Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 12:58 PM,
#21
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-19

बाबा : बेटा तुम कार चलानी जानते हो?
मैं : जी बाबा वो जिस दिन मैं शहर गया था तब रास्ते मे सरपंच की बेटी की कार खराब हो गई थी तो मैने उसकी कार ठीक कर दी थी फिर काफ़ी दूर तक चला कर भी दी थी शायद इसलिए वो मुझसे कार सीखना चाहती है (मैं ये सब फ़िज़ा को सुनाने के लिए कह रहा था)

बाबा : ओह्हो मैं क्या पूछ रहा हूँ तुम क्या जवाब दे रहे हो... मैने पूछा तुमको कार चलानी कहाँ से आई?

मैं : पता नही बाबा याद नही

बाबा : अच्छा चलो कोई बात नही... अब तुम आराम करो थके हुए होगे मैं भी ज़रा बाहर सैर कर लूँ....खाना बन जाए तो आवाज़ लगा देना मैं पड़ोस मे हैदर साब के साथ ज़रा सैर कर रहा हूँ यही पास मे.

मैं : अच्छा बाबा.


बाबा के घर से निकलते ही फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो मेरे पास आके खड़ी हो गई ऑर गुस्से से मुझे घूर्ने लगी.

फ़िज़ा : अच्छा तो इसलिए जल्दी आ गये थे उस दिन शहर से.

मैं : अर्रे क्या हुआ क्यो गुस्सा कर रही हो बेकार मे

फ़िज़ा : मुझे बताया क्यो नही कि हीना के साथ आए थे तुम

मैं : यार मैं आना नही चाहता था लेकिन वो ज़बरदस्ती साथ ले आई (मैने फ़िज़ा को ये नही बताया कि मैं गया भी हीना के साथ ही था)

फ़िज़ा : मैने सोचा नही था कि तुम मुझसे भी झूठ बोल सकते हो

मैं : बेकार मे झगड़ा ना करो छोटी सी बात थी नही बताया तो क्या हुआ यार

नाज़ी : हाँ भाभी आज दिन मे भी वो चुड़ैल मिलने आई थी

मैं : तो मैने तो उसको मना किया ही था ना यार अब मुझे क्या पता था वो अपने बाप को भेज देगी. ठीक है अगर तुमको नही पसंद तो नही सिखाउन्गा उसको कार चलानी....अब तो खुश हो दोनो.

फ़िज़ा : अब बाबा ने हाँ बोल दिया है तो सिखा देना (मुँह दूसरी तरफ करके बोलती हुई)


ऐसे ही हम तीनो काफ़ी देर लड़ाई करते रहे फिर वो दोनो रसोई मे चली गई ऑर मैं कुर्सी पर बैठा दिन भर के बारे मे सोचने लगा जाने क्यो मुझे बार-बार अपने हाथो मे हीना का वही कोमल अहसास बार-बार हो रहा था. थोड़ी देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने खाना बना लिया ऑर बाबा को बुलाने के लिए बाहर आ गई. लेकिन अब वो मेरी तरफ देख भी नही रही थी जबकि मैं उसके पास ही खड़ा था.

मैं : अब तक नाराज़ हो.

फ़िज़ा : मैं कौन होती हूँ नाराज़ होने वाली जो तुम्हारा दिल करे वो करो

मैं : ऐसे क्यो बात कर रही हो यार आगे कोई काम बिना तुमसे पुच्छे कभी किया है जो अब करूँगा. यकीन करो मैं सच मे नही जानता था कि वो सरपंच को घर भेज देगी आज दिन मे भी मैने उसको मना कर दिया था.

फ़िज़ा बिना मेरी बात का जवाब दिए बाबा को 2-3 बार आवाज़ लगाके अंदर चली गई. मुझे उसका इस तरह का बर्ताव मेरे साथ बहुत बुरा लगा. लेकिन मैं चुप रहा पर उसको मनाने के लिए कोई ऑर तरीका सोचने लगा.

रात को हमने तीनो ने मिलकर ही खाना खाया लेकिन दोनो आज एक दम खामोश थी ऑर चुप-चाप खाना खा रही थी मैं जानता था कि दोनो मुझसे नाराज़ है इसलिए मुझसे बात नही कर रही है. मैने फ़िज़ा को मनाने के लिए खाना खाते हुए ही एक तरीका सोचा मैने जान-बूझकर चम्मच नीचे गिरा दिया ऑर टेबल से नीचे झुक गया ऑर चम्मच उठाने के बहाने फ़िज़ा की जाँघो पर हाथ रख दिए ऑर सहलाने लगा उसने अपना घुटना झटक दिया मैने फिर से उसके घुटने पर हाथ रख दिया ऑर फिर से अपना हाथ फेरने लगा उसने फिर से मेरा हाथ झटकने के लिए अपनी टाँग हिलाई लेकिन इस बार मैने अपना हाथ झटकने नही दिया बल्कि सीधा हाथ उसकी चूत पर रख दिया उसने दोनो टांगे एक दम से बंद कर ली ऑर मेरा हाथ अपनी टाँगो के बीच मे दबा लिया. अब मैं अपना हाथ हिला भी नही पा रहा था तभी मुझे फ़िज़ा की आवाज़ आई नीचे जाके सो गये हो क्या उपर आओ जाने दो दूसरा चम्मच लेलो ऑर उसने अपनी टांगे खोल दी ताकि मैं अपना हाथ बाहर निकाल सकूँ लेकिन मैने हाथ निकलने से पहले अपनी उंगलियो से उसकी चूत को अच्छे से मरोड़ दिया ऑर फिर उपर आके अपनी कुर्सी पर बैठ गया. जब उपर आया तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान थी ऑर उसके चेहरे पर मुस्कान ऑर दर्द दोनो थे जैसे वो इशारे से कह रही हो कि मुझे नीचे दर्द हो रहा है.


मैने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा ऑर फिर से खाना खाने लग गया हालाकी उस वक़्त हमारे साथ नाज़ी भी बैठी थी लेकिन मैने अभी फ़िज़ा के साथ क्या किया ये सिर्फ़ मैं ओर फ़िज़ा ही जानते थे नाज़ी को इस बारे मे कोई खबर नही थी क्योंकि वो तो मज़े से अपना खाना खा रही थी.थोड़ी देर बाद मैने नीचे से पैर लंबा किया ऑर उसके पैर पर रख दिया उसने एक पल के लिए मेरी तरफ देखा ऑर फिर खामोशी से खाना खाने लगी मैने थोड़ी देर अपने पैर से उसके पैर को सहलाया ऑर फिर अपना पैर उपर की तरफ ले जाने लगा वो मुझे इशारे से नही कहने लगी लेकिन मेरा पैर धीरे-धीरे उपर की तरफ जा रहा था ऑर उसकी टाँगो के बीच मे ले जाके मैने अपना पैर रोक दिया अब मेरे पैर के अंगूठे का निशाना उसकी चूत पर था मैं धीरे-धीरे खाना भी खा रहा था ऑर साथ मे पैर के अंगूठे से उसकी चूत को मस्सल रहा था. फ़िज़ा की ना चाहते हुए भी मज़े से बार-बार आँखें बंद हो रही थी ऑर वो मुझे बार-बार सिर नही मे हिलाकर ना का इशारा कर रही थी ऑर मैं बस उसको देखता हुआ मुस्कुरा रहा था. उसकी चूत अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे उसकी सलवार भी गीली होने लगी थी ऑर मुझे भी उसकी चूत का गीलापन अपने पैर के अंगूठे पर महसूस हो रहा था. मैं लगातार उसकी चूत के दाने को मसलता जा रहा था अब फ़िज़ा ने भी अपनी दोनो टांगे पूरी तरह से खोल दी थी.

कुछ देर की रगड़ाई के बाद वो फारिग हो गई जिससे उसके मुँह से एक ज़ोर से सस्सिईईईईई की आवाज़ निकल गई. मैने जल्दी से अपना पैर हटा लिया ऑर नीचे रख लिया ताकि मेरे पैर पर नाज़ी की नज़र ना पड़ जाए.

नाज़ी : क्या हुआ भाभी ठीक तो हो.

फ़िज़ा : हाँ ठीक हूँ वो बस मिर्ची खा ली थी तो मुँह जल रहा है

नाज़ी : अच्छा... लो पानी पी लो.

मैं : (मुस्कुराते हुए) पानी नही इनको कुछ मीठा खिलाओ ताकि मीठा बोल सकें

फ़िज़ा : मुझे तो आपका ही मीठा पसंद है आप ने मुँह मीठा नही करवाया इसलिए पानी से काम चलना पड़ रहा है(मुस्कुरा कर देखते हुए)

मैं : खाने के बाद मीठा खाना अच्छा होता है मुँह से कड़वाहट निकल जाती है.

फ़िज़ा : आज तो खाने के बाद मुँह मीठा कर ही लूँगी (शरारती हँसी के साथ)

नाज़ी : तुम दोनो ये क्या मीठा-मीठा कर रहे हो मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा चलो दोनो चुप-चाप खाना खाओ

मैं : अच्छा ठीक है.

फिर हम तीनो ने मिलकर खाना खाया ऑर खाने खाते हुए फ़िज़ा मुझे बार-बार बस मुस्कुरा कर देखती रही मुझे यक़ीन ही नही हो रहा था कि जो फ़िज़ा थोड़ी देर पहले मुझे ढंग से देख भी नही रही थी वो अब मुझे बार-बार मुस्कुरा कर पहले की तरह बड़े प्यार से देख रही है अब उसकी आँखो मे मेरे लिए प्यार ही प्यार था. खाने के बाद मैं बाबा के पैर दबाने चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी रसोई के कामों मे लग गई थोड़ी देर बाद नाज़ी मेरा बिस्तर करने आ गई तो मैने अच्छा मोक़ा देखकर फ़िज़ा के पास जाने का सोचा ऑर मैं तेज़ कदमो के साथ फ़िज़ा के पास चला गया.

मैं : हंजी अब भी नाराज़ हो.

फ़िज़ा : (पलट कर) नीर मैं तुमको बहुत मारूँगी फिर से ऐसा किया तो.

मैं : (हँसते हुए) क्या किया मैने

फ़िज़ा : अच्छा बताऊ क्या किया (मेरे लंड को पकड़ते हुए)

मैं : आहह दर्द हो रहा है छोड़ो ना (हँसते हुए)

फ़िज़ा : (लंड को छोड़कर मेरे गले मे अपनी दोनो बाहे हार की तरह डालकर ) नही छोड़ती क्या कर लोगे

मैं : नाज़ी आ जाएगी (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : नही आएगी मैने ही उसको तुम्हारा बिस्तर करने भेजा है.

मैं : अच्छा... फिर एक पप्पी दो ना...

फ़िज़ा : (मुस्कुराते हुए) ना दूं तो....

मैं : (सलवार के उपर से ही उसकी चूत पर हाथ रखते हुए) ले तो मैं ये भी लूँगा ऑर तुम मुझे रोक नही सकती जानती हो ना

फ़िज़ा : सस्सस्स जान ना करो ना हाथ हटाओ पहले वहाँ से फिर जो मर्ज़ी ले लेना

मैं : (हाथ को चूत पर ही रखे हुए) ये भी ले सकता हूँ

फ़िज़ा : क्या बात है आज जनाब की नियत ठीक नही लग रही (मुस्कुराते हुए)

मैं : तुमको देखते ही नियत खराब हो जाती है क्या करू.

फ़िज़ा : एम्म्म ठीक है आज फिर करे?

मैं : लेकिन कैसे नाज़ी साथ होगी ना तुम्हारे

फ़िज़ा : उसकी फिकर तुम ना करो तुम बस रात को कोठरी मे आ जाना ऑर सो मत जाना ठीक है

मैं : ठीक है आ जाउन्गा लेकिन तुम वहाँ आओगी कैसे

फ़िज़ा : उसकी फिकर तुम ना करो मैं आ जाउन्गी उसके सो जाने के बाद वैसे भी वो बहुत गहरी नींद मे सोती है तो सुबह से पहले नही उठेगी

मैं : हमम्म्म चलो ठीक है फिर अब जल्दी से पप्पी दो.

फ़िज़ा : मैं भी तुम्हारी मेरा सब कुछ तुम्हारा जहाँ चाहे वहाँ पप्पी ले लो मैने मना थोड़ी किया है.

मैं : नही आज तुम करो पहले फिर मैं करूँगा

फ़िज़ा : ठीक है थोड़ा नीचे तो झुको

मैं : नही आज एक नये तरीके से करेंगे

फ़िज़ा : कैसे?

मैं : (फ़िज़ा की कमर को दोनो बाजुओ से पकड़कर हवा मे उठाते हुए) ऐसे.... अब देखो तुम्हारा चेहरा मेरे चेहरे के बराबर हो गया है

फ़िज़ा : हमम्म (ऑर फिर फ़िज़ा ने खुद ही अपने रसीले होंठ मेरे होंठों पर रख दिए ऑर अपनी आँखें बंद कर ली)

थोड़ी देर मैं ऑर फ़िज़ा एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे फिर मैने फ़िज़ा को नीचे उतरा तो उसकी साँस बहुत तेज़-तेज़ चल रही थी शायद वो गरम हो गई थी फिर उसने मुझे बाहर जाने को कहा ऑर खुद रसोई के बाकी कामो मे लग गई. मैं बाहर खुली हवा मे बैठा खुले आसमान मे टिम-टिमाते तारो निहारने लगा थोड़ी देर मे नाज़ी भी कमरे से बाहर आ गई ऑर सीधा रसोई मे फ़िज़ा के पास चली गई फिर मैं भी अपने कमरे मे आके बिस्तर पर लेटा सबके सो जाने का इंतज़ार करता रहा कि कब रात हो ऑर कब मैं फ़िज़ा के साथ मज़े की वादियो की सैर करूँ नींद तो मेरी आँखो से क़ोस्सो दूर थी लेकिन फिर भी नाज़ी को दिखाने के लिए मैं बस चुप-चाप आँखें बंद किए हुए अपने बिस्तर पर पड़ा रहा. कुछ देर बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी भी अपने कमरे मे सोने के लिए चली गई ऑर मैं आधी रात का इंतज़ार करने लगा.

मुझे इंतज़ार करते हुए काफ़ी देर हो गई थी इसलिए मैं बस अपने बिस्तर पर पड़ा फ़िज़ा के आने का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि उसकी आदत थी वो हमेशा मुझे खुद बुलाने आती थी. मेरी नज़र दरवाज़े पर टिकी हुई थी लेकिन ज़हन मे बार-बार हीना का ख्याल आ रहा था. मैं अपने आप से ही कई सवाल पूछ रहा था ऑर फिर खुद से ही जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा था. इस वक़्त मुझे फ़िज़ा के बारे मे सोचना चाहिए था लेकिन जाने क्यो मुझे हीना याद आ रही थी. इस वक़्त मैं दो तरफ़ा सोच मे फँसा हुआ था आँखें बाहर दरवाज़े पर फ़िज़ा को तलाश रही थी ऑर ज़हन हीना को.

अभी मैं अपनी सोचो मे ही गुम था कि दरवाज़े पर मुझे एक साया नज़र आया अंधेरा होने की वजह से मैं चेहरा ठीक से देख नही पा रहा था. मैं बस दरवाजे की तरफ नज़र टिकाए उस साए को ही देख रहा था कि कब वो मुझे बुलाए ऑर मैं उसके पास जाउ. लेकिन एक अजीब बात हुई उस लड़की ने पहले सिर घूमके दाए-बाए देखा फिर कमरे के अंदर आ गई जबकि फ़िज़ा कभी भी अंदर नही आती थी वो तो बाहर खड़ी हुई ही इशारा करके मुझे बुलाती थी. ये जानने के लिए कि ये कौन है ऑर यहाँ इस वक़्त क्यो आई है मैने फॉरन उसको अपने पास आता देखकर अपनी आँखें बंद कर ली जैसे मैं गहरी नींद मे सो रहा हूँ. जब वो लड़की थोड़ा ऑर करीब आई तो मुझे हल्का-हल्का चेहरा नज़र आने लगा ये तो नाज़ी थी. मैं सोच मे पड़ गया कि इस वक़्त ये यहाँ कैसे आ गई ओर फ़िज़ा ने तो मुझे कहा था कि वो इसके सो जाने के बाद आ जाएगी. अब मैं ये सोचकर परेशान था कि कही इस वक़्त फ़िज़ा यहाँ आ गई ऑर उसने नाज़ी को यहाँ देख लिया तो वो क्या सोचेगी मेरे बारे मे. लेकिन फिर भी मैं सोने का नाटक करते हुए वहाँ पड़ा रहा. कुछ देर नाज़ी ने बाबा को देखा जो गहरी नींद मे सो रहे थे ऑर खर्राटे मार रहे थे फिर वो पलट कर गई ऑर धीरे से दरवाज़ा बंद कर दिया ऑर कुण्डी लगाके मेरी तरफ आई ऑर मुझे गौर से देखने लगी मैं आँखें बंद किए हुए लेटा रहा फिर वो धीरे से मेरे बिस्तर पर बैठ गई ऑर कुछ देर मुझे देखती रही फिर जो साइड मे थोड़ी सी जगह थी वहाँ मेरे साथ ही करवट लेके लेट गई क्योंकि उसके जगह कम थी ऑर अब उसके होते हुए मैं थोड़ा पिछे सरक कर जगह भी नही बना सकता था.

कुछ देर वो ऐसे ही लेटी थी ऑर फिर अपना एक हाथ मेरी छाती पर रख लिया ऑर दूसरे हाथ की उंगलियो से मेरे गाल सहलाने लगी फिर धीरे से अपनी एक टाँग मेरी जाँघ के उपर रख ली ऑर अपनी बाजू को मेरे पेट से गुज़ार लिया जैसे वो लेटे हुए को ही मुझे साइड से गले लगा रही हो. इससे उसके मम्मे मुझे अपने कंधो पर महसूस होने लगे. मैं फिर भी वैसे ही लेटा रहा असल मे मैं ये देखना चाहता था कि जो मुझसे अंधेरे मे ग़लती हुई थी उसका उस पर क्या असर हुआ है ऑर वो किस हद तक जाती है.
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07-30-2019, 01:07 PM,
#22
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अपडेट-21

मैने अपने होंठ नाज़ी के नरम ऑर रसीले होंठों पर रख दिए जिससे उसे एक झटका सा लगा. कुछ देर उसने अपने होंठों को सख्ती से बंद करे रखा ऑर मेरे हाथो को पकड़े रखा जिससे मैने उसके चेहरे को पकड़ा था. कुछ देर उसके होंठों के साथ अपने होंठ जोड़े रखे अब धीरे धीरे उसके होंठ जो सख्ती से एक दूसरे से जुड़े हुए थे अब कुछ ढीले महसूस होने लगे मैने सबसे पहले उसके नीचे वाले होंठ को चूसना शुरू कर दिया वो मेरा साथ नही दे रही थी लेकिन मना भी नही कर रही थी मैं लगातार उसके नीचे वाले होंठ को चूस रहा था अब धीरे-धीरे उसने भी मेरे उपर वाले होंठ को चूसना शुरू कर दिया मैने अपने दोनो हाथो से उसका चेहरा आज़ाद कर दिया लेकिन वो अब भी मेरे होंठों से होंठ जोड़े बैठी थी ऑर अपनी दोनो आँखें बंद किए बैठी थी अब हम दोनो एक दूसरे को शिद्दत से चूम ऑर चूस रहे थे. हम दोनो की आँखें बंद थी ऑर हम एक दूसरे मे खोए हुए थे मुझे नही पता कब उसने मुझे गले से लगाया ऑर कब मैं ज़मीन पर लेट गया ऑर वो मेरे उपर आके लेट गई हम दोनो किसी अजीब से मज़े के नशे मे मदहोश थे मेरे दोनो हाथ उसकी कमर पर लिपटे थे ऑर उसने अपनी दोनो बाजू मेरे गले मे किसी हार की तरह डाल रखी थी ऑर मेरे उपर लेटी हुई थी. हमें दुनिया को कोई होश नही था हम दोनो बस एक दूसरे मे ही गुम्म थे.

तभी मुझे एक कार का हॉर्न सुनाई दिया जिससे हम दोनो की एक दम आँख खुल गई नाज़ी खुद को इस तरह मेरे उपर लेटा देखकर घबरा सी गई ऑर जल्दी से मुझसे अलग होके मेरे उपर से उठ गई उसके दोनो हाथ बुरी तरह काँप रहे थे. उसका ऑर मेरा मुँह हम दोनो की थूक से बुरी तरह गीला हुआ पड़ा था मैं ज़मीन पर पड़ा उसको देख रहा था वो नज़ारे झुकाए खड़ी थी ऑर एक दम खामोश थी.

मैं : क्या हुआ

नाज़ी : (ना में सिर हिलाते हुए) देर हो रही है घर चले..... (अपना मुँह अपनी चुन्नि से सॉफ करते हुए)
मैं : हां चलो

हम दोनो को ही समझ नही आ रहा था कि एक दूसरे को अब क्या कहे. तभी उस कार का हॉर्न एक बार फिर से सुनाई दिया. हालाकी जहाँ हम दोनो थे वहाँ अंधेरा था इसलिए हम को कोई देख नही सकता था मैने जल्दी से खड़े होके अपने कपड़े झाड़े जिस पर मिट्टी लग गई थी ओर फिर मैं ऑर नाज़ी खेत के फाटक की तरफ बढ़ने लगे. वहाँ हमे एक कार नज़र आई जिसके पास एक लड़की खड़ी थी. मैने पास जाके देखा तो ये हीना थी जो मुझे देख कर हाथ हिला रही थी ऑर मुस्कुरा रही थी.

नाज़ी : आप उससे बात करो मैं खेत का बाकी समान सही से रखकर आती हूँ.
मैं : अच्छा

नाज़ी वापिस चली गई ओर मैं कार की तरफ बढ़ने लगा मुझे देखते ही हीना के चेहरे पर मुस्कान आ गई ऑर मुझे डोर से देखकर ही बोली....

हीना : आ गये जनाब...वक़्त मिल गया हमारे लिए
मैं : जी वो मैं काम मे मसरूफ़ था...कहिए कैसे आना हुआ
हीना : अर्रे इतनी जल्दी भूल गये (आँखें दिखाते हुए)
मैं : क्या भूल गया?
हीना : कल अब्बू आपके घर आए थे ना कुछ वादा किया था आपने उनके साथ याद आया.
मैं : अच्छा हाँ याद आ गया.... गाड़ी चलानी सीखनी है तुमको.
हीना : जी हुज़ूर बड़ी मेहरबानी याद करने के लिए
मैं : (मुस्कुराते हुए) यार ज़रूरी है क्या आपके साथ ये ड्राइवर तो आया ही है इसी से सीख लो ना.
हीना : जी नही.... मुझे आपसे ही सीखनी है ऑर आप ही सिख़ाओगे. ये तो बस मुझे यहाँ तक छोड़ने के लिए आया है.
मैं : ऊहह अच्छा....


इतने मे नाज़ी भी वहाँ आ गई...

नाज़ी : (मुझे मुस्कुरा कर देखते हुए)सब काम हो गया अब घर चलें...

मैं : हमम्म चलते हैं (मुस्कुरा कर नाज़ी को देखते हुए)

हीना : ओह्ह्ह मेडम.... आपको जाना है तो जाओ नीर नही जाएँगे
नाज़ी : (गुस्से से हीना को देखते हुए) क्यों.... तुम होती कौन हो इनको रोकने वाली ये मेरे साथ ही जाएँगे समझी सरपंच की बेटी हो इसका मतलब ये नही कि सारा गाँव तुम्हारा गुलाम है.

हीना : औकात मे रहकर बात करो समझी....

नाज़ी गुस्से मे उसको कुछ बोलने वाली थी तभी मुझे बीच मे बोलना पड़ा दोनो को शांत करने के लिए क्योंकि दोनो ही झगड़े पर उतारू थी जिसको मुझे रोकना था......

मैं : यार दोनो चुप हो जाओ क्यो लड़ाई कर रही हो. नाज़ी तुम हीना को ग़लत मत समझो ये सिर्फ़ कार चलानी सीखने आई है ऑर कुछ नही इसलिए घर जाने के लिए मना कर रही थी.

नाज़ी : तो हर बात कहने का तरीका होता है ये क्या बात हुई

हीना : तो मैने क्या ग़लत बोला जो तुम मुझसे लड़ाई करने पर आमादा हो गई.

मैं : दोनो एक दम चुप हो जाओ अब कोई नही बोलेगा नही तो ना मैं तुम्हारे साथ जाउन्गा ना तुम्हारे समझी..... (दोनो की तरफ उंगली करते हुए)


हीना और नाज़ी : (दोनो हाँ मे सिर हिलाते हुए)

मैं : नाज़ी कल बाबा ने वादा किया था सरपंच जी को इसलिए मुझे जाना होगा लेकिन पहले मैं तुमको घर छोड़ देता हूँ ठीक है.

नाज़ी : नही मैं चली जाउन्गी आप जाओ इनके साथ

हीना : चलो नीर चलें

मैं : नही.... नाज़ी मेरे साथ आई थी मेरे साथ ही जाएगी रात होने वाली है इस वक़्त इसका अकेले जाना ठीक नही.

हीना : अर्रे तुम तो बेकार मे ही घबरा रहे हो ये कोई बच्ची थोड़ी है चलो एक काम करते हैं इसको मेरा ड्राइवर घर छोड़ आएगा फिर तो ठीक है.

मैं : मैने बोला ना मेरे साथ ही जाएगी तुम कार मे हमारे घर की तरफ चलो हम पैदल आ रहे हैं.

हीना : जब कार है तो पैदल क्यो जाओगे चलो पहले इसको कार मे घर छोड़ देते हैं फिर हम कार सीखने चलेंगे.

मैं : (नाज़ी की तरफ सवालिया नज़रों से देखते हुए) ठीक है.

नाज़ी : (हाँ मे सिर हिलाके मुझे मुस्कुरकर देखते हुए) हमम्म ठीक है....

हीना : (अपने ड्राइवर से) बशीर तुम जाओ मुझे नीर घर छोड़ देंगे अब्बू पुच्छे तो कह देना मैं 2-3 घंटे तक घर आ जाउन्गी. (मुझे देखते हुए) इतना वक़्त काफ़ी होगा ना

मैं : हमम्म काफ़ी है.

नाज़ी : (हैरान होते हुए) 2-3 घंटे.... तो फिर नीर खाना कब खाएँगे.

मैं : अर्रे फिकर मत करो मैं जल्दी ही वापिस आ जाउन्गा तब साथ मे ही खाएँगे रोज़ जैसे ठीक है (मुस्कुरा कर नाज़ी को देखते हुए)

नाज़ी : अच्छा... लेकिन ज़्यादा देर मत करना ऑर अपना ख्याल रखना.

हीना : अब चलें या सारी रात यही खड़े रहना है

मैं : हाँ... हाँ... चलो

अब हीना का ड्राइवर चला गया ऑर मैं ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ऑर मेरे साथ हीना बैठ गई ऑर पिछे नाज़ी बैठी थी. मैने कार मे बैठ ते ही कार के तमाम हिस्सो के बारे मे हीना को बताना शुरू कर दिया ऑर वो बड़े ध्यान से बैठी सुन रही थी साथ मे नाज़ी भी मुँह आगे करके बड़े गौर से मेरी बाते सुन रही थी. फिर मैने कार स्टार्ट की ऑर स्टारिंग को संभालने के बारे मे हीना को बताने लगा....

हीना : थोडा सा मैं भी चलाऊ

मैं : हां ज़रूर ये लो अब तुम सम्भालो ऑर कार संभालने की कोशिश करो.

नाज़ी : तुम सच मे कार बहुत अच्छी चला लेते हो

मैं : शुक्रिया (मुस्कुराते हुए)

तभी हीना अपनी सीट पर बैठी हुई ही टेढ़ी सी होके स्टारिंग संभालने लगी जिससे गाड़ी एक तरफ को जाने लगी इसलिए मैने फॉरन स्टारिंग खुद संभाल लिया ऑर गाड़ी को सही तरफ चलाने लगा मैने फिर से हीना को संभालने के लिए कहा तो वो फिर से नही संभाल पाई ऑर उसने कार को एक तरफ घुमा दिया जिससे कार सड़क से नीचे उतरने ही वाली थी मैने फिर से स्टारिंग संभाला ऑर कार को वापिस रोड पर ले आया.

हीना : (झल्लाकर) नही संभाला जा रहा

मैं : अर्रे अभी तो पहला दिन है पहले दिन नही संभाल पाओगी कुछ दिन कोशिश करो फिर सीख जाओगी फिकर मत करो.

कुछ देर मैं ऐसे ही हीना को कार चलानी सीखाता रहा फिर ह्मारा घर आ गया तो मैने घर के सामने कार रोकदी. नाज़ी कार से उतरी ऑर मेरे पास आके खड़ी हो गई मैने कार का शीशा नीचे किया तो नाज़ी ने खिड़की मे से मुँह अंदर किया ऑर बोली...

नाज़ी : जल्दी आ जाना ज़्यादा दूर मत जाना मैं खाने पर तुम्हारा इंतज़ार करूँगी (मुस्कुराते हुए)

मैं : हाँ बस थोड़ी देर मे आ जाउन्गा फिर खाना साथ मे ही खाएँगे

हीना : आपकी बाते हो गई हो तो चलें.

मैं : हाँ..हाँ.. ज़रूर...

नाज़ी : अंदर भी नही आओगे

मैं : बस थोड़ी देर मे ही आ रहा हूँ तुम जाओ ऑर बाबा को बता देना नही तो फिकर करेंगे ठीक है

नाज़ी : हमम्म.....अच्छा...

नाज़ी मुस्कुराते हुए अंदर चली गई ऑर मैने कार फिर से स्टार्ट की ऑर हीना की तरफ देखते हुए...

मैं : हंजी हीना जी अब कहाँ चलें बताइए...

हीना : मुझे क्या पता आप बताओ कहाँ सिख़ाओगे

मैं : कोई खुला मैदान है आस-पास

हीना : हाँ है ना गाँव के बाहर जहाँ अक्सर बच्चे खेलने जाते हैं इस वक़्त वहाँ कोई नही होगा वहाँ मैं आराम से सीख सकती हूँ (मुस्कुराते हुए)

मैं : ठीक है फिर वही चलते हैं.

कुछ ही देर मे कार गाँव के बाहर आ गई ऑर वहाँ से दो रास्ते निकलते थे एक पतला रास्ता जो आगे जाके पक्की सड़क से मिलता था ऑर दूसरा रास्ता काफ़ी उबड़-खाबड़ सा था जो आगे जाके मैदान मे खुलता था. मुझे हीना ने बताया कि मुझे इसी टूटे रास्ते पर कार लेके जानी है फिर मैदान आ जाएगा तो मैने उसके कहने के मुताबिक कार उसी रास्ते पर दौड़ा दी. रास्ता टूटा होने की वजह से हम दोनो कार के साथ अपनी सीट पर बैठे उछल रहे थे कुछ सामने अंधेरा होने की वजह से मुझे आगे का कोई भी खड्डाे दिखाई नही दे रहा था बस हेड लाइट की रोशनी से थोड़ा बहुत दिखाई दे रहा था. झटको की वजह से से हीना के गोल-गोल मम्मे भी उछल रहे थे जिस पर बार-बार मेरी नज़र पड़ रही थी हीना ने मुझे कंधे से पकड़ रखा था ताकि वो सामने शीशे से ना टकरा जाए. कुछ ही देर मे हम मैदान मे आ गये....

मैं : लो जी आपका मैदान आ गया अब आप मेरी सीट पर आके बैठो ओर मैं आपकी सीट पर बैठूँगा फिर आप कार चलाना ऑर मैं देखूँगा.

हीना : मैं कैसे चलाऊ मुझे तो आती ही नही कुछ गड़-बॅड हो गई तो....

मैं : अर्रे डरती क्यो हो मैं हूँ ना संभाल लूँगा वैसे भी तुम चलाओगी नही तो सीखोगी कैसे.

हीना : अच्छा ठीक है.

मैं : अब तुम मेरी सीट पर आके बैठो फिर मैं जैसे-जैसे तुमको बताउन्गा तुम वैसे-वैसे चलाना ठीक है.

हीना : हमम्म

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07-30-2019, 01:07 PM,
#23
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-20
कुछ देर वो मेरे साथ ऐसे ही पड़ी रही फिर थोड़ा उपर को होते हुए मेरी गाल पर अपनी उंगलियों की मदद से मेरे चेहरे को अपनी तरफ किया ऑर कुछ देर मुझे देखती रही उसकी साँस तेज़ चल रही थी जो मुझे अपने चेहरे पर भी महसूस हो रही थी. फिर उसने धीरे से मेरे कान मे कहा

नाज़ी : जाग रहे हो क्या

मैं खामोश होके लेटा रहा जब उससे यक़ीन हो गया कि मैं सोया पड़ा हूँ तो उसने मेरी गाल पर हल्के से चूम लिया उसने मेरा चेहरा अपनी उंगलियो की मदद से अपनी तरफ किया हुआ था ऑर मुझे चूमने के बाद जैसे उसकी उंगलियो से जान ही ख़तम हो गई हो उसकी साँस भी बहुत तेज़ चल रही जो मुझे अपने चेहरे पर मेसूस हो रही थी. उसके हाथ ओर उंगालियन काँप रही थी कुछ देर वो ऐसे ही मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर मेरे साथ लेती रही ओर अपने काँपते हाथो से मेरी छाती पर अपना हाथ फेरती रही फिर वो उठी ओर हल्के से मेरे कान मे बोली....

नाज़ी : जो तुमने माँगा था मैने दे दिया है अगली बार तुमको माँगने की ज़रूरत नही है.

उसने फिर एक बार मेरी गाल पर चूम लिया ऑर इस बार उसने हल्के-हल्के से 15-16 बार मेरे गाल को लगातार चूमा. मुझसे अब ऑर सबर नही हो रहा था मेरा लंड भी खड़ा होके पाजामे मे टेंट बना चुका था इसलिए मैने करवट ले ली ऑर उसके चेहरे के सामने अपना चेहरा कर दिया साथ ही उसकी कमर मे अपने हाथ डाल लिया जैसे लेटे हुए ही उसको गले से लगा रहा हूँ. अब वो पूरी तरह मेरी बाहो मे थी ऑर मेरा लंड उसकी टाँगो के बीच फसा हुआ था मेरी इस हरकत से वो एक दम डर गई ऑर वही सुन्न हो गई जैसे जम गई हो. मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो गया था कि वो मुझे सोता हुआ समझकर ही ये सब कर रही थी ये मैने क्या किया इसलिए फिर से बिना कोई हरकत किए वैसे ही लेटा रहा ताकि उसको यही लगे कि मैने नींद मे ही करवट ली है. कुछ देर मैं वैसे ही उसको अपनी बाहो मे लिए पड़ा रहा उसका सिर मेरी नीचे वाली बाजू पर था जो मैने घुमा कर उसकी पीठ के पिछे रखा हुआ था ऑर दूसरे हाथ मैने उसकी कमर पर रखा हुआ था ऑर मेरी एक टाँग अब उसके उपर थी. कुछ देर वो ऐसे ही बिना कोई हरकत किए मेरे साथ लेटी रही जब उसे यक़ीन हो गया कि मैं सोया हुआ हूँ तो उसने फिर से एक बार मेरा नाम पुकारा ऑर वही जुमला फिर से दोहराया...

नाज़ी : नीर जाग रहे हो क्या....

जब मेरी तरफ से कोई जवाब नही आया तो उसे यक़ीन हो गया कि मैने नींद मे ही करवट ली है अब वो मुझसे ऑर चिपक गई ऑर अपनी एक बाजू मेरी कमर मे डाल कर मेरे ऑर करीब हो गई उसकी छातीया अब मुझे अपने सीने पर महसूस हो रही थी ऑर उसकी गरम साँसे मुझे अपने गले पर महसूस हो रही थी उसने हल्का सा अपना चेहरा उठाया ऑर फिर से मेरी गाल पर एक बार फिर चूम लिया अब उसने मेरा एक बाजू जो उसकी कमर पर था उसको एक हाथ से उठाया ऑर उसको अपने हाथो मे थाम लिया फिर धीरे-धीरे मेरे हाथ पर ऑर मेरे हाथ की उंगलियो पर चूमने लगी. फिर खुद ही मेरा हाथ अपनी गाल पर रखकर अपने गाल सहलाने लगी उसके गाल बहुत नाज़ुक थे जिनका अहसास मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. फिर उसने हल्के से मेरी टाँग जो मैने उसके उपर रख दी थी उसको धीरे से नीचे की ओर धकेला ताकि वो अपने उपर से मेरी टाँग हटा सके. अब सिर्फ़ मेरा नीचे वाला बाजू ही उसके सिर के नीचे था जिस पर वो सिर रखे हुए लेटी रही. काफ़ी वक़्त गुज़र गया लेकिन अब उसने कोई हरकत नही की ओर वो ऐसे ही मेरे कंधे पर अपने सिर रखकर लेती रही शायद वो मुझे देख रही थी.

थोड़ी देर लेटे रहने के बाद वो उठी ऑर धीरे से बिस्तर पर पहले बैठी ऑर फिर मेरे चेहरे पर 2-3 बार चूम लिया ऑर फिर वो खड़ी होके चली गई फिर मुझे दरवाज़ा खुलता हुआ दिखाई दिया ऑर वो बाहर को निकल गई. मैं बस उसको जाते हुए देखता रहा. मुझे अब ये समझ नही आ रहा था कि ये नया किस्सा कौनसा खुल गया ये कहाँ से आ गई मैं तो फ़िज़ा का इंतज़ार कर रहा था. काफ़ी देर मैं ऐसे ही लेटा रहा लेकिन फ़िज़ा नही आई मैने सोचा चलकर देखता हूँ कि क्या हुआ है आना तो फ़िज़ा को चाहिए था ये नाज़ी कहाँ से आ गई इसलिए मैं बिस्तर से उठा ऑर दबे कदमो के साथ फ़िज़ा के कमरे की तरफ बढ़ने लगा वहाँ जाके देखा तो फ़िज़ा ऑर नाज़ी की आवाज़ आ रही थी.


फ़िज़ा : नाज़ी कब तक बैठी रहोगी आधी रात हो गई है अब तुम भी सो जाओ

नाज़ी : भाभी आप सो जाओ मुझे अभी नींद नही आ रही जब नींद आएगी तो सो जाउन्गी

फ़िज़ा : जैसी तुम्हारी मर्ज़ी मुझे तो बहुत नींद आ रही है मैं सोने जा रही हूँ.

नाज़ी : अच्छा भाभी आप सो जाओ मैं भी थोड़ी देर मे सो जाउन्गी


मैं बाहर खड़ा उन दोनो की बाते सुन रहा था अब मुझे समझ आ गया कि फ़िज़ा क्यो नही आ सकी क्योंकि नाज़ी जाग रही थी. मैं वापिस अपने कमरे मे आके अपने बिस्तर पर लेट गया अब मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि इतना अच्छा मोक़ा था मैं नाज़ी को चोद सकता था लेकिन मैने उसको जाने क्यो दिया अब ना मुझे फ़िज़ा मिली ना ही नाज़ी यही सब बाते मे सोच रहा था कुछ देर मे मुझे नींद ने अपनी आगोश मे भी ले लिया. सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं अपने रोज़ के कामो से फारिग होके तैयार हो गया सुबह नाश्ते पर मैं ओर नाज़ी साथ मे बैठे नाश्ता कर रहे थे ऑर फ़िज़ा अंदर रसोई मे थी. जैसे ही फ़िज़ा मुझे नाश्ता देने आई तो मैने गुस्से से उसकी तरफ देखा जिस पर उसने गंदा सा मुँह बना लिया ऑर नाज़ी की तरफ इशारा किया फिर मेरा ऑर नाज़ी का नाश्ता रखकर वापिस रसोई मे चली गई. नाज़ी मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी ऑर नाश्ता कर रही थी.

मैं : क्या बात है आज बड़े दाँत निकल रहे हैं तुम्हारे.

नाज़ी : लो जी अब मैं हँस भी नही सकती

मैं : तुम्हारे दाँत है जीतने चाहे दिखाओ

नाज़ी : हमम्म.... आज तुम बड़ी देर तक सोते रहे

मैं : पता नही रात को नींद बहुत अच्छी आई.

ये सुनकर नाज़ी शर्मा सी गई ऑर मुँह नीचे कर लिया ऑर मुझसे पूछा...

नाज़ी : क्यो रात को क्या खास था

मैं : पता नही लेकिन बहुत अच्छी नींद आई (ज़ोर से बोलते हुए...क्योंकि मैं फ़िज़ा को ये सब सुना रहा था)

नाज़ी : ज़ोर से क्यो बोल रहे हो मैं बहरी नही हूँ धीरे भी तो बोल सकते हो ना

मैं : अच्छा...अच्छा बाते ख़तम करो ऑर जल्दी से नाश्ता खाओ फिर खेत भी जाना है.

उसके बाद हम दोनो खामोश होके नाश्ता करते रहे ऑर फ़िज़ा बार-बार रसोई मे से चेहरा निकालकर मुझे देख रही थी ऑर अपने कानो पर हाथ लगा रही थी मैने चेहरा घुमा लिया ऑर अपना नाश्ता ख़तम करने लगा. नाश्ता करके हम उठे तो फ़िज़ा फॉरन मेरे पास आई

फ़िज़ा : कितने बजे तक वापिस आओगे

मैं : जितने बजे रोज़ आता हूँ आज क्यो पूछ रही हो

फ़िज़ा : नही कुछ नही वैसे ही बस

मैं : (नाज़ी की तरफ देखते हुए) चले नाज़ी

नाज़ी : हाँ चलो (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा बार-बार नाज़ी के पीछे खड़ी अपने कानो पर हाथ लगा रही थी ऑर मुझसे रात के लिए माफी माँग रही थी लेकिन मैं उसकी तरफ ध्यान नही दे रहा था. फिर मैं ऑर नाज़ी खेत के लिए निकल गये ऑर दिन भर काम मे लगे रहे. शाम को नाज़ी सब समान समेट रही थी ऑर उनकी मुकम्मल जगह पर सारा समान रख रही थी. मैं दिन भर के काम ऑर खेतो की मिट्टी से काफ़ी गंदा हुआ पड़ा था इसलिए नाले मे अपने हाथ पैर अच्छे से धो रहा था मेरे साथ नाज़ी भी अपने हाथ पैर धोने के लिए आ गई ऑर मेरे पास ही बैठ गई. नाज़ी के हाथ-पैर धोने के बाद मैने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा ऑर उसकी तरफ अपने साफ़ा कर दिया जिसे उसने हँस कर पकड़ लिया ऑर अपने हाथ ऑर बाजू पोंच्छने लगी. अभी उसने अपनी बाजू ही पोन्छि थी कि मैने उससे अपना साफा वापिस खींच लिया वो सवालिया नज़रों से मेरी तरफ देखने लगी मैं नीचे बैठा ऑर खुद उसके पैर ऑर टांगे पोंच्छने लगा ऑर उसकी तरफ एक बार नज़र उठाके देखा वो मुझे ही देखकर मुस्कुरा रही थी. हम दोनो मे कोई बात नही हो रही थी बस एक दूसरे से मुस्कुरा कर आँखो ही आँखो मे बात कर रहे थे.


उसके हाथ पैर सॉफ करने के बाद मैं अपने पैर पोंछ रहा था कि उसने मेरा साफा खींच लिया ऑर गर्दन से नही मे इशारा किया ऑर खुद मेरे पैर पोंछने लगी मुझे उसकी ये अदा बहुत अच्छी लगी ऑर मैं प्यार भरी नज़रों से उसकी तरफ देखने लगा वो बस मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी ऑर अपने काम मे लगी हुई थी मैने उसको उसकी दोनो बाजू से पकड़ा तो वो मुझे देखने लगी.

मैं : पास आओ
नाज़ी : (नज़रे झुकाकर) पास ही तो हूँ

मैं : और पास आओ

नाज़ी : (थोड़ा ऑर नज़दीक आते हुए) अब ठीक है.

मैं : और पास

नाज़ी : क्या है क्यो तंग कर रहे हो

मैं : सुना नही क्या कहा मैने

नाज़ी : (ना मे सिर हिलाते हुए)

मैने उसे कंधे से पकड़ा ऑर अपने सीने से लगा लिया.

नाज़ी : (तेज़-तेज़ साँस लेते हुए) छोड़ो ना कोई आ जाएगा

मैं : कोई नही आएगा

नाज़ी : (खामोशी से मेरे सीने से लगी रही) हमम्म

मैं : एक पप्पी दो ना

नाज़ी : थप्पड़ खाना है (हँसते हुए)

मैं : क्यो

नाज़ी : उउउहहुउऊ (ना मे सिर हिलाते हुए)

मैने अपने दोनो हाथो से उसके चेहरे को पकड़ा ऑर उसकी आँखो मे देखने लगा. वो खामोश होके कुछ देर मेरी आँखों मे देखती रही ऑर फिर अपनी आँखें बंद कर ली. शायद वो भी यही चाहती थी मैं धीरे-धीरे अपना चेहरा उसके चेहरे के करीब ले गया उस वक़्त उसकी साँस बहुत तेज़ चल रही थी.

मैं : आँखें खोलो

नाज़ी : (आँखें खोलते हुए) हमम्म

मैं : नही.....(मुस्कुराते हुए)

नाज़ी : (मुस्कुराते हुए ना मे सिर हिलाते हुए)

मैं : ठीक है फिर थप्पड़ ही मार दो मैं तो करने जा रहा हूँ

नाज़ी : (फिर से आँखें बंद करते हुए)
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07-30-2019, 01:07 PM,
#24
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-22

अब हम दोनो ने अपनी सीट बदल ली ऑर एक दूसरे की जगह पर आ गये मैने दुबारा उसको गाड़ी के तमाम पुरज़ो के बारे मे बताया फिर हीना को कार चलाने को कहा. हीना ने कार चलानी शुरू की अब उसने सिर्फ़ स्टारिंग पकड़ा था बाकी नीचे का सारा कंट्रोल मेरे हाथ मे था मैने अपना एक पैर ब्रेक पर रखा हुआ था अहतियात के लिए. लेकिन उसने जैसे ही कार चलानी शुरू की उसने एक दम क्लच छोड़ दिया जिससे गाड़ी झटके से बंद हो गई. काफ़ी बार उसने ट्राइ किया लेकिन हर बार गाड़ी झटके से बंद हो रही थी क्योंकि कभी वो झटके से क्लच छोड़ देती थी कभी रेस नही देती थी. अब वो भी परेशान होने लगी थी.

हीना : मुझे लगता है मैं कभी नही सीख पाउन्गी (रोने जैसा मुँह बनाके)

मैं : फिकर मत करो आज तो पहला ही दिन है कुछ वक़्त लगेगा लेकिन सीख जाओगी

हीना : कैसे सीखूँगी गाड़ी तो शुरू होती नही मुझसे.... पता नही अब्बू ने भी कैसी खटारा गाड़ी दी है कहा भी था नयी गाड़ी खरीद दो.

मैं : अर्रे कुछ नही होता गाड़ी एकदम ठीक है... चलो एक काम करो मैं ड्राइवर सीट पर बैठ जाता हूँ तुम मेरी गोद मे बैठकर चलाओ फिर नीचे पैर से मैं तुमको क्लच छोड़ना सिखाता हूँ पहले.

हीना Sadपरेशान होके) ठीक है

अब मैं ड्राइविंग सीट पर बैठा था ऑर हीना आके मेरी गोद मे बैठ गई. उसके मेरी गोद मे बैठते ही मुझे एक झटका सा लगा उसका बदन बहुत नाज़ुक ऑर कोमल था उसकी कमर एक दम सुरहीदार थी एक दम पतली सी जबकि उसकी गान्ड काफ़ी चौड़ी थी ऑर बाहर को निकली हुई थी साइड से लेकिन बेहद नाज़ुक थी. मैने उसकी कमर के साइड से अपने दोनो हाथ निकाले ऑर स्टारिंग थाम लिया जिस पर उसने पहले से हाथ रखे हुए थे. अब हम दोनो की टांगे एक दम जुड़ी हुई थी ऑर मैने अपने हाथ उसके हाथो पर रखे हुए थे मैने अपने मुँह उसके कंधे पर रखा हुआ था.हमने फिर से कार स्टार्ट की ऑर इस बार कार सही चलने लगी. अब वो बड़े आराम से बैठी कार चला रही थी ऑर खुश हो रही थी....

हीना: (खुश होके हँसते हुए) देखो नीर मैं कार चला रही हूँ

मैं : देखा मैने कहा था ना तुम बेकार मे उदास हो रही थी.

हीना : लेकिन ये हॅंडेल मुझसे सीधा क्यो नही चलता

मैं : धीरे-धीरे ये भी संभालना आ जाएगा. वैसे मेडम इसे हॅंडेल नही स्टारिंग कहते हैं (हँसते हुए)

हीना : अच्छा मुझे पता नही था.

फिर वो ऐसे ही बैठी कार चलाती रही ऑर मैं उसके नाज़ुक बदन ऑर उसके बदन की खुश्बू मे खोया रहा नीचे से मेरे लंड ने भी सिर उठाना शुरू कर दिया था जिसको शायद चूत की खुश्बू मिल गई. कुछ देर बाद हीना को शायद गान्ड के नीचे मेरा लंड चुभने लग गया इसलिए वो अपनी गान्ड को इधर-उधर हिलाने लगी जिससे मेरे लंड को बे-इंतेहा मज़ा आया ऑर वो एक दम लोहे की तरह सख़्त होके खड़ा हो गया लेकिन क्योंकि उपर हीना बैठी थी इसलिए वो सीधा नही खड़ा हो सका ऑर आगे की तरफ मूड गया ऑर चूत की छेद पर दस्तक देने लग गया. जैसे-जैसे लंड नीचे झटका ख़ाता वो सीधा चूत पर ठोकर मारता जिससे हीना को एक झटका सा लगता ऑर वो थोड़ा उपर को हो जाती ऑर फिर बैठ जाती. हम दोनो ही खामोश थे ऑर कार चला रहे थे ऑर हीना चुप-चाप मेरी गोद मे बैठी थी ऑर नीचे से मेरा लंड अपने ही काम मे लगा था क्योंकि कुछ दिन से उसे भी उसकी खुराक नही मिली थी. थोड़ी देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद हीना ने खुद अपनी गान्ड को मेरे लंड पर मसलना शुरू कर दिया शायद अब उसको भी मज़ा आने लगा था.

हीना : अब तुम चलाओ मुझसे नही चलाई जा रही अब मैं देखूँगी.

मैं : ठीक है

वो अब भी मेरी गोद मे बैठी थी ऑर नीचे देख रही थी लेकिन उसकी आँखें बंद थी उसने अपने दोनो हाथ मेरे हाथो पर रखे हुए थे मैं काफ़ी देर ऐसे ही कार चलाता रहा ऑर वो बस मेरी गोद मे बैठी रही बीच-बीच मे उसकी साँस तेज़ हो जाती ऑर वो गान्ड को हिलाने लगती जैसे उसको अंदर से झटके लग रहे हो ऑर फिर शांत होके बैठ जाती लेकिन ज़ुबान से वो एक दम खामोश थी. अब मेरा लंड भी दर्द करने लग गया था क्योंकि वो हीना की गान्ड के नीचे मुड़ा पड़ा था इसलिए उसको अपनी गोद से उठाने के लिए मैने उससे पूछा...

मैं : अब काफ़ी वक़्त हो गया है बाकी कल सीख लेना अब घर चलें.

हीना : हमम्म (वो अब भी मुँह नीचे किए ऑर नज़रें झुकाए बैठी थी)

हीना अब भी मेरी गोद मे ही बैठी थी शायद वो उठना नही चाहती थी इसलिए मैने भी उससे उठने के लिए नही कहा ऑर ऐसे ही गाड़ी घुमा दी. अब गाड़ी मैदान से निकलकर उसी उबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते पर थी जहाँ से हम आए थे. मैं सोच रहा था कि यहाँ शायद हीना मुझे उतरने के लिए कहेगी इसलिए कुछ पल के लिए कार रोकदी ऑर उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा लेकिन वो कुछ नही बोली ऑर ऐसे ही मुँह नीचे किए हुए बैठी रही इसलिए मैने भी बिना कुछ बोले उस रास्ते की तरफ गाड़ी बढ़ा दी. रास्ता कच्चा होने से गाड़ी फिर से उछल्ने लगी ऑर साथ ही हिना भी उच्छलने लगी एक जगह ऐसी आई जहाँ कार ज़ोर से उच्छली साथ ही हीना भी काफ़ी उपर को उछल गई जिसको मैने कमर मे हाथ डालकर पकड़ लिया ऑर सिर पर छत लगने से बचाया. लेकिन उसके उच्छलने से मेरे लंड को खड़े होके अपना सिर उठाने की जगह मिल गई वो किसी डंडे की तरह कार की छत की तरफ मुँह किए खड़ा हो गया जिस पर हीना बैठ गई ऑर एक तेज़ सस्स्सस्स के साथ उसने सामने देखा ऑर मेरे हाथो पर अपनी उंगलियो के नाख़ून गढ़ा दिए जिससे मुझे भी दर्द हुआ ऑर मेरा हाथ छिल गया शायद मेरा लंड उसकी गान्ड की छेद पर चुभा था जिसकी वजह से उससे बेहद दर्द हुआ अगर हम दोनो की सलवार बीच मे ना होती तो मेरा लंड सीधा उसकी गान्ड मे ही घुस जाता अभी मैं अपने ख्यालो मे ही था कि मुझे हीना की आवाज़ आई

हीना : रोको....रोको....कार रोको...ससस्स आई....मेरे सिर मे लगी बहुत दर्द हो रहा है (मैं जानता था वो झूठ बोल रही है क्योंकि छत तक उसके सिर को मैने पहुँचने ही नही दिया था तो लगती कैसे)

मैं : क्या हुआ ठीक तो हो.

हीना : कुछ नही मुझे उधर बैठने दो नही तो फिर से च्चत सिर मे लग जाएगी रास्ता खराब है इसलिए अब आप ही चलाओ बाकी मैं कल सीख लूँगी

मैं : ठीक है

मैने कार रोकी ऑर वो बाहर निकलकर साथ वाली सीट पर आके बैठ गई मैं लगातार उसके चेहरे को ही देख रहा था लेकिन उसकी नज़र एक दम सामने थी उसके चेहरे पर अब भी दर्द महसूस हो रहा था हालाकी वो अपने दर्द ज़ाहिर नही कर रही थी फिर भी उसके चेहरे से सॉफ पता चल रहा था कि उसको अब भी तक़लीफ़ हो रही है. उसकी तक़लीफ़ मेरे लंड से भी देखी नही गई ऑर वो भी बैठने लगा मैं मन ही मन अपने लंड को गालियाँ दे रहा था कि साले इतनी ज़ोर से घुसने की क्या ज़रूरत थी हल्के-फुल्के मज़े भी तो ले सकता था. ऐसे ही खुद से बाते करते हुए मैं कार चलाने लगा सारे रास्ते हम खामोश रहे हम दोनो मे उसके बाद कोई बात नही हुई. थोड़ी देर मे हवेली भी आ गई ऑर कार को देखते ही सरपंच के आदमियो ने बड़ा गेट खोल दिया जिससे कार अंदर आ सके. सामने सरपंच बाग मे टहल रहा था शायद वो हीना का ही इंतज़ार कर रहा था हमें देखकर सरपंच भी तेज़ कदमो के साथ हमारी तरफ आने लगा. मैने कार खड़ी की ऑर चाबी निकालकर सरपंच की तरफ बढ़ने लगा मेरे साथ ही हीना भी सरपंच के पास आ गई.

मैं : ये लीजिए सरपंच जी आपकी अमानत (कार की चाबी सरपंच को देते हुए)

सरपंच : कैसा रहा पहला दिन (मुस्कुराते हुए)

मैं : जी ये तो हीना जी ही बता सकती है

हीना : बहुत अच्छा था अब्बू अब तो मुझे स्टारिंग संभालना भी आ गया है थोड़ा-थोड़ा. (मुस्कुराते हुए)

सरपंच : अर्रे आएगा कैसे नही तुम तो मेरी बहुत होशियार बेटी हो (हीना के सिर पर हाथ रखते हुए)

मैं : अच्छा जी अब इजाज़त दीजिए घर मे सब इंतज़ार कर रहे होंगे

सरपंच: अर्रे ऐसे कैसे नही-नही खाना यही ख़ाके जाना

हीना : हाँ नीर जी खाना यहीं ख़ाके जाना

मैं : जी आज नही फिर कभी आज मैं घर बोलकर आया हूँ इसलिए सब लोग मेरा खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे.

सरपंच : अर्रे बचा-खुचा तो रोज़ खाते हो आज हमारे यहाँ शाही खाना भी खा के देखो तुमने जिंदगी मे कभी नही खाया होगा.

हीना : (बीच मे बोलते हुए) अब्बू आप फिर शुरू हो गये...मैने आपको कुछ समझाया था अगर याद हो तो...

सरपंच : अच्छा ठीक है नही बोलता बस अब तो खुश (इतना कहकर सरपंच अंदर चला गया)

मैं : ठीक है हीना जी कल मुलाक़ात होगी अब इजाज़त दीजिए.

हीना : अब्बू के इस तरह के बर्ताव के लिए माफी चाहती हूँ

मैं : अर्रे कोई बात नही आप माफी मत मांगिए....

हीना : वैसे अगर यहाँ खाना खा जाते तो बेहतर होता (मुस्कुराते हुए)

मैं : आज नही फिर कभी आपकी रोटी उधार रही हम पर (मुस्कुराते हुए) अच्छा अब इजाज़त दीजिए.

हीना : अच्छा जी कल मिलेंगे फिर.... (हाथ हिलाते हुए मुस्कुराकर)

इतना कहकर मैं गेट की तरफ बढ़ गया ऑर हीना वही खड़ी मुझे देखती रही. गेट पर खड़े मुलाज़िम ने छोटा दरवाज़ा मेरे जाने के लिए खोल दिया ऑर मैं हवेली से बाहर निकल गया मैं अपनी सोचो मे गुम था ऑर मेरे कदम घर की तरफ बढ़ रहे थे. मेरे दिमाग़ मे इस वक़्त कई सवाल थे जिनके जवाब मुझे जानने थे. कहाँ मैं फ़िज़ा के साथ था ऑर बीच मे ये नाज़ी ऑर हीना कहा से टपक पड़ी ऑर अब ना तो मैं पूरी तरह नाज़ी के साथ था ना ही फ़िज़ा के साथ ऑर ना ही हीना के साथ ये तीनो ही मुझे एक जैसी लगने लगी थी. तीनो मेरे लिए फ़िकरमंद रहती थी ओर मेरा ख्याल रखने की पूरी कोशिश करती थी मुझे समझ नही आ रहा था कि तीनो मे किसको अपना कहूँ ऑर किसको बेगाना समझकर भूल जाउ.

अपनी ही सोचो मे गुम कब मैं घर पहुंच गया मुझे पता ही नही चला. जब घर आया तो नाज़ी ऑर फ़िज़ा घर के बाहर ही खड़ी थी शायद वो मेरा ही इंतज़ार कर रही थी. उनको मैने एक नज़र देखा तो दोनो ने ही अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया.

नाज़ी : ये क्या तुम पैदल आए हो तुम तो कार पर गये थे ना.

मैं : अर्रे हीना जी को छोड़कर भी तो आना था इसलिए कार भी वापिस वही दे आया

फ़िज़ा : ये सरपंच ने तुमको पैदल ही भेज दिया उससे इतना भी नही हुआ कि किसी मुलाज़िम को कहकर तुमको घर तक कार पर छोड़ जाए उसकी साहबज़ादी को मुफ़्त मे कार चलानी सीखा रहे हो.

मैं : अर्रे कोई बात नही पैदल आ गया तो क्या हो गया.

नाज़ी : बाप-बेटी दोनो एक जैसे हैं अहसान-फारमोश कही के.

मैं : अर्रे तुम दोनो के सवाल-जवाब ख़तम हो गये हो तो मुझे अंदर जाने दो यार भूख लगी है.

नाज़ी : हमम्म चलो हमने भी तुम्हारी वजह से खाना नही खाया. (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : चलो पहले तुम नहा लो फिर हम खाना खा लेंगे तब तक मैं खाना गरम करती हूँ

कुछ देर बाद मे मैं नहा लिया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना भी गरम कर दिया ऑर सब खाना टेबल पर लगा दिया था. हम तीनो खाना खाने बैठ गये.

नाज़ी : तो क्या सिखाया उस हेरोयिन को मास्टर जी ने (मुस्कुराते हुए)

मैं : कार ही सिखानी थी वही सिखाई ऑर क्या

फ़िज़ा : फिर सीख गई ना वो कार चलानी

मैं : अभी इतनी जल्दी कहा अभी तो कुछ दिन लगेंगे

नाज़ी : हाए तो क्या रोज़ा जाओगे उस भूंतनी को सिखाने के लिए?

मैं : हमम्म अब तो रोज़ इसी वक़्त ही घर आउन्गा कुछ दिन.

फ़िज़ा : ये बाबा भी ना इतना नही देखते कि एक अकेला इंसान सारा दिन खेत मे काम करके आया है अब उसको एक नये कम पर और लगा दिया है.

मैं : अर्रे तो क्या हो गया मैने कभी तुमको शिकायत तो नही की ना...

फ़िज़ा : यही तो रोना है तुम कभी शिकायत नही करते. लेकिन हमें तो दिखता है ना तुम हमारे लिए कितनी मेहनत करते हो जो काम किसी ओर इंसान के थे वो काम तुमको करने पड़ रहे हैं.

मैं : (मुस्कुराते हुए) कोई बात नही... मैं बहुत खुश-नसीब समझता हूँ खुद को जो मुझे इतने अच्छे घरवाले मिले तुम लोगो के लिए तो कुछ भी कर सकता हूँ.

नाज़ी : किस्मत तो हमारी अच्छी है जो हम को तुम मिल गये

मैं : अच्छा-अच्छा अब ज़्यादा बाते ना बनाओ ऑर चुप करके खाना खाओ.
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07-30-2019, 01:16 PM,
#25
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-23


फिर हम तीनो खामोश हो गये ऑर चुप-चाप खाना खाने लगे. तभी मुझे कुछ रेंगता हुआ अपने लंड पर चढ़ता महसूस हुआ मेरी फॉरन नज़र नीचे चली गई तो एक गोरा सा पैर मुझे अपने लंड पर पड़ा हुआ महसूस हुआ जो मेरे लंड को दबा रहा था मेरी नज़र फॉरन उपर को गई तो फ़िज़ा खाना खा रही थी ऑर साथ मे मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी. मैं समझ गया कि ये पैर फ़िज़ा का ही है जो मेरी ही हरकत मुझ पर दोहरा रही है. कुछ देर बाद मुझे उसका दूसरे पर भी अपने उपर महसूस हुआ अब वो दोनो पैर से मेरे लंड को रगड़ रही थी ऑर दबा रही थी. मुझे मज़ा भी आ रहा था ऑर दर्द भी हो रहा था क्योंकि हीना काफ़ी देर लंड पर गान्ड रखकर बैठी रही थी अब फ़िज़ा भी लंड को दबा रही थी इसलिए मैने उसके दोनो पैर वहाँ से हटा दिए ऑर उसकी तरफ देखकर नही मे सिर हिलाया. उसको लगा शायद मैं अब तक रात को उसके ना आने की वजह से नाराज़ हूँ इसलिए उसने फिर से अपने एक कान पर हाथ लगाए ऑर मिन्नत भरी नज़रों से मुझे देखा जिसका मैने बिना कोई जवाब दिए नज़रें खाने की प्लेट पर कर ली ऑर खाना खाने लगा. थोड़ी देर हम ऐसे ही खाना खा रहे थे कि फ़िज़ा ने चमच नीचे गिरा दिया...

फ़िज़ा : नीर मेरा चमच गिर गया ज़रा उठाके देना
मैं : अच्छा रूको देता हूँ.

मैं जैसे ही नीचे झुका मुझे फ़िज़ा का हाथ नज़र आया जो उसने अपनी गोद मे रखा हुआ था उसने मेरे नीचे झुकते ही कमीज़ को एक तरफ किया ऑर अपनी दोनो टांगे चौड़ी कर ली ऑर मुझे उंगली से पास बुलाने लगी मैं जैसे ही पास गया तो उसने मेरे बालो को पकड़ लिया ऑर मेरा मुँह अपनी चूत पर दबा दिया ऑर अपनी दोनो टांगे बंद कर ली. उसकी चूत की खुश्बू मुझे मेरी सांसो मे जाती महसूस हुई ऑर मैं मदहोश होने लगा मेरा लंड एक बार फिर से सिर उठाने लगा लेकिन तभी उसने मेरा मुँह हटा दिया ऑर मेरे बाल छोड़ दिए. मैने उसका गिराया हुआ चमच उठाया ओर वापिस उपर आके बैठ गया.

मैं : ये लो तुम्हारा चम्मच

फ़िज़ा : मिल गया था ना (मुस्कुराते हुए आँख मार कर)

मैं : हमम्म

मैं वापिस खाना खाने मे लग गया तभी फ़िज़ा ने फिर से मेरे आधे खड़े लंड पर अपने दोनो पैर रख दिए ऑर पैरो से मेरे लंड को पकड़ लिया ऑर उपर नीचे करने लगी ये मज़ा मेरे लिए एक दम नया था इसलिए मेरा लंड उसके इस तरह करने से एक दम खड़ा हो गया जिससे फ़िज़ा अपने पैरो की मदद से बार-बार उपर नीचे कर रही थी. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए मैं मुस्कुरा कर फ़िज़ा को देख रहा था साथ मे खाना खा रहा था इस पूरे अमल मे हम तीनो खामोश थे तभी नाज़ी बोली...

नाज़ी : भाभी मैं सोच रही थी क्यो ना मेरा कमरा हम नीर को दे-दें वैसे भी मैं तो आपके पास सोती हूँ रात को.

फ़िज़ा : (एक दम अपने पैर मेरे लंड से हटाते हुए) हम्म ठीक है... तुमको कोई ऐतराज़ तो नही (मेरी तरफ सवालिया नज़रों से देखते हुए)

मैं : नही जैसा आप दोनो ठीक समझो मुझे तो सोना है कही भी सो जाउन्गा मेरे लिए तो ये कोठरी भी अच्छी थी. (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : ठीक है कल फिर जब तुम खेत चले जाओगे तो मैं तुम्हारे लिए नाज़ी वाला कमरा तेयार कर दूँगी.

नाज़ी : मैं अभी कर देती हूँ ना खाना खाने के बाद वैसे भी मेरे पास काम ही क्या है.

फ़िज़ा : नही अभी बहुत रात हो गई है कल मैं तुम्हारे पिछे से सब कर दूँगी.

नाज़ी : ठीक है जैसे आपकी मर्ज़ी. (मुस्कुराते हुए)

उसके बाद हम तीनो ने अपना खाना ख़तम किया ऑर फ़िज़ा ने भी कोई हरकत नही की मेरे साथ शायद वो नाज़ी के एक दम बोलने से डर गई थी. खाने के बाद मैं बाबा के पास चला गया ऑर उसके पैर दबाने लगा ऑर नाज़ी ऑर फ़िज़ा रसोई मे अपना बाकी काम ख़तम करने लग गई. थोड़ी देर बाद नाज़ी कमरे मे आ गई मेरा बिस्तर करने के लिए तब तक बाबा भी सो चुके थे ऑर मैने भी कमरे से बाहर निकलने की सोची आज मेरा लंड मुझे काफ़ी परेशान कर रहा था इसलिए मैने सोचा क्यो ना जब तक नाज़ी मेरा बिस्तर करती है थोड़े से फ़िज़ा के साथ मज़े लिए जाए इसलिए वहाँ से मैं जाने लगा तो नाज़ी ने मुझे रोक लिया....

नाज़ी : कहाँ जा रहे हो

मैं : ऐसे ही कहीं नही ज़रा बाहर टहलने जा रहा था

नाज़ी : मेरे पास ही बैठो ना बाते करते हैं

मैं : हमम्म ठीक है (मैं फ़िज़ा के पास जाना चाहता था लेकिन नाज़ी ने मुझे वही बिठा लिया इसलिए मैं बाहर नही जा सका.)

नाज़ी : जानते हो तुम बहुत अच्छे हो सबके बारे मे सोचते हो.

मैं : तुम भी बहुत अच्छी हो....

नाज़ी : अच्छा जी मुझे तो पता ही नही था. (हँसते हुए)

मैं : तुमको बुरा तो नही लगा आज (मैं खेत मे चूमने के बारे मे पूछ रहा था)

नाज़ी : (ना मे सिर हिलाते हुए) उउउहहुउ....

मैं : फिर से कर लूँ (हँसते हुए)

नाज़ी : थप्पड़ खाना है...(मुस्कुराते हुए)

मैं : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म

नाज़ी : (सिर हिलाके पास आने का इशारा करते हुए)

मैं नाज़ी के सामने जाके खड़ा हो गया ऑर उसका एक हाथ खुद ही पकड़ कर अपने गाल पर मारने लगा जिसे नाज़ी ने दूसरे हाथ से पकड़ लिया ऑर ना मे सिर हिलाया फिर मेरा मुँह एक हाथ से पकड़कर मेरी गाल को चूम लिया लेकिन बहुत हल्के से.

नाज़ी : अब खुश...

मैं : मज़ा नही आया (अपने गाल को सहला कर ना मे सिर हिलाते हुए)

नाज़ी : बाकी कल... ठीक है (मुस्कुराते हुए)

मैं : और आज का क्या....

नाज़ी : आज का हो चुका है अगर याद हो तो... (मुस्कुराते हुए) चलो अब बाहर जाओ मुझे काम करने दो कब्से तंग कर रहे हो.

मैं : तुमने ही कहा था मेरे पास बैठो बातें करते हैं.

नाज़ी : तो मैने बात करने का बोला था वो सब नही..... गंदे (मुँह बनाते हुए)


ऐसे ही हँसता हुआ मैं बाहर आया ऑर सीधा फ़िज़ा के पास चला गया जो बर्तन धो रही थी. मैं चुपके से पिछे से गया ऑर उसको पिछे से पकड़ लिया जिससे वो एक दम डर गई ऑर हाथ मे पकड़ी हुई थाली ज़मीन पर गिरा दी. तभी नाज़ी की आवाज़ आई...

नाज़ी : (कमरे मे से ही आवाज़ लगाके ) क्या हुआ भाभी...

फ़िज़ा : (चिल्लाती हुई) कुछ नही नाज़ी एक मोटा सा चूहा चढ़ गया था मुझपर ( मेरे गाल पकड़ते हुए) मैं डर गई तो थाली गिर गई हाथ से.

नाज़ी : अच्छा....

फ़िज़ा : (धीमी आवाज़ मे) ये कोई तरीका है किसी को प्यार करने का डरा दिया मुझे.

मैं : (हँसते हुए) ठीक है अगली बार आवाज़ लगाता हुआ आउन्गा कि फ़िज़ा मैं आ रहा हूँ.

फ़िज़ा : जी नही ढिंढोरा पीटने को तो नही कहा मैने बस ऐसे अचानक ना पकड़ा करो मैं डर जाती हूँ.

मैने तमाम बात-चीत के दौरान फ़िज़ा को पिछे से पकड़ा हुआ था ऑर वो साथ-साथ बर्तन धो रही थी साथ मे मुझसे बातें भी कर रही थी.

मैं : जान कल आई नही तुम सारी रात मैं तुम्हारा इंतज़ार करता था (रोने जैसी शक़ल बनाके)

फ़िज़ा : हाए....(मेरी गाल को चूमते हुए) मेरी जान मेरा इंतज़ार कर रहे थे. मैने तो सुना था बहुत मज़े से सोए रात को. (हँसते हुए)

मैं : मज़ाक ना करो यार बताओ क्यो नही आई

फ़िज़ा : मैं क्या करती रात को नाज़ी सोने का नाम ही नही ले रही थी कैसे आती... आधी रात को इसको नहाना याद आ गया... जानते हो सारी रात मैं बस इसके सोने का ही इंतज़ार करती रही.

मैं : खैर जाने दो कोई बात नही.

फ़िज़ा : अच्छा सुनो मैने हमारे मिलने के बारे मे कुछ सोचा है.

मैं : क्या सोचा है.

फ़िज़ा : मेरी एक सहेली है फ़ातिमा नाम की उसकी सास ये नींद की दवाई खाती है (मुझे एक दवाई का पत्ता दिखाते हुए)

मैं : तो इस दवाई का हम क्या करेंगे.

फ़िज़ा : रात को मैं एक गोली नाज़ी को दूध मे मिलाके सुला दूँगी फिर वो सुबह से पहले नही उठेगी ऑर हम रात भर मज़े करेंगे (मुस्कुरकर मेरी गाल चूमते हुए)

मैं : कुछ गड़-बॅड तो नही होगी

फ़िज़ा : कुछ नही होगा फिकर मत करो मैने अपनी सहेली से सब पूछ लिया है.

मैं : क्या पूछा अपनी सहेली से ऑर क्या कहा तुम्हारी सहेली ने?

फ़िज़ा : उसकी सास ये दवाई इसलिए खाती है क्योंकि उसको नींद ना आने की बीमारी है ऑर मैने ये बोलकर ये दवाई ली है कि हमारे बाबा को भी नींद बहुत कम आती है तो उसने खुद ही मुझे ये पत्ता दे दिया ऑर कहा कि जब बाबा को नींद ना आए तो उनको 1 गोली दूध के साथ दे देना वो सो जाएँगे आराम से.

मैं : तुम्हारी सहेली को हम पर शक़ तो नही हुआ?

फ़िज़ा : (ना मे सिर हिलाते हुए) तुम अपनी फ़िज़ा को इतनी पागल समझते हो

मैं : अच्छा ठीक है जैसा तुम ठीक समझो (फ़िज़ा का गाल चूमते हुए)

फ़िज़ा : चलो अब तुम बाहर जाओ नाज़ी आने वाली होगी हम रात को मिलेंगे ठीक है

मैं : अच्छा जाता हूँ (जाते हुए फ़िज़ा के दोनो मम्मों को दबाते हुए)

फ़िज़ा : (दर्द से) सस्स्स्सस्स रात को आना फिर बताउन्गी (हँसते हुए)

मैं रसोई से बाहर निकल गया ऑर वापिस अपने कमरे मे आ गया नाज़ी अभी तक मेरे कमरे मे ही थी ऑर अलमारी से मेरे कपड़े निकाल रही थी...

मैं : ये क्या कर रही हो नाज़ी

नाज़ी : कुछ नही....तुमको कल मेरे वाला कमरा देना है तो तुम्हारे कपड़े मेरे कमरे मे रखने जा रही हूँ.

मैं : अच्छा...लेकिन ये काम तो फ़िज़ा भी कर सकती थी.

नाज़ी : हर काम भाभी को बोलते हो अगर कोई काम मैं कर दूँगी तो क्या हो जाएगा.

मैं : तुमसे तो बहस करना ही बेकार है जो दिल मे आए वो करो बस्स्स्स

नाज़ी : हमम्म जब जीत नही सकते तो लड़ते क्यो हो. (मुस्कुराते हुए)

मैं : अच्छा अब जल्दी-जल्दी ये सब ख़तम करो फिर मुझे सोना है बहुत थक गया हूँ इसलिए नींद आ रही है

नाज़ी : अच्छा मैं बस जा रही हूँ तुम सो जाओ आराम से.

थोड़ी देर मे नाज़ी मेरे सारे कपड़े लेके चली गई ऑर मैं बिस्तर पर लेटा फ़िज़ा का इंतज़ार करने लगा साथ ही दिन भर जो कुछ हुआ उसके बारे मे सोचकर मुस्कुरा रहा था. मेरा दिमाग़ कभी नाज़ी के बारे मे सोच रहा था कभी फ़िज़ा के बारे मे तो कभी हीना के बारे मे क्योंकि ये तीनो ही मेरी जिंदगी मे एक अजीब सी खुशी लेके आई थी तीनो ही अपनी-अपनी जगह पर कमाल-धमाल थी खूबसूरती मे कोई किसी से कम नही थी. इन्ही तीनो के बारे मे सोचते हुए जाने कब मैं सच मे सो गया मुझे पता ही नही चला.

मुझे लेटे हुए काफ़ी देर हो गई थी ऑर मुझे पता नही चला कि कितनी देर से मैं सो रहा था लेकिन अचानक किसी के गाल थप-थपाने से मेरी आँख खुल गई अंधेरा होने की वजह से मैं देख नही पा रहा था कि ये कौन है तभी मुझे एक मीठी सी आवाज़ आई...

फ़िज़ा : जान सो गये थे क्या

मैं : हाँ आँख लग गई थी शायद नाज़ी सो गई क्या

फ़िज़ा : हाँ आज तो सुला ही दिया उसको... मुझे लग ही रहा था तुम सो गये होगे क्योंकि मैं कितनी देर से खड़ी तुमको बाहर से बुलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन तुम कोई जवाब ही नही दे रहे थे... खैर जाने दो ये बताओ नींद आई है क्या?

मैं : नही अब तो मैं जाग गया हूँ...तुम खड़ी क्यो हो बैठो ना

फ़िज़ा : उऊहहुउ मैं बैठने नही आई चलो बाहर कहीं बाबा भी ना जाग जाए.

मैं : रुक जाओ पहले अपनी जान को गले तो लगा लून (फ़िज़ा की बाजू पकड़कर ज़ोर से अपनी तरफ खींचा जिससे वो मेरे उपर धडाम से गिर गई)

फ़िज़ा : ऑह्हूनो जान मैं मना तो नही कर रही हूँ...लेकिन यहाँ नही बाहर चलो ना...(मेरी गाल को सहलाते हुए)

मैं : अच्छा चलो....


हम दोनो एक दूसरे का हाथ पकड़कर बाहर आ गये लेकिन फिर फ़िज़ा ने कमरे से बाहर आके मुझे हाथ से रुकने का इशारा किया ऑर वापिस कमरे मे अंदर चली गई ऑर बाबा के बिस्तर के पास खड़ी होके उनको देखने लगी शायद वो ये तसल्ली कर रही थी कि बाबा सोए या नही फिर वो मुझे लेके अपने कमरे की तरफ गई ऑर मुझे बाहर खड़ा करके अंदर चली गई ऑर नाज़ी जो उसके ही बेड पर सोई हुई थी उसको अच्छे से देखकर आई फिर वापिस आके अपने कमरे को बाहर से बंद किया ऑर कुण्डी लगा दी ऑर मेरी तरफ पलटकर मुस्कुराने लगी साथ ही अपनी दोनो बाजू हवा मे उठा दी. मैने भी आगे बढ़कर उसको अपने गले से लगा लिया ऑर हमेशा की तरह उसको गले से लगाकर सीधा खड़ा हो गया जिससे उसके पैर हवा मे झूल गये उसने भी अपनी दोनो बाजू मेरे गले हार की तरह डाल रखी थी ऑर मेरी गर्दन पर लटकी सी हुई थी मैने उसको उसकी कमर से पकड़ रखा था ऑर हम ऐसे ही चल भी रहे थे ऑर एक दूसरे के गाल भी चूम रहे थे. पहले मैने उससे हमारे खाना खाने वाली टेबल पर बिठा दिया वो अब भी मुझे वैसे ही पकड़ी हुई थी ऑर बार-बार मेरे दोनो गालो को चूम रही थी.
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07-30-2019, 01:16 PM,
#26
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-24

फ़िज़ा : जान तुम्हारे बिना अब एक पल भी चैन नही आता मुझसे नाराज़ ना हुआ करो

मैं : मैं कब नाराज़ हुआ तुमसे?

फ़िज़ा : (मेरे दोनो गाल पकड़कर) अच्छा...सुबह जब मैं कान पकड़ कर माफियाँ माँग रही थी तब मेरी तरफ कौन नही देख रहा था बताओ ज़रा.

मैं : अच्छा...वो मैं तो ऐसे ही तुमको तंग कर रहा था

फ़िज़ा : जान बहुत मुश्किल से तुम मुझे मिले हो तुम नाराज़ होते हो तो दिल करता है सारी दुनिया ने मुझसे मुँह मोड़ लिया है तुम नही जानते मैं तुमको कितना प्यार करती हूँ तुम तो मेरे सब कुछ हो.

मैं : अच्छा.... बताओ कितना प्यार करती हो (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : प्यार बताया नही करके दिखाया जाता है (मुस्कुरकर मेरे होंठों को चूमते हुए)

मैं : तो करके ही दिखा दो वैसे भी अब तो तुम्हारा ही हूँ मैं.

फ़िज़ा : जान यहाँ नही उपर कोठरी मे चलते हैं ना

मैं : ठीक है फिर मैं लेके जाउन्गा तुमको....मंज़ूर है

फ़िज़ा : (कुछ ना समझने जैसा चेहरा बनाते हुए) क्या.....

मैं : (फ़िज़ा को गोद मे उठाते हुए) ऐसे.....

फ़िज़ा : (डर कर चोन्क्ते हुए) जाआंणन्न्.......

मैं : क्या है डर क्यो रही हो..... गिरोगी नही

फ़िज़ा : (मुस्कुराकर अपनी दोनो बाजू मेरे गले मे डालते हुए) एम्म्म जानती हूँ.... तुमने एक दम उठाया तो डर गई थी. जानते हो मुझे आज तक किसी ने भी ऐसे नही उठाया.

मैं Sadफ़िज़ा को गोद मे उठाके सीढ़िया चढ़ते हुए) किसी ने भी नही...

फ़िज़ा : (ना मे सिर हिलाते हुए)

मैं : चलो अब से हम जब भी कोठरी मे जाएँगे ऐसे ही जाएँगे....

फ़िज़ा : जो हुकुम मेरी सरकार का..... (हँसते हुए)

मैं : (अपना जुमला फ़िज़ा के मुँह से सुनकर हँसते हुए) मेरी बिल्ली मुझे ही मियउूओ....

फ़िज़ा : हमम्म जान भी मेरा.... मेरी जान के जुमले भी मेरे (मुस्कुराते हुए)

मैं : जान कोठरी का दरवाज़ा खोलो

फ़िज़ा : पहले मुझे नीचे तो उतारो फिर खोलती हूँ

मैं : उउउहहुउऊ ऐसे ही खोलो

फ़िज़ा : (अजीब सा मुँह बनके कोठारी की कुण्डी खोलते हुए) जान आप भी ना.....



हम दोनो अब कोठरी मे आ गये थे ऑर फ़िज़ा अब भी मेरी गोद मे ही थी. मैं चारो तरफ नज़र घुमा रहा था ताकि फ़िज़ा को लिटा सकूँ लेकिन वहाँ लेटने की कोई भी जगह नही थी ऑर ज़मीन भी मिट्टी से गंदी हुई पड़ी थी.

फ़िज़ा : क्या हुआ जान

मैं : जान लेटेंगे कहाँ यहाँ तो बिस्तर भी नही है

फ़िज़ा : जान वो जिस दिन तुम शहर से आए थे, तब नाज़ी उपर आई थी ना तो उसने यहाँ बिस्तर पड़ा देखा था जो उसने रात को उठाके नीचे रख दिया था क्योंकि अब तुम भी नीचे ही सोते हो

मैं : तो मैं अपनी जान को प्यार कहाँ करूँ फिर...

फ़िज़ा : आप मुझे नीचे उतारो मैं नीचे से जाके बिस्तर ले आती हूँ जल्दी से

मैं : म्म्म्ममम (कुछ सोचते हुए) रहने दो ऐसे ही कर लेंगे

फ़िज़ा : जान जिस्म ऑर कपड़े गंदे हो जाएँगे ऐसे तो...देख नही रहे यहाँ कितनी धूल है.

मैं : खड़े होके करेंगे ना.... (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : (कुछ ना समझने जैसा मुँह बनाते हुए) खड़े होके कैसे करेंगे.

मैं : तुम बस देखती जाओ.

फ़िज़ा : अच्छा मुझे नीचे तो उतारो....जान ऐसे मज़ा नही आएगा.... बस 2 मिंट लगेंगे मैं बिस्तर ले आती हूँ ना...

मैं : अच्छा ठीक है ये लो... (गोदी से फ़िज़ा को उतारकर ज़मीन पर खड़ी करते हुए)


फ़िज़ा तेज़ कदमो के साथ वापिस नीचे चली गई ऑर मैं कोठारी का उपर वाला गेट खोल कर बाहर की ठंडी हवा का मज़ा लेने लगा अभी कुछ ही देर हुई थी कि मुझे किसी की सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ आई मैने एक बार मुड़कर देखा तो ये फ़िज़ा थी जिसके हाथ मे एक गद्दा ऑर एक चद्दर ऑर एक तकिया था. आते ही उसने एक प्यार भरी मुस्कान के साथ मुझे देखा ऑर आँखों के इशारे से मुझे बिस्तर दिखाया.

मैं : लाओ मैं बिछा देता हूँ

फ़िज़ा : जान आप रहने दो मैं कर लूँगी.

मैं : कोई बात नही दोनो करेंगे तो जल्दी हो जाएगा


फिर हम दोनो मिलकर जल्दी से बिस्तर बिच्छाने लगे बिस्तर के होते ही फ़िज़ा जल्दी से खड़ी हो गई ऑर अपना दुपट्टा साइड पर रख दिया जो अब भी उसके गले मे लटक रहा था फिर हम दोनो जल्दी से बिस्तर पर बैठ गये तो उसने मुझे धक्का देकर बिस्तर पर लिटा दिया ऑर खुद मेरे उपर आ गई.

मैं : आज क्या बात है बहुत जल्दी मे हो.

फ़िज़ा : मुझसे ऑर इंतज़ार नही हो रहा (मेरा चेहरा चूमते हुए)


मेरा चेहरा चूमते हुए फ़िज़ा सीधा मेरे होंठों पर आई ऑर उसने जल्दी से अपना मुँह खोल कर मेरे दोनो होंठ अपने मुँह मे क़ैद कर लिए ऑर बुरी तरह चूसने लगी उसकी साँस लगातार तेज़ हो रही थी ऑर उसके चूमने मे शिद्दत सी आती जा रही थी अब वो बहुत प्यार से मेरे होंठों को चूस रही थी साथ ही अपनी ज़ुबान मेरे दोनो होंठ पर फेर रही थी हम दोनो की मज़े से आँखें बंद थी कुछ देर मेरे होंठ चूसने के बाद उसने मेरे मुँह के अंदर अपनी रसीली ज़ुबान दाखिल कर दी जिसे मैने मुँह खोलकर अपने मुँह मे जाने का रास्ता दे दिया ऑर मज़े से उसकी ज़ुबान चूसने लगा बहुत मीठा-मीठा सा ज़ाएका था उसकी ज़ुबान का. ज़ुबान चूस्ते हुए उसने मेरे दोनो हाथ अपने हाथ मे पकड़े ऑर अपनी कमर पर रख दिए. मैं कभी उसकी ज़ुबान चूस रहा था कभी उसके रस से भरे हुए होंठ ऑर साथ ही उसकी कमर पर अपने दोनो हाथ फेर रहा था लेकिन आज मुझे उसकी कमीज़ के बीच मे कुछ चुभ रहा था....

मैं : (अपना मुँह उसके मुँह से अलग करते हुए) जान ये क्या है हाथ पर चुभ रहा है

फ़िज़ा : ज़िप्प है जान आज मैने आपके लिए नया सूट पहना है (मुस्कुराते हुए) खोल दो परेशानी हो रही है तो... (वापिस मेरे होंठों पर अपने होंठ रखते हुए)


हम फिर से एक दूसरे के होंठ चूसने लगे मैं अपना हाथ लगातार उपर की तरफ ले जा रहा था ताकि मुझे ज़िप्प का जोड़ मिल सके तभी मेरा हाथ फ़िज़ा के गले पर पहुँचा तो मुझे उसका जोड़ मिल गया जिसको मैं खींचता हुआ नीचे तक ले गया अब उसकी पूरी पीठ एक दम बे-परदा थी ऑर मेरे हाथो का अहसास उसे अपनी नंगी पीठ पर होते ही उसने एक ठंडी आअहह भारी ऑर फिर से मेरे मुँह से अपना मुँह जोड़ दिया मैं अब लगातार उसकी पीठ पर हाथ फेर रहा था लेकिन बार-बार उसकी ब्रा का स्टाप मेरे हाथो से टकरा रहा था इसलिए मैने उसको भी खोल दिया अब फ़िज़ा की पीठ एक दम नंगी थी जो एक दम चिकनी थी उस पर अपने हाथ ऑर अपनी उंगालिया फेरते हुए ऐसे लग रहा था जैसे किसी मखमल पर हाथ फेर रहा हूँ. उसको गले लगाते हुए मेरी उंगालिया उसके जिस्म मे धँस रही थी जिससे उससे इंतहाई मज़ा आ रहा था.


फ़िज़ा : जान जब आप मेरी पीठ पर उंगालिया गढ़ाते हो तो इंतहाई मज़ा आता है ऑर करो...

मैं : हमम्म ऐसा करो तुम उल्टी होके लेट जाओ आज मैं तुमको प्यार करूँगा तुम बस लेटी देखती रहना ठीक है

फ़िज़ा : (मेरे उपर से हटकर मेरे साथ उल्टी होके लेट ती हुई) हमम्म

अब वो उल्टी होके लेटी थी ऑर मेरे सामने उसकी दूध जैसी नरम ऑर नाज़ुक पीठ थी. मैं उसके उपर आके लेट गया ऑर उसके गले के पीछे चूमने लगा वो बस आँखें बंद किए लेटी थी मैं कभी उसके गले पर चूस रहा था कभी काट रहा था मेरे बार-बार काटने पर वो ससस्स ससस्स कर रही थी लेकिन उसने मुझे एक बार भी काटने से नही रोका शायद उसको भी मेरे इस तरह करने से मज़ा आ रहा था फिर मैं धीरे-धीरे नीचे आने लगा ऑर उसकी पीठ को चूस-चूस कर काटने लगा उसकी पूरी पीठ मेरी थूक से गीली हो गई थी लेकिन वो बस खामोश होके लेटी थी ओर मज़े से आंखँ बंद किए.

फ़िज़ा : जान अपनी ऑर मेरी कमीज़ उतार दो ना मुझे इनसे उलझल हो रही है मैं आपका जिस्म अपने जिस्म के साथ जुड़ा हुआ महसूस करना चाहती हूँ.

मैं : ठीक है रूको (मैं जल्दी से खड़ा हुआ ऑर अपने सारे कपड़े जल्दी से उतारने लगा)

फ़िज़ा : (गर्दन पीछे करके मुझे कपड़े उतारता हुआ देखती हुई) जान तुम्हारा बदन दिनो-दिन ओर भी सख़्त होता जा रहा है. (मुस्कुराते हुए)

मैं : वो खेत मे काम करता हूँ ना इसलिए....

फ़िज़ा : जानते हो अब पहले से भी ज़्यादा मज़ा आता है (मुस्कुरकर आँखें दुबारा बंद करते हुए)


मैने जैसे ही अपने सारे कपड़े उतारे ऑर फ़िज़ा के उपर लेटा तो फ़िज़ा बोली....

फ़िज़ा : जान मेरे भी आप ही उतार दो ना मुझमे अब हिम्मत नही है

मैने जल्दी से उसको सीधा करके बिस्तर पर ही उठाके बिठाया ऑर उसकी कमीज़ उतारने लगा उसने भी मेरी मदद के लिए अपनी दोनो बाहें हवा मे उठा दी. क्योंकि मैने पहले ही उसकी ब्रा का स्ट्रॅप खोल दिया था इसलिए उसकी कमीज़ के साथ उसकी ब्रा भी उतर गई ऑर उसके बड़े-बड़े ओर सख़्त मम्मे उछल्कर बाहर आ गये उसके निपल अंगूर की तरह एक दम सख़्त ऑर खड़े थे. जिसे मैं घूर-घूर कर देखने लगा मुझे इस तरफ घूरता देखकर उसके अपने दोनो हाथ अपने मम्मों पर रख लिए.

फ़िज़ा : जान ऐसे मत देखा करो मुझे शरम आती है (मुँह नीचे करके मुस्कुराते हुए)

मैं : कमाल है... मुझसे भी शरम आती है (गौर से उसका चेहरा देखते हुए)

फ़िज़ा : अच्छा लो बसस्स खुश (अपने दोनो हाथ हवा मे उठाकर)

मैं : हमम्म चलो अब लेट जाओ

फ़िज़ा : जान ये भी उतार दो ना तंग कर रही है (बच्चों जैसी मुस्कान के साथ अपनी सलवार की तरफ इशारा करते हुए)

मैने जल्दी से उसकी सलवार भी उतार दी ऑर वो जल्दी से वापिस उल्टी होके लेट गई शायद वो फिर से वही से शुरू करवाना चाहती थी जहाँ से मैने बंद किया था. इसलिए मैं भी बिना कुछ बोले उसके उपर ऐसे ही लेट गया. इस तरह बिना कपड़े के एक दूसरे के साथ जुड़ते ही हम दोनो के बदन को एक झटका सा लगा जिससे हम दोनो के मुँह से एक साथ आअहह निकल गई उसकी गान्ड बेहद नाज़ुक ऑर मुलायम थी जिसका मुझे पहली बार अहसास हुआ था. क्योंकि पहले मैं हमेशा उसके उपर की तरफ ही लेट ता था जब वो सीधी होके लेटी हुई होती थी इसलिए ये अहसास मेरे लिए नया था.

मैं : तुम्हारी गान्ड बहुत मुलायम है किसी गद्दे की तरह

फ़िज़ा : (आँखें बंद किए ही हँसते हुए) मेरा सब कुछ ही आपका है जान जो चाहे करो.

मैं वापिस थोड़ा नीचे को हुआ ऑर फिर से उसकी पीठ को चूसने चाटने ऑर काटने लगा जिससे फिर से उसके मुँह से ससस्स ससस्स निकल रहा था. अब मैं साइड से हाथ नीचे ले जाकर उसके मम्मों को भी दबा रहा था ऑर उसकी कमर पर अपने होंठ उपर नीचे फिरा रहा था साथ ही अब मैं नीचे की तरफ जा रहा था जिससे शायद उसका मज़ा बढ़ता जा रहा था इसलिए वो बार-बार अपनी गान्ड की पहाड़ियो को कभी सख़्त कर रही थी कभी उपर को उठा रही थी. तभी मैने सोचा क्यो ना इसकी गान्ड पर चूम कर देखूं मैं एक बार उसकी गान्ड पर चूम लिया जिससे उसे एक झटका सा लगा ऑर उसके मुँह तेज़ सस्स्स्सस्स निकल गया उसने पलटकर एक बार मुझे देखा फिर बिना कुछ बोले वापिस तकिये पर सिर रख दिया ऑर आँखें बंद कर ली शायद वो भी देखना चाहती थी कि मैं आगे क्या करता हूँ कुछ देर मैं ऐसे ही उसकी गान्ड को चूमता रहा फिर अचानक मैने अपना मुँह खोल कर एक बार हल्के से उसकी गान्ड की पहाड़ी को हल्का सा चूस कर काट लिया जिससे उसको इंतहाई मज़ा आया ओर उसने अपने दोनो हाथ पीछे ले-जाकर मेरा चेहरा पकड़ लिया.

फ़िज़ा : आआहह...जाअंणन्न्....

मैं : क्या हुआ अच्छा नही लगा

फ़िज़ा : बहुत अच्छा लगा तभी तो बर्दाश्त नही कर पाई.

मैं : फिर हाथ हटाओ अपने

फ़िज़ा बिना कुछ बोला उसने मेरे चेहरे के आगे से अपने हाथ हटा दिए ऑर मैं वापिस उसकी गान्ड की पहाड़ियो की चूसने ऑर काटने लगा वो बस मज़े से अपना सिर बार-बार तकिये पर मार रही थी ऑर मज़े से ऊओ....आआहह......सस्स्स्स्सस्स.....सस्स्स्स्स्सस्स..... कर रही थी. अचानक मैने उसकी दोनो गान्ड की पहाड़ियो को खोला ऑर उसमे अपना मुँह डालकर उसकी गान्ड की छेद पर अपनी ज़ुबान की नोक लगाई ऑर फॉरन सस्स्स्स्सस्स आआअहह करते हुए पलट गई ऑर मेरा चेहरा अपने हाथो से पकड़ लिया...
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07-30-2019, 01:17 PM,
#27
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-25

फ़िज़ा : जान क्या कर रहे थे पागल हो गये हो वो गंदी जगह होती है

मैं : तुमको मज़ा नही आया

फ़िज़ा : बात मज़े की नही है लेकिन सिर्फ़ मेरे मज़े के लिए तुम ऐसी जगह मुझे प्यार करो तो मुझे आपके लिए बुरा लगेगा

मैं : मैने क्या पूछा है तुमको मज़ा आया या नही....सिर्फ़ हाँ या ना मे जवाब दो

फ़िज़ा : (हाँ मे सिर हिलाते हुए)

मैं : बस फिर वापिस उल्टी होके लेट जाओ

फ़िज़ा : ठीक है अच्छा आप उंगली से कर लो बॅस लेकिन ज़ुबान नही डालना वहाँ वो गंदी जगह है आपको मेरी कसम है.

मैं : अच्छा ठीक है अब लेट तो जाओ ना...


फ़िज़ा बिना कुछ बोले वापिस उल्टी होके लेट गई ऑर मैं अपनी उंगली को अपने मुँह मे डालकर गीली करके वापिस उसकी गान्ड को खोल कर अपनी उंगली उसके छेद पर उपर नीचे घुमाने लगा जिससे उसको फिर से मज़ा आने लगा.

मैं : जान अच्छा लग रहा है?

फ़िज़ा : हमम्म्म

मैं ऐसे ही काफ़ी देर फ़िज़ा की गान्ड के छेद पर उंगली फेरता रहा ऑर उसकी गान्ड के मोटे-मोटे पहाड़ो को उपर से चूमता रहा जिसके लिए फ़िज़ा ने भी मुझे मना नही किया वो अपनी आँखें बंद किए बस ससस्स ससस्स ऑर आहह ऊओ कर रही थी. ये मज़ा हम दोनो के लिए एक दम नया था. मैं जब भी फ़िज़ा की गान्ड के छेद पर अपनी उंगली फेरता तो कभी वो अपने छेद को सख्ती से बंद कर लेती कभी खोल देती जिसको देखकर मुझे भी अच्छा लग रहा था तभी मैने सोचा क्यो ना इसके अंदर उंगली डाल दूँ इसलिए मैने छेद के खुलने का इंतज़ार किया ऑर जैसे ही उसने अपने छेद को थोड़ा सा ढीला किया तो मैने अपने नाख़ून तक उंगली उसकी गान्ड के छेद मे डाल दी जिससे शायद उससे भी मज़ा आया था उसने ज़ोर आआहह किया ऑर फिर तेज़-तेज़ साँस लेने लगी.

मैं : जान दर्द तो नही हो रही

फ़िज़ा : बहुत मज़ा आ रहा है जान उंगली को हल्का-हल्का दबाओ अच्छा लगता है ऐसे करते हो तो.

मैं उसके बोले मुताबिक अपनी उंगली को हल्के-हल्के दबाने लगा जिससे मेरी उंगली ऑर अंदर तक जाने लगी गीली होने की वजह से मेरी आधी उंगली उसकी गान्ड के अंदर थी जिसको मैं बार-बार अंदर बाहर कर रहा था तभी मुझे लगा जैसे वो नीचे अपना हाथ लेजा कर अपनी चूत मस्सल रही है शायद इसलिए उसको मज़ा आ रहा था. फिर मैं वापिस उसके उपर लेट गया ऑर उसकी गान्ड से अपनी उंगली बाहर निकाल ली. मैने सोचा क्यो ना इसकी गान्ड मे अपना लंड डाल कर देखु कि कैसा लगता है इसलिए मैने ढेर सारा थूक अपने लंड पर लगाया ऑर थोड़ा थूक ऑर उसकी गान्ड पर लगाया ऑर लंड को मैने जैसे ही गान्ड की छेद के निशाने पर रखा फ़िज़ा को एक दम झटका सा लगा ऑर वो फॉरन पलट गई.

फ़िज़ा : क्या कर रहे थे.

मैं : कुछ नही लंड डाल कर देख रहा था अंदर.

फ़िज़ा : पागल हो गये हो ये इतना बड़ा अंदर नही जाएगा

मैं : अर्रे कोशिश तो करने दो पक्का अगर नही जाएगा तो मैं नही डालूँगा ऑर वैसे भी तुमको उंगली से मज़ा आ रहा था ना तो इसलिए (लंड) से भी मज़ा आएगा.

फ़िज़ा : नही जान ये बहुत बड़ा है अव्वल तो अंदर जाएगा नही अगर ज़बरदस्ती करोगे तो मुझे बहुत दर्द होगा मैने पहले कभी पिछे लिया नही.

मैं : बस एक बार कोशिश करने दो पक्का अगर दर्द होगा तो नही करूँगा

फ़िज़ा : वादा करो जब मैं रोकूंगी तो रुक जाओगे.

मैं : वादा (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : (बिना कुछ बोले वापिस उल्टी होके लेट ते हुए) हमम्म जान आराम से करना मुझे डर लग रहा है याद रखना आपको कसम दी है

मैं : हाँ हाँ याद है धीरे ही करूँगा

फ़िज़ा : अच्छा करो लेकिन बहुत आराम से

उसका सिग्नल मिलते ही मैने अपने घुटनो पर बैठकर फिर से अपने लंड को निशाने पर रखा ऑर थोड़ा सा लंड पर दबाव दिया लंड फिसल कर उपर को चला गया. शायद फ़िज़ा सच कह रही थी क्योंकि छेद सही मे बहुत तंग था. मैने फिर से लंड को निशाने पर रख कर थोड़ा ज़ोर से दबाव दिया लेकिन छेद बिल्कुल भी नही खुल रहा था. मैं वापिस फ़िज़ा के उपर लेट गया ऑर फ़िज़ा से छेद थोड़ा ढीला करने को कहा उसने हाँ मे सिर हिलाया तो मैं वापिस अपनी जगह पर आके बैठ गया इस बार मैने सोचा क्यो ना झटका लगाया जाए इसलिए मैने फिर से लंड को निशाने पर रखा ऑर गान्ड को अच्छे से दोनो हाथ से फैला दिया अब मैं एक हल्का सा झटका मारा जिससे आधी टोपी लंड की अंदर चली गई ऑर फ़िज़ा को शायद दर्द हुआ जिससे उसके मुँह से एक हल्की सी सस्स्सस्स निकल गई मगर वो फिर भी खामोश रही. अब मैं धीरे-धीरे झटके मारने लगा ऑर लंड का दबाव छेद पर डालने लगा मगर जब भी मैं दबाव छेद पर डालता तो फ़िज़ा छेद को टाइट कर लेती थी जिससे मुझे अंदर डालने मे परेशानी हो रही थी मैं वापिस फ़िज़ा पर लेटा ऑर फ़िज़ा से कहा...

मैं : जान ऐसे तो नही जा रहा तुम थोड़ा ढीला करो छेद को ऑर अब मैं हल्के से झटका दूँगा तुम चिल्लाना मत नही तो सब उठ जाएँगे.

फ़िज़ा : (हाँ मेर सिर हिलाते हुए पास पड़ा अपना दुपट्टा अपने मुँह के पास रख लिया) हमम्म करो लेकिन जान ज़्यादा ज़ोर से झटका ना देना वरना दर्द होगा मुझे.

मैं : अच्छा फिकर मत करो.

मैं अब वापिस अपनी जगह पर आया ऑर लंड पर फिर से ढेर सारा थूक लगाया ऑर लंड को छेद पर रखा फ़िज़ा ने भी इश्स बार छेद को ढीला छोड़ा हुआ था मैने फिर से गान्ड की पहाड़ियो को दोनो तरफ फैलाया ऑर लंड को इस बार ज़रा ज़ोर से झटका दिया जिससे लंड की टोपी अंदर चली गई ऑर फ़िज़ा को एक झटका सा लगा जिससे वो थोड़ा उपर को हो गई ऑर उसने अपना दुपट्टा अपने मुँह पर ज़ोर से दबा लिया उसने अपना हाथ पिछे करके मुझे रुकने का इशारा किया. मैं वैसे ही लंड गान्ड मे डाले कुछ देर के लिए रुक गया ऑर फ़िज़ा के अगले इशारे का इंतज़ार करने लगा. जब उसका दर्द कम हो गया तो उसने अपना मुँह दुपट्टे मे छिपाये ही हाँ मे सिर हिलाया मैने फिर से लंड बाहर निकाला ऑर उस पर थूक लगाके अंदर कर दिया ऑर फिर धीरे-धीरे मैं झटके लगाने लगा फ़िज़ा का मुझे चेहरा नही दिख रहा था लेकिन शायद उसको दर्द हो रहा था क्योंकि वो बार-बार अपना सिर तकिये पर दाए-बाए मार रही थी ऑर चेहरा दुपट्टे से छिपा रखा था इधर मेरा भी आधा लंड उसकी गान्ड मे जा चुका था ऑर मैं अपने आधे लंड को ही फ़िज़ा की गान्ड मे अंदर-बाहर कर रहा था. कुछ देर बाद फ़िज़ा की आवाज़ आई...

फ़िज़ा : जान रूको... अब मैं आपके उपर आती हूँ ऐसे करने मे मुझे बहुत दर्द हो रहा है.

मैं बिना कुछ बोले उसके उपर से हट गया ऑर मेरा लंड पक्क की आवाज़ के साथ उसकी गान्ड से बाहर आ गया. अब मैं नीचे लेट गया ओर फ़िज़ा मेरे उपर आ गई उसका पूरा चेहरा पसीना से गीला हुआ पड़ा था ऑर एक दम लाल हुआ पड़ा था. उसके उपर आते ही हम दोनो ने एक दूसरे को देखा ऑर दोनो ही मुस्कुरा दिया फिर उसने मेरे लंड को पकड़ा जो छत की तरफ मुँह किए पूरी तरह खड़ा था जिसको उसने हाथ से पकड़ कर पहले देखा फिर एक धीरे से थप्पड़ मेरे लंड पर मार दिया ऑर मेरी तरफ मुस्कुराकर देखने लगी. अब उसने मेरे लंड को मुँह मे लेके अच्छे से चूसा ऑर ढेर सारा थूक मेरे लंड पर लगाया ऑर कुछ थूक उसने खुद अपनी गान्ड मे भी लगाया फिर आँखें बंद करके धीरे-धीरे मेरे लंड पर बैठने लगी

उसके चेहरे से सॉफ पता चल रहा था कि उसको बहुत दर्द हो रहा है लेकिन फिर भी वो लंड को धीरे - धीरे अंदर लेने लगी ऑर जब आधे से थोड़ा सा ज़्यादा लंड अंदर चला गया तो उसने एक बार नीचे मुँह करके लंड को देखा ऑर फिर मेरी छाती पर अपने दोनो हाथ रख कर उपर-नीचे होने लगी मुझे उसके ऐसा करने से बे-इंतेहा मज़ा मिल रहा था ऑर मैने मज़े से आँखें बंद की हुई थी तभी कुछ झटको के बाद वो एक दम से मेरे उपर लेट गई ऑर अपने रसीले होंठ फिर से मेरे होंठ पर रख कर चूसने लगी मैं आँखें बंद किए लेटा रहा ओर वो मेरे होंठ चुस्ती रही तभी उसने ज़ोर दार थप्प के साथ अपनी गान्ड को मेरे लंड पर दबाया ऑर वो मेरे लंड पर बैठ गई. जिससे मेरा पूरा लंड उसकी गान्ड मे एक दम से चला गया.

कुछ देर वो ऐसे ही पूरा लंड अपनी गान्ड मे लिए मेरे उपर लेटी रही ऑर मेरे होंठ चुस्ती रही फिर धीरे-धीरे उसने हिलना शुरू किया ऑर अब वो मेरे लंड को टोपी तक बाहर निकालती ऑर फिर से पूरा एक ही बार मे अंदर डाल लेती काफ़ी देर तक वो ऐसे ही करती रही फिर उसकी शायद टांगे तक गये थी इसलिए उसने अपने होंठ मेरे होंठों से हटा कर मुझे उपर आने को कहा तो मैं बिना कुछ बोले उसको कमर से पकड़ कर बैठ गया ऑर फिर उसको ऐसे ही पलट दिया लंड जैसे अंदर था वैसे ही रहा अब मैं उपर था ऑर वो नीचे. अब मैने धीरे -धीरे झटके देने शुरू कर दिए कुछ देर वो झटके बर्दाश्त करती रही फिर शायद उसको दर्द होने लगा था इसलिए उसने खुद ही हाथ नीचे ले-जाकर लंड को गान्ड से बाहर निकाला ऑर अपनी चूत मे डाल दिया. अब उसका इशारा समझते हुए मैने उसकी चूत मे झटके लगाने शुरू कर दिए उसने अपनी दोनो बाजू मेरी गर्दन पर लपेट ली ऑर अपनी दोनो टांगे मेरी कमर पर रख ली जिससे हम दोनो एक दूसरे से चिपक से गये थे कुछ देर बाद ही मेरे झटको मे खुद ही तेज़ी आ गई ऑर उसके मुँह से सस्सस्स सस्सस्स ऊहह आआहह जैसे लफ्ज़ निकलने लग गये कुछ तेज़ झटको के साथ पहले वो फारिग हुई ऑर उसके कुछ ही देर बाद मैं भी उसके अंदर ही फारिग हो गया ऑर उसके उपर ही लेता साँस लेने लगा हम दोनो पसीने से बुरी तरह नहाए हुए थे ऑर दोनो की साँसे बहुत तेज़ चल रही थी. कुछ देर हम ऐसे ही एक दूसरे की आँखो मे देखते रहे फ़िज़ा बार - बार मुझे देखते हुए मेरे होंठों को चूम रही थी.

मैं : जान मज़ा आया...

फ़िज़ा (बिना कुछ बोले आँखें बंद करके मेरे होंठ चूमते हुए) पुच्छने की ज़रूरत है

मैं : बताओ ना पिछे वाले मे आया कि नही...

फ़िज़ा : (अपनी आँखें खोलकर मेरा चेहरा अपने दोनो हाथो से पकड़ते हुए) मज़ाअ....मेरी जान निकल गई थी तुमको मज़े की पड़ी है जानते हो कितना दर्द हुआ था.... अब फिर से करने को कभी मत कहना....जाने कहाँ से ऐसे उल्टे ख्याल तुमको आते है ऑर तुम्हारी फरमाइश पूरी करने के चक्कर मे मेरी जान निकलने को हो जाती है.

मैं : जान हम करते हैं तो ऑर लोग भी तो करते होंगे ना

फ़िज़ा : करते होंगे उनको मरने दो पर हम नही करेंगे.

मैं : (रोने जैसा मुँह बनाते हुए) लेकिन क्यूँ....

फ़िज़ा : (अपना हाथ नीचे ले जा कर मेरा लंड पकड़ते हुए) इसका साइज़ देखा है जो लोग पिछे करते हैं उनके शोहर का ये इतना बड़ा नही होता समझे...

मैं : (उदास मुँह बनके) ठीक है नही करेंगे

फ़िज़ा : (चिड़ते हुए ) जान तुम्हारी यही आदत मुझे पसंद नही या तो तुम्हारी हाँ मे हाँ मिलाओ... अगर ना बोलती हूँ तो गंदा सा मुँह बना लेते हो

मैं : हाँ तो मैने क्या कहा है ठीक है नही करेंगे ना बस बात ख़तम. (गुस्से जैसा मुँह बनाके उठ कर बैठ ते हुए)

फ़िज़ा : (उठ कर मेरी टाँग पर बैठ ते हुए मेरे चेहरा अपनी तरफ करके) मेरी जान मुझसे नाराज़ है

मैं : (ना मे सिर हिलाते हुए) नही....

फ़िज़ा : अच्छा कर लेना जब दिल करे नही रोकूंगी. अब तो हँस कर दिखाओ तुम जानते हो तुम हँसते हुए ही अच्छे लगते हो (मुस्कुराकर)

मैं : (मुस्कुराकर फ़िज़ा के होंठ चूमते हुए) तुम भी हँसती हुई बहुत अच्छी लगती हो.

फ़िज़ा : जान चलो अब बहुत देर हो गई है नीचे चलते हैं.

मैं : रूको ना जान एक बार ऑर करेंगे ना

फ़िज़ा : पागल हो गये हो आज नही...... वैसे भी हम बहुत देर से यहाँ है. जान बात को समझो ना मैं मना थोड़ी करती हूँ बस अब काफ़ी वक़्त हो गया है ऑर वैसे भी तुमने भी तो सुबह खेत पर जाना है ना अगर सोओगे नही तो बीमार पड़ जाओगे इसलिए अब हम दोनो जाके बस सोएंगे ठीक है. (मुस्कुराकर)

मैं : हमम्म ठीक है चलो कपड़े पहन लेते हैं ऑर नीचे चलते हैं.....

उसके बाद हम दोनो ने कपड़े पहने ओर अपने-अपने कमरे मे आ गये फ़िज़ा ने अपने कमरे की कुण्डी खोली ऑर मैं बस उसको अंदर जाते हुए देख रहा था उसने भी एक बार पलटकर मुझे देखा ऑर एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अपने होंठों को चूमने जैसे किया जैसे वो मुझे चूम रही हो ऑर फिर जल्दी से अंदर चली गई मैं भी चुप-चाप अपने कमरे मे आया तो बाबा को सोता हुआ देखकर चुप चाप अपने बिस्तर पर आके लेट गया ऑर जल्दी ही मुझे नींद ने अपनी आगोश मे ले लिया.

अगली सुबह मैं उठा ओर रोज़ की तरह तैयार होके खेत चला गया आज मैं अकेला ही खेत मे था क्योंकि नाज़ी की नींद देर से खुली थी रात की दवाई की वजह से इसलिए मैने उसे अपना साथ खेत पर लाना मुनासिब नही समझा ऑर उसको घर पर ही छोड़ आया ताकि वो ऑर फ़िज़ा मिलकर मेरा कमरा तैयार कर सके ऑर नाज़ी भी घर मे रहकर फ़िज़ा के कामो मे मदद कर सके. आज खेत मे मुझे भी कोई खास काम नही था बस नयी फसल उगाने के लिए खेत को पानी लगाने का काम था जो मैने दुपेहर तक मुकम्मल पूरा कर दिया ऑर अब मैं खाली बैठा था इसलिए मैने भी घर वापिस जाने का मन बना लिया ऑर मैं भी जल्दी ही घर आ गया. अभी मैं घर आ ही रहा था कि मुझे दूर से घर के बाहर कुछ गाड़िया खड़ी नज़र आई. जाने क्यो लेकिन उन गाडियो का काफिला देखकर मुझे एक अजीब सी बेचैनी होने लगी ऑर मैं तेज़ कदमो के साथ घर की तरफ बढ़ गया. घर मे जाते ही मुझे कुर्सी पर कुछ लोग बैठे नज़र आए.



(दोस्तो यहाँ से मैं एक न्यू कॅरक्टर का थोड़ा सा इंट्रोडक्षन आप सब से करवाना चाहूँगा ताकि आपको कहानी मुकम्मल तोर पर समझ आती रहे.)

नाम : इनस्पेक्टर. वहीद ख़ान (ख़ान) एज : 43 साल, हाइट : 5.11
एक ईमानदार पोलीस वाला जो ज़ुर्म ऑर मुजरिम से सख़्त नफ़रत करता है इसकी जिंदगी का मकसद सिर्फ़ ऑर सिर्फ़ ज़ुर्म को ख़तम करना है.

ख़ान : (मुझे देखकर) आइए जनाब हमारी तो आँखें तरस गई आपके दीदार के लिए ऑर आप यहाँ डेरा डाले बैठे हैं.

मैं : (कुछ ना समझने वाले अंदाज़ मे) जी आप लोग कौन है ऑर यहाँ क्या कर रहे हैं.

ख़ान : (कुर्सी से खड़े होते हुए) अर्रे क्या यार शेरा अपने पुराने दोस्त को इतनी जल्दी भूल गये ऑर ये क्या मूछे क्यो सॉफ करदी तुमने.... चलो अच्छा है ऐसे भी अच्छे दिखते हो. (मुस्कुराते हुए आँख मारकर)

मैं : जी कौन शेरा किसका दोस्त मैं तो आपको नही जानता

ख़ान : हमम्म तो तुम शेरा नही हो फिर ये कौन है.(टेबल पर पड़ी तस्वीरो की तरफ इशारा करते हुए)

मैं : (बिना कुछ बोले तस्वीरे उठाके देखते हुए) ये तो एक दम मेरे जैसा दिखता है (हैरान होते हुए ऑर अपने चेहरे पर हाथ फेरते हुए)

ख़ान : अच्छा ये नया नाटक शुरू कर दिया. ये तुम जैसा नही दिखता तुम ही हो समझे अब अपना ड्रामा बंद करो.

बाबा : साहब जी मैने कहा ना ये मेरा बेटा नीर है कोई शेरा नही है आपने जो तस्वीरे दिखाई है वो बस मेरे बेटे का हम शक़ल है ऑर कुछ नही ये मासूम बहुत सीधा-साधा हैं कोई अपराधी नही है ये.

ख़ान : आप चुप रहिए (उंगली दिखाते हुए) मैने आपसे नही पूछा

मैं : (ख़ान का कलर पकड़ते हुए)ओये तमीज़ से बात कर समझा.... अगली बार मेरे बाबा को उंगली दिखाई तो हाथ तोड़ दूँगा तेरा.

ख़ान : (हँसते हुए)अर्रे इतना गुस्सा अच्छा भाई नही कहते कुछ आपके बाबा को..... देखो फ़ारूख़ तेवर देखो इसके वही गुस्सा वही नशीली आँखें.... ऑर ये लोग कहते हैं ये शेरा नही है

बाबा : नीर हाथ नीचे करो ये बड़े साहब है तमीज़ से पेश आओ (गुस्से से)

मैं : जी माफ़ कर दीजिए (नज़रे झुका कर हाथ कॉलर से हटा ते हुए)

ख़ान कभी बाबा को ऑर कभी मुझे बड़ी हैरानी से बार-बार देख रहा था ऑर मुस्कुरा रहा था. लेकिन मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था.
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07-30-2019, 01:17 PM,
#28
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-26

ख़ान : वाह भाई क्या रौब है वो भी शेरा पर....(हैरान होते हुए) क्योंकि मैने तो सुना था वो आदमी पैदा नही हुआ जो शेरा को झुका सके (अपने साथ वाले पोलीस वाले को देखते हुए)
मैं : (अपने हाथ जोड़ते हुए) देखिए जनाब मेरे बाबा की तबीयत ठीक नही है आप मेहरबानी करके यहाँ से जाइए.

ख़ान : चले जाएँगे मेरी जान इतनी भी क्या जल्दी है पहले तसल्ली तो कर लूँ

मैं : कैसी तसल्ली

ख़ान : अगर तुम शेरा नही हो तो अपनी कमीज़ उतारो क्योंकि हम जानते हैं कि शेरा के कंधे के पिछे एक शेर का टट्टू गुदा हुआ है.

मैं : अगर नही हुआ तो फिर आप यहाँ से चले जाएँगे

ख़ान : जी बिल्कुल हज़ूर आप बस हमारी तसल्ली करवा दे फिर हम आपको चेहरा तक नही दिखाएँगे.

मैं : ठीक है (कमीज़ उतारते हुए) देख लीजिए ऑर तसल्ली कर लीजिए. (मैं नही जानता था कि मेरी पीठ पर इस क़िस्म का कोई निशान है भी या नही इसलिए मैने ख़ान के कहने पर फॉरन कमीज़ उतार दी)

ख़ान : (चारो तरफ मेरे गोल-गोल घूमते हुए) हमम्म (मेरे कंधे पर हाथ रखकर) तू शातिर तो बहुत है लेकिन आज फँस गया बच्चे तेरा शेर ही तुझे मरवा गया..... हाहहहहहाहा (तालियाँ बजाते हुए)

मैं : जी क्या मतलब (घूमकर ख़ान की तरफ देखते हुए)

ख़ान : तूने मुझे भी इन भोले गाँव वालो की तरह चूतिया समझा है जो तेरी बातो मे आ जाउन्गा

मैं : मैं आपका मतलब नही समझा आप कहना क्या चाहते हैं.

ख़ान : मतलब तो हवालात मे मैं तुझे अच्छे से सम्झाउन्गा

बाबा : (खड़े होते हुए) देखिए जनाब ये मेरा बेटा नीर ही है सिर्फ़ शक़ल एक जैसी हो जाने से करम एक जैसे नही होते हैं ये बिचारा तो खेत मे मेहनत करता है बहुत सीधा लड़का है कभी किसी से ऊँची आवाज़ मे बात भी नही करता मेरी हर बात मानता है आप गाँव मे किसी से भी पूछ लीजिए बहुत भला लड़का है इसने कोई गुनाह नही किया.

ख़ान : (मुझे कंधो से पकड़कर घूमाते हुए) ये देखिए जनाब आप जिसे अपना बेटा कह रहे थे वो एक अंडरवर्ल्ड का मोस्ट वांटेड गॅंग्स्टर शेरा है इसने बहुत से लोगो का क़त्ल किया है ये इतना शातिर है किसी इंसान की जान लेने के लिए इसको किसी हथियार की भी ज़रूरत नही हर तरह का हथियार चला लेता है ये इसका सटीक निशाना इसकी अंडर्वर्ड मे पहचान है. अब इस टॅटू ऑर ये गोलियों के निशान को देखकर तो आपको तसल्ली हो गई होगी कि ये आपका बेटा नीर नही बल्कि शेरा है जिसको हम इतने महीनो से ढूँढ रहे हैं.

बाबा : देखिए साहब मैं आपको सब सच-सच बता दूँगा लेकिन आपको वादा करना होगा कि आप ये बात किसी को नही बताएँगे.

ख़ान : (कुर्सी पर वापिस बैठ ते हुए) मैं सुन रहा हूँ कहिए क्या कहना है आपको.


जब बाबा ने इनस्पेक्टर ख़ान को मेरे बारे मे बताना शुरू किया तो मैं भी उनके पास ही कमीज़ पहनकर बैठ गया. क्योंकि अक्सर मैं जब भी नाज़ी ऑर फ़िज़ा से अपने बारे मे कुछ भी पुछ्ता तो वो अक्सर टाल जाती ऑर मुझे मेरे बारे मे सच नही बताती ऑर मेरे सीने पर जो निशान थे वो गोलियो के थे ये बात भी मुझे आज ही पता चली थी क्योंकि नाज़ी ऑर फ़िज़ा ने मुझे यही बताया था कि मुझे आक्सिडेंट मे चोट लगने से ये सीने पर निशान मिले थे. अब आख़िर मुझे भी अपने जानना था कि मैं कौन हूँ ऑर मेरा सच क्या है. तभी बाबा ने पहले फ़िज़ा को ऑर फिर नाज़ी को एक साथ आवाज़ देकर बाहर बुलाया दोनो मुँह को ढक कर बाहर आ गई ऑर जहाँ मैं बैठा था मेरे पिछे आके चुप-चाप खड़ी हो गई. मैने पलटकर दोनो को एक नज़र देखा ऑर फिर सीधा होके बैठ गया.

बाबा : बेटा इनस्पेक्टर साहब को नीर के बारे मे सब सच-सच बता दो.

फ़िज़ा : लेकिन बाबा वो....मैं...वो..... (कुछ सोचते हुए)

ख़ान : जी आप घबरईए नही खुलकर बताइए मैं जानना चाहता हूँ कि आप मुझे क्या सच बताना चाहती है.

फ़िज़ा : (एक लंबी साँस छोड़ते हुए) ठीक है साहब लेकिन वादा कीजिए कि उसके बाद आप नीर को कुछ नही कहेंगे.

ख़ान : (अपना कोट सही करते हुए) मैं कोई वादा नही करूँगा लेकिन हाँ अगर ये बे-गुनाह है तो इससे कुछ नही होगा.

फ़िज़ा : ठीक है ख़ान साब.....नाज़ी जाओ वो बॅग ले आओ जो हमने छुपा कर रखा था.

नाज़ी : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) अच्छा भाभी...

ये सुनकर मुझे भी झटका लगा कि ये कौन्से बॅग के बारे मे बात कर रही है जिसके बारे मे मैं नही जानता ऑर इन्होने मुझे कभी क्यो नही बताया. फिर फ़िज़ा ने बोलना शुरू किया ऑर ख़ान साब हमे नही पता नीर का असल नाम क्या है ऑर ये कौन है हाँ ये सच है कि हमारा इससे ज़ाति कोई ताल्लुक नही है. हम को जब ये मिला तो ये बुरी तरह खून मे लथ-पथ था ऑर इसे पाँच गोलियाँ लगी हुई थी ऑर अपनी आखरी साँसे गिन रहा था इसको हम इंसानियत के नाते घर ले आई फिर इसकी गोलियाँ निकाली ऑर इसकी मरहम पट्टी करके इसका इलाज किया. 3 महीने तक ये बेहोश था उसके बाद इसको होश आया लेकिन तब तक ये अपनी याददाश्त खो चुका था ऑर इससे अपने बारे मे कुछ भी याद नही था. (तभी नाज़ी एक काला बॅग ले आई)

नाज़ी : ये लो भाभी. (बॅग फ़िज़ा को देते हुए)

फ़िज़ा : (नाज़ी को देखते हुए) टेबल पर रख दो बॅग को.... (घूमकर ख़ान से बात करते हुए) ख़ान साहब हमें ये बॅग नीर के कंधे पर लटका मिला था ये बेहोश था इसलिए हमने इसकी अमानत को संभाल कर रख दिया था (बॅग खोलते हुए) जब हमने इसके बारे मे मालूम करने के लिए बॅग खोला तो इसमे ये हथियार ऑर ये ढेर सारे पैसे पड़े मिले ये देखकर हम एक बार तो घबरा गई थी कि जाने ये कौन है ऑर इसके पास ऐसा समान क्या कर रहा है लेकिन फिर भी इंसानियत के नाते हमारा ये फ़र्ज़ था कि हम इसकी जान बचाते इसलिए हमने पोलीस मे खबर ना करके पहले इसको बचाना ज़रूरी समझा... हमने सोचा था क़ि जब ये होश मे आ जाएगा तो इसको हम जाने के लिए कह देंगे.

ख़ान : (बॅग मे देखते हुए) वाआह क्या बात है इतना सारा पैसा, ये ऑटोमॅटिक हथियार...ऑर आप लोग कहते हैं कि ये शेरा नही है.

फ़िज़ा : जनाब मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए वही तो मैं आपको बता रही हूँ.... जब ये हमे मिला तो बहुत बुरी तरह ज़ख़्मी था मैं ऑर नाज़ी (उंगली से नाज़ी की तरफ इशारे करते हुए) इसको उठाकर अपने घर ले आई थी ताकि इसकी जान बचाई जा सके 3 महीने तक ये बेहोश पड़ा रहा उसके बाद जब ये होश मे आया तब इसने पहला लफ्ज़ जो बोला वो था "बाबा आपका बेटा आ गया..." जब बाबा इसके पास गये तो इनके परिवार के बारे मे ऑर इनका नाम पूछा लेकिन इसको कुछ भी याद नही था ये सब कुछ भूल चुका था क्योंकि इसके सिर मे काफ़ी गहरी चोट आई थी इसलिए.

मेरे शोहार भी एक शराबी ऑर जुवारि किस्म के इंसान है ऑर वो आज कल जैल मे सज़ा काट रहे हैं. बाबा हमेशा मेरे शोहर से दुखी रहते हैं लेकिन जब इसने मेरे ससुर को (बाबा की तरफ इशारा करते हुए) बाबा कहा तो बाबा का दिल पिघल गया ऑर इन्होने नीर को अपना बेटा बना लिया बाबा ने हम से कहा कि इसको पिच्छला कुछ भी याद नही है ऑर जाने ये कौन है तो क्यो ना इसको हम अपना लें ऑर ये हमारे ही घर मे रहे क्योंकि बाबा को इसमे अपना बेटा नज़र आता है जैसा बेटा वो हमेशा से चाहते थे. तब से लेके आज तक ये इस घर का बेटा बनकर एक बेटे के सारे फ़र्ज़ निभा रहा है हमें नही पता कि इनके अतीत मे ये कौन थे ऑर इन्होने क्या किया है. लेकिन आज की तारीख मे ये एक मेहनती इंसान है जो अपना खून-पसीना एक करके अपने परिवार का पेट भरने के लिए के लिए दिन रात खेत मे मेहनत करता है आज ये एक मासूम इंसान है कोई अपराधी नही. जनाब आपका मकसद तो ज़ुर्म को ख़तम करना है ना तो इनके अंदर का शेरा तो कब का मर चुका है क्या आप एक मासूम इंसान को एक अपराधी की सज़ा देंगे?

ख़ान : आपने जो किया वो इंसानियत की नज़र से क़ाबिल-ए-तारीफ है लेकिन जिसको आप एक भोला-भला मासूम इंसान कह रही हो वो एक पेशावर अपराधी है. आज मैं इसको छोड़ भी दूं तो कल अगर इसकी याददाश्त वापिस आ गई तो इसकी क्या गारंटी है कि ये अपनी दुनिया मे वापिस नही जाएगा ऑर कोई गुनाह नही करेगा आप नही जानती इसने कितने लोगो का क़त्ल किया है ये आदमी बहुत ख़तरनाक है इसको मैं ऐसे खुला नही छोड़ सकता.

बाबा : साहब मैं मानता हूँ कि औलाद के दुख ने मुझे ख़ुदग़र्ज़ बना दिया था लेकिन ये बुरा इंसान नही है.... मैं आपसे वादा करता हूँ कि अगर अब ये कोई भी गुनाह करे तो आप मुझे फाँसी पर चढ़ा देना. नीर मेरा बेटा है इसकी पूरी ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ (मेरा हाथ पकड़कर)

ख़ान : (अपने सिर पर हाथ फेरते हुए) पता नही मैं ठीक कर रहा हूँ या ग़लत लेकिन फिर भी मैं इसको एक मोक़ा ज़रूर दूँगा.

बाबा, नाज़ी, फ़िज़ा : (एक आवाज़ मे अपने हाथ जोड़कर) आपका बहुत अहसान होगा साहब.

ख़ान : अहसान वाली कोई बात नही बस इसको कल मेरे साथ एक बार शहर चलना होगा मैं डॉक्टर से इसके दिमाग़ का चेक-अप करवाना चाहता हूँ साथ मे इसका लाइ डिटेक्टोर टेस्ट भी करूँगा. क्योंकि मुझे आप पर तो भरोसा है लेकिन इस पर नही.

फ़िज़ा : किस बात का चेक-अप साहब (हैरानी से) ऑर ये लाई क्या है (फ़िज़ा को लाइ डिटेक्टोर कहना नही आया)

ख़ान : लाइ डिटेक्टोर टेस्ट से हम ये पता कर सकते हैं कि इंसान झूठ बोल रहा है या सच ऑर इसका चेक-अप मैं इसलिए करवाना चाहता हूँ कि मुझे जानना है इसकी याददाश्त कब तक वापिस आएगी उसके बाद इसको मेरी मदद करनी होगी.

मैं : (जो इतनी देर से खामोश सब सुन रहा था) कैसी मदद साहब.

ख़ान : तुमको क़ानून से माफी इतनी आसानी से नही मिलेगी इसके बदले मे तुमको हमारी मदद करनी होगी तुम्हारे बाकी गॅंग वालो को पकड़वाने मे.

मैं : ठीक है साहब अब जो भी है यही मेरे अपने है ऑर इनके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ.

ख़ान : तो ठीक है फिर अभी मैं चलता हूँ सुबह मुलाक़ात होगी तैयार रहना ऑर हाँ अगर भागने की कोशिश की तो याद रखना मुजरिम को पनाह देने वाला भी मुजरिम ही होता है तुम्हारे घरवालो ने तुम्हारी गारंटी ली है अगर तुम भागे तो तुम सोच नही सकते मैं इनका क्या हाल करूँगा.

बाबा : ये कही नही जाएगा साहब आप बे-फिकर होके जाए.... मैने कहा ना मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ.

ख़ान : ठीक है फिर मैं चलता हूँ.

मैं : ख़ान साहब ये बॅग भी ले जाइए ये अब मेरे भी काम का नही है.

ख़ान : (हैरान होते हुए) लगता है शेरा सच मे मर गया.

उसके बाद ख़ान ऑर उसके साथ जो पोलीस वाले आए थे वो सब मेरा बॅग लेकर चले गये ऑर हम सब उनको जाता हुआ देखते रहे. फिर बाबा ने मुझे अपने गले से लगा लिया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी मुझे देखकर मुस्कुरा भी रही थी ऑर साथ मे रो भी रही थी मैं भी उनको देखकर मुस्कुरा रहा था.

बाबा : बेटा हमें माफ़ करना हमने तुमसे तुम्हारी असलियत छुपाइ.

मैं : बाबा कैसी बात कर रहे हैं माफी माँग कर शर्मिंदा ना करे मुझे आपने जो मेरे लिए किया उसका अहसान मैं मरते दम तक नही चुका सकता.

बाबा : (मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे दुआ देते हुए ) बेटा तुम हमेशा खुश रहो ऑर आबाद रहो.

फिर बाबा अपने कमरे मे चले गये ऑर मैं फ़िज़ा ऑर नाज़ी के पास ही बैठ गया. वो दोनो मुझे लगातार देख रही थी लेकिन कुछ बोल नही रही थी.

मैं : ऐसे क्या देख रही हो तुम दोनो.

फ़िज़ा : कुछ नही आज एक पल के लिए लगा जैसे हमने तुमको खो दिया (फिर से रोते हुए)

मैं : अर्रे तुम रोने क्यो लगी (फ़िज़ा के दोनो हाथ पकड़ते हुए ऑर नाज़ी की तरफ देखकर) नाज़ी पानी लेके आओ

नाज़ी : अभी लाई.

नाज़ी के जाते ही फ़िज़ा ने मुझे गले से लगा लिया ऑर फिर से रोने लगी

मैं : अर्रे क्या हुआ रोने क्यो लग गई.

फ़िज़ा : जान तुम नही जानते मैं बहुत डर गई थी.

मैं : इसमे डरने की क्या बात है मैं हूँ ना तुम्हारे पास कहीं गया तो नही ऑर फिकर ना करो अब मैं कही जाउन्गा भी नही अब सारी जिंदगी मैं नीर ही रहूँगा.

इतने मे नाज़ी पानी ले आई ऑर हम दोनो जल्दी से अलग होके बैठ गये. उसके बाद कोई खास बात नही हुई रात को हमने खामोशी से खाना खाया ऑर सोने चले गये. नाज़ी की नींद की दवाई की वजह से तबीयत खराब हो गई थी इसलिए फ़िज़ा ने दुबारा उसको वो गोली नही दी और उस रात हम सब सुकून से सो गये. बाबा ने मुझे नाज़ी के कमरे मे नही सोने जाने दिया ऑर अपने पास ही सुलाया. अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो सब जाग रहे थे नाज़ी ऑर फ़िज़ा रसोई मे थी ऑर बाबा बाहर सैर कर रहे थे. मैं जब उठकर बाहर आया तो नाज़ी ऑर फ़िज़ा नाश्ता बना रही थी ऑर साथ ही फ़िज़ा नाज़ी के पास खड़ी उसको कुछ समझा रही थी.

मैं : अर्रे आज इतनी जल्दी नाश्ता कैसे बना लिया.

फ़िज़ा : अर्रे भूल गये तुमने आज शहर जाना है ना इसलिए तुम्हारे लिए बनाया है जाओ तुम जल्दी से नहा कर तेयार हो जाओ फिर मैं नाश्ता लगा देती हूँ.

मैं : लेकिन शहर जाना क्यों है मैं नही जाउन्गा शहर मुझे खेत मे काम है.

फ़िज़ा : खेत की तुम फिकर ना करो एक दिन नही जाओगे तो आसमान नही टूट जाएगा पहले तुम शहर जाओ ऑर ख़ान के साथ जाके अपना इलाज कर्वाओ उनका सुबह आदमी आया था वो कह रहा था कि ख़ान साहब 8 बजे तुमको लेने आएँगे.

मैं : मुझे उससे कोई वास्ता नही रखना मैं नही जाउन्गा

फ़िज़ा : बच्चों जैसे ज़िद्द ना करो नीर मैं भी तो हूँ तुम्हारे साथ.

मैं : तुम भी... क्या मतलब

फ़िज़ा : अर्रे मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगी वापसी मे हम दोनो साथ ही आएँगे

नाज़ी : (बीच मे बोलते हुए) देखो ना नीर मैं मना कर रही हूँ भाभी को लेकिन ये सुन ही नही रही इस हालत मे इनका शहर जाना ठीक है क्या मैने तो कहा है तुम्हारे साथ मैं अकेली ही चली जाउन्गी लेकिन नही मेरी बात ही नही सुन रही.

मैं : तुम दोनो ही खामोश हो जाओ ऑर अपना काम करो कोई शहर नही जाएगा ना तुम ना मैं समझी.
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07-30-2019, 01:17 PM,
#29
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-27


अभी हम बात ही कर रहे थे कि एक जीप हमारे दरवाज़े के सामने आके रुक गई. जिसमे से ख़ान बाहर निकला ऑर बाहर खड़ा होके दरवाज़ा खट-खटाने लगा.

मैं : कौन है (दरवाज़े की तरफ देखते हुए)

ख़ान : जल्दी चलो लेट हो रहा है.

मैं : (रसोई से बाहर निकलते हुए) जी साहब आप

ख़ान : अर्रे तुम अभी तक तैयार नही हुए

मैं : मुझे कही नही जाना मैं यही रहूँगा

ख़ान : अर्रे तुमको अरेस्ट नही कर रहा हूँ यार तुमको बस डॉक्टर को दिखाना है ऑर शाम तक वापिस घर छोड़ जाउन्गा तुम्हारे ऑर कुछ नही. डरो मत कुछ करना होता तो कल ही तुम्हारा नंबर लग जाना था.

मैं : लेकिन ख़ान साहब मैं एक दम ठीक हूँ फिर आप मुझे शहर क्यो ले जा रहे हैं ऑर वैसे भी बिना याददाश्त के मैं आपके किस काम का हूँ बताओ.

ख़ान : अर्रे अजीब पागल आदमी है यार ये (नाज़ी की तरफ देखते हुए) अब आप ही समझाइये इसको मैं बाहर वेट कर रहा हूँ 10 मिनिट मे तैयार होके बाहर आ जाओ.

नाज़ी : हाँ नीर ये ठीक कह रहे हैं ज़रा ये भी तो सोचो तुम ठीक हो जाओगे इलाज करवाने से फिर तुमको जो घबराहट से चक्कर आते हैं वो भी आना बंद हो जाएँगे.

मैं : लेकिन नाज़ी अब भी तो मैं ठीक ही हूँ ना

नाज़ी : बहस ना करो जैसा कहती हूँ चुप-चाप करो ऑर फिर तुम डर क्यो रहे हो मैं भी तो चल रही हूँ तुम्हारे साथ.

ख़ान : हाँ ये ठीक रहेगा आप भी साथ ही चलो.

नाज़ी : (खुश होते हुए) मैं अभी तैयार होके आती हूँ चलो नीर तुम भी जाओ ऑर जाके तैयार हो जाओ.

इतने मे बाबा आ गये सैर करके जिनको ख़ान ने अदब से सलाम किया ऑर फिर बाबा को मेरे शहर ना जाने के बारे मे बताया तो बाबा के इसरार पर मैं शहर जाने के लिए राज़ी हो गया ऑर फिर मैं ऑर नाज़ी, इनस्पेक्टर ख़ान के साथ उसकी जीप मे बैठकर शहर के लिए रवाना हो गया. फ़िज़ा दरवाज़े पर खड़ी मुझे देखती रही हो ऑर मुस्कुराकर हाथ हिलाकर अलविदा कहती रही. जीप मे बैठ ते ही ख़ान के सवाल-जवाब शुरू हो गये.

ख़ान : यार शेरा कल तुम्हारे पास इतना अच्छा मोका था तुम भागे क्यो नही.

नाज़ी : (बीच मे बोलते हुए) इनका नाम नीर है शेरा नही बेहतर होगा आप भी इनको नीर कहकर ही बुलाए.

ख़ान : जी माफ़ कीजिए...हाँ तो नीर साहब रात को आप भागे क्यो नही.

मैं : साहब मैं मेरे परिवार को छोड़कर कैसे जा सकता था.

ख़ान : परिवार....हाहहहाहा अच्छा है...वैसे तुम मेरे पहले इम्तिहान मे पास हो गये हो अब मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ.

मैं : जी कौनसा इम्तेहान
ख़ान : कल मेरे आदमियो ने पूरे गाव को घेर रखा था अगर तुम भागने की कोशिश भी करते तो वो लोग तुमको वही भुन देते लेकिन तुम नही भागे मुझे अच्छा लगा.

मैं : जब बाबा ने कहा था कि मैं नही जाउन्गा तो कैसे जाता.

ख़ान : हमम्म अब तो बस तुम एक बार ठीक हो जाओ तो मैं तुम पर अपना दाँव खेल सकता हूँ.

मैं : कौनसा दाँव

ख़ान: यार तुम जल्दी मे बहुत रहते हो सबर करो धीरे-धीरे सब पता चल जाएगा.

मैं : अब हम कहाँ जा रहे हैं?

ख़ान : पहले तुम्हारा लाइ डिटेक्टोर टेस्ट होगा उसके बाद तुम्हारे चेक-अप के लिए जाएँगे.

मैं : ठीक है.

उसके बाद कोई खास बात नही हुई पिछे मैं ऑर नाज़ी एक दूसरे के साथ बैठे थे नाज़ी पूरे रास्ते मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर बैठी रही ऑर मेरा हाथ पकड़कर रखा. फिर हम को ख़ान एक अजीब सी जगह ले आया जो बाहर से तो किसी दफ़्तर की तरह लग रहा था जहाँ बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे. फिर हम चलते हुए एक दरवाज़े के पास पहुँच गये जिसके सामने कुछ नंबर लिखे थे ख़ान ने कुछ नंबर दबाए ऑर गेट खुद ही खुल गया. अंदर अजीब सा महॉल था वहाँ बहुत से लोग बंदूक ताने खड़े थे मैं ऑर नाज़ी सारी जगह को देखते हुए ख़ान के पिछे-पिछे जा रहे थे.

तभी एक पोलीस वाला दौड़ता हुआ आया ऑर मुझ पर हमला कर दिया ख़ान ने जल्दी से नाज़ी को अपनी तरफ खींच लिया जो मेरा हाथ पकड़े चल रही थी. मुझे समझ नही आ रहा था कि ये क्या हुआ उस पोलिसेवाले ने लातें ऑर मुक्के मुझ पर बरसाने शुरू कर दिए मैं कुछ देर ज़मीन पर लेटा रहा ऑर मार ख़ाता रहा फिर जाने मुझे क्या हुआ मैने उस पोलिसेवाले का पैर पकड़ लिया ऑर ज़ोर से घुमा दिया वो हवा मे पलट गया ऑर धडाम से ज़मीन पर गीरा फिर मैने अपनी दोनो टांगे हवा मे उठाई ऑर झटके से दोनो पैरो पर खड़ा हो गया इतने मे 3 पोलीस वाले मेरी ओर लपके जिसमे से एक ने मुझे पिछे से पकड़ लिया बाकी जो 2 सामने से आए उनको मैने गले से पकड़ रखा था मैने सामने वाले दोनो आदमियो की दीवार की तरफ धक्का दिया ऑर पिछे वाले के मुँह पर ज़ोर से अपना सिर मारा जिससे वो अपना नाक पकड़कर वही बैठ गया तभी एक ऑर पोलीस वाला भागता हुआ आया जिसके हाथ मे लोहे का सरिया था जैसे ही वो मुझे सरिये से मारने लगा मैने सरिया पकड़ लिया ऑर घूमकर उसके कंधे पर वही सरिया ज़ोर से मारा इतने मे एक पोलीस वाला जो ज़मीन पर गिरा पड़ा था वो उठा ऑर उसने एक काँच के बर्तन जैसा कुछ उठा लिया ऑर पिच्चे से मेरे सिर मे मारा. मैं फॉरन उस ओर पलट गया ऑर गुस्से से उसको देखने लगा तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे सिर से खून निकल रहा है मैने अपने सिर पर हाथ लगाया ऑर अपने खून को उंगलियो पर लगाकर उसका मुक्का बना लिया ऑर ज़ोर से उस आदमी के मुँह पर मारा फिर उसको कंधे पर उठाकर अलमारी पर फेंक दिया जिससे अलमारी के दोनो दरवाज़े अंदर को धँस गये फिर मैने पास पड़ी एक चेयर उठाई ऑर सामने गिरे हुए दोनो पोलीस वालो को खड़ा करके उनके सिर वो चेयर मारी जिससे चेयर टूट गई ऑर मेरे हाथ मे उसका एक टूटा हुआ डंडा सा रह गया अब मैने चारो तरफ देखा लेकिन मुझ पर हमला करने वाले तमाम लोग ज़मीन पर गिरे पड़े थे ऑर दर्द से कराह रहे थे मैं हाथ मे कुर्सी की टूटी हुई टाँग पकड़े ऑर आदमियो के आने का इंतज़ार करने लगा कि अब कौन आएगा लेकिन तभी पूरा कमरा तालियो की गड़-गड़ाहट से गूँज उठा मैने पलटकर देखा तो ये ख़ान था जो मुझे देखकर खुश हो रहा था ऑर तालियाँ ब्जा रहा था.

ख़ान : वाहह क्या बात है लोहा आज भी गरम है.

मैं : ख़ान साहब ये कौन लोग है जिन्होने मुझ पर हमला किया.

ख़ान : ये मेरे लोग है इनको मैने ही तुम पर हमला करने को कहा था.

मैं : लेकिन क्यो (गुस्से मे)

ख़ान : (अपने नाख़ून देखते हुए) कुछ नही मैने शेरा की ताक़त के बारे मे सुना था देखना चाहता था बस इसलिए.(मुस्कुराकर)

मैं : (गुस्से से ख़ान को देखते हुए) हहुूहह ये कोई तरीका है किसी की ताक़त आज़माने का.

नाज़ी : (ख़ान से अपना हाथ छुड़ा कर चिल्लाते हुए) तुम एक दम पागल हो कल बाबा ने कहा था ना कि ये पहले जैसे नही है अब बदल गये हैं फिर भी तुमने इन पर हमला करवाया देखो सिर से खून आ रहा है इनके (अपने दुपट्टे से मेरा सिर का खून सॉफ करते हुए) हमें कोई इलाज नही करवाना नीर चलो यहाँ से ये सब के सब लोग पागल है.

ख़ान : देखिए माफी चाहता हूँ लेकिन इसको आज़माना ज़रूरी था अब ऐसा नही होगा मैं वादा करता हूँ चलिए आइए मेरे साथ.

इतना कहकर वो एक कमरे मे चला गया ऑर हाथ से हम को भी पिछे आने का इशारा किया हम बिना कुछ बोले उसके पिछे चले गये नाज़ी ने अपना दुपट्टा मेरे सिर पर ही पकड़कर रख लिया ऑर दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया ऑर हम दोनो ख़ान के पिछे चले गये जहाँ बड़ी-बड़ी मशीन पड़ी थी. तभी एक औरत मुस्कुराते हुए मेरे पास आई जिसने सफेद कोट पहना था ऑर देखने मे डॉक्टर जैसी लग रही थी.

डॉक्टर : हल्लो माइ सेल्फ़ डॉक्टर रेहाना करिशी. (अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए)

मैं : जी क्या

डॉक्टर : माफी चाहती हूँ मैं भूल गई थी आपको अँग्रेज़ी नही आती मेरा नाम डॉक्टर रेहाना है ऑर आप.

मैं : (हाथ मिलाते हुए) नीर अली.

डॉक्टर : (कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए) बैठिए जनाब.

मैं : (बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ ते हुए) आप मेरा इलाज करेंगी?

डॉक्टर : (मेरा चेहरा पकड़कर मेरे सिर का ज़ख़्म देखते हुए) हमम्म हंजी मैं ही करूँगी लेकिन पहले आपके ज़ख़्म का इलाज कर दूं खून निकल रहा है (मुस्कुराते हुए)

फिर डॉक्टर रेहाना ने मेरे जखम पर पट्टी बाँधी ओर मैं बस बैठा उसको देखता रहा वो मुझे देखकर लगातार मुस्कुरा रही थी ऑर मैं उसकी बड़ी-बड़ी नीली आँखो मे देख रहा था एक अजीब सी क़शिष थी उसके चेहरे मे मैं बस उसके चेहरे को ही लगा तार देखे जा रहा था. फिर उसने मेरी बाजू पकड़ी ऑर एक इंजेक्षन सा लगा दिया जो मुझे लगा शायद मेरे सिर के दर्द के लिए होगा लेकिन इंजेक्षन के लगते ही मुझ पर एक अजीब सा नशा छाने लगा ऑर मेरी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा मुझे बहुत तेज़ नींद आने लगी जैसे मैं कई रातो से सोया ही नही हूँ. उसके बाद मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया ऑर मुझे जब होश आया तो मैं एक बेड पर लेटा हुआ था मेरे पास मेरा हाथ पकड़कर नाज़ी बैठी हुई थी ऑर रेहाना ऑर ख़ान मेरे सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे.

मैं : मैं यहाँ कैसे आया मैं तो कुर्सी पर बैठा था ना.

ख़ान : माफी नीर जी माफी आप सच कह रहे थे लाइ डिटेक्टोर टेस्ट के बाद हम को भरोसा हो गया जनाब (हाथ जोड़कर) लेकिन क्या करे भाई हमारी भी ड्यूटी है शक़ करने की बीमारी सी पड़ गई है अच्छा तुम अब रेस्ट करो कुछ चाहिए हो तो डॉक्टर रहना को बोल देना ठीक है.

फिर ख़ान तेज़ कदमो के साथ कमरे से बाहर निकल गया ऑर हम सब उसको देखते रहे. फिर मैने बिस्तर से खड़े होने की कोशिश की लेकिन मेरे हाथ पैर जवाब दे रहे थे जैसे उनमे कोई जान ही ना हो मैं चाह कर भी उठ नही पा रहा था इसलिए मैने सबसे एक के बाद एक सवाल पुच्छने शुरू कर दिए.

मैं : लाइ डिटेक्टोर टेस्ट हो भी गये ऑर मुझे पता भी नही चला. ऑर अब मैं कहा हूँ ऑर यहाँ आया कैसे?

रेहाना : आपको हमारे लोग यहाँ लाए हैं आप घबरईए नही आप एक दम महफूस है (मुस्कुराते हुए)

मैं : क्या अब मैं घर जा सकता हूँ (बिस्तर से उठ ते हुए)

रहना : अर्रे लेटे रहिए अभी दवा का असर है तो कुछ देर बॉडी मे कमज़ोरी रहेगी हो सकता है चक्कर आए लेकिन थोड़ी देर मे ठीक हो जाओगे तो आप घर चले जाना.

मैं : (नाज़ी का हाथ पकड़ते हुए) तुम ठीक हो

नाज़ी : (मुस्कुरा कर हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म

मैं: हम कितनी देर से यहाँ है

नाज़ी : सुबह से

मैं : अब वक़्त क्या हुआ है

नाज़ी : शाम होने वाली है

मैं : क्या मैं इतनी देर सोया रहा.

रेहाना : बाते बाद मे कर लेना पहले कुछ खा लो (मुस्कुराते हुए) बताओ क्या खाओगे

मैं : (नाज़ी की तरफ देखते हुए) तुमने खाना खाया

नाज़ी : नही तुम्हारे साथ खाउन्गी.

रेहाना : आप बाते करो मैं आपके लिए कुछ खाने को भेजती हूँ

फिर रेहाना चली गई ऑर मैं उसको जाते हुए देखता रहा तभी नाज़ी को जाने क्या हुआ वो अपनी जगह से खड़ी हुई ऑर बेड पर मेरे उपर आके लेट गई ऑर मुझे गले से लगा लिया.

मैं : नाज़ी क्या हुआ

नाज़ी : (ना मे सिर हिलाते हुए) कुछ नही बस तुमको गले लगाने का दिल कर रहा था सो लगा लिया.

मैं : वो तो ठीक है लेकिन वो डॉक्टरनी आ गई तो.

नाज़ी : एम्म्म बस थोड़ी देर फिर सही होके बैठ जाउन्गी.

मैं : नाज़ी एक पप्पी दो ना

नाज़ी : (मेरी छाती पर थप्पड़ मारते हुए) खड़ा हुआ नही जा रहा फिर भी सुधरते नही बदमाश.

मैं: (हँसते हुए) लो यार अब तुमसे नही तो क्या डॉक्टरनी से पप्पी मांगू.

नाज़ी : (मेरा गला दबाते हुए) माँगकर तो दिखाओ किसी ऑर से पप्पी.... तुम्हारा गला नही दबा दूँगी बड़े आए डॉक्टर से पप्पी माँगने वाले (मुस्कुराते हुए)

मैं: तो फिर पप्पी दो ना

नाज़ी : म्म्म्मीम ठीक है लेकिन सिर्फ़ एक.

मैं : हाँ ठीक है एक ही दे दो बाकी घर जाके ले लूँगा. (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी : तुम सुधर नही सकते ना (हँसते हुए)

मैं : (ना मे सिर हिलाते हुए ऑर मुस्कुराते हुए) उउउहहुउऊ
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07-30-2019, 01:18 PM,
#30
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-28

तभी गेट खट-खटाने की आवाज़ आई तो नाज़ी जल्दी से अपनी जगह पर बैठ गई. रेहाना एक नर्स के साथ अंदर आई नर्स के हाथ मे एक बड़ी सी ट्रे थी जिसमे शायद वो हमारे लिए खाना लाई थी. नाज़ी ने खड़ी होके नर्स से प्लेट पकड़ ली ऑर फिर नर्स ऑर रेहाना ने मिलकर मुझे बिस्तर पर बिठा दिया फिर एक कटोरे मे रेहाना मुझे खिचड़ी खिलाने लगी जो शायद नाज़ी को अच्छा नही लग रहा था इसलिए वो अजीब से मुँह बनाके कभी रेहाना को कभी मुझे घूर-घूर के देख रही थी.

नाज़ी : डॉक्टरनी जी लाइए मैं खिला देती हूँ आप रहने दीजिए.

डॉक्टर : (मुस्कुराते हुए) ठीक है ये लो. (मुझे देखते हुए) नीर आप आराम से खाना खा लो उसके बाद आपके कुछ टेस्ट करने है नर्स यही है जब आप खाना खा लो तो बता देना फिर मैं आपके कुछ टेस्ट करूँगी ठीक है.

मैं : (खाते हुए हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म

उसके बाद मैने ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना खाया अब मैं काफ़ी बेहतर महसूस कर रहा था कमज़ोरी भी महसूस नही हो रही थी मैं अब बिना कोई सहारे के अपने पैरो पर खड़ा हुआ ऑर नर्स हम को एक ठंडे से कमरे मे ले गई जहाँ एक बड़ी सी मशीन थी ऑर उसके पास डॉक्टर रेहाना फाइल्स हाथ मे लिए ही खड़ी थी. उसने एक नज़र मुझे मुस्कुराकर देखा ऑर फिर मशीन पर लेटने का इशारा किया मैं चुप-चाप उस मशीन पर लेट गया.

डॉक्टर : नीर कोई लोहे की चीज़ तो नही तुम्हारे पास मेरा मतलब है कोई घड़ी चैन या अंगूठी पहनी है तुमने इस वक़्त.

मैं : (ना मे सिर हिलाते हुए) जी नही

डॉक्टर : अच्छा चलो अब अपनी आँखें बंद करके कुछ देर के लिए लेट जाओ

फिर मैं आराम से वहाँ लेटा रहा ऑर एक रोशनी मेरे सिर से लेके पैर तक बार-बार गुज़रती रही कुछ ही पल मे मुझे एक टीच की आवाज़ आई ऑर उसके बाद अगली आवाज़ रेहाना की थी जो मेरे कानो से टकराई.

डॉक्टर : बस हो गया नीर अब आप उठ सकते हैं.

मैं : बस इतना ही था ऑर कुछ नही.

डॉक्टर : (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते ) उऊहहुउ... चलो अब आप बाहर जाके बैठो मैं ख़ान से बात करके अभी आती हूँ

उसके बाद मैं वहाँ से खड़ा हुआ ऑर नर्स मुझे ऑर नाज़ी को एक कमरे मे छोड़ गई जहाँ सामने पड़े सोफे पर हम दोनो बैठ गये ऑर डॉक्टर रेहाना का इंतज़ार करने लगे. कुछ देर बाद ही डॉक्टर रेहाना ऑर ख़ान दोनो एक साथ कमरे मे आए जिनके हाथ मे कुछ पेपर्स थे ऑर वो आपस मे किसी बात पर बहस कर रहे थे. कमरे मे आते ही मेरे सामने दोनो नॉर्मल हो गये ओर मुझे मुस्कुरकर देखने लगे.

ख़ान : चलिए जनाब आपको घर छोड़ आता हूँ.

मैं : बस इतना सा ही काम था.

ख़ान : हंजी बस इतना सा ही काम था बाकी आपका ऑर कुछ ज़रूरत होगी तो फिर आना पड़ेगा.

मैं : आ तो मैं जाउन्गा लेकिन मेरे खेत.

ख़ान : अर्रे उसकी फिकर तुम मत करो कुछ दिन के लिए नये आदमी रख लो ना यार.

मैं : साहब आदमी रखने की हैसियत होती तो मैं खुद काम क्यो करता

ख़ान : अर्रे तुम फिकर मत करो अब तुम मेरे साथ हो पैसे की फिकर मत करो तुमको जो भी चाहिए हो मुझे फोन कर देना तुम्हारा काम हो जाएगा.

उसके बाद उसने मुझे अपना कार्ड दिया जो मैने जेब मे डाल लिया फिर रेहाना ने नाज़ी को मेरे लिए कुछ दवाइयाँ भी साथ दी ऑर साथ ही कुछ हिदायतें भी दी कि किस वक़्त मुझे कौनसी दवाई देनी है.

डॉक्टर : नीर वैसे तो मैने नाज़ी को सब समझा दिया है वो तुमको वक़्त पर दवा देती रहेगी फिर भी मैं हफ्ते मे एक बार या तो तुम खुद अपने चेक-अप के लिए यहाँ आ जाओ या फिर मुझे तुम्हारे गाँव आना पड़ेगा बताओ कैसे करना पसंद करोगे.

मैं : जी मैं हर हफ्ते शहर नही आ सकता बेहतर होगा आप ही आ जाए.

डॉक्टर : (मुस्कुरकर) कोई बात नही

फिर मैं ख़ान ऑर नाज़ी उसी दरवाज़े से बाहर निकल गये जहाँ से आए थे. लेकिन हैरत की बात ये थी कि सुबह जब हम यहाँ आए थे तो बाहर बहुत से मुलाज़िम काम कर रहे थे लेकिन अब वहाँ कोई आदमी मोजूद नही था पूरा दफ़्तर खाली पड़ा था

मैं : ख़ान साहब यहाँ सुबह कुछ लोग काम कर रहे थे ना वो कहाँ गये.

ख़ान : वो यही काम करते हैं अब उनके घर जाने का वक़्त हो गया था इसलिए चले गये अंदर हमारा अपना सीक्रेट हेडक्वॉर्टर है. अंदर मेरी मर्ज़ी के बिना कोई नही जा सकता.

मैं : अच्छा ठीक है.

ऐसे ही बाते करते हुए हम बाहर निकल गये ऑर जीप मे बैठ गये ख़ान ड्राइवर की साथ वाली सीट पर आगे बैठा था जबकि मैं ओर नाज़ी फिर से पिछे ही बैठ गये नाज़ी वापिस मेरे साथ चिपक कर बैठी थी ऑर मेरे कंधे पर सिर रखा था पूरे रास्ते कोई खास बात नही हुई.

जब हम घर आए तो फ़िज़ा बाहर ही खड़ी थी जो शायद हमारा ही इंतज़ार कर रही थी जीप को देखते ही उसका चेहरा खुशी से खिल उठा ऑर जीप के रुकते ही वो तेज़ कदमो के साथ हमारी तरफ आई ऑर जीप के अंदर देखने लगी. फिर हम सब घर के अंदर चले गये जहाँ बाबा हॉल मे ही कुर्सी पर बैठे थे शायद वो भी मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे.

बाबा : आ गये बेटा. (ख़ान की तरफ देखते हुए हाथ जोड़कर) ख़ान साहब आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे मेरा बेटा वापिस कर दिया.

ख़ान : बाबा जी आप बुजुर्ग है शर्मिंदा ना करे हाथ जोड़कर (बाबा के हाथो को पकड़ते हुए) मैने आपसे कहा ही था कि अगर ये बे-गुनाह है तो इसे कुछ नही होगा.

फ़िज़ा : ख़ान साहब आप बैठिए मैं चाय लेके आती हूँ (नाज़ी को इशारे से बुलाते हुए)

फिर मैं बाबा ओर ख़ान वही हॉल मे ही कुर्सियो पर बैठ गये ऑर ख़ान मेरे बारे मे बाबा से पुछ्ता रहा.

ख़ान : बाबा जी मुझे आपसे अकेले मे कुछ बात करनी है.

बाबा : जी ज़रूर....(मेरी तरफ देखते हुए) बेटा जाके देखो चाय का क्या हुआ.

मैं : जी बाबा (ऑर मैं उठकर रसोई मे चला गया)

ख़ान ऑर बाबा मे क्या बात हुई मुझे नही पता लेकिन रसोई मे घुसते ही फ़िज़ा फिकर्मन्दि से मेरा मुँह पकड़कर मेरे सिर की चोट देखने लगी उसको शायद आते ही नाज़ी ने सब कुछ बता दिया था इसलिए उसके चेहरे पर भी मेरे लिए फिकर सॉफ झलक रही थी.

फ़िज़ा : ये ख़ान कितना कमीना है देखो कितनी चोट लग गई.

मैं : अर्रे तुम तो ऐसे ही घबरा जाती हो कुछ नही हुआ मैं एक दम ठीक हूँ ज़रा सी खराश है ठीक हो जाएगी.

फ़िज़ा : ऑर कही तो चोट नही लगी.

मैं : (मुस्कुराकर ना मे सिर हिलाते हुए) उऊहहुउ....

फिर हम कुछ देर ऐसे ही रसोई मे खड़े रहे ऑर नाज़ी दिन भर क्या-क्या हुआ वो सब फ़िज़ा को बताती रही मैं बस पास खड़ा दोनो की बाते सुनता रहा ऑर मुस्कुराता रहा तभी मुझे बाबा की आवाज़ आई तो मैं फॉरन बाहर चला गया जहाँ बाबा ऑर ख़ान बैठे थे.

बाबा : बेटा ख़ान साहब कह रहे हैं कि अब तुम आज़ाद हो लेकिन जब भी इनको तुम्हारी मदद की ज़रूरत होगी तो तुमको जाना पड़ेगा तुमको कोई ऐतराज़ तो नही है.

मैं : बाबा आप हुकुम कीजिए आप जो कहेंगे वही मेरी मर्ज़ी होगी.

बाबा : ठीक है बेटा.... देखिए ख़ान साहब मैने कहा था ना आपसे. (मुस्कुराकर)

ख़ान : जी जनाब आप सही थे. मैं सोच भी नही सकता था कि शेरा जैसा इंसान इतना बदल सकता है आज सच मे मुझे बेहद खुशी है कि ये एक नेक़ इंसान की जिंदगी गुज़ार रहा है.

अभी हम बाते ही कर रहे थे कि एक काले रंग की कार हमारे दरवाज़े के सामने आके रुक गई. जिससे हम सब का ध्यान बाहर की तरफ गया. ये कार तो हीना की थी जिसमे मैं उसको कार चलाना सिखाता था. तभी कार के पिछे वाला गेट खुला ऑर हीना बाहर निकली मुझे देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई ऑर वो सीधा ही अंदर चली आई. उसने आते ही अदब से सबको सलाम किया फिर बाबा से दुआ ली.

हीना : बाबा देख लो आज फिर नीर नही आए मुझे गाड़ी सिखाने के लिए. (रोने जैसा मुँह बनाके)

बाबा : अर्रे बेटी वो आज कुछ काम था इसलिए शहर जाना पड़ा नीर को.

ख़ान : ये मोहतार्मा कौन है (घूरते हुए)

बाबा : ये हमारे गाव के सरपंच की बेटी हैं जिनको नीर कार चलानी सिखाता है.

ख़ान : अच्छा ये तो बहुत नेक़ बात है. बाबा जी अब मुझे भी इजाज़त दीजिए फिर कभी मुलाक़ात होगी.

बाबा : अच्छा बेटा आते रहना.(मुस्कुराकर)

फिर ख़ान ऑर बाबा बाते करते हुए दरवाज़े तक चले गये ऑर मैं हीना के पास ही बैठा रहा इतने मे नाज़ी चाय लेके आ गई ऑर हीना को देखते ही उसका पारा चढ़ गया. लेकिन फिर भी उसने हीना को सलाम किया ऑर टेबल पर चाय रख दी.

नाज़ी : आप यहाँ कैसे हीना जी.

हीना : वो आज नीर जी हवेली नही आए तो मैने सोचा मैं ही चली जाती हूँ. यहाँ आई तो पता चला कि आप लोग भी अभी शहर से आए हो.

नाज़ी : जी अभी आए हैं ऑर बहुत थके हुए हैं.

हीना : ये सिर मे क्या हुआ नीर .

मैं : कुछ नही बस छोटी सी चोट लग गई थी (मैने हीना को कुछ भी नही बताया था अपने बारे मे इसलिए ये बात भी छुपानी पड़ी)

हीना : ख्याल रखा करो ना अपना. दिखाओ कितनी चोट लगी है.

नाज़ी : उसकी कोई ज़रूरत नही है चोट लगी थी पट्टी हो चुकी है अब क्या पट्टी खोलकर दिखाएँगे.

हीना : मेरा मतलब था कि इनका ठीक से ख़याल रखा करो.

नाज़ी Sadगुस्से मे) हम ठीक से ही ख्याल रखते हैं.

हीना : हाँ वो तो मैं देख ही रही हूँ तुम कितना ख्यालो रखती हो तभी इतनी चोट लग गई है.

मैं : (दोनो को शांत करने के लिए) अर्रे तुम हर वक़्त लड़ने क्यों लग जाती हो. कुछ नही हुआ ज़रा सी खराश है बस ऑर हीना मैं अगर तुमको कल गाड़ी चलानी सिखाउ तो कोई समस्या तो नही.

हीना : जी नही कोई समस्या नही है पहले आप ठीक हो जाइए गाड़ी सीखने के लिए तो सारी उम्र पड़ी है मुझे पता होता कि आपको चोट लगी है तो मैं डॉक्टर साथ ही लेके आती. (मेरा हाथ पकड़ते हुए)

मैं : नही उसकी कोई ज़रूरत नही अब मैं एक दम ठीक हूँ (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी को शायद हीना का इस तरह मेरा हाथ पकड़ना अच्छा नही लगा था इसलिए उसने चाय का कप हीना पर गीरा दिया.

हीना : (दर्द से कराहते हुए) ससस्स आयईयीई....

नाज़ी : ओह्ह माफ़ करना कप हाथ से फिसल गया

मैं : हीना ज़्यादा तो नही लगी (हीना के घुटने से सलवार पकड़कर झाड़ते हुए)

हीना : कोई बात नही मैं ठीक हूँ (फीकी मुस्कान के साथ)

मैं : नाज़ी ये क्या किया तुमने

नाज़ी : मैं जान-बूझकर नही किया माफ़ कर दो.

हीना : कोई बात नही.... बाथरूम कहाँ है

मैं : नाज़ी इनको बाथरूम ले जाओ ऑर सॉफ करो अच्छे से.

नाज़ी : (गुस्से से मुझे देखते हुए हीना को अंदर लेके चली गई) इस तरफ आओ

तभी बाबा भी ख़ान को रुखसत करके अंदर आ गये.

बाबा : ये हीना बेटी कहाँ गई अभी तो यही थी.

मैं : कुछ नही बाबा वो ज़रा नाज़ी के हाथ से कप फिसल गया था इसलिए हीना पर चाय गिर गई बस वही धुल्वाने लेके गई है.

बाबा : अच्छा... ये नाज़ी भी ना इसको ख्याल रखना चाहिए घर आए मेहमान पर कोई चाय गिराता है भला.

मैं : कोई बात नही बाबा उसने जान-बूझकर तो गिराई नही ऑर फिर ग़लती तो किसी से भी हो सकती है.

कुछ देर बाद हीना ऑर नाज़ी बाहर आ गई ऑर मैं हीना को देखकर हँसे बिना नही रह सका क्योंकि उसने मेरे कपड़े पहने थे जो उसको काफ़ी बड़े थे. हीना को देखकर बाबा भी हँसने लगे ऑर हीना खुद भी मुस्कुराए बिना ना रह सकी. नाज़ी गुस्से से लाल हुई पड़ी थी ऑर वो बिना कुछ बोले ही अंदर चली गई.

बाबा : अर्रे बेटी ये नीर के कपड़े क्यो पहन लिए.

हीना : बाबा वो मेरे कपड़े खराब हो गये थे तो धोने से मेरी सारी सलवार गीली हो गई थी ऑर मुझे अंदर इनके ही कपड़े नज़र आए तो मैने वही पहन लिए.

बाबा : कोई बात नही.

हीना : अच्छा बाबा मैं अब चलती हूँ (मुस्कुराते हुए)

बाबा : अच्छा बेटा....माफ़ करना वो नाज़ी मे थोड़ा बच्पना है इसलिए उसने तुम्हारे कपड़े खराब कर दिए.

हीना : कोई बात नही बाबा इसी बहाने मुझे नीर के कपड़े पहने का मोक़ा मिल गया (हँसते हुए) ऐसा लग रहा है अब्बू के कपड़े पहने हो बहुत ढीले ऑर बड़े है.

मैं : अर्रे कोई बात नही घर तक तो जाना है वैसे भी तुमने कौनसा पैदल जाना है बाहर कार मे ही तो जाना है फिकर मत करो कोई नही देखेगा. (मुस्कुराते हुए)

हीना : कैसे जाउ... आज तो लगता है पैदल ही जाना पड़ेगा.

मैं : (हैरानी से) क्यो बाहर कार है ना

हीना : सिर्फ़ कार ही है ड्राइवर नही है मुझे लगा आप आज भी कार चलानी सिख़ाओगे इसलिए ड्राइवर को मैने तब ही भेज दिया था.

बाबा : अर्रे कोई बात नही बेटी नीर तुमको गाड़ी मे घर छोड़ आएगा फिर तो ठीक है ना.

हीना : हाँ ये ठीक रहेगा. (मुस्कुराते हुए) चलो नीर फिर चलते हैं (कार की चाबी मेरी ओर बढ़ाते हुए)

मैं : (कार की चाबी पकड़कर) हाँ चलो... (मुस्कुराते हुए) बाबा मैं ज़रा हीना को घर तक छोड़कर अभी आता हूँ.

बाबा : अब बेटा जब जा ही रहे हो तो गाड़ी चलानी भी सीखा देना इसी बहाने ये भी खुश होके जाएगी.

हीना : अर्रे वाह ये तो ऑर भी अच्छा है चलो आज मैं भी नीर बनके ही गाड़ी चलाउन्गी. (हँसते हुए)

मैं : ठीक है पहले चलो तो सही.
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