Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
12-18-2018, 01:59 PM,
#21
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-8

गतान्क से आगे……………………

चाचा ने मेरी सलवार में हाथ डाल दिया. उसने पॅंटीस के अंदर भी हाथ सरका दिया और धीरे धीरे मेरी योनि की तरफ बढ़ने लगा. मेरी साँसे तेज चलने लगी. पहली बार गगन के शिवा कोई और मेरी योनि को इतनी नज़दीकी से छुने जा रहा था.

"रुक जाओ मैं कहती हूँ. कुछ तो शरम करो. गगन को पता चलेगा तो वो क्या सोचेगा."

"गगन को कुछ पता नही चलेगा. तुम बस मज़े लुटो."

"मुझे कोई मज़ा नही लूटना छोड़ो मुझे." मैने छटपटाते हुए कहा.

जब चाचा का हाथ मेरी योनि पर टिका तो मैं काँप उठी. चाचा ने मेरी योनि को दो उंगलियों से फैलाया और मेरी योनि को पंखुड़ियों को मसल्ने लगा.

मेरे शरीर में अजीब सी लहर दौड़ने लगी. मेरी टांगे थर थर काँप रही थी. जब चाचा ने मेरी योनि के भज्नासा (क्लाइटॉरिस) पर उंगली टिकाई तो मेरी हालत और ज़्यादा खराब हो गयी. मेरे पूरे शरीर में बीजली की लहरे दौड़ने लगी.

"मज़ा आ रहा है ना. क्या गगन खेलता है इस तरह तुम्हारी चूत के साथ जैसे मैं खेल रहा हूँ."

"नही. वो ऐसा कुछ नही करते. मुझे छोड़ दो वरना...आहह" बोलते बोलते मेरे मूह से सिसकी निकल गयी. मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया था.

"बड़ी जल्दी पानी छोड़ दिया. बाते तो बड़ी बड़ी करती हो. देखो खुद अब कैसे मज़े लूट रही है तुम्हारी चूत."

"ये ज़बरदस्ती करवाया तुमने."

"ज़बरदस्ती चूत का पानी नही निकलवा सकता कोई."

"तुम एक नंबर के कामीने हो आहह."मैं चीन्ख पड़ी क्योंकि चाचा ने मेरी योनि में उंगली डाल दी थी. गीली होने के कारण उंगली बड़ी जल्दी अंदर घुस गयी थी.

"वाह क्या चिकनी चूत है तुम्हारी. मैने ठीक ही अंदाज़ा लगाया था. तुम्हारी चूत तुम्हारी गान्ड के जैसी ही कयामत है. अच्छा एक बात बताओ. हफ्ते में कितनी बार मारता है गगन तेरी चूत."

"तुम्हे उस से क्या मतलब उंगली बाहर निकालो अपनी."

चाचा ने मेरी योनि में हर तरफ अपनी उंगली घुमानी शुरू कर दी और बोला, "इतनी भी क्या जल्दी है अभी तो बस घुस्साई ही है."

फिर ना जाने चाचा ने उंगली के साथ क्या किया मैं बहुत ज़ोर से चिल्लाई और मेरी योनि ने फिर से पानी छोड़ दिया. मुझे समझ में नही आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है. जबकि मैं तो पूरी कोशिस कर रही थी कुछ भी फील ना करने की. मगर उसकी उंगली मेरी योनि में कुछ अजीब सा जादू कर रही थी.

चाचा ने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरे बायें उभार को थाम कर उसे मसल्ने लगा. अब चाचा का एक हाथ मेरे उभार पर था और एक हाथ मेरी योनि पर. मेरे नितंबो पर हल्का हल्का चाचा का लिंग महसूस हो रहा था. मैं इतनी मदहोश हो चुकी थी कि अब मैं वहाँ चुपचाप आँखे बंद किए खड़ी थी और चाचा मेरे पीछे खड़ा मनचाहे ढंग से मेरे अंगो से खेल रहा था.

डोर बेल बजी तो मैं होश में आई. मैने तुरंत चाचा को ज़ोर से धक्का दिया और वहाँ से भाग कर अपने बेडरूम में आ गयी. अंदर आते ही मैने कुण्डी लगा ली. मेरा दिल बहुत ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.

अभी मैं संभली भी नही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

"निधि बेटी तुम्हारी कोई चिट्ठी आई है. तुम्हे हस्ताक्षर करने होंगे."चाचा ने बाहर से आवाज़ दी.

मैने दरवाजा खोला और बिना चाचा की तरफ देखे सीधा मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गयी. मैने चिट्ठी लेकर साइन कर दिए. चिट्ठी लेकर मैं अपने बेडरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि चाचा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला,

"छोड़ा ना पानी तेरी चूत ने आज फिर. तू सच में मज़े लूटती है मेरे साथ."

"तुम्हे तुम्हारे किए की सज़ा ज़रूर मिलेगी देहाती. बस देखते जाओ." उसका हाथ झटक कर मैं दौड़ कर अपने बेडरूम में घुस गयी.

"आज तुम्हारा पर्दाफाश कर दूँगी मैं गगन के सामने. बड़े बाल ब्रह्मचारी बने फिरते हो हा...." मैने मन ही मन सोचा.शाम को जब गगन घर आए तभी मैं अपने बेडरूम से बाहर निकली. मैं मन ही मन खुश हो रही थी की आज गगन के सामने चाचा का झूठा नकाब उतर जाएगा. ड्रॉयिंग रूम में जब कोई नही था तब मैने चुपचाप कॅमरा उठाया और कॅमरा लेकर टाय्लेट में चली गयी.

गगन को दिखाने से पहले मैं खुद रेकॉर्डेड क्लिप को देखना चाहती थी. मगर मुझे बहुत बड़ा झटका लगा. कॅमरा में ऐसा कुछ भी रेकॉर्ड नही हुआ था जिस से चाचा का पर्दाफास किया जा सके. दरअसल चाचा की छेड़खानी रेकॉर्ड होने से पहले ही मेमोरी कार्ड फुल हो गया था और रेकॉर्डिंग बंद हो गयी थी.

"ओह नो मुझे इतना कुछ सहना पड़ा पर इसमे कुछ भी रेकॉर्ड नही हुआ. अब फिर से वही सब सहना पड़ेगा." ये ख्याल आते ही मेरे तन बदन में बीजली की लहर सी दौड़ गयी. मैने खुद को बहुत कोसा क्योंकि मेरा शरीर पता नही क्यों फिर से चाचा के हाथो का खिलोना बनने के लिए तैयार था.

"चाचा को फाँसते फाँसते मैं कही खुद ही ना उसके जाल में फँस जाउ. उसकी छेड़खानी याद आते ही अजीब सी हलचल होती है तन बदन में. ऐसा लगता है जैसे मुझे ये सब अच्छा लगता है."

"नही नही मुझे ये सब अच्छा कैसे लग सकता है. वो बदसूरत देहाती मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता."

"पर मेरे अंग प्रत्यंग उसके हाथो के इशारे पर नाचते हैं. आज फिर से उसने मेरी योनि को पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया जबकि मैं खुद को संभालने की पूरी कॉसिश कर रही थी. बहुत समझा रही थी मैं अपनी योनि को की ऐसा कुछ नही करना है. पर मेरी एक नही चली और फिर से मेरी पॅंटीस गीली हो गयी. सच यही है कि मुझे ये सब अच्छा लगता है."

"नही हो सकता ऐसा. मुझे ये सब अच्छा बिल्कुल नही लग सकता. उसने ज़बरदस्ती करवाया मुझसे सब कुछ."
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12-18-2018, 01:59 PM,
#22
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
"ज़बरदस्ती ऑर्गॅज़म नही करवा सकता कोई निधि. सच को स्वीकार करो तुम्हे ये सब अच्छा लगता है. गगन को ये सब बता दोगि तो नुकसान तुम्हारा ही होगा. फिर ये सब एंजाय करने को नही मिलेगा."

"मैं कोई एंजाय नही कर रही हूँ. सब कुछ मुझ पर थोपा जा रहा है."

"हां ये सच है की सब कुछ थोपा जा रहा है पर ये मत भूलो कि तुम्हे ये सब अच्छा लगने लगा है. देखा था ना तुमने. जब तुम खिड़की में खड़ी थी तब तुम्हारी योनि चाचा की छेड़खानी सोच कर ही गीली हो गयी थी."

"वो इत्तेफ़ाक था"

"हहेहहे खुद को धोका दे रही हो तुम. और चाचा सिर्फ़ तुम्हे छेड़ता ही तो है.

असली में सेक्स तो करने की कॉसिश नही कर रहा है वो. फिर क्यों गगन को सब कुछ बता कर अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारती हो."

"आज उसने उंगली डाल दी थी अंदर. और क्या रह गया. मैं ये सब नही होने दे सकती."

"बस उंगली ही तो डाली थी उसने. अपना मोटा वो तो नही डाला ना. और उसने अपनी डाइयरी में लिखा भी था की वो तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नही करेगा क्योंकि तुम गगन की बीवी हो."

"बुलशिट. अंदर उंगली डालना कोई छ्होटी बात नही होती. जो भी हो मैं ये सब नही होने दूँगी मेरे साथ और चाचा के चेहरे से उसका झूठा नकाब हटा कर रहूंगी. मैं दुबारा कॅमरा लगा कर सब कुछ रेकॉर्ड करूँगी. इस बार खाली मेमोरी कार्ड लगाउन्गि कॅमरा में."

"सोच लो. फिर ये एंजाय्मेंट नही मिलेगा तुम्हे. छोड़ो कॅमरा को और सब एंजाय करो. वैसे भी सिर्फ़ कुछ ही दिन की बात और है फिर वो चला जाएगा."

चाचा के कारण मेरे मन में अंतर्द्वंद हो गया था. मेरा मन दौ हिस्सो में बॅट गया था.

"निधि कहाँ हो तुम?" बाहर से गगन की आवाज़ आई तो मेरा ध्यान टूटा.

"मुझे इस देहाती से नफ़रत है और मैं इसका पर्दाफाश करके रहूंगी." मैं दृढ़ निश्चय करके टाय्लेट से बाहर आ गयी.

गगन को अपने ऑफीस की एक फाइल नही मिल रही थी. इसीलिए मुझे ढूंड रहे थे.

अगले दिन दोपहर को अचानक मूसलाधार बारिस शुरू हो गयी. छत पर कपड़े सुख रहे. कपड़े उतारने के लिए मैं तुरंत छत की तरफ भागी. कपड़े उतार कर मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ी ही थी कि मेरा पाँव फिसल गया और मैं धडाम से नीचे गिर गयी. मेरी कमर ज़ोर से नीचे टकराई थी. दर्द की लहर पूरे शरीर में दौड़ गयी थी.

धडाम की आवाज़ सुन कर चाचा उपर दौड़ कर आया. तब तक मैं पूरी भीग चुकी थी.

"अरे निधि बेटी क्या हुआ?" चाचा मुझे उठाने के लिए आगे बढ़ा.

"दूर रहो मुझसे. मैं खुद उठ जाउन्गि." मैं चिल्लाई.

किसी तरह मैं धीरे से उठी. मेरी कमर दायें पाँव में बहुत दर्द हो रहा था. मेरे पहने कपड़े भी भीग गये थे और जो कपड़े में उतारने आई थी वो भी भीग गये थे. कपड़े गीले होने के कारण मेरे शरीर से चिपक गये थे जिसके कारण मेरे उभारों और नितंबो की शेप बिल्कुल सॉफ दीखने लगी थी. चाचा की आँखे चमक रही थी ये नज़ारा देख कर. वो एक तक मुझे घुरे जा रहा था.

"कमीना कही का. मोके का फ़ायडा उठा रहा है है." मैं सोचा.

मैने जब सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाया तो मुझे दायें पाओं में बहुत दर्द महसूस हुआ. ऐसा लग रहा था जैसे की पाओं में मोच आ गयी हो. बड़ी मुस्किल से मैं नीचे उतरी.

मैने गरम पानी से नहा कर कपड़े चेंज किए मगर फिर भी दर्द से राहत नही मिली. पाओं में दर्द बढ़ता ही जा रहा था. जब दर्द असहनीय हो गया तो मैने गगन को फोन मिलाया और उन्हे सारी बात बताई.

"क्या ज़रूरत थी इतनी तेज बारिस में तुम्हे छत पर जाने की." गगन मुझे डाँटने लगे.

"कपड़े थे ना उपर. वो उतारने गयी थी. दर्द तो कमर में भी है पर पाओं की ये मोच बहुत परेशान कर रही है."

"तुम ऐसा करो फोन चाचा जी को दो."

"क्यों...वो सो रहे होंगे."

"दोपहर को नही सोते हैं वो. जाओ मेरी बात कर्वाओ उनसे."

"पर बात क्या है?"

"उन्हे पाओं की मोच उतारनी आती है. मैं उनको बोल देता हूँ वो मोच उतार देंगे."

"वॉट...तुम होश में तो हो. मैं उनसे अपनी मोच नही उतरवाउन्गि."

"क्यों...वो एक्सपर्ट हैं. एक बार गाओं में जब मेरे पाओं में मोच आ गयी थी तो उन्होने झट से मोच उतार दी थी. तुम उन्हे फोन तो दो."

मरती क्या ना करती. मैं चाचा के कमरे की तरफ चल दी. चाचा अपने बिस्तर पर आँखे बंद किए पड़ा था. मैने दरवाजा खड़काया तो वो उठ कर बैठ गया.

"अरे निधि बेटी आओ आओ"

"गगन आपसे बात करना चाहते हैं." मैने फोन चाचा को थमा दिया और बाहर आकर ड्रॉयिंग रूम में बैठ गयी. चाचा फोन पे बात करता हुआ अपने कमरे से बाहर निकला.

"तुम चिंता मत करो गगन बेटा. मैं अभी निधि बेटी की मोच उतार देता हूँ. तुम अपने काम पर ध्यान दो."

चाचा ने मुझे फोन देते हुए कहा, "यही मोच उतारू तुम्हारी या तुम्हारे कमरे में"

"मुझे कोई मोच वॉच नही उतरवानी. आप अपना काम कीजिए."

"नखरे मत करो. एक पल में दर्द गायब हो जाएगा तुम्हारा.लाओ पाओं आगे करो."

"दूर रहो मुझसे." मैने चाचा को डाँट दिया.

तभी फिर से गगन का फोन आ गया.

"चाचा को बोल दिया है मैने. उन्होने शुरू की पाओं की मालिश."

"नही अभी नही."

क्रमशः…………………………………
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12-18-2018, 01:59 PM,
#23
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बिन बुलाया मेहमान-9

गतान्क से आगे……………………

चाचा ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और खींच कर मुझे सोफे से उठा दिया.

"फोन दो उन्हे मैं उन्हे जल्दी करने को बोलता हूँ. मोच का दर्द बहुत बेकार होता है." गगन ने कहा.

"शुरू करने वाले हैं तुम चिंता मत करो बाए." मैने फोन काट दिया क्योंकि चाचा मुझे खींच कर अपने कमरे तक ले आया था.

"रूको मेरे बेडरूम में चलते हैं." मैने कहा. मेरा प्लान था कि मैं अपने बेडरूम में कॅमरा लगा लूँगी ताकि चाचा की हर हरकत रेकॉर्ड होती जाए.

"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी."

"आप थोड़ी देर रुकिये मैं बेडरूम में बिखरे अपने कपड़े समेट लूँ."

"ठीक है"

मैने झटपट अपने बेडरूम में आकर कॅमरा फिट किया. मैं कॅमरा ऑन करके हटी ही थी कि चाचा की आवाज़ आई. "आ जाउ क्या बेटी."

"कितना उतावला हो रहा है मोच के बहाने मेरे साथ छेड़खानी के लिए. आज तुम्हारी खैर नही."

"जी आ जाइए"

चाचा अंदर आ गया और बोला "तुम आराम से बिस्तर पर लेट जाओ. चिंता की कोई बात नही है. अभी मोच उतार देता हूँ."

"देखो पाओं के अलावा कही और हाथ मत लगाना." मैने चेतावनी दी.

"ठीक है...तुम लेटो तो सही."

क्योंकि सब कुछ रेकॉर्ड हो रहा था इसलिए मैं पीठ के बल लेट गयी. चाचा ने मेरे दायें पाओं को दोनो हाथो में लिया तो मेरा शरीर कापने लगा. चाचा ने भी मेरी कप कपि को महसूस किया.

"क्या हुआ? मज़े लेने लगी अभी से. बहुत प्यासी लगती हो. लगता है गगन ठीक से ध्यान नही दे रहा तुम पर."

"बकवास मत करो देहाती. मोच ठीक करने पर ध्यान दो"चाचा ने मेरे पाओं की मालिश शुरू कर दी. 10 मिनिट तक वो मेरे पाओं की मालिश करता रहा पर दर्द में ज़रा भी राहत नही मिली.

"कुछ आराम मिला क्या."

"नही अभी नही. आप रहने दीजिए मैं डॉक्टर को दीखा लूँगी."

"नस बहुत बुरी तरह चढ़ि हुई है एक दूसरे के उपर. तुम पीठ के बल गिरी थी ना?"

"आपने देखा तो था."

"हां देखा था. तुम्हारे चूतरों की नशे भी खींच गयी हैं. इसीलिए सिर्फ़ यहा मालिस करने से बात नही बनेगी."

"ये सब बहाने बाजी है तुम्हारी वहाँ हाथ लगाने के लिए. मैं खूब अच्छे से जानती हूँ."

"जब मुझे हाथ लगाना होता है मैं लगा ही लेता हूँ. तुम्हारी इजाज़त नही माँगता. मैं सच कह रहा हूँ तुम्हारे पाओं के दर्द को दूर करने के लिए मुझे वहाँ हाथ लगा कर देखना ही होगा. वहाँ भी नसे एक दूसरे पर चढ़ि होंगी. तुम्हे हल्का हल्का वहाँ दर्द भी हो रहा होगा."

"दर्द तो गिरने के कारण होगा. वहाँ मोच का क्या मतलब."

"मतलब है निधि. नसे आपस में जुड़ी होती है. जब तक तुम्हारे चूतरों की नशो का खीचव नही हटेगा पाओं की मोच ठीक नही होगी."

"बुलशिट. आइ डोंट बिलीव दिस."

"क्या कहा हिन्दी में बोलो. मुझे इंग्लीश नही आती."

"ये सब बकवास है. रहने दीजिए मैं शाम को डॉक्टर को दिखवा लूँगी."

"तुम्हारी मर्ज़ी. मैं तो तुम्हारे भले के लिए बोल रहा था."

"मेरा कितना भला चाहते हैं आप मैं जानती हूँ. मैं खूब समझ रही हूँ कि आप मोच के बहाने मेरे शरीर के साथ गंदी हरकत करेंगे."

"वो तो मैं वैसे भी कर सकता हूँ. इस वक्त सिर्फ़ तुम्हारा दर्द दूर करना चाहता हूँ मैं. देखो कैसी छम छम बारिस हो रही है. ऐसे में दर्द में पड़ी रहोगी तुम तो बारिश का मज़ा नही ले पाओगि."

दर्द तो मुझे बहुत हो रहा था. दर्द के कारण मेरी जान निकली जा रही थी. चाचा की ये बाते सुन कर मैं सोच में पड़ गयी थी. ये बात सही थी कि चाचा चाहता तो फिर से मेरे साथ ज़बरदस्ती करके मुझे कही भी च्छू सकता था.

मगर मैं खुद उसे छुने की इजाज़त नही दे सकती थी. लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा था. मुझे समझ में नही आ रहा था की क्या करूँ. मैं गगन को कोस रही थी. उसने मुझे अजीब मुसीबत में फँसा दिया था.

"सोच क्या रही हो...तुम ऐसे नही मानोगी." चाचा बिस्तर पर चढ़ गया और मुझे कंधो से पकड़ कर बेड पर उल्टा घुमा दिया. पहले मैने रेज़िस्ट करने की कोशिश की पर अपने दर्द का सोच कर मैने अपना रेसिस्टेंसे त्याग दिया.

चाचा मेरे दाईं तरफ मेरे घुटनो के बल बैठ गया.

"देखो सिर्फ़ मोच उतारने पर ध्यान देना. अगर कोई भी ऐसी वैसी हरकत की तुमने तो मैं गगन को सब कुछ बता दूँगी."

"बता देना जो बताना है. तुम्हारे भले के लिए करूँगा जो भी करूँगा."

चाचा ने मेरे दायें नितंब के गुंबद के शिर्स पर बीचो बीच अपना दायां अंगूठा रख दिया. मेरे नितंब की गोलाई पर चाचा का अंगूठा टिकते ही एक तेज लहर सी मेरे बदन में दौड़ गयी.

"क्या हुआ?"

"क...क..कुछ नही. कितना टाइम लगेगा इसमे."

"ज़्यादा टाइम नही लगेगा घबराओ मत." चाचा ने अंगूठे से मेरे नितंब की दाईं गोलाई को ज़ोर से प्रेस किया और बोला, "कुछ फरक पड़ा पाओं में."

"नही" मैने तुरंत कहा.

चाचा ने अपना दायां अंगूठा मेरे बायें नितंब की गोलाई पर रख कर ज़ोर से दबाया और बोला, "अब कुछ फरक पड़ा."

"नही"

"कोई बात नही अब फरक पड़ेगा." चाचा ने अपने दोनो हाथ फैला कर मेरे नितंबो की गोलाई पर रख दिए और उन्हे ज़ोर से प्रेस किया. मेरे शरीर में अजीब सी बेचैनी हो रही थी चाचा की इन हर्कतो से. मगर फिर भी मैं दम साधे चुपचाप वहाँ पड़ी रही. कुछ देर तक चाचा मेरे नितंब के दोनो गुम्बदो को हाथो से नीचे की और दबाता रहा. मगर अचानक उसने मेरी दोनो गोलैईयों को आटे की तरह गुंथना शुरू कर दिया. उसकी इस हरकत से मेरी साँसे तेज चलने लगी और रह रह कर एक अजीब सी तरंग शरीर में दौड़ने लगी. कब मेरी योनि गीली हो गयी मुझे पता ही नही चला.

"कम्बख़त मेरे अंग इसके हाथो का खिलोना बन जाते हैं. फिर से मेरी गीली हो गयी. ऐसा क्यों होता है मेरे साथ." मैं खुद को कोसने लगी.

"कुछ फरक पड़ा निधि?"

"कुछ फरक नही पड़ा. आप मोच के बहाने अपनी हवस पूरी कर रहे हैं. हट जाओ. मुझे नही उतरवानी मोच तुमसे."

"सय्यम से काम लो निधि. देखो नस एक दूसरे पर चढ़ जाए तो मुस्किल से उतरती है. यहा सबसे बड़ी दिक्कत ये है की कपड़ो के कारण मुझे तुम्हारी नसे दीखाई नही दे रही."

"आ गये ना अपनी औकात पर. अब सब सॉफ हो गया. तुम ये सब अपनी हवस के लिए कर रहे हो. मुझे तो ये समझ में नही आ रहा कि मोच मेरे पाओं में है और तुम कही और ही लगे हुए हो."

"देखो सभी अंग एक दूसरे से जुड़े हैं. तुम देखना पाओं की मोच यही से ठीक होगी. तुम बस थोड़ी सी सलवार नीचे सरका लो."

"एक नंबर की बकवास है ये. मैं यहा दर्द से मरी जा रही हूँ और तुम्हे बस अपने काम से मतलब है."

"ऐसा नही है निधि. थोड़ी नीचे सरकाओ सलवार. जितनी जल्दी नीचे सर्काओगि सलवार उतनी जल्दी तुम्हारा दर्द दूर होगा."

"तुम्हे शरम नही आती ऐसा बोलते हुए. गगन को पता चलेगा तो तुम्हारी खैर नही."

तभी मेरे मोबाइल बज उठा. फोन गगन का था.

"कुछ आराम मिला क्या?"

"नही अभी तक कोई आराम नही मिला."

"क्यों चाचा जी ने मोच नही उतारी क्या अभी तक."

"वो लगे हुए हैं पर कोई फ़ायडा नही हो रहा."

"कोई बात नही चाचा जी पर भरोसा रखो. वो एक्सपर्ट हैं इस काम में."
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12-18-2018, 01:59 PM,
#24
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मैं गगन के साथ बातों में लगी थी कि चाचा ने एक झटके में कमर से दोनो हाथो से पकड़ कर उपर उठाया और मेरी सलवार का नाडा पकड़ लिया. इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती नाडा खुल चुका था.

"नही...." मैं ज़ोर से चिल्लाई.

चाचा ने वापिस मुझे फोर्स्फुली नीचे लेटा दिया और फुर्ती से मेरी सलवार नीचे सरका दी. अब मेरे नितंबों के गुंबद सिर्फ़ मेरी पतली सी पॅंटीस में ढके हुए चाचा की आँखो के सामने थे.

"क्या हुआ निधि. इतनी ज़ोर से क्यों चिल्लाई." गगन ने पूछा.

मेरे एक हाथ में मोबाइल था और दूसरे हाथ से मैं अपनी अपनी सलवार उपर करने की कॉसिश कर रही थी. मुझे कुछ सूझ ही नही रहा था कि क्या करूँ. मैं उठने की कॉसिश कर रही थी पर मुझे चाचा ने दोनो हाथो से दबा रखा था. मैं छटपटा रही थी.

"क्या हुआ निधि कुछ तो बोलो."

"क...क कुछ नही बहुत दर्द हुआ अचानक से."

"होता है...ये मोच बड़ी बेकार चीज़ होती है."

"नही हटो..." मैं फिर से चिल्लाई क्योंकि इस बार चाचा ने मेरी पॅंटीस नीचे सरका दी थी. मैं तो शरम और ग्लानि से मरी जा रही थी. मेरे नितंब पहली बार गगन के अलावा किसी और की आँखो के सामने नंगे थे.

"अब क्या हुआ." गगन ने पूछा.

"गगन ये मोच चाचा जी से नही उतरेगी. मैं उन्हे फोन दे रही हूँ. तुम उन्हे बोल दो कि रहने दें." मैने गर्दन घुमा कर फोन चाचा की तरफ बढ़ा दिया.

"हां गगन बेटा.............नही नही तुम चिंता मत करो. दरअसल नसो पर नस बुरी तरह चढ़ि हुई है. थोड़ा टाइम लगेगा. मैने अपनी जींदगी में इतनी गंभीर मोच आज तक नही देखी..............हां हां तुम चिंता मत करो मैं निधि का दर्द दूर करके ही दम लूँगा."

चाचा ने फोन पर बात करते वक्त भी मुझे उठने का कोई मोका नही दिया. मेरी कमर पर उसने अपना घुटना टीका रखा था और एक हाथ से मेरे कांधो पर दबाव बना रखा था. गगन से बात करने के बाद चाचा ने फोन वापिस मुझे दे दिया.

"अरे निधि तुम्हाई मोच कोई मामूली मोच नही है. चाचा जी कह रहे हैं कि थोडा वक्त लगेगा. तुम धर्य से काम लो और चाचा जी पर विस्वास रखो. चाचा जी सब ठीक कर देंगे."

मैने गगन की बात सुन कर पीछे मूड कर देखा. चाचा मेरे निर्वस्त्र नितंबो को ललचाई नज़रो से देख रहा था. वो मेरे नितंबो से ठीक नीचे मेरी जाँघो पर बैठा था और दोनो हाथ मेरी कमर पर रख रखे थे. मेरी उस से नज़रे टकराई तो कमिने ने अपने बत्तीसी दिखाते हुए मुझे आँख मार दी. मैं शरम से पानी पानी हो गयी. दिल तो कर रहा था कि उसी वक्त गगन को सब कुछ बता दूं पर ये सोच कर रुक गयी कि फोन पर ये बात करनी ठीक नही होगी क्योंकि फोन पर मैं गगन को डीटेल में नही समझा पाउन्गि. वैसे भी कॅमरा में चाचा की सारी हरकते रेकॉर्ड हो रही थी. चाचा का पर्दाफास करने के लिए मुझे भारी कीमत चुकानी पड़ रही थी. मेरे बेचारे नितंब दाँव पर लग गये थे.

"क्या हुआ निधि किस सोच में पड़ गयी."

"मुझे नही लगता की चाचा ठीक कर पाएँगे."

"नही वो कर देंगे तुम शांति रखो. उन्हे अपना काम करने दो."

चाचा ने एक हाथ से मुझे दबाए रखा और दूसरे हाथ को धीरे धीरे नीचे सरकते हुए मेरे नितंबो के पास ले आए. मेरी योनि को तो वो च्छू ही चुका था और अंदर उंगली भी डाल चुका था. अब मेरे नितंब चाचा की हवस का शिकार होने वाले थे. और मैं चाह कर भी कुछ नही कर पा रही थी.

जब चाचा ने मेरी दाईं गोलाई पर हाथ रखा तो मैं सिहर उठी. एक बिजली की लहर सी पूरे शरीर में दौड़ गयी.

चाचा ने बड़े प्यार से मेरे नितंबो के दोनो गुम्बदो पर हाथ फिराया. फिर अचानक उसने बड़ी बेरहमी से उन्हे मसलना शुरू कर दिया. ऐसा लग रहा था जैसे कि आटा गूँथ रहा हो. मेरी जो हालत हो रही थी वो मैं ही जानती थी. मेरे दोनो गुंबद चाचा की इन छेड़खानियो से मचलने लगे थे. उनमे रह रह कर सिहरन सी हो रही थी. ये बात मुझे बिल्कुल अच्छी नही लग रही थी और मैं वहाँ से उठने के लिए छटपटा रही थी पर चाचा ने मुझे कुछ इस तरह से दबा रखा था कि मैं कुछ भी नही कर पा रही थी. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था. मैने मोबाइल उठाया और बोली, " हट जाओ तुम वरना मैं गगन को सब कुछ बता दूँगी."

"पागल मत बनो. अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मत मारो. तुम्हे ये अच्छा लग रहा है. मैं शर्त लगा सकती हूँ की इस वक्त तुम्हारी चूत रस टपका रही होगी. क्यों अपने मज़े में खलल डालती हो."

"शट अप मुझे कुछ अच्छा नही लग रहा."

"देखूं तुम्हारी चूत पर हाथ लगा कर."

"तुम्हे शरम नही आती. मोच के बहाने मेरे साथ इतनी गंदी हरकते कर रहे हो. मैं अभी गगन को सब कुछ बता दूँगी."

मैने गगन का नंबर डाइयल किया पर उसने फोन नही उठाया. मैने दुबारा नंबर डाइयल किया ही था कि मेरी साँसे एक दम से थम गयी. चाचा ने मेरे नितंबो की दरार पर उंगली फिरा रहा था.

"कितनी मस्त गान्ड है तुम्हारी. एक दम गोरी चिटी और चिकनी. कोई भी फिदा हो जाएगा इस गान्ड पर. गगन के तो खूब मज़े लगे हुए हैं." बोलते हुए चाचा ने मेरे दोनो गुम्बदो को फैला दिया हाथो से और मेरे नितंब के छिद्र को निहारने लगा.

"ऊऊहह क्या गान्ड कसम से. इसका छेद भी कितना चिकना है. एक भी बाल नही है. निधि सच कह रहा हूँ इतनी सुंदर गान्ड मैने आज तक नही देखी."

"शट अप यू पिग."

"हिन्दी में गाली दो ना."

"हट जाओ तुरंत नही तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे साथ."

"जो छ्छोकरी मुझे पसंद आ जाती है उसके साथ मैं अपनी मर्ज़ी चलता हूँ. जो होगा देखा जाएगा."

चाचा ने मेरे पीछले छिद्र पर उंगली टिकाई तो मेरी कपकपि छूट गयी.

"क्या हुआ मचल उठी ना."

"अंदर मत डालना उंगली समझे नही तो खून पी जाउन्गि तुम्हारा."

"देखो तुम्हारे पाओं की मोच का इलाज तुम्हारी गान्ड के छेद में च्छूपा है. अंदर उंगली डालनी ही पड़ेगी तुम्हारी मोच ठीक करने के लिए."

"बुलशिट...बकवास है ये एक नंबर की. मोच के बहाने कुछ भी कर लो आआअहह नही हट जाओ." बोलते बोलते मैं चीन्ख पड़ी क्योंकि देहाती ने उंगली मेरे पीछले छिद्र में डाल दी थी. पहली बार उसमे कुछ अंदर गया था इसलिए असह्निय पीड़ा हो रही थी.

क्रमशः...................................................
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12-18-2018, 02:00 PM,
#25
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-10

गतान्क से आगे……………………

"उफ्फ बहुत टाइट गान्ड है तुम्हारी. उंगली डालने में ही कितनी दिक्कत हो रही है."

"मुझे दर्द हो रहा है हट जाओ. तुम मेरा दर्द कम करने की बजाए मुझे और तकलीफ़ दे रहे हो."

"चुप रहो थोड़ी देर. देखो सारे दर्द अभी गायब हो जाएँगे."

मैं छटपटाती रही पर वो नही रुका.उसने धीरे धीरे अपनी पूरी उंगली मेरे नियंब के छिद्र में डाल दी. कुछ देर रुकने के बाद वो उंगली को बाहर की तरफ खीचने लगा. मुझे लगा कि वो बाहर निकाल लेगा. मगर उसने फिर से उंगली अंदर धकैल दी. मैं शिसक उठी. मेरी शिसक में दर्द, उत्तेजना, शरम और ग्लानि सब कुछ शामिल थे. मगर चाचा किसी भी बात की परवाह किए बिना उंगली मेरे टाइट होल में अंदर बाहर करने लगा.

"कुछ आराम मिला मोच में."

"शट अप ये सब तुम मेरे आराम के लिए नही कर रहे हो."

"बस एक मिनिट और दो मुझे अभी तुम्हारी मोच उतर जाएगी." चाचा ने मेरे नितंब के छिद्र में अपनी उंगली घुमानी बंद कर दी और अपनी उंगली के सहारे से मेरे छिद्र के अंदर कुछ टटोलने लगा. अचानक उसने एक जगह उंगली टिकाई और वहाँ ज़ोर से दबा कर बोला, "हिलना मत थोड़ी देर. वो नस मिल गयी है जो सारे फ़साद की जड़ है. हिलोगि तो फिर से उंगली रगड़नी पड़ेगी इस नस को ढूँडने के लिए इसलिए चुपचाप पड़ी रहो. मुझे चाचा की बात पर यकीन तो नही था मगर फिर भी मैं बिल्कुल स्थिल हो गयी. मैं देखना चाहती थी कि वो आगे क्या करेगा. चाचा मेरी जाँघो से उतर गया और मेरे दाईं तरफ आ गया. अपने बायें हाथ से उसने मेरे पाओं को पकड़ लिया और वहाँ पर एक जगह किसी नस पर अंगूठा रख कर ज़ोर से दबाया. दबाने के बाद उसके आस पास के एरिया को वो मसल्ने लगा.

फिर उसने मेरे नितंब के छिद्र में उंगली उस एरिया के आस पास घुमानी शुरू कर दी जहाँ उसने उंगली टिका रखी थी.

"दर्द गया कि नही?"

बहुत ही अजीब बात थी. मेरे पाओं से दर्द एक दम गायब हो गया था. दर्द के जाते ही मैं राहत की साँस ली.

"हां दर्द चला गया. जल्दी उंगली निकालो अब."

"रूको उंगली से अभी मालिश करनी होगी अंदर तभी पूरी तरह मोच उतरेगी वरना तो थोड़ी देर में फिर से दर्द शुरू हो जाएगा."

"झूठ बोल रहे हो तुम."

"नही सच बोल रहा हूँ. बस थोड़ी देर और लेटी रहो चुपचाप. मुझे अपना काम करने दो वरना गगन कहेगा कि मैने ठीक से मोच नही उतारी."

चाचा फिर से मेरी जाँघो पर बैठ गया. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब क्या करूँ.

"क्या बोलती हो. कर दूं ना मालिश." चाचा ने मेरे नितंब में धँसी उंगली को हल्का सा हिलाते हुए कहा.

उसकी उंगली की हरकत से मेरा छिद्र खुद ब खुद सिकुड़ने और फूलने लगा.

"तुम्हारी गान्ड तो तैयार है. तुम ही नखरे कर रही हो. देखो कैसे बार बार मेरी उंगली को जाकड़ रही है."

मैं शरम से पानी पानी हो गयी. "आ..आ..ऐसा कुछ भी नही है समझे."

"अच्छा ये बताओ मालिश करूँ कि नही." चाचा ने बेशर्मी से पूछा.

"जैसे कि मेरे मना करने से तुम रुक जाओगे. अब तक क्या पूछ कर किया तुमने मुझसे? जो अब करोगे."

"हां ये तो है. ये मैं गगन के कहने पे कर रहा हूँ."

"गगन ने क्या यहा उंगली डालने को कहा था."

"कहा तो नही था पर तुम्हारी मोच उतारने के लिए मुझे डालनी पड़ी. और अगर मोच दुबारा नही चाहती तो चुपचाप मुझे मालिश करने दो इस छेद की."

"जल्दी करो जो करना है." मैं झल्ला कर बोली.

"मरी जा रही हो मज़े लेने के लिए और नखरे इतने दिखा रही हो."

चाचा ने बायें हाथ से मेरे गुम्बदो की दरार को चोडा कर दिया और ज़ोर ज़ोर से अपनी उंगली मेरे छिद्र में घिसने लगा. कुछ देर तक तो मैं चुपचाप पड़ी रही. मगर ना जाने क्यों मेरे मूह से धीमी धीमी सिसकियाँ निकलने लगी. जब मैं उत्तेजित होती हूँ तो खुद को रोक नही पाती हूँ. गगन के साथ मैं खूब चिल्लाति हूँ. मगर मुझे समझ में नही आ रहा था कि मैं उस वक्त क्यों सिसकियाँ ले रही थी. शायद मेरे पीछले छिद्र को आनंद मिल रहा था. जो भी हो ये बात तैय थी कि मैं मदहोश होती जा रही थी.

"नही बस.... बस..... रुक..... जाओ...आआहह...ऊऊहह" मेरी योनि ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया था.

"मज़ा आ रहा है ना. ये मस्त गान्ड इसी मज़े के लिए मिली है तुम्हे और तुम नखरे करती है." चाचा ने इंडेक्स फिंगर के साथ अपनी मिड्ल फिंगर भी मेरे छिद्र में डाल दी और बोला, "अब और ज़्यादा मज़ा आएगा."

"रुक जाओ देहाती आअहह."

पर देहाती लगा रहा. उसकी उंगलियाँ बहुत तेज़ी से मेरे पीछले छिद्र में अंदर बाहर हो रही थी और चप चप की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी. एक तरह से उंगलियों से देहाती मेरे साथ नितंब मैथुन कर रहा था. लेकिन मेरे लिए शरम की बात ये थी कि मैं बहकति जा रही थी.

अचानक चाचा रुक गया. उसने धीरे से मेरे छिद्र से उंगलियाँ निकाल ली. मैं वहाँ बेहोश सी पड़ी थी. मेरी साँसे बहुत तेज चल रही थी. आँखो के आगे अंधेरा सा च्छा रहा था.

चाचा ने मेरे नितंब के गुम्बदो को फैलाया और मेरे छिद्र पर थूक गिरा दिया. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो क्या कर रहा है. मुझे होश जब आया जब मुझे अपने नितंब के छिद्र पर कुछ मोटी सी चीज़ महसूस हुई. उस मोटी सी चीज़ ने मेरे छिद्र के आस पास के बहुत बड़े एरिया को घेर लिया था.

"य...य...तो वो है." मुझे ख्याल आया और मैं छटपटाने लगी.

"हटो पीछे...तुमने तो हद कर दी है आज." मैने पीछे गर्दन घुमा कर कहा.

मेरे छटपटाने से उसका लिंग मेरे छिद्र से हट गया था और अब मेरे नितंबो के ठीक उपर मेरी आँखो के सामने झूल रहा था.

"ओह माइ गॉड ये क्या है?"

"लंड है और क्या है...गगन का नही देखती क्या?"चाचा का लिंग गगन के लिंग से दोगुना लंबा था और मोटाई भी उस से काफ़ी ज़्यादा थी. मैने कभी सपने में भी नही सोचा था कि लिंग इतना भीमकाय भी हो सकता है. लिंग का सूपड़ा पूरे लिंग के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा ही मोटा था. लिंग के नीचे देहाती के अंडकोष भी बड़े थे जो कि घने काले बालों में छुपे थे.

"इतना बड़ा कैसे हो सकता है तुम्हारा."

"तुम्हारी आँखो के सामने है…च्छू कर देख लो….हाहहाहा" चाचा बेशर्मी से हँसने लगा.

"शट अप. तुम क्या करने जा रहे थे."

"कुछ नही इतनी सुंदर गान्ड है तुम्हारी. मेरे इस बेचारे लंड को दर्शन करवा रहा था. इसने आज तक ऐसी गान्ड नही देखी."

मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया. किसी ने भी आज तक मुझे ऐसी बात नही बोली थी.

"देखो बहुत हो गया. हटो अब. मेरे पाओं का दर्द जा चुका है."

"थोड़ी देर और रुक जाओ. बस थोड़ी सी मालिश बाकी है तुम्हारी."

"मुझे और मालिश नही करवानी."

"नही ये ज़रूरी है. दर्द फिर से आ गया तो."

"आ जाने दो. देखा जाएगा. मैं खूब समझ रही हूँ तुम क्या करना चाहते हो. वो मैं नही होने दूँगी."

"पता है मुझे. गगन की बीवी के साथ मैं भी ऐसा कुछ नही करूँगा. यकीन करो मैं ये अंदर नही डालूँगा."

"तुम्हारा कोई भरोसा नही है तुमने रख तो दिया था ना मेरे वहाँ अभी."

"वो बस इसे एक बार तुम्हारी खूबसूरती का अहसास दिलाना चाहता था."

"खूब समझती हूँ मैं तुम्हारे इरादे."

"मैं हाथ से अपना काम कर लूँगा. बाहर रहने दो इसे."

"नही...."

"अगर दुबारा मैं इसे तुम्हारे छेद पर रखूं तो तुम तुरंत मुझे हटा देना. मैं हट जाउन्गा."

चाचा ने दोनो उंगलियाँ वापिस मेरे नितंब के छिद्र में डाल दी और अपने बायें हाथ से अपने मोटे लिंग को हिलाने लगा. चाचा कुछ इस तरह से मेरी तरफ देख रहा था कि मैने शरम से अपनी नज़रे घुमा ली. मैने वापिस अपना सर घुमा कर बिस्तर पर टिका दिया. मेरे नितंब के छिद्र में घूम रही चाचा की उंगलियाँ फिर से मुझे कुछ मजबूर सा कर रही थी और मैं खोती जा रही थी. तुरंत एक और ऑर्गॅज़म ने मुझे घेर लिया और मैं ज़ोर से चील्ला कर झाड़ गयी.
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12-18-2018, 02:00 PM,
#26
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
कोई आधा घंटा ये सब चलता रहा. मुझे उसके हाफने की भी आवाज़े आ रही थी.

अचानक मेरा मोबाइल बज उठा. मैं उठना नही चाहती थी पर फोन गगन का था इसलिए उठना पड़ा.

"ह...हेलो."

"क्या हुआ निधि."

"क...क..कुछ नही."

"मोच ठीक हुई कि नही."

"हां हो गयी."

इधर मैं बातों में लगी थी उधर चाचा ने मेरे छिद्र से उंगलिया निकाल ली थी और मेरे नितंब को अपने बायें हाथ से चोडा कर रखा था. बस सुकून ये था कि उसने वो मेरे वहाँ नही रखा था.

"तुम्हे बेल नही सुनाई दी क्या कब से बजा रहा हूँ. दरवाजा खोलो. मैं बाहर खड़ा हूँ बारिश में."

"क...क...क्या तुम बाहर खड़े हो."

तभी मुझे अपने पीछले छिद्र पर पानी की तेज धार सी महसूस हुई. चाचा ने ढेर सारा वीर्य मेरे छिद्र पर गिरा दिया था. दो उंगिलयों के अंदर बाहर होने से मेरा छिद्र खुला हुआ था इसलिया काफ़ी मात्रा में चाचा का गरम गरम वीर्य मेरे पीछले छिद्र में चला गया. गरम गरम वीर्य मेरे अंदर रिस्ता हुआ मुझे महसूस हो रहा था. मैं शरम और ग्लानि से चकना चूर होती जा रही थी. ऐसा नही होना चाहिए था पर हो गया था.

मैने तुरंत फोन काट दिया और बोली, "गगन आ गया है हटो जल्दी."

चाचा बुरी तरह हांप रहा था. वो तुरंत मेरे उपर से हट गया. मगर हटते हटते उसने मेरे दायें गुंबद पर ज़ोर से चाँटा मारा.

"आउच...ये क्या बदतमीज़ी है." मैं चिल्लाई.

"मज़ा आ गया कसम से हहेहहे." वो हंसता हुआ बाहर चला गया.

मैने फुर्ती से अपनी पॅंटीस और सलवार उपर चढ़ाई और अपने बाल ठीक करके मुख्य द्वार की और दौड़ी.

"इतना टाइम क्यों लगाया तुमने." गगन गुस्से में था.

"सॉरी मैं सो गयी थी. कपड़े उलस पुलस हो रखे थे. चाचा घर में हैं कपड़े ठीक करके ही बाहर आई हूँ"

"ह्म्म… चाचा जी ने भी बेल की आवाज़ नही सुनी."

"वो भी शायद सो रहे हैं. और बारिश के शोर में कुछ सुनाई भी तो नही दे रहा."

"हां ये भी है. पर देखा चाचा जी ने ठीक कर दी ना तुम्हारी मोच."

चाचा का वीर्य जो मेरे छिद्र से बाहर रह गया था वो टपकता हुआ मेरी जाँघो तक आ गया था. मुझे बहुत अनकंफर्टबल फील हो रहा था. मेरा सारा ध्यान टपकते वीर्य पर ही था. इसलिए गगन ने क्या कहा मुझे सुना ही नही.

"अरे कहाँ खो गयी." गगन ने मुझे कंधे से झकज़ोर कर कहा.

"वो सो कर उठी हूँ ना इसलिए."

"मैं कह रहा था कि देखा चाचा जी ने मोच उतार दी ना."

"हां उतार तो दी पर....."

"पर क्या." अब मैं कैसे कहती कि चाचा ने मोच के बहाने मेरे साथ क्या किया.

कैसे बताती गगन को कि चाचा ने अपना वीर्य मेरे नितंब में डाल दिया है.

नही बता सकती थी. धीरे धीरे मुझे होश आ रहा था और मैं शरम और ग्लानि से मरी जा रही थी. मुझे चाचा का वीर्य अभी तक मेरे अंदर महसूस हो रहा था और मैं मन ही मन उसे बहुत गलिया दे रही थी.

"पर क्या निधि"

"कुछ नही आओ तुम्हे गरमा गरम चाइ बना कर देती हूँ." मैने बात को टालने की कॉसिश की.मैने गगन को ड्रॉयिंग रूम में ही बैठा दिया क्योंकि बेडरूम में बिस्तर की हालत ठीक नही थी. बिस्तरार की चद्दर बुरी तरह बीखरी हुई थी जैसे की उस पर कब्बड्डी हुई हो. चद्दर का बड़ा हिस्सा मेरी योनि के रस से भीगा हुआ था. बेडरूम में चाचा के वीर्य की स्मेल भी फैली हुई थी क्योंकि शायद वीर्य की कुछ बूंदे कमिने ने चद्दर पर भी गिरा दी थी. ऐसे में गगन को बेडरूम में ले जाना ठीक नही था. वो वैसे ही दरवाजा देरी से खोलने को लेकर सवाल जवाब कर रहे थे. इस सब उधेड़बुन में मुझे टाय्लेट जाकर चाचा द्वारा मेरे उपर गिराई गयी गंदगी को सॉफ करने का मोका ही नही मिला. मैं अपने अंदर और बाहर देहाती का वीर्य लिए घूम रही थी. वैसे तो मैं चाइ बना रही थी किचन में मगर मैं बार बार किचन से बाहर आकर देख रही थी कि कही गगन बेडरूम में ना चला जाए. बेडरूम में कॅमरा भी लगा था. उसे लेकर भी मैं बहुत परेशान थी. कॅमरा मैने चाचा का पर्दाफाश करने के लिए लगाया था. मगर अब मैं रेकॉर्डेड क्लिप गगन को नही दिखा सकती थी. उसमे मेरी सिसकियाँ भी रेकॉर्ड हो गयी थी और मेरी वो चीन्खे भी रेकॉर्ड हो गयी थी जो कि मैं हर चरम के वक्त करती थी.

क्रमशः………………………
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12-18-2018, 02:00 PM,
#27
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-11

गतान्क से आगे……………………

मैं गगन के लिए चाइ लेकर आई तो चाचा भी अंगड़ाई लेता हुआ अपने कमरे से बाहर आ गया.

"अरे गगन बेटा तुम आ गये, निधि बेटी एक कप चाइ मेरे लिए भी लेती आओ."

"अभी लाती हूँ." मैं चाचा को गुस्से में घुरती हुई वापिस किचन में चली गयी. मैने चाइ गॅस पर रखी और तुरंत बेडरूम में जाकर सबसे पहले बिस्तर की बेडशीट बदली. उसके बाद मैने कॅमरा से रेकॉर्डेड क्लिप डेलीट की. अपने नितंब की सफाई करने का टाइम मेरे पास नही था. ये सब काम करके मैं वापिस किचन में आई तो चाइ उबल रही थी. मैने चाइ कप में डाली और चाइ लेकर ड्रॉयिंग रूम की तरफ चल दी.

"चाचा जी आपने भी बेल नही सुनी...इतनी गहरी नींद आ गयी थी क्या आपको."

"वो बेटा निधि को मोच उतारते उतारते बहुत थक गया था मैं. नसे बहुत बुरी तरह एक दूसरे पर चढ़ि थी."

"चाचा जी चाइ." मैने उनकी बातों को काटते हुए कहा.

"दुधो नहाओ पुतो फलो" चाचा ने चाइ का कप लेते हुए कहा. उसकी नज़रे मेरी नज़रों पर गाड़ी थी. अजीब सी बेसरमी थी उसकी आँखो में. मुझे अपने नज़रे झुकाने पर मजबूर कर दिया था उसकी नज़रो ने.

"चाचा जी जो भी हो...मान गये आपको. आपने मोच उतार ही दी. वैसे कैसे उतारते हैं आप मोच...मुझे भी सिखा दीजिए...दुबारा कभी ज़रूरत पड़ी तो मैं मोच उतार दूँगा निधि की."

"निधि को सब सीखा दिया है मैने. तुम इस से पुछो...."

"हां तो निधि बताओ क्या सीखा तुमने?"

"म...म...मैने कुछ नही सीखा. म...मेरा मतलब मैं सब भूल गयी." मैं विचलित हो गयी.

"भूल गयी. कोई बात नही कल फिर से सीखा दूँगा तुम्हे. गरम पानी तो याद है ना तुम्हे. बताओ कहाँ डाला था मैने."

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गये. मेरा पिछले छिद्र अपने आप सिकुड़ने फूलने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो मुझे वहाँ चाचा के वीर्य के होने का अहसास दिला रहा हो. मुझसे कुछ बोले नही बन रहा था.

"गरम पानी मैं कुछ समझा नही." गगन ने आश्चर्या भाव में पुछा.

"बताउन्गा पहले निधि को जवाब देने दो. कहाँ डाला था गरम पानी मैने निधि बेटी."

मैं शरम से पानी पानी हो रही थी क्योंकि वो गरम पानी अभी भी मेरे नितंब के अंदर था. चाचा जानबूझ कर ऐसी बाते कर रहा था. मुझे गुस्सा आने लगा था. मैने बात को संभालते हुए कहा, "ओह हां पाओं पर टखने के पास ही तो डाला था आपने पानी."

"ह्म्म..तुम्हे तो सब याद है. शाबाश." चाचा ने कहा.

"चाचा जी मुझे भी तो कुछ बतायें."

"वो दरअसल मोच उतारने के बाद थोड़ा गरम निधि की नसों पर डाला था. उस से आराम बना रहेगा. क्यों निधि बेटी आराम है कि नही."

"जी हां है." मैं बोल कर तुरंत वहाँ से खिसक ली.

मैं बेडरूम में घुसी ही थी कि गगन भी मेरे पीछे पीछे बेडरूम में आ गये और मुझे बाहों में भर लिया.

"तुम्हारे लिए ऑफीस से जल्दी आया हूँ. इस बारिस ने आग लगा रखी है तन बदन में.

आओ कुछ हो जाए."

"क्या हुआ आज तुम्हे...ये बारिस का असर है या कुछ और."

"तुम बहुत प्यारी लग रही हो."

गगन ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे उपर लेट गये. उन्होने मेरे होंटो को चूमना शुरू कर दिया. कब मेरा नाडा खुला और कब उनका लिंग मुझ में समा गया पता ही नही चला. हमेशा की तरह गगन ने संभोग का असीम आनंद दिया मुझे. उनके हर धक्के पर मेरी सिसकियाँ निकल रही थी. मैं 4 बार झड़ी गगन के साथ. गगन ने अपने चरम पर पहुँच कर मेरी योनि को अपने वीर्य से लबालब भर दिया. कुछ देर हम यू ही पड़े रहे. लेकिन मुझे किचन में खाना भी बनाना था. इसलिए मैं गगन को निर्वस्त्र ही छोड़ कर बाहर आ गयी. जब मैं किचन में जा रही थी तब मुझे अचानक ये ख्याल आया की उस वक्त मेरे अगले पिछले दोनो छिद्रो में वीर्य है. आगे मेरे पति का वीर्य है और पीछे कमिने देहाती का वीर्य. मैने तुरंत नहाने का फ़ैसला किया और बाथरूम में घुस गयी.

चाचा को सनडे को गाओं वापिस जाना था. सॅटर्डे को हॉस्पिटल में चेक अप करवाकर वो जाने की बात कर रहा था. पर गगन ने उसे एक दिन और रुकने को मना लिया. अभी बुधवार चल रहा था. पूरे 3 दिन बाकी थे अभी चाचा की रवानगी में. मैं गगन की अनुपस्थिति में उसके साथ नही रहना चाहती थी. इसलिए मैने रात को ज़िद करके गगन को 3 दिन की छुट्टी लेने के लिए मना लिया. गगन ने ये बात बड़े खुस हो कर चाचा को बताई.

"चाचा जी मैं घर पर ही रहूँगा तीन दिन. आपको ज़्यादा वक्त नही दे पाया था काम के कारण. लेकिन अब आपको शिकायत नही रहेगी."

चाचा का चेहरा ये सुन कर लटक गया था. मैं चुपचाप खड़ी मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

जब गगन बेडरूम में थे तो मोका देख कर चाचा चुपचाप किचन में आया और धीरे से बोला, "तुमने रोका है ना गगन को घर पर."

"जी हां मैने सोचा उनको टाइम ही नही मिलता आपसे ज़्यादा बात करने का. इसलिए उन्हे तीन दिन की छुट्टी लेने को कहा."

"मेरा मज़ा खराब होगा तो तुम्हारा कॉन सा बच जाएगा. मज़ा तो तुम भी लेती हो ना मेरे साथ."

"ज़्यादा बकवास मत करो और मुझे खाना बनाने दो." मैने कठोरता से कहा.

चाचा अपना सा मूह लेकर चला गया. उसकी हालत देखने वाली थी. अब मैं घर में जानबूझ कर चाचा को जलाने के लिए मटक मटक कर घूम रही थी. चाचा घूर घूर कर मुझे देखता था मगर कुछ कर नही पाता था. मुझे उसे इस तरह से सताना अच्छा लग रहा था. उसकी हालत देखते ही बनती थी.

वो ड्रॉयिंग में बैठा होता था तो मैं जानबूझ कर अपनी कमर लचकाती हुई उसके सामने से निकलती थी. बेचारा बस आह भर कर रह जाता था.

तीन दिन यू ही बीत गये. सॅटर्डे को हॉस्पिटल से आकर चाचा ने गगन से कहा,

"बेटा कल सुबह 11 बजे की ट्रेन है. मन तो नही कर रहा यहाँ से जाने का पर जाना ही पड़ेगा."

मैं भी उस वक्त ड्रॉयिंग रूम में गगन के साथ ही बैठी थी.

"कोई बात नही चाचा जी. जब भी मोका लगे दुबारा ज़रूर आना यहाँ. ये आपका ही घर है."

"गाओं से निकलने का वक्त ही नही मिलता बेटा. खेती बाड़ी में ही उलझा रहता हूँ.

तुम दोनो आओ कभी गाओं. निधि बेटी को भी गाओं दीखाओ...अच्छा लगेगा इसे."

"ज़रूर चाचा जी. कभी मोका मिला तो ज़रूर आएँगे." गगन ने कहा.

"अच्छा मैं थोड़ा आराम कर लेता हूँ. बहुत थक गया आज मैं." बोल कर चाचा अपने रूम में चला गया.

शाम को जब मैं किचन में खाना बना रही थी तो चाचा मोका देख कर किचन में आया और धीरे से बोला, "मन कर रहा है तुझे छुने का. पर चलो कोई बात नही. खुस रहना हमेशा."

मैं चुपचाप रोटिया सेकने में लगी रही. मैने बदले में कुछ नही कहा. कुछ कहने की ज़रूरत भी नही थी.

रात को डिन्नर के बाद मैं किचन के काम ख़तम करके बेडरूम में घुसी तो गगन खर्राटे ले रहे थे. आज वो कुछ ज़्यादा ही जल्दी सो गये थे जबकि अभी सिर्फ़ 11 ही बजे थे. मैं भी सोने के लिए लेट गयी. पर मेरी आँखो से नींद गायब थी. मैं बार बार करवट बदल रही थी. मेरे शरीर में अजीब सी बेचैनी हो रही थी. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है. 11 से 12 बज गये पर मेरी आँख नही लगी. गगन मज़े से सोए पड़े थे. अचानक मुझे टाय्लेट का प्रेशर महसूस हुआ तो मैं धीरे से उठ कर बेडरूम से बाहर आ गयी. टाय्लेट की तरफ जाते वक्त मैं अचानक चोंक कर रुक गयी. ड्रॉयिंग रूम में अंधेरे में सोफे पर चाचा बैठा था. उसे देखते ही मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा. मैं वापिस बेडरूम में चले जाना चाहती थी. मगर मन के एक कोने से आवाज़ आई, "जाते जाते एक मोका दे दो बेचारे को खुद को छुने को." और मेरे कदम टाय्लेट की तरफ बढ़ते चले गये.

चलते चलते मेरे पाओं डगमगा रहे थे. टाय्लेट में घुसते ही मैने दरवाजा अंदर से अच्छे से बंद कर लिया. "मैं कोई मोका नही दूँगी इस देहाती को. आइ हेट हिम." मैने खुद से कहा.

मैं खुद को रिलीव करके टाय्लेट से बाहर निकली तो चाचा टाय्लेट के दरवाजे के पास ही खड़ा था. उसे अपने इतना करीब देख कर मैं घबरा गयी. उसके इरादे ठीक नही लग रहे थे. मैं बिना कुछ कहे अपने कमरे की तरफ चल दी.

मगर चाचा ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया.

"थोड़ी देर रुक जा."

"छोड़ो मेरा हाथ वरना मैं चिल्ला कर गगन को बुला लूँगी."

"पागल मत बनो. चलो थोड़ी देर बाते करते हैं बैठ कर."

"मुझे तुमसे कोई बात नही करनी छोड़ो मेरा हाथ."

"रुक जाओ ना. इतने नखरे भी ठीक नही."

"बेशरम हो तुम एक नंबर के. छोड़ो मेरा हाथ वरना मैं चिल्लाउन्गि."

"तुम नही चिल्लाओगी मुझे पता है. सब नाटक है तुम्हारे." चाचा ने मेरे हाथ को ज़ोर का झटका देते हुए कहा. अगले ही पल मैं उसकी बाहों में थी और आज़ाद होने के लिए छटपटा रही थी.

"छोड़ दो मुझे. मैं गगन को बुला लूँगी तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी तुम्हारी."

"कल मैं जा रहा हूँ निधि. कल से तुम्हे परेशान नही करूँगा. तुमने गगन को घर पर रोक कर पहले ही मुझ पर बहुत सितम ढा लिए हैं. अब और मत सताओ.

मैं तड़प रहा हूँ तुम्हारे लिए. मैं विनती करता हूँ तुमसे, बस आखरी बार थोड़ा सा मज़ा ले लेने दे. बस थोड़ी सी देर रुक जाओ."

"किस हक़ से रोक रहे हो तुम मुझे. तुम्हारा कोई हक़ नही है मुझ पर.

""आशिक़ हूँ मैं तुम्हारा. दीवाना हूँ तुम्हारा. तुम्हे देखते ही लट्टु हो गया था तुम पर. तुम्हारे जैसी सुंदर लड़की मैने आज तक नही देखी."
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12-18-2018, 02:07 PM,
#28
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
"इतनी ही प्यास है तुम्हे तो शादी क्यों नही कर लेते. क्यों दूसरों की बीवियों पर नज़र रखते हो."

"शादी हो नही पाई कभी. दो लड़कियों से बात चली थी पर वो शादी से पहले ही भगवान को प्यारी हो गयी."

"क्यों क्या हुआ ऐसा."

"एक को साँप ने काट लिया और एक के उपर बिजली गिर गयी. उसके बाद कोई रिश्ता ही नही लाया मेरे घर. लोग मुझे मनहूस समझने लगे."

"फिर भी तुमने कुछ लड़कियाँ तो फँसाई होंगी. उनमे से किसी से शादी कर लेते."

"तुम्हे कैसे पता मैने लड़किया फँसाई. तुमने मेरी डाइयरी पढ़ी क्या?"

"न...नही मैने कोई डाइयरी नही पढ़ी."

"झूठ क्यों बोलती हो. पढ़ी है तुमने मान लो."

"पहले तुम मुझे छोड़ो."

"थोड़ी देर मेरी बाहों में रहो ना...बस थोड़ा सा ही तो वक्त है मेरे पास. जल्दी सुबह हो जाएगी और मैं चला जाउन्गा. बोलो पढ़ी थी ना तुमने मेरी डाइयरी." चाचा ने मुझे अपने सीने से और ज़्यादा कसते हुए कहा.

"हां पढ़ी थी...बहुत ही गंदी गंदी बाते लिखी है उसमे आपने."

"जो हुआ वो लिख दिया."

"तो आप अपनी भाबी के पास जाओ ना. क्यों मुझे परेशान करते हो."

"भाभी अब नही देती. वैसे भी वो 4 बच्चो की मा बन चुकी है और सेक्स में रूचि नही लेती. उसने चूत देनी बिल्कुल बंद कर दी है."

"मेरे सामने गंदी भाषा मत बोलो. और छोड़ो मुझे नही तो चिल्लाउन्गि मैं अब सच में."

चाचा ने मेरी बात की परवाह ना करते हुए अपने दोनो हाथो से मेरे दायें बायें दोनो नितंबों को थाम लिया और उन्हे कुचलने लगा.

"थोड़ी देर ये मस्त गान्ड तो मसल लेने दे."

"तुम मेरे साथ ज़बरदस्ती करते आए हो. हट जाओ तुरंत नही तो गगन को आवाज़ दे कर बुला लूँगी अभी."

"पागल मत बन छोरि. ले लेने दे मुझे मज़ा थोड़ी देर. बरसो बाद मुझे ये सुख नसीब हुआ है. तुझे पता है 2 साल से मुझे कोई नही मिली."

"कोयल का क्या हुआ. उसका भी तो जिकर था डाइयरी में."

"कोयल की तो बस उसी दिन खेत में मारी थी. मस्त गान्ड थी साली की. मगर बाद में उसने दी ही नही."

"क्यों ऐसा क्या हो गया था?" पता नही क्यों मैं उसके साथ बाते कर रही थी. वो बेशर्मी से मेरे नितंब के दोनो गुम्बदो को मसल रहा था और गंदी गंदी बाते बोल रहा था. फिर भी मैं उसके साथ बाते कर रही थी. पता नही मुझे क्या हो रहा था.

क्रमशः………………………
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12-18-2018, 02:07 PM,
#29
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-12

गतान्क से आगे……………………

"मैने बहुत कोशिश की उसे पटाने की मगर वो नही मानी. बोली की तुम्हारा लंड बहुत बड़ा है. मैं इसे दुबारा अपनी गान्ड में नही ले सकती."

"झूठ ऐसा बोल ही नही सकती कोई लड़की."

"तेरी कसम उसने ऐसा ही बोला था. वो छोटा लंड लेकर ही खुस थी. बड़े लंड का दर्द सहने की उसमे हिम्मत नही थी. मगर जो भी हो साली की गान्ड बहुत मस्त थी."

"एक बात पूछूँ."

"हां बोलो."

"क्या मेरी ये सच में बहुत सुंदर है." मैं ना जाने क्यों ऐसा बोल गयी. बाद में बहुत पछ्तायि मैं.

"मेरी ये क्या...मैं कुछ समझा नही."

समझ में नही आ रहा था कि क्या बोलूं अब.

"तुम जिसके साथ खेल रहे हो उसकी बात कर रही हूँ."

"मैं तो तुम्हारे साथ खेल रहा हूँ. पता नही क्या कहना चाहती हो."

"अरे नितंब की बात कर रही हूँ."

"वो क्या होता है."

"छोड़ो मुझे तुम. बहुत हो गया."

"अरे रूको ना निधि. गुस्सा क्यों होती हो. बताओ ना नितंब क्या होता है."

"ग...गान्ड की बात कर रही थी मैं."

"ओह...इतनी घुमा फिरा कर बात क्यों की तुमने. सॉफ सॉफ पुछ्ती ना कि मेरी गान्ड कैसी है."

मैं शरम से पानी पानी हो गयी.

"निधि तुम्हारी गान्ड की तारीफ़ में जितना कहा जाए उतना कम है. इतनी चिकनी और चमकदार गान्ड मैने आज तक नही देखी. गान्ड के दोनो हिस्से बड़ी मुस्तैदी से एक दूसरे से चिपके रहते हैं. गान्ड के छेद तक पहुँचने का मोका ही नही देते. बहुत प्यारी गान्ड है तुम्हारी. एक बात पूछूँ."

"पहले मुझे छोड़ दो तुम. बहुत हो गया." मैने चाचा की बाहों में छटपटाते हुए कहा.

"क्यों क्या तुम्हे अच्छा नही लग रहा. थोड़ी सलवार नीचे कर लो तो ज़्यादा मज़ा आएगा."

"पागल हो गये हैं आप. गगन अंदर सो रहा है."

"थोड़ी देर की तो बात है. कॉन सा सारी रात हम ये सब करेंगे. मुझ पर तरस खाओ. गाओं वापिस जाकर फिर से तन्हाई ही तन्हाई है मेरे लिए. तुम्हारे सिवा कोई नही मेरे पास अपनी कामुक प्यास बुझाने के लिए."

"क्या तुम्हे पूरी दुनिया में मैं ही मिली थी. किसी और को ढूंड लो. मैं अपने पति के साथ बेहद खुस हूँ."

"तुम खुस रहो गगन के साथ यही दुआ है मेरी. भगवान तुम दोनो की जोड़ी

बनाए रखे. बस मुझ पर तरस खा कर थोड़ी देर आज मुझे अपने नारी योवन का मज़ा ले लेने दे. कल तो मैं जा ही रहा हूँ. तुम्हे बिल्कुल परेशान नही करूँगा कल से. आज बस आखरी बार मुझे थोड़ा सा मज़ा ले लेने दे."

"बाते बनाने में तो माहिर हो तुम. तुम ज़बरदस्ती बहुत मज़े ले चुके हो मेरे साथ. मुझे तुमसे नफ़रत है देहाती." मैं उसे उसकी औकात दिखा रही थी.

"कोई बात नही पर बस आखरी बार मुझे अपनी मस्त जवानी के मज़े लूट लेने दे."

"देखो कैसे गिद्गिडा रहे हो आज. क्योंकि गगन घर हैं नही तो तुम अपनी मन मानी करते थे. अब करके दीखाओ मन मानी."

"उस सब के लिए मुझे माफ़ कर दे बेटी."

"बेटी मत बोलो मुझे. एक तरफ मेरे नितंब मसल रहे हो दूसरी तरफ बेटी बोलते हो. शरम आनी चाहिए मुझे."

"तू कुछ भी बोल बस आज आखरी बार मुझे थोड़ा सा मज़ा ले लेने दे. चल ये कमीज़ उतार दे."

" कमीज़ उतार दूं. पागल हो क्या."

"उतार दे ना मेरे लिए." चाचा ने मुझे बाहों से आज़ाद करके मेरी कमीज़ को कस के पकड़ लिया. मैं उसे छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर वो मान ही नही रहा था.

"देखो ज़बरदस्ती करोगे तो गगन को आवाज़ लगा दूँगी अभी."

"उतारने दे ना निधि. मत तडपा मुझे इतना." चाचा ने फिर ज़ोर आज़माइश करके मेरी कमीज़ उतार दी. मैं अब सिर्फ़ ब्रा और सलवार में थी. शूकर है ड्रॉयिंग रूम

में अंधेरा था वरना तो मैं शरम से मर जाती.

चाचा ने मुझे दीवार से सटा दिया.

"अगर गगन आ गया तो आपकी खैर नही."

"बार बार धमकी दे रही हो बुलाओ ना उसे." चाचा ने मेरे दोनो उभारों को ज़ोर से दबाते हुए कहा. मेरी चीन्ख निकलते निकलते बची.

"इतनी ज़ोर से क्यों दबाया."

"इनको ज़ोर से ही दबाया जाता है मेरी रानी. चल ये ब्रा भी उतार दे."

"नहियीईई...." मगर मेरी ब्रा उतर चुकी थी.

"चल मेरे कमरे में चलते हैं. आराम से बिस्तर पर मज़े करेंगे."

"नही मैं कही नही जाउन्गि. वैसे भी रात बहुत हो चुकी है तुम अब सो जाओ. मुझे भी नींद आ रही है."

चाचा जैसे मेरी बात सुन ही नही रहा था. वो तो मेरे नंगे उभारों से खेलने में लगा हुआ था. वो तरह तरह से मेरे नाज़ुक उभारों को दबा रहा था. उसकी इन हरकतों के कारण मेरे निपल्स तन कर हार्ड हो गये थे. जब उसने अपना मूह मेरे दायें उभार की तरफ बढ़ाया तो मैने उसे रोक दिया "नही अपना गंदा मूह मत लगाना इन पर. ये सिर्फ़ गगन के लिए हैं. च्छुने को मिल रहा है उतना क्या काफ़ी नही है तुम्हारे लिए. बेवकूफ़ देहाती." मुझे उसके हाथों की च्छेड़छाड़ ही तो ज़्यादा पसंद थी. इस से ज़्यादा मैं करना चाहती थी. मगर देहाती कुछ और ही इरादे रखता था. उसने मेरे दोनो हाथ कस कर पकड़ लिए और मेरी दाईं उभार को मूह में ले लिया. मैं काँप उठी. पहली बार गगन के सिवा कोई और मेरे उभार चूस रहा था.

"हट जाओ.... अब तुम हद से ज़्यादा कर रहे हो...अपनी औकात में रहो. तुम नही रुके तो मैं सच में गगन को बुला लूँगी."

मगर चाचा नही रुका और ज़ोर शोर से मेरे दोनो नंगे उभारों को चूस्ता रहा.

कब मेरी सिसकियाँ छूटने लगी मुझे पता ही नही चला.

"श्ह्ह धीरे आवाज़ करो गगन उठ जाएगा." चाचा ने मेरे दायें उभार के निप्पल को मूह से निकाल कर कहा. अब मेरे हाथ आज़ाद थे मगर फिर भी मैं चाचा को नही हटा पा रही थी. चाचा एक उभार को हाथ से दबाता था और दूसरे को चूस्ता था. मैं मदहोश होती जा रही थी. इसका असर मेरी योनि पर भी हो रहा था जो की उत्तेजित हो कर पानी में तरबतर हो गयी थी. मेरे एक मन को ये सब पसंद आ रहा था और दूसरे मन को शर्मिंदगी और ग्लानि हो रही थी. मैं चाचा को धकेक कर अपने बेडरूम में भाग जाना चाहती थी पर मेरे हाथ पाओं काम ही नही कर रहे थे. मैं बेहोश सी हो गयी थी. मुझे होश तब आया जब मुझे अपनी सलवार के नाडे पर चाचा के हाथ महसूस हुए.

"नही रूको...."

उतारने दे ना. तेरी चूत और गान्ड भी चाट लेने दे थोड़ी सी."

"तुम पागल हो गये हो क्या देहाती. पास वाले कमरे में मेरा पति शो रहा है और तुम मेरे कपड़े उतार रहे हो."

"चल फिर मेरे कमरे में चलते हैं."

"नही...मैं वहाँ नही जाउन्गि."

"उतार ले ना सलवार भी. बस थोड़ी सी देर की बात है."

मरी तो मैं भी जा रही थी. मेरे नितंब और योनि उसके हाथो की छुअन के लिए तरस रहे थे. पर ड्रॉयिंग रूम में सलवार उतारना मुझे अजीब लग रहा था.

"सलवार के उपर से ही कर लो जो करना है."

"सलवार के उपर से उंगली कैसे डालूँगा तेरी चूत में." चाचा ने एक झटके में नाडा खोल दिया. सलवार फर्श पर गिर गयी. चाचा ने नीचे बैठ कर मेरी सलवार मेरी टाँगो से आज़ाद कर दी. अब मैं सिर्फ़ पॅंटीस में थी. चाचा बैठे बाते ही मेरी जाँघो को चूमने लगा. मैने चाचा के सर पर ज़ोर से थप्पड़ मारा "उठो ये क्या कर रहे हो. मैने इजाज़त दी क्या ये करने की. तुम देहाती भी ना उल्लू होते हो एक नंबर के.

"कुछ भी बोल पर मुझे आज मज़े करवा दे."

"गगन आ गया ना तो तुम्हारे मज़े लग जाएँगे."

"उसकी बात मत कर अब." चाचा ने मेरी पॅंटीस में हाथ डाल दिया और मेरी योनि पर हाथ फिराने लगा. एक हाथ से वो मेरी पॅंटीस को नीचे सरकाने लगा तो मैं गिड़गिडाई, "कम से कम ये तो रहने दो. इसे उतारने की क्या ज़रूरत है."
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12-18-2018, 02:07 PM,
#30
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
"मुझे ख़ुसी मिल जाएगी और कुछ नही. पूरी नंगी लड़की के साथ जो मज़ा है वो कही नही." मेरी पॅंटीस भी मेरे शरीर से अलग हो गयी. अब मैं थर थर काँप रही थी. मुझे डर लगने लगा था. ड्रॉयिंग रूम में मैं पूरी नंगी चाचा के हाथो का खिलोना बन रही थी. मेरे मन के किसी कोने में शायद बस अपने नितंब और योनि को मसलवाने की इच्छा थी. वो भी कपड़े पहने हुए. थोड़ा सा सरका कर चाचा अपनी उंगलियाँ अंदर डाल देता तो बात बन जाती. बस इतनी ही इच्छा थी बस इतनी ही तड़प थी जिसे लेकर मैं अपने बेडरूम में करवट बदल रही थी. चाचा कल जा रहा था बस आखरी बार उसके हाथो में अपनी योनि और नितंब सौंप देना चाहती थी. पर अब बात कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी थी. मैं सोच में डूबी पड़ी थी. अचानक मैं सिहर उठी. मेरा ध्यान टूट गया. चाचा ने मेरी योनि में एक साथ 2 उंगलियाँ डाल दी थी.

"बहुत चिकनी हो रखी है चूत तुम्हारी उंगलिया बड़ी जल्दी ले ली इसने अंदर."

मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया ये सुन कर. चाचा ने ज़ोर ज़ोर से मेरी योनि के छिद्र को रगड़ना शुरू कर दिया.

"आअहह धीरे आअहह."

"वो तो ठीक है. तू अपनी आवाज़ नीची रख. मेरी बात मान चल मेरे कमरे में आराम से कुण्डी लगा कर मज़े करेंगे."

"नही मैं वहाँ नही जाउन्गि." कमरे में चाचा कुछ भी करता तो मैं रोक ना पाती क्योंकि उस बंद कमरे से बाहर आवाज़ भी नही आती थी. इसीलये मैं वहाँ नही जा रही थी.

चाचा कुछ देर मेरी योनि को ही घिसता रहा. इस दौरान मैं 2 बार झाड़ चुकी थी. अचानक उसने मेरी योनि से उंगलियाँ निकाल ली और मुझे उल्टा घुमा दिया. अब मेरी पीठ चाचा की तरफ थी.

चाचा ने ज़ोर से थप्पड़ मारा मेरे नितंब पर और बोला, "अब तेरी गान्ड की बारी है."

चाचा ने दोनो हाथो से मेरे नितंब की गोलैईयों को कुचलना शुरू कर दिया.

मैं आनंद के सागर में डूबती चली गयी. कुछ देर वो यू ही कुचलता रहा फिर रुक गया. उसने दो उंगलियाँ मेरे नितंब की दरार में घुसा दी और मेरे गुदा द्वार को खोजने लगी. पहले चाचा ने एक उंगली घुसाई फिर थोड़ी देर बाद दूसरी भी घुसा दी. और चाचा की उंगलियों के द्वारा मेरा नितंब मैथुन शुरू हो गया. मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लग गयी. मेरी योनि फिर से एक बार झाड़ गयी. मेरी इच्छा की तृप्ति हो चुकी थी. अचानक चाचा ने मेरे नितंब से उंगलियाँ निकाल ली और मेरी पीठ से सॅट गया. मैं काँपने लगी...क्योंकि उसने अपना लिंग बाहर निकाल रखा था और वो उसे मेरे नितंब की दरार में घुसाने की कोशिश कर रहा था.

"हटो बस बहुत हो गया. अब मैं जा रही हूँ."

"डलवा ले ना एक बार. 2 साल से भूका प्यासा है मेरा लंड."

"किसी और को पटाओ. मैं ये सब नही कर सकती हटो."

"थोड़ा से डाल लेने दे. मेरे प्यासे लंड को शुकून मिल जाएगा." चाचा ने मेरे नितंब की दरार पर अपना लिंग रगड़ते हुए कहा. उसके इस तरह रगड्ने से मेरी दरार गीली हो गयी क्योंकि चाचा के लिंग से लार निकल रही थी. मैने उसे हटाना चाहती थी पर उसने एक हाथ से मुझे दीवार से सटा रखा था.

"हटो." मैं चिल्लाई

चाचा तुरंत हट गया क्योंकि मैं ज़ोर से चिल्लाई थी. मैं वापिस घूम कर सीधी हो गयी और अपने कपड़े उठाने लगी.

"तू बड़ी स्वार्थी है. अपना पानी तो जी भर कर छोड़ लिया मेरी बारी आई तो जाने की बात कर रही है."

"देखो मैं वह सब नही कर सकती. रात बहुत हो चुकी है सो जाओ जाकर."

"चल अंदर मत डलवा...थोड़ा हाथ से हिला दे...मेरा पानी भी निकाल दे नही तो मैं तड़प्ता रहूँगा." चाचा गिद्गिडा रहा था. पर मैं अपने हाथ में उसका लिंग नही थाम सकती थी.

"तुम खुद अपने हाथ से हिला लो. मुझे नींद आ रही है."

"इतनी भी बेरहम मत बनो. कम से कम हाथ से ही कर दे."

"चुप कर गँवार देहाती. अपनी औकात में रहो. मुझे क्या समझ रखा है तुमने." मैं चाचा को नीचा दिखा रही थी. दिखाती भी क्यों ना. उसने भी तो मनमानी की थी मेरे साथ. ये तो गगन घर पर था नही तो इन तीन दिनो में वो मेरे साथ कुछ भी कर सकता था.

"कुछ भी बोल ले पर थोड़ा सा हिला दे पकड़ कर. मेरा पानी निकल जाएगा तो तुम चली जाना."

क्रमशः……………….
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