Hindi Porn Kahani गीता चाची
04-26-2019, 12:01 PM,
#11
RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
उस रात मैंने सच में एक घंटा नहीं तो फिर भी बीस-एक मिनिट गीता चाची को चोदा. एक तो दो बार झडने से अब मेरे लंड का संयम बढ़. गया था, दूसरे गीता चाची ने भी बार बार दुहाई देकर और धमाका कर मुझे झडने नहीं दिया. जब भी उन्हें लगता कि मैं स्खलित होने वाला हूँ, वे कस कर अपनी टाँगों में मेरी कमर पकड़. कर और मुझे बाँहों में भर कर स्थिर कर देतीं. लंड का मचलना कम होने पर ही छोडती.

छोड़ते हुए मैंने उन्हें खूब चूमा. कई बार ज़ोर से धक्के लगाता हुआ मैं उनके रसीले होंठों को अपने दाँतों में दबाकर चूसता रहता, यहाँ तक कि उनकी साँस रुक सी जाती. बीच बीच में झुक कर उनके निपल मुँह में लेकर चूसता हुआ उन्हें हचक हचक कर चोदता, यहा सब कलाएँ मैंने ब्लू फिल्मों में देखी थीं इसलिए काम आईं. चाची ने बीच में झड. कर तृप्ति से हन्फते हुए कहा भी कि लगता नहीं की यह मेरी पहली चुदाई है पर मैंने उनकी कसम देकर उनको विश्वास दिलाया. 

आख़िर जब मैं थक कर चूर हो गया तो चाची से गिडगिडा कर स्खलित होने की इजाज़त माँगी. तीन चार बार झड. कर भी उनकी चुदासी पूरी मिटी नहीं थी पर मेरी दशा देखकर तरस खा कर बोलीं. "ठीक है लल्ला, आज छोड़. देती हूँ, पर कल देख तेरा क्या हाल करती हूँ." 

वह आखरी पाँच मिनिट की चुदाई बहुत जोरदार थी. चाची ने भी मुझे खूब उकसाया. "चोद राजा चोद अपनी चाची को, तोड. दे मेरी कमर, फाड़. दे मेरी चूत, और चोद लल्ला, मार धक्का, हचक के मार." मेरे शक्तिशाली धक्कों से खाट भी चरमराने लगी. लगता था कि टूट ना जाए, आस पास वाले सुन ना लें पर अब तो मुझ पर भूत सवार था. उधर चाची भी मेरा साथ देते हुए नीचे से चूतड. उछाल उछाल कर चुदवा रही थीं. उनकी चूड़ियाँ हमारे धक्कों से हिल डुलकर बड़े मीठे अंदाज में खनक रही थीं. उस आवाज़ से मैं पूरा मदहोश हो गया था. इसलिए मैं ऐसा झडा कि मेरे मुँह से चीख निकल जाती अगर चाची ने मेरा मुँह अपने होंठों में पहले ही दबा कर ना रखा होता. 

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उस अपूर्व कामतृप्ति के बाद मैं ऐसा सोया कि सुबह सूरज सिर पर आ जाने पर ही नींद खुली. चाची पहले ही उठ कर नीचे चली गयी थीं. जब मुझे जगाने चाय लेकर आईं तो नहा भी चुकी थीं. शायद मंदिर भी हो आई थीं क्योंकि सिंदूर में थोड़ा गुलाल लगा था. 

साड़ी नीली साड़ी में लिपटी उस रूपवती नारी को देखकर मैं फिर उनसे लिपटकर चुंबन माँगने ही वाला था कि उन्होंने उंगली मुँह पर लगाकर मना कर दिया. मैं समझ गया कि अब दिन निकल आया है और छत पर ऐसा करना ठीक नहीं. मैं चाय पी रहा था तब चाची ने सामने बैठ कर मुस्कराते हुए पूछा. "तो कैसे कटी रात मेरे प्यारे लल्ला की?" 

मैं दबे स्वरों में उनकी आँखों में देखता हुआ कृताग्यता से बोला. "गीता चाची, आपने तो मुझे स्वर्ग पहुँचा दिया. मैं तो आपका गुलाम हो गया, अब आप जो कहेंगी, वही करूँगा." वे प्यार से हँसने लगीं. "ठीक है लल्ला, गुलाम ही बना कर रखूँगी तुझे. देख तुझे क्या क्या नज़ारे दिखाती हूँ. अब नीचे चलो और नहा लो." 

मैं नहाकर तैयार हुआ. दोपहर तक बस टाइम पास किया क्योंकि घर में काम करने वाली नौकरानी आ गयी थी और वह खाना बनाने तक और हमारा खाना होकर बर्तन माँजने तक रुकी थी. आख़िर एक बजे वह गयी और चाची ने दरवाजा अंदर से लगा लिया. मैं तो तैयार था ही, बल्कि सुबह से उनके उस मतवाले शरीर के लिए प्यासा था. तुरंत उनसे चिपक गया. 

हम वहीं सोफे पर बैठ कर एक दूसरे के चुंबन लेने लगे. "लल्ला, ऐसे नहीं, चुंबन का असली मज़ा लेने को जीभ का प्रयोग ज़रूरी है." कहते हुए चाची ने अपनी जीभ से मेरे होंठों को खोला और उसे मेरे मुँह के अंदर डाल दिया. मैं उस रसीली जीभ को चूसने लगा और उस मीठे मुखरस का खूब मज़ा उठाया. जीभ से जीभ भी लड़ाई गयी और मैंने भी अपनी जीभ चाची के मुँह में डाल कर उनके दाँत, मसूडे, तालू इत्यादि को खूब चाटा.

चूमाचाटी के बाद चाची मुझे उपर अपने कमरे में ले गयीं. अब तक मेरा लौडा तन्ना कर उठ खड़ा हुआ था. चाची ने दरवाजा बंद करके मेरे पास आकर मेरा हाथ पकडकर कहा. "लल्ला, कल तुम मुझे नंगी देखना चाहते थे ना, चलो आज तुम्हें दिखाती हूँ जन्नत का नज़ारा. पर पहले तुम अपने सब कपड़े उतारो.

मैं तुरंत नग्न हो गया. थोड़ी शरम अब भी लग रही थी पर जब मैंने चाची की नज़र की चमक देखी तो शरम पूरी तरह जाती रही. मेरे भरे पूरे नग्न किशोर जवान शरीर को देखकर वे बोलीं. " बड़ा प्यारा है मेरा गुलाम, ऐसा सबको थोड़े ही मिलता है. भरपूर गुलामी कराऊन्गि तुझसे लल्ला." मेरे तन कर खड़े लंड को देख कर वे चाहक पड़ीं. "बहुत मस्त है लल्ला तेरा सोंटा. चल इसे नापते हैं, कितना लंबा है." 

मुझे पलंग पर बिठा कर वे एक स्केल ले आईं और मेरा लंड नापा. छह इंच का निकाला. "बड़ा मजबूत है राजा, कितना गोरा भी है, और ये सुपाडा तो देख, लगता है जैसे लाल टमाटर हो, और ये नसें, हाय लल्ला, मैं वारी जाऊ तुझपर. साल भर में अपनी चाची को चोद चोद कर आठ इंच का ना हो जाए तो कहना" कहकर वे उससे खेलने लगीं.

"चाची, अब आप भी नंगी हो जाओ ना प्लीज़." वे मुस्काराकर खडी हो गयीं और साड़ी उतारने लगीं. "एक शर्त पर लल्ला. चुपचाप बैठना और मैं कहूँ वैसा करना. और अपने लंड को बिलकुल हाथ नहीं लगाना. नहीं तो मुठ्ठ मारने लगोगे मेरा माल देखकर."

साड़ी और पेटीकोट निकलते ही मेरा और तन्नाने लगा. क्योंकि अब उनकी गोरी कदलीस्तम्भ जैसी मोटी जांघें नंगी थी. बस एक काली पैंटी उनके गुप्तांगों को छिपाए थी. चोली निकालकर जब उन्होंने फेंकी तो मैंने बड़ी मुश्किल से अपना हाथ लंड पर जाने से रोका. सिर्फ़ ब्रेसियार और पैंटी में लिपटी अर्धनग्न चाची तो गजब ढा रही थी. उनका शरीर बड़ा मांसल था, थोड़ा और माँस होता तो मोटापा कहलाता पर अभी तो वह जवानी का माल था.

थोड़ी देर गीता चाची ने मुझे तंग किया. इधर उधर घूमी, कमरे में चली, सामान बटोरा और टाइम पास किया; सिर्फ़ मुझे अपने अधनन्गे रूप से और उत्तेजित करने को. आख़िर मैं उठकर उनके सामने घुटने टेक कर बैठ गया और उनकी पैंटी में मुँहा छुपा दिया. उस मादक खुशबू को लेते हुए मैंने उनसे मुझे और तंग ना करने की मिन्नत की. मेरी हालत देखकर हँसते हुए उन्होंने इजाज़त दे दी. "ठीक है लल्ला, लो तुम ही उतारो बाकी के कपड़े."

मैंने खड़े होकर काँपते हाथों से चाची की ब्रा के हुक खोले और उसे उतारकर नीचे डाल दिया. ब्रेसियर से छूटते ही उनके भारी मांसल स्तन स्तन थोड़े लटक कर डोलने लगे. मैंने उन्हें हाथों में लेकर झुक कर बारी बारी से चूमना शुरू कर दिया. "थोड़े लटक गये हैं राजा, दस साल पहले देखते तो कडक सेब थे." "मेरे लिए तो ये स्वर्ग के रसीले फल हैं चाची. काश इनमें दूध होता तो मैं पी डालता."

"दूध भी आ जाएगा बेटे, बस तू ऐसे ही मेरी सेवा करता रह." सुनकर उनकी बात के पीछे का मतलब समझ कर मुझे रोमांच हुआ पर मैं चुप रहा. गोरे उरोजो के बीच लटका काला मंगल सूत्र बड़ा प्यारा लग रहा था. किसी शादीशुदा औरत की वह निशानी हमारे उस कामसंबंध को और नाजायज़ और मसालेदार बना रही थी. मेरी नज़र देख कर चाची ने पूछा. "उतार दूँ बेटे मंगल सूत्र?" मैंने कहा. "नहीं चाची, बहुत प्यारा लगता है तुम्हारे स्तनों के बीच."
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04-26-2019, 12:01 PM,
#12
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"दूध भी आ जायेगा बेटे, बस तू ऐसा ही मेरी सेवा करता रह." सुनकर उनकी बात के पीछे का मतलब समझ कर मुझे रोमांच हुआ पर मैं चुप रहा. गोरे उरोजों के बीच लटका काला मंगल सूत्र बड़ा प्यारा लग रहा था. किसी शादीशुदा औरत की वह निशानी हमारे उस कामसंबंध को और नाजायज और मसालेदार बना रही थी. मेरी नजर देख कर चाची ने पूछा. "उतार दूं बेटे मंगल सूत्र?" मैंने कहा, "नहीं चाची, बहुत प्यारा लगता है तुम्हारे स्तनों के बीच."

फ़िर मैंने जल्दी से चाची की चड्डी उतारी. उनकी फूली बुर और गोल मटोल गोरे नितंब मेरे सामने थे. मैं झट से नीचे बैठ गया और पीछे से अपना चेहरा चाची के नितंबों में छुपा दिया. फ़िर उन्हें चूमने लगा. हाथ चाची के कूल्हों के इर्द गिर्द लपेट कर उनकी बुर सहलायी और बुर की लकीर में उंगली चलाई. बुर चू रही थी.

मेरे नितंब चूमने की क्रिया पर चाची ने मीठा ताना मारा. "लगता है चूतड़ों का पुजारी है तू लल्ला, सम्हल कर रहना पड़ेगा मुझे." मैं कुछ न बोला पर उन गोरे गुदाज चूतड़ों ने मुझे पागल कर दिया था. बस यही आशा थी कि अगले कुछ दिनों में शायद चाची मेहरबान हो जायें और मुझे अपने नितंबों का भोग लेने दें तो क्या बात है.

फ़िलहाल उन्होंने मेरे बाल पकड़कर मेरा सिर उठाया और घूम कर मेरे सामने खड़ी हो गयीं. मेरे सिर को फ़िर अपने पेट पर दबाते हुई बोलीं. "प्यार करना हो तो आगे से करो लल्ला, रस मिलेगा. पीछे क्या रखा है?" मैंने उनकी रेशमी झांटों में मुंह छुपाया और रगड़ने लगा. उन्होंने सिसकी ली और जांघे फैलाकर टांगें पसारकर वे खड़ी हो गयीं.

में उनके सामने ऐसा घुटने टेक कर बैठा था जैसे देवी मां के आगे पुजारी. प्रसाद पाने का मौका अच्छा था इसलिये मैं आगे सरककर मुंह उनकी जांघों के बीच डालकर चूत चूसने लगा. ऐसा रस बह रहा था जैसे नल टपक रहा हो. मैंने ऊपर से नीचे तक बुर चाट चाट कर और योनिद्वार चूस कर चाची की ऐसी सेवा की कि वे निहाल होकर कुछ ही देर में स्खलित हो गयीं. दो चार चम्मच और चिपचिपा पानी मेरे मुंह में उनकी चूत ने फेंका.

"चलो अब पलंग पर चलो लल्ला, वहां ठीक से चूसो. तेरी जीभ तो जादू कर देती है मुझ पर" कहकर चाची मुझे उठाकर खींचती हुई पलंग पर पहुंची और टांगें फैलाकर लेट गयीं. इस बार चाची ने मुझे सिखाया कि चूत को ज्यादा से ज्यादा सुख कैसे दिया जाता है.

"लल्ला, मेरी बुर को ठीक से देखो, क्या दिखता है." उन्होंने मेरे बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा. मैंने जवाब दिया. "चाची, दो मोटे मुलायम होंठ जैसे हैं, और उनके बीच में गीला लाल छेद है. खुल बंद हो रहा है और रस टपक रहा है." "हां बेटे, वे होंठ याने भगोष्ठ हैं, मेरे निचले मुंह के होंठ, और बोल क्या दिखता है." मैंने आगे कहा, "ऊपर भगोष्ठ जहां जुड़े हैं वहां एक बड़ा लाल अनार का दाना जैसा है और उसके नीचे एक जरा सा छेद."

"अब आया असली बात पर तू लल्ला. वह छेद मेरा मूतने का है. और वह दाना मेरा क्लिटोरिस है, मदन मणि, वही तो सारे फ़साद की जड़ है. इतना मीठा कसकता है मुआ, चुदासी वहीं से पैदा होती है. उसे चाटो लल्ला, चूमो, प्यार करो, मैं निहाल हो जाऊंगी."

मैंने अपनी जीभ को उस दाने पर घेरा तो वह थिरकने लगा. जरा और रगड़ा तो चाची ने चिहुक कर मेरा सिर कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और धक्के मारने लगी. मैंने खेल खेल में उसके मूतने के छेद पर जीभ लगायी तो वह मानों पागल सी हो गयीं. क्लिट को मैने थोड़ा और रगड़ा और चाची सिसक कर झड़ गयीं. अगले आधे घंटे तक मैंने उनकी खूब चूत चूसी और मदन मणि को चाट चाट कर के चाची को दो बार और झड़ाया.
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04-26-2019, 12:01 PM,
#13
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थोड़ा शांत होने पर उनका ध्यान मेरे उफ़नते लंड पर गया. उसे हाथ में लेकर वे बेलन जैसे बेलने लगीं तो मेरे मुंह से उफ़ निकल गयी. ऐसा लगता था कि झड़ जाऊंगा. "अरे राजा, जरा सब्र करना सीखो. ऐसे झड़ोगे तो दिन भर रास लीला कैसे होगी? चलो, अभी चूस देती हूं, पर फ़िर दो तीन घंटे सब्र करना. मैं नहीं चाहती कि तू दिन में तीन चार बार से ज्यादा झड़े"

"चाची, चोदने दो ना! चूस शाम को लेना" मैंने व्याकुल होकर कहा. "नहीं राजा, तू ही सोच, अगर अभी चोद लिया तो फ़िर बाद में मेरी चूत चूस पायेगा? अब तो तू चूत चूसने में माहिर हो गया है. मुझे भी घंटों तुझसे अपनी बुर रानी की सेवा करानी है." उन्होंने मेरी आंखों में आंखें डालकर पूछा. मैं निरुत्तर हो गया क्योंकि बात सच थी. चाची की बुर में झड़ने के बाद उसे चूसने में क्या मजा आता? सारा स्वाद बदल जाता.

चाची ने आगे कहा, "इसलिये दिन भर मुझे चोदना नहीं. रात को सोते समय चोदा कर. जब थोड़ा संभल जायेगा तो दिन में बिना झड़े चोद लिया कर. जब न रहा जाये तो मैं चूस दिया करूंगी." कहते हुए चाची ने मुझे पलंग पर बिठाया. खुद नीचे उतर कर मेरे सामने जमीन पर पलथी मारकर बैठ गयी और मेरी गोद में सिर झुकाकर मेरा लंड चूसने लगी. बहुत देर बड़े प्यार से सता सता कर, मीठी छुरी से हलाल कर उन्होंने मेरा चूसा और आखिर मुझे झड़ाकर अपना इनाम मेरे वीर्य के रूप में वसूल कर लिया.

अगली कामक्रीड़ा के पहले हम सुस्ता रहे थे तब गीता चाची फ़िर खेल खेल में मेरा मुरझाया लंड स्केल से नापने लगीं. "बस अढ़ाई इंच है अभी, कितना प्यारा लगता है ऐसे में भी, बच्चे जैसा." मैंने चाची से कहा. "गीता चाची, मेरा लंड तो नाप रही हैं, अपनी चूत भी तो नाप कर दिखाइये."

मेरी चुनौती को स्वीकर करके चाची उठकर दराज से एक मोमबत्ती निकाल लाईं. करीब एक इंच मोटी और फुट भर लंबी उस मोमबत्ती को हाथ में लेकर वे पलंग पर टांगें ऊपर करके बैठ गयीं और मेरी ओर देखते हुए मुस्कराकर मोमबत्ती अपनी चूत में घुसेड़ दी. आधी से ज्यादा मोमबत्ती अंदर समा गयी. जब मोमबत्ती का अंदर जाना रुक गया तो उंगली से उसे वहां पकड़कर उन्होंने बाहर खींच लिया और बोलीं. "ले नाप लल्ला"

मैंने नापा तो नौ इंच थी. "देखा लल्ला , कितनी गहरी है, अरे मैं तो तुझे अंदर ले लू, तेरे लंड की क्या बात है." शैतानी से वे बोलीं. मैंने कहा, "चाचीजी, लगता है रोज नापती हो तभी तो पलंग के पास दराज में रखी है." वे हंस कर बोलीं. "हां नापती भी हूं और मुठ्ठ भी मारती हूं. है जरा पतली है पर मस्त कड़ी और चिकनी है. बहुत मजा आता है. देखेगा?"

और मेरे जवाब की प्रतीक्षा न करके उन्होंने फ़िर मोमबत्ती अंदर घुसेड़ ली और उसका सिरा पकड़कर अंदर बाहर करने लगीं. "लल्ला देख ठीक से मेरे अंगूठे को." वे बोलीं. मैंने देखा कि मोमबत्ती अंदर बाहर करते हुए वे अंगूठा अपने क्लिटोरिस पर जमा कर उसे दबा और रगड़ रही हैं. लगता था बहुत प्रैक्टिस थी क्योंकि पांच ही मिनिट में उनका शरीर तन सा गया और आंखें चमकने लगीं. उनका शरीर थोड़ा सिहरा और वे झड़ गयीं. हांफ़ते हुए कुछ देर मजा लेने के बाद उन्होंने सावधानी से खींच कर मोमबत्ती बाहर निकाली. बोलीं. "तुझे दिखा रही थी इसलिये जल्दी की, नहीं तो आधा आधा घंटा आराम से मजा लेती हूं."
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04-26-2019, 12:01 PM,
#14
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मोमबत्ती पर चिपचिपा पानी लगा था. मुझसे न रहा गया और उनके हाथ से लेकर मैंने उसे चाट लिया. प्यार से चाची हंसने लगीं. मोमबत्ती वापस दराज में रखकर बोलीं. "चूत रस के बड़े शौकीन हो लल्ला. मैं तो यही मानती हूं कि सचमुच के मतवाले मर्द की यह पहचान है. आ जाओ मेरे पास, तुझे और रस पिलाऊं."

अपनी जांघों में मेरा मुंह लेकर वे लेट गयीं और प्यार से अपनी चूत चुसवायी. मैंने मन लगाकर प्यार से बहुत देर उनकी बुर के पानी का स्वाद लिया. इस बार मैंने उनके क्लिट पर खूब ध्यान दिया और उसे बार बार जीभ से रगड़ा. कई बार मुंह में लेकर अंगूर के दाने जैसा दांतों से हल्के काटा और चूसा. उनकी उत्तेजना का यह हाल था कि बार बार हल्के स्वर में चीख देती थीं. आखिर दो चार बार झड़कर वे भी तृप्त हो गयीं.

मेरा लंड उनकी बुर चूस कर फ़िर खड़ा हो गया था. उसकी ओर देखकर बोलीं. "अगर न झड़ने का वादा करते हो। लल्ला तो चोद लो दस मिनिट." मैं तैयार हो गया और उनपर चढ़ कर उन्हें चोदने लगा.

दस मिनिट बाद जब उन्होंने देखा कि मैं बराबर अपने स्खलन पर काबू किये हुए हूं तो वे बोलीं. "शाब्बास बेटे, चल तुझे दूसरा आसान दिखाती हूं. इसमें तुझे कुछ नहीं करना पड़ेगा." मुझे उन्होंने नीचे लिटाया और फ़िर मेरे ऊपर चढ़ कर बैठ गयीं. मेरा लंड अपनी बुर में घुसेड़ लिया और मेरी कमर के दोनों ओर घुटने टेक कर मेरे पेट पर बैठकर उचकते हुए मुझे चोदने लगीं.

उनके उछलते हुए स्तनों और उनके बीच डोलते मंगलसूत्र ने ऐसा जादू किया कि मेरा बुरी तरह तन्ना कर खड़ा हो गया. उनकी मखमली चूत ने भी मुझे कस कर पकड़ रखा था इसलिये चाची को भी मजा आ रहा था. मस्ती में वे खुद ही अपने मम्मे दबाने लगीं. मैंने इस नजारे का खूब मजा लिया और बाद में उन्हें आराम देने के लिये खुद ही उनके स्तन पकड़कर दबाने लगा.

चाची ने दो तीन बार झड़ने तक मुझे खूब चोदा. आखिर में जब मैं छटपटाने लगा तो वे समझ गयीं. तुरंत उतर कर मेरे ऊपर सिक्सटी नाइन के पोज़ में लेट गयीं. यहां मैं उनकी रिसती गीली बुर को चूसने लगा और वहां उन्होंने पहले मेरे पूरे लंड को चाट चाट कर उसपर लगा अपनी बुर का पानी साफ़ किया और फ़िर लंड मुंह में लेकर चूस डाला. वीर्य निकालकर उसे पी कर ही वे रुकीं.

मैंने उन्हें बांहों में लेकर कहा. "चाची, मुझे तो आपका रस अमृत जैसा लगता है. आप को खुद की चूत का पानी चाटना अटपटा नहीं लगता." वे बोलीं. "नहीं रे, बहुत अच्छा लगता है, मैं तो अक्सर उंगलियों से मुठ्ठ मारती हूं और बीच बीच में उन्हें चाट भी लेती हूं. सच में कभी कभी ऐसा लगता है कि मेरे जैसे ही कोई गरम जवान औरत मिल जाये तो एक दूसरे की चूत चूसने में बड़ा मजा आयेगा."
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04-26-2019, 12:01 PM,
#15
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चाची के इस मादक चुदैल स्वभाव की मैंने मन ही मन दाद दी. यह भी मनाया कि उनकी यह इच्छा जल्दी पूरी हो. दोपहर हो गयी थी और हम दोनों अब सो गये. सीधा शाम को पांच बजे उठे.

हमारा अब यही क्रम बन गया. दोपहर और रात को मन भर कर मैथुन करते थे. चाची मुझे सिर्फ़ रात को सोने के पहले आखरी चुदाई में अपनी चूत में झड़ने देती थीं. दिन में दो या तीन बार चूस लेती थीं. मैंने भी लंड पर कंट्रोल करके बिना झड़े घंटों चोदना सीख लिया. बड़ा मजा आता था. चुदाई के इतने आसन हमने आजमाये कि कोई गिनती नहीं. खड़े खड़े, गोद में बिठाकर, पीछे से इत्यादि.

उनमें चार आसन हमें बहुत पसंद आते थे. एक तो सीधा सादा मर्द ऊपर औरत नीचे वाली चुदाई का आसन. दूसरा जिसमें मैं नीचे लेटता था और चाची चढ़कर मुझे चोदती थी. तीसरा यह कि मैं कुर्सी में बैठ जाता था और चाची मेरी ओर मुंह करके मेरी गोद में अपनी चूत में मेरा लंड लेकर टांगें फैला कर बैठ जाती थीं और फ़िर ऊपर से मुझे हौले हौले मजा लेकर चोदती थीं. इस आसन की खास बात यह थी कि चाची की छातियां ठीक मेरे सामने रहती थीं और उन्हें मैं मन भर कर चूस सकता था. जब भी निपल चूसने का मन हो, हम यही आसन करते थे. ।

आखरी आसन जो हमें बहुत भा गया था वह था कुत्ते कुतिया या जानवर स्टाइल की पीछे से चुदाई. इसमें चाची कोहनियों और घुटनों को टेककर कुतिया जैसी बिस्तर पर जम जाती थीं. मैं पीछे से पहले उनकी बुर चाटता और फ़िर लंड डालकर उनके नितंब पकड़कर कचाकच धक्के लगाकर पीछे से कुत्ते जैसा उन्हें चोदता. इसमें धक्के बहुत जबरदस्त लगते थे इसलिये बड़ा मजा आता था. कभी कभी झुककर अपनी बांहों में चाची का शरीर भरकर उनपर चढ़ कर मम्मे दबाता हुआ मैं उन्हें चोदता. पांच मिनिट से ज्यादा वे मेरा भार नहीं सह पाती थीं पर इन पांच मिनिटों में हमे स्वर्ग सुख मिल जाता.

इस आसन की एक और खास बात यह थी कि हम अक्सर इसे आइने के सामने करते. आइने में चाची के लटकते स्तन और उनके बीच लटकता मंगलसूत्र बड़े प्यारे दिखते. जब मैं धक्के लगाता तो चाची के स्तन इधर उधर हिलते.


मंगलसूत्र भी चोदने की लय में पेंडुलम जैसा डोलता. कभी कभी तो मैं इतना उत्तेजित हो जाता कि झड़ जाता. फ़िर चाची को बुर धोने जाना पड़ता जिससे फ़िर रात के पहले बाकी समय में मैं उनकी बुर चूस सकें. इसलिये यह आसन हम सम्हाल कर कभी कभी ही करते.
चूत और लंड चूसने के भी हमने खूब तरीके ढूंढ निकाले. लंड चूसना तो किसी भी आसन में मुझे बहुत अच्छा लगता था. कभी लेट कर, कभी कुर्सी में बैठकर, कभी खड़े खड़े. हां कभी कभी चाची मुझे अपने मुंह को चूत जैसा चोदने देती थीं.
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04-26-2019, 12:01 PM,
#16
RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
इस आसन में वे नीचे लेट जातीं और मैं उनके खुले मुंह में जड़ तक लंड उतार देता. फ़िर उनपर लेट कर हाथों से उनके सिर को पकड़कर उसे घचाघच चोदता. चाची के गले तक मेरा लंड उतर जाता और उस कोमल गीले गले में सुपाड़ा चलता तो बिलकुल ऐसा लगता जैसे किसी सकरी चूत को चोद रहा हूं.

झड़ने पर वीर्य भी सीधा उनके हलक में जाता. इसीलिये यह आसन वे कम करने देती थीं. एक तो उनका गला भी थोड़ा दुखता, दूसरे वीर्य सीधा पेट में जाने से वे उसका स्वाद नहीं ले पाती थीं जबकि जीभ पर वीर्य लेकर उसे स्वाद ले लेकर धीरे धीरे खाना उन्हें बहुत अच्छा लगता था.

चूत चूसने के तो कई मस्त आसन थे. पहला यह कि चाची को पलंग पर लिटा कर उनकी निचली जांघ का तकिया बनाकर मैं चूत चूसता. वे ऊपरी जांघ मेरे सिर पर रखकर मेरे सिर को दोनों जांघों में दबोच लेतीं और हाथों से मेरा सिर पकड़कर अपनी चूत पर दबा कर मुझसे चुसवातीं. इस आसन में वे अक्सर अपनी टांगें ऐसे फ़टकारतीं जैसे साइकिल चला रही हों. उनकी सशक्त जांघे कभी कभी इतनी जोर से मेरे सिर को जकड़ लेतीं कि जैसे कुचल डालेंगी. दर्द भी होता पर उन मदमस्त चिकनी जांघों में गिरफ्त होने का सुख इतना प्यारा था कि मैं दर्द को सहन कर लेता.

कभी कभी वे कुर्सी में बैठ कर टांगें पसार देतीं और मैं जमीन पर उनके सामने बैठ कर चूत चूसता. मेरे बालों में वे प्यार से उंगलियां फेरती रहतीं. यह बड़ा आराम का आसन था. खड़े खड़े चुसवाने में भी उन्हें मजा आता था. वे टांगें फैलाकर दीवार से टिककर खड़ी हो जातीं और मैं उनके बीच बैठकर मुंह उठाकर उनकी बुर चूसता रहता.

हर आसन में मैं उनकी बुर में अक्सर जीभ डालता. पर जब उन्हें जीभ से चुदने का शौक चर्राता, वे एक खास आसन का इस्तेमाल करती थीं. मैं पलंग पर लेटकर जीभ जितनी हो सकती थी उतनी बाहर निकाल देता और कड़ी कर लेता. मेरे सिर पर बैठकर वे जीभ बुर में ले लेतीं और फ़िर ऊपर नीचे होकर उसे लंड सा चोदतीं. पांच मिनिट से ज्यादा मैं नहीं यह कर पाता था क्योंकि जीभ दुखने लगती थी. पर चाची को इतना मजा आता था कि एक दो मिनिट को जीभ को आराम देकर मैं फ़िर उसमें जुट जाता. इस आसन में रस खून निकलता था जो सीधा मेरी जीभ पर टपकता था.
और जब चाची मुझे हस्तमैथुन करके दिखातीं तो मैं तो वासना से पागल हो जाता. यहां तक कि एक दो बार न रहकर मैंने मुट्ठ मार ली और चाची नाराज होकर लाल पीली हो गयीं. उसके बाद वे पहले मेरे हाथ पैर बांध देतीं और फ़िर बाद में अपनी हस्तमैथुन कला मुझे दिखातीं. इसकी शुरुवात एक दिन दोपहर को तब हुई जब चाची ने दो उंगलियां अपनी बुर में घुसेड़ कर मुठ्ठ मार कर मुझे दिखायी. मेरी खुशी देखकर उन्हें और तैश आया. "रुक लल्ला, अभी आती हूँ" कहकर वे रसोई में चली गईं.
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04-26-2019, 12:02 PM,
#17
RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
वापस आयीं तो हाथ में एक मोटा गाजर और दो तीन बैंगन थे. मुस्कराते हुए वे वापस पलंग पर चढ़ीं और फ़िर गाजर अपनी चूत में डाल कर उससे मुठ्ठ मारकर दिखाई. लाल लाल मोटा गाजर उस नरम नरम चूत में अंदर बाहर होता देखकर मैं ऐसा उत्तेजित हुआ कि पूछो मत. मेरी खुशी देखकर वे हंसते हुए बोलीं. "यह तो कुछ नहीं है। लल्ला, अब देखो तमाशा." कहकर उन्होंने बैंगन उठा लिये. वे लंबे वाले बैंगन थे. पर फ़िर भी बहुत मोटे थे. मेरे लंड से दुगने मोटे होंगे. और फुट फुट भर लंबे थे.

"कभी सोचा है लल्ला कि इस घर में बैंगन की सब्जी इतनी क्यों बनती है?" उन्होंने शैतानी से बैंगनों को उलट पलट कर देखते हुए पूछा. मैं वासना से ऐसे सकते में था कि कुछ नहीं कह सका. आखिर चाची ने एक चुना. दूसरे


या तो ज्यादा ही टेढ़े थे या दाग वाले थे. उन्होंने जो चुना वह एकदम चिकना फुट भर लंबा होगा. नीचे से वह एक इंच मोटा था और धीरे धीरे बीच तक उसकी मोटाई तीन इंच हो जाती थी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि चाची उस मोटे बैंगन को अपने शरीर के अंदर ले लेंगी. मैंने वैसा कहा भी तो गीता चाची हंसने लगीं.

"मैंने कहा था ना लल्ला कि मेरी चूत तो तुझे भी अंदर ले ले. अरे औरत की चूत को तू नहीं जानता. जब बच्चे का सिर निकल जाता है तो इस बैंगन की क्या बात है." कहकर उन्होंने डंठल को पकड़कर धीरे धीरे बैंगन अपनी चूत में घुसेड़ना शुरू किया. तीन चार इंच तो आराम से गया. फ़िर वे रुक गयीं और बड़ी सावधानी से इंच इंच करके उसे और अंदर घुसाने लगीं. मैं आंखें फ़ाड़ कर देखता रह गया. अंत में नौ इंच से ज्यादा बैंगन उन्होंने अंदर ले लिया. चूत अब बिलकुल खुली थी. उसका लाल छल्ला बैंगन को कस कर पकड़ा था. ऐसा लगता था कि फ़ट जायेगी.

पर चाची के चेहरे पर असीमित सुख था. आंखें बंद करके कुछ देर बैठा रहीं. फ़िर धीरे धीरे बैंगन अपनी चूत में अंदर बाहर करने लगीं. कुछ ही देर में उनकी स्पीड बढ़ गयी. चूत भी अब इतनी गीली हो गयी थी कि बैंगन आराम से सरक रहा था. पांच मिनिट बाद तो वे सटासट मुट्ठ मार रही थीं. दूसरे हाथ की उंगली क्लिट को मसल रही थी. यह इतना आकर्षक कामुक नजारा था कि मैं भी मुट्ठ मारने लगा. वहां चाची झड़ीं और यहां मैं.

झड़ने के बाद में वे बहुत नाराज हुईं, यहां तक कि मुझे एक करारा तमाचा भी जड़ दिया. शायद और मार पड़ती पर मैंने कम से कम इतनी होशियारी की थी कि झड़ कर वीर्य को गिरने नहीं दिया था बल्कि अपनी बांयी हथेली में जमा कर लिया था. चाची ने उसे चाट लिया और तब तक उनकी बुर से बैंगन निकालकर उसे मैंने चाट डाला. उस रात उसी बैंगन की सब्जी बनी, यह बात अलग है.

पर उसके बाद चाची मुझे कुरसी में बिठाकर हाथ पैर बांध करके ही सब्जियों और फ़लों से मुठ्ठ मार कर दिखातीं. कोई चीज़ उन्होंने नहीं छोड़ी. ककड़ी, छोटी वाली लौकी, केले, मूली इत्यादि. छिले केले से हस्तमैथुन करने में एक फ़ायदा यह था कि मुठ्ठ मारने के बाद उनकी चूत में से वह मीठा चिपचिपा केला खाने में बड़ा मजा आता था. पर चाची केला ज्यादा इस्तेमाल नहीं करती थीं क्योंकि धीरे धीरे संभल कर हस्तमैथुन करना पड़ता था नहीं तो केला टूट जाने का खतरा रहता था.
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04-26-2019, 12:02 PM,
#18
RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
चाची ने बस एक जुल्म मुझ पर किया. उन शुरुवात के दिनों में एक भी बार गुदा मैथुन नहीं करने दिया जिसके लिये मैं मरा जा रहा था. उनके गोरे मुलायम मोटे मोटे चूतड़ों ने मुझ पर जादू कर दिया था. अक्सर कामक्रीड़ा के बाद वे जब पट पड़ी आराम करतीं, मैं उनके नितंबों को खूब प्यार करता, उन्हें चूमता, चाटता, मसलता यहां तक कि उनके गुदा पर मुंह लगाकर भी चूसता और कभी कभी जीभ अंदर डाल देता. वह अनोखा स्वाद और सुगंध मुझे मदहोश कर देते.

चाची मेरी गांड पूजा का मजा लेती रहतीं पर जब भी मैं उंगली डालने की भी कोशिश करता, लंड की बात तो दूर रही, वे बिचक जातीं और सीधी होकर हंसने लगतीं. मेरी सारी मिन्नतें बेकार गयीं. बस एक बात पर मेरी आशा बंधी थी, उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि कभी गांड मारने नहीं देंगी. बस यही कहतीं. "अभी नहीं लल्ला, तपस्या करो, इतना बड़ा खजाना ऐसे ही थोड़े दे दूंगी."

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दूसरे दिन हम तीनों नहा धो कर बस दोपहर की राह देख रहे थे कि कब नौकरानी घर जाये और कब हम हमारे खेल शुरू करें. प्रीति बार बार चाची से चिपटने का बहाना देख रही थी. मेरी ओर भी कनखियों से देख रही थी और मुस्करा रही थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी. जान बूझकर एक छोटा स्कर्ट और एकदम तंग ब्लाउज़ पहन कर घूम रही थी जिसमें से उसकी टांगें और मम्मे साफ़ दिख रहे थे. चाची ने कई बार आंखें दिखा कर हमें डांटा पर वे भी मंद मंद मुस्करा रही थीं. अब तो उनके भी वारे न्यारे थे. दो एकदम किशोर चाहने वाले, एक लड़का याने मैं और एक लड़की याने प्रीति उनके आगे पीछे घूम रहे थे. खट्टे और मीठे दोनों स्वादों का इंतजाम था उनके लिये.
आखिर नौकरानी घर गयी और हमने दौड़ कर चाची के कमरे में घुस कर दरवाजा लगा लिया. प्रीति तो जाकर चाची की बांहों में समा गयी और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगीं. चाची उसे कस कर पकड़े हुए सोफे पर बैठ गयी और मुझे भी अपने पास बैठा लिया. अब वे कभी प्रीति के चुंबन लेतीं कभी मेरे. आखिर पूरा गरम होने के बाद वे उठीं और कपड़े उतारने लगीं. हमें भी उन्होंने नंगे होने का आदेश दिया.
मैं तो तुरंत नंगा हो गया. तन कर खड़े और उछलते मेरे लंड को देखकर प्रीति होंठों पर जीभ फेरने लगी. वह थोड़ी शरमा रही थी इसलिये धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी. चाची अब तक साड़ी चोली उतार कर अर्धनग्न हो गयी थीं. उनके ब्रा और पैंटी में लिपटे मांसल बदन को देखकर प्रीति पथरा सी गयी. उनकी ओर घूरती हुई अनजाने में अपने हाथ से अपनी चूत स्कर्ट पर से ही रगड़ने लगी.
चाची उसके पास गयीं और प्यार से धीरे धीरे उसका स्कर्ट और टॉप निकाला. अंदर प्रीति एक बड़ी प्यारी सी कॉटन की सिंपल सफ़ेद ब्रा और चड्डी पहने थी. अधखिले उरोज ब्रा में से झांक रहे थे. उस कच्ची कली के छरहरे गोरे बदन को देखकर हम दोनों ऐसे गरम हुए कि समझ में नहीं आ रहा था कि कौन किसे पहले भोगे. हम दोनों उस लड़की से लिपट गये और उसके बदन को हाथों से सहलाते हुए और दबाते हुए उसे चूमने लगे. कभी मैं उसके लाल होंठ चूसता तो कभी चाची. झुक कर कभी उसका पेट चूम लेते तो कभी गोरी पतली जांघे.
चाची ने आखिर पहल की और अपनी ब्रा और पैंटी उतार फेंकी. बोलीं. "प्रीति बिटिया, तू नयी है इसलिये यहां बैठकर हमारा खेल देख़ अपने आप समझ जायेगी कि कैसे क्या करना है." प्रीति को एक कुर्सी में बिठा कर वे मेरे पास आयीं और हमारी रति लीला आरंभ हो गयी.
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04-26-2019, 12:02 PM,
#19
RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
हमने सब कुछ किया. मैंने पहले कई तरह से चाची की बुर चूसी और फ़िर उन्हें तरह तरह से चोदा. यह देख देख कर प्रीति सिसकियां भरती हुई अपनी ही छातियां दबाने लगी और पैंटी पर चूत को रगड़ने लगी. आखिर उससे नहीं रहा गया और उसने भी अपने अंतर्वस्त्र उतार दिये. पूर्ण नग्न कमसिन गोरा शरीर ऐसा फ़ब रहा था जैसे रसीली कच्ची गुलाब की कली. लगातार वह अपनी गोरी बुर रगड़ती हुई टांगें हिला हिला कर हस्तमैथुन करने लगी.
पीछे से जब मैं चाची को चोद रहा था तो इस आसन को देख कर तो प्रीति ऐसी तुनकी कि उठकर हमारे पास आ गयी और चाची की लटकती चूचियां दबाती हुई उन्हें जोर जोर से चूमने लगी. बड़ी मुश्किल से चाची ने उसे वापस भेजा नहीं तो भांजी मौसी के उस चुंबन को देखकर मैं जरूर झड़ जाता.
जब मैं झड़ने के करीब आ गया तब चाची ने खेल रोका. वे कई बार स्खलित हो चुकी थीं. मुझे कुर्सी में बिठाकर मेरे चूत रस से गीले लंड को हाथ में लेकर चाटती हुई बोलीं. "अब आ जा बिटिया, तुझे लंड चखाऊ, बड़ा रसीला प्यारा लंड है मेरे भतीजे का, एजदम शिवजी का लिंग समझ ले."
प्रीति झट से पास आकर उनके साथ मेरे सामने बैठ गयी. चाची बड़े प्यार से लंड चूस रही थीं और उस पर लगा अपनी ही बुर का पानी चाट रही थीं. "ले, तू भी चाट, पकड़ ना पगली, काटेगा थोड़े!" उन्होंने हंस कर कहा. प्रीति ने मेरा लौड़ा कांपते हाथों पकड़ा और चाटने लगी. उसकी उस छोटी सी गरम गरम जीभ ने मुझे वह सुख दिया कि मैं और तड़प उठा.
"लड़का बस झड़ने को है रानी. देख, मैं कैसे चूसती हूं, तू भी वैसे ही चूस, मलाई निकलेगी तब देखना क्या स्वाद आता है." कहकर चाची ने मुंह खोला और पूरा लौड़ा निगल कर उसे चूसने लगी. छह सात इंच के मोटे लंड को आसानी से निगला देखकर प्रीति उनकी ओर आश्चर्य से देखने लगी. चाची मुंह से मेरा लंड निकाल कर बोलीं. "ले अब तू चूस. दांत नहीं लगाना"
उसने मुंह पूरा खोला और सुपाड़ा तो अंदर ले लिया पर और नहीं निगल पायी. पर मजे ले लेकर चूसने लगी. "अरे और ले मुंह में" चाची ने कहा पर कोशिश कर के भी वह किशोरी बस दो तीन इंच ही और निगल पायी. फ़िर दम घुटने से गोंगियाने लगी. चाची बोली. "पहली बार है, सिखाना पड़ेगा, चल ऐसे ही चूस"
उसके उस कोमल मुंह ने ऐसा जादू किया कि मैं तड़प उठा. चाची प्रीति को बोलीं. "देख बिटिया, अब अनिल झड़ेगा तो एक भी बूंद बाहर नहीं निकले. पूरा निगल जाना." प्रीति ने समझ कर मुंडी हिलाई और चूसती रही. अगले ही क्षण मैंने हुमक कर उसका सिर पकड़ लिया और उसके मुंह में झड़ गया. पहले तो वह सकपकायी पर फ़िर संभल कर आंख बंद कर के मेरा वीर्य पीने लगी. लगता है कि उसे वह बहुत भा गया क्योंकि एक एक बूंद निचोड़ कर लंड को पूरा शिथिल करके ही उसके मुंह से निकाला.
"कैसा लगा रानी" चाची ने आंख मार कर पूछा. प्रीति आंखें मटकाती हुई बोली. "वाह मौसी, मजा आ गया. तभी तुम इतनी खुश लग रही थीं. अकेले इस मलाई पर ताव मारती रहीं. अब सिर्फ़ में पिऊंगी." "चल हट पगली, दोनों मिल कर चखेंगे, पर अब पहले पूरा मुंह में लेना सिखाती हूं चल." कहकर चाची उठकर एक बड़ा केला ले आई. उसे छीलते हुए प्रीति को सोफ़े पर बिठाया और उसके पास बैठकर मुझे बोलीं. "लल्ला, मैं इसे सिखाती हूं तब तक तू भी इसकी कुंवारी बुर का स्वाद ले ले. मैंने तो कल रात भर चखी है, बहुत मस्त माल है राजा."
मुझे और क्या चाहिये था. तुरंत जमीन पर प्रीति के सामने बैठकर मैने उसकी गोरी जांघे अलग कीं और उन्हें प्यार से चूम लिया. फ़िर मन भर कर उस गुलाबी गोरी कमसिन चूत को पास से देखा. उंगली से फैला कर पूरा मुआयना किया, उसके जरा से मटर के दाने जैसे क्लिट पर जीभ लगाकर उसे हुमकाया और फ़िर मुंह लगाकर उस कच्ची चूत को चूसने लगा. रस पहले ही चू रहा था, मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा, जल्द ही वह कुंवारी कन्या मेरे मुंह में स्खलित हो गयी और उसकी बुर अपना अमृत मेरे मुंह में फेंकने लगी.
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04-26-2019, 12:02 PM,
#20
RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
उधर चाची ने उसे पूरा मुंह खोलने को खा और धीरे धीरे पूरा केला उसके मुंह में डाल दिया. "पूरा गले तक ले अंदर बिटिया. दांत नहीं लगना चाहिये." पहली बार आधा केला ही प्रीति ले पायी और फ़िर खांसने लगी. केला बाहर निकाल कर उसे शांत करके चाची ने फ़िर उसे प्रीति के गले गले में उतारा. इधर मैं लगातार उसकी चूत चूस कर रसपान कर रहा था.
दस मिनिट में ही लड़की सीख गयी. आराम से आठ इंच का केला गले तक निगलकर जब बिना रुके पांच मिनिट चूसती रही तब चाची ने आखिर उसे निकाला और अपनी शिश्या को शाबासी दी. "बहुत अच्छे प्रीति, अब अगली बार ऐसा ही करना, देख कितना मजा आयेगा."


प्रीति के थूक से केला गीला और चिपचिपा हो गया था. मेरे मुंह में पानी भर आया. मेरी ललचायी आंखें देखकर चाची हंसने लगीं. "घबरा मत, यह मिठाई दोनों मिलकर खायेंगे." और हम दोनों ने प्रीति के मुखरस से सराबोर वह केला बड़े चाव से बांट कर खाया. मेरा लंड अब तक फ़िर खड़ा हो गया था. मैं मन ही मन सोच रहा था कि इस कच्ची कली को चोदने मिले तो मजा आ जाये. पर मैं कुछ न बोला. डरता था कि कन्या कहीं बिचक न जाये.
प्रीति अब गीता चाची से लिपट कर उनका एक निपल चूसते हुए उनका स्तन दबाने लगी. "गीता मौसी, अब चलो ना, अपनी चूत तो चुसवाओ, देखो मैं कब से प्यासी हूं." "अरे अनिल से चुसवा कर अभी मन नहीं भरा तेरा?" चाची ने उसके बाल चूमते हुए कहा. "अनिल भैया ने तो मुझे और गरम कर दिया है. आपके आगोश में ही अब यह आग बुझेगी." उस चुदासी से भरी कली ने फ़िल्मी डायलांग मारा.
मैं समझ गया कि चुपचाप बैठने की बारी मेरी थी. चाची मुझे बोलीं. "तू अब आराम से बैठ. इस प्यारी बच्ची को जरा दिखा दें कि मौसी का प्यार क्या होता है." कुर्सी में बैठ कर अपने सोंटे को सहलाता हुआ मौसी-भांजी की रति क्रीड़ा देखने लगा. दोनों आपस में लिपट कर पलंग पर लेट गईं.
---
अगले एक घंटे में मानों मैंने जन्नत का नजारा देख लिया. गीता चाची की भरी पूरी परिपक्व जवानी और उस किशोर कमसिन लड़की का अधखिला लड़कपन, दोनों मिलकर कामदेव की पूजा करने लगे. हर तरह के खेल उन्होंने खेले. चुंबन, जीभ लड़ाना, स्तन मर्दन, चूत चुसाई इत्यादि इत्यादि.
पहले तो प्रीति मचली कि ठीक से अपनी मौसी की बुर देखेगी और चूसेगी. गीता चाची टांगें फैलाकर लेट गई और प्रीति झुक कर बड़े चाव से उनकी रिसती चूत को पास से देखने और चाटने लगी. "हाय मौसी, कितना गाढ़ा है तेरा पानी, शहद जैसा लगता है."
यहां यह बता दें कि चाची की बुर से जो रस बहता है वह अक्सर सफ़ेद रंग का और गाढ़ा चिपचिपा होता है. प्रीति भी उस पर फ़िदा हो गयी थी. मन भर कर उसने अपनी मौसी की चूत चाटी और चाची के सिखाने पर मुंह में भगोष्ठ लेकर आम जैसा चूसा. चूत सेवा करते हुए वह लगातार चाची की घनी काली झांटों से खेल रही थी. एक बार मुंह उठ कर पूछा भी. "मौसी, मेरी झांटें तो हैं ही नहीं, कब तेरे जैसी होंगी?"
फ़िर अपनी लाड़ली भांजी की टांगें फैलाकर चाची ने उसकी कुंवारी चूत की पूजा की, अपनी जीभ और होंठों से. उसे समझाया "बस तीन चार सालों में देख तेरी झांटें कैसी हो जायेंगी मेरी रानी. डर मत, हमारे यहां सब औरतों की घनी झांटें हैं, यह हमारे खून में ही है. मेरी बड़ी बहन की, अपनी मां की नहीं देखीं कभी? मैंने तो बचपन में खूब देखी हैं नहाते वक्त" नटखट सवाल किया चाची ने और फ़िर कुंवारी पूजा में लग गयी.
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