Free Sex Kahani काला इश्क़!
10-22-2019, 09:21 PM,
#41
RE: काला इश्क़!
update 20

उस रात मुझे बुखार चढ़ गया पर फिर भी सुबह मैं नाहा-धो के ऑफिस निकल गया| पर दोपहर होने तक हालत बहुत ज्यादा ख़राब हो गई, कमजोरी ने हालत बुरी कर दी| मैंने एक चाय पि पर तब भी कोई आराम नहीं मिला, नजाने कैसे पर मैडम को मेरी ख़राब तबियत दिख गई और वो मेरे पास आईं, मेरे माथे पर हाथ रख उन्हें मेरे जलते हुए शरीर का एहसास हुआ और उन्होंने मुझे डॉक्टर के जाने को बोला| मैं ऑफिस से निकला और बड़ी मुश्किल से घर बाइक चला कर पहुँचा| घर आते ही मैं बिस्तर पर पड़ा और सो गया, रात 8 बजे आँख खुली पर मेरे अंदर की ताक़त खत्म हो चुकी थी| मैंने खाना आर्डर किया ये सोच कर की कुछ खाऊँगा तो ताक़त आएगी पर खाना आने तक मैं फिर सो गया|  जब से मैं शहर आ कर पढ़ने लगा था तब से मैं अपना बहुत ध्यान रखता था| जरा सा खाँसी-जुखाम हुआ नहीं की मैं दवाई ले लिया करता था| मैं जानता था की अगर मैं बीमार पड़ गया तो कोई मेरी देखभाल करने वाला नहीं है, पर बीते कुछ दिनों से मैं बहुत मटूस था| ऐसा लगता था जैसे मैं चाहता ही नहीं की मैं ठीक हो जाऊँ| खाना आने के बाद उसे देख कर मन नहीं किया की खाऊँ, दो चम्मच दाल-चावल खाये और फिर बाकी छोड़ दिया और बिस्तर पर पड़ गया| रात दस बजे मैडम का फ़ोन आया और उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछा तो मैंने झूठ बोल दिया; "Mam मुझे कुछ दिन की छुट्टी चाहिए ताकि मैं घर चला जाऊँ, यहाँ कोई है नहीं जो मेरी देखभाल करे|" मैडम ने मुझे छुट्टी दे दी और मैं फ़ोन बंद कर के सो गया| वो रात मुझ पर बहुत भारी पड़ी, रात 2 बजे मेरा बुखार 103 पहुँच गया और शरीर जलने लगा| प्यास से गाला सूख रहा था और वहाँ कोई पानी देने वाल भी नहीं था| ऋतू को याद कर के मैं रोने लगा और फिर होश नहीं रहा की मैं कब बेहोश हो गया|


जब चेहरे पर पानी की ठंडी बूंदों का एहसास हुआ तो धीरे-धीरे आँखें खोलीं, इतना आसान काम भी मुझसे नहीं हो रहा था| पलकें अचानक ही बहुत भारी लगने लगी थीं, खिड़की से आ रही रौशनी के कारन मैं ठीक से देख भी नहीं पा रहा था| कुछ लोगों की आवाजें कान में सुनाई दे रही थी जो मेरे आँख खोलने पर खेर मना रहे थे| "उठो ना?" ऋतू ने मुझे हिलाते हुए कहा और तभी उसकी आँख से आँसू का एक कतरा गिरा जो सीधा मेरे हाथ पर पड़ा| अपने प्यार को मैं कैसे रोता हुआ देख सकता था, मैंने उठने की जी तोड़ कोशिश की और बाकी का सहारा ऋतू ने दिया और मुझे दिवार से पीठ लगा कर बिठा दिया| अब जा के मेरी आँखों की रौशनी ठीक हो पाई और मुझे अपने कमरे में 3-4 लोग नजर आये| मेरे मकान मालिक अंकल, उनका लड़का और उनकी बहु और बगल वाले पांडेय जी| मेरे मुँह से बोल नहीं फुट रहे थे क्योंकि गला पूरी तरह से सूख चूका था| ऋतू ने मुझे पीने के लिए पानी दिया और जब गला तर हुआ तो थोड़े शब्द बाहर फूटे; "आप सब यहाँ?"

सुभाष जी (मकान मालिक) बोले; "अरे बेटा तेरी तबियत इतनी ख़राब थी तो तूने हमें बताया क्यों नहीं? ये लड़की भागी-भागी आई और इसने बताया की तू दरवाजा नहीं खोल रहा, पता है हम कितना डर गए थे की कहीं तुझे कुछ हो तो नहीं गया?" अब मुझे सारी बात समझ आ गई, पर हैरानी की बात ये थी की ऋतू यहाँ आई क्यों? पर ऋतू को रोते हुए देख उसपर जो कल तक गुस्सा आ रहा था वो अब भड़कने लगा था| "चलिए डॉक्टर के|" ऋतू ने सुबकते हुए कहा| मैंने ना में सर हिलाया; "इतनी कोई घबराने की बात नहीं है, दवाई खाऊँगा तो ठीक हो जाऊँगा|" "आपका पूरा बदन बुखार से जल रहा है और आप इसे हलके में ले रहे हैं?" ऋतू ने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा| पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा और डॉक्टर के नहीं गया| मैं जानता था की मुझे इस तरह देख कर ऋतू को बहुत दर्द हो रहा था और यही सही तरीका था उसे सबक सिखाने का! मुझ पर भरोसा नहीं करने की कुछ तो सजा मिलनी थी उसे! चूँकि मेरा सर दर्द से फट रहा था तो मैंने उसे चाय बनाने को कहा| चाय बना के वो लाई तो सबने चाय पि पर मेरे लिए वो चाय इतनी बेसुआद थी की क्या बताऊँ! मेरी जीभ का सारा स्वाद मर चूका था, इतना बुखार था मुझे| सब ने मुझे कहा की मैं डॉक्टर के चला जाऊँ पर मैंने कहा की आज की रात देखता हूँ! आखिर सब चले गए और ऋतू मुझे दूर किचन काउंटर से देख रही थी| 1 बजा था तो मैंने उसे हॉस्टल लौटने को कहा पर अब वो जिद्द पर अड़ गई| "जब तक आप ठीक नहीं हो जाते मैं कहीं नहीं जा रही!" उसने हक़ जताते हुए कहा|

"हेल्लो मैडम! आप यहाँ किस हक़ से रुके हो?" मैंने गुस्से से कहा| जो गुस्सा भड़का हुआ था वो अब धीरे-धीरे बाहर आने लगा था|  

"आपकी जीवन संगनी होने के रिश्ते से रुकी हूँ!" उसने बड़े गर्व से कहा|

" काहे की जीवन संगनी? जिसे अपने पति पर ही भरोसा नहीं वो काहे की जीवन संगनी?" मैंने एक ही जवाब ने उसका सारा गर्व तोड़ कर चकना चूर कर दिया|

"जानू! प्लीज!" उसने रोते हुए कहा|

"तुम्हारे इस रूखे पन से मैं कितना जला हूँ ये तुम्हें पता है? वो तुम्हारे कॉलेज के बाहर रोज आ कर रुकना इस उम्मीद में की तुम आ कर मेरे सीने से लग जाओगी! अरे गले लग्न तो छोडो तुमने तो एक पल के लिए बात तक नहीं की मुझसे! ऐसे इग्नोर कर दिया जैसे मेरा कोई वजूद ही नहीं है! कैसे की मैं तुम्हारे लिए कोई अनजान आदमी हूँ! मैं पूछता हूँ आखिर ऐसा कौन सा पाप कर दिया था मैंने? तुम्हें सब कुछ सच बताया सिर्फ इसलिए की हमारे रिश्ते में कोई गाँठ न पड़े और तुमने तो वो रिश्ता ही तार-तार कर दिया| जानता हूँ एक पराई औरत के साथ था पर मैंने उसे छुआ तक नहीं, उसके बारे में कोई गलत विचार तक नहीं आया मेरे मन में और जानती हो ये सब इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ| पर तुम्हें तो उस प्यार की कोई कदर ही नहीं थी| जब मुंबई गया था तब तुमने एक दिन भी मेरा कॉल उठा कर मुझसे बात नहीं की, सारा टाइम फ़ोन काट देती थी| पिछले दो हफ़्तों से तुम ने मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया!!! किस गलती की सजा दे रही थी मुझे?" मेरे शूल से चुभते शब्दों ने ऋतू के कलेजे को छन्नी कर दिया था और वो बिलख-बिलख कर रोने लगी| "I’m …really ….very very…. sorry! मैंने आपको बहुत गलत समझा| ऋतू ने रोते हुए कहा| फिर उसने अपने आँसूँ पोछे और हिम्मत बटोरते हुए कहा; "उस दिन मैं आपके ऑफिस जान बुझ कर आई थी अनु मैडम से मिलना| मुझे देखना था ... जानना था की आखिर उसमें ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं! पर उनसे बात कर के मुझे जरा भी नहीं लगा की उनका या आपका कोई चक्कर है! मैंने उनसे पूछा क्या आप उनके पति हो तो उनके चेहरे पर मुझे कोई शिकन या गिल्ट नहीं दिखा| मुझे वो बड़ी सुलझी और सभ्य लगीं, उस दिन मुझे खुद पर गुस्सा आया की मैंने उनके बारे में ऐसा कुछ सोचा| वो तो आपको सिर्फ अपना दोस्त मानती हैं! मुझे बहुत गिलटी हुई की मेरे इस बचपने की वजह से मैंने आपको इतना तड़पाया इतना दुःख दिया| आप चाहते तो वो सब उनके साथ कर सकते थे और मुझे इसकी जरा भी भनक नहीं होती| पर आपने सब सच बताया और यही सोच-सोच कर मैं शर्म से मरी जा रही थी| मुझे माफ़ कर दीजिये! मैं वादा करती हूँ की मैं आज के बाद कभी आप पर शक नहीं करुँगी|” 

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बिस्तर से उठ के बाथरूम जाने को उठा तो एहसास हुआ की मुझे बहुत कमजोरी है| ऋतू तेजी से मेरे पास आई और मुझे सहारा दे कर उठाने लगी| बाथरूम से वापस भी उसी ने मुझे पलंग तक छोड़ा| मैं लेटा और लेटते ही सो गया और करीब घंटे भर बाद ऋतू ने मुझे खाना खाने को उठाया| "मैं खा लूँगा, तुम हॉस्टल वापस जाओ|" इतना कह के मैं उठ के बैठ गया, पर मेरी बातों से झलक रहे रूखेपन को ऋतू मेहसूस कर रही थी| वो दरवाजे तक गई और दरवाजे की चिटकनी लगा दी और मेरी तरफ देखते हुए अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर कड़ी हो गई; "मैं कहीं नहीं जाने वाली! जब तक आप तंदुरुस्त नहीं हो जाते मैं यहीं रहूँगी, आपके पास!"


"बकवास मत कर! हॉस्टल में क्या बोलेगी की रात भर कहाँ थी और घर पर ये खबर पहुँच गई ना तो तुझे घर बिठा देंगे, फिर भूल जाना पढ़ाई-लिखाई!" ये कहते-कहते मेरे सर में दर्द होने लगा तो मैं अपने दोनों हाथों से अपना सर पकड़ के बैठ गया| मेरा सर झुका हुआ था तो ऋतू मेरे नजदीक आई और मेरी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई और बोली; "मैंने आपके फोन से आंटी जी को फ़ोन कर दिया और उन्हें आपकी तबियत के बारे में सब बता दिया| उन्होंने कहा है की मैं यहाँ रुक सकती हूँ|” ये सुनते ही मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने अपनी गर्दन घुमा ली; “तेरा दिमाग ठिकाने है की नहीं?!” मैंने उसे गुस्से से डाँटा पर उसका उस पर कोई असर नहीं पड़ा, वो बस सर झुकाये वहीँ खड़ी रही| "तू क्यों सब कुछ तबाह करने पर तुली है? तुझे यहाँ आने के लिए किसने कहा था? कॉलेज में भी तेरी दोस्त का हमारे रिश्ते के बारे में तूने सब बता दिया और यहाँ भी सब को हमारे बारे में सब पता चल गया है, अब तू हॉस्टल नहीं जाएगी तो वो सब क्या सोचेंगे?"  माने उसे समझाया, जो शायद उसके दिमाग में घुसा या फिर वो मुझे मैनिपुलेट करते हुए बोली; "आज आपकी तबियत बहुत ख़राब है! मुझे बस आज का दिन रुकने दो, कल आपकी तबियत ठीक हो जाएगी तो मैं वापस चली जाऊँगी| प्लीज...." ऋतू ने हाथ जोड़ कर मुझसे मिन्नत करते हुए कहा| अब मैं थोड़ा पिघल गया और उसे रुकने की इजाजत दे दी| वो खुश हो गई और थाली में दाल-चावल परोस के लाई और खुद ही मुझे खिलाने लगी, मैंने मना किया की मैं खा लूँगा पर वो नहीं मानी| पहला कौर खाते ही मुझे एहसास हुआ की खाने में कोई टेस्ट ही नहीं है! बिलकुल बेस्वाद खाना! मेरी शक्ल से ही ऋतू को पता चल गया की खाने में कुछ तो गड़बड़ है तो उसने एक कौर खा के देखा और बोली; "नमक-मिर्च सब तो ठीक है?!" पर मैं समझ गया की बुखार के कारन ही मेरे मुँह से स्वाद चला गया है और इसलिए खाने का मन कतई नहीं हुआ| पर ऋतू ने प्यार से जोर-जबरदस्ती की और मुझे खाना खिला दिया| मैं बस खाने को पानी के साथ लील जाता की कम से कम पेट में चला जाए तो कुछ ताक़त आये|


खाना खा कर ऋतू ने मुझे क्रोसिन दी और मैं फिर से लेट गया और फिर सीधा शाम 5 बजे उठा| बुखार उतरा तो नहीं था बस कम हुआ था, तो मैंने ऋतू से कहा की वो हॉस्टल चली जाए| "आपका बुखार कम हुआ है उतरा नहीं है| रात में फिर से चढ़ गया तो?" उसने चिंता जताते हुए कहा| फिर वो पानी गर्म कर के लाई और उसने मुझे 'स्पंज बाथ' दिया और दूसरे कपडे दिए पहनने को| फिर वही बेस्वाद चाय पि, हम दोनों में अब बातें नहीं हो रही थी| ऋतू बीच-बीच में कुछ बात करती थी पर मैं उसका जवाब हाँ या ना में ही देता था| फिर वो रात का खाना बनाने लगी, पर मेरा मन अब कमरे में कैद होने से उचाट हो रहा था| मैं खिड़की पास खड़ा हो गया और ठंडी हवा का आनंद लेने लगा| ऋतू ने मुझे बैठने को एक कुर्सी दी और कुछ देर बाद वहाँ मोहिनी आ गई|      

                "अरे मानु जी! क्या हालत बना ली आपने?" उसकी आवाज सुनते ही मैं चौंक कर गया और उसकी तरफ हैरानी से देखने लगा| "दीदी ये तो बेहोश हो गए थे मकान मालिक से डुप्लीकेट चाभी ली और घर खोला तब ...." ऋतू के आगे बोलने से पहले ही मैं बोल पड़ा; "अब पहले से बेहतर हूँ, वैसे अच्छा हुआ तुम आ गई| जाते समय इसे साथ ले जाना|"

"अरे अभी तो आई हूँ? और आप जाने की बात आकर रहे हो? बड़े रूखे हो गए आप तो? कहाँ गए आपकी chivalry???" मोहिनी मुझे छेड़ते हुए बोली|

"chivalry से तौबा कर ली मैंने! खाया-पीया कुछ नहीं गिलास तोडा बारह आना|" मैंने ऋतू को टोंट मारते हुए कहा| ये सुन कर ऋतू ने मोहिनी से नजर बचा कर कान पकडे और दबे होठों से सॉरी बोला|

"ऐसा क्या होगया की हमारे chivalry के राजा ने तौबा कर ली? बैठ इधर ऋतू मैं तुझे एक किस्सा सुनाऊँ| बात तब की है जब हम दोनों कॉलेज में थे, पढ़ाई में मैं जीरो थी हाँ उसके आलावा कल्चरल प्रोग्राम में मैं हमेशा आगे रहती थी| बाकी सारे सब्जेक्ट्स तो मैं जैसे-तैसे संभाल लेती पर एकाउंट्स मेरे सर के ऊपर से जाता था और तुम्हारे चहु ठहरे एकाउंट्स के महारथी| मेरी माँ ने इन्हें मुझे पढ़ाने के लिए बोला वो भी घर आ कर| तो जनाब हमेशा मुझे 2 फुट की दूरी से पढ़ाते थे| ऐसा नहीं था की माँ का डर था बल्कि वो तो ज्यादातर बहार ही होती थीं पर मजाल है की कभी इन्होने वो दो फुट की दूरी बाल भर भी कम की हो! अब मुझे इनके मज़े लेने होते थे तो मैं जानबूझ कर कभी-कभी इनके नजदीक खिसक कर बैठ जाती और ये एक दम से पीछे सरक जाते| इनकी मेरे नजदीक आने से इतनी फटती थी की पूछ मत! पूरे कॉलेज को पता था की जनाब मुझे पढ़ाते हैं और वो सब पता नहीं क्या-क्या बोलते थे इन्हें| कइयों ने इन्हें चढ़ाया की आज तू मोहिनी का हाथ पकड़ ले और बोल दे उसे की तू उससे प्यार करता है, उसे मिनट नहीं लगेगा पिघलने में पर आज तक इन्होने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा|"


ऋतू ये सब सुन कर हैरान थी क्योंकि मैंने उसे ये सब कभी नहीं बताया था, पर ये सुनने के बाद उसे बहुत बुरा लग रहा था की क्यों उसने मुझे पर शक किया| खेर चाय पीना और कुछ गप्पें मारने के बाद मोहिनी हँसती हुई  बोली; "चलो आपके बीमार पड़ने से एक तो बात अच्छी हुई, की इसी बहाने पता तो चल गया की आप रहते कहाँ हो?! अब तो आना-जाना लगा रहेगा|"

"अगर एक बार पूछ लेते तो मैं वैसे ही बता देता|" मैंने भी हँसते हुए बता दिया|

"अच्छा जी? चलो आगे से ध्यान रखूँगी| चल भई रितिका?"

"दीदी प्लीज मैं आज यहीं रुक जाऊँ? अभी बुखार सिर्फ कम हुआ है उतरा नहीं है, रात को तबियत ख़राब हो गई तो कौन यहाँ देखने वाला?" ऋतू ने मिन्नत करते हुए कहा|

"कोई जर्रूरत नहीं है, मैं ठीक हूँ|" मैंने उसी रूखेपन से जवाब दिया|

"कोई बात नहीं तू रुक जा यहाँ|" मोहिनी ने ऋतू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा| फिर मेरी तरफ देख कर बोली; "आप ना ज्यादा उड़ो मत! वरना मैं भी यहीं रुक जाऊँगी| वैसे भी अब तो आपने chivalry से तौबा कर ही ली है, तो अब तो कोई दिक्कत नहीं होगी आपको?!" मोहिनी ने मुझे छेड़ते हुए कहा|     

"यार आप अब भी नहीं सुधरे!" मैंने हँसते हुए कहा|

"जो सुधर जाए वो मोहिनी थोड़े ही है|" इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए चली गई| ये सब सुन कर अब तो जैसे ऋतू के मन में प्यार का सागर उमड़ पड़ा| उसने बड़े प्यार से खाना बनाया पर नाक बंद थी और जो थोड़ी-बहुत खुशबु मैं सूँघ पाया उससे लगा की खाना जबरदस्त बना होगा, पर जब ऋतू ने मुझे पहला कौर खिलाया तो वही बेस्वाद! जैसे -तैसे खाना निगल लिया और फिर ऋतू को खाने के लिए बोला| वो अपना खाना ले कर मेरे सामने बैठ गई और खाने लगी| खाने के बाद उसने मुझे फिर से क्रोसिन दी और हम दोनों लेट गए| रात के 1 बजे मुझे फिर से बुखार चढ़ गया और मैं बुरी तरह कँप-कँपाने लगा| ऋतू शायद जाग रही थी तो उसने मेरी कँप-कँपी सुनी और तुरंत लाइट जलाई और उठ कर मुझे पीठ के बल लिटाया| जैसे ही उसने मेरे माथे को छुआ तो वो चीख पड़ी; "हाय राम! अ...अ....आपका बदन तो भट्टी की तरह जल रहा है!" सबसे पहले उसने मुझे थोड़ा बिठाया और एक क्रोसिन की गोली दी फिर उसने आननफानन में सारी चादरें उठाई और एक-एक कर मुझ पर डाल दी| पर मैं अब भी काँप रहा था, ऋतू की आँखों से आँसूँ बहने लगे और जोर-जोर से मेरे हाथ और पाँव मलने लगी| जब उसे कुछ और नहीं सुझा तो वो उठी और आ कर मेरी बगल में लेट गई और मुझे उसने अपनी तरफ करवट करने को कहा| उसने मेरा मुँह अपनी छाती में दबा दिया और खुद मुझसे इस कदर लिपट गई जैसे की कोई जंगली बेल किसी पेड़ से लिपट जाती है| मैंने भी उसे कस कर जकड लिया और अपने ऊपर भी उसने वो चादरें डाल ली और मेरी पीठ रगड़ने लगी| उसकी सांसें तेज चलने लगी थी, वो घबरा रही थी की कहीं मैं मर गया तो? उसने बुदबुदाते हुए कहा; "मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगी| प्लीज.....प्लीज... मुझे छोड़ कर मत जाना| आपके बिना मेरा कौन है? कैसे जीऊँगी मैं?" करीब एक घंटा लगा मेरे जिस्म पर दवाई का असर होने में और मेरी कँप-कँपी थम गई| ऋतू के सारे कपडे मेरे माथे और उसके जिस्म के पसीने से भीग चुके थे! धीरे-धीरे हम दोनों इसी तरह एक दूसरे की बाहों में सो गए| सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली और मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से धीरे से छुड़ाया और उसके मस्तक पर चूमा| बुखार अब कम था पर मेरे होठों के एहसास से ऋतू जाग गई और मुझे जागता हुआ पा कर मेरी आँखों में देखते हुए पूछा; "अब आपकी तबियत कैसी है?" माने मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिलाई और वो समझ गई की मैं ठीक हूँ| उसने मेरा माथा छुआ तो घबरा गई और बोली; "बुखार खत्म नहीं हुआ आपका! आज आपको मेरे साथ डॉक्टर के चलना होगा|" मैंने जवाब में बस हाँ कहा| कल तक मुझे जो गुस्सा ऋतू पर आ रहा था वो अब प्यार में बदल गया था| अब मैं उससे अब अच्छे से बात आकर रहा था और वो भी अब पहले की तरह खुश थी| नाश्ता कर के वो मेरे साथ हॉस्पिटल के लिए निकली पर मेरे जिस्म में ताक़त कम थी तो नीचे आ कर हमने फ़ौरन ऑटो किया और हॉस्पिटल पहुँचा| डॉक्टर ने चेक-अप किया और डेंगू का टेस्ट कराने को कहा| ये सुनते ही ऋतू बहुत घबरा गई, मानो की जैसे डॉक्टर ने कहा हो की मुझे कैंसर है| खेर ब्लड सैंपल देने के टाइम जब नर्स ने सुई लगाईं तो ऋतू से वो भी नहीं देखा गया और मुझे होने वाला उसके चेहरे पर दिखने लगा, उसका बचपना देख नर्स भी हँस पड़ी| खेर हम दवाई ले कर घर लौटे और रिपोर्ट कल सुबह आने वाली थी|
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10-22-2019, 11:29 PM,
#42
RE: काला इश्क़!
Interesting twist and turns
Superb
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10-23-2019, 12:19 PM,
#43
RE: काला इश्क़!
(10-22-2019, 11:29 PM)Game888 Wrote: Interesting twist and turns
Superb

Thanks  Smile
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10-23-2019, 10:13 PM,
#44
RE: काला इश्क़!
update 21 

ऋतू बहुत घबराई हुई थी और मुझे उसकी घबराहट दूर करनी थी; "जान!" इतना सुनना था की वो भागती हुई आई और मेरे सीने से लग गई और फफक का करो पड़ी| "कान तरस गए थे आपके मुँह से ये सुनने को|" उसने रोते हुए कहा| "आपको कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं करती| प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" मैंने उसके सर को चूमा और उसे कस के अपनी छाती से चिपका लिया, तब जा कर उसका रोना कम हुआ| तभी अनु मैडम का फ़ोन बज उठा और फ़ोन ऋतू के हाथ के पास था और उसी ने मुझे फ़ोन उठा कर दिया| पर इस बार उसके मुँह पर जलन या कोई दुःख नहीं था| मैडम ने मेरा हालचाल पूछा पर मैंने उन्हें ये नहीं बताया की मैं यहीं शहर में हूँ वरना वो घर आती और फिर ऋतू को देख के हजार सवाल पूछती| जब उन्हें पता चला की मुझे डेंगू होने के चांस हैं तो वो भी घबरा गईं पर मैंने उन्हें ये झूठ बोल दिया की यहाँ सब परिवार वाले हैं मेरी देख-रेख करने को! ऋतू ये सब बड़ी गौर से सुन रही थी और जैसे ही मेरी बात खत्म हुई तो उसने पूछा की मैंने झूठ क्यों बोला; "mam यहाँ आ जाती तो तुम कहाँ छुपती?" ये सुन कर ऋतू को समझ आ गया और वो कुछ खाने के लिए बनाने लगी| फिर आस-पडोसी भी आये और मेरा हाल-चाल पूछने लगे| सुभाष जी तो ऋतू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे! 

भाई ऐसा जीवन साथी तो बड़ी मुश्किल से मिलता है, जो लड़की शादी से पहले इतना ख्याल रखती हो वो भला शादी के बाद कितना ख्याल रखेगी?! ये सुन ऋतू के गाल शर्म से लाल हो गए|

"तुम दोनों जल्दी से शादी कर लो इसी बहाने बिल्डिंग में थोड़ी रौनक बनी रहेगी|" पांडेय जी ने कहा|

"जी अभी पहले ये अपनी पढ़ाई तो पूरी कर ले!" माने मुस्कुरा कर जवाब दिया तो ऋतू ने भाभी के कंधे पर अपना मुँह छुपा लिया, ये देख सब हँस पड़े| चाय पी कर सब गए तो ऋतू ने खाना बनाया और खुद अपने हाथ से मुझे खिलाया और आज तो मैंने भी उसे अपने हाथ से खिलाया| खाना खा कर ऋतू ने मुझे अपना सर उसकी गोद में रख कर लेटने को कहा| थोड़ी देर बाद दोनों की आँख लग गई और फिर जब मैं उठा तो ऋतू चाय बना के लाइ| चाय की चुस्की लेते हुए मैंने अपनी चिंता उस पर जाहिर की;

मैं: ऋतू....चीजें वैसे नहीं हो रही जैसी होनी चाहिए!

ऋतू: क्यों?? क्या हुआ?

मैं: मैं चाहता था की हमारा प्यार एक राज़ रहे तब तक जब तक की तुम अपने फाइनल ईयर के पेपर नहीं दे देती| पर यहाँ तो सबको पता चल चूका है!

ऋतू: कल जब मैं आपसे मिलने आई तो मैं 20 मिनट तक आपका दरवाजा खटखटाती रही, आपको दसियों दफा कॉल किया पर आप ने कोई जवाब ही नहीं दिया| मेरा मन अंदर से कितना घबरा रहा था ये आप सोच भी नहीं सकते! कलेजा मुँह को आ गया था, लगता था की हमारा साथ छूट गया और वो भी सिर्फ मेरी वजह से! मैंने हार कर पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने कहा की मकान मालिक के पास डुप्लीकेट चाभी है| मैंने उनसे ये कहा की मैं आपकी मंगेतर हूँ और आपसे मिलने आई हूँ, तब जा कर उन्हें मेरी बात का भरोसा हुआ| कॉलेज में मेरी सिर्फ और सिर्फ एक दोस्त है काम्या, वो भी आपके बारे में ज्यादा नहीं जानती| मैंने उसे बीएस इतना बताया की आप एक ऑफिस में जॉब करते हो, इससे ज्यादा जब भी वो पूछती है तो मैं बात टाल जाती हूँ| उस दिन सूमो भय भी शायद जान या समझ चुके हों, क्योंकि उनका भाई तो अब हमारे कॉलेज में नहीं पढता| हॉस्टल में मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करती, जी लगा कर पढ़ती हूँ तो इसलिए किसी को हमारे रिश्ते के बारे में भनक तक नहीं|  हम एक समाज में रहते हैं, अब मिलेंगे तो लोग देखेंगे ही और बिना मिले तो मैं आपसे रह नहीं सकती!

मैं: और तुम्हारी पढ़ाई का क्या?

ऋतू: आपसे किया वादा मुझे याद है!

ये सुन कर मैं थोड़ा निश्चिन्त हुआ पर फिर भी एक डर तो था की अगर बात खुल गई तो ऋतू की पढ़ाई ख़राब हो जाएगी, पर फिर सोचा की जो होगा देखा जायेगा! वो रात बड़े प्यार से बीती, सोने के समय आज भी ऋतू ने मुझे कल की तरह अपने सीने से चिपका लिया और गहरी सांसें लेते हुए सो गई| मैं समझ रहा था की मेरे इतने करीब होने से उसके जिस्म में क्या उथल-पुथल मची हुई है पर मैं अभी इतना स्वस्थ नहीं हुआ था की उसके साथ सेक्स कर सकूँ! आज दो बार दवाई लेने से ये फायदा हुआ था की अब बुखार नहीं था, बॉडी अब भी रिकवर कर रही थी| अगले दिन रिपोर्ट आई और हुआ भी वही जो डॉक्टर ने कहा था| डेंगू! डॉक्टर ने खूब साड़ी दवाइयाँ लिख दी, बुखार रोकने से ले कर मल्टी विटामिन तक! गोलियां भी रिवाल्वर के कारतूस के साइज की! अगले तीन दिन तक ऋतू ने मेरी बहुत देखभाल की और मेरे कई बार उसे हॉस्टल जाने के आग्रह करने के बाद भी उसने मेरी बात नहीं मानी| बुखार अब नहीं था पर कमजोरी बहुत थी मेरा प्लेटलेट काउंट काफी गिर चूका था, ये तो ऋतू 4 टाइम खाना बना कर मुझे खिला रही थी तो ज्यादा घबराने वाली बात नहीं थी| रात में सोने के समय रोज ऋतू मुझे अपने सीने से चिपका कर सोती, रोज रात को मेरी आँखों के सामने उसके स्तनों की घाटी होती और सुबह आँख खुलते ही मुझे फिर वही घाटी दिखती|
मोहिनी भी मुझे से मिलने रोज आई और अपने साथ फ्रूट्स लाती और वही हँसी-मज़ाक चलता रहा| तीसरे दिन तो आंटी जी भी आ गईं और उन्होंने भी ऋतू की बहुत तारीफ की; "भाई भतीजी हो तो ऋतू जैसी की अपने चाचा का इतना ख़याल रखती है|" ये सुन कर ऋतू को उतना अच्छा नहीं लगा जितना सुभाष अंकल की तारीफ करने से हुई थी| अब उन्होंने तो ऋतू को मेरी मंगेतर माना था और आंटी जी ने उसे भतीजी! "माँ सेवा करेगी ही, इसके चाचू ने भी इसका कम ख्याल रखा है? स्कूल से लेकर एक ये ही तो हैं जो इसे पढ़ा रहे हैं|" मोहिनी की बात सुन कर ऋतू खुद को बोलने से नहीं रोक पाई; "आंटी जी घर में सिर्फ और सिर्फ ये ही हैं जिन्होंने मुझे बचपन से लेकर अब तक पढ़ाया है| दसवीं और बारहवीं मैं इन्हीं की वजह से पढ़ पाई वरना घरवाले तो सब पीछे पड़े थे की ब्याह कर ले|"


नोट करने वाली बात ये थी की ऋतू ने मुझे एक बार भी 'चाचू' नहीं बोला था और मैं ये बात समझ चूका था पर डर रहा था की आंटी ये बात पकड़ न लें| शुक्र है की उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया! उनके जाने के बाद मुझे ध्यान आया की घर में मेरी तबियत के बारे में किसी को पता है या नहीं? क्या ऋतू ने किसी को बताया?

"ऋतू, तूने घर में फ़ोन किया था?" मैंने ऋतू से घबराते हुए पूछा|

"नहीं... मुझे याद नहीं रहा|" ऋतू का जवाब सुन कर मैं गंभीर हो गया| मैंने तुरंत फ़ोन घर मिला दिया ये जानने के लिए की कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है? पर शुक्र है की कोई घबराने की बात नहीं थी| मैं ने राहत की साँस ली और ऋतू को बताया की आगे से ये बात कभी मत भूलना| मुझे जर्रूर याद दिला देना वरना वो लोग अगर हॉस्टल पहुँच गए तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा| उसने हाँ में सर हिलाया उसने भी चैन की साँस ली| आज रात सोने के समय भी उसने ठीक वही किया, मेरा सर अपने सीने से लगा कर वो लेट गई| मैं इतने दिनों से उसके जिस्म की गर्मी को महसूस कर पा रहा था, पर मजबूर था की कुछ कर नहीं सकता था| आज मैंने ठान लिया था की इतने दिनों से ऋतू मेरी तीमारदारी में लगी है तो उसे थोड़ा खुश करना तो बनता है| मैंने ऋतू के स्तनों की घाटी को अपने होठों से चूमा तो उसकी सिसकारी फुट पड़ी; "ससससस...अ..ह...हह" और वो हैरत से मेरी तरफ देखने लगी| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे मिन्नत कर रही हो की मैं उसकी इस आग का कुछ करूँ| मैंने थोड़ा ऊपर आते हुए उसके गुलाबी होठों को चूम लिया, आगे मेरे कुछ करने से पहले ही ऋतू के अंदर की आग प्रगाढ़ रूप धारण कर चुकी थी| उसने गप्प से अपने होठों और जीभ के साथ मेरे होठों पर हमला कर दिया| उसकी जीभ अपने आप ही मेरे मुँह में घुस गई और मेरी जीभ से लड़ने लगी| मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा और अपने होठों से उसके निचले होंठ को मुँह में भर चूसने लगा| ये मेरा सबसे मन पसंद होंठ था और मैं हमेशा उसके नीचले होंठ को ही सबसे ज्यादा चूसता था| दो मिनट तक मैं बीएस उसके निचले होंठ को चुस्त रहा और जब जी भर गया तो अपनी जीभ और निचले होठ की मदद से उसके ऊपर वाले होंठ को मुँह में भर के चूसने लगा| जीभ से मैं उसके ऊपर वाले मसूड़ों को भी छेड़ दिया करता| इधर ऋतू के हाथों ने अपनी हरकतें शुरू कर दी, सबसे पहले तो वो मेरी टी-शर्ट को उतारने की जद्दोजहद करने लगे| पर मैंने अपने हाथों से उसे रोक दिया और वापस उसके चेहरे को थाम लिया और अपनी जीभ और होठों से उसके होठों को बारी-बारी चुस्त रहा| ऋतू को इसमें बहुत मजा आ रहा था पर उसे चाहिए था मेरा लंड, जो मैं उसे दे नहीं सकता था! मैंने उसके होठों को चूसना रोका और उसके चेहरे को थामे हुए ही कहा; "अपना पाजामा निकाल और जो मैं कह रहा हूँ वो करती जा|" मेरी बात सुन उसने लेटे-लेटे अपनी पजामी का नाडा खोल दिया और उसे अपनी गांड से नीचे करते हुए उतार फेंक दिया और बेसब्री से मेरे अगले आदेश का इंतजार करने लगी| मैं सीधा लेट गया, पीठ के बल उसे और मेरे दोनों तरफ टांग कर के मेरे पेट पर बैठने को कहा| ऋतू तुरंत उठ कर वैसे ही बैठ गई, फिर मैंने उसके कूल्हों पर अपना हाथ रखा और उसे धीरे-धीरे सरक कर मेरे सर की तरफ आने को कहा| वो भी धीरे-धीरे कर के ठीक मेरे मुँह के ऊपर आ कर उकडून हो कर बैठ गई| कमरे में अँधेरा था इसलिए न तो मैं और न वो मेरी शक्ल और भावों को देख पा रही थे| जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी बुर के कपालों को छुआ तो वो चिंहुँक उठी और ऊपर की ओर हवा में उचक गई| 
मैंने उसकी जनघ पर हाथ रख कर उसे मेरे मुँह पर बैठने को कहा और तब जा कर वो नीचे वापस मेरे मुँह पर बैठ गई| मैंने अपने हाथों से उसकी जांघों को पकड़ लिया ताकि वो और न उचक जाए| मैंने फिर से ऋतू के बुर के कपालों को जीभ से छेड़ा पर इस बार वो ऊपर नहीं उचकी| अब मैंने अपने होठों से उन कपालों को पकड़ लिया और नीचे की तरफ खींचने लगा, ऋतू को हो रहे मीठे दर्द के कारन उसके मुँह से 'आह' निकल गई| उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को थाम लिया और दबाव देकर अपने बुर को मेरे मुँह पर रगड़ना चाहा" पर मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया, अपने दोनों हाथों को मैं उसकी जांघ से हटा कर उसके बुर के इर्द-गिर्द इस कदर सेट किया की मेरे दोनों हाथों के बीच उसकी बुर थी| ऋतू का उतावलापन बढ़ने लगा था और मैं उसे रो रहा था ताकि वो ज्यादा से ज्यादा मजा ले सके| मैंने ऋतू के कपालों को होठ से चूसना शुरू कर दिया था और इधर ऋतू अपनी कमर मटका रही थी ताकि वो अपनी बुर को और अंदर मेरे मुँह में घुसा दे!



मैंने जितना हो सके उतना अपना मुँह खोला, ऋतू की बुर को जितना मुँह में भर सकता था उतना मुँह में भरा और अपनी जीभ उसके बुर में घुसा दी| मेरी जीभ उसके बुर के कपालों के बीच से अपना रास्ता बना कर जितना अंदर जा सकती थी उतना चली गई| "स्स्स्सस्स्स्स...आअह्ह्ह्हह" इस आवाज के साथ ऋतू ने मेरी जीभ का अपनी बुर में स्वागत किया| मैंने अपनी जीभ अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी और इधर ऋतू बेकाबू होने लगी| उसने अपनी कमर इधर-उधर मटकाना शुरू कर दी और अपने हाथों से  मेरे सर के बाल पकड़ के खींचने लगी| इधर मेरी जीभ अंदर-बहार हो रही थी और उधर ऋतू ने अपनी कमर को आगे-पीछे हिलाना शुरू कर दिया| हम दोनों एक ऐसे पॉइंट पर पहुँच गए जहाँ मेरी जीभ और ऋतू की कमर लय बद्ध तर्रेके से आगे-पीछे हो रहे थे| 5-7 मिनट और ऋतू की बुर से रस निकल पड़ा जो मेरे मुँह में भरने लगा| ऋतू ने अपनी दोनों टांगें चौड़ी की और अपने बुर को मेरे मुँह पर दबा दिया और सारा रस मेरे मुँह में उतर गया| अपना सारा रस मुझे पिला कर वो नीचे खिसकी और अपनी बुर को ठीक मेरे लंड पर रख कर वो मेरे ऊपर लुढ़क गई| उसकी सांसें तेज हो चुकी थी और पसीनों की बूंदों ने उसके मस्तक पर बहना शुरू कर दिया था| दस मिनट बाद जब उसकी सांसें नार्मल हुई तो वो बोली; "Thank You!!!" मैंने उसके मस्तक को चूम लिया और उसे अपनी बाहों में भर लिया| उसके बाद तो ऋतू को बड़ी चैन की नींद आई, ऐसी नींद की वो सारी रात मेरी छाती पर सर रख कर ही सोई| सुबह मैंने ही उसे जगाया वो भी उसके सर को चूम कर|
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10-24-2019, 10:26 PM,
#45
RE: काला इश्क़!
update 22 

 "हाय! क्या शुरुवात हुई है सुबह की!" ऋतू ने मेरी छाती पर लेटे हुए ही अंगड़ाई लेते हुए कहा|  फिर वो उठी और उसकी नजर अपनी पजामी पर पड़ी जो फर्श पर पड़ी थी| उसने वो उठा कर पहना और बाथरूम में नहाने चली गई| मोहिनी ने उसके कुछ कपडे ला दिए थे जिन्हें पहन कर ऋतू बाहर आई| आज तो मेरा भी मन नहाने का था पर ठन्डे पानी से नहाने के बजाये आज मुझे गर्म पानी मिला नहाने को| जब मैं नहा कर बाहर निकला तो ऋतू गुम-शूम दिखी, मैंने उसे हमेशा की तरह पीछे से पकड़ लिया और अपने हाथ को उसके पेट पर लॉक कर दिया|

मैं: क्या हुआ मेरी जानेमन को?

ऋतू: मैं बहुत सेल्फिश हूँ!

मैं: क्यों? ऐसा क्या किया तुमने?

ऋतू: कल रात को..... आपने तो मुझे सटिस्फाय कर दिया.... पर मैंने नहीं.... (ऋतू ने शर्माते हुए कहा|)

मैं: अरे तो क्या हुआ? दिन भर मेरा ख्याल रखती हो, तक गई थी इसलिए सो गई| इसमें मायूस होने की क्या बात है?

ऋतू: नहीं...  मैं....

मैं: पागल मत बन! अभी मेरी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं है, जब ठीक हो जाऊँगा ना तब जितना चाहे उतना सटिस्फाय कर लेना मुझे!


मैंने उसे छेड़ते हुए कहा और ऋतू भी हँस पड़ी|

मैं: तू इतने दिनों से कॉलेज नहीं जा रही है, तेरी पढ़ाई का नुक्सान हो रहा होगा इसलिए कल से कॉलेज जाना शुरू कर|

ऋतू: आप पढ़ाई की चिंता मत करो! मैं सारा कवर-अप कर लूँगी!

मैं: ऋतू... बात को समझा कर! तकरीबन एक हफ्ता होने को आया है, आंटी जी और मोहिनी क्या सोचते होंगे? मेरी बात मान और कल से कॉलेज जाना शुरू कर और मेरी चिंता मत कर मैं घर चला जाता हूँ| वैसे भी पिताजी को मेरी तबियत के बारे में कुछ मालूम नहीं है, ऐसे में कुछ दिन वहाँ रुकूँगा तो बात बिगड़ेगी नहीं|

ऋतू ने बहुत ना-नुकुर की पर मैंने उसे मना ही लिया| शाम को जब मोहिनी आई तो मैंने उसे ऋतू को साथ ले जाने को कहा;

मोहिनी: अरे ऋतू चली गई तो आपका ध्यान कौन रखेगा?

मैं: मैं कल सुबह घर जा रहा हूँ वहाँ सब लोग हैं मेरा ख्याल रखने को| मैं तो संडे ही निकल जाता पर तबियत बहुत ज्यादा ख़राब थी!

खेर ऋतू अपना मन मारकर चली गई और उसने जो खाना बनाया था वही खा कर मैं सो गया| पिताजी को फ़ोन कर दिया था और वो मुझे लेने बस स्टैंड आ रहे थे| 4 घंटों का थकावट भरा सफर क्र मैं गाँव के बस स्टैंड पहुँचा जहाँ पिताजी पहले से ही मौजूद थे| उन्हें नहीं पता था की मेरी तबियत इतनी खराब है की बस स्टैंड से घर तक का रास्ता जो की 15 मिनट का था उसे मैंने 5 बार रुक-रुक कर आधे घंटे में तय किया| घर जाते ही मैं बिस्तर पर जा गिरा|         

                              कमजोरी इतनी थी की बयान करना मुश्किल था, ऋतू ने मुझे शाम को फ़ोन किया पर मैं दपहर को खाना खा कर सो रहा था| मेरे फ़ोन ना उठाने से वो बहुत परेशान हो गई और धड़ाधड़ मैसेज करने लगी, पर डाटा बंद था इसलिए मैसेज भी seen नहीं थे| वो बेचैन होने लगी और दुआ करने लगी की मैं ठीक-ठाक हूँ| रात को आठ बजे मैं उठा तब मैंने फ़ोन देखा और फटाफट ऋतू को फ़ोन किया| "मैंने कहा था न की मैं आपकी देखभाल करुँगी, पर आपने जबरदस्ती मुझे खुद से दूर कर दिया! देखो आपकी तबियत कितनी ख़राब हो गई! आपने फ़ोन नहीं उठाया तो मैंने मजबूरन घर फ़ोन किया और तब मुझे पता चला की आपकी कमजोरी और बढ़ गई है!" ऋतू ने रोते-रोते खुसफुसाते हुए कहा|

"जान! मैं ठीक हूँ! उस टाइम थकावट हो गई थी, पर अब खाना खा कर दवाई ले चूका हूँ| तुम मेरी चिंता मत करो!" मैंने उसे तसल्ली देते हुए कहा|

"आपने जान निकाल दी थी मेरी! जल्दी से ऑनलाइन आओ मुझे आपको देखना है!" इतना कह कर ऋतू ने फ़ोन रख दिया और मैंने अपने हेडफोन्स लगाए और ऑनलाइन आ गया| ऋतू हमेशा की तरह बाथरूम में हेडफोन्स लगाए हुए मुझसे वीडियो कॉल पर बात करने लगी| बहुत सारे kisses मुझे दे कर उसे चैन आया और फिर रात को चाट करने के लिए बोल कर चली गई| रात दस नाज़े से वो मेरे साथ चाट पर लग गई और 12 बजे मैंने ही उसे सोने को कहा ताकि उसकी नींद पूरी हो| इधर मैं फ़ोन रख कर सोने लगा की तभी मूत आ गया| मैंने सोचा बजाये नीचे जाने के क्यों न छत पर ही चला जाऊँ| जब मैं छोटा था तो कभी-कभी रात को छत की मुंडेर पर खड़ा हो जाता और अपने पेशाब की धार नीचे गिराता| यही बचपना मुझे याद आ गया तो मैं भी मुस्कुराते हुए छत पर आ गया और अपना लंड निकाल कर मुंडेर पर चढ़ गया और मूतने लगा| जब मूत लिया तो मैं पीछे घुमा और वहाँ जो खड़ा था उसे देखते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई|

                                 पीछे भाभी खड़ी थी और उनकी नजर मेरा लंड पर टिकी थी| जब मेरी नजरें उनकी नजरों का पीछा करते हुए मेरे ही लंड तक आई तो मैंने फट से लंड पाजामे में डाला और मुंडेर से नीचे आ गया| मैं बुरी तरह से झेंप गया था और वापस अपने कमरे की तरफ जा रहा था| इतने में पीछे से भाभी बोली; "मुझे तो लगा था की तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, पर तुम तो मूत रहे थे! बचपना गया नहीं तुम्हारा देवर जी!" ये सुन कर मैं एक पल को रुका पर पलटा नहीं और सीधा आँगन में आ गया, हाथ-मुँह धोया और वापस कमरे में जाने लगा की तभी भाभी ऋतू वाले कमरे के बाहर अपनी कमर पर हाथ रखे मेरा इंतजार कर रही थी| "तन से तो जवान हो गए, पर मन से अब भी बच्चे हो!| उन्होंने हँसते हुए कहा| मैं अब भी शर्मा रहा था तो सर झुका कर अपने कमरे में घुस गया और वो ऋतू वाले कमरे में घुस गईं| लेटते ही मुझे ऋतू की वो बात याद आई जिसमें भाभी मेरे बारे में सोच के नींद में मेरा नाम बड़बड़ा रही थी| आज उन्होंने ने जिस तरह से मुझे 'देवर जी' कहा था वो भी बहुत कामुक था! मैं सचेत हो चूका था और मेरा मन भाभी के जिस्म की प्यास को महसूस करने लगा था, पर ऋतू का प्यार मुझे गलत रास्ते में भटकने नहीं दे रहा था| अगले कुछ दिन तक भाभी मेरे साथ यही आँख में चोली का खेल खेलती रही और सबकी नजरें बचा कर मुझे अपने जिस्म की नुमाइश आकृति रही| जब भी मैं अपने कमरे में अकेला होता तो वो झाड़ू लगाने के बहाने आती और अपने पल्लू को अपने स्तनों पर से हटा के अपनी कमर से लपेट लेती| उसके स्तनों की वो घाटी इतनी गहरी थी जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल था| भाभी की 44D साइज की छातियाँ दूध से भरी लगती थी, 37 की उम्र में भी उसकी छातियों में बहुत कसावट थी| झाड़ू लगाते हुए वो मेरे पलंग के नजदीक आ गई और इतना झुक गई की मुझे उनके निप्पल लग-भग दिख हो गए| मैं उठ के जाने को हुआ तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया; "कहाँ जा रहे हो देवर जी?!" मैंने कोई जवाब नहीं दिया और मुँह फेर लिया| "मेरा तो काम हो गया!" इतना कह कर उन्होंने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपनी कातिल हंसी हँसते हुए चली गई| उनकी ये डबल मीनिंग वाली बात मैं समझ चूका था, वो तो बस मुझे अपने स्तन दिखाने आई थीं!  कमरा तक ठीक से साफ़ नहीं किया था उन्होंने, पहले तो सोचा की उन्हें टोक दूँ पर फिर चुप रहा और वापस लेट गया| वो पूरा दिन भाभी मुझे देख-देख आकर हँसती रही और मेरे जिस्म में आग पैदा हो इसकी कोशिश करती रही| अगले दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ, मैं आँगन में लेटा हुआ था और वो हैंडपंप के पास उकडून हो कर बैठी कपडे धो रही थी| मैं जहाँ लेटा था वहाँ मेरे बाएं तरफ रसोई और दाएं तरफ गुसलखाना था जहाँ पर हैंडपंप लगा था| मैं पीठ के बल लेटा हुआ था और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था की मैंने 'गलती' से दायीं तरफ करवट ली| करवट लेते ही मेरी नजर अचानक से भाभी पर पड़ी जो मेरी तरफ देख रही थी और उनका निचला होंठ उनके दाँतों तले दबा हुआ था| उनकी दायीं टाँग सीधी थी और उन्होंने उसके ऊपर से अपने पेटीकोट ऊपर चढ़ा रखा था| भाभी मेरी तरफ प्यासी नजरों से देख रही थी और सोच रही थी की मैं उठ कर आऊँगा और उन्हें गोद में उठा कर ले जाऊँगा|

भाभी ने अपना पेटीकोट और ऊपर चढ़ा दिया और उनकी माँसल जाँघ मुझे दिखने लगी| ये देखते ही मुझे झटका लगा और मैंने तुरंत दूसरी तरफ करवट आकर ली और ये देख आकर भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ी| रात खाने के बाद मैं छत पर थोड़ा टहल रहा था की तभी ऋतू का फ़ोन आ गया और मैं उससे बात करने लगा| बात करते-करते रात के 11 बज गए, मैंने ऋतू को बाय कहा और फ़ोन पर एक लम्बी सी Kiss दी और फ़ोन रखा| मौसम अच्छा था, ठंडी-ठंडी हवाएँ जिस्म को छू रही थी और मजा बहुत आ रहा था| मैंने सोचा की आज यहीं सो जाता हूँ, पास ही एक चारपाई खड़ी थी तो मैं ने वही बिछाई और मैं दोनों हाथ अपने सर के नीचे रख सो गया| रात के एक बजे मेरे कान में भाभी की मादक आवाज पड़ी; "देवर जी!!!" ये सुनते ही मैं चौंक कर उठ गया और सामने देखा तो भाभी दिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने खड़ी हैं| पूनम के चाँद की रौशनी में उनका पूरा बदन जगमगा रहा था| 38 इंची की कमर और उनकी 44D की छातियाँ मेरे ऊपर कहर ढा रही थी! मेरी नजरें अपने आप ही उनकी ऊपर-नीचे होती छातियों पर गाड़ी हुई थी| भाभी जानती थी की मैं कहाँ देख रहा हूँ इसलिए वो और जोर से सांसें लेने लगीं| दिमाग में फिर से झटका लगा और मैं ने उनकी मन्त्र-मुग्ध करती छातियों से अपनी नजरें फेर ली| "यहाँ क्या कर रहे हो देवर जी?" भाभी ने फिर से उसी मादक आवाज में कहा|

"वो मौसम अच्छा था इसलिए ...." मैंने उनसे मुँह फेरे हुए ही कहा| "हाय!!!...सच कहा देवर जी! सससस...ठंडी-ठंडी हवा तो मेरे बदन पर जादू कर रही है| मैं भी यहीं सो जाऊँ?" भाभी की सिसकी सुन मैं उठ खड़ा हुआ और नीचे जाने लगा| "आप चले जाओगे तो मैं कहाँ सोऊँगी?" भाभी बोलती रही पर मैं रुका नहीं और अपने कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया| भाभी का मुझे रिझाने का काम पूरे 5 दिन और चला और इन्हीं दिनों मैं इतना तंदुरुस्त हो गया की अपना ख्याल रख सकूँ! घर के असली दूध-दही-घी की ताक़त से जिस्म में जान आ गई थी| अब मुझे वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना था वरना भाभी मेरे लंड पर चढ़ ही जाती! एक हफ्ते बाद में वापस शहर पहुँचा तो मेरा प्यार मुझे लेने के लिए बस स्टैंड आया था| ऋतू मुझे देखते ही मेरे गले लग गई और उसकी पकड़ देखते ही देखते कसने लगी| "जानू! पूरे दस दिन आप मुझसे दूर रहे हो! आगे से कभी बीमार पड़े ना तो देख लेना! मैं भी आपके ही बगल में लेट जाऊँगी!" ये सुन कर मैं हँस पड़ा, हम घर पहुँचे और ऋतू के हाथ का खाना खा कर मन प्रसन्न हो गया| मैंने जान कर ऋतू को भाभी द्वारा की गई हरकतों के बारे में कुछ नहीं बताया वरना फिर वही काण्ड होता! इन पंद्रह दिनों में मैं बहुत कमजोर हो गया था इसीलिए उस दिन ऋतू ने मेरे ज्यादा करीब आने की कोशिश नहीं की| अगले दिन मैंने ऑफिस ज्वाइन किया तो मेरी कमजोरी अनु मैडम से छुपी नहीं और वो कहने लगी की मुझे कुछ और दिन आराम करना चाहिए, अब तो राखी ने भी ज्वाइन कर लिया था और भी मैडम की बात को ही दोहराने लगी| सिर्फ एक मेरा बॉस था जो मन ही मन गालियाँ दे रहा था|                       
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10-25-2019, 06:42 PM,
#46
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
Maast update.....
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10-25-2019, 08:58 PM,
#47
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
(10-25-2019, 06:42 PM)Game888 Wrote: Maast update.....

शुक्रिया जी!!!   Heart  Heart  Heart
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10-25-2019, 10:13 PM,
#48
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
मॉडरेटर्स जी,


मैं हमेशा ही हिंदी सेक्शन की कहानियाँ पढता हूँ, और मेरी दिली ख्वाइश थी की मेरा भी थ्रेड इस सेक्शन में हो| आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद मेरा इस थ्रेड को हिंदी सेक्शन में डालने के लिए|
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10-25-2019, 10:56 PM,
#49
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
Waiting for next
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10-25-2019, 11:04 PM,
#50
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
update 23

उस दिन मैं शाम को ऋतू से मिल नहीं पाया क्योंकि काम बहुत ज्यादा था और राखी मैडम से बैलेंस शीट फाइनल नहीं हो रही थी तो मुझे उसकी मदद करनी पड़ी| शाम को देर हो गई थी इसलिए मैंने ही उसे घर ड्राप किया था| अगले दिन मुझे ऋतू का फ़ोन आया तो वो बहुत घबराई हुई थी!

मैं: क्या हुआ? तू घबराई हुई क्यों है?

ऋतू: I….I…. I think I’m pregnant!!!

मैं: WHAT???!!!! H….How…. this … happened?!

ऋतू:  I missed …..my periods!

ये सुन कर दोनों खामोश हो गए, मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो चूका था|
ऋतू: जानू! हेल्लो???? जानू????

ऋतू की आवाज सुन कर मैं अपनी सोच से बाहर निकला;

मैं: मैं आ रहा हूँ तेरे कॉलेज, मुझे लाल बत्ती पर मिल|

इतना कह कर मैं ऑफिस से भागा, मैडम ने मुझे भागते हुए देखा तो तुरंत मुझे कॉल कर दिया| मैं अभी बाइक के पास ही पहुँचा था| मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की परिवार के किसी लड़के को हॉस्पिटल लाये हैं| मैं बाइक भगाता हुआ कॉलेज पहुँचा और ऋतू वहीँ इंतजार कर रही थी| मैं उसे ले कर शहर के दवाखाने नहीं जा सकता था वरना कल को कोई काण्ड अवश्य होता| इसलिए मैं उसे ले कर बाराबंकी आ गया| दो घंटे के रास्ते में हमारी कोई भी बात नहीं हुई, ऋतू मेरे जिस्म से चिपकी बस सुबक रही थी| उसकी आँख के आँसू मेरी कमीज पीछे से भीगा रहे थे| शहर में घुसते ही पहले मैंने ऋतू को एक मंगलसूत्र खरीद कर दिया और साथ ही मैं सिंदूर की एक डिब्बी| ऋतू हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी;

ऋतू: हम शादी कर रहे हैं? (उसने खुश होते हुए कहा|)

मैं: नहीं! ये सिन्दूर लगा ले और मंगलसूत्र पहन ले अगर डॉक्टर पूछे तो कहना की हमारी शादी को 5 महीने ही हुए हैं|    

ये सुन कर ऋतू मायूस हो गई, पर मेरा ध्यान अभी सिर्फ इस बात को जानने में था की क्या वो प्रेग्नेंट है? दिमाग तैयारी करने लगा था की अगर वो प्रेग्नेंट है तो मुझे उसके साथ जल्द से जल्द भागना होगा! एक महंगे से हॉस्पिटल के बाहर मैंने बाइक रोकी और फिर हम दोनों अंदर पहुँचे| कार्ड बनवा कर हम बीअत गए, डिटेल में मैंने अपना नंबर डाला और ऋतू का नाम बदल कर प्रिया कर दिया|  कुछ देर इंतजार करने के बाद हम डॉक्टर के केबिन में घुसे और डॉक्टर ने हम दोनों का नाम पूछा तो मैंने उन्हें अपना नाम रितेश बताया| ये सुन कर ऋतू थोड़ा हैरान हुई क्योंकि मैं ऋतू को नकली नाम बताना भूल गया था| मैंने ऋतू का हाथ दबा कर उसे समझा दिया|

डॉक्टर: तो बताइये मिस्टर शुभम क्या समस्या है?

मैं: जी mam ... मुझे लगता है की प्रिया प्रेग्नेंट है... और अभी हम दोनों ही जॉब कर रहे हैं तो....I hope you can understand!

डॉक्टर: Yeah ... Yeah .... प्रिया आप चलो मेरे साथ|

ऋतू उठ कर उनके साथ चली गई और करीब 15 मिनट बाद डॉक्टर और ऋतू साथ आये|

डॉक्टर: You should have used precaution!

मैं: Mam ... वो... Sorry! पर ऋतू ने I-pill तो ली थी|

डॉक्टर: 72 घंटों के अंदर ली थी?

मैं: नहीं mam .... थोड़ा लेट हो गई थी!

डॉक्टर: देखो इस समय ऋतू के साथ थोड़ी कम्प्लीकेशन है! She's not physically fit to be a mom! Also, you can’t choose the abortion… cause then she won’t be able to conceive …ever!
ये सुन कर हम दोनों के दूसरे को देखने लगे और हमारी परेशानियाँ हमारी शक्ल से दिख रही थी|

डॉक्टर: See I’ll write some medication which she has to take on a daily basis, this will only delay the pregnancy. If she stopped the medication, then she’ll have to conceive the baby. She also needs multi-vitamins to be physically fit in order to … you know… be a mom. One more thing I’d like to ask, how long have you been married?
मैं: 5 months! But why?

डॉक्टर: You didn’t tell me anything about your wife’s orgasms?

अब ये सुन कर तो मैं दंग रह गया!

मैं: I thought they’re natural…..I….I had no idea…. its …a disease?!!
डॉक्टर:  It’s not a disease … yes she reaches orgasm a bit early but don’t worry I’ve taught her a technique to last longer!


ये कहते हुए उन्होंने ऋतू को आँख मारी! खेर हम दवाई ले कर बाहर आये और दोनों भूखे थे तो मैंने ऋतू को एक रेस्टुरेंट में चलने को कहा| वहाँ खाना आर्डर कर ने के बाद हमने बात शुरू की;

मैं; घबराओ मत! सब कुछ ठीक हो जायेगा|

ऋतू: सब मेरी गलती थी, मैं अगर दवाई टाइम पर ले लेती तो ये सब नहीं होता!

मैं: जो हो गया सो हो गया! अब ये दवाई टाइम से खाना और ये बताओ की तुम अंदर से कमजोर कैसे हो? खाना ठीक से नहीं खाती?

ऋतू: नहीं तो... मैं तो ठीक से खाती-पीती हूँ!

मैं: और ये ओर्गास्म???

ऋतू: जब भी हम प्यार कर रहे होते थे तो मैं सबसे पहले..... मतलब वो.... और आप हमेशा देर तक....तो मैं.... (ऋतू को ये कहने में बड़ा संकोच हो रहा था|)

मैं: पगली! छोड़ ये सब और खाना खा| (मैंने उसका ध्यान उन बातों से हटाया और खाने में लगा दिया|)

   खाना खा कर निकले तो बॉस का फ़ोन आ गया पर मैं चूँकि उस समय ड्राइव कर रहा था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया| पहले मैंने ऋतू को हॉस्टल छोड़ा क्योंकि अब शाम के 4 बज रहे थे और मुझे ऑफिस पहुँचते-पहुँचते 5 बज गए| बॉस मुझे देखते ही जोर से चिल्लाया; "कहाँ था सारा दिन?" ये सुन कर मैडम अपने केबिन से बाहर आईं और मेरे बचाव में कूद पड़ी; "मुझे बता कर 'गए थे'! कजिन को एक्सीडेंट हो गया था और वो हॉस्पिटल में एडमिट था|" ये सुन कर बॉस ने मैडम को घूर के देखा और फिर बिना कुछ कहे अंदर केबिन में चला गया| मैं जानता था की आज तो मैडम को ये बहुत सुनाएगा इसलिए मैंने मैडम से दबे शब्दों में कहा; "mam! मेरी वजह से सर आपको बहुत डाटेंगे! आप को...." आगे मेरे कुछ भी कहने से पहले उन्होंने मेरी बात काट दी; "दोस्त को बचाना तो धर्म है!" इतना कह कर मैडम हँस पड़ी और मैं भी मुस्कुरा दिया| पर मन ही मन जानता था की mam को आज बहुत सुनना पड़ेगा|  

                    खेर काम तो करना ही था और मैडम को कम डाँट पड़े इसलिए थोड़ी देर बैठ कर काम निपटाया और घर पहुँच गया| घर आते ही ऋतू को फ़ोन किया और उसे याद दिलाया की उसने गोली खाई या नहीं?! मैंने तो फ़ोन में भी रिमाइंडर डाल लिया ताकि मैं कभी भूलूँ नहीं| अगले दिन जब ऋतू से शाम को मिला तो वो मुझे थोड़ी गुम-सुम लगी, पूछने पर उसने कहा;"क्या मैं ये बेबी कंसीव नहीं कर सकती?" ये सुन कर पहले तो सोचा की उसे झिड़क दूँ पर फिर सोचा की उसे ठीक से समझाता हूँ; "जान! अगर आप ये बेबी कंसीव करते हो तो हमें जल्दी शादी करनी पड़ेगी| जल्दी शादी करने के लिए हमें जल्दी भागना होगा, और भाग तो हम जाएंगे पर भाग कर जाएंगे कहाँ? कहाँ रहनेगे? क्या खाएंगे? सिर्फ प्यार से पेट नहीं भरता ना?" ये सुन कर ऋतू कुछ सोचने लगी और फिर बोली; "मैं भी जॉब करूँ?"

"जान! आप जॉब करोगे तो पढ़ाई कब करोगे? दोनों चीजें आप एक साथ मैनेज नहीं कर सकते और फिर आप जॉब करोगे तो हम रोज मिलेंगे कैसे? पर ऋतू का दिमाग इन सवालों के जवाब पहले ही सोच लिया था| "मैं पार्ट टाइम जॉब करुँगी, वो भी आप ही की कंपनी में|" ये सुन कर मैं हैरान हो गया और हैरानी से ऋतू को देखने लगा| "नहीं!!!" मैंने बस इतना ही जवाब दिया और बात को वहीँ दबा दिया| ऋतू ने भी डर के मारे आगे कुछ नहीं बोला|
                    कुछ दिन और बीते, हम इसी तरह रोज मिलते पर जॉब के लिए ऋतू ने मुझसे आगे कोई बात नहीं की| संडे आया तो ऋतू ने जिद्द कर के मेरे घर आ गई, और आज तो वो बहुत जयदा ही खुश लग रही थी| आज वो पहली बार स्कर्ट पहन के आई थी और अपनी कुर्ती ऊपर उठा कर ऋतू ने मुझे अपनी नैवेल दिखाई| मेरी नजर उसकी नैवेल पर पड़ी तो मैं टकटकी बांधें उसी को देखता रहा| "क्या बात है आज तो मेरी जान मेरी जान लेने के इरादे से आई है!!!" ये कहते हुए मैंने ऋतू को अपनी छाती से चिपका लिया|
"वो प्रेगनेंसी वाले दिन के बाद मुझे तो लगा था की आप मुझे अब शादी तक छुओगे ही नहीं! आपको सडके करने को ही इतना सज-धज कर आई हूँ! सससस.....आ...आ...ह...नं... सच्ची कितने दिनों से आपके लिए प्यार के लिए तड़प रही थी|" ऋतू ने कसमसाते हुए कहा| 

"पागल! तुझे प्यार किये बिना तो मैं भी नहीं रह सकता! उस दिन जब तूने मुझे प्रेगनेंसी की बात बताई तो मैं मन ही मन सोच कर बैठा था की अब जल्दी ही तुझे भगा कर ले जाऊँ|" मैंने ऋतू को बाएं गाल को चूमते हुए कहा|

"सच्ची?" ऋतू ने खिलखिलाते हुए कहा|

 "हाँ जी! बहुत प्यार करता हूँ मैं अपनी ऋतू से|" ये कहते हुए मैंने ऋतू के होंठों को चूम लिया|
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