इस स्टोरी का आगाज़ झेलम सिटी में हुआ और स्टोरी के में किरदार कुछ यूँ हैं.
ज़ाहिद महमूद: उमर 32 साल (भाई)
जॉब: एएसआइ (असिस्टेंट सब इनस्पेक्टर इन पंजाब पोलीस) रवैती पोलीस वालो की बजाय एक तंदुरुस्त (बिना बढ़े हुए पैट के) स्मार्ट और फिट इंसान.
मॅरिटल स्टेटस: सो कॉल्ड “कंवारा”
ज़ाहिद अभी ताक गैर शादी शुदा ज़रूर है मगर “कंवारा “नही….
शाज़िया ख़ानम: उमर 30 साल (बेहन)
वज़न के हिसाब से थोड़ी मोटी और भारी जिस्म की मालिक है. इस वजह से उस के मोटे और बड़े मम्मों का साइज़ 40 ड्ड और उभरी हुई चौड़ी गान्ड का साइज़ 42 है.
साथ में सोने पर सुहागा कि बाकी बहनो की निसबत शाज़िया का रंग भी थोड़ा सांवला है.
स्टेटस: तलाक़ याफ़्ता
27 साल की उमर में शादी हुई और मगर दो साल बाद ही 29 साल की उमर में तलाक़ भी हो गई.और अब उस की तलाक़ हुए एक साल का अरसा बीत चुका है.
जॉब: स्कूल टीचर
रज़िया बीबी: उमर 55 साल (अम्मी)
स्टेटस: बेवा (विडो)
जॉब: हाउस वाइफ
इस के इलावा ज़ाहिद की दो और छोटी बहने भी हैं जो अब शादी शुदा हैं.
एक बेहन अपने शोहर के साथ कराची में जब कि दूसरी बेहन क्वेटा में अपनी फॅमिली के साथ रहती है.
ज़ाहिद का एक सब से छोटा भाई ज़मान महमूद भी था. मगर बद किस्मती से वो “हेरोयन” (ड्रग) के नशे की लानत में मुबतिला हो कर कुछ साल पहले फोट हो चुका है.
चलें अब स्टोरी का आगाज़ करते हैं.
एएसआइ ज़ाहिद महमूद सुबह के तक़रीबन 7 बजे अपनी ड्यूटी पर जाने के लिए तैयार हो रहा था.
वो आज कल जीटी रोड झेलम के बिल्कुल उपर वेकिया पोलीस चोकी (पोलीस स्टेशन) काला गुजरं में तैनात (पोस्ट) था.
अगरचे ज़ाहिद महमूद को पोलीस में भरती हुए काफ़ी साल हो चुके थे. मगर दो महीने पहले ही उस की एएसआइ के ओहदे पर तराकी (प्रॉमोशन हुई थी. और इस तैराकी के साथ ही वो अपनी पोलीस सर्विस के दौरान पहली दफ़ा किसी पोलीस स्टेशन का इंचार्ज भी मुकरर हुआ था.
ज़ाहिद ने ज्यों ही घर से बाहर निकल कर अपनी मोटर साइकल को किक लगा कर स्टार्ट किया. तो उसी वकत उस की 30 साला छोटी बेहन शाज़िया ख़ानम अपने जिस्म के गिर्द चादर लपेटे एक दम घर के अंदर से दौड़ती हुई बाहर आई और एक जंप लगा कर अपने भाई के पीछे मोटर साइकल पर बैठ गई.
शाज़िया : भाई जाते हुए रास्ते में मुझे भी मेरे स्कूल उतार दें. आज फिर मेरी सज़ूकी वॅन (स्कूल वॅन) मिस हो गई है.
ज़ाहिद: एक तो में हर रोज तुम्हें लिफ्ट दे दे कर तंग आ गया हूँ. तुम टाइम पर तैयार क्यों नही होती?
शाज़िया: भाई में कोशिश तो करती हूँ मगर सुबह आँख ही नही खुलती… प्लीज़ मुझे स्कूल उतार दो ना मेरे अच्छे भाई, वरना मुझे बहुत देर हो जाएगी और मेरे स्कूल का प्रिन्सिपल मुझ पे गुस्सा हो गा.
शाज़िया ने पीछे से अपने भाई के कंधे पर अपना हाथ रखा और इल्तिजा भरे लहजे में भाई से कहा.
ज़ाहिद को खुद अपने थाने पहुँचने में देर हो रही थी. मगर फिर भी उसे पहले अपनी बेहन को उस के स्कूल ड्रॉप करना ही पड़ा. और यूँ ज़ाहिद अपनी बेहन को ले कर सिविल लाइन्स पर वाकीया हॅपी होम्स स्कूल के दरवाज़े पर आन पहुँचा.
ज्यों ही ज़ाहिद ने शाज़िया को ले कर उस स्कूल के सामने रुका तो उस के साथ ही एक स्कूल वॅन आ कर खड़ी हुई. जिस में से स्कूल के बच्चे और दो टीचर्स उतर कर बाहर आई.
उन टीचर्स में से एक टीचर ने शाज़िया की तरह अपने जिस्म के गिर्द चादर लपेटी हुई थी.
जब कि दूसरी टीचर ने बुर्क़ा पहना हुआ था. मुँह पर बुर्क़े के नक़ाब की वजह से उस टीचर की सिर्फ़ आँखे ही नज़र आ रही थीं. जब कि उस का बाकी का चेहरा छुपा हुआ था.
उन दोनो टीचर्स ने शाज़िया को अपने भाई के साथ मोटर साइकल पर बैठे देखा. तो उन्हो ने दोनो बेहन भाई के पास से गुज़रते हुए शाज़िया को सलाम किया.
शाज़िया अपने भाई की मोटर साइकल से उतरी और ज़ाहिद का शुक्रिया अदा करते हुए उन बच्चो और दोनो साथी टीचर्स के साथ स्कूल के गेट के अंदर चली गई.
ज़ाहिद भी अपनी बेहन को स्कूल उतार कर पोलीस चोकी आया और अपने रूटीन के काम में मसरूफ़ हो गया.
उसी दिन दोपहर के तक़रीबन 1 बजे का वक्त था. जुलाइ के महीने होने की वजह से एक तो गर्मी अपने जोबन पर थी. और दूसरा बिजली की लोड शेडिंग ने साब लोगो की मूठ मार रखी थी.
इस गर्मी की शिदत से निढाल हो कर ज़ाहिद पोलीस चोकी में बने हुए अपने दफ़्तर में आन बैठा.
आज थाने में उस को कोई खास मसरूफ़ियत नही थी. इस लिए बैठा बैठा एएसआइ ज़ाहिद महमूद अपनी गुज़री हुई ज़िंदगी के बारे में सोचने लगा.
अपनी सोचों में ही डूबे हुए ज़ाहिद महमूद अपनी पिछली ज़िंदगी के उस मुकाम पर पहुँच गया.जब कुछ साल पहले वो अपना एफए का रिज़ल्ट सुन कर ख़ुसी ख़ुसी अपने घर वाकीया मशीन मोहल्ला नंबर 1 झेलम में दाखिल हुआ था.
ज्यों ही ज़ाहिद अपने घर के दरवाज़े को खोल कर घर में दाखिल हुवा तो घर के सहन में अपनी अम्मी और दूसरे भाई और बहनो को ज़रोर कतर रोता देख कर ज़ाहिद बहुत परेशान हो गया. और वो दौड़ता हुआ अपनी अम्मी के पास पहुँचा.
ज़ाहिद: “अम्मी ख़ैरियत तो है ना, आप सब ऐसे क्यों रो रहे हैं”
अम्मी: बेटा ग़ज़ब हो गया,अभी अभी खबर आई है कि तुम्हारे अब्बू एक पोलीस मुक़ाबले में हलाक हो गये हैं”
ज़ाहिद के वालिद (अब्बू) करीम साब पोलीस में हेड कॉन्स्टेबल थे. और वो ही अपने घर के वहीद कमाने वाले भी थे.
बाकी घर वालो की तरह ज़ाहिद पर भी यह खबर बिजली बन कर गिरी और उस की आँखो से भी बे सकता आँसू जारी हो गये.
कुछ देर बाद थाने वाले उस के अब्बू की लाश को आंब्युलेन्स में ले कर आए और फिर सब घर वालो के आँसू के साए में करीम साब की लाश को दफ़ना दिया गया.
चूँकि ज़ाहिद के अब्बू ने उस पोलीस मुक़ाबले में मुलजिमो (क्रिमिनल्स) के साथ जवां मर्दि से मुक़बला किया था.
इस लिए पोलीस डिपार्टमेंट ने उन की इस बहादुरी की कदर करते हुए उन के बेटे ज़ाहिद को पोलीस में कॉन्स्टेबल भरती कर लिया.
कहते हैं कि हर इंसान की अपनी क़िस्मत होती है और किसी इंसान का सितारा दूसरे की निसबत अच्छा होता है. लगता था कि कुछ ऐसी ही बात ज़ाहिद के अब्बू करीम साब की भी थी.
क्यों कि घर के वहीद कमाने वाले होने के बावजूद, अपने जीते जी करीम साब अपने पाँच बच्चो और एक बीवी का खर्चा बहुत अच्छा ना सही मगर फिर भी काफ़ी लोगों से बेहतर चला रहे थे.
लेकिन अब उन की वफात के बाद जब घर का सारा बोझ ज़ाहिद के ना जवान कंधो पर आन पड़ा तो ज़ाहिद के लिए अपने घर का खर्चा चलाना मुश्किल होने लगा.
ज़ाहिद चूंकि नया नया पोलीस में भरती हुआ था. इस लिए शुरू का कुछ अरसा वो रिश्वत (ब्राइब) को हराम समझ कर अपनी पोलीस की सॅलरी में गुज़ारा करने की कोशिस में मसरूफ़ रहा.
ज़ाहिद ने जब महसूस किया कि पोलीस की नोकरी में उस के लिए अपने घर का खर्चा पूरा करना मुश्किल हो रहा है.तो ज़ाहिद ने अपने एक दोस्त के मशवरे से अपनी ड्यूटी के बाद फारिग टाइम में “चिंग चे” (ऑटो रिक्शा) चलाना शुरू कर दिया.
इसी दौरान ज़ाहिद से छोटी उस की बेहन शाज़िया ने भी अपना एफए का इम्तिहान पास कर लिया और अपने भाई का हाथ बंटाने के लिए घर के करीब एक स्कूल में टीचर की जॉब शुरू कर दी.
शाज़िया दिन में स्कूल की जॉब करती और फिर शाम को घर में मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी.
दोनो बेहन भाई की दिन रात की महनत रंग लाने लगी. और इस तरह महगाई के इस दौर में उन के घर वालों का गुज़ारा होने लगा.
ज़ाहिद और शाज़िया जो कमाते वो महीने के आख़िर में ला कर अपनी अम्मी के हाथ में दे देते.
ज़ाहिद और शाज़िया की अम्मी रज़िया बीबी एक सुगढ़ और समझदार औरत थी. वो जानती थी कि उस की बच्चियाँ और बच्चे अब जवान हो रहे हैं और जल्द ही वो शादी के काबिल होने वाले हैं.
इस लिए रज़िया बीबी ने अपने बच्चों की कमाई में से थोड़े थोड़े पैसे बचा कर अपने मोहल्ले की औरतो के साथ मिल कर कमिटी डाल ली.ता के आहिस्ता आहिस्ता कर के उस के पास कुछ पैसे जमा हो जाए तो वो वक्त आने पर अपने बच्चो की शादियाँ कर सके.
इस तरह दिन गुज़रते गये और दिन महीनो और फिर साल में तब्दील होने लगे. वकत इतनी तेज़ी से गुज़रा कि ज़ाहिद और उस की बेहन शाज़िया को पता ही ना चला.
ज़ाहिद को अपनी बेहन शाज़िया का घर से बाहर निकल कर नोकरी करना अच्छा नही लगता था.मगर वो मजबूरी के आलम में अपनी बेहन के इस कदम को कबूल कर रहा था.
ज़ाहिद को उम्मीद थी कि उस का छोटा भाई ज़मान जो कि अब कॉलेज में मेट्रिक के बाद कॉलेज के फर्स्ट एअर में दाखिल हुवा था.वो जल्द ही पढ़ कर उस के साथ अपने घर का बोझ उठाए गा तो वो अपनी सब बहनो की शादी कर के अपना फर्ज़ पूरा कर दे गा.
इधर ज़ाहिद तो यह सोच रहा था मगर क़ुदरत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था.
ज़ाहिद तो यह समझता था. कि उस की तरह उस का भाई ज़मान भी अपने काम से काम रखने वाला एक सीधा सादा लड़का है. मगर असल हक़ीकत कुछ और ही थी.
असल में ज़ाहिद के मुक़ाबले ज़मान का उठना बैठना कुछ ग़लत किसम के दोस्तो में हो गया. जिन्हो ने उस को हेरोइन के नशे की लूट लगा दी.
चूँकि ज़ाहिद तो दिन रात अपने घर वालो के लिए रोज़ी रोटी कमाने में मसरूफ़ था. इस लिए एक पोलीस वाला होने के बावजूद वो यह ना देख पाया कि उस का छोटा भाई किस रास्ते पर चल निकला है.
उस को अपने भाई के नशे करने वाली बात उस वक्त ही पता चली. जब बहुत देर हो चुकी थी.
एक दिन जब ज़ाहिद अपनी ड्यूटी पर ही था. कि उस को ये मनहूस खबर मिली कि उस का छोटा भाई ज़मान हेरोइन के नशे की ओवर डोज की वजह से इंतिकाल कर गया है.
ज़ाहिद और उस की पूरी फॅमिली के लिए यह एक क़ीमत खेज खबर थी. वो लोग तो अभी अपने वालिद की मौत का गम ही नही भुला पाए थे कि यह हादसा हो गया.
भाई की मौत का दुख तो ज़ाहिद को बहुत हुआ. मगर फिर भी जैसे तैसे कर के ज़ाहिद ने अपने आप को संभाला और कुछ दिन के शोक के बाद वो दुबारा अपनी ज़िंदगी में मसगूल हो गया.
जिंदगी फिर आहिस्ता आहिस्ता अपनी डगर पर चल पड़ी और इस तरह दो साल मज़ीद गुज़र गये.
इस दौरान रज़िया बीबी की कोशिश और ख्वाहिश थी कि ज़ाहिद और शाज़िया की शादी हो जाय.
इस मकसद के लिए रज़िया ने मोहल्ले की एक रिश्ता करवाने वाली औरत से बात कर रखी थी.
जिस ने शाज़िया के लिए कुछ रिश्ते रज़िया बीबी को दिखाए. मगर शाज़िया ने अपनी अम्मी को शादी से इनकार कर दिया.
असल में शाज़िया चाहती थी कि उस की शादी से पहले उस की छोटी बहनों की शादी हो जाए.
शाज़िया की अम्मी रज़िया बीबी ने उस को समझाया कि बेटी हमारे समाज में बड़ी बेटी को घर में बिठा कर छोटी बेटियों को नही ब्याहा जाता. मगर शाज़िया अपनी ज़िद पर अड़ी रही.
अपनी बेहन शाज़िया की तरह ज़ाहिद भी यह ही चाहता था. कि उस की अपनी शादी से पहले उस की बहनों की शादी हो तो उस के बाद ही वो अपनी बीवी को ब्याह कर अपना घर बसाए गा.
वैसे भी वक्त के साथ साथ ज़ाहिद को भी पोलीस का रंग चढ़ गया था. और अब वो पहले की निसबत ज़ेहनी तौर पर एक बदला हुआ इंसान था.
अपनी पोलीस की नोकरी के दौरान ज़ाहिद ना सिर्फ़ थोड़ी बहुत रिश्वत लेने लगा बल्कि उस ने चन्द तवायफो से अपने ताल्लुक़ात बना लिए थे.
जिस की वजह से उस के लंड की ज़रूरते गाहे ब गाहे पूरी हो रही थीं. इस लिए उसे अभी शादी की कोई जल्दी नही महसूस हो रही थी.
आख़िर कार ज़ाहिद और शाज़िया की माँ को उन की ज़िद के आगे हार माननी पड़ी. और उस ने कुछ मुनासिब रिश्ते देख कर अपनी दोनो छोटी बेटिओं की शादियाँ कर दीं.
छोटी बहनों की शादी के बाद शाज़िया की अम्मी ने उस को शादी के लिए ज़ोर देना शुरू कर दिया. और फिर अगले साल जब शाज़िया की उम्र 27 साल हुई तो उस की शादी भी कर दी गई.
शाज़िया की शादी से फारिग होने के बाद रज़िया बीबी ने अपने बेटे ज़ाहिद को शादी करने का कहा.
हाला कि ज़ाहिद अब 29 साल का हो चुका था . मगर अब भी पहले की तरह उस का अब भी वो ही जवाब था “ कि अम्मी अभी क्या जल्दी है”.
असल में बात ये थी कि अब ज़ाहिद के दिलो-दिमाग़ में यह सोच हावी हो गई थी कि” जब रोज ताज़ा दूध बाहर से मिल जाता है तो घर में भैंस पालने की क्या ज़रूरत है”.
इसी लिए वो हर दफ़ा अपनी अम्मी की उस की शादी की फरमाइश पर टाल मटोल कर देता था.
उधर शादी के पहले कुछ महीने तो शाज़िया के साथ उस के शोहर और सुसराल वालों का रवईया अच्छा ही रहा.
मगर फिर आहिस्ता आहिस्ता शाज़िया के सुसराल वालों का लालची पन सामने आने लगा. और उन्हो ने बहाने बहाने से हर दूसरे तीसरे महीने शाज़िया और उस के घर वालों से पैसों का मुतालबा करना शुरू कर दिया.
अपना घर बचाने की खातिर पहले पाहिल तो शाज़िया अपने सुसराल वालों की यह ज़रूरत किसी ना किसी तरह पूरी करती रही.
और फिर जब रोज रोज की इस फरमाइश से तंग आ कर शाज़िया ने इनकार करना शुरू किया. तो शाज़िया की सास ने उस के शोहर से कह कर शाज़िया को पिटवाना शुरू कर दिया.
शाज़िया लड़ झगड़ कर हर महीने या दूसरे महीने अपनी अम्मी के घर आने लगी. और फिर रोज रोज की लड़ाई का नतीजा यह निकला कि उस के शोहर ने एक दिन उस को तलाक़ दे कर हमेशा हमेशा के लिए शाज़िया को उस की अम्मी के घर भेज दिया और खुद दूसरी शादी कर ली.
शाज़िया को तलाक़ मिलने पर कोई ज़्यादा गम ना महसूस हुआ.
इस की एक वजह यह थी कि वो खुद भी रोज रोज की मार कुटाई से तंग आ चुकी थी. दूसरा वजह यह थी कि शाज़िया को शादी के दो सालों में कोई औलाद नही हुई. इस लिए उस को अपनी तलाक़ का ज़्यादा गम नही हुआ.क्योंकि अगर औलाद हो जाती तो फिर तलाक़ के बाद उस के लिए अपनी औलाद को एकले पालना बी एक मसला होता.
रज़िया बीबी और ज़ाहिद को शाज़िया की तलाक़ का दुख तो बहुत हुआ. मगर वो भी इस बात को किस्मत का लिखा समझ कर सबर कर गये.
तलाक़ के बाद शाज़िया के लिए चन्द एक और रिश्ते आए. मगर जो भी रिश्ता आया वो या तो शाज़िया के भारी जिस्म और साँवले रंग की वजह से पहली दफ़ा के बाद दुबारा वापिस ना लोटा.
या वो मर्द पहली बीवी के होते हुए दूसरी शादी के ख्वाइश मंद थे. या फिर शाज़िया से काफ़ी उमर वाले रन्डवे थे. जिन के पहली बीवी से बी बच्चे उन के साथ ही थे.
हमारे मोहसरे में आज कल अच्छे और पढ़े लिखे लड़कों की कमी की बदोलत कम उम्र और कंवारी लड़कियों के रिश्ते बहुत मुश्किल से हो रहे हैं.
तो एक बड़ी उम्र की तलाक़ याफ़्ता लड़की जिस का जिस्म भी तोड़ा भारी हो और साथ में रंग भी थोड़ा सांवला हो तो उस के लिए कोई अच्छा रिश्ता आना बहुत ही ख़ुशनसीबी की बात होती.
क्योंकि पहली शादी का तजुर्बा शाज़िया के लिए अच्छा नही था. इस लिए वो नही चाहती थी कि किसी बच्चो वाले या बुरे आदमी से शादी कर के वो एक नई मुसीबत अपने गले में डाल ले.
इसी लिए इन हालात में शाज़िया ने अपनी अम्मी से कह दिया कि अब वो दुबारा शादी नही करे गी.
शाज़िया की अम्मी ने अपनी बेटी को उस के फ़ैसला बदलने की बहुत कॉसिश की मगर शाज़िया अपनी बात पर अड़ी रही. तो उस की अम्मी ने भी उस की ज़िद के आगे हर मान कर खामोशी इख्तियार कर ली.
चूँकि शाज़िया ने अपनी शादी के बाद भी अपनी नोकारी नही छोड़ी थी. इस लिए उस ने दुबारा शादी का ख्याल अपने दिल से निकाल कर अपने आप को अपनी जॉब में मसरूफ़ कर लिया.
अब शाज़िया की उम्र 30 साल हो चुकी थी और उस को तलाक़ हुए भी एक साल का अरसा बीत चुका था.
इस एक साल के दौरान शाज़िया पहले जैसे नही रही थी. तलाक़ के दुख ने उस को पहले से ज़्यादा संजीदा और अपने आप से लापरवाह बना दिया था.
वो शादी से पहले भी अपने उपर ज़्यादा ध्यान नही देती थी. मगर तलाक़ के बाद तो वो बस एक ज़िंदा लाश की तरह अपनी जिंदगी बसर कर रही थी.
अपनी बेहन शाज़िया की इस हालत का ज़ाहिद को भी अहसास और अंदाज़ा था. मगर वो यह समझ नही पा रहा था कि वो कैसे अपनी बेहन की उदासी को ख़तम करे…
ज़ाहिद कमरे में बैठा हुआ अपनी पिछली जिंदगी की पुरानी यादों में ही गुम था. कि इतने में एक सिपाही ने आ कर उसे खबर दी. के उन के थाने को मतलूब एक इश्तहारी मुजरिम (पोलीस वांटेड क्रिमिनल) दीना सिटी में बने अल कौसेर होटेल में इस वक्त एक गश्ती के साथ रंग रेलियों में मसरूफ़ है.
(अल कौसेर दीना सिटी का एक बदनामी ज़माना होटल है. जिस में काफ़ी लोग रुंडी बाज़ी के लिए आते और अपना शौक पूरा करते हैं.)
यह खबर सुनते ही ज़ाहिद ने चन्द कोन्सेतबलेस को साथ लिया और अल कौसेर होटेल पर रेड करने चल निकला.
क़ानून के मुताबिक़ तो ज़ाहिद को दीना सिटी के लोकल पोलीस स्टेशन को रेड से पहले इत्तिला करना लाज़िमी था.
मगर हमारे मुल्क में आम लोग क़ानून की पेरवाह नही करते.जब कि ज़ाहिद तो खुद क़ानून था. और “क़ानून अँधा होता है”
इस लिए ज़ाहिद ने डाइरेक्ट खुद ही जा कर होटेल में छापा मारा और अपने मतलोबा बंदे को गिरफ्तार कर लिया.
अल कौसेर जैसे होटलो के मालिक अपना काम चलाने के लिए वैसे तो हर महीने लोकल पोलीस को मन्थली (रिश्वत) देते हैं.मगर इस के बावजूद कभी कभी पोलीस वाले एक्सट्रा पैसो के लिए अपनी करवाई डाल लेते हैं.
कुछ ऐसा ही उस रोज भी हुआ.
ज़ाहिद के साथ आए हुए पोलीस वालों ने अपना मुलज़िम पकड़ने के बाद होटेल के बाकी कमरों में भी घुसना शुरू कर दिया. ता कि वो कुछ और लोगो को भी शराब और शबाब के साथ पकड़ कर अपने लिए भी कुछ माल पानी बना सके.
बाकी पोलीस वालों की तरह एएसआइ ज़ाहिद ने भी होटेल के कमरों की तलाशी लेने का सोचा और इस लिए वो एक कमरे के दरवाज़े पर जा पहुँचा.
कमरे में दाखिल होने से पहले ज़ाहिद ने कमरे के अंदर के मंज़र का जायज़ा लेना मुनासिब समझा. जिस के लिए वो दरवाज़े के बाहर खड़ा हो कर थोड़ा झुका और दरवाज़े के की होल से आँख लगा कर अंदर झाँकना शुरू कर दिया.
ज़ाहिद ने अंदर देखा कि एक 25,26 साल की उमर का लड़का कमरे के बेड पर नंगा लेटा हुआ है.
और एक 26,27 साला निहायत ही खूबसूरत लड़की उस आदमी के लंड को अपनी चूत में डाले ज़ोर ज़ोर से ऊपर नीचे हो कर अपनी फुद्दि की प्यास बुझा रही थी.
ज़ाहिद यह मंज़र देख कर समझ गया कि आज उस की भी दिहाड़ी अच्छी लग जाएगी क्योंकि उस का शिकार अंदर माजूद है.
इस लिए उस ने ऊपर खड़े होते हुए दरवाज़े पर ज़ोर से लात मारी तो कमरे का कमज़ोर लॉक टूट गया और दरवाज़ा खुलता चला गया.
ज्यों ही ज़ाहिद कमरे का दरवाज़ा तोड़ते हुए कमरे के अंदर ज़बरदस्ती दाखिल हुआ. तो उसे देख कर उन दोनो लड़का और लड़की के होश उड़ गये.
और साथ ही लड़के के लंड पर बैठी हुई लड़की एक दम से चीख मार कर उस लड़के के उपर से उतरी और बिस्तर पर लेट कर बिस्तर की चादर को अपने गिर्द लपेट लिया.
ज़ाहिद को देखते ही उस लड़की की आँखों में हैरत और शाना साइ की एक लहर सी दौड़ गई.
अपने जिस्म को चादर में छुपाने के बाद वो लड़की अभी तक ज़ाहिद को टकटकी बाँधे ऐसे देखे जा रही थी. जैसे वो ज़ाहिद को पहले से ही जानती हो.
ज़ाहिद ने इस से पहले कभी उस लड़की को या उस के साथी लड़के को नही देखा था. इस लिए उस ने इस बात पर कोई तवज्जो ना दी. क्योंकि वो जानता था. कि अक्सर ऐसे मोके पर पकड़े जाने वाले लोग पोलीस से अपनी जान छुड़ाने के लिए उन से कोई ना कोई ताल्लुक या रिश्तेदारी निकालने की कॉसिश करते ही हैं.
लड़की के साथ साथ उस लड़के ने भी अपने तने हुए लंड पर एक दम हाथ रख कर उसे अपने हाथो से छुपाने की कोशिश करते हुए कहा” क्या बात है जनाब आप क्यों इस तरह हमारे कमरे में घुसे चले आए हैं”
ज़ाहिद: “वजह तुम को थाने (पोलीस स्टेशन) चल कर बताता हूँ, चलो उठो और जल्दी से कपड़े पहनो”.
“थाने मगर क्यों जनाब” वो लड़का ज़ाहिद की बात सुन कर एक दम घबरा गया और साथ ही वो औरत भी ज़ाहिद की बात सुन कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.
ज़ाहिद: “तुम्हे नही पता इस होटेल पर छापा पड़ा है,एक तो रंडी बाज़ी करते हो ऊपर से ड्रामे बाज़ी भी,चलो उठो जल्दी करो”
“जनाब आप को ग़लत फहमी हुई है हम तो मियाँ बीवी हैं”.उस लड़के ने ज़ाहिद की बात सुन कर एक परे शान कुन लहजे में कहा.
ज़ाहिद: मियाँ बीवी हो, क्या तुम मुझे बच्चा समझते हो, उठते हो या इधर ही तुम्हारी चित्रोल स्टार्ट कर दूं,बेहन चोद”.
ज़ाहिद की गाली सुन कर लड़का एक दम उठा और अपने बिखरे हुए कपड़े समेट कर पहनने लगा. जब कि लड़की अभी तक अपने जिस्म के गिर्द चादर लपेटे बिस्तर पर बैठी थी.
“चलो तुम भी उठ कर कपड़े पहन लो” एएसआइ ज़ाहिद ने लड़की को हुकुम दिया.
“अच्छा आप ज़रा बाहर जाए” लड़की ने बदस्तूर रोते हुए ज़ाहिद से दरख़्वास्त की.
ज़ाहिद: क्यों?
“ मुझे आप के सामने कपड़े पहन ते शरम आती है” लड़की ने हिचकी लेते हुए कहा.
अपने यार के सामने कपड़े उतार कर नंगा होते शरम नही आई और मेरे सामने कपड़े पहनते हुए बिल्लो को शरम आती है,चलो नखरे मत करो और कपड़े पहनो वरना यूँ नंगा ही उठा कर थाने ले चलूँगा समझी” ज़ाहिद गुस्से में फूंकारा.
“मरते क्या ना करते”. ज़ाहिद के गुस्से को देख कर वो लड़की फॉरन उठी और फर्श पर पड़े अपने कपड़े उठा कर पहनने लगी.
ज़ाहिद ने उन दोनो के कपड़ों और हुलिए से यह बात नोट की कि उन दोनो का ताल्लुक किसी अच्छे और अमीर घराने से है.
वो दिल ही दिल में खुश होने लगा कि इन से अच्छा माल वसूल हो गा.
(पोलीस की शुरू शुरू की नोकरी और अपने एएसआइ बनने से पहले ,ज़ाहिद रिश्वत को एक लानत समझता था. मगर जब से वो एएसआइ बन कर थाने का इंचार्ज बना था.उस को पता चल गया कि अगर किसी थाने में पोस्ट शुदा थाने दार (पोलीस ऑफीसर) अपने लिए रिश्वत ना भी ले तो उस के ऊपर बैठे हुए ऑफिसर्स उस से हर हाल में अपना हिसा माँगते हैं.
इस वजह से हर पोलीस ऑफीसर जो किसी भी थाने में पोस्ट होना चाहता है. वो रिश्वत लेने पर मजबूर हो जाता है.
वैसे भी हमारे मुल्क में खुस किस्मती से वो ही बंदा शरीफ होता है जिसे कोई चान्स ना मिले. और जिसे चान्स मिलता हैं वो हराम का माल लूटने में कोई कसर नही छोड़ता.
इस लिए एएसआइ बनते ही ज़ाहिद भी सिस्टम का हिसा बन गया और उस ने भी हर केस में रिश्वत लेना शुरू कर दी)
ज़ाहिद अपने दिल में इस जोरे से रिश्वत लेने का मंसूबा तो बना ही रहा था.
साथ ही साथ उस ने कपड़े पहनती लड़की के जिस्म पर भी अपनी नज़रें जमाए रखी. जो कपड़े पहनते हुए अभी तक आहिस्ता आवाज़ में रोए जा रही थी.
उस लड़की का रंग बहुत गोरा और जिस्म शीशे की तरह सॉफ शफ़फ़ था. उस के कसे हुए गोल गोल मम्मे और उन के उपर हल्के ब्राउन रंग के छोटे छोटे निपल्स थे.
ज़ाहिद ने उस के मम्मों को देखते हुए अपने दिल में अंदाज़ा लगाया कि उस के मम्मों का साइज़ 36सी हो गा.
उस की टाँगे लंबी और गुदाज थीं और उस की फुद्दि से हल्का हल्का पानी निकल कर उस की गुदाज टाँगों के ऊपर बैठा हुआ सॉफ नज़र आ रहा था.
यह मंज़र देख कर ज़ाहिद को अंदाज़ा हो गया कि यह लड़की बहुत ही गरम और प्यासी चीज़ है. और उस (ज़ाहिद) के अचानक छापा मारने की वजह से लड़की के जिस्म की प्यास पूरी तरह नही बुझ पाई.
लड़की का हुश्न और जवानी देख कर ज़ाहिद का लंड उस की पॅंट से बाहर निकल कर उस लड़की की चूत में जाने को मचलने लगा.
तो ज़ाहिद अपने दिल में प्लान बनाने लगा कि वो इन दोनो को थाने लेजा कर पहले लड़के से रिश्वत वसूल कर के उसे छोड़ दे गा. उस के बाद वो इस लड़की की चूत का मज़ा ले कर उसे भी जाने दे गा.
इतनी देर में लड़का और लड़की दोनो अपने अपने कपड़े पहन कर तैयार हुए तो ज़ाहिद ने उन को अपने साथ बाहर चलने को कहा.
“क्या में एक मिनिट के लिए बाथरूम से हो कर आ सकती हूँ” लड़की ने अपनी रोटी हुई आवाज़ में ज़ाहिद से पूछा.
ज़ाहिद: क्यों?
लड़की: में ने बाथरूम से कुछ लेना है.
ज़ाहिद: अच्छा मगर जल्दी करो.
लड़की ज़ाहिद की इजाज़त मिलते ही तेज तेज चलती हुई बाथरूम में घुसी और चन्द मिनट के बाद बाहर आ गई.
ज़ाहिद ने देखा कि बाथरूम से वापसी पर लड़की ने अब बुर्क़ा ओढ़ा हुआ है. जिस के नकाब से उस का मुँह छुप गया था.
उस लड़की को बुर्क़े में देख कर नज़ाने ज़ाहिद को क्यों यह अहसास हुआ. कि उस ने इस लड़की को पहले भी कहीं देखा है. कब और कहाँ इस बात की ज़ाहिद को समझ ना आई.
फिर ज़ाहिद के दिमाग़ में यह ख्याल आया कि बंदे जैसा बंदा होता है और शायद मुझे कोई ग़लत फहमी हो रही है.
इस लिए वो अपने ख्याल को नज़र अंदाज़ करता हुआ उन दोनो को साथ ले कर बाहर खड़ी पोलीस वॅन की तरफ चल पड़ा.
होटेल से बाहर निकल कर जब ज़ाहिद उन दोनो लड़का और लड़की को पोलीस वॅन की तरफ ले जाने लगा. तो उस लड़के ने आगे बढ़ कर ज़ाहिद से एक गाड़ी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा” सर आप ने हमे पोलीस स्टेशन ले कर जाना ही है तो चलिए में आप को अपनी गाड़ी में ले चलता हूँ”.
ज़ाहिद ने गाड़ी की तरफ देखा तो वो एक नये मॉडेल में ब्लॅक कलर की टोयटा कोरोला थी.
गाड़ी को देख कर ज़ाहिद का शक यकीन में बदल गया कि यह एक माल दार असामी है.
ज़ाहिद ने अपने साथी पोलीस वालों को ग्रिफ्तार इस्तियारी मुलज़िम थाने ले जाने को कहा और खुद उस लड़के के साथ गाड़ी की फ्रंट सीट पर आन बैठा.
जब के लेडकी खामोशी से आ कर गाड़ी की पिछली सीट पर बैठ गई.
ज़ाहिद ने लड़के को पोलीस चोकी काला गुजरं झेलम जाने को कहा तो उस लड़के ने गाड़ी को दीना सिटी से निकाल कर झेलम की तरफ मोड़ दिया.
दीना से झेलम के पूरे रास्ते वो लड़का अपनी तरफ से इस बात की पूरी कॉसिश करता रहा कि ज़ाहिद उन दोनो को मियाँ बीवी तसल्ली कर ले.
और साथ ही साथ वो ज़ाहिद की मिन्नत करता रहा. कि वो पैसे ले कर उन दोनो को पोलीस स्टेशन ले जाने की बजाय रास्ते में ही छोड़ दे.
ज़ाहिद ने अपने दिल में पक्का प्लान पहले ही बनाया हुआ था कि वो इन दोनो से रिश्वत ले कर छोड़ तो ज़रूर दे गा. मगर उन को छोड़ने से पहले वो एक बार इस लड़की की गरम फुददी का मज़ा ज़रूर लेना चाहता था.
गाड़ी अभी जीटी रोड पर वाकीया पोलीस चोकी से थोड़ी दूर ही थी. कि ज़ाहिद ने लड़के को गाड़ी एक सड़क पर मोड़ने को कहा. और फिर उसी सड़क के किनारे पर बने हुए एक छोटे से मकान के बाहर ज़ाहिद ने गाड़ी को रुकवा दिया.
जब से ज़ाहिद चोकी इंचार्ज बना था. तब से उस ने यह मकान किराए पर ले रखा था.
क्योंकि वो इस मकान में उन मूल्ज़मो को ले कर बंद करता था. जिन की ग्रिफ्तारी उस ने अभी पोलीस रिपोर्ट में नही डालनी होती.
वो लोगो के साथ रिश्वत की लेन दैन भी इधर करता और कभी कभी किसी गश्ती को इधर ला कर उस को चोद भी लेता था.
जब गाड़ी मकान के बाहर रुकी तो लड़के ने हैरत से ज़ाहिद की तरफ देखा और कहा” यह पोलीस स्टेशन तो नही”.
ज़ाहिद: हां तुम खुद ही कह रहे थे कि तुम लोगों को पोलीस स्टेशन ना ले जाऊं तो में तुम को इधर ले आया. कि इधर बैठ कर बात करते हैं चलो अब अंदर चलो”.
ज़ाहिद ने दरवाज़े का ताला खोला और वो दोनो उस के साथ मकान के अंदर चले आए.
वो मकान एक किचन,बाथरूम और एक बेड रूम पर मुश्तिमल था.
वो तीनो मकान के सहेन से गुज़र कर बेड रूम में चले आए.
उस कमरे के एक तरफ एक सोफा पड़ा हुआ था और दूसरी तरफ एक बड़े साइज़ का पलंग बिछा हुआ था.
जब कि कमरे की तीसरी दीवार के सामने एक छोटा सा टीवी पड़ा हुआ था.
ज़ाहिद ने उन दोनो को सोफे पर बिठाया और खुद उन के सामने पलंग पर जा बैठा.
लड़की को शायद कमरे में गर्मी ज़्यादा महसूस हो रही थी. इस लिए उस ने सोफे पर बैठते साथ ही अपने मुँह से बुर्क़े का नकाब उठा दिया. जिस से उस का चेहरा ज़ाहिद के सामने आ गया.
ज़ाहिद ने पलंग पर बैठ कर दोनो की तरफ देखा.वो दोनो अपनी नज़रें झुकाए बिल्कुल खामोशी से सोफे पर बैठे थे.
ज़ाहिद लड़की के चेहरे की खूबसूरती को देख कर लड़के की किस्मत पर रशक करने लगा. कि बरा किस्मत वाला है जो इस जबर्जस्त गरम जवानी की फुददी का मज़ा ले रहा है.
साथ ही साथ उन दोनो को इस तरह मजबूर अपने सामने बैठा देख कर एक पोलीस वाला होने के बावजूद ज़ाहिद को उन पर तरस आया और उस ने ने पहली बार बड़े नर्म लहजे में उन से पूछा” तुम दोनो के नाम क्या हैं,और सच सच बताना कहाँ से और कितने का लाए हो यह माल”
लड़के ने जब ज़ाहिद को इस तरह अपने साथ नर्म लहजे में बात करते देखा तो शायद उस ने भी थोड़ा सकून की सांस ली और उस ने आहिस्ता से जवाब दिया “ मेरा नाम जमशेद है और मेरी बीवी का नाम नेलोफर है”.
“ यार तुम क्यों बार बार इस बात पर इसरार कर रहे हो कि तुम दोनो मियाँ बीवी हो.अच्छा अगर वाकई ही तुम मियाँ बीवी तो दिखाओ मुझे अपना निकाह नामा” ज़ाहिद ने जमशेद से पोलीस वालों का रवायती सवाल पूछा.
(हर पोलीस वाला जब भी किसी लड़की और लड़के को चुदाई करते या आवारा फिरते पकड़ लेते है तो उन का हमेशा यह ही मुतलबा होता है कि देखाओ निकाह नामा. हाला कि सब लोग जानते हैं कि कोई शादी शुदा जोड़ा कभी अपना निकाह नामा साथ ले कर नही घूमता.. )
जमशेद: सर आप को पता है कि हमारे पास इस वक्त निकाह नामा नही.
ज़ाहिद: तो फिर यह कैसे साबित हो गा कि तुम लोग मियाँ बीवी हो?.
“अच्छा आप बताएँ कि आप को कैसे मुत्मीन किया जा सकता है” जमशेद ने इंड्र्सेट्ली ज़ाहिद से पूछा कि वो कितने पैसे ले कर उन की जान बक्शी करे गा.
एएसआइ ज़ाहिद जमशेद की बात सुन कर दिल ही दिल में मुश्कुराया क्योंकि वो अब जान गया कि जमशेद अब सही लाइन पर आ गया है और अब उस के लिए उस से सीधे तरह रिश्वत का मुतालबा किया जा सकता है.
“वैसे तो तुम लोग जानते हो कि ज़ना करी का केस हदोद ऑर्डिन्स के ज़ुमरे में आता है. और इस लिए मुझे तुम लोगो के खिलाफ केस रिजिस्टर ना करने का 50000.00 रुपये चाहिए.
ज़ाहिद ने जान बूझ कर पैसे थोड़े ज़्यादा बताए. उस का इरादा था कि 10 से 15 हज़ार रुपये और नीलोफर की चूत ले कर वो उन को जाने दे गा.
जमशेद: सर यह तो बहुत ज़्यादा रकम है,हम इतने पैसे नही दे सकते.
“ अच्छा तो कोई बात नही में अभी मीडीया वालों को खबर कर देता हूँ. कि हम ने छापा मार कर एक जोड़े को चुदाई करते हुए रंगे हाथों पकड़ा है. और फिर थाने ले जा कर तुम्हारे खिलाफ केस रिजिस्टर कर लेता हूँ”ज़ाहिद ने यह कहते हुए अपनी पॉकेट से अपना मोबाइल फोन निकाला और नंबर मिलाने लगा.
“ प्लीज़ ऐसा ना करें मीडीया पर खबर आने से ना सिर्फ़ मेरा घर उजड़ जाए गा बल्कि मेरी और भाई की जिंदगी भी बर्बाद हो जाय गी” जब नीलोफर ने ज़ाहिद को फोन मिलाते देखा तो वो एक दम अपनी जगह से उठी और ज़ाहिद के कदमो में गिर कर उस के पाँव पकड़ लिए.
“ भाईईईईईईईईईई क्या तुम दोनो बेहन भाई हो” नेलोफर की बात सुन कर ज़ाहिद का मुँह हैरत और गुस्से से खुला का खुला रह गया..और उस के फोन उस के हाथ से फिसल कर फर्श पर जा गिरा और गिरते ही टूट गया.
नीलोफर को फॉरन ही अपनी ग़लती का अहसास हो गया. मगर अब किया हो सकता था.क्योंकि “तीर तो कमान“से निकल चुका था.
कमरे में बिल्कुल एक सन्नाटा सा छा गया.
ज़ाहिद हैरत जदा और गुस्से की हालत में कभी जमशेद को देखता और कभी अपने कदमो में बैठी नेलोफर पर अपनी नज़रें जमा लेता.
जब कि जमशेद और नीलोफर दोनो “गुम सुम” एक बुत की तरह बे जान हो कर बैठे हुए थे. और उन को समझ में नही आ रहा था कि बोलें भी तो क्या बोलें.
थोड़ी देर बाद ज़ाहिद ने थोड़ा झुक कर नेलोफर को उस के कंधो से पकड़ कर उठाया और उस को अपने साथ पलंग पर बैठा लिया.
यूँ खुद अपने मुँह से ही अपना इतना बड़ा राज़ अफ्शान हो जाने पर नेलोफर पर एक कप कपि सी तरी हो गई थी. और घबराहट के मारे उस का बदन काँपने लगा था.
ज़ाहिद के साथ वो एक पलंग पर बैठ तो गई मगर शरम के मारे उस का जिस्म पसीने पसीने होने लगा था.
दूसरी तरफ ज़ाहिद अपनी ही सोचों में गुम था. उस ने अपनी अब तक की पोलीस सर्विस में ज़ना और चुदाई के काफ़ी केस देखे और सुने थे. मगर एक बेहन भाई की चुदाई का यह पहला केस था जो उस के सामने आया था.
इस बारे में सोचते हुए ज़ाहिद की आँखों के सामने वो मंज़र दौड़ने लगा . जब उस ने होटेल के कमरे का दरवाज़ा खोल कर अपनी आँखों के सामने एक बेहन को अपने भाई के लंड कर उपर बैठ कर मज़े से चुदवाते देखा था.यह मंज़र याद आते ही ज़ाहिद के बदन में एक अजीब सी मस्ती छाने लगाई.
ज़ाहिद ने इस से पहले भी कई दफ़ा लोगो को गश्तियो को चोदते रंगे हाथों पकड़ा था.
मगर अब यह पता चलने के बाद कि आज जिस लड़के,लड़की को उस ने चुदाई करते हुए पकड़ा है .वो एक आम कपल नही बल्कि सगे बेहन भाई हैं.
तो यह बात जानते हुए भी कि बेहन भाई का इस तरह आपस में जिस्मानी ताल्लुक़ात कायम करना एक बहुत बड़ा गुनाह है.
ना जाने क्यों ज़ाहिद के दिमाग़ में सेक्स का नशा चढ़ने लगा. जिस की वजह से उस का लंड उस की पॅंट में हिलने लगा.
और गुस्से का जो आलम एक लम्हा पहले उस पर तरी हुआ था. अब उस में भी कमी आने लगी थी.
“तुम लोगो को पता है ना कि यह जो कुछ तुम दोनो ने आपस में किया है वो काम निहायत ही ग़लत है” ज़ाहिद ने जमशेद और नेलोफर की तरफ देखते हुए उन से सवाल किया.
“जी हम जानते हैं कि ना सिर्फ़ यह काम ग़लत है बल्कि गुनाह भी है” जमशेद ने आशिता से जवाब दिया.
“जब सब जानते हो तो फिर क्यों और कब से कर रहे हो यह सब कुछ” ज़ाहिद ने फिर पूछा.
दोनो बेहन भाई ने इस बार कोई जवाब ना दिया और खामोश सिर झुका बैठे रहे.
“जवाब दो में तुम लोगों की इस हरकत की वजह जानना चाहता हूँ ” ज़ाहिद ने दुबारा थोड़े सख़्त लहजे में पूछा.
जमशेद और निलफोर दोनो ने इस बार भी ज़ाहिद के सवाल का जवाब नही दिया और अपना अपना मुँह बंद ही रखा.
ज़ाहिद के दिल में उत्सुकता थी कि वो यह जान सके कि आख़िर वो कौन सी वजह थी. जिस की खातिर दोनो बेहन भाई आपस में चुदाई करने पर मजबूर हुए थे.
इस लिए जब उस ने देखा कि वो उस के सवालो का जवाब नही दे रहे तो उस ने उन को एक ऑफर देने का सोचा.
ज़ाहिद: अच्छा अगर तुम लोग मुझे अपने बारे में सब कुछ सच सच बता दो गे तो में वादा करता हूँ कि में तुम लोगो से बहुत ही मामूली ही रिश्वत ले कर तुम दोनो को जाने दूं गा.
ज़ाहिद की ऑफर सुन कर दोनो बेहन भाई ने सर उठा कर एक दूसरे की आँखों में आँखे डाल कर देखा.
जैसे वो आँखों ही आँखों में एक दूसरे से पूछ रहे हों कि ज़ाहिद को अपनी कहानी सुना दी जाय या नही.
जमशेद ने थोड़ी देर बाद अपनी बेहन की आँखों में देखने के बाद हां में अपना सर हिलाया तो फिर नीलोफर ने आहिस्ता आवाज़ में अपनी कहानी ज़ाहिद को सुनानी शुरू कर दी.
नेलोफर ने बताया कि उन का ताल्लुक झेलम से ही है. उस की शादी 2 साल पहले हुई. शादी के वक्त उस की उमर 24 साल थी.
उस का शोहर मसकॅट ओमान में जॉब करता है. शादी के बाद उस का शोहर एक महीना उस के साथ रहा और फिर अपनी जॉब के सिलसिले में वो वापिस मसकॅट चला गया.
उस का शोहर साल में एक दफ़ा एक महीने के लिए पाकिस्तान आता है. और छुट्टी गुज़ार कर फिर वापिस चला जाता है.
जब कि वो अपने बूढ़े सास और सुसर के साथ प्रोफेसर कॉलोनी झेलम में रहती है.इतना बता कर नेलोफर खामोश हो गई.
“ में ने तुम से कहा था कि पूरी बात बताओ, तुम ने आधी बात तो बता दी मगर अपना और अपने भाई के अफेर की बात गुल कर गई हो क्यों” ज़ाहिद ने नेलोफर को उस की बात ख़तम होने के बाद कहा.
“आप से इल्तिजा है कि आप इस बात को मज़ीद मत कुरेदिये और हमे जाने दो आप की बड़ी मेहरबानी हो गी” नेलोफर ने ज़ाहिद की मिन्नत करते हुए कहा.
“में ने वादा तो किया है कि तुम दोनो को जाने दूं गा मगर पूरी कहानी सुनने के बाद,अब बताओ कि अपने ही भाई के साथ क्यों और कैसे चक्कर चलाया तुम ने” ज़ाहिद अब एक बेहन की ज़ुबानी अपने ही भाई के साथ उस के इश्क की दास्तान सुन कर चस्का लेने के मूड में था.
जब नेलोफर ने महसूस किया कि यह बे गैरत पोलीस वाला इस तरह उन की जान नही छोड़े गा तो उस को “चारो ना चार” अपनी कहानी मज़ीद सुनानी ही पड़ी.
नेलोफर ने हिचकिचाते हुए आहिस्ता आहिस्ता अपनी बात दुबारा शुरू की.
“इंसेपकटेर साब बात यह है कि यह जवानी बड़ी ज़ालिम चीज़ है. आप को पता है कि हमारी जाति में एक लड़की को ज़्यादा तर शादी के बाद ही मियाँ बीवी के “ इज़दवाजी” (सेक्स) ताल्लुक़ात का पता चलता है”. इतना कह कर नेलोफर की ज़ुबान जैसे लड़ खदाने लगी और वो रुक गई. सॉफ पता चल रहा था कि शरम के मारे उस की ज़ुबान उस का साथ नही दे रही थी.
नेलोफर ने अपनी बात को रोक कर ज़ाहिद और अपने भाई जमशेद की तरफ देखा.तो उस ने उन दोनो को अपनी तरफ ही देखते पाया.
उन से नज़रें मिलते ही नेलोफर ने अपने माथे पर आते हुए पसीने को हाथ से साफ किया और अपने मुँह में आते हुए थूक को निगल कर अपनी बात अहिस्ता से दुबारा स्टार्ट की.
जब मेरी शादी के एक महीने बाद मेरा शोहर मुझे छोड़ कर चला गया तो मेरे लिए अपने शोहर के बगैर रहना बहुत मुस्किल हो गया.
दिन तो घर के काम काज में गुज़र जाता मगर रात को अपने बिस्तर पर अकेली लेटती तो अपना बिस्तर ही मुझे काटने को दौड़ता. मगर में जैसे तैसे कर के अपने शोहर से दूरी का सदमा बर्दाश्त करने लगी.
इस दौरान मुझे मोहल्ले के लड़कों और कुछ अपने क़जन्स ने भी दोस्ती की ऑफर्स कीं. मगर आप तो जानते है कि हमारे मज़हब में अगर किसी लड़की का चक्कर किसी लड़के से स्टार्ट हो जाय. तो इस किस्म की बात ज़्यादा देर तक लोगों से छुप नही सकती.
इसी डर से में ने किसी और तरफ ध्यान नही दिया और अपनी जवानी की प्यास को अपने अंदर ही अंदर कंट्रोल करने की कोशिस करती रही.
इस तरह मेरी शादी को तकरीबन एक साल होने को था कि ईद-उल-फितर (छोटी) ईद आ गई.
में शादी के बाद अपनी पहली ईद मनाने अपने मेके आई.तो मेरे अम्मी अब्बू और भाई जमशेद सब मेरे आने पर बहुत खुश हुए.
फिर चाँद रात को में अपने हाथों में मेहन्दी और चूड़ियाँ चढ़वाने मोटर साइकल पर भाई के साथ बाज़ार गई.
चूड़ी की दुकान पर बहुत रश था और रश की वजह से औरते और मर्द सब एक दूसरे में घुसे जा रहे थे.
में अपने हाथों में चूड़ियाँ चढ़वाने में मसरूफ़ थी. कि इतने में एक ज़ोर दार धक्का पड़ा और मेरे बिल्कुल पीछे खड़े मेरे भाई का बदन पीछे से मेरे जिस्म के साथ चिपकता चला गया.
ज़ोर दार धक्का लगने से मेरा हाथ सामने पड़े दुकान के शो केस से टकराया. जिस की वजह से मेने जो चूड़ियाँ अभी तक चढ़वाई थी वो एक दम से टूट गईं.
भाई ने गिरते हुए अपने आप को संभालने की कॉसिश की. जिस की वजह से उस का एक हाथ मेरे दाएँ कंधे पर पड़ा जब कि उस का बाया हाथ बे इख्तियारी में मेरी बाईं छाती पर आन पड़ा.
चूँकि गर्मी की वजह से में ने लवन और भाई जमशेद ने कॉटन के पतले शलवार कमीज़ मलबूस-ए-तन ( पहने हुए ) किए हुए थे.
यह शायद हमारे पतले शलवार कमीज़ की मेहरबानी थी.कि भाई का यूँ मेरे साथ चिपटने से जिंदगी में पहली बार मेरे भाई का मर्दाना हिस्सा (लंड) बगैर किसी रुकावट के मुझे अपने जिस्म के पिछले मकसूस हिस्से (गान्ड) में चुभता हुआ महसूस हुआ.और उस का सख़्त और गरम औज़ार (लंड) मुझे अपनी मौजूदगी का अहसास दिला गया.
(नीलोफर अपनी कहानी बयान करते वक्त पूरी कॉसिश कर रही थी.कि जहाँ तक मुमकिन हो वो अपनी ज़ुबान से कोई गंदा लफ़्ज अदा ना करे. इसी लिए लंड और गान्ड का ज़िक्र भी वो ढके छुपे इलफ़ाज़ में कर रही थी)
जमशेद भाई को ज्यों ही अहसास हुआ कि इस धक्के की वजह से अंजाने में उस के हाथ और जिस्म मेरे जिस्म के उन हिस्सो से टकरा गये हैं. जो एक भाई के लिए शजरे ममनुआ ( ग़लत ) हैं. तो वो शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी करता हुआ दुकान से बाहर निकल गया.
इस वाकये के वक्त तक मेरी शादी के बाद मेरे शोहर को मुझ से दूर गये एक साल बीत चुका था.
और इस एक साल में यह पहला मोका था. जब किसी मर्द ने मेरे जिस्म के नज़ाक हिस्सो को इस तरह छुआ था. और वो मर्द कोई गैर नही बल्कि मेरा अपना सगा भाई था.
यूँ तो मेरे भाई का मुझ से यूँ टकराने का दौरानिया बहुत ही मुक्तिसार था.
लेकिन इस एक लम्हे ने भाई के जिस्म में क्या तब्दीली पेदा की मुझे उस का उस वक्त तो अंदाज़ा ना हुआ.
मगर भाई के मुझे इस तरह छूने से मेरे तन बदन में भाई की इस हरकत का शदीद असर हुआ. और मेरे जवान जिस्म के सोए हुए अरमान जाग उठे.
मुझे अपने बदन मे एक सर्द सी आग लगती हुई महसूस हुई. और मुझे यूँ लगा कि मेरे जिस्म के निचले हिस्से में से कोई चीज़ निकल कर मेरी शलवार को गीला कर गई है.
जमशेद भाई के दुकान से बाहर निकल जाने के बाद में ने दुबारा अपनी तवज्जो मुझे चूड़ी पहनाने वाले सेल्स मॅन की तरफ की. तो में ने नोट किया कि सेल्स मॅन के होंटो पर हल्की सी मुस्कराहट थी.
“बाजी शायद आप को अभी अंदाज़ा नही कि चाँद रात के इस रश में इस किस्म के आवारा लड़के ऐसी हरकतां करते हैं” सेल्स मॅन ने मुझे हल्की आवाज़ में बताया.
उस ने शायद मेरे भाई का हाथ और जिस्म मेरे बदन से टकराते हुए देख लिया था. मगर उस को यह अंदाज़ा नही हुआ कि जिस को वो एक आवारा किस्म का लड़का समझ रहा था. वो कोई और नही बल्कि मेरा अपना सगा भाई है.
जब मुझे पता चला कि सेल्स मॅन ने सब कुछ देख लिया है तो में बहुत शर्मिंदगी महसूस करने लगी. और में ने मज़ीद चूड़ियाँ नही चढ़वाई और सिर्फ़ वो चूड़ीयाँ जो मेरे हाथ में पहनाने के बाद टूट गईं थी.में ने उन की पेमेंट की और जल्दी से दुकान से बाहर निकल आई.
दुकान के बाहर मेरा भाई अपनी मोटर साइकल पर गुम सूम बैठा हुआ था.
उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझ में अपने भाई का सामना करने की हिम्मत ना थी.
में खामोशी से अपनी नज़रें झुकाए हुए आई और आ कर भाई के पीछे उस की मोटर साइकल पर बैठ गई.
ज्यों ही भाई ने मुझे अपने पीछे बैठा हुआ महसूस किया उस ने भी मुझे देखे बगैर अपनी मोटर साइकल को स्टार्ट करने के लिए किक लगाई और मुझे ले कर घर वापिस चला आया.
रास्ते भर हम दोनो में कोई बात ना हुई और थोड़ी देर में हम अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच गये.
ज्यों ही भाई ने घर के बाहर मोटर साइकल रोकी तो में उतर कर घर का दरवाज़ा खोलने लगी. तो शायद उस वक्त तक भाई की नज़र मेरी चूड़ियों से खाली हाथों पर पड़ चुकी थी.
“बाजी आप ने चूड़ियाँ क्यों नही चढ़वाई” जमशेद ने मेरे खाली हाथो की तरफ देखते हुए पूछा.
“वो असल में जो चूड़ियाँ में ने पहनी थीं. वो धक्के की वजह से मेरी कलाई में ही टूट गईं तो फिर इस ख्याल से कि तुम को शायद देर ना हो रही हो में बिना चूड़ियाँ के ही वापिस चली आई” में ने बिना उस की तरफ देखे उस को जवाब दिया.
“अच्छा बाजी आप चलो में थोड़ी देर में वापिस आता हूँ” यह कहते हुए जमशेद मुझे दरवाज़े पर ही छोड़ कर अपनी मोटर साइकल पर कही चला गया.
में अंदर आई तो देखा कि रात काफ़ी होने की वजह से अम्मी अब्बू अपने कमरी में जा कर सो चुके थे.
में अपने शादी से पहले वाले अपने कमरे में आ कर बैठ गई.
दुकान में पेश आने वाले वाकये की वजह से मेरी साँसे अभी तक सम्भल नही पाईं थीं.
कुछ ही देर बाद मुझे मोटर साइकल की आवाज़ सुन कर अंदाज़ा हो गया कि भाई घर वापिस आ चुका है.
रात काफ़ी हो चुकी थी और इस लिए में अभी सोने के मुतलक सोच ही रही थी कि जमशेद भाई मेरे कमरे में दाखिल हुआ.
उस के हाथ में एक प्लास्टिक का शॉपिंग बॅग था. जो उस ने मेरे करीब आ कर बेड पर रख दिया और खुद भी मेरे साथ मेरे बिस्तर पर आन बैठा.
अब मुझे भाई के साथ इस तरह एक ही बिस्तर पर बैठने से शरम के साथ साथ एक उलझन भी होने लगी. और इस वजह से में भाई के साथ आँख से आँख नही मिला पा रही थी.
कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक्त जैसे थम सा गया हो.
जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के मुतलक कुछ पूछ रही हूँ.
तो थोड़ी देर बाद भाई ने वो मेरे पास से वो बैग उठाया और वो ही चूड़ियाँ जो कि में दुकान में चढ़वा रही थी.वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला” बाजी में आप की चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ”
में ने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ और फिर भाई की तरफ देखा और बोली “रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की”
“तकलीफ़ की क्या बात है बाजी , आप को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया” भाई ने मेरी बात का जवाब दिया.
भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था.कि वो दुकान वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख्याल रख रहा है.
जमशेद भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी और मेरे दिल में भी अपने भाई के लिए एक बेहन वाला प्यार उमड़ आया.
“अच्छा रात काफ़ी हो चुकी है इस लिए तुम जा कर सो जाओ में सुबह चूड़ीयाँ अम्मी से चढ़वा लूँ गी. “में ने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा.
“ईद सुबह है और चाँद रात आज, और आप मुझ से बेहतर जानती हैं कि चूड़ियाँ चाँद रात को ही चढ़वाई जाती हैं,लाइए में आप के हाथों में चूड़ीयाँ चढ़ा देता हूँ”. इस से पहले कि में उस को रोक पाती. जमशेद ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में चढ़ाने लगा.
अपने नर्मो नाज़ुक हाथ अपने भाई के मज़बूत हाथों में महसूस कर के मेरी वो साँसे जो अभी कुछ देर पहले ही ब मुश्किल संभली थी वो दुबारा तेज होने लगीं.
मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ .तो में ने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की.
“रहने दो भाई में सुबह अम्मी से चूड़ीयाँ चढ़वा लूँगी” यह कहते हुए में ने ज्यों ही भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. तो मेरे हाथ की उंगलियो के उपर आती हुई चूड़ियों में से एक चूड़ी टूट गई.जिस की वजह से मेरी एक उंगली ज़ख़्मी हो गई और उस में से खून निकलने लगा.
जमशेद भाई ने जब मेरी उंगली से खून निकलता देखा तो वो एक दम घबडा गया. और उस ने खून को रोकने के लिए बे इक्तियार में मेरी उंगली को अपने मुँह में डाला और मेरी उंगली से बैठे हुए खून को चूसना शुरू कर दिया.
मेरे भाई की इस हरकत ने मेरी जवानी के उन जज़्बात को जिन्हे में ने अपने शोहर के जाने के बाद बहुत सबर और मुस्किल से सुलाया था. उन को एक दम से भड़का दिया और मेरे सबर का पैमाना लब्राइज़ होने लगा.
सर से ले कर पैर तक मेरे जिस्म में एक करंट का दौड़ गया. और में कॉसिश के बाजूद अपने आप को रोक ना पाई.
मुझे अपने भाई के मुँह और होंठो की गर्मी और लज़्जत ने बे चैन कर दिया. और इस बेचैनी के मारे मेरी सांसो में एक हल चल मची और मेरे मुँह से एक “सिसकी” सी निकल गई.
बे शक मेरे भाई की अभी शादी नही हुई थी. मगर इस के बावजूद वो शायद एक माहिर खिलाड़ी था. जो यह जानता था कि जब किसी औरत के मुँह से इस किस्म की सिसकारी निकलती है तो उस का क्या मतलब होता है.
इसी लिए मेरे मुँह से सिसकारी निकलने की देर थी. कि मेरे भाई जमशेद ने मेरी आँखों में बहुत गौर से झाँका और इस से पहले के में कुछ समझती. मेरे भाई ने एक दम मुझे अपनी बाहों में भर लिया.
भाई की इस हरकत से में अपना तवज्जो खो बैठी और बिस्तर पर कमर के बल गिरती चली गई.
मेरे यूँ बिस्तर पर गिरते ही जमशेद भाई मेरे जिस्म के उपर आया और उस के होन्ट मेरे होंठो पर आ कर जम गये.
साथ ही साथ उस का एक हाथ मेरी शलवार के ऊपर से मेरी टाँगो के दरमियाँ आया और मेरे जिस्म के निचले हिस्से को अपने काबू में कर लिया.
में ने अपनी भाई को अपने आप से अलहदा करने की कोशिश की.मगर वो मुझ से ज़्यादा ज़ोर अवर था.
अपने शोहर से दूरी की सुलगती हुई आग को दुकान में मेरे भाई के हाथ और जिस्म ने भड़का तो दिया ही था. अब उस आग को शोले की शकल देने में अगर कोई कसर रह गई थी. तो वो मेरे भाई के प्यासे होंठो और उस के मेरे जिस्म के निचले हिस्से हो मसल्ने वाले हाथ ने पूरी कर दी थी.
में बेहन होने के साथ आख़िर थी तो एक जवान प्यासी औरत.
और जब रात की तरीकी में मेरे अपने घर में मेरे अपने ही भाई ने मेरे जिस्म के नाज़ुक हिस्सो के तार छेड़ दिए. तो फिर मेरे ना चाहने के बावजूद मेरा जिस्म मेरा हाथ से निकलता चला गया.
मुझे होश उस वक्त आया. जब मेरा भाई अपनी हवस की दास्तान मेरे जिस्म के अंदर ही रख कर के पसीने से शरा बोर मेरे पहलू में पड़ा गहरी साँसे ले रहा था.
होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनो कितनी दूर निकल चुके हैं. तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया.
में अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि बिस्तर पर करवट बदलते ही में फूट फूट कर रोने लगी.
जमशेद भाई ने जब मुझे यूँ रोते देखा तो वो खामोशी से अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकल गया.
दूसरे दिन ईद थी और ईद अम्मी अब्बू के घर गुज़ार कर में वापिस अपने सुसराल चली आई.
इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान में ने अपने भाई से किसी किस्म का रबता ना रखा.
हफ्ते बाद मेरे सास और सुसर को अपने बड़े बेटे के घर सियालकोट जाना था. उन का प्रोग्राम था कि वो दो दिन उधर सायालकोट में ठहरेंगे.
उन की गैर मजूदगी में में घर पर अकेली रह गई.
में ने अपने अब्बू से कहा कि आप मेरे पास रहने के लिए आ जाए. मगर अब्बू ने खुद आने की बाजिय मेरे भाई को मेरे पास रहने के लिए भेज दिया.
फिर इस बात के बावजूद के अपनी अपनी जगा हम दोनो अपनी चाँद रात वाली “ख़ाता” पर शरम सार और रंजीदा थे.
मगर जब एक हफ्ते बाद हम दोनो का फिर आमना सामना हुआ. तो हम दोनो ही एक दूसरे को रोक ना पाए और जज़्बात की रूह में बहक कर फिर दुबारा पहले वाली ग़लती दुहरा बैठे.
चाँद रात के एक वाकीया ने हम दोनो बेहन भाई की जिंदगी बदल कर रख दी है.
अब वो दिन और आज का दिन में ने इतना टाइम अपने शोहर के साथ नही गुज़ारा जितना अपने ही भाई के साथ गुज़ार चुकी हूँ.
इस से पहले हम लोग ज़्यादा तर अपनी मुलाकात अम्मी के घर या फिर मोका मिलने पर मेरे घर ही करते हैं.
अब पिछली चन्द दिनो से मेरी नंद और उस के बच्चे हमारे घर आए हुए हैं. जब कि मेरे अम्मी अब्बू भी ज़्यादा तर घर ही रहते हैं. जिस वजह से हमे आपस में कुछ करने का चान्स नही मिल रहा था.
आज मुझे ना चाहते हुए भी अपने भाई के बहुत इसरार पर इस मनहूस होटेल में पहली बार आना पड़ा और यूँ हम लोग आप के हत्थे चढ़ गये.
अपनी सारी कहानी पूरी तफ़सील से बयान करने के बाद नीलोफर खामोश हो गई.
ज़ाहिद अपने सामने बैठे बेहन भाई के चेहरों का बगौर जायज़ा ले रहा था. और उस के दिमाग़ में नेलोफर की कही हुई आखरी बात बार बार घूम रही थी.
कि उस ने इतना टाइम अपने शोहर के साथ नही गुज़ारा जितना उस ने अपने भाई के साथ गुज़ारा है.
नेलोफर की यह बात याद कर के ज़ाहिद को बहादुर शाह ज़फ़र का लिखा हुआ एक शेर याद आ गया कि,
“में ख्याल हूँ किसी और का
मुझे सोचता कोई और है”
मगर अब नेलोफर की सारी कहनी सुन कर ज़ाहिद को यूँ लगा. कि अगर नेलोफर इसी किस्म का कोई शेर अपने मुतलक कहे गी तो वो शायद कुछ यूँ हो गा कि,
“में चूत हूँ किसी और की
मुझे चोदता कोई और है”
“ अच्छा अगर में तुम को बगैर कोई रिश्वत लिए जाने दूं तो तुम लोग खुश हो गे ना?.” ज़ाहिद ने उन दोनो की तरफ़ देख कर उन से सवाल पूछा.
“क्यों नही सर,हम तो आप के बहुत शूकर गुज़ार हूँ जी” जमशेद फॉरन बोला.
नीलोफर और जमशेद दोनो को ज़ाहिद से इस बात की तवक्को नही थी. इस लिए वो उस की बात सुन कर बहुत खुश हुए.
“तो ठीक है मुझे तुम से रिश्वत नही चाहिए,मगर जाने से पहले तुम को मेरी एक फरमाइश पूरी करनी हो गी” ज़ाहिद दोनो बेहन भाई की तरफ देखते हुए बोला.
“ठीक है सर हम आप की हर फरमाइश पूरी करने के लिए तैयार हैं” जमशेद ने बिना सोचे समझे जल्दी से जवाब दिया.
जमशेद की कॉसिश थी कि जितनी जल्दी हो वो अपनी और अपनी बेहन की जान इस खबीस पोलीस वाले से छुड़वा ले.
“ वैसे तो में ने तुम दोनो को चुदाई करते हुए रंगे हाथों पकड़ा है.मगर मुझे उस वक्त यह पता नही था कि तुम दोनो का आपस में क्या रिश्ता है. अब जब कि में सारी बात जान चुका हूँ.
तो मेरी ख्वाइश है कि में अपनी आँखों के सामने एक सगे भाई को अपनी बेहन चोदते देखूं”. ज़ाहिद ने उन के सामने अपनी गंदी ख्वाइश का इज़हार करते हुए कहा.
नीलोफर और जमशेद उस की फरमाइश सुन कर हैरत से दंग रह गये.
सब से छुप कर अपने घर या होटल के कमरे में दोनो बेहन भाई की आपस में चुदाई करना एक बात थी. मगर किसी गैर मर्द के सामने अपनी ही बेहन को नंगा कर के चोदना बिल्कुल अलग मामला था. और इस बात का जमशेद में होसला नही था.
“यह किस किस्म की फरमाइश है आप की, आप को हमारी जान छोड़ने के जितने पैसे चाहिए वो में देने को तैयार हूँ मगर यह काम हम से नही हो गा”. जमशेद ने सख़्त लहजे में जवाब दिया.
“बहन चोद वैसे तो तू हर रोज अपनी ही बेहन को चोदता है और अब मेरे सामने ऐसा करने में तुझे शरम आती है.मेरे बाथरूम से वापिस आने तक तुम दोनो को एक्शन में होना चाहिए. वरना वापिस आते ही में तुम दोनो को गोली मार कर जहली पोलीस इनकाउंटर शो कर दूं गा”. ज़ाहिद को जब अपनी ख्वाहिश पूरी होती नज़र ना आई.तो उस ने अपनी पिस्टल को निकाल कर गुसे में कहा और उठ कर कमरे के साथ बने बाथरूम में चला गया.
ज़ाहिद के बाथरूम जाते ही जमशेद तेज़ी से उठा और बिस्तर पर बैठी अपनी बेहन के पास आन बैठा.
दोनो बेहन भाई सख़्त घबराए हुए थे.उन की समझ में नही आ रहा था कि इस मुसीबत से कैसे निजात हासिल करें.
नीलोफर: भाई अब क्या हो गा.
जमशेद: बाजी में ने तो पूरी कॉसिश कर ली कि इस हराम के पिल्ले को पैसे दे कर जान छुड़ा लें मगर यह कमीना मान ही नही रहा.
नीलोफर: तो फिर इस मसले का हल किया है.
जमशेद: बाजी अब लगता है कि ना चाहते हुए भी इस खबीस की बात मानना ही पड़े गी.यह कहते हुए जमशेद ने बिस्तर पर बैठी हुई अपनी बेहन को अपने बाज़ुओं में लिया और उस के होंटो पर अपने होंठ रख कर उन्हे चूसने लगा.
“रूको भाई मुझे शरम आ रही है, मुझ से यह सब इधर नही हो गा ” नीलोफर ने अपने होंटो को अपने भाई के होंटो से अलग करते हुए कहा.
“बाजी अब अगर हम ने अपनी इज़्ज़त और जान बचानी है तो फिर हमें उस पुलिस वाले की ख्वाहिश को पूरा करना ही पड़े गा”. यह कहते हुए जमशेद ने दुबारा अपने होंठ अपनी बेहन के नरम और लज़्ज़ीज़ होंठो पर रखे और उन का रस पीने लगा.
अल कौसेर होटेल में पोलीस का छापा पड़ने की वजह से ना सिर्फ़ जमशेद और नीलोफर दोनो के जिस्मो की प्यास अधूरी रह गई थी.बल्कि पोलीस के ख़ौफ़ और छापे की परेशानी की वजह से चुदाई का खुमार दोनो बेहन भाई के ज़हन से भी उतर चुका था.
मगर जब नीलोफर ने एएसआइ ज़ाहिद को अपने भाई के साथ अपने ताल्लुक़ात और चुदाई की तस्लीफ़ बयान करना शुरू किया.तो ज़ाहिद के साथ साथ ना सिर्फ़ जमशेद का लंड भी उस की पॅंट में उठ कर खड़ा हो चुका था.बल्कि हक़ीकत यह थी. कि ना चाहने के बावजूद खुद नीलोफर की अपनी फुद्दि भी उस की शलवार में अपना पानी छोड़ने पर मजबूर हो चुकी थी.
इस लिए दोनो बेहन भाई के होन्ट आपस में चिस्पान होते ही उन के बदन में चुदाई की प्यास दुबारा जाग उठी.
अपनी बेहन के होंठो को अपने होंठो में काबू करते ही जमशेद का हाथ नीलोफर की गुदाज रानो के बीच में से होता हुआ, शलवार के ऊपर से उस की फूली हुई गरम चूत पर आ कर जम गया.
भाई के हाथ को अपनी फुद्दि के ऊपर महसूस करते ही नीलोफर सिसकी “ अहह”
(जिस तरह शादी के कुछ टाइम बाद एक हज़्बेंड को अपनी वाइफ के जिस्म के नसीबो फर्ज़ का अंदाज़ा हो जाता है.बिल्कुल इसी तरह अपनी बेहन को कई दफ़ा चोद कर जमशेद को भी ब खूबी अंदाज़ा हो चुका था. कि निलफोर के जिस्म के वो कौन से तार हैं जिन को छेड़ने पर उस का बदन गरम होने लगता है.)
जमशेद के हाथ उस की बेहन की चूत से खैलने में मसरूफ़ हुए. तो नीलोफर ने भी शर्मो हया को छोड़ कर पॅंट में मचलते अपने भाई के लंड को अपने हाथ में लिया और उस को प्यार करने लगी.
अब दोनो बेहन भाई के होत एक दूसरे से अपनी लड़ाई लड़ रहे थे. जब कि दोनो के हाथ एक दूसरे के लंड और चूत के साथ मौज मस्ती में मसरूफ़ हो गये.
बेहन की चूत के ऊपर थोड़ी देर अपने हाथ की उंगलियो को फेरने और साथ ही साथ उस के नर्मो नाज़ुक होंठो को चूसने के बाद जमशेद के हाथ अपनी बेहन के बुर्क़े के बटन को खोलने लगी.
जमशेद ने एक एक कर नीलोफर के बुर्क़े के सारे बटन खोलने के बाद अपने हाथों से अपनी बेहन के बुर्क़े को उस के जिस्म से अलहदा कर दिया.और फिर एक एक कर के अपने और अपनी बेहन के कपड़े उतारने लगा.
इधर बाथरूम में कमोड पर बैठे एएसआइ ज़ाहिद ने पिशाब करने के बाद लोटे के पानी से लंड को धोया.और फिर कमरे में माजूद बेहन भाई के मुतलक सोच सोच कर अपने मोटे ताज़े लंड के ऊपर आहिस्ता आहिस्ता अपने हाथ को फैरने लगा.
ज़ाहिद के हाथ में उस का लौडा बुरी तरह से फॅन फनाया हुआ था.
ज़ाहिद अपने दोस्तूँ में एक फुददी फाड़ मशहूर था.
उस की वजह उस के लंड की लंबाई और मोटाई के साथ साथ उस के लंड की मोटी टोपी भी थी.
ज़ाहिद औरत की फुददी चोदते वक्त एक वहशी जानवर बन जाता. और जब भी वो अपने लंड की टोपी को किसी औरत की चूत में डालता तो लंड की टोपी औरत की चूत की दीवारो को तार तार कर देती थी.
आज तक ज़ाहिद ने जितनी भी औरतों को चोदा था. वो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी हवस को मिटाने के लिए चोदा था.
और बे शुमार चूतो के रस को पी चूकने वाले ज़ाहिद के लंड को अभी तक वो औरत नही मिल पाई थी. जिस को वो अपनी हवस की खातिर एक वहसी जानवर बन कर नही बल्कि अपनी जान बना कर प्यार से चोद सके. मगर ज़ाहिद के दिल और लंड की यह ख्वाइश अभी तक अधूरी ही थी.
ज़ाहिद को बाथरूम में आए हुए चन्द मिनिट्स बीत चुके थे. इस लिए उसे अब यह यकीन हो चुका था. कि अगर जमशेद और उस की बेहन नीलोफर ने उस की धमकी को सीरीयस लिया है तो अब तक वो दोनो एक दूसरे के साथ चुदाई शुरू कर चुके होंगे .
ज़ाहिद दोनो बेहन भाई की चुदाई देखने के लिए बे करार था.
वो कमोड से उठा और अपनी पॅंट को बाथरूम के फर्श पर गिरा कर आधा नंगा आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ बाथरूम के दरवाज़े तक आया. और दरवाज़े को हल्का से खोल कर कमरे के अंदर के मंज़र का जायज़ा लेने लगा.
कमरे के अंदर का मंज़र देख कर ज़ाहिद के जिस्म में जोश और मस्ती छाने लगी.
कमरे के बिस्तर पर नीलोफर अपने कपड़ों की क़ैद से आज़ाद बिल्कुल नंगी लेटी हुई अपनी प्यासी चूत पर अपने हाथ को आहिस्ता आहिस्ता फेर कर प्यार कर रही थी.
उस की फूली हुई गोरी चूत के गुलाबी होंठो से रस की बूंदे टपक रही थीं…
नीलोफर की गोरी गोरी टाँगों के दरमियाँ में, किसी भी किस्म के बालों के बगैर, नेलोफर की सॉफ शफ़फ़ और गुलाब की पंखुड़ियों की तरह से चिपकी हुई चूत की दरार को देख कर ज़ाहिद के मुँह से राल टपकने लगी.
कमरे में जमशेद अपनी बेहन के पैरों की तरफ बिल्कुल नंगा खड़ा था.
उस का गरम,लंबा,मोटा और चुदाई के लिए पूरा तैयार,उस का लंड कमरे की छत की तरफ अपना मूह उठाए एक क्षण से खड़ा था.
जमशेद की नज़रें अपनी बेहन की चूत पर जमी हुई थीं. जब के वो साथ साथ अपने मोटे सख़्त लंड को अपने हाथ में ले कर मूठ भी लगा रहा था.
कमरे का यह मंज़र देख कर ज़ाहिद के जिस्म और लंड की गर्मी ने और जोश मारना शुरू कर दिया.
जमशेद की तरह ज़ाहिद का हाथ भी फिर से उस के लंड पर आया और वो भी दोनो बहन भाई को देखते हुए अपने लंड से खैलने लगा.
उधर कमरे में आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ जमशेद बिस्तर पर लेटी हुई अपनी बेहन की तरफ बढ़ा. और फिर नीलोफर के पैरों की तरफ से बिस्तर पर चढ़ गया.
जमशेद अब बिस्तर पर लेटी हुई अपनी बेहन के नज़दीक आया और फिर नीलोफर के एक पैर को आहिस्ता से उठा कर अपने हाथ में लिया और अपनी बेहन के पैर की उंगलियो को अपने मुँह में भर कर उन को एक एक कर के चाटने लगा.
ज्यों ही जमशेद ने नीलोफर के पावं की उंगलियों को चाटना शुरू किया तो मज़े से बेकाबू होते हुए नीलोफर के मुँह से बे सखता एक चीख निकल गई.और उस की चूत से पानी का एक फव्वारा छूटने लगा.
बेहन के पाँव की उंगिलियो को चूस्ते चूस्ते जमशेद ने साथ ही साथ अपने एक हाथ को अपनी बेहन के कसे हुए मम्मों पे रखा ऑर दूसरे हाथ की उंगली को अपनी बेहन की बुरी तरहा से गीली हो चुकी फुददी के अंदर डाल कर बेहन की चूत को अपनी उंगली से चोदने लगा.
नीलोफर को उस के भाई के मुँह और हाथों ने इतना बे चैन कर दिया के वो खुद को रोक नहीं पाई.
लज़्जत और जोश में डूबी हुई नीलोफर अब अपने हिप्स को उठा उठा कर आगे पीछे करने लगी.और बे इकतियार उस के मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगीं.
नीलोफर के मुँह से निकलती हुई सिसकियाँ जमशेद के साथ साथ ज़ाहिद को भी बुरी तरह से गरमा चुकी थीं और उस के हाथ भी अपने लंड पर तेज़ी से फिसल रहे थे.
दूसरी तरफ जमशेद ने अब अपनी बेहन के पावं की उंगलियो को चाटते चाटते अपना मुँह आहिस्ता आहिस्ता बेहन की टाँग की पिंदलियों के ऊपर से फेरते हुए उस की गुदाज रानों की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया
नीलोफर की गोश्त से भरी हुई मोटी मोटी रानों पर ज्यूँ ज्यूँ उस के भाई की आग बरसाती गरम ज़ुबान फिरने लगी. तो नीलोफर का जिस्म मज़े के मारे बिस्तर पर मचलने लगा.
रानों के दरमियाँ से होता हुआ जमशेद का मुँह निलफोर की फुददी के बहुत नज़दीक पहुँचन चुका था.
अपनी बेहन की चूत के इतने नज़दीक पहुँचते ही बेहन की चूत की प्यारी प्यारी खुसबु का नशा जमशेद के दिमाग़ पर छाने लगा.
इसी नशे में डूबते हुए जमशेद ने अपनी बेहन के चूतड़ को दोनो हाथों से पकड़ा.और नीलोफर की गान्ड को सहलाते हुए उस की टाँगे चौड़ी कीं और अपने मुँह को आगे बढ़ाते हुए अपनी बेहन की चूत की गुदाज होंठो पर अपने होंठ रख कर बेहन की रस भरी चूत को चूमने लगा.
जमशेद का मुँह नीलोफर की चूत से टकराते ही नीलोफर की चूत का दाना (क्लिट) गरम हो कर उस की चूत के ऊपर एक शान से अकड़ कर खड़ा होने लगा.
जमशेद ने अपनी बेहन की चूत पर अपनी ज़ुबान को ऊपर नीचे घुमाते हुए चूत के दाने (क्लिट) को अपने मुँह में भरा और बेहन के छोले को चूसने लगा.
चूत के दाने को अपनी ज़ुबान से रगड़ते रगड़ते जमशेद ने दाने को अपने होंठो में भर कर काबू किया और फिर दाने को अपने होंठो से खींच कर ज़ोर से बाहर की तरफ खींचा और फिर छोड़ दिया..
जमशेद ने फिर यह हरकत कई बार दुहाराई. वो अब एक दीवाने की तरह अपनी बेहन की चूत को चाट रहा था.
अपने भाई के इस वहशियाना प्यार को पा कर नीलोफर की चूत से रस का झरना बहाने लगा. और वो भी अपने चुतड उठा उठा कर अपने भाई के मुँह पर वहशीपन अंदाज़ में ज़ोर ज़ोर से मारने लगी.
“हाआआआआ ओह” लज़्जत और जिस्मानी भूक से बेकाबू होते हुए नीलोफर की सिसकियाँ पूरे कमरे में ज़ोर ज़ोर से गूंजने लगीं थीं.
बाथरूम में खड़े हुए ज़ाहिद को यह नज़रा देख कर अपने ऊपर काबू पाना मुश्किल हो रहा था.
उस का दिल भी यह चाह रहा था कि वो भी नीलोफर के जवान और खूबसूरत जिस्म से खैल कर अपने लंड को ठंडा करे.
मगर आगे बढ़ने की बजाय वो उधर ही खड़ा रह कर दोनो बेहन भाई की मस्तियों से लुफ्त अंदोज़ होता रहा.
उधर कमरे में अपने भाई से अपनी चूत चटवाती नीलोफर के सबर का पैमाना लबरेज़ हो गया.
और “भाई बस करो और जल्दी से मेरे अंदर डाल दो” कहते हुए उस ने जमशेद को उस के सिर के बालों से पकड़ कर अपने उपर खींच लिया.
जमशेद अपनी बेहन की बेताबी देख कर मुस्कराया और उस ने अपनी बेहन की लंबी टाँगों को अपने हाथ में थाम कर अपने कंधों पर रखा लिया .
फिर अपने लंड को दूसरे हाथ से पकड़ कर बेहन की चूत के सुराख पर उपर नीचे रगड़ा.
जिस से जमशेद के लंड की टोपी उस की बेहन की चूत के रस से बहुत गीली हो गई..
ज्यों ही जमशेद ने अपने लंड की टोपी अपनी बेहन की चूत के मुँह पर रखा
तो मज़े से बे काबू नीलोफर के सारे बदन में एक कप कपि सी तरी हो गई.
नीलोफर की चूत उस के भाई के चाटने और अपनी चूत के पानी से भीग भीग कर पूरी गीली हो चुकी थी.
जब नीलोफर ने देखा के उस का भाई अपन लंड उस के अंदर डालने की बजाय उस की फुद्दि से सिर्फ़ छेड़ छाड़ ही कर रहा है तो उस के सबर का पेमाना लबरेज होने लगा.
नीलोफर: “भाई प्लीज़ अंदर डालो ना”
जमशेद बोला: जान क्या डालू अंदर”
नीलोफर: “भाई अंदर डालो ना प्लीज़ और मत तड़पाओ मुझे”
“खुल के बताओ क्या डालू अंदर बाजी” जमशेद को शायद अपनी बेहन की बेचैनि देख कर उसे छेड़ने और मस्ती करने में मज़ा आ रहा था.
नीलोफर: “अपना लंड मेरी चूत में डालो और मुझे चोदो प्लीज़, मुझ से अब मज़ीद सब्र नही हो रहा भाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई”
ये सुनते ही जमशेद ने अपनी बेहन की आँखो में आँखे डालते हुए अपने लंड का दबाव बेहन की चूत पर बढ़ाया. तो उस का लंड अपना रास्ता बनाता चूत में आराम से जाने लगा.