Hindi Samlaingikh Stories समलिंगी कहानियाँ
07-26-2017, 11:52 AM,
#11
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (4)

गतान्क से आगे........

मुझे बहुत अच्च्छा लगा, थोड़ा आश्चर्य भी हुआ. मुझे लगा था कि गान्ड में लंड डाल'ने में थोड़ी मेहनत करना पडेगी. यहाँ तो वह आसानी से पूरा अंदर हो गया था. मैं समझ गया कि मेरा यार काफ़ी मरवा चुका है.

अब उस'ने चूतड छोडे और अपना छल्ला सिकोड कर मेरा लंड गान्ड से पकड़ लिया. अब मज़ा आया मुझे. उस'की गान्ड ने कस कर ऐसे मेरे लंड को पकड हुआ था जैसे मूठी में दबा लिया हो. मैं प्रीतम के ऊपर लेट गया और बेतहाशा उस'की चिकनी पीठ और मासल कंधे चूम'ने लगा.

मेरे राजा, बहुत प्यारा है तेरा लंड, बड मस्त लग रहा है गान्ड में, है थोड़ा छ्होटा पर एकदम सख़्त है, लोहे जैसा. मार यार, गान्ड मार मेरी उस'के कहते ही मैं धीरे धीरे मज़े लेकर उस'की गान्ड मार'ने लगा. मैने कल'पना भी नहीं की थी कि किसी मर्द की गान्ड मारना इतना सुखद अनुभव होगा. उस'की गान्ड एकदम कोमल और गरम थी और मेरे लंड को प्यार से पकड़े हुए थी. मैने अपनी बाँहें प्रीतम के शरीर के नीचे घुसा कर उस'की छा'ती को बाँहों में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से गान्ड मार'ने लगा.

शाबास मेरे राजा, मार और ज़ोर से, और मेरे चूचुक दबा यार प्लीज़, समझ औरत के हैं. मुझे मज़ा आता है यार चूचुक मसले जा'ने पर. और देख झद'ना नहीं साले नहीं तो मार खाएगा. प्रीतम के चमडीले बेरों जैसे चूचुक दबाता और उंगलियों में लेकर मसल'ता हुआ मैं एक चित्त होकर उस'की गान्ड को भोग'ने लगा. मक्खन से चिकनी गान्ड में लंड इतना मस्त फिसल रहा था की मैं जल्द ही बिलकुल झड'ने के करीब आ गया. किसी तरह अप'ने आप को मैने रोका और हांफ'ता हुआ पड रहा. मेरे इस संयम पर खुश होकर प्रीतम ने अपना सिर घुमाया और अपना हाथ पीछे कर'के मेरी गर्दन में डाल'कर मेरे सिर को पास खींच लिया.

बस ऐसे ही मार बिना झाडे. बहुत मस्त मार रहा है तू, इनाम मिलना चाहिए तुझे मेरी जान, चुम्मा दूँगा मस्त रसीला, अप'ने मुँह का रस चखाऊंगा तुझे. चुम्मा लेते हुए गान्ड मार अप'ने यार की. मैने अप'ने होंठ उस'के होंठों पर रख दिए और पास से उस'की वासना भरी आँखों में एक प्रेमी की तरह झाँक'ता हुआ उसका मुँह चूस'ने लगा. उस'के मुँह के रस का स्वाद किसी सुंदरी के मुँह से ज़्यादा मीठा लग रहा था. जल्द ही खुले मुँह में घुस कर हमारी जीभें लड़'ने लगीं और एक दूसरे की जीभ चूसते हुए हम'ने फिर संभोग शुरू कर दिया. गांद में मेरे लंड के फिर गहरे घुसते ही प्रीतम चहक उठा.

मार साली को ज़ोर से, फुकला कर दे, मा कसम, इतना मज़ा बहुत दिन में आया मेरी जान. घंटा भर मार मेरी राजा प्लीज़. . घंटे भर तो नहीं पर बीस मिनिट मैने ज़रूर प्रीतम की गान्ड मारी होगी. अप'ने चूतड उच्छाल उच्छाल कर पूरे जोरों से प्रीतम की गान्ड में मैं लंड पेल'ता और फिर सुपाडे तक बाहर खींच लेता. मेरी जांघें उस'के नितंबों से टकरा'कर 'सॅट' 'सॅट' 'सॅट' आवाज़ कर रही थी. आख़िर कामसुख के अतिरेक से मेरा संयम जवाब दे गया और उस'की जीभ चूसते हुए मैं कस कर झड गया.

प्रीतम ने मेरे लंड को अप'ने चूतडो की गहराई में पूरा झड जा'ने दिया और फिर मुझे अपनी पीठ से उतार कर उठ बैठा. उस'की आँखें अब वासना से लाल हो चुकी थी. उसका लंड उच्छल उच्छल कर फूफकार रहा था.

मेरी सील टूटी

बिना कुच्छ कहे उस'ने मुझे बिस्तर पर ऑंढा लिटा दिया और फिर मेरी गान्ड पर टूट पड़ा. मेरे नितंबों को चाट'ता हुआ और चूम'ता हुआ वह उन्हें ऐसे मसल रहा था जैसे चूचियाँ हों. मस्ती में उस'ने ज़ोर से मेरे नितंब को काट खाया. मेरी हल्की सी चीख निकल गयी. फिर झुक कर सीधा मेरा गुदा चूस'ने लगा. अप'ने हाथों से मेरे नितंब खींच कर उस'ने मेरी गान्ड खोली और उस'में अपनी जीभ उतार दी. प्रीतम की लंबी जीभ गहरी मेरे चूतदों में गयी और मैं सुख से सिहर उठा.

प्रीतम ऐसे मेरी गान्ड में मुँह मार रहा था जैसे खा जाना चाह'ता हो. कभी जीभ से चोदता, कभी मुँह में मेरे गुदा को भर'कर चबा'ने लगता. दर्द के साथ ही आसीन सुख की लहर मेरी नस नस में दौड़ जा'ती.

अब सहन नहीं होता मेरी जान, मार लेता हूँ तेरी. यार अब तू ही मेरे लंड पर मक्खन लगा. तेरे मुलायम हाथों से ज़रा लॉडा और मस्त होगा साला, देख तो कैसा उच्छल रहा है तेरी गान्ड लेने को. जा मक्खन ले आ यार प्रीतम ने मुझपर से उठते हुए कहा. पर मैं उठ'कर पहले टेबल के पास गया और स्केल ले कर आया. मन में बहुत कुतूहल था कि उस मतवाले लंड की आख़िर साइज़ क्या है! मैं स्केल से प्रीतम का लंड नाप'ने लगा. वह मुस्करा दिया.

नाप ले मेरी रानी. आख़िर गान्ड में लेना है, तुझे भी गर्व होगा कि इतना बड तूने लिया है. उसका शिश्न पूरा सवा आठ इंच लंबा था. डंडे की मोटायी दो इंच से थोड़ी ज़्यादा थी और सुपाड़ा तो करीब करीब ढाई इंच के व्यास का था. मेरे कौमार्य को कुच्छ ही देर में भंग कर'ने को मचलते उस हथियार को मैने फिर एक बार चूमा और फिर हथेली पर ढेर सा मक्खन लेकर उस'के लंड में चुपड'ने लगा. लोहे के डंडे जैसे उस लौडे को हाथ में लेकर उस'की फूली नसों को महसूस कर'के जहाँ एक तरफ मेरी वासना फिर भड़क'ने लगी वहीं मन में डर सा लग'ने लगा. घ्होडे के लंड जैसे इस लौडे को क्या मैं ले पाऊँगा?

पाँच मिनिट मालिश करवा कर प्रीतम की सहनशक्ति भी जा'ती रही. उस'ने मुझे फिर बिस्तर पर मुँह के बल पटका और मेरे गुदा में मक्खन लगाना शुरू किया. दो तीन लोन्दे उस'ने अंदर डाल दिए और फिर मेरे शरीर के दोनों ओर घुट'ने टेक कर बैठ गया.

बस मेरी रानी, अब नहीं रहा जाता, तैयार हो जा अपनी कुँवारी गान्ड मरवा'ने को. ऐसा कर अप'ने चूतड ज़रा खुद ही फैला, इससे आसानी से अंदर जाएगा, तुझे तकलीफ़ भी कम होगी मैने अप'ने चूतड फैलाए और मेरे गुदा पर उस'के सुपाडे का स्पर्श महसूस कर'के आँखें बंद कर'के प्रतीक्षा कर'ने लगा. आज मुझे महसूस हो रहा था कि सुहागरात में पहली बार लंड चूत में लेते हुए दुल्हन पर क्या बीत'ती होगी. दिल जोरों से धडक रहा था. बहुत डर लग रहा था. पर छूट कर भाग'ने की मेरी बिलकुल इच्च्छा नहीं थी.

प्रीतम ने हौले हौले लंड पेलना शुरू किया. अपनी धधक'ती वासना के बावजूद वह बड़े प्यार से लंड अंदर डाल रहा था. पर मेरा गुदा अप'ने आप सिकुड'कर मानो अंदर घुस'ने वाले शत्रु को रोक रहा था. प्रीतम ने मुझे समझाया

यार सुकुमार, मेरी रानी, गान्ड खोल, जैसे टट्टी के समय कर'ता है, तब घुसेगा अंदर आसानी से नहीं तो तकलीफ़ देगा तुझे मेरी जान. मैने ज़ोर लगाया और गान्ड ढीली छोडी. एक सेकंड में मौका देख'कर प्रीतम ने मंजे खिलाड़ी जैसे सुपाड़ा पचाक से अंदर कर दिया. मेरा गुदा ऐसा दुखा जैसे फट गया हो. मैं चीख पड़ा. प्रीतम इस'के लिए तैयार था, मेरा मुँह दबोच कर उस'ने मेरी चीख बंद कर दी. मैं छ्टेपाटा'ने लगा. आँखों में आँसू आ गये. प्रीतम ने लंड पेलना बंद किया और एक हाथ मेरे पेट के नीचे डाल कर मेरा लंड सहला'ने लगा.

बस मेरे राजा, हो गया, रो मत, हाथी तो चला गया, अब पूंच्छ आराम से जाएगी. तू गान्ड मत सिकोड ढीली छोड पाँच मिनिट में ऐसा मरवाएगा कि कोई रंडी भी क्या चुदवा'ती होगी. कह'कर वह मेरी गर्दन चूम'ने लगा. उस'की मीठी पुचकार ने और मेरे लंड में होती मीठी चुदासी ने आख़िर अपना जादू दिखाया. मेरी यातना कम हुई और मैने सिसकना बंद कर'के गान्ड ढीली छोडी. बहुत राहत मिली.

बस अब दो मिनिट में पूरा डाल'ता हूँ, दुखे तो बताना, मैं रुक जाऊँगा. कह'कर प्रीतम ने इंच इंच लंड मेरे चूतडो के बीच पेलना शुरू किया. आधा तो मैने ले लिया और फिर दर्द होने से सिसक पड़ा. वह रुक गया. कुच्छ देर बाद दो इंच और डाला तो मुझे लगा कि पूरी गान्ड ठूंस ठूंस कर किसीने भर दी हो. अंदर जगह ही नहीं थी.

प्रीतम कुच्छ देर और धीरे धीरे लंड पेल'ने की कोशिश कर'ता रहा पर अब वह अंदर नहीं जा रहा था. वह ज़ोर लगाता तो मुझे बहुत दर्द होता था. एकाएक उस'ने मेरा मुँह दबोचा और एक शक्तिशाली झट'के से बचा हुआ तीन चार इंच का डंडा एक ही बार में अंदर गाढ दिया. मुझे लगा कि जैसे मेरी गान्ड फट गयी. मैं तिलमिला उठ और चीख'ने की कोशिश कर'ता हुआ हाथ पैर मार'ने लगा. प्रीतम ने अब मुझे पूरी तरह दबोच लिया था और मेरे ऊपर ऐसे चढ गया था जैसे शेर हिरण पर शिकार के लिए चढ जाता है. उसका लॉडा जड़ तक मेरी गान्ड में उतर गया था. मेरे तन कर खुले खींचे गुदा के छल्ले पर उस'की झाँटें महसूस हो रही थी.

दो मिनिट बाद जब उस'ने हाथ मेरे मुँह से हटाया तो मैं कराह कर सिसक'ने लगा. घान्ड में भयानक दर्द हो रहा था. मुझे चूम चूम कर और मेरा लंड मुठिया मुठिया कर उस'ने मुझे चुप कराया.

सॉरी मेरी जान पर आख़िर के तीन इंच इसी तरह ज़बरदस्ती पेल'ने पड़ते हैं नहीं तो रात निकल जा'ती है उसे अंदर डाल'ने में. असल में वहाँ तेरी आँत में बेंड है और उस'के आगे जा'ने में लंड बहुत दर्द देता है. आज अब तेरी सील टूट गयी, मालूम है, वहाँ तेरी आँत अब सीधी हो गयी होगी. अब दर्द इतना नहीं होगा. अब बस मत रो मेरी जान, अब मज़ा ही मज़ा है. कह कर वह मेरा सिर अपनी ओर घुमा कर मुझे चूम'ने लगा और मेरे आँसू अपनी जीभ से चाट'ने लगा.

उस'की आँखों में बेहद प्यार और तीव्र कामुक'ता थी. धीरे धीरे मेरा दर्द कम हुआ और लंड भी कस कर खड़ा हो गया. दर्द तो अब भी हो रहा था पर गान्ड में अब एक अजीब मादक खुमार सा भर गया था. इसका प्रमाण यह था कि अचानक मेरा गुदा अप'ने आप सिकुड कर प्रीतम के लंड को पकड़'ने लगा.

आ गया रास्ते पर. चल अब मार'ने दे, और ना तडपा. हंस कर वा बोला. मैं भी शरमा सा गया और आँसू भरी आँखों से उस'की आँखों में देख'कर उसे चूम कर मुस्करा दिया. प्रीतम ने मेरे मुँह पर अप'ने होंठ दबा दिए और एक गहरा चुंबन लेता हुआ वह धीरे धीरे लंड को अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरी गान्ड की चुदाई शुरू हो चुकी थी.

आधे घंटे तक प्रीतम ने मेरी मारी. पूरे मज़े ले लेकर, प्यार से मेरी कुँवारी गान्ड को उस'ने भोगा. दो तीन आसन उस'ने इस आधे घंटे में मुझे सीखा दिए. पहले कुच्छ देर मुझपर चढ कर वह बड़े साधे अंदाज में मेरी मार'ता रहा. धीरे धीरे रफ़्तार भी बढाइ. जब लंड आराम से 'पच' 'पच 'पच' की सेक्सी आवाज़ के साथ मेरी गान्ड में फिसल'ने लगा तब कुच्छ देर और मार'ने के बाद वह उठा और मुझे पकड़ कर चलाता हुआ दीवार तक ले गया.

गांद में लंड लेकर चलना भी एक अलग अनुभव था. हर कदम के साथ मेरे चूतड जब डोलते थे तो लंड गान्ड में रोल होता था. दुख'ता भी था और मज़ा भी आता था. प्रीतम ने मुझे दीवार से मुँह के बल सट कर खड किया और फिर खड़े खड़े ही मेरी मारी. अब तक मेरे गुदा में दर्द कम हो गया था और लबालब भरे मक्खन के कारण उसका लॉडा आराम से घचाघाच फिसल रहा था.

पसंद आया आसन मेरे राजा? या लेटे लेटे लेने में मज़ा आया? उस'ने मेरी गान्ड में लंड पेलते हुए पूच्छा. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.

यार तुम उलट लटक'कर भी मारो तो मुझे मज़ा आएगा. क्या शाही लॉडा है तेरा मेरे राजा! मैं तो फिदा हो गया. मैने भाव विभोर होकर उससे कहा. प्रीतम हंस दिया पर मेरी बात उसे बहुत अच्छी लगी यह सॉफ था क्योंकि उस'ने और जोश से मेरी मारना शुरू कर दिया. फिर वह मुझे टेबल तक ले गया और मुझे झुक कर टेबल का आधार लेकर खड़े होने को कहा. मैं टेबल का किनारा पकड़ कर झुक कर खड हुआ और वह मेरे पीछे खड़ा खड़ा मेरी मार'ता रहा.

ये खजुराहो स्टाइल है. देखी है ना वो मूर्ति? फ़र्क सिर्फ़ यह है कि उस'में एक मर्द औरत को ऐसे चोद'ता है. उस'के कंट्रोल की मैने दाद दी, इत'ने तन कर खड़े लंड के बावजूद वह बड मज़ा ले लेकर सधी हुई लय से मुझे आसन सीखा सीखा कर मेरी मार रहा था.

उस'के बाद मुझे फिर बिस्तर पर ले गया. बिस्तर पर मुझे कोहानियों और घुटनों पर कुतिया स्टाइल में खड़ा किया और पीछे से मेरे ऊपर चढ कर कुत्ते जैसी मेरी मार'ने लगा. अब उस'के हाथ मेरे बदन को भींचे हुए थे और वह घुट'ने टेक कर आधा वजन मेरे ऊपर देता हुआ मेरी मार रहा था.

यह आखरी आसन है यार. अब मैं ये मस्ती और सह नहीं सकूँगा. वैसे पशुसंभोग का यह आसान मरा'ने वाले के लिए ज़रा कठिन है. वजन सहन पड़'ता है, जैसे कुतिया कुत्ते का या घोडी घोड़े का सह'ती है. हाँ, मार'ने वाले को बहुत मज़ा आता है मैं अब कामुक'ता में डूबा हुआ हाम्फते हुए कुतिया जैसे मरवा रहा था. इतना मज़ा आ रहा था कि मैने सोचा कि अगर प्रीतम मेरे ऊपर पूरा चढ जाए तो क्या मज़ा आएगा. मैने उससे कहा तो वह ज़ोर से साँस लेता हुआ बोला कि बस दो मिनिट बाद. असल में उस'के स्खलन का समय करीब आ रहा था. कुच्छ देर बाद उस'की साँस और तेज चल'ने लगी. वह मुझे बोला

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:52 AM,
#12
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (5)

गतान्क से आगे........

संभाल राजा, गिरना नहीं और उचक कर उस'ने अपना पूरा वजन मेरे ऊपर देते हुए अपनी टाँगें उठ कर मेरी जांघों के इर्द गिर्द फँसा लीं और मुझ पर चढ कर हचक हचक कर मेरी गान्ड चोद'ने लगा. उसका पचहत्तर किलो वजन मेरे ऊपर आ गया और मैं लड़खड़ा गया.

अब वह पूरे ज़ोर से लंड करीब करीब पूरा बाहर निकाल'कर और फिर अंदर पेलते हुए मुझे चोद रहा था. मेरे ऊपर वह ऐसे चढ़ा था जैसे घोड़े पर सवार चढत है! उस'के इन शक्तिशाली धक्कों को मैं ना सह पाया और चार पाँच प्रहारों के बाद मुँह के बल बिस्तर पर गिर गया. प्रीतम मुझे चोद'ता रहा और अगले ही क्षण वह भी झड गया. उस'के गर्म वीर्य का फुआरा मेरी गान्ड में छूटा और मैं धन्य हो गया.

कुछ देर सुस्ता'ने पर उस'ने धीरे से अपना लंड मेरी चुदी गान्ड के बाहर निकाला. वह अब सिकुड गया था पर उसपर प्रीतम का वीर्य लगा हुआ था. मेरा लंड भी अब तन्नाया हुआ था, उसे देख'कर वह बोला

जल्दी आ जा मेरे यार, सिक्सटी नाइन कर लेते हैं. फिर बोला.

मेरा झड गया तो क्या हुआ, उसपर काफ़ी मलाई लगी है, चूस ले. हम एक दूसरे के लंड मुँह में लेकर लेट गये. मेरी गान्ड का स्वाद लगे उस लौडे का स्वाद ज़्यादा ही मतवाला हो गया था. जब तक मैने उसका वीर्य से लिपटा लंड सॉफ किया, उस'ने भी बड़ी सफाई से मेरा लंड चूस कर मुझे झाड़ा दिया.

घ्हडी में देखा तो रात के दो बज गये थे. चार पाँच घंटे कैसे निकल गये पता ही नहीं चला. हम दोनों तृप्त थे, लिपट कर एक दूसरे को चूमते हुए पति पत्नी की तरह सो गये. मेरी गान्ड अब ऐसे दुख रही थी जैसे किसीने उसे घूँसों से अंदर से पीटा हो. प्रीतम को बताया तो वह हंस'ने लगा.

तेरा कौमार्य भंग हुआ है, सील टूटी है तो दुखेगा ही! पर आज दोपहर तक ठीक हो जाएगा. तू नींद की गोली ले ले और सो जा. सोते समय उस'ने मुझे समझाया.

यार गान्ड मार'ने के बाद लंड हमेशा चूस कर सॉफ करना, पोंच्छाना नहीं, अरे यह तो हमारे शरीर का अमृत है, इसे व्यर्थ नहीं जा'ने देना चाहिए. शुरू में गान्ड में से निकले लंड को चूस'ने में थोड गंदा लग'ता है पर फिर आदत हो जा'ती है. वैसे सेक्स में शरीर की कोई भी चीज़ गंदी नहीं होती. मैने उसे बताया कि मेरी गान्ड में से निकला उसका लंड चूस'ने में मुझे ज़रा भी गंदा नहीं लगा था.

वे खूबसूरत चप्पलें

हम सुबह दस बजे सो कर उठे. दोनों के लंड फिर खड़े थे. गांद में होते दर्द के बावजूद मैं तो इतना आतुर था कि फिर कामक्रीड़ा में जुट जाना चाह'ता था पर उस'ने कहा कि अब दोपहर को करेंगे. बहुत बार कर'ने से लंड थक जाएगा तो सुख की वह धार निकल जाएगी. चाय पीकर हम नहा'ने गये. प्रीतम बोला.

तू चल, मैं पाँच मिनिट में आता हूँ, ज़रा सामान जमा लूँ. मैने प्रीतम से कहा कि अपनी चप्पल मुझे दे दे, मैं अपनी चप्पल के साथ उस'की भी धो देता हूँ. असल में कल से उस'की चप्पल देख देख कर मैं पागल हुआ जा रहा था, लग'ता था कि कब उसे हाथ में लूँ और मज़े करूँ. पर उससे कह'ने में झिझक रहा था, सोच'ता था की उसे पता नहीं मेरी इस फेटिश पर क्या लगे.

चप्पलें लेकर मैं बाथ रूम गया. शावर लगाया और थोड़ा नहा'कर ब्रश लेकर मेरी और उस'की चप्पलें सॉफ कीं. वैसे वे इतनी सॉफ थी कि उस'की कोई ज़रूरत नहीं थी. फिर मौका देख'कर कि प्रीतम को आने में कुच्छ वक्त लगेगा, मैने प्रीतम की चप्पलें उठाईं और मुँह से लगा लीं. उन्हें प्यार किया, चूमा, अप'ने गालों और आँखों पर फेरा, उस'के पत्ते अप'ने लंड में फँसाए, उन'के चिक'ने तलवों में अपना लंड दबा कर घिसा और फिर उन्हें चाट'ने लगा. स्वर्ग सा सुख मिल रहा था, रब्बर और प्रीतम के पैरों की भीनी खुशबू से मेरा सिर घूम रहा था. इत'ने में अचानक बाथ रूम का दरवाजा खुला और प्रीतम अंदर आया.

यार सामान बाद में जमा लेंगे, अपनी रानी के साथ नहा तो लूँ. मैने घबरा कर चप्पलें नीचे रख दीं. पता नहीं उस'ने देखा या नहीं. वह भी कुच्छ ना बोला और मुझे बाँहों में भर'कर चूम'ने लगा.

हम'ने खूब नहाया और मज़ा किया. एक दूसरे को साबुन लगाया, मालिश की और एक दूसरे के बदन को ठीक से देखा और टटोला. दोनों के लंड खड़े हो गये थे पर हम'ने अप'ने आप पर काबू रखा. नहाते समय पेशाब लगी तो एक दूसरे के साम'ने ही हम मूते. मैं जब मूत रहा था तो उस'ने धार में अपना हाथ रख दिया.

मस्त लग'ता है गरम गरमा, तू भी देख. मैने भी उस'के मूत्र की तेज धार हाथ में ली तो वह गरम गरम फुहार मन में एक अजीब गुदगुदी कर गयी. ज़रा भी अटपटा नहीं लगा. वह अचानक मूतते मूतते रुका और मेरे साम'ने बैठ'कर मेरी धार अप'ने शरीर पर लेने लगा. मैने हड़बड़ा कर मूतना बंद कर दिया तो बोला.

रुक क्यों गये राजा? मूत मेरे ऊपर, मेरे चेहरे पर धार डाल, मुझे बहुत अक्च्छा लग'ता है. मैने फिर मूतना शुरू किया. वह हिल डुल कर उस धार को अप'ने चेहरे और होंठों पर लेते हुए बैठ गया. मेरा मूतना ख़त्म होते होते उस'ने अचानक मुँह खोल कर कुच्छ बूँदें अंदर भी ले लीं. जीभ निकाल'कर चाट'ता हुआ बोला.

मस्त स्वाद है यार, खारा खारा. मैं अब तैश में था. मैं उस'के साम'ने बैठ गया और उसे भी वैसा ही कर'ने को कहा. जब उस'के मूत की मोटी तेज धार मेरे चेहरे को भिगोने लगी तो मैने मन को कड़ा कर के मुँह खोला. आधी धार अंदर गयी और उस गरम गरम खारे कसाले स्वाद से मेरा लंड और उच्छल'ने लगा. मुँह खोल'ने के पहले मैं थोड़ा परेशान था कि अगर गंदा लगे तो मेरे चेहरे के भाव से प्रीतम नाखुश ना हो जाए पर यहाँ तो उलट ही हुआ, मुझे ऐसा मज़ा आया कि उसका मूत ख़तम होने पर मैं कुच्छ निराश हो गया कि वह और क्यों नहीं मूता.

मूतना ख़तम होने पर हम दोनों शवर के नीचे खूब नहाए. जब बदन सुखाते हुए बाहर आए तो मैं तो उससे लिपट लिपट जाना चाह'ता था पर उस'ने मुझे शांत होने को कहा. बोला कि सामान जमा लेना और फिर थोड़ी पढाइ कर लेना. फिर दोपहर का खाना खा'कर मस्ती करेंगे.

हम दोपहर को बाहर खाना खा'कर वापस आए तो लंड त'ने लेकर. सीधे कपड़े उतारे और एक दूसरे से लिपट गये. प्रीतम ने नंगा होने के बाद मेरी ओर देखा और फिर मुस्करा'कर अपनी स्लीपर पहन लीं. इससे मेरे ऊपर जो प्रभाव हुआ वह अवर्णनीय है. उस'के गठे गोरे नग्न बदन और पैरों में वी रब्बर की चप्पलें देख'कर मैं झड'ने को आ गया. वह मुझे बोला.

यार तू भी चप्पल पहन ले, बड़ी प्यारा गुलाबी नाज़ुक चप्पलें हैं तेरी, तुझ पर जच'ती हैं. आपन दोनों ये हमेशा पहना करेंगे. मज़ा आता है हम सोफे पर बैठ'कर चूम चाटी कर रहे थे तभी प्रीतम ने कहा.

चल यार गान्ड मारते हैं. लंड ऐसे खड़े हैं कि जो पहले मरवाएगा उसे बहुत मज़ा आएगा. तू बिना झाडे घंटे भर मरवा सक'ता है? बोल? मरावाता है तो एक मस्त आसन तुझे दिखाता हूँ. मैं बहुत उत्तेजित था और झड़ना चाह'ता था. पर इस हालत में प्रीतम के उस मोटे ताजे लंड से मरा'ने की कल'पना मुझे बड़ी प्यारी लग रही थी. मैने किसी तरह उछलते लंड को थोड शांत किया और तैयार हो गया. प्रीतम सोफे पर बैठ गया और उस'के कह'ने पर मैं उस'के बाजू में खड हो गया. बड़े प्यार से उस'ने मेरे गुदा में मक्खन लगाया और मैने उस'के लौडे पर. फिर वह टाँगें फैला कर बैठ गया और मुझे उस'की तरफ पीठ कर'के अपनी टाँगों के बीच खड कर लिया.

गोद में बिठ कर मारूँगा मेरी रानी. अब झुक जा और गान्ड खोल ले. मैं थोड झुका और अप'ने हाथों से अप'ने चूतड फैलाए. प्रीतम ने सुपाड़ा छेद पर जमाया और बोला.

गांद ढीली छोड मैने जैसे ही गुदा ढीला किया, पक्क से उस'ने एक बार में सुपाड अंदर कर दिया. एक दर्द की टीस मेरे गुदा में उठी पर कल से दर्द कम था और मज़ा भी बहुत आया. अब उस'ने मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींचा और बोला.

मेरे लौडे को अंदर ले ले और बैठ जा मेरी गोद में. कह'ने को आसान था पर इस सूली पर चढ'ने में दो मिनिट लग गये. कल की मराई से मेरी गान्ड खुल ज़रूर गयी थी पर अब भी उस'के लंड की मोटायी के हिसाब से काफ़ी कसी थी. उस'की गोद में बैठ'ने की कोशिश करते हुए एक एक इंच कर'के लंड मैने कैसे अंदर लिया, मैं ही जान'ता हूँ. जब आखरी तीन इंच बचे तो उस'ने ज़ोर से मेरी कमर पकड़ कर खींचा और पूरा लंड सटाक से अंदर लेकर मैं धम्म से उस'की गोद में बैठ गया. फिर से गान्ड में कस कर दर्द हुआ और ना चाहते हुए भी मैं हल्का सा चीख उठा. फिर सॉरी बोला. उस'ने मुझे बाँहों में कसा और मेरे गालों को चूम'ता हुआ मुझे प्यार कर'ने लगा.

सॉरी मत बोल यार, जितना चिल्लाना है उतना चिल्ला. तेरे कुंवारेपन की निशानी है, मुझे तो बहुत मज़ा आता है जब तू कसमसाता है. अच्च्छा लग'ता है कि मेरा लंड इतना बड़ा है कि तेरे जैसे प्यारे गान्डू को भी तकलीफ़ होती है. दर्द के बावजूद मैं सुख में डूबा हुआ था. उस'ने एक हाथ से मेरे लंड को सहलाना शुरू किया और दूसरे से मेरे चूचुक हौले हौले मसल'ने लगा. मैने मुँह घुमाया और हम दोनों एक दीर्घ चुंबन में जुट गये. वह अब धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर अप'ने लंड को मेरे पेट के अंदर मुठियाता हुआ मेरी गान्ड मार रहा था. अचानक उस'ने पूच्छा.

सुकुमार मेरे यार, तुझे सच में मेरी चप्पलें इतनी अच्छी लग'ती हैं? सुन'कर मैं शरमा गया. ज़रूर उस'ने बाथ रूम में मुझे उस'की चप्पलें चाटते हुए देख लिया था.

तूने देख लिया क्या? मैने पूचछा तो वह हंस'ने लगा.

आज ही नहीं, मैं दो दिनों से देख रहा हूँ तू बार बार मेरे पैरों को क्यों देख'ता है. अरे शरमाता क्यों है, यार को नहीं बताएगा तो किसे बताएगा? कोई चीज़ शरमा'ने लायक नहीं है, तुझे मज़ा आता है ना? बस किया कर जो मन में आए मेरी चप्पालों के साथ. वैसे तेरी ये गुलाबी चप्पलें भी बड़ी प्यारी हैं मैने शरमाते हुए कहा,

प्रीतम, असल में उस रात जब तेरी चप्पलें तेरे पैर में देखी थी, मेरा खड़ा हो गया था. बहुत प्यारी हैं, पहन पहन कर घिसी हुई, मुझे बहुत अच्छी लग'ती हैं तेरी चप्पलें. और तू चल'ता भी है कैसे उन्हें चटक चटक'कर. वो आवाज़ सुन'कर लग'ता है कि उन्हें . . . और चुप हो गया. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ! फिर बोला.

चातेगा राजा मेरी चप्पल? उतारूं? मेरा दिल धडक रहा था. यह तो ऐसा हो गया जैसे भगवान पूच्छ रहे हों कि वर चाहिए तुझे? मैने कसमसा कर हां कर दी. प्रीतम बोला,

पहले ही बोलना था मेरी जान, ऐसे मामलों में शरम नहीं करते. क्या मज़ा लेगा अगर शरम करेगा. ले अब मन भर कर स्वाद ले मेरी चप्पालों का कह'कर उस'ने झुक कर अपनी चप्पलें उताऱी और हाथ में ले लीं. पहले उन्हें उलट कर'के उन'के अंदर के सोल मेरे लंड पर रगडे. उस मुलायम चिक'ने स्पर्श से मैं झड'ने को आ गया. तब उस'ने एक चप्पल के पत्ते में मेरे लंड को डाल कर उसे लंड पर लटका दिया और दूसरी हाथ में लेकर मेरे मुँह पर रख दी.

पास से मेरे यार की उस चप्पल को देख'कर और सूंघ'कर मैं वासना से पागल होने को आ गया. इतनी मीठी टीस मेरे लंड में हो रही थी. मैं जीभ निकाल'कर चप्पल चाट'ने लगा. उस'ने घुमा घुमा कर बड़े प्यार से चप्पल का इंच इंच चटवाया. रब्बर का खारा सा स्वाद बड़ा मादक था.

पट्टे मुँह में ले ले और चूस. उस'ने कहा. मैने वे पत्ते मुँह में भर लिए और चूस'ने लगा. कुच्छ देर बाद उस'के कह'ने पर मैने चप्पल का पंजा मुँह में ले लिया और चबा चबा कर चूस'ने लगा.

यार, और मुँह में ले ना. मेरे ख्याल से तो तू पूरी भी ले लेगा. तुझे बहुत मज़ा आएगा. चल मैं हेल्प कर'ता हूँ उस'ने मेरे सिर को एक हाथ से सहारा दिया और दूसरे से अपनी चप्पल की हील पकड़'कर उसे मेरे मुँह में पेल'ने लगा. मैं चूस'ता जाता और निगल'ता जाता. आधी चप्पल जब मेरे मुँह में समा गयी तो मैं थोड़ा कसमसा'ने लगा. मुँह पूरा भर गया था और गाल फूल गये थे.

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:52 AM,
#13
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (6)

गतान्क से आगे........

चल आधी तो ले ली, आज रह'ने दे, पर मा कसम, पूरी चप्पल तेरे मुँह में कभी ना कभी ठूनसावा कर ही रहूँगा. दोनों पट्टे और आधी चप्पल मेरे मुँह में थे जिन्हें मैं पूरी शक्ति से चबाते हुए चूस रहा था. अपना मनचाहा सपना पूरा होने के कारण इतनी वासना में मैं डूबा हुआ था की मेरी आँखें पथारा गयी थी. मेरे ये कारनामे देख'कर प्रीतम का लंड मचल'कर मेरी गान्ड में और गहरा घुस गया. आख़िर उससे ना रहा गया और वह मुझे वहीं सोफे पर पटक कर मेरे ऊपर चढ बैठा. अपनी दूसरी चप्पल उस'ने मेरे लौडे से निकाल कर मेरे ओन्धे चेहरे के नीचे तकिया बना'कर रख दी और हुमक हुमक कर मेरी गान्ड मार'ने लगा.

पूरे प्रयास के बावजूद वह अप'ने आप पर कंट्रोल नहीं कर पाया और दस मिनिट में ही झड गया. मेरा लंड अब इतना उत्तेजित था कि उस'के पूरा झडते ही मैं उसे हट'कर उठ बैठा और उसे पलट'कर उसपर चढ'ने की कोशिश कर'ने लगा.

दस मिनिट रुक यार, मुझे दम लेने दे, फिर मैं जैसे कहूँ वैसे मार मेरी गान्ड . आज तेरे इस मस्ता'ने लौडे से मन भर कर मरावाऊंगा. बस थोड़ा लंड खड़ा हो जा'ने दे मुझे रोकते हुए प्रीतम बोला. तब तक मैं चप्पल मुँह में लिए चूस'ता रहा और प्रीतम के भारी भरकम चूतड सहलाता रहा. उस'की गान्ड में मक्खन लगाया और उस'ने मेरे लंड को चिकना किया. जब उसका लंड फिर कुच्छ उठ'ने लगा तो वह उठा और सोफे की पीठ पकड़'कर झुक'कर खड़ा हो गया.

अब डाल यार अंदर धीरे धीरे और मार मेरी खड़े खड़े अपनी गान्ड ढीली कर'ता हुआ वह बोला. मैने तुरंत उस'की गान्ड में लंड डाल दिया. धीरे धीरे नहीं, एक ही बार में सॅट से. वह थोड़ा हुमका और फिर बोला.

चल कोई बात नहीं, आज तो तू तैश में है, पर राजा कल से धीरे धीरे डालना और घंटे भर मारना. आज भी कम से कम आधे घंटे मार यार नहीं तो सब मज़ा किरकिरा हो जाएगा. उस'के चूतड पकड़'कर पंजों के बल खड़े होकर मैने उस'की मारना शुरू कर दी. पहले स्ट्रोक थोड़े धीमे थे पर फिर उस'के कह'ने से मैं घचाघाच चोद'ने लगा. मेरा पेट बार बार उस'के नितंबों से टकराता और फॅक फॅक फॅक आवाज़ होती. बीच बीच में मैं रुक जाता जिससे झड ना जाउ. अति वासना के बावजूद अब मैं अप'ने आप पर कंट्रोल कर पा रहा था इस'लिए उस'की खूब देर मार पाया जैसी उस'की इच्च्छा थी.

सारे समय प्रीतम की चप्पल मेरे मुँह में थी जिसे मैं चूस और चबा रहा था. कुच्छ देर बाद वह खुद ही चल'कर दीवार से मुँह के बल सॅट कर खड हो गया और मुझसे खड़े खड़े गान्ड मरवाई. आख़िर इसी आसान में मैं झड गया. अपनी चप्पल जब उस'ने मेरे मुँह से निकाली तो चूस चूस कर मैने बिलकुल सॉफ कर दी थी. उसपर जगह जगह मेरे दाँतों के गहरे निशाम. भी बन गये थे. उसे देख'कर वह बोला.

हाय मेरी जान, इतनी अच्छी लगी अप'ने सैंया की चप्पल? तू फिकर मत कर, अब रात को तो ऐसे आसान से तुझे चोदून्गा कि तू खुश हो जाएगा. थक कर मैं पलंग पर लेट गया. प्रीतम मेरे पास बैठ गया और मेरे पैर उठ'कर अपनी गोद में रख लिए. मैं अपनी चप्पलें पहना हुआ था. मेरे पैरों और तलवों को सहलाता हुआ प्रीतम बोला.

यार तू तो बड़ा सुंदर है ही, तेरे पैर भी बड़े खूबसूरत हैं. एकदम चिक'ने और कोमल, तलवे तो देख, बच्चों जैसे गुलाबी हैं. और मेरे पैर उठ'कर वह उन्हें चूम'ने लगा. मैं सुख से सित्कार उठा. मेरे पैरों को चप्पलो समेत वह चूम रहा था. बीच में मेरी चप्पलें भी चाट लेता. मेरी उंगलियों को भी उस'ने मुँह में ले'कर चूसा. उसका एकदम तन्ना'कर खड़ा हो गया था.

मुझसे ना रहा गया. मैने प्रीतम के पैर खींच'कर अप'ने मुँहासे लगा लिए और उन्हें बेताशा चूम'ने और चाट'ने लगा. उस'के पैर बड़े थे, पर एकदम चिक'ने और साफ. मुझे उस'के गोरे तलवे चाट'ने में बहुत मज़ा आया. हम दोनों फिर मस्त हो गये थे. चुदाई का एक नया दौर शुरू होने ही वाला था. पर फिर प्रीतम ने उठ'कर कहा.

अभी नहीं यार, अब बाद में. शाम को मैं तेरे पैरों को छोड़ूँगा. अभी सो ले. नहीं तो चोद चोद कर हम दोनों बुरी तरह तक जाएँगे. वैसे तू क्यों चप्पल चटक'कर नहीं चलता, मेरी तरह? मैने कहा,

कोशिश तो की थी पर मुझे जम'ता नहीं प्रीतम बोला

पंजों के बल उचक उचक कर चल'ने की कोशिश कर, लड़कियों जैसी. मस्त चटकेंगी. एक दूसरे के लंड हम'ने चूस कर साफ किए और फिर कुच्छ देर आराम किया. घंटे भर सो भी लिए. मैं सो कर उठ तो वह पढ रहा था. वह पढाइ का भी पक्का था. शाम तक वह खुद पढ़ाता रहा और मुझे भी पढावाया. रात को हम'ने वहीं खाना बनाया. खाना खा'कर फिर पढ़ाई की और नहा'कर हम फिर कामक्रीड़ा में जुट गये. प्रीतम मुझसे बोला.

इधर आ यार चप्पल पहन'कर और इस स्टूल पर खड हो जा, दीवाल का सहारा ले कर. मुँह दीवाल की ओर कर'के मैं खड हो गया. बड़ी उत्सुक'ता थी कि मेरा यार अब क्या गुल खिलाएगा! वह खुद स्टूल के पास नीचे घुट'ने टेक कर बैठ गया.

अब अप'ने पंजों के बल खड हो जा. मेरी ऐडिया अब मेरी चप्पालों से ऊपर उठ गयी थी. बड़े प्यार से उस'ने अपना लंड मेरे पाँव के तलवे और चप्पल के बीच घुसेडा. फिर बोला.

अब नीचे हो जा. ख़ड़ा हो जा मेरे लौडे पर. अप'ने तलवे और चप्पल के बीच दबा ले. उस'के कड़े लंड के मेरे तलवों पर होते स्पर्श से मुझे मज़ा आ गया. मैं पैर हिला कर उस'की मालिश कर'ने लगा. मेरे पैर पकड़'कर प्रीतम अब अपना लंड मेरे तलवों और चप्पल के बीच पेल'ने लगा.

देख इसे कहते हैं पैरों को चोदना. बहुत मज़ा आता है, ख़ास कर जब तेरे जैसे चिक'ने पैरों वाला कोई मिल जाए. और तू पूरा वजन दे कर खड हो जा मेरे लंड पर, घबरा मत, मेरा लॉडा आराम से झेल लेगा. पैरों से दबा दबा कर मालिश कर उसकी मैं ऊपर नीचे होकर प्रीतम के लंड को पैर तले रौंद'ने लगा. जैसे मेरा पैर उठता, प्रीतम और पेल'ने लगता. एक चप्पल से मन भर गया तो उस'की दूसरी चप्पल में लंड डाल दिया. मेरे दोनों पैरों और चप्पालों को प्रीतम ने मन भर कर चोदा. झड'ने के करीब आ'कर रुक गया और बोला.

अब बंद करते हैं यार नहीं तो यहीं तेरी चप्पालों में झड जाऊँगा. वैसे उस'में भी मज़ा है, तुझसे चटवा कर सॉफ करा'ने में मज़ा आएगा. पर अभी तो मैं तेरी गान्ड मारूँगा. हम'ने अब अप'ने लंड और गुदा मक्खन से चिक'ने कर लिए की बीच में ना रुकना पड़े. मुझे गोद में लेकर प्रीतम मुझे प्यार कर'ने लगा.

कुच्छ देर की चूमा चॅटी के बाद उस'ने मुझे चित बिस्तर पर लिटाया और मेरे सीधे खंबे से खड़े लंड को प्यार से चूसा. चूसाते चूसाते वह उलटी तरफ से मेरी छा'ती के दोनों ओर घुट'ने टेक कर मेरे ऊपर आ गया. मुझे लगा कि लंड चुसवाना चाह'ता है पर थोड़ा सिमट'कर जब वह उकड़ू हुआ तो उस'के चूतड मेरे मुँह पर लहरा रहे थे. गांद का छेद खुल और बंद हो रहा था.

मैं समझ गया कि मुझसे गान्ड चुसवाना चाह'ता है. मैने उस'के नितंबों को दबाते हुए उसका गुदा चूसना शुरू कर दिया. उसे इतना मज़ा आया कि वह अपना पूरा वजन देकर मेरे मुँह पर ही बैठ गया. वह अपनी चप्पलें पहना हुआ था. चप्पलें भी मैं हाथ से पकड़'कर दबाता रहा.

दस मिनिट बाद वह उठा और झुक कर मेरे पेट के दोनों ओर पैर जमा कर तैयार हो गया. मेरी ओर मुँह कर के मेरा लंड उस'ने अप'ने गुदा पर जमाया और उसे अंदर लेता हुआ नीचे बैठ गया. मेरा लॉडा उस'की चिकनी खुली गान्ड में आसानी से घुस गया. पूरा लंड अंदर लेकर उस'के चूतड मेरे पेट पर टिक गये. प्रीतम ने फिर दोनों पैर उठ'कर मेरे चेहरे पर रखे और हाथ बिस्तर पर टेक कर ऊपर नीचे होते हुए खुद ही अपनी गान्ड मरा'ने लगा. चप्पलें पह'ने हुए उस'के पैर मेरे मुँह पर थे. उन'के तलवे मेरे गालों और मुँह पर रगड़'ता हुआ वह बोला.

ले अब यार, मन भर कर मेरी चप्पल चाट और चूस. मुँह में ले. मज़ा कर. मैं भी मन भर कर आराम से अपनी गान्ड से तेरे लंड को चोद'ता हूँ. मेरे लिए तो मानो खजा'ने का दरवाजा खुल गया. यहाँ प्रीतम की गान्ड का मुलायम तप'ता घर्षण मेरे लंड को अपूर्व सुख दे रहा था उधर मेरे मुँह पर टिके उस'के चप्पालों में लिपटे पैर मुझे मदहोश कर रहे थे. मैने हाथों से पकड़'कर उन्हें मुँह से लगा लिया और बेतहाशा चूम'ने और चाट'ने लगा. कभी उस'की चप्पल चाटता, कभी चप्पल का सिरा मुँह में लेकर चबाता और चूस'ता और कभी प्रीतम के तलवे चाट'ने लगता. बीच में उस'के पैरों की उंगलियाँ और अंगूठा मुँह में लेकर चूस'ने लगता.

प्रीतम ने तरसा तरसा कर आधे घंटे मुझे इस मीठी छुरी से हलाल किया और फिर ज़ोर ज़ोर से अपनी गान्ड से चोदते हुए मुझे झड़ाया. मैं इतनी ज़ोर से झाड़ा कि मेरा शरीर काँप गया. इस बार प्रीतम ने एक और करम मेरे ऊपर किया. मेरा स्खलन होने के बाद भी मुझे चोदना बंद नहीं किया, बल्कि ऊपर नीचे उच्छल'ता हुआ मेरे लंड को अप'नी गान्ड में लिए मरावाता रहा. लंड अब भी खड़ा था पर झड'ने के बाद सुपाड़ा बहुत संवेदनशील हो गया था. इस'लिए उसपर गान्ड का घर्षण मुझे सहन नहीं हुआ. जब भी वह ऊपर नीचे होता, मैं सिसकारी भरते हुए तडप तडप जाता पर वह हरामी हँसते हुए मेरे लंड को अपनी गान्ड की म्यान से रगड़'ता रहा. मुझे ऐसा निचोड़ा कि मैं किसी काम का नहीं रहा, करीब करीब बेहोश हो गया. वह तभी रुका जब मेरा लंड बिलकुल मुरझा कर उस'की गान्ड से बाहर आ गया.

मुझे ऑंढा पटक'कर उस'ने मेरी गान्ड मारना शुरू कर दी. चप्पलें उतार कर उस'ने मेरे मुँह के नीचे रख दीं और दोनों चप्पालों के पंजे मेरे मुँह में घुसा दिए. गांद मार'ने के साथ साथ वह लगातार चप्पालों को पकड़'कर मेरे मुँह में और अंदर ठेल'ने की कोशिश कर'ता रहा. लग'ता था कि पूरी जोड़ी मेरे मुँह में ठूंस देगा. गाल और जबड़े दुख'ने के बावज़ूद मैने भी चप्पलें चूस'ने का भरपूर मज़ा लिया. उन्हें मुँह में भर लेने की भी भरसक कोशिश की. जब प्रीतम आख़िर झाड़ा तो शांत होने पर मुझसे बोला.

मज़ा आ गया रानी. एक बात देखी तूने? आधी जोड़ी तेरे मुँह के अंदर है. देख, दोनों चप्पालों के पंजे और पट्टे तूने एक साथ मुँह में भर लिए हैं, सिर्फ़ ऐडिया बाहर हैं. इसका मतलब मालूम है मेरे यार? तू मेरी एक चप्पल पूरी मुँह में ले सक'ता है अब.

मैने भी गौर किया तो देखा सच था. मुझे चप्पलें चबाते हुए मरवा'ने में इतना मज़ा आया था कि मैने मन ही मन प्रण कर लिया कि रोज ऐसा ही करूँगा बल्कि मेरे यार की चप्पल खा जा'ने की कोशिश करूँगा. बस मौके का इंतजार था. प्रीतम के प्रति मेरी वासना इस हद तक बढ चुकी थी कि उस'की चप्पलें मेरे लिए स्वादिष्ट सेक्सी खाना बना गयी थी.

उस रात हम'ने एक बार और संभोग किया और फिर सो गये. यह सिक्सटी नाइन का आसन था और इस बार मैने उसका लंड काफ़ी हद तक मुँह में ले ही लिया. बस तीन चार इंच बाहर बचे होंगे. गले तक लंड निगल'कर चूसना और ख़ास कर गले में सुपाडे के कसी फिट होने से दम घुटना ये दोनों अनुभव बहुत मादक थे. प्रीतम ने तो आराम से मेरा लंड पूरा निगल कर चूसा. बोला.

अब जल्दी सिखाना पड़ेगा मेरी रानी को पूरा लॉडा मुँह में लेना. दूसरे दिन से हमारा जीवन धीरे धीरे एक कामुक'ता की लय में बँध गया. मैं प्रीतम की पत्नी जैसे उस'की सेवा कर'ने लगा. उस'के कपड़े धोता, सामान बटोर'ता और बा'की सब छोटे छोटे काम करता. सुबह प्रीतम मुझे संभोग नहीं कर'ने देता था क्योंकि कॉलेज जा'ने की जल्दी रह'ती थी. बस एक साथ नहाना, चूम चाटी करना, एक दूसरे के ऊपर मूतना इत्यादि बातें बाथ रूम में होती थी. नहाते समय मैं अपनी और उस'की चप्पलें धोता. उस'की पानी से गीली चप्पलें तो मैं चाट चाट कर और चूस कर सॉफ करता.

उन्हें मुँह में लेकर मेरा लंड ऐसा फड़फदाता की झड'ने को हो जाता. प्रीतम यह नज़ारा देख देख कर खूब गरम होता था और एक दो बार तो मेरी आशा बँध गयी थी कि शायद वहीं बाथ रूम में मुझे पटक कर वह चोद ले पर साला बड़ा कंट्रोल रख'ता था. सिर्फ़ छुट्टी के दिन बाथ रूम में ज़रूर संभोग होता था जब वह शवर के नीचे गोद में बिठा कर मेरी गान्ड मार'ता हुआ मुझसे चप्पलें चटवाता.

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:52 AM,
#14
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (7)

गतान्क से आगे........

रात को खा'ने के बाद संभोग शुरू होता तो फिर तीन चार घंटे नहीं रुकता. एकाध बार हम सिक्सटी नाइन करते या और तरह तरह से अप'ने यार के लंड चूस कर वीर्य पान करते पर बा'की अधिकतर समय ज़ोर ज़ोर से गान्ड मार'ने और मरवा'ने में जाता. गांद मारना हमारे लिए एक ऐसा खेल था कि उसे ज़ोर ज़ोर से वर्ज़िश सी करते हुए कर'ने में ह'में बड़ा मज़ा आता था. उच्छल उच्छल कर हम पूरे जोरों से एक दूसरे की मारते थे.

हां कभी कभी प्यार से गोद में बिठा'कर हौले हौले चूमा चॅटी करते हुए गान्ड चोदना भी बहुत प्यारा लग'ता था. इस'में अक्सर मैं प्रीतम की गोद में होता पर एक दो बार वह भी मेरा लंड अपनी गान्ड में लेकर मेरी गोद में बैठ जाता. इस आसन में हम कोई पोथी साथ साथ पढ़ते या फिर एक ब्लू फिल्म देखते.

प्रीतम की चप्पलें चूसना मेरा ख़ास शौक बन गया था. प्रीतम भी अक्सर मेरी चप्पालों से खेल'ता या फिर मेरे पैरों को चूम चूम कर प्यार कर'ता पर मैं तो उस'की चप्पालों का दीवाना हो गया था. गांद मरवाते या उस'की गान्ड मारते हुए प्रीतम की चप्पलें हमेशा मेरे मुँह में रह'ती थी. बस जब उसे मेरे मुँह को चूम'ने की या अपना लंड चुसवा'ने की बहुत इच्च्छा होती तभी मैं उन्हें मुँह से निकालता.

दोपहर को कॉलेज से वापस आ'कर भी खाना खा'ने के बाद दो घंटे पढ़ाई होती थी. इस बारे में वह पक्का था. हां दो तीन घंटे की इस पढ़ाई में हम कुच्छ मज़ा कर लेते थे और वह भी ऐसी कि पढ़ाई भी तेज होती थी. प्रीतम ने ही इस तरह की पढ़ाई की शुरुआत की. एक दिन जब मैं टेबल कुर्सी पर बैठ कर रिपोर्ट लिख रहा था तो वह उठ कर आया और मुझे चूम कर प्यार से बोला.

अगर तू हाथ ना रोक'ने का और लिखते रह'ने का वायदा करेगा तो एक मस्त आसन दिखाता हूँ. तू बस लिख'ता जा. देख क्या फटाफट पढाइ होती है. लंड में होते चुदासी के सुख से पढ़ाई ज़्यादा तेज होती है अगर ठीक से कोन्सन्ट्रेट किया जाए. बोल है तैयार? मेरे हामी भरते ही वह टेबल के नीचे घुस गया और मेरे साम'ने आराम से बैठ'कर मेरा तना हुआ लंड हाथ में लेकर कुच्छ देर उसे मुठियाया. फिर अपना मुँह खोल कर पूरा लंड निगल लिया. उस'के बाद बस वैसे ही बैठ रहा, मेरा लंड उस'ने चूसा नहीं. अपनी आँखों से इशारा किया कि मैं लिख'ता रहूं. उस'के गरम गीले तपते मुँह का स्पर्श मुझे मदहोश कर रहा था. मैने पढ़ाई शुरू कर दी.

एक घंटे में मेरी इतनी पढ़ाई हुई जैसी दो घंटों में नहीं होती. बस अप'ने आप पर इतना कंट्रोल करना था कि ऊपर नीचे होकर उस'के मुँह को चोद'ने की इच्च्छा दबाता रहूं. प्रीतम बस अपनी जीभ और तालू के बीच मेरे लंड को लेकर बैठ था, कभी कभी हौले से जीभ से मेरे लंड के निचले भाग को गुदगुदा देता. इतना सुख मेरी नसों मे दौड़ जाता था कि सहन नहीं होता था. घंटे भर बाद रिपोर्ट ख़तम होने पर आख़िर जब मुझसे ना रहा गया तो मैने पेन नीचे रख'कर प्रीतम का सिर अप'ने पेट पर दबाया और कुर्सी में बैठ बैठ उस'के मुँह को चोद'ता हुआ झड गया.

बाद में उसे चूमते हुए मैने कहा कि मैं भी उसे वैसा ही सुख देना चाह'ता हूँ. उस'के लिए लंड पूरा मुँह में लेना सीखना बहुत ज़रूरी था. प्रीतम बोला,

इस'में क्या बड़ी बात है, आज ही तुझे सिखा दूँगा उसी रात उस'ने मुझे लंड मुँह में पूरा लेना सिखा दिया. खड़ा लंड मुँह में लेने में कठिनायी होती थी इस'लिए उस'ने मेरी गान्ड मार'ने के बाद अपना मुरझाया लंड मेरे मुँह में दिया और पलंग पर लेट गया. तीन चार इंच की वह लुल्ली मैं आराम से पूरी मुँह में लेकर चूस'ता रहा. दस मिनिट बाद जब उसका खड़ा होना शुरू हुआ तो उस'ने मुझे आगाह किया.

अब घबराना नहीं सुकुमार राजा. गले में जाएगा तो गला ढीला छोडना. देख कैसा हलक तक उतार जाएगा. शुरू में जब उसका लंड धीरे धीरे खड़ा हुआ तो मुझे बहुत मज़ा आया. अधप'के उस लंड को मैं ऐसे चूस रहा था जैसे आइसक्रीम हो. पर जब उसका मोटा सुपाड़ा आख़िर मेरे गले में उतर'ने लगा तो मेरा दम घुट'ने लगा. साँस लेने में भी तकलीफ़ होने लगी. जब मैं लंड निकाल'ने की कोशिश कर'ने लगा तो मेरा यार मुझे पटक'कर मेरे ऊपर अपना वजन देकर लेट गया.

ऐसे थोड़े निकाल'ने दूँगा मेरी जान, आज तो पूरा लेना ही पड़ेगा. कह'कर उस'ने मेरा सिर कस के पेट पर दबा लिया. जब मैं हाथों से उस'की कमर पकड़'कर उसे हटा'ने की कोशिश कर'ने लगा तो उस'ने मेरे हाथ पकड़ लिए, अब उस'के वज़नदार शरीर को हटाना मेरे लिए असंभव था. मेरी साँस अब रुक गयी थी और लग'ता था कि बेहोश हो जाऊँगा. प्रीतम प्यार से बोला,

साले, मेरी बात मान'ता क्यों नहीं? गला ढीला छोड और हाथ पैर फेकना बंद क दे, तुझे कुच्छ नहीं होगा आख़िर मैने हार मान ली और चुपचाप गला ढीला छोड'ने की कोशिश कर'ने लगा. दो मिनिट में मेरा गला एकदम ढीला पड़ गया और दम घुटना भी बंद हो गया. प्रीतम का लॉडा अब जड़ तक मेरे मुँह में उतार चुका था और मेरी नाक और होंठ उस'की झांतों में समा गये थे. अब सहसा मैने महसूस किया कि दम भी नहीं घुट रहा है और उस मोटे ताजी ककडी को चूस'ने में भी मज़ा आ रहा है. मेरे शरीर के ढीले पड़ते ही प्रीतम ने मेरे हाथ छोड दिए. प्यार से मैने अप'ने हाथ उस'के चूतडो के इर्द गिर्द जकड लिए और गान्ड में उंगली करते हुए चूस'ने लगा.

सीख गया मेरा यार, चल अब इनाम ले ले अपना, चूस डाल. और लगे हाथ गला चुदवा भी ले. देख कैसे मुँह चोदा जाता है और मेरे सिर को पेट से सटा'कर वह घचाघाच मेरे मुँह में लंड पेल'ने लगा. बिलकुल ऐसे वह लंड पेल रहा था जैसे गान्ड मार रहा हो, उसका आधा लंड मेरे मुँह से अंदर बाहर हो रहा था. गले में जब सुपाड़ा घुस'ता और निकल'ता तो मेरा दम थोड़ा घुट'ता पर बहुत मज़ा भी आता था. मेरे मुँह को उस'ने पाँच मिनिट में किसी चूत की तरह चोद डाला. जब मैं उसका पूरा वीर्य पी गया तभी उस'ने मुझे छोडा.

इस'के बाद बारी बारी से हम पढाई के समय एक दूसरे का लंड चूसाते. उस'के साम'ने बैठ कर अपना चेहरा उस'की घनी झांतों में छुपा कर उसका लंड पूरा निगल कर वह सुख मिल'ता कि कहा नहीं जा सकता. हाँ, मुझे चुपचाप लंड मुँह में लेकर बैठ'ने की प्रैक्टिस करना पड़ी क्योंकि शुरू के दो तीन दिन मैं उसका लंड चूस'ने को ऐसा तरस जाता कि चूस कर उसे पढाइ पूरी होने के पहले ही सिर्फ़ आधे घंटे में ही झड देता.

यार का शरबत

एक दूसरे के बदन के लिए हमारी हवस का एक और चरण पूरा हुआ जब एक दूसरे के मूत्र को सिर्फ़ शरीर पर या चेहरे पर लेने के बजाय हम'ने उसे पीना शुरू कर दिया. पहल मैने ही की. अब तक बहुत किताबों में और फिल्मों में मैं देख चुका था की कैसे प्रेमी युगल आप'ने साथी का मूत्र बड़ी आसानी से पी जाते हैं. मैं भी यह करना चाह'ता था पर थोड डर'ता था.

आख़िर एक दिन जब टेबल के नीचे बैठ'कर मेरी बारी उसका लंड चूस'ने की थी तो मैं तैश में आ गया. उस दिन मैने लगातार ढाई घंटे की पढाई उससे कराई थी, बिना उसे झडाये. बाद में वह ऐसा झाड़ा की चार पाँच चम्मच भर कर अपनी मलाई मेरे मुँह में उगली. फिर तृप्ति की साँस लेता हुआ वह मेरे मुँह से लंड निकाल कर कुर्सी से उठ'ने की कोशिश कर'ने लगा. मैने उसे नहीं छोडा बल्कि कस कर पकड़ लिया और झाड़ा हुआ लॉडा चूस'ता ही रहा.

छ्होड दे यार, क्या कर रहा है? मुझे पिशाब लगी है ज़ोर की. छ्होड नहीं तो तेरे मुँह में ही कर दूँगा. उस'ने झल्ला कर कहा. उस'की बात को अनसुनी कर'के मैं चूस'ता ही रहा. आँखें उठा कर उस'की आँखों में झाँका और उसे आँख मार दी. वह समझ गया. . वासना से उस'की आँखें लाल हो गयीं. कुर्सी पर बैठ कर मेरे बाल बिखेर'ता हुआ वह बोला.

तो यह मूड है तेरा? देख, एक बार शुरू करूँगा तो रुकूंगा नहीं, पूऱ पीना पड़ेगा. और नीचे नहीं गिराना साले नहीं तो बहुत मारूँगा. उसे शायद डर था कि मैं बिचक ना जाऊं इस'लिए उस'ने मेरा सिर अप'ने पेट पर कस कर दबाया और मूत'ने लगा. उसका लंड मेरे गले तक उतरा हुआ था ही, सीधे गरमागरम मूत की तेज मोटी धार मेरे गले में उतर'ने लगी. मैं निहाल हो गया. मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ कि पूच्छो मत. घटागट उस खारे शरबत को मैं पीने लगा. इत'ने चाव से मैं पी रहा था कि उस'ने भी देखा कि ज़बरदस्ती की ज़रूरत नहीं है और अपना हाथ हटा'कर मेरे गाल पुचकार'ता हुआ आराम से मूत'ने लगा.

उसे ज़ोर की पेशाब लगी थी, दो गिलास तो ज़रूर मूता होगा. मूतना ख़तम होते होते वह भी तैश में आ गया. उसका लंड फिर खड़ा हो गया था और उस'ने लगे हाथ बैठे बैठे मेरा मुँह चोद डाला. दूसरी बार उसका वीर्य पीकर मैं उठा और उसे कुर्सी से उठा'कर वहीं ज़मीन पर पटक'कर उस'की गान्ड मार ली. वह दो बार झड कर लस्त हो गया था इस'लिए चुपचाप ज़मीन पर पड़ा पड़ा मरवाता रहा. उस'के गुदाज मासल शरीर को भोगना मुझे तब ऐसा लग रहा था जैसे किसी औरत को भोग रहा हूँ. वह भी आज किसी औरत की तरह बिलकुल शांत पड़ा पड़ा मरवा रहा था.

उसका भी मेरे शरीर की ओर कितना आकर्षण था यह उस'ने तुरंत दिखा दिया. उसी रात सिक्सटीनाइन कर'ने के बाद उस'ने तो मेरे मुँहे में मूता ही, साथ साथ मुझसे भी मुतवा लिया. एक दूसरे से लिपटे हुए बिस्तर पर पड़े पड़े ही हम एक दूसरे के मुँह में मूतते रहे. वा मेरा मूत इत'ने चाव से पी रहा था कि ख़तम होने पर भी छोड'ने को तैयार नहीं हुआ. इस'के बाद सिक्सटी नाइन के तुरंत बाद अप'ने साथी के मुँह में मूतना हमारा एक प्रिय कार्यक्रम बन गया. प्रीतम को मेरे बाल बहुत अच्छे लगते थे. उन'में वा अक्सर उंगलियाँ चलाता. कहता,

क्या ज़ूलफे हैं मेरी जान तेरी, और लंबी कर ले, मा कसम, बहुत प्यारी लगेंगी. मेरे बाल पहले ही काफ़ी लंबे थे. प्रीतम के कह'ने पर मैने बाल कटाना बंद कर दिया. उसका कहना था कि मेरी लड़कियों जैसी सूरत उससे और प्यारी लग'ती है. शायद वह बाद में मुझे लड़'की के रूप में देखना चाह'ता था.



चप्पल भोग

हमारे संभोग का अगला मादक मोड़, ख़ास कर मेरे लिए एक बड कामुक क्षण, करीब एक माह बाद एक रविवार को आया. अब तक हम रोज के क्रिया कलाप में ढल चुके थे. मैं बहुत खुश था. समझ में नहीं आता था कि प्रीतम के बिना कैसे इत'ने दिन रहा. मेरे बाल लंबे हो गये थे और प्रीतम अब प्यार से मुझे रानी कह'कर बुला'ने लगा था.

उस'की चप्पालों के प्रति मेरी आसक्ति भी चरम सीमा तक पहुँच गयी थी. जब मौका मिलता, उन्हें मैं चूम'ने और चाट'ने में लग जाता, ख़ास कर जब वे प्रीतम के पैरों में होतीं. प्रीतम अब दिन रात चप्पल पहनता. मेरे ज़िद कर'ने के कारण रात को भी पहन कर सोता था.

दो हफ्ते पहले प्रीतम ने अचानक अपनी चप्पल बदल ली थी. मुझे तो उसका कण कण पहचान का हो गया था. सहसा एक दिन उस'के पैर में उस क्रीम कलर की चप्पल के बजाय एक हल्के नीले सफेद रंग की चप्पल थी. थी यह भी रब्बर की हवाई चप्पल पर बड़ी ही नाज़ुक थी. इतनी पुरानी थी कि घिस घिस कर उस'के सोल ज़रा से रह गये थे. पट्टे भी घिस कर पतले हो गये थे और टूट'ने को आ गये थे. मुलायम तो इतनी थी जैसे रेशम की बनी हो. मुझे वह बड़ी पसंद आई. मैने पूचछा भी कि कहाँ से लाया तो कुच्छ नहीं बोला.

तुझे पसंद आई ना रानी, बस मज़ा कर. जहाँ से लाया हूँ वहाँ और भी हैं. रविवार को हम बाथ रूम में ही बहुत देर रहते और चुदाई करते. उस रविवार को हमेशा की तरह पहले मैं उस'के मुँह में मूता और उसे पेट भर'कर अपना मूत पिलाया. उस'ने मेरे मुँह में मूत'ने से इनकार कर दिया. बोला कि उसे पेशाब नहीं लगी. वह सिर्फ़ बहाना था यह मैं जान'ता था.

उस दिन उस'के दिमाग़ में ज़रूर कोई नयी शैतानी थी. वह साथ में रेशम की मुलायम रस्सी के दो टुकडे और रब्बर का एक बड चार पाँच इंच चौड छह सात इंच व्यास का बैंड लाया था. शायद किसी टायर ट्यूब में से काट हो. मेरे पूच्छ'ने पर, कि यह क्या है, कुच्छ ना बोला और हंस दिया.

मैने रोज की तरह प्रीतम की उन भीगी पतली चप्पालों के पंजे अप'ने मुँह में लिए और चूस'ने लगा. फिर वह मुझे दीवार से टिका कर मेरी गान्ड मार'ने लगा. ऊपर से गिरते शवर के ठंडे पानी के नीचे बहुत देर उस'ने मेरी गान्ड चोदी. झड'ने के बाद उस'की गान्ड मार'ने की बारी मेरी थी पर वह मुझ पर चढ़ा रहा और अपना झाड़ा लंड मेरे गुदा में ही रह'ने दिया. मुझे नीचे लिटा कर वह मेरे ऊपर सो गया. मेरा लंड टटोल कर बोला.

मस्त खड़ा है यार, अब और खड करूँ? मैने चप्पल मुँह में लिए हुए ही अस्पष्ट स्वर में कहा कि इससे ज़्यादा खड़ा वह क्या करेगा? उस'ने एक चप्पल मेरे मुँह से निकाल'कर नीचे रख दी और मुझे बची हुई चप्पल पूरी मुँह के अंदर लेने को कहा.

देख'ता जा कैसे तेरा और खड़ा कर'ता हूँ. पर पहले आज पूरी चप्पल मुँह में ले ले यार. यह पतली वाली है. तू ले लेगा. मैं कब से तेरे मुँह में अपनी पूरी चप्पल ठूँसी देखना चाह'ता हूँ. मेरी पुरानी वाली ज़रा मोटी थी, उसे तू नहीं ले पाता इसीलिए तो ये वाली मंगाई है मुझे भी यही चाहिए था. उस'की सहाय'ता से आधी से ज़्यादा चप्पल मैने आप'ने मुँह में आराम से ठूंस ली. बीच में वह बोला.

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:53 AM,
#15
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (8)

गतान्क से आगे........

तैयार हो जा, जलेगा थोड़ा पर मज़ा भी आएगा और अचानक मेरी आँतों में गरम पानी भर'ने लगा. वह जल भी रहा था. पहले तो मैं समझा नहीं कि क्या हो रहा है पर फिर पता चला कि प्रीतम मेरी गान्ड में मूत रहा है.

उस गरम खारे पानी का जादू ही कुच्छ और था. लग रहा था कि तप'ता अनीमा ले रहा हूँ. खारा होने की वजह से वह जल भी रहा था. गांद मरवा मरवा'कर अंदर से थोड़ी छिल गयी थी और इसीलिए जल रही थी. अप'ने चप्पल से भरे मुँह से मैं थोड कराहा पर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरा लंड और तंन गया. पूरा मूत कर ही वह रुका. एक लीटर मूत ज़रूर मेरी आँतों में भर दिया था उस'ने. फिर मेरा लंड सहलाता हुआ प्रीतम बोला.

मज़ा आया मेरे यार? तेरा लंड कैसा सिर तन कर खड है देख . अब मेरी मारेगा राजा? मैने सिर हिला'कर हां कहा क्योंकि मुँह में तो चप्पल थी.

फिर अब पूरी चप्पल मुँह में देता हूँ. और फिर उसे खा जा मेरे यार. मैं जान'ता हूँ की तू कब से ये कर'ने को मारा जा रहा है पर साला शरमाता है. मैने इसी लिए यह घिसी पुरानी पतली चप्पल मँगवाई थी. बिलकुल पतली है. तुझे पहली बार खा'ने को यही अच्छी है, तकलीफ़ नहीं होगी. मैं भी कब से सोच रहा हूँ की मेरी रानी मेरी चप्पालों पर इतना मार'ती है, और उसे आज तक मैं चप्पल खिला नहीं पाया. आज ख़ाले, चप्पल खा कर फिर मेरी गान्ड मार, जैसे मारनी हो, मैं कुच्छ नहीं कहूँगा.

मैं सुन कर मचल गया. डर भी लगा. यह मेरी कब की फेंटसी थी कि मेरे यार, मेरे स्वामी प्रीतम की चप्पल खा जाउ. पर रब्बर की चप्पल खाना कोई माऊली बात नहीं है. मैं कुच्छ कहना चाह'ता था कि यह कैसे होगा पर मुँह भरा होने से बोल नहीं पाया. वह फिर बोला. मैने उसके मन

की बात भाँप ली थी. मेरा लंड अब ऐसा खड़ा था कि सूज कर फट जाएगा. उसे हल्के से दबा कर वह बोला.

पर एक शर्त है यार, चप्पल निगल'ने तक तू लंड ऐसा ही रखेगा. मस्ती में तू मन लगा'कर खाएगा यह मैं जान'ता हूँ पर एक बार अगर झड गया तो फिर नहीं खा पाएगा. इस'लिए तेरी मुश्कें बाँध कर रखूँगा जब तक तू चप्पल चबा चबा कर निगल ना ले. बोल है मंजूर? उस'की आँखों में उत्कट कामवासना धधक रही थी. जितनी आस मेरे मन में थी उतनी ही लालसा उसे मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की थी. मैं तुरंत तैयार हो गया. वैसे मुझे लग'ता है कि वह जिस मूड में था उस'में अगर मैं इनकार भी कर'ता तो वह ज़ोर ज़बरदस्ती से मुझे चप्पल खिला कर ही रहता. मेरे हां कह'ने पर वह बोला.

अब मैं लंड निकाल'ता हूँ पर तू अपनी गान्ड का छल्ला सिकोड लेना. मूत अभी भरा रह'ने दे. चप्पल मुँह में पूरी लेने पर फिर मूत निकाल देना. और एक बात, तू सोच रह होगा कि चप्पल धीरे धीरे टुकडे कर के भी खाई जा सक'ती है, पर उस'में वह मज़ा कहाँ मेरी रानी? पूरी मुँह में ठूंस कर धीरे धीरे चूस चूस कर चबा चबा कर खाएगा तो स्वर्ग में पहुँच जाएगा.

उस'ने लंड मेरे गुदा से बाहर खींचा और मैने झट गान्ड सिकोड ली. जलन भी बहुत हो रही थी पर वह जलन मेरी वासना की अग्नि को और धधका रही थी. मेरे पास प्रीतम बाथ रूम के फर्श पर बैठ गया और रेशम की रस्सी से मेरे हाथ और पैर कस कर बाँध दिए. फिर मेरा सिर उस'ने अपनी गोद में रख लिया और चप्पल का बचा हिस्सा पकड़'कर दबाता हुआ मेरे मुँहे में चप्पल ठूंस'ने लगा.

अब मुँह और खोल यार, नाटक ना कर. ढीला छोड गालों को, दो मिनिट में अंदर डाल'ता हूँ. आधी से ज़्यादा चप्पल मेरे मुँह में थी ही. उस'ने एक हाथ मेरे सिर के पीछे रखा और दूसरे हाथ में चप्पल की हील को लेकर उसे दुहरा फोल्ड कर'के कस कर दबाया. उस'के शक्तिशाली हाथों के दबाव ने जादू किया. कच्छ से पूरी चप्पल मेरे मुँह में समा गयी और मेरे होंठ उनपर बंद हो गये.

चप्पल के मुडे तुडे रब्बर के दबाव से मेरे गाल बुरी तरह से फूल गये थे और बहुत दुख रहे थे. अब मैं डर गया. मज़ा तो आ रहा था पर बहुत तकलीफ़ हो रही थी. चप्पल मेरे मुँह में ऐसी भरी थी कि जैसे गाल फाड़ देगी. मुझसे ना रहा गया और मैं मुँह खोल कर प्रीतम की चप्पल बाहर निकाल'ने की कोशिश कर'ने लगा.

वह मुझे अपनी चप्पल खिला'ने की कितनी तैयारी से आया था यह अब मुझे मालूम हुआ. उस'ने तुरंत वह बड रब्बर का बैंड तान'कर मेरे सिर पर से डाला और बैंड को फैला'कर मेरे मुँह पर सरका दिया. रब्बर का वह चौड़ा बैंड कस कर मेरे मुँह को बंद कर'ता हुआ अपनी जगह फिट बैठ गया. एक तृप्ति की साँस लेकर वह बोला.

अब ठीक है, मुझे मालूम था कि तू पहली बार चप्पल पूरी मुँह में लेने के बाद छूट'ने की कोशिश करेगा इस'लिए मैने झन्झट ही ख़तम कर दी. अब तू कुच्छ नहीं कर सकता. जब पूरी चप्पल खा लेगा तभी च्छुटक़ारा मिलेगा. मैं पूरा असहाय था. हाथ पैर कस कर बँधे हुए थे, मुँह में चप्पल थी और रब्बर के बैंड ने मेरा मुँह ऊपर से जकड रखा था. मैं बिलकुल एक असहाय गुड्डा बन गया था.

मुझे उठा'कर उस'ने टायलेट पर बिठाया जिससे मैं गान्ड में भरा मूत निकाल सकूँ. नल से एक पाइप लगा'कर पाइप को गान्ड के थोड़ा अंदर डाल कर तेज पानी के धार से उस'ने मेरी आंतेन धोई और एक बार मुझे फिर नहलाया. फिर बदन तौलिया से पोंच्छ कर मेरा मुश्कें बँधा शरीर गुड्डे जैसा उठा'कर बाहर ले गया और पलंग पर प्यार से लिटा दिया.

अब खा आराम से राजा, तब तक मैं अप'ने इस गुड्डे से खेल'ता हूँ. मैं चप्पल खा'ने की कोशिश कर'ने लगा. उस'के लिए उसे चबाना ज़रूरी था. पर रब्बर का बैंड इस कदर मेरे मुँह को जकड़ा था कि जबड़े चला'ने में भी मुझे बड़ी मेहनत करना पड़'ती थी. दस मिनिट कोशिश कर'ने पर मैं लस्त हो गया. चप्पल का बस एक छ्होटा टुकड़ा मैं दाँतों से तोड़ पाया था. वह मेरी गान्ड चूस रहा था और उस'में उंगली कर रहा था. मुँह उठ कर बोला.

देखा मैं तुझे कितना प्यार कर'ता हूँ! मुझे पता था कि तू मेरे चप्पल का इतना दीवाना है कि दस बीस मिनिट में चबा चबा कर खा लेगा. मज़े ले लेकर तू धीरे धीरे खाए इस'लिए रब्बर के बैंड से तेरा मुँह कस दिया है मैने. अब दो तीन घंटे मज़ा कर. वे तीन घंटे मुझे हमेशा याद रहेंगे. भयानक असहनीय वासना में डूबा हुआ मैं किसी तरह उस'के पसीने और तलवों की खुशबू में सनी उस'की चप्पल खा'ने में लगा था और वह मुझसे ऐसे खेल रहा था जैसे बच्चे गुड्डे से खेलते हैं. मेरे शरीर को सहला और मसल रहा था, गान्ड पर चूंटी काट रहा था और चूतड भॉम्पू जैसे दबा रहा था.

फिर मेरी गान्ड में मुँह डाल कर चूस'ने में लग गया. बीच बीच में कस के वह काट खाता या गुदा को मुँह में लेकर चबा'ने लगता. काफ़ी देर मेरी गान्ड चूस'ने के बाद उस'ने आख़िर मेरी गान्ड में अपना लंड घुसेड और चोद'ने लगा.

घंटे भर उस'ने बिना झाडे मेरी मारी. तरह तरह के आसन आज़माए. मुझपर चढ'कर मारी, फिर मुझे गोद में बिठा कर मेरे गाल, आँखें और माथा बुरी तरह से चूमते हुए नीचे से उच्छल उच्छल कर मेरी मारी, बीच में मुझे दीवार से आना था और प्रीतम ने उनका भी खूब स्वाद लिया. मेरे पाँव अप'ने मुँह पर लगा'कर वह मेरे पाँव और चप्पलें चाट'ता रहा और आख़िर आख़िर में उन्हें मुँह में लेकर चूस'ने और चबा'ने लगा. बोला.

रानी, अब किसी दिन तेरी चप्पालों का भी स्वाद लेना पड़ेगा. लग'ता है कि मैं भी तेरी चप्पलें खा जाउ. पर किसी ख़ास दिन तक रुकना पड़ेगा! ख़ास दिन क्या था यह कुच्छ नहीं बताया. उसका हर कामकर्म मेरी वासना बढ़ा रहा था. मैं अब रो रहा था पर अति सुख से. मेरे आँसू वह चाट'ता जाता और मेरी आँखों में देख'ता जाता.

मुझे याद नहीं कितना समय बीत गया पर आख़िर मैने कोशिश कर'के उस'की चप्पल के टुकडे तोड़ लिए. टुकडे मैं मिठायी की तरह चबा'ने लगा. उन'में से रब्बर और उस'के पसीने का मिला जुला रस निकल रहा था. बिलकुल लगदा बन कर जब मैने पहला टुकड़ा निगला तब वह ऐसे गरमाया कि हचक हचक कर मेरी मार'ने लगा.

खा ली साले मेरी चप्पल? स्वाद आया भोसड़ी वाले गान्डू? मेरे राजा, अब देख मैं कितनी चप्पलें तुझे खिलाता हूँ. ऐसी मीठी मीठी गालियाँ देता हुआ वह ऐसा झाड़ा की सिसक'ने लगा. दस मिनिट तक उसका लंड अपना वीर्य मेरी आँत में उगल'ता रहा. आख़िर लस्त होकर वह बेहोश सा हो गया.

मैं अब जल्दी जल्दी चप्पल खा रहा था. टुकडे. अब आसानी से टूट रहे थे. जब आखरी टुकडे का लगदा मैने निगला तो कुच्छ देर वैसे ही पड़ा रहा. ज़बडे दुख रहे थे पर एक असीम सन्तोष मेरे अंदर था. अप'ने मुँह से अब मैने गोंगियाँ शुरू कर दिया.

प्रीतम ने रब्बर बैंड मेरे मुँह से निकाला और मेरे हाथ पैर खोल दिए. मैने जबड़े सहलाए और फिर उठ'कर बिना कुच्छ कहे प्रीतम पर टूट पड़ा. उसे वहीं फर्श पर ऑंढा पटक'कर मैं उसपर चढ गया. मंद मंद मुस्कराता हुआ वह आँखें बंद कर'के शांत पड़ा रहा मानो कह रहा हो कि जो करना हो कर ले यार.

मैने उस'की गान्ड में लंड डाला तो उस'के मुँह से एक सुख की सिस'की निकली. मेरा लंड अब इतना सूज गया था की अपनी ढीली गान्ड के बावजूद उसे मज़ा आ गया होगा. उस'के शरीर को बाँहों में भर'कर मैं घचाघाच उस'की गान्ड मार'ने लगा.

मैने आधे घंटे उस'की मारी. अपनी पूरी शक्ति से उस'के चूतडो में लंड अंदर बाहर किया. पहले मुझे लगा था कि दो मिनिट में झड जाऊँगा पर आज मेरे भाग्य में लग'ता है असीमित सुख लिखा था. इतनी देर खड़ा रह'ने की वजह से लंड जैसे झड़ना ही भूल गया था. आख़िर मैने कस कर उस'की छा'ती दबाई और चूचुक मरोड कर ऐसे धक्के लगाए कि वह भी कराह उठा. उस'की पीठ और गर्दन पर दाँत जमा'कर मैं ऐसा झाड़ा की मानो जान ही निकल गयी. बाद में जब हम वापस पलंग पर जा कर आराम कर रहे थे तब प्रीतम ने प्यार से मुझे बाँहों में भर'कर चूमते हुए कहा.

देखा रानी? चप्पल खा'ने से तेरा कैसा खड़ा हो गया? आज मुझे गान्ड मरा'ने में बहुत मज़ा आया. बस, अब देख'ता जा, मैं कैसे कैसे तुझे और चप्पलें खिलाता हूँ! आज के बाद चप्पालों की कमी नहीं होगी तुझे, बस तेरे ऊपर है कि कितनी खा सक'ता है मैने उसका चूचुक मुँह में लेकर चूसते हुए पूचछा कि और क्या है उस'के मन में चप्पालों के बारे में. वह बोला.

टाइम लगेगा तुझे तैयार कर'ने में. पर मैं चाह'ता हूँ कि धीरे धीरे तू पूरी जोड़ी मुँह में लेना सीख ले. और वे भी मोटी मोटी हाई हील वाली. तब आएगा असली मज़ा, तुझे भी और तुझे खिला'ने वालों को भी. आज की तो ज़रा सी पतली वाली थी, बच्चा भी खा ले ऐसी! मैं पड़ा पड़ा यह सोच'ता रहा कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मुँह में लेकर कैसा लगेगा! मन में गुदगुदी होने लगी. मैं कहाँ जान'ता था कि मेरे भाग्य में अब क्या क्या लिखा है!

एक महीने में प्रीतम मुझे अपनी दो जोड़ी चप्पलें खिला चुका था. मैं उनका ऐसा भक्त हो गया था कि कभी कभी अकेले में उन्हें खा'ने की कोशिश कर'ता था. एक बार पकड़ा गया तो प्रीतम ने दो करारे तमाचे लगाए. वह सच में बहुत नाराज़ हो गया था, उस'की आँखों में गुस्सा उतर आया था, उसे यह बरदाश्त नहीं हुआ कि मैं इतना कामुक कार्य, वह भी प्रीतम का मनपसंद, उस'की पीठ पीछे करूँ.

मुझे लगा कि अब वह दो चप्पलें एक साथ मुझे खिलाना शुरू कर देगा. इस कल'पना से ही कि मेरे यार की दोनों चप्पलें मेरे मुँह में ठूँसी हैं, मुझे डर और उत्तेजना की अजीब अनुभूति होती थी. पर उस'ने ऐसा नहीं किया. मेरे पूच्छ'ने पर बोला कि मौके पर सब हो जाएगा. हम एक दिन बाजार जा'कर प्रीतम के लिए कुच्छ और चप्पलें खरीद लाए. उस'ने सारी मेरी पसंद से लीं. बोला

तुझे खानी हैं राजा, मज़ा भी तुझे ही लेना है, तू पसंद कर. मैने तीन जोड़ा सादे सपाट सोल वाली और तीन लेडीz स्टाइल हाई हील लिए. कुच्छ पतले पट्टे की थी और कुच्छ मोटे पट्टे की. पर थी सब महँगी वाली, एकदम नरम मुलायम रब्बर की. पैसे भी प्रीतम ने दिए जबकि मैं देना चाह'ता था. आख़िर मैं खा'ने वाला था! पर वह नहीं माना, बोला मेरी रानी को मेरी तरफ से ये तोहफा है.

प्रीतम के पैरों में उन चप्पालों की कल'पना कर'के मेरा लंड ऐसा खड़ा हुआ की दुकान में से निकलना मेरे लिए मुश्किल हो गया. मेरी हालत देख'कर घर वापस आने के बाद प्रीतम ने सारी चप्पलें निकाल'कर बिस्तर पर सिराहा'ने रखीं और मेरा मुँह उन'में दबा'कर मेरी गान्ड मारी. पूरे समय मैं बेतहाशा उन चप्पालों को चाट'ता और चूम'ता रहा जो अब मेरे यार के पैरों में सज'ने वाली थी और फिर मेरे पेट में जा'कर मेरी भूख मिटा'ने वाली थी. चप्पालों से सजी वह सेज मुझे सुहागरात की फूलों से सजी सेज जैसी लग रही थी.

प्रीतम का परिवार और अर्धनारी की चाह

हमारा यह संभोग अब ऐसा निखरा कि ह'में एक दूसरे से अलग रह'ने में तकलीफ़ होने लगी. हमेशा चिपटे रहते. एक माह में मेरी ऐसी हालत हो गयी कि एक दिन गान्ड मराते हुए मैने प्रीतम से कहा.

यार प्रीतम, मेरे राजा, कितना अच्च्छा होता अगर मैं लड़'की होता. तुझसे शादी कर'के जिंदगी भर तेरी सेवा करता. जनम भर तेरा लंड मेरी गान्ड में होता! वह बोला.

तो क्या हुआ, लड़'की तू अभी भी बन सक'ता है. बस छ्होरियों जैसे कपड़े पहन ले. बाल तेरे अब अच्छे बढ गये हैं, थोड़े और बढ़ा ले, एकदम चिकनी छ्हॉकरी लगेगा.

और लंड और मम्मे? मैने पूच्छा.

शुरू में नकली चूचियाँ लगा लेना, पैडेड ब्रेसियार पहन लेना. लंड तो तेरा बहुत प्यारा है मेरी जान. तूने वे शी मेल वाले फोटो देखे हैं ना? क्या चिकनी छ्हॉकरियाँ लग'ती हैं पर सब मस्त लंड वाली होती हैं. उनसे संभोग में एक साथ नर और मादा संभोग का आनंद आता है. तू वैसा बन सक'ता है चाहे तो. मेरी वैसे चूतो में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है सिवा एक चूत के. उससे मैं बहुत प्यार कर'ता हूँ. और अगर तू सच में मेरी सेवा करना चाह'ता है तो एक उपाय है. तू चाहे तो जिंदगी भर मेरे साथ चल कर रह सक'ता है, मेरी पत्नी बन'कर ना सही, मेरी भाभी बन'कर. मेरा दिल धडक'ने लगा. वह मज़ाक नहीं कर रहा था.

तेरा बड़ा भाई है क्या? उस'की शादी नहीं हुई अब तक? मैने पूच्छा. वह हंस कर बोला.

कहो तो मेरा भाई है, कहो तो मामा है और कहो तो मेरा डैडी है. और जिस चूत का मैने ज़िक्र किया, वह पता है किस'की चूत है? मेरी मा की चूत! मैं चकरा गया.

ठीक से ब'ता ना यार! मैने उससे आग्रह किया.

चल पूरी कहानी बताता हूँ. टाइम लगेगा, इस'लिए चल, सोफे पर बैठते हैं आराम से. मुझे उठा कर वा वैसे ही सोफे पर ले गया और मुझे गोद में ले कर बैठ गया. मेरे चूतडो के बीच अब भी उसका लॉडा गढ़ा हुआ था. धीरे धीरे अप'ने लंड को मेरी गान्ड में मुठियाते हुए मुझे बार बार प्यार से चूमते हुए उस'ने अपनी कहानी बताई. मस्त परिवार प्यार की कहानी थी.

प्रीतम की मा प्रभा की शादी बस नाम की हुई थी. उसका पति कभी साथ नहीं रहा. प्रभा अक्सर माय'के आ जा'ती. असल में बचपन से उस'के पिता उसे चोदा करते थे. प्रभा को उनसे चुद'ने में इतना मज़ा आता था कि वह अप'ने पति के साथ नहीं रह पा'ती थी. अप'ने बाबूजी से चुदवा वह वह मस्ती में आ जा'ती थी. जब वह सोलह साल की थी तभी अप'ने पिता से उसे बच्चा पैदा हुआ, प्रदीप. सबको उस'ने यही बताया कि उस'के पति की संतान है, असलियत बस कुच्छ ही लोगों को मालूम थी. एक अर्थ से प्रीतम प्रभा का बेटा था और दूसरे अर्थ से छोटा भाई. उस'के बाद प्रभा पति को छोड कर हमेशा को अप'ने बाबूजी के घर आ गयी.

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:53 AM,
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RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (9)

गतान्क से आगे........

प्रदीप जब दस साल का था तब प्रभा के पिता की मौत हो गयी. प्रभा अकेली हो गयी. सेक्स की भूखी उस औरत को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे. उसका ध्यान अब अप'ने बेटे पर गया. अगर उस'के पिता अपनी बेटी को चोद सकते थे तो वो अप'ने बेटे को क्यों नहीं चोद सक'ती, ऐसा उस'के दिमाग़ में आने लगा.

उसे पता चला कि बचपन से प्रीतम बहुत मतवाला था. यार दोस्तों से गान्ड मरावाता और मार'ता था. बिलकुल अपनी मा और दादा पर गया था, उन्ही का गरम चुदैल स्वाभाव उस'ने पाया था. उस'की यह गान्ड मरा'ने की आदत छुडा'ने को प्रभा ने उसे खुद ही रिझाया और अप'ने साथ संभोग करना सीखा दिया. बस, नौ दस साल की उम्र से ही प्रदीप अपनी मा को चोद'ने लगा.

प्रभा को बहुत सुख मिला पर प्रदीप की समलिंगी संभोग की आदत वह नहीं छुडा पाई. वह गे का गे ही रहा. दूसरी औरतों में उस'की रूचि बिलकुल नहीं थी. जब वह बारह साल का था तो प्रदीप से प्रभा को गर्भ रह गया. प्रीतम पैदा हुआ. तब प्रभा अठ्ठायीस साल की थी. इस हिसाब से प्रीतम प्रभा का बेटा भी था और भांजा और पोता भी. और प्रदीप प्रीतम का पिता, मामा और भाई तीनों था.

प्रीतम भी पक्का चोदू निकाला. आअठ साल की उम्र में ही प्रदीप ने उस'की गान्ड मारना शुरू कर दी. प्रदीप के महाकाय लंड से मरा कर प्रीतम की हालत खराब हो गयी. दो तीन दिन वह बिस्तर में रहा. प्रभा पहले बहुत नाराज़ हुई और उस'ने प्रदीप को खूब पीटा पर आख़िर उस'ने अपना हाथ छोड दिया क्योंकि प्रीतम को भी मज़ा आया था. वह समझ गयी की उस'के दोनों बेटे गे हैं. अप'ने खेल में उस'ने प्रीतम को भी शामिल कर लिया. वैसे वह बहुत खुश थी. दो दो जवान बेटे उसे चोदते और उस'की गान्ड मारते थे. और साथ में एक दूसरे से भी खूब संभोग करते थे.

अब प्रीतम बाईस साल का नौजवान था, प्रदीप चौंतीस का हो गया था और प्रभा पचास की. प्रदीप ने शादी कर'ने से सॉफ इनकार कर दिया था. बोला था कि किसी औरत को चोदेगा और चूसेगा तो सिर्फ़ मा को. बा'की मज़े के लिए तो उसका छोटा भाई था ही.

प्रभा बेचारी बहुत चाह'ती थी कि प्रदीप शादी कर ले. एक दिन प्रदीप मज़ाक में बोला था कि अगर कोई शी मेल या अर्ध नारी मिल जाए तो वह शादी कर लेगा. पर ऐसा नाज़ुक छ्हॉकरा मिलना चाहिए जिस'का लंड मजबूत हो और मस्त चिकनी गान्ड और चूचियाँ भी हों, भले ही नकली चूचियाँ हों. वैसे असली हों तो और अच्च्छा है. कहानी सुन कर मेरा ऐसा तंन गया था कि क्या कहूँ. प्रीतम उसे मुठियाता हुआ बोला.

अब समझा मेरी गान्ड ढीली क्यों है? प्रदीप ने मार मार कर ऐसी कर दी है. बहुत मज़ा आता है उससे मरवा'ने में. तू उसका लंड देखेगा तो घबरा जाएगा! मुझसे बहुत बड़ा है. वह आगे बोला.

और हम दोनों को भी बचपन से चप्पलें चाट'ने का बहुत शौक है. मा की चप्पलें मुँह में लेकर हम चूसाते हैं और चोदते हैं. इसीलिए मा या हम दोनों कभी पुरानी चप्पलें फेकते नहीं. चुदाई के समय पलंग पर बिखरा लेते हैं फूलों जैसे. अब तो सौ के करीब जोड़ियाँ इकठ्थी हो गयी होंगी. तुझे जो पतली वाली सबसे पहले खिलाई वह मैने ही मा से मंगाई थी. वैसे खाईं कभी नहीं यार, तुझे खिला'कर बड़ा मज़ा आया, अब देखेंगे जमे तो

मैने मचल कर उस'की गर्दन में बाँहें डालीं और उसे चूम'ने लगा. वह भी अपना मुँह खोल कर मेरी जीभ चूस'ता हुआ नीचे से ही मेरी गान्ड मार'ने लगा. झड'ने के बाद उस'ने मेरा लंड चूस डाला. इतनी मीठी उत्तेजना मुझे हुई कि मैं करीब करीब रो दिया. घंटे भर हम चुप रहे. सोते समय उससे लिपट कर मैं शरमा कर बोला.

तू सच कह रहा था कि मैं तेरी भाभी बन जाउ? पर फिर तू मुझे नहीं चोदेगा? वह मेरे बाल सहलाता हुआ बोला.

अरे मैने अपनी मा को नहीं छोडा तो तुझे क्या छोडून्गा. समझ ले तीन तीन से तुझे चुदाना पड़ेगा. मैं, प्रदीप और मा. मा है पचास साल की पर बड़ी छिनाल है. साली का मन ही नहीं भरता. मेरे और प्रदीप का संभोग देख'कर बोली कि अगर तुम लोग आपस में चोद सकते हो तो मैं भी क्यों किसी औरत को नहीं चोद सक'ती. उस'ने भी एक दो साथीनें बना लीं. अब कह'ती है कि अगर सुंदर बहू आ जाए तो क्या मज़ा आए. और अगर कोई गान्डू लड़का लड़'की के रूप में मिल जाए तो सोने में सुहागा हो जाए. कुच्छ देर रुक कर वह आगे बोला

अब समझा कुच्छ? हमारे साथ रहना है तो घर की बहू बन कर तुझे सब'की सेवा करनी होगी. पिटाई भी होगी तेरी अगर किसी की बात नहीं मानी. मैं बोला.

यार पीटोगे क्यों मुझे? मैं तो गुलाम हूँ, हर बात मानूँगा. वैसे मुझे प्रदीप से शादी की बात जम'ती है पर डर भी लग'ता है. मेरी हालत कर दोगे तीनों मिल कर. वह सीरियस होकर बोला.

हाँ, यह तो सच है. गाँव में बहू की क्या हालत होती है यह तू जान'ता है. असल में मा, मेरे और प्रदीप के मन में बड़े बुरे विक्ऱुत ख़याल आते हैं. प्रदीप भी कह रहा था कि कोई छोकरा बहू बन के आए तो सब मुराद पूरी कर लेना. मा तो क्या क्या सोच'ती है, तू सुनेगा तो घबरा जाएगा. और एक बात है. हम जैसे रखें रहना पड़ेगा, जो कहें वह करना पड़ेगा. और जो खिलाएँ वह खाना पड़ेगा. ऐसी ऐसी चीज़ें खिलाई जाएँगी कि किसीने सोचा भी नहीं होगा. पक्के गान्डू और चुदैल कुटैल लड़'के को बहुत मज़ा आएगा हमारी बहू बन'कर अपनी दुर्गति करा'ने में भी. और रही पिटायी की बात, वो तो सिर्फ़ मज़े के लिए होगी. मा और प्रदीप के दिमाग़ में बहुत दिनों से ये चल रहा है, कहते हैं कि कोई फँस जाए तो खूब पीटेन्गे और चोदेन्गे. चिक'ने छ्होरों को पीट'ने का मज़ा ही कुच्छ और है

मेरा मन डान्वाडोल हो रहा था. बहुत डर लग रहा था पर दो मस्त बड़े लंड वाले जवानों और एक अधेड चुदक्कड नारी से मिल'ने वाली तरह तरह की कामुक गंदी और विक्ऱुत यातनाओं की सिर्फ़ कल'पना से ही मैं विभोर हो रहा था. मैने प्रीतम से पूच्छा.

खा'ने की क्या बात कर रहा था यार? वह मुस्करा कर बोला.

तू ही समझ ले, कोई ज़बरदस्ती नहीं है. चप्पल तो तू खाता ही है. मूत भी पीता है. अब ऐसा और क्या है जो अप'ने शरीर से हम तीनों तुझे खिला सकते हैं? तू ठीक से सोच कर बता. तेरी परीक्षा ले रहा हूँ ऐसा समझ ले. रात भर हम'ने संभोग किया, इत'ने हम इन गंदी बातों से उतावले हो गये थे. सुबह देर से उठे. प्रीतम तैयार होकर कॉलेज को निकला. मैने मना कर दिया. बोला आज मूड नहीं है. वह मुस्कराया और चला गया.

मैं झट से तैयार हो कर बाजार गया. अपनी छा'ती और कूल्हों का नाप मैने ले लिया था. चौंतीस और छत्तीस. फेमिन में ब्रा का नाप लेने का लेख आया था, वा मैने पढ़ा था. बाजार से 34 डी डी कप साइज़ की नाइलान की पैडेड ब्रा और 36 साइज़ की पैंटी खरीदी. शाडी पेटीकोट और ब्लओज़ का कपड़ा लिया. एक दर्जी से दुग'ने पैसे देकर साम'ने ही ब्लओज़ सिलवाया. झूट मूट कहा कि बहन के लिए चाहिए. फिर हाई हील की सैंडल ली. अंत में एक लंबे बालों का विग खरीदा.

वापस आया तो बुरी तरह लंड खड़ा था. किसी तरह मूठ मार'ने से खुद को रोका और सो गया. शाम को उठ'कर अप'ने सिंगार में जुट गया. नहा कर पहले पैंटी और ब्रा पहनी. ब्रा के अंदर बहुत सारे रुमाल ठूंस लिए जिससे वह फूल जाए. फिर विग लगाया. आईने में देखा तो विश्वास ही नहीं हुआ. मैं बहुत ही सेक्सी बड़े स्तनों वाली अर्धनग्न कन्या जैसा लग रहा था. बस पैंटी में तंबू बनाता मेरा लंड यह ब'ता रहा था कि मैं मर्द हूँ. उसे पेट से सटा'कर पेटीकोट पहन और नाडी से लंड पेट पर बाँध लिया.

फिर मैने साड़ी और ब्लओज़ पह'ने. साड़ी दो तीन बार उतारना और पहनना पड़ी पर आख़िर में जम गयी. अंत में सैंडल पह'ने और लिपस्टिक लगा ली. अब प्रीतम के आने का इंतजार था. बेल बजी और मैने धडकते दिल से दरवाजा खोला. प्रीतम चकरा गया कि कहीं ग़लत घर तो नहीं आ गया.

आप कौन? सुकुमार कहाँ है? मैने दरवाजा लगा लिया और उससे लिपट कर चूमते हुए बोला.

हाय सैंया, अपनी रानी को नहीं पहचाना? उस'की आँखों में वासना छलक आई.

क्या दिख'ता है यार तू सुकुमार, सॉरी, मैं कहना चाह'ता था कि क्या दिख'ती है तू माधुरी रानी, एकदम ब्यूटी क्वीन. साला प्रदीप, अब देख'ता हूँ कैसे शादी नहीं करता! कह'कर वह मुझे खींच कर पलंग पर ले गया और मुझे पटक कर मुझ पर चढ कर मुझे बेतहाशा चूम'ने लगा. जल्द ही उसका तन्नाया लंड मेरी गान्ड में था.

दो घंटे बाद जब वह रुका तो लस्त हो गया था. दो बार उस'ने मेरी गान्ड मारी थी. मुझे पूरा नंगा नहीं किया था, ब्रा और पैंटी रह'ने दिए थे. मेरा अर्धनग्न रूप उसे बहुत उत्तेजक लग रहा था. पैंटी में छेद कर'के उसीमेंसे उस'ने मेरी गान्ड मारी थी. जब उस'ने मेरी गान्ड में से लंड निकाला तो मैं उसे मुँह में लेता हुआ बोला.

अपनी रानी की प्यास नहीं बुझायेँगे क्या स्वामी? मैने कब से पानी नहीं पिया. आपका इंतजार कर'ती रही. मैं जान बूझ कर घर की बहू जैसा बोल रहा था. मेरा सिर पकड़'कर पेट पर दबाते हुए वह मेरे मुँह में मूत'ने लगा.

पेट भर कर पी मेरी जान. मैं भी दिन भर नहीं मूता. सुबह जल्दी में तुझे पिलाना भूल ही गया. मेरा लंड अब बुरी तरह से खड़ा था. प्रीतम ऑंढा लेट गया और मैं उस पर चढ'कर उस'की गान्ड मार'ने लगा. आईने में यह द्ऱुश्य बड ही कामुक दिख रहा था कि एक युव'ती एक जवान मर्द की गान्ड मार रही है. प्रीतम भी उत्तेजित होकर बोला.

मा की याद दिला दी तूने. उस'के पास भी दो तीन डिल्डो हैं. जब मूड में आ'ती है तो मेरी या प्रदीप की गान्ड मार लेती है. आज तुझसे मरवा कर ऐसा लग रहा है जैसे उसीसे मरवा रहा हूँ. रात को दो बार और उस'ने मेरी मारी. इस बार मुँह में चप्पल ठूंस कर मेरी गान्ड को उस'ने चोदा. आज मेरे मुँह पर रब्बर बैंड लगा'ने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी. मैं वैसे ही उस'की चप्पल चबा चबा कर खा गया. मेरा लंड चूस कर आख़िर उस'ने मुझे झड़ाया और फिर प्यार से मेरा मूत पिया. सोने के पहले वह बड़े प्यार से बोला.

तू करीब करीब पास हो गया है यार परीक्षा में. बस एकाध और चीज़ बची है जिससे मुझे पता चल जाएगा कि तू सच में हमारी दासी बन'कर रह लेगा. मैं जान'ता था. मन ही मन बोला कि सुबह तक रुक मेरे राजा, तुझे पता चल जाएगा कि मैं तुझ से कितना प्यार कर'ता हूँ.

यार का हालुआ

सुबह हम देर से उठे. रविवार था. मेरी नींद जल्दी खुल गयी थी. पड़ा पड़ा मैं प्रीतम के नितंब सहला'ने और चूम'ने लगा. उस'की गुदा को चूमा तो वह जाग गया. वह कुच्छ देर मज़े से गान्ड चुसवाता रहा, फिर उठ कर बैठ गया. चप्पल पहन'कर जब बाथ रूम जा'ने लगा तो मैं भी साथ हो लिया. अंदर पहुँच कर वह बोला.

तू क्यों आ गयी रानी? तेरा अभी काम नहीं है. जा सो जा, मुझे टट्टी करनी है. मेरी ओर वह बड़े गौर से देख रहा था. उस'की आँखों में एक उत्तेजना थी और अपना लंड कस कर मुठिया रहा था. मैं अब भी नारी रूप में था. ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी और विग भी लगाया हुआ था. मैं उस'के साम'ने ज़मीन पर बैठ गया और झुक कर उस'के पैर चूम'ने लगा.

मेरे स्वामी, मुझे माफ़ कीजिए. मुझसे बड़ी गल'ती हुई है. पैर उठा'कर मेरे गालों को अप'ने अन्गूठे से कुरेद'ता हुआ वह बोला.

क्या हुआ रानी? मुझे तो बता. इत'ने दिन आप'के शरीर की यह अमूल्य भेंट मैने बरबाद की है. आज से नहीं कर'ने दूँगी. इसपर मेरा अधिकार है. मैं आप'के शरीर से निकली हर चीज़ खाना चाह'ती हूँ. मेरा यह कर्तव्य है. मेरे स्वामी, मेरे मुँह में टट्टी करो, मुझे खिलाओ अपनी गान्ड का माल, मेरे लिए यह सोने से ज़्यादा कीम'ती है मेरे यार. मेरी यह कामुक बातें सुन'कर प्रीतम वासना से काँप'ने लगा.

सच कह'ता है यार? देख, एक बार शुरू करेगा तो हमेशा करना पड़ेगा. फिर मैं नहीं सुनूँगा तेरी, ज़बरदस्ती किया करूँगा. हाथ पैर बाँध कर तेरे मुँह पर बैठ जाऊँगा मैने ज़मीन पर लेटते हुए कहा.

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:53 AM,
#17
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (10)

गतान्क से आगे........

हां प्रीतम राजा, मैं सच कह रहा हूँ. प्लीज़, मिटा दे मेरी भूख. तेरी गान्ड के हालूए के आगे दुनिया की कोई भी मिठायी फीकी है उसे भी अब जल्दी हो रही थी, लंड ऐसा खड़ा था कि जैसे फट जाएगा. मेरे शरीर के दोनों ओर पैर जमा कर वह नीचे बैठ और खिसक'कर निशाना जमा'ने लगा. उस'के मासल भारी भरकम चूतड अब मेरे चेहरे के ठीक ऊपर थे.

मैने अप'ने हाथों से उस'के नितंब चौड़े किए और पास से गुदा के अंदर देखा. मज़ा आ गया. अंदर ठोस टट्टी दिख रही थी. गुदा को चूम'कर मैने उस'में अपनी जीभ डाली उस हालूए का स्वाद लेने को. मेरी जीभ का छ्होर उस ठोस माल में गया और उस कसाले खटमिट्ठे स्वाद से और इस घिनौने काम की कामुक भावना से मेरा लंड लोहे के डंडे जैसा तंन गया.

राजा, मेरे स्वामी, एक एक नीवाला खिलाना, जल्दी नहीं करना, मैं स्वाद ले लेकर खाऊंगी अप'ने प्राणनाथ की टट्टी. कहते हुए मैं मुँह फाड़ कर इंतजार कर'ने लगा. प्रीतम उत्तेजना में मेरे खुले मुँह पर अपना गुदा जमा कर बैठ गया और शुरू हो गया.

ले माधुरी रानी, मज़ा कर, खा मेरी टट्टी. उस'की गान्ड का छेद खुला और एक मोटी ठोस लेंडी मेरे मुँह में उतर'ने लगी. मेरे यार की वह गरम गरम ठोस टट्टी मेरे मुँह में गयी तो मैं झड'ने को आ गया. पूरी बड़ी लेंडी मेरे मुँह में जा'ने के बाद मैने आँखों से उसे इशारा किया और प्रीतम ने गुदा सिकोड कर लेंडी मेरे मुँह में गिरा दी.

मैं मुँह बंद कर के उसे चबा कर खूब स्वाद ले लेकर खा'ने लगा. कड़वे से और कसाले स्वाद के बावजूद मेरी उस कामुक हालत में मुझे वह किसी पकवान से कम नहीं लग रही थी. जब मैने टट्टी निगल ली तो प्रीतम मेरा लंड पकड़'कर बोला.

कैसी लगी रानी, ज़रा ब'ता तो! मज़ा आया? रोज खा सकेगी? मैं होंठ चाटते हुए बोला.

मेरे राजा, अब बाथ रूम में तुम सिर्फ़ नहा'ने को आना. बा'की सब काम मेरे मुँह में ही करना. बहुत अच्च्छा लग रहा है यार, पर अभी बंद मत करो, मैं पेट भर कर खाना चाह'ती हूँ

फ़िक्र मत कर मेरी रानी, अब तो रोज तुझे पेट भर'कर खिलाऊँगा. कह'कर प्रीतम'ने ज़ोर लगा'कर अगला नीवाला अपनी गान्ड से निकाला और मेरे मुँह में डाल दिया. उस'की साँसें ज़ोर से चल रही थी, अप'ने लंड को पकड़ कर वह कस कर मुठिया रहा था. मैने हाथ बढ़ा'कर उसका हाथ थाम कर उसका हस्तमैथुन बंद किया नहीं तो साला वैसे ही झड जाता.

प्रीतम की गान्ड खाली कर'ने में दस मिनिट लग गये. बीच में एक दो बार प्रीतम अपना पूरा वजन देते हुए मेरे मुँह पर ही बैठ गया. गांद हिला हिला कर वह मेरे मुँह पर अपना गुदा रगड़ रहा था.

खा रानी, ये ले , और टट्टी खा मेरी जानेमन. मेरी रानी के लिए मेरी टट्टी हाजिर है, तुझसे मैं इतना प्यार कर'ता हूँ कि आज के बाद तेरा पेट दिन में दो बार भर दूँगा इस हालूए से वह सिसक सिसक कर हाँफटे हुए कह रहा था.

जब उस'की गान्ड खाली हो गयी तो उस'ने एक गहरी साँस ली. मैने उसका गुदा चाट चाट कर सॉफ किया और अपनी जीभ गहराई तक उस'की गान्ड में डाल कर कण कण ढूँढ कर खा लिया.

प्यास लगी है राजा, अब मूत भी पीला दे तो मेरा खाना पूरा हो जाए. मैने कहा. प्रीतम उठा और झट से उस'ने मुझे दबोच कर मेरा मुँह खोला और अपना बुरी तरह से सूजा हुआ लंड मेरे मुँह में घुसेड दिया. पूरा लॉडा मेरे गले तक उतार'ने के बाद उस'ने मेरा सिर पकड़'कर अप'ने पेट पर दबाया और ज़मीन पर लेट कर मेरे मुँह को घचाघाच चोद'ने लगा.

मैं दम घुट'ने से गोंगिया'ने लगा. गले के अंदर वह मोटा लॉडा घुस'ने से तकलीफ़ हो रही थी पर मज़ा भी आ रहा था. प्रीतम ने परवाह नहीं की और मेरा मुँह चोद'ता रहा. झड कर पहले उसका वीर्य मेरे पेट में गया और फिर बिना रुके उस'ने मेरे मुँह में मूत कर मेरी प्यास बुझा दी.

इस दौरान मैं उस'के चूतडो को बाँहों में भर'कर उस'की गान्ड में उंगली कर रहा था. टट्टी के बाद उस'की गान्ड एकदम गीली चिकनी और गरम हो गयी थी. क्या मज़ा आएगा मेरे यार की वह टट्टी की हुई गान्ड मार'कर, मैं सोच रहा था. इस'लिए मेरे मुँहासे लंड निकाल'कर जब प्रीतम आख़िर उठ'ने लगा तो उसे मैने खींच कर फर्श पर ऑंढा पटक दिया और उस पर चढ कर अपना लंड उस'की गान्ड में उतार दिया.

प्रीतम को आश्चर्य हुआ पर वह अब बहुत अच्छे मूड में था. चुपचाप पड़ा पड़ा मरावाता रहा. मैने मन लगा कर उस'की गान्ड मारी और प्रीतम ने भी मेरा आनंद बढ़ा'ने को अप'ने चूतड उच्छाल उच्छाल कर मरवाई. आख़िर जब हम बेड रूम में गये तो मैं अपनी ब्रा, पैंटी और विग उतार'ने लगा.

रह'ने दे यार, बहुत प्यारा लग'ता है. अब घर में ऐसा ही रहा कर. आदत डाल ले. रात को प्रीतम ने मुझे कहा.

आ यार, देखेगा मेरी मा और प्रदीप की तस्वीर? मैं उच्छल पड़ा. आख़िर उस'ने मुझे अप'ने घर की बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था, नहीं तो वह कभी नहीं दिखाता! मैं हमेशा की तरह गान्ड में उसका लंड लेकर उस'की गोद में बैठ था. वह वैसे ही उठ कर मुझे बाँहों में उठ'कर अपनी सूटकेस के पास आया और एक लिफ़ाफ़ा निकाल'कर वापस सोफे पर आ गया. तब तक मैं पैर उठ'कर उस'की गर्दन में बाँहें डाल'कर लटका रहा. अब गान्ड में उसका लंड ना हो तो मुझे अटपटा लग'ता था.

लिफाफे से निकाल'कर उस'ने अपनी मा और प्रदीप की फोटो दिखाई. पहली फोटो में तीनों पूरे कपड़ों में एक साथ खड़े थे. प्रदीप प्रीतम जैसा ही दिख'ता था, ज़रा और लंबा और तगड़ा था. उन'की मा को देख'कर तो मैं दीवाना हो गया. रंग सांवला था, करीब करीब काला ही था पर भरे हुए शरीर की उस नारी को देख'कर ही मन में असीम कामना जाग'ती थी. साड़ी सफेद साड़ी और चोली में उस'के भारी भरकम उरोज आँचल के नीचे से भी दिख रहे थे. बालों में कुच्छ सफेद लटे भी थी. आँखों में छिनालपन लिए वह बड़े शैतानी अंदाज से मुस्करा रही थी.

बस दो फोटो और थी. उन'में चेहरा नहीं था, पर सॉफ था कि किस'की हैं. एक में मा का सिर्फ़ जांघों और गले के बीच का नग्न भाग था. ये बड़े बड़े नारियल जैसे लट'के मम्मे और उनपर जामुन जैसे चूचुक. झाँटें ऐसी घनी कि आधा पेट उन'में धक गया था. दूसरे फोटो में मा की झांतों से भरी चूत में धंसा एक गोरा गोरा लंड था. सिर्फ़ ज़रा सा बाहर था इस'लिए लंबाई तो नहीं दिख रही थी पर मोटायी देख'कर मन सिहर उठ'ता था. किसी बच्चे की कलाई जैसा मोटा डंडा था. मेरे चेहरे पर के भाव देख'कर वह हंस'ने लगा.

मज़ा आएगा जब तेरी गान्ड में यह लंड उतरेगा. तेरा मुँह बाँधना पड़ेगा नहीं तो ऐसा चीखेगा जैसे हलाल हो रहा हो. मुझे भी बहुत दुखा था. मैं बस आठ साल का था जब प्रदीप ने मेरी मारी थी. रात भर बेहोश रहा था मैं. बोल अब भी तैयार है प्रदीप की बहू बन'ने को या डर गया? मैं डर तो गया था पर उस'की मा के सेक्सी देसी रूप और प्रदीप के लंड की कल'पना से लंड में ऐसी मीठी कसक हो रही थी कि मैं मचल उठा.

प्रीतम मेरे राजा, मैं मर भी जाऊं तो भी चलेगा! मुझे गाँव ले चल और तुम तीनों का गुलाम बना ले. दूसरे ही दिन प्रीतम ने मेरे तीन फोटो खींचे. एक पूरे कपड़ों में लड़'की के रूप में और एक सिर्फ़ ब्रा, पैंटी और विग में. पैंटी के ऊपर के भाग से मेरा लंड बाहर निकल'कर दिख रहा था. तीसरे में मैं पूरा नग्न अप'ने स्वाभाविक लड़'के के रूप में था. फोटो के साथ एक चिठ्ठी लिख'कर उस'ने प्रदीप को बताया कि उस'के मन जैसी 'शी मेल' बहू मिल गयी है और उसे पसंद हो तो आगे जुगाड़ किया जाए.

अगले कुच्छ दिन मज़े में गये. हर हफ्ते दो तीन बार प्रीतम एक चप्पल मुझे खिला देता. हां उस दिन के बाद उस'ने मेरे मुँह में टट्टी नहीं की. मैने बहुत मिन्नत की पर वह अडिग रहा. बोला.

अब एकदम तू बहू बन'ने के बाद होगा सब कुच्छ. अभी से तू उसका आदी हो जाएगा तो फिर सुहाग रात में मज़ा नहीं आएगा. मैं चाह'ता हूँ कि कम से कम कुच्छ ऐसे मामलों में तू कुँवारा रहे. इसीलिए चप्पल की जोड़ी भी अब तक मैने एक साथ तेरे मुँह में नहीं ठूँसी. अब गाँव में तीनों मिल'कर तेरे साथ ये सब घिनौने कुकर्म करेंगे तब आएगा मज़ा. और एक बात है, तेरी चप्पालों की कितनी जोड़ियाँ हैं तेरे पास मैने कहा कि आधा दर्जन हैं. मुँह बना'कर वह बोला

कम पड़ेंगीं. आज ही दर्जन भर और ले आते हैं, उन्हें पहनना शुरू कर दे. उस दिन जा'कर मेरे नाप की एक दर्जन चप्पलें हम ले आए. सब पतली नाज़ुक और एकदम पतले पत्तों वाली थी. मेरी पुरानी चप्पलें उस'ने अंदर रख दीं, और बोला कि ये सब नयी चप्पलें रोज बारी बारी से पहनूं, उन्हें घिसना और मेरे पैर का स्वाद लगाना ज़रूरी है.

मैने बॉल कटाना कब का छोड दिया था. पहले ही मेरे बाल काफ़ी लंबे थे, अब करीब करीब कंधे तक आ गये थे. जल्दी भी बढाते थे इस'लिए मुझे विश्वास था कि दो तीन माह में चोटी या जूड़ा बाँध'ने लायक हो ही जाएँगे.

मैं अर्धनारी बना

दो हफ्ते बाद प्रदीप का जवाब आया. पढ कर प्रीतम मुस्करा'ने लगा, फिर थोड गंभीर हो गया. मैने धडकते दिल से पूचछा

क्या हुआ यार? प्रदीप भैया को मैं पसंद आया या नहीं?

हां और ना. कह'ता है कि बड़ा प्यारा छोकरा है. देखते ही उसका लंड खड़ा हो गया. पर एक बात पर वह अड़ा है. कह'ता है की चूचियाँ नहीं हैं लड़'के की. प्रीतम बोला.

पर ब्रा तो मैं पहनूंगा ना? और बड़ी पहन लूँगा. मैने कहा.

वह असली चूचियाँ चाह'ता है. तूने देखा है ना उन शी मेल फोटो में? वे लड़'के इंजेक्शन से और ऑपरेशन से सच मुच के मम्मे बढ़ा लेते हैं. प्रदीप चाह'ता है कि तेरी भी वैसी ही चूचियाँ हों. मैं उदास हो गया. असली चूचियाँ मैं कहाँ से लाऊँ? प्रीतम मुझे प्यार से चूम कर बोला.

तू तैयार है क्या चूचियाँ उगा'ने को? फिर मैं जुगाड़ कर'ता हूँ. एक डॉक्टर है मेरी पहचान का. वह ऐसा कर'ता है. बस दो घंटे का ऑपरेशन है. दो हफ्ते में टाँकों के निशाम भी भी गायब हो जाएँगे. फिर मज़ा ही मज़ा है. मैने पूच्छा.

पर यार, सिलिकॉन के इंजेक्शन से तो दस मिनिट में हो जाएगा. फिर ऑपरेशन की क्या ज़रूरत है?

सादे मम्मे थोड़े उगाएँगे तेरे! सच के मम्मे जिन'में दूध भी भरा जा सके. प्रीतम मुस्कराता हुआ बोला. मेरे चेहरे पर झलक आए आश्चर्य को देख'कर उस'ने समझाया.

तेरी छा'ती में चमडी के नीचे दो रब्बर की थैलियाँ भरी जाएँगी. उनका मुँह तेरे चूचुकों के छेद से जोड़ा जाएगा जिससे ऊपर से पिचकारी से उन'में दूध, बीयर, शराब कुच्छ भी भरा जा सके. फिर उन'के चारों ओर स्पंज की गद्दियाँ लगा'कर आख़िर में ऊपर से इंजेक्शन से चमडी के नीचे सिलिकॉन भर देंगे. मस्त बड़ी दुधारू भैंस जैसे थन हो जाएँगे तेरे. तेरी चूचियाँ चूस'ने में फिर बहुत मज़ा आएगा. प्रदीप की बहुत इच्च्छा है कि उस'की बाहू के ऐसे मम्मे हों. बोल, है तैयार? मुझे उलझन में पड देख'कर उस'ने समझाया.

लगा ले मेरी जान, चार पाँच साल ऐश करेंगे. फिर चाहे तो दूसरे ऑपरेशन से निकाल देंगे. तू पहले जैसा वापस हो जाएगा. मैने कल'पना की कि अपनी चूचियाँ मैं खुद मसल रहा हूँ या उन'में दूध भर'कर प्रीतम को चुसवा रहा हूँ. ऐसा लंड तन्नाया कि मैं सिसक कर प्रीतम से चिपट गया.

चल करवा दे यार आज ही, अब मुझसे नहीं रुका जाता. प्रीतम इतना खुश हुआ कि मुझे उठ'कर बाँहों में जकड'कर चूम'ने लगा. उस रात उस'ने मुझे इतना प्यार किया और हौले हौले मन लगा'कर मुझसे हर तरह की इतनी रति की कि मैं निहाल हो गया. उस'ने डॉक्टर को फ़ोन कर'के अगले ही हफ्ते का समय भी ले लिया.

ऑपरेशन आसानी से हो गया. डॉक्टर बूढा खूसट था पर था एकदम एक्स्पर्ट. उस'ने ज़रा भी नहीं पूचछा कि मैं यह क्यों कर रहा हूँ. वह यह भी समझ गया था कि प्रीतम मेरा कौन लग'ता है! उसी से उस'ने पूचछा कि कितनी बड़ी चूचियाँ बनाना है और कितनी केपेसिटी की रब्बर की थैलियाँ अंदर रखना है? प्रीतम तो तैश में बोला कि बना दो चालीस साइज़ की, मस्त एक एक लीटर की चूचियाँ. पर डॉक्टर ने समझाया कि मेरे छरहरे बदन और सीने की चमडी से वे नहीं संभालेंगे, जल्द ही लटक जाएँगे.

डॉक्टर की सलाह पर मेरे छत्तीस साइज़ के स्तन बनाए गये. अंदर पाव पाव लीटर की दो रब्बर की थैलियाँ डाली गयीं. इम्पोर्टेड थी, महँगी पर प्रीतम ने सारे पैसे दिए. लगे हाथ मेरी झाँटें बिलकुल सॉफ कर दी गयीं और एलेक्ट्रोलिसिस से उन्हें जड़ तक ख़तम कर दिया गया. मेरी टाँगें, कांखों के बाल सब जगह के बाल उड़ा दिए गये. सिर के बालों को छोड'कर अब मेरा शरीर एकदम चिकना था.

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:54 AM,
#18
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (11)

गतान्क से आगे.......

जब दूध भरोगे तो अडतीस साइज़ हो जाएगा. दो दिन में टाँके निकाल दूँगा. यह क्रीम लगा लेना, घाव भी गायब हो जाएगा दो हफ्ते में. फिर कोई कह नहीं सकेगा कि नकली चूचियाँ हैं. एक बात और. इन'में दूध एक माह बाद भर के देखना. एक बड़ी इंजेक्शन वाली सुई इस्तेमाल करना. और इन स्तनों को रोज खूब सहलाना और मसलाना. जित'ने दबाओगे, उत'ने ये खिलेंगे, अंदर का स्पंज और सिलिकॉन ठीक से जम जाएँगे और एकदम मासल त'ने स्तन बन जाएँगे. डॉक्टर ने ह'में बीदा करते हुए कहा.

उस'के एक माह बाद की बात है. ऑपरेशन के बाद हम'ने घर बदल लिया था और मैं प्रीतम की बहन बन'कर उस'के साथ रह'ता था. मैने घर के बाहर निकलना भी छोड दिया था.

मैं आईने के साम'ने नंगा खड़ा था. बस हाई हील की सैंडल पहनी थी. प्रीतम मेरे पीछे खड हो कर मेरी चूचियाँ दबा रहा था और उन'की मालिश कर रहा था. मेरे बाल अब तक कंधे के नीचे आ गये थे जिन'में मैं क्लिप लगा लेता था.

चल आज घूम'ने चलते हैं. अब बाहर भी लड़'की के रूप में घूमना तू शुरू कर दे. आदत डाल ले. वैसे गाँव में तुझे बाहर निकल'ने का मौका नहीं आएगा. पर यहाँ शहर में तो तू घूम सक'ती है माधुरी रानी. वह मुझे चूम कर बोला. अब वा मुझे माधुरी या अनुराधा कह कर बुलाता था. मेरा लंड तन कर खड था. सॉफ चिक'ने पेट और गोटियों के कारण लंड बड़ा प्यारा लग रहा था. प्रीतम ने उसे सहलाया और बोला.

इसे अब बाँध कर रखना पड़ेगा. और अब चलते समय ज़रा चूतड मटका'ने की आदत डाल ले. मैने कहा.

प्रीतम, मैं भूल जा'ती हूँ कि मैं अब लड़'की हून. इस'लिए चलते समय लड़'के जैसे चल'ने लग'ती हूँ.

मैं बताता हूँ एक उपाय. चल झुक कर खड़ी हो जा. कह'कर वह एक ककडी ले आया. अप'ने मुँह में डाल कर अप'ने थूक से उसे गीला कर'के उस'ने ककडी मेरी गान्ड में घुसेड दी और उंगली से गहरी अंदर उतार दी.

अब चल कर देख. वह हंस'कर बोला. मैं जब चला तो ककडी गान्ड के अंदर होने से और हाई हील की सैंडल के कारण मेरे चूतड खुद ब खुद लहरा उठे. कमरे के दो चक्कर लगा'कर जब मैं लौट तो प्रीतम मुझसे चिपक गया.

क्या मस्त चल'ती है तू रंडी जैसी! बाहर ना जाना होता तो अभी पटक कर तेरी मार लेता. अब कपड़े पहन और चल. वापस आ'कर तेरी चूचियों का भी टेस्ट लेना है कि इन'में कितना दूध आता है.

जब हम बाहर निकले तो मुझे बहुत अटपटा लग रहा था. डर लग रहा था कि कोई पहचान ना ले कि मैं लड़का हूँ. लंड को मैने पेट पर सटा'कर उसपर पैंटी पहन ली थी और फिर पेटीकोट का नाडा उसीपर कस कर बाँध लिया था. इस'लिए लंड तो छुप गया था पर फिर भी मैं घबरा रहा था. प्रीतम ने मेरी हौसला बँधाया.

बहुत खूबसूरत लग रही है तू माधुरी रानी. दो घंटे बाद हम लौटे तो मैं हवा में चल रहा था. मेरे असली रूप को कोई नहीं पहचान पाया था. प्रीतम के एक दो मित्र भी नहीं जिनसे मैं मिल चुका था. और मैने महसूस किया कि राह चलते नौजवान बड़ी कामुक नज़रों से मेरी ओर देखते थे. मैं कुच्छ ज़्यादा ही कमर लचका कर चल रहा था. लोग प्रीतम की ओर वे बड़ी ईर्ष्या से देखते कि क्या मस्त छोकरी पटायी है उस'ने.

जब वापस आए तो प्रीतम का भी कस कर खड़ा हो गया था. घर में आते ही उस'ने मुझे पटक कर चूमाचाटी शुरू कर दी. वह मेरी गान्ड मारना चाह'ता था पर उस'में ककडी थी. निकल'ने तक उसे सब्र नहीं था. इस'लिए उस'ने आख़िर मेरे मुँह में अपना लॉडा घुसेड कर चोद डाला.

मुझे अपना वीर्य और मूत पिला कर वह उठा तो मैं अपना गला सहलाते हुए उठ बैठा. इतनी ज़ोर से उस'ने मेरा गला चोदा था कि मुझसे बोला भी नहीं जा रहा था. ऊपर से खारे मूत से जलन भी हो रही थी. उस'की वासना शांत होने पर प्यार से मुझे गाली देते हुए वह बोला.

आज रात भर तुझे चोदून्गा. साली रंडी छिनाल. क्या हालत कर दी है तेरे रूप ने! अब गाँव में हम तीनों मिल'कर तेरे रूप को कैसे भोगते हैं, तू ही देखना. ऐसे कुचल कुचल कर मसल मसल कर तुझे चोदेन्गे की तू बिना चुद'ने के और किसी लायक नहीं रह जाएगा साले मादरचोद. अब चल, चूची में दूध भरवा ले और चुदा'ने चल उस'ने एक डिब्बा निकाला. उस'में काले रब्बर के छोटे छोटे चूचुक थे. उन्हें तान कर मुझे दिखाता हुआ बोला.

ये चूचुक औरतें ऊपर से अप'ने चूचुक पर लगा लेती हैं कि दूध छलक ना जाए. अब मैं दर्जनों ले आया हूँ, तेरे लिए काम आएँगीं.

मुझे नग्न कर'के उस'ने मेरे स्तन दबाना शुरू कर दिए. मसल मसल कर उन्हें नरम किया और मेरे चूचुक खींच कर खड़े किए. फिर उस'ने फ्रिज से दूध निकाला. उसमे शक्कर घोली और एक बड़ी सीरिंज में दूध भरा. मेरे चूचुक को दबा'कर उस'ने उस'में का छेद खोला और हौले से उसमे सीरिंज की सुई डाली. मुझे थोड़ा दर्द हुआ पर मैं सह गया. अब तो यह रोज होने वाला था. सीरिंज दबा'कर उस'ने दूध अंदर भरना शुरू किया.

मेरा स्तन फूल'ने लगा. बड़ी अजीब सी गुदगुदी मुझे हुई. कसमसा'कर मैने प्रीतम के गले में बाँहें डालीं और उसे चूम'ने लगा. प्रीतम मेरी चूची एक हाथ से पकड़'कर दूसरे से सीरिंज दबाता रहा और मेरा मुँह चूम'ता रहा.

जब सीरिंज खाली हो गयी तो फिर उस'में दूध भर'कर प्रीतम फिर शुरू हो गया. जब चूचुक में से दूध छलक'ने लगा तब उस'ने सीरिंज निकाली और एक रब्बर का चूचुक तान कर मेरे चूचुक पर पहना दिया. पीछे हट'कर उस'ने मेरी ओर देखा और बोल पड़ा.

वाह, क्या बात है, अब लग रही है असली रसीली चूची. मैने आईने में देखा कि दूध वाली चूची फूल कर दूसरी के मुकाबले दुगुनी हो गयी थी. तन कर खड़ी थी और लाल हो गयी थी. खाली चूची सेब की तरह गोल मटोल थी और भारी वाली नारियल जैसी हो गयी थी. प्रीतम ने उसे दबाया तो मेरे मुँहे से एक हल्की चीख निकल गयी. तन कर मेरा स्तन बड़ा नाज़ुक हो गया था और जारी भी दबा'ने से एकदम दुख'ता था. पर साथ ही मेरे चूचुक में बड़ी कामुक सी टीस उठ'ती थी.

मेरी दूसरी चूची में दूध भर'ने के बाद प्रीतम ने मुझसे चल'ने को कहा. जब मैं चूतड मटक कर चला तो मम्मे गुब्बारों जैसे डोल'ने और उच्छल'ने लगे. वे भरी भी थे इस'लिए मेरी छा'ती पर उनका वजन मुझे बड़ा मादक लग रहा था. मेरे मचलते स्तनों को देख'कर प्रीतम अपना लंड मुठियाते हुए बोला.

आज मज़ा आएगा अब तेरी गान्ड मार'ने में. खूब चूचियाँ मसल मसल कर तेरी मारूँगा. फिर तेरा दूध पीऊंगा और फिर मारूँगा. अब चल, पहले मुझे अपनी गान्ड की ककडी खिला.

मुझे पटक'कर उस'ने मेरे गुदा पर मुँह लगाया और चूस कर ककडी बाहर खींच ली. जैसे जैसे वा बाहर निकल'ती गयी, वह खाता गया. मुझे बड अच्छा लग रहा था. मेरी गान्ड में इतनी देर रह'ने के बाद उसपर ज़रूर मेरी गान्ड का माल लगा होगा. वह जिस तरह खा रहा था, मेरे मन में एक आशा जागी कि शायद मैं जिस तरह से उस'की टट्टी का दीवाना हो गया था, वैसा शायद मेरा यार भी आगे चल कर हो जाए!

अब तुझे भी तेरी पसंद की चीज़ खिलाता हूँ रानी. एक हफ्ते से चप्पल नहीं खिलाई तुझे, चल आज खा ले. कह कर उस'ने अपनी एक चप्पल उतारी और मेरे मुँह में ठूंस दी. आज कल मुझे चप्पल खिला'ने के लिए मेरा मुँह या हाथ पाँव बाँध'ने की ज़रूरत नहीं पड़'ती थी. मैं वैसे ही उसे मुँह में भर लेता था. चप्पल मेरे मुँह में ठूंस'ने के बाद उस'ने तुरंत दूसरी चप्पल डिब्बे से निकाली और पहन ली. उस'के एक पैर में अब नीली चप्पल थी और एक में सफेद. मुझे एक एक चप्पल खिला'ने के चक्कर में जोड़ी अक्सर नहीं जम'ती थी. मेरा ध्यान उसपर गया देख'कर वह बोला.

हां रानी, मुझे भी अटपटी लग'ता है ऐसी बेमेल चप्पल पहन कर. अब शादी के बाद तू एक साथ जोड़ी मुँह में लेना शुरू कर दे, फिर यह झन्झट ही दूर हो जाएगी. उसका लंड फिर खड़ा हो गया था.

चल अब मरा'ने को आ जा, मेरी गोद में बैठ. आज मस्त दो घंटे मारूँगा तेरी. एक किताब भी लाया हूँ. साथ साथ पढाते हैं. मुझे खींच कर सोफे की ओर ले जाता हुआ वह बोला.

किताब बहुत गंदी थी. हर तरह के संभोग तो उस'में थे ही, जानवरों के साथ रति की भी कहानियाँ थी. प्रीतम गरमा'कर अप'ने चूतड उचका'कर नीचे से मेरी गान्ड मार'ता हुआ बोला.

रानी, मज़ा आता होगा पशुओं से संभोग में. मेरा बस चले तो एक कुत्ता कुतिया पाल लूँ. पर बाद में देखेंगे, अभी तो चल मुझे दूध पिला.

नीचे से मेरी गान्ड मार'ता हुआ वह बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियाँ मसल रहा था. बहुत दर्द हो रहा था पर मैं उसे सहन कर रहा था. जब मेरे स्तन लाल लाल हो गये तो उस'ने मेरे एक चूचुक का रब्बर का कवर निकाला. दबाव से उस'में से दूध की फुहार निकल'ने लगी. झुक कर उस'ने उसे मुँह में ले लिया और पीने लगा. उस'के चेहरे पर एक आसीन सन्तोष दिख रहा था. मुझे इतना अच्छा लगा कि आख़िर मैं इतना औरत तो बन ही गया हूँ कि किसी को अपनी छा'ती में से पिला सक'ता हूँ. प्रीतम के सिर को अपनी छा'ती पर दबा कर उस'के मुँह में अपनी चूची घुसेड'कर मैं प्यार से उसे दूध पिला'ने लगा.

रात भर हमारी चुदाई चली. जब हम सोए तो लस्त हो गये थे. मेरी चूचियाँ खाली होकर फिर से अप'ने सेब जैसे आकार में आ गयी थी. प्रीतम बहुत खुश था कि प्रदीप की होने वाली बहू अब पूरी तरह तैयार थी. उस'ने चिठ्ठी लिख कर मा और प्रदीप को तुरंत आने को कहा.

यहीं बुलवा लेते हैं उन दोनों को. यहाँ घर में कोर्ट के क्लर्क को बुलावा'कर तेरी शादी करा देते हैं, फिर सब मिल'कर गाँव चलेंगे. प्रदीप और मा आने तक प्रीतम ने मुझसे संभोग बंद कर दिया. चप्पल खिलाना, मूत पिलाना, सब बंद कर दिया. बोला.

अब सुहागरात की तैयारी कर रानी. नयी दुल्हन की ठीक से खातिर कर'ने को कुच्छ दिन सब का आराम करना ज़रूरी है. मैने मा और प्रदीप को भी लिख दिया है. वहाँ उन'की चुदाई भी बंद हो गयी होगी.

बहू पसंद है

जिस दिन प्रदीप और मा आने वाले थे, मैं बहुत खुश था. शरमा रहा था और डर भी रहा था कि उन्हें मैं पसंद आऊंगा या नहीं. शादी कर'के उसी दिन हम गाँव को रवाना होने वाले थे.

मैं खूब सज़ा धाज़ा. मेरे रूप को देख'कर प्रीतम बड़ी मुश्किल से अप'ने आप पर काबू रख पाया, दो मिनिट तो उस'की गुलाबी आँखें देख कर मुझे लगा था कि कहीं वह वहीं पटक कर मेरी गान्ड ना मार'ने लगे. पर किसी तरह उस'ने अप'ने आप पर काबू किया. हां मेरे साम'ने बैठ कर झुक कर खूबसूरत सैंडलों में लिपटे मेरे पैर वह चूम'ने लगा.

रानी, आज तो तू एकदम जूही जैसी लग'ती है, मा कसम अब तुझे ना चोदू तो मार जाऊँगा. ऊत'ने में बेल बजी तो किसी तरह अप'ने आप को समहाल'कर वह दरवाजा खोल'ने चला गया.

प्रदीप और मा आए तो मैं सहमा हुआ सोफे पर बैठा था. प्रदीप को देखते ही मेरा दिल धडक'ने लगा. आख़िर मेरा होने वाला पति था. अच्च्छा तगड ऊँचा पूरा जवान था. दिख'ने में बिलकुल प्रीतम जैसा था. उस'के पैंट के साम'ने के फूले हिस्से को देख'कर ही मैं समझ गया कि उसका लंड कैसा होगा. मा साड़ी साड़ी पह'ने हुए थी. फोटो में तो उन'की मादक'ता का ज़रा भी अंदाज नहीं लगा था, उनका भरा पूरा शरीर, आँचल के नीचे से दिख'ती भारी भरकम छातिया और पहाड सी मोटी मतवाली गान्ड मुझे मंत्रमुग्ध कर गयी. मुझे देख'कर उन दोनों की भी आँखें चमक उठीं. मा मुझे बाँहों में लेकर चूमते हुए बोलीं.

सच में परी जैसी बहू है, प्रीतम तूने जादू कर दिया. पर ह'में झाँसा तो नहीं दे रहा? मुझे तो यह सच मुच की लड़'की लग'ती है.

जवाब में प्रीतम ने हंस'कर उनका हाथ मेरे पेट पर रख'कर साड़ी के नीचे से मेरे तन कर खड़े पेट से सटे लंड पर रखा तब उन्हें तसल्ली हुई. प्रदीप ने भी टटोल कर देखा कि मैं सच में लड़का हूँ तो उस'की आँखों में खुमारी भर आई. वह शायद मुझे वहीं बाँहों में भर लेता पर मा ने उसे डाँट दिया. बोलीं शादी के बाद गाँव में ही वह मुझे भोग पाएगा, यहाँ नहीं. मा ने पूचछा

बहू का दहेज कहाँ है? बिना दहेज के शादी नहीं होगी! मैं चकरा कर देख'ने लगा. चेहरे के भाव देख'कर प्रीतम हंस पड़ा.

अरे घबरा मत, मा मज़ाक कर रही है, मुझे मालूम है ये किस दहेज की बात कर रही है. मा, प्रदीप, ये देख तेरा दहेज, लाखों का है, बल्कि ज़्यादा का! उस'ने एक बैग खोल कर दिखाया. उस'में मेरी सारी रब्बर की चप्पलें थी. देख'कर प्रदीप की आँखें चमक उठीं. एक जोड़ी उठा'कर वह सूंघ'ने लगा. मा ने भी एक ली और चाट कर देखी.

बहुत स्वादिष्ट है, सच में बड़ी प्यारी बहू है, प्रदीप अब रख दे नहीं तो यहीं जुट जाएगा प्रदीप ने बेमन से चप्पल वापस रखी. मुझे कुच्छ समझ में नहीं आ रहा था पर कुच्छ कुच्छ अंदाज़ा होने लगा था. लंड खड़ा हो गया था.

कुच्छ देर में कोर्ट का क्लर्क आया. प्रीतम ने उसे काफ़ी पैसे दिए थे. बिना कुच्छ पूच्छे उस'ने हमारी शादी रचाई और हमारे दस्तख़त लिए. मैने अनुराधा के नाम पर साइन किया. फिर प्रदीप ने मुझे मंगलसूत्र पहनाया और मैने झुक कर सब के पैर च्छुए. हम बाहर खाना खा'ने गये पर मुझे कुच्छ नहीं दिया गया. मा बोलीं.

अब तेरी नकेल मेरे हाथ में है बहू. खाना अब सीधे गाँव चल'कर. नहीं तो तुझे रास्ते में तकलीफ़ होगी. मैं समझा नहीं पर चुप रहा. प्रदीप तो मुझे ऐसे घूर रहा था कि कच्चा खा जाएगा.

बहू ससुराल चली

घर आ'कर सब'ने सामान बाँधना शुरू हुआ. प्रीतम के दो सूटकेस थे. मा और प्रदीप बस एक बैग लाए थे. मेरा कोई सामान नहीं था क्योंकि अब मेरे पूरा'ने कपड़े मेरे किसी काम के नहीं थे. बस वो चप्पालों का बैग था जो प्रदीप ने संभाल'कर उठाया हुआ था. अंत में प्रीतम बोला.

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:57 AM,
#19
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (12)

गतान्क से आगे.......

मैने जो बड़ा होल्डाल मँगाया था वह लाए कि नहीं प्रदीप? और टिकट भी देख लो, तीन बर्थ हैं या नहीं प्रदीप ने अप'ने बैग से एक बड़ा होल्डाल निकाला. मेरी ओर देख कर वह मुस्करा रहा था. मैं तीन बर्थ की बात सुन'कर कुच्छ चकरा गया था. मेरे लिए बर्थ नहीं है क्या? प्रदीप मेरे मन की बात ताड़ गया. मुझे खींच'कर ज़मीन पर लिटाते हुए बोला.

तुझे भी ले जाएँगे माधुरी रानी, घबरा मत, और बड़े मस्त तरीके से ले जाएँगे. तू भी याद करेगी कि शादी के बाद घर कैसे आई थी. मुझे ज़मीन पर पटक'कर वह बोला.

मा, तू चप्पल लाई है ना? चल बहू को अपना आशीर्वाद दे दे. फिर मैं अपनी पत्नी को पैक कर'ता हूँ. मा ने एक बड़ी पुरानी घिसी हुई पतली रब्बर की चप्पल और एक काली ब्रेसियार निकाली. चप्पल इतनी प्यारी लग रही थी कि ऐसा लग'ता था कि अभी खा जाउ.

मुँह खोल बहू, तेरे लिए ही लाई हूँ. शादी के बाद बहू के मुँह में शक्कर या मिठायी देती है सास, मैं उससे भी स्वादिष्ट, अपनी चप्पल तेरे मुँह में दे रही हूँ. गाँव में तो ढेरों हैं, तू अब कभी भूखी नहीं रहेगी हमारे यहाँ. मा ने मुझे पुचकार कर कहा.

मेरे मुँह में बड़े प्यार से उन्हों'ने अपनी चप्पल घुसाई. ब्रेसियार क्यों निकाली थी यह मेरी समझ में जल्दी ही आ गया जब मेरा मुँह बंद कर'के उसपर वह ब्रा कस कर बाँध दी गयी.

अब प्रदीप ने मेरे पैर पकड़े और उन्हें फोल्ड कर'के मेरे सिर पर दबा दिए. मेरे हाथ पीठ पीछे बाँध दिए गये और फिर पैर हाथों से बाँध दिए गये. मेरी अब मुर्गे जैसी मुश्कें बाँध गयी थी. मेरी गठरी सी बना दी गयी थी और हाथ पैरों और कमर में बड दर्द भी हो रहा था. मैने किसी तरह वह यातना बर्दाश्त की और चुप रहा. मा ने प्रदीप को कुच्छ इशारा किया, प्रदीप ने मेरी ओर देखा और मेरे हाथ और पैर और खींचे और और कस कर बाँध दिए.

मेरे शरीर में अब बहुत दर्द हो रहा था. मैं छटपटा कर अब हिल'ने लगा और बँधे मुँहे से गोंगिया'ने लगा. मेरी आँखों से जब दर्द के आँसू निकल आए तब मा बोलीं.

शाबास बेटे, अब आया है मज़ा. नहीं तो बहू ऐसे ही सूखे सूखे घर चल'ती तो क्या मज़ा आता. अब रास्ते भर दर्द से बिलबिला'ती चलेगी. और मुँह भी अच्छा बँधा है, चूम तक नहीं निकली बेचारी की नहीं तो रास्ते में चिल्ला'ने लग'ती तो आफ़त आ जा'ती. अब पता चलेगा इसे की आगे इस'के नसीब में क्या है. चल अब, बाँध दे इस'की गठरी.

मेरे दोहरे होकर बँधे शरीर को होल्डाल के एक सिरे में फ्लैप उठा'कर उस'के अंदर ठूंस गया और फिर मुझे बिस्तर जैसा गोल गोल लुढ़ाका'कर मेरे शरीर का बिस्तर बना'कर होल्डाल में बाँध दिया गया. अब मुझे कुच्छ दिख नहीं रहा था, सिर्फ़ सुनाई देता था. मैं अब घबरा गया था और रोने लगा था. अब मुझे कुच्छ अंदाज़ा हो रहा था कि मेरी कैसी दुर्गत बनेगी. एक दो बार लगा भी कि कहाँ फँस गया.

पर मेरा लंड पागल सा हो गया था. इतना जम के खड़ा था और उस'में इतनी मीठी कसक हो रहा थी कि जहाँ एक ओर दर्द से मैं बिलख'ता वहीं दूसरी ओर मेरा यह मन होता कि कितना अच्च्छा होता कि इस समय प्रदीप का लंड मेरी गान्ड में होता और कोई मेरी चूचियाँ बेरहमी से मसलता!

मुझे उठा'कर एक सामान जैसा ले जाया गया. रास्ते भर मेरी हालत खराब रही. मुँह की चप्पल मैं चबा चबा कर खा'ने की कोशिश कर'ता रहा जिससे मुँह को कुच्छ आराम मिले पर मा'ने अपनी ब्रेसियार मेरे मुँह पर ऐसी कसी थी कि जबड़ा ज़रा भी नहीं हिल'ता था. इस'लिए मैं सिर्फ़ उन'की चप्पल चूस सक'ता था, खा नहीं सक'ता था. गाँव का सफ़र बारह घंटे का था. शुरू से ही मेरी हालत खराब हो गयी. स्टेशन पर जब गाड़ी लेट थी तो मा मेरे ऊपर ही बैठ गयीं.

ःओल्डाल कब काम में आएगा? उन'के अस्सी किलो के वजन से मेरी कमर टूट गयी. दम घुट'ने लगा. मैं छटपटा'ने लगा. हिल'ने डुल'ने लगा तो मा को बहुत मज़ा आया. फुसफुसा कर प्रदीप और प्रीतम के कान में कुच्छ बोलीं. शायद यही कह रही होंगी की बहू छटपट रही है. मुझे और तंग कर'ने को वे कुच्छ देर बाद बोलीं.

बेटे तुम लोग भी बैठ जाओ. बड़ा मुलायम मस्त बिस्तर है, किसी लड़'की की गोद जैसा. तुम लोग भी बैठो. और जल्द ही मैं तीन तीन शरीरों के वजन के नीचे दब गया. एक जना मेरे सिर पर बैठ था, एक पीठ पर और एक नितंबों पर. मैं कसमसा'कर चीख'ने की कोशिश कर'ता हुआ बेहोश हो गया.

रास्ते भर मैं आधी बेहोशी में रहा. मुझे ट्रेन में सीट के बाजू में रखा गया था. एक बार प्रदीप जब ऊपर की बर्थ पर चढ'ने के लिए सीट पर चढ़ा तो मा बोलीं.

अरे होल्डाल पर पैर रख'कर चढ बेटे. फिर धीमे स्वर में बोलीं.

बहू को तेरे पैर लग'ने दे, आख़िर तेरी पत्नी है. तेरे पैरों के नीचे ही रहना है उसे. और प्रदीप होल्डाल पर खड़ा हो गया. जान बूझ कर पाँच मिनिट खड़ा रहा और मुझे रोन्द'ता रहा. मेरे मुलायम शरीर को दबा'ने में उसे बड मज़ा आ रहा होगा. मैं बिलबिला उठा पर मेरा लंड यह सोच कर ख़ड़ा हो गया कि यह हट्टाकट्ट नौजवान जो मुझे रौंद रहा है, मेरा पति है और कल ही मेरी चुदाई करेगा.

सास का आशीर्वाद और सुहागरात की तैयारी

आख़िर हम घर पहुँचे. शाम हो गयी थी. मुझे जब होल्डाल से निकाला गया तो मैं अधमरा सा हो गया था. कमर सीधी ही नहीं हो रही थी. बहुत भूख और प्यास भी लगी थी. मा की चप्पल मेरे मुँह में ही फँसी हुई थी क्योंकि उसे खा'ने के लिए मैं चबा नहीं पाया था.

मेरे हाथ पैर और मुँह खोल कर मा ने मेरे मुँह से चप्पल निकाली. मेरी आँखों में झाँक'कर देखा उस'में मुझे होने वाली पीड़ा और डर से छलकते आँसू देखे तो मुस्कराईं और बोलीं.

बहुत आनंद में है पर भूखी है बेचारी. और मेरी चप्पल भी अच्छी लगी पर खा नहीं पाई, है ना बेटी? फिकर मत कर, यहाँ अब इतनी चप्पलें खिलाएँगे तुझे कि तू खा नहीं पाएगी! प्रीतम और प्रदीप बेटे, अब तुम लोग सो लो. मैं तब तक बेहू को सुहाग रात के लिए तैयार कर'ती हूँ प्रीतम बोला.

मा, माधुरी का लंड चूस लेना. बीस घंटे से खड़ा है. एक बार झड़ना ज़रूरी है नहीं तो बीमार हो जाएगी बेचारी.

हां मैं समझ'ती हूँ. उस'के वीर्य पर मेरा भी तो पहला हक है सास के नाते, आ बेटी कह'कर मा मुझे बाथ रूम ले गयी. मैं लंगड़ाता उन'के पीछे हो लिया. कमर अब भी दुख रही थी. बाथ रूम के पास ही दो संडास थे. एक के दरवाजे पर मेरी तस्वीर बनी थी. दूसरे पर कुच्छ नहीं था. मेरी आँखों में उभर आए प्रश्न को देख'कर मा बोलीं

आ तुझे दिखाऊँ दो संदासों का क्या मतलब है! तू अब यह संडास इस्तेमाल करेगी जिसपर तेरी तस्वीर बनी है. नया बनवाया है, एकदम आलीशाम. सिर्फ़ तेरे लिए है, और कोई इस'में नहीं जाएगा. अब तक हम दूसरा वाला इस्तेमाल करते थे. अब उस'में ताला लगा देंगे. समझ रही है ना मैं क्या कह रही हूँ? अब इस घर में तेरे सिवा किसी को टायलेट जा'ने की ज़रूरत नहीं होगी.

मैं आँखें फाड़ कर मा की ओर देख'ने लगा. मन में डर और वासना का सागर सा उमड'ने लगा. मा बोलीं.

अब तू ही हम तीनों का चल'ता फिर'ता प्यारा संडास है बहू. ह'में अब सीमेंट के टायलेट की क्या ज़रूरत है? आज तेरी सुहाग रात से पहले तुझसे ही उस'में ताला लगवा'ने की रसम कर लेंगे.

मेरा सिर चकरा'ने लगा. वैसे मुझे इन सब बातों का अंदाज़ा प्रीतम ने दे दिया था पर अब जब समय आ गया था, मेरा डर बढ गया था. बहुत वासना भी जाग'ने लगी थी कि अब शुरू हुई मेरी असली कामुक गंदी विकृत जिंदगी.

फिर मा मुझे बाथ रूम ले गयीं. मुझे नंगा कर'के खुद भी अप'ने कपड़े निकाल'ने लगीं. मैं जैसे जैसे उन'के प'के गदराए शरीर को देख'ता गया, मेरा पहले ही खड लंड और खड़ा होता गया. एकदम चिक'ने संगमरमर जैसा उनका सांवला तराशा शरीर या'ने जैसे खजाना था. चूचियाँ ये बड़ी बड़ी पपीते सी थी और गान्ड तो मानो पहाड की दो चट्टानों जैसी थी. झाँटें ऐसी लंबी की चाहो तो चोटी बाँध लो. कमर पर मुलायम मास का टायर लटक आया था. जांघें किसी पहलवान जैसी मोटी मोटी और मजबूत थी.

उन्हों'ने मुझे नहलाया और खुद भी नहाईं. मेरा शरीर खूब दबा कर देखा और चूचियाँ मसल मसल कर तसल्ली की कि ठीक से सध गयी हैं या नहीं.

आच्छे स्तन हैं तेरे, प्रदीप को दबा'ने में बहुत मज़ा आएगा. बोल'ती हुई वे मेरे शरीर का ऐसे मुआयना कर रही थी जैसे कसाई काट'ने के पहले बकरी की कर'ता है.

बहुत प्यारी है बहू. ह'में बहुत सुख देगी. चल अब तेरा लंड चूस लूँ. और ज़्यादा खड़ा रहा तो टूट कर गिर जाएगा बेचारा. कह'कर उन्हों'ने मुझे दीवार से सटा'कर खड किया और मेरे साम'ने बैठ कर मेरा लंड एक मिनिट में चूस डाला. इतनी देर के बाद जो सुख मुझे मिला उससे मैं गश खा'कर करीब करीब गिर पड़ा.

मा ने मुझे छोडा नहीं बल्कि नीचे बैठ कर मेरा सिर अपनी जांघों के बीच खींच'ती हुई बोलीं.

अब ज़रा अपनी सास की बुर भी चख ले बहू. तेरा पति और देवर तो दीवा'ने हैं ही इसके, अब तू भी आदत डाल ले. मैने उस गीली तप'ती बुर में मुँह डाला तो खुशी से रोने को आ गया. क्या स्वाद था! इतना गाढा शहद बह रहा था जैसे अंदर बोतल रखी हो. चूत भी ऐसी बड़ी थी कि मेरी ठुड्डी उस'में आराम से घुस रही थी. बुर नहीं भोसड़ा था! मैने मन भर कर उस रस को पिया. मा दो बार झडी और मुझे शाबासी भी देती गयीं.

अच्च्छा चूस'ती है बेटी, मैं और सिखा दूँगी कैसे अपनी सास की बुर रानी की पूजा की जाते है. अब तक मेरा लंड फिर खड़ा होने लगा था. बहुत मीठी कसक हो रही थी. मा ने मुझे ज़मीन पर लिटाया और बोलीं.

आ अब कुच्छ खा ले, कल से तेरे लिए पेट में खाना लेकर घूम रही हूँ. अब बाद में भी तुझे बहुत कुच्छ खा'ने पीने को मिलेगा पर प्रदीप का लंड सह'ने के लिए कुच्छ तो जान आए तेरे शरीर में. मा मेरे सिर के दोनों ओर पैर जमा कर बैठ गयीं और बोलीं.

मुँह खोल बहू रानी, यह सास की तरफ से पहला नीवाला है तुझे. मैं सकते में था. लंड फनफना रहा था. चुपचाप मुँह खोल कर मैं लेट गया. मा ने ज़ोर लगाया और एक बड़ी मोटी लेंडी मेरे मुँह में हॅग दी. फिर झुक कर देख'ने लगीं. उन'की आँखों में असीम वासना थी.

इस मौके का इंतजार मैं बरसों से कर रही हूँ. कब सुंदर बहू आए और मैं अपनी गान्ड से उसे टट्टी खिलाऊं! खाले बिटिया. पेट भर के खा ले.

जब मैने मुँह बंद कर के उन'की टट्टी चबा चबा कर खाना शुरू की तो मा खुशी से सिसक उठीं. मेरी बालाएँ लेते हुए मेरे सिर को पकड़'कर मेरे मुँह में प्यार से हॅग'ने लगीं. अपनी पूरी टट्टी मुझे खिला'ने में मा को दस मिनिट लग गये. उस पहाड जैसी गान्ड में एक किलो से कम क्या टट्टी होगी!

जब मैने बाद में प्यार से जीभ डाल कर उन'की गान्ड अंदर से सॉफ की तो वे बहुत खुश हुईं.

अच्च्छा सीखी सिखाई है बहू. मैने तो चाबुक तैयार रखा था कि ज़रूरत पड़े तो मार मार कर सिखाऊंगी. पर लग'ता है ज़रूरत नहीं पडेगी. जैसी मुझे चाहिए थी वैसी ही छिनाल रंडी बहू मुझे मिली है.

उस'के बाद मेरे मुँह में वे लोटा भर मूती और तभी उठीं जब मैं पूरा पी गया. मेरी भूख और प्यास पूरी मिट गयी थी. पेट गले तक भर गया था. मैं मानो जन्नत में था. . लंड ऐसे खड़ा हो गया था जैसे बैठा ही ना हो. उसे देख कर मा ने मेरी बालाएँ लीं.

बहुत अच्छी बहू ढूंढी है प्रीतम ने. हमेशा मस्त रह'ती है! तुझे चोद'ने में मेरे बेटे को बहुत मज़ा आएगा. चल अब तुझे सुहागरात के लिए तैयार करूँ.

बड़ा मन लगा'कर उन्हों'ने मेरा सिंगार किया. ब्रा पहना'ने के पहले मेरी चूचियों में मा ने प्रीतम की सहाय'ता से बादाम का दूध भरा. पाव पाव लीटर की मेरी चूचियों में डेढ डेढ पाव दूध कस कर भर दिया और ऊपर से रबड के चूचुक लगा'कर मेरे चूचुक भींच दिए कि दूध छलक ना जाए. फिर मा ने रबड की काली ब्रा मुझे पहनाई.

ख़ास तेरे लिए मँगवाई है. अब तेरी चूचियाँ हमेशा दूध से भरी रहेंगी इस'लिए उन्हें कस कर और उठा कर रखना पड़ेगा. और रबड की यह ब्रा लग'ती भी बड़ी प्यारी है, एकदम मुलायम है. देख इनमे तेरे मम्मे कस'ने के बाद कैसे ये दोनों झपट'कर तेरी चूचियाँ मसलते हैं!

क्रमशः................
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07-26-2017, 11:57 AM,
#20
RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (13)

गतान्क से आगे.......

वो ब्रा बिलकुल छोटी और तंग थी और मेरे बदन पर चढ़ा'ने के लिए उसे खूब तानाना पड़ा. ब्रा ने मेरी चूचियाँ और छा'ती कस'कर जकड लिए. मेरे मम्मे तन के फूले थे इस'लिए रबड से जकड'ने के बाद थोड़े दुख रहे थे पर रबड के मुलायम स्पर्श से उन'में अजीब सी सुखद सनसनी हो रही थी. उस'के बाद काले रबड की पैंटी पहना'कर मेरा खड़ा लंड उस'में दबा दिया गया. पैंटी पीछे से गुदा पर खुली थी. मा ने समझाया.

तू अधनन्गी इतनी प्यारी लग'ती है कि तेरी गान्ड मार'ने के लिए यह पैंटी नहीं उतारना पड़े इस'लिए ऐसी है. अब तेरे लंड का काम होगा तभी यह उतरेगी. प्रीतम मुझसे चिपकना चाह'ता था पर मा ने उसे डाँट दिया.

चल दूर हो, तेरी भाभी है, आज पहले प्रदीप चोदेगा मन भर कर, तू मेरे साथ आ जा दूसरे पलंग पर. मेरी गान्ड मारना और प्रदीप के करतब देखना. फिर बहू पर करम करेंगे.

मुझे आज उन्हों'ने पूरा सजाया था. हाथों में चूड़ियाँ, कान में बूंदे, पाँव में पायल और बनारसी साड़ी चोली पहनाई. मेरे बाल कंधे तक लंबे हो ही गये थे. उस'में माजी ने फूल गूँध कर चोटी बाँध दी.

अरे प्रदीप अब ज़रा चप्पल ले आ बहू की, खुद ही पसंद कर ले मा ने आवाज़ लगाई. प्रदीप एक गुलाबी चप्पल ले आया. मेरी वही प्यारी घिसी हुई चप्पल थी, प्रदीप ने अचूक चुना ली थी. उस'ने प्यार से मेरे पैर में पहनाई. फिर झुक कर उसे चूम लिया. मेरा रोम रोम रोमाच से सिहर उठा, क्या प्रदीप को भी मेरी चप्पालों से वही करना था जो मुझे उन'की चप्पालों से ये करवा'ने वाले थे!

अरे अभी नहीं, चुदाई तो शुरू होने दे, फिर लेना बहू का प्रसाद मा ने उसे झटकारा.

चलो अब खा लो कुच्छ. फिर बेड रूम में चलते हैं. मा बोलीं. प्रदीप और प्रीतम के साथ वे रसोई में आईं. मुझे परोस'ने को कहा गया.

चल आज से ही काम पर लग जा. ह'में परोस. खाना तो तू खा चुकी है. आगे प्रदीप भी प्यार से खिलाएगा. कल से धीरे धीरे घर का काम भी सिखा दूँगी. घर का पूरा काम करना और हम सब की सेवा करना यही तेरा काम है अब. मा ने कहा.

खाना खाते खाते सब मुझे नोंच रहे थे. जब भी मैं किसी को परोस'ने जाता, कोई मेरी चूची दबा देता या चूतड या जाँघ पर चूंटी काट लेता. धीरे नहीं, ज़ोर से कि मैं तिलमिला जाउ. एक बार रोटी ला'ने में मुझे देर हुई तो प्रदीप ने मज़ाक में ज़ोर से मेरी चूची मसल दी.

जल्दी जानेमन, नखरा नहीं चलेगा. ठस्स भरी होने से पहले ही मेरी चूचियाँ दुख रही थी. अब मैं कसमसा गया और रोने को आ गया.

रोती क्यों है बहू, तेरा पति है, तेरे जवान शरीर को मसलेगा ही. और पिटायी भी करेगा! हमारे यहाँ बहुओं की कस कर पिटायी होती है. इस'लिए जो भी तुझसे कहा जाए, तुरंत किया कर. हम सब भी तेरे शरीर को मन चाहे वैसे भोगेंगे. हमारा हक है. और जब प्रदीप का लॉडा लेगी तो क्या करेगी? मर ही जाएगी! बड़ी नाज़ुक बहू है रे प्रदीप. मा बोलीं.

ऐसी ही चाहिए थी मा, सही है. ज़रा रोएगी धोएगी तो चोद'ने में मज़ा आएगा. मैं तो मा रुला रुला कर चोदून्गा इसको! प्रदीप अपना लंड सहलाता हुआ बोला. खाना खा'ने के बाद मा बोलीं.

चलो अब बहू से एक रस्म भी करा लेना. ले बहू, दूसरे टायलेट में ताला लगा दे. और मुझे एक बड़ा ताला उन्हों'ने दिया. मैने संडास में ताला लगा'कर चाबी उन्हें दे दी.

अब सब'के पैर पड़ और उन्हें बोल कि अब से तेरा मुँह ही इन सब का टायलेट है, उसीमें सब किया करें. मा के कह'ने पर मैने बारी बारी से सब'के पैर च्छुए और बोला.

मेरे प्राणनाथ, मेरे देवराजी, सासूजी, आज से आप'के शरीर से निकली हर चीज़ पर मेरा हक है. मेरे मुँह को आप टायलेट जैसा इस्तेमाल कीजिए.

सब'के पैरों में रबड की चप्पलें थी. उन्हें देख'कर मुझे अजीब सी मीठी सनसनी हुई. मा वही पतली हरी चप्पल पहनी हुई थी जो मेरे मुँह में ठूंस कर मुझे गाँव लाया गया था. प्रीतम के पैर में मैने ही खरीदी हुई नीली चप्पल थी. और मेरे पति के पैरों में सफेद क्रीम रंग की चौड़े पत्तों वाली चप्पलें थी, मोटी और हाई हील स्टाइल की. मुझे रोमाच हो आया. सोच'ने लगा कि सबसे पहले कौन इन्हें मेरे मुँह में देगा? शायद प्रदीप! मैने पैर छूते समय झुक'कर उन सब चप्पालों को छुआ और फिर चूम लिया. माजी मेरी इस हरकत पर खुश होकर बोलीं.

बड़ी प्यारी है मेरी बहू. घबरा मत बेटी, ये सब चप्पलें तेरे लिए हैं. हम तो तुझे खूब खिलाएँगे, बस तू खा'ती जा फटाफट. प्रदीप, चलो अब देर ना करो. बहू को उठा कर ले चलो. वो बेचारी कब से तडप रही है तुझसे चुद'ने को! मैं सिहर उठा. मेरी सुहागरात शुरू होने वाली थी!

सुहागरात, बहू का प्रसाद और पति का आशीर्वाद

प्रदीप मुझे उठा कर चूम'ता हुआ पलंग पर ले गया. मा और प्रीतम भी पीछे थे. मुझे पलंग पर पटक कर प्रदीप मुझपर चढ गया और ज़ोर ज़ोर से मुझे चूम'ने लगा. उस'के हाथ मेरी चूचियाँ और नितंब दबा रहे थे. मुझे बहुत अच्च्छा लगा. आख़िर वह मेरा पति था और अब मेरे शरीर को भोग'ने वाला था. आँखें बंद कर'के मैं उस'की वासना भरी हरकतों का आनंद लेने लगा.

बहू को नंगा करो प्रदीप. बहुत लाड हो गया. अपना काम शुरू करो. और अप'ने अप'ने कपड़े भी उतारो माजी ने हुक्म दिया.

सब फटाफट नंगे हो गये. प्रीतम को तो मैने बहुत बार देखा था. माजी का नग्न शरीर भी आज नहाते समय देख लिया था. पर प्रदीप को मैं पहली बार देख रहा था. उस'के हट्टे कट्टे पहलवान जैसे शरीर को देख'कर मैं वासना से सिहर उठा. क्या तराशा हुआ चिकना मास पेशियों से भरा हुआ बदन था! चूतड़ बड़े बड़े और गठे हुए थे. मैं सोच'ने लगा कि अप'ने पति की गान्ड मार'ने को मिले तो मैं तो खुशी से पागल हो जाऊँगा.

पर प्रदीप का लंड देख'कर मैं घबरा गया. मन में कामना के साथ एक भयानक डर की भावना मन में भर गयी. प्रदीप का लंड आदमी का नहीं, घोड़े का लंड लग'ता था एक फुट नहीं तो कम से कम दस ग्याराह इंच लंबा और ढाई-तीन इंच मोटा होगा!. सुपाड़ा तो पाव भर के आलू जैसा फूला हुआ था! और नसें ऐसी की जैसे पहलवान के हाथ पर होती हैं! घबरा कर मैं थरथर काँप'ने लगा.

मेरी घबराहट देख कर सब हंस'ने लगे. प्रीतम तुरंत मेरी ओर बढ़ा. उस'की आँखों में भी मेरे प्रति प्यार और वासना उमड आई थी.

अरे घबरा गयी माधुरी भाभी? मैने पहले ही कहा था कि प्रदीप का लंड झेलना आसान काम नहीं है. आ तेरे कपड़े उतार दू! भैया, कहो तो मैं चोद लूँ भाभी को?

तू नहीं रे छोटे, तूने बहुत मज़ा लिया है. अब प्रदीप पहले इसे चोदेगा. फिर हम चखेंगे बहू का स्वाद. प्रदीप बेटे, इस'के सब कपड़े निकाल दे, सिर्फ़ ब्रा और पैंटी रह'ने दे. पैंटी में पीछे से च्छेद है, तू आराम से उस'में से इसे चोद सकेगा. देख अधनन्गी बहू क्या ज़ुल्म ढा'ती है. और हां चप्पलें भी पैरों में रह'ने दे, इस'के नाज़ुक पैरों में बहुत जच'ती हैं. माजी बोलीं.

प्रदीप ने फटाफट मेरी साड़ी और चोली उतार दी. काली रबड की ब्रा और पैंटी में सज़ा मेरा गोरा दुबला पतला शरीर देख'कर सब आअह, उफ़, मार डाला कह'ने लगे. प्रदीप मेरे सारे शरीर को चूमते हुए नीचे की ओर बढ़ा और मेरे पैरों और चप्पालों को चूम'ने लगा. फिर उस'ने मेरी एक चप्पल का सिरा मुँह में लिया और चूस'ने लगा.

प्रीतम और माजी भी मेरे दूसरे पाँव पर लगे थे. मेरे तलवे चाट रहे थे. माजी सिसक कर बोलीं.

अब नहीं रहा जाता, बहुत प्यारी हैं रे इस छ्हॉकरी की चप्पलें प्रीतम बेटे, तू सच कह'ता था. अब चलो बहू का प्रसाद पा लो, फिर उसे चोदेन्गे. मेरे पैरों से चप्पलें निकाल'कर वे उनपर टूट पड़े. प्रदीप ने सीधे एक छ्चीन ली.

मा, एक पूरी मेरी है, आप दोनों दूसरी बाँट लो, माधुरी रानी, आ, अप'ने हाथ से खिला मुझे. सुहागरात को अपनी प्यारी बीवी की चप्पल खा'ने मिली है, मज़ा आ गया. मा बोलीं.

ये ठीक नहीं है प्रदीप, सास के नाते मेरा हक ज़्यादा है, मैं सोच रही थी एक पूरी लेने की, पर जा'ने दे, आख़िर तेरी पत्नी है. बहू पहले तू इधर आ, इस चप्पल के पत्ते अलग कर और प्रीतम को दे, नीचे का सपाट चमचम मुझे दे दे, अप'ने नाज़ुक हाथों से मेरे मुँह में डाल दे.

मैं वासना से थारतरा रहा था. इतनी बार मैने प्रीतम की चप्पलें खाई थी पर अब पता चल रहा था कि किसी को अप'ने पैरों की चप्पल खिला'ने में क्या मज़ा आता है, वो भी अपनी सास को, पति को और देवर को एक साथ. प्रीतम बोला

जल्दी करो भाभी, आप'ने पैरों का प्रसाद ह'में दो, तुम घर की लक्ष्मी हो, तुम्हारा प्रसाद पा कर ही हम फिर तेरी भूख बुझायेँगे, तन की और पेट की.

माजी पलंग पर लेट गयीं. मैं उन'के सिराहा'ने बैठ गया. चप्पल हाथ में ले कर मैने खींच'कर उस'के पत्ते निकाले. प्रीतम पास ही बैठ था. उस'ने अपना मुँह खोल दिया.

पट्टे मुझे दे दे भाभी, फिर प्यार से मा को खिलाना.

मैने अप'ने हाथों से प्रीतम के मुँह में अपनी चप्पल के पत्ते दे दिए. वह आँखें बंद कर'के उन्हें चबा'ने लगा. एक असीम सन्तोष उस'के चेहरे पर झलक रहा था. पल भर को आँखें खोल कर उस'ने इशारों से मुझे कहा कि क्या मस्त माल है और फिर आँखें बंद कर'के चबा'ने लगा. माजी बोलीं.

देख बहू, हम सब को अपना प्रसाद देकर फिर जब तक हम इसे खाएँ, हमारी सेवा करो, अब देर ना करो, तेरी ये सास कब से तडप रही है तेरे नाज़ुक पाँव का स्वाद लेने को. और मुँह खोल कर मेरी जाँघ पर सिर रख'कर लेट गयीं. प्रदीप भी मेरी दूसरी जाँघ को सिराहा'ने लेकर लेट गया.

माधुरी रानी, जल्द मा को दे, फिर इस तरफ देख, तेरा ये गुलाम भी तो तरस रहा है, कब से भूखा है तेरी चप्पल के लिए.

मुझे कैसा कैसा हो रहा था. लंड ऐसा सनसना रहा था जैसे फट जाएगा. मैने झुक कर माजी के खुले रसीले मुँह में मुँह डाल दिया और उन'की जीभ चूस'ने लगा. फिर बड़ी मुश्किल से उस शहद को छोड'कर मुँह ऊपर किया और तारथराते हाथों से पत्ते निकाली चप्पल का सपाट सोल उन'के मुँह में दे दिया.

उन्हों'ने उसे झट से आधे से ज़्यादा निगल लिया. ये कोई मुश्किल काम नहीं था, मेरी चप्पल इतनी पुरानी और घिसी पीटी थी कि बस चॅपा'टी सी हो गयी थी. उन्हों'ने मेरा हाथ पकड़'कर चप्पल पर रखा और दबा'ने लगीं, मुझे इशारे से वह कह रही थी कि अंदर डालूं. मैने चूड़ियाँ खनकाते हुए चप्पल को दबा'कर माजी के मुँह में ठूंस दिया. वे थोड़ी कराही और फिर मुँह बंद कर'के चबा'ने लगीं. उनका एक हाथ अब अपनी ही बुर में चल रहा था.

अब मैने प्रदीप की ओर ध्यान दिया, मेरा सैंया अब तक पागल होने को आ गया था अपना लंड मुठिया रहा था. मैने उसका हाथ पकड़'कर आँखों आँखों में झूठे गुस्से से मना किया, कि अजी इसपर तो मेरा हक है, हाथ ना लगाना. फिर दूसरी पूरी चप्पल मैने मोड़ कर गोल रोल जैसी की, जैसा प्रीतम मेरे मुँह में अपनी चप्पल देते हुए किया कर'ता था. उस रोल को मैने प्रदीप के होंठों पर रगडा. जब वह अधीर होकर चाट'ने लगा तो मैने उसे उस'के मुँह में दे दिया. फिर अप'ने हाथों से उसे दबा दबा कर अंदर तक ठूंस दिया.

मेरे सैंया ने आराम से मेरी नाज़ुक पूरी चप्पल ले ली. फिर उसे चबा'ने लगा. उस'की आँखें वासना के अतिरेक से पथरा गयी थी. कमरे में अब चूस'ने और 'मच' 'मच' 'मच' कर'के चबा'ने की आवाज़ आ रही थी. मैं सातवें आसमान पर था, मेरे शरीर के ये सब मतवाले मेरी चप्पालों को खा'कर अप'ने आप को धनी मान रहे थे.

मैने अब सब को चूमना शुरू कर दिया. ऱबड की ब्रा में कसी मेरी चूचियाँ उन'के गालों पर रगड़ीं, माजी की बुर को चूसा और प्रदीप और प्रीतम के लंडों को बड़े लाड से हथेली में लेकर मुठियाया. प्रदीप का लंड तो मेरी दो मूठियो में भी नहीं समाता था. लंडों से खेलते समय मैने बहुत सावधानी बर'ती नहीं तो जिस हाल में वे थे, तुरंत झड जाते. बीच में माजी की विशाल चूचियाँ चूसी और उन्हें दबाया.

अंत में मैने आप'ने तलवे बारी बारी से उन सब'के चेहरों पर रगड़ना शुरू किया. मेरी पायलें 'छुम' 'छुम' कर'के बज रही थी. थोड़े नखरे करते हुए मैने अप'ने दोनों तलवे माजी के चेहरे पर जमाए और उन'के पूरे चेहरे को धक कर रगड़'ने लगा. वे सिर इधर उधर कर'ने लगीं. जब मैने यही प्रदीप के साथ किया तो उस'ने मेरे पैर पकड़'कर अप'ने गालों पर रगड़ना शुरू कर दिया. अंत में मैने अप'ने पैरों के बीच लंड पकड़ लिए और उन्हें रोल कर'ने लगा. माजी की बुर में मैने अप'ने पैर का अंगूठा डाल दिया और चोद'ने लगा.

वे सब अब ऐसे मेरी चप्पलें खा रहे थे जैसे जनम जनम के भूखे हों. सबसे पहले प्रीतम ने अपना नाश्ता ख़तम किया, क्योंकि वह सिर्फ़ पत्ते चबा रहा था, और फिर मुझे पकड़'कर मेरा मुँह चूस'ने लगा. उस'की आँखें गुलाबी हो गयी थी. पाँच मिनिट में ही माजी और प्रदीप ने भी मेरी चप्पलें निगली और मुझपर टूट पड़े. माजी बोलीं.

मैं धन्य हो गयी, मेरी कब की आस पूरी हो गयी, इतना मादक स्वाद आज तक मेरे मुँह ने नहीं चखा. ये मेरी बहू नहीं है, अप्सरा है अप्सरा. प्रदीप उठ, अब इस अप्सरा को दिखा दे कि इस जैसी सुंदर नाज़ुक नार को हमारे परिवार में कैसे भोगा जाता है, चल उठ, तेरा पेट भी भर गया होगा, अब चढ जा इस चाँद के टुकडे पर

क्रमशः................
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