Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:29 PM,
#41
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
सोनल के साथ आरती शोरुम पर ही रुकी। मगर उसका मन कही और ही घूम रहा था कही भोला ने अगर रवि को बता दिया तो फिर क्या होगा। रवि तो उससे मार ही डालेगा वो क्या करे कहाँ जाए आखिर क्यों गई वो छत पर और क्या जरूरत थी उसे उसे आहट के पीछे जाने की आखिर क्या जरूरत थी और गई भी थी तो चुपचाप चली आती वहां खड़े होकर देखने की क्या जरूरत थी

अचानक ही उसके हाथ पाँव में एक अजीब सी सनसनी होने लगी थी वो अपने चेयर में बैठी बैठी शून्य को घूर रही थी और उस समय उसकी नज़रें कुछ अपने सामने होते हुए सा देख रही थी सोनल अपने काम में लगी थी और उसकी ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं था और आरती के शरीर पर होने वाली हरकत से भी अंजान थी और आरती के शरीर में एक अजीब सी सिहरनने जनम ले लिया था उसे रह रहकर वो सीन याद आरहा था क्या सीन था वो लड़की जो कि उसके सामने झुकी हुई थी कमर के नीचे से बिल्कुल नंगी थी और वो सांड़ भोला उसको पीछे से घुसाकर मजे ले रहा था उसे कोई डर नहीं था कि कोई आ जाएगा या फिर कोई देख लेगा सच में गुंडा है रवि सच ही कह रहा था और तो और जब उसने भोला को देख लिया था तो वो डरता पर, वो तो उसे ही खा जाने वाली नजर से देखता रहा था


वो बैठे बैठे एक बार फिर से सिहर उठी एक बार सोनल की ओर देखा और फिर से ध्यान मग्न हो गई बहुत ही बदमाश है भोला डर नाम की कोई चीज उसमें है ही नहीं मालकिन है वो, वो लड़की तो भाग गई थी डर के मारे पर भोला वो तो बल्कि उसकी ओर ही बढ़ रहा था और तो और उसने अपने को धमकाने की भी कोशिश नहीं की थी कितना बड़ा और मोटा सा था काले साँप की तरह एकदम सीधा खड़ा हुआ था किसी सहारे की भी ज़रूरत नहीं थी देख कैसे रहा था उसकी ओर जैसे वो उसकी कोई खेलने की चीज है


आरती का पूरा शरीर सनसना रहा था गुस्से में और कही कही कामुकता में उसे पता नहीं था पर जैसे ही उसका ध्यान उसके लण्ड के बारे में पहुँचा वो अपने मुख से एक लंबी सांस छोड़ने से नहीं रुक पाई थी ।सोनल की नजर एक बार उसकी ओर घूमी फिर से वो अपने काम में लग गयी। आरती भी फिर से अपनी सोच में डूब गई थी कितना बड़ा था उसका अपने हाथों से पकड़ने के बाद भी आधा उसके हाथों से बाहर की ओर निकला हुआ था काला लेकिन सामने की ओर लाल लाल था। आरती की जांघे आपस में जुड़ गई थी उसके जाँघो के बीच में कुछ होने लगा था वो सोचने में ही मस्त थी
कैसे बढ़ते हुए वो अपने लण्ड को झटके दे रहा था जैसे कि उसके साथ चुदाई कर रहा था और कितना सारा वीर्य उसके लण्ड से निकला था उसके ऊपर भी तो आया था अचानक ही उसने अपने पैरों के बीच में अपनी पैरों की उंगलियां चलाकर देखा हाँ चिप चिपा सा अब भी था। आरती अब जैसे सोचते हुए फिर से वही पहुँच गई थी कितने अजीब तरीके से उसे देख रहा था जैसे कुछ माँग रहा था या फिर तकलीफ में था पर वो उसकी तरफ क्यों आ रहा था वो उसे क्यों पकड़ना चाहता था अच्छा ही हुआ कि उसने उसे धक्का मार दिया नहीं तो पता नहीं क्या होता कोई भी नहीं था वहां छत पर और उस सांड़ से लड़ने की हिम्मत उसमें तो नहीं थी



अच्छा हुआ कि गिर गया नहीं तो वो मर जाती उस औरत ने भी तो उसे देख लिया था पर वो थी कौन और कहाँ चली गई थी अरे हाँ… उसने इस बात पर तो ध्यान ही नही दिया।


अगर उस औरत ने ही बता दिया तो कि आरती मेडम छत पर थी मर गये अब कही रवि को मालूम चल गया तो बाप रे अब क्या होगा अब आरती के चहरे पर परेशानी के भाव साफ-साफ देखने लगे थे और कही भोला मर गया तो तब तो पोलीस केस भी होगा, तब वो क्या करेगी और कही भोला ने ही पोलीस को सब बता दिया तो तो तो उसकी इज़्ज़त तो गई और इस घर से भी गई
वो बहुत चिंतित हो उठी नहीं नहीं भोला को कुछ नहीं होगा और ना ही वो किसी को कुछ बताएगा वो जानती थी क्योंकी अगर उसे बताना होता तो क्या वो रवि को अभी तक नहीं बता दिया होता बिकुल ठीक पर वो चाहता क्या है नहीं उसके सामने पड़ता है और नहीं कभी कोई इशारा ही किया उसने वो तो कई बार फैक्टरी के काम से गई थी पर हमेशा वो कही ना कही काम से ही फँसा रहता था और जब भी उसके सामने आया तो नजर बिल्कुल जमीन पर गढ़ाए हुए ही रहता था उसके दिल में जरूर कुछ है पता नहीं क्या पर अभी तो रवि गया है पता नहीं क्या खबर लाता है वो चाहती थी कि एक बार फोन करके पता करे पर हिम्मत नहीं हुई पर उसे देखकर स्पष्ट कहा जा सकता था कि वो परेशान है आखिर सोनल से नहीं रहा गया
सोनल-क्या बात है मम्मी , कुछ परेशान हो

आरती- नहीं बस कुछ नही।

सोनल- अरे कन्स्ट्रक्षन साइट में यह सब होता ही रहता है और पापा तो गये है आप चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा

आरती- हा
पर आरती को कहाँ चैन था उसे तो इस बात की चिंता थी कि भोला कुछ उगल ना दे कही उसके बारे में किसी को बता ना दे और तो और वो औरत कौन थी जिसे उसने भोला के साथ देखा था वो भी तो बता सकती है मन में हलचल लिए आरती रवि के इंतेजार में दोपहर से शाम और फिर रात तक बैठी रही पर रवि का कही पता नहीं था वो सोनल के साथ ही घर भी आ गई ,घर पहुँचकर ही उसने सोनल को ही कहा कि फोन करे
सोनल ने ही उसके सामने फोन किया

रवि- हा बेटा।

सोनल- क्या हुआ बड़ी देर लग गई पापाजी ।

रवि- बेटा कुछ नहीं सब ठीक है निकल गया हूँ आता हूँ

सोनल ने फोन काट कर आरती को बताया कि कोई चिंता की बात नहीं है पापा अभी घर पहुँचते ही होगे।

आरती अपने कमरे में जाने से डर रही थी क्यों पता नहीं वो वही सोनल के साथ रही ।

सोनल- अरे क्या हुआ मम्मी!

आरती- कुछ नहीं

सोनल- मम्मी जाओ प्रेश हो जाओ पापा भी आते होगे चल कर खाना खाते है

आरती ना चाहते हुए भी जल्दी से अपने कमरे की ओर लपकी और फ्रेश हो ही रही थी कि रवि की गाड़ी की आवाज आई वो थोड़ा सा डरी पर खुद पर काबू रखकर रवि का इंतेजार करती रही

रवि के कमरे में घुसते ही वो रवि के सामने एक प्रश्न सूचक चेहरा लिए खड़ी मिली
रवि- बच गया अगर नीचे रेत नहीं होती ना मर ही जाता

आरती- हाँ… क्या हुआ है

रवि- कुछ नहीं थोड़ा बहुत ही चोट है असल में गिरा ऊपर से ना इसलिए थोड़ा बहुत अन्द्रूनि चोट है ठीक हो जाएगा दो एक दिन लगेंगे

आरती- अभी कहाँ है हास्पिटल में या

रवि- अरे हास्पिटल में ही है पोलीस भी आई थी आक्सिडेंटल केस है ना इसलिए

आरती- पोलीस क्यों

रवि-, अरे तो नहीं आएगी क्या आक्सिडेंटल केस में आती ही है गवाही के लिए

आरती- क्या गवाही

रवि- अरे यार गिरा कैसे कौन था वहाँ और बहुत कुछ पूछा उससे

आरती की तो जैसे जान ही निकल गई थी गला सुख गया था थूक निगलते हुए पूछा
आरती- तो क्या बताया

रवि तब तक अपने कपड़े चेंज करते हुए बाथरूम में घुस गया था बड़ा ही कषुयल था पर आरती की जान तो जैसे जाने ही वाली थी अगर उसने पोलीस को बता दिया कि उसने उसे धक्का दिया था तो
आरती को चैन नहीं था बाथरूम के बाहर ही खड़े होकर फिर से चिल्लाकर पूछा
आरती- क्यों,बताया नहीं क्या।

रवि की अंदर से आवाज आई
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08-27-2019, 01:30 PM,
#42
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
रवि- अरे यार मुझे नहीं पता अरे बाहर तो आने दो

आरती की सांसें अब भी अटकी हुई थी बाथरूम का दरवाजा खुलने की राह देखते हुए वो वही बेड पर बैठी रही क्या यार कहाँ फस गई जब देखो तब वो कही ना कही फस जाती है कुछ दिनों पहले वो लाखा और रामु के साथ फस गई थी और अब भोला

किसी तरह से अपने को उन लोगों से अलग करके अपने को बचाया था पर अब भोला तो क्या वो कभी भी ईमानदारी से जी नहीं सकती हमेशा ही उसे कॉंप्रमाइज करते रहना पड़ेगा अगर वो भोला को धक्का नहीं देती तो क्या वो गिरता और अगर वो उसे धक्का नहीं देती तो वो तो उसे पकड़ लेता और फिर उूउउफफ्फ़ क्या स्थिति में फस गई थी आरती गुस्से के साथ-साथ उसे रोना भी आ रहा था पर करे क्या क्या लाखा या फिर रामु उसकी मदद कर सकते है।

आरति सोचती है कि रामू या लाखा से इस बारे में अगर वो थोड़ा सा रिक्वेस्ट करके उनसे कहे कि भोला को धमकी दे-दे की चुप रहे किसी को कुछ ना कहे तो कैसा रहे


हाँ यह ठीक रहेगा पर कहेगी कब वो तो अब सोनल के साथ ही आती जाती है या फिर रवि के साथ और तो और वो तो आज कल ना तो लाखा की ओर ही देखती है और नहीं रामु की ओर
पर इस स्थिति से निकलने के लिए तो इन दोनों से अच्छा कोई नहीं है पर अचानक ही उसके दिमाग में एक ख्याल आया पर इन लोगों को कहेगी क्या कि क्या नहीं बोलना है या क्यों धमकी देना है भोला को वो कुछ सोच नहीं पा रही थी तभी रवि भी बाथरूम से निकल आया और दोनों नीचे डिनर के लिए चले गये सोनल के साथ डाइनिंग टेबल पर जब बैठे तो

सोनल- कैसा है पापा वो।

रवि- हाँ ठीक है चोट ज्यादा नहीं है ठीक हो जाएगा

सोनल- कहाँ है सरकारी हास्पिटल में

रवि- हाँ… पोलीस केस हुआ है ना इसलिए कल या फिर परसो प्राइवेट में ले आएँगे

सोनल- ठीक है पर पापा कुछ ज्यादा गड़बड़ ना हो जाए

रवि- नहीं नहीं वैसा कुछ नहीं है एक्सीडेंटल केस है ना इसलिए पोलीस आई थी नहीं तो प्राइवेट हास्पिटल में ही अड्मिट करता

सोनल- अच्छा ठीक है पापा वो धरम पाल अंकल जी का फोन आया था कह रहे थे बॉम्बे जाना है कुछ एक्सपोर्टेर आ रहे है बात कर लेना पापा।

रवि- कब आ रहे है बेटा

सोनल- पता नहीं पापा आप ही बात कर लेना

रवि- हाँ… यह प्राब्लम तो ठीक हो पहले

सोनल- पर पापा वो गिरा कैसे

आरती जो कि अब तक दोनों की बातें सुन रही थी और खाने में व्यस्त थी अचानक ही रुक गई और रवि की ओर देखती हुई चुप हो गई

रवि- पता नहीं कह रहा था कि पैर फिसल गया था और कुछ नहीं बताया पोलीस भी ब्यान लिख कर ले गई

सोनल- वो क्या इतना बुद्धू है ,इतने दिनों से काम कर रहा है उसका पैर फिसल गया पता नहीं नशे में था क्या

रवि- अरे नहीं वो काम के समय नहीं पीता मुझे पता है

सोनल- हाँ पापा आपको तो सब पता रहता है बड़ा ही विस्वास पात्र है आपका है ना,

रवि- अरे बेटा एक बात तो है बड़ा ही स्मार्ट है पढ़ा लिखा नहीं है पर एक बार जो समझा दिया वो कभी नहीं भूलता मुझे तो विस्वास है अब उसे वहां से हटा लूँगा

पापा- क्यों पापा, वहां क्या हुआ

रवि- नहीं ऐसा कुछ नहीं पर वो शोरुम में ठीक है और जब फैक्टरी बन जाएगा तब उसे सेक्योंरिटी का इचार्ज बना दूँगा

सोनल- ठीक है पापा जैसा आपका मन । पर ध्यान रखना

रवि- हा
और सभी खाने के बाद उठकर अपने-अपने कमरे में चले गये पर आरती के दिमाग में एक बात घर कर गई थी आखिर क्यों भोला ने यह बात कही कि वो पैर फिसलने से गिरा था आखिर उसने उसका नाम क्यों नहीं लिया
क्यों उसने इस तरह से उसे बचाया। आख़िर क्या बात है भोला क्यों उसके साथ इस तरह का वर्ताब कर रहा है आखिर वो चाहता क्या है उसके मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे कमरे में वो यही सोचते हुए बिस्तर पर अपनी जगह लेट गई थी। रवि भी उसके पास लेटा था पर आरती वहां होते हुए भी कहीं और थी।
उसके मन में ढेर सारे सवालों के बीच में वो घिरी हुई अपने आपसे उत्तर ढूँडने की कोशिश करती रही पर उसे कोई जबाब नहीं मिला तभी रवि के नजदीक आने से से और उसे कस कर पकड़ लेने से उसकी सोचने में ब्रेक लग गया

रवि आरती को पीछे से पकड़कर अपने हथेलियों से उसके चूचियां धीरे धीरे गाउनके ऊपर से ही दबाने लगा था और उसके गले पर अपनी जीब फेरने लगा था
आरती- उूुउउफफ्फ़ हमम्म्म आज नहीं प्लीज

रवि- क्यों

आरती- मन नहीं कर रहा

रवि- बाप रे तुम्हारा मन नहीं कर रहा
बड़े ही आश्चर्य से रवि ने आरती के चेहरे को अपनी ओर घुमाकर पूछा आरती को अचानक ही पता नहीं क्यों एक चिड सी लगी
आरती- क्यों मेरा मन नहीं है तो इसमें बाप रे का क्या

रवि- हाँ… हाँ… ही ही अरे यार भूत के मुख से राम नाम पहली बार सुन रहा हूँ

आरती- छोड़िए मुझे, मैं भूत ही हूँ

पर रवि जानता था कि आरती को क्या चाहिए उसने फिर से आरती को पीछे से जकड़कर अपनी बाहों में भर लिया और उसके गर्दन और गले पर किस करने लगा था और अपनी हथेलियो को उसकी चुचियों पर बारी बारी से घुमाने लगा था अपने लण्ड को भी आरती के नितंबों पर रगड़कर अपनी उत्तेजना को प्रदर्शित कर रहा था
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08-27-2019, 01:30 PM,
#43
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
आरती जो कि अपनी सोच से निकलना नहीं चाहती थी पर रवि की हरकतों से वो भी थोड़ा थोड़ा उत्तेजित होने लगी थी

रवि- इधर घुमो हाँ… और अपने होंठ दो,

आरती भी बिना ना नुकार के रवि की ओर पलट गई और अपने होंठों को रवि को सोप दिया । रवि उसके होंठों को पीता गया और अपने हाथों से उसके गाउनको सामने से खोलकर अपने हाथों को उसके गोल गोल उभारों पर रख कर उनके साइज का सर्वे करने लगा था

आरती- हमम्म्म कहा ना मन नहीं है

रवि- बस थोड़ी देर हाँ… बस लेटी रहो बाकी में कर लूँगा आज

आरती- प्लीज ना आज नहीं
पर उसके मना करने के तरीके से पता चलता था कि वो चाहती तो थी पर क्यों मना कर रही थी पता नहीं उसके हाथ अब रवि के सिर और पीठ पर घूमने लगे थे

रवि- रूको थोड़ी देर बस
आरती- उूउउम्म्म्ममममम ईईईईईईीीइसस्स्स्स्स्सस्स
करती हुई धीरे-धीरे रवि का साथ देने लगी थी रवि के किस करने में आज कुछ अलग था वो आज बहुत ही वाइल्ड तरीके से किस कर रहा था जोर लगा के उसके पूरे होंठों को अपने मुख के अंदर तक चूसकर घुसा लेता था और फिर अपनी जीब को भी उसके मुख के अंदर तक घुसा ले जाता था उसके हाथ अब थोड़े रफ हो गये थे

उसकी चूचियां खूब जोर-जोर से दबाते जा रहे थे कि तभी रवि आरती के ऊपर से थोड़ा सा हटा और अपने पाजामे को नीचे की ओर सरका दिया और आरती के हाथ को पकड़कर अपने लण्ड पर रखने लगा
रवि- पकडो इसे

आरती ने कोई ना नुकर नहीं की और झट से उसके लण्ड को अपनी कोमल हथेलियो में जकड़ लिया और रवि को रिटर्न किस करने लगी

रवि का लण्ड टाइट हो चुका था पर अचानक ही उसकी आखों के सामने वो एक मोटा सा और लंबा सा लण्ड घूम गया भोला का काले रंग की वो आकृति उसके जेहन में एक अजीब सी उथल पुथल मचा रही थी कसी हुई जाँघो के सामने से झूलता हुआ वो लण्ड उसके मन में अंदर तक उसे हिलाकर रख दिया उसकी हथेलिया रवि के लण्ड पर बहुत कस गई और वो रवि को किस करती हुई उसके लण्ड को जैसे निचोड़ने लगी थी रवि को भी अचानक ही हुए आरती की हरकतों में बदलाव से बेचैनी होने लगी थी वो थोड़ा सा उठा और आरती की जाँघो के बीच से एक ही झटके में उसकी पैंटी को उतार फेका और झट से उसकी चुत में समा गया


आरती भी जैसे तैयार ही थी अंदर जाते ही आरती फिर से एक सेक्स मेनिक बन गई थी अपनी कमर को उछाल कर बहुत ही तेजी से रवि का साथ देने लगी थी वो जानती थी कि रवि ज्यादा देर का मेहमान नहीं है पर ना जाने क्यों वो आज बहुत ही कामुक हो उठी थी शायद उसकी बजाह थी वो आकृति जो उसके जेहन में अचानक ही उठ गई थी भोला का सर्पाकार काले और मोटे लण्ड की आकृति उसकी माँस पेशियाँ और उसका वो गठीला कद काठी और खा जाने वाली नजर वो अपनी आखों के सामने उस इंसान की याद करके अपने पति का साथ दे रही थी पता नहीं क्यों वो आज रवि से पहले ही झड गई और एक ठंडी लाश की तरह से रवि की बाहों में लटक गई

रवि अपनी रफ़्तार को बढ़ाए हुए आरती को अब भी चोद रहा था और बहुत ही जोर-जोर से आरती को लगातार किस करता जा रहा था

रवि- क्यों क्या हुआ आज तो मन नहीं था अन्नाअनाआआआआआआआआआआ हमम्म्ममममममममममम
हान्फते हुए रवि भी आरती के ऊपर ढेर हो गया

आरती रवि के नीचे लेटी हुई अपने हाथों से रवि के बालों को धीरे-धीरे सहलाते हुए रवि को अपनी बाहों में धीरे से कस्ती जा रही थी जैसे वो नहीं चाहती थी कि रवि उसके ऊपर से हटे पर अंदर की ओर देखती हुई वो भोला के बारे में सोचने को मजबूर हो रही थी क्यों सोच रही थी वो पर ना जाने क्यों बार-बार उसके जेहन में उस समय का सीन उभरकर आ जाता था उस औरत का और पीछे की ओर से भोला को आगे पीछे होते हुए देखा था उसने वो औरत चिल्ला भी नहीं रही थी यानी कि उसे मजा आ रहा था वो उसका साथ दे रही थी उस सांड़ का उस हबसी का और वो भी दिन के उजाले में छत पर आखिर क्यों


वो औरत कौन थी और भोला के साथ वहां कैसे पहुँची क्या वो औरत उनके यहां ही काम करती है या कौन है पर भोला को मना भी कर सकती थी ऐसा क्या हुआ जो वो छत पर जाके यह सब करना पड़ा इतनी उत्तेजना किस काम की
पता नहीं सोचते सोचते कब वो सो गई पर रात भर उसके सपने में वो सीन उसके शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना को हवा देता रहा और जब वो सुबह उठी तो उसकी उत्तेजना वैसे ही थी जैसे रात को थी वो पलटी और रवि की ओर घूमी पर रवि तो उठ चुका था और शायद नीचे भी चला गया था बाथरूम भी खाली था वो भी जल्दी से उठी और चाय पीने को नीचे आई फिर तो कुछ भी पासिबल नहीं था जल्दी-जल्दी से रवि और आरती तैयार होकर फैक्टरी फिर शोरुम और फिर शाम और पूरा दिन यू ही निकल गया रात को भी कुछ ज्यादा बदलाब नहीं हाँ… एक बदलाब जरूर था रवि अब ज्यादा ही आरती को प्यार करने लगा था रोज रात को रवि खुद ही आरती को पकड़कर निचोड़ने लगा था और आरती भी उसका साथ देने लगी थी पर एक बदलाब जो कि आरती के जीवन में आ गया था वो था फैक्टरी में देखा गया वो सीन जो हमेशा ही उसके जेहन में छाया रहता था और उसे उत्तेजित करता रहता था शायद इसीलिए अब हमेशा रवि की जीत होती थी और आरती की हार पर रवि खुश था और आरती भी लेकिन आरती थोड़ा सा आब्सेंट माइंडेड हो गई थी वो हमेशा ही कुछ ना कुछ सोचती रहती थी
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08-27-2019, 01:30 PM,
#44
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
क्या वो तो आरती के आलवा कोई नहीं जानता था कि उसके जीवन में जो एक उथल पुथल मचने वाली है। यह उसके पहले की शांति है। यह आरती भी नहीं जानती थी कि जिस अतीत को को वो भुलाकर एक पति व्रता स्त्री का जीवन निभा रही है वो कहाँ तार तार हो जाएगा जिस मेनिक को उसने अपने अंदर दबा रखा था वो खुलकर बाहर आ जाएगा और वो एक सेक्स मशीन में फिर से तब्दील हो जाएगी इसी तरह तीन दिन निकल गये

आज भी हमेशा की तरह फैक्टरी का काम खतम करके रवि और आरती शोरुम की ओर जा रहे थे कि रास्ते में अचानक ही
रवि- सुनो कल शायद मुझे बाहर जाना पड़ेगा।

आरती- क्यों कहाँ

रवि- बॉम्बे कुछ एक्षपोटेर आने वाले है उनसे मिलना है और धरम पाल जी कह रहे थे कि कुछ नये डीलर्स भी ढूँढने पड़ेंगे
आरती- तो

रवि- तो क्या अब तो तुम ने काफी काम देख भी लिया है और समझ भी चुकी हो थोड़ा बहुत तुम देख लेना और थोड़ा बहुत सोनल भी मदद कर देंगी

आरती- हाँ… पर कितने दिन के लिए

गाड़ी चलाते हुए
रवि- पता नहीं, जल्दी नहीं करूँगा एक बार में ही फिक्स करके आउन्गा

आरती- हाँ पर जल्दी आ जाना मैं और सोनल ही है घर में अकेले।

रवि - हाँ वो तो है पर चिंता मत करो रामु और अब उसका भाई लाखा भी है ना उनके रहते कोई चिंता नहीं है

आरती- भी चुपचाप रवि को देखती रही

रवि- चलो यहां से जा रहे है तो भोला को भी देखते चलते है शायद आज या कल में उसकी भी छुट्टी हो जाएगी

आरती एकदम से सिहर उठी पता नहीं क्यों उसके शरीर में हजारो चीटियाँ एक साथ रेंगने लगी थी वो वाइंड स्क्रीन के बाहर देख तो रही थी पर जाने क्यों पलटकर रवि की ओर नहीं देख पाई फिर भी बड़ी हिम्मत करके
आरती- अभी शोरुम जाना नहीं है

रवि- अरे रास्ते में है देखते चलते है और फिर कल बाहर चला जाऊँगा तो टाइम नहीं मिलेगा और अगर आज कल में छुट्टी दे देते है तो बिल वगेरा भी भर देता हूँ और कहता हुआ गाड़ी दूसरी ओर जहां हास्पिटल था मुड़ गई आरती को जाने क्या हो गया था उसके सामने फिर से वही दृश्य घूमने लगा था वो धीरे धीरे अपनी सांसों को बढ़ने से नहीं रोक पा रही थी वो नहीं जानती थी कि ऐसा उसके साथ क्यों हो रहा था पर वो मजबूर थी वो नहीं चाहते हुए भी अपनी सांसों को कंट्रोल में नहीं रख पा रही थी एक उत्तेजना के असीम सागर में गोते लगाने लगी थी उसके जाँघो के बीच में गीलापन उसे परेशान कने लगा था उसकी सोच टूटी तो वो एक छोटे से हास्पिटल के सामने खड़े थे बहुत बड़ा नहीं था पर सॉफ सुथरा था

सीडिया चढ़ते हुए वो रवि के पीछे-पीछे ऊपर आ गई ड्रेस पहने हुए नर्स और कुछ ट्रेनी डाक्टर्स घूम रहे थे रवि और आरती को देखकर वहां खड़े हुए कुछ लोगों ने उन्हें नमस्कार भी किया रवि को तो शायद वहां के लोग पहचानते ही थे नहीं पहचानते थे तो सभी की निगाहे आरती पर अटक गई थी

टाइट चूड़ीदार पहने हुए पोनी टेल किए हुए बाल लाइट येल्लो कलर का उसमें मेरूँ और ब्लू कलर के चीते लिए हुए कुर्ते में उसका जिस्म एक अद्भुत सा लग रहा था टाइटनेस के कारण उसके शरीर का हर अंग कपड़े के बाहर से ही दिख रहा था और हाइ हील की सँडल के कारण उसका प्रिस्ट भाग भी उभरकर कुछ ज्यादा ही पीछे की ओर निकला हुआ था

आरती को इस तरह की नजर की आदत थी वो जहां भी जाती थी सभी का ध्यान अपनी ओर ही खींच लेती थी सो वो एक बार फिर से अपने होंठों में एक मधुर सी मुश्कान लिए रवि के पीछे-पीछे जाने लगी थी रवि ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर एक कमरे का दरवाजा खोला अंदर दो तीन बेड पड़े हुए थे एक खाली था और दो भरे हुए थे
रवि अंदर चला गया और आरती बाहर ही रुक गई अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई दरवाजा बंद होने से पहले उसे रवि की आवाज़ सुनाई दी
रवि- भोला कैसे हो

भोला- जी भैया ठीक हूँ कल छोड़ देंगे बोला है

रवि- कल क्यों आज क्यों नहीं
और दरवाजा बंद हो गया पर थोड़ी देर बाद फिर से दरवाजा खुला और
रवि- अरे आओ ना रुक क्यों गई और आरती का हाथ पकड़कर अंदर खींच लिया


आरती लगभग लरखड़ाती हुई सी अंदर कमरे में चली गई डोर के साइड वाली बेड पर कोई लेटा था और उसके साइड से ही भोला का बेड भी था
आरती को देखते ही भोला उठने की कोशिश करने लगा
रवि- अरे लेटा रह उठ मत

भोला- नमस्ते मेम साहब

आरती- नमस्ते
और अपनी नजर भोला से बचा कर साइड में पड़े हुए उस आदमी की ओर देखने लगी थी वो सिकुड़ कर सोया हुआ था शायद ठंड लग रही थी कंबल ओढ़े हुए हाथ पैर सिकोडे सोया था आरती रवि के पास खड़ी हुई इधा उधर देखती हुई अपने आपको सहज करने की कोशिश में लगी थी पर जाने क्यों वो अपनी सांसों को तेज होते हुए पा रही थी यह वही राक्षस था जो उस दिन उसके सामने ही दोपहर को छत पर एक औरत के साथ ची ची क्या सोचने लगी थी वो पर एक बात तो थी आरती नजर चुरा कर भोला को एक बार देख जरूर लेती थी रवि हँस हँस कर उससे बातें कर रहा था और भोला भी इतने में बाहर से सिस्टर आई और भोला को एक इंजेक्षन लगाने लगी भोला ने अपनी बाँह बाहर निकाली और सिस्टर को उसे इंजेक्षन लगाने में कोई दिक्कत नहीं हुई आरती ने एक बार भोला को देखा जैसे उसे कोई फरक ही नहीं पड़ा था वो एकटक आरती की ओर देख रहा था आरती थोड़ा सा झेप गई थी और रवि को इशारा करने लगी पर सिस्टर की आवाज ने उसे चौका दिया
सिस्टर- सर वो आज या कल सुबह डाक्टेर साहब से मिल लीजिएगा

रवि- क्यों

सिस्टर- जी सर वो डाक्टेर साहब ने ही कहा है

रवि- हाँ… कल तो नहीं होगा अभी है क्या

सिस्टर- जी है तो

रवि- तो चलो अभी मिल लेते है (और आरती की ओर देखते हुए कहा) तुम रूको में अभी आता हूँ


जब तक आरती कुछ कहती तब तक तो वो सिस्टर के साथ बाहर हो चुका था रवि को भी बड़ी जल्दी रहती है सुन तो लेता कमरे में उसे बड़ा ही आजीब सा लग रहा था वो अब भी भोला के बेड के पास खड़ी हुई थी और उसकी ओर ना देखते हुए साइड में खिड़की की ओर देख रही थी उसे बड़ा ही अजीब सा एहसास धीरे-धीरे उसके पूरे शरीर में छाने लगा था वो बार-बार अपने हाथों से अपनी कलाईयों से लेकर बाहों तक एक हाथ से सहलाते जा रही थी कुछ परेशान भी थी भोला उसके सामने ही बेड पर लेटा हुआ था और शायद उसी की ओर ही देख रहा था पर आरती में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो भी भोला की ओर देख सके वो तो यहां से निकल जाना चाहती थी जल्दी से बस उसे रवि का ही इंतेजार था


पर रवि को गये अभी तो बस एक मिनट ही हुआ होगा और इतने देर में ही आरती के सारे शरीर में एक अजीब सी उथल पुथाल मच गई थी वो बार-बार सिहर उठ-ती थी चहरे के एक्सप्रेशन को देखकर साफ लगा रहा था बड़ी ही संभाल कर अपनी सांसें छोड़ रही है इतने में
भोला- कैसी है मेमसाहब

आरती- हाँ… ठीक हूँ हमम्म्ममम सस्स्स्शह
उसके मुख और नाक से एक अजीब सी सिसकारी भरे शब्द निकले वो नीचे भोला की ओर देखा जी कि एकटक उसकी ओर ही देख रहा था बड़े ही तरीके से और बड़े ही प्यार से

आरती- आप नाराज है हम से

आरती- नहीं क्यों

भोला- जी उस दिन

आरती- चुप रहो
उसके आवाज़ में गुस्सा था शायद बाहर भी चली जाती अगर वो कुछ ऐसा नहीं करता तो अचानक ही भोला की हथेली उसकी गोरी और नाजुक कलाई को अपनी सख्त गिरफ़्त में ले चुकी थी छुरियो के ऊपर से ही आरती का पूरा शरीर एकदम से सनसना गया था वो भोला की ओर डर के मारे देखती र्रही

आरती- छोड़ो मुझे क्या कर रहे हो पागल हो क्या
गुस्सा और बहुत ही धीरे उसके मुख से यह बात निकली वो नहीं चाहती थी कि पास में सोए हुए उस आदमी को कुछ पता चले आरती की पीठ दरवाजे की ओर थी सो एक बार अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश करती हुई उसने पलटकर भी देखा पर दरवाजा बंद था
आरती- प्लीज छोड़ो

भोला- छोड़ दूँगा मेमसाहब पहले जोर लगाना छोड़िए नहीं तो नहीं छोड़ूँगा

आरती का शरीर ढीला पड़ गया उसने जोर लगाना छोड़ दिया पर अपने दूसरे हाथों से उसकी उंगलियों को अपने कलाई से ढीलाकरने की कोशिश करती जा रही थी

आरती- प्लीज रवि आ जाएगा प्लीज

उसकी आवाज में रुआंसी होने का साफ संकेत था वो उसकी गिरफ़्त से अपने को छुड़ाने में असमर्थ थी

भोला- मेमसाहब मैंने किसी को भी नहीं बताया कि आपने ही मुझे धक्का दिया था

आरती- ठीक है पर मुझे छोड़ो नहीं तो में चिल्ला दूँगी
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08-27-2019, 01:30 PM,
#45
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
भोला- चिल्लाओ मेमसाहब में भी बोल दूँगा कि मेमसाहब ने ही मुझे धक्का दिया था

आरती- प्लीज ईई अच्छा किया था तुम्हें धक्का दिया

भोला- क्यों मेमसाहब हमें जीने का हक नहीं है क्या गरीब है इसलिए

आरती- प्लीज ईयीई मेरा हाथ छोड़ो पहले

भोला- नहीं आपने मेरा जीवन खराब कर दिया है पागल हो गया हूँ में पता नहीं क्या-क्या करता जा रहा हूँ शायद कभी किसी दिन किसी का खून भी कर दूं

अचानक ही भोला की आवाज कुछ सख्त हो गई थी और थोड़ा उची आवाज में भी बोला

आरती एकदम से सन्नाटे में रह गई वो अभी अपना हाथ उसकी हथेलियो से छुड़ाना चाहती थी पर वो भोला को देख रही थी कुछ अजीब तरीके से उसने उसका जीवन खराब कर दिया कैसे

आरती- मैंने खराब कर दिया कुछ भी बोलागे तुम ,,अब उसके चहरे में भी गुस्सा था और आवाज में सख़्त पन था पर धीमे थी

भोला- जी हाँ… आपने जब से मैंने आपको देखा है में पागल सा हो गया हूँ और तो और जब मैंने आपको मनोज अंकल के ऑफिस में जाते हुए देखा था तब से और तभी से जब भी आपको देखता हूँ में पागल हो जाता हूँ छुप छुप कर सिर्फ़ आपको देखता रहता हूँ दिन भर पागलो के समान घूमता हूँ ना जाने कितनी ही औरतों के साथ मैंने किया पर मेमसाहब
आपको नहीं भुला पाया

भोला की आवाज में अचानक ही तेजी के बाद नर्मी आ गई थी वो शायद उससे मिन्नत कर रहा था भोला के मुख से निकली हर बात उसके जेहन में किसी तीर के माफिक उतरगई थी अब उसकी छूटने की कोशिश कुछ ढीली पड़ गई थी

भोला- तब भी मैने किसी को कुछ नहीं कहा था मेमसाहब और जब जान भी गवाने वाला था तब भी मेमसाब किसी से कुछ नहीं कहा शायद में आपसे कभी भी नहीं कहता पर क्या करू मेमसाहब इतने पास खड़ी हुई है आप कि आपकी खुशबू से ही में पागल हो गया हूँ

आरती- क्या मनोज अंकल के ऑफिस?
भोला-हां
आरती चुपचाप खड़ी हुई कभी पीछे की ओर तो कभी उस आदमी की ओर देख रही थी और कभी भोला की आखों में उसे भोला की आखों में एक विनती और नर्मी देखने को मिली शायद बहुत तकलीफ में था

आरती- प्लीज भोला मुझे छोड़ दो रवि आ जाएगा उसकी आवाज में धमकी नहीं थी मिंन्नत थी

भोला- में क्या करू मेम्साब क्या करू पागल कर देती हो आप देखो क्या हाल है मेरा
और अपने दूसरे हाथ से कंबल को हटा कर दिखाया सीने में और उसके नीचे बहुत सी खरोंचो के निशान थे कुछ गहरे तो कुछ सुख गये थे काले बालों के झुंड में उसके बलशाली शरीर का एक नमूना उसके सामने था छाती के दोनों तरफ उसकी चूची के समान उसका सीना फूला हुआ था ठोस था बिल्कुल पत्थर की तरह

भोला- देखा मेमसाहब और क्या दिखाऊ मर जाता तो आपको कभी भी नहीं बताता पर क्या करू मेमसाहब शायद बहुत पाप किया है इसलिए इतनी तकलीफ के बाद भी जिंदा हूँ

आरती- नहीं भोला तुम ठीक हो जाओगे अब प्लीज छोड़ दो मुझे रवि आ गये तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी प्लीज
आरती बड़े ही तरीके से भोला से गुजारिश कर रही थी वो जानती थी कि जब तक भोला नहीं छोड़ेगा वो उसकी चुगल से नहीं छूट पाएगी

भोला- छोड़ दूँगा मेमसाहब मुझे भी चिंता है पर में क्या करू बताइए इसका क्या करूँ
और बिना किसी संघर्ष के ही उसने आरती के हाथ को नीचे कंबल में घुसाकर अपने लण्ड के पास ले गया

आरती जब तक समझती तब तक तो सबकुछ हो चुका था उसकी हथेलियो में उसका गरम सा लण्ड टच होने लगा था आरती की सांसें रुक गई थी और अपने आपको खींचकर जब तक वो संभालती तब तक तो भोला उसकी हथेली में अपने लण्ड को घिसने लगा था

आरती- क्या कर रहे हो ह्म्म्म्ममममह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्शह कोई आआआआजाएगा आआआआआआआअ

भोला- नहीं मेमेसाहब बस थोड़ा सा पकड़ लीजिए प्लीज ईईई

आरती- नहीं प्लीज ईईईईईईईईई छोड़ो

भोला - छोड़ दूँगा मेमसाहब पर थोड़ी देर को ही मेमसाहब प्लीज़ नहीं तो मर जाऊँगा

आरती के हाथ के चारो ओर उसका लण्ड झटके से टकरा रहा था बहुत ही गरम था बड़ा था पर वो अपने हाथों को उससे बचाने की कोशिश में थी पर भोला उसे अपने लण्ड को पकड़ाना चाहता था पर वो बच रही थी

भोला- अब मेमसाहब आप ही देर कर रही है एक बार पकड़ लीजिए ना प्लीज नहीं तो भैया आ जाएँगे जल्दी

रवि के आ जाने के डर से आरती ने झट से उसके लण्ड को कंबल के नीचे ही अपनी कोमल हथेली में कस कर पकड़ लिया पर भोला का लण्ड इतना मोटा था कि उसकी हथेली भी उसके आकार को पूरा नहीं घेर सकी गरम-गरम लण्ड आरती के हाथों में आते ही आरती के शरीर में एक सनसना देने वाली सिहरन दौड़ गई थी वो अपना हाथ खींचना चाहती थी पर भोला ने भी अपने हाथों से उसकी कोमल और नाजुक हथेली को कस कर जकड़ रखा था।
आरती जल्दी से इस परिस्थिति से मुक्ति चाहती थी वो खड़े-खड़े थक गई थी उसे डर था कि पास के बेड में जो सोया हुआ था अगर एक बार भी कंबल उठाकर देखेगा तो उसे आरती का हाथ साफ तौर पर कंबल के अंदर भोला के लण्ड पर ही दिखेगा पर वो मजबूर थी भोला की गिरफ़्त के आगे उसके बहशिपान के आगे उसके उतावले पन के आगे वो उसका लण्ड तो पकड़े हुए थी पर कुछ करने की उसे जरूरत नहीं थी भोला ही अपने हाथों से उसके हाथों को डाइरेक्ट कर रहा था


वो अपने लण्ड पर आरती के हाथों को आगे पीछे करता जा रहा था और अपनी आखें बंद किए ना जाने क्या-क्या बक रहा था
भोला- आआह्ह मेमसाहब कितनी नरम उंगलियां है आपकी आआआह्ह कितना सुख है मेमसाहब अब में मर भी जाऊ तो कोई शिकायत नहीं मेमसाहब उसकी आखें बंद थी और चेहरे के भाव भी धीरे-धीरे बदल रहे थे एक सुख की अनुभूति उसके चहरे पर साफ देखी जा सकती थी सांसें भी बहुत तेजी से चल रही थी और अपने हाथों की गिरफ़्त भी धीरे-धीरे आरती के हाथों पर कुछ ढीली पड़ रही थी पर आरती की हथेलिया तो भोला के लण्ड पर वैसे ही टाइट्ली ऊपर-नीचे होने लगी थी वो भूल चुकी थी कि उसके हाथों पर भोला की पकड़ थोड़ी सी ढीली पड़ गई थी वो् अपने आपको बचा सकती थी एक झटके से अपने हाथ को खींच सकती थी पर उसने ऐसा नहीं किया उसे पता ही नहीं चला कि कब भोला की गिरफ़्त ढीली हो गई वो तो अपने हाथों में आई उस चीज का एहसास जो कि अब तक उसके जेहन में घर कर गई थी
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08-27-2019, 01:30 PM,
#46
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
उसी के समर्पण में रह गई थी अपने हाथों पर एक अजीब से एहसास के चलते वो भी अंजाने में इस खेल का हिस्सा बन चुकी थी वो अब खुद ही उसके लण्ड पर अपने हाथों को चलाने लगी थी और अपनी उखड़ती हुई सांसों को कंट्रोल भी कर रही थी उसकी आँखो के सामने उस दिन का सीन फिर से घूम गया था जब उसने भोला को उस औरत के साथ देखा था और वो अवाक रह गई थीआज वही लण्ड उसके हाथों में था और उसे भी एक नशे की स्थिति में पहुँचा रहा था अचानक ही उसे अपनी कमर के चारो तरफ भोला के हाथों के होने का एहसास हुआ जो कि धीरे धीरे उसे कसता जा रहा था और उसे बेड के और नजदीक लेता जा रहा था तब उसे अपनी स्थिति का ध्यान आया और अपने हाथों को खींचने की कोशिश की पर वो अब भोला की पूरी गिरफ़्त में थी भोला ने कस कर उसे जकड़ रखा था


भोला----प्लीज मेमसाहब बस थोड़ी देर और हो गया बस मत छोड़ो उसे मेमसाहब बहुत परेशान करता है मुझे प्लीज
आरती ने एक बार आस-पास देखा और फिर से अपनी गिरफ़्त उसके लण्ड के चारो ओर धीरे धीरे कसते हुए उसके लण्ड को आगे पीछे करने लगी उसका लण्ड अब भी कंबल के नीच ही था पर उसका आकर कंबल के ऊपर से दिख रहा था बड़ा सा और कोई टेंट सा बना दिया था सीधा लेटा हुआ था भोला और अपने सीधे हाथ से आरती की कमर को जकड़े हुए वो अब धीरे-धीरे अपनी कमर को भी उच्छाल देता था आरती की उंगलियां भी अपने आप में कमाल कर रही थी उस गर्मी के अहसास को और भी नजदीक से झेलने की कोशिश में उसकी पकड़ उसके लण्ड के चारो ओर और भी सख्त होती जा रही थी और उसी अंदाज में आगे पीछे भी होती जा रही थी आरती को अचानक ही याद आया कि वो अगर पकड़ी गई तो वो एक बार भोला की ओर देखती हुई अपने को बचाने की कोशिश में जोर-जोर से भोला के लण्ड को झटकने लगी और उसके इस तरह से झटके देने से भोला का शरीर शायद अपने को और नहीं रोक पाया था उसकी गिरफ़्त अचानक ही आरती की कमर के चारो ओर बहुत ही सख़्त हो गई थी और एक हाथ उठकर उसकी चुचियों तक भी पहुँच गया था और कस कर दबाता तब तक उसके लण्ड से बहुत सारा वीर्य निकलकर आरती के हाथों को भर गया और वही अंदर कंबल में चारो ओर फेल गया भोला की गिरफ़्त अब भी ढीली नहीं हुई थी पर आरती की हालत खराब थी वो एक अजीब सी आग में जल उठी थी भोला के चुचियों को दबाते ही वो चिहुक कर उसके पास से दूर हो जाती पर उसकी गिरफ़्त के आगे वो फिर से ढीली पड़ गई और अपने हाथ को ही खींचकर बाहर निकाल पाई थी और वही कंबल में ही पोंछ लिया था उसकी साँसे बहुत ही तेज चल रही थी पर भोला तो शांत हो चुका था


भोला- शुक्रिया मेमसाहब बहुत बहुत शुक्रिया
और अपनी गिरफ़्त को छोड़ते ही दरवाजे के बाहर कोई आहट हुई और रवि और डाक्टर दोनों कमरे में घुसे।


डाक्टर- कैसी तबीयत है भोला

भोला- हान्फता हुआ जी डाक्टर साहब अब तो बिलकुल ठीक हूँ शेर से भी लड़ सकता हूँ
डाक्टर और रवि एक साथ ही हँस दिए

डाक्टर- अरे शेर से लड़ने की क्या ज़रूरत है

भोला- नहीं सर बहुत दिन हो गये है इसलिए कहीं बहुत नुकसान हो जाएगा अगर में काम पर नहीं लोटा तो

रवि---अरे अभी नहीं कुछ दिन और आराम करो फिर आना काम पर ठीक है और सुनो शायद आज ही में बाहर जा रहा हूँ कोई जरूरत हो तो मिश्रा से या फिर मेडम से बोल देना ठीक है

भोला- जी भैया आपके लिए तो जान हाजिर है और अब तो मेमसाब के लिए भी
और बड़े ही नशीले अंदाज में हँसने लगा था वहां का माहॉल कुछ खट्टा मीठा सा हो गया था पर आरती जानती थी कि भोला क्या बोल रहा था और भोला भी इशारे से अपनी बात आरती तक पहुँचाने में सफल हो गया था पर आरती तो कही और ही खोई हुई थी रवि के अचानक ही आ जाने से वो जहां पकड़े जाने के डर से भोला के पास से जल्दी से हटी थी वही अपने सांसों को नियंत्रित करने में उसे अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ी थी फिर भी रवि की नजर उसके बदले हुए तरीके पर पड़ ही गई थी

रवि- क्या हुआ बहुत घबराई हुई हो

आरती- जी नहीं वो सांस फूल रही है

रवि- क्यों

आरती-- वो स्मेल यहां की

रवि--अरे यार हास्पिटल में ऐसा ही स्मेल आता है अब चलो
और आरती को लिए बाहर की ओर चल दिया डाक्टर भी उनके साथ ही बाहर की ओर चल दिया जाते जाते भोला तो आरती की ओर देखता रहा पर आरती की हिम्मत नहीं हुई।
रवि- भोला आज अगर छूट गये तो एक बार फोन करदेना ठीक है

भोला- जी भैया आप आज जा रहे हो

रवि--- पता नहीं धरम पल जी क्या कहते है

भोला- मुझे भी चलना था क्या

रवि- नहीं यार अभी नहीं अभी तो तू यही रह देखता हूँ पहली बार होकर आता हूँ फिर

भोला- जी भैया आप हुकुम करना में हाजिर हो जाऊँगा

रवि- हाँ… ठीक है और सुन छूटने के बाद मंदिर वाले घर पर ही जाना यहां साइट वाले कमरे में नहीं जाना

भोला- क्यों

रवि- अरे मंदिर वाले घर के आस-पास बहुत लोग है और पंडितजी भी है तेरा खयाल रखेंगे साइट वाले कमरे में अकेला पड़ा रहेगा इसलिए

भोला- नहीं भैया में तो साइट वाली कमरे में ही रहूँगा कम से कम थोड़ा बहुत देखता तो रहूँगा नहीं तो यहां मंदिर वाले घर में खाली भजन सुनते सुनते पागल हो जाऊँगा

रवि- क्या यार थोड़े दिन आराम कर लेता ठीक है पर ध्यान रखना और ज्यादा ऊपर-नीचे नहीं होना

भोला- ठीक है भैया

रवि डोर बंद करके बाहर आ गया डाक्टर और आरती बाहर ही खड़े थे उसी का इंतजार करते डाक्टर से हाथ मिलाकर वो बाहर अपनी गाड़ी की ओर चल दिए

आरती अब भी अपने को कंट्रोल करने में असफल थी उसकी हालत बहुत खराब थी उसके शरीर में एक भयानक सी आग लगी हुई थी जो कि उसे अपने आप में ही जला रही थी गाड़ी में बैठते ही
आरती- आप क्या आज ही बाहर जा रहे है

रवि- पता नहीं धरमपाल जी का कोई फोन तो अब तक नहीं आया वही बताने वाले थे क्यों

आरती- आज मत जाना, और अपने हाथों से पास बैठे रवि के कंधे को सहलाने लगी थी रवि भी मुस्कुराते हुए
रवि- क्यों मिस करोगी क्या

आरती- (एक बहुत ही मधुर मुश्कान अपने होंठों में लिए ) हाँ…

रवि- तो अभी घर चले

आरती- हाँ… चलिए

रवि- क्या बात है यार तुम तो कमाल की हो

आरती- कमाल की क्या अपने पति को ही कह रही हूँ

रवि- हाँ… छोड़ो अभी तो शोरुम चलते है जल्दी निकल चलेंगे ठीक

आरती- हाँ…
और आरती अपनी जाँघो को अचानक ही बहुत जोर से आपस में भिच अकर बैठ गई जब से भोला के लण्ड की गर्माहट उसके शरीर में पहुँची थी वो एक भूखी शेरनी हो गई थी उसे अब अपने पति के साथ थोड़ी देर के लिए अकेला पन चाहिए ही था

वो अपने मन की इच्छा को एक उसके साथ ही पूरा कर सकती थी और वो भी बिना किसी रोकटोक के पर उसे यह भी पता था कि वो अभी पासिबल नहीं है अगर शोरुम नहीं जाते तो यह पॉसीबल था पर अभी आरती क्या करे रात का इंतेजार उूुउउफफफफ्फ़ तब तक तो वो पागल हो जाएगी पर कोई चारा नहीं था उसे इंतेजार करना ही था इसके अलावा कोई रास्ता उसे तो नहीं सूझ रहा था वो शोरुम में भी आ गई और रवि अपने काम में लग गया और वो भी पर आरती तो रह रहकर अपने शरीर में एक सनसनाहट सी महसूस करती रही बार-बार बाथरूम में भी हो आई पर उसकी उत्तेजना में कोई कमी नहीं आई थी उसे रह रहकर भोला की आखें याद आ रही थी किस तरह से उसकी तरफ खा जाने वाली नजर से देख रहा था किस तरह से वो बिना किसी डर के आरती के हाथों को अपने लण्ड तक पहुँचा दिया था और उसे मजबूर कर दिया था कि आओ उसके साथ उसी खेल में शामिल हो जाए और तो और वो भी कुछ नहीं कह या कर पाई थी तब बिना कुछ बोले और बिना कुछ कहे ही वो भी अंजाने में उस खेल में शामिल हो गई थी क्यों नहीं उसने मना किया या फिर खींचकर एक चाँटा मारती या फिर जोर से चीख कर सभी को बुला लेती

पर कहाँ वो तो बल्कि उसका साथ देने लगी थी उसके लण्ड को सहलाते हुए उसे सुख का एहसास देने की कोशिश करती जा रही थी और तब भी जब भोला ने अपने हाथों को उसके कमर के चारो ओर घेर लिया था तो भी वो उसके लण्ड को अपने हाथों से सहलाते जा रही थी क्यों आखिर क्यों किया उसने वो तो अब सबकुछ भूलकर फिर से पूरानी आरती बनना चाहती थी सिर्फ़ पति और घर की। पर आज जो कुछ हुआ क्या उसे एक इतने बड़े घर की बहू को शोभा देता है अगर कोई देख लेता तो
और अगर किसी को पता चल जाता तो वो तो अच्छा हुआ कि रवि और डाक्टर आते हुए बाहर थोड़ी देर के लिए रुक कर हँसते हुए अंदर आए थे अगर एक झटके से दरवाजा खोलकर अंदर आ जाते तो तो क्या होता सोचते सोचते आरती की हालत खराब हो गई थी पशीना पशीना हो गई थी रवि और सोनल अपने काम में लगे हुए थे उसकी ओर ध्यान नहीं था पर आरती के पसीना पसीना होने के पीछे जो भी कारण था वो वो खुद भी नहीं जानती थी शायद डर के मारे या फिर सेक्स के उतावले पन की खातिर कुछ भी हो आरती की हालत ठीक नहीं थी उसे रवि के साथ थोड़ी देर का अकेला पन चाहिए ही था
वो एकदम से
आरती- सुनिए आज थोड़ा जल्दी चलिए ना

रवि- कहाँ
आरती-- यहां से
रवि जो कि अभी तक अपने काम में इतना उलझा हुआ था कि गाड़ी में हुई छेड़ छाड़ को बिल्कुल भूल चुका था और एक अजीब से तरीके से आरती की ओर देखता हुआ बोला
रवि- पर जाना कहाँ है
आरती- (सोनल की ओर देखते हुए और थोड़ी आवाज को मंदा करते हुए ) घर और कहाँ अपने तो कहा था अभी गाड़ी में
रवि- (मुस्कुराते हुए सोनल की ओर देखता हुआ जो कि अपने काम में व्यस्त थे एक आँख आरती को मारकर ) कहो तो यही कर लेते है

आरती- धत्त जल्दी कीजिए ना प्लीज

रवि- हाँ… 5 30 बजे तक चले घर फिर डिनर पर भी चलते है
अब तो आरती के पास और कोई चारा नहीं था सो वही बैठकर इंतजार करने के सिवा टाइम निकलता जा रहा था आरती की जिंदगी का यह पहला टाइम था जब वो इतनी उत्तेजित थी और वो कुछ नहीं कर पा रही थी आज उसकी चुत, मे जो हलचल मची हुई थी वो उसके जीवन में कभी नहीं हुई थी आज पहली बार उसे पता चल रहा था कि तन की अग्नि में जलना क्या होता है पहले भी उसके साथ ऐसा हुआ था पर तब या तो रामू या फिर मनोज अंकल ने उसकी आग भुजाई थी और फिर उसका पति तो था ही


पर आज की स्थिति कुछ और थी वो यहां शोरुम मेबैठी हुई अपने पति के फ्री होने का इंतजार कर रही थी और उसके पास कोई चारा नहीं था।
रवि और सोनल लगातार अपने काम में व्यस्त थे किसी से फोन पर किसी से पर्सनलि या फिर किसी को इंटरेक्षन देते हुए या फिर किसी को इंटरकम पर कुछ बताने में इतने में रवि को थोड़ा सा सचेत देखकर आरती का ध्यान उनके फोन पर गया
रवि- जी सेठ जी आप ही के फोन का इंतजार कर रहा था कहिए
शायद धरम पाल जी का फोन था
रवि- जी अरे वाह सर यह तो बहुत बढ़िया खबर है हाँ… हाँ… कोई बात नहीं में चला जाऊँगा अरे सर आप भी हाँ… हाँ… सेठ जी आपकल आ जाना
और फोन काट कर, आरती की ओर देखा

आरती- क्या हुआ

रवि- वो धरमपल जी की लड़की को बेटा हुआ है वो देल्ही जा रहे है

आरती- तो

रवि- (आरती की ओर देखता हुआ ) वो मुझे ही जाना होगा धरम पाल जी कल शाम तक पहुँचेंगे सुबह की मीटिंग मुझे ही आटेंड करना है

आरती- हष्षधध
गुस्से से पागल आरती रवि की ओर एकटक देखती ही रह गई सोनल अगर वहां नहीं होती तो शायद टेबल पर जो कुछ भी पड़ा मिलता उसे उठाकर जम कर रवि के मुँह पर मारती पर यहां स्थिति कुछ और थी वो कुछ नहीं कर सकती थी सिवाए खामोश रहने के

वो रवि को घूरते हुए
आरती- कब जाना है

रवि- 7 30 बजे की फ्लाइट है चलो निकलते है तुम्हें घर छोड़ दूँगा। फिर एयरपोर्ट के लिए निकलना है।
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08-27-2019, 01:31 PM,
#47
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
रवि की बातों में आरती का बिल्कुल ध्यान नहीं था वो तो बस अपने बारे में सोच रही थी क्यों आखिर क्यों उसी के साथ ऐसा होता है वो कितना अपने पति के साथ रहने की कोशिश करती है पर रवि है कि हमेशा ही उसे नजर अंदाज कर देता है उसका गुस्से में बुरा हाल था

वो रवि के साथ शोरूम से बाहर तो निकली पर एक बात भी नहीं की जिसे कि रवि को समझने में जरा भी देर नहीं हुई गाड़ी में बैठते ही
रवि- अरे यार गुस्सा मत हो यार क्या करू काम है तो नही तो मैंने कहा ही तो था कि आज जल्दी घर चलेंगे हाँ… प्लीज यार

आरती- नहीं में खाली यह सोच रही थी कि एक में ही हूँ जिसके लिए आपके पास टाइम की कमी है और हर एक के लिए टाइम ही टाइम है

रवि- अरे टाइम ही टाइम कहाँ कौन सा में रोज धरमपाल जी का काम करें चला जाता हूँ या फिर शोरुम में ही बैठा रहता हूँ कि तुम्हें टाइम नहीं दे पाता हूँ पर क्या करे काम तो करना ही पड़ेगा ना

आरती- हूँ काम ही करो और मुझे जंगल में छोड़ आओ तो कोई नहीं कहेगा आपको

रवि- जंगल में अरे बाप रे कितने दिनों के लिए

अब रवि थोड़ा मजाक के मूड में आ गया था उसे पता था कि आरती के गुस्से को शांत करना है तो एक बार उसे हँसा दो फिर सब ठीक

आरती- हमेशा के लिए

रवि- फिर वो सब करने के लिए मुझे जंगल आना पड़ेगा हाँ… ही ही ही हाँ… हाँ… हाँ…

आरती- मजाक मत करो
गुस्से में थोड़ा सा मुस्कुराहट को रोकती हुई वो जानती थी कि रवि क्या कह रहा था

रवि- फिर तो मुझे भी शोरुम बंद करने के बाद अपना ड्रेस चेंज करके तुमसे मिलने आना पड़ेगा है ना

आरती सिर्फ़ गुसे में रवि की ओर देख रही थी हँसी को रोक कर कपड़े चेंज करके क्यों , अपने मन में सोचा

रवि- है ना पत्ते बाँध कर आना पड़ेगा ही ही

आरती- फालतू बातें मत करो ना प्लीज क्यों जा रहे हो आज। कल चले जाते हमेशा ही पूरे प्लान की ऐसी तैसी कर देते हो
रवि- अरे मेडम मुझे तो कल ही जाना था और धरम पाल जी को आज पर क्या करे उनकी बेटी से रोका नहीं गया सो आज ही बेटा पटक दिया लो नानाजी बना दिया सेठ जी को

आरती-- बोर कर देते हो तूम
अब आरती का गुस्सा हवा हो गया था वो अपने पति की स्थिति को समझ रही थी क्या करे उसे समझना ही था और कोई चारा नहीं था वो जब तक घर पहुँचे तब तक थोड़ा बहुत अंधेरा हो गया था जल्दी बाजी मच गई थी अपने कपड़े और सारा समान भी रखना था सँपल और बहुत कुछ


आरती तो रवि का सूटकेस जमाने में लग गई रवि पेपर्स के पीछे पड़ गया आरती कमरे में बार-बार उसके आमने सामने घूमती रही पर रवि का ध्यान बिल्कुल उस ओर नहीं था और नहीं उसे इस बात का ही ध्यान आया कि आरती ने आज उसे जल्दी घर चलने को क्यों कहा था पर आरती तो चाहती थी कि रवि जाने से पहले उसके साथ कम से कम
एक बार तो करता उसके शरीर में जो आग लगी थी उसे कुछ तो ठंडक मिलती पर कहाँ रवि तो बस अपने पेपर्स में ही खोया हुआ और बीच बीच में आरती को कुछ लाने को जरूर कह देता था आखिर कार सूटकेस भी तैयार हो गया।
फिर जल्दी-जल्दी रवि भी नीचे की ओर चल दिया सूटकेस लिए हुए आरती भी पीछे-पीछे डाइनिंग स्पेस पर आ गई थी रवि जल्दी-जल्दी अपने मुँह में ठूंस रहा था कही देर ना हो जाए तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई शोरूम से कोई आ गया था उसे एरपोर्ट छोड़ने को सबकुछ तैयार था सूटकेस रवि और पेपर भी और जो दोपहर से ही तैयार था उसे रवि भूल गया था और जो अभी तैयार किया था उसे लेकर वो बाहर निकल गया और आरती की ओर देखता हुआ
रवि- जाके फोन करता हूँ हाँ…

आरती- जी जल्दी आ जाना

रवि- हाँ यार फिर भी दो दिन तो लगेंगे ही ठीक है

आरती- जी
और आरती दरवाजे में खड़ी रवि को गाड़ी में बैठ-ते हुए और फिर धीरे-धीरे गाड़ी को गेट के बाहर की ओर रेगते हुए जाते हुए देखती रही वो एक बुत की भाँति दरवाजे पर खड़ी हुई शून्य की ओर देखती रही अब क्या करे जिस चीज का डर था वो ही घर में अकेली है वो और रामु भी है अब अब क्या होगा वो अंदर जाने में सकुचा रही थी दरवाजे पर ही खड़ी रही अचानक ही गेट से दौड़ता हुआ चौकीदार को आते देखा
चौकी दार- जी मालकिन कुछ काम है वो अपनी नजर नीचे झुका कर खड़ा हो गया था

आरती-- नहीं क्यों
चौकीदार- जी वो आप यहां खड़ी थी तो पूछ लिया

आरती- नहीं नहीं तुम जाओ । अचानक उसके मोबाइल पर सोनल का फोन आया
आरती- हा बेटा।

सोनल- विक्रम पहुँचा क्या

आरती- हां, तुमारे पापाजी निकल गये है

सोनल- चलो ठीक है, थोड़ी देर में मैं भी आती हूँ मम्मी अगर खाना खाना हो तो खा लेना मम्मी।

आरती- नहीं तुम आ जाओ फिर खाते है अकेले अकेले मन नहीं करता

सोनल-- ठीक है में शोरुम बढ़ाती हूँ मैं भी घर पहुँचती हूँ

और फोन कट गया वो जब अंदर घुसी तो रामु को टेबल से समान उठाते हुए देखा जो कि झुकी हुई नजर से आरती की ओर ही देख रहा था आरती के शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई जो कि उसके जाँघो के बीच में कही खो गई वो एक बार सिहर उठी जिस चीज से वो बचना चाहती थी वो एक बार फिर उसके सामने खड़ी थी यह वही रामु है जिसने उसके साथ सबसे पहले किया था फिर मनोज अंकल, फिर लाखा काका सोचते हुए आरती डाइनिंग स्पेस को क्रॉस करते हुए सीढ़ियो के पास पहुँच गई थी कि पीछे से रामु काका की आवाज उसके कानों में टकराई थी
रामु- बहू सोनल बिटिया कब तक आयगी।

आरती- (अपनी सांसों को कंट्रोल करते हुए बिना पीछे देखे ही सीढ़िया चढ़ते हुए ) बस आती ही होंगी आप खाना लगा दो

रामु काका- जी बहुत अच्छा।
और पीछे से आवाज आनी बंद हो गई थी आरती सीढ़िया चड़ती हुई अपने कमरे में पहुँच गई थी और झट से डोर बंद करके बेड पर चित लेट गई थी वो फिर से उसे गर्त में नहीं गिरना चाहती थी वो नहीं चाहती थी अपने पति को धोखा देना वो बिल्कुल नहीं चाहती थी सो जल्दी से अपने आपको व्यवस्थित करते हुए वो बाथरूम में घुस गई और फ्रेश होने लगी थी चेंज करते समये उसने एक काटन का सूट निकाल लिया था जो कुछ ढीला ढाला था

मिरर के सामने खड़ी अपने को संवारते समय भी अपना दिमाग हर उस चीज से हटाना चाहती थी जिससे कि उसके मन में कोई गलत ख्याल ना आए वो कोई गाना गुनगुनाते हुए बालों को संवारते हुए माथे में सिंदूर और बिंदिया लगाना नहीं भूली फिर टीवी चालू करके अपने कमरे में ही बैठ गई थी उसे इंतजार था सोनल के आने का। खाना खाके वो सो जाएगी और फिर कल घर से बाहर और फिर पूरा दिन घर से बाहर ही रहेगी इस घर में घुसते ही उसे पता नहीं क्या हो जाता है
हमेशा ही उसे रवि की ज़रूरत पड़ती है पर अभी तो रवि है नहीं इसलिए वो भी जितना हो सके घर से बाहर ही रहेगी थोड़ी देर बाद ही घर के अंदर गाड़ी आने की आवाज हुई वो खुश हो गई थी चलो सोनल के साथ खाना खाकर वो वापस अपने कमरे में आ जाएगी टाइम बड़े ही धीरे से निकल रहा था पता नहीं क्या हुआ था आज टाइम को बहुत अकेला पन सा लग रहा था बस सोनल के डाइनिंग स्पेस में पहुँचने का ही इंतेजार था

30- 40 मिनट बाद ही कमरे का दरवाजा खड़का,वो जानती थी कि सोनल होगी। जल्दी से दरवाजा खोला, सोनल ही थी।
सोनल- चलिए मम्मी खाना खाते है।
तभी आरती के फ़ोन पर रवि का फ़ोन आता है,
मोबाइल पकड़े हुए उसने एक बार सोनल की ओर देखा जो कि नीचे डाइनिंग टेबल के पास जा रही थी।

रवि- क्या हुआ अभी भी गुस्सा हो क्या फोन क्यों नहीं उठाया

आरती- जी वो कमरे में रह गया था नीचे डाइनिंग रूम में हूँ

रवि- अच्छा चलो में तो पहुँच गया हूँ कल फोन करता हूँ और सुनो कल शाम को ही करूँगा ठीक है सुबह बहुत टाइट शेड्यूल है ओके…

आरती- जी और खाना खा लेना

रवि- हाँ यार खा लूँगा सोनल कहाँ है

आरती- जी फोन दूं

रवि- अरे रूको नहीं वो

आरती- जी क्या हुआ

रवि- अरे यार क्या सोनल को किस करू हाँ…

आरती का सारा शरीर एक बार फिर से उत्तेजना से भर गया उसके हाथों से फोन छूटते--छूटते बचा उस तरफ से एक लंबी सी किसकी आवाज आई

रवि- यह तुम्हारे होंठों के लिया था और करूँ हाँ…

आरती- रखू वो सोनल सामने ही है बता दूँगी ठीक है

और वो झट से अपनी नजर बचाकर खाँसते हुए फोन काट दिया और सोनल की ओर थोड़ी देर बाद देखते हुए

सोनल- क्या बोल रहै थे पापा।

आरती- ऐसे ही कुछ खाश नही।

आरती को नहीं समझ में आया कि क्या कहे पर किसी तरह से अपने को संभाल कर जो मन में आया कह गई और सिर नीचे करते हुए अपने खाने की प्लेट पर टूट पड़ी थी
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08-27-2019, 01:31 PM,
#48
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
उसका ध्यान खाने में काम फिर से उठ रहे अपने शरीर की हलचल पर ज्यादा था रवि ने फिर से उसके मन में एक अजीब सी हलचल मचा दी थी कितने मुश्किल से उसने अपने आपको संभाला था फिर रवि ने ऐसी बात क्योंकी जब वो यहां नहीं है तो कम से कम इस बात का ध्यान रखना था उसे . आरती ने खाना खाते हुए कई बार अपनी जाँघो को जोड़ कर अपने आपको संतुलित करने की कोशिश करती जा रही थी

पर काम अग्नि कोई दबाने की चीज है वो तो जितना भी अपने को काबू में रखने की कोशिश करती जा रही थी वो और भी उत्तेजित होती जा रही थी उसके मन में पता नही कहाँ से अचानक ही सुबह की घटना भी याद आ गई

भोला के साथ हुई उस घटना की कैसे वो बिल्कुल असहयाय सी उस वक़्त महसूस कर रही थी और उस सांड़ ने जो चाहा किया वो कुछ ना कर पाई थी पर वो तो शांत हो गया था पर आरती के अंदर एक भयानक सी आग को जनम दे गया था

वो आग अब अचानक ही एक ज्वालामुखी की तरह उसके शरीर को जला दे रही थी वो खाना तो खा रही थी पर अपने को बिल्कुल भी कंट्रोल नहीं कर पा रही थी सोनल भी कुछ कह रही थी वो सिर्फ़ हाँ या ना में ही जबाब दे रही थी
बहुत ही धीरे-धीरे टाइम निकल रहा था खाना है कि खतम ही नहीं हो रहा था और सोनल भी सामने बैठे हुए पता नहीं उससे क्या-क्या बोले जा रही थी।उसका ध्यान बिल्कुल नहीं था पर वो तो अपने आप में ही मस्त होती जा रही थी उसकी नजर के सामने बहुत कुछ घूमने लगा था पता नहीं क्या-क्या भोला से शुरू होकर रामु तक कैसे रामु ने उसके साथ पहली बार किया था फिर उसके कमरे में


फिर मनोज अंकल ने गाड़ी चलाते हुए वो तो बिल्कुल ही अनौखा खेल था असल में उसने ही शुरू किया था फिर आज भोला ने तो जैसे उसे पागल ही कर दिया था उस आग में वो अब भी जल रही थी फिर लाखा और रामू ने मिलकर आआआआआआह्ह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्शह उसके शरीर में एक लंबी सी सिहरन के साथ मुख से सिसकारी निकल गई थी खाना खतम तो नहीं हुआ था पर उसका मन भर गया था सोनल की नजर भी उसके ऊपर टिक गई थी

सोनल- क्या हुआ मम्मी खाना नहीं खाया कुछ सोच रही हो

आरती-नहीं बेटा ऐसे ही

सोनल- अरे मम्मी पहली बार गये है ना पापा इसलिए आपको ऐसा लग रहा होगा। आप एक काम करीये आराम से एक ग्लास गरम दूध पी लीजिए ,अच्छी नींद आएगी

आरती- हम्म्म्म।

सोनल - और ज्यादा मत सोचा करो मम्मी, कल से काम में फिर से लग जाएगी न तो देखना रात को नींद कैसे आ गई पता ही नहीं चलेगा

इसी तरह किसी तरह से आरती ने सोनल के साथ खाना खतम किया और लगभग एक नशे की हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कमरे में पहुँची थी वो झट से बाथरूम में घुसी और सलवार उतार कर पोट पर बैठ गई और अपने को रिलीस करने में उसे थोड़ी सी शांति मिली

वो वही बैठी रही बहुत देर तक और पता नहीं क्या सोचती रही पर बैठी बहुत देर तक रही। उसे अपना सिर घूमता हुआ सा लग रहा था खाना खाने बाद भी वो भूखी थी बहुत भूकी सलवार उतारकर वो कमरे में आई और बेड पर लेटी रही फेल कर पर ज्यादा देर नहीं धीरे-धीरे अपने को सिकोड़ती चली गई जैसे अपने को ही अपनी बाहों में भरने की कोशिश करती जा रही हो

वो ऐसे सिकुड़ कर अपने बिस्तर पर लेटी थी कि जैसे बेड पर जगह ही ना हो अपनी जाँघो को कस कर पकड़े हुए आरती अपना मुँह को उसमें छुपाए हुए थी सांसों को कंट्रोल करती हुई वो अपनी टांगों को भी हिलने से रोके हुए थी पर नहीं इससे कोई फायदा नहीं हुआ

आआआआआअह्ह, एक लंबी सी सांस छोड़ कर आरती फिर से उठ बैठी पर इस बार अपने कुर्ते को भी उतार दिया और झपट कर अपने तौलिया को उठाकर बाथरूम में फिर से घुस गई थी

अच्छे से नहाकर अपने को संभालना चाहती थी गरम गर्म पानी से नहाते हुए वो एक अजीब से सुख के सागर में गोते लगाने लग गई थी अच्छे से मल मल कर नहाती रही गरम-गरम पानी उसके शरीर पर गिरते हुए उसे अच्छा लग रहा था बहुत देर तक अपने को शावर के नीचे रखने से थोड़ा सा आराम मिला पर जैसे ही अपने शरीर को अपने हाथों से घिसने लगी अपने शरीर के कसेपन का एहसास फिर से उसे याद आ गया जिस आग को बुझाने की जरूरत थी वो धीरे-धीरे उसके हाथों के स्पर्श से ही बढ़ने लगा था

वो बहुत ही काबू में रहने की कोशिश करती जा रही थी पर हर बार बात उसके हाथों से निकलती जा रही थी अपने को घिसते हुए वो शावर में ही सिर उठाकर सांसों को छोड़ रही थी अपने चुचियों को धोते हुए वो अब जोर-जोर से उनके आकार के अनुरूप सहलाते हुए ऊपर-नीचे कर रही थी अपने पेट की ओर हाथ ले जात हुए भी उसे बड़ी बेचैनी सी हो रही थी अपने शरीर में उठ रही सिहरन को वो नजर अंदाज करते हुए अपने आपको सहलाने में जो मजा उसे मिल रहा था वो आज तक उसे नहीं मिला था हर कोने को अपने हाथों से सहला रही थी और दूसरे हाथों को वो धीरे-धीरे अपनी जाँघो के बीच में लेजा रही थी बालों के गुच्छे को छूते ही एक लंबी सी आअह्ह, उसके मुख से निकलकर पूरे बाथरूम में गूँज गई थी हाथों को और नीचे नहीं ले जा पाई थी जाँघो को जोड़ कर माथे को वाल पर टिकाए हुए वो अपने शरीर को सिकोड़ती जा रही थी खड़े होना उसके लिए दुभर हो गया था टांगों में शक्ति ही नहीं बची थी घुटनों के पास से पैरों को मोडते हुए वो शावर को चलते छोड़ कर ही बाथटब के किनारे बैठ गई थी बुरी तरह से हाफ रही थी एक हाथ से अपनी चुचियों को सहलाते हुए और दूसरे हाथ से अपनी जाँघो के ऊपर से बालों के गुच्छे को सहलाती रही और हान्फते हुए बहुत देर हो गई थी सांसों को ठीक करने की बहुत कोशिस करने के बाद भी वो उसकी गिरफ़्त में नहीं आई थी थकि हुई सी आरती ने अपनी सांसों को कंट्रोल करना छोड़ कर एक हाथ बढ़ा कर तौलिया को अपनी ओर खींचा और अपने शरीर को ढँकते हुए धीरे-धीरे पोछने लगी बड़ी मुश्किल से उठकर शावर बंद करके तौलिया को लपेट कर धीमे धीमे बाथरूम डोर खोलकर बाहर निकली तौलिया अब तक उसके शरीर के चारो ओर लपेटा हुआ था पर आँखें और चहरे को देख कर लगता था कि किसी जंग से आ रही है।
कहते है कि इंसान अपनी भूख से नहीं लड़ सकता चाहे वो पेट की हो या पेट के नीचे की हो।
वही हालत आरती की थी बड़ी ही मुश्किल से बाहर तक आई थी और मिरर के सामने खड़ी होकर अपने आपको संवारने लगी थी पहले बालों पर ड्राइयर चलाकर बालों को सूखाया फिर वारड्रोब से एक पतली सी महीन सा गाउन निकाल कर पहन लिया जो कि उसके कंधों के सहारे ही था पतली सी दो डोरी के सहारे वो आरती की चूची के 3्4 साइज़ को उजागर करते हुए जाँघो के आधे में ही ख़तम हो जाता था नशे की हालत में चलते हुए वो बेड के किनारे में जाकर बैठ गई थी और अपनी टांगों को हिलाकर जमीन की ओर देखते हुए कार्पेट को अंगूठे की नोक से खोदने की कोशिश करने लगी थी इतने में ही पास में रखे उसके मोबाइल पर रवि का फोन आया नजर घुमाकर एक बार हैंडसेट की ओर देखा और हाथ बढ़ाकर उसे उठा लिया।
आरती- हाँ…
रवि- सो गई क्या
आरती- नहीं
रवि- नाराज हो क्या
आरती- नहीं
रवि- अरे यार दो दिन में तो आ जाऊँगा फिर मजे करेंगे ना असल में तुम्हारी याद आ रही थी इसलिए फोन कर दिया
आरती- क्यों याद आ रही थी
रवि- अरे यार रात हो गई ना इसलिए ही ही ही हाँ… हाँ…

एक आह सी निकली आरती के मुख से
रवि- हेलो
आरती- जी
रवि- नींद आ रही है चलो सो जाओ कल फोन करूँगा ओके… गुड नाइट
आरती- गुडनाइट
फोन कट गया पर आरती हाथों में फोन लिए चुपचाप बैठी हुई जमीन की ओर ही देख रही थी
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08-27-2019, 01:31 PM,
#49
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
आरती जाँघो को जोड़ जोड़ कर बार-बार अपने आपको कही और ही भूलने की कोशिस करती रही पर नहीं हुआ उससे बार बार वो हास्पिटल के बेड के पास का सीन नहीं भुला पा रही थी भोला के लण्ड का स्पर्श उसे हाथों में अब तक था गरम और सख्त और मुलायम और मोटा सा लण्ड अब तक उसके जेहन में उसके शरीर के हर हिस्से को एक आग में झुलसा रहा था वो मजबूर थी ना चाहते हुए भी बार-बार उसके जेहन में यह बात घर किए हुए थी अब तो उसका सिर भी घूमने लगा था


वो धम्म से बेड पर गिर पड़ी चित होकर अपने हाथों को फैला कर उसने बेड के चारो ओर एक बार देखा कि वो ठीक है कि नहीं और फिर से वो अपनी दुनियां की सैर करने लगी थी कितना मजबूत था भोला और निडर भी किसी बात की चिंता नहीं की उसने अगर उस समय रवि या कोई और ही आ जाता तो और वो भी बिना किसी डर के बाद में उसका साथ देने लगी थी सोचते सोचते वो फिर से अपने आपको उसी आग में झौंकने लगी थी जिसे वो निरंतर खामोश करने की कोशिश कर रही थी पर हर बार वो कोशिश उसके शरीर को और भी उस आग में धकेल रहा था जिस आग से वो भाग रही थी
हर एक पहलू उसे उस ओर धकेल रहा था जिससे वो भागने की कोशिश कर रही थी लेटे लेटे वो बहुत देर तक अपने बारे में सोचती रही और अपने को कही और ही ले जाने की कोशिश करती रही पर हर बार वो लौट कर वही आ जाती थी जहां से चली थी अपने को संभालते हुए वो एक बार फिर से खड़ी हुई और अपने बेड को ठीक करने लगी थी वो नहीं सोचना चाहती थी उस बारे में नहीं वो अब और इस दलदल में नहीं फँसेगी नहीं वो अब नहीं बहकेगी हाँ… अब वो ठीक से सोच पा रही थी बिल्कुल ठीक आरती ने एक ही झटके में अपने बेड की ठीक करते हुए लाइट बंद करके चुपचाप लेट गई कमरे में बिल कुल सन्नाटा पसर गया था हल्की सी नाइट लैंप की रोशनी थी पूरे कमरे में बहुत ही मध्यम सी सिर्फ़ और सिर्फ़ आरती के सांसों की चलने की आवाज आ रही थी और कुछ नहीं


आरती बेड पर पहले तो फेल कर सोई हुई थी फिर अपने को सिकोड़ कर फिर और भी सिकोड़ कर सोने की कोशिश करती रही आखें बंद करती तो वही भोला का चेहरा उसे याद आता कैसे आखें बंद किए हुए था उस समय जब वो उसके लण्ड को सहला रही थी किसी पत्थर की तरह सख्त था आआआआआआह्ह उूुुुुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफफफफफफफ्फ़
आरती झट से उठ बैठी नहीं और नहीं सह सकती यह रवि की गलती है वो क्या करे उसका पति ही उसका साथ नहीं देता तो वो क्या करे शादी के बाद औरत हर एक इच्छा के लिए अपने पति पर ही निर्भर रहती है और वो हमेशा ही उसे अनदेखा करता है क्यों चला गया वो खाने से लेकर हर चीज़ उसे अपने पति से ही चाहिए होता है पर वो तो सिर्फ़ खाने और पहनने तक ही सीमित था असल समय में ही गायब हो जाता था नहीं अब और नहीं सह सकती वो उससे कुछ करना ही पड़ेगा, नहीं तो वो मर जाएगी उसे कोई चाहिए कोई भी उसके तन की आग को बुझाने को कोई भी चलेगा पर चाहिए अभी ही आरती के शरीर में जाने कहाँ से एक फुर्ती सी आ गई थी वो एक झटके से अपनी चादर को अपने शरीर से अलग करके नीचे पड़े हुए सँडल पर अपने पैरों को घुसा लिया और खड़ी हो गई वो अपने रूम से बाहर जाना चाहती थी



उसे इस रूम में घुटन ही रही थी यहां अगर वो ज्यादा देर रहेगी तो पागल हो जाएगी नहीं नहीं उसे बाहर ही जाना है वो धीरे से अपने रूम का दरवाजा खोलकर बाहर आकर खड़ी हो गई सीढ़ियो के ऊपर जाने वाले रास्ते को एक बार देखा नहीं अंदर से एक हल्की सी आवाज आई वो थोड़ा सा रुक गई नहीं वो ऊपर नहीं जाएगी फिर वो धीरे-धीरे चलते हुए नीचे की ओर जाने लगी थी वो एक बात बिल कुल भूल चुकी थी कि वो क्या पहेने हुए थी सिर्फ़ एक छोटा सा शमीज टाइप का गाउन जो कि उसके अंदर का हर हिस्सा साफ-साफ दिखाने की कोशिश कर रहा था ना पैंटी और नहीं ब्रा बस एक हल्का सा गाउन था वो या कहिए एक महीन सा कपड़ा भर था उसके शरीर पर पर वो अपने आपसे नहीं लड़ पा रही थी शायद आज की पूरी रात ही वो अपने आपसे लड़ते हुए गुज़ार देगी सीढ़ियो से नीचे उतरते हुए उसे अपने पूरे घर के सन्नाटे को भी देखती हुई वो बिल्कुल धीमे कदमो से चलती हुई किचेन की ओर बढ़ रही थी किचेन में हल्की सी रोशनी थी


एक-एकदम सन्नाटा कोई नहीं था वहाँ रामु काका अपना काम खतम करके ऊपर चले गये होंगे हाँ… उसने आगे बढ़ कर फ्रीज खोला और एक बोतल निकाल कर धीरे धीरे एक-एक घुट पानी पीने लगी खड़ी हुई एक बार पूरे किचेन की ओर देखा फिर एक घुट फिर थोड़ा इधर उधर फिर एक बोतल रख ही रही थी कि उसे पीछे से एक आहाट सुनाई दी वो थोड़ा सा डरी पर हिम्मत नहीं हुई पलटने की आवाज रुक गई थी फ्रीज का दरवाजा अब भी खुला था और वो झुकी हुई थी झुके झुके ही उसने पलटकर किचेन से बाहर की ओर देखा आरती की सांसें फिर से फूलने लगी थी बिना पीछे पलटे ही खड़ी हुई और फ्रीज के दरवाजे को बहुत ही धीरे से बंद करके वही फिर से खड़ी हो गई ।
उसे नहीं पता था कि पीछे कौन था खड़ी ही हुई थी कि पीछे से दो हाथों ने उसकी कमर से चलते हुए धीरे-धीरे से उसकी चूची को अपनी गिरफ़्त में ले लिया आरती के मुख से एक लंबी सी आआह्ह निकली थी उसने उसे रोकने को कोशिश नहीं की अपने अंदर के द्वंद से वो थक चुकी थी वो नहीं गई थी किसी के पास अगर कोई उसे शांत करना चाहता है तो अब उसे क्यों रोके वो वैसे ही खड़ी रही बल्कि उसके हाथों को अपने हथेलियो से और कस कर पकड़ लिया था अपनी गर्दन को पीछे की ओर धकेल कर उसके कंधों पर टिका लिया था उसे सहारे की जरूरत थी एक बहुत ही मजबूत सहारे की अपनी चूची को बहुत ही धीरे-धीरे दब्ते हुए पा रही थी वो बहुत ही प्यार से
आरती- आअह्ह जोर से दबाओ

- क्यों अपने आपको तकलीफ देती है बहू हाँ…
और एक लंबा सा चुंबन उसके गालों को गीलाकर गया था हल्की हल्की दाढ़ी के सख्त बाल उसके कोमल और नाजुक से गालों को छू रहे थे वो और भी ज्यादा उसकी काम अग्नि को बढ़ा रहे थे वो अब अपने आप में नहीं थी अब तो वो उसके हाथों में थी और सबकुछ न्योछावर था सबकुछ

- इस घर में तेरे गुलामों के रहते क्यों

और एक लंबा सा चुंबन होंठों को होंठों से जोड़ गया और आवाजें एक के अंदर एक गुम हो गई आरती का गाउन उसकी कमर के ऊपर की ओर उठ गया था पीछे खड़े सख्स के हाथों के कारण उसके हाथ अब उसकी चूची को अच्छे से दबा रहे थे आरती को जरा भी दर्द नही हो रहा था बल्कि बहुत अच्छा लग रहा था पीछे से उस सख्स के लण्ड का अहसास भी उसे हो रहा था शायद लूँगी के अंदर था पर साफ-साफ पता था कि वहां कुछ है और बहुत ही उतावला है क्योंकी हर बार वो एक झटका जरूर लेता था। आरती का एक हाथ अपने आप पीछे की ओर चला गया था और वो उस लण्ड को अपने हाथों में लेना चाहती थी वो लण्ड जो उसकी आग को शांत करना चाहता था उसके हाथों के पीछे पहुँचने से पहले ही पीछे खड़े सख्स ने जैसे उसकी मन की बात भाप ली हो एक ही झटके में उसकी धोती नीचे थी और आरती के नितंबों में गरम-गरम और तगड़ा सा लण्ड अपने आपको आजादी से स्पर्श करते हुए पाया उसका हाथ पीछे की ओर गया ही था कि उससे रहा नहीं गया और झट से उसने लण्ड को अपनी गिरफ़्त में ले लिया और बड़े ही उतावले पन के साथ उसे मसलने लगी थी पीछे खड़े सख्स को भी पता था कि आरती को क्या चाहिए वो भी आरती को धकेलते हुए पास में ही प्लॅटफार्म पर झुका कर खड़ा किया और अपने उतावले लण्ड को उसके रास्ते पर चलने को छोड़ दिया लण्ड अपने आप ही आरती की चुत के द्वार पर अपने सिरे को टिकाए हुए अपने आपको अंदर जाने के धक्के का इंतजार करता तब तक तो आरती ने भी अपनी जाँघो को थोड़ा खोलकर उसे रास्ता दे दिया और एक ही धक्के में लण्ड अपने रास्ते चल निकला
आरती- आआआआआआह्ह,

- धीरे बहू कोई सुन लेगा

और आरती के ऊपर झुकते हुए उसके होंठों को ढूँढ़ कर अपने कब्ज़े में किया ताकि उसके मुख से निकलने वाली आवाज बाहर तक नहीं जा सके लेकिन आरती तो जैसे अपने अंदर उस लण्ड को पाकर पागल हो गई थी उस सख्स के हर धक्के का साथ क्या दे रही थी बल्कि उसे पीछे की ओर ही धकेल देती थी हर धक्के के साथ वो इतना झुक जाती थी कि उस सख्स का लण्ड उसके अंदर तक बिना किसी तकलीफ के बहुत ही अंदर तक समा जाता था

वो सख्स भी शायद पहले से ही बहुत उतेजित था या कहिए आरती के इस तरह से वर्ताव करने से ही, वो बहुत ही जल्दी अपने मुकाम पर पहुँचने वाला था आरती का भी यही हाल था बहुत देर से जो आग उसके शरीर में लगी थी वो हर झटके में उसके हाथों से निकलती जा रही थी उसकी चुत के अंदर एक बहुत ही तेज और बड़ा सा समुंदर का सा जोर बनने लगा था वो जाने कब और कितनी देर तक उसका साथ दे पाएगी वो नहीं जानती थी पर, जो जंगली खेल दोनों खेल रहे थे उसमें कोई भी एक दूसरे का साथ छोड़ने को तैयार नहीं था हाँ पर एक दूसरे से दूर जाने को भी तैयार नहीं थाथे पीछे के हर धक्कों को झेलते हुए वो एक असीम समुंदर में एक झटके से गोते लगाने लगी थी उसके होंठ अब आजाद थे वो एक लंबी सी चीत्कार करते हुए अपनी कमर को और भी तेजी से पीछे की ओर करती जा रही थी और उस सख्स के हर धक्के का जबाब भी दे रही थी वो सख्स भी अपनी सीमा को लगने ही वाला था उसकी पकड़ इतनी कस गई थी, थी आरती की कमर के चारो तरह कि आरती को लगा था कि उसकी कमर की हड्डी ही टूट जाएगी पर जैसे ही वो सख्स झडा धीरे-धीरे उसकी पकड़ ढीली पड़ती गई और वो उसकी पीठ के ऊपर अपनी जीब और चेहरा घिसते हुए शांत हो गया पर जाने क्या हुआ कि जैसे ही वो सख्स शांत हुआ और अचानक ही उससे दूर भी हो गया पर एक दूसरी जोड़ी हाथों की गिरफ़्त में वो पहुँच गई थी
- बहू थोड़ा और रुक जा पागल कर दिया रे तूने

और फिर से एक लण्ड उसकी योनि में धड़-धड़ाते हुए बिना किसी चेतावनी के ही सरसराते हुए घुस गया और फिर एक भयानक सी तेजी और वहशीपन वाला खेल चालू हो गया था और आरती को कुछ समझ में आता तब तक तो शायद वो फिर से गरम-गरम सा महसूस करने लगी थी अपनी चुत में शायद उसे और भी चाहिए था शायद वो इतनी गरम हो चुकी थी कि एक के बाद एक और होने से भी उसे कोई फरक नहीं पड़ता था और वो और भी झुक कर उस सख्स के लण्ड को और भी अंदर तक ले जाने की कोशिस करने लगी थी उसके हाथ अब भी प्लॅटफार्म के ऊपर ही थे और पीछे के सख्स ने उसकी चुचियों को जोर से अपनी हथेलियो की गिरफ़्त में ले रखा था वो उन्हें मसलता हुआ लगातार झटके पर झटके दे रहा था हर झटके में आरती के मुख से एक लंबी और सुख के सागर में गोते लगाते हुए एक लंबी सी चीख निकलती थी जो किसी भी आदमी को और भी उत्तेजित कर सकती थी या फिर कहिए कि मुर्दे में भी जान डाल सकती थी पीछे के सख्स के लगातार होने वाले आक्रमण को आरती बिना किसी तकलीफ के झेलती चली गई और अपने मुकाम की ओर फिर से दौड़ लगाने लगी थी हर धक्के में वो चिहुक कर अपनी कमर को और भी मोड़ लेती या पीछे कर देती ताकि वो उस लण्ड का कोई भी हिस्सा को मिस नहीं करे जिस तरह से वो खेल चल रहा था उसे देखकर कोई भी कह सकता था कि दोनों बहुत दिनों से भूखे है और किसी तरह से अपनी आग को ठंडा करना चाहते है और वो ही कर रहे थे। आरती को अचानक ही अपने अंदर के ज्वार को चुत की ओर आते हुए पाया वो फिर से झरने वाली थी और जैसे ही वो झरने लगी थी पीछे वाले सख्स ने भी अपने लण्ड से ढेर सारा वीर्य उसकी चुत में छोड़ दिया और कस कर उसे अपनी बाहों में भर लिया आरती तो जैसे निढाल सी हो गई थी थकी हुई तो पहले से ही थी और अब तो दो बार उसके शरीर के साथ जो वो चाहती थी हो चुका था लगभग लटक चुकी थी उस सख्स की बाहों में अपने आपको प्लॅटफार्म के सहारे अपने हाथों को रखकर लंबी-लंबी सांसें छोड़ती हुई वो अपने को नार्मल करने की कोशिश कर रही थी उसकी चुत में अब तक उस सख्स का लण्ड घुसा हुआ था और बीच बिच में जोर का एक झटका दे देता था इतने में एक जोड़ी हाथों ने उसे फिर से सहारा दिया और उसके कंधों को पकड़कर उसे उँचा किया और सामने से उसे अपनी बाहों में भर लिया और कस कर उसके होंठों पर फिर से टूट पड़ा वो आरती के होंठों को अपने होंठों में दबाए उसे चूसता जा रहा था आरती में इतनी हिम्मत नही थी कि उसे मना करती और वो मना करना भी नहीं चाहती थी क्योंकी उसे यह अच्छा लग रहा था उसका शरीर तो ठंडा हो चुका था पर जैसे ही उस सख्स ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे वो एक बार फिर से उसका साथ देने लगी थी अपने जीब को खोलकर उसके मुख के अंदर तक पहुँचा चुकी थी एक आआआआह्ह सी निकली उसके मुख से शायद उस सुख के लिए थी जो उसे उस सख्स से मिल रहा था एक बार उसने अपनी आँखें खोलकर देखा वो रामु काका थे यानी रामु काका ही वो पहले सख्स थे जिन्होने उसके तन को सुख पहुँचाया था या यह कहिए फिर से उसे उस गड्ढे में धकेल दिया था जिससे वो बच रही थी पर कोई बात नहीं वो अगर नहीं करती तो शायद आज वो पागल हो जाती और जो पीछे है वो लाखा काका है जो अब तक उसे कस कर पकड़कर अपने मुरझाए हुए लण्ड को बाहर निकाल चुके थे और उसे ढीला छोड़ दिया था रामु काका के लिए वो अब पूरी तरह से रामु काका की बाँहों में थी और वो आरती को चूमते हुए धीरे-धीरे उसके पूरे शरीर का जाया जा ले रहे थे ऊपर से नीचे तक यानी उसके नितंबों तक जहां तक उनका हाथ पहुँच पा रहा था कभी कभी पीछे से एक और हाथ भी उसकी पीठ पर से रैन्गता हुआ नीचे की ओर आता और उसके नितंबों को छूता हुआ ऊपर की ओर उठ जाता शायद लाखा काका का मन अभी भरा नहीं था और नहीं रामू काका का तभी उसे पीछे से लाखा काका की आवाज सुनाई दी
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08-27-2019, 01:31 PM,
#50
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
लाखा- रामु यहां से चल कमरे में बहू के ले चलते है
और अचानक ही आरती के होंठों को अपने होंठों में सिले हुए वो एक झटके में रामु काका की बाहों में हवा में उठ गई वो अब रामु काका के दोनों हाथों के सहारे थी और किसी मरे हुए शरीर की तरह वो उसे अपनी गोद में उठाए हुए उसके होंठों को चूमते हुए सीढ़िया चढ़ रहे थे आरती अपने अगले राउंड के लिए फिर से तैयार थी उसे आज कोई आपत्ति नहीं थी वो आज शायद एक पूरी फूटबाल टीम को भी खुश कर सकती थी वो अपनी बाहों को कस कर रामु काका के गले के चारो ओर घेर कर अपने होंठों को और भी उनके होंठों के अंदर की ओर घुसाती जा रही थी साथ में चल रहे लाखा काका भी कभी-कभी उसके गोल गोल नितंबों को सहलाते हुए उनके साथ ही ऊपर चढ़ रहे थे। आरती दोनों के हाथों का खिलोना थी।
आज एक-एक बार उससे खेलने के बाद दोनों ही अपने अंदर के उत्साह को दबा नहीं पा रहे थे और जैसा मन हो रहा था वो वैसा ही उसके साथ करते जा रहे थे थोड़ी देर सीढ़िया चढ़ने के बाद एकदम से रामु काका रुक गये और आरती को लाखा काका के हाथों में सौंप दिया अब आरती लाखा काका की गोद में थी और वो फिर से सीडीयाँ चढ़ने लगे थे अब आरती के होंठ लाखा काका के सुपुर्द थे और वो आरती को गोद में लिए अपने बाहों को आरती के चारो ओर कसे हुए धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते हुए उसके होंठ का रस्स पान करते जा रहे थे आरती को कभी-कभी रामु काका के हाथों का स्पर्श भी होता था जाँघो में या फिर टांगों में या फिर अपने नितंबों में पर उसे कोई आपत्ति नहीं थी वो थी ही उनके लिए आज वो उसके खेलने का समान थी जी भर के खेलने का


और वो पूरा साथ दे रही थी अचानक ही वो अपने आपको एक नरम से बिस्तर पर टिकते हुए पाया यानी कि वो अब अपने कमरे में पहुँच गई है और दोनों को अपने दोनों ओर पाया एक के बाद एक उसके होंठों को अपने लिए छीनते जा रहे थे और अपने लार से उसके मुख के अंदर तक भिगाते जा रहे थे उनके हाथ उसके शरीर में जहां तहाँ भाग रहे थे चुचियों से लेकर जाँघो तक और टांगों तक पर आरती को कोई चिंता नहीं थी वो जानती थी कि आज कितनी भी कोशिश करे वो आज अपनी कामग्नी को शांत करके ही मानेगी आज के बाद वो कभी भी आज की स्थिति को नहीं दोहराएगी वो अपने शरीर की भूख के आगे झुक गई थी वो जानती थी कि वो अब रवि के आलवा भी उसे कोई ना कोई चाहिए जो हमेशा ही उसे शांत कर सके चाहे वो रामु हो या लाखा या फिर भोला हाँ… भोला क्यों नहीं वो ही तो आज का कल्प्रिट है उसी की वजह से ही तो आज वो इस स्थिति में पहुँची थी उसके दिमाग में जैसे ही भोला का ख्याल आया वो और भी उत्तेजित हो उठी उसकी चुत में एक अजीब सी गुड गुडी होने लगी चाहे वो इन दोनों की हरकत की वजह से हो या फिर भोला के बारे में सोचने की वजह से हो पर वो फिर से पागल सी होने लगी थी वो अपनी जाँघो को जोड़े रखना चाहती थी पर रामु और लाखा बार-बार उसे अपनी जाँघो को खोलकर अपनी जीब को उसकी दोनों जाँघो को चूमते हुए और चाट-ते हुए उसके ऊपर से नीचे तक चले जा रहे थे इतने में
आरती- प्लीज़ छोड़ो मुझे बाथरूम जनाअ हाईईइ
रामु तो रुक गया पर लाखा नहीं वो आरती के होंठों को कस कर अपने मुख में दबाए हुए झट से उसे अपनी बाहों में भर लिया
रामु- छोड़ बहू को कहीं भागी नही जा रही है बाथरूम से हो आने दे।
पर लाखा के दिमाग में कुछ और ही था वो झट से आरती को अपनी गोद में फिर से उठा लिया और धीरे से बाथरूम की ओर चल दिया और बाथरूम के डोर को खोलकर उसे पॉट पर बिठा दिया वैसे ही नंगी
लाखा- करले बहू आज नहीं छोड़ूँगा एक मींनट के लिए भी नहीं और खुद भी नंगा उसके सामने खड़ा हुआ अपने लण्ड को उसके चहरे पर अपने हाथों से मारने लगा था आरती जिंदगी में पहली बार किसी इंसान के सामने वैसे पॉट पर बैठी थी शायद जिंदगी में अपने पति के सामने भी वो यह नहीं कर पाई थी पर लाखा के सामने वो एक असहाय नारी की तरह पॉट पर बैठी हुई उसके लण्ड को अपने चहरे पर घिसते हुए देख रही थी तभी बाथरूम के दरवाजे पर रामु भी नजर आया और वो भी अंदर आ गया वो भी अपने हथियार को अपने हाथों से सहलाते हुए आरती की ओर देखते हुए अंदर आते जा रहा था आरती से और नहीं रोका गया और वो पॉट पर बैठी बैठी पिशाब करने लगी दोनों के सामने लाखा काका ने जैसे ही आवाज सुनी तो वो थोड़ा सा मुस्कुराए और थोड़ा सा आगे बढ़ कर अपने लण्ड को आरती के चेहरे पर घिसते हुए उसके होंठों से घिसने लगे थे आरती जानती थी कि क्या करना है उसने भी कोई आना कानी नहीं की और अपने गिलाबी होंठों के अंदर उस बड़े से लण्ड को ले लिया और धीरे-धीरे अपने जीब से उसे चाटने लगी थी लण्ड बहुत सख़्त नहीं था थोड़ा सा ढीला था पर आकृति वैसे ही थी मोटा सा और काला सा तभी उसे अपने गालों के पास एक और लण्ड आके टकराया वो रामु काका का लण्ड था वो अपने होंठों को लाखा काका के लण्ड से अलग करके रामु काका के लण्ड पर झुक गई और एक हाथ में लाखा काका के लण्ड को घिसते हुए दूसरे हाथ से रामु काका के लण्ड को पकड़कर अपने मुख के अंदर डाल लिया वो भी थोड़ा सा ढीला था पर उसके हाथों में आते ही जैसे जादू हो गया था वो धीरे धीरे अपने आकार में आने लगा था एक हाथ में लाखा काका का लण्ड और दूसरे में हाथों में रामु काका का लण्ड लिए वो चूस रही थी और पॉट के ऊपर बैठी हुई वो यह सब करती जा रही थी
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