Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
11-17-2019, 12:54 PM,
#41
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
उसी दिन शाम को,

उसी चाय दुकान में,

एक कोने में मंगरू और विनय बैठे थे | विनय सादे लिबास में था |

“बोल मंगरू... क्या ख़बर है?”

“साब... उस दिन जो तीन फ़ोटो आप दिए थे ... उन तीनो के बारे में पता किया... आदमी का नाम आलोक है... मिस्टर आलोक शर्मा... औरत का नाम दीप्ति शर्मा है.. उस आदमी की धर्मपत्नी... और लड़का जो है ..वो है इनका भतीजा.. अभय... अभय शर्मा... होनहार है .. अच्छा है.. कोचिंग सेंटर चलाता है |”

“ठीक है... आगे बोलो..|”

“साब.. ये जो आलोक है... ये आदमी अच्छा है... किसी से कोई झगड़ा नहीं.. लफड़ा नहीं... खा पी के ऑफिस जाता है और टाइम पे आता है.. थोड़ा भुलक्कड़ स्वाभाव का है... पर और कोई दोष नहीं है इसमें.. पर....|”

“पर क्या मंगरू??”

“इसकी पत्नी और भतीजा... दोनों कुछ दिन से ठीक से नहीं लग रहे थे |”

“क्या मतलब?”

“मतलब ये की सरकार .... पिछले काफ़ी दिनों से इस महिला की कुछ गतिविधियाँ संदिग्ध सी लग रही थी .. घर से निकलती रहती और अक्सर घंटो घर नहीं आती थी... इसके भतीजे को शायद इसपर किसी तरह का कोई शक हो गया था... इसलिए शायद इस औरत के निकलने के कुछेक मिनट बाद ये भी निकल जाता और इसका पीछा करता... पर शायद कुछ हाथ नहीं लगा था लड़के के.. ”

“ह्म्म्म... अच्छा... एक बात बताओ... जिस दिन ये गायब हुआ... क्या उस दिन भी ये इस औरत का पीछा कर रहा था?” विनय बड़ी दिलचस्पी से पूछा |

“ये पता नहीं लगा सका हुजूर...|” – बेबसी से बोला मंगरू |

“ये बताओ ... ये महिला घर से निकल कर जाती कहाँ थी?”

“पता नहीं साब... क्योंकि इसे लेने एक काली रंग की वैन आया करती थी | अभी चार पांच दिनों से ये कहीं नहीं जाती... सारा वक़्त घर में ही बिताती.. इसलिए पता करना थोड़ा मुश्किल है |”

“कोई बात नहीं... इतना पता लगाया... ये बहुत है.. ये लो.. अपना इनाम..|” कहते हुए विनय ने एक पाँच सौ का नोट थमाया मंगरू को |


मंगरू ख़ुशी से उस नोट को चूम कर अपने शर्ट के अन्दर वाले पॉकेट में भर लेता है ; नमस्ते कर जा ही रहा होता है कि रुक जाता है... कुछ सोचते हुए पीछे मुड़ता है और हाथ जोड़ कर बोला, “साब... एक विनती है... आगे से इतनी जोर से मत मारा करो... हेहे.. दर्द होता है |” सुन कर विनय हँस देता है | मंगरू के चले जाने के बाद एक सिगरेट सुलगाया और जेब से वही फ़ोटो निकाला जिसे वह होटल के रजिस्टर से फाड़ा था | कुछ देर तक उस फ़ोटो को अच्छी तरह से निहारने के बाद वह दो बार उस फ़ोटो पर ऊँगली फेरा और फिर लाइटर जला कर उस फ़ोटो को आग लगा दिया |

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कुछ देर बाद,

शाम के साढ़े छ: बज रहे थे | अभय के घर के सामने एक पुलिस जीप आ कर रुकी... और फ़िर उसमे से उतरा विनय... अपने पूरे यूनिफार्म में था वह.. | खादी वर्दी, सिर पे टोपी, कमर पर रिवोल्वर और हाथ में छोटा सा डंडा जो अक्सर पुलिस इंस्पेक्टरों के हाथों में होता है | सधे कदमों से चलते हुए वह बिल्डिंग की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ मेन डोर के पास पहुँचा और उसी डंडे से कुछेक बार दरवाज़ा पीटा | थोड़े ही देर में दरवाज़ा खुला, सामने मिसेस दीप्ति शर्मा थीं अर्थात चाची .. एक सुंदर सी हलकी चमकीली पतली सी एक लाल साड़ी में... ब्लाउज भी कुछ वैसा ही था .. काला और पतला.. पर ब्रा है या नहीं ; समझना थोड़ा मुश्किल है | चाची को साइड करता हुआ अन्दर घुसा | चाची दरवाज़ा लगाकर धीरे क़दमों से चलते हुई उसके पास आई...

विनय – “कैसी हैं आप दीप्ति जी....?”

चाची – “जी ठीक हूँ...|”

“कौन कौन हैं घर पर...?”

“कोई नहीं... मेरे पति को आने में थोड़ा लेट है अभी |”

“हम्म... तो दीप्ति जी.. क्या आपने योर होटल का नाम सुना है?”

योर होटल का नाम सुनते ही चाची का चेहरा सफ़ेद पड़ गया... सकपका कर बोली,

“नहीं.. हाँ... आई मीन... हाँ सुना तो है |”

“गुड... कभी गयी हैं वहाँ ?” ये प्रश्न करते हुए विनय चाची की आँखों में देखा |

खुद को सामान्य दिखाते हुए चाची बोली, “नहीं... कभी संयोग नहीं हुआ |”

“सच?? अच्छे से सोच कर बोलिए... ऐसा कुछ है जो हमें आपकी इस बात को मानने नहीं देती |” होठों पर एक शरारती मुस्कान लिए विनय बड़े अर्थपूर्ण तरीके से प्रश्न किया |

“आं.. मम्म.. अह.. हो सकता है कभी गई हूँ... हर बात तो हर समय याद नही रहता है ना...” चाची थोड़ा काँप उठी इस बार |


विनय मुस्कराता हुआ दीप्ति के बहुत करीब आया, डंडे के एक सिरे को दीप्ति के चेहरे के एक तरफ़ रखते हुए धीरे धीरे नीचे गले तक आया, वहाँ दो बार गोल गोल डंडे को घूमाया और फिर डंडे को वक्षों तक ला कर पल्लू को हटा कर क्लीवेज देखने लगा ... बड़े ही हसरत के साथ... दीप्ति, जो अभी तक डर रही थी किसी तरह का कोई प्रतिरोध करने से ; पल्लू के हट जाने से तुरंत पीछे हटते हुए पल्लू को संभाली और वक्षों को भली प्रकार ढकते हुए ज़ोर से बोली,
“ये क्या बेहूदगी है इंस्पेक्टर साहब... होश में हैं? ये कोई तरीका है किसी महिला से बात करने का ?”


चाची के अचानक से इस रवैये का अंदाज़ा नहीं किया था विनय ने.. इसलिए कुछ देर के लिए हक्का बक्का सा रह गया पर बहुत जल्दी ही खुद को संभालते हुए कहा,

“तरीका हमें अच्छे से मालूम है मिसेस शर्मा... आज कोई ख़ास पूछताछ नही करनी थी.. पर अगली बार सबूतों के साथ आऊंगा... और यकीं मानिए, बहुत अच्छे से पूछताछ करूँगा |” कहते हुए दीप्ति को ऊपर से नीचे तक खा जाने वाली नज़र से देखा और फ़िर एक कुटिल मुस्कान देता हुआ दरवाज़े से बाहर निकल गया |
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11-17-2019, 12:54 PM,
#42
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
रात के एक बज रहे हैं...

चारों तरफ़ सन्नाटा ...

बाहर साएँ साएँ से ठंडी हवा चल रही है ....

घुप्प अँधेरा.....

और ऐसे वक़्त अभय के कमरे से दीप्ति की एक मधुर, कराहने सी आवाज़ पूरे वातावरण में तैर जाती है,

“आह:.. आःह्ह्ह... अह्ह्ह. अभयssssssss….इस्स्स्सssss….ssss.....आह्हsssssss.... ऐसेsss..नहीं... अब ….और ना…… तड़पाओsssssss….”


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“आआह्हह्ह्ह्ह...आआऊऊऊउचचचचच.....कित.....कितना....ज़...ज़ो......ज़ोर स..सस..से करते ह...हो.... प..पागल हो क्या.....?!! आऊऊचचच... अररररे.... आह्ह:... धीरे दबाओ ....!!! ”

“आअह्ह्ह्ह...आआऊऊऊ....सससससआआआआ....सससससआआआ....आह्ह्ह्ह......!!” आवाजें अब भी आ रही थी और लगातार आ रही थी | रात के उस घनघोर अँधेरे और सन्नाटे में चाची की मदहोश और बेकरारी भरी आवाज़, माहौल को और अधिक रोमांटिक बना रही थी |

कमरे में उथल पुथल मची थी ...

नीले रंग का नाईट बल्ब जल रहा था ..

फलस्वरूप पूरे कमरे में नीला प्रकाश फैला था ...

बिस्तर पर भी...नीला प्रकाश ..

और उस नीले प्रकाश में नहाए, चाची यानि दीप्ति और अभय , दोनों एक दूसरे से चिपके, बारी बारी से पूरे बिस्तर पर एक दूसरे के ऊपर नीचे हो रहे थे |

और पागलों की तरह एक दूसरे पर चुम्बनों की बरसात कर रहे थे |


अंत में दोनों हांफते हुए थोड़ा स्थिर हुए और ऐसा होते ही दीप्ति अभय को बिस्तर पर लिटाये उसके कमर से थोड़ा नीचे होकर अपने दोनों घुटनों को अभय के शरीर के दोनों ओर रखते हुए बैठ गई | अपने नितम्बों का भार अभय के कमर से थोड़ा नीचे रखते हुए बहुत ही धीरे धीरे, इन ए वेरी इरोटिक वे, अपने कमर और नितम्बों को आगे पीछे करने लगी |
और दीप्ति के इस हरकत से अभय के कमर के नीचे का अंग धीरे धीरे सख्त होने लगा |
अंग के धीरे धीरे सख्त होने का अहसास दीप्ति को भी हुआ ; तभी तो वह अभय की ओर शरारत भरी नज़र से देखते हुए होंठों पर एक कुटिल मुस्कान लिए अपने रोब (नाईट गाउन) के सामने के फ़ीतों को बड़ी सेक्सी तरीके से धीरे धीरे खोली और खोल कर सावधानी से गाउन के दोनों पल्लों को इस तरह से साइड किया जिससे की उसका वक्ष वाला हिस्सा तो ढका रहे पर नाभि और पूरा पेट सामने दृश्यमान हो जाए |
अभय तो इस दृश्य को अपलक देखता ही रह गया |


अभय को यों बेबस सा अपनी तरफ़ देखते हुए देख कर दीप्ति को सफ़लता के बाद मिलने वाली ख़ुशी का एहसास जैसा महसूस हुआ | बड़े ही कामुक ढंग से मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ अभय के नंगे सीने पर घुमाने लगी और फिर कुछ देर तक ऐसे ही घूमाते रहने के बाद अभय के दोनों हाथों को पहले अपने जांघों पर, फ़िर पेट पर और फिर धीरे धीरे अपनी चूचियों पर रखी | जांघों की गर्मी, पेट की नरमी और चूचियों की नरमी और गर्मी, इन सबने मिलकर अभय को मानो एक मोहपाश में जकड़ लिया हो |
नाईट गाउन के नीचे दीप्ति (चाची) ने ब्लाउज और पेटीकोट पहना था | नीली रोशनी में दोनों कपड़े एक ही लग रहे थे | अति उत्साह में अभय की साँसे कम होती जा रही थी | वह स्वयं पर नियंत्रण की हार्दिक प्रयास कर रहा था पर चाची की कमसीन देहयष्टि उसके हर प्रयासों को हर बार और बार बार विफल कर दे रही थी | अपनी चूचियों पर उसके हाथ रख कर दीप्ति अपने हाथो का दबाव उसके हाथों पर बढ़ा दी | ये एक संकेत था अभय के लिए, उसे एक्शन में आने का...
मैं, यानि कि अभय, नीचे लेटा लेटा, एक बार चूची को जोर से दबाता फिर अगले बार उसी चूची को धीरे और आराम से नीचे से पकड़ कर ऊपर की ओर उठाते हुए हलके प्रेशर देता और उस चूची के ऊपर उठने और दबने की प्रक्रिया को बड़े लालसा और चाव से देखता |


चाची अपने वक्षों पर मेरे ऐसे ज़ोर आजमाइश से अपने अन्दर उठते उत्तेजना की लहरों को रोक पाने में असमर्थ हो रही थी और हर बार अपनी किसी एक चूची के दबने पर आँखें बंद कर होंठों को दबाते हुए, “आअह्ह्ह्ह..उउमममममममम....” की आवाज़ निकालती | रह रह कर उनकी सिसकारी इतनी मादक हो उठती की मैं जोश में और जोर से उनकी चूची को दबा देता |


लगातार चूची को दबाते दबाते मैं कमर से ऊपर तक के हिस्से को थोड़ा उठाता हुआ चाची को अपनी ओर थोड़ा झुका कर उनके गालों पर किस करने लगा | किस करते हुए चाची के गर्दन और कन्धों पर आता और वहां उस जगह को चुमते हुए चाटने लगता | और फ़िर बहुत ही प्रेम से चाची के गालों को चुमते हुए उनके स्तनों को दाबने लगता | गालों, कमर और वक्षों को सहलाते हुए उनके कंधों पर से गाउन को हौले से सरका दिया और जल्द ही शरीर से भी अलग कर दिया | चाची के कंधे पर के ब्लाउज के हिस्से को मैंने खिंच कर कंधे से थोड़ा नीचे किया और उस नग्न कंधे को पागलों की तरह चाटने लगा | मेरे लार लग जाने से कन्धा नीली रोशनी में चमकने सा लगा और ऐसी हालत में चाची बहुत ही जबरदस्त सेक्सी लग रही थी |


चाची ने अब अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ा और अपनी ओर खींचते हुए मेरे मुँह को अपने वक्षों को बीच की घाटी में भर दी | मेरी सांस रुकने को हो आई पर साथ ही एक अत्यंत ही अदभुत सुखद अनुभूति भी हुई | इतना आनंद आया की मैं तो लगभग जैसे आनंद के समुद्र में गोते लगाने लगा | घाटी में मेरे मुँह के घुसने के कुछ सेकंड्स के बाद ही चाची की दिल की धड़कन बढ़ गई | उनका सीना तेज़ गति से ऊपर नीचे होने लगा | सीने के ऊपर नीचे होने के फलस्वरुप दोनों चूचियां मेरे दोनों तरफ़ के गालों से बड़ी नरमी से टकराते और मेरा मुँह और अधिक घुस जाता घाटी में | इतने नर्म मुलायम वक्षों की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी | चाची की तेज़ बढ़ी हुई धड़कन उनके उत्तेजना, कामुक भावनाएँ और वासना .. सब कुछ बयाँ कर दे रहे थे |


काफ़ी देर तक मेरे मुँह को अपने क्लीवेज में घुसाकर अप्रतिम सुख देने के बाद चाची ने एक झटके से मेरे चेहरे को ऊपर उठाया और मेरी आँखों में झाँकी | मैंने भी ऐसा ही किया | बिल्कुल अन्दर झाँकने की कोशिश की उनके आँखों में | वासना के अंदरूनी लहरों ने चाची की आँखों को सुर्ख लाल कर दिया था | एक अजीब सी बेचैनी, खुमारी, जंगलीपन सा दिख रहा था उनके आँखों में उठते भावनाओं के साथ | मैं देखता रहा उनकी आँखों में | और फिर ... रुक रुक कर आगे बढ़ते हुए अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिया | कुछ सेकंड्स वैसे ही रहे हम दोनों; मानो हमारे होंठ आपस में सट से गए हों | अपने होंठों को वैसे ही रखते हुए मैं चाची के होंठों से अपने होंठ आहिस्ते से रगड़ने लगा और ऐसा मैं पूरी फीलिंग्स के साथ कर रहा था | चाची चुपचाप बैठी मेरे कन्धों पर अपने दोनों हाथ रख कर इस कामक्रिया में पूर्ण सहयोग कर रही थी | उनके हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि मानो उन्होंने स्वयं को सम्पूर्णत: मुझे समर्पित कर चुकी है |


मेरे द्वारा लगातार उनके अंगों पर इस तरह के छेड़छाड़ से चाची गर्म होने लगी और गहरी लम्बी साँसे लेने लगी | अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दूसरे हाथ को मेरे सर के पीछे से ले जा कर अपनी मुट्ठी से मेरे बाल पकड़ कर मुझे अपनी तरफ़ झुकाने लगी |
मुझसे भी रहा न गया और अपने दोनों हाथों से चाची को अपने आगोश में ले लिया और चाची की गदराई मांसल पीठ को दबोच दबोच कर मसलने लगा | अपने जीभ को चाची के होंठों पर फिराने लगा | कुछ देर ऐसे करते रहने से चाची इशारा समझ गई और उन्होंने अपने होंठों को थोड़ा खोला | इतना मौका काफ़ी था मेरे लिए !


झट से अपना जीभ चाची के नर्म होंठों से होते हुए अन्दर घुसा दिया और उनके मुँह में अपने जीभ को इधर उधर घुमाने लगा | शायद चाची के लिए यह एक बिल्कुल ही नया अनुभव सा था | थोड़ा कसमसा सी गई | शायद ऐसी पोजीशन में इस तरह से लगातार एक के बाद एक कामक्रियाएं होने के कारण थोड़ा असहज महसूस कर रही थी | उन्होंने एक बार के लिए खुद को थोड़ा अलग करना चाहा पर मेरे मजबूत गिरफ़्त से खुद को आज़ाद नहीं कर पाई |


अंततः हार कर वो मेरा साथ देने में ही समझदारी समझी | इधर मैं अपने जीभ से उनके जीभ मिलाने में व्यस्त था | अब तो चाची भी अपना जीभ धीरे धीरे बाहर करने लगी | उनके ऐसा करते ही मैंने उनके जीभ को अपने होंठों के गिरफ़्त में चूसना शुरू कर दिया | कुछ ही सेकंड्स बाद पाला बदला और अब चाची मेरे जीभ को अपने होंठों में ले चूसने लगी | दोनों के जीभो का परस्पर द्वंद्व या कहें खेल ऐसे ही चलता रहा | काफ़ी देर बाद दोनों एक झटके से एक दूसरे से अलग हुए और तेज़ लम्बी सांस लेने लगे | दोनों ही बुरी तरह हांफ रहे थे |


कुछ देर तक लम्बे लंबे सांस लेने के बाद चाची मेरी ओर देख कर कुछ कहना चाही पर न जाने मुझे अचानक से क्या हुआ जो मैं उनको अपनी ओर खींचते हुए उनके होंठों को पागलों की तरह चूसने लगा | चाची होंठ चुसाई में मेरा साथ देने के अलावा और कुछ न कर पाई | होंठों को चूसते हुए इस बार मेरे हाथ भी एक्शन में आ गए और वो पूरी शिद्दत से दीप्ति (चाची) के नर्म चूचियों को दबाने में लग गए | चाची के होंठों को चूसते हुए ही मैंने उनके ब्लाउज को खोलना चाहा पर अति उत्तेजना के इस पड़ाव पर मेरे से उनके ब्लाउज के हूक्स खुल नही रहे थे | मेरे होंठों से अपने होंठ लगाए ही चाची ने थोड़ा सहयोग किया और अपने हाथ ब्लाउज हुक्स तक ले जा कर दो हुक खोल दिए ; पर मुझे तो सारे हुक खुले चाहिए थे, इसलिए मैंने भी हाथ लगाए और थोड़ी दिक्कत के बाद बचे सारे हुक भी खोल डाले | पर अभी भी काम पूरा नहीं हुआ.... क्योंकि एक अंतिम हुक बच गया था | झल्ला कर मैंने ब्लाउज के दोनों कप्स के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ा और एक झटका देते हुए अंतिम हुक को तोड़ डाला |

हूक्स के टूटते ही चाची, “ईईईईईईई” से चिल्लाते हुए अपने दोनों हाथो से अपने वक्ष स्थल को छुपाने लगी | मैंने फ़ौरन चाची के मुँह पर अपना हाथ रख कर उनकी आवाज़ को रोकने की कोशिश की | और दूसरे हाथ की एक ऊँगली अपने होंठों पर रखते हुए चाची को चुप रहने का इशारा किया | चाची मामले की नजाकत को भांपते हुए तुरंत चुप हो गई |
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11-17-2019, 12:54 PM,
#43
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
मैंने फिर आराम से चाची के हाथों को सहलाते हुए उनके वक्षस्थल से हटाते हुए उनके बीच की घाटी पर नज़र डाला | आह्ह्हा ! क्या अद्भुत सुन्दर दृश्य था ! खुले हुए ब्लाउज के कप्स को किसी तरह वक्षों से लगाए रखने की असफल प्रयास करती चाची ब्रा में कैद अपने स्तनों को अधुरा ढक पा रही है और ऊपर के हुक खुले होने के कारण दोनों स्तनों की बीच की दरार और भी कामुक तरीके से बाहर की ओर दिखाई दे रही है | दूसरे शब्दों में कहूं तो इस समय पूरे ब्लाउज की जो हालत है वह और भी आग भड़काने वाली है | ऐसी ख़ामोश रात, कमरे में हम दोनों और दीप्ति डार्लिंग (चाची) की ऐसी हालत ..... सब कुछ मानो आग में घी डालने का काम कर रही है | पर फ़िलहाल तो उस मनोरम दृश्य के नयन सुख का घंटों आनंद लेने का फुर्सत मेरे पास नहीं था | मेरे तो पूरे दिलो दिमाग में दीप्ति अर्थात मेरी चाची के सम्पूर्ण नग्न स्वरुप का प्रत्यक्ष दिव्य दर्शन करने की व्याकुलता छाई हुई थी | पूरी नग्नता का दर्शन पाने का एक अजीब प्यास सी लगी थी |


ब्लाउज कप्स के दोनों सिरे अलग हो चुके थे और चाची के सुडोल पुष्टता भरे वक्ष अपने पूरी कामुक तृष्णा, मादकता और अपने सौंदर्य के अभिमान के साथ बाहर निकल कर गर्व से इठलाने लगे थे | मैं एक बार फिर कुछ पलों तक इस खूबसूरत अद्वितीय मास्टरपीस को देखता रहा | मुझे उनकी चूचियों को इस तरह से घूर कर देखने पर चाची हलके शर्म और गर्व के मिश्रित भाव लिए कनखियों से मुझे देख कर मुस्कराने लगी |
मैंने हाथ आगे बढ़ा कर दोनों चूचियों को अपने मुट्ठियों से पकड़ने ; उन्हें एक बार अच्छे से छू कर देखने की कोशिश की पर चाची की उन्नत चूचियां मेरे एक हाथ में ... एक हाथ में तो क्या ... दोनों हाथों में समाने से साफ़ इंकार कर दे रहे थे | पर आज चाची को इस तरह से पाकर मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी; इसलिए बिना झुंझलाए और बिना कुछ और सोचे मैंने हौले हौले से उनकी चूचियों को बहुत अच्छे से फील करते हुए उनको मसलने लगा और चाची अपनी आँखें बंद कर चूचियों के इस तरह प्यार से मसले जाने का सुख अनुभव करने लगी | पर सिर्फ चूचियों को छूने या मसलने से मेरा मन कहाँ भरने वाला था .... सो मैंने चूचियों पर अपने हाथ टिकाये हुए ही सामने झुक कर दोनों चूचियों को चूमने लगा | ब्रा में कैद चूची ब्रा कप्स के ऊपर से जितना निकली हुई थी ... उतने हिस्से को पूर्ण रूपेण अच्छी तरह से चुमा चाटा ... फिर अपनी उँगलियों के पोरों से ब्रा कप्स के बॉर्डर पर कामुक अंदाज़ से रगड़ने लगा और थोड़ी ही देर बाद दोनों कप्स के दो साइड में ऊँगली अन्दर घुसा दिया और बड़े प्यार और इत्मीनान से चाची की आँखों में देखते हुए दोनों ब्रा कप्स को नीचे कर दिया .... और ऐसा करते ही सौन्दर्य के दो मूर्तमान स्वरुप उछल कर मेरे सामने दृश्यमान हो गए ! उफ्फ्फ़.... क्या रंगत... क्या ढांचा... क्या उठाव और क्या कटाव था उनके उन मदमस्त कर देने वाले मदमस्त चूचियों का !! अधिक देर न करते हुए झट से टूट पड़ा उनपर ... पहले तो ऊपर नीचे चूची को अच्छे से चुमा .. फिर एरोला के पास जा कर रुका और निप्पल के आस पास के एरिया को सूंघने लगा | ओह्ह्ह.... एक धीमे सुगंध वाली किसी परफ्यूम का गंध आ कर समाया मेरे नाक में | सूंघते हुए एरोला और निप्पल पर अपने गर्म साँसे छोड़ता और चाची सिहर उठती |





अब मैंने अपना जीभ निकाला और जीभ के बिल्कुल अगले सिरे को एरोला के चारों ओर गोल गोल घूमाने लगा | चाची “आआह्ह्ह....स्सस्सस...” से एक आह भरी और एक हाथ से मेरे सर को पकड़ कर अपने चूची के और पास ले आई | पर मैंने सीधे चूची पर कुछ करने के बजाए पहले की तरह ही अपने जीभ से एरोला पर हल्का दबाव बनाते हुए जीभ को गोल गोल घूमाते रहा | इसी के साथ मैं अब चाची की साड़ी को घुटनों से ऊपर उठाने लगा और उठाते उठाते जांघ तक ले आया और फ़िर जांघ पर हाथ फिराने लगा | चाची के गोरे टांग और जांघ बिल्कुल मक्खन से मुलायम प्रतीत हो रहे थे ...और किसी को भी जोश में भर देने के लिए काफ़ी थे | इतने साफ़ और गोरे थे की कोई भी उन्हें घंटों चाटते रहे |


पहली बार चाची के गोरे टांग और जांघों को बहुत पास से और सामने देख रहा था मैं | देखते देखते ही एक अजीब सी खुमारी सा छाने लगा मुझ पर | ऊपर और नीचे से आधी नंगी ऐसी खूबसूरत औरत जिसके हर एक अंग-प्रत्यंग को ऊपरवाले ने बड़े ही धैर्यपूर्वक और ख़ूबसूरती से एक बेहतरीन सांचे में ढाला था | मेरा लंड बरमुडा के अन्दर से ही फुफकारें मारने लगा | पूरे शरीर के नसों में रक्त का प्रवाह हद से अधिक तीव्र हो उठा | चाहता तो वहीँ चाची को पटक कर, उन पर चढ़ कर एक अद्भुत चुदाई का नज़ारा पेश कर सकता था पर ये भी जानता था की ऐसे मौके बार बार नहीं आते इसलिए ये जो मौका मिला है .. इसका भरपूर और जी भर कर उपयोग करना चाहिए आज |






जांघों को सहलाते सहलाते मेरा हाथ ऊपर होते हुए और अन्दर घुस गया ... इतना अन्दर की मुझे कुछ होश ही नहीं रहा ....और तभी चाची चिहुंक उठी | आँख बंद थी चाची की पर देह में सिहरन सी दौड़ रही थी उनकी | मैं ध्यानपूर्वक चाची के चेहरे को देखा और फिर हाथ को अन्दर ले जाकर इस बार महसूस किया की चाची ने पैंटी पहना ही नहीं है .... और इस बात का अहसास होते ही मैं ख़ुशी से झूम उठा | मेरी दो उंगलिया उनके चूत के द्वार से टकरा रही थी और प्रत्येक छुअन से चाची पहले से अधिक मचल उठती | इधर मैं चाहता तो था की मैं चाची की मदमस्त गदराई जिस्म की बाकि के अंगो पर ध्यान दूं पर ठीक मेरे आँखों के सामने काम-सौन्दर्य से इठलाते हुए ऊपर नीचे करते चाची की गोरी-चिट्टी भरे हुए पौष्टिक चूचियां मुझे और कुछ सोचने ही नहीं दे रही थी ... इसलिए मैं अपना फोकस उनकी मदमस्त चूचियों पर दिया रहा | एक हाथ से बड़े प्यार से अंदरूनी जांघ को सहलाते हुए चूत-द्वार के साथ छेड़खानी करता और दूसरे से एरोला के आस पास चूची को पकड़ कर थोड़ा प्यार और थोड़ा सख्ती से मसल देता |





काफ़ी देर तक इसी तरह छेड़खानियाँ करता हुआ चाची को सेक्सुअली सताता रहा .... और अंत में अब निप्पल पर ध्यान दिया | एरोला के साथ हुए खिलवाड़ से निप्पल तन कर खड़े हो गये थे | एरोला के चारों ओर चूमने-चाटने से लगे लार से भीगे एरोला पर तने हुए निप्पल, खीर में ऊपर से डाले गए किशमिश की तरह लग रहे थे ... भूख से पीड़ित किसी आदमी को अपने तरफ़ लपक कर आ कर खा लेने के लिए निमंत्रण देते हुए से लग रहे थे |


और मैं तो भूखा था ही .... हवस का भूखा ...! ललचाई नज़रों से देखता और मुँह से बाहर आते लार को वापस निगलते हुए अपने होंठ निप्पल तक ले गया ... गर्म सांस निप्पल से टकरा कर चाची को मस्ती में भर दे रहे थे |


अपने होंठों से निप्पल के ऊपरी हिस्से को हलके से दबाते हुए पकड़ा और आगे की ओर खींचने लगा ... और इसी के साथ ही चाची को बेड पर लेटा कर साड़ी को कमर तक चढ़ा दिया ... ऐसा करते ही चाची की मनोरम, अप्रतिम नयन सुख देने वाली, एक झटके में ही काम उत्तेजना का संचार कर देने वाली लावण्यमयी रसभरी चूत अब सामने खुली पड़ी थी | बड़े ध्यान से देखता हुआ चूत के पास आया और उसपर निकले छोटे छोटे झांटों को अपनी उँगलियों में फंसा कर हल्के से खींचा और साथ ही चूत-द्वार पर बनी लम्बी लकीर को अपनी एक ऊँगली से दबाव बनाता हुआ ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर करता .... दोनों ओर से हो रहे हमले से चाची मस्ती में दुहरा गई और वहीँ बेड पर लेटे लेटे बेडशीट को अपने मुट्ठियों से भींचते हुए कामुक मादक सिसकियाँ लेने लगी |


कुछ देर यही खेल खेलने के बाद निप्पल को चूसने लगा .... चूसते हुए कभी ‘चक चक’ की आवाज़ निकलता तो कभी ‘सरक सरक’ की.... इधर नीचे चूत में अपनी दो उँगलियाँ घुसा कर अन्दर बाहर करने लगा | पहले तो धीरे मोशन में अंदर बाहर करता रहा फिर धीरे धीरे अपनी स्पीड बढ़ाने लगा | चूत में हो रही ज़ोर से फिंगरिंग ने चाची को उनके ऊपर उनका खुद का रहा सहा कण्ट्रोल भी खो देने को मजबूर कर दिया | उनका पूरा शरीर थिरकने सा लगा और वो ‘ऊऊउम्म्म्मम्मम्मम्मम्मम्मम’ की सी आवाजें करने और आहें भरने लगीं | जब ये सेक्सुअल टार्चर बर्दाश्त से बाहर होने लगा तो चाची अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ कर अपने चूची पर कस कर दबा दी |
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11-17-2019, 12:55 PM,
#44
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
बर्दाश्त की सीमा मेरी भी पार कर चुकी थी.. मैं अब रुकने वाला नहीं था ... पूरी तल्लीनता और ज़ोरों से फिंगरिंग करने और निप्पल चूसने लगा | इधर चाची का भी जोर मेरे सिर पर बढ़ता जा रहा था और मेरे सिर को अपने चूची से ऐसे दबाए हुए थी मानो आज वो मेरा निश्चय ही दम बंद कर मारने वाली है | मेरे दोहरे आक्रमण के मार से चाची अब धीरे धीरे अपने चरम पर पहुँचने लगी ... उनका शरीर अकड़ने लगा ... वो ज़ोरों से आहें भरने लगी और साथ ही बिस्तर पर किसी जल बिन मछली की भाँति तड़पने लगी | मैं निप्पल को छोड़ अब पूरे स्पीड से चूत के दाने को मसलने और उँगलियों को अन्दर बाहर करने लगा |


चाची – “आह्ह्ह्हsssss....... अभयययययssssssss.... आअह्ह्ह्हह्ह्हssssssss....ऊऊउम्म्म्मममममssssss....”

अभय – “ओह्ह्ह्हssss....दीप्तिssssss......चाचीईईईsssssssssss.....पूर्ण संतुष्ट किये बिना नहीं छोडूंगा ......आह्ह्ह: ....”

चाची – “आआआआह्ह्ह्हहहssss.....औरररररssss.... थोड़ाssssss........ज़ोरररररsss... सेsssss... आह्ह्हssss.. ओह्ह्हssss....नहींईईssss....आम्म्ममम्मssss.... धीरेरेरेsssss........ करोssssssss....”


चाची की आवाज़ की तीव्रता बढती जा रही थी ... इतनी बढ़ गई थी की कहीं उनकी आवाज़ कमरे से बाहर न चली जाए यही सोच कर मैंने चाची के होंठों से अपने होंठ लगा दिया | इससे आवाज़ निकलनी तो बंद हो गई पर अब एक दबी हुई सी “ऊऊउम्म्म्ममममssssssssss…..” निकल रही थी |


चाची की ऐसी हालत देख कर मुझे एक और शरारत सूझी ... मैं ऊँगली करना छोड़ कर उठ बैठा ... मेरी इस हरकत से चाची ने आँखें खोल कर मेरी ओर आश्चर्य से देखी.. मैं होंठों पर एक बदमाश वाली स्माइल लिए चाची को देखते हुए उनके पैरों को पकड़ कर फैला दिया और खुद दोनों पैरों के बीच आ कर बैठ गया .. फिर खुद को थोड़ा पीछे करते हुए धीरे धीरे चाची की चूत पर झुकने लगा ... चाची मेरी इन हरकतों को आश्चर्य से बड़े ध्यान से देख रही थी और मुझे अपने टांगों के बीच झुकते देख वो मेरा आशय समझ गई और शर्म और शरारत भरी एक मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए अपने टांगों को खुद ही और अधिक फैला दी.. और इधर मैं उनके मखमल सी टाँगों के बीच इतना झुक चूका था कि मेरे होंठ अब चूत के होंठों से जा मिले... थोड़ी देर तक चूत के ऊपरी और आस पास के हिस्से को सूँघता रहा .... और जब मन थोड़ा आगे बढ़ने को हुआ तब जीभ निकाल कर बड़े धीरे और स्नेहयुक्त तरीके से चूत के होंठों पर फिराने लगा | जैसे ही जीभ का अग्रभाग चूत से टकराया , चाची “इइइइइइस्सस्सस......आहहहहह.......” की आवाज़ के साथ तड़प सी उठी और आनंद के गोते लगाते हुए अपनी आँखें बंद कर ली ...|


प्रेम से चूत के आस पास के भाग को चाटते हुए दो उँगलियों से चूत के फांकों को अलग किया और जीभ को थोड़ा अंदर घुसाते हुए चूत के दीवारों को चाटने लगा | अब तो चाची का परम उत्तेजना के मारे बुरा हाल था | मेरे सिर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर दोनों जांघों के बीच दबा दी और जांघों को मेरे सिर के पीछे से ले जा कर क्रिसक्रॉस कर के उनका गिरफ़्त भी बढ़ा दी | और मैं तो पूरी लगन से चाची के ‘चूत-रस’ का पान करने के लिए जीभ से ही चुदाई आरम्भ कर दिया |


चाची – “ऊऊउम्म्म्ममममममआह्ह्ह्ह..... अभ.....अभय्यय्य्य....... अ....अब.....न....नहीं....... नहीं.... रुक्क.... सकती.....आअह्ह्ह्ह.... ”
चाची तड़प उठी पर मेरे पास कुछ देखने सुनने का समय नहीं था.... मैं तो चिपका पड़ा था .... रसभरी चूत से ... चाट चाट कर चूत को पनिया दिया मैंने ... किसी तरह मैंने सिर को चूत पर से उठा कर बोला, “हाँ, तो मत रोको न ... होने दो जो हो जाना चाहिए...” इतना कह कर दुबारा चूत चुसाई के कार्य में लग गया |


चाची का पूरा शरीर कांपने लगा .. बेड पर लेटे लेटे कसमसाते हुए वो मेरे सिर को और भी अधिक ताकत से अपने चूत पर टिकाने लगी.. अपने सर से लेकर कमर तक के हिस्से को वो ऊपर की ओर उठाती और फिर एक झटके से नीचे करती ... कुछ देर तक यही सिलसिला चलता रहा ...


फिर अचानक,

चाची – “ऊह्ह्ह्ह....ओह्ह्ह..... आआऊऊऊऊ...............!! आअह्ह्ह्ह..... मैं... म...म... मैं... अ...अ...ब....अब.... छुट.... छूट ....आह्ह..... वाला.... है.........आअह्ह्ह्ह”

और इसी के साथ “फ्च्च्च” के आवाज़ के साथ चाची का एक बहुत ही ज़बरदस्त ओर्गास्म हो गया | पूरा का पूरा ‘चुतरस’ मेरे पूरे चेहरे पर फ़ैल कर लग गया | चिपचिपा सा.... चाची अब लंबी गहरी साँसों के साथ धीरे धीरे शांत हो होने लगी.... और.. और मैं.... मैं अब भी चूत के होंठों से अपने होंठ लगाए “चूतरस” का पूरे मनोयोग से सेवन कर रहा था .................

*************************************************************


चाची निढाल सी बेड पर पड़ी रही. और मैं बड़ी तल्लीनता से चूत चाटे जा रहा था | इस वक़्त अगर कोई वहाँ कमरे में होता तो मुझे देख कर यही कहता की बेचारे को चूत की बड़ी प्यास लगी है ... क्योंकि मुझे तो चूत के पास से हटने का मन ही नहीं कर रहा था | काफ़ी देर तक ‘लप लप’ की आवाज़ से चूत को अच्छे से चाटने के बाद जब थोड़ा मन भरा, मैं उठ कर चाची के बगल में जा कर लेट गया और चाची के चेहरे को बड़े प्यार और अपनेपन से देखने लगा | चाची आँख बंद की हुई थी | कसम से, बहुत ही प्यारी लग रही थी | बिना ब्लाउज के नंगे पड़े भीगे चूची और निप्पल, ज़ोर से दाबने के वजह से कहीं कहीं से लाल हो गयी थी | पूरे पेट और नाभि पर भी मेरे चाटने से हलके लार समेत निशान बन गये थे | कमर तक उठे हुए पेटीकोट मामले को और गर्म बना रहे थे |


मैं कुछ देर तक चाची को ऊपर नीचे देखता रहा | फ़िर आगे बढ़ कर दीप्ति (चाची) का एक चूची को पकड़ा और धीरे धीरे सहलाते हुए दबाने लगा | चाची अब भी आँख बंद कर लेटी थी, चूची पर दबाव पड़ते ही ‘उऊंन्ह्ह’ से कराह दी | पर मैं बिना परवाह किये चूची को दबाता और चूमता रहा | कुछ देर ऐसे ही करते रहने के बाद उन्हें बाँहों में भरते हुए लिपकिस करने लगा | चूत के होंठ चूसने के बाद मैं अब मुँह के होंठ चूसने में व्यस्त हो गया |


पर इसमें भी ज़्यादा देर तक नही रह सका | जल्दी से बरमुडा को उतार फेंका और अपने फनफनाते खड़े लंड के सुपारे पर थूक लगाने लगा | फिर चाची की चूत पर ढेर सारा थूक लगाया और अपने लंड के सुपारे को चूत के मुहाने पर लगा कर हल्का सा दबाव बनाने लगा | चाची ज़रा सा आँख खोली और मुझे अपने चूत पर लंड रगड़ते देख कर मुस्करा दी और फिर से आँखें बंद कर आने वाले सुख की परिकल्पना में खो गई
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11-17-2019, 12:55 PM,
#45
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
मैंने लंड को चूत की लकीर रूपी द्वार पर ऊपर नीचे करने के बाद अब चूत के घुसाने में ध्यान देने लगा | धीरे धीरे दबाव बढाते हुए लंड को आधा घुसाने में कामयाब हो गया | लंड के सुपारे से लेकर लंड के आधे प्रवेश तक चाची “स्स्स्सशश्श्श्शह्ह्ह्ह...आअह्ह्ह्हह्ह्ह...!” की आवाज़ निकालती रही और बेडशीट और गद्दे पर अपने नाखूनों को और अधिक बैठाती रही |


चाची – “आअह्ह्ह्हssss..... अभय्य्यsssssss.... अआरामsss...ससsssss....ssss…..सेss.... करोssssss......आह्हssssssss!!”

मेरे मुँह से बस इतना निकला,

“शुरू तो आराम से ही कर रहा हूँ पर आगे का नहीं बता सकताssss.... ओह्हssss!”


मैं अब अपने कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा | प्रारंभिक कठिनाई के बाद जल्द ही लंड बहुत आराम से चूत के अंदर बाहर होने लगा | चाची को भी अब मज़ा आने लगा | वो दुबारा अपनी आँखें बंद कर ‘ऊऊन्न्हह्ह्ह्हsssssss.....ऊम्म्म्हहssssssssss....’ की सी आवाज़ करते हुए मीठी चुदाई का आनंद लेने लगी |


इधर मैं भी अपना स्पीड बढ़ाने लगा | आगे झुका; अपने दोनों हाथ चाची के कंधों पर रखा और पूरे ज़ोर से ऊपर नीचे करने लगा |
चाची – “आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हssssssssss....ओफ्फ्फ़फ्फ्फ्फ़sssss.......अभय्यय्य्यsssssss....!!”


मैं – “ह्ह्म्मम्फ्फ्फ़sssss.....बोsss...बोलssss..बोलोssss..... जाss....sss… जाssssss.....जानsss....sssss... कैसाsss..... आअह्ह्हssss....... ओह्ह्हssss.... कैसाssss.... लगsss... ssssss…. रहा.....है???”

चाची – “आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ssssss......आऊऊचच्च्च्चsssssssss......उम्म्मम्म्म्मsssss........ह्ह्मम्म्म्मsssssssss”

चाची के मुँह से कोई जवाब न पाकर अति उत्तेजना के आगोश में मैंने उनके गांड के बायीं तरफ़ ज़ोर से एक थप्पड़ मारते हुए दाएँ चूची पर भी एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया....

मैं – “अरे बोल नाsss.....चुप क्यूँ है....बोलssss...”

चाची – “आआआह्ह्ह्हहsssss.....मारो मतssssssss.....”

मैं (फ़िर से चूची पर एक थप्पड़ मारते हुए) –“जल्दी बोलssss.....”

चाची – “आआआह्ह्ह्हहsss.... अच्छा लग रहा हैsssssss.......”

चाची – “रु.....रुकनाss.... मतss....... आअह्ह्ह्हsssss...”

मैं – “कहाँ रुका हूँ मेरी जान....आह्ह........ह्हह्म्म्मफ्फ्फ़sss....”


रात के सन्नाटे में पूरे कमरे में सिर्फ आह्ह.. ओह्ह... उफ्फ्फ़.. ह्ह्ह्मम्फ्फ्फ़... की ही आवाजें गूंज रही थी |

मैंने झट से दीप्ति यानि की मेरी चाची के होंठो पर अपने होंठ रख दिए | हम दोनों ही कामोत्तेजना के आवेग में पड़ कर पशुवत व्यवहार कर रहे थे | दोनों पागलो की तरह एक दूसरे के होंठों को चूस और चूमे जा रहे थे | केवल “उऊंन्ह्हह्ह्हम्मम्म” जैसी लम्बी सी घुटी घुटी सी आवाज़ आ रही थी | जोर जोर से धक्के मारने से दोनों के जांघ आपस में टकराते हुए “ठप ठप” सी आवाजें कर रहे थे | दोनों की ही साँसे अब तेज़ी से चलने और उखड़ने लगे |


इसी तरह काफ़ी देर गुजरने के बाद..

अचानक,

चाची – “आअह्ह्हssssss....ओओओओह्ह्ह्हsssss.....आहsss... अबss.... और...नss....नहींsss..... रुक्कssss....सकती.....आआह्ह्हsss”

मैं – “आह्ह्हह्ह्म्मम्फ्फ्फ़sssss...आहहहsssss... मैं... मैंss.....भीsssss.......”

मैं अब एक चूची को दबाने और दूसरे को चूसने लगा | और दोनों ही काम बड़े ज़ोरों से करते हुए धक्के भी तेज़ देने लगा | गांड और जांघ अकड़ने लगी मेरी... चाची को इस बात का एहसास हो गया की उनकी तरह अब मैं भी अधिक देर तक टिकने वाला नहीं हूँ ... इसलिए उन्होंने अपने दोनों टांगों को ऊपर करते हुए मेरे गांड के पीछे ले जाकर दोनों टांगो को क्रिसक्रॉस करते हुए मेरे गांड को गिरफ़्त में लेते हुए चूत की तरफ़ बढ़ाये रखी | जबकि मैं तो धक्के लगाते हुए अपना ध्यान चूचियों पर दिया हुआ था .... और चूची को ऐसे दबा रहा था जैसे निकाल कर अपने साथ ही ले जाऊंगा | वहीँ दूसरी चूची को “चक्क..चक्क..” की आवाज़ से इतने ज़ोर से चूस रहा था की मानो जो कुछ भी अंदर रह गया है उसे भी मैंने निकाल लेना है .... इन हरकतों से चाची तो मारे दर्द के बुरी तरह छटपटाने लगी |


मैं – “आह्ह्ह..... दीप्ति.... मेरा निकलने वाला है....”

चाची – “अअम्मम्म... मेरा भी .... आह्ह”

और तुरंत ही दोनों एक साथ “आआह्ह्ह्हह्ह्हssssssssss” करते हुए झड़ गए |

अचानक से पूरा कमरा शांत हो गया .... बीच बीच में तेज़ साँसों के चलने की हलकी आवाज़ सी होती... फिर सब शांत.... मानो एक तूफ़ान थम गया हो | हम दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए थे | और बहुत देर तक एक दूसरे को लिपटे ही रहे ... शायद छोड़ने का इरादा नहीं था हम दोनों का |



फ़िर,

एक दूसरे के बाँहों से आज़ाद हुए और थोड़ा आराम करने के बाद मैं उठ कर अपना बरमुडा लेने वाला था कि चाची ने मेरा हाथ पकड़ कर वापस बेड पर लिटाते हुए एक बड़ा मोटा सा चादर हम दोनों के नंगे बदन पर लेते हुए बोली, “रुको अभी... कोई जल्दी नहीं है... |”


मेरे कंधे पर सिर रख कर लेटी लेटी मेरे पूरे सीने पर अपनी उँगलियों की पोरों को फ़िरा कर सहलाने लगी |
मैं भी ऊपर तेज़ी से घूमते पंखे को देखता हुआ अपने बाएँ हाथ से चाची के सिर के रेशमी बालों को सहलाते हुए कहीं खो सा गया ... और अनायास ही मेरे मुँह से निकला,

“चाची.... उस इंस्पेक्टर का क्या होगा? मुझे तो वह बड़ा हरामी जान पड़ता है... हमारी ज़िंदगी में कुछ न कुछ बखेड़ा ज़रूर खड़ा करेगा... क्या पता शायद अभी भी वो कहीं दूर बैठा कोई तिकड़म भिड़ा रहा हो |”

मेरे नंगे सीने पे घूमती चाची की उँगलियाँ अचानक से रुकी,

और कुछ सेकंड्स रुकने के बाद फिर से मेरे सीने पर चलने लगीं,
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11-17-2019, 12:55 PM,
#46
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
और धीरे से बोली,

“उसकी फ़िक्र तुम न करो अभय... मैंने उसका इंतज़ाम कर लिया है |”


मैं बुरी तरह से चौंका,

“क्या सच?? प... पर... पर कैसे?? क्या इंतज़ाम कर लिया है आपने ... चाची..??”

चाची – “किया है ना कुछ... तुम अभी इन सब बातों की फ़िक्र मत करो.. समय आने पर खुद पता चल जाएगा |”

मैं – “पर दीप्ति........”

मेरे कुछ और कहने के पहले ही चाची ने अपना सिर उठाया और मेरी ओर देखते हुए अपनी एक ऊँगली मेरे होंठों पर रख दी और एक रहस्यमयी कातिलाना मुस्कान लिए धीरे से बोली,

“श्श्श्श....... शांत...बिल्कुल शांत..... मैंने कहा न, मैंने इंतजाम कर लिया है... उस इंस्पेक्टर की चिंता मुझ पर छोड़ कर तुम सिर्फ मेरी चिंता करो... और मेरी दो बातों को अपने दिमाग में बिल्कुल फ़िट कर लो...

पहला, अपनी चाची पर भरोसा करना सीखो... और दूसरा, जब हम इस तरह से साथ हों तो मुझे मेरे नाम से नहीं बल्कि चाची कह कर पुकारो... बड़ा किंकी लगता है... हाहाहा....”


मैं हतप्रभ सा उनकी ओर देखता रहा... कुछ समझ नहीं रहा था उस वक़्त... तभी चाची थोड़ा उठ कर अपने बगल में एक छोटे से टेबल/स्टूल पर रखे एक ग्लास को उठा कर मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली,

“लो .. अब एक अच्छे बच्चे की तरह फटाफट इसे पी जाओ...|”

मैं – “ये क्या है चाची?”

चाची – “दूध..”

मैं – “दूध?!! अभी?? ... पर क्यों..?!!”


मेरे इस सवाल पर चाची शर्माते हुए मेरे पूरे शरीर को अच्छे से एक बार सर से लेकर पाँव तक देखी, कुछ सेकंड के लिए उनकी नज़रें चादर के नीचे बन रहे मेरे लंड के उठाव पर टिकी रही ...फ़िर मेरी ओर, मेरी आँखों में झांकती हुई , मेरे सिर को सहलाते , बाएँ कान के ऊपर बिखरे सर के बालों को अपनी उँगलियों से बड़े प्यार से कान के पीछे करते हुए, होंठों पर कातिलाना मुस्कान लिए बोली,

“क्योंकिss....... मुझे..... एक राउंड और चाहिए... ”


मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ..... “व्हाट”??!



---------------------------


इधर शहर में ही, दूर कहीं किसी वीराने में... एक नदी के किनारे,

एक लम्बा सा आदमी... भुजाएं काफ़ी बलिष्ट सी मालूम पड़ती है उसकी... ताकतवर होगा...

एक बड़ा और काफ़ी गहरा गड्ढा खोदा...

और फ़िर एक बड़ी सी काली प्लास्टिक उस गड्ढे में डाल दिया ...

प्लास्टिक में कुछ लपेटा हुआ था.. देखने से आदमीनुमा जैसा कुछ लग रहा था .. मानो किसी आदमी को लपेटा गया हो |

प्लास्टिक को बड़ी मशक्कत से गड्ढे में डालने के बाद उस आदमी ने जल्दी से गड्ढे को भर दिया ... भरने के बाद कुदाल-फावड़ा ले कर एक ओर बढ़ा.. अभी कुछ कदम चला ही होगा कि रात के सन्नाटे में ‘च्युम’ की सी एक धीमी आवाज़ हुई... और इसी के साथ ही उधर वह आदमी किसी कटे पेड़ की भांति ज़मीन पर गिर गया |

हेडलाइट्स ऑफ़ किये एक कार आ कर रुकी उस आदमी के पास... एक आदमी उतरा.. ओवरकोट और हैट पहने.. साथ में एक बड़ी सी प्लास्टिक और चादर लिए. जल्दी से उस गिरे हुए आदमी को पहले चादर में, फिर उस प्लास्टिक में लपेटा.. फिर किसी तरह उठा कर अपने कार की डिक्की में डाला... साथ ही कुदाल वगेरह भी डिक्की में डालने के बाद कार स्टार्ट कर एक ओर तेज़ी से बढ़ गया |




क्रमशः.......................
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11-17-2019, 12:55 PM,
#47
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
थाने में मेरे गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के पाँच दिन बाद मैं, चाचा और चाची के साथ थाने गया; मेरे साथ घटी घटनाओं का विवरण देने | ऑफ़ कोर्स बहुत सी बातों को मैं छुपाने वाला था ; पर इन बातों को छुपाने के चक्कर में जो बातें मैं कहने वाला था उन्हें कुछ ऐसे कहना पड़ता जिससे किसी को ये लगे नहीं कि मैं कहीं कुछ भी छुपा रहा हूँ | थाने जाने से पहले मैं बहुत घबराया हुआ था पर चाची की चेहरे की दृढ़ता और उनका विश्वास की थाने में मुझे कुछ न होगा वरन कुछ प्रश्न कर छोड़ दिया जाएगा, ने मुझमें भी काफ़ी हद तक हिम्मत बढ़ाई | चाची को इतना कन्फर्म मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था | एक तरफ़ जहां मैं अपने पास चाचा और चाची दोनों को पा कर निश्चिन्त था वहीँ दूसरी ओर मुझे किसी अनजाने डर का डर भी सता रहा था | खास कर अस्पताल में उस दिन मौजूद उन लोगों का डर |


अस्पताल की याद आते ही मुझे उस अनजान लड़की की याद आ गयी जिसने उस दिन दो-तीन लोगों की सहायता से अस्पताल से निकलने में मेरी सहायता की थी | बड़ी ही अजीब बात थी, न जान न पहचान.... फिर भी मैं तेरी कद्रदान ! क्यूँ मदद की उसने मेरी? क्या वह मेरे मकसद के बारे में कुछ जानती है? या सब कुछ जानती है ? और अगर जानती भी है तो फ़िर ‘मेरी’ मदद करने के पीछे का उसका क्या मकसद रहा होगा? नाम भी तो नहीं बताया था उसने उस दिन | और तो और , उसे मेरे घर का पता किसने बताया? अगर इस लड़की को मेरे घर का पता मालूम है तो क्या उन दूसरे खतरनाक लोगों को भी मालूम है?? हे भगवान ! कहीं वो लोग सीधे मेरे घर ही न पहुँच जाए !


थोड़ी ही देर बाद हम पुलिस स्टेशन के बाहर खड़े थे |

सभी अपने कार्यों में व्यस्त थे, किसी को किसी की सुध नहीं थी |

चाचा आगे बढ़ कर एक सिपाही से इंस्पेक्टर विनय से मिलने की बात कही |

सिपाही ने एक बार चाचा को ऊपर से नीचे तक अच्छे से देखा फिर मेरी ओर चाची की ओर एक सरसरी सी निगाह दौड़ा कर चाचा की ओर देखते हुए कहा,

“विनय साहब नहीं आये हैं, आज छुट्टी पर हैं | ”


“ओह्ह..!” चाचा ने निराशा व्यक्त की |

“क्यों, क्या काम है... अर्जेंट है क्या?” – सिपाही ने चाचा को निराश देख कर पूछा |

“जी, इंस्पेक्टर विनय ने ही बुलाया था.. एक केस के सिलसिले में...”

“कौन सा केस?” – सिपाही ने उत्सुकता में पूछा |

“मेरे भतीजे के लापता होने का केस.. लौट आया है .. इसलिए मिलना था |” चाचा ने अत्यंत संक्षेप में उत्तर दिया |

सिपाही ने मेरी ओर देखते हुए पूछा, “यही है क्या? कहाँ था इतने दिन? कहाँ चला गया था? कैसे आया?”

एक साथ प्रश्नों की बारिश सी कर दी उसने | मैं भी थोड़ा घबरा सा गया ; और चाची की ओर देखा | चाची मेरे मनोभावों को पढ़ते हुए सिपाही की ओर मुखातिब हुई और थोड़ा झिड़कते हुए बोली,

“आप इंस्पेक्टर विनय हैं क्या?”

चाची की झिड़क से सिपाही थोड़ा अकबका सा गया | खुद को तुरंत सँभालते हुए कुछ कहने जा रहा था की चाची ने फिर उसे उसी अंदाज़ में कहा,

“अगर इंस्पेक्टर साहब नहीं हैं तो उनके जगह थाना इन-चार्ज कौन हैं? जो हैं उनका नाम बताओ और अगर कोई नहीं है तो ठीक है... हम चलते हैं |”

चाची का यह रिएक्शन काफ़ी शॉकिंग था | हमने कभी सोचा ही नहीं था कि चाची इतनी निडरता से बात कर सकती है... और तो और उस सिपाही ने भी कभी सपने में कुछ ऐसा होने के बारे में सोचा नहीं होगा | वो बुरी तरह से हड़बड़ा गया | चाची को अच्छे से ऊपर से नीचे तक एक बार और देखने के बाद गला साफ़ करते हुए कहा,


“खं..ख्म... हम्म... इंस्पेक्टर दत्ता साहब अंदर बैठे हैं .. इंस्पेक्टर विनय साहब की अनुपस्थिति में वही यहाँ के इन-चार्ज होते हैं..... |”

सिपाही अभी अपनी बात पूरी कर पाता, उसके पहले ही चाची ने मुझे आगे करते हुए उस सिपाही को “एक्सयूज़ मी” बोल कर कमरे में घुस गई | चाचा भी किंकर्तव्यविमूढ़ सा खुद को कुछ कहने की स्थिति में ना पाकर चुपचाप चाची को फॉलो करना ही बेहतर समझा | अंदर घुसने के बाद हमें बगल में ही एक और कमरा मिला | कमरे के बाहर ही बैठे एक संतरी से पूछने पर पता चला की है तो ये इंस्पेक्टर विनय का ही कमरा पर उनके छुट्टी पर होने के कारण अभी इंस्पेक्टर दत्ता यहाँ के इन चार्ज हैं और वह ही अभी कमरे में बैठे हैं | हमारे कहने पर वो अंदर गया और इंस्पेक्टर दत्ता से मिलने की परमिशन ले कर बाहर आया,

“जाइये... साहब बुला रहे हैं |”

सुनते ही चाची कोहनी से मुझे हल्का सा मार कर इशारा करते हुए कमरे की ओर बढ़ गई, मैं उनके साथ ही घुसा जबकि चाचा थोड़ा रुक कर अंदर आए | फिर जो हुआ, उससे यह समझ में नहीं आया कि जल्दबाज़ी में हुआ या जान बुझ कर ....
हुआ यह कि, अंदर घुसते ही चाची तेज़ कदमों से चलते हुए सामने रखे चेयर तक गई पर चेयर के पिछले (पाया) पाँव से उनका पैर टकरा गया और वह गिरते गिरते बची | पर खुद को सँभालने के क्रम में वो चेयर को पकड़े आगे की ओर झुक गई और इससे उनका पल्लू उनके कंधे पर से हट कर उनके बाँह में आ गया |

और जैसा कि मुझे पहले से ही पता है की चाची कितना लो कट ब्लाउज पहनती है, इसलिए चाची के आगे गिरते ही मैं समझ गया की इंस्पेक्टर दात्ता को दुनिया की कई लुभावनी चीज़ों में से एक के दर्शन हो रहे हैं आज | दत्ता तो जैसे पलकें झपकाना ही भूल गया | पलकें तो दूर की बात, उसे देख कर ऐसा लगा मानो वो उस समय साँस तक लेने भूल गया है |

चाची जल्दी से अपने आँचल को दुरुस्त करते हुए इंस्पेक्टर दत्ता को नमस्ते की...

प्रत्युत्तर में इंस्पेक्टर दत्ता ने भी किसी तरह खुद को सँभालते हुए हाथ जोड़े, लाख कोशिश करे चाची के चेहरे को देखने की पर गुस्ताख आँखें अपना रास्ता उनके वक्षों तक ढूँढ ही लेते हैं |

“ज.. जी.... आ..आप??” – हलक में फँसते शब्दों के साथ शुरुआत किया इंस्पेक्टर ने |

“जी, मेरा नाम दीप्ति है... दीप्ति शर्मा, ये मेरे हस्बैंड मिस्टर आलोक शर्मा हैं और ये मेरा भतीजा अभय, अभय शर्मा.. दरअसल हम.............................” – और फिर चाची ने सब कुछ इंस्पेक्टर दत्ता को कह सुनाया |

मेरे गायब होने की, मेरे मिल जाने, इंस्पेक्टर विनय से हुई बातें... वगैरह वगैरह... |

इंस्पेक्टर दत्ता सब कुछ बहुत शांति से और ध्यानपूर्वक सुनता रहा |
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11-17-2019, 12:55 PM,
#48
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
पर साथ ही मेरे पारखी नज़रों ने यह ताड़ लिया था कि दत्ता बातें सुनने के साथ ही साथ कुछ और भी करने में व्यस्त था...

वह चाची के चेहरे को एकटक निहारे जा रहा था |

होंठ, गाल, गला, भोंहें, आँखें.... सब कुछ देखे जा रहा था |

एक अजीब सा दीवानापन, अपनापन का एहसास अपने आँखों में लिए वह चाची को अपलक देखे जा रहा है |

मैं चाची की ओर देखा,
उनकी आँखें साफ़ जाहिर कर रही थी कि वह भी इंस्पेक्टर की हरेक हरकत को बखूबी समझ रही है ... पर इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला |
और कहीं न कहीं ये बात मेरे लिए राहत देने वाली बात थी... पता नहीं क्यों?

थोड़ी देर बाद,

मेज़ पर चार ग्लास चाय थे |

चाची की बातें ख़त्म हो चुकी थी | मैं कुछ कहने की सोच रहा था और चाचा के पास कहने को कुछ ना था |

दो सिप ले चुका था चाय का इंस्पेक्टर दत्ता ने... ग्लास के गोल मुहाने पर अपने दाएँ हाथ की तर्जनी ऊँगली को गोल गोल घूमाते हुए किसी सोच में डूबा हुआ सा लग रहा था वह | फ़िर उसी हाथ को उठा कर दो उँगलियों को मोड़ कर अपने होंठों पर और अपनी ठोड़ी को हथेली का सहारा देते हुए बगल की खिड़की से बाहर देखने लगा |

हम तीनो चुपचाप बैठे हैं | तीनों की ही नज़रें इंस्पेक्टर दत्ता पर जमी हुई है और किसी अप्रत्याशित प्रश्न या उत्तर की सम्भावना को ख़ारिज करने की मन ही मन उपाय और ताकत जुटा रहे हैं |

कुछ देर तक कमरे में छाई चुप्पी को भंग करते हुए इंस्पेक्टर दत्ता ने कहा,

“देखिए, मिस्टर एंड मिसेस शर्मा, मैं फिलहाल कुछ ख़ास करने की स्थिति में नहीं हूँ.. दरअसल बात यह है कि इस केस को इंस्पेक्टर विनय हैंडल कर रहे थें | वह अभी छुट्टी में हैं... उनके आने के बाद ही कोई सटीक कदम उठाने के बारे में सोचा जा सकता है | मैं तो बस उनका रिप्लेसमेंट हूँ | हाँ, मैं अभी के लिए आपको यह आश्वासन ज़रूर दे सकता हूँ की पुलिस की तरफ़ से आपको फुल प्रोटेक्शन और सपोर्ट है.. और आज के बाद, इन फैक्ट, आज से ही अगर आप लोगों को कहीं कुछ भी संदिग्ध सा लगे या कोई आप लोगों से किसी भी तरह कोई कांटेक्ट करने की कोशिश करे तो आप बेहिचक हमें सूचित कर सकते हैं | पुलिस डिपार्टमेंट हमेशा आपके सेवा में उपस्थित है और रहेगी |”

अंतिम पंक्तियाँ – “आप बेहिचक हमें सूचित कर सकते हैं | पुलिस डिपार्टमेंट हमेशा आपके सेवा में उपस्थित है और रहेगी |” कहते हुए दत्ता ने नज़रें चाची की ओर कर ली थी और बात खत्म करते करते उसकी नज़रें चाची के पारदर्शी आँचल के नीचे से नज़र आ रहे क्लीवेज पर जम गई थी |


खैर,
बाकी फॉर्मेलिटी सब पूरी करने के बाद हम तीनो उठ कर बाहर आ गए | कमरे से निकलते वक़्त मैंने सिर घूमा कर इंस्पेक्टर की ओर देखा; उसकी नज़रें चाची की बैकलेस ब्लाउज में दिख रही चिकनी बेदाग़ पीठ और उनके उभरे हुए पिछवाड़े पर टिकी हुई थी |






पुलिस स्टेशन से निकलने के क्रम में भूरे रंग का ओवरकोट और हैट पहना एक आदमी मुझसे जोर से टकराया और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया | मैं उसे कुछ कहता या टोकता पर चूँकि स्टेशन में ही थे हम लोग इसलिए मैंने चुप रहने में ही भलाई समझी |
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11-17-2019, 01:02 PM,
#49
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
ड्राइविंग सीट पर चाचा थे और बगल में चाची बैठी थी | मैं पीछे परेशान सा बैठा था | परेशानी इस बात की थी कि ये इंस्पेक्टर दत्ता किसी तरह की परेशानी न बन जाए मेरे और परिवार के लिए |

अनायास ही मेरा हाथ मेरे पैंट के पॉकेट पर गया ... कोई कागज़ सी चीज़ अंदर थी | पर मैंने तो ऐसा कुछ नहीं रखा था ... तो फिर ?
जल्दी से पॉकेट से वो कागज़ निकला.... किसी छोटे बच्चे के स्कूल की कॉपी के पेज की जितनी बड़ी कागज़ थी ... और उसपे साफ़ साफ़ अक्षरों में लिखा था,


“पुलिस पर ज़्यादा भरोसा करने की गलती मत करना... पुलिस भी मुजरिमों से मिली हुई हो सकती है ... पुलिस के साथ ज़्यादा घुल मिल करोगे तो लेने के देने पड़ सकते हैं .. आज संध्या साढ़े छ: बजे नीचे दिए गए पते पर मिलना ... तुम्हारे काम की चीज़ बतानी है | ज़रूरी है .. इसलिए ज़रूर से आना... फ़िक्र न करो... तुम्हारा शुभ चिंतक हूँ |

पता:- **************
**************************
**************************”


मैं गहन सोच में डूबता चला गया .. कौन है ये अनजान मददगार..? मिस्टर एक्स? या फिर कोई और??



**************************************


घर पहुँच कर थोड़ी देर रेस्ट किया | फ़िर चार घंटे स्टूडेंट्स को पढ़ाया | कुछ नए स्टूडेंट्स ने भी मेरा इंस्टिट्यूट ज्वाइन किया था | मेरे अंडर में दो और टीचर हैं और एक स्टाफ है | मेरी अनुपस्थिति में यही लोग सबकुछ सँभालते हैं | बहुत दिनों बाद अपने स्टूडेंट्स, टीचर्स, स्टाफ और इंस्टिट्यूट के बीच खुद को पा कर बहुत अच्छा लग रहा था | मेरे इतने दिनों से इंस्टिट्यूट में न होने और लापता होने की खबर को लेकर सबने तरह तरह के प्रश्न दागने शुरू कर दिए | ज़्यादा बहाने नहीं बना पाया; किसी तरह सबकी जिज्ञासाओं को शांत किया | पर सबकी चिंताएँ देख कर थोड़ा अच्छा भी लगा | सबको मेरी फ़िक्र है.. और अगर बहुत ज़्यादा फ़िक्र नहीं भी है तो भी कम से कम पूछा तो सही सबने |



मुझे बेसब्री से साढ़े छ: बजे का इंतज़ार था | पौने छह होते ही मैं घर से निकल पड़ा और सवा छह होते होते गंतव्य पर पहुँच गया | एक पुराना सा बिल्डिंग .. उजाड़.. चारों ओर झाड़ियाँ .. कुछ कुछ वैसा ही जैसा पहली बार मिस्टर एक्स ने मिलने के लिए जिस जगह पर बुलाया था | अंतर इतना था कि पहली वाली बिल्डिंग किसी राजा महाराजा के जमाने की लग रही थी और अब ये वाली बिल्डिंग खाली, उजाड़ हुए कुछ बीस-तीस या उससे अधिक बरस की लग रही थी | कागज़ के टुकड़े के लिखे अनुसार मुझे अब तीसरी मंजिल पर किसी एक दरवाज़े जिस पर 3 C लिखा होगा उससे हो कर अन्दर घुसना है और ठीक दस मिनट इंतज़ार करने के बाद एक लाल बत्ती जलने के बाद मुझे उठ कर उसी दरवाज़े से बाहर निकल कर उसी तीसरी मंजिल की नौवीं दरवाज़े 3 I से अन्दर घुसना होगा | वहीँ पर मुझसे मेरा शुभ चिंतक भेंट करेगा |


मैंने एक सिगरेट सुलगाया और जल्दी से उस टूटी फूटी वीरान मकान की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा | सीढ़ियों पर जगह जगह जाले, धूल की मोटी परतें और मकान के कुछ टूटे हिस्से गिरे हुए थे | धूल से एलर्जी होने के कारण नाक मुँह ढकना पड़ा | जल्द ही मैं तीसरी मंजिल के तीसरे दरवाज़े के सामने खड़ा था | दरवाज़ा हलके धक्के से ही खुल गया | अन्दर घुसने पर चौंका .. एक फाइबर वाली चेयर रखी थी सामने | नई लग रही थी | अपने हाथ घड़ी पर नज़र रखते हुए मैं उस चेयर पर बैठने से पहले चारों ओर का मुआयना कर लिया | सब ठीक ही लगा |


चेयर पर बैठा बैठा मैं बोर भी हो रहा था पर करने के लिए कुछ था नहीं | एक के बाद एक सिगरेट सुलगाता रहा | दस मिनट दस घंटे से लग रहे थे | पर मानना पड़ेगा की जिस किसी ने भी टाइम सेट किया है वाकई समय का बड़ा पाबंद होगा ... क्योंकि दसवाँ मिनट होते ही उस कमरे में ही सौ वाट के जल रही बल्ब से कुछ ही दूरी पर स्थित लाल बल्ब सायरन की सी आवाज़ के साथ जल उठी | सायरन वाली आवाज़ भी केवल तीन बार ही बजी | उठ कर तुरंत कमरे से बाहर निकला और लगभग दौड़ते हुए नौवें दरवाज़े के पास जा कर रुका |
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11-17-2019, 01:02 PM,
#50
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
दरवाज़े को को धकेलने की कोशिश की पर वो खुला नहीं | थोड़ी देर दरवाज़ा पीटा .. फिर भी नहीं खुला... | थक हार कर गुस्से में इधर उधर टहलने लगा | अगले दो-तीन मिनट में अचानक दरवाज़ा एक ‘कौंच’ की सी आवाज़ करता हुआ खुल गया पर ज़रा सा ही | मैंने तेज़ी से कदम आगे बढ़ाते हुए एक झटके में अन्दर दाखिल हुआ | और अन्दर घुसते ही मेरे ही एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रही थी ...............


अंदर वही लड़की बैठी हुई थी ... एक चेयर पर ...जिसने हॉस्पिटल में मेरी सहायता की थी | हाथ में कुछ पेपर्स थे | आँखों पर काला चश्मा, काली शर्ट, वाइट – ग्रे की कॉम्बो वाली जीन्स पैंट .. होंठों पर हलकी लाल लिपस्टिक... सचमुच बहुत कमाल की लग रही थी | मेरे अन्दर आते ही वह भी सर उठा कर मेरी ओर देखी.. और एक हलकी सी मुस्कान चेहरे पे बिखेरते हुए हेलो बोली...| मैं तो उसमें ऐसा खोया की कुछ पलों के लिए उसके ‘हेलो’ का जवाब नहीं दे पाया | वो मतलब समझ गई ... चेहरे पर ह्या के हलके भाव लिए पेपर्स को दोबारा देखने लगी |
मुझे अपनी भूल का आभास होते ही उससे माफ़ी मांगता हुआ उसके पास गया | इशारों से उसने बगल में रखी एक और लाल फाइबर की कुर्सी में बैठने को कहा | मैं बैठ तो गया पर बदले में उस लड़की को सिवाए ‘थैंक्स’ के और कुछ नहीं कह पाया | कुछ देर तक पेपर्स पर नज़रे गड़ाए रखने के बाद उसने मेरी ओर देखा और शर्म वाली मुस्कान के साथ दुबारा ‘हाई’ कहा |

इस बार मैंने जवाब दिया उसे,

“हाई |”

लड़की – “अगर बुरा ना माने तो क्या मैं आपको तुम कह कर बात कर सकती हूँ?”

मैं – “नहीं बिल्कुल नहीं... बल्कि मैं आपको आप कह कर बुलाना चाहता हूँ |”

लड़की – “अच्छा?? वो क्यों???”

मैं – “क्योंकि आपने मेरी जान बचायी है ... अस्पताल से मुझे सुरक्षित निकाल कर | और बचाने वाला हमेशा बड़ा होता है .. इसलिए आपको ‘आप’ कह कर संबोधित करूँगा...|”

लड़की – “नहीं जी ... इसकी कोई आवश्यकता नहीं है | हम दोनों लगभग एक ही उम्र के हैं और एक की मंजिल की ओर भी | हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए.. क्योंकि हमें एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होगी भी |”

मैं (मुस्कुराते हुए) – “ज़रूर |”


मेरा जवाब सुन कर वह पेपर्स उठाने लगी ... उसका ध्यान उन पेपर्स पर था और मैं... जैसा की हर जवान लड़के के साथ होता है ... चेहरे की भले ही कितनी ही तारीफ़ क्यों न कर ले... नज़रें, नज़रों से जिस्मानी उभारों को टटोलने का काम करने ही लगता है | मैं भी इस मामले में बेचारा | नज़रें बरबस ही उस लड़की के चेहरे पर से फिसलते हुए उसके सुराहीदार गले और फिर.. बैठने के कारण शर्ट के थोड़े टाइट होने से उसके सीने पर और स्पष्टता से उभर आये उसके सुडोल उभारों पर अटक गए | नज़रें जो और जितना टटोल सकी उस हिसाब से 34CC या 34D तो होगा ही | पुष्ट थे | गोरे रंग पर काले लिबास और उसपे भी पुष्टकर सुडौल उभार उसे एक कम्पलीट पैकेज बना रहे थे | पर शायद अभी उसके बारे में बहुत से राज़ खुलने बाकी थे ........................
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