Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
12-09-2019, 12:07 PM,
#11
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
वसुन्धरा के पैरों के तलवे गहरे गुलाबी रंग के, गद्दीदार और वलय वाले थे और पैरों की सारी उंगलियां रोमरहित एवं समानुपात में थी. वात्सायन के अनुसार ऐसे पैरों वाली स्त्रियां बौद्धिक रूप से अत्यंत विकसित, प्राकृतिक तौर पर संकीर्णयोनि अर्थात तंग योनि वाली, पति को सुख देने वाली प्राण-प्रिया और उत्तम संतान को जन्म देने वाली होती हैं.
पर हाल की घड़ी तो यहां अपनी ही जान के लाले पड़े हुए थे. वसुन्धरा लहंगे के बीचों-बीच उठकर खड़ी हो गयी.

सबसे मुश्किल आजमायश का वक़्त आन पहुंचा था. मुझे वसुन्धरा के पैरों तक झुक कर जमीन से लहंगे का नाड़े वाला हिस्सा ऊपर की ओर लाना था. हाथ में लहंगा ले कर खुद सीधे होने की प्रक्रिया में मेरा मुंह और मेरी आँखें, न होने के जैसी छोटी सी पेंटी के पीछे वसुन्धरा की झिलमिलाती योनि से चंद इंच ही दूरी पर होनी थी. तब मैं नारी-शरीर के उस गोपनीय और विशेष अंग की झलक पा रहा होऊंगा जिसको कोई भारतीय नारी चाँद-सूरज तक के आगे भी वस्त्रविहीन नहीं करती.

और खतरा सबसे ज्यादा वहीं था कि कहीं मैं अपना आपा ना खो बैठूं. वसुन्धरा ‘न’ नहीं कहेगी, ऐसा मुझे पता था लेकिन यही तो मेरे सब्र, मेरी शराफत, मेरे सदाचार की सबसे बड़ी परीक्षा थी जिसमें मैंने सफल हो कर दिखाना ही था.

मैंने अपने कांपते हाथों को स्थिर किया और जमीन पर पड़ा लहंगा हौले-हौले ऊपर उठाना शुरू किया, वसुन्धरा की जांघों के जोड़ के बीच में भी स्पंदन हो रहा था. पेंटी का कपड़े वाला हिस्सा मंथर गति से धड़क रहा था और योनि की दरार के आस-पास पेंटी का गुलाबी साटन कुछ-कुछ सील कर(नमी युक्त होकर) गहरे रंग का दिख रहा था.

नारी-योनि का यह स्पंदन, यह योनि-स्त्राव, नारी-शरीर के ये लक्षण, सब मेरे जाने-पहचाने थे.

स्थिति वाक़ई में बहुत विस्फोटक थी. मुझे बहुत ही सतर्क रहने की आवश्यकता थी. वसुन्धरा की काम-ज्वाला वाला पैमाना भी बस छलकने को ही था.
मेरी एक छोटी सी लापरवाही जैसे वसुन्धरा के उरोजों पर मेरी सिर्फ एक गर्म सांस या उसकी योनि के इर्द-गिर्द मेरी हथेली की एक हल्की सी रगड़ या उसके कूल्हों पर मेरी उँगलियों का उचटता सा स्पर्श वसुन्धरा को बेक़ाबू कर सकता था … और मैं ऐसा हरगिज़ हरगिज़ नहीं चाहता था.

मैंने पूर्ण सावधानी बरतते हुए लहंगा वसुन्धरा के कटिप्रदेश तक पंहुचाया. सबसे मुश्किल इम्तिहान की घड़ी निकल चुकी थी. जैसे ही मैं सीधा खड़ा हुआ तो मैंने पाया कि वसुन्धरा ने अपनी आँखें कस के बंद कर रखी हैं और उसकी साँसों की गति अस्त-व्यस्त है. उसके होंठों में रह-रह कर थिरकन सी हो रही थी और अपने होंठ को न थिरकने देने के लिए जूझती वसुन्धरा की ठुड्डी की सतह रह-रह कर गड्डे से बन-बिगड़ रहे थे.

“वसुन्धरा!” फिर नाम के साथ ‘जी’ गायब.
“हूँ…” दूर कहीं वादियों में से जैसे गूंज आयी हो.
“यहीं नाड़ा कस दूँ?” मैंने लहंगे को कूल्हे की बाहर को उभरी हड्डियों के ज़रा सा ऊपर टिका कर पूछा.
“जी!” वसुन्धरा तो बेखुद सी थी.

मैंने नाड़ा कसा और वहीं गाँठ लगा दी. वसुन्धरा की आँखें अभी भी बंद थी अलबत्ता होंठों में सिहरन थोड़ी कम हो गयी थी.
“ठीक हो गया … वसुन्धरा जी!”
” हूँ …! ” फिर वही बेपरवाही भरी बेखुदी.

मैंने थोड़ा परे हट कर वसुन्धरा को निहारा. सब ठीक ही लग रहा था.

लेकिन जैसे ही मैंने वसुन्धरा को पीछे घूम कर देखा तो पाया कि वसुन्धरा की चुनरी, वसुन्धरा की पीठ की ओर से लँहगे के अंदर फंसी हुई थी.
ओहो … भारी जड़ाऊ काम वाली चुनरी खींच कर या झटके से तो निकाली नहीं जा सकती थी.
मतलब ये कि लहँगे का नाड़ा दोबारा खोल कर, लहँगा ढीला कर के चुनरी बाहर निकालनी थी और नाड़ा दोबारा बाँधना था.

इसमें वसुन्धरा का वर्तमान मूड सरासर खतरे की घंटी था. एक बार तो वो जैसे-तैसे ज़ब्त कर गयी, दोबारा शायद न कर पाए. लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं था. मैंने वसुन्धरा के सामने खड़े हो कर वसुन्धरा के लहंगे के नाड़े को जैसे ही खोला, वसुन्धरा ने फ़ौरन अपनी आँखें खोल ली और सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा.

“क्या वसुन्धरा जी! आप की चुनरी पीछे से लहंगे के अंदर फंसी थी और आपको पता ही नहीं … वही निकालनी है.”
वसुन्धरा बोली तो कुछ नहीं … अपितु उस के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गयी.

मैंने लहँगे का नाड़ा थोड़ा ढीला किया और अपने दाएं हाथ में नाड़े के दोनों छोर पकड़ कर अपना बायां हाथ बायीं ओर से वसुन्धरा के पीछे लेजा कर चुनरी को एक हल्का सा झटका दिया लेकिन चुनरी जस की तस! जरूर जड़ाऊ काम के सितारे-मोती, लहँगे के अंदर कहीं न कहीं फंस रहे थे.
लहंगा और ढीला हो नहीं सकता था और मैं घूम कर पीछे नहीं जा सकता था क्योंकि मैंने दाएं हाथ में लहंगे के नाड़े के दोनों सिरे थामे हुये थे.
Reply
12-09-2019, 12:08 PM,
#12
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
हार कर मैंने अपना बायां हाथ वसुन्धरा के पीछे की ओर से लहँगे के अंदर डाल दिया. अब हालत यह थी कि एक तरह से वसुन्धरा मेरे आगोश … आंशिक ही सही लेकिन आगोश में थी. आश्चर्यजनक रूप से वसुन्धरा को इस में रत्ती भर भी ऐतराज़ नहीं था, उलटे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे वसुन्धरा इस परिस्थिति को एन्जॉय कर रही हो.

इस प्रक्रिया में मेरा तनाव में आया हुआ, फौलाद की तरह सख़्त और गर्म, धधकता हुआ लिंग वसुन्धरा की नाभि से ज़रा नीचे, वसुन्धरा से शरीर से सट गया. वसुन्धरा एकदम सिहर उठी. वसुन्धरा के नितंबों और मेरे हाथ के बीच में वसुन्धरा की लहंगे में फंसी चुनरी का आवरण मात्र था. मैंने अपने हाथ को लहँगे के अंदर ही बाहर (लहँगे) की तरफ उठा कर ऊपर से नीचे, दाएं से बाएं फिरा कर देखा, कहीं कोई अटकाव नहीं था लेकिन चुनरी तो अभी भी लहँगे के अंदर ही फंसी हुई थी.

मैंने चुनरी परे हटायी और हल्के से अपना हाथ आगे किया. तत्काल मेरे बाएं हाथ की हथेली वसुन्धरा के आवरण-विहीन जलते-तपते बाएं नितंब पर जा टिकीं, फ़ौरन ही वसुन्धरा के मुंह से एक तीख़ी सिसकारी निकली और उस के शरीर में सिहरन की दौड़ती लहर को मैंने स्पष्ट महसूस किया.

मैंने अपना हाथ थोड़ा और आगे दोनों नितंबों के बीच की दरार की ओर बढ़ाया और पाया कि वसुन्धरा की चुनरी दोनों नितम्बों के बीच में कहीं नीचे वसुन्धरा की पेंटी में अटकी हुई है. मैं धीरे धीरे अपना बायां हाथ नितम्बों की दरार के साथ साथ नीचे की ओर ले जाने लगा. वसुन्धरा के शरीर में रह रह कर सिहरन की लहरें उठ रही थी और उसने अपना निचला होंठ अपने दांतों में कस कर भींच रखा था.

जहां नितम्बों की गोलाई ख़त्म होती है, वहाँ जहां गुदा और योनि के बीच की जगह पर वसुन्धरा की पेंटी में वसुन्धरा की चुनरी का सितारा अटका हुआ था. मैंने दो तीन बार उसे दाएं-बाएं हिलाया लेकिन वो ढीठ वहीं का वहीं. इसी धक्का-मुक्की में मेरे हाथ की उंगलियों के पोरू वसुन्धरा की जलती-धधकती योनि से रगड़ खा गए.

ऐसा होना ही ग़ज़ब ढा गया … तत्काल वसुन्धरा ने दोनों बाज़ु उठा कर मेरे दोनों कांधों पर रख कर कोहनियों के जोर से मुझे अपनी ओर खींचा और अपनी ठुड्डी मेरे बाएं कंधे पर टिका दी. परिस्थिति हाथ से बस! … निकलने को ही थी. एक क्षण … मात्र एक पल और … और सब स्वाहा!
फिर न तो राजवीर बचता, न वसुन्धरा बचती और न ही बचती कोई सामाजिक वर्ज़ना.
बचते तो सिर्फ आदम और हव्वा के वंशज जो सामाजिक रिवायतों की परवाह किये बिना, युगों-युगों से एक-दूसरे में समा कर अपनी आदिमकाल की प्यास मिटाने की कोशिश में व्यस्त होते.
लैला-मजनूं, शीरीं-फ़रहाद, हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, सोहनी-महिवाल … ये सब प्रेम-गाथायें असल में आदम और हव्वा की इसी अनबुझी प्यास को मिटाने की अनथक कोशिशों के स्मृति-पात्र हैं लेकिन ये प्यास न तो अभी तक मिटी है, न कभी मिटेगी. देस बदलेंगे … काल बदलेंगे, जिस्म बदलेंगे … नाम बदलेंगे लेकिन आदम और हव्वा की एक-दूसरे के लिए प्यास का ये खेल यूं ही अनवरत चलता रहेगा … शायद सृष्टि के अंत तक.

लेकिन सृष्टि का अंत फिलहाल तो नहीं आया था. तभी वसुन्धरा की पेंटी में अटका हुआ उस की चुनरी का सितारा, पेंटी के फैब्रिक से आज़ाद हो गया जिसका एहसास तत्काल वसुन्धरा को भी हो गया. यूं लगा कि वसुन्धरा इससे खुश नहीं हुई और वसुन्धरा ने इसका विरोध अपनी कमर, अपनी योनि को मुझसे अच्छी तरह सटा कर जताया.

मैंने अपने बायें हाथ के साथ-साथ उसकी चुनरी लहंगे से बाहर निकाल ली.

पाठकगण! मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा … उस वक़्त चुनरी का वसुन्धरा की पेंटी की पकड़ से छूट जाना मुझे भी कहीं अंदर ही अंदर बुरा सा ही लगा था.
लेकिन शायद यही सही था.

मैंने लहँगे के नाड़े की वसुन्धरा की कमर पर मुनासिब जग़ह गाँठ लगाई और हम दोनों घर से शादी वाले होटल की ओर रवाना हुए.

घर से निकलते हुए वसुन्धरा ने दबी जुबान में पुराने कपड़ों वाला अटैची कार से निकल कर घर में ही छोड़ने की बात कही लेकिन मैं उसकी बात सुनी-अनसुनी कर गया. लिहाज़ा वसुन्धरा के पुराने पहने हुए कपड़ों वाला अटैची कार में हमारे साथ ही होटल की ओर चल निकला.

कार में वसुन्धरा ने मुझसे कोई बात नहीं की अपितु सारे रास्ते वसुन्धरा अधमुंदी आँखों के साथ मंद-मंद मुस्कुराती रही, शायद उन लम्हों को मन ही मन दोहरा रही थी. वसुन्धरा के रुख पर रह-रह कर शर्म की लाली साफ़-साफ़ झलक रही थी. वसुन्धरा की आँखें बार-बार झुकी जा रही थी, होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गयी थी और माथे पर लिखा 111 कब का विदा ले चुका था, आवाज़ में से तल्ख़ी गायब हो चुकी थी और उस के हाव-भाव में आक्रमकता की बजाये एक शालीनता सी आ गयी थी.
इस आधे-पौने घंटे ने वसुन्धरा के व्यक्तित्व में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया था, एक स्त्री को स्त्री वाला अंतर्मन दे दिया था.

खैर! तूफ़ान का दौर गुज़र चुका था, वो भी बिना कोई ख़ास नुक्सान किये. लेकिन ये मेरे लिए एक गंभीर चेतावनी छोड़ गया था. बाहर से तल्ख़, ठंडी, कठोर वसुन्धरा के अंदर अनछुये एहसासों का, प्यार की प्यासी भावनाओं का एक धधकता हुआ ज्वालामुखी छुपा हुआ था. मैं खुद को काम-कौशल में सिद्धहस्त मानता था और अगर नियति ने चाहा तो, अगर ये लम्हें भविष्य में कभी मेरे और वसुन्धरा के बीच में होने वाले अविश्वसनीय प्रेम-द्वन्द की आधारशिला बने तो यक़ीनन मेरी बहुत ही कड़ी परीक्षा होने वाली थी.

कहानी जारी रहेगी.
Reply
12-09-2019, 12:08 PM,
#13
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
कार में वसुन्धरा ने मुझसे कोई बात नहीं की अपितु सारे रास्ते वसुन्धरा अधमुंदी आँखों के साथ मंद-मंद मुस्कुराती रही, शायद उन लम्हों को मन ही मन दोहरा रही थी. वसुन्धरा के रुख पर रह-रह कर शर्म की लाली साफ़-साफ़ झलक रही थी. वसुन्धरा की आँखें बार-बार झुकी जा रही थी, होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गयी थी और माथे पर लिखा 111 कब का विदा ले चुका था, आवाज़ में से तल्ख़ी गायब हो चुकी थी और उस के हाव-भाव में आक्रमकता की बजाये एक शालीनता सी आ गयी थी.
इस आधे-पौने घंटे ने वसुन्धरा के व्यक्तित्व में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया था, एक स्त्री को स्त्री वाला अंतर्मन दे दिया था.
होटल की पार्किंग में कार लगाते हुए वसुन्धरा मुझ से मुख़ातिब हुई.
“सुनिए! प्लीज़ आप …”
“कुछ मत कहिये वसुन्धरा जी! ये एक सपना था और सपनों को सिर्फ याद किया जाता है, आलम में जिक्र कर-कर के उनको रुसवा नहीं किया जाता.” इस से पहले वसुन्धरा कुछ और कहती, मैंने वसुन्धरा के दिल की बात बूझ कर पहले ही उसको मुतमईन कर दिया.

“और वसुन्धरा जी! आप भी ध्यान रखना प्लीज़! हम घर नहीं गए, कोई कारण ही नहीं था घर जाने का. हम ब्यूटी-पॉर्लर से सीधे शादी वाले होटल में आएं हैं, इसीलिये आपके पुराने पहने हुए कपड़ों वाला अटैची कार में हमारे साथ ही होटल आ गया है.”
वसुन्धरा को अब समझ आया कि क्यों मैं उसके पुराने पहने हुए कपड़ों वाला अटैची कार में रखकर साथ ही होटल ले आया हूँ.
“थैंक यू!”

मैंने वसुन्धरा की ओर देखा. होंठों से वो सिर्फ धन्यवाद कह रही थी लेकिन उसकी आँखों में तो जैसे भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था.

बाद का किस्सा-ऐ-मुख़्तसर तो यह रहा कि प्रिया की शादी बहुत धूमधाम से हुई और शादी के बाकी के समारोह में वसुन्धरा का सब के साथ व्यवहार आश्चर्यजनक रूप से शालीन और मधुर रहा.
शादी के समारोहों में यदा-कदा मैं वसुन्धरा की ओर देखता तो उसको अपनी ही ओर निहारते पाता. ज्वालामुखी के अंदर ज़बरदस्त हलचल जारी थी. प्रिया की विदाई मेरे ही घर से हुई. तारों की छाँव में विदा होते वक़्त प्रिया मेरे भी गले लग कर रोई, हालांकि विदाई के इतने ज़ज़्बाती लम्हे में भी मुझसे सट कर रोते वक़्त प्रिया भारी चुनरी की ओट में मुसलसल अपने बाएं हाथ से मेरे लिंग को पतलून के ऊपर से सहलाती रही … सहलाती क्या रही, लिंग पर मुट्ठियाँ सी भरती रही. शायद वो मेरा प्रिया से आखिरी अंतिम स्पर्श था.

प्रिया की विदाई के कुछ घंटे बाद प्रिया के मम्मी-पापा, वसुन्धरा और उस का परिवार भी अपने-अपने घर के लिए विदा हो गए पर एक बात क़ाबिल-ऐ-ग़ौर थी. वसुन्धरा ने ना तो हमारे फ़ोन नंबर लिए, न अपने कॉन्टेक्ट नम्बर दिए.
हाँ! इतना ज़रूर था कि हम लोगों से विदा लेकर कार में बैठते वक़्त वसुन्धरा की आँखें भी भरी-भरी सी थी. फ़क़त दो दिन पहले वसुन्धरा और आंसू … जैसी कल्पना करना भी मुहाल था. किससे बिछुड़ने के ग़म में वसुन्धरा की आँख भर आयी थी?
क्या मुझ से? क्यों नहीं … यकीनन! मुझसे बिछुड़ने के कारण ही ऐसा था.

चहल-पहल से भरा-पूरा एक घर महज़ चंद घंटों में ही खाली-खाली सा लगने लगा. लेकिन यही जिंदगी की रीत है. समय का पहिया तो अनवरत गतिमान रहता है. रात आयी, दिन चढ़ा, दिन ढला, फिर रात आयी. प्रिया की शादी के बहुत दिन बाद तक मैं अनमना सा रहा लेकिन धीरे-धीरे हमारी जिंदगी भी अपने ढर्रे पर वापिस लौट आयी. दिन हफ़्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते चले गए.
कालांतर में प्रिया भी अपने पति के पास आस्ट्रेलिया चली गयी. कभी-कभार आस्ट्रेलिया से प्रिया का फ़ोन आ जाता तो “हैलो-हाय, क्या हाल है, कैसी हो, खुश तो हो?” जैसी रस्मी सी बातचीत भी हो जाती थी. प्रिया की बातों से लगता था कि वो अपने पति के साथ खुश है.

इक अनजानी सी ईर्ष्या की भावना दिल में सर उठाती तो थी लेकिन मैं दुनियादार आदमी था, सब ऊंच-नीच समझता था. मेरा खुद का एक परिवार था, बीवी थी, बच्चे थे, समाज में मेरा एक मुकाम था और प्यार के नाम पर इन सब को दांव पर नहीं लगाया जा सकता था.
और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि मैं खुद ही ऐसा करना नहीं चाहता था. तो … ‘जो मिला, वही ग़नीमत’ पर अमल कर उस ईर्ष्या की भावना को दिल ही में दफ़न कर देता था.

लेकिन एक बात थी, जिस दिन प्रिया का फ़ोन आता, उस रात मेरी कामुकता बिस्तर में वो कहर ढाती कि बेचारी सुधा दो-दो दिन ठीक से चल भी नहीं पाती. मेरे ख्याल से मेरी ऐसी बेलगाम कामुकता मेरे अवचेतन मन की अतृप्त और दबायी गयी ख़्वाहिश … प्रिया की ख़्वाहिश का ही नतीजा था.
Reply
12-09-2019, 12:08 PM,
#14
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
कभी-कभार अनचेतन वसुन्धरा का ख्याल भी आ कर दिल पर दस्तक दे जाता ‘जाने कैसी होगी वो? शायद उस की शादी की कहीं कोई बातचीत चली हो. मुझे याद करती होगी या नहीं … करती तो होगी!’ ऐसे कितने ही विचार मन में आ विचरते.
अखबार में कभी कहीं कोई शिमला की या डगशाई की कोई ख़बर होती तो मैं सारी ख़बर बहुत ध्यान से पढ़ता … जाने क्यों!

और फिर करीब एक साल बाद एक दिन:
नवंबर महीने का दूसरा हफ्ता चल रहा था … दोपहर करीब बारह-सवा बारह का टाइम रहा होगा कि वसुन्धरा के पापा मेरे ऑफिस आये. उन्हें इस तरह अचानक आया देख कर मुझे फ़ौरन वसुन्धरा का ख़्याल आया. क्या जाने वसुन्धरा की कहीं शादी तय हो गयी हो और ये साहब उसी का न्यौता देने आयें हों.

लेकिन नहीं … बात व्यापारिक थी. हिमाचल में मिनिस्ट्री ऑफ़ एजुकेशन ने अपने बहुत सारे हाई-स्कूलों के लिए बहुत सारे कम्यूटर्स … बहुत सारे बोले तो कोई पांच सौ से कुछ ज्यादा ही कम्यूटर्स खरीदने का टेंडर निकाला था और टेंडर 28 नवंबर को खुलना था. अब कम्यूटर मेरी लाइन थी और वसुन्धरा के पापा अंदर के आदमी थे तो उन्हें मेरा ख़्याल आया, इसीलिए वो मेरे पास बिज़नेस ऑफर ले कर आये थे.

मिनिस्ट्री से सारी माथा-पच्ची वसुन्धरा के पापा ने करनी थी. इंस्टालेशन की और मिनिस्ट्री से पेमेंट लेने की सारी सिरदर्दी बड़े मियाँ की थी, मुझे कम्यूटर्स असैम्बल करवा के शिमला, सिर्फ वसुन्धरा के पापा तक पहुंचाने थे और मुझे मेरी सारी पेमेंट वसुन्धरा के पापा से मिलनी थी. ये सब कुछ 31 जनवरी से पहले-पहले ख़त्म करना था.
हाँ! इस दौरान मुझे शिमला के दो एक चक्कर लगाने होंगें. पहले तो टेंडर अटेण्ड करने और नेगोटिएशन्स के लिए, फिर इक बार प्री-डिलीवरी इंस्पेक्शन के लिए आदि-आदि.

पांच सौ कम्यूटर्स! अगर मैं सब ख़र्चे निकाल कर पांच सौ रुपये प्रति कम्यूटर के हिसाब से भी अपना प्रॉफिट रखता तो फ़िगर ढाई लाख के पार जाती थी. न करने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन पाठकगण! मैं झूठ नहीं बोलूंगा कि हाँ करने के कई कारणों में से एक उम्मीद … चाहे बेजा ही थी, लेकिन वो यह थी कि शायद मेरी शिमला-फेरी के दौरान किसी रोज़ मेरी वसुन्धरा से मुलाकात हो जाए.

ख़ैर! वसुन्धरा के पापा मुझे 28 नवंबर को शिमला आने का न्यौता भिजवाने का कह कर ख़ुशी-ख़ुशी विदा हो गए.

टेंडर खुलना था 28 नवंबर, वीरवार शाम 4 बजे और उसके बाद एल-1 और एल-2 के साथ नेगोसिएशन. अगर टेंडर समय की पाबंदगी के साथ ठीक 4 बजे भी खुलता जो सरकारी दफ्तरों में कभी होती नहीं तो भी शाम 7-8 तो मुझे मिनिस्ट्री में ही बज जाने थे.

अब सर्दियों का मौसम में अँधेरी, ठंडी रात में पहाड़ी सड़क पर कार चला कर वापिस अपने शहर आना बहुत दुरूह कार्य था, लिहाज़ा! मुझे रात शिमला में ही ठहरने का इंतज़ाम करके जाना था.
अगले ही दिन वसुन्धरा के पापा का फोन आ गया. चूंकि वही तो सारी योजना के कर्णधार थे और उन्हें सब पता था इसलिए उन्होंने इसरार किया कि रात मैं होटल में न रुक कर उनके घर में ही रुकूँ.
यूं वीरवार को वसुन्धरा के शिमला वाले घर में होने की संभावनाएं अत्यंत क्षीण थी लेकिन फिर भी मैंने हामी भर दी.

खैर जी! मैं नियत दिन, नियत समय पर शिमला जा पहुंचा, टेंडर हमारे हक़ में ही खुला. वसुन्धरा के पापा और मेरी अंडर-सैकेट्री मिस्टर रावत के साथ मुलाक़ात बहुत ही बढ़िया रही. जो कि कालांतर में मेरे लिए बहुत प्रॉफिटेबल और परमानेंट बिज़नेस की आधारशिला बनी.

लेकिन दो-तीन मुद्दे रह गए थे जिन पर फैसला अगले दिन होना था लिहाज़ा हमें अगले दिन मिनिस्ट्री दोबारा जाना था. शाम करीब साढ़े-सात बजे मैं, वसुन्धरा के पापा के साथ उनके घर चला गया.
घर जाकर पता चला कि वसुन्धरा नहीं आयी थी. कोफ़्त तो हुई लेकिन क्या किया जा सकता था!

अभी नवम्बर के आखिरी दिन चल रहे थे और मैदानों में तो इतनी सर्दी नहीं थी लेकिन शिमला में तो रातें ख़ासी ठंडी हो चली थी. फ़्रेश होकर साढ़े आठ बजे के आस-पास मैं और वसुन्धरा के पापा ड्रिंक्स लेने बैठ गए.

बातों-बातों में वसुन्धरा की और वसुन्धरा की शादी की बात चल निकली.
“राज जी! सब मेरी गलती है जो मेरी बेटी मेरी आँखों के सामने तिल-तिल कर मर रही है. बहुत साल पहले एक बहुत अच्छा रिश्ता आया था वसुन्धरा के लिए और वसुन्धरा को लड़का पसंद भी था लेकिन मैं ही चूक गया. मुझ पर ही भूत सवार था किसी मिल्ट्री-ऑफिसर को दामाद बनाने का और मेरी इस बेकार की जिद ने सब गुड़-गोबर कर दिया. उस सब के बाद तो मुझ में और वसुन्धरा में इतना फ़ासला बढ़ गया है कि वसुन्धरा को मुझ से बात किये भी मुद्दत हो गयी.
यह उनका घरेलू मसला था, मैं इस में क्या कह सकता था सो! सिर्फ सुन रहा था.

“अभी पिछले महीने ही एक बहुत अच्छा रिश्ता आया है वसुन्धरा के लिए. लड़का फौज में मेजर है, बहुत ही शरीफ लोग हैं और ऊपर से अपनी ही जाति के हैं. वसुन्धरा और वो लड़का, दोनों साथ-साथ पढ़े भी हुए हैं लेकिन वसुन्धरा तो शादी वाली बात सुनने को भी तैयार नहीं!”

“राज जी! अगर आप चाहो तो हमारी मदद कर सकते हो.”
“मैं! कैसे? ”
थोड़ा जोर देने पर वसुन्धरा के पापा ने इसरारपूर्वक कहा कि अगर मैं, (मैं … बोले तो राजवीर!) वसुन्धरा से इस बारे में थोड़ा बात करे तो शायद वसुन्धरा मान जाए क्योंकि छोटे ने (प्रिया के पापा ने) बताया था कि प्रिया को शादी के लिए भी मैंने ही राजी किया था और ऊपर से वसुन्धरा मेरा मान करती है, ये उन सबने प्रिया की शादी में देख ही लिया था.

“बाप रे बाप! किस चक्रव्यूह में धकेल रहे थे बड़े मियाँ!” लेकिन अब तो न कहने की या पीछे हटने की स्टेज गुज़र चुकी थी तो मैंने एक कोशिश करने की हामी भर दी.

रात साढ़े दस बजे के आस-पास डिनर-टेबल पर वसुन्धरा के पापा ने बताया कि वसुन्धरा की मां ने अभी-अभी वसुन्धरा को फोन लगा कर आपके यहां होने की खबर दी तो वसुन्धरा ने कहा है कि वो कल सवेरे 12 बजे तक यहां पहुँच जायेगी. आपके लिए वसुन्धरा का संदेसा है कि आप हरगिज़ भी उससे मिले बिना ना जाएँ.

इतना सुनकर मेरे पेट में तितलियाँ सी उड़ने लगी. एक साल और आठ दिन हो चुके थे, वसुन्धरा को देखे. कैसी दिखती होगी वो? क्या मेरा सामना पुरानी सड़ियल, तल्ख़, कठोर वसुन्धरा से होने जा रहा था या फिर साक्षात रति-रूप, कामांगी वसुन्धरा मेरे रु-ब-रु होगी?
साल पहले की वसुन्धरा की पिंक चोली और पिंक पेंटी में मेरी ओर चली आने वाली क़ामायनी छवि मेरी आँखों के सामने मूर्त हो उठी.

वो रात मुझ पर बहुत भारी गुज़री. बहुत देर तक पुरानी यादें बड़ी शिद्दत से मेरे ज़ेहन में मंडराती रही. बहुत रात गए मुझे नींद आयी.

Reply
12-09-2019, 12:08 PM,
#15
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
वसुन्धरा की मां ने अभी-अभी वसुन्धरा को फोन लगा कर आपके यहां होने की खबर दी तो वसुन्धरा ने कहा है कि वो कल सवेरे 12 बजे तक यहां पहुँच जायेगी. आपके लिए वसुन्धरा का संदेसा है कि आप हरगिज़ भी उससे मिले बिना ना जाएँ.
इतना सुनकर मेरे पेट में तितलियाँ सी उड़ने लगी. साल पहले की वसुन्धरा की पिंक चोली और पिंक पेंटी में मेरी ओर चली आने वाली क़ामायनी छवि मेरी आँखों के सामने मूर्त हो उठी.

वो रात मुझ पर बहुत भारी गुज़री. बहुत देर तक पुरानी यादें बड़ी शिद्दत से मेरे ज़ेहन में मंडराती रही. बहुत रात गए मुझे नींद आयी.
अगले दिन हमें मिनिस्ट्री में अनुमान से ज्यादा ही टाइम लग गया. करीब साढ़े तीन बजे थे जब हम दोनों फ़ारिग हो कर वापिस घर पहुंचे. सुबह से ही आसमान में काली घटाओं का आना-जाना लगा हुआ था और तेज़ हवाओं के कारण धूप-छाँव की आँख-मिचौली जारी थी. लगता था कि एक-आध रोज़ में बारिश होगी.

जैसे ही पोर्च में कार घुसी, सामने सीढ़ियों पर वसुन्धरा खड़ी थी. एक पल को तो मेरे दिल की धड़कन जैसे थम सी ही गयी. दुल्हन के जैसी सजी हुयी तो नहीं लेकिन पहले के जैसी किसी बोरिंग और सड़ियल नन के रूप में भी नहीं थी.

पिछले साल की बनिस्पत वसुन्धरा ने कोई छह-सात किलों वज़न कम कर लिया था लिहाज़ा उसके चेहरे के तमाम नैन-नक्श … ख़ासकर उसकी सुतवां नाक और होंठ ज्यादा कातिल दिख रहे थे. उस के बदन की तमाम गोलाइयाँ, गहराइयाँ और ऊंचाइयां पहले के मुकाबिले कहीं ज़्यादा शिद्दत से उजाग़र हो रहीं थीं. कमर का पहले से ज्यादा गहरा ख़म तो सरासर क़ातिल दिख रहा था. वही सरु सा ऊँचा कद, वही कमान सा तना हुआ सुडौल गोरा बदन, वही रौशन पेशानी, माथे पर हवा में कुछ-कुछ उड़ती ज़ुल्फ़ें, तीखा सुतवां नाक, सुडौल गुलाब सी कलियों से होठों का अर्ध-चन्द्रात्मक ख़म, नाभि से ज़रा नीचे बंधी शिफ़ौन की प्लेन महरून साड़ी में से पारे की तरह थिरकती लम्बी पुष्ट जाँघें.

मैं अपने तस्सुवर में वसुन्धरा के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा. अपने दोनों हाथों को अपने सीने पर क्रास बांधे हुए, काली कजरारी आँखों में सैंकड़ों सलाम और सवाल लिए वसुन्धरा की वही अदा. कहीं कोई रत्ती भर भी फर्क नहीं. या तो समय रुक गया था या एक ही पल में सदियाँ गुज़र गयीं. लगा … जैसे अभी कल की ही तो बात है, जुदा हुये. एक आह सी मेरे दिल से निकल गयी.
पोर्च में वसुन्धरा के पापा ने कार रोक कर मुझे उतारा और खुद कार गैरेज़ में पार्क करने के लिए आगे बढ़ा ले गए. जैसे ही मैं कार से उतरा तत्काल ही वसुन्धरा सीढ़ियों से नीचे उतर कर बिल्कुल मेरे पास आ गयी.

“वसुन्धरा जी … नमस्कार!” मैंने अपने दोनों हाथ वसुन्धरा की ओर जोड़े.
वसुन्धरा ने बिना कुछ बोले आगे बढ़ कर मेरे दोनों हाथ थाम लिए और सर उठा कर तरसी आँखों में हज़ारों शिकायतों का भाव लेकर मेरी ओर निहारा. एक सिहरन की लहर मेरे तन-बदन से गुज़र गयी.
मैंने फ़ौरन अपना बायां हाथ उसके दोनों हाथों में से निकाल कर उसके दायें हाथ के पृष्ठ भाग पर जमा दिया और अपने दायें हाथ की चारों उंगलियां वसुन्धरा के दायें हाथ की उँगलियों में पिरो दी.
अब सिहरने की बारी वसुन्धरा की थी.
“एक साल बाद हाल पूछ रहे हैं आप!”
“आप मिली ही साल बाद हैं.”
“फ़ोन कर सकते थे?”
“आपने अपना नंबर देने लायक ही नहीं समझा हमें … फोन कहाँ करते?”

वसुन्धरा ने एक तिरछी नज़र से अपने पापा की ओर देख कर … जोकि गैरेज में कार पार्क कर रहे थे अभी … अपनी पेशानी पर सिलवट डाल कर मेरी तरफ़ फ़र्ज़ी गुस्से से आँख तरेरी और अपने हाथ मेरे हाथों से छुड़वा लिए.
“अजी छोड़िये! ढूंढने वाले तो भगवान ढूंढ लेते हैं.”
“जी … जी! ढूंढ ही तो लिया है.”

अब वसुन्धरा लाज़वाब थी. तभी उसके पापा यह कहते हुए घर के अंदर जा घुसे- चलो चलो! अंदर चलो यार! बहुत भूख लगी है.
वसुन्धरा आगे-आगे और मैं पीछे पीछे डाइनिंग हाल में जा कर डाइनिंग टेबल पर जा बैठे.

खाना खाते वक़्त वसुन्धरा ने मुझसे मेरा अगला प्रोग्राम पूछा. मैंने तो घर के लिए वापिस निकलना था लेकिन अभी तो वसुन्धरा से अलैक-सलैक ही हुई थी, कोई ढ़ंग की बात तो हुई ही नहीं थी.
“जैसा आप कहें!” मैंने वसुन्धरा का मन टटोला.
“अगर आप को दिक्कत न हो तो मैं आपके साथ ही चलती हूँ. आप मुझे धर्मपुर उतार दीजियेगा, वहां से मैं डगशाई चली जाउंगी और आप आगे अपने शहर चले जाना.”
Reply
12-09-2019, 12:08 PM,
#16
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
“कोई दिक़्क़त नहीं लेकिन आप आज ही वापिस क्यों जाना चाहती है?” मैंने मन ही मन हिसाब लगाया कि वसुन्धरा का मुझे लगभग डेढ़-पौने दो घंटे का साथ और मिल सकता है.
“यहां मेरे लिए रखा ही क्या है?” वसुन्धरा के मन में अपने पिता के लिए बहुत कड़वाहट थी.
मैंने चुप रहना ही श्रेष्यकर समझा.

ख़ैर! खाना-वाना खाकर करीब साढ़े चार बजे हम लोगों ने शिमला छोड़ दिया. चलने से पहले मैंने वसुन्धरा के पापा को आश्वस्त कर दिया कि मैं रास्ते में वसुन्धरा को शादी वाले मुद्दे पर समझाने और मनाने की पूरी कोशिश करूंगा.

बाहर मौसम और अधिक रौद्र रूप इख्तियार कर चुका था, आसमान पर काले बादलों की सेना ने आसमान में धीरे-धीरे स्थायी किलेबंदी कर ली थी, लगता था कि आज शाम ही बारिश आएगी. मैं धीरे-धीरे ड्राइव करता हुआ शहर से बाहर निकल कर हाईवे पर आ गया.
अभी तक न तो वसुन्धरा कुछ बोली थी न मैं. हम दोनों की नज़र बार-बार इक-दूजे की ओर उठती, नज़र से नज़र मिलती, दोनों के होंठों पर एक मुस्कान आ कर लुप्त हो जाती और बस …
एक अज़ब सी बेखुदी की कैफ़ियत तारी थी दोनों पर.

“वसुन्धरा जी!” आँखिर मैं मर्द था, मैंने पहल की.
“जी!”
“कुछ बात कीजिये … कुछ अपनी कहिये, कुछ हमारी सुनिए. नहीं तो धर्मपुर तो ऐसे भी आ ही जायेगा. फिर मैं कहाँ … आप कहाँ! पता नहीं जिंदगी में हम कभी दोबारा मिलें … न मिलें.” लफ्ज़ सीधे मेरे दिल से निकल रहे थे.
“आप ऐसे ना कहें … प्लीज़!” वसुन्धरा जैसे सिसक सी उठी.
“क्या मैं ऐसे न कहूं?”
“दोबारा न मिलने वाली बात. हम मिलेंगे … जरूर मिलेंगे. ” अचानक ही वसुन्धरा की कजरारी आँखों में नमी सी छलक उठी थी.

“वसुन्धरा जी! आप जानती हैं न कि फ़र्ज़ की वेदी पर ख्वाहिशों की बलि चढ़ना-चढ़ाना, इस दुनिया का दस्तूर है.” मैंने इशारों में वसुन्धरा को चेताया.
“जी! मुझे पता है लेकिन अपना आबाद होना या फना होना … ये तो खुद के इख्तियार में ही है और सपने देखने पर तो कोई पाबंदी नहीं.”
“और सपना क्या है?”
“ये जो आप मेरे पास हैं … मेरे साथ हैं, यही तो सपना है.”

“अच्छा एक बात बताइये! आप आती दफ़ा न तो अपना कोई कांटेक्ट नंबर हमें दे कर आयी, न हमारा कोई कांटेक्ट नंबर ले कर आयी … ऐसा क्यों?”
“अभी-अभी आप ही ने कहा न कि फ़र्ज़ की वेदी पर ख्वाहिशों की बलि चढ़ना-चढ़ाना, इस दुनिया का दस्तूर है. बस! वही दस्तूर निभाया मैंने. ”
बाबा रे बाबा! बातचीत बहुत ही गलत रुख इख्तियार करती जा रही थी.

मैंने पलभर के लिए सड़क पर से निगाह हटा कर वसुन्धरा की ओर निहारा. वसुन्धरा ने मेरी ओर ही देख रही थी. नज़र से नज़र मिली. जाने क्या भाव था वसुन्धरा की आँखों में … आत्मसम्मान या नित्य जलती रहने वाली शमा की लौ का तेज़ या आत्मबलिदान देने वाले की नेकी का रौशन अन्तर्मन … पता नहीं.

वसुन्धरा की नज़र मेरे अंतर में कहीं गहरे उतर गयी. तभी बहुत ज़ोर से बिजली चमकी और धड़धड़ा कर बादल गरजे. अगले ही क्षण मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी. बाहर वातावरण में घटाटोप अँधेरा छा गया था. अभी शाम के साढ़े पांच ही बजे थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि जैसे रात के दस बजे हों. घने अँधेरे में, मूसलाधार बारिश में पहाड़ी सड़क पर ड्राइव करना कितना ख़तरनाक हो सकता है, यह तो वही जानता है जो कभी ऐसी हालत में फंसा हो, ज़रा सी असावधानी और सब ख़त्म. धर्मपुर अभी भी लगभग 30 किलोमीटर दूर था.

“वसुन्धरा जी! मैं आप से कुछ कहना चाहता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप मेरी बात पर गौर जरूर करेंगी.”
वसुन्धरा की सवालिया निगाहें मेरी ओर उठी.
“वसुन्धरा जी! जिंदगी में एक्सीडेंट्स भी हो जाते हैं कभी लेकिन जिंदगी तो चलती ही रहती है. हाँ कि ना?”
“कहते जाइये, मैं सुन रही हूँ.”

“गिरने में कोई बुराई नहीं, बुराई … गिर कर उठने से इंकार करने में है. एक नयी शुरुआत न करने में है.”
“तो …” वाइस-प्रिंसिपल साहिबा धीरे-धीरे चैतन्य हो रही थी.
“आप एक नयी शुरुआत कीजिये न.”
” मैं जानती हूँ … अब की बार पापा ने आपको मोहरा बनाया है.”
“मोहरे जैसी कोई बात नहीं वसुन्धरा जी! सभी, आप के मम्मी-पापा और मैं भी, मैं खुद भी चाहता हूँ कि आप एक खुशहाल और भरी-पूरी जिंदगी जियें.”

“राज! मेरे ख्याल से आपको सारी बात नहीं पता.” वसुन्धरा के मुँह पर मेरा नाम पहली बार आया था, वो भी ‘मिस्टर’ या ‘जी’ जैसे किसी अलंकार के बिना.

इससे पहले कि मैं कुछ कहता कि अचानक कार बायीं ओर रपटने लगी. मैंने ब्रेक-पैडल पर लगभग ख़ड़े ही होकर जैसे-तैसे कार संभाली. झमाझम बारिश में, कार से उतर कर देखा तो पाया कि पैसेंजर-साईड का अगला टायर पंक्चर हुआ था. बारिश में ही जैसे-तैसे टायर बदला लेकिन इस सारी कार्यवाही में तक़रीबन चालीस-पैंतालीस मिनट लग गए.

सर से पांव तक भीगा हुआ मैं, कार चला कर वसुन्धरा को साथ लिए भरी बरसात में साढ़े सात बजे के लगभग धर्मपुर पहुंचा तो ऐसा लग रहा था कि जैसे हम किसी भूतिया नगर में पहुंच गए हों. सारे शहर की बिजली गुल, सड़क पर कोई बंदा न बन्दे की ज़ात. न कोई बस, न कोई टैक्सी. ऊपर से खराब मौसम और रात सर पर खड़ी.

ऐसे में अकेली वसुन्धरा को धर्मपुर उतारने को मेरा मन नहीं माना. वैसे डगशाई वहाँ से सात-आठ किलोमीटर ही दूर था. जहां सत्यानाश … वहां सवा-सत्यानाश. मैंने तत्काल फैसला ले लिया. जैसे ही मैंने कार डगशाई की ओर मोड़ी तो वसुन्धरा चौंकी.
“इधर किधर?”
“आपको आप की मंज़िल तक पहुँचाना नहीं क्या?” मैंने थोड़ा हंस कर कहा, हालांकि ठण्ड से मेरी कुल्फी जमे जा रही थी.
“मेरी मंज़िल तो मेरे पास है लेकिन मेरी किस्मत में नहीं.”
“क्या मतलब?” मैं चौंका.
Reply
12-09-2019, 12:08 PM,
#17
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
सर से पांव तक भीगा हुआ मैं, कार चला कर वसुन्धरा को साथ लिए भरी बरसात में साढ़े सात बजे के लगभग धर्मपुर पहुंचा तो ऐसा लग रहा था कि जैसे हम किसी भूतिया नगर में पहुंच गए हों. सारे शहर की बिजली गुल, सड़क पर कोई बंदा न बन्दे की ज़ात. न कोई बस, न कोई टैक्सी. ऊपर से खराब मौसम और रात सर पर खड़ी.

ऐसे में अकेली वसुन्धरा को धर्मपुर उतारने को मेरा मन नहीं माना. वैसे डगशाई वहाँ से सात-आठ किलोमीटर ही दूर था. जहां सत्यानाश … वहां सवा-सत्यानाश. मैंने तत्काल फैसला ले लिया. जैसे ही मैंने कार डगशाई की ओर मोड़ी तो वसुन्धरा चौंकी.
“इधर किधर?”
“आपको आप की मंज़िल तक पहुँचाना नहीं क्या?” मैंने थोड़ा हंस कर कहा, हालांकि ठण्ड से मेरी कुल्फी जमे जा रही थी.
“मेरी मंज़िल तो मेरे पास है लेकिन मेरी किस्मत में नहीं.”
यहा तक आपने पढ़ा अब आगे-

“क्या मतलब?” मैं चौंका.
“मेरी मंज़िल तो मेरे पास है लेकिन मेरी किस्मत में नहीं.”
“क्या मतलब?” मैं चौंका.
मैं वसुन्धरा की बात का मर्म समझ तो गया था लेकिन थोड़ा कंफ्यूज़ था. कुछ था जो मेरी जानकारी से बाहर था.
डगशाई पहुँच कर वसुन्धरा मुझे रास्ता बताती गयी और हम लोग एक घुमावदार और सुनसान सी सड़क के सिरे पर स्थित वसुन्धरा के कॉटेज पहुँच गए.

घड़ी में तब लगभग आठ बज़ रहे थे. तब तक बारिश भी हो बंद चुकी थी लेकिन तेज़ सर्द हवा चल रही थी. जैसे ही वसुन्धरा अपना बैग लेकर कार से उतरी तो मैंने कहा- अच्छा … वसुन्धरा जी!
“क्या मतलब?”
“मैं चलता हूँ वसुन्धरा जी! मैंने बहुत दूर जाना है.”
“फालतू बात मत कीजिये, अंदर चलिए, गीले कपड़े बदलिए, एक कप काफ़ी पीजिये, फिर चले जाइयेगा.”

बात तो वसुन्धरा ठीक ही कह रही थी. कपड़े बदलने जरूरी थे, गीले कपड़ों में मेरी हालात पहले ही पतली हो रही थी.
मैंने गाड़ी साइड में लगाई और कार में से अपना सूटकेस निकला और वसुन्धरा के पीछे-पीछे अंदर चला गया.

अंदर जा कर सूटकेस में से तौलिया, सूखे अंडर गारमेंट्स और दूसरा सूट निकला और बाथरूम में जा घुसा. अपने पहने हुए कपड़े उतार कर जैसे ही खूंटी पर टांगने लगा तो खूँटी पर पहले से ही टंगा वसुन्धरा का नाईट-गाउन नीचे गिर गया और नाईट-गाउन के नीचे टंगी कल की पहन कर उतारी हुई वसुन्धरा की काली ब्रा और साटन की जाली वाली काली पेंटी नुमाया हो गयी.

फ़ौरन ही मेरे लिंग में भयंकर तनाव आ गया. अचानक ही मुझे किसी प्रकार की जल्दी नहीं रही. वैसे तो वसुन्धरा से मुझे कुछ ख़ास उम्मीद नहीं थी लेकिन इंसानी ख़्वाहिशों और कल्पनाओं का कोई ओर-छोर तो होता नहीं.

मैंने वाशरूम में ही एक ज़ोरदार हस्तमैथुन करके अपने लिंग को खूब ठन्डे पानी से अच्छी तरह से धोया और फिर तौलिये के साथ अच्छे से सुखा कर, कपड़े बदल कर मैं कमरे में आया तो सामने मेज पर एक भाप उड़ाती कॉफ़ी का मग रखा था और टेबल से दूसरी ओर दोनों हाथों में कॉफ़ी का मग लिए, सोफे के ऊपर पाँव मोड़ कर शिफ़ौन की साड़ी में बैठी वसुन्धरा गहरी नज़रों से मेरी ओर देख रही थी.

मैंने अपने उतारे हुए गीले कपड़े पॉलिथीन में लपेट कर सूटकेस में रखे, जूते पहने, आकर टेबल पर से अपना कॉफ़ी का मग क़ाबू किया और वसुन्धरा के सामने वाले सोफा-चेयर पर बैठ गया.

“वसुन्धरा जी! आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?”
“इतनी अच्छी शाम, इतना अच्छा साथ … आप कोई और बात कीजिये न प्लीज़! ” वसुन्धरा का मन नहीं था उस टॉपिक पर बात करने को और ऐसी बातों में ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं चलती.

“ओके! आप यहाँ अकेली रहती है, डर नहीं लगता?”
“खुद से क्या डरना! डर तो दूसरों से होता है.”
तौबा तौबा! हर बात घूम-फिर कर उसी दिशा में जा रही थी.

“वसुन्धरा जी …”
“राज … एक मिनट! आप मुझे बिना ‘जी’ के नहीं बुला सकते? मैं भी तो आप को बिना ‘जी’ के बुला रहीं हूँ.”
“कहने को तो मैं आप को ‘तू’ कह कर भी बुला सकता हूँ वसुन्धरा जी! लेकिन अभी आपने मुझे ऐसा अधिकार दिया नहीं है.”

“आप क्या जानो …” कहते कहते वसुन्धरा सोफे से उठी और टेबल पर अपना कॉफ़ी का मग रख कर टेबल की अर्धपरिक्रमा कर के एकदम मेरे सामने, मेरे पास आ खड़ी हुई. मैं हड़बड़ा कर काफ़ी का मग छोड़ कर सोफा-चेयर से उठ ख़ड़ा हुआ.

वसुन्धरा ने धीरे से मेरा हाथ अपने दोनों हाथों में लिया और बोली- मैंने अपने सारे अधिकार, सारे इख़्तियार, खुद मैं … मेरी जिंदगी और मेरी जिंदगी से बावस्ता सारे फ़ैसले और उन फैसलों के सारे नतीज़े … मैंने बहुत साल पहले आप के नाम कर दिये थे, बस! आपको बताया ही नहीं था. लीजिये! आज आपको बता भी दिया.” कहते-कहते वसुन्धरा की आँखों से मोती ढलकने लगे.
Reply
12-09-2019, 12:09 PM,
#18
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
मैंने बाएं हाथ से वसुन्धरा को अपने साथ सटा लिया और अपने बाएं कंधे पर उसका सर टिका कर पीछे से अपना दायां हाथ उसके सर पर फेरने लगा. मेरे साथ लिपटी वसुन्धरा ज़ार-ज़ार रोये जा रही थी और मैं कर्तव्यविमूढ़ सा उसके सर और पीठ को सहलाये जा रहा था. पंद्रह-एक मिनट बाद वसुन्धरा कुछ संयत हुई. अब रोना तो करीब-करीब बंद था, अलबत्ता कुछ सिसकियां सी बाक़ी थी. लगता था कि मुद्दत से अंदर रखा अवसाद आज बरसों बाद बाँध तोड़ कर आँसुओं के साथ बाहर निकला था.

“वसुन्धरा!” मैंने वसुन्धरा की पीठ सहलायी.
“आई एम् सॉरी …” कहते हुए वसुन्धरा मुझ से अलग़ हुई और बॉथरूम में जा घुसी.

करीब दस मिनट बाद वसुन्धरा बॉथरूम से बाहर निकली. उसने आँखों को पानी से साफ़ कर लिया था, मुंह-हाथ धो लिया था, बाल भी संवार लिए थे. जैसे घनघोर बारिश के बाद सारी प्रकृति निखरी-निखरी सी दिखती है वैसे ही अब वसुन्धरा निखरी-निखरी सी दिख रही थी. उसे देख कर मैं मुस्कुराया. वसुन्धरा के होंठों पर भी एक निर्दोष सी मुस्कान आयी.
“ये कॉफ़ी तो ठंडी हो गयी … मैं और बनाती हूँ.” इस से पहले मैं कुछ कहूं, वसुन्धरा पहले ही किचन में जा चुकी थी.

बाहर बारिश फिर शुरू हो गयी थी. मैंने घड़ी देखी, पौने-नौ बजने को थे और मुझे अभी डेढ़ सौ-पौने दो सौ किलोमीटर और दूर जाना था. लेकिन कॉफ़ी तो अभी भी बन कर नहीं आयी थी. दस-एक मिनट बाद वसुन्धरा ट्रे में भाप उड़ाती कॉफ़ी के दो मग ले कर अंदर आयी.

अब वसुन्धरा खूब सयंत और प्रफुल्लित दिख रही थी. मैंने उठकर कॉफ़ी का मग पकड़ा, अब के वसुन्धरा मेज़ के परली तरफ़ बैठने की जग़ह मेरे बाएं हाथ लंबरूप रखी कुर्सी पर बैठ गयी.
“जी! अब कहिये. ” बैठते ही वसुन्धरा ने कहा.
मैं सिर्फ मुस्कुराया.
“बोलिये राज! “.
“क्या बोलूं?” मैंने काफ़ी का सिप लिया. कॉफ़ी वाक़ई बहुत अच्छी बनी थी.
“आप कुछ पूछ रहे थे?”
“पर आपने तो मुझे चुप करवा दिया था.”

” राज! आप को सारी बात पता है क्या?”
“डिटेल में तो नहीं … पर इतना पता है कि सालों पहले आपके रिश्ते की बात चली थी कहीं और आपको वो लड़का बेहद पसंद भी था लेकिन आपके पापा को आर्मी ऑफिसर दामाद ही चाहिए था, इसलिए वहां आपका रिश्ता नहीं हो सका. और इस बात से आप अपने पापा से नाराज़ हो कर उनसे बात नहीं करती, अलग रहती हैं, शादी ना करने की ज़िद पर अड़ी हैं.”
“और?”
“बस यही.”
“हूँ!! मेरा भी यही ख़्याल था.”

“अच्छा वसुन्धरा! उस लड़के का क्या हुआ? सॉरी टू आस्क … ऐसा क्या था उस लड़के में?”
“उसकी तो कहीं और शादी हो गयी … बरसों पहले ही. और क्या था उस में … यह मैं कैसे बताऊं?”
“फिर भी?”
“राज! जब कोई किसी से प्यार करता है तो कोई हिसाब-क़िताब लगा कर नहीं करता.”

“लेकिन अब आगे का क्या सोचा है?”
“क्या फायदा सोचने का! जो सोचा था, वो तो हुआ ही नहीं.”
“उसको आपके बारे में पता है?” मैंने अपनी कॉफ़ी का आँखिरी घूंट भरा.
“न! उसको तो आजतक कानोंकान भी खबर नहीं हुई कि कोई बर्बाद हुआ जा रहा है उसके पीछे.” वसुन्धरा की आवाज़ में फिर दर्द छलक आया था.
“लकी मैन! ऐसा बेलौस, बिना शर्त का प्यार कहाँ नसीब होता है हर किसी को? वैसे था कौन … वो खुशनसीब?”
“आपको सच में नहीं पता?”
“कसम ले लो.”

मैंने अपना खाली कॉफ़ी का मग मेज़ पर रखा, अपना सूटकेस अपने हाथ में थामा और सोफे से उठ कर खड़ा हो गया.

वसुन्धरा ने अचानक ही नज़र झुका ली और चुप सी हो गयी. अचानक ही वातावरण बहुत बोझिल सा हो गया. बाहर बारिश की टपाटप बूंदें टीन की छत पर शोर मचा रही थी.
अचानक ही मुझे अपने ही दिल की धड़कन साफ़-साफ़ सुनाई देने लगी और मुझे एक अनजानी सी बेचैनी महसूस होने लगी. मुझे अंदेशा हो रहा था कि वसुन्धरा जरूर कुछ नाक़ाबिले-यक़ीन कहने वाली थी.

तभी वसुन्धरा ने अपना मुंह ऊपर किया और सीधे मेरी आँखों में आँखे डाल कर बोली- वो आप थे … राज!
घड़..घड़..घड़ … घड़ाम … घड़ाम! जितनी ज़ोर से बाहर बिजली ग़रज़ी, उस से कई गुना ज़्यादा मेरे अंदर कड़की!
Reply
12-09-2019, 12:09 PM,
#19
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
कुछ पल को तो मेरे मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था. तो ये बात थी. अब जा के सारी तस्वीर शीशे की तरह साफ़ हुई. वसुन्धरा का अपने माँ-बाप से इतर रहना, उसके व्यक्तित्व में समायी तमाम बत्तमीज़ी, दबंगई, ख़ुद-पसंदगी और उसके तनहाई-पसंद होने का और मेरे प्रति अनबूझे अनुराग़ का और अभी तक अविवाहित होने का कारण उसके पिता जी का उसकी मुझसे शादी के ख़िलाफ़ लिया गया एक फ़ैसला ही था.

हे भगवान्! कोई खुद को इतने साल मुतवातिर कैसे सज़ा दे सकता है? क्यों वसुन्धरा ने खुद को यह शाप दे दिया? इतने सालों से वसुन्धरा एक स्त्री से पत्थर बनी बैठी थी और इस सारे घोटाले की जड़ में था मैं … राजवीर! और मुझे इस का इल्म ही नहीं. अहिल्या को शापमुक्त करने तो स्वयं भगवान् राम आ गए थे. अहिल्या को सतयुग में मिले शाप से मुक्ति देने के लिए अपने प्रचण्ड पराक्रम से त्रेता-युग को द्वापरयुग से पहले खींच लाये थे.

लेकिन मैं तो एक तुच्छ मानव था और वसुन्धरा को देने के लिए मेरे हाथ और मेरा दामन, दोनों खाली थे. मैं आज दो बच्चों का बाप था लेकिन वसुन्धरा आज भी उसी कालखण्ड में ही जी रही थी, जब उसकी मुझ से रिश्ते की बात चली थी.
वसुन्धरा के लिए तो जैसे समय खड़ा ही हो गया था.

पर ये गलत था … सरासर गलत! जिंदगी में … हादसे हो जाते हैं लेकिन इस का ये मतलब तो हर्गिज़ नहीं है कि कोई जीना ही बंद कर दे? मेरे लिए … मेरे कारण वसुन्धरा ने खुद को फ़ना के धारे तक पहुंचा लिया था. अपनी इक-तरफ़ा मुहब्बत में उस ने अपनी जिंदगी के क़रीब चौदह … चौदह सुनहरे साल बर्बाद कर लिए थे.
चौदह साल! भगवान् राम चंद्र जी को भी तो चौदह साल का बनवास हुआ था लेकिन राम जी के साथ तो माता सीता और भैया लक्ष्मण भी थे पर इस प्रेम-पथ पर इस तन्हा विरहन के साथ तो कोई भी नहीं था, वो भी नहीं जिस के प्रेम में ये सब हुआ.

उफ़! कितना सहा था इस प्रेम की मारी ने!
वसुन्धरा! तू है तो तो बेपनाह प्यार के काबिल लेकिन मैं एक शादीशुदा, बाल-बच्चेदार आदमी, तेरे प्यार का जबाब प्यार से नहीं दे सकता.

वसुन्धरा! आज तुम बहुत ऊपर उठ गयी, मैं तो किंचित शूद्र प्राणी मात्र हूँ लेकिन तेरी ज़ुस्तजू ने एक ज़र्रे को आफ़ताब बना दिया, एक अदना को आला कर दिया. मैं तेरे प्यार को तस्लीम करके उसे सिर्फ इज़्ज़त दे सकता हूँ, तेरे आगे नतमस्तक हो सकता हूँ … बस!!!
मेरा सूटकेस मेरे हाथ से छूट गया.

” हे भगवान्! इतना ज़ुल्म!!! … वसुन्धरा! मुझे पता नहीं था, कसम ले लो … चाहे! मुझे इस बारे में सच में कोई इल्म नहीं था. नहीं तो … नहीं तो!” कहते कहते मेरी खुद की आँखें तरल हो उठी. वसुन्धरा लपक कर मेरे पास आयी और अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकड़ कर बोली- न न! आपका तो इसमें रत्ती भर भी कसूर नहीं, आप अपना मन भारी न करें.
मेरी आँखों से दो मोती वसुन्धरा के हाथ के पृष्ठ भाग पर टपक गए.

“बस राज बस! मेरे लिए आपकी आँखों में आंसू आये, मैंने दोनों जहां पा लिए. मेरे प्यार ने मुझे स्वीकार कर लिया, अब चाहे मुझे मौत भी आ जाए तो गम नहीं. इस घड़ी को दिल में संजो कर के तो मैं सदियों-सदियों नर्क की आग में ख़ुशी-ख़ुशी जल जाऊं.”

कहते-कहते वसुन्धरा की आँखों से भी गंगा-जमुना बह निकली. भावावेश में मैंने वसुन्धरा के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर उसको अपने आलिंगन में ले लिया और वसुन्धरा भी बेल की तरह मुझमें सिमट गयी.

कहानी जारी रहेगी.
Reply
12-09-2019, 12:09 PM,
#20
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
वसुन्धरा की आँखों से भी गंगा-जमुना बह निकली. भावावेश में मैंने वसुन्धरा के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर उसको अपने आलिंगन में ले लिया और वसुन्धरा भी बेल की तरह मुझमें सिमट गयी.
दोनों की आँखों से आंसू अविरल बह रहे थे. पता नहीं हमारा कितना समय ऐसे ही एक-दूजे के आगोश में ग़ुज़रा. धीरे धीरे मुझे वस्तुस्थिति का भान हुआ और मैंने धीरे से वसुन्धरा को अपने आगोश से मुक्त किया.

तत्काल वसुन्धरा ने सर उठा कर मेरी ओर देखा. मैंने फ़ौरन अपनी निग़ाह अपने सूटकेस की ओर की. मेरी नज़र का अनुसरण करते-करते वसुन्धरा ने भी मेरे सूटकेस को देखा और मेरा मंतव्य समझ गयी.
“वसुन्धरा! मैं आप के प्यार का जवाब आप जैसे प्यार से नहीं दे सकता, ये तो आप भी जानती हैं. फिर भी अगर आपके लिए मैं कुछ कर सकता हूँ तो बेझिझक बताइये?”
वसुन्धरा फिर से ज़ोर से मुझ से लिपट गयी और मेरे कान में फुसफुसाई- राज!
“हूँ … !”
“मत जाओ.”
मत जाओ … कहने को तो दो … महज़ दो लफ्ज़ ही थे लेकिन इन के मायने बहुत वसीह थे. ओह! अब मुझे वसुन्धरा की जिद समझ में आ रही थी. चौदह साल पहले उस ने तसुव्वर में मुझसे शादी कर ली थी और खुद को मेरी दुल्हन मान लिया था. अब वसुन्धरा शादी के बाद वाले अगले तल पर जाना चाहती थी और वो था मेरे साथ संभोग! एक पत्नी अपने पति को अपना कौमार्य भेंट करना चाहती थी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वसुन्धरा जहां है, जैसी है, वैसी ही रहेगी … उम्र भर अविवाहित और अक्षत योनि.

मैं बड़े धर्म-संकट में था. ऐसा होने के बाद मैं क्या ‘मैं’ रह पाऊँगा? लेकिन कुछ फैसला तो लेना ही था और फिर मैंने फैसला ले ही लिया.
“वसुन्धरा …”
“हूँ …! ” वसुन्धरा ने अर्धनिप्लित आँखों में प्रशनवाचक नज़रों से मेरी ओर देखा.

“वसुन्धरा! आपकी चौदह साल की तपस्या के पुण्य आज ही उदय होंगें. आपकी मुरादों वाली रात आज ही होगी, यहीं होगी लेकिन ये सिर्फ एक रात ही होगी … सिर्फ आज ही की रात … कल का सूरज हम दोनों को अपने अलग-अलग जीवनपथों पर आगे बढ़ता देखेगा और आप मुझे इस बात का वचन दीजिये कि आप भी उसकाल के हिम-खंड को पीछे छोड़ कर, जिंदगी के सफ़र में आगे बढ़ जायेंगी. कहिये! मंज़ूर?”

तत्काल वसुन्धरा के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी और उसने अपनी स्वप्निलिप्त आधी खुली आँखों सहित “हाँ” में सर हिला कर हामी भरी. मैंने वसुन्धरा की आँखों में झांका, आँखों में बेहिसाब ख़ुशी, बेइंतहा प्यार और कुछ-कुछ डर के अहसास छलक रहे थे.

मेरा मन भर आया. मैंने वसुन्धरा का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया और बढ़ कर वसुन्धरा की पेशानी पर एक चुम्बन अंकित कर दिया. अपने दोनों हाथों की तर्जनियों और बड़ी उँगलियों के बीच वसुन्धरा के दोनों कानों की लौ ले कर हल्के-हल्के सहलाने लगा.
कान किसी भी स्त्री के बहुत ही ज्यादा संवेदनशील अंग होते हैं और ये एक बहुत ही आदिम नुस्खा है किसी भी लड़की को काम-विह्ल करने का.

मैंने आगे बढ़ कर वसुन्धरा के दाएं कान की लौ को अपनी जीभ से छुआ. तत्काल वसुन्धरा की आँखें नशीली होने लगी और एक सिहरन की लहर वसुन्धरा के पूरे शरीर में से गुज़र गयी. मैंने वसुन्धरा की आँखों में झांकते हुए उसको अपने अंक में दोबारा कस लिया और उस होठों का एक नाज़ुक सी छुवन वाला चुम्बन लिया.

“ओ राज! मुद्दतों तड़पी … बरसों सुलगी, मैं इस पल के लिए.” कह कर वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथों से मेरा सर नीचे कर के मेरा चेहरा चुंबनों से भर दिया. मैंने हल्के से वसुन्धरा को अपने साथ लगाया और उसके बाएं कान में अपनी गर्म सांस छोड़ते हुए उसके कान की लौ को अपनी जीभ से हल्के से छुआ, जिसके जबाव में वसुन्धरा ने मेरे दाएं कंधे पर जोर से काट लिया.

दर्द की एक तेज़ लहर मेरे पूरे शरीर में दौड़ गयी. ऐसा तो होना ही था और मुझे इस बात का पूरा पूरा इमकान भी था कि मेरा पाला किसी छुई-मुई से न पड़ कर एक बला की खूंखार शेरनी से पड़ने वाला था, जिस ने मेरे साथ इन पलों को साकार करने के लिए चौदह साल इंतज़ार किया था. यूं मैंने ऐसे दर्शाया कि मुझे कुछ हुआ नहीं लेकिन अब के इस काम-केलि की डोर मुझे अपने हाथ ही में रखनी ही होगी नहीं तो आज की रात तो वसुन्धरा ने मुझे यक़ीनन उधेड़ कर रख देना था.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,411,852 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 534,485 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,196,195 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 904,175 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,604,227 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,038,276 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,880,859 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,821,592 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,942,820 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 276,724 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)