Free Sex Kahani चमकता सितारा
05-29-2019, 12:13 PM,
#11
RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
रात हो चुकी थी.. उस रात का खाना हम दोनों ने मिल कर बनाया था। वो सोफे पर बैठ गई.. मैंने उसकी गोद में सर रखा और फर्श पर बैठ गया। डॉली मुझे खिलाने लग गई। मैं तो बस उसे देखता ही जा रहा था, पता नहीं फिर कब उसे जी भर कर देखने का मौका मिले।
हमारा खाना-पीना हो चुका था और मम्मी का कॉल भी आ चुका था तो अब जाने का वक़्त हो चुका था।
डॉली की आँखें भी नम हुई जा रही थीं.. वो कुछ कहना चाह रही थी.. पर बात उसके गले से बाहर नहीं आ पा रही थी।
ना मुझमें अब कुछ बोलने की हिम्मत बची थी।
मैं दरवाज़े की ओर मुड़ा और दरवाज़ा खोल ही रहा था कि डॉली का मोबाइल बज उठा।
कॉलर ट्यून थी ‘लग जा गले.. कि फिर हसीं रात हो ना हो… शायद इस जन्म में मुलाक़ात हो ना हो..’
मैं पलटा और डॉली को जोर से बांहों में भर लिया, हम दोनों रोए जा रहे थे।
थोड़ी देर ऐसे ही रुक मैंने खुद को उससे अलग किया और दरवाज़े से बाहर आ गया।
मेरे सीने में आग लगी हुई थी, मैं जोर जोर से चिल्लाना चाह रहा था।
मैं थोड़ी देर अकेला रहना चाहता था पर कहते हैं न- ‘बड़ी तरक्की हुई है इस देश की मेरे दोस्त… तसल्ली से रोने की जगह भी नहीं है यहाँ तो..’
सारे दर्द को यूँ ही सीने में दबाए.. मैं अपने कमरे में आ गया। अब मुझमें कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं बची थी.. मैं सोने चला गया।
उस दिन को बीते लगभग एक हफ्ता हो गया था। यूँ तो हर रोज़ हम किसी न किसी बहाने से मिल ही लेते थे.. पर आज शाम से डॉली का कोई पता ही नहीं था, उसके घर में भी कोई नहीं था, मैंने अपना सेल फ़ोन निकाला और डॉली को मैसेज किया।
‘कहाँ हो? मैं छत पर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।’
डॉली का ज़वाब थोड़ी देर में आया- मैं पटना में हूँ.. कल मिलती हूँ।
आखिर वो पटना में क्या कर रही है..? यह सवाल मुझे परेशान किए जा रहा था। मैं नीचे गया, मम्मी नूडल्स बना रही थीं।
मैं- मम्मी.. वो डॉली के घर पर कोई नहीं है। सब कहीं गए हैं क्या?
मम्मी- डॉली ने तुम्हें नहीं बताया है क्या?
मैं- कौन सी बात.?
मम्मी- आज डॉली की सगाई है। लड़के वाले पटना के हैं.. सो वहीं किसी होटल से हो रही है।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाला। जब से डॉली की शादी की बात हुई थी.. मुझे लगा था कि मैं डॉली और उसके परिवार वालों को मना लूँगा। डॉली की प्यार भरी बातें उसका मेरे करीब आना.. यूँ मुझ पर अपना हक़ जताना। अब तो जैसे सब बेमतलब सा लग रहा था।
उसे जब यही करना था.. तो मुझे उसने ये एहसास क्यूँ दिलाया कि सब ठीक हो जाएगा। क्यूँ उसने मुझे खुद से दूर जाने ही नहीं दिया। क्या प्यार बस खेल है उसके लिए..
सुना था कि दिलों से खेलना भी शौक होता है.. पर जान लेने का यह तरीका कुछ नया था मेरे लिए..
आज मैं एक बात तय कर चुका था.. उसकी हर याद को मिटाने की.. मैंने शुरुआत उसकी तस्वीरों से की.. छत पर गया और मैंने उसकी तस्वीरों को उसी के घर की छत पर रख कर आग लगा दी।
हर जलती तस्वीर और मेरे आंसुओं की हर बूँद के साथ उसकी हर याद को मैं खुद से अलग कर देना चाहता था।
पर मैं इस प्यार का क्या करता.. जो मेरे दिल की हर धड़कन के साथ उसके मेरे पास होने का एहसास कराता जा रहा था।
मैं गुमसुम सा हो गया उस दिन के बाद..
मुझे किसी अजनबी के पास जाने से भी डर सा लगने लगा था.. अब तो अपनी धड़कन भी पराई सी लगती थी।
मैं अब ना तो कहीं जाता और ना ही किसी से बात करता। माँ ने बहुत बार मुझसे वजह जानने की कोशिश की.. पर मैं उन्हें क्या बताता कि उनके बेटे को उसके अपने दिल का धड़कना गंवारा नहीं..
डॉली की शादी की तारीख 15 मई को तय हुई थी। मैं बस इस सैलाब के गुज़र जाने का इंतज़ार कर रहा था।
जैसे-जैसे दिन करीब आ रहे थे.. मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी।
उसकी शादी में अब दो दिन बचे थे। शादी के गीतों का शोर अब मेरे बंद कमरे के अन्दर भी सुनाई देने लगा था।
मैं पापा के कमरे में गया और वहाँ उनकी आधी खाली शराब की बोतल ले छत पर आ गया।
रात के 8:30 बजे थे.. मैंने अपनी छत के दरवाज़े को बंद किया और किनारे की दीवार के सहारे जमीन पर बैठ गया।
जब-जब शराब की हर घूंट जब मेरे सीने को जलाती हुई अन्दर जाती.. तब-तब ऐसा लगता.. मेरे जलते हुए दिल पर किसी ने मरहम लगाया हो।
मेरी आँखें अब बंद थीं.. अब तो मैं यह मान चुका था कि मैंने किसी बेवफा से मोहब्बत की थी।
तभी ऐसा लगा मानो कोई मेरी शराब की बोतल को मुझसे दूर कर रहा हो। मैंने अपनी आँखें खोलीं… सामने डॉली थी।
मैं डर गया और लगभग रेंगता हुआ उससे दूर जाने लगा।
‘ज..जाओ यहाँ से..’ मैं लगभग चिल्लाते हुए बोला।
मेरी दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चुकी थी.. मेरा पूरा शरीर कांप रहा था।
डॉली- क्यूँ जाऊँ मैं.. तुम ऐसे ही घुट-घुट कर मरते रहो और मैं तुम्हें ऐसे ही मरते हुए देखती रहूँ..
मैं- जान भी लेती हो और कहती हो.. तुम्हारा तड़पना मुझे पसंद नहीं.. जाओ शादी करो और अपनी जिंदगी में खुश रहो। अब तो तुम्हारी हमदर्दी भी फरेब लगती है मुझे..
डॉली ने मेरे पास आते हुए कहा- मत करो मुझसे इतना प्यार.. मैं लायक नहीं तुम्हारे प्यार के..
मैं- दूर रहो मुझसे.. और किसने कहा कि तुमसे प्यार करता हूँ मैं..
उँगलियों से उसे दिखाते हुए मैंने कहा- मैं इत्तू सा भी प्यार नहीं करता.. तुम्हें..
डॉली मेरे गले से लग गई- पता है मुझे..
मैं- अब क्या बचा है.. जो लेने आई हो।
डॉली ने मेरी बोतल से एक घूंट लगाते हुए कहा- कुछ नहीं.. बस अपनी जिंदगी के कुछ बचे हुए पलों को तुम्हारे साथ जीने आई हूँ।
मैं- तुम्हें कुछ महसूस नहीं होता क्या..? जब चाहो दिल में बसा लिया.. जब जी चाहा.. दिल से दूर कर लिया।
डॉली- होता है न.. पर दिल से दूर करूँगी तब न.. तुम तो हमेशा से मेरे दिल में हो.. तो मुझे क्यूँ दर्द होगा।
मैंने उसकी सगाई की अंगूठी देखते हुए कहा- किसी और के नाम की अंगूठी पहनते हुए भी कुछ महसूस नहीं हुआ क्या?
डॉली- जब पापा मेरे लिए प्यार से कुछ कपड़े लाते थे.. तो उसे पहन कर बहुत खुश होती थी मैं.. घर में सबको डांस कर-कर के दिखाती थी कभी.. आज मेरी इस अंगूठी के पहनने से उन्हें ख़ुशी मिल रही है.. तो मैं उनके लिए इतना भी नहीं कर सकती? जिन्होंने दिन-रात मेहनत की और मेरी हर कामना को पूरा किया.. आज मैं उन्हें थोड़ी सी भी ख़ुशी दे सकूँ.. तो ये मेरे लिए खुशनसीबी होगी।
मैं- अपने मम्मी-पापा की ख़ुशी का ख्याल है तुम्हें और मैं..? जब से तुम्हें जाना है.. तुम्हारे लिए ही जिया है मैंने..। जब से तुमसे प्यार हुआ है तब से तुम्हारे हर दर्द को बराबर महसूस किया है मैंने..। तुम्हारे लबों पर एक मुस्कान के लिए.. तुम्हारी हर ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश की है मैंने.. और मैंने क्या चाहा था तुमसे… तुम्हारा प्यार..। तुमने तो उसे भी किसी और के नाम कर दिया।
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05-29-2019, 12:13 PM,
#12
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डॉली- तुम्हारे इस सवाल का जवाब भी बहुत जल्द दे दूँगी.. पर तुम्हारी ये हालत मैं नहीं देख सकती। अपना हुलिया ठीक करो और याद है न तुमने मुझसे वादा किया था कि मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले तुम ही देखोगे। आओगे न..? मेरी आखिरी ख्वाहिश समझ कर आ जाना।
मैं- काश कि मैं तुम्हें ‘ना’ कह पाता.. हाँ मैं आऊँगा..
डॉली अपने घर चली गई। आज बहुत दिनों के बाद मुझे नींद आई थी। शादी वाला दिन भी आ चुका था। आज एक वादे को निभाना था। अपने लिए ना सही.. पर आज अपने प्यार के लिए मुस्कुराना था मुझे.. सुबह-सुबह मैंने शेविंग कराई.. बाल ठीक किए और डॉली की गिफ्टेड शर्ट और पैंट को ठीक किया।
शाम तक मैंने अपने आपको घर में ही व्यस्त रखा। अपने चेहरे से मुस्कान को एक बार भी खोने ना दिया। कभी आँखों में आंसू आए.. तो कुछ पड़ने का बहाना बना देता।
शाम को चाचा जी घर पर आए- विजय.. पापा को भेजना जरा..
मैंने जवाब दिया- जी.. घर पर अभी कोई भी नहीं है.. सब बगल में शादी में गए हुए हैं।
चाचा जी- और तुम?
मैं- हाँ.. बस थोड़ी देर में घर में ताले लगा कर मैं भी जाऊँगा।
चाचा जी- ठीक है ये लो पैसे.. पापा को दे देना, पचास हज़ार हैं.. गिन कर अन्दर रख दो।
मैं- पापा को ही दे दीजिएगा।
चाचा जी- तुम्हारे पापा का ही है और बार-बार इतने पैसे लाना ले जाना सुरक्षित नहीं है।
मैंने पैसे गिने और कहा- ठीक है.. अब आप जाईए.. मैं पापा को दे दूँगा।
चाचा जी चले गए।
अब मेरे लिए परेशानी थी कि इस रकम को रखूँ तो कहाँ रखूँ। लॉकर की चाभी पापा कहीं रख कर गए थे। सो मैंने उस हज़ार की गड्डी के दो हिस्से किए और आधा अपनी एक जेब में और बाकी आधा.. दूसरी जेब में रख लिया।
आज वैसे ही कोई कम चिंता थी क्या.. जो एक और भी आ गई। अब तक मैंने अपने दिल को मना लिया था। मैं जानता था.. खुद को काबू में रखना मुश्किल होगा.. पर मैंने सोच लिया था कि किसी और के सामने अपनी भावनाओं को आने से रोकूंगा। अगर किसी और के साथ घर बसाने में ही डॉली की ख़ुशी है.. तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा।
वक़्त अब हो चला था, डॉली तो अब तैयार भी हो गई होगी, मैंने घर को ताला लगाया और डॉली के घर की तरफ बढ़ चला।
डॉली के घर की ओर मेरे हर बढ़ते कदम मेरे दिल की धड़कन को तेज़ और तेज़ किए जा रहे थे, मैं मुख्य दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ। सभी अपने-अपने काम में लगे थे।
मैं सबको नमस्ते कहता हुआ डॉली के कमरे के पास पहुँचा, उसकी बहनें और भाभियाँ उसे घेर कर उसका श्रृंगार कर रही थीं।
मैं खांसता हुआ कमरे में घुसा- अरे मेरे टीपू सुलतान.. जंग की तैयारी हो गई क्या?
मैंने देखा कि डॉली के मुझे देखते ही उसकी आँखों से आंसू बहने लगे थे, वो बोली- भाभी आप सबको थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाईए।
सबके बाहर जाते ही उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और बहुत जोर-जोर से रोने लगी।
मुझे ऐसा लगा कि जैसे इतने दिनों से उसने जो दर्द अपने अन्दर भरा हुआ था.. आज वो सैलाब रुक ना सका।
‘बहुत दुःख दिया है न मैंने तुम्हें? अब कोई तुम्हें परेशान नहीं करेगी।’ मेरे गाल खींचते हुए डॉली बोली।

मैं- तुम्हारे नाम का दर्द भी ख़ास है मेरे लिए.. वरना औरों से मिली खुशियाँ भी ख़ुशी नहीं देती। वैसे जानू.. आज मैं देखने आया हूँ.. देखूँ तो कैसी लग रही हो..!
डॉली मुझसे थोड़ी दूर हटाते हुए अपना शादी का जोड़ा दिखाने लगी। इन तीन महीनों में बस एक ही बात थी.. जो मुझे डॉली में अजीब लगी थी।
उसकी आँखें कुछ कहती थीं और उसकी जुबान पर कुछ और ही बात होती थी।
आज जो उसकी आँखों में था.. वहीं उसके जुबां पर भी था।
डॉली- कैसी लग रहीं हूँ मैं?
मैं- जैसी मैं अक्सर अपने ख्यालों में तुम्हें देखता था.. पर ये नहीं मालूम था कि मैं अपने ख्यालों में किसी और की बीवी को देखता हूँ।
डॉली मेरे गले से लगते हुए बोली- आज भी ताने दोगे..? मेरी विदाई का वक़्त आ चुका है.. अब तो माफ़ कर दो। एक बात मानोगे मेरी… आज मुझे तुमसे एक तोहफा चाहिए।
मैं- कौन सा तोहफा?
डॉली- याद है जब तुमने मुझे पहली बार प्रपोज किया था। आज एक बार फिर से करो न।
मैं अपने घुटने के बल बैठ गया। उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर:
‘सुन मेरी मयूरी.. ये मोर तुझसे एक बात कहता है.. दिल तो उसका है.. पर तेरा ही नाम ये जपता रहता है। मेरे दिल में बस जा.. मेरी साँसों में समा जा.. मेरी नींद तू ले ले.. मेरा चैन तू ले ले.. पर सुन ले मेरी बात। जल्दी से तू ‘हाँ’ अब कर दे.. वर्ना कहीं आ ना जाए तेरा बाप।’
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05-29-2019, 12:13 PM,
#13
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मैंने ये लाईनें ख़त्म की और हम दोनों ही ज़मीन पर बैठ कर हंसने लगे।
डॉली- मेरी बात और थी.. पर अगर किसी और को ऐसे प्रपोज करोगे तो चप्पल खोल कर मारेगी। ऐसे करता है कोई प्रपोज..?
मैं- वही तो कह रहा हूँ.. नहीं आता है मुझे किसी को अपने दिल की बात बताना.. पर तुम तो हर बात बिना बताए समझती हो न.. मेरे साथ भाग चलो न..!
तभी आवाज़ आई ‘डॉली’ और डॉली की माँ लगभग चिल्लाते हुए कमरे में आ गई।
आंटी ने मेरी ओर देखते हुए कहा- जाओ यहाँ से.. तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है।
मैं- आज नहीं जाऊँगा.. आप मेरी बात सुन लो.. तब मैं चला जाऊँगा।
आंटी- ठीक है.. कहो.. क्या कहना है तुम्हें?
मैं- माना कि हमसे गलती हुई.. हमें हमारे रिश्ते के बारे में आपको बता देना चाहिए था.. हम तो छोटे थे.. नासमझ थे.. हमसे गलती हो गई। पर आपसे गलती कैसे हुई। आप तो समझदार थे.. अपने ही हाथों अपनी बेटी का गला घोंट दिया। कहते हैं कि एक माँ अपने बच्चे को सबसे अच्छी तरह जानती है। एक बार बस अपनी बेटी को देख कर आप कह दें कि वो खुश है। मैं कुछ नहीं कहूँगा और चुपचाप चला जाऊँगा..
आंटी चुप थीं।
मैंने कहा- आपकी खामोशी ने सब कह दिया मुझसे.. जाता हूँ मैं.. और मैं इस बात के लिए आपको कभी माफ़ नहीं करूँगा।
मैंने आंटी के सामने ही डॉली को गले लगाया और उसे चुम्बन किया।
‘जा रहा हूँ.. अपना ख्याल रखना।
डॉली मुझे रोकने को हाथ बढ़ा रही थी.. पर तब तक मैं जा चुका था।
मैं बाहर गया.. बाहर पापा खड़े थे।
पापा- क्या हुआ बेटा.. उदास दिख रहे हो?
मैं- कुछ ख़ास नहीं.. आपकी होने वाली बहू की शादी किसी और से हो रही है।
पापा- तुमने मुझे बताया क्यूँ नहीं.. तभी इतने दिनों से तुम परेशान थे। मैं डॉली के पापा से बात करता।
मैंने पापा की बात काटते हुए कहा- मैं डॉली के बारे में कहाँ कह रहा था.. मैं तो मज़ाक कर रहा था। मैं आता हूँ बारात में डांस करके।
मैं जल्दी से वहाँ से निकल आया.. कहीं पापा मेरी आँखों में आँसू न देख लें।
अब मैं पास के ही हाईवे पर था। शराब की दुकान खुली थी और लगभग बाकी सारी दुकानें बंद थीं।
शादियों के मौसम में यही दुकान तो देर तक चलती है। मैं दुकान में गया और स्कॉच की हाफ-बोतल ले आया।
पास में ही एक बंद दुकान की सीढ़ियों पर बैठ गया। थोड़ी देर में वहाँ जो बची-खुची दुकानें थीं.. वो भी बंद हो गईं।
अब तो वहाँ बिल्कुल अकेला सा लग रहा था। आसमान में दिवाली सा पटाखों का शोर.. दूर-दूर से आता बारात के गानों का शोर और मेरे मन के ख्यालों का शोर.. मैं वहाँ पर अकेला होता हुआ भी अकेला नहीं था।
यहीं बैठे-बैठे अब तक चार बारात मैं देख चुका था.. ना जाने कितने ही आशिकों के दिल वीरान होंगे आज की रात..
अभी मैं सोच ही रहा था कि एक और बारात गुजरने लगी। उसी में से एक उम्र में मुझसे थोड़ा बड़ा लड़का मेरे पास आया।
‘भाई यहाँ दारू की दुकान है क्या आसपास?’
मैं- नहीं भाई…
अपनी आधी बची बोतल आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- यही ले लो।
वो साथ में ही बैठ गया। बोतल लेने के साथ ही पूछा- पानी और चखना कहाँ है?
मैंने इशारे में ही कहा- नहीं है।
उसने पूछा- क्यूँ भाई आशिक हो क्या?
मैंने कहा- नहीं.. दीवाना हूँ।
वो हंसने लग गया। हाथ बढ़ाते हुए बोला- हैलो मैं रवि..
मैंने भी उससे हाथ मिलाया।
‘मैं विजय।’
रवि- चलो मेरे साथ.. ये बारात भी दीवानों की ही है।
वैसे भी मैं क्या करता, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं डॉली की शादी होता देख सकता। मैं रवि के साथ ही चल पड़ा।
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05-29-2019, 12:13 PM,
#14
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बारात पास की ही थी। रवि और उसके दोस्तों के साथ थोड़ी देर के लिए ही सही.. पर मैं भूल गया था कि आज डॉली की शादी है। बारात पहुँचने पर वहाँ भी शराब और कबाब का दौर चला।
अब नशा हावी हो चला था मुझ पर… सो थोड़ी देर के लिए नींद सी आ गई।
मैं वहीं बारात की गाड़ी में सो गया। तकरीबन पांच बजे मेरी नींद खुली, ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे गहरी नींद से जगाया हो।
मैं गाड़ी से बाहर निकला.. आस-पास कोई भी नहीं था। अपने चेहरे को धोया फिर अपना मोबाइल देखा। मैंने उसे रात को स्विच ऑफ कर दिया था।
अब उसे ऑन किया और अपने कदम घर की ओर बढ़ा दिए। तभी मोबाइल की घंटी बजी.. डॉली का मैसेज व्हाट्स ऐप पर आया था।
मैंने उसे देखा तो दो ऑडियो मैसेज थे।
पहला मैसेज-
‘आई लव यू जान.. मेरा यह आखिरी मैसेज तुम्हारे लिए.. मुझे माफ़ कर देना जय, मैंने इन तीन महीनों में तुम्हें बहुत दुःख दिए.. पर सच कहूँ तो तुमसे ज्यादा मैं जली हूँ इस आग में.. जब-जब तुम्हारी आँखों में आंसू आए.. तो ऐसा लगा कि किसी ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए हों। जब भी तुमने मुझे बेवफा की नज़रों से देखा.. तो मुझे खुद पर घिन सी आने लगी। जब पहली बार माँ को हमारे बारे में पता चला.. तो लगा कि ये तुरंत का रिएक्शन है.. अगर मैं शांत होकर- सब को समझाऊँगी तो सब मान जायेंगे। मैंने शादी की आखिरी रात तक अपने मम्मी-पापा को समझाने की कोशिश की.. पर कोई अपनी जिद के झुकने को तैयार ना हुआ। मैंने हर तरीका अपना लिया.. पर मैं तुम्हारी ना हो सकी। उन्होंने कहा था कि मैंने अगर तुम्हें अपनाया.. तो वो मौत को गले लगा लेंगे। जानू.. जिन्होंने मुझे जिंदगी दी.. उनकी मौत कारण मैं बनूँ.. ये कैसे हो सकता था। इसलिए मैंने एक फैसला किया। अगर मैं तुम्हारी ना हो सकी तो मैं किसी और की भी नहीं होऊँगी। ये ज़हर की शीशी मैं पीने जा रही हूँ। आई लव यू फॉर एवर..
मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं दूसरा मैसेज देख पाता। मेरी साँसें जैसे रुकने को हो आई थीं। मेरा दम घुटने लगा था। ये मैसेज रात बारह बजे का था। मैंने बहुत हिम्मत जुटा कर दूसरा मैसेज देखा।
दूसरा मैसेज-
जानू.. मेरा दम घुट रहा है.. पर एक बात मैं कहना चाहती हूँ.. तुम कभी खुद को अकेला मत समझना। मैं हमेशा तुम्हारे एकदम पास रहूँगी। जब भी मेरी याद आए तो अपनी आँखें बंद करना और अपनी बाँहें फैला लेना… मैं तुम्हारे गले लग जाऊँगी। अपना ख्याल रखना..
फिर एक हिचकी की आवाज़ आई और मैसेज ख़त्म..
मैं वहीं जमीन पर बैठ गया। मैं अब करूँ तो क्या करूँ.. जिसे अपनी दुनिया माना था मैंने.. वही मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गई।
मैं बीच सड़क पर बैठा चिल्लाता जा रहा था.. पर मुझे सुनने वाला वहाँ कोई भी नहीं था..
मैंने जिसे शादी के जोड़े में देखने का सपना संजोया था.. उसे कैसे कफ़न में लिपटा देखता। जिसके साथ जीवन के हर पड़ाव को पार करने का सपना देखा था.. कैसे उसे अकेले ही उसके आखिरी पड़ाव पर जाने देता। मुझे अब उसकी हर बात याद आ रही थी। मेरे पास वक़्त था.. मैं उसे रोक सकता था.. पर रोक न पाया।
मैं उठा और पैदल ही रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा। मैं बस इन सब चीज़ों से दूर जाना चाहता था..
मैंने अपने मोबाइल को पास के गटर में फेंक दिया। स्टेशन पर पहुँचते ही सामने एक गाड़ी लगी थी ‘हावड़ा- मुंबई मेल।’
मैं सामने वाले डब्बे में चढ़ गया।
थोड़ी देर में ट्रेन चल गई.. पीछे छूटते स्टेशन के साथ ही हर रिश्ते-नाते.. मैं छोड़ कर आगे बढ़ा जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे डॉली मुझे प्लेटफार्म से अलविदा कह रही हो।
मैंने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ने की कोशिश की.. तभी पीछे से किसी ने मेरा कालर खींच लिया।
टीटी- मरने का इरादा है क्या..? टिकट दिखाओ..!
मैंने जेब से 2000 रूपए निकाल कर उसे दे दिए।
टीटी- कहाँ जाना है?
मैं- जहाँ ये ट्रेन जा रही है।
टीटी- ये एसी क्लास है..2000 और दो मैं सीट दे देता हूँ।
मैंने पैसे दे दिए।
उसने मुझे एक रसीद और बर्थ का नंबर लिख कर दे दिया। फिर वो दूसरी बोगी में चला गया।
मैं सामने की बेसिन में अपना चेहरा धोने लगा।
तभी मेरी नज़र शीशे पर गई.. कल रात डॉली ने जो मुझे किस किया था.. उसके लिपस्टिक के कोमलन अब तक मेरे चेहरे पर थे। मैंने रुमाल निकाल उसे पोंछा।
उस कोमलन को देख कर मुझे और भी रोना आ रहा था। मैंने उस रुमाल को जेब में डाला.. और अपने आप को थोड़ा संयमित करने की कोशिश करने लगा।
एक पेंट्री वाला वहाँ आया। मैंने उसे रोका और कहा- भाई दारू है क्या?
पेंट्री वाला- हम दारू नहीं बेचते।
मैं- हाँ हाँ.. पता है.. तू पंचामृत बेचता है।
मैंने जेब से एक हज़ार का नोट निकाला और उसकी जेब में डालते हुए कहा।
‘अब जा और मेरे लिए एक ढक्कन पंचामृत लेते आ।’
मैंने उसे अपना बर्थ नंबर बता दिया।
अब मैं अपनी केबिन में पहुँच चुका था। यहाँ पहले से तीन लोग थे। मेरी बर्थ नीचे की थी सो मैं भी वहीं बैठ गया।
वे तीनों लड़कियाँ थीं.. उन तीनों की लगभग 25 के आस-पास की उम्र होगी। मैंने अपना सर खिड़की से लगाया और अपने शहर के रास्तों को खुद से दूर होता देख रहा था।
मेरे मन में डॉली के साथ बीते हुए दिन फ्लैशबैक फिल्म की तरह चल रहे थे।
एक लड़की जो मेरे सामने बैठी थी, बगलवाली से बोली- यार ये तो जब वी मेट का केस लग रहा है।
दूसरी ने जवाब दिया- हाँ यार सच में.. कितना गुमसुम है।
तभी जो मेरे बगल में बैठी थी.. अपना हाथ मेरे तरफ बढ़ाते हुए बोली- हैलो.. मैं कोमल और आप?
मेरा ध्यान अब तक बाहर ही था, मैंने कुछ नहीं कहा, मुझमें कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी, मैं अब तक अपने शहर को ही देख रहा था।
कोमल- हाँ यार.. सच में पक्का ‘जब वी मेट’ फिल्म वाला केस ही है।
फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली- क्या हुआ है? किसी एग्जाम में फेल हो गए हो? मम्मी-पापा का डाइवोर्स हो गया है? गर्ल-फ्रेंड किसी और के साथ भाग गई है?
उसका हर एक सवाल ने मेरे दिल को चीरे जा रहा था।
मैं बेहद गुस्से में उनकी तरफ देखता हुआ बोला- वैसे सवाल किसी से नहीं पूछने चाहिए.. जिस सवाल के शब्द ही जान लेने के लिए काफी हों।
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05-29-2019, 12:14 PM,
#15
RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
कोमल- यह सफ़र हम सबके लिए नया है। पहली बार हम अपने-अपने घर से इतनी दूर अपनी पहचान बनाने के लिए निकले हैं। मैं तो बस दोस्त बनाने की कोशिश कर रही हूँ। आपको बुरा लगा हो तो आप मुझे माफ़ कर देना।
मैं- किसी के ज़ख्म कुरेद कर दोस्ती करने का अंदाज़ पहली बार देखा है।
कोमल- ज़ख्म कुरेद कर.. मैं बस ये देख रही थी कि तुममे अब भी जान बाकी है या नहीं।
उसके बोलने का अंदाज़ बिल्कुल डॉली जैसा था.. या मैं हर आवाज़ में डॉली को ही ढूंढने की कोशिश करने लगा था।
मैं- क्या दिखा तुम्हें?
कोमल ने मुस्कुराते हुए- ज़िंदा हो और दोस्ती कर सकते हो..
और फिर से उसने अपना हाथ बढ़ा दिया।
मैं हाथ मिलाते हुए- विजय…
बाकी दोनों ने भी अपने हाथ बढ़ाए.. एक का नाम पायल था और दूसरी का ललिता।
पायल- कहाँ जा रहे हो?
मैं- नहीं जानता।
ललिता- किस लिए?
मैं- नहीं जानता।
पायल- कहाँ रहोगे वहाँ?
मैं- नहीं जानता।
पायल ललिता से- मैंने कहा था न ! पक्का वही केस है।
फिर मेरी तरफ देखते हुए- तुम किसी बड़ी कंपनी के मालिक के बेटे हो क्या?
‘क्या?’ चिढ़ते हुए मैंने कहा।
पायल- नहीं ‘जब वी मेट’ में हीरो की यही तो कहानी थी।
मैं- कभी फिल्मों की दुनिया से बाहर भी आओ। यहाँ किसी की जिंदगी स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं चलती।
कोमल- क्या डायलॉग बोलते हो यार। हैंडसम हो और आवाज़ भी जबरदस्त है, फिल्मों में कोशिश क्यूँ नहीं करते।
मैं- मैं अपने आप से भाग रहा हूँ और ये रास्ते किस मंजिल पे मुझे ले जायेंगे मुझे नहीं पता..
कोमल- मैं तो बस दरवाज़ा खटखटाने को कह रही हूँ। क्या पता तुम्हारी मंजिल भी वहीं हो.. जहाँ हम जा रहे हैं।
मुझमें अभी कुछ भी फैसला लेने की हिम्मत नहीं थी। मैं तो बस अपने दर्द से भागने की कोशिश कर रहा था।
तभी पैंट्री वाला आया और सस्ती व्हिस्की की एक बोतल और कुछ स्नैक्स दे गया।
बाकी तीनों मेरी शकल ही देखती जा रही थीं।
मैंने कोमल को देखा और पूछा- गिलास है?
कोमल ने बिना कुछ कहे चार गिलास निकाले और मेरे बगल में रख दिया उसने।
मैं- चार गिलास क्यूँ?
कोमल- दारू और दर्द जितना बांटोगे उतना ही खुश रहोगे।
मैं- मैं तो अपने दर्द को भूलने के लिए पी रहा हूँ। तुम सब क्यूँ पी रही हो?
कोमल- मुस्कुराते हुए चेहरे ही सबसे ज्यादा ग़मों को समेटे होते हैं। दो पैग अन्दर जाने दे.. फिर जान जाओगे हमारे राज़।
मैंने बोतल उसके हाथों में दे दी और कहा- लो मेरे लिए भी बना देना।
मैंने गिलास उठाया और खिड़की से बाहर देखने लगा।
बाहर खेतों की हरियाली.. पहाड़ों की घाटियाँ और भी न जाने कितने ही जन्नत सरीखे रास्ते से हो कर हमारी ट्रेन गुज़र रही थी। पर आज मुझे ये खूबसूरत नज़ारे भी काट रहे थे जैसे। मैं अपने ही ख्यालों में खोया था कि तभी पायल की आवाज़ से मैं अपने ख्यालों से बाहर आया।
पायल- चलो अब बताओ अपने बारे में.. अब हम दोस्त हैं और दोस्तों से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए।
मैं- मुझसे नहीं कहा जाएगा..
और फिर जैसे मेरी आँखें डबडबाने लगीं।
कोमल- ठीक है.. पहले हम बताते हैं अपने बारे में.. शायद तुममें थोड़ी हिम्मत आ जाए।
कोमल ने अपनी कहानी बतानी शुरू की.. वो शराब के असर से थोड़ा रुक-रुक कर कह रही थी।
‘मैं कोलकाता में ही पैदा हुई थी। मेरा बचपन अब तक की मेरी सबसे हसीन यादों में से एक है। मैं, मम्मी-पापा और दादा- दादी हम सब एक खुशहाल परिवार की तरह रहते थे। मेरे पापा का कोलकाता में ही गारमेंट्स का बिज़नेस था। हमारे पास पैसों की कभी भी कमी नहीं थी।
बचपन में दादी अक्सर मुझे परियों की कहानियाँ सुनाया करती थीं और मैं हर बार उन परियों की कहानी में खुद को ही देखा करती थी..
पर कहते हैं न.. जीवन में अगर अच्छे दिन आते हैं.. तो कुछ बुरे दिन भी होते हैं।
जब मैं आठ साल की थी.. तब मेरे पापा को उनके बिज़नेस में जबरदस्त घाटा लगा। वे अपने बिज़नेस को जितना बचाने की कोशिश करते.. उतना ही वो कर्जे में डूबते चले गए।उसके लगभग एक साल बाद दादा और दादी का भी देहाँत हो गया।
मुझे आज भी याद है… वो दिन जब हर रोज़ कोई ना कोई लेनदार हमारे दरवाज़े पर खड़ा रहता। पापा रात को नशे में धुत घर में आते और मुझ पर और माँ पर अपनी नाकामयाबी का गुस्सा निकालते।
एक दिन मैं अपने स्कूल से आई तो मेरे घर पर भीड़ लगी थी। मम्मी उसी कॉलोनी के अंकल के साथ भाग गई थीं और पापा मेरी मम्मी की चिट्ठी हाथ में लिए ज़मीन पर पड़े थे।
मैंने पास जाकर देखा तो उनकी साँसें नहीं चल रही थीं। मैं एक पल में ही अनाथ हो चुकी थी। पापा के बीमा से जो पैसे मिले.. उनसे मैंने कर्जे चुका दिए और बाकी पैसे अपनी पढ़ाई के लिए रख लिए। दस साल की उम्र से मैंने खुद को संभालना सीख लिया।
पिछले महीने मैंने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी और वो बॉम्बे में एक डायरेक्टर को पसंद आ गई.. सो अब मैं मुंबई जा रही हूँ.. एक कामयाब डायरेक्टर बनने..’
फिर पायल ने खुद के बारे में बताना शुरू किया। अब उसकी आवाज़ में कुछ ज्यादा ही भारीपन था।
‘एहें एहें..’ उसने अपना गला ठीक करते हुए बताना शुरू किया- कहाँ से शुरू करूँ.. समझ नहीं आ रहा मुझे.. वैसे मुझे तो याद भी नहीं कि मेरे माँ-बाप कौन हैं।
उन्होंने बचपन में ही सिलीगुड़ी के एक गाँव में बने देवी मंदिर में मुझे दान कर दिया था, शायद बेटी बोझ थी उनके लिए..
मुझे वहीं के पुजारी परिवार ने पाला। जब मैं शायद तीन साल की थी.. तब उन्होंने पूरे गाँव में एलान करवा दिया कि मैं किसी देवी का अवतार हूँ और इन अफवाहों ने मंदिर की कमाई बहुत बढ़ा दी। पांच साल की उम्र में मैं हर रोज़ छह घंटे रामायण पाठ करती और उसके बाद कीर्तन में हारमोनियम, तबले बजाने वालों के साथ थोड़ा रियाज़ भी करती थी।
बीस साल की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते मैं शास्त्रीय संगीत में माहिर हो चुकी थी। अब तो मैंने टीवी पर आने वाले गाने भी गुनगुनाने शुरू कर दिए थे।
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05-29-2019, 12:14 PM,
#16
RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
एक बार बाबा (पुजारी जी) ने मुझे टीवी के गाने गाते सुन लिया और उस दिन उन्होंने मुझे बहुत मारा।
मैं गुस्से में थी और घर में जो पैसे थे वो लिए और कोलकाता आ गई।
संयोग से मैं कोमल के घर किराए पर कमरा लेने गई और तभी हमारी मुलाक़ात भी हुई। उन संघर्ष के दिनों में मुझे मेरा पहला प्यार मिला। वो रिकॉर्डिंग स्टूडियो का मालिक था और उभरते हुए गायकों को मौक़ा भी देता था। मैं अक्सर गाने के लिए वहाँ जाया करती थी।
एक दिन उसने मुझे प्रपोज किया और फिर हम अक्सर साथ वक़्त बिताने लगे।
कुछ साल बीत जाने के बाद एक दिन उसने कहा कि अब तुममें वो बात नहीं रही और हमारे रिश्ते को ख़त्म कर दिया।
मैंने उसे मनाने की बहुत कोशिश की… पर शायद उसे मेरे जिस्म से प्यार था। जब कोमल ने मुंबई जाने की बात की तो मैं भी साथ चल पड़ी। आखिर अब मेरे लिए वहाँ कुछ बचा भी तो नहीं था और शायद मुंबई में ही मेरी किस्मत लिखी हो।’
अब ललिता ने अपनी कहानी शुरू की।
‘मेरी जिंदगी का सफ़र इतना भी आसान नहीं था। बंगाल के बेहद गरीब परिवार में मेरा जन्म हुआ था। मुझे तो ठीक से याद भी नहीं पर शायद चार या पांच साल की रही होऊँगी.. तभी मेरे माँ-बाप ने पैसों की खातिर मुझे एक दलाल को बेच दिया।
उस दलाल ने मेरे माँ-बाप को ये भरोसा दिलाया था कि मुझे पढ़ा कर वो मेरी शादी भी करवाएगा। फिर वो मुझे कोलकाता लेता आया और मैं यहाँ के एक सभ्य परिवार में घरेलू काम करने लगी।
उन परिवार वालों की गालियाँ.. सर पर छत और दो वक़्त का खाना ही मेरी तनख्वाह थी। जब भी वो परिवार कोई फिल्म देखता मैं भी किसी कोने में बैठ उसे देखती और हमेशा यही सोचती कि उसी फिल्म की हिरोइन की तरह मेरी भी जिंदगी होती।
एक आज़ाद परिंदे की तरह अपनी जिंदगी बिताना। कुछ इसी तरह अपना जीवन बिताते हुए.. मैं अब लगभग पंद्रह साल की हो चुकी थी। एक दिन मैं रोज़ की तरह रसोई में काम कर रही थी तो मेरे घर का 52 साल का मालिक आया और मुझे यहाँ-वहाँ छूने लगा।
मैंने उसे रोकने की कोशिश की तो उसने मुझे मारना शुरू कर दिया। फिर उसने मेरे दलाल को बुलाया और मुझे उसके हवाले कर दिया। वो दलाल मुझे एक झोपड़ीनुमा जगह ले गया और वहाँ उसने और उसके कुछ दोस्तों ने मेरा बलात्कार किया।जब मैं मरने जैसी स्थिति में हो गई तो उसने कोलकाता की बदनाम गलियों में मेरा सौदा कर दिया। अब हर रात मैं धीरे-धीरे मर रही थी।
एक दिन पुलिस की रेड पड़ी और वहाँ से मुझे एक एनजीओ के हवाले कर दिया गया। वहाँ मैंने पढ़ना सीखा और मुझे जीने की एक उम्मीद दिखी। एक दिन कोमल हमारे यहाँ आई और हमारा ऑडिशन लेने लगी। उसे अपनी फिल्म के लिए एक कलाकार चाहिए था।
(थोड़ी देर रुक के)
आप ठीक समझे.. मैं ही कोमल की डॉक्यूमेंट्री की हिरोइन हूँ और जब कोमल मुंबई जा रही थी तो मैं भी उसके साथ चल दी। मुझे तो बॉलीवुड का ‘सुपरस्टार’ बनना है।’
फिर मेरी ओर देखते हुए कोमल बोली- अब तो कुछ बताओ अपने बारे में..
उन लड़कियों की हिम्मत देख मुझमें भी थोड़ी हिम्मत आ गई थी। मुझे लग रहा था कि शायद अब मैं भी अपनी तन्हाई से लड़ लूँ। मैंने उनसे अपनी कहानी बताई और कहा- मैं नहीं जानता.. कि मुझे अपनी जिंदगी में क्या बनना है.. मैं तो बस वहाँ जाऊँगा और सबसे पहले कहीं भी कोई नौकरी करूँगा। बस इतना ही सोचा है।
पायल- काश दुनिया के हर मर्द के प्यार में तुम्हारे जैसा ही समर्पण होता।
मैं- अगर हर लड़की डॉली जैसे ही सोचती तो शायद कोई भी मर्द कभी किसी से प्यार करता ही नहीं।
कोमल- तुम्हें नौकरी ही करनी है न? हमारे पास तुम्हारे लिए एक नौकरी है। अगर तुम चाहो तो।
मैं- कैसी नौकरी?
कोमल- हम तीनों को अपना मुकाम बॉलीवुड में हासिल करना है और यहाँ पर सफलता के लिए दिखावा बहुत ज़रूरी है और इस दिखावे के लिए हमें एक पर्सनल असिस्टेंट चाहिए। अभी तो तुम्हें हम बस रहने की जगह, खाना और कुछ खर्चे ही दे पायेंगे.. पर जैसे हमारी कमाई बढ़ेगी.. हम तुम्हारी तनख्वाह भी बढ़ा देंगे।
अब तीनों मेरे जवाब को मेरी ओर देखने लगी, मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
फिर सबने अपने गिलास टकराए और ने मेरे हाथ को पकड़ मेरे गिलास को भी टकराते हुए कहा- ये जाम हमारी आने वाली कामयाबी और पहचान के नाम।
अब रात हो चुकी थी और अभी भी 24 घंटों का सफ़र बाकी था। जब-जब मैं आँखें बंद करता.. मुझे डॉली की जलती हुई चिता मेरे सामने होती। ऐसा लगता मानो वो अपना हाथ बढ़ा रही हो और मैं उसे बचा नहीं पा रहा हूँ।
मेरे बगल वाली बर्थ पर पायल सोई थी। वो मुझे इस तरह बार-बार करवट लेता देख मेरे पास आई और उसने मेरे हाथ को कस कर पकड़ लिया।
मेरे कानों में पायल धीरे से बोली- शांत हो जाओ और सोने की कोशिश करो। मैं तुम्हारे दर्द को समझती हूँ.. पर ऐसे तड़पोगे तो डॉली भी बेचैन ही रहेगी।
वो मेरे बाल सहलाने लगी, मैं धीरे-धीरे सो गया।
सुबह कोमल की आवाज़ से मेरी नींद खुली- सोते ही रहोगे क्या? सुबह के दस बजने जा रहे हैं।
मैं अंगड़ाई लेता हुआ उठा और फ्रेश होने चला गया। मैं फ्रेश होकर जब वापिस आया तो देखा.. मोबाइल में गाना बज रहा था.. ललिता पायल को पकड़ डांस कर रही थी और कोमल अपने मोबाइल के कैमरे में वो सब रिकॉर्ड कर रही थी।
मैं जैसे ही अन्दर दाखिल हुआ ललिता ने पायल को छोड़ मुझे पकड़ लिया।
मैं- अब मैंने क्या गलती की है, मुझे तो छोड़ दो।
तो फिर से मुझे छोड़ पायल को पकड़ कर डांस करने लग गई।
वो सब डांस के दौरान जिस तरह की शक्लें बना रही थीं.. उसे देख कर मुझे भी हंसी आ गई।
आज बहुत वक़्त के बाद ये मुस्कान आई थी। तभी गाना बदला और नया गाना था ‘झुम्मा चुम्मा दे दे…’
एक ही पल में हंसी और अगले ही पल मेरी आँखें भर आईं।
ललिता की नज़र मुझ पर पड़ी, फिर उसने गाना बंद किया और मेरे पास सब आ गईं- क्या हुआ तुम्हें?
मैं- नहीं कुछ भी तो नहीं।
कोमल- जब झूट कहना ना आता हो तो सच ही कहने की आदत डाल लो! बताओ ना क्या हुआ?
मैं- घर की याद आ गई, मैं मम्मी, पापा और मेरी बहन इसी गाने पे डांस किया करते थे।
कोमल- यह भी तो सोच सकते हो कि तुम्हें तुम्हारा परिवार वापस मिल गया और सब मेरे गाल खींचने लग गईं।
पायल- अब रोना-धोना बहुत हुआ। तुम्हारी आँखों से निकले आंसू की हर बूँद से डॉली कितनी बेचैन होती होगी। उसकी खातिर अब मुस्कुराना सीख लो।
मैं अपनी शक्ल ठीक करते हुए बोला- ठीक है… अब कभी नहीं रोऊँगा बस!
ललिता- बस नहीं, अब तो तुम्हें डांस करना ही होगा..
वो मेरा हाथ पकड़ वॉल-डांस वाले स्टेप्स करने लग गई।
इस तरह फिर लगभग रात हो चुकी थी और हम सब की मंजिल अब आने ही वाली थी।
फिर ललिता ने हम सबको एक-दूसरे का हाथ थामने को कहा।
ललिता- अब सब अपनी आँखें बंद करो और एक विश मांगो। जो कुछ भी तुम्हें इस शहर में हासिल करना है।
बाकियों का तो पता नहीं पर मैंने एक विश माँगी।
‘हे परमेश्वर अगर मैंने आज तक कुछ भी अच्छा किया हो तो मेरी दुआ कुबूल करना और डॉली की आत्मा को शांति देना। मैं अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता हूँ, क्यूंकि मुझे पता है आप हमेशा मेरे साथ रहोगे। मैं जब भी जिन्दगी से इस जंग में हारने लगूंगा.. तब आप हमेशा मेरा थाम मुझे बचा लोगे और हाँ.. मेरे और डॉली के परिवार को इस सैलाब को झेलने की शक्ति देना।’
मैंने अपनी आँखें खोलीं.. सब मेरी तरफ ही देखे जा रही थीं।
पायल- हो गया या और भी कुछ माँगना है?
मैंने ‘ना’ में सर हिलाया और फिर सब अपना-अपना सामान बाँधने लग गईं।
थोड़ी देर बाद हमारी मंजिल आ गई थी।
मुंबई..
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05-29-2019, 12:14 PM,
#17
RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
थोड़ी देर बाद हमारी मंजिल आ गई थी।
मुंबई..

लोग इसे सपनों का शहर कहते हैं। कहते हैं.. यहाँ हर रोज़ किसी ना किसी के सपने पूरे होते ही हैं। शायद कभी यहाँ हमारा नंबर भी आ जाए।
अब मैं उन सब का पीए था.. तो सामान उठाना पड़ा। मेरा खुद का तो सामान था नहीं.. सो उनके सामान को बोगी से बाहर निकाला।
दो कुली आ गए और वो हमारा सामान टैक्सी तक ले जाने लगे।
बाकी सब कुली के साथ-साथ चलने लगी और मैं आस-पास की भीड़ में जैसे खो सा गया।
आज मेरा दिल बड़े जोर से धड़क रहा था.. घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था।
आँखें रुआंसी हुई जा रही थीं.. आदत थी अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की..
आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं क्या करूँगा.. इतने बड़े शहर में..?
कैसी होगी मेरी माँ..? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को एफआईआर भी करवा ही दिया होगा।
ऐसे ही कितने ही सवाल मुझे घेरने लग गए थे।
तभी मैंने कोमल की आवाज़ सुनी- ओये जल्दी आ। यहीं रुकने का इरादा है क्या?
मैं फिर भागता हुआ टैक्सी तक पहुँचा और फिर हम चल दिए अपने फ्लैट की तरफ।
मुंबई शहर…
जैसा सुना था और जैसा फिल्मों में देखा था.. लगभग वैसा ही था ये शहर..
हर तरफ बस भागते हुए लोग। इस भागती भीड़ को देख ऐसा लगता था कि मानो अगर कोई एक इंसान रुक गया.. तो बाकी या तो उसके साथ ही गिर जायेंगे या फिर उसे रौंदते हुए आगे निकल जायेंगे।
जिंदगी में भी तो ऐसा ही होता है। हर इंसान किसी न किसी रेस का हिस्सा होता है और इस रेस में जीतने का बस एक ही मंत्र है.. अपनी आँखें मंजिल में टिकाओ और उसकी ओर भागते चले जाओ। फिर चाहे रास्ते में कोई भी आए रुको मत..
हाँ.. एक बात मुझे अच्छी लगी, यहाँ की रातें भी जीवन के रंगों से भरी होती हैं। मैं मुंबई के नजारों में ही खो सा गया था.. हल्की झपकी आ गई मुझे.. आँख खुली तो हम अपने अपार्टमेंट के बाहर थे। सोसाइटी थी.. चार धाम सोसाइटी.. और इलाका था बांद्रा पश्चिम, 7 फ्लोर का अपार्टमेंट था और हमारा फ्लैट 6 वें फ्लोर पर था।
आस-पास के घरों में पार्क की गई मंहगी गाड़ियों को देख कर मैं अंदाजा लगा सकता था कि यहाँ की मिट्टी की कीमत सोने से ज्यादा कैसे है।
मैंने कुछ सामान उठाया और बाकी ट्राली बैग को सब अपने हाथों में ले फ्लैट पर आ गए।
वहाँ लगभग सारी सुख-सुविधाएँ पहले से ही थीं। सब अपना-अपना सामान रखने लग गईं। दो बेडरूम का फ्लैट था, एक कमरे में कोमल और दूसरे में ललिता और पायल ने अपना सामान रख दिया। जब घर का काम पूरा हुआ तो सब हॉल में लगे सोफे पर बैठ गए।
ललिता ने मेरी ओर देखते हुए कहा- तुम यहीं सोफे पर सोओगे?
मैं- हाँ.. आज मैं यहीं सो जाऊँगा। कल मैं हॉल में गद्दे के लिए जगह बना लूँगा..
कोमल- ह्म्म्म.. यही ठीक रहेगा। मैं पहले कुछ खाने का आर्डर दे देती हूँ.. फिर हम विजय के लिए ऑनलाइन शॉपिंग कर लेंगे और हाँ.. घर के कुछ नियम कायदे भी बनाने होंगे।
सब ने उसकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाई.. और फिर खाने का आर्डर और मेरे लिए शॉपिंग कर ली गई। खाना खाते हुए हमने कुछ नियम बनाए.. जिसमें सुबह के ब्रेकफास्ट बनाने की ज़िम्मेदारी मुझे दे दी गई।
रात में पायल और ललिता सोने चली गईं और कोमल अपने लैपटॉप पर अपना काम निबटाने लगी। मुझे भी अब नींद आ रही थी.. पर एक तो सोफे पर सोना और जगह भी नई.. सो किसी तरह रात काटी मैंने।
सुबह नाश्ते के बाद कोमल ने मुझे एक लिस्ट दी.. इस लिस्ट में कुछ नाम और पते लिखे थे।
कोमल- इस लिस्ट में जो नाम दिए गए हैं.. तुम्हें उनसे मिलना है और ये हैं फाइलों की कॉपी.. जिस नाम के सामने हम तीनों में से जिसका भी नाम लिखा है.. उसे ही देना वो फाइल..
फिर उसने मुझे कुछ पैसे दे दिए।
मैं अब सोसाइटी से बाहर आ चुका था। आज तक मैंने शायद ही कभी घर पर कोई काम किया था। सो थोड़ा अजीब सा लग रहा था.. पर इतना पता था कि इंसान अपने अनुभवों से ही सीखता है… सो मैं भी सीख ही जाऊँगा।
लिस्ट में कुल मिला कर बाईस लोगों के नाम थे और लगभग पता यहीं आस-पास का ही था।
पायल ने अपना एक फ़ोन मुझे दिया था.. जिसमें मैं गूगल मैप पर रास्ते ढूंढ सकता था।
पहला पता था ‘यशराज फिल्म्स’ का। अँधेरी पश्चिम का पता था और वहाँ मुझे तीनों की फाइल देनी थीं, मैंने टैक्सी ली और वहाँ चला गया।
पहली बार मैं फ़िल्मी दुनिया के लोगों से मिलने वाला था, मेरे अन्दर अजीब सा उत्साह था। ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी फेवरेट हीरोइन ने मुझे डेट पर बुलाया हो।
मैं अब यशराज स्टूडियो के ऑफिस में पहुँच चुका था, बड़ा सा नारंगी दरवाजा और एक बड़ी सी बिल्डिंग.. ठीक वैसा ही जैसा कि मैंने सोचा था।
मैं दरवाज़े के पास पहुँचा, गेट कीपर से कहा- भैया जी मुझे चेतन सर से मिलना है और ये फाइलें देनी हैं।
गेट कीपर ने कहा- आज एक फिल्म की ऑडिशन हो रही है.. बाद में आना.. आज बस ऑडिशन देने आए लोगों को ही अन्दर आने की इज़ाज़त है।
मैं अब सोच में पड़ गया.. काम की शुरुआत ही नाकामयाबी से हुई.. तब तो हो चुका.. मुझसे काम और अगर आज मैंने फाइल सभी को नहीं दी तो पता नहीं.. कोमल मुझे रहने भी दे वहाँ या नहीं।
मुझे किसी भी तरह फाइल अन्दर पहुँचानी थी तो फिर से मैं गेट के पास गया और कहा- भैया.. मुझे भी ऑडिशन देना है, फॉर्म कहाँ भरूं?
गेट कीपर-फॉर्म भरा जा चुका है बस अब ऑडिशन शुरू होने ही वाला है।
मैंने जेब से दो हज़ार निकाले और उसकी हाथों में पकड़ाता हुआ बोला- कैसे भी फॉर्म भरवा दो। अब आप लोग ही हमारी मदद नहीं करेंगे तो और कौन करेगा।
वो थोड़ी देर सोच कर अन्दर गया और लगभग पांच मिनट बाद आया- यह लो फॉर्म जल्दी से भर कर दे दो।
अपनी कोई तस्वीर तो थी नहीं.. तो मैंने तस्वीर वाली जगह पर गोंद से कोमलन बनाया.. जिससे सबको लगे कि मैंने तस्वीर तो चिपकाई थी.. पर फॉर्म पहुँचाने वाले से ही खो गई और फॉर्म भर कर उसे मैंने मोड़ कर दे दिया।
गेट कीपर ने मुझसे एँट्री करवाई और अन्दर जाने को कहा। पहली जंग तो जीत चुका था मैं।
अब अन्दर जाकर उस चेतन नाम के आदमी को ढूँढना था। मुझे गेट पर एक लड़की खड़ी दिखाई दी। उसके पास यशराज की आईडी थी, मैं उसके पास गया- मैडम चेतन सर से मिलना था, वो कहाँ मिलेंगे?
उसने जवाब दिया- वो अन्दर ऑडिशन रूम में हैं.. और तुम यहाँ ऑडिशन देने आए हो न..? तो बाहर क्या कर रहे हो। अन्दर ऑडिशन शुरू हो चुका है।
अब मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, मैं भला ऑडिशन क्या दूँगा, मुझे तो एक्टिंग का ‘ए’ भी नहीं आता, आज तो बड़ी बेइज्जती होने वाली है मेरी। मन तो कर रहा था कि यहीं से भाग जाऊँ.. पर मैं अन्दर था और दरवाज़ा लॉक हो चुका था।
मन ही मन मैंने कहा- हे श्री श्री अमिताभ बच्चन जी.. आज मुझे एक्टिंग का आशीर्वाद दे दो, बस मेरी इज्जत रह जाए आज।
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05-29-2019, 12:14 PM,
#18
RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
ऑडिशन रूम के बाहर बहुत से चेहरे थे। सब की आँखों में उम्मीद और कई आँखों में तो जैसे इतना कॉन्फिडेंस था कि यहाँ वहीं चुने जाने वाले हैं और एक तरफ मैं बेहद घबराया सा कि पता नहीं वो सब.. मेरे साथ क्या करेंगे। मैं पिछले चार दिनों से एक ही कपड़े में था.. सो वो भी अब गंदे दिखने लगे थे। मैं वाशरूम में गया और अपने काले पैंट में जहाँ-जहाँ गंदगी के कोमलन थे.. उन्हें पानी से साफ़ किया.. पर ये क्या.. पानी से भीग कर मेरी पैंट पर जो कोमलन आए थे.. उससे तो लोग कुछ और ही समझ बैठते।
खैर.. मैं अब बाहर आया और एक कुर्सी पर बैठ गया। अन्दर से जो लोग बाहर आ रहे थे.. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था कि मानो वो सबके सब चुन लिए गए हों। तो फिर हमें क्यूँ बिठाया हुआ था उन्होंने.. जाने को कह देते हमें.. कम से कम मेरी जान तो छूटती।
एक तो कोई भी किसी से बात नहीं कर रहा था। सब एक-दूसरे को ऐसे देख रहे थे.. मानो ये कोई कुश्ती का अखाड़ा हो।
मेरी इससे और भी बेचैनी बढ़ रही थी। बैठे-बैठे शाम हो चुकी थी, अब आखिर में हम दो लोग बचे थे। अन्दर से हम दोनों को एक साथ ही बुला लिया गया। शायद उन्हें भी अब जाने की जल्दी थी। पहले उस दूसरे लड़के को बीच में बुलाया, स्टेज पर वो गया था और टाँगे मेरी कांप रही थीं।
वो लड़का- सर मैं आज तक की अपनी सबसे बेहतरीन एक्ट आपको दिखाना चाहता हूँ।
पैनल (जजों का पैनल जिसमे मशहूर फिल्म निर्देशक थे)- दिखाएँ आप।
जंग से लौटे हुए एक घायल सैनिक की उसकी माँ से बात वहाँ उसने दिखाई और हाँ उसके चेहरे के भाव बिल्कुल किसी ट्रेंड एक्टर की तरह ही थे।
‘माँ मैं लौट आया माँ… देख तेरे कालजे के टुकड़े का दुश्मनों की गोलियाँ भी कुछ न बिगाड़ पाईं।
उसका एक्ट ख़त्म हुआ और पैनल ने खड़े हो कर उसका अभिवादन किया और मुझे हंसी आ गई।
वैसे मैं अक्सर कॉमेडी शो देखा करता था.. जो वहाँ वो अपना एक्ट दिखा रहा था और मैं अपने मन ही मन इमेजिन करने लगा था कि वहाँ वो नहीं बल्कि मेरे पसंदीदा कॉमेडी कलाकार ये एक्ट दिखा रहा है।
तभी मेरी नज़र पैनल पर गई। उस कमरे में सबके सब मुझे घूरे जा रहें थे। पैनल में से एक ने मुझसे पूछा- आपको क्या हुआ जनाब? यह एक्ट देखकर हंसी आ रही थी।
मैं- मैं एक्टिंग के बारे में एक बात जानता हूँ.. यहाँ वही सबसे बेहतर है.. जो हर रंग में ढल जाए। कोई भी ये ना कह सके कि कोई एक ख़ास एक्ट ही सबसे बेहतरीन है.. बल्कि उसके हर एक्ट को देख यह महसूस हो कि ये इससे बेहतर कोई भी नहीं कर सकता है।
खैर.. मैंने बात को तो संभाल लिया। पर अब मुझे इतना तो पता था कि अब मैंने लाल कपड़े पहन कर खुद ही सांड को न्योता दे दिया है।
पैनल- जनाब आप आ जाएँ। आज हम सब आपसे एक्टिंग की बारीकी सीखना चाहते हैं।
मैं मन ही मन में- बेटा आज तो बिना वेसिलीन के ही अन्दर जाने वाला है।
मैं- जैसा आप कहें सर।
पैनल- एक्टिंग में सबसे मुश्किल होता है एक साथ कई भावनाओं को कुछ ही पलों में जी लेना। मैं तुम्हें कहूँगा ख़ुशी.. एक… दो… तीन और आप मुझे ख़ुशी के एक्सप्रेशन दिखाओगे। जैसे-जैसे मैं शब्द कहता जाऊँगा आपके चेहरे के भाव वैसे वैसे बदलने चाहिए।
(मन ही मन में)
‘और हंस ले बेटा.. यही पास में ही हंसी आनी थी तुझे.. अब भुगतना तो पड़ेगा ही। पर आज मैं एक कोशिश तो कर ही सकता हूँ न.. क्या होगा.. ज्यादा से ज्यादा.. मुझे गालियाँ देंगे और निकाल देंगे.. यही न। ठीक है.. पर अब मैं पीछे नहीं हटूंगा।’
मैं स्टेज पर आ चुका था। मेरी आँखें अब बंद थीं और बस अब मैं शब्द सुनने को तैयार था।
पैनल- रोमांस.. एक… दो… तीन…
मैं इस शब्द के साथ ही फ्लैशबैक में चला गया। जब मैं डॉली को अपनी बांहों में भर उसके साथ वॉल डांस किया करता था। मेरी आँखें बंद थीं और ऐसा लग रहा था.. मानो डॉली मेरी बांहों में हो और हमारा सबसे पसंदीदा गाना बज रहा हो
‘हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते.. तेरे बिना क्या वजूद मेरा।’
उसके हर कदम से मैं अपने कदम मिला रहा था और मेरी नज़र डॉली से हट ही नहीं रही थी। मैंने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया।
डर.. एक.. दो.. तीन..
मैं अब अपने जीवन के उस वक़्त में पहुँच गया.. जब डॉली से मिले मुझे पंद्रह दिन बीत चुके थे और किसी रिश्तेदार से भी उसकी कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। जब डॉली की कामवाली छत पर आई थी और मैं उसकी नज़रों से बचता हुआ नीचे डॉली के कमरे तक पहुँचा था। मैं.. डॉली को टिश्यू पेपर पर अपना नाम लिख कर दे चुका था और उम्मीद कर रहा था कि कामवाली के नीचे मुझे देखने से पहले डॉली दरवाज़ा खोल दे।
मस्ती.. एक.. दो.. तीन…
मैं अपने घर में था और हम सब परिवार वाले ‘झुम्मा.. चुम्मा.. दे दे..’ वाले गाने पर डांस कर रहे थे। हम सब बहुत ही अजीब-अजीब सी शक्लें बना रहे थे और हम सब बहुत खुश थे।
उदास.. एक.. दो.. तीन..
जब डॉली ने अपना फैसला मुझे बताया था कि वो अब किसी और के साथ शादी करेगी। मैं तो वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा था जैसे.. किसी ने जैसे एक ही पल में मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया हो..
गुस्सा.. एक.. दो.. तीन..
इस बार मैं उन पलों में पहुँच गया.. जब मैं पंद्रह दिनों बाद डॉली के कमरे में छुपते-छुपाते पहुँचा था। रो-रो कर उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं। उसे इतना मारा था कि अभी तक उसके चेहरे पर हाथों के कोमलन थे। उसके चेहरे को देख मैं इतने गुस्से में भर गया कि जोर से अपना हाथ जमीन पर दे मारा।
हंसी.. एक.. दो.. तीन..
इस बार उन पलों को जी रहा था.. जब डॉली मुझे गुदगुदी लगा रही थी और मैं हंसते-हंसते पागल हुआ जा रहा था। मैं हाथ जोड़ कर उससे मुझे छोड़ने की मिन्नत कर रहा था..
दर्द.. एक..
इस शब्द के साथ ही ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे जख्मों को कुरेद दिया हो। मैं अपने घुटनों पर आ गया।
दो..
अब मैं उस वक़्त में था.. जब मैं डॉली का व्हाट्सऐप मैसेज सुन रहा था।
तीन..
मेरी आँखें भर आईं, ऐसा लगा जैसे इस सीने में किसी ने गर्म खंजर उतार दिया हो।
‘मत जाओ मुझे छोड़ के… प्लीज मत जाओ..!’
कहता हुआ मैं ज़मीन पर गिर पड़ा। मेरे आंसुओं की बूंद.. अब सैलाब बन उमड़ पड़ी थी। मेरे सीने में दबा हर दर्द अब बाहर आ चुका था।
तभी तालियों और सीटियों की आवाज़ ने मुझे जैसे नींद से जगाया हो। उस पैनल के हर सदस्य की आँखें भरी हुई थीं।
तभी एक निर्देशक चल कर मेरे पास आए।
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05-29-2019, 12:14 PM,
#19
RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
‘शायद इस इंडस्ट्री को तुम्हारी ही तलाश थी। आज इस बॉलीवुड को एक सुपरस्टार मिल गया है। मैं और इंतज़ार नहीं कर सकता। तुम अभी और इसी वक़्त हमारे साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन करोगे।’
फिर उन्होंने पेपर्स मंगवाए और मेरे सामने रख दिए।
‘यह लो पेन..’
कहते हुए उन्होंने पेन मेरे हाथ में दे दिया।
मेरे आंसू अब थम चुके थे, शायद मुझे मेरी मंजिल मिल चुकी थी या मुझे मेरे दर्द का इलाज मिल गया था। मैंने पेपर्स साइन कर दिए। फिर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्टूडियो गूंज उठा और मुझे मेरा पहला चैक दिया गया।
पांच लाख इक्यावन हज़ार का चैक था यह…
मैं अपने डिटेल्स वहाँ स्टूडियो में लिखवा कर बाहर आ गया। तभी मुझे याद आया कि स्टूडियो में फ़ोन ऑफ करवा दिया गया था। मैंने फ़ोन ऑन किया और कोमल को कॉल किया- हैलो.. मैं विजय बोल रहा हूँ।
कोमल- पता है मुझे.. पर कहाँ थे अब तक? तुम्हारा फ़ोन भी ऑफ था सुबह से। फाइलें पहुँचा दी या नहीं?
मैं- अरे थोड़ा सांस तो ले लो। मैं कहीं भागने वाला नहीं हूँ। मेरे पास एक अच्छी खबर है। तुम बस फ्लैट पर पार्टी का इंतज़ाम करो और हाँ.. ये खर्चा मेरी तरफ से रहेगा।
कोमल- क्या हुआ..? अब बता भी दो।
मैं- नहीं मैं ये खबर जब तुम्हें बताऊँ तब मैं तुम सबकी शक्लें देखना चाहता हूँ। मैं बस पहुँच ही रहा हूँ.. बाय..!
मैंने फ़ोन काटा और टैक्सी लेकर चल फ्लैट की ओर पड़ा। रास्ते में वाइन शॉप से मंहगी वाली स्कॉच ली और फ्लैट पहुँच गया। मैंने कॉल बेल बजाई और ऐसा लगा कि जैसे सब मेरे इंतज़ार में ही बैठी थीं, उन्होंने तुरंत दरवाज़ा खोला। मैंने बोतल और फाइलें उनके हाथ में दीं और बिना कुछ कहे वाशरूम जाने लगा।
ललिता ने मुझे पकड़ते हुए कहा- कहाँ जा रहे हो..? पहले बताओ तो सही आज क्या हुआ?
मैं- देख जो हुआ सो हुआ.. पर अभी अगर रोकोगी तो यहीं पर हो जाएगा।
ललिता- ठीक है.. जल्दी आओ, अब हमसे रुका नहीं जा रहा है।
मैं फ्रेश होकर आया और सोफे पर बैठ गया। तीनों मुझे एकटक से घूरे जा रही थीं।
फिर मैंने एक लम्बी सी अंगड़ाई ली और कहा- यार वो गद्दा आ गया है न..? बहुत नींद आ रही है मुझे।
मेरा इतना कहना था कि सबने मुझे सोफे से नीचे गिरा दिया और मुझ पर चढ़ कर बैठ गईं।
कोमल- अब जल्दी से बता दो नहीं तो यही जान ले लूँगी तुम्हारी।
मैं- ठीक है बताता हूँ.. पर पहले हटो तो सही।
सब अपनी जगह बैठ गईं।
‘वो आपने जो लिस्ट मुझे दिया था उसमें सबसे पहला नाम यशराज स्टूडियो का था। सो मैं वहीं गया। वहाँ जाकर मुझे चेतन जी को फाइलें देनी थीं.. पर वहाँ आज ऑडिशन चल रहे थे और चेतन जी से मुलाक़ात एक ही शर्त पर हो सकती थी कि अगर मैं किसी तरह अन्दर पहुँच पाता। सो मैंने ऑडिशन का फॉर्म भरा और अन्दर चला गया और फ़ोन अन्दर ऑफ करवा लिया गया था। चेतन जी कहीं और थे और मुझे सभी कंटेस्टेंट के साथ अलग कमरे में बिठा दिया गया था।
कोमल- तो क्या हुआ..? मुद्दे की बात तो बताओ।
मैं- फिर मुझे मजबूरी में ऑडिशन देना पड़ा।
पायल- तो इसमें कौन सी बड़ी बात है।
अब तक सब मुझे घूरे ही जा रही थीं।
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05-29-2019, 12:15 PM,
#20
RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
तभी मैंने अपना चैक निकाल बीच में रख दिया और कहा- ‘ये है वो बात…’
पायल चैक उठा कर बड़े गौर से देखने लगी। साथ ही ललिता और कोमल भी देख रही थीं।
अब मैं इंतज़ार कर रहा था.. क्या होगा उनके चेहरे का एक्सप्रेशन।
तभी कोमल और ललिता मेरे पैर पकड़ कर वहीं बैठ गईं और पायल मुझे चम्पी देने लग गई।
कोमल ने पुराने फिल्मों की हिरोइन की तरह- मेरे प्राणनाथ.. कृपया हमें अपनी चरणों में थोड़ी जगह दे दें। हमारी तो तकदीर ही संवर जाएगी।
ललिता ने उसी अंदाज़ में- मैं हर रोज़ आपके पैर दबा दिया करूँगी।
पायल- और जब आप थक कर घर आयेंगे.. तब मैं यूँ ही आपके सर की चम्पी कर दिया करूँगी।
मैं ने उन्हीं के अंदाज़ में- आपका इतना प्यार देख कर तो मेरी आँखों में आंसू गए।
‘चलो अब अपनी जगह पर बैठो।’
सब अपनी जगह पर बैठ गईं।
ललिता- तुम्हें एक्टिंग भी आती है? और तुमने कभी हमें बताया तक नहीं।
मैं- सच कहूँ तो मुझे अब तक नहीं मालूम कि एक्टिंग कहते किसे हैं। लोगों से सुना था कि अगर आप किसी से बड़ी ही सफाई से झूठ कह सकते हो तो आप उतने ही अच्छे एक्टर बन सकते हो.. पर तुम सब तो जानती हो मुझे झूठ कहना तक नहीं आता। मैं कैसे एक्टिंग कर सकता हूँ।
कोमल- तो तुमने ऑडिशन दिया कैसे?
मैं- वो मेरे एक्सप्रेशन्स देखना चाहते थे। हंसी, मस्ती, डर, दर्द… इन सब के एक्सप्रेशन मैं कैसे देता हूँ।
मैंने अपनी आँखें बंद की और मैंने हर शब्द के साथ याद किया उन शब्दों से जुड़े हुए अपने बीते लम्हों को और मेरे चेहरे के भाव उसी हिसाब से खुद ब खुद बदलते चले गए.. पर अब तो मुझे एक नई कहानी दी जाएगी और उस झूठी कहानी में भी मुझे ऐसी जान डालनी होगी कि दर्शकों को यकीन हो जाए कि ये बिल्कुल सच है। मैं ये सब कैसे कर पाऊँगा।
कोमल- तुम यहाँ क्यूँ आए थे।
मैं- मैं तो अपने आप से भाग रहा था.. मैं अपने दर्द से पीछा छुड़ा रहा था।
कोमल- क्या आज भी तुम डॉली को याद करते हो?
मैं- यह कैसा सवाल है..? अगर याद ना आती तो हर बार इस नाम के साथ मेरी आँखें नम कैसे हो जातीं?
कोमल- और अगर मैं कहूँ कि तुम्हारे दर्द का इलाज़ एक्टिंग ही है तो?
मैं- वो कैसे?
कोमल- जैसे आज तुमने आँखें बंद करके उन लम्हों को जीना शुरू किया। वैसे ही हर दिन जब तुम्हें कोई स्क्रिप्ट मिले तो भूल जाना कि तुम विजय हो। निर्देशक के ‘एक्शन’ कहने के साथ ही तुम उस स्क्रिप्ट के किरदार हो यही याद रखना और जब वो पैकअप कहे.. तब तुम वापस आ जाना।
मैं- और मैं वापस आना ही ना चाहूँ तो?
कोमल- मतलब?
मैं- जब मेरे दर्द का इलाज़ खुद को भूलना ही है.. तो मैं भला कुछ पलों के लिए खुद को क्यूँ भूलूं। मैं तो हमेशा के लिए भूल सकता हूँ।
कोमल- ऐसे में खुद की तकलीफ तो कम कर लोगे.. पर जो लोग तुम्हें जानते हैं उन्हें दर्द दे जाओगे।
मैं- अब जो भी हो.. मैं ऐसे घुट-घुट कर नहीं जी सकता।
पायल- अरे क्यूँ तुम लोग इतने सीरियस हो रहे हो। इतना ख़ुशी का मौका है और तुम लोग अपनी ही बातें लेकर बैठे हो। आज तो पूरी रात हंगामा होगा..
फिर वो अपने फ़ोन को स्पीकर से जोड़ कर तेज़ आवाज़ में गाने बजाने लगी।
फिर क्या था, हम सब गाने की धुन पर नाच रहे थे। उछल-उछल कर हम सब ने कमरे की हालत खराब कर दी। उस पूरी रात किसी ने मुझे सोने नहीं दिया। रात भर मुझे बीच में बिठा नॉन स्टॉप बातें करती रहीं। सुबह के साढ़े पांच बजे मुझे छोड़ कर सब अपने कमरे में गईं.. तब जाकर मैं सो पाया।
नौ बजे ललिता की आवाज़ से मेरी आँख खुली।
ललिता- उठो.. स्टूडियो नहीं जाना है क्या?
मैंने अंगड़ाई लेते हुए कहा- कम से कम नींद तो पूरी होने दे।
ललिता- अरे मेरे सुपरस्टार.. अब से कम सोने की आदत डाल लो.. अब सोने का वक़्त गया।
मैंने घड़ी की तरफ देखा तो टाइम हो चुका था और आज मैं लेट नहीं होना चाहता था। सो मैं फ्रेश होने चला गया, नहा कर कपड़े बदले जो ऑनलाइन शॉपिंग से जो हमने कपड़े खरीदे थे वो पार्सल कल शाम ही आ गया था।
आज मैं एक नई जिंदगी की शुरुआत करने जा रहा था या दूसरे लफ्जों में अपने आप को इस दुनिया में खोने जा रहा था।
आज मुझे कहानी सुनाने को बुलाया गया था। मैंने टैक्सी की और पहुँच गया स्टूडियो।
आज वहीं गेट कीपर जो मुझे कल अन्दर आने से रोक रहा था, आज मुझे सलाम कर रहा था। मैं अन्दर पहुँच गया। चेतन जी मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। मैं उनके साथ एक अलग कमरे में चला गया।
चेतन जी- चाय कॉफ़ी कुछ लेंगे आप?
मैं- जी नहीं। फिलहाल तो कहानी पर ही ध्यान दे दूँ। बाद में हम साथ में लंच कर लेंगे।
चेतन जी- जैसी आपकी मर्ज़ी।
उन्होंने कहानी सुनाना शुरू कर दिया।
‘ये कहानी है एक लड़के की.. जिसके माँ-बाप का देहाँत बचपन में ही हो गया था। उसे बचपन से ही अपना ख्याल रखने की आदत थी.. उसके पास इतनी दौलत थी कि उसकी खुद की जिंदगी तो आराम से गुज़र सकती थी.. पर उसे अगर कुछ कमी थी तो बस प्यार की। बचपन में जब से एक्सीडेंट में उसके परिवार वाले चले गए थे.. तब से ही वो हर माँ-बाप में खुद के माँ-बाप को देखता। बिना प्यार की परवरिश से उसे एक मानसिक बीमारी हो जाती है ‘स्विच पर्सनालिटी डिसऑर्डर।’ ये एक ऐसी बीमारी है.. जिसमें एक ही इंसान अपने जीवन में दो अलग-अलग किरदार निभाता है। जिसका एक पहलू तो प्यार की तलाश में तड़फता रहता है.. पर वहीं दूसरा पहलू हर दिन गर्लफ्रेंड बदलता है।
कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब उस लड़के को एक ही परिवार की दो बहनों से प्यार हो जाता है।’
मैं उन्हें रोकता हुआ बोलने लगा- दो लड़कियों से एक साथ सच्चा प्यार..!
चेतन जी- यही तो ट्विस्ट है। उस लड़के को तो पता भी नहीं है कि उसके जिंदगी में दो किरदार हैं.. और इसी वजह से वो एक साथ दो लड़कियों से प्यार कर बैठता है। वो भी दोनों सगी बहनें।
उसके सच्चे प्यार की वजह से दोनों लड़कियाँ भी उसे अपना दिल दे बैठती हैं.. पर कहानी के आखिर-आखिर तक दोनों लड़कियाँ को इस सच्चाई का पता नहीं चल पाता है कि दोनों एक ही इंसान के प्यार में हैं।
कहानी के क्लाइमेक्स में दोनों लड़कियों को उसके बाप का दुश्मन उठा ले जाता है और जब वो दोनों को उस गुंडे से बचाता है.. तब जाके लड़कियों को उसकी असलियत का पता चलता है और इसके साथ ही वो लड़का भी अपनी बीमारी के बारे में जान जाता है।
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