Hindi Sex Kahaniya कामलीला
09-11-2018, 11:43 AM,
#41
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
इस काम में मैं अपना सीधा हाथ इस्तेमाल कर रहा था।
बाएं हाथ से मैंने उसकी पूरी तरह गीली, बहती-चूती योनि को रगड़ने सहलाने लगा जिससे वह फिर चार्ज होने लगी और जो कुछ पलों का अवरोध आया था, उससे उबरने लगी।
थोड़ी देर बाद जब लगा कि अब वह सह लेगी तो खाली वाला हाथ योनि से हटा कर मैंने उसमें तेल लिया और अपने लिंग को तेल से इस तरह सराबोर कर लिया कि दूल्हा चमकने लगा।
‘सुनो, मैं अब डालने जा रहा हूँ। कितना भी दर्द हो, यह सोचकर बर्दाश्त करना कि इस दर्द से कोई मर नहीं जाता और एकदम चिंहुक कर ऊपर नीचे न होना… चिकनाई बहुत है, फिसल कर नीचे के छेद में जा सकता है और गया तो झिल्ली तक पहुँचने से पहले रुक भी नहीं पाएगा।’ मैंने उसे चेतावनी देते हुए कहा।
‘अब तुम खुद अपनी क्लिटरिस को सहलाते हुए अपने को गर्म रखो, मेरा ध्यान अंदर डालने में है।’
उसने सर हिलाते हुए डालने का इशारा किया और खुद नीचे से अपना सीधा हाथ अपनी योनि तक ले आई और उसे सहलाने रगड़ने लगी।
मैंने उसके नितम्बों को सहलाते हुए सीधे हाथ से लिंग को पकड़ कर उसके छेद से टिकाया और अपनी उँगलियों से लिंग के अग्रभाग को उसके छेद पर दबाने लगा।
चुन्नटों भरा घेरा काफी सख्त था लेकिन चिकनाई इतनी ज्यादा थी कि चुन्नटों को खुलने में देर नहीं लगी।
और जैसे ही उसने पहली बाधा पार की, वह एकदम अंदर सरका और उसी पल में वह चिहुंक कर ‘अम्मी’ के उद्घोष के साथ चीखी।
अगला पल मेरे लिए अपेक्षित था इसलिए मैंने उसके कूल्हों के ऊपर, कमर पर अपनी उँगलियाँ धंसा दीं और उसके तड़प कर मेरे लिंग से बाहर निकल जाने की सम्भावना ख़त्म कर दी।
‘रिलैक्स- रिलैक्स… थोड़ा बर्दाश्त करो। अभी छेद अपने आप एडजस्ट कर लगा… तुम अपनी वेजाइना को सहलाओ।’

वह गूं गूं करती रही और मैंने अपने आधे घुसे, बल्कि यह कहा जाये तो ज्यादा सही होगा कि उसके कसे हुए छेद में आधे फंसे लिंग को और अंदर घुसाने की कोशिश की तो वह मचलने लगी।
‘मुझे लेट्रीन फील हो रही है… जाने दो।’ वह कांखते कराहते हुए ऐसे बोली कि लगा वाकयी में उसकी कैफियत ऐसी ही रही होगी।
मैंने अपना लिंग बाहर खींच लिया…’पक’ की आवाज़ के साथ खुला हुआ दरवाज़ा बंद हो गया और वह उठ कर कमरे से अटैच बाथरूम की तरफ भागी और दरवाज़े के पीछे गायब हो गई।
मैं बिस्तर पर गिर कर उसका इंतज़ार करने लगा।
पांच मिनट बाद वह वापस आई तो उसके चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव थे।
‘सॉरी…’ वह निदामत भरे लहजे में बोली और मेरे पास ही सर झुकाए बैठ गई।
‘इट्स ओके… पहली बार में हो जाता है… इसमें कोई बड़ी बात नहीं। यह तभी हो सकता है जब तुम मानसिक रूप से इसके लिए तैयार हो। अगर तुम ठीक नहीं महसूस कर रही तो कोई बात नहीं। हम ऐसे ही एन्जॉय करते हैं न।’ मैं उसके पास बैठ कर उसकी पीठ को सांत्वना भरे अंदाज़ में सहलाते हुए बोला।
वह थोड़ी देर अपनी घनेरी पलकें ऊपर उठा कर मेरी आँखों में देखती रही फिर निश्चयात्मक स्वर में बोली- नहीं, जो होगा आज होगा… यह मेरी ज़िन्दगी का वह वक़्त है, वह मौका है जो एक बार चला गया तो फिर कभी नहीं आएगा। मुझे पता नहीं था कि ऐसे वक़्त में कैसा महसूस होता है लेकिन अब पता है और मैं खुद को इसके लिए तैयार कर चुकी हूँ।
‘ऐज़ यू विश!’
‘पर नशा ख़त्म हो गया। फिर से बनाओ!’ वह बिस्तर की पुश्त से टिकती हुई बोली।
‘जैसी मैडम की मर्ज़ी।’ मैंने मुस्कराते हुए कहा और उठ कर ड्रिंक बनाने लगा… साथ ही दो सिगरेट भी सुलगा लीं।
हम फिर से शराबनोशी और स्मोकिंग करने लगे।
और इस बार जो रगड़घिस का दौर चला तो वह काफी वायलेंट तरीके से पेश आई। मैंने उसके बूब्स, योनि और चूतड़ों के साथ उसे वैसे ही रगड़ा कि फिर थोड़ी देर में ‘सी-सी’ करती पानी छोड़ने की कगार पर पहुँच गई।
इस बार छेद ढीला करने के लिये मैंने उसे डॉगी स्टाइल वाली पोजीशन में नहीं किया बल्कि चित लिटा कर बेड के किनारे खींच लाया और पांव घुटनों से मोड़ कर पीछे कर दिए। उसके दोनों छेद यूँ समझिए कि गद्दे की कगार पर आ गए थे।
खुद मैं नीचे उकड़ूं बैठ गया और उसकी योनि से ज़ुबानी छेड़छाड़ करने लगा।
उंगलियाँ फिर से तेल में डुबाईं और पहले बंद पड़े छेद को प्यार से सहलाया, फिर पहले एक उंगली और फिर कुछ देर में दोनों ही उंगलियाँ अंदर उतार दीं।
वह खुद अपने हाथों से अपने वक्ष को मसलने लगी थी और अपने निप्पलों को रगड़ने, खींचने लगी थी।
कुछ क्षणोपरांत जब वह तैयार हो गई तो खुद से उसने इशारा किया कि अब करो वर्ना ऐसे ही निकल जाएगा।
तब मैंने खड़े होकर उसके कूल्हों के नीचे कुशन रख कर छेदों को थोड़ा और ऊपर किया ताकि मुझे ज्यादा नीचे न होना पड़े और एक बार और अपने लिंग को तेल से सराबोर कर दिया।
इस बार जब शिश्नमुंड को छेद पर रख कर दबाया तो उसे अंदर सरकने में इतनी ताक़त न लगी।
जब वह अंदर गया तो मैंने उसका चेहरा देखा… उसने होंठ भींच लिए थे और खुद अपनी लार में उँगलियाँ गीली करके अपनी योनि पर ले आई थी और उसे रगड़ने सहलाने लगी थी।
धीरे धीरे करके इस बार मैंने अपने लिंग को उसके छेद में इतना धंसा दिया कि मेरा पेट उसके चूतड़ों से आ सटा।
‘पूरा अंदर हो गया?’ उसने कराहते हुए पूछा।
‘हाँ, अभी छेद खुद ही एडजस्ट कर लेगा। बस तुम खुद को गर्म किये रहो।’ मैंने आहिस्ता आहिस्ता लिंग को बाहर खींचते हुए कहा। 
मैं जानता था कि भले वह चरम पर पहुँच चुकी हो लेकिन यह दर्द उसे वापस पीछे खींच लाएगा।
मैं उसका हाथ उसके वक्ष पर करके खुद अपने एक हाथ से उसके भगांकुर को सहलाने लगा और दूसरे हाथ से लिंग को पकड़े बाहर निकाल लिया।
‘पक’ की आवाज़ तो फिर हुई लेकिन इस बार बेहद हल्की…
मैंने फिर से लिंग को वापस घुसाया… ज़ाहिर है कि उसे फिर खिंचाव का दर्द बर्दाश्त करना पड़ा।
पूरा लिंग अंदर सरकाने के बाद मैंने फिर उसे वापस खींच लिया।
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09-11-2018, 11:43 AM,
#42
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
यह प्रक्रिया मैंने करीब बारह पंद्रह बार दोहराई और उसका दर्द हर बार हल्का पड़ते एकदम गायब हो गया जिसका एक कारण यह भी था कि मैंने लगातार उसके भगांकुर को सहलाते मसलते उसे गर्म करता रहा था और वह खुद भी अपने मम्मों को निप्पलों समेत रगड़ती मसलती, गर्म करती रही थी और साथ ही उसका छेद भी ढीला होकर इतना खुल गया कि अब लिंग को अंदर बाहर होने में कोई बाधा नहीं महसूस हो रही थी।
उसमें कसाव अब भी था मगर वैसा नहीं कि लिंग अंदर बाहर न हो सके।
‘अब ठीक है… हम कर सकते हैं। सुनो… तुम ऐसा करना जब मैं अंदर घुसाऊँ तो छेद को बाहर की तरफ फेंकते हुए उसे बाहर निकालने की कोशिश करो जैसे लैट्रीन करते वक़्त करते हो और जब मैं उसे बाहर की तरफ खींचूं तो तुम छेद को सिकोड़ कर उसे रोकने की कोशिश करो।’
इसके लिए ज़रूरी था कि मैं यह अंदर बाहर करने की प्रक्रिया को धीरे धीरे करूँ।
मैंने ऐसा ही किया और उसने ऐन मेरे निर्देशानुसार वैसा ही किया जिससे उसे अजीब सा मज़ा आया।
‘हम्म… अच्छा लग रहा है।’ उसने अपना हाथ अपनी योनि पर लगाते हुए कहा और खुद से वह करने लगी जो मैं कर रहा था जिससे मेरे हाथ फ्री हो गए और मैं उसके मुड़े हुए पैरों के घुटनों को पकड़ कर बाआहिस्तगी से चोदन करने लगा।
थोड़ी देर उसी अवस्था में सम्भोग करने के बाद मैंने लिंग बाहर निकाल लिया और उसे फिर पहले जैसी पोजीशन में आने को कहा।
वो फिर डॉगी स्टाइल में झुक कर बैठ गई और मैंने उसकी कमर को दबाते हुए इसे इस तरह बिस्तर से सटा दिया कि सिर्फ नितम्ब ही उठे हुए रह गए।
अब फिर गीला और ढीला पड़ चुका गेहुंए रंग का छेद मेरे सामने था।
उसके नितम्बों पर प्यार भरी सहलाहट देते हुए मैंने फिर लिंग अंदर घुसा दिया।
एक पल के लिए लगा कि उसे तकलीफ हुई हो लेकिन फिर वह सम्भल गई और खुद से आगे पीछे होने लगी।
जब मैं अंदर की तरफ घुसाता तो वह अपने चूतर पीछे की तरफ धकेलती और जब बाहर निकालता तो वह अपने चूतड़ों को आगे खींचती।
इस तरह वह घर्षण को और ज्यादा अच्छे से महसूस कर सकती थी… इस स्थिति में वह अपना एक हाथ नीचे लाकर अपनी योनि को भी रगड़ने लगी थी।
थोड़ी देर के धक्कों में ही न सिर्फ वह बल्कि मैं भी उत्तेजना के चरम पर पहुँचने लगे।
‘जोर जोर से करो।’ उसने ‘आह’ सी भरते हुए कहा।
मुझे भी यही अनुभूति हो रही थी। मैंने धक्कों की स्पीड तेज़ कर दी।
कमरे में मेरे पेट और उसके कूल्हों के टकराने से होती ‘थप-थप’ की आवाज़ें फैलने लगीं।
साथ ही उसकी मस्ती और उत्तेजना में डूबी कराहें कमरे के माहौल में और आग भरने लगीं।
मेरी साँसें भी भारी हो गई थीं और दिमाग स्खलन के उस चरम बिंदु पर पहुँचने लगा था।
फिर वह जोर की ‘आअह्ह’ करते हुए अकड़ गई।
योनि को रगड़ने वाला हाथ हटा कर उसने बिस्तर की चादर को दबोच लिया और जैसे अपनी सारी उत्तेजना उस चादर और गद्दे में जज़्ब करने लगी, जबकि मैं भी उसके जिस्म के साथ ही पीछे के छेद में आये कसाव को अपने लिंग पर महसूस करते हुए बह चला था और मेरी भी आहें छूट गईं।
मैंने अकड़ते हुए तीन चार झटके लगाए और उसके पैरों को एड़ियों से पकड़ कर ऐसे खींचा कि पैर बेड से नीचे रहे और बाकी जिस्म बेड पर फैल गया और साथ ही उसकी पीठ और चूतड़ों की तरफ से उससे सटा मैं भी उसी के ऊपर फैल गया और उसे पूरी ताक़त के साथ अपने नीचे दबाते हुए, हल्की गुर्राहटों के साथ स्खलित होने लगा।
जब ट्यूब खाली हो गई तो कुछ देर दिमाग में होती झनझनाहट से जूझने के बाद मैं उसके ऊपर से हट कर उसके पहलू में फैल गया और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा।
मज़ा आ गया।’ थोड़ी देर बाद उसने करवट ली और मेरी आँखों में देखते हुए बोली- अब मैं इमैजिन कर सकती हूँ कि जब आगे से इस तरह सोहबत करते होंगे तो कितना मज़ा आता होगा।’
‘अभी तुम्हारे मज़े ने दर्द से लड़ कर जीत पाई है। जब दर्द की गुंजाईश नहीं बचेगी और तब करेंगे तो इससे ज्यादा मज़ा आएगा।’
‘तुम्हारा पेस्ट अंदर ही है।’
‘हाँ- धीरे धीरे निकल जायेगा या ऐसा करो बाथरूम जाकर बैठो और थोड़ा जोर लगाओ, सब निकल जायेगा।’
‘अंदर भी रह जाये तो कोई प्रॉब्लम है क्या?’
‘नहीं। क्या प्रॉब्लम होगी… मुझे एच आई वी थोड़े है और वैसे भी रेक्टम ऐसी जगह है जहाँ बैक्टीरिया की भरमार होती है। वहाँ स्पर्म भला क्या नुक्सान पहुंचा पाएंगे।’
‘फिर रहने दो, फाइनली जब तुम जाओगे तो साफ़ कर लूंगी। अभी जहाँ जो भी बहता चूता है उसे बहने चूने दो। चादर चेंज करनी ही है। चलो एनल सेक्स वाली मूवी दिखाओ, कौन कौन से आसन इस्तेमाल होते हैं।’
फिर हम कायदे से लेट कर एनल सेक्स वाली मूवी देखने लगे।
करीब घंटे भर बाद फिर गर्म हुए… पर इस बार हमने खेलने के अंदाज़ में कई आसनों से गुदामैथुन का मज़ा लिया। उसका छेद इतने बार में इतना ढीला हो गया था कि अब आराम से हम हर पोजीशन में सहवास कर सकते थे।
फिर काफी खेल चुके तो मैंने फिर उसकी चटाई शुरू की और उसे उत्तेजना के शिखर तक पहुँचा कर वापस लिंग अंदर घुसाया और जोर जोर से धक्के लगाने शुरू किये।
इतनी देर खेलने का असर पड़ा और दोनों जल्दी ही डिस्चार्ज हो गए।
फिर लेट कर फ़िल्में देखीं, कुछ कहानियाँ पढ़ीं और फिर एक एक पैग लेके वापस जुटे।
हालाँकि अब मैं स्खलित नहीं होना चाहता था क्योंकि यह एक दिन का नहीं था, अभी लगातार चार रातें झेलना था। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने उसे ही चरमोत्कर्ष तक पहुँचा दिया और खुद को बचाए रखा।
बुध की रात का काम तमाम हुआ और मैं थका हारा वापस पहुँच कर सो गया।
अगला दिन
अगले दिन वह सुबह कुछ जल्दी ही यूनिवर्सिटी चली गई, जहाँ से मैंने उसे बारह बजे पिक किया।
वहाँ से निकल कर इंजीनियरिंग कॉलेज के पास पहुँचे जहाँ हमने थोड़ा खाया पिया फिर रिंग रोड पे चलते, खुर्रम नगर चौराहे से मुड़ कर कुकरैल पिकनिक स्पॉट आ गए।
अब उसका रोज़ का मामूल था कि वह घर से वैसे ही बंद गोभी की तरह ढकी मुंदी निकलती, कहीं मौका देख कर अपने लबादे को पर्स में ठूंस लेती, नीचे जीन्स टॉप टाइप का पहनावा होता और वापसी में वह फिर से नक़ाब स्कार्फ मढ़ लेती और जैसी घर से निकलती थी वैसे ही घर पहुँचती।
यह इलाका भी प्रेमी जोड़ों के लिए काफी मुफीद था और यहाँ हर तरह के करम हो जाते थे।
बहरहाल, हमें तो वैसे भी अपने कर्मों के लिए सुविधा उपलब्ध थी इसलिए हमने इधर उधर लेटे बैठे वक़्त गुज़ारा और इधर उधर की बातें करते न सिर्फ चूमाचाटी की, बल्कि मौका देख कर उसने लिंग चूषण भी किया, जबकि मैंने उसके मम्मों का मर्दन चूषण किया और उसके दोनों छेदों में उंगली भी खूब की, जिससे उसका वहाँ भी पानी छूट गया था।
उसे पीछे के छेद में दर्द था और हल्की सूजन भी महसूस हो रही थी इसलिए उसके दर्द और सूजन की दवा हमने इंजीनियरिंग कॉलेज के पास से ही ले ली थी जिसकी वजह से अब उसे दर्द से तो राहत थी।
आज उसे पांच बजे ही रिहा कर दिया, वह घर निकल गई और मैं अपने कुछ दोस्तों साथियों के पास, जहाँ मुझे इतना वक़्त लग गया कि मैं गौसिया के पास दस के बजाय साढ़े दस बजे पहुंचा।
‘कहाँ अटक गए थे?’ उसने थोड़ी नाराज़गी भरे स्वर में कहा।
‘थोड़ा मसाज आयल का जुगाड़ कर रहा था।’
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09-11-2018, 11:43 AM,
#43
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
‘मसाज आयल! वह किसलिए?’
‘आज तुम मसाज का मज़ा लोगी। बेड पर कोई साफ़ पुरानी चादर डाल लो।’ मैंने उसे मसाज आयल की शीशी दिखते हुए कहा।
फिर महफ़िल सजी… रात रंगीन हुई।
हमने सिगरेट पी- एक एक पैग लगाया और फिर वह नंगी होकर लेट गई।
कपड़े मैंने भी उतार दिए थे ताकि तेल न लगे।
फिर उसके होंठों पर एक जोरदार चुम्मी के साथ मैंने उसे औंधा लिटाया और उसकी पीठ से मालिश शुरू की।
अपनी उँगलियों को सख्त नरम करते हुए उसकी रीढ़, कॉलर बोन, शोल्डर और हाथ के पक्खों को मसलता रहा, फिर कमर पर थोड़ी सख्त मालिश की और कमर से नीचे मखमली नितम्बों को तो ऐसे भींच भींच कर मसला कि उसकी योनि गीली हो गई।
दोनों कूल्हों को फैला कर छेद को अच्छे से तेल से भिगाया, मसला और उंगली को अंदर बाहर करते छेद की भी मालिश की।
वहाँ दवा की वजह से अब दर्द तो नहीं था मगर हल्की सूजन अब भी थी लेकिन जिस्म की गर्माहट और उत्तेजना उसे आगे के लिए तैयार कर देने वाली थी।
फिर वहाँ की अच्छे से सेवा हो गई तो उसकी भरी भरी जांघों और मांसल पिंडलियों को अच्छे से मसाज किया।
इसके बाद उसे सीधा करके लिटा दिया और थोड़ी सी मालिश गर्दन और कन्धों की करने के बाद ढेर सा तेल उसके गर्म होकर तन गए वक्षों पर लगा दिया और उन्हें ऐसे मसलने लगा जैसे आटा गूंध रहा होऊँ।
वह दांतों से होंठ कुचलती, बड़े प्यार भरे अंदाज़ में मुझे देखती ‘सी-सी’ कर रही थी।
उसने अपने हाथ उसने मोड़ कर सर की तरफ डाल लिए थे।
मैं अपने घुटनों के सहारे उसके पेट पर बैठा उसके स्तनों का भरपूर मर्दन कर रहा था।
जब दोनों मम्मों की अच्छे से मालिश हो गई और दोनों चोटियाँ नुकीली होकर तन गईं तो नीचे उसकी जांघों पर आकर मैं उसके पेट की मालिश करने लगा।
अब उसने अपने हाथ नीचे कर लिए थे और खुद से अपने वक्षों को दबाने सहलाने लगी थी।
मैंने अपने मालिश करते हाथ नीचे उतारे और उदर की ढलान पर एक लकीर के रूप में दिख रही योनि की फांकों को खोल कर देखा। वह गीली होकर बहने लगी थी।
उसके ऊपर से हट कर मैं उसकी टांगों के बीच आ गया और उसके पांव घुटनों से मोड़ कर फैला दिए, फिर थोड़ा तेल लगा कर योनि के ऊपरी हिस्से को रगड़ने लगा, उसकी गहरे रंग की कलिकाओं को खोल कर उन्हें मसलने लगा।
मैं ऊपर से नीचे तक पूरी योनि के आसपास मालिश करने लगा और सबसे अंत में तेल में डूबी उँगलियों से उसके दाने को मसलने लगा।
वह थोड़ी देर ‘आह-उफ़… सी सी’ करती बड़बड़ाती रही फिर जब लगा कि उसका पानी ही छूट जायेगा तो उसने एकदम से अपने पांव समेट कर मुझे धकेल दिया।
मैं बिस्तर पर लुढ़क गया और वह बैठ कर हंसने लगी।
‘डिस्चार्ज होने वाली थी मैं, अच्छा अब तुम लेटो, मैं तुम्हारी मसाज करती हूँ।’ उसने अपनी पोजीशन दुरुस्त करते हुए कहा।
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09-11-2018, 11:43 AM,
#44
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
मैं आज्ञाकारी बच्चे की तरह औंधा लेट गया।
उसने तेल लेकर मेरी पूरी पीठ गर्दन पर फैला दिया और पहले अपने नरम नरम हाथों से मेरी पीठ रगड़ती रही फिर मेरी गर्दन चूमते हुए… मेरे पेट के दोनों तरफ फैले अपने घुटनों पर भार रखते हुए, मेरी पीठ पर इस तरह झुक गई कि उसके मम्मे पीठ से रगड़ने लगे।
अब वह अपने तेल से चिकनाए वक्षों को सख्ती से मेरी पूरी पीठ पर रगड़ने लगी।
यह नरम नरम छुअन मेरे लिंग को कड़ा करने लगी।
वह अपने वक्षों को रगड़ती नीचे जाती, ऊपर आती, दाएं जाती, बाएं जाती और ऐसी ही अवस्था में नीचे खिसकते हुए मेरे घुटनों तक पहुँच गई और अपने वक्षों से ही मेरे कूल्हों को रगड़ने मसलने लगी।
फिर दोनों हाथों से मुट्ठियों में मेरे चूतड़ों को मसलती रगड़ती मेरे जुड़े हुए पैरों पर घुटनों के पीछे अपने पेट के निचले सिरे, यानि उस हिस्से को जहाँ उसकी गीली होकर बह रही योनि थी और तेल से नहाया गुदाद्वार था, रगड़ने लगी।
वहाँ से उठती भाप जैसे मैं अपने पैरों पर महसूस कर सकता था।
दोनों कूल्हों को मसलती कहीं वह उन्हें एक दूसरे से मिला देती तो कहीं एकदूसरे के समानांतर फैला देती और यूँ मेरे गुदाद्वार को अपने सामने नुमाया कर लेती।
फिर उसने वहाँ भी तेल टपकाया और मेरे छेद को उंगली से सहलाने लगी।
मेरे दिमाग पर नशा सा छा रहा था।
भले मैं ‘गे’ नहीं था लेकिन यह ऐसी संवेदनशील जगह थी जहाँ इस तरह की छुअन आपको उत्तेजित ही कर देती है, भले करने वाला पुरुष हो या औरत।
और जैसा कि मैं उम्मीद कर रहा था उसने सहलाते सहलाते अपनी उंगली अंदर उतार दी।
मुझे भी वैसा ही मज़ा आया जैसा उसने महसूस किया होगा और मेरी भी ‘आह’ छूट गई जिसे सुन कर वह हंसने लगी- क्या तुम्हें भी मज़ा आता है यहाँ?
उसने शरारत भरे अंदाज़ में पूछा।
‘किसे नहीं आता? मगर मर्द के दिमाग में बचपन से यह बात पारम्परिक मान्यता की तरह ठूंस दी जाती है कि यह गलत है और मर्द होकर मर्द से करना तो बिल्कुल गलत है इसलिए सामान्य मर्द इस हिस्से के मज़े से बेहिस बने रहते हैं, जो इस वर्जना को तोड़ देते हैं वह भले मज़ा हासिल करने में कामयाब रहते हो लेकिन ‘गे’ के रूप में समाज में अपमानित भी होते हैं।’
फिर वह बड़ी लगन और दिलचस्पी से उंगली अंदर बाहर करने में लग गई और मैं आँखें बंद करके उस मज़े पर कन्सन्ट्रेट करने लगा जो मुझे अपने जिस्म के उस हिस्से से मिल रहा था जो मेरे संस्कारों के हिसाब से इस क्रिया के लिये वर्जित था।
फिर उसने उंगली हटा ली और मेरे कूल्हों को छोड़ कर परे हटी और मुझे पलट कर सीधा कर लिया।
अब वह अपनी दोनों टांगें मेरे इधर उधर रखे मेरे पेट पर बैठ गई… उसकी गर्म, रस और भाप छोड़ती योनि और तेल से चिकना हुआ गुदाद्वार मेरे पेट से रगड़ता उसे गीला करने लगा और वह मेरे कन्धों और सीने की मालिश करने लगी।
इस घड़ी उसके चेहरे पर शरारत थी और आँखों में मस्ती…
मसाज करते करते वह पीछे खिसकी और वहाँ पहुँच गई जहाँ लकड़ी की तरह तना मेरा लिंग मौजूद था जो अब उसकी दरार की गर्माहट को अपने ऊपर महसूस कर रहा था।
फिर गौसिया मेरे सीने पे ऐसे झुकी कि उसके दूध मेरे पेट के ऊपरी हिस्से से रगड़ खाने लगे और उसने जीभ निकाल कर मेरे छोटे से निप्पल को चाटा, मेरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई।
वह हंस पड़ी।
‘मतलब आदमी को भी वही संवेदनाएं होती हैं।’
‘कुछ हद तक… वैसी सहरंगेज नहीं पर होती हैं।’
फिर वह अपनी ज़ुबान से मेरे दोनों तरफ के निप्पल छेड़ने चुभलाने लगी।
नीचे उसकी गीली दरार मेरे पप्पू को बुरी तरह भड़का रही थी। 
फिर उसने खुद से अपने चूतड़ों को इस तरह सेट किया कि मेरे लिंग की नोक उसके पीछे वाले छेद से सट गई और अपना एक हाथ पीछे ले जा कर वह लिंग को पकड़ कर अंदर घुसाने की कोशिश करने लगी।
अगर यह कोशिश शुरू में की होती तो अंदर होने में थोड़ी मुश्किल आती भी लेकिन अब तक तो हम कामोत्तेजना से ऐसे तप चुके थे कि मेरा लिंग लकड़ी बन चुका था और उसका छेद खुद से गीला होकर ढीला हो गया था।
थोड़ी कसाकसी के साथ वह गर्म गड्ढे में उतर गया। 
एक आह सी उसके मुंह से ख़ारिज हुई और उसने मेरे निप्पल से मुंह हटा लिया और कुछ ऊपर होकर मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कराने लगी।
‘इस तरह आगे पीछे होना तो ध्यान रखना कहीं आगे ही न घुस जाए।’
‘नहीं घुसने दूँगी और घुस भी गया तो देखा जायेगा।’
हम दोनों के शरीर तेल से चिकने हुए पड़े थे… वह मेरे पेट से सीने तक अपने दूध रगड़ते आगे हुई तो लिंग धीरे धीरे सरकता हुआ बाहर हो गया।
फिर उसी तरह वह वापस नीचे खिसकी और यह चाहा कि लिंग खुद छेद में घुस जाए लेकिन इस तरह योनि में तो घुस सकता है मगर गुदा में नहीं।
उसे फिर हाथ की मदद लेनी पड़ी।
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09-11-2018, 11:43 AM,
#45
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
वह बार बार ऐसे ही मेरे फ्रंट से अपना फ्रंट रगड़ती आगे पीछे होती लिंग को बाहर और हाथ के सपोर्ट से अंदर करती रही, इस तरह उसकी योनि का ऊपरी सिरा भी मेरे पेट के निचले सिरे से घर्षण का मज़ा पा रहा था और उसके आनन्द को दोगुना कर रहा था।
लेकिन यह स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं थी और जब लगा कि अब कुछ चेंज होना चाहिए तो सीधे होकर मेरे ऊपर इस तरह बैठ गई कि लिंग उसके छेद के अंदर ही रहा और अपने हाथ मेरे सीने से टिका कर अपने कूल्हों या कहो कि कमर को इस तरह राउंड घुमाने लगी जैसे बैले डांस में घुमाते हैं।
लिंग चरों तरफ मूव करते उसके छेद के साथ अंदर बाहर सरक रहा था और दोनों की उत्तेजना को अपने शिखर की तरफ ले जा रहा था।
‘मार्वलस! तुम तो सीख गई… ग़ज़ब हो यार!’ आज बड़बड़ाने की बारी मेरी थी।
कुछ झटकों के बाद वह रुक जाती और एक ही पोजीशन में बैठे बैठे ऐसे हिलती जैसे ऊँट की सवारी कर रही हो।
इस तरह लिंग तो अंदर बाहर न होता जिससे मुझे आराम था लेकिन उसकी योनि मेरे लिंग के ऊपर के तीन दिन के बालों से जो रगड़ खाती वह उसे ज़रूर मस्त कर देती।
फिर मेरे आराम के पल पूरे हुए और उसने थकन के आसार दिखाये लेकिन उठी फिर भी नहीं, बस लिंग के ऊपर बैठे बैठे इस तरह घूम गई कि लिंग एक ही पोजीशन में रहा और उस पर चढ़ा छल्ला घूम गया।
उसके सीने के बजाय अब उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई और उसने थोड़ा पीछे होते हुए मेरे सीने पर अपने पंजे टिकाये और अपने चूतड़ों को इतना ऊपर उठा लिया कि नीचे से मैं धक्के लगा सकूँ।
उसकी मनोस्थिति मैं समझ सकता था… मैंने सहारे के लिए उसके दोनों कूल्हों के नीचे अपनी हथेलियाँ लगा लीं और फिर अपनी कमर के जोर से धीरे धीरे धक्के लगाने लगा।
उसकी कामुक सीत्कारें कमरे में गूंजती तेज़ होने लगीं।
बीच में कभी इस हाथ से कभी उस हाथ से वह अपनी क्लिटरिस भी सहलाने लगती जिससे उसे चरम पर पहुँचने में देर नहीं लगी।
‘जोर जोर से करो… हार्डर हार्डर…’ वह तेज़ होती साँसों के बीच बड़बड़ाई।
मैंने धक्कों की स्पीड तेज़ कर दी और जितनी मुझमें क्षमता थी मैं तेज़ और जोर से धक्के लगाने लगा।
कमरे में ‘थप-थप’ की संगीतमय आवाज़ गूंजने लगी।
और जब वह स्खलन के जोर में अकड़ी तभी मेरे लिंग ने भी लावा छोड़ दिया और वह एकदम मेरे सीने पर फैल गई और एक हाथ से चादर तो दूसरे हाथ से मेरी बांह दबोच ली…
जबकि मैंने स्खलन के क्षणों में दोनों हाथों से उसके पेट को दबोच लिया था।
तूफ़ान गुज़र गया… दिमाग की सनसनाहट काबू में आई तो हम अलग हुए और थोड़ी देर में हम बिस्तर के सरहाने टिके साँसें नियंत्रित कर रहे थे।
‘हर दिन एक नया मज़ा… शायद यही तो चाहती थी मेरे अंदर की मिस हाइड!’ उसने खुद से एक सिगरेट सुलगा ली और कश लेकर धुआं छोड़ती हुई बोली- लेकिन एक बात कहूँ… यह ठीक है कि मैं हर रोज़ बेशर्म होती जा रही हूँ लेकिन एक डर भी दिल में समां रहा है कि कभी ये बातें लीक हो गईं तो… किसी को पता चल गया तो?’
‘कैसे?’
‘पता नहीं… मैं तो बताने से रही। शायद तुमसे… मुझसे वादा करो कि कभी तुम यह सब किसी को बताओगे नहीं।’
‘नहीं… मैं यह वादा नहीं कर सकता कि बताऊँगा नहीं, पर यह वादा कर सकता हूँ कि तुम्हारी आइडेंटिटी डिस्क्लोज नहीं करूँगा।’
‘और बताओगे किसे?’
‘कह नहीं सकता। हो सकता है न ही बताऊँ पर वादा करने की हालत में नहीं क्योंकि मैं खुद को जानता हूँ। खैर छोड़ो- अगर तुम्हारी एम एम ऍफ़ की ख्वाहिश हो तो कहो वह भी पूरी कर दूँ।’
‘मतलब?’
‘मतलब दो लड़के और एक लड़की… मतलब कोई और लड़का भी हमारे साथ?’
‘नहीं, अब मेरे अंदर की मिस हाइड इतनी बेलगाम भी नहीं हुई और वैसे भी उसका मज़ा तब आएगा जब एक आगे करे एक पीछे और यहाँ आगे कुछ होना नहीं। ऐसे नाज़ुक वक़्त में सँभलने की उम्मीद मैं तुमसे कर सकती हूँ किसी और से नहीं, चलो पैग बनाओ।’
बोतल में अब इतनी ही बची थी कि एक बड़ा पैग बन सकता।
मैंने पैग तो बनाया पर पिया अलग ढंग से… मैं घूँट लेता, थोड़ी अपने गले में उतारता और थोड़ी उसके मुंह से मुंह जोड़ कर उसमें उगल देता जिसे वह गटक जाती और दूसरा घूँट वह लेती और उसी तरह मुझे पिलाती।
साथ ही मोबाइल भी हाथ में ले लिया और कुछ मज़ेदार पोर्न देखने लगे।
थोड़ी देर बाद जब फिर गर्म हुए तो फिर तेलियाए हुए जिस्मों के साथ शुरू हो गए, खेलने वाला एक लम्बा सिलसिला फिर चला और अंत वही हुआ जो ऐसी हालत में होता है।
आज दो बार में ही उसका दम भी निकल गया और फिर मुझे वहाँ से रुखसत होना पड़ा।
अगले दिन शुक्रवार था और आज भी उसकी क्लास थी जिससे वह साढ़े बारह बजे फारिग हुई। मैंने उसे यूनिवर्सिटी से पिक किया और पहले ही साहू के पीछे जाकर पेट पूजा कर ली।
उसके बाद नरही की तरफ चले आये और बाकी का दिन चिड़ियाघर में घूमते फिरते, बकैती करते, मस्ती करते गुज़ारा और छः बजे मैंने उसे यूनिवर्सिटी के पास ही छोड़ दिया जहाँ से वह अपने रास्ते चली गई और मैं अपने रास्ते।
रात को मुझे फिर ड्रिंक और स्मोकिंग के इंतज़ाम के साथ पहुंचना पड़ा।
‘आज कुछ नया फीचर बचा हो तो वह भी अपलोड कर दो मिस हाइड की हार्ड डिस्क में।’ वह आँखें चमकाती हुई बोली।
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09-11-2018, 11:43 AM,
#46
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
‘आज हम बाथरूम सेक्स करेंगे, साथ में नहाते हुए!’
‘वॉव।’ उसने खुश होकर मुट्ठियां भींची।
पहले हमने स्मोकिंग और ड्रिंक का मज़ा लिया फिर कपड़े उतार कर वो पोर्न मसाला देखने बैठ गए जो बाथरूम सेक्स से जुड़ा था। इसके बाद जब जिस्म में हरारत पैदा होने लगी तो एक दूसरे को बिस्तर पर ही रगड़ना शुरू कर दिया और अच्छे खासे मस्त हो चुके तो बाथरूम में घुसे।
बाथरूम में लगे शीशे को हमने ऐसे एडजस्ट कर लिया कि हम खुद को अपनी हरकतों के दौरान देखते रह सकें और शावर चला दिया। आज यह तय हुआ था कि वह पीछे से सेक्स कराते कराते स्क्वर्टिंग करेगी।
फिर हमने वैसा ही किया।
जी भर के पानी में भीगते हुए मैंने उसकी योनि ही नहीं, गुदा के छेद को भी चूसा चाटा, खूब खींच खींच कर दूध पिये और खड़े बैठे ही नहीं लेटे वाले आसन में भी जी भर से उसे पीछे से फक किया।
उसने भी हर आसन को खूब एन्जॉय किया, अच्छे से लिंग चूषण किया और खूब स्क्वर्टिंग भी की… तीन बार तो मैंने छोटी छोटी फुहारें अपने मुंह में झेलीं।
साथ ही हम खुद को शीशे में देखते उत्तेजित होते रहे थे।
मुझे इस बीच टाइम का एक्सटेंशन इसलिए मिल गया था कि बार बार पानी में भीगने के कारण लिंग की गर्माहट कम हो जाती थी और मुझे यह डर नहीं रहता था कि मैं जल्दी डिस्चार्ज हो जाऊंगा।
आज उसने एक बाधा और पार की… वह भी इसलिए कि हम पानी में थे। जिस वक़्त उसका पानी निकला, मैं स्खलित होने से बच गया था और जब मैं स्खलित होने को हुआ तो उस वक़्त हम बाथरूम के टाइल पर लोट रहे थे…
मैंने मौके का फायदा उठाते हुए, झड़ने से पहले लिंग हाथ में पकड़ा और उसके चेहरे के सामने ले आया। करीब था कि मेरी मंशा समझ कर वह इंकार करके चेहरा घुमा लेती कि मेरी बेचारगी और इच्छा देख कर उम्मीद के खिलाफ उसने मुंह खोल दिया। 
मन में यह ज़रूर रहा होगा कि शावर से गिरती पानी की फुहार उसके मुंह को फ़ौरन धो देगी।
वीर्य की जो पिचकारी छूटी उसमें थोड़ी उसकी नाक, आँख और गाल पे गई मगर ज्यादातर उसके खुले मुंह में गई।
मैं आखिरी वाली छोटी पिचकारी के निकल जाने के बाद दीवार से टिक कर पड़ गया और वह मुंह बंद करके उस चीज़ के ज़ायके को महसूस करने लगी जो उसके मुंह में था।
फिर उसने ‘पुच’ करके उसे उगल दिया और फुहार के नीचे मुंह करके पानी से अंदर का मुंह धोने लगी। 
मुंह साफ़ हो गया तो उसने शावर बंद कर दिया।
थोड़ी देर बाद सामान्य हुए तो नए सिरे से तैयार होने के लिए बाहर आ गए।
‘अजीब सा टेस्ट लगा, न अच्छा न बुरा!’
‘चार छः बार मुंह में ले लो, न अच्छा लगने लगे तो कहना।’
‘चलो ठीक है, तुम्हारी यह ख्वाहिश भी पूरी कर देती हूँ। अब से परसों तक जितनी बार भी निकालना मेरे मुंह में ही निकालना। मिस हाइड उस घिन से लड़ने और जीतने की कोशिश करेगी जो कल तक सोचने से भी आती थी।’
फिर एक बार स्मोकिंग, ड्रिंक और पोर्न का दौर चला और फिर जब हम गर्म हुए तो बाथरूम चले आये और शावर खोल कर उसके नीचे वासना का नंगा नाच नाचने लगे।
अब चूँकि मेरे दिमाग में यह था कि उसके मुंह में निकालना है तो उससे मेरा ध्यान बंट गया और आधे घंटे की धींगामुश्ती के बाद जब वह स्खलित हो कर मेरे लिंग के सामने अपना मुंह खोल कर बैठी भी तो मेरा वीर्य फ़ौरन नहीं निकला बल्कि उसे हाथ से घर्षण करते हुए निकालना पड़ा।
इस बार भी थोड़ा गाल पर तो बाकी मुंह में गया, जिसे थोड़ी देर मुंह में रख के उसने उगल दिया और पानी से मुंह साफ़ करने लगी।
अब शायद टंकी में पानी कम हो गया था जिससे टोंटी खोखियाने लगी थी और रात के इस वक़्त तो मोटर चलाई नहीं जा सकती थी जबकि सुबह फजिर में उठने पर दादा दादी को पानी चाहिए होगा।
यह सोच कर हमने अपने प्रोग्राम को वही ख़त्म किया और बाहर आ गए।
इसके बाद थोड़ी देर बिस्तर पर रगड़ घिस करते हुए चादर की मां बहन एक की और फिर वहां से निकल कर अपनी राह ली।
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09-11-2018, 11:43 AM,
#47
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
अगला दिन इस हिसाब से अंतिम दिन था कि कल रविवार था और वह यूनिवर्सिटी का बहाना नहीं कर सकती थी तो आज ही आखिरी दिन था जो हम साथ घूम सकते थे।
आज वह यूनिवर्सिटी नहीं गई बल्कि ग्यारह बजे ही मुझ तक पहुँच गई।
पहली सुरक्षित जगह पाते ही नक़ाब से छुटकारा पाया और आज हमने जितना वक़्त मिला सिर्फ सैर सपाटा किया। पूरे लखनऊ की सड़कें नापीं… मड़ियांव से लेकर सदर तक, और दुबग्गा से लेकर चिनहट तक।
दोपहर के खाने के रूप में टेढ़ी पुलिया पर मुरादाबादी बिरयानी खाई और शाम को अकबरी गेट पर टुंडे के कबाब। कोई फिल्म, माल, पार्क का रुख किये बगैर सिर्फ राइडिंग करते शाम हो गई तो वापसी की राह ली।
आज रात नए रोमांच के रूप में उसने खुद को दुल्हन के रूप में सजाया और ऐसे खुद को पेश किया जैसे आज हमारी सुहागरात हो।
उसे यह अहसास अब बुरी तरह साल रहा था कि हमारे सफर का अब अंत हो चला है। वह कुछ ग़मगीन थी और ऐसे मौके पर खुद को मेरी दुल्हन के रूप में जी लेना चाहती थी।
एक आभासी दूल्हे के रूप में मुझे दूध भी पीने को मिला और मिठाई भी खाने को मिली।
आज हमने रोशनी बंद कर दी थी- उसकी इच्छा के मुताबिक।
बस ऐसे ही बातें करते, एक दूसरे को छूते सहलाते उत्तेजित होते रहे और जब दिमाग पर सेक्स हावी हो गया तो मैंने उसके कपड़े उतार दिए।
आज वह उस तरह सहयोग नहीं कर रही थी बल्कि खुद को एक शर्मीली दुल्हन के रूप में तसव्वुर कर रही थी जो पहली बार ऐसे हालात का सामना कर रही हो।
मैंने बची हुई मिठाई उसके पूरे जिस्म पर मल दी थी और खुद कुत्ते की तरह उसे चाटने लगा था।
उसके जिस्म का कोई ऐसा हिस्सा नहीं बचा था जिसे मिठाई और मेरी जीभ के स्पर्श से वंचित रहना पड़ा हो… और जो बची भी तो उसे मैं अपने लिंग पर मल कर उसके होंठों के पास ले आया।
थोड़ी शर्माहट, नखरे और हिचकिचाहट के बाद उसने मेरे लिंग को स्वीकार किया और उसे अपने मुंह में लेकर सारी मिठाई साफ़ कर दी।
इसके बाद मैंने उसे चित लिटाए हुए ही उसकी योनि से छेड़छाड़ शुरू की और जब वह कामोत्तेजना से तपने लगी तो उसकी टांगों के बीच और कूल्हों के पास बैठते हुए मैंने बड़े आराम से पीछे के रास्ते प्रवेश पा लिया और ऐन सुहागरात के स्टाइल में उसके ऊपर लद कर उसके बूब्स मसलते, चूसते हल्के हल्के धक्के लगाने लगा।
मूल सुहागरात और इस सुहागरात में फर्क यह था कि यहाँ वेजाइनल सेक्स के बजाय एनल सेक्स हो रहा था।
धीरे धीरे दोनों चरम पर पहुँच गए तो उसने तो मुझे दबोचते हुए अपने स्खलन को अंजाम दे दिया लेकिन मैं उसके मुंह के लालच में रुका रहा और निकालने से ऐन पहले एकदम लिंग बाहर निकाल कर उसे हाथ से पकड़े गौसिया के मुंह के पास ले आया।
हालांकि स्थिति को समझते हुए उसने फ़ौरन मुंह खोल दिया था लेकिन मैं लगभग छूट चुका था इसलिए पहली फुहार गाल को छूती बिस्तर पर गई, दूसरी गाल पर और तीसरी चौथी बची खुची उसके मुंह में जा सकी।
कुछ देर उसे मुंह में रखने के बाद उसने पास रखे अपने एक कॉटन के दुपट्टे पर उगल कर उसी से अपना मुंह पोंछ लिया, दुपट्टे से ही गाल और तकिए पर गिर वीर्य भी साफ़ कर दिया।
इसके बाद फिर हम थोड़ी देर लेटे कल के विषय में बाते करते रहे और जब बुखार वापस चढ़ा तो इस बार कल की बची हुई शराब थोड़ी अपने मुंह में लेकर उसे पिलाई और बाकी उसके जिस्म पर डाल कर एक बार फिर कुत्ते की तरह चाट चाट कर साफ़ कर दी।
इस चटाई से उत्तेजित होना स्वाभाविक था और फिर मैंने उंगली से योनिभेदन करते हुए उसे फिर लगभग चरम पर पहुंचा दिया, जब वह स्खलन के करीब पहुँच गई तब उसे घोड़ी बना के पीछे से घुसा दिया और सम्भोग करने लगा।
करीब पांच मिनट के बाद वह भी स्खलित हो गई और मेरा भी निकलने वाला हो गया तो मैंने इस बार ज्यादा नियंत्रण के साथ वक़्त से पहले उसे गौसिया के मुंह तक पहुंचा दिया और इस बार बाहर कुछ नहीं गिरा।
एक तो कम माल था दूसरे फ़ोर्स भी कम था जिससे वेस्टेज नहीं हुई और कुछ देर मुंह में रखने के बाद फिर उसने मुंह साफ़ कर लिया।
आखिरी रात ऐसे ही गुज़री लेकिन उसने मुझे जाने नहीं दिया और वही रोके रखा- यह कह कर कि मैं अभी गया तो कल दिन के उजाले में आ नहीं पाऊँगा और घरवाले तो शादी, जनानी चौथी, मर्दानी चौथी सब निपटा कर कहीं रात तक पहुंचेंगे। उनके पहुँचने से पहले अँधेरा होते ही निकल लेना।
यानि मैं शनिवार रात का उसके घर घुस रविवार रात उनके घर से निकला, वहीं सोया, खाया पिया, वहीं हगा, मूता।
सुबह वह दादा दादी का नाश्ता बनाने नीचे चली गई और अपने लिए इतना ऊपर ले आई कि मेरा भी हो गया।
ऐसे ही उसने दोपहर के खाने और शाम के नाश्ते के वक़्त भी किया। साथ ही पूरे कमरे की सफाई करके उसे रूम फ्रेशनर से महका दिया और हर अवांछित चीज़ पैक करके रख दी कि जाते समय मैं लेता जाऊं।
इस बीच हमने कई बार सेक्स किया जिसे अगर हम डिस्चार्ज के हिसाब से देखें तो आठ बार वह स्खलित हुई थी और पांच बार मैं। पांच बार में मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि कदम लड़खड़ाने लगे थे।
अब कोई जवान लौंडा तो था नहीं।
सबसे आखिरी बार में उसने मेरी वह इच्छा पूरी की थी जो इससे पहले कभी नहीं पूरी हुई थी और बकौल उसके यह मेरी सेवाओं का इनाम था जो उसने मुझे दिया था।
उसने मुंह से मुझे स्खलित कराया था और इस हालत में जो वीर्य निकला था वह बिना किसी झिझक उसने अपने गले में उतार लिया था और ऐसा करते वक़्त उसने मुझे जिन निगाहों से देखा था वह मुझे आने वाली पूरी ज़िन्दगी याद रहेंगी।
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09-11-2018, 11:43 AM,
#48
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
और रात के आठ बजे मैंने उसका घर छोड़ दिया था, उसने अपनी तड़प अपने गले में घोंट ली थी, बरसती आँखों को मुझसे छुपाने के लिए चेहरा घुमा लिया था और आखिरी वक़्त में इतनी ताक़त भी न जुटा पाई थी कि मेरे अलविदा का जवाब दे पाती।
जिस दिन मैंने यह कहानी लिखनी शुरू की थी उससे अलग हुए तीन दिन हुए थे और आज लिखते लिखते दस दिन हो गए थे।
इस बीच उसका आते जाते कई बार मेरा आमना सामना हुआ था और मैंने एक तड़प, एक कसक उसकी आँखों में देखी थी।
मैं जानता था कि यूँ किसी से अलग होना उसकी उम्र की लड़की के लिए बेहद मुश्किल था।
मेरा क्या था, मेरे लिए यह खेल था।
ऐसा नहीं था कि मुझे तकलीफ नहीं हुई थी लेकिन उसकी तुलना में यह कुछ भी नहीं थी।
मैंने वैसा ही किया था जैसा उसने कहा था, उसका नंबर, कॉल और व्हाट्सप्प पर ब्लॉक कर दिया था।
वह सामने पड़ती तो मैं चेहरा घुमा लेता कि कहीं कुछ बोल न दे और दूर होती तो रास्ता बदल लेता।
यह ठीक था कि मुझे ऐसा करते अच्छा नहीं लगता था मगर उसके लिए यही ठीक था।
इन दस दिनों में मैंने उस दूसरी लड़की से अच्छी खासी दोस्ती कर ली थी जिसका ज़िक्र मैंने कहानी के शुरू में किया था और उसके बारे में काफी कुछ जान लिया था।
जो पहले बंद गठरी थी अब धीरे धीरे खुलने लगी थी 
गौसिया से अलग होने की तकलीफ मैंने उसमें दिलचस्पी लेकर ही कम की थी।
पहले आते जाते हाय हैलो होती थी और फिर एक दिन मोहल्ले से निकल कर फैज़ाबाद रोड पर बस पकड़ने के लिए खड़ी थी कि मैं आ टकराया था और उसका नम्बर ले लिया था जिससे थोड़ी बहुत बात फोन पर भी हो जाती थी।
उसने पूछा था मुझसे- क्यों दिलचस्पी है मुझमें?
और मैंने कहा था- क्योंकि तुम मेरे जैसी एक आम लड़की हो, एकदम आर्डिनरी… कोई खास चीज़ नहीं। न शक्ल सूरत, न फिगर और न ही वह उत्साह उमंगों से भरी उम्र। बस यही कारण है मेरे तुममें दिलचस्पी लेने का!
दो टूक सच किसे नहीं चुभता… उसके चेहरे पर भी नागवारी के भाव आकर चले गए थे।
पर वो कम उम्र की कोई नवयौवना नहीं थी बल्कि तीस पर की एक युवती थी जिसे अब तक सच का सामना करने की आदत पड़ चुकी होनी चाहिए थी। 
उसने दो दिन बात नहीं की और तीसरे दिन शाम की छुट्टी के बाद मेरे साथ बजाय घर के कहीं चलने की इच्छा प्रकट की।
मैं पूरी शराफत से उसे उसी ओर के एक पार्क में ले आया जिधर उसका मोहल्ला था।
यहाँ उसके मोहल्ले का मैं कोई ज़िक्र नहीं करूँगा क्योंकि उसकी जो कहानी है वो उसकी आइडेंटिटी स्पष्ट कर देगी जो मुझे स्वीकार नहीं।
बस यूँ समझिये कि वह सिटी बस से निशातगंज आती जाती थी।
बहरहाल अकेले में पहुंचे तो उसने यही कहा- खुद को समझते क्या हो?
‘वही जो तुम हो… भीड़ में शामिल एक आम सा इंसान, जिसकी कोई खास पहचान नहीं। जो ऐसा हैंडसम नहीं कि उस पर लड़कियां मर मिटें और इतना सक्षम भी नहीं कि फिज़िकली हर लड़की या औरत को संतुष्ट कर सके।’
‘खुद से मेरी तुलना किस आधार पर की… सेहत में अच्छे हो, शक्ल में कोई हीरो जैसे न सही लेकिन बुरे भी नहीं और उम्र कुछ भी हो लगते तो तीस के नीचे ही हो।’
‘तो?’
‘तो मैं क्या हूँ… यह सांवला रंग, यह मोटी सी नाक और मोठे होंठ वाला बुरा सा चेहरा… ये पेट वाली बत्तीस इंच की कमर और ये चार फुट से थोड़ी ज्यादा लंबाई। मैं तुम्हारी तरह आम नहीं एक बुरी सी लड़की हूँ।’
‘तुम्हें लगता होगा पर शायद मेरी नज़र में तुम बुरी सी नहीं, आम सी ही लड़की हो।’
‘और कुंवारा आदमी चालीस का हो तो तीस का लगता है लेकिन मेरे जैसी कोई लड़की कुंवारी हो तो तीस की होने पर भी पैंतीस की लगती है।’
‘शायद ऐसा हो, पर कहना क्या चाहती हो?’
‘यही कि एक बुरी सी लड़की में जो शक्ल या जिस्म से अच्छी नहीं, जिसकी खेलने की उम्र निकल चुकी हो उसमें दिलचस्पी क्यों? इश्क़ तो होगा नहीं।’
‘नहीं… मैं उम्र के उस दौर को बहुत पीछे छोड़ चुका हूँ जहाँ इश्क़ हुआ करता है।’
‘फिर… सेक्स करना चाहते हो?’
‘नहीं… वैसे मैं ऑप्शन लेस बंदा नहीं कि इस वजह से तुमसे दोस्ती करूँ।’
‘फिर- आखिर मैं समझ नहीं पा रही कि दुनिया भर की खूबसूरत लड़कियां पड़ी हैं लखनऊ में लेकिन तुम्हें मुझमें ऐसा क्या नज़र आया जो मुझ पर अपना वक़्त खपा रहे हो। चलो मुझसे पूछो कि मेरी दिलचस्पी क्या है जो मैंने तुम्हें लिफ्ट दी।’
‘चलो बताओ- क्यों दी लिफ्ट?’
‘क्योंकि मैं कुंठित हूँ… फ्रस्टेट हूँ… मैं शक्ल सूरत से अच्छी नहीं कि कोई मुझसे प्यार करे और न रूपये पैसे से मज़बूत कि कोई मुझे ब्याहे और न कम उम्र की कोई जवान और सेक्सी लड़की कि मुझसे सेक्स करने के इच्छुक लोगों की लाइन लगी हो।’
मैं सरापा सवाल बना उसे देखता रहा। 
‘पर मेरे शरीर में भी इच्छाएं पैदा होती हैं। मुझे भी रातों को नींद नहीं आती और बिस्तर पर सुलगते हुए रात गुज़रती है। मेरे पास क्या विकल्प है?’
‘तुम्हारे हिसाब से वो विकल्प तुम्हें मुझमें दिखा?’
कुछ बोलने के बजाय वह ख़ामोशी से मुझे देखती रही। 
‘नहीं… मैं ज़िन्दगी का दर्शन तुमसे कहीं बेहतर समझता हूँ। तुम एक ऐसी ज़िंदगी गुज़ार रही हो जो तुम्हें मंज़ूर नहीं लेकिन विकल्पहीनता की वजह से इसे अपनाये हुए हो।
तुम्हारी उम्र हो गई और तुम एक स्वीकार्य सेक्स पार्टनर न पा सकी, यह तुम्हारे अंदर कुंठा की मुख्य वजह है। ज़ाहिर है कि अगर कोई समाज को स्वीकार्य सेक्स पार्टनर तुम्हारे पास होता तो तुम ऐसी न होती। पर इसके लिए तुमने मुझे लिफ्ट नहीं दी।’
‘फिर?’
‘क्योंकि जो ज़िन्दगी तुम गुज़र रही हो वो तुम्हारी पसंद नहीं मज़बूरी है। तुम्हारे अंदर भी सारी तकलीफें सारी परेशानियां किसी से कह देने की ख्वाहिश होती है पर शायद कोई है नहीं और मैं शायद तुम्हें इस रूप में फिट दिखा होऊँ।’
‘ओके, चलो मैं स्वीकार करती हूँ कि वाकई ऐसा है और मैं अपना पहला सच स्वीकार करती हूँ कि मैं एक रंडी हूँ।’ कहते वक़्त उसकी आँखें मुझ पर ऐसे टिकी थीं जैसे मेरे रिएक्शन को गौर से पढ़ना चाहती हो।
मैं हंस पड़ा- ऐसा होता तो तुम इतने गौर से मेरे एक्सप्रेशन को पढ़ने की कोशिश न करती कि तुम्हारी बात ने मुझ पर क्या असर डाला बल्कि कहते वक़्त आवाज़ में अपराधबोध की भावना होती।
इस बार वह मुस्कराई और मैंने साफ़ महसूस किया कि उसकी आँखें भीग गई थीं।
मैं बस चुपचाप उसे देखता रहा, उन निगाहों से जैसे कह रहा होऊँ कि तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो।
इस बार वह बड़ी देर बाद बोली- शायद बहुत तजुर्बेकार हो, मैंने जो खुद में छुपाया हुआ है उसे मेरी आँखों और हावभाव से पढ़ लेते हो। मेरे साथ सोना चाहते हो?’
‘शायद ही किसी पल मुझमें ये ख्वाहिश पैदा हुई हो। मेरी नज़र में सेक्स लिंग और योनि के घर्षण से इतर भी कोई चीज़ है। मैं वह मज़ा चूमकर, छूकर, सहलाते हुए और यहाँ तक बात करते हुए भी महसूस कर सकता हूँ।
तुम मेरी इच्छा की फ़िक्र मत करो… मैं तुम्हारे अंदर की उस लड़की को बाहर निकालना चाहता हूँ जो अंदर ही अंदर घुट रही है।
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09-11-2018, 11:44 AM,
#49
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
शायद इससे मुझे कुछ न हासिल हो मगर तुम अपने को बेहद हल्का महसूस करोगी।’
‘तुम्हें लगता है कि मैं तुम पर इस हद तक भरोसा कर पाऊँगी?’
‘कोशिश करो… अच्छा चलो अपने बचपन के बारे में कुछ बताओ।’
वह फिर काफी देर तक मुझे गौर से देखती समझने की कोशिश करती रही लेकिन अंततः उसे बोलना पड़ा।
अपने बचपन से जुडी कई बातें उसने बताईं और मैं बड़ी तवज्जो से उन्हें सुनता रहा। किसी मोड़ पर उसे ये अहसास नहीं होने दिया कि मेरी दिलचस्पी उसकी बातों में नहीं।
ऐसे ही एक घंटा गुज़र गया और वह वहाँ से चली गई। 
फिर फोन पे ऐसे ही मैं उसे छेड़ कर कुरेदता रहा और वह कुछ न कुछ बताती रही… बीच में तीन बार शाम में छुट्टी के बाद वह मेरे साथ घंटे भर के लिए घूमी भी और मैं उसे बोलने पर मजबूर करता रहा। 
मैं अपनी बातें बहुत कम ही कहता था मगर उसकी हर बात बड़ी गौर से सुनता था और रियेक्ट भी करता रहता था जिससे उसे लगे कि मैं उसकी बातों में वाकई इंटरेस्टेड हूँ।
और फिर उससे दोस्ती के एक महीने बाद उसने मेरे लिये छुट्टी की।
वह अपने अंदर का सारा उद्गार निकाल फेंकना चाहती थी इसलिए किसी ऐसी जगह जाना चाहती थी जहाँ हम सुबह से शाम तक रह सकें।
मैं उसे टीले वाली मस्जिद के साथ वाली रोड से होता कुड़िया घाट ले आया जहाँ हम जैसे एकाकी पसंद लोगों के लिए काफी स्पेस उपलब्ध था। 
हम दिन भर यहीं रहे… दोपहर में भूख लगी तो वहाँ से निकल के खदरे पहुंचे और थोड़ा खा पीकर वापस वहीं पहुंच गए और शाम तक वहीं रहे।
इस बीच उसने अपनी हज़ारों बातें बताई।
कहीं कुछ छूटा नहीं… एक-एक छोटी बड़ी बात, बचपन से लेकर जवानी और जवानी से लेकर अब तक!
कभी किसी बात को बताते बच्चों की तरह खुश हो जाती, तो कभी आंखें भीग जातीं, कहीं एकदम गुस्से में आ कर मुट्ठियां भींचने लगती तो कहीं एकदम उत्तेजित हो जाती।
मैं उसकी हर बात उतनी ही गौर से सुनता रहा जितना वो अपेक्षा कर रही थी। 
और अंत में उसके अंदर का सारा लावा निकल चुका तो मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उसकी आइडेंडिटी हाइड कर दी जाए तो उसकी कहानी ऐसी थी जो इस मंच पर आप लोगों से साझा की जा सकती है। 
मैंने वही कोशिश की है… कहानी में रोमांच पैदा करने के लिए मैंने रचनात्मक छूट अवश्य ली है लेकिन कहानी के सार-सत्व से कोई छेड़छाड़ नहीं की।
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09-11-2018, 11:44 AM,
#50
RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
मूलतः मैं उसके बचपन या जवानी में नहीं जाऊँगा बल्कि उसकी कहानी वहाँ से शुरू करूंगा जहाँ से उसका नैतिक पतन हुआ।
नैतिक पतन मेरे हिसाब से एक बेहूदा और अव्यवहारिक शब्द है जो किसी के चरित्र को डिफाइन नहीं करता, पर चूंकि सामाजिक परिपेक्ष्य में प्रचलन में है तो इसी शब्द का इस्तेमाल करना पड़ेगा।
वह इस वक़्त बत्तीस की वय की थी और ये नैतिक पतन अब से दो साल पहले हुआ था जब उसने सारे संस्कार, सामाजिक मूल्य और नैतिकता के ओढ़ने बिछौने उठा कर ताक पर रख दिए थे और अपनी शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया था।
वह लखनऊ के एक पुराने मोहल्ले में पुश्तों से आबाद थी जिसके कारण एक बड़ा सा घर विरासत में मिला हुआ था।
बाप अमीनाबाद की एक कपड़ों की दुकान पर मुनीम थे और जब तक जिन्दा थे, घर के हालात ठीक ही थे।
उसकी मां को गुज़रे पांच साल हो चुके थे… घर में उसके सिवा पिताजी, एक मानसिक विकलांग चाचा, उसकी छोटी बहनें रानो, आकृति और एक छोटा भाई बबलू था।
दो साल पहले बाबा एक हादसे का शिकार होकर चल बसे थे और अब वे भाई बहन ही एक दूसरे का सहारा थे। 
पीढ़ियों से वहीं रहते आये थे इसलिए सबसे जान-पहचान भी थी और वक़्त ज़रूरत सभी साथ और सहारे के लिये उपलब्ध भी थे लेकिन कोई माँ बाप की जगह की पूर्ति कर सकता है क्या?
वह रंग में सांवली थी, शरीर में भी कम लंबाई और थोड़े भरे शरीर की थी, पढ़ाई भी सिर्फ बारहवीं तक की थी… ऐसे ही उससे पांच साल छोटी रानो भी साधारण शक्ल-सूरत, और हल्की रंगत की बेहद दुबली पतली लड़की थी।
लाख कोशिश करके भी पहले उसके माँ-बाप और बाद में उसके बाबा उन दोनों बहनों की शादी न करा पाए थे तो मोहल्ले वाले इस सिलसिले में भला क्या कर पाते। 
पर जिसकी शादी नहीं होती, उसमें क्या उमंगें नहीं होतीं, जवानी के तूफ़ान उन्हें बिना छुए गुज़र जाते हैं, उनके शरीर में वह ऊर्जा नहीं पैदा होती जो एक सम्भोग की डिमांड करती है… और ऐसे में सिवा घुटने के, कुढ़ने के उनके पास विकल्प ही क्या होते हैं। 
मर्यादा, सामाजिक मूल्य, संस्कार और परिवार का सम्मान… ये वो वेदियां हैं जिनपे किसी ऐसी विकल्पहीन स्त्री की शारीरिक इच्छाओं की बलि ली जाती है।
यह बलि वह भी देती आ रही थी। 
शरीर में सहवास से शांत हो सकने वाली ऊर्जा तो सोलहवें सावन से ही शुरू हो गई थी लेकिन इन्हीं मूल्यों को ढोते-ढोते वह चौदह और साल गुज़ार लाई थी और अब तो उसमें इन मर्यादाओं के विरुद्ध लड़ जाने की इच्छा भी बलवती होने लगी थी।
रानो से तीन साल छोटा बबलू और उससे दो साल छोटी आकृति उन दोनों बहनों से अलग गोरे चिट्टे और खूबसूरत थे।
उसने बहुत पहले कई बार माँ-बाबा को किसी ऐसी बात पे कलह करते देखा था जिससे उसने अंदाज़ा लगाया था कि दोनों शायद उसकी माँ के बच्चे तो थे लेकिन उनका पिता कोई और था।
सच्चाई कुछ भी हो पर उनके लिये तो वह माँ-जाया भाई बहन ही थे। 
रानो भले उससे पांच साल छोटी थी लेकिन वही उसकी सबसे करीबी सहेली थी।
आखिर दोनों एक ही कश्ती की सवार थी।
दोनों की पीड़ा साझा थी… तो ऐसी हालात में उनका एकदूसरे के दुखदर्द का साथी बन जाना कौन सा बड़ी बात थी। 
बबलू बीबीए के अंतिम सेमेस्टर में था और आकृति बीटेक कर रही थी।
उन दोनों की शादी के लिए जो धन संचित करके रखा गया था, अब ऐसी कोई उम्मीद न देख दोनों बड़ी बहनों ने वह धन दोनों छोटे भाई बहन की पढाई के लिए लगाने का फैसला किया था।
हालांकि रोज़ की गुज़र बसर के लिए बाबा के मरने के बाद से ही शीला ने एक दुकान पर नौकरी कर ली थी, रानो रंजना के घर बाकायदा ट्यूशन क्लास चलाती थी जहाँ कई छोटे बच्चे रानो और रंजना से पढ़ते थे। 
रंजना उन चौधरी साहब की एक पैर से विकलांग बेटी थी जिनके घर से उन लोगों के पारिवारिक सम्बन्ध थे और बाबा के गुजरने के बाद अब कभी ऐसी गार्जियन की ज़रूरत होती थी तो यह भूमिका वही चाचा-चाची निभाते थे। 
उनके परिवार में रानो की हमउम्र विकलांग बेटी के सिवा उससे सात साल छोटा बेटा सोनू था जो बीए की पढ़ाई कर रहा था।
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