Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
08-20-2017, 10:55 AM,
#91
RE: Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
Contd....बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां भी……



अब निक्कू कि जगह सन्जू आ गया, वह मेरी चूत पर अपना मुँह रखकर चाटने लगा, मैं फ़िर से अपना दर्द भूलकर आआअहहहहाह !!! स स्सी !!!!!!!! आऊ !!!!! की आवाजों के साथ अपनी चूत चटाई का मजा लेने लगी- आआ आआअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह सन्जू!!!! अपनी जबान पूरी मेरी चूत में डाल दे!!!!


इधर निक्कू भी मेरे चूचुकों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। मैं उछ्ल-उछल कर अपनी चूत सन्जू के मुँह पर रगड़ने लगी। अब मेरा जिस्म कड़ा पड़ने लगा- आआअहहहहाह !!!! स स्सी !!!!!!!! आऊ !!!!! सन्जू !!! मैं गई !!!!! आआअहहहहाह !!!! स स्सी !!!!!!!! आऊ !!!!!


अपनी चूत से ढेर सारा पानी सन्जू के मुँह में छोड़ते हुए मैं पहली बार झड़ गई।


दोस्तो ! आज पहली बार झड़ी हूँ ! सच ! जन्नत का मजा अगर कहीं है तो वो चुदाई में है, आज मुझे इस बात का एहसास हुआ है।


थोड़ी देर तक मस्ती करने के बाद मेरी चूत में फ़िर से खुजली होने लगी और मैं फ़िर से चुदने ले लिए तैयार हो गई।


अब सन्जू ने मेरी दोनों टांगों को फ़ैलाकर अपना लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रखा, उसके गरमागर्म लण्ड का एहसास करके ही मेरे मुँह से आआ आआअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह आआअहहहहाह!!!! स स्सी!!!! की आवाजे निकलनी चालू हो गई, कुछ तो मेरी चूत पहले से गीली थी, फ़िर सन्जू का लण्ड भी थोडा छोटा था, इसलिए, एक ही झटके में उसका लण्ड मेरी चूत में आधा घुस गया।


"उई मम्मी !!!!! मर गई !!!!!


मेरी चूत से खून निकलने लगा लेकिन सन्जू ने इसकी परवाह नहीं की और एक और झटका लगाया, अब उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था; थोड़ी देर के दर्द के बाद मुझे भी मजा आने लगा, आआ आआअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह सन्जू थोड़ा तेज !! आआअहहहहाह !!!! बहुत मजा आ रहा है !!! आआअहहहहाह !!!! और जोर से चोद !!! मैं चुदाई के जोश में चिल्ला रही थी और सन्जू जबर्दस्त तरीके से मेरी चूत मार रहा था।


करीब 25 मिनट की चुदाई के बाद सन्जू ने अपनी स्पीड बढ़ा दी, मुझे लगने लगा कि अब सन्जू झड़ने वाला है।


आआअहहहहाह !!!! दीदी !!!!!!!!!!!! एक मादक सिस्कार के साथ ही सन्जू मेरी चूत में ही झड़ गया। सन्जू जोर जोर से हांफ़ रहा था, थोड़ी देर तक हम दोनों वैसे ही पडे रहे।
मैं चूंकि एक बार झड़ चुकी थी इसलिए मेरा अभी तक नहीं हुआ था, अब मैंने निक्कू से कहा,"मेरे प्यारे भैया! अब आजा तेरी बारी है!"


निक्कू ने सन्जू को हटाकर मेरी चूत को साफ़ करके सन्जू से कान में कुछ कहा और अपना लण्ड मेरी चूत पर रखकर रगड़ने लगा।


आआअहहहहाह !!!! आआ आआअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह निक्कू, इसे जल्दी से मेरी चूत में डाल दे !!! मै फ़िर से लण्ड लेने ले लिए मचलने लगी।



सन्जू ने मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया। मौका पाते ही निक्कू ने एक जोर का झटका लगाया, मेरी चूत की दरो-दीवार हिल गई, मैं दर्द के मारे चिल्लाना चाह रही थी, लेकिन सन्जू ने मेरे होंठों को अपने मुँह मे दबा रखा था, इसलिए मेरी चीख मेरे मुँह मे ही घुटकर रह गई लेकिन मेरे चूत बुरी तरह से फ़ट गई थी। बहुत दर्द हो रहा था, सन्जू के मुकाबले निक्कू का लण्ड बहुत मोटा था, मुझसे सहा नहीं जा रहा था। लेकिन थोड़ी देर बाद मेरा दर्द कम पड़ने लगा।



अब निक्कू ने जोर जोर से धक्के मारने शुरु किए। थोड़ी देर बाद निक्कू के लण्ड ने मेरी चूत में जगह बना ली, फ़िर तो आराम से अन्दर-बाहर होने लगा। अब मुझे भी मजा आने लगा, आज मुझे लगा कि असली चुदाई क्या होती है। आआ आआअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह की आवाज के साथ मैं अपनी गाण्ड उछाल-उछाल कर निक्कू का लण्ड अपनी चूत में लेने लगी। बडे मियाँ ने मुझे कई तरीकों से चोदा। इधर छोटे मियाँ मेरी चूचियों को चूस रहा था, अब उसका लण्ड फ़िर से तैयार हो गया। उसने निक्कू से करवट के बल लिटाकर चोदने को कहा और खुद मेरे पीछे आ गया। उसने अपना लण्ड मेरी गाण्ड के मुँह पर लगाया और थोड़ा सा थूक लगाकर एक जोर का झटका दिया और उसका लण्ड मेरी गाण्ड फ़ाडते हुए अन्दर घुस गया, मेरी गाण्ड में बहुत तेज दर्द हुआ, लेकिन चूत चुदाने में मस्त होने की वजह से मेरा ध्यान उस तरफ़ ज्यादा नहीं गया, अब मुझे दोहरा मजा आने लगा, आगे से निक्कू मेरी चूत चोद रहा था और अब पीछे से सन्जू ने मेरी गाण्ड मारनी चालू कर दी। मैं आआ आआअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह की आवाज के साथ एक साथ दो-दो लण्ड का मजा लेने लगी। पूरे कमरे में फ़्च!!फ़्च!! आआ आअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह की आवाजें गूंजने लगी।


करीब 25 मिनट की गाण्ड मराई और चूत मराई के बाद मेरा जिस्म ऐंठने लगा और आआ आआअहहहहह ऊ ऊऊ उहह्ह्ह्हह्ह!!! की सित्कार के साथ मैं झड़ गई। मेरे साथ साथ निक्कू और सन्जू ने भी अपना अपना गरम वीर्य मेरी चूत और गाण्ड में छोड़ दिया। उस रात को मैं पांच बार झड़ी।


सुबह को मुझे चलने में बहुत दिक्कत हुई, मम्मी ने पूछा तो मैंने बहाना बना दिया।


अब तो रोजाना बडे मियाँ और छोटे मियाँ मिलकर मेरी चुदाई का मजा लेते हैं।



***SAMAPT***
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08-20-2017, 10:55 AM,
#92
RE: Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
सारी रात हमारी है




मैं आपको हमारे खानदान की सबसे अन्दर की बात बताने जा रहा हूँ मेरे हिसाब से मैंने कुछ बुरा किया नहीं है हालांकि कई लोग मुझे पापी समझेंगे। कहानी पढ़ कर आप ही फ़ैसला कीजिएगा कि जो हुआ वो सही हुआ है या नहीं?


कहानी कई साल पहले की है जब मैं अठारह साल का था और मेरे बड़े भैया काशी राम चौथी शादी करने की सोच रहे थे।


हम सब राजकोट से पचास किलोमीटर दूर एक छोटे से गाँव में ज़मीदार हैं एक सौ बीघा की खेती है और लंबा चौड़ा व्यवहार है हमारा। गाँव में चार घर और कई दुकानें है। मेरे माता-पिताजी जब मैं दस साल का था तब मर गए थे। मेरे बड़े भैया काशी राम और भाभी सविता ने मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया।


भैया मुझसे तेरह साल बड़े हैं, उनकी पहली शादी के वक़्त में आठ साल का था। शादी के पाँच साल बाद भी सविता भाभी को संतान नहीं हुई। कितने ही डॉक्टरों को दिखाया लेकिन सब बेकार गया। भैया ने दूसरी शादी की चम्पा भाभी के साथ ! तब मेरी आयु तेरह साल की थी।


लेकिन चम्पा भाभी को भी संतान नहीं हुई। सविता और चम्पा की हालत बिगड़ गई, भैया उनके साथ नौकरानियों जैसा व्यवहार करने लगे। मुझे लगता है कि भैया ने दोनों भाभियों को चोदना चालू रखा था संतान की आस में।


दूसरी शादी के तीन साल बाद भैया ने तीसरी शादी की सुमन भाभी के साथ। उस वक़्त मैं सोलह साल का हो गया था और मेरे बदन में फ़र्क पड़ना शुरू हो गया था। सबसे पहले मेरे वृषण बड़े हो गये बाद में कांख में और लौड़े पर बाल उगे और आवाज़ गहरी हो गई। मुँह पर मूछें निकल आई, लौड़ा लंबा और मोटा हो गया, रात को स्वप्न-दोष होने लगा, मैं मुठ मारना सीख गया।


सविता और चम्पा भाभी को पहली बार देखा तब मेरे मन में चोदने का विचार तक आया नहीं था, मैं बच्चा जो था। सुमन भाभी की बात कुछ और थी। एक तो वो मुझसे चार साल ही बड़ी थी, दूसरे वो काफ़ी ख़ूबसूरत थी, या कहो कि मुझे ख़ूबसूरत नज़र आती थी। उनके आने के बाद मैं हर रात कल्पना किए जाता था कि भैया उसे कैसे चोदते होंगे और रोज़ उसके नाम पर मुठ मार लेता था। भैया भी रात-दिन उसके पीछे पड़े रहते थे, सविता भाभी और चम्पा भाभी की कोई क़ीमत रही नहीं थी। मैं मानता हूँ कि भैया बदलाव के वास्ते कभी कभी उन दोनों को भी चोदते थे। ताज्जुब की बात यह है कि अपने में कुछ कमी हो सकती है ऐसा मानने को भैया तैयार नहीं थे। लंबे लण्ड से चोदे और ढेर सारा वीर्य पत्नी की चूत में उड़ेल दे, इतना काफ़ी है मर्द के वास्ते बाप बनाने के लिए, ऐसा उनका दृढ़ विश्वास था। उन्होंने अपने वीर्य की जाँच करवाई नहीं थी।


उमर का फ़ासला कम होने से सुमन भाभी के साथ मेरी अच्छी बनती थी, हालांकि वो मुझे बच्चा ही समझती थी। मेरी मौजूदगी में कभी कभी उनका पल्लू खिसक जाता तो वो शरमाती नहीं थी। इसीलिए उनके गोरे-गोरे स्तन देखने के कई मौक़े मिले मुझे। एक बार स्नान के बाद वो कपड़े बदल रही थी और मैं जा पहुँचा। उनका अर्धनग्न बदन देख मैं शरमा गया लेकिन वो बिना हिचकिचाहट के बोली- दरवाज़ा खटख़टा कर आया करो।


दो साल यूँ ही गुज़र गए। मैं अठारह साल का हो गया था और गाँव के स्कूल में 12वीं में पढ़ता था। भैया चौथी शादी के बारे में सोचने लगे। उन दिनो में जो घटनाएँ घटी, आपके सामने बयान कर रहा हूँ।


बात यह हुई कि मेरी उम्र की एक नौकरानी बसंती, हमारे घर काम पर आया करती थी। वैसे मैंने उसे बचपन से बड़ी होते देखा था। बसंती इतनी सुंदर तो नहीं थी लेकिन दूसरी लड़कियों के मुकाबले उसके स्तन काफ़ी बड़े-बड़े और लुभावने थे। पतले कपड़े की चोली के आर-पार उसकी छोटी-छोटी चूचियाँ साफ़ दिखाई देती थी। मैं अपने आप को रोक नहीं सका, एक दिन मौक़ा देख मैंने उसके स्तन थाम लिए। उसने ग़ुस्से से मेरा हाथ झटक डाला और बोली- आइंदा ऐसी हरकत करोगे तो बड़े सेठ को बता दूँगी।






भैया के डर से मैंने फिर कभी बसंती का नाम ना लिया।


एक साल पहले बसंती को ब्याह दिया गया था। एक साल ससुराल में रह कर अब वो दो महीनों के वास्ते यहाँ आई थी। शादी के बाद उसका बदन और भर गया था और मुझे उसको चोदने का दिल हो गया था लेकिन कुछ कर नहीं पाता था। वो मुझसे क़तराती रहती थी और मैं डर का मारा उसे दूर से ही देख लार टपकाता रहता था।


अचानक क्या हुआ क्या मालूम !


लेकिन एक दिन माहौल बदल गया। दो चार बार बसंती मेरे सामने देख मुस्कराई। काम करते करते मुझे गौर से देखने लगी। मुझे अच्छा लगता था और दिल भी हो जाता था उसके बड़े-बड़े स्तनों को मसल डालने को। लेकिन डर भी लगता था। इसी लिए मैंने कोई प्रतिभाव नहीं दिया। वो नखरे दिखाती रही।


एक दिन दोपहर को मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था। मेरा कमरा अलग मकान में था, मैं वहीं सोया करता था। उस वक़्त बसंती चली आई और रोनी सूरत बना कर कहने लगी- इतने नाराज़ क्यूं हो मुझसे मंगल?


मैंने कहा- नाराज़? मैं कहाँ नाराज़ हूँ? मैं क्यूँ होने लगा नाराज़?


उसकी आँखों में आँसू आ गये, वो बोली- मुझे मालूम है उस दिन मैंने तुम्हारा हाथ जो झटक दिया था ना? लेकिन मैं क्या करती? एक ओर डर लगता था और दूसरे दबाने से दर्द होता था। माफ़ कर दो मंगल मुझे।


इतने में उसकी ओढ़नी का पल्लू खिसक गया, पता नहीं कि अपने आप खिसका या उसने जानबूझ कर खिसकाया। नतीजा एक ही हुआ, गहरे गले की चोली में से उसके गोरे-गोरे स्तनों का ऊपरी हिस्सा दिखाई दिया। मेरे लौड़े ने बग़ावत की पुकार लगाई।


मैं- उसमें माफ़ करने जैसी कोई बात नहीं है, मैं नाराज़ नहीं हूँ, माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए थी।


मेरी हिचकिचाहट देख वो मुस्करा गई और हंस कर मुझसे लिपट गई और बोली- सच्ची? ओह, मंगल, मैं इतनी ख़ुश हूँ अब। मुझे डर था कि तुम मुझसे रूठ गये हो। लेकिन मैं तुम्हें माफ़ नहीं करूंगी जब तक तुम मेरी चूचियों को फिर नहीं छुओगे।


शर्म से वो नीचे देखने लगी, मैंने उसे अलग किया तो उसने मेरी कलाई पकड़ कर मेरा हाथ अपने स्तन पर रख दिया और दबाए रखा।


छोड़, छोड़ पगली, कोई देख लेगा तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी।


तो होने दो मंगल, पसंद आई मेरी चूची ? उस दिन तो ये कच्ची थी, छूने पर भी दर्द होता था। आज मसल भी डालो, मज़ा आता है।


मैंने हाथ छुड़ा लिया और कहा, 'चली जा, कोई आ जाएगा।'

वो बोली- जाती हूँ लेकिन रात को आऊँगी। आऊँ ना ?

उसका रात को आने का ख़याल मात्र से मेरा लौड़ा तन गया, मैंने पूछा- ज़रूर आओगी?

और हिम्मत जुटा कर बसन्ती के स्तन को छुआ।

विरोध किए बिना वो बोली- ज़रूर आऊँगी। तुम ऊपर वाले कमरे में सोना। और एक बात बताओ, तुमने किस लड़की को चोदा है ?' उसने मेरा हाथ पकड़ लिया मगर हटाया नहीं।

नहीं तो ! कह कर मैंने स्तन दबाया।

ओह, क्या चीज़ था वो स्तन !

उसने पूछा- मुझे चोदना है?

सुनते ही मैं चौंक पड़ा।

'उन्न..ह..हाँ.. ! लेकिन?

'लेकिन वेकिन कुछ नहीं। रात को बात करेंगे।

धीरे से उसने मेरा हाथ हटाया और मुस्कुराती चली गई।

रात का इंतज़ार करते हुए मेरा लण्ड खड़ा का खड़ा ही रहा, दो बार मुठ मारने के बाद भी। क़रीब दस बजे वो आई।

सारी रात हमारी है, मैं यहाँ ही सोने वाली हूँ ! उसने कहा और मुझसे लिपट गई, उसके कठोर स्तन मेरे सीने से दब गये। वो रेशम की चोली, घाघरी और ओढ़नी पहने आई थी। उसके बदन से मादक सुवास आ रही थी।

मैंने ऐसे ही उसको अपने बाहुपाश में जकड़ लिया।

'हाय दैया, इतना ज़ोर से नहीं ! मेरी हड्डियाँ टूट जाएंगी। वो बोली।

मेरे हाथ उसकी पीठ सहलाने लगे तो उसने मेरे बालों में उंगलियाँ फिरानी शुरू कर दी। मेरा सर पकड़ कर नीचा किया और मेरे मुँह से अपना मुँह मिला दिया।

उसके नाज़ुक होंठ मेरे होंठों से छूते ही मेरे बदन में झुरझुरी फैल गई और लौड़ा अकड़ने लगा। यह मेरा पहला चुंबन था, मुझे पता नहीं था कि क्या किया जाता है। अपने आप मेरे हाथ उसकी पीठ से नीचे उतर कर उसके कूल्हों पर रेंगने लगे। पतले कपड़े से बनी घाघरी मानो थी ही नहीं। उसके भारी गोल-गोल नितंब मैंने सहलाए और दबोचे। उसने नितंब ऐसे हिलाए कि मेरा लण्ड उसके पेट साथ दब गया।

थोड़ी देर तक मुँह से मुँह लगाए वो खड़ी रही। अब उसने अपना मुँह खोला और ज़बान से मेरे होंठ चाटे। ऐसा ही करने के वास्ते मैंने मुँह खोला तो उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरी जीभ से उसकी जीभ खेली और वापस चली गई। अब मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाली। उसने होंठ सिकोड़ कर मेरी जीभ को पकड़ा और चूसा।

मेरा लण्ड फटा जा रहा था। उसने एक हाथ से लण्ड टटोला। मेरे लण्ड को उसने हाथ में लिया तो उत्तेजना से उसका बदन नर्म पड़ गया। उससे खड़ा नहीं रहा गया। मैंने उसे सहारा देकर पलंग पर लेटाया।

चुंबन छोड़ कर वो बोली- हाय मंगल, आज पंद्रह दिन से मैं भूखी हूँ ! पिछले एक साल से मेरे पति मुझे हर रोज़ एक बार चोदते हैं लेकिन यहाँ आने के बाद मैं नहीं चुदी। मुझे जल्दी से चोदो, मैं मरी जा रही हूँ।

मुसीबत यह थी कि मैं नहीं जानता था कि चुदाई में लण्ड कैसे और कहाँ जाता है। फिर भी मैंने हिम्मत करके उसकी ओढ़नी उतार फेंकी और पाजामा निकाल कर उसकी बगल में लेट गया। वो इतनी उतावली हो गई थी कि चोली-घाघरी निकाल ही नहीं रही थी, फटाफट घाघरी ऊपर उठाई और ...
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08-20-2017, 10:55 AM,
#93
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Contd.......सारी रात हमारी है....




मुसीबत यह थी कि मैं नहीं जानता था कि चुदाई में लण्ड कैसे और कहाँ जाता है। फिर भी मैंने हिम्मत करके उसकी ओढ़नी उतार फेंकी और पाजामा निकाल कर उसकी बगल में लेट गया। वो इतनी उतावली हो गई थी कि चोली-घाघरी निकाल ही नहीं रही थी, फटाफट घाघरी ऊपर उठाई और जांघें चौड़ी कर मुझे ऊपर खींच लिया।

यूँ ही मेरे कूल्हे हिल पड़े थे और मेरा आठ इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लण्ड अंधे की लकड़ी की तरह इधर उधर सर टकरा रहा था, कहीं जा नहीं पा रहा था। उसने हमारे बदन के बीच हाथ डाला और लण्ड को पकड़ कर अपनी भोंस पर टिका लिया। मेरे कूल्हे हिलते थे और लण्ड चूत का मुँह खोजता था। मेरे आठ दस धक्के ख़ाली गए, हर बार लण्ड फिसल जाता था, उसे चूत का मुँह मिला नहीं।

मुझे लगा कि मैं चोदे बिना ही झड़ जाने वाला हूँ। लण्ड का अग्रभाग और बसंती की भोंस दोनों कामरस से तर-बतर हो गए थे। मेरी नाकामयाबी पर बसंती हंस पड़ी। उसने फिर से लण्ड पकड़ा और चूत के मुँह पर रख कर अपने चूतड़ ऐसे उठाए कि आधा लण्ड वैसे ही चूत में घुस गया। तुरंत ही मैंने एक धक्का जो मारा तो पूरा का पूरा लण्ड उसकी योनि में समा गया। लण्ड की टोपी खिंच गई और चिकना सुपारा चूत की दीवालों ने कस कर पकड़ लिया। मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रुक नहीं सका। आप से आप मेरे कूल्हे झटके देने लगे और मेरा लण्ड अंदर-बाहर होते हुए बसंती की चूत को चोदने लगा। बसंती भी चूतड़ हिला-हिला कर लण्ड लेने लगी और बोली- ज़रा धीरे चोद, वरना जल्दी झड़ जाएगा।

मैंने कहा- में नहीं चोद रहा, मेरा लण्ड चोद रहा है और इस वक़्त मेरी सुनता नहीं है।

मार डालोगे आज मुझे ! कहते हुए उसने चूतड़ घुमाए और चूत से लण्ड दबोचा। दोनों स्तनों को पकड़ कर मुँह से मुँह चिपका कर मैं बसंती को चोदते चला गया।

धक्कों की रफ़्तार मैं रोक नहीं पाया। कुछ बीस-पच्चीस झटकों बाद अचानक मेरे बदन में आनंद का दरिया उमड़ पड़ा। मेरी आँखें ज़ोर से मुंद गई, मुँह से लार निकल पड़ी, हाथ पाँव अकड़ गए और सारे बदन पर रोएँ खड़े हो गए, लण्ड चूत की गहराई में ऐसा घुसा कि बाहर निकलने का नाम लेता ना था। लण्ड में से गरमा गरम वीर्य की ना जाने कितनी पिचकारियाँ छुटी, हर पिचकारी के साथ बदन में झुरझुरी फैल गई। थोड़ी देर मैं होश खो बैठा।

जब होश आया तब मैंने देखा की बसंती की टाँगें मेरी कमर के आस-पास और बाहें गर्दन के आसपास जमी हुई थी। मेरा लण्ड अभी भी तना हुआ था और उसकी चूत फट फट फटके मार रही थी। आगे क्या करना है वो मैं जानता नहीं था लेकिन लण्ड में अभी गुदगुदी हो रही थी। बसंती ने मुझे रिहा किया तो मैं लण्ड निकाल कर बसन्ती के ऊपर से उतरा।

बाप रे ! वो बोली- इतनी अच्छी चुदाई आज कई दिनों के बाद हुई।

मैंने तुझे ठीक से चोदा?

बहुत अच्छी तरह से !

हम अभी पलंग पर लेटे थे। मैंने उसके स्तन पर हाथ रखा और दबाया। पतले रेशमी कपड़े की चोली आर पार उसके कड़े चुचूक मैंने मसले। उसने मेरा लण्ड टटोला और खड़ा पाकर बोली- अरे वाह, यह तो अभी भी तैयार है ! कितना लंबा और मोटा है मंगल, जा तो, इसे धो के आ।

मैं बाथरूम में गया, पेशाब किया और लण्ड धोया। वापस आकर मैंने कहा- बसंती, मुझे तेरे स्तन और चूत दिखा। मैंने अब तक किसी की देखी नहीं है।

उसने चोली घाघरी निकाल दी। मैंने पहले बताया था कि बसंती कोई इतनी ख़ूबसूरत नहीं थी। पाँच फ़ीट दो इंच की उँचाई के साथ पचास किलो वज़न होगा। रंग सांवला, चहेरा गोल, आँखें और बाल काले। नितंब भारी और चिकने। सबसे अच्छे थे उसके स्तन। बड़े-बड़े गोल-गोल स्तन सीने पर ऊपरी भाग पर लगे हुए थे, मेरी हथेलियों में समाते नहीं थे। दो इंच के एरेयोला और छोटे छोटे काले रंग के चुचूक थे। चोली निकलते ही मैंने दोनों स्तनों को पकड़ लिया, सहलाया, दबोचा और मसला।

उस रात बसंती ने मुझे अपने बदन के बारे में यानि लड़की के बदन के बारे में पूरा पाठ पढ़ाया। टांगें पूरी फ़ैला कर भोंस दिखाई, बड़े होंठ, छोटे होंठ, भगनासा, योनि, मूत्र-द्वार सब दिखाया। मेरी दो उंगलियाँ चूत में डलवा के चूत की गहराई भी दिखाई, अपना जि-स्पॉट भी दिखाया। वो बोली- यह जो भगनासा है वो मर्द के लण्ड बराबर होती है, चोदते वक़्त यह भी लण्ड के माफ़िक कड़ी हो जाती है। दूसरे, तूने चूत की दिवालें देखी? कैसी करकरी है ? लण्ड जब चोदता है तब ये करकरी दीवालों के साथ घिसता है और बहुत मज़ा आता है। हाय, लेकिन बच्चे का जन्म के बाद ये दिवालें चिकनी हो जाती है चूत चौड़ी हो जाती है और चूत की पकड़ कम हो जाती है।

मुझे लेटा कर वो बगल में बैठ गई।

मेरा लण्ड ठोड़ा सा नर्म होने चला था, उसने मेरे लण्ड को मुट्ठी में लिया, टोपी खींच कर मटका खुला किया और जीभ से चाटा। तुरंत लण्ड ने ठुमका लगाया और तैयार हो गया।

मैं देखता रहा और उसने लण्ड मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मुँह में जो हिस्सा था उस पर वो जीभ फ़िरा रही थी, जो बाहर था उसे मुट्ठी में लिए मुठ मार रही थी। दूसरे हाथ से मेरे वृषण टटोलती थी। मेरे हाथ उसकी पीठ सहला रहे थे।

मैंने हस्त-मैथुन का मज़ा लिया था, आज एक बार चूत चोने का मज़ा भी लिया। इन दोनों से अलग किस्म का मज़ा आ रहा था लण्ड चूसवाने में। वो भी जल्दी से उत्तेजित हो चली थी। उसके थूक से लड़बड़ लण्ड को मुँह से निकाल कर वो मेरी जांघों पर बैठ गई, अपनी जांघें चौड़ी करके भोंस को लण्ड पर टिकाया। लण्ड का मटका योनि के मुख में फँसा ही था कि बसन्ती ने नितंब नीचे करके पूरा लण्ड योनि में ले लिया। उसके चूतड़ मेरी जांघों से जुड़ गए।

'उहहहहह ! मज़ा आ गया। मंगल, जवाब नहीं तेरे लण्ड का। जितना मीठा मुँह में लगता है इतना ही चूत में भी मीठा लगता है !

कहते हुए उसने नितंब गोल घुमाए और ऊपर नीचे कर के लण्ड को अंदर-बाहर करने लगी। आठ दस धक्के मारते ही वो तक गई और ढल पड़ी।

मैंने उसे बाहों में लिया और घूम कर उसके ऊपर आ गया। उसने टाँगें पसारी और पाँव उठा लिए। अवस्था बदलते मेरा लण्ड पूरा योनि की गहराई में उतर गया। उसकी योनि फट फट करने लगी।

सिखाए बिना मैंने आधा लण्ड बाहर खींचा, ज़रा रुका और एक ज़ोरदार धक्के के साथ चूत में घुसेड़ दिया। मेरे वृषण बस्नती की गांड से टकराए। पूरा लण्ड योनि में उतर गया। ऐसे पाँच-सात धक्के मारे। बसंती का बदन हिल पड़ा, वो बोली- ऐसे, ऐसे, मंगल, ऐसे ही चोदो मुझे ! मारो मेरी भोंस को और फाड़ दो मेरी चूत को !

भगवान ने लण्ड क्या बनाया है चूत मारने के लिए कठोर और चिकना ! भोंस क्या बनाई है मार खाने के लिए गद्दी जैसे बड़े होंठों के साथ। जवाब नहीं उनका।

मैंने बसंती का कहा माना। फ़्री स्टाईल से ठपाठप मैं उसको चोदने लगा। दस पंद्रह धक्कों में वो झड़ पड़ी। मैंने उसे चोदना चालू रखा। उसने अपनी उंगली से अपनी भगनासा को मसला और दूसरी बार झड़ गई।
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08-20-2017, 10:55 AM,
#94
RE: Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
Contd.......सारी रात हमारी है....




उसकी योनि में इतनी ज़ोर से संकुचन हुए कि मेरा लण्ड दब गया, आते जाते लण्ड की टोपी ऊपर नीचे होती चली और मटका और तन कर फूल गया। मेरे से अब ज़्यादा बरदाश्त नहीं हो सका। चूत की गहराई में लण्ड दबाए हुए मैं ज़ोर से झड़ गया। वीर्य की चार-पाँच पिचकारियाँ छुटी और मेरे सारे बदन में झुरझुरी फैल गई। मैं ढल गया।

आगे क्या बताऊँ ? उस रात के बाद रोज़ बसंती चली आती थी। हमें आधा एक घंटा समय मिलता था जब हम जम कर चुदाई करते थे। उसने मुझे कई तरीके सिखाए और आसन सिखाए। मैंने सोचा था कि कम से कम एक महीना तक बसंती को चोदने का लुत्फ़ मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक हफ़्ते में ही वो ससुराल वापस चली गई।

बसंती के जाने के बाद तीन दिन तक कुछ नहीं हुआ। मैं हर रोज़ उसकी चूत याद करके मुठ मारता रहा। चौथे दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था। लेकिन एक हाथ में लण्ड पकड़े हुए ! और तभी सुमन भाभी वहाँ आ पहुंची। झटपट मैंने लण्ड छोड़ कपड़े ठीक किए और सीधा बैठ गया।

वो सब कुछ समझती थी इसलिए मुस्कुराती हुई बोली- कैसी चल रही है पढ़ाई देवरजी ? मैं कुछ मदद कर सकती हूँ ?

भाभी, सब ठीक है ! मैंने कहा।

आँखों में शरारत भर कर भाभी बोली- पढ़ते समय हाथ में क्या पकड़ रखा था जो मेरे आते ही तुमने छोड़ दिया ?

नहीं, कुछ नहीं, ये तो ! ये ! मैं आगे बोल ना सका।

तो मेरा लण्ड था, यही ना ? उसने पूछा।

वैसे भी सुमन मुझे अच्छी लगती थी और अब उसके मुँह से लण्ड सुन कर मैं उत्तेजित होने लगा पर शर्म से उनसे नज़र नहीं मिला सका, कुछ बोला नहीं।

उसने धीरे से कहा- कोई बात नहीं ! मैं समझती हूँ ! लेकिन यह बता कि बसंती को चोदना कैसा रहा? पसंद आई उसकी काली चूत ? याद आती होगी ना ?

सुन कर मेरे होश उड़ गए कि सुमन को कैसे पता चला होगा ? बसंती ने बता दिया होगा ?

मैंने इन्कार करते हुए कहा- क्या बात करती हो ? मैंने ऐसा वैसा कुछ नहीं किया है।

अच्छा? वो मुस्कराती हुई बोली- क्या वो यहाँ भजन करने आती थी ?

वो यहाँ आई ही नहीं ! मैंने डरते डरते कहा।

सुमन मुस्कुराती रही।

तो यह बताओ कि उसने सूखे वीर्य से अकड़ी हुई निक्कर दिखा कर पूछा- यह निक्कर किसकी है, तेरे पलंग से मिली है ?

मैं ज़रा जोश में आ गया और बोला- ऐसा हो ही नहीं सकता, उसने कभी निक्कर पहनी ही नहीं !

मैं रंगे हाथ पकड़ा गया।

मैंने कहा- भाभी, क्या बात है? मैंने कुछ ग़लत किया है?

उसने कहा- वो तो तेरे भैया फ़ैसला करेंगे।


भैया का नाम आते ही मैं डर गया। मैंने सुमन को गिड़गिड़ा कर विनती की कि भैया को यह बात ना बताएँ।

असली खेल अब शुरू हुआ।


मुझे क्या पता कि इसके पीछे सुमन भाभी का हाथ था !


तब उसने शर्त रखी और सारा भेद खोल दिया।


सुमन ने बताया कि भैया के वीर्य में शुक्राणु नहीं थे, भैया इससे अनजान थे। भैया तीनों भाभियों को अच्छी तरह चोदते थे और हर वक़्त ढेर सारा वीर्य भी छोड़ जाते थे। लेकिन शुक्राणु बिना बच्चा हो नहीं सकता। सुमन चाहती थी कि भैया चौथी शादी ना करें। वो किसी भी तरह बच्चा पैदा करने को तुली थी। इसके वास्ते दूर जाने की ज़रूर कहाँ थी, मैं जो मौज़ूद था !


सुमन ने तय किया कि वो मुझसे चुदवाएगी और माँ बनेगी।


अब सवाल उठा मेरी मंज़ूरी का।


मैं कहीं ना बोल दूं तो ? भैया को बता दूं तो ? मुझे इसी लिए बसंती के जाल में फंसाया गया था।


सारा बखान सुन कर मैंने हंस कर कहा- भाभी, तुझे इतना कष्ट लेने की क्या ज़रूरत थी ? तूने कहीं भी, कभी भी कहा होता तो मैं तुझे चोदने से इनकार ना करता, तू चीज़ ऐसी मस्त है।


उसका चहेरा लाल हो गया, वो बोली- रहने भी दो ! झूठे कहीं के। आए बड़े चोदने वाले। चोदने के वास्ते लण्ड चाहिए और बसंती तो कहती थी कि अभी तो तुम्हारी नुन्नी है, उसको चूत का रास्ता मालूम नहीं था। सच्ची बात ना ?'


मैंने कहा- दिखा दूं अभी कि नुन्नी है या लण्ड ?


ना बाबा, ना। अभी नहीं। मुझे सब सावधानी से करना होगा। अब तू चुप रहना ! मैं ही मौक़ा मिलने पर आ जाऊँगी और हम तय करेंगे कि तेरी नुन्नी है या लण्ड !


दो दिन बाद भैया दूसरे गाँव गए तीन दिन के लिए। उनके जाने के बाद दोपहर को वो मेरे कमरे में चली आई। मैं कुछ पूछूँ इससे पहले वो बोली- कल रात तुम्हारे भैया ने मुझे तीन बार चोदा है। सो आज मैं तुम से गर्भवती हो जाऊँ तो किसी को शक नहीं पड़ेगा और दिन में आने की वजह भी यही है कि कोई शक ना करे।


वो मुझसे चिपक गई और मुँह से मुँह लगा कर चूमने लगी। मैंने उसकी पतली कमर पर हाथ रख दिए, मुँह खोल कर हमने जीभ लड़ाई। मेरी जीभ होठों बीच लेकर वो चूसने लगी। मेरे हाथ सरकते हुए उसके नितंब पर पहुँचे। भारी नितंब को सहलाते सहलाते में उसकी साड़ी और घाघरी ऊपर उठाने लगा। एक हाथ से वो मेरा लण्ड सहलाती रही। कुछ देर में मेरे हाथ उसके नंगे नितंब पर फिसलने लगे तो पाजामा का नाड़ा खोल उसने नंगा लण्ड मुट्ठी में ले लिया।
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08-20-2017, 10:56 AM,
#95
RE: Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
Contd.......सारी रात हमारी है....




मैं उसको पलंग पर ले गया और गोद में बिठा लिया। लण्ड मुट्ठी में पकड़े हुए उसने चूमना चालू रखा। मैंने ब्लाऊज़ के हुक खोले और ब्रा ऊपर से स्तन दबाए। लण्ड छोड़ उसने अपने आप ब्रा का हुक खोल कर ब्रा उतार फेंकी। उसके नंगे स्तन मेरी हथेलियों में समा गए। शंकु के आकार के सुमन के स्तन चौदह साल की लड़की के स्तन जैसे छोटे और कड़े थे। एरेयोला भी छोटा सा था जिसके बीच नोकदार चुचूक था।


मैंने चुचूक को चुटकी में लिया तो सुमन बोल उठी- ज़रा होले से ! मेरे चुचूक और भग बहुत नाजुक हैं, उंगली का स्पर्श सहन नहीं कर सकती।


उसके बाद मैंने चुचूक मुँह में लिया और चूसने लगा।


मैं आपको बता दूँ कि सुमन भाभी कैसी थी। पाँच फ़ीट पाँच इंच की लंबाई के साथ वज़न था साठ किलो, बदन पतला और गोरा था, चहेरा लम्बा-गोल थोड़ा सा नरगिस जैसा, आँखें बड़ी बड़ी और काली, बाल काले, रेशमी और लंबे, सीने पर छोटे-छोटे दो स्तन जिसे वो हमेशा ब्रा से ढके रखती थी, पेट बिल्कुल सपाट था, हाथ पाँव सुडौल थे, नितंब गोल और भारी थे, कमर पतली थी। वो जब हंसती थी तब गालों में गड्ढे पड़ते थे।


मैंने स्तन पकड़े तो उसने लण्ड थाम लिया और बोली- देवर जी, तुम तो अपने भैया जैसे बड़े हो गए हो। वाकई यह तेरी नुन्नी नहीं बल्कि लण्ड है और वो भी कितना तगड़ा ! हाय राम, अब ना तड़पाओ, जल्दी करो।


मैंने उसे लेटा दिया। ख़ुद उसने घाघरा ऊपर उठाया, जांघें चौड़ी की और पाँव उठा लिए। मैं उसकी भोंस देख कर दंग रह गया। स्तन के माफ़िक सुमन की भोंस भी चौदह साल की लड़की की भोंस जितनी छोटी थी। फ़र्क इतना था कि सुमन की भोंस पर काली झांटें थी और भग लंबी और मोटी थी। भैया का लण्ड वो कैसे ले पाती थी, यह मेरी समझ में आ ना सका।


मैं उसकी जांघों के बीच आ गया। उसने अपने हाथों से भोंस के होंठ चौड़े करके पकड़ लिए तो मैंने लण्ड पकड़ कर भोंस पर रग़ड़ा। उसके नितंब हिलने लगे। अब की बार मुझे पता था कि क्या करना है। मैंने लण्ड का अग्र भाग चूत के मुँह में घुसाया और लण्ड हाथ से छोड़ दिया। चूत ने लण्ड पकड़े रखा। हाथों के बल आगे झुक कर मैंने मेरे कूल्हों से ऐसा धक्का लगाया कि सारा लण्ड चूत में उतर गया। जांघों से जांघें टकराई, लण्ड ठुमक-ठुमक करने लगा और चूत में फटक-फटक होने लगा।


मैं काफ़ी उत्तेजित था इसलिए रुक नहीं सका। पूरा लण्ड खींच कर ज़ोरदार धक्के से मैंने सुमन को चोदना शुरू किया। अपने चूतड़ उठा-उठा कर वो सहयोग देने लगी, चूत में से और लण्ड में से चिकना पानी बहने लगा। उसके मुँह से निकलती आह-आह की आवाज़ और चूत की पच्च पच्च सी आवाज़ से कमरा भर गया।


पूरे बीस मिनट तक मैंने सुमन भाभी की चूत मारी। इस दरमियान वो दो बार झड़ी। आख़िर उसने चूत ऐसी सिकौडी कि अंदर-बाहर आते-जाते लण्ड की टोपी उतर-चढ़ करने लगी, मानो कि चूत मुठ मार रही हो।


यह हरकत मैं बरदाश्त नहीं कर सका, मैं ज़ोर से झड़ गया। झड़ते वक़्त मैंने लण्ड को चूत की गहराई में ज़ोर से दबा रखा था और टोपी इतना ज़ोर से खिंच गई थी कि दो दिन तक लौड़े में दर्द रहा। वीर्य को भाभी की योनि में छोड़ कर मैंने लण्ड निकाला, हालांकि वो अभी भी तना हुआ था। सुमन टाँगें उठाए लेटी रही, कोई दस मिनट तक उसने चूत से वीर्य निकलने ना दिया।


उस दिन के बाद भैया आने तक हर रोज़ सुमन मेरे से चुदवाती रही। नसीब का करना था कि वो गर्भ से हो गई परिवार में आनंद ही आनंद हो गया। सबने सुमन भाभी को बधाई दी। भैया सीना तान कर मूंछ मरोड़ते रहे। सविता भाभी और चम्पा भाभी की हालत औरर बिगड़ गई। इतना अच्छा था कि गर्भ के बहाने सुमन ने भैया से चुदवाने से मना कर दिया था, भैया के पास दूसरी दोनों को चोदने दे सिवा कोई चारा ना था।

जिस दिन भैया सुमन भाभी को डॉक्टर के पास ले गए उसी दिन शाम वो मेरे पास आई, घबराती हुई वो बोली- मंगल, मुझे डर है कि सविता और चम्पा को शक पड़ता है हमारे बारे में।

सुन कर मुझे पसीना आ गया। भैया जान जाएँ तो अवश्य हम दोनों को जान से मार डालें !

मैंने पूछा- क्या करेंगे अब ?

एक ही रास्ता है ! वो सोच कर बोली।

रास्ता है ?

तुझे उन दोनों को भी चोदना पड़ेगा। चोदेगा ?

भाभी, तुझे चोदने के बाद दूसरी को चोदने का दिल नहीं होता। लेकिन क्या करें? तू जो कहे, वैसा मैं करूँगा। मैंने बाज़ी सुमन के हाथों छोड़ दी।

सुमन ने योजना बनाई। रात को जिस भाभी को भैया चोदें, वो दूसरे दिन मेरे पास चली आए। किसी को शक ना पड़े इसलिए तीनो एक साथ मेरे वाले घर आएँ लेकिन मैं चोदूँ एक को ही।

थोड़े दिन बाद चम्पा भाभी की बारी आई। माहवारी आए तेरह दिन हुए थे। सुमन और सविता दूसरे कमरे में बैठी और चम्पा मेरे कमरे में चली आई।

आते ही उसने कपड़े उतारने शुरू किए।

मैंने कहा- भाभी, यह मुझे करने दे।

आलिंगन में लेकर मैंने भाभी को चूमा तो वो तड़प उठी। समय की परवाह किए बिना मैंने उसे ख़ूब चूमा। उसका बदन ढीला पड़ गया। मैंने उसे पलंग पर लेटा दिया और होले होले सब कपड़े उतार दिए। मेरा मुँह उसके एक चुचूक पर टिक गया, एक हाथ स्तन दबाने लगा, दूसरा भग के साथ खेलने लगा।

थोड़ी ही देर में वो गर्म हो गई, उसने ख़ुद टांगें उठाई और चौड़ी करके अपने हाथों से पकड़ ली।

मैं बीच में आ गया। एक दो बार भोंस की दरार में लण्ड का मटका रग़ड़ा तो चम्पा भाभी के नितंब डोलने लगे। इतना होने पर भी उसने शर्म से अपनी आँखें बन्द की हुई थी। ज़्यादा देर किए बिना मैंने लण्ड पकड़ कर चूत पर टिकाया और होले से अंदर डाला। चम्पा की चूत सुमन की चूत जितनी सिकुड़ी हुई ना थी लेकिन काफ़ी कसी थी और लण्ड पर उसकी अच्छी पकड़ थी।

मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाते हुए चम्पा को आधे घंटे तक चोदा। इस दौरान वो दो बार झड़ी। मैंने धक्कों की रफ़्तार बढ़ाई तो चम्पा भाभी मुझसे लिपट गई और मेरे साथ साथ ज़ोर से झड़ी।थकी हुई वो पलंग पर लेटी रही, मैं कपड़े पहन कर खेतों में चला गया।

दूसरे दिन सुमन अकेली आई, कहने लगी- कल की तेरी चुदाई से चम्पा बहुत ख़ुश है ! उसने कहा है कि जब चाहे !

मैं समझ गया।

अपनी बारी के लिए सविता को पंद्रह दिन इन्तज़ार करनी पड़ी।

आख़िर वो दिन आ भी गया। सविता को मैंने हमेशा माँ के रूप में देखा था इसलिए उसकी चुदाई का ख्याल मुझे अच्छा नहीं लगता था। लेकिन दूसरा चारा कहाँ था ?



सुमन और चम्पा मिल कर सविता भाभी को मेरे कमरे में लाई और छोड़ कर चली गई। अकेले होते ही सविता ने आँखें मूँद ली। मैंने भाभी को नंगा किया और मैं भाभी की चूचियाँ चूसने लगा। मुझे बाद में पता चला कि सविता की चाबी उसके स्तन थे। इस तरफ़ मैंने स्तन चूसना शुरू किया तो उस तरफ़ उसकी भोंस ने कामरस का फ़व्वारा छोड़ दिया। मेरा लण्ड कुछ आधा तना था और ज़्यादा अकड़ने की गुंजाइश ना थी। लण्ड चूत में आसानी से घुस ना सका। हाथ से पकड़ कर धकेल कर मटका चूत में सरकाया कि सविता ने चूत सिकोड़ी। ठुमका लगा कर लण्ड ने जवाब दिया। इस तरह का प्रेमालाप लण्ड और चूत के बीच होता रहा और लण्ड ज़्यादा से ज़्यादा अकड़ता रहा।



आख़िर जब वो पूरा तन गया तब मैंने सविता भाभी के पाँव अपने कंधों पर लिए और तल्लीनता से उसे चोदने लगा। सविता की चूत इतनी कसी नहीं थी लेकिन संकोचन करके लण्ड को दबाने की कला सविता अच्छी तरह जानती थी। बीस मिनट की चुदाई में वो दो बार झड़ी। मैंने भी पिचकारी छोड़ दी और भाभी के बदन से नीचे उतर गया।


अगले दिन सुमन वही संदेशा लाई जो चम्पा ने भेजा था। तीनो भाभियों ने मुझे चोदने का इशारा दे दिया था।


अब तीन भाभियाँ और चौथा मैं !



हम चारों में एक समझौता हुआ कि कोई यह राज़ खोलेगा नहीं। सुमन ने भैया से चुदवाना बंद कर दिया था लेकिन मुझसे नहीं।



एक के बाद एक ऐसे मैं अपनी तीनों भाभियों को चोदता रहा। भगवान की कृपा से बाकी दोनों भाभियाँ भी गर्भवती हो गई। भैया के आनंद की सीमा ना रही।



समय आने पर सुमन और सविता ने लड़कों को जन्म दिया तो चम्पा ने लड़की को। भैया ने बड़ी दावत दी और सारे गाँव में मिठाई बाँटी। अच्छा था कि कोई मुझे याद करता नहीं था।



भाभियों की सेवा में बसंती भी आ गई थी और हमारी नियमित चुदाई चल रही थी। मैंने शादी ना करने का निश्चय कर लिया।




***SAMAPT***
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08-20-2017, 10:56 AM,
#96
RE: Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
पंछी पता नहीं बताते ....




दोस्तो, मेरा नाम शकील है। मैं एक बार ट्रेन में मुंबई का सफ़र कर रहा था, वैसे भीड़ तो न थी और ट्रेन खाली थी। ट्रेन रुकते ही एक आदमी गुजरात के आनंद से चढ़ा, आकर मेरी बगल में जगह थी तो बैठ गया। थोड़ी देर बाद उसने मेरे बारे में पूछा। मैंने उसे अपना नाम बताया। उसने अपना नाम राकेश बताया। वो कह रहा था मुझे वापी एक कंपनी में काम से जाना है, कल के मिलने का समय तय है, आज दमन जाऊंगा और एकाध बोतल विहस्की पिऊँगा।

उसकी बातें चल रही थी और ट्रेन बहुत धीमी चल रही थी कि अचानक बीच में रूक गई। आधा घंटा हो गया मगर ट्रेन चलने का नाम नहीं ले रही थी। राकेश ने मुझसे बातों का दौर चालू रखा, उसने अपने सफ़र की कहानियाँ सुनानी शुरू की। वो बातें कर रहा था, उतने में गार्ड ने आकर कहा- ट्रेन का इंजन फेल हो गया है, देर लगेगी।

राकेश तो बेफिक्र होकर बातों में लग गया। उसने कहा- यार शकील, अपनी एक सच्ची कहानी सुनाता हूँ।

हम पटरी के किनारे पेड़ की छाँव में बैठ गए।

उसने बताया- शकील सुनो, मैं एक काम से शोलापुर जा रहा था। ट्रेन न मिलने के कारण मुझे बस में सफ़र करना पड़ा, मैंने मुंबई से बस पकड़ ली, सोचा यही सही।

बस में बहुत कम लोग थे। कोई सीज़न नहीं था। बस नवी मुंबई में आ गई। जैसे रुकी तो दो बुर्के वाली औरतें बस में चढ़ गई। यहाँ-वहाँ देखने के बाद एक औरत मेरे बाजू में बैठ गई।

मैंने सोचा- बस खाली है तो दोनों साथ ही क्यों नहीं बैठी।

मुझे कोई ऐतराज नहीं था।

बस ने मुंबई छोड़ने के बाद स्पीड पकड़ ली। मुझे हल्की सी नींद आ रही थी। मैं अदब से हाथ बांधकर सो रहा था और मुझे ख्याल ही नहीं रहा कि मेरा हाथ उस बुरके वाली को लग रहा था। जैसे मुझे इस बात का पता चला, मैंने उसे कहा- मैडम मैं उठता हूँ और आप अपने साथ वाली औरत के साथ बैठो ! मैं कहीं और बैठता हूँ।

तो उसने मुझे मना किया और वहीं बैठने के लिए मजबूर किया।

थोड़ी देर बाद हाइवे पर एक ढाबे के पास बस रुकी वो और उसकी सहेली उतर रही थी और अचानक उसने मुझसे कहा- चलो चल कर थोड़ा टांगें खोल लो।

मैं भी उतर गया। उसके साथ वाली महिला खाने की चीजें लेने आगे चली गई। उसने मुझे एक कोने में बुलाया और पूछा- कहाँ जा रहे हो?

मैंने कहा- मैं शोलापुर जा रहा हूँ, और तुम?

उसने कहा- मैं शोलापुर के पहले उतरूंगी।

उसकी सहेली कुछ बिस्कुट और वेफर और थम्स-अप ले आई। मैंने सोचा कि अब दोनों मिलकर खाएँगी। मगर दोनों ने मुझे भी खाने में साथ देने कहा। मैंने थोड़ा सा बिस्कुट लिया और कहा- बस आप खा लो, मैंने टिफिन मुंबई से बंधवा लिया है।

बस के ड्राइवर ने हॉर्न बजाया, हम बस में बैठ गए। वो मेरे और करीब आई और रात का अँधेरा होने लगा। बस की बत्तियाँ बुझा दी गई ताकि ड्राइवर को चलाने में तकलीफ न हो।

यह देखकर उसने अपना बुरका हटा दिया पर अँधेरे के कारण मैं कुछ देख नहीं पा रहा था। अचानक उसने मेरी जांघ पर हाथ रख दिया और कान में बोली- क्या नाम है?

राकेश ! और तुम्हारा?

वो बोली- मेरा नाम शबाना और उसका नाम है रुखसाना। मगर मुझे शब्बो अच्छा लगता है।

उसकी हिम्मत बढ़ गई। मेरे छाती पर हाथ फेरने लगी। मैं कुछ न बोला पर थोड़ा सहम गया। उसने मेरा हाथ पकड़ कर बुर्के के अन्दर अपनी छाती पर रख दिया।

आआआह क्या सकून मिला।

मैं समझ गया कि शोलापुर तो बाद में आएगा, पर अब सेक्स का शोलापुर आने वाला है।

उसने धीरे से मेरे लौड़े को पकड़ लिया। बस फिर क्या था लौड़ा टनाटन हो गया। मैं अपने को रोक नहीं पा रहा था। मैंने भी उसके नीचे हाथ फिराना शुरू किया। खेल जम ही रहा था कि इंजन के पास बस में आवाज आने लगी।

ड्राईवर ने कहा- बस बिगड़ गई है, जैसे-कैसे डिपो ले चलता हूँ। मरम्मत होने में कितना वक्त लगेगा, मालूम नहीं।

मैं तो चकरा गया। अरे समय पर पहुँचूंगा या नहीं?

कैसे-कैसे बस डिपो पहुँची। थोड़ी देर बाद मिस्त्री ने आकर कहा- बस ठीक होने में दो-तीन घंटे लगेंगे और इस डिपो पर दूसरी बस भी नहीं है।

सारे लोग उतर गए। कुछ लोगों को नजदीक ही जाना था उन्होंने अलग इन्तज़ाम किया और चले गए। हम तीनों भी उतर गए, सोचा कि कहीं साधारण सा होटल मिले तो मैं आराम कर लूँ।

वो दोनों शब्बो और रुखसाना भी मेरे साथ चल पड़ी।

शब्बो ने कहा- क्यों ? हमें ऐसे अकेले छोड़ कर जाओगे?

मैं- चलो, तुम भी दूसरा कमरा ले लो !

शब्बो- नहीं हम तुम्हारे साथ रहेंगे।

रुखसाना- हाँ !

मैं- पर यह कैसे हो सकता है? और मैं तो.... !

शब्बो- कुछ मत बोलो, चलो, कमरे ले लेते हैं।

हमने एक साधारण सा कमरा ले लिया, उसमें एक पलंग और मेज और पंखा और लाईट थी।

कमरे में जाते ही........

मैं- तुम दोनों ऊपर सो जाओ, मैं नीचे किसी तरह आराम कर लूँगा।

तब शब्बो ने अपना असली रंग दिखाया।

शब्बो- अरे चिकने ! आराम की बात छोड़ो। अब तुम दो शेरनियों का शिकार हो। रुक्कू ! तू कह रही थी न कि तुझे चुदवाना सिखना है ! ये देख ! है न मस्त मर्द?

ऐसा कहकर शब्बो ने बुरका उतार दिया।

बाप रे ! क्या हीरा छिपा था। उसने सिर्फ सफ़ेद कसी हाफ पैंट और लाल टी-शर्ट पहनी थी।

उसकी सहेली रुखसाना- एरी, क्या लग रही है साली ? तूने ये कपड़े पहने और मुझे बताया भी नहीं?

शब्बो- रुक्कू ! तू बोल रही थी कि किसी अनजाने से चुदवाना है ताकि काम भी हो और बदनाम भी न हो ! तो यह मौका मिल ही गया। अब तू एक तरफ़ हो जा। राकेश, पलंग पर बैठ।

मेरे बैठते ही वो मेरे गोद में बैठ गई और मेरे छाती के बालो में हाथ फिराने लगी। उसके नर्म और बड़े बड़े कूल्हे ललचा रहे थे।

शब्बो- हे सेक्सी, आज एक औरत तुझे चोदने के लिए मजबूर कर रही है, कभी ऐसा मौका मिला है?

उसने एक-एक करके मेरे सारे कपड़े उतार दिए। मैं अब पूरी तरह नंगा था। उसने झपटकर मेरे लौड़े को मुँह में ले लिया। मेरे मुँह से सिर्फ आआआह के सिवा कुछ नहीं निकल रहा था। उतने में रुकसाना ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए। वो भी काफी सेक्सी थी।

शब्बो- साली रांड ! रुक मैं अभी तक इसे चख रही हूँ, उसके पहले ही तू तैयार हो गई? ऐसे ठीक नहीं ! देख मैं पहले चुदवाऊँगी और मुझे देखकर तू चुदवा लेना !

रुकसाना ने मुझे इशारा किया कि मैं शब्बो को नंगा करूँ।

इधर शब्बो मस्त हो गई थी।

शब्बो- रुक्कू (रुकसाना को) मैंने इस भड़वे को बस में ही देख लिया और जानबूझ कर इसके पास बैठ गई। सोचा इससे हम शोलापुर जाकर चुदएंगे और वहाँ से वापस गुलबर्गा की दूसरी बस पकड़ेंगे। मगर इन्तजार नहीं करना पड़ा। मौका अपने आप चला आया।

मैंने अब शब्बो को कस कर बाहों में ले लिया। उसके चूचे एकदम कड़क थे।

मैं- शब्बो, तेरे गेंद तो जबरदस्त हैं।

रुक्कू- राकेश, यह दो बच्चों की माँ है। फिर भी कैसे टनाटन है। हमारे मोहल्ले में इसकी एक झलक के लिए लोग तरसते हैं।

शब्बो- यह भड़वा तो नसीब वाला है कि इसे ऐसे गेंद खेलने के लिए मिले, वरना यह शब्बो किसी आंडू-पांडू को घास नहीं डालती।

मैंने उसकी गांड पर हाथ फेरना चालू किया। क्या मुलायम गांड थी। मैंने उसकी गांड को चूम लिया।

शब्बो- राकेश, उ उ उ उ ह ! बहुत अच्छा लगता है। भड़वे, मेरी टी-शर्ट खोल, पैंट खोल ! मुझे पूरी नंगी कर अपने हाथों से।

मैंने धीरे धीरे करके टीशर्ट और हाफपैंट खोल दिए। वो साली काली ब्रेज़ियर और काली पैंटी पहने थी। गोरा बदन और ये काले कपड़े ! साली मस्त लग रही थी।

मौका पाकर रुक्कू ने उसके गेंदों की बाजी उसके हाथ में ले ली। मैंने शब्बो को पलंग पर लिटा दिया और उसकी दुकान को चाटना शुरू किया।

शब्बो- रुक्कू, अब अपनी चूत मेरे मुँह में दे। आ स्साली ! तुझे भी सिखा दूं कि चुदवाते कैसे हैं !

अब उलटा होकर राकेश का लौड़ा चूसना शुरू कर ! और मैं तेरे कुंवारी चूत को रस से तैयार कर दूँ।

रुक्कू ने तो कमाल किया, झट से शब्बो के ऊपर आई और मेरा लौड़ा चूसने लगी।

और शब्बो ने उसकी चूत में आहिस्ता से दो उंगलियाँ घुसा दी। रुक्कू की एक सिसकी आई और फिर शब्बो ने उसके चूत का रसपान शुरू किया।

थोड़ी देर बाद शब्बो पलटी और रुक्कू को लिटा कर अब अपनी दुकान चटवाने लगी।

मैं- तुम्हारी तो चूत नही है ! भोसड़ा बन गया होगा।

शब्बो- हाँ रे राज्जा। मुझे नए और अनजान लौड़े बहुत पसंद हैं। पाकिस्तान से मेरी फूफी आई थी, साली क्या गजब की थी। उसने मुझे चुदवाना सिखाया और मैं रुक्कू को सिखा रही हूँ। ला अपना लौड़ा मुझे पूरी तरह चूसने दे।


Contd.....
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08-20-2017, 10:56 AM,
#97
RE: Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
Contd......पंछी पता नहीं बताते ....




मैंने धीरे धीरे करके टीशर्ट और हाफपैंट खोल दिए। वो साली काली ब्रेज़ियर और काली पैंटी पहने थी। गोरा बदन और ये काले कपड़े ! साली मस्त लग रही थी।

मौका पाकर रुक्कू ने उसके गेंदों की बाजी उसके हाथ में ले ली। मैंने शब्बो को पलंग पर लिटा दिया और उसकी दुकान को चाटना शुरू किया।

शब्बो- रुक्कू, अब अपनी चूत मेरे मुँह में दे। आ स्साली ! तुझे भी सिखा दूं कि चुदवाते कैसे हैं !

अब उलटा होकर राकेश का लौड़ा चूसना शुरू कर ! और मैं तेरे कुंवारी चूत को रस से तैयार कर दूँ।

रुक्कू ने तो कमाल किया, झट से शब्बो के ऊपर आई और मेरा लौड़ा चूसने लगी।

और शब्बो ने उसकी चूत में आहिस्ता से दो उंगलियाँ घुसा दी। रुक्कू की एक सिसकी आई और फिर शब्बो ने उसके चूत का रसपान शुरू किया।

थोड़ी देर बाद शब्बो पलटी और रुक्कू को लिटा कर अब अपनी दुकान चटवाने लगी।

मैं- तुम्हारी तो चूत नही है ! भोसड़ा बन गया होगा।

शब्बो- हाँ रे राज्जा। मुझे नए और अनजान लौड़े बहुत पसंद हैं। पाकिस्तान से मेरी फूफी आई थी, साली क्या गजब की थी। उसने मुझे चुदवाना सिखाया और मैं रुक्कू को सिखा रही हूँ। ला अपना लौड़ा मुझे पूरी तरह चूसने दे।

इधर रुक्कू तो साली जैसे पुरानी रंडी हो, उस तरह से बारी-बारी शब्बो का भोसड़ा और मेरा लौड़ा चूसे जा रही थी।

शब्बो- रुक्कू, तू यार गजब की चुदक्कड़ बनेगी स्साली ! मेरा भोसड़ा क्या कमाल की चूसती है। बस अब हम दोनों के चूत-भोसड़े को बारी-बारी राकेश को चाटने दे।

मैंने दोनों को एक दूसरे के सामने खड़ा किया और नीचे बीच में बैठ कर दोनों की गांड पर हाथ फेरते-फेरते चाटना चालू किया। थोड़ी देर बाद दोनों की सिसकारियाँ शुरू हुई। रुक्कू तो सातवें आसमान पर पहुँच गई।

शब्बो- बस राकेश ! आओ अब हमें इसे दिखाना है कि कैसे चुदवाना है। रुक्कू तुम इस बीच मेरी गेंदों के साथ खेलो।

मैं- शब्बो, मेरे ऊपर तुम आओ और रुक्कू तुम इसकी गेंद मसलो और चूसो, साथ साथ मैं तुम्हारी चूत चूसता हूँ।

शब्बो ने बड़ी बेताबी से लौड़ा अपने भोसड़े में लिया और ऊपर-नीचे होना चालू किया। और शब्बो के वक्ष को भी मसला जा रहा था। इधर मैंने रुक्कू को चाट-चाट कर बेताब कर दिया। अब वो चाहती थी की उसकी चुदाई हो।

रुक्कू- शब्बो, मुझे लेने दो इसके लौड़े को।

शब्बो- रुक्कू, आराम से, पहले मैं चुदवा लूँ।

इतना कहकर शब्बो मेज़ के ऊपर बैठ गई,

शब्बो- राकेश, अब मुझे खड़े खड़े चोदो।

मैंने लौड़े को आराम से घुसा दिया। बहुत देर चुदवाने के बाद वो घोड़ी बन गई और गांड में लेने के लिए तैयार हो गई। मैंने भी देर न की और झट से डाल दिया लौड़ा उसकी गांड में !

वो चिल्ला उठी और मुझे धक्के बढ़ाने के लिए बोलने लगी, मेरे हर धक्के के साथ कहने लगी- राकेश यार ! मार मेरी गांड ! बहुत तड़प रही हूँ। ऐसे तो बहुत बार गांड मरवाई है ! मगर हमारे वाले मर्दों के लौड़े खतने वाले होते है और बिना खतने वाला पूरा लौड़ा आज तकदीर से मिला।

शब्बो को गाण्ड मरवाते देख कर रुक्कू बोली- छीः ! ऐसे कोई करवाते हैं क्या?

शब्बो- मेरी चुदाई के बाद जब तुझे भी ऐसा लौड़ा गांड में मिलेगा तो बड़ी खुश होगी।

मैंने गांड मार लेने के बाद शब्बो को सीधे से लिटाया और दोनों टांगो को उठाकर सही चोदना चालू किया।

थोड़ी देर बाद शब्बो बोली- राकेश, च च च च चोद न रे भड़वे ! क्यों तडपा रहा है ?

दस मिनट बाद उसके भोसड़े ने पानी छोड़ दिया और उसने अपनी टांगों से मेरे गांड को पकड़ लिया। थोड़ी देर उस पर लेटने के बाद मैं ऊपर से हट गया तो रुक्कू ने मेरे लौड़े को पानी से साफ़ किया और चूसना फिर शुरू किया।

मैंने उसे 69 की अवस्था में आने को कहा। बीस मिनट तक वो मुझे और मैं उसे चाटते रहे !

दुबारा लौड़ा तैयार हुआ तो शब्बो ने मुझे एक दवाई पिलाई और बोली- राकेश, इसकी पहली चुदाई है थोड़ा लम्बा चलने दो !

रुक्कू- क्या पिलाया ? कोई ऐसा वैसा नहीं कर रही है न।

शब्बो- चुप साली ! अरे यह ऐसी दवा है जिससे लौड़ा बहुत देर तक तुझे चोदेगा।

रुक्कू- हाँ बरोबर है, क्या मालूम कि ऐसा मौका कब मिलेगा?

मैंने थोड़ी देर बाद उसे उठा कर मेज़ के पास ले गया और उसे एक टांग मेज़ पर रख कर खड़ा होने के लिए कहा।

जैसे ही मैंने उसकी चूत में लौड़ा घुसेड़ा, रुक्कू बोली- राकेश ! मेरे राज्जा ! अह अह अह ! छोड़ना मत मुझे ! हर तरह से चोद !

मैंने दस मिनट बाद उसे घोड़ी की तरह खड़ी करके पीछे से उसके चूत में धक्के देना चालू किया।

रुक्कू चिल्ला उठी और डर गई क्योंकि उसकी चूत अब फट चुकी थी, खून देखकर वो डर गई।

शब्बो- रुक्कू, डर मत ! तेरी सील टूट चुकी ! अब तेरी चूत भोसड़ा बन गई ! राकेश चोदो इस साली को ! पूरा रस लेने दो और बना दो मेरी तरह रांड साली को ! बहुत चुदवाना चाहती थी, रोज दिमाग चाटती थी।

रुक्कू- राकेश, हाँ मुझे भी शब्बो के जैसे चुदक्कड़ रांड बनना है। बहुत लौड़े लेने है चूत में।

शब्बो- चुप रांड बन गई तू ! अब कहाँ से आई तेरी चूत ! वो तो भोसड़ा बन गई है।

मैंने रुक्कू को अब मेरी गोद में बैठने के लिए कहा जिससे एक दूसरे का मुँह देख सकें। मैं गांड पर हाथ फेरता रहा और उसके चुचूक चूसता रहा और गेंद दबाता रहा। मेरा लौड़ा चोदने के तैयार नहीं था। मैंने रुक्कू को लौड़े के साथ खेलने के लिए कहा।

शब्बो- राकेश क्या गोद में ले के बैठा है उसे ऊपर उठाकर लौड़ा उसके भोसड़े में डाल दे।

जैसे ही मैंने रुक्कू को उपर उठाया और उसकी चूत में सॉरी, अब भोसड़ा बन चुकी थी उसमें लौड़ा डाल दिया तो बड़ी खुशी से उसने अपने भोसड़े मे लौड़े को खुद के हाथों से डलवा दिया, उसने शब्बो की भान्ति लौड़े पर कूदना चालू कर दिया।

शब्बो- राकेश अब इसे दुबारा घोड़ी बना, इसकी कुँवारी गाण्ड को भी लौड़े का मज़ा दे।

मैंने रुक्कू को बिस्तर पर घोड़ी बनने को कहा, शब्बो ने मुझे क्रीम दी और कहा- थोड़ी क्रीम उसकी गांड में ऊँगली से लगा दे और थोड़ी अपने लौड़े पर लगा ले जिससे चिकना लौड़ा गांड में जाने से नखरे नहीं करेगा।

मैंने वैसे ही किया।

रुक्कू- राकेश आस्ते-आस्ते डालना ! मुझे आदत नहीं है।

शब्बो- चुप साली ! तुझे चुदवाना था और तड़प रही थी और जब अब मिल रहा है तो नखरे मत कर। राकेश एक ही झटके में डाल दे साली की गांड में जिससे गांड चौड़ी हो जाए।

मैंने भी फट से डाल दिया लौड़ा उसकी गांड में।

रुक्कू- अह मर गई रे। क्या ऐसा भी कोई चोदता है ? चल अब धीरे धीरे !

शब्बो- चुप री साली ! तू अब रांड बन चुकी है, अनजान लौड़ा ले के अब चुदवा ले बिना चूँ-चा किये।

रुक्कू- हाँ री, हाँ ! पर जरा धीरे से ! मुझे तेरे जैसी आदत नहीं है।

इस बात से मुझे रहम आया और मैंने पहले धीरे-धीरे उसकी गांड में धक्के देना चालू किया और थोड़ी देर में चमत्कार हुआ।

रुक्कू- राकेश भड़वे ! क्या जादू किया लौड़े से ? अब चोद डाल अख्खी गांड ! बहुत मज़ा आ रहा है ! सही में अब पता चला कि लोग औरत की गांड के दीवाने क्यों होते है ?

जिन औरतो ने गांड नहीं मरवाई वो इसे पढ़कर जरूर जान लें कि सारे छेद चुदवाने के लिए होते हैं।

शब्बो ने उसके नीचे झुक कर जैसे-कैसे- रुक्कू की गेंदों को कसकर पकड़ लिया और अपना भोसड़ा उससे चटवाने लगी। रुक्कू अब तेज सिसकियाँ भरने लगी क्योंकि मुँह में भोसड़ा और गांड में लौड़ा। उससे वो संतुष्ट हुई।

रुक्कू- अब कोई और तरीका ?

मैंने अब रुक्कू को दीवाल के साथ टिका कर खड़ा किया और उसकी एक टांग हाथ मैं पकड़कर भोसड़े में अपना लौड़ा डाल दिया और धक्के चालू किये। और एक आखरी धक्के से मेरे लौड़े ने ख़ुशी के आँसू बहाते हुए अपना सारा पानी उसके भोंसड़े में डाल दिया। बस रुक्कू ने झट से सारा वजन मेरे पर डालते हुए अपनी टांगों से मेरी गांड को लपेट लिया। मैंने उसी अवस्था में उसे उठाकर मेज़ पर बिठा दिया और लण्ड अपना काम तमाम करके भोसड़े से बाहर आ गया।

रुक्कू- राकेश साले ! क्या जादू है रे गांड मरवाने में और चुदवाने में ? दुबारा कब मिलेगा रे ?

शब्बो- अरे फिक्र मत कर ! सफर मैं ऐसे लौड़े बहोत मिलते है। एक ही लौड़े से खुश हुई क्या ?

मैं भी देखता रह गया।

शब्बो अब हट गई और पानी लेकर अपना भोंसड़ा धोने लगी और कपडे पहनकर तैयार हुई। अभी भी वो हाफ-पैंट और टीशर्ट में बहुत सेक्सी लग रही थी।

रुक्कू और शब्बो ने पूरे बुरके ओढ़ लिए ताकि कोई पहचान न हो।

शब्बो- देखा राकेश, बुरके का कमाल ! सारा काम तमाम और कोई पहचान ही नहीं। चलो देखते हैं कि बस तैयार हुई क्या ?

अभी मिस्त्री काम कर रहा था, बीस मिनट बाद बस ठीक हुई, इस बीच मैंने अपना टिफिन खा लिया वो दोनों तो चुदवाकर ही खुश थी।

कंडक्टर ने सिटी बजाकर सारे यात्रियों को बुला लिया। बहुत कम लोग रह गए थे। हम बस में एकदम पिछली सीट पर जा बैठे। शब्बो और रुक्कू ने मुझे बीच में बिठाया और चालू बस में भी उनका मकाम आने तक मेरे हाथो से अपनी गेंदों को दबवाया और मेरे लौड़े को सहलाया। बहुत आनंद दिया भी और लिया भी !

उनका स्टॉप आने की कंडक्टर की आवाज से दोनों ने अपना सामान उठाया और चलने लगी।

तो मैंने पूछा- अपना पता भी दे जाओ कभी मौका मिला तो जरूर चोदने आयेंगे।

रुक्कू लिखने को तैयार हुई तो शब्बो बोली- राकेश, उड़ते पंछियों का कोई पता नहीं होता और फुल पेड़ पौधे पता नहीं पूछते।

और बोली-

रहेंगे चमन तो फ़ूल खिलते रहेंगे

रही जिंदगी तो चुदवाने के लिए तुझ जैसे लौड़े मिलते रहेंगे।

बाय बाय कहते हुए दोनों पंखी उड़ गए और यादें छोड़ गए।

तो शकील ऐसा भी होता है सफ़र में !

ये तो तुम मिले और सारी सच्चाइयाँ तुम्हें बता दी। इधर राकेश की कहानी ख़त्म हुई और उधर ट्रेन को सूरत से आया इंजन लग कर होर्न बजाने लगा। हमने झट से ट्रेन में अपनी सीट पकड़ ली और गार्ड के सीटी बजाते ही ट्रेन चालू हुई। वापी आते ही वो उतर गया न उसने मुझे पता दिया न नम्बर दिया।




***SAMAPT***
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08-27-2017, 01:49 PM,
#98
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*** मौजा ही मौजा ***





मैं बाज़ार जाने के लिये घर से निकल पड़ी। मुख्य सड़क पर आते ही मैंने सिटी बस ली और उस भीड़ में घुस गई। वही हुआ जो मैं चाहती थी। बस में घुसते ही जवान लड़की को देख कर उसके बदन पर हाथ मारना आरम्भ कर दिया। सभी भैन के लौड़े, कोई मेरे चूतड़ों को दबा कर मुझे आनन्दित करता तो कोई मेरे कोमल स्तनों पर हाथ मार देता। कभी कभी तो बस के धक्कों में उनका लण्ड तक मेरे चूतड़ों से दब जाता था। ये हरामजादे मेरी गाण्ड क्यों नहीं मार देते। बस मुझे भड़काते रहते हैं। बस यों ही मस्ताती हुई मैं सब्जी मण्डी पर उतर गई।



सब्जी मण्डी में भी मैंने भीड़ वाली जगह ढूंढ ली और उसमें घुस गई। मेरा तन कईयों के बदन से रगड़ गया। किसी मनमौजी ने एक जगह तो मेरी चूंचियाँ तक भींच डाली। मैंने भी उसे पूरा मौका दिया। एक मीठी सी टीस उठ गई दिल में। मैंने उसे इधर उधर देखा, वो मुस्कराता हुआ मेरे पीछे ही नजर आ गया। फिर मैंने अपनी गाण्ड उसी की तरफ़ घुमा दी। फिर मैं सब्जी वाले के पास झुक कर चूतड़ों को उभार कर सब्जी लेने लगी। मेरी चूतड़ से एक के बाद एक कई लण्ड टकराये। कोई कोई तो दरार में दबा भी देते थे और ऐसे अन्जान बन जाते थे कि जैसे कुछ नहीं किया हो। इसी तरह से मैं बाजार में अक्सर मस्ताती थी।



फिर खूब उत्तेजित हो कर घर पर आ कर मैं हस्त मैथुन करके शान्त हो जाया करती थी। मेरी यह तरकीब बहुत सी बहनें जानती होंगी, पर मुझे पता है वो किसी को बतायेंगी नहीं। वैसे जिंदगी में मैंने बस एक बार अपने चचेरे भाई से चुदवाया था। भोसड़ी के ने रगड़ कर मुझे मस्त कर दिया था। उसी ने मेरी सील तोड़ दी थी। मैं उस समय नासमझ थी। बस भाव में बह गई और चुद गई। उसके बाद से मेरा वो चचेरा भाई कभी नहीं आया। पर मेरे मन में वो आग लगा गया, मुझे जवानी का मतलब समझा गया। अब भी चुदने की इच्छा बहुत होती है पर कोई चोदने वाला मिलता ही नहीं था। यह एक बहुत बड़ी मजबूरी थी।



आज शाम को मेरी सहेलियाँ घर पर आ गई और अगले दिन का पिकनिक का कार्यक्रम बनाने लगी। एक सहेली के बॉयफ़्रेंड ने अपने बंगले पर यह कार्यक्रम रखा था। उस दिन वो अकेला था। उसके घर वाले मुम्बई गए हुए थे। मैं बहुत खुश हो गई कि कल छुट्टी का दिन अच्छा बीतेगा। मेरे मम्मी पापा ने मुझे मंजूरी दे दी। यह उसका फ़ार्म-हाउस था। करीब दस किलोमीटर दूर था।



सहेली ने मुझे यह बता दिया दिया था कि वहाँ पर सभी लड़कियाँ खूब मस्तियाँ करेंगी। तो करे ना ! मुझे क्या, मेरा तो कोई बॉय फ़्रेंड है नहीं। अब्दुल, अनवर, युसुफ़ तो बाहर गए हुए थे किसी शादी में। स्वीमिंग पूल का आनन्द भी लेना था जो उसके पिछवाड़े में था।



सुबह सवेरे दो एयर कण्डीशन कार मेरे घर आ गई थी। मैंने एक जोड़ी कपड़े रखे और केजुअल ड्रेस पहन कर कार में आ गई। कार में सभी लड़कियाँ अपने-अपने बॉय फ़्रेंड्स के साथ थी। बस मैं और रोहित जिसका वो फ़ार्म-हाऊस था, बिना किसी जोड़े के थे। सभी गाने गाते और मस्ती करते हुए चल दिये। कुछ लड़कियाँ तो अपनी कमीज ऊपर उठा उठा कर अपने स्तन दिखा रही थी। कुछ चुम्मा ले रही थी। मस्ती का आलम था। उनके बॉय फ़्रेंड मस्ती में किसी के भी स्तन को दबा कर चीखते थे। मैं शरम के मारे एक तरफ़ बैठी थी। मन तो बहुत कर रहा था कि मैं भी खूब उछल कूद करूं, अपने सुडौल चूचों को दबवाऊं, पर मेरा कोई दोस्त भी तो नहीं था, जो ऐसा करता।


कुछ ही देर हम सभी रोहित के फ़ार्म हाऊस में आ गये। पूरे फ़ार्म में कोई नहीं था। अन्दर आकर हमने फ़ाटक पर ताला लगाया और शोर मचाते हुए घर में घुस गये।







चाय नाश्ता करके हम सभी स्वीमिंग पूल की ओर भागे। सभी अपने अपने कपड़े फ़ेंक कर उसमे कूद पड़े। रोहित भी अकेला ही कूद गया। मैं अपने सलवार कुर्ते में दूसरी ओर जाकर एक बड़ी कुर्सी पर लेट गई। तभी रोहित पूल में से उछल बाहर आ गया। वो सिर्फ़ एक छोटी सी अन्डरवियर पहना हुआ था। जैसा कि आजकल लड़के पहनते है। वो पतली सी थी, बहुत छोटी सी थी। उसका कसा हुआ बलिष्ठ तन तराशा हुआ था। उसकी भीगी हुई टाईट अन्डरवियर में से उसका मोटा सा लण्ड और अन्य सामान फ़ूला हुआ सा साफ़ नजर आ रहा था। वो मेरे पास ही बड़ी कुर्सी सरका कर लेट सा गया। उसका भारी सा लण्ड उसकी अन्डरवियर में समा भी नहीं रहा था। उसके लाल सुपाड़े का अग्र भाग उसके पेट से लगा हुआ बाहर झांकता हुआ अपने दर्शन दे रहा था।

"बानो, वो सरदार है ना, तेजी इस टीम का भी सरदार है।"


"जी, यानि बॉस है?"


"हां, जो इस टीम का मेम्बर होता है इसकी एक विशेष परमिशन होती है, उसे प्राप्त करना होता है।"


"ओह, क्या करना होता है?"


"वक्त आने पर पता चल जायेगा। वैसे तुम इन लड़कियों जैसी नहीं हो।"


मैं सिर्फ़ हंस दी। मुझे उसके भीगे हुए लण्ड को देखना भा रहा था। पर नजर बचा कर ! कहीं रोहित देख ना ले। पर उसकी नजरें मुझसे अधिक तेज थी, वो ना सिर्फ़ मेरे भावों के उतार-चढ़ाव देख रहा था बल्कि मेरी नजरें भी वो भांप चुका था। इसी कारण उसला लण्ड धीरे धीरे सख्त होता जा रहा था। उसने बात सेक्स की ओर मोड़ दी।


"देखो बानो ! सभी कितना मस्त हो रहे हैं, वो देखो तो कैसे प्यार कर रहे हैं !"


मैं शरमा गई। मैंने देखा कि तभी एक जोड़ा हमारे बिल्कुल पास आकर पानी में चिपक कर खड़ा हो गया। उनकी कमर नीचे चल रही थी। मैं तो कांप गई। लग रहा था रवि रजनी को चोद रहा था। रजनी की कमर हिलने से पानी उछल रहा था। रवि के हाथ उसके स्तनों को मल रहे थे।


मैंने रोहित को देखा। वो हाथ हिला कर उन्हें बढ़ावा दे रहा था। तभी रोहित ने मुझे देखा। मैं उत्तेजना छिपाने के लिये उठ कर एक तरफ़ चल दी। वो माँ का लौड़ा रोहित भी उठ कर मेरे पीछे पीछे आ गया, मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला,"जानती हो, ये समझ रहे हैं कि तुम मेरे साथ हो, इसलिये सिर्फ़ दिखाने के लिये ही सही, मेरे पास आ जाओ।"


ये साला हारामी मुझे फ़ंसाने की कोशिश कर रहा है। साला यूं तो नहीं कि मुझ जैसी छिनाल में क्या शरम ! पकड़ कर अपना मस्त लौड़ा मेरी चूत में ठांस दे। बहुत शराफ़त दिखा रहा है मादरचोद।


"ओह, नहीं रोहित जी, मुझे शरम आती है।" मैंने भी उस चूतिये को अपनी नाटकबाजी दिखाई।
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08-27-2017, 01:49 PM,
#99
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Contd.....*** मौजा ही मौजा ***





अरे बस यूं ही ! नाटक करना है।"


मुझे कुछ कहते नहीं बन पड़ा, साला ये तो मुझसे भी तेज निकला और फिर उसने जैसा कहा था वैसा करने लगी, मेरे दिल में भी तो उसका लौड़ा खाने की थी। उसने बस होंठ से होंठ मिला दिये। सभी ने यह देखा और हाथ हिलाया। मेरा मन विचलित हो रहा था। मुझे तो सब कुछ करने की इच्छा होने लगी थी। मैंने नीचे से अपनी चूत हिला कर उसे हल्का सा इशारा भी दिया।


अब गले से लग जाओ, थोड़ी सी बदतमीजी सह लेना।


जी !


ओह साला भड़वा, भेन चोद, ये तो मुझे तड़पाने लगा है।


उसने मुझे गले से लगा लिया और मेरे कोमल चूतड़ दबाने लगा। मेरा जिस्म पिघलने लगा। फिर उसने मुझे छोड़ दिया। मैं उसे देख कर और उत्तेजित होने लगी थी। मेरी चूत गीली होने लगी थी। मुझ जैसी रण्डी भी कुछ नहीं कर पा रही थी। हाय, कैसे लूँ इस गाण्डू का लौड़ा।


"बानो, इतना क्यूँ शरमाती हो, यह तो आजकल का दस्तूर है, ये शारीरिक सम्बन्ध तो अब जरूरत की श्रेणी में आता है, ये तो अब एक एन्जोयमेन्ट है।"


उसका गोरा लण्ड मेरी चूत के आस पास गुदगुदी मचाने लगा था। तेरी भेन की चूत, साला, मादरचोद, तो लण्ड घुसेड़ क्यों नहीं देता !


"बानो, देखो तुम्हारे अलावा सभी लड़किया पूरी नंगी हैं, तुम्हीं एक अलग सी लग रही हो, प्लीज ये ऊपरी कपड़े तो उतार ही दो !"


"मैं तो मर ही जाऊंगी, रोहित ! " मेरे मन में जैसे फ़ुलझड़िया छूट पड़ी। अब आया ना रास्ते पर।


"ऐसा कुछ नहीं होगा, वो सारी लड़किया शरमा रही हैं क्या, किसी को भी नंगेपन की परवाह नहीं है।"


मुझे लगा कि रोहित ठीक ही कह रहा है। मुझे भी तो चुदाने का अधिकार है ना। मैंने इधर उधर देखा और रोहित से आँखें चुरा कर अपने कपड़े उतारने लगी, अरे सच में, मुझे तो किसी ने भी नोटिस नहीं किया। मैं तो यूं ही घबरा रही थी। मेरी नीली छोटी सी पैंटी और पतली सी नीली ब्रा में मैं तो पटाखा सी लगने लगी थी।


"बानो, तुम तो गजब की हो, तुम्हारा शरीर तो मिस इण्डिया से भी खूबसूरत है, यहां तो देखो, कोई है तुमसा?"


रोहित ने तो अब अपनी वो छोटी सी अण्डरवियर भी उतार दी थी। अब उसका लण्ड फ़्री स्टाइल में सीधा खड़ा हुआ लहरा रहा था। इह्ह्ह, मस्त है साला, मजा आ जायेगा चुदवाने का।



"बानो पकड़ लो मेरा लण्ड और घूमो मेरे साथ !"



हाँ, यह हुई ना बात, मुझे भी अब बेशर्मी दिखाने का मौका मिला। मेरे दिल की रण्डी अब तड़प कर बाहर लगी थी। अब मेरी शरम कम होती जा रही थी। उसका कोमल पर कड़क लण्ड मैंने थाम लिया। मेरे दिल में कई सूईयाँ चुभने लगी। मैंने भी अपने सीने को उभारा और मैं इतरा कर उसके साथ साथ चलने लगी। वो भी अपना लण्ड पकड़ाये हुए आराम से पूल के किनारे किनारे चलने लगा। जाने कब मैंने भी उसके लण्ड को धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू कर दिया था। रोहित भी उत्तेजना में घिरने लगा था। सभी लड़कियों को चोदने में व्यस्त थे। आखिर मेरी सहन शक्ति जवाब दे ही गई।
"रोहित, अब बस करो, नहीं रहा जाता है !" मैं उतावली होकर कह उठी और उससे जोर से लिपट गई।


अब मैं उसके कठोर चूतड़ों को दबाते हुए नीचे बैठने लगी। कुछ ही क्षणों में उसका सुन्दर सा लण्ड मेरी आंखों के सामने था।



"ओह रोहित … रोहित, मुझे अपना लो, हाय अल्लाह मुझे ये क्या हो गया है !"



उसका लहराते हुए लण्ड को चूसने का लालच मैं नहीं छोड़ सकी। उसके मस्त कड़क लण्ड को मैंने अपने मुख में भर लिया। उसका नरम सुपाड़ा मुख में गुदगुदा रहा था। मैं उसे जोर जोर से चूसने लगी, यहां तक कि चप चप की आवाज भी आने लगी थी। रोहित मस्ती में झूम उठा। फिर जब बहुत चूस लिया तो उसने मुझे खड़ी कर दिया और खुद नीचे झुक गया। मेरी चूत के बराबर में आकर उसने मेरी पैंटी उतार दी। मेरी भीग़ी हुई चूत का रस उसने चाट लिया और मेरी यौवन कलिका को अपनी जीभ से हिला हिला कर मुझे मस्त करने लगा। मैं एक मस्त चुदैल रण्डी की तरह उसका सर पकड़ कर अपनी भोसड़ी हिला हिला कर उसे चटवा रही थी। मैं मदहोश सी हो कर झूम रही थी। बीच बीच में इधर उधर देख कर संतुष्ट हो जाती थी कि अधिकतर लड़के मेरी चूत चटाई को ध्यान से देख रहे थे। उनके मुझे इस तरह से देखने से मैं अपने आप को हिरोईन जैसा महसूस करने लगी थी। मेरी उत्तेजना तेज होती जा रही थी।


तभी पास पड़े गद्दे पर रोहित ने मुझे कमर से उठा कर लेटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गया।


"रोहित, क्या कर रहे हो?"


"कुछ नहीं बानो, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें बहुत प्यार से चोद दूँ, बोलो?"



साला चोदेगा भी मुझे पूछ पूछ कर। मैं भला उस चोदू को क्या कहती। मैंने कुछ नहीं कहा, बस अपनी आँखें बन्द ली और आने वाले सुखदायी पलों का इन्तज़ार करने लगी। रोहित मेरे से लिपट गया। उसका भार मुझ पर बढ़ने लगा। तभी मुझे चूत में खूबसूरत सी, मीठी सी गुदगुदी हुई। मैं तड़प उठी। उसका मस्त लण्ड मेरी योनि में प्रवेश कर रहा था। मैंने अपनी दोनों टांगें चुदवाने के लिये ऊपर उठा ली और उसकी कमर से लिपटा दी। उसके भीगे होंठ मेरे नाजुक लबों पर आ गए और उसकी जीभ मेरे मुख में आकर कुछ तलाशने लगी।



मेरी चूत ने भी ऊपर उठ कर लण्ड लेने की भरपूर कोशिश की । नतीजा लण्ड की एक मधुर ठोकर पड़ी मेरी बच्चेदानी पर । अब रोहित मेरी चूत पर आगे पीछे घर्षण करने लगा था। मेरा तन पसीजने लगा था। उसके मनोहर धक्कों ने मुझे मदमस्त कर दिया और मैं अपना होश खो बैठी। मुझे होश जब आया जब मैं झड़ी थी। रोहित ने भी तभी अपना वीर्य त्याग दिया था। रोहित अब खड़ा हो गया था। मैं भी खड़ी हो गई थी।



मैंने देखा कि सभी मुझे देख रहे थे, कुछ तो हाथ से लण्ड की शेप बना बना कर उसे हिला हिला कर मुझे चुदाने की दावत दे रहे थे। मुझे यह देख कर मन में उत्साह की तरंगें उठने लगी। मैं वैसे ही नंगी पूल में उतर गई। अन्य लड़कियों की तरह नंगी होकर मैं भी तैरने लगी। बहुत सुहाना सा लग रहा था। कहाँ मैं अपनी वासना तृप्ति के लिये भीड़ में अपने तन को घिसवाती थी। यहां तो कोई बन्धन नही, सभी कितने अच्छे हैं।
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08-27-2017, 01:50 PM,
RE: Hindi Porn Stories हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
Contd.....*** मौजा ही मौजा ***




तभी तेजी सरदार पीछे से आया और मेरी पतली कमर थाम ली।

"नई सदस्या का स्वागत है !"


उसने मेरी गाण्ड से चिपकते हुए कहा। उसका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड से चिपक चुका था। सरदार लोग मुझे वैसे ही बहुत अच्छे लगते थे। खास कर उनकी सेक्स अपील बहुत प्यारी होती है।


"धन्यवाद तेजी, पर मेरे पीछे तुम क्या कर रहे हो?"


"तुम्हें पक्की सदस्या बना रहा हूँ, और क्या !" उसका सख्त लण्ड मेरी गाण्ड को खोलने की कोशिश कर रहा था।


मुझमें सनसनी सी छा गई। अब गाण्ड चुदेगी मेरी ! ये लोग कितना ख्याल रखते है सबका। मेरा मन खुश हो गया। मैं उसकी सहायता करने लगी। कुछ देर में पानी के भीतर मेरी गाण्ड में उसका लण्ड घुस गया था।


तेजी ने जोर से सभी को पुकारा,"हमारी नई मेम्बर शमीम बानो जी !"


सभी का ध्यान मेरी ओर आ गया। सभी आस पास झुण्ड बना कर कोई तैर रहा था तो कोई किनारे पर आ कर पानी में ही मुझे निहारने लग गया था।


"ये देखो, मेरा लण्ड इसकी गाण्ड में भीतर चला गया है, इसे बधाई दो !"


उफ़्फ़, ये क्या, अब तो सबने देख लिया, ओह मां, चुदाते देखते तो साधारण बात थी पर गाण्ड मराते हुए देख लिया। ओह मैया री, ये तो सब जाने क्या सोचेंगे। एक नम्बर की चुदक्कड़ होते हुए भी शरम के मारे मैं तो मर ही गई थी।


तभी सबने कहा,"तेजी, मारो उसकी गाण्ड मारो, बना लो मेम्बर उसे !" ओह तो क्या यहाँ गाण्ड मार कर मेम्बर बनाया जाता है।


आह मुई ! मैं मर क्यों नहीं जाती। उसका लण्ड जैसे मेरे तन को फ़ाड़ने लगा। मेरी चीख निकल गई। वो बेदर्दी से गाण्ड मारता रहा। मुझे उतना दर्द नहीं हुआ जितना मैं चीखी थी। पर मुझे लगा कि सभी को मेरा चीखना अच्छा लग रहा है। सो मैं अब जान कर बिना दर्द के ही जोर जोर चीखने लगी। तब तक चीखती रही जब तक तेजी झड़ नहीं गया। सभी मेरी कष्टमय चुदाई को देख देख कर खुश हो रहे थे। लड़कियाँ तो खुशी के मारे चीख रही थी मेरी गाण्ड फ़ाड़ चुदाई देख कर।



मुझे तो गाण्ड चुदाने में भी बहुत आनन्द आ रहा था पर मैं सब कुछ समझ रही थी। यानि चुदाओ तो जोर जोर से ! खुशी की सीत्कारें भरो और गाण्ड चुदाओ तो चीखो, चिल्लाओ जैसे बहुत कष्ट हो रहा हो।


हम सभी लन्च के लिये एक बन्द हॉल में बड़े से गद्दे पर नंगे ही गए थे। वहाँ अब दारू, बीयर का दौर चलने वाला था। मैंने भी अपने लिये एक बीयर मंगवा ली। मुझे बीयर बेहद स्वादिष्ट लगती है। लगभग आधे घण्टे में ही सभी नशे में मस्त हो गए थे।

"अरे नई मेम्बर कहाँ है यार, चलो उसे तो चख लें !"


मेरे पास सबसे पहले आने वाले में विकास था। उसने मुझे कमर से पकड़ लिया और चूमने चाटने लगा। तभी पीछे से राहुल लिपट गया। मैं बहुत मस्ताने लगी थी। नशे में इन सब कामों में बहुत मजा आ रहा था। तभी जाने कब मुझे नीचे गद्दे पर गिरा दिया। विकास ने मुझे ऊपर लेकर मुझे कहा,"बानो आज मुझे चोद दे यार, दिल की हसरत निकल जायेगी।"


"ओह तो यह बात है !" मैंने उसके तने हुए लण्ड पर अपनी कोमल चूत रख दी और उसका लण्ड भीतर घुसा लिया। अब मैं उस पर झुक गई उसे चोदने के लिये। तभी मेरी गाण्ड में राहुल का लौड़ा प्रवेश कर गया।


आह ! मैं दोनों ओर से चुदने लगी। हाय मेरे अल्लाह, मुझे ये कहा जन्नत में ले आया। शायद जन्नत होती होगी तो कुछ ऐसा ही होता होगा। बहुत देर तक मस्ती से चुदती रही। जब वे दोनों मस्त हो कर अपना वीर्य त्यागने लगे तब मेरी तन्द्रा टूटी।


लंच लग चुका था। सभी खाने के बाद अब थक कर सोने लगे थे। मुझे भी बहुत शांति की नींद आ गई। मेरी नींद खुली तब मेरे ऊपर ताहिर और शब्बीर चढ़ चुके थे। ओह ये इतना मोटा लण्ड बहुत सख्त है यार !


"अरे कौन, ओह ताहिर, यार जरा प्यार से, तेरी आपा जैसी हूँ ना !" मेरी बात सुन कर वो मुस्कराने लगा।


फिर एक दौर और चल गया। सो कर सभी तरोताजा हो गए थे और लगे थे फिर से चुदाई में।


गाड़ी शहर की ओर चल दी थी। सभी अत्यन्त सभ्य तरीके से बैठे थे। कोई नहीं कह सकता था कि अभी ये ही सब वासना के खेल में खूब चुद रहे थे।


"हां भाईयों और बहनों !"


सभी ने अपना मुख दबा लिया और हंसने लगे।


"अगला कार्यक्रम हमारे नई मेम्बर बहना शमीम बानो प्रस्तावित करेगी।"


"बताऊं, वो विकास भैया के फ़ार्म हाउस पर !" विकास ने मेरी ओर देखा और मुझे आँख मार दी।


"विकास। बोलो ठीक है, और यह आंख मारना मना है।"


"जैसा बानो बहन ने कहा है वैसा ही होगा !" विकास झेंप सा गया।


गाड़ियाँ एक होटल के आगे खड़ी हो गई। हमारा रात्रि-भोज यहीं पर था। खाना खाते खाते रात के नौ बज गए थे। अन्त में सभी लड़कियों को दस दस हजार रुपये लड़कों को भरपूर सहयोग देने के लिये दिये गए थे और ये राशि हम लड़कियों को उनकी ओर से मनपसन्द गिफ़्ट लेने के लिये दी गई थी। धन्यवाद के साथ हम सब विदा हुए।




*** SAMAPT ***
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