Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
09-08-2018, 01:52 PM,
#1
Heart  Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
प्यासी आँखों की लोलुपता 

फ्रेंड्स आपकी चहेती डॉली शर्मा फिर से एक छोटी सी कहानी पेश करने जा रही हूँ आशा करती हूँ इस कहानी को भी आप सब का सहयोग और प्यार ज़रूर मिलेगा 

मैं एक करारी 26 साल की शादीशुदा औरत थी। राज एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में व्यवस्थापक के ओहदे पर काम करता था। उसे मुम्बई और पुणे कार्यालय देखने पड़ते थे। एक हफ्ता वह मुम्बई तो दूसरे हफ्ते पुणे रहता था। हम लोग मुबई में रहते थे। मैं भी कई बार उसके साथ पुणे जाया करती थी पर होटल में अकेली बोर हो जाती थी।
राज मुझे बहुत चाहते थे। हमारी शादी को सात साल हो चुके थे पर हमें कोई संतान नहीं था। हम सेक्स तो करते थे पर वह पहले जैसा जोश खरोश कहाँ? हालांकि मैं अपने पति से सेक्स में संतुष्ट रहती थी और मुझे कोई शिकायत नहीं थी। राज मुझे हमेशा संतुष्ट रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते थे। 
मुझे एक बच्चे की बड़ी ख्वाहिश थी। हमने कई डॉक्टरों और विशेषज्ञों से संपर्क किया, पर कोई परिणाम नहीं निकला। हमने कई टेस्ट करवाये, पर राज कहता था की सब डॉक्टर लोग ये कहते थे की सब कुछ सही था। हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा था वह कोई बता नहीं पा रहा था।

बचपन से ही जब पहली बार मैंने सेक्स के बारे में कुछ सुना तबसे मुझे सेक्स के प्रति एक तरह की उदासीनता थी, जो शादी के समय भी थी। शादी के बाद उसमें कमी जरूर हुई, पर उस कारण से ही मुझे यह भरोसा हो गया था की शायद मुझमें जरूर कोई न कोई कमी थी जिसे राज मुझे बताने से झिझकते थे, ताकि मुझे बुरा न लगे।
इस कारण से मैं बड़ी दुखी रहती थी। मुझे डिप्रेशन हो गया और मैं लोगों से मिलने में कतरा ने लगी। कोई कभी पूछता की “आपको कितने बच्चे हैं, अथवा क्या आपको बच्चे नहीं है?” तो मैं अपने आपको बड़ी मुश्किल से नियत्रण में रख पाती थी। मुम्बई में हमने छोटा फ्लैट लिया था जिसके रख रखाव में व्यस्त रहने की मैं कोशिश करती थी।
पर राज जब पुणे जाते थे तो मैं बोर हो जाती थी। राज मुझे हमेशा कोई न कोई नोकरी करने के लिए कहते थे। मैं नौकरी करने में ज्यादा उत्साहित इस लिए नहीं थी क्योंकि अगर मैंने नौकरी की तो मुझे ऑफिस जाना पडेगा। रास्ते में और ऑफिस में भी सारे पुरुष मुझे ताकेंगे और बुरी नजर से देखेंगे, जो मुझे अच्छा नहीं लगता था।
मुझे एक तरीके से आप रूढ़िवादी कह सकतें हैं। वास्तव में तो शादी से पहले मैं न सिर्फ रूढ़िवादी थी पर एक तरह से मैं सेक्स के नाम से गभरा जाती थी या सेक्स से मुझे घिन आती थी। हमारे परिवार में माहौल ही कुछ ऐसा था। राज ने मुझे उस स्थिति से कैसे धीरे धीरे निकाला और मुझे सेक्स में प्रेरित किया जिससे की मैं सम्भोग क्रीड़ा में आनंद महसूस करने लगी और मैं अपने पति को सम्भोग का आनंद देने में सक्रीय हो सकी, वह एक अनोखी दास्तान थी।
इसका मतलब यह मत समझना की मैं बिलकुल नीरस थी। मुझे मेकअप करना और अच्छे कपडे पहनना भाता था। मैं जानती थी की मैं एक सुन्दर एवं अच्छी फिगर वाली औरत थी और मेरी शारीरिक संपत्ति को शालीनता से कपड़ों और मेकअप द्वारा उभारना मुझे अच्छी तरह से आता था और भाता भी था। जब हम पार्टियों में जाते थे तो राज मुझे सेक्सी कपडे पहन कर थोड़ा सा अंग प्रदर्शन करने के लिए उकसाते थे। पर मैं अपने आपको ऐसे सजाती थी जिससे की मैं आकर्षक तो लगूँ पर उपलब्ध नहीं। मेरे बेचारे पति! उन को इसीसे संतुष्ट होना पड़ता था।
मैं अगर सीधे सादे कपडे भी पहनती थी तो भी मेरी सुंदरता और कामुक अंग रचना के कारण हर जगह पुरुष वर्ग मुझे घूरता रहता था। मुझे यह कतई पसंद नहीं था। पर एक राज थे जो अन्य पतियों की तरह पुरुषों के मुझे घूरने से नाराज या गुस्सा होने के बजाय खुश होते थे। मेरी अंग रचना ही कुछ ऐसी थी की पुरुष वर्ग मुझ पर से अपनी नजर हटा ही नहीं पाते थे। मैं दूसरी भारतीय महिलाओं से थोड़ी ज्यादा लंबी थी और जहां पुरुषों की नजरें ज्यादा टिकती हैं मेरे उन अंगों और शारीरिक मोड़ बड़ी खूबसूरती से उभरे हुए थे।
मेरे स्तन मंडल बहुत बड़ी मात्रा में भारी या मोटे नहीं थे, पर सुडौल और काफी उभरे हुए थे। राज मेरे लिए ऐसी नुकीली ब्रा खरीद लाते थे और मुझे पहनने के लिए बाध्य करते थे जिससे मेर स्तनोँ का उभार और भी स्पष्ट रूप से दिखे। वैसे ही मेरे स्तन पहले सी हे भरे हुए और नुकीले थे ऊपर से ऐसी ब्रा पहनने से उनको शालीनता से छुपाना असंभव था। मेरे कूल्हे भी उसी तरह नुकीले और थोड़े से उभरे हुए थे की चाहे साड़ी पहनूँ या सलवार, मरे अंग सहज रूप से ही कामुकता को प्रदर्शित करते थे और मैं कुछ कर नहीं पाती थी।
राज मुझ पर बड़ा दबाव डालते थे की मैं साड़ी को ऐसे पहनूँ जिससे उसका पल्लू मेरी नाभि से काफी नीचे तक हो और मेरा पूरा पेट और मेरी नाभि से भी और नीचे का मेरा बदन दिखे। शुरू शुरू में तो मैंने उनकी बात न मानी पर जब वह अड़ ही जाने लगे और हमेशा उस बात को दोहराने लगे तब आखिरमें थक कर मैंने उसी तरह अपनी साड़ी पहननी शुरू कर दी। सोचा, चलो पति की एक बात तो मान ली जाए! हमें पैसों की तो कोई ख़ास कमीं नहीं थी पर मेरी बोरियत भगाने के लिए मेरे पतिने मुझ पर नौकरी करने के लिए दबाव डालना शुरू किया। वह चाहते थे की मैं कोई नौकरी करूँ ताकि मेरा मन लगा रहे और मैं अपने डिप्रेशन से छुटकारा पा सकूँ। पर मुझे मर्दों की लोलुप नज़रों से डर सा लगता था। एक बार जब राज ने मुझे नौकरी करनेकी बात कही तब मैंने उन्हें मेरी चिंता बताई। मेरी बात सुनकर वह ठहाका मार कर हंसने लगे।
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09-08-2018, 01:52 PM,
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RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
राज ने मुझसे कहा, “अरे पगली, यह इक्कीसवीं सदी है। तू क्या हमेशा बच्ची ही रहेगी? तू इतनी खूबसूरत है तो मर्द लोग तो तुझे घूरकर देखेंगे ही। अभी तू दुकानों में खरीदारी के लिए जाती है तो क्या तुझे मर्द लोग घूरते नहीं हैं? यह स्वाभाविक है। उसमें घभराने या डरने की कोई बात नहीं है। हाँ अगर कोई तुझसे जबरदस्ती करे या तुझे अभद्र रूप से छेड़े तो महाकाली बनकर उसकी पिटाई कर देना. वह दुबारा ऐसी हरकत नहीं करेगा। डार्लिंग, देख, तू नौकरी करेगी तो तेरे दोस्त या साथीदार भी थोड़ा घूरना, थोड़ी हंसी मजाक, थोड़ी छेड़ छाड़ करेंगे और थोड़ी सेक्सुअल छूट भी लेंगे। यह तो चलता रहता है। उससे गुस्सा होने के बजाय उसका आनंद उठाना सीखो। जब तक हम पति पत्नी एक दूसरे के प्रति सम्पूर्ण रूप से समर्पित हैं तो यह सब चीज़ें कोई मायने नहीं रखतीं।
राज ने तब मुझे अपनी बात बतायी और कहा की उनके ऑफिस में भी ऐसे ही थोड़ा बहुत चलता रहता था। राज की भी अपने कॉलेज के समय में कई लड़कियों से घनी मित्रता थी। राज के कहनेसे मैं समझ गयी की उन्होंने उनमें से कई यों से चुम्माचाटी की थी तो कईयों के साथ सम्भोग भी किया था। मैं इस बारें में कुछ भी जानना नहीं चाहती थी। मेरे लिए तो बस यही काफी था की राज मुझसे बहुत प्यार करते थे और वह मेरा बहुत ध्यान रखते थे। 

राज की अनहद कोशिशों के बाद आखिर में मैंने मुम्बई की प्रख्यात एक अंतरराष्ट्रीय चार्टर्ड एकाउंटेंसी कंपनी में एक असिस्टंट की नौकरी स्वीकार की। राज ने मुझे पहले दिन ही बड़ा समझाया की रास्ते में और ऑफिस में भी अगर मुझे साधारण मर्द की निगाहों पर ध्यान नहीं देना है। और अगर कोई जबरदस्ती करे तो उनसे कैसे निपटना है, वह मैं अच्छी तरह से जानती थी।
‘जय सर’ मेरे सीनियर थे। वह एक प्रभाव शाली, सुन्दर, सुडौल और लंबे कद के थे। कंपनी में वह पांच साल से काम कर रहे थे। वह मुझसे कोई पांच या छे साल बड़े होंगे। जय सर और मैं हम दोनों एक ही बॉस के नीचे काम करते थे। शुरू शुरू मैं तो मैं बड़ी ही नौसिखिया थी और जय सर ने ही मुझे बहुत मदद की जिससे की मैं अपने काम में सक्षम बनूँ और हमारे बॉस मुझसे खुश रहें। जय सर मेरी गलतियों और कमियों को छुपाते थे और मेरी क्षमता को बॉस के सामने उजागर करते रहते थे।
उनकी ऐसी सहृदयता से मैं बड़ी असमंजस में रहती थी। उनको ऐसा करने की जरुरत नहीं थी। मैं एक पढ़ी लिखी और अपने काम में सक्षम होने का दावा करती थी तो फिर मुझे अपना काम ठीक करना ही चाहिए था। पर मैं वास्तव में इतनी सक्षम थी नहीं और जय सर यह भली भांति जानते थे।
मैंने भी कई बार जब बॉस ने मुझे कोई काम दिया तो उनसे यह बात कही की मैं उतनी सक्षम नहीं थी, जितना की मुझे होना चाहिए था। पर जय सर ने हमेशा मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाया और मुझे सब सिखाया और मेरी भरपूर मदद की। इसी कारण से मैं धीरे धीरे अपनी कार्य क्षमता में आगे बढ़ पा रही थी, जिससे हमारे बॉस मुझसे प्रभावित थे।
कुछ दिनों के बाद जय सर ने मुझसे आग्रह किया की मैं उन्हें ‘जय सर’ न कहूँ। मैं उन्हें मात्र जय ही कहूँ। शुरू में थोड़ा मुश्किल लगा पर धीरे धीरे मैं उनको जय के नाम से बुलाने लगी। यह और कई और कारणों से मेरे और जय के बीच की औपचारिक दिवार टूटने लगी। पर मैं थोड़े असमंजस में थी। वह इसलिए की जय की उदारता और सहायता के उपरान्त मैंने कईबार देखा की वह भी छुप छुप कर मेरे स्तनों को और मेरे नितम्ब को ताकते रहते थे। खैर राज भी कहते थे की मेरे नितम्ब (या कूल्हे या चूतड़ कह लो), थे ही ऐसे की मर्दों के ढीले लन्ड भी खड़े हो जाएँ। तो फिर बेचारे जय का क्या दोष?
हमारे दफ्तर में कई उम्रदराज और शादीशुदा मर्द भी मेरे करीब आने की कोशिश में लगे हुए थे। पर उन सब में जय कुछ अलग थे। मैं जय की बड़ी इज्जत करती थी। वह अच्छे और भले इंसान थे। वह बिना कोई वजह या बिना कोई शर्त रखे मेरी मदद करते थे। उनके मुझे ताकने से मुझे बड़ी बेचैनी तो हुई पर मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। हमारे बीच आपसी करीबी बढ़ने लगी। हम दफ्तर की बात के अलावा भी और बातें करने लगे। पर मैं सदा ही सावधान रहती थी की कहीं वह मेरा सेक्सुअल लाभ लेने की कोशिश न करे।
मुझे तब बड़ा दुःख हुआ जब की मेरा डर सच साबित हुआ। एक दिन मैं जय सर के साथ पास वाले रेस्टोरेंट में चाय पीने गयी थी। जय ने मेरी तुलना कोई खूबसूरत एक्ट्रेस से की और मेरे अंगों और शारीरिक उभार की प्रशंशा की। उन्होंने कहा की मैं सेक्सी लगती हूँ और ऑफिस के सारे मर्द मुझे ताकते रहते हैं। फिर भी मैंने संयम रखा और कुछ न बोली, तब उन्होंने मुझे मेरे विवाहित जीवन के बारेमें पूछा। मेरे कोई जवाब न देने पर उन्होंने जब पूछा की मेरे कोई बच्चा क्यों नहीं है तो मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पायी।

तब मैंने उनको बड़े ही कड़वे शब्दों में कहा की वह मेरा निजी मामला था और जय को उसमें पड़ने की कोई जरुरत नहीथी। सुनकर जब जय हंसने लगे और बोले की वह तो ऐसे ही पूछ रहे थे और मजाक कर रहे थे, तब मैंने उनसे कहा, “जय सर, मैं आपकी बड़ी इज्जत करती हूँ। 
मैं मानती हूँ की आपने मेरी बड़ी मदद की है. पर इसका मतलब यह मत निकालिये की मैं कोई सस्ती बाजारू औरत हूँ जो आपकी ऐसी छिछोरी हरकतों से आपकी बाहों में आ जायेगी और आपको अपना सर्वस्व दे देगी। आप सब मर्द लोग समझते क्या हो अपने आपको? आगेसे मुझसे ऐसी छिछोरी हरकत की तो मुझसे बुरा कोई न होगा। यह मान लीजिये। समझे?” ऐसा कह कर मैंने उनके चेहरे के सामने अपनी ऊँगली निकाल कर कड़े अंदाज में हिलायी और उनकी और तिरस्कार से देख, रेस्टोरेंट से बिना चाय पिए उठ खड़ी हुई और ऑफिस में वापस आ गयी।
मैंने कड़े अंदाज में जय को डाँट दिया और मेरी जगह पर वापस तो चली आयी, पर कुछ समय बादमें मैंने जब उनकी शक्ल देखि तो मेरा मन कचोटने लगा। उन्हें देख मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उनका सारा संसार उजड़ गया हो। उनकी आँखे एकदम तेजहीन हो गयी थीं, उनकी चाल की थनगनाहट गायब थी, उन्होंने किसीसे भी बोलना बंद कर दिया था। थोड़ी देर बाद मैंने देखा तो वह ऑफिस से चले गए थे। मैंने जब पूछा तो पता लगा की उन्होंने बॉस से तबियत ठीक नहीं है ऐसा कह कर आधे दिन की छुट्टी ले ली थी।
अगले तीन दिन तक जय ऑफिस नहीं आये। सोमवार को जब मैं दफ्तर पहुंची तो मैंने जय को बदला बदला सा पाया। वह पुराने वाले जय नहीं थे। उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। आखों में चमक नहीं थी। मेरे डाँटने का उनपर इतना बुरा असर पड़ेगा यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। शायद मैंने जरुरत से ज्यादा कड़वे और तीखे शब्द बोल दिए ऐसा मुझे लगने लगा, क्योंकि उनका चुलबुला मजाकिया अंदाज एकदम गायब हो गया था। मुझे ऐसा लगा जैसे कई दिनों से उन्होंने खाना नहीं खाया था। उस दिन जब हम पहली बार मिले तो जय ने बड़बड़ाहट में मुझसे माफ़ी मांगी और अलग हो गए। उस पुरे हफ्ते न तो वह मेरे पास आये न तो उन्होंने मेरी और देखा।
बॉस उनसे बड़े नाराज थे क्योंकि जय काममें अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते थे और बड़ी गलतियां कर बैठते थे। ऑफिस में सब हैरान थे। मैंने कुछ ऑफिस कर्मचारियों को आपस में एक दूसरे से बात करते हुए सूना की जय का किसी लड़की से चक्कर चल रहा था और उस लड़की ने जय को बुरी तरह से लताड़ दिया जिसकी वजह से वह बड़े दुखी हो गए थे। सौभाग्य से किसी को यह पता नहीं था की वह लड़की कौन थी। जय का ऐसा हाल करने के लिए सब मिलकर उस लड़की को कोसते थे।
उस प्रसंग के बाद जय ने मुझसे अति आवश्यक काम की बातों को छोड़ और कुछ भी बात करना बंद कर दिया। यहाँ तक की उन्होंने औपचरिकता जैसे “गुड मॉर्निंग” बगैर भी कहना बंद कर दिया। जय एकदम अन्तर्मुख हो गए। दफ्तर के सारे कर्मचारियोंको यह परिवर्तन बड़ा अजीब लगा। जय अपनी चुलबुले स्वभाव और दक्षता के कारण हमारे ऑफिस की जान थे। मैं बहुत दुखी हो गयी और अपने आपको दोषी मान कर मुझे बड़ा पश्चाताप होने लगा। मैं कई बार जय के पास गयी और उन्हें समझाने और क्षमा मांगने की कोशिश की पर वह अपने हाथ जोड़ कर मुझे दूर ही रहने का इशारा करते थे। मैं उन्हें अपने अंतरंग कोष में से बाहर लानेमें असफल रही।
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09-08-2018, 01:52 PM,
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इस बीच मुझे दूसरे पुराने कर्मचारियों से पता लगा की जय एक शादी शुदा इंसान थे। उनकी पत्नी को वह बहुत चाहते थे। परंतु माबाप की शारीरिक बीमारियों के कारण उन्हें अपनी पत्नी को उनके पास छोड़ना पड़ा था। उनका गाँव बहुत दूर था और वहाँ जाने के लिए रेल की सवारी कर और कई बसें बदल कर के जाना पड़ता था। जाने में ही दो दिन लग जाते थे। वह अपनी पत्नी से आखिर में छह महीना पहले मिले थे।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ जिससे जय वापस उसी तरह हो जाएँ जैसे पहले थे। मेरी स्त्री सहज समझ यह बता रही थी की जय सेक्स के भूखे थे। मैं कई बार उनको मेरे शरीर को चोरी छुपी से ताकते हुए पकड़ा था। मेरे मनमें एक अजीब सी दुविधा भरी हलचल हो रही थी। मैं उन्हें अपने करीब फटकने देना नहीं चाहती थी पर दूसरी और मैं उन्हें पहले की ही तरह चहकते हुए देखना चाहती थी। काफी सोचने के बाद मैंने अपने पति राज से इस बारेमें बात करना तय किया।

राज मुझसे बहुत प्यार करते थे। मेरे जॉब करके ऑफिस से आने के बाद रात को जब हम सेक्स करते थे तो मुझे चोदते हुए बार बार पूछते रहते थे की क्या ऑफिस में किसी पुरुष ने मुझे फांसने की कोशिश की या नहीं। कई हफ़्तों तक मैं उन्हें निराश करती रही। उसके बाद जब यह हादसा हुआ तो मैंने अपने पति राज को जय के बारेमें बताया।
मैंने उन्हें बताया जय मेरी कितनी मदद करते थे। उन्हीं की वजह से ऑफिस में मेरे कामकी प्रशंशा हो रही थी। पर साथ साथ मैंने यह भी कहा की जय मेरे स्तनों को और मेरे नितंबों को चोरी छुपे घूरते रहते थे। उनके मेरे करीब आने की कोशिशों के बारेमें भी मैंने राज को बताया। फिर मैंने उन्हें बताया की कैसे मैंने जय को लताड़ दिया और जय ने मुझसे बात करना बंद कर दिया और कैसे जय का स्वभाव एकदम बदल गया। राज ने मेरी सारी बातें पूरी गंभीरता और ध्यान से सुनी। कोई दूसरा पति होता तो शायद अपनी पत्नी के ऐसे कारनामे से खुश होकर उसे शाबाशी देता। पर मेरी बात सुनकर राज दुखी हो गये थे। उन्होंने तो उल्टा मुझे ही डाँट दिया।
वह गंभीरता पूर्वक बोले, “डार्लिंग, यह तुमने क्या किया? उस बेचारे जय ने ऐसा क्या किया जो तुमने उसे इतनी बुरी तरह से लताड़ दिया? वह तो तुम्हारा इतना बड़ा शुभ चिंतक था। उसने तुम्हें इतनी तरक्की दिलाई। एकबार मान भी लिया जाए की वह तुम्हें ललचाने की कोशिश कर रहा था, जो की वह नहीं कर रहा था, तो भी तुम्हारा ऐसा वर्तन सही नहीं था।”
राज की बात तो सही थी। कोई भी मर्द से सेक्स की बातें सुनना या कोई गैर मर्द का छूना भी मेरे लिए बर्दाश्त करना बड़ा ही मुश्किल था। ट्रैन में बस में या फिर चलते फिरते मर्दों का स्पर्श तो हो ही जाता है। पर मुझे ऐसा होने पर एक तरह मानसिक दबाव महसूस होने लगता था। मैं खुद अपने इस वर्तन के कारण परेशान थी। पर क्या करती? चाहते हुए भी मेरे लिए सेक्स के डर से उभरने में असफल होती थी। राज मेरी इस कमजोरी जानते थे। राज अकेले थे जिनसे मैं निर्भीक थी। मुझे वहाँ तक पहुँचाने में राज का बड़ा योगदान था।
जब मेरी शादी हुई तो बड़ी मुश्किल हुई थी। मा बाप के आग्रह के कारण मैंने मज़बूरी में शादी तो की पर मैं राज से सम्भोग करने के लिए तैयार नहीं थी। हमारी शादी की पहली सुहाग रात तो एकदम बेकार रही। जब राज ने मुझे छूने की कोशिश के तो मैं उनसे लड़ने को तैयार हो गयी। मैंने उनको सख्त हिदायत दी की वह मेरे गुप्तांगो को न छुएं। राज बहुत सुलझे हुए इंसान हैं। हमारी शादी के बाद मेरे कारण उन्होंने बड़ी कुर्बानी दी।
उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया की वह मेरे गुप्तांगों को नहीं छुएंगे, पर साथ में उन्होंने मुझे प्यार से समझाया और मुझसे एक साथ सोने की, चुम्बन करनेकी और आलिंगन करने की इजाजत ले ली। हम दोनों एकसाथ तो सोये पर मैंने उन्हें मेरे बदन से कोई कपड़ा उतारने नहीं दिया और मेरे गुप्तांगो को भी छूने नहीं दिया। धीरे धीरे उन्होंने समझा कर, उकसाकर और मना कर मुझे उनके साथ सेक्स करने के लिए राजी कर लिया। इस में उनको कई हफ्ते लग गए, पर उन्होंने अपना धैर्य नहीं छोड़ा। शायद मेरी माँ ने राज को मेरी यह कमजोरी के बारेमें आगाह किया होगा। 
राज की समझ में नहीं आ रहा था की मेरे मनमें सेक्स के प्रति ऐसा बिभत्स्ता पूर्ण भाव क्यों था। बाद में उन्होंने जब मुझे प्यारसे और धीरे धीरे प्रोत्साहित किया की मैं उन्हें वह सब बताऊँ जो मैंने सालों तक मेरे मन की गहरी गुफाओं में छिपा के रखा था।
मेरे इस रहस्य को समझने के लिए आपको मेरे बचपन में जाना पड़ेगा।
बचपन में करीब एक महीना मैं अपने मामा के घर रही थी। मेरे माता पिता तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे। तब उन्होंने मुझे मेरे मामा मामी के आग्रह करने पर उन्हें सौंपा। मैं मेरे मामा मामी की मैं बहुत चहेती थी। वह दोनों मुझे बहुत प्यार करते थे। रात को मैं मामा मामी के कमरे में ही सोती थी। एक रात मैंने मामा और मामी को आपस में झगड़ते सुना। मैं जाग तो गयी थी पर दुबक कर सोने का ढोंग करते हुए उनकी बातें सुनने की कोशिश कर रही थी। अचानक मामा ने मामी को एक करारा थप्पड़ मार दिया और मामी रोने लगी। मामा मामी को अपनी बाहों में जकड़ कर उनके कपडे उतारने में लगे हुए थे और मामी उनको रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मामी वहांसे भागने के इरादे से उठ खड़ी हुई तो मामा ने लपक कर मामी की साड़ी उतार दी। मामी ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी बार बार मामा को मिन्नतें कर रही थी और उन्हें यह कह कर रोकने की कोशिश कर रही थी की मैं वहाँ सोई हुई थी और फिर मामी की तबियत भी ठीक नहीं थी। मामा ने मामी की एक न सुनी। मैं रजाई ओढ़ कर एक छोटे से कोने में से उनको देख रही थी। मामा की आँखों में वासना का नशा छाया हुआ था। शायद उन्होंने शराब भी पी रखी थी। वह कुछ भी सुनना नहीं चाहते थे। और मेरे देखते हुए ही उन्होंने मामी का ब्लाउज उतार दिया और पेटीकोट का नाडा खिंच कर पेटीकोट भी नीचे गिरा दिया। मामी ब्रा और छोटी सी पैंटी में अपने बड़े स्तनों को और अपनी लाज को ढकने की नाकाम कोशिश में लगी हुई थी।
मामा ने मामी की ब्रा को एक झटके में तोड़ दिया और मैंने पहली बार किसी स्त्री के परिपक्व स्तनों को देखा। मामा ने खड़े खड़े ही मामी के स्तनों को चूसना और दबाना शुरू किया। मैं परेशान हो गयी जब मैंने देखा की मामी की पैंटी में से खून बह रहा था। मेरी समझ में यह नहीं आया की मामा ने मामी को वहाँ ऐसा क्या मारा की मामी के शरीर में से इतना खून बहे।
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09-08-2018, 01:52 PM,
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RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
खैर, मामी चिल्लाती रही और मामा ने मामी को उठाया और पलंग पर पटका। मामा ने फिर अपने कपडे एक के बाद एक निकाले और खड़े खड़े ही नंगे हो गए। तब मैंने देखा की मामा की टांगों के बीच में से उनका लंबा और मोटा लण्ड लटक रहा था। मैंने किसी भी मर्द के लण्ड को तब तक नहीं देखा था। मामा का लण्ड पहली बार देखा तो मैं तो डर गयी। मामा का इतना बड़ा लण्ड ऐसा लगता था जैसे मैंने एक बार एक घोड़े का लण्ड देखा था। मामी का बदन भय से काँप रहा था।
मेरे मामा लम्बे और भरे हुए बदन के थे। उनका पेट भी थोड़ा सा निकला हुआ था। आधे अँधेरे में उनका शरीर बड़ा ही डरावना लग रहा था। उन्होंने मामी के पाँव चौड़े किये और खून से लथपथ मामी के दो पाँवों के बीच में उन्होंने अपना लण्ड घुसेड़ दिया और उसे अंदर की और धकेलते रहे। उसके बाद बस मुझे मामी की कराहटें और मामा की जोर जोर से चलती साँसों के अलावा कुछ सुनाई नहीं पड़ा। थोड़ी देर बाद सब शांत हो गया। बाद में मुझे पता चला की जो मामा मामी को कर रहे थे उसे चोदना कहते थे और मामा मामी को चोद रहे थे।
यह देख मैं एकदम घबड़ा गयी थी। तब मैंने तय किया की मैं कभी शादी नहीं करुँगी और सेक्स तो कभी भी नहीं करुँगी, क्यूंकि मुझे उस तरहसे किसी की मार खाना और जुल्म सहना गंवारा नहीं था। मेरे मने में एक भयानक डर उस दिन से घर कर गया जो राज की लाखों कोशिशों के बावजूद पूरी तरह से गया नहीं था।
खैर उस बात को सालों बीत गए थे। अब तो मैं लड़की से एक औरत बन गयी थी जो अपने पति से हजारों बाद चुदवा चुकी थी। अब मुझे पति से चुदवा ने में कोई झिझक नहीं होती थी, पर अगर कोई और मर्द मुझे छू ले तो मुझे कुछ अजीब सा नकारात्मक भाव होता था।
जय के बारे में राज की बात सुनकर मुझे बड़ा सदमा लगा। राज की बात सौ फीसदी सही थी। मुझे समझ नहीं आ रहाथा की मैं क्या बोलूं। आखिरमें राज जुंझला कर बोले, “तुम औरतें न, बात का बतंगड़ बनाने में बड़ी माहीर हो। तुमने ही यह आग लगाई है अब तुम्ही उसे बुझाओ।”
मैंने अपना सर हिलाकर अपनी सहमति देते हुए पूछा, “डार्लिंग तुम सही हो। मुझे बड़ा पश्चाताप हो रहा है। मैंने जय के साथ कई बार बात करने की कोशिश की पर वह मुझसे बात करना ही नहीं चाहता। तुम्ही बताओ अब मैं क्या करूँ?”

राज ने मेरी परिस्थिति देख सहानुभूति भरे स्वर में कहा, “जानू अब तुम यह काम मुझ पर छोड़ दो। अब मैं ही कुछ करता हूँ।
दूसरे दिन, सुबह मेरी ऑफिसमें राज ने मुझे फ़ोन किया और कहा की वह फ़ोन मैं जय को दूँ। वह जय से बात करना चाहता था। मैं जय के पास गयी और उसे फ़ोन देते हुए कहा की राज राज, जय से बात करना चाहते थे। जय को थोड़ा आश्चर्य तो हुआ पर उसने मुझसे फ़ोन लिया और राज से बात करने लगा। मैं तुरन्त ही अपने स्थान पर आ गयी। जय की राज से काफी समय तक बात चली। मुझे पता नहीं उनमें क्या बात हुई। जब जय मुझे फ़ोन वापस करने आया तो बोला, “तुम्हारा पति राज एक अच्छा, सुलझा और समझदार व्यक्ति है। शुक्र है, तुम सही व्यक्ति की देखभाल में हो।
राज से बात करने के उपरान्त जय में थोड़ा परिवर्तन जरूर आया। वह अब हम सबसे ज्याद अच्छी तरह से बात करने लगे। परंतु उनके अंदर जो पहले की चुलबुलाहट और जोश खरोश था वह पूरी तरह से गैर हाजिर था। मुझे अब लगने लगा की मैंने मेरी सख्ती से जय के दिल का कोई कोना तोड़ डाला था जो जोड़ना अब मुश्किल था।
एक रात को फिर अच्छे खासे सेक्स के बाद जब राज अच्छे मूड में थे तब मैंने उनको जय के बारेमें कहा. मैंने कहा की अब जय बात तो करने लगे हैं, पर वह पहले वाली आत्मीयता या तत्परता नहीं थी। उनकी सारी बातें खोखली सी लग रही थी।
राज ने मेरी और देखा और पूछा, “जानू, क्या तुम सचमुच जय को पहले की ही तरह देखना चाहती हो?”
मैंने सहज रूप से थोड़ा आश्चर्य जताते हुए कहा, “हाँ, पर तुम मुझे यह क्यों पूछ रहे हो?”
तब राज ने मुझे बड़ी गंभीरता से कहा, “क्योंकि, जय की सहजता और वही आत्मीयता लानेके लिए तुम्हें कुछ ख़ास करना पड़ेगा, और मैं नहीं जानता की तुम वह करने के लिए तैयार होगी।” मैंने कोई जवाब न देते हुए राज की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।
राज ने कहा, “तुम्हें अपना स्वाभिमान और गैर मर्द के प्रति उदासीनता या नफरत के भाव पर नियत्रण रखना होगा। तुम्हे अधिक उत्साहित होना पड़ेगा और अपने स्त्री सुलभ चरित्र से जय को यह जताना है की तुम वास्तव में अपने किये पर पछता रही हो। तुम्हें जय के साथ एकदम तनाव मुक्त हो कर आराम से बात करनी होगी। यदि वह कोई सेक्सुअल या दुहरे अर्थ वाले जोक कहता है तो उनका हंसकर मजाक में लेना है। यदि गलती से या फिर जानबूझकर अनजान बनते हुए तुम्हारे स्तनों को या तुम्हारे कूल्हों को थोड़ा सा छू लेता है तो तुम कोई अड़ंगा मत खड़ा करना, तुम उसे हंसी मजाक में ले लेना। दफ्तर में, खेल में, साथियों में ऐसा होता रहता है। युवा युवतियां इसको एन्जॉय करती हैं, बुरा नहीं मानती। तुम कोई चिंता मत करो, बाकी मैं सब सम्हाल लूंगा।”
मैं बड़े ही असमंजस में पड़ गयी। मैं सोचने लगी की क्या मैं ऐसा कर पाउंगी? मेरे लिए राज की बात मान कर आगे बढ़ना बड़ी ही टेढ़ी खीर थी। पर अब मेरे आस और कोई चारा भी तो नहीं था। मैंने अपना सर हिला कर हामी भर दी। 
दूसरे दिन राज ने मुझे ऑफिस में फ़ोन किया और फ़ोन जय को देनेके लिए कहा। राज और जय में थोड़ी देर बात हुई और फिर जय मुझे फ़ोन वापस करने आया और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोला, “राज ने मुझे रातको डिनर पर बुलाया है। वास्तव में तुम्हारा पति एक बहुत अच्छा इंसान है।”
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09-08-2018, 01:52 PM,
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RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
उस दिन छुट्टी थी। सुबहसे ही जब मैं जय के आने की तैयारी मैं लगी हुई थी, तो राज मेरे पास आये और बोले, “जानू, मैं चाहता हूँ की आजकी शाम एक यादगार शाम हो”
मैंने जब प्रश्नात्मक दृष्टि से राज को देखा तब उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ की आज शाम के लिए आप कुछ ख़ास कपडे पहनिए और आज आप कुछ खेलदिली दिखाइए। “
राज का ‘ख़ास’ वस्त्रों का अर्थ मैं भली भाँती जानती थी। उनका कहना का अर्थ था ‘भड़कीले’ कपडे पहनना। पर मैं खेलदिली का अर्थ नहीं समझी। मैंने राज से पूछा, “खेलदिली से तुम्हारा क्या मतलब है?”
“मेरी प्यारी डॉली, मैं चाहता हूँ की आज शाम को आप जैसे बहाव बहता है ऐसे ही बहते जाओ। आप एकदम तनाव मुक्त रहो और यदि बातचीत कुछ उत्तेजना पूर्ण हो जाए तो भी कोई तरह की खीच खीच मत करना।” मेरे मनमें कुछ द्वन्द हुआ की क्या राज मेरी और जय की करीबी की बातें सुनकर उत्तेजित हो रहे थे और चाहते थे की बात कुछ आगे बढे? पर इसका कोई जवाब मेरे पास नहीं था। यह सिर्फ मेरे मनका एक तरंग ही था।
राज ने मुझे शामके लिए आधी (घुटनों तक की) जीन्स और ऊपर जाली वाली ब्रा पहन कर उसके ऊपर कॉटन का पतला टॉप पहन ने को कहा जो ऊपर से एकदम ढीला और खुला था और नीचे ब्रा के पास एकदम कस कर बंद होता था। मेरा टॉप, बस ब्रा के के किनारे पास ही ख़तम हो जाता था जिससे मेरे स्तनों के निचले हिस्से से लेकर पूरी कमर, पेट, नाभि और उसके बाद का थोड़ा सा उभार और फिर एकदम ढलाव (जो मेरी दो टांगों के मिलन से थोड़ा ही ऊपर तक था) का हिस्सा पूरा नंगा दिख रहा था।

मेरे दोनों स्तन मंडल उभरे हुए दिख रहे थे। मैंने राज से बड़ी मिन्नतें की की वह मुझे ऐसे ड्रेस पहनने के लिए बाध्य न करे पर वह टस का मस न हुआ। उसका कहना था की अगर मैं चाहती हूँ की जय ठीक हो तो मुझे जो वह कहता था वह करना ही पड़ेगा। मुझे राज पर पूरा भरोसा था की वह कभी मुझे गलत काम करने के लिए नहीं कहेंगे। मैंने तब यही ठीक समझा की मैं राज की बात मानूं और उसे सहयोग दूँ।
तैयार होने पर जब मैंने अपने आपको आयने में देखा तो मैं भी खुद पर फ़िदा हो गयी। मेरे थोड़ा झुकने से मेरे दोनों स्तनों का उभार और बीच की गहरी खाई स्पष्ट रूप से दिख रहे थे। मरे दोनों कूल्हे बड़े ही तने हुए उभरे हुए दिख रहे थे। राज ने मेरे लिए यह वेश ख़ास दिनों के लिए खरीदा था। मैंने कभी इसे पहले पहना नहीं था। मेरी यह वेशभूषा जय को कैसे लगेगी और उसका क्या हाल होगा यह सोचकर मेरी टांगों के बीच में से पानी चूने लगा और मैं सिहर उठी। मुझे डर लग रहा था की कहीं इस हाल में देख कर वह मुझे अपनी बाहों में दबोच ही न ले और कोई कुकर्म न कर बैठे। पर चूँकि राज भी होंगे, यह सोच कर मेरी जान में जान आयी।
मैं कपडे पहन कर राज के पास गयी और बोली, “जानू, बताओ, मैं कैसी लग रही हूँ।?”
राज ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और बोले, “हे भगवान्! जानू, तुम तो बड़ी कातिलाना लग रही हो! मन करता है की मैं तुम्हे खा जाऊँ।” ऐसा कहकर, राज मुझ पर लपक पड़े और मुझे अपनी बाहों में दबोच लिया।
मैंने धक्का मार कर उन्हें बड़ी मुश्किल से दूर किया और कहा, “दूर रहो। जय के आने का समय हो चुका है। एक बार जय को वापस चले जाने दो, फिर मुझे तुम पेट भर के खा लेना। वह आ गए और उन्होंने यदि हमें इस हालात में देख लिया तो उनके मनमें लोलुपता का भाव पैदा हो जायेगा। ”
राज ने आँख मारते हुए कहा, “जय के मनमें ऐसे भाव तो हैं ही। और अगर नहीं है तो मुझसे मिलने के बाद हो ही जाएंगे”
राज के कहने का मतलब मैं समझ नहीं पायी। मैं जैसे ही राज को पूछने जा रही थी की दरवाजे की घंटी बज पड़ी। मैंने दरवाजा खोला। दरवाजे पर जय खड़े थे। उनके हाथों में एक वाइन की बोतल भेंट के पैकिंग में थी। जय ने मुझे देखा तो उनके होश ही जैसे उड़ गए। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। उनकी आँखें मेरे बदन पर गड़ी की गड़ी रह गयीं। मुझे देखकर उनकी आँखें जैसे चौंधिया सी गयी थीं। मैं जय के चेहरे के भाव देख परेशान हो गयी। मैंने पीछे हट कर उनको अंदर आनेके लिए आमंत्रित किया। पर जय तो वहीं के वहीं खड़े ही रह गए। तब राज पीछे से आगे आये और जय को गले से लगाते हुए उन्हें घर में ले आये।
जय ने झुक कर राज को वह वाइन की बोतल दी, जिसे राज ने स्वीकार की और जय को ड्राइंग रूम में आदर पूर्वक सोफे पर बिठाया। राज ने तीन गिलास में वह वाइन डाली । मैं शराब तो नहीं पीती थी,पर कभी कभी वाइन ले लेती थी। जब राज ने काफी आग्रह किया तो थोड़ा हल्का फुल्का विरोध करने के बाद मैंने वाइन के गिलास को हाथ में लिया और हम तीनों ने ‘चियर्स’ किया और मैंने एक छोटीसी घूंट ली और मैं रसोई में चली गयी।
राज और जय दोनों मर्द आपस में ख़ास दोस्तों की तरह बातें करने लगे। मैं रसोई में जाकर अपने काम में लग गयी। कभी कभी मुझे रसोई में से उनकी बाते थोड़ी बहोत सुनाई देती थी। कई बार उनको मैंने मेरे बारेमें बात करते हुए सुना। जब मैं रसोई से सारा काम निपटा कर बाहर आयी तो जय एकदम बदले से लग रहे थे। उन्होंने पहली बार मुझे देखकर खुल कर मुस्काते हुए “हाई” कहा। जय में इतना परिवर्तन लाने के लिए राज ने क्या किया वह मेरी समझ से बाहर था। मैं जय के लिए फिर भी खुश थी।
मैं तुरंत रसोई में गई और मैंने राज को रसोई में से ही आवाज देकर बुलाया। जब राज आये तो मैं उनसे लिपट गई और बोली, “तुम्हारे में जादू है। तुमने भला क्या कर दिया की जय इतने थोड़े समय में ऐसे बदल गए? खैर, जो भी हो, तुमने मेरे सर से एक बड़ा भारी बोझ हल्का कर दिया।”
तब राज ने कहा, “यह तो ट्रेलर था। डार्लिंग, पिक्चर तो अभी बाकी है।” मैं हैरानगी से सोचने लगी की और क्या क्या होगा।

खाने के बाद हम तीनो ड्राइंग रूम में जा बैठे। राज ने अपनी जेब से एक ताश के पत्तों का पैकेट निकाला और ताश की गड्डी को अपनी उँगलियों के बीच फैंटते हुए बोले, “तुम दोनों मेरे पास आ जाओ। हम ताश खेलेंगे। हम तीन पत्ती का खेल खेलेंगे”
जय और मैं भी बड़ी उत्सुकता पूर्वक ताश खेलने के लिए तैयार हो गए। मैंने ताश खेला था और मैं ताश के नियम जानती थी। राज ने कहा, “पर यह ताश का खेल थोड़ा सा अलग है। इसमें कोई पैसे नहीं डालने हैं पर एक शर्त है। हर एक खेल के बाद जो हार जाएगा उसको बाकी दोनों की एक एक बात माननी पड़ेगी। बोलो मंजूर है?”
जय और मैंने कहा, “मंजूर है।”
खेल में पहले राज हार गए। मैंने कोई फिल्म का एक गाना अपने ऑडियो सिस्टम पर चलाया और उन्हें उस पर नाचने के लिए कहा। राज बुरा मुंह बनाते हुए अजीबो गरीब तरीके से नाचने लगे। मैंने और जय ने खूब हंस कर तालियां बजायी। जय ने राज को कोई गाना गाने के लिए कहा। राज की आवाज सुरीली थी और एक गाने की एक लाइन उन्होंने सुनाई। मैंने और जय ने फिर से तालियां बजायी।
दूसरा खेल जय हारे। राज ने जय को किसी की भी नक़ल करने को कहा। जय ने मेरी ही नक़ल करना शुरू किया। मैंने कैसे उन्हें बुरी तरह से डाँट दिया उसकी नक़ल करने लगे। नक़ल करते हुए जय गंभीर हो गए और उन की आँखों में आंसू आ गये। राज और मैं उनके पास गए। राज ने उनको गले लगाया और कहा, “जय, डाँटते तो अपने ही हैं। झगड़ा तो अपनों से ही किया जाता है, परायों से नहीं। डॉली और मैं तुम्हें अपना मानते हैं। डॉली मुझे भी डाँटती रहती है। तुम तो बुरा मान सकते हो, पर मैं क्या करूँ? अगर मैं कुछ बोला तो मुझे तो भूखों रहना पडेगा। भाई मैं तो भूखा नहीं रह सकता।”
राज की बात सुन कर जय हंस पड़े और कहा, “डॉली, मैं कुछ ज्यादा ही बड़बोला हूँ। मुझे माफ़ कर दो।”
राज ने कहा, “जो एक दूसरे को प्यार करते हैं वह कभी माफ़ी नहीं मांगते।”
जब मैंने राज से यह सूना तो मेरे मन में एक डर पैदा हुआ। मैं सोचने लगी की ऐसा कहते हुए राज ने क्या जय और मैं हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे ऐसा जता ने की कोशिश तो नहीं की थी?
राज ने मेरी और देख कर कहा, “डार्लिंग, सोचो मत, पत्ते फ़ैंटो और बाँटो।”
जब मैं हारी तब मैं बड़े ही असमंजस में पड़ गयी की मुझे क्या सजा मिलेगी। जय ने मुझे फैशन परेड मैं जैसे लडकियां कैट वाक करती हैं, ऐसे चलने के लिए कहा। मैंने बड़ा नाटक करते हुए जैसे लडकियां टेढ़ी मेढ़ी चलती हैं ऐसे चलने लगी और फिर जय के पास जाकर कूल्हे को टेढ़ा कर रुक गयी और उसे मेरी अंगभंगिमा का नजारा देखने दिया। फिर कूल्हों को हिलाते हुए राज के पास चली गयी। दोनों मर्दों ने खूब तालियां बजायी।
अब राज की बारी थी की वह मुझे हारने पर सजा दे। तब राज ने मुझे एक बड़ी अजीब सजा दी। उन्होंने कहा की मैं जय के पास जाऊं और उसे गाल पर चुम्बन करूँ। मैं परेशान हो गयी। यह तो ठीक नहीं था। मैंने राज की और देखा। उन्होंने धीरे से मुझे आँख मारी और आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। शायद यह उनका जय को खुश करने का प्लान था।
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09-08-2018, 01:52 PM,
#6
RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
मैं आगे बढ़ी और जय के करीब जाकर मैंने जय के गाल पर अपने होंठ रख दिए और उसे एक गहरा चुम्बन किया। मुझे महसूस हुआ की मेरे जय को चुम्बन करने से जय के बदन में भी एक सिहरन सी दौड़ गयी और उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रखा और मुझे अपनी और खिंच कर मुझे अपनी बाहों में ले लिया। मैं पागल सी हो रही थी। यह राज मुझसे क्या करवा रहे थे?
खैर मैंने अपने आपको सम्हाला। तब जय ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ते हुए कहा, “डॉली और राज, मैं आप दोनों को अत्यंत ऋणी हूँ। आज आपने मुझे यह एहसास कराया की मुम्बाई में भी मेरी अपनी फॅमिली है।” मेरी और देखते हुए जय ने कहा, “डॉली तुम बड़ी भाग्यशाली हो की राज जैसा पति तुम्हें मिला है।”
तब तक राज और जय पर वाइन चढ़ने का असर साफ़ नजर आ रहा था। ऐसा लगता था जैसे राज उस शाम की पार्टी को जल्दी में खतम करने के मूड में नहीं थे। 
राज ने जय की और देखा और पूछा की क्या कॉलेज में उनकी कोई गर्ल फ्रेंड भी थी? जय ने कंधे हिला कर कहा, “हाँ! थोड़ा बहूत तो होता ही है।”
तब राज ने पूछा, “जय अभी तो तुम अपनी पत्नी से इतने दूर हो। कभी तुम्हारा मन नहीं करता की कोई स्त्री का साथ मिले?” जब जय मौन रहे तो राज ने कहा, “भाई, मैं तुमसे थोड़ा अलग हूँ। मैं यह मानता हूँ की स्त्री और पुरुष एक दूसरे के साथ होते हैं तो जीवन में एक अद्भुत उत्साह और उमंग होता है और अगर मन मिलता है तो एक दूसरे का साथ निभाने में कोई बुराई नहीं है। मैं मानता हूँ की ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो’ मैं यह बात डॉली को भी कहता हूँ। मैं मौज से जीता हूँ और चाहता हूँ की तुम और डॉली भी मौज से जियो। एक दूसरे के साथ का आनंद लो। छोटी मोटी चिंताओं और मानसिक संकुचितता को दूर रखो।”
राज शायद जय से ज्यादा यह बात मुझे सुना रहे थे ऐसा मुझे लगा। मुझे राज की बातों से ऐसा लगा की वह हम दोनों के बीच की दीवार पूरी तरह से तोड़ना चाहते थे। मैंने जय की और देखा तो पाया की वह फिर से वही लोलुपता भरी निगाहों से मुझे छुप छुप कर देखने लगे थे। अब वही उनका पुराना नटखट अंदाज दिख रहा था। मेरे छोटे टॉप और भड़कीली वेशभूषा के कारण मैं उन्हें कुछ अधिक ही उत्तेजक लग रही थी।
मैं धीरेसे राज के पास गयी और उनके बालों को प्यार से सहलाने लगी तब राज मुझे अपनी बाहों में लेते हुए बोले, “जय, मैं मेरी पत्नी डॉली को बहुत प्यार करता हूँ। मैं उसे थोड़ा सा भी दुखी नहीं देख सकता। पर मुझे आजकल एक बड़ी चिंता रहती है।”
जय ने प्रश्नात्मक दृष्टि से राज की और देखा तो राज ने कहा, “मैं आजकल ज्यादातर पुणे रहता हूँ और काफी काम होने के कारण मुम्बाई ज्यादा आ नहीं पाता। तब डॉली यहां अकेली बहुत परेशान हो जाती है। कई बार उसे डिप्रेशन हो जाता है। वह बुरे सपने देखने लगती है। तुम भी यहां अकेले हो।
डॉली ने मुझे बताया की तुम्हें बाहर खाने में दिक्कत होती है। तो मैं चाहता हूँ की तुम हमारे यहाँ आओ और शाम का खाना रोज हमारे यहां खाओ। मेरे न रहते हुए भी तुम जरूर बिना हिचकिचाहट के आओ। मैं जब रहता हूँ तो हम दोनों गपशप मारेंगे। मुझे बहुत अच्छा लगेगा। देखो मना मत करना। हाँ अगर तुम्हें डॉली का खाना पसंद नहीं है तो और बात है।”
मैंने जय की और देखा। वह बहुत ही लज्जित लग रहे थे। वह थोड़ा हिचकिचाते हुए बोले, “आप जब हो तो अलग बात है, पर आप ना हो तो? मुझे थोड़ा अजीब लगेगा। एकाध दिन खाना एक अलग बात है, पर रोज?”
राज ने जय का हाथ अपने हाथों में थामा और बोले, “देखो, हम तुम्हें अपना समझते हैं। तुम डॉली का दफ्तर में बहुत ध्यान रखते हो। मैं चाहता हूँ की घर में भी तुम डॉली का ध्यान रखो। जहाँ तक रोज खाने की बात है तो चलो तुम एक काम करना, जब मौक़ा मिले तुम सब्जी, राशन बगैर ले आना। अब तो ठीक है?”
जय बेचारा क्या बोलता? उसने मुंडी हिला कर हामी भरदी और उठकर खड़ा हुआ और बोला की वह जाना चाहता है। राज जय को सीढ़ी से उतर कर नीचे तक छोड़ने गए। तब मैंने राज को जय से कहते हुए सुना की, “जय, देखो, हमारे कोई संतान नहीं है। डॉली अकेले में बड़ी परेशान हो जाती है। तुम आ जाओगे तो हमें नयी जिंदगी मिलेगी।” इसी तरह बातें करते हुए दोनों बाहर निकले। राज का आखरी में ऐसी बात कहने का क्या मतलब था वह मैं समझ नहीं पायी।
जय के जाने के बाद राज ने मुझसे कहा, “देखा जानू, आज की शाम कितनी आनंद वाली रही? मुझे सच सच बताना, क्या तुम्हे मज़ा नहीं आया? क्या जय में वह परिवर्तन नहीं आया जो तुम चाहती थी?”

मैंने परे पति राज की और देखा और बिना झिझक बोली, “हाँ राज, मुझे बहोत मजा आया। ख़ास तौर से जय को इतना तनाव मुक्त और स्वच्छंद देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। तुमने वास्तव में ही कुछ जादू कर दिया ऐसा लगता है।”
तब राज ने कहा, “जादू मैंने नहीं, तुमने किया। पहली बात यह की तुमने ऐसे कपडे पहने जिससे जय को ऐसा अंदेशा हुआ की तुम्हें तुम्हारे सेक्सी बदन को दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है। अगर वह तुम्हारे खुले हुए बदन को झांकेगा तो तुम बुरा नहीं मानोगी। दूसरी बात। तुमने जय के पास जा कर जो अंगभंगिमा की और उसको अपने कूल्हे दिखाए उससे उसकी प्यासी आँखों को थोड़ा सुकून मिला।
तीसरी बात, जब मैंने तुम्हें जय के पास जाकर जय को गालों पर चुम्बन करने को कहा और तुमने उसे एक गहरा चुम्बन किया तो उसे लगा की अब तुम उससे काफी खुल गयी हो और अब पहले की तरह तुम बुरा नहीं मानोगी। और उसने क्या कहा? उसने कहा की उसको लग रहा था की मुंबई में भी उसकी कोई फॅमिली है। यह एक बहुत बड़ी बात है।”
राज तब थोड़ा रुक गए और उन्होंने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। तब मैंने कहा, “हाँ, तुम सही कह रहे हो। जय को आज हमारे यहां बहुत अच्छा लगा। 
“राज ने कहा,तुम्हे इतना तनाव मुक्त देख मुझे बहुत अच्छा लगा। एक बात समझो। सब पुरुष एक से नहीं होते। जय दूसरों से अलग है। तुमने जय को चुम्बन किया, जय ने तुम्हें बाहों में जकड़ा, तो कोन सा आस्मां टूट पड़ा? क्या हम सब ने एन्जॉय नहीं किया? मैंने सबसे ज्यादा एन्जॉय किया। याद रखो, ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो” राज की समझ की मैं कायल हो गयी।
राज एकदम उत्तेजित हो गए थे। उनका लण्ड तो फौलाद की तरह अकड़ा हुआ था। तो मैं भी तो काफी गरम हो गयी थी। मेरा ह्रदय धमनी की तरह धड़क रहा था। जय की बाहों में लिपटना और राज के ऐसे उकसाने वाले बयानों से मेरी चूत में से तो पानी का जैसे फव्वारा ही छूट रहा था। राज ने मुझे अपनी बाँहों में लिया और उठाकर मुझे पलंग पर लिटा दिया। उस रात राज ने और मैंने खूब जमके सेक्स किया जैसा पता नहीं हमने इसके पहले कब किया होगा।
ऑफिस में जय अपने फिर वही पुराने अंदाज में आगये थे। सब कर्मचारी जय के परिवर्तन से बड़े खुश थे। मुझे पता था की जय मुझसे करीबियां बनाने के लिए बड़े ही आतुर थे। वहाँ तक तो ठीक था। पर अब मैं डर रही थी की कहीं मैं कोइ ऐसी वैसी परिस्थिति में न फंस जाऊं।
मुझे समझ नहीं आरहा था की कैसे मैं अपनी मर्यादा में भी रह सकूँ और जय को भी बुरा न लगे। इसके लिए मैंने यही सोचा की जय से अपनी दोस्ती तो बढ़ाऊँ पर उससे फिर भी एक अंतर रखूं जिससे उसके मनमें मेरे लिए एक सम्मान हो और वह मेरे बारे में उलटा पुल्टा सोचने से कतराए।
जय के लिए मैं घरसे खाना बना कर लाने लगी। ऑफिस में जय और मैंने साथ में खाना शुरू किया। कई बार ऐसा हुआ की जय ने मुझे दोस्ती जताते हुए छुआ जैसे अकस्मात से ही हुआ हो। कई बार जय मेरे पास से संकड़ी जगह में से मेरे स्तनों को छू कर निकल गए।
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09-08-2018, 01:52 PM,
#7
RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
राज ने मुझे पहले से ही कह रखा था की ऐसा तो होगा और मैं उसके लिए तैयार भी हो चली थी। मैं भली भांति जानती थी की जय मुझे छूने के लिए लालायित रहते थे। मैं उनकी ऐसी छोटी बड़ी हरकतों को नजर अंदाज करने लगी। मैंने सोचा अगर इससे उनको ख़ुशी मिलती है तो ठीक है, जबतक ज्यादा कुछ नहीं होता तब तक ठीक है।
इसी तरह हफ़्तों बीत गए। अब तो हमारे ऑफिस में भी धीरे धीरे अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा था। सब को जय और मेरे बीच कुछ चल रहा था उसका अंदेशा हो रहा था। एक शाम को ऑफिस छूटने के एक घंटे पहले, बॉस मेरे पास आये और मुझे एक मोटी फाइलों का बंडल पकड़ाते हुए बोले, “इस ग्राहक का पूरा बही खाता और नफ़ा नुक्सान का स्टेटमेंट मुझे आज ही तुम्हारे ऑफिस छोड़ने के पहले चाहिए। जाते समय तुम इसे सिक्योरिटी में गार्ड के पास छोड़ कर जाना। मेरे बॉस रात में ही उसे उनके बॉस को पहुंचाएंगे। ऊपर से आर्डर आया है। काम में कोई देरी नहीं चलेगी। काम शाम को ही ख़तम हो जाना चाहिए।”

मैं जानती थी की मेरे लिए वह काम करना नामुमकिन था। एक तो मैं थकी हुई भी थी। मैंने बॉस को समझाने की बड़ी कोशिश की पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। बॉस ने कह दिया की काम तो पूरा करना ही पडेगा। अगर काम नहीं हुआ तो मेरा नौकरी से हाथ धोना तय था। बस और कुछ नहीं बोलते हुए बॉस चले गए। मैंने फाइलें ली और सारा डाटा कंप्यूटर में चेक कर के फीड करने लगी।
काम लम्बा और समय लेने वाला था। मुझे लग रहा था जैसे मुझसे तो वह काम सुबह तक भी नहीं होगा। मुझे काम करते हुए एक घंटा हो गया होगा। दफ्तर बंद होने का समय हो चूका था। एक के बाद एक कर ऑफिस खाली होने लगी। जय घर जाने के लिए तैयार थे। वह मेरे पास आये। मुझे काम पर लगे हुए देख कर पूछने लगे की क्या बात थी की मैं घर के लिए नहीं निकल रही। मैंने उन्हें सारी फाइलें दिखाई और बोस ने मुझे जो कहा था जय को सुनाया। मैंने कहा की मुझसे वह काम होने वाला नहीं था और मेरी नौकरी दूसरे दिन जरूर जाने वाली थी।
जय ने मेरी पीठ थपथपाई और कहा, “उठो, मुझे देखने दो। तुम चिंता मत करो। आरामसे वहां कुर्सी पर बैठो और जब मैं कहूं तो मेरी मदद करो। तुम्हारा काम हो जाएगा।” जय ने सारी फाइलें मुझसे लेली और मेरी कुर्सी पर बैठ कर वह फुर्ती से काम में लग पड़े। बीच बीच में वह मुझे चाय या बिस्कुट या पानी या फाइल देने के लिए कहते रहे। मैं इस आदमी पर हैरान हो गयी जो मेरे लिए इतनी मेहनत और लगन से काम कर रहे थे। उन्हें यह सब करने की कोई जरुरत नहीं थी।

जय को एकदम एकाग्रता से काम करते हुए देख मेरा ह्रदय पिघलने लगा। जय के बारे में जो मैंने उल्टापुल्टा सोचा था उसके लिए मुझे पछतावा होने लगा। तीन घंटे बीत चुके थे। रात के नौ बजने वाले थे। मेरी आखें नींद से भारी होने लगी थी। जय ने मुझे रिसेप्शन में सोफे पर जाकर लेट जाने को कहा। 
पता नहीं कितना समय हुआ होगा की अचानक मुझे जय ने कांधोंसे पकड़ कर हिलाया और बोले, “उठो काम ख़तम हो गया। अब खाली प्रिंटआउट लेने हैं।”
मैं हड़बड़ाहट में उठ खड़ी हुई तो नींद के कारण लड़खड़ाई और फर्श पर गिरने लगी। जय ने एक ही हाथ से मुझे पीठ से अपनी बांह में उठाया। उस हाथ के दूसरे छोर पर उनकी उंगलियां मेरे स्तनों को दबा रही थीं। उनके दुसरे हाथ ने मेरे सर को उठा के रखा था। जैसे राज कपूर और नरगिस का स्टेचू होता था वैसे ही हम दोनों लग रहे होंगे।
मैंने अपनी आँखें खोली तो मेरी आँखों के सामने ही जय की ऑंखें पायीं। मुझे ऐसा लगा जैसे जय एकदम जैसे मेरे होंठ से होंठ मिलाकर मुझे उसी समय चुम्बन कर लेंगे। उनकी आँखों में मुझे वासना की भूख दिख रही थी। मेरे बदनमें जैसे बिजली के करंट का झटका लगा हो ऐसे मैं काँपने लगी। यदि उस समय जय ने मुझे चुम लिया होता तो मैं कुछ भी विरोध न करती। मेरी हालत ही कुछ ऐसी थी।
परन्तु जय ने अपने आपको सम्हाला। उन्होंने मुझे धीरे से सोफे पर बिठाया और खुद कंप्यूटर के पास जाकर प्रिंट लेने की तैयारी में लग गए। हमारे बदन की करीबियों से न सिर्फ मैं, परन्तु जय भी हिल गए थे। जय ने मुझे जब तक वह अपनी तैयारी कर लें तब तक दफ्तर के छोटे से स्टेशनरी रूम में से प्रिंटिंग कागज़ का एक पैकेट लाने को कहा।
मैं उठ खड़ी हुई और वह छोटे से कमरे में घुसी जहां छपाई के काम आनेवाले कागज़ के पैकेट एक ऊँचे ढेर में रखे हुए थे। मैंने थोड़ा कूदकर ऊपर वाले पैकेट को लेने की कोशिश की तब अचानक ही एक चूहा जो कगजों के ढेर के ऊपर था, मेरे सर पर कूद पड़ा। मैं जोर से चिल्लाने लगी पर वह चूहा मेरे बालों में घुसा और अचनाक पता नहीं कहाँ गायब हो गया।
जय अपनी जगह से भागते हुए आये और बोले, “क्या बात है? तुम चिल्ला क्यों रही हो?”
डर के मारे मैं बोल भी नहीं पा रही थी। मैं फिर जोर से बोल पड़ी, “चूहा!”
मुझे सुनकर जय जोर से ठहाका मार कर हंस पड़े और फिर अपने आपको नियत्रण में रखते हुए बोले, “चूहा? कहाँ है चूहा?”
अचानक मैंने महसूस किया की मेरी ब्रा के अंदर मेरे स्तनों के ऊपर कुछ चहल पहल हो रही थी। चूहा मेरी ब्रा में घुसा हुआ था और मेरी निप्पलों से खेल रहा था। मैंने जय से चिल्लाते हुए कहा, “वह तो मेरे ब्लाउज में घुसा हुआ है। उसे तुम जल्द निकालो। प्लीज?” मैं ड़र के मारे लड़खड़ा गयी और गिरने लगी।
जय ने कुछ सोचे समझे बिना अपना एक हाथ मेरे कूल्हे के नीचे रखा और मुझे ऊपर उठा कर मेरी दोनों टांगों को अपनी दोनों टांगों के बीच में जकड लिया ताकि मैं नीचे न जा गिरूं और दुसरा हाथ मेरी ब्रा को हटा कर उसमें डाल दिया और चूहेको बाहर भगा दिया। चूहा नीचे गिर पड़ा और भाग कर जाने कहाँ चला गया। लेकिन जय का हाथ जस के तस मेरे स्तनों के ऊपर ही रहा और वह धीरे धीरे मेरे दोनों स्तनों को दबाने और सहलाने लगे। उनकी उंगलियां मेरी निप्पलों के साथ खेलने लगीं। उन्होंने अपनी हथेली में मेरे स्तनों को दबाया और फिर मेरी फूली हुई निप्पलों को जोरों से दबाने लगे। उनका दुसरा हाथ मेरे कूल्हों के नीचे मेरी गांड के बीचो बीच की दरार पर था और वह मेरी साडी के ऊपर से ही अपनी उँगलियों को अंदर घुसाने की कोशिश में लगे हुए थे।


शुरू में तो चूहे के डर के मारे, मेरे होशो हवास उड़े हुए थे। पर जैसे मुझे जुछ समझ आने लगा तो जय के मेरे स्तनों से खेलने और मेरे कुल्हेमें उंगली करने से मैं जैसे मंत्रमुग्ध सी हो गयी। ऐसा मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। चाहते हुए भी मैं उनका हाथ मेरी चूँचियों पर से हटाने में अपने आपको असमर्थ पा रही थी। मुझे लगा जैसे मैं एक नशे में थी। ऐसे ही दो या तीन मिनट बीत गए होंगे और मुझे पता भी न चला। 
धीरे धीरे मुझे परिस्थिति का एहसास होने लगा। मैं समझ गयी की अगर मैंने उस समय कुछ नहीं किया तो पक्का ही था की उस रात वहाँ कुछ न कुछ जरूर हो जाता। मैंने धीरेसे जय का हाथ मेरे स्तनों पर से हटाया और अपने आपको संतुलित करने की कोशिश की।
मैं खड़ी हुई और अपने आप को सम्हाला। मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं चूहे निकालने के लिए जय शुक्रिया करूँ या मेरी चूँचियों को और कूल्हों को सहलाने और दबाने के लिए उनकों डाँटू। मैं चुप रही। और क्या करती? मैं बड़ी ही उलझन में थी। इसलिए नहीं की जय ने मेरे साथ जो किया वह ठीक नहीं था, पर इसलिए की मैं जय की शरारत का विरोध करना तो दूर, मैं उसके कार्यकलाप से उत्तेजित हो रही थी। जय का मेरी चूँचियों को सहलाना मुझे अच्छा लगने लगा था। जय भी मुझे बाहों में लेकर बहुत गरम हो गए थे। उन्होंने जब मेरी दोनों टांगों को अपनी दोनों टांगों के बीच जकड़ कर पकड़ा हुआ था तब उनका लण्ड एकदम कड़ा और खड़ा हुआ था और मेरी जांघों के बीच में ठोकर मार रहा था ।

जब जय की उत्तेजना कम हुई और उन्हें अपनी गलती समझ आयी तो वह एकदम शर्मिंदा होकर हिचकिचाते हुए माफ़ी मांगते हुए बोले, “मुझे माफ़ करदो डॉली। मैं अपने होशोहवास में नहीं था। जो हुआ वह इतना अचानक हो गया। ऐसा करनेका मेरा कोई इरादा नहीं था प्लीज?
मैंने जय की और देखा। ऐसा लग रहा था की वह वास्तव में दिल से पश्चाताप कर रहे थे। मैं जय की और देखकर मुस्काई और मैंने कहा, “चलो भाई, ठीक है। चिंता मत करो। कभी कभी ऐसा हो जाता है। हम बहाव में बह जाते हैं।” मैं खड़ी हुई और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए अपनेआपको सम्हालते हुए काममें लग गयी।
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09-08-2018, 01:53 PM,
#8
RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
मेरे बॉस तो मेरी रिपोर्ट देखकर ख़ुशी से पागल से हो गए। उनको मुझसे इतनी जल्दी और इतनी बढ़िया रिपोर्ट की उम्मीद नहीं थी। रिपोर्ट को जय ने इतने सुन्दर तरीके से बनाया था की हमारे डायरेक्टर ने मेरे बॉस को पूछा की इतनी बढ़िया रिपोर्ट किसने बनायी थी। हमारे डायरेक्टर ने दो दिन के बाद सारे स्टाफ को बुलाया और सबके सामने मेरे उस काम की भूरी भूरी प्रशंशा की और मुझे खास तोहफा दिया। पुरे कार्यक्रम के दरम्यान मैं जय की और देखती रही। सारा काम तो जय ने किया था। मैं जय को आगे करना चाहती थी। मैं चाहती थी की इनाम जय को मिले। पर जय ने मेरी और देखकर मुझे चुप रहने का इशारा किया और कुछ भी बोलने से मना कर दिया। मुझे बहुत तालियां और मुबारक बाद मिले और मैं मन में ही मनमें दुखी होती रही की जो यश जय को मिलना चाहिए था, वह मुझे मिल रहा था।
प्रोग्राम के बाद जब मैंने जय से पूछा की उसने मुझे कुछ भी बोलने से रोका क्यों? तो जय ने कहा, “अरे बुद्धू लड़की! अगर तू यह बताती की वह काम तूने नहीं किया था तो जानती है क्या होता? तुझे अभी तक काम आया नहीं इस लिए तेरी नौकरी खतरे में पड़ जाती। और अगर उन्हें यह पता लगता की वह रिपोर्ट मैंने बनायीं थी तो बॉस मुझ पर इल्जाम लगाते की मैं तुम पर ज्यादा ध्यान दे रहा हूँ और मेरे काम पर कम। तो मेरी नौकरी को खतरा होता। इसिलए जो हुआ वह ही ठीक था।’

जय की बात भी बड़ी तर्कसंगत थी। वास्तव में यह सही था की जय ने मेरी व्यावसायिक प्रगति को चार चाँद लगा दिए। मुझे समझ नहीं आया की मैं उनका शुक्रिया कैसे करूँ। मुझे यह बहुत ही अजीब सा लगा की मैं जय के एहसान का बदला कैसे चुकाऊं?
मैंने जय से कहा, “जय, मुझे समझ में नहीं आ रहा की मैं आपका यह क़र्ज़ कैसे चुकाऊँगी। ”
आँख मटकते कहा, “चिंता मत करो, मैं सूद के साथ इसको वसूल करलूँगा।” मैं सोच रही थी की अच्छा होता वह मुझसे कुछ मांग लेते। पर कुछ न मांग कर जय ने मुझे एक उलझन में डाल दिया।
मैंने परे पति राज को सारी बातें विस्तार पूर्वक बतायीं। मैंने नहीं छुपाया की कैसे जय मेरे स्तनों से खेलता रहा और मेर कूल्हों की दरार में ऊँगली डालता रहा। मैंने राज से कहा, “वाकई मैंने जय को न डांटने की भूल की है। मुझे अब ऐसा लग रहा है की जैसे मैंने ऐसा न करके पाप किया है। मैं अपने आप को दोषी मान रही हूँ।”

मेर पति ने हाथ का झटका देते हुए कहा, “तुम बकवास कर रही हो। न तो तुमने और न तो जय ने कुछ भी ऐसा किया की जो पश्चाताप या डाँट के काबिल था। तुमने जय को ब्लाउज में हाथ डालने के लिए इसलिए कहा की तुम्हारे ब्रा में चूहा घूस गया था। और जय ने भी इसीलिए तुम्हारे ब्रा के अंदर हाथ डाला।
जब दो जवान स्त्री और पुरुष ऐसी स्थिति में होते हैं तो ऐसा हो जाता है, उसमें न तो तुम्हारा और न तो जय का कोई दोष है। पुरुष और स्त्री के बीच का आकर्षण भगवान् की दी हुई भेंट है। जब तक तुम्हें ऐसा न लगे की किसीने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है या तुम्हें निचा दिखानेकी कोशिश की है तब तक तुम इसको ज्यादा महत्त्व न दो। बल्कि ऐसी हरकतों को एन्जॉय करो। हमेश याद रखो ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो।”
मुझे बहुत अच्छा लगा की राज ने मुझे डांटा नहीं और मेरे या जय के वर्तन को नकारात्मक रूप में नहीं लिया। उन्होंने मेरी दुविधा को समझा और मेरे मनमंथन को ख़तम कर दिया। उनकी समझ बूज़ की मैं कायल हो गयी। बल्कि मुझे ऐसा लगा जैसे वह मुझे प्रोत्साहन दे रहे हों। खैर, मुझे अच्छा लगा की राज मुझे समझ रहे थे। 

उस प्रसंग और राज के साथ बात करने के बाद मेरे और जय के बीच में काफी कुछ बदल चुका था। मैं जब जय के करीब होती थी तो मेरे पुरे बदन में एक नयी ऊर्जा और उत्तेजना का अनुभव होता था। मैं अपने आपको फिरसे नवयुवा महसूस कर ने लगी थी।
मुझे जय के बदन की महक, उसके होठों की चमक, आँखों में छिपी लोलुपता, उन का मेरे स्तनों को दबाना और सहलाना, मेरी साडी पर से मेरी गांड की दरार में उंगली घुसेड़ने की कोशिश करना इत्यादि याद करते ही मैं रोमांचित हो जाती थी और मेरी चूत में से पानी निकलने लगता था। जय जब भी मुझे ललचायी नज़रों से देखते या मेरे वेश की प्रशंशा करते तो मैं शर्म के मारे पानी पानी हो जाती। बल्कि मुझे इंतजार रहता था की जय को मेरी पहनी हुई ड्रेस पसंद आये।
मैं जय की पसंदीदा वेश पहनने के लिए आतुर रहती थी। अगर कभी कोई ख़ास ड्रेस उसे पसंद आता था तो मैं उसे पहन ने में मुझे बड़ी ख़ुशी होती थी। पहले मैं किसी भी तरह के भड़कीले वेश पहनना पसंद नहीं करती थी। पर जय कहता तो मैं पहनकर आती थी।
साथ साथ में मेरे मनमें एक डर भी था। मेरा मन मुझे सावधान कर रहा था की इस रास्ते पर आगे खतरा हो सकता है। पर मैं बदल चुकी थी। मुझे जय का साथ अच्छा लगता था और उसकी छेड़खानी और सेक्सी टिकाएं मुझे नाराज करने के बजाये उकसाती थीं।
——
मेरे लिए वह एक बुरा दिन था। पिछली रात को मैं ठीक से सो नहीं पायी थी। राज उस हफ्ते टूर पर थे। मुझे रात को बुरे सपने आये और अकेले में कुछ भी आवाज होते ही मैं डर जाती थी। सुबह का ट्रैफिक पागल करने वाला था। मेरी तबियत ठीक नहीं थी। ऑफिस पहुँचने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। एक खचाखच भरी हुई बस में कितनी सारी बसें छूटने के बाद घुसने का मौका मिला। इतने सारे लोगों के बीच मेरा तो जैसे कचुम्बर ही निकल गया। जय का मूड भी ठीक नहीं था। उसकी छुट्टी बॉस ने कैंसिल कर दी थी। जय गुस्से में था।
मेरा पूरा दिन काम में बिता। दुपहर को देर से बॉस आये और एक दूसरे ग्राहक के लिए फिर मुझे उसी तरह की रिपोर्ट बनाने के लिए कहा। काम ज्यादा नहीं था पर मुझे जरूर देर तक बैठे रहना पड़ेगा। मैं तुरंत काम में लग गयी। जय ने जब मुझे गंभीरता पूर्वक काम में लगे हुए देखा तो मेरे पास आये। जब उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने सब बातें बतायी। उन्होंने पाया की वह तो उन्हीं का ग्राहक था। उन्होंने कुछ कागज़ अपने हाथ में लिए और मेरे साथ काम में लग गए।
मुझे कड़ा सरदर्द हो रहा था। बाहर विजली के कड़क ने की और बादलों के गरज ने की आवाज आ रही थी। छे बजे ही पूरा ऑफिस खाली हो चुका था। झमाझम बारिश शुरू हो गयी थी। हम जब काम ख़तम कर के बाहर आये तो साढ़े सात बज चुके थे। पिछले तीन घंटों से मुश्लाधार बारिश हो रही थी और लगता था की पूरी रात बारिश नहीं रुकेगी। जैसे तैसे हम पुरे भीगे हुए जय की बाइक के पास पहुंचे। हमारे पास न तो कोई रेनकोट था और न ही कोई छाता।
जय ने बाइक शुरू किया और मैं पीछे बैठ गयी। जय ने अपनी गोद में एक ब्रीफ़केस ले रखी थी। इस कारण मुझे अपने हाथ जय की जांघों के बीच रखने पड़े। मैं थोड़ी आगे झुकी तो मेरी दोनों चूचियां जय की पीठ पर दबी हुई थीं। मुझे अजीब भी लग रहा था और एक तरह का रोमांच भी हो रहा था 

बाइक पर बैठने से तेज हवा मेरे गीले बदन को और ठंडा कर रही थी। मुझे जुखाम हो गया और मैं छींके खा खा कर परेशान हो गयी। दुर्भाग्य वश जय की बाइक एकाध किलो मीटर चलने के बाद खराब हो गयी। हमने बाइक को धक्के मार कर बड़ी मुश्किल से एक पार्किंग लोट में खड़ी की। वहां से नजदीकी बस स्टैंड पर हम पहुंचे और बस या टैक्सी का इंतजार करने लगे। बसें भरी हुई आती थी और बीना रुके निकल जाती थी। मैं रास्ते तक जा करके कोई टैक्सी खाली मिले तो रोकने के प्रयास कर रही थी, पर सारी टैक्सियां भरी हुई आरही थी।
तब अचानक एक भले कार वाले ने मेरी हालत देख कर अपनी गाडी रोकी। गाडी में एक सीट खाली थी। गाड़ी के मालिक (जो खुद गाडी चला रहा था) ने हमसे कहा, “बस एक जगह है। आप दोनों में से कोई एक को ही हम ले सकते हैं। जय और मैं ने एक दूसरे की और देखा। तब मुझे अचानक एक बात सूझी और मैंने गाडी के मालिक से कहा, “सर, क्या आप हम दोनों को ले चलेंगे अगर हम एक ही सीट मैं बैठ जाएँ तो?”
गाडी के मालिक ने मुझे एक अजीब नजर से देखा। तब मैंने उनसे हाथ जोड़कर कहा, “हम पिछले एक घंटे से टैक्सी या बस का इंतजार कर रहे है। पर कोई टैक्सी या बस रुकी नहीं। हम ऐसा करेंगे की मैं राज की गोद में बैठ जाउंगी, इससे हम एक ही सीट रोकेंगे और किसीको कोई दिक्कत नहीं होगी। प्लीज! बारिश बहुत जोरों से हो रही है। यह एक आपात जनक स्थिति है और अगर आप हमें लिफ्ट नहीं देंगे तो पता नहीं हमें यहां कितने घंटों इंतजार करना पड़ेगा।
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09-08-2018, 01:53 PM,
#9
RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
गाडी के मालिक ने मेरी और सहानुभूति से देखा। मैं पूरी तरह बारिश में भीगी हुई थी। उस दिन मैंने कुछ ज्यादा ही पतले कपडे पहने थे। मेरे कपडे मेरे बदन से ऐसे चिपके हुए थे की मुझे पता नहीं मैं कैसी दिख रही होउंगी। गाडी के मालिक ने कुछ देर सोचकर हमें अंदर आने को कहा। जय ने मेरी और देखा और कुछ कहने की कोशिश कर रहा था पर मैंने पलट कर गाडी में से कोइ न देखे ऐसे होठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया। वह शायद मुझे पूछने की कोशिश कर रहा था की क्यों मैंने उसे अपना पति कह कर पुकारा।
पहले जय गाडी में घुसा और बाद में मैं उसकी गोद मैं जा बैठी। आगे एक महिला बैठी थी। उसने मुझे देखकर पीछे मुड़कर “हाई” किया। कार में सब बैठने वाले हमारी तरह पूरी तरह भीगे हुए थे।
जय की गोद में अगली ४५ मिनट बैठना मेरे लिए एक बड़ा ही रोमांचक अनुभव रहा। मैं जय के दोनों हाथों के बीच जकड़ी हुई थी। उसक लण्ड एकदम खड़ा होगया था और मेरी गांड की दरार में कोंच रहा था। जय का बांया हाथ लगातार मेरे बाएं स्तन को दबा रहा था। मुझे ऐसे लगा की जैसे वह यह जान बुझ कर कर रहे थे। मेरे साड़ी के पल्लू में सब कुछ छिपा हुआ था और कोई उसे देख नहीं सकता था। मैं कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थी क्यूंकि आखिर मैंने ही उन्हें अपना पति बताया था।
उस कार ने हमें घर से करीब दो किलोमीटर दूर छोड़ दिया। अब बाकी की दुरी हमें चल कर पार करनी थी। मैं एक कदम भी चलने की हालत में नहीं थी। मुझे बहुत सरदर्द हो रहा था। मेरी आखें लाल हो रही थी। जय ने मेरा एक हाथ और कन्धा सख्ती से पकड़ा और मुझे आधा उठाकर पूरा टेका देते हुए मुझे घसीटते घर की और चल पड़े। मैं भी लुढ़कते हुए उनके सहारे धीरे धीरे चलने लगी। जब मैं अपने घर तक पहुंची तब मुझमें एक और कदम चलने की ताकत नहीं थी।
सोसाइटी के दरवाजे पर मैं खड़ी रही, तो जय मुझे भांप रहे थे। उस बारिश में वह मेरे पुरे बदन को देख रहे थे। मेरा हाल देखने लायक तो था ही। मेरे सारे कपडे मेरे बदन पर ऐसे चिपक गए थे की मेरी चमड़ी साफ़ दिखाई दे रही थी। मेर ब्रा और मेरा पेटीकोट ऐसे नजर आ रहे थे जैसे उनके ऊपर मैंने कुछ पहना ही नहीं था। मैंने उस दिन नायलॉन का गहरे गले वाला ब्लाउज और छोटी सी सिल्की कपडे की ब्रा और उसके ऊपर नायलॉन की ही साड़ी पहनी थी।

साड़ी मेरी नाभि के काफी नीचे बंधी हुई थी। मैंने देखा की मेरी चूँचियाँ, मेरे निप्पलं और निप्पलों के पूरी गोल घूमती हुए मेरे एरोला साफ़ साफ़ दिखाई दे रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे उस समय बारिश में मैं जय के सामने एकदम नंगी खड़ी हुई थी। मुझे जय की शरारत, जो उसने कार में की थी वह याद आयी तो मैं शर्म और उत्तेजना से तार तार हो गयी। मैंने अपनी साडी ठीक की और घर जाने के लिए आगे बढ़ी।


जय ने देखा की मैंने उसे मुझे ताकते हुए देख लिया था तो उसकी नजरे झुक गयीं। उतने में ही मुझे जोरों से छींकें आने लगीं। मेरे नाक से पानी बह रहा था। जय ने मुझे पूछा की क्या मेरे पास सर्दी की कोई दवा है। जब मैंने मनाकिया तो उसने कहा वह जाकर तुरनत ही मेरे लिए दवाई लेकर आएगा और मुझे दवाई देकर ही फिर घर जाएगा। जय दवाई लेने चला गया। मैं बड़ी मुश्किल से सीढ़ियां चढ़कर घर में प्रवेश कर ही रही थी की मेरे फ़ोन की घण्टी बज उठी।

मैंने हड़बड़ाहट में पर्स में से फ़ोन निकाला और देखा की राज का फ़ोन था। मैं जल्दी में दरवाजा बंद करना भूल गयी।
राज फ़ोन पर थे। वह मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछ रहे थे, पर मुझे बुरी तरह से छींकें आ रही थी। उन्होंने टीवी में मुंबई में भारी वर्षा के बारे में सुना था। मैंने राज से कहा की मैं एकदम गीली और लगभग नग्न हालत में थी। मुझे सख्त जुखाम हो गया था और मेरा सर चक्कर काट रहा था। बड़ी मुश्किल से मैं घर पहुंची थी। मैंने राज से कहा की जय ने मुझे तभी ऑफिस से घर छोड़ा था। मैंने राज से कहा की अगर वह पांच मिनट के बाद फ़ोन करेगा तो मैं उससे अच्छी तरह से बात कर पाऊँगी।
तब राज ने मिन्नतें करते हुए कहा, “बस जानूं एक मिनट। यह बताओ, की बरसात में कुछ आपस में छेड़खानी हुई की नहीं? बस इतना ही बतादो, हाँ या ना?” 

मैंने कहा, “अरे भाई हाँ हुई। मैं क्या करती? कोई बस या टैक्सी मिल नहीं रही थी। आखिर में तंग आकर एक कार में मुझे जय की गोद में बैठ कर आना पड़ा। तुम्हारे दोस्त जय ने इसका पूरा फायदा उठाया और पुरे रास्ते में मेरी चूँचियाँ को दबाता और सहलाता रहा और मैं कुछ न कर सकी। पर यह सब मैं बादमें बताउंगी। अभी मुझे नहाने जाने दो।”
राज ने फ़ोन काट दिया। मैं बाथरूम में तौलिया लेकर घुसी और सारे गीले कपडे उतार कर सम्पूर्ण रूप से नग्न होकर गरमा गरम शावर में थोड़ी देर के लिए अपने आप को फव्वारे में गर्माहट का आनंद लेने दिया। आजका दिन बड़ा ही अजीबो गरीब था। एक और बड़ी परेशानी हुई तो दूसरी और आज मैंने एक पर पुरुष के द्वारा मेरे स्तनों को सहलाने और उसके लण्ड का मेरी गांड पर ठोकर मारने में आनंद का अनुभव किया। मुझे समझ नहीं आया की मैं इतनी कैसे बदल गयी। मैं अपने आपको एक पर पुरुष के साथ ऐसे हाल में आनंद लेते हुए सोच भी नहीं सकती थी।
शावर में नहाने से मेरी काफी थकान कम होगयी और मेरे जुखाम में भी थोड़ी राहत मिली ऐसा मुझे लगा। अच्छी तरह से नहाकर मैंने बदन को कस कर पोंछा। मैं बाथरूम में बदलने के लिए कपडे लेकर नहीं घुसी थी। मैंने तौलिया लपेटा और बाथरूम से बाहर आकर बैडरूम की और चल पड़ी। मैंने हेयर ड्रायर लिया और चालू कर अपने बाल सुखाने में लगी थी की मेरे सेल फ़ोन की घंटी फिर बजने लगी। फिर राज का ही फ़ोन था। उसके पिछले फ़ोन के बाद ठीक पांच मिनट हुए थे। मैं थोड़ी झल्लायी की यह क्या? अरे भाई थोड़ देर तो सब्र तो करो! फिर मैं इस लिए मुस्करायी की राज को मेरे बिना कुछ पल भी रहा नहीं जाता।
पर मैं फ़ोन उठाती कैसे? मेरे एक हाथ में ड्रायर था दूसरे हाथ मैं मैंने तौलिया पकड़ रखा था। मैंने फ़ोन टेबल पर रखा और हैंड्स फ्री स्पीकर मोड में रखकर मैं बोली, “तुम्हें पांच मिनट का भी इंतजार नहीं होता क्या?”
राज ने कहा, “चेक करो डार्लिंग! पिछले कॉल से ठीक पांच मिनट के बाद ही फ़ोन किया है।”
मैं हंस पड़ी और बोली, “अरे भाई मैं ठीक से नहाऊँ तो सही! अभी भी में तौलिये में लिपटी हुई, करीब आधी नंगी खड़ी हूँ। चलो ठीक है भई, बोलो क्या बात है?”
राज ने कहा, “आय हाय! जानू, काश मैं वहाँ होता और तुम्हें उस हालत में देखता! तो पता नहीं क्या हो जाता!”
मैंने राज को उकसाते हुए कहा, “क्या हो जाता? तुम तो मुझे रोज ऐसी हालत में देखते रहते हो।”
राज ने कहा, “पर आज की बात कुछ और है। आज तो तुम कुछ मस्ती कर के आयी हो! आज तो मैं तुम्हें अपनी बाहों में उठाता और उठाकर बैडरूम में ले जाता और तुम्हारी छेड़खानी की पूरी कहानी सुनकर तुम्हारी खूब चुदाई करता। देखो, तुम्हारे साथ बातें करते हुए मेरा लण्ड भी खड़ा हो गया है। अफ़सोस की तुम मेरे साथ नहीं हो। अब तो मुझे मूठ मार कर ही काम चलाना पड़ेगा। थोड़ी देर रुकने के बाद राज ने पूछा, “यह बताओ आज क्या हुआ? 
मैंने राज को पूरी कहानी सुनाई। कैसे बॉस ने मुझे काम दिया। जय ने मुझे मी काम में पूरा साथ दिया और वह रिपोर्ट अच्छी तरह से बनायी। जब हम निकले तो मैं बारिश में पूरी भीग गयी थी। मेरे सारे कपडे बदन से चिपक गए थे। सब लोग आते जाते मुझे देखकर कैसे घूरते रहते थे। जय ने भी मुझे ऐसी करीब नंगी देखा तो उसकी आँखों में भी कैसे लोलुपता का भाव आया था। उसके बाद मैंने राज को बताया की एक कार वाले ने कार रोकी और हमें बिठाया और मुझे मजबूरन यह कहना पड़ा की जय राज हैं और मुझे उसकी गोद में बैठना पड़ा। मैंने राज को यह भी कहा की चूँकि मेरे स्तन मेरे पल्लू से ढके हुए थे तो उसका जय ने पूरा फायदा उठाया और पुरे रास्ते में मेरी चूँचियाँ को दबाता और सहलाता रहा और मैं कुछ न कर सकी।“
फिर मैं चुप हो गयी। मेरी आगे की बात बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पर राज कहाँ रुकने वाले थे? उन्होंने पूछ ही लिया जो मैं उन्हें बताने में झिझक रही थी। उन्होंने पूछा, “तो तुम जय की गोद मैं बैठी थी, है न? तो फिर उसका लण्ड खड़ा नहीं हुआ था क्या?”
मैं राज को जुठ बोलकर धोखा नहीं देना चाहती थी। मैंने बड़े रंज के साथ कहा की “हाँ उसका लण्ड भी खड़ा हो गया था और मेरी पिछवाड़े में ठोकर मार रहा था।“
यह सब बताते हुए मैं रोने लगी। मैंने राज से कहा, “मुझे अफ़सोस है की आज मुझे कबुल करना पड़ रहा है की मैंने जय की ऐसी शरारत का कोई विरोध नहीं किया और मैं भी ऐसी हलकी हरकतों का मझा लेती रही। अब मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा है।”

राज ने कहा, “अरे जानूं, तुमतो बिलकुल बुद्धू हो। रोती क्यों हो? क्या हुआ? कुछ नहीं हुआ। थोड़ा सा जोश में आकर अगर जय ने कुछ कर दिया तो कौनसा आसमान टूट पड़ा? अब चुप हो जाओ। तुम्हें गुस्सा आ रहा है? मैं तुम्हारी बात सुनकर उत्तेजित हो रहा हूँ। काश मैं वहाँ होता! पर क्या करूँ? तुम तो देख नहीं सकती, पर मैं बताऊँ की मेरा लण्ड तुम्हारी बातें सुनकर खड़ा हो गया है। मैं इस वक्त उसे मेरे हाथों में लेकर जोरों से हिला रहा हूँ।” न चाहते हुए भी राज की बात सुनकर मुझे हंसी आगयी। मैंने राज से कहा, “पता नहीं तुम कैसे पति हो, जो अपनी पत्नी को इतना प्यार करते हो और इतनी छूट देते हो!”
मैंने राज को लम्बी सासें लेते हुए सुना। मैं समझ गयी की वह मुठ मार रहे थे। मेरे बेचारे पति! मैं भी उनकी बातें सुनकर उत्तेजित होने लगी थी। सोचती थी वाकई में अगर राज यहां होते तो मेरी तो शामत ही आ जाती। थोड़ी देर बाद एक लम्बी सांस लेते हुए राज बोले, “ओह.. आअह्ह्। डार्लिंग तुम्हारी बात सुनकर मजा आ गया।“ मैं जान गयी की राज के वीर्य का फव्वारा उनके हाथों में ही छूट गया था।
थोड़ी देर रुक कर बोले, “जय कहाँ है?”
मैंने कहा, “जय? वह तो मुझे छोड़ कर चले गए। ”
अचानक राज ने कुछ नाराजगी जताते हुए कहा, “चला गया? और तुमने उसे जाने दिया? इतनी बारिश में वह बेचारा इतनी दूर अपने घर कैसे जाएगा? उसे तुमने रोका क्यों नहीं? तुम कितनी मतलबी हो? उसने तुम्हें सहारा दिया और घर तक लाया तो बस? तुमने उसे छोड़ दिया? और जय भी कमाल है! इस हाल में तुम्हें छोड़ कर चला गया? मेरा मतलब है तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। तुम्हें जुखाम हुआ है। मैंने उसे कहा था की उसे तुम्हारा ध्यान रखना है।” तब अचानक मुझे ध्यान आया की जय ने कहा था की वह दवाई लेने के लिए जा रहा था।

तब मैंने राज से कहा की शायद जय गया नहीं था। वह शायद मेरे लिए दवाई लेने गया था। राज ने तब मुझे समझाते हुए कहा, “जानूं, आज रात के लिए उसे रोक दो। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। वह तुम्हें दवाई इत्यादि देगा और तुम्हारा ध्यान रखेगा।और हाँ, ध्यान रखना अगर जय ने तुम्हें कहीं छू लिया तो तुम फिर कोई ड्रामा मत करना। जय के साथ झगड़ा करके कोई और बखेड़ा मत खड़ा करना। और एक बात जो मैं तुम्हें हमेशा कहता हूँ ….”
मैंने राज की बात को आधे में ही काटते हुए कहा, “जानती हूँ ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो’ ठीक है न?”
राज मेरी बात सुनकर बहोत खुश हुए और बोले, “तुम वास्तव में मेरी जान हो। और हाँ, रात को अगर कुछ होता है तो मुझे जरूर बताना। मुझसे कुछ भी मत छुपाना। एक बार फिर से मैं कह रहा हूँ की अपने दिल की बात मानो और अपने आप को मत रोको। मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ और हर हाल में हमेशा करता रहूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए। तुम सही करो या गलत, मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। क्या तुम्हें कोई शक है?”
राज की बात सुनकर मेरी आखें नम हो गयीं। भला ऐसा पति किसी को मिलेगा क्या? मैंने कहा, “जानूं, मैं नहीं जानती तुम क्या सोच रहे हो। पर तुम निश्चिन्त रहो, मैं जय को रात के लिए रोकूंगी और तुम्हारे दोस्त को कुछ भी ऐसा नहीं कहूँगी जिससे उसे ठेस पहुंचे। मैंने बहुत भाग्य शाली हूँ की मैं तुम्हारी पत्नी हूँ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ। अब मैं बातें करके थक गयी हूँ और फ़ोन रखती हूँ, ओके? डार्लिंग, आई लव यू।” राज ने उत्तर में कहा, “डार्लिंग, आई लव यू टू।”
मैंने जैसे ही फ़ोन काटा तो पीछे से मुझे जय की खांसने की आवाज सुनाई दी। मेरा फ़ोन मेर हाथ से गिर पड़ा। मैं पलटी तो देखा की जय बैडरूम के दरवाजे पर खड़ा था। जय घर के अंदर कैसे आया? क्या जय ने मेरे और राज के बीच हुई बातों को सुन लिया था? मैं तो बात करते करते लगभग नंगी हालत में खड़ी थी। मेरा तौलिया छोटा था और मुझे पूरी तरह से ढक नहीं रहा था। मैं चिल्लाई और बोली, “तुम? तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम अंदर कैसे आये?” मैं एकदम बाथरूम की और भागी।

मैंने जय को हिचकिचाहट से भरी टूटीफूटी दबी हुई आवाज में जवाब देते हुए सुना, “देखो। … गुस्सा .. मत.. करो.. इसमें मेरी कोई… गलती .. नहीं थी। मैं तो .. दवाई .. लेने गया.. था। मैंने। दरवाजा खुला देखा। .. तो अंदर आ गया। तुम इस… हालात में होगी … उसका मुझे जरा.. भी … अंदाज़ नहीं था।
मैं शर्म के मारे मरी जा रही थी। मुझे जय की घबराहट भरी आवाज सुनकर गुस्सा भी आ रहा थाऔर हंसी भी। मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं रोऊँ या हँसूँ। मैंने अपनी हालत देखि। तौलिया या तो मेरी चूँचिया छिपा सकता था या तो मेरी इज्जत। तो मैंने अपनी इज्जत ढंकी। पर इस वजह से मेरे उद्दंड स्तन मंडल जो अकड़ से खड़े थे वह साफ़ साफ़ खुले दिख रहे थे।
मेरी फूली हुई निप्पलं मेरी उत्तेजना बयाँ कर रही थी। निप्पलोंके चारों और गोलाई में मेरे चॉकलेट रंग के एरोला फुले हुए दिख रहे थे। मेरे जीवन में पहली बार मैं एक परपुरुष के सामने ऐसी अधनंगी खड़ी हुई थी। मैं “प्ले बॉय” मैगज़ीन के कवर पेज की मॉडल की तरह लग रही थी। मैंने तौलिया सख्ति से पकड़ा और बाथरूम की और भागी।
बाथरूम का दरवाजा जय के पीछे था। वहाँ जाने के लिए मुझे जय के पास से ही गुजर ना पड़ता था। मैं जैसे ही जय के पास से निकली तो जय ने मुझे अपनी बाहों में पकड़ लिया। वह मुझे चुम्बन करना चाहते थे। उन्होंने मेरे मुंह को अपनी तरह करने की कोशिश की। पर मैंने उनका हाथ मेरे मुंह से हटा दिया। तब उन्होंने मेरे खुले हुए दोनों स्तनों को दोनों हाथों में पकड़ा और उत्तेजना से उन्हें अपने हथेलियों में सहलाने लगे और मेरी फूली हुई निप्पलों को जोर से दबाने लगे। उनकी शकल उनका हाल बयान कर रही थी।
जय की आँखों में लोलुपता झलक रही थी। उनकी आँखें नम थीं और जैसे मुझे उनकी बाहों में आनेके लिए मिन्नतें कर रही थी। उनमें आत्मविश्वास नहीं था। वह परेशान और अनिश्चित नजर आ रहे थे। उस समय मेरा हाल भी कोई ज्यादा अच्छा नहीं था। मैं भी उनकी बाहों में जाने के लिए एकदम अधीर हो उठी और मैंने एक सेकंड के लिए सोचा “अब जो होगा सो देखा जाएगा।”.
पर तभी मेरी बुद्धि ने कहा “नहीं, अगर तू अब रुक गयी तो समझले जय तुझे छोड़ेंगे नहीं। तू जरूर उनसे चुद जाएगी, और अपने पति को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगी। ”
मैंने जय के हाथों करारा झटका देते हुए कहा, “यह क्या कर रहे हो? मुझे छोडो।” जय ने मुझे छोड़ दिया और मैं भागती हुई बाथरूम में जा पहुंचि।
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09-08-2018, 01:53 PM,
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RE: Free Sex Kahani प्यासी आँखों की लोलुपता
मैंने दरवाजे की कुण्डी अंदरसे बंद की और चैन की सांस ली। मुझे समझ नहीं आरहा था की मैं जय पर गुस्सा करूँ या उससे डरूं। यह झंझट और मानसिक तनाव से मुझे सर दर्द होने लगा था। मेरी छींकें फिर से चालु हो गयीं। बाथरूम में मेरे पहनने के कपडे नहीं थे। मैंने जय को आवाज लगाई, “जय, प्लीज मेहरबानी करके मुझे अलमारी में से बदलने के लिए कपडे दे दो?”
चंद सेकंडों बाद मुझे बाथरूम के दरवाजे पर जय ने दस्तक दिए। मैंने धीरे से थोड़ा सा दरवाजा खोला और उसके पीछे छिपते हुए मेरे कपडे जय से लिए और फटाक से दरवाजा बंद कर दिया। मुझे डर था की कहीं जय दरवाजे में अपना पाँव न अड़ा दे और मुझे उस नग्न हाल में देखने की जिद न करे। अगर जय ने ऐसा किया होता और मुझे नग्न देख लिया होता तो? यह सोच कर मेरी रगों में रोमांच फ़ैल गया। मुझे ऐसी उत्तेजना क्यों हो रही थी? क्या मैं चाहती थी की जय मुझे नग्न हालत में देखे?

मैंने जय के लाये हुए कपडे देखे। उसने मुझे सिर्फ मेरा गाउन दिया था। बेचारा जय। या तो उसको मेरी ब्रा और पैंटी मिली नहीं अथवा तो उसको मुझे उन कपड़ों को देने में शर्म आ रही थी। खैर, मैंने धीरे से कपडे बदले और वही गाउन पहन लिया और अंदर वाले कपडे नहीं पहने। मैंने दरवाजा थोड़ा खोल के देखा तो जय वहीं खड़े थे। मैं उस समय भी ठीक परिवेश में नहीं थी पर मैं थक गयी थी। मैं बाहर आ गयी। मैंने जय से बाथरूम में जाकर तौलिये से खुद को पोंछ कर कपडे बदल ने को कहा। मैंने राज का कुर्ता पजामा उसे दे दिया और मैं बैडरूम में चली गयी।
मैं अपने आप में शर्म और गुस्से से त्रस्त थी। मैं कैसे दरवाजा बंद करना भूल गयी? एक तरफ मैं अपने आप को कोस रही थी तो साथ साथ में मुझे एक अद्भुत रोमांच का भी अनुभव हो रहाथा। यह ऐसा अनुभव था जो मुझे स्कूल में जब मैं छोटी थी और सेक्स के बारे में कुछ नहिं जानती थी तब एक लड़के ने मुझे पकड़ कर होंठ पर चुम्बन किया था तब हुआ था। मुझे गंदा, उत्तेजक, विचित्र, बीभत्स जैसे अलग अलग तरह के भाव मनमें एक साथ हुए।
मैं जय से काफी नाराज थी। मान लिया की मैंने गलती से दरवाजा खुला छोड़ा था। पर उसे दरवाजा खटखटाना तो चाहिए था। मैंने उसे चिल्लाते हुए ऊँचे आवाज़ में बैडरूम में से कहा, “जय, सभ्य लोग अंदर आने से पहले दरवाजा खटखटाते हैं।” 

तब फिर जय घबड़ायी हुई आवाज में बोलै, ‘मैंने तो दरवाजा काफी समय तक खटखटाया था। पर तुम तो उस समय अपने पति के साथ बात कर रही थी और मेरे दरवाजे खटखटा ने की आवाज नहीं सुनी तो क्या करता? तो फिर मैं अंदर आगया।”
जय की बात सही थी। तब मुझे याद आया की जब मैं बात कर रही थी तो मैंने दरवाजा खटखटा ने की आवाज सुनी थी, पर राज के साथ बात करते करते मैंने आवाज पर उस समय ध्यान नहीं दिया था। दोष तो मेरा ही था पर बेचारे जय को मैंने बिना वजह बुरी तरह झाड़ दिया। मुझे जय के लिये बुरा लगा।
मैंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनी थी, पर मैं इतनी थकी हुई थी की तब और कपडे पहनने की हालत में नहीं थी। मैं पलंग के एक छोर पर बैठी और मैंने जय से कहा, “जय, मैं बहुत थक गयी हूँ। मुहे बहुत जुखाम भी हुआ है और चक्कर आ रहें है। पूरा बदन दर्द कर रहा है। मैं कुछ भी खाना बनाने की स्थिति में नहीं हूँ। मैं थोड़ी देर लेटना चाहती हूँ। कुछ खाना बना हुआ फ्रिज में रखा है। क्या मैं थोड़ी देर सो लूँ और फिर तुम्हारे लिए खाना गरम कर दूँ और कुछ चपाती बना दुँ तो चलेगा? आप चाहो तो ड्राइंग रूम में बैठ कर टीवी देख सकते हो।”
मैं आगे कुछ बोलूं उसके पहले मैं पलंग पर गिर पड़ी और गहरी नींद में सो गयी। मुझे लगा की शायद जय ने मेरे ऊपर चादर ओढ़ा दी थी।
हालांकि मैं गहरी नींद में सोई हुई थी पर मेरे दिमाग में कई धुंधली भ्रमित छबियाँ और चलचित्र आते जाते रहते थे। मुझे सपना आया की कोई काला सा आदमी मेरे सर के ऊपर मंडरा रहा था और जोर जोर से बोल रहा था, “तुमने होम वर्क नहीं किया है। तुम्हें सजा मिलेगी। …” क्या वह मेरे बॉस थे? इतने में ही एक बहुत बड़ा कॉक्रोच मुझ पर आक्रमण करने लगा और मैं चिल्लाने लगी, पर मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। अचानक जय जैसा ही कोई इंसान मुझे अपनी बाहों में लेकर कुछ पीला रहा था ऐसा मुझे आभास हुआ।
जब जय ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था तब अचानक एक बहुत विशाल काय पक्षी मुझ पर टूट पड़ा और आक्रमण करने लगा। मैं जय से चिपक गयी और जोर जोर से चिल्लाने लगी, “जय मुझे बचाओ, यह मुझे खा जाएगा….। प्लीज …… ”
और उस बार मेरे गले में से जोरोंसे चीखें निकली और मैंने अपनी आवाज सुनी भी।
तब जय ने मेरी पीठ सहलाते हुए मुझे हलके से और प्यार भरे शब्दों में कहा, “प्यारी डॉली, सब ठीक है। यहां कोई नहीं है। शांत हो जाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ न?”
जय की इतने करीब से धीमी और मधुर आवाज सुनकर मैं जाग उठी और देखा तो जय का चेहरा मेरे शेहरे के साथ लगभग जैसे सटा हुआ था। जय का चेहरा मेरे इतने करीब था की मैं थोड़ा सा और उठती या जय थोड़ा सा और झुकता तो हमारे होंठ मिल जाते। एक पल के लिए मरा मन भी किया की मैं जय को चुम लूँ, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

जय ने धीरे से मुझे पलंग पर बिठाया। मैंने घडी में देखा तो रात के ११.३० बजे थे। इसका मतलब हुआ की मैं करीब एक घंटे सोई थी। मुझे धीरे से समझ आया की जब मुझे बुरे सपने आ रहे थे तब जय ने मुझे उठाया, पलंग पर बिठाया और मुझे कुछ दवाइयां दी थीं। जय ने जब देखा की मैं उठ गयी थी तब उन्होंने मुझे जुखाम की दवाई दी और उसे पानी के साथ निगल जाने को कहा.
मैंने जब प्रश्नात्मक दृष्टि से जय को देखा तो जय ने कहा, “चिंता मत करो, यह तुम्हारे लिए जुखाम, बदन में दर्द और बुखार की दवाइयां है। इन्हें मैं डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार दवाई की दूकान से लाया हूँ। और एक और बात, आप जब सो रहीं थीं तो मैंने न तो आपके कपडे उतारे और न ही कोई गलत काम किया है।”
मैं समझ गयी की मेरे डाँटने से जय को काफी दर्द हुआ था और वह उस कारण बड़ा ही दुखी था।

मैंने मुस्करा कर जय के कानों में धीमी आवाज में कहा, “बकवास मत करो। मैंने तुम्हें गलत ही झाड़ दिया। मैं तुम पर चिल्लाने और सख्त शब्दों के प्रयोग के लिए माफ़ी मांगती हूँ। वह शब्द मेरे मुंहसे मेरी झुंझुलाहट के कारण अकस्मात ही निकल पड़े। मैं जानती हूँ की तुम सभ्य हो और कोई उलटिपुलटि हरकत नहीं करोगे। अगर आज तुमने कुछ किया भी होता तो मैं तुम्हें कुछ न कहती। हे बुद्धू राम! तुमने आज मेरी जान बचाई और मुझे ठीकठाक घर ले आये और मेरी अच्छी देख भाल की जो शायद राज भी न करते। मुझे पता नहीं मैं तुम्हें कैसे धन्यवाद दूँ?”

ऐसा कहकर मैंने जय को अपने करीब खींचा और उसे लिपट गयी और काफी लम्बे समय तक लिपटी रही और फिर उसके होठों के एकदम करीब उसके गाल पर मैंने एक गहरा चुम्बन किया। मैं इतनी आवेश में थी की मेरा मन किया की मैं जय के होंठ चुम लूँ। पर मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को नियत्रण में रखा। बेस्ट हिन्दी चुदाई कहानी देसी टेल्स
मैंने जब जय के गाल चूमे तो जय की शक्ल देखने वाली थी। वह काफी समय तक अजीब ढंग से बिना कुछ बोले वहीं पर बैठा रहा। थोड़ी देर बाद जय ने कहा, “जब तुम सो रही थी तब राज का एक बार फ़ोन आया था। राज को मैंने तुम्हारी तबियत के बारे में बताया और कहा की तुम उस वक्त सो रही थी। तब राज ने मुझे कहा की वह एक घंटे बाद फ़ोन करेगा। राज ने मुझे यहीं रुक जाने को भी कहा। पर मैंने उसे कहा की देर रात हो चुकी थी और मुझे घर जाना चाहिए। तब राज ने जब तक तुम उठ न जाओ तब तक मुझे रुक ने के लिए कहा। अब तुम उठ गयी हो तो फिर मुझे जाना चाहिए।”
ठीक उसी वक्त मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी। मैंने जय को बैठने का इशारा किया। वह राज का फ़ोन था। राज ने मेरी तबियत के बारें में पूछा. उसे मेरी चिंता हो रही थी। मैंने कहा की जय मेरे साथ ही था और मुझे बेहतर लग रहा था। मैंने यह भी कहा की जय जाना चाहता था। तब राज एकदम गुस्सैल हुए और मुझे फ़ोन जय को देने के लिए कहा। जब जय राज से बातें करने लगे तो मुझे लगा की राज जय को खूब डाँट रहे थे और जय के मुंह से जवाब में आवाज भी नहीं निकल रही थी। जय की शकल खिसियानी लग रही थी।

थोड़ी देर बाद जय ने फ़ोन बंद किया और बोले, “लगता है आज मेरा डाँट खाने का ही दिन है। तुमसे डाँट खाने के बाद तुम्हारे पति ने भी मुझे झाड़ दिया और मुझे कह दिया की अब मुझे घर नहीं जाना है और यहीं तुम्हारे साथ ही रहना है। मुझे समझ में नहीं आता की मैं क्या करूँ?” 
मैं जय की बात सुन कर हंस पड़ी और बोली, “तो तुम यहां से जाने के लिए क्यों अड़े हुए हो? और फिर इतनी तेज बारिश में इतनी रात गए तुम जाओगे कैसे? तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड वहां तुम्हारा इंतजार कर रही है क्या, जो ऐसे जिद पकड़ के बैठे हो? मैं तुम्हें खा नहीं जाउंगी। तुम जाकर के ड्राइंग रूम में सो जाओ। ”
जय ने कहा, “जब तुम सो रही थी तो मैंने खाना तैयार कर लिया है। अब तुम्हें खाना बनाने की जरुरत नही है।” ऐसा कह कर जय ने चावल चपाती और कुछ सब्जी एक प्लेट में मेरे सामने रख दी।
मेरा खाने का मन नहीं था। पर जय ने अपने हाथों से जबरदस्ती मुझे यह कह कर खिलाया की खाली पेट में दवाइयों का बुरा असर पड़ेगा। जय और मैंने चुपचाप थोड़ा खाया। जय ने फिर प्लेट्स हटाकर किचन के बेसिन में साफ़ कर दी और वापस मेरे पास आ गये।
मेरा शर्दी और जुखाम कम हो गया था, पर बदन टूट रहा था , मेरे कांधोंमें और पाँव में सख्त दर्द हो रहा था। मैंने दो हाथों में अपना सर पकड़ा जय की और देखा। मुझे कपकपी सी आ रही थी। शायद बुखार भी था। जय ने देखा की मैं कष्ट महसूस कर रही थी। जय ने तुरंत मुझे पलंग पर लिटाया और मुझे चद्दर ओढ़ाई। जय ने मेरे सर पर हाथ रख कर मेरा तापमान चेक किया। शायद मुझे थोड़ा बुखार था। मेरी ऑंखें लाल हो रही थी और नींद आ रही थी। जय ने मुझे “पैरासिटेमोल” दवाई दी और मुझे लेटने को कहा।
मैंने जय की और देख कर कहा, “रुकने के लिए धन्यवाद। अगर तुम चले गए होते तो मुझे दिक्कत होती।”
जय ने कहा, “ठीक है, पर बस अब मैं यहीं हूँ और कहीं जाने वाला नहीं हूँ। अब तुम आराम करो और अगर तुम्हें कोई भी चीज़ की जरुरत हो तो मैं यहाँ ही बैठा हूँ।”
मैंने जय का हाथ पकड़ा और मैंने लेटने की कोशिश की पर मेरी पीठ में बहुत दर्द हो रहा था। मैंने अपने कन्धों को अपने अंगूठों से दबाने की कोशिश की जिससे थोड़ा आराम मिल सके। जय ने देखा की मुझे कन्धों में दर्द हो था तो उसने मुझे बैठाया और ऐसे घुमाया जिससे मेरी पीठ उस की तरफ हो। फिर उसने अपने दोनों हाथ मेरे कंधे पर रख कर अपने अंगूठे से मेरे कन्धों की रीढ़ को जोरों से दबाया। शुरू में तो मुझे दर्द हुआ। परन्तु कुछ समय बाद मुझे बेहतर लगा और आराम हुआ। मैंने जय से कहा, “”सही है, ठीक लग रहा है। जारी रखो। “
जय ने मुझे अपनी और खींचा और कहा, “तुम थोड़ा और करीब आ जाओ जिससे मैं तुम्हारे कन्धों को ठीक तरह से दबा सकूँ।”
मैं और कितना पीछे खिसक सकती थी? मेरे कूल्हे तो जय के पाँव से सटे हुए ही थे। जय अपने पांव की गुथ्थी मार कर बैठा हुआ था। जय ने मुझे मेरी बगल में हाथ डालकर ऊपर उठाया जिससे मैं कूल्हों को थोड़ा उठाकर जय की गोद में जा बैठूं। अब जय का हाथ आराम से मेरे कन्धों की पसलियाँ को ठीक से दबा सकता था। उस शाम यह दूसरी बार मैं जय की गोद मैं बैठ रही थी। मैंने एक बार सोचा भी की मैं उसका विरोध करूँ, पर क्या फायदा? मैं एक बार पहले भी तो अपनी ही मर्जी से उसकी गोद में बैठ गयी थी!
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