Maa ki Chudai माँ का दुलारा
10-30-2018, 06:17 PM,
#71
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मैं मखखां ले आया. डॅडी बस अपनी लंड सहलाते हुए बैठे रहे. छोटा
होने की वजह से सारी तैयारी मुझे ही करनी पड़ी. मैने बुरा नही माना, बल्कि
काफ़ी मस्ती का अनुभव कर रहा था. पहले मैने मा की पैंटी की पत्ती बाजू मे
की और गान्ड मे प्यार से मख्खन चुपडा. फिर हथेली पर लेकर डॅडी के लंड
पर लगाया. डॅडी के मस्त हुए शिश्न को मख्खन लगाने मे बड़ा मज़ा आ रहा
था. मैं मख्खन चुपड रहा था तभी उन्होने प्यार से मुझे बाहों मे ले
लिया और मुझे चूमने लगे. बार बार मेरे होंठों, गालों और आँखों को
चूमते हुए बोले "अनिल मेरे बेटे, बहुत प्यारा है तू, इतना सुख दे रहा है
मुझे. बहुत रसीला भी है तू, अब मन लगाकर तेरा रस चखूँगा"

वे पीछे से मा पर चढ़े और मैने मा के चूतड़ फैलाकर मा की गान्ड मे
लंड डालने मे उनकी मदद की. शशिकला जो मा के नीचे दबी हुई मा की बुर
चाट रही थी, हँसकर बोली "वाह, मुझे क्या व्यू मिला है! बिलकुल पास से देख
रही हू मेरी मम्मी की गान्ड मे घुसते डॅडी के लंड को"

डॅडी मा की गान्ड मारने लगे. मख्खन से चिकनी गान्ड मे सपासाप उनका
लंड अंदर बाहर होने लगा. इस बार मा बिलकुल नही कराही, पिछली बार मारने
पर काफ़ी सिसकी थी. पर आज एक तो उसकी गान्ड को अब आदत हो गयी थी, दूसरे
शशिकला के साथ सिक्स्टी नाइन करने मे उसे वह लुत्फ़ आ रहा था कि और कोई
परवाह उसे नही थी. शशिकला बीच बीच मे मा की बुर से मूह हटकर डॅडी
के अंदर बाहर होते लंड पर जीभ लगा देती.

मैं वैसे ही बैठा यह मस्ती देख रहा था. लगता था मैं भी चढ़ जाउ और किसी
को चोद डालु पर समझ मे नही आ रहा था, दोनों औरतों की चुते और मूह
व्यस्त थे. शशिकला की गान्ड ज़रूर खाली थी पर वह मा के नीचे दबी होने से
उसे चोदने की कोई गुंजाइश नही थी.

शशिकला ने मुझसे चुटकी ली "अब तू क्या करेगा अनिल?" मैं बस देखता रहा.
डॅडी थोड़े तिरछे हुए और बोले "मेरे अनिल को मत तंग करो. इतना प्यारा लड़का
है. अनिल, आओ बेटे, यहाँ मा के बाजू मे लेटो. मैं तुम्हारा ये जवान रसीला लंड
चूसना चाहता हू"

शशिकला हंस पड़ी "हाँ अनिल, हमने कब से ये आसान सोच रखा था, शादी के
बाद की चुदाई का पहला आसन. आ जा, शरमा मत, डॅडी तो कब से प्यासे है तेरी
जवानी के"

धड़कते दिल से मैं मा के बाजू मे लेट गया. डॅडी ने झुक कर प्यार से मेरे
सुपाडे को चूमा, जीभ से चाटा और फिर मूह मे ले लिया. ज़्यादा खिलवाड़ के लिए
उनके पास समय नही था. मूह खोल कर मेरा पूरा लंड उन्होने निगल लिया और
चूसने लगे. चूसते चूसते फिर से मा की गान्ड मारने लगे.

बीस पचीस मिनित बाद जब वे झाडे तो सभी सुख के चरम शिखर पर पहुँच
गये थे. मा और शशिकला दीदी तो कई बार झाड़ चुकी थी. मुझे भी यह सुख
सहन नही हो रहा था. डॅडी ... अशोक अंकल ... बहुत मस्त चूस रहे थे, बाद
बाद मे तो मैं सब शरम भूल कर उनके सिर को पकड़कर नीचे से धक्का दे
देकर चूतड़ उछाल उछाल कर उनका मूह चोद रहा था. इधर वे झाडे और उधर
मेरा वीर्य भलभलाकर उनके मूह मे उबल आया. डॅडी ने हान्फते हुए चूस
चूस कर मेरा वीर्य निगला, एक बूँद नही छोड़ी. मेरा लंड सिकुड कर ज़रा सा हो
गया पर डॅडी चोदने के मूड मे नही थे, उसे मूह मे लेकर चाकलेट की
तरह चूसते ही रहे.

जब डॅडी मा पर से उतरे तो शशिकला ने गर्दन आगे करके मा की गान्ड का
छेद चूम लिया. उसमे से डॅडी का वीर्य बह रहा था. मा के उस गुलाबी चुदे
हुए छेद मे से बहता वह गाढ़ा सफेद वीर्य बहुत स्वादिष्ट दिख रहा था.
शशिकला पड़े पड़े उसे चाटने लगी. मैं तक लगाकर देख रहा था.

शशिकला ने मुझे भी बुलाया "अलग क्यो पड़ा है अनिल? नही चाहिए कामदेव
का यह प्रसाद? आ ना, चख ले, शरमा मत, अरे इसी रस के लिए तो असली रसिक
मरते है."

मैं उठकर मा के चुतडो पर झुक कर चाटने लगा. शशिकला ने मूह
हटा लिया "फिफ्थी फिफ्थी भैया, आधा तुम, आधा मैं" बारी बारी से हम दोनों
अशोक अंकल का वीर्य चाटने लगा. मुझे स्वाद अजीब सा लगा, कसैला, खरा सा पर
एकदम मादक . मैने मन भरके मा की गान्ड चूसी. मा की गान्ड का
सौंधा सौंधा स्वाद उसमे लग गया था. बाहर निकलता वीर्य ख़तम हो गया
तो फिर मैने मा की गान्ड चौड़ी की और अंदर जीभ डालकर चाटने लगा. मुझे
लगा था कि दीदी अब बंद कर देगी पर वह तो उस्ताद निकली. "अनिल, मम्मी की गान्ड
खोल कर रख और मुझे भी स्वाद लेने दे, मन नही भरा अब तक" और जीभ अंदर
डाल दी.
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10-30-2018, 06:17 PM,
#72
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
कुछ देर सब पड़े रहे. आख़िर डॅडी उठे और बोले "आज सच मे लग रहा है कि
हमारे दो परिवार एक हो गये है. मुझे तो मज़ा आ गया. मम्मी, मेरा मतलब
है रीमा आंटी ... याने मेरी डार्लिंग वाईफ की ये गुदाज गान्ड मारन को मिली और साथ
साथ इस मतवाले नौजवान बेटे की मलाई मिल गयी चखने को. किसी को और क्या
चाहिए हनीमून की रात मे. डार्लिंग, ये जो अनिल का वीर्य था, याने उसकी क्रीम,
सच मे एकदम स्वाद आ गया, मर्दानी जवानी का यह असली स्वाद बहुत दिनों मे
मिला मुझे. अनिल बेटे, तुझे मज़ा आया या नही"

मैं कुछ नही बोला, बस मुसकाराता रहा. मा बोली "अरे उससे क्या पूछते हो,
उसका चेहरा बता रहा है कि वह कितना खुश है. शशि बेटी, मान गये तेरे
इस आसन की कल्पना को"

शशिकला बोली "इसमे कुछ नही है मम्मी, अब तो मिल जुलकर नये नये तरीके
ढूंढ़ेंगे, चार लोगों मे न जाने कितने कंबिनेशन बन सकते है" उठकर
वह वाइन ले आई. हमने वाइन पी और गप्पे लगाते हुए कुछ देर आराम किया. वाइन के
उस नशे से धीरे धीरे सब को फिर से खुमारी चढ़ गयी.

डॅडी बोले "मेहनत करके कुछ भूख लग आई है शशि, तूने कुछ इंतज़ाम
नही किया" वे शैतानी से मुस्करा रहे थे. मा भी मुस्करा रही थी. शशिकला
ने कनखियों से मेरी ओर देखते हुए कहा "अभी इतनी जल्दी, दो चार और
कुश्तिया हो जाने दीजिए, फिर खाएँगे. खाना थोड़ा और स्पाइसी हो जाएगा" मुझे
लगा कि मेरे सिवाय सब जानते थे कि क्या बाते हो रही है पर मैने नही पूछा.
सोचा वैसे ही पता चल जाएगा.

हम फिर झूठ गये. इस बार डॅडी ने दीदी को चोदा और मैने मा को. चोदते
चोदते आपस मे लिपत कर हम चुमाचाटी करते रहे. कभी डॅडी गर्दन
बढ़ाकर मा को चूम लेते या बारी बारी से मा और शशिकला की चूंची को ब्रा
के उपर से ही चूसने लगते. मैं हाथ बढ़ाकर दीदी के मम्मे दबा रहा था.
बहुत मज़ा आ रहा था, मैने जानबूझ कर अपने आप को लगाम दी कि झाड़ न जाउ.
डॅडी जल्दी झाड़ गये. मैं मा को लगातार चोद रहा था. जब डॅडी शशिकला
पर से अलग हुए तो मैने देखा कि उसकी चूत से डॅडी का सफेद गाढ़ा वीर्य बह
रहा है. अशोक अंकल के लंड पर भी उनका वीर्य और दीदी की बुर का चिपचिपा
पानी लगा हुआ था. मेरा मन हुआ की फिर से दीदी की बुर मे मूह मार दूं. उसके उस
शहद को चाटने का मन तो था ही, साथ मे यह भी आस थी कि फिर से डॅडी का वह
अनोखा वीर्य चखने मिल जाएगा.

मा के मन मे और कुछ था. मेरे कान पकड़कर बोली "चल बड़ा आया. ये मेरे
हिस्से का प्रसाद है, पिछली बार तुम दोनों ने चख लिया, अब मेरी बारी है." और
लेट कर शशिकला की बुर से बह रहे पानी और वीर्य को चाटने लगी. चाटते
चाटते वह मुझसे चुदवा भी रही थी, अपनी कमर हिला हिला कर मेरा लंड
अंदर ले रही थी.

शशिकला मुझे बोली "अनिल, तू फिकर मत कर, डॅडी का लंड चाट ले. मूह मे
लेकर देख, मज़ा आएगा! अब तक तूने लंड मूह मे नही लिया होगा ना? देख ले,
मज़ा आ जाएगा!"

मैं मस्ती मे था. मा की चूत मे मैने लंड पेलना जारी रखा और मूड कर
डॅडी के लंड को हाथ मे ले लिया. अब वह सिकुड कर छोटा हो गया था. मैने उसे
पूरा मूह मे भर लिया. अच्छा लग रहा था, नरम नरम लंड मूह मे लेकर
मन हो रहा था कि चबा कर खा जाउ. मैं चूसता रहा, दीदी और डॅडी के
मिलेजुले स्वाद का लुत्फ़ उठाता रहा.

अशोक अंकल ने मेरा सिर पकड़कर मेरा चेहरा अपने पेट पर दबा लिया. मेरे
बालों मे प्यार से उंगलियाँ फेरते हुए बोले "ओह ओह मेरे राजा, कितना अच्छा लग
रहा है तेरे मूह का यह गरम गीला दबाव मेरे लंड पर. चूस बेटे, चूस ले,
तुझे निराश नही करूँगा मैं"

जल्दी ही उनका लंड कड़ा होने लगा. दो बार झड़कर भी फिर तैयार होते उस लंड को
देख कर मैने मन ही मन डॅडी की दाद दी, क्या रसिक पुरुष है! और इतने
हॅंडसम! मा मुझे अब भी चोद रही थी. उसने डॅडी से लिपटकर
चुमाचाटी शुरू कर दी. बोली "पसंद आया मेरा बेटा अशोक? कैसा लगा अपना
ये बेटा? मैं जानती थी कि तुम दोनों की खूब जमेगी. इसलिए मुझे शादी मे
कोई हिचकिचाहट नही हुई"

"रीमा डार्लिंग, तुम्हार बेटा, हमारा यह बेटा तो हीरा है, अब देखना हमारा
परिवार इस सेक्स के आनंद मे कहाँ से कहाँ जाता है" डॅडी मस्ती भरी आवाज़ मे
बोले.

इस बीच शशिकला उठकर अपने डॅडी के पीछे आकर लेट गयी थी. उसने
अशोक अंकल के चुतडो को प्यार से सहलाया और चूमा. फिर उनकी गान्ड
चाटने लगी. कुछ देर बाद उसने हाथों मे उनके चूतड़ पकड़कर उन्हे अलग
किया और उनके गुदा के छेद पर मूह लगा कर चूसने लगी.

"ओह ओह बेटी, बहुत अच्छा लगता है, और कर ना, जीभ अंदर डाल" वे सिसक कर
बोले. उनका लंड अब फटाफट लंबा होने लगा था.

मा बोली "शशि, तू तो बहुत पहुँची हुई निकली! ये पहली बार नही कर रही है
डॅडी के साथ ऐसा लगता है"
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10-30-2018, 06:17 PM,
#73
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
शशिकला सिर उठाकर बोली "हाँ मम्मी, डॅडी को बहुत अच्छा लगता है.
उनकी गान्ड बहुत सेन्सिटिव है. मैं हमेशा मूह लगाकर चाट्ती हू, वे
एकदम बहक जाते है. इसी तरीके के बल पर मैं रात रात भर उनसे अपनी सेवा
करवाती हू. वैसे डॅडी की गान्ड काफ़ी प्यारी सी है, गोरी चिकनी और भरी हुई, कोई
गान्ड का पुजारी हो तो झूम उठेगा इसे पाकर"

अब डॅडी का लंड पूरा खड़ा हो गया था. मैं उस आठ इंची लंड को पूरा नही
निगल पाया. थोड़ा निकालकर आधा मूह मे लेकर चूसता रहा. उसका सुपाडा अब
फूल कर थिरक रहा था. "बहुत अच्छा चूस रहा है मेरे लाल. चूस, जैसा चाहे
चूस, पूरा लेकर चूसता तो मैं निहाल हो जाता पर अभी तू छोटा है, पहली बार
है, मैं सिखा दूँगा, या फिर तेरी ये मा या दीदी सिखा देंगी कैसे लंड चूसा जाता
है, ये दोनों तो पहुँची हुई है" डॅडी बोले.

मा ने उन्हे अपनी ओर खींचा और अपनी चूंची उनके मूह मे दे दी. "बहुत
पाटर पाटर कर रहे हो अशोक, चलो मेरा स्तन पान करो. ब्रा के उपर से ही करो,
ब्रा पतली है, निपल को आराम से महसूस होगा तुम्हारे मूह का दबाव."


अगले कुछ मिनिट मस्ती मे गये. मैं मा को चोदते हुए अशोक अंकल का लंड
चूस रहा था. अशोक अंकल ... डॅडी ... मा के उरोज को उस ब्रा के उपर से ही चूस
रहे थे और मेरे सिर को अपने पेट पर दबाते हुए कमर हिला हिला कर हौले
हौले मेरे मूह को चोद रहे थे. उनकी बेटी उनके पीछे से उन्हे चिपटी थी
और उनके चुतडो को पकड़कर अलग करके बड़े प्यार से अपनी जीभ अंदर डाल
डाल कर उनका गुदा चूस रही थी.

बीच मे डॅडी ने मा की चूंची से मूह उठाकर उसके कान मे कुछ कहा. मा
मुस्काराकर बोली "हाँ ठीक है पर उसे वैसे भी अच्छा लगेगा"
उसके बाद मा ने मुझे चोदने की रफ़्तार कम कर दी. मैं धक्के लगाता तो
टाँगो मे मेरी कमर पकड़कर रोक देती. डॅडी मन लगाकर मेरे मूह मे
लंड पेल रहे थे. मैं भी प्यार से चूस रहा था. अब डॅडी का लंड सख़्त होकर
थरथराने लगा था. जब डॅडी का शरीर अचानक तन सा गया तो शशिकला ने
तुरंत उनकी गान्ड मे उंगली डाल दी और ज़ोर से अंदर बाहर करने लगी. "अनिल,
तैयार रहना, डॅडी अब तुझे अपनी क्रीम खिलाने वाले है"

डॅडी एकाएक मेरे मूह मे झाड़ गये. मैं इतनी मस्ती मे था की लपलप वह
गाढ़ा गरम गरम वीर्य पी गया, एक दो घूँट के बाद मैने उसे निगलना बंद
करके मूह मे भरके जीभ पर घूमाकर स्वाद लेना शुरू कर दिया. पहली बार
डॅडी का वीर्य मैने डायरेक्ट पिया था, बहुत अच्छा लगा. जिस तरह से अपने बंद
मूह से वे सिसकारियाँ निकाल रहे थे उससे साफ था कि उन्हे भी कितना आनंद आया
होगा. मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैने उन्हे इतना सुख दिया. मा ने मेरी
कमर से टांगे हटा ली और मैने फटाफट उसे चोद डाला और झाड़ गया.

मा बोली "अच्छी लगी बेटे डॅडी के लंड की क्रीम?"

मैने हाँ कहा. मा बोली "डॅडी चाहते थे कि उनके झड़ने के पहले तू न
झाडे जिससे उनके लंड का पूरा स्वाद ले सके मस्ती से. मेरे कान मे बोले कि अनिल
को अभी मत झड़ने दो. अगर तू पहले झाड़ जाता तो शायद उतने चाव से वीर्य
नही पीता. है ना?"

मैने जोश से मना किया. "नही मा, मैं तब भी मन लगाकर स्वाद लेता. अंकल ...
याने डॅडी की मलाई बहुत अच्छी है. तुम्हारी चूत भी तो मैं झड़ने के बाद
भी चूसता हू. असल मे मुझे स्वाद ही बहुत पसंद है."

डॅडी खुश होकर बोले "मेरा बेटा है असली रसिक फिर भी मैने सोचा कि पहली
बार है, ज़रा मस्ती मे रहने दो. अच्छा डार्लिंग, अब ज़रा टांगे अलग करो तो
अपने बेटे की मलाई मैं तुम्हारी बुर मे से चख लू"

शशिकला तैश मे आकर बोली "बिलकुल नही डॅडी. अब मेरी बारी है, आप और अनिल
तब से मज़ा ले रहे है क्रीम का, ये सब मेरी है" और उसने चाट चाट कर मा की
बुर पूरी साफ कर दी.
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10-30-2018, 06:17 PM,
#74
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
सब थक गये थे और भूख भी लगी थी. अंकल फिर बोले "अब तो इंतज़ाम करो
शशि, कुछ खाना पीना हो जाए."

शशिकला बोली "आप को तो मालूम है डॅडी, क्यो नखरा करते है? इंतज़ाम
यही है. मैने मम्मी को भी बता दिया था, उसकी भी यह पहली बार है.
बेचारे अनिल को कोई अंदाज़ा नही है. अनिल, तू बता, यहाँ पलंग पर ही हम बिना
उतरे खा सकते है ऐसा कोई स्नैक है?"

मैने इधर उधर देखा. कुछ नज़र नही आया. शशिकला हँसने लगी. "तुझे
नही समझ मे आएगा. हम शुरू करते है, तू भी देख और आ जा. आइए डॅडी,
मम्मी से ही शुरू करते है. सीधे उसके बदन से ही खाएँगे, उतरने की
ज़रूरत नही है, ऐसे ही मज़ा आएगा."

"
हाँ हाँ चलो, मैने तो थोड़ा टेस्ट कर भी लिया" कहकर डॅडी मा के पास
गये और उसकी ब्रा के कप को बाजू से मूह मे भर कर चबाने लगे. मैने
ध्यान से देखा तो मा के स्तन पर चढ़ि ब्रा के एक कप की नोक गायब थी, उसमे
से अब मा का निपल दिखने लगा था. मुझे याद आया कि यह वही चूंची थी जिसे
मूह मे लेकर डॅडी पिछली चुदाई के वक्त चूस रहे थे.

डॅडी ने मा की ब्रा का एक ठुकड़ा दाँतों से काट लिया और चबाने लगे. वहाँ
शशिकला मा की पैंटी पर टूट पड़ी थी. मा की बर को ढकने वाली पत्ती को
मूह मे लेकर उसने एक ठुकड़ा तोड़ा और चबाने लगी.

मैं देखता रह गया. मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था. ये लोग कैसे ब्रा
और पैंटी खा रहे है? शशिकला ने इशारे से मुझे पास बुलाया कि तू भी शुरू
हो जा. मा बस मंद मंद मुस्करा रही थी, प्यार से डॅडी और शशिकला के
बालों मे उंगलियाँ फेर रही थी.

मैं मा के पास गया और उसकी दूसरी चूंची ब्रा के कप सहित मूह मे लेकर
चूसने लगा. एकदम मीठा स्ट्रॉबरी जैसा स्वाद था. मैने दाँत से मा की ब्रा
के कप का एक ठुकड़ा तोड़ा और चबाने लगा. रबर जैसा था पर सात आठ बार
चबाने के बाद मूह मे टूटने लगा. चुइंग गम जैसा था पर बाद मे मूह मे
चॉकलेट जैसा घुल जाता था. उसमे मा के बदन की महक भी थी.

मैने मा की ओर देखा और पूछा "मा तुम्हे मालूम था? पर ये है क्या? किस
चीज़ का बना है? बहुत स्वादिष्ट लगता है"

"बेटे, ये एडाइबॉल अंडरवीअर है, बाहर के देशों मे बहुत चलती है. ब्रा और
पैंटी की फेटिश रखने वाले इसका इस्तेमाल करते है, क्योकि साड़ी कपड़े या
नायालन की ब्रा या पैंटी खाई नही जा सकती ना! ये शशिकला अक्सर ये एदिबल
अंडरवईयर इस्तेमाल करती है, अशोक को पसंद है इसलिए. इसी ने कहा कि अनिल को
सरप्राइज़ देंगे. बता ना शशि ठीक से अनिल को" मा ने मुझे चूमते हुए कहा.
वह उत्तेजित थी. तीनों मिलकर उसकी ब्रा और पैंटी खा रहे थे, ये बात उसे बहुत
मादक लग रही थी.

शशिकला ने मूह मे का ठुकड़ा निगलते हुए कहा "अरे डॅडी के लिए खास ये
चीज़ ढूंढी मैने एक साल पहले. मेरी ब्रा और पैंटी पर बहुत फिदा है ये,
मूह मे लेकर चूसते थे, नायालन के कपड़े को कभी कभी चबा कर फाड़ देते
थे, खा भी नही सकते थे इसलिए झल्लाते थे. एक बार मैं जब न्यूयार्क गयी तब
वहाँ फर्टी सेकंड स्ट्रीट पर ये मिली, बहुत फ्लेवर मे आती है. अब मैं यही
मँगवा लेती हू. डॅडी मुझे ये पहनकर रात भर इश्क करते है और फिर खा
जाते है, उन्हे बहुत मज़ा आता है. फिर मैने भी ट्राई की, डॅडी के लिए भी ऐसी ही
मँगवाई. मुझे भी अच्छी लगने लगी. इसलिए जब हनीमून का प्लान बनाया तो
साथ ये ढेरों ले ली. अब हर रात को एक जोड़ी पहनेंगे."

"
तो ये जो डॅडी और मैने पहनी है वह भी ... ?" मैने भोंचक्का होकर
पूछा. अब मुझे समझ मे आया कि मेरा जंघिया इतना मुलायम और चिकना
क्यो था.

"और क्या, तुझे क्या लगा? अब हम लोग भी खाएँगे" शशिकला बोली. अब तक डॅडी
मा की ब्रा का एक कप खा चुके थे और बाजू के स्ट्रीप पर जुटे थे. मैने भी
जल्दी जल्दी मूह चलाना शुरू किया. पाँच मिनित मे मम्मी की ब्रा और पैंटी
ख़तम हो गयी. खास कर मा की बुर के सामने की पत्ती लाजवाब थी, मा की
चूत के रस से भीग कर उसका स्वाद गजब का हो गया था.

शशिकला ने मुझे पलंग पर गिरा कर कहा "अब तेरी बारी है, आओ मम्मी, आइए
डॅडी, अनिल का स्वाद ले"

डॅडी ने मेरे जंघीए के पिछले भाग मे मूह लगाया और मेरे नितंब पर का
एक ठुकड़ा तोड़ कर मूह मे ले लिया. "वाह" मूह चलते हुए बोले "मेल अंडरवीअर
का अलग स्वाद रखा है इन्होने, थोड़ा पीयर जैसा"
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10-30-2018, 06:17 PM,
#75
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मा और शशिकला मेरे जंघीए को आगे से खाने मे जुट गयी थी. खाते खाते
खेल खेल मे बार बार मेरा लंड मूह मे ले लेती. मेरा जंघिया ख़तम होते होते
मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया.

मेरे बाद सब ने शशिकला की ब्रा और पैंटी खाई और अंत मे हम डॅडी पर जुट
गये. मेरे हिस्से मे डॅडी के लंड को ढकने वाला भाग आया. लंड से निकले वीर्य
से भीग कर वह महक रहा था. डॅडी का लंड भी अब खड़ा था.

हँसते खेलते सब ने फिर से वाइन पी, सब अगले राउंड के लिए तैयार थे. अशोक
अंकल मूड मे थे, पाठ पड़े कमर उचका कर अपना लंड बिस्तर पर रगड़ रहे
थे जैसा पुरुष अकेले मे अक्सर करते है. शशिकला उनके गोरे गोरे चूतड़
सहलाने लगी. "अनिल देख, कैसी है डॅडी की गान्ड? अगर कोई सिर्फ़ इतनी ही देखे तो
ये नही कह सकता कि औरत की है या मर्द की. यही कहेगा कि कितने प्यारे चिकने
गोरे चूतड़ है!"

मैने हाँ कहा. वाकई मे अंकल के चूतड़ पुष्ट चिकने और गोरे थे.
शशिकला आगे बोली "अब के आसन मे तू डॅडी की गान्ड को प्यार कर. उन्हे अब तीनों
ओर से सुख मिलना चाहिए, मूह से, लंड से और गान्ड से. तेरे जवान लंड से
बढ़िया क्या हो सकता है डॅडी की गान्ड को सुख देने के लिए."

याने प्लान यह था कि मैं अशोक अंकल ... डॅडी ... की गान्ड मारूँगा! सुनकर
मुझे अजीब तो लगा पर मज़ा भी आया. क्या बात है! अंकल की उस कसी हुई गान्ड
मारने का लुत्फ़ ही कुछ और होगा. मेरा लंड और तन गया. देखकर अंकल खुश
हो गये. "देखा, कितना प्यार करता है मेरा बेटा मुझे, चलो शशि, रीमा
डार्लिंग, जल्दी आओ, मुझे अब सहन नही होता."

"
डॅडी, पहले आप ऐसे आइए और झुक कर खड़े होइए. अनिल आप की गान्ड मारेगा.
हम भी तो ज़रा देखे कैसे दो खूबसूरत मर्द एक दूसरे पर चढ़ते है. फिर
हम लोग भी बिस्तर पर आप के साथ आ जाएँगे" शशिकला ने हुक्म दिया.

अशोक अंकल उसका कहा मानकर बिस्तर पर से उठे और मुझे ज़ोर से चूम लिया.
मेरे तन्नाये लंड को मुठ्ठी मे लेकर सहलाते हुए बोले "क्या मस्त खड़ा है ये
सुंदर हथियार तेरा अनिल! मेरी गान्ड को यह ज़रूर मस्त कर देगा. आ जा बेटे"
वे बिस्तर के सिरहाने को पकड़कर झुक कर खड़े हो गये. शशिकला मेरा हाथ
पकड़कर मुझे उनके पीछे ले गयी. मेरे लंड को मख्खन लगाकर बोली "चल
अनिल, शुरू हो जा"

मैने पूछा "दीदी, डॅडी की गान्ड मे मख्खन नही लगाओगि? उन्हे दर्द होगा"
वह शैतानी से मुस्काराकर बोली "अरे नही, कोई ज़रूरत नही है, उन्हे आदत है
मरवाने की. ऐसे क्यो देख रहा है? तू समझ रहा है वो बात नही है, आज तक
उन्होने किसी मर्द से इश्क नही किया है, वे और किसी से नही मरावाते, मैं ही कभी
कभी डिल्डो लगाकर डॅडी को खुश कर देती हू. चल अब, देर मत कर"
मा सोफे पर बैठकर अशोक अंकल के चुंबन लेने लगी. शशिकला उनके
सामने नीचे फर्श पर बैठ गयी और उनका लंड मूह मे ले लिया. अंकल मस्ती से
अपने चूतड़ हिलाने लगे, कमर हिला कर शशिकला के मूह को चोदने की
कोशिश करने लगे. मुझे बोले "अनिल बेटे, प्लीज़, जल्दी आ जा, मैं तुझे अंदर
लेना चाहता हू"

मैने उनकी गुदा पर सुपाडा रखा और पेल दिया. पक्क से वह आराम से अंदर
चला गया. सिसक कर डॅडी बोले "ओह ओह मज़ा आ गया बेटे, काफ़ी बड़ा है, डिल्डो
का सुपाडा नही होता ना, सुपाडे का मज़ा और ही है. डाल और अंदर"
मैने उनके चूतड़ पकड़कर पूरा लंड अंदर घुसेड दिया. आराम से पूरा लंड
डॅडी की गान्ड मे समा गया. काफ़ी नरम और तपि हुई म्यान थी. किसी पुरुष की
गान्ड मार रहा हू, वह भी अपने सौतेले डॅडी की, यह भावना भी बहुत
कामुक थी. मैने उनकी कमर को पकड़ा और चालू हो गया जैसा ब्ल्यू फिल्मों मे
देखा था. लंड अंदर बाहर करते हुए डॅडी की गान्ड मारने लगा. मा ने
उनका मूह अपने मूह से धक दिया और उनके होंठ चूसने लगी. शशिकला
ने उनका पूरा लंड निगल लिया और ज़ोर से चूसने लगी.


पाँच मिनिट के बाद जब डॅडी झड़ने को आ गये तब शशिकला अचानक मूह
से लंड निकाल कर खड़ी हो गयी. "बस, अब सब पलंग पर चलो, वहाँ आराम से
मज़ा करना. अनिल, ज़रा संभाल के भैया, जल्दी नही झड़ना, बहुत दिनों के बाद
उनकी यह ख्वाहिश पूरी हुई है, जब से तुझे देखा था, इस मौके की ताक मे थे
वे"


शशिकला पलंग पर पट लेट गयी. मैं और डॅडी चिपके हुए सावधानी से
पलंग पर चढ़े. मेरा लंड अब भी डॅडी की गान्ड मे गढ़ा था. डॅडी
शशिकला पर चढ़ गये और उसकी गान्ड मे लंड उतार दिया. फिर वे उसके बदन
पर सो गये, मुझे अपनी पीठ पर लिए हुए. मम्मी उनके सामने टांगे खोल
कर लेट गयी और डॅडी का चहरा अपनी बुर पर दबा लिया. डॅडी मम्मी की बुर
चूसते हुए शशिकला की गान्ड मारने लगे. उनकी कमर हिलाने से मेरा लंड
अपने आप उनकी गान्ड मे चलने लगा. मैं कुछ देर चुपचाप पड़ा हुआ मज़ा
लेता रहा, फिर लय मे डॅडी की मारने लगा. वे जब चूतड़ उपर करते तो मैं अपना
लंड कस के उनकी गान्ड मे पेल देता, वे जब नीचे को धक्के मारते तो मैं लंड
आधे से ज़्यादा बाहर निकाल लेता. इस तरह डॅडी की गान्ड मे मेरा लंड पूरा अंदर
बाहर होने लगा.

उन्हे बहुत मज़ा आ रहा था. जिस तरह से वे हचक हचक कर अपनी बेटी की
गान्ड चोद रहे थे और मा की बुर चूस चूस कर मानों उसमे घुस जाने की
कोशिश कर रहे थे उससे उनकी उत्तेजना जाहिर थी. अपने गुदा का छल्ला वे बार
बार सिकोड कर मेरे लंड को पकड़ लेते. डॅडी की गान्ड अच्छी ख़ासी कोमल थी,
बहुत टाइट भी नही थी, शशिकला सच कह रही थी, लगता है उसने डिल्डो से
मार मार कर उनकी गान्ड काफ़ी खोल दी थी.

जब आख़िर मुझसे नही रहा गया तो मैने डॅडी के बदन को कस के बाहों मे
भींचा और हचक हचक कर चोद डाला. झड़ने के बाद मैं डॅडी पर पड़ा
रहा. डॅडी पूरे ज़ोर से शशिकला की गान्ड चोदते रहे और दस मिनिट बाद जाकर
झाडे.

कुछ सम्हलने के बाद डॅडी पलटे और मुझे बाहों मे भरकर चूमने
लगे "बहुत अच्छा चोदा तूने अनिल, मुझे मज़ा आ गया. जब से तुझे देखा था,
तब से दिमाग़ मे था कि तेरे इस कसे जवान लंड को अंदर लू. आज मुझे हर तरह का
सुख मिल गया. अब बस एक और सुख चाहिए आज की रात, मैं पूरा तृप्त हो जाउन्गा."
शशिकला बोली. "मुझे मालूम है आप किस सुख की बात कर रहे है. उसके लिए कल
तक रुक क्यो नही जाते डॅडी? आराम करने के बाद आपका लंड फिर से मजबूत
खड़ा होगा और मज़ा आएगा."

मा बोली "अरे कर लेने दो अशोक को उसकी हर मुराद पूरी. हनीमून नाइट का पूरा
लुफ्त उठाने दो. कौन सा सुख चाहिए तुम्हे अशोक?"

अशोक अंकल मुझे बाहों मे लेकर मेरे नितंबों को सहलाते हुए बोले. "अनिल
के चूतड़ भी बड़े प्यारे है. ये एकदम कुँवारा है इस मामले मे. मैं इसकी इस
चिकनी गान्ड को चोदना चाहता हू"

मुझे पहले से अंदाज़ा था कि क्या हो सकता है. पर फिर भी सुनकर मिलेजुले
ख़याल दिल मे आए. एक तो थोड़ा डर लगा, मेरी गान्ड मे अब तक मैने उंगली
छोड़कर कुछ नही डाला था. उंगली भी मैं अक्सर नहाते समय साबुन लगाकर
डाला करता था. अब लंड जाएगा तो कैसा लगेगा! वह भी अशोक अंकल का मस्त
मूसल! पर डर के साथ साथ मन मे गुदगुदी भी हुई. जब मैं उंगली करता था
तो लंड खड़ा हो जाता था. लंड जाएगा तो और मज़ा आएगा शायद!
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10-30-2018, 06:17 PM,
#76
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मेरे चेहरे को देखकर अंकल बोले "घबरा मत अनिल, दर्द नही होगा. तभी तो
आज ही कर रहा हू, अब तक तीन बार झड़कर लंड भी काफ़ी नरम हो गया है, तुझे
तकलीफ़ नही होगी." वे अब मेरे लंड को प्यार से मुठिया रहे थे. अच्छा लग रहा
था.

मा ने पूछा " क्यो बेटे, क्या कहता है? वैसे मेरी मान तो डॅडी की यह
इच्छा पूरी कर दे देख कितना प्यार करते है तुझे"

मैं मान गया, सोचा जो होगा देखा जाएगा. "हाँ मम्मी, मैं जानता हू. मैने
भी तो डॅडी की गान्ड मारी है, बहुत मज़ा आया. अब वे मार ले, मैं मना नही
करूँगा."

"चलो सब एक बार नहा लेते है, ज़रा फ्रेश हो जाएँगे. फिर आज का यह आखरी पर
सबसे प्यारा, डॅडी के लिए खास आसन करेंगे." शशिकला बोली.

हमसब जाकर फ्रेश हुए, साथ साथ नाहया, हँसी मज़ाक किया. नहाते समय
मैने और डॅडी ने मिलकर मा और दीदी की बुर चूसी, बेचारी बहुत देर से सिर्फ़
हमे सुख देने के लिए आसन कर रही थी. डॅडी मम्मी को बोले "डार्लिंग, कल
सिर्फ़ तुम्हारा होगा. तुम्हे कल इतना चोदुन्गा की छोड़ने की मिन्नत करने लगोगी.
एक बार भी गान्ड नही मारूँगा.और शशि, तू कल अनिल को संभाल, मन भर कर
गुलामी करवा ले उससे. और कल पहनने वाली ब्रा और पैंटी आज ही सेलेक्ट कर लो, आज
सोने के पहले पहन भी लेना, ज़रा स्वाद तो लगे उनमे हमारी इन दोनो खूबसूरत
परियों के बदन का"

बाथरूम से वापस आकर हमने काफ़ी पी. अब तक मेरे और डॅडी के लंड फिर से तन
गये थे. वे बस मुझसे चिपटे थे. बार बार मेरे नितंब सहलाते और गुदा को
एक उंगली से टटोलते. मैने भी उनके लंड को हथेली मे ले लिया था. लंड
खड़ा था पर वैसा सख़्त नही जैसा हमेशा होता था, किसी रसीले कच्चे केले
जैसा आधा नरम और आधा कड़ा था.

"शशि बेटी, अनिल की गान्ड मे खूब सा मख्खन लगा दो, मैं नही चाहता कि
उसे ज़रा सी भी तकलीफ़ हो. और रीमा डार्लिंग, तुम ज़रा अपने इस गुलाम के लंड को
मख्खन चुपड दो. आख़िर तुम्हारे प्यारे बेटे की उस प्यारी गान्ड मे घुसने
वाला है, जितना मख्खन लगओगि, उतना उसे कम दर्द होगा."

मख्खन लगाने के बाद डॅडी एक आराम कुर्सी मे बैठ गये. उनका लंड तन कर
खड़ा था. "आजा बेटे, डॅडी की गोद मे आ जा."

"अच्छा तो यह आसान कर रहे है डॅडी" शशिकला चहकि."

हाँ, तेरी तो अच्छी पहचान का है, आख़िर बचपन से बैठती है तू ऐसे मेरी
गोद मे. अनिल को तकलीफ़ नही होगी, आराम से मेरी गोद मे बैठेगा. नही तो अगर मैं
इस पर चढ़ा तो मेरा वजन सहना पड़ेगा. वह बाद मे कर लेंगे, अब तो समय
ही समय है हमारे पास" अंकल बोले.

उन्होने टांगे फैला दी. मैं जाकर उनकी ओर पीठ करके उनकी टाँगो के बीच
खड़ा हो गया. डॅडी ने झुक कर मेरे नितंब चूम लिए, फिर मूह लगाकर मेरी
गान्ड का छेद चूसने लगे मानों सारा पिघला मख्खन निगल जाना चाहते
हों. "क्या गान्ड है मेरी जान तुम्हारे बेटे की, तुम्हारे जितनी ही खूबसूरत है"
वे मम्मी को बोले.

मा बोली "मुझसे भी अच्छी है, मेरी तो अब उमर हो चली है, मेरा बच्चा तो
एकदम ताज़ा जवान है"

"अनिल बेटे, ज़रा झुक और बैठ मेरी गोद मे, एक मिनिट... बस ... ऐसे .. शाबास, अब
बैठ" डॅडी मेरे गुदा पर अपना सुपाडा जमाकर बोले.
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10-30-2018, 06:17 PM,
#77
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
गुदा पर उनके फूले चिकने सुपाडे को महसूस करके मेरा और खड़ा हो गया,
डर भी लगा, काफ़ी बड़ा था. फिर मुझे याद आया कि एक किताब मे पढ़ा था कि गान्ड
मारने के पहले ज़ोर लगाने से, जैसे सुबह टॉयलेट मे करते है, गुदा खुल
जाता है और आसानी होती है. मैने ज़ोर लगाया और डॅडी की गोद मे बैठने लगा.
पॅक की आवाज़ के साथ सुपाडा मेरी गान्ड मे समा गया. दर्द की एक टीस उठी पर
दर्द के साथ एक अलग सुख की लहर मेरे रोम रोम मे दौड़ गयी.

"वाह शाबास बेटे, क्या बात है, तुझे कुछ बताना भी नही पड़ा और तूने अंदर
ले लिया. रीमा डार्लिंग, यह लड़का तो सच का हीरा है, बहुत आगे जाएगा इस मामले
मे. पर गान्ड टाइट क्यो कर ली बेटे? वैसे ही ढीली छोड़ आराम से पूरा लंड ले
लेगा तू" डॅडी ने मुझे शाबासी दी.

मैने गुदा की मसल ढीली की और बैठने लगा. डॅडी का लंड इंच इंच करके
मेरी गान्ड मे घुसता गया. बहुत अनोखा अनुभव था, गान्ड भारी भारी लग
रही थी. बीच मे मैं रुक गया, दर्द ज़रा ज़्यादा हो गया था. 

मा मुझे चूमते हुए बोली "बस कुछ ही देर और है मेरे लाल, डॅडी को देख, कितने खुश है"

यह मुझे भी महसूस हो रहा था. जब शुरू किया था तब डॅडी का लंड बहुत
कड़ा नही था. अब शायद मेरी गान्ड मे लंड पेलने की क्रिया से वे इतने उत्तेजित हो
गये थे कि उनका लंड काफ़ी कस के खड़ा हो गया था.

डॅडी ने अचानक प्यार से मुझे भींच लिया और मेरी पीठ चूमते हुए मुझे
खींच कर अपनी गोद मे बिठा लिया. सॅप की आवाज़ से पूरा लंड मेरी गान्ड मे
समा गया और मेरे चूतड़ डॅडी की जांघों पर टिक गये. मेरी गुदा पर
उनकी झान्टे महसूस हो रही थी.

अचानक हुए दर्द से मैं चिहुक पड़ा था. डैडी मुझे बेतहाशा चूमते हुए
बोले "सारी मेरे राजा, पर मुझसे रहा नही गया, इतनी टाइट है तेरी मखमली
गान्ड कि लगता है कि हचक हचक कर चोद डालु. बस, एक मिनिट, तेरा दर्द
बिलकुल कम हो जाएगा." और मेरे सिर को अपनी ओर मोड़ कर उन्होने मेरे होंठ
अपने होंठों मे दबा लिए और चूसने लगे. उनकी गुलाबी आँखों मे
मुझे प्यार और दहकति वासना दिखी.

शशिकला अपनी ही चूत मे उंगली कर रही थी. वह भी काफ़ी उत्तेजित थी, शायद
अपने डॅडी के लंड से मेरी गान्ड की वर्जीनीटी ख़तम किए जाने का कब से
इंतजार कर रही थी. "अनिल, बहुत अच्छा किया भैया, डॅडी तो अब सातवे आसमान
पर होंगे. क्यो डॅडी, हो गया काम? कब से मेरे पीछे पड़े थे कि बेटी, इस
खूबसूरत बच्चे अनिल की गान्ड दिला दो"

अशोक अंकल कुछ नही बोले, वे तो बस मेरी गान्ड मे लंड धीरे धीरे मुठियाने मे लगे थे
और मेरा मूह चूस रहे थे जैसे खा जाना चाहते हों.

फिर शशिकला मेरे सामने नीचे बैठ गयी और मेरा लंड चूसने लगी. बोली
"डॅडी अब इतनी जल्दी नही छोड़ने वाले. तब तक मैं भी ज़रा तेरे लंड का मज़ा ले
लू, आज ठीक से चूसा ही नही"

मा मेरे पास खड़ी थी. उसने झुककर हम दोनों को अपनी छाती से लगा लिया.

डॅडी ने मन भर कर मेरा मूह चूसा और फिर मेरे मूह को छोड़कर मा की
चूंची चूसने मे लग गये. मैने भी मा का दूसरा स्तन मूह मे ले लिया.

अशोक अंकल अब धीरे धीरे नीचे से मेरी मारने लगे. बस एक दो इंच उपर नीचे
होते और लंड मेरी गान्ड मे अंदर बाहर करते. लंड मेरी गान्ड मे चलाने से
एक अलग अजीब सा आनंद मेरी रगों मे भर गया. मेरा और कस कर खड़ा हो गया
और दीदी का सिर पकड़कर मैने पेट पर दबा लिया और उसका मूह चोदने लगा.

मा भी अपने बेटे की पहली ठुकाई देखकर उत्तेजित थी. वह सीधी खड़ी हो गई
और एक टाँग उठाकर सोफे के उपर रख दी. उसकी चूत अब खुल गयी थी. मैने
झुक कर उसमे मूह लगा दिया. तीन तरफ से अब मुझपर सुख की बरसात हो रही
थी, गान्ड मे डॅडी का लंड चल रहा था, लंड दीदी के मूह मे था और मुँह मे
मा की बुर के रस का झरना बह रहा था.

मैं ज़्यादा देर नही टिक पाया, कसमसा कर झाड़ गया. शशिकला ने चूस
चूस कर मेरा सारा वीर्य निगल लिया. मा भी दो बार मुझे बुर का पानी पिला चुकी
थी. डॅडी अब पूरे ज़ोर मे थे. उनका लंड भी अब कस कर खड़ा हो गया था और
पिस्टन जैसा मेरी म्यान मे चल रहा था. अब मेर दर्द भी कम हो गया था, आदत
हो गयी थी, मख्खन अंदर तक जाकर मेरी गान्ड को चिकना भी कर गया था.

झड़ने के बाद मैं लस्ट हो गया था पर मज़ा अब भी आ रहा था. डॅडी तैश मे
थे "मेरे राजा, बहुत मज़ा आ रहा है मेरे बेटे, अब नही रहा जाता, चल अब ज़रा ठीक
से तेरी मार लू नही तो मुझे चैन नही पड़ेगा." कहते हुए उन्होने मुझे
वैसे ही गठरी जैसा उठाकर पलंग पर रखा और मेरे उपर चढ़ गये. मेरे
बदन को बाहों मे भींच कर, अपनी टांगे मेरे इर्द गिर्द जकाड़कर वे साथ
साथ हचक हचक कर मेरी गान्ड चोदने लगे. मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था
पर मन मे एक अलग सा समाधान था कि डॅडी को मेरा बदन इतना अच्छा लगता
है कि वे इस तरह से जम के उसे भोग रहे है.

जब वे झाडे तो उनके मुँह से भी एक हल्की हुंकार निकल गयी. दो मिनिट मे
उनका लंड सिकुड कर अपने आप मेरी गान्ड से निकल आया. वे पलंग पर लुढ़क
गये. उनके चेहरे पर असीम तृप्ति थी. मुझे चूम कर बोले "थॅंक यू अनिल,
तूने आज मुझे वह सुख दिया है जिसके लिए मैं कब से तरस रहा था!"

हम बहुत थक गये थे इसलिए मेरी आँख लगने लगी. डॅडी भी सोने को थे.
आधी नींद मे मैने सुना कि मा शशिकला को कह रही थी "बेटी, ये दोनों तो
गये काम से. पर अशोक को देख, कितना आनंद मे है, जैसे किसी बच्चे को उसका
मन पसंद खिलौना मिल गया हो. अनिल भी कैसा शांत पड़ा है, मुझे लगा उसे
दर्द होगा पर लगता है काफ़ी मज़ा आया है उसे"
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10-30-2018, 06:17 PM,
#78
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
"मम्मी, वह भी पक्का रसिक है डॅडी जैसा. डॅडी की तो हर मुराद पूरी हो
गयी. ये दोनों अब गये काम से मम्मी. चलो हम भी सो जाए. पर मम्मी,
ज़रा ..." शशि बोली.

"हाँ बेटी, मैं समझ गयी, इन दोनों की यह कुश्ती देखकर मेरी भी कुलबुला
रही है, नींद नही आएगी, आ जा, ऐसे आ जा ..." मा बोली. आधी नींद मे मैने
देखा कि वे एक दूसरे से लिपट कर सिक्सटी नाइन करने लगी. उसके बाद मुझे
कुछ याद नही क्योकि मेरी आँख लग गयी.

अगले दो दिन ऐसे ही आनंद मे गुज़रे. हनीमून की रात की निरंतर चुदाई से सब
थके थे इसलिए उस दिन सबने आराम किया. रात को फिर आगे काम शुरू हुआ और रात
भर चलता रहा. हमारा मन ही नही भरता था, अदल बदल कर हर
कंबिनेशन मे हमने सेक्स किया. हां, डॅडी ने उस रात के बार मेरी फिर से नही
मारी. हमने एक दूसरे के लंड ज़रूर चूसे. पहली रात डॅडी की थी, अब उसके
बाद बारी बारी से हमने मा को और फिर दीदी को सुख दिया. खूब चोदा जब तक
उनका मन नही भर गया. हर दिन मा और दीदी एक नया सेट पहनते एडाइबॉल ब्रा
और पैंटी का. लगता है शशिकला ने दर्जनों मँगवा कर रखी थी. सब का
स्वाद अलग अलग था, कोई वनीला, कोई स्ट्रॉबरी, कोई चाकलेट. और उनमे उन दोनों
अप्सराओं के बदन का स्वाद और खुशबू मिल कर वे और स्वादिष्ट हो जाती थी.
तीन दिन बाद सब इतने थक गये कि एक पूरे दिन हमने सिर्फ़ आराम किया, खूब सोए,
पास के जंगल मे घूमने गये. हनीमून के तीन चार दिन और बचे थे.
सुबह देर से उठने के बाद हमने नाहया. मा और दीदी तैयार होने लगे. दोनों
बाहर जाने के कपड़े पहन रही थी. मा ने सलवार कमीज़ पहनी थी और
शशिकला ने जींस. मुझे अचंभा हुआ, मुझे लगा था कि कल के आराम के बाद आज
हम अपनी रति क्रीड़ा आगे जारी रखेंगे.

जब मैं भी तैयार होने लगा तो मा ने रोक दिया. "अरे तू मत चल, यही आराम कर,
मैं और शशि जा रहे है घूमने, ज़रा गोआ देख तो ले. डॅडी भी यही घर पर
रहेंगे"

"पर तुम दोनों नही हो तो मैं क्या करूँगा? मैं भी चलता हू" मैने
शशिकला से चिपट कर कहा. मेरा लंड फिर से मस्त खड़ा हो गया था. आराम के
बाद जैसे उसमे फिर जान आ गयी थी.

" क्यो अनिल बेटे, मैं तो हू! ज़रा आराम से गॅप शॅप करेंगे, थोड़ा इश्क विश्क भी
कर लेंगे" अशोक अंकल तौलिए से बाल पोछते हुए बोले. वे अभी अभी नहा कर
बाहर निकले थे, बिलकुल नंगे थे. उनका लंड अच्छा खड़ा था.

मैने मा की ओर देखा. वह मंद मंद मुस्करा रही थी. शशिकला बोली "आज बस
हम औरते जाकर सैर करेंगी. तुम दोनों यही रहो. डॅडी की बहुत इच्छा है कि
तुम्हारे साथ अकेले पूरा दिन बिताए."

मैं कुछ कुछ समझने लगा. डॅडी की ओर देखा. वे लंड को सहलाते हुए मेरी
ओर देख रहे थे. मेरा भी खड़ा होना शुरू हो गया. मैने डॅडी के साथ कई
बार संभोग ज़रूर किया था पर सबके साथ मिलकर ग्रुप मे. अकेले कभी उनके
साथ नही रहा था.

शशिकला मेरे मन की बात ताड़ गयी. बोली "देखो अनिल भैया, सीधी बात है.
हम लोगों का मेल जोल जैसे हुआ था? मैने और मम्मी ने मिल कर आपस मे प्यार
करना शुरू किया था, और कोई नही था. जैसा हम औरतों को अकेले मे मौका
मिला बिना किसी मर्द के वाहा रहते तो तुम दोनों को भी यही मौका मिलना
चाहिए. बिना किसी हिचक के तुम लोग जो करना हो कर सकते हो, है ना!"

डॅडी मुस्करा दिए, उनकी आँखों मे खुमारी भर आई थी, ज़रूर उन्होने प्लान
बना कर रखे होंगे मेरे साथ करने के. मेरा दिल धड़कने लगा पर लंड और
खड़ा हो गया. मज़ा आएगा मैने मन ही मन सोचा.

मा अशोक को बोली "ज़रा ख़याल रखना मेरे बेटे का, तैश मे कुछ भी ना कर
बैठना. "

डॅडी बोले "अरे मेरी आँखों का तारा है, मेरा प्यारा है, फूल जैसा सहेज कर
रखूँगा"

"और डॅडी, ज़रा जोश बचा कर भी रखिए, नही तो हम जब तक शाम को आएँगे,
अपना पूरा दम गवाँ बैठोगे तुम दोनों." शशिकला ने अशोक अंकल की
चुटकी ली.

"
वह मैं नही प्रॉमिस कर सकता. आख़िर अनिल अकेले मे मिला है, उसके साथ हर पल
एंजाय करने का इरादा है मेरा." अशोक अंकल बोले.

"ठीक है, बाद मे देख लेंगे, मुआवज़ा देना पड़ेगा" शशिकला मचल कर बोली.

"जो तुम कहो बेटी"

नोंक झोंक के बाद मा और शशिकला चली गयी. जाते जाते हमारी ओर देखकर
मुस्करा रही थी. मैं और डॅडी अकेले बच गये. मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा
था. डॅडी ने मुझे सीधे बाहों मे भर लिया और चूमने लगे. "बेटे, सच
बता, तुझे ये अच्छा लगता है ना? याने पिछले दो दिनों मे हमने जो किया,
ख़ासकर आपस मे?" उनकी आँखों मे प्रश्न था. शायद वे अब भी पूरे
निश्चिंत नही थे मेरे मन के बारे मे. अब वे धीरे धीरे मेरा लंड भी
मुठिया रहे थे. उनके हाथों मे जो जादू था वह मैं पहले भी अनुभव कर
चुका था. लंड को एक खास तरह से सहलाना सिर्फ़ मर्दों को ही आता है. वे मेरा
लंड जिस तरह से चूसते थे उसमे भी एक अलग ही सुख था.
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10-30-2018, 06:18 PM,
#79
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मैने मस्ती मे भरकर उन्हे चिपकाते हुए कहा "हां अंकल ... मेरा मतलब
है डॅडी. मुझे बहुत अच्छा लगा. बहुत मज़ा आया. मैने कभी सोचा भी नही
था कि सेक्स के इतने तरह के आनंद हो सकते है"

मुझे पकड़कर अपने पास सोफे पर बिठाते हुए अंकल बोले "अरे अभी तूने देखा
ही क्या है, ये दुनिया बहुत रंगीन है. आज दिन भर तुझे प्यार करूँगा यार"

हम लिपट कर चूमा चाटी करने लगे. दोनो के लंड कस कर खड़े थे. डॅडी
सहसा इधर उधर देखने लगे. कुछ खोज रहे थे, फिर उनकी आँखे दीदी और
मा की उन हाई हिल स्लीपरों पर पड़ी जो उन्होने हनीमून की रात को पहनी थी और
जिन्हे वे घर मे हरदम पहनती थी.

उठाकर वे उन्हे उठा लाए "यही ढूँढ रहा था कि शशिकला ने कहाँ रख दी.
उसे याद था, देखो हमारे सामने वाले टेबल पर ही छोड़ गयी हमारी सहूलियत
के लिए. आ तुझे एक चीज़ दिखाता हू" मा की एक स्लीपर लेकर उन्होने उसे प्यार से
चूमा, लंड पर रगड़ा, फिर उसकी हील पकड़कर खींची. हील अलग हो गयी, उसके
साथ स्लीपर के निचले भाग पर लगी पूरी एक काली प्लास्टिक की परत निकल आई. अब
उनके हाथ मे सिर्फ़ एक पतला सोल और उसपर लगे पतले पतले स्ट्रेप थे.

"ये प्लास्टिक की हील है, प्लास्टिक का ही निचला सोल है. ये हमारे किसी कम का नही,
क्योकि ये नीचे ज़मीन से लगते है. अब जो असली भाग बचा है वह है हमारा
खजाना. यह पहनने वाले के तलवों से लगा रहता है. इसे देख, कितनी प्यारी
और नाज़ुक है. तू समझा ना, यह भाग है जिसमे तेरी मा के तलवों का स्वाद लग
चुका है. अब ज़रा चख के देख"

कहते हुए उन्होने स्लीपर का पँजा मूह मे लिया और दाँतों से एक चोथा
टुकड़ा काट लिया. उसे मूह मे लेकर चूसते हुए बोले "तू भी ट्राई कर. समझ
मे आ रहा है ना? तुझे इसलिए बता रहा हू कि तू भी औरतों की चप्पलो का
रसिक है मेरे जैसा. जिसे इनकी फेटिश है वे मस्ती मे अक्सर सोचते है कि इन्हे
खा जाउ. अब रबड़ या लेदर की चप्पले तो खाई नही जा सकती ना. इसलिए अब इस तरह
के स्लीपर निकाले है. खास इस तरह की मस्ती के लिए"

मैने मा की स्लीपर ली और हील का एक ठुकड़ा तोड़ा मूह मे जाते ही समझ मे आ
गया. ये भी एडाइबॉल स्लीपर थी, इन्हे भी खाया जा सकता था, वही स्वाद, बस मा के
पैरों की खुशबू से और मस्त हुआ स्वाद था. मेरा सिर चकरा गया.

मेरी खुशी पर हँसते हुए डॅडी बोले "ये हमारा आज का स्नैक मैने इन्हे कहा
था कि तीन चार दिन पहनो, फिर स्वाद आएगा."

मेरा लंड अब तन कर उछल रहा था. मा और दीदी की वे खूबसूरत स्लीपरे सिर्फ़
देखने, चूमने और चाटने की नही थी, उन्हे खाया भी जा सकता था. मैं
मस्त हो गया. डॅडी ने मा की दूसरी स्लीपर की हील भी निकाल दी. मैने शशिकला
की स्लीपरों को सोल से अलग किया. उन्हे सूँघा और चाटा. लग रहा था कि अभी खा
जाउ, लंड बहुत तकलीफ़ दे रहा था.

"अभी नही अनिल, जब मस्ती मे आपस मे काम करेंगे तब खाएँगे. इन्हे मूह मे
भरके गान्ड मारने मे या मरवाने मे बहुत मज़ा आता है. पिछले महीने
मे ही पहली बार शशिकला ऐसी स्लीपरे लाई थी. मज़ा आ गया अनिल, मेरी बेटी की
स्लीपर मेरे मूह मे थी और मैं उसकी गान्ड मार रहा था. खाने मे आधा घंटा
लगा, ये काफ़ी मोटी होती है, उस आधे घंटे मे स्वर्ग हो आया मैं. दूसरी स्लीपर
शशिकला ने मेरे मूह मे अगले दिन दी जब वह डिल्डो से मेरी मार रही थी. जब
तुम्हारी मा से उसका चक्कर चालू हुआ, तभी से उसने तुरंत दो दर्जन
मँगवा कर रखी है, उसे मालूम था कि मुझे लगेंगी. अब तेरे भी काम आएँगी,
तू भी मेरी तरह ही भक्त निकला लेडीज़ स्लीपरों का"
Reply
10-30-2018, 06:18 PM,
#80
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
एक मिनिट रुक कर अंकल आगे बोले "मेरे बेडरूम मे चलते है. वहाँ ठीक
रहेगा. मेरा कब का सपना था कि तुझे अपने बेडरूम मे ले जाउ. पहले एक और
चीज़ दिखाता हू" कहकर वे उठे और जाकर अपने बैग मे से एक एलबम ले आए.
मुझे देखने को दिया.

एलबम मे एक खूबसूरत औरत के चित्र थे. चेहरा बहुत जाना पहचाना था पर
समझ मे नही आ रहा था. पहले चित्र मे उस स्त्री ने साड़ी पहनी थी. फिर एक एक
कपड़ा निकाल कर फोटो थे. आख़िरी के फोटो मे बस वह औरत ब्रा और पैंटी मे
थी. अच्छे फूले हुए ब्रा मे कसे हुए स्तन और गोरा अधनन्गा बदन. आखरी फोटो
मे जिसमे पैंटी पूरी दिख रही थी, उसमे पैंटी आगे से गजब की फूली थी, तंबू
बना था, जैसे अंदर बड़ा लंड हो.

"पहचाना कौन है?" डॅडी ने कहा और अचानक मेरे दिमाग़ मे बिजली सी
कौंध गयी "कितनी खूबसूरत है ...अंकल चेहरा तो आप जैसा है, क्या आप की कोई
बहन ... पर यह तो शीमेल है या कोई पुरुष ... पर अंकल याने ये ...?"

अंकल मुस्काराए "हां मैं ही हू, मस्ती मे मुझे कभी कभी औरतों जैसा
सजना अच्छा लगता है, और किसी ने मेरा यह रूप नही देखा है, शशिकला ही
मेरी मदद करती है. हम ऐसे ही संभोग करते है, वह कहती है कि इसमे
उसे दोनों तरफ का याने हेटारो और लेस्बियन सेक्स का आनंद आता है"

मैने फिर गौर से देखा. डॅडी ही थे. डॅडी हॅंडसम थे पर कई हॅंडसम
पुरुषो का चेहरा अगर औरत पर लगाया जाए तो अजीब सा लगता है. यहाँ ऐसा
नही था, डैडी एकदम खूबसूरत लग रहे थे, उनका मेकअप बहुत अच्छा किया
था, उनके शरीर पर बाल न होने से भी इसकी सहूलियत थी. एकदम लाल लिपस्टिक,
गालों पर रूज, कानों मे बाली, लंबे बाल, शायद एक विग लगाया था पर एकदम
सच्चे बाल लगते थे. ऐसी कोई बात नही थी जिससे उस फोटो मे अंदाज़ा हो कि यह
औरत नही पुरुष है, सिवाय पैंटी मे बने उस तंबू के.

मेरा लंड अब उछलने लगा था. अंकल हँसने लगे. मुझे बाहों मे लेते हुए
बोले "मेरा यह रूप पसंद आया लगता है. तुझे ज़रूर चखाउन्गा, अभी नही
अगले हफ्ते, ठीक से तैयार होने मे समय लगता है. अब तो समय ही समय है
हमारे पास मौज करने को. शशिकला ने बेचारी ने बहुत मेहनत की है, मेरे
नाप की खास पैडेड ब्रा बनवाई है, मेरे पास अब दस ब्रा और पैंटी का स्टाक है
और चार तरह के विग वैसे तू भी बहुत अच्छा लगेगा अनिल इस रूप मे"

मैं कल्पना करने लगा कि शशिकला की ब्रा और पैंटी पहना हू और विग लगाया
हू. मन भटकने लगा.

अंकल बोले "अब तो हर तरह से ट्राइ करेंगे. कभी तू दुल्हन बनना, कभी मैं.
कभी हम दोनों औरते बनकर सिर्फ़ लेस्बियन सेक्स कर सकते है मम्मी और
दीदी के साथ. असल मे अनिल, पैसा बहुत हो तो फिर ये चीज़े आसान हो जाती है.
आदमी कुछ भी कर सकता है, सबसे छिपाने मे भी आसानी होती है. मैं और
शशि कब से यह सुख भोग रहे है, अब तुम और रीमा भी आ गये हो, अब तो हर
तरह के कॉंबिनेशन बन सकते है."

हम दोनों अब बहुत उत्तेजित थे. अंकल ने मा की चप्पले मेरे लंड मे अटका
दी और शशिकला की मेरे हाथ मे दे दी. फिर मुझे गोद मे उठा लिया. "आज तू मेरी
दुल्हन है अनिल, तुझे दुल्हन सा उठा कर अपने बेडरूम मे ले चलता हू, देख
अपनी दुल्हन को आज कैसे भोगता हू मैं, फिर दोपहर को तू मेरा दूल्हा बन जाना"
कहकर डॅडी मुझे उठाकर बेडरूम मे ले गये. जाते जाते अचानक मुझे
याद आए वह दिन जब मैं छुप छुप कर मा की कामना किया करता था. मा का
यह दुलारा आज कहाँ से कहाँ आ गया था!!!

समाप्त
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