Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 02:24 PM,
#31
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
उसके कपड़ों में चूमा था वो सब बाहर से साफ देख रहा था और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे वो अपने हाथों से एक बार अपने को सहलाते हुए अपने को मिरर में देखती रही और पलटकर जल्दी से कमरे में आ गई थी और बिस्तर पर धम्म से गिर गई उसका पूरा शरीर में आग लगी हुई थी पर उसने किसी तरह से अपने को कंट्रोल किया हुआ था उसने चद्दर खींचकर अपने को ढका और सबकुछ भूलकर सोने की कोशिश करने लगी उसने कामेश के तकिए को भी चद्दर के अंदर खींच लिया और अपने आपको अपनी बाहों में भर कर सोने की कोशिश करने लगी थी 

और उधर भीमा अपने काम से फुर्सत हो गया था पर उसकी नजर बार-बार इंटर काम पर ही थी उसे आज भी उम्मीद थी कि बहू जरूर उसे बुला लेगी पर जब बहुत देर तक फोन नहीं आया तो उसने कई बार फोन उठाकर भी देखा कि कही बंद तो नहीं हो गया था पर टोन आती सुनकर उसने फोन वापस जल्दी से रख दिया और किचेन में ही खड़ा-खड़ा इंतजार करने लगा था पर कोई फोन नहीं आया वो अपने आपको उस हसीना के पास जाने को रोक नहीं पा रहा था पर अपनी हसियत और अपने छोटे पन का अहसास उसे रोके हुए था पर कभी वो निकलकर सीडियो की ओर देखता और वापस किचेन की ओर चला जाता वो अपने को रोकते हुए भी कब सीढ़ियो की ओर उसके पैर उठ गये वो नहीं जानता था 

कहाँ से उसमें इतनी हिम्मत आ गई वो नहीं जानता था पर हाँ… वो अब सीढ़िया चढ़ रहा था बार-बार पीछे की ओर देखते हुए और बार अपने को रोकते हुए उसका एक कान किचेन में इंटरकम की घंटी पर भी था और दूसरा कान घर में होने वाली हर आहट पर भी था वो जब बहू के कमरे के पास पहुँचा तो घर में बिल्कुल शांति थी भीमा की सांसें फूल रही थी जैसे की बहुत दूर से दौड़ कर आ रहा हो या फिर कुछ भारी काम करके आया हो भीमा अपने कानों को बहू के दरवाजे पर रखकर अंदर की आहट को सुनने लगा पर कोई भी आहट नहिहुई थी अंदर 


वो पलटकर वापस जाने लगा पर थोड़ी दूर जाके रुक गया क्या कर रही है बहू कही उसका इंतजार तो नहीं कर रही है अंदर फोन नहीं कर पाई होगी शायद शरम से या फिर उसे लगता है कि कल ही तो उसने बुलाया था तो आज बुलाने की क्या जरूरत है हाँ शायद यही हो वो वापस मुड़ा और फिर से बहू के कमरे के बाहर आके खड़ा हो गया धीरे से बहुत ही धीरे से दरवाजे पर एक थपकी दी पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई और नहीं कल जैसे दरवाजा ही खुला 

पर भीमा तो जैसे अपने दिल के हाथों मजबूर था उसका दिल नहीं मान रहा था वो देखना चाहता था कि बहू क्या कर रही है शायद उसका इंतेजार ही कर रही हो और वो अपने कारण इस चान्स को खो देगा वो हिम्मत करके धीरे से दरवाजे को धकेल ही दिया दरवाजा धीरे से अंदर की ओर खुल गया थोड़ा सा पर हाँ अंदर देख सकता था अंदर जब उसने नजर घुमाकर देखा तो पाया कि बहू तो बिस्तर पर सोई हुई है एक चद्दर ढँक कर तकिया पकड़कर एक टाँग जो कि चद्दर के अंदर से निकलकर बाहर से तकिये के ऊपर लिया था वो पूरी नंगी थी सफेद सफेद जाँघो के दर्शान उसे हुए उसकी हिम्मत बढ़ी और वो थोड़ा सा और आगे होके देखने की कोशिश करने लगा वो लगभग अंदर ही आ गया था और धीरे-धीरे
बहू के बिस्तर की ओर बढ़ने लगा था उसकी आखों में बहू की जांघे और फिर गोरी गोरी बाहें भी देखने लगी थी चादर ठीक से नहीं ओढ़ रखी थी बहू ने पर वो जो कुछ भी देख रहा था वो उसके शरीर में जो आग लगा रही थी और उसके अंदर एक ऐसी हिम्मत को जनम दे रही थी की अब तो चाहे जो हो जाए वो बहू को देखे बगैर बाहर नहीं जाएगा वो बहू के बिस्तर के और भी पास आ गया था बहू अब तक सो रही थी पर उसकी चद्दर के अंदर से उसके शरीर का हर उतार चढ़ाव उसे दिख रहा था वो थोड़ा सा झुका और अपने हाथों को बहू की जाँघो पर ले गया वो धीरे-धीरे उसकी जाँघो को अपनी हथेली से महसूस करने लगा उसके हाथो में जैसे कोई नरम सी और चिकनी सी चीज आ गई हो वो बड़ी ही तल्लीनता से बहू की जाँघो को उसके पैरों तक और फिर ऊपर बहुत ऊपर तक उसकी कमर तक ले जाने लगा था पर बहुत ही आराम से जैसे
उसे डर था कही बहू उठ ना जाए पर नहीं बहू के शरीर पर कोई हरकत नहीं हुई थी उसकी हिम्मत और बढ़ी और वो धीरे से बहू के ऊपर से चद्दर को हटाने लगा बहू की पीठ उसकी तरफ थी पर वो बहू की सांसों के साथ उसके शरीर के उठने बैठने के तरीके से समझ गया था कि वो सो रही थी उसने हिम्मत करके बहू के ऊपर से चद्दर को धीरे से हटा दिया 

उूुुुउउफफफफफफफफफफ्फ़ क्या शरीर था चद्दर के अंदर गजब का दिख रहा था, सफेद ब्लाउस और पेटीकोट था पहने हाँ… वही तो था कल वाला तो क्या बहू उसके लिए ही तैयार हुए थी आआआआअह्ह 
भीमा के मुख से अचानक ही एक आह निकली और उसके हाथ बहू की पीठ पर धीरे-धीरे घूमने लगे थे उसकी मानो स्थिति उस समय ऐसी थी कि वो चाह कर भी अपने पैरों को वापस नहीं लेजा सकता था वो अब बहू के रूप और रंग का दीवाना था और किसी भी हालत में उसे फिर से हासिल करना चाहता था वो दीवानों की तरह अपने हाथों को बहू के शरीर पर घुमा रहा था और ऊपर वाले की रचना को अपने हाथों से महसूस कर रहा था उसके मन में बहुत सी बातें भी चल रही थी वो अपने चेहरे को थोड़ा सा आगे करके बहू को देख भी लेता था और उसके स्थिति का जायजा भी लेता जा रहा था सोते हुए बहू कितनी सुंदर लगती थी बिल्कुल किसी मासूम बच्चे की तरह कितना सुंदर चेहरा है और कितनी सुंदर उसकी काया है उसके हाथ अब बहू कि जाँघो को बहुत ऊपर तक सहला रहे थे और लगभग उसकी कमर तक वो पहुँच चुका था वो धीरे से बहू के बिस्तर पर बैठ गया और बहू कि दोनों टांगों को अपने दोनों खुरदुरे हाथों से 
सहलाने लगा था कितना मजा आ रहा था भीमा को यह वो किसी को भी बता नहीं सकता था उसके पास शब्द नहीं थे उस एहसास का वर्णन करने को उसके हाथ धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठ-ते और फिर बहू की जाँघो की कोमलता का एहसास करते हुए नीचे उसकी टांगों पर आकर रुक जाते थे वो अपने को रोक नहीं पाया और उस सुंदरता को चखने के लिए वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठों को बहू के टांगों पर रख दिया और उन्हें चूमने लगा बहुत धीरे से और अपने हाथों को भी उन पर घुमाते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगा वो अपने जीवन का वो लम्हा सबकुछ भूलकर कामया की जाँघो को समर्पित कर चुका था उसे नहीं पता था कि इस तरह से वो बहू को जगा भी सकता था पर वो मजबूर था और अपने को ना रोक पाकर ही वो इस हरकत पर उतर आया था उसकी जीब भी अब बहू की जाँघो को चाट चाट कर गीलाकर रहे थे और होंठों पर इतनी कोमल और चिकनी काया का स्पर्श उसे जन्नत का वो सुख दे रही थी जिसकी कि उसने कभी भी कल्पना भी नहीं की थी वो अपने मन से बहू की तारीफ करते हुए धीरे-धीरे अपने काम में लगा था और अपने हाथों की उंगलियों को ऊपर-नीचे करते हुए बहू की जाँघो पर घुमा रहा था 

उसके उंगलियां बहू की जाँघो के बीच में भी कभी-कभी चली जाती थी वो अपने काम में लगा था कि अचानक ही उसे महसूस हुआ कि बहू की जाँघो और टांगों पर जब वो अपने हाथ फेर रहा था तो उनपर थोड़ा सा खिंचाव भी होता था और बहू के मुख से सांसों का जोर थोड़ा सा बढ़ गया था वो चौंक कर थोड़ा सा रुका कही बहू जाग तो नहीं गई और अगर जाग गई थी तो कही वो चिल्ला ना पड़े वो थोड़ा सा रुका पर बहू के शरीर पर कोई हरकत ना देख कर वो धीरे से उठा और बहू की कमर के पास आ गया और अपने हाथों को उसने उसकी कमर के चारो ओर घुमाने लगा था और एक हाथ से वो बहू की पीठ को भी सहलाने लगा था वो आज अच्छे से बहू को देखना चाहता था और उसके हर उसे भाग को छूकर भी देखना चाहता था जिसे वो अब तक तरीके से देख नहीं पाया था शायद हर पुरुष की यही इच्छा होती है जिस चीज को भोग भी चुका हो उसे फिर से देखने की और महसूस करने की इच्छा हमेशा ही उसके अंदर पनपती रहती है 


वही हाल भीमा का भी था उसके हाथ अब बहू की पीठ और, कमर पर घूम रहे थे और हल्के-हल्के वो उसकी चुचियो की ओर भी चले जाते थे पर बहू जिस तरह से सोई हुई थी वो अपने हाथों को उसकी चूची तक अच्छी तरह से नहीं पहुँचा पा रहा था पर फिर भी साइड से ही वो उनकी नर्मी का एहसास अपने हाथों को दे रहा था लेकिन एक डर अब भी उसके जेहन में थी कि कही बहू उठ ना जाए पर अपने को रोक ना पाने की वजह से वो आगे और आगे चलता जा रहा था 


और उधर कामया जो कि अब पूरी तरह से जागी हुई थी जैसे ही भीमा चाचा उसके कमरे में घुसे थे तभी वो जाग गई थी और बिल्कुल बिना हीले डुले वैसे ही लेटी रही उसके तन में जो आग लगी थी भीमा चाचा के कमरे में घुसते ही वो चार गुना हो गई थी वो अपनी सांसों को कंट्रोल करके किसी तरह से लेटी हुई थी और आगे के होने वाले घटना क्रम को झेलने की तैयारी कर रही थी वो सुनने की कोशिश कर रही थी कि भीमा चाचा कहाँ है पर उनके पदछाप उसे नहीं सुनाई दिए हाँ… उसके नथुनो में जब एक महक ने जगह ली तो वो समझ गई थी कि भीमा चाचा अब उसके बिल्कुल पास है वो उस मर्दाना महक को पहचानती थी उसने उस पसीने की खुशबू को अपने अंदर इससे पहले भी महसूस किया था उसके शरीर में उठने वाली तरंगे अब एक विकराल रूप ले चुकी थी वो चाहते हुए भी अपने को उस हालत से निकालने में आसमर्थ थी वो उस सागर में गोते लगाने के लिए तैयार थी बल्कि कहिए वो तो चाह ही रही थी कि आज उसके शरीर को कोई इतना रौंदे कि उसकी जान ही निकल जाए पर वो अपने आपसे नहीं जीत पाई थी इसलिए वो चुपचाप सोने की कोशिश करने लगी थी पर जैसे ही भीमा चाचा आए वो सबकुछ भूल गई थी और अपने शरीर को सेक्स की आग में धकेल दिया था 


वो अपने शरीर में उठ रही लहर को किसी तरह रोके हुए भीमा चाचा की हर हरकत को महसूस कर रही थी और अपने अंदर उठ रही सेक्स की आग में डूबती जा रही थी उसे भीमा चाचा के छूने का अंदाज बहुत अच्छा लग रहा था वो अपने को समेटे हुए उन हरकतों का मजा लूट रही थी उसे कोई चिंता नहीं थी वो अपने को एक सुखद अनुभूति के दलदल में धकेलती हुई अपने जीवन का आनंद लेती जा रही थी जब भी चाचा का हाथ उसके पैरों से उठते हुए जाँघो तक आता था उसकी योनि में ढेर सारा चिपचिपापन सा हो जाता था और चुचियाँ अपने ब्लाउज के अंदर जगह बनाने की कोशिश कर रही थी कामया अपने को किसी तरह से अपने शरीर में उठ रहे ज्वार को संभाले हुए थी पर धीरे-धीरे वो अपना नियंत्रण खोती जा रही थी 

भीमा चाचा अब उसकी कमर के पास बहुत पास बैठे हुए थे और उनके शरीर की गर्मी को वो महसूस कर रही थी उसका पूरा शरीर गरम था और पूरा ध्यान भीमा चाचा के हाथों पर था भीमा चाचा उसकी पीठ को सहलाते हुए जब उसकी चुचियों की तरफ आते थे तो वो अपने को तकिये से अलग करके उनके हाथ को भर देना चाहती थी पर कर ना पाई भीमा चाचा अब उसके पेट से लेकर पीठ और फिर से जब वो उसकी चुचियों तक पहुँचने की कोशिश की 
तो कामया से नहीं रहा गया उसने थोड़ा सा अपने तकिये को ढीला छोड़ दिया और भीमा चाचा के हाथों को अपने चुचियों तक पहुँचने में मदद की और भीमा का हाथ जैसे ही बहू की चुचियों तक पहुँचे वो थोड़ा सा चौंका अपने हाथों को अपनी जगह पर ही रोके हुए उसने एक बार फिर से आहट लेने की कोशिश की पर बहू की ओर से कोई गतिविधि होते ना देखकर वो निश्चिंत हो गया और अपने आपको उस खेल में धकेल दिया जहां सिर्फ़ मज ही मजा है और कुछ नहीं वो अपने हाथों से बहू की चुचियों को धीरे दबाते हुए उसकी पीठ को भी सहला रहा था और अपने हाथों को उसके नितंबों तक ले जाता था वो बहू के नथुनो से निकलने वाली सांसों को भी गिन रहा था जो कि अब धीरे-धीरे कुछ तेज हो रही थी पर उसका ध्यान इस तरफ कम और अपने हाथों की अनुभूति की ओर ज्यादा था वो अपने को कही भी रोकने की कोशिश नहीं कर रहा था वो अपने मन से और दिल के हाथों मजबूर था वो अपने हाथ में आई उस सुंदर चीज को कही से भी छोड़ने को तैयार नहीं था 
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06-10-2017, 02:24 PM,
#32
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
अब धीरे-धीरे भीमा चाचा की हरकतों में तेजी भी आती जा रही थी उसके हाथों का दबाब भी बढ़ने लगा था उसके हाथों पर आई बहू की चूची अब धीरे-धीरे दबाते हुए उसके हाथ कब उन्हें मसलने लगे थे उसे पता नहीं चला था पर हाँ… बहू के मुख से निकलते हुए आअह्ह ने उसे फिर से वास्तविकता में ले आया था वो थोड़ा सा ढीला पड़ा पर बहू की ओर से कोई हरकत नहीं होते देखकर उसके हाथ अब तो जैसे पागल हो गये थे वो अब बहू के ब्लाउज के हुक की ओर बढ़ चले थे वो अब जल्दी से उन्हे आजाद कंराना चाहता था पर बहुत ही धीरे-धीरे से वो बढ़ रहा था पर उसे बहू के होंठों से निकलने वाली सिसकारी भी अब ज्यादा तेज सुनाई दे रही थी जब तक वो बहू के ब्लाउसको खोलता तब तक बहू के होंठों पर से आआअह्ह और भी तेज हो चुकी थी वो अब समझ चुका था कि बहू जाग गई है पर वो कहाँ रुकने वाला था उसके हाथों में जो चीज आई थी वो तो उसे मसलने में लग गया था और पीछे से हाथ लेजाकर उसने बहू की चुचियों को भी उसके ब्रा से आजाद कर दिया था वो अपने हाथों का जोर उसकी चुचियों पर बढ़ाता ही जा रहा था और दूसरे हाथ से उसकी पीठ को भी सहलाता जा रहा था वो बहू के मुख से सिसकारी सुनकर और भी पागल हो रहा था उसे पता था कि बहू के जागने के बाद भी जब उसने कोई हरकत नहीं की तो उसे यह सब अच्छा लग रहा था वो और भी निडर हो गया और धीरे से बहू को अपनी ओर पलटा लिया और अपने होंठों को बहू की चुचियों पर रख दिया और जोर-जोर से चूसने लगा उसके हाथों पर आई बहू की दोनों चूचियां अब भीमा के रहमो करम पर थी वो अपने होंठों को उसकी एक चुचि पर रखे हुए उन्हें चूस रहा था और दूसरे हाथों से उसकी एक चुची को जोर-जोर से मसल रहे थे इतना कि कामया के मुख से एक लंबी सी सिसकारी निकली और निरंतर निकलने लगी थी कामया के हाथों ने अब भीमा चाचा के सिर को कस कर पकड़ लिया था और अपनी चुचियों की ओर जोर लगाकर खींचने लगी थी 




वो अब और सह नहीं पाई थी और अपने आपको भीमा चाचा की चाहत के सामने समर्पित कर दिया था वो अपने आपको भीमा चाचा के पास और पास ले जाने को लालायित थी वो अपने शरीर को भीमा चाचा के शरीर से सटाने को लालायित थी वो अपनी जाँघो को ऊपर करके और अपना पूरा दम लगाके भीमा चाचा को अपने ऊपर खींचने लगी थी और भीमा जो की अब तक बहू की चुचियों को अपने मुख में लिए हुए उन्हें चूस रहा था अचानक ही अपने सिर पर बहू के हाथों के दबाब को पाते ही और जंगली हो गया वो अब उनपर जैसे टूट पड़ा था वो दोनों हाथों से एक चुचि को दबाता और होंठों से उसे चूसता और कभी दूसरे पर मुख रखता और दूसरे को दबाता वो अपने हाथो को भी कामया के शरीर पर घुमाता जा रहा था और नीचे फँसे हुए पेटीकोट को खींचने लगा था जब उससे नाड़ा खुल गया तो एक ही झटके में उसने उसे उतार दिया पैंटी और, पेटीकोट भी और देखकर आश्चर्य भी हुआ की बहू ने अपनी कमर को उठाकर उसका साथ दिया था वो जान गया था की बहू को कोई आपत्ति नहीं है वो भी अपने एक हाथ से अपने कपड़ों से लड़ने लगा था और अपने एक हाथ और होंठों से बहू को एंगेज किए हुए था बहू जो की अब एक जल बिन मछली की भाँति बिस्तर पर पड़ी हुई तड़प रही थी वो अब उसे शांत करना चाहता था वो धीरे से अपने कपड़ों से बाहर आया और बहू के ऊपर लेट गया अब भी उसके होंठों पर बहू के निप्पल थे और हाथों को उसके पूरे शरीर पर घुमाकर हर उचाई और घराई को नाप रहा था तभी उसने अपने होंठों को उसके चूचियां से आलग किया और बहू की और देखने लगा जो की पूरी तरह से नंगी उसके नीचे पड़ी हुई थी वो बहू की सुंदरता को अपने दिल में या कहिए अपने जेहन में उतारने में लगा था पर तभी कामया को जो सुना पन लगा तो उसने अपनी आखें खोल ली और दोनों की आखें चार हुई .


भीमा बहू की सुंदर और गहरी आखों में खो गया और धीरे से नीचे होता हुआ उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया कामया को अचानक ही कुछ मिल गया था तो वो भी अपने दोनों हाथो को भीमा चाचा की कमर के चारो ओर घेरते हुए अपने होंठों को भीमा चाचा के रहमो करम पर छोड़ दिया और अपने जीब को भी उनसे मिलाने की कोशिश करने लगी थी उसके हाथ भी अब भीमा चाचा के बालिस्त शरीर का पूरा जाएजा लेने में लगे थे खुरदुरे और बहुत से उतार चढ़ाव लिए हुए बालों से भरे हुए उसके शरीर की गंध अब कामया के शरीर का एक हिस्सा सा बन गई थी उसके नथुनो में उनकी गंध ने एक अजीब सा नशा भर दिया था जो कि एक मर्द के शरीर से ही निकल सकती थी वो अपने को भूलकर भीमा चाचा से कस कर लिपट गई और अपनी जाँघो को पूरा खोलकर चाचको उसके बीच में फँसा लिया 


उसके योनि में आग लगी हुई थी और वो अपनी कमर को उठाकर भीमा चाचा के लिंग पर अपने आपको घिसने लगी थी उसके जाँघो के बीच में आ के लिंग की गर्मी इतनी थी कि लगभग झड़ने की स्थिति में पहुँच चुकी थी पर चाचा तो बस अब तक उसके होंठो और उसकी चुचियों के पीछे ही पड़े हुए थे वो लगातार अपनी योनि को उसके लिंग पर घिसते हुए अपने होंठों को और जीब को भी चाचा के अंदर तक उतार देती थी उसकी पकड़ जो कि अब चाचा की कमर के चारो तरफ थी अचानक ही ढीली पड़ी और एक हाथ चाचा के सिर पर पहुँच गया और एक हाथ उनके लिंग तक ले जाने की चेष्टा करने लगी बड़ी मुश्किल से उसने अपने और चाचा के बीच में जगह बनाई और और लिंग को पकड़कर अपनी योनि पर रखा और वैसे ही एक झटका उसने नीचे से लगा दिया भीमा चाचा इस हरकत को जब तक पहचानते तब तक तो बहू के अंदर थे और बहू की जाँघो ने उन्हें कस आकर जकड़ लिया था भीमा अपने को एक इतनी सुंदर स्त्री के साथ इस तरह की अपेक्षा करते वो तो जिंदगी में नहीं सोच पाए थे पर जैसे ही वो बहू के अंदर हुए उसका शरीर भी अपने आप बहू के साथ ऊपर-नीचे होने लगा था वो अब भी बहू के होंठों को चूस रहे थे और अपने हाथों से बहू की चुचियों को निचोड़ रहे थे उनकी हर हरकत पर बहू की चीख उनके गले में ही अटक जाती थी हर चीख के साथ भीमा और भी जंगली हो जाता था और उसके हाथों का दबाब भी बाद जाता था वो पागलो की तरह से बहू की किस करता हुआ अपने आपको गति देता जा रहा था वो जैसे ही बहू के होंठों को छोड़ता बहू की सिसकियां पूरे कमरे में गूंजने लगती तो वो फ़ौरन अपने होंठों से उन्हें सील करदेता और अपनी गति को ऑर भी तेज कर देता पूरे कमरे में आचनक ही एक तूफान सा आ गया था जो कि पूरे जोर पर था कमरे में जिस बिस्तर पर भीमा बहू को भोग रहा था वो भी झटको के साथ अब हिलने लगा था



और कामया की जिंदगी का यह एहसास जी कि अभी भी चल रहा था एक ऐसा अहसास था जिसे कि वो पूरी तरह से भोगना चाहती थी वो आज इतनी गरम हो चुकी थी कि भीमा के दो तीन झटको में ही वो झड चुकी थी पर भीमा के लगातार झटको में वो अपने को फिर से जागते हुए पाया और अपनी जाँघो की पकड़ और भी मजबूत करते हुए भीमा चाचा से लिपट गई और हर धक्के के साथ अपने मुँह से एक जोर दार चीत्कार निकलती जा रही थी वो उन झटकों को बिना चीत्कार के झेल भी नहीं पा रही थी पता नहीं कहाँ जाकर टकराते थे भीमा चाचा के लिंग के वो ऊपर की ओर सरक जाती थी और एक चीख उसके मुख से निकल जाती थी पर हर बार भीमा चाचा उसे अपने होंठों से दबाकर खा जाते थे उसको भीमा चाचा का यह अंदाज बहुत पसंद आया और वो खुलकर उनका साथ दे रही थी शायद ही उसने अपने पति का इस तरह से साथ दिया हो वहां तो शरम और हया का परदा जो रहता है पर यहां तो सेक्स और सिर्फ़ सेक्स का ही रिस्ता था वो खुलकर अपने शरीर की उठने वाली हर तरंग का मज़ा अभी ले रही थी और अपने आपको पूरी तरह से भीमा चाचा के सुपुर्द भी कर दिया था और जम कर सेक्स का मजा भी लूट रही थी उसके पति का तिरस्कार अब उसे नहीं सता रहा था ना उनकी अप्पेक्षा वो तो जिस समुंदर में डुबकी ले रही थी वहां तो बस मज ही मजा था वो भीमा चाचा को अपनी जाँघो से जकड़ते हुए हर धक्के के साथ उठती और हर धक्के के साथ नीचे गिरती थी और भीमा तो जैसे, जानवर हो गया था अपने होंठों को बहू के होंठों से जोड़े हुए लगातार गति देते हुए अपनी चरम सीमा की ओर बढ़ता जा रहा था उसे कोई डर नहीं था और नहीं कोई शिकायत थी 

वो लगातार अपने नीचे बहू को अपने तरीके से भोग रहा था और धीरे धीरे अपने शिखर पर पहुँच गया हर एक धक्के के साथ वो अपने को खाली करता जा रहा था और हर बार नीचे से मिल रहे साथ का पूरा मजा ले रहा था वो अपने को और नहीं संभाल पाया और धम्म से नीचे पड़े हुए बहू के ऊपर ढेर हो गया नीचे बहू भी झड़ चुकी थी और वो भी निश्चल सी उसके नीचे पड़ी हुई गॉंगों करके सांसें ले रही थी उसकी खासी से भी कभी-कभी कमरा गूँज उठा था पर थोड़ी देर में सबकुछ शांत हो गया था बिल कुल शांत 
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06-10-2017, 02:24 PM,
#33
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
भीमा अपने आपको कंट्रोल करके बहू के शरीर के ऊपर से उठा और धीरे से बिस्तर पर ही बैठ गया बहू अब भी शांत सी पड़ी हुई थी वो बिस्तर पर बैठे हुए ही अपने कपड़े नीचे से उठाकर पहनने लगा था पर नजर बहू के नंगे शरीर पर थी उसके मन में अब भी उसे तन से खेलने की इच्छा थी पर कुछ सोचकर वो कपड़े पहनकर उठा और वही चद्दर से बहू को ढँक कर बाहर की ओर चला गया 

कामया जो कि अब शांत थी भीमा के निकलने के बाद थोड़ा सा हिली पर ना जाने क्यों वो वैसे ही पड़ी रही और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गई 

शाम को ठीक 5 15 पर इंटरकम की घंटी बजी तो वो हड़बड़ा कर उठी और 
कामया- हाँ… 
भीमा-- जी वो आपको माँ जी के साथ मंदिर जाना था इसलिए 

कामया ने झट से फोन रख दिया दूसरी तरफ भीमा चाचा थे वो चिंतित थे कि कही वो सोती रह जाती तो मम्मीजी के साथ वो कैसे मंदिर जाती उसके चेहरे पर एक मुश्कान थी वो जल्दी से उठी और बाथरूम की ओर भागी ताकि नहा धो कर जल्दी से तैयार हो सके 

लगभग 6 बजे से पहले वो बिल्कुल तैयार थी साड़ी और मचिंग ब्लाउज के साथ मम्मीजी के साथ जाना था इसलिए थोड़ा सलीके की ब्लाउस और साड़ी पहनी थी पर था तो फिर भी बहुत कुछ दिखाने वाला टाइट और बिल्कुल नाप का साड़ी वही कमर के बहुत नीचे और ब्लाउस भी डीप नेस्क आगे और पीछे से 


थोड़ी देर में ही बाहर एक गाड़ी आके रुकी तो वो समझ गई थी कि टक्सी आ गई है वो फ़ौरन बाहर की ओर लपकी ताकि मम्मीजी के साथ ही वो नीचे मिल सके मम्मीजी को फोन नहीं करना पड़े नीचे आते ही मम्मीजी ने एक बार कामया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुराती हुई 
मम्मीजी- चले 
कामया- जी 
और बाहर जहां गाड़ी खड़ी थी आके बैठ गये 
गाड़ी में कामया ने बड़े ही हिम्मत करके मम्मीजी को कहा 
कामया- मम्मीजी 
मम्मीजी- हाँ… 
कामया- जी वो 
मम्मीजी- बोलो 
कामया- जी वो असल में मुझे ना यह सब मजा नहीं आता तो क्या में वहां से जल्दी निकलकर घर आजाऊ 
मम्मीजी- अरे ंमुझे भी कहाँ आता है इतनी भीड़ भाड़ में पर क्या करे बेटा जाना पड़ेगा ना तू एक काम कर वहां पार्क है तू थोड़ा घूम आना में वहां थोड़ी देर बैठूँगी और फिर दोनों घर आ जाएँगे 
कामया- जी ठीक है पर क्या मुझे भी वहां बैठना पड़ेगा 
मम्मीजी- तेरी मर्ज़ी नहीं तो आस-पास घूमकर देखना और क्या 
कामया- जी ठीक है 
दोनों ने एक दूसरे की ओर मुस्कुराते हुए देखा और गाड़ी को मंदिर के रास्ते पर घूमते हुए देखते रहे 

जैसे ही गाड़ी मंदिर पर रुकी बहुत से लोग गाड़ी के पास आके मम्मीजी के पैर पड़ने लगे कुछ कामया को भी नमस्कार करते हुए दिखे सभी शायद मम्मीजी को जानते थे मम्मीजी भी सभी के साथ कामया को लेकर मंदिर के सीढ़ियो पर चढ़ने लगी थी 
मंदिर के अंदर जाकर दोनों ने नमस्कार किया और अपनी जगह पर बैठ गये थे वहां बाहर से कुछ लोग आए थे कीर्तन वाले और कुछ गीता वाचक भी थे मंदिर का समा धीरे-धीरे जैसे भक्ति मय होने लगा था पर कामया का मन तो बिल्कुल नहीं लग रहा था 


वो चाह कर भी वहां बैठ नहीं पा रही थी एक तो बहुत जोर से माइक बज रहा था और फिर लोगों की बातें उसे समझ नहीं आ रही थी वो इधर उधर सभी को देख रही थी और किसी तरह वहां से निकलने की कोशिश करने लगी थी मम्मीजी आखें बंद किए कीर्तान की धुन पर झूम रही थी और कही भी ध्यान नहीं था 
कामया- मम्मीजी 
मम्मीजी के हाथों को हिलाकर कमी आने अपनी और ध्यान खींचा था 
मम्मीजी- हाँ… 
कामया- जी में थोड़ा बाहर घूम आऊ 
मम्मीजी- हाँ… हाँ… जाना में यही हूँ 
कामया की जान में जान आई वो लोगों की तरफ देखती हुई थोड़ा सा मुस्कुराती हुई सिर पर पल्ला लिए हुए धीरे से उठी और बाहर की ओर चलने लगी बहुत सी आखें उसपर थी 

पर एक आखों जो कि दूर से उसे देख रही थी कामया की नजर उसपर जम गई थी वो भीड़ में खड़ा दूर से उसे ही निहार रहा था वो घूमकर उसे देखती पर अपने को उस भीड़ से बच कर जब वो बाहर निकली तो वो आखें गायब थी वो मंदिर के बाहर सीढ़ियो पर आके फिर से इधार उधर नजरें घुमाने लगी थी पर कोई नहीं दिखा उसे 



पर वो ढूँढ़ क्या रही थी और किसे शायद वो उस नजर का पीछा कर रही थी जो उसे भीड़ में दिखी थी पर वो था कौन उसे वो नजर कुछ पहचानी हुई सी लगी थी पर एक झटके से उसने अपने सिर को हिलाकर अपने जेहन से उस बात को निकाल दिया की उसे यहां कौन पहचानेगा वो आज से पहले कभी मंदिर आई ही नहीं वो मंदिर की सीढ़िया उतर कर बाहर बने हुए छोटे से पार्क में आ गई थी और धीरे-धीरे चहल कदमी करते हुए बार-बारइधर-उधर देखती जा रही थी लोग सभी मंदिर की और जाते हुए दिख रहे थे कुछ उसे देखते हुए तो कुछ नजर अंदाज करते हुए पर तभी उसकी नजर मंदिर के पास खड़े हुए उस इंसान पर पड़ी जिसे देखते ही उसके रोंगटे खड़े हो गये वो बिल्कुल मंदिर की सीढ़ियों के पास दीवाल से टिका हुआ खड़ा था वो उसे ही देख रहा था पर बहुत दूर था कामया ने जैसे ही उसे देखा तो वो थोड़ी देर के लिए वही ठिटक गई और, फिर से उसे देखने लगी थी 

वो दूर था पर उसे पता चल गया था कि कामया की नजर उसे पर पड़ चुकी थी वो धीरे-धीरे मंदिर के पीछे की ओर जाने लगा था कामया अब भी वही खड़ी हुई उसे जाते हुए देखती रही पर पीछे की ओर जाते हुए वो थोड़ा सा अंधेरे में ठिटका और पीछे मुड़कर एक बार फिर से कामया की ओर देखा और अंधेरे में गुम हो गया कमाया अपने जगह पर खड़ी हुई उस अंधेरे में देखती रही और उस नजर वाले को तौलती रही वो अपने चारो ओर एक नजर दौड़ाई और धीरे से उस ओर चल दी जहां वो इंसान गायब हुआ था उसके शरीर में एक अजीब सी उमंग उठ रही थी 

वो चलते-चलते अपने पीछे और आस-पास का जायजा भी लेती जा रही थी पर सब अपने में ही मस्त थे सभी का ध्यान मंदिर में चल रहे सत्संग की ओर ही था और जल्दी से अपनी जगह लेने की कोशिश में थे कामया बहुत ही संतुलित कदमो से उस ओर जा रही थी 

वो अब मंदिर के साइड में आ गई थी पर उसे वो इंसान कही भी नहीं दिख रहा था वो थोड़ा और आगे की ओर चली पर वो नहीं दिखा वो अब बिल्कुल अंधेरे में थी और उसकी नजर उस नजर का पीछा कर रही थी जिसके लिए वो यहां तक आ गई थी पर वहां कोई नहीं था वो थोड़ा और आगे की ओर बढ़ी पर अंधेरा ही हाथ लगा वो कुछ और आगे बढ़ी तो उसे एक हल्की सी लाइट दिखी जो की शायद किसी के घर के अंदर से आ रही थी वो जिग्याशा बश थोड़ा और आगे की ओर हुई तो उसे वही इंसान एक दरवाजा खोलकर अंदर जाते हुए दिखा वो थोड़ी सी ठिटकि पर जाने क्यों वो पीछे की ओर देखते हुए आगे की ओर बढ़ती ही गई वो उस दरवाजे पर पहुँची ही थी कि अंदर से लाइट आफ हो गई और घुप अंधेरा छा गया 
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06-10-2017, 02:24 PM,
#34
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
वो वही खड़ी रही और बहुत ही सधे हुए कदमो से दरवाजे की चौखट को अपने हाथों से टटोल कर पकड़ा और थोड़ा सा आगे बढ़ी अंदर उसे वही आकृति अंधेरे में खड़ी दिखाई दी कामया ने एक बार फिर से अपने चारो ओर देखा कोई नहीं था वहां पर वो वही खड़ी रही शायद अंदर जाने की हिम्मत नहीं थी तभी वो आकृति अंधेरे से बाहर की ओर आती दिखाई दी वो धीरे-धीरे कामया की ओर बढ़ा रही थी और कामया की सांसें बहुत तेज चलने लगी थी वो अपनी जगह पर ही खड़ी-खड़ी अपनी सांसों को तेज होते और अपने शरीर को कपड़ों के अंदर टाइट होते महसुसू करती रही 


अचानक ही वो आकृति उसके पास आ गई और उसका हाथ पकड़कर उसे अंदर खींचने लगी धीमे से बहुत ही धीमे से कामया उस हाथ के खिन्चाव के साथ अंदर चली गई और वही अंदर उस इंसान के बहुत ही नजदीक खड़ी हो गई वो इंसान उसके बहुत की करीब खड़ा था और अपने घर में आए मेहमान की उपस्थित को नजर अंदाज नहीं कर रहा था वो खड़े-खड़े कामया की नंगी बाहों को अपने हाथों से सहला रहा था और उसके शरीर की गंध को अपने जेहन में बसा रहा था वो थोड़ी देर तो वैसे ही खड़ा-खड़ा कामया को सहलाता रहा और उसकी नजदीकिया महसूस करता रहा 


कामया भी बिल्कुल निश्चल सी उस आकृति के पास खड़ी रही और उसकी हर हरकत को अपने में समेटने की कोशिश करती रही कि वो आकृति उसे छोड़ कर कामया के पीछे चली गई और दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया कमरे में एकदम से घुप अंधेरा हो गया हाथों हाथ नहीं सूझ रहा था पर कमाया वही खड़ी रही और उस इंसान का इंतजार करती रही उसकी नाक में एक अजीब तरह की गंध ने जगह ले ली थी कुछ सिडन की जैसे की कोई पुराना घर में होती है पानी और साफ सफाई की अनदेखी होने से पर कामया को वो गंध भी अभी अच्छी लग रही थी वो खड़ी-खड़ी काप रही थी ठंड के मारे नहीं सेक्स की आग में उस इंसान के हाथों के स्पर्श के साथ ही उसने अपने सोचने की शक्ति को खो दिया था 

और वो सेक्स की आग में जल उठी थी कि तभी उस इंसान ने उसे पीछे से आके जकड़ लिया और ताबड तोड उसके गले और पीठ पर अपने होंठों के छाप छोड़ने लगा था वो बहुत ही उतावला था और जल्दी से अपने हाथों में आई चीज का इश्तेमाल कर लेना चाहता था उसे इस बात की कोई फिकर नहीं थी कि साड़ी कहाँ बँधी है या पेटिकोट कहाँ लगा था वो तो बस एक कामुक इंसान था और अपने हाथों में आए उस सुंदर शरीर को जल्दी से जल्दी भोगना चाहता था वो जल्दी में था और उसके हाथ और होंठ इस बात का प्रमाण दे रहे थे उसने कामया के शरीर से एक ही झटके में साड़ी और पेटीकोट का नाड़ा खोलकर उन्हे उतार दिया और जल्दी में उसके शरीर से ब्लाउज के बटनो को भी खोलने लगा था कामया जो की उसके हर हरकत को अपने अंदर उठ रही उत्तेजना की लहर के साथ ही अपने काम अग्नि को 
जनम दे रही थी वो भी उस इंसान का हर संभव साथ देने की कोशिश करती जा रही थी उसे कोई चिंता नहीं थी और वो भी उस इंसान का हर तरीके से साथ देती जा रही थी वो भी घूमकर, उस इंसान के गले लग गई थी अंधेरे में उसे कोई चिंता नहीं थी कि कोई उसे देखेगा या फिर क्या सोचेगा वो तो अपने आप में ही नहीं थी वो तो सेक्स की भेट चढ़ चुकी थी और उस इंसान का पूरा साथ दे रही थी उसके कपड़े उसके शरीर से अलग हो चके थे और वो पूरी तरह से नग्न अवस्था में उस इंसान की बहू में थी और वो इंसान उसे अपनी बाहों में लेके जोर-जोर से किस कर रहा था और अपने हाथों को उसके पूरे शरीर में घुमा रहा था पर थोड़ी देर में ही उसकी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी और उसके एक ही झटके में कामया को अपनी गोद में उठा लिया और साइड में पड़ी हुई जमीन में रखी हुई चटाइ पर पटक दिया और अपने कपड़ों से जूझने लगा 
वो भी अपने कपड़ों से आजाद हुआ और फिर कामया के होंठों को अंधेरे में ढूँढ़ कर उन्हें चूमने लगा था और कामया की चुचियों को अपने हाथों से जोर-जोर से दबाने लगा था कामया नीचे पड़ी हुई कसमसा रही थी और उसकी हर हरकत को सहने की कोशिश कर रही थी पर उसके दबाब के कारण उसके शरीर का हर हिस्सा आग में घी डाल रहा था कामया ने किसी तरह से अपने को उससे अलग करने की कोशिश की पर कहाँ वो तो जैसे जानवर बन गया था और कामया को निचोड़ता जा रहा था कामया की टांगों को भी एक ही झटके से उसने अपने पैरों से खोला और अपने लिंग को उसकी योनि के द्वार पर रखकर एक जोरदार धक्का लगा दिया 

कामया का पूरा शरीर ही उस धक्के से हिल गया और वो सिहर उठी पर जैसे ही उसने थोड़ी सांस लेने की कोशिश की कि एक ओर झटका और फिर एक ओर धीरे-धीरे झटके पर झटके और कामया भी अब तैयार हो गई थी उसे हर धक्के में नया आनंद मिलता जा रहा था और वो अपने सफर को चलने लगी थी ऊपर पड़े हुए इंसान ने तो जैसे गति पकड़ी थी उससे लगता था कि जल्दी में था और जल्दी-जल्दी अपने मुकाम पर पहुँचना चाहता था कामया भी अपनी दोनों जाँघो को खोलकर उस इंसान का पूरा साथ दे रही थी और अपने शरीर को उससे जोड़े रखा था वो बहुत ही नजदीक पहुँच चुकी थी अपने चरम सीमा को लगने ही वाली थी उस इंसान के हर धक्के में वो बात थी कि वो कब झड जाए उसे पता ही नहीं चलता वो धक्के के साथ ही अपने होंठों को उसके साथ जोड़े रखी थी पर जैसे ही धक्का पड़ता उसका मुख खुल जाता और एक लंबी सी सिसकारी उसके मुख से निकल जाती वो नीचे पड़ी हुई हर धक्के का जबाब अपनी कमर उठाकर देती जा रही थी 


पर जैसे ही वो अपने चरम सीमा की ओर जाने लगी थी उसका पूरा शरीर अकड़ने लगा था और वो उस इंसान से और भी सटने लगी थी और अपने मुख से निकलने वाली सिसकारी और भी तेज और उत्तेजना से भरी हुई होती जा रही थी 
कि तभी उस इंसान का बहुत सा वीर्य उसके योनि में छूटा और वो दो 4 जबरदस्त धक्कों के बाद वो उसके ऊपर गिर गया और नीचे जब कामया ने देखा कि वो इंसान उसके अंदर छूट चुका है तो वो उससे और भी चिपक गई और अपनी कमर को उठा कर हर एक धक्के पर अपनी योनि के अंदर एक धार सी निकलते महसूस करने लगी उसके होंठों को उसने भिच कर, उस इंसान के कंधो पर नाख़ून गढ़ा दिए थे और अपने हाथों को कस कर जकड़कर उस इंसान को अपने अंदर और अंदर ले जाना चाहती थी उसके मुख से के लंबी सी आहह निकली और 
- कल से आप रोज आना प्लीज 
- जी 
कामया नीचे पड़े हुए अपनी सांसों को नियंत्रित करती हुई बोली 
कामया- आज क्यों नहीं आए थे 
- जी वो 
कल से रोज आना मुझे ड्राइविंग सिखाने

वो इंसान और कोई नहीं लाखा ही था वो मंदिर के पास ही रहता था और आज वो जानबूझ कर नहीं गया था क्योंकी उसे डर था कि कही कामया ने शिकायत कर दी तो पर जैसे ही उसने कामया को मंदिर में देखा तो वो अपनी सारी गलती भूल गया और कामया अको अपने घर के अंदर ले आया और आगे तो अपने ऊपर पढ़ ही लिया होगा

तो खेर दोनो अपने आपको शांत करके अब बिल्कुल निश्चल से पड़े हुए थे की लाखा ने अपने आपको उठाया और अंधेरे में ही टटोलते हुए अपने कपड़े और कामया के कपड़ों को उठा लिया और दोनों ही अंधेरे में तैयारी करने लगे जब वो कपड़े पहनकर तैयार हुए तो उसे अपनी परिस्थिति का ध्यान आया वो कहाँ है और कैसी स्थिति में है उसके मन में एक डर घर कर गया था कामया ने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए और अंधेरे में ही बाहर की ओर जाने लगी थी 


पर लाखा ने उसे रोक लिया वो पहले बाहर की ओर बढ़ा और दरवाजा खोलकर बाहर एक नजर डाली वहां किसी को ना देखकर वो संतुष्ट हो गया और इशारे से बहू को बुलाया और बाहर को जाने को इशारा किया कामया भी नजर झुकाए तुरंत बाहर निकल गई और जल्दी से गार्डेन की ओर दौड़ पड़ी जब वो 
गार्डेन तक आई तो वहां सबकुछ नार्मल था किसी को भी उसका ध्यान नहीं था वो वही खड़ी हुई अपने बाल और चेहरे को ठीक करने लगी थी कि उसे मम्मीजी को मंदिर की सीढ़ियाँ उतरते देखा वो भी थोड़ा सा आगे होकर मम्मीजी के पास चली गई कुछ लोगों से बात करते हुए मम्मीजी टक्सी के अंदर बैठ गई और कामया भी और टक्सी उनके घर की ओर चल दी मम्मीजी कामया से बातें करती जा रही थी पर कामया का 
ध्यान उनकी बातों में कम अपने आज के अनुभव की ओर ज्यादा था वो बहुत खुश थी और अपने सुख की चिंता अब वो करने लगी थी उसके तन की आग को वो बुझा चुकी थी 
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06-10-2017, 02:25 PM,
#35
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
अब उसके पास दो ऐसे लोग थे जो की सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके तन के लिए कुछ भी कर सकते थे उसकी सुंदरता की पूजाकरने वाले और उसके रूप के दीवाने 

अब उसे कोई फरक नहीं पड़ता कि उसका पति उसे इंपार्टेन्स देता है कि नहीं उसे इंपार्टेन्स देने वाला उसे मिल गया था सोचते सोचते वो कब घर पहुँच गई पताही नहीं चला पर घर पहुँचकर वो अब एक बिंदास टाइप की हो गई थी 

उसके चाल में एक लचक थी और बेफिक्री भी वो जल्दी से अपने कमरे में गई और बाथरूम में घुस गई 

चेंज करते-करते उसका पति और पापाजी भी आ गये थे सभी अपने अपने काम से लगे हुए खाने की टेबल पर भी पहुँच गये और फिर अपने कमरे में भी 

कामेश का कोई इंटेरेस्ट नहीं था सेक्स के लिए और वो कुछ पेपर्स लिए हुए उन्हें पढ़ रहा था कामया भी कामेश के पास आकर लेट गई थोड़ा सा मुस्कुराता हुआ 
कामेश- सो जाओ थोड़ी देर मैं में सोता हूँ 

कामया- हाँ… 
और पलटकर वो सो गई उसे कोई फरक नहीं पड़ा कि कामेश उससे प्यार करता है कि नहीं या फिर उसके लिए उसके पास टाइम है कि नहीं 

सुबह भी वैसे ही टाइम टेबल रहा पर हाँ… कामया में चेंज आया था वो सिर्फ़ कामया ही जानती थी कामया अब बेफिक्र थी अपने पति की ओर से वो जानती थी कि उसका पति सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसे के पीछे भागने वाला है और उसके जीवन में कुछ और नहीं है तो वो भी अपने सुख को अपने तरीके से ढूँढ कर अपने जीवन में लाने की कोशिश करने लगी थी 

कामेश के जाने के बाद पापाजी को लेने आज लाखा आया था वो खुश थी कि शाम को काका के साथ वो ड्राइविंग करने जा सकती है और अभी भी वो भीमा को अपने कमरे में बुला सकती है वो अब सेक्स की चिता में बैठ चुकी थी उसे अब उस आग में जलने से कोई नहीं रोक सकता था और वो अपने को तैयार भी करचूकी थी उसने भी आज पापा जी और मम्मीजी के साथ ही खाना खा लिया था और सीधे अपने कमरे में चली गई थी 

जैसे ही वो अपने कमरे में पहुँची वो अपने को भीमा चाचा के लिए तैयार करने लगी थी उसके तन में वो आग फिर से भड़कने थी वो बस अब जल्दी से उस आग पर काबू पाना चाहती थी वो भीमा चाचा का इंतजार करने लगी थी पर भीमा चाचा तो नहीं आए काफी टाइम हो जाने के बाद भी नहीं (काफी क्या 10 15 मिनट ही हुए होंगे )
पर कामया तो जिस चिता पर जल रही थी वहां संयम ही कहाँ था वो कुछ ना समझ पाई और खुद को ना रोक पाई और वो सीढ़िया उतरने लगी वो जब किचेन में पहुँची तो देखा भीमा चाचा बर्तन धो रहे है 

कामया को अचानक ही किचेन में खड़ा देखकर भीमा थोड़ा सा चुका पर बहू के चेहरे को देखकर ही समझ गया कि उसे क्या चाहिए पर कुछ सोचकर वो पानी का ग्लास ले के कर आगे बढ़ा उसके सामने एक बहू खड़ी थी जिसे पानी नहीं कुछ और चाहिए था और यह भीमा अच्छे से जानता था पर पानी का ग्लास तो एक बहाना था उसके नजदीक जाने का 

वो पानी का ग्लास लेके जैसे ही बढ़ा तो बहू को भी थोड़ा सा अंदर किचेन की ओर आते देखा वो वही रुक कर बहू को अपने पास आने दे रहा था 

वो यह जानता था कि बहू को जैसे चाहे वैसे अपने तरीके से भोग सकता था तो वो वही रुक गया और बहू की ओर पानी का ग्लास बढ़ा दिया भीमा की नजर बहू के चेहरे पर थी पर कामया अपनी नजर भीमा चाचा से नहीं मिला पा रही थी उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी उसकी चाल में भी वो कान्फिडेन्स नहीं था उसकी चाल कुछ लरखड़ा रही थी पर हाँ… उसके मन में जो बात थी वो उसके चेहरे पर पढ़ा जा सकता था 

उसने हाथ बढ़ाकर पानी का ग्लास ले लिया लेते समय उसकी उंगलियां भीमा चाचा की मोटी-मोटी उंगलियों से टच हो गई थी कामया के शरीर में एक बिजली की लहर दौड़ गई थी उसके हाथों में आए पानी के ग्लास को बड़ी मुश्किल से संभाल पाई थी वो ग्लास लिए सोचने लगी कि पिए या क्या करे उसने नजर बड़ी मुश्किल से उठाई और एक बार भीमा चाचा की ओर देखा भीमा चाचा अब भी उसी की तरफ एकटक देख रहे थे 

कामया ने अपनी नजर झुका ली और एक घुट जल्दी से ग्लास से अपने मुँह में भर लिया तब तक भीमा चाचा के हाथ उसकी कमर तक पहुँच चुके थे और वो कामया को धीरे-धीरे अपनी ओर खींच रहे थे कामया को उनका यह तरीका कुछ समझ में आता तब तक तो भीमा अपने दोनों हाथों से कामया की कमर को चारो ओर से घेर चुके थे और कसकर अपने से सटा रखा था कामया का पूरा ध्यान अब भीमा चाचा की हरकतों पर था उसका शरीर अब जल रहा था उसे अब बस एक आदमी चाहिए था जो कि उसकी आग को भुझा सके 

वो अपना चेहरा दूसरी तरफ किए हुए अपने मुख और नाक से बड़ी जोर-जोर से सांस छोड़ रही थी उसके हाथों पर जो ग्लास था उसका पानी अब नीचे जमीन पर गिर रहा था उसके हाथों में अब इतनी ताकत नहीं थी वो ग्लास को जोर से अपने हाथों पर थाम सके ग्लास गिर जाता अगर भीमा चाचा ने जल्दी से उसे पकड़कर प्लेट फार्म में नहीं रख दिया होता भीमा चाचा की पकड़ अब बबी कामया की कमर पर थी और अब उनकी दोनों हथेली उसके नितंबों के चारो और घूमकर उसके आकार को नाप रही थी कामया का पूरा शरीर जैसे आकड़ गया हो 

वो धनुष की तरह अपने को आगे और सिर पीछे की ओर किए हुए थी उसके हाथ अब भीमा चाचा की बाहों को पकड़कर अपने को सहारा दिए हुए थी आज भीमा चाचा के हाथों में कुछ अजीब बात थी आज उनके हाथों में एक निर्ममता थी उसकी पकड़ आज बहुत कड़क थी और एक सख्त पन लिए हुए थी पर कामया को यह अच्छा लग रहा था जब भीमा चाचा अपनी हथेलियो से उसकी नितंबों को दबा रहे थे और बीच बीच मेउसके नितंबों की धार पर ले जाते थे तो उसके मुख से एक सिसकारी भी निकल जाती थी 

वो अपने पकड़ को और भी मजबूत करते जा रहे थे और कामया को अपने और भी नजदीक लेते जा रहे थे उनका मुख अब कामया की गर्दन में चारो ओर घूम रहा था और एक हाथ उसके पीठ तक आ गये थे और फिर उसके सिर के पीछे भीमा चाचा के होंठ कामया की गर्दन से उठकर अब कामया के चेहरे के चारो ओर घूम रहे थे उनके होंठों के साथ उनकी जीब भी कामया के चिकने और मुलायम शरीर का रस्स पीने को लालायतित थी उनके होंठ अब कामया के होंठों से जुड़ गये थे और बहुत ही कस्स कर उन्होंने कामया को अपने होंठों से जोड़ रखा था कामया भी उनकी हर हरकत का मजा लूट रही थी 

आज भीमा चाचा के उतावलेपन से खुश थी, वो जानती थी, कि आज भीमा चाचा बहुत उतावले है और इसीलिए वो बिना कुछ सोचे किचेन में ही उसे इस तरह जकड़े हुए है 

जैसे ही कामया को इस बात का ध्यान आया वो थोड़ा सा सचेत हो गई और किसी तरह अपने को भीमा चाचा की पकड़ से छुड़ाने लगी लेकिन बहुत ही धीरे से 
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06-10-2017, 02:25 PM,
#36
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
जैसे ही भीमा को लगा कि कामया थोड़ा सा हिली और उसे धकेल कर आलग करने लगी है तो वो और भी अपनी पकड़ को मजबूत करने लगे उनके दोनो हाथ अब कामया के चारो और से कस्स कर पकड़े हुए थे और, होंठों से कामया के होंठों का कचूमर बनाने में लग गये थे उनके हाथ अब कामया के पूरे शरीर में पीछे की ओर घूमते जा रहे थे और कामया को कपड़ों के ऊपर से ही कस कर दबाते भी जा रहे थे 

किसी तरह से कामया ने अपने होंठों को भीमा चाचा के होंठों से आजाद किया और हान्फते हुए 
कामया- अह्ह चाचााआआआ यहां नहीं 

भीमा- हाँ… 
और अपने काम में लगा रहा उसका एक हाथ अब कामया के कुर्ते के अंदर तक उसकी पीठ तक पहुँच चुका था और वो अब उसकी ब्रा के हुक को खोल चुके थे 

कामया- प्प्प्प्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लएआेसए ऊपर चलिए उूुुुुुउउम्म्म्मममममममम आआआआआअह्ह 
भीमा- हाँ… 
कामया- प्प्प्प्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लएआआआअस्ीईई 

भीमा ने एक नजर बहू की ओर डाली और एक झटके से बहू को अपनी मजबूत बाहों में उठा लिया और लगभग भागता हुआ सीढ़ियो की ओर चल दिया 

भीमा ने कामया को पैरों और पीठ से सहारा दिए हुए उठा रखा था एक हाथ घुमाकर उसकी लेफ्ट चुचि आ रही थी और नीचे जाँघो के सहारे उसे उठाए हुए सीढ़िया चढ़ने लगे उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि कामया उनकी गोद में भी हिल नहीं पा रही थी और अपना सिर पीछे की ओर करके लंबी-लंबी सांसें ले रही थी वो भीमा चाचा को अपने को उठा कर कितनी आसानी से ऊपर ले जाते हुए देखकर आसचर्या चकित थी कि इस इंसान में कितनी ताकत है और कितना बालिश्ट है 

उसकी लेफ्ट चुचि को चाचा ने इतनी जोर से दबा रखा था कि कामया की सांसें और भी तेज होती जा रही थी और जाँघो पर भी उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी भीमा सीढ़िया चढ़ते हुए जब 1स्ट फ्लोर पर पहुँचा तो वो वहां नहीं रुका और एक फ्लोर और ऊपर चढ़ने लगा 

वो अपनी खोली की तरफ जाने लगा था भीमा के चेहरे पर एक अजीब सी कामुकता थी और वो उसके चेहरे पर साफ छलक रही थी जब वो अपनी खोली के दरवाजे पर पहुँचा तो पैरों के धक्के से ही उसने दरवाजे को खोल लिया और जल्दी से अंदर घुस गया और कामया को नीचे खड़ा करके फिर से उसके होंठों पर टूट पड़ा उसके हाथ कामया के कपड़ों को जैसे तैसे उसके शरीर पर से आजाद करने लगे थे कामया भी भीमा चाचा के उतावले पन को अच्छे से जान चुकी थी पर अपने को उसके कमरे में पाकर थोड़ा सा चिंतित थी पर भीमा चाचा की नोच खसोट के आगे वो भी शांत हो गई और उनकी मदद करने लगी 

जैसे ही कामया अपने कपड़ों से आजाद हुए भीमा चाचा तो जैसे पागल हो उठे हो उसके हाथों और होंठ कामया के पूरे शरीर पर घूमने लगे और अपनी छाप छोड़ने लगे थे वो जहां मन करता था चूमते जा रहे थे, और अपनी हथेलियो को ले जाते थे, भीमा चाचा कामया को चूमते हुए जैसे ही ऊपर उठे तो फिर से कामया के होंठों को अपने होंठों से दबाकर चूमते रहे, और अपने कपड़ों से अपने को आजाद कर लिया वो कामया को कसकर पकड़े हुए उसके होंठों का रस पान करते जा रहे थे और अपने हाथों का दबाब भी उसके कंधे पर बढ़ाते जा रहे थे ताकि कामया नीचे की ओर बैठ जाए 

कामया भी उनके इशारे को समझ कर धीरे से अपने घुटनों को पकड़ कर बैठी जा रही थी और अपने होंठों को भीमा चाचा के होंठों से आजाद करते ही उसके गालों और गर्दन से होते हुए नीचे उनके सीना से होते हुए और भी नीचे ले गई और उनकी कमर के आते ही वो बैठने लगी पर भीमा चाचा की तो कुछ और ही इच्छा थी उन्होंने कस कर कामया के सिर को अपने एक हाथ से पकड़ा और नीचे अपने लिंग की ओर ले जाने लगा उसके हाथों में इतना जोर था कि कामया अपने सिर को नहीं छुड़ा पाई और दोनों हाथों से भीमा चाचा की जाँघो का सहारा लेके ऊपर चाचा की ओर बड़ी ही दयनीय तरीके से एक बार देखा 
पर भीमा चाचा की आँखों में जो जंगली पन था उसे देखकर वो सिहर उठी 

कामया- नही प्लीज नहीं 

भीमा - चूस और अपने लिंग को कामया के चेहरे पर घिसने लगे और अपनी पकड़ को और भी ज्यादा मजबूत कर लिया था 
कामया को उबकाई आ रही थी भीमा चाचा के लिंग के आस-पास बहुत गंद थी और बालों का अंबार लगा था पर वो अपने आप को छुड़ा नहीं पा रही थी अब तो भीमा चाचा अपने लिंग को उसके चेहरे पर भी घिसने लगे थे और वो इतना गरम था कि उसका सारा शरीर फिर से एक बार काम अग्नि में जलने लगा था तभी उसके कानों में भीमा चाचा की आवाज टकराई और वो सुन्न हो गई 

भीमा- चूस इसे चूस (उनकी आवाज में एक गुस्सा था )

कामया- प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज नहीं 
और अपना हाथ लेजाकर धीरे से उनके लिंग को अपने कोमल हाथों से पकड़ लिया ताकि वो अपने लिंग को उसके मुख में डालने से रुक जाए 

कामया की हथेली में जैसे ही भीमा का लिंग आया वो थोड़ा सा रुके और अपनी कमर को कामया के हाथों में ही आगे पीछे करने लगे कामया भी खुश और बहुत ही सलीके से उसने भीमा के लिंग को सहलाते हुए अपने चेहरे पर मलने लगी थी 

भीमा- चूस इसे अभी आआआआअह्ह 

कामया- प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज चाचा आआआआअह्ह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्शह ऐसे ही कर देती हूँ प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज 

भीमा- चूस ले थोड़ा बड़ा मजा आएगा अया तूने लाखा का भी तो चूसा था कर्दे बहू 

कामया के कानों पर जैसे ही यह बात टकराई वो सुन्न हो गई थी तो क्या लाखा ने भीमा को सबकुछ बता दिया था पहले दिन की घटना वो सोच ही रही थी कि 
कामया- उूुुुुुुउउम्म्म्ममममममममममम आआआआआआआअह्ह 

धीरे से भीमा ने अपने लिंग को उसके होंठों पर रख दिया था और उसके नरम नरम होंठों के अंदर धकेलने लगता 

भीमा- चूस ले तुझे भी तो मजा आता है लाखा का तो बहुत मजे में चूसा था मेरा क्यों नहीं 
और धीरे धीरे वो अपने लिंग को कामया के मुख में आगे पीछे करने लगा था 

कामया के जेहन में बहुत सी बातें चल रही थी पर उसका पूरा ध्यान अपने मुख में लिए हुए भीमा चाचा के लिंग पर था वो थोड़ा सा भी इधर-उधर ध्यान देती थी तो, भीमा चाचा के धक्के से लिंग उसके गले तक चला जाता था इसलिए वो बाकी चीजो को ध्यान हटाकर बस भीमा चाचा के लिंग पर ही अपना ध्यान देने लगी थी अब उसे वो इतना बुरा नहीं लग रहा था 
उनका लिंग बहुत मोटा था और बहुत ही गरम था कामया भीमा चाचा के लिंग को अपने गले तक जाने से रोकने के लिए कभी-कभी अपने जीब से भी उसे रोकती पर भीमा चाचा उसपर और भी जोर लगाते
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06-10-2017, 02:25 PM,
#37
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
अब कामया की बाँहे भीमा चाचा के कमर के चारो ओर थी और सिर पर चाचा के हाथ थे जो कि कामया के सिर को आगे पीछे कर रहे थे पर जैसे ही भीमा ने देखा कि अब उन्हें जोर नहीं लगाना पड़ रहा है तो वो थोड़ा सा अपने हाथ को ढीला छोड़ दिया और कामया के गालों से खेलने लगे थे 

कामया को भी थोड़ी सी राहत मिली जैसे ही उसके सिर पर से चाचा का हाथ हटा वो भी थोड़ा सा रुकी 

भीमा- रुक मत बहू करती जा देख कितना मजा आरहा है 

कामया भी फिर से अपने मुख को उनके लिंग पर चलाने लगी और अब तो उसे भी मजा आने लगा था इतनी गरम और नाजुक सी चीज को वो अपने मुख के साथ-साथ अपने जीब से भी प्यार करने लगी थी और अब तो वो खुद ही अपने चेहरे को आगे पीछे करके ऊपर की ओर देखने लगी थी ताकि जो वो कर रही है उससे चाचा को मजा आ रहा है कि नहीं 
पर चाचा तो बस आखें बंद किए मज़े में सिसकारियाँ ले रहे थे
भीमा- आआह्ह बहू तेरे मुँह का जबाब नहीं कितनी अच्छी है तू 

कामया को तो जैसे सुध बुध ही नहीं थी वो अपने को पूरी तरह से चाचा के लिंग पर झुकाए हुई थी और अब तो खूब तेजी से उनके लिंग को चूस रही थी आचनक ही उसे लगा कि भीमा चाचा की पकड़ उसके माथे पर जोर से होने लगी है वो अपने सिर को किसी तरह से उसके लिंग से हटाने की कोशिश करने लगी पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो अपना सिर नहीं हटा पाई और भीमा चाचा के लिंग से एक पिचकारी ने निकलकर उसके गले तक भर दिया 

वो खाँसते हुए अपने मुख को खोलदिया और ढेर सारा वीर्य उसके मुख से बाहर की ओर गिरने लगा भीमा चाचा अब भी उसके सिर को पकड़े उसके मुख में आगे पीछे हो रहे थे पर कामया तो जैसे मरी हुई किसी चीज की तरह से भीमा चाचा से अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करती रही जब भीमा पूरा झड गया तो उसकी पकड़ ढीली हुई तो कामया धम्म से पीछे गिर पड़ी और खाँसते हुए अपने मुख में आए वीर्य को वही जमीन पर थूकने लगी भीमा चाचा खड़े हुए कामया की ओर ही देख रहे थे और अपने लिंग को हिला-हिलाकर अपने वीर्य को जमीन पर गिरा रहे थे 


अचानक ही वो अपनी धोती ले के आए और कामया के चेहरे को पकड़कर अपनी ओर मोड़ा और उसका मुँह पोछने लगे 
कामया की नजर में डर था वो भीमा चाचा की ओर देखती रही पर कुछ ना कह सकी 

जैसे ही भीमा ने उसका मुख पोंछा तो पास के टेबल से एक गंदी सी बोतल उठा लाया 
भीमा- ले थोड़ा पानी पीले 

कामया ने उस गंदी सी बोतल की ओर देखा पर कह ना पाई कुछ और बोतल से पानी पीने लगी 

भीमा उसके पास ही वैसे ही नगा बैठा था और उसकी जाँघो को बड़े ही प्यार से सहला रहा था जैसे ही कामया का पानी पीना हो गया वो कामया को खींचते हुए अपने बिस्तर पर ले आया जो कि नीचे ही बिछा था आज भीमा चाचा की व्यवहार थोड़ा सा वहशीपन लिए हुए था वो कोमलता और नाजूक्ता उसके छूने में नहीं थी कामया भी उनके इशारे को समझती हुई उसके इशारे पर खीची चली आई थी उसके शरीर पर उठने वाली तरंगे जो कि चाचा के वीर्य ने उसके मुख में गिरते ही खतम कर दी थी वो फिर से अपना सिर उठाने लगी थी 

भीमा- आ तुझे भी ऐसे ही खुश करू 
और वो बहू की दोनों जाँघो को चौड़ा करके उसकी योनि पर टूट पड़ा था भीमा आज बहुत उतावला था और बड़े ही तेजी से हर काम को अंजाम दे रहा था और कामया का शरीर फिर से उसका साथ देने लगा था वो जल बिन मछली की तरह से तड़पने लगी थी उसकी योनि के अंदर एक उथल पुथल मच गई थी और वो भी अपनी जाँघो को भीमा चाचा के सिर के चारो ओर कस अकर जकड़े हुए थी 

कामया- अह्ह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्शह करती हुई अपनी कमर को और भी भीमा चाचा के होंठों के पास ले जा रही थी वो भी अपनी कमर को उछाल देती और बहुत जोर से चिल्ला भी देती 

कामया- जोर से चाचा बहुत मजा आ रहा है और जोर से अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ईईईईईई

भीमा के हाथ कामया की कमर और जाँघो पर भी घूम रहे थे और कभी-कभी उसकी चुचियों को भी जोर से दबा देता था 
पर अपना ध्यान उसकी योनि से नहीं हट पाया था और अपने होंठों को और जीब को उसके अंदर-बाहर किसी मशीन की तरह से करता जा रहा था 

कामया भी बहुत देर तक इस को ना झेल सकी और झड़ने को कगार पर पहुँच गई थी वो अपनी जाँघो को कभी चौड़ा करती तो कभी जोर कर भीमा चाचा के चेहरे को अपने अंदर समा लेने की कोशिश भी करती पर जैसे ही वो अपनी चरम सीमा पर पहुँची उसके मुख से एक लंबी सी सिसकारी निकली और उसकी जांघे भीमा चाचा के चारो ओर बहुत ही सख्ती से जकड़ गई और वो निढाल होकर वही भीमा चाचा के बिस्तर पर ढेर हो गई उसके शरीर से अब भी कामुकता की गंध आ रही थी और वो हल्के-हल्के थोड़ी सी हिचकियो के साथ अपने शरीर को हिलाते हुए भी उस आनंद को पा रही थी पर उसको अब कोई चिंता नहीं थी 

वो एक लंबी नींद के आगोस में समाती जा रही थी नींद के आगोस में ही उसने भीमा को अपनी जाँघो के बीच से निकलते हुए भी देखा और चाचा को कपड़े भी पहनते हुए भी फिर उन्हें अपने कपड़े को उठाते हुए उसके पास आते हुए भी और चूमते हुए भी उसने देखा थोड़ा सा खलल तब पड़ा जब भीमा ने उसे फिर से अपनी गोद में उठाया और अपने कमरे से बाहर निकलते हुए देखा 
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06-10-2017, 02:25 PM,
#38
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
सोचा की कहाँ ले जा रहे है मुझे वो भी बिना कपड़ों के पर उसपर नींद इतनी हावी थी कि वो कुछ ना कह पाई और चुपचाप वैसे ही भीमा चाचा की गोद में अपने आपको छोड़ कर देखने की कोशिश करने लगी जब उसने देखा कि भीमा उसे उसके ही कमरे की ओर ले जा रहा है तो वो निसचिंत हो गई और नींद के आगोश में चली गई कमरे में जब भीमा चाचा ने उसे बेड पर रखा तो वो और भी निश्चिंत थी अब वो अपने कमरे में पहुँच चुकी थी और अपने बेड पर और हाँ बिना कपड़ों के थी पर कोई बात नहीं उसे इससे कोई फरक नहीं पड़ता उसे सेक्स और सेक्स के बाद कभी भी अपने शरीर पर कपड़े अच्छे नहीं लगे थे पर पति के सामने शरम और अभिमान के चलते उसने इस इच्छा को लगभग भुला दिया था पर आज वो बिल कुल निशचिंत थी पर भीमा चाचा उसे बेड पर रखने के बाद गये नहीं थे वो वही बेड के पास खड़े-खड़े कामया के रूप को देख रहे थे और अपनी नज़रों से उसका रस पान कर रहे थे कामया को भी कोई एतराज नहीं था वो तो चाहती ही थी की कोई तो हो इस दुनियां में जो कि उसे इस तरह से देखे और प्यार करे और बहुत प्यार करे चाहे वो इस घर का नौकर ही क्यों ना हो है तो एक मर्द ही वो मर्द जो कि उसकी हर कामना को पूरा कर सकता हो वो थोड़ा सा मचलकर अपने आपको बेड पर और भी अच्छे से फैलाकर सो गई अब उसकी आखें बिल कुल बंद थी और नींद के आगोश में जाने को तैयार थी पर भीमा जो कि थोड़ी देर पहले ही इस सुंदरता को भोग चुका था अब भी खड़ा-खड़ा बहू की सुंदरता को अपने जेहन में भर रहा था वो वापस अपने कमरे की ओर जाना चाहता था पर ना जा सका और धीरे-धीरे वो फिर से बहू की ओर बढ़ने लगा बेड के पास जाके वो एक हाथ से बहू के उभारों को सहलाने लगा था उनकी कोमलता को और उनकी नाजूक्ता को अपने हाथों से एहसास करने लगा था दूसरे हाथ से वो बहू के माथे को सहलाते जा रहा था उसके हाथों में अब वो कठोरता नहीं थी जो कि अब से कुछ देर पहले थी अब उसके टच में एक कोमलता थी और एक नाजूक्ता थी शायद वो अपने कठोरता को बहू के शरीर से इस तरह से निकलने की कोशिश कर रहा था वो धीरे-धीरे बहू को ऊपर से लेकर नीचे तक सहलाते हुए अपनी हथेलियो को ले जा रहा था और हर एक उभारों को और गहराई को नापते जा रहा था बहू की और से कोई आपत्ति दर्ज ना करने से वो और भी निडर हो गया था और बड़े ही आराम से अपने हाथों में आई उस अप्सरा को अपने जेहन में उतरते जा रहा था 

कामया भी भीमा चाचा के इस तरह से अपने शरीर को सहलाते देख चुपचाप लेटी रही उसने कोई हलचल नहीं की और ना ही चाचा के हाथों को रोकने की ही कोशिश की उसके होंठों पर एक मुश्कान थी बड़ी ही कातिल सी जो कि चाचा के हाथों के स्पर्श के साथ साथ और भी गहरी होती जा रही थी उसे पता था कि चाचा को क्या चाहिए उसके शरीर पर भी अब एक उत्तेजना की लहर धीरे-धीरे अपने जीवंत पर था और वो अपने शरीर को पूरा सहयोग भी कर रही थी उसे कोई चिंता नहीं थी कि अब वो क्या करे या फिर कैसे करे जो भी करना था वो तो भीमा चाचा को ही करना था उसे कोई आपत्ति नहीं थी वो तो बस मजा लूटना चाहती थी और सिर्फ़ मजा और कुछ नहीं वो वैसे ही पड़ी हुई भीमा चाचा के हाथों को अपने शरीर पर घूमते हुए चुपचाप लुफ्त ले रही थी और अपने अंदर उठे हुए सेक्स के समुंदर में गोते लगाने को तैयार थी 


भीमा भी कुछ इसी तरह की स्थिति में था वो अपने आपको बहुत ही कंट्रोल करके था पर उसके अंदर का मर्द अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को तैयार था पर वो अब भी बहू के शरीर का हर कोना देखने को इच्छुक था वो अपने दोनों हाथों से बहू के हर अंग को बड़े ही प्यार से और बड़ी ही कोमलता से टटोलता जा रहा था और अपने और बहू के अंदर एक सेक्स के समंदर को जन्म देने की कोशिश कर रहा था वो अपने मकसद में कामयाब भी होता जा रहा था 


कामया जो कि अब भी आखेंबंद किए हुए चाचा के हाथों को अपने शरीर पर घूमते हुए देख रही थी या फिर कहिए एहसास कर रही थी अब उसके मुख से सिसकारी निकलने लगी थी और उसका शरीर हर हरकत के साथ ही बेड पर मचलने लगा था भीमा चाचा के खुरदुरे और सख्त हाथों में वो बात थी जो कि कामेश के हाथों में नहीं थी उनके हाथों में एक जादू था जो कि कामया के अंदर छुपी हुई भावना को अंदर से निकाल कर बाहर ले आता था वो अब भी बिस्तर पर पड़े हुए अपने हाथों को भीमा चाचा के नजदीक ले जाने की कोशिश करने लगी थी 

उसके हाथों में अचानक ही भीमा चाचा की बाँह आ गई थीऔर कामया ने उसे ही बड़े जोर से पकड़ लिया था वो अपने नाखूनओ को भीमा चाचा की बाहों में गढ़ती जा रही थी पर लगता था कि बाहों में तो क्या बल्कि उसके ही नाखून टूट जाएँगे भीमा चाचा की बाँहे भी इतनी सख्त थी वो अपने मुख से निकलने वाली अह्ह्ह्ह और सस्शह को कटाई कंट्रोल नहीं कर पा रही थी और बिस्तर पर अपने शरीर को ऊपर की ओर उठाने लगी थी अब उसका सीना सीलिंग की ओर उठ खड़ा हुआ था और बिल्कुल तना हुआ था नितंब और सिर बेड पर टीके हुए थे और जब कुछ हवा में थी टाँगें भी बेड पर थी पर जाँघो को खोलने की कोशिश में थी वो अब और इंतजार नहीं कर सकती थी 

कामया- चाचा प्लीज करो 

भीमा- हहाआआआआअह्ह हाँ… बस अभी बहू 

कामया- पल्ल्ल्ल्ल्लीऐसीईईई करो ना 

भीमा- हाँ… बस अभी थोड़ा रुक जा आआअह्ह क्या शरीर पाया है तूने बहू 

और उसके होंठ अब बहू की चुचियों के निपल्स को छेड़ने लगे थे वो अपने होंठों को उसके निपल्स पर रखे जोर-जोर से चूस रहा था और अपने हाथों को बहू की कमर के चारो तरफ घेरा बना कर बहुत जोर से जकड़ा हुआ था उसके दोनों हाथ उसकी कमर के चारो ओर से घूमकर सामने की ओर आ पहुँचे थे और वो अपने होंठों को बिल्कुल भी आराम देना नहीं चाहता था कामया के दोनों हाथ भी अब भीमा चाचा के सिर के चारो ओर ही घूम रहे थे और वो भी अपनू चूचियां आगे करके भीमा चाचा के मुख के अंदर जितना हो सके अपनी चूचियां घुसाने की कोशिश में थी चाचा के गालों का खुरदरापन उसे पागल कर रहा था वो अपनी चुचियों को उनके गालों पर और अपने हाथों से उनके सिर को अपने सीने पर रगड़ने से नहीं रोक पा रही थी 

कामया- आह्ह चाचा धीरे प्लीज 

भीमा थोड़ा सा रुका पर फिर वहशी समान अपने काम में जुट गया और अब तो बिल्कुल भी रहम नहीं था उसके आचरण में वो फिर से एक दरिन्दा बन गया था और बहू के शरीर को रौंदने में लगा था उसने अपनी एक हथेली को बहू के पेट से ले जाते हुए उसकी जाँघो के बीच में घुसा दिया और बहू की योनि से खेलने लगा था 
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06-10-2017, 02:25 PM,
#39
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
चाचा अभी भी कामया की चूचियां दरिंदे की तरह चूस रहे थे मुँह को रगड़ रहे थे उसकी इस हरकत से कामया के शरीर में एक बार फिर से जान आ गई थी और वो अपनी जाँघो को कसकर जकड़कर चाचा के हाथों को अपने में समेटने लगी थी वो चाचा की उंगलियों को अपनी योनि से निकलने नहीं देना चाहती थी और जाँघो के दबाब से यही लगता था कि वो उन्हें और भी अंदर की ओर ले जाना चाहती थी कामया का पूरा ध्यान चाचा की उंगलियों और अपनी चुचियों पर चाचा के भद्दे होंठ और खुरदुरे मुँह पर था और जो वो हरकत कर रहे थे उससे उसके शरीर में जो आग भड़की थी वो अब उसके लिए जान का दुश्मन बन गया था वो उठकर भीमा चाचा से लिपट जाना चाहती थी पर चाचा की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो हिल भी नहीं पा रही थी 

भीमा चाचा की उंगली उसकी योनि के अंदर और अंदर उतरती जा रही थी और उसके अंदर के तूफान को और भी बढ़ा रही थी वो अब किसी तरह से अपने को छुड़ाने को कोशिश करती हुई भीमा चाचा के गालों तक अपने होंठों को पहुँचा सकी थी और होंठों को उनके गालों के टेस्ट करने को छोड़ दिया 

कामया- प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज चाचा और नहीं प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज 
पर चाचा कहाँ मानने वाले थे वो तो बस अपने होंठों को बहू के पेट और चुचियों के चारो ओर घुमा कर उनका रस पान करते हुए अपनी उंगली को उसकी योनि के अंदर तक घुसाए हुए थे वो जानते थे कि बहू की हालत खराब है पर वो उसे और भी उत्तेजित करते जा रहे थे 

कामया- प्लीज चाचा और नहीं सहा जाता प्लीज अब करो प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज अंदर करो

भीमा- अभी कहाँ बहुउऊुुुुुउउ थोड़ा और मजा ले और क्या चीज है तू 

हहाआह्ह कामया की एक लंबी सी चीख निकल गई जब भीमा चाचा के दाँतों ने उसके निपल्स को कसकर काट लिया और उनकी उंगली उसकी योनि के बहुत अंदर तक पहुँच गई अब तो कामया अपने आपको और नहीं रोक पाई और वो झरने लगी और बहुत तेजी से झरने लगी थी उसने कस कर भीमा चाचा के हाथों को अपने अंदर समा लिया और अपनी कमर को उचका कर उनके हाथों के जितना नजदीक होते बना वो पहुँची और धम्म से निढाल होकर बेड पर गिर गई थी उसके शरीर में अब जान ही नहीं बची थी पर भीमा चाचा अब भी नहीं रुके थे जैसे ही बहू को झरते देखा उनके चेहरे पर एक विजयी मुश्कान दौड़ गई और बहू के कंधे को पकड़कर उसे अपनी ओर किया और अपने होंठों को उसके होंठों पर रख दिया और बहुत ही धीरे सेउसके होंठों को चूसने लगे उनकी उंगलियां अब भी बहू की योनि के अंदर-बाहर होती जा रही थी और एक बहशी पन भीमा के अंदर फिर से जागता जा रहा था उन्हें देखकर नहीं लगता था कि वो अभी बहू को छोड़ने वाले थे उनकी हरकत अब और भी जंगलियो की तरह होती जा रही थी बहू के होंठों को कसकर चूसने के बाद वो बहू को खींचकर बिठा लिया और अपने हाथ को उसकी जाँघो के बीच से निकालकर वही चादर पर पोंछ लिया और दूसरे हाथ से बहू को खींचकर उसके पैरों को बेड से नीचे लटका लिया 

कामया के शरीर में इतना जोर अब नहीं बचा था कि वो कुछ रेजिस्ट कर पाती पर चाचा के इस तरह से खींच ने से उसे स्पष्ट पता चल गया था कि खेल अभी बाकी है और भीमा चाचा का मन अभी नहीं भरा है पर उसकी हालत ऐसी नहीं थी कि वो कुछ मदद कर पाती वो तो बस निढाल सी भीमा चाचा के इशारे पर इधर-उधर होती जा रही थी जैसा भीमा चाचा चाहते वो वैसी हो जाती पर हर बार भीमा को उसे सहारा देना पड़ता 


भीमा बहू को जिस तरह से खींचकर उसे अपने लिए तैयार कर रहा था उसे देखकर एक बार लगता था कि उसे बहू की कोई चिंता नहीं है या फिर उसे किसी की भी चिंता नहीं है बहू के कमरे का दरवाजा वैसे ही खुला था उसने बंद नहीं किया था और ना ही उसने जरूरत ही समझी थी वो तो बस उस सुंदरता को भोगना चाहता था वो भी अब अपने तरीके से लगता था कि उसके अंदर के शैतान को उसकी हर अजाम के लिए एक खिलोना मिल गया हो और वो उस खिलोने से जी भरकर खेलना चाहता था उसे कोई रहम नाम की चीज नहीं दिख रही थी वो जानता था कि वो बहू को जैसे भी भोगेगा बहू ना नहीं कहेगी वो अपने मन में उठने वाली हर बात को जैसे अजाम तक पहुँचाने की जल्दी में था 


भीमा ने बहू को खींचकर अपनी गोद में बिठा लिया और अपने लिंग को उसकी योनि तक पहुँचाने की कोशिश में लग गया था 
कामया जो कि भीमा चाचा के हाथों का खिलोना बन चुकी थी उसे भी भीमा की हरकतों का अंदाज़ा था पर वो कुछ नहीं कर सकती थी वो इतनी थक चुकी थी कि उसके हाथ पाँवो ने जबाब दे दिया था वो तो बस लटके हुए थे और किसी भी सहारे की तलाश में थे पर सहारा कहाँ वो तो अब भीमा चाचा की गोद में थी और उसकी जाँघो के बीच में उनका, मोटा लिंग फिर से अपनी लड़ाई लड़ता हुआ दिख रहा था वो जानती थी कि अब उसके शरीर को भेदने के लिए वो फिर से तैयार था और वो फिर से उस संघर्ष का हिस्सा है वो भी थोड़ा सा भीमा चाचा के कंधों का सहारा लेके आगे की ओर हुई थी कि झट से भीमा चाचा का लिंग उसे भेदता हुआ अंदर और बहुत अंदर तक पहुँच चुका था भीमा चाचा उसके बेड पर बैठे हुए थे और उनके पैर जमीन पर टिके हुए थे पर उनके धक्के इतने ताकतवर थे कि कामया हर बार किसी गेंद की भाँति ऊपर की ओर उछल पड़ती थी भीमा चाचा का लिंग अब पूरी तरह से अपना रास्ता खोजने में सफल हो गया था और उनके दोनों हाथ उसकी कमर के चारो ओर उसे जोर के जकड़े हुए थे उनका दाढ़ी वाला चेहरा उसके नरम और मुलायम कोमल सीने को छूता तो कामया के मुख से एक लंबी सी सिसकारी भी निकलती 
कामया- ऊऊह्ह चाचा प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज धीरीईईईईईईईई 
भीमा- रुक जा बहू थोड़ा और बस 
कामया- मैं माअरर्र्ररर जाऊँगी और नहीं 
पर भीमा को कहाँ शांति थी वो तो एक हैवान बन चुका था उसके धक्के इतने जबरदस्त होते जा रहे थे कि हर धक्के में कामया उसके कंधों के ऊपर निकल जाती थी पर उसकी मजबूत पकड़ से आगे नहीं जा पाती थी लेकिन हर धक्कों के साथ वो फिर से जीवंत होने लगी थी अब धीरे-धीरे उसकी पकड़ भीमा चाचा के कंधों पर मजबूत होती जा रही थी और कस्ती जा रही थी 

उसके शरीर में एक और बार उमंग की लहरे दौड़ चुकी थी वो फिर से अपने अंदर की उथल पुथल को संभालने की चेष्टा कर रही थी वो अब हर धक्के पर कसकर भीमा चाचा को अपने शरीर के और पास लाने की कोशिश करती जा रही थी अब उसके पैरों में भी और हाथों में भी जोर आ गया था वो अब भीमा चाचा पर झुकी जा रही थी और हर धक्के को अपने अंदर तक महसूस कर रही थी 

बहू के जोर के आगे अब भीमा भी झुक गया और, उसने अपने को बिस्तर पर गिरने दिया अब बहू उसके ऊपर थी और वो नीचे पर उसका काम चालू था अब उसकी पकड़ बहू की चुचियों पर थे और अपनी हथेलियो को कसकर उनके चारो ओर पकड़े हुए था उसके हाथों के सहारे ही बहू ऊपर की ओर उठी हुई थी और वो नीचे लेटे हुए बहू की सुंदरता को देख रहा था और उसे जम कर भोग रहा था उसके शरीर की आख़िरी शक्ति को भी वो लगाकर उस सुंदरता को उछाल रहा था और नीचे पड़े हुए बहू को आनंद के सागर में गोते लगाते हुए देखा रहा था और कामया भी अब अपने को उचका कर भीमा चाचा के हर धक्कों को अपने अंदर तक ले जाती थी और फिर उसके कानों में भीमा चाचा की आवाज टकराई 
भीमा- क्यों बहू मजा आया ना उूुुुुुुुुुुुुउउम्म्म्मममममममममममम 
कामया- हाँ… हाँ… आआआआआह्ह और तेज और 
भीमा- हाँ… और हाँ… 
और एक तूफान सा उठ रहा था उस कमरे में बहुत तेज तूफान जिसकी गति का अंदाज़ा उस कमरे में रखी हर चीज को महसूस हो रह था एक दूसरे की सिसकारी से कमरा भर उठा था और जिस तेजी से वो बह रही थी उसे देखकर लगता था कि एक कोई बिनाश के संकेत है पर कोई भी झुकने को तैयार नहीं था भीमा की हर चोट अब कामया के लिए एक बरदान था और उसके शरीर की गरिमा थी वो अपने आपको उस इंसान का शुक्रगुज़ार मान रही थी , कि उसने उसे इस चरम सीमा तक पहुँचने में उसकी मदद की अचानक ही उसके अंदर का उफ्फान अपनी गति से अपने शिखर पर पहुँचने लगा था और उसके अंदर एक तुफ्फान सा उठने लगा था जो कि वो नीचे पड़े हुए चाचा की ओर एक कामुक दृष्टि के साथ ही उनके ऊपर झुक गई और भीमा चाचा के होंठों पर टूट पड़ी और कस कर अपने दोनों हाथों से उनके चेहरे को पकड़कर उनके होंठों से गुथ गई वो अपने जीब को उनके मुख के अंदर तक घुसाकर उनसे गुजारिश करने लगी थी 

कामया- और जोर से चाचा और जोर से 

भीमा- हाँ… हाँ… हाँ… और और 

कामया- हाँ… हाँ… और और उूुुउउम्म्म्मम सस्स्स्स्स्स्स्स्शह ईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई और वो झड़ने लगी बहुत तेज जैसे एक समुंदर सा उसकी योनि से बाहर निकल गई हो पर वो रुकी नहीं उस समुंदर को वो अपने शरीर से बाहर निकालना चाहती थी बाहर और बाहर उसने अब भी चाचा के ऊपर उचक कर अपना समर्थन जारी रखा और भीमा चाचा को और तेजी से करने का आग्रह करने लगी थी 

कामया- और चाचा और तेज मार डालो मुझे ईईईईईईईई
और बस धम्म से वो चाचा के ऊपर गिर पड़ी अब वो उस स्वर्ग लोक में थी जहां कि वो भीमा चाचा के साथ निकली थी और अब वो वहां पहुँच गई थी और भीमा चाचा के होंठ अब उसके चेहरे के हर कोने में वो महसूस कर रही थी और उनकी पकड़ भी अब उसे सांस लेने को रोक रही थी पर कामया कुछ नहीं कर सकती थी वो लगभग मर चुकी थी उसके शरीर में अब इतनी जान भी नहीं बची थी कि वो अपने को छुड़ा सके और लंबी सांसें भी ले सके वो वैसे ही निढाल सी भीमा चाचा के ऊपर गिरी पड़ी थी और वो एक लंबी नींद के आगोश में समा गई थी
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06-10-2017, 02:26 PM,
#40
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
भीमा अब भी अपने काम को अंजाम देने में लगा था और किसी जंगली जानवर की तरह से कामया को अपने आगोस में जकड़े हुए अपने आपको उसके अंदर तक लेजा रहा था और हर धक्के के साथ ही वो बहू को और भी जोर से अपने शरीर से जकड़ते जा रहा था बहू की तो जान ही नहीं बची थी वो यह अच्छी तरह से जानता था पर अपने उफ्फान को ठंडा करे बगैर उसे चैन कहाँ वो उसके लगभग मरे हुए शरीर को भोग रहा था जिसमें कोई जान नहीं बची थी और ना ही कोई हरकत ही थी 
हर धक्के के साथ ही बहू का सारा शरीर उसे बाहों में लटका हुआ सा महसूस होता था पर भीमा को क्या वो तो बस अपने को शिखर पर पहुँचते हुए देख रहा था और अपने आपको संतुष्ट करना चाहता था वो पागलो की तरह से अपनी कमर को चलाते हुए बहू को जहां तहाँ चूमता जा रहा था और निचोड़ता जा रहा था वो बी अपने मुकाम पर पहुँचा पर बहुत देर के बाद उसके शरीर की सारी ताकत उसने अपने ऊपर पड़े हुए बहू के शरीर को निचोड़ने में लगा दी और वो भी छोड़ने लगा उसके शरीर का हर अंग अब बहू को अपने अंदर समेटने में लगे थे और किसी बहशी की तरह वो बहू के शरीर पर टूट पड़ता 

जब वो शांत हुआ तो बहू के शरीर में कोई भी हलचल नहीं थी उसने बहू को उठाकर वापस बेड पर लिटा दिया और बड़ी ही कामुक नजर से उस सुंदरता को देखता रहा बहू अब भी बिना कोई हरकत के वैसे ही नंगी जैसे उसने लिटाया था लेटी हुई थी भीमा ने भी उठकर अपने कपड़े पहने और वही बेड पर पड़ी हुई चद्दर से बहू को ढँकते हुए जल्दी से बाहर की ओर रवाना हो गया और जाते हुए उसने एक बार फिर से बेड की ओर नजर घुमाई और दरवाजा बंद कर अपनी खोली की ओर बढ़ने लगा 


कामया जो कि झड़ने के बाद भीमा चाचा की हर हरकतो को अपने में समाने की कोशिश में थी अब बिल्कुल थक चुकी थी उसमें जान ही नहीं बची कि वो कुछ अपनी तरफ से कोई संघर्ष करती या फिर कोई आपत्ति या फिर कोई साथ देने की कोशिश पर भीमा चाचा के वहशी पन में भी उसे आनंद आया था उसे भीमा चाचा के दरिंदे पन में भी मजा आया था और उनकी हर हरकत का उसने मजा उठाया था आज जो हालत भीमा चाचा ने उसकी की थी वो एक असली मर्द ही किसी औरत का कर सकता था जैसे उसे निढाल किया था और जैसे उसे थका दिया था वो एक असली मर्द ही कर सकता था वो यह अच्छे से जान गई थी कि किसी औरत को क्या चाहिए होता है रुपये पैसे के अलावा 


जो शरीर सुख वो आज तक अपने पति के साथ भोग रही थी वो तो कुछ भी नहीं था वो तो बस एक इंट्रोडक्षन सा ही था वो तो बस एक नाम मात्र का सुख था जिसका कि अगला स्टेप या फिर आगे का स्टेप यह था उसका शरीर आज बहुत तक चुका था और उसे एक सुखद नींद की ओर धकेल रहा था वो अपने चेहरे पर एक मुश्कान लिए कब सो गई उसे पता नहीं चला हाँ पर हर वक़्त उसके शरीर में एक नई तरावट आती जा रही थी उसके शरीर में एक अनौखि लहर उठी जा रही थी उसके हर अंग में एक मादकता और मदहोशी का नशा बढ़ता जा रहा था उसका रोम रोम पुलकित हो उठा था और किसी अंजाने सफर की तैयारी करने लगा था 


शाम को उसकी नींद तब खुली जब इंटरकम बजा 
कामया- हाँ… 
- जी मम्मीजी चाय को आने वाली है 
कामया- हाँ… 

उस तरफ भीमा चाचा थे वो जल्दी से उठी और वैसे ही बिना कपड़ों के ही जल्दी से बाथरूम में घुस गई थी और जल्दी से तैयार होकर नीचे मम्मीजी के पास पहुँच गई 

मम्मीजी- तैयार नहीं हुई बहू लाखा आता होगा 

कामया- जी बस होती हूँ 

पर कामया का मूड आज कहीं भी जाने नहीं था वो बहुत थक चुकी थी और अब भी उसका शरीर दुख रहा था पर यह सोचते ही कि लाखा काका के साथ भी वही होगा जो आज भीमा चाचा ने किया था उसके शरीर में एक जान फिर से आ गई और वो जल्दी से चाय पीकर अपने कमरे की ओर भागी और तैयारी करने लगी अपने अगले मज़े के लिए वही साड़ी और ब्लाउस उसने निकाला और तैयारी कने लगी पर अचानक ही उसके जेहन में एक बात आई कि आज भीमा चाचा ने उसे एक बात बताई थी तब जब वो अपना लिंग उसके मुख में डाल रहे थे कि लाखा का भी तो लिया था तो वो कुछ देर के लिया ठहर गई 

तो क्या लाखा ने भीमा चाचा को पहले दिन ही बता दिया था कि गाड़ी चलाते हुए क्या हुआ था और काका ने उसके साथ क्या किया था अरे बाप रे तो क्या भीमा ने भी काका को बताया होगा कि उन्होंने कामया के साथ कब और कैसे अरे बाप रे 
उसकी जान अब तो मुँह को आने को थी अब क्या होगा अगर यह बात फैल गई तो पर इन दोनों ने एक दूसरे को यह बात क्यों बताई यह लाखा काका ने अच्छा नहीं किया वो तैयार होना छोड़ कर वही बेड पर बैठी रही और बहुत कुछ सोचने को मजबूर होने लगी थी लाखा काका पापाजी के ड्राइवर थे और इस घर के बहुत पुराने कामया का पूरा शरीर सुन्न सा हो गया था 


वो अब तैयार होना भूल गई थी और कमरे में ही चालकदमी करने लगी थी और करती रही बहुत देर तक उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था बहुत देर बाद उसकी नजर आचनक की घड़ी ओर गई तो देखा कि 8 30 होने को है पर काका तो आज नहीं आए वो वैसे ही खड़ी-खड़ी सोचने लगी क्या बात है काका आए क्यों नहीं 


पर थोड़ी देर बाद जैसे ही पोर्च में गाड़ी रुकने की आवाज आई वो थोड़ा सा ठिठकी कि अभी आया है काका पर नहीं काका नहीं थे पापाजी जी थे शोरुम से घर आ गये थे मतलब आज काका नहीं आए पर क्यों कामया सोचते सोचते कोई भी निष्कर्ष नहीं निकाल पाई और टीवी ओन करके कमरे मे ही बैठी रही 

जब कामेश आया तो वो थोड़ा सा एंगेज हुई पर दिमाग में तो वही बात थी कि काका आज आए क्यों नहीं 
कामेश- क्या कर रही हो 

कामया- और क्या करू बैठी हूँ और टीवी देख रही हूँ 

कामेश- आज भी लाखा नहीं आया ना 

कामया- हाँ… 

कामेश- पता नहीं क्या हुआ है उसे 

कामया- क्यों 

कामेश- कुछ खोया हुआ सा रहता है 

कामया- क्या हुआ 

कामेश- पता नहीं आज भी कहा था कि घर चले जाना पर कहता है कि कल से चला जाउन्गा 

कामया- ओह्ह्ह्ह्ह्ह

कामेश- तुमने कही डांटा वाटा तो नहीं था ही ही ही और कहता हुआ जल्दी से बाथरूम में घुस गया 

कामया भी सोचने लगी कि आखिर क्या बात है क्या हुआ है काका को क्यों नहीं आए है कही अपने किए पर पछता तो नहीं रहे है शायद यही हो सकता है पर कामया को तो उसपर सिर्फ़ इस बात का गुस्सा था कि उसने भीमा चाचा को क्यों बताया और तो कुछ भी नहीं 

वो खड़ी हुई और वारड्रोब से कामेश के लिए कपड़े निकालने लगी 
शायद वो जान सके कि क्या बात है 
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