Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
01-06-2019, 11:08 PM,
#11
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
घर की चौखट पार कर दोनो माँ-बेटे मल्टी की सीढ़ियां उतर रहे थे, एक-दूसरे के बिलकुल समानांतर और जल्दी ही वे निचले तल पर पहुँच गए। अभिमन्यु को सहसा अहसास हुआ जैसे उसकी माँ थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी, अपने हर बढ़ते कदम पर कभी वह अपनी टांगों को चिपकाकर छोटे-छोटे कदमों से चलने लगती तो कभी एकदम से टांगों को चौड़ाकर लंबे-लंबे पग धरना शुरू कर देती। पार्किंग तक वह बड़े गौर से अपनी माँ की चाल मे आए अंतर का अवलोकन करता रहा मगर जब उसे लगा कि सचमुच उसकी माँ को चलने मे तकलीफ हो रही है, वह तत्काल कारण बताओ नोटिस जारी कर देता है।

"क्या हुआ मॉम, चलने मे दिक्कत हो रही है?" उसने वैशाली के सैंडि़ल की हील को देखते हुए पूछा, भले हील की ऊंचाई मीडियम थी पर हाल-फिलहाल तो उसकी लंगड़ाहट की वजह उसे यही समझ आती है।

"इतना गौर तो मैं भी तुमपर नही कर पाती जितना आजकल तुम अपनी माँ पर करने लगे हो। डिटेक्टिव मत बनो, चुपचाप बाइक चलाओ। समझे!" वैशाली मुस्कुराते हुए कहती है।

"इतना शक तो तुम अपने पति पर भी नही करती जितना आजकल अपने बेटे पर करने लगी हो। पुलिसवाली मत बनो चुपचाप बाइक पर बैठो। समझीं!" अभिमन्यु ने भी फौरन नहले पर देहला दे मारा और मल्टी के बाहर हमेशा सभ्यता से रहने वाले माँ-बेटे खुलेआम जोरों से हँसना शुरू कर देते हैं।

दोनो माँ-बेटे बाइक पर सवार हो चुके थे और जल्द ही बाइक हवा से बातें करने लगी।

"मन्यु कन्ट्रोल योरसेल्फ! मैं माँ हूँ तुम्हारी, कोई गर्लफ्रेंड नही जो मुझे इम्प्रेस करने के लिए बाइक इतनी तेज चलाओगे" बाइक की तेज गति से घबराकर वैशाली ने बेटे को टोकते हुए कहा।

"मुझे कसकर पकड़ लो मॉम, मेरी तमन्ना थी कि कभी किसी लड़की को अपने पीछे बिठाकर वाकई उसे इम्प्रेस कर सकूं। डोन्ट वरी, खुद से ज्यादा मुझे तुम्हारी फिक्र है" कहकर अभिमन्यु एकाएक एक्सलरेटर बढ़ा देता है ताकि उससे दूरी बनाकर बैठी उसकी माँ खुद ब खुद उससे चिपककर बैठ जाए और हुआ भी ठीक यही, वैशाली ने फौरन अपना बायां हाथ आगे लाकर बेटे के पेट पर रख दिया और दाएं को उसकी गरदन से नीचे लाते हुए वह बलपूर्वक उसकी बाईं पसली पकड़ लेती है। जब-जब अभिमन्यु उसे एक लड़की की संज्ञा देता था जाने क्यों हरबार उसका दिल खुशी से नाच उठता था, माना अपने पति मणिक के स्कूटर के पीछे वह अनगिनत बार बैठी थी मगर जिस बुरी तरह अभी उसने अपने बेटे को जकड़ा हुआ था, अपनी उस जकड़ पर वह खुद को बेहद रोमांचित होना महसूस कर रही थी।

'कारण' या तो विधि के विधान से बनते हैं या अपनी स्वयं की करनी से। मणिक का इस अधेड़ उम्र मे अचानक से पैसे कमाने मे जुट जाना विधि का विधान था क्योंकि अपने और अपने परिवार के सुखमय भविष्य के लिए उसे घर के मुखिया होने का अपना फर्ज हर हाल मे पूरा करना था यकीनन जिस कर्तव्य के लिए ही उसका जन्म हुआ था। एक पति और पिता की भूमिका मौखिक निभाने के अलावा उसे अपने आश्रितों का हर संभव पालन-पोषण भी करना था। वैशाली जो कि अचानक अपने पति से बिछड़ गई थी, भले ही इस बिछड़न को पति-पत्नी द्वारा जानबूझकर नही रचा गया था मगर मणिक के साथ ताउम्र जीवन का निर्वाह करते हुए उसे हर विवाहित नारी की तरह अपने पति के साथ की एक चिरपरिचित आदत हो चुकी थी। पति का साथ सिर्फ उसके साथ हँस-बोल लेने या ऊपरी प्यार दर्शा लेने आदि भर से पूरा नही होता, एक पत्नी को बिस्तर पर अपने पति रूपी मर्द के नीचे चरमरा उठने की चाह भी हमेशा रहती है और जिस चाह से वैशाली एकदम से वंचित रहने लगी थी। अब यदि ऐसे मे उसकी चाह बिस्तर पर किसी पराए मर्द का साथ चाहने लगे और वह पराया मर्द भी कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा अभिमन्यु तो इसे विधि का विधान कदापि नही कहा जाएगा, यह पति से तिरस्कृत अपने यौवन के हाथों मजबूर उस नारी की अपनी स्वयं की करनी थी।

"अगर मैं गिरी तो याद रखना बहुत मारूंगी तुम्हें" बाइक की गति तेज होने की वजह से वैशाली बेटे के दाएं कान मे चिल्लाते हुए बोली, सट तो वह उससे पहले से ही चुकी थी और अब उसका बायां चिकना गाल सीधे अभिमन्यु के दाएं कान से रगड़ खाने लगा था।

"मैं कुछ कहना चाहता हूँ मॉम पर चौंकना मत वर्ना जरूर बाइक गिर जाएगी" वह भी जोर से चिल्लाया।

"क्या कहना चाहते हो?" उत्सुकता वश वैशाली ने तुरन्त पूछा और वैसे भी जब बेटे ने उसे पहले ही चौंक ना पड़ने की चेतावनी दे दी थी तब वह अवश्य कोई ऐसी शैतानी भरी बात कहने वाला था जो यकीनन उसकी माँ को हैरत से भर देती।

"मेरी दूसरी तमन्ना भी पूरी हो गई मम्मी, मुझसे सटकर बैठने वाली लड़की के बूब्स मेरी पीठ पर गड़ रहे हैं। काश कि अभी उसने ब्रा नही पहनी होती मगर फिर भी मैं बता नही सकता मुझे कितना मजा आ रहा है ...हु! हूऽऽ!" अभिमन्यु बेशर्मों की भांति हँसते हुए बोला और अकस्मात् बाइक को और भी तेजी से भगाने लगता है।

"हुंह! तुम्हारी बेशर्मी का बस चले तो अपनी माँ को नंगी ही बाइक पर बिठा लो" वैशाली ने चिढ़ने का दिखावा करते हुए कहा, साथ ही वह महसूस करती है कि अश्लीलता से प्रचूर उनके कथनों के प्रभाव से उसके निप्पल अचानक तीव्रता से तनने लगे थे और जिन पर उसके बेटे की मजबूत पीठ का दबाव उसे बड़ा सुखमय सा प्रतीत हो रहा था।

"अच्छा है मम्मी कि तुमने कपड़े पहन रखे हैं वर्ना राह चलते मर्दों को कहीं की भड़स कहीं पर निकालनी पड़ती। खीं! खीं! खीं! खीं!" वह खिखियाते हुए बोला।

"वैसे एक बताओ, क्या कभी पापा के स्कूटर पर तुम्हें इतने मजे आए हैं?" उसने पूछा तो वैशाली एकाएक गहरी सोच मे डूब गई।

घर हो या बाहर, मणिक का अनुशासन हमेशा से कड़क रहा था। वह ना तो खुद कभी फूहड़पने की बात या हरकतें करता और ना किसी अन्य का फूहड़पन कभी उसे बरदाश्त होता, अपनी मर्यादा और गरिमा दोनो को सदा एक-सा बनाए रखने वाले मणिक को उसके सभी मित्रगण और रिश्तेदार सदैव बड़ी गम्भीरता से लिया लिया करते थे। जबतब अपने बीवी-बच्चों से उसका हँसी मजाक होता भी तब भी उसके अलावा अन्य तीनों मे से किसी को हँसी नही आया करती थी, वह तो इज्जत की मजबूरी होती तो जबरन हँस दिया करते थे। पत्नी संग एकांतवास मे भी उसकी गंभीरता यूं ही बरकरार रहती मगर इसका यह अर्थ कदापि नही कि उसकी मर्दानगी मे कभी कोई कमी रही हो, बल्कि अपने बच्चों के जवान हो जाने के बावजूद वह रोजाना नियम से अपनी पत्नी की जमकर चुदाई किया करता था। 'पेट भर कौरा और कलाई भर लौड़ा' इस अत्यंत मजेदार पू्र्ण स्वदेशी कहावत का सही अर्थ वैशाली जैसी समझदार और घरेलू स्त्रियां ही जान सकती हैं, जिन्हें अपने पति द्वारा उनके विवाहित जीवन मे पेट भर खाना और संतुष्ट संभोग इन दोनो मूलभूत आवश्यकताओं की कभी कोई कमी नही रहती।

"मुझे तो कोई मजा नही आ रहा, तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है" अपनी सोच से बाहर निकल वैशाली थोड़ा क्रोधित स्वर मे बोली, एकाएक पति के स्मरण ने उसे खुद पर ही क्रोध दिला दिया था। एक उसका पति था जो अपने परिवार के साथ का त्याग कर उन सब के खुशहाल भविष्य को संजोने मे जी जान से जुटा हुआ था और एक वह थी जो अपने ही सगे बेटे संग व्यभिचार करने को उतावली हुई जा रही थी।
Reply
01-06-2019, 11:09 PM,
#12
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"झूठ! जानवर हो या इंसान, आजादी सभी को चाहिए। मैं जानता हूँ कि पापा के नाम से हम भाई-बहन के अलावा तुम्हारी भी उतनी ही फटती है मॉम, तुम्हें भी उनका अकड़ू नेचर पसंद नही लेकिन फिर भी तुम हमेशा से उसे पसंद करती आ रही हो, उसे झेलती आ रही हो क्योंकि वह तुम्हारे पति हैं" कहकर अभिमन्यु बाइक की रफ्तार को हौले-हौले कम करने लगता है। उसका कहा हर शब्द सीधे उसके दिल से निकला था, उसके उसी दिल से जिसके एक छोटे--से कोने मे नही बल्कि अब उसकी माँ उसके पूरे दिल मे ही रच-बस गई थी।

"तुम्हें अपनी जुबान पर लगाम लगाने की जरूरत है मन्यु वर्ना हम यहीं से घर लौट सकते है" यह आवाज वैशाली के दो-तरफा बंटे हुए मन से बाहर आई थी। अपने बेटे के कथन से वह पूर्णतः सहमत थी, उसे वाकई मणिक का भय जीवनपर्यंत सताता रहा था मगर अपने बहुमूल्य राज़ के अकस्मात् उजागर हो जाने से वह सहसा दुखी हो गई थी। अभिमन्यु पर उसकी कोई भी नाराजगी नही होने का प्रमाण यह था कि वह अबतक उससे उसी तरह से सटकर बैठी हुई थी जब माँ-बेटे के बीच अश्लील वार्तालाप और उससे पनपा हँसी-मजाक शुरू हुआ था, यहां तक कि अपने दोनो हाथ भी उसने जरा भी पीछे नही खींचे थे।

"अजीब लड़की हो तुम, अपनी पहली डेट पर साथ आए लड़के को यूं बेवजह धमकाते हुए तुम्हें शर्म नही आती। पता भी है मेरा कितना खर्चा हो गया? सत्ताइस सौ के अंडरगारमेंट्स, चालीस का गुलाब, आने-जाने का डेढ़ लीटर पेट्रोल और दोबारा घर से निकलने के बाद भी लगभग आधा लीटर पेट्रोल जल चुका है। हाँ यार! लड़कियां नही हुईं आफत हो गईं" बाइक को दाएं मोड़ते हुए ऐसा कहकर वह फौरन अपनी माँ के अत्यंत कोमल होठों को चूम लेता है। उसने बिलकुल सही समय का चुनाव किया था, बाइक मोड़ते वक्त उसका चेहरा भी स्वभाविक रूप से दाहिनी और घूमा था और इससे पहले की उससे सटकर बैठी उसकी मायूस माँ को पहले से ही उसकी इस शरारत का पता चल पाता अभिमन्यु उसके रसभरे होठों का प्रथम चुम्बन लेने मे सफल हो गया था।

"ये ये क्या? उफ्फ! मैं क्या करूं इस बेशर्म लड़के का, बातें भी गंदी करता है और हरकतें तो बातों से भी कहीं ज्यादा गंदी हैं" वैशाली लज्जा से दोहरी होते हुए बोली, खुलेआम चलती सड़क पर बेटे का उसके होंठों को चूम लेना मानो पलभर मे उसकी सारी मायूसी तत्काल हवा हो जाती है। हालांकि उनका चुम्बन क्षणिक था, अहसास भी ना हो सकने जैसा मगर फिर भी दोनो माँ-बेटे खुशी से फूले नही समा रहै थे।

"नौटंकी मत करो लड़की, तुम्हें भी अच्छे से पता है कि पहली डेट पर कपल और क्या-क्या गंदे काम करते हैं" मुस्कान के साथ कड़क आवाज बनाकर ऐसा कहते हुए वह पुनः अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाने लगता है ताकि दोबारा अपनी माँ को चौंकने पर मजबूर कर सके। भले उसे अब और चुम्बन नही लेने थे क्योंकि जो आंतरिक आनंद उसे अपने पहले चुम्बन मे महसूस हुआ था उतना शायद वह उनके आगामी अनगिनती चुम्बनों मे भी महसूस नही कर सकता था, एक विशेष बात और थी कि जब उसने वैशाली के होठों को चूमा था तब उसका ध्यान अपने बेटे की हरकत की ओर जरा भी नही था और वह अकस्मात् किसी दूसरी दुनिया मे पहुँच गई थी, लज्जा और बेतुकी घबराहट से उसका मुंह खुला का खुला रह गया था, वह बुरी तरह कांप उठी थी। यही उनके पहले चुम्बन की विशेषता थी जिसे सरल शब्दों मे अबोध, आश्चर्य से भरा हुआ एक निष्कपट, निष्छल कृत्य कहा जाए तो उसका सही भाव समझने मे आसानी होगी।

"लो! लो! करो ...किस करो, अब रुक क्यों गए मन्यु?" जब वैशाली को समझ आ गया कि उसके बेटे ने दूसरी बार सिर्फ उसे हैरान-परेशान करने के लिए ही अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाया है, वह स्वयं अपना चेहरा उसके दाएं कंधे के पार निकालते हुए बोली, पहले-पहल तो वह वास्तव मे पुनः चौंक गई थी और तीव्रता से अपना चेहरा पीछे खींच लिया था मगर सत्य जानने के उपरान्त वह खुद ही अपने होठों को सिकोड़कर उसे चिढ़ाने लगती है। सत्य तो यह भी था कि वह चाहती थी कि उसका बेटा उसके उकसावे पर दोबारा उसके होठों को चूमे मगर अभिमन्यु ने ऐसा कुछ भी ना कर उसे लगातार तीसरी बार चौंका दिया था।


"तुम्हें तो कोई शर्म है नही मम्मी मगर मुझे है, जमाना क्या सोचेगा? छि!" कहकर वह हँसने लगा और वैशाली फौरन उसकी पीठ पर मुक्के जड़ने लगती है।

"वैसे जब घर पहुँच जाएंगे तब मैं पक्का बेशर्म बन जाऊँगा माँ, तब देखूँगा तुममे कितना दम है मुझे रोकने का" अभिमन्यु पहले से भी कहीं तेज हँसते हुए बोला और उसके कथन के अर्थ को सोचते ही वैशाली के खुले मुंह से एकाएक लंबी सीत्कार बाहर निकल जाती है।

"तुम्हें रोक तो मैं चाहकर भी नही सकूंगी मन्यु, क्या पता मैं ही खुद को ना रोक पाऊं" वह अपनी चूत के अंदरूनी स्पंदन को स्पष्ट महसूस करते हुए सोचती है, उसकी गांड का छेद भी स्वतः ही कुलबुलाने लगा था।

अगले कुछ क्षणों तक दोनो चुप रहे और तबतक मॉल भी नजदीक आ गया मगर हर-बार की तरह इस बार वैशाली के उतरने के लिए अभिमन्यु ने बाइक को मॉल के बाहर जरा भी नही रोका बल्कि अपने साथ वह उसे भी सीधे मॉल की भूमिगत पार्किंग के भीतर ले जाता है।

"तुम जानते हो ना कि तुम्हारे पापा मुझे और अनुभा को कभी पार्किंग के अंदर नही ले गए, फिर तुम मुझे क्यों वहाँ साथ ले जा रहे हो मन्यु?" वैशाली ने तत्काल पूछा, पार्किंग नीचे चार मालों तक थी और अभी वे दूसरे तल पर पहुँचे थे। उसका दिल धुकनी की तरह जोर-जोर से धड़कने लगता है जब उसका बेटा उसके प्रश्न का जवाब देने की बजाय बाइक को तीसरे तल पर ले जाने के लिए मोड़ने लगता है।

"मन्यु उतारो मुझे ...यहीं उतार दो, मुझे नही जाना और नीचे" किसी अनिष्ठ की कल्पना से घिरी वह माँ एकाएक इतनी अधिक घबरा जाती है कि चंद लम्हों मे उसकी कजरारी आँखों मे आँसू उमड़ने लगते हैं, सिसकियां लेनी शुरू कर चुकी वह माँ यह तक भूल जाती है कि अभी वह संसार के सबसे सुरक्षित हाथ अपने सगे बेटे के साथ है।

"उतरो माँ, यहां से लिफ्ट मे साथ चलेंगे। मैंने बाइक ऊपर इसलिए नही रोकी क्योंकि मुझे तुम्हारा नेचर पता है, कोई गार्ड-वार्ड भी तुमसे अगर पुछताछ करने लगता तो तुम बेवजह घबरा जातीं" जब बाइक रोक देने के बावजूद वैशाली उसपर से नीचे नही उतरी तब अभिमन्यु ने उसे शांत स्वर मे वजह समझाते हुए कहा, बेटे की बात सुन हथप्रभ वह फौरन बाइक से उतर जाती है।
Reply
01-06-2019, 11:09 PM,
#13
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"मन्युऽऽ" वह बाइक साइड स्टेंड पर खड़ी कर पाता इससे पहले ही रोती हुई वैशाली उसकी पीठ से चिपक गई।

"माँ, तुम अचानक रोने क्यों लगीं?" अभिमन्यु ने बाइक को विपरीत दिशा मे गिरने से बचाते हुए पूछा और फिर ठीक तरह से उसे पुनः स्टेंड पर लगाकर वह अपनी माँ की ओर घूम जाता है।

"मुझे लगा ... मुझे लगा" वैशाली ने उसे अपनी मूर्खता की सत्यता से परचित करवाने लिए अपना मुंह खोला भी मगर ज्यादा कुछ वह नही कह पाती, बस उसकी बलिष्ठ छाती मे अपना चेहरा छुपाकर सिसकती रहती है।

"ओह! तो तुम्हें लगा कि मैं पार्किंग मे तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती करूँगा, जबरदस्ती वह भी अपनी माँ के साथ। तुम्हारे साथ हँसी-मजाक करने लगा हूँ, तुम्हें अपना दोस्त बना लिया, अम्म! कितनी बार ... हाँ याद आया, दो बार तुम्हें बिच कहकर भी बुलाया पर सैक्स तुम्हारे साथ नही करना चाहता, मैं पहले ही बता चुका हूँ। बाकी यह भी अभी से जान लो कि सैक्स के अलावा तुम्हारे साथ मैं अपनी हर वह फैंटसी पूरी करूंगा जो मेरे दिल मे है, अब जरूर तुम इसे मेरी जबरदस्ती मान सकती हो मगर फिर भी मुझे रोक नही पाओगी मॉम" अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, वह नही चाहता था कि अपनी माँ की बेवकूफी पर क्रोधित होकर वह उसे और भी ज्यादा रुला दे, उसे बेवजह शर्मिंदा होने पर मजबूर कर दे।

"कैसी फैंटसी?" हुआ वही जैसा उसने सोचा था, उसके कथन को सुन सिसकते हुए ही वैशाली ने तत्काल अपना चेहरा उसकी छाती से ऊपर उठाते हुए पूछा।

"पहले अपने यह आँसू पोंछो बिच, फिर बताऊंगा" हँसते हुए ऐसा कहकर वह स्वयं अपनी कमीज की दाईं बांह से अपनी माँ के आँसुओं को पोंछने लगता है, उसने खास यह भी ध्यान दिया कि उसकी माँ का बचा हुआ काजल किसी भी तरह उसकी कहर ढ़ाने वाली आँखों की खूबसूरती पर यूं ही सजा रहे ताकि उनकी अकल्पनीय सुंदरता को खुद अभिमन्यु की नजर भी ना लग सके।

"शहर भर की लड़कियां मरी जा रही हैं मेरे साथ डेट पर जाने को और एक मैं हूँ जो ना जाने किस रोतलू के चक्कर मे पड़ गया। चलें रोतलू या अभी और रोना है?" ऐसा पूछकर वह अपनी माँ के कंधे पर से सरक चुके उसके पल्लू को पुनः उसके कंघे पर व्यवस्थित कर देता है।

वैशाली बेटे के मजाकिया और प्रेम भरे कथनों से फौरन सिसकना छोड़ गर्व के उस सबसे ऊँचे शिखर पर पहुँच जाती है जहां संसार की हर माँ उसे अभिमन्यु समान बेटे के लिए ही तप करती हुई नजर आती है मगर उन अनगिनती माँओं मे से तप सिर्फ उसी का पूरा हुआ जिसके फलस्वरूप उसका लाड़ला प्रत्यक्ष उसकी आँखों के समक्ष खड़ा मुस्कुरा रहा था।

"मन्यु मुझे माफ ...." वैशाली ने कहना शुरू किया था पर उसका बेटा उसे बीच मे ही टोक देता है।

"अपनी माँ से माफी मंगवाने का अधिकार मैंने किसी को नही दिया, खुद मुझे भी नही लेकिन मुझे मेरे सवालों के मुझे सही-सही जवाब चाहिए। बोलो क्या कहती हो, डन?" अपने कथन से उसने एकबार फिर से वैशाली का दिल जीत लिया, वह तत्काल अपना सिर हाँ के सूचक मे ऊपर-नीचे कर देती है।

"लंगड़ाकर क्यों चल रही थीं?" उसने अपना पहला प्रश्न पूछा और जैसे सहसा उसकी माँ को सांप सूंघ जाता है, तभी पार्किंग के किसी कर्मचारी की उन्हें आवाज सुनाई पड़ती है जो चौथे माले पर बाइकों को एक--सा लगवाने का प्रयास कर रहा था।

"समय नही है जल्दी बोलो, चलने मे तुम्हें क्यों तकलीफ हो रही थी?" उसने दोबारा वही प्रश्न किया, अपनी माँ के चेहरे पर छाई सुर्खता से उसे लग रहा था कि उसकी लंगड़ाहट का कोई तो विशेष कारण अवश्य था।

"वो मन्यु वो ... जो पेंटी तुमने पहनाई थी, उसे पहनने के बाद ..." इतना कहकर वैशाली तीव्रता से अपने बाएं हाथ का पंजा अपने बोलते हुए मुंह पर रख लेती है, इसी प्रयास मे कि यदि वह अपनी बोलती जुबान को काबू मे नही कर पाई तो उसे रोकने के लिए कम से कम अपने बाएं पंजे का सहयोग वह ले सके।

"पेंटी नही कच्छी मॉम, मैंने तुम्हें कच्छी पहनाई थी। खैर चलो आगे बोलो" अभिमन्यु को जैसे जरा--सा भी सब्र नही हो रहा था, एक दुष्ट सी मुस्कान बिखेरते हुए वह बेहद अश्लीलता पूर्वक बोलता है। वहीं बेटे का कथन और उसमे शामिल घोर नंगपर से वैशाली भी समझ जाती है कि अब अभिमन्यु उससे किसी भी प्रकार की शर्म नही करेगा, फिर चाहे वह अपनी माँ से वार्तालाप करे या उसके साथ कोई कुकृत्य।

"हाँ वही! जो कच्छी तुमने अपनी माँ को खुद अपने हाथों से पहनाई थी, उसने तुम्हारी माँ को तुम्हारी तरह ही बहुत परेशान कर रखा है" वह बेटे से भी अधिक नंगपन दिखाते हुए बेझिझक कहती है, उसने साफ देखा अभिमन्यु उसके अश्लील शब्दों पर खुशी से मानो झूम सा उठा था।

"उस नाचीज कच्छी की इतनी हिम्मत की मेरी माँ को परेशान करे, आई डोन्ट लाइक दिस टाइप अॉफ हिमाकत, जुर्ररत एण्ड अॉल। यू कन्टिन्यू मॉम, आई एम लिसनिंग" वह खिलखिलाकर ताली ठोकते हुए कहता है।

"अब और क्या कहूँ? बस परेशान कर रखा है" वह खुद भी हँसते हुए बोलती है।

"मगर क्यों कर रखा है परेशान, आखिर मै भी तो जानूं कि वहज क्या है?" अपने जिद्दी स्वभाव की तरह अभिमन्यु एकबार पुनः अपनी माँ के पीछे पड़ जाता है और फिर वैशाली तो माँ थी, उसका स्वभाव क्या, उसकी रग-रग से वाकिफ।

"अब अगर तुम सुनना ही चाहते हो तो सुनो। जो कच्छियां तुम अपनी माँ के लिए खरीदकर लाए हो वैसा पैटर्न उसने पहले कभी नही पहना और आज जब पहना तो ठीक से चल भी नही पा रही। जानना चाहते हो क्यों?" वैशाली के प्रश्न के जवाब मे अभिमन्यु ने फौरन अपनी गर्दन ऊपर-नीचे कर दी।

"क्योंकि ... क्योंकि कच्छी बार-बार तुम्हारी माँ की गांऽऽड मे घुस जाती है, अब चलें या मेरे मुंह से दो-चार और गंदी बातें सुनने का मन है" वैशाली ने झूठा क्रोध दिखाते हुए कहा, बल्कि इसके ठीक विपरीत वह महसूस करना अब शुरू कर चुकी थी कि उसकी चूतरस से गीली होकर उसकी कच्छी उसके चूतमुख से बुरी तरह चिपक गई है।

"वाउ! मैं अपने शब्द इसी वक्त वापस लेता हूँ। कच्छी जी, यह तुम्हारी हिम्मत का ही रिजल्ट है तो तुम्हें बार-बार हैवन मे घूमने जाने का मौका मिलता है" अभिमन्यु के ऐसा कहते ही वैशाली उसके दाएं कंधे पर लगातार घूंसे चलाने लगती है।

"बेशर्म, बद्तमीज, घटिया इंसान। तुमने तो जैसे सबकुछ बेच खाया, उफ्फ! मैं क्या करूं इस ढी़ठ लड़के का, मेरा ही हाथ टूट जाएगा" वह अपनी मुट्ठी पर फूंकते हुए बोली, तभी अभिमन्यु ने उसके चोटिल हाथ को पकड़ा और सीधे उसे लिफ्ट की ओर ले जाने लगता है।

"जब तुम्हें पता है कि मैं वाकई ढ़ीठ हूँ फिर क्यों बेफालतू के हाथ-पैर चलाती हो। सच मे लगी क्या?" उसने वैशाली समेत लिफ्ट के भीतर प्रवेश करते हुए पूछा, माँ-बेटे के अलावा भी चार-पाँच लोग उनके साथ ही लिफ्ट मे घुसे थे।
Reply
01-06-2019, 11:09 PM,
#14
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"हम्म!" अपरिचितों की उपस्थिति मे वैशाली सिर्फ इतना सा जवाब देकर चुप हो जाती है, अभिमन्यु उसकी चुप्पी का कारण समझ गया और बिना किसी परवाह के वह उन अपरिचितों के सामने ही अपनी माँ की चोटिल मुट्ठी को चूमने लगता है। उसने पाया कि उसकी माँ एकाएक असहज हो गई थी और अपने हाथ को बेटे के होंठों से दूर खींचने का प्रयत्न करने लगी थी मगर उसने अपनी माँ का हाथ नही छोड़ा, बल्कि उसकी आँखों मे झांकते हुए उसे यह विश्वास दिलाता रहा कि उसके होते हुए वैशाली को किसी से भी डरने की कोई जरूरत नही है, उसके जीवित रहते कोई उसकी माँ का बाल भी बांका नही कर सकता है।

"इतनी घबराती क्यों हो? अपने बेटे पर भरोसा नही है क्या?" लिफ्ट से बाहर निकलकर अभिमन्यु ने उससे मौखिक रूप से पूछा।

"औरत हूँ, डर लगता ही है" वैशाली ने जवाब मे कहा।

"अपने इसी बेतुके डर से तुमने अपनी पूरी लाइफ घुटन और परेशानी मे बिता दी, अपने बेटे के प्यार पर भी शायद तुम्हें कोई भरोसा नही" अभिमन्यु गहरी सांसें लेते हुए शांत स्वर मे बोला।

"तुम और तुम्हारे प्यार पर भरोसा नही होता तो तुम्हारी माँ होकर भी कभी तुम्हें बेशर्मों की तरह अपने शरीर का वह अंग नही दिखाती जिसे देखने का अधिकार केवल मेरे पति को है" वैशाली भी पूरी गंभीरता से बोली।

"पर एक बात तो है मॉम। जब भी तुम अपने मुंह से कच्छी, गांड, लंड और चूत जैसे देशी शब्द बोलती हो, कसम से कहर ढ़ा देती हो" अपनी माँ का मायूस चेहरा देख अभिमन्यु ने उसे लजाने के उद्देश्य से कहा, सचमुच उसकी माँ का शर्म से बेहाल चेहरा उसके दिल मे किसी नुकीली कटार--सा धंसता चला जाता था।

"कच्छी और गांड तक तो ठीक है मगर इसके आगे सिर्फ तुम्हारी गंदी कल्पना का विशाल समंदर है" वैशाली मुस्कुराते हुए बोली, धीरे-धीरे उसे भी समझ आने लगा था कि अभिमन्यु पलभर को भी उसका दुखी चेहरा नही देख पाता है फिर भले ही वह अपनी अश्लील या मजाकिया बातों से ही उसे हँसाने का प्रयास क्यों ना करे पर उसे हँसाकर ही मानता था।

इसी बीच वे चलते-चलते पिज्जा हट की होस्टिंग डेस्क तक पहुंचे, कांच से अंदर देखा तो एक सिंगल टेबल भी खाली नही थी। वैशाली यह देखकर हैरान हो गई कि वहाँ उसके उम्र की कोई भी अन्य औरत किसी जवान लड़के के साथ नही आई थी, औरतें थी भीं तो उनका परिवार उनके साथ वहां मौजूद था।

"डाइन इन इज फुल, इफ देयर इज ऐनी कैन्सलेशन आई लेट यू नो। मैम! सर! विल यू प्लीज वेट देयर" कहते हुए होस्टिंग कर रही धमाल लड़की ने अपनी दाईं ओर बनी एक गोल सीमेंटेड पट्टी की ओर इशारा किया जहाँ पहले से ही वेटिंग वाले लगभग आधा दर्जन कपल बैठे हुए थे।

"सर अगर चाहें तो टेक-अवे हो जाएगा" लड़की वैशाली की नजरों को ताड़ते हुए बोली जो वेटिंग कपलों की अधिकता को देख मायूस सी हो रही थी।

"ना! ना! वील वेट, थैंक्स अम्म! या थैंक्स मिस गौरी" अभिमन्यु ने लड़की के नेमबैच पर लिखे उसके नाम को पढ़ते हुए कहा और फिर अपनी माँ को उस दूसरी गोल सीमेंटेड पट्टी पर ले जाने लगता है जहाँ कोई भी मौजूद नही था। उसने पुनः गौर किया उसकी माँ लंगड़ाकर चल रही है और उसकी उस लंगड़ाहट पर वैशाली का जरा-सा भी ध्यान नही था, उसके शांत मुखमंडल पर कोई ऐसे लक्षण नही पनप रहे थे जो उसकी चाल से संबंधित उसके जबरन पाखंड को दर्शा पाते।


"तुम फिर लंगड़ाकर चल रही हो?" देर हुई नही कि उसकी शैतानी शुरू हो गई।

"अब इतनी भीड़ मे टांगें चौड़ाकर तो चल नही सकती तभी लंगड़ा रही हूँ" वैशाली सीमेंटेड पट्टी पर बैठते हुए बोली।

"ज्यादा दिक्कत हो तो टेक-अवे करवा लूं?" अभिमन्यु ने मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए पूछा।

"अगर ऐसा कर सको तो मेरी बहुत हैल्प हो जाएगी बैटा, मुझसे अब सहा नही जा रहा और भीड़-भड़क्के मे बार-बार अपने पीछे हाथ लगा नही सकती" वैशाली उसके बाएं हाथ को सहलाते हुए कहती है, उसकी आवाज से साफ पता चल रहा था कि वह अवश्य किसी तकलीफ मे है।

"मगर बाइक पर तो कोई दिक्कत नही हुई थी" अभिमन्यु ने अपनी माँ के दाएं कंधे पर अपना सिर टिकाते हुए कहा।

"उसपर बैठी हुई थी इसलिए, चलने मे दिक्कत आती है मन्यु" वैशाली एक हाथ से उसका सिर सहलाते हुए बताती है।

"मगर बाइक तो चल रही थी ना फिर क्यों दिक्कत नही आई?" पूछकर वह हँसने लगता है और उसकी हँसी से वैशाली झेंप जाती है, फौरन उसने बेटे के सिर पर हल्की सी चपत लगा दी।

"चलो ठीक है मगर हमारी डेट" रंग बदलने मे माहिर वह उदास होते हुए बोला।

"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है। हम घर पर अपनी डेट सेलिब्रेट करेंगे, टीवी देखते हुए" वैशाली ने उसका मन रखने के लिए आधिकारिक तौर पर उसकी डेट प्रपोजल को स्वीकारते हुए कहा।

"ओके! मुझे मंजूर है मगर मेरी एक शर्त है" अभिमन्यु सहसा चहककर बोला।

"बको क्या शर्त है तुम्हारी, वैसे मुझे पता था कि तुम जात के मुताबिक पक्के बनिया हो" वैशाली मुस्कान के साथ पूछती है, अब वह अपने बेटे हर संभव समझ चुकी थी।

"घर जाकर तुम्हारी कच्छी मैं खुद अपने हाथों से उतारूंगा" अभिमन्यु जैसे कोई विस्फोट करते हुए कहता है, उसकी माँ उसकी शर्त को सुन अकस्मात् हक्की-बक्की सी उसके चेहरे को घूरने लगती है।

"नही मन्यु, जो आज हो गया वह दोबारा अब कभी नही होगा, तुम उस बीते वक्त को तुरन्त भूल जाओ" उसने घबराते हुए कहा, बेटे की सर्वदा अनुचित शर्त ने उसकी माँ को हैरानी से भर दिया था।

"तुमने भी उस वक्त को एन्जॉइ किया था मॉम, हम फिर से उसे इन्जॉइ करेंगे। प्लीज मम्मी" यह अभिमन्यु का लगातार दूसरा विस्फोट था, वैशाली पसीने से तरबतर होने लगी थी।

"मैंने तुमसे ऐसा नही कहा मन्यु, यह बस तुम्हारे शैतानी दिमाग की उपज है" वह जरा क्रोधित लहजे मे बोली और उसका क्रोध करना जरूरी भी था, यह तो सीधे उसपर झूठा इल्जाम लगाने जैसा था और जिसे वह चाहकर भी कभी स्वीकार नही करती।

"अडल्ट हूँ मॉम, सबकुछ जानता हूँ। तुमने वाकई इन्जॉय किया था और इसीलिए उस वक्त तुम्हारी चूत से झरना बह रहा था" आखिरकार अभिमन्यु तीसरा विस्फोट भी कर ही देता है और उसके कथन को सुन अब वैशाली पूरी तरह से निरुत्तर हो जाती है। अपने बेटे के बुद्धि बल का वह माँ आज लोहा मानने पर मजबूर है, जो बेटा अपनी सगी माँ को एक स्त्री के रूप मे जीत सकता है वह संसार की किसी भी अन्य स्त्री को यकीनन ही फांस सकता है।

"ओके! तो फिर मैं टेक-अवे करवा लेता हूँ" वह प्रसन्न होकर सीमेंटेड पट्टी से उठते हुए बोला, उसकी माँ की चुप्पी ने उसे पुनः जीत का स्वाद चखा दिया था।

"बैठो अभी, हमारी बात पूरी नही हुई" वैशाली बलपूर्वक उसे दोबारा पट्टी पर बिठते हुए बोली।

"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है" वह तत्काल अपनी माँ के ही कहे कथन की पुनरावृत्ति करता है और इसबार वैशाली पूर्वरूप से टूट जाती है।

"थैंक्स मॉम, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हें कभी कोई दुख नही दूंगा" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वह तेजी से होस्टिंग डेस्क पर पहुँचा और अपना अॉर्डर पंच करवाने लगता है। उसकी नजर गौरी के गौरवर्ण से हट नही पा रही थी मगर कहीं उसकी माँ उसकी हरकतों से भड़क ना पड़े वह चुपचाप अपना टेक-अवे लेकर चलता बनता है।

पार्किंग से बाइक निकालकर वह उसे पुनः हवा से बातें करवाने लगा, वैशाली पहले की तरह ही उससे चिपककर अवश्य बैठी मगर एकदम शांत थी और लौटते वक्त ना जाने क्यों अभिमन्यु भी उसे बिलकुल नही छेड़ता, बस जल्द से जल्द घर पहुँचने के इंतजार मे बाइक दौडा़ता रहता है।
Reply
01-06-2019, 11:09 PM,
#15
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
मल्टी पार्किंग मे बाइक पार्क कर अभिमन्यु और वैशाली मल्टी की सीढ़ियां चढ़ने लगते हैं, एकदम शांतिपूर्ण वातावरण मे उनके पैरों की चाप के अलावा कोई अन्य ध्वनि उस वक्त मल्टी के भीतर उत्पन्न नही हो रही थी। उनकी मल्टी का असल नाम शराफत पैराडाइस होना चाहिए था क्योंकि लगभग पूरी मल्टी ही नौकरी पेशा और व्यापारियों से भरी पड़ी थी जो कि खुद से मतलब रखने वाले लोग थे, अपनी स्वयं की उलझनों मे उलझे रहने वाले लोग। अब इससे बड़ी बात और क्या होगी कि उस मल्टी को बने डेढ़ साल बीत गया था मगर व्यवस्थापक या इंचार्ज का पद अबतक रिक्त था।

"तुम्हारी लंगड़ाहट से मुझे बहुत तकलीफ हो रही है मम्मी, फ्लैट मे पहुँचकर मैं सबसे पहले तुम्हारी कच्छी ....." अभिमन्यु ने मल्टी के शांत वातावरण मे एक और ध्वनि को जोड़ते हुए कहा, उसकी ऊंची आवाज और कथन मे शामिल अश्लीलता से घबराकर तत्काल वैशाली उसके बोलते मुंह पर अपना बायां पंजा दबा देती है और जिसमे सफल उसका बेटा बोलते-बोलते अचानक गूंगा सा हो जाता है।

"शश्श्ऽऽ मन्यु! कोई सुन लेगा तो मैं बेफालतू बदनाम हो जाऊंगी। फ्लैट के अंदर तुम्हें अपनी माँ के साथ जो भी करना हो कर लेना मगर प्लीज बेटा" वैशाली कांपती हुई--सी हौले से बुदबुदाई, सामाजिक भय की प्रचूरता से प्रभावित चंद लम्हों मे उसका अधिकांश चेहरा पसीने-पसीने हो गया था।

"तुम फिर डर गईं मॉम?" अपनी माँ के बाएं पंजे को आसानीपूर्वक अपने मुंह से दूर करते हुए अभिमन्यु ने जानकर भी अंजान बनते हुए पूछा, उसकी ऊंची आवाज मे कोई विशेष अंतर नही आया था बल्कि उसके स्वर पहले से भी कठोर हो गए थे।

"डरूं नही तो क्या करूं मन्यु, किसी को हमारे बारे मे अगर भनक भी लग गई तो मेरे पास मरने के अलावा कोई दूसरा चारा नही बचेगा" वह पुनः बुदबुदाई और उनके उस बेतुके से वार्तालाप की शीघ्र समाप्ति के उद्देश्य से अपने बेटे की दाईं कलाई को थामकर बलपूर्वक उसे भी अपने चलायमान कदमों के साथ अपने पीछे खींचने का प्रयत्न करने लगती है। एक अधेड़ उम्र की कामुक स्त्री मे इतना बल कहाँ कि वह अपने से लगभग आधी उम्र के एक बलिष्ठ नौजवान पर अपनी शारीरिक क्षमता का दम-खम आजमा सके, बात यदि उसके बुद्धिबल की होती तो जरा सी साड़ी ऊंची उठाई नही कि संसार का हर मर्द स्वतः ही उसके पीछे किसी पालतू कुकुर सामान फौरन अपनी दुम हिलाता हुआ चला आता। एक! दो! तीन! चार! ऐसे ही उसके दर्जनों झटके विफल रहे, बेटे को अपने पीछे खींचना तो दूर वह उसे उसके स्थान से हिला तक नही पाती है।

"उससे पहले मैं मर जाऊंगा या उस भैन के लौड़े को मार दूंगा जो मेरी माँ की तरफ सही-गलत, अपनी उंगली भी उठाने की कोशिश करेगा। तुम्हारा डर खत्म होना जरूरी है मॉम, बहुत जरूरी है" कहकर अभिमन्यु ने उल्टे अपनी माँ को ही अपनी ओर खींच लिया और तीव्रता से उसके दूसरे हाथ मे पकड़ा हुआ टेक-अवे का पॉलीबैग छीनकर उसे नीचे फर्श पर छोड़ देता है।

"क ...कैसे?" वैशाली इसके आगे कुछ और नही कह पाती जब अगले ही क्षण उसका बेटा उसके चिर-परिचत डर की मार से थरथराते अत्यंत कोमल होंठों पर अपने होंठ रखकर उनका कंपन अपने आप ही बंद कर देता है, साथ ही उसने माँ के बोलते मुंह को भी एकाएक सिल दिया था।

"ऐसे माँ ऐसे, तुम्हें यूं खुलेआम किस करके" उसने पलभर को उसके होठों को आजाद करते हुए कहा और पुनः अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए। बारम्बार वह उन्हें चूमता, भय स्वरूप उसकी भिंच चुकी मगर हिलती आँखों मे झांकता और फिर से उसके होंठों को चूमने लगता। अभिमन्यु ने जाना कि उसके लघु चुम्बनों के प्रभाव से भी उसकी माँ की सांसे निरंतर तेजी से गहरी पर गहरी होती जा रही हैं, उसकी छाती से सटे उसके मम्मों के भीतर धुकनी समान धड़कता उसकी माँ का दिल उसे स्वयं उसीके धड़कते दिल सा प्रतीत हो रहा था जो स्पष्ट प्रमाण था कि उसकी माँ ही नही घबराहटवश वह खुद भी पकड़े जाने की रोमांचक संभावना से ग्रसित था।

अपने इन्ही लघु चुम्बनों के दौरान मौका पाकर सहसा अभिमन्यु अपने सूखे होंठों पर अचानक अपनी जीभ फेरने लगता है और ज्यों ही उसके गीले होठों का परिवर्तित स्पर्श वैशाली ने अपने शुष्क होंठों पर महसूस किया उसने चौंकते हुए झटके से अपनी मुंदी आँखें खेल दीं, देखा तो उसका लाड़ला उसीके चेहरे को बड़ी बारीकी से निहारता हुआ मंद-मंद मुस्का रहा था।

"सिर्फ चूमने भर को किस नही कहते गंदे लड़के, होंठों को चूसा भी जाता है" जाने क्या सोचकर वैशाली अपना यह उकसावे भरा कथन कह गई और कहने के बाद पुनः सोचे-विचारे बगैर स्वयं ही अपने बेटे के होंठों से उलझ पड़ती है। यह कुछ और नही केवल अपने जवान बेटे की ह्रष्ट-पुष्ट भुजाओं के बल के मद मे चूर चुदाई की प्यासी एक शादीशुदा किंतु पति से तिरस्कृत माँ की अखंड बेशर्मी थी जो वह भी अपने संस्कार, जीवनपर्यंत अर्जित की हुई अपनी मर्यादित छवि को सरेआम तार-तार करने पर तत्काल आमदा हो गई थी।

मल्टी के जिस सार्वजनिक स्थान पर खड़े होकर दोनो माँ-बेटे वासना का नंगा खेल खेलने मे व्यस्त थे, वह जगह उनके पडो़सी मिस्टर नानवानी के फ्लैट के मुख्यद्वार के बिलकुल करीब थी, इतनी करीब कि यदि उसके परिवार का कोई भी अमुक सदस्य एकाएक फ्लैट का मुख्य दरवाजा खोल देता तो निश्चित ही वह उन माँ-बेटे के पापी चुंबन का राजदार हो जाता। एकबार को अभिमन्यु को दोष दिया जा सकता था कि वह जवान है, अपनी बेकाबू कामुक भावनाओं पर नियंत्रण नही रख सकता मगर वैशाली तो उसकी सगी माँ थी और इसके बावजूद खुद भी अपने बेटे के साथ बहक गई, यकीनन यह विश्वास करने योग्य बात नही थी। इस सब से बेखबर अपने बेटे के चेहरे को अपने दोनो हाथों से थामकर अपने पंजों के बल खड़ी उसकी वह अधेड़ कमसिन माँ उसके होंठों का तीव्रता से रसपान किए जा रही थी, कभी ऊपरी तो कभी वह उसका निचला होंठ चूसने लगती तो कभी दोनो होंठ एकसाथ अपने नाजुक होंठों के बीच फंसाकर बलपूर्वक उन्हें चूसने भिड़ जाती।

"वाउ मॉम! यू आर ...उफ्फ! यू आर फकिंग अॉसम। छत पर चलते हैं, बाकी मजा वहीं करेंगे" अचानक अपने होंठ अपनी माँ के होंठों से पीछे खींच अभिमन्यु साड़ी के ऊपर से उसकी मांसल गांड के दोनो पट अपने दोनो हाथों के पंजों मे जकड़ते हुए सिसका और फिर बिना रुके वैशाली की सुर्ख मतवाली आँखों मे झांकते हुए ही लगातार उसकी गांड को अत्यंत कठोरता से दबाने लगा, अपनी पूरी ताकत झोंककर वह उपनी माँ की गुदाज गांड के दोनो पटों को अधीरता से मसलना शुरू कर देता है।

"ओहऽऽ मन्यु! आहऽऽ ...आहऽऽ दर्द ....दर्द होता है बेटा" अपनी गांड पर अपने बेटे के जवान मर्दाने हाथों के मर्दन से वैशाली सीत्कारते हुए कहती है, वह एकदम से अभिमन्यु के ऊपर झूल--सी गई थी।

"ना कर मन्यु ...उन्ह! उन्ह! लगती है माँ को" उसने पिछले कथन मे जोड़ा जब उसका बेटा उसकी पीड़ा भरी आहों को सुनने के उपरान्त भी उसकी गांड को दबोचना नही छोड़ता।

"फिर से नौटंकी मम्मी! तुम्हें तो मेरी हर बात पर चिढ़ होती है, जबकि तुम जिसे दर्द का झूठा नाम दे रही हो मैं अच्छे से जानता हूँ वह क्या है" क्रोधित स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु ने फौरन उसकी गांड पर से अपने दोनो हाथ हटा लिए और फर्श पर पड़े टेक-अवे का पॉलीबैग उठाकर तत्काल पैर पटकते हुए बाकी की बची सीढ़ियां चढ़ने लगता है। उसके पास हमेशा उनके फ्लैट के मुख्यद्वार की चाबी मौजूद हुआ करती थी और जबतक अपनी सोच से बाहर निकलकर वैशाली भी उसके पीछे चलना शुरू कर पाती, दरवाजा खोलकर उसका बेटा फ्लैट को भीतर प्रवेश कर चुका था।

"मन्युऽऽ" फ्लैट के अंदर पसरे अंधेरे और सन्नाटे के बीच वैशाली अपने बेटे को पुकारते हुए हॉल की लाइट अॉन करती है, वह रूठने के अंदाज मे हॉल के सोफे पर अपनी नाक सिकोड़े बैठा हुआ था।

"अले! अले! मेरी डेट तो लगता है नाराज हो गई" वह सोफे के करीब आकर लाड़ भरे स्वर मे बोली।

"जस्ट लीव मी अलोन मॉम! यू नो, तुम्हीं मुझे पूरे दिन से उकसा रही हो और जब भी मैं अपने मन की करने को होता हूँ, फटाक से मुझे टोक देती हो" कहकर अभिमन्यु अपना चेहरा वैशाली की विपरीत दिशा मे मोड़ लेता है।

"ठीक कहा तुमने, शुरूआत हरबार मैंने ही की थी मगर अब खाने से तुम्हारी क्या दुश्मनी है? चलो उठो, मुझे भी जोरों की भूख लगी है" कहकर वैशाली उसे उसके दाएं कंधे से ऊपर उठाने का विफल प्रयास करने लगी।

"अच्छा ...अम्म! हाँ पहले तुम माँ की कच्छी उतार दो इसके बाद ही हम अपनी डेट सेलीब्रेट करेंगे" उसने पिछले कथन मे जोड़ा जब वह थक-हारकर भी अभिमन्यु को सोफे पर से उठा नही पाती।

"देखा फिर करी ना तुमने मेरी गांड मे उंगली, दोबारा खड़े लंड पर धोखा मत करो और मुझे अकेला छोड़ दो। प्लीज!" वह खिसियाते हुए कहता है जैसे उसकी वाणी मे शामिल अश्लीलता की उसे कोई परवाह ही ना हो। ठीक भी तो था, एक जवान लड़का बार-बार कबतक अपनी घटती-बढ़ती उत्तेजना को सहता रहेगा जबकि उसकी उत्तेजना का कारण कोई और नही उसकी अपनी सगी माँ ही थी।

"मैं जानती हूँ कि तुम इस वक्त क्या और कैसा फील कर रहे हो और मानो या मानो तुम्हारी माँ का भी कुछ यही हाल है। तुम्हारे पापा के अलावा इतनी फ्री मैं आजतक किसी के साथ नही हुई, अनुभा के साथ भी नही मगर जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मुझे तुम्हारे, अपने बेटे के साथ की जैसे बरसों से तलाश थी और ज्यों-ज्यों मेरी तलाश पूरी होने के करीब आती जा रही है, मैं हमारे रिश्ते तक को भूलते जाने पर मजबूर होने लगी हूँ। तुम्हारी माँ होकर भी मैं सोच-समझ नही पा रही कि क्या सही है और क्या गलत, बस पानी की धार सी बहती चली जा रही हूँ" गंभीरतापूर्वक ऐसा कहकर वह बेटे के दाएं कंधे को थपथपाने लगती है। इसी को तो हम आम भाषा मे सुख-दुख बांटना कहते हैं, अपने राज़ को स्वयं बेटे के संग सांझा कर मानो वैशाली के दिल से एक बहुत बड़ा बोझ हल्का हो गया था, कुछ विशेष नही तो कम से कम वह अपने भीतर सहसा एक अजीब--सी खुशी के प्रज्वलित होने का अहसास तो अवश्य करने लगी थी।

"तुम्हें इस बात का अफसोस है कि तुम अपने बेटे के साथ इतना फ्री क्यों हुईं?" अभिमन्यु हौले से बुदबुदाते हुए पूछता है। अपनी निजता को उसके संग बांटकर उसकी माँ ने एकाएक उसे बेहद अचंभित कर दिया था, जिसके नतीजन वैशाली के प्रति उसका प्रेम और विश्वास अब पहले से कहीं अधिक प्रगाढ़ होने लगा था।

"नही बिलकुल नही। अब मेरा यह जवाब मेरी ममता का है, मर्यादा का है, मेरे संस्कारों का है या फिर बंधनों की जंजीर मे जकड़ी आजादी की चाह रखने वाली एक आम--सी औरत का है, मैं यह नही जानती। जानती हूँ तो बस कि मुझे यह आजादी अच्छी लग रही है और मैं खुद को दोबारा से जिंदा महसूस कर पा रही हूँ" कहकर वैशाली सोफे से दूर जाने लगती है, यकीनन उसने अपना ह्रदय स्वयं अपनी छाती को चीरकर अपने बेटे के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। अभिमन्यु अपना चेहरा घुमाकर अपनी माँ के चलायमान कदमों को गौर से देखने लगा, वह उसी क्षण अपनी माँ के हर आगे बढ़ते कदम को चूमने की चाह से तड़प उठा। उसकी माँ पुनः दुखी हो गई और जिसका इकलौता कारण वह खुद को मान बैठा था, एकपल को भी उसे अपने पिता का ख्याल नही आया जिसने अपनी पत्नी को कभी अपनी पत्नी--सा नही समझा, समझा तो सिर्फ अपना एक आजीवन गुलाम, नौकर या सेवक और नियम के मुताबिक संसार की हर पत्नी की भांति उसकी माँ ने भी जैसे अपने पति का ताउम्र दासत्व अपना एकमात्र भाग्य मानकर सहर्ष ही स्वीकृत कर लिया था।

"मॉम! भूख लग रही है, तुम्हारे बेडरूम मे खाएंगे" वह सोफे से उठते हुए बोला और टेक-अवे पॉलीबैग डाइनिंग टेबल से उठाकर किचन मे घुस जाता है। उसने पिज्जा माक्रोवेब मे दोबारा गर्म किया, गार्लिक ब्रेड भी और फ्रिज से कोल्ड्रिंक की बॉटल, दो तरह के सॉसेज्स आदि निकालकर अपने परिजनों के शयनकक्ष के भीतर पहुँच गया। बेडरूम के बिस्तर के बीचों-बीच प्लास्टिक की एक चौकोर शीट बिछाकर वह डिनर उसपर करीने से सजाने लगता है, बिस्तर के नजदीक चुपचाप खड़ी हतप्रभ वैशाली उनके फ्लैट की खरीदी के उपरान्त आज पहली बार डिनर को अपने बेडरूम मे लगता देख रही थी और वह भी सीधे उसके बिस्तर पर, सही मायने मे जिसपर यदि किसी का सच्चा अधिकार था तो वह था सिर्फ उसका और उसके पति मणिक का।


"अपनी साड़ी और पेटीकोट उतार लो मम्मी फिर हम अपना डेट-डिनर शुरू करेंगे" वह बिना अपनी माँ की ओर देखे कहता है, निश्चित ही यह माँ-बेटे के बीच पनपे उसी समय अंतराल का भीषण परिणाम था जो अभिमन्यु को अपनी इस अनैतिक सोच को विचारने का भरपूर वक्त मिल गया था।

"साड़ी, पेटी ...पेटीकोट?" वैशाली एकाएक चौंकते हुए पूछती है। यह क्या कम था जो वह उसीके बेडरूम मे, उसीके बिस्तर पर अपने सगे जवान बेटे के साथ डिनर करने को मन ही मन अपनी स्वीकृति प्रदान कर चुकी थी। अपने बेटे के महा-नीच कथन और उसमे शामिल उसकी पापी मांग ने उसकी माँ को महज चौंकाया ही नही था वरन तत्काल वह आंतरिक लज्जा से दोहरी भी हो गई थी।

"जल्दी करो मम्मी, भूख के मारे मेरी जान निकली जा रही है" वह अॉरिगेनो, वाइट पैपर और चिल्ली फ्लेक्स के पाऊच्स संभालते हुए बोला।

"मगर साड़ी और पेटीकोट ...कैसे मन्यु? मैं तुम्हारी बात को शायद ठीक से समझ नही पा रही" वैशाली अपना निचला कंपकपाता होंठ अपने मोती समतुल्य दांतो के मध्य दबाते हुए पूछती है, अपने अत्यंत नाजुक होंठ को अपने तीक्ष्ण दांतों से जैसे वह आज स्वयं ही चबाकर खा जाने पर विवश थी।
Reply
01-06-2019, 11:11 PM,
#16
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"अम्म! हाँ क्या पूछ रही हो? ओह! मुझे भी तो कपड़े उतारने थे, कंफर्ट जोन मे खाने का मजा ही कुछ और होता है। है ना मॉम?" पत्थर मे तब्दील हुई अपनी माँ से ऐसा विस्फोटक प्रश्न पूछ उसके जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ही अभिमन्यु फौरन बिस्तर से नीचे उतर आया और रिकॉर्ड समय मे अपनी शर्ट और फिर जीन्स उतारकर वह कई वर्षों बाद अपनी माँ के समक्ष सिर्फ अपनी अंडरवियर पहने खड़ा हो जाता है। उसकी अंडरवियर जॉकी कम्पनी की थी, फुल फ्रेंची स्टाइल और जिसके भीतर कैद उसका अधखडा़ लंड जॉकी के ऊपर एक बहुत ही उत्तेजक बड़े--से तम्बू का निर्माण कर रहा था। हालांकि उसके अपने कपड़ों को उतारने के दौरान वैशाली ने उसे रोकने की हर संभव कोशिश की थी मगर उसके शब्द थे जो उसके गूंगे गले से बाहर ही नही निकल पाए थे मानो उसकी जुबान को एकदम से लकवा मार गया था।

"चलो अब उतारो भी, डिनर दोबारा ठंडा करना है क्या?" वह अपनी कमर के आजू-बाजू अपने दोनो हाथ रखकर किसी युवा मॉडल की भांति पोज देते हुए पूछता है। उसकी फूली नंगी छाती, बलिष्ट भुजाएं और मांस से भरी जाघों पर चहुं ओर बालों की अधिकता देख वैशाली यकीन ही नही कर पाती कि उसका बेटा आज के पश्चिमी परिवेश मे विचरण करने वाला कोई आम--सा नौजवान है, जबकि इस आधुनिक युग मे लड़कियां हों या लड़के सभी सफाचट रहना ज्यादा पसंद करते हैं। उसकी बेटी अनुभा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण थी जिसकी पॉकेटमनी का एक बड़ा हिस्सा उसके हेयर ट्रीटमेंट पर ही खर्च हुआ करता था।

"मैं तुमपर कोई प्रेशर नही डाल रहा हूँ माँ पर अगर तुम ऐसा करोगी तो मुझे बहुत खुशी होगी और साथ मे तुम्हें भी" वह ज्यों की त्यों बुत बनी खड़ी अपनी माँ की आँखों मे झांकते हुए कहता है, उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान तब व्याप्त होने लगती है जब एकाएक वैशाली का दायां हाथ उसके पेट और बाएं की उंगलियां उसके ब्लाउज के ऊपर रेंगनी शुरू हो जाती हैं।

"वैसे तो तुम वाकई एक घटिया इंसान हो मन्यु पर कहीं अपना प्रॉमिज मत भूल जाना, तुमने खुद कहा है कि तुम मेरे ...यानी कि अपनी माँ के साथ सैक्स नही करना चाहते" कहते हुए शर्म से लाल पड़ी वैशाली अपने पेटीकोट मे खुरसी साड़ी को अपनी दाईं मुट्ठी मे कसकर भींच लेती है, संग-संग उसने बाएं हाथ से अपना पल्लू भी फौरन ब्लाउज से नीचे गिरा दिया।

"बिलकुल याद है मम्मी, मैं सचमुच अपनी माँ की चुदाई नही करना चाहता। एकबार फिर से कहता हूँ, मैं तुम्हें नही चोदूंगा मॉम मेरा तुमसे वादा है" अभिमन्यु उनके मर्यादित रिश्ते की पूर्णरूप से धज्जियां उड़ाते हुए बोला, उसका अश्लील संवाद इतना अधिक विध्वंशक था कि अपनी माँ के साथ वह स्वयं भी अपने ही शब्दों से थरथरा उठा था।

"मन्यूऽऽ" वैशाली चीखते हुए बोली मगर बावजूद इसके कि वह क्रोध से तिलमिला रही है, वह अपनी साड़ी पेटीकोट के बाहर खींचने से खुद को रोक नही पाती। बेटे के ज्वलंत कथन ने सहसा उसकी माँ के सम्पूर्ण बदन को बुरी तरह से झुलसा दिया था, जिसके नतीजतन वह अपने शरीर पर बारीक--सी एक साड़ी तक बरदाश्त नही कर सकी थी और तो और साड़ी के उसके पैरों के पास नीचे फर्श पर गिरते ही वह तीव्रता से अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली को अपने पेटीकोट के नाड़े मे उलझा लेती है।

"वाउ! माय नॉटी एण्ड सैक्सी बिच इस अॉन फायर ...आहां! यू बैटर कैरी अॉन मॉम, आइ रियली लव टू वॉच योर फकिंग अमेजिंग स्ट्रिप-टीज" अभिमन्यु ताली ठोकते हुए कहता है जैसे स्टेज पर खड़ी किसी रंडी के जल्द से जल्द नंगी हो जाने के प्रयास मे पब्लिक जोशो-खरोश से उसका उत्साहवर्धन करने लगती है ठीक उसी प्रकार वैशाली का बेटा भी अपनी माँ का आत्मविश्वास बढ़ा रहा था। वह तत्काल बिस्तर पर पैर लटकाकर बैठ जाता है ताकि उसकी माँ को अपना पेटीकोट उतारते देखने का अद्भुत व अद्वितीय कामुक दृश्य वह बड़े गौर से और बेहद नजदीक से देख सके।

"लाइक सन लाइक मदर, लाइक मदर लाइक सन। क्या कहते हो मन्यु, खींच दूं पेटीकोट की डोरी?" कामलुलोप वैशाली सीधे अभिमन्यु की जॉकी के भीतर पूरी तरह से तनकर कठोर हो चुके उसके लंड के बड़े से तम्बू को घूरते हुए पूछती है, अपने सगे बेटे के लंड की विशालता को वह सरलतापूर्वक उसकी जॉकी के ऊपर उभरा हुआ देख पा रही थी और जिसपर होती निरंतर हलचल से उसे उसके लंड की बारम्बार ठुमकियों का भी स्पष्ट अहसास होने लगा था। अतिशीघ्र वह माँ अपने अंतर्मन की उस आवाज को बेहद फूहड़ता से हँसकर दबा देती है जो उसे निकट भविष्य मे होने वाले दुष्परिणामों से बचने का हरसंभव संकेत दे रहा था, महज इस बहकावे मे कि उसके बेटे ने उसके संग चुदाई नही करने का उसे भीष्म वचन दिया था।

"बेशर्म मम्मी! अपने जवान बेटे से ऐसा नंगा सवाल पूछते हुए क्या तुम्हें जरा सी भी लज्जा नही आ रही?" अपने पेटीकोट के नाड़े मे अपनी दाईं उंगली फंसाए खडी़ अपनी माँ को चिढ़ाने के उद्देश्य से अभिमन्यु बोला।

"तुम कम से कम पलटकर तो खड़ी हो सकती हो माँ वर्ना मैं जरूर शर्म से मर जाऊंगा" उसने नीचतापूर्ण पिछले कथन मे जोड़ा और फिर खुद ही अपने दोनो हाथ अपनी माँ की ओर बढ़ाते हुए वह उसकी पतली कमर को मजबूती से थामकर, उसे आसानीपूर्वक अर्धाकार घुमा देता है। अपनी माँ की नंगी त्वचा की अत्यधिक गरमाहट ने अभिमन्यु को विस्मय से भर दिया था, लगा जैसे वह अत्यंत तेज बुखार से तप रही हो। खुद उसका भी तो यही हाल था, जॉकी के भीतर कैद उसका फड़फड़ाता लंड बिना उसके हाथ लगाए ही झड़ पड़ने की कगार पर पहुँच चुका था। वहीं वैशाली बेटे के मजबूत हाथों के स्पर्श से एकाएक सकपका--सी गई थी, उसका बचाखुचा धैर्य बेटे के अनैतिक, निकृष्ट कथनों ने तोड़ दिया था और इससे पहले कि वह पूरी तरह से टूट जाती या अभिमन्यु के वचन को मिथ्या साबित करने का स्वयं प्रण कर लेती, वह झटके से अपने पेटीकोट का नाड़ा खींच देती है।

"इश्श्श्ऽऽ!" एकसाथ दोनो माँ-बेटे सीत्कार उठे, किसकी सीत्कार मे ज्यादा वजन था यह पहचान पाना असंभव सा था। पेटीकोट के वैशाली की चिकनी त्वचा से नीचे फिसलते ही अभिमन्यु का कलेजा मुंह को आ गया, वह फौरन अपनी जॉकी के ऊपर से अपने कठोर लंड को बलपूर्वक उमेठ देता है ताकि तीव्रता से शून्य मे परिवर्तित होता जा रहा उसका मस्तिष्क उसके नाजुक कामांग पर किए उसके खुद के निष्ठुर प्रहार से यथासंभव जीवंत बना रह सके।

ब्लाउस से नीचे लगभग पूरी नंगी हो चुकी अपनी माँ की पीठ से अपनी फट पडी़ आँखों को नीचे लाते हुए अभिमन्यु सीधे उसकी गुदाज गांड को घूरने लगता है, उसकी माँ ने एकदम सच कहा था कि उसके द्वारा लाई गई फैशनेबल कच्छी बार-बार उसकी गांड की गहरी दरार के बीच घुस जाती है। वैशाली की गांड का दायां पट बिलकुल नंगा था और बाएं पट को भी कच्छी बेमुश्किल आधा ही ढ़ांक सकने मे सक्षम नजर आ रही थी। उसने स्पष्ट यह भी देखा कि कुछ वक्त पीछे उसके अपनी माँ की गांड को दबोचने और शक्तिपूर्वक उसे मसलने के परिणामस्वरूप गांड के दोनो गौरवर्णी पट सुर्ख लाल हो गये थे और जिनकी सुर्खियत पर एकाएक मोहित होकर अभिमन्यु बिना कोई अतिरिक्त क्षण गंवाए, बारी-बारी उसके दोनो पटों को तेजी से चूमना शुरू कर देता है।

"मन्युऽऽ! ये ... ये क्या?" अपने बेटे के होंठों का स्पर्श अपनी नंगी गांड पर महसूस करते ही वैशाली अचानक से अपने पैरों को चलायमान कर देने पर विवश हो जाती है और इसके तुरंत बाद ही उसने पलटकर खडे़ होते हुए पूछा। उसे कोई विशेष परवाह नही थी कि अब अभिमन्यु कच्छी के भीतर निरंतर रस उगलती उसकी चूत पर अपनी आँखे गड़ा सकता है, यकीनन समझ भी सकता है कि उसकी माँ किस बुरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी।

"सॉरी! मैं बस तुम्हारे उस दर्द को कम करना चाहता था जो मैंने खुद तुम्हें दिया था" वह धीमे स्वर मे बोला, हरपल शरारत से भरा रहने वाला उसका चेहरा जैसे फौरन कुम्भला सा गया था।

"अब मैं और तुम्हारी झूठी, मक्कार बातों मे नही आनेवाली मन्यु" कहकर वैशाली नीचे फर्श पर पड़े अपने पेटीकोट को उठाने लगती है, हालांकि अपनी नंगी गांड पर उसे बेटे के होंठों का स्पर्श अंदर तक मंत्रमुग्ध कर गया था मगर वह इस सत्य को एकाएक अभिमन्यु के समक्ष कबूल भी तो नही सकती थी। जीवन मे पहली बार किसी मर्द के होठों ने उसके निचले धड़ को छुआ था और वह मर्द कोई और नही उसका अपना सगा बेटा था, उनका पवित्र रिश्ता ही एकमात्र कारण था जो उसे बेवजह बेटे पर झूठा लांछन लगाना पड़ रहा था जबकि वह अच्छे से जानती थी कि भले ही उसका बेटा दुनियाभर से झूठ कहता-फिरता हो पर अपनी माँ से कभी नही बोल सकता था और वह भी तब जब वह अपनी माँ को अपनी खुद की जान से ज्यादा चाहने लगा था, वाकई उसके सच्चे प्रेम मे पड़ गया था।

"तुम्हारे पीछे ....वहाँ पूरे मे रेड-रेड हो गया है और जो मेरी अपनी गलती की वहज से हुआ, तुमने तो मुझे रोकने की कोशिश की थी यह बाताकर कि तुम्हें वहाँ दर्द हो रहा है पर मैं कहाँ माना था। शायद इसीलिए मैंने ....." अभिमन्यु गहरी व लंबी-लंबी सांसें भरते हुए बोला, जाहिर था कि अपनी माँ के हाथ मे उसका उतरा हुआ पेटीकोट देख उसे जरा भी अच्छा नही लगा था परंतु इस संबंध मे वह वैशाली से कुछ नही कहता बल्कि पेटीकोट को वापस पहनने का निर्णय वह खुद उसी पर छोड़ देता है।

"कभी-कभी मुझे लगता है कि तुम एक नही दो इंसान हो जो पता नही कब हँसने लगे और कब रूठ जाए, कब शैतानी कर बैठे और कब प्यार जताने लगे। अब बोलो भी ...कि मैं पेटीकोट नही पहनूँ वर्ना सचमुच पहन लूंगी" मुस्कुराकर ऐसा कहते हुए वैशाली तत्काल अपना पेटीकोट हवा मे झुलाने लगती है वह जानबूझकर उसे बार-बार बेटे के नजदीक ले जा रही थी ताकि वह उसे जबरन अपनी माँ के हाथ से छीन ले मगर अभिमन्यु उसे सफा चौंकाकर बिस्तर पर चढ़ गया और पीछे सरकते हुए बिस्तर की पुश्त से टेक लगाकर बैठ जाता है।

"आओ माँ! आज तुम्हें अपने हाथों से खिलाऊँगा ...यहाँ आओ और अपने बेटे की टांगों के बीच आकर बैठो। घबराना मत, तुम्हें चोदूंगा नही ....तुमसे वादा जो किया है" काफी गंभीर स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ की आँखों मे झांकते हुए ही जॉकी के ऊपर से अपने कठोर लंड को बड़ी बेशर्मी के साथ सहलाने लगा और जिसे देख खुद ब खुद पेटीकोट वैशाली के हाथ से पुनः नीचे फर्श पर गिर जाता है। वह माँ अपने बेटे की अश्लील वाणी से कहीं ज्यादा उसकी पापी हरकत, उसके नीच इशारे से अचंभित हुई थी। एकसाथ क्रोध, लज्जा, कुठां, कामुत्तेजना आदि कई भावों से तड़प उठी, एकाएक अत्यधिक चुदास महसूस करती वह माँ भी खुद पर संयम नही रख पाती और किसी बाजारू वैश्या की भांति अपने दाएं हाथ की मुट्ठी मे तत्काल अपनी कच्छी को बलपूर्वक भींच लेती है। उसकी कच्छी के निचोड़ से उसका ढ़ेर सार कामरस उसकी दाईं मुट्ठी मे एकत्रित होने लगा और जो शीघ्र ही उसकी उंगलियों की पोर से छलककर लिसलिसी बूंदों के रूप मे नीचे फर्श पर टपकने लगता है।


"अब आती हो या फिर मैं अपनी यह जॉकी भी उतार दूं" अपनी माँ की इस विस्फोटक कार्यवाही को प्रत्यक्ष देख अभिमन्यु अखंड उन्माद से कांपते हुए बोला और तीव्रता से अपने हाथ के दोनो अंगूठे अपनी कमर के इर्द-गिर्द लाकर उन्हें अपनी जॉकी की इलास्टिक मे फंसा देता है, तत्पश्चात उसने फौरन अपनी गांड बिस्तर से पूरी तरह ऊपर उठा दी मानो सचमुच वह अगले ही पल अपनी सगी माँ के समक्ष पूर्णरूप से नंगा हो जानेवाला था।

"नही! नही! नही! ...मैं आ रही हूँ, मैं आ रही हूँ बेटा" लगभग चीखते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली अचानक ही बिस्तर पर कूद पड़ती है। यह दृश्य भी बहुत कामुक था, बिस्तर पर पहले से ही अधनंगे बैठे अपने अत्युत्तेजित जवान बेटे की चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के अत्यंत पापी उद्देश्य से, सिर्फ ब्लाउज और छोटी--सी कच्छी पहने एक माँ अपने घुटनों और हाथों के बल बिस्तर पर चलना शुरू कर चुकी थी। उसके हर बढ़ते कदम पर उसके गोल-मटोल मम्मे उसके ब्लाउज से बाहर निकल आने को मचल उठते, पति के जीवित होने का प्रमुख प्रमाण उसका मंगलसूत्र झूले--सा झूलता हुआ, उसकी मांसल गांड हवा मे तनी हुई, बाल कंधे और चेहरे पर बिखरे हुए, हाथों के पंजे और दोनो घुटने मुलायम गद्दे मे धंसे हुए; एक अजीब से रोमांच को जाग्रत कर देने वाला दृश्य था। अभिमन्यु के नजदीक पहुँचकर जब वैशाली ने अपने शरीर को घुमाया तब सहसा उसकी गांड बेटे के चेहरे से रगड़ खाती हुई गुजरी, उसने अपने दोनो हाथों से स्वयं अपने बेटे की टांगों को विपरीत दिशा मे चौड़ाया और अंततः वह पापिन माँ बिस्तर पर बेटे के अधनंगे बदन से टेक लगाकर बैठ जाने मे सफल हो ही जाती है।
Reply
01-06-2019, 11:12 PM,
#17
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
वैशाली के अपने बेटे अभिमन्यु की नंगी चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के उपरान्त जो कुछ बदलाव उसे तत्काल महसूस हुए उनमे मुख्यतः बेटे की छाती के भीतर तीव्रता से धड़कते उसके ह्रदय की जोरदार धमक का स्पष्ट अहसास उस माँ को अपनी पीठ पर हो रहा था, दूसरे उसके तपते और पसीने-पसीने हुए अग्र शरीर से वैशाली का ब्लाउज क्षणमात्र मे भीग चुका था। तीसरे उस अत्यंत कामलुलोप माँ को अपने जवान बेटे का बेहद कठोर व निरंतर तेजी से फड़फडा़ता लंड सीधे अपनी गुदाज गांड की गहरी दरार के भीतर प्रवेश करने का दुस्साहस करता हुआ-सा प्रतीत होने लगा था, वह तो ठीक था जो उस वक्त माँ-बेटे अपने निचले धड़ से नंगे नही थे वर्ना उनके संग वह तात्कालिक वक्त भी अपनी रही सही मर्यादा का हरसंभव त्याग कर चुका होता।

"उफफ! मॉम रिलेक्स होकर बैठो, तुम्हें कोई तकलीफ नही होने दूंगा" अपनी माँ के अधनंगे कामुक बदन का सम्पूर्ण भार अपने नंगे सीने और टांगों की जड़ पर पाकर अभिमन्यु फौरन सीतकारते हुए कहता है, वैशाली के खुले व लंबे केश उसके अपने कंधों के साथ ही जहां-तहां उसके बेटे के भी कंधों और छाती पर फैल गए थे जिसके नतीजन उसके बालों से उठती एक विशेष जनाना गंध उसके बेटे के पूरे शरीर को एकाएक आनंदित करने लगी थी। उसने सहसा अपनी बाईं हथेली को अपनी माँ के नंगे सपाट पेट पर रखकर उसे बलपूर्वक पीछे खींचा और जिससे उसकी जॉकी के भीतर ठुमकता उसका विशाल लंड उसकी माँ की छोटी--सी कच्छी मे कैद उसकी मांसल व मुलायम गांड पर बरबस ठोकरें मारने लगता है, वह तो भाग्य वैशाली के पक्ष मे था वर्ना उसके बेटे का आलूबुखारे समान अत्यंत सूजा सुपाड़ा वाकई उसकी जॉकी और उसकी माँ की पतली--सी कच्छी को छेदकर सीधे उसकी गांड की दरार को चौड़ाते हुए उसके किसी भी नाजुक अंग को बड़ी सरलता से भेद सकता था।

"मन्यु ...उन्ह! मन्यु" सिसकती वैशाली तत्काल अपना निचला धड़ आगे को सरकाने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के बाएं हाथ को अपने चिकने पेट से बलपूर्वक भी नही हटा पाती। अभिमन्यु उसकी गहरी व गोल नाभि के आसपास अपना बायां अंगूठा गोल-गोल आकृति मे घुमाने लगा था और साथ ही अपने दाएं की उंगलियों से वह अपनी माँ के रेशमी काले बालों को भी सहलाना शुरू कर देता है।

"तुम बहुत खुशबूदार बासती हो माँ, हम्म! हम्म! ...पहले पता होता हम्म! ...तो दिनभर बस तुम्हें ही सूंघता रहता" वह वैशाली के बालों मे अपना सम्पूर्ण चेहरा घुसेड़ते हुए जोरदार गहरी-गहरी सांसें खींचकर कहता है, वह यहीं रुक जाता तब भी ठीक था मगर ज्यों ही उसे अपनी नाक पर अपनी माँ की सुंदर, पतली व पसीने से लथपथ गर्दन का स्पर्श महसूस हुआ वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के फौरन अपने कंपकपाते होंठ उसकी गर्दन से चिपका देता है।

"उफ्फऽऽ पिज्जा ....पिज्जा ठंडा हो रहा है मन्यु" जिस तरह कोई हिंसक, शक्तिशाली पशु किसी निरीह पशु को दबोचकर उसका भक्षण करने से पूर्व उसके स्वादिष्ट कच्चे मांस की गंध को मन भरकर सूंघता है ताकि तत्काल उसकी भूख मे चौगुना इजाफा हो जाए और चाहते हुए भी उस निरीह की असहाय चीख-पुकार उसके खूंखार ह्रदय को ना पिघला सके ठीक उसी प्रकार वैशाली को भी अपने बेटे की नाक का लगातार फुसफुसना और उसके सूंघने से पैदा होता अजीब--सा रोमांचक स्वर एकाएक असहाय, दुर्बल करने लगा था। अपना कथन कहकर वह अपनी गर्दन को झटकने लगती है मगर तभी अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसकी गहरी नाभि के भीतर प्रवेश करवा देता है।

"तुम्हारा हक है माँ तो तुम ही खिलाओ मुझे" अभिमन्यु ने पुनः गहरी सांस खींचते हुए कहा, जिसके मूक उत्तर मे वैशाली उनके दाईं और रखे डिनर को खाने हेतु तैयार करने लगती है। हालांकि अभिमन्यु ने उसे स्वयं अपने हाथों से खिलाने की चाह जताई थी पर कहीं वह अपनी चाह की आड़ मे अपनी माँ से और अधिक छेड़छाड़ करना आरंभ ना कर दे कुछ ऐसा सोच वह जल्द से जल्द डिनर को निपटने मे व्यस्त हो जाती है। उसने पिज्जा के ऊपर सारी उपस्थित सीजनिंग डाली और तीव्रता से दोनो तरह के सॉसेजिस भी उड़ेलने लगती है, वहीं उसका बेटा उसकी व्यस्तता को सफलतापूर्वक भुनाने मे जुटा हुआ था। वह अपनी माँ की गर्दन को महज सूंघने के अलावा अब चूमने लगा था और साथ ही उसकी नाभि के भीतर अपने अंगूठे के नाखून की हल्की-हल्की खुरचन भी देना शुरू कर देता है।

"खाने ...खाने पर कॉन्सनट्रेट किया करो मन्यु, जवान लड़के खाने से अपना जी नही छुड़ाते" हकलाते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली पिज्जा की एक तिकोनी स्लाइस अपनी गर्दन से चिपके उसके बेटे के दाएं कान के समकक्ष ले आई मगर जैसे उसके कथन और कार्य को सफा भुलाते हुए अभिमन्यु पर उनका कोई खास असर नही पड़ता और शीघ्र ही वह अपने होंठों को खोल अपनी गीली जीभ बाहर निकालकर, उसे लपलपाते हुए अपनी माँ की गर्दन पर निरंतर एकत्रित होते पसीने की नमकीन बूंदों को अविराम चाटने लगता है।

"मन्यु ...उन्ह! खाओ इसे, खाने पर कॉन्सन्ट्रेट करो बेटा" वह अपनी ठोड़ी और गर्दन को आपस मे दबाते हुए सिहर पड़ती है लेकिन इसका परिणाम पहले से अधिक घातक सिद्ध हुआ, अभिमन्यु का चेहरा उसकी गर्दन और ठोड़ी के बीच फंसकर रह जाता है और जिसके कारण अब उसने अपनी माँ की गर्दन की अत्यंत नाजुक त्वचा को बेकाबू होकर चूसना भी आरंभ कर दिया था। वैशाली अपने जबड़े भींचकर अपनी चूत के अंदरूनी संकीर्ण मार्ग पर होते अविश्वसनीय स्पंदन को झेलने पर विवश थी, उसके ब्लाउज और ब्रा के भीतर कैद उसके मम्मे भी उसके निप्पल समान कठोरता पाने लगे थे और वह सहसा मात्र एक लघु अंगड़ाई लेने तक को तड़प उठती है, जो की उसके बेटे के बलिष्ठ हाथों की जकड़न से मजबूर वह चाहकर भी नही ले पाती।

"भूख ही तो मिटा रहा हूँ मॉम। अपनी और तुम्हारी, हम दोनो की" अपना चेहरा अपनी माँ की गर्दन से पीछे खींच अभिमन्यु बोला, उसका विस्फोटक कथन एकसाथ दोनो को चौंका गया था।

"लाओ लाओ खिलाओ, मैं परेशान हूँ तो जरूरी नही कि तुम्हें भी होना पड़े" अपने इस सामान्य कथन की आड़ मे वह अपने पिछले कथन की ज्वलनशीलता को कम करने का झूठा प्रयास करता है और अपनी माँ के हाथ से पिज्जा स्लाइस अपने दाएं हाथ मे लेकर वह फौरन उसे उसके बंद होंठों से सटा देता है। बड़े जतन के उपरान्त वैशाली अपने भींचे जबड़ों को ढ़ीला छोड़ पाई थी और अपने होंठ खोल पिज्जा का छोटा--सा नुकीला भाग काटकर वह पुनः अपने होंठ सी देती है।

"कैसी परेशानी? हम्म! और ऐसे काम नही चलेगा, तुम भी खाओ चुपचाप" अभिमन्यु को ना खाते देख वैशाली उसके हाथ से पिज्जा स्लाइस छीनकर उसे डांटते हुए बोली और जबरदस्ती स्लाइस उसके अधखुले होंठों के भीतर ठूंस देती है। तत्पश्चात उसने बड़ी सफाई से अपनी चौड़ी टांगों को आपस मे चिपकाया ताकि उसकी चिकनी नंगी जांघों का निचला भाग बेटे की नंगी बालों भरी जांघों के ऊपर से हट जाए, जिसपर पनपे पसीने के चिपचिपे अहसास से लगातार उसकी चूत पनिया रही थी।

अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न को सुनकर अभिमन्यु उसका जवाब सोचते हुए पिज्जा चबाने लगा, वह एकाएक इतना अधिक ध्यानमग्न हो गया था कि अपनी माँ की टांगों का एकदम से हिलना-डुलना भी महसूस नही कर पाता और जब वैशाली उसे पुकारते हुए पुनः उसकी ओर पिज्जा बढ़ती है तब कहीं जाकर वह अपनी गहरी सोच से बाहर निकल पाता है।

"मॉम! मेरा लंड इस बुरी तरह दुखने लगा है कि मुझसे ठीक से खाया भी नही जा रहा" वह बेझिझक बोला और पिज्जा की अगली फरमाइश को फौरन ठुकरा देता है, उसके इस लज्जाहीन कथन को सुनकर तो जैसे वैशाली का रोम-रोम सिहर उठा था और स्वयं अपने बेटे समान उत्तेजित वह कामलुलोप माँ तत्काल भावनाओं के वशीभूत होकर अपनी हाल मे ही जोड़ी हुई जांघों को बलपूर्वक आपस मे घिसना शुरू कर देती है।

"माँ तुम्हारी चूत मे भी खुजली मच रही है ना? वहां, उस शीशे मे साफ दिख रहा है" अभिमन्यु ने एकाएक जोरों से हँसते हुए कहा, वह अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली से बिस्तर के ठीक सामने स्थापित ड्रेसिंग टेबल के बड़े--से दर्पण की ओर इशारा करता है। अपने बेटे के अश्लील प्रश्न को सुन वैशाली ने भी अत्यंत तुरंत अपनी उड़ती निगाहें उसके ड्रेसिंग टेबल के कांच पर डा़ली और उसमे खुद को अपने ही बिस्तर अपने पर सगे जवान बेटे से टिक कर बैठे देख वह आंतरिक शर्म से पानी-पानी हो जाती है, सबसे विशेष विचारने योग्य बात कि उस वक्त वह दोनो ही अपने-अपने निचले धड़ से लगभग पूरे नंगे थे जो ना तो उस वक्त के अनुकूल था और ही उसके मर्यादित पवित्र रिश्ते के। उस माँ ने अपनी और अपने बेटे की बैठक स्थिति पर भी गौर किया तो पाया कि वह किसी भी कोंण से अभी एक माँ नजर नही आ रही थी, आ रही थी तो कोई अधेड़ उम्र की वैश्या जिससे दूना छोटा उसका ग्राहक उसके पीछे बैठा उसे अपनी मजबूत बांहों मे जकड़कर उनकी आगामी चुदाई की चाह मे खुद भी बेहद उत्तेजित व उत्साहित हो रहा था।

"उठने दो मन्यु, मुझे भी भूख नही है" अपने बेटे के दोनो हाथ अपने बदन से झटकने का प्रयास करते हुए वैशाली ने अपनी जगह उठना चाहा मगर हरबार की तरह इसबार भी वह अभिमन्यु पर अपने स्त्री बल का कोई खास प्रभाव नही दिखा पाती, बिस्तर से उठना तो दूर वह अपनी जगह से हिल भी नही पाई थी।

"अच्छा! अच्छा! मेरे कुछ सवालों का सही जवाब दो तो तुम्हें जाने दूंगा" कहकर अभिमन्यु ने पुनः उसे अपनी ओर खींचा और थोड़ा बहुत अंतर जो उनके शारीरिक स्पर्श मे आया था वह दोबारा से मिट जाता है, एकबार फिर माँ-बेटे एक-दूसरे से बुरी तरह चिपक जाते हैं।

"तुम कब से नही चुदी?" उसने बिना समय गंवाए पूछा।

"अठारह दिनों से, अब खुश ...अब मुझे उठने दो" समय व्यतीत करने का कोई विशेष लाभ नही मिलने की वजह से वैशाली भी बिना सोचे-विचारे अतिशीघ्र जवाब दे देती है।

"पापा तुम्हें चोदते नही क्या? वह तो इस बीच दो रातें घरपर रुके थे और अपनी ये टांगें चौड़ाओ" अभिमन्यु का अगला सवाल जैसे पहले से ही तैयार था और साथ ही वह अपने दोनो हाथ अपनी माँ की जुड़ी हुई जांघों पर रख देता है। उसने दोबारा अपना चेहरा वैशाली के खुले बालों के भीतर कर दिया और पलभर मे पुनः उसकी गर्दन को चाटना शुरू कर देता है।

"मन्यु गलत है ये, तुम मुझे कमजोर कर रहे हो। बेटा अपनी माँ से ऐसे निजी सवाल नही करता, उफ्फ! मैं क्या करूं इस लड़के का" एकसाथ कई हमलों से बहकने के चरम पर पग धरती वह माँ कुंठा भरे स्वर मे बोली। यह उसपर बेटे की कोई जबरदस्ती नही थी, जबरदस्ती तब कैसे मानी जाती जब वह अपने बेटे की निकृष्ट इच्छा व आज्ञा के समर्थन मे बिना उसकी जोर-आजमाइश के खुद ही अपनी जांघों को पहले से भी कहीं अधिक चौड़ा देने का नीच कर्म कर बैठती है, उसके बेटे ने तो अपने हाथ मानो शून्य से कर लिए थे।

"तुम कमजोर नही डरपोक हो माँ। तुम भी मेरी हो और तुमसे जुड़ी हर बात, हर चीज भी अब मेरी है। आखिर हम दोनो ही एक-दूसरे से प्यार जो करते हैं" कहकर अभिमन्यु अपना ढ़ेर सारा लार अपनी माँ की गर्दन पर उगल देता है और फिर तत्काल वह अपनी जीभ अपनी ही लार मे लपलपाने लगा, उसे जीभ के जरिये उसकी पूरी गर्दन पर मलने लगता है और कुछ ही क्षणों बाद उने एकबार फिर से अपनी माँ की नाजुक गर्दन को तीव्रता से चूसना शुरू कर दिया था।

"वह थक गये थे इसलिए मुझे नही चोदा" कहने को तो कमुकता की चपेट मे पूर्णरूप से आ चुकी वैशाली के मुंह से अचानक 'चोद' जैसे देशी शब्द का उच्चारण हो गया था मगर कह चुकने के उपरान्त वह अब कर भी क्या सकती थी, बस अपनी जांघों की अंदरूनी मांसल त्वचा पर अपने नुकीले नाखून गड़ाते हुए वह अपनी सिस्कारियों को रोकने का व्यर्थ प्रयत्न करने लगती है। अपनी गर्दन पर अभिमन्यु के होंठों का मर्दन उससे बरदाशत कर पाना मुश्किल था और इसी बीच जाने कब निर्लज्जतापूर्ण ढ़ंग से वह अपनी कमर को पीछे धकेलते हुए अपनी गुदाज गांड बरबस अपने बेटे के खड़े कठोर लंड पर ठोकने लगती है, उसे स्वयं पता नही चल पाता।
Reply
01-06-2019, 11:12 PM,
#18
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"हमसब दो रोटी कम खा लेते, फिजूलखर्ची बंद कर देते, लोकल ट्रांसपोर्ट का यूज कर लेते, लाख तरीके हैं पैसे बचाने के मगर पापा को तो हमेशा तुम्हें सताने मे ही मजा आता है। अब देखो उनकी बीवी कितनी चुदासी हो गई है मगर चुदास बुझाने वाले वह यहाँ है नही और मैं पहले ही कह चुका हूँ कि तुम्हें चोदना नही चाहता" अभिमन्यु ने उसकी गर्दन को चूमना-चूसना कुछ पलतक रोकते हुए कहा, अपने नीच शब्दों पर वह खुद हैरान था और यह यकीनन इस बात का प्रमाण था कि अब कमरे का वातावरण कहीं से भी सामान्य या मर्यादित नही रहा था।

"मत ...मत करो ऐसी गंदी बातें अपनी माँ से। तुम्हारे पापा वाकई मुझे सताते हैं मन्यु और मैं कुछ नही कर पाती" अपने बेटे के विस्फोटक कथन से एकाएक दो तरफा बंट गई वैशाली अपने बाएं हाथ के पंजे मे खुल्लम-खुल्ला अपनी कच्छी के भीतर रस उगलती अपनी अतिसंवेदनशील चूत को भींचते हुए बोली और ठीक उसी वक्त अभिमन्यु अपनी दाईं हथेली से अपनी माँ के दाहिने मम्मे को जकड़ लेता है और बाएं पंजे को वह उसकी माँ के हाथ के ऊपर रख उसके साथ स्वयं भी उसकी चूत को दबोचने लगता है। कोई संकोच नही और ना ही कोई भय, वासना की प्रचूरता मे वह बेहद निर्भीक हो चला था। पहली बार वह अपनी माँ के गदराए अधनंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था और जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को अपने आप ही क्षीण कर दिया था।

वहीं वैशाली का हाल इससे भी बुरा था। उसकी गर्दन पर लगातार बेटे के होंठ रेंग रहे थे, वह बलपूर्वक ब्लाउज के ऊपर से उसका दायां मम्मा मसले जा रहा था, उसकी चूत मुख को ऐंठने व भींचने मे वह दोनो ही एकसाथ व्यस्त हो गये थे और स्वतंत्ररूप से उसकी गांड जोकि अब उसके स्वयं के वश से कोसों दूर काफी तेजी से बेटे के तने हुए लंड से रगड़ खाए जा रही थी, उसपर अविराम ठोकरें मारे जा रही थी।

"मैंने गलत नही कहा माँ, तुम सचमुच चुदासी हो और इस समय तुम्हें वाकई एक लंबे, मोटे-तगड़े लौड़े की जरूरत है जो तुम्हारी चूत मे घुसकर तुम्हें पटक-पटककर चोद सके, तुम्हारी चुदास पूरी तरह से मिटा सके" अभिमन्यु शर्म और हया की सभी सीमाओं को लांघते हुए कहता है।

"बोलो कि तुम चुदासी हो माँ और तुम्हें जी भरकर चुदना है, सिर्फ एक ताकतवर लौड़ा ही तुम्हारी असली प्यास बुझा सकता है और तुम्हें वह लौड़ा किसी भी हालत मे चाहिए" उसने नीचतापूर्वक अपने पिछले कथन मे जोडा़ और फिर बिना रूके पूरी शक्ति से अपनी माँ का दायां मम्मा निचोड़ने लगा, साथ ही कच्छी के ऊपर से फौरन वैशाली का हाथ झटककर अपने बाएं पंजे से स्वयं अकेले ही वह उसकी गीली चूत को रगड़ने लगता है।

"न ...नही, नही आह! नही चाहिए मुझे" सीत्कारते हुए वैशाली का मुंह खुल गया, उसकी गर्दन अकड़ने लगी और गहरी-गहरी सांसें लेती हुई वह अपने चरमोत्कर्श पर पहुँच जाने को विवश होने लगती है।

"तुम झूठी हो माँ, कहो कि तुम्हें इसी वक्त चुदना है। तुम्हें बस लंड चाहिए और कुछ नही वर्ना मैं अपने कमरे मे जाता हूँ" झूठी धमकी देकर भी अभिमन्यु उसके बदन को छेड़ना नही छोड़ता, बल्कि अब वह भी अपनी कमर हिला-हिलाकर अपनी माँ की गांड से ताल मिलाते हुए ही अपने विशाल लंड का तीव्रता से उसकी गांड पर देने लगा था।

"मत ...मत उन्ह! उन्ह! मन्यु मत ...मत" इसके आगे वैशाली की आवाज उसके गले से बाहर निकलना बंद हो जाती है और ठीक इसी निश्चित समय पर अभिमन्यु भी उसे एकदम से छोड़ देने का नाटकीय उपक्रम कर देता है।

"हाँ चाहिए मुझे लंड और मैं हूँ चुदासी, बहुत बहुत बहुत ज्यादा चुदासी है तुम्हारी माँ अभिमन्यु। मेरे लाल कुछ करो वर्ना ...." वैशाली ने सहसा चीखते हुए कहा और अविलंब बेटे के दाहिने हाथ को पकड़कर खुद अपनी कच्छी के ऊपर से अपनी गीली चूत पर पटापट थप्पड़ मारने लगी।

"आईऽऽ! मैं भी उन्हीं रंडियों की तरह बेशर्म होकर चुदना चाहती हूँ जिन्हें छुपछुप कर तुम चोदने जाते हो। मुझे भी रंडी बनना है, अभी बनना है, अभी हाल बनना है मन्यु" चिल्लाते हुए वैशाली के मुंह से लार बाहर निकल आती है, अपनी ही पापी इच्छा पर वह कामांध माँ अतिशीघ्र अपने बाल नोंचने लगी थी।

"उतारो अपनी कच्छी, तुम्हें चोदूंगा नही पर देखता हूँ इसके अलावा और क्या किया जा सकता है" अपनी माँ के हाथों से उसके बाल छुड़वाते हुए अभिमन्यु का दिल अंदर ही अंदर फट पड़ा था, उसके मन-मस्तिष्क मे बस एक ही गूंज उठ रही थी कि उसके वादे-अनुसार वह किसी भी परिस्थिति मे अपनी माँ को चोद नही सकता था पर यह भी जानता था कि उसकी माँ के दर्द का एकमात्र मर्ज सिर्फ उसका अपना लंड है क्योंकि उसका पिता पैसे कमाने मे व्यस्त था और उसकी माँ घर की चारदीवारी के बाहर कभी मुंह मार नही सकती थी, यदि मुंह मारना ही होता तो इतना दर्द झेलने पर मजबूर नही होती।

वह वैशाली को आगे झुकाकर उसके पीछे से तत्काल उठ खडा़ हुआ और अपने स्थान पर अपनी माँ को टिकते हुए उसकी सुर्ख लाल आखों मे झांकने लगता है। उसकी माँ के खुले बाल, ब्लाउस के भीतर उसकी तेजी से बढ़ती-घटती सांसों के प्रभाव से लगातार ऊपर-नीचे होते उसके गोल-मटोल मम्मे, मम्मों की गहरी घाटी के बीचों-बीच फंसा उसका पतिव्रत मंगलसूत्र, सपाट पेट नंगा, बेहद पतली कमर, पसीना एकत्रित करती उसकी गोल-गहरी नाभी, पेडू से भी नीचे सरक चुकी उसकी कच्छी और कच्छी की बगलों से बाहर झांकती उसकी घनी-घुंघराली काली झांटें, मांसल चिकनी दोनो जांघें, गौरवर्णी पिडलियां, पायल से सजी एडियां और उम्र मुताबिक घिस चुके दोनो तलवे; उसकी माँ का अत्यंत कामुक अंग-अंग उसकी आँखों को बेहद आकर्षित कर रहा था, साथ ही आनंदित और आंदोलित भी।

"उतारो कच्छी, अपनी टांगें क्यों मोड़ ली?" अपने बेटे की आँखों का अपनी माँ के अधनंगे बदन का यूं खुल्लम-खुल्ला शर्मनाक अवलोकन करना वैशाली सहन नही कर पाती और अपने घुटनों को मोड़ लज्जा से अपना सिर नीचे झुकाकर गुपचुप बैठ जाती है मगर जल्दबाजी मे वह यह भूल गई थी कि अपने पैरों को मोड़कर उन्हें अपनी छाती से चिपकाकर बैठने से उसने अभिमन्यु पर अचानक क्या गदर ढ़ा दिया था। उसकी कच्छी जो कि पहले से ही उसकी गांड की गहरी दरार के भीतर फंसी हुई थी उसकी तात्कालिक बैठक के बाद तो जैसे उसकी गांड के दोनो पट बिलकुल नंगे दिखाई देने लगे थे और तो और कच्छी का सेटिन कपडा व हल्के पीले रंग की रंगत के गीले हो चुकने के उपरान्त उसकी चूत का पूरा फूला उभार कच्छी के ऊपर से अभिमन्यु को स्पष्ट नजर आ रहा था, यहाँ तक की वह अपनी माँ की चूत के दोनो सूजे होंठों का निरंतर फड़फड़ना भी प्रत्यक्ष देख पा रहा था।

"उतारो ना कच्छी या कहो तो मैं खुद उतार दूँ" कहकर वह वैशाली की ओर अपने हाथ बढ़ाने लगता है।

"खबरदार मन्यु" एकाएक वह कठोर स्वर मे बोली और जिसके नतीजन सकपकाकर अभिमन्यु फौरन अपने हाथ पीछे खींच लेता है।

"चोदोगे नही तो फिर कैसे शांत करोगे अपनी माँ को? उसकी चूत मे उंगलियां डालकर या सीधे चूत को अपनी जीभ से चाटने लगोगे, होंठों से उसे चूसने लगोगे? इसके बाद कहोगे कि माँ अब तुम मेरा लंड हिलाओ या अपने मुंह से चूसकर मुझे भी शांत करो, है ना?" वैशाली ने पिछले कथन मे जोड़ा मगर इसबार उसका स्वर सामान्य था। कोई क्रोध नही, कोई शर्म नही, कोई अतिरिक्त हकलाहट भी नही; बिलकुल शांत।

"देखो मन्यु! इतने दूर पहुँचकर मैं यह नही कहती कि वापस पीछे लौटो, मैं खुद नही लौट सकूंगी पर यह भी सही नही कि हम एकदम से अपने रिश्ते की पवित्र दीवार को ढ़हा दें। मुझे कुछ वक्त दो, तुम मुझे चोदना नही चाहते यह वाकई तुम्हारी तारीफ है पर मेरे बारे मे भी तो सोचो कि तुम्हारी सगी माँ होने के बावजूद कहीं मैं खुद बहक गई फिर तुम्हारे प्रॉमिज का क्या मतलब रह जाएगा?" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वैशाली अपने हाथ के दोनो अंगूठे एकसाथ अपनी कच्छी की इलास्टिक के भीतर फंसा लेती है और अपनी मुड़ी हुई टांगों को हवा मे ऊपर उठाकर कच्छी को हौले-हौले अपने यथावत स्थान से उतारने लगी।

"तुम चाहो तो एकबार फिर से अपनी माँ की नंगी चूत को देख सकते हो, बल्कि मैं खुद ही चाहती हूँ कि मेरा सगा जवान बेटा सचमुच मेरी चूत को जी भर देखे" अभिमन्यु के चुपचाप बैठे रहने के कारण वह उसे उत्साहित करते हुए बोली और अपनी उतर चुकी कच्छी को सीधे अपने बेटे के चेहरे पर मारकर जोरों से हँस पड़ती है।

"नाराज मत होना मॉम बट मुझे भी टाइम चाहिए सोचने को और फिर इसे मेरी खुल्ली धमकी समझो या मेरा प्यार कि अगली बार मैं तुम्हारे रोके नही रुकूंगा, तुम्हें चोदने के अलावा तुम्हारे साथ मुझे जो कुछ करना होगा मैं वह करके ही मानूंगा" ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ को सफा चौंकते हुए अत्यंत तुरंत बिस्तर से नीचे उतर जाता है, वैशाली के अपनी कच्छी को उतारकर अपनी टांगें विपरीत दिशा मे चौड़ा देने के बाद भी उसने अपनी एक नजर अपनी माँ की नंगी चूत पर नही डाली थी और बेटे की इसी विशेष हरकत ने उसकी माँ को सहसा अचंभित कर दिया था। वह वैशाली की कच्छी को वहीं बिस्तर पर छोड़कर अपने खुद के उतरे हुए कपड़े फर्श से उठाने लगा है और फिर धीमे स्वर मे उसे "गुड नाइट" कहकर तेजी से उसके बेडरूम से बाहर निकल जाता है।

तिरस्कार! इस शब्द से शायद ही संसार की कोई परिपक्व स्त्री अंजान होगी, पहले अपने पति मणिक के और अब अपने बेटे अभिमन्यु के हाथों तिरस्कृत होकर ना चाहते हुए भी वैशाली उसे खुद से दूर जाने से रोक नही पाती, बस हतप्रभ कभी अपनी कच्छी को तो कभी गाढ़े रस से सराबोर अपनी चूत को घूरते हुए लंबी-लंबी सांसें भरने लगती है। वहीं अपनी माँ की अंतिम बातों व तर्कों ने अभिमन्यु को एकाएक भीतर तक हिलाकर रख दिया था और पहली बार वह उनके पवित्र रिश्ते की निरंतर तीव्रता से खोती जा रही गरिमा के विषय मे सोचने पर मजबूर था, हालांकि वह तत्काल क्या सोचकर अपनी माँ के बेडरूम से बाहर निकल आया था इसका कोई कारण तो उसे नही सूझ पाता मगर अपने बिस्तर पर गिरते ही अब यकीनन वह पहले से कहीं अधिक गंभीर हो चुका था।

बिस्तर एक से परंतु उनपर लेटे प्राणियों की आँखें नींद से मीलों दूर, दिन तो बीत गया था पर यह रात थी जो बीतने का नाम ही नही लेना चाहती थी।
Reply
01-06-2019, 11:12 PM,
#19
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
वैशाली के अपने बेटे अभिमन्यु की नंगी चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के उपरान्त जो कुछ बदलाव उसे तत्काल महसूस हुए उनमे मुख्यतः बेटे की छाती के भीतर तीव्रता से धड़कते उसके ह्रदय की जोरदार धमक का स्पष्ट अहसास उस माँ को अपनी पीठ पर हो रहा था, दूसरे उसके तपते और पसीने-पसीने हुए अग्र शरीर से वैशाली का ब्लाउज क्षणमात्र मे भीग चुका था। तीसरे उस अत्यंत कामलुलोप माँ को अपने जवान बेटे का बेहद कठोर व निरंतर तेजी से फड़फडा़ता लंड सीधे अपनी गुदाज गांड की गहरी दरार के भीतर प्रवेश करने का दुस्साहस करता हुआ-सा प्रतीत होने लगा था, वह तो ठीक था जो उस वक्त माँ-बेटे अपने निचले धड़ से नंगे नही थे वर्ना उनके संग वह तात्कालिक वक्त भी अपनी रही सही मर्यादा का हरसंभव त्याग कर चुका होता।

"उफफ! मॉम रिलेक्स होकर बैठो, तुम्हें कोई तकलीफ नही होने दूंगा" अपनी माँ के अधनंगे कामुक बदन का सम्पूर्ण भार अपने नंगे सीने और टांगों की जड़ पर पाकर अभिमन्यु फौरन सीतकारते हुए कहता है, वैशाली के खुले व लंबे केश उसके अपने कंधों के साथ ही जहां-तहां उसके बेटे के भी कंधों और छाती पर फैल गए थे जिसके नतीजन उसके बालों से उठती एक विशेष जनाना गंध उसके बेटे के पूरे शरीर को एकाएक आनंदित करने लगी थी। उसने सहसा अपनी बाईं हथेली को अपनी माँ के नंगे सपाट पेट पर रखकर उसे बलपूर्वक पीछे खींचा और जिससे उसकी जॉकी के भीतर ठुमकता उसका विशाल लंड उसकी माँ की छोटी--सी कच्छी मे कैद उसकी मांसल व मुलायम गांड पर बरबस ठोकरें मारने लगता है, वह तो भाग्य वैशाली के पक्ष मे था वर्ना उसके बेटे का आलूबुखारे समान अत्यंत सूजा सुपाड़ा वाकई उसकी जॉकी और उसकी माँ की पतली--सी कच्छी को छेदकर सीधे उसकी गांड की दरार को चौड़ाते हुए उसके किसी भी नाजुक अंग को बड़ी सरलता से भेद सकता था।

"मन्यु ...उन्ह! मन्यु" सिसकती वैशाली तत्काल अपना निचला धड़ आगे को सरकाने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के बाएं हाथ को अपने चिकने पेट से बलपूर्वक भी नही हटा पाती। अभिमन्यु उसकी गहरी व गोल नाभि के आसपास अपना बायां अंगूठा गोल-गोल आकृति मे घुमाने लगा था और साथ ही अपने दाएं की उंगलियों से वह अपनी माँ के रेशमी काले बालों को भी सहलाना शुरू कर देता है।

"तुम बहुत खुशबूदार बासती हो माँ, हम्म! हम्म! ...पहले पता होता हम्म! ...तो दिनभर बस तुम्हें ही सूंघता रहता" वह वैशाली के बालों मे अपना सम्पूर्ण चेहरा घुसेड़ते हुए जोरदार गहरी-गहरी सांसें खींचकर कहता है, वह यहीं रुक जाता तब भी ठीक था मगर ज्यों ही उसे अपनी नाक पर अपनी माँ की सुंदर, पतली व पसीने से लथपथ गर्दन का स्पर्श महसूस हुआ वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के फौरन अपने कंपकपाते होंठ उसकी गर्दन से चिपका देता है।

"उफ्फऽऽ पिज्जा ....पिज्जा ठंडा हो रहा है मन्यु" जिस तरह कोई हिंसक, शक्तिशाली पशु किसी निरीह पशु को दबोचकर उसका भक्षण करने से पूर्व उसके स्वादिष्ट कच्चे मांस की गंध को मन भरकर सूंघता है ताकि तत्काल उसकी भूख मे चौगुना इजाफा हो जाए और चाहते हुए भी उस निरीह की असहाय चीख-पुकार उसके खूंखार ह्रदय को ना पिघला सके ठीक उसी प्रकार वैशाली को भी अपने बेटे की नाक का लगातार फुसफुसना और उसके सूंघने से पैदा होता अजीब--सा रोमांचक स्वर एकाएक असहाय, दुर्बल करने लगा था। अपना कथन कहकर वह अपनी गर्दन को झटकने लगती है मगर तभी अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसकी गहरी नाभि के भीतर प्रवेश करवा देता है।

"तुम्हारा हक है माँ तो तुम ही खिलाओ मुझे" अभिमन्यु ने पुनः गहरी सांस खींचते हुए कहा, जिसके मूक उत्तर मे वैशाली उनके दाईं और रखे डिनर को खाने हेतु तैयार करने लगती है। हालांकि अभिमन्यु ने उसे स्वयं अपने हाथों से खिलाने की चाह जताई थी पर कहीं वह अपनी चाह की आड़ मे अपनी माँ से और अधिक छेड़छाड़ करना आरंभ ना कर दे कुछ ऐसा सोच वह जल्द से जल्द डिनर को निपटने मे व्यस्त हो जाती है। उसने पिज्जा के ऊपर सारी उपस्थित सीजनिंग डाली और तीव्रता से दोनो तरह के सॉसेजिस भी उड़ेलने लगती है, वहीं उसका बेटा उसकी व्यस्तता को सफलतापूर्वक भुनाने मे जुटा हुआ था। वह अपनी माँ की गर्दन को महज सूंघने के अलावा अब चूमने लगा था और साथ ही उसकी नाभि के भीतर अपने अंगूठे के नाखून की हल्की-हल्की खुरचन भी देना शुरू कर देता है।

"खाने ...खाने पर कॉन्सनट्रेट किया करो मन्यु, जवान लड़के खाने से अपना जी नही छुड़ाते" हकलाते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली पिज्जा की एक तिकोनी स्लाइस अपनी गर्दन से चिपके उसके बेटे के दाएं कान के समकक्ष ले आई मगर जैसे उसके कथन और कार्य को सफा भुलाते हुए अभिमन्यु पर उनका कोई खास असर नही पड़ता और शीघ्र ही वह अपने होंठों को खोल अपनी गीली जीभ बाहर निकालकर, उसे लपलपाते हुए अपनी माँ की गर्दन पर निरंतर एकत्रित होते पसीने की नमकीन बूंदों को अविराम चाटने लगता है।

"मन्यु ...उन्ह! खाओ इसे, खाने पर कॉन्सन्ट्रेट करो बेटा" वह अपनी ठोड़ी और गर्दन को आपस मे दबाते हुए सिहर पड़ती है लेकिन इसका परिणाम पहले से अधिक घातक सिद्ध हुआ, अभिमन्यु का चेहरा उसकी गर्दन और ठोड़ी के बीच फंसकर रह जाता है और जिसके कारण अब उसने अपनी माँ की गर्दन की अत्यंत नाजुक त्वचा को बेकाबू होकर चूसना भी आरंभ कर दिया था। वैशाली अपने जबड़े भींचकर अपनी चूत के अंदरूनी संकीर्ण मार्ग पर होते अविश्वसनीय स्पंदन को झेलने पर विवश थी, उसके ब्लाउज और ब्रा के भीतर कैद उसके मम्मे भी उसके निप्पल समान कठोरता पाने लगे थे और वह सहसा मात्र एक लघु अंगड़ाई लेने तक को तड़प उठती है, जो की उसके बेटे के बलिष्ठ हाथों की जकड़न से मजबूर वह चाहकर भी नही ले पाती।

"भूख ही तो मिटा रहा हूँ मॉम। अपनी और तुम्हारी, हम दोनो की" अपना चेहरा अपनी माँ की गर्दन से पीछे खींच अभिमन्यु बोला, उसका विस्फोटक कथन एकसाथ दोनो को चौंका गया था।

"लाओ लाओ खिलाओ, मैं परेशान हूँ तो जरूरी नही कि तुम्हें भी होना पड़े" अपने इस सामान्य कथन की आड़ मे वह अपने पिछले कथन की ज्वलनशीलता को कम करने का झूठा प्रयास करता है और अपनी माँ के हाथ से पिज्जा स्लाइस अपने दाएं हाथ मे लेकर वह फौरन उसे उसके बंद होंठों से सटा देता है। बड़े जतन के उपरान्त वैशाली अपने भींचे जबड़ों को ढ़ीला छोड़ पाई थी और अपने होंठ खोल पिज्जा का छोटा--सा नुकीला भाग काटकर वह पुनः अपने होंठ सी देती है।

"कैसी परेशानी? हम्म! और ऐसे काम नही चलेगा, तुम भी खाओ चुपचाप" अभिमन्यु को ना खाते देख वैशाली उसके हाथ से पिज्जा स्लाइस छीनकर उसे डांटते हुए बोली और जबरदस्ती स्लाइस उसके अधखुले होंठों के भीतर ठूंस देती है। तत्पश्चात उसने बड़ी सफाई से अपनी चौड़ी टांगों को आपस मे चिपकाया ताकि उसकी चिकनी नंगी जांघों का निचला भाग बेटे की नंगी बालों भरी जांघों के ऊपर से हट जाए, जिसपर पनपे पसीने के चिपचिपे अहसास से लगातार उसकी चूत पनिया रही थी।

अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न को सुनकर अभिमन्यु उसका जवाब सोचते हुए पिज्जा चबाने लगा, वह एकाएक इतना अधिक ध्यानमग्न हो गया था कि अपनी माँ की टांगों का एकदम से हिलना-डुलना भी महसूस नही कर पाता और जब वैशाली उसे पुकारते हुए पुनः उसकी ओर पिज्जा बढ़ती है तब कहीं जाकर वह अपनी गहरी सोच से बाहर निकल पाता है।

"मॉम! मेरा लंड इस बुरी तरह दुखने लगा है कि मुझसे ठीक से खाया भी नही जा रहा" वह बेझिझक बोला और पिज्जा की अगली फरमाइश को फौरन ठुकरा देता है, उसके इस लज्जाहीन कथन को सुनकर तो जैसे वैशाली का रोम-रोम सिहर उठा था और स्वयं अपने बेटे समान उत्तेजित वह कामलुलोप माँ तत्काल भावनाओं के वशीभूत होकर अपनी हाल मे ही जोड़ी हुई जांघों को बलपूर्वक आपस मे घिसना शुरू कर देती है।

"माँ तुम्हारी चूत मे भी खुजली मच रही है ना? वहां, उस शीशे मे साफ दिख रहा है" अभिमन्यु ने एकाएक जोरों से हँसते हुए कहा, वह अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली से बिस्तर के ठीक सामने स्थापित ड्रेसिंग टेबल के बड़े--से दर्पण की ओर इशारा करता है। अपने बेटे के अश्लील प्रश्न को सुन वैशाली ने भी अत्यंत तुरंत अपनी उड़ती निगाहें उसके ड्रेसिंग टेबल के कांच पर डा़ली और उसमे खुद को अपने ही बिस्तर अपने पर सगे जवान बेटे से टिक कर बैठे देख वह आंतरिक शर्म से पानी-पानी हो जाती है, सबसे विशेष विचारने योग्य बात कि उस वक्त वह दोनो ही अपने-अपने निचले धड़ से लगभग पूरे नंगे थे जो ना तो उस वक्त के अनुकूल था और ही उसके मर्यादित पवित्र रिश्ते के। उस माँ ने अपनी और अपने बेटे की बैठक स्थिति पर भी गौर किया तो पाया कि वह किसी भी कोंण से अभी एक माँ नजर नही आ रही थी, आ रही थी तो कोई अधेड़ उम्र की वैश्या जिससे दूना छोटा उसका ग्राहक उसके पीछे बैठा उसे अपनी मजबूत बांहों मे जकड़कर उनकी आगामी चुदाई की चाह मे खुद भी बेहद उत्तेजित व उत्साहित हो रहा था।

"उठने दो मन्यु, मुझे भी भूख नही है" अपने बेटे के दोनो हाथ अपने बदन से झटकने का प्रयास करते हुए वैशाली ने अपनी जगह उठना चाहा मगर हरबार की तरह इसबार भी वह अभिमन्यु पर अपने स्त्री बल का कोई खास प्रभाव नही दिखा पाती, बिस्तर से उठना तो दूर वह अपनी जगह से हिल भी नही पाई थी।

"अच्छा! अच्छा! मेरे कुछ सवालों का सही जवाब दो तो तुम्हें जाने दूंगा" कहकर अभिमन्यु ने पुनः उसे अपनी ओर खींचा और थोड़ा बहुत अंतर जो उनके शारीरिक स्पर्श मे आया था वह दोबारा से मिट जाता है, एकबार फिर माँ-बेटे एक-दूसरे से बुरी तरह चिपक जाते हैं।

"तुम कब से नही चुदी?" उसने बिना समय गंवाए पूछा।

"अठारह दिनों से, अब खुश ...अब मुझे उठने दो" समय व्यतीत करने का कोई विशेष लाभ नही मिलने की वजह से वैशाली भी बिना सोचे-विचारे अतिशीघ्र जवाब दे देती है।

"पापा तुम्हें चोदते नही क्या? वह तो इस बीच दो रातें घरपर रुके थे और अपनी ये टांगें चौड़ाओ" अभिमन्यु का अगला सवाल जैसे पहले से ही तैयार था और साथ ही वह अपने दोनो हाथ अपनी माँ की जुड़ी हुई जांघों पर रख देता है। उसने दोबारा अपना चेहरा वैशाली के खुले बालों के भीतर कर दिया और पलभर मे पुनः उसकी गर्दन को चाटना शुरू कर देता है।

"मन्यु गलत है ये, तुम मुझे कमजोर कर रहे हो। बेटा अपनी माँ से ऐसे निजी सवाल नही करता, उफ्फ! मैं क्या करूं इस लड़के का" एकसाथ कई हमलों से बहकने के चरम पर पग धरती वह माँ कुंठा भरे स्वर मे बोली। यह उसपर बेटे की कोई जबरदस्ती नही थी, जबरदस्ती तब कैसे मानी जाती जब वह अपने बेटे की निकृष्ट इच्छा व आज्ञा के समर्थन मे बिना उसकी जोर-आजमाइश के खुद ही अपनी जांघों को पहले से भी कहीं अधिक चौड़ा देने का नीच कर्म कर बैठती है, उसके बेटे ने तो अपने हाथ मानो शून्य से कर लिए थे।

"तुम कमजोर नही डरपोक हो माँ। तुम भी मेरी हो और तुमसे जुड़ी हर बात, हर चीज भी अब मेरी है। आखिर हम दोनो ही एक-दूसरे से प्यार जो करते हैं" कहकर अभिमन्यु अपना ढ़ेर सारा लार अपनी माँ की गर्दन पर उगल देता है और फिर तत्काल वह अपनी जीभ अपनी ही लार मे लपलपाने लगा, उसे जीभ के जरिये उसकी पूरी गर्दन पर मलने लगता है और कुछ ही क्षणों बाद उने एकबार फिर से अपनी माँ की नाजुक गर्दन को तीव्रता से चूसना शुरू कर दिया था।

"वह थक गये थे इसलिए मुझे नही चोदा" कहने को तो कमुकता की चपेट मे पूर्णरूप से आ चुकी वैशाली के मुंह से अचानक 'चोद' जैसे देशी शब्द का उच्चारण हो गया था मगर कह चुकने के उपरान्त वह अब कर भी क्या सकती थी, बस अपनी जांघों की अंदरूनी मांसल त्वचा पर अपने नुकीले नाखून गड़ाते हुए वह अपनी सिस्कारियों को रोकने का व्यर्थ प्रयत्न करने लगती है। अपनी गर्दन पर अभिमन्यु के होंठों का मर्दन उससे बरदाशत कर पाना मुश्किल था और इसी बीच जाने कब निर्लज्जतापूर्ण ढ़ंग से वह अपनी कमर को पीछे धकेलते हुए अपनी गुदाज गांड बरबस अपने बेटे के खड़े कठोर लंड पर ठोकने लगती है, उसे स्वयं पता नही चल पाता।

"हमसब दो रोटी कम खा लेते, फिजूलखर्ची बंद कर देते, लोकल ट्रांसपोर्ट का यूज कर लेते, लाख तरीके हैं पैसे बचाने के मगर पापा को तो हमेशा तुम्हें सताने मे ही मजा आता है। अब देखो उनकी बीवी कितनी चुदासी हो गई है मगर चुदास बुझाने वाले वह यहाँ है नही और मैं पहले ही कह चुका हूँ कि तुम्हें चोदना नही चाहता" अभिमन्यु ने उसकी गर्दन को चूमना-चूसना कुछ पलतक रोकते हुए कहा, अपने नीच शब्दों पर वह खुद हैरान था और यह यकीनन इस बात का प्रमाण था कि अब कमरे का वातावरण कहीं से भी सामान्य या मर्यादित नही रहा था।
Reply
01-06-2019, 11:12 PM,
#20
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"मत ...मत करो ऐसी गंदी बातें अपनी माँ से। तुम्हारे पापा वाकई मुझे सताते हैं मन्यु और मैं कुछ नही कर पाती" अपने बेटे के विस्फोटक कथन से एकाएक दो तरफा बंट गई वैशाली अपने बाएं हाथ के पंजे मे खुल्लम-खुल्ला अपनी कच्छी के भीतर रस उगलती अपनी अतिसंवेदनशील चूत को भींचते हुए बोली और ठीक उसी वक्त अभिमन्यु अपनी दाईं हथेली से अपनी माँ के दाहिने मम्मे को जकड़ लेता है और बाएं पंजे को वह उसकी माँ के हाथ के ऊपर रख उसके साथ स्वयं भी उसकी चूत को दबोचने लगता है। कोई संकोच नही और ना ही कोई भय, वासना की प्रचूरता मे वह बेहद निर्भीक हो चला था। पहली बार वह अपनी माँ के गदराए अधनंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था और जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को अपने आप ही क्षीण कर दिया था।

वहीं वैशाली का हाल इससे भी बुरा था। उसकी गर्दन पर लगातार बेटे के होंठ रेंग रहे थे, वह बलपूर्वक ब्लाउज के ऊपर से उसका दायां मम्मा मसले जा रहा था, उसकी चूत मुख को ऐंठने व भींचने मे वह दोनो ही एकसाथ व्यस्त हो गये थे और स्वतंत्ररूप से उसकी गांड जोकि अब उसके स्वयं के वश से कोसों दूर काफी तेजी से बेटे के तने हुए लंड से रगड़ खाए जा रही थी, उसपर अविराम ठोकरें मारे जा रही थी।

"मैंने गलत नही कहा माँ, तुम सचमुच चुदासी हो और इस समय तुम्हें वाकई एक लंबे, मोटे-तगड़े लौड़े की जरूरत है जो तुम्हारी चूत मे घुसकर तुम्हें पटक-पटककर चोद सके, तुम्हारी चुदास पूरी तरह से मिटा सके" अभिमन्यु शर्म और हया की सभी सीमाओं को लांघते हुए कहता है।

"बोलो कि तुम चुदासी हो माँ और तुम्हें जी भरकर चुदना है, सिर्फ एक ताकतवर लौड़ा ही तुम्हारी असली प्यास बुझा सकता है और तुम्हें वह लौड़ा किसी भी हालत मे चाहिए" उसने नीचतापूर्वक अपने पिछले कथन मे जोडा़ और फिर बिना रूके पूरी शक्ति से अपनी माँ का दायां मम्मा निचोड़ने लगा, साथ ही कच्छी के ऊपर से फौरन वैशाली का हाथ झटककर अपने बाएं पंजे से स्वयं अकेले ही वह उसकी गीली चूत को रगड़ने लगता है।

"न ...नही, नही आह! नही चाहिए मुझे" सीत्कारते हुए वैशाली का मुंह खुल गया, उसकी गर्दन अकड़ने लगी और गहरी-गहरी सांसें लेती हुई वह अपने चरमोत्कर्श पर पहुँच जाने को विवश होने लगती है।

"तुम झूठी हो माँ, कहो कि तुम्हें इसी वक्त चुदना है। तुम्हें बस लंड चाहिए और कुछ नही वर्ना मैं अपने कमरे मे जाता हूँ" झूठी धमकी देकर भी अभिमन्यु उसके बदन को छेड़ना नही छोड़ता, बल्कि अब वह भी अपनी कमर हिला-हिलाकर अपनी माँ की गांड से ताल मिलाते हुए ही अपने विशाल लंड का तीव्रता से उसकी गांड पर देने लगा था।

"मत ...मत उन्ह! उन्ह! मन्यु मत ...मत" इसके आगे वैशाली की आवाज उसके गले से बाहर निकलना बंद हो जाती है और ठीक इसी निश्चित समय पर अभिमन्यु भी उसे एकदम से छोड़ देने का नाटकीय उपक्रम कर देता है।

"हाँ चाहिए मुझे लंड और मैं हूँ चुदासी, बहुत बहुत बहुत ज्यादा चुदासी है तुम्हारी माँ अभिमन्यु। मेरे लाल कुछ करो वर्ना ...." वैशाली ने सहसा चीखते हुए कहा और अविलंब बेटे के दाहिने हाथ को पकड़कर खुद अपनी कच्छी के ऊपर से अपनी गीली चूत पर पटापट थप्पड़ मारने लगी।

"आईऽऽ! मैं भी उन्हीं रंडियों की तरह बेशर्म होकर चुदना चाहती हूँ जिन्हें छुपछुप कर तुम चोदने जाते हो। मुझे भी रंडी बनना है, अभी बनना है, अभी हाल बनना है मन्यु" चिल्लाते हुए वैशाली के मुंह से लार बाहर निकल आती है, अपनी ही पापी इच्छा पर वह कामांध माँ अतिशीघ्र अपने बाल नोंचने लगी थी।

"उतारो अपनी कच्छी, तुम्हें चोदूंगा नही पर देखता हूँ इसके अलावा और क्या किया जा सकता है" अपनी माँ के हाथों से उसके बाल छुड़वाते हुए अभिमन्यु का दिल अंदर ही अंदर फट पड़ा था, उसके मन-मस्तिष्क मे बस एक ही गूंज उठ रही थी कि उसके वादे-अनुसार वह किसी भी परिस्थिति मे अपनी माँ को चोद नही सकता था पर यह भी जानता था कि उसकी माँ के दर्द का एकमात्र मर्ज सिर्फ उसका अपना लंड है क्योंकि उसका पिता पैसे कमाने मे व्यस्त था और उसकी माँ घर की चारदीवारी के बाहर कभी मुंह मार नही सकती थी, यदि मुंह मारना ही होता तो इतना दर्द झेलने पर मजबूर नही होती।

वह वैशाली को आगे झुकाकर उसके पीछे से तत्काल उठ खडा़ हुआ और अपने स्थान पर अपनी माँ को टिकते हुए उसकी सुर्ख लाल आखों मे झांकने लगता है। उसकी माँ के खुले बाल, ब्लाउस के भीतर उसकी तेजी से बढ़ती-घटती सांसों के प्रभाव से लगातार ऊपर-नीचे होते उसके गोल-मटोल मम्मे, मम्मों की गहरी घाटी के बीचों-बीच फंसा उसका पतिव्रत मंगलसूत्र, सपाट पेट नंगा, बेहद पतली कमर, पसीना एकत्रित करती उसकी गोल-गहरी नाभी, पेडू से भी नीचे सरक चुकी उसकी कच्छी और कच्छी की बगलों से बाहर झांकती उसकी घनी-घुंघराली काली झांटें, मांसल चिकनी दोनो जांघें, गौरवर्णी पिडलियां, पायल से सजी एडियां और उम्र मुताबिक घिस चुके दोनो तलवे; उसकी माँ का अत्यंत कामुक अंग-अंग उसकी आँखों को बेहद आकर्षित कर रहा था, साथ ही आनंदित और आंदोलित भी।

"उतारो कच्छी, अपनी टांगें क्यों मोड़ ली?" अपने बेटे की आँखों का अपनी माँ के अधनंगे बदन का यूं खुल्लम-खुल्ला शर्मनाक अवलोकन करना वैशाली सहन नही कर पाती और अपने घुटनों को मोड़ लज्जा से अपना सिर नीचे झुकाकर गुपचुप बैठ जाती है मगर जल्दबाजी मे वह यह भूल गई थी कि अपने पैरों को मोड़कर उन्हें अपनी छाती से चिपकाकर बैठने से उसने अभिमन्यु पर अचानक क्या गदर ढ़ा दिया था। उसकी कच्छी जो कि पहले से ही उसकी गांड की गहरी दरार के भीतर फंसी हुई थी उसकी तात्कालिक बैठक के बाद तो जैसे उसकी गांड के दोनो पट बिलकुल नंगे दिखाई देने लगे थे और तो और कच्छी का सेटिन कपडा व हल्के पीले रंग की रंगत के गीले हो चुकने के उपरान्त उसकी चूत का पूरा फूला उभार कच्छी के ऊपर से अभिमन्यु को स्पष्ट नजर आ रहा था, यहाँ तक की वह अपनी माँ की चूत के दोनो सूजे होंठों का निरंतर फड़फड़ना भी प्रत्यक्ष देख पा रहा था।

"उतारो ना कच्छी या कहो तो मैं खुद उतार दूँ" कहकर वह वैशाली की ओर अपने हाथ बढ़ाने लगता है।

"खबरदार मन्यु" एकाएक वह कठोर स्वर मे बोली और जिसके नतीजन सकपकाकर अभिमन्यु फौरन अपने हाथ पीछे खींच लेता है।

"चोदोगे नही तो फिर कैसे शांत करोगे अपनी माँ को? उसकी चूत मे उंगलियां डालकर या सीधे चूत को अपनी जीभ से चाटने लगोगे, होंठों से उसे चूसने लगोगे? इसके बाद कहोगे कि माँ अब तुम मेरा लंड हिलाओ या अपने मुंह से चूसकर मुझे भी शांत करो, है ना?" वैशाली ने पिछले कथन मे जोड़ा मगर इसबार उसका स्वर सामान्य था। कोई क्रोध नही, कोई शर्म नही, कोई अतिरिक्त हकलाहट भी नही; बिलकुल शांत।

"देखो मन्यु! इतने दूर पहुँचकर मैं यह नही कहती कि वापस पीछे लौटो, मैं खुद नही लौट सकूंगी पर यह भी सही नही कि हम एकदम से अपने रिश्ते की पवित्र दीवार को ढ़हा दें। मुझे कुछ वक्त दो, तुम मुझे चोदना नही चाहते यह वाकई तुम्हारी तारीफ है पर मेरे बारे मे भी तो सोचो कि तुम्हारी सगी माँ होने के बावजूद कहीं मैं खुद बहक गई फिर तुम्हारे प्रॉमिज का क्या मतलब रह जाएगा?" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वैशाली अपने हाथ के दोनो अंगूठे एकसाथ अपनी कच्छी की इलास्टिक के भीतर फंसा लेती है और अपनी मुड़ी हुई टांगों को हवा मे ऊपर उठाकर कच्छी को हौले-हौले अपने यथावत स्थान से उतारने लगी।

"तुम चाहो तो एकबार फिर से अपनी माँ की नंगी चूत को देख सकते हो, बल्कि मैं खुद ही चाहती हूँ कि मेरा सगा जवान बेटा सचमुच मेरी चूत को जी भर देखे" अभिमन्यु के चुपचाप बैठे रहने के कारण वह उसे उत्साहित करते हुए बोली और अपनी उतर चुकी कच्छी को सीधे अपने बेटे के चेहरे पर मारकर जोरों से हँस पड़ती है।

"नाराज मत होना मॉम बट मुझे भी टाइम चाहिए सोचने को और फिर इसे मेरी खुल्ली धमकी समझो या मेरा प्यार कि अगली बार मैं तुम्हारे रोके नही रुकूंगा, तुम्हें चोदने के अलावा तुम्हारे साथ मुझे जो कुछ करना होगा मैं वह करके ही मानूंगा" ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ को सफा चौंकते हुए अत्यंत तुरंत बिस्तर से नीचे उतर जाता है, वैशाली के अपनी कच्छी को उतारकर अपनी टांगें विपरीत दिशा मे चौड़ा देने के बाद भी उसने अपनी एक नजर अपनी माँ की नंगी चूत पर नही डाली थी और बेटे की इसी विशेष हरकत ने उसकी माँ को सहसा अचंभित कर दिया था। वह वैशाली की कच्छी को वहीं बिस्तर पर छोड़कर अपने खुद के उतरे हुए कपड़े फर्श से उठाने लगा है और फिर धीमे स्वर मे उसे "गुड नाइट" कहकर तेजी से उसके बेडरूम से बाहर निकल जाता है।

तिरस्कार! इस शब्द से शायद ही संसार की कोई परिपक्व स्त्री अंजान होगी, पहले अपने पति मणिक के और अब अपने बेटे अभिमन्यु के हाथों तिरस्कृत होकर ना चाहते हुए भी वैशाली उसे खुद से दूर जाने से रोक नही पाती, बस हतप्रभ कभी अपनी कच्छी को तो कभी गाढ़े रस से सराबोर अपनी चूत को घूरते हुए लंबी-लंबी सांसें भरने लगती है। वहीं अपनी माँ की अंतिम बातों व तर्कों ने अभिमन्यु को एकाएक भीतर तक हिलाकर रख दिया था और पहली बार वह उनके पवित्र रिश्ते की निरंतर तीव्रता से खोती जा रही गरिमा के विषय मे सोचने पर मजबूर था, हालांकि वह तत्काल क्या सोचकर अपनी माँ के बेडरूम से बाहर निकल आया था इसका कोई कारण तो उसे नही सूझ पाता मगर अपने बिस्तर पर गिरते ही अब यकीनन वह पहले से कहीं अधिक गंभीर हो चुका था।

बिस्तर एक से परंतु उनपर लेटे प्राणियों की आँखें नींद से मीलों दूर, दिन तो बीत गया था पर यह रात थी जो बीतने का नाम ही नही लेना चाहती थी।

प्रातःकाल अभिमन्यु की नींद जरा देर से खुली, यह कतई उसकी दिनचर्या मे शामिल नही रहा था कि बीती रात वह कितनी ही देर तक क्यों ना जागता रहा हो मगर सुबह तड़के ना उठ सके। पलकें खोल उसने दीवार घड़ी पर नजर ड़ाली और अत्यंत-तुरंत निद्रा की बची खुमारी से बाहर निकल आता है, साढ़े आठ बज चुके थे और रोज की तरह अबतक उसे कॉलेज जाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए था।

"शिट! आज लेट हो गया" एक जोरदार अंगड़ाई लेते हुए सहसा उसे अपनी नग्नता का अहसास हुआ और बीती रात का हर लम्हा मानो किसी चलचित्र की भांति उसके मन-मस्तिष्क मे घूमने लगता है।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,448,953 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 538,471 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,211,048 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 915,505 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,622,924 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,055,544 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,909,209 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,917,409 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,977,733 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 279,958 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)