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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
कब तक चोदोगे मेरी माँ ?
अरे यार, ये भोषड़ी का मेरा बॉस पिछले दो साल से मेरी माँ चोद रहा है . मैं बार बार इससे रेकुएस्ट करती हूँ लेकिन यह हर बार कोई न कोई बहाना बना देता है . कितनी बार यह मुझसे कह चूका है की कुछ दिन और रुक जाओ रेणुका, मैं जल्दी ही तेरा ट्रांसफर करवा दूंगा . मैंने कहा तुम कब तक चोदोगे मेरी माँ ? उसने कहा यार थोडा और सब्र करो काम जल्दी ही हो जायेगा .
मैं इसी उम्मीद में अपनी माँ चुदवाये जा रही हूँ . और वह साला, बहन चोद, चोदो चला जा रहा है . इसको साले को बिना मेरा काम किये हुए मेरी माँ चोदने का शौक लग गया है . रोज़ रोज़ कोई न कोई नया काम पकड़ा देता है मुझे ? . मुझको तो लगता है कहीं साला किसी दिन अपना लौड़ा न पकड़ा दे मुझे ? अभी तो वह मेरी माँ चोद रहा है . कहीं किसी दिन वह मेरी भी न चोदना शुरू कर दे ? कितना मादर चोद है मेरा बॉस ? बड़ा हरामी है . मेरी सहेली स्तुति कह रही थी तेरा बॉस लड़कियां चोदने में बड़ा एक्सपर्ट है . मैंने उससे कहा देखो डियर मैं कोई कम नहीं हूँ . मुझसे अगर उसने ज्यादा तीन पांच किया तो उसके लिए यह अच्छा नहीं होगा ? अभी तो वो मेरी माँ चोद रहा है कल मैं उसकी माँ चोदूंगी .
एक दिन मैंने ऑफिस में ही हंगामा कर दिया . मुझे किसी काम से बुलाया बॉस ने . मैं उसके कैबिन में चली गयी . मैंने वहीँ पर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा देखिये सर, आज आप मेरे काम के लिए बात कीजिये नहीं तो मैं अभी शोर मचाती हूँ . लोगों से कहूँगी इसने मेरे साथ बलात्कार करने की कोशिश की . विक्रम नाम है मेरे बॉस का मैंने कहा देखो विक्रम जी मैं अभी चुप हूँ अगर आपने अब मेरा काम नहीं किया तो कल से मैं तेरी गांड मारना शुरू कर दूँगी . वह थोडा घबरा गया . मैं कैबिन से बाहर चली आयी .
शाम को मैं उसके घर भी चली गयी . मैंने कहा सर मैं पहली बात तो माफ़ी मांगने आयी हूँ . आज जो भी ऑफिस में हुआ वह गुस्से के कारन था . मैं जानती हूँ की आप मेरा काम जरुर करेंगें लेकिन इंतज़ार करने की भी एक लिमिट होती है .
उसने कहा :- देखो रेणुका घबडाने की कोई जरुरत नहीं है . दरअसल मैं इस बात से परेशान हूँ की तुम्हारे जाने के बाद मैं बिलकुल अपंग हो जाऊंगा . जो काम तुम करती हो वह कोई और नहीं कर सकता . मेरा सारा फ्यूचर बर्बाद हो जायेगा . मैं तुम्हे अभी ६ महीने तक नहीं छोड़ सकता ?
मैंने कहा :- सर, मैं आपके साथ ६ महीने तक रुक जाऊंगी लेकिन मेरा आर्डर तो जाये न . मुझे तसल्ली तो हो जाये की मेरा ट्रांसफर हो गया है .
बॉस बोला :- क्या तुम समझती हो की मैं आपके लिए कोशिश नहीं कर रहा हूँ ?
मैंने कहा :- सर, मैं कैसे समझू जब कुछ हो नहीं रहा है .
बॉस ने कहा अच्छा रेणुका तुम बैठो मैं अभी आता हूँ . वह अन्दर गया और एक फाईल लेकर आ गया . उसने वह फाईल मुझे दिखाता हुआ बोला देखो रेणुका इसमें क्या लिखा हुआ है . मैंने जब फाईल देखा तो मेरे पैरों के तले से ज़मीन निकल गयी . वह मेरा ही ट्रांसफर आर्डर था वो भी प्रमोसन के साथ . मुझे सीनिअर मेनेजर बना कर भेजा जा रहा था . मैं पानी पानी हो गयी . मैं बॉस के आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी . मेरी आँखों से आंसू निकल रहे थे . मैंने कहा सर मुझे माफ़ कर दीजिये , मैंने आपको बहुत गन्दा कह दिया . मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ . बॉस बोला नहीं तुम्हे शर्मिंदा होने की कोई जरुरत नहीं है . तुम्हारी जगह कोई भी होता तो यही करता जो तुमने किया .
मैंने कहा :- सर अब आप बताईये मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ .
बॉस मजाक करते हुए बोला :- बस मुझे वही प्यारी प्यारी गालियाँ सुना दो . लेकिन ऐसे नहीं पहले कुछ खा लो . पी लो . खुश हो जाओ . मूड बदल लो फिर गालियाँ सुनाओ . बोलो क्या पियोगी ?
मैंने कहा :- सर वैसे तो मैंआपका बहुत कुछ पियूंगी लेकिन अभी मुझे व्हिस्की पिला दो प्लीज .
मैं बॉस के साथ बैठ कर व्हिस्की पीने लगी
.थोडा नशा चढ़ा तो मैं गालियाँ सुनाने :- तू साला मादर चोद बहन के लौड़े भोषड़ी वाले कब तक मेरी माँ चोदेगा ? कब तक तू मेरी गांड मारेगा साले हरामजादे ? तेरी माँ का भोषडा ? तेरी माँ की चूत ? गांडू, तेरा लण्ड काट के कुत्तों को खिला दूँगी . साले मैं तेरी इतनी धज्जियाँ उड़ा दूँगी की कोई भी अपना लण्ड तेरी गांड में नहीं पेलेगा भोषड़ी .के . मैं तेरी गांड में घुसा दूँगी गधे का लण्ड . तेरी भी फटेगी गांड और तेरी माँ की भी . तू मेरी एक झांट भी टेढ़ी नहीं कर पायेगा . तेरे लण्ड का छिलका निकाल कर उसके टुकड़े टुकड़े कर दूँगी . अब अगर तूने किसी की माँ चोदी तो उससे पहले मैं तेरी माँ चोद दूँगी .
बॉस ने तालियाँ बजाई और मेरा हौसला बढाया .गाली सुनाते सुनाते मैं अन्दर से गरम हो गयी .
मैंने पूंछा :_ सर मुझे मालूम हुआ की आप लड़कियों के शौक़ीन है . आप लड़कियां चोदते है .
उसने कहा :- तुम्हे किसने बताया यह बात ?
तब मैंने खुल करके कहा :- मेरी दोस्त स्तुति ने .
बॉस बोला :- हां मैं स्तुति को चोदना चाहता हूँ लेकिन वह मेरे हाथ नहीं आ रही है .?
मैंने कहा :- क्या मैं बुरी लगती हूँ आपको ? क्या मुझ में कोई कमी है ? क्या स्तुति मुझे से ज्यादा सुन्दर है ? उसने कहा :- नहीं ऐसी बात नहीं है ? लेकिन तुमसे डर लगता है .तेरे नाम से मेरी गांड फट जाती है .
मैंने कहा :- क्यों मजाक करते हो . गांड तो मेरी फट रही है यह कहने में की मैं तुम्हे चाहने लगी हूँ . जानते हो सर मैंने व्हिस्की क्यों मांगी आपसे ? मैंने इसलिए मांगी की मैं हिम्मत कर सकू यह कहने के लिए की मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ और तेरा लण्ड पकड़ना चाहती हूँ . तुमसे चुदवाना चाहती हूँ सर, प्लीज मेरी इच्छा पूरी कर दो सर ?
बॉस बोला :- वाओ, आज मैं वाकई बहुत खुश हूँ . मुझे तो सब कुछ बिना मांगे ही मिल रहा है ?
मैंने कहा :- सर, आपने मुझे मेरा ट्रांसफर आर्डर दिया है, मेरा प्रमोसन दिया है . अब मैं तुम्हे अपनी "बुर" दूँगी ?
ऐसा कह कर मैं बॉस से लिपट गयी . वह मेरे बदन पर हाथ फेरने लगा . उसका हाथ सबसे पहले मेरी गांड पर गया . मेरे चूतड सहलाने लगा . फिर धीरे धीरे मेरी चूंचियों पर चलने लगा . मेरी चुम्मी लेने लगा . मेरी गाल चूमने लगा बॉस और अपनी ओर खींच कर दबाने लगा मुझे .फिर मुझे उठाकर बेड रूम ले गया . मुझे लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ बैठा . उसके बाद उसने मेरे कपडे उतारने शुरू इए , मैंने कोई ऐतराज़ नहीं जताया . उसने मेरी साड़ी खोल दी . मेरा ब्लाउज निकाल फेंका फिर मेरी ब्रा खींच कर उतार दिया . मेरी चूंचियां उसके सामने बिलकुल नंगी हो गयी ,. मैं उससे नंगी होती रही . मुझे नंगी होना अच्छा लग रहा था . आखिर में उसने मेरे पेटीकोट का नाडा भी खोल डाला . जैसे ही पेटीकोट बाहर हुआ मैं मादर चोद बिलकुल नंगी हो गयी . उसने मेरी चूंचियां पर हमला बोल दिया . चूंचियां चूमने लगा . चूसने लगा . फिर मुझे भी काफी जोश आ गया ,. मैं उठी और उसके कपडे उतारने लगी . कमीज उसकी बनियायिन सब खोल डाला . उसकी पैंट खोल दी और अंत में चड्ढी भी . उसका लण्ड खड़ा था . मेरी नज़र जैसे ही लण्ड पर पड़ी मेरा मन खुश हो गया . लण्ड मेरे मन का निकला . मैंने उसे पकड़ कर हिलाया तो वह पूरी तरह खड़ा हो गया .
मैंने कहा :- सर, लण्ड तो आपका बड़ा मस्त है, लम्बा चौड़ा है और सख्त है . अब मुझे मालूम हुआ की तुम लड़कियों की बुर क्यों चोदते हो ?
उसने कहा :- अच्छा बताओ मैं क्यों चोदता हूँ लड़कियों की बुर ?
मैंने कहा :- अपने लण्ड को खुश करने के लिए . तेरा लण्ड इतना बढ़िया है इसे बुर की बहुत जरुरत है . इतना सख्त लण्ड खड़ा होने पर बुर में नहीं घुसेगा तो कहाँ जायेगा ?
वह बोला :- तू भोषड़ी की बातें बड़ी सेक्सी करती है . तुझसे बात करने में लण्ड अपने आप खड़ा हो जाता है .
मेरी नज़र लण्ड पर टिक गयी . मैं उसे घुमा घुमा कर चारों तरफ से देख रही थी . बड़ा प्यारा लग रहा था उसका लण्ड . मेरी चूत तो अब भट्टी हो चुकी थी . लण्ड मैंने चूत में नहीं मुह में पेल लिया और चूसने लगी लण्ड . मैंने सोचा की ऐसा लण्ड बार बार नहीं मिलता ? मुझे तो लण्ड के साथ पेल्हड़ भी चाटने में मज़ा आने लगा . मैंने धीरे से अपनी गांड बॉस की तरफ कर दी . वह समझ गया और मेरी चूत चाटने लगा . मुझे अपने बॉस को चूत चटाते हुए बड़ा गर्व महसूस हो रहा था .
मैंने आज सवेरे ही झाटें बनाई थी .मेरी चिकनी चूत ने माहौल गरम कर दिया था . बॉस की छोटो छोटी झांटें भी बहुत खूबसूरत लग रही थी . इतने में विक्रम (बॉस) ने करवट ली तो मेरा सर उसकी दोनों टांगो के बीच घुस गया लेकिन मैंने लण्ड चूसना बंद नहीं किया . लण्ड छोड़ने का मेरा मन ही नहीं हो रहा था . मैंने उसकी जांघें अपने दोनों हाथों से पकड़ रखी थी . उधर मैं अपनी चूत उसके मुह में घुसेड़े दे रही थी . विक्रम समझ गया और चूत फिर से चाटने लगा . जब चूत खूब गरमा गयी मैं घूम गयी और लण्ड के आगे चूत फैला दी . उसने लण्ड भक्क से घुसेड दिया और चोदने लगा . मैं मस्ती से चुदवाने लगी .उसका बहन छोड़ लण्ड बेपनाह मज़ा दे रहा था मुझे . मैंने कई मर्दों से चुदवाया है लेकिन आज का मर्द सही माने में मर्द है . मैं सोचने लगी .
वे लड़कियां बड़ी खुश नसीब है जिनकी बुर इसका लण्ड चोदता है .
मेरी दोनों टांगें उसके हाथ में थी और उसका लण्ड मेरी चूत में . मेरी चूंचियां हर धक्के में उछल जाती है . उसे उछलती हुई चूंचियां देखने में मज़ा आ रहा है ? मेरी चुद रही है उसे मज़ा आ रहा है . अचानक विक्रम घूम गया और लण्ड मेरे मुह में दाल दिया . अब मैं फिर से लण्ड चाटने लगी . इस समय लण्ड मुझे ज्यादा मज़ा दे रहा था . फिर मैं कुतिया बन गयी और पीछे से चुदवाने लगी भकाभक . विक्रम ने दो / एक बार मेरी गांड में लण्ड पेलने की कोशिश की लेकिन मैंने कहा नहीं सर अभी गांड मत मारो . पहले बुर चोद लो अच्छी तरह गांड फिर मारना . लण्ड मेरी बुर में ही आने जाने लगा . थोड़ी में मैं लण्ड पर बैठ गयी और अपनी गांड उठा उठा कर लण्ड चोदने लगी . विक्रम को भी मज़ा आने लगा . थोड़ी देर में उसके कहा यार अब मैं झड़ने वाला हूँ . मैं फ़ौरन घूम गयी, लण्ड हाथ में लिया और मुठ्ठ मारने लगी . मैंने बड़ी मस्ती से झड़ता हुआ लण्ड चाटा . लण्ड का स्वाद मुझे भा गया . मैं मस्त हो गयी बुरचुदा कर .
उसके बाद मैं जब एक बार और चुद रही थी तो बॉस ने कहा यार रेणुका, मुझे स्तुति की बुर दिलाओ न प्लीज .
मैंने हां कर दी . कुछ दिन बाद मैं स्तुति से मिली तो उसको सारा किस्सा सुना दिया . मैंने विक्रम के लण्ड के बारे में बताया . उसके लण्ड की बड़ी तारीफ की . उसके चोदने की स्टाइल की तारीफ की और उसके स्वाभाव की तारीफ की . मैंने देखा की स्तुति टूटती जा रही है . उसका मन होने लगा विक्रम का लण्ड देखने का .? मैंने कहा यार स्तुति वह तुम्हे बहुत चाहता है . तुमसे बहुत प्यार करता है . तुम्हारी तारीफ करता है . देखो यार मेरी बुर में उसका लण्ड था . वह मुझे चोद रहा था लेकिन तुम्हे याद कर रहा था . उसने कहा रेणुका एक दिन स्तुति की बुर दिलाओ प्लीज .तुम्ही बताओ इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है ? अब तुम हां कर दो और मेरे कहने पर एक बार चुदवा कर देखलो . अगर तुम्हे पसंद आये तो आगे भी चुदवाती रहना नहीं तो छोड़ देना . स्तुति बुरी तरह फंस चुकी थी . उसके इतवार के दिन चुदवाना स्वीकार कर लिया
.मैं इतवार को स्तुति को लेकर विक्रम के घर पहुँच गयी . हम तीनो शराब पीने लगे . मैं धीरे धीरे अपने कपडे उतारने लगी और थोड़ी देर में एक दम नंगी होकर शराब पीने लगी . मैंने आँख मारी और स्तुति को भी नंगी करने लगी . विक्रम की आँखे जम गयी स्तुति पर . जब उसकी चूंचियां खुली तो उसकी आँखे दुगुनी खुल गयी . स्तुति की चूंचियां मेरी चूंचियों से बड़ी थी . मैंने जब उसकी चूत खोल कर दिखाया तो विक्रम का जोश सातवें आसमान पर जा पहुंचा . उसने लपक कर स्तुति को अपनी बाहों में भर लिया और चूंचियों पर टूट पड़ा . खुदा कसम उस समय विक्रम भूल गया की मैं भी नंगी बैठी हूँ . उसने जब लण्ड पेला स्तुति की चूत में और भकाभक चोदना शुरू किया तब मेरा ख्याल आया उसे और उसने हाथ बढाकर मेरी चूत सहलाना शुरू किया . मैं बहुत खुश हुई यह देख कर की स्तुति जम कर धकाधक चुदवाये चली जा रही थी . मैं उसके पेल्हड़ सहलाने लगी और उसके चूतड़ों पर हाथ फेरने लगी . हम दोनों ने उस दिन जम कर चुदवाया
. उसके बाद स्तुति मेरे साथ आ आ कर चुदवाती रही .
मेरा जब ट्रांसफर हो गया और मैं चली गयी उसके बाद भी मैं विक्रम के पास बुर चुदवाने अक्सर चली आती हूँ .
मुझे उसके लण्ड की बहुत याद आती है .
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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
आंटी प्लीज मान जाओ -1
आप सभी को नमस्कार आप सभी ने मेरी पहले भेजी हुई कहानियाँ पढ़ी और उन्हें पसंद किया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जैसा कि शीर्षक पढ़ कर ही आप समझ गए होंगे, यह कहानी पलक की मुँह बोली चाची, जिन्हें हम आंटी कहते थे, और मेरे बीच की है। यह घटना भी सरिता और मेरी कहानी के तुरंत बाद की ही है। कुछ लोगों को यह कहानी पढ़ कर लग सकता है कि ऐसा होना असम्भव है। तो आप इस बात को मानने के लिए स्वतंत्र हैं पर कृपया इस कहानी की सच्चाई के बारे में मुझ से कोई सवाल ना करें।
यह कहानी भी मैंने पलक वाली श्रृंखला में जोड़ कर ही लिखी है क्योंकि इस कहानी की शुरुआत भी पलक के कारण ही हुई थी।
पलक और मेरे बीच की कहानियों की श्रृंखला में एक हिस्सा और भी है जो अभी तक अनकहा है। उसे लिखूंगा या नहीं वो पता नहीं पर फिलहाल इस श्रृंखला के अंतिम पायदान पर खड़े होकर मैं आप को यह अनुभव सुनाने जा रहा हूँ जो मेरे जीवन के अब तक के सबसे हाहाकारी और प्रलयंकारी अनुभवों में से एक है।
अब मैं कहानी पर आता हूँ।
एक दिन मैं दफ्तर में था कि मेरे पास हरीश अंकल का फोन आया, वो मुझसे बोले- तू है कहाँ यार? इतने दिन से दिखा नहीं, यह बता कि घर कब आने वाला है?
मेरे पास उस समय बहुत काम था तो मैंने कहा- अभी तो जान निकली पड़ी है अंकल, आज और कल तो बिल्कुल फुर्सत नहीं है, पर आप कहिये न, क्या हुआ?
तो वो बोले- यार, मेरा लैपटॉप काम नहीं कर रहा है, आकर उसे देख ले, और इतने दिन हो गए हमने साथ में खाना नहीं खाया तो डिनर भी साथ में करेंगे।
मैंने कहा- ठीक है अंकल ! मैं शुक्रवार को आ जाऊँगा, खायेंगे भी, पियेंगे भी !
वो बोले- बहुत अच्छे !
और हमारी बात खत्म हो गई।
हरीश अंकल जिंदादिल इंसान हैं, हमेशा उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट होती ही है, दुःख करना तो जैसे उनको आता ही नहीं था। उनके साथ रहो तो लगता है कि जिंदगी सच में पूरी तरह से जीने के लिए होती है और नंदिनी आंटी भी बिल्कुल वैसे ही खुशमिजाज और आज में जीने वाली महिला हैं।
शुक्रवार को मैं सारा काम जल्दी निपटा कर अंकल के घर जाने की तैयारी में था, तभी अंकल का फोन आया, बोले- सॉरी यार, आज मिलना नहीं हो सकता, मैं अभी न्यूयॉर्क के लिए निकल रहा हूँ, फिलहाल दिल्ली हवाई अड्डे पर हूँ।
मैंने पूछा- हुआ क्या है?
तो बोले- स्क्रैप के माल में एक लाट जले हुए लोहे का आ गया है, उसके चक्कर में जाना है, नहीं गया तो काफी नुकसान हो जायेगा।
अंकल का भंगार आयात करने का काम है।
मैंने कहा- ठीक है अंकल, आप जाओ, वो जरूरी है, कोई कागजात रह गए हों तो मुझे बता दीजियेगा, मैं आप को मेल कर दूँगा।
अंकल बोले- वो तो ठीक है लेकिन तू घर चले जाना यार ! नंदिनी तुम दोनों को बहुत मिस करती है, तुम दोनों चले जाते हो तो उसे भी अच्छा लगता है।
मैंने कहा- आप बेकिफ्र जाओ, अंकल मैं और पलक दोनों चले जायेंगे।
उनसे बात करने के बाद मैंने पलक को फोन किया और कहा- आज हरीश अंकल के यहाँ चलना है नंदिनी आंटी से मिलने ! अंकल घर पर नहीं हैं।
तो वो बोली- आना तुझे है गधे ! मैं तो यही पर हूँ।
मैंने कहा- ठीक है, मैं भी आता हूँ !
और मैं काम खत्म करके उनके यहाँ जाने के लिए निकल गया। रास्ते में मैंने एक पीला गुलाब भी खरीद लिया था जो आंटी को बहुत पसंद है।
मैं एक हफ्ते से घर गया ही नहीं था तो काम के चक्कर में तो घर पर बताना कोई जरूरी ही नहीं था कि आज देर से आऊँगा।
जब मैं उनके घर पहुँचा तो करीब आठ बज चुके थे, मैंने वहाँ जाकर आंटी को हमेशा की तरह "हे गोर्जियस ए रोज फॉर यू !(आप के लिए गुलाब) कहते हुए उनको पीला गुलाब दिया और उन्होंने हमेशा की तरह खुशी खुशी लिया।
फिर आंटी ने मुझ से कहा- तुम बैठो, मैं खाना लगाती हूँ, तीनों साथ में खा लेंगे !
तो पलक बीच में ही बोल पड़ी- अभी बैठो नहीं ! यह पहले तो जाकर नहायेगा और शेव भी करेगा, कैसा जानवर बना पड़ा है।
और सच भी यही था कि मैं पिछले 6 दिनों से घर नहीं गया था, ना ठीक से सोया था ना ही मैंने शेव की थी और ना ही खाना ठीक से खाया था, नहाने की बात तो दूर की है।
मैंने कहा- ठीक है मेरी माँ, पहले नहा ही लेता हूँ मैं।
और मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाने लगा तो पलक ने मुझे लोवर और टीशर्ट दिए और बोली- नहाने के बाद यही पहन लेना, हल्का लगेगा ! एक हफ्ते से एक ही जींस में घूम रहा है। जाने कैसे रह रहा होगा गधा !
और साथ में शेविंग किट भी दे दी। मैं अंकल के यहाँ कई बार रुका था तो वहाँ पर नहाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी और मैं नंदिनी आंटी और अंकल दोनों से ही खुला हुआ था तो यह मेरे लिए सामान्य ही था।
जब मैं नहा कर आया तो बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था और खाने की मेज देखी तो मन और खुश हो गया क्योंकि आंटी ने मेरे पसंद का ही खाना बनाया हुआ था।
खाना खाते हुए एक बार आंटी ने मुझ से पलक और मेरे रिश्ते के बारे में पूछ लिया कि हम दोनो के रिश्ते में कोई और बात भी है क्या अब?
तब तो मेरे गले में निवाला अटक ही गया था, सच मैं बोल नहीं सकता था और झूठ बोलना मुझे पसंद नहीं था तो मैंने बात को अनसुना ही कर दिया और आंटी ने भी दोबारा सवाल नहीं किया।
उसके बाद हम तीनों ही पीने के लिए बैठ गए। पलक और मैं तो पीते ही थे और आंटी भी हमारे साथ कभी कभी पी लेती थी। उस वक्त आंटी ने बताया कि उन्हें मेरे और पलक के बारे में सब पता है, पलक ने ही उन्हें बताया था।
मेरे पास बोलने को कुछ था नहीं तो मैं चुप ही रहा।
पीने के बाद एक तो मुझे थकान थी, दूसरा नींद पूरी नहीं हुई, खाना ज्यादा खा लिया ऊपर से थोड़ी ज्यादा भी पी ली तो मेरी हालत खराब हो चुकी थी, मैंने पलक से कहा- मुझे मेरे कमरे में छोड़ दे यार ! मैं घर जाऊँगा नहीं और गाड़ी चलाने जैसे हालात मेरे है नहीं !
तो आंटी बोली- आज तू यही सो जा ! सुबह चले जाना, पलक को भी घर जाना है उसके।
मैंने कहा- ठीक है !
और उसके बाद मुझे कब नींद लगी, कब सुबह हुई, पता भी नहीं चला। रात में अगर मैं उठा भी तो सिर्फ लघु शंका के लिए और फिर सो गया।
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12-26-2018, 11:03 PM,
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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
सुबह सुबह सात बजे के आस पास उठ कर सारी (लघु तथा दीर्घ) शंकाओं का समाधान करा और फिर से सो गया।
फिर मेरी नींद करीब 11 बजे खुली लेकिन जब मैंने उठने की कोशिश की तो उठ नहीं पाया।
वजह थी मेरे हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, पलंग के दोनो किनारों की तरफ और मेरे पैरों का भी वही हाल था।
मुझे लगा कि यह पलक की ही शरारत है, वो घर पर भी ऐसे ही परेशान करती रहती थी मुझे हर बार नई शरारतों से तो मैंने पलक को आवाज देना शुरू कर दिया।
मेरी आवाज सुन कर पलक तो नहीं आई पर आंटी आ गई।
मैंने उनसे कहा- "कहाँ है वो गधी, आज उसे नहीं छोडूंगा।
तो आंटी बोली- वो अभी तक आई नहीं है।
मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !
तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?
आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।
मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?
तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।
"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।
"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।
मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !
तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?
आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।
मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?
तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।
"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।
"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।
मैंने कहा- ऐसे मजाक अच्छे नहीं होते आंटी, खोलो मुझे जल्दी से !
तो मेरी बात सुन कर आंटी वहाँ से उठ कर चली गई जब वो वापस आई तो उनके हाथों एक बड़ा सा पानी का जग था।
मैंने कहा- अब मुझे बिस्तर पर ही नहलाने वाली हो क्या?
तो बोली- नहीं ब्रश करवाने वाली हूँ !
और वो वापस चली गई।
फिर वो वापस आई तो उनके एक हाथ में टूथपेस्ट लगा हुआ ब्रश था और दूसरे हाथ में एक बड़ा सा प्लास्टिक का टब था।
आने के बाद उन्होंने मेरे पैरों के तरफ की रस्सी को थोड़ा ढीला करके मुझे बैठाया और कहा- मुँह खोलो !
और मेरा चेहरा एक हाथ से पकड़ कर मुझे अपने हाथ से ब्रश करवाने लगी, ब्रश करवाने के बाद टब में कुल्ला करवाया और सामान ले कर चली गई।
वापस आई तो हाथ में ट्रे में ब्रेड थी और साथ चाय भी !
अपने ही हाथों से मुझे उन्होंने मक्खन लगी ब्रेड खिलाई और चाय भी पिलाई पर मेरे लाख मिन्नत करने के बाद भी मेरा हाथ नहीं खोला।
मैंने कहा- मुझे बाथरूम जाना है !
तो बोली- थोड़ी देर रोक कर रख लो, कुछ नहीं होगा थोड़ी देर में खोल दूँगी।
मैंने कहा- अगर थोड़ी देर में छोड़ने वाली ही हो तो फिर बाँध कर क्यों रखा है तुमने?
आंटी ने कोई जवाब नहीं दिया और मुझे नाश्ता करा कर सामान लिया और वापस चली गई।
वो थोड़ी देर बाद जब वापस आईं तो उनका पूरा रंग ढंग बदला हुआ था।
इस बार उन्होंने एक बढ़िया सी नाइटी पहन रखी थी जो काफी मादक लग रही थी, परफ्यूम की महक दूर से ही मुझे महसूस हो रही थी, मैं समझ चुका था कि जो आंटी ने कहा है वो मजाक में नहीं कहा उन्होंने, वो सच में इस बात के लिए मूड बना कर बैठी हुई थी कि आज मेरे साथ कुछ न कुछ करना ही है।
मैं इस सब को अभी तक भी स्वीकार नहीं कर पा रहा था क्योंकि चाहे मैं कितना भी बड़ा कमीना रहा हूँ पर आंटी को मैंने कभी इस नजर से देखा नहीं था।
आंटी जब कमर मटकाती हुई मेरे पास आई तो मैंने कहा- प्लीज आंटी, खोल दो और मुझे जाने दो ! अंकल मुझ पर बहुत भरोसा करते हैं, मैं उनके भरोसे को नहीं तोड़ सकता।
तो आंटी बोली- पर भरोसा तुम नहीं, मैं तोड़ रही हूँ ना !
और मुझे खोलने के बजाय मेरे पैरों को उन्होंने वापस से खींच कर कस दिया।
मैं तब चुप हो गया और आंटी पलंग पर चढ़ गईं। उनके पलंग पर आने के बाद मेरे हाथ पैर भी कांपने लगे थे, ऐसा अनुभव मुझे उसके पहले के 6 सालों में कभी नहीं हुआ था, एक अजीब सा डर लग रहा था, मैं छूटने की पूरी कोशिश कर रहा था और हर बार असफल हो रहा था।
"आंटी प्लीज मान जाओ और छोड़ दो मुझे !" मैंने फिर से प्रार्थना की तो आंटी मेरे ऊपर आकर मेरी कमर के थोड़ा नीचे दोनों तरफ पैर रख कर बैठ गई, अपने ऊपर के शरीर का वजन उनके दोनों हाथों पर रखा और मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर मुझ से बोली- बोलो, क्या बोल रहे हो?
अगर उनकी जगह कोई और होती तो मैं तो कभी का खुशी खुशी राजी हो जाता पर बात यहाँ आंटी की थी और मुझे आंटी से ज्यादा अंकल के विश्वास की चिंता थी जो मेरे लिए अंकल कम और दोस्त ज्यादा हैं, और दोस्ती में धोखेबाजी की आदत मुझे कभी भी नहीं रही।
लेकिन उस वक्त तक मेरी हालत खराब हो चुकी थी, एक मन कर रहा था कि कर लूं, क्या फर्क पड़ता है, और दूसरा मन अंकल की वजह से इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था कि मैं आंटी के साथ शारीरिक संबंध बनाऊँ।
और मेरी इस सोच से परे आंटी अभी भी मुझ पर ही छाई हुई थी, आंटी की गर्म सांसों को मैं तब मेरे चेहरे पर महसूस कर सकता था और उनका रेशमी नाइटी में लिपटा हुआ बदन मेरे शरीर को जगह जगह से छू रहा था।
फिर आंटी ने अपना पूरा वजन मुझ पर छोड़ दिया और एक हाथ से मेरे सर को नीचे से पकड़ा दूसरा हाथ मेरे चेहरे पर रखा और मेरे होंठों पर उन्होंने अपने होंठ रख दिए, होंठ क्या थे अंगारे थे मानो ! और उन्होंने धीरे धीरे मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया, उनके होंठ चूमने का अंदाज बिल्कुल ही निराला था।
एक हाथ उन्होंने मेरे गाल पर रखा था और दूसरे हाथ से सर को सहारा दे रखा था और साथ ही इस तरह से पकड़ रखा था कि मैं चाह कर भी मेरे चेहरे को इधर उधर ना कर सकूं।
आंटी मेरे होंठों को पूरा अपने मुंह में लेती और फिर धीरे धीरे होंठ चूसते हुए बहार निकाल लेती, इसी तरह से वो काफी देर तक मुझे चूसती रही, और अपने शरीर का पूरा वजह मेरे शरीर पर डाल कर अपने स्तनों को मेरे सीने पर और चूत को मेरे सख्त हो चुके लण्ड पर रगड़ती रही।
मैं चाहे लाख ना कर रहा हूँ पर एक 35 साल की औरत जो गजब की सुंदर हो, शरीर सांचे में ढला हुआ, 34 इन्च के स्तन हों, कमर पर कोई चर्बी नहीं, चेहरे पर कोई दाग नहीं, काले खूबसूरत रेशमी बाल हों और कहीं कोई कमी नहीं और वो मेरे सीने पर अपने स्तन रगड़ रही हो, लण्ड पर चूत रगड़ रही हो और होंठों को होंठों से चूस रही हो तो भला मेरा
लण्ड खड़ा कैसे नहीं होता।
थोड़ी देर तक वो ऐसे ही होंठ चूसती रही, स्तन और चूत रगड़ती रही, फिर हट कर मेरे लण्ड पर हाथ लगाया और बोली- देखो, यह भी वही चाहता है जो मैं चाहती हूँ।
मैंने कहा- आंटी, आपके जैसी सुन्दर और सेक्सी औरत अगर इस तरह का काम करेगी तो किसी भी मर्द लण्ड तो खड़ा होगा ही ना ! पर मैं आपके साथ नहीं करना चाहता, मैं अभी भी आपसे कह रहा हूँ प्लीज मुझे खोल दो और जाने दो।
मेरी बात का उन पर उल्टा ही असर हो गया उन्होंने मेरे लोअर में हाथ डाल कर मेरे लण्ड को पकड़ लिया और बोली- हरीश से छोटा तो बिल्कुल नहीं है !
और फिर अपनी नर्म उंगलियों से मेरे लण्ड को रगड़ने लगी, मैं मचलने लगा और मेरा मन पूरी तरह से बहक चुका था पर मैंने सिर्फ कहा नहीं उन्हें।
उन्होंने कुछ सेकंड मसला होगा और फिर बोली- देख, तू भी यही चाहता है, पर अब मैं तुझ से पूछूंगी भी नहीं, अब सिर्फ मैं करूँगी और तू जब चाहे तब साथ देना शुरू कर देना।
मैंने आंटी को कोई जवाब नहीं दिया और आंटी ने मेरे होंठों को फिर से चूमना शुरू कर दिया और एक हाथ से मेरे लण्ड को सहलाती रही, इस बार उनके चूमने में मैं भी उनका साथ दे रहा था।
इसके बाद आंटी ने मेरे लोअर को अंडरवियर समेत नीचे कर दिया और फिर उन्होंने मेरे ही तकिये के नीचे से हाथ डाल कर कंडोम का एक पैकेट निकाला उसे फाड़ कर मेरे खड़े लण्ड पर लगाया और मैं कुछ समझता उसके पहले ही खुद की नाइटी ऊपर करके चूत को मेरे लण्ड पर टिकाया और एक झटके में मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत के अंदर था।
उस झटके में हम दोनों के ही मुंह से एक आह निकल गई थी।
उसके बाद आंटी ने मुझसे कहा- अब भी तेरी ना ही है क्या?
मैंने कहा- नहीं !
मेरी नहीं का मतलब समर्पण ही था पर आंटी ने तब उसे मेरा इनकार समझा था।
उसके बाद आंटी अपने कूल्हों को जोर जोर से उछाल कर लण्ड अंदर-बाहर करके चुदवाने लगी और उन्होंने अपने होंठों को मेरे होंठों पर जमा दिया था। वो कभी मेरे होंठों को चूम रही थी, कभी मेरे गालों को और कभी मेरी गर्दन को चूम रही थी साथ ही उनके स्तन मेरे सीने से टकरा रहे थे।
मैं आंटी के स्तन दबाना चाहता था, उनके बालों को पकड़ कर उनके होंठों को चूमना चाहता था, उनकी कमर को मेरी बाहों में लपेटना चाहता था पर मैं कुछ भी नहीं कर सकता था क्योंकि मेरे हाथ बंधे हुए थे।
आंटी अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रख कर खुद को चुदवा रही थी और मुझे चूमे जा रही थी कि अचानक आंटी ने मुझे चूमना बंद कर दिया और मेरे सीने पर दोनों हाथ रख कर मेरे लण्ड पर बैठ गई, उनके शरीर में ऐंठन होने लगी, उनकी आँखे बंद होने लगी और आंटी झड़ने लगी।
आंटी पूरी ताकत से झड़ी और झड़ कर मेरे ऊपर ही लेट गई, मैं तो अभी भी पूरा भरा हुआ था तो आंटी का हल्का फुल्का शरीर मुझे फूल जैसा ही लग रहा था पर मैं अब नीचे से झटके मार रहा था।
थोड़ी देर बाद जब आंटी सामान्य हुई तो मुझसे बोली- क्या हुआ विश्वामित्र जी? आपका तप तो टूट गया?
मैंने कहा- आंटी, तप तो कभी का टूट गया है अब तो बस इच्छा बची है अब तो खोल दो।
तो बोली- जब तप टूट गया था तो फिर नहीं क्यों कहा था।
मैंने कहा- वो नहीं तो समर्पण वाला नहीं था, उस नहीं का मतलब था कि अब मेरी कोई ना नहीं है, पर आप ही नहीं समझी थी। मुझे अब तो खोलो !
तो आंटी बोली- खोल दूँगी पर अभी तो मैंने शुरूआत की है, और वैसे भी तूने तो हाँ कर ही दी है तो अब मुझे मेरे सारे अरमान पूरे तो करने दे।
मैंने कहा- ऐसे क्या अरमान हैं जो मुझे बाँध कर ही पूरे कर सकती हो? और आप का तो हो गया, मुझे भी तो मेरा करने दो अब।
तो बोली- अभी थोड़ा इन्तजार तो कर, हो जायेगा तेरा भी, और जो अरमान हैं वो भी पता ही चल जायेंगे।
वो उठी, मेरे लण्ड से कंडोम निकाला और मुझे वैसे ही छोड़ कर चली गई वो करीब दस मिनट बाद वापस आई। इस बार जब वो वापस आई तो एक नए ही गाऊन में थी।
आंटी कमर मटकाते हुए फिर से मेरे पास आई और मेरी टी शर्ट और उतारने की कोशिश करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी क्योंकि मेरे हाथ जिस तरह से बंधे हुए थे उस हालात में टीशर्ट ऊपर तो हो सकती थी पर उतर नहीं सकती थी।
मैंने कहा- अब क्या करोगी? अब तो खोलना ही पड़ेगा ना !
तो आंटी ने कहा- खोलूंगी तो नहीं तुझे ! और इसका इन्तजाम मेरे पास है।
वो उठ कर पास में रखी अलमारी से कैंची उठा लाई और बिना कुछ कहे मेरी टी शर्ट के चीथड़े कर दिए।
चीथड़े करने के बाद बड़े ही गुरुर से बोली- अब बता? अभी भी खोलना पड़ेगा क्या कपड़े उतारने के लिए?
इतना कहते हुए उन्होंने मेरी उतरी हुई लोअर और अंडरवियर को भी टुकड़े टुकड़े कर के नीचे फैंक दिया।
अब मैं आंटी के सामने पूरी तरह से प्राक्रतिक अवस्था में पड़ा हुआ था, मजबूर बेबस और बंधा हुआ।
आंटी ने मुझे देखा, फिर मुस्कुराने लगी और मुझे उन पर गुस्सा आ रहा था।
मैंने गुस्से में कहा- क्या कर दिया है यह आपने?
और मेरी बात का जवाब देने के बजाय उन्होंने अपना गाऊन उतार दिया। उन्होंने अंदर गुलाबी रंग की ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी जो बहुत ही खूबसूरत और मादक लग रही थी। उनकी इस हरकत से मैं सारा गुस्सा भूल गया और मेरा लण्ड फिर से सलामी देने लगा जो दस मिनट के आराम से थोड़ा सा ढीला हो गया था।
गाऊन उतारने के बाद मेरी तरफ देख कर वो बोली- तुम कुछ कह रहे थे?
मैंने कहा- हाँ !!! नही !!
और मेरे सारे शब्द मेरे हलक में ही अटक कर रह गए।
फिर वो मेरे पास आ कर बगल में लेट गई, मेरे बाल सहलाने लगी और मेरे होंठ चूमने लगी, इस तरफ वो बाल सहला रही थी और दूसरी तरफ मेरा कड़क होते चला जा रहा था।
फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा।
मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा।
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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
आंटी प्लीज मान जाओ -2
फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा।
मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा।
मेरी बात सुन कर आंटी ने मुझे कान पर काट हल्के से काटा और दांतों को बड़े प्यार से कान पर चलाने लगी मानो दांत पीस रही हो, एक अद्भुत ही अनुभूति थी वो, और फिर वो धीरे से मेरे ऊपर आ गई और फिर मेरे दूसरे कान को भी इसी तरह से चूम कर काटने लगी।
मुझे लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ,
उसके बाद उन्होंने मेरे बायें कान को छोड़ा और उसके थोड़ा नीचे एक बार काट कर दांतों से निशान बना दिया, मुझे मजा भी बहुत आया और दर्द भी हुआ पर मैं आह करने के अलावा कुछ और कर नहीं सकता था तब, उसके बाद आंटी ने मेरी ठोड़ी और कान के बीच एक बार हल्के से काट लिया और मैं बोल ही पड़ा- क्या कर रही हो यार तुम ?
तो जवाब मिला- तुझे जिंदगी भर ना भूल सकने वाली याद दे रही हूँ !
उसके बाद आंटी थोड़ा नीचे खिसकी और मुझे फिर कंधों पर काट कर निशान बना दिया फिर एक निशान, दूसरा निशान, तीसरा निशान इस तरह से उन्होंने एक एक कर के मेरे शरीर पर जाने कितने लव बाइट्स देना शुरू करे और रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं उन लव् बाइट्स से तड़प भी रहा था और मजा भी ले रहा था।
जब आंटी मुझे ये निशान दे रही थी तो खुद को, अपनी चूत को भी मेरे शरीर के जिस हिस्से पर हो सकता था वहाँ टिका कर रगड़ते भी जा रही थी। उन्होंने कुछ और निशान बनाए होंगे कि वो झड़ने लगी, झड़ने के बाद वो कुछ देर रुकी और फिर से उन्होंने मुझे काटना शुरू कर दिया।
पहले कंधा फिर दूसरा कंधा बाजू दूसरा बाजू सीना, पेट कांख कमर जांघे, पैरों की पिंडलियाँ तो अलग उन्होंने तलवों तक को नहीं छोड़ा। मेरे शरीर का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ उन्होंने काट कर निशान न बनाए हों।
बाद में उन निशानों की गिनती में कुल संख्या 197 निकली थी।
उस वक्त मेरी हालत ऐसी थी कि मजा तो बहुत मिल रहा था पर दर्द भी उतना ही होता जा रहा था।
और इस सब में आंटी को जाने कितना मजा आ रहा था कि वो दो बार झड़ भी गई।
जब वो मेरे पूरे शरीर पर निशान बना चुकी तो मुझे बोली- अब बता? तू भूल पायेगा इस दिन को?
और मेरा जवाब था- नहीं भूल पाऊँगा।
मैंने फिर आंटी से कहा- अब तो खोल दो !
तो आंटी बोली- अभी तो और बाकी है न ! वो भी हो जाने दे, फिर खोल दूँगी !
यह कह कर वो मेरे सामने आकर बैठ गई और उन्होंने मेरा लण्ड मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया। उनके लण्ड चूसने का अंदाज भी निराला ही था पहले लण्ड को मुंह में लेती और फिर कुल्फी की तरह धीरे धीरे बाहर की तरफ चूस कर होंठ बाहर ले आती, और फिर हाथों से लण्ड को पकड़ कर सुपारे की चमड़ी फिर से पीछे खींच देती थी। उन्होंने थोड़ी देर ही ऐसे किया होगा, मुझे लगा मैं झड़ने वाला हूँ और जैसे ही उन्हें लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ आंटी ने चूसना बंद कर दिया।
मैंने कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गई?
तो बोली- अभी तुझे झड़ने थोड़े ही देना है।
और फिर आंटी ने लण्ड को छोड़ कर मेरे बालों को सहलाना शुरू कर दिया, उस वक्त मैं चाहता तो यह था कि आंटी को अभी पटक कर चोद दूँ और सारा वीर्य उनकी चूत में ही भर दूं। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, हाथ पैर दोनों बंधे हुए थे।
जब आंटी को लगा कि मैं फिर से सहन करने की हालत में आ गया हूँ तो उन्होंने अपनी पैंटी उतारी और अपनी चूत मेरे मुंह पर रख दी और मुझे फिर से चूसने लगी।
अब वो मुझे चूस रही थी और मैं उनको और जब भी उन्हें लगता कि मैं झड़ने की कगार पर हूँ, वो मुझे चूसना बंद कर देती और अपनी चूत को मेरे मुँह पर और जोर से रगड़ना शुरु कर देती थी।
हम दोनों ने इसी तरह एक दूसरे को थोड़ी देर चूसा था कि आंटी अपनी चूत का नमकीन सा रस मेरे मुंह पर छोड़ते एक बार और झड़ गई। जब आंटी झड़ चुकी तो उठ कर मेरे बगल में तकिये पर लेट गई और चादर उठा कर खुद भी ओढ़ ली और मुझे भी ढक लिया।
मुझे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि खुद तो जाने कितनी बार झड़ चुकी हैं और मुझे अभी भी बाँध कर पटक रखा है, मैंने कहा- आंटी उठो !
पर वो तो थक कर सो चुकी थी और मुझे नींद कहाँ आनी थी। पर मैं कुछ कर सकने की हालत में नहीं था तो मैंने आंटी को जगाने की कोशिश नहीं की और थोड़ी देर में मुझे भी नींद लग गई।
जब मेरी नींद खुली तो आंटी जग चुकी थी और मेरे बगल में ही लेटी हुई मेरे सीने पर हाथ फेर रही थी।
जब उन्होंने देखा कि मैं भी जाग गया हूँ तो उन्होंने मेरे होंठों को चूम लिया और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब चुम्बन से ही दिया।
उनके चुम्बन और सीने पर उनकी नाजुक उँगलियों ने फिर से मेरे सोये हुए लण्ड को खड़ा कर दिया और बचा हुआ काम आंटी ने अपने हाथ को नीचे ले जाकर कर दिया।
अब मेरा लण्ड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था तो आंटी ने तकिये के नीचे से कंडोम निकाल कर उसे मेरे लण्ड पर चढ़ाया और फिर मेरे होंठों को चूमने लगी और चूमते चूमते ही मेरे ऊपर आ गईं।
मैं कुछ कहने की हालत में नहीं था पर मैं अभी भी यही मान कर चल रहा था कि यह खुद चरम सुख पायेगी और फिर से मुझे छोड़ कर चली जायेगी तो मैंने कुछ ज्यादा उम्मीद भी नहीं रखी, हालात से भी मैं समझौता कर चुका था। पर इस सबके बाद भी आंटी जैसे ही मुझे चूमती थी मेरा लण्ड सलामी देने लगता था।
आंटी ने मुझे चूमते हुए ही एक हाथ से मेरा लण्ड उनकी चूत पर रखा और एक झटके में अंदर डाल दिया और हम दोनों के ही होंठों से एक मीठी सी सिसकारी निकल पड़ी।
उसके बाद आंटी ने फिर से चुदाई शुरू कर दी वो मेरे ऊपर रह कर उनकी कभी उनकी चूत को रगड़ती और कभी अंदर-बाहर करती रही, बीच बीच में मुझे कभी होंठों पर तो कभी सीने पर चूम ले रही थी।
उन्होंने थोड़ी देर इस तरह से चुदाई की होगी और वो झड़ने लगी। और झड़ कर फिर से पहले की ही तरह चूत में लण्ड को रखे रखे मेरे ऊपर लेट गई।
मुझे लगा अभी यह फिर से चली जाएगी। लेकिन दो मिनट के बाद आंटी ने मेरे दाएँ हाथ की रस्सी खोल दी, और फिर से मेरे ऊपर ही लेट गई।
मैंने जल्दी से मेरे दायें हाथ से बाएं हाथ की रस्सी खोली और आंटी को लिए लिए मैं उठ कर बैठ गया और फिर मैंने अपने पैरों की रस्सी भी खोल दी।
अब मैं पूरी तरह से आजाद था, और आंटी की चूत में मेरा लण्ड घुसा हुआ ही था।
उसके बाद मैंने आंटी की ब्रा खोल कर उनके दोनों कबूतरों को आजाद करने की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया और आंटी को पीछे लेटाया और मैं उनके ऊपर आ गया।
आंटी ने मुझे उनकी बाहों में जकड़ रखा था तो मैं उनकी ब्रा नहीं उतार सकता था लेकिन इस हालत में मेरा मन आंटी की ब्रा उतारने के बजाय उनको चोदने का था तो मैंने आंटी को चोदने शुरु कर दिया और आंटी ने मुझे थोड़ी देर में ढीला छोड़ दिया और फिर मैंने उनकी ब्रा को उनके बदन से अलग करने में जरा भी देर नहीं की।
यह पहला मौका था जब मैं आंटी के स्तनों को बिना ब्रा के देख रहा था तो मैंने आंटी के स्तनों को चूमना शुरू कर दिया और नीचे से धक्के लगा ही रहा था।
मैं काफी देर से रुका हुआ था अपने अंदर एक सैलाब लेकर, मुझे लगा कि मैं अब झड़ जाऊँगा तो मैंने आंटी के एक स्तन को मुंह में लिया दूसरे को हाथ में पकड़ा और रफ़्तार तेज कर दी, तेज तेज धक्के मारने लगा।
आंटी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, कभी मेरे बाल सहलाती और कभी मेरी पीठ।
मैंने ऐसे ही कुछ 30-40 धक्के मारे होंगे कि मैं झड़ने लगा ! और जब मैं झड़ा तो मेरे मुंह से एक चीख ही निकल गई और एक बड़े झटके के बाद मैं 10-12 छोटे छोटे झटके मारता रहा और उसके बाद थक कर आंटी के ऊपर ही लेट गया।
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आंटी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, कभी मेरे बाल सहलाती और कभी मेरी पीठ।
मैंने ऐसे ही कुछ 30-40 धक्के मारे होंगे कि मैं झड़ने लगा ! और जब मैं झड़ा तो मेरे मुंह से एक चीख ही निकल गई और एक बड़े झटके के बाद मैं 10-12 छोटे छोटे झटके मारता रहा और उसके बाद थक कर आंटी के ऊपर ही लेट गया।
जब मैं झड़ा तो उसके बाद ही आंटी भी अपने आप ही झड़ गई और फिर ना मेरी हिम्मत हुई तुरंत कुछ करने की ना ही आंटी की।
थोड़ी देर के बाद मैं आंटी के ऊपर से अलग हट कर बगल में लेट गया बिल्कुल निढाल सा होकर, और आंटी की भी हालत वही थी।
थोड़ी देर बाद आंटी को थोड़ी हिम्मत आई तो वो मेरे पास खिसक कर बोली- आय ऍम सॉरी संदीप ! मैंने ये सब तुम्हारे साथ किया, पर क्या करती, मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी।"
मैंने कहा- जो हो चुका है, वो तो हो चुका है उस पर पछतावा करने से कोई फायदा नहीं है, बस मैं अंकल के सामने शर्मिन्दा हो जाऊँगा अगर उन्हें पता चला तो ! क्यूँकि वो मुझ पर इतना भरोसा करते हैं और मैंने उनका भरोसा तोड़ दिया।"
आंटी ने कहा- पहली बात, भरोसा तुमने नहीं मैंने तोड़ा है, तुम तो क्या उस स्थिति में कोई भी होता वही करता जो तुमने किया है, बल्कि तुमने तो बहुत ज्यादा रोका खुद को और दूसरा यह कि हरीश को इस बात से कोई तकलीफ नहीं होगी। वो खुद भी करते हैं जब बाहर जाते हैं, मैंने आज तक शिकायत नहीं की उनसे, अगर मैंने एक बार कर ही लिया वो भी तुम्हारे साथ तो क्या हुआ?"
मैंने कहा- जो भी हो, प्लीज आप उनको मत पता चलने दीजियेगा।
आंटी ने कहा- ठीक है।
इस सारे उपक्रम में मुझे भूख लग आई थी तो मैंने कहा- कुछ खाने के लिये है भी या नहीं? या भूखे ही रखने का विचार है?
आंटी ने शरारत से कहा- सिर्फ खाने के लिए चाहिए, पीने के लिए नहीं?
मैंने कहा- नहीं, आपने कल रात में पिलाया था, अभी मेरी हालत कैसी है, दिख रहा है और पीने के लिए तो आप आओगी तो सब मिल ही जायेगा। तो आप बस खाने का इन्तजाम करो, भूख लग रही है।
आंटी ने कहा- खाना तैयार है, तुम नहा लो, फिर साथ में खाते हैं।
अब तक मेरा मन फिर से आंटी के साथ प्यार करने का होने लगा था तो मैंने कहा- अगर साथ में ही खाना और खाने के लिए सिर्फ नहाना ही है तो चलो, साथ में नहाते हैं।
और जब तक आंटी कुछ बोलती, मैं उन्हें उठा कर बाथरूम में लेकर चला गया और उन्हें एक हाथ से पकड़ कर शावर चालू कर दिया।
नहाते हुए मैं कभी उनके होठों को चूम रहा था तो कभी उनके गालों को और कभी उनकी गर्दन को काट रहा था। उसके बाद मैंने आंटी के बदन पर साबुन लगाया और आंटी ने मेरे बदन पर ! और फिर हम दोनों ही एक दूसरे के बदन का साबुन धोने लगे और साबुन धोते हुए मैं आंटी की चूत और स्तनों को मसल रहा था और आंटी मेरे लण्ड को मसल रही थी।
अद्भुत था वो मजा भी ! और ऐसे में ही आंटी मुझे लेकर वही बड़े से बाथरूम के फर्श पर लेट गई, वो नीचे और मैं उनके ऊपर था, ऊपर से फव्वारे की बौछारें आ रही थी और नीचे आंटी ने मेरा पूरा सख्त हो चुका लण्ड अपने हाथों में लेकर उनकी चूत पर रख लिया और मैंने एक झटके में मेरा पूरा लण्ड आंटी की चूत में अंदर तक घुसा दिया।
आंटी के मुह से एक हल्की सी सिसकारी निकली और मेरे अंतर में एक अलग आनंद ! और फिर मैंने धक्के लगाने शुरू किए पर उन धक्कों का मजा ना ही आंटी को आ रहा था ना मुझे क्योंकि नीचे सख्त फर्श था और मेरे हाथ पैर के घुटने काफी दर्द करने लगे थे।
थोड़ी ही देर में तो मैंने बाथरूम का दरवाजा खोला और बाथरूम के बाहर ही बिछे हुए नर्म कालीन पर आ गया और वहीं पर ही आंटी की चूत के साथ कुश्ती शुरू कर दी।
नीचे चूत लण्ड से टकरा रही थी और ऊपर होंठ होठों से, मेरे हाथ आंटी के गीले बालों और सख्त हो चुके स्तनों के बीच घूम रहे थे।
हम दोनों ही वासना के ज्वार में ऊपर-नीचे हो रहे थे और मेरे हर धक्के का जवाब आंटी अपने धक्कों से ही देती थी।
यह धक्कम पेल चुदाई काफी देर तक चलती रही और फिर आंटी ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, मेरे होठों पर उनके होठों की पकड़ ढीली हो गई और अपने पैरों से नीचे से धक्का लगा कर उनकी चूत को बस उठा ही रहने दिया और एक झटके में ही वो झड़ गई।
अब आंटी पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी और मेरी भी हालत ज्यादा देर टिकने की नहीं थी तो मैंने भी धक्के लगाने शुरू कर दिये।
आंटी इतना पस्त होने के बाद भी मेरा पूरा साथ दे रही थी जो मुझे बहुत अच्छा लगा और फिर मुझे लगा कि मैं भी झड़ जाऊँगा तो मैंने आंटी से कहा- आंटी मैं भी झड़ने वाला हूँ।
मेरी बात सुन कर उन्होंने मेरी कमर पर अपनी टाँगें लपेट ली और मेरे हाथ अपने दोनों स्तनों पर रखते हुए बोली- अंदर ही झड़ जाना, एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने देना।
और आंटी की इतनी बात सुननी थी कि मैंने आंटी के दोनों स्तनों को दबाते हुए धक्के लगाना शुरू किए और कुछ ही धक्कों में मेरा सारा वीर्य आंटी की चूत के अंदर था।
झड़ने के बाद मैं एक बार फिर आंटी पर ही पसर गया, मेरे पसरने पर आंटी ने मुझे अपनी बाँहों में लपेट लिया और मेरी कमर को बंधे बंधे ही मेरे बालों को सहलाने लगी, साथ ही साथ मेरे कानों और कंधों को चूमने लगी जो बहुत अच्छा लग रहा था।
कुछ मिनट बाद मैं आंटी के ऊपर से उतर कर नीचे बगल में ही लेट गया तो आंटी बाथरूम में गई, उन्होंने अपनी चूत साफ़ की, हाथ धोए और तौलिए से हाथों और चूत को पौंछते हुए बोली- तुम नहा कर आ जाओ, मैं भी नहा कर खाना गर्म करती हूँ।
अलमारी से दूसरा तौलिया निकाल कर मुझे दिया और दरवाजे पर जा कर बोली- अलमारी में तुम्हारे एक जोड़ी कपड़े रखे हुए हैं तो कपड़ों की चिंता मत करना, वही पहन लेना।
आंटी की बात सुन कर मैं फिर से नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया।
मैंने नहा कर जब बदन पौंछना शुरू किया तो मैंने ध्यान दिया किक मेरे शरीर पर हर जगह आंटी के लव बाइट्स के निशान थे, मैं सोच रहा था कि आखिर मैं इन निशानों को सब से छुपाऊँगा कैसे। फिर मैंने तौलिया लपेटा अलमारी में से कपड़े निकालने गया तो देखा कि ये भी मेरे ही कपड़े थे जिसमें अंडरवियर और बनियान नई थी और लोअर और टीशर्ट मेरे ही थे।
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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
आंटी प्लीज मान जाओ -3
मैं घनचक्कर बन गया कि यार, यह लड़की कितनी लम्बी प्लानिंग करके रखती है, जहाँ उस गधी को दिमाग लगाना होता है वहाँ इतनी दूर तक की बात सोच लेती है कि उसके आगे पीछे की सौ बातें भी सोच लेगी, नहीं तो अपना दिमाग छोटी छोटी बातों में भी नहीं लगायेगी।
मैंने कपड़े पहने और जब खाने के मेज पर आया तो आंटी नहा चुकी थी, और खाना भी चुकी थी, उन्होंने बालों को तौलिए से बंधा हुआ था और एक गाउन पहन रखा था।
तभी दरवाजे की घंटी बजी, मैंने सोचा- जाने कौन होगा।
तो मैंने कहा- आंटी, मैं अंदर जाता हूँ।
पर शायद आंटी को पहले ही पता था तो उन्होंने कहा- चिंता मत कर, कोई दिक्कत नहीं है।
सामान्य स्थिति में मुझे कोई दिक्कत नहीं होती पर उस दिन मेरे पूरे शरीर पर जगह जगह निशान बने हुए थे इसलिए मुझे थोड़ा डर लग रहा था।
पर दरवाजे पर पलक थी और आते ही पीछे से मेरे कंधों पर झूमते हुए बोली- क्यूँ गधे, मजा किया या नहीं?
मैंने उसके बाल पकड़ते हुए कहा- हाँ, खूब मजा किया इडियट, चल बैठ खाना खा ले।
वो आकर मेरे बगल में बैठ गई और जब उसने मेरे हाथ देखे तो चीखते हुए आंटी से बोली- यह क्या है?
आंटी के बजाय मैंने ही जवाब दिया- कुछ नहीं रे, आंटी का प्यार है।
मेरी बात सुन कर उसने मेरे दोनों हाथों को टी शर्ट की बाहें ऊपर करके देखा, फिर मुझे खड़ा करके मेरी टीशर्ट ऊपर करके मेरी पीठ और पेट को देखा, मेरे पैरों को देखा और फिर जब मैंने उसे देखा तो पाया कि उसकी आँखें भरी हुई थी।
वो आकर मेरे बगल में बैठ गई और जब उसने मेरे हाथ देखे तो चीखते हुए आंटी से बोली- यह क्या है?
आंटी के बजाय मैंने ही जवाब दिया- कुछ नहीं रे, आंटी का प्यार है।
मेरी बात सुन कर उसने मेरे दोनों हाथों को टी शर्ट की बाहें ऊपर करके देखा, फिर मुझे खड़ा करके मेरी टीशर्ट ऊपर करके मेरी पीठ और पेट को देखा, मेरे पैरों को देखा और फिर जब मैंने उसे देखा तो पाया कि उसकी आँखें भरी हुई थी।
मैंने कहा- क्या हुआ पागल रो क्यों रही है चल खाना खा !
तो मुझसे बोली- आय एम् सॉरी यार मेरे कारण तुझे इतनी तकलीफ हुई।
मैंने उसे गले लगाते हुए कहा- अब चुपचाप खाना खा और कोई तकलीफ नहीं हुई है मुझे !
तो वो मेरे साथ खाना खाने बैठ तो गई पर उसके गले से तब भी कोई निवाला नहीं उतर रहा था, मैंने और आंटी दोनों ने ही बहुत बोला, आंटी ने उसे कई बार सॉरी बोला फिर भी उसका मूड ठीक नहीं हुआ फिर अचानक बोली- हाँ, यह ठीक रहेगा।
और फिर उसने ठीक से खाना खाना शुरू कर दिया। न मुझे समझ में आया की क्या ठीक रहेगा न ही आंटी को, पर हम दोनों यह समझ गये थे कि इस शैतान की नानी ने अपने दिमाग में कोई न कोई बात जरूर सोच ली है।
फिर खाने के बाद पलक बोली- मैं शाम को तेरे लिए पूरी बाजू वाली कमीज़ और बन्द गले की इनर ले आऊँगी, तब तक यू बोथ एन्जॉय ( तुम दोनों मजे करो )।
तो आंटी बोली- तू भी रुक जा, तीनों साथ में मजे करेंगे।
मैं जानता था कि पलक इस बात के लिए तो राजी होने वाली नहीं है किसी भी हालत में, पलक बोली- नहीं जब ये और मैं होंगे तो कोई और नहीं हो सकता, कोई भी नहीं, और मैं रुक भी जाती पर अब तो बिल्कुल नहीं !
जाते जाते पलक मुझसे कान में बोली- आज शनिवार ही है तुझे आज कहीं जाने की जरूरत नहीं है और कल जब मैं वापस आऊँ तो मुझे यही हालत आंटी की दिखनी चाहिए, नहीं तो तेरी खैर नहीं है।
मैं पलक की बात समझ गया था और यह भी समझ गया था कि वो शाम को वापस नहीं आने वाली है।
पलक के जाने के बाद आंटी ने दरवाजा बंद किया, मैंने आंटी को बाँहों में जकड़ लिया और उनकी गर्दन पर चूमना शुरू कर दिया।
आंटी बोली- थोड़ी देर पहले मुझे जाने दो की रट लगा रखी थी और अब मुझे ऐसे चूम रहे हो जैसे मैं तुम्हारा माल हूँ, शैतान हो बहुत तुम।
मैंने अपने शायराना अंदाज में उन्हें जवाब दिया-
. "हमें करते हो मजबूर शरारतों के लिए, खुद ही हमारी शरारतों को बुरा बताते हो !!
अगर इतना ही डरते हो तुम आग से, तो बताओ तुम आग क्यों भड़काते हो?
. मेरी बात सुन कर आंटी वाह वाह करने लगी, पलट कर मुझे भी बाँहों में भर लिया, मेरे होंठों को चूम लिया और मैं आंटी को लेकर हाल में पड़े हुए सोफे पर ही बैठ गया, आंटी को चूमने लगा और आंटी मुझे !
इसी बीच कब हम दोनों के कपड़े उतरे पता ही नहीं चला, कब आंटी मेरे ऊपर आई और कब कपड़े उतरने के बाद मैं आंटी के स्तनों को काटने और चूसने लगा, पता ही नहीं चला।
मैं आंटी के स्तनों को चूस रहा था और स्तनों के नीचे की तरफ थोड़े थोड़े निशान भी बना रहा था दांतों से, जिससे आंटी को बड़ा मजा आ रहा था, मेरे हर काटने पर ओह संदीप, आह्हह्ह ...नहीं, मत काटो ...जैसे शब्द आंटी के होंठों से निकल रहे थे पर उनकी ना में एक भी बार ना नहीं था।
मेरा साढ़े पांच इंच का लण्ड पूरी तरह से खड़ा हुआ था और आंटी मेरी जांघों पर कैंची बना कर बैठी हुई थी सोफे पर दोनों घुटने टिका कर उन्होंने मेरा लण्ड अपने एक हाथ से पकड़ा उसे अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत में पहुंच गया।
यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मेरे मुँह से भी एक आह निकल गई और आंटी उसी हालत में आकर उचक उचक कर चुदवाने लगी। हम दोनों ही अब तक पसीने पसीने हो चुके थे।
उनके मुँह से इस वक्त आह आह उह्ह्ह उह्हह्हह्हह्ह ... मजा आ गया जैसे शब्द निकल रहे थे और मैं एक हाथ से उनकी कमर पकड़ कर कभी उनके स्तनों को काट रहा था और कभी उनके होंठों को चूम रहा था।
हम दोनों इसी तरह वासना के आवेग में बहते जा रहे थे, तभी आंटी का झरना फूट पड़ा, आंटी का पूरा बदन अकड़ गया, उन्होंने मेरे सर को अपने गीले हो चुके स्तनों पर कस कर दबा लिया और झड़ती रही। मैं भी झड़ने की कगार पर ही था तो आंटी के झड़ते ही मैंने उन्हें नीचे बिछे कालीन पर लिटाया और उनके एक स्तन को मुँह में ले कर दूसरे स्तन को हाथ से मसलते हुए उन्हे जोर जोर से चोदने लगा।
आंटी जैसे मेरी हर बात समझ गई थी तो उन्होंने भी मेरा पूरा साथ दिया और मैं कुछ झटके मार कर उनकी चूत में ही झड़ने लगा और झड़ कर एक बार फिर उनके ऊपर ही लेट गया।
थोड़ी देर बाद मैं आंटी के ऊपर से उठा और बगल में लेट गया, आंटी भी लेटी रही। उसके बाद आंटी ने अपना गाऊन उठा कर पहले मेरे बदन का पसीना पौंछा और फिर खुद के बदन का, और मुझसे बोली- तुम थोड़ा आराम कर लो, मैं तब तक घर का काम कर लूं !
पर मैंने कहा- मुझे भूख लगी है, पहले खाना खा लूँ फिर सोने जाऊँगा।
मैंने अंडरवियर पहना और खाना खाने लगा। भूख आंटी को भी लग चुकी थी तो उन्होंने भी एक दूसरा गाऊन पहना और मेरे साथ खाना खाने लगी।
खाना खाने के बाद मैंने अपने कपड़े उठाये और कहा- मैं सोने जा रहा हूँ !
तो आंटी बोली- तुम मेरे कमरे में सो जाओ, वो कमरा साफ़ नहीं है।
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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
मुझे क्या फर्क पड़ना था, मैं आंटी के कमरे में सोने के लिए चला गया, कपड़े पहने और बिस्तर पर लेट गया, लेटते ही मुझे नींद आ गई और जब नींद खुली तो शाम के साढ़े सात बज चुके थे, आंटी मेरे बगल में चिपक कर सोई हुई थी वो भी बिना कपड़ों के।
मैंने इस मौके का फायदा उठाने की सोची, मैं जाकर सुबह वाले कमरे से रस्सियाँ ले आया और आकर बड़ी ही सावधानी से आंटी को बाँध दिया।
उसके बाद मैंने अपने पसंदीदा रेस्तरां से खाने का ऑर्डर दिया और उसे कहा- रात को साढ़े नौ बजे तक खाना पहुँचा दे।
जब मैं वापस आया तब तक आंटी की नींद भी खुल चुकी थी और वो भी समझ चुकी थी कि उन्हें मैंने ही बाँधा था।
मुझे देख कर बोली- मुझे बांधने की कोई जरूरत नहीं है, जो चाहो कर लो, मैं तो तैयार हूँ तो खोल दो रस्सी।
मैंने कोई जवाब देने के बजाय अपनी टीशर्ट उतार दी और आंटी के बगल में आकर आंटी के स्तनों पर सीना रख दिया और दांतों से आंटी को बांये कंधे पर काट लिया।
आंटी बोली- अरे काटो मत ! निशान हो जायेगा।
और जवाब मैं मैंने फिर से उनके कंधे पर बगल में ही काट दिया।
आंटी ने कहा- अरे, क्या कर रहे हो??
और जवाब मैंने एक बार और काट कर दिया और इस बार आंटी का सुर बदल चुका था, इस बार आंटी ने बड़ी ही याचना के स्वर में कहा- प्लीज मत काटो ना संदीप ! निशान जायेंगे नहीं !
और मैंने थोड़ा ऊपर उठ कर आंटी को उतनी ही प्यार से जवाब दिया- अगर आपको निशान ना दिए तो मैं तकलीफ में आ जाऊँगा और अब आपको समझ में आया कि आपको बांधना क्यों जरूरी था।
मेरे जवाब को सुन कर आंटी ने विरोध करने का इरादा ही छोड़ दिया और एक ठंडी सी साँस छोड़ कर खुद को समर्पित कर दिया मानो वो इस दर्द भरे आनन्द को अनुभव करना चाहती थी, मैंने भी तय कर लिया था कि उन्हें निशान तो देता रहूँगा पर पूरा आनन्द भी दूंगा।
मैं फिर से आंटी के कंधे पर आया और उनके दांये कंधे को मेरे मुँह में भरा दांतों से निशान बनाया और उसे चूसते हुए मुँह को वहाँ से हटाया।
मेरे ऐसा करने से आंटी के मुँह से एक मीठी सी सिसकारी निकल गई, उनके पूरे बदन में हलचल मच गई।
उनकी वो सिसकारी पूरी होती उससे पहले ही मैंने उस निशान के बगल में ही एक निशान बनाते हुए उसी तरह से फिर चूस लिया और फिर सिसकारी और हलचल की एक लहर उठ गई।
मैंने आंटी के चेहरे की तरफ देखा उनके चेहरे पर असीम आनन्द दिख रहा था, उनकी दोनों आँखे बंद थी और वो जैसे अगले बाईट का इन्तजार ही कर रही थी।
मैंने इस बार उनके दांये गाल को मुँह में लिया और गाल को चूसने लगा और मेरे इस चूसने का आंटी भरपूर आनन्द ले रही थी।
फिर मैं नीचे खसका और मैंने आंटी के स्तनों को काटना और चूसना शुरू किया और इस पूरे कार्यक्रम के दौरान मेरा एक पैर या घुटना आंटी की चूत को रगड़ ही रहा था जिससे आंटी को मजा दुगुना मिल रहा था और उनके मुँह से लगातार सिसकारियाँ और आह्ह उह्ह जैसी आवाजें निकल रही थी। नीचे मैं आंटी की चूत को पैर से रगड़ रहा था और ऊपर उनके शरीर को कभी स्तनों पर कभी पेट कर कभी कांख पर और कभी कंधों पर काट रहा था।
इसी बीच मुझे लगा कि आंटी झड़ने वाली हैं, और जैसे ही मुझे इसका आभास हुआ मैं रुक गया।
आंटी मुझसे बोली- प्लीज, करता रह ना ! मत रुक !
पर मैं कहाँ उनकी बात मानने वाला था मैंने उन्हें अपने ही अंदाज में कहा-
. तब तुम्हारी तैयारी थी, अब ये हमारी तैयारी है
तब तुमने तड़पाया था, अब तड़पाने की हमारी बारी है !
. और इस बीच मैं बार बार रुक कर उनके स्तनों को चूम लेता था या उनके माथे और होंठों को जिससे उनका जोश बना रहता था।
मैं कुछ देर रुका और मैंने फिर से वही काम शुरू कर दिया और इस बार मैं उनके निचले भागों को चूम रहा था, चूस रहा था और काट रहा था। मैंने उनकी जांघों से शुरु किया और फिर नीचे की तरफ उनके घुटनों और तलवों तक भी चला गया।
उनके तलवे बहुत ही नाजुक थे उतने ही मुलायम जितने मेरे हाथ की हथेलियाँ या शायद ऐसा कहूँ कि मेरे हाथों की हथेलियाँ भी कड़क ही होंगी तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मैंने उनके पैरों पर निशान दिये और फिर से उनके ऊपरी भाग की तरफ बढ़ने लगा, बढ़ते हुए मैं उनके पेडू पर पहुँचा, मैंने वहाँ काटना और चूसना शुरू कर दिया और एक हाथ से आंटी की चूत को भी सहलाना शुरू कर दिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि आंटी फिर से चरमसीमा पर पहुँच गई और तड़पने लगी।
और जैसे ही आंटी इस स्थिति में पहुँची, मैंने उन्हें सहलाना, काटना और चूसना बंद कर दिया। इससे आंटी की तड़प और बढ़ गई और मैं वापस जब आंटी के माथे को चूमने लगा तो मैंने देखा उनकी आँखों से कुछ बूंदें गिर रही थी जी कुछ सेकंड पहले ही आई थी।
आंटी की यह हालत देख कर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने एक हाथ आंटी की चूत पर रखा, दूसरा हाथ आंटी के सर के नीचे रखा और उनके होंठों को अपने होंठों में भर कर आंटी के होंठों को चूसते हुए उनकी चूत को रगड़ने लगा, आंटी भी मेरे चुम्बन का जवाब चुम्बन से ही दे रही थी।इस सबका नतीजा यह हुआ कि आंटी लगभग तुरंत ही झड़ गई और उनकी चूत के रस से मेरे हाथ की उंगलियाँ भीग गईं। जब मैं आंटी के होंठों से अलग हुआ तो मैंने देखा कि उनके चहेरे पर एक अलग ही सुकून था।
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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
पापा ने चोद दिया--1
जैसे की मैने आपको बताया कि मैने बचपन से ही अपने मोम पापा का लंड-चूत का खेल चुप-चुपके से देखती थी जिसका कि मम्मी को नही पता था कि जब वो रोज़ पापा से चुदवाने जाती है और मैं देखती हू. जब में 16 साल की थी, तब मेरी चुचियो का साइज़ 32 था, लेकिन ग़रीबी की वजह से मैं ब्रा नही डाल सकती थी. मम्मी के पास भी सिर्फ़ 2 ब्रा थी जो की वो बाहर जाते वक़्त ही डालती
थी. नही तो घर आते ही वो पहला काम यही करती थी की बाथरूम में
जाकर वो अपनी ब्रा उतारती और सिर्फ़ सलवार कमीज़ मैं रहती थी या सिर्फ़ मॅक्सी
(गाउन) ही डालती थी. घर पर डालने के लिए उन्होने पतला सा सूट रखा हुआ
था.
मेरी चूत मैं हमेशा ही खुजली होती रहती थी कि कोई पापा जैसे लंड मेरे
भी चूत मैं डाल कर पूरी तरह अंदर बाहर करे जैसे मम्मी की चूत मैं
मेरे पपाजी करते थे. मैं सोचने लगी कि क्यों ना पापा को ही अपनी ओर आकर्षित
करूँ. मम्मी जब लोगों के घर में काम करने के लिए चली जाती , मतलब
कि वो पापा को अपने काम पे जाने से पहले ही उठा जाती थी (मीन उनसे अपनी
चूत की प्यास बुझा जाती थी) तो पापा जी उठकर नहा धो कर मेर हाथ से
नाश्ता पानी करते थे. मैं सोचा कि पापा को मैं किस तरह से आकर्षित करूँ.
उस दिन भी जब पापा को मम्मी उठाकर (सेक्स करके) गयी तो पापा सिर्फ़ लूँगी डाल कर
ही उठ जाते थे, क्योंकि मम्मी सारे कपड़े उनके उतार देती थी, और नहाने के
लिए फिर कपड़े उतारने पड़ते, इसलिया पापा सिर्फ़ लूँगी लाते थे, यह मैं पहले
भी देख चुकी थी. लूँगी डालते हुए भी पापा का लंड किसी गधे या घोरे के
लंड जैसे लटक जाता था, जैसे गधे या घोरा किसी गधि या घोरी से सेक्स
करके फ्री हुआ हो.
मेरे दिल में हुलचल होने लगी. मेने एक प्लान सोच लिया था. पापा जब अपने
कमरे से बाहर आए तो मुझसे पूछा..सीमा बेटी, नहाने के लिया पानी तैय्यर
है?
में…. हा पापा, मैं पानी रख दिया है
पापा… ठीक है, सीमा बेटे.
मैने उस टाइम एक मम्मी का एक पुराना गाउन (मॅक्सी) डाली हुई थी, जो की कमर से
कुच्छ फॅटी हुई थी. वो मॅक्सी इतनी मुझे ढीली थी कि मेरे मम्मे उसमे से
साफ महसूस हो रहे थी. मॅक्सी इतनी ट्रॅन्स्परेंट थी कि मेरे मम्मे की अंगूर
(निपल) और काले –काले घेरे (ब्लॅक ब्लॅक राउंड) भी दिखाई दे रहे थे. मैं
जानबूझ कर गाउन के नीचे कोई पेंटी नही डाली थी. वैसे भी मेरे पास जो 1-2
पेंटी थी, वो पुरानी हो चुकी थी और मेरी चूत वाली जगह से फट
चुकी थी.
हमारा बाथरूम बिल्कुल छ्होटा था. बहुत मुश्किल से उसमे एक ही आदमी आ सकता था, वो सिर्फ़ नहाने के लिए पौडियों (स्टेर्स) के नीचे बनाया गया था. क्योंकि सर्दियों के दिन थे. मैने पानी गरम करके बाथरूम में एक बिग बर्तन में रख दिया था. पानी बहुत गरम था, जो कि मैने जान बूझ कर किया था. पापा जब नहाने के लिया बाथ रूम में गये तो देखा कि पानी से अभी भी भाप (धुआँ) निकल रहा है. पापा जब बाथरूम में आए. वो पानी से धुआँ (हीट) निकलती देख कर बोले .. पापा… सीमा बेटे… लगता है पानी बहुत गरम है, ज़रा बाहर से पानी लाकर इसमे मिला दो, ताकि यह थोड़ा ठंडा हो जाए.
में : अच्छा पापा में पानी लेकर आती हू.
मेरे दिल जोरो से धड़क रहा था. मैं बर्तन मैं बहुत सारा पानी लेकर
बाथरूम में चली गई. पापा ने अभी भी लूँगी पहनी हुई थी. में जब पानी
से भरा बर्तन लेकर अंदर बाथरूम में गई तो पाप थोड़ा सा पीछे हट
गये, ताकि मैं गरम पानी में ताज़ा पानी मिला सकू. में जानबूझ कर अपनी
चूचियो (ब्रेस्ट्स) को उँचा उठा कर चल रही थी, जिससे मेरे मम्मे मेरी
मम्मी के ढीले गाउन में से उभर कर दिखाई दे रहे थे और मेरे निपल भी अकड़ कर टाइट हो गये थे. मेरी नुकीली चूचियो (ब्रेस्ट्स) को देख कर पापा का लंड लूँगी में उपर नीचे होने लगा. मुझे पता था कि पापा कयी बार मम्मी को कह चुके थे की सीमा को भी ब्रा ले कर दो, उसकी भी छातियाँ
(चूंचियाँ) बड़ी होने लगी है.
पापा का पूरा ध्यान मेरी छातियो की तरफ था. मैने चोर नज़रों से देख लिया
था कि पापा का लंड उपर नीचे हो रहा था. और ठुमके लगा रहा था. मेरा
दिल भी धक धक कर रहा था…. क्योंकि में आज कुच्छ ख़ास करने वाली थी…
ताकि मेरी चूत की खारिश मिट जाए. पापा का ध्यान मेरे मम्मो की तरफ था,
जबकि मेरा ध्यान पापा के मोटे डंडे (रोड) की तरफ था जो कि उपर नीचे हो
रहा था… में नीचे झुक गयी और अपने चूतरो (हिप्स) उपर उठा दिया… और नीचे रखे बर्तन में पानी डालने लगी… मैने जानबूझ कर अपने चूटरो को पापा के लंड के पास टच कर दिया और ऐसे धीरे -2 से पानी डालने लगी, जैसे की मुझे महसूस ही ना हो रहा हो कि मेरे चूतर पापा के लंड को टच कर रहे हैं.
मेरे चूतरो से टच होते ही पापा का लंड और भी टाइट हो कर सीधा रोड की
तरह मेरे दोनो हिप्स के बीच की दरार में फिट हो गया. में बहुत धीरे-2 से
पानी डाल रही थी, आज बड़ी मुश्किल से मोका मिला था, कुछ करने का, पता
नही मेरे में कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी थी, जो मैं ऐसा करने की
हिम्मत कर रही थी, मुझे कुछ भी नही सूझ रहा था. पापा बे चुपचाप अपना लंड मेरे चूतरो में फसा कर खड़े हुए थे. उनके लंड की टोपी (सुपरा) मेरे हिप्स के बीच में ऐसे फिट था जैसे बोतल में ढक्कन लगा हो. में पानी
डालते –डालते थोड़ा सा और पीछे क तरफ हो गयी, जिससे पापा का लंड मेरे
चूतरो में और भी धँस गया और मेरी चूत को भी टच करने लगा था. मेरे
दिल की हालत का मुझे है पता था.. मैं पानी डालना बंद कर दिया और पापा से
पूछा.. पापा चेक कर लो कि अब पानी ज़्यादा गरम तो नही है. पापा मेरी तरफ
और ही नज़रों से देख रहे थे. उन्होने मुझे उपर से नीचे की तरफ गौर से
देखा. और बोले …
पापा … बेटी यह तुमने किसकी मेक्शी डाली हुई है.
मैं … पापा ये मम्मी की है… घर की सफाई करनी थी, इसलिए मैने सोचा कि में अभी यही डाल लेती हू.
पापा…. ठीक है बेटे… अब तुम जाओ, में नहा लेता हू.
में … ठीक है पापा.. आप नहा लो,…मैं नाश्ता बनाती हू.
पापा… अच्छा ठीक है.
मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था. मैं पानी का बर्तन लेकर बाथरूम से बाहर
आ गयी और आगे का प्लान सोचने लगी.
मैं जल्दी से छत पर चढ़ गयी और स्टेर्स के बीच में से बाथरूम के
अंदर देखने लगी, जिसमे से थोड़ा सा पोर्शन रोशनी आने के लिए छोड़ा गया
था पापा नीचे बैठ थे और उनकी लूँगी कील (नेल्स ऑन दीवार) पर तंगी
हुए थी और पापा अपने पूरे बॉडी पर साबुन लगा चुके थे उनकी आँख बंद
थी. और उनके लंबे चौड़े लंड पर भी काफ़ी साबुन लगा हुआ था. वो अपने
दोनो हाथों को बाँध कर अपने लंड को हाथों के बीच मे लेकर आगे-पीछे कर रहे थे और कुच्छ कुच्छ बुदबुदा रहे थे.. मैने ध्यान से सुना तो वो कह रहे थी… हाई सीईएमा…. मेरईजाआअँ… लो और लो… तुम्हारी चूत मैं अपने प्प्प्प्पाआप्प्पाा का लंड लूऊ…आआहह मेरी जाआं… मेरी बेतट्टी… अपने पापा मा
मजेदार लंड लो…..;एयेए . यह कहते हुए वो अपने लंड को ज़ोर ज़ोर से आगे
पीछे करने लगे. पापा का लंड जितना हाथ के अंदर था उतना ही हाथ के
बाहर भी था.
मेरी चूत पानी छ्चोड़ने लगी. थी मैं अपनी चूत में एक उंगली डाल कर आगे
पीछे करने लगी.. मुझे बहुत मज़ा आ रहा थाअ. मैने सोचा , यह मोका
ठीक नही है.. में जल्दी से नीचे जाकर प्लान किया कि अब क्या करना चाहिए.
में कमरे मैं जाकर लेट गयी और जब मुझे अंदाज़ा हुआ कि पापा नहा कर
बाहर आने लगे है और उन्होने बाथरूम की कुण्डी (सांकल) बंद की में समझ गयी कि पापा अपना तौलिया रस्सी पर टंगा कर इस तरफ ही आएँगे. मैने
अचानक एक चीख मारी और फर्श पर गिर जाने की आक्टिंग की और अपनी मॅक्सी (गाउन)
को घुटनो (नीस) तक उपर कर के चीखने की आक्टिंग करने लगी. क्योंकि मैने
नीचे कछि (पॅंटी) नही डाली हुई थी, इसलिए मुझे ठंडी ठंडी हवा
अपनी चूत पर महसूस हो रही थी.
पापा मेरी चीख सुनकर जल्दी से कमरे मैं आए और देखा कि मैं ज़मीन पर
पड़ी हुई हू. पापा ने पूछा, सीमा बेटे क्या हुआ, चीख क्यों रही हो? मैने कहा, कुछ नही पापा, बस फिसल गयी और शरीर दर्द कर रहा है और पैर
में और कमर में शायद मोच आ गयी है. पापा ने उस समय लूँगी (धोती)
डाली हुई थी. गाउन मेरे मम्मो पर चिपका हुया था और मेरी टाँगे घुटनों तक दिखाई दे रही थी, मेरी टाँगो पर एक भी बॉल नही था. पाप का लंड धोती में धूँके मारने लगा. पापा ने जल्दी से मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे उठाया और बेड पर लिटा दिया. पापा जब मुझे बेड पर लिटा रहे थे तो पापा का लंड हाफ-टाइट था मुझे वो सीन याद आ गया जब पापा मम्मी को चोद कर डिसचार्ज होते है और उनकी चूत से लंड निकालते है और उनका लटकता हुया
लंड किसी गधे या घोड़े जैसे लगता है. मैने धीरे से पापा के लंड को टच
कर लिया, जो कि मेरी कई महीनो की तमन्ना थी.
जब पापा ने मुझे उठाया तो मैने टाँगे सीधी नही की थी, ताकि मेरी मॅक्सी
नीचे ना सरके और मेरी टाँगे नंगी रहे. मुझे जब पापा ने बिस्तर पर लिटा
दिया तो मैने जल्दी से अपने घुटने उपर की तरफ कर दिए और दोनो धुटनों को
थोड़ा सा खोल दिया ताकि मेरे पापा को मेरी चूत रानी के दर्शन हो सके.
पापा ने जब मुझे लिटा दिया तो पूछा … सीमा , अब बता कि कहाँ दर्द हो रहा
है. जल्दी बता. मैं तेल लगा देता हू, और मालिश भी कर देता हू…मैने
कहा… हा पापा बहुत ज़ोर से दर्द हो रहा है. … जल्दी से कुछ करो.. मैं मरी
जा रही हू.आआहह. ,…. बहुत दाअर्द हो राअहहााअ है..आआआअहह.
पापा बोले रूको सीमा, में जल्दी से तेल लेकर आता हू. पापा जल्दी से जाकर
पास रखे सरसों के तेल की शीशी को उठाकर ले आए. वो फिर से बोले, सीमा,
बता कहाँ दर्द हो रहा है. मैने कहा … क्या बताउ पापा पूरे शरीर में ही
दर्द हो रहा है… शरीर सुन्न हो रहा है.. अच्छा बेटी में मालिश कर देता
हू.
कह कर पापा ने अपने एक हाथ पर तेल ऊडेला और दोनो हाथ पर मसल कर मेरे
पैरो से शुरू किया. पहले एक टाँग पर घुटनो तक मालिश की और फिर तेल दोनो
हाथों में मसल कर दूसरी टाँग पर घुटनो तक मालिश कर दी, जब वो मालिश
कर रहे थे, तब मैने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और मैं आँखों की
झिरी से देख रही थी कि वो क्या महसूस कर रहे है. मैने धीरे -2 अपने
दोनो घुटनों को ढीला छोड़ना शुरू कर दिया, ताकि दोनो के बीच मैं गॅप
ज़्यादा हो सके और पापा को मेरे अंदर का द्रिस्य दिख सके.
वही हुया, जो मैने सोचा था. पापा को दोनो पैरो के बीच में मॅक्सी के अंदर
का दृश दिख चुक्का था. क्योंकि मैने मॅक्सी के अंदर कछि (पॅंटी) नही डाली
हुई थी, मेरी गोरी गोरी टाँगों के बीच में से मुस्कराती हुई चूत पापा को
दिखाई दे गयी, जिसके चारो तरफ बाल उगने शुरू हो चुके थे, जो कहीं से
भूरे और कहीं से काले रंग के थे.
पापा का पूरा ध्यान मेरी चूत की तरफ था. मेरी साँस ज़ोर ज़ोर से चलने लगी
थी. मैं अपने प्लान में कामयाब हो चुकी थी. मैने अपने लिप्स से ज़ोर ज़ोर से
दर्द भरी आवाज़ें निकालने लगी ताकि वो जल्दी से मालिश कर सके… आआहह
पपप अभी भी दर्द हो रहा है….
पापा बोले : अच्छा बेटी , में और तेल लगाता हू, रूको.
यह कहकर पापा ने मेरी दोनो टाँगो के उपर जो मॅक्सी थी उसको थोरा मेरी कमर
की तरफ खिसका दिया. अब मेरी थिग्स दिखाई देने लगी थी. पापा ने मेरी तरफ
देखा .. मेने अपनी आँखे पहले ही बंद कर रखी थी ताकि पापा को शक ना हो
सके, के यह मेरा ही प्लान है.. मैं धीरे-2 से कराह रही थी.
पापा ने तेल से भरे हुए हाथो को मेरी रानों (थिग्स) पर मसलना शुरू किया.
मेरे शरीर में चींटियाँ दौड़ने लगी, जैसे करंट लग रहा हो. पापा का
हाथ धीरे -2 से मेरी चूत की तरफ जा रहा था वैसे-2 ही मेरे दिल की
धड़कन बदती जा रही थी. पापा ने चुपके से मॅक्सी को थोरा और मेरी कमर तक
कर दिया अब मेरी पूरी टाँगें और मेरी चूत पूरी तरह से नंगी थी… पापा ने
धीरे -2 से मेरी चूत को टच करना शुरू किया ... पापा ने पूछा …सीमा
क्या अभी भी दर्द हो रहा है.. मैने कहा… हाअ पापा अभी भी दर्द हो रहा है,
लेकिन पहले से कुछ कम है… ऐसे ही मालिश करने से आराम मिल रहा है.
क्रमशः..............
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12-26-2018, 11:04 PM,
(This post was last modified: 12-10-2023, 01:28 AM by desiaks.)
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RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
पापा ने चोद दिया--2
गतान्क से आगे...........
अच्छा सीमा बेटी , तुम ऐसे करो पैट के बल लेट जाओ मैं तुम्हारी पीठ पर भी
मालिश कर दूँगा तो आर्राम मिल जाएगा… (जब पापा ने ऐसे कहा तो, मैने
महसूस किया की उनकी आवाज़ मैं कंपन था)
मैने कहा, जी पापा में उल्टी लेट जाती हू, ताकि आपको मेरी पीठ पर भी
मालिश करने मैं कोई परेशानी ना हो.
यह कहकर मैं पेट के बल लेट गयी. पापा ने आराम से मेरी मेक्शी को मेरे
चूतरो (हिप्स) से थोरा सा उपर कर दिया. मेरे बेदाग चूतरो को देख कर पापा
का लंड बिल्कुल टाइट हो गया. मैने अपनी बाहों में अपने सिर को दे रखा था.
लेकिन चोर-नज़रों से में उनको हरकतों को ही देख रही थी, क्योंकि मेरे सामने
एक शीशा (मिर्रोरो) था जिस में मैं पापा की सारी हरकतें देख रही थी.
पापा मेरी दोनो टाँगें खोल कर मेरी टाँगों के बीच में बैठ गये और तेल
हथेली पर लगा कर मेरे चूतरो पर मालिश करने लगे और धीरे -2 से अपने
हाथों को मेरी कमर पर ले जाने लगे… पापा बोले… सीमा बेटी… कैसे लग रहा
है… कुच्छ आराम मिल रहा है…
मैं : हाअ पापाआ. बहुत आराअम [email protected][/url]$$$$ मिल रहा है, दिल करता है कि बस
आप ऐसे ही मालिश करते रहो, पापा आपके हाथों में तो जादू है, मुझे पता
ही नही था..
पापा : हाअ बेटी, मैं तुम्हारे पूरे बदन पर मालिश कर देता हू, ताकि तुम्हारा
दर्द बिल्कुल दूर कर दू.
जब पापा ने यह कहा तो उनका लंड ठुमका मारने लगा, जो कि मैं मिरर में
से देख रही थी. जब पापा मेरी कमर की मालिश कर रहे थे तो मैने अपने
चूतरो को और थोड़ा सा उभार दिया ताकि पापा का लंड महसूस कर सकू. पापा का
लंड का सुपरा धीरे से मेरे चूतरो से टच कर रहा था और पापा के लंड का
कंपॅन मुझे साफ महसूस हो रहा हा.. पापा ने फिर से पूछा… सीमा, अब कैसे लग रहा है.. (यह कहकर पापा ने अपने लंड थोरा सा ज़ोर से मेरे चूतरो पर दबा दिया)
मैं उनका मतलब समझ गयी और बोली : आआहह पापा बहुत मज़ा आ रहा है.. बस ऐसे ही करते रहे हो…
पापा ने थोरा सा तेल और लिया और मेरी कमर से थोरा और उपर की तरफ मालिश
करने लगे, जिस से उनके लंड का दबाव मेरे चूतरो पर ज़्यादा पड़ने लगा था..
उन्होने अपने दोनो पैर मेरे चूतरो के दोनो तरफ फैला रखे थे और अपने लंड
को मेरे चूतरो की दरार में फसा रखा था. उनका हाथ अब बिल्कुल मेरी पीठ
पर था, जहाँ किसी ब्रा की स्ट्रीप होती है. मुझे अपने अंदर आग जलती हुई
महसूस होने लगी थी.
पापा ने मालिश करते-2 अपने दोनो हाथों को मेरे मम्मे की साइड में भी टच करना शुरू कर दिया था. बीच बीच में वो हाथों को मेरी गर्देन पर भी ले जाते थे और , जो कि बहुत ही सेक्सी लगता था.. फिर थोरी देर बाद उनका हाथ
नीचे आता और मेरे मम्मे के साइड पर मालिश करने लगते थे. अब पापा मेरे मम्मो के साइड से हाथ डालकर मेरे उभरे हुए दोनो मम्मो को अपने हाथो में लेकर सक़ीज़े (दबाने) भी लगे थे, में जानबूझ कर अपने होंठो से
आआअहह…..ऊओह की आवाज़ें निकालने लगी, मुझे पता था ऐसी आवाज़ें से
सेक्स ज़्यादा बढ़ता है.
पापा ने कहा, बेटी इस मेक्शी (गाउन) को उतार दो, यह मालिश में अटक रहा है..
मैने आँखें बंद किए हुए ही कहा … ठीक है पापा, आप ही उतार दो. पापा ने
जल्दी से मेक्शी (गाउन) को उतार दिया. जब वो मेक्शी उतार रहे थी तो मेने
जानबूत कर ऐसे अपनी बाहों को फसाया कि पापा का ध्यान मेरे मम्मो (बूओबस) पर जाए …मेरे 32 साइज़ के मम्मे एकदम से टाइट हो रहे थे और छोटी छोटी सी निपल तन कर अंगूर जैसे टाइट हो चुके थे.
क्योंकि मेरी पीठ पापा की तरफ थी पापा ने अपने दोनो हाथों को मेरे मम्मे पर दबा कर फिर मेरी मेक्शी (गाउन) को उतार दिया, उनका लंड बिल्कुल पत्थर जैसे टाइट हो चुक्का था. जो कि मेरी हिप्स में फिक्स हो चुक्का था. में मेक्शी उतरवा कर फिर से लेट गयी. पापा बोले बेटी अब इस तरफ से (पीठ के बल)
लेट जाओ. .. मैने कहा …पापा मुझे शरम आती है… पापा बोले… बेटी शरम
कैसी… मैं तुम्हारा पापा हू. … मुझसे कैसी शरम .. मैने तुम्हे तो कई बार अपनी गोद में उठाया है और.. कई कई बार तुमने अपने साथ नंगे नहलाया है… तुम हो कि शर्मा रही हू… छोड़ो शरम… लाओ तुम्हारी मालिश थोरी सी रह गयी है, वो भी कर देता हू.
मैने भी हिम्मत करके कहा.. ठीक है पापा, जैसे आप कहते हो.. मैं बिल्कुल
वैसे ही करूँगी.. फिर यहाँ पर देखने वाला भी कौन है? पापा खुश हो कर
बोले हाअ बेटी यह ठीक कहा तुमने, यहाँ हम दोनो के इलावा कौन है?
पापा ने थोरा सा तेल दोनो हाथो में लिया और मेरे दोनो 36 साइज़ मम्मो को अपने हाथों में भर लिया और प्यार से दबाने लगे.. मैने शरमाते हुए कहा पापा यह आप क्या कर रहे हू..पापा बोले बेटे मैं तुम्हारी मालिश कर रहा हू…. अगर पूरी तरह से मालिश नही करेंगे तो थोरा सा दर्द रह जाएगा ..जो की तुम्हे रात को परेशान करेगा… मैं तुम्हारी पूरी मालिश ऐसे करूँगा की फिर से चोट या मोच का दर्द नही होगा…
मैने शरमाते हुए कहा.. ठीक है पापा, आप कर दो मेरी मालिश. मैं आँख
बंद कर के लेटी रही.. पापा ने मेरे दोनो बूब्स को फिर से अपने हाथों में
लिया और प्यार से दबाने लगे और दबा दबा कर ऐसे मालिश करने लगे जैसे
किसी आम से रस निकाल रहे हो. मेरे मूह से आअहह ….ओह की आवाज़ निकल
गयी.. पापा ने पूछा, क्या बात है बेटे.. दर्द हो रहा है… मेने कहा.. नही
पापा …आराम मिल रहा है.. दिल करता है बस आप ऐसे ही करते रहो…
पापा : हा बेटी , तभी तो मैं ऐसी मालिश कर रहा हू कि तुम्हे दर्द ना हो
और आराम के साथ मज़ा भी मिले… क्यों ठीक है ना?
मैं : हा पापा ठीक है… ऐसे ही करते रहो…
पापा ने कहा… बेटी तूमे बुरा ना लगे तो में एक और तरीके से तुम्हारा दर्द
ठीक कर दू… हाअ..हाअ पापा (मैने कहा) अगर मेरा दर्द ऐसे ठीक होता
है तो उस तरीके से भी कर दो..
पापा ने कहा बेटी अपनी आँख मत खोलना.. मैने कहा ठीक है पापा मैं अपनी
आँख नही खोलूँगी.
पापा ने अपने हाथों मैं मेरे मम्मे को भर कर एक दम से दबा कर मेरे एक मम्मे (बूब)_ को अपने मूह में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगे… मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया.. मैने कहा पापा यह आप क्या कर रहे हो.. यह तो छ्होटे बच्चे (चाइल्ड) ऐसे चूस्ते है… पापा ने कहाँ… हाअ बेटे… ऐसा करने से तुम्हारा पूरा दर्द इस रास्ते से भाग जाएगा…
में : ठीक है पापा, जैसे आपका दिल करे… ऐसे भी ठीक लग रहा है.
पापा ने ज़ोर ज़ोर से मेरी चूंचियाँ अपने मूह में डालकर चूसना शुरू कर
दिया, कभी एक चूंची को चूस्ते तो कभी एक को निकाल कर दूसरी चूंची को
अपने मूह में डाल कर चूस्ते.. उनका लंड एक दम से पूरी तरह से टाइट हो
चुक्का था जो की पत्थर जैसे लग रहा था. मेरी दोनो लेग्स फैली हुई थी,
पापा मेरी फैली हुई लेग्स के बीच में बैठे हुए थे. उनका लंड मेरी चूत
को ज़ोर ज़ोर से टच कर रहा था.
मैने पापा का लंड अपने हाथ में ले लिया और पापा को कहा पापा ये क्या है,
मुझे ज़ोर से चुभ रहा हा.. पापा बोले बेटी.. यह … आदमी का हथियार होता
है, जिस_से यह दूसरा दर्द भी दूर कर देते है..
मैं अंजान बनते हुए और हैरान होते हुए कहा: पापा दूसरा दर्द कौन सा होता
है जो यह आपका हथियार दूर कर देता है?
पापा ने मेरी चूत ओपर हाथ फेरते हुए कहा… बेटी जब इसमे दर्द होता है तो
यह हथियार उस दर्द को दूर करता है…
मैने अपने चेहरे पर दर्द लाते हुए कहा… पापा मुझे यहाँ भी दर्द महसूस हो रहा है.. आप अपने इस औजार से मेरा यहाँ का दर्द भी दूर कर दो ना…प्ल्ज़ पापा… कुछ करो नाअ.
क्रमशः..............
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