Holi Mai Chudai Kahani
08-29-2018, 09:18 PM,
#11
RE: Holi Mai Chudai Kahani
होली अच्छी-खासी शुरू हो गई थी.

“अरे भाभी, आपने सुबह उठ के इतने गिलास शरबत गटक लिये, गुझिया भी गपाक ली लेकिन मन्जन तो किया ही नहीं.”
“आप क्यों नहीं करवा देती.???” अपनी माँ को बड़ी ननद ने उकसाया.
“हां…हां…क्यों नहीं…मेरी प्यारी बहु है…” और गाण्ड में पूरी अंदर तक 10 मिनट से मथ रही उंगलियों को निकल के सीधे मेरे मुँह में, कस-कस के वो मेरे दांतों पे और मुँह पे रगडती रही. मैं छटपटा रही थी लेकिन सारी औरतो ने कस के पकड़ रखा था. और जब उनकी उँगली बाहर निकली तो फिर वही तेज भभक मेरे नथुनों में…. अबकी जेठानी थी.
“अरे तुने सबका शरबत पिया तो मेरा भी तो चख ले…”
पर बड़ी ननद तो उन्होंने बचा हुआ सीधा मेरे मुँह पे, “अरे भाभी ने मन्जन तो कर लिया अब जरा मुँह भी तो धो ले…”
घन्टेभर तक वो औरतो, सासुओं के साथ और उस बीच सब शरम-लिहाज…. मैं भी जम के गालियाँ दे रही थी. किसी की चुत, गाण्ड मैंने नहीं छोड़ी और किसी ने मेरी नहीं बख्शी…..

उनके जाने के बाद थोड़ी देर हमने साँस ली ही थी कि गाँव की लड़कियों का हुजूम……
मेरी ननदें सारी….14 से 24 साल तक ज्यादातर कुँवारी…. कुछ चुदी, कुछ अनचुदी….कुछ शादी-शुदा, 1-2 तो बच्चों वाली भी……कुछ देर में जब आई तो मैं समझ गई कि असली दुर्गत अब हुई. एक से एक गालियां गाती, मुझे छेड़ती, “भाभी, भैया के साथ तो रोज मजे उड़ाती हो….आज हमारे साथ भी….”
ज्यादातर साड़ीयों में, 1-2 जो कुछ छोटी थी फ्रोक में और 3-4 सलवार में भी…. मैंने अपने दोनों हाथों में गाढ़ा बैंगनी रंग पोत के रखा था और साथ में पेन्ट, वार्निश, गाढ़े पक्के रंग सब कुछ……
एक खम्भे के पीछे छिप गई मैं, ये सोच के कि कम से कम 1-2 को तो पकड़ के पहले रगड़ लुंगी. तब तक मैंने देखा कि जेठानी ने एक पड़ोस की ननद को (मेरी छोटी बहन छुटकी से भी कम उम्र की लग रही थी, उभार थोड़े-थोड़े बस गदरा रहे थे, कच्ची कली) उन्होंने पीछे से जकड़ लिया और जब तक वो सम्भले-सम्भले लाल रंग उसके चेहरे पे पोत डाला. कुछ उसके आँख में भी चला गया और मेरे देखते-देखते उसकी फ्रोक गायब हो गई और वो Bra-Panty में………..
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08-29-2018, 09:18 PM,
#12
RE: Holi Mai Chudai Kahani
जेठानी जी ने झुका के पहले तो ब्रा के ऊपर से उसके छोटे-छोटे अनार मसले. फिर panty के अंदर हाथ डाल के सीधे उसकी कच्ची कली को रगड़ना शुरू कर दिया. वो थोड़ा चिचियाई तो उन्होंने कस के दो हाथ उसके छोटे-छोटे कसे चूतडों पे मारे और बोली, “चुपचाप होली का मज़ा ले…….”
फिर से Panty में हाथ डाल के, उसके चूतडो पे, आगे जांघों पे और जब उसने सिसकी भरी तो मैं समझ गई कि मेरी जेठानी की उँगली कहाँ घुस चुकी है..??? मैंने थोड़ा-सा खम्भे से बाहर झाँक के देखा, उसकी कुँवारी गुलाबी कसी चुत को जेठानी की उँगली फैला चुकी थी और वो हल्के-हल्के उसे सहला रही थी…..
अचानक झटके से उन्होंने उँगली की टिप उसकी चूत में घुसेड़ दी. वो कस के चीख उठी.
“चुप….साली…..” कस के उन्होंने उसकी चूत पे मारा और अपनी चूत उसके मुँह पे रख दी…. वो बेचारी मेरी छोटी ननद चीख भी नहीं पाई……
“ले चाट चूत……चाट…कस-कस के……” वो बोली और रगड़ना शुरू कर दिया.. मुझे देख के अचरज हुआ कि उस साल्ली चुत मराणो मेरी ननद ने चूत चाटना भी शुरू कर दिया. वो अपने रंग लगे हाथों से कस के उसकी छोटी चुचियों को रगड़, मसल भी रही थी. कुछ रंग-रगड़ से चुचियाँ एकदम लाल हो गई थी. तब हल्की-सी धार की आवाज ने मेरा ध्यान फिर से चेहरे की ओर खीचा. मैं दंग रह गई…….
“ले पी….ननद…साल्ली….होली का शरबत….ले……एकदम से जवानी फुट पड़ेगी….नमकीन हो जायेगी ये नमकीन शरबत पी के……” जेठानी बोल रही थी.
एकदम गाढ़े पीले रंग की मोटी धार……चार-चार…..सीधे उसके मुँह में…. वो छटपटा रही थी लेकिन जेठानी की पकड़ भी तगड़ी थी…. सीधा उसके मुँह में……. जिस रंग का शरबत मुझे जेठानी ने अपने हाथों से पिलाया था, बिल्कुल उसी रंग का वैसा ही और उस तरफ देखते समय मुझे ध्यान नहीं रहा कि कब दबे पांव मेरी चार गाँव की ननदें मेरे पीछे आ गई और मुझे पकड़ लिया.
उसमे सबसे तगड़ी मेरी शादी-शुदा ननद थी, मुझसे थोड़ी बड़ी बेला. उसने मेरे दोनों हाथ पकड़े और बाकी ने टाँगे. फिर गंगा डोली करके घर के पीछे बनी एक कुण्डी में डाल दिया. अच्छी तरह डूब गई मैं रंग में. गाढ़े रंग के साथ कीचड़ और ना जाने क्या-क्या था उसमे.? जब मैं निकलने की कोशिश करती २-४ ननदें उसमे जो उतर गई थी, मुझे फिर धकेल दिया… साड़ी तो उन छिनालों ने मिल के खींच के उतार ही दी थी. थोड़ी ही देर में मेरी पूरी देह रंग से लथ-पथ हो गई. अबकी मैं जब निकली तो बेला ने मुझे पकड़ लिया और हाथ से मेरी पूरी देह में कालिख रगड़ने लगी. मेरे पास कोई रंग तो वहाँ था नहीं तो मैं अपनी देह से ही उस पे रगड़ के अपना रंग उस पे लगाने लगी.
वो बोली, “अरे भाभी, ठीक से रगड़ा-रगड़ी करों ना…..देखो में बताती हूँ तुम्हारे ननदोई कैसे रगड़ते है…!!?!!” और वो मेरी चूत पे अपनी चूत घिसने लगी. मैं कौन-सी पीछे रहने वाली थी.? मैंने भी कस के उसकी चूत पे अपनी चूत घिसते हुए बोला, “मेरे सैया और अपने भैया से तो तुमने खूब चुदवाया होगा, अब भौजी का भी मज़ा ले ले…..”
उसके साथ-साथ लेकिन मेरी बाकी ननदें….. आज मुझे समझ में आ गया था कि गाँव में लड़कियाँ कैसे इतनी जल्दी जवान हो जाती है तथा उनके चूतड़ और चुचियाँ इतनी मस्त हो जाती है…. छोटी-छोटी ननदें भी कोई मेरे चूतड़ मसल रहा था तो कोई मेरी चुचियाँ लाल रंग लेके रगड़ रहा था……
थोड़ी देर तक तो मैंने सहा फिर मैंने एक की कसी कच्ची चूत में उँगली ठेल दी………
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08-29-2018, 09:19 PM,
#13
RE: Holi Mai Chudai Kahani
चीख पड़ी वो…. मौका पा के मैं बाहर निकल आई लेकिन वहाँ मेरी बड़ी ननद दोनों हाथों में रंग लगाए पहले से तैयार खड़ी थी. रंग तो एक बहाना था. उन्होंने आराम से पहले तो मेरे गालों पे फिर दोनों चुचियों पे खुल के कस के रंग लगाया, रगड़ा….. मेरे अंग-अंग में रोमांच दौड़ गया. बाकी ननदों ने पकड़ रखा था इसलिए मैं हिल भी नही पा रही थी…. चुचियाँ रगड़ने के साथ उन्होंने कस के मेरे Nipples भी Pinch कर दिये और दूसरे हाथ से रंग सीधे मेरे Clit पे. बड़ी मुश्किल से मैं छुड़ा पाई……
लेकिन उसके बाद मैंने किसी भी ननद को नही बख्शा….. सबके उँगली की… चुत में भी और गाण्ड में भी….. लेकिन जिसको मैं ढूँढ रही थी वो नही मिली, मेरी छोटी ननद…. मिली भी तो मैं उसे रंग लगा नही पाई…. वो मेरे भाई के कमरे की तरह जा रही थी…. पूरी तैयारी से, होली खेलने की…….
दोनों छोटे-छोटे किशोर हाथों में गुलाबी रंग, पतली कमर में रंग, पेन्ट और वार्निश के पाऊच….. जब मैंने पकड़ा तो वो बोली, “Please भाभी, मैंने किसी से Promise किया है कि सबसे पहले उसी से रंग डलवाउंगी…… उसके बाद आपसे… चाहे जैसे, चाहे जितना लगाईयेगा, मैं चु भी नही करुँगी…..”
मैंने छेड़ा, “ननद रानी, अगर उसने रंग के साथ कुछ और भी डाल दिया तो……..???”
वो आँख नचा के बोली, “तो डलवा लूँगी भाभी, आखिर कोई ना कोई कभी ना कभी तो……. फिर मौका भी है, दस्तूर भी है…..”
“एकदम” उसके गाल पे हल्के से रंग लगा के मैं बोली और कहा, “जाओ, पहले मेरे भैया से होली खेल आओ, फिर अपनी भौजी से………….” थोड़ी देर में ननदों के जाने के बाद गाँव की औरतों, भाभियों का झुण्ड आ गया और फिर तो मेरी चांदी हो गई……….
हम सब ने मिल के बड़ी ननदों को दबोचा और जो-जो उन्होंने मेरे साथ किया था वो सब सूद समेत लौटा दिया…… मज़ा तो मुझे बहुत आ रहा था लेकिन सिर्फ एक Problem थी…..
मैं झड़ नही पा रही थी….. रात भर ‘इन्होने’ रगड़ के चोदा था लेकिन झड़ने नही दिया था….. रात भर से मैं तड़प रही थी. और फिर सुबह-सुबह सासु जी की उंगलियों ने भी आगे-पीछे दोनों ओर, लेकिन जैसे ही मेरी देह कांपने लगी, मैंने झड़ना शुरू ही किया था कि वो रुक गई ओर पीछे वाली उँगली से मुझे मंझन कराने लगी. मेरा झड़ना उस वक्त रुक गया था. उसके बाद तो सब कुछ छोड़ के वो मेरी गाण्ड के पीछे ही पड़ गई थी……
यही हालत बेला और बाकी सभी ननदों के साथ हुई…. बेला कस कस के घिस्सा दे रही थी और मैं उसकी चुचियाँ पकड़ के कस-कस के चुत पे चुत रगड़ रही थी…. लेकिन फिर मैं जैसे ही झड़ने के कगार पे पहुँची कि बड़ी ननद आ गई…. और इस बार भी मैंने ननद जी को पटक दिया था और उनके ऊपर चढ़ के रंग लगाने के बहाने उनकी चुचियाँ खूब जम के रगड़ रही थी और कस-कस के चुत रगड़ते हुए बोल रही थी, “देख ऐसे चोदते है तेरे भैया मुझको..!?!”
चूतड़ उठा के मेरी चूत पे अपनी चूत रगडती वो बोली, “और ऐसे चोदेंगे आपको आपके ननदोई..!?!”
मैंने कस के Clit से उसकी Clit रगड़ी और बोला, “अरे तो डरती हूँ क्या उस साले भडवे से..??? उसके साले से रोज चुदती हूँ, आज उसके जीजा साले से भी चुदवा के देख लूंगी.”
मेरी देह उत्तेजना के कगार पर थी, लेकिन तब तक मेरी जेठानी आ के शामिल हो गई और बोली, “हाय तू अकेले मेरी ननद का मज़ा ले रही है, ज़रा मुझे भी मस्ती करने दे मेरी प्यारी छिनाल ननद के साथ.” और मुझे हटा के वो चढ़ गई.
मैं इतनी गरम हो चुकी थी कि मेरी सारी देह कांप रही थी. मन कर रहा था कि कोई भी आ कर चोद दे. बस किसी तरह एक लंड मिल जाए, किसी का भी. फिर तो मैं उसे छोडती नहीं. निचोड़ के खुद झड़ के ही दम लेती……………..
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08-29-2018, 09:19 PM,
#14
RE: Holi Mai Chudai Kahani
इसी बीच मैं अपने भाई के कमरे की ओर भी एक चक्कर लगा आई थी. उसकी और मेरी छोटी ननद के बीच होली जबर्दस्त चल रही थी. उसकी पिचकारी मेरी ननद ने पूरी की पूरी घोंट ली थी. चींख भी रही थी, सिसक भी रही थी, लेकिन उसे छोड़ भी नहीं रही थी.
तब तक गाँव की औरतों के आने की आहट पाकर मैं चली गई.
जब बाकि औरतें चली गई तो भी एक-दो मेरे जो रिश्ते की जेठानी लगती थी, रुक गई. हम सब बाते कर रहे थे तभी छोटी ननद की किस्मत वो कमरे से निकल के सीधे हमीं लोगों की तरफ़ आ गई. गाल पे रंग के साथ-साथ हल्के-हल्के दांत के निशान, टांगे फैली-फैली, चेहरे पर मस्ती, लग रहा था पहली चुदाई के बाद कोई कुंवारी आ रही है. जैसे कोई हिरनी शिकारियों के बीच आ जाए वही हालत उसकी थी. वो बिदकी और मुड़ी, तो मेरी दोनों जेठानियो ने उसे खदेड़ा और जब वो सामने की ओर आई तो वहाँ मैं थी. मैंने उसे एक झटके में दबोच लिया. वो मेरी बाहों में छटपटाने लगी, तब तक पीछे से दोनों जेठानियो ने पकड़ लिया ओर बोली, “हाय.! कहा से चुदा के आ रही है..???”
दुसरी ने गाल पे रंग मलते हुए कहा, “चल, अब भौजियो से चुदा. एक-एक पे तीन-तीन.” ओर एक झटके में उसकी चोली फाड़ के खींच दी. जो जोबन झटके से बाहर निकले वो अब मेरी मुट्ठी में कैद थे.
“अरे तीन-तीन नहीं चार-चार.” तब तक मेरी जेठानी भी आ गई ओर हँस के वो बोली और उसको पूरी नंगी करके कहा, “अरे होली ननद से खेलनी है, उसके कपड़ो से थोड़े ही.”
फिर क्या था थोड़ी ही देर में वो नीचे और मैं ऊपर. रंग, pant, varnish और कीचड़ कोई चीज़ हम लोगों ने नही छोड़ी…. लेकिन ये तो शुरुआत थी.
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08-29-2018, 09:19 PM,
#15
RE: Holi Mai Chudai Kahani
मैं अब सीधे उसके ऊपर चढ़ गई और और अपनी प्यासी चूत उसके किशोर, गुलाबी, रसीले होंठों पे रगड़ने लगी. वो भी कम चुदक्कड नहीं थी, चाटने और चुसने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसके जीभ की नोंक मेरे Clit (चूत का लहसुन) को छेड़ती हुई मेरे पेशाब के छेद को छू गई. और मेरे पूरे बदन में सुरसुरी मच गई. मुझे वैसे भी बहुत कस के लगी थी, सुबह से 5-6 गिलास शरबत पी कर और फिर सुबह से की भी नहीं थी.
(मुझे याद आया कि कल रात मेरी ननद ने छेड़ा था कि भाभी आज निपट लीजिए, कल होली के दिन Toilet में सुबह से ही ताला लगा दूंगी. और मेरे बिना पूछे बोला कि अरे यही तो हमारे गाँव की होली की…खास कर नई बहु के आने पे होने वाली होली की spaciality है. जेठानी और सास दोनों ने आँख तर्रेर कर उसे मना किया और वो चुप हो गई.)
मेरे उठने की कोशिश को दोनों जेठानियो ने बेकार कर दिया और बोली, “हाय, आ रही है तो कर लो ना…इतनी मस्त ननद है…और होली का मौका…ज़रा पिचकारी से रंग की धार तो बरसा दो…छोटी प्यारी ननद के ऊपर.”
मेरी जेठानी ने कहा, “और वो बेचारी तेरी चूत की इतनी सेवा कर रही है…तू भी तो देख ज़रा उसकी चूत ने क्या-क्या मेवा खाया है..???”
मैंने गप्प से उसकी चूत में मोटी उंगली घुसेड़ दी. मेरी छोटी छिनाल ननद सीत्कार उठी. उसकी चूत लस-लसा रही थी. मेरी दुसरी उंगली भी अंदर हो गई. मैंने दोनों उंगलिया उसकी चूत से निकाल के मुँह में डाल ली.. वाह क्या गाढ़ी मक्खन-मलाई थी..?? एक पल के लिये मेरे मन में ख्याल आया कि मेरी ननद की चूत में किसका लंड अभी गया था.? लेकिन सर झटक के मैं मलाई का स्वाद लेने लगी. वाह क्या स्वाद था.? मैं सब कुछ भूल चुकी थी कि तब तक मेरी शरारती जेठानियो ने मेरे सुर्सुराते छेद को छेड दिया और बिना रुके मेरी धार सीधे छोटी ननद के मुँह में….
दोनों जेठानियो ने इतनी कस के उसका सर पकड़ रखा था कि वो बेचारी हिल भी नहीं सकती थी और एक ने मुझे दबोच रखा था. थोड़ी देर तो मैंने भी हटने की कोशिश की लेकिन मुझे याद आया कि अभी थोड़ी देर पहले ही, मेरी जेठानी पड़ौस की उस ननद को…… और वो तो इससे भी कच्ची थी.
“अरे होली में जब तक भाभी ने पटक के ननद को अपना खास असल खारा शरबत नहीं पिलाया, तो क्या होली हुई..???” एक जेठानी बोली.
दुसरी बोली, “तू अपनी नई भाभी की चूत चाट और उसका शरबत पी और मैं तेरी कच्ची चूत चाट के मस्त करती हूँ.”
मैं मान गई अपनी ननद को, वास्तव में धार के बावजूद वो चाट रही थी. इतना अच्छा लग रहा था कि मैंने उसका सर कस के पकड़ लिया और कस-कस कर अपनी बुर उसके मुँह पे रगड़ने लगी. मेरी धार धीरे-धीरे रुक गई और मैं झड़ने के कगार पर थी कि मेरी एक जेठानी ने मुझे खींच के उठा दिया. लेकिन मौके का फायदा उठा के मेरी ननद निकल भागी और दोनों जेठानिया उसके पीछे.
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08-29-2018, 09:20 PM,
#16
RE: Holi Mai Chudai Kahani
मैं अकेले रह गई थी. थोड़ी देर मैं सुस्ता रही थी कि ‘उईईईई’ की चीख आई, उस तरफ़ से जिधर मेरे भाई का कमरा था. मैं उधर दौड़ के गई. मैं देख के दंग रह गई. उसकी Half-Pent घुटनों तक नीचे सरकी हुई और उसके चूतडों के बीच में ‘वो’.
‘इनका’ मोटा लाल गुस्साया सुपाड़ा पूरी तरह उसकी गाण्ड में पैबस्त… वो बेचारा अपने चूतड़ पटक रहा था लेकिन मैं अपने experience से अच्छी तरह समझ गई थी कि अगर एक बार सुपाड़ा घुस गया तो ये बेचारा लाख कोशिश कर ले ‘इनका’ मुसल बाहर नहीं निकलने वाला. उसकी चीख अब गों-गों की आवाज़ में बदल गई थी. उसके मुँह की ओर मेरा ध्यान गया तो ननदोई ने अपना लंड उसके मुँह में ठेल रखा था. लम्बाई में भले वो ‘मेरे इनसे’ 19 हो लेकिन मोटाई में तो उनसे भी कहीं ज्यादा, मेरी मुट्ठी में भी मुश्किल से समा पाता.
मेरी नज़र सरक कर मेरे भाई के शिश्न पर पड़ी. बहुत प्यार, सुन्दर-सा गोरा, लम्बाई में तो वो ‘मेरे उनके’ और ननदोई के लंड के आगे कही नहीं टिकता, लेकिन इतना छोटा भी नहीं, कम से कम 6 inch का तो होगा ही, छोटे केले की तरह और एकदम कड़ा…..
गाण्ड में मोटा लंड मिलने का उसे भी मज़ा मिल रहा था. ये पता इसी से चल रहा था. वो उसके केले को मुट्ठिया रहे थे और उसका लिची जैसा गुलाबी सुपाड़ा खुला हुआ बहुत प्यारा लग रहा था. बस मन कर रहा था कि गप्प से मुँह में ले लूँ और कस-कस कर दो-चार चुप्पे मार लूँ. मेरे मुँह में फिर से वो स्वाद आ गया जो मेरी छोटी ननद के बुर में उंगलियां निकाल के चाटते समय मेरे मुँह में आया था. अगर अभी वो मिल जाती तो सच में बिना चुसे ना छोडती.
मैं उस समय इतनी चुदासी हो रही थी कि बस…..
“पी साले पी…. अगर मुँह से नहीं पिएगा तो तेरी गाण्ड में डाल के ये बोतल खाली कराएँगे.”
ननदोई ने दारू की बोतल सीधे उसके मुँह में लगा के उड़ेल दी. वो घुटुर-घुटुर कर के पी रहा था. कड़ी महक से लग रहा था कि ये देसी दारू की बोतल है. उसका मुँह तो बोतल से बंद था ही, ‘इन्होने’ एक-दो और धक्के कस के मारे. बोतल हटा के ननदोई ने एक बार फिर से उसके गोरे-गोरे कमसिन गाल सहलाते हुए फिर अपना तन्नाया लंड उसके मुँह में घुसेड़ दिया.
‘इन्होने’ आँख से ननदोई जी को इशारा किया, मैं समझ गई कि क्या होने वाला है.? और वही हुआ.
ननदोई ने कस के उसका सर पकड़ा और मोटा लंड पूरी ताकत से अंदर पेल के उसका मुँह अच्छी तरह बंद कर दिया और मजबूती से उसके कंधे को पकड़ लिया. उधर ‘इन्होने’ भी उसका शिश्न छोड़ के दोनों हाथों से कमर पकड़ के वो करारा धक्का लगाया कि दर्द के मारे वो बिलबिला उठा. बेचारा घूं-घूं के सिवाय कुछ न क सका. लेकिन बिना रुके एक के बाद एक ‘ये’ कस-कस के पलते रहे. उसके चेहरे का दर्द… आँखों में बेचारे के आँसू तैर रहे थे. लेकिन मैं जानती थी कि ऐसे समय रहम दिखाना ठीक नहीं और ‘इन्होंने’ भी Almost पूरा लौड़ा उसकी कसी गाण्ड में ठूस दिया.
वो छटपटाता रहा, गाण्ड पटकता रहा, घूं-घूं करता रहा लेकिन बेरहमी से वो ठेलते रहे. मोटा लंड मुँह में होने से उसके गाल भी पुरे फुले और आँखे तो मानो निकल पड़ रही थी.
“बोल साल्ले, मादरचोद, तेरी बहन की माँ का भोसड़ा मारूं……… बोल मज़ा आ रहा है गाण्ड मराने में…???” उसके चूतड़ पे धौल जमाते हुए ‘ये’ बोले.
ननदोई जी ने एक पल के लिए अपना लंड बाहर निकाल लिया और वो भी हँस के बोले, “Idea अच्छा है…… तेरी सास बड़ी मस्त माल है….. क्या चुचियाँ है उसकी..!!!! पूछ इस साले से चुदवायेगी वो..??? साईज क्या है उस छिनाल की चुचियों की..???”
“बोल साले, क्या साईज है उस की चुचियों की.?? माल तो बिंदास है….” उसके बाल खींचते हुए ‘इन्होने’ उसके गाल पे एक आँसू चाट लिया और कच-कचा के गाल काट लिया…..
“38 DD” वो बोला.
“अबे भोसड़ी के, क्या 38 DD.?? साफ-साफ बोल…..” उसके गाल पे अपने लंड से सटासट मारते ननदोई जी बोले…..
“सीना…..छाती……चूची……” वो बोला.
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08-29-2018, 09:20 PM,
#17
RE: Holi Mai Chudai Kahani
सच में..?? जैसे तेरी कसी गाण्ड मारने में मज़ा आ रहा है वैसे उस की भी बड़ी-बड़ी चुचियाँ पकड़ के मस्त चूतडों के बीच……… हाए क्या गाण्ड है.?? बहोत मज़ा आएगा……!!!” ‘ये’ बोले और बचा-कुचा लंड भी ठेल दिया. मेरे छोटे भाई की तो चीख ही निकल गई……
मैं सोच रही थी कि तो क्या मेरी माँ के साथ भी….. छी कैसा-कैसा सोचते है ये..??? वैसे ये बात सही भी थी कि मेरी माँ की चुचियाँ और चूतड़ बहुत मस्त थे, और हम सब बहने बहुत कुछ उनपे गई थी. वैसे भी बहुत दिन हो गए होंगे, उनकी बुर को लंड खाए हुए.
“क्या मस्त गाण्ड मराता है तू यार…… मजा आ गया. बहुत दिन हो गए ऐसी मस्त गाण्ड मारे हुए.” हल्के-हल्के गाण्ड मरते हुए ‘ये’ बोले.
ननदोई जी कभी उसे चुम रहे थे तो कभी उससे अपना सुपाड़ा चुसवा-चटवा रहे थे. उन्होंने पूछा, “क्या हुआ जो तुझे इस साले की गाण्ड में ये मज़ा आ रहा है.???”
वो बोले, “अरे इसकी गाण्ड, जैसे कोई कोई हाथ से लंड को मुट्ठीयाते हुए दबाए, वैसे लंड को भींच रही है. ये साला Natural गाण्डू है” और एक झटके में सुपाड़े तक लंड बाहर कर के सटा-सट गपा-गप उसकी गाण्ड मारना शुरू कर दिया.
मैंने देखा कि जब उनका लंड बाहर आता तो ‘इनके’ मोटे मुसल पे उसकी गाण्ड का मसाला….. लेकिन मेरी नज़र सरक के उसके लंड पे जा रही थी. सुन्दर सा प्यारा, कड़ा, कभी मन करता था कि सीधे मुँह में ले लु तो कभी चूत में लेने का.
तभी सुनाई पड़ा. ‘ये’ बोल रहे थे, “साले, आज के बाद से कभी मना मत करना गाण्ड मराने के लिए, तुझे तो मैं अब पक्का गाण्डू बना दूँगा और कल होली में तेरी सारी बहनों की गाण्ड मारूंगा, चूत तो चोदुंगा ही. तुझे तेरी कौन छिनाल बहन पसंद है.? बोल साले.. इस गाण्ड मराने के लिये तुझे अपनी साली ईनाम में दूँगा.”
मैंने मन में कहा कि ईनाम में तो वो ‘इनकी’ छोटी बहन की मस्त कच्ची चूत कि seal सुबह ही खोल चुका है.
वो बोला, “सबसे छोटी वाली…लेकिन अभी वो छोटी है.”
“अरे उसकी चिन्ता तू छोड़. चोद-चोद कर इस होली के मौके पे तो मैं उसकी चूत का भोसड़ा बना दूँगा और अपनी सारी सालियों को रंडी की तरह चोदुंगा. चल तू भी क्या याद रखेगा.? सारी तेरी बहनों को तुझसे चुदवा के तुझे गाण्डू के साथ नम्बरी बहनचोद भी बना दूँगा.”
उन लोगों ने तो बोतल पहले ही खाली कर दी थी. ननदोई उसे भी आधी से ज्यादा देसी बोतल पिला के खाली कर चुके थे और वो भी नशे में मस्त हो गया था.
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08-29-2018, 09:20 PM,
#18
RE: Holi Mai Chudai Kahani
“अरे कहा हो..???”तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी.

मैं दबे पांव वहाँ से बरामदे की ओर चली आई, जहाँ जेठानी के साथ मेरी बड़ी ननद भी थी. दूर से होली के हुलियारों की आवाज़ें हल्की-हल्की आ रही थी. जेठानी के हाथ में वैसी ही बोतल थी जो ‘ये’ और ननदोई जी पी चुके थे और जबरन मेरे भाई को पीला रहे थे. मैं लाख ना-नुकुर करती रही कि आज तक मैंने कभी दारू नहीं पिया लेकिन वो दोनों कहां मानने वाली थी..???
जबरन मेरे मुँह से लगा कर ननद बोली, “भाभी, होली तो होती ही है नए-नए काम करने के लिये, आज से पहले आपने वो खारा शरबत पिया नहीं होगा जो चार-पाँच गिलास गटक गई और अभी तो होली के साथ-साथ आपके खाने-पिने की शुरुआत हुई है, जो आपने सोचा भी नहीं होगा वो सब….”
जेठानी उसकी बात काट के बोली, “अरे तुने पिलाया भी तो है बेचारी अपनी छोटी ननद को… ले गटक मर्दों की अलमारी से निकाल के लाए है हम…”
फिर थोड़ी देर में बोतल खाली हो गई. ये मुझे बाद में अहसास हुआ कि आधे से ज्यादा बोतल उन दोनों ने मिल के मुझे पिलाया और बाकि उन दोनों ने……… लग रहा था कि कोई तेज तेजाब ऐसा गले से जा रहा हो, भभक भी तेज थी, लेकिन उन दोनों ने मेरी नाक बंद की और उसका असर भी 5 मिनट के अंदर होने लगा. मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि कोई भी (मेरा भाई भी) आ के मुझे चोद देता तो मैं मना नहीं करती. ननद अब अंदर चली गई थी.
थोड़ी देर में होली के हुलियारों की भीड़ एकदम पास में आ गई. वो ज़ोर-ज़ोर से कबीरा, गालियां और फाग गा रहे थे. जेठानी ने मुझे उकसाया और हम दोनों ने जरा सा खिड़की खोल दी, फिर तो तूफ़ान ही आ गया. गालियों का और रंग का सैलाब फुट पड़ा. नशे की मारी मैं……. मैंने भी 1 बाल्टी रंग उठा के सीधे फेंका. ज्यादातर मेरे गाँव के रिश्ते से देवर लगते थे, पर फागुन में कहते है ना कि बुढवा (budhava) भी देवर लगते है इसलिए होली के दिन तो बस एक रिश्ता होता है, लंड और चूत का.
रंग पड़ते ही वो बोल उठे, “हे भौजी खोला केवाड़ी, उठावा साड़ी, तोहरी बुरिया में हम चलाइब गाड़ी.”
“अरे ये भी बुर में जायेंगे, लौड़े का धक्का खायेंगे.” दूसरा बोला.
मैं मस्त हो उठी. जेठानी ने मुझे एक idea दिया. मैंने खिड़की खोल के उन्हें अपना आँचल लहरा के, रसीले जोबन का दर्शन करा के उन्हें न्योता दे दिया.
सब झूम-झूम के गा रहे थे,
“अरे नक बेसर कागा लई भागा, सैंया अभागा ना जागा. अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, बिंदिया पे बैठा, मथवा का सब रस लई भागा,
उड़-उड़ कागा, नथिया पे बैठा, होंठवा का सब रस लई भागा, अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, चोलीया पे बैठा, जुबना का सब रस लई भागा,
उड़-उड़ कागा, करधन पे बैठा, कमर का सब रस लई भागा, अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, साया पे बैठा, चूत का सब रस लई भागा,”
एक हुडदंगी जेठानी से बोला, “अरे नई भौजी को बाहर भेजा ना…. होली खेले को…. वरना हम सब अंदर घुस के…..”
जेठानी ने घबरा के कहा, “अरे भेजती हू अंदर मत आना……”
मैं भी नशे में तो थी, बोल उठी, “अरे आती हूँ, देखती हू कितनी लंबी और मोटी है तुम लोगों की पिचकारी.? और कितना रंग है उसमे.? या सब कुछ अपनी बहनों की बाल्टी में खाली कर के आए हो.?!?”
अब तो वो और बैचेन हो गए. जेठानी ने खिड़की बंद कर दिया. उधर से मेरी छोटी ननद आ गई. अब हम लोगों का plan कामयाब हो गया. हम दोनों ने पकड़ कर उसकी साड़ी, चोली सब उतार दी और मेरी साड़ी चोली उसे पहना दी.
(bra ना तो उसने पहनी थी ना मैंने, वो तो सुबह की होली में ही फट गई थी. उसके कपड़े मैंने पहन लिए और दरवाजा थोड़ा खोल के धक्के दे के उसे हुलियारों के हवाले कर दिया. उसकी चोली मुझे थोड़ी Tight पड़ रही थी. सो मैंने ऊपर के दो बटन खुले ही छोड़ दिये और उसकी साड़ी को जैसे-तैसे लपेट लिया.)
सुबह से रंग, पेन्ट, वार्निश इतना पुत चुका था कि चेहरा तो पहचाना जा नहीं रहा था. हाँ साड़ी और आँचल की झलक और चोली का दर्शन मैंने उन सब को इसीलिये करा दिया था कि ज़रा भी शक ना रहे. बेचारी ननद पल भर में ही वो रंग से सराबोर हो गई. उसकी साड़ी, चोली सब देह से चिपके हुए, जोबन का मस्त किशोर उभार साफ-साफ झलक रहा था, यहाँ तक कि कड़े चुचुक (Nipples) भी……. नीचे भी पतली साड़ी जांघों से चिपकी, गोरी गुदाज़ रानें साफ साफ दिख रही थी. फिर तो किसी ने चोली के अंदर हाथ डाल के जोबन पे रंग लगाना, मसलना शुरू किया तो किसी ने सीधे जांघों के बीच……
जेठानी ने ये नज़ारा देख के ज़ोर से बोला, “ले लो बिन्नो आज होली का मज़ा, अपने भाइयों के साथ.”
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08-29-2018, 09:20 PM,
#19
RE: Holi Mai Chudai Kahani
मैं जेठानी के साथ बैठी देख रही थी अपनी छोटी ननद की हालत जो…. लेकिन मेरा मन कर रहा था कि काश मैं ही चली जाती उसकी जगह… इतने सारे मर्द…….. कम से कम……. सुबह से इतनी चुदवासी लग रही थी…. सोचा था गाँव में इतनी खुल के होली होती है और नई बहु को तो सारे के सारे मर्द कस-कस के रगड़ते होंगे लेकिन यहां तो एक भी लंड……. इस समय कोई भी मिल जाता तो…. चुदवाने को कौन कहे….??? मैं ही पटक के उसे चोद देती. दारू के चक्कर में जो थोड़ी बहुत झिझक थी वो भी खत्म हो गई थी.

तब तक एक किशोर, चेहरा रंग से अच्छी तरह पुता और साथ में मेरी बड़ी छिनाल ननद.
वो हँस के मुझसे बोली, “ये तेरा छोटा देवर है. ज़रा शर्मीला है लेकिन कस के रंग लगाना…” फिर क्या था,
“अरे शर्म क्या.? मैं इसका सब कुछ छुडा दूंगी, बस देखते रहिये.” और मैंने उसे कस के पकड़ लिया.
वो बेचारा ना-ना करता रहा, लेकिन मेरी ननद और जेठानी इतने ज़ोर-ज़ोर से मुझे ललकार रही थी कि मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था. उसके चेहरे पे मैंने कस के रंग लगाया, मुलायम गाल रगड़ डाले…..
“हाय भाभी, रंग देवर के साथ खेल रही है या उसके कपड़ो के साथ…अरे देवर-भाभी की होली है, ज़रा कस के….” जेठानी ने चढ़ाया, “अरे फाड़ दे कपड़े इसके…पहले कपड़े फाड़ फिर इसकी गाण्ड.”
फिर क्या था.? मैंने पहले तो कुर्ता खींच के फाड़ दिया. जेठानी ने उसके दोनों हाथ पकड़े तो मैंने पजामे का नाडा भी खोल दिया. अब वो सिर्फ चड्डी में. ननद ने भी उसके साथ मिल के मेरी साड़ी खींच दी और चोली खींचते हुए फाड़ दी. पेटीकोट को ऊपर नाड़े में ही खौंस दिया मैंने…..
चड्डी उसकी तनी हुई थी. एक झटके में मैंने उसे भी नीचे खींच दिया और उसका 6 inch का तन्नाया लंड बाहर. शरमा कर उसने उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन तब तक उसे गिरा के मैं उसके ऊपर चढ़ चुकी थी. दोनों हाथों में कालिख लगा के उसके गोरे लंड को कस-कस कर मुट्ठिया रही थी. तब तक मेरी ननद ने मेरी भी वही हालत कर दी और बोली, “भाभी अगर हिम्मत है तो इसके लंड को अंदर ले के होली खेलिए.”
मैं तो चुदासी थी ही, थोड़ी देर चूत मैंने उसके लंड के ऊपर रगड़ी और फिर एक झटके में अंदर.
“साले, ये ले मेरी चुची. रगड़, मसल और कस के चोद….. अगर अपनी माँ का बेटा है तो दिखा दे कि तू असली मर्द है….. ले ले चोद और अगर किसी रंडी, छिनाल की औलाद है तो…..” मैंने बोला और हचक-हचक के चोदना शुरू कर दिया.
इतनी देर से मेरी प्यासी चूत को लंड मिला था. वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन मेरी जेठानी ने उसका मुँह रंग लगाने के साथ-साथ बंद भी कर रखा था. थोड़ी देर में अपने आप वो चूतड़ उछालने लगा और फिर मैंने भी अपनी चूत सिकोड़ के, चुचियाँ उसके सीने पे रगड़-रगड़ के चोदना शुरू कर दिया. मेरे बदन का सब रंग उसकी देह में लग रहा था. ननद मेरी चुचियों पर रंग लगाती और वही रंग मैं उसके सीने पर पोत देती.
थोड़ी देर तक तो वो नीचे रहा लेकिन फिर मुझे नीच गिरा कर खुद ऊपर चढ़ के चोदने लगा. नशे में चूर मुझे कुछ नहीं पता चल रहा था बस मज़ा बहुत आ रहा था. कल रात से ही जो मैं झड नहीं पाई थी और बहुत चुदासी हो रही थी. वो तो चोद ही रहा था, साथ में ननद भी कभी मेरे चुचक पर तो कभी clit पे रंग लगाने के बहाने फ्लिक कर देती.
तभी मैंने देखा कि ननदोई जी, उन्होंने उंगली के इशारे से मुझे चुप रहने को कहा और कपड़े उतार के अपना खूब मोटा कड़ा लंड (penis)…………… मैं समझ गई और मेरे पैर जो उसकी पीठ पे थे पूरी ताकत से मैंने कैची की तरह कस के बांध लिये. वो बेचारा तिलमिलाता रहा… लेकिन जब तक वो समझे उसकी गाण्ड चिर कर उन्होंने खूब मोटा लाल सुपाडे वाला लंड उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दिया था और कमर पकड़ कर जो करारा धक्का मारा एक बार में ही पूरा सुपाड़ा अंदर पैबस्त हो गया. बेचारा चीख भी नही पाया क्योंकि उसके मुँह में मैंने जानबूझ के अपनी मोटी चुची ठेल दी थी.
“हाँ ननदोई जी, मार लो साले की गाण्ड….. खूब कस के पेल दो पूरा लंड अंदर, भले ही फट जाए साले की…… बाद में मोची से सिलवा लेगा. (मैं सोच रही थी कि मेरा देवर है तो ननदोई जी का तो साला ही हुआ ना..) लेकिन छोडना मत.”
साथ में मैं कस के उसकी पीठ पकड़े हुए थी. तिल-तिल कर उनका पूरा लंड समा गया. एक बार जब लंड अंदर घुसा तो फिर तो वो लाख कसमसाता रहा, छटपटाता रहा, लेकिन ननदोई जी भी सटा-सट, गपा-गप उसकी गाण्ड मारते रहे. एक बात और….. जितनी ज़ोर से उसकी गाण्ड मारी जा रही थी उतना ही उसके लंड की शक्ति और चुदाई का जोश बढ़ता जा रहा था. हम दोनों के बीच वो अच्छी तरह से Sandwich बन गया था. लंड उसका भले ही ‘मेरे उनके’ या ननदोई की तरह लम्बा-मोटा ना हो पर देर तक चोदने और ताकत में कम नहीं था. जब लंड उसकी गाण्ड में घुसता तो उसी तेजी से वो मेरी चूत में पेलता और जब वो बाहर निकलते तो साथ में वो भी. थोड़ी देर में मेरी देह काँपने लगी.
मैं झड़ने के कगार पर थी और वो भी… जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में हो रहा था.
“ओह्ह…ओह्ह… हा..हआआआआ…
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08-29-2018, 09:21 PM,
#20
RE: Holi Mai Chudai Kahani
बस….ओह्ह्ह्ह…… झड़ रहीईईईइ हूऊउउऊ……” कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी.
तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हमारे चेहरों से रंग भी उतरने लगा. अब थोड़ा नशा भी हल्का हो गया था.
मैंने उसे देखा तो…….
“अरे ये………..ये तो मेरा भाई है.” मैंने पहचाना लेकिन तब तक हम दोनो झड़ रहे थे और मैं चाह के भी उसको हटा नहीं पा रही थी. सच पूछिए तो मैं हटाना भी नहीं चाह रही थी. क्योंकि मेरी रात भर की प्यासी और पनियाई चूत में वीर्य की बरसात जो हो रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों के बाद सावन इतना झूम के बरसा हो.
ननदोई अभी भी कस के उसकी गाण्ड मार रहे थे. हम लोगों के झड़ने के थोड़ी देर बाद जब वो भी झड़ के हटे, तब मेरा भाई मुझसे अलग हो पाया.
जब मेरा भाई मुझसे अलग हुआ तो मेरे पास ही खड़ा हो गया. ननदोई सा मेरे सामने ही नंगे खड़े थे. मेरी नज़र उनके लौड़े पर थी. ननद ने चोली और घाघरी पहन रखी थी जो पूरी तरह से रंग, कीचड़ और गोबर से सनी हुई थी.
मैंने मेरे भाई की ओर देखा, उसका लंड अब मुरझा चुका था. वो घूर-घूर कर मेरे मम्मे देखे जा रहा था. मुझे शर्म सी आने लगी तो ख्याल आया कि मैं सबके सामने नंगी खड़ी हूँ. जल्दी-जल्दी मैंने अपने नाड़े में खोंसे हुए पेटीकोट को बाहर निकाला और पास ही पड़ी मेरी साड़ी को देह से लपेट लिया. मेरी चोली का कुछ पता नहीं था.? चूंकि साड़ी मेरी छिनाल छोटी ननद की थी, इसलिए थोड़ी छोटी थी. मेरी पूरी देह को ढक नहीं पा रही थी. मेरे कड़े चुचक साड़ी में से साफ़-साफ़ झलक रहे थे. ननदोई सा और मेरा भाई मुझे घूरे जा रहे थे.
तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी. रंग से सराबोर थी बेचारी. वो और जेठानी जी मेरे भाई को लेके रसोईघर की तरफ़ चली गई. मैं समझ गई कि फिर से छोटी छिनाल ननद को खुजली हो रही है परन्तु इस बार तो मेरी जेठानी भी साथ में थी. हाँ भई, मेरी चुदाई देख कर तो उनकी चुत भी पनिया गई होगी और फिर अपने ननदोई जी का मोटा लंड भी तो देख लिया था उन्होंने. खैर मेरे मन में ये ख्याल भी आया कि जेठानी जी ने भी तो ननदोई जी का लंड घोंटा ही होगा कई बार. क्योंकि मेरे ससुराल में तो सब के सब चुदक्कड ही थे. अब मुझे भी वहाँ खड़े रहने में शरम आ रही थी तो मैं भी अपने कमरे में की तरफ़ दौड़ी. कमरे में आ कर मैंने अपनी ननद की साड़ी को एक कोने में फ़ेंक दिया ओर अपने लिए अलमारी में कपड़े ढूंढने लगी.
मैंने सोचा कि मेरे भाई को रसोईघर में ले जाकर पहले तो उसकी पेट पूजा करवाएंगे, लेकिन खाने के लिये तो गुझिया और ठंडाई ही तो थे. मैं समझ गई के ये दोनों छिनाल रान्डे पहले तो मेरे भोले-भाले भाई को भांग वाली गुझिया और ठंडाई पिलाएगी और फिर इसके लंड को अपनी-अपनी चूत में घोंट के खायेन्गी.
चलो कोई बात नहीं, वो भी मेरा भाई है. हमारा खानदान भी कोई कम चुदक्कड नहीं है.!
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