Desi Porn Kahani विधवा का पति
05-18-2020, 02:33 PM,
#41
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक को वहां रहते धीरे-धीरे एक महीना गुजर गया।
विशेष और बूढ़ी मां बहुत खुश थे। रश्मि अब उसके प्रति इतनी सख्त नहीं थी। अब युवक उसकी आंखों से अपने लिए नफरत की चिंगारियां निकलते नहीं देखता , परन्तु आज तक भी यह युवक के प्रति नम्र नहीं थी—ऐसा नहीं कहा जा सकता था कि वह युवक की उपस्थिति से खुश थी।
हां , इस एक महीने में , युवक के व्यवहार आदि से रश्मि इतना समझ गई थी कि युवक कोई बहुरूपिया या जालसाज नहीं था, वह किसी दुर्भावना से यहां नहीं रह रहा था।
युवक के चरित्र में कोई बुराई महसूस नहीं की थी उसने।
उसे अपनी तरफ कभी उन नजरों से देखते नहीं पाया था , जिन्हें अनुचित कहा जा सके , वह तो यह कोशिश करती ही थी कि युवक के सामने न पड़े—रश्मि ने भी यह महसूस किया था कि युवक स्वयं अकेले में उसके सामने पड़ने से कतराता था।
मगर पिछले दस-पन्द्रह दिन से एक बात कांटे की तरह उसके मस्तिष्क में चुभ रही थी। वह यह कि इस एक महीने में युवक ने एक बार भी शेव नहीं कराई थी , उसकी दाढ़ी और मूंछें काफी बढ़ गई थीं और अब उसका चेहरा रश्मि के कमरे की दीवार पर लगे फोटो में मौजूद सर्वेश के चेहरे जैसा ही लगता था।
पिछले पांच-छ: दिन से उसने अपने हेयर स्टाइल में भी परिवर्तन कर लिया था।
फोटो में सर्वेश की आंखों पर मौजूद चश्मे जैसा ही चश्मा पहने भी रश्मि ने उसे एक रात देखा था , यानि युवक अब पूरी तरह वह सर्वेश बनने की कोशिश कर रहा था , जिसका फोटो उसके कमरे की दीवार पर लगा है।
आखिर क्यों वह पूरी तरह सर्वेश बनता जा रहा हे ?
उधर—यदि युवक के दृष्टिकोण से इस बदलाव को देखा जाए तो वह केवल पुलिस से बचने के लिए यह सब कर रहा था। हमेशा तो वह इस घर की चारदीवारी में बन्द रह नहीं सकता था। जानता था कि वहां से उसे निकलना ही होगा और किसी पुलिस वाले से टकरा जाने का पूरा खतरा था—ऐसे किसी भी समय के लिए यह खुद को सर्वेश बना रहा था।
ताकि समय आने पर खुद को सर्वेश कहकर बच सके—पुलिस साबित न कर सके कि मैं 'सिकन्दर ', 'जॉनी ' या वह हत्यारा हूं जिसे युवा लड़कियों को मारने का जुनून सवार होता है , बस—इस बदलाव के पीछे यही एक मकसद था।
¶¶
"मैं तो असफल हो ही गया हूं चटर्जी , मगर उस हत्यारे को खोज निकालने के मामले में तुम भी मात खा गए हो।" आंग्रे कह रहा था— "तुम , जिसके बारे में लोग यह कहा करते हैं कि चटर्जी जिस मामले के पीछे पड़ जाता है , उसकी बखिया उधेड़कर रख देता है—आज पूरा एक महीना हो गया है , क्या तुम उसे तलाश कर सके ?"
"ठीक कहते हो प्यारे , मानता हूं इस झमेले में मेरी खोपड़ी ने मेरा साथ नहीं दिया है।" चटर्जी बोला—“पता लगाने की हर कोशिश कर ली, एड़ी से चोटी तक का जोर लगा लिया , किन्तु उस कम्बख्त का कोई सुराग नहीं मिला। पता नहीं उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया।"
"यानि तुम भी हार मान चुके हो ?"
"चटर्जी तब तक हथियार नहीं डालेगा प्यारे , जब तक जिन्दा है।"
"क्या मतलब? "
"अंतिम सांस तक मेरी इच्छा उस तक पहुंचने की रहेगी।"
“आशावान भी रहें तो किस आधार पर , आज एक महीना हो चुका है—गधे के सींग की तरह जाने कहां गायब हो गया और अब मेरा ख्याल तो कुछ और ही है।"
"उसे भी पेश कर दो।"
"कम-से-कम मर्द के लिए अपनी शक्ल में तब्दीली करने के लिए एक महीना काफी होता है , अगर वह होशियार होगा तो अपनी शक्ल में यह तब्दीली उसने कर ली होगी और सामने पड़ने पर भी एक बार को शायद हम उसे पहचान न सकें।"
"किस किस्म की तब्दीली की बात कर रहे हो ?"
"वह दाढ़ी-मूंछ बढ़ा सकता है , नाक की बनावट बदल सकता है—बाजार में मिलने वाले स्थाई लैंस से आंखों के रंग को बदल सकता है—हेयर स्टाइल चेंज कर सकता है।"
"तुम्हारा मतलब है—मेकअप ?"
“ ऐसा , जो मेकअप भी न कहलाया जा सके।"
"किसी भी मेकअप से तुम भले ही धोखा खा जाओ आंग्रे प्यारे , मगर चटर्जी चक्कर में आने वाला नहीं है , इंसान तो इंसान—यदि वह 'भैंस ' बनकर भी मेरे सामने आ गया तो मैं उसे पहचान लूंगा , और फिर उसे हत्यारा भी बड़े आराम से साबित कर दूंगा।"
"वह कैसे ?"
"लाख मेकअप के बावजूद वह अपने 'फिंगर-प्रिण्ट्स ' नहीं बदल सकेगा—लाख कोशिश के बावजूद अपनी 'राइटिंग ' चेंज नहीं कर सकेगा वह—हथौड़ी से प्राप्त फिगर-प्रिंट्स और 'मिट्टी के तेल ' वाले सिलसिले में मेरे पास उसकी राइटिंग है।"
"उन्हें तो तभी मिलाओगे न जब हमें किसी पर शक हो ?”
"बात के जवाब में एक बात पक्की है प्यारे , वैसे तुम्हारे इस विचार से मैं सहमत हूं कि उसने निश्चय ही अपनी शक्ल में हर सम्भव परिवर्तन किया होगा—खैर , चलता हूं प्यारे।" कहते हुए चटर्जी ने उठने के लिए कुर्सी के दोनों हत्थों पर हाथ रखे ही थे कि आंग्रे ने अनुरोध किया—“बैठो यार , ऐसी क्या जल्दी है ?"
“कचहरी जाना है।"
आंग्रे ने कहा— “कचहरी तो मुझे भी जाना है।"
"किस सिलसिले में ?"
"रूपेश को अदालत में पेश करने के बाद जेल भेजने। अब वह लगभग पूरी तरह स्वस्थ हो चुका है—जलने के कारण चेहरे पर जो बदसूरती आ गई है , वह तो हमेशा रहेगी ही।"
"उसके कर्म गोरे शरीर पर फूट पड़े हैं। "
“वैसे तुम्हें कचहरी क्यों जाना है?”
“कुछ नहीं यार , हरिद्वार पैसेंजर से पकड़े उसी मिट्टी के तेल के मामले की आज पहली तारीख है , अपना एक गवाह तो साला उड़न छू हो ही गया है—देखें , एक गवाह से काम चलेगा या नहीं ?"
"तुम्हें भी गवाह के लिए वह हत्यारा ही मिला था।"
“इतना बड़ा मामला नहीं है , एक ही गवाह काफी होगा और वह तो आएगा ही—अरे....।" बात करता-करता चटर्जी एकदम उछल पड़ा , जैसे कुछ याद आ गया हो।
बिजली के समान मस्तिष्क में जैसे कुछ कौंधा हो।
"वो मारा पापड़ वाले को! " एकाएक ही मेज पर बहुत जोर से घूंसा मारता हुआ चटर्जी चीखा— “क्लू मिल गया है आंग्रे प्यारे।"
"क...कैसा क्लू? ” चौंकते हुए आंग्रे ने पूछा।
"गवाही के सिलसिले में वह दूसरा गवाह अदालत में आज जरूर जाएगा—उसे भी नई देहली जाना था , यानि वह बता सकता है कि “ सिकन्दर ' ट्रेन से किस स्टेशन पर उतरा था।”
"क्लू तो है , मगर...।"
"मगर ?"
"उतना जोरदार नहीं है जितना तुम उछल रहे हो-मान लिया कि हमें पता लग गया कि सिकन्दर पुरानी देहली में उतरा है , तब ?”
"अभी तक तो 'क्लू ' ही नहीं मिल रहा था, मेरी जान......यह प्रकाश किरण नजर तो आई है और प्रकाश किरण नजर आना शुभ होता है।"
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05-18-2020, 02:33 PM,
#42
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"मैं आपसे कुछ बात कहना चाहती हूं।" रश्मि की आवाज सुनते ही युवक ने न केवल अपनी आंखें खोल दीं , बल्कि हड़बड़ाकर वह खड़ा भी हो गया। भौंचक्की-सी अवस्था में उसने अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ी रश्मि को देखा और बोला— “ क....हिए।"
रश्मि ध्यान से युवक के चेहरे पर मौजूद दाढ़ी-मूंछ , चश्मे और परिवर्तित हेयर स्टाइल को देख रही थी—साथ ही देख रही थी अपनी मौजूदगी के कारण युवक के चेहरे पर उभर आए 'नर्वसनेस ' के भाव—युवक शायद इसीलिए कुछ ज्यादा ही बौखलाया हुआ था , क्योंकि इस एक महीने में रश्मि ने उस कमरे में पहली बार ही कदम रखा था, जो कमरा उसे रहने के लिए मिला था।
विशेष स्कूल गया हुआ था।
युवक को नहीं मालूम था कि मांजी कहां हैं ?
अपने पलंग पर आंखें बन्द किए , जिस्म को ढीला छोड़े लेटा वह किन्हीं विचारों में गुम था , जब रश्मि के वाक्य से छिन्न-भिन्न हो गए।
युवक को डर हुआ कि कहीं फिर उसका जुनून न उभर जाए , इसीलिए जल्दी से बोला—"क...कहिए रश्मि जी , क्या बात करना चाहती थीं आप? ''
"धीरे-धीरे करके मैं आपकी चेंज होने वाली शक्ल के बारे में जानना चाहती हूं।"
"म...मैं समझा नहीं।"
"य...यह दाढ़ी-मूंछ , चश्मा आदि...।"
"ओह , क्या यह सब कुछ आपको पसंद नहीं है ?”
"सवाल मेरी पसन्द-नापसन्द का नहीं है , यह आपका व्यक्तिगत मामला है कि आप कैसे रहना चाहते हैं , दाढी-मूंछ में या क्लीन शेव।" बहुत ही ठोस और सपाट स्वर में कहा रश्मि ने— "मैँ केवल इस परिवर्तन का कारण जानना चाहती हूं।"
युवक के पास जवाब पहले से तैयार था , फिर भी उसने किसी तरह की जल्दबाजी नहीं की—सबसे पहले अपने बिखेरे हुए आत्मविश्वास को समेटा , फिर ध्यान से उसने रश्मि को देखा।
गोरी-चिट्टीं और मासूम रश्मि ने अपने तांबे के-से रंग के घने और लम्बे बालों को मस्तक के आसपास से समेटकर बहुत ही सख्ती के साथ सिर के पृष्ठ-भाग में एक जूड़ा बना रखा था। वह धीमे से बोला— “कारण सुनने में शायद आपको अच्छा नहीं लगेगा।"
“क्या मतलब ?”
"मैं चाहता हूं कि भले ही कुछ दिनों के लिए सही , मगर सारी दुनिया मुझे सर्वेश समझे।"
रश्मि की आंखों के चारों तरफ की खाल सिकुड़ गई— "क्यों ?”
"ताकि वे हत्यारे चौंक पड़ें —जिन्होंने सर्वेश का मर्डर किया था।"
"क्या कहना चाहते हो ?" रश्मि गुर्रा-सी उठी।
"अगर सच्चाई पूछें तो वह यह है कि मैं सिर्फ उन हत्यारों के लिए सर्वेश दिखना चाहता हूं—मुझे देखकर वे चौकें , सोचें कि जिस सर्वेश को उन्होंने मार डाला था , वह जीवित कैसे घूम रहा है ?”
"इससे क्या होगा ?"
“वे किसी भी तरह इस रहस्य को जानना चाहेंगे , मुझसे सम्बन्ध स्थापित करेंगे या ज्यादा-से-ज्यादा मुझे सर्वेश ही समझकर कातिलाना हमला करेंगे—और यही मैं चाहता हूं।"
“ऐसा क्यों चाहते हैं आप?”
"ताकि मासूम वीशू को यतीम करने वालों से बदला ले सकूं, आपकी मांग में सिन्दूर की जगह खाक उड़ाने वालों का मुंह नोच सकूं।"
"ख...खामोश। " अचानक ही रश्मि हलक फाड़कर चिल्ला उठी।
कांप गया युवक , घबराकर उसने रश्मि की तरफ देखा और रश्मि की तरफ देखते ही उसके होश उड़ गए—रश्मि का मुखड़ा भारी उत्तेजना के कारण तमतमा रहा था , आंखों से चिंगारियां बरस रही थीं जैसे , दांत पीसती हुई वह बोली—“मेरे सर्वेश की हत्या के मामले में तुम कुछ सोचोगे भी नहीं। "
"क.....क्यों ?"
"क्योंकि उनके हत्यारों की बोटियां मुझे नोंचनी हैं—खून में डूबी उनकी लाश पर हाथ रखकर बदला लेने की कसम खाई है मैंने—उनके एक भी हत्यारे को मैं जिन्दा नहीं छोड़ूंगी—उनका खून पीने के बाद मरने का वादा मैंने अपने पति से किया है। "
"अ...आप भला उन दरिन्दों से बदला कैसे ले सकेंगी ?"
"इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं , मैं जानती हूं कि मुझे क्या करना है—अगर किसी अन्य के द्वारा उन हत्यारों की मौत पर मुझे शांति मिलती तो जाने कब की मैं पुलिस को उन कुत्तों का नाम बता चुकी होती।"
“क...क्या आप उन्हें जानती हैं ?" युवक चौंक पड़ा था।
"ब...बेशक। "
"क...कौन हैं वे ?" युवक एकाएक ही व्यग्र हो उठा।
"कोई भी हों , तुमसे मतलब। ”
"प.....प्लीज रश्मि जी , मेरी बात …। "
रश्मि की गुर्राहट जहर में बुझी-सी महसूस हुई—"एक बार पहले भी कह चुकी हूं मिस्टर—और फिर कहती हूं कि इस बारे में आप सोचेंगे भी नहीं—उनके हत्यारों से बदला लेने का ख्याल तक दिमाग में लाने का आपको कोई हक नहीं है। "
इस बार युवक भी चीख पड़ा—"मुझे हक क्यों नहीं है ?"
“क.....क्या मतलब?" रश्मि ने दांत पीसे।
"ये कौन-सा कानून है कि आप जब , चाहें जिस बात के लिए मुझे कह दें कि—मुझे कोई हक नहीं है—मैं पूछता हूं मुझे हक क्यों नहीं है—क्या मैं वीशू से प्यार नहीं करता—क्या मांजी का पागलपन मुझे झिंझोड़ नहीं डालता है—क्या एक मासूम की मांग में उड़ती खाक किसी इंसान को पागल नहीं बना देती है ?"
हैरत से आंखें फाड़े रश्मि युवक को देखती रह गई।
जाने किस जोश में भरा युवक कहता ही चला गया —“ मुझे पूरा हक है रश्मिजी , अगर सच्चाई पूछें तो सर्वेश के हत्यारों से बदला लेने का आपसे ज्यादा हक मुझे है-क्योंकि सर्वेश के नाम और उसके परिचय ने मुझे शरण दी है—म...मैं जिसे यह नहीं मालूम कि मैं कौन हूं—मैं दर-दर भटक रहा था—दुनिया में कहीं मेरी कोई मंजिल नहीं थी—तब मुझे इस घर में , इस छोटी-सी दीवार में शरण मिली—शरण ही नहीं , यहां मुझे बेटे का स्नेह मिला है—मां की ममता गरज-गरजकर बरसी है मुझ पर और आप—आप कहती हैं कि इस घर की नींव रखने वाले के प्रति मेरा कोई हक ही नहीं है—मैं आपका पति न सही , सर्वेश न सही , मगर वीशू का पापा जरूर हूं—मांजी का बेटा जरूर हूं और अगर मैं यह हूं तो
सर्वेश मेरा भाई जरूर रहा होगा—और क्या। चबा जाऊंगा उन्हें जिन्होंने मेरे भाई को मारा है—वीशू को यतीम करने वालों की बोटी-बोरी नोंच डालूंगा मैं—एक बूढ़ी मां से उसका जवान बेटा छीनने की सजा उन्हें भोगनी ही होगी—इस घर , चारदीवारी के लिए मुझे सब कुछ करने का हक है।"
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05-18-2020, 02:33 PM,
#43
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बादल की तरह गरजते युवक ने रश्मि को थरथराकर रख दिया। युवक के अन्दर की वेदना आज पहली बार ही फूटकर बाहर आई थी और वह वेदना ऐसी थी कि जिसके जवाब में कहने के लिए रश्मि को कुछ नहीं मिला—स्वयं उसने भी महसूस किया कि 'हक ' की बात करके उसने ठीक नहीं किया था। इस बार वह अपेक्षाकृत शान्त स्वर में बोली— "हक की बात छोड़ो , मैं मानती हूं कि तुम्हें सारे हक हैं , लेकिन...। "
“लेकिन?"
"बदला मुझे ही लेना है—मैंने कसम खाई है। "
"मैँ नहीं जानता कि वे हत्यारे कौन हैं , मगर यह कल्पना जरूर कर सकता हूं कि जिन्होंने सर्वेश की हत्या कर दी , वे जालिम और शक्तिशाली जरूर रहे होंगे—आप नारी हैं और मेरी नजर में सबसे ज्यादा कोमल नारी , आप उनसे बदला नहीं ले सकेंगी। "
रश्मि का चट्टानी स्वर—“मैं बदला लेकर रहूंगी।"
"सिर्फ जोश से बदला नहीं लिया जाता है, रश्मि जी—वे जरूर कोई बड़े मुजरिम होंगे—शक्तिशली और चालाक होंगे—लोहे को लोहा ही काट सकता है—कोई और धातु नहीं। ”
"वक्त आने पर मैं लोहा बनकर दिखा दूंगी।"
युवक को लगा कि रश्मि उस स्थान से एक इंच भी नहीं हिलेगी जहां खड़ी है। अतः कई पल तक कुछ सोचने के बाद बोला—“मैं आपसे एक समझौता कर सकता हूं। ”
"कैसा समझौता ?"
"सर्वेश के हत्यारों से मैं टकराऊंगा—मैं लोहा लूंगा उनसे , क्योंकि ऐसा करने के लिए इस चारदीवारी से बाहर निकलना होगा—आप यह नहीं कर सकेंगी और अन्त में मैं उन हत्यारों को आपके कदमों में लाकर डाल दूंगा—आप उनके खून से अपनी प्यास बुझा सकती हैँ—उनकी मौत आपके रिवॉल्वर से निकली गोली से ही होगी।"
युवक की बात रश्मि को ठीक ही लगी।
इसमें शक नहीं कि इस चारदीवारी में कैद एक नारी होने की वजह से ही वह आज तक उन हत्यारों से बदला नहीं ले सकी थी—यह बात ठीक ही थी कि उनसे टकराने के लिए एक मर्द चाहिए , अतः युवक की मदद उसे आवश्यक-सी लगी।
बोली—“क्या जरूरी है कि तुम उन्हें मेरे कदमों में लाकर डालोगे ही—यह भी तो हो सकता है कि तुम ही उन्हें मार डालो ?"
“ऐसा नहीं होगा। '"
"मैं गारण्टी चाहती हूं। ”
"जैसी गारण्टी आप चाहें...मैं देने के लिए तैयार हूं।"
एक पल खामोश रही रश्मि , फिर बोली—"वीशू और मांजी की कसम खाकर वादा करना होगा आपको। "
"मैँ तैयार हूं।"
¶¶
गाजियाबाद के कचहरी कम्पाउण्ड में न्यादर अली को देखकर इंस्पेक्टर आंग्रे चौंक पड़ा। देहली हाईकोर्ट के एक माने हुए वकील के साथ वे उसी तरफ बढ़े चले आ रहे थे। इंस्पेक्टर आंग्रे के साथ रूपेश भी था और सेठ न्यादर अली को वहां देखकर जाने क्यों उसके बदसूरत चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
नजदीक जाकर सेठ न्यादर अली ने कहा— “हैलो इंस्पेक्टर!"
"हैलो—आप यहां सेठजी ?"
"जी हां।" न्यादर अली ने अजीब-सी नजरों से रूपेश के जले हुए बदसूरत और वीभत्स चेहरे को देखते हुए कहा।
जलने के बाद रूपेश इतना भयानक हो गया था कि उसे देखकर सख्त कलेजे का आदमी भी डर सकता था।
इंस्पेक्टर आंग्रे ने पूछा— "आप यहां किस सिलसिले मेँ ?"
"रूपेश की जमानत के लिए आए हैं हम।"
"र...रूपेश की जमानत—और आप लेंगे ?" आंग्रे चकित रह गया—“क्या आप नहीं जानते कि आपके सिकन्दर के विरुद्ध इसी ने षड्यन्त्र रचा था—यह उसे सिकन्दर के स्थान पर जॉनी बना देना चाहता था।"
रूपेश को घूरते हुए न्यादर अली ने कहा—"हम सब कुछ जानते हैं—इसी ने हमारे बेटे को हमसे छीना है और इसीलिए हम इसकी जमानत कराना चाहते हैं।"
"म...मैं समझा नहीं, सेठजी।”
न्यादर अली ने एकाएक ही रूपेश के चेहरे से दृष्टि हटाकर इंस्पेक्टर आंग्रे की तरफ देखा , फिर बहुत ही धीमे और ठोस शब्दों में बोले— “हम ईंट का जवाब पत्थर से देने वाले लोगों में से नहीं हैं, इंस्पेक्टर—हम उन लोगों में से भी नहीं हैं जो बुराई का बदला बुराई से ही लेते हैं—हमारे सिद्धान्त जरा अलग हैं—हम बुराई को अच्छाई से खत्म करते हैं—जो हमें ईंट मारता है , हम उस पर फूतों की वर्षा करके उससे बदला लेते हैं।"
रूपेश कांप गया।
चकित भाव में इस्पेक्टर आंग्रे कह उठा—"एक बुरे आदमी से बदला लेने का बहुत ही अजीब और नायाब तरीका निकाला है आपने , आपका यह सिद्धान्त बहुत महान है सेठजी।"
न्यादर अली के होंठों पर फीकी-सी मुस्कान उभर आई। रूपेश की तरफ देखते हुए वे बोले—"शायद इसी ढंग से इसे अहसास हो कि इसने कितना बड़ा पाप किया था। शायद यह एक जवान बेटे के विरह में तड़पते बाप के दर्द का अहसास कर सके?"
इसमें शक नहीं कि रूपेश अन्दर तक हिल उठा था। उसने तो ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उसकी जमानत लेने खुद न्यादर अली आ पहुंचेगा—चाहकर भी जुबान से वह एक लफ्ज नहीं निकाल सका , जुबान तालू में कहीं जा चिपकी थी।
कम-से-कम इस वक्त रूपेश के दिल में उठते भावों का अहसास इंस्पेक्टर आंग्रे ने भी किया था और निश्चय ही आंग्रे न्यादर अली के बदला लेने के तरीके से प्रभावित हुआ।
फिर रूपेश को मजिस्ट्रेट के सम्मुख प्रस्तुत किया गया—इंस्पेक्टर आंग्रे ने उसके विरुद्ध जो चार्जशीट तैयार की थी , वह पेश की गई—रूपेश ने मजिस्ट्रेट के सामने स्वीकार कर लिया कि उसने 'सिकन्दर ' को ‘जॉनी’ बनाने का षड्यन्त्र रचा था। जो आरोप उस पर लगाए गए हैं , वे सच हैं और दौलत के लालच में वह अपनी माला को खो बैठा है।
मजिस्ट्रेट ने न्यादर अली के वकील द्वारा प्रस्तुत जमानत की अर्जी मंजूर कर ली—रूपेश को साथ लेकर न्यादर अली चला गया और मामले के इस अजीब-से मोड़ के बारे में सोचता हुआ इंस्पेक्टर आंग्रे भी बाहर निकला ही था कि इंस्पेक्टर चटर्जी टकरा गया। सामने पड़ते ही उसने कहा— “वह दूसरा गवाह आज अदालत में आया था प्यारे—उससे पता लग गया है कि सिकन्दर शाहदरा में ही उतर गया था।"
"इससे क्या नतीजा निकलेगा? ये कैसे पता लगा सकता है कि वहां से वह कहां गया ?”
"यह भी जरूर पता लगेगा बेटे—खैर, तुम बताओ कि क्या रहा—रूपेश सड़ने के लिए जेल चला गया है या नहीं ?"
"नहीं।"
"क...क्या मतलब ?" चटर्जी उछल पड़ता।
जवाब में जब आंग्रे ने उसे सब कुछ बताया तो चटर्जी की आंखें सिकुड़कर अचानक ही गोल हो गईं , बोला— “यह मामला तो कोई नया ही रंग लेता नजर जा रहा है, प्यारे।"
"कैसा रंग ?”
“ न्यादर अली वैसा आदर्शवादी नजर तो नहीं आता था , जैसा उसने काम किया है।"
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05-18-2020, 02:33 PM,
#44
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"वह नई देहली में स्थित ' 'मुगल महल '' नाम के एक फाइव स्टार होटल में काम करते थे।" रश्मि ने बताना शुरू किया तो युवक बहुत ध्यान से सुनने लगा— “ यह होटल काफी प्रसिद्ध है और शायद आपने भी नाम सुना हो। वह वहां कैशियर थे , होटल के दैनिक आय-व्यय का हिसाब रखना ही उनका काम था।" रश्मि ने आगे बताया—आज से करीब चार महीने पहले प्रतिदिन की तरह ही वह सुबह सात बजे होटल के लिए निकल गए थे—उनकी ड्यूटी सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक की थी और वह रात नौ बजे तक यहां लौट आते थे , मगर उस सारी रात वह नहीं लौटे थे , इन्तजार में मैंने सारी रात जागकर गुजार दी थी।"
"क्या सर्वेश रात को कभी गायब नहीं होता था ?"
“अक्सर तब रह जाते थे , जब दूसरा कैशियर छुट्टी पर होता था।"
"दूसरा कैशियर ?"
"जी हां , दो कैशियर थे—फाइव स्टार होटल चौबीस घण्टे खुला रहता है और कोई भी एक व्यक्ति चौबीस घण्टे की ड़्यूटी नहीं दे सकता , इसीलिए होटल का सारा ही स्टाफ डबल था , काम दो शिफ्ट में बंटा हुआ था—पहली वह , जिसमें वे थे—दूसरी रात आठ बजे से सुबह आठ तक को—यदि किसी दिन दूसरी शिफ्ट का कैशियर छुट्टी पर होता तो उसकी ड्यूटी भी इन्हें ही देनी होती थी। "
"तब फिर आपने वह रात जागकर क्यों काटी ?"
"जब ऐसा होता था तो किसी भी माध्यम से मुझे सूचना मिल जाती थी , परन्तु उस रात मुझे उनकी नाइट ड्यूटी लग जाने की कोई सूचना नहीं मिली थी—इसीलिए मैं चिन्तित रही थी और सुबह होते ही घर से बाहर निकली थी—नजदीक के टेलीफोन बूथ से उन्हें फोन किया था—उस फोन का नम्बर उन्होंने मुझे दे रखा था , जो उन्हीं की मेज पर रखा रहता था—जब मैंने फोन किया था , उस समय सुबह के करीब सात बजे थे।"
"फिर ?"
"दूसरी तरफ से फोन उठाए जाने पर मुझे एक अपरिचित आवाज सुनने को मिली थी। यह दूसरी शिफ्ट का कैशियर था—जब मैंने उसे अपना परिचय देकर उनके बारे में पूछा था तो उसने चौंके हुए स्वर में मुझे बताया था कि—सर्वेश तो तबीयत खराब होने की वजह से कल रात सात बजे ही छुट्टी कर गया था—मैं धक्क से रह गई थी—जबकि उसे बताया था कि वह अभी तक घर नहीं पहुंचे हैं तो उसने कहा था कि मैं यहां आठ बजे पहुंचा था , तब सर्वेश सीट पर नहीं था और मैनेजर ने बताया था कि तबीयत ठीक न होने की वजह से आज वह सात बजे ही छुट्टी कर गया है—मैंने व्यग्रतापूर्वक उससे रिक्वेस्ट की थी कि वह मैनेजर से पूछकर 'उनके ' अब तक घर न पहुंचने की वजह बताने की कृपा करे—उसने मुझे होल्ड करने के लिए कहा था—कुछ देर बाद उसने मुझे बताया था कि मैनेजर साहब के कथनानुसार सर्वेश सात बजे चला गया था और उनसे यही कहकर गया था कि घर जा रहा है।”
“ओह।”
"अब मेरी चिंता बढ़ गई थी , क्योंकि अब से पहले में यह सोचकर आश्वस्त थी कि उनकी ‘नाइट ड्यूटी ' लग गई होगी—मैं बुरी तरह चिंतित और बेचैन घर लौट आई थी। समझ में नहीं आ रहा था कि वे कहां गए—कहां तलाश करूं—उस वक्त करीब आठ बजे थे , जब कुछ सिपाहियों के साथ दीवान नाम का इंस्पेक्टर यहां आया था।"
"द....दीवान।" युवक की आवाज कांप गई।
“हां , क्या तुम उसे जानते हो ?"
बड़ी मुश्किल से खुद को संभालकर युवक ने पूछा— “पुलिस यहां क्यों आई थी ?"
"उसने मुझे उनकी जेब का सामान दिखाकर पूछा था कि क्या मैं उस पर्स और पर्स से निकले कागजात को पहचानती हूं ? वह सारा सामान उन्हीं का था , इसीलिए मैं कांप उठी और घबराकर मैंने पूछा था कि यह सब उसके पास कैसे है—सामान में विजिटिंग कार्ड भी था और उसी के जरिए इंस्पेक्टर यहां पहुंचा था , अत: उसने पूछा था कि क्या मिस्टर सर्वेश मेरे पति हैं—‘हां’ कहने के बाद मैंने जब चीख-चीखकर उससे पूछा था तो उसने कहा कि—मुझे बहुत अफसोस के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि , मिस्टर सर्वेश इस दुनिया में नहीं रहे।"
कमरे में सन्नाटा-सा छा गया।
युवक चाहकर भी कुछ बोल नहीं सका।
रश्मि के मुखड़े पर हर तरफ वेदना-ही-वेदना नजर आ रही थी। युवक ने देखा कि उसकी झील-सी आंखों से आंसू उमड़ पड़ने के लिए बेताब थे—खुद को रोने से रोकने के प्रयास में उसका चेहरा बिगड़-सा गया था। वह कहती ही चली गई— “ बाद में इंस्पेक्टर ने बताया था कि 'उनकी ' लाश रेल की पटरी से मिली थी—इंस्पेक्टर दीवान के अनुसार शायद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।"
“आत्महत्या ?"
"दीवान की थ्योरी यही थी , मैं और मांजी पुलिस के साथ वहीं गए थे , जहां लावारिस समझी जाने वाली लाशों को पुलिस बहत्तर घंटों के लिए रखती है—लाश का फोटो तुम देख ही चुके हो—हमने उसी अवस्था में लाश देखी थी , मांजी तभी से पागल-सी हो गई हैं—हालांकि गर्दन धड़ से अलग थी—चेहरा क्षत-विक्षत था , मगर फिर भी मैं उन्हें पचनने में किसी किस्म की भूल नहीं कर सकती थी—जेब से निकले सामान के अलावा वे वही कपड़े और जूते पहने हुए थे , जो पिछले दिन सुबह पहचकर घर से निकले थे—उनकी पीठ पर मौजूद मस्से को देखने के वाद उन्हें सर्वेश ही न मानने का मेरे पास कोई कारण नहीं था।"
युवक खामोश रहा।
रश्मि कहती चली गई— “लाश को यहां लाया गया। अंतिम संस्कार कर दिया गया , मगर इस प्रश्न का जवाब मुझे नहीं सूझ रहा था कि उन्होंने आत्महत्या क्यों कर ली—मैं उनकी पत्नी हूं और अच्छी तरह जानती थी कि उन्हें कोई गम , कोई दुख नहीं था—आत्महत्या की वजह तो दूर-दूर तक नहीं थी—इसी उलझन में मुझे एक हफ्ता गुजर गया और फिर डाक से मुझे एक रहस्यमय पत्र मिला।"
"रहस्यमय पत्र ?"
"यह।" कहती हुई रश्मि ने एक पत्र युवक की तरफ बढ़ा दिया। युवक ने व्यग्रतापूर्वक उसके हाथ से पत्र लिया , खोलकर पढ़ा—
"रश्मि बहन! अगर तुम यह सोच रही हो कि सर्वेश ने आत्महत्या की है तो यह गलत है , सर्वेश की हत्या की गई है—वजह मैं नहीं जानता—हां , इतना जानता हूं कि सर्वेश की जिन्दगी में कहीं कोई ऐसा गम नहीं था , जिससे छुटकारा पाने के लिए वह आत्महत्या करता—फिर जिस सुबह उसकी लाश मिली है , उसकी पूर्व-संध्या को सात बजे मैंने सर्वेश के ऑफिस में रंगा-बिल्ला को दाखिल होते देखा था।
रंगा-बिल्ला बहुत ही खतरनाक , क्रूर, कुख्यात और पेशेवर हत्यारे हैं—वे हमेशा साथ रहते हैं और जहां उन्हें देखा जाता है , यह समझा जाता है कि यहां निश्चय ही कोई हत्या होने वाली है—जिस समय वे सर्वेश के ऑफिस में दाखिल हुए थे , उस समय उनकी आंखों में बड़ी ही जबरदस्त हिंसक चमक दिख रही थी और पांच मिनट बाद ही सर्वेश को साथ लिए वे ऑफिस से बाहर निकले—उस क्षण के बाद मैंने यही सुना कि सर्वेश इस दुनिया में नहीं हैं।
मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि रंगा-बिल्ला ने सर्वेश की हत्या करने के बाद उसकी लाश रेल की पटरी पर डाली होगी—वही दर्शाने के लिए—जो पुलिस सोच रही है—पुलिस को धोखे में डालना रंगा-बिल्ला के बाएं हाथ का खेल है।
तुम जरूर सोच रही होगी रश्मि बहन कि मैं कौन हूं और तुम्हें यह पत्र क्यों लिख रहा हूं, मैं अपना परिचय तो नहीं दे सकता , क्योंकि अभी मरना नहीं चाहता , अगर किसी माध्यम से रंगा-बिल्ला को पता लग गया कि तुम्हें इस आशय का पत्र लिखा है तो निश्चय ही मेरी लाश भी किसी रेल की पटरी पर पड़ी मिलेगी , फिर भी यह खतरनाक काम अपनी और सर्वेश की दोस्ती की खातिर कर रहा हूं।
सिर्फ इसीलिए कि वह जब भी मुझे मिलता , तुम्हारी ही प्रशंसा कर रहा होता है। सर्वज्ञ बुरी तरह तुम्हारा दीवाना था—वह तुमसे बहुत प्यार करता था। उसी के प्यार से मैंने अन्दाजा लगाया कि तुम उसे कितना चाहती होगी। कितना ख्याल रखती होगी उसका , और अब , अचानक ही तुम्हारा सब कुछ लुट गया है बहन और जाने क्यों मुझे अच्छा न लगा कि तुम्हें हकीकत पता न लगे। बस—इसीलिए यह पत्र लिख दिया है—शायद इसे तुम्हारे पास भेजकर मुझे कुछ सुकून मिल सके।
—एक भाई '
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05-18-2020, 02:33 PM,
#45
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
पढ़ते-पढ़ते युवक की आंखें भर आईं , दिमाग कुछ और ज्यादा उलझ गया—नजर उठाकर जब उसने रश्मि की तरफ देखा तो पाया कि अपने मुखड़े पर संगमरमरी कठोरता लिए रश्मि उसी की तरफ देख रही थी। बोली— "इस पत्र से मुझे मालूम हुआ कि रंगा-बिल्ला ने उनकी हत्या की है।"
"क्या आपने कभी इस पत्र लिखने वाले का पता लगाने की कोशिश की ?"
"असफल रही।"
"क्या आपको कभी इसके बाद भी इसका कोई पत्र मिला?" '
"नहीं।”
"इस पत्र में लिखी हकीकत या रंगा-बिल्ला का पता लगाने के लिए क्या आपने कभी कोई कोशिश नहीं की ?"
"इस चारदीवारी में जिम्मेदारियों से घिरी मैं बहुत ज्यादा कोशिश तो नहीं कर सकती , मगर जितनी कर सकी , उससे इस नतीजे पर पहुंची कि रंगा-बिल्ला सचमुच वैसे ही हैं, जैसा इस पत्र में लिखा है। पता लगा है कि वे अक्सर ''मुगल महल '' में आते रहते हैं।"
"क्या तुमने उन्हें कभी देखा है ?"
“अगर देखती तो क्या उन्हें जिन्दा छोड़ देती ?" रश्मि के हलक से गुर्राहट-सी निकल पड़ी— “वे कितने भी खतरनाक और क्रूर सही , मगर जिस क्षण मेरी आंखों के सामने आएंगे , वह क्षण उनकी जिन्दगी का आखिरी क्षण होगा , अपने रिवॉल्वर से मैँ उनके कलेजे में आग भर
दूंगी।"
“क्या आपने कभी सोचा कि उस वक्त आपके पास रिवॉल्वर कहां से जाएगा?"
"रिवॉल्वर मेरे पास है।"
"अ...आपके पास रिवॉल्वर है ?" युवक ने चकित भाव से पूछा— “क्या मैं जान सकता हूं कि रिवॉल्वर जैसी खतरनाक चीज आपके पास कहां से आ गई ?"
"उनकी मृत्यु के बाद मुझे उनके व्यक्तिगत सन्दूक से मिली थी।"
"स...सर्वेश के सन्दूक से ?"
“हां।"
"क्या आपने कभी सोचा कि सर्वेश के पास रिवॉल्वर क्यों थी?”
"यह सब सोचने का कभी होश ही नहीं मिला है मुझे—मैं तो बस इतना ही सोचती हूं कि रिवॉल्वर मेरे पास है—रंगा-बिल्ला के सामने पड़ते ही मैं उन्हें शूट कर दूंगी।"
"ऐसा करना शायद गलत होगा।"
गुर्रा उठी रश्मि— “क्या मतलब ?"
कुछ देर तक चुप रहकर जाने क्या सोचने के बाद युवक ने कहा— “ अगर सर्वेश ''मुगल महल '' में सिर्फ कैशियर ही था तो उसके पास रिवॉल्वर की मौजूदगी रहस्यमय है—मेरे ख्याल से वह सिर्फ कैशियर ही नहीं , कुछ और भी था—कुछ ऐसा , जिसमें उसे रिवॉल्वर की जरूरत पड़ती हो।"
"क्या कहना चाहते हो ?" उसे घूरती हुई रश्मि ने कहा।
युवक हिचका नहीं , बोला— “रिवॉल्वर केवल दो ही किस्म के लोग रखते हैं—या तो अपराधी अथवा वे शरीफ लोग , जिन्हें किसी अपराधी से अपनी जान का खतरा हो—आत्मरक्षार्थ।"
"उनके अपराधी होने की कल्पना फिर कभी मत करना।" रश्मि ने चेतावनी दी।
"तो क्या सर्वेश ने आपसे कभी कोई ऐसी बात कही थी , जिससे यह ध्वनित होता हो कि उसे किसी से अपनी जान का खतरा है ?”
"नहीं। ”
युवक चुप रह गया , शायद गहराई से वह कुछ सोच रहा था। सोचने के बाद बोला—"जिस तरह आप कह रही हैं, यदि उस तरह सामने पड़ते ही रंगा-बिल्ला को शूट कर दिया जाए तो वह न तो उचित ही होगा और न ही बुद्धिमत्ता से भरा कदम।"
"क्या कहना चाहते हो ?"
"हर हत्या के पीछे कोई कारण होता है—सर्वेश की हत्या के पीछे छुपा कारण रंगा-बिल्ला ही बता सकते हैं—अगर देखते ही आप उन्हें शूट कर देंगी तो हमें कारण पता नहीं लगेगा—और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि बिना कारण पता लगे रंगा-बिल्ला को शूट कर देने से भी आपके दिल को सुकून नहीं मिलेगा।"
रश्मि को लगा कि युवक ठीक कह रहा है।
आखिर पता तो लगे कि वे अपने पास रिवॉल्वर क्यों रखते थे—अगर उन्हें किसी से अपनी जान का खतरा था तो उन्होंने कभी इसका जिक्र क्यों नहीं किया —रंगा-बिल्ला ने उनकी हत्या क्यों की ? सब कुछ सोचने के बाद वह बोली— “ मैं नहीं जानती कि तुम्हें क्या करना है और न ही इस सारे झमेले से मुझे कोई मतलब है—मुझे मतलब है केवल उनके हत्यारों से—तुम कुछ भी हो , मगर उनके हत्यारे मुझे चाहिए—याद रखना , उनसे बदला तुम नहीं लोगे—वे मेरे शिकार हैं।"
"मैं वीशू की कसम खाकर कह चुका हूं कि हत्यारों को आपके कदमों में लाकर डाल देना ही मेरा मकसद है—बदला लेना आपका काम है।"
"इस विषय में और कुछ पूछना है ?"
"मैं सर्वेश के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानकारी चाहता हूं—ताकि उसका कोई परिचित यह न जान सके कि मैं सर्वेश नहीं हूं।"
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05-18-2020, 02:34 PM,
#46
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
'मुगल महल ' के शानदार दरवाजे के सामने इस बार जो टैक्सी रुकी , उसके अन्दर से युवक निकला। इस वक्त यह बिल्कुल वही सर्वेश नजर आ रहा था , जिसका फोटो रश्मि के कमरे की दीवार पर लगा था—वही दाढ़ी-मूंछ , चश्मा और हेयर स्टाइल।
टैक्सी की पेमेंट करने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
द्वार पर खड़े वर्दीधारी दरबान ने उसे अपने परम्परागत ढंग से सेल्यूट मारा , परन्तु सेल्यूट मारते-मारते अचानक ही उसकी दृष्टि युवक के चेहरे पर पड़ी और उस क्षण न केवल उसका सैल्यूट मारने वाला हाथ, बल्कि सारा ही जिस्म बुरी तरह कांप उठा।
हैरत के असीमित भाव उसके चेहरे पर उभर आए।
दरबान के कण्ठ से चीख-सी निकल गई— "स...सर्वेश बाबू आप ?"
"हां।" धीमे से कहते हुए युवक ने हाथ बढ़ाकर स्वयं ही शीशे का दरवाजा खोला और अन्दर दाखिल हो गया , जबकि मुंह फाड़े दरबान किसी स्टैचू के समान हक्का-बक्का-सा वहीं खड़ा रह गया।
युवक तेज कदमों के साथ सीधा काउंटर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। तभी सामने से तेजी के साथ आता हुआ एक वेटर उससे टकरा गया—टकराते ही वेटर ने उसकी शक्ल देखी और बरबस ही सेल्यूट के लिए उसका हाथ उठा।
मगर एकदम ही शायद उसे यह ख्याल आ गया कि वह व्यक्ति तो मर चुका है।
वेटर के चेहरे पर हैरत के असीमित भावों के साथ ही भय के चिन्ह भी उभर आए। वह इतना डर गया था , कि ट्रे उसके हाथ से छूट गई। क्रॉकरी खनखनाकर टूटी।
“भ....भू...त …भूत!" बुरी तरह चिल्लाता हुआ वह एक तरफ को भागा।
काउंटर पर मौजूद एक सुन्दर लड़की ने क्रॉकरी टूटने और वेटर के चिल्लाने की वजह से उधर देखा तो उसके हलक से चीख निकल गई— "स...सर्वेश।"
युवक जानता था कि यह सब क्यों हो रहा है?
अत: वह तेजी के साथ काउंटर की तरफ बढ़ गया—आश्चर्य के साथ-साथ युवक ने काउंटर गर्ल के खूबसूरत चेहरे पर उभरने वाले खौफ के भाव भी स्पष्ट देखे।
अभी तक वह मुंह फाड़े किसी स्टैचू के समान खड़ी थी कि युवक उसके नजदीक पहुंचकर बोला— “मुझे मैनेजर साहब से मिलना है।"
सिट्टी-पिट्टी गुम थी उसकी। तभी तो उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकल सकी। उसकी इस अवस्था पर युवक मन-ही-मन मुस्करा उठा—एक नजर उसने अपने चारों तरफ देखा।
दरबान और टकराने वाले वेटर के अलावा होटल के स्टाफ के वहां मौजूद अन्य सभी कर्मचारी दूर खड़े , चेहरों पर काउंटर गर्ल जैसे ही भाव लिए उसे देख रहे थे।
यही स्थिति वह सर्वेश के हत्यारे की कर देना चाहता था।
उसे पूरा यकीन था कि उसकी इस हरकत से सर्वेश के हत्यारों में खलबली मच जाएगी। उसने काउण्टर गर्ल से पुन: कहा— “ मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूं। ”
"क...कौन हैं आप ?" काउण्टर गर्ल बड़ी मुश्किल से कह सकी। युवक ने उल्टा सवाल किया —“ क्या आप मुझे नहीं जानती हैं ?"
"ज....जी हां।" आतंक के कारण वह कांप रही थी।
"वह मैं नहीं था , किसी और की लाश को मेरी लाश समझ लिया गया।" बड़ी ही मोहक मुस्कान के साथ युवक ने कहा— “ यकीन करो , मैं सर्वेश हूं—सर्वेंश का भूत नहीं , किसी को मुझसे डरने की जरूरत नहीं है।"
"म....मगर यदि तुम मरे नहीं थे तो क......कहां गायब हो गए थे ?" वाक्य पूरा करते-करते काउण्टर गर्ल का हलक पूरी तरह सूख गया।
"इस सवाल का जवाब मैं मैनेजर साहब को ही दूंगा , प्लीज—उन्हें सूचित करो कि मैं आया हूं।"
यन्त्रचालित-सी उसने काउण्टर पर रखे फोन का रिसीवर उठा लिया।
सम्बन्धत स्थापित होने पर काउण्टर गर्ल ने बड़ी मुश्किल से कहा— "है...हैलो सर , डॉली हियर।"
"बोलो।" दूसरी तरफ से अक्खड़ स्वर उभरा।
"स...सर-स...सर्वेश आपसे मिलना चाहता है।"
दूसरी तरफ से सामान्य स्वर में ही पूछा गया—"कौन सर्वेश ?"
“व...वही, सर—जो आज से चार महीने पहले तक हमारा कैशियर था।"
"क...क्या बक रही हो ?" दूसरी तरफ से बोलने वाला दहाड़ उठा—"वह तो रेल के नीचे कटकर मर चुका है।"
"न...नो सर , वह इस वक्त काउण्टर पर मेरे पास ही खड़ा है।"
"तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है डॉली!"
"स...सॉरी सर , मैं खुद चकित हूं—वह कहता है कि मैँ सर्वेश ही हूं—जो मरा था वह कोई और था—शक्ल भी सर्वेश से बिल्कुल मिलती है, सर। वह आपसे मिलना चाहता है। ”
"जाने तुम क्या बक रही हो? भेजो उसे।"
रिसीवर रखते वक्त डॉली के सम्पूर्ण चेहरे पर पसीने की बूंदें झिलमिला रही थीं , बड़ी मुश्किल से कहा था उसने— “अ...आप जा सकते हैं।"
"थैंक्यू।" कहकर वह तेज और लम्बे कदमों के साथ उस कमरे की तरफ बढ़ गया , जिसके मस्तक पर लगी पीतल की शानदार प्लेट पर 'मैनेजर ' लिखा था।
किसी की परवाह किए बिना उसने मैनेजर के कमरे का दरवाजा खोला , अन्दर कदम रखते ही एक चीख-सी उसे सुनाई दी— "अ...अरे , तुम तो सचमुच सर्वेश हो ?"
"जी हां।" जिस व्यक्ति से युवक ने यह कहा वह , उसे देखते ही अचम्भे के कारण अपनी कुर्सी से उछलकर खड़ा हो गया। झटके से उठने के कारण उसकी रिवॉल्विंग चेयर अभी तक चरमरा रही थी—युवक उसके चेहरे पर भी हैरत के चिन्ह देख रहा था।
शानदार कमरे में शानदार और विशाल मेज के पीछे खड़े व्यक्ति की आयु तीस के करीब ही थी —वह सांवले रंग का आकर्षणहीन नौजवान था। चपटी नाक और सुर्ख आँखों वाले उस बदसूरत युवक के जिस्म पर कीमती सूट था।
उसके नजदीक पहुंचकर युवक ने कहा— "गुड ईवनिंग सर।"
" 'इ...ईवनिंग , मगर तुम जीवित कैसे हो सकते हो, सर्वेश ?"
"मैं स्वयं नहीं जानता।"
"हम समझे नहीं , तुम सर्वेश ही हो न ?" मैनेजर हक्का-बक्का था।
"जी हां , आप यकीन कीजिए—मैं सर्वेश ही हूं, जिसकी लाश को सबने , यहां तक कि मेरी वाइफ ने भी मेरी लाश समझा , वह किसी और की लाश रही होगी।"
"ल...लेकिन , यह सब कुछ कैसे हो सकता है—उस लाश की जेब से तुम्हारा पर्स मिला था—वे ही सब कागजात जो तुम्हारे थे—तुम्हारे कागजात किसी अन्य की जेब में कैसे पहुंच गए—और फिर यदि तुम मरे नहीं थे तो चार महीने तक कहां रहे ?"
"मैं इस किस्म के किसी भी सवाल का जवाब देने की स्थिति में नहीं हूं सर।"
“क्यों ?”
"क्योंकि मैं अपनी याद्दाश्त गंवा बैठा हूं।"
"क....क्या मतलब! " इस बार मैनेजर कुछ ज्यादा ही बुरी तरह चौंक पड़ा।
युवक ने शांत स्वर में वह सब कहा जो पहले ही से सोचकर वहाँ गया था—"मैं यह भी नहीं जानता कि अपनी याद्दाश्त किस तरह गंवा बैठा हूं। बस , इतना ही याद है कि मैं दीवानों की तरह एक दिन शाहदरा स्टेशन से राधू सिनेमा की तरफ जा रहा था कि स्कूल के बच्चों से भरी रिक्शा में से एक बच्चा मुझे देखकर 'पापा-पापा’ चिल्लाने लगा—वह मुझे अपने घर ले गया—वहां मुझे मालूम पड़ा कि मैं सर्वेश हूं—वह बच्चा मेरा बेटा विशेष है—मेरी पत्नी का नाम रश्मि है और एक बूढ़ी मां भी है मेरी—वाइफ ने ही बताया कि मैं यहां सर्विस करता था—सो , अपनी सर्विस पर लौट आया हूं।"
"बड़ी हैरतअंगेज कहानी है तुम्हारी! "
"मैं खुद चकित हूं, सर।"
"खैर , बैठो।" खुद को थोड़ा नियंत्रित करके मैनेजर ने कहा और अपनी रिवॉल्विंग चेयर पर बैठ गया—युवक भी धीमे से मेज के इस तरफ पड़ी छ: गद्देदार कुर्सियों में से एक पर बैठ गया और बैठते ही उसकी नजर मैनेजर के पीछे वाली दीवार पर लगे एक फोटो पर पड़ी और इस फोटो को यहां देखते ही युवक बुरी तरह उछल पड़ा।
बड़े-से , खूबसूरत और कीमती फ्रेम में जड़ा यह फोटो न्यादर अली का था।
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05-18-2020, 02:34 PM,
#47
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
न्यादर अली के फोटो को देखकर युवक के मस्तिष्क में बहुत ही जबरदस्त विस्फोट-सा हुआ। एकदम से सैंकडों सवाल उसके मस्तिष्क में चकरा गए और चाहकर भी वह अपनी नजरें न्यादर अली के फोटो से नहीं हटा सका।
"क्या बात है, सर्वेश ?" मैनेजर की आवाज सुनकर वह चौंका— "मालिक के फोटो को तुम इस तरह क्यों देख रहे हो ?”
"म......मालिक ?"
“ले....लेकिन इसमें चौंकने की क्या बात है ?"
"य...ये आपके मालिक कैसे हो सकते हैं ?"
"कमाल की बात कर रहे हो , ये ही तो हम सबके मालिक हैं—ये 'मुगल महल' होटल इन्हीं का तो है , हम सब इनके नौकर हैं।"
युवक को लगा कि उसके मस्तिष्क की नसें एक-दूसरे से बुरी तरह उलझ गई हैं , मुंह से स्वयं ही निकला— “ अजीब बात है—ये होटल इनका है ?"
"इसमें अजीब बात क्या है ?"
"मैं.......मैं तो होटल को आप ही का समझ रहा था।"
"अजीब बात तो तुम कर रहे हो सर्वेश , क्या तुम नहीं जानते हो कि मैं तो यहां सिर्फ मैनेजर हूं, होटल तो न्यादर अली का ही है।"
“सम्भव है कि याददाश्त के गुम होने से पहले यह बात मुझे मालूम हो , मगर अब इस वक्त तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे यह बात मुझे पहली बार ही पता लग रही हो—मेरी स्थिति बड़ी अजीब है सर , यदि आप सच पूछें तो इस वक्त मुझे आपका नाम तक मालूम नहीं है।"
बड़ी ही अजीब नजरों से मैनेजर उसे देखने लगा , बोला— “यह होटल इन्हीं का है , परन्तु यहां ये साल में मुश्किल से एक या दो बार ही आते हैं—इस होटल से बहुत बड़े इनके दूसरे बिजनेस फैले हुए हैं , जिन्हें ये देखते हैं—संयोग से आज होटल का हिसाब-किताब देखने यहां आए हुए हैं।"
युवक ने घबराकर पूछा— “क्या इस वक्त वे यहीं हैं ?"
“हां , अपने ऑफिस में।"
एकाएक ही युवक को जाने क्या सुझा कि उसने प्रश्न कर दिया— “ क्या सेठ न्यादर अली का बेटा भी है ?"
“ब....बेटा, नहीं तो।" मैनेजर ने बताया।
"नहीं ?”
"इनका कोई बेटा नहीं है।"
"क्या आप अच्छी तरह जानते हैं ?" चौंकते हुए युवक ने कुरेदकर पूछा— “क्या सिकन्दर नाम का इनका कोई बेटा नहीं है ?"
"अरे , एक बार कह तो दिया भाई , मगर तुम ये मनगढ़न्त नाम कहां से ले आए ? तुमसे किसने कहा कि सेठ जी का कोई बेटा है ?"
कुछ कहने के लिए युवक ने अभी मुंह खोला ही था कि 'पिंग-पिंग ' की आवाज के साथ दीवार पर लगा एक लाल रंग का बल्ब दो बार जला , चौंककर उसी तरफ देखते हुए मैनेजर ने कहा— "ओह! मालिक मुझे तलब कर रहे हैं—मैँ अभी आया—तुम यहीं रहना।"
युवक को कुछ कहने का अवसर दिए बिना ही मैनेजर उठा और फिर तेज कदमों के साथ कमरे की पिछली दीवार में मौजूद दरवाजा खोलकर दूसरी तरफ चला गया।
दरवाजा बन्द हो चुका था।
युवक का दिमाग फिरकनी के समान चकरा रहा था। ढेर सारे विचार मस्तिष्क में 'डिस्को ' कर रहे थे। एकाएक ही उसके दिमाग में यह विचार उभरा कि उसके लौटने की घटना के अजीब होने की वजह से मैनेजर इस सबका जिक्र न्यादर अली से कर सकता है—याददाश्त खोए युवक के बारे में सुनते ही सम्भव है कि न्यादर अली यहां आ जाएं।
“ ऐसा हो गया तो सारा मामला गड़बड़ हो जाएगा—मैं उस मकसद से बहुत दूर भटक जाऊंगा जिससे आया हूं। सम्भव है कि पुलिस के भी चंगुल में फंस जाऊं। ”
किसी ने कान में फुसफुसाकर कहा—'यहां से भागो बेटे...।'
युवक एक झटके से उठ खड़ा हुआ।
उसे लगने लगा था कि यदि यहां ठहरा तो कुछ ही देर बाद न्यादर अली के चंगुल में फंस जाएगा और उस अवस्था में बहुत जबरदस्त गड़बड़ भी हो सकती है। शेष बातें वह यहां आकर फिर कभी मैनेजर से कर सकता है। किसी ऐसे समय जब यहां न्यादर अली न हो।
यही निश्चय करके वह घूमा।
फिर , दरवाजा खोलकर ऑफिस से बाहर निकल आया।
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05-18-2020, 02:34 PM,
#48
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
संतोष की पहली सांस युवक ने तब ली जब टैक्सी 'मुगल महल' से काफी दूर निकल आई—इस सांस के साथ ही उसने अपने अभी तक तने हुए जिस्म को ढीला छोड़ दिया और टैक्सी की पिछली सीट पर पसर गया , अब उसके जेहन में विचारों का तूफान-सा मचल रहा था।
यह जानकर उसके होश उड़ गए थे कि इस होटल का मालिक न्यादर अली है।
वह , जो उसे अपना बेटा सिकन्दर बताता था । उसके होटल का मैनेजर कहता है कि उसका कोई बेटा है ही नहीं—ऐसा तो सोचा भी नहीं जा सकता कि इस बारे में मैंनेजर को कोई गलत जानकारी होगी।
'मतलब यह कि मैं उसका बेटा नहीं हूं.....मैं सिकन्दर नहीं हूं।'
'फिर भला वह क्यों मुझे अपना बेटा साबित करना चाहता था ?'
'कोई वैसा ही चक्कर होगा जैसा रूबी का था—मैँ जॉनी नहीं हूं, मैं सिकन्दर भी नहीं हूं—फिर क्या हूं, मैं.....कौन हूं ?'
'कहीं मैं सचमुच सर्वेश ही तो नहीं हूं ?'
'कहीं वही कहानी तो सच नहीं है जो अपने मन से गढ़कर मैनेजर को सुनाई थी , रेल की पटरियों पर से मिली लाश कहीं वास्तव में ही तो किसी अन्य की नहीं थी ?'
'मगर , मेरी पीठ से मस्सा कहां गया ?'
इस सवाल का जवाब तलाश करने के लिए अपने दिमाग में कोई रास्ता खोज ही रहा था कि अचानक टैक्सी ड्राईवर ने कहा—“सर , एक टैक्सी हमारा पीछा कर रही है।"
युवक इस तरह उछल पड़ा जैसे अचानक बिच्छू ने डंक मारा हो , बोला —"क.....कहां है ?"
"हमारे पीछे।"
युवक ने पलटकर पीछे देखा , पीछे बहुत-से वाहन थे , परन्तु उनमें टैक्सी एक ही थी—मूर्ख-सा युवक अभी उसे देख ही रहा था कि ड्राइवर ने कहा— “यह टैक्सी 'होटल मुगल' से ही हमारे पीछे चली आ रही है, सर।"
टैक्सी को देखते-ही-देखते उसके जेहन में विचार उभरा कि शायद सर्वेश के हत्यारों में खलबली मच गई है।
बुरी तरह हतप्रभ स्थिति में सक्रिय हो उठे हैं।
युवक ने जेब में पड़े उस रिवॉल्वर को थपथपाया जो दुश्मन से टकराने के लिए उसने रश्मि से ले लिया था—उसे लगा कि जो वह चाहता था , वह खेल शुरू हो चुका है।
"क्या हुक्म है सर ?" ड्राइवर ने एक बार पुन: उसे चौंकाया।
"गाड़ी को अपनी साइड में लेकर खड़ी कर दो।"
ड्राइवर ने वैसा ही किया।
युवक की दृष्टि पिछली टैक्सी पर स्थित थी , उनकी टैक्सी के रुकने पर पीछे वाली टैक्सी आगे निकल गई और युवक उस टैक्सी की सीट पर केवल एक लड़की की झलक देख सका।
कोई बीस कदम आगे जाकर टैक्सी भी रुक गई।
युवक ने उस टैक्सी का दरवाजा खुलते देखा और फिर उसमें से बाहर निकली 'मुगल महल' की काउण्टर गर्ल—उसे देखते ही युवक चौंक पड़ा।
युवक को उसका नाम मालूम था—डॉली।
वह बेहिचक तेजी के साथ चलती हुई नजदीक आई। युवक ने अपना हाथ उस जेब में डाल दिया , जिसमें रिवॉल्वर था। रिवॉल्वर किसी भी समय बाहर आ सकता था , मगर उसकी जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि डॉली ने विण्डो के पास आकर कहा— “ मैं तुमसे कुछ जरूरी बातें करना चाहती हूं सर्वेश।"
"किस बारे में? ” युवक ने पूरी सतर्कता के साथ पूछा।
"तुम्हारे ही बारे में।"
एक पल कुछ सोचने के बाद युवक ने पूछा— "कहां? "
"तुम मेरी टैक्सी में आ सकते हो ?"
युवक ने पूरे सतर्क स्वर में कहा— “ नहीं , तुम्हें इस टैक्सी में आना होगा।"
"एक मिनट ठहरो , मैं अभी आती हूं।" बिना किसी हिचक के डॉली ने कहा और फिर जिस तेजी के साथ इधर आई थी , उसी तेजी के साथ अपनी टैक्सी की तरफ चली गई। अपनी टैक्सी के बाहर ही खड़ी डॉली ने पेमेंट किया और इस तरफ लौट आई।
कुछ देर बाद वह युवक की बगल में बैठी थी और टैक्सी चल दी थी—काफी देर हो गई , टैक्सी काफी दूर निकल आई , परन्तु उनके बीच खामोशी ही रही—युवक डॉली के गदराए जिस्म से उठती भीनी-भीनी खुशबू का अहसास कर रहा था।
डॉली खूबसूरत थी , ऐसी कि जिसके लिए कोई भी युवक मौत से टकराने तक का दुस्साहस कर सकता था , परन्तु सर्वेश बना वह युवक उसके सौन्दर्य-जाल में उलझकर एक पल के लिए भी असावधान नहीं होना चाहता था , अतः काफी देर से छाई खामोशी को उसने तोड़ा—"मेरे बारे में तुम क्या बात करना चाहती थीं ?"
"यहां टैक्सी में नहीं , वे बातें मैं बिल्कुल तन्हाई में करना चाहती हूं।"
युवक कुछ और ज्यादा सतर्क हो गया।
उसे लगा कि डॉली सर्वेश के हत्यारों द्वारा ही बिछाई गई शतरंज का कोई मोहरा है। इसके माध्यम से कोई जाल मेरे चारों तरफ कसा जा रहा है , डॉली की ड्यूटी शायद इस बहाने से मुझे किसी निश्चित स्थान पर पहुंचा देने की है—वहीं दुश्मन मौजूद होंगे। अत: युवक ने पूछा— “कहां बैठकर बातें करना चाहती हो ?"
"जहां तुम चाहो , मुझे केवल तन्हाई की जरूरत है।" युवक की आशाओं पर पानी फिर गया , डॉली के उपरोक्त वाक्य से जाहिर था कि वह उसे किसी निश्चित स्थान पर नहीं ले जाना चाहती है , बल्कि जहां वह चाहे, चलने के लिए तैयार है , इसका मतलब यह कि कोई साजिश नहीं है।
डॉली सचमुच उससे कुछ बातें करना चाहती है।
एक थ्री स्टार होटल के सामने युवक ने टैक्सी रुकवा ली। टैक्सी का पेमेंट करके वह डाली के साथ होटल के अन्दर प्रविष्ट हो गया।
अन्दर जाकर वह एक केबिन की तरफ बढ़ गया।
केबिन में बैठने तक युवक खुद को किसी भी खतरे से टकराने के लिए तैयार कर चुका था , कॉफी का आर्डर दे दिया था—वेटर कॉफी रखकर चला गया तो युवक ने कहा—
"यहां बिल्कुल तन्हाई है।"
"मैं जानना चाहती हूं कि तुम जीवित कैसे बच गए ?"
सर्वेश ने संभलकर पूछा —"क्या मतलब ?”
"तुम्हें जहर दिया गया था न ?”
"ज.....जहर ?"
अचानक ही डॉली की भवें सिकुड़ गईं। वह थोड़े आतंकित-से स्वर में बोली— "क्या तुम सचमुच सर्वेश ही हो ?"
"हां।" '
"तब फिर तुम जहर वाली बात पर चौंक क्यों रहे हो ?"
युवक को लगा कि अगर उसने होशियारी से काम नहीं लिया तो गड़बड़ हो जाएगी , अत: संभलकर बोला—“मैं इसीलिए चौंका हूं कि यह बात आखिर तुम्हें कैसे पता लग गई , डॉली कि उन्होंने मुझे जहर दिया था ?"
"ओह , मैंने एक बार छुपकर रंगा-बिल्ला की बातें सुन ली थीं।"
युवक के मस्तिष्क में विस्फोट-सा हुआ , पूछा— "क्या बातें कर रहे थे वे ?"
"यह कि तुम्हारे ऑफिस से उठाकर वे तुम्हें 'शाही कोबरा ' के पास ले गए और फिर 'शाही कोबरा ' तुम्हें जहर मिली बीयर पिला दी।"
"य...यह 'शाही कोबरा' कौन है?"
"मुझे सिर्फ उतना ही पता है जितना रंगा-बिल्ला की बातें सुनने से पता लगा था—उनकी बात सुनकर मैं कुल इतना ही समझ सकी कि 'शाही कोबरा' के हुक्म पर रंगा-बिल्ला तुम्हारी लाश को रेल की पटरी पर रख आए थे।"
"म...मगर मेरी लाश को रेल की पटरी पर रखने की क्या जरूरत थी ?"
"ताकि पुलिस यह समझे कि तुमने आत्महत्या की है और व्यर्थ का बखेड़ा न हो।"
एक पल चुप रहने के बाद युवक ने पूछा— "रंगा-बिल्ला की बातों से तुम्हें और क्या पता लगा ?"
"जो बता चुकी हूं उसके अलावा कुछ भी नहीं , तुम तो जानते ही हो सर्वेश कि वे कितने खतरनाक हैं—मुझे डर था कि अगर उन्होंने मुझे अपनी बातें सुनते देखा लिया होता तो मैं भी जिन्दा न रहूंगी।"
“हां , मैं जानता हूं।"
"तुम्हें देखकर पहले तो मैं यकीन ही नहीं कर सकी कि यह तुम हो , क्योंकि ख्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि तुम रंगा-बिल्ला के चंगुल से बच सकते हो—मुझे तो यह भी तुम्हारा सामने बैठा होना स्वप्न-सा लग रहा है—प्लीज , बताओ न सर्वेश कि तुम कैसे बच गए ?"
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05-18-2020, 02:34 PM,
#49
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक के जेहन में एक विस्फोट-सा हुआ था , डॉली को घूरता हुआ वह बोला— "क्या तुमने रश्मि को कोई पत्र लिखा था?"
“हां , क्या तुमने वह पढ़ लिया है—अरे?” जाने क्यों डॉली एकदम बुरी तरह से चौंक पड़ी। उसके चेहरे पर आतंक और दहशत के भाव उभर आए—अचानक ही वह बहुत भयभीत नजर जाने लगी थी , कांपते स्वर में बोली— “ न-नहीं , तुम सर्वेश नहीं हो सकते।"
“क्यों ?" युवक चौंक पड़ा।
"अगर तुम सर्वेश होते तो वह क्यों पूछते कि क्या वह पत्र मैंने लिखा है—नहीं , तुम सर्वेश नहीं हो—म...मैंने कोई पत्र नहीं लिखा था।" कहने के साथ ही बुरी तरह डरी हुई डॉली उठी और केबिन से बाहर निकलने के लिए अभी उसने पहला कदम उठाया ही था कि युवक ने एक झटके से रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया।
डॉली के होश उड़ गए , चेहरा पीला जर्द।
"चुपचाप यहीं बैठ जाओ। " युवक गुर्राया।
"म....मुझे बख्श दो—मैं सच कहती हूं—सर्वेश की वाइफ को मैंने कोई पत्र नहीं लिखा—रंगा-बिल्ला की बातें मैंने बिल्कुल नहीं सुनी थी , सर्वेश के मर्डर के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं है।" बुरी तरह गिड़गिड़ाते वक्त मौत का खौफ उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था।
“मैं तुम्हें नहीं मारूंगा , यह रिवॉल्वर सिर्फ तुम्हें यहां रोकने के लिए निकाला है—आराम से बैठ जाओ , अगर तुमने मेरे सभी सवालों का सही जवाब दिया तो तुम्हें कोई खतरा नहीं है।"
डॉली बैठ गई , उसका समूचा शरीर कांप रहा था—हल्दी-से नजर आने वाले पीले चेहरे पर झिलमिला रही थीं पसीने की बूंदें।
"अगर तुम्हारे दिमाग में यह खौफ बैठ गया है कि मैं सर्वेश के हत्यारों में से कोई हूं तो उस खौफ को निकाल फेंको , मुझे उनका दुश्मन समझो। "
"अ...आप कौन हैं ?"
"में सर्वेश ही हूं।"
"क..कैसे मान लूं …अगर आप सर्वेश होते तो उस पत्र को देखते ही समझ जाते कि रश्मि बहन को वह पत्र मैंने लिखा है।"
“कैसे समझ जाता ?"
"म...मेरी राइटिंग से—सर्वेश मेरी राइटिंग को खूब पहचानता था , रजिस्टर में मेरे द्वारा की गई ग्राहकों की एण्ट्री को देखकर वह हमेशा मेरी राइटिंग की तारीफ करता था।"
"ओह!" युवक की समझ में डॉली के चौंकने का रहस्य आ गया था , वह समझ गया कि जब तक डॉली उससे आतंकित रहेगी , तब तक उसके सवालों का सही जवाब नहीं दे सकेगी , अत: अपने बारे में उसने वही कहानी डॉली को भी सुना दी , जो कुछ ही समय पहले मैनेजर को सुना चुका था।
सुनकर भौंचक्की रह गई डॉली!
आतंक , भय और मौत के खौफ के चिन्हों के स्थान पर अब उसके चेहरे पर हैरत और अविश्वास के भाव उभर आए , बोली— "क्या सच कह रहे हो , तुम सर्वेश ही हो! ”
"मैंने बिल्कुल सच कहा है डॉली। '"
"अजीब हैरतअंगेज कहानी है तुम्हारी।"
"अब तुम मुझे यह बताओ कि पत्र तुमने इस ढंग से क्यों लिखा था कि पढ़ने में किसी मर्द द्वारा लिखा गया महसूस हो ?"
“तुम्हारे हत्यारे से खुद को पूरी तरह छुपाने के लिए—यह सोचकर कि अगर किसी तरह उन्हें रश्मि बहन को मिले पत्र के बारे में पता लग भी जाए तो पत्र लेखक को वे पुरुषों में ही ढूंढते रहें , किसी नारी की तरफ ध्यान तक न जाए और मैं उनकी पहुंच से बहुत दूर रहूं।"
"अगर तुम इतना डरती थी तो ऐसा पत्र लिखने की जरूरत ही क्या थी ?"
"म...मैं विवश थी। "
"कैसी विवशता ?"
डॉली ने कुछ कहना चाहा , मगर फिर बिना कुछ कहे ही मुंह बंद कर लिया , कुछ क्षणोपरान्त बोली— “ उस विवशता को छोड़ो सर्वेश , बस यह समझो कि दिल के हाथों विवश थी—चाहकर भी मैं खुद को वह पत्र लिखने से न रोक सकी। "
"आखिर क्यों ?"
“छोड़ो भी। "
"नहीं डॉली , मैं किसी भी ऐसे प्रश्न का जवाब मालूम किए बिना न रहूंगा , जिसका ज़वाब तुम्हें मालूम हो , उस विवशता के बारे में बताओ डॉली। "
डॉली किसी दुविधा-सी में फंसी महसूस हुई , बोली— “ जिद मत करो सर्वेश , यकीन मानो कि इस सवाल का तुम्हारी इन्वेस्टिगेशन से कोई सम्बन्ध नहीं है—उल्टे मुझे एक ऐसी बात उगलनी पड़ जाएगी जो तुम्हारी याददाश्त गुम होने से पहले लाख चेष्टाओं के बावजूद भी मैं नहीं कह सकी थी और बहुत पहले ही वह बात मैं तुमसे कभी न कहने का संकल्प ले चुकी हूं।"
“कौन-सी? क्या बात है ?"
“अगर विवश ही कर रहे हो तो सुनो।" एक ठंडी सांस लेने के बाद डॉली ने कहा— "म...मैँ तुमसे मौहब्बत करती हूं।"
"ड...डॉली।" युवक के कण्ठ से चीख-सी निकल गई।
"बस , यही छोटी-सी बात थी , जो मैं तुमसे कभी न कह सकी और कभी न कहने का संकल्प भी ले लिया था। "
सन्नाटे की-सी अवस्था में युवक डॉली को देखता रह गया।
"अच्छा ये बताओ कि तुमने रंगा-बिल्ला को उस शाम सात बजे मेरे पास आते कैसे और कहां से देखा था ?"
"मैं काउंटर पर ही खड़ी थी। '"
"क्या तुमने वे बातें भी सुनी थीं , जो उन्होंने मेरे ऑफिस में मुझसे कीं ?"
"नहीं।”
"वे मुझे ऑफिस से निकालकर कहां ले गए ?"
“मैं नहीं जान सकी , उस घटना के दो हफ्ते बाद रंगा-बिल्ला पुन: ' 'मुगल महल '' में आए और एक केबिन में बैठकर शराब पीने लगे , लेकिन के बाहर छुपकर उनकी जो बातें मैंने सुनीं , उनका सार तुम्हें बता ही चुकी हूं—उससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानती।"
¶¶
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05-18-2020, 02:34 PM,
#50
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"यह तो कोई विशेष ‘क्लू ' न हुआ , इस तरह भला क्या पता लगना था ?" चटर्जी की पूरी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर दीवान ने कहा।
उसी के समर्थन में आंग्रे बोला—"मैं भी चटर्जी से यही कह रहा था , मगर यह किसी की सुने तब न , लाख मना करने पर भी यह मुझे भी गाजियाबाद से शाहदरा खदेड़ ही लाया और शाहदरा स्टेशन से राधू सिनेमा की तरफ जाने वाली सड़क पर स्थित लगभग हरेक दुकान के मालिक को सिकन्दर का फोटो दिखाकर पूछता रहा कि क्या उनमें से किसी ने इसे देखा है। वही हुआ , जिसकी उम्मीद थी—यानि किसी ने यह नहीं कहा कि इसे कोई पहचान सकता है।"
"दुकानदार भला पहचानते भी कैसे—उस सड़क से हर रोज जाने कितने लोग गुजरते हैं और वैसे भी सिकन्दर एक महीने पहले वहां से गुजरा होगा—किसी दुकानदार के द्वारा उसे पहचान लिए जाने की उम्मीद करना ही मूर्खतापूर्ण है।"
हल्की-सी मुस्कान के साथ चटर्जी ने कहा— "कोई आशाजनक परिणाम नहीं निकला है , इसीलिए फिलहाल तुम दोनों को मुझे मूर्ख ठहराने का पूरा अधिकार है।"
आग्रे ने व्यंग्य-सा किया— “ तो क्या तुम्हें इस तरह से कोई परिणाम निकलने की उम्मीद थी?"
"वहां से निराश होकर हम तुम्हारे पास आ गए हैं दीवान।" आंग्रे की बात पर कोई ध्यान न देते हुए चटर्जी ने कहा— "सोचा कि जब शाहदरा तक आ ही गए हैं तो क्यों न देहली में तुम्हारी चाय पीने के बाद ही गाजियाबाद लौटें ?"
दीवान ने कुछ कहने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि मेज पर रखे टेलीफोन की घण्टी बज उठी , रिसीवर उठाकर दीवान ने कहा—"हैलो—थाना रोहतक रोड।"
"मुझे इंस्पेक्टर दीवान से बात करनी है।"
“जी , कहिए—मैं दीवान ही बोल रहा हूं।"
"क्या आप वही इंस्पेक्टर दीवान हैं , जिसने आज से करीब चार महीने पहले रेल की पटरी से 'मुगल महल' के कैशियर मिस्टर सर्वेश की लाश बरामद की थी ?"
"जी हां , आप कौन हैं ?"
"मैं 'मुगल महल ' का मैनेजर नारायण दत्त साठे बोल रहा हूं।"
"सेवा बोलिए।"
“क्या वह लाश मिस्टर सर्वेश ही की थी ?"
“नि:सन्देह , मगर आज चार महीने बाद अचानक ही आप उसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं ?”
"दरअसल आज सर्वेश यहां होटल में आया था।"
“क...क्या कह रहे हैं आप ?" दीवान कुर्सी से उछल पड़ा।
"जी हां , मैं खुद चकित हूं।.....वह खुद को सर्वेश ही कहता था और नि:सन्देह , देखने में हर कोण से वह सर्वेश ही नजर आता था—मैं और मेरा सारा स्टाफ चकित है।"
"आपसे क्या चाहता था ?"
"पुन: अपनी ड्यूटी ज्वाइन करना चाहता था।"
"इस वक्त कहां है ?"
"जा चुका है , शायद घर गया होगा।"
"क्या आप सारी घटना विस्तार से बता सकते हैं ?"
दूसरी तरफ से साठे ने सब कुछ बता दिया। याददाश्त गुम होने और शाहदरा से एक बच्चे के 'पापा ' कहकर उसे अपने घर ले जाने का वृतांत सुनकर दीवान की हालत बड़ी अजीब हो गई , बोला— “तो यह बात उसकी वाइफ ने उसे बताई है कि उसका नाम सर्वेश है और वह 'मुगल महल ' में कैशियर था ?"
"उसके बताए अनुसार तो ऐसा ही है।"
"मैं अभी गांधीनगर स्थित सर्वेश के मकान पर जाकर इस सारे मामले की छानबीन करता हूं मिस्टर साठे।"
"मैं भी यही चाहता हूं, इंस्पेक्टर—नतीजा जो भी निकले , उससे मुझे जरूर अवगत कराइएगा , ताकि मैं निर्णय कर सकूं कि कैशियर की जगह उसे देनी है या नहीं।"
“जरूर सूचित करूंगा मिस्टर साठे , मगर मेरे ख्याल से यह इस अवस्था में सही नहीं रहेगा कि आपके यहां कैशियर रह सके , क्योंकि मैं जानता हूं कि वह सर्वेश नहीं है।" कहने के बाद दूसरी तरफ से किसी जवाब की प्रतीक्षा किए बिना दीवान ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया।
चटर्जी और आंग्रे क्योंकि दूसरी तरफ से बोलने वाले की आवाज नहीं सुन पाए थे इसीलिए कुछ समझे नहीं—हां , दीवान की आंखों में उभर आई चमक , बार-बार उसके चौंकने तथा फोन रखते वक्त उसकी उत्तेजक स्थिति से उन्होंने यह अनुमान जरूर लगाया कि मामला महत्वपूर्ण है। उसके रिसीवर रखते ही चटर्जी ने पूछा— "क्या बात है ?"
"मुझे लगता है कि आप बहुत ज्यादा लकी हैं।"
चटर्जी ने चौंकते हुए पूछा— “क्या मतलब ?"
"मेरे ख्याल से सिकन्दर का पता लग गया है।" '
"क....कैसे—कहां है ?" एक साथ दोनों के मुंह से निकला।
दीवान ने फोन पर साठे से हुई बातें उन्हें विस्तारपूर्वक बता दीं। सुनने के बाद उनके दिलों में अजीब-सी उत्तेजना और जोश भर गया। दीवान ने कहा— "सिकन्दर शाहदरा स्टेशन पर उतरा , वह राधू की तरफ जा रहा था कि सर्वेश का बच्चा उसे अपने घर ले गया।"
"और तब से सिकन्दर सर्वेश बनकर वहीं रह रहा है।" बात आंग्रे ने पूरी की।
चटर्जी बोला— "मगर बड़ी अजीब बात है—सर्वेश के बच्चे ने सिकन्दर को भला अपना 'पापा ' कैसे कह दिया और फिर सर्वेश की वाइफ और मां ने सिकन्दर को सर्वेश कैसे मान लिया?"
"इस बारे में अभी क्या कहा जा सकता है ? सम्भव है कि दोनों की शक्लों में थोड़ा-बहुत साम्य हो , साठे कहता था कि वह हू-ब-हू सर्वेश ही लगता है।"
"क्या तुमने सर्वेश को नहीं देखा था ?"
"मैंने सिर्फ उसकी लाश देखी थी—चेहरा क्षत-विक्षत था।"
"कुछ भी सही , याददाश्त गुम होने और शाहदरे में यही घटना से बिल्कुल स्पष्ट है कि वह सिकन्दर है—और यह भी स्पष्ट है कि अब वह हमारे सामने खुद को सर्वेश ही साबित करने की भरपूर चेष्टा करेगा , मगर मेरा नाम भी चटर्जी है—उसकी उंगलियों के निशान और राइटिंग अब भी मेरी जेब में हैं—चलो दीवान—गांधी नगर चलते हैं।"
"चलो।" कहकर दीवान उठ खड़ा हुआ।
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