Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
08-05-2019, 01:18 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
सोनाली ने सुबह उठते ही रोहन को फोन पर अपनी बेटियों की शादी के बारे में सब कुछ बता दिया और रोहन से कहा- “तुम भी अपने माँ बाप से मिलकर अपनी शादी की बात चलाओ। अगर तुम्हारी शादी भी उनके साथ ही हो जाये तो मेरी सारी चिंता दूर हो जायेगी...”

रोहन ने सोनाली से कहा- “मैं अपने माँ बाप से बात करूंगा इस बारे में, और फिर मैं आपको बताऊँगा...”

बिंदिया- “माँ हम सबकी शादी के बाद आपका क्या होगा? आप किसके साथ रहोगी?” बिंदिया ने अपनी माँ को रोहन से बात करने के बाद गले से लगाते हुए कहा।

बिंदिया मैं कोई छोटी बच्ची तो हूँ नहीं, और मेरा क्या? कभी गाँव में, कभी तुम्हारे पास, कभी अपने घर में, बस ऐसे ही गुजर जाएगी यह जिंदगी...” सोनाली ने बिंदिया को समझाते हुए कहा।

शाम को रोहन वहाँ पर आ गया और खुश होते हुए सोनाली को कहा- “मेरे माँ बाप राजी हो गये हैं और वो कल ही कुण्डलियां मिलाकर मेरी और बिंदिया की शादी के लिए कोई अच्छा सा टाइम लेते हैं...”

सोनाली रोहन की बात सुनकर बहुत खुश हो गई।

ऐसे ही दूसरे दिन रोहन के माँ बाप ने अपने बेटे की शादी के लिए पंडित को कुण्डलियां दिखाई और उससे कहा की 13 दिन के बाद का अगर कोई अच्छा टाइम हो तो उनके लिए बहुत अच्छा होगा।

पंडित ने कुंडलियां देखने के बाद रोहन की शादी के लिए उसी दिन का टाइम रोहन के माँ बाप को बता दिया, जिसे सुनकर सभी खुश हो गये। रोहन ने सोनाली को फोन पर सब कुछ बता दिया और तीनों घरों में जोर शोर
से शादी की तैयारियां शुरू हो गई।


सोनाली ने आकाश को भी फोन पर सब कुछ बता दिया, जिसे सुनकर आकाश बहुत खुश हो गया और खुशी में ही सोनाली से कह दिया- “मैं भी तुमसे शादी करना चाहता हूँ.”

सोनाली आकाश की बात सुनकर पहले तो बहुत हैरान हुई, मगर वो सारी जिंदगी ऐसे नहीं बैठ सकती थी। इसलिए उसने फौरन आकाश से शादी के लिए हाँ कह दी। सोनाली ने अपनी बेटियों की शादी के दूसरे दिन आकाश से शादी का प्लान बनाया, और यह बात अपनी बेटियों को बता दी- “की मेरे साथ तुम्हारे पिता जहाँ काम करते थे, उनके बास मुझसे शादी करना चाहते हैं, और मैं भी राजी हूँ...”

सोनाली की बात सुनकर सभी खुश हो गई की चलो उनके जाने के बाद उनकी माँ भी अकेली नहीं रहेगी। ऐसे ही दिन गुजरते गये और उनके शादी का दिन आ गया। तीनों घरों में बहुत बड़ी खुशी मनाई जा रही थी, खास करके ठाकुर की पूरी हवेली और पूरे गाँव को बहुत अच्छे तरीके से शादी के लिए सजाया गया था।

शिल्पा इतने दिन बराबर किसी ना किसी तरीके से रवी को वो गोली खिलाती आई थी।

शादी के लिए सारी तैयारियां हो चुकी थी। ठाकुर सोनाली के घर अपनी बहुओं को लेने पहुँच चुका था। वहाँ पर सारी रश्में पूरी करने के बाद ठाकुर अपनी दोनों बहुओं के साथ अपनी हवेली वापस आ गये। रोहन भी बिंदिया को अपने घर दुल्हन बनाकर ले जा चुका था।

सोनाली अपने घर में अकेली हो चुकी थी। आज जाने क्यों उसे रोने का दिल हो रहा था, और उसकी आँखों से आँसू भी निकल रहे थे की उसे अपनी कमर में किसी के हाथ महसूस हुए। आकाश ने सोनाली को अपनी बाहों में भरा हुआ था। सोनाली आकाश को देखकर उससे लिपट गई।

आकाश- “अरे पगली क्यों रो रही हो तुम अकेली नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ..” आकाश ने सोनाली को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

सोनाली- “आकाश क्या हम आज ही शादी नहीं कर सकते..." सोनाली ने यूँ ही रोते हुए आकाश को गले लगा लिया।

आकाश- “क्यों नहीं? आज और अभी तैयार हो जाओ हम मंदिर चलकर शादी करते हैं..” आकाश ने सोनाली को अपनी बाहों में दबाते हुए कहा।

सोनाली- “आकाश तुम मुझसे कितना प्यार करते हो..” यह कहकर सोनाली आकाश के गले लग गई और दोनों एक दूसरे को चूमने लगे।

उसके बाद कुछ ही देर में सोनाली तैयार हो गई और उसने आकाश के साथ मंदिर जाकर शादी कर ली। शादी के बाद आकाश सोनाली को अपने घर ले गया, जहाँ पर सिर्फ आकाश ही रहता था। उसके माँ बाप बहुत पहले मर चुके थे और उसकी बीवी... उसे छोड़ चुकी थी। क्योंकी वो किसी और से प्यार करती थी।
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08-05-2019, 01:18 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
ठाकुर अपनी बहुओं को लेकर हवेली पहुँच चुका था। अब रात हो चुकी थी और धन्नो और करुणा दुल्हन की साड़ी में अपने कमरों में अपने पतियों का इंतजार कर रही थी। ठाकुर ने अपने दोनों बेटों को गले लगाते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया और दोनों अपनी-अपनी दुल्हन के कमरों में जाने लगे।

शिल्पा ने ठाकुर के दोनों बेटों के कमरों को सजाया था और उसने दूध के दो ग्लास वहाँ पर रखे थे, जिनमें से एक में उसने उन गोलियों के आखिरी खुराक जो बहुत भारी थी, उन्हें दूध में मिला दिया था। शिल्पा ने जैसे ही। देखा की रवी अपने कमरे में जा रहा है। उसने जल्दी से उसके पहले उसके कमरे में जाते हुए दूध का ग्लास उठा लिया, और रवी के अंदर दाखिल होते ही उसकी तरफ बढ़ा दिया।

रवि- “शिल्पा जी आप... हम दोनों आपस में दूध पी लेंगे आप जाओ...” रवी ने दूध का ग्लास शिल्पा के हाथों से
लेते हुए कहा।


शिल्पा- “रवी बाबू यह सिर्फ तुम्हारे लिए हैं। तुम दोनों के लिए वो है...” शिल्पा ने मुश्कुराकर रवी को दूसरे ग्लास की तरफ इशारा करते हुए कहा।

रवि- “ठीक है यह लो और अब जाओ...” रवी ने जल्दी से वो ग्लास अपने मुँह से लगाए और उसे खाली करते हुए शिल्पा को देते हुए कहा।।

शिल्पा ग्लास लेकर जल्दी से कमरे से निकलकर हवेली से भी निकलकर सीधा अपने घर आ गई।
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08-05-2019, 01:26 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
फ्लैशबैक में


शिल्पा शिल्पा अपने कमरे में जाते हुए अपनी माँ की तस्वीर को निकालकर रोने लगी। उसे सूरज की बताई हुई सारी बातें याद आने लगी, जो उसने शिल्पा को उसकी माँ के बारे में बताया था।

कविता (शिल्पा की माँ) ठाकुर के खेतों की देखभाल करती थी, अपने पति के साथ। कविता बहुत ही खूबसूरत थी। उसका जिम गोरा, कद लंबा और फिगर में वो बिल्कुल मस्त थी। उसकी चूचियों का साइज 38" इंच था और उसकी गाण्ड बहुत बड़ी थी। जब वो खेतों में चलती थी तो देखने वालों के लौड़े उनके अंडरवेर में हलचल मचा देते थे।

बात उस दिन की है जब सुबह-सुबह ठाकुर अपने खेतों को देखने के लिए अपनी जीप से निकलकर खेतों में टहल रहा था।
कविता अपने पति के लिए खाना अपने सिर पर रखकर जा रही थी की अचानक ठाकुर की नजर उसपर पड़ गई। ठाकुर कविता की बड़ी-बड़ी चूचियां और उसकी कहर ढाती मस्त गाण्ड, जो चलते हुए इधर-उधर मटक रही थी, को देखकर उसपर फिदा हो गया। ठाकुर ने सोच लिया की वो इस औरत को जरूर चोदेगा।।

कविता अभी ठाकुर से कुछ दूर थी और उसे जाना भी यहीं से था।

ठाकुर- “मुंशी जी यह औरत कौन है?” ठाकुर ने मुंशी को देखकर कविता की तरफ इशारा करते हुए कहा।

मुंशी- “ठाकुर साहब अपने ही उस हरी की बीवी है, जो हमारे खेतों में काम करता है."


ठाकुर- “साली देखने में बहुत मस्त है। चखने में पता नहीं मजा आएगा की नहीं?” ठाकुर ने कविता की तरफ ही देखते हुए अपने होंठों पर अपनी जीभ फिराते हुए कहा।

मुंशी- “ठाकुर साहब यह औरत ऐसे खयालों की नहीं है, सारे गाँव की सबसे शरीफ औरत है..” मुंशी ने ठाकुर को उसके बारे में बताते हुए कहा।

ठाकुर- “अरे मुंशी, शरीफ तो सभी होते हैं मगर मजबूरी उन्हें खराब बना देती हैं..” ठाकुर ने मुंशी के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा।

मुंशी- “आपकी यह बात तो बिल्कुल सही है माई बाप..” मुंशी ने ठाकुर की बात सुनकर हँसते हुए कहा।

कविता अब बिल्कुल उनके करीब आ चुकी थी, जिसको देखकर ठाकुर जानबूझ कर बीच रास्ते में खड़ा हो गया। कविता जैसे ही उनके करीब आई मुंशी ने ठाकुर का परिचय उससे कराते हुए कहा- “छोरी यह हमारे माई बाप ठाकुर साहब हैं..."

कविता- “नमस्ते ठाकुर जी...” कविता ने दूर से ही अपने हाथों को अपने सिर से हटाकर खाना अपने हाथों में कर लिया था। उसने अपने दोनों हाथों को खाने के बरतनों के बीच फँसाते हुए ठाकुर से कहा।

ठाकुर- “नमस्ते, क्या नाम है तुम्हारा, पहले कभी दिखी नहीं..” ठाकुर ने कविता को गौर से घूरते हुए कहा।

कविता- “जी मेरा नाम कविता है और मैं हरी की जोरू हूँ..” कविता के मुँह से बस इतना ही निकला।

ठाकुर- “अच्छा हरी जो हमारे खेतों में काम करता है। खुद तो इतना सुंदर नहीं, साले को इतनी अच्छी बीवी कैसे मिल गई?” ठाकुर ने कविता की बात सुनते हुए हँसकर कहा।

कविता- “जी हमें जाना है हमें देर हो रही है.." कविता ठाकुर की बातों से जान चुकी थी की उसकी नजर उसपर ठीक नहीं इसलिए उसने ठाकुर को देखते हुए कहा।

ठाकुर- “कहाँ जा रही है छोरी?” ठाकुर ने फिर से कविता से सवाल किया।

कविता- “मैं खाना ले जा रही हूँ अपने पति के लिए...” कविता ने अपने सिर झुककर कहा।

ठाकुर- “छोरी सारी जिंदगी क्या ऐसे ही उस हरी के साथ खेतों में रोटी लाने में बिता देगी..." ठाकुर ने कविता के सिर को अपने हाथों से ऊपर करते हुए कहा।

कविता- “आप क्या कह रहे हैं मैं समझी नहीं?” कविता ने अपने सिर को फिर से झुकाते हुए कहा।


ठाकुर- “छोरी मैं कह रहा हूँ की अपनी जवानी को क्या ऐसे ही बर्बाद करोगी, हमारी सेवा कर, तुम्हें रानी बना दूंगा और ऐश के साथ अपने पति के साथ रहेगी..." ठाकुर ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कविता की साड़ी के आगे उसके नंगे गोरे पेट पर रखते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर साहब भगवान के लिए, हम ऐसी नहीं हैं हमें जाने दो...” कविता का सारा जिश्म ठाकुर का हाथ अपने नंगे पेट पर पड़ने से काँप उठा और उसने गुस्से से ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा।।

ठाकुर- “छोरी हम कोई जबरदस्ती नहीं कर रहे हैं। तुम भले चली जाओ, मगर यह ठाकुर का तुमसे वादा है की एक दिन तुम खुद हमारे पास आकर हमें अपना जिम सौंपोगी...” ठाकुर ने अपना हाथ कविता के पेट से हटाते हुए कहा।

कविता ठाकुर का हाथ हटते ही जल्दी से उधर से आगे चली गई। ठाकुर बीच में खड़ा था इसलिए कविता के जाते हुए वो पूरा ठाकुर से सटकर आगे गई, जिस वजह से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ठाकुर के सीने में घिस गई। कविता बस जल्द से जल्द वहाँ से निकलना चाहती थी, इसलिए वो जल्दी-जल्दी वहाँ से निकल गई।
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08-05-2019, 01:26 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
ठाकुर- “साली तीखी मिर्ची है। इसका तीखा स्वाद तो अब चखना ही होगा..." ठाकुर ने कविता के जाते ही अपने हाथ को सँघते हुए कहा।

मुंशी- “ठाकुर साहब... मगर यह आप कैसे करोगे?” मुंशी ने ठाकुर को देखते हुए कहा।

ठाकुर- “मुंशी जी वक्त आने पर पता लग जाएगा..” ठाकुर ने मुंशी की तरफ देखते हुए कहा, और ठाकुर जीप में बैठकर मुंशी के साथ वहाँ से चल गया।

कविता ठाकुर की बातों से बहुत डर चुकी थी वो जल्दी से अपने पति के पास पहुँचकर उसके गले लग गई। और फूट फूट कर रोने लगी।

हरी- “अरे तुम्हें क्या हुवा?” हरी ने अपनी पत्नी की पीठ को अपने हाथों से सहलाते हुए कहा।

कविता- “आप ठाकुर के खेतों में काम क्यों करते हो?” कविता ने वैसे ही रोते हुए कहा।

हरी- “अरे तुम कैसी बातें करती हो? ठाकुर के खेतों में काम नहीं करूंगा तो खाएंगे क्या?” हरी ने परेशान होते हुए कहा।

कविता- “हम शहर चलकर रह लेंगे, मगर आपको यह काम छोड़ना होगा...” कविता ने अपने पति की बाहों में वैसे ही रोते हुए कहा।

हरी- “ठीक है मगर बताओ तो हुआ क्या है?” हरी ने फिर से परेशान होते हुए कहा।

कविता ने रोते हुए सारी बात अपने पति को बता दी।


हरी- “साले उस ठाकुर की यह मजाल... मैं उसे जिंदा नहीं छोडूंगा.” हरी ने गुस्सा होते हुए कहा।

कविता- “नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे...” कविता ने अपने पति को रोकते हुए कहा।

हरी- “मगर कविता उसने तुम्हारे साथ ठीक नहीं किया है...” हरी ने वैसे ही गुस्से में कहा।

कविता- “हाँ उसने सही नहीं किया। मगर तुम उसका कुछ नहीं कर सकते, और कुछ किया भी तो मैं और शिल्पा दोनों का क्या होगा? इसलिए तुम उसे कुछ मत कहो..” कविता ने अपने पति को समझाते हुए कहा।

हरी- “कविता शायद तुम सही कह रही हो। हमारी फसल में बस कुछ दिन की ही देरी है, इसके बाद हम यह गाँव छोड़कर शहर में जाकर रहेंगे...” हरी ने अपनी बीवी की बात मानते हुए कहा।

कविता- “मुझे आज पता चला की आप मुझसे बहुत प्यार करते हो...” हरी की बात सुनकर कविता ने उसे गले लगाते हुए कहा।

हरी- “कविता तुम्हारे और शिल्पा के अलावा इस दुनियां में मेरा और है कौन?” हरी ने भी अपनी पत्नी को बाहों में भरते हुए कहा और उसके होंठों को चूम लिया।

कविता- “खाना ठंडा हो जायगा, पहले जल्दी से खाना खा लो...” कविता ने शर्म के मारे अपने पति से अलग होते हुए खाने को खोलकर कहा।
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08-05-2019, 01:27 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
ठाकुर अपने मुंशी के साथ फार्महाउस आ गया था, जहाँ पर वो शराब पीते हुए अपने शैतानी दिमाग से सोचने लगा की कैसे उस कविता को अपने बिस्तर तक लाए? अचानक ठाकुर के दिमाग में एक आइडिया आया और उसने मुश्कुराते हुए अपने एक आदमी को बुलाया। ठाकुर ने उसे सारी बात समझा कर वहाँ से रवाना कर दिया।

मुंशी- “ठाकुर साहब, आपने तो बहुत बढ़िया सोचा है। अब तो वो छोरी सीधा आपके पास ही आएगी...” मुंशी ने उस आदमी के जाते ही ठाकुर की तारीफ करते हुए कहा।

ठाकुर- “मुंशी मैंने कहा था ना की सभी शरीफ होते हैं, बस वक़्त उन्हें खराब कर देता है, अब तुम देखना वो कैसे अपना जिम मेरे हवाले करती है...” ठाकुर ने शराब का ग्लास खाली करते हुए जोर से हँसकर कहा।

कविता अपने पति को खाना खिलाकर बरतन उठाकर वहाँ से जाते हुए अपने घर आ गई। कविता आज बहुत खुश थी की उसका पति उसके लिए गाँव छोड़ने तक को तैयार हो गया था। वो अपने कमरे में आकर अपनी बेटी को देखने लगी, जो अभी तक सो रही थी। कविता अपनी बेटी को सोता हुआ देखकर खुद भी उसके साइड में बैठकर अपनी आने वाली जिंदगी के ख्वाब देखने लगी। कविता सोच रही थी की वो शहर जाकर कोई भी काम कर लेंगे, कम से कम उसकी इज्जत तो महफूज होगी। मगर उसे क्या पता था की आगे क्या होने वाला है? वो खयालों में थी की अचानक घर का दरवाजा बहुत जोर से खटकने लगा।


कविता- “अभी आई, कौन है?" कविता ने जल्दी से उठकर दरवाजे की तरफ जाते हुए कहा।

औरत- “कविता तुम्हारे पति को पोलिस ने गिरफ्तार कर लिया है...” कविता ने जैसे ही दरवाजा खोला उसके सामने गाँव की एक औरत ने हाँफते हुए कहा।

कविता- “मेरे पति... मगर क्यों? उन्होंने क्या कर दिया?” कविता ने हैरानी से उस औरत से पूछा।

औरत- “मुझे पता नहीं है। मगर अभी-अभी पोलिस उसे खेतों से उठाकर ले गई है...” उस औरत ने अपनी साँसों को ठीक करते हुए कहा।।

कविता- “बहन मैं अभी पोलिस स्टेशन जाकर पता करती हूँ की माजरा क्या है? तब तक आप मेरी बेटी का खयाल रखें तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी...” कविता ने उस औरत से मिन्नत करते हुए कहा।

औरत- “ठीक है, मगर जल्दी आ जाना...” उस औरत ने कविता की बात मानते हुए कहा।

कविता उस औरत की बात सुनकर जल्दी से भागती हुई पोलिस स्टेशन जाने लगी। कविता जैसे ही थाने में अंदर घुसी उसने देखा की चार पोलिसवाले उसके पति को बाँधकर डंडों से पीट रहे थे।

कविता- “अरे आप इसे मार क्यों रहे हैं, ऐसा क्या कर दिया इसने?” कविता पोलिस वालों को ऐसे अपने पति को पीटते हुए देखकर चिल्लाते हुए कहा।

कविता की चीख सुनकर उनमें से एक पोलिसवाले ने कविता को गौर से देखते हुए पूछा- “यह तुम्हारा का लागे?”

कविता- “जी मरे पति हैं..." कविता ने हाँफते हुए कहा।

पोलिसवाला- “साला एक तो ड्रग इश्तेमाल करता है और ऊपर से हमें गाली देता है। इसके कपड़ों से बहुत ज्यादा ड्रग मिली है। यह तो गया 8-10 सालों के लिए..” उस पोलिसवाले ने कविता की बात सुनकर हरी को एक डंडा मारते हुए कहा।

हरी- “नहीं कविता यह सब झूठ बोल रहे हैं...” हरी ने उस पोलिसवाले की बात सुनकर कहा।

कविता- “प्लीज आप इसे मारिए मत..”

कविता समझ चुकी थी की यह उस कुत्ते ठाकुर की हरकत है। इसलिए वो खून के आँसू रोते हुए बोली- “थानेदार जी आप ऐसा कोई हल नहीं ढूँढ़ सकते जिससे मेरे पति की जान यहीं पर छूट जाए.." कविता ने अपनी साड़ी के पल्लू से अपने आँसू को पोंछते हुए कहा।।


पोलिसवाला- “देख छोरी हम कुछ नहीं कर सकते। तुम ठाकुर से जाकर इसे छुड़ाने के लिये कोई बंदोबस्त करो। क्योंकी यह उनके ही खेतों में काम करता है..” उस पोलिसवाले ने कविता की तरफ देखते हुए कहा।

कविता ने पोलिसवाले को मिन्नत करते हुए कहा- “थानेदार जी मैं अभी जाती हैं, मगर आप इसे मारिए मत...”

पोलिसवाला- “ठीक है तुम जल्दी से जाओ, हम इसे नहीं मारते...” उस पोलिसवाले को शायद कविता पर रहम आ गया था, इसलिए उसने हरी को छोड़ते हुए कहा।

कविता पोलिसवाले की बात सुनकर वहाँ से भागते हुए सीधा ठाकुर के फार्महाउस में पहुँच गई।

ठाकुर- “आइए आइए... हमें तो कब से आपका ही इंतजार था..” ठाकुर ने अपने सामने कविता को आता हुआ देखकर मुश्कुराते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर साहब आप मेरे पति को छुड़ा दीजिए, मैं आपके पैर पड़ती हूँ..” कविता ने ठाकुर के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए कहा।
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08-05-2019, 01:27 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
ठाकुर- “अरे पगली तुम्हारी जगह हमारे पैर में नहीं, हमारे दिल में है...” ठाकुर ने कविता को अपने पैर से उठाकर गले लगाते हुए कहा।

कविता- “नहीं ठाकुर साहब, मैं अपनी इज्जत को नहीं गंवा सकती...” कविता ने ठाकुर से दूर होते हुए कहा।

ठाकुर- “तो जाओ यहाँ से और मरने दो अपने पति को जेल में..” ठाकुर ने कविता की बात सुनकर गुस्सा होते हुये कहा।

कविता- “नहीं ठाकुर साहब। आप इतने जालिम कैसे हो सकते हैं? मेरी एक छोटी बच्ची है, मुझपर रहम खाइए...” कविता ने फिर से ठाकुर से गिड़गिड़ाते हुए कहा।

ठाकुर- “देख छोरी, मैं तुझ पर रहम ही कर रहा हूँ वरना तुम्हारे पति को कोई नहीं बचा सकता। अब जल्दी से बता तुम्हें क्या मंजूर है? तुम्हारा पति या तुम्हारी इज्जत?” ठाकुर ने वहाँ पर पड़े सोफे पर बैठते हुए कहा।

कविता ने आखीरकार हार मानकर कहा- “ठाकुर साहब मैं अपने पति को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ...”

ठाकुर- “यह हुई ना समझदारी की बात? अब तुम अपने घर जाओ। रात को तैयार रहना। हमारे आदमी तुम्हें लेने आएंगे..." ठाकुर ने खुश होते हुए कहा।।

कविता- “ठाकुर साहब मगर हमारा पति?” कविता ने रोते हुए कहा।

ठाकुर- “उसकी चिंता मत करो। जब तुम हमें खुश करके घर पहुँचोगी तो तुम्हारा पति भी घर पहुँच जाएगा। मगर रात को यह सब नहीं चलेगा, अपने आपको ठीक करके आना..” ठाकुर ने कविता के आँसू की तरफ इशारा करते हुए कहा।

कविता ठाकुर की बात सुनकर एक बेजान लाश की तरह वहाँ से जाते हुए अपने घर पहुँच गई।

औरत- “क्या हुआ कविता कुछ पता चला?” कविता के घर पहुँचते ही उस औरत ने उससे सवाल किया।

कविता- “हाँ मैंने ठाकुर से बात की है, सुबह तक वो आजाद हो जाएंगे..” कविता ने अपनी बेटी के पास बैठकर उसके बालों में हाथ डालते हुए कहा।।

औरत- “कविता तुम इतनी उदास क्यों हो?” उस औरत ने कविता के उदास चहरे को देखते हुए कहा।

कविता- “सुन तुम मुझपर एक अहसान करोगी?” कविता ने उस औरत का हाथ पकड़ते हुए कहा।

औरत- “हाँ कहो क्या बात है?” उस औरत ने हैरान होते हुए कहा।

कविता- “रात को मेरी बेटी के सोने के बाद मैं उसे तुम्हारे पास छोड़कर कुछ घंटों के लिए किसी काम से जाऊँगी, तब तक तुम मेरी बेटी का खयाल रखना...” कविता ने उस औरत की तरफ उम्मीद से देखते हुए कहा।

औरत- “हाँ छोड़ जाना, मगर तुम कहाँ जाओगी?” उस औरत ने हैरान होते हुए पूछा।

कविता- “वो मैं बाद में बता दूंगी। तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया...” कविता ने उस औरत से शुक्रिया करते हुए कहा।

वो औरत कविता की इजाजत लेकर वहाँ से चली गई।
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08-05-2019, 01:27 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
कविता वहीं पर पड़े-पड़े रात के बारे में सोचने लगी। उसे रह-रहकर रोना आ रहा था। एक तरफ उसका पति और दूसरी तरफ उसकी इज्जत थी। कविता ने आज तक अपने पति के इलावा किसी भी गैर मर्द से बात तक नहीं की थी, और आज उसे अपने पति के लिए उस कुत्ते ठाकुर के साथ अपनी इज्जत का सौदा करना पड़ रहा था। कविता ने सोच लिया था की ठाकुर ने अगर उसकी इज्जत को नोचा तो वो अपनी जान दे देगी। कविता उठकर घर का काम करने लगी उसे आज कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।

ऐसे ही दिन गुजर गया और रात हो गई। कविता ने अपनी बच्ची को खाना खिलाकर सुला दिया। कविता खुद नहाने बाथरूम में चली गई और नहाने के बाद साड़ी पहनकर अपनी बच्ची के पास बैठकर उसे गौर से देखने लगी। थोड़ी ही देर में ठाकुर के आदमी आ गए और कविता अपनी बच्ची को उस औरत के घर छोड़कर खुद उनके साथ ठाकुर के पास जाने लगी। ठाकुर के आदमियों ने कविता को जीप में बिठाकर फार्महाउस लेजाकर ठाकुर के सामने खड़ा कर दिया। वो लोग कविता को अंदर छोड़कर खुद वहाँ से बाहर चले गये।


ठाकुर सोफे पर बैठकर शराब पी रहा था। कविता को देखते ही सोफे से उठकर उसके पास आ गया- “छोरी तुम्हें भगवान ने बहुत दरियादिली से बनाया है देखो कितनी खूबसूरत हो तुम...” ठाकुर ने शराब के नशे में कविता के होंठों पर अपनी उंगलियों को फिराते हुए कहा।

कविता अपने होंठों पर एक गैर मर्द का हाथ महसूस करके कांप गई और ठाकुर से थोड़ा दूर हट गई। ठाकुर कविता के हटते ही उसके पीछे जाने लगा। कविता ठाकुर को अपने पास आता देखकर अपने कदम पीछे हटातेहटाते पीछे हटने लगी, और ठाकुर भी आगे चलते हुए उसके पास जाने लगा। कविता पीछे हटते-हटते अचानक किसी चीज से टकरा गई। वो दीवार थी अब उसके पास पीछे जाने के लिए कोई भी जगह नहीं थी। कविता एक तरफ जाने ही वाली थी की उस तरफ ठाकुर ने अपना हाथ दीवार पर रखकर उसका रास्ता बंद कर दिया। कविता दूसरी तरफ देखने लगी की ठाकुर ने उस तरफ भी अपना दूसरा हाथ रख दिया। कविता के पास अब इधार उधर होने की भी जगह नहीं थी।

ठाकुर- “छोरी क्यों इतना तड़पा रही हो? अब आई हो तो क्यों इधर-उधर भाग रही हो?” ठाकुर ने कविता की आँखों में देखते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर साहब भगवान के लिए मेरी इज्जत बख्श दो मैं मर जाऊँगी...” कविता ने एक आखिरी कोशिश करते हुए कहा।

ठाकुर- “छोरी अब मेरा माथा मत घुमा... लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगी...” ठाकुर ने गुस्सा होते हुए कविता से दूर हटकर अपना मोबाइल उठाते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर नहीं, फोन मत करो...” कविता समझ गई की ठाकुर उसकी इज्जत से खेले बिना नहीं मानेगा, इसलिए उसने अपने साड़ी का पल्लू अपने माथे और चूचियों से हटाते हुए चिल्लाकर कहा। ठाकुर कविता की चीख सुनकर उसकी तरफ देखने लगा।

ठाकुर- “छोरी यह हुई ना बात.. आओ आज की रात के लिए तुम हमारी दुल्हन बन जाओ...” ठाकुर ने कविता का विरोध खतम होते ही उसे अपनी गोद में उठाकर अपने बेड की तरफ ले जाते हुए कहा।

ठाकुर ने कविता को अपनी बाहों में उठाए हुए आगे बढ़कर उसे बेड के पास नीचे उतारते हुए सीधा खड़ा कर दिया। कविता एक बेजान लाश की तरह खड़ी थी। ठाकुर ने कविता की साड़ी को पकड़कर उसके जिम से अलग कर दिया। साड़ी के उतरते ही कविता का गोरा जिश्म सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में ठाकुर की आँखों के सामने आ गया।

ठाकुर ने अपनी शर्ट और पैंट को अपने जिश्म से अलग करते हुए अपने अंडरवेर को भी उतारकर बेड पर फेंक दिया। ठाकुर के सारे कपड़े उतारने के बाद उसका लण्ड बिल्कुल तनकर झटके मार रहा था। ठाकुर ने कविता के करीब जाते हुए उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख दिया। कविता ने तो ठाकुर को कपड़े उतारता हुआ। देखकर अपनी आँखें बंद कर ली थी, मगर अपना हाथ ठाकुर के खड़े लण्ड पर पड़ते ही उसका सारा जिस्म कांपने लगा। क्योंकी वो ठाकुर के लण्ड के स्पर्श से ही जान गई थी की ठाकुर ने उसका हाथ अपने नंगे लण्ड पर रख दिया है। कविता ने फौरन अपने हाथ को ठाकुर के लण्ड से हटा दिया।


ठाकुर- “क्या हुआ जानेमन अच्छा नहीं लगा क्या?” ठाकुर ने कविता का हाथ अपने लण्ड से हटाते ही उसको अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

कविता अपने आधे नंगे जिश्म को पहली बार किसी गैर मर्द के नंगे बदन से टकराने की वजह से अपने जिम में अजीब किस्म का अहसास होने लगा। कविता उस अजीब अहसास की वजह से बिना कुछ बोले अपनी आँखों को वैसे ही बंद किए बहुत जोर-जोर से साँसें लेते हुए हाँफ रही थी।

ठाकुर समझ गया की कविता गरम हो रही है। इसलिए उसने बिना कोई देर किए अपने होंठों को कविता के । होंठों पर रख दिया, और कविता के होंठों को चूमते हुए बुरी तरह अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। कविता को आज तक सिर्फ अपने पति ने चूमा था, वो भी बिल्कुल सादे तरीके से। ठाकुर के मुँह से अपने होंठों को चूसने । और अपनी चूचियों को उसके सख़्त सीने में दबने से कविता का जिश्म तप कर बहुत गरम हो गया और उसकी चूत से पानी टपकने लगा।

ठाकुर ने कविता को चुप खड़ा देखकर उसे ज्यादा गरम करने के लिए उसके मुँह को खोलकर उसकी जीभ को अपने मुँह में भरते हुए जोर-जोर से चूसने लगा, और अपने एक हाथ को उसके ब्लाउज़ के ऊपर से ही उसकी एक चूची को पकड़कर सहलाने लगा।

कविता ठाकुर की इस हरकत से बुरी तरह काँप उठी और अगले पल ही उसने ठाकुर को धक्का देते हुए अपने आपसे अलग कर दिया। कविता को यह अहसास हो गया था की वो ठाकुर के साथ इस पाप में उसका साथ दें रही है। इसलिए उसने ठाकुर को अपने आपसे दूर कर दिया और खुद बेड पर बैठकर अपनी किश्मत पर रोने लगी।

ठाकुर- “छोरी बहुत नखड़ा कर लिया, हमारे सबर का इम्तहान मत ले..." ठाकुर ने कविता के अलग होते ही गुर्राते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर आपको जो करना है जल्दी कर लो मैं ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकती...” कविता ने ठाकुर के गुस्से को देखकर वैसे ही रोते हुए कहा।

ठाकुर- “हाँ छोरी, जब हमारी हरकतों से तुम गरम हो रही हो तो जी भरकर मजे लो। क्यों इस झूठी आन के लिए अपनी जिंदगी तबाह कर रही हो?” ठाकुर ने कविता की बात सुनकर जोर से हँसते हुए कहा।

कविता- “नहीं मैं अपने पति को धोखा नहीं दे सकती...” कविता ने ठाकुर की बात सुनकर जल्दी से कहा।

ठाकुर- “देख छोरी मेरे लण्ड को, यह कितना मोटा और लंबा है? जिसे मैं चोदता हूँ वो दूसरी बार खुद मेरी तरफ दौड़ती हुई आती है। तुम्हारे पति का ऐसा लण्ड है?” ठाकुर ने कविता के पास जाकर उसको बालों से पकड़ते हुए अपने लण्ड को दिखाते हुए कहा।


कविता- “ठाकर उसका जैसा है, मुझे कबूल है क्योंकी वो मेरा पति है...” कविता ने अपनी आँखों के सामने ठाकुर के लंबे और मोटे लण्ड को देखकर अपनी आँखें बंद करते हुए कहा। कविता ने आँखें तो बंद कर ली थी, मगर वो एक बार ठाकुर का लण्ड देख चुकी थी जो उसके पति से कहीं ज्यादा बड़ा और मोटा भी था।

ठाकुर- “ठीक है छोरी। मैं आज देखता हूँ की जो तू जुबान से बोल रही है, क्या तुम्हारा जिम भी उसका साथ देता है?” ठाकुर ने यह कहते हुए कविता के ब्लाउज़ और पेटीकोट को उसके जिम से अलग कर दिया।

कविता की बड़ी-बड़ी चूचियां अब सिर्फ ब्रा में कैद होकर ठाकुर की आँखों के सामने थी। कविता की बड़ी-बड़ी चूचियां उसकी ब्रा में आधी ही समा पा रही थी, क्योंकी उसकी चूचियां बहुत बड़ी थी। ठाकुर ने कविता को धक्का देते हुए बेड पर सीधा सुला दिया, और खुद उसके ऊपर चढ़ते हुए कविता की चूचियों के उभारों को उसकी ब्रा के ऊपर से ही चाटने लगा।

कविता ने अपनी आँखें बंद कर ली थी, वो बस एक बेजान लाश की तरह लेटी हुई थी। कविता की कितनी कोशिश के बाद भी उसका जिम उसका साथ नहीं दे रहा था, और वो ठाकुर की हरकतों से गर्म हो रहा था। ठाकुर ने अचानक कविता की ब्रा को खींचते हुए उसकी चूचियों से नीचे सरका दिया और किसी जानवर की तरह उसकी दोनों चूचियों पर टूट पड़ा। ठाकुर कविता की दोनों चूचियों को बारी-बारी अपने मुँह में लेकर चूस और चाट रहा था और साथ में कभी-कभी उन्हें अपने दाँतों से काट भी रहा था।

कविता को ठाकुर की हरकतों से दर्द के साथ मजा भी आ रहा था। वो चाहकर भी अपने जिश्म को अपने काबू में नहीं रख पा रही थी। मगर वो अपने मजे या दर्द को अपने चहरे पर बिल्कुल नहीं आने दे रही थी। वो बस एक लाश की तरह बेड पर लेटी थी, जिसे ठाकुर नोच-नोच कर खा रहा था।

ठाकुर कुछ देर तक कविता की चूचियों के साथ खेलने के बाद नीचे होते हुए उसकी टाँगों के बीच आ गया और कविता की पैंटी को पकड़कर उसके जिश्म से अलग कर दिया। ठाकुर ने कविता की पैंटी के हटते ही उसकी टाँगों को आपस में से अलग करते हुए अपना मुँह उसकी चूत पर रख दिया। कविता का पूरा जिश्म ठाकुर का मुँह अपनी चूत पर रखते ही जोर से काँपने लगा, और ना चाहते हुए भी उसकी चूत से उत्तेजना के मारे पानी निकलने लगा।
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08-05-2019, 01:27 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
कविता की चूत में आज तक सिर्फ उसके पति का लण्ड ही गया था, क्योंकी वो इस चीज को गंदा समझता था। इसलिए उसने कविता की चूत को कभी चूमा या चाटा नहीं था। कविता पहली बार अपनी चूत पर किसी मर्द के होंठों के अहसास से ही काँप उठी, और लाख कोशिश करने पर भी उसका जिम उसके वश में नहीं रहा।

ठाकुर- “वाह... बातें तो बहुत कर रही थी, यह क्या है? तुम्हारी चूत तो बता रही है की तुम बहुत मजे ले रही हो..." ठाकुर ने कविता की चूत से पानी को निकलता हुआ देखकर खुश होते हुए कहा।

कविता ठाकुर की बात सुनकर शर्म से पानी-पानी हो गई और शर्म के मारे अपनी टाँगों को बंद करने लगी। मगर तभी ठाकुर ने अपनी जीभ निकालकर कविता की चूत के छेद पर रख दिया और उसकी चूत से निकलते हुए पानी को अपनी जीभ से चाटने लगा। कविता की टाँगें अपनी चूत पर ठाकुर की जीभ के पड़ते ही बंद होने के बजाए अपने आप खुलने लगी।


कविता खुद समझ नहीं पा रही थी के ऐसा क्यों हो रहा है? उसका पूरा शरीर ठाकुर की इस हरकत से सिहर उठा और उसका जिश्म अकड़ने लगा। कविता का जिम अकड़ते हुए बहुत जोर से कांपने लगा। कविता ने अपने आपको बहुत रोकने की कोशिश की मगर उसके जिस्म ने उसका साथ नहीं दिया, और उसकी चूत से पानी की नदियां बहने लगी। कविता ने झड़ते हुए अपनी आँखें बंद कर ली। उसको झड़ते वक़्त बहुत ज्यादा मजा आ रहा था, जितना पहले कभी नहीं आया था और उसकी चूत से पानी भी पहले कभी इतना नहीं निकला था। कविता का जिम जब पूरी तरह झड़ने के बाद शांत हो गया तो उसकी आँखों से आँसू की नदियां बहने लगी।

ठाकुर- “अरे वाह... तुम्हारे तो दोनों तरफ से आँसू निकल रहे हैं...” ठाकुर ने जैसे ही कविता की चूत के पानी को चाटने के बाद अपना मुँह ऊपर किया तो उसको रोता हुआ देखकर बोला।।

कविता- “ठाकुर मेरा जिम चाहे मेरा साथ ना दे, मगर मेरी आत्मा मेरे साथ है...” कविता ने ठाकुर को देखकर वैसे ही रोते हुए कहा।।
-
ठाकुर- “ठीक है। हमें भी तुम्हारा जिश्म चाहिए, आत्मा भले अपने पति को दे देना..." ठाकुर ने यह कहकर कविता की दोनों टाँगों को उसके पेट पर रख दिया और अपने फरफराते हुए लण्ड को उसकी गीली चूत पर घिसने लगा।

कविता ने ठाकुर के लण्ड को अपनी चूत पर घिसता हुआ पाकर शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली। ठाकुर ने अपने लण्ड को पूरा गीला करने के बाद कविता की चूत के छेद पर रखते हुए एक जोर का धक्का मार दिया। ठाकुर का लण्ड कविता की चूत गीली होने के कारण आधा अंदर चला गया। कविता को थोड़ा दर्द हुआ, क्योंकी ठाकुर का लण्ड उसके मर्द के लण्ड से मोटा था। मगर उसने कोई आवाज नहीं की।

ठाकुर- “वाह... छोरी बहुत टाइट है तुम्हारी चूत... तुम्हारा मर्द नहीं चोदता क्या तुम्हें?” ठाकुर ने अपना आधा लण्ड घुसाने के बाद कविता की तरफ देखते हुए कहा। ठाकुर के लण्ड को कविता की चूत पूरी तरह जकड़े हुई थी इसलिए उसने कविता से पूछा था।

कविता ने ठाकुर का कोई जवाब नहीं दिया, और चुपचाप अपनी आँखें बंद किए हुए पड़ी रही। कविता ने आज तक सिर्फ अपने पति से चुदवाया था, जिसका लण्ड ठाकुर के लण्ड से छोटा और पतला था। ठाकुर ने अब अपने लण्ड को बाहर खींचकर कविता की चूत में धक्के मारने शुरू कर दिये। ठाकुर का लण्ड 5 इंच तक तो कविता की चूत में आसानी से घुस गया, मगर अब वो आगे नहीं जा रहा था। ठाकुर समझ गया की कविता के मर्द का लण्ड इतना ही लंबा है इसलिए उसकी चूत इतनी ही खुली हुई है।

कविता को अपनी चूत में ठाकुर का लण्ड बहुत जोर की रगड़ दे रहा था, क्योंकी वो उसके पति के लण्ड से बहुत मोटा था। इसलिए ठाकुर का लण्ड जैसे-जैसे अंदर-बाहर हो रहा था, कविता का जिश्म वैसे-वैसे ज्यादा गरम हो रहा था।


ठाकुर ने कुछ देर तक कविता को वैसे ही धक्के लगाने के बाद अब उसकी चूत में बहुत जोर से अपने लण्ड को अंदर-बाहर करने लगा। ठाकुर अब अपना लण्ड कविता की चूत से पूरा निकालकर फिर बहुत जोर का धक्का देते हुए घुसा रहा था। जिससे ठाकुर का लण्ड अब थोड़ा-थोड़ा अंदर होते हुए कविता की चूत में पूरा घुस चुका था।

कविता को भी अब ठाकुर का लण्ड उसकी चूत में बहुत अंदर तक महसूस हो रहा था, जहाँ तक उसके पति का कभी नहीं पहुँचा था। ठाकुर के धक्के अब बहुत ज्यादा तेज और खतरनाक होते जा रहे थे, जिससे कविता का । पूरा जिश्म ठाकुर के हर धक्के के साथ हिल रहा था, और उसके मुँह से हर धक्के के साथ जोर की आहे निकल रही थी। कविता खुद नहीं जानती थी के उसे क्या हो गया है? वो ठाकुर का साथ कैसे दे रही है? कविता का जिश्म अचानक फिर से अकड़ने लगा और ठाकुर से चुदवाते हुए उसके चूतड़ अपने आप उछलने लगे।

ठाकुर समझ गया की वो फिर से झड़ने वाली है। इसलिए वो अपने लण्ड को पूरा बाहर खींचकर कविता की चूत में जोर के धक्के मारने लगा। अचानक कविता के मुँह से एक जोर की सिसकी निकली, उसकी आँखें बंद हो गई, और उसकी चूत पानी छोड़ने लगी। ठाकुर ने कविता को फिर से झड़ता हुआ देखकर अपना लण्ड जड़ तक उसकी चूत में घुसाकर उसके ऊपर आते हुए उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों से खेलने लगा।
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08-05-2019, 01:28 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
कविता की चूत से जाने कितनी देर तक पानी बहता रहा, वो झड़ते हुए स्वर्ग की सैर कर रही थी। उसे इतना मजा पहले कभी नहीं आया था जितना उसे ठाकुर से मजबूरी में चुदवाते हुए आ रहा था।

ठाकुर- “आओ अब तुम खुद मेरे लण्ड को अपनी चूत में लो...” ठाकुर ने कविता को झड़ने के बाद आँखें खोलते हुए देखकर उसकी चूत से अपना लण्ड निकालकर सीधा लेटते हुए कहा।

कविता- “नहीं, मैं नहीं कर सकती...” कविता ने होश में आते ही फिर से रोते हुए कहा।

ठाकुर- “छोरी अब मुझे गुस्सा मत दिला... मुझे पता है तुम बहुत बड़ी छिनाल हो, सती सावत्री बनने का नाटक करती हो और चुदवाते हुए मजे भी लेती हो...” ठाकुर ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा।

कविता- “नहीं ठाकुर, मुझे खुद पता नहीं की मेरा जिश्म क्यों मेरा साथ नहीं दे रहा है? भगवान के लिए अब मुझे छोड़ दो...” कविता ने ठाकुर की बात सुनकर जोर से रोते हुए कहा।

ठाकुर- “तुम मानती हो या......” ठाकुर इतना कहकर चुप हो गया।

कविता ठाकुर के गुस्से को देखकर डर गई और उठकर अपनी टाँगों को फैलाते हुए अपनी चूत को ठाकुर के । लण्ड पर टिका दिया और अपने वजन के साथ नीचे बैठने लगी। कविता की चूत में ठाकुर का पूरा लण्ड घुसते ही ऐसा महसूस होने लगा की ठाकुर का लण्ड अब और ज्यादा लंबा और मोटा हो गया है क्योंकी वो उसकी चूत को बुरी तरह फैलाए हुए उसके पेट तक महसूस हो रहा था।
कविता ठाकुर के लण्ड पर उछलने लगी और ठाकुर उसकी हिलती हुई चूचियों से खेलने लगा, 5 मिनट में ही कविता का जिश्म फिर से अकड़ते हुए झटके खाने लगा और कविता हाँफते हुए झड़ने लगी। कविता झड़ते हुए अपने चूतड़ों को बहुत जोर-जोर से ठाकुर के लण्ड पर उछाल रही थी और कविता पूरी तरह झड़ने के बाद बिल्कुल निढाल होकर ठाकुर के ऊपर ढेर हो गई।

ठाकुर ने कविता को अपने ऊपर से उठाते हुए सीधा लेटा दिया और अपना लण्ड उसकी चूत में डालकर उसकी
चुदाई करने लगा, 5 मिनट बाद ही ठाकुर का जिश्म काँपने लगा और वो हाँफते हुए अपना वीर्य कविता की चूत में छोड़ने लगा। ठाकुर ने झड़ते हुए अपना लण्ड पूरी ताकत के साथ कविता की चूत में जड़ तक घुसा दिया। जिस वजह से उससे निकलता हुआ वीर्य सीधा कविता की बच्चेदानी में गिरने लगा।

कविता ठाकुर का गरम वीर्य अपनी बच्चेदानी में गिरता हुआ महसूस करके, सिसकते हुए चौथी बार झड़ने लगी। वो खुद हैरान थी की उसे क्या हो गया है? वो अपने पति से चुदवाते हुए भी मुश्किल से एक दफा ही झड़ती थी। ठाकुर पूरी तरह झड़ने के बाद कविता के ऊपर ही ढेर हो गया। ठाकुर ने सारी रात कविता को कई तरह से नोचने के बाद अपने आदमियों के हाथों घर भिजवा दिया।
कविता अपने घर आते ही सीधी बाथरूम में घुस गई और अपने आपको घिस-घिसकर साफ करने लगे, नहाते। हुए कविता की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने अपने मन में एक फैसला कर लिया था। कविता नहाने के बाद आकर खटिया पर लेट गई, नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। उस वक़्त सुबह के 5:00 बज रहे थे और इस वक़्त वो अपनी बेटी को नहीं लेने जा सकती थी। इसलिए वो खटिया पर लेटे हुए ही अपनी जिंदगी के बारे में । सोचने लगी। ऐसे ही टाइम गुजरता गया और कविता सुबह होते ही अपनी बच्ची को जाकर उस औरत के घर से उठा लाई।

कविता अपनी बच्ची को जैसे ही अपने घर ले आई वो उठ गई। कविता अपनी बच्ची से खेलने लगी वो आज जी भरकर अपनी बच्ची को प्यार देना चाहती थी। कुछ देर बाद ही घर में दाखिल हुआ जिसे देखते ही कविता रोते हुए जाकर उसके गले से लग गई।

हरी- “कविता मैं जानता हूँ की मुझे उस ठाकुर ने ही गिरफ्तार कराया था। हम अब यहाँ नहीं रहेंगे तुम तो ठीक हो ना?” हरी ने कविता को गले लगाते हुए कहा।

कविता- “हाँ मैं सही हूँ आप बैठ जाओ मैं नाश्ते का बंदोबस्त करती हूँ..” कविता ने अपनी आँखों से आँसू को पोछते हुए कहा।।

हरी वहीं पर अपनी बच्ची को अपने गोद में लेते हुए बैठ गया, और कविता नाश्ता बनाने लगी। कविता ने नाश्ता बनाने के बाद दो बरतनों में डाल दिया। कविता ने एक बरतन में जहर मिला दिया जो उसके पति ने खेतों में डालने के लिए रखा था। कविता दोनों बरतन लेकर अपने पति के पास आ गई और एक बरतन उसे देते हए दूसरा दूसरी खटिया पर रख दिया। कविता ने अपने पानी का एक ग्लास भरकर अपने पति की खटिया पर रख दिया।

हरी- “अरे एक साथ ही ले आती ना...” हरी ने कविता को देखते हुए कहा।

कविता- “नहीं। बस आप आराम से खाएं। एक बात कहूँ?" कविता ने वहीं खड़े अपने पति से कहा।।

हरी- “हाँ बताओ क्या बात है, मुझे तुम कुछ परेशान लग रही हो?” हरी ने अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए
कहा।

कविता- “आपको इस बच्ची की कसम, मैं जो कहूँगी आपको मानना होगा। वरना आप इस बच्ची का मरा मुँह देखोगे...” कविता ने अपने पति का हाथ अपनी बेटी के सिर पर रखते हुए कहा।

हरी- “पगली तुम इसकी कसम क्यों दे रही हो? वैसे भी मैं तुम्हारी हर बात मानता हूँ...” हरी ने हैरानी से अपनी पत्नी को देखते हुए कहा।

कविता- “नहीं पहले आप इसकी कसम खाएं..” कविता ने जिद करते हुए कहा।

हरी- “ठीक है बाबा, मुझे अपनी बच्ची की कसम मैं तुम्हारी बात मानूंगा...” हरी ने हार मानते हुए कहा।
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08-05-2019, 01:28 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
कविता- “आपने अपनी बच्ची की कसम खाई है। आप मेरी बात सुनकर ठाकुर को कुछ नहीं करेंगे, बस चुपचाप अपनी बच्ची का ख्याल रखेंगे...” कविता ने बरतन से रोटी उठाकर अपने मुँह में डालते हुए कहा।

हरी- “कविता मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है तुम क्या कह रही हो? और मेरी बच्ची का मैं क्यों खयाल रगा तुम जो हो...” हरी ने परेशान होते हुए कहा।

कविता ने हरी को अपने और ठाकुर के बारे में हुई सारी बात बता दी, और रोते हुए वैसे ही बरतन से खाना खाने लगी।

हरी- “साला कुत्ता ठाकुर... कविता तुमने मुझे कसम क्यों दी? मैं उस कमीने को नहीं छोडूंगा.” हरी ने दाँत पीसते हुए कहा।

कविता- “हरी, आपको मेरी बच्ची का खयाल रखना है..." कविता ने जल्दी से वो खाना खाते हुए कहा।

हरी- “कविता तुम कहाँ जा रही हो, जो बार-बार मुझे बच्ची का खयाल रखने के लिए कह रही हो?” हरी ने हैरान होते हुए कविता से पूछा।

कविता- “मैंने अपने खाने में जहर मिला दिया है। मैं अब उस ठाकुर के जख़्मों के साथ जिंदा नहीं रह सकती...” कविता ने इतना ही कहा था की वो वहीं पर गिरकर तड़पने लगी। जहर ने अपना काम शुरू कर दिया था।

हरी- “नहीं कविता, तुम ऐसा नहीं कर सकती। तुम मुझे अकेला छोड़कर नहीं जा सकती। मैं अभी तुम्हें डाक्टर के पास ले जाता हूँ..” कहकर हरी ने जल्दी से अपनी बीवी को अपनी गोद में उठाकर उसे लेकर दौड़ते हुए । डाक्टर के पास ले जाने लगा।

हरी- “डाक्टर साहब जल्दी से कुछ कीजिए इसने जहर खा लिया है...” हरी ने हास्पिटल में दाखिल होते ही चिल्लाकर कहा।


डाक्टर नर्स से कहकर कविता को एमर्जेन्सी रूम में ले गया। तभी हरी को अपनी बेटी की याद आ गई और वो दौड़ते हुए अपने घर आ गया। हरी ने अपनी बच्ची को अपनी गोद में उठाया और फिर दौड़ते हुए हास्पिटल आ गया। डाक्टर अभी तक अंदर से निकले नहीं थे। हरी अपनी बेटी को गोद में लिए बाहर बैठ गया और अपनी बीवी को बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगा।

डाक्टर- “आई आम सारी। जहर पूरी तरह उसके जिम में फैल चुका था, हम उसे बचा नहीं सके..” डाक्टर ने बाहर निकलते ही हरी की तरफ देखते हुए कहा।

हरी- “नहीं कविता तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती...” हरी डाक्टर की बात सुनकर जोर-जोर से रोने लगा। हरी ने अपनी बीवी का अंतिम संस्कार किया और चुपचाप अपनी बेटी की परवरिश करने लगा। वो अपनी बच्ची की कसम से बँधा हुआ था, वरना वो ठाकुर को कब का मार देता।

सारे गाँव में यही बात थी की कविता ने हरी से रूठकर आत्महत्या कर ली।
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