mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
03-21-2019, 12:24 PM,
#41
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 39


लगता है मामला कुछ ज्यादा सीरियस हो चला है पर अब मैं जो करने जाउंगा उसे देख तुम्हारे होश न उड़ गए तो मेरा नाम बदल देना....



पर ये मुझे हुआ क्या है। मैं क्यों इतना सोचता हूँ परिधि के लिए । कहि....



नहीं- नहीं, हॉ, नहीं-नहीं, हां पर ये लव है तो रूहि, और वो लव है तो फिर मैं क्यों परिधि की तरफ खिंचा चला जा रहा हू ।



सायद वंहा केवल मेरी फीलिंग थी , और रूही मेरे साथ उतनी फ्रेंडली नहीं रही इसलिए मैं उसे इग्नोर करता चला गया। पर क्या इस वजह से की परिधि मुझ से अच्छे से बात करती है मैं ये मान लूँ की मैं.....



लेकिन परिधि क्या सोचती है, कंही उसे भी तो नहीं....



सायद हो सकता है क्योंकि बीते कुछ दिनों में जो हुआ है, उसका ऋषभ से बात करना और गर्लफ्रैंड की अक्ट, मेरे साथ ही रहाना, टेडी के बारे में भी अबतक नहीं पुछा जबकि मैंने उसे बोल कर लिया था कि किसी खास के लिए है कम से कम मुझ से सफाई तो माँगती की क्यों मुझे दी , वो भी नहीं हुआ। उसका यूँ मेरे लिए रोना , वो कॉफ़ी शॉप, यूँ मुझे बाँहों में लेना.....



मैं अपने मन में चल रहे अंतर द्वन्द से कुछ नतीजे नहीं निकल पा रहा था उल्टा उसमें फंसते चले जा रहा था । मैं लगातार अपनी सोच में ही डूबा रहा....



सिमरन.... कहाँ खोया है बेटू ।



मैं अपने ख्यालों से बाहर आते हुए...... "कुछ नहीं दीदी , बस आगे की प्लानिंग कर रहा था "।



सिमरन.... कैसी प्लॅनिंग ? 


मैं..... "वही की अभी कुछ दिनों में रिजल्ट आ जाएगी तो उसके बाद कौन से कॉलेज में एडमिशन लूँ और CDS की तैयारी कहाँ से करू" ।



सिमरन.... पर तुझे देख कर तो लग रहा है कि मन में कुछ और ही चल रहा है ।



मैं सकपकाते हुए.... नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं ।



सिमरन..... मत बता फिर फँसना, फिर मुझ से झूठ बुलवाना और सब के सामने मुझे नीचे होते हुए देखना ।



मैं..... .....क्यों दीदी क्यों अब टॉन्ट कर रही हो, बताता हूँ ।




फिर मैंने एक एक करके सारी घटनाएँ बतायी, 40 % तो उन्हें मालूम ही था रूही तक, और रूही का मेरे प्रति सोचना , फिर मैंने एक-एक करके परिधि के साथ हुए पूरी घटनाएँ सुनाता चला गया। फिर मैंने अपनी द्विधा भी बतायी....


अब दीदी....

सुन बेटू ये एक पेचीदा सवाल है। मैं बहुत जायदा तेरी मदद तो नहीं कर सकती पर एक बात जरूर कहना चाहूंगी कि तेरे साथ "far from eyes far from heart" वाली बात हो रही है।
तेरे पास अभी परिधि है तो तू परिधि के बरे मैं सोच रहा है हो सकता है की जब तू वापस जाए और परिधि तुझ से दूर हो तो तेरी फीलिंग फिर से रूही के लिए सैम हो और आज जो रूही के बारे मैं तू सोच रहा कल उसकी जगह परिधि हो, या नहीं भी।


इसे " law of attraction" कहते है ।


मैं... मैं समझा नहीं ।

दीदी.....बतती हूं.....



अपोजिट सेक्स के प्रति हमेशा अट्रैक्शन बना रहता है इसलिए जब हम किसी को ,पाहली बार देखते है तो उसी के ख्यालों में खोए रहते है जिसे हम लव समझते है। ये अट्रैक्शन इतना स्ट्रांग होता है की हम दिन रात उसे किसी तरह पाने की कोसिस करते है, किसी को मिलती है किसी को नहीं । और जब वही हमें मिल जाती/जाता है और हमारा पर्पस सोल्वे हो जाता है तो हमारा अट्रैक्शन धीरे धीरे खत्म हो जाता है और हमारा अट्रैक्शन किसी और के लिए स्ट्रांग होता चला जाता है और ये निरंतर चलते रहता है। और कई एक दुषरे के साथ पूरी लाइफ गुजार देते है।





दीदी की बातें मेरे समझ में तो आ रही थी पर अभी भी कुछ क्लैरिफिकेशन बांकी थी।



मैं...... तो क्या दीदी लव होता ही नहीं केवल अट्रैक्शन ही होता है ।



दीदी...... नहीं ऐसी कोई बात नहीं पर जो तू पूछ रहा है लव ये एक उंडेफिनेड टॉपिक है। कोई ये नहीं कह सकता/सकती कि मेरी मास्टरी है टॉपिक लव के ऊपर और मैं इसे डिफाइंड कर सकता/सकती हू ।



वैसे मेरे पॉइंट ऑफ़ व्यू मैं लव एक ऐसी फीलिंग है जिसे तुम कभी किसी को नहीं कहते हो लेकिन फील करते हो। जरूरी नहीं ये फीलिंग एक लड़के को लड़की या लडकी को लडके के लिए हो ये किसी के लिए भी हो सकता है।



एक्साम्प्ले ऐषा मन लो कि एक छोटा सा बेबी जिसके माँ बाप का पता नहीं उसे तुम ने पाला पर अचानक से उसके माँ बाप आ गए लेने । तुम जानते हो की ये तुम्हारी संतान नहीं है पर तुम किसी भी हालत मैं उसे नहीं दे सकते और न ही वो बच्चा कभी एक्सेप्ट करता/करती है अपने खुद के पैरेंट को।ये है लव । लेकिन ये एक एक्सएम्पले है ऐसे बहुत सारे होंगे, जैसे अपने पेट के साथ , फॅमिलि, फ्रेंड्स एंड ऑफ-कोर्स बॉयफ्रेंड गर्लफ्रैंड, वाइफ एंड हस्बैंड्। 



मै बस दीदी को गौर से सुन रहा था दीदी ने फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए....



देखो तुम्हारा सोचना गलत नहीं है पर तू विचार कर के ये डिसाइड नहीं कर सकता कि तुम्हे रूही से रिलेशन आगे बढ़ाना है या परिधि से ।


ये भी हो सकता है की तुम अभी परिधि को पर्पस करो तो वो भी हा कह दे पर ये जल्दी होगी क्योंकि हो सकता है परिधि को भी अट्रैक्शन हो।



मेरे अबतक बहुत से डाउट क्लियर हो गए थे पर मन में अभी भी कुछ सवाल उठ रहा त। में.....



पर दीदी ये मान लो की मैं वापस गया और जैसा तुमने कहा अटट्रक्शन, उसी के तहत मैं अगर परिधि को भूल गया और रूही के साथ आगे बढ़ा तो क्या ये गलत नहीं होगा क्योंकि अट्रैक्शन तो दोनों तरफ था तो क्या फ़र्क परता है कि रूही के साथ कंटिन्यू करून या परिधि।



ओर इस बात का क्या जस्टिफिकेशन है की दोनों मे से किसी एक के साथ रिलेशन आगे बढ़ाता हूँ तो फिर मैं किसी दूसरे की तरफ अट्टरक्त न हो जाऊं।



दीदी मुस्कराते हुए..... बड़ी समझदारी वाली बात कर रहा है। बटाती हूं....



पहले तो ये क्लियर कर दूं कि attraction is the first step of love । किसी भी लव स्टोरी मैं पहले अट्रैक्शन ही होता है नहीं तो कभी सुना है कि कोई लड़का/लड़की किसी बदसूरत बहुत ही भद्दी सूरत वाला/वाली को अपना बॉयफ्रेंड/गर्लफ्रैंड बनाया हो।



आट्रक्शन वो स्टेप है जंहा लोग अपने कॉउंटरपार्ट को काटेगोरिसातिओं करते है कुछ लोग कोम्प्रोमाईज़ भी करते है की मैं ऐषा हूँ तो मुझे ऐसी ही मिल सकती/सकता है फिर भी अट्रैक्शन का 1 ही कॉमन रूल होता है की बेस्ट चोइस



। इसलिये तुम कॉलेज में देखते होंगे की कुछ लड़कियों के पीछे सब लरके पड़े रहते है और कुछ लड़कों के पीछे कॉलेज की सभी लड़कियां यही है लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन की फर्स्ट रूल है इसके अलावा भी है जैसे टॉपर्स तो टॉपर्स , रिच तो रिच ।



आब चूँकि कोई भी बॉयफ्रेंड/गर्लफ्रैंड जब अट्रैक्शन के बाद अपना रिलेशन आगे बढ़ाते है तो फिर दोनों एक दुसरे की फीलिंग से जुडते है और ये फीलिंग की जो जुड़ाव होती है ये एक स्ट्रांग बौंडिंग होती है। जिसका जितना स्ट्रांग उसका लव उतना देवीने और वीक बौंडिंग तो केवल अट्रैक्शन तक ही रहता है और जैसे ही उस से कोई बेस्ट मिलता है ब्रेक अप हो जाता है।



ऐसी बहुत सारी चीजें अभी भी बाकी है जो तुझे समझनी है पर इस लव सब्जेक्ट की थ्योरी हो चुकी है अब प्रक्टिकली एक्सपीरियंस करो। पर राहें आसान नहीं है।



मै तो दीदी की बातों मैं गुम ही हो गया कि मैं क्या सोच रहा था और होता क्या है मेरा तो ब्रेन वाश हो गया और लव को एक अलग ही एंगल से देखने लगा ।



दीदी एक आखरी सवाल ।



दीदी.... नहीं अब कुछ नहीं चॉइस इस यौर'स तो तुम्हे सोचना है की कैसे तुम अपने इस सवाल का आंसर ढूँढ़ते हो। और सिमरन वंहा से चली गायी।




चालो ये भी अच्छा रहा कि सिमरन से बात कर ली तो सारे डाउट क्लियर हो गए । अब तो अट्रैक्शन है या लव ये तो चंडीगढ़ पहुंच के ही पता लगेगा तबतक मैं अपने अट्रैक्शन और लव को काबू में करता हूँ और अब इस परिधि की बच्ची को बताता हूँ की मैं चीज क्या हू....



पहले तो मैंने बाथरूम गया गर्म पानी में पौन डाल कर अपने सूजन को कम करने की कोसिस की। टेबलेट ले ही चुका था तो अब दर्द तो नहीं था बस चलने में थोड़ी परेशानी हो रही थी। पर चूँकि अब मिशन परिधि को जलना एंड मनाना भी था यही सोच कर मैंने प्लान बनाना सुरु किया। पूरी कहानी प्लाट हो चुकी थी अब बस सरे करैक्टर से सही तरीके से अपना काम निकलवाना था... यही सोचते हुए मैंने अपने लीड करैक्टर के पास गया।



मै बाहर हाल में आया अभी चूँकि 1pm हो रहे थे तो सारे लोग खाने की तैयारी में लगे थे और मुझे जल्द ही काम शुरु करना था इसलिए वंहा मेरी नजर सुनैना को ढूँढ़ने लगी।



मैं मासी से... मासी सुनैना कंहा है।


मासी.... अपने रूम में है राहुल ।



बस इतना जानकर मैं सुनैना के रूम की ओर चल दिया पर जाते जाते मैं परिधि का रिएक्शन भी नोटिस कर रहा था , बहुत ही गुमसुम थी ऐसा लग रहा था हो कर भी नहीं है।




मुझे बहुत तरस आया क्योंकि वो आई थी मेरे साथ ही समय बिताने, पर खुद के जूठे ग़ुस्से ने उसे बांध रखा था और मैं भी कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा था उसे मानाने का शायद यही वजह उसकी उदासी का था ।



खैर मैं चला अपना प्लान फॉलो करने पहुंचे सुनैना के पास पहले उसकी रजामंदी ली फिर पूरा प्लान बताया। प्लान बताने के दौरान सुनैना ने भी उसमें कुछ सर्टेन चंगेस किये। सब बातें हो जाने के बाद मैं हॉल में आकर बैठ गया।



मै हॉल में बैठ कर सब से बातें कर रहा था पर रह रह के परिधि का उदास चेहरा मेरे सामने था ।


हे भगवान अभी सिमरन ने सारी बातें बताई समझ भी गया लेकिन मुझे ये हो क्या रहा है , क्यों मैं बार बार उसी के ख्यालों में डूबा जा रहा हूँ लगता है अब तो ये लव और अट्रैक्शन के बीच में मैं पिस के रह जाऊंगा । न बे स्ट्रांग जबतक की कोई कन्क्लूसिओं नहीं निकलता।



पर कहते हैं न "इश्क़ पर कोई जोर नहीं गालीब" वैसा ही कुछ त। अब मैं अपनी भावनाओं को काबू में कर बिना परिधि पर ध्यान दिए बस सब से बातें करता रहा ।



कुछ देर मैं यूँ ही बातें करता रहा कि सुनैना बहार आयी और परिधि से....



"लागता है आप को हम छोटे लोगों के यंहा रुकना पसन्द नहीं"



परिधि एक तो खेलों मैं थी दूसरी अचानक से पुछा गया ये सवाल वो बिल्कुल चौंक गयी पर थी तो मास्टर माइंड इसलिए परिधि बोली....



"मैं यह जानती हूँ की ये इनडाइरेक्ट क्वेश्चन है इसलिए डायरेक्ट वाला क्वेश्चन कीजिये"



परिधि के इस जवाब पर अब चोंक ने की बरी सुनैना कि थी , सुनैना एक मुस्कान के साथ....



"मान गए आपको , मैं ये जानना चाह रही थी आप उदास क्यों हो" ?



परिधि.... उदासी ! नहीं मैं उदास नहीं (मेरी ओर देखते हुए) बस यूँ ही कुछ उलझनों में थी, अब ये न पूछिये की कैसी उलझन, नहीं बता सकती ।



कुछ देर दोनों के बीच कुछ शान्ति के बाद, सुनैना....


"वैसे आप घर वापस जाकर क्या करेंगे"?


परिधि.... फिर इनडाइरेक्ट क्वेश्चन , डायरेक्ट क्वेश्चन प्लीज ।


सुनैना हस्ते हुए.... क्या आप मेरे साथ घूमने चलेंगी?



परिधि... कहाँ । 


सुनैना-वाटरफाल । 


इतना सुनने के बाद परिधि कुछ सोचने लगी अब मैं भी सोचा की कंही इसने कड़ियाँ जोड़ने सुरु की तो प्लानिंग फेल हो सकती है इसलिए मैं बोल पड़ा...


"कहाँ सुनैना तू भी इस दुखी आत्मा को अपने साथ ले जा रही है खुद उदास रहेगी और साथ साथ 4 लोगों को भी उदास करेगि ।



सुनैना..... तो तू है न इसे हँसते रहना , और चल तू भी हमारे साथ । 



मैं.... " मैं तो चल ही दूंगा पर परिधि मेरे साथ नहीं जाएगी"




मेरे इतना कहते ही परिधि झट से बोल पाडी..... सुनैना ने पहले मुझ से पुछा था तो यदि तुम्हे मुझसे डर लगता है तो तुम मत आओ मैं तो जाउंगी ।



मैं.... तुम से और डर , तुम क्या बंदीद क्वीन हो ।


परिधि.... वो तो पता चल ही जाएगा ।



मैं.... ठीक है मैं भी चलता हूँ फिर वक़्त आने पर समझ लेंगे कौन किस पर भारी है।


तिकककककक है...... हानंन्न तो ठीक है।



अक्तुअल्ली यंहा चल कुछ ऐसा रहा था की मैं अपने नेगेटिव आंसर से उसे चलने का चैलेंज दे रहा था और वो भी यही कर रही थी।



रान्डोम चंगेस हमारे कम्युनिकेशन मैं थोड़ा सा कॉम्प्लीकेशन्स लय पर प्लान का पहला पार्ट तो कम्पलीट हो गया अब बारी थी दुसरे पार्ट की।



अभी हम दोनों की बात खत्म ही हुई थी कि सुनैना को कॉल आया कुछ देर बात करने के बाद कॉल होल्ड पर रखते हुए। हम दोनों को इंडीकेट करते हुए...... सुनो उर्वशी का कॉल आया है वो अकेली बोर हो रही थी तो पूछ रही है की अगर मैं फ्री हूँ तो मुझसे मिलने आ रही है क्या जवाव दूँ ।



आब तो चेहरा देखने लटक था परिधि का काटो तो खून न निकले ।


चेहरा देखते ही समझ मैं आ गया की वो नहीं चाहती की उर्वशी हमारे साथ चले और इसी ख्याल से शायद परिधि बोली... उस से कहो 5 मिन मैं कॉल बैक करती हू ।



सुनैना ने वैसा ही किया खैर...


सुनैना.. . क्या सोचा क्या बोलू ।



परिधि.... मैं सोच रही थी तुम्हारी फ्रेंड है साथ चलनी चाहिए पर मैं चाहती हूँ की जब तुमने मुझे चलने के लिए कहा है तो आज मुझे टाइम दे दो हम एक दुसरे को अच्छे से समझ ले ।



मान गए भाई क्या सफाई से एक फ्रेंड को दूसरे फ्रेंड को क्यों नहीं चलना चाहिए समझा दी , पर ये मेरे बाउंसर का टाइम था । 


मैं सुनैना से....


एक काम कर सुनैना तुम दोनों चले जाओ मुझे एक काम याद आ गया।



मेरी बात सुनते ही क्या एक्सप्रेशन था परिधि का जैसे सांप लोट रहे हो बदन में, जैसे कोई घायल शेर अपने शिकार को देख रहा हो। 



सुनैना..... अब कोई कमैंट्स नहीं तुम दोनों और उर्वशी भी आ रही है और हाँ परिधि में वंहा तुम्हारे लिए ही जा रही हूँ तुम्हे मैं ये जरा भी अहसास नहीं होने दूँगी की मैं तुम्हे इग्नोर कर रही हू । आखिर तुम हमारे लिए बहुत मायने रखती हो।




खैर एस पर प्लान सब खत्म हुआ मेरी प्लानिंग ही यही थी की परिधि, सुनैना, मैं और उर्वशी सब साथ जाए और बातों बातों में तो अब ये भी डिसाइड हो गया कि सुनैना अब परिधि को अकेले नहीं छोड़ने वाली ये तो और अच्छा हो गया।



हमने 2: 30 pm का टाइम तय किया चलने के लिये। प्लान अपने फाइनल स्टेज में था ।और मैं अपने अंदर एक रोमांच की अनुभूति करने लागा 



अब देखते हैं क्या होता है। अब आएगा जलाने और मानाने का मजा....



कहानी जारी रहेगी....
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03-21-2019, 12:24 PM,
#42
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 40


अब देखते हैं क्या होता है। अब आएगा जलाने और मानाने का मजा.....



हम सब दिए समय पर रेडी हो गए पर 2:30 pm तक्। अबतक घर के सभी लोग खाना खा कर या तो रेस्ट कर रहे थे या अपने कामों में लगे थे । चिढाने का पहला प्रोसेस यंही से शुरू हो रहा था इसलिए सुनैना मेरे पास आते ही.....



"राहुल ये ले एड्रेस और उर्वशी को भाई थोड़ा पिक अप कर लेना उसके घर से"



मैं भी एक्टिंग करते हुए..... नहीं हमलोग जाते समय पिक अप करते हुए चले जाएंगे ।



सुनैना... नहीं भाई दोनों अलग रूट में है इसलिए पहले पिक अप कर के आ फिर हम सब साथ चलेंगे।



मैं हाँ बोल कर निकल गया। अब मैं उर्वशी के साथ 3 : 45 pm तक पहुंचा प्लान के हिसाब से और इस प्लान की तीसरी और आखरी किरदार उर्वशी ही थी।



मेरे पहुंचते ही परिधि का चेहरा देखने लायक था और आग में घी का काम उर्वशी ने किया। पता नहीं इस वक़्त उसके दिमाग में क्या चल रहा था पर जो भी हो उसके लिए अब बहुत हो चूका था ।



मैं उसे इस हालत मैं देखना सेह नहीं पा रहा था मेरे अंतर आत्मा से ये आवाज़ आई बस अब बस करो।


पर अगले ही पल मैं इन सब बातों को भूलते हुए सुनैना को बुलया।



सुनैना गुस्से के एक्सप्रेशन मैं तमतमाते हुए आई...



"क्या वक़्त तय हुआ था और तुम इसे लेने गए थे या कंही से घुमा कर ला रहे हो"।



एक साँस मैं सब बोल दी जैसे कई दिनों से इस डायलॉग की प्रैक्टिस कर रही हो...



"मुझसे क्या पूछ रही हो अपने फ्रेंड से पूछ लो मुझे मत कहो" इतना कह मैं चुप हो गया।



अब उर्वशी........ नहीं वो मेरे सर में दर्द हो रही थी तो मैंने ही इसे फ़ोर्स किया था कॉफ़ी शॉप चलके 1 कप चाय के लिए ।



ये एक और झटका था परिधि के लिए लेकिन जितना उसे बुरा लगता उसका फेसिअल एक्सप्रेशन देख कर तो उस से ज्यादा बुरा तो मुझे लगता ।



सुनैना ने सबको चलने को कहा और हम निकल पड़े लेकिन घर से निकलते समय झटका लगने की बारी मेरी थी क्योंकि दिया भी हमारे साथ जा रही थी।



अब क्या मेरा मुँह लटक गया कि हो गया सब किये कराये पर चौपट। क्योंकि ये जाएगी तो मैं और उर्वशी कंही भी नहीं निकल पाएँगे।



खैर हम सब नीचे पहुंचे तो उर्वशी मेरे साथ आगे वाली सीट पर बैठ ने को हुए लेकिन सुनैना ने उसे अपने पास बुला लिया चूँकि ये पहले से प्लान था तो उर्वशी उस हिसाब से सही जगह बैठ रही थी पर सुनैना को मालूम था की जब दिया होती है तो फिर मेरे पास की सीट हमेशा उसके लिए रिज़र्व रह्ती है। बात कोई ध्यान देने वाली नहीं है लेकिन दिया के लिए ये बहुत मायने रखती है।



हम सब बढ़े अब अपनी मंज़िल की ओर अभी कुछ देर हम चले ही थे की दिया....



"क्या भैया मैंने सुना है की कल जिसका साथ आप 1मि के लिए भी न छोड़ रहे थे उसे आज आप इतना इग्नोर कर रहे हैं बात क्या है"?



इसका मैं क्या करूं भगवान। एक खून मनपफ़ कर दो तो अभी गला दबा दूँ पता नहीं जब भी मुंह खोलती है मेरा पोपट ही करती है....



"दिया तू क्या पूछ रही है और किसके बारे में" बड़े भोलेपन से और अनजान बनते हुए पूछा ।



दिया.... गुस्से में तो तुम्हे पता नहीं है, अब मुझसे 1 शब्द भी बात किये तो आप की कसम खा कर कहती हूँ मैं कार से कूद जाउंगी ।



ब्रेक अपने आप ही लग गए , कार रुक गयी और मेरे आँखें जैसे अब रो पडूंगा । बस इस ख्याल से की ये "कूद सकती है" मैंने कार रोक दि।



मैं बाहर आ गया, मेरे गले से आवाज़ भी नहीं निकल रही थी मैंने किसी तरह परिधि से रिक्वेस्ट की वो इन सब को वॉटरफॉल दिखा कर ले आये मैं नहीं जा पाऊंगा ।



जो अबतक मुझ से नाराज बैठी थी, जिसे कल से मैंने केवल और केवल तंग किया था, और अपना एगो सटिस्फी करने के लिए जिसे मैंने तड़पाया था , अब वो अपनी तड़प भूल कर बस मामला सँभालने में लगी थी।



परिधि हड़बड़ाते हुए नीचे उतरी और मुझे समझते हुए...... बच्ची है राहुल ऐसा वो बोल गयी केवल , उसका कहने का ये मतलब नहीं था ।



अबतक कार से सब उतर आये थे कार के पास अब ट्रैफिक बढ़ रही थी फिर परिधि ने सबको कार में बैठने को कहा मगर मैं अभी इस हालत में नहीं था की किसी से कुछ बोल पाऊं या दिया के साथ बैठ कर जाऊ, इसलिए मैंने परिधि से कहा की सब को वॉटरफॉल से घुमा लाओ मैं कॉफ़ी शॉप मैं इंतज़ार करता हू ।



परिधि मौके की नजाकत को देखते हुए कार बढ़ा दी और मैं टैक्सी लेकर कॉफ़ी शॉप चला गया । मैं अब भी बहुत चिंता में था कि क्यों वो ऐसी बात बोल गयी और इतना सीरियस होकर। मेरा तो कलेजा फट गया था ।



मैं कॉफ़ी शॉप में बैठा रहा और खुद को नार्मल करता रहा । पर जब आप को किसी बुरे ख्याल का अहसास होता है तो वो ख्याल दिल से जाने का नाम ही नहीं लेता और वही हुआ था मेरे साथ्।



बैठे बैठे 8,10 कॉफ़ी भी पी गया। पता नहीं कितनी देर बैठा बस एक गम सा खाया जा रहा था और साथ ही साथ इतना गुस्सा कि क्या बताऊ । कि तभी मुझे सामने गेट से अब दिया और परिधि आती हुई नजर आई ।



आकर दोनों मेरे पास बैठ गयी अब दिया....



दिया..... भैया चलो घर चलते है ।



मैं... परिधि इस से बोल दो कि मैं अभी बहुत गुस्से मैं हूँ मुझे ये अभी छोड़ दे मैं घर आता हूँ तो बात करता हू ।



दिया.... बहुत मिन्न्नते भरे स्वर में... भैया गलती हो गयी मैं उस वक़्त, उस वक़्त पता नहीं मुझे क्या हो गया था ।




मुझे अब मेरा गुस्सा संभालना मुश्किल हुआ तो मैं बोल पड़ा..... मैं क्या हूँ पागल या तुम लोगों की मुझे फ़िक्र होती है ये गलती है। कभी वो सुनैना सुना के चली जाती है, तो कभी तू सुना देती है, तो कभी मुझे थप्पड़ खाने पड़ते है। मालूम है आज कल क्या बीत रही है मुझ्पर, मैं चिरचिरा होता चला जा रहा हू । परिधि की तरफ इशारा करते हुए पता है इस चिरचिरेपन का बदला मैं कल से इस से ले रहा हू । यह मेरे लिए आयी है आज सुबह से मैंने ठीक से बात तक नहीं कि कल भी ये मुझे हॉस्पिटल ले कर गयी एक स्माइल तक नहीं दी मैंने इसे ।




दिल की जितनी भड़ास थी सब निकलने के बाद मैं शांत बैठ गया सिर निचे कर के लेकिन तभी मेरे कंधे पर हाँथ परा मै सर उठा के देखा तो सिमरन थी।



मैने अपने आप को शांत करते हुए..... बैठो दीदी आप यंहा कैसे ।



सिमरन परिधि और दिया को बोलते हुए....



मालूम क्या है, जब हमलोग गुस्सा होते हैं तो हम किसी से ठीक से बात तक नहीं करते लेकिन ये ऐषा लड़का है जिसकी समझ गुस्से में भी काम करती है। दिया मुझे तुझ से इस तरह की उम्मीद नहीं थी।



अब मेरे चेहरे पर हलकी मुस्कान थी और दीदी भी मुस्कुरा रही थी क्योंकि मुझे मालूम था कि जो कुछ भी हुआ होगा वो घर पर ही हो चूका होगा सिमरन यंहा केवल ड्रामा कर रही है।



फिर मैंने दिया के कान पकरते हुए........ अगली बार यदि सपने में भी ऐसी गलती की तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करुन्गा।



हम सब के सब वंहा 1 कॉफ़ी पी फिर मैंने सिमरन और दिया को ड्राप कर परिधि को उसके घर ड्रॉप करने निकल गया।



मैने कार को एक पार्क के नजदीक रोका और परिधि को साथ अंदर चला गया। पार्क में हम एक बेंच पर बैठ गए लेकिन दोनों ही खामोष, पर दिल में इतनी हलचल इतनी हलचल की क्या बताऊ ।



पता नहीं एक अजीब सा अहसास था.। मैं बैठा था और मेरे कंधे पे परिधि का सिर, ऑंखें मेरी और परिधि दोनों की बन्द थी । मेरे कानों के बगल से हवा गुजरती तो एक मधुरमय संगीत का आभास सी होता और उन्हीं हवाओं में उसके बाल जब मेरे चेहरे पर आते तो एक अजीब सी सिरहन दिल मैं पैदा कर जाती। पंछियों की चहचहाट से असीम शांति की अनुभूति हो रही थी।



प्यार ये तो होना ही था । मैं परिधि को ख्यालो से बाहर निकलते हुए....



"परी, परी....... हुं (खुमारी भरे स्वर में).......... उठो तो..... नहीं अभी नहीं....सुनो तो परी... कितना अच्छा लग रहा है कुछ देर और............ सुनो कल मैं वापस चंडीगढ़ जा रहा हू ।



अचानक से मेरे कंधे से अलग होती है और एक लम्बी सी साँस अन्दर खिंचति हुई...



"हहहह! इतनी जल्दी क्यों जा रहे हो"



मैं..... जाना तो पड़ेगा ही फिर आज जाऊ या कल ।



परिधि.... अब थोड़ी भारी स्वर में.... लेकिन आज तो पूरा दिन तुमने मुझसे बात कंहा की ।



मैं... मैं क्या करता मैं तुमसे कितना बेचैन था बात करने के लिए लेकिन पता नहीं तुम हमेशा मेरे बोलने से पहले ही टाइम उप कर देती हो।



परिधि..... मुझे अच्छा लगता है जब मैं तुम्हे टाइम अप कहती हूँ और तुम बोलते बोलते रुक जाते हो।



मैं.... मालूम है आज वॉटरफॉल जाना सब प्लान था मैंने और सुनैना ने की थी ।



परिधि.... मुझे भी मालूम था कि ये प्लान है क्योंकि जब तुम यूँ अचानक सुनैना के पास गए तभी मैं समझ गायी।



परिधि मैं तुम से एक बात बोलू...... ।यशःह्ह्ह! अभी चुप अभी मुझे सोना है तुम्हारे कंधे पर सर रख कर।



हम दोनों इस पल में समाये चले गए बहुत देर तक बैठे रहें वइसे ही। न कोई मन में विचार, न कोई गइले-सिक्वे न कोई सिकायत हमारे बीते आज के दिन के बारे में, बस इस पल को हम महसूस कर रहे थे ।



मैने परिधि को अपने से थोड़ा हटते हुए... चलो अब हमें चलना चहिये ।



परिधि.... प्लीज् थोड़ी देर और ।



मैं..... देखो अगर तुम यूँ ही प्यार जता ति रही तो मुझे तुम से प्यार हो जाएगा ।



परिधि..... तो हो जाने दो... प्लीज कुछ देर और ।



पर खुद बोलकर फिर अचानक उठ गयी और उठते ही.....मुझे मनपफ़ करना मैं थोड़ी भावनाओ में बह गायी ।



मैं...... लेकिन परिधि ।



इतना ही बोल पाया की परिधि ने फिर टाइम अप और एक मीठी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लेट हुए........ तो क्या चलें सर ।



परिधि को लेकर मैं उसके घर पहुंचा, घर में सब लोग मिल गए मोहित अंकल , रंजना आंटी , लाल।



हम सब बातें करने लगे और परिधि अपने रूम में चली गायी। कुछ देर मैं यूँ ही बातें करता रहा सब लोगों से फिर मैंने जाने की आज्ञा ली पर सोचा की जाने से पहले एक आखरी बार परिधि से मिल लिया जाए ।



मैं.... आंटी चलो थोड़ा परिधि के कमरे तक ।



आंटी.... मैं काम कर रही हूँ तू चला जा ना ।



पर जैसे ही मैं दो कदम बढ़ाया परिधि के पास जाने के लिए की पीछे से आंटी टोकते हुए.... इधर आ बदमास तुझे अभी बताती हु ।



मैने एक स्माइल दी आंटी को और बोला... गाल लेके अभी हाजिर हुआ ।



और कहते हुए मैं परिधि के रूम के पास पहुंचा ।



मैन गेट पर से "may I come in" करते अभी दो कदम बढ़ा ही था की परिधि आकर मेरे गले से लग गायी।



मैने भी उसे बाँहों में भर लिया। हम दोनों कुछ देर यूँ ही एक दूसरे की बाँहों में रहे फिर मैंने परिधि से कहा..... जाओ नहीं तो आंटी आज सच में कटवा देगी मुझे।




लेकिन परिधि उसे तो जैसे एक ख़ुमार सा चढ़ा था और मुझसे एक पल के लिए अलग नहीं होना चाहती थी।




मैने उसको अपने से अलग किया वो सर नीचे किये हुए मुझ से अलग हुए। मैंने परिधि का चेहरा अपनी दोनों हांथों में लेते हुए उसे ऊपर उठाया ।



"ये क्या पड़ी तुम रो क्यों रही हो"



आंखों में आंसू और चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान लिये।।
"आंशु तो अपने आप ही निकल गए शायद तुम से बिछड़ने का गम है"



मैने उसके आँशु पोछे और कहा "जा रहा हूं" ।




कुछ न बोल पाए और फिर से उसके आँखों में आँसू आ गै
मैन उसके आंशू पोछते हुए...



"जाने दो मुझे यूँ न रोको अब , मुझे अपने आंशूं के साथ विदा मत करो"



परिधि.... मेरी एक बात मनोगे.... क्या?



परिधि.... " बस एक बार अपनी इस दोस्त को रोज याद कर लेना वंहा जाकर भूल मत जाना " 



अब मुझ से मेरे अरमान काबू कर पाना मुश्किल हो चला था , मैं कुछ न बोल पाया सिवाय "हनणण" के।



मैन पीछे मुड़ा और बिना दुबारा उसे देखे निकल गया।



घर पंहुचा और सीधा अपने रूम में चला गया और जाते ही अपने ख्यालो में गुम हो गया। ये एक अहसास ही था जो परिधि के पास न होते हुए भी पास होने की अनुभूति दे रहा था 



मैन बस परिधि के ख्यालों में खोए रहना चाहता था इसलिए आज खाना भी जल्दी खा लिया और चुपचाप अपना गेट लॉक कर फिर से डूबा रहा परिधि के ख्यालों में।



कब सोया पता नहीं । और देखते देखते अब हम सब को दिल्ली से विदा लेने का वक़्त आ गया। दिल्ली के बिताये मेरे कुछ दिन ये मेरे लिए मेरी जिंदगी के बहुत ही खास दिन थे ।





अब फाइनली विदा ली दिल्ली और परिधि दोनों से और साथ छोड़ आया अपना दिल जो अब अपना नहीं था.....[Image: 1f622.png][Image: 1f622.png][Image: 1f622.png]



कहानी जारी रहेगी....
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03-21-2019, 12:26 PM,
#43
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 41


अब फाइनली विदा ली दिल्ली और परिधि दोनों से और साथ छोड़ आया अपना दिल जो अब अपना नहीं था ।



सपरिवार हम पहुंचे चंडीगढ़ और साथ मे आयी मस्सी की बिटिया सुनैना ।


सब कुछ वही था , घर भी वही , परदे , चादर और तकिये भी वही , लोग भी वही पर जाने क्यों सब नया नया लग रहा था ।



बेहरहल हम सब 2 बजे तक पहुँच गए चण्डीगढ़, सफ़र की थकावट सब पर भरी थी इसलिए सब चले गए सोने पर न तो मैं थका था और न ही नींद आ रही थी तभी एक मोबाइल पर मैसेज आया और दिल खुश हो गया।


ये परिधि का मैसेज था....


"कुछ भी अच्छा नहीं लगता एक बार बात करना" ।



एक छन को तो ऐसा लगा की परिधि मेरे कानों में कह रही हो अपने मार्मिक स्वरों में। खैर मैं अपने सपनो की कल्पनाओं से निकलते हुए चल कुछ रियल का काम हो जाए ।



यही सोच कर मैंने ऋषभ को फ़ोन लगया....


ऋषभ.... हाँ गुरु आ गया वपस ।


मैं.... हाँ तू कहाँ है अभी ।


ऋषभ.... कंही नहीं बस अपने अड्डे पर ।



मैं..... रुक अभी आया ।


चाहता तो था की मैं अपने बाइक से ही जाऊ पर ऋषभ कार के बारे में बताना था इसलिए मैंने कार निकली और पहुँच गया अड्डे पर।



अड्डे पर जाने से पहले आइये इसकी कुछ जानकारियां ले ले ।



ये अडडा सहर के हाई प्रोफाइल एरिया नूतन अपार्टमेंट के पार्किंग के साइड में है जंहा की एक आम टी स्टाल है,आम इसलिए की ये बांकियों की शॉप की तरह ही-फी नहीं थी।



अवैध रूप से 30 फ़िट कब्ज़ा किया हुआ जिसके निचे मामूली फ्लोर और ऊपर अलवेस्टर्स की छत ।



यहाँ हमारी महफ़िल जमती थी। हम सभी यारों का अड्डा । इस अड्डे की खास बात ये थी की यूँ तो सब लोगों का अपना अपना ग्रुप था किसी के 4 का तो किसी का कम तो किसी का ज्यादा । पर लगातार आते आते सब लोगों की एक दूसरे से गहरी पहचान हो चुकी थी। 


इस अड्डे पर हम कॉमन मिलने वाले जो फ्रेंड्स थे--मैं , ऋषभ, कुणाल , और असिस ।



अब चलते हैं कहानी में....


मै जब पहुंचा तो मुझे वंहा तीनों त्रिमूर्तियाँ ऋषभ , कुणाल और असीस सिगरेट सुलगाए दिख गए । मैं कार से उतरा और तीनों के पास पहुंच ।


कुणाल... भाई मस्त कार है, किसकी है ।


मै....मेरी है पर्सोनाल ।


तीनो एक साथ पर्सोनाल।



ऋषभ.... हाँ साले तेरे बाप ने कहा होगा की अले ले चल बेटा तुझे मैं कार दिला देता हू , साला आज कल ये भी फेंक ने लगा है।


मैं.... मादरचोद ये देख रजिस्ट्रेशन, फिर मैंने रजिस्ट्रेशन कार्ड दिखाते हुए अब विस्वास हुआ। साले इतने बड़े हरामी हो, दोस्त के साथ कुछ अच्छा होता है तो उल्टा बधाई देने के बदले कन्फर्म करने लगते हो।



ऋषभ.... भाई ग़लती हुई पर ये बता अंकल माने कैसे ? 



फिर मैंने दिल्ली की कहानी बतायी की कैसे मुझे ये कार मिली ।


कुणाल.... भाई पार्टी तो बनती है ।


मैं... आज नहीं दोस्तों आज ही लौटा हूँ ।



आसीस.... मादरचोद कभी तो पैसा निकलने के नाम पर हाँ कर दिया कर कंजुस साला उस दिन भी...



ऋषभ बीच में टोकते हुए.... साले दुखी आत्मा जब देखो तब फ्लश बैक मैं चला जाता है तू चूप, मुझे इंडीकेट करते हुए तू दे रहा है पार्टी तो बता नहीं तो साफ़ मना कर दे ये कल वल न बताया कर ।



कुणाल... पैसे की दिक्कत है तो मैं फाइनेंस कर देता हू ।



आसिस कुणाल से.. मादरचोद अभी तो सिगरेट के लिए बोला पर्स घर भूल आया ।



कुणाल... अरे हम सब मिलकर कर देंगे ।


मैं.... चल भाई कंहा चलना है किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं।



चारों निकले वंहा से, सबसे पहले वाइन शॉप गए 2- 2 बियर घटकने के बाद डकार लेते हुए...



ऋषभ... चल भाई अब तम्मना रेस्टोरेंट ।


मै.... अबे बियर पीने के बाद काहे का रेस्टूरेंट चल कंही और चलते हैं।



ऋषभ... नहीं मुझे वंही जाना है तू चल रहा है या मैं खुद जाऊ ।



मैं... तू जो काहे मेरे भाई कार मे बैठ मैं पेसाब कर के अभी आया और पीछे से कुणाल का हाँथ पकड़ के इशारा किया चल मेरे साथ ।



मै कुणाल से... ये इसको क्या हुआ बियर कब से चढ़ने लगी ।



कुणाल... भाई बहुत बड़ा सीन हो गया हमारे साथ उस रेस्टूरेंट में । तो जब कभी भी थोड़ा सा होश खोता है तो ध्यान वंही चला जाता है।



मैं.... क्यों क्या हुआ था ।


कुणाल..... तू जिस दिन दिल्ली गया था उसके 1 दिन बाद की बात है हम तीनों और आकाश
(क्लासमेट , बहुत ही छिछोरा और लड़कियों को गंदे तरीके से घूर्ण)


इतने में मैं टॉकटे हुए.... वो चुतिया क्या कर रहा था वो होगा तो कांड होगा ही न।



कुणाल.... हम सब पहुंचे रेस्टूरेंट और इस मादरचोद आकाश ने एक को देखना शुरू किया और वो रेस्टूरेंट के मालिक की बेटी थी फिर क्या था विवाद बढ़ता गया और..



मैं.... और क्या तुम चारों की खूब कुटाई हुई ।



कुणाल.... नहीं भाई हम चारों के कपड़े उतरवा के रख लिए और चड्डी में वापस भेजा ।



मैं तो चकित रह गया और गुस्सा अपने पुरे उफान पर लेकिन अभी सही वक़्त नहीं था कोई भी एक्शन के लिए इसलिए खून के घूँट पीना पड़े ।



मै आया ऋषभ के पास आते ही गले लग गया मैं अपने यार के। आँखों मैं तो आंशू पता नहीं कब आ गए थे ।



अब एक तमाचा मारते हुए....

"मादर्चोद मैं तुझे अपनी हर बात बताता हूँ और तूने मुझसे इतनी बड़ी बात छिपायी"



ऋषभ समझ चुका था की कुणाल ने सब बता दिया है मुझे। उसके आँखों मैं भी आंशू थे घोर अपमान के आंशु ।



ऋषभ..... भाई जब तू दिल्ली में था दो दिन तक कोई कांटेक्ट नहीं था फिर जब तू फ़ोन किया तो बहुत खुश लग रहा था और मैं बोल न सका । मांफ कर दे भाई ।



हम दोनों के आंखों से आँशु बहते चले जा रहे थे । हम दोनों खुद को नार्मल किया फिर...



मैं.. चल भाई जरा हम भी उसकी सक्ल देख ले आज ।



ऋषभ.... छोड़ यार कंही और चलते है ।


मै.... अपनी पूरी अवाज़ मैं चिल्लाते हुए.... तुझे मेरी बात समझ में नहीं आती क्या?



ऋषभ, कुणाल और असीस तीनों मेरा गुस्सा देख मुझे शांत करवाने में लग गए ।



तू तू मैं मैं होते होते मैंने कहा..... देख मैं अभी कुछ नहीं कहूंगा बस मुझे 1 बार उस लड़की और उसके बाप को देखना है।



ऋषभ.... भाई तुझे मेरी कसम अभी कोई सीन मत करना ।



मैं.... साले फट्टू सब चुप हो जाओ, कुछ नहीं करूँगा चल पहले चल कर बियर पिटे है फिर चलते है रेस्टूरेंट ।



हमलोग वापस 1 - 1 बोतल बियर की और ली। गुस्सा से तो पूरा बदन में आग लगी थी पर अभी कुछ भी करने का सही समय नहीं था क्योंकि मुझे उसे मारना नहीं बल्कि बदला लेना था । अपने दोस्त के बेज्जती का बदला ।



हमलोग पहुंचे रेस्टूरेंट तो कुणाल ने मुझे आँखों के इशारे किया वही है ओनर लेकिन मैंने ऊँगली से इशारा कर दिया वही है क्या?



मैने जान भुझ कर ऊँगली की थी, इस से उनका ध्यान मेरी तरफ खिंचा और इस बात को देखते हुए मैंने किसी 1 टेबल के खाने की प्लेट को गिरा दी और क्लियर व्यू था की मैंने ये जान भुझ कर किया है।




मामला बिगड़ते देख तीनों मुझे चलने के लिए बोलने लगे लेकिन मैंने उन्हें 2 मिनट वंही रुकने के लिए बोला ।



ओनर और उसके 4 चमचे मेरे पास आते हुए....


"तुम्हारी ये मजाल, तुम सब गुण्डागर्दी करने आये हो" 



मै बिलकुल दोनों हाथों को जोड़े और सर झुकना कर...


"अरे अंकल मुझे माफ़ कर दो ग़लती से हुए" और अगले ही पल सीना चौड़ा करते हुए उसके मुँह पर ₹ 5,000 फेंकते हुए "ये ले उठा लेना एक प्लेट के ₹ 5,000 बहुत होते है" ।




वो बस मुझे घूरते ही रहे, मेरे दिल को कुछ तो सुकून जरूर मिला था, और मन में......., जबतक उस ज़िल्लत का बदला पूरा नहीं होता तुझे मै रोज रोज नए करतब जरूर दिखाउंगा।



कुछ न कुछ तो सुकून जरूर मिला सबको। ऋषभ कुछ बोला नहीं बस गले लग गया और आंखों में आंसू थे उसके ।



फिर हम सब उस दिन रात तक साथ रहे उस दौरान हमने काफी मस्ती की। ऐसा लग रहा था की कब के बिछड़े मिले हो ।



रात के 9 बजे मैं घर पहुंचा और सिमरन को बोलते हुए की मैं ऋषभ के साथ खाना खा चुका हू , अपने कमरे मैं चला जा रहा था तभी सिमरन.....



"बेटू मेरे पास आना" 



मै उनकी तरफ मुड़ा स्माइल की और चल दिया अपने रूम। दीदी भी समझ गयी मैं ड्रिंक कर के आया हूँ इसलिए कुछ न कहा बस जाने दिया।



मै अपने रूम मैं पहुंचा तो ख्याल आया की परिधि को अबतक फ़ोन नहीं किया बेचारी ने कब कहा था की कॉल करना ।



मैने परिधि को कॉल लगया....


तिरिंग-तिरिंग, तिरिंग-तिरिंग


परिधि.... जी सर अब फूर्सत हुए।


मैं.... नहीं यार, वो बहुत दिनों बाद सब दोस्तों से मिला तो उसी के साथ था (और जब दोस्तों की बात चली तो एक बार फिर सब याद आ गया)।


परिधि.... सब ठीक तो है ना।


मैं.... हा, तुमने खाना खा लिया क्या?


परिधि..... सच सच बताओ वंहा क्या हुआ। 


मैं.... कुछ भी तो नहीं । 


परिधि...... कोई बात नहीं तुम आराम करो मैं कल बात करती हू ।



एक छोटी सी चिट चाट के बाद मैं भी अब आराम करना चाहता था । एक तो अभी भी पैरो में थोड़ी सूजन थी उसके ऊपर 8 घन्टे का सफर, और फिर बियर कुल मिलकर मुझे बिस्तर की तरफ खिंच रहे थे । और गहरी नींद ने मुझे अपने आग़ोश मैं ले लिया। 



कहानी जारी रहेगी.....
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03-21-2019, 12:27 PM,
#44
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 42



और गहरी नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया....



सुबह मैं अपने रूटीन टाइम से उठ गया। आज बहुत फ्रेश लग रहा था । मन में एक ख्याल आया कि क्यों न सुबह सुबह परिधि कि नींद खराब कि जाए और मैं इसी इरादे से उसे फ़ोन लगा दिया.....


तिरिंग


परिधि..... उठ गए जानब । 


ये क्या, पहली घंटी भी पूरी नहीं हुई और ये कॉल पिक उप...


सब ठीक तो है न एक चिंता सा आभास


मैं.... परिधि प्लीज पहले ये बताओ कि इतनी सुबह क्यों जाग रही हो सब ठीक तो है वहा (घबराया सा आवाज़ में)



परिधि.... हँसते हुए, जी हाँ सब ठीक है ।


मैं..... तो इतनी सुबह 4 बजे तुम क्यों जग रही हो ।


परिधि....तुम जो सुबह उठते हो तो मैंने भी आदत डाल ली 



अब मैं थोड़ा रिलैक्स होते हुए....


मैं..... तुम ने तो जान ही निकाल दी थी मेरी ।


परिधि.... और वो कैसे?


मैं.... वो ऐसे कि, जाओ मैं नहीं बताता ।


परिधि..... वैसे भी तुम मुझे कंहा कुछ बताते हो ।


मैं..........अब ये सुबह सुबह तुम क्या ले कर बैठ गायी, और मैडम जो बात आपको बताने वाली होती है सब बता देता हू ।



परिधि.... मतलब कल वाली बात बताने वाली नहीं थी ।


मैं.... कौन सी बात?


परिधि.... वो तो तुम्हारा दिल जनता है ।


मैं.... हाँ एक छोटी सी परेशानी थी पर प्लीज पूछना मत जब सोल्व हो जायेगी तो बता दूंगा ।


परिधि... बता देते तो मैं कुछ मदद कर देती ।


मैं... माना कि तुम स्मार्ट हो पर मुझे भी तो कुछ करने दो ।


चूटकी तो ले ली अब रिएक्शन भी देख लेता हू ।


परिधि.... मिल गयी कलेजे को ठंडक सुबह सुबह जो मुझे रुला रहे हो ।


मैं.... पड़ी ओ डियर पड़ी उफ्फ्फ्फ़! आप का ये गुस्सा होना ।


परिधि... जाओ मैं बात नहीं करती तुम तंग करते हो ।


मैं.... नहीं नहीं मैं तो बस....

बोलते बोलते बिच में ही ।


परिधि.... टाइम अप टाइम अप अब जाओ ग्रोउण्ड ।


मैं.... हाँ हाँ जाता हूँ वैसे भी जब तुम्हे मेरी बात ही नहीं सुन नी तो भला मैं क्यों बात करू ।



परिधि..... खिल-खिलकर हँसते हुए इतनी बेज्जती होने के बावजूद बात कर रहे हो अब जाओ ग्राउंड रात मैं बात करती हूण। बाई तब तक ।



उसकी बातों से मेरे चेहरे पर भी एक मुस्कान आ गयी और मैं इसी मुस्कान के साथ ग्राउंड चल दिया।


सूबह सुबह मैं ग्राउंड पहुंचा पर अब तक ऋषभ का कोई पता नहीं था । फिर मैंने अपनी रूटीन एक्सरसाइज कि पर आज जयादा दौड़ नहीं पाया पौन अभी भी सूजन थी।


सूबह के 5 : 30 हो रहे थे कि मुझे किरण नज़र आई ग्राउंड पर। लेकिन ये क्या किरण के साथ ये क्या का रही है ग्राउंड में?


रूही को देखते ही मुझे लास्ट टाइम बिताये सारे लम्हे ताज़ा हो गए और जबकि उसने बोल ही दिया था कि कोई कांटेक्ट मत रखना तो जैसे दूसरे लोग ग्राउंड पर है मेरे लिए वैसे ही रूही ।


मेरे पास किरण आते हुए...


किराण.... वेलकम टू चंडीगढ़ हीरो, गुड मोर्निंग।


मैने भी किरण को गुड मॉर्निंग विश किया और प्रैक्टिस के बारे मैं पूछने लागा । बातों ही बातों मैं पता चला कि दो दिन बाद पुलिस ग्राउंड मैं किरण कि फिजिकल टेस्ट है। किरण ने मुझे रोक कर अपनी प्रैक्टिस को जज करने के लिए बोली और चली गायी।



मैन जंहा खड़ा था उसके दो कदम पीछे रूही खड़ी थी, मेरी पीठ रूही कि ओरे थी और मैं बिना ध्यान दिए किरण कि प्रैक्टिस देख रहा था ।


मै किरण कि प्रैक्टिस देख रहा था तभी पीछे से आवाज आई
"बहुत आरोगेंट हो गए हो आज कल"



मै बात को अनसुना कर बस किरण कि प्रैक्टिस देख रहा था । तभी रूही बिलकुल मेरे सामने खड़ी हो गई ।


रूही.... मैं पागल नहीं जो अपने आप से बात कर रही हू ।


मैं... जी आपने मुझसे कुछ कहा मिस..


रूही... "तुम समझते क्या हो अपने आप को" और इतना बोलकर मेरे गले लग गयी और रोने लागी।



मैन तो बस हैरान रह गया साथ ही साथ बहुत अजीब भी लग रहा था क्योंकि ग्राउंड में वो मेरे गले लगी थी, हर एक आदमी हमें ही देख रहा था,मैंने रूही को अपने से अलग करते हुए.....
"ये क्या बचपना है"


रूही.... बचपना तो तुम कर रहे हो , तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते ।


मैं.... किसने कहा कि मैं तुमसे बात नहीं करता ।


रूही...... तो जब मैने तुम्हे आवाज़ दी तो रेस्पोंड क्यों नहीं किए ।



मैं... तुमने किसी अररोगेंट को बुला रही थी जो मैं नहीं हू ।


रूही.... नाराज हो मुझपर (बड़ी मासूमियत से) ।


मुझे बहुत ही ज्यादा प्यार आ गया रूही कि बात पर मैंने अपने दोनों हांथों से उसके आंसू पोछते हुए...


मैं.... हाँ थोड़ा नाराज था पर अब बिलकुल भी नहीं ।


रूही.... मुझे मांफ करना मैं उस दिन बहुत बोल गायी, पर विस्वास मानो मुझे जादा भी अंदाजा नहीं था की....


ओर बोलते बोलते रूक गयी क्योंकि तबतक किरण वापस आ रही थी, 
हालाँकि किरण ने भी हमें गले लगते देख चुकी थी लेकिन अब सारी बातें तो उसके सामने नहीं ही हो सकती थी।



किरण.... हँसते हुए ये क्या हो रहा था ग्राउंड पर तुम दोनों के बीच ।


मैं.... आप जैसा सोच रही है वैसा कुछ भी नहीं है ।


किरण..... हाँ हाँ हमें तो कुछ पता ही नहीं और गुनगुनाने लागि ।


आईसे भोले बनकर है बैठे
जैसे कोई बात नहीं ।
सब कुछ नज़र आ रहा है
दिन है ये रात नहीं
क्या है कुछ भी नहीं है अगर
होंठों पे है ख़ामोशी मगर
बातें कर रही हैन
बातें कर रही हैं नज़र चुपके चुपके.....



मै अब क्या रियेक्ट करू इस बात का मुझे समझ मैं ही नहीं आ रहा था तभी मेरी उलझनों को समझते हुए रूही...


"बहुत हुआ किरण अब तुम चुपचाप प्रैक्टिस करोगी"


किरण.... हाँ हाँ मेरा होना तो अब तुझे गवारा नहीं न जा रही हू ।


अब मेरा भी यंहा रुकना खतरे से खली नहीं और मैंने रूही को रेस्टोरेंट में मिलने को बोल चला आया ।


मै जल्दी से भागा इस खतरनाक माहौल से,ऐसा लग रहा था कि किरण अभी ही बोल पड़ेगी...

"कुबुल कर की तुम ही ने रूही का दिल चुराया है और तुम्हे सजाये प्यार दी जाती है"



खैर मैं जब वहा से निकला तो सोचा क्यों न ऋषभ के पास चला जाऊ । हालाँकि मैं ऋषभ के घर जाने से बहुत करता ता था और इसकी वजह थी उसकी जुड़वा बहन सैनी ।


हमारी पहली मुलाकात कुछ ऐसी थी कि सैनी नई एडमिशन थी हमारे क्लास में और मुझे मालूम नहीं था कि वो ऋषभ कि बहन है। इस से पहले वो अपने ननिहाल हरियाणा मैं रह कर पढ़ाई करती थी। ऐसा नहीं था कि मुझे पता नहीं था कि ऋषभ कि एक बहन है पर कभी भी देखा नहीं था ।


हुआ यूँ कि मैं स्कूल के गेट पर था और सैनी भी अंदर ही आ रही थी तो जल्दी जल्दी में मैं उस से टकरा गया। मेरी टक्कर से वो गिर गयी फिर क्या था लगी मुझे सुनाने ।


"लड़की देखि नहीं कि लगे लाइन मारने, छिछोरे, कमीने, बद्तमीज, अँधा है और पता नहीं क्या क्या"



अब मैं गेट पर देखा तो सरम से पानी पानी हो गया बहुत से स्कूल के स्टूडेंट, टीचर और स्टाफ जमा हो गए थे, और अपनी अलग ही इमेज थी स्कूल में।



फिर क्या था मैं भी भावनाओ मैं बह गया और बहुत जलील किया। मैं बहुत अपसेट हो गया इसलिए उस दिन स्कूल अटेंड नहीं की। और को-इंसिडेंट देखिये मुझे क्या सूझी और मैं इवनिंग टाइम मैं चला गया ऋषभ के घर । बेल्ल बजायी तो दरवाजा भी इसी ने खोला, और मुझे देखते ही.....


"तुम!मेरा पीछे मेरे घर तक चले आए, कंटिन्यू जो मन मैं आया वो बोलते चली गायी।



इस तरह से सैनी को बोलते देख उसके घर के लोग भी गेट पर आ गए और ऋषभ तो डंडा लेकर दौड़ा दौड़ा आया । जो अबतक मैं चुप था ऋषभ को यूँ देख कर....


"रूक क्यों गया मरता क्यों नहीं है डंडा"


मेरे इस तरह से बोलने पर सैनी ने मुझे हैरानी से देखा और ऋषभ ने मुझे अंदर बुला लिया। अंदर जब सबको पता चला तो सब हंस हंस कर लोट पॉट हो रहे थे लेकिन मेरा और सैनी का यंहा से कोल्ड वॉर शुरू हो चूका था जो अब तक चल रहा था ।


मै पहुंचा ऋषभ के घर बेल्ल बजायी। आंटी ने गेट खोला और......

"अरे राहुल बेटा तुम कब आए, आओ आओ अंदर आओ"


मैने आंटी से पुछा ऋषभ कंहा है तो पता चला कि वाक पर गया है। पर ये तो ग्राउंड पर मिला ही नहीं अच्छा बाद मैं पता करता हू । फिर मैंने सैनी के बारे में पुछा और "शैतान के बड़े मैं सोचा और शैतान हाजीर"।


"मा आज ये सुबह सुबह यंहा क्या कर रहा है आंटी ने घर से निकाल दिया कया"?



आंटी.... चुप कर बदमाश उसे कोई क्यों घर से निकलेगा? ल ले जा के चाय दे रहल को।



सैनी मेरे पास चाय लेकर आई और चाय देकर चली गायी।

कुछ देर इंतज़ार के बाद ऋषभ भी आ गया। फिर मैं चला गया उसके कमरे में। कल कि घटना से थोड़ा हल्का फील कर रहा था पर कहीं न कंही उसे ये बात खये जा रही थी ।


जब मैं उस से बात कर रहा था रेस्टोरेंट के बारे मैं तो मुझे रूही के साथ भी रेस्टोरेंट जाना याद आ गया और दिमाग का शैतान जग गया।


मै ऋषभ को बोला कि मैं जा रहा हूँ पर दिन मैं कंही मत जाना कॉल करके जंहा बुलाऊँ आ जाना ।



ऋषभ... पर तुझे अचानक हुआ क्या और ये दिन का क्या लफ़ड़ा है।



मैं.... मैं जा रहा हूँ मुझे अभी काम है तू दिन मैं मेरे बताये जगह पर मिल तू खुद समझ जाएगा ।



मै वहा से चला आया बस इस ख्याल से कि आज जो मैं तम्मना रेस्टोरेंट में करूँगा उस से उसको आज पता चल जायेगा की......



"किस आग में उसने हाँथ डाला है"............



कहानी जारी रहेगी......
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03-21-2019, 12:27 PM,
#45
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 43


"किस आग में उसने हाँथ डाला है....



मैं एक नई एनर्जी के साथ घर पहुँच गया। हॉल में सिमरन मुझे नजर आयी मैं समझ गया की कल की बात पर क्लास लगनी है। इसलिए मैं आँख बचा कर उस से निकलने लगा लेकिन...



सिमरन.... बेटू पहले इधर आ फिर कंही जाना ।


मैं दीदी के पीछे गया और पीछे से गले लग गया.... ओह मेरी प्यारी दीदी कितना काम करती हो चलो आज मूवी चलते है।


सिमरन.... मुझे छोड़ पहले सामने बैठ ।


मैं चेयर पर बैठते हुए..... दीदी आप फाइनल इयर कम्पलीट करने के बाद क्या करने वाली हो?


सिमरन.... मुँह बंद और जो पूछती हूँ जवाव दे समझा.. ।


मैं बिना मुह खोले.... ह्म्म्म ।


सिमरन..... ये क्या नाटक है मैं कुछ बोल रही हू ।


मैं..... हम्म्म्म ।


सिमरन (ग़ुस्से में).... , अब बोलता क्यों नहीं ।


मैं... खुद ही तो कहा था मुंह बंद कर के बैठ ।


सिमरन...... शैतान रुक तू अभी , और उठ कर मारने के लिए आई ।


मैं..... अच्छा बैठ जाओ , अब परेशान नहीं करुँगा ।


सिमरन..... कल तू ड्रिंक कर के आया था ना ।


मैं...... ह्म्म्म ।


सिमरन...... देख बेतु ये सब अच्छी आदतें नहीं है। तू क्यों करता है ये सब ।


मैं..... दीदी वही तो मैं कह रहा हूँ अच्छी आदत नहीं है पर ये मेरी आदत थोड़े ही है न ।


सिमरन... फिर भी बेटू तू अपनी दीदी की बात नहीं मनेगा ।


मैं.... चलो ठीक है मैं नहीं करूँगा पर क्या कभी कभी?


सिमरन.... कभी भी नहीं , नहीं मतलब नहीं ।


मैं..... जो हुकुम मेरे आका नो मीन्स नो , पर यदि कभी बय चांस जरूरत पड़ी तो ।


सिमरन...... तो तू सब के लिए लेते आना हम सब भी कंपनी देंगे ।


मैं..... ठीक है अभी बता दो कितना लगने वाला है शाम को लेते आउन्गा ।


सिमरन..... रुक अभी बताती हु ।


हमारी कुछ देर यूँ ही बातें चलती रही वंहा से फिर माँ के पास गया कुछ देर उनके पास बैठने के बाद मैं चला फ्रेश होंने।



बाहुत दिन हो गए थे अपनी धूल से जमी किताबों को छुए तो आज सोचा क्यों न कुछ धूल साफ़ कर दी जाए । करीब 11बजे मैं अपने स्टडी रूम से बहार आया । हॉल में सुनैना बैठी थी और माँ से बातें कर रही थी।



मैं.... क्या चल रहा है आप दोनों में ।


सुनैना.... हमारी बातें छोड़, यंहा हूँ तो कंही ले जायेगा घूमने की नहीं ये बता ।


मैं.... ठीक है रेडी हो जा और दिया और दीदी को भी बोल दे । हम लोग पहले लंच करेंगे फिर वंहा से मूवी चलेंगे।


सुनैना.... तू मज़ाक तो नहीं कर रहा?


मैं..... हाँ , ना ले जाओ तो टाइम नहीं देते और बोलो चलने के लिए तो मज़ाक लगता है।



सुनैना.... ठीक है पर प्लान क्या है? प्लान तो बता कब निकलना है। ओए तू खो कंहा गया।


एक्चुअली जब सुनैना बोल रही थी तो मैं कुछ सोच रहा था...... १मिन रुक और चिल्लाते हुए...दीदि, दीदी ।



मेरी आवाज सुनकर दोनों सिमरन और दिया हॉल में पहुंचि ।


सिमरन.... क्या हुआ चिल्ला क्यों रहा है?


मैं.... सुनो आप सब का लंच आज बहार है आप सब मेरी कार से आ जाना मैं घर वाली कार ले के जा रहा हूँ और हाँ छोटी सोनल को भी ले लेना बहुत दिन हो गए मिले सोनल से हम लोग लंच के बाद मूवी भी चलेंगे।



सिमरन...... यूँ अचानक क्या सूझी जो तू ये लंच और मूवी का प्लान?


मैं...... सोचा सुनैना आयी है इसलिए ।


सिमरन.... तू सब जा मेरा मन नहीं है ।


दिया.... तो मैं भी नहीं जाउंगी ।


मैं.... क्या दीदी , नहीं चलना है?(बनावटी गुस्से से) ।



सिमरन..... ठीक है, पर तू जा कंहा रहा है ।



मैं.... मैं जा रहा हूँ कुछ और लोग को इनवाइट करना है तुम्हे फ़ोन कर के बता दूंगा किस रेस्टोरेंट में आना है आ जाना ।


सब फाइनल होने के बाद अब मैं घर से निकला और सीधे पहुंचा ऋषभ के घर चूँकि उसे आज बोला था कहीं नहीं जाने के लिए इसलिए मुझे पता था की ऋषभ मुझे घर पर ही मिलगा।



ऋषभ के घर पहुँच कर मैंने बेल बजायी, दरवाजा सैनी ने खोला ।



अंदर से आंटी की आवाज..... कौन है सैनी ।


सैनी.... कौन होगा तेरा बेटा घर पर है तो अपने निकम्मे दोस्तों को यंही बुला लिया है।



सैनी अभी भी दरवाजे पर खड़ी थी मैंने उसे "हट बे चुहिया" कह कर साइड कर दिया और हॉल में पहुँच गया। ऋषभ मुझे हॉल में ही मिल गया।



ऋषभ.... मैं तो तेरे ही फ़ोन का इंतज़ार कर रहा था ।


मैं..... वो सब छोड़ आज घर में सबको मूवी दिखाने का प्रोग्राम है तू 14 टिकट अर्रंगे कर ले । हैं तेरे पास काजल का नम्बर तो है न वो मुझे लिखा दे और सुन टिकट ले कर 2 बजे तक फ्री हो जाना मेरे कॉल आने पर बताये जगह पर आ जाना ।


ऋषभ..... मेरे बाप आदमी हूँ कोल्हू का बैल नहीं जो एक साथ इतने कम बता रहा है।



मैं.... तू न कामचोर हो गया है 1 ,2 काम क्या बता दिए तुझे लग रहा है की पहाड़ तोड़ने के बराबर है। बस जो बोला है वो कर ।


इतने में सैनी..... माँ देखो ये ऋषभ किसी लड़की का नम्बर राहुल को दे रहा है।



ऋषभ सैनी से..... तू अपना चोंच बंद नहीं रख साकती । और तू ये हमारी बात क्यों सुन रही है?



जब्तक आपसी विवाद चल रहा था सैनी और ऋषभ में तबतक आंटी भी पहुँच गायी ।


आंटी.... लल्ला (ऋषभ का नाम) ये क्या है तू ये सब क्या कर रहा है?


मैं..... क्या आंटी आप इस चुहिया की बात का ध्यान देते है मैं अपनी क्लासमेट काजल का नम्बर ले रहा था उसे लंच पर इनवाइट करने के लिये।



सैनी..... झूठ, झूठ माँ दोनों मिलकर उल्लू बना रहे है, ये दोनों कुछ तो खिचड़ी पका रहे है।



रीसभ..... माँ इसकी तो आदत है लड़ने भिड़ने की ऐसा कुछ भी नहीं है ।


आंटी.... तू सच कह रहा है न बेटा ।


क्या अजीब मुसीबत है मैं यंहा मेगा प्लान कर रहा हूँ और ये कामिनि आग लगाने में लगी है इसको तो मौका आने पर बतौँगा। खैर मामला अभी क्लोज करना होगा।



मैं.... आंटी सुनिये मेरे साथ सिमरन , दिया और उनकी भी कुछ फ्रेंड्स है कहो तो बात करवा दुं।


सैनी..... माँ ये झूठ बोल रहा है।



आंटी..... तू ज्यादा दिमाग मत लगा तुझे तो हमेशा से राहुल गलत लगता है। तुझे बहुत सनका है तो तू भी चली जा ।



अब ये क्या नाटक है खैर चलो ये भी अच्छा ही है जितने लोग होंगे उतना कामयाब प्लान ।


मैं..... तो ठीक है तय हो गया तू टिकट लेने के बाद सैन्य को पिक करके मेरे बातये रेस्टूरेंट में आ जाना ।



अब दिमाग ठनका ऋषभ का रेस्टोरेंट का नाम सुनकर , सब लोग होने की वजह से वो चुप रहा बस सही मौके की तलाश में ।


मैं फिर ऋषभ को सब समझा कर जैसे ही बहार आया मेरे पीछे पीछे ऋषभ भी बाहर आ गया और मुझे टोकते हुए.....



ऋषभ.... राहुल मुझे तुझ से कुछ बात करनी है ।


मैं..... जल्दी बता टाइम नहीं है मेरे पास ।



ऋषभ.... तू सबको तमन्ना रेस्टुरेंट में बुला रहा है न?



मैं हँसते हुए......... ज्यादा दिमाग मत लगा जैसा बोला है वैसा कर ।



ऋषभ.... मैं तो दिमाग नहीं लगाउंगा पर तेरे दिमाग में चल क्या रहा है?



मैं..... मिशन मन की शंति, अब तू कुछ मत पूछ बस जैसा कहा है वैसा कर ।



आपास में सहमति होने के बाद मैं निकला वंहा से और पहले कॉल लगाया कुणाल को....


कुणाल..... कौन बोल रहा है?



मैं.... तेरा बाप राहुल बोल रहा हु,नंबर भी नहीं पहचाना।


कुणाल.... मेरे बाप, पिता जी , ये तू अननोन नंबर से कॉल करेगा तो कैसे पहचानु ।


ओह शिट, ये काम भी रह गया, ये परिधि भी न सिम तोड़ने की क्या जरूरत थी, खैर इसे मैं बाद में देखता हू ।



मैं.... सुन भाई तू अपनी वाली को फ़ोन कर दे लंच और मूवी का प्लान है ।


कुणाल.... पर ये अचनाक ।



मैं..... सब अचानक ही होता है तू उसको बोल मैं उसके घर के पास कार लेकर खड़ा हू , आ जाए ।


कुणाल..... ठीक है भाई , मैं भी तैयार हूँ मुझे भी पिक कर लेना ।


मैं..... सुन बे ओए, तू तैयार है अच्छी बात है पर अभी वो मेरे साथ कंही और जाएगी, और जब मैं फ़ोन करूँगा तब तू मेरे बताये जगह पर आ जाना ।


कुणाल..... भाई, जान से मार दे लेकिन ऐसी बातें क्यों कर रहा है? भाई वो मेरी गर्लफ्रैंड है। तेरी भाभी है वो ।



मैं.... सुन बे छिछोरे जितना दिमाग है उतना ही लगा ज्यादा इस्तमाल मत कर और हाँ मैं जा रहा हूँ उसके घर के पास कम हो जानी चाहिए नहीं तो तूने जो चड्ढी की ऐड की है उसे मैं तेरे घर मैं बता ढुंगा ।



अब बोले तो क्या बोले सांप-छुछन्दर वाली कहावत है न उगलते बने न निगलते बने.....



बड़ा मायुस होकर..... काम हो जाएग, पर ये तू गलत कर रहा है। काम तो तेरा कर देता हूँ पर आज के बाद तुझे मैं अपनी जिंदगी से डिलीट करता हू ।



बक्त ख़तम और काम सुरू, अभी 12 बज रहे है मतलब मेरे पास बस 1 : 30 घंटे है और अब मैं सब अकेला नहीं कर सकता । यही सोचते हुए मैंने अब असीस को फ़ोन लगया। हम लोगों के बीच ये बंदा मैनेजिंग गुरु के नाम से फेमस है। कोई ऐसा लफरे वाला काम नहीं जो ये सोल्वे नहीं कर सकता।



आसीस..... हेललो ।


मैं..... राहुल बोल रहा हू ।


आसीस.... हाँ बोल भाई ।


मैं.... ध्यान से सुन, फिर मैंने उसे सारा प्लान बताया ।



आसीस.... मेरे लिए क्या आदेश है ।


मैं..... 50% मैंने कर दिया है, आगे अपने हिसाब से एडजस्ट कर के तमन्ना मैं टेबल बुक कर देना और हाँ सिंगल टेबल पर सब अरेंज होना चाहिए वो भी बिलकुल मिडिल में ।



आसीस.... मैं कोसिस करता हूँ, अब तू सब मुझ पर छोड़ दे तू अब टेंशन फ्री हो जा ।


मैं.... और हाँ भाई तू कुणाल को पिक कर लेना उसे मेरी किसी बात का सदमा लगा हुआ है अभी तो वो मेरा फ़ोन भी पिक नहीं करेंगा। और हाँ तू कुछ मत बताना प्लान के बारे में।



आसीस.... ठीक है तू जा मैं मैनेज कर लुंगा ।


अब मैं चला कुणाल की गर्लफ्रैंड अनन्या को पीक करने। जब मैं पहुंचा तो अनन्या पहले से मेरा इंतज़ार कर रही थी। पता नहीं कैसे मनाया कुणाल ने और कैसे मन गायी, मैं होता तो अबतक घर जाकर मार के आता ऐसा बोलने वाले को। मुझे ये सोच कर हंसी आ गायी।




खैर मैंने उसे पिक किया और रस्ते से काजल को फ़ोन लगया। काजल से मेरी बात हुई तो मैंने बता दिया की अनन्या आ रही है उसके घर (बोथ बेस्ट फ्रेंड)। दोनों तैयार होकर रहे फिर लंच और मूवी का प्लान बताया।



काजल को थोड़ा अजीब लगा मगर मान गायी। इस खेल में काजल का भी अपना ही रोले था क्योंकि ये हमारे ऐश आई की बेटी थी।


अब जब सब मैनेज हुआ तो अब मैं थोडा रिलैक्स फील करने लागा । अब मैंने रूही को फ़ोन लगया। रूही से मेरी बात हुए वो भी तैयार थी पर किरण भी उसके साथ आना चाहती थी। मैं समझ गया किरण क्यों आना चाहती है इसलिए मैंने भी इस बात पर तूल नहीं दिया और हाँ बोल दिया।



सब करते करते अब 12 : 30 हो चुके थे मैं रूही और किरण को पिक उप,करने चला गया। प्लान अपने फाइनल स्टेज में था और मैं परिधि के साथ अपने रिलेशन को भी आगे बढ़ने के फाइनल प्रोसेस मैं था ।


मै अपने काम को देख कर एक रोमांच मैं था पर पता नहीं कहीं न कहीं कुछ खाली खाली सा आभास हो रहा था । कुछ ऐसा जो जरूरी न हो कर भी जरूरी लग रही थी पर क्या ये पता नाहीन। खैर मैंने अब कंसन्ट्रेट किया रूही को पिक अप करने की।



जैसे जैसे मैं रूही की ओर बढ़ रहा था अंदर ही अंदर एक उलझन खाये जा रही थी। ऐसा लग रहा था की मेरी जिंदगी की एक अहम कदम और मैंने ये क्या कर दिया।



कहिं मैं अपनी ही फीलिंग के साथ मज़ाक तो नहीं कर रहा । 

आज जो भी मेरी और रूही के बीच होना है उसका जिम्मेदार भी तो मैं ही हू । यदि रूही को भी मुझसे प्यार हुआ तो , मैंने तो खुद ही परिधि को चुना बावजूद इसके कि मेरी चाहत रही है। मुझे ये क्या हो गया मैं दोनों को कैसे पसंद कर सकता हू ।



अब जो भी हो मैं सच का रास्ता चुना पसंद करूंग। अब मैं अपनी किस्मत का फैसला भगवन पर छोरता हू । आज मेरे और रूही के बीच जो भी होगा वो मुझे मंजूर होगा फिर चाहे मिझे परिधि को ही क्यों न भूलना पडे.......



कहानी जारी रहेगी......
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03-21-2019, 12:28 PM,
#46
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 44


अब जो भी हो मैं सच का रास्ता चुनना पसंद करूंग। अब मैं अपनी किस्मत का फैसला भगवन पर छोड़ता हूँ । आज मेरे और रूही के बीच जो भी होगा वो मुझे मंजूर होगा फिर चाहे मुझे परिधि को ही क्यों न भूलना पड़े.....



लेकिन भूलना वो भी.........



सिर्फ भूलने के ख्याल से मेरा रोम-रोम कांप गया। आँखों में आँसू छलक आए । मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं कर पाया, कार का ब्रेक कब लगा पता नही । मन विचलित हो उठा अब मैं परिधि से बात किये नहीं रह पाया और उस से बात करने के ख्याल से जैसे ही फ़ोन निकला की फ़ोन की घंटी बज गई.........ये कॉल परिधि की थी।





मैं खुद को कण्ट्रोल करते हुए.... बोलिये आप ने तो कहा...



इतना कहने के बाद मेरे अल्फाज़ मेरे जुबान से बाहर ही नही निकल, मेरा दिल भर आया और आँखों से आँसू गिरने लगे मैंने फ़ोन कट कर दिया ।



5 मिनट तक व लगातार फ़ोन करती रही और मैं फ़ोन कट करता रहा । मैंने अपने आप को कुछ कंट्रोल करके वापस फ़ोन लगया।




परिधि..... चिंता से, सब ठीक है न?



परिधि की आवाज़ सुनी और मैं अपने आप को रोक नहीं पाया रोने से ।



परिधि....... बताते क्यों नहीं , कुछ तो बोलो ( वो भी रो रही थी)


मैने सिसकते हुए कहा.... मैं ठीक हू...


इतना ही बोल पाया मैं इस से ज्यादा बोल न सका । बस फ़ोन पर एक दुसरे को रोते हुए महसूस कर रहे थे ।



बहुत हिम्मत जुटाने के बाद बोला..... चिंता की बात नहीं है मैं खुद तुम्हे फ़ोन करते हू ।



मै अपनी भावनाओ को काबू नहीं कर पा रहा था । सिर्फ उसे भूलने के ख्याल से ही मैं अपनी जिंदगी हार चुका त। हाँ! ज़िंदगी ।



मै अंदर से टूट चूका था और अब पूरा फैसला रूही का था । 20 मिनट तक खुद को किसी तरह नार्मल कर के रूही के पास पहुंचा । मैंने दोनों को पिक किया और निकल गया तमन्ना रेस्टूरेंट। रस्ते भर मेरी किसी से कोई बात नहीं हुए हम चुपचाप पहुंचे तमन्ना रेस्टूरेंट।




रेस्टूरेंट मैं जब पहुंचा तो वंहा के कुछ स्टाफ ने मुझे देख, घूरा और लग गए अपने काम पर। ओनर अभी नहीं था रेस्टूरेंट में ।
खैर मैंने देखा की उनके कुछ स्टाफ मिडिल की तीन राउंड टेबल साइड कर रहे थे मुझे लग गया कि असीस ने अपना काम कर दिया है, पर कुछ खास खुशी नहीं हो रही थी।



हम तीनो साइड के एक टेबल पर बैठे और कुछ स्नैक्स का आर्डर दिया। तीनो शांत बैठे थे । चूँकि ये मेरी इम्तिहान की घड़ी थी इसलिए मैंने ही चुप्पी तोड़ते हुए बोला...



"परिधि सॉरी रूही हमरे ग्राउंड की बात कुछ अधूरी थी"



तभी बीच में किरण बोल पड़ी.... बताओ बताओ मैं बेचैन हो रही हूँ जानने के लिए कि तुम लोगो के बीच क्या सीन चल रहा है?



मैं..... किरण प्लीज बुरा मत मानिए पर क्या आप यंहा केवल दरसक बन के रह सकती है क्योकि.....



मैन चुप हो गया कहना तो चाह रहा था की, क्योंकि जैसा आप सोचती है वैसा बिलकुल भी नहीं पर यदि रूही ने हाँ कर दिया तो । इसलिए मैं चुप हो गया।



मै अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए.....



"हाँ तुम ग्राउंड पर कुछ बोल रही थी"



रुही..... (बहुत संजीदा होते हुए) मैं उस दिन के लिए तुमसे मांफी चाहती हूं। मैं कुछ ज्यादा ही बोल गयी मुझे इस बात की जरा भी अंदाजा नहीं था की तुम्हे मेरी बातों का इतना चोट पहुंचे गी ।


एक लम्बी सी साँस खींचते हुए....


"जब तुम बिना बताए गायब थे तब अलीशा मुझ से मिलने आई , उसकी हालत के बारे में मैं बयां नहीं कर सकती की कैसी थी, उसकी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर किया की ये मैंने क्या कर दिया"?




फिर एक गहरी सांस लेते हुए.....


"उस दिन तुम्हे वो कॉल मैंने ही किया था पर सर्मिंदगी इतनी महसूस हो रही थी की मेरे शब्द मेरे जुबान में ही कैद होकर रह गै। पर जब तुम ने मुझे पहचान लिया तो पहली बार ये अहसास हुआ की तुम मुझसे कितना.....



अब पूरी शांति थी। मुझे रूही की बातें एक अँधेरे की ओर खिंच रही थी अब ये चिंता साफ घेरने लगी थी की कंही....... जो भी हो लेकिन ये मैं ही था जो इन सब का रचयता था इसलिए अब तो पीछे हटने की कोई सवाल ही नहीं था, बस एक म्यूसि, की ये क्या हो गया?




मैं..... पहले तो मैं मांफी चाहूंगा कि मेरी वजह से तुम्हे परेशानी उठानी पड़ी । अब जब तुम सब जान चुकी हो और देख चुकी हो तो फैसला मैं तुम पर छोरता हू । पर एक बात मैं बोलना चाहूंगा कि तुम्हारा जो भी फैसला होगा वो मुझे दिल से स्वीकार होगा।




मैन कुछ टाइम लेते हुए.....


"मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे किसी बात या हरकत के दबाव में कुछ बोलो जो भी बोलना है खुल कर बोलना। इस बात का विस्वास मैं तुम्हे दिलाता हूँ कि न मुझसे या मेरे किसी भी हरकत तुम्हे कभी शर्मिंदगी महसूस होगी और न ही कोई परेसनी"।




रुही....... "मुझे बहुत ख़ुशी है तुम्हारी इस तरह की सकारात्मक बातों से । मैं भी यही चिंताओं से घिरी थी मैं क्या बोलूं"



"पिछले कुछ दिनों में मैं भी कम परेशान नहीं रही हू । तुम्हारी जिन हरकतों से मुझे पहले गुस्सा आता था जब तुम नहीं थे तो उसी पर प्यार आने लागा"



"एक अजीब सी बैचैनी हरदम रहती कि तुम मेरे पास क्यों नहीं हो। मेरी सोयी हुए जिज्ञासा कब जग गयी पता नहीं चला । मैं ये तो नहीं कह सकती की मुझे तुम से प्यार है पर तुम मेरे लिए बहुत प्यारे हो"।




"जब ग्राउंड पर तुम ने अनदेखा किया तो मुझे बहुत बुरा लगा पता नहीं मेरे आंसू कब मेरे आँखों में आ गए, तुम से लिपट के रोने में मुझे एक अलग ही सुकून मिला, इतने लोग थे वहाँ पर मुझे सिर्फ तुम ही नजर आए"।




"मैं ये मानती हूँ कि दिल के किसी कोने में तुम्हारे लिए बेशुमार प्यार है। मैं नहीं इंकार कर सकती इस से कि मैं तुम से प्यार नहीं करती हू"



"पर और भी रणजो-गम है मोहब्बत के सिवा। हम दोस्त रहे तो ही अच्छा है। अब जब सब तुम्हे बता दिया की मेरे दिल में क्या है तो तुम्हे ये भी जानने का पूरा हक़ है की क्यों मैं इस रिलेशनशिप को नहीं बढ़ाना चाहती"?



मैं.... "ये मैं नहीं पूछना चाहता की क्यों तुम इस रिश्ते को आगे बढ़ा नहीं सकती पर क्या तुम मुझे भूला पाओगी वो भी तब जब मैं तुमसे रोज-रोज मिलुंगा"?




रुही..... "तुम कारन जानते तो ये सवाल न पूछते खैर अच्छा लगा कि तुमने इस बात पर जोर नहीं दिया शायद मेरा दिल भी नहीं चाहता था की मैं ये सब बातें करू .... रहा सवाल भूलने का तो कौन कहता है की मैं तुम्हे भूल जाउंगी"



"तुम तो मेरे प्यारे एहसास हो इसे तो मैं खुद भूलने नहीं चाहूँगी। तुम मुझसे न मिलो ऐसी भी खाइऐश नहीं अच्छा लगता है जब तुम पास होते हो"।



"रही बात फीलिंग की तो तुम उसकी चिंता मत करो जब तुम्हरा नजरिया बदलेगा मेरे प्रति तो मुझे भी कोई प्यार वाली फीलिंग नहीं रहेगी क्योंकि मैं रिश्तों में मिलावट नहीं करती पर्सन तो तुम्हारे लिए हू"।



"मैंनेअपनी बात पूरी कर ली। कोई मिलावट कोई झूठ नहीं है मेरे बात में । बस चिंता तो तुम्हारी है कि क्या तुम इस को एक्सेप्ट कर के एक नयी सुरुआत कर सकते हो की हम अच्छे दोस्त रहेंगे"।




मैं..... "जैसा की मैंने पहले ही तुमसे वादा कर दिया है तो मैं नहीं मुकर सकता , तुम ने अपनी दिल की बात बताई अच्छा लगा"।



"अब हम सिर्फ अच्छे दोस्त है। मैं न तो कभी दुबारा इस विषय पर चर्चा करूँगा न कभी ऐसी हरकत जो ये अहसास कराये कि मैं तुम्हे चाहता हू"।




"So friends.... Yes of course "




माहॉल बहुत सीरियस हो चला था तो अब किरण बोली....



"Knock knock , may I have permission to say something"?



हम दोनों का ध्यान किरण की ओर गया और दोनों ही हँसने लगे और रूही बोली...

"Yes mam please"



किरण..... यार मैं भी कान्हा तुम दोनों दुखियों के बीच फांसी। चलो अब जब सारी बातें क्लियर हो गयी है और यदि सोच सकारात्मक है राहुल की , तो जल्द से जल्द एक गर्लफ्रैंड बनाओ तभी मुझे लगेगा कि तुम सिर्फ दोस्त हो।



रुही....पहली बार तू कुछ परफेक्ट बोली है।



मैं.... तुम लोग भी क्या टॉपिक लेकर बैठ गायी। मैं कमिट तो नहीं कर सकता पर ऐसा कभी हुआ तो सबसे पहले तुम दोनों से मिलवाऊंगा ।



माहॉल थोड़ा हल्का हुआ फिर रम गए हम लोग अपनी हसी-मज़ाक में दिल का बोझ उतार गया। अब मैंने भी राहत की सांस ली।




लेकिन मुझे अभी राहत कंहा मिलनेवाली थी अब जब सोचने की शक्ति जागृत हुए बिलकुल पागल हो उठा....



कहानी जारी रहेगी.....
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03-21-2019, 12:28 PM,
#47
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 45


लेकिन मुझे अभी राहत कंहा मिलनेवाली थी अब जब सोचने की शक्ति जागृत हुए बिलकुल पागल हो उठा....



यार अब सब ओके है पर ये क्या मुझे अब जल्दी करना होगा। मैं रूही और किरण ओनर सम्बोधित करते हुए....


"तुम दोनों बातें करो मैं अभी आया"


रूही... पर ये अचानक हुआ क्या?



मैं.... कुछ नहीं हमारे इस नई सुरुवात पर कुछ लोग और भी शामिल हो रहे है, मैं अभी 10 मि मैं लौटा तबतक तुमलोग कुछ आर्डर कर दो ।



अब मैंने थोड़ा माहौल का जायजा लिया बिलकुल मिडिल में 20 लोगों के लिए चेयर अरेंज कर दी गयी थी और साथ में कुछ लोग मुझ पर नजर भी रखे हुए थे ।



मै बहार आया काजल को फ़ोन किया। उस से बात होने के बाद मैं निकल गया काजल और अनन्या को लेने ।



फिर प्लान के मुताबिक पहले असीस को फ़ोन किया...... टाइम हो गया है तू कुणाल को पिक कर लेना, असीस के बाद घर और फिर ऋषभ को फ़ोन लगया। सबको 10 मिनट में इकठ्ठा होने को कहा । काजल और अनन्या को मैंने काजल के घर से पिक किया और पहुँच गया तमन्ना रेस्टूरेंट।



रेस्टूरेंट में काजल और अनन्या को रूही और किरण से इंट्रोडस करवाया फिर सब को लेकर मिडिल टेबल पर बैठ गया। मुझे बैठ ता देख 1 वेटर "सर ये बूकेड है"


मैंने कहा "हमने ही कारवाई है" देककर चला गया।


मै अब बहार निकला सबको रिसीव करने। सबसे पहले एंट्री हुए मेरे फैमिली ग्रुप की सबको अंदर किरण के पास बैठने को बोला । सिमरन किरण का नाम सुनकर खुश हो गायी। फिर एंट्री हुए असिस, कुणाल, और साथ में थे हमारे अड्डे के दो लड़के राजन भाई और नीलेश भाई, दोनों हमसे 2 साल सीनियर थे पर मिलते मिलते पहचान हो गयी थी मैंने असीस को रोका और बांकियों ओनर अंदर भेजा।



मै असीस से.... तू इन दोनों को क्यों ले आया ।


आसीस.... भाई भरोसा रख बहुत अच्छे है कोई प्रॉब्लम नहीं होगी यंहा कम से कम 6 लोग चाहिए थे मैनेज करने के लिये।



मैं... चल कोई बात नहीं बस देखना गड़बड़ न हो और ये कुणाल कुछ बोल भी रहा था ।



आसीस..... पन्गा क्या किया है, ल*डू को घर से घीच कर लया हू । रूम बंद करके पड़ा था पुरे रस्ते खोया रहा है।



मैं...... चल कोई बात नही, कुछ देर बाद इसको भी शांत कर देंगे ।


जब्तक हम बात कर रहे थे तबतक ऋषभ और सैनी की भी एंट्री हुए। उनके साथ हम भी अंदर पहुंचे अंदर बहुत ही फ्रेंडली माहौल था । लेडीज़ एक साथ थी और एक तरफ कुणाल चुपचाप बैठा था ऋषभ के साथ मैं और असीसभी अंदर पहुंचे।



सायद सैनी ने दूसरे लड़कियों को नहीं देखा नजर हम चरों पर थी, वो अचानक से बोल पड़ी....


"तो पूरी छुछन्दरों की टोली मौजूद है"



इतना सुनते ही सब सन्न हो गए की ये सबके सामने कैसे बोल रही है जंहा सब सन्न थे वही दिया को बर्दास्त नहीं हुए ये बात और बोल पाडी.....


"भाइया ये चुहिया कौन है"


इतना सुनते ही हम चरों हंस पड़े क्योंकि मैं भी उसे चुहिया ही बुलाता था और अचानक से दिया भी बोल पाडी। मुझे दिल ही दिल में बहुत ख़ुशी हुए लकिन मैंने दिया को डांटते हुए....


"तूझे अकाल नहीं है क्या अपने सीनियर्स से कैसे बात करते है"

.
अब जब नजर गयी सब पर उसकी और उसने अपनी क्लासमेट काजल और अनन्या कोदेखा तो थोड़ी झेंप गायी।



हम सब अपनी अपनी जगह ले लिए अबतक राजन और नीलेश भी आ गए थे । लेकिन जिस तरह से किरण और सिमरन उन दोनों से बात कर रही थी मुझे और मेरे मित्रों को झटका लगा क्योंकि उनको बात करता देख लग नहीं रहा था की पहली मुलाकात है।



अब हमें लगा 440 वोल्ट का झटका जब हमें पता चला की दोनों सिमरन और किरण के ही क्लासमेट है। मैं असीस को देख गुर्राया उसने शांत रहने का इशारा किया।



अब हमरी पार्टी शुरू हो चुकी थी हंसी मज़ाक और छोटे मोटे नोक झोंक से । एक बार फिर लोग हंस हंस के लोट पोट हो रहे थे मेरी और सैनी की पहली मुलाकात जानकार। अबतक तमन्ना का ओनर भी आ चूका था ।



पार्टी जब एन्ड पर थी तो मैंने एक वेटर को खींच कर मरा। सब देख कर दांग रह गए । चूँकि वंहा कुछ होने वाला है ये केवल हम चार मित्रों को ही पता था बांकी तो सब अंजान थे सारी बातो से । 



चुँकि खतरे का अंदेशा उन लोगों को भी था इसलिये देखते देखते उनके 10 लोग जमा हो चुके थे । ओनर ने आते ही पूछ..... तुम ने इसे क्यों मारा, दादागीरी है क्या बे ।



सबको आते देख मैंने पहले ही इशारा कर दिया असीस को। असीस ने काजल को पुलिस बुलाने बोल दिया उसने भी जब इतने लोगों ओनर देखा तो अपने पापा को फ़ोन कर दी और इधर ।


साजन भाई... ओनर से , देखिये थोड़ा तमीज से बात कीजिये ये बे,बे क्या लगा रखा है पहले जान तो लीजिए की मामला क्या है?



ओनर.... तुम सब अभी रुक मैं तुम लोगों की होश्यारी तेरे ****** मैं गुज़रता हू ।
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03-21-2019, 12:29 PM,
#48
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 46 

निलेश भाई.... तेरी खुश किस्मती की यंहा अभी मैं अपने फ्रेंड्स के साथ हूँ अभी अगर ये न होती तो तुम्हारे बदन से तुम्हारी चमड़ी अलग कर देता।




जब्तक इतनी बातें हुए तबतक नजदीकी थाने के इंचार्ज (ईसप) और उसके साथ ५,६ हवलदार भी पहुँच गए ।



पुलिस को देखते ही सबके चेहरे से हवाइयां उड़ने लगी उनके ही नहीं हमारे तरफ से भी। तभी इंस्पेक्टर ।


इंप..... काजल बेटी क्या बात है? 



काजल.... अंकल पता नहीं पर देखो न हम सब फ्रेंड्स एंड फैमिली लंच करने आये थे और ये रेस्टूरेंट वाला बहुत बद्तमीजी कर रहा है।



इंतना सुना और आ गया इंस्पेक्टर अपने ताऊ मैं गरम के बोला....


"यहाँ का मैनेजर कौन है"



ओनर... मै हूँ ।



इंस्पेक्टर...तो तू इस रेस्टूरेंट का मैनेजर है ।



अब जब मामला इंस्पेक्टर ने संभाला तो मैंने मौका देख कर असीस को इशारा कर दिया, मेरा इशारा समझ कर तबतक उसने मीडिया को भी इन्फॉर्म कर दिया।।और इधर ।



ओनर.. नहीं मैं मैनेजर नहीं यंहा का ओनर हू ।



इंस्पेक्टर.... गरजते हुए, तू ओनर है तो बद्तमीजी करेंगा। अपने गुंडे लाकर इन्हें डरायेगा । देख इन लड़को को सब स्टूडेंट लगते है अगर यंहा ये न होती तो अबतक तो हमलोग जन आक्रोश का केस नोट कर रहे होते, बोलता क्यों नहीं बे ।



ओनर... नहीं सर ऐसी बात नहीं हैं वो कल ।



इंसपेक्टर.... ये कल परसो पर मत जा पहले हुआ क्या ये बाता ?


लो इतनी बात हुए तो अबतक मीडिया भी आ गायी, मीडिया को देख ।


"काजल बेटा तुमलोग जाओ बस दो लोग रुको"



फिर मैंने भी सहमति देकर ऋषभ को बोला ।

"ऋषभ तू सबको लेकर मल्टीप्लेक्स पहुच मैं और असीस आते है"



वैसे तो जाने का किसी का मन नहीं था लेकिन जब पुलिस थी तो उन्हें अब कोई डर नहीं था और ये मेरे लिए भी अच्छा था क्योंकि अगर बात फ़्लैश बैक मैं जाती तो सब भेद खुल जाता ।


सभी चल दिए मल्टीप्लेक्स की ओर और इधर मीडिया अपने काम में और इंसपेक्टर ।



इंसपेक्टर..... हाँ तो बता की क्या हुआ जो गुंडागर्दी पर उतर आए ।



ओनर.. . इसने मेरे स्टाफ को थप्पड़ मारा ।



इंस्पेक्टर.... तुझे पता है क्यों थप्पड़ मारा ? 


ओनर... नही ।

इंस्पेक्टर.... तूने पूछा था क्या कारण है? 


ओनर... नहीं ।

इंस्पेक्टर तो माँ********* तू मामला सुलझा रहा था की यंहा लेडिस के बिच मैं गुंडागर्दी दिखा रहा था ।



ओनर... वो सर, ये लोग ।


इंसपेक्टर.... चुप वे , हाँ तो कौन वीर है जो अपने फ्रेंड और फैमिली के साथ होते हुए भी थपड मारा है, इतना दिमाग नहीं की लेडीज रहे तो थोड़ा गम सह लेना चाहिए और बाद में जो कुछ भी गलत हो तो हमें इन्फॉर्म करना चहिये। बता कौन है तुम दोनों में से और क्यों किया?




मैं... सर मैंने किया ।

इंसपेक्टर ... नाम बता और काजल को कैसे जनता है ?



मैं.... सर मैं राहुल है और दोनों साथ मैं पढ़ते है ।



इंसपेक्टर, सुर बदलते हुए.... तुम ही राहुल हो जो चंडीगढ़ का नाम ऊँचा किया था 10 थ बोर्ड में राहुल मेरा बेटा भी तुम्हारे ही स्कूल मैं पढ़ा है, तुम्हारा तो वो फैन है, कभी आओ हमारे घर भी।



मैने नजरों से इशारा कर बताया की यंहा मीडिया है ।

इंस्पेक्टर... हाँ तो राहुल बताया नहीं क्यों मारा ।



मैं... सर मैंने जिसे मारा वो बड़ी गन्दी नजरों से घूर रहा था मेरे फ्रेंड्स को , फैमिली थी सर मैं शांत रहा, दो बार समझाया भी फिर भी वही हर्कतें। अब आप ही बताइए की मैं क्या करता?



इंस्पेक्टर.... कौन है बे , साला फैमिली के साथ तो ये रेस्टूरेंट रह ही नहीं गया आने के लायक, कौन है सामने क्यों नहीं आता ।


तभी वही वेटर सामने आया डरा और सहमा सा ।


इंस्पेक्टर...... चल थाने वंहा तू आँख दिखाना हम सब को और तुम (ओनर ओनर इंडीकेट करके) चल तू भी मामला बिना जाने गुंडागर्दी करता है।


अब आया पसीना सारे स्टाफ और कोओनर फिर बिच मैं बोलते हुए.... 


"सर रहने दीजिये इस वेटर को, क्योंकि ये अपने मालिक के सह पर ही इतनी हिम्मत दिखा रहा था वरना इनकी क्या औकात की मना करने के बावजूद ये वही गलती करे"।



इंसपेक्टर..... हाँ ये सही कहा चलो रे ले कर चलो इनके ओनर को और तुम दोनों भी आओ FIR रजिस्टर्ड करनी हैं इनके अगैंस्ट।



ओनर.... सर पहले ही बहुत तमासा हो चूका है मीडिया भी बुलवा ली है पर मुझे अरेस्ट करना ये सही नहीं है। आप समझ रहे है ना ।



इंस्पेक्टर. ठीक है आप इन लोगो से सब के सामने मांफी मांग लो, मैं केस अभी रहा दफा करवाया हू ।



पता नहीं उन दोनों के बीच मामला कितने मैं सेटल हुआ हो पर मुझे क्या करना था मुझे तो इस बात की ख़ुशी थी की ये कमीना मांफी मांगने वाला है। अब इंस्पेक्टर ने हम लोगो को समझाया की FIR न रजिस्टर करे वो ओनर मांफी मांग रहा है और इस बात से हमें भी कोई ऐतराज़ नहीं थी।।



ओनर.... "मैं बहुत शर्मिंदा हूँ मुझे मांफ कर दो"
Reply
03-21-2019, 12:29 PM,
#49
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 47



मैं. .. सर जी क्या कहना चाह रहे है समझ में नहीं आया ।



ओनर.... थोड़ा ज़ोर से मैं मांफी चाहता हूँ जो भी यंहा हुआ। प्लीज मुझे मांफ करो, और अपने स्टाफ को बोलै की सर से बिल मत ले ।


मीडिया वाले माफी नामा सुनकर जा चुके थे और इंस्पेक्टर साहब हमें भी अब जाने को बोल रहे थे लेकिन मैं 1 मिन बोलकर वापस आया और ओनर से....



"बड़ी जल्दी मांफी मांग लिए ख़ैर", फिर मैंने बिल पूछा और उनको पूरा पैसा टिप के साथ उस ओनर को दिया और "तु मालिक है न तुझे तो नौकरों से जायदा देना पड़ेगा इसलिये 1000₹ टिप तेरे लिये"।



ओनर ने बहुत गंदे से घूरा जैसे निचे से उसकी चड्ढी खींच दी हो और ये एक्सप्रेशन मेरे और असीस के लिए बहुत आनंदमय था दोनों देखते ही हंस पड़े ।



खैर प्लान १०० नहीं न सही पर उस से कम भी नहीं सक्सेस हुआ था । हमारा प्लान ही यही था की बहुत सारे लोग और इस रेस्टूरेंट के ओनर की बेज्जती।



बहुत ही सुकून मिला, ऐसा लगा की मैंने अपने लिए कुछ किया। हम दोनों चल दिए अब मल्टीप्लेक्स की ओर । सबको पिक्। दिखाई और लौटे अपने अपने घर ।


मीडिया कवरेज भी लगातार तमन्ना रेस्टूरेंट की न्यूज़ फ़्लैश किये थे जो हम अपने अपने घर की टीवी पर इंजॉय कर रहे थे।


आज का दिन मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा जंहा एक ओर रूही ने मेरी जिंदगी मुझे वापस लौटा दी वही मैंने अपने दोस्त के बेज्जती का बदला ले लिया। पर प्यार तो अभी भी अधूरा था ।



अब मुझे क्या करना चहिये, फ़ोन पर बात करू , मैसेज करून नही, हाँ ये ठीक रहेग। यदि उसकी चाहत भी उतनी ही है जितनी मेरी तो कल मैं उसे अपने प्यार का इज़हार कर दूंग



मैन एक हसीं प्यार के अहसास के साथ अपने ही ख्याल मैं डूब गया। कल मुझे मेरा प्यार मिलने वाला है। अह्हह्ह्ह्ह! अजब सी धुन साँसों मैं बस गयी थी।



मेरा रोम-रोम एक अलग ही सुख की अनुभूति में डूबा चला जा रहा त। कल के ख्याल से ही एक गुदगुदी पुरे शारीर मैं दौर रही थी। आज रात मुझपर बहुत भारी पड़ने वाली थी क्योंकि परिधि ही परिधि मेरे ख्याल में थी....



कहानी जारी रहेगी....
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03-21-2019, 12:29 PM,
#50
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट ...48
आज रात आज रात मुझपर बहुत भारी पडने वली थी क्योकि परिधि ही परिधि मात्र खयालो मे थी।
"बीते लम्हों की गुजारिश है , मेरा जीवन तेरे नाम का हो
गुजरे वक्त ने जो हमें मिलाया, उस अहसास का आयाम तो हो।
यु तो मर मिटे तुझपर, तुम्हारी हर अदा और नजर पर
मोहोब्बत की जिस मुकाम पर है, प्यार का ijhar-e-जाम तो हो।
हम खोये रहेते ख्यालो में है , इस प्यार की गहराइयो में
अब है इस दिल की इजहार-e-मोहब्बत कर दू फिर चाहे अंजाम जो हो।
प्यार हो जाता हैँ, दिल हार के गम लेता है 
यूं तो तुम्हारी चाहतो में मै ही सुमार हू, पर ये इजहारे -e-मोहब्बत करने की सोच से ही दिल दिल घबरा जाता है।
कल तेरा खयाल तो मुझे पागल सा किये जाती है, तुम ना हो तो तुम ही तुम नजर आती हो।
मैं......... चुप कर पगले रुलायेगा क्या?
ऋषभ.......अपने आंशु पोछते हुए,भाई तू नहीं जानता तू ने क्या की है,मै तो अंदर ही अंदर मर रहा था| पर तूने मेरे बेचैन मन को शांत किया है| उस माँ......द को सबक सीखा कर, थैंक्स यार
मैं........कमीने अब ये क्या हैं,तेरे लिए कुछभी पर थैंक्स बोल कर क्या कहना चाहता है|
फिर दोनों यार गले मिले और अपनी खुसिया{ मुझे परिधि को पाने की तो ऋषभ को रेस्टोरेंट वाले का} जताते हुये गराउंड पर मस्ती के साथ एक्सेरसिज कर रहे थे|
आज ग्राउंड पर किरण नहीं आई थी क्यों की कल उसे अपना टेस्ट देना था सो वो रेस्ट कर रही थी पर रूहीग्राउंड जरूर आई थी अपने समय 5.30 सुबह पर |
रूही सीधे मेरे पास आई और हम दोनों ने गूडमॉर्निंग विश किया.ऋषभ को मैंने रूही से इंट्रोडयूस करवाया पर "man s after all man" ऐसी कातिल हसीना से बात करके दिल भाई का भी डोल गया जिसे हम दोनों मैं और रूही दोनों ही समझ चुके थे 
रूही...... {मुझ से}एक व्यग्य भरे शब्दों में, ये तुम्हार हि दोस्त हो सकता है
मैं......हा ये मेरा ही दोस्त है और तुम भी |
बेचारी रूही को अपने व्यंग का जवाब इस तरह से मिलेगा सायद उम्मीद थी फिर वो अपने रस्ते और हम दोनों दोस्त फिर उसी रस्ते धामा चौकडी मचते हुए एक्सेरसिज का लुत्फ़ उठाते हुये |
सुबह 7 बजे मैं घर पहुचा ,घर पर अस उसवल अलिश दी हॉल मे मिली मै अपनी खुसी मे चूर दीदी के पीछे से गले लग गया।
दीदी ......बेटू आज ग्रांड पार्टी बनती हैं, आज मै शॉपिंग करुँगी और तु पार्टी भी दे रहा है। हे भगवान अब ये क्या हैं, मैं आज परिधि को प्रोपोज़ करने वाला हूँ,कहि पेपर मे तो नहीं आ गया,या इसे सपना तो नही आया था।
मै...... क्या दीदी आपको कैसे पता चला,अब तक तो मैंने किसी को नहीं बताया।
दीदी -मुझे आगे करते हुये मेरा माथे को चुमती हुए बोली....."भाई इस न्यूज पेपेर मे तुम ही तुम छाए हुये हो"
क्या? सच मुच मे तो नहीं छप गई, अलीशा की खुसी देखकर तो लगता हैं जरूर छपी होगी।मै हड़बड़ी मे पेपर देखि और जोर से गले लग गया अलीशा के ,आज एक बार फिर मै अपने जिले का टॉपर था और 1th रैंक इन 12th एग्जाम।
पर ये ख़ुशी भी उस खुशी के मुकाबले भुत ही कम थी,यू कहा जा सकता है न के बराबर।
अलीशा....बेटू तू सच सच बता की तू खुस क्यो था मुझे लगा की तुने एक बार फिर टॉप किया हैं इस लिए इतना खुश था पर तुझे देखकर लग रहा है की तुम्हें अभी अभी न्यूज़ पता चली है 12th टॉपर हों।
अब अलिशा से क्या छिपाना, मै अलिशा को सब सच सच बता दिया अब तो हम दोनों भाई बहन की खुशी दोगोनि हो चुकी थी।
वैसे भी मैं अलिशा को सब सच ही बताने वाला था,क्योंकि उसी ने तो मुझे आगे का रास्ते को तय करने में मदद की थी।
अलिशा....."बेटू तेरा प्लान क्या हैं कैसे प्रोपोज़ करने वाला हैं परीधि को"
मैं...... दीदी मै अभी 10.30am पर dhehli की फ्लाइट लूंगा और परिधि का इंतजार,यदि वो मुझसे मिलने आई तो मै उसे परपोज़ कर दूंगा और नही आयगी तो मै इसे एक तरफा मान कर उसका प्यार दिल मे समेटे हुये अपनी राहों में बढ जाऊंगा। पर वो न आये ऐसा कभी नहीं होगा उसे आना ही हैं मेरे पास।
अलिशा .....चुटकी लेते हुये, हाँ हाँ! फोन पर किसी को इन्फॉर्म कर दो, तो वो क्यों न बताये पते पर पहुँचे।
मैं.... नहीं दीदी मैंने कल शाम से ही फोन स्विच ऑफ कर दिया हैं, उसे तो पता भी नहीं मै देहली जा रहा हूँ।
अलिशा .....पर बेटू वो तुझे देहली मे कहाँ ढूंढेगी,प्लीज् ऐसा मत कर मुझे डर लग रहा हैं तू उसे बता क्यों नहीं देता।
मैं...... नहीं दीदी ये मेरे विश्वास और उसके प्यार का इम्तिहान हैं प्लीज़,और हाँ आप परेशान न हो क्योंकि सच्चे प्यार की हार नही होति और जो हार गया वो प्यार सच्चा नहीं होता।
मेरी बातें सुन के दीदी मुझे गले लगाते हुये प्यार से....मेरा कितनी बड़ी बातें बोल रहा हैं,सुन अब हमें भूल मत जाना।
मैं....... क्या दीदी आप भी न ये अलग हैं और वो अलग। आप को क्यों लगता है मैं भूल जाऊंगा आप लोगों को,ऐशा तो इस जीवन मे सम्भव ही नहीं। चलो अब मुझे छोड़ो आपके साथ यु ही बातों मे उलझा रहा तो मैं यही रह जाऊंगा।और हा आप सबको मैनेज कर लेना मै शाम तक वापस आ जाऊंगा।
अलिशा .....हाँ जा मैं तैयार हूँ शूली पर लटकने के लिये,बेटू ध्यान से जाना और हाँ भाई 5pm तक किसी भी हालात मे तू मुझसे कांटेक्ट करेगा नहीं तो बोल देती हूँ मैं तेरे से बहुत नाराज हो जाऊँगी और कभी नहीं बात करुँगी तेरी कसम खाती हूँ।
मैं......एक्टिंग के साथ, "ना अलिशा ना" तेरा भाई तेरी बात जरूर मानेगा।
अलिशा हँसते हुये .."अब जा तैयार हो जा और जित के आना बेस्ट ऑफ़ लक"
मैं जल्दी जल्दी फ़्रेश होकर रेडी हो गया और मै अपने प्यार का दिया प्यारा गिफ्ट पहन कर तैयार हो गया। मै जब तैयार हो के हाल के तरफ पहुचा तो मेरे घर के लोग मेरे स्वागत मे खड़े थे।मै मोम-डैड से आशिर्वाद लिया फिर सबसे बैठकर नास्ते के साथ बाते चलती रही।
मोम-डैड जहाँ मेरे फ्यूचर प्लान के बारे में पूछ रहे थे,वही मरीना और सुनैना ये जानने मे लगे हुये थे की उसका भाई उसे क्या गिफ्ट देने वाला है और इधर मेरे दिल की हालत न काबिले बयाँ थी। मन सोच रहा था की कैसे निकाला जाए यहाँ से,की तभी अलिशा ने मेरी परेसानियो को समझते होये मुझे वहाँ से निकाल,बोली...."बेटू सब बाद मे तुझे नीरज (मौसी का बेटा) से मिलान है आज, तू अभी जा जल्दी"
मै .....जी दीदी बोलते हुए उनको सवालिया निगाहों से देखा की नीरज भईया क्यों कहा यदि किसीने फोन किया रो पकडे जायेगें
दीदी को उम्मीद थी मेरी इस तरह रिएक्ट करना, इसलिये उन्होंने अपनी नजरे डाली मुझपर जैसे कह रही हो की चिंता मतकर,खैर मै तो टेंसन फ्री हो गया पर घर के लोग सब हैरान थे कि....
मै अचानक देहली क्यों जा रहा हूँ,और वो भी नीरज भैया के पास मासी के पास सब ठीक तो है ना।
पापा अलिशा से.....बेटा तुम राहुल को देहली क्यों भेज रही हो और क्या बात है? और नीरज को कोई बात थी तो मुझे क्यों नहीं बताया?
दीदी ......पापा कोई चिंता की बात नहीं है नीरज को चौहान अंकल से मिलना था अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में इसी लिए राहुल को बुलाया है।
पापा ने मुझे फिर कुछ पैसे दिये, फ्लाइट से ही जाने और शाम को जल्दी लौटने को बोले, अंततः मै अपने चिड़ियाघर से आजाद था और वे टू दिल्ली।
जैसे-जैसे मैं दिल्ली की और बढ़ रहा था मेरे अरमानों को पंख मिल गए हो, मेरे अरमान तो जैसे आसमान से भी ऊपर उड़ने लगे थे।
आज उफ़्फ़ परिधि से मिलने के ख्याल से ही मेरे शरीर में सीहरन पैदा हो रही थी।
मैं दिल्ली एयरपोर्ट रवाना हुआ अपने उस खास कॉफी शॉप की ओर जहां हम अपने कुछ हसीन लमहे बिताए थे। खयाल रहना था कि परिधि कब मिलेगी बस उससे मिललु मेरे लिए ये खयाल ही काफी था। उसका कयामत तक इंतजार करने के लिए।
11:30 बजे तक मैं कॉफी शॉप पर पहुंच गया, लेकिन पहुंचा तो मैं बिल्कुल ही स्तब्ध रह गया, वहां केवल एक ही टेबल लगी हुई थी और जैसे ही मैं एंट्री की शॉप में तो मैं हैरान हो गया।
दो बार आंखें भी मिजी, खुद को चिमटी भी काटी पर मुझे ऐसा लग रहा था कि सामने लहंगे में मेरी आत्मा परिधि खड़ी हैं, पर न तो उसमें कोई हलचल थी और ना ही कोई भाव।
मैं हैरान खड़ा उसे देखता रहा बहुत ही मनमोहक दृश्य था, जैसे कि प्यासे को कोई झील दिखाई दी हो, जैसी तड़पती धूप से जल रही धरा पर बारिस की बूंद गिरी हो,एक निर्मल अहसास जिसका वर्णन किसी भी सब्दो में कर पाना बिल्कुल उसे छोटा साबित करने के बराबर हो।
मैं एक टक परिधि को देखता रहा और कदम बढ़ तो रहा था उसी ओर किंतु ऐसा महसूस हो रहा था मानों मै चाह कर भी कदम बढा ना पा रहा हूँ।
मुझे आज परिधि कुछ ज्यादा ही प्यारी लग रही थी, पर परिधि का यहां होना अपने आप में कल्पना थी, कल्पना ही सही मैं धीरे कदमों से पहुंचा बस लालसा से की शायद मेरी जान हो।
मैं जैसे ही उसके नजदीक पहुंच गया और जैसे ही उसे छूने की कोशिश की........
थप्पड़..... एक थप्पड़ मेरे गाल पर और मै अपनी कल्पना से बहार होते हुऐ.. आऊच!!
यह सच में मेरी जान थी जिसमें अभी अभी मुझे एक चांटा रसिद किया था, मैंने कहा,..
"आऊच!! क्या तुम कराटे प्रैक्टिस करती हो पूरा जबड़ा सुजा दिया "
परिधि ने कोई जवाब नहीं दिया बस मुझ से लिपट कर मेरी बाहों में रोने लगी। मैं उससे प्यार से उसके सर पर हाथ फेरता रहा।उसके लटों को बार बार ऊपर करते रह।अब वो चुप थी और हम दोनों शांत।
हम दोनों शांत से दूसरे की बाहों में लिपटेरहें, बस एक दूसरे को महसूस करते हुए अपने जिंदा होने का अहसास करते हुए, एक अलग ही खूमारी हमारे बिच थी। यह प्यार की ख़ुमारी थी जिसे हम एक दूसरे को महसूस के जा रहे थे।
हम दोनों इस कदर खो चुके थे की बाकि सब मिथ्या और सत्य केवल एक हमारा प्यार।कितनी देर इस एहसास के साथ लिपटे रहे पता ही नहीं पर हमारी एकाग्रता को भंग करते हुए हमारे पीछे से आवाज आई.....
"ये तुम दोनों पब्लिक प्लेस मे रोमांस करना बंद करो,कुछ तो शर्म करो बेशर्मो हमे इन्विते करके अपने मे ही लगे हुये हो।हम दोनों अपनी खुमारी सेबाहर आये मूड कर देखा तो ये शिम्मी (परिधि की दोस्त)थी।परिधि अपनी नजर नीची किये चुपचाप अपनी टेबल पर बैठ गई।तबतक..
नीलू परिधि से.....हाय!! मेरी जान..आखिर तूने इसे उड़ा ही लिया,अब तो ये तेरा है पर कभी कभी मुझसे भी शेयर कर लेना।
परिधि जो अबतक शांत थी......चुप कर ऐसा हमारे बिच कुछ भी नहीं हम शिर्फ अच्छे दोस्त हैं।
अंजलि .......तो ठीक है मेरी रानी तू इस bf मटेरियल को दोस्त बना मै इसे अभी परपोज़ करती हूँ।
परिधि के चेहरे के भाव तो जली बूझी एक्सप्रेशन दे रहे थी पर कुछ बोली न बेचारी अपनी सहेलियों को।जबतक मै शांत खड़ा उन त्रिमुरतयो को सुन रहा था।
"देवियों आप अगर कुछ देर अपनी स्वभाव के विपरीत शांत होने की चेष्टा करेँगी तो हृदय मे उठ रहें कुछ भावनाओ को मै परिधि के समक्ष प्रस्तुत करने की चेष्टा मात्र करूँ"
"तीनो एक साथ"...
"अपने पथ पर अग्रसर हो बच्चा बस ये सोच कर की हम याहा नहीं हैं"
परिधि मेरी बातों संजीदा और सरमाई हुई सी नजरे नीचि कर टेबल पर बैठी थी।
अब सिचुएशन ऐसी थी की परिधि अपने नजरें नीचे के हुए कुर्सी पर बैठी हुई है त्रिमूर्तियां हमसे 5 फिट दूर काउंटर से टिक कर नजरें हमारी ओर ही गड़ाये थी और मै परिधि के कदमों के पास आकर अपने घुटनों के बल बैठ कर अपना दायां हाथ टेबल के उपर करते हुये,धड़कते दिल और बढ़ी धड़कनों के साथ.....….......
बस उसी पोजीशन में बिना कुछ कहे बस यूं ही बैठा रहा, शांति घोर शांति छाई थी, कोई बोल निकल नहीं पा रहे थे मेरे जुबान से आधा घंटा यूं ही बैठे रहा और बैठे-बैठे निहार राह परिधि को कि अचानक परिधि ने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों में थाम लिया। मुस्कुराते हुए होठों से आवाज आई ...... प्लीज बैठ भी जाओ
मैं परिधि के पास वाली चेयर पर बैठ गया और दोनों हाथों को थामे अब भी परिधि के दोनों हाथों में थी
परिधि..... क्या तुम मेरे अतीत के बारे में कुछ जानते हो? बड़ी मासूमियत के साथ ये सवाल किया, जैसे जानना चाह रही हो कि क्या तुम मुझसे तब भी उतना प्यार करोगे? जब तुम मेरी कहानी जान जाओगे।
मैं...... और जान कर क्या करूंगा?
परिधि..... यू इतना ना प्यार करो कि तुमसे बिछड़ने के नाम से ही जान चली जाए इसलिए पहले ही अतीत के बारे में मैं बता दूं यदि तुम्हारा इरादा बदला तो कम से कम इस ख्याल से तो जी सकूँगी की कभी किसीने मुझसे भी.....
मैं..... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे साथ क्या हुआ, प्यार एक विश्वास है और यदि तुम्हें मुझ पर इतना विश्वास नहीं कि तुम्हारी पिछली कोई बात जानने के बाद tumhe भूल सकता हूं तो अब मैं तुम पर छोड़ता हूं।
और अगले ही पल परिधि अपने घुटनों के बल अपने हाथ को मेरे हाथों से थमे और आंखों में आंसू लिए......" तुम मुझे ऐसा ही प्यार करते रहना, तुम्हारा पता नहीं मैं तुम से कितना प्यार करती हूं, जब तुम नहीं होते तो भी लगता है मेरे पास हो। तुम्हारे सिवा मैं कोई भी खुशी की कामना नहीं की, क्या तुम्हें मुझसे".... बस इतना ही बोली कि मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया, अपनी बाहों में कैद करके।
" मैं तुम्हें तुम्हारे जितना चाहता हूं कि नहीं पता नहीं पर तुम बिन मैं जी नहीं पाऊंगा झूट नहीं यूँ तो मैं जिंदा रहूंगा होंटो हाँसी भी रहेगी पर जिंदा रहना भी मेरी एक मजबूरी होगी"
हम एक दूसरे की भावनाओं में बहते चले गए, हमारे प्यार के आंसू हमारे आंखों से छलक चुके थे और दिल को एक असीम सुकून की प्राप्ति हो रही थी।
हमारी शांति को भंग करते हुए सर & मैडम हेलो mr/miss लैला & मजनूं यहां कुछ और लोग भी है जिन्हें आप इग्नोर कर रहे हो। हम एक दूसरे से अलग होते हुए मैं जी मोहतरमा कुछ आदेश करें या दो दिलों के बीच दीवाना बने।
नीलू...... ऐसा है कि राहुल जी अभी आपने परिधि का दिल जीता है, पर जब तक हम आपके प्यार का प्रपोएसल से सेटिस्फय नहीं होंगे तब तक आप के प्यार पर फाइनल मोहर नहीं लगेगी।
मैं....... तो आप देवियों आदेश करें कि मुझे क्या करना होगा?
अंजलि....... कुछ नहीं बस एक बार ऐसा प्रपोज़ करे कि हमारी बन्नो को, कि हमारा दिल खुस हो जाय। यह एहसास हो चले कि आप पर परफेक्ट हैं परिधि के लिए.....
पता नहीं इस परिधि की बच्ची को क्या सूझा हैं की इन तीनों को राहु केतु और शनि की तरह मेरी कुंडली में बिठा देती है अब इन तीनों को कैसे सेटिस्फय करूँ.....
इधर परिधि मेरी हालत जान का मंध मंध मुस्कुरा रहे थी, और आंखों से ऐसे रिएक्ट कर रही थी जैसे बोल रही हो कि..... मुझे माफ कर दो और इधर मैं.....
ये कहाँ फसा दिया जान तुमने...……......
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