Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
06-25-2017, 12:35 PM,
#1
Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट--1

मैं स्मृति हूँ. 26 साल की एक शादीशुदा महिला. गोरा रंग और

खूबसूरत नाक नक्श. कोई भी एक बार मुझे देख लेता तो बस मुझे

पाने के लिए तड़प उठता था. मेरी फिगर अभी 34(ल)-28-38. मेरा

बहुत सेक्सी

है. मेरी शादी पंकज से 6 साल पहले हुई थी. पंकज एक आयिल

रेफाइनरी मे काफ़ी

अच्च्ची पोज़िशन पर कम करता है. पंकज निहायत ही हॅंडसम और

काफ़ी अच्छे

स्वाभाव का आदमी है. वो मुझे बहुत ही प्यार करता है. मगर मेरी

किस्मेत मे सिर्फ़ एक आदमी का प्यार नही लिखा हुआ था. मैं आज दो

बच्चो की मा हूँ मगर उनमे से किसका बाप है मुझे नही मालूम.

खून तो शायद उन्ही की फॅमिली का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ

या

नही इसमे संदेह है. आपको ज़्यादा बोर नही करके मैं आपको पूरी

कहानी

सुनाती हूँ. कैसे एक सीधी साधी लड़की जो अपनी पढ़ाई ख़तम

करके

किसी कंपनी मे

सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सेक्स मशीन मे तब्दील

हो गयी. शादी

से पहले मैने किसी से जिस्मानी ताल्लुक़ात नही रखे थे. मैने अपने

सेक्सी बदन को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर

रखा था. एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कोमार्य

सुरक्षित रख पाना अपने आप मे बड़ा ही मुश्किल का काम था. लेकिन

मैने इसे संभव कर दिखाया था. मैने अपना कौमार्या अपने पति को

ही समर्पित किया था. लेकिन एक बार मेरी योनि का बंद द्वार पति के

लिंग से खुल जाने के बाद तो पता नही कितने ही लिंग धड़ाधड़ घुसते

चले गये. मैं कई मर्दों के साथ हुमबईस्तर हो चुकी थी. कई

लोगों

ने तरह तरह से मुझसे संभोग किया……………

मैं एक खूबसूरत लड़की थी जो एक मीडियम क्लास फॅमिली को बिलॉंग

करती थी. पढ़ाई ख़तम होने के बाद मैने शॉर्ट हॅंड आंड ऑफीस

सेक्रेटरी का कोर्स किया. कंप्लीट होने पर मैने कई जगह अप्लाइ

किया. एक कंपनी सुदर्शन इंडस्ट्रीस से पी ए के लिए कॉल आया.

इंटरव्यू मे सेलेक्षन हो गया. मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर. खुशी

राम की पीए के पोस्ट के लिए सेलेक्ट किया गया. मैं बहुत खुश हुई.

घर

की हालत थोड़ी नाज़ुक थी. मेरी तनख़्वाह ग्रहस्थी मे काफ़ी मदद करने

लगी.

मैं काम मन लगा कर करने लगी मगर खुशी राम जी की नियत अच्छि

नही

थी. खुशिरामजी देखने मे किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे.

उनके पूरे चेहरे

पर चेचक के निशान उनके व्य्क्तित्व को और बुरा बनाते थे. जब वो

बोलते तो उनके होंठों के दोनो किनारों से लार निकलती थी. मुझे

उसकी

शक्ल से ही नफ़रत थी. मगर

क्या करती मजबूरी मे उन्हे झेलना पड़ रहा था.

मैं ऑफीस मे सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार

गुजरने

लगा. लंबी आस्तीनो वाले ढीले ढले कमीज़ से उन्हे मेरे बदन की

झलक नही मिलती थी और ना ही मेरे बदन के तीखे कटाव ढंग से

उभरते.

"यहाँ तुम्हे स्कर्ट और ब्लाउस पहनना होगा. ये यहाँ के पीए का ड्रेस

कोड

है." उन्हों ने मुझे दूसरे दिन ही कहा. मैने उन्हे कोई जवाब नही

दिया. उन्हों ने शाम तक एक टेलर को वही ऑफीस मे बुला कर मेरे

ड्रेस का ऑर्डर दे दिया. ब्लाउस का गला काफ़ी डीप रखवाया और स्कर्ट

बस इतनी लंबी की मेरी आधी जाँघ ही ढक पाए.

दो दिन मे मेरा ड्रेस तैयार हो कर आगेया. मुझे शुरू मे कुच्छ दिन

तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने मे बहुत शर्म आती

थी. मगर धीरे धीरे मुझे लोगों की नज़रों को सहने की हिम्मत

बनानी पड़ी. ड्रेस तो इतनी छ्होटी थी कि अगर मैं किसी कारण झुकती

तो सामने वाले को मेरे ब्रा मे क़ैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी

पॅंटी के नज़ारे के दर्शन करवाती.

मैं घर से सलवार कमीज़ मे आती और ऑफीस आकर अपना ड्रेस चेंज

करके अफीशियल स्कर्ट ब्लाउस पहन लेती. घर के लोग या मोहल्ले वाले

अगर मुझे उस ड्रेस मे देख लेते तो मेरा उसी मुहूर्त से घर से

निकलना ही बंद कर दिया जाता. लेकिन मेरे पेरेंट्स बॅक्वर्ड ख़यालो

के

भी नही थे. उन्हों ने कभी मुझसे मेरे पर्सनल लाइफ के बारे मे

कुच्छ भी पूछ ताछ नही की थी.

एक दिन खुशी राम ने अपने कॅबिन मे मुझे बुला कर इधर उधर की

काफ़ी

बातें

की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा. मैं कुच्छ डिसबॅलेन्स हुई तो

उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उसने मेरे होंठों को अपने

होंठों से च्छू लिए. उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी.

मैं एक दम घबरा गयी. समझ मे ही नही आया कि ऐसे हालत का

सामना

किस तरह से करूँ. उनके हाथ मेरे दोनो चूचियो को ब्लाउस के उपर

से मसल्ने के बाद स्कर्ट के नीचे पॅंटी के उपर फिरने लगे. मई

उनसे

अलग होने के लिए कसमसा रही थी. मगर उन्होने ने मुझे अपनी बाहों

मे बुरी तरह से जाकड़ रखा था. उनका एक हाथ एक झटके से मेरी

पॅंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया. मैने

अपने दोनो टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच दिया लेकिन

तब तक तो उनकी उंगलियाँ मेरी योनि के द्वार तक पहुँच चुकी थी.

दोनो उंगलियाँ एक मेरी योनि मे घुसने के लिए कसमसा रही थी.

मैने पूरी ताक़त लगा कर एक धक्का देकर उनसे अपने को अलग किया.

और वहाँ से भागते हुए

निकल गयी. जाते जाते उनके शब्द मेरे कानो पर पड़े.

"तुम्हे इस कंपनी मे काम करने के लिए मेरी हर इच्च्छा का ध्यान

रखना पड़ेगा."

मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची. मेरी साँसे तेज तेज

चल रही थी. मैने एक

ग्लास ठंडा पानी पिया. बेबसी से मेरी आँखों मे आँसू आ गये. नम

आँखों से मैने अपना रेसिग्नेशन लेटर टाइप किया और उसे वही पटक

कर ऑफीस से

बाहर निकल गयी. फिर दोबारा कभी उस रास्ते की ओर मैने पावं नही

रखे.

फिर से मैने कई जगह अप्लाइ किया. आख़िर एक जगह से इंटरव्यू कॉल

आया.

सेलेक्ट होने के बाद मुझे सीईओ से मिलने के लिए ले जाया गया. मुझे

उन्ही

की पीए के पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी. मैं एक बार चोट खा चुकी

थी इस लिए दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था. मैने सोच रखा था

कि

अगर मैं कहीं को जॉब करूँगी तो अपनी इच्च्छा से. किसी मजबूरी या

किसी की रखैल बन कर नही. मैने सकुचते हुए उनके

कमरे मे नॉक किया और अंदर गयी.
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06-25-2017, 12:35 PM,
#2
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
"यू आर वेलकम टू दिस फॅमिली" सामने से आवाज़ आई. मैने देखा

सामने एक३7 साल का बहुत ही खूबसूरत आदमी खड़ा था. मैं सीईओ मिस्टर.

राज शर्मा को देखती ही रह गयी. वो उठे और मेरे पास आकर हाथ

बढ़ाया लेकिन मैं बुत की तरह खड़ी रही. ये सभ्यता के खिलाफ था

मैं अपने बॉस का इस तरह से अपमान कर रही थी. लेकिन उन्हों ने बिना

कुच्छ कहे मुस्कुराते हुए मेरी हथेली को थाम लिया. मैं होश मे

आई. मैने तपाक से उनसे हाथ मिलाया. वो मेरे

हाथ को पकड़े हुए मुझे अपने सामने की चेर तक ले गये और चेर को

खींच कर मुझे बैठने के लिए कहा. जब तक वो घूम कर अपनी

सीट पर पहुँचे मैं तो उन के डीसेन्सी पर मर मिटी. इतना बड़ा आदमी

और इतना सोम्य व्यक्तित्व. मैं तो किसी ऐसे ही एंप्लायर के पास काम

करने का सपना इतने दीनो से संजोए थी.

खैर अगले दिन से मैं अपने काम मे जुट गयी. धीरे धीरे उनकी

अच्च्छाइयों से अवगत होती गयी. सारे ऑफीस के स्टाफ उन्हे दिल से

चाहते थे. मैं भला उनसे अलग कैसे रहती. मैने इस कंपनी मे

अपने

बॉस के बारे मे उनसे मिलने के पहले जो धारणा बनाई थी उसका उल्टा

ही

हुआ. यहाँ पर तो मैं खुद अपने बॉस पर मर मिटी, उनके एक एक काम

को

पूरे मन से कंप्लीट करना अपना धर्म मान लिया. मगर बॉस

था कि घास ही नही डालता था. यहा मैं सलवार कमीज़ पहन कर ही

आने लगी. मैने अपने कमीज़ के गले बड़े कार्वालिए जिससे उन्हे मेरे

दूधिया रंग के बूब्स देखें. बाकी सारे ऑफीस वालों के सामने तो

अपने बदन को चुनरी से ढके रखती थी. मगर उनके सामने जाने से

पहले अपनी छातियो पर से चुनरी हटा कर उसे जान बूझ कर टेबल

पर छ्चोड़ जाती थी. मैं जान बूझ कर उनके सामने झुक

कर काम करती थी जिससे मेरे ब्रा मे कसे हुए बूब्स उनकी आँखों के

सामने झूलते रहें. धीरे धीरे मैने महसूस किया कि उनकी नज़रों

मे भी परिवर्तन आने लगा है. आख़िर वो कोई साधु महात्मा तो थे

नही ( दोस्तो आप तो जानते है मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा कैसा बंदा हूँ

ये सब तो चिड़िया को जाल मे फाँसने के लिए एक चारा था ) और मैं थी भी

इतनी सुंदर की मुझ से दूर रहना एक नामुमकिन

काम था. मैं अक्सर उनसे सटने की कोशिश करने लगी. कभी कभी

मौका देख कर अपने बूब्स उनके बदन से च्छुआ देती

मैने ऑफीस का काम इतनी निपुणता से सम्हाल लिया था कि अब राजकुमार

जी ने काम की काफ़ी ज़िम्मेदारियाँ मुझे सोन्प दी थी. मेरे बिना वो बहुत

असहाय फील करते थे. इसलिए मैं कभी छुट्टी नही लेती थी.

धीरे धीरे हम काफ़ी ओपन हो गये. फ्री टाइम मे मैं उनके कॅबिन मे

जाकर उनसे बातें करती रहती. उनकी नज़र बातें करते हुए कभी

मेरे

चेहरे से फिसल कर नीचे जाती तो मेरे निपल्स बुलेट्स की तरह तन

कर खड़े हो जाते. मैं अपने उभारों को थोडा और तान लेती थी.

उनमे गुरूर बिल्कुल भी नही था. मैं

रोज घर से उनके लिए कुच्छ ना कुच्छ नाश्ते मे बनाकर लाती थी हम

दोनो साथ बैठ कर नाश्ता करते थे. मैं यहाँ भी कुच्छ महीने

बाद स्कर्ट ब्लाउस मे आने लगी. जिस दिन पहली बार स्कर्ट ब्लाउस मे

आई, मैने उनकी आँखो मे मेरे लिए एक प्रशंसा की चमक देखी.

मैने बात को आगे बढ़ाने की सोच ली. कई बार काम का बोझ ज़्यादा

होता तो मैं उन्हे बातों बातों मे कहती, "सर अगर आप कहें तो फाइल

आपके घर ले आती हूँ छुट्टी के दिन या ऑफीस टाइम के बाद रुक जाती

हूँ. मगर उनका जवाब दूसरों से बिल्कुल उल्टा रहता.

वो कहते "स्मृति मैं अपनी टेन्षन घर लेजाना

पसंद नही करता और चाहता हूँ की तुम भी छुट्टी के बाद अपनी

लाइफ एंजाय करो. अपने घर वालो के साथ अपने बाय्फरेंड्स के साथ

शाम एंजाय करो. क्यों कोई है क्या?" उन्हों ने मुझे छेड़ा.

"आप जैसा हॅंडसम और शरीफ लड़का जिस दिन मुझे मिल जाएगा उसे

अपना बॉय फ्रेंड बना लूँगी. आप तो कभी मेरे साथ घूमने जाते

नहीं हैं." उन्हों ने तुरंत बात का टॉपिक बदल दिया.

अब मैं अक्सर उन्हे छूने लगी. एक बार उन्हों ने सिरदर्द की शिकायत

की. मुझे कोई टॅबलेट ले कर आने को कहा.

" सर, मैं सिर दबा देती हूँ. दवाई मत लीजिए." कहकर मैं उनकी

चेर के पीछे आई और उनके सिर को अपने हाथों मे लेकर दबाने

लगी. मेरी उंगलिया उनके बलों मे घूम रही थी. मैं अपनी उंगलियों

से उनके सिर को दबाने लगी. कुच्छ ही देर मे आराम मिला तो उनकी आँखें

अपने आप मूंडने लगी. मैने उनके सिर को अपने बदन से सटा दिया.

अपने दोनो चुचियो के बीच उनके सिर को दाब कर उनके सिर को दबाने लगी.

मेरे दोनो उरोज उनके सिर के भार से दब रहे थे. उन्हों ने भी

शायद इसे महसूस किया होगा मगर कुच्छ कहा नही. मेरे दोनो उरोज सख़्त हो

गये और निपल्स तन गये. मेरे गाल शर्म से लाल हो गये थे.
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06-25-2017, 12:35 PM,
#3
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
"बस अब काकी आराम है कह कर जब उन्हों ने अपने सिर मेरी छातियो

से उठाया तो मुझे इतना बुरा लगा की कुच्छ बयान नही कर सकती. मैं

अपनी नज़रे ज़मीन पर गड़ाए उनके सामने कुर्सी पर आ बैठी.

धीरे धीरे हम बेताकल्लूफ होने लगे. अभी सिक्स मोन्थ्स ही हुए थे

कि एक दिन मुझे अपने कॅबिन मे बुला कर उन्होने एक लिफ़ाफ़ा दिया. उसमे

से लेटर निकाल कर मैने पढ़ा तो खुशी से भर उठी. मुझे

पर्मनेंट कर दिया गया था और मेरी तनख़्वाह डबल कर दी गयी

थी.

मैने उनको थॅंक्स कहा तो वो कह उठे. "सूखे सूखे थॅंक्स से काम

नही चलेगा. बेबी इसके लिए तो मुझे तुमसे कोई ट्रीट मिलनी चाहिए"

"ज़रूर सर अभी देती हूँ" मैने कहा

"क्या?" वो चौंक गये. मैने मौके को हाथ से नही जाने देना चाहती

थी. मैं

झट से उनकी गोद मे बैठ गयी और उन्हे अपनी बाहों मे भरते हुए

उनके लिप्स चूम लिए. वो इस अचानक हुए हमले से घबरा गये.

"स्मृति क्या कर रही हो. कंट्रोल युवरसेल्फ. इस तरह भावनाओं मे मत

बहो. " उन्हों ने मुझे उठाते हुए कहा "ये उचित नही है. मैं एक

शादी शुदा बाल बच्चेदार आदमी हूँ"

"क्या करूँ सर आप हो ही इतने हॅंडसम की कंट्रोल नही हो पाया." और

वहाँ से शर्मा कर भाग गयी.

जब इतना होने के बाद भी उन्हों ने कुच्छ नही कहा तो मैं उनसे और

खुलने लगी.

"राज जी एक दिन मुझे घर ले चलो ना अपने" एक दिन मैने उन्हे

बातों बातों मे कहा. अब हमारा संबंध बॉस और पीए का कम दोस्तों

जैसा अधिक हो गया था.

"क्यों घर मे आग लगाना चाहती हो?" उन्हों ने मुस्कुराते हुए पूचछा.

"कैसे?"

"अब तुम जैसी हसीन पीए को देख कर कौन भला मुझ पर शक़ नही

करेगा."

"चलो एक बात तो आपने मान ही लिया आख़िर."

"क्या?" उन्हों ने पूछा.

"कि मैं हसीन हूँ और आप मेरे हुष्ण से डरते हैं."

"वो तो है ही."

"मैं आपकी वाइफ से आपके बच्चों से एक बार मिलना चाहती हूँ."

"क्यों? क्या इरादा है?"

" ह्म्‍म्म कुच्छ ख़तरनाक भी हो सकता है." मैने अपने निचले होंठ

को दाँत से काटते हुए उठ कर उनकी गोद मे बैठ गयी. मैं जब भी बोल्ड

हो जाती थी वो घबरा उठते थे. मुझे उन्हे इस तरह सताने मे बड़ा

मज़ा आता था.

" देखो तुम मेरे लड़के से मिलो. उसे अपना बॉय फ़्रेंड बना लो. बहुत

हॅंडसम है वो. मेरा तो अब समय चला गया है तुम जैसी लड़कियों

से फ्लर्ट करने का." उन्हों ने मुझे अपने गोद से उठाते हुए कहा.

"देखो ये ऑफीस है. कुच्छ तो इसकी मर्यादा का ख्याल रखा कर. मैं

यहा तेरा बॉस हूँ. किसी ने देख लिया तो पता नही क्या सोचेगा कि

बुड्ढे की मति मारी गयी है."

इस तरह अक्सर मैं उनसे चिपकने की कोशिश करती थी मगर वो किसी

मच्चली की तरह हर बार फिसल जाते थे.

इस घटना के बाद तो हम काफ़ी खुल गये. मैं उनके साथ उल्टे सीधे

मज़ाक भी करने लगी. लेकिन मैं तो उनकी बनाई हुई लक्ष्मण रेखा

क्रॉस करना चाहती थी. मौका मिला होली को.

होली के दिन हुमारे ऑफीस मे छुट्टी थी. लेकिन फॅक्टरी बंद नही

रखा जाता था

कुच्छ ऑफीस स्टाफ को उस दिन भी आना पड़ता था. मिस्टर. राज हर होली को

अपने

स्टाफ से सुबह-सुबह होली खेलने आते थे. मैने भी होली को उनके

साथ हुड़दंग करने के प्लान बना लिया. उस दिन सुबह मैं ऑफीस

पहुँच गयी.

ऑफीस मे कोई नही था. सब बाहर एक दूसरे को गुलाल लगाते थे. मैं

लोगों की नज़र बचाकर ऑफीस के अंदर घुस गयी. अंदर होली

खेलना

अलोड नही था. मैं ऑफीस मे अंदर से दरवाजा बंद कर के

उनका इंतेज़ार करने लगी. कुच्छ ही देर मे राज की कार अंदर आई. वो

कुर्ते पायजामे मे थे. लोग उनसे गले मिलने लगे और गुलाल लगाने

लगे. मैने गुलाल निकाल कर एक प्लेट मे रख लिया बाथरूम मे जाकर

अपने बालों को खोल दिया.रेशमी जुल्फ खुल कर पीठ पर बिखर गये.

मैं एक पुरानी शर्ट और स्कर्ट पहन रखी

थी.
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06-25-2017, 12:47 PM,
#4
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
स्कर्ट काफ़ी छ्होटी थी. मैने शर्ट के बटन्स खोल कर अंदर की

ब्रा उतार दी और शर्ट को वापस पहन ली. शर्ट के उपर के दो बटन

खुले रहने दिए जिससे मेरे आधे बूब्स झलक रहे थे. शर्ट

चूचियो के उपर से कुच्छ घिसी हुई थी इसलिए मेरे निपल्स और

उनके बीच का काला घेरा सॉफ नज़र आ रहा था. उत्तेजना और डर से

मैं मार्च के मौसम मे भी पसीने पसीने हो रही थी.

मैं खिड़की से झाँक रही थी और उनके फ्री होने का इंतेज़ार करने

लगी. उन्हे क्या मालूम था मैं ऑफीस मे उनका इंतेज़ार कर रही हूँ.

वो फ्री हो कर वापस कार की तरफ बढ़ रहे थे. तो मैने उनके

मोबाइल पर रिंग किया.

"सर, मुझसे होली नही खेलेंगे."

"कहाँ हो तुम? सिम... अजाओ मैं भी तुमसे होली खेलने के लिए बेताब

हूँ" उन्हों ने चारों तरफ देखते हुए पूचछा.

"ऑफीस मे आपका इंतेज़ार कर रही हूँ"

"तो बाहर आजा ना. ऑफीस गंदा हो जायगा"

नही सबके सामने मुझे शर्म आएगी. हो जाने दो गंदा. कल रंधन

सॉफ कर देगा" मैने कहा

"अच्च्छा तो वो वाली होली खेलने का प्रोग्राम है?" उन्हों ने

मुस्कुराते हुए मोबाइल बंद किया और ऑफीस की तरफ बढ़े. मैने

लॉक खोल कर दरवाजे के पीछे छुप गयी. जैसे ही वो अंदर आए

मैं पीछे से उनसे लिपट गयी और अपने हाथों से गुलाल उनके चहरे

पर मल दिया. जब तक वो गुलाल झाड़ कर आँख खोलते मैने वापस अपनी

मुत्ठियों मे गुलाल भरा और उनके कुर्ते के अंदर हाथ डाल कर उनके

सीने मे लगा कर उनके सीने को मसल दिया. मैने उनके दोनो सीने

अपनी मुट्ठी मे भर कर किसी औरत की छातियो की तरह मसल्ने

लगी.

"ए..ए...क्या कर रही है?" वो हड़बड़ा उठे.

"बुरा ना मानो होली है." कहते हुए मैने एक मुट्ठी गुलाल पायजामे के

अंदर भी डाल दी. अंदर हाथ डालने मे एक बार झिझक लगी लेकिन फिर

सबकुच्छ सोचना बंद करके अंदर हट डाल कर उनके लिंग को मसल दिया.

"ठहर बताता हूँ." वो जब तक संभालते तब तक मैं खिल खिलाते

हुए वहाँ से भाग कर टेबल के पीछे हो गयी. उन्हों ने मुझे

पकड़ने के लिए टेबल के इधर उधर दौर लगाई. लेकिन मैं उनसे

बच गयी. लेकिन मेरा एम तो पकड़े जाने का था बचने का थोड़ी.

इसलिए मैं टेबल के पीछे से निकल कर दरवाजे की तरफ दौड़ी. इस

बार उन्हों ने मुझे पीच्चे से पकड़ कर मेरे कमीज़ के अंदर हाथ

डाल दिए. मैं खिल खिला कर हंस रही थी और कसमसा रही थी. वो

काफ़ी देर तक मेरे बूब्स पर रंग लगाते रहे. मेरे निपल्स को

मसल्ते रहे खींचते

रहे. मई उनसे लिपट गयी. और पहली बार उन्हों ने अपने होंठ मेरे

होंठों पर रख दिए. मेरे होंठ थोडा खुले और उनकी जीभ को

अंदर जाने का रास्ता दे दिया. कई मिनिट्स हम इसी तरह एक दूसरे को

चूमते रहे. मेरा एक हाथ सरकते हुए उनके पायजामे तक पहुँचा

फिर धीरे से पायजामे के अंदर सरक गया. मैं उनके लिंग की तपिश

अपने हाथों पर महसूस कर रही थी. मैने अपने हाथ आगे बढ़ा कर

उनके लिंग को थाम लिया. मेरी इस हरकत से जैसे उनके पूरे जिस्म मे

एक झुरजुरी सी दौड़ गयी. उन्होने ने मुझ एक धक्का देकर अपने से

अलग किया. मैं गर्मी से तप रही थी. लेकिन उन्हों ने कहा "नही

स्मृति …..नही ये ठीक नही है."

मैं सिर झुका कर वही खड़ी रही.

"तुम मुझसे बहुत छ्होटी हो." उन्हों ने अपने हाथों से मेरे चेहरे को

उठाया " तुम बहुत अच्च्छो लड़की हो और हम दोनो एक दूसरे के बहुत

अच्छे दोस्त हैं. "

मैने धीरे से सिर हिलाया. मैं अपने आप को कोस रही थी. मुझे अपनी

हरकत पर बहुत ग्लानि हो रही थी. मगर उन्हों ने मेरी कस्मकस को

समझ कर मुझे वापस अपनी बाहों मे भर लिया और मेरे गाल्लों पर

दो किस किए. इससे मैं वापस नॉर्मल हो गयी. जब तक मैं सम्हल्ती

वो जा चुके थे.

धीरे धीरे समय बीतता गया. लेकिन उस दिन के बाद उन्हों ने

हुमारे और उनके बीच मे एक दीवार बना दी.

मैं शायद वापस उन्हे सिड्यूस करने का प्लान बनाने लगती लेकिन

अचानक मेरी जिंदगी मे एक आँधी सी आई और सब कुच्छ चेंज हो

गया. मेरे सपनो का सौदागर मुझे इस तरह मिल जाएगा मैने कभी

सोचा ना था.

मैं एक दिन अपने काम मे बिज़ी थी कि लगा कोई मेरी डेस्क के पास आकर

रुका.

"आइ वॉंट टू मीट मिस्टर. राज शर्मा"

"एनी अपायंटमेंट? " मैने सिर झुकाए हुए ही पूचछा?

"नो"

"सॉरी ही ईज़ बिज़ी" मैने टालते हुए कहा.

"टेल हिम पंकज हिज़ सन वांट्स टू मीट हिम."
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06-25-2017, 12:48 PM,
#5
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट--2

गतान्क से आगे........................

"क्या यार तुम्हारी जिंदगी तो बहुत बोरिंग है. यहाँ ये सब नही

चलेगा. एक दो तो भंवरों को रखना ही चाहिए. तभी तो तुम्हारी

मार्केट वॅल्यू का पता चलता है. मैं उनकी बातों से हंस पड़ी.

शादी से पहले ही मैं पंकज के साथ हुमबईस्तर हो गयी. हम दोनो

ने शादी से पहले खूब सेक्स किया. ऑलमोस्ट रोज ही किसी होटेल मे जाकर

सेक्स एंजाय करते थे. एक बार मेरे पेरेंट्स ने शादी से पहले रात

रात भर बाहर रहने पर एतराज जताया था. लेकिन जताया भी तो किसे मेरे

होने वाले ससुर जी से जो खुद इतने रंगीन मिज़ाज थे. उन्हों ने उनकी

चिंताओं को भाप बना कर उड़ा दिया. राजकुमार जी मुझे फ्री छ्चोड़

रखे थे लेकिन मैने कभी अपने काम से मन नही चुराया. अब मैं

वापस सलवार कमीज़ मे ऑफीस जाने लगी.

पंकज और उनकी फॅमिली काफ़ी खुले विचारों की थी. पंकज मुझे

एक्सपोषर के लिए ज़ोर देते थे. वो मेरे बदन पर रिवीलिंग कपड़े

पसंद करते थे. मेरा पूरा वॉर्डरोब उन्हों ने चेंज करवा दिया

था.

उन्हे मिनी स्कर्ट और लूस टॉपर मुझ पर पसंद थे. सिर्फ़ मेरे

कपड़े

ही नही मेरे अंडरगार्मेंट्स तक उन्हों ने अपने पसंद के खरीद्वये.

वो मुझे माइक्रो स्कर्ट और लूस स्लीव्ले टॉपर पहना कर डिस्कोज़

मे

ले जाते जहाँ हम खूब फ्री होकर नाचते और मस्ती करते थे. अक्सर

लोफर लड़के मेरे बदन से अपना बदन रगड़ने लगते. कई बार मेरे

बूब्स मसल देते. वो तो बस मौके की तलाश मे रहते थे कि कोई मुझ

जैसी सेक्सी हसीना मिल जाए तो हाथ सेंक लें. मैं कई बार नाराज़ हो

जाती लेकिन पंकज मुझे चुप करा देते. कई बार कुच्छ मनचले

मुझसे डॅन्स करना चाहते तो पंकज खुशी खुशी मुझे आगे कर

देते.

मुझ संग तो डॅन्स का बहाना होता. लड़के मेरे बदन से जोंक की तरह

चिपक जाते. मेरे पूरे बदन को मसल्ने लगते. बूब्स का तो सबसे

बुरा हाल कर देते. मैं अगर नाराज़गी जाहिर करती तो पंकज अपनी

टेबल

से आँख मार कर मुझे शांत कर देते. शुरू शुरू मे तो इस तरह का

ओपननेस मे मैं घबरा जाती थी. मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन

धीरे धीरे मुझे इन सब मे मज़ा आने लगा. मैं पंकज को उत्तेजित

करने के लिए कभी कभी दूसरे किसी मर्द को सिड्यूस करने लगती. उस

शाम पंकज मे कुच्छ ज़्यादा ही जोश आ जाता.

खैर हुमारी शादी जल्दी ही बड़े धूम धाम से हो गयी. शादी के

बाद जब मैने राजकुमार जी के चरण छुये तो उन्हों ने मुझे अपने

सीने से लगा लिया. इतने मे ही मैं गीली हो गयी. तब मैने महसूस

किया की हुमारा रिश्ता आज से बदल गया लेकिन मेरे मन मे अभी एक

छुपि सी चिंगारी बाकी है अपने ससुर जी के लिए जिसे हवा लगते ही

भड़क उठने की संभावना है.

मेरे ससुराल वाले बहुत अच्च्चे काफ़ी अड्वॅन्स्ड विचार के थे. पंकज

के एक बड़े भाई साहिब हैं कमल और एक बड़ी बहन है नीतू. दोनो

कीतब तक शादी हो चुकी थी. मेरे नंदोई का नाम है विशाल. विशाल

जी

बहुत रंगीन मिज़ाज इंसान थे. उनकी नज़रों से ही कामुकता टपकती

थी.

शादी के बाद मैने पाया विशाल मुझे कामुक नज़रों से

घूरते रहते हैं. नयी नयी शादी हुई थी इसलिए किसी से शिकायत

भी नही कर सकती थी. उनकी फॅमिली इतनी अड्वान्स थी कि मेरी इस

तरहकी शिकायत को हँसी मे उड़ा देते और मुझे ही उल्टा उनकी तरफ धकेल

देते. विशलजी की मेरे ससुराल मे बहुत अच्छि इमेज बनी हुई थी

इसलिए मेरी किसी भी को कोई तवज्जो

नही देता. अक्सर विशलजी मुझे च्छू कर बात करते थे. वैसे इसमे

कुच्छ भी

ग़लत नही था. लेकिन ना जाने क्यों मुझे उस आदमी से चिढ़ होती थी.

उनकी आँखें हमेशा मेरी छातियो पर रेंगते महसूस करती थी. कई

बार मुझसे सटने के भी कोशिश करते थे. कभी सबकी आँख बचा

कर मेरी कमर मे चिकोटी काटते तो कभी मुझे देख कर अपनी जीभ

को अपने होंठों पर फेरते. मैं नज़रें घुमा लेती.

मैने जब नीतू से थोड़ा घुमा कर कहा तो वो हंसते हुए

बोली, "देदो बेचारे को कुच्छ लिफ्ट. आजकल मैं तो रोज उनका पहलू गर्म

कर पाती नही हूं इसलिए खुला सांड हो रहे हैं. देखना बहुत बड़ा

है उनका. और तुम तो बस अभी कच्ची कली से फूल बनी हो उनका

हथियार झेल पाना अभी तेरे बस का नही."

"दीदी आप भी बस....आपको शर्म नही आती अपने भाई की नयी दुल्हन से

इस तरह बातें कर रही हो?"

"इसमे बुराई क्या है. हर मर्द का किसी शादीसूडा की तरफ अट्रॅक्षन

का मतलब बस एक ही होता है. कि वो उसके शहद को चखना चाहता

है. इससे कोई घिस तो जाती नही है." नीतू दीदी ने हँसी मे बात को

उड़ा दिया. उस दिन शाम को जब मैं और पंकज अकेले थे नीतू दीदी ने

अपने भाई से भी मज़ाक मे मेरी शिकायत की बात कह दी.

पंकज हँसने लगे, "अच्च्छा लगता है जीजा जी का आप से मन भर

गया है इसलिए मेरी बीवी पर नज़रें गड़ाए रखे हुए हैं." मैं तो

शर्म से पानी पानी हो रही थी. समझ ही नही आ रहा था वहाँ

बैठे रहना चाहिए या वहाँ से उठ कर भाग जाना चाहिए. मेरा

चेहरा शर्म से लाल हो गया.

"अभी नयी है धीरे धीरे इस घर की रंगत मे ढल जाएगी." फिर

मुझे कहा, " शिम्रिति हमारे घर मे किसीसे कोई लुकाव च्चिपाव नही

है. किसी तरह का कोई परदा नही. सब एक दूसरे से हर तरह का

मज़ाक छेड़ छाड कर सकते हैं. तुम किसी की किसी हरकत का बुरा

मतमानना"

अगले दिन की ही बात है मैं डाइनिंग टेबल पर बैठी सब्जी काट रही

थी. विशलजी और नीता दीदी सोफे पर बैठे हुए थे. मुझे ख़याल

ना रहा कब मेरे एक स्तन से सारी का आँचल हट गया. मुझे काम

निबटा कर नहाने जाना था इसलिए ब्लाउस का सिर्फ़ एक बटन बंद था.

आधे से अधिक छाती बाहर निकली हुई थी. मैं अपने काम मे तल्लीन

थी. मुझे नही मालूम था कि विशाल जी सोफे बैठ कर न्यूज़ पेपर की

आड़ मे मेरे स्तन को निहार रहे है. मुझे पता तब चला जब नीतू

दीदी ने मुझे बुलाया.

"स्मृति यहाँ सोफे पर आ जाओ. इतनी दूर से विशाल को तुम्हारा

बदन ठीक से दिखाई नही दे रहा है. बहुत देर से कोशिश कर

रहाहै कि काश उसकी नज़रों के गर्मी से तुम्हारे ब्लाउस का इकलौता

बटन पिघल जाए और ब्लाउस से तुम्हारी छातिया निकल जाए लेकिन उसे कोई

सफलता नही मिल रही है."

मैने झट से अपनी चूचियो को देखा तो सारी बात समझ कर मैने

आँचल सही कर दिया. मई शर्मा कर वहाँ से उठने को हुई. तो नीता

दीदी ने आकर मुझे रोक दिया. और हाथ पकड़ कर सोफे तक ले गयी.

विशाल जी के पास ले जा कर. उन्हों ने मेरे आँचल को चूचियो के

उपर से हटा दिया.

"लो देख लो….. 38 साइज़ के हैं. नापने हैं क्या?"

मैं उनकी हरकत से शर्म से लाल हो गयी. मैने जल्दी वापस आँचल

सही किया और वहाँ से खिसक ली.

हनिमून मे हमने मसुरी जाने का प्रोग्राम बनाया. शाम को बाइ कार

देल्ही से निकल पड़े. हुमारे साथ नीतू और विशलजी भी थे.ठंड के

दिन थे. इसलिए शाम जल्दी हो जाती थी. सामने की सीट पर नीतू दीदी

बैठी हुई थी. विशाल जी कार चला रहे थे. हम दोनो पीछे

बैठे हुए थे. दो घंटे कंटिन्युवस ड्राइव करने क बाद एक ढाबे

पर चाइ पी. अब पंकज ड्राइविंग सीट पर चला गया और विशलजी

पीछे की सीट पर आ गये. मैं सामने की सीट पर जाने के लिए

दरवाजाखोली की विशाल ने मुझे रोक दिया.

"अरे कभी हुमारे साथ भी बैठ लो खा तो नही जौंगा तुम्हे."

विशाल ने कहा.

"हाँ बैठ जाओ उनके साथ सर्दी बहुत है बाहर. आज अभी तक गले

के अंदर एक भी घूँट नही गयी है इसलिए ठंड से काँप रहे

हैं.तुमसे सॅट कर बैठेंगे तो उनका बदन भी गर्म हो जाएगा." दीदी ने

हंसते हुए कहा.

"अच्च्छा? लगता है दीदी अब तुम उन्हे और गर्म नही कर पाती हो."

पंकज ने नीतू दीदी को छेड़ते हुए कहा.

हम लोग बातें करते मज़ाक करते चले जा

रहे थे. तभी बात करते करते विशाल ने अपना हाथ मेरी जाँघ पर

रख दिया. जिसे मैने धीरे से पकड़ कर नीचे कर दिया. ठंड

बढ़ गयी थी. पंकज ने एक शॉल ले लिया. नीतू एक कंबल ले ली

थी. हम दोनो पीछे बैठ ठंड से काँपने लगे.

"विशाल देखो स्मृति का ठंड के मारे बुरा हाल हो रहा है. पीछे

एक कंबल रखा है उससे तुम दोनो ढक लो." नीतू दीदी ने कहा.

अब एक ही कंबल बाकी था जिस से विशाल ने हम दोनो को ढक दिया. एक

कंबल मे होने के कारण मुझे विशाल से सॅट कर बैठना पड़ा. पहले

तोथोड़ी झिझक हुई मगर बाद मे मैं उनसे एकद्ूम सॅट कर बैठ गयी.

विशालका एक हाथ अब मेरी जांघों पर घूम रहा था और सारी के ऊपर से

मेरीजांघों को सहला रहा था. अब उन्हों ने अपने हाथ को मेरे कंधे के

उपर रख कर मुझे और अपने सीने पर खींच लिया. मैं अपने हाथों

से उन्हे रोकने की हल्की सी कोशिश कर रही थी.

"क्या बात है तुम दोनो चुप क्यों हो गये. कहीं तुम्हारा नंदोई तुम्हे

मसल तो नही रहा है? सम्हल के रखना अपने उन खूबसूरत जेवरों

को मर्द पैदाइशी भूखे होते हैं इनके.' कह कर नीतू हंस पड़ी.

मैं शर्मा गयी. मैने विशाल के बदन से दूर होने की कोशिश की

तोउन्हों ने मेरे कमर को पकड़ कर और अपनी तरफ खींच लिया.

"अब तुम इतनी दूर बैठी हो तो किसी को तो तुम्हारी प्रॉक्सी देनी पड़ेगी

ना. और नंदोई के साथ रिश्ता तो वैसे ही जीजा साली जैसा होता

है.....आधी घर वाली....." विशाल ने कहा

"देखा.....देखा. .....कैसे उच्छल रहे हैं. स्मृति अब मुझे मत

कहना कि मैने तुम्हे चेताया नही. देखना इनसे दूर ही रहना. इनका

साइज़ बहुत बड़ा है." नीतू ने फिर कहा.

"क्या दीदी आप भी बस…."
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06-25-2017, 12:48 PM,
#6
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
अब पंकज ने अपनी बाँह वापस कंधे से उतार कर कुच्छ देर तक मेरे

अन्द्रूनि जांघों को मसल्ते रहे. फिर अपने हाथ को वापस उपर उठा

कर अपनी उंगलियाँ मेरे गाल्लों पर फिराने लगे. मेरे पूरे बदन मे

एकझुरजुरी सी दौड़ रही थी. रोएँ भी खड़े हो गये. धीरे धीरे

उनका हाथ गले पर सरक

गया. मैं ऐसा दिखावा कर रही थी जैसे सब कुच्छ नॉर्मल है मगर

अंदर उनके हाथ किसी सर्प की तरह मेरे बदन पर रेंग रहे थे.

अचानक उन्हों ने अपना हाथ नीचे किया और सारी ब्लाउस के उपर से

मेरे एक स्तन को अपने हाथों से ढक लिया. उन्हों ने पहले धीरे से

कुच्छ देर तक मेरे एक स्तन को प्रेस किया. जब देखा कि मैने किसी

तरह का विरोध नही किया तो उन्हों ने हाथ ब्लाउस के अंदर डाल कर

मेरे एक स्तन को पकड़ लिया. मैं कुच्छ देर तक तो सकते जैसी हालत

मे बैठी रही. लेकिन जैसे ही उसने मेरे उस स्तन को दबाया मैं

चिहुनक उठी "अयीई"

"क्या हुआ? ख़टमल काट गया?" नीता ने पूचछा. और मुझे चिढ़ाते

हुए हँसने लगी. मैं शर्म से मुँह भींच कर बैठी हुई थी. क्या

बताती, एक नयी दुल्हन के लिए इस तरह की बातें खुले आम करना

बड़ामुश्किल होता है. और स्पेशली तब जब की मेरे अलावा बाकी सब इस

महॉल का मज़ा ले रहे थे.

"कुच्छ नही मेरा पैर फँस गया था सीट के नीचे." मैने बात को

सम्हलते हुएकहा.

अब उनके हाथ मेरे नग्न स्तन को सहलाने लगे. उनके हाथ ब्रा के अंदर

घुसकर मेरे स्तनो पर फिर रहे थे. उन्हों ने मेरे निपल्स को अपनी

उंगलियों से छुते हुए मेरे कान मे कहा, "बाइ गॉड बहुत सेक्सी हो.

अगर तुम्हारा एक अंग ही इतना लाजवाब है तो जब पूरी नंगी होगी तो

कयामत आ जाएगी. पंकज खूब रगड़ता होगा तेरी जवानी. साला बहुत

किस्मेत वाला है. तुम्हे मैं अपनी टाँगों के बीच लिटा कर रहूँगा. "

उनके इस तरह खुली बात करने से मैं घबरा गयी. मैने सामने

देखा

दोनो भाई बहन अपनी धुन मे थे. मैं अपना निचला होंठ काट कर रह

गयी. मैने चुप रहना ही उचित समझा जितनी शिकायत करती दोनो

भाई बहन मुझे और ज़्यादा खींचते. उनकी हरकतों से अब मुझे भी

मज़ा आने लगा. मेरी योनि गीली होने

लगी. लेकिन मई चुप चाप अपनी नज़रें झुकाए बैठी रही. सब हँसी

मज़ाक मे व्यस्त थे. दोनो को इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नही थी की उनके

पीठ के ठीक पीछे किस तरह का खेल चल रहा था. मैं नई

नवेलीदुल्हन कुच्छ तो शर्म के मारे और कुच्छ परिवार वालों के खुले

विचारों को देखते हुए चुप थी. वैसे मैं भी अब कोई दूध की

धूलितो थी नही. ससुर जी के साथ हुमबईस्तर होते होते रह गयी थी.

इसलिए मैने मामूली विरोध के और कसमसने के अलावा कोई हरकत नही

की.

उसने मुझे आगे को झुका दिया और हाथ मेरी पीठ पर ले जाकर

मेरी ब्रा के स्ट्रॅप खोल दिए. ब्लाउस मे मेरे बूब्स ढीले हो गये. अब

वो आराम से ब्लाउस के अंदर मेरे बूब्स को मसल्ने लगे. उसने

मेरे ब्लाउस के बटन्स खोल कर मेरे बूब्स को बिल्कुल नग्न कर दिए.

विशाल ने अपना सिर कंबल के अंदर करके मेरे नग्न स्तनो को चूम

लिया. उसने अपने होंठों के बीच एक एक करके मेरे निपल्स लेकर

कुच्छ देर चूसा. मैं डर के मारे एक दम स्तब्ध रह गयी. मई साँस

भी रोक कर बैठी हुई थी. ऐसा लग रहा था मानो मेरी सांसो से भी

हमारी हरकतों का पता चल जाएगा. कुच्छ देर तक मेरे निपल्स

चूसने के बाद वापस अपना सिर बाहर निकाला. अब वो अपने हाथों से

मेरेहाथ को पकड़ लिया. मेरी पतली पतली उंगलियों को कुच्छ देर तक

चुउस्ते और चूमते रहे. फिर धीरे से उसे पकड़ कर पॅंट के उपर

अपने लिंग पर रखा. कुच्छ देर तक वहीं पर दबाए रखने के बाद

मैने अपने हाथों से उनके लिंग को एक बार मुट्ठी मे लेकर दबा दिया.

वो तब मेरी गर्दन पर हल्के हल्के से अपने दाँत गढ़ा रहे थे. मेरे

कानो की एक लौ अपने मुँह मे लेकर चूसने लगे.

पता नही कब उन्होने अपने पॅंट की ज़िप खोल कर अपना लिंग बाहर निकाल

लिया. मुझे तो पता तब लगा जब मेरे हाथ उनके नग्न लिंग को छू

लिए. मैं अपने हाथ को खींच रही थी मगर उनकी पकड़

से च्छुदा नही पा रही थी.

जैसे ही मेरे हाथ ने उसके लिंग के चंदे को स्पर्श

किया पूरे बदन मे एक सिहरन सी दौड़ गयी. उनका लिंग पूरी तरह

तना हुआ था. लिंग तो क्या मानो मैने अपने हाथों मे को गरम सलाख

पकड़ ली हो. मेरी ज़ुबान तालू से चिपक गयी. और मुँह सूखने लगा.

मेरे हज़्बेंड और ननद सामने बैठे थे और मैं नयी दुल्हन एक गैर

मर्द का लिंग अपने हाथो मे थाम रखी थी. मैं शर्म और डर से गढ़ी

जा रही थी. मगर मेरी ज़ुबान

को तो मानो लकवा मार गया था. अगर कुच्छ बोलती तो पता नही सब क्या

सोचते. मेरी चुप्पी को उसने मेरी रज़ामंदी समझा. उसने मेरे हाथ को

मजबूती से अपने लिंग पर थाम रखा था. मैने धीरे धीरे उसके

लिंग को अपनी मुट्ठी मे ले लिया. उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को उपर

नीचे करके मुझे उसके लिंग को सहलाने का इशारा किया. मैं उसके

लिंग को सहलाने लगी. जब वो अस्वस्त हो गये तो उन्होने मेरे हाथ को

छ्चोड़ दिया और मेरे चेहरे को पकड़ कर अपनी ओर मोड़ा. मेरे होंठों

पर उनके होंठ चिपक गये. मेरे होंठों को अपनी जीभ से खुलवा कर

मेरे मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी. मैं डर के मारे काँपने लगी.

जल्दी ही उन्हे धक्का देकर अपने से अलग किया. उन्होने अपने हाथों से

मेरी सारी उँची करनी शुरू की उनके हाथ मेरी नग्न जांघों पर फिर

रहे थे. मैने अपनी टाँगों को कस कर दबा रखा था इसलिए उन्हे

मेरी योनि तक पहुँचने मे सफलता नही मिल रही थी. मैं उनके लिंग

पर ज़ोर ज़ोर से हाथ चला रही थी. कुच्छ देर बाद उनके मुँह से हल्की

हल्की "आ ऊ" जैसी आवाज़ें निकलने लगी जो कि कार की आवाज़ मे दब

गयी थी. उनके लिंग से ढेर सारा गढ़ा गढ़ा वीर्य निकल कर मेरे

हाथों पर फैल गया. मैने अपना हाथ बाहर निकल लिया. उन्होने वापस

मेरे हाथ को पकड़ कर मुझे ज़बरदस्ती उनके वीर्य को चाट कर सॉफ

करने लिए बाध्या करने लगे मगर मैने उनकी चलने नही दी. मुझे

इस तरह की हरकत बहुत गंदी और वाहियात लगती थी. इसलिए मैने

उनकी पकड़ से अपना हाथ खींच कर अपने रुमाल से पोंच्छ दिया. कुच्छ

देर बाद मेरे हज़्बेंड कार रोक कर पीछे आ गये तो मैने राहत की

साँस ली.

हम होटेल मे पहुँचे. दो डबल रूम बुक कर रखे थे. उस दिन

ज़्यादाघूम नही सके. शाम को हम सब उनके कमरे मे बैठ कर ही बातें

करने लगे. फिर देर रात तक ताश खेलते रहे. जब हम उठने लगे तो

विशाल जी ने हूमे रोक लिया.

"अरे यहीं सो जाओ" उन्हों ने गहरी नज़रों से मुझे देखते हुए

कहा.

पंकज ने सारी बात मुझ पर छ्चोड़ दी, "मुझे क्या है इससे पूच्छ

लो."

विशाल मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर कहे "लाइट बंद कर

देंगे

तो कुच्छ भी नही दिखेगा. और वैसे भी ठंड के मारे रज़ाई तो लेना

ही पड़ेगा."

"और क्या कोई किसी को परेशान नही करेगा. जिसे अपने पार्ट्नर से

जितनी मर्ज़ी खेलो" नीतू दीदी ने कहा

पंकज ने झिझकते हुए उनकी बात मान ली. मैं चुप ही रही. लाइट

ऑफ करके हम चार एक ही डबल बेड पर लेट गये. मैं और नीतू

बीच मे सोए और दोनो मर्द किनारे पर. जगह कम थी इसलिए एक

दूसरे से सॅट कर सो रहे थे. हम चारों के वस्त्र बहुत जल्दी बदन

से हट गये. हल्की हालिक रोशनी मे मैने देखा कि विशाल जी नीतू को

सीधा कर के दोनो पैर अपने कंधों पर रख दिए और धक्के मारने

लगे. कंबल, रज़ाई सब उनके बदन से हटे हुए थे. मैने हल्की

रोशनी मे उनके मोटे तगड़े लिंग को देखा. नीतू लिंग घुसते

समय "आह" कर उठी. कंपॅरटिव्ली पंकज का लंड उससे छ्होटा था.

मैं सोच रही थी नीतू को कैसा मज़ा आ रहा होगा. विशाल नीतू को

धक्के मार रहा था. पंकज मुझे घोड़ी बना कर मेरे पीछे से

ठोकने लगा. पूरा बिस्तर हम दोनो कपल्स के धक्कों से बुरी तरह

हिल रहा था. कुच्छ देर बाद विशाल लेट गया और नीतू को अपने उपर

ले लिया. अब

नीतू उन्हे चोद रही थी. मेरे बूब्स पंकज के धक्कों से बुरी तरह

हिल रहे थे. थोड़ी देर मे मैने महसूस किया कि कोई हाथ मेरे

हिलते हुए बूब्स को मसल्ने लगा है. मैं समझ गयी कि वो हाथ

पंकज का नही बल्कि विशाल का है. विशाल मेरे निपल को अपनी

चुटकियों मे भर कर मसल रहा था. मैं दर्द से कराह उठी. पंकज

खुश हो गया कि उसके धक्कों ने मेरी चीख निकाल दी. काफ़ी देर तक

यूँही अपनी अपनी बीवी को ठोक कर दोनो निढाल हो गये.

दोनो कपल वहीं अलग अलग कंबल और रज़ाई मे घुस कर बिना कपड़ों

के ही अपने अपने पार्ट्नर से लिपट कर सो गये. मैं और नीतू बीच मे

सोए थे और दोनो मर्द किनारे की ओर सोए थे. आधी रात को अचानक

मेरी नीद खुली. मैं ठंड के मारे पैरों को सिकोड कर सोई थी.

मुझे लगा मेरे बदन पर कोई हाथ फिरा रहा है. मेरी रज़ाई मे एक

तरफ पंकज सोया हुआ था. दूसरी तरफ से कोई रज़ाई उठ कर अंदर

सरक गया और मेरे नग्न बदन से चिपक गया. मैं समझ गयी की

ये और कोई नही विशाल है. उसने कैसे नीतू को दूसरी ओर कर के

खुद मेरी तरफ सरक आया यह पता नही चला. उसके हाथ अब मेरी आस

पर फिर रहे थे. फिर उसके हाथ मेरे दोनो आस के बीच की दरार से

होते हुए मेरे आस होल पर कुच्छ पल रुके और फिर आगे बढ़ कर मेरी

योनि के ऊपर ठहर गये.

मैं बिना हीले दुले चुप चाप पड़ी थी. देखना चाहती थी कि विशाल

करता क्या है. डर भी रही थी क्योंकि मेरी दूसरी तरफ पंकज मुझ

से लिपट कर सो रहे थे. विशाल का मोटा लंड खड़ा हो चुक्का था

और

मेरे आस पर दस्तक दे रहा था.

विशाल ने पीछे से मेरी योनि मे अपनी एक फिर दूसरी उंगली डाल दी.

मेरी योनि गीली होने लगी थी. पैरों को मोड़ कर लेते रहने के कारण

मेरी योनि उसके सामने बिकुल खुली हुई तैयार थी. उसने कुच्छ देर तक

मेरी योनि मे अपनी उंगलियों को अंदर बाहर करने के बाद अपने लिंग के

गोल टोपे को मेरी योनि के मुहाने पर रखा. मैने अपने बदन को

ढीला छ्चोड़ दिया था. मैं भी किसी पराए मर्द की हरकतों से गर्म

होने लगी थी. उसने अपनी कमर से मेरी योनि पर एक धक्का लगाया

"आआहह" मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी एक आवाज़ निकल गयी.

तभी पंकज ने एक करवट बदली.

"मैने घबरा कर उठने का बहाना किया और विशाल को धक्का दे कर

अपने से हटाते हुए उसके कान मे फुसफुसा कर कहा

"प्लीज़ नही…… पंकज जाग गया तो अनर्थ हो जाएगा."

"ठहरो जाने मन कोई और इंतज़ाम करते है" कहकर वो उठा और एक

झटके से मुझे बिस्तर से उठा कर मुझे नंगी हालत मे ही सामने के

सोफे पर ले गया. वहाँ

मुझे लिटा कर मेरी टाँगों को फैलाया. वो नीचे कार्पेट पर बैठ

गया. फिर उसने अपना सिर मेरी जांघों के बीच रख कर मेरी योनि पर

जीभ फिराना शुरू किया. मैने

अपनी टाँगें छत की तरफ उठा दिया. वो अपने हाथों से मेरी टाँगों

को थम रखा था. मैं अपने हाथों से उसके सिर को अपनी योनि पर दाब

दिया. उसकी जीभ अब मेरी योनि के अंदर घुस कर

मुझे पागल करने लगा. मैं अपने बालों को खींच रही थी तो कभी

अपनी उंगलियों से अपने निपल्स को ज़ोर ज़ोर से मसल्ति. अपने जबड़े को

सख्ती से मैने भींच रखा था जिससे किसी तरह की कोई आवाज़ मुँह

से ना निकल जाए. लेकिन फिर भी काफ़ी कोशिशों के बाद भे हल्की

दबी

दबी कराह मुँह से निकल ही जाती थी. मैने उनके उपर झुकते हुए

फुसफुसते हुए कहा

आअहह…..ये क्या कर दिया अपने…… मैं पागल हो

जौंगी……….प्लीईईससस्स और बर्दस्त नही हो रहा है. अब आआ जाऊ"

लेकिन वो नही हटा. कुच्छ ही देर मे मेरा बदन उसकी हरकतों को नही

झेल पाया और योनि रस की एक तेज धार बह निकली. मैं निढाल हो कर

सोफे पर गिर गयी. फिर मैने उसके बाल पकड़ कर उसके सिर को

ज़बरदस्ती से मेरी योनि से हटाया.
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06-25-2017, 12:48 PM,
#7
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
"क्या करते हो. छि छि इसे चतोगे क्या?" मैने उनको अपने योनि रस

का स्वाद लेने से रोका.

"मेरी योनि तप रही है इसमे अपने हथियार से रगड़ कर शांत

करो." मैने भूखी शेरनी की तरह उसे

खींच कर अपने ऊपर लिटा लिया और उसके लिंग को पकड़ कर सहलाने

लगी. उसे सोफे पर धक्का दे कर उसके लिंग को अपने हाथों

से पकड़ कर अपने मुँह मे ले लिया. मैने कभी किसी मर्द के लिंग को

मुँह मे लेना तो दूर कभी होंठों से भी नही छुआ था. पंकज

बहुत ज़िद करते थे की मैं उनके लिंग को मुँह मे डाल कर चूसूं

लकिन मैं हर बार उनको मना कर देती थी. मैं इसे एक गंदा काम

समझती थी. लेकिन आज ना जाने क्या हुआ कि मैं इतनी गर्म हो गयी की

खुद ही विशलजी के लिंग को अपने हाथों से पकड़ कर कुच्छ देर तक

किस किया. और जब विशाल जी ने मुझे उनके लिंग को अपने मुँह मे

लेने

का इशारा करते हुए मेरे सिर को अपने लिंग पर हल्के से दबाया तो

मैने किसी तरह का विरोध ना करते हुए अपने होंठों को खोल कर

अपने सिर को नीचे की ओर झुका दिया. उनके लिंग से एक अजीब तरह की

स्मेल आ रही थी. कुच्छ देर यूँ ही मुँह मे रखने के बाद मैं उनके

लिंग को चूसने लगी.

अब सारे डर सारी शर्म से मैं परे थी. जिंदगी मे मुझे अब किसी की

चिंता नही थी. बस एक जुनून था एक

गर्मी थी जो मुझे झुलसाए दे रही थी. मैं उनके लिंग को मुँह मे

लेकर चूस रही थी. अब मुझे कोई चिंता नही थी कि विशाल मेरी

हरकतों के बारे मे क्या सोचेगा. बस मुझे एक भूख परेशान कर

रही थी जो हर हालत मे मुझे मिटानी थी. वो मेरे सिर को अपने

लिंग पर दाब कर अपनी कमर को उँचा करने लगा. कुच्छ देर बाद

उसने मेरे सिर को पूरी ताक़त से अपने लिंग पर दबा दिया. मेरा दम

घुट रहा था. उसके लिंग से उनके वीर्य की एक तेज धार सीधे गले के

भीतर गिरने लगी. उनके लिंग के आसपास के बाल मेरे नाक मे घुस रहे

थे.

पूरा रस मेरे पेट मे चले जाने के बाद ही उन्होने मुझे छ्चोड़ा. मैं

वहीं ज़मीन पर भर भरा कर गिर गयी और तेज तेज साँसे लेने

लगी.

वो सोफे पर अब भी पैरों को फैला कर बैठे हुए थे. उनके सामने

मैं

अपने गले को सहलाते हुए ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी. उन्होने अपने

पैर को आगे बढ़ा कर अपने अंगूठे को मेरी योनि मे डाल दिया. फिर

अपने पैर को आगे

पीछे चला कर मेरी योनि मे अपने अंगूठे को अंदर बाहर करने

लगा. बहुत जल्दी उनके लिंग मे वापस हरकत होने लगी. वो आगे की ओर

झुक कर मेरे निपल्स पकड़ कर अपनी ओर खींचे मैं दर्द से बचने

के लिए उठ कर उनके पास आ गयी. अब उन्होने मुझे सोफे पर हाथों

केबल झुका दिया. पैर कार्पेट पर ही थे. अब मेरी टाँगों को चौड़ा

करके पीछे से मेरी योनि पर अपना लिंग सटा कर एक जोरदार धक्का

मारा. उनका मोटा लिंग मेरी योनि के अंदर रास्ता बनाता हुआ घुस गया.

योनि बुरी तरह गीली होने के कारण ज़्यादा परेशानी नही हुई. बस

मुँह से एक दबी दबी कराह निकली "आआआहह" उनके लिंग का साइज़

इतना बड़ा था कि मुझे लगा की मेरे बदन को चीरता हुआ गले तक

पहुँच जाएगा.

अब वो पीछे से मेरी योनि मे अपने लिंग से धक्के मारने लगे. उसँके

हर

धक्के से मेरे मोटे मोटे बूब्स उच्छल उच्छल जाते. मेरी गर्देन को

टेढ़ा कर के मेरे होंठों को चूमने लगे और अपने हाथों से मेरे

दोनो स्तनो को मसल्ने लगे. काफ़ी देर तक इस तरह मुझे चोदने के

बाद मुझे सोफे पर लिटा कर ऊपर से ठोकने लगे. मेरी योनि मे

सिहरन होने लगी और दोबारा मेरा वीर्य निकल कर उनके लिंग को

भिगोने

लगा. कुच्छ ही देर मे उनका भी वीर्य मेरी योनि मे फैल गया. हम

दोनो ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रह थे. वो मेरे बदन पर पसर गया. हम

दोनो एक दूसरे को चूमने लगे.

तभी गजब हो गया........ ......

पंकज की नींद खुल गयी. वो पेशाब करने उठा था. हम दोनो की

हालत तो ऐसी हो गयी मानो सामने शेर दिख गया हो. विशाल सोफे के

पीछे छिप गया. मैं कहीं और छिप्ने की जगह ना पा कर बेड की

तरफ बढ़ी. किस्मेट अच्छि थी कि पंकज को पता नही चल पाया.

नींद मे होने की वजह से उसका दिमाग़ ज़्यादा काम नही कर पाया होगा.

उसने सोचा कि मैं बाथरूम से होकर आ रही हूँ. जैसे ही वो

बाथरूम मे घुसा विशाल जल्दी से आकर बिस्तर मे घुस गया.

"कल सुबह कोई बहाना बना कर होटेल मे ही पड़े रहना" उसने मेरी

कान मे धीरे से कहा और नीतू की दूसरी ओर जा कर लेट गया.

कुच्छ देर बाद पंकज आया और मेरे से लिपट कर सो गया. मेरी योनि

से अभी भी विशाल का रस टपक रहा था. मेरे स्तनो का मसल मसल

कर तो और भी बुरा हाल कर रखा था. मुझे अब बहुत पासचताप हो

रही थी. "क्यों मई शरीर की गर्मी के आगे झुक गयी? क्यों किसी

गैर मर्द से मैने संबंध बना लिए. अब मैं एक गर्त मे गिरती जा

रही थी जिसका कोई अंत नही था.मैने अपनी भावनाओं को कंट्रोल करने

की ठन ली. अगले दिन मैने विशाल को

कोई मौका ही नही दिया. मैं पूरे समय सबके साथ ही रही जिससे

विशाल को मौका ना मिल सके. उन्हों ने कई बार मुझ से अकेले मे

मिलने की

कोशिश की मगर मैं चुप चाप वहाँ से खिसक जाती. वैसे उन्हे

ज़्यादा मौका भी नही मिलपाया था. हम तीन दिन वहाँ एंजाय करके

वापस लौट आए. हनिमून मे मैने और कोई मौका उन्हे नही दिया. कई

बार मेरे बदन को मसल ज़रूर दिया था उन्हों ने लेकिन जहाँ तक

संभोग की बात है मैने उनकी कोई प्लॅनिंग नही चलने दी.

हनिमून के दौरान हम मसूरी मे खूब मज़े किए. पंकज तो बस

हर समय अपना हथियार खड़ा ही रखता था. विशाल जी अक्सर मुझसे

मिलने के लिए एकांत की खोज मे रहते थे जिससे मेरे साथ बेड्मासी कर

सके लेकिन मैं अक्सर उनकी चालों को समझ के अपना पहले से ही बचाव

कर लेती थी.

इतना प्रिकॉशन रखने के बाद भी कई बार मुझे अकेले मे पकड़ कर

चूम लेते या मेरे कानो मे फुसफुसा कर अगले प्रोग्राम के बारे मे

पूछ्ते. उन्हे शायद मेरे बूब्स सबसे ज़्यादा पसंद थे. अक्सर मुझे

पीछे से पकड़ कर मेरी चूचियो को अपने हाथों से मसल्ते रहते

थे जब तक ना मैं दर्द के मारे उनसे छितक कर अलग ना हो जाउ.

पंकज तो इतना शैतानी करता था की पूच्छो मत काफ़ी सारे स्नॅप्स भी

लिए. अपने और मेरे कुच्छ अंतरंग स्नॅप्स भी खिंचवाए. खींचने

वालेविशाल जी ही रहते थे. उनके सामने ही पंकज मुझे चूमते हुए.

बिस्तर पर लिटा कर मेरे बूब्स को ब्लाउस के उपर से दाँतों से काटते

हुए और मुझे अपने सामने बिठा कर मेरे ब्लाउस के अंदर हाथ डाल

करमेरे स्तानो को मसल्ते हुए कई फोटो खींचे.

एक बार पता नही क्या मूड आया मैं जब नहा रही थी तो बाथरूम मे

घुस आए. मैं तब सिर्फ़ एक छ्होटी सी पॅंटी मे थी. वो खुद भी एक

पॅंटीपहन रखे थे.

"इस पोज़ मे एक फोटो लेते हैं." उन्हों ने मेरे नग्न बूब्स को मसल्ते

हुए कहा.

"नन मैं विशलजी के सामने इस हालत मे?…..बिल्कुल नहीं…..पागल हो

रहे हो क्या?" मैने उसे साफ मना कर दिया.

"अरे इसमे शर्म की क्या बात है. विशाल भैया तो घर के ही आदमी

हैं. किसी को बताएँगे थोड़े ही. एक बार देख लेंगे तो क्या हो

जाएगा.

तुम्हे खा थोड़ी जाएँगे." पंकज अपनी बात पर ज़िद करने लगा.

क्रमशः........................
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06-25-2017, 12:49 PM,
#8
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट--3

गतान्क से आगे........................

पंकज इतना खुला पन अच्छि बात नहीं है. विशलजी घर के हैं

तो क्या हुआ हैं तो पराए मर्द ही ना और हम से बड़े भी हैं. इस

तरह तो हुमारे बीच पर्दे का रिश्ता हुआ. परदा तो दूर तुम तो मुझे

उनके सामने नंगी होने को कह रहे हो. कोई सुने गा तो क्या कहेगा."

मैने वापस झिड़का.

"अरे मेरी जान ये दकियानूसी ख़याल कब से पालने लग गयी तुम. कुच्छ

नही होगा. मैं अपने पास एक तुम्हारी अंतरंग फोटो रखना चाहता हूँ

जिससे हमेशा तुम्हारे इस संगमरमरी बदन की खुश्बू आती रहे."

मैने लाख कोशिशे की मगर उन्हे समझा नही पायी. आख़िर मैं राज़ी

हुई मगर इस शर्त पर कि मैं बदन पर पॅंटी के अलावा ब्रा भी पहने

रहूंगी उनके सामने. पंकज इस को राज़ी हो गये. मैने झट से होल्डर

पर टाँगे अपने टवल से अपने बदन को पोंच्छा और ब्रा लेकर पहन ली.

पंकज ने बाथरूम का दरवाजा खोल कर विशाल जी को फोन किया और

उन्हे अपनी प्लॅनिंग बताई. विशलजी मेरे बदन को निवस्त्रा देखने की

लालसा मे लगभग दौड़ते हुए कमरे मे पहुँचे.

पंकज ने उन्हे बाथरूम के भीतर आने को कहा. वो बाथरूम मे आए तो

पंकज मुझे पीछे से अपनी बाँहों मे सम्हाले शवर के नीचे खड़े

हो गये. विशाल की नज़र मेरे लगभग नग्न बदन पर घूम रही थी.

उनके हाथ मे पोलेरॉइड कमेरे था.

"म्‍म्म्मम...... .बहुत गर्मी है यहाँ अंदर. अरे साले साहब सिर्फ़ फोटो

ही क्यों कहो तो केमरे से . ब्लू फिल्म ही खींच लो" विशाल ने हंसते

हुए कहा.

"नही जीजा. मूवी मे ख़तरा रहता है. छ्होटा सा स्नॅप कहीं भी

छिपाकर रख लो" पंकज ने हंसते हुए अपनी आँख दबाई.

"आप दोनो बहुत गंदे हो." मैने कसमसाते हुए कहा तो पंकज ने

अपनेहोंठ मेरे होंठों पर रख कर मेरे होंठ सील दिए.

"शवर तो ऑन करो तभी तो सही फोटो आएगा." विशाल जी ने कॅमरा का

शटर हटाते हुए कहा.

मेरे कुच्छ बोलने से पहले ही पंकज ने शवर ऑन कर दिया. गर्म पानी

की फुहार हम दोनो को भिगोति चली गयी. मैने अपनी चूचियो को

देखा. ब्रा पानी मे भीग कर बिकुल पारदर्शी हो गया था और बदन से

चिपक गया था. मैं शर्म से दोहरी हो गयी. मेरी नज़रें सामने

विशालजी पर गयी. तो मैने पाया कि उनकी नज़रें मेरे नाभि के नीचे

टाँगोंके जोड़ पर चिपकी हुई हैं. मैं समझ गयी कि उस जगह का भी वही

हाल हो रहा होगा. मैने अपने एक हाथ से अपनी छातियो को धक और

दूसरी हथेली अपनी टाँगों के जोड़ पर अपने पॅंटी के उपर रख दिया.

"अरे अरे क्या कर रही हो.........पूरा स्नॅप बिगड़ जाएगा. कितना प्यारा

पोज़ दिया था पंकज ने सारा बिगाड़ कर रख दिया" मैं चुप चाप

खड़ी

रही. अपने हाथों को वहाँ से हटाने की कोई कोशिश नही की. वो तेज

कदमों से आए और जिस हाथ से मैं अपनी बड़ी बड़ी छातियो को उनकी

नज़रों से च्चिपाने की कोशिश कर रही थी उसे हटा कर उपर कर

दिया.उसे पंकज की गर्दन के पीछे रख कर कहा, "तुम अपनी बाहें

पीछेपंकज की गर्दन पर लपेट दो." फिर दूसरे हाथ को मेरी जांघों के

जोड़से हटा कर पंकज के गर्दन के पीछे पहले हाथ पर रख कर उस

मुद्रा मे खड़ा कर दिया. पंकज हुमारा पोज़ देखने मे बिज़ी था और

विशाल ने उसकी नज़र बचा कर मेरी योनि को पॅंटी के उपर से मसल

दिया. मैं कसमसा उठी तो उसने तुरंत हाथ वहाँ से हटा दिया.

फिर वो अपनी जगह जाकर लेनसे सही करने लगा. मैं पंकज के आगे

खड़ीथी और मेरी बाहें पीछे खड़े पंकज के गर्दन के इर्दगिर्द थी.

पंकज के हाथ मेरे स्तानो के ठीक नीचे लिपटे हुए थे. उसने

हाथोंको थोड़ा उठाया तो मेरे स्तन उनकी बाहों के उपर टिक गये. नीचे की

तरफ से उनके हाथों का दबाव होने की वजह से मेरे उभार और उघड़

कर सामने आ गये थे.

मेरे बदन पर कपड़ों का होना और ना होना बराबर था. विशाल ने एक

स्नॅप इस मुद्रा मे खींची. तभी बाहर से आवजा आई...

"क्या हो रहा है तुम तीनो के बीच?"

मैं दीदी की आवाज़ सुनकर खुश हो गयी. मैं पंकज की बाहों से फिसल

कर निकल गयी.

"दीदी.....नीतू दीदी देखो ना. ये दोनो मुझे परेशान कर रहे हैं.

मैं शवर से बाहर आकर दरवाजे की तरफ बढ़ना चाहती थी लेकिन

पंकज ने मेरी बाँह पकड़ कर अपनी ओर खींचा और मैं वापस उनके

सीने से लग गयी. तब तक दीदी अंदर आ चुकी थी. अंदर का महॉल

देख कर उनके होंठों पर शरारती हँसी आ गयी.

"क्यों परेशान कर रहे है आप?" उन्हों ने विशाल जी को झूठमूठ

झिड़कते हुए कहा, "मेरे भाई की दुल्हन को क्यों परेशान कर रहे

हो?"

"इसमे परेशानी की क्या बात है. पंकज इसके साथ एक इंटिमेट फोटो

खींचना चाहता था सो मैने दोनो की एक फोटो खींच दी." उन्हों ने

पोलेरॉइड की फोटो दिखाते हुए कहा.

"बड़ी सेक्सी लग रही हो." दीदी ने अपनी आँख मेरी तरफ देख कर

दबाई.

"एक फोटो मेरा भी खींच दो ना इनके साथ." विशाल जी ने कहा.

"हन्हन दीदी हम तीनो की एक फोटो खींच दो. आप भी अपने कपड़े उतार

कर यहीं शवर के नीचे आ जाओ." पंकज ने कहा.

"दीदी आप भी इनकी बातों मे आ गयी." मैने विरोध करते हुए कहा.

लेकिन वहाँ मेरा विरोध सुनने वाला था ही कौन.

विशलजी फटा फॅट अपने सारे कपड़े उतार कर टवल स्टॅंड पर रख

दिए. अब उनके बदन पर सिर्फ़ एक छ्होटी सी फ्रेंचिए थी. पॅंटी के

बाहर

से उनका पूरा उभार सॉफ सॉफ दिख रहा था. मेरी आँखें बस वहीं

पर

चिपक गयी. वो मेरे पास आ कर मेरे दोसरे तरफ खड़े होकर मेरे

बदन से चिपक गये. अब मैं दोनो के बीच मे खड़ी थी. मेरी एक बाँह

पंकज के गले मे और दूसरी बाँह विशलजी के गले पर लिपटी हुई थी.

दोनो मेरे कंधे पर हाथ रखे हुए थे. विशलजी ने अपने हाथ को

मेरे कंधे पर रख कर सामने को झूला दी जिससे मेरा एक स्तन उनके

हाथों मे ठोकर मारने लगा. जैसे ही दीदी ने शटर दबाया विशलजी

ने मेरे स्तन को अपनी मुट्ठी मे भर लिया और मसल दिया. मैं जब तक

सम्हल्ती तब तक तो हुमारा ये पोज़ कमेरे मे क़ैद हो चुका था.

इस फोटो को विशाल जी ने सम्हाल कर अपने पर्स मे रख लिया. विशाल

तोहम दोनो के संभोग के भी स्नॅप्स लेना चाहता था लेकिन मैं एकद्ूम से

आड़गयी. मैने इस बार उसकी बिल्कुल नही चलने दी.

इसी तरह मस्ती करते हुए कब चार दिन गुजर गये पता ही नही

चला.

हनिमून पर विशाल जी को और मेरे संग संभोग का मौका नही मिला

बेचारे अपना मन मसोस कर रह गये.हम हनिमून मना कर वापस

लौटने के कुच्छ ही दीनो बाद मैं पंकज के साथ मथुरा चली आई.

पंकज उस कंपनी के मथुरा विंग को सम्हलता था. मेरे ससुर जी

देल्हीके विंग को सम्हलते थे और मेरे जेठ उस कंपनी के बारेल्ली के

विंग के सीईओ थे.

घर वापस आने के बाद सब तरह तरह के सवाल पूछ्ते थे. मुझे

तरह तरह से तंग करने के बहाने ढूँढते. मैं उनसब की नोक झोंक

से शर्मा जाती थी.

मैने महसूस किया कि पंकज अपनी भाभी कल्पना से कुच्छ अधिक ही

घुले मिले थे. दोनो काफ़ी एक दूसरे से मज़ाक करते और एक दूसरे को

छ्छूने की या मसल्ने की कोशिश करते. मेरा शक यकीन मे तब बदल

गया जब मैने उन दोनो को अकेले मे एक कमरे मे एक दूसरे की आगोश मे

देखा.

मैने जब रात को पंकज से बात की तो पहले तो वो इनकार करता रहा

लेकिन बार बार ज़ोर देने पर उसने स्वीकार किया कि उसके और उसकी

भाभीमे जिस्मानी ताल्लुक़ात भी हैं. दोनो अक्सर मौका धहोंध कर सेक्स का

आनंद लेते हैं. उसकी इस स्वीकृति ने जैसे मेरे दिल पर रखा

पत्थर हटा दिया. अब मुझे ये ग्लानि नही रही कि मैं छिप छिप कर

अपने पति को धोका दे रही हूँ. अब मुझे विश्वास हो गया की पंकज

को किसी दिन मेरे जिस्मानी ताल्लुकातों के बारे मे पता भी लग गया तो

कुच्छ नही बोलेंगे. मैने थोडा बहुत दिखावे को रूठने का नाटक

किया. तो पंकज ने मुझे पूछकरते हुए वो सहमति भी दे दी. उन्हों

नेकहा की अगर वो भी किसी से जिस्मानी ताल्लुक़ात रखेगी तो वो कुच्छ नही

बोलेंगे.

अब मैने लोगों की नज़रों का ज़्यादा ख़याल रखना शुरू किया. मैं

देखनाचाहती थी की कौन कौन मुझे चाहत भरी नज़रों से देखते है.

मैनेपाया कि घर के तीनो मर्द मुझे कामुक निगाहों से देखते हैं. नंदोई

और ससुर जी के अलावा मेरे जेठ जब भी अक्सक मुझे निहारते रहते थे.

मैने उनकी इच्च्छाओं को हवा देना शुरू किया. मैं अपने कपड़ों और

अपनेपहनावे मे काफ़ी खुला पन रखती थी. आन्द्रूनि कपड़ों को मैने

पहननाछ्चोड़ दिया. मैं सारे मर्दों को भरपूर अपने जिस्म के दर्शन

करवाती.
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06-25-2017, 12:49 PM,
#9
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
जब मेरे कपड़ों के अंदर से झँकते मेरे नग्न बदन को देख कर उनके

कपड़ों अंदर से लिंग का उभार दिखने लगता. ये देख कर मैं भी गीली

होने लगती और मेरे निपल्स खड़े हो जाते. लेकिन मैं इन रिश्तों का

लिहाज करके अपनी तरफ से संभोग की अवस्था तक उन्हे आने नही देती.

एक चीज़ जो घर आने के बाद पता नही कहा और कैसे गायब हो गयी

पता ही नही चला. वो थी हम दोनो की शवर के नीचे खींची हुई

फोटो. मैं मथुरा रवाना होने से पहले पंकज से पूछि मगर वो

भी

पूरे घर मे कहीं भी नही ढूँढ पाया. मुझे पंकज पर बहुत

गुस्सा आ रहा था. पता नही उस अर्धनग्न तस्वीर को कहाँ रख दिए

थे. अगर ग़लती से भी किसी और के हाथ पड़ जाए तो?

खैर हम वहाँ से मथुरा आ गये. वहाँ हुमारा एक शानदार मकान था.

मकान के सामने गार्डेन और उसमे लगे तरह तरह के पूल एक दिलकश

तस्वीर तल्लर करते थे. दो नौकर हर वक़्त घर के काम काज मे

लगे

रहते थे और एक गार्डनर भी था. तीनो गार्डेन के दूसरी तरफ बने

क्वॉर्टर्स मे रहते थे. शाम होते ही काम निबटा कर उन्हे जाने को कह

देती. क्योंकि पंकज के आने से पहले मैं उनके लिए बन संवर कर

तैयार रहती थी.

मेरे वहाँ पहुँचने के बाद पंकज के काफ़ी सबॉर्डिनेट्स मिलने के

लिएआए. उसके कुच्छ दोस्त भी थे. पंकज ने मुझे खास खास कॉंट्रॅक्टर्स

सेभी मिलवाया. वो मुझे हमेशा एक दम

बन ठन के रहने के लिए कहते थे. मुझे सेक्सी और एक्सपोसिंग कपड़ों

मे रहने के लिए कहते थे. वहाँ पार्टीस और गेट टुगेदर मे सब

औरतें एक दम सेक्सी कपड़ों मे आती थी. पंकज वहाँ दो क्लब्स का मेंबर

था. जो सिर्फ़ बड़े लोगों के लिए था. बड़े लोगों की पार्टीस देर रात

तक चलती

थी और पार्ट्नर्स बदल बदल कर डॅन्स करना, उल्टे सीधे मज़ाक

करना और एक दूसरे के बदन को छुना आम बात थी.

शुरू शुरू मे तो मुझे बहुत शर्म आती थी. लेकिन धीरे धीरे मैं

इस महॉल मे ढाल गयी. कुच्छ तो मैं पहले से ही चंचल थी और

पहले गैर मर्द मेरे नंदोई ने मेरे शर्म के पर्दे को तार तार कर

दिया

था. अब मुझे किसी भी गैर मर्द की बाँहों मे जाने मे ज़्यादा झिझक

महसूस नही होती थी. पंकज भी तो यही चाहता था. पंकज चाहता

था की मुझे सब एक सेडक्टिव

महिला के रूप मे जाने. वो कहते थे की "जो औरत जितनी फ्रॅंक और

ओपन

माइंडेड होती है उसका हज़्बेंड उतनी ही तरक्की करता है. इन सबका

हज़्बेंड के रेप्युटेशन पर एवं उनके बिज़्नेस पर भी फ़र्क पड़ता है."

हर महीने एक-आध इस तरह की गॅदरिंग हो ही जाती थी. मैं इनमे

शामिल होती लेकिन किसी गैर मर्द से जिस्मानी ताल्लुक़ात से झिझकति

थी.नाच गाने तक और ऊपरी चूमा चाती तक भी सही था. लेकिन जब

बातबिस्तर तक आ जाती तो मैं. चुप चाप अपने को उससे दूर कर लेती थी.

वहाँ आने के कुच्छ दीनो बाद जेठ और जेठानी वहाँ आए हुमारे पास.

पंकज भी समय निकाल कर घर मे ही घुसा रहता था. बहुत मज़ा आ

रहा था. खूब हँसी मज़ाक चलता. देर रात तक नाच गाने का प्रोग्रामम

चलता रहता था. कमल्जी और कल्पना भाभी काफ़ी खुश मिज़ाज के थे.

उनके चार साल हो गये थे शादी को मगर अभी तक कोई बच्चा नही

हुआ था. ये एक छ्होटी कमी ज़रूर थी उनकी जिंदगी मे मगर बाहर से

देखने मे क्या मज़ाल कि कभी कोई एक शिकन भी ढूँढ ले चेहरे पर.

एक दिन तबीयत थोरी ढीली थी. मैं दोपहर को खाना खाने के बाद

सोगयी. बाकी तीनो ड्रॉयिंग रूम मे गॅप शॅप कर रहे थे. शाम तक

यहीसब चलना था इसलिए मैं अपने कमरे मे आकर कपड़े बदल कर एक हल्का

सा फ्रंट ओपन गाउन डाल कर सो गयी. अंदर कुच्छ भी नही पहन

रखाथा. पता नही कब तक सोती रही. अचानक कमरे मे रोशनी होने से

नींद खुली. मैने अल्साते हुए आँखें खोल कर देखा बिस्तर पर मेरे

पास जेत्जी बैठे मेरे खुले बालों पर प्यार से हाथ फिरा रहे थे.

मैं हड़बड़ा कर उठने लेगी तो उन्हों ने उठने नही दिया.

"लेटी रहो." उन्हों ने माथे पर अपनी हथेली रखती हुए कहा " अब

तबीयत कैसी है स्मृति"

" अब काफ़ी अच्च्छा लग रहा है." तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरा गाउन

सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी रेशमी झांतों से भरी

योनिजेत्जी को मुँह चिढ़ा रही है. कमर पर लगे बेल्ट की वजह से पूरी

नंगी होने से रह गयी थी. लेकिन उपर का हिस्सा भी अलग होकर एक

निपल को बाहर दिख़रही थी. मैं शर्म से एक दम पानी पानी हो

गयी.

मैने झट अपने गाउन को सही किया और उठने लगी. ज्त्जी ने झट अपनी

बाहों का सहारा दिया. मैं उनकी बाहों का सहारा ले कर उठी लेकिन सिर

ज़ोर का चकराया और मैने सिर की अपने दोनो हाथों से थाम लिया.

जेत्जी

ने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. मैं अपने चेहरे को उनके घने बलों

से भरे मजबूत सीने मे घुसा कर आँखे बंद कर ली. मुझे आदमियों

का घने बलों से भरा सीना बहुत सेक्सी लगता है. पंकज के सीने

पर बॉल बहुत कम हैं लेकिन कमल्जी का सीना घने बलों से भरा

हुआहै. कुच्छ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने मे अपने चेहरे को च्चिपाए

उनके बदन से निकलने वाली खुश्बू अपने बदन मे समाती रही. कुकछ

देर बाद उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे सम्हल कर मुझे बिस्तर के

सिरहाने से टीका कर बिठाया. मेरा गाउन वापस अस्तव्यस्त हो रहा था.

जांघों तक टाँगे नंगी हो गयी थी.

मुझे एक चीज़ पर खटका हुआ कि मेरी जेठानी कल्पना और पंकज नही

दिख रहे थे. मैने सोचा कि दोनो शायद हमेशा की तरह किसी

चुहलबाजी मे लगे होंगे. कमल्जी ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास

से चाइ का ट्रे उठा कर मुझे एक कप चाइ दी.

" ये..ये अपने बनाई है?" मैं चौंक गयी.क्योंकि मैने कभी जेत्जी

को

किचन मे घुसते नही देखा था.

"हाँ. क्यों अच्छि नही बनी है?" कमल जी ने मुस्कुराते हुए मुझे

पूचछा.

"नही नही बहुत अच्छि बनी है." मैने जल्दी से एक घूँट भर कर

कहा" लेकिन भाभी और वो कहाँ हैं?"

"वो दोनो कोई फिल्म देखने गये हैं 6 से 9" कल्पना ज़िद कर रही थी

तो

पंकज उसे ले गया है.

" लेकिन आप? आप नही गये?" मैने असचर्या से पूचछा.

"तुम्हारी तबीयत खराब थी. अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देख

भाल कौन करता?" उन्हों ने वापस मुस्कुराते हुए कहा फिर बात बदले

के लिए मुझसे आगे कहा," मैं वैसे भी तुमसे कुच्छ बात कहने के

लिए एकांत खोज रहा था."
Reply
06-25-2017, 12:49 PM,
#10
RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
"क्यों? ऐसी क्या बात है?"

"तुम बुरा तो नही मनोगी ना?"

" नही आप बोलिए तो सही." मैने कहा.

"मैने तुमसे पूच्छे बिना देल्ही मे तुम्हारे कमरे से एक चीज़ उठा ली

थी." उन्हों ने सकुचते हुए कहा.

"क्या ?"

"ये तुम दोनो की फोटो." कहकर उन्हों ने हुम्दोनो की हनिमून पर

विशालजी द्वारा खींची वो फोटो सामने की जिसमे मैं लगभग नग्न

हालत मे पंकज के सीने से अपनी पीठ लगाए खड़ी थी. इसी फोटो को

मैं अपने ससुराल मे चारों तरफ खोज रही थी. लेकिन मिली ही नही

मिलती भी तो कैसे. वो स्नॅप तो जेत्जी अपने सीने से लगाए घूम रहे

थे. मेरे होंठ सूखने लगे. मैं फ़टीफटी आँखों से एकटक उनकी

आँखों मे झँकति रही. मुझे उनकी गहरी आँखों मे अपने लिए प्यार का

अतः सागर उफनते हुए दिखा.

"एयेए....आअप ने ये फोटो रख ली थी?"

"हाँ इस फोटो मे तुम बहुत प्यारी लग रही थी. किसी जलपरी की

तरह. मैं इसे हमेशा साथ रखता हूँ."

" क्यों....क्यों. ..? मैं आपकी बीवी नही. ना ही प्रेमिका हूँ. मैं आपके

छ्होटे भाई की बीबी हूँ. आपका मेरे बारे मे ऐसा सोचना भी उचित

नही है." मैने उनके शब्दों का विरोध किया.

" सुन्दर चीज़ को सुंदर कहना कोई पाप नही है." कमल ने कहा," अब

मैं अगर तुमसे नही बोलता तो तुमको पता चलता? मुझे तुम अच्छि

लगती हो इसमे मेरा क्या कुसूर है?"

" दो वो स्नॅप मुझे दे दो. किसी ने उसको आपके पास देख लिया तो बातें

बनेंगी." मैने कहा.

" नही वो अब मेरी अमानत है. मैं उसे किसी भी कीमत मे अपने से अलग

नही करूँगा."

मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी. जैसे ही उनका सहारा छ्चोड़

कर

बाथरूम तक जाने के लिए दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सिर बड़ी ज़ोर

से घूमा और मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी. इससे पहले की मैं ज़मीन

पर भरभरा कर गिर पड़ती कमल जी लपक कर आए. और मुझे अपनी

बाहों मे थाम लिया. मुझे अपने बदन का अब कोई ध्यान नही रहा. मेरा

बदन लगभग नग्न हो गया था. उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे फूल की

तरह उठाया और बाथरूम तक ले गये. मैने गिरने से बचने के लिए

अपनी बाहों का हार उनकी गर्दन पर पहना दिया. दोनो किसी नौजवान

प्रेमी युगल की तरह लग रहे थे. उन्हों ने मुझे बाथरूम के भीतर

ले जाकर उतारा.

"मैं बाहर ही खड़ा हूँ. तुम फ्रेश हो जाओ तो मुझे बुला लेना. सम्हल

कर उतना बैठना" कमल जी मुझे हिदयतें देते हुए बाथरूम के

बाहर

निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया. मैं पेशाब

करके

लड़खड़ते हुए अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे

बदन को बेपर्दा ना कर दें. मैं अब खुद को ही कोस रही थी की

किसलिए

मैने अपने अन्द्रूनि वस्त्र उतारे. मैं जैसे ही बाहर निकली तो बाहर

दरवाजे पर खड़े मिल गये. उन्हों ने मुझे दरवाजे पर देख कर

लपकते हुए आगे बढ़े और मुझे अपनी बाहों मे भर कर वापस बिस्तर

पर ले आए.

मुझे सिरहाने पर टीका कर मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर

दिया. मेरा चेहरा तो शर्म से लाल हो रहा था.

"अपने इस हुष्ण को ज़रा सम्हल कर रखिए वरना कोई मर ही जाएगा

आहें

भर भर कर" उन्हों ने मुस्कुरा कर कहा. फिर साइड टेबल से एक क्रोसिन

निकाल कर मुझे दिया. फिर वापस टी पॉट से मेरे कप मे कुच्छ चाइ

भर

कर मुझे दिया. मैने चाइ के साथ दवाई ले ली.

"लेकिन एक बात अब भी मुझे खटक रही है. वो दोनो आप को साथ

क्यों

नही ले गये…. आप कुच्छ छिपा रहे हैं. बताइए ना…."

" कुच्छ नही स्मृति मैं तुम्हारे कारण रुक गया. कसम तुम्हारी."

लेकिन मेरे बहुत ज़िद करने पर वो धीरे धीरे खुलने लगे.

" वो भी असल मे कुच्छ एकांत चाहते थे."

"मतलब?" मैने पूचछा.

" नही तुम बुरा मान जाओगी. मैं तुम्हारा दिल दुखाना नही चाहता."

" मुझे कुच्छ नही होगा आप तो कहो. क्या कहना चाहते हैं कि पंकज

और कल्पना दीदी के बीच......" मैने जानबूझ कर अपने वाक़्य को

अधूरा ही रहने दिया.

क्रमशः...............................
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