Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
11-17-2018, 12:36 AM,
#1
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प्रीत का रंग गुलाबी

दोस्तो एक और कहानी शुरू करने जा रहा हूँ आशा है सब लोग साथ देंगे 

दूर दूर तक कुछ नही था सिवाय गर्म लू के जिसका बस आज एक ही इरादा था की कोई अगर चपेट में आ गया तो उसका काम तमाम कर डाले मोहन ने अपने माथे पर छलक आये पसीने को पोंन्छा और छाया की तलाश में थोडा और आगे बढ़ गया वैसे तो वो रोज ही बकरिया चराने आया करता था पर आज वो कुछ ज्यादा ही दूर आ गया था प्यास से गला सूख रहा था उसने अपने डब्बे को देखा जो की कब का खाली हो चूका था हताश नजरो से उसने नदी की तरफ देखा जिसमे अब कंकड़ और मिटटी के सिवा कुछ नहीं था कई सालो से बारिश जो नहीं हुई थी उस स्त्र की जो नदी को पुनर्जीवन दे सके 


उसने बकरियों को हांका और छाया की तलाश में आगे को बढ़ गया थोड़ी दूर उसे एक देसी कीकर का पेड़ दिखा पेड़ बड़ा तो था पर छाया इतनि नहीं थी पर जेठ की इस गर्म दोपहर में इतनी छाया भी किस्मत वालो को ही मिलती है मोहन ने अपनी कमर टेकी पेड़ से और बैठ गया उसके पशु भी उसके आस पास बैठ गए मोहन ने अपनी बांसुरी निकाली और बजाने लगा जैसे ही उसके होंठो ने बांसुरी को छुआ जैसे वो वीराना महकता चला गया उस बांसुरी की तान पे 


अपनी आँखे बंद किये मोहन संगीत में खोया हुआ था अब उसे गर्मी भी नहीं लग रही थी जैसे उसकी सारी थकन को मोह लिया था संगीत ने और तभी उसे ऐसा लगा की एक बेहद ठंडी हवा का झोंका उसे छू कर गया हो उसने झट से अपनी आँखे खोली हाथो पर तो पसीना था फिर कैसे उसको बर्फीला अहसास हुआ था ठण्ड से उसकी रीढ़ की हड्डी तक कांप गयी थी उसने अपना थूक गटका और अस पास देखा पर सिवाय गर्मी की झुलसन के उधर कुछ भी नहीं था कुछ भी नहीं 


तभी कुछ दूर उसे लगा की कोई खड़ा है मोहन उधर गया तो उसने देखा की एक लड़की उसकी तरफ ही देख रही है मोहन ने जैसे ही उसे देखा एक पल को तो वो उसके रूप में खो सा ही गया इतनी सुंदर लड़की उसने अपने जीवन में आज से पहले कभी नहीं देखि थी चांदी सा रूप उसका एक अलग ही आभा दे रहा था 


लड़की- बंसी तुम ही बजा रहे थे 


मोहन-हां 


वो- अच्छी बजाते हो 


मोहन- तुम कौन हो इस बियाबान में क्या कर रही हो 


वो- बकरिया चराने आई थी 


मोहन- ओह! अच्छा 


वो- पानी पियोगे 


मोहन-हाँ 


उस लड़की ने अपनी मश्क मोहन की तरफ बढाई मोहन ने उसे खोला और एक भीनी भीनी सी खुसबू उसकी सांसो में समाने लगी उसने कुछ घूँट पानी पिया ऐसा लगा की वो पानी ना होकर कोई शरबत हो इतना मीठा पानी मोहन ने कभी नहीं पिया था एक बार जो उसने वो स्वाद चखा खुद को रोक नहीं पाया पूरी मश्क खाली कर दी उसने 


मोहन- माफ़ करना मैं सारा पानी पि गया 


वो-कोइ बात नहीं प्यास बुझी ना 


मोहन- हाँ 


वो- थोड़ी आगे एक पानी का धौरा है अपने पशुओ को वहा पानी पिला लेना 


ये बोलके वो चलने लगी 


मोहन- जी अच्छा 


मोहन ने अपने पशुओ को उस लड़की की बताई दिशा में हांका और वहा सच में एक पानी का धौरा था अब मोहन थोडा चकित हुआ इधर से तो वो कई बार गुजरा था पर उसे कभी ये नहीं दिखा था और वो भी जब नदी सुखी पड़ी थी तो ये धौरा कहा से आया फिर उसने अनुमान लगाया की शायद उसकी नजर में कभी आया नहीं होगा पशुओ ने खूब छिक के पानी पिया उसने भी थोडा और पानी पिया अब हुई उसे हैरत पानी बिलकुल वैसा ही जसा उस लड़की ने उसने पिलाया था 


पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया वो वापिस उसी कीकर के पेड़ के नीछे आया और फिर से छेड़ दी बंसी की तान एक बार जो वो बंसी बजाने लगा तो फिर वो ऐसा खोया की उसे समय का कोई ध्यान रहा ही नहीं सांझ ढलने में थोड़ी देर थी की उसकी तन्द्रा एक आवाज से टूटी 


“ओ चरवाहे, ये बंसी तू ही बजा रहा था क्या ”

मोहन उठ खड़ा हुआ बोला- जी हुकुम कोई गुस्ताखी हुई क्या 


आदमी- चल इधर आ 


कपड़ो से वो आदमी शाही सैनिक लग रहा था अब मोहन घबराया पर फिर उस आदमी के पीछे चल पड़ा थोड़ी दूर जाने पर उसने देखा की ये तो शाही काफिला था मोहन ने सभी लोगो को परनाम किया और फिर एक गाड़ी से एक महिला उतरी , जैसे ही मोहन ने उसकी तरफ देखा उसकी आँखे सौन्दर्य की पर्कास्त्ठा से चोंध गयी आज दिन में ये दूसरी बार था जब मोहन ने ऐसी सुन्दरता देखि थी ,ये इस रियासत की सबसे बड़ी महारानी संयुक्ता थी 


“महारानी की तरफ नजर करता है गुस्ताख ”एक सैनिक ने कोड़ा फटकारा मोहन को वो दर्द से चीखा 


“रुको सैनिक ” 


महारानी मोहन के पास आई और बोली- तो तुम वो संगीत बजा रहे थे 


मोहन- गुस्ताखी माफ़ रानी साहिबा गलती हो गयी 


रानी- गलती कैसी कितनी मिठास है तुम्हारी बंसी की आवाज में हम यहाँ से गुजर रहे थे पर इस मधुर तान ने हम विवश कर दिया रुकने को क्या नाम है तुम्हारा और कहा के रहने वाले हो 


“जी, मेरा नाम मोहन है और मैं सपेरो के डेरे में रहता हु, वहा के मुखिया चंदर का बेटा हु ”

रानी- सपेरा होकर बंसी की ऐसी मधुर तान कमाल है 


वो- जी पिताजी तो बहुत गुस्सा करते है पर मेरे हाथो को बीन की जगह बंसी ही भाति है 


रानी संयुक्ता को मोहन की भोली बाते बहुत अच्छी लगी वो थोडा मोहन के और पास आई और उसके बलिष्ठ शरीर को गहरी नजर से देखते हुए बोली – हम कुछ दिन के लिए जंगल के परली तरफ वाले हिस्से में रुके है आज से ठीक तीन दिन बाद तुम वहा आना हमे तुम्हारी बंसी सुनने की इच्छा है 


अब मोहन की क्या औकात थी जो वो महारानी को मना कर सके संयुक्ता ने मोहन को आदेश दिया और फिर काफिला अपनी मंजिल की और बढ़ने लगा मोहन ने अपने पशुओ को इकठ्ठा किया और डेरे की तरफ चल पड़ा रस्ते भर ये सोचते हुए की अगर उसका संगीत सुनकर रानी खुश हो गयी तो उसका तो जीवन ही संवर जायेगा , वो डेरे पंहुचा , डेरा था बंजारे सपेरो का गाँव था छोटा सा पच्चीस तीस से ज्यादा घर नहीं थे मोहन ने हाथ मुह धोये और तभी उसकी बड़ी बहन उसके गले आ लगी
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11-17-2018, 12:36 AM,
#2
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
“भाई आज आने में बड़ी देर हुई तुम्हे ” चकोर भाई के सीने से लगे हुए बोली 

चकोर के मोटे मोटे चुचे मोहन के सीने में घुसने लगे वो बहन की छातियो को महसूस करने लगा तभी चकोर उस से दूर हो गयी और बोली- भाई जल्दी आओ तुम्हे कुछ दिखाती हु 

मोहन उसके पीछे चल पड़ा अपनी मस्ती में मस्त चकोर अपने भाई के आगे आगे इठलाते हुए चल रही थी और मोहन चाहकर भी अपनी नजर उसके मदमस्त नितम्बो से हटा नहीं पा रहा था इस ग्लानी के साथ की वो उसकी बहन है पर ये योवन की खुमारी उसके सोचने समझने की योग्यता को कम रही थी चकोर एक 21 साल की यौवन से भरी हुई लड़की थी रंग सांवला कटीले नैन नक्श बड़ी बड़ी आँखे बड़ी बड़ी छातिया पतली कमर और थोड़े से चौड़े नितम्ब 

जल्दी ही वो चलते चलते रुक गयी ये एक छोटी सी बागवानी थी जिसे चकोर ने लगाया था 

“भाई देखो फूल आने शुरू हो गए है ”

“हाँ, जीजी ”

ऐसा नहीं था की मोहन क अपनी बहन से स्नेह नहीं था पर उसके दिमाग में इस समय बस रानी साहिबा की कही बाते चल रही थी तीन दिन बाद उसे वहा जाना था चकोर पूरी बगीची में घूम घूम कर मोहन को बाते बता रही थी और तभी उसका पाँव गीली मिटटी में फिसला पर मोहन ने उसको अपनी मजबूत बाँहों में थाम लिया उसकी छातिया फिर से मोहन के कठोर सीने से टकराई और मोहन के हाथ चकोर के नितम्बो पर कस गए चकोर के होंठो से एक आह निकली और आज पहली बार उसे अपने भाई की जगह किसी पर पुरुष का स्पर्श महसूस हुआ 


शरमाते हुए वो मोहन की बाहों से निकली फिर दोनों भाई बहनों में कोई बात नहीं हुई वैसे भी आज मोहन मोहन नहीं था उसके दिमाग में बस रानी संयुक्ता का सुंदर चेहरा घूम रहा था ऐसी सुंदर स्त्री उसने कभी नहीं देखि थी पर आईएनएस अब बातो में वो उस लड़की को भूल गया था जिसने उसे पानी पिलाया था रात हो गयी थी वो पेड़ न निचे आराम कर रहा था तभी चकोर आई 

“भाई मेरे साथ जरा कुवे पर चल मुझे नहाना है ”

“पर जीजी मैं आपके साथ क्या करूँगा ”

“पानी खीच देना और फिर वैसे भी अँधेरा ज्यादा है तू चल ”

मोहन और चकोर कुवे पर पहुचे जो डेरे से थोड़ी दूर था , मोहन ने चकोर के लिए पानी खीचा और पास में ही बैठ गया ठंडी हवा चल रही थी रात को अक्सर मोसम ठंडा हो जाता था चारो तरफ चाँद की रौशनी छिटकी पड़ी थी चकोर ने नहाना शुरू किया उसने अपनी चोली उतारी और घागरे को ऊपर खीच लिया वो अपनी मस्ती में नहा रही थी काफी देर हुई मोहन बोला- और कितनी देर जीजी 

“बस हो गया ”

ये सुनते ही मोहन चकोर की तरफ पलता और तभी चकोर के हाथ से घागरे की डोर छुट गयी घागरा उसके पैरो में आ गिरा और साथ ही मोहन ने अपने जीवन में पहली बार किसी को नंगी देख दिया उसकी आँखे जैसे चकोर के बदन पर ही जम गयी उसके उन्नत जिस्म का पूरा अवलोकन कर लिया लाज के मारे चकोर शरमाई और जल्दी से घागरे को ऊपर किया मोहन ने अपना मुह फेर लिया फिर पुरे रस्ते दोनों ने कोई बात नहीं की 

रात को दोनों भाई बहन की आँखों में नींद नहीं थी चकोर उस स्पर्श के बारे में सोच रही थी जब उसके भाई ने उसके नितम्ब को कस के दबाया था और फिर उसको कुवे पर निर्वस्त्र देख लिया था जबकि मोहन खोया था संयुक्ता की सुन्दरता में वो सोचने लगा की रानी साहिबा जैसे कोई गुलाब का टुकड़ा हो कितनी गुलाबी गोरी रंगत थी उनकी और सबसे बड़ी बात उन्होंने उसकी कला को पसंद किया था जिस बंसी के पीछे उसके पिता ने खूब मारा था उसको एक रानी ने उसी कला को पहचाना था उसी कला के पर्दशन हेतु उसे बुलाया था 

इधर चकोर अपने भाई के बारे में सोचते हुए धीरे धीरे अपने उभारो से खेलने लगी थी उनमे एक कडापन आने लगा था उसकी टांगो के बीच गीलापन बढ़ने लगा था क्या वो उत्तेजित हो रही थी वो भी अपने ही भाई के बारे में सोच कर चकोर को थोडा गुस्सा भी आने लगा था पर उसके जिस्म में जो अहसास हो रहा था वो उसको अच्छा भी लग रहा था एक अजीब सा सुख मिल रहा था उसे जब वो अपने भाई के बारे में सोच रही थी रात आँखों आँखों में कट गयी दोनों की 


इधर सुबह मोहन के पिता किसी काम से डेरे से बाहर चले गए तो मोहन को यहाँ ही रह जाना पड़ा अब उसका मन लगे ना डेरे में क्योंकि यहाँ वो बस खुद को कैदी ही समझता था उसका पिता चाहता था को वो उनकी तरह एक काबिल सपेरा बने पर उसका मन तो बस अपनी बंसी की तान में लगता था अब कैसे वो ये बात घरवालो को समझाए खैर खाना खाने के बाद मोहन ने पानी पिया तो उसे उस लड़की की याद आई नजरे बचा कर वो डेरे से बहार निकला और ठीक उसी जगह पहुच गया वो ही समय था उसने इधर उधर तलाश की पर वो लड़की ना दिखी 


दिखती भी कैसे अब चरवाहों का तो यही काम कभी इधर चले गए कभी उधर चले गए पता नहीं क्यों मोहन को लग रहा था की वो उसे जरुर मिलेगी पर हाथ निराशा ही लगी तो थक कर वो उसी कीकर के निचे बैठ गया और बंसी बजाने लगा यही बंसी तो उसका एक मात्र खिलौना थी , करीब घंटा भर हुआ अब मोहन चला वापिस पर तभी उसने सोचा एक नजर फिर से देख लू और तभी उसे वही लड़की उधर ही दिखी
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11-17-2018, 12:36 AM,
#3
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन उसकी तरफ बढ़ा , वो उसे देख कर मुस्कुराई 

वो-प्यास लगी है 

मोहन- हां 

उसने फिर अपनी मश्क मोहन की तरफ की मोहन ने पानी पिया इस उजाड़ बियाबान में एक बार फिर से वो ठंडा शरबत से मीठा पानी उसके कलेजे को तर गया बर्फीला सा वो पानी वो भी राजस्थान की धरती पर पर एक बार जो मोहन के होंठो से वो पानी लगा फिर मश्क ही खाली हुई 

वो लड़की मोहन को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी मोहन भी मुस्कुरा दिया 

लड़की- आज बकरिया नहीं लाये 

वो- नहीं सच कहू तो बस तुमको ही देखने की आस थी तो 

लड़की- मुझे देखने को वो क्यों भला 

मोहन- पता नहीं बस ऐसे ही पर एक बात पूछनी है 

लड़की- हां पूछो 

मोहन- ये इतना ठंडा पानी तुम कहा से लाती हो और इतना मीठा 

लड़की ने दूर पहाड़ो की तरफ इशारा किया 

मोहन- अच्छा तो तुम वहा रहती हो 

लड़की- हां 

मोहन- पर वो जगह तो यहाँ से बहुत दूर है तुम अकेली कैसे आ जाती हो 

वो- बस आ जाती हु 

मोहन – नाम जान सकता हु 

वो- मोहिनी 

पता क्यों वो दोनों ही मुस्कुरा पड़े जब मोहिनी हंसी तो ऐसा लगा की जैसे सारी कायनात मुस्कुरा पड़ी हो कहने को तो भरी दोपहर थी पर अब आस पास छाया हो चली थी जिसका आभास मोहन को कतई नहीं था मोहिनी बहुत सुंदर थी उसकी हरी आंखे उसका रंग किसी चांदी की तरह चमकता था 

मोहिनी- क्या तुम मुझे बंसी बजा के सुनाओगे 

मोहन- ये भी कोई कहने की बात है 

मोहन वही जमीन पर बैठ गया और उसने एक तान छेड़ थी एक बहुत ही मीठी सी तान मोहिनी पर जैसे जादू सा होने लगा धड़कने बधी वो खोने लगी मोहन के संगीत में पर तभी उसकी तन्द्रा टूटी वो बोली- मोहन अभी मुझे जाना होगा मैं फिर कभी मिलूंगी तुमसे 
अब मोहन क्या कहता बस अपना सर हिला दिया उसने मोहिनी अपने रस्ते बढ़ गयी वो भी डेरे की और चल दिया 

दूर कही, 

“ओह राजाजी आहा आः और जोर से और जोर से आह मैं मरी मरी रे ”

संयुक्ता महाराज चंद्रभान के साथ सम्भोग में लिप्त थी उसकी दोनों टाँगे महाराज के कंधे पर थी और महाराज पूरा जोर लगाते हुए उस काम सुन्दरी को जन्नत की सैर करवा रहे थे रानी जोर जोर से चिल्ल्ला रही थी मस्ती के मारे महाराज का लंड उसकी चूत की धज्जिया उड़ाते हुए उसे ले चला था एक जाने पहचाने असीम आनंद की तरफ 

“ओह रानी आप बेहद ही कामुक हो ”

“”और जोर से महाराज और जोर से “

संयुक्ता के उन्नत उभार हर धक्के के साथ बुरी तरह से झूल रहे थे महारज की बाँहों में वो बुरी तरह से पिस रही थी मस्ती के मारे उसका रोम रोम झूम रहा था आँखे बंद थी चंद्रभान उसकी चूचियो को बेरहमी से मसल रहे थे उनकी वजह से रानी की दोनों छातिया सुर्ख लाल हो गयी थी रानी भी निचे से बार बार अपनी गांड को उठा उठा कर महाराज का पूरा साथ दे रही थी संयुक्ता बिस्तर पर इस कदर कामुक हो गयी थी की जैसे महाराज के जोश की बूँद बूँद ही निचोड़ डालेगी 


महाराज धक्के पे धक्के लगते हुए रानी को आनंदित कर रहे थे पर हर धक्के के साथ जैसे रानी की प्यास और बढती जा रही थी और इस से पहले की वो अपने चरम पर पहुच पाती महाराज चंद्रभान गहरी सांस लेते हुए ढेर हो गए और बगल में लेट गए 
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11-17-2018, 12:36 AM,
#4
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
संयुक्ता ने चंद्रभान की तरफ देखा अपनी जलती निगाहों से एक बार फिर से उन्होंने अपनी रानी को बीच राह में ही छोड़ दिया था पर हर बार की तरह आज वो अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाई और बोली- क्या हुआ महाराज आजकल आपमें पहले जैसा दम नहीं रहा हमारी प्यास नहीं बुझा पाते है आप 

महाराज को ये बाते तीर की तरह चुभी पर वो शांत स्वर में बोले – संयुक्ता कोई आम औरत हो तो वो हमारे आगे पानी मांगती है पर आप हद से ज्यादा कामुक है 

आपको शांत करना इस धरती के किसी इन्सान के बस की नहीं और बढती हुई उम्र के बावजूद आपकी कामुकता बढती जा रही है अब आपको देख कर कौन कह सकता है की आप दो बच्चो की माँ है आपके लिए उम्र तो जैसे थम ही गयी है 

संयुक्त- अब आप बातो की जल्लेबी ना उतरिये यु रोज रोज हमे प्यासा छोड़ना ठीक नही है गुस्से से तम्ताते हुए उसने कहा और फिर वो शिविर से बाहर निकल गयी 

मन ही मन महाराज को हजारो गलिया बकते हुए संयुक्ता तालाब के पानी में उतर गयी पर जिस्म की इस प्यास को चैन नहीं मिला मिले भी तो जैसे बल्कि ये ठंडा पानी उस अगन को और भड़का रहा था जिसको महाराज ने अधुरा छोड़ दिया था उस शांत तालाब में खड़ी संयुक्ता जल रही थी उस अगन में जिसे वो पानी बुझा नहीं सकता था हार कर उसने अपनी उंगलियों से अपनी योनी को सहलाना शुरू किया हर बार की तरह 

धीरे धीरे वो उन्माद संयुक्ता पे हावी होने लगा उसके आँखे बंद होने लगी और बदन कांपने लगा एक, दो फिर तीन उंगलिया उसने अपनी योनी में घुसेड ली थी उसका हाथ बहुत तेजी से चल रहा था अपनी आहों को मुह में ही दबाते हुए महारानी अपने आप को शांत करने की भरपूर कोशिश कर रही थी पर इस समय उन्हें उंगलियों की नहीं बल्कि एक लंड की आवश्यकता थी

एक ऐसे मर्द की आवश्यकता थी जो उनको अपनी मजबूत बाँहों में पीस डाले रौंद डाले उनके सम्पूर्ण अस्तित्व को कोई ऐसा जो उनकी इस अधूरी प्यास को बादल बन कर बरसा दे 

अपने ख्यालो में गुम महारानी अपने हाथ को तेजी से चलाते हुए झड़ने लगी और फिर निढाल होकर तालाब के किनारे पड़ गयी बहुत देर तक वो आँखे बंद किये नंगी ही गीली मिटटी में लेटी रही तन कुछ देर के लिए शांत अवश्य हो गया था पर मन की प्यास अभी बाकी थी 

रात अपने अपने हिस्से में कट रही थी इधर संयुक्ता अपनी अगन में जल रही थी उधर मोहन के दिलो दिमाग पे मोहिनी छाई हुई थी कैसे उसने बड़ी ही शालीनता से मोहन से बात की थी कैसे वो मीठा पानी उसके लिए वो इतनी दूर से लाती थी आँखों आँखों में रात कट रही थी पर नींद थी की जैसे किसी प्रेमिका की तरह रूठ ही गयी थी मोहन का जी तो कर रहा था की दौड़ कर मोहिनी की पास चला जाए उसे ऐसे लग रहा था की जैसे वो अभी भी वही होगी दिमाग में हज़ार ख्याल आये उसे हार कर वो बिस्तर से उठा और जाके शिव मंदिर की सीढियों पर जा बैठा

अब मन को समझाए भी तो कैसे मन बावला मन चंचल हुआ बार बार भटके जितना उसको काबू करे उतना ही वो भटके मनमानी करे अपनी खैर रात थी कट ही गयी सुबह सूरज ने दस्तक दी 

“भाई , माँ ने कहा है की जंगल से कुछ जड़ी बूटिया लानी है अब ढूँढने में पता नहीं कितना समय लगे तो तू मेरे साथ चल ”आँखे मटकाते हुए चकोर ने मोहन से कहा 

मोहन का जरा भी मन नहीं था माँ के कहे को टाल भी तो नहीं सकता था वो दोनों भाई बहन चल पड़े जंगल की और दरअसल आजकल मोहन अपनी बहन से थोडा दूर रहने की पूरी कोशिश करता था शायद ये एक झिझक थी जवानी थी या फिर शर्म थी की वो अपनी बहन के प्रति आकर्षित होता जा रहा था चकोर अपने स्वाभाव अनुसार चुहलबाजी करते हुए जा रही थी कुछ जड़ी बूटिया मिल गयी थी कुछ नहीं तो खोजते खोजते वो जंगल में काफी अन्दर तक आ गए थे 


और तभी एक कन्दरा के पास चकोर को एक पानी का झरना दिखा जिसे देखते ही उसका मस्तमौला स्वभाव जाग उठा वो चहकते हुए बोली- भाई देख झरना मैं तो जा रही हु नहाने इस से पहले मोहन कुछ कहता चकोर भागी झरने की और मोहन वही रह गया अब नहाना भी था और कपडे भीगने का भी डर था तो चकोर ने अपने सारे कपडे पास में रखे और नंगी ही पहुच गयी झरने के निचे 

उसका यौवन और खिल गया जैसे हु उसने अपने बदन को रगडा उसका हाथ उसकी छातियो पर आया उसे मोहन का वो मजबूत स्पर्श याद आ गया मारे लाज के वो खुद से ही शर्मा गयी 

उसने कुछ सोचा और फिर आवाज दी – मोहन आजा तू भी नहा ले 

मोहन – जीजी आपके सामने मैं कैसे नहा सकता हु 

चकोर- मेरे सामने क्यों नहीं नहा सकता मैं क्या कोई पराई हु क्या मैंने कभी तुझे नहाते हुए नहीं देखा चल आजा तेरी थकान भी उतर जाएगी देख मैं बड़ी हु तुझे मेरा कहना मानना ही पड़ेगा तू आजा 

मोहन- पर जीजी , आप समझो जरा मैं आपके आगे कैसे निर्वास्त्र होके 

चकोर- मैं यहाँ हु तू थोडा सा दूर नहाले ऐसा है तो 

मोहन को चकोर की ये बात जंच गयी थोड़ी दूरी पर ही झरने का पानी इकठ्ठा हो रहा था उधर मोहन नहाने लगा इधर चकोर पूरी मस्ती से ठन्डे पानी का मजा ले रही थी अठखेलिया कर रही थी पर यही उसे भारी पड़ गया उसका पाँव एक चिकने पत्थर पर पड़ा 

और वो कुलहो के बल चट्टान से टकराई और उसकी चीख गूंजी बहन की चीख सुन कर मोहन घबराया और नंगा ही चकोर की और भागा देखा तो चकोर पड़ी थी दर्द में कहारती हुई पर उसका ध्यान दर्द से हाथ कर अपनी बहन के गुदाज जिस्म पर था 

“आह, भाई उठाओ मुझे ”

“मैं कैसे इस निर्वस्त्र अवस्था में ”

चकोर- इधर मेरी टांग टूट गयी है तुझे शर्म लिहाज की पड़ी है उठाना मुझे 

मोहन जैसे ही आगे को हुआ चकोर की नजर उसके लंड पर पड़ी जो उसकी दोनों टांगो के बीच झूल रहा था किसी केले की तरह उसकी निगाह वही जम गयी उफ्फ्फ भाई कितना बड़ा हथियार है तुम्हारा थो मोहन ने चकोर की बगल में हाथ डाला और उसे उठाने लगा तभी उसकी कोहनी चकोर की छाती से टकराई चकोर ने एक गहरी आह भरी 

मोहन ने उसको गोद में उठाया तो उसका लंड बहन के नितम्बो से रगड़ खा गया दोनों के बदन में सुरसुराहट हो गयी मोहन उसे साफ जमीन पर ले आया चकोर को उसे पेड़ के सहारे बिठा दिया पर दर्द बहुत था उसको 

मोहन- कहा चोट लगी 

वो- कुल्हे पर लगी है तुम देखो जरा 

अब मरता क्या ना करता मोहन चकोर पेड़ का सहारा लेकर उसकी तरफ पीठ करके हो गयी उसके भारी भरकम तरबूज जैसे कुल्हे मोहन की आँखों के सामने थे 

चकोर- हाथ लगा कर देखो जरा कही कुल्हे की हड्डी तो नहीं टूट गयी जोड़ से 

मोहन ने बहन के चूतडो को छुआ तो उसे भी एक अलग एहसास हुआ रुई से भी ज्यादा मुलायम चकोर के नितम्ब और बीच में वो दरार उसने दोनों हाथो से कुलहो को फैलाया तो उसे गांड का छेद और चूत दोनों नजर आने लगे मोहन के माथे से पसीना बह चला उसके लंड ने एक झटका खाया और उसका लंड तन गया

इधर चकोर को एक सुक्कून सा मिला जब मोहन उसके चूतडो को दबाने लगा उसकी चूत बहने लगी जिस से आपस में चिपकी दोनों टाँगे गीली होने लगी वो थोडा सा आगे को हुआ और उसका लंड चकोर की गांड की दरार से टकरा गया चकोर के जिस्म में जैसे बिजलिया से दौड़ पड़ी 

और तभी शायद चकोर के पैर में किसी चींटी ने काटा तो वो थोडा सा पीछे को हुई और ऐसा करते हु मोहन का लंड उसकी गांड की दरार में अच्छी तरह से फिर हो गया चकोर के बदन में एक रोमांच सा दौड़ गया 

“जीजी ”

“श्हश्श्स चुप रहो “
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11-17-2018, 12:37 AM,
#5
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
चकोर ने अपनी गांड को भाई के लंड पर रगड़ना शुरू किया उसे बहुत अच्छा लग रहा था जबकि मोहन भी उत्तेजना से कांपने लगा था बहन के बदन की खुशबु से दो पल के लिए चकोर अपने दर्द को भूल गयी थी पर जैसे ही दर्द की लहर बदन में दौड़ी वो कराही और आगे को हो गयी मोहन ने बहन की कमर को थाम लिया उसने धीरे धीरे चुतड का अवलोकन किया और जल्दी ही दर्द को पकड़ लिया चोट गहरी नहीं थी थोड़ी देर में ही ठीक हो जानी थी 

मोहन ने एक बूटी चूतडो पर लगाई और फिर चकोर को कपडे पहनने को कहा वो चकोर के कपडे लाया और फिर खुद अपने कपडे भी पहन लिये चकोर का जी चाह रहा था की अभी मोहन से लिपट जाऊ कुछ ऐसा ही हाल मोहन का भी था पर दोनों अपने रिश्ते की गरिमा की वजह से अब नजरे चुरा रहे थे थोड़ी देर में चकोर का दर्द कम हुआ तो वो जड़ी बूटिया ढूँढने लगी और लगभग अँधेरे में ही घर आये पर दोनों के मन में एक तूफ़ान चल रहा था जो आने वाले समय में कुछ गुल खिलाने वाला था

“रानी आप तैयार नहीं हुए हमे वापिस महल लौटना है ”

“हमारा मन नहीं है अभी लौटने का हम कुछ दिन और आखेट करेंगे ”

“मन तो हमारा भी नहीं है पर मंत्री जी का संदेसा आया है तो जाना होगा आपकी सुरक्षा के लिए एक टुकड़ी सैनिको की छोड़ जाते है ”

“उसकी आवश्यकता नहीं महाराज बस कुछ सेविकाए ही बहुत रहेंगी हम कुछ पल अकेले रहना चाहते है ”

“परन्तु महारानी आपकी सुरक्षा ”

“अपने राज्य में हमे किसका डर महाराज और ये मत भूलिए की हमारी रगों में भी रणबांकुरो का लहू दौड़ रहा है ”

“ठीक है आपकी जैसी इच्छा पर ज्यादा दिन ना लगिएगा आपके बिना हमारा मन महल में नहीं लगेगा ”

“आपकी सेवा के लिए दो रनिया और भी है महाराज ”

“पर आपकी बात निराली है खैर, हमे देर हो रही है चलते है ”

महराज के काफिला चल पड़ा महल की और संयुक्ता वही रह गयी अपनी कुछ विस्वस्पात्र बांदियो के साथ महारानी संयुक्ता राजा की सबसे बड़ी रानी थी उम्र करीब 37-38 बेहद ही रूपवान 38 की छातिया 28 कमर और 42 की गांड रूप ऐसा की सोना भी इर्ष्या करे 

एक बेहतरीन माँ और कर्मठ रानी पर बस एक ही कमी थी वो हद से ज्यादा कामुक थी कई बार वो अपनी यौन इच्छाओ पर काबू नहीं कर पाती थी ऐसा नहीं तह की महाराज चंद्रभान में कोई कमी थी वो पूर्ण पुरुष थे पर वो भी संयुक्ता के आगे हार मान लेते थे 

आज चौथा दिन था महारानी ने मोहन को मिलने को कहा था बापू था नहीं डेरे में माँ से झूठ बोल कर की वो जड़ी बूटिया लाने जा रहा है वो चल पड़ा रस्ते में वही कीकर का पेड़ आया तो उसे मोहिनी का ख्याल आया उसने एक दो आवाजे भी लगायी पर मोहिनी हो तो आये कुछ देर इंतजार के बाद वो आगे हुआ 
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11-17-2018, 12:37 AM,
#6
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे ख्याल आया उस पानी की धौरे का वो गया अब वो हुआ हैरान धौरा पूरी तरह से सूखा हुआ था मोहन को विश्वास ना हुआ 

“मोहिनी ने तो कहा था की यहाँ हमेशा मीठा पानी रहेगा मैं जब जी चाहू पि लू पर यहाँ तो पानी है ही नहीं शायद मोहिनी ने ऐसे ही कह दिया होगा , पर उस दिन तो पानी था ’

अपने आप से बडबडाता मोहन आगे को बढ़ा और तभी उसे अपने कानो में पानी की आवाज सुनाई दी वो झट से घुमा और क्या देखा धौरा लबालब भरा था पानी से मोहन ने छिक के पानी पिया उसने फिर से मोहिनी को आवाज दी पर वो थी ही नहीं तो कैसे जवाब देती तो वो अपने मंजिल की और बढ़ गया

अब किसकी मजाल थी की महारानी के हुक्म को ना माने पर मोहन अपनी कला की प्रशंशा पाना चाहता था इसी आस में वो आखिर महारानी के शिविर तक जैसे उन्होंने बताया था वो पहुच गया 
तभी उस पर महिला सैनिको की नजर पड़ी वो चीलाई- ओये लड़क
के वही ठहर तेरी क्या हिम्मत जो तू महारानी के शिविर के स्थान पर आया

मोहन- मुझे खुद महारानी ने बुलाया है 

उनमे से एक हस्ते हुए बोली- तुझे बुलाया है महारानी ने ज्यादा झूठ मत बोल और भाग जा यहाँ से वर्ना सर धड से अलग होते हुए देर न लगेगी 

अब मोहन उन्हें समझाए पर वो उसकी एक न सुने आखिर में उन्होंने मोहन को लताड़ कर भगा दिया मोहन की आस टूटी अब क्या करे वो सांझ ढल गयी पर उसने भी ठान लिया की वो महारानी से मिल के ही जायेगा थोडा अँधेरा हुआ भूख भी लगी पर आस थी हताश होकर उसने अपनी बंसी निकाली और छेड़ दी एक दर्द भरी तान मोहन की हताशा दर्द बन कर वातारण में विचरण करने लगी रानी उस समय नहा रही थी सरोवर में जैसे ही उसके कानो में वो आवाज पड़ी रानी बहने लगी उस आवाज में 

बुलाया बंदी को और पुछा- ये कौन बंसी बजा रहा है जान तो वो गयी थी की वो ही चरवाहा होगा 

बंदी आई- हुजुर, एक लड़का है सुबह से आया है कहता है की आपने बुलाया है पर वो ठीक नहीं लगा तो हमने उसे भगा दिया था पर वो ही थोड़ी दूर बंसी बजा रहा है आपकी शान में गुस्ताखी हुई हम अभी उसे कैद में लेते है 

संयुक्ता- गुस्ताख, तुम हमारे मेहमान को कैद में लोगी इस से पहले की हमारे क्रोध की जावला में तुम जल जाओ उस चरवाहे को बा अदब हमारे पास लाया जाये और साथ ही उसके भोजन की शाही व्यवस्था की जाए उसे इज्जत केसाथ लाओ अभी रानी दहाड़ी 

जैसे ही मोहन को पता चला की रानी ने उसको बुलाया वो खुश होगा राजी राजी आया उसी तालाब के पास जिसमे रानी अठखेलिया कर रही थी मोहन को देख कर रानी मुस्कुराई और बोली- सबको आदेश है की जब तक हम किसी को ना बुलाये कोई नहीं आये यहाँ पर सबसे पहले इसके लिए कुछ खाने का प्रबंध करो 

कुछ ही देर में मोहन के लिए तरह तरह के पकवान आ गए जिनका ना नाम सुना उसने ना कभी खाया संयुक्ता ने उसको इशारा किया मोहन ने खाना शुरू किया जल्दी ही उसका पेट भर गया रानी ने पुछा कुछ और उसने मना किया वो मुस्कुराई 
संयुक्ता अभी भी पानी में ही थी गर्दन तक पानी में डूबी बोली- क्या नाम है तुम्हारा 

मोहन-जी मोहन 

“तो मोहन सुनाओ कोई तान जिस से मैं बहक जाऊ मेरे मन को कुछ देर के लिए ही सही एक सुकून सा मिले उस दिन जो तुम बजा रहे थे वो ही बजाओ ऐसे लगता है की जैसे तुम्हारी तान सीधे मेरे दिल में उतरती है ”

मोहन वही तालाब किनारे बैठ गया और उसने छेड़ दी ऐसी मधुर तान की जैसे कान्हा जी के बाद अगर कोई बंसी बजता था तो बस मोहन और कोई नहीं इधर जैसे जैसे मोहन का संगीत अपने श्रेष्ठ की और जा रहा था संयुक्ता की प्यास जागने लगी थी पानी की शीतलता में भी उसका बदन किसी बुखार के रोगी की तरह तपने लगा था जिस्म की प्यास फिर से उसके बदन को झुलसाने लगी थी ऐसा नहीं था की वो कोई चरित्रहीन औरत थी

पर जब से उसने मोहन को देखा था वो अपने आप में नहीं थी 
पता नहीं मोहन म ऐसी कौन सी कशिश थी जिसने महारानी संयुक्ता को आकर्षित कर लिया था , रानी को भी अपनी चूत की प्यास में कई दिनों से तड़प रही थी उसने धीरे से अपने निचले होंठ को दांत से काटा और मोहन को आवाज लगाई 

“पानी में आ जाओ ”

“जी मैं ” वो थोडा सा सकुचाया 

“सुना नहीं हमने क्या कहा ”

अब किसकी मजाल जो राज्य की महारानी को ना करे मोहन ने अपने कपडे उतारे और पानी में आने लगा और जैसे ही संयुक्ता की नजर मोहन के लंड पर पड़ी उसकी आँखों में एक चमक आ गयी

पानी के अन्दर ही रानी ने अपने चोची को भीचा और एक आह भरी अँधेरा होने लगा था ये कैसी कसक थी कैसी प्यास थी तो रानी ने इस काम के लिए मोहन को यहाँ बुलाया था ये जिस्म की प्यास एक महारानी का दिल एक बंजारे पर आ गया था वैसे तो रानी- महारानियो के इस पारकर के शौक होते थे पर क्या एक रानी इस स्तर पर आ गयी थी की उसने एक बंजारे को चुना था चलता हुआ मोहन रानी के बिलकुल सामने ही खडा था इस समय संयुक्ता मोहन की आँखों में देखते हुए मुस्कुराई


और अगले ही पल उसने मोहन के लंड को पानी में पकड लिया मोहन थोडा सा घबराया पर रानी ने उसको आँखे दिखाई अब रानी का क्या पता कब नाराज हो जाये सर धड से अलग करवा दे मोहन चुप हो गया पानी में भी संयुक्ता ने लंड की गर्माहट को मेह्सूस कर लिया था वो बोली- कभी किसी औरत के करीब गए हो कभी किया है 



मोहन- नहीं मालकिन 



रानी- तो कोरे हो चलो आज तुम्हे स्वर्ग की सैर का अनुभव करवा ही देती हु देखो मोहन मैं जैसा करती हु करने देना वर्ना तुम जानते हो 



मोहन से हाँ में सर हिलाया , संयुक्ता ने धीरे धीरे उसके लंड को सहलाना शुरू किया मोहन के लंड को पहली बार किसी औरत ने हाथ लगाया था तो जल्दी ही वो उत्त्जेजित होने लगा जैसे जैसे उसके लंड में तनाव आ रहा था रानी के होंठो पर कुतिली मुस्कान आ रही थी वो जन गयी थी की लंड में बहुत दम है आज वो जी भर के तरपत होंगी मोहन के लंड की मोटाई उसकी कलाई के करीब ही थी रानी अब तेज तेज हाथ चलाने लगी थी उसके लंड पर 



“मोहन हमारी छातियो को चुसो ”

वो दोनों अब थोडा सा बाहर को आये पानी अब उसकी कमर था मोहन ने जैसे ही अपने हाथ रानी की चूचियो पर रखे वो तड़प गयी 



“आह,थोडा सा जोर से दबाओ ”
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11-17-2018, 12:37 AM,
#7
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन ने थोडा सा जोर से दबाया तो रानी को हल्का सा दर्द हुआ पर इस दर्द का भी एक अपना मजा था एक मिठास थी मोहन को भी उत्तेजना चढ़ रही थी वो थोडा जोश में आके रानी के बोबो से खेलने लगा और फिर संयुक्ता के दोनों चूचियो को बारी बारी से चूस रहा था गोरी छातिया लाल सुर्ख होने लगी थी उनके निप्पलस करीब इंच भर बाहर आ गए थे रानी की चूत से रिसकर कामरस तालाब के पानी में मिल रहा था करीब पंद्रह मिनट तक रानी ने उस से अपने बोबे चुस्वाये 



अब उसने लंड को आजाद किया और मोहन की करीब आई इतनी करीब की उसकी छातिया मोहन के सीने से दबने लगी मोहन का लंड उसकी चूत पर रगड खाने लगा दोनों की आँखे मिली और संयुक्ता ने अपने सुर्ख गुलाबी होंठो को मोहन के होंठो से लगा लिया और चूमने लगी मोहन को ऐसे लगा की जैसे किसने ने गुलाब की पंखुडियो को सहद में मिला कर उसके मुह में डाल दिया संयुक्ता मोहन के होंठो को तब तक चुस्ती रहीजब तक मोहन के निचले होंठ से खून ना निकल आया उसकी चूत बहुत ज्यादा पानी छोड़ रही थी रानी का यौवन आज खिल रहा था उस रात की तरह 




चुम्बन के टूटते ही उसने मोहन को शिविर में चलने को कहा दोनों नंगे ही वहा आये रानी के क़यामत हुस्न को देख कर मोहन का लंड ऐंठने लगा जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा ही उतर आई हो धरती पर गोरा बदन भरी छातिया मांस से भरी चिकनी जांघे और बेहद उन्नत गांड उसकी जैसे ही मोहन शिविर में आय उसे अलग की वो गलती से किसी महल में ही आ गया है आलीशान पलंग शानदार बिस्तर संयुक्ता ने मोहन को पलंग पर लिटाया और फिर खुद भी चढ़ गयी 



मोहन का काला लंड आसमान की और मुह किये तने था रानी ने उसको अपनी मुट्ठी में लिया और सुपाडे की खाल को निचे किया गुलाबी सुपाडा जो की किसी छोटे आलू की तरह फूला हुआ था बड़ा सुंदर लग रहा था संयुक्ता ने अपने होंठो पर जीभ फेरी और फिर खुद को मोहन के लंड पर झुका लिया जैसे ही लिजलिजी जीभ ने मोहन के सुपाडे को छुआ मोहन की आँखे मस्ती के मारे बंद हो गयी रानी ने एक नजर मोहन पर डाली और फिर मोहन के लंड को चूसने लगी 



रानी को पूरा मुह फाड़ना पड़ा तब वो उस सुपाडे को चूस पायी अपने मुह में ले पायी साथ ही वो मोहन के टट्टे भी सहला रही थी मोहन मस्ती के मारे जल्दी ही अपनी टाँगे पटकने लगा मोहन का आधे से ज्यादा लंड जैसे तैसे करने उसने अपने मुह में उतार दिया था बाकि को वो हाथ से सहलाती रही उसकी छातिया मोहन की टांगो पर रगड खा रही थी संयुक्ता पूरी तरह से मोहन के लंड पर टूट पड़ी थी कभी सुपाडे को चुस्ती तो कभी वो उसके टट्टे 



साथ ही उसे हैरानी भी हो रही थी की इतनी देर से ये झडा नहीं है रानी की चूत हद से ज्यादा गीली हो गयी थी आज से पहले इतना पानी उसने कभी नहीं छोड़ा था थोड़ी देर और बीती और फिर मोहन का लंड ऐंठने लगा उसकी नसे फूलने लगी रानी समझ गयी थी की ये झड़ने वाला है उसने फिर से सुपाडे को अपने मुह में भर लिया और मोहन के लंड से गाढ़ा सफ़ेद रस रानी के मुह में गिरने लगा एक के बाद क पिचकारिया रानी के गले से होते हुए उसके पेट में जाने लगी



जब उसने वीर्य की छोटी से छोटी बूँद भी गटक ली तब लंड को बाहर निकाला पर उसकी आँखे चमक गयी जब उसें देखा लंड अभी की किसी लकड़ी के डंडे की तरह खड़ा है उसकी चूत तो वैसे ही गीली हो रही थी अपने होंठो पर लगे वीर्य को साफ किया संयुक्ता ने और फिर अपनी टाँगे फैला आकर अपनी चूत मोहन को दिखाई बिना बालो की थोड़ी फूली हुई सी चूत जो एक दम गुलाबी थी बिलकुल किसी ताजा गुलाब की तरह अब कौन कह दे की इस औरत के दो बच्चे है 



“मोहन प्यार करो इसे जैसे मैंने तुम्हारे अंग को चूसा है चाटा है ऐसे ही तुम इसे प्यार करो”


मोहन ने अपना सर उसकी टांगो के बीच घुसा दिया उत्त्जेना वश चूत के दोनों होठ फद्फदाये एक नमकीन सी महक मोहन की सांसो में घुलने लगी उसने जैसे ही अपनी जीभ से रानी की चूत को टच किया नमक सा लगा उसको और संयुक्ता के बदन में ऐंठन हुई वो मचली उसने अपनी गांड थोड़ी सी ऊपर उठा दी मोहन की जीभ उसकी चूत पर चलने लगी संयुक्ता की सांसे उफनने लगी

मोहन ने बिलकुल निचे से ऊपर तक जीभ का ससडका मारा तो रानी एक दम से चिल्ला उठी थी उसकी चूत इतना मजा दे रही थी की वो अब क्या कहे उसके चुतड अपने आप थिरकने लगे थे उसके पैर अपने आप फैलते जा रहे थे रानी पूरी तरह से आज उत्तेजित होकर अपनी चूत चत्वा रही थी मोहन गतागत चूत से टपकते पानी को पि रहा था उसे भी अब उसका स्वाद अच्छा लग रहा था साथ ही ये डर भी था की रानी कब नाराज हो जाये क्या पता रानी उसके सर को सहलाए कभी अपने उभारो से खेले उत्त्जेना में उसने अपने बाल खोल दिए थे उसकी साँसे तेज तेज चल रही थी और 



तभी रानी का खुद से नियंत्रण समाप्त हो गया उसका बदन झटकने लगा और वो झड़ने लगी अपनी उम्र से आधे लड़के ने संयुक्ता को झाड दिया था वो भी बस पांच मिनट में वो खुद हैरान थी की ऐसा कैसे हो गया कहा गयी उसकी वो काम पिपासा अपनी साँसों को नियंत्रित किया और फिर मोहन के होंठ चूम लिए 
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11-17-2018, 12:37 AM,
#8
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
अब बस उसे कुछ चाहिए था तो मोहन का लंड उसकी चूत में रानी ने मोहन को बताया की कैसे क्या करना है और अपनी टांगो को फैला लिया मोहन ने अपनी टांगो को रानी की टांगो पर चढ़ाया और अपने लंड को रानी की चूत पर सटा दिया और जैसे ही उसने धक्का मारा वो थोडा जो से मार दिया संयुक्ता को दर्द का अहसास हुआ और अगले ही पल उसकी चूत की पंखुड़िया विपरीत दिशाओ में फैलने लगी उसको दर्द में देख कर मोहन थोडा घबराय और वापिस होने लगा तो रानी ने उसे रोका 



“मोहन, होने दो चाहे कितना दर्द पर तुम मत रुकना मैं कितना भी चीखू चिल्लाऊ मुझ पर कोई रहम मत करना बस अपने लंड को जद तक हमारी चूत में पेल दो ”


अब रानी का हुकम सर आँखों पर मोहन ने एक धक्का और लगाया और आधा लंड उसकी चूत में था संयुक्ता ने आज से पहले ऐसा लं कभी नहीं लिया था वो दर्द से दोहरी होने लगी एक महिला अपने से आधे लड़के से चुद रही थी अपने दर्द को दांतों तले दबाये वो ऐसा महसोस कर रही थी जैसे की आज फिर से वो अपने कुंवारे पण को खो रही थी आँखों से आंसू निकल पड़े थे और फिर जैसे ही मोहन ने अगला धक्का लगाया उसका लंड संयुक्ता की बच्चेदानी से जा टकराया पूरा लंड रानी की चूत में जा चूका था 



आज पहली बार किसी के लंड ने इतना अन्दर तक टच किया था संयुक्त को मस्ती में बहने लगी वो उसने मोहन के होंठो को अपने होंठो में दबा लिया और चूसने लगी कुछ देर मोहन ऐसे ही रहा और फिर रानी ने उसको धक्के लगाने को कहा हर धक्के के साथ रानी की छातिया बुरी तरह से हिल रही थी 



“ओह मोहन रुकना नहीं रुकना नहीं बस यही तो चाहिये था मुझे इसके लिए तो कब से तदप रही हु मैं मोहन आज अपनी बाजुओ में रौंद दे मुझे तोड़ डाल मुझे मसल दे मुझे किसी फूल की तरह आज मेरी सारी आग बुझा दे ओह मोहन आह्ह्ह्ह अआः ”


मोहन जवान पट्ठा आज पहली बार चूत मार रहा था तो वो भी जोश में था दनादन संयुक्ता की चूत की चुदाई शुरू हो गयी रानी हुई बावली जल्दी ही चूत ने लंड को संभाल लिया था तभी मोहन ने खुद रानी की चूची को मोह में भर लिया और उसके निपल को दांतों से काटने लगा मोहन की इस हरकत ने संयुक्ता के बदन में जैसे बिज्ली सी भर दी और वो भी निचे से धक्के लगाने लगी हर एक परहार उसकी बच्चेदानी को छु रहा था आज तक यहाँ कभी राजा साहब भी नहीं पहुच पाए थे 



हर धक्के से साथ रानी की चूत में खलबली मच रही थी उसकी उत्त्जेजना उसका मजा बन रही थी और मोहन अपनी रफ़्तार बढ़ाते हुए लंड को अंदर बहार कर रहा था रानी तो जैसे उसकी दीवानी हो गयी थी उसने अपनी बाहों में भर लिया मोहन को दोनों के होठ थूक से सने हुए थे बदन पसीना पसीना हुआ पड़ा था पर दोनों ही चुदाई का भर पुर आनंद ले रहे थे रानी ने अपने पैरो को बेडियो की तरह मोहन की कमर पे लपेट दिया था और चुदने का मजा लूट रही थी 



पल पल गुजर रहा था और साथ ही रानी को लगने लगा था की वो बस मंजिल के करीब ही है करीब ही है कुछ देर और बीती रानी अपनी मस्ती के रथ पर सवार थी और ऐसे ही एक झटके के साथ वो जोर से चीलाई और उसकी उत्तेजना ने उसका साथ छोड़ दिया रानी किसी बंदरिया की तरह मोहन से चिपकी पड़ी थी और मोहन उसके गालो को चुमते हुए उसको चोद रहा था रानी आधी बेहोशी में थी आँखे बन पर मोहन नहीं रुक रहा था धक्के पे धक्के दोनों पसीने से तर मोहन ने तबियत से उसको दस पंद्रह मिनट और बजाय और फिर उसकी चूत को अपने रस से भर दिया 



दोनों शांत हो गए थे मोहन ने उठाना चाह पर रानी ने उसे ऐसे ही लेटने को कहा करीब आधे घंटे तक वो ऐसे ही एक दुसरे में समाये लेटे रहे फिर मोहन उठा और बाहर मूतने चला गया आज उसने राज्य की महारानी को चोदा था तो सीना थोड़े गर्व से फूल गया था कुछ देर बार रानी भी बाहर आ गयी उसने भी पेशाब किया फिर पानी से खुद को अच्छे से साफ किया और वापिस शिविर में आगये जल्दी ही रानी मोहन की गोदी में बैठी अपनी चूचिया दबवा रही थी मोहन का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था वो धीरे धीरे ऊपर निचे होते हुए चुदाई का खेल खेल रही थी मोहन की भी ये पहली रत थी तो वो तो गरम था ही 




संयुक्यता तो जैसे मूर्ति थी हवस की वो कहा पीछे रहेने वाली थी वो भी जब उसे ऐसा मस्त लंड मिला हो आज की रत वो मोहन को हद से क्यादा भोगना चाहती थी और हुआ भी ऐसा ही कभी लंड पे बैठ कर कभी मोहन ने के निचे तो कभी घोड़ी बनके पूरी रात उसने अपनी चूत खूब बजवाई वो जब शांत हुई जब सूरज की किरणों ने दस्तक दे दी थी धरती पर
दोनों जने बुरी तरह से थके हुए एक दुसरे की बगल में पड़े थे संयुक्ता को बुरी तरह निचोड़ दिया था मोहन ने उसकी चूत सूज गयी थी चूचियो पर मोहन के दांतों के निशान थे पर उसके चेहरे पर ज़माने भर का सुकून था जब कुछ शांति हुई तो मोहन ने अपने कपडे पहने और बैठ गया संयुक्ता ने अपनी आँखे खोली 



“”तुमने हमे बहुत बड़ा सुख प्रदान किया है मोहन मांगो क्या मांगते हो हम बहुत खुश है ”


“घनो आभार! रानी साहिबा थारी दया सु सब चोखो है मेरी कोई आस ना ”


“कुछ तो तुम्हारे मन में होगा , सोना चांदी जवाहरात, जमीन-जायदाद जो तुम मांगो बस कहने की देर है एक पल में सब तुम्हारा हो जायेगा ”


“बस थारी कृपा रहे इतनी सी आस ”


“ठीक है मोहन पर हम तुम्हे वचन देते है की तुम्हारी एक चाह हम हमेशा पूरी करेंगे जब भी तुम कहोंगे हमारे दरवाजे हमेशा तुम्हारे लिए खुले रहेंगे ”


“”आभार, रानी सा “


तीन दिन तक संयुक्ता ने खूब खेला मोहन के साथ अपने जिस्म की आग को खूब शांत किया पर ये आग जितना इसको बुझाओ उतना भड़के ऊपर से उसके हाथ मोहन जैसा नोजवान लग गया था संयुक्ता तो जैसे मोहन की जवानी का कतरा कतरा ही पी जाना चाहती थी पर जल्दी ही महाराज का संदेसा आ गया तो उसकी मज़बूरी हो गयी वहा से जाने की पर उसने मोहन से वादा किया की वो आती रहा करेगी उसकी बंसी सुनने के लिए 
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11-17-2018, 12:37 AM,
#9
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन ने भी अपने डेरे की राह पकड़ी राह में वो उसी कीकर के पेड़ के निचे रुका तो उसे मोहिनी की याद आई उसने आवाज लगाई “मोहिनी ”


पर कुछ नहीं एक पल के बाद आवाज खामोश हो गयी उसने फिर आवाज लगाई पर फिर से वो बस चलने को ही था की जैसे उसे किसी ने पुकारा “मोहन ”


उसने पलट के देखा तो मोहिनी उसकी तरफ आ रही थी चलते हुए“ मोहन को जैसे करार सा आ गया ”


“मोहिनी ” 


”मोहन ”

“पुरे तीन दिन हुए तुम आये क्यों नहीं ”

“वो मैं थोडा व्यस्त था ”

“कोई बात नहीं , प्यास लगी है ”


“लगी तो है पर आज मैं तुम्हारे हाथो से पानी पियूँगा ” बोला मोहन 



मोहिनी मुस्कुराई, उसकी मुस्कान सीधे मोहन के दिल में उतर गयी वो घुटनों के बल बैठा मोहिनी ने मश्क खोली और उसको पानी मिलाना शुरू किया एक बार फिर से वो ही जाना पहचाना मीठा स्वाद उसके गले उतरने लगा उसने फिर सर हिलाके बताया की बस हो गया दोनों उसी कीकर के पेड़ के निचे बैठ गए 



“तुम रोज आती हो ”


“हां “


” क्या मैं तुमसे मिलने आ जाया करू ”


“मोहन, ये भी कोई कहने की बात है तुम जब चाहो मुझे मिलने आस सकते हो तुम तीन बार मुझे आवाज लगाना बस तीन बार मैं आ जाउंगी और यदि तीन बार आवाज के पश्चात् मैं ना आई तो समझ लेना उस दिन मैं इधर नहीं आई ”


“आभार ”


मोहिनी मुस्कुराई मोहन की सादगी पर ये कैसी कशिश थी जो वो खिची चली आती थी मोहन की तरफ उसकी बंसी की तान पर जैसे थिरक उठने को जी करता था 



“मोहन तुम्हारे लिए कुछ लायी हु ” उसने अपने झोले से कुछ निकाला और मोहन की तरफ किया कोई मिठाई सी थी 
मोहन ने जैसे ही चखा , ऐसा स्वाद तो उसने पहले कभी नहीं चखा था रानी ने उसके लिए हजारो पकवान बनाये थे पर ऐसा स्वाद तो वहा भी नहीं था पेटभर गया उसका मोहिनी के चेहरे पर सुकून था 



“तुम्हारे घर में कौन कौन है मोहिनी ”


“माँ, बाबा और मैं ”


फिर मोहान ने उसे अपनेबारे में बताया और अपने डेरे के बारे में मोहिनी एकटक उसकी हर बात सुनती रही 
“तो तुम बीन क्यों नहीं बजाते मोहन घरवालो की बात तो माननी चाहिए ना ”


“मेरा जी नहीं करता , मुझे तो बस अपनी इस बंसी से ही लगाव है कभी कभी खुद को बहुत अकेला महसूस करता हु तो ये ही मेरा सहारा होती है यही मेरी दोस्त है ”


मोहिनी मुस्कुराई फिर बोली- मोहन मेरे जाने का समय है गया है मैं जल्दी ही फिर मिलूंगी 



मोहन ने हां कहा और उसे जाते हुए देखता रहा और फिर अपने डेरे में चला गया 



“भाई , कहा गायब थे तुम हम सबको चिंता हो रही थी ”


“बताया ना की कुछ जड़ी लेने गया था ”


“पर आये तो खाली हाथ हो ”


“मिली नहीं ”

इधर संयुक्ता महल तो आ गयी थी पर उसका जी लग नहीं रहा था हर पल पल प्ल उसको बस मोहन ही दिखे मोहन का खयाल आते ही उसकी चूत में खुजली मचनी शुरू हो जाती थी महाराज नियमित रूप से उसको चोदते थे पर अब उसे बस एक ऊब होती थी उसे तो बस कुछ भी करके मोहन का लंड चाहिए था पर वो करे तो क्या करे कैसे मिले मोहन से हालाँकि उसके एक इशारे पर मोहन उसके सामने होता पर वो एक औरत होने के साथ साथ एक महारानी भी थी तो हर तरह से उसको सोचना था 




ऊपर से उसके जिस्म की आग जो हर समय सुलगी रहती थी जिसे महाराज का लंड बुझा नहीं पाता था उसने महराज से बेफवाई कर ली थी अपने आस पास के हर मर्द में उसे बस मोहन ही दीखता काम पिपासी रानी संयुक्ता अगन में जलने लगी थी पल पल इधर हफ्तेभर से ऊपर हो गया था मोहिनी आई नहीं थी मोहन की बेचैनी बढ़ी हर पल उसकी आँखे बस मोहिनी को ही ढूंढें पर वो नाजाने कहा थी हार कर वापिस वो अपने डेरे में आ जाता था 



इधर चकोर के बदन की गर्मी भी बढ़ने लगी थी पर वो सीधा सीधा मोहन को तो बोल नहीं सकती थी की मेरी प्यास बुझा दे हालाँकि वो अपने लटके झटके दिखा कर उसे आभास पूरा करवा रही थी सबकी अपनी अपनी प्रीत थी सबकी अपनी अपनी हवस थी आसमान में तारे खिले हुए थे पर उसकी आखो से नींद कोसो दूर थी बस मोहिनी ही उसके विचारो में थी 



थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे वो पानी पीकर आया ही था की उसे लगा की झोपडी के पीछे कोई है वो दबे पाँव गया तो देखा की चकोर खड़ी है और खिड़की से अंदर झांक रही है वो उसके पास गया पर चकोर को कोई फर्क नहीं पड़ा उसने देखा की अंदर उसके माँ-बाप लालटेन की हलकी सी रौशनी में चुदाई कर रहे है मोहन का लंड झट से खड़ा हो गया जो सीधा चकोर के चूतडो पर जा टकराया चकोर ने अपनी गांड को थोड़ी सी पीछे किया
मोहन का शैतानी लंड चकोर की गांड पर दस्तक दे रहा था चकोर की गर्दन के पिछले हिस्से से पसीना बह चला वो अहिस्ता से अपनी गांड को मोहन के लंड पर रगड़ने लगी अन्दर का नजारा देख कर दोनों भाई बहन गरम होने लगे थे मोहन ने जीजी की कमर को थाम लिया उसके हाथ कुरते के अन्दर से होकर उसके नाजुक नर्म हलके से फुले हुए पेट को सहलाने लगे थे 



चकोर मोहन की बाहों में पिघलने लगी थी मोहन की प्यास तो संयुक्ता ने भड़का दी थी वो खुद चूत के लिए तड़प रहा था दोनों की आँखे बस अपने माँ-बाप पे ही लगी थी चकोर को पता ही नहीं चला की कब मोहन उसकी छातियो को सहलाने लगा था उसके चुचक कड़े होने लगे थे होंठो से हलकी हलकी आवाज निकल रही थी 



और तभी वो पलती और अपने सुर्ख होंठो को मोहन के होंठो से जोड़ दिए दोनों एक दुसरे का रस पान करने लगे चकोर किसी बेल की तरह मोहन से लिपट गयी थी चकोर ने उसे कुछ कहा और फिर दोनों चकोर की झोपडी में आ गए अन्दर आते ही मोहन ने अपनी बहन को बाँहों में भर लिया उसके बदन से खेलने लगा 



उसने चकोर के होंठो को खूब चूमा फिर उसने चकोर की कुर्ती को उतार फेंका अपनी बहन की चूचियो पर टूट पड़ा वो आखिर संयुक्ता ने जो उसे ये सब सिखाया था जैसे ही अपने भाई के होंठो को चूची पर पाया चकोर किसी सूखे पत्ते की तरह कांपने लगी उसकी चूत गीली बहुत गीली होने लगी 
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11-17-2018, 12:37 AM,
#10
RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन ने चूस चूस कर उनको टमाटर की तरह लाल कर दिया अब उसने चकोर के बाकि कपडे भी उतार दिए और उसको पूरी नंगी देख कर वो जैसे पागल ही हो गया था चकोर की भरी भरी टांगे पुष्ट नितम्ब और काले घुंघराले बालो से ढकी छोटी सी हलकी लाल चूत मोहन ने चकोर को लिटाया और उसकी टांगो को फैला दिया 



पर तभी चकोर की उसकी माँ की आवाज आई शायद वो इधर ही आ रही थी उसने मोहन को अपने ऊपर से हटाया और जल्दी से अपने कपडे पहने और जैसे ही माँ अन्दर आई उसने दोनों भाई बहनों को गहरी नींद में सोते हुए पाया वो भी उनके पास ही लेट गयी दोनों का दिल उस समय बहुत तेजी से धडक रहा था 



दोनों की अपनी अपनी बाते थी काम बनते बनते जो रुक गया था अब सोना ही था अगली सुबह मोहन जरा देर से जागा और जल्दी ही उसकी पेशी अपने पिता के सामने थी 



“मैं सुन्यो आजकल तू अजीब सो रहवे कोई परेशानी ”


“ना, बापू सा ”


“”थारी माँ बोल री तीन तीन दिन जंगल में रहबो इसी कुण सी जड़ी खोजबा ज्या सी बता जरा “


“वो बापू सा , वो बापू सा ”


“के हुई, साप सूंघ गो के ”


“कोई बात कोणी, सपेरे को बेटो से, तो जंगल में तो जानो ही पड़े, देख बेटा म्हारे बाद तू ही इ डेरा रो मलिक है अब तू जिम्मेदार बन चार रोज बाद नागपंचमी को मेलो है तो आप भी भोले बाबा रे दर्शन कर्ण वास्ते चलेंगे और मेह चाहवा की इस बार तू भी चले विशेष पूजा होनी है और के पता नागराज भी दर्शन दे दे ”


“जी बापू सा जो थारी आज्ञा ”


मोहन मुड़ा वापिस अब बापू डेरे में था तो वो मोहिनी से मिलने हबी नहीं जा सकता था एक कैद सा लगने लगा था ये डेरा उसको पर बापू के आदेश को वो अनदेखा कर दे अभी इतनी हिम्मत नहीं थी उसकी चकोर भी माँ के साथ मेले जाने की तैयारियों में लगी थी , मोहन का बापू एक माना हुआ सपेरा था ऐसा प्रचलित था की किसी पुरखे को खुद नागराज ने आशीर्वाद दिया था 



चार दिन कैसे कटेंगे मोहन के वो सोच रहा था जबकि इधर ऐसा ही हाल संयुक्ता का था वो मोहन से मिलने को छटपटा रही थी पर उसका बेटा राजकुमार पृथ्वी अपनी पढाई पूरी करके नागपंचमी को वापिस आ रहा था तो म्महल को दुल्हन की तरह सजाया गया था 


उसी दिन उसका राज्याभिषेक भी था तो पूरी राजधानी में जश्न का माहोल था 



हर कोई खुशियों में डूबा था पर संयुक्ता के झांटो में लगी आग उसको परेशान कर रही थी उसे बेटे के आने की खुशी तो थी ही पर साथ ही वो अपनी कामुकता से जूझ रही थी सब लोग अपने अपने विचारो से जूझ रहे थे पर समय से पहले किसी को क्या मिलता है कुक भी नहीं 



रात को एक बार फिर चंद्रभान और संयुक्ता संभोगरत थे दोनों का बदन पसीने से नहाया हुआ था रानी घोड़ी बनी हुई थी महाराज उसके नितम्बो को कस के पकडे उसको चोद रहे थे उत्तेजनावश संयुक्ता का चेहरा लाल हुआ पड़ा था अपनी आँखे बंद किये वो अपनी चूत पर पड़ रहे हर धक्के का भरपूर मजा ले रही थी उसकी चूत में महराज का घोडा सरपट सरपट दौड़ रहा था 



“आह और जोर से महराज और जोर से ऐसे ही आः आः ”


पुरे कमरे में संयुक्ता की मद भरी आवजे गूँज रही थी महाराज दांत भीचे अपना पूरा जोर लगाते हुए रानी को मंजिल पर पहुचने की पूरी कोशिश कर रहे थे अपने होंठो को दांतों से काट रही थी वो उसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे उसके बदन ने संकेत देने शुरू कर दिए थे की वो अपने चरम की और अग्रसर है 



पर तभी महराज का दम फूल गया और वो झड गए संयुक्ता के सारे अरमान एक बार फिर से मिटटी में मिल गए जिस चेहरे पर दो पल पहले असीम आनंद था अब उस पर क्रोध था वो गुस्से में फुफ्कने लगी थी 



“महाराज ”


“अब हम क्या करे संयुक्ता, हम तो अपनी तरफ से पूरा करते ही है पर तुम ना, दो रनिया और है वो तो पनाह मांगती है है पर तुम ”


“तुम क्या , अब मैं क्या करू अगर आप मेरी अगन बुझा नहीं पाते है ”


“कभी कभी तुम वेश्याओ की तरह हरकते करती हो अपनी आदतों को सुधारो संयुक्ता ”


महाराजने अपने कपडे पहने और चले गए ,जबकि रानी रह गयी सुलगते हुए वेश्या से तुलना की उसकी , उसकी ये बात उसके मन को चुभ गयी महाराज शब्दों का सहरा लेकर अपनी कमजोरी छुपा रहे थे उसी पल संयुक्ता ने निर्णय किया की अगर उसकी तुलना बेश्या से की गयी है तो वो अब कुछ भी करे अपनी प्यास बुझाने का इंतजाम खुद ही करेगी 



आज से महाराज अपनी माँ चुदाय , जाये अपनी उन दोनों रानियों के पास जो उनसे पनाह मांगती है पर संयुक्ता एक शेरनी थी जिसे बस शिकार ही पसंद था उसके मन में आया की अभी के अभी मोहन को बुलवा ले पर उसका बेटा पृथ्वी आने वाला था तो वो कुछ सोच कर चुप रह गयी पर उसकी चुप्पी एक आने वाले तूफ़ान का संकेत थी जो सब कुछ बदल कर रख देने वाला था

तो दिन गुजरे आइ नागपंचमी , राजधानी का महादेव मंदिर आज से पहले कभी इतना नहीं सजा था भव्यता झलक रही थी आज पता नहीं कितनेआभूषण से बाबा का श्रंगार किया गया था ढेरो, बल्कि यु कहू की हजारो नाग आज मंदिर में थे जहा तह पर मजाल क्या जो किसी इन्सान को डर लग रहा हो सब भोले बाबा की कृपा 



खुशी दुगनी इसलिए थी की आज राजकुमार पृथ्वी आ रहे थे उनका राज्याभिषेक होना था पर पहले उनको दर्शन करना था बाबा का अपने लाव-लश्कर के साथ महाराज चंद्रभान पधारे तीनो रनिया उनके साथ पर अगर बात की जाये तो संयुक्ता की आभा में बाकि दोनों रानिया जैसे कही खो सी गयी थी 



अपने लोगो के साथ मोहन भी आया उसका बाप राज सपेरा था तो महाराज के बाद उसको ही नागराज को दूध पिलाना था सबने महाराज और बाकि लोगो को परणाम किया मोहन और संयुक्ता की नजरे आपस में मिली और दोनों ही तड़प से उठे महाराज ने भोग लगाया फिर मोहन के बापू ने महाराज ने मंदिर के प्रांगन से ही पृथ्वी क राज्याभिषेक की घोषणा की जो की शाम को होना था 



रानी का दिल मोहन से मिलने को मचल रहा था पर महाराज के साथ वो नगर के लोगो को तोहफे बाँट रही थी अब कर तो क्या करे मोहन का बापू कुछ लोगो से मिलने चला गया तो मोहन ने सोचा की वो भी नागो को दूध पिला दे भीड़ ज्यादा थी तो अपनी बारी का इंतजार करने लगा तभी उसे अपनी आँखों पर जैसे विश्वास ही नहीं हुआ 



उसने सहेलियों के साथ मोहिनी को आते देखा क्या खूब लग रही थी वो मोहन को एक बार तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ की मोहिनी से यु मुलाकात होगी उसकी वो इठलाते हुए उसकी तरफ आ रही थी और फिर उसने अपनी सहेलियों से कुछ कहा वो आगे बढ़ गयी मोहिनी मोहन के पास रुक गयी 



“तुम यहाँ ”


“हां, मेले में आया था पर शायद किस्मत में तुमसे मिलना था ”


“अच्छा, किया ये हाथ में क्या है तुम्हारे ”


“दूध है ”


“दिखाओ जरा,”


जैसे ही मोहन ने अपना बर्तन ऊपर किया मोहिनी ने बर्तन को अपना मुह लगाया और गतागत सारा दूध पि गयी मोहन भोचक्का रह गया 



“”अरे ये क्या किया “


“इच्छा हुई तो पी लिया वैसे भी किसी की भूख मिटाना से ज्यादा पुन्य मिलता है ना ”


मोहन मुस्कुरा दिया 




मोहिनी- मेरे साथ सखिया है और परिवार वाले भी तो मैं ज्यादा बात नहीं कर पाऊँगी पर कल मैं तुम्हे पक्का वही मिलूंगी 
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