Desi Porn Kahani नाइट क्लब
08-02-2020, 12:56 PM,
#41
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
बृन्दा बहुत खौफजदा आंखों से मेरी एक—एक हरकत देख रही थी। उसके बाद मैं वह गिलास लेकर बृन्दा की तरफ बढ़ी।
“अब तुम क्या करोंगी?” बृन्दा के शरीर में झुरझुरी दौड़ी।
“अब यह पानी तुम्हें पिलाया जाएगा। जरा सोचो बृंदा डार्लिंग- एक ‘डायनिल’ लेने के बाद ही तुम्हारा क्या हश्र हो गया था। जबकि अब तो तुम्हें बीस ‘डायनिल’ एक साथ खिलाई जायेंगी। और उसके साथ नींद की गोलियां भी। यह सब टेबलेट्स तुम्हें मौत के कगार तक पहुंचाने के लिये काफी है।”
“नहीं।” बृन्दा आंदोलित लहजे में बोली—”नहीं! तुम यह पानी मुझे नहीं पिला सकती। तुम सचमुच बहुत घटिया हो। तिलक—तिलक तुम इसको नहीं जानते। मैं तुम्हें इसके बारे में...।”
मैं भांप गयी—बृन्दा, तिलक को मेरे बारे में सब कुछ बताने जा रही थी। मैंने एक सैकेण्ड भी व्यर्थ नहीं गंवाया और झटके से उसका मुंह पकड़ लिया।
“बहुत बकवास कर चुकी तुम।” में उसकी बात बीच में ही काटकर दहाड़ी—”यह पानी तो तुम्हें पीना ही पड़ेगा।”
उस क्षण मेरे अंदर न जाने कहां से इतना साहस आ गया था।
मेरे दिल—दिमाग पर कोई अदृश्य—सी शक्ति हावी हो गयी थी, जिसने मुझे इतना कठोर बना डाला था।
बृन्दा ने अपना जबड़ा सख्ती से बंद कर लिया।
“नहीं!” उसने जोर—जोर से अपनी गर्दन हिलाई— “नहीं।”
तिलक राजकोटिया ने आगे बढ़कर उसकी गर्दन कसकर पकड़ ली।
“अपना मुंह खोलो।” वह गुर्राया।
“नहीं।”
उसकी गर्दन पुनः जोर—जोर से हिली।
तत्काल तिलक राजकोटिया का एक प्रचण्ड घूंसा बृन्दा के मुंह पर पड़ा।
बृन्दा की चीख निकल गयी।
उसका मुंह खुला।
जैसे ही मुंह खुला, तुरन्त तिलक ने वहीं ट्राली पर स्टील का एक चम्मच उठाकर उसके हलक में फंसा दिया।
बृन्दा का मुंह खुला—का—खुला रह गया।
उसके हलक से गूं—गूं की आवाजें निकलने लगीं।
नेत्र दहशत से फैल गये।
“शिनाया!” तिलक राजकोटिया, बृन्दा की गर्दन पकड़े—पकड़े चीखा—”जल्दी इसके मुंह में पानी डालो- जल्दी।”
बृन्दा का मुंह अब छत की तरफ था।
तुरन्त मैंने आगे बढ़कर बृन्दा के मुंह में धीरे—धीरे पानी उंडेलना शुरू कर दिया।
उस क्षण मेरे हाथ कांप रहे थे।
उनमें अजीब—सा कम्पन्न था।
वह जोर—जोर से अपनी गर्दन हिलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन तिलक उसकी गर्दन इतनी ज्यादा कसकर पकड़े हुए था कि वह गर्दन को एक सूत भी इधर—से—उधर नहीं हिला पा रही थी।
पानी को उसने बाहर निकालने की कोशिश की, तो उसमें भी वह असफल रही।
जल्द ही मैंने सारा पानी उसे पिला दिया।
•••
पानी पिलाते ही मेरी बुरी हालत हो गयी थी।
मैं एकदम दहशत से पीछे हट गयी।
आखिर वो मेरी जिंदगी की पहली हत्या थी। वो भी अपनी सहेली की हत्या! मेरा दिल धाड़—धाड़ करके पसलियों को कूटने लगा और मैं अपलक बृन्दा को देखने लगी।
स्टील का चम्मच अभी भी बृन्दा के हलक में फंसा हुआ था।
अलबत्ता तिलक ने अब उसकी गर्दन छोड़ दी थी। फिर उसने चम्मच भी निकाला।
वो भी अब कुछ भयभीत था और एकटक बृन्दा को ही देख रहा था।
“य... यह तुम लोगों ने ठीक नहीं किया है।” बृन्दा चम्मच निकलते ही कंपकंपाये स्वर में बोली—”तुम्हें इस हत्या की सजा जरूर मिलेगी। तुम बचोगे नहीं।”
हम दोनों के मुंह से अब कोई शब्द न निकला।
उसी क्षण एकाएक बृन्दा को जोर—जोर से उबकाइयां आने लगीं। उसकी आंखें सुर्ख होती चली गयीं। शरीर पसीनों में लथपथ हो उठा।
फिर वो जोर—जोर से अपना सिर आगे को झटकने लगी।
“इसे क्या हो रहा है?” मैं भय से कांपी।
“लगता है- इसका अंत समय नजदीक आ पहुंचा है।” तिलक राजकोटिया बोला।
तभी एकाएक बृन्दा बहुत जोर से गला फाड़कर चीखी।
उसकी चीख अत्यन्त हृदयविदारक और करुणादायी थी।
“खिड़की—दरवाजे अंदर से कसकर बंद कर दो। इसके चीखने की आवाज नीचे होटल तक न पँहुचने पाये, जल्दी करो।”
मैं फौरन खिड़की—दरवाजे बंद करने के लिये शयनकक्ष से बाहर की तरफ झपट पड़ी।
अगले ही पल मैं बहुत बौखलाई हुई—सी अवस्था में पैंथ हाउस के सभी खिड़की—दरवाजे धड़धड़ बंद कर रही थी।
तभी बृन्दा की एक और हृदयविदारक चीख मेरे कानों में पड़ी।
उसमें रूदन शामिल था।
उसके बाद खामोशी छा गयी।
गहरी खामोशी!
सभी खिड़की—दरवाजे बंद करके मैं वापस बृन्दा के शयनकक्ष में पहुंची। वहां पहुंचते ही मेरा दिल धक्क से रह गया।
तिलक राजकोटिया ने उसका मुंह कसकर पकड़ा हुआ था- ताकि वो चीख न सके। लेकिन बृन्दा की हालत देखकर फिलहाल महसूस नहीं हो रहा था कि वो अब चीखने जैसी स्थिति में है।
उसकी आंखें चढ़ी हुई थीं।
गर्दन लुढ़की पड़ी थी।
तिलक राजकोटिया उसे छोड़कर आहिस्ता से एक तरफ हट गया।
“इसे क्या हुआ?” मेरे दिमाग में सांय—सी निकली।
“यह मर चुकी है।”तिलक की आवाज काफी धीमीं थी।
मैंने तुरन्त उसकी हार्ट बीट देखी।
नब्ज टटोली।
सब कुछ गायब था।
मैं फौरन उससे पीछे हट गयी।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#42
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
मौत को मैंने जिंदगी में पहली बार इतने करीब से देखा था।
उस वक्त मैं यहीं पत्थर का बुत बनी हुई एक स्टूल पर बैठी थी और मुझे चक्कर आ रहे थे।
मेरी आंखें धुंआ—धुंआ थीं।
उस क्षण मेरी जो स्थिति थी- उसे शायद मैं यहां कागजों पर सही शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रही हूँ। आप सिर्फ इतना समझ सकते हैं- मैं बहुत भयभीत थी।
मेरे कानों में रह—रहकर बृन्दा के शब्द गूंज रहे थे।
“यह तुम्हारी फितरत है बद्जात लड़की- फितरत! तुम रण्डी हो- सिर्फ रण्डी!”
“तुम्हारी हैसियत नाइट क्लब की एक कॉलगर्ल से ज्यादा नहीं है।”
मैंने अपने दोनों कानों पर कसकर हाथ रख लिये।
मैंने देखा- तिलक ने अब बृन्दा की लाश को नायलोन की डोरी से आजाद कर दिया था।
फिर उसने बृन्दा को बहुत संभालकर बड़ी ऐहतियात के साथ अपनी गोद में उठा लिया तथा उसे लेकर बिस्तर की तरफ बढ़ा।
उसके बाद उसने उसे धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया।
बृन्दा की आंख खुली हुई थी।
तिलक राजकोटिया ने उसकी वो आंखें बंद की।
थोड़ा—सा पानी उसके मुंह से बहकर गले तक पहुंच रहा था, तिलक ने तौलिये से वो पानी भी साफ किया और उसके बाल समेटकर उसकी पीठ के नीचे सरकायें।
वो एक—एक कदम बड़ी सावधानी के साथ उठा रहा था, जो किसी को भी इस बात का शक न होने पाए कि उसकी हत्या की गयी है।
बृन्दा के चेहरे पर उस समय गजब की मासूमियत दिखाई पड़ रही थी।
बेहद भोलापन!
उसे देखकर ऐसा लगता था- मानों वो गहरी नींद में हो और थोड़ी देर बाद जैसे ही उसकी नींद पूरी होगी, वह अपनी आंखें खोल देगी।
सचमुच मौत एक बेहद खौफ से भरा अहसास है। उस क्षण मेरे अंदर बृन्दा की लाश को देखकर बड़े अजीब—अजीब ख्यालात जन्म ले रहे थे।
तिलक अब मिट्टी के गमले को भी उठाकर बाहर ले गया था।
इसके अलावा भागादौड़ी में जो सामान इधर—से—उधर गिर गया था, उसने उसे भी उठाकर सलीके से यथास्थान रखा।
खुली हुई टेलीफोन डायरेक्ट्री की तरफ बढ़ा। रिसीवर उठाया और उसकी उंगलियों ने धीरे—धीरे कोई नम्बर डायल करना शुरू किया।
“किसे टेलीफोन मिला रहे हो?” मैं मानों नींद से जागी।
“डॉक्टर अय्यर को मिला रहा हूं।” तिलक ने बताया—”आखिर हमें सबसे पहले उसे ही बताना चाहिये कि बृन्दा की मौत हो चुकी है।”
“डॉक्टर अय्यर!” मेरे शरीर में सिहरन दौड़ी, मैं एकदम से चिल्ला उठी—”क्या बेवकूफी कर रहे हो! अगर ऐसे में डॉक्टर अय्यर यहां आ गया, तो वह फौरन भांप जायेगा कि बृन्दा अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरी। बल्कि हम लोगों ने मिलकर उसकी हत्या की है।”
“लेकिन वो कैसे भांप जायेगा? हत्या से जुड़े हुए यहां जितने भी सबूत थे, उन्हें तो मैं पहले ही अच्छी तरह साफ कर चुका हूं।”
“मगर इस दौरान तुम एक बड़ा सबूत नजरअंदाज कर गये हो।” मैंने दांत किटकिटाये।
“बड़ा सबूत!”
“हां, कांच की वह खिड़की तिलक—जिसे तोड़कर हम इस बैडरूम में दाखिल हुए थे। जरा सोचो- जब उस हर्राट डॉक्टर की निगाह उस टूटी हुई कांच की खिड़की पर पड़ेगी, तो वह क्या सोचेगा? क्या वही एक खिड़की हमारी सब कारगुजारियों के ऊपर से पर्दा नहीं उठा देगी?”
“माई गॉड!” तिलक राजकोटिया ने तुरन्त रिसीवर वापस क्रेडिल पर रखा—”यह मैं क्या बेवकूफी करने जा रहा था! टूटी हुई खिड़की की तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं गया।”
“डॉक्टर अय्यर को इन्फोर्मेशन देने से पहले जरूरी है,” मैं बोली—”कि खिड़की के टूटे हुए कांच को बदला जाये।”
“लेकिन इतनी आधी रात के वक्त हमें खिड़की का कांच कहां मिलेगा?” तिलक राजकोटिया के नेत्र सिकुड़े।
“तो फिर जब तक खिड़की का कांच नहीं मिल जाता,” मैं बोली—”तब तक डॉक्टर अय्यर को खबर मत दो। क्योंकि खिड़की का कांच बदले बिना डॉक्टर अय्यर को यहां बुलाना खुद अपने गले पर छुरी फेरने जैसा काम है।”
“खिड़की का कांच तो सुबह मिलेगा।”
“तो फिर हमें सुबह तक ही प्रतीक्षा करनी होगी।”
“इसमें भी एक प्रॉब्लम है।” तिलक राजकोटिया गंभीरतापूर्वक बोला।
“क्या?”
“अगर हम इतनी देर से डॉक्टर अय्यर को बृन्दा की मौत की इन्फ़ॉर्मेशन देंगे,” तिलक राजकोटिया ने एक नई समस्या की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित किया—”तो बृन्दा की लाश ऐंठ जायेगी। और ऐसी स्थिति में डॉक्टर अय्यर लाश को देखते ही भांप जायेगा कि बृन्दा को मरे हुए कई घण्टे गुजर चुके हैं। वह स्थिति हमारे लिये और भी विकट होगी। और भी फसाद पैदा करने वाली होगी।”
“बात तो ठीक है।”
मैं भी अब संजीदा नजर आने लगी।
तिलक राजकोटिया ठीक कह रहा था।
“फिर हम क्या करें?”
हम दोनों सोचने लगे।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#43
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
समस्या वाकई बहुत जटिल थी।
आखिरकार मैंने ही उस समस्या का समाधान निकला।
“एक तरीका है।” मैं उत्साहपूर्वक बोली।
“क्या?”
“पैंथ हाउस में कुल कितने कमरे हैं?”
“सत्तर!” तिलक राजकोटिया ने तुरन्त जवाब दिया।
“और जहां तक मैं समझती हूं, पैंथ हाउस के सभी सत्तर कमरों के खिड़की—दरवाजे बिल्कुल एक साइज के बने हुए हैं।”
“एकदम ठीक बात है।”
“तो फिर मुश्किल क्या है।” मैं फौरन बोली—”हम अभी पैंथ हाउस के किसी पिछले कमरे की खिड़की से शीशा उतारकर इस कमरे की खिड़की पर चढ़ा देते हैं। डॉक्टर अय्यर को तो क्या, उसके फरिश्तों को भी पता नहीं चल पायेगा कि हमने खिड़की का कांच इस तरह भी बदला है।”
“रिअली एक्सीलेण्ट!” तिलक राजकोटिया मेरी प्रशंसा किया बिना न रह सका—”सचमुच तुमहारे दिमाग का जवाब नहीं है शिनाया! मुझे हैरानी है- इतनी मामूली बात मुझे नहीं सूझी।”
दहशत से भरे उन पलों में भी मेरे होठों पर हल्की—सी मुस्कान तैर गयी।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#44
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
फिर कई काम आनन—फानन हुए।
जैसे पिछले कमरे की खिड़की से एक शीशा उतारकर उस कमरे की खिड़की पर चढ़ा दिया गया था।
फिर डॉक्टर अय्यर को बृन्दा की मौत की इत्तला दी गयी।
जिस क्षण तिलक राजकोटिया, डॉक्टर अय्यर को फोन कर रहा था- उसी क्षण मैंने भी नीचे होटल एम्बेसडर में पहुंचकर बृन्दा की मौत का ढिंढोरा पीट डाला।
कुल मिलाकर बृन्दा मर चुकी है- यह बात आधी रात में ही बिल्कुल इस तरह फैली, जैसे जंगल में आग फैलती है।
रात के उस समय तीन बज रहे थे, जब डॉक्टर अय्यर ने बहुत हैरान—सी अवस्था में पैंथ हाउस के अंदर कदम रखा।
उस वक्त आधे से ज्यादा पैंथ हाउस आगंतुकों से खचाखच भरा हुआ था।
होटल का सारा स्टाफ वहां पहुंच चुका था।
इसके अलावा तिलक राजकोटिया के ऐसे कई परिचित जो उसी होटल में ठहरे हुए थे, वो भी सूचना मिलते ही वहां आ गये।
बृन्दा की लाश तब तक बिस्तर से उतारकर नीचे जमीन पर रखी जा चुकी थी और वह बीच—बीच में सुबक उठता था।
डॉक्टर अय्यर ने पैंथ हाउस में पहुंचने के बाद सबसे पहले बृन्दा की लाश का बड़ी अच्छी तरह मुआयना किया और उसके बाद तिलक के बराबर में ही जा बैठा।
“यह सब अचानक कैसे हो गया?”
तिलक राजकोटिया ने एक जोरदार ढंग से सुबकी ली—”सब कुछ एकदम कल की तरह हुआ था- बिल्कुल एकाएक! उसके बहुत तेज़ दर्द उठा था। दर्द इतना तेज था कि उसकी चीखें निकल गयीं।”
“फिर?”
“फिर चीखें सुनकर जब मैं और शिनाया उसके पास पहुंचे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।” तिलक अफसोस के साथ बोला—”तब तक वो हमें छोड़कर जा चुकी थी। सब कुछ सैकिण्डों में हो गया- पलक झपकते ही।”
वो फफक उठा।
तिलक राजकोटिया उस क्षण एक गमजदा पति का इतना बेहतरीन अभिनय कर रहा था कि जो कोई भी उसे देखता- उसे उससे हमदर्दी हो जाती।
“मैं जो दर्द वाली टेबलेट दे गया था, क्या वो टेबलेट उन्हें दी?”
“नौबत ही नहीं आयी।” तिलक बोला—”हमें कुछ करने का उसने मौका ही नहीं दिया। मैंने बताया न- सब कुछ बिल्कुल अचानक हुआ। बल्कि शुरू में तो हम काफी देर तक यही समझते रहे कि वो कल की तरह ही सिर्फ बेहोश हुई है। लेकिन बाद में जब मैंने उसकी नब्ज टटोली, तब मालूम हुआ कि उसका देहावसान हो चुका है।”
“वाकई बहुत बुरा हुआ।” डॉक्टर अय्यर भारी अफसोस के साथ बोला—”ऐन्ना- वरना मैं तो यह सोच रहा था कि मैडम बृन्दा अब ठीक हो जायेगी। उन पर मुरुगन की कृपा हो चुकी है।”
तिलक राजकोटिया फिर धीरे—धीरे फफकने लगा।
“धैर्य रखो तिलक साहब- धैर्य! शायद मुरुगन को यही मंजूर था।”
डॉक्टर अय्यर उसे ढांढस बंधाने लगा।
•••
मैं नीचे फर्श पर ही एक कोने में बैठी थी।
उस क्षण पैंथ हाउस में जो कुछ हो रहा था, वह सब मैं अपनी आंखों से देख रही थी।
अलबत्ता मेरा दिल अभी भी धड़क—धड़क जा रहा था और लगातार किसी अनिष्ट की आशंका का मुझे एहसास करा रहा था। मैं नहीं जानती थी, वह अनिष्ट की आशंका कैसी थी? क्योंकि अभी तक जैसा आप लोग भी महसूस कर रहे होंगे, सब कुछ मेरी मर्जी के मुताबिक हो रहा था। बृन्दा की मैंने जिस ढंग से हत्या करनी चाही थी, बिल्कुल उसी ढंग से हत्या कर डाली थी। और सबसे बड़ी बात ये थी कि उस बेहद हर्राट मद्रासी डॉक्टर को भी उसकी मौत पर शक नहीं हुआ- जोकि मेरी एक बड़ी उपलब्धि थी।
फिर तिलक राजकोटिया भी पूरी तरह मेरी मुट्ठी में था।
कुल मिलाकर सब कुछ मेरी योजनानुसार चल रहा था। फिर भी मैं क्यों आशंकित थी- मैं नहीं जानती थी। इसकी दो वजहें हो सकती थी। या तो मेरे अंदर आत्मविश्वास की कमी थी या फिर यह मेरे जीवन का क्योंकि पहला अपराध था- इसलिये मैं डर रही थी।
मगर दोनों में-से कोई भी वजह न निकली।
वास्तव में मेरे मन जो भय समाया हुआ था, वो ठीक ही था।
धीरे—धीरे भोर का उजाला अब चारों तरफ फैलने लगा था।
पैंथ हाउस में भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी। आखिर तिलक राजकोटिया एक हस्ती था, इसीलिये उसके दुःख—दर्द में शामिल होने वाला जनसमुदाय भी विशाल था। फिर बृन्दा के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी शुरू हुई।
“तिलक साहब!” तभी डॉक्टर अय्यर अपना स्थान छोड़कर खड़ा हुआ और तिलक राजकोटिया से बोला—”मैं आपसे एक बहुत जरूरी बात कहना चाहता हूं।”
उस वक्त वहां चूंकि मातमी सन्नाटा छाया हुआ था- इसलिये डॉक्टर अय्यर के वह शब्द लगभग सभी के कानों तक पहुंचे। सब उसी की तरफ देखने लगे।
मैंने भी देखा।
“बात बहुत जरूरी है।” डॉक्टर अय्यर बेहद संतुलित लहजे में बोल रहा था—”दरअसल बृन्दा ने आज से कोई पंद्रह दिन पहले एक सीलबंद लिफाफा अपनी अमानत के तौर पर मेरे पास रखवाया था और मुझसे कहा था, अगर इत्तेफाक से मुझे कुछ हो जाये, तो मैं यह लिफाफा आपको सौंप दूं तिलक साहब! इसमें उन्होंने अपनी कोई अंतिम इच्छा लिखी हुई है और दरख्वास्त की है कि उनकी यह अंतिम इच्छा जरूर पूरी की जाये।” डॉक्टर अय्यर ने अपनी जेब से एक सफेद लिफाफा निकाला, जिस पर ‘कत्थई लाक’ की सील लगी हुई थी और फिर उस लिफाफे को तिलक राजकोटिया की तरफ बढ़ाया।
“अंतिम इच्छा!” तिलक राजकोटिया चौंका—”कैसी अंतिम इच्छा?”
“ऐन्ना- यह तो उस लिफाफे को खोलने के बाद ही पता चलेगा कि उनकी अंतिम इच्छा क्या थी। इस सम्बंध में उन्होंने मुझे भी कुछ नहीं बताया था- सब कुछ पूरी तरह गुप्त रखा था।”
मेरे जिस्म में सनसनाहट दौड़ गयी।
मुझे अपने हाथ—पैरों में सुइंया—सी चुभती प्रतीत हुईं।
फिर कोई झंझट!
मुझे लगा- जीती हुई वह सारी बाजी एक बार फिर मेरे हाथ से निकलने वाली है।
मेरे दिमाग पर हथौड़े बरसने लगे।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#45
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
तिलक राजकोटिया अब अपना स्थान छोड़कर खड़ा हो गया था और उसने डॉक्टर अय्यर के हाथ से वो सीलबंद लिफाफा अब अपने हाथ में ले लिया था। फिर वो बड़ी हैरान निगाहों से उस लिफाफे को उलट—पलटकर देखने लगा।
उस वक्त उसके आसपास जितने भी आदमी थे, सबकी निगाहें उसी सीलबंद लिफाफे पर केन्द्रित थी।
सबके चेहरों से ऐसा लग रहा था- मानों अभी वह सीलबंद लिफाफा खुलेगा और अभी उसके अंदर रखा कोई टाइम—बम फटेगा।
जबरदस्त टाइम—बम!
“आपने इस लिफाफे के बारे में मुझे पहले क्यों नहीं बताया?” तिलक राजकोटिया बोला।
“दरअसल बृन्दा ने ही मुझे इस सम्बन्ध में सख्त ताकीद की हुई थी कि उनके देहावसान से पहले न तो वह लिफाफा खोला जाये और न ही किसी को उसके अस्तित्व की भनक मिले।”
“बड़े आश्चर्य की बात है।”
“आप लिफाफा खोलकर पढ़िये तो सही तिलक साहब!” भीड़ में खड़ा एक व्यक्ति बोला।
जाहिर है- सबका सस्पैंस से बुरा हाल हो रहा था।
और मेरी हालत के तो कहने ही क्या थे। बृन्दा ने मरने के बाद भी मेरी जान सुंभी की नोक पर अटका दी थी।
बहरहाल तिलक राजकोटिया ने सबके सामने ही उस लिफाफे की सील तोड़ी और उसके बाद लिफाफे को खोला।
लिफाफे में एक लाइनदार कागज रखा हुआ था।
तब तक मैं भी अपने स्थान से खड़े होकर तिलक के बराबर में पहुंच चुकी थी। फिर तिलक राजकोटिया के लगभग साथ—साथ ही मैंने उस कागज पर लिखी इबारत को पढ़ा।
तिलक साहब,
मैं जानती हूं- इस सीलबंद लिफाफे को देखकर आप चौंक गये होंगे, क्योंकि शादी के बाद मैंने आपसे छिपकर कभी कोई काम नहीं किया। जरूरत ही नहीं पड़ी। हम दोनों के सम्बन्ध पारदर्शी कांच की तरह थे, जिसमें हम एक—दूसरे को बहुत साफ—साफ देख सकते थे। यह जिंदगी में मैंने पहला काम आपसे छुपाकर किया है और मुझे उम्मीद है- इसके लिये आप मुझे माफ कर देंगे। दरअसल इस पत्र को आपसे छुपाना मेरी मजबूरी बन गयी थी।
बात ही कुछ ऐसी थी।
ऐसी बात, जिसे मैं कम—से—कम जीते जी आपके सामने उजागर नहीं कर सकती थी। आप नहीं जानते जिस बृन्दा को आप एक सद्चरित्र स्त्री समझते रहे, वो सद्चरित्र नहीं थी।
वह तो चरित्रहीन थी।
अपनी इस जिंदगी में मैंने न जाने कितने पुरुषों के साथ शारीरिक सम्बंध बनाये।
सच बात तो ये है- उन क्षणों को याद करके मुझे अपने इस अंतिम समय में खुद से घृणा होने लगी है, जो हर कुकर्म में मेरा भागीदार रहा।
तिलक साहब, इसीलिये अब मेरी एक छोटी—सी अंतिम इच्छा है। मैं चाहती हूं कि मेरे इस पापी शरीर को पवित्र अग्नि की भेंट न चढ़ाया जाये। बल्कि यह शरीर मैडीकल रिसर्च सेन्टर को दान दे दिया जाये, ताकि डॉक्टर इसे चीरफाड़ करके अपने रिसर्च के काम में ले सकें। मैं जिस बीमारी से मर रही हूँ, उस पर रिसर्च हो। ताकि मेरे बाद कोई और इस बीमारी से ना मरे। हो सकता है- मैंने जो पाप किये हैं, मेरे इस फैसले से वो पाप थोड़े-बहुत धुल जायें।
मुझे उम्मीद है- आप मेरी यह अंतिम इच्छा जरूर पूरी करेंगे।
आपकी सिर्फ आपकी
बृन्दा।
सचमुच वह बड़ा अद्भूत पत्र था।
बहरहाल मैंने राहत की सांस ली। क्योंकि पत्र में कोई बहुत ज्यादा खतरनाक बात बृन्दा ने नहीं लिखी थी।
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#46
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
8
हनीमून
उसके बाद कुछ समय मेरा बिल्कुल पंख लगाते हुए गुजरा।
वह मेरी जिन्दगी के शायद सबसे ज्यादा खुशी से भरे दिन थे। उन दिनों मैं यह बात बिल्कुल भूल चुकी थी कि मैं एक कॉलगर्ल हूं और मेरा अस्तित्व किसी ‘नाइट क्लब’ या फिर फारस रोड के किसी कोठे के साथ भी जुड़ा हुआ है। अक्सर रातों को सोते—सोते मुझे यह जो अहसास दहशत से चौंककर बिठा देता था कि वक्त पड़ने पर मुझे कभी ‘नाइट क्लब’ की झिलमिलाती दुनिया में भी वापस लौटना पड़ सकता है, तो उन दिनों के दौरान मुझे ऐसा कोई अहसास भी न हुआ।
मैं खुद को किसी प्रिंसेस की तरह महसूस कर रही थी।
जिसके पास अब सब कुछ था।
जहां तक बृन्दा के अंतिम संस्कार की बात है, उसमें कुछ परेशानी नहीं आयी थी। तिलक राजकोटिया ने बृन्दा की अंतिम इच्छा पूरी कर दी थी। उसने डॉक्टर से कह दिया, वह बृन्दा के शव को ‘मेडिकल रिचर्स सेन्टर’ को सौंपने के लिये तैयार है। फिर बाकी की सारी कागजी कारवाई डॉक्टर अय्यर ने ही पूरी की। वह पैंथ हाउस में ही कुछ डाक्यूमेण्ट ले आया था, जिस पर उसने तिलक राजकोटिया से सिग्नेचर करा लिये और फिर बृन्दा के शव को सील पैक करके खुद ही अपनी कस्टडी में वहां से ले गया। कुल मिलाकर वो प्रकरण वहीं समाप्त हो गया था।
उसके बाद मेरी जिन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण अध्याय का समय आया- जब मेरी शादी हुई।
आप सोच रहे होंगे- मेरी शादी का इस पूरे घटनाक्रम से क्या सम्बन्ध है?
सच बात तो ये है- शादी के बाद ही मेरी जिंदगी में और तबाही मची।
और हंगामा बरपा हुआ।
बृन्दा की मौत के एक महीने बाद तक तो तिलक राजकोटिया और मैं पैंथ हाउस में बड़ी खामोशी के साथ रहे थे। क्योंकि उसकी मौत के फौरन बाद ही हम दोनों की शादी करना उचित भी नहीं था। अलबत्ता हम दोनों के साथ—साथ रहने के कारण अब हमारे सम्बन्धों की खबरें धीरे—धीरे लोगों की जबानों पर आने लगी थीं। जोकि कम—से—कम मेरे लिये तो बहुत ही अच्छा था।
फिर पूरे एक महीने के बाद हम दोनों ने एक बड़े सीधे—सादे समारोह में शादी कर डाली।
शादी के अगले दिन ही मैं और तिलक राजकोटिया हनीमून मनाने के लिये सिंगापुर के लिये रवाना हो गये थे।
मुझे आज भी वो लॉज खुद याद है- सिंगापुर पहुंचने के बाद हम जिसमें ठहरे थे। वो काफी खूबसूरत लॉज थी। उस लॉज की सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वहां सिर्फ ‘हनीमून कपल्स’ को ही ठहरने की परमीशन दी जाती थी। उस वक्त उस पूरी लॉज में सिर्फ एक आदमी ऐसा ठहरा था, जिसके साथ उसकी बीवी नहीं थी।
और इत्तेफाक से वो भी हमारी ही तरह हिन्दुस्तानी था।
सरदार करतार सिंह!
हां- यही उसका नाम था।
वह लम्बे—चौड़े कद—काठ वाला सरदार था। उम्र मुश्किल से पैंतीस साल के आसपास थी। हमेशा लाल रंग की पगड़ी बांधता था और हर वक्त नशे में धुत्त रहता था।
उस सरदार को वहां ठहरने की परमीशन भी लॉज मैनेजमेंट ने किन्हीं विशेष कारणों से दी थी।
दरअसल दो साल पहले सरदार करतार सिंह की शादी हुई थी और तब करतार सिंह अपनी बीवी के साथ हनीमून मनाने उसी लॉज में आया था। दोनों एक—दूसरे से बेइन्तहां प्यार करते थे। दोनों का वैवाहिक जीवन बेहद खुशहाल था। लेकिन अब उसकी बीवी का देहान्त हो गया था, जिसका सरदार को बहुत जबरदस्त आघात पहुंचा। जब सरदार वहां आया था, तब उसने अपनी मृतक बीवी से वादा किया था कि शादी की दूसरी वर्षगांठ पर वो उसे लेकर उसी हनीमून लॉज में आयेगा। परन्तु ऐसी नौबत ही न आयी। उससे पहले ही उसकी बीवी स्वर्ग सिधार गयी।
तब भी वो वहां अकेला आया था।
इसी कारण वो हमेशा अपनी बीवी की याद में नशे में धुत्त पड़ा रहता था और कभी उसने अपनी बीवी के साथ उस लॉज में जो खूबसूरत लम्हें गुजारे थे- उन्हें याद करता रहता था।
सबको करतार सिंह से हमदर्दी थी।
मैंने भी उसे देखा। मुझे न जाने क्यों उस सरदार की सूरत कुछ—कुछ जानी—पहचानी सी लगी।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#47
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
तिलक राजकोटिया और मैं!
बहरहाल हम दोनों ही शादी करके खुश थे।
बहुत खुश!
उस हनीमून लॉज में जो दिन हमने व्यतीत किये- उन दिनों के दौरान मुझे ऐसी कोई रात याद नहीं आती, जब हमने सैक्स न किया हो।
तिलक राजकोटिया तो मेरे अनिंद्य सौन्दर्य का, मेरी हंसी का, मेरी एक—एक बात का दीवाना था।
उन दिनों सिंगापुर में हनीमून कपल्स के लिये एक नई व्यवस्था भी चल रही थी।
हनीमून मनाने के लिये वहां बाकायदा ‘चार्टर्ड प्लेन’ बुक किये जाते थे। फिर आधी रात के समय वह चार्टर्ड प्लेन जोड़े को बहुत ऊपर अनन्त आकाश में ले जाता तथा फिर सिंगापुर के ऊपर चारों तरफ चक्कर काटता। उड़ते हुए प्लेन में हनीमून मनाने का आनन्द ही कुछ और था।
तिलक राजकोटिया ने पूरे बारह घण्टे के लिये प्लेन बुक किया।
वहां बादलों के बीच अनन्त आकाश में उड़ते हुए हमने हनीमून मनाया।
चार्टर्ड प्लेन की खिड़कियों में—से हमारे आसपास से गुजरते बादल, झिलमिलाते तारे और नीचे जगमग—जगमग करते सिंगापुर का सौन्दर्य दिखाई पड़ रहा था। मुझे एक—एक बात ने बेहद रोमांचित किया।
“कैसा लग रहा है डार्लिंग?” तिलक राजकोटिया ने मेरे गाल का एक प्रगाढ़ चुम्बन लिया।
“अद्भूत तिलक साहब- बेहद अद्भूत!”
हम दोनों उस समय एक—दूसरे की बांहों में बिल्कुल निर्वस्त्र थे।
प्लेन उड़ा जा रहा था।
मैं दीवानी हो रही थी।
पागल!
मैंने जिन्दगी में कभी सोचा भी नहीं था, जिंदगी में मेरे सपने इस तरह भी पूरे होंगे। मुझे इतनी खुशियां भी मिलेगी।
मैंने तिलक राजकोटिया को कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया- बहुत दृढ़ इरादों के साथ- मानों दौलत की उस खान को मैं अब कभी अपने से अलग नहीं होने देने वाली थी।
“तिलक साहब!” मैं आंखें मूंदकर आनंदातिरेक बोली—”सचमुच इन चमत्कारिक क्षणों को मैं कभी नहीं भुला पाऊंगी- कभी नहीं।”
“तिलक साहब नहीं!” तिलक राजकोटिया ने मेरे रेशमी बालों में बड़े प्यार से उंगलियां फिराईं—”अब तुम मुझे तिलक कहा करो, सिर्फ तिलक!”
मैं मुस्कराई।
मैंने भी उसका एक विस्फोटक चुम्बन ले डाला।
“अब तुम मुझे एक बार तिलक कहो।”
“तिलक!”
मैं बड़े मादक अंदाज में हंसी।
तिलक राजकोटिया ने भी हंसते हुए मुझे और भी ज्यादा कसकर अपनी बांहों में समेट लिया।
उसके सीने का दबाव मेरे भारी—भरकम उरोजों का कचूमर निकाल देने पर आमादा था।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#48
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
फिर मेरी खुशियों से इठलाती जिंदगी में एक नया तूफान आया।
शाम का समय था। तिलक राजकोटिया और मैं हनीमून लॉज में ही डिनर कर रहे थे। वह काफी बड़ा हॉल था, हमारे इर्द—गिर्द के कुछेक जोड़े और भी अलग—अलग टेबिलों पर बैठे थे। हर टेबिल पर एक मोमबत्ती जल रही थीं। वह केण्डिल लाइट डिनर का आयोजन था- जो काफी भव्य स्तर पर वहां होता था। उस दौरान पूरे हॉल में बड़ी गहरी खामोशी व्याप्त रहती तथा सभी जोड़े बहुत धीरे—धीरे भोजन करते नजर आ रहे थे।
मैंने देखा- सरदार करतार सिंह भी उस समय हॉल में मौजूद था।
वह हम दोनो से काफी दूर एक अन्य टेबिल पर बैठा था। उस वक्त भी वह शराब पी रहा था और उसकी निगाह अपलक मेरे ऊपर ही टिकी थीं। न जाने क्या बात थी- जबसे मैं उस हनीमून लॉज में आयी थी, तभी से मैं नोट कर रही थी कि वो सरदार हरदम मुझे ही घूरता रहता था। उसके देखने के अंदाज से मेरे मन में दहशत पैदा होती चली गई।
उस दिन इन्तहा तो तब हुई—जब सरदार नशे में बुरी तरह लड़खड़ाता हुआ हम दोनों की टेबिल के नजदीक ही आ पहुंचा।
“सतश्री अकाल जी!”
हम दोनों खाना खाते—खाते ठिठक गये।
सरदार इतना ज्यादा नशे में था कि उससे टेबिल के पास सीधे खड़े रहना भी मुहाल हो रहा था।
अलबत्ता उस वक्त वो संजीदा पूरी तरह था।
“अगर तुसी बुरा ना मानो, तो मैं त्वाड़े कौल इक गल्ल पूछना चांदा हूं।” उस वक्त भी उसकी निगाह मेरे ऊपर ही ज्यादा थी।
“पूछो।” तिलक राजकोटिया बोला—”क्या पूछना चाहते हो?”
“पापा जी- जब से असी इन मैडम नू वेख्या (देखा) है, तभी से मेरे दिमाग विच रह—रहकर इक ही ख्याल आंदा है।”
“कैसा ख्याल?”
“मैनू ए लगदा है बादशाहों, मैं इनसे पहले वी कित्थे मिल चुका हूं। मेरी एना नाल कोई पुरानी जान—पहचान है।”
मेरा दिल जोर—जोर से धड़कने लगा।
तिलक राजकोटिया ने भी अब थोड़ी विस्मित निगाहों से मेरी तरफ देखा।
“पहले कहां मिल चुके हो तुम मुझसे?” मैंने अपने शुष्क अधरों पर जबान फिराई।
“शायद मुम्बई विच!” सरदार करतार सिंह बोला।
“म... मुम्बई में कहां?”
“यही तो मैनू ध्यान नहीं आंदा प्या मैडम!” सरदार ने अपनी खोपड़ी हिलाई—”कभी मेरी बड़ी चंगी याददाश्त थी। लेकिन हुण वाहेगुरु दी मेहर, अब तो मैनू कुछ याद वी करना चाहूं, तो मैनू याद नहीं आंदा। हुन क्या आप मैनू पहचांदी हो?”
“बिल्कुल भी नहीं!” मैंने एकदम स्पष्ट रूप से इंकार में गर्दन हिलाई—”मैंने तो आपकी यहां शक्ल भी पहली मर्तबा देखी है।”
“ओह! फेर तो मैनू लगदा है कि मैनू कुछ ज्यादा ही चढ़ गयी ए। मैं पी के डिग्गन लगा। सॉरी!”
“मेन्शन नॉट!” तिलक राजकोटिया बोला।
“रिअली वैरी सॉरी।”
“इट्स ऑल राइट।”
सरदार करतार सिंह नशे में झूमता हुआ हुआ वापस अपनी टेबिल की तरफ चला गया और वहां बैठकर पहले की तरह शराब पीने लगा।
अलबत्ता वो अभी भी देख मेरी ही तरफ रहा था।
मेरे जिस्म का एक—एक रोआं खड़ा हो गया।
उसकी आवाज सुनते ही मैं उसे पहचान चुकी थी।
सरदार करतार सिंह!
मुझे सब कुछ याद आ गया।
कभी हट्टे—कट्टे और लम्बे—चौड़े शरीर का मालिक सरदार नाइट क्लब का परमानेन्ट कस्ट्यूमर था। सप्ताह में कम—से—कम दो बार उसका वहां फेरा जरूर लगता था और मैं उसकी पहली पसंद थी।
सरदार अत्यन्त सैक्सी था।
वह कम—से—कम नौ—दस घंटे के लिये मुझे बुक करता था और रात को हर तीन—तीन घण्टे के अंतराल के वह मेरे साथ तीन राउण्ड लगाता।
उसकी सबसे बड़ी खूबी ये होती थी कि हर राउण्ड वो नये स्टाइल से लगाता था।
सैक्स की ऐसी नई—नई तरकीबें उसकी दिमाग में होती थीं कि मैं भी चक्कर काट जाती। खासतौर पर उसके जांघों की मछलियां तो गजब की थीं।
“सरदार- क्या खाते हो?” मैं अक्सर उसकी जांघ पर बड़े जोर से हाथ मारकर पूछ लेती।
“ओये कुड़िये- वाहे गुरु दी सौ, यह सरदार दा पुत्तर तेरे जैसी सोणी-सोणी कुड़ियों को ही देसी घी में तलकर चट—चट के खांदा।” वह बात कहकर बहुत जोर से हंसता सरदार।
वो बहुत खुशमिजाज आदमी था।
हंसी तो जैसे उसके खून में मिक्स थी। बात—बात पर खिलखिलाकर हंस पड़ता था।
लेकिन अब तो उसके चेहरे से सारी खुशमिजाजी हवा हुई पड़ी थी। अब तो उस सरदार की सूरत देखकर ऐसा लगता था कि मालूम नहीं, वो सरदार अपनी जिंदगी में कभी हंसा भी है या नहीं।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#49
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
बहरहाल सरदार करतार सिंह के कारण मैं बहुत आंतकित हो उठी।
वह एक नई मुश्किल अब मुझे अपने सामने दिखाई पड़ रही थी।
वो रात मेरी भारी बेचैनी के आलम में गुजरी।
मैं जानती थी, सरदार नशे में था। अपनी बीवी के गम में था। लेकिन देर—सवेर उसे मेरे बारे में सब कुछ याद जरूर आ जाना था।
मैं क्या थी?
मेरी औकात क्या थी?
फिर शायद वो मेरी असलियत का सारा भांड़ा तिलक राजकोटिया के सामने ही फोड़ देता।
इसी बात ने मुझे आतंकित किया। इसी बात ने मुझे डराया। मैं तो यह सोचकर ही सूखे पत्ते की तरह कांप उठती थी कि अगर किसी दिन तिलक राजकोटिया को मेरी वास्तविकता मालूम हो गयी, तब क्या होगा।
रात के उस समय ग्यारह बज रहे थे। तिलक राजकोटिया और मैं हनीमून लॉज में बंद थे तथा सारा दिन के खूब थके—हारे होने के कारण बस सोने की कोशिश कर रहे थे।
तभी किसी ने जोर से दरवाजा खटखटाया।
हम चौंके।
“इस वक्त कौन आ गया?”
मैंने बिस्तर से उठने की कोशिश की।
“तुम लेटी रहो।” तिलक बेाला— “मैं देखता हूं।”
तिलक राजकोटिया अपने खून जैसे सुर्ख रेशमी गाउन को ठीक करता हुआ बिस्तर से उठा और उसने आगे बढ़कर दरवाजा खोला।
सामने लॉज का बैल ब्वॉय खड़ा था।
“गुड इवनिंग सर!”
“वेरी गुड इवनिंग।”
“मुम्बई से आपके लिये फोन है सर, आप तुरन्त नीचे चलें।”
“फोन!”
तिलक राजकोटिया चौंक उठा।
मैं भी चौंकी।
फ़ोन मेरे मोबाइल पर क्यों नहीं आया था?
“तुम यहीं रहो शिनाया!” फिर तिलक राजकोटिया शीघ्रतापूर्वक मेरी तरफ पलटकर बोला—”मैं अभी आता हूं।”
उसके बाद तिलक राजकोटिया नीचे जाने वाली सीढ़ियों की दिशा में झपट पड़ा।
मैं बिस्तर पर अपनी जगह सन्न—सी लेटी रही।
मुम्बई से फोन?
इतनी रात को?
मुझे न जाने क्यों यह सब कुछ काफी अजीब—सा लगा।
मेरा दिल किसी अंजानी आशंका से फिर धड़कने लगा।
कोई पन्द्रह मिनट बाद तिलक राजकोटिया वापस लौटा। उस समय वो बहुत परेशान नजर आ रहा था। उसके माथे पर पसीने की नन्हीं—नन्हीं बूंदें भी थीं। सच बात तो ये है, मैंने तिलक को पहले कभी इतना परेशान नहीं देखा था।
मैं जल्दी से बिस्तर छोड़कर उठी और उसके नजदीक पहुंची।
“क्या बात है।” मैं बोली—”किसका फोन था तिलक?”
“किसी का फोन नहीं था- तुम आराम से सो जाओ।” उसने अपना मोबाइल देखा- “नेटवर्क प्रॉब्लम थी।
इसी कारण किसी ने होटल के नंबर पर फ़ोन किया था।“
“लेकिन तुम एकाएक इतना परेशान क्यों हो गये हो?”
“कहां हूं मैं परेशान?” तिलक राजकोटिका ने जबरदस्ती हंसने की कोशिश की—”बिल्कुल भी परेशान नहीं हूं।”
फिर तिलक राजकोटिका ने अपने माथे पर चुहचुहा आयी पसीने की नन्हीं—नन्हीं बूंदें भी पौंछ डालीं।
“डोंट वरी- देअर इज नथिंग टू फिअर।” तिलक ने मेरा गाल प्यार से थपथपाया।
फिर वो वापस बिस्तर पर लेट गया।
उसके बराबर में, मैं भी लेटी।
परन्तु बिस्तर पर लेटते ही तिलक के चेहरे पर पुनः चिन्ता के बादल मंडराने लगे थे।
“तुम चाहे कुछ भी कहो तिलक!” मैं उसकी तरफ देखते हुए बोली—”मगर सच तो ये है, तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो।”
“दरअसल कुछ कारोबार से सम्बन्धित परेशानी है।” तिलक राजकोटिया बोला—”इसीलिए होटल के मैनेजर ने मुझे यहां फोन किया था। लेकिन कोई ज्यादा बड़ी परेशानी नहीं है, इसीलिए कह रहा हूं, चिन्ता मत करो।”
उसके बाद तिलक राजकोटिया मेरी तरफ से पीठ फेरकर लेट गया।
लेकिन सच बात तो ये है, तिलक मुझसे जरूर कह रहा था कि चिंता मत करो, लेकिन वो खुद चिन्ता में था।
उस रात वह एक बजे तक या फिर उससे भी बाद तक बिस्तर पर करवटें बदलता रहा।
मुझे लगा- कोई खास बात है।
अगर खास बात न होती, तो होटल का मैनेजर उसे वहां सिंगापुर में फोन न करता।
वो भी ‘हनीमून’ के दौरान!
उस रात नींद मुझे भी आसानी से न आयी।
•••
Reply
08-02-2020, 12:56 PM,
#50
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
अगले दिन सुबह हम दोनों लांग ड्राइव पर गये। उस दिन तिलक राजकोटिया का दिल घूमने में भी नहीं था। वो कहीं खोया—खोया था।
शाम को जब हम ‘हनीमून लॉज’ में वापस लौटे, तो हल्का—हल्का धुंधलका अब चारों तरफ फैलने लगा था। लॉज में घुसते ही एक बार फिर सरदार करतार सिंह से हम लोगों का आमना—सामना हुआ।
सरदार करतार सिंह लॉन में गार्डन अम्ब्रेला के नीचे बैठा अभी भी शराब चुसक रहा था और उसकी निगाहें मेरे ऊपर ही थीं।
“सचमुच इस बेचारे के साथ बहुत बुरा हुआ है।” तिलक राजकोटिया बड़े अफसोस के साथ बोला—”मुझे डर है, अगर इसकी हालत ऐसी ही बनी रही, तो कहीं यह सरदार अपनी बीवी के गम में पागल ही न हो जाए।”
“अभी भी तो इसकी हालत पागलों जैसी ही है।” मैं बोली।
“इसमें कोई शक नहीं।”
फिर तिलक राजकोटिया को अकस्मात् न जाने क्या सूझा, वह लम्बे—लम्बे डग रखता हुआ सरदार की तरफ बढ़ गया।
मैंने उसे रोकने की भी कोशिश की- लेकिन जब तक मैं उसे रोक पाती, तब तक वह उसके पास पहुंच चुका था।
“आओ पा जी- बैठो।”
सरदार करतार सिंह शराब पीता—पीता ठिठक गया और वह कुर्सी छोड़कर कोई छः इंच ऊपर उठा।
“मैं तुम्हारे पास बैठने नहीं आया हूं दोस्त, बल्कि आज तुमसे कुछ कहने आया हूं।”
“क्या?”
तब तक मैं भी उन दोनों के करीब पहुंच चुकी थी।
“सरदार जी, तुम्हें इस कदर शराब नहीं पीनी चाहिए।” तिलक रोजकोटिया उसे सलाह देता हुआ बोला—”तुम शायद जानते नहीं हो, आइन्दा जिन्दगी में तुम्हें इसका कितना खौफनाक परिणाम भुगतना पड़ सकता है।”
सरदार के होठों पर व्यंग्य के भाव उभर आये।
“छड्डो वी पा जी!” सरदार बोला—”जो आशियाना इक बार जल गया, तो फेर वो अंगारा दी परवा क्या करेगा। अज दी तरीख विच ए सरदार इक बुझा होया दीया है, हुण चाहे किन्नी बी आंधियां क्यूं ना आवें, किन्ने वी तूफान क्यूं ना आवें, मैन्नू की फरक पैंदा है।”
तिलक राजकोटिया हैरानी से उसकी तरफ देखता रह गया।
जबकि सरदार करतार सिंह ने कुर्सी पर वापस बैठकर शराब का एक घूंट और भरा।
“जिंदगी इतनी सस्ती नहीं है सरदार जी!” तिलक राजकोटिया बोला—”जितनी तुम समझ बैठे हो।”
“तुसी जिन्दगी दा गलत मोल लगा बैठे हो पा जी!” करतार सिंह एकाएक बड़े दार्शनिक अंदाज में बोला।
“क्यों?”
“सच ते ए है, इस पहाड़ी (नामुराद) जिन्दगी ते सस्ता कुछ नहीं है। ए दी कीमत ना ते अठन्नी, ना ते चवन्नी! कुछ भी नहीं। तेरा अन्त न जाणा मेरे साहिब, मैं अंधुले क्या चतुराई!”
मैं बेहद विस्मित निगाहों से उसे देखने लगी।
सचमुच कितना बदल गया था करतार सिंह! वह न सिर्फ हंसना भूल गया था बल्कि उसके विचारों में भी बहुत भीषण परिवर्तन आ चुका था।
उसने गिलास उठाकर फिर शराब के कई घूंट भरे और उसके बाद पहले की तरह ही मुझे देखने लगा।
कमबख्त देखता भी ऐसे था कि नजरें सीधे जिस्म में तलवार की तरह घुसती अनुभव होती थीं।
मैं कांप उठी।
“तिलक- हमें अब चलना चाहिए।” मैं जल्दी से तिलक राजकोटिया का हाथ पकड़ते हुए बोली—”वैसे भी सारा दिन की लाँग ड्राइव के कारण मैं काफी थक चुकी हूँ।”
“चलो।”
हम दोनों लॉज में अंदर की तरफ बढ़ गये।
परन्तु मुझे चलते हुए भी बदस्तूर ऐसा महसूस हो रहा था कि करतार सिंह की निगाहें लगातार मेरा पीछा कर रही हैं।
वह मेरी पीठ पर ही चिपकी हैं।
मेरी इतनी हिम्मत भी न हुई, जो मैं एक नजर पलटकर उसे देख लूं।
मेरे हाथ—पांव बिल्कुल बर्फ के समान ठण्डे पड़े हुए थे।
•••
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,548,849 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 549,764 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,252,581 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 947,111 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,681,947 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,104,063 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,990,946 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,187,090 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,080,576 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 289,523 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)