Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:02 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
'हाई ये क्या कर रहे हो, छोड़ो !'

'क्या बीवी की सफाई कर रहा हूँ देखो तुम्हारी चूत कितना सूज गयी है सिकाई से थोड़ा आराम मिलेगा'

''रहने दो पति जी, मैं खुद कर लूँगी' और सवी ने उठने की कोशिश करी तो कमर में तेज दर्द हुआ और उसकी चीख सी निकल गयी.

सुनील ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और बाथरूम में ले गया, वहाँ तब पहले ही गरम पानी का भरा हुआ था, सुनील ने सवी को टब में लिटा दिया.

'उम्म थॅंक्स' सवी ने सुनील के गाल चूम लिए, गरम पानी से बहुत राहत मिली थी उसे.

'नो थॅंक्स नो सॉरी' कहता हुआ सुनील भी जब तब में घुसने लगा तो...

'अरे ना बाबा ना अब दो दिन तो मुझे माफ़ ही करो, जाओ बाहर नही तो फिर शुरू हो जाओगे'

'क्या बाहर जाउ, अरे अपनी बीवी के पास हूँ'

'जाओ ना प्लीज़ ! मेरी हालत पे तरस खाओ दो दिन मुझे अब छूना भी नही'

'अरे कुछ नही होता, अभी देखना कितनी फुर्ती तुम में आती है'

'ना ना, जाओ ना, कुछ देर मुझे अकेले छोड़ दो'

'ह्म्म ठीक है बाद में बताता हूँ' सुनील बाहर निकल गया और सवी मुस्कुराती हुई टब में लेटी गरम पानी से अपने जिस्म को टिकोर देने लगी.

बाहर आ सुनील ने कपड़े पहने और बाल्कनी में जा कर खड़ा हो गया. तभी होटेल की तरफ से अख़बार भी आ गया. सुनील ने खुद के लिए कॉफी बनाई और अख़बार ले बाहर बाल्कनी में बैठ गया.

कॉफी के घूँट पीते हुए सुनील अख़बार पढ़ने लग गया तभी सोनल का फोन आ गया.

'उूुुउउम्म्म्मममम्मूऊऊव्वववाााहह' एक लंबा चुंबन झड़ने के बाद सोनल बोली ' कैसा है मेरा जानू, नयी बीवी मुबारक हो, रात कैसी गुज़री'

'उम्म्मम्मूउव्वववाआह' सुनील ने भी चुंबन का जवाब दिया ' मिस्सिंग यू टू, आ जाओ ना'

'अरे कुछ दिन तो नयी बीवियों को दो, हमे तो आपके बच्चों ने बिज़ी रखा हुआ है अभी'

'सोनल पता नही जो किया वो ठीक है या नही, पर मैं तुम दोनो के बिना एक दिन नही रह सकता'

'सच जान हमारा भी दिल करता है अभी उड़ के आ जाएँ, पर अभी ये ठीक ना होगा, आख़िर उन दोनो के लिए भी तो तुम्हारी ज़िमेदारी है, हनिमून पे गये हो, फुल ऐश करो और कर्वाओ, अच्छा हां एक अच्छी खबर सुनो, जब तक तुम आओगे सुनेल भाई भी ठीक हो जाएगा, कितना अच्छा होगा अगर हम सब साथ रहे तो'

'ह्म्म ये तो अच्छी बात है, अच्छा सूमी कहाँ है?'

'बाथरूम में है अभी फोन करवाती हूँ, मिस यू लव यू, बाइ'

'बाइ'

तभी फ़िज़ा में भीनी भीनी ताज़ी महक फैल गयी .

अपने बालों को सुखाती हुई रूबी टवल में लिपटी वहाँ आ गयी.

हवा की ताज़गी में और ताज़गी आ गयी. रूबी ने जैसी ही बालों को झटका ...

'ना झटको जुल्फ से पानी, ये मोती फुट जाएँगे, तुम्हारा कुछ ना बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे'

'धत्त'

'वहाँ दूर क्यूँ हो, इधर तो आओ'

'ना बाबा तुम कहीं शरारत करने लग गये तो' चेहरे से ना दिखाती फिर भी चलती हुई सुनील के पास आ कर उसकी गोद में बैठ गयी और अपनी बाँहें उसके गले में डाल दी.

'हज़ूर भूक लगी है, नाश्ता मन्ग्वाओ' रूबी इठलाती हुई सुनील की गोद में बैठी हुई बोली.

'तो मुझ से पूछने की क्या ज़रूरत, जो दिल करे रूम सर्विस ऑर्डर कर दो'

'मैं ऑर्डर कर के आ ती हूँ' रूबी बोल उठने लगी, लेकिन सुनील ने पकड़ लिया इतनी भी जल्दी क्या है, पहले इस भूके की कुछ तो भूख मिटा दो.'

'क्यूँ जी रात को भूख नही मिटी क्या?'

'स्वाद भी तो बदलना चाहिए'

' ना जी ना ये गंदी आदत पड़ गयी तो हम बेचारियों का क्या होगा, आप तो नये पकवान खाने बाहर ही भागते रहेंगे'

'मैं तो अपने घर के पकवान के बारे में बोल रहा था जानेमन' और सुनील ने रूबी के चेहरे को थाम उसके होंठों से अपने होंठ जोड़ दिए.

'उम्म्म्म' रूबी के बोल मुँह में ही अटक गये और कटी पतंग की तरहा ढह गयी सुनील के आगोश में, जी भर के रूबी के होंठों को चूसने के बाद सुनील ने उसे छोड़ा तो हाँफती हुई खड़ी हुई और प्यार से सुनील की छाती पे दो तीन मुक्के मारती हुई बोली' गंदे गंदे गंदे' और भाग खड़ी हुई अंदर कमरे में, फोन उठा ब्रेकफास्ट का ऑर्डर दिया और तयार होने लगी, चेहरे पे लाली छा गयी थी, दिल की धड़कन संभाल नही पा रही थी. मुश्किल से तयार हुई वो.
Reply
07-20-2019, 10:02 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
तब तक सवी भी तयार हो चुकी थी, उसने दो पेन किल्लर भी खा ली थी, पर चूत का जो हाल हुआ था वो दुबारा जल्दी संभोग नही कर सकती थी, तयार होने के बाद वो रूबी के रूम में गयी, तब रूबी उसी वक़्त तयार हुई थी.

रूबी उसे देख एक दम उससे लिपट गयी ' हेय मोम डार्लिंग, हाउ वाज़ दा नाइट'

सवी : रूबी अब तू मुझे मोम बोलना छोड़ दे, हम दोनो ने एक से शादी करी है, अब तू मुझे दीदी कहा कर जैसे सूमी को बोलती है.'

रूबी मज़े लेने के मूड में थी' क्यूँ जी, माँ को मा क्यूँ ना बोलूं, हां मान लिया हम दोनो एक के साथ सेक्स करेंगे, पर जब दुनिया के सामने तुम्हें मोम बोलूँगी तो अकेले में क्यूँ नही - कितनी अजीब बात है ना मेरा स्टेप डॅड मेरे साथ सेक्स करेगा और तुम्हारा दामाद तुम्हारे साथ'

सवी ...चिल्ला ही पड़ी - रुउउब्ब्ब्बयययययययययययययी ज़ुबान को लगाम दे, ये सेक्स नही प्यार है, कल मुझे सच में प्यार का असली मतलब पता चला, अगर सेक्स होता तो उसके पास कयि मोके थे जब जी चाहे कर लेता ना मैं मना करती ना तू.......प्यार को गाली मत दे.


रूबी अवाक सवी को देखती रह गयी. एक रात में सवी बदल गयी थी, बहुत बदल गयी थी. रूबी को यूँ लगा जैसे वो एक दम अकेली पड़ गयी हो, हर लड़की के लिए माँ एक ऐसा सहारा होती है जिससे वो जब चाहे अपने दिल की सभी बात कर सकती है, वो माँ उससे चिन गयी थी, वैसे तो उसे सब पे ऐतबार था, कि उसे कभी कोई तकलीफ़ नही होगी, पर फिर भी एक लड़की जो बातें अपनी माँ से कर सकती है वो बातें वो अपनी सौतेन से नही कर सकती, अपने पति से नही कर सकती, चाहे आपस में कितना भी प्यार क्यूँ ना हो, कितना ही एक दूसरे की देखभाल क्यूँ ना करें.

रूबी की आँखें नम पड़ गयी, बड़ी मुश्किल से उसने अपने आँसू रोके, इन बदले रिश्तों ने उसे कुछ दिया तो उससे बहुत कुछ छीन भी लिया. बिना कोई जवाब दिए वो बाहर निकल गयी और सुनील के पास जा कर बैठ गयी.

अपने आँसू रोकने के लिए उसने सुनील से ब्रेकफास्ट मेनू की बात छेड़ दी जो उसने ऑर्डर किया था सब बताने के बाद पूछा' ठीक है ना आपको कुछ और तो नही मंगवाना'
Reply
07-20-2019, 10:03 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी

जो रूबी कुछ देर पहले इतनी खुश थी, उसका चेरा कुछ उतरा हुआ था, उसकी आँखों से वो चमक गायब हो गयी थी जो कुछ देर पहले थी.

अपनी नज़रें अख़बार पे गढ़ाए हुए सुनील ने सीधा सवाल कर दिया ' सवी से कुछ कहा सुनी हो गयी क्या?'

रूबी : जी जी नही नही कुछ भी तो नही, मेरी क्यूँ कहा सुनी होगी.

सुनील ने जान भूज के ज़्यादा नही कुरेदा. ' यार तुम वो पिंक ड्रेस पहन लो, उसमे ज़्यादा खूबसूरत लगती हो' ये सिर्फ़ एक बहाना था रूबी के ख़यालात बदलने का.

'क्यूँ इसमें नही अच्छी लग रही क्या'

'अच्छी नही बहुत अच्छी लग रही हो, पर उसमें कयामत लगोगी ...कम ऑन स्वीट हार्ट चेंज इट'

'जी जैसी आपकी मर्ज़ी' रूबी अंदर चली गयी. तभी सवी वहाँ आ गयी.

'रिश्तों के बदलने का मतलब ये नही होता कि पुराने रिश्ते स्वाहा हो गये, बड़ों को हालत के हिसाब से अपने रूप बदलने पड़ते हैं- खैर छोड़ो अभी कुछ वक़्त लगेगा - तुम चलोगि ना साथ'

'ना बाबा मेरी तो हिम्मत नही कहीं जाने की आप दोनो जाओ, मुझे तो आराम करने दो'

'ऐसा भी क्या हुआ जान चलो वो नीली सारी पहन लो, ब्रेकफास्ट के बाद चलते हैं'

'प्लीज़ नही नही, सारा जिस्म दुख रहा है, अच्छे कस बल निकले मेरे रात को'

'देख लो फिर ना कहना...'

'कुछ नही कहूँगी, आज तो मेरे पास भी मत आना, चलने लायक भी नही छोड़ोगे' सवी बोल तो गयी पर पछताने लगी अंदर से, पास ना आने का मतलब उसका संभोग से था, ये नही कि सुनील उसके करीब ही ना आए.

' तुम्हारी मर्ज़ी' सुनील उठ के खड़ा हो गया. 'मैं रेडी होता हूँ.' सुनील अंदर चला गया.

सवी पशो पश में पड़ गयी ये उसे क्या हो गया अभी रूबी को नाराज़ कर डाला था और अब सुनील की भी शायद....आँखें नम पड़ने लगी.

सुनील को इतना अंदेशा हो गया था कि सवी और रूबी में कुछ ऐसी बात हो गयी है जो नही होनी चाहिए थी, जिसकी वजह से रूबी का चेहरा उतर गया था. एक पति होने के नाते अब उसका फ़र्ज़ बन गया था दोनो बीच पैदा हुई इस दूरी को जड़ से उखाड़ने का ताकि भविश्य में दोनो के बीच कभी किसी बात को लेकर तनिक भी मन मुटाव ना हो.

सुनील एकाग्र चित हो कर बाथरूम के फर्श पे बैठ गया और सवी और रूबी के बीच जो हुआ वो चल्चित्र की तरहा उसकी आँखों के सामने आ गया.

सारी बात समझ सुनील के चेहरे पे मुस्कान आ गयी. उसने अपने कपड़े पहने और तयार हो कर बाहर आ गया. रूबी ने भी वही कपड़े पहन लिए थे जो सुनील ने कहे थे और वाकई में उन कपड़ों में वो बला कि खूबसूरत लग रही थी. कोई भी देख ले तो मर्द बस पाने की तमन्ना करे और औरत ईर्ष्या से जल भुन जाए.

ब्रेकफास्ट भी सर्व हो गया था. तीनो ने शांति से ब्रेकफास्ट किया और सुनील रूबी को लेकर रजिस्टरार के ऑफीस गया जहाँ उसने अपनी और उसकी शादी रिजिस्टर करवा ली.

फिर सुनील रूबी को ले कर शॉपिंग के लिए निकल पड़ा.

सुनील ने रूबी को बहुत शॉपिंग करवाई, ऐसी ऐसी ड्रेसस ले कर दी, जो रूबी कभी ख्वाब में भी नही सोच सकती थी, देखा जाए तो ये सब उसने एक बार सोनल के लिए भी खरीदा था, पर जब सूमी और सवी की बात थी तब उसकी चाय्स अलग थी, सोनल और रूबी की कुछ ड्रेसस अल्ट्रा मॉडर्न थी पर सूमी और सवी की जितनी भी थी उनमें से नज़ाकत तो झलकती थी पर जिस्म की नुमाइश नही, सुनील ने सबकी उम्र को ध्यान में रख सबके लिए शॉपिंग करी थी. और रात की ड्रेसस में उसने कोई भेद भाव नही किया था, सबके लिए सभी टाइप की ट्रॅन्स्परेंट ड्रेसस हां रंग अलग थे जो जिसपे सूट करता था उसे वैसा ही लेकर दिया था.

शॉपिंग के बाद दोनो एक अच्छे रेस्टोरेंट में लंच के लिए चले गये.

लंच के दौरान

सुनील : सवी की बातों का बुरा मत मानना, सब ठीक हो जाएगा.

रूबी ने सुनील को ऐसे देखा जैसे उसे यूँ लगा कि सवी ने सुनील से उसके बारे में कोई शिकायत करी हो.

सुनील : ना ना ग़लत मत सोचो, सवी ने मुझ से कुछ नही कहा, पर तुम दोनो के थोबडे बता गये कि कुछ तो बात हुई है तुम दोनो में. बदलते रिश्तों की बात करना अलग होता है और खुद उन बदले रिश्तों को जीना अलग बात होती है.

रूबी ने अपना सर झुका लिया और सुनील की बात में छुपी गहराई को समझने की कोशिश करने लगी.

सुनील : देखो कुछ वक़्त तुम्हें लगेगा और कुछ वक़्त सवी को, इसलिए कोई भी परेशानी हो तो मैं हूँ ना, हां अगर मुझ से भी बात ना करना चाहो तो सूमी से कर लेना. अब मुस्कुरादो, तुम्हें जिंदगी में कभी कोई कमी महसूस नही होगी.

रूबी के चेहरे पे वही पुरानी मनमोहक मुस्कान तैर गयी, खुद को वो बहुत हल्का महसूस करने लगी थी.

लंच के बाद, सुनील रूबी को बीच पे ले गया और कुछ देर दोनो बीच पे टहलते रहे, फिर दोनो वापस अपने होटेल के लिए चल पड़े.
Reply
07-20-2019, 10:03 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील ने अपनी चाबी से दरवाजा खोला, सारा समान वेटर ले कर आया था जो उसे हॉल में रख चला गया लेकिन जाने से पहले सुनील का ऑर्डर नोट करता चला गया.

सवी उस वक़्त सो रही थी, शायद जो दवाई उसने ली थी उसका असर था. सुनील ने सवी को सोने दिया.

और रूबी के साथ दूसरे कमरे में चला गया. रूबी बाथरूम में घुस गयी और सुनील स्कॉच का पेग बना टीवी ऑन कर बैठ गया और अपनी थकान उतारने लगा.

तभी सूमी का फोन आ गया, कुछ देर तो दोनो फोन पे मस्ती करते रहे, फिर सुनेल वगेरह से बातें हुई, सूमी की आवाज़ में कुछ दर्द था जो सुनील पहचान गया, पर अभी उसने कुरेदा नही, वो सब सूमी के मुँह से ही सुनना चाहता था, तब तक रूबी बाथरूम से आ गयी और सूमी के कहने पे सुनील ने रूबी को फोन दे दिया.

सूमी का रूबी से बात करने का लहज़ा बिल्कुल अलग था सूमी एक सौतेन की तरहा नही एक मासी की तरहा उससे बात कर रही थी, और रूबी को सूमी में उस वक़्त सौतेन नही माँ ही नज़र आ रही थी, सूमी काफ़ी देर रूबी को समझाती रही और रूबी हाँ हूँ हाँ नही बस ऐसे ही जवाब देती रही.

इधर सूमी का फोन ख़तम हुआ उधर ब्यूटीशियंस आ गयी रूबी को तयार करने के लिए.

सुनील हॉल में चला गया और आराम से ड्रिंक करने लगा.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कहते हैं एक औरत, बड़े से बड़ा जुर्म माफ़ कर देती है, लेकिन एक जुर्म वो कभी माफ़ नही करती, उसकी फ़ितरत में भी उस जुर्म को माफ़ करना नही होता, जिस प्यार के महल में वो अब तक जीती आई वो टूट गया था, बस एक ही आदमी के प्यार ने उस को बिखरने से बचा लिया, क्यूंकी उसकी निशानी अब गोद में आ चुकी थी.

नफ़रत के बवंडर उसके अंदर से निकल रहे थे जो पता नही क्या क्या खाक कर डाले.

'नही माँ, नही, सम्भालो खुद को, ख़तम कर दो इस नफ़रत की आँधी को वरना कोई नही बचेगा, कम से कम उनके बारे में तो सोचो, उनपे क्या गुज़रेगी, टूट जाएँगे वो, इन बच्चों के बारे में सोचो जिनकी जिंदगी का आधार हम हैं, इनसे तो वो खुशिया मत छीनो जो इन्होंने अभी महसूस ही नही की'

आज कितने समय बाद सोनल ने सूमी को माँ कहा था.

रिश्ते बदल के भी नही बदलते, वो अपनी बुनियाद से दूर नही भाग सकते, जो कल हुआ था उसका असर आज पे तो पड़ता ही है.

सूमी बिलख बिलख के रोने लगी. सोनल का पारा चढ़ता चला गया.

सूमी को वहीं ऐसे छोड़ वो सुनेल के कमरे में घुस्स गयी और बरस पड़ी उसपे.

'शूकर कर अभी सुनील को नही पता, जो तूने किया है, चला जा यहाँ से, तेरी सारी चाल मैं समझ गयी हूँ, जो तू चाहता है वो कभी नही होगा. एक खून लेकिन फ़ितरत कितनी अलग, ये सागर डॅड की ही परवरिश है जो आज सुनील ऐसा है जिसे सब चाहते हैं, और एक तू जो खुद को रखवाला दिखाने की कोशिश कर रहा था उसके पीछे कितना घिनोना चेहरा है, जिनके लिए तू आया है कमिने, उनसबको तूने खुद ही दूर कर डाला. थू है तुझ पे'

'दीदी...'

'मत बोल अपनी गंदी ज़ुबान से दीदी मुझे'

'हां दीदी कहाँ अब तो तुम भाभी बन गयी हो!' सुनेल का चेहरा बोलते हुए विकृत हो गया. पास बैठी मिनी को यकीन ही नही हुआ कि ये सब सुनेल के मुँह से निकला वो चीखती हुई खड़ी हो गयी...' सस्स्सुउुुउउनन्नईएईल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल'

'तो देवर जी, इस भाभी के ख्वाब छोड़ दो, वरना जल जाओगे'


'मिनी संभाल के रखना इस कुत्ते को, अगर विधवा हो गयी तो मुझे मत कोसना बाद में' नफ़रत भरी नज़र डाल, सोनल बाहर निकल गयी.

'चलो माँ यहाँ से चलो अभी इसी वक़्त' सोनल रोती हुई सूमी को ज़बरदस्ती खींच के ले गयी.
Reply
07-20-2019, 10:03 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
आज मिनी ने फिर एक बार सोनल का वही चन्डी रूप देखा था जो एक बार पहले देख चुकी थी.

'क्या है ये सब सुनेल, तुम तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो, क्या तुम वही सुनेल हो, जिससे मैने प्यार किया था, ये सुनील के लिए अपनी जान दाँव पे लगाना, सवी के लिए भाग के आना, ये ये सब क्या था फिर.'

'मुझे नही पता, सब कुछ सुनेल को ही क्यूँ मिले, आख़िर मेरा भी तो उतना ही हक़ है, मेरे अंदर कोई वासना नही, मैं चाहता हूँ अब माँ और दीदी मेरे साथ रहें.'

'नही ये ड्रामेबाजी छोड़ो, तुम्हारा नक़ाब उतर गया, तुमने उस चन्डी को जगा दिया जिसके आगे सब पनाह माँगते हैं, सुनील की असली ढाल सोनल है और सोनल का वजूद सुनील में है, तुम ये भूल कैसे गये, ये दोनो सुनील की पत्नियाँ हैं अब'

'हां हां पता है उस हरामजादे ने हराम खोल लिया है'

'तुम तुम वो नही रहे, मैं जा रही हूँ, डाइवोर्स पेपर्स भेज दूँगी, आइ हेट यू' मिनी जिसके जखम अभी पूरी तरहा भरे नही थे अब भी उनमें टीस बाकी थी, वो जखम कुछ भी ना रहे इस जख्म के आगे जो आज उसकी आत्मा ने खा लिया था, टूट गयी थी वो, बिखर गयी थी वो और संभालने कोई नही था, कोई नही.

कल, आज और कल के बीच पिसती चली जाती है जिंदगी, यही इन सबके साथ हो रहा था.

मिनी के जाने का सुनेल पे जैसे कोई असर ना पड़ा. वो उसी तरहा रहा और छत को घूरता हुआ जाने क्या क्या सोचने लगा.

हॉस्पिटल के बाहर सोनल और सूमी टॅक्सी का इंतेज़ार कर रही थी, के सोनल ने बिलखती हुई मिनी को बाहर निकलते देख लिया, ना चाहते हुए भी उसने मिनी को पास बुलाया और तीनो विजय के घर की तरफ चल पड़ी.

मुंबई रास ना आई थी तीनो को.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सुनील का मन विचलित होने लगा था, कुछ कहीं ग़लत हुआ है, बार बार उसे यही लग रहा था.

सूमी सुनील को पुकारना चाहती थी, पर खुद को रोक रही थी, नही चाहती थी कि उसके हनिमून में कुछ बाधा आए, पर उसका दिल बहुत दुखी था, सवी की मजबूरी तो वो समझ सकती थी, पर सागर, उसने इतनी बड़ी बात क्यूँ छुपाई, जब सवी ने उसे सच बता दिया था, फिर क्यूँ उसने सुनेल को दूर रहने दिया. ये बात सूमी को खाए जा रही थी. कल जो आनेवाला होता है कभी आता नही और कल जो बीत जाता है ऐसी परछाईयाँ छोड़ जाता है जिन्हें कोई मिटा नही सकता वो कभी ना कभी आज से ताल्लुक जोड़ लेती हैं.

जो प्यार सूमी के अंदर सागर के लिए था वो टूट रहा था, वो विश्वास ख़तम हो रहा था, अगर आज सूमी अकेली होती, तो शायद वो जी ही ना पाती.

ना सिर्फ़ सूमी का दिल दुखी था, एक आस जो सोनल के दिल में बँध गयी थी, भाई के प्यार की, वो भी ख़तम हो गयी थी, और अपने कमरे में बैठी मिनी रोती हुई सोच रही थी, उसका क्या गुनाह था, उसके साथ ऐसा क्यूँ हुआ.
Reply
07-20-2019, 10:03 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
आज मिनी सुनेल की उस माँ को गाली दे रही थी जिसने सुनेल को सच का रास्ता दिखाया, ना वो ये सब करती, ना आज ये होता ना इतने साल पहले सुनेल उससे दूर होता, सब अपनी अपनी जिंदगी जीते, लेकिन होनी कहाँ मिनी के हाथ में थी. मिनी सुनील और सुनेल की तुलना करने लगी , हर पल हर क्षण सुनील का पलड़ा भारी होता चला गया. दो जुड़वा भाई और इतना फरक, हां फरक था बिल्कुल था - परवरिश का फरक था.

मिनी अपनी किस्मत को कोसने लगी, उसे सुनील क्यूँ नही मिला, उसने क्या गुनाह किया था, क्या उसकी जिंदगी अब यूँ ही गुज़रेगी, क्या उसे सच्चे प्यार का कोई हक़ नही, बिस्तर पर मुक्के मारती मिनी बिलखती रही, उसे संभालने वाला कोई नही था, जो थे वो खुद बिलख रहे थे.

विजय, आरती राजेश, कविता, चारों उस वक़्त हॉल में थे जब ये तीन घर आए, और उनके चेहरे देख किसी की हिम्मत ना हुई कुछ पूछने की, चारों अपने अपने तरीके से सोच रहे थे कल्पना कर रहे थे क्या हुआ जो ये तीन इस तरहा....पर कोई जवाब किसी के पास ना था.

तीनो अलग कमरे में थी, जो इनको मिले थे, बच्चों को कविता ने कुछ देर पहले ही सुला दिया था, कविता से रहा ना गया वो सोनल के पास चली गयी और आरती को विजय ने सूमी के पास भेज दिया, मिनी के गम को हरने राजेश उसके पास चला गया.

सोनल एक घायल शेरनी की तरहा कमरे में इधर से उधर घूम रही थी, कभी खड़ी हो ज़ोर ज़ोर से रोने लगती थी, और कभी एक दम आँधी तूफान की तरहा कयामत सी बन जाती थी.

सूमी बिस्तर पे गिरी बस रोती जा रही थी सुनेल ऐसा निकलेगा उसने ख्वाब में भी नही सोचा था, उसकी ममता घायल हो गयी थी, एक औरत घायल हो गयी थी, एक बीवी तड़प रही थी अपने साथी के लिए, सिर्फ़ वही उसे आज संभाल सकता था, सिर्फ़ वही उसे आज जीने की राह दिखा सकता था, सिर्फ़ वही उसका सुनील.

आज फिर एक औरत अपने ही रूपों से लड़ रही थी.

एक भायनल खेल का आगाज़ हो चुका था, दर्द का खेल.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हाथ में पड़ा स्कॉच का ग्लास सुनील से कुछ कहने लगा, उसमें बची स्कॉच का रंग बदल गया था, ये संकेत था सुनील के लिए, आने वाले तुफ्फान से जूझने के लिए.

सुनील उठ के खड़ा हो गया, बाहर बाल्कनी में जा कर शुन्य में घूर्ने लगा. बादलों में उसे दो चेहरे नज़र आए , एक समर का जिसके मुखेटे पे कुटिल हँसी थी एक सागर का जो गमगीन था पश्चाताप में.

सुनील ने आँखें बंद कर ली और उसके सामने अगी की आकृति आ गयी. आसमान एक दम काला हो गया, सुनील के चारों तरफ गेह्न अंधेरा छा गया, जिसे बाल्कनी में जलती लाइट्स भी भेद नही पा रही थी.

तभी सुनील के जिस्म के चारों तरफ एक सफेद धुआँ फैल गया जो उस अंधेरे को मिटाने लगा, वो सफेद धुआँ रोशनी में बदलता चला गया और सुनील के जिस्म से एक तेज निकलने लगा, सब कुछ अचानक गायब हो गया, कोई नही कह सकता था कि कुछ देर पहले यहाँ कुछ हुआ था. सुनील में कुछ तब्दीलियाँ आ चुकी थी, लेकिन क्या? ये अभी सुनील खुद नही जानता था.

आरती सूमी के कमरे में दाखिल हो गयी और सूमी को संभाल ने की कोशिश करने लगी.

'सुमन, क्या हुआ कुछ तो बताओ, तुम तीनो यूँ इस तरहा, सम्भालो खुद को.....' आरती का वाक़्य अभी ख़तम ही नही हुआ था कि कमरे में सफेद रोशनी छा गयी. आरती एक दम घबरा के बाहर भागी विजय को बुलाने और उसके निकलते ही दरवाजा एक दम बंद हो गया.

उस रोशनी से आवाज़ आने लगी, ' भूल गयी जो वादा मुझ से किया था'

सूमी के आँसू एक दम बंद, उसका बिलखना एक दम बंद. ये आवाज़ सुनील की थी.

सू सू सुनील ! घबरा सी गयी सूमी.

'मैं हूँ ना ! तुम लोग कल ही माल दीव आ जाओ, मिनी को साथ ले आना. बस अब एक आँसू नही.'

वो सफेद रोशनी गायब. और सूमी सोच में पड़ गयी. सुनील की आवाज़ यहाँ तक कैसे. फिर सर झटक वो कमरे से बाहर निकली तो सामने विजय और आरती खड़े थे . सूमी एक दम बदल गयी थी, उसके कॉन्फिडेन्स लॉट आया था, एक औरत जंग लड़ने को फिर तयार थी. सूमी सोनल के कमरे की तरफ बढ़ गयी, जहाँ कविता उसे संभालने की कोशिश कर रही थी. सूमी के अंदर कदम रखते ही सोनल एक दम शांत हो गयी.

सूमी : 'पॅकिंग करो.' बस इतना ही बोल वो मिनी के कमरे की तरफ बढ़ गयी उसे भी पॅकिंग करने का बोल अपने कमरे में आ गयी और अपना समान पॅक करने लगी.

विजय आरती ने जब पूछा तो बस इतना कहा. हम कल मालदीव जा रहे हैं. आप प्लीज़ कल की टिकेट्स करवा दो.

विजय उसी वक़्त वहाँ से अपने कमरे में चला गया, और कहीं फोन घुमाने लगा. कुछ देर में उसके पास इनकी बिज़्नेस क्लास की टिकेट्स थी.

सूमी कुछ ज़्यादा समान साथ नही लाई थी, बस कुछ कपड़े ही थे. जो कल होना था वो उसने अभी करने का फ़ैसला ले लिया था और अब वो नही चाहती थी कि सुनील अब कभी हिन्दुस्तान की धरती पे कदम रखे.

विजय जब टिकेट्स ले कर सूमी के पास आया तो सूमी ने उसे एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सोन्प दी. हिन्दुस्तान में कभी ये फॅमिली रहती थी उसका पूरा वजूद मिटाने की.

ताकि कल अगर कोई खोज बीन करे तो उसे बस चन्द नामों के अलावा कुछ ना पता चले. विजय ने सूमी को अपना वचन दिया और लग गया वो इस काम में, सबसे पहले सूमी और सुनील की जितनी ज़्यादाद थी उसे बेचना था.

विजय ने अपने कुछ खांस भरोसे के कॉंटॅक्ट्स को इस काम में लगा दिया. ये रात बहुत कुछ करनेवाली थी.

समा सुहाना होता चला गया, सुनील के चेहरे पे एक आलोकिक लौ आ गयी थी, चित एक दम शांत हो गया था, वो वापस हॉल में आया अपने स्कॉच के ग्लास को देखा वो बिल्कुल सही सलामत था. सुनील ने बची स्कॉच फेंक दी और एक दूसरा पेग दूसरे ग्लास में तयार कर फिर बालकोनी में जा कर चुस्कियाँ लेने लगा, दूर समुद्र की सतह पे डॉल्फ्फिन्स कभी उपर आती कभी पानी में चली जाती, संगीत की लय की तरहा उनका एक न्रित्य सा चल रहा था, सुनील उसी में खो गया.


'ये समा ! समा है ये प्यार का ! किसी के इंतजार का !' रूबी को तयार करती हुई एक लड़की गुनगुनाई.

'धत्त!' रूबी शर्मा गयी

'हाई मेडम काश में लड़का होती तो कसम से आज....' रूबी के जिस्म की मालिश करते हुए उसने रूबी के उरोज़ को दबा डाला.

'ऊऔच' रूबी एक दम चीख सी पड़ी ' अह्ह्ह्ह क्या करती है'

'जब वो इनको मसलेगा ना....'

'चुप बेशर्म'

'सच दीदी, बड़ी किस्मत वाले हैं आपके मिया , एक दम मिर्ची हो आप तीखी...सीईईईईईईईईई'

'चुप कर और जल्दी काम ख़तम कर अपना'

'हां हां बड़ी बेचैन हो रही हो अपनी सुहाग रात के लिए, बस थोड़ा टाइम और, कुछ हमे भी तो मज़ा आ जाए, फिर ये मौका कहाँ मिलेगा'

वहाँ उथल पुथल मची हुई थी यहाँ सुनील एक दम ऐसे शांत हो गया था जैसे कुछ हुआ ही ना हो, क्यूंकी वो सूमी के ज़ख्मी दिल को राहत दे कर आ गया था, और जानता था कि सोनल भी शांत हो जाएगी जैसे ही सूमी उससे मिलेगी.

कुदरत के अपने क़ानून होते हैं और किसी को उनमें दखल देने नही दिया जाता. अगी ने सुनील को कुछ शक्तियाँ दे कर उस क़ानून को तोड़ दिया था. लेकिन अगी था ही ऐसा, उसे किसी बात की परवाह नही थी, माया जाल से वो परे था, कुछ भी सज़ा मिले वो वही करता था जो उसे ठीक लगता था.

इन सबके बीच एक आत्मा घायल घूम रही थी, वो थी प्रोफ़ेसर की. जिसे अचानक हुई मृत्यु की वजह से मोक्ष प्राप्त नही हुआ था, जिस्म को त्यागने के बाद उसने सुनील और सुनेल की मदद करी थी, जब सुनील भी सुनेल का जिस्म छोड़ उसकी मदद के लिए चला गया था तब प्रोफ़ेसर ही सुनेल के जिस्म में समा गया था और उसके दिल की धड़कन को बंद होने नही दिया था.

सवी को बचाते हुए सुनेल अपने मकसद से भटक गया था यही वो समय था जब वो कमजोर हुआ और समर ने मुक्त होने से पहले उसकी आत्मा को कलुषित कर दिया था, समर जाते जाते भी अपने ख्वाब सुनेल के अंदर डाल गया था, क्यूंकी सुनेल भी समर का अंश था वो इस प्रभाव में आ गया था, उसका मक़सद रह गया था बस सूमी को पाना, चाहे कुछ भी हो. और यही बात उसके मुँह से हॉस्पिटल में निकल गयी थी. जो सुनील को मिला वो उसे भी चाहिए, जो हक़ सुनील का है वही हक़ उसका भी है. यहीं सूमी को गहरा आघात लगा था.

क्या सुनेल अपने मक़सद में कामयाब होगा, ये तो वक़्त ही बताएगा हम चलते हैं वापस अभी सुनील और रूबी के पास, क्या उनकी सुहाग रात पूरी होगी या फिर ????

रूबी के साथ छेड़ खानी करते हुए दोनो लड़कियों ने उसे तयार कर दिया और विदा ले ली.
Reply
07-20-2019, 10:03 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सब बातों से बेख़बर रूबी बेचैनी से सुनील के आने का इंतजार करने लगी, दिल में उमंगों के तूफान उमड़ पड़े, आज जिंदगी को एक ठिकाना मिलने वाला था, उसे एक सच्चा साथी मिलने वाला था, सवी उसके दिमाग़ से निकल चुकी थी और सूमी की इज़्ज़त और भी दिल में बढ़ गयी थी. सूमी जो अपना हर रोल बखूबी निभा रही थी, कभी एक माँ, कभी एक बीवी, कभी एक सौतेन, और कभी माँ जैसी मासी.

सुनील बाल्कनी में खड़ा कुदरत के मज़े लेता हुआ स्कॉच की चुस्कियाँ लेता रहा और तीन चार पेग पी गया. इतने में उसे सरूर नही चढ़ता था पर उसका मन कुछ मस्त हो गया था, उसका खिलन्दडपन जो बहुत समय से खामोश था वो जाग गया था, वो फुल मस्ती के मूड में आ चुका था और ग्लास का आखरी घूँट भर उसने वो ग्लास समुद्र के हवाले कर दिया, एक नज़र सोती हुई सवी पे डाल वो रूबी के कमरे की तरफ बढ़ गया.

गुलाब की महक से कमरा भरा हुआ था, बिस्तर के चार तरफ कॅंडल लाइट जल रही थी, और बीच में घूँघट काढ़े रूबी बैठी अपनी हथेलियाँ घबराहट में आपस में मसल रही थी, पैरों के अंगूठे आपस में लड़ रहे थे, साँसे तेज चल रही थी, दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था के कमरे में उसकी धड़कन सुनाई दे रही थी.
सुनील के कदम दरवाजे पे ही जम गये.

अपने रुख़ पर निगाह करने दो
खूबसूरत गुनाह करने दो
रुख़ से परदा हटाओ जान-ए-हया
आज दिल को तबाह करने दो


सुनील होंठों से निकले लफ्ज़ रूबी के दिल की धड़कन को और बढ़ा गये. बिस्तर के सामने शीशे में रूबी का अक्स नज़र आ रहा था, जहाँ से उसका घूँघट थोड़ा हटा हुआ था और चेहरा जलवाए फ़रोश हो रहा था.

हुस्न-ओ-जमाल आपका, शीशे में देख कर
मदहोश हो चुका हूँ मैं, जलवों की राह पर
गर हो सके तो होश में ला दो, मेरे हुज़ूर


सुनील दरवाजा बंद करना भूल, रूबी की तरफ बढ़ता चला गया, इस वक़्त उसके जहाँ कुछ नही था बस रूबी बस चुकी थी.

वो मरमरी से हाथ वो महका हुआ बदन
टकराया मेरे दिल से, मोहब्बत का एक चमन
मेरे भी दिल का फूल खिला दो, मेरे हुज़ूर

कह ता हुआ सुनील रूबी की गोद में सर रख लेट गया और घूँघट में छुपे उसके चेहरे को निहारने लगा.

रूबी की पलकें बंद हो गयी, जिस्म में कंपन बढ़ गया. एक लड़की की क्या हालत होती है सुहागरात में ये रूबी को आज समझ में आ रहा था, दिल दिमाग़, जिस्म तीनो पे से काबू हट जाता है, तीनो ही अपनी दुनियाँ बसाने लगते हैं एक युद्ध सा छिड़ जाता है, और लड़की को समझ नही आता कि क्या करे क्या ना करे बस उमंगों के ज्वारभाटे में फसि अपने ही दिल के तेज धड़कनो को सुनती हुई अपने तेज होती साँसों को सामान्य करने का प्रयास करती रहती है, पर साँसे और तेज होती चली जाती हैं, जिस्म में कंपन बढ़ जाता है, चेहरा गुलाबी गुलाबी होता हुआ पूरा गुलाल बन जाता है.

अधर काँपने लग गये जैसे प्यासे हों, होंठ पे लगी लाली बुलाने लगी आओ, सोख लो, इस लाली को, तुम्हारे लिए ही तो लगाई है, माथे पे हल्की हल्की पसीने की बूँदें, जोबन का उतार चढ़ाव चुंबक की तरहा अपनी ओर खींच रहा था, और सुनील उस सुंदरता में खो सा गया था.

'छू लेने दो नाज़ुक होंठों को, कुछ और नही हैं जाम हैं ये' ये चन्द अल्फ़ाज़ सुनील के दिल की गहराई से निकले थे और रूबी इन में खो गयी, सुनील के हाथ उपर उठे और रूबी के चेहरे को थाम लिया.

अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह एक अनसुनी सिसकी रूबी के होंठों से निकली और सुनील के हाथों के साथ उसका चेहरा झुकता चला गया धीरे धीरे और दोनो के होंठ जा मिले. बिजली सी कोंध गयी रूबी के जिस्म में और सुनील पे तो जैसे नशा सा चढ़ गया.

लपलपाति हुई सुनील की ज़ुबान बाहर निकली और रूबी के होंठों पे फिरने लगी, ऐसा अनुभव रूबी के लिए अंजना था, उसका जिस्म हिलोरे लेने लगा और दोनो मुठियों में चद्दर भींचती चली गयी, वो अपने होंठ दूर करना चाहती थी पर सुनील के होंठ तो जैसे चुंबक बन गये थे रूबी चाह के भी अपने होंठ दूर ना कर पाई उसके घूँघट ने सुनील के चेहरे को भी ढक लिया कहीं दूर से झँकते चाँद की नज़र ना लग जाए.

मिलन के इस रंग में दोनो खोते चले गये, होंठ होंठों से रगड़ खाने लगे जिस्मों में चिंगारियाँ उत्पन्न होने लगी, कोई इस वक़्त दोनो को छू ले तो तेज बिजली का झटका खा जाए.

इतने इंतजार और इतनी तड़प के बाद मिलन के इस अहसास ने उसे सोनल की तड़प से पहचान करवा दी, आज वाकई में वो दिल और आत्मा दोनो ही हार गयी थी, जो संशय कभी कभी उसके दिमाग़ में उठते थे उनका वजूद ख़तम हो गया, रूबी अपनी खुद की पहचान खो बैठी, उसे अब कुछ नही चाहिए था, उसका वजूद सुनील में घुलता चला जा रहा था, प्यार क्या होता है ये उसकी आत्मा समझ गयी थी, अपने अतीत के पन्नों को उसने अपने दिमाग़ से खुरूच डाला और एक खाली स्लेट बना डाला, जिसपे सुनील अपने प्यार की मोहर छापता चला जा रहा था.

चुंबन क्या होता है, उसका अस्तित्व कैसा होता है, इसका अनुभब रूबी को अब हो रहा था और वो इस अनुभव के समुन्द्र में डूब चुकी थी, इतना के झुके झुके गर्दन में दर्द शुरू हो गया, पर इस दर्द का उसे अहसास तक ना हुआ.

तभी सुनील को जैसे कुछ याद आ गया और उसने धीरे से रूबी को छोड़ दिया. रूबी को एक झटका भी लगा पर सीधी हो गर्दन को राहत भी मिली.

सुनील उठ के बैठ गया, कुछ पल सोचा फिर उठ के अलमारी के पास गया और खोल के उसमे से एक जेवेर का डिब्बा निकाला, सुनील ने ये डिब्बा कब इस अलमारी में रखा था, ये रूबी को पता ही ना चला.

उस डिब्बे को ले सुनील रूबी के पास बैठ गया. ' गुस्ताख़ी माफ़ हज़ूर, आपको मुँह दिखाई तो दी ही नही, लीजिए इस नाचीज़ की तरफ से ये छोटा सा तोहफा'

सुनील ने डिब्बा रूबी की गोद में रख दिया. रूबी डिब्बे को साइड में रखने लगी तो ' अरे खोल के तो देखो'

'आपने दिल से जो भी दिया वो दुनिया की सबसे नायाब चीज़ है'

'खोलो तो सही'

रूबी ने डिब्बा खोला तो उसमें एक चमकता हुआ हीरे का हार था, सूमी को उसकी माँ ने शादी में दो हार दिए थे, एक उनमें से सोनल के पास चला गया था और ये दूसरा था जो आज रूबी को दिया जा रहा था. हार की चमक देख रूबी की आँखें चोंधिया गयी. 'इतना मेंहगा....'

सुनील ने बीच में टोक दिया ' ये सूमी ने अपनी बहू के लिए दिया है, मेरी तरफ से तो बस ये छोटा सा तोहफा है' अपने जेब में हाथ डाल सुनील ने हीरे की अंगूठी निकली और रूबी को पहना दी.

रूबी ने हार को माथे से लगाया और उस अंगूठी को चूम लिया.

रूबी के लिए सूमी सौतेन नही रही, माँ का दर्जा इख्तियार कर बैठी. सुनील और सूमी का चाहे जो भी रिश्ता हो, रूबी के लिए सूमी अब सिर्फ़ एक माँ थी, सिर्फ़ एक माँ. दिल भर आया रूबी का, आँखों से आँसू टपक पड़े.

सुनील ने धीरे से रूबी का घूँघट हटाया तो उसे एक झटका लगा उसकी आँखों से टपकते मोती देख.

'यह क्या ?'

'कुछ नही, आज बहुत ज़्यादा खुशी मिली तो बर्दाश्त नही हुई' रूबी से आगे ना बोला गया और वो सुनील से लिपट गयी.

प्यार का असली रूप रूबी ने आज देखा था. अपनी खुशी में सवी एक माँ का फ़र्ज़ भूल गयी, बेटी को बस सौतेन समझने लगी, पर सूमी का व्यक्तित्व कुछ और ही था, वो अपना फ़र्ज़ नही भूली थी, कहने को रूबी उसकी सौतेन थी, पर सूमी के अंदर की माँ, जानती थी उसे कब क्या करना है.

रिश्ते चाहे बदल जाएँ, पर उनकी मर्यादा नही बदलती, जो इस मर्यादा का मान करता रहता है, वोही प्यार के असली माइने समझ पाता है.

सुनील अपनी 4 बीवियों के साथ आने वाली जिंदगी कैसे बितानी है सोच चुका था, रूबी और सवी के बीच हुए तनाव ने उसे बहुत सीखा दिया था, और ये फ़ैसला वो खुद लेना चाहता था बिना कोई मशवरा किए, जानता था कि सूमी की सलाह भी वही होगी, पर वो सूमी के उपर कोई ज़ोर नही डालना चाहता था. जिंदगी के हर बीतते पल के साथ उसे सूमी पर नाज़ होता चला जा रहा था, आज भी कभी कभी वो यही सोचता था, काश सूमी ने वो कसम ना ली होती, तो आज उसकी जिंदगी में शायद 4 बीवियाँ नही होती, पर होनी को कॉन टाल सकता था. कल सब आ जाएँगे और वो अपना फ़ैसला सब को सुना देगा, जाने क्यूँ आज रूबी के साथ ये ख़यालात उसके मन में आ गये. रूबी जो इस वक़्त उसके गले लगी हुई थी, वो और भी कस के उसके साथ चिपक गयी और सुनील अपने ख़याल से वापस आ गया और अब इस वक़्त वो और कुछ नही सोचना चाहता था, इस वक़्त वो रूबी को वो प्यार देना चाहता था, जिसकी हर लड़की कामना करती है, काश रमण ने उसका दिल ना तोड़ा होता, काश, काश ये काश ही तो ज़िंदगियाँ बदल देता है, काश सागर की . उस वक़्त ना होती, तो सूमी और सुनील की शादी...नामुमकिन. अपने सर को उसने झटका और रूबी को अपनी बाँहों में भींच लिया.

आह रूबी की हड्डियाँ तक चटक गयी सुनील ने इतनी ज़ोर से उसे भींचा , रूबी के जिस्म से निकलती मनमोहक सुगंध सुनील के अंदर समाती चली जा रही थी. उसी में खोता हुआ सुनील अपने होंठ रूबी की गर्दन पे रगड़ने लगा. और रूबी के होंठों से धीमी धीमी सिसकियाँ निकलने लगी.

'ओह सुनील ! सुनील ! काश तुम मेरी जिंदगी में पहले आ गये होते, आइ लव यू! लव यू!'

'ये काश को अब छोड़ो अब तो तुम्हारा हूँ, बस आज को सोचो कल किसने देखा और कल जो बीत गया उसे भूल जाओ'

'वो तुम्हारी बाँहों में आते ही भूल गयी, अब इस रूबी पे जो लिखना चाहो लिख डालो, एक दम कोरी स्लेट की तरहा'

'तो सवी के रवीय्यए को भी भूल जाओ, वक़्त दो उसे, इस नये रिश्ते में ढलने का'

'जो हुकुम!'

'उम ह्म, हुकुम नही इल्तीज़ा'

रूबी चुप कर गयी, ज़्यादा बात नही बढ़ाई और सुनील उसकी गर्दन को चूमते हुए उसके पेट को सहलाने लगा, फिर धीरे धीरे वो उसके जेवर उतार के साइड पे रखने लगा, जेवरों की आड़ में छुपा उसका गोरा बदन झलकने लगा और हर छुअन के साथ रूबी की सिसकी निकलती चली गयी जो सुनील के कानो में संगीत की तरहा गूँजती हुई उसे और भी मदहोश करती जा रही थी.
Reply
07-20-2019, 10:03 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
जैसे जैसे रूबी के जेवर उतर रहे थे वैसे वैसे उसके चेहरे पे लाज की लालिमा और भी गहरी होती जा रही थी, साँसों और दिल के धड़कने की ध्वनी कमरे में गूंजने लगी थी, जिसमे जुड़ती रूबी की सिसकियाँ कमरे के महॉल को और भी कामुक बना रही थी.

सुनील की प्रेम लीला चले और प्रकृति उसमें हिस्सा ना ले ये तो हो ही नही सकता, अमूमन ऐसा होता नही है, पर शायद सुनील के साथ कुदरत कुछ खांस ही मेहरबान थी, जो इस रात को और भी रंगीन बने पे तूल गयी थी.

समुद्र एक दम शांत हो गया, चाँद और सूरज जो कभी मिल नही सकते एक प्रयास सा करने लगे कि शायद इनकी तरहा हम भी मिल जाएँ.

वातावरण में कुछ गूंजने लगा तो बस रूबी के कंठ से निकली हुई सिसकियाँ जिसकी मधुरता में सामुद्री जीव तक अपनी क्रियाएँ भूल गये और एक दम शांत हो गये.


प्यार का ये असर शायद ही किसी ने देखा होगा, और ये दोनो भी कहाँ जानते थे कि बाहर क्या हो रहा है, ये तो बस एक दूसरे में सामने को व्याकुल होते जा रहे थे.

सुनील का जिस्म इतना तपने लगा , कि उसने फट से अपना कुर्ता और बनियान उतार फेंकी, रूबी का घूँघट धलक चुका था और चोली में कसे उसके उरोज़ मुक्त होने की राह देख रहे थे, दोनो एक दूसरे की आँखों में देखने लगे और सुनील के हाथ रूबी के कंधो को सहलाते हुए पीछे पीठ पे चले गये और चोली की डोरी खुल गयी, धीरे धीरे सुनील ने रूबी की चोली उतार दी, और रूबी ने शर्म के मारे अपने आँखें बंद कर अपने दोनो हाथ कैंची बना अपने उरोज़ ढकने की असफल कोशिश करी, पर सुनील ने उसके दोनो हाथ हटा दिए और रूबी के उन्नत उरोज़ हर सांस के साथ उपर नीचे होने लगे.

तभी आसमान में बिजली कडकी और दोनो एक दूसरे से लिपट गये और फिर शुरू हुआ होंठों से होंठों का मिलन, दोनो एक दूसरे के होंठों का रस चूसने में मगन हो गये.

सब कुछ भूल चुके थे दोनो, अगर कुछ अहसास बाकी था तो बस इतना के दोनो एक दूसरे में सामने को आतुर थे, रूबी के लिए ये मिलन उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी नैमत थी. इसके आगे उसे जिंदगी से कुछ नही चाहिए था, चुंबन गहरा होता चला गया, दोनो की ज़ुबान एक दूसरे को अपना अहसास दिलाने लगे और एक दूसरे से मिल अपने स्वाद को महसूस करने लगी, नोबत यहाँ तक आ गयी कि मुश्किल से हान्फते हुए अलग हुए और रूबी ने शरमा के अपने चेहरे को ढांप लिया और अपनी साँसे दुरुस्त करती हुई बिस्तर पे लेट गयी.

सुनील साँसों पे को काबू करता हुआ उस पर झुक गया और उरोजो की घाटी से एक दम नीचे से चाटता हुआ नाभि तक जाने लगा, मचल के रह गयी रूबी, चेहरे से हाथ कब हटे पता ना चला और अह्ह्ह्ह उम्म्म्म उसकी सिसकियों का ज़ोर बुलंद होने लगा

अह्ह्ह्ह सुनील...उम्म्म्मम क्या कर रहे हो....अह्ह्ह्ह गुदगुदी होती है ....उफफफफफफ्फ़ ऊऊऊऊ म्म्म्मीममममाआआआआआआ

सुनील उसकी नाभि में में अपनी ज़ुबान घुमाता रहा और रूबी इधर उधर मचल के उसे हटाने की कोशिश करती रही, जब सहना मुश्किल हो गया तो सुनील को बालों से पकड़ उपर खींच लिया.....'जान निकालोगे क्या'

'उम्म हूँ...सिर्फ़ प्यार...'


'तुम्हारा ये प्यार तो मेरी जान लेलेगा'

'प्यार से कभी जान जाती है क्या' और सुनील फिर उसके होंठों चूसने लग गया और दोनो हाथ पीछे ले जा कर उसकी ब्रा खोल दी......


अहह रूबी सिसक पड़ी और उसके उरोज़ क़ैद से आज़ाद होते ही और उपर उठ गये....सुनील ने ब्रा उपर सरका दी और मखमली उरोजो पे गुलाबी तने हुए छोटे निपल देख खुद को रोक ना सका और सीधा एक निपल को मुँह में भर लिया और चूसने लग गया.

अह्ह्ह्ह सीयी उफ़फ्फ़ उम्म्म्म अहह ओह माँ अहह श्श्श्श्श्शुउउउउउउन्न्न्निल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल उम्म्म्मममम

रूबी की सिसकियाँ और ज़ोर पकड़ने लगी, सुनील कभी एक निपल चूस्ता और कभी दूसरा, फिर सुनील ने दूसरे उरोज़ को भी थाम लिया और उसके निपल मसल्ने लगा. रूबी की तो जान पे बन गयी, वो अपनी टाँगें बिस्तर पे पटकने लगी, जिस्म कभी कमान की तरहा उपर उठता तो कभी बिस्तर पे गिरता.

चूत में कुलबुलाहट शुरू हो गयी और बाकी कपड़े उसे चुभने लगे.....

कुछ ही देर में उसके दोनो उरोज़ लाल सुर्ख हो चुके थे और सुनील की उंगलियों की छाप लग चुकी थी.

रूबी अपना सर बिस्तर पे इधर से उधर पटक रही थी और जब अति हो गयी तो सुनील के सर को अपने उरोज़ पे दबा ज़ोर से उसका नाम चीखी और भरभराती हुई झड़ने लगी, उसकी पैंटी तो क्या लेनहगा भी अच्छी तरहा भीग गया.

आनंद की लहरों से जब बाहर निकली तो उसे बहुत शरम आई, ये क्या हुआ, क्या किया सुनील ने उसके साथ जो बिना चुदे ही अपने चर्म पे पहुँच गयी, चेहरे पे चमक तो आ ही गयी थी बेचारा लाल सुर्ख हो गया, सुनील से आँखें मिलाने की हिम्मत ना हुई रूबी में और उसे अपने उपर से हटा वो पलट गयी, गीली पैंटी और लहंगा उसे अब तकलीफ़ दे रहे थे वो जल्द अपने इन कपड़ों से छुटकारा पा कम से कम लाइनाये पहनना चाहती थी, पर मुँह से बोल ही ना निकल पाई.

सुनील उसकी मनो दशा समझ गया और उसकी पीठ को चूमते हुए उसके लहंगे के बँध खोलने लग गया, चन्द मिंटो में लहनगा उसके जिस्म से अलग था.

'ओह! माँ ये तो मुझे यहीं नंगी करने जा रहे हैं.' ये ख़याल दिमाग़ में आते ही रूबी बोल ही पड़ी, प्लीज़ मेरी नाइटी तो दे दो.

सुनील में बहुत संयम था, वो कोई जल्दबाज़ी नही करना चाहता था, चुप चाप उठा और अलमारी से एक नाइटी रूबी के पास रख वो कमरे से बाहर चला गया और हॉल में बैठ के स्कॉच पीने लगा.

सुनील के कमरे से बाहर निकलते ही रूबी को तेज झटका लगा, और खुद पे गुस्सा होने लगी ...ये मैने क्या कर दिया, वो तो नाराज़ हो गये. उठ के उसने पैंटी बदली और जो लाइनाये सुनील रख गया था वो पहन ली.

लाइनाये पहनने के बाद वो कुछ इस तरहा दिख रही थी, पैंटी के नाम पे एक पतला थॉंग और अंदर ब्रा नही पहनी थी. खुद को शीशे में देख इतना शरमाई के ज़मीन में धँस जाए.

हुस्न की तारीफ करने वाला तो कमरे से बाहर चला गया था. अब रूबी पशोपश में पड़ गयी, क्या करूँ, पता नही मुझे क्या हो गया था, जो नाइटी माँग बैठी.

खुद से लड़ती हुई, हिम्मत बाँध वो हॉल की तरफ बढ़ ही गयी, जहाँ सुनील स्कॉच पीता हुआ समुंद्र को निहार रहा था........आज जाने क्यूँ समुद्र में कोई हलचल नही थी, शायद रूबी की सिसकियों का असर अब भी बाकी था.

रूबी के कदम हॉल के दरवाजे पे ही रुक गये, सुनील ने बाहर का दरवाजा खोल रखा था जिससे ठंडी ठंडी हवा अंदर आ रही थी, स्कॉच की चुस्कियाँ लेता हुआ पता नही क्या सोच रहा था.

दरवाजे पे खड़ी रूबी, कार्पेट को पैर के अंगूठे से कुरेदने लगी. अंदर जाने की आज उसमें हिम्मत ही नही हो रही थी. लेकिन अपने अहसास को सुनील तक पहुँचने में नही रोक पाई.

'यार दरवाजे पे क्यूँ खड़ी हो अंदर आ जाओ' सुनील ने बिना उसकी तरफ देखते हुए कहा.

रूबी हैरान सुनील को कैसे पता चला उसने तो कोई आवाज़ भी नही की थी.

धीरे धीरे चलती हुई सुनील के करीब पहुँची और सर झुका खड़ी हो गयी.

बैंगन की तरहा उसकी लटकी शकल देखा सुनील की हँसी छूट गयी ज़ोर से और में में पड़ी स्कॉच पिचकारी की तरहा सीधे रूबी के वक्षस्थल पे गिरने लगी.

कुछ पल तो रूबी को भी पता ना चला कि हुआ क्या, सुनील यूँ क्यूँ हंसा और मदिरा की पिचकारी उसे कैसे भिगो गयी, जिसकी वजह से उसके तने निपल सॉफ झलकने लगे, सफेद पारदर्शी लाइनाये में से.

'ऊऊऊऊुुुुुुुऊउक्कककककककककचह ये क्या!' वो एक दम बौखला गयी जब उसे अपनी हालत का अहसास हुआ और सुनील और भी ज़ोर से हँसने लगा.

सुनील को यूँ और भी ज़ोर से हंसता देख रूबी की शकल रोनी हो गयी 'गंदा कर दिया और हंस रहे हैं'

'गंदा ! कहाँ देखूं तो सही' सुनील की हँसी अब भी नही रुक रही थी.

'जाओ, नही बोलती' और रूबी वापस कमरे की तरफ जाने लगी.

'अरे कहाँ चली मेरी छम्मक छल्लो' सुनील ने लपक के उसे पकड़ लिया और गोद में उठा बाहर ले गया. रूबी चीखती रही 'छोड़ो मुझे, उतारो, गिर जाउन्गि'

सुनील ने एक ना सुनी और बाहर जो पूल था वो नीचे लगे बूल्स की वजह से जगमगा रहा था सुनील ने रूबी को पूल में पटक दिया.

छपक से पानी उछल के चारों तरफ गिरा और रूबी ज़ोर से चीखी .आाआईयईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई
Reply
07-20-2019, 10:04 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील भी पीछे ना रहा और पूल में कूद रूबी को संभाल लिया.

'हो गयी ना अब सॉफ'

हाँफती हुई रूबी बोली ' ये क्या बेहुदगी है, मुझे कुछ हो जाता तो'

अब सुनील सीरीयस हो गया ' सॉरी यार थोड़ा खेल रहा था तुम्हारा मूड हल्का करने के लिए, डिड नोट वॉंट टू हर्ट यू' और सुनील ने रूबी को पूल के बाहर सतह पे लिटा दिया, ' जाओ चेंज कर लो और सो जाओ' और खुद पानी में लंबे स्ट्रोक्स लगा दूसरे किनारे पे पहुँच गया.

अब ये तो हद हो गयी थी रूबी के लिए, पहले छोड़ के आ गये, फॉर स्कॉच से नहला दिया, फिर पूल में पटक दिया अब कहते हैं जाओ सो जाओ. वो भूकी बिल्ली जो अब तक लाज के पर्दों में छुपी थी बाहर आ गयी और रूबी ने पानी में छलाँग मार दी, लेकिन बाहर ना निकली नीचे सतह पे ही रह गयी.

अब सुनील की बारी थी घबराने की कि कहीं रूबी को कुछ हो ना गया हो, वो पानी में डुबकी लगा गया, इधर उसने डुबकी लगाई, जब तक पानी में देखने के काबिल होता, रूबी अपनी जगह से पलट तैरती हुई सुनील के नीचे आ गयी और सफाई से उसके पाजामे का नाडा खोल डाला और फिर फुर्ती से पूल के एक कोने में जा खड़ी हुई, यहाँ पाजामे का नाडा ढीला हुआ तो थोड़ा नीचे लटक गया और सुनील को पानी में पैर चलाने में दिक्कत होने लगी.

सुनील रूबी का खेल समझ गया और फुर्ती से अपना पाजामा और अंडरवेर उतार पूरा नंगा हो गया, जब तक वो नंगा होता रूबी ने अपनी लिंगेरिर खुद उतार फेंकी, दोनो के कपड़े पूल में तैरने लगे. सुनील ने डुबकी लगाई और बिल्कुल वहाँ पहुँच गया रूबी के पीछे जिस कोने में वो खड़ी थी, वहाँ पूल में पानी सिर्फ़ पेट तक आ रहा था.

सुनील को मस्ती सूझी, बिना आवाज़ किए नीचे हुआ, और रूबी ने जो थॉंग पहनी हुई थी उसकी दूरी खीच सीधा अपना मुँह उसकी सफ़ा चट चूत से चिपका दिया.


आआआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई रूबी बिलबिला उठी इस हमले से बहुत पैर पटके पर सुनील को हिला ना पाई और सुनी ने अपनी ज़ुबान रूबी की चूत में घुसा दी, बस इतना ही काफ़ी था और रूबी के सारे कस बल ढीले पड़ गये.

जिस्म में ज़ोर बाकी ना रहा और मुस्किल से पूल की दीवार से साथ पूल की रेलिंग को पकड़ खुद को गिरने से बचाया. पर ज़्यादा देर टिकी ना रह सकी और पानी में खिचती चली गयी

ना जाने क्या क्या हरकतें आज सुनील करेगा, सोच सोच के हैरान थी वो, क्या ये वही सुनील था सीधा सादा जिसे वो रोज देखा करती थी, उई माँ जाने क्या क्या करता होगा सूमी और सोनल के साथ, ये सोचते ही सारे शिकवे दूर, और वो मस्ताने लगी, उसके हाथ पैर पूल में चलने लगे ताकि सुनील पे ज़ोर ना पड़े और वो मस्ती से उसकी चूत को जीब से चोदे और चूस्ता रहे. पानी के अंदर होते हुए भी जिस्म में गरमा गरम चिंगारियाँ फैलती जा रही थी.

ज़्यादा देर नही लगी रूबी को झड़ने में और सुनील बाहर निकल हाँफने लगा क्यूंकी काफ़ी देर वो पानी के अंदर था.

रूबी भी पानी से निकल उसके साथ सट गयी और बड़े प्यार से बोली ' शैतान'

इस से आगे पूल में नही बढ़ा जा सकता था, दोनो इस बात से बेख़बर थे कि सवी जाग चुकी थी और दोनो को देख रही थी, लेकिन उसके चेहरे पे खुशी की जगह आज जलन थी.

सुनील की और रूबी की साँस जब संभली तो दोनो पूल से बाहर आ गये. रूबी ने वहीं पड़ा एक टवल उठा लिया और खुद को पोंछने लगी, पर सुनील वहीं पास शवर के नीचे खड़ा हो गया, उसकी देखा देखी रूबी भी उसके पास चली गयी और शवर के नीचे खड़ी हो गयी, दोनो के जिस्म सट गये, इस तरहा के सुनील का खड़ा लंड रूबी की जाँघो में घुस गया और उसकी चूत को रगड़ने लगा. रूबी कस के सुनील के साथ चिपक गयी, दोनो के हाथ एक दूसरे के जिस्म को सहलाने लगे.

जिस्म फिर गरम होने लगे, सुनील के होंठ रूबी के होंठों से चिपक गये और ऐसे ही वो उसे उठा अंदर कमरे में ले गया.

जलन की आग में झुलस्ती सवी बाहर शवर के नीचे खड़ी हो गयी.

सवी ने सोचा था, के सुनील उसके नखरे उठाएगा, उसे मनाएगा, पर जो हो रहा था वो उससे बर्दाश्त नही हो रहा था, वो ये भूल ही गयी थी, कि सुनील ने रूबी से भी शादी करी है और रूबी की भी कुछ तमन्नाएँ हैं, वो तो ये ले कर चल रही थी कि जिस तरहा सुनील और सूमी ने हनिमून पे वक़्त लगाया था, ( जो उसकी ही वजह से अधूरा रह गया था) वो उसे भी उतना समय देगा, पर ऐसा ना हुआ, क्यूंकी सुनील ने रूबी की तरफ मुँह मोड़ लिया जब कि खुद सवी ने कहा कि दो दिन दूर रहना, सवी इस बात से अंजान थी कि पीछे वहाँ हिन्दुस्तान में क्या हुआ है, इस वक़्त बस उसे अपनी ही सूझ रही थी. कितना फरक था सवी और सूमी के सोचने में. शवर के नीचे कुछ देर कुढती रही फिर झल्ला के अपने कमरे में चली गयी.

इधर सुनील रूबी को गोद में उठा के कमरे में ले गया और उसे बिस्तर पे लिटा दिया, बिस्तर पे फैली गुलाब की पत्तियाँ रूबी से लिपट गयी, जैसे कह रही हों, हमने तुम्हें ढक लिया है अब शरमाओ नही.

और रूबी वो कैसे ना शरमाती, माना वो सुनील को जानती थी, उससे बहुत प्यार करती थी, पर दोनो ने कभी एक दूसरे को छुआ नही था, और आज सुहाग रात के दिन, उसके अंदर बसी नाज़ुक लड़की, अपनी शर्म के हाथों लाचार हो गयी थी, वो चाह कर भी नही खुल पा रही थी, शायद सोनल और सूमी के साथ रहने का बहुत असर पड़ गया था उस पर, लाज लड़की का सबसे बड़ा गहना होती है, उसे कभी नही त्यागना चाहिए.

आधी रात गुजर चुकी थी, और बिस्तर पे लेटी रूबी धड़कते दिल से अब आगे आनेवाले पलों का इंतजार कर रही थी, कब सुनील उसे अपने प्यार की बरसात से नहला देगा.

पूल में हुई हरकत को सोच वो गन्गना गयी और उसकी चूत फिर लपलपाने लगी, सुनील धीरे से उसके साथ लेट गया और उसके चेहरे को अपनी तरफ घुमा उसकी आँखों में झाँकने लगा.

'नाइट गाउन दूं' सुनील ने शरारती मुस्कान से पूछा और बिदक गयी रूबी उसकी छाती पे मुक्के बरसाने लगी फिर लिपट गयी उससे और अपना मुस्कुराता हुआ चेहरा उसकी छाती में छुपा लिया.

सुनील के हाथ रूबी के जिस्म पे फिरने लगे और कसमसाती हुई हल्की हल्की सिसकियाँ लेती हुई रूबी और भी सुनील से सटने लगी.

सुनील ने धीरे से उसका हाथ अपने लंड पे रख दिया, कांप सी गयी रूबी और हाथ ऐसे हटाया जैसे करेंट लग गया हो, लोहे की तरहा सख़्त सुनील का लंड उस वक़्त दहक रहा था बिल्कुल तपती हुई रोड की तरहा.

सुनील ने फिर उसका हाथ अपने लंड पे रखा और उसकी हथेली को अपने लंड पे लपेट लिया. आह भर के रह गयी रूबी और उसकी उंगलियाँ अब लंड से ऐसे चिपकी जैसे उसका मनपसंद खिलोना हो.




रूबी की गर्दन को चूमते हुए सुनील उसके उरोज़ मसल्ने लगा और सिसकियाँ भरती हुई रूबी उसके लंड को सख्ती से जकड़ने लगी, सहलाने लगी, जिस्मो की आग धीरे धीरे बढ़ने लगी और और वो वक़्त भी जल्दी आ गया जब दोनो ही नही रुक सकते थे, सुनील को अपने आक़ड़े लंड पे दर्द महसूस होने लगी और रूबी की चूत में जैसे सेकड़ों चीटियाँ ने एक साथ हमला कर दिया, रूबी से रहा ना गया और सुनील को अपने उपर खींचने लगी.

सुनील उठ के उसकी जाँघो के बीच आ कर बैठ गया, रूबी ने अपनी जांघे और फैला दी, शरम के मारे उसकी आँखें अपने आप बंद हो गयी.

सुनील अपने लंड को उसकी चूत से रगड़ उसमें से बहते हुए रस से गीला करने लगा और रूबी की सिसकियाँ ज़ोर पकड़ गयी.

हाइमेनॉप्लॅस्टी के बाद रूबी की चूत बिल्कुल एक कुँवारी लड़की की तरहा हो गयी थी, सुनील इस बात को जानता था, इसलिए उसने जल्दी ना मचा उठ के ड्रेसिंग टेबल पे पड़ी माय्स्टाइसर ट्यूब से अपने लंड को अच्छी तरहा चिकना किया और फिर रूबी की जाँघो के बीच आ कर बैठ गया अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पे जमाया और उसकी कमर को पकड़ एक तेज झटका मार दिया.

आआआआआआआऐईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईइम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्माआआआआआआआआआआआ

रूबी दर्द के मारे ज़ोर से चीखी, और सुनील उसपे झुक उसकी आँखों से टपकते हुए आँसुओं को चाटते हुए बोला, बस मेरी जान, और दर्द नही होगा, ये तो बस एक बहाना था, जो दर्द से तड़पति रूबी भी जानती थी और सुनील भी, अभी तो दर्द की बहुत लहरें रूबी को झेलनी थी.

रूबी के आँसू चाटते हुए सुनील उसके निपल से खेलने लगा, धीरे धीरे रूबी का दर्द कम हुआ और सुनील फिर उसके होंठों पे होंठ रख उन्हें चूस्ते हुए फटाक से तीन चार धक्के मार बैठा और रूबी की सील टूट गयी पर अभी लंड मुश्किल से आधा ही अंदर गया था.

रूबी दर्द के मारे कसमसा उठी, ज़ोर से बिदकी कोई रास्ता ना मिला तो सुनील की पीठ ही खरोंच डाली.

आआहह सुनील की भी चीख निकल गयी.
Reply
07-20-2019, 10:04 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील और रूबी ने एक दूसरे को बुरी तरहा जाकड़ लिया. सुनील ने इस लिए की रूबी ज़्यादा ना हीले डुले और रूबी ने इसलिए के उसे बहुत दर्द हो रहा था, सुनील कोई और हरकत ना करे.

सुनील की पीठ में भी हल्की हल्की टीस शुरू हो गयी थी, पर उसने परवाह ना करे और रूबी के होंठों का रस चूसने में लग गया.

कुछ पल बाद रूबी की पकड़ खुद ढीली पड़ गयी और उसकी कमर ने हिचकोला खाया जैसे सुनील को आगे बढ़ने का इशारा कर रही हो.

सुनील ने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू कर दिए. रूबी की आह आहह उम्म्म्म उफफफफफ्फ़ दर्दीली सिसकियाँ फूटने लगी.

कुछ देर बाद रूबी को मज़ा आने लगा और सिसकियों में बदलाव आ गया साथ ही रूबी की कमर हिलने लगी, सुनील ने अपनी स्पीड बड़ाई और जब देखा रूबी भी उसकी की स्पीड की तरहा अपनी कमर उछाल रही है और फट से दो तेज धक्के मारे और अपना पूरा लंड अंदर घुसा दिया ...

म्म्म्मँममममममममममममममाआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआअ रूबी इतनी ज़ोर से चीखी कि दूसरे कमरे में बैठी सवी तक कांप गयी .

सुनील रुक गया और रूबी को संभालने लगा, इस बार रूबी को कुछ ज़्यादा दर्द हुआ था इस लिए उसे कुछ वक़्त लगा संभलने में.

फिर सुनील ने अपना वजन अपने हाथों में लिया और धीरे धीरे धक्के शुरू कर दिए, और रूबी भी उसका साथ देने लगी.

ओह सुनील, लव यू जान , लव मी आह उम्म्म्म, यस यस, फास्टर मोर फास्टर, रूबी धीरे धीरे बेकाबू होने लगी, जिस्म में तरंगों के जाल फैल चुके थे, चूत लगातार बेतहासा रस बहा रही थी और सुनील का पूरा लंड आसानी से अंदर बाहर हो रहा था.

फिर सुनील ने रूबी के होंठों को चूमते हुए अपनी स्पीड बढ़ा दी और रूबी भी उसका साथ देने लगी.

फिर धीरे धीरे दोनो ही स्पीड पकड़ते चले गये और कमरे में उनके जिस्मों के टकराने की थप थप और रूबी की चूत से निकलता संगीत फॅक फॅक फॅक फैलता चला गया.

कुछ समय बाद दोनो एक साथ झाडे और कस के एक दूसरे से चिपक गये. दोनो पसीने से तर बतर हो चुके थे. कमरे में दोनो के दिल की तेज धड़कन और साँसों की ध्वनि घुंज रही थी. जब सुनील की साँस थोड़ी संभली तो वो रूबी के उपर से हट उसकी बगल में लेट गया और प्यार से उसके गालों पे किस करने लगा. रूबी आनंद के महा सागर में इतना खो गयी, के कब उसकी आँख लगी पता ना चला.

सुनील उठ के बाथरूम गया और नहा के बाहर आया साथ ही वो एक गरम तोलिया ले आया जिससे उसने धीरे से रूबी की चूत को सॉफ किया, गर्माहट से रूबी को और सकुन मिला और उसकी नींद और गहरी होती चली गयी.

सुनील ने उसे चद्दर से ढका और लिविंग रूम में आ कर बैठ गया. अब उसका सारा ध्यान सूमी और सोनल पे था.

अचानक सुनील को ध्यान आता है कि नहाने के बाद वो नंगा ही चला आया लिविंग रूम में, उठ के वो बिना कोई आवाज़ किए कमरे में जाता है, रूबी बेसूध सोई पड़ी थी, उसे देख सुनील को उसपे बहुत प्यार आता है, पर दिल ने जैसे उस प्यार पे कुछ डोरियाँ बाँध दी थी, जिंदगी के इस सफ़र पे वो आगे तो बढ़ गया था, पर कहीं ना कहीं उसके दिल में एक दुख ज़रूर था, आज भी कभी कभी वो ये सोचने लगता था कि काश डॅड ने वो हुकुम ना दिया होता, तो आज जिंदगी किसी दूसरी राह पे होती, और जब भी वो कुछ ऐसा सोचता उसके सामने सागर का चेहरा आ जाता, जो उससे सवाल करने लगता - क्या मैने तुझ पे भरोसा कर के ग़लत किया? और यहीं सुनील फिर टूट जाता और सर झटक इस राह पे आगे बढ़ जाता.

चुप चाप उसने अपने लिए एक शॉर्ट निकाला अलमारी से और पहन के फिर लिविंग रूम में आ गया.

सुबह होने में अभी कुछ देर थी और ये वक़्त वो होता है जब संसारिक हलचल बहुत कम होती है. सुनील लिविंग रूम के बाहर आ पूल के किनारे पे बैठ सूरज जहाँ से निकलता है उस तरफ मुँह कर के ध्यान लगा के बैठ गया. शायद यही वक्त उसे अगी ने बताया था ध्यान लगाने के लिए अगर वो अगी से कुछ बात करना चाहता हो.

सुनील को ध्यान लगाए कुछ देर हुई थी कि अगी की आकृति उसकी आँखों के सामने लहराने लगी

अगी : तुम्हें मुझे बुलाने की अब कोई ज़रूरत नही पड़ेगी, तुम्हारे अंदर जो भी ताम्सिक भावनाएँ थी वो नष्ट हो चुकी हैं और जो शक्तियाँ तुम्हें दी हैं उन्हें पहचानो और उनका सही उपयोग करो.

इतना कह अगी लुप्त हो गया पर सुनील का ध्यान नही टूटा, वो इस समय सूमी के दिमाग़ में पहुँच चुका था और उसके पीछे मुंबई में क्या क्या हुआ सब एक चल्चित्र की तरहा उसकी आँखों के आगे घूमने लगा.

सुनेल के वो शब्द जब सुनील के कनों से गुज़रे तो सुनील को यकीन ना हुआ.

सुनील ने फिर सुनेल से तार बैठाने की कोशिश करी, पर उसमें सफल ना हुआ. शायद ये ग़लत वक़्त था सुनेल से रबता करने के लिए.

इसके बाद सुनील का ध्यान खुद टूट गया और उसके कानों में चिड़ियों के चहचाने का स्वर गूंजने लगा.

सुबह हो चुकी थी.

तभी सवी दो कप कॉफी के ला कर उसके पास आ कर बैठ गयी, उसकी लाल आँखें बता रही थी कि वो पूरी रात सोई नही.

सुनील ने उसके हाथ से कॉफी ले ली उसे थॅंक्स बोला और उठ के रेलिंग के पास खड़ा हो गया और धीरे धीरे कॉफी की चुस्कियाँ लेने लगा.

सवी भी उठ के उस के पास जा कर खड़ी हो गयी.

एक क्षण के सोवे हिस्से से भी शायद कम, सवी के चेहरे पे मुस्कान का पुट आया था, जो सुनील से छुप ना सका और सुनील के कान खड़े हो गये. उसे कुछ ग़लत महसूस हुआ और वो सवी के दिमाग़ में घुस गया. सुनील ने भरसक कोशिश करी कि अपनी मुस्कान को ना डूबने दे, पर जैसे जैसे वो सवी के दिमाग़ में छुपी उसकी ख्वाहिश को समझता गया, वैसे वैसे उसके भाव कठोर होते गये.

सवी उस वक़्त सामने समुद्र पे अठखेलियाँ करती हुई डॉल्फ्फिन्स को देखने में मग्न थी.

इंसान हर गुनाह माफ़ कर देता है, पर जब भावनाओं से खेला जाता है तब वो माफ़ नही कर पाता.

सवी के दिमाग़ की परतों में छुपे रहस्यों को जान कर सुनील जहाँ कठोर होता जा रहा था वहीं उसका दिल रो रहा था. अगर अगी ने उसे ये शक्ति ना दी होती तो वो हमेशा अंजान रहता और एक दिन वो सूमी और सोनल को पूरे परिवार समेत खो बैठता.

अब उसके सामने सबसे बड़ा सवाल था सवी से छुटकारा पाना. चाहता तो उसके दिमाग़ की परतों को तहंस नहस कर देता और उसे एक खाली स्लेट बना देता, पर ये कुदरत के नियम के खिलाफ था और अगी ने उसे सख़्त हिदायत दी थी, कि वो इस शक्ति का इस्तेमाल सिर्फ़ और सिर्फ़ बचाव के लिए करेगा, उसका कोई ग़लत इस्तेमाल नही करेगा. जिस दिन उसने कुदरत के नियमो के खिलाफ इस शक्ति का इस्तेमाल किया, ये शक्ति उससे छिन जाएगी और फिर अगी भी कभी उसकी कोई सहायता नही करेगा.

यही कारण था कि उसने सुनेल के दिमाग़ में भी कोई खलल नही डाला था.

होनी को वो बदल नही सकता था, पर मानवी षडयंत्रों को जान कर उन्हे रोक सकता था.

उसका एक़मात्र लक्ष्य अब सिर्फ़ सूमी/सोनल और रूबी की सुरक्षा थी अपने बच्चो समेत.

सवी ने जो जलन के भाव दिखाए थे रूबी के खिलाफ वो भी सवी का एक नाटक था सुनील के दिल में उतरने के लिए.

सुनील इस वक़्त बेसब्री से इंतजार कर रहा था सूमी और सोनल के आने का, सवी के अंदर की परतें जानने के बाद उसे मिनी पे भी शक़ होने लगा था, ये सुनेल को छोड़ना उसे एक मात्र ड्रामा लग रहा था ताकि ये लोग कहाँ जाते हैं उसकी खबर मिनी सुनेल को दे सके.

सुनील इन ख़यालों में था के रूबी तयार हो कर बाहर आ गयी, उसकी चाल में कुछ लड़खड़ाहट थी, पर चेहरे पे सकुन था, एक खुशी थी, वो पूरी तरहा तयार नही हुई थी, बस नहा कर एक गाउन पहन लिया था और तीनो के लिए कॉफी बना लाई थी.

दोनो को गुड मॉर्निंग विश कर उसने कॉफी वहीं बाल्कनी में पड़ी टेबल पे रखी और सुनील से सट के उसके गालों को चूम लिया, रूबी के जिस्म से निकलती भीनी मनमोहक सुगंध सुनील को यथार्थ में वापस ले आई, उसने रूबी के गाल को चूम लिया और उसे अपने से चिपका लिया.

ये देख सवी और भी भूनबुना गयी, क्यूँ कि सुनील ने उसके साथ ऐसा बर्ताव नही किया था.

सवी के चेहरे पे बदलते रंगों को रूबी भी कनखियों से देख रही थी, सवी के बर्ताव से वो बहुत दुखी थी, पर चेहरे पे कोई भाव नही ला रही थी, नही चाहती थी के सुनील इस बात से दुखी हो, कि शादी होते ही रंग बदलने लग गये, उसने सुनील से जो वादा किया था, वो अपने वादे पे खरा उतरना चाहती थी, चाहे कितने भी कड़वे घूँट क्यूँ ना पीने पड़े.

अंदर ही अंदर उसे इस बात का बहुत ताज्जुब था कि यकायक सवी को क्या हो गया. वो कल की सवी कहाँ गयी, ये सवी तो उसे कोई और ही लग रही थी.

आज पहली बार उसके माँ में ये ख़याल आ गया, काश सूमी उसकी असली माँ होती, काश वो भी सागर और सूमी की बेटी होती. ना चाहते हुए भी आँखों के कोर में दो आँसू की बूँदें जमा हो गयी, जिनको छलकने से रोकने के लिए उसने सुनील की छाती पे अपना मुँह रगड़ डाला. पर सुनील से उसका दर्द छुपा नही था.

सुनील ने हाथ में पकड़ा कॉफी का आधा ख़तम किया कप रख दिया और रूबी का लाया हुआ कप उठा लिया.

एक दो घूँट भरने के बाद सुनील बोला.

'तुम दोनो पॅकिंग कर लो, हम आज बंग्लॉ चेंज कर रहे हैं'

सवी तो सवालिया नज़रों से सुनील को देखने लगी, और रूबी 'जी' कह के जाने लगी तो सुनील ने उसे रोक लिया.

'अरे आराम से कॉफी पियो पहले कोई ट्रेन नही छूटने वाली'

रूबी ने भी अपना कप कॉफी का उठा लिया.

सवी सुनील को देख रही थी. ' जैसे पूछ रही हो- ऐसे क्या ज़रूरत पड़ गयी जो बंग्लॉ चेंज किया जा रहा है.

सुनील ने उसकी नज़रों मे बसे सवाल को पहचान के भी अनदेखा कर दिया.

तभी सुनील के मोबाइल पे दो एसएमएस आते हैं, उन्हें देख सुनील खिल उठता है.

वो उसी वक़्त रिसेप्षन पे फोन कर एक 5 रूम के वॉटर बंग्लॉ में शिफ्ट होने को बोलता है.

फिर रूबी और सवी को पॅकिंग करने का बोल शिफ्ट होने को कहता है, पोटेर्स आ कर समान ले जाएँगे. और खुद किसी ज़रूरी काम का बोल एरपोर्ट के लिए निकल पड़ता है.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,299,754 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 522,284 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,151,089 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 871,907 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,542,183 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,986,882 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,796,755 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,515,307 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,825,555 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 266,179 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)