Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-07-2019, 01:20 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
निशा भी जाग गयी थी, और रसोई मे कुछ कर रही थी, मैं सोफे पर जाकर बैठ गया तो चाची बोली एक बात कहनी थी मैने कहा हाँ कहो ना तो वो बोली कि हम लोग चाहते है कि बहू अब इधर ही रहे मैने कहा हाँ कुछ दिन तो रहेगी इधर ही वो तो चाची बोली मैं चाहती हूँ कि निशा इधर ही रहे मतलब कि अब हम चाहते है कि वो इस घर को संभाल ले , मैने कहा सॉफ सॉफ कहो ना क्या कहना चाहती हो तो

मम्मी रसोई से ही बोली कि तुम कुछ जुगाड़ करवा के इसकी बदली अपने शहर मे ही करवा दो तो सुबह ड्यूटी जाएगी शाम को घर आ जाएगी अब घर बार ये संभाले मैं फ्री होना चाहती हूँ मैने कहा मम्मी निशा से तो जान लो तो मम्मी बोली उस से क्या पूछना आख़िर हमारा भी तो कुछ हक़ है उस पर मैने कहा हाँ पर थोडा टाइम तो लगेगा ही मैं देखूँगा अगर बदली हो सकी तो देख लेंगे निशा रसोई के दरवाजे पर खड़ी मेरी ओर देख कर मुस्कुराइ

रात को रवि और चाचा भी आ गये थे काम पर से तो वो बोले आज फोजी आया है उपर से ब्याह भी रचा लाया हमारे सारे अरमानो पर पानी फेर दिया इसने मैने कहा अब मैं क्या का सकता हूँ सब लेख है तकदीरो के ऐसा ही लिखता तो ऐसा ही सही तो रवि बोला चल कोई ना यार अब तू आ गया है चल आज पार्टी करते है वैसे भी काफ़ी दिनो से गला तर नही किया है मैने कहा यार आप लोग एंजाय करो मेरा मूड नही है तो चाचा बोले ठीक है पर बैठ तो जा काफ़ी बाते करनी है तुझसे

अब तू बड़ा आदमी हो गया है तेरी अलग दुनिया है अब हम गाँव के लोगो से तेरा क्या वास्ता वो लगे मुझे जली-कटी सुनाने मैने कहा अब आप फिर से शुरू ना हो जाओ उधर भी मैं घर पर नही रहता बस इधर से उधर होता रहता हूँ, मैं जो जिंदगी जीता हूँ उस से तो आप बेस्ट हो हर शाम आकर परिवार के पास होते हो और मैं भटकता हूँ इधर से उधर दो पल चैन की सांस मिलती ही नही मुझे तो

अब आप रहने दो , दो दिन के लिए आया हूँ आराम से रहने दो भूख भी लगी है मैं नीचे जा रहा हूँ आप भी जल्दी ही आ जाना फिर खाना खाते है, मैं नीचे आया और खाना माँगने लगा तो भाभी बोली तुम अपने कमरे मे जाओ वही खाना लेकर आती हूँ मैं अपने कमरे आया तो देखा कि पूरे कमरे मे मोमबतियो की रोशनी बिखरी पड़ी थी हल्की हल्की सी खुश्बू थी शायद सेंट छिड़का गया था

कुछ देर बाद भाबी और निशा खाना लेकर उधर आई और भाभी बोली मैने सोचा कि क्यो ना तुम लोग आज का डिन्नर साथ ही करो तो मैं इतना ही इंतज़ाम कर पाई मैने कहा भाभी इसकी क्या ज़रूरत थी तो वो हँसते हुवे बोली मेरा प्यारा देवर दुल्हन लेकर आया तो कुछ तो स्पेशल होना चाहिए ना भाभी की बात सुनकर निशा बुरी तरह से शरमा गयी और वहाँ से जाने ही लगी थी कि भाभी ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली तुम कहाँ चली प्यारी देवरानी जी

बैठो अपने सैया जी पास मैं जाती हूँ कुछ चाहिए तो आवाज़ लगा देना भाभी चली गयी और हम दोनो वही खड़े रहे दरवाजे के पास,ना जाने मुझे उस लम्हे मे क्या हुआ मैने निशा की कमर मे हाथ डाला और उसे अपने सीने से लगा लिया वो मेरी बाहों मे आते हुवे बोली छोड़ो ना क्या कर रहे हो कोई आ जाएगा मैने कहा आने दो मैं उसकी कमर को सहलाने लगा आज से पहले मैने कभी उसके साथ ऐसा कुछ नही किया था तो वो बोली खाना ठंडा हो रहा है

फिर हम डिन्नर टेबल पर आ गये थे, वो मेरे लिए बहुत ही सुखद पल थे, लगा कि ये लम्हा बस इसी पल रुक जाए हमेशा के लिए खाने के बाद मैं नीचे आकर बाते कर रहा था ऐसे ही रात काफ़ी हो गयी थी फिर सब एक एक करके खिसक लिए बचे मैं और निशा रसोई मे वो पानी का जग भर रही थी मैने फ्रिड्ज खोला तो देखा कि आइस्क्रीम पड़ी थी मैने वो बॉक्स बाहर निकाल लिया तभी मुझे शरारत सूझी

मैने निशा को खीच कर दीवार की साइड पर लगा दिया उसकी साँसे मेरी सांसो से टकराने लगी हम दोनो इस तरह एक दूसरे के पास थे की बीच मे एक इंच की दूरी भी ना थी अपनी तेज होती सांसो को समेट ते हुवे वो काँपति हुवी आवाज़ मे बोली ये. क्या कर कर रहे हो छोड़ो ना मुझे तो मैने कहा बस दो मिनिट रूको मैने थोड़ी सी आइस क्रीम उसको होटो से लगा दी निशा मेरी बाहों मे कसमसाने लगी थी

और अगले ही पल मेरे होठ उसके होटो से टकरा गये थे हम दोनो के लिए ही ये बहुत कीमती मोमेंट था लाइफ का उसके होठ थोड़ा सा खुल गये और उसने अपनी बाहों मे मुझे जाकड़ लिए ये हमारा पहला चुंबन था जिसने प्रेम का बीज बो दिया था, कुछ याद नही कितनी देर तक हम किस करते रहे फिर एक आहट से हम दोनो अलग हुए चाची थी जो किसी काम से रसोई मे आ रही थी वो हमे देख कर बोली सोए नही अभी तक तुम लोग मैने कहा जी बस जा ही रहे थे

सीढ़ियो पर निशा मुझे चुटकी काट ते हुवे बोली क्या करते हो तुम मरवाओगे क्या चाची देख लेती तो सोचती बेटे बहू बेशरम है मैं मन ही मन हंसा और सोचा कि तुम्हे कैसे बताऊ कि चाची खुद कितनी बेशरम है कमरे मे आ गये मैने दरवाजा बंद कर लिया वो बोली मुझे चेंज करना है मैने कहा करो ना किसने रोका है वो बोली बल्ब बंद करो थोड़ी देर मैने कहा ना ऐसे ही कर्लो ना

वो बोली मानो ना करो लाइट बंद मैने कहा ना आज ऐसे करो चेंज मुझसे कैसा परदा तो वो बोली ठीक है मैने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ा और खेचने लगा वो बोली पता नही क्यो मुझे थोड़ी शरम सी आ रही है मैं कहा वो क्यो भला अपने बीच तो कुछ भी नही छुपा तो वो बोली वो तो है पर ऐसा कभी किया भी नही ना मैने कहा तो फिर अब क्या वो बोली जो नही किया करते है और क्या मैने उसको अपनी बाहों मे घर लिया ऐसी फीलिंग आज से पहले तो कभी नही आई थी ये कुछ लम्हे थे जिनके बारे मे मैं जानबूझ कर यहाँ नही लिख रहा हूँ बस इतना कहता हूँ वो रात एक नयी कहानी की शुरुआत करने को आई थी

सुबह होने मे थोड़ी देर थी, पर मेरी आँख खुल गयी थी वैसे सोया तो मैं था ही नही बस यू समझ लो कुछ देर के लिए पलके झपकाई हो जैसे, अपने कपड़े पहन कर मैं बाहर आया मोहल्ला पूरी तरह से सन्नाटे मे डूबा हुवा था गला कुछ सूख सा रहा था तो एक पेग ही बना लिया चुस्किया लेते हुए मैं बस आस पास के घरो को ही देख रहा था कुछ के बाहर बल्ब जल रहा था कुछ अंधेरे मे डूबे थे, दारू की घूँट जैसे मेरे गले को चीर ही डालने वाली थी

तभी ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मुझे अपने आगोश मे भर लिया और वो खुसबुदार साँसे मेरे कानो के पास जो टकराई तो पता नही क्यो मैं बस मुस्कुरा ही पड़ा एक बार फिर से चली आई थी वो मेरे लिए आज तो बड़ी जल्दी उठ गये पूछा उसने मैने कहा सोया ही कब था मैं मेरी नींद तो तुम ले गयी हो तो वो खिल खिलाते हुवे हँसने लगी और वही मुन्डेर पर बैठ गयी

फिर वो बोली कितने दफे समझाया तुम्हे मैं हर पल तुम्हारे पास ही तो हूँ ये जो तुम्हारे सीने मे जो दिल धड़क रहा है उसमे ही तो बस्ती हूँ मैं अब तुम्ही बताओ भला अपनी धड़कन को कोई जुदा कर पाया है भला मैने कहा इन बातों से मत बहलाओ मुझे तो मुझे अपने पास बैठा ते हुवे बोली वो कि फिर तुम ही बता दो कैसे खुश करू तुमको मैने कहा मुझे भी ले चलो अपने पास

बड़ी ही मासूमियत से बोली वो कहाँ ले जाउ हर पल तो मेरे साथ ही हो तुम , मैने कहा तो फिर क्यो नही हो मेरे साथ तुम मेरी बाहें तरस रही है तुम्हे अपन आगोश मे लेने को , क्या गुनाह किया मैने जो ये सितम सहना पड़ा मुझे बस एक छोटा सा सपना ही तो देखा था तुम्हारे साथ अपना घर बसाने को सब लोग शादी करते है मैने भी ऐसा ही चाहा था कॉन सा कुछ ऐसा माँग लिया था उस उपरवाले से जो वो मेरी मन्नत को पूरा कर ही ना सका

मैने गिलास उठाया और दो चार घूँट और भरी तो वो बोली क्यो अपना कलेजा जलाते हो एक नयी ज़िंदगी अपनी बाहें फैलाए तुम्हारे सामने खड़ी है एक नयी शुरुआत करो मैने कहा कितनी बार बताऊ तुम्हारे बिना अधूरा हूँ मैं वो बोली बस यही बात तो तुम्हारी मुझे सबसे बुरी लगती है बिल्कुल ज़िद्दी बच्चे की तरह हो तुम, समझते ही नही हो देखो मैं तो जी रही हूँ ना तुम्हारे साथ ही तो हूँ मैं

जब तक तुम हो तब तक मेरा नाम आएगा तुम्हारे एक फसाने मे तुम्हारी हर सांस को जैसे मैं ही तो ले रही हूँ चिड़ियो की चहचहाट होने लगी थी वो बोली जाती हूँ मैं और अगले ही पल बस मैं अकेला खड़ा था उस जगह पर अपने उस जख्म के साथ जो शायद कभी नही भरने वाला था , ये सुबह भी बड़ी कमाल होती है अपने आप मे बड़ा ही अनोखा नज़ारा होता है दिन को निकलते हुवे देखना
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10-07-2019, 01:20 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
तभी साइड वाले कमरे का दरवाजा खुला और चाची अंगड़ाई लेते हुए बाहर आई और मुझे देख कर बोली बड़ी सुबह उठ गये रात को नींद नही आई क्या अच्छे से मैने कहा हाँ उठ गया वो बोली चाइ बनाती हूँ थोड़ी देर मे मैने उनका हाथ पकड़ा और उनको अपनी बाहों मे खीच लिया और बोला चाइ ही पिलाओगी या कुछ और भी तो वो बोली अब तो दुल्हन ले आए हो अब मुझ बूढ़ी मे क्या रखा है तो मैने कहा दारू तो पुरानी ही ज़्यादा नशा देती है तो वो बोली दिन मे देखती हूँ कुछ

मैं कमरे मे गया तो निशा अभी भी सोई पड़ी थी उसके माथे पर किस किया मैने पर उसको जगाना नही चाहता था तो मैं नीचे आ गया , पुराने कमरे मे कुछ समान पड़ा था तो उसको ही देखने लगा तो आर्मी ड्रेस हाथ लग गयी वो एनडीए के दिन वो देहरादून की शामे, कश्मीर की पोस्टिंग सबकुछ जैसे कल ही की तो बात लगती थी पर ज़िंदगी मे बहुत आगे बढ़ गया था

मैने उस ड्रेस पर ज्यो ही मैने अपना हाथ फेरा, होटो पर एक मुस्कान सी आ गयी, नहाने का मूड नही था मेरा सुबह सुबह थोड़ी सी ठंड भी लग रही थी तो एक जॅकेट सी डाल ली और बाइक लेकर निकल गया मैं अपने स्कूल की ओर सहर कब आ गया पता ही नही चला अभी टाइम नही हुवा था स्कूल लगने कर चौकीदार जानता था तो एंट्री मे कोई प्राब्लम नही थी अपनी उसी 12थ बी क्लास मे जाकर बैठ गया लगा कि जैसे आज भी वही का स्टूडेंट हूँ

ये कहने को तो स्कूल था पर मेरी ज़िंदगी मे इसका बहुत बड़ा रोल था यहा पर ही मैने अपनी आने वाली जिंदगी को सजाने की नीव रखी थी यही पर मेरी ज़िंदगी ने एक ऐसा मोड़ लिया था यही पर मेरी हसरते जवान हुई थी होश जब आया जब निशा का फोन आया पूछा कहाँ हो तुम तो मैने कहा आता हूँ जल्दी ही वैसे भी आज का ही तो दिन था बस अगले दिन मिशन के लिए निकल जाना था

ये शायद पहली बार था जब मेरा जाने का मन नही कर रहा था पर मेरे चाहने ना चाहने से क्या होना था, निशा कुछ दिन घर पर ही रुकने वाली थी मैने उसे और घरवालो को अच्छी तरह से समझा दिया था कि अगर निशा के घरवाले या गाँव का कोई भी व्यक्ति मेरी और निशा की शादी के बारे मे कोई भी हंगामा करे तो सीधा पोलीस बुला ले किसी से दबने या डरने की कोई ज़रूरत नही

वो दिन पता नही कैसी बेचैनी मे गुजरा मेरा, वैसे तो हर दिन ही मेरा बेचैनी मे गुज़रता है पल पल मैं बस डर के ही तो जीता रहता हूँ, खुद की परवाह ना भी करू तो घरवाले है जो दूर होकर भी हर पल अपने पास ही लगते है मैं एक बहुत ही डरपोक इंसान हूँ, एक नाकाम इंसान जी ज़िंदगी मे कभी कुछ साबित नही कर पाया सिवाय हारने के मैने कुछ किया ही नही

आज भी जब मैं ये अपडेट लिख रहा हूँ, उलझा हूँ मैं अपने ही ख्यालो मे बड़ी शिद्दत से रोने को जी कर रहा है पर क्या करू ये साले आँसू भी आँखो से सूख चुके है, बाहर खिड़की से देखता हूँ तो हल्की हल्की सी बरफ गिर रही है उपरवाला भी पता नही कब सुख की सांस लेने का मौका देगा,इस छोटी सी ज़िंदगी ने ना जाने कैसा खेल दिखाया है कि डरने लगा हूँ मैं कि कही अब किसी और अपने को ना खो दूं

इतनी बड़ी दुनिया मे जब नज़र उठा कर देखता हूँ तो पता चलता है ज़िंदगी मे आए तो कई लोग पर फिर भी ये मुसाफिर हर मोड़ पा अकेला ही खड़ा रहता है ये मेरी ख़ानाबदोश ज़िंदगी ना जाने कब वो बरसात लाएगी जो मेरी प्यासी रूह पर इस कदर बरश जाएगी कि सदियो की मेरी प्यास बुझ जाएगी हम सब अपने अपने अंदाज से ज़िंदगी जीते है कभी हँसते है कभी रोते है पर मैं ना जाने किस तरह से जीता हूँ

जिस्म पर पड़े ये ज़ख़्मो के निशान अपने आप मे एक इबारत सी लिख ते है जिन्हे बस मैं ही समझता हूँ, और फिर एक पालतू कुत्ते से ज़्यादा औकात भी नही मेरी दिल मे बहुत सी बाते है जो मैं बताना चाहता हूँ पर कोई है ही नही जिस से मन की बात कह सकूँ जब भी दिल का बोझ बढ़ जाता है बैठ जाता हूँ किसी नदी किनारे या किसी पेड़ के नीचे निकालना चाहता हूँ अपनी भडास पर किस्पर कोई है ही नही

ये ज़िंदगी है और मैं हूँ, ऐसे ऐसे लोगो को देखा है जो हैवानियत की हद को पार कर गये है पर फिर भी सुख से जीते है कोई परेशानी नही कुछ नही और एक मैं हूँ जहा भी कोई मंदिर-मस्जिद मिला वही पर सर झुका लिया उसका हर एक करम किया लोग कहते है सबकी दुआ उसके यहा पर जाकर कबूल होती है सबको वो ही देता है फिर मुझसे ये कैसी नाराज़गी , आख़िर ऐसा कॉन सा पाप कर दिया मैने जिसका प्रायश्चित की किस्ते चुकाता फिर रहा हूँ मैं

दिन पे दिन बीत ते चले जाते है पर मुझे मेरी रूह को कभी चैन नही मिलता है आज घर पे ये हो गया आज ये हो गया इन हालत से अब हारने लगा हूँ मैं कैसे समझाऊ खुद को कितनी मन्नते माँगी उसके दर पर , हर एक चोखट पर नाक रगडी पर उसका दिल कभी पासीजता ही नही, आज मेरा दिल इतना भरा है कि बस समझो फटने को बेताब हूँ मैं पर करूँ क्या कुछ समझ ही नही आता है

जब अपने हिस्से की खुशियो को दूसरो की झोली मे देखता हूँ तो दिल करता है कि बंदूक लूँ और सब कुछ मिटा दूं दो पल मे ही पर फिर खुद को रोक लेता हूँ पहले मैं कहता था कि ले ले जितनी परीक्षा लेनी है मेरी ले ले कभी तो तेरी मेहर होगी ही मुझ पर , पर अब मैं हारने लगा हूँ, उसके आगे सर झुकाता हूँ तो श्रद्धा से नही बल्कि डर से अपने आप से भागने की नाकाम सी कोशिश करता हूँ

पर भाग नही पाता हू आख़िर सच्चाई से कभी कोई भाग कहाँ पाया है, उपर से कभी कभी ये यादे इतनी हावी हो जाती है कि बस फिर शराब ही सहारा होती है पर फिर ये भी उस आग को ऐसे भड़काती है की तिल तिल करके जलता हूँ , दो महीने पहले की बात है बहुत खुश था डॉक्टर ने कह दिया था कि बच्चे की डेलिवरी होते ही वाइफ की तबीयत भी ठीक हो जाएगी खुश था मैं घरवाले भी खुश थे सब लोग तैयारिया कर रहे थे एक नन्हे से मेहमान के आने का

बॉस को 15 दिन की छुट्टी के लिए बोल दिया था बस एक दो रोज मे इस्तांबुल से वापिस अपने घर को चले जाना था , दिल मे हज़ारो उमंग थी कि ये करूँगा वो करूँगा आख़िर पहली बार पिता बन ने का सुख ही अलग होता है पर उस उपरवाले से ये देखा ना गया , काम कर रहा था मैं कि मेरा फोन बजा घर का नंबर देखते ही मैं समझ गया था कि खूसखबरी ही होगी पर मुझे क्या पता था कि वो एक मनहूस दिन था जब मेरे कानो ने वो खबर सुनी

बच्चा पेट मे ही मर गया था और निशा भी थोड़ी देर बाद …………….. ………………………………… थोड़ी देर बाद मुझे छोड़ कर इस दुनिया से रुखसत हो ली थी, समझ ही नही आया कि कैसे बोलू , कैसे रिएक्ट करू आसान नही था मेरे लिए खुद को संभालना और सच कहूँ तो संभाल नही पाया जैसे तैसे करके घर आया जिस घर मे कहाँ खुशियो की तैयारिया हो रही थी और अब वहाँ पर मातम पसरा पड़ा था, वाइफ के अंतिम संस्कार के बाद जब उस छोटू को मिट्टी देने के लिए गया तो गड्ढा खोदते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे उसको दफ़नाने के पहले उसकी सूरत को देखा मैने उसको अपने सीने से लगाया मैने बिल्कुल मुझ जैसा ही था वो छोटा सा नाज़ुक सा लगता था जैसे की अभी बोल पड़ेगा पर ये भी एक सितम था उसका लोग कहते है कि उपरवाला जो करता है अच्छे के लिए करता है पर सिर्फ़ मैं ही क्यो जो हर बार पे करता है इसका जवाब दे कोई मुझे हर बाज़ी को बस मैं ही क्यो हारता हूँ

जब भी किसी छोटे बच्चे को देखता हूँ तो बड़ी याद आती है अपने बच्चे की, बड़ी मुस्किल से रोकता हूँ खुद को

वो दिन बड़ा ही अजीब सा था मेरे लिए जाना था मुझे समझता था पर दिल कर रहा था कि रुक जाउ वही पर, पर इस मुसाफिर का सफ़र थम जाए ये अब कहाँ मुमकिन था वो शाम बड़ी ही भारी थी मुझ पर निशा नीचे घरवालो के साथ बैठी थी मैं छत पर गुम्सुम गुम्सुम सा बॅग मे कपड़े डाल रहा था तभी भाभी आ गयी बॅग को देख कर बोली कहीं जाने की तैयारी हो रही है क्या तो मैने कहा हाँ जान जाना है अर्जेंट काम है दो दिन की ही छुट्टी थी

भाभी ने कहा आओ बैठो मेरे पास ज़रा बाते करते है मैनी कहा कुछ कहना है भाभी तो वो बोली मनीष मैं तुमको जब से जानती हूँ जब तुम बच्चे थे और फिर मैं तुम्हारी भाभी से ज़्यादा तुम्हारी दोस्त भी हूँ तुम्हारा कुछ भी मुझसे कहाँ छुपा है पर मुझे लगता है कि तुम खुश नही हो कुछ ना कुछ चल रहा है तुम्हारे अंदर ही अंदर देखो ये बात तुम भी अच्छे से जानते हो कि जो बीत गया है हम लाख कोशिस कर ले वो कभी वापिस नही आएगा

तुम खुशनसीब हो जो तुम्हारे पास निशा जैसी लड़की है जी हर कदम पर गिरने से पहले ही तुमको संभाल लेगी फिर क्या बात है अब तो काकी जी और तुम्हारे बीच की दूरिया भी नही रही है, कम से कम मुझे तो बता दो कि क्या बात है क्या है देखो तुम्हारी इस झूठी मुस्कान के पीछे जो दर्द छिपा है वो मैं महसूस करती हूँ मैं अपने देवर को यू टूट कर जीता नही देख सकती किसी को कोई फरक पड़े या ना पड़े पर मुझे तकलीफ़ होती है

दिन रात दिल मे बस एक आस के सहारे ही जिया कि बस कुछ दिनो की बात है फिर शादी करलूंगा जब भी देखा उसको दुल्हन के जोड़े मे देखा हर इंसान की यही आरजू होती है दुनिया प्यार करती है बस मुझे ही ना मिला मेरे हिस्से का प्यार ठीक है मेरे पास निशा है आप हो पर फिर भी मेरे दिल मे कुछ कमी सी है एक खाली पन सा है जिसे महसूस तो सभी करती है पर कोई बता ता नही कि कैसे भरूं इसको जानती हो रातो को नींद नही आती है दिल रोता है पर आँसुओ को नही आने देता मैं आप ही बताओ मैं करूँ तो क्या करूँ

हर रोज मैं अपने सीनियर ऑफिसर्स को बोलता हूँ कि मुझ वापिस मेरी यूनिट भेज तो पर कोई नही सुनता मेरी जी करता है कि लात मार दूं नोकरी को पर इसके बिना गुज़ारा भी तो नही आम आदमी का अब कल सुबह की फ्लाइट है फिर ना जाने कब आना हो या ना भी आ पाऊ तो भाभी बोली ऐसा ना कहो हमारा तुम ही तो सहारा हो इस घर को देखो तरस गया है तुम्हारी वो मस्ती देखने को पहले जैसा कुछ भी तो नही है देखो तुम खुश नही रहोगे तो हम सब भी कैसे खुश रह पाएँगे

मैने कहा भाभी मैं बहुत कोशिश करता हूँ हर रोज एक नया रास्ता चुनता हूँ पर घूम फिर कर उसी जगह पर आकर रुक जाता हूँ हम बात कर ही रहे थे कि तभी मम्मी ने भाभी को आवाज़ लगाई तो वो नीचे चली गयी और मैं अपना सामान डालने लगा इस मुसाफिर को तो अपना सफ़र जारी रखना था क्या हुवा जो दोपल रुक गये पर अपनी मंज़िल तो जैसे थी ही नही



मैने कहा भाभी , पता नही क्यो पर ऐसा लगता है कि कभी मैं वो ज़िंदगी जी ही नही पाया जो मैं जीना चाहता था शुरू शुरू मे सब अच्छा लगता था पर भाभी अब लगता है कि सबकुछ एक पल मे ठहर जाए सच कहूँ तो मुझे कुछ भी अच्छा नही लगता है मैं परेशान हूँ हर पल पर मुझे नही पता क्यो मैं भी इस बात को समझता हूँ कि मिथ्लेश अब कभी नही आ पाएगी पर भाबी ये भी सच है कि हर पल मेरी रूह मे जी रही है वो कही ना कही


रात आधी से ज़्यादा गुजर गयी थी अब जाना था मैने सोचा कि चुपके से निकल जाता हूँ तो धीरे से अपने बॅग को उठाया और किवाड़ को खोल कर चला ही था कि पीछे से उसने पुकारा जा रहे हो बिना बताए निशा भी शायद सोई नही थी मैने बिना पीछे मुड़े कहा जाना तो है ही फिर क्यो रोकती हो उसने कहा सड़क तक चलूं साथ मैने कहा रात बहुत है यही पर रहो उसने कहा एक बार गले नही लगोगे मैने कहा जाने दे यार और मैने अपने कदम आगे को बढ़ा दिए ना जाने क्यो नही देखा मैने पीछे मूड कर
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10-07-2019, 01:21 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
भाभी आपसे कुछ भी नही छुपा है पहले बहुत अच्छा लगता था ज़िंदगी मे कुछ भी कमी नही लगती थी आपके साथ बिताए हर लम्हे को जी भर कर जिया मैने ज़िंदगी मे कई लड़किया आई गयी मैं भागता ही रहा आप जानती हो कि मैं कभी भी फ़ौजी नही बन ना चाहता था नोकरि करनी थी बस इसलिए की मिथ्लेश के साथ घर बसा सकु क्योंकि वो कहती थी कि बिना नोकरी के क्या खिलाओगे मुझे कैसे पूरा करोगे मेरे ज़रूरतो को

आप जानती हो कि कैसे बस किस्मत से ही मेरा सेलेक्षन हुआ था टॉपर नही था मैं ना जाने कैसे नीचे वाली लाइन मे नाम आ गया था पर ठीक ही तो था ट्रैनिंग मे जब हाड़ तुड़ाई होती थी तो हर रोज मेरा दिल करता था कि ट्रैनिंग सेंटर से भाग जाउ पर बस दिल मे यही एक आस थी कि नोकरि होगी तो ही ब्याह होगा मिता से मुझे कितनी बार सज़ा मिली मस्ती भी की पर जैसे तैसे करके पास आउट कर ही गया तो हर ज़ख़्म को आँख मीच कर झेल लिया वो 5 साल मैं ही जानता हू कैसे जिए

“मैने कभी सोचा ही नही था कि ज़िंदगी ऐसी होगी और सच कहूँ तो अब फरक भी क्या पड़ता है हम सब बस कठपुतलिया ही तो है उस उपरवाले के मनोरंज की जब तक उसका दिल किया वो खेल लेता है और फिर बस रह जाती है तो कुछ यादे जो गाहे-बगाहे आकर हमे तडपा देती है मैं लाख कोशिस करता हूँ पर इन यादो से दूर भाग भी तो नही पाता हूँ “

“बभी, मैने क्या गुनाह किया बस इतना ही तो चाहता था कि मिथ्लेश के साथ अपनी छोटी सी ग्रहस्ती बसाऊ क्या गुनाह था मेरा इसके अलावा कि मैं मोहब्बत कर बैठा आख़िर क्या कसूर था मेरा जो इतनी बड़ी सज़ा मिली और वो तो दम भरती थी मेरी मोहब्बत का फिर क्यो वो भी मुझे छोड़ कर चली गयी क्या हमारे प्यार की डोर इतनी कच्ची थी तो फिर क्यो उसने वादा किया था जब वो निभा ही ना सकी ”

“मैं जानता हूँ कि आप सबलोगो को भी दुख है मेरी वजह से पर मैं करूँ भी तो क्या सला सबको अपनी अपनी पड़ी है मेरी कोई नही सुनता आख़िर मेरे सीने मे भी एक दिल है जो धड़कता है दर्द होता है

बहुत भाभी पर साला कोई नही समझता कितने दिन हुए मम्मी बात ही नही करती बस ज़िद पे अड़ी है आख़िर ऐसी भी क्या ज़िद घर छूट गया जब मम्मी पास से चली जाती है तो दिल रोता है आख़िर किस ज़िद के लिए मुझसे मूह मोड़ कर बैठी है , जिसके लिए ज़िद थी वो तो चली गयी ना ”

“वो कहती थी मनीष हमारा एक छोटा सा घर होगा छत की मुंडेर पर बैठ कर मैं तुम्हारी राह देखा करूँगी जब तुम्हे छुट्टी नही मिलेगी तो मैं रूठ जाया करूँगी जब तुम आओगे तो दूर से तुमहरे कदमो की आहट को पहचान लूँगी और भाग के सीधे तुम्हारे गले लग जाउन्गी देखो भाभी मैं आ गया क्यो नही लगती मेरे सीने से आके वो ”

“क्यो, तड़पाती है मुझे जब कहती थी कि इंतज़ार करूँगी तो क्यो नही किया आख़िर क्यो मुझे इस जमाने के आगे यू रुसवा कर गयी वो क्या इसी लिए उसने मेरा हाथ थामा था कि एक दिन यू हर बंधन तोड़ जाएगी उसने एक बार भी नही सोचा कि मनीष कैसे जिएगा उसके बिना वो कहती थी कि हर सुबह मेरे माथे पे चूम के मुझे जगाया करेगी अब क्यो नही आती वो ”

आँखो से आँसुओ का सैलाब बह चला था मेरा दर्द पानी का कतरा बन कर आँखो से बह रहा था साला मोहब्बत ही तो की थी दुनिया करती है हम ने कर ली तो कौन सा गुनाह कर दिया था दिल मे दर्द था गुस्सा था पर साला कोई पास बैठे तो सही दो पल हमारी भी सुने कि क्या कह रहा हूँ भाभी ने मेरे सर को अपनी गोद मे रख लिया और मेरी पीठ को सहलाने लगी मेरे आँसुओ को पोन्छा पर बोली कुछ नही


शायद वो भी जानती थी कि इस दर्द को बस मुझे ही झेलना है
भाभी मुझे सुलाने की कोशिश करने लगी सोच रही थी शायद इसी बहाने थोड़ा आराम मिल जाए मुझे पर जो दर्द मिथ्लेश दे गयी थी अब आराम कहाँ था हर पल बस घुट घुट के ही जीना था अपने चेहरे पर एक खुश हाली का नकाब ओढना था



भाभी- देवेर जी रोने से क्या होगा रोने से अगर जाने वाले वापिस आए तो मैं भी रोने लगूँ, देखो मुझसे तुम्हारा यू रोना बर्दाश्त नही होता है मैं तुम्हे यू टूटते हुए नही देख सकती थी जिस देवर को हमेशा हँसते मुस्कुराते देखा अब तुम यूँ मत करो मेरे कलेजे पे छुरिया चलती है देखो तुम चुप हो जाओ वरना मैं भी रो दूँगी कहते हुए भाभी की आँखो से आँसू निकल कर मेरे गालो पर टपक पड़े भाबी ने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया और मेरे साथ ही सुबकने लगी


भाभी- देखो अब अगर तुम चुप नही हुए तो मैं मान लूँगी तुम मुझसे प्यार नही करते आज तक तुमने मेरा कहा हमेशा माना है देवेर जी ये भी मान लो मेरा मान रख लो आपकी आँखो मे आँसू अच्छे नही चलो सोने की कोशिश करो थोड़ा आराम मिलेगा


पर वो भी जानती थी कि बस ये कोरे दिलासे है मेरे अंदर एक आग जल रही थी जिसमे मैं खुद भी जल जाना चाहता था पर सोऊ भी तो कैसे आँख बंद करते ही आँखो के आगे उसका ही चेहरा वो सांवला चेहरा जिसकी नज़र भर ने ही मेरी ज़िंदगी बदल दी थी, इस से तो अच्छा था वो मेरे करीब कभी आती ही नही

अब सुबक्ते सुबक्ते ना जाने कब भाभी की गोद मे नींद ने मुझे अपनी बहो मे पनाह दे दी शायद उसको भी थोड़ा तरस आ गया होगा मुझ पर पता नही कितनी देर सोया था मैं जब आँख खुली तो भाभी वहाँ पर थी नही मेरे पूरे बदन मे दर्द हो रहा था मैं उठा और बाहर आया तो देखा कि नीचे आँगन मे निशा और चाची बैठी बाते कर रही थी मैं नीचे आया हाथ पाँव धोए तब तक निशा चाय ले आई


मैने मना किया


वो- मनीष कब तक , सुबह से तुमने कुछ नही खाया है कम से कम चाय तो पी लो माना कि सबसे नाराज़ हो पर इस चाय से कैसी नाराज़गी जानती हूँ वक़्त मुश्किल है पर हम सह लेंगे और फिर तुम ही तो कहते हो वक़्त अच्छा हो या बुरा बीत ही जाता है ना


मैं- पर वो तो वापिस नही आनी ना


निशा ने पल भर के लिए मेरी आँखो मे देखा और फिर मुझे अपनी बाहो मे भर लिया वो भी जानती थी मेरे दर्द को कुछ देर बाद वो अलग हुई और मुझे चाय पकड़ाई मैं पीने लगा वो मेरे पास ही बैठी रही चुप चाप चाची बस हम दोनो को देख रही थी धीरे धीरे मैने चाय ख़तम की
नीनु- आओ थोड़ा बाहर की तरफ चलते है ………………………………..

“तो कब तक यू खुद को कोसते रहोगे, देखो हम सब भी दुखी है पर तुमहरे ऐसा करने से वो वापिस तो नही आ जाएगी ना , और फिर तुम तो सोल्जर हो कितनी परेशानियाँ देखी है तुमने देखो तुम ऐसा करोगे तो फिर फॅमिली का क्या होगा ”

“निशा, मैं इस बारे मे बात नही करना चाहता ”

“क्यो नही करना चाहते तुम बात अगर चुप रहने से कोई सल्यूशन निकलता है तो मैं मौन व्रत ले लेती हूँ मैं जानती हूँ ये मुश्किल है पर हमे इस सब से बाहर आना होगा ”

“किन सब से निशा, कैसे भूल जाउ मैं उसे जिसकी हर साँस बस मेरे लिए थी जानती हो मेरी आँखो ने हर रात बस उसका ही सपना देखा था बस उसका ही एक एक छोटा सा घर बनाएँगे पर देखो झूठी शान की खातिर सब ख़तम हो गया ”

मैने कहा था मेरा इंतज़ार करना मैं हर हाल मे आउन्गा और मैने देर भी नही की पर फिर क्यो इंतज़ार नही किया उसने क्या हमारा प्यार बस इतना ही मजबूत था जो ऐसे टूट गया


निशा- मनीष, जो बात है वो तुम भी जानते हो और मैं भी , मैं बस इतना जानती हूँ कि प्लीज़ तुम मुस्कुराओ वो भी तो यही चाहती थी ना कि तुम हमेशा खुश रहो देखो तुम्हे ऐसे देख कर उसको कितना दुख होता होगा और फिर तुम्हारा प्यार कहा कमजोर है कमजोर होता तो वो ऐसा कदम क्यो उठाती


सोचो ऐसा करने से पहले उस पर क्या बीती होगी क्या उसके लिए ये सब आसान था एक तरफ़ उसके पिता थे दूसरी तरफ तुम ज़रा सोचो तो सही पल पल उसके उपर क्या गुज़री होगी आँखो मे बाप के सम्मान की शरम और दिल मे तुम्हारी चाहत का वचन मैं जानती हूँ इन की मजबूरिया क्या होती पर ऐसे खुद को कोसके तुम बस उसकी मोहब्बत को शर्मिंदा कर रहे हो


वो जो थी वो हमेशा तुम्हारे दिल मे रहेगी उसकी जगह कोई नही भर सकता पर मनीष क्या उसका प्यार यूँ ही रुसवा होगा वो क्या चाहती थी मुझसे ज़्यादा तुम जानते हो तो फिर कैसी ये ज़िद देखो तो सही क्या हाल बना रखा है तुमने वो जब उपर से तुम्हे ऐसे देखेगी तो उसको कितना दुख होगा


“तो मैं क्या करूँ निशा , तुम ही बताओ ”

“कुछ करने की ज़रूरत नही बस तुम्हे जीना होगा उसके लिए क्योंकि वो आज भी ज़िंदा है तुम्हारे अंदर तो सम्भालो खुद को और हमे भी ’

निशा ने मुझे अपनी बाहों मे ले लिया मेरी आँखो से कुछ आँसू निकल कर उसके कंधो पर गिर गये बड़ा सुकून सा मिला था उसकी बाहों मे मिथ्लेश के बाद अगर मेरा कोई अपना था तो वो ही तो थी बाकी तो सब बदल गया था बहुत देर तक हम दोनो मंदिर के तालाब की सीढ़ियो पर बैठे रहे


उसने मेरा हाथ थाम रखा था हौले हौले सहला रही थी वो अंधेरा सा होने लगा था आसमान मे तारे निकल आए थे पानी मे हलचल करती जल्मुर्गियो को देख रहा था मैं दिल जैसे खामोश था धड़कने थम सी गयी थी हम बस उधर ही बैठे रहे पर कब तक घर तो आना ही था


घर आए मम्मी घर के बाहर ही बैठी थी बस एक नज़र मेरी तरफ़ डाली मैने सोचा बात करेंगी पर वो तो अपनी ज़िद पर थी वैसे भी ये घर तो कब का पराया हो गया था मेरे लिए मैं अंदर गया बैठक मे मिता की एक बड़ी सी तस्वीर लगी थी बस उसके पास ही जाके रुक गया मैं

कहंता तो बहुत था उस से पर होंठो से बात निकली ही नही कही दिल मे ही रह गयी अनकही सी , तभी भाभी ने आवाज़ दी कि फादर साहब ने बुलाया है तो मैं छत पर चला गया वो बैठे थे हाथो मे एक पेग लिए पास ही बॉटल रखी थी उन्होने मुझे देखा और बोले- आ बैठ मेरे पास कितने दिन हुए बात नही हुई
मैं कुर्सी पे बैठ गया


पापा ने एक पेग बनाया और मुझे दिया अब मैं कैसे लेता वो समझे फिर बोले- अब तू मेरा बेटा कहाँ रहा वैसे भी जब बेटा बाप के कंधे से उपर निकल जाए तो दोस्त बन जाता है और फिर कैसा फ़ौजी तू जो बाप के संग पेग ना लगाया तो ले पकड़


मैने गिलास ले लिया कुछ देर वो चुप रहे फिर बोले- देख बेटा मैं जानता हूँ वो तुमहरे लिए कितनी अहमियत रखती थी अगर तुम हमे कुछ बताते तो हो सकता था कि कोई रास्ता निकालता मैं ये भी समझता हूँ कि प्यार करना कोई गुनाह नही प्यार अपनी मंज़िल खुद चुनता है , हमें लगता है कि हम ने उसे चुना है जबकि ये सब तो पहले ही तय हो चुका होता है


मैने कल तुम्हारी मम्मी से भी बात की थी माना कि थोड़ी जिद्दी है पर अगर मैं कहूँगा तो वो बात समझेगी पर मेरे दवाब से मैं चाहता हूँ कि तुम उस से बात करो माँ बेटे के बीच जो दूरिया है दोनो सुलझालो तुम दोनो के बीच मैं पिस रहा हूँ बाप हूँ तो कह नही सकता पर दिल तो मेरा भी है ना


और फिर जब तुम जब ऐसे सॅड सॅड रहोगे तो तुम्हारी मिथ्लेश कहाँ ख़ुह रह पाएगी देखो बेटे तुम फील करते हो तुम्हारी मम्मी फील करती है वैसे ही मैं भी तो इंसान हूँ मैं भी फील करता हूँ वो अलग बात है कि कभी कहता नही और फिर ये निशा इसके बारे मे सोचो ज़रा , सबकुछ छोड़ के तुम्हारे साथ है बाकी तुम समझदार हो


मैं जानता हू मेरी बात समझने मे थोड़ा टाइम लगेगा तुम्हे पर कभी जब खुद बाप बनोगे तो तुम्हे मेरी तमाम बाते याद आएँगी पर उस से पहले तुम अपना पेग ख़तम करो
बड़ी मुश्किल से मैने वो पेग अपने गले से नीचे उतारा


पापा- बाते तो मुझे बहुत सी करनी है पर शायद अभी सही समय नही


मैं उठ कर नीचे आ गया तो भाभी मिल गयी

भाभी- खाना तैयार है ले अओ


मैं- भूख नही है


वो- तुम्हारी पसंद के आलू के परान्ठे बनाए है


मैं- कहा ना भूख नही है


वो- कब तक


मैं- पता नही
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10-07-2019, 01:21 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
भाभी- देखो मैने भी सुबह से कुछ नही खाया है अगर तुम नही खाओगे तो मैं भी नही खाउन्गी ऐसे ही भूखी ही सो जाउन्गी अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो मेरी भी यही ज़िद है


अब मैं क्या कहूँ उनसे मैं जानता था वो जो कर रही थी मेरे लिए ही कर रही थी पर मुझे समझे ना कोई तोड़ लिए दो चार टुकड़े उनके साथ आलू के परान्ठे मुझे हमेशा से ही बहुत पसंद थे पर सिर्फ़ मेरी मम्मी के हाथ के ही पर अब वो होना नही था और इधर मेरा जी भी नही लगता था तो मैने वापिस देल्ही जाने का सोचा


मैं सीधा अपने कमरे मे आया और अपना समान डालने लगा


“मुझे बता तो देते तो मैं भी अपनी पॅकिंग कर लेती ”

“मैने सोचा तुम कुछ दिन और रुकोगी


“हाँ, रुकती तो सही पर अगर तुम ने वापिस चलने का सोचा है तो फिर चलते है मैं भी पॅकिंग कर लेती हूँ


रात के करीब 1 बजे थे , मैं और निशा घर से निकले सब लोग सो रहे थे मैने जगाना ठीक नही समझा चुपचाप गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए रास्ते मे वो मोड़ आया जो सीधा मिता के घर तक जाता था मैने कुछ देर के लिए गाड़ी रोक दी पर कितना रुकता मैं आँखो मे एक झलक भरी और फिर चल दिए देल्ही के लिए सब पीछे रह गया था सफ़र तो चल रहा था पर मैं उसी मोड़ पर रह गया था


मेरा गाँव मेरा परिवार मेरे अपने लोग मेरी आँखो मे कुछ आँसू थे जो अब सुख चुके थे ज़िंदगी कहती है कि खुल के जियो पर जिए तो कैसे जिए इन हालातों मे मैने निशा की तरफ़ देखा खिड़की खोल रखी थी उसने ठंडी हवा उसके गालो को चूम चूम के जा रही थी अपने सर को टिकाए सीट पर वो कुछ सोच रही थी


मैं- क्या सोच रही हो


वो- हमें ऐसे बिना बताए नही आना चाहिए था


मैं- बताने से भी क्या हो जाता


वो- अपने परिवार से दूर मत भागो तुम


मैं- वहाँ कौन है जो मुझे समझता है


वो- हम सब को फिकर है तुम्हारी


बाते करते करते देल्ही आ गये हम थोड़ा सा थक सा गया था तो सो गया आँख खुली तो देखा कि वो मेरे पास ही सो रही थी मुझसे चिपक के मेरा हाथ उसके सर के नीचे था मैने निकाला नही कही उसकी नींद ना टूट जाए एक बालो की लट जो उसके चेहरे पर आ गयी थी हौले से हटाया मैने,निशा ये कौन लगती थी मेरी सच कहूँ तो सब कुछ थी मेरी बस ऐसे ही दोस्ती की थी इस से कभी पर अब देखो वो क्या थी मेरे लिए


कुछ देर बाद वो उठी , मैने लेटे रहने को कहा उसके पास होने से अच्छा लग रहा था मुझे वो मुझसे और चिपक गयी


वो- कॉफी पियोगे


मैं- चाय


वो- बनाती हूँ


वो उठी तो मैं भी उठ गया वैसे तो दोपहर का टाइम हो रहा था पर अभी उठे थे तो चाय बनती थी निशा चाय बना रही थी तो मुझे उसकी कलाई दिखी एक दम कोरी खाली तो मुझे फिर कुछ याद आया मैं कमरे मे कुछ खोजने लगा और फिर मुझे वो चीज़ मिल ही गयी ये कंगन थे जो पद्मियनी भाभी ने मुझे दिए थे मिथ्लेश के लिए पर ऐसी मेरी किस्मत थी कहाँ


मैं वापिस गया रसोई मे- निशा ज़रा अपने हाथ आगे करो


वो- किसलिए


मैं- करो तो सही यार


जैसे ही उसने अपने हाथ आगे किए मैने वो कंगन उसे पहनाने लगा


वो- क्या कर रहे हो


मैं- एक तोहफा है तुम्हारे लिए


वो- जानते हो क्या कर रहे हो


मैं- जानता हूँ


वो- मनीष,………….


मैं- चुप रहो अब इतना तो हक है ना तुमपे कि तुमहरे लिए कुछ कर सकूँ


वो- हक … मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है मनीष


उसकी कलाईयों मे वो कंगन देख कर दिल को सुकून सा लगा अच्छा लगा निशा ने मुझे गले से लगा लिया फिर हम ने चाय पी कुछ छोटे मोटे काम किए कल से ज़िंदगी को वापिस पटरी पे लाने की कोशिस करनी थी मुझे एजेंसी जाना था और उसे बॅंक , ज़िंदगी का एक दिन और बीत गया था ऐसे ही


अगले दिन



मैं- तुम्हे ड्रॉप कर दूं बॅंक

वो- नही मैं मेट्रो से जाती हूँ तुम कार ले जाओ


मैं- नही , तुम गाड़ी ले जाओ


रोड पे आके मैने ऑटो लिया और बताई उसको अपनी मंज़िल बॉस मुझे देख के खुश था उसने कुछ दिन डेस्कजॉब करने को ही कहा वो भी जानते थे कि अभी मैं फील्ड मे जाने लायक नही काम मे पता ही नही चला कि कब रात हो गयी तो अब चलना ही था मैं वहाँ से चला पर घर जाने का मूड नही था तो एक बॉटल ले ली और बैठ गया ऐसे ही पता ही नही चला कि कब बॉटल आधी से ज़्यादा हो गयी


“कितना पियोगे मेरे फ़ौजी मेंटल घर नही जाना क्या ”

मैने देखा वो खड़ी थी थोड़ी दूर फिर आई और मेरे पास बैठ गयी


मैं-घर है ही कहाँ मेरा


वो- कब तक नाराज़ रहोगे


मैं- अब नाराज़ भी ना रहूं , तुमने अच्छा नही किया मेरे साथ


वो- मैं कहाँ दूर हूँ तुमसे, देखो पास ही तो हूँ तुम्हारे


मैं- तो फिर क्यो चली गयी तुम दूर


वो- ताकि फिर से तुम्हारे पास आ सकूँ


मैं- मुझे दुखी देख खुशी हुई तुम्हे


वो- मैं भी कहा सुखी हूँ देखो , जब तक तुम खुश नही तो भला मैं कैसे खुश रहूंगी
मैं- तो फिर क्यो नही आ जाती वापिस


वो- आ तो गयी हूँ क्या मैं तुमहरे साथ नही हूँ


मैं- बाते ना बनाओ


वो- तुमसे ही सीखा है , मैं कुछ कहना चाहती हूँ तुमसे


मैं- कहो


वो- देखो, निशा अच्छी लड़की है बहुत प्रेम करती है तुमसे और फिर उसका कौन है तुम्हारे सिवा उसका हाथ थाम लो


मैं- पर तुम जानती हो मेरी हर सांस तुम्हारी ही है


वो- वो भी तुम्हारी ही है ज़रा एक बार देखो तो सही वो क्यो ही तुम्हारे लिए क्योंकि वो प्यार करती है तुमसे


मैं- और मैं तुमसे जो हक तुम्हारा है वो मैं कैसे उस से …..


वो- मेरी खातिर


वो मुस्कुरई अब उस क्या जवाब देता मैं क्या कहता मैं


वो- सोचो ज़रा मेरी यही इच्छा है कि तुम निशा से शादी कर लो और मुझे पूरा विशवास है तुम मेरी ये इच्छा भी पूरी करोगे



अब मैं क्या कहता उसको उसने अपना फ़ैसला सुना दिया था अब मैं कहूँ भी तो क्या उसको पर इतना ज़रूर था कि वो दूर होकर भी मेरे पास ही थी बहुत पास शायद मेरे दिल मे मेरी धड़कनो मे
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10-07-2019, 01:21 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
मैं जब घर आया तो रात बहुत बीत गयी थी पर निशा दरवाज़ पे ही बैठी थी मेरे इंतज़ार मे मुझे देख कर उसको थोड़ी तसल्ली हुई मेरे बॅग को साइड मे रखा मैं भी उसके पास ही बैठ गया


वो- आज देर हो गयी


मैं- हाँ


वो-खाना खाओगे


मैं- तुमने खाया


वो- तुम्हारे बिना कैसे खाती


मैं- हाँ फिर ले आओ यही खाते है

कुछ देर बाद वो दो थालिया ले आई उसको अपने पास देख के मैं बहुत अच्छा फील करता था वैसे मुझे भूख नही थी पर अगर मैं नही ख़ाता तो वो भी नही खाती तो फिर मैने भी कुछ नीवाले खा लिए , उसने बर्तन समेटे मैं भी अंदर आ गया कुछ देर बाद वो मेरे पास आ बैठी


मैं- जानती हो निशा, जब तुम दूर थी मैं बहुत याद करता था तुम कहाँ हो किस हाल मे हो, मैं तुम्हे याद हूँ भी या नही


वो- तुम्हे कैसे भूल सकती थी मैं आज जो हूँ तुम्हारे कारण हूँ मैं


मैं- नही रे पगली , तेरी अपनी मेहनत है मैं क्या था एक आवारा जिसकी ना कोई मंज़िल थी ना कोई ठिकाना पर फिर तुम वो दोस्त बनकर मेरी जिंदगी मे आई जिसका हमेशा से मुझे इंतज़ार था और फिर ज़िंदगी बदल गयी कितना कुछ सीखा है तुमसे वो दिन भी क्या दिन थे बस ज़ी तो तभी ही लिए थे अब तो बस सांसो का बोझ ढो रहे है , वो छोटी छोटी बाते कितनी खुशियाँ देती थी दो रोटी थोड़ी सी सिल्वट पर पिसी हुई लाल मिर्च और एक गिलास लस्सी मे ही अपना पेट भर जाता था


और वो जलेबिया जो तुम लाया करती थी क्या महक आती थी उनमे से अब वो कहाँ , निशा जब तुम पानी भरने मंदिर के नलके पे आती थी मैं तुम्हे देखता था कसम से जैसे ही तुम्हारी इन हिरनी जैसी आँखो से आँखे मिलते ही पता नही क्या हो जाता था बस वो दो पल की मुलाकात ही होंठो को मुस्कुराने की एक वजह दे जाती थी


वो- और तुम जो अपने दोस्तो के साथ उल्जुलुल हरकते करते थे जैसे ही मैं आती कितना इतराते थे तुम कितने गंदे लगते थे तुम जब तुम अपने बालो को जेल लगाते थे और उस दिन जब तुम कीचड़ मे फिसल कर गिरे थे कितना हँसी थी मैं


मैं-वो तो मैं तुम्हे इंप्रेस करने के चक्कर मे गिर गया था पर कुछ भी कहो वो भी क्या दिन थे


वो- हाँ ये तो है


मैं- और वो तो बेस्ट था जब जयपुर मे तुम टल्ली होकर सड़क पर घूम रही थी और फिर उल्टी कर दी थी तुमने


वो- तुम्हे याद है वो


मैं- वो कोई भूलने की बात थोड़ी ना है


वो- पता है उसके बाद मैने फिर कभी नही पी


मैं- क्या बात कर रही हो


वो- कसम से


मैं- चल आज फिर आजा एक बार फिर घूमते है रोड पर टल्ली होके


वो- ना बाबा ना अब बात अलग है


मैं- क्या अलग है वो ही तुम हो वो ही मैं हूँ


वो- कही फिर टल्ली ना हो जाउ


मैं- तब भी संभाला था आज भी संभाल लूँगा


वो – एक बात पुछु


मैं- दो पूछ ले यारा


वो- चल जाने दे फिर कभी पूछूंगी मैं बॉटल लाती हूँ
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10-07-2019, 01:21 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
मैं और निशा टुन्न हो चुके थे पूरी तरह से कभी हँस रहे थे कभी रो रहे थे जी रहे थे अपनी यादो मे , बस ये यादे ही तो थी जो अपनी थी मैने निशा की छोटी के रिब्बन को निकाल दिया हमेशा से ही मुझे लड़किया या औरते बस खुले बालो मे ही अच्छी लगती थी


वो- ये क्या किया


मैं- ऐसे ही अच्छी लगती हो तुम


वो- मनीष , तुम यार सच मे ही अजीब हो


मैं- हाँ सब तुम्हारा ही असर है


वो- अच्छा जी और मुझ पर जो ये रंग चढ़ा है ये किसका है


मैं- मुझे क्या पता


वो- तो किसे पता


मैं- तुम जानो


तभी वो थोड़ा सा लड़खड़ाई मैने उसकी कमर मे हाथ डाला और उसको अपनी बाहों मे थाम लिया उसकी छातिया आ लगी मेरे सीने से उसकी साँस मेरे चेहरे को छू गयी वो लहराने लगी मेरी बाहों मे हल्की सी जुल्फे उसके चेहरे पर आ गयी थी मैने उन लटो को सुलझाया उसकी धड़कानों को मैने अपने सीने मे महसूस किया


मैं- देख के चल अभी गिर जाती


वो- तुम जो हो संभालने के लिए


मैं- वो तो है


उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई
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10-07-2019, 01:22 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई


हम दोनो रोड पर ही बैठ गये, उसने मेरे हाथ को अपने हाथ मे लिया और बोली- मनीष एक बात बोलू


मैं- हूँ


वो- तुझसे ना प्यार हुआ पड़ा है आज से नही बहुत पहले से पर कभी मैं तुझे बोल नही पाई पर आज सोचा बोल ही दूं यार ऐसे मन में कब तक घुट घुट कर सहूंगी मुझे पता ही नही चला कि कब मैं तुझे इतना टूट के चाहने लगी , बस हो गया यार


मैं- मुझे पहले ही पता है निशा


वो- तो फिर तूने कहा क्यो नही


मैं- तुझे भी तो पता है ना


उसने मेरी बॉटल ली और दो चार घूंठ भरे फिर बोली- यार मैं जानती हूँ कि तेरी मिथ्लेश की जगह कोई नही भर पाएगा पर मैं बस तेरे साथ ही रहना चाहती हूँ तेरे सिवा मेरा है ही कौन


मैं- और तेरे सिवा मेरा भी कौन है


नशे से वो हल्के हल्के काँप रही थी


मैं- यार डर लगता है कहीं तू भी उसकी तरह मुझे छोड़ गयी तो


वो- मुझे कहाँ जाना है


मैं- साथ रहेगी ना


वो- मरते दम तक


वो मेरे सीने से लग गयी उसकी आँखो से दो आँसू निकल कर मेरे गालो को छू गये बड़बड़ाते हुए वो कब सो गयी कुछ होश नही मैने उसे बेड पर लिटाया और उसके पास ही सो गया दारू सच मे ही कुछ ज़्यादा हो गयी थी पर मैने आँखे मींच ली इस उम्मीद मे क्या पता आने वाला कल कुछ अच्छा हो सुबह जब मैने देखा तो मामा के लड़के की काफ़ी मिस कॉल आई हुई थी तो मैने सोचा बाद मे ही कॉल कर लूँगा


नहाने जा ही रहा था कि उसका फिर से फोन आ गया


मैं- हाँ भाई


वो- अरे यार कब से कॉल कर रहा हूँ तू फोन क्यो नही उठा रहा


मैं- सो रहा था


वो- सुन बे तू चाचा बन गया है बेटा हुआ है


मैं- ये तो बहुत ही अच्छी खबर आई भाई


वो- हाँ पर सुन तू अभी घर आजा कुँआ पूजन का प्रोग्राम जल्दी ही बन गया है तो तुझे आना ही होगा और कोई बहाना नही चलेगा


मैं- तुझे तो पता ही है यार मेरा दिल नही करता


वो- मेरे भाई , तू यार हम को अपना मानता ही नही है हमेशा ऐसी ही बात करता है अरे हमारे लिए नही तो बेटे के लिए आजा देख तू नही आएगा तो फिर मैं नाराज़ हो जाउन्गा बात नही करूँगा फिर कभी


मैं- तू समझता क्यो नही यार


वो- देख तू ही तो मेरा छोटा भाई है तेरे बिना मेरी क्या खुशी यार आजा ना


मैं- चल ठीक है यारा, कल शाम तक पहुचता हूँ

ज़िंदगी के कुछ दिन और गुजर गये थे वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती थी कि मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ जाए चाहे हल्की सी ही पर मुझे पता नही क्यो खुशी होती ही नही थी कहने को तो जी रहा था पर सांसो का कुछ अता-पता था नही ऐसा नही था कि मैं निशा के बारे मे सोचता नही था हर पल उसकी फिकर रहती थी, ले देके वोही तो थी मेरी जो मिथ्लेश के बाद समझती थी मुझे कभी सोचा नही था ज़िंदगी ऐसे मुकाम पे ले आएगी हमेशा से मेरी कोई बड़ी तम्मन्ना नही थी
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10-07-2019, 01:22 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
बस एक छोटा सा सपना देखा था मैने कि मैं और मिथ्लेश जी सके एक साथ पर गाँव की जिन गलियों मे हम जवान हुए वहाँ पर इतनी घुटन थी कि सांस लेना भी मुश्किल था और हम तो महक उठे थे मोहब्बत की खुश्बू मे पता नही कैसा रंग था उस का वो जो मुझे रंगरेज की तरह रंग गया था उसके रंग मे प्रीत ने जो डोर लगाई थी वो उलझ ज़रूर गयी थी पर टूटी नही थी ये और बात थी कि वो मुझसे आज दूर थी पर दूर होकर भी पास थी मेरे ,

इस दिल पे बस एक ही नाम था मेरी हर सांस बस मिथ्लेश ही पुकारती थी ऐसा कोई दिन नही जब उसकी याद नही आई, वो बहुत कहती थी मुझसे कि फ़ौजी कभी तुझे मेरी याद भी आती है और मैं बस इतना ही कहता था कि यार, तू इस दिल से कभी जाए तो तेरी याद आए जितने भी पल हम ने साथ जिए बहुत कीमती थे मिथ्लेश की बात ही अलग थी और लड़कियो से बस एक गुरूर सा था उसमे उसकी वो बड़ी बड़ी सी आँखे जब वो उनको गोल गोल घुमाती थी तो कसम से दिल साला कुछ ज़ोर से धड़क ही जाता था


जितना भी लिखू मैं उसके बारे मे बस वो कम ही है , खैर, उस दिन मैं और निशा रीना के घर गये थे वो जयपुर थी उन दिनो अब बहन माना था उसको तो मना भी कैसे कर पता उसको रिश्ता ही कुछ था उस से , ये जयपुर शहर से भी अपना कुछ अजीब सा रिश्ता सा बन गया था आजकल तो मामा भी यही रहने लगे थे रीना से एक अरसे से मिला भी नही था पर सच बात तो ये थी कि उसको मना भी नही कर पाया था


निशा की इच्छा थी कि ट्रेन पकड़ ले पर मैने सोचा कि कार से ही चलते है तो हम चल पड़े जयपुर की तरफ रास्ते मे कुछ सोच कर कोटपुतली रुक गये रुक्मणी की याद जो आ गयी थी उसकी शादी पे तो जा नही पाया था तो सोचा कि मिल ही लेते है पता नही क्यो पुराने लोगो की एक कमी सी महसूस करने लगा था मैं अब मम्मी के मामा का घर था तो खूब बाते हुई रुक्मणी चाहती थी कि मैं रुकु कुछ दिन पर मैने उसको फिर मिलने का वादा दिया और रात के अंधेरे मे हम लोग जयपुर आ गये


रीना बहुत खुश थी मुझे देख कर और मैं भी उसे देख कर सबसे अच्छी बात तो ये थी कि इस रिश्ते मे कोई फ़ॉर्मलिटी नही थी बस एक भाई- बहन का प्यार और हो भी क्यो ना हमारा बचपन ही कुछ ऐसा था मैने निशा के बारे मे बताया उसको अब जिकर हुआ तो पुरानी बाते भी निकलनी थी और बातों के साथ मिथ्लेश का ज़िक्र तो होना ही था पर रीना भी समझती थी उसने बातों का रुख़ दूसरी तरफ मोड़ दिया पर वो भी जानती थी कि मिथ्लेश कभी जुदा नही होगी मुझसे


फॅमिली कहने को तो ये एक वर्ड है पर समझो तो बहुत कुछ है और अपनी तो बस यही कहानी थी अपनो ने कभी अपनाया नही कुछ लोगो ने कभी ठुकराया नही दिल से अच्छा लगा थोड़ा टाइम रीना के घर पे बिताके उसका पति भी मस्त इंसान था तगड़ी जमती थी उस से कोई तीन चार दिन वहाँ रहने के बाद हम ने विदा ली उनसे पर इस शहर से कुछ यादे जुड़ी थी जिनको ताज़ा करना था मुझे पर पहले निशा को कुछ शॉपिंग करवानी थी तो हम चांदपॉल चले गये , वैसे निशा एक सिंपल लड़की थी पर मैने फ़ॉेर्स किया तो उसने जम के खरीदारी की


इसी बहाने से उसके चेहरे पर खुशी देखी मैने , पर एक बात पे मैने गौर किया कि उस शोरुम मे निशा एक ड्रेस को बहुत गौर से देख रही थी पर उसने खरीदा नही , वो फिर आगे बढ़ गयी मैं रुक गया मैने सेल्समेन से वो ही ड्रेस देखी वो एक दुल्हन का जोड़ा था और मैं उसके मन की सारी बात समझ गया बिना उसको बताए मैने वो खरीद लिया और चुपचाप छिपा के गाड़ी मे रख दिया


मैं समझता था कि हर लल्डकी का अरमान होता है कि वो दुल्हन बने निशा की भी यही इच्छा थी मैने मन ही मन कुछ सोचा और वैसे भी क्या फरक पड़ता है अब अगर हमारी वजह से अगर एक भी इंसान को ख़ुसी मिले तो बहुत बड़ी बात है ,


मैं- निशा, बियर पिएगी


वो- ना, मुझसे कंट्रोल नही होता फिर खम्खा तमाशा हो जाना है


मैं- कैसा लगा जयपुर आके


वो- अच्छा, काफ़ी टाइम गुज़रा है यहाँ तो यादे है


मैं- हा, पर कुछ बदला बदला सा लग रहा है ना


वो- परिवर्तन तो संसार का नियम है श्रीमान मनीष कुमार जी


मैं- हां जी वो तो है


निशा- वैसे तुम्हे शायद नही अशोक भाई ने तुम्हे बुलाया था और तुम यहाँ पर घूम रहे हो वो नाराज़ हो जाएँगे


मैं- ओह तेरी यार! मैं तो भूल ही गया था


निशा- तुम भूले नही थे बल्कि तुम भाग रहे हो रिश्तो से पर कब तक भागोगे मनीष एक ना एक दिन रुकना पड़ेगा


मैं चुप रहा उसने बड़ी सफाई से मेरे मन की बात पकड़ ली


वो- देखो वो लोग तुम्हारे अपने है और खुशनसीब होते है वो लोग जिनके अपने होते है मेरी बात मानो तुम्हे जाना चाहिए लोगो की खुशियो मे शामिल होने की आदत डालो सबका अपना अपना नसीब होता है अपने मे ये है तो ये ही सही
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10-07-2019, 01:23 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
निशा ठीक कह रही थी हम ने लंच किया अब निशा की बात को कैसे टाल सकता था मैं और उसका कहना भी तो जायज़ था और वैसे भी मैने अतीत को पीछे छोड़ कर जीने का निर्णय ले लिया था



पर ये निर्णय मैने सिर्फ़ निशा के लिए लिया था माना कि हमारी झोली खाली थी पर फिर भी उसके दामन को खुशियो से भरने का हौंसला था मेरा


निशा- एक काम करो तुम अकेले चले जाओ, मैं देल्ही की बस ले लेती हूँ


मैं- पागल है क्या तू भी चल रही है


वो- थोड़ा ठीक नही लगेगा यार कोई पूछेगा कि ये कौन है तो फिर


मैं- तो फिर क्या सबको पता है तू कौन है


वो- मेरी बात सुनो


मैं- तुम सुनो अगर तुम साथ नही तो मैं भी नही जाउन्गा


अब वो क्या कहती जब हम मामा के घर पहुचे तो मैं बुरी तारह से थक चुका था हल्का हल्का सा अंधेरा भी होने लगा था जैसे ही गाड़ी चौक मे रुकी सबसे पहले मुझे कौशल्या मामी दिखी मुझे देखते ही वो बहुत खुश हो गयी


मैने और निशा ने उनके पैर छुए फिर हम घर मे गये सब लोग बहुत खुश हुवे देख के थोड़ी देर बाद अशोक भाई भी आ गया तो बोला- हां भाई अब फ़ुर्सत मिली है तुम्हे
मैं- भाई तुझे तो सब पता है ना


वो- हाँ, भाई हम भी फ़ौजी है तेरी तरह अफ़सर नही है पर पता सब है


मैं- भाई अब रहने भी दे


भाई- अपनी भाभी से मिल ले गुस्से मे भरी बैठी है उसको झेल थोड़ी देर


मैं- मिलता हूँ थोड़ी देर मे


मैने निशा को इंट्रोड्यूस करवाया सबसे थोड़ी ही देर मे निशा सबसे घुल मिल गयी थी


मामी- कौन है ये


मैं- थारी होने वाली बहू है जल्दी ही इस से शादी करने वाला हूँ पर इसके लिए सर्प्राइज़ है बताना मत


वो- तभी मैं कहूँ …


मैं- क्या आप भी


वो- अच्छा है एक ना एक दिन तो ये काम भी करना ही है मम्मी से बात हुई


मैं- ना


वो- कब तक चलेगा ऐसे घर की बात है सुलझा लो


मैं- वो ही ज़िद पकड़ के बैठी है आपको तो पता है ही


वो- कल या परसो वो आ रही है फिर करते है कुछ


मैं- रहने दो मामी बड़ी मुश्किल से संभाला है खुद को यहा पे कोई तमाशा नही चाहता बस आप लोगो के साथ कुछ दिन हूँ तो हँसी-खुशी धीरे धीरे सब ठीक हो जाना है


मामी- चल फिर घर चलते है कितने दिन बाद आया है वही पे कुछ बाते करेंगे इधर तो सांस आनी नही है


मैं- एक बार भाभी से मिल लूँ फिर चलते है आप बताओ क्या चल रहा है


वो- कुछ नही बस अकेली हूँ आजकल , बच्चे अलग अलग सहरो मे है पढ़ाई के लिए तेरे मामा का तो पता है तुझे चिपके है नौकरी से कितनी बार कहा है रिटाइर हो जाओ पर सुनते ही नही मैं यहाँ रह जाती हूँ अकेली


मैं- ड्जूस्ट तो करना पड़ता है


वो – और कितना अड्जस्ट करू


मैं- भाभी से मिलके आता हूँ


वो- मैं भी कुछ काम निपटा लेती हूँ


जब मैं भाभी के कमरे मे गया तो निशा वहाँ पहले से ही बैठी थी कुछ देर तक भाभी के उलाहने सुनके उनको मनाया


भाभी- तुम तो बड़े आदमी हो गये हो क्यो आओगे हमारे यहाँ


मैं- भाभी ताने मत मारो


वो- लो जी अब ताने भी ना मारे


मैं- अब आ तो गया हूँ अब जब तक कहोगे यही रहूँगा


थोड़ी देर उनके पास बैठा फिर मैं और कौशल्या मामी उनके घर आ गये
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10-07-2019, 01:23 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
मामी मेरी तरफ देख रही थी मैं उसकी तरफ देख रहा था वो ही वो थी वो ही मैं था कौशल्या मामी का भी मेरे जीवन मे बहुत बड़ा रोल थे मेरा उनसे सेक्स रीलेशन एक ग़लती की वजह से बन गया था जब मैने चाची समझ कर उसको चोद दिया था


उसके बाद हमारा रिश्ता बहुत बदल गया था वो मेरी मामी थी , मेरी दोस्त थी बिस्तर पर मेरी साथी थी आज भी कुछ ऐसा ही लम्हा था कुछ देर हम दोनो एक दूसरे को देखते रहे और फिर मैने मामी को अपनी गोद मे थम लिया मामी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और किस करने लगी


मामी की उमर बेशक बढ़ गयी थी पर उसके बदन की ताज़गी आज भी ऐसी ही थी मामी के हल्के गुलाबी पतले पतले होंठ आज भी उनका स्वाद ऐसा ही था जैसा कि पहले था कुछ भी तो नही बदली थी वैसी ही थी पतली छरहरी हा कुछ बाल थोड़े से हल्के सफेद हो गये थे पर आग आज भी वैसी ही थी


हम दोनो का थूक मामी के मूह मे इकट्ठा हो रहा था जिसे वो पी गयी , पर मैं उसके होंठो को चूस्ता रहा जब तक वो खुद से अलग नही हो गयी


मामी- ज़्यादा मत चूसो, वरना होंठ सूज जाएगा


मैं- तो क्या हुआ


वो- कुछ नही पर थोड़ा छुपाना मुश्किल होगा


मैने मामी के ब्लाउज को खोल दिया और ब्रा के उपर से ही उसकी मीडियम साइज़ वाली चुचियो को सहलाने लगा मामी के बदन मे कंपकंपी चढ़ने लगी मामी मेरे चेहरे को अपनी छातियो पर रगड़ने लगी मैं अपने हाथ उसकी पीठ पर ले गया और ब्रा को उतार दिया


मामी की चुचियो के भूरे भूरे निप्पल्स जैसे इंतज़ार कर रहे थे मेरे लबो का मामी की चुचि को मैने अपने मूह मे लिया तो मामी ने एक मीठी आह भरी और मेरे सर के बालो को सहलाने लगी


कुछ ही देर मे मामी के बदन ऐंठने लगा था चुचियो मे तनाव आने लगा था बारी बारी वो दोनो चुचियों को मेरे मूह मे दे रही थी मामी के बदन की मोहक खुशुबू मेरी सांसो मे घुलती जा रही थी


कुछ देर बाद वो मेरी गोद से उतर गयी और मेरी पॅंट को खोलने लगी नीचे खिसकाया और फिर घुटनो के बल बैठ कर मेरे लंड से खेलने लगी मामी ने उपर से नीचे तक लंड पर अपनी जीभ फेरी तो मैं झुर्झुरा गया


मेरे लंड के हर हिस्से पर मामी की गीली जीभ घूम रही थी बीच मे जब वो अपने दाँतों से चॅम्डी को आहिस्ता से काट ती तो एक खुमारी सी छाने लगी मैने अपनी आँखो को मूंद लिया और मामी को अपना काम करने दिया
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