया... अगले ही पल उसने मोना की मम्मी के नितंबों पर थपकी मार कर लहंगा और पॅंटी को नीचे खींच दिया. इसके साथ ही तरुन के मुँह से लार टपक गयी वो बड़े बड़े चूतड़ों पर मुँह मारते हुए,बोला-
" क्या मस्त गोरे गुदगुदे कसे हुए चूतड़ हैं चाची..!"
कहते हुए वो अपने दोनो हाथ मोना की मम्मी के नितंबों पर चिपका कर उन्हे सहलाने और मुँह मारने लगा...
मोना की मम्मी उससे 90 डिग्री पर झुकी हुई थी, इसीलिए उसे उनके ऊँचे उठे हुए एक नितंब के अलावा कुछ दिखाई नही दे रहा था.. पर मैं टकटकी लगाए तमाशा देखती रही.....
"हाए चाची! तेरी चूत कितनी रसीली है अभी तक... इसको तो बड़े प्यार से ठोकना पड़ेगा... पहले थोड़ी चूस लूँ..." उसने कहा और मोना की मम्मी के नितंबों के बीच अपना चेहरा डाल दिया.... मोना की मम्मी सिसकते हुए अपने नितंबों को इधर उधर हटाने की कोशिश करने लगी...
"आअय्यीश्ह्ह्ह...अब और मत तडपा तरुन..आआअहह.... चूत तैयार है.. अब ठोक भी दे न अंदर!"
"ऐसे कैसे ठोक दूँ अंदर चाची...? अभी तो पूरी रात पड़ी है...." तरुन ने चेहरा उठाकर कहा और फिर से जीभ निकाल कर चेहरा मोना की मम्मी की जांघों में डाल दिया...
"समझा कर तरुन... आआहह...फर्श चुभ रहा है... थोड़ी जल्दी कर..!" मोना की मम्मी ने अपना चेहरा बिल्कुल फर्श से सटा लिया.. उनके 'दूध' फर्श पर ठीक गये....," अच्च्छा.. एक मिनिट... खड़ी होने दे...!"
मोना की मम्मी के कहते ही तरुन ने अच्छे बच्चे की तरह उन्हें छोड़ दिया... और मोना की मम्मी ने खड़े होकर मोना की तरफ मुँह कर लिया...
जैसे ही तरुन ने मोना की मम्मी का लहंगा ऊपर उठाया.. उनकी पूरी जांघें और उनके बीच छोटे छोटे गहरे काले बालों वाली मोटी चूत की फाँकें मोना के सामने आ गयी... तरुन घुटने टेक कर मोना की मम्मी के सामने मोना की तरफ पीठ करके बैठ गया और उनकी चूत मोना की नज़रों से छिप गयी... अगले ही पल मोना की मम्मी आँखें बंद करके सिसकने लगी... उनके मुँह से अजीब सी आवाज़ें आ रही थी...
वो हैरत से सब कुछ देख रही थी...
"बस-बस... मुझसे खड़ा नही रहा जा रहा तरुन... दीवार का सहारा लेने दो..",
मोना की मम्मी ने कहा और साइड में होकर दीवार से पीठ सटा कर खड़ी हो गयी... उन्होने अपने एक पैर से लहंगा बिल्कुल निकाल दिया । तरुन के सामने बैठते ही अपनी नंगी टाँग उठाकर तरुन के कंधे पर रख दी..
अब तरुन का चेहरा और मोना की मम्मी की चूत आमने सामने दिखाई दे रहे थे..
तरुन ने अपनी जीभ बाहर निकाली और मोना की मम्मी की चूत में घुसेड़ दी.. मोना की मम्मी पहले की तरह ही सिसकने लगी... मोना की मम्मी ने तरुन का सिर कसकर पकड़ रखा था और वो अपनी जीभ को कभी अंदर बाहर और कभी ऊपर नीचे कर रहा था...
अंजाने में ही मोना के हाथ अपनी कच्छी में चले गये.. मोना ने देखा; उसकी चूत भी चिपचिपी सी हो रही है..
तभी तरुन के कंधे से पैर हटाने के चक्कर में मोना की मम्मी लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थीं कि अचानक पीछे से कोई आया और मोना की मम्मी को अपनी बाहों में भरकर झटके से उठाया और बेड पर ले जाकार पटक दिया.. मोना की तो कुछ समझ में ही नही आया..
मोना की मम्मी ने चिल्लाने की कोशिश की तो उनके ऊपर सवार हो गया और मुँह दबाकर बोला,
" मैं हूँ भाभी.. पता है कितने दिन इंतजार किया हैं खेत में..." फिर तरुन की और देखकर बोला,"क्या यार? तू भी अकेला चला आया उसे नहीं बुलाया.."
उसने अपना चेहरा तरुन की और घुमाया, तब मोना ने उन्हे पहचाना.. वो बल्लू चाचा थे... घर के पास ही उनका घर था.. पेशे से डॉक्टर(बलदेव)...मोना की मम्मी की ही उमर के होंगे... अब तो मोना के बर्दास्त की हद पार हो गई और वो दौड़कर बिस्तर पर चाचा को धक्का देकर उनके ऊपर चढ़ के अपनी मम्मी से कहने लगी,-
" मम्मी ! मेरे पास से तो तरुन को खींच लाईं। अब तुम ये क्या कर रही हो दो दो के साथ। तुम्हारी को दो दो मुझे एक भी नहीं?"
अचानक उसे देख कर वो सकपका गये,
" तू यहीं है छोटी तू.. तू जाग रही है?"
मैं बोली,-
" मैं छोटी नहीं हूँ।”
मोना की मम्मी शर्मिंदा सी होकर बैठ गयी,
" ये सब क्या है? जा यहाँ से.. अभी तू छोटी है और तरुन की और घूरने लगी...
मोना बोली,-
" नहीं मम्मी ! मैं छोटी नहीं हूँ । पूछो तरुन भैया से ।”
तरुन खिसिया कर हँसने लगा...
“हाँ चाची! ये ठीक कहती है आज मैंने सुपाड़ा डाला ही दिया होता अगर तुम न आ गयीं होतीं।”
“चाची! मेरी मानो तो एतिहात के तौर पर इसे मुझसे नही, क्योंकि मेरा ज्यादा बड़ा है और मै थोड़ा अनाड़ी भी हूं.. इसको बल्लू चाचा से चुदवा दें उनका मुझसे छोटा भी है.. और वे माहिर खिलाड़ी भी हैं । ”
तरुन ने कहा और सरक कर मोना की मम्मी के पास बैठ गया.... मोना की मम्मी अब दोनो के बीच बैठी थी...
बल्लू चहक कर-
"ठीक है आ जा बेटी.. अपने बल्लू चाचा की गोद में बैठ.. "
मोना की मम्मी ने हालात की गंभीरता को समझते हुए मोना की तरफ़ देखकर हाँ मैं सिर हिलाया और वो खुशी खुशी अपने दोनो कटोरे के आकर के दूधिया रंग के बड़े बड़े चूतड़ों को बल्लू चाचा की गोद में रख कर बैठ गयी....
वो लोग भी इंतजार करने के मूड में नहीं लग रहे थे.. बल्लू ने मोना की दोनों बगलों से हाथ डालकर मोना की चूचियों को दबोच लिया.. मोना ने गोद में बैठकर अपने बड़े बड़े चूतड़ों के बीच की नाली में उनका लण्ड फ़ँसा रखा था। उनका गरम सुपाड़ा मोना की कच्छी के ऊपर से प्यासी कुवाँरी बुर से टकरा कर उसे गर्मा रहा था । धीरे धीरे उसका हाथ रेंगता हुआ मोना की बुर पर पहुँच गया. उन्होंने मोना की बुर के ऊपर से कच्छी को सरकाकर एक तरफ कर दिया. चूत की दोनो फांकों पर उसे उनका हाथ महसूस हुआ. मोना ने उसने सिसकारी भरी...
उन्होंने अपने अंगूठे और उंगलियों से पकड़ कर मोटी मोटी फांकों को एक दूसरी से अलग की और पुत्तियाँ टटोलने लगे मोना की बुर बुरी तरह से गीली हो रही थी ।
इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स चाचा !!!
उसने काँपते हुए जांघें भींच लीं.
"नीचे से दरवाजा बंद है ना?" तरुन ने चाचा से पूछा और मोना की मम्मी की टाँगों के बीच बैठ गया...
"सब कुछ बंद है यार.. आजा.. अब इनकी खोल.."
चाचा ने मोना की कमीज़ के बटन खोल डाले और मोना के दोनो गुलाबी बेल उछ्लकर बाहर निकल आये.... चाचा मोना की दोनो चूचियों को दबा रहे थे और घुण्डियों को मसल मसल के चूस रहे थे और फ़िर मोना के निचले होंट को मुँह में लेकर चूसने लगे...
तरुन ने मोना की मम्मी का ब्लाउज खींच कर उनकी ब्रा से ऊपर कर उतार दिया और लहंगे का नारा खींचने लगा....कुछ ही देर बाद उन दोनों ने मोना और मोना की मम्मी को पूरी तरह नंगा कर दिया.. मोना की मम्मी नंगी होकर और भी मारू लग रही थी.. उनकी चिकनी चिकनी लंबी मोटी मोटी मांसल जांघें.. उनकी छोटे छोटे काले बालों में छिपी चूत.. उनका कसा हुआ पेट और सीने पर थिरक रही बड़ी बड़ी चूचियाँ सब कुछ बड़ा प्यारा था...
तरुन मोना की मम्मी की मोटी मोटी जांघों के बीच झुक गया और उनकी जांघों को ऊपर हवा में उठा दिया.. फिर एक बार मोना की तरफ मुड़कर मुस्कुराया और मोना की मम्मी की चूत को लपर लपर चाटने लगा....
मोना की मम्मी बुरी तरह सीसीया उठी और अपने नितंबों को उठा उठा कर पटकने लगी..
करीब 4-5 मिनिट तक ऐसे ही चलता रहा... तभी अचानक चाचा ने अपने अंगूठे और उंगलियों से मोना की बुर की मोटी मोटी फांकों को पकड़ कर एक दूसरी से अलग कर बोला मोना के होठों को अपने होठों से आजाद कर बोले, " बेटा तेरी बुर बुरी तरह से गीली हो रही है लगता है बुर की सील टूट के चूत बनने को बिलकुल तैयार है शुरू करें बेटा..?"
तरुन ने जैसे ही चेहरा ऊपर उठाया, उसे मोना की मम्मी की चूत दिखाई दी.. तरुन के थूक से वो अंदर तक सनी पड़ी थी.. और चूत के बीच की पत्तियाँ अलग अलग होकर फांकों से चिपकी हुई थी.. मोना की जांघों के बीच भी खलबली सी मची हुई थी...
"पर थोड़ी देर और रुक जा यार!.. चाची की चूत बहुत मीठी है..."
तरुन ने कहा और अपनी पैंट निकाल दी.. तरुन का कच्छा सीधा ऊपर उठा हुआ था ।
तरुन वापस झुक गया और मोना की मम्मी की चूत को फिर से चाटने लगा... उसका भारी भरकम लण्ड अपने आप ही उसके कच्छे से बाहर निकल आया और मोना की आँखों के सामने रह रह कर झटके मार रहा था...
चाचा ने मोना की और देखा तो मोना ने शर्मा कर अपनी नज़रें झुका ली.... अब चाचा ने उसे धीरे से लिटा दिया और मोना की पावरोटी सी बुर से कच्छी उतार दी फ़िर ढेर साड़ी क्रीम अपने लण्ड के सुपाड़े पर और मोना की बुर पर थोप दी। अपने अंगूठे और उंगलियों से मोना की बुर की मोटी मोटी फांकों को पकड़ कर एक दूसरी से अलग कर अपने लण्ड का सुपाड़ा मोना की पावरोटी सी बुर पर रखा। मोना के मुँह से सिसकारी निकल गई।
“इ्स्स्स्स्सइम्म्म्म”
अब चाचा थोड़ी आगे झुके और मोना के बायें बेल पर लगे गुलाबी रंगत के 'अनार दाने' के (निप्पल) को मुँह में दबा कर चूसते हुए धक्का मारा... पक की आवाज के साथ सुपाड़ा अन्दर चला गया।
“आअअअअअअ~आह”
क्रमश:…………………
Reply
07-22-2018, 11:47 AM,
#34
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -3
चचा भतीजा


मोना के कराहने की आवाज सुनते ही चाचा रुक गये और बिना लण्ड हिलाये झुककर मोना के बायें बेल पर लगे गुलाबी रंगत के अनार दाने को मुँह में दबाकर चूसने लगे। मोना की पीठ पर हाथ फ़ेरते हुए चाचा लगातार मोना के बेलों पर लगे अनार दानों को मुँह में दबाकर बारी बारी से चूस रहे थे और धीरे धीरे उसका दर्द कम हो्ता जा रहा था और अब उसे फ़िर से मजा आने लगा था। अब वो खुद ही अपने चूतड़ थिरकाने लग़ी। अनुभवी चाचा ने अब उसे धीरे धीरे अपने सुपाड़े से ही चोदना शुरू किया।
मोना की मम्मी अपनी चूची को अपने हाथ से तरुन के मुँह में दे के चुसवा रही थी.. उनका दूसरा हाथ तरुन के कच्छे से उनका लण्ड निकाल उसको सहला रहा था... अचानक मोना की मम्मी ने उसका लण्ड पकड़ा और उसको अपनी और खींचने लगी......
तरुन ने ध्यान से देखा.. मोना की मम्मी की चूत फूल सी गयी थी... उनकी चूत का मुहाने रह रह कर खुल रहा था और बंद हो रहा था.. तरुन अपना लण्ड हाथ में पकड़ कर मोना की मम्मी की जांघों के बीच बैठ गया.. उसे उसका लण्ड मोना की मम्मी की चूत पर टिका दिया. मोना की मम्मी की चूत लण्ड के पीछे पूरी छिप गयी थी...
"लो संभालो.. चाची!" कहते हुए तरुन ने धक्का मार।
उईईईईईईईईईईईईईईईमाँ
मोना की मम्मी छॅटपटा उठी.. तरुन ने अपना लण्ड बाहर निकाला और वापस धकेल दिया.. मोना की मम्मी एक बार फिर कसमसाई... फिर तो घपाघप धक्के लगने लगे.. कुछ देर बाद मोना की मम्मी के नितंब थिरकने लगे। तरुन जैसे ही नीचे की और धक्का लगाता मोना की मम्मी नितंबों को ऊपर उठा लेती... अब तो ऐसा लग रहा था जैसे तरुन कम धक्के लगा रहा है और मोना की मम्मी ज़्यादा...
सुपाड़े से चुदने में उसे मजा आ रहा था और मैं सोच रही थी कि जब सुपाड़े से चुदने में इतना मजा आ रहा है तो पूरे लण्ड से चुदने में कितना मजा आयेगा। धीरे धीरे मेरा दर्द बिलकुल खतम हो गया मोना की बुर मुलायम हो के इतनी रसीली हो गई कि सुपाड़ा उसे बुर में कम लगने लगा और थोड़ी ही देर बाद उसने चाचा से कहा-
“हाय चाचा अब बचा हुआ भी डाल न ।”
चाचा ने मुँह से निप्पल बिना छोड़े धक्का मारा.. और आधा लण्ड बुर मे चला गया मोना के मुँह से सिसकारी निकल गई।
“इ्स्स्स्स्सइम्म्म्म”
पर उसने दाँत पर दाँत जमाकर धीरे धीरे बचा हुआ लण्ड भी चूत में ले लिया। और बोली-
लो चाचा मैंने पूरा अन्दर ले लिया।
चाचा –
“शाबाश बेटा! तू तो अपनी माँ से भी जबर्दस्त चुदक्कड़ बनेगी।”
बोली-
तो चोदो चाचा जैसे तरुन माँ को चोद रहा है।
और फ़िर चाचा अपने दोनों हाथों से मोना की चूचियाँ दबाते हुए और निप्पल चूसते हुए दनादन चोदने लगे।
ऐसे ही धक्के लगते लगते करीब 15 मिनिट हो गये थे.. अचानक तरुन ने अपना लण्ड मोना की मम्मी की चूत से निकाल लिया। उसने देखा मोना की मम्मी की चूत का मुहाने लगभग 3 गुना खुल गया था.. और रस चूत से बह रहा था...
तरुन तेज़ी से हमारे पास आकर बोला,
" चूत बदल चाचा..."
तरुन के मोना के पास आते ही चाचा मोना की मम्मी के चूतड़ों के पीछे जाकर बोले,
" घोड़ी बन जा!"
मोना की मम्मी उठी और पलट कर घुटनों के बल बैठ कर अपने भारी चूतड़ों को ऊपर उठा लिया... तरुन की जगह अब चाचा ने ले ली थी.. घुटनो के बल पिछे सीधे खड़े होकर उन्होने मोना की मम्मी की चूत में अपनी लण्ड डाल दिया... और मोना की मम्मी की कमर को पकड़ कर आगे पिछे होने लगे....
इधर मोना के पास आकर तरुन अपने लण्ड को हिला रहा था.... तरुन ने मोना की मम्मी के चूत रस से गीला अपना हलव्वी लण्ड मोना की नई नवेली बुर से चूत बनी में ठांस दिया। चचा भतीजों ने दोनो माँ बेटी की धुआंदार चुदाई की । तरुन का लण्ड चाचा के लण्ड से बड़ा होने के कारण मोना को थोड़ी देर तकलीफ़ तो हुई पर एक ही रात में मोना की बुर से खाई खेली चूत बन गई।
अपनी धुआंदार चुदाई से दोनो चूतों की प्यास बुझाने और बुरी तरह झड़ने के बाद चचा भतीजों के चूतों से नीचे उतरते ही दोनों माँ बेटी निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी.. बिस्तर की चादर खींच कर अपने बदन और चेहरे को ढक लिया...वो दोनो कपड़े पहन वहाँ से निकल गये....
कुछ दिनो तक ये सिलसिला चला फ़िर बल्लू चाचा की शादी हो गयी ऊपर से मोना के बापू को कुछ शक हो गया तो उन्होंने निगरानी बढ़ा दी। दोनों ने मोना की मम्मी के यहाँ आना जाना बन्द कर दिया क्योंकि पकड़े जाने क खतरा बढ़ गया था पर मोना से तरुन का सम्बन्ध गाहे बगाहे चोरी छिपे जारी रहा । अचानक बल्लू ने महसूस किया कि चचा भतीजे का मिलना जुलना भी कम होता जा रहा है पूछने पर तरुन ने बताया –
“मेरे एक रिश्ते के मामा चन्दू मेरे से कुछ साल बड़े हैं पास ही रहते हैं । आपके अपने बाल बच्चों और डिस्पेन्सरी में व्यस्त रहने की वजह से खाली रहने पर मैं उनके यहाँ वख्त काटने आने जाने लगा और हम दोनो की दोस्ती बढ़ गई, क्योंकि चन्दू मामा चालू बदमाश लड़कियाँ पहचानने में उस्ताद हैं । अब हमदोनों ऐसी लड़कियाँ फ़ँसा साथ साथ मजे करते हैं ।
आगे की मामा भान्जे की दास्तान जो तरुन ने बल्लू को सुनायी उपन्न्यास के अगले हिस्से “मामा भान्जा” में पढ़िये
मामा भान्जा
इसी बीच चन्दू मामा की भी शादी हो गयी शादी के तीसरे दिन अचानक चन्दू मामा आये और बोले –
“यार तरुन तुम आज रात को मेरे घर आना। ”
मैंने पूछा-
“क्या कोई खास बात है?”
उसने उत्तर दिया –“कोई खास नही लेकिन आना जरूर।”
खैर मैंने बात मान ली और उसके पास चला गया उस दिन चन्दू मामा और उनकी बीवी के अलावा घर में कोई नही था चन्दू मामा बोला-
“तरुन यार आज तुम मेरी बीवी को एक बार मेरे सामने चोद दे क्योंकि मैं चाहता हूँ कि तू उसे नियमित रूप से आकर चोदा कर ।”
मैंने कहा- “अरे यह तुम क्या कह रहे हो।”
उसने जबाब दिया- “देख भई मैं तो चोदता ही हूँ लेकिन उसे ज्यादा मज़ा नही आता क्योंकि मेरा लण्ड ज्यादा बड़ा नहीं है औसत है। वह बिचारी कसमसाकर रह जाती है तुम्हारा लण्ड पाकर वह मस्त हो जाएगी। यार अगर उसने मुझे लात मार कर निकाल दिया तो मेरी बेज्जती हो जाएगी न, बिल्लू।” मैं बोला- अगर मामी बिदक गयीं तो कौन सम्हालेगा।” उसने जबाब दिया-
“नही भई वह चुदवाने के लिए तैयार है मैंने उसे सब बता दिया है।”
तब मैं मान गया और कहा-
“अच्छा ठीक है।”
उस रात को मैं और चन्दू मामा उनके कमरे में रजाई ओढ़ के बैठे टी वी पर एक उत्तेजक फ़िल्म देख रहे थे कि मामी आयी और वो भी उसी बिस्तर में हम दोनो के बीच रजाई ओढ़ के बैठ गयी मैने देखा कि रजाई में घुसने मामी की साड़ी और पेटीकोट ऊपर को सिमट गये उनकी संग़मरमरी मांसल जांघे खुल गईं थीं और और रजाई की हलचल से लग रहा था कि चन्दू मामा रजाई के अन्दर उन्हें सहलाने लगे थे। ये सोच सोच के मेरा लण्ड खड़ा हो रजाई को तम्बू का आकार दे रहा था । जिसे देख चन्दू मामा ने मामी से कहा-
“मैने तुमसे तरुन के लम्बे मोटे लण्ड का जिक्र किया था पर तुम्हें विश्वास नहीं हुआ था आज खुद देख के मेरी बात की पुष्टि कर लो।”
मामी ने कहा- “अच्छा ।”
और रजाई उलट दी मैने देखा कि रजाई के अन्दर मामी की साड़ी और पेटीकोट चूतड़ों से भी ऊपर तक सिमटे हुए थे उन्होने कच्छी नही पहन रखी थी । उनके संग़मरमरी बड़े बड़े भारी गुदाज चूतड़ और केले के तने जैसी गोरी मांसल जांघों के बीच पावरोटी सी चूत भी दिख रही थी जिसपर चन्दू मामा हाथ फ़िरा रहा था । तभी मामी ने मेरी लुंगी हटाई और मेरा लण्ड देख वह हक्की बक्की रह गयी और उसे हाथ से पकड़ बोली-
“अरे क्या लण्ड इतना बड़ा हलव्वी भी होता है ।”
ऐसा कहकर वो मेरा लण्ड सहलाने लगी। मैं शर्मा रहा था ये देख चन्दू मामा ने मामी का ब्लाउज खोल उनके बेल के आकार के उरोज आजाद कर दिये मुझे दिखा दिखाकर सहलाते हुए कहा-
“ लड़का झेंप रहा है इसकी झिझक दूर करने के लिए चल हम इसके सामने ही चुदाई करते हैं।”
मामी एक हाथ से मेरा लण्ड पकड़ दूसरे से सहलाते हुए प्यार से बोली-
“ये ही ठीक रहेगा इससे मेरी चूत का मुँह भी थोड़ा खुल जायेगा फ़िर मैं आसानी से इस घोड़े के जैसे लण्ड से चुदवा पाऊँगी वरना तो ये मामी की फ़ाड़ ही देगा।”
मामी लेट गयी और मेरा सर पकड़कर मेरा मुँह अपनी बेल के आकार की एक चूची पर लगा दिया उधर चन्दू मामा दूसरी चूची चूसते हुए मामी को चोद रहा था अब मैं भी खुल के सामने आगया और मामी की बगल में लेटकर उनके मामा की चुदाई से हिल रहे बदन से खेलते हुए, चूची चूसने लगा । मुझे उनकी चूंचियों चूसने में बहुत मजा आ रहा था मामा जैसे ही चोद के हटे मामी अपने हथों से मामा के रस से भीगी अपनी चूत के दोनों मोटे मोटे होठ फ़ैलाकर बोली- आ जा तरुनबेटा अब ये घोड़ी तेरे घोड़े के लिये तैयार है। अब देखना ये है कि दोनों मामा भांजे आज इस घोड़ी को कितना दौड़ाते हैं। ये सुनना था कि मैंने मामी पर सवारी गाँठ ली और अपना घोड़े के जैसे लण्ड का सुपाड़ा उनकी पावरोटी सी चूत के दोनों मोटे मोटे होठों के बीच रखा और एक ही धक्के मे पूरा लण्ड ठाँस दिया और धकापेल चोदते हुए उनकी चूत की धज्जियाँ उड़ाने लगा । मारे मजे के मामी अपने मुँह से तरह तरह की आवाजें निकालते हुए किलकारियाँ भर रही थी- "उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़"उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ओह नहियीईईईईईईईईईईईईईईईई अहहोह ओउुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुउउ गाययययययययययययीीईई"
मैं और चन्दू मामा एक ही औरत को साथ साथ चोदने के माहिर थे उस रात हमदोनों ने मिलकर छ: बार जमकर मामी को चोदा । मैं खुश था की पहलीबार एक जानदार औरत को चोदा है मामी इसलिए खुश थी की उसे एक तगड़ा लण्ड मिला और अपने हसबैंड के सामने पराये मर्द से चुदवाने का सिलसिला शुरू हो गया चन्दू मामा इसलिए खुश था की उसकी बीवी को चुदाई से बड़ी संतुष्टि मिली फ़िर तो मामी जबतब मुझे बुलवा लेती और फ़िर मैं और चन्दू मामा जमकर मामी की चूत का बाजा बजाते।
पूरी कहानी सुनकर बल्लू ने कहा – यार तरुन अकेले अकेले मजे कर रहे हो मुझसे भी मिलवाओ ऐसे मजेदार लोगों से।”
तभी अचानक एक दिन खबर मिली कि मोना के बापू का देहान्त हो गया तो मैंने बल्लू चाचा से सम्पर्क किया और दोनों साथ साथ अफ़सोस प्रकट करने मोना के घर जा पहुंचे। मोना अब पूरी जवान हो चुकी थी बड़ी बड़ी ऑंखें गोल गोल गाल हँसती तो गाल में गड्ढे बन जाते ,गुदाज़ बाहें उभरे हुए चूतड और बड़ी बड़ी चूचियाँ, चूचियों की बनावट बड़ी मनमोहक थी उसे देख कर ही किसी का भी लण्ड खड़ा हो सकता है। मोना की मम्मी अभी भी बेहद हसीन और उनका बदन बेहद खूबसूरत और गुदाज था । वो रोते हुए बल्लू चाचा से और मोना मुझसे लिपट गयी । मैने देखा कि चाचा सान्त्वना देने के बहाने से उनका मांसल बदन सहला बल्कि टटोल रहे थे इधर मैं भी मोना के साथ लगभग यही कर रहा था। मेरी और चाचा कि नजरें मिलीं और हम उनका ख्याल रखने के बहाने से उस रात वहीं रुक गये। उस रात मैं और मोना बिना बिना उसके बापू के डर के खूब खुल के खेले । उधर बल्लू चाचा ने मोना की मम्मी को चोद चोद के उनका दुखी मन और चूत शान्त की। दूसरे दिन मैं और बल्लू चाचा वापस चले । हम चाचा के घर पहुँचे तो चाचा ने मुझे अन्दर ले जाकर अपनी बैठक में बैठाया। तभी चाची (बल्लू चाचा कि पत्नी) चाय ले आयी । चाचा ने कहा,
“बल्लू मैंने मोना की मम्मी की देखभाल का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है ।”
चाची, “ये तो बड़ी अच्छी बात है।”
मेरा मन हुआ कि कह दूँ कि चाची ये देखभाल के बहाने अपने लण्ड के लिए एक और चूत का इन्तजाम कर रहे हैं पर मैं वख्त की नजाकत जान के चुप रहा।
चाचा ने आगे कहा,
“मैं चाहता हूं कि तू मोना से शादी कर के इस नेक काम में मेरी मदद करे। अगर तुझे मंजूर हो तो मैं तेरे पिता जी से बात करूँ।”
वख्त की नजाकत के हिसाब से न तो मैं ना करने की स्थिति में था और वैसे भी ये सौदा बुरा नहीं था मोना के साथ साथ चाची की चूत मिलने की भी उम्मीद थी सो मैने हाँ कर दी।
कुछ दिन बाद मेरी शादी मोना से हो गयी से हो गयी । दोनो एक दूसरे से जाने समझे थे। सुहागरात में हमने खूब जमकर चुदाई की खूब मज़ा लिया। उसने भी बेशरम होकर चुदवाने में कोई कसर नही उठा रखी। हम दोनों बहुत खुश थे। 
आज एक नई बात पता चली कि मेरी सास मोना की मम्मी नहीं थीं बल्कि चाची थीं चाची ने ही उसे पाला था मेरी सास(चचिया सास) और मेरी बीवी दोनों चाची बेटी की तरह नही बल्कि दो सहेलियों की तरह रहती थी हलाकि मोना कहती उन्हें मम्मी ही थी । एक दिन जब मैं ससुराल गया तो मेरी सास ने खूब खातिरदारी और मेरा बड़ा ख्याल रखा । एक दिन अचानक मैं उनके कमरे में घुसने वाला था जहाँ मेरी बीवी और सास आपस में बातें कर रही थी कि मैंने सुना कि सास कह रही थी-
“मोना अच्छा ये बता तरुन का लण्ड तो अब और भी बड़ा हो गया होगा कितना बड़ा हुआ ?”
मैं कान लगा कर सुनने लगा।
मोना - अरे मम्मी बड़ा मोटा तगड़ा हो गया है खूब मज़ा आता है मुझे चुदवाने में।
सास:- क्या तुम्हारे बल्लू चाचा के लण्ड की तरह है ?
मोना :- नही मम्मी बल्लू चाचा के लण्ड से ज्यादा लंबा और मोटा है
मम्मी:- वाह और चुदाई कितनी देर तक करता है?
मोना :- अरे बड़ी देर तक चोदता रहता है मुझे हर बार चुदाई का पूरा मज़ा देता है
मम्मी :- हाय अगर तुम बुरा न माने तो तो क्या मैं भी चुदवा लूँ
मोना :- अरे बुरा मानने की क्या बात है मम्मी घर का लण्ड है तुम्हारा तो बचपन का देखा सम्झा है जब चाहो चुदवा लो।”
उस रात को मेरे खलबली मची थी मैंने मोना से पूछा कि असली बात क्या है उसने साफ साफ सारी कहानी बता दी
मोना :- देख तू तो जानता है कि मेरी चाची जिन्हें मैं मम्मी कहती हूँ के पति के गुज़र जाने के बाद बल्लू चाचा ने मेरे परिवार को संभाला मेरी चाची यानि कि मम्मी धीरे धीरे उनके नजदीक होती गयीं एक दिन मम्मी ने मुझे भी आवाज़ दी मैं भी गयी तू तो जानता है कि मेरी तो बुर की सील भी तेरे कहने पर तेरे सामने ही उन्हींने तोड़ी थी। मैंने चाचा का लण्ड पकड़ कर कहा- “बल्लू चाचा भोसड़ी के मुझे अपने मोटे लण्ड पर बैठाकर मेरी बुर गरम भी तो करो।”
बल्लू चाचा ने मुझे अपनी गोद में बैठा इस तरह बैठाया कि बुर की दोनों फ़ाकों के बीच की दरार पर लण्ड साँप की तरह लम्बाई में लेटा था। और मैं इस तरह उनकी गोद में बैठकर चूत पर लण्ड रगड़ के गरम करने लगी। थोड़ी ही देरे में लण्ड की रगड़ खा खा कर मेरी बुर गरम हो गयी । तबसे मैं भी चुदवाने लगी।
अब मम्मी को तुम्हारा भी लण्ड चाहिए, मम्मी तुमसे चुदवाना चाहती है बोलो चोदोगे न ?
मैंने कहा –“जरूर।”
फ़िर मैंने चन्दू मामा वाली मामी को चोदने की बात साफ साफ बता दी कि मैं भी चन्दूमामा वाली मामी को चोदता रहा हूँ। मेरी बीवी बहुत खुश हो गयी और मुझसे लिपट गयी बोली –
“ये तो बहुत अच्छा है ऐसा करते हैं कि तुम मेरी मम्मी को चोदना और मैं तेरे चन्दू मामा से चुदवा लूँगी जिसकी तुम बीवी चोदते हो बस हम दोनों बराबर। ठीक है न।”
क्रमश:…………………
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07-22-2018, 11:47 AM,
#35
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -4
चाचा से मामा तक


सो उस रात को मैने चन्दू मामा को भी बुलवा लिया था । मैं, मेरी सास, मेरी बीवी और चन्दू मामा चारो मेरे कमरे में बैठे । मेरी सास और मेरी बीवी ने सिर्फ़ बड़े गले के ब्लाउज पेटीकोट पहन रखे थे । उनके बड़े गले के ब्लाउजों में से उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ आधी से ज्यादा दिख रही थीं । मेरी बीवी बोली-
“मम्मी अपने दामाद को नंगा करो न मैं चन्दू मामा को नंगा करती हूं।”
मेरी सास झुककर मेरा नेकर उतारने लगीं, झुकने से उनके बड़े गले के ब्लाउज में से उनकी चूचियाँ फ़टी पड़ रही थीं । मैं उनको देखने लगा सास की चूचियाँ तो मेरी बीवी से भी ज्यादा बड़ी थी जिसे देख मेरा लण्ड टन्ना रहा था। सास ने जैसे ही मेरी नेकर नीचे खींचा मेरा लण्ड उछल कर उनकी आखों के सामने आ गया । सास तो लण्ड देख कर दंग रह गयी उसे हाथ में थाम कर सहलाते हुए बोलीं-
“अरे ये है मर्द का लण्ड आज ये मेरी चूत को फाड़ देगा।”
मैंने उनके बड़े गले के ब्लाउज में हाथ डाल के उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ टटोलते हुए कहा-
“आपकी तो इससे पुरानी पहचान है चाची जो कुछ है आपकी नजर है।”
मोना चन्दू मामा को नंगा करते हुए बोली – पसन्द आया मुझे पूरा विश्वास है कि ये लण्ड साला चाहे जितना बड़ा हो तुम्हारी चूत इसका भरता बना ही देगी ।”
मेरी सास ने अपने दोनों हाथों से अपना पेटीकोट ऊपर उठाया । पहले उनकी पिण्डलियाँ फिर मोटी मोटी चिकनी गोरी गुलाबी जांघें बड़े बड़े गुलाबी भारी चूतड़ दिखे और फिर पावरोटी सी फूली दूधिया मलाई सी सफेद शेव की हुई चूत देखकर मैं दंग रह गया अपना पूरा पेटीकोट ऊपर समेट कर मेरी की नंगी गोद में बड़े बड़े गुलाबी भारी चूतड़ों को रखकर बैठते हुए बोली- तरुन बेटा तेरा लण्ड देख के मैं इतनी जोर से चौंकी कि मेरी चूत सकपकाकर ठन्डी हो गई है इसे लण्ड से सटाकर गरम कर ।” मैने उनकी चूत की दोनों फ़ाकों के बीच की दरार पे अपना ट्न्नाया गरमागरम लण्ड लिटा कर उनकी चूत को लण्ड से सेकने लगा। मैंने उनका चुट्पुटिया वाला ब्लाउज खीच कर खोल दिया उनके बड़े बड़े तरबूज जैसे गुलाबी स्तन कबूतरों की तरह फ़डफ़ड़ा़कर बाहर आ गये। मैंने दोनों हाथों से उनके विशाल स्तन थाम कर दबाते हुए कभी उनके निप्पलों को चूसता तो कभी कभी अपने अंगूठो और अंगुलियो के बीच मसलता । ।
जैसे ही मोना ने चन्दू मामा का नेकर नीचे खींचा उनके उछलते कूदते लण्ड को देख कर बोली- “वाह मामा तुम्हारा लण्ड तो पोकेट साइज़ लण्ड है अगर जल्दी मे चुदवाना हो तो तुम बड़े काम के आदमी हो ।” 
फ़िर उसका लण्ड चूत पर रगड़ते हुए बोली-
“मेरे पति ने तेरी बीबी चोदी थी आज तुम उसकी बीबी चोद के अपना बदला पूरा करो ।” फ़िर तो हम मामा भान्ज़े ने बारी बारी से दोनों माँ बेटी (या चाची भतीजी) को जमके चोदा बदल बदल के चोदा। दूसरे दिन मोना ने कहा- “मम्मी बल्लू चाचा और आंटी और उनकी बेटी बेला को भी बुलवा लो आज मैं अपने पति से आंटी उनकी बेटी बेला को जम के चुदवाऊँगी और हम दोनों बल्लू चाचा से उसके सामने चुदवायेंगें वे दोनों जैसे ही आए, मोना हमारा परिचय करवाने के बाद बल्लू चाचा से बोली-
“बल्लू चाचा,भोंसड़ी के तुमने मम्मी और मेरी चूत खूब बजाई है बदले में, आज मेरा पति तुम्हारी बीबी(आंटी) और बेटी बेला की चूतों को बजा बजा के उनका भोंसड़ा बना देगा।”
इसके बाद मोना मुझसे बोली-
“आज मैं और मम्मी बल्लू चाचा से चुदवाकर तुम्हें दिखायेंगे कि उन्होंने कैसे इतने साल हमारी चूतों के मजे लिये हैं ताकि तुम उससे सबक लो और बदले में उनकी बीबी(आंटी) और बेटी (बेला) को चोद चोद के उनकी चूतों की धज्जियाँ उड़ा दो । उनका भोंसड़ा बना दो ।”
हमेशा की तरह मोना और मेरी सास ने सिर्फ़ बड़े गले के ब्लाउज पेटीकोट पहन रखे थे । उन्होंने आंटी और बेटी बेला की साड़ी खींच कर उन्हें भी अपने स्तर का कर लिया । मोना, मेरी सास, आंटी और उनकी बेटी बेला सभी ने बड़े गले के ब्लाउज पहने थे और उन बड़े गले के ब्लाउजों में से उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ आधी से ज्यादा दिख रही थीं । फ़िर मोना और मेरी सास ने बल्लू चाचा को नंगा किया उनका लण्ड थाम कर सहलाते हुए मुझसे बोली-
देख रहे हो यही है वो लण्ड जो इतने साल तक मेरी और मम्मी की चूत बजाता रहा। अब बल्लू चाचा तुम्हें दिखायेंगे कि उन्होंने कैसे मजे किये ।”
मैने देखा कि बल्लू चाचा के एक तरफ़ मोना और दूसरी तरफ़ मेरी सास उनका मोटा लण्ड थाम कर बैठी हैं और बड़े प्यार से सहला रही हैं और वे दोनो के ब्लाउज में हाथ डाल एक एक चूची थाम के सहला रहे हैं।”
आंटी और उनकी बेटी बेला ने मुझे नंगा करके मेरा लण्ड थाम लिया बोली-
“अरी मोना तू तो बड़ी नसीब वाली है की तुझे इतना बड़ा लण्ड मिला है ।”
मोना ने कहा- “तो आज तू नसीब वाली हो जा आंटी! फ़ड़वा ले अपना भोंसड़ा, आज तक तो तेरा पति मेरी फ़ाड़ता रहा आज तू अपनी बजवा मेरे पति से ।”
इस बात पर मैंने आंटी और बेला गले में हाथ डाल ऊपर से उनके ब्लाउजों में हाथ डाल दोनों की चूचियाँ टटोलते हुए आंटी से पूछा-
“चाची जब बल्लू चाचा मेरी बीवी व मेरी सास को चोदता था तो तुम क्या करती थी ।”
उसने जबाब दिया-
“मैं भी अड़ोसियों पड़ोसियों से चुदवाती रहती थी। हाय मुझे क्या पता था कि तेरा लण्ड इतना जबर्दस्त है वरना मैं तुझे कभी ना छोड़ती तू तो रोज ही हमारे यहाँ आता था। इस मुए बल्लू ने भी ये भेद कभी ना बताया।”
तभी दरवाजे की घण्टी बजी मैंने जल्दी से अपना नेकर पहना और मोना ने पेटीकोट ब्लाउज के ऊपर ही शाल डाल ली हम दोनों दरवाजे पर गये और दरवाजे की झिरी से देखा तो चन्दू मामा और मामी थे हमने बेधड़क दरवाजा खोल दिया। अन्दर आते ही मामी मेरे ऊपर झपटीं-
“हाय मेरे मूसलचन्द ।” और मामी मुझसे लिपट गयी।
और मोना मामा से-
“हाय मामा लालीपाप ।” कहते हुए लिपट गयी।
चन्दूमामा मोना को चूमते हुए बोले-
“हाँ बेटा मैने सोचा तुम्हारी मामी को भी सब परिवार से मिलवा दूँ। 
मेरे कमरे में पहुँचते पहुँचते मामी ने मेरा और मोना ने मामा का लण्ड निकाल कर अपने हाथों में दबोच लिया था । मामा को देख बेला भी उनसे “लालीपाप” कहकर लिपट गयी। कमरे का नजारा भी लगभग वैसा ही था । बल्लू चाचा के एक तरफ़ मेरी सास और तरफ़ दूसरी आंटी बैठी उनका मोटा लण्ड थाम कर सहला रही हैं और बल्लू चाचा दोनो के गले में हाथ डाल ऊपर से ब्लाउज में हाथ घुसेड़ उनकी चूचियाँ टटोल सहला रहे हैं।
ये देख मामा हँस कर बोले-
“वाह चचा ऐश हो रही है ।”
बल्लू चाचा की नजर मामा मामी पर पड़ी तो मामा से लिपटी मोना बेला की तरफ़ इशारा करके वो बोले- तुम कौन सा कम ऐश कर रहे हो लौन्डियों मे गुलफ़ाम बने हो ।”
फ़िर मामी की तरफ़ इशारा करके वो बोले-
“ये क्या तुम्हारी बेगम हैं?”
मामी बल्लू चाचा का लण्ड पकड़कर बोली- “हाँ हूँ तेरी लार टपक रही है क्या? सबर कर? साला दो दो को बगल मे दबाये है फ़िर भी बल्लू चाचा की तीसरी पे नजर है देखो तो साले का कैसे टन्ना के खड़ा है ।”
ये सुन सब हँस पड़े। फ़िर मेरी सास और आंटी सब के सामने अपने पेटीकोट ब्लाउज उतार कर नंगी हो गयी । फ़िर उन्होंने मामी के कपड़े नोच डाले । फ़िर मामी ने मोना और बेला के भी पेटीकोट ब्लाउज नोच डाले, पाँचों ऐसी लग रही थीं जैसे एक से बढ़ कर एक चूचियों की नुमाइश लगी हो । कहना मुश्किल था कि किसकी ज्यादा बड़ी या शान्दार है उन्हें देखकर हम तीनो के लण्ड मस्त हो रहे थे फ़िर मेरी सास और आंटी ने मेरा लण्ड पकड़ा और बोली-
“साला सबसे तगड़ा लगता है ।”
उधर मामी ने बल्लू चाचा के लण्ड पर कब्जा कर ही रखा था और कह रही थी-
“चन्दू कह रहा था कि आंटी ने कल अपनी चूत से उसके लण्ड की बहुत खातिर की आज देखें आंटी के पति का लण्ड चन्दू की पत्नी की चूत की क्या सेवा करता है ।”
और मेरी बीवी मोना और बेला मामा के लण्ड से खेल रही थीं तीनों लण्ड एक साथ देख कर मेरी बीवी मोना बोली –
“हाय आज तो लगता है कि लण्ड की दावत है देखो साले कैसे एक दूसरे की चूत खाने को तैयार है। तब तक मेरी सास ने तीनो लण्ड नापे और बोली-
“अरे भोसड़ी के तीनो साले 6" से ऊपर है और मोटाई में 4" से कम नही है ।”
(दरअसल मामा का 6"का था बाकी हमारे दोनो के 7"से ऊपर थे)
मामी ने बल्लू चाचा के लण्ड पर हाथ फेरते हुए कहा-
“हाय तब तो आज तो अपनी चूतों की लाटरी खुल गयी यार ।”
इधर मेरी सास और आंटी मेरे , मोना और बेला मामा के लण्ड पर हाथ फेर रही थी। पहले राउण्ड में हम तीनो मिलकर अपनी मर्ज़ी के हिसाब से पाँचों औरतों को चोद कर मज़े ले रहे थे मैं कभी मेरी सास को चोदता कभी आंटी को, मामा कभी बेला को चोदता कभी मेरी बीवी मोना को, और बल्लू चाचा कभी मेरी सास को चोदता कभी मामी को । मेरी सास ने देखा बेला और मोना मामा का पीछा ही नहीं छोड़ रही हैं और दूसरी तरफ़ बल्लू चाचा उनमें(मेरी सास) और मामी में ही अदल बदल कर रहे हैं और मैं उनमें(मेरी सास) और आंटी में ही अदल बदल कर रहे हैं, तो मेरी सास बोली-
“अब दूसरी पारी में हर लण्ड को एक नई और एक पुरानी चूत चोदनी पड़ेगी साले दोनों दोनों गधे जैसे लण्ड वाले मेरे, मेरी देवरानी और मामी के पीछे पड़ गये हैं साले मेरे देवर और दामाद के गधे जैसे लण्डों से फ़ड़वा फ़ड़वा के हमारी (उनकी, आंटी की और मामी की) चूतें थकान से भोंसड़ा हो रही हैं। अरे हमारा भी मन करता है कि मामाके प्यारे से लण्ड के साथ थोड़ी राहत की साँस लें ।”
मामी बोली,-
“ मुझे कोई फ़रक नहीं पड़ता तुम दोनों चन्दू के साथ आराम करो मेरे तो अभी खेलने खाने के दिन हैं मैं तुम्हारे देवर और अपने भान्जे को झेलने में लड़कियों की मदद करूगीं।
मेरी सास और आंटी ने मामा को अपनी तरफ़ खीच ले गई। बल्लू चाचा और मेरे हिस्से मे आयी मामी मोना और बेला । बल्लू चाचा ने मोना और मामी को और मैंने बेला और मामी को चोदा ।
धीरे धीरे बल्लू की लड़की बेला चन्दू मामा और मामी से बहुत हिलमिल गई वो अक्सर चन्दू मामा के घर जाने लगी यहाँ तक कि उनके साथ दूसरे गाँव मेला देखने भी गई। फ़िर वो अक्सर चन्दू मामा और मामी के साथ उस गाँव जाने लगी। एक रात जब तरुन और बेला साथ साथ मस्ती कर रहे थे तब तरुन के पूछने पर उसने उस गाँव का किस्सा बताया।
क्रमश:…………………
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07-22-2018, 11:48 AM,
#36
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -5
बेला देखने गई मेला


उसने तरुन से बताया एक बार चन्दू मामा हमारे घर आये और मुझे अपने साथ ले गये. चन्दू मामा का लड़का राजू किसी काम से बाहर गया था उसकी बीबी टीना भाभी से मेरी बहुत पट्ती थी क्योंकि वो भी मेरी तरह बहुत सेक्सी और हर समय चुदासी रहती थी, अब चन्दू मामा अक्सर थके थके रहते हैं कभी कभी ही चुदाई के मूड में आते हैं जिसदिन मैं उन्के साथ गई उसदिन तो एक बार उन्होने मुझे चोदा पर हर दिन मैं और टीना भाभी एक ही कमरे में सोते थे और रात में देर तक चुदाई सम्बन्धी बातें किया करते थे। फिर वहाँ से मैं बेला, मेरी मामीजी, चन्दू मामा और भाभी टीना और नौकर रामू सब लोग मेले के लिए चल पड़े. सनडे को हम सब मेला देखने निकल पड़े. हमारा प्रोग्राम 8 दिन का था.. सोनपुर मेले में पहुँच कर देखा कि वहाँ रहने की जगह नही मिल रही थी. बहुत अधिक भीड़ थी. चन्दू मामा को याद आया कि उनके ही गाँव के रहने वाले एक दोस्त के दोस्त विश्वनाथजी ने यहाँ पर घर बना लिया है सो सोचा की चलो उनके यहाँ चल कर देखा जाए. हम चन्दू मामा के दोस्त यानी की विश्वनाथजी के यहाँ चले गये. विश्वनाथजी मजबूत कदकाठी के पहलवान जैसे व्यक्ति थे। उन्होने तुरंत हमारे रहने की व्यवस्था अपने घर के ऊपर के एक कमरे में कर दी. इस समय विश्वनाथजी के अलावा घर पर कोई नही था. सब लोग गाँव में अपने घर गये हुए थे. उन्होने अपना किचन भी खोल दिया,जिसमे खाने- पीने के बर्तनो की सुविधा थी. वहाँ पहुँच कर सब लोगों ने खाना बनाया और और विश्वनाथजी को भी बुला कर खिलाया. खाना खाने के बाद हम लोग आराम करने गये.
जब हम सब बैठे बातें कर रहे थे तो मैने देखा कि विश्वनाथजी की निगाहें बार-बार भाभी पर जा टिकती थी. और जब भी भाभी की नज़र विश्वनाथजी की नज़र से टकराती तो भाभी शर्मा जाती थी और अपनी नज़रें नीची कर लेती थी. दोपहर करीब 2 बजे हम लोग मेला देखने निकले. जब हम लोग मेले में पहुँचे तो देखा कि काफ़ी भीड़ थी और बहुत धक्का-मुक्की हो रही थी. चन्दू मामा बोले कि आपस में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलो वरना कोई इधर-उधर हो गया तो बड़ी मुश्किल होगी. मैने भाभी का हाथ पकड़ा, चन्दू मामा-मामी और रामू साथ थे.
मेले की भीड़ मे पहुँचे ही थे कि अचानक पीछे से मेरे चूतड़ों में कुछ कड़ा सा गड़ा और किसी ने सटकर कमर पर होले से हाथ रख दिये मैं एकदम बिदक पड़ी, कि उसी वक़्त सामने से धक्का आया और उसने मेरे उभरी हुई चूचियाँ सहला दी. भीड़ और धक्कामुक्की बढ़ती जा रही थी मुझे औरत होने की गुदगुदी का अहसास होने लगा था. वो भीड़ मे मेरे पीछे-पीछे चल रहा था, कुछ आगे बढ़ने पर अचानक पीछे से धक्का आया मेरा बदन फ़िर से सनसना गया शायद वही फ़िर पीछे से मेरी दोनो चूचियाँ पकड़ कर कान में फुसफुसाया - 'हाय मेरी जान' । मेरे चूतड़ों को तो उसने जैसे बाप का माल समझ कर दबोच रखा था. कभी-कभी मेरे चूतड़ों में उसका लण्ड गड़ने लगता था, फ़िर उसने मेरी नाभी के नीचे बन्धे पेटीकोट के नारे में से हाथ डाल मेरी चूत को अपने हाथ के पूरे पंजे से दबा लिया और मेरी चूत सहलाने लगा. उसने मेरी जाँघों को भी सहलाया. हम कुछ और आगे बढ़े तो अबकी धक्का-मुक्की में भाभी का हाथ छूट गया और भाभी आगे और में पीछे रह गयी. भीड़ काफ़ी थी और मैं भाभी की तरफ गौर करके देखने लगी. वो पीछे वाला आदमी भाभी के पेटीकोट में हाथ डाल कर भाभी की चूत सहला रहा था. भाभी मज़े से चूत सहलवाते हुए आगे बढ़ रही थी. भीड़ में किसे फ़ुर्सत थी कि नीचे देखे कि कौन क्या कर रहा है. मुझे लगा कि भाभी भी मस्ती में आ रही है. क्योकि वो अपने पीछे वाले आदमी से कुछ भी नही कह रही थी. जब मैं उनके बराबर में आई और उनका हाथ पकड़ कर चलने लगी तो उनके मुँह से आह सी निकल कर मेरे कानों में गूँजी. में कोई बच्ची तो थी नही, सब समझ रही थी. मेरा तन भी छेड़-छाड़ पाने से गुदगुदा रहा था. तभी मेरे चूतड़ों में उसका लण्ड गड़ा. ज़रा कुछ आगे बढ़े तो उसने मेरे दोनो बगलों में हाथ डाल कर मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को इस तरह पकड़ कर खींचा कि देखने वाला समझे कि मुझे भीड़-भाड़ से बचाया है. शाम का वक़्त हो रहा था और भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. इस छुआ छेड़ीं से हम दोनों बुरी तरह उत्तेजित हो चुदासी हो रहीं थीं तभी पीछे से वो रेला सा आया जिसमे चन्दू मामा मामी और रामू पीछे रह गये और हम लोग आगे बढ़ते चले गये. कुछ देर बाद जब पीछे मूड कर देखा तो चन्दू मामा मामी और रामू का कहीं पता ही नही था. अब हम लोग घबरा गये कि चन्दू मामा मामी कहाँ गये. हम लोग उन्हे ढूँढ रहे थे कि वो लोग कहाँ रह गये और आपस में बात कर रहे थे कि तभी दो आदमी जो काफ़ी देर से हमे घूर रहे थे और हमारी बातें सुन रहे थे वो हमारे पास आए और बोले तुम दोनो यहाँ खड़ी हो और तुम्हारे सास ससुर तुम्हें वहाँ खोज रहे हैं.
भाभी ने पूछा , कहाँ है वो? तो उन्होने कहा कि चलो हमारे साथ हम तुम्हे उनसे मिलवा देते है. {भाभी का थोड़ा घूँघट था. उसी घूँघट के अंदाज़े पर उन्होने कहा था जो क़ि सच बैठा} हम उन दोनो के आगे चलने लगे. साथ चलते-चलते उन्होने भी हमें नही छोड़ा बल्कि भीड़ होने का फायदा उठा कर कभी कोई मेरे चूचियों पर हाथ फिरा देता तो कभी दूसरा भाभी की कमर सहलाते हुए हाथ नीचे तक ले जाकर उनके चूतड़ों को छू लेता था. एक दो बार जब उस दूसरे वाले आदमी ने भाभी की चूचियों को ज़ोर से भींच दिया तो ना चाहते हुए भी चुदासी भाभी के मुँह से आह सी निकल गयी और फिर तुरंत ही संभलकर मेरी तरफ देखते हुए बोली कि इस मेले में तो जान की आफ़त हो गयी है , भीड़ इतनी ज़्यादह हो गयी है कि चलना भी मुश्किल हो गया है.
मुझे सब समझ में आ रहा था कि साली को मज़ा तो बहुत आ रहा है पर मुझे दिखाने के लिए सती सावित्री बन रही है. पर अपने को क्या गम, में भी तो मज़े ले ही रही थी और यह बात शायद भाभी ने भी नोटिस कर ली थी तभी तो वो ज़रा ज़्यादा बेफिकर हो कर मज़े लूट रही थी. वो कहते है ना कि हमाम में सभी नंगे होते हैं. मैने भी नाटक से एक बड़ी ही बेबसी भरी मुस्कान भाभी तरफ उछाल दी.इस तरह हम कब मेला छोड़कर आगे निकल गये पता ही नही चला. काफ़ी आगे जाने के बाद भाभी बोली ' बेला हम कहाँ आ गये, मेला तो काफ़ी पीछे रह गया. यह सुनसान सी जगह आती जा रही है, तेरे चन्दू मामा मामी कहाँ है?'
तभी वो आदमी बोला कि वो लोग हमारे घर है, तुम्हारा नाम बेला है ना, और वो तुम्हारे चन्दू मामा मामी है, वो हमे कह रहे थे कि बेला और बहू कहाँ रह गये. हमने कहा कि तुम लोग घर पर बैठो हम उन्हें ढूँढ कर लाते हैं. तुम हमको नही जानती हो पर हम तुम्हे जानते हैं. यह बात करते हुए हम लोग और आगे बढ़ गये थे.
वहाँ पर एक कार खड़ी थी. वो लोग बोले कि चलो इसमे बैठ जाओ, हम तुम्हे तुम्हारे चन्दू मामा मामी के पास ले चलते हैं. और अब मुझे यह बात समझ में आई कि ये दोनो आदमी वही हैं जो भीड़ मे मेरी और भाभी के चूतड़ और चूचियाँ दबा रहे थे. मैने सोचा फ़ँस तो गये ही हैं पर आखिरी सूरत में साले ज्यादा से ज्यादा क्या करेंगे चोद ही तो लेंगे, पर हमने जाने से इनकार करने का नाटक किया तो उन्होने कहा कि- “ घबराओ नही देखो हम तुम्हे तुम्हारे चन्दू मामा-मामी के पास ही ले चल रहे है और देखो उन्होंने ही हमे सब कुछ बता कर तुम्हारी खबर लेने के लिए हमे भेजा है अब घबराओ मत और जल्दी से कार में बैठ जाओ ताकि मामा- मामी से जल्दी मिल सको।”
मैंने भाभी की तरफ़ देखा भाभी ने सबकी आँख बचा कर मेरी तरफ़ शरारात से मुस्कुराकर आँख दबाई, मैं समझ गई कि आखिरी सूरत में भाभी को भी मेरी तरह मजा लूटने में कोई एतराज नहीं है । बेबसी का नाटक करते हुए हम लोग गाड़ी में बैठ गये । उन लोगों ने गाड़ी में भाभी को आगे की सीट पर बैठाया फ़िर दूसरा मेरे साथ पीछे की सीट पर बैठा कार थोड़ी ही दूर चली होगी कि उस आदमी का दायाँ हाथ मेरी गरदन के पीछे से दूसरी तरफ़ के कन्धे से आगे निकल मेरे बड़े गले के ब्लाउज में से झाँकती गोरी गुलाबी बड़ी बड़ी चूचियों में घुस उन्हें सहलाने दबाने लगा, और बायां हाथ मेरी कमर में आगे से मेरा पेट सहलाने और नाभी में उंगली डालने लगा । फ़िर उसका हाथ सरककर मेरी नाभी के नीचे बन्धे पेटीकोट के नारे में से मेरी चूत पर जा पहुंचा। उसने मेरी चूत को अपने हाथ के पूरे पंजे से दबोच लिया और सहलाने लगा । मैंने नखरा करते हुए उन्हे हटाने का नाटक करते हुए कहा ' हटो ये क्या बदतमीज़ी है.' तो एक ने कहा 'यह बदतमीज़ी नही है मेरी जान, हम वही कर रहे हैं जो मेले में कर रहे थे और तुम मजे ले रहीं थी तुम्हे तुम्हारे चन्दू मामा से मिलाने ले जा रहे हैं तो इसी खुशी में पहले हमारे चन्दू मामाओ से मिलो फिर अपने चन्दू मामा से. जब मैने आगे की तरफ देखा तो पाया कि भाभी का ब्लाउज और ब्रा खुली है दोनो टाँगे फैली हुई साड़ी और पेटिकोट कमर तक उठा हुआ है और वो आदमी कभी भाभी की दोनो चूचियाँ पकड़ता है कभी उनकी चूत को अपने हाथ के पूरे पंजे से दबोचता, सहलाता और उंगली डालता है भाभी झूठ मूठ की ना नुकुर व उसकी पकड़ से निकलने की कोशिश करने का अभिनय कर रही हैं ।
उसने कहा –
“ देखो मेरी जान, हम तुम्हे चोदने के लिए लाए हैं और चोदे बिना छोड़ेंगे नही, तुम दोनो राज़ी से चुदवा लोगी तो तुम्हे भी मज़ा आएगा और हमे भी, फिर तुम्हे तुम्हारे घर पहुँचा देंगे. जितना नखरा करोगी उतनी देरी से घर पहुँचोगी।”
और मेरी भाभी से कहा कि' “ये तो साफ़ दिख रहा है कि मजा तुम दोनो को भी आ रहा है फ़िर तुम तो शादी शुदा हो, चुदाई का मज़ा लेती ही रही हो, इसे भी समझाओ कि इतना मज़ा किसी और चीज़ में नही है, इसलिए चुपचाप खुद भी मज़ा करो और हमे भी करने दो ।”
इतना सुन कर मैं मन ही मन हँसी कि ये साला, ये नहीं जानता कि हम दोनों तो पहले से ही चुदासी हो रही हैं । अब हमने नखरे करने बन्द कर दिये और चुपचाप मज़ा लेने लगे । भाभी को शांत होते देख कर वो जो भाभी की मोटी मोटी जाघें पकड़े बैठा था वो भाभी की चूत दबोचते हुए बीच बीच में कस-कस कर भाभी की बड़ी बड़ी चूचियाँ सहलाने लगा. भाभी सी-सी करने लगी । इधर मेरी भी चूत और चूचियों, दोनो पर ही एक साथ आक्रमण हो रहा था और मैं भी सीसिया रही थी. वो मेरी चूचियों को भोंपु की तरह दबाते हुए बारी बारी से दोनों घूंड़ियों(निपलों) को होठों में दबा के चूसने में लगा था मेरे मुँह से सीसियाते हुए निकला “ स्स्स्स्सी आह्ह्ह ये तुम क्या कर रहे हो?”
क्यों मज़ा नही आ रहा है क्या मेरी जान?
मैंने एकदम से कसमसा कर हाथ पावं सिकोड़े तो दूसरा वाला मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए मेरी चूतड़ों की दरार में उंगली फिराते हुए चूत तक ले जा रहा था.
“चीज़े तो बड़ी उम्दा है यार।”
भाभी की मोटी मोटी जाघें दबोच कर मौज लेते हुए वो बोला. “एकदम कसा मस्त देहाती माल है ।”
मैं थोड़ा सा हिली तो मेरे वाले ने मेरी चूचियों को कस कर दबाते हुए मेरे होंटो पर अपने होंट रख कर ज़ोर से चुंबन लिया फिर मेरे गालों को मूँह में भर कर इतनी ज़ोर से चूसा कि मैं बूरी तरह से गन्गना उठी. ऐसा लग रहा था कि हम दोनो की मस्त जवानी देख कर दोनो बुरी तरहा से पगला गये थे. मेरा वाला मेरे चूतड़ और चूत दबोचे बैठा था, और मेरी चूचियों और गालों का सत्यानाश कर रहा था और मैं वैसे झूठ नही बोलूँगी क्योंकि मज़ा तो मुझे भी आ रहा था पर उस वक़्त डर भी लग रहा था. मैं दोहरे दबाव में अधमरी थी. एक तरफ़ शरारात की सनसनी और दूसरी तरफ इनके चंगुल में फँसने का भय,वो मेरी गदराई चूचियों को दबाते हुए मस्त आँखो से मेरे चेहरे को निहार रहा था ।
मैने भाभी की तरफ देखा, भाभी की साड़ी और पेटिकोट कमर तक उठा हुआ था और आगे वाले ने भाभी की दायीं मोटी गदराई जाँघ अपनी जाँघ के नीचे दबा रखी थी । भाभी दोनो हाथों से उसका हलव्वी लण्ड पकड़ के सहला रही थी. उन दोनो के खड़े मोटे-मोटे फ़ौलादी लण्डों को देख कर मैं डर गयी कि जाने ये लण्ड हमारी चूतों का क्या हाल करेंगे । तभी आगे वाले आदमी ने जो कि कार चला रहा था, एक हाथ से भाभी के गाल पर चुटकी भरी फ़िर उनकी जाँघों के बीच चूत के ऊपर उगी भूरी-भूरी झांटे सहलाते और चूत मे उंगली करते हुए भाभी से पूछा'
रानी मज़ा आ रहा है ना?
और मैने देखा कि भाभी मज़ा लेते हुए नखरे के साथ बोली
'ऊँ हूँ '
तब उसने कहा ' नखड़ा ना कर, मज़ा तो आ रहा है, है ना, प्यार से चुदवा लोगी तो कसम भगवान की पूरा मज़ा लेकर ऐसे ही साफ़ सुथरी तुम्हे तुम्हारे घर पहुँचा देंगे. तुम्हारे घर किसी को पता भी नही लगेगा कि तुम कहाँ से आ रही हो. और नखड़ा करोगी तो वक़्त भी खराब होगा और तुम्हारी हालत भी और घर भी देर से पहुँचोगी. वैसे भी तुम खुद समझदार हो जो मज़ा राज़ी-खुशी में है वो ज़बरदस्ती में कहाँ.
भाभी (झुंझुलाहट के साथ) – अरे तो क्या मैं लिख के दूँ, भाषण देने के बजाय जल्दी से करता क्यों नहीं ।”
भाभी की ऐसी बात सुन कर कार एक सुनसान जगह पर रोक ली और उन लोगों ने हमे कार से उतारा और कार से एक बड़ा सा कंबल निकाल कर थोड़ी समतल सी जगह पर बिछाया और मुझे और भाभी को उस पर लिटा दिया. अब पीछे वाला आदमी मेरे करीब आया और उसने पहले मेरा ब्लाउज उतारा, ब्रा में से फ़टी पड़ रही मेरी बड़े बड़े बेलों जैसी चूचियाँ देख उसने मेरी ब्रा लगभग नोचते हुए खीच कर उतार डाली अब वो मेरी फ़ड़क कर आजाद हो गई चूचियों पर झपटा और उनपर मुँह मारने लगा। मैं गनगना कर सीस्या रही थी. फिर उसने बाकी के सभी कपड़े उतार कर मुझे पूरी तरह से नंगा किया मेरी चूत में कीड़े रेंगने लगे थे. मेरे साथ वाला आदमी का जोश बढ़ता जा रहा था, और पागलों के समान मेरे शरीर को चूम चाट रहा था । मेरी खाई खेली चूत भी चुदाई की उम्मीद से में मस्ती में भर रही थी. वो काफ़ी देर तक मेरी चूत को निहारता रहा । वो मेरी चूत को कुँवारी चूत यानि बुर समझ रहा था फ़िर उसने मेरी पाव-रोटी जैसी फूली हुई चूत पर हाथ फेरा और मस्ती में भर झुक कर मेरी चूत को चूमने लगा, और चूमते-चूमते मेरी चूत के टीट {पुत्तियाँ} को चाटने लगा.अब मेरी बर्दाश्त के बाहर हो रहा था और मैं ज़ोर से सित्कार कर रही थी. वो जितना ही अपनी जीभ मेरी मस्त चूत पर चला रहा था उतना ही उसका जोश और मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. मेरी चूत में जीभ घुसेड कर वो उसे चक्कर घिन्नी की तरह घुमा रहा था, अब मैं भी अपने चूतड़ ऊपर उचकाने लगी थी. मैंने भाभी की तरफ़ देखा वो आगे वाले आदमी की गोद में बिलकुल नंगी उसके सीने से अपनी पीठ लगाकर बैठी उसका लम्बा फ़ौलादी लण्ड अपनी चूत पर रगड़ रही थीं और वो उनकी चूचियाँ सहला रहा था.
मुझे एक अजीब तरह की गुदगुदी हो रही थी फिर वो कपड़े खोल कर नंगा हो गया. उसका भी लण्ड आगे वाले की तरह खूब लंबा और मोटा फ़ौलादी था जोकि एकदम टाइट होकर साँप की भाँति फुंफ़कार रहा था जिसे देख मेरी चुदक्कड़ चूत उसे(लण्ड को) निगल जाने को बेकरार हो उठी.
क्रमश:…………………
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07-22-2018, 11:48 AM,
#37
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -6
बेला देखने गई मेला


उसने अपना हलव्वी लण्ड मेरी पावरोटी सी चूत के मुहाने पर रखा फिर उसने मेरे चूतड़ों को थोड़ा सा उठा कर अपने लण्ड को मेरी बेकरार चूत में कुछ इस तरह से चांपा आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया था. मैं तड़प उठी, चीख उठी और चिल्ला उठी “उई माँ , हायईईईईई मैं मरीईई अहहााआ”
तभी उसने इतनी ज़ोर से ठाप मारा कि उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस गया.
“उईईईई माँ अरे जालिम कुछ तो मेरी चूत का ख्याल कर”
मैं दर्द से कराह रही थी। वो मेरे नंगे बदन पर लेट गया और मेरी एक चूची को मुँह मैं लेकर चूसने लगा. धीरे धीरे मजा बढ़ने पर मैं अपने चूतड़ों को ऊपर उछालने लगी, तभी वो मेरी चूचियों को छोड़ दोनो हाथ ज़मीन पर टेक कर लण्ड को चूत से टोपा तक खींच कर इतनी ज़ोर से ठाप मारा कि पूरा लण्ड जड़ तक हमारी चूत में समा गया
ओफफ्फ़ उफफफफफफ्फ़
और मुझे बाहों में भर कर वो ज़ोर-ज़ोर से ठप लगा रहा था. धीरे धीरे मेरी चूत का स्प्रिंग ढीला हो मेरा मज़ा बढ़ने लगा और मैं भी अपने चूतड़ उच्छाल-उच्छाल कर गपागप लण्ड अंदर करवाने लगी. और कह रहीथी
'और ज़ोर से रज़्ज़ा और ज़ोर से पूरा पेलो, और डालो अपना लण्ड' वो आदमी मेरी चूत पर घमासान धक्के मारे जा रहा था. वो जब उठ कर मेरी चूत से अपना लण्ड ठांसता था तो मैं अपने चूतड़ उचका कर उसके लण्ड को पूरी तरह से अपनी चूत मैं लेने की कोशिश करती.और जब उसका लण्ड मेरी चूत की जड़ से टकराता तो मुझे लगता मानो मैं स्वर्ग मैं उड़ रही हूँ. अब वो आदमी ज़मीन से दोनो हाथ उठा कर मेरी दोनो चूचियों को पकड़ कर हमे घपघाप पेल रहा था. यह मेरे बर्दाश्त के बाहर था और मैंने खुद ही अपना मुँह उठा कर उसके मुँह के करीब किया तो वो मेरे मुँह से अपना मुँह भिड़ा कर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर अंदर बाहर करने लगा.इधर जीभ अंदर बाहर हो रही थी और नीचे चूत में लण्ड अंदर बाहर हो रहा था . इस दोहरे मज़े के कारण में तुरंत ही स्खलित हो गयी और लगभग उसी समय उसके लण्ड ने इतनी फोर्स से वीर्यपात किया की मैं उसकी छाती से चिपक उठी. उसने भी पूर्ण ताक़त के साथ मुझे अपनी सीने से चिपका लिया जिससे मेरी बड़े बड़े बेलों जैसी छातियाँ उसके सीने से दब गईं।
तूफान शांत हो गया. उसने मेरी कमर से हाथ खींच कर बंधन ढीला किया और मुझे कुछ राहत मिली, लेकिन मैं मदहोशी मे पड़ी रही. वो उठ बैठा और अपने साथी के पास गया और बोला ' यार ऐसा ग़ज़ब का माल है प्यारे मज़ा आ जाएगा. ऐसा माल बड़ी मुश्किल से मिलता है.
मैने मुड़ कर भाभी की तरफ देखा. आगे वाला आदमी भाभी के ऊपर चढ़ा हुआ था और उनकी चूचियाँ भोंपू की तरह दबा दबाकर उनपर मुँह मारते हुए उनकी फ़ूली हुई पावरोटी सी चूत में अपना फ़ौलादी लण्ड ठोंक रहा था । भाभी भी किलकारी भरते हुए बोल रही थी
“हाय राजा ज़रा ज़ोर से चोद और ज़ोर से दबा चूचियाँ ज़रा कस कर दबा आ~ह उईईईई मैं बस झड़ने ही वाली हूँ।”
भाभी अपने चूतड़ों को धड़ाधड़ ऊपर नीचे पटक रही थी.
“अम्म्म्ह~ह मैं गयी राजा”
कह कर उन्होने दोनो जाँघें फैला दीं। तभी वो आदमी भी भाभी की चूचियाँ पकड़ कर गाल चूसते हुए बोला
' आ~ह उईईईई अम्म्म्ह~ह ”
और उसने भी अपना पानी छोड़ दिया.कुछ देर बाद वो भी उठा और अपने कपड़े पहन कर साइड मैं लेट गया. भाभी उस आदमी के हटने के बाद भी आँखे बंद किए लेटी थी और मैने देखा कि भाभी की चूत से वीर्य और रज बह कर चूतड़ों तक आ पहुँच रहा था.
चुदाई का दौर पूरा होने के बाद हमने अपने कपड़े पहने और वो लोग हमें अपनी कार में वापस मेले के मेन गाउंड तक ले आए. उन्होने रास्ते मे फिर से हमे धमकाया कि यदि हमने उनकी इस हरकत के बारे मे किसी से कुछ मत कहना इस पर हमने भी उनसे वादा किया कि हम किसी को कुछ नही बताएँगे । जब हम लोग मेले के ग्राउंड पर पहुँचे तो सुना कि वहाँ पर हमारा नाम अनाउन्स कराया जा रहा था और हमारे चन्दू मामा-मामी मंडप मे हमारा इंतजार कर रहे थे. वो चारों आदमी हमे लेकर मंडप तक पहुँचे. हमारे चन्दू मामा हमे देख कर बिफर पड़े कि कहाँ थे तुम लोग अब तक , हम 2 घंटे से तुम्हे खोज़ रहे थे. इस पर हमारे कुछ बोलने से पहले ही उन दोनों मे से एक ने कहा आप लोग बेकार ही नाराज़ हो रहें है, यह दोनो तो आप लोगों को ही खोज रही थी और आपके ना मिलने पर एक जगह बैठी रो रही थी, तभी इन्होने हमे अपना नाम बताया तो मैने इन्हे बताया कि तुम्हारे नाम का अनाउन्स्मेंट हो रहा है और तुमहरे चन्दू मामा मामी मंडप मे खड़े है. और इन्हे लेकर यहाँ आया हूँ । तब हमारे चन्दू मामा बहुत खुश हुए ऐसे शरीफ {?} लोगों पर और उन्होने उन अजन्बियो का शुक्रिया अदा किया. इस पर उन दोनो ने हमे अपनी गाड़ी पर हमारे घर तक छोड़ने की पेशकश की जो हमारे चन्दू मामा-मामी ने तुरंत ही कबूल कर ली. हम लोग कार में बैठे और घर को चल दिए. जैसे ही हम घर पहुँचे कि विश्वनाथजी बाहर आए हमसे मिलने के लिए. संयोग की बात यह थी कि यह लोग विश्वनाथजी की पहचान वाले थे. इसलिए जैसे ही उन्होने विश्वनाथजी को देखा तो तुरंत ही घबरा कर पूछा ' अरे विश्वनाथजी आप, यह क्या आपकी फॅमिली है तो विश्वनाथजी ने कहा अरे नही भाई फॅमिली तो नही पर हमारे परम मित्र के ही गाँव के दोस्त और उनका परिवार है यह ।” फिर विश्वनाथजी ने उन लोगों को चाय पीने के लिए बुलाया और वो सब लोग हमारे साथ ही अंदर आ गये. वो चारों बैठ गये और विश्वनाथजी चाय बनाने के लिए किचन की तरफ़ पहुँचे तभी मेरे चन्दू मामाजी ने कहा
“बहू ज़रा मेहमानों के लिए चाय बना दे ।”
और मेरी भाभी उठ कर किचन मे चाय बनाने के लिए गयी. भाभी ने सबके लिए चाय चढ़ा दी और चाय बनाने के बाद वो उन्हे चाय देने गयी, तब तक मेरे चन्दू मामा और मामी ऊपर के कमरे में चले गये थे और नीचे के उस कमरे में उस वक़्त वो दोनो और विश्वनाथजी ही थे. कमरे में वो थी लोग बात कर रहे थे जिन्हे मैं दरवाज़े के पीछे खड़ी सुन रही थी. मैने देखा कि जब भाभी ने उन लोगों को चाय थमायी तो एक ने धीरे से विश्वनाथजी की नज़र बच्चा कर भाभी की एक चूची दबा दी. भाभी के मुँह से दबी दबी सी सिसकी निकली और वो खाली ट्रे लेकर वापस आ गयी । वो लोग चाय की चुस्की लगा रहे थे और बातें कर रहे थे.
विश्वनाथजी- आज तो आप लोग बहुत दिनों के बाद मिले हैं, क्यों भाई कहाँ चले गये थे आप लोग? क्यों भाई रमेश तुम्हारे क्या हाल चाल है.
रमेश- हाल चाल तो ठीक है, पर आप तो हम लोगों से मिलने ही नही आए, शायद आप सोचते होगे कि हमसे मिलने आएँगे तो आपका खर्चा होगा.
विश्वनाथजी- अरे खर्चे की क्या बात है.अर्रे यार कोई माल हो तो दिलाओ , खर्चे की परवाह मत करो, वैसे भी फॅमिली बाहर गयी है और बहुत दिन हो गये है किसी माल को मिले.अर्रे महेश तुम बोलो ना कब ला रहे हो कोई नया माल?
महेश - इस मामले मे तो रमेश से ही बात करो माल तो यही साला रखता है.
रमेश – क्यों झूठ बोलता है साले मेरे पास इस समय माल कहाँ? इस वक़्त तो माल इसी के पास है.
महेश _ माल तो था यार पर कल साली अपने मैके चली गयी है. पर अगर तुम खर्च करो तो कुछ सोचें.
विश्वनाथजी- खर्चे की हमने कहाँ मनाई की है. चाहे जितना खर्चा हो जाए, लेकिन कुछ मजा नहीं आ रहा यार कुछ जुगाड़ बनवओ. मैं वहीं खड़े-खड़े सब सुन रही थी मेरे पीछे भाभी भी आकर खड़ी हो गयी और वो भी उन लोगों की बातें सुन ने लगी.
रमेश- अकेले-अकेले कैसे तुम्हारे यहाँ तो सब लोग है.
विश्वनाथजी- अर्रे नही भाई यह हमारे बच्चे थोड़ी ही है, हमारे बच्चे तो गाँव गये है, यह लोग हमारे गाँव से ही मेला देखने आए है.
महेश- फिर क्या बात है. बगल मे हसीना और नगर ढिंढोरा. अगर तुम हमारी दावत करो तो इनमे से किसी को भी तुमसे चुदवा देंगे.
विश्वनाथजी- कैसे?
महेश- यार यह कैसे मत पूछो, बस पहले दावत करो।
विश्वनाथजी- लेकिन यार कहीं बात उल्टी ना पड़ जाएँ , गाँव का मामला है, बहुत फ़ज़ईता हो जाएगा.
सुरेश- यार तुम इसकी क्यों फ़िक्र करते हो मैं उड़ती चिड़िया के पर गिन सकता हूँ ये सब तैयार पके फ़ल हैं और चिल्ला चिल्ला के कह रहे हैं कि खाने वाला चाहिये सिर्फ़ खाने वाले को खाना आना चाहिये। सब कुछ हमारे ऊपर छोड़ दो ।”
रमेश- यार एक बात है, बहूँ की जो सास {यानिकि मामीजी} है उस पर भी बड़ा जोबन है. यार मैं तो उसे किसी भी तरह चोदुन्गा.
विश्वनाथजी- अर्रे यार तुम लोग अपनी बात कर रहे या मेरे लिए बात कर रहे हो
महेश- तुम कल रात को दावत रखना और फिर जिसको चोदना चाहोगे उसी को चुदवा देंगे, चाहे सास चाहे बहूँ या फिर उसकी ननद ।
विश्वनाथजी- ठीक है फिर तुम चारों कल शाम को आ जाना.
मैने सोचा कि अब हमारी चूतों की खैर नही पीछे मुड़कर देखा तो भाभी खड़े-खड़े अपनी चूत खुज़ला रही है.
मैने कहा –क्यों भाभी चूत चुदवाने को खुज़ला रही हो.
भाभी- हाँ ननद रानी अब तुझसे क्या छुपाना, जबसे कार वाले महेश ने रगड़ के चोदा है मेरी चूत की चुदास जाग गई है. मन करता रहता है कि बस कोई मुझे पटक के चोद दे.
मैने कहा –“ पहले कहती तो किसी को रोक लेती जो तुम्हे पूरी रात चोदता रहता. खैर कोई बात नही कल शाम तक रूको चुदते चुदते तुम्हारी चूत का भोसड़ा न बन जाए तो कहना. उन तीनों के इरादे है हमे चोदने के और वो साला रमेश तो मामीज़ी को भी चोदना चाहता है.अब देखेंगे मामी को किस तरह से चोदते हैं ये लोग ।”
अगाली सुबह जब मैं सो कर उठी तो देखा कि सभी लोग सोए हुए थे सिर्फ़ भाभी ही उठी हुई थी और विश्वनाथजी का लण्ड जो की नींद में भी तना हुआ था और भाभी गौर से उनके लण्ड को ही देख रही थी. उनका लण्ड धोती के अंदर तन कर खड़ा था, करीब 10’’ लंबा और 3’’ मोटा, एकदम लोहे के राड की तरह. भाभी ने इधर-उधर देख कर अपने हाथ से उनकी धोती को लण्ड पर से हटा दिया और उनके नंगे लण्ड को देख कर अपने होंटो पर जीभ फिराने लगी. में भी बेशर्मो की तरह जाकर भाभी के पास खड़ी हो गयी और धीरे से कहा
"उइई माँ ".
भाभी मुझे देख कर शर्मा गयी और घूम कर चली गयी. में भी भाभी के पीछे चली और उनसे कहा
“देखा कैसे बेहोश सो रहे हैं ।”
भाभी- चुप रह ।”
मैं – क्यों भाभी, ज़्यादा अच्छा लग रहा है ।”
भाभी- चुप भी कर ना ।”
मैं - इसमे चुप रहने की कौन सी बात है जाओ और देखो और पकड़ कर चूत में भी ले लो उनका खड़ा लण्ड, बड़ा मज़ा आएगा.
भाभी- कुछ तो शर्म कर यूँ ही बके जा रही है ।”
मैं - तुम्हारी मर्ज़ी, वैसे ऊपर से धोती तो तुम ही ने हटाई थी।”
भाभी- अब चुप भी हो जा, कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा.
फिर हम लोग रोज़ की तरह काम में लग गये. करीब दस बज़े विश्वनाथजी कुछ सामान लेकर आए और हमारे चन्दू मामा के हाथ में थमा कर कहा कहा –
“आज हमारे वही तीनों दोस्त आएँगे और उनकी दावत करनी है यार इसीलिए यह सामान लाया हूँ भैया, मुझे तो आता नही है कुछ बनाना इसीलिए तुम्ही लोगों को बनाना पड़ेगा.और हां यार तुम पीते तो हो ना ?”
चन्दू मामा- नही में तो नही पीता यार ।”
विश्वनाथजी- अर्रे यार कभी-कभी तो लेते होगे ।”
चन्दू मामा-हाँ कभी-कभार की तो कोई बात नही ।”
विश्वनाथजी- फिर ठीक है हमारे साथ तो लेना ही होगा ।” 
चन्दू मामा- ठीक है देखा जाएगा ।” 
हम लोगों ने सामान वग़ैरह बना कर तैय्यार कर लिया. शाम के करीब छ: सात बज़े के बीच वो लोग आ गये। मैं तो इस फिराक में लग गयी कि यह लोग क्या बातें करते है ।” 
चन्दू मामा मामी और भाभी ऊपर के कमरे में बैठे थे. मैं उन तीनों की आवाज़ सुन कर नीचे उतर आई. वो तीनों लोग बाहर की तरफ बने कमरे मे बैठे थे. मैं बराबर वाले कमरे की किवाड़ों के सहारे खड़ी हो गयी और उनकी बातें सुनने लगी.
विश्वनाथजी- दावत तो तुम लोगों की करा रहा हूँ अब आगे क्या प्रोग्राम है?
पहला- यार ये तुम्हारा दोस्त दारू-वारू पीएगा कि नही?
विश्वनाथजी- वो तो मना कर रहा था पर मैने उसे पीने के लिए मना लिया है ।”
दूसरा- फिर क्या बात है समझो काम बन गया. तुम लोग ऐसा करना कि पहले सब लोग साथ बैठ कर पीएँगे फिर उसके ग्लास में कुछ ज़्यादा डाल देंगे. जब वो नशे में आ जाएगा तब किसी तरह पटा कर उसकी बीवी को भी पीला देंगे और फिर नशे में लेकर उन सालियों को पटक-पटक कर चोदेन्गे,
प्लान के मुताबिक उन्होने हमारे चन्दू मामा को आवाज़ लगाई. हमारे चन्दू मामा नीचे उतर आए और बोले रमा-रमा भैया ।”
चन्दू मामा भी उसी पंचायत में बैठ गये अब उन लोगों की गुपशुप होने लगी. थोड़ी देर बाद आवाज़ आई कि बहूँ ग्लास और पानी देना.
जब भाभी पानी और ग्लास लेकर वहाँ गयी तो मैने देखा की विश्वनाथजी की आँखे भाभी की चूचियों पर ही लगी हुई थी. उन्होने सभी ग्लास में दारू और पानी डाला पर मैने देखा कि चन्दू मामाजी के ग्लास में पानी कम और दारू ज़्यादा थी. उन्होने पानी और मँगाया तो भाभी ने लोटा मुझे देते हुए पानी लाने को कहा. जब में पानी लेने किचन में गयी तो महेश तुरंत ही मेरे पीछे-पीछे किचन मे आया और मेरी दोनो बड़ी बड़ी चूचियों को कस कर दबाते हुए बोला-
“कार में तुझे रमेश से चुदते देखने के बाद से ही मैं बेकरार हूँ अगर देर हो जाने का खतरा ना होता तो वहीं पटक के चोदता बेलारानी, अब ज़रा जल्दी पानी ला ताकि ये खानापीना निबटे और मेरे लण्ड से तेरी चूत की मुलाकात हो ।” मेरी सिसकारी निकल गयी
विश्वनाथजी ने चन्दू मामाजी से पूछा वो तुम्हारा नौकर कहाँ गया.
चन्दू मामा-वो नौकर को यहाँ उसके गाँव वाले मिल गये थे सो उन्ही के साथ गया है सुबह तक वापस आ जाएगा.
फिर जब तक हम लोगों ने खाना लगाया तब तक उन्होने दो बॉटल खाली कर दी थी. मैने देखा कि चन्दू मामा कुछ ज़्यादा नशे में है, मैं समझ गयी कि उन्होने जान बुझ कर चन्दू मामा को ज़्यादा शराब पिलाई है. हम लोग खाना लगा ही चुके थे. मामीजी सब्ज़ी लेकर वहाँ गयी मे भी पीछे-पीछे नमकीन लेकर पहुँची तो देख की रमेश ने मामीजी का हाथ थाम कर उन्हे दारू का ग्लास पकड़ना चाहा. मामीजी ने दारू पीने से मना कर दिया. मैं यह देख कर दरवाज़े पर ही रुक गयी. जब मामीजी ने दारू पीने से मना किया तो रमेश चन्दू मामाजी से बोला- अरे यार तुम्हारी घरवाली तो हमारी बे-इज़्ज़ती कर रही है कहो ना भौजी से ।”
चन्दू मामा ने मामी से कहा –रज्जो पी ले ना क्यों लड़के की इन्सल्ट करा रही हो.
मामीज़ी ज़ी- मैं नही पीती
रमेश- भय्या यह तो नही पी रही है, अगर आप कहें तो में पीला दूँ ।”
चन्दू मामा (हँसते हुए)- ठीक है अगर नही पी रही है तो पकड़ कर पिला दे ।”
चन्दू मामाजी का इतना कहना था कि रमेश ने वहीं मामीज़ी की बगल में हाथ डाल कर दूसरे हाथ से दारू भरे ग्लास को मामीजी के मुँह से लगा दिया और मामीजी को ज़बरदस्ती दारू पीनी पड़ी. मैने देखा कि उसका जो हाथ बगल में था उसी से वो मामीजी की चूचियाँ भी दबा रहा था और जब वो इतनी बेफिक्री से मामीजी की बड़ी बड़ी चूचियाँ दबा रहा था तो बाकी सभी की नज़रें [चन्दू मामाजी को छोड़कर] उसके हाथ से दबती हुई मामीज़ी बड़ी बड़ी चूचियों पर ही थी. यहाँ तक की उनमे से एक ने तौ गंदे इशारे करते हुए वहीं पर अपना लण्ड पैंट के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया था. मामीजी के मुँह में ग्लास खाली करके मामीजी को छोड़ दिया. फिर जब मामीजी किचन मे आई तो मैने जान बुझ कर मेरे हाथ मे जो सामान था वो मामीजी को पकड़ा दिया.
मामीजी ने वो सामान टेबल पर लगा दिया. फिर रमेश ने मामीजी के मना करने पर भी दूसरा ग्लास मामीजी को पीला दिया. मामीजी मना करती ही रह गयी पर रमेश दारू पीला कर ही माना.और इस बार भी वोही कहानी दोहराई गयी यानी कि एक हाथ दारू पीला रहा था और दूसरा हाथ चूचियाँ दबा रहा था और सब लोग इस नज़ारे को देख कर गरम हो रहे थे. चन्दू मामाजी की शायद किसी को परवाह ही नही थी क्योंकि वो तो वैसे भी एक दम नशे मे टुन्न हो चुके थे। नशे और नींद से उनकी आँखें हुई जा रही थीं। यह देख महेश ने चन्दू मामाजी का ग्लास भरते हुए कहा- लगता है भाईसाहब को नींद आ रही है, भाईसाहब अगर आप सोना चाहें तो औपचारिकता छोड़कर अपने कमरे में आराम करें हम लोग सब आपके भाईबन्द हैं कोई भी बुरा नहीं मानेगा। हम समझ सकते हैं कि हमारे इस हो हल्ले में आप ठीक से सो नहीं पायेंगे। सबने महेश की हाँ मे हाँ मिलायी और महेश ने एक और ग्लास उन्हें पिलाकर(ताकि वो बिलकुल ही बेहोश हो के सोयें) ऊपर उनके कमरे मे लेजाकर लिटा दिया । चन्दू मामाजी लेटते ही सो गये। महेश ने आवाज देकर ये पक्का भी कर लिया कि वे सचमुच ही सो रहे हैं।
क्रमश:…………………
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07-22-2018, 11:48 AM,
#38
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक

भाग -7

दावत के रंग


महेश ने नीचे आकर सबको इशारे से बता भी दिया चन्दू मामाजी सो रहे हैं और लाइन क्लियर है। अब ग्लास रख कर रमेश ने, मामीजी जो बरफ़ लेके आयीं थी, के चूतड़ों पर हाथ फिराया और दूसरे हाथ से उनकी चूत को पकड़ कर दबा दिया. मामीजी सिसकी लेकर रह गयी. मामीजी को सिसकारी लेते देख कर मेरी भी चूत में सुरसुरी होने लगी. हम लोग ऊपर चले गये. फिर नीचे से पानी की आवाज़ आई. मामीजी पानी लेकर नीचे गयी .तब तक रमेश किचन में आ पहुँचा था. मामीजी जो पानी देकर लौटी तो रमेश ने मामीजी का हाथ पकड़ कर पास के दूसरे कमरे में ले जाने लगा. मामीजी ने कहा,-

“अरे~ए ये क्या करता है”

रमेश,-

“चल न भौजी उस कमरे चल कर कुछ मौज मज़ा करते हैं. मामीजी खुद नशे में थी और रमेश की पकड़धकड़ से चुदासी भी हो रही थी सो कमज़ोर सी ना-ना करते हुए रमेश के साथ खिचती चली गईं वो उन्हें पास के उस कमरे में ले गया. मेरी नज़र तो उन दोनो पर ही थी इसलिए जैसे ही वो कमरे में घुसे मैं तुरंत दौड़ते हुए उनके पीछे जाकर उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगी कि आगे क्या होता है.

रमेश ने मामीजी को पकड़ कर पलंग पर डाल दिया और उनके एक हाथ उनके ब्लाउज में घुसेड़ते हुए, दूसरा हाथ पेटिकोट में डाल कर उनकी चूत सहलाने लगा.

मामीजी (नशे और उत्तेजना से भरी आवाज में)- आह यह क्या कर रहा है लड़के छोड़ मुझे, क्यों आग लगाता है इस उम्र में ।”

रमेश- अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है भौजी मुझे तो तुम तुम्हारी बहूँ से ज्यादा जोरदार लगती हो। मैंने तो जब से तुम्हें देखा था तभी से तुम्हारे साथ मजा करने की फ़िराक में था ये सारा दावत का नाटक इसीलिए तो रचाया है भौजी रानी ।

मामीजी मन ही मन गद गद हो मुस्कुराईं फ़िर मक्कारी से भोलेपन का नाटक करते हुए बोलीं-

“पर तू करना क्या चाहता है ?”

मामी जी की शरारात भरी मुस्कुराहट और बाते सुनकर उन्हें रजामन्द जान रमेश ने राहत की साँस ली और उन्हें छोड़ के अपने कपड़े उतारते हुए खुद भी नाटकीय अन्दाज से बोला-

" वाह भौजी, अभी तुम्हें यही नही मालूम कि में क्या करना चाहता हूँ। अरे तुझे बिस्तर पे पटक के अपना एक हाथ तेरे ब्लाउज में घुसड़ और दूसरे से पेटिकोट में तेरी पावरोटी सी गुदगुदी चूत सहला रहा था ऐसे कोई पूजा तो करने से रहा। खैर अगर अब भी नहीं समझी और मेरे मुँह से साफ़ साफ़ ही सुनना है तो सुन तेरी चूत चोदना चाहता हूँ। क्या ख्याल है ?”

मामीजी(नाटक करते हुए)-

“ओहो अब समझी। तो ये बात है ।”

मामीजी की शोखी से उत्तेजित रमेश ने मामीजी साड़ी खीच ली चुटपुटिया वाले ब्लाउज को भी आसानी से नोच के उतार डाला। रमेश की उतावली देख मामीजी हँसते हुए उठ कर बैठ गईं। बैठ्ने से उनकी तरबूज के मानिन्द छातियाँ ब्रा में से फ़टी पड़ रही थीं। ये नजारा देख रमेश उनकी तरफ़ झपटा और ब्रा के ऊपर से ही उन्हें दबोचने लगा । मामीजी ने उतावले रमेश की मदद के ख्याल से हँसते हुए ब्रा का हुक खुद ही खोल दिया। ये देखते ही रमेश ने ब्रा उनके जिस्म से नोच के फ़ेंक दी। मामीजी की गोरी सफ़ेद हलव्वी छातियाँ आजाद होकर परिन्दों की तरह फ़ड़फ़ड़ायी। रमेश ने उनकी फ़ड़फ़ड़ाहट अपने हाथों में दबोच ली और उनपे मुँह मारने निपल चूसने लगा। अब मामीजी के मुँह से उनकी हँसी कि जगह उत्तेजना भरी सिसकारियाँ फ़ूटने लगीं ।

“स्स्स्स्स्स्स्सी उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्ह आहहहहह

उम्म्म्मम्म्म्म्म्फ्फहहहहहहहहहहह उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्मह ”

रमेश द्वारा उनकी तरबूज के मानिन्द छातियों को दोनो हाथों और मुँह से वहशियों की तरह प्यार करने से बेहद उत्तेजित हो मामीजी ने सिसकारियाँ भरते हुए अपने पेटीकोट का नारा पकड़ के खींचा और अपने घड़े जैसे भारी चूतड़ों से पेटीकोट खुद ही नीचे सरका कर जमीन पर पैरों की मदद से ठेल दिया । फ़िर रमेश का लोहे के राड जैसा लम्बा हलव्वी लण्ड अपने हाथों में थाम अपनी चुदास से बुरी तरह से पनिया रही रसीली चूत के मोटे मोटे दहकते होठों के बीच रखा। लण्ड के सुपाड़े पर चूत की गर्मी मह्सूस कर रमेश ने झुक कर देखा मामीजी की मोटी मोटी जांघों केबीचे में उभरी उनकी चूत, उसके आस पास का हिस्सा और काफ़ी मजबूत और कसाव लिए हुए था। उनकी गोरी चूत काफ़ी बड़ी पावरोटी की तरह फ़ूलकर उभरी हुयी चुदाई की मार से मजबूत हुई खाई खेली खड़ी खड़ी पुत्तियों वाला भोसड़ा थी । ये देख रमेश का लण्ड और ज्यादा फ़नफ़नाने लगा। उसने सोचा कि अगर इसे ही भोसड़ा कहते है तो चूत से भोसड़ा ज्यादा बढ़िया होता है। उसने अपने फ़नफ़नाते लण्ड का ऐसा ज़ोर का ठाप मारा की उसका आधा लण्ड मामीजी की चूत में घुस गया.

ऐसा लगा जैसे मामीजी को अपने कसे हुए तगड़े भोसड़े के कसाव पर बड़ा नाज था क्योंकि वो नशे में बड़बडाईं –आह एक ही बार में आधा अन्दर, शाबाश लड़के!

ये सुन रमेश ने दूसरा ठाप भी मारा कि उसका पूरा लण्ड अंदर घुस गया.

मामीजी ने सिसकी ली

उईईईईईईइइम्म्म्मममा

अब रमेश एंजिन के पिस्टन की तरह मामीजी के मजबूत भोसड़े से टक्कर ले उसके चीथड़े उड़ाने लगा.

आह तेरी तो बहुत टाइट है भौजी आज इसे ढीली कर के ही छोड़ूँगा

मामीजी नशे में बड़बडाईं –

“हाँ! कर दे ढीली जालिम तू अब तक कहाँ था अरे क्या कर रहा है ढीली कर पर चूत के चीथड़े तो न उड़ा हाय थोड़ा धीरे से, चूत ही न रहेगी तो चोदेगा क्या ।”

इतने में मैने विश्वनाथजी को ऊपर की तरफ जाते देखा.

मैं भी उनके पीछे ऊपर गयी और बाहर से देखा की भाभी जो कि अपना पेटिकोट उठा कर अपनी चूत में उंगली कर रही तो उसका हाथ पकड़ कर विश्वनाथजी ने कहा 'है मेरी जान हम काहे के लिए हैं, क्यों अपनी उंगली से काम चला रही, क्या हमारे लण्ड को मौका नही दोगी. अपनी चोरी पकड़े जाने पर भाभी की नज़रें झुक गयी थी और वो चुपचाप खड़ी रह गयी. विश्वनाथजी ने भाभी को अपने सीने से लगा कर उनके होंटो को चूसना शुरू कर दिया. भाभी भी अब उनके वश में हो चुकी थी.वो उनकी बड़े बड़े बेलों सी ठोस चूचियों को दबाते हुए बोले-

“इतने दिनों से तेरे इन बेलों की उछलकूद ने मेरे इसको बहुत परेशान किया है ।”

कहकर उन्होंने अपनी धोती हटा कर अपना लण्ड भाभी के हाथों में पकड़ा दिया भाभी उनके लण्ड को, जो की बाँस की तरह खड़ा हो चुका था, सहलाने लगी. अब भाभी भी खुल कर बोली-

“मैं क्या करती आप मुझे घूरते तो रहते थे पर कभी कुछ बोले ही नही ।”

उन्होने भाभी की चूचियाँ छोड़ी और उनके सारे कपड़े उतार दिए, और भाभी को वहीं पर लेटा दिया और उनके चूतड़ के नीचे तकिया लगा कर अपना लण्ड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर एक जोरदार धक्का मारा. पर कुछ विश्वनाथजी का लण्ड बहुत बड़ा था और कुछ भाभी की चूत टाइट थी इसलिए उनका लण्ड अंदर जाने के बज़ाय वहीं अटक कर रह गया । इस पर विश्वनाथजी बोले लगता है कि आदमी के लण्ड चुदी ही नहीं तेरी चूत तभी तो तेरी इतनी टाइट है कि लगता है जैसे बिन चुदी बुर मे लण्ड डाल है "

भाभी मन ही मन मुस्कुराई पर कुछ नही बोली, क्या कहती कि चुदने को तो कल ही तुम्हारे उसे दोस्त रमेश के धाकड़ लण्ड से मैं जम के चुद चुकी हूँ पर तेरा कुछ ज्यादा ही बड़ा है और कुछ फ़ूल भी ज्यादा रहा है। विश्वनाथजी ने इधर उधर देखा और वहीं कोने में रखी घी की कटोरी देख कर खुश हो गये और बोले "लगता है साली बहू ने चुदने की पूरी तय्यारी कर रखी थी इसीलिए यहाँ पर घी की कटोरी भी रखी हुई है जिस से की चुदने मे कोई तकलीफ़ ना हो" इतना कह कर उन्होने तुरंत ही पास रखी घी की कटोरी से कुछ घी निकाला और अपने लण्ड पर घी लगा कर तुरंत फिर से लण्ड को चूत पर रख कर धक्का मारा. इस बार लण्ड तो अंदर घुस गया पर भाभी के मुँह से जोरो की चीख निकल पड़ी ' आआहह मरगई, जालिम तेरा लण्ड है या बाँस का खुट्टा' इसके बाद विश्वनाथजी फॉर्म में आ गये और और ताबड़तोड़ धक्के मारने लगे. भाभी ' उईईइमाँ लगती है थोड़ा धीमे करो ना करती ही रह गयी और वो धक्के पे धक्के मारे जा रहे थे. रूम में हचपच हचपच की ऐसी आवाज़ आ रही थी मानो 110 किमी की रफ़्तार से गाड़ी चल रही हो. कुछ देर के बाद भाभी को भी मज़ा आने लगा और वो कहने लगी ' हाय राजा मर गयी, ,हाय राजा और ज़ोर से मारो मेरी चूत, हाय बड़ा मज़ा आ रहा है, आअहहााआ बस ऐसे ही करते रहो आहहााअ औक्ककककककचह और ज़ोर से पेलो मेरे विश्वनाथ राजा , फाड़ दो मेरी चूत को आअहहााआ, अरे क्या मेरी चूचियों से कोई दुश्मनी है , इन्हे उखाड़ लेने का इरादा है क्या, है ज़रा प्यार से दबाओ विश्वनाथ राजा मेरी चूचियों को.

मैने देखा की विश्वनाथजी मेरी भाभी की चून्चियो को बड़ी ही बेदर्दी से किसी हॉर्न की तरह दबाते हुए घचाघच पेले जा रहे थे. तब पीछे से महेश ने आकर मेरे बगलों में हाथ डाल कर मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ दबाते हुए बोला, 

“अरी छिनाल तुम यहाँ इनकी चुदाई देख कर मज़े ले रही और में अपना लण्ड हाथ में लिए तुम्हे सारे घर में ढूँढता फ़िर रहा हूँ । इधर मेरी भी चूत भाभी और मामीजी की चुदाई देख कर पनिया रही थी. मुझे महेश बगल वाले कमरे में उठा ले गया और मेरे सारे कपड़े खींच कर मुझे एकदम नंगा कर दिया, और खुद भी नंगा हो गया. फिर मुझे बिस्तर पर डाल कर मेरे गदराये संगमरमरी जिस्म पर टूट पड़ा मेरी दोनों चूचियाँ थाम दबाने सहलाने मुँह मारने लगा, और कभी मेरे निपल को मुँह मे लेकर चूसने लगता । कभी मेरे बड़े बड़े संगमरमरी चूतड़ों पर हाथ फ़िराता कभी मुँह मारता । कभी मेरी मोटी मोटी केले के तने जैसी जाँघों को दबोचकर उनपर मुँह मारता। इन सबसे मेरी चूत की पूतिया [पुत्तियाँ] फड़फड़ने लगी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने खड़े लण्ड पर रखा और में उसके लण्ड को सहलाने लगी. मैं जैसे-जैसे उसके लण्ड को सहला रही थी वैसे वैसे वो एक आयरन रोड की तरह कड़क होता जा रहा था. मुझसे अपनी चुदास बर्दाश्त नही हो रही थी और मैं उसके लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत से रगड़ रही थी कि किसी तरह से ये जालिम मुझे चोदे, और वो था कि मेरे जिस्म से खेलने में ही लगा था । अब मैं शरम चोद कर बोल पड़ी-

“हाय राजा अब बर्दाश्त नही हो रहा है, जल्दी से कर ना।”

मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी. अचानक उसने मेरी चुदास से बुरी तरह पानी फ़ेकती चूत अपने हाथ मे दबोच ली। बर्दाश्त की इन्तेहा हो गयी मैं खुद ही उसका हाथ अपनी चूत से हटा कर, उसके ऊपर चढ़ गयी उसके लण्ड का सुपाड़ा अपनी चूत के मुहाने से लगा कर मैंने अपनी बुरी तरह पानी फ़ेकती चूत में पूरा लण्ड आसानी से धीरे धीरे धंसा लिया फिर अपनी चूत के घस्से उसके लण्ड पर देने लगी. उसके दोनो हाथ मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को कस कर दबा रहे थे और साथ में निपल भी छेड़ रहे थे.अब में उसके ऊपर थी और वो मेरे नीचे. वो नीचे उचक-उचक कर मेरी बुर में अपने लण्ड का धक्का दे रहा था और में ऊपर से दबा-दबा कर उसका लण्ड सटक रही थी. कभी कभी तो मेरी चूचियों को पकड़ कर इतनी ज़ोर से खींचता कि मेरा मुँह उसके मुँह तक पहुँच जाता और वो मेरे होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता. मैं जन्नत में नाच रही थी और मेरी चूत की चुदास बढ़ती ही जा रही थी. मैं दबा दबा कर चुद रही थी और बोल रही थी, -

“बड़ा मज़ा आ रहा है मेरे चोदु राजा और जोरो से चोद मेरी चूत, भर दे अपना माल मेरी चूत में , आआआअह्ह्ह्ह्ह्हाआआ, बस इसी तरह से लगे रहो, हाआआईईईइ कितना अच्छा चोद रहे हो,


अचानक महेश ने मुझे अपने ऊपर से हटा दिया । उसका लण्ड पक से चूत से निकल गया। मैंने चौक के पूछा-

“क्या हुआ?”


महेश – “तेरे गद्देदार चूतड़ो का तो मजा लिया ही नही रानी अब तेरे चूतड़ों की तरफ़ से चूत में पेलुँगा. और उसने मुझे नीचे गिरा कर चौपाया बना और मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी चूतड़ों को पकड़ कर ऊँचा उठाने लगा उसकी मनसा जान मैंने चूतड़ उचका अपनी चूत से उसके लण्ड के सुपाड़े की मुलाकात करवा दी। लण्ड का सुपाड़ा चूत के मुहाने पर आते ही उसने ज़ोर से लण्ड उचकाया चूत रस में भीगे होने के कारण उसके लण्ड का सुपाड़ा फट से मेरी चूतड़ में घुस गया। अब उसने अपना लण्ड अंदर-बाहर करना शुरू किया. वो बहुत धीरे-धीरे धक्का मार रह था, और कुछ ही मिनूटों में जब निशाना सध गया तो धीरे-धीरे उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी, और अब वो मेरे गद्देदार चूतड़ो पर थपाथप करते हुए किसी पिस्टन की तरह पीछे से मेरी चूत में अपना लण्ड पेल रहा था. मुझे तो चूत मे लण्ड चाहिये चाहे जिधर से मिले और अब में फ़िर बड़बड़ाने लगी, है आज़ाज़ा आ रहा है,

और ज़ोर से मारो, और मारो और बना दो मेरी चूत का भुर्ता, और दबओ मेरे चूतड़ , और ज़ोर दिखाओ अपने लण्ड का और फाड़ ओ मेरी चूत, अब दिखाओ अपने लण्ड की ताक़त. बस थोडा सा और, मैं बस झड़ने ही वाली हूँ और थोड़ा धक्का मारो शाबाश.................... अह्हाआआ लो मैं गयी, निकला...

और फ़िर मेरी चूत खूब झड़ी ।

उसी समय महेश भी बड़बड़ाया –

“हाय जानी अब गया, अब और नही रुक सकता, ले चूत रानी, ले मेरे लण्ड का पानी अपनी चूत में ले. कहते हुए उसके लण्ड ने मेरी चूत में अपने वीर्य की पिचकारी छोड़ दी । वो चूचियाँ दबाए मेरी कमर से इस तरह चिपक गया था मानो मीलों दौड़ कर आया हो. थोड़ी देर बाद उसका मुरझाया हुआ लण्ड मेरी चूत में से निकल गया और वो मेरी चूचियाँ दबाते हुए उठ खड़ा हुआ, और मुझे सीधा करके अपने सीने से सटा कर मेरे होंठों की पप्पी लेने लगा.

क्रमश:…………………
Reply
07-22-2018, 11:48 AM,
#39
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक

भाग -8



दावत के रंग


इतनी देर में देखा की दूसरे रूम से हमारी प्यारी भाभी की चूत, की चुदाई समाप्त कर विश्वनाथजी नंगे ही हमारे रूम में घुसे और मुझे महेश से चिपका देखकर बोले ' अबे किसी और का नंबर आएगा आ नही, या सारा समय तू ही इस नंद रानी को चोदता रहेगा.

महेश - नही यार विश्वनाथ भाई मैं चोद चुका, तू इसे संभाल, ये बड़ी मजेदार चीज है। अगर आज ही बाकी चूतों का स्वाद न लेना होता तो मैं इसी से चिपका रहता।

विश्वनाथजी- अच्छा ये बात है देखता हूँ कितनी मजेदार चीज है इसकी भाभी को तो अभी मैं चोदकर आ रहा हूँ वो भी बड़ी मस्त चीज है जा उसका भी मजा लेले ।

महेश – मै मानता हूँ सच में इसकी भाभी बड़ी मस्त चीज है पर उसे तो मैं मेले मे चोद चुका हूँ अब में चला इसकी मामीजी के पास।

यह कह कर महेश ने मुझ नंगधड़ंग को विश्वनाथजी की तरफ धकेला और बाहर चला गया.

विश्वनाथजी ने तुरंत मेर नंगा बदन अपनी बाहों में धर दबोचा लिया और मेरे गाल चूमने लगे। मुझे बेहद शरम आ रही थी क्योंकि कल तक तो हम सब उनके मेहमान थे और हमारी भाभीजी को चोदकर हम सब उनके साथ अपने से बड़े जैसा व्यवहार करते थे और आज उन्होंने न सिर्फ़ मुझे एक मर्द के साथ नंगा देखा बल्कि बल्कि अब वो मुझे अपनी बाहों में दबोचकर मेरा एक गाल मुँह में भर कर चूस रहे थे तभी वो मेरी दोनो चूचियों को कस कर भोंपु की तरह दबाने लगे. जिससे मुझे दर्द होने लगा और मैं सीस्या उठी तभी उन्होंने मुझे खींच कर पलंग पर लिटा दिया और वहीं ज़मीन पर पड़ा हुआ मेरी पेटिकोट उठा कर मेरी चूत पोंछ्ते हुए विश्वनाथजी बोले-

“कहो बेला मज़ा आ रहा है न ।”

और मेरे जिस्म पर छा गये। कभी मेरे गालो को चूसते, कभी मेरी चूचियाँ जोरो से दबा देते । जैसे-जैसे वो मेरे बड़ी बड़ी चूचियों की पंपिंग कर रहे था, वैसे ही उसका लण्ड खड़ा हो रहा था मानो कोई उसमें हवा भर रहा हो.

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रखा और मुझे लण्ड सहलाने का इशारा किया. मैंने शर्माकर अपना हाथ उसके लण्ड से हटा लिया तो उन्होंने पूछा-

“अच्छा नही लगा रहा है क्या?”

मैं इनकार करते हुए बोली –

“ नहीं ये बात नही है पर हमको शर्म आ रही है ।”

विश्वनाथजी ताज्जुब और झुँझलाहट से बोले –

“अभी तू महेश के साथ थी तब तो तुझे शर्म नहीं आ रही थी अब अचानक ये शर्म कहाँ से आ गयी?”

मैं- दरअसल आप अबतक हमसे बड़े बुजुर्ग जैसा व्यवहार करते आये थे जो कि इस माहौल मे भी बीच बीच मे याद आ जाता है। 

विश्वनाथजी हँसकर बोले-

ओहो तो ये बात है अरे वो तो हमारे दिखाने के दांत थे बेला हम तो बड़े फ़्री तबियत के आदमी हैं अगाली बार तुमको तब बुलायेंगे जब मेरी पत्नी भी यहाँ हो तब देखना ये दोनो रमेश और महेश अपनी बीबियों के साथ आयेंगे और मैं इनके सामने इनकी बीबियों को और ये मेरी बीबी को चोदेंगे। चूत और लण्ड तो होते ही मजे लेने के लिए हैं आखिर तुम भी तो इसीलिए दो दिनों से अलग अलग लण्डों से चुदकर अपनी चूत को उन लण्डों का मजा दे रही हो, तो शर्म छोड़ लण्ड सहलाओ और इस लण्ड का भी मजा लो ।”

अब मेरी झिझक एकदम दूर हो चुकी थी । मैं मजे से उनका लण्ड सहलाने लगी. जैसे-जैसे लण्ड सहला रही थी मुझे आभास होने लगा कि विश्वनाथजी का लण्ड महेश के लण्ड से करीब आधा इंच मोटा और 2 इंच लंबा है. मैने सोचा जो होगा देखा जाएगा. उनका लण्ड एक लोहे के रोड की तरह कड़ा हो गया था.

अब विश्वनाथजी ने पास पड़ा तकिया उठा कर मेरे चूतड़ों के नीचे लगाया और फिर कटोरी से ढेर सारा घी मेरी चूत के मुहाने पर लगा कर अपना लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रख कर ज़ोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया. में सीस्या उठी. जबकि में कुछ ही देर पहले महेश से चूत चुदवा चुकी थी फिर भी मेरी चूत बिलबिला उठी.उसका लण्ड मेरी बुर में बड़ा कसा-कसा जा रहा था. फिर दुबारा ठप मारा तो पूरा लण्ड मेरी चूत में समा गया.

मैं जोरो से चिल्ला उठी 'उईईईईईई माँ, ............. दर्द हो रहा

है, प्लीज़ थोड़ा धीरे डालो , मेरी फटी जा रही है

विश्वनाथजी - अरे नहीं फटी जा रही है और न ही फ़टेगी, पहली बार मेरे लण्ड से चुदवाते समय शुरु में सब औरतों को ऐसा ही लगता है अभी मैं धीरे धीरे करुँगा, दो मिनट में नसिर्फ़ दर्द चला जायेगा बल्कि तुम्हें इतना मजा आयेगा कि और जोर से चुदवाने के लिए हल्ला मचाओगी ।”

अब वो मेरे गुदाज कन्धे पकड़ कर बारी बारी से मेरे निपल चूसते हुए धीरे-धीरे अपना लण्ड मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा । धीरे-धीरे मेरी बुर भी पानी छोड़ने लगी. बुर भीगी होने के कारण लण्ड बुर में करीब अंदर बाहर जाने लगा, और मुझे भी मज़ा आने लगा. और मैं चूतड़ उचकाने लगी क्योंकि वो कुछ रुक-रुक कर मुझे चोद रहा था । जब मुझसे रहा नही गया तो में खुद ही ऊपर से अपनी कमर के धक्के उसके लण्ड पर मारने लगी और बोली-

“हाय राजा इतना धीरे क्यों चोद रहे हो मेरी चूत, ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना ।”

ये सुन विश्वनाथजी ने मुझे पलटी देकर अपने ऊपर कर लिया और कहा-

अब तू ऊपर से अपनी चूत से मेरा लण्ड चोद ।”

जब मैं ऊपर से उनके लण्ड पर बैठते हुए घस्सा मारती तो वो नीचे से ऊपर कमर उचका कर अपने लण्ड को मेरी चूत में ठाँसता था और मेरी दोनो चूचियाँ पकड़ कर नीचे की ओर खींचता था जिस से लण्ड और ज्यादा चूत के अंदर तक जा रहा था और मुझे बेइन्तहा मजा आ रहा था मैं ऊपर से खूब जोर का घिस्सा मार रही थी. इसी तरह से मेरी चूँचियाँ दबवाते खिचवाते उनका लण्ड चोदते हुए धीरे धीरे हमारी चुदाई की स्पीड बढ़ने लगी और मेरी चूँचियाँ दबाने खींचने के साथ-साथ वो उनपर मुँह भी मारता जाता था और कभी मेरे निपल अपने दाँतों से काट ख़ाता था तो कभी मेरे गालों पर चुम्मा भर लेता था.पर जब वो मेरे होंठों को चूसता तो में उत्तेजना से बेहाल हो जाती थी ।

मैं मज़े में बड़बड़ा रही थी – हाय रआज़ा बहुत मज़ा आ रहा है, और ज़ोर से चोदो चोद कर फ़ाड़ दो और बना दो मेरी चूत का भोसड़ा..............

अब उत्तेजना तो बहुत बढ़ गई थी पर शायद विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मैं थकने लगी हूँ तो अचानक वे मुझे लिए लिए ही उठ खड़े हुए और मुझे बिस्तर पर पटक कर एक ही झटके में अपना विशालकाय लण्ड मेरी चूत में ठांस दिया और मेरी धुंआदार चुदाई करते हुए मेरी चूत की धज्जियां उड़ाने लगे। मैंने भी अपनी तरफ से नीचे से और ज़ोर ज़ोर चूतड़ उचका कर उनके लण्ड के धक्के अपनी चूत में लेने लगी । जब उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर होता था तो में चूत को और कस लेती थी, जब लण्ड बाहर आता था तो चूत को ढीला चोद देती थी । अचानक हमारे मुँह से निकला उम्म्म्म्म्ह आआआह्ह्ह

और मेरी चूत झड़ने लगी और उसके कुछ ही धक्कों के बाद विश्वनाथजी के लण्ड ने भी धार चोद दी और वो मारे आनन्द के मेरे गुदाज जिस्म से चिपट गये ।

चुदाई प्रोग्राम रात भर इसी तरह चलता रहा और ना जाने मैं, भाभी और मामीजी कितनी बार चुदीं होंगी, पर एक अजीब बात हुई हुआ यों कि महेश को शायद मामीजी का गोरा गुदाज बदन कुछ ज्यादा ही पसन्द आया था क्योंकि वह उनके गुलाबी गुदाज बदन से देर तक खेलता रहा(जैसा कि मामीजी ने बाद में बताया) और उसने चुदाई देर से शुरु की सो जब विश्वनाथजी मुझे चोद के हटे और लगभग तभी रमेश भाभी को चोद के हटा था उस समय महेश और मामीजी धुंआदार चुदाई के बीच में थे। भाभीजी और विश्वनाथजी तो वैसे भी एक दूसरे को पसन्द करते थे सो वख़्त बरबाद न करते हुए विश्वनाथजी भाभीजी पर पिल पड़े फ़िर तुक कुछ ऐसी बनी कि विश्वनाथजी मेरे और भाभीजी बीच ही बटे रह गये और मामीजी तक पहुँच ही नहीं पाये और नशे में होने के कारण, उन्होंने ये कमी महसूस भी नहीं की। उस रात अंत में थक हारकर हम सभी यूँ ही नंगे ही सो गये.

सुबह मेरी आँख खुली तो देखा कि में नंगी ही पड़ी हुई हूँ. मैं जल्दी से उठी और कपड़े पहन कर बाहर किचन की तरफ गयी तो देखा कि भाभी भी नंगी ही पड़ी हुई हैं. मुझे मस्ती सूझी और में करीब ही पड़ा बेलन उठा कर उस पर थोडा सा आयिल लगा कर उनकी चूत में घोंप दिया. बेलन का उनकी चूत में घुसना था कि वो आआआअहह् करते हुए उठ बैठी, और बोली

' यह क्या कर रही हो'.

मैं बोली

' मैं क्या कर रही हूँ, तुम चूत खोले पड़ी थी में सोची तुम चुदासी रह गईं हो, पर चोदने वाले तो कब के चले गये, इसलिये तुम्हारी चूत में बेलन लगा दिया.

भाभी-

' तुझे तो बस चुदाई ही सूझती रहती है'.

मैंने उनकी चूत से बेलन खींच कर कहा –

' चलो जल्दी उठो, वरना चन्दू मामा मामी आ जाएँगे तो क्या कहेंगे. रात तो खूब मज़ा लिया, कुछ मुझे भी तो बताओ क्या किया?

भाभी- तूने भी तो वही किया या तू भजन कर रही थी । बाद में बात करेंगे कि किसने किससे क्या किया' कह कर कपड़े पहन ने लगी तो में मामीजी को उठाने चली गयी.

मामी भी मस्त चूत खोले पड़ी थी । मैंने उनकी चूचियों पर हाथ रख कर उन्हे हिलाया और उठाया और कहा

' मामी यह तुम कैसे पड़ी हो कोई देखेगा तो क्या सोचेगा.'

वो जल्दी से उठी और कपड़े पहन ने लगी, फिर मेरे साथ ही बाहर निकल गयी. हम तीनों लोग उठ कर जल्दी जल्दी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हुए ताकि रात का कोई निशान हमारे जिस्मों या कपड़ों पे ना दिखे

मैं बैठक में गयी तो देखा कि विश्वनाथजी भी बैठक में रमेश और महेश के पास ही पड़े हुए थे. विश्वनाथजी का लण्ड धोती के अन्दर खड़ा था जिससे धोती तम्बू जैसी दिख रही थी । शयद कोई चुदाई का सपना देख रहे होंगे । मुझे शरारात सूझी मैंने विश्वनाथजी कि धोती उनके लण्ड पर से हटा दी और बाहर आकर मामीजी से बोली-

“मैं और भाभी नाश्ता बनाते हैं । ये अच्छा है कि चन्दू मामाजी तो दारू की वजह से आज देर से उठेंगे आप जल्दी विश्वनाथजी और मेहमानों को जगा दें जिससे चन्दू मामाजी के उठने से पहले वो लोग भी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हो अपने आप को दुरुस्त कर लें जिससे चन्दू मामाजी को कोई शक न हो ।”

मामीजी समझ गयी कि मेरा इशारा हम तीनों की लाली, बिन्दी आदि के विश्वनाथजी या रमेश, महेश के जिस्मों या कपड़ों पर मिलने की तरफ़ है। वो बैठक में उन्हें जगाने गयी । मैं ौर भाभी भी तुरंत दौड़ते हुए उनके पीछे गये और उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगे कि देखें विश्वनाथजी को उस हाल में देख मामी जी उन्हें कैसे जगाती हैं । विश्वनाथजी चारौ खाने चित्त लण्ड खड़ा किये सो रहे थे उन्हें इस हाल में देख मामीजी जगाने में झिझकीं । सो उन्हें न जगा कर रमेश, महेश को जगाने लगीं । रमेश और महेश ने आँखें खोली तो नहाई धोई पूरे श्रंगार में मामीजी को अपने ऊपर झुकी देख आवाक रह गये । झुकी होने के कारण मामीजी की दोनों गुलाबी गोरी चूचियाँ ब्लाउज में से झाँक रहीं थीं । रमेश और महेश ने उठते उठते ऊपर से ही ब्लाउज में हाथ डाल चूचियाँ थाम लीं और उन्हें अपनी गोद मे खीचते हुए बोले –

“आओ भौजी यहां बैठो, लगता है भाईसाहब सो रहे हैं क्यों न एक राउन्ड सबेरे सबेरे हो जाय, दिन अच्छा बीतेगा। क्या ख्याल है?”

मामीजी ने नही नहीं करते हुए पीछे हटने की कोशिश की और सन्तुलन न संभाल सकने के कारण उनकी गोदमें गिर पड़ीं और रमेश और महेश के हाथ ब्लाउज में घुसे होने के कारण खिंचकर ब्लाउज की साड़ी चुटपुटिया खुल गयीं । महेश ने ब्रा का हुक खोल दिया और रमेश ने ब्रा ऊपर हटा दी । मामीजी की दोनों बड़ी बड़ी चूचियाँ थिरक कर आजाद हो गयीं । अब नजारा ये था कि रमेश और महेश ने मामीजी को गोद में बैठा रखा था, उनके ब्लाउज के दोनो पल्ले के पट खुले हुए थे और उन खुले पटों में से झांकती हलव्वी चूचियाँ में से एक रमेश और एक महेश ने थाम रखी थी और निपल चूसते हुए वे दोनों उनकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर को चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे मामीजी की गोरी गुलाबी मांसल पिन्डलियाँ और केले के तनों जैसी जाँघें आधी नंगी हो चुकीं थी। सकपकई मामीजी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहीं थी,-

“अरे अरे ये क्या कर रहे हो अगर तुम्हारे भाईसाहब जाग के नीचे आ गये तो साड़ी मस्ती धरी रह जायेगी और सब चौपट हो जायेगा ।”


इस उठ पटक और आवाजों को सुनकर विश्वनाथजी जाग गये और ये नजारा देखके बोले,-

“अरे अरे ! ये क्या बेहूँदापन है लड़कों, भौजी ने रात जरा सी छूट क्या दे दी तुम लोग पजामे से ही बाहर हुए जा रहे हो। अरे ! दिन का वख्त है कुछ तो लिहाज करो । छोड़ो इन्हें ! भौजी आप इधर आ जाइये ।”

विश्वनाथजी की आवाज सुनकर रमेश और महेश के हाथ जैसे ही जरा सा ढीले पड़े मामीजी भाग कर विश्वनाथजी के पास जा बैठीं ताकि अपने कपड़े ठीक कर सकें। विश्वनाथजी ने उन्हें अपने कसरती बदन से सटा लिया और उनकी साड़ी की सिलवटों पर हाथ से झाड़ते हुए ऐसा दिखाया कि जैसे उनके कपड़े ठीक करने में मदद करना चाहते हों। मामीजी को, अपने गुदाज बदन पर, विश्वनाथजी के कसरती बदन का अहसास और आत्मीयता के बोलों ने काफ़ी राहत दी । मामीजी ने अपने कपड़े ठीक करने के लिए, विश्वनाथजी से सटे सटे ही अपनी पीछे से खुली ब्रा के सिरे पकड़ने के लिए हाथ पीछे ले गयीं।

“हद कर दी लड़कों ने, देखो तो क्या हाल कर दिया बिचारी भौजी का ।” ऐसे बड़बड़ाते हुए विश्वनाथजी ने आगे से ब्रा में उनकी चूचियों डालने का उपक्रम किया, पर जैसे ही उनके बड़े मर्दाने हाँथ में मामीजी की हलव्वी छाती आई, मामीजी ने चौंककर विश्वनाथजी की तरफ़ देखा। विश्वनाथजी के कसरती बदन में दबा मामीजी का गुदाज बदन और उनके बड़े मर्दाने हाथ में मामीजी की हलव्वी छाती, अब मामीजी और विश्वनाथजी दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी, दोनो की नजरें मिलते ही विश्वनाथजी उखड़ी साँसों के साथ बोले-

“लड़कों का भी ज्यादा दोष नहीं है भौजी, आप हैं ही इतनी जबर्दस्त कि किसी का भी ईमान डोल जाय ।”

अब विश्वनाथजी के बदन की गर्मी से गरम होती मामीजी भी उनका लगभग सारा नाटक समझ गयीं और मुस्कुरा कर बोली-

“हटो भी विश्वनाथ लाला क्यों मस्खरी करते हो। लड़के देख रहे हैं ।”

मामीजी को मुस्कुराते देख विश्वनाथजी ने उनके बदन को और अपने जिस्म के साथ कसते और चूचियाँ सहलाते हुए कहा,-

“आप फ़िक्र न करें मैं इन्हें समझा लूँगा ।”

विश्वनाथजी का लण्ड पकड़कर मरोड़ते हुए मामीजी फ़िर मुस्कुराई-

“ तुमसे बचूँगी तब तो लड़कों से बचाओगे।”

मामीज़ी के जिस्म के जादू ने विश्वनाथजी के दिमाग की सोचने समझने की रही सही ताकत भी हर ली, उन्होंने अपने होठ मामीजी के होठों पर रख दिये और उन्हें वही लिटा दिया। उनकी साड़ी पेटीकोट पलटकर उनकी पावरोटी सी चूत मुट्ठी में दबोच ली ।

ये देखकर पहले से ही गरमाये रमेश, महेश और ज्यादा गरम हो के अपने लण्ड सहलाने लगे। तभी उनकी नजर हमदोनों( मैं और भाभी) पर पड़ी उन्होने दौड़ के हमे पकड़ के बैठक के अन्दर खींच के दरवाजा भिड़ा दिया और वहीं खड़े खड़े हमारी चूचियाँ दबाने लगे।

क्रमश:…………………
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07-22-2018, 11:48 AM,
#40
RE: Muslim Sex सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक

भाग -9

मामीजी का जादू



उधर विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मामीजी की चूत बुरी तरह से गीली है इसका मतलब वो बुरी तरह से चुदासी हैं सो उन्होंने मारे उत्तेजना के मामी जी की पावरोटी जैसी चूत के मोटे मोटे होठों को अपनी बायें हाथ की उंगली और अंगूठे की मदद से फ़ैलाकर उसके मुहाने पर अपने घोड़े जैसे लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा रखा । अब तो मामीजी के दिमाग ने भी सोचने समझने इन्कार कर दिया उनके होठों से सिसकारी निकली-

“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सी आह ।”

विश्वनाथजी ने धक्का मारा और उनका सुपाड़ा पक से मामीजी की चूत में घुस गया।

मामीजी के होठों से निकला-

“उईफ़ आह !”

तभी बैठक का दरवाजा भड़ाक से खुला और रामू ने अन्दर आते हुए कहा-

माफ़ी मालिक लोग, बड़े मालिक जाग गये हैं और मैं अभी उन्हें सन्डास भेज के आया हूँ ।”

हम सब ठगे से रह गये। रामू की आँखो के सामने रमेश के हाथ में मेरी, महेश के हाथ में भाभी की चूचियाँ, सबसे बढ़कर मामीजी की चूत में विश्वनाथजी के घोड़े जैसे लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा । रामू ने नजरे झुका लीं और जल्दी से बाहर निकल गया अब हमें होश आया विश्वनाथजी ने जल्दी से अपने लण्ड का सुपाड़ा मामीजी की चूत से बाहर खीचा जो बोतल से कार्क के निकलने जैसी पक की आवाज के साथ बाहर आ गया। विश्वनाथजी अपनी धोती ठीक करते हुए बैठक की बाहर की तरफ़ भागे इस बीच मैं और भाभी भी जल्दी से अपने आपको छुड़ाकर अपने कपड़े और हुलिया दुरुस्त करते हुए बैठक की बाहर की तरफ़ भागे क्योंकि वैसे भी हमारे साथ ज्यादा कुछ होने नहीं पाया था सो हुलिया दुरुस्त करने में ज्यादा वख्त नहीं लगा। हमने बाहर देखा कि विश्वनाथजी रामू को फ़ुसफ़ुसाकर पर सख्ती से कुछ समझा रहे हैं उन्होंने रामूको एक सौ रुपये का नोट दिया और रामू खुशी खुशी ऊपर चन्दू मामाजी को नहाने धोने में मदद करने उनके कमरे की तरफ़ चला गया। विश्वनाथजी ने हमसे धीरे से कहा कि तुमलोग घबराना नहीं मैंने रामू का मुँह बन्द कर दिया है।

मैं और भाभी आश्वस्त हो किचन में जा कर जल्दी जल्दी चाय नाश्ता बनाने लगे। मामीजी बैठक से जल्दी से निकलकर एकबार फ़िर बाथरूम में घुस गईं और नये सिरे से अपने आपको दुरुस्तकर और कपड़े बदल कर बाहर निकली। फ़िर किचन में आकर हमारा हाथ बटाने लगीं जब चन्दू मामाजी फ़ारिग हो नहाधोकर नीचे आये तबतक विश्वनाथजी रमेश महेश भी नहाधोकर चुस्त दुरुस्त बैठक में आ बैठे थे और रात की कहानी का कोई सबूत कहीं नहीं नजर आ रहा था । सबकुछ सामान्य था। ऐसा मालूम होता था मानो रात को कुछ हुआ ही नहीं था। विश्वनाथजी-

“आइये भाई साहब खूब सोये हमलोग कब से आप के उठने की राह देख रहे थे लगता है क्या कल दारू कुछ ज्यादा हो गई।”

चन्दू मामाजी-

“ अरे नहीं दारू वारू नही दरअसल ये मेलेठेले से मै बहुत थक जाता हूँ ।”

रमेश (ने मक्ख़्न लगाया)-

“वही मैं कहूँ देखने से ये तो नहीं लगता कि भाई साहब जैसे मजबूत आदमी का दारू वारू कुछ बिगाड़ सकती है ।”

महेश ने मेरी तरफ़ देखते हुए जोड़ा-

“ठीक कहा और जहाँ तक मेले का सवाल है हमलोग किसलिए हैं हम बच्चों को मेला दिखा लायेंगे ।”

(मैं समझ गई कि साला किसी तरकीब से हमें फ़िर से चोदने की भूमिका बना रहा है।)

विश्वनाथजी-

“हाँ भाई साहब कल रात की पार्टी के लिए मेरे परिवार की गैर मौजूदगी में आपके बच्चों ने जो मदद की उसके लिए उनकी जितनी भी तारीफ़ की जाय थोड़ी है ।”

रमेश ने सबकी नजर बच्चा कर भाभी की तरफ़ आँख मारते हुए जोड़ा)-

“ हाँ भाई साहब आपका परिवार सब काम में बहुतही होशियार हैं। कभी हमारे यहाँ आइये हमे भी खातिर करने का मौका दीजिये।” हमारी तो आपकी तरफ़ आवा जाही लगी ही रहती है अबकी बार आयेंगे तो जरूर मिलेंगे। दारू वारू का तो जुगाड़ होगा या नहीं? 

चन्दू मामाजी-

“ अरे कैसी बातें करते हैं दारू वारू की कौन कमी है आप आइये तो सही ।”

(मैं समझ गई कि ये साले हमारे घर आकर भी और फ़िर अपने घर बुला के भी हमें चोदने का सिलसिला कायम करने की तरकीब लड़ा रहे हैं अब ये आसानी से हमारी चूतों का पीछा नहीं छोड़ने वाले।)

हमलोगों ने चाय नाश्ता लगा दिया. चाय नाश्ते के दौरान विश्वनाथजी भी बीच बीच में मामीजी को घूर कर देख रहे थे शायद सुबह अपने सुपाड़े से उनकी चूत का स्वाद चख लेने के बाद रात में चूक जाने की कोफ़्त से तड़प रहे थे। तभी हमारी मामीज़ी ने चन्दू मामाजी से कहा कि उनके पीहर के यहाँ से बुलावा आया है और वो दो दिन के लिए वहाँ जाना चाहती हैं. इस पर चन्दू मामाजी बोले-

“ भाई मैं तो इस मेले ठेले से काफ़ी थका हुआ हूँ और वहाँ जाने की मेरी कोई इच्छा नही है । विश्वनाथजी तो जैसे मौका ही तलाश कर रहे थे मामीज़ी के साथ जाने का, [या फिर मामी को चोदने का क्योंकि कल चोद नही पाए थे और आज सुबह उनकी शान्दार चूत मे सुपाड़ा डालने के बाद तो वो और भी उनकी चूत के लिए बेकरार हो रहे थे] तुरंत ही बोले-

“कोई बात नही भाई साहब, मैं हूँ ना, मैं ले जाऊँगा भौजी को उनके मायके और दो दिन बिठा कर हम वहाँ से वापिस यहाँ पर आ जाएँगे ।“विश्वनाथजी की यह बेताबी देख कर भाभी और मैं मुँह दबा कर हंस रहे थे. जानते थे कि विश्वनाथजी मौका पाते ही मामीज़ी की चुदाई ज़रूर करेंगे. और सच पूच्छो तो अब उनसे अपनी चूत मे सुपाड़ा डलवाने के बाद मामीजी भी ज़रूर उनसे चुदवाना चाह रही होंगी इसलिए एक बार भी ना-नुकूर किए बिना तुरंत ही मान गयी.


ये देख मैं भाभी से बोली

“ भाभी विश्वनाथजी मामीजी को न चोद पाने से परेशान हैं ऐसे देख रहे थे कि मानो अभी मामीजी को चोद देंगे। चलो उनका तो जुगाड़ हो गया अब मजे से दो दिन मामीजी की चूत खूब बजायेंगे। ये बाकी दोनों भी ऐसे देख रहे हैं कि मानो मौका लगे तो अभी फिर से हम सब को चोद देंगे ।”

भाभी-

“मुझे भी ऐसा ही लग रहा है बता अब क्या किया? जाए। ”.

मैं बोली-

“किया क्या जाए, चुप रहो मौका दो, चुदवाओ और मज़ा लो'

भाभी-

“तुझे तो हर वक़्त सिवाए चुदाई के और कुछ सूझता ही नही है ।”

मैं बोली- अच्च्छा शरीफजादी, बन तो ऐसी रही ही जैसे कभी लण्ड देखा ही नहीं, चुदवाना तो दूर की बात है, चार दिनों से लोंडो का पीछा ही नही छोड़ रही और यहाँ अपनी शराफ़त की माँ चुदा रही है.'

भाभी-

अब बस भी कर मेरी माँ , मैंने ग़लती की जो तेरे सामने मुँह खोला. चुप कर नही तो कोई सुन लेगा. और इस तरह हमारी नोंक-झोंक ख़तम हुई.


अब हमारी मामी और विश्वनाथजी के जाने के बाद हमारे लिए रास्ता एक दम साफ़ था. शाम के वक़्त हम तीनो याने मैं, मेरी भाभी और रामू मेला देखने घूमने निकले. तो वहाँ रमेश और महेश मिल गये जैसे हमारा इन्तजार ही कर रहे हों। बोले – “हमने तो आपके यहाँ खूब दावत खाई चलें आज हमारे यहाँ की कमसे कम चाय ही पी लें ।”

मैंने भाभी की तरफ़ देखा और आँखों से ही पूछा कि चुदवाने का मन है क्या? भाभी ने भी आँखों ही आँखों में हामी भर दी बस हम उनके साथ चल दिये। रमेश ने रामू को एक चिट लिख कर दी और कहा-

“ इसे ले जाकर मेरे घर मेरी पत्नी को देना और चाय नाश्ता तैयार करने में उसकी मदद करना तबतक हम मेला देख के आते हैं ।”

रामू चला गया तो रमेश बोला-

“चलिये जबतक चाय बनती है आपको महेश का नया घर दिखा दें।”

हम समझ गये कि ये रामू को भगाने का तरीका था। हमारी चुदाई महेश के घर में होगी क्योंके उसकी अभी शादी नही हुई है। महेश के घर पहुँचते पहुँचते उनकी और हमारी चुदास इतनी बढ़ गयी थी कि जैसे ही महेश ने घर का ताला खोलकर हमें अन्दर बुलाकर दरवाजा अन्दर से बन्द किया कि रमेश भाभीजी से और महेश मुझसे लिपट गया दरवाजे से बैठ्क तक आते आते हम दोनो ननद भाभी को पूरी तरह नंगा कर दिया था और खुद भी नंगे हो गये थे फ़िर दोनो ने बारी बारी से हमें एक एक राउण्ड चोदा फ़िर बोले-

“चलो अब रमेश के यहाँ चाय पीते हैं।”

दो राउण्ड चुदकर हमारी चूतें काफ़ी सन्तुष्ट थी ।अलग घर बनवा लेने के बावजूद रमेश और महेश दोनों भाई साथ ही रहते थे क्योंकि महेश की अभी शादी नही हुई थी रास्ते में मैने महेश से पूछा,

“तू शादी क्यों नही कर लेता ? कब करेगा ?”

महेश-

“कोई मुझे पसन्द ही नहीं करती ।”

मैं बोली-

“क्यों तुझमें क्या कमी है?”

महेश- “तू करेगी ।”

मैं बोली-

“मैं तो कर लूँ पर मेरी जैसी चालू चुदक्कड़ से तू करेगा शादी?”

महेश- “हमारे परिवारों में तेरी जैसी चालू चुदक्कड़ ही निभा पायेंगीं ।”

मैं बोली- क्या मतलब?”

जवाब रमेश ने दिया –“मतलब तो मेरे घर पहुँचने के बाद मेरी बीबी से मिलकर ही समझ आयेगा।”

रमेश के घर पहुँचकर हमने दरवाजा खटखटाया और रामू ने होंठ पोछ्ते हुए दरवाजा खोला । हम अन्दर गये नाइटी पहने रमेश की बीबी किचन से होंठ पोछ्ते हुए निकली और बोली-

“आइये आइये।”

हम सबने देखा कि रमेश की बीबी गुदाज बदन कि मझोले कद की बड़े बड़े स्तनों और भारी चूतड़ों वाली गेहुँए रंग की औरत थी । मुझे लगा कि उसके बड़े बड़े स्तनों के स्थान की नाइटी मसली हुई है, जैसे अभी अभी कोई मसल के गया हो उसके बड़े बड़े स्तनों के निपल खड़े थे और उस स्थान की नाइटी गीली थी जैसे कोई नाइटी के ऊपर और अन्दर से अभी तक चूसता रहा हो। घर मे रामू के अलावा तो कोई मर्द या बच्चा था नहीं। तभी रामू को चाय लाने को को किचन में भेज वो हमारे पास बैठ गयी और बोली-

भाई आप लोगों कि बड़ी तारीफ़ कर रहे थे हमारे पति(रमेश) और देवर(महेश)। जिस दिन आप के यहाँ से दोनो आये खाने की मेज पर आपकी बातें करते करते इतने उत्तेजित हो गये कि खाने की मेज पर ही मुझे नंगा कर के चोदने लगे उस रात दोनो भाइयों ने मिलकर मेरी चूत का चार बार बाजा बजाया क्योंकि महेश की अभी शादी हुई नहीं है सो महेश से भी मुझे ही चुदवाना पड़ता है। वैसे आज आपको एक और काम की बात बताऊँ ये रामू भी गजब का चुदक्कड़ है मेरे पति(रमेश) ने जब इससे चाय के लिए कहलवाया तो चिट में लिखा था कि लौंडा तगड़ा लगता जबतक हम लोग आते हैं चाहो तो इस लौंडे को स्वाद बदलने के लिए आजमा के देखो। मैंने आपलोगों के आने से पहले आजमाने के लिए चुदवाया लौंडे मे बड़ी जान है। साले ने अभी रसोई में चूमाचाटी करके दुबारा मूड बना दिया था अगर आपलोग न आ गयी होती तो दूसरा राउन्ड भी हो गया होता। कभी आजमाइयेगा।”

अब मुझे होठ पोछते हुए आने, स्तनों के आस पास मसली हुई और निपल के स्थान पर गीली नाइटी सारा माजरा समझ मे आगया। फ़िर हम सब चाय पी कर घर वापस आगये।

उस रात और अगली रात हम दोनों ने रामू से चुदवाया । साले का लण्ड तो ज्यादा बड़ा नहीं है पर चोदता जबरदस्त है और जितनी बार चाहो।

तीसरे दिन विश्वनाथजी हमारी मामीजी को उनके मायके से वापस ले के आये। हमारी मामीजी बड़ी खुश थी। पूछने पर उन्होंने विश्वनाथजी की तारीफ़ करते हुए बताया कि विश्वनाथजी हमारी मामीजी को उनके मायके बड़ी सहूलियत से ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास कूपे में ले गये थे और वैसे ही वापस भी ले के आये । चूकि हमारे बीच एक दूसरे का कोई भेद छुपा नहीं था सो कुरे दने पर मामी जी ने ये किस्सा बताया । हुआ योंकि हमारी मामी और विश्वनाथजी ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास कूपे में चढे़ और टीटी के टिकेट चेक करके जाने के बाद विश्वनाथजी ने कूपे का दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और मामी के बगल में बैठ गये।

“भौजी! उस दिन की घटना के बाद दिल काबूमें नहीं है ।” कहकर विश्वनाथजी ने उनके गुदाज बदन को अपने कसरती बदन से लिपटा लिया। मामीजी भी तो बुरी तरह से चुदासी हो ही रहीं थी और चुदने ही आयीं थीं, सो वो भी लिपट गयी । विश्वनाथजी आगे से ब्लाउज में हाथ डाल कर उनकी चूचियों सहलाने लगे, जैसे ही उनके बड़े मर्दाने हाँथ में मामीजी की हलव्वी छाती आई, मामीजी साँसें तेज होने लगीं। विश्वनाथजी के कसरती बदन में दबा मामीजी का गुदाज बदन और उनके बड़े मर्दाने हाथ में मामीजी की हलव्वी छातियाँ, अब मामीजी और विश्वनाथजी दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी, विश्वनाथजी के बदन की गर्मी से गरम होती मामीजी ने भी धीरे से विश्वनाथजी की धोती ने हाथ डाल उनका हलव्वी लण्ड थाम लिया और सहलाने लगीं । दोनो की नजरें मिलीं और मिलते ही विश्वनाथजी उखड़ी साँसों के साथ बोले-

“भौजी, आज तो मैं उसदिन का बचा काम पूरा करके ही रहूँगा ।”

विश्वनाथजी का लण्ड पकड़कर मरोड़ते हुए मामीजी फ़िर मुस्कुराकर माहौल को सहज करते हुए पूछा-

“मतलब बचा हुआ ये विश्वनाथ लाला ?”

मामीजी को मुस्कुराते देख विश्वनाथजी ने उनके बदन को और अपने जिस्म के साथ कसते और चूचियाँ सहलाते हुए कहा,-

“हाँ।”

फ़िर उन्हें बर्थ पर लिटा उनकी साड़ी पेटीकोट पलटकर उनकी पावरोटी सी चूत मुट्ठी में दबोच ली और आगे बोले-

“ आपकी इसमें? ”

और विश्वनाथजी ने अपने होठ मामीजी के होठों पर रख दिये।

विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मामीजी की चूत बुरी तरह से गीली है इसका मतलब वो बुरी तरह से चुदासी हैं सो उन्होंने मारे उत्तेजना के मामी जी की पावरोटी जैसी चूत के मोटे मोटे होठों को अपनी बायें हाथ की उंगली और अंगूठे की मदद से फ़ैलाकर उसके मुहाने पर अपने घोड़े जैसे लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा रखा । मामीजी के होठों से सिसकारी निकली-

“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सी आह ।”

विश्वनाथजी ने धक्का मारा और उनका सुपाड़ा पक से मामीजी की चूत में घुस गया।

मामीजी के होठों से निकला-

“उईफ़ आह लाला ! डाल दो पूरा राजा ।”

विश्वनाथजी ने ज़ोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लण्ड मामीजी चूत में घुस गया. मामीजी जैसी पुरानी चुदक्कड़ भी सीस्या उठी जबकि एक ही दिन पहले दो दो हलव्वी लण्डों (रमेश और महेश) से जम के अपनी चूत चुदवा चुकी थी उनका हलव्वी लण्ड मामीजी के भोसड़े में भी बड़ा कसा-कसा जा रहा था. विश्वनाथजी ने एक और ठाप मारा तो पूरा लण्ड अन्दर चला गया. मामीजी के होठों से निकला-

“उइस्स्स्स्स्स्स्स्स आह !

मामीजी ने अपनी दोनो सईगमर्मरी जाँघें विश्वनाथजी ने कन्धों पर रख लीं विश्वनाथजी उनकी मोटी मोटी केले के तने जैसी चिकनी गोरी गुलाबी जांघों पिण्डलियों को दोनों हाथों में दबोचने जोरजोर से सहलाने लगे । बीच बीच में मारे उत्तेजना के उनकी गोरी गोरी गुलाबी पिण्डलियों पर दॉत गड़ा देते थे । इससे उनकी चोदने की स्पीड धीमी हो जाति थी।


क्रमश:…………………
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