Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
03-29-2019, 11:26 AM,
#31
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
“शैतान…बड़ा मज़ा आ रहा है न… खूब ठूनक रहे हो… अभी बताती हूँ।” प्रिया ने मेरे लंड को देखकर कहा मानो वो उससे ही बातें कर रही हो।

प्रिया ने मेरे लंड को एक बार फिर से अच्छी तरह से अपने हाथों से सहलाया और फिर मेरे अन्डकोशों को मुट्ठी में भर कर एक दो बार दबाया और मेरी तरफ देखने लगी।

मैंने उसकी आँखों में देख कर उससे आगे बढ़ने के लिए इशारा किया। प्रिया को पता था कि मैं क्या चाहता हूँ…

प्रिया ने फिर से रस वाली कटोरी उठाई और सारा का सारा रस मेरे लंड पर ऐसे डालने लगी मानो उसे नहला ही रही हो। मेरा लंड गुलाबजामुन के रस से सराबोर हो गया और उसके गाढ़े रस की वजह से चमकने लगा। लंड की नसें रस से सराबोर होकर और भी उभर आईं थीं और मोटे से रस्से के सामान दिख रही थीं मानो रस्सियों से लंड को लपेट दिया हो। 

प्रिया ने कटोरी को अलग रख दिया और अब मेरे दोनों जांघों के बीच अपने आप को स्थापित कर लिया। प्रिया के बाल अब तक खुले हुए थे, उसने अपने दोनों हाथों से अपने बालों को बाँध कर जूड़ा बना लिया ताकि लंड चूसते वक़्त वो उसे परेशान न करें।

प्रिया की समझदारी ने एक बार फिर से मेरा मन मोह लिया। जब वो अपने बाल ठीक कर रही थी मैंने अपने हाथों को बढ़ा कर उसकी चूचियों को जोर से दबा दिया।

“उह्ह्ह्ह…तुम भी ना ! इतने जोर से कोई दबाता है क्या…” प्रिया ने चीख कर कहा।

औरों का तो पता नहीं लेकिन मैं तो ऐसे ही दबाता हूँ !” मैंने उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा और हंसने लगा।

“अच्छा जी…बड़ा मज़ा आता है मुझे दर्द देकर…?” प्रिया ने अपने हाथों को मेरे हाथों पर रखते हुए कहा और फिर मुस्कुराते हुए मेरे हाथों को हटा कर वापस से अपनी पोजीशन ठीक की और फिर झुकती चली गई।

प्रिया ने अपनी जीभ पूरी बाहर निकाल ली और मेरे टनटनाये लंड को बिना अपने हाथों से पकड़े अपनी जीभ की नोक को लंड के ऊपर से नीचे तक एक लम्बी सी दिशा में चलाया।

“ओह्ह… मेरी रानी… तुम लाजवाब हो !” मेरे मुँह से आह निकली और मैं तड़प उठा।

प्रिया ने वैसे ही बाहर से लंड के चारों तरफ लगे रस को अपनी जीभ से चाट चाट कर साफ़ किया और फिर लंड के अगले भाग को अपने होठों में भर लिया।

अब प्रिया ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया और आइसक्रीम की तरह लंड को मज़े से चूसने लगी। हालांकि मेरे लंड को पूरा मुँह में लेना मुश्किल था लेकिन प्रिया पूरी कोशिश कर रही थी कि उससे जितना हो सके उतना उसे अपने मुँह में भर ले।

मैं मज़े से अपनी कमर को थोड़ा थोड़ा हिलाते हुए अपना लंड उसके मुँह में दे रहा था। मेरे मुँह से बस हल्की हल्की सिसकारियाँ ही निकल पा रही थीं… क्यूंकि जैसे ही मैं कुछ बोलने की सोचता, प्रिया पूरे लंड को मुँह में भर लेती और मेरी साँसें ही अटक जातीं।

“उम्म्म… हाँ… मेरी जान, तुम सच में कमाल हो… चूसो जान… और चूसो…” इस बार मैंने सांस रोक कर उससे कहा और अपने हाथ बढ़ा कर उसका सर पकड़ लिया।

प्रिया ने अपना मुँह थोड़ा अलग किया और अपनी जीभ फिर से निकाल कर मेरे अन्डकोशों को चाटने लगी। अभी तक उसने अपने हाथों को अलग ही कर रखा था, शायद इसलिए कि कहीं गुलाबजामुन के रस से उसके हाथ चिपचिप न हो जाएँ…

खैर अब तक उसने लंड और आस पास लगे सारे रस को चाट लिया था इसलिए अब उसने अपने दायें हाथ से मेरा लंड पकड़ा और खूब तेज़ी से लंड को हिलाने लगी जैसे कि मुठ मारते वक़्त किया जाता है। साथ ही साथ वो अपने होंठों के बीच मेरे अण्डों को पकड़ कर चुभला भी रही थी। कुल मिलकर ऐसी स्थिति थी कि मैं अपने पूरे होशो हवास खो रहा था। प्रिया की नाज़ुक हथेली और नाज़ुक होठों की मस्ती ने मुझे मस्त कर दिया था।

प्रिया ने अब मेरे लंड की तरफ अपनी नज़रें उठाई और धीरे से मेरे लंड के चमड़े को खोलकर मेरा सुपारा बाहर कर दिया। सुपारा अभी तक लाल हो चुका था और प्रिया के मुँह के रस से भीग कर चमक रहा था।

प्रिया ने अपने होंठों से खुले हुए सुपारे को चूमा और अपने हाथो को पीछे ले जा कर रस वाली कटोरी फिर से उठा ली। अब तक सारा रस लगभग ख़त्म हो चुका था लेकिन फिर भी प्रिया ने अपनी उँगलियों से कटोरी के अन्दर का रस इकट्ठा किया और फिर लगभग 8-10 बूँदें सुपारे पर गिरा दीं। रस मेरे सुपारे के ठीक ऊपर मेरे लंड के छेद से होता हुआ चारो तरफ फ़ैल गया। अब सुपारा बहुत ही प्यारा दिख रहा था क्यूंकि उसके ऊपर रस की गाढ़ी सी परत चढ़ गई थी।

प्रिया ने एक खा जाने वाली नज़रों से लंड को देखा और फिर से अपनी जीभ को मेरे लंड के छेद पे रखा और धीरे धीरे जीभ की नोक को रगड़ा।

“उफफ्फ… आह प्रिया… ले लो पूरा अन्दर… ऐसे मत करो, गुदगुदी होती है…” मैं थोड़ा सा तड़प कर बोलने लगा।

“आप बस ऐसे ही लेटे रहो मेरे सरकार… मुझे जो करना है वो तो मैं करके ही रहूँगी !” प्रिया ने मुझे देखकर हंसते हुए कहा और वापस अपने काम में लग गई। उसने अपनी जीभ को सुपारे के चारों तरफ घुमा घुमा कर सारा रस चाट लिया और फिर अपना मुँह खोल कर पूरे सुपारे को मुँह में भर लिया।

फिर शुरू हुआ प्रिया का रफ़्तार भरा लंड चूसने का कार्यक्रम और उसने तेज़ी से लंड को पूरा निचोड़ डाला। मेरी तो साँसें ही रुकने लगी थीं। मैं बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाल रहा था। आज प्रिया मेरे लंड को तोड़ डालने के मूड में थी। उसने अब अपना एक हाथ भी लगा दिया और हाथ से हिलाते हुए लंड को चूसने लगी…

मैं अब काबू रखने की हालत में नहीं था, मैंने उसका सर पकड़ कर हटा दिया और उठ कर बैठ गया। अगर ऐसा नहीं करता तो शायद उसके मुँह में ही झड़ जाता। मैं बैठ कर लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा और प्रिया मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगी।

मैंने अपनी साँसों को नियंत्रित किया और प्रिया को एक झटके से अपनी तरफ खींच लिया। प्रिया का फूल सा बदन मेरे ऊपर आ गया और मैंने उसे लिपटा कर नीचे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ कर उसके होंठों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा। मैंने उसकी चूचियों को बेदर्दी से पकड़ कर मसलना शुरू किया और अपने लंड को उसकी चूत के मुँह पर रगड़ने लगा। लंड और चूत दोनों इतने गीले थे कि अगर मैं कोशिश करता तो एक ही झटके में लंड अन्दर हो जाता लेकिन मुझे यह ख्याल था कि प्रिया अभी तक कुंवारी थी और मेरा लंड उसकी नाज़ुक चूत को फाड़ सकता था। 

मुझे रिंकी वाली बात भी याद आ गई, मैंने रिस्क नहीं लिया और उसके ऊपर से उठ कर उसके पैरों की तरफ आ गया।

मैंने प्रिया की जांघों को अपने हाथों से सहलाया और फिर धीरे से उसके पैरों को ऊपर उठा कर अपने कंधे पर रख लिया। पैरों को उठाने की वजह से मेरा लंड अब उसकी चूत के ठीक मुहाने पर सैट हो गया और ठुनक ठुनक कर उसकी चूत को चूमने लगा।

मैंने भी अपने लंड को अपने हाथों से पकड़ कर उसकी चूत की दरारों में घिसना शुरू किया और प्रिया की तरफ हसरत भरी नज़रों से देखने लगा।

प्रिया के चेहरे पर उत्तेजना के भाव दिख रहे थे साथ ही उसकी आँखों में एक अजीब सा डर नज़र आ रहा था। वो जानती थी कि अब असली काम होने वाला है और मेरा लम्बा चौड़ा लंड उसकी चूत की धज्जियाँ उड़ाने वाला था। प्रिया मेरी तरफ ऐसे देख रही थी मानो वो यह कहना चाह रही हो कि जो भी करना धीरे करना। मैं उसकी हालत समझ रहा था, मैंने उसे प्यार से देखा।

“प्रिया मेरी रानी… घबराना नहीं… थोड़ा सा दर्द तो होगा लेकिन मैं ख्याल रखूँगा…” मैंने उसे समझाते हुए कहा।

“डर तो लग रहा है जान, लेकिन मैं अब बर्दाश्त नहीं कर सकती…तुम आगे बढ़ो, मैं संभाल लूंगी…!” प्रिया ने शरमाते हुए मुझे देख कर कहा।

मैंने उसकी जांघों को थाम लिया और अपने सुपारे को उसकी नाज़ुक सी चूत के अन्दर दबाव के साथ घुसाने लगा। चिकनाई इतनी ज्यादा थी कि लंड बार बार फिसल जा रहा था। मैंने फ़िर से अपने लंड को पकड़ा और इस बार थोड़ा दम लगा कर ठेल दिया।

“आअह… सोनू… धीरे…” प्रिया की टूटती आवाज़ आई।

मैंने देखा कि सुपारे का अगला हिस्सा थोड़ा सा उसकी चूत में फंस गया था। अब अगले धक्के की बारी थी और मैंने फ़िर से एक हल्का धक्का मारा… लंड का सुपारा थोड़ा और अन्दर गया और आधा सुपारा उसकी चूत के मुँह में अटक गया।

प्रिया ने अपने दांत भींच लिए थे और अपनी मुट्ठी से चादर को पकड़ लिया था। मैं जानता था कि ज्यादा जोर जबरदस्ती करने से उसकी हालत ख़राब हो सकती है। मैंने अपने सुपारे को वैसे ही फंसा कर रगड़ना चालू किया और उसकी जांघों को सहलाता रहा।

प्रिया इंतज़ार में थी कि कब धक्का पड़ेगा और उसकी चूत फटेगी। उसकी मनोदशा साफ़ साफ़ दिख रही थी।

मैंने ऐसे ही रगड़ते रगड़ते सांस रोक ली और एक जोरदार सा धक्का मारा।

“आई ईईईई ई ईईइ… मर गईईईईई…” प्रिया जोर से चीख पड़ी।

आधा लंड उसकी चूत को चीरता हुआ अन्दर जा चुका था। प्रिया की चीख ने मुझे भी डरा दिया । वो तो भला हो मेरा कि मैंने दरवाज़े के साथ साथ खिडकियों को भी बंद कर दिया था। वरना उसकी चीख पूरे घर में फ़ैल जाती और सब जाग जाते।

मैंने तुरंत उसके जांघों को छोड़ कर उसके ऊपर झुक कर अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए और उसका मुँह बंद कर दिया। लेकिन उसकी घुटी घुटी सी आवाज़ अब भी निकल रही थी। उसकी आँखें फैलकर चौड़ी हो गई थीं और उसने मेरी पीठ पर अपने नाख़ून गड़ा दिए।

मैंने सुन रखा था कि किसी कुंवारी लड़की की सील तोड़ते वक़्त उसका ध्यान बंटा दिया जाना चाहिए ताकि वो सब सह सके।

मैंने भी उसी बात को ध्यान में रखकर उसके होंठों को चूमते हुए उसकी चूचियों को पकड़ कर सहलाने लगा। करीब 8-10 मिनट के बाद प्रिया की पकड़ मेरे पीठ से थोड़ी ढीली हुई और मैं समझ गया कि उसका दर्द कम हो रहा है।

मैं तब थोड़ा ऊपर उठा और एक बार फिर से उसकी जांघों को थाम कर अपने लंड को उतना ही घुसाकर धीरे धीरे अन्दर-बाहर करने लगा। 

जैसे ही लंड ने हरकत करनी शुरू की, प्रिया को फिर से दर्द का एहसास होने लगा।

“प्लीज सोनू… धीरे करो न… बहुत दर्द हो रहा है… उफ्फ्फ्फ़… अगर पता होता कि इतना दर्द होता है तो मैं कभी नहीं लेती तुम्हारा यह ज़ालिम लंड अपनी चूत में !” प्रिया दर्द से कराहते हुए हिल भी रही थी और मुझसे शिकायत भी कर रही थी।

मैंने मन में सोचा,” अभी तो असली दर्द बाकी है मेरी जान…पता नहीं झेल पाओगी या नहीं।”

यह सोचते सोचते मैंने लंड को आगे पीछे करना और उसकी जाँघों को सहलाना जारी रखा। लंड की रगड़ ने चूत को पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ा। लंड चिकनाई को महसूस कर थोड़ा सा और आगे सरका।

“आआह्ह्ह… सोनू… सोनू… दुखता है…” प्रिया को फिर से दर्द का एहसास हुआ।

“बस मेरी जान…अब नहीं दुखेगा…” मैंने उसे सहलाते हुए कहा और अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर उसकी एक चूची को पकड़ कर मसलने लगा।

चूचियों पर हाथ पड़ते ही प्रिया ने अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर उठाया और मुझे यह इशारा मिला कि अब शायद उसे भी अच्छा लगने लगा था। मैं इसी मौके की तलाश में था, मैंने देरी करना उचित नहीं समझा और अपनी सांस को रोक कर उसकी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ लिया और झुक कर उसके होठों को अपने होठों से कैद कर लिया। मैं जानता था कि इस बार जो दर्द उसे होने वाला था वो उसकी हालत ख़राब कर देगा और वो जोर जोर से चिल्लाने लगेगी।
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03-29-2019, 11:27 AM,
#32
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मैंने धीरे धीरे उसकी चूत में अपने लंड को रगड़ते रगड़ते अचानक से एक भरपूर दम लगा कर जोरदार धक्का मारा और इस बार किला फ़तह कर लिया।

“गगगगगूं… गगगगगगूं…उह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… !” प्रिया की घुटन मेरे मुँह में दब कर रह गई और उसने मेरे सर के बालों को इतनी जोर से खींचा कि मैं बर्दासश्त नहीं कर पाया और मेरे होंठ उसके होठों से अलग हो गए।

ऊऊह्हह्ह ह्हह माँ… मुझे नहीं करना…निकालो…प्लीज…मर गईईईई…” प्रिया ने छूटते ही जोर से आवाज़ निकाली और मुझे धक्के देकर खुद से अलग करने लगी।

उसकी आँखें बाहर को आ गईं और उनमे आँसुओं की मोटी मोटी बूँदें भर गईं। उसके होंठ थरथराने लगे… लेकिन कोई शब्द ही नहीं निकल रहे थे मानो उसका गला ही बंद हो गया हो।

उसने अपनी गर्दन इधर उधर करके अपने बेइंतेहा दर्द का प्रमाण दिया और मुझे निरंतर अलग करने के लिए धक्के देती रही।

मैंने उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लिया और उसके आँखों को चूमकर बोला,”बस प्रिया… यह आखिरी दर्द था… थोड़ा सा सह लो… अब सब कुछ ठीक हो जायेगा… अब तो बस मज़े ही मज़े हैं।”

“नहीं सोनू… प्लीज मेरी बात मान लो… बहुत दुःख रहा है… आईई… ओह्ह्ह्हह्ह माँ… मुझसे नहीं होगा…” प्रिया ने लड़खड़ाती आवाज़ में मुझसे कहा और मुझसे लिपट कर रोने लगी।

मैं थोड़ा घबरा गया लेकिन अपने आपको संभाल कर मैंने उसके होंठों को एक बार फिर से चूसना शुरू किया और साथ ही साथ उसकी चूचियों को भी फिर से मसलना शुरू किया।

लंड अब भी पूरा का पूरा उसकी चूत में घुसा हुआ था और ऐसा लग रहा था मानो किसी ने जोर से मुट्ठी में जकड़ रखा हो। मैं बिल्कुल भी हिले बिना उसके होठों और उसकी चूचियों से खेलता रहा और अपने बदन से उसके बदन को धीरे धीरे रगड़ता रहा।

लगभग 15 मिनट के बाद प्रिया ने मेरे होठों को अपने होठों से चूसना शुरू किया और अपने हाथों को मेरी पीठ पर ले जा कर मुझे सहलाने लगी। धीरे धीरे उसने अपनी कमर को थोड़ी सी हरकत दी और अपनी गांड को ऊपर की तरफ किया।

मैं उसका इशारा समझ चुका था और मैंने उसकी आँखों में देखकर मुस्कान भरी और अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर किया। लंड थोड़ा सा बाहर आया, लंड के बाहर आते ही मुझे कुछ गरम गरम सा तरल पदार्थ अपने लंड से होकर बाहर आता महसूस हुआ। मैंने उत्सुकतावश अपना सर नीचे करके देखा तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं। मैंने देखा कि खून की एक मोटी सी धार प्रिया की चूत से निकल रही थी और निकल कर मेरे लंड से होते हुए नीचे बिछी चादर पर फ़ैल रही थी।

प्रिया को भी शायद कुछ महसूस हुआ होगा तभी उसने अपने पैरों को हिलाकर कुछ समझने की कोशिश की लेकिन मैंने उसे कोई मौका नहीं दिया।

अगर उसने वो देख लिया होता तो निश्चित ही मुझे खुद से अलग कर देती और चोदने भी नहीं देती।

मैंने बिना वक़्त गवाए अपने लंड को बाहर खींच कर फिर से एक धक्का मार कर अन्दर ठेल दिया।

फच्च …एक आवाज़ आई और मेरा लंड वापस उसकी चूत की गहराइयों में चला गया और प्रिया के मुँह से फिर से एक सिसकारी निकली।
मैंने बिना रुके अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू किया और मंद गति से उसकी चुदाई करने लगा। मेरे हाथ अब भी उसकी चूचियों से खेल रहे थे जिसकी वजह से प्रिया अपना दर्द भूल कर उस पल का आनंद ले रही थी।

थोड़ी देर वैसे ही चोदते रहने के बाद प्रिया की चूत पूरी तरह मेरा साथ देने लगी थी और मज़े के साथ मेरे लंड का स्वागत कर रही थी। अब मैंने अपनी कमर को उठाया और अपने हाथों को ठीक से एडजस्ट करके प्रिया के पैरों को और फैला लिया ताकि उसकी चूत की सेवा ठीक से कर सकूँ।

मैंने एक बार झुक कर प्रिया को चूमा और फिर अपने लंड को पूरा बाहर निकाल कर एक जोरदार धक्के के साथ अन्दर ठेला।

“ह्म्मम्म…… मेरे प्रीतम जी…” प्रिया बस इतना ही कह पाई और मैंने ताबड़तोड़ धक्के पे धक्के लगाने शुरू किये।

“प्रिया…अब तो बस तुम जन्नत की सैर करो।” मैंने प्रिया को इतना कह कर अपनी चुदाई की स्पीड बढ़ानी शुरू की।

कमरे में अब फच..फच की आवाज़ गूंजने लगी और साथ ही साथ प्रिया के मुँह से निकलती सिसकारियाँ मेरा जोश दोगुना कर रही थीं। मैं मज़े से उसकी चुदाई किए जा रहा था। अब तक जिस दर्द की वजह से प्रिया के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था वही दर्द अब उसे मज़े दे रहा था और उसने मेरे हाथों को अपने हाथों से थाम लिया और अपनी कमर उठा उठा कर चुदने लगी।

“हाँ मेरे राज्जा …और करो…और करो…आज जी भर के खेलो …हम्म्म्म…उह्ह्ह्ह…” प्रिया अपनी आँखों को बंद करके जन्नत की सैर करने लगी।

“हाँ मेरी रानी… इस दिन के लिए मैं कब से तड़प रहा था… आज तुम्हारी और अपनी, दोनों की सारी प्यास बुझा दूँगा।” मैंने भी प्रिया का साथ देते हुए उसकी बातों का जवाब दिया और चोदना जारी रखा।

मैंने अपनी स्पीड अब और बढ़ा दी और गचा गच चुदाई करने लगा। अब तक उसकी चूत ने काफी पानी छोड़ा था और लंड को अब आसानी हो रही थी लेकिन उसकी चूत अब भी कसी कसी ही थी और मेरे लंड को पूरी तरह जकड़ कर रखा था। बीच बीच में मैं अपना एक हाथ उठा कर उसकी चूचियों को भी मसलता रहता जो प्रिया की मस्ती को और बढ़ा रहा था।



“आह्ह्हह…आअह्ह्ह…ओह्ह्ह…मेरे प्रीतम जी… और करो… हम्म्म्म…” प्रिया की यह मस्तानी आवाज़ मेरे हर धक्के के साथ ताल से ताल मिलाकर मुझे उकसा रही थी।

मैंने और तेज़ी से धक्के देने के लिए अपने पैरों को एडजस्ट किया और निरंतर धक्कों की बरसात कर दी। मैंने जब स्पीड बढ़ाई तो प्रिया के मुँह से एक सांस में लगातार आवाजें निकलनी शुरू हो गई…

“हाँ… हाँ… हाँ… मेरे सोनू… ऐसे ही… और तेज़ी से करो… और तेज़… उफ्फ्फ्फ़..” प्रिया मेरे नीचे दबी हुई चुदते चुदते बहकने सी लगी।

मुझे थोड़ी सी मस्ती सूझी और मैंने चुदाई को और रंगीन बनाने के लिए प्रिया को एक ही झटके में उठा लिया और उसे अपनी गोद में ऐसे बिठा लिया कि मेरा लंड अब भी उसकी चूत में ही रहा और उसके दोनों पैर मेरे कमर के दोनों तरफ हो गए। लंड रुक गया था जो प्रिया को मंज़ूर नहीं था शायद।

गोद में आते ही उसने अपनी कमर खुद ही हिलानी शुरू की और लंड को जड़ तक अपनी चूत में समवाने लगी। मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया और नीचे से अपने कमर को हिलाते हुए लंड उसकी चूत में डालने लगा।

यह आसन बड़ा ही मजेदार था यारों ! एक तरफ प्रिया की चूत में लंड बिना किसी रुकावट के अन्दर बाहर हो रहा था, वही, दूसरी तरफ उसकी चूचियाँ मेरे मुँह के सामने हिल हिल कर मुझे उन्हें अपने मुँह में लेने को उकसा रही थीं।

मैंने भी देरी न करते हुए उसकी एक चूची को अपने मुँह में भर लिया और चूची को चूसते हुए धक्के मारने लगा।

“उफ्फ्फ… ह्म्म्म… खा जाओ मुझे… उम्मम्म…” चूचियों को मुँह में लेते ही प्रिया ने मज़े में बोलना शुरू किया।

मैंने भी उसे थाम कर उसकी चूची को चूसते हुए जोरदार चुदाई का खेल जारी रखा। हम दोनों के माथे पर पसीने की बूँदें उभर आई थीं। हम दोनों एक दूसरे को अपने अन्दर समां लेने की कोशिश करते हुए इस काम क्रीड़ा में व्यस्त थे।

तभी प्रिया ने मुझे धीरे से धक्का मारा और मुझे नीचे लिटा दिया और झट से मेरे ऊपर आ गई। मेरे अचानक से नीचे लेटने की वजह से “पक्क” की आवाज़ के साथ लंड उसकी चूत से बाहर आ गया।

“उई ईई ईईईईइ… कितना दर्द देगा ये तुम्हारा…”प्रिया के चूत से निकलते हुए लंड ने चूत की दीवारों को रगड़ दिया था जिस वजह से प्रिया के मुँह से यह निकल पड़ा लेकिन उसने आधी बात ही कही।

“कौन तुम्हें दर्द दे रहा है जान…” मैंने मस्ती भरे अंदाज़ में पूछा।

“यह तुम्हारा…”…प्रिया ने मेरे लंड को हाथों से पकड़ कर हिलाया और मेरी आँखों में देखने लगी लेकिन उसने उसका नाम नहीं लिया और शरमा कर अपनी आँखें नीचे कर लीं।

“यह कौन…उसका नाम नहीं है क्या…?” मैंने जानबूझ कर उसे छेड़ा।

“यह तुम्हारा लंड…” इतना कह कर उसने अपना सर नीचे कर लिया लेकिन लंड को वैसे ही हिलाती रही।

लंड पूरी तरह गीला था और अकड़ कर बिल्कुल लोहे के डण्डे के समान हो गया था।

मैंने थोड़ा उठ कर प्रिया को एक चुम्मी दे दी और फिर से उसे अपने ऊपर खींच लिया। प्रिया ने मुझे वापस धकेला और मेरे कमर के दोनों तरफ अपने पैरों को फैला कर बैठने लगी। उसकी बेचैनी इस बात से समझ में आ रही थी कि उसने अपना हाथ नीचे ले जा कर लंड को टटोला और जैसे ही लंड उसके हाथों में आया उसके चेहरे पे एक मुस्कान आ गई और उसने लंड को पकड़ कर अपनी मुनिया के मुहाने पर रख लिया और धीरे धीरे लंड पे बैठने लगी। लंड गीलेपन की वजह से उसकी चूत में समाने लगा और लगभग आधा लंड प्रिया के वजन से चूत में घुस पड़ा।

प्रिया ने अपनी गांड उठा उठा कर लंड को उतना ही घुसाए हुए ऊपर से चुदाई चालू करी।

“ह्म्म्म…ओह्ह्ह्हह…मेरी रानी…हाँ…और अन्दर डालो…” मैंने तड़पते हुए प्रिया की झूलती हुई चूचियों को सहलाते हुए कहा।

“किसने कहा था इतना बड़ा लंड रखने के लिए…हम्म्म्म… मेरी चूत फाड़ दी है इसने और तुम्हें और अन्दर डालना है…” प्रिया अब पूरी तरह खुल चुकी थी और मज़े से लंड और चूत का नाम लेते हुए चुदवा रही थी।

“जैसा भी है अब तुम्हारा ही है जान… इसका ख्याल तो अब तुम्हें ही रखना है न..” मैंने भी प्रेम भरे शब्दों में प्रिया को जवाब दिया।

“हाँ…अब ये बस मेरा है… उम्म्मम्म…कैसे चोदे जा रहा है मुझे… उफ्फ्फफ्फ.. अगर पता होता कि चुदाई में इतना मज़ा है तो कब का तुम्हारा यह मूसल डाल लेती अपनी चूत में !” प्रिया ने ऊपर नीचे उछलते हुए कहा और मज़े से अपने होठों को चबाते हुए लंड को अपनी चूत से निगलने लगी।

“हाँ… और चुदवा लो मेरी जान… पूरा अन्दर घुसा लो …उम्म्म्म… हाँ हाँ हाँ… ऐसे ही।” मैंने भी प्रिया का जोश बढ़ाया और उसकी कमर को थाम कर अपनी कमर हिला हिला कर नीचे से लंड को उसकी चूत में धकेलने लगा।

“ओह मेरे सोनू… आज तुम्हारे लंड के साथ साथ तुम्हें भी पूरा अन्दर डाल लूँगी अपनी चूत में… हाय राम… कितना मज़ा भरा है तुम्हारे लंड में…उफ्फ्फ्फ़ !” प्रिया मेरी बातों का जवाब देते हुए और भी जोश में उछलने लगी।

मैंने उसकी कमर को पकड़ा हुआ था और उसकी उछलती हुई चूचियों का दीदार करते हुए चुदाई का भरपूर आनन्द ले रहा था। हम काफी देर से चुदाई कर रहे थे और सारी दुनिया को भूल चुके थे। हमें ये भी एहसास नहीं था कि घर में कोई भी जाग सकता था और सबसे बड़ी बात कि स्मिता आंटी प्रिया को ढूंढते ढूंढते नीचे भी आ सकती थी। लेकिन हम इस बात से बेखबर बस अपनी अपनी प्यास बुझाने में लगे थे।

इतने देर से चुदाई करने के बावजूद कोई भी पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था। मेरा तो मुझे पता था कि दोपहर में ही मेरा टैंक खाली हुआ था तो इस बार झड़ने में वक़्त लगेगा। लेकिन प्रिया न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी फिर भी लंड अपनी चूत से बाहर नहीं करना चाहती थी।

आज वो पूरे जोश में थी और जी भर कर इस खेल का मज़ा लेना चाहती थी। प्रिया की जगह उसकी बड़ी बहन रिंकी में इतनी ज्यादा स्टैमिना नहीं थी।

खैर मैं अपनी चुदाई का खेल जारी रखते हुए उसकी मदमस्त जवानी का रस पी रहा था।

इस पोजीशन में काफी देर तक चुदाई करने के बाद मैंने प्रिया को अपने ऊपर से नीचे उतारा और उसे घुमा कर घोड़ी बना दिया। प्रिया ने झुक कर घोड़ी की तरह पोजीशन ले ली और पीछे अपनी गर्दन घुमा कर मुझे एक सेक्सी स्माइल दी और धीरे से मुझसे बोली- जल्दी डालो ना जान…जल्दी करो !

प्रिया तो मुझसे भी ज्यादा उतावली हो रही थी लंड लेने के लिए। मैंने भी अपना लंड अपने हाथों में लेकर उसके गोल और भरी पिछवाड़े पे इधर उधर फिराया और फिर उसकी गांड की दरार में ऊपर से नीचे तक घिसते हुए उसकी चूत पर सेट किया और उसकी कमर पकड़ ली। मैंने एक बार झुक कर उसकी नंगी पीठे पर किस किया और अपनी सांस रोक कर एक जोरदार झटके के साथ अपना आधा लंड उसकी चूत में पेल दिया।

मैंने सुना था कि घोड़ी की अवस्था में लड़कियों या औरतों की चूत और कस जाती है, इस बात का प्रमाण मुझे अब मिल रहा था। प्रिया की चूत तो पहले ही कसी और कुंवारी थी लेकिन इस पोजीशन में और भी कस गई थी वरना जितने जोर का झटका मैंने मारा था उतने में मेरा पूरा लंड उसकी चूत में घुस जाना चाहिए था। चूत के कसने की वजह से लंड ने जब अन्दर प्रवेश किया तो प्रिया के मुँह से एक हल्की से चीख निकल गई।

“आऐ ईईइ…आर्राम से मेरी जान…इतने जोर से डालोगे अपने इस ज़ालिम लंड को तो मेरी चूत का चिथड़ा हो जायेगा।” प्रिया ने अपनी गर्दन घुमा कर मुझे दर्द का एहसास कराते हुए कहा।

पर मैं कहाँ कुछ सुनने वाला था मैं तो अपनी धुन में मस्त था और उसकी कसी कुंवारी चूत को फाड़ डालना चाहता था। मैंने एक और जोर का झटका मारा और अपने लंड को पूरा अन्दर पेल दिया।

“आह्ह्ह… जान… प्लीज आराम से चोदो न… हम्म्म्म… मज़े देकर चोदो मेरे मालिक, यह चूत अब तुम्हारी ही है…उफफ्फ्फ्फ़…मार लो…! ” प्रिया मस्ती में भर कर अपनी गांड पीछे धकेलते हुए चुदने लगी।

“हाँ मेरी जान, अब यह चूत सिर्फ मेरी ही रहेगी… और मेरा लंड हर वक़्त इसमें समाया रहेगा…उम्म्म्म…ऊह्ह्ह्ह…दीवाना हो गया हूँ तुम्हारी चूत का… अब तो बिना इसे चोदे नींद ही नहीं आएगी… ओह्ह्ह्ह… और लो मेरी जाने मन… जी भर के चुदवाओ…” मैंने भी चोदते चोदते प्रिया को कहा और अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसकी लटकती चूचियों को पकड़ लिया।

मेरे ऐसा करने से मेरी पकड़ प्रिया के ऊपर और टाइट हो गई और लंड उसकी चूत में पूरी तरह से समां कर अपना काम करने लगा।

“हाँ… मेरे साजन… हाँ… चोदो मुझे… चोदो… चोदो… चोदो… उफ्फ्फ…” प्रिया अपने पूरे जोश में थी और अपनी गांड पीछे धकेल धकेल कर लंड को निगल रही थी।

प्रिया की हालत देख कर ऐसा लगने लगा था कि अब वो अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुकी है और अब झड़ कर निढाल हो जाएगी। मैंने भी अब अपना पानी छोड़ने का मन बनाया और उसकी चूचियों को छोड़ कर उसकी कमर को फिर से पकड़ कर भयंकर तेज़ी के साथ धक्के लगाने लगा। मेरी स्पीड किसी मशीन से कम नहीं थी।

“आआ…अया… आया…सोनू… मेरे सोनू… आज तुमने मुझे सच में जन्नत में पहुँचा दिया…आईई… और चोदो …तेज़…तेज़… तेज्ज़… और तेज़ चोदो… फाड़ डालो इस चूत को… चीथड़े कर दो इस कमीनी के… हाँ…ऐसे ही …और चोदो…मेरे चोदू सनम…चोदो…” प्रिया निरंतर अपने मुँह से सेक्सी सेक्सी देसी भाषा में बक बक करते हुए चुदाई का मज़ा ले रही थी और अपनी गांड को जितना हो सके पीछे धकेल कर मेरे लंड से सटा रही थी।

“हाँ मेरी जान… ये ले… और चुदवा …और चुदवा … फ़ड़वा ले अपनी नाज़ुक बूर को…ओह्ह्ह…और ले… और ले… तू जितना कहेगी उससे भी ज्यादा मिलेगा…ले चुदवा ले …!” मैंने भी उसी स्पीड से चोदते हुए उसकी गांड पर अपने जांघों से थपकियाँ देते हुए चूत का नस नस ढीला कर दिया।
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03-29-2019, 11:27 AM,
#33
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
“हाँ आआ अन्न… मैं गई जान…मेरे चूत से कुछ निकल रहा है…हाँ…और तेज़ी से मारो…और पेलो… और पेलो… तेज़… तेज़…तेज़… चोदो… चोदो… और चोदो… आऐईईई… ओह्ह्ह्हह्ह.. माँ…मर गई…सोनूऊऊउ !” प्रिया बड़ी तेज़ी से अपनी गांड हिलती हुई झड़ गई और अपने हाथों को सीधा कर के बिस्तर पे पसर सी गई।

मैं अब भी उसे पेले जा रहा था… मैंने उसकी कमर को अपनी तरफ खींच कर ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा और मस्ती में मेरे मुँह से भी अनेकों अजीब अजीब आवाजें निकलने लगीं। मैं भी अपने फ़ाइनल दौर में था।

“ओह्ह्ह्ह… मेरी जान… और चुदवा लो… और चुदवा लो… तेरी चूत का दीवाना हूँ मैं… मेरा लंड अब कभी तुम्हारी चूत को नहीं छोड़ेगा… हाँ… और लो …और लो… मैं भी आ रहा हूँ… हम्म्म्म… ओह मेरी रानी… चुद ही गई तुम्हारी चूत…और लो…” मैं प्रिया को पूरी तरह अपने कब्जे में लेकर अपना लंड उसकी चूत में पेलता रहा और बड़बड़ाता रहा। 

प्रिया लम्बी लम्बी साँसें लेकर मेरा साथ दे रही थी और अपनी गांड को धकेल कर मेरे लंड से चिपका रही थी।

“ऊहह्ह्ह्ह… ह्म्म्म… ये लो मेरी जान…” मैं जोर से बकने लगा। मुझे यह ख्याल था कि मुझे अपनी धार अन्दर नहीं छोड़नी है वरना मुश्किल हो जाएगी।

मैंने झट से अपना लंड बाहर निकला और उसे अपने हाथों से तेज़ी से हिलाने लगा। प्रिया की चूत से जैसे ही लंड बाहर आया वो घूम गई और मुझे अपना लंड हिलाते हुए देख कर मेरे करीब आ गई और मेरा हाथ हटा कर उसने मेरे लंड को थाम लिया और एक चुदक्कड़ खिलाड़ी की तरह मेरे लंड की मुठ मारने लगी.. साथ ही साथ एक हाथ से मेरे अण्डों को भी दबाने लगी।

मेरा रुकना अब नामुमकिन था। प्रिया ने अपनी मुट्ठी को और भी मजबूती से जकड़ लिया और लंड को स्ट्रोक पे स्ट्रोक देने लगी।
“आआअह्ह… आअह्ह्ह…आअह्ह्ह… प्रिया मेरी जान… ह्म्म्म…आअह्ह्ह्ह !” एक तेज़ आवाज़ के साथ मेरे लंड से एक तेज़ धार निकली और मेरे लंड का गाढ़ा गाढ़ा सा रस प्रिया की चूचियों पर छलक गया। न जाने कितनी पिचकारियाँ मारी होंगी मैंने…मज़े में मेरी आँखें ही बंद हो गई थीं…

प्रिया अब भी लंड को हिला हिलाकर उसका एक एक बूँद निकाल रही थी और उसे अपने बदन पे फैला रही थी।

जब लंड से एक एक बूँद पानी बाहर आ गया तो मैं बिल्कुल कटे हुए पेड़ की तरह बिस्तर पे गिर पड़ा और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा। प्रिया भी मेरे ऊपर ही अपनी पीठ के बल लेट गई और आहें भरने लगी।

हम काफी देर तक वैसे ही पड़े रहे, फिर प्रिया धीरे से उठ कर बाथरूम में चली गई। मैं अब भी वैसे ही लेटा हुआ था।

जब प्रिया बाहर आई तो बिल्कुल नंगी थी और शायद उसने अपनी चूत को पानी से साफ़ कर लिया था। लेकिन वो मेरे पास आकर थोड़ी बेचैन सी दिखी तो मैं झट से उठ कर उसके पास गया और उसकी बेचैनी का कारण पूछने लगा।

तभी प्रिया ने शरमाते हुए बताया कि उसकी चूत पर पानी लगते ही बहुत ज़ोरों से जलन हो रही है। उसकी चूत के अन्दर तक जलन की तेज़ लहर सी उठ रही थी। मैंने उसका हाथ पकड़ कर ऊपर वाले बेड पे बिठा दिया और उसकी पीठ सहलाने लगा।

अचानक से प्रिया की नज़र नीचे चादर पे गई जहाँ ढेर सारा खून गिरा पड़ा था। उसने चौंक कर मेरी तरफ देखा और अपना मुँह ऐसे बना लिया जैसे पता नहीं क्या हो गया हो।

मैं उसकी हालत समझ गया और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में आँखें डाल कर उसे समझाने लगा- जान, डरो मत, यह तो हमारे प्रेम की निशानी है… ये तुम्हारे कली से फूल और आज से मेरी बीवी बनने का सबूत है।” मैंने उसे बड़े प्यार से कहा।

प्रिया ने मेरी बातें सुनकर अपना सार मेरे कंधे पे रख दिया और उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।

“इतना प्यार करते हो मुझसे…” प्रिया ने बस इतना ही पूछा…लेकिन मैंने जवाब में बस उसके होठों को चूम लिया।

फिर मैंने अपने आलमारी से कोकोनट ऑइल निकाल कर उसे दी और कहा कि अपनी चूत में लगा लो, आराम आ जायेगा।

उसने मेरी तरफ देखा और अचानक से मेरे कान पकड़ कर बोली, “अच्छा जी, चूत तुम्हारी है और तुम्हारे ही लंड ने फाड़ी है…तो ये काम भी आप को ही करना होगा ना?”

मैं हंस पड़ा और बोला “हाँ जी, चूत तो मेरी ही है लेकिन उसे फाड़ा तो आपके लंड ने है…तो अपने लंड को कहो कि हमारी चूत में घुस कर दवा लगा दे !”

“ना बाबा ना…अगर इसे कहा तो ये दवा लगाने के बहानें फिर से शुरू हो जाएगा।” यह कहकर प्रिया ने लंड को अपने हाथों से पकड़ कर मरोड़ दिया।

इतनी देर के बाद लंड अब ढीला पड़ चुका था लेकिन जैसे ही प्रिया ने उसे छुआ कमबख्त ने अपना सर उठाना चालू कर दिया। प्रिया यह देख कर हंसने लगी और मैं भी मुस्कुराने लगा। मैंने प्रिया को वहीं बिस्तर पर लिटा दिया और फिर अपनी उँगलियों पे कोकोनट ऑइल लेकर अच्छी तरह से उसकी चूत में लगा दिया और फिर आखिर में उसकी चूत को चूम लिया।

“हम्म्म्म…उफ्फ्फ सोनू ऐसा मत करो… वरना फिर से…” इतना कह कर प्रिया ने अपनी नजर नीचे कर ली और मुस्कुराने लगी।

मैं जल्दी जल्दी बिस्तर से नीचे उतरा और अपनी निक्कर और टी-शर्ट पहन ली और प्रिया के कपड़े उसे देते हुए कहा, “जान, जल्दी से कपड़े पहन लो काफी देर हो चुकी है। तुम्हारी मॉम तुम्हें ढूंढते हुए कहीं यहाँ आ जाये।”

मेरी बात सुनकर प्रिया हंसने लगी और अपने कपड़े मेरे हाथों से लेकर पहनने लगी। फिर मैंने जल्दी से नीचे पड़ी चादर को उठाया और उसे बाथरूम में रख दिया। प्रिया अपनी किताबें समेट रही थी। किताबें लेकर प्रिया दरवाज़े की तरफ बढ़ी लेकिन उसकी चाल में लड़खड़ाहट साफ़ दिख रही थी। हो भी क्यूँ ना…आखिर उसकी सील टूटी थी। मैं पीछे से यह देख कर मुस्कुराने लगा और मुझे दोपहर की रिंकी वाली बात याद आ गई।

सच पूछो तो मुझे अपनी किस्मत पर थोड़ा गर्व हो रहा था। एक ही दिन में दो दो चूतों की सील तोड़ने का मौका जो मिला था मुझे …

प्रिया ने पलट कर मुझे एक स्माइल दी और मेरी तरफ चुम्मी का इशारा करके दरवाज़े से बाहर निकल गई और सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने घर में प्रवेश कर गई।

मैं दरवाज़े पे खड़ा उसे तब तक देखता रहा जब तक उसने दरवाज़ा बंद नहीं कर लिया और मेरी नज़रों से ओझल न हो गई। पता नहीं क्यूँ लेकिन दो दो कसी कुंवारी चूतों का शील भंग करने के बाद भी मुझे सिर्फ और सिर्फ प्रिया का ही ख्याल आ रहा था। शायद मुझे सच में प्रिया अच्छी लगने लगी थी। शायद मै उससे प्यार करनें लगा था। 

इसी ख्याल से खुश होकर मैं अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके लाइट बंद किये बिना ही बिस्तर पे गिर कर आँखें बंद कर अभी अभी बीते पलों को याद करने लगा। अपने जीवन का अब तक का सबसे अच्छा वक़्त बिताकर मैं फूला नहीं समां रहा था। प्रिया के जाने के बाद मैंने भी अपने बिस्तर को थाम लिया और थक कर चूर होने की वजह से लेटते ही नींद के आगोश में समां गया। आँखे बंद होते ही मेरे जेहन में वो कामुक सिसकारियाँ गूंजने लगीं जो रिंकी और प्रिया के मुँह से निकलीं थीं। मेरे होंठों पे बरबस एक मुस्कान सी आ गई और मैं मुस्कुराता हुआ सो गया। 

दोनों बहनें बेमिसाल थीं। एक से बढ़ कर एक थीं। लेकिन दोनों में बहुत अन्तर था। बड़ी वासना की देवी थी और छोटी प्रेम की। जो मजा रिंकी को भोगनें में था वह मजा शायद प्रिया को भोगनें में नहीं था। रिंकी अपनीं जिन्दगी का हर कदम सोच समझ कर और नाप-तोल कर उठाती थी जबकि प्रिया में समर्पण था। रिंकी शरीर की भुख के हाथों मजबूर थी प्रिया दिल के हाथों बेबस थी। रिंकी मेरे साथ शायद सेक्स का आनन्द लूटना चाहती है जबकि प्रिया मुझसे शायद सच्चा प्यार करती है। आज मुझे पक्का भरोसा है कि राजेश ने अगर रिंकी के बजाय प्रिया पर डोरे डाले होते तो शायद प्रिया उसके झाँसे में कभी न आती। रिंकी को मेरे और प्रिया के रिश्ते के प्रति अन्दर ही अन्दर सौतिया डाह भले हो पर कोई एतराज नहीं था लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि अगर किसी दिन प्रिया के सामनें मेरे और रिंकी के रिश्ते का भाँण्डा फूटा तो तूफान आ जायेगा।
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03-29-2019, 11:27 AM,
#34
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
छोटी मौसी की शादी

“वैसे आप कुछ अच्छी खबर देने वाली थीं..?” मैंने प्रिया को याद दिलाया तो प्रिया की आँखों में एक चमक सी आ गई।

“ह्म्म्म… अच्छी खबर यह है कि हम सब एक हफ्ते के लिए मेरे नानी के घर जा रहे हैं… छोटी मौसी की शादी है।” प्रिया ने एक सांस में बहुत ख़ुशी के साथ कहा।

खबर सुनकर मैं थोड़ा चौंका और सोचने लगा कि इसमें अच्छा क्या है… बल्कि अब तो वो मुझसे एक हफ्ते के लिए जुदा हो जाएगी… मैं ये सोच कर परेशान हो गया।

मेरे चेहरे की परेशानी देखकर प्रिया ने शैतानो वाली मुस्कान के साथ मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहा, “अरे बाबा, परेशान मत हो… हम सब मतलब आप और नेहा दीदी भी हमारे साथ आ रहे हो!”

“क्या… यह कब हुआ…प्लान बन गया और मुझे खबर भी नहीं हुई?” मैंने चौंक कर प्रिया से पूछा।

“यह तब हुआ जब आप घोड़े बेच कर सो रहे थे… दरअसल मामा जी आये हैं अभी एक घंटा पहले और सभी लोग ऊपर ही बैठे हैं… नेहा दीदी भी ऊपर ही हैं और काफी देर से हम सब मिलकर प्लान ही बना रहे हैं..” प्रिया ने सब कुछ समझाते हुए कहा।

मैं अब तक भौंचक्का होकर उसकी बातें सुन रहा था.. ‘जाना कब है और शादी कब है?” मैंने धीरे से पूछा।

आज शाम की ट्रेन है और शादी सन्डे को है जनाब, दरअसल मॉम यह सारी प्लानिंग कई दिनों से कर रही थीं और उन्होंने हम सबके लिए टिकट पहले से ही बुक करवा ली थीं। तो अब जल्दी से अपने सारे काम निपटा लीजिये और चलने की तैयारी कीजिये… वैसे आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि हमारे मामा जी के बहुत सारे खेत खलिहान हैं और वहाँ कोई आता जाता नहीं है”। प्रिया ने एक मादक और शरारत भरे अंदाज़ में कहा और धीरे से मेरे नवाब को पकड़ कर दबा दिया।

मैं यह सुनकर बहुत ही खुश हो गया और न जाने क्या क्या सपने देखने लगा… मेरी आँखों के सामने खुले खेत और बाग़ बगीचे के बीच प्रेम क्रीडा के दृश्य घूमने लगे।

प्रिया नें इसे ताड़ते हुये कहा “अभी से खो गए? जनाब ज्यादा सपने मत देखिये, शादी की भीड़-भाड़ में कितना मौका मिलेगा उसका अभी कुछ पता नहीं।”

मैने कहा “आप चिन्ता न करे सपनों को हकीकत में बदलने की कला हमे आती है”।

“एक बार वहाँ पहुँच तो जाइये, फिर देखेंगे कि कितने सपने हकीकत में बदलत पाते है।” प्रिया ने मेरे लंड को जोर से दबा कर मेरा ध्यान तोड़ा।

अपने हाथ से चाय का प्याला नीचे रख प्रिया को जोर से पकड़ कर मैं उसके ऊपर लेट सा गया और जिस लंड को प्रिया ने दबा कर जगा दिया था उसे कपड़ों के ऊपर से उसकी चूत पे रगड़ने लगा।


“ओह सोनू…देखो ऐसा मत करो… एक तो तुमने मेरी मुनिया की हालत बिगाड़ दी है और अगर अभी यह जाग गई तो बर्दाश्त करना मुश्किल हो जायेगा…… और अभी यह संभव नहीं है कि हम कुछ कर सकें… तो प्लीज मुझे जाने दो और तुम भी जल्दी से तैयार होकर ऊपर आ जाओ, मामजी तुमसे मिलना चाह रहे हैं और बाकी सब भी तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।” इतना कहकर प्रिया ने मुझे ज़बरदस्ती अपने ऊपर से उठा दिया और मेरे लंड को एक बार फिर से सहलाकर जाने लगी।

प्रिया के जाते जाते मैंने बढ़कर उसकी एक चूची को जोर से मसल दिया… यह मेरी उत्तेजना के कारण हुआ था।

“उफ़…ज़ालिम कहीं के…. !” प्रिया ने अपने उभार को सहलाते हुए मुझे मीठी गाली दी और मुस्कुराकर वापस चली गई। मैं मस्त होकर अपने बाकी के कामों में लग गया और जाने की तैयारी करने लगा।

करीब 7.30 बजे मैं तैयार होकर ऊपर नाश्ते के लिए पहुँचा। तो देखा कि सब लोग पहले से ही खाने की मेज़ पर बैठे थे। मैंने प्रिया के मामा जी को देखा और हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते की। उन्होंने भी प्रत्युत्तर में मुझे हंस कर आशीर्वाद दिया और फिर हम सब नाश्ता करने लगे। 

हम सब बातों में खोये थे कि तभी मैंने रिंकी की तरफ देखा, उसने मुझे देखकर एक मुस्कान दी और फिर अपनी आँखें झुका लीं। मेरे दिमाग में उसके साथ बीते हुए कल के दोपहर की हर एक बात घूमने लगी और मैं भी मुस्कुरा उठा। 

खैर… हम सबने अपनी अपनी तैयारी कर ली थी और सारे सामान बैग में भर कर स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गए। नेहा दीदी ने बताया कि स्मिता आंटी ने मम्मी-पापा से बात कर ली है और उनसे इज़ाज़त भी ले ली है। मेरे मम्मी पापा हमारी गैर मौजूदगी में एक सप्ताह की छुट्टी ले कर घर वापस आ रहे थे और इसलिए हमें घर की कोई चिंता करने की जरुरत नहीं थी।

आज अभी थर्सडे यानि कि गुरूवार है और हम कल शुक्रवार को दोपहर तक मामा जी के घर पहुचेगें, शनिवार को हल्दी की रस्म होगी और शादी 19 नवम्बर सन्डे को है। फिर सोमवार को आराम कर के हमे फिर से मंगलवार की सुबह को वापसी के लिये निकल कर हावडा नई दिल्ली पूर्वा एक्सप्रेस से उसी रात इलाहाबाद पहुँचना था। पूर्वा एक्सप्रेस शाम चार बजे पटना से निकलती थी और रात पौने दस बजे इलाहाबाद पहुँच जाती थी। जैसा कि प्रिया ने मुझे बताया था, यह हमारा पूरा कार्यक्रम था।
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03-29-2019, 11:28 AM,
#35
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
ट्रेन का सफर

ऱात करीब नौ बजे हम सब स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। ट्रेन का समय करीब दस बजे का था और आज वह राईट टाईम थी। प्रिया के मामा जी बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले थे यानि कि प्रिया का ननिहाल दरभंगा में था। इलाहाबाद से हम सबको श्रीगंगानगर हावडा तुफान एक्सप्रेस से जाना था। हम सब बेसब्री से ट्रेन का इंतज़ार करने लगे और ट्रेन करीब सवा दस बजे प्लेटफार्म पर आ गई। नवम्बर का महीना था और मौसम ठंडा हो चुका था, शायद इसीलिए स्लीपर की ही बुकिंग करवाई थी। हम कुल 6 लोग थे। स्लीपर के डब्बे में हमारी सारी सीटें एक ही कम्पार्टमेंट में थी यानि कि दोनों तरफ की 3-3 बर्थ हमारी थीं। मुझे हमेशा से ट्रेन की साइड विंडो वाली सीट पसंद आती है, इसलिए मैं थोड़ा सा उदास हो गया। लेकिन फिर मन मार कर सबके साथ बैठ गया।

ट्रेन चल पड़ी और तीनों लड़कियाँ लग गईं अपने असली काम में… वही लड़कियों वाली गॉसिप और हाहा-हीही में… मैंने अपना आईपॉड निकाला और आँखें बंद करके गाने सुनने लगा। खाना हम सब घर से साथ ले कर आये थे।

थोड़ी ही देर में स्मिता आंटी ने मुझे धीरे से हिलाकर उठाया और खाने के लिए कहा। मेरा मन नहीं था तो मैंने मना कर दिया लेकिन आंटी नहीं मानीं और उन्होंने अपने हाथों से मुझे खिलाना शुरू कर दिया।

“अरे आंटी रहने दीजिये, मैं खुद ही खा लेता हूँ!” मैं थोड़ा असहज होकर बोल उठा..

“खा लीजिये जनाब, हमारी मम्मी सबको इतना प्यार नहीं देतीं… आप नसीब वाले हैं।” प्रिया ने शरारत भरे लहजे में कहा और हम सब उसकी बात पर खिलखिला कर हंस पड़े।

मेरी नज़र बगल वाली साइड की सीट पर गई जो अब भी खाली पड़ी थी… मैं उसे खाली देख कर खुश हो गया, हल्की हल्की ठंड लग रही थी और मन कर रहा था कि प्रिया को अपनी बाहों में भर कर ट्रेन की सीट पर लेट जाऊँ.. लेकिन यह संभव नहीं था। हम सब खाना खा चुके थे और सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी टीटी आया और हमारे टिकट चेक करने लगा। मैंने धीरे से टीटी से साइड वाली सीट के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वो खाली ही है और अब पटना तक उस पर कोई नहीं आने वाला। यह सुनकर मैं खुश हो गया। रिंकी और नेहा दीदी सबसे ऊपर वाले बर्थ पर चढ़ गईं, रिंकी दाईं ओर और नेहा दीदी बाईं ओर, बीच वाले बर्थ पे दाईं ओर प्रिया ने अपना डेरा डाल लिया और बाईं ओर स्मिता आंटी को दे दिया गया।

लेकिन स्मिता आंटी ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें नीचे वाली सीट ही ठीक लगती है। इस बात पर मामा जी बीच वाली बर्थ पे चले गए। अब बचे मैं और आंटी, तो मैंने आंटी से कहा- आप नीचे वाली बर्थ पर दाईं ओर सो जाओ मैं अभी थोड़ी देर साइड वाली सीट पर बैठूँगा फिर जब नींद आएगी तब नीचे वाली बाईं ओर की सीट पर सो जाऊँगा।

प्रिया ने अपने कम्बल से झांक कर मुझे देख कर आँख मारी … और धीरे से गुड नाईट बोलकर सो गई…

मैंने मुस्कुरा कर उसका जवाब दिया और फिर कम्बल लेकर साइड वाली सीट पर बैठ गया और पहले की तरह गाने सुनने लगा।
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03-29-2019, 11:28 AM,
#36
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
आंटी के साथ शुरूआत

कम्पार्टमेंट के सारे लोग लगभग सो चुके थे और पूरे डब्बे में अँधेरा हो चुका था। मैं मजे से गाने सुनता हुआ खिड़की से आती ठण्ड का मज़ा ले रहा था। तभी मेरे ठीक सामने आकर कोई बैठ गया। मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि स्मिता आंटी अपने बर्थ से उठकर मेरे पास आ गई हैं और खिड़की से बाहर देख रही हैं।

उनके इतनी रात गये, इस वक्त और फिर इस तरह मेरे सामने आकर बैठने से मैं थोड़ा घबरा सा गया… मेरा घबराना लाज़मी था यारों…क्यूंकि मैं बिल्कुल नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो जाये जिससे मैं आंटी और उनकी दोनों बेटियों की नजर से गिर जाऊ। 

मैंने बैठे हुए ही अपनी टाँगे सामने की तरफ फ़ैला रखी थीं। इस हालत में स्मिता आंटी भी मेरी तरह ही अपने पैरों को मेरी तरफ कर के अपनी टाँगे सामने की तरफ फ़ैला कर बैठ गईं। तभी अचानक बाहर से आई हल्की हल्की रोशनी में हमारी आँखें मिलीं और हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए। उनकी मुस्कान बहुत कातिल थी लेकिन कभी कभी मुझे उनकी मोहक मुस्कान के पीछे एक अजीब सा सूनापन दिखाई देता था।


“मुझे तो ट्रेन में नींद ही नहीं आती… कितनी भी कोशिश कर लूँ पर कोई फायदा नहीं!” आंटी ने धीरे से कहा और फिर से बाहर की तरफ देखना शुरू कर दिया।

“कोई बात नहीं आंटी, मुझे भी नींद नहीं आ रही है…इसीलिए गाने सुन रहा हूँ।” मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया।

आंटी ने अपना कम्बल अपने बर्थ पर ही छोड़ दिया था और उनको ठंड से अब थोड़ी थोड़ी कंपकपी होनें लगी थी तो मैंने अपने कम्बल को फैला कर उन्हें अपने पैरों को कम्बल के अन्दर कर लेने को कहा। । आंटी ने कम्बल के अन्दर अपने पैर डाल लिए और अपनी आँखें बंद करके ठंड का मज़ा लेने लगीं। उनके पैर मेरी उनकी तरफ वाली जांघ तक पहुँच रहे थे और बार बार मेरी जांघ से टकरा रहे थे। ठंड की वजह से उनके पैर बहुत ठन्डे हो चुके थे और मेरी जांघ से टकरा कर सिहरन पैदा कर रहे थे। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वापस अपने काम में लग गया। गाने सुनते सुनते देर हो चली थी।

मैंने बाथरूम जाने की सोची और अपने बर्थ से उठा। बाथरूम जाकर मैं वापस अपने सीट पे लौटा तो पाया कि आंटी लम्बी होकर लेट गईं हैं और बिल्कुल सिकुड़ कर कम्बल अपने उपर डाल लिया है मानो बाकी की जगह मेरे लिए छोड़ रखी हो। उनका सर मेरी उलटी ओर था और पैर उस तरफ जिधर मैं बैठा हुआ था। आंटी अपना चेहरा खिड़की की ओर और पीठ अन्दर की ओर कर के करवट ले कर सोई हुई थी। मैं थोड़ी देर उधेड़बुन में रहा और फिर वैसे ही जाकर बैठ गया जैसे पहले बैठा था। आंटी को मेरे आने का एहसास हुआ तो वो उठने लगीं।

“कोई बात नहीं आंटी, आप लेटी रहिये… मैं बैठ जाऊँगा आराम से !” इतना बोलकर मैं उनके पैरों के बगल में बैठ गया और अपने पैरों को भी कम्बल से ढक लिया। अब मेरे पैर सीधे होकर आंटी की पीठ से टकरा रहे थे और उनके पैर मेरे कूल्हों से। हम ऐसे ही रहे और सफ़र का मज़ा लेते रहे।

वैसे आंटी तो मेरे मन में तब से बसीं थीं जब मेरा ध्यान रिंकी और प्रिया पर भी नहीं गया था। आंटी में एक अजीब सी कशिश थी जिसकी तरफ मैं खुद ब खुद खिंचता चला जा रहा था। उनकी मदमस्त कर देने वाली हर एक अदा का मैं दीवाना था। उनका बड़ा अन्डाकार चेहरा, बड़ी बड़ी चूचियाँ, उनके भरे हुये भारी भारी से चूतड़, उनका गदराया हुआ भरा-पूरा सुडौल बदन हमेशा मेरे होश उड़ा देता था। आंटी को देखते ही मेरी काम पीपासा जागनें लगती थी। न चाह कर भी मैं उनकी ओर खींचा चला जाता था। मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि यह खिंचाव किसी भी तरह से सही नहीं है और मैं जितना हो सके उतना खुदको कंट्रोल करने की कोशिश करता था लेकिन मुझे कई बार ऐसा लगता था कि यह आग शायद उस तरफ भी वैसी ही लगी है और आंटी कह भले कुछ नहीं पातीं पर वो भी मुझे उतना ही पसंद करती है और वो भी शायद यही चाहतीं हैं। 

लेकिन अब बात थोड़ी अलग थी, अब मैं एक तो प्रिया से प्यार करने लगा था और दूसरे रिंकी को भी चोद रहा था… एक आंटी के लिए मैं अब तक का पाया कुछ भी खोना नहीं चाहता था। मैं अब भी असमंजस में था कि मुझे आंटी की तरफ हाथ आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं… लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

थोड़ी देर के बाद आंटी ने करवट ली और सीधी हो गईं। अब जगह की थोड़ी सी किल्लत हो गई, मैंने एक तरकीब निकाली और अपने पैरों को मोड़कर पालथी मार ली और धीरे से आंटी के पैरों को उठा कर अपनी दोनों जांघों के बीच में रख लिया। यानि अब आंटी का पैर सीधा मेरे उस के ऊपर था और वो निश्चिन्त होकर सीधी लेटी हुईं थीं। आंटी ने कहा था कि उन्हें ट्रेन में नींद नहीं आती, लेकिन अभी जो मैं देख रहा था वो बिल्कुल अलग था। आंटी नींद में सो रही थीं। शायद थक चुकी थीं इस लिए सो गईं…

ट्रेन के हल्के झटकों की वजह से उनका पैर मेरे नटवरलाल को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं चोदू इस स्पर्श से ही गरम होनें लगा था और मेरे शेर नें धीरे धीरे अपना सर उठाना शुरु कर दिया। मैं कोशिश कर रहा था कि अपने साहबजादे को काबू में कर सकूँ लेकिन लंड है कि मानता नहीं… नारी का स्पर्श और वो भी सीधे मर्द के लंड पर उसको नियंत्रणहीन कर ही देता है

मैं असहज हो गया था, इस बात को सोच कर कि कल ही मैंने उनकी दोनों राजकुमारियों का सील भंग किया था और आज मेरा लंड उनके लिए खड़ा हो गया था कहीं न कहीं मुझे आत्मग्लानि हो रही थी… लेकिन आप सब समझ सकते हो कि इस स्थिति में कहाँ कुछ समझ आता है। मेरे हाथ सहसा ही आंटी की टांगों पे चले गए और न चाहते हुए भी मैंने उनके पैरों को सहलाना शुरू कर दिया। आंटी कि साड़ी इतनी उठ चुकी थीं कि मेरे हाथ उनकी सुडौल पिंडलियों पर घूम रहे थे।

वो नर्म और चिकना एहसास मेरी तृष्णा को और भी भड़का रहा था, मैंने थोड़ा आगे खिसक कर अपने हाथों को आगे बढ़ाया। मैं अपने होश में नहीं रह गया था और बस वासना से वशीभूत होकर उनके घुटनों तक पहुँच गया। घुटनों के थोड़ा ऊपर मेरी उँगलियों ने उनकी जांघों का पहला स्पर्श किया और मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकल पड़ी। आगे खिसकने की वजह से आंटी के पैरों का दबाव मेरे लंड पे कुछ ज्यादा ही हो गया था और मेरे अकड़े हुए लंड ने उनके पैरों से जद्दोजहद शुरू कर दी थी। मन कर रहा था कि अपने हाथ बढ़ा कर उस जन्मभूमि का स्पर्श कर लूँ जहाँ से निकली उनकी बेटियों का अभी कल ही सूरापान किया था मैंने।

मैंने डरते डरते हाथ आगे बढ़ाये… गला सूख रहा था और नज़रें चारों तरफ देख रही थीं कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा

उँगलियाँ थोड़ा आगे खिसकीं और उनकी जांघों के ऊपरी हिस्से तक पहुँचने ही वाली थीं कि अचानक से ट्रेन रुक गई… कोई स्टेशन आया था शायद.. मैंने झट से अपने हाथ बाहर खींच लिया और सामान्य होकर बैठ गया। आंटी भी हिलने लगीं और उठ कर बैठने लगीं। मैं डर कर सोने का नाटक करने लगा। आंटी ने अपने पैर मेरे जांघों के बीच से निकला और बर्थ से उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गईं। मैं अब भी वैसे ही बैठा था। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ… मन में सवाल आ रहे थे कि क्या आंटी सब जान रही थीं… क्या वो जानबूझ कर ऐसे पड़ी थीं…??

खैर जो भी हो..ट्रेन चल पड़ी और दो मिनट के बाद आंटी वापस आ गईं। वापस आकर आंटी ने मुझे हिलाया, जगाया, “कितनी देर बैठा रहेगा, थोड़ा सा लेट जा वरना तबियत ख़राब हो जाएगी। चल तू अपना सर मेरी गोद में रख कर लेट जा.. और हाँ अपना ये गानों का डब्बा मुझे दे दे…मैं भी थोड़े गाने सुन लूं !” आंटी ने बड़े ही प्यार से मेरे हाथ पे सर फेरते हुए मुझे सीधा लेटने को कहा और खुद अपने पैरों को मोड़कर पालथी मार ली.

“नहीं आंटी, आप रहने दो गोद में सर रख कर मुझे नींद नहीं आएगी। मैं अपना सर इस तरफ़ कर लेता हूँ, आप बैठ जाओ।” मैंने बहाना बना कर मना कर दिया। हालाँकि मन तो मेरा भी कर रहा था कि मैं उनकी गोद में सर रख कर सो जाऊँ और उनकी चूत पर अपना सर रगड़ दूँ। लेकिन इस बात का भी डर था कि कहीं मेरा उतावलापन सब गड़बड़ न कर दे… अगर आंटी ने कोई बखेड़ा खड़ा कर दिया तो फिर इज्ज़त तो जाएगी ही साथ ही साथ प्रिया से भी दूर हो जाऊंगा… 

इस ख्याल से मैंने यही उचित समझा कि उन्हें दूसरी तरफ बिठा कर खुद एक तरफ होकर सो जाऊँ। और मैंने ऐसा ही किया, आंटी को बैठने दिया और फिर अपनी टांगों को उनकी तरफ करके लेट गया। आंटी ने पालथी मर रखी थी इसलिए मेरे पैर उनकी जांघों के नीचे दब गए थे। मुझे थोड़ी सी परेशानी होने लगी… अगर मेरे मन में प्रिया का ख्याल न होता तो शायद मैं जानबूझकर अपने पैरों को उनकी जांघों के नीचे दबा देता और उनकी नर्म मुलायम जांघों का मज़ा लेता… लेकिन मैं उस वक़्त हर तरह से खुद को उन भावनाओं से दूर रखने की कोशिश में लगा था।

मैंने अपने पैरों को थोड़ा सा हिलाकर ठीक करने की कोशिश की और इस कोशिश में आंटी को थोड़ा झटका लगा। आंटी ने अपने हाथों में पड़ा आईपॉड नीचे रखा और कम्बल को हटा कर मेरे पैरों को जबरदस्ती अपनी गोद में रख लिया। मैं भी बिना किसी बहस के अपने पैरों को वहीं रखकर लेटा रहा। आंटी ने फिर से कम्बल से खुद को और मेरे पैरों को अच्छे से ढक लिया और वापस से गानों की दुनिया में खो गई…

थोड़ी देर के बाद मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे आंटी अपनी कमर को हिला रही हैं जिससे मेरे पंजे उनके पेड़ू (योनि के ऊपर का हिस्सा) को दबा रहे है। मैं थोड़ी देर रुक कर यह जानने की कोशिश करने लगा कि यह जानबूझ कर किया जा रहा है या ट्रेन के चलने की वजह से ऐसा हो रहा है। मुझे कुछ भी समझ नहीं आया और मैं फिर से अपनी आँखें बंद करके लेटा रहा और ट्रेन के हिचकोले खाने लगा।

मेरे पंजे अब भी उस नर्म और गुदाज़ जगह का लुत्फ़ उठा रहे थे। लाख कोशिश के बावजूद मैं फिर से गरम होने लगा और मेरे ‘नवाब’ ने अपना सर उठाना शुरू कर दिया। लंड में तनाव आते ही मेरे पंजे अपने आप उस जगह को खोदने से लगे। मुझे एहसास हुआ कि आंटी की साड़ी उस जगह से अलग है जहाँ मेरे पंजे लगे थे और इसी कारण उनके मखमली चमड़े का सीधा सा स्पर्श मैं अपने तलवों पर महसूस कर रहा था।

थोड़ी देर में ऐसा लगा मानो आंटी उठने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन उनकी कोशिश इतनी शांत और स्थिर थी जैसे वो मुझे नींद से जगाना नहीं चाहती हों। उन्हें क्या पता था कि मैं तो जग ही रहा हूँ…

आंटी पूरी तरह नहीं उठीं, उन्होंने धीरे से मेरे पैरों को उठाकर आहिस्ते से बगल में रख दिया और फिर ऐसा लगा जैसे वो अपने हाथों से अपने पैरों को नीचे से ऊपर की तरफ खुजा रही हों…काफी देर से पैरों को मोड़कर बैठने की वजह से शायद उनके पैरों में झनझनाहट आ गई होगी। मैंने अपना ध्यान हटा लिया और आँखें बंद करके प्रिया की यादों में खो गया। तभी आंटी ने अपने पैर वापस से मोड़ लिए और पहले की तरह मेरे पैरों को उठा कर अपनी गोद में रख लिया।

आंटी की गोद में जैसे ही मेरे पैर पहुँचे, मेरे मुँह से सहसा ही निकल पड़ा ‘हे प्रभु….; ।

आंटी ने अपनी साड़ी को अपने पैरों से ऊपर कर लिया था और अपनी जांघों को नंगा करके मेरे पंजे वहां रख दिए थे। एक सुखदायी गर्माहट और कोमलता ने मुझे सिहरा दिया और मेरा बदन काँप सा गया… इस कंपकपी में मेरे पैरों की उंगलियाँ हरकत कर गईं और मेरे अंगूठे ने उस स्वर्गद्वार को छू लिया था जिसके बारे में मैं बस सिर्फ कल्पना ही करता था वो भी डरते डरते…

उन्होंने अन्दर कुछ भी नहीं पहना था और उनकी चूत बिल्कुल रोम विहीन थी.. इसके साथ ही मेरे अंगूठे को लसलसेपन और चिकनेपन का एहसास हुआ…

“हम्म्म्म…..!!” यह एक सिसकारी थी जो कि आंटी के मुँह से निकली थी। चलती ट्रेन के शोर में भी मैंने यह कसक भरी आवाज़ सुन ली…

मेरे अंगूठे ने उनके उस हिस्से को छू लिया था जिसके छूने पर बड़े से बड़ी पतिव्रताएं भी अपना संयम खो बैठती हैं और अपनी चूत में लंड डलवा लेती हैं… उनके दाने को मेरे अंगूठे ने रगड़ सा दिया था।
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03-29-2019, 11:29 AM,
#37
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
अभी आधी सीढ़ियाँ ही चढ़ा था कि प्रिया एकदम से मेरे सामने आ गई।

“लगता है जनाब का मूड ख़राब हो गया है… अब तो आपको बाग़ की जगह बाज़ार जाना पड़ेगा बच्चू! और फिर अब ये बेचारे गुलाबजामुन अकेले ही खाना पड़ेंगे आपको!” प्रिया ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा।

“लगता है आपको बड़ी ख़ुशी हुई है इस बात से?” मैंने उसे ताना मारते हुए कहा।

“हाँ यह तो सही कहा आपने! दरअसल मैं खुद तुमसे यह कहने वाली थी कि आज हम बाग़ नहीं जा पाएँगे क्यूंकि आज शाम को घर पे सुनार और कपड़ों के व्यापारी आने वाले हैं और हम सबको उनसे ढेर सारी चीजें खरीदनी हैं। तो आप बाज़ार होकर आ जाओ और हम अपनी खरीदारी कर लेते हैं।”

बाप रे बाप… एक ही सांस में प्रिया ने सबकुछ बोल दिया और मुझे बोलने या कुछ पूछने का मौका भी नहीं दिया।

मैंने अपने हाथों की प्लेट नीचे सीढ़ियों पे रखी और बिना कुछ कहे प्रिया का हाथ एकदम से पकड़ा और अपने लंड पे रख कर कहा, “इसका क्या करूँ?”

प्रिया के हाथ रखते ही लंड एकदम से खड़ा हो गया जो कि उसकी हथेली में फिट बैठ गया। प्रिया ने इधर उधर देखा और झुक कर मेरे लंड पे एक पप्पी ले ली और फिर उसे सहलाते हुए मुझसे एकदम से चिपक गई।

“चिंता मत करो मेरे पतिदेव, आपसे ज्यादा आपकी ये बीवी तड़प रही है इसे अपने अन्दर लेने के लिए। मैं वादा करती हूँ कि मै पूरी कोशिश करूगी कि रात को सबके सोने के बाद मैं इसका सारा दर्द दूर कर दूँ।” प्रिया ने मेरे कान में धीरे से कहा।

मैंने अपना एक हाथ उसके चूत पे कपड़ों के ऊपर से ही रख दिया और धीरे से सहलाने लगा। प्रिया ने अपने मुँह को मेरे मुँह से सटा कर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरी जीभ से खेलने लगी। मेरा एक हाथ उसकी टॉप के अन्दर चला गया और ब्रा के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगा।

बड़ा ही कामुक सा दृश्य था, उसके हाथों में मेरा लंड, उसकी चूत पे मेरा एक हाथ और अब उसकी एक चूची ब्रा से आजाद होकर मेरे हाथों में। अगर थोड़ी देर और ऐसे रहते तो शायद वहीं सीढ़ियों पे ही चुदाई शुरू हो जाती। लेकिन किसी के क़दमों की आहट ने हमें चौंका दिया और हम झट से अलग हो गए।

प्रिया जल्दी से मेरे गालों पे एक पप्पी लेकर अपने कमरे में भाग गई और मैंने इधर उधर देखकर अपने कदम तीसरे महले की ओर बढ़ा दिए।
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03-29-2019, 11:29 AM,
#38
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
अगली सुबह दरवाजे पे दस्तक

सुबह दरवाजे पे दस्तक हुई और पता नहीं क्यूँ मैं एक बार में ही सिर्फ उस खटखटाहट से ही जाग गया। वैसे मैं सोने के मामले में बिल्कुल कुम्भकर्ण का सगा हूँ। सुबह देर तक सोना मेरी आदत है और जब तक मुझे झकझोर कर न उठाओ तब तक मैं उठता ही नहीं. हा हा हा हा …

आँखें खुल चुकी थीं और सीधे दीवार पे लटक रही घड़ी पे चली गई, देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे…मैं थोड़ा अचंभित सा हो गया, ‘इतनी जल्दी…कौन हो सकता है??’ मैंने खुद से फुसफुसाकर पूछा और धीरे से आवाज लगाई…

“कौन…?? कौन है ?”

“मैं हूँ बुद्धू….कभी तो जल्दी उठ जाया करो !!” एक धीमी सी खनकती हुई आवाज़ ने मेरे कानों में रस सा घोल दिया। लेकिन साथ ही साथ एक सवाल भी उठा मन में…नींद से अलसाये होने के कारण मैं उस आवाज़ को ठीक से पहचान नहीं पाया।

“रिंकी… या फिर प्रिया… कौन हो सकती है??” मन में उठे सवालों से उलझते हुए मैं बिस्तर से उठा और लड़खड़ाते क़दमों से दरवाज़े तक पहुँचा।

दरवाज़ा खोला तो देखा कि मेरे सपनों की रानी, मेरी हसीन परी प्रिया खड़ी थी। सफ़ेद शलवार-कुरते और सफ़ेद चुन्नी में… भीगे हुए बाल… होंठों पे एक सुकून भरी मुस्कान… आँखों में एक प्यार भरा समर्पण…!

एक पल को तो ऐसा लगा जैसे अब भी मैं नींद में ही हूँ और कोई सपना देख रहा हूँ। मैं बिना कुछ बोले बस उसके चेहरे को देख रहा था और कहीं खो सा गया था। आज से पहले मैंने प्रिया को कभी भी ऐसे कपड़ों में नहीं देखा था। वो हमेशा मॉडर्न कपड़े ही पहना करती थी। आज तो जैसे चाँद उतर आया था ज़मीन पर…और वो भी सुबह सुबह !!

“आउच….” मेरे मुँह से अचानक निकल पड़ा, उँगलियों पे जलन सी महसूस हुई, देखा तो पाया कि मैडम जी ने अपने हाथों में पड़े चाय की गरमागरम कप मेरे उँगलियों से सटा दी थी और मज़े से मुस्कुरा रही थीं..

“जागो मेरे पति परमेश्वर…सुबह हो गई है और आपकी प्यारी सी बीवी आपके लिए गरमागरम चाय लेकर आई है !” प्रिया ने अपने नाज़ुक होंठों से इस अंदाज़ में कहा कि मैं तो मंत्रमुग्ध सा बस उसे फिर से उसी तरह देखता ही रह गया।

“अरे अब अन्दर भी चलोगे या यहीं मुझे घूरते रहोगे..??” प्रिया की खनकती हुई आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैंने उसके हाथों से चाय का कप अपने हाथों में लेकर उसका एक हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया।

मैंने चाय का प्याला मेज़ पर रख दिया और प्रिया को अपनी बाहों में भर लिया। प्रिया भी जैसे इसी पल का इंतज़ार कर रही थी… उसने भी मुझे जकड़ सा लिया और मेरे सीने में अपना सर रखकर जोर जोर से साँसें लेने लगी। हम दोनों दुनिया से बेखबर होकर एक दूसरे को जकड़े खड़े थे..

थोड़ी देर के बाद प्रिया ने खुद को मुझसे अलग किया और मेरी आँखों में देखने लगी। उसकी वो आँखें आज भी याद हैं मुझे… इतना प्यार और इतना सुकून भरा था उन आँखों में कि मैं बस डूब सा गया था !

“चलिए जनाब अब जल्दी से फ्रेश हो जाइये और यह चाय पीकर बताइए कि कैसी बनी है…?? प्रिया ने मुझे बाथरूम की तरफ धकेलते हुए कहा।

मैंने प्रिया को फिर से अपनी बाहों में भरने की कोशिश की तो उसने मुझे रोक दिया..

“ओहो, बाबा…पहले आप जल्दी से फ्रेश हो लो…फिर मैं तो आपकी ही हूँ, जितना चाहे प्यार कर लेना। वैसे अगर आप जल्दी से हमारी बात मानोगे तो आपको एक अच्छी खबर मिलेगी !” प्रिया ने प्यार से मुझे पीछे से धक्का देते हुए कहा।

प्रिया के गोल गोल उभारों का स्पर्श मुझे उत्तेजित सा कर रहा था… लेकिन साथ ही उसकी बातों से मेरा कौतूहल बढ़ता जा रहा था… मैं सोचने पर विवश हो गया कि आखिर ऐसी क्या खबर होगी…

“इससे अच्छी खबर और क्या हो सकती थी कि जिसके सपने देख कर मैं सोया था वो खुद ही सुबह सुबह मेरी आँखों के सामने है।” यह सोचकर मुस्कुराते हुये मैं कर फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गया।

बाहर आया तो देखा कि प्रिया रानी मेरे कमरे को साफ़-सुथरा करने में व्यस्त थीं। देख कर मन प्रसन्न हो गया, बिल्कुल एक बीवी की तरह वो अपना धर्म निभा रही थी। शायद ये उन हसीन पलों में से एक था जिसकी कल्पना हम सभी कभी न कभी करते ही हैं।

बाहर आकर मैंने उसे पीछे से पकड़ कर अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ही चक्कर लगाकर घूमने सा लगा।

“अरे …क्या कर रहे हो? छोड़ो भी… देखो कल रात से ही कमरे का क्या हाल हुआ पड़ा है, इसे ठीक तो कर लेने दो।” उसने मुझसे छूटने की कोशिश करते हुए मुस्कुराते हुए आग्रह किया।

“कमरा तो बाद में भी ठीक हो जायेगा जानू, लेकिन अगर यह पल एक बार बीत गया तो वापस नहीं मिलने वाला!” मैंने उसकी गर्दन पे पीछे से चूमते हुए कहा और उसे लेकर सीधा बिस्तर पे लेट गया। प्रिया ने हालाँकि कुछ विरोध तो दिखाया लेकिन यह विरोध प्यार वाला था।

हम दोनों करवट लेकर लेट गए जिसमे प्रिया की पीठ मेरी तरफ थी और मैं पीछे से बिल्कुल चिपक कर उसकी गर्दन और कन्धों पर अपने होंठों से धीरे धीरे चूमने लगा। थोड़ी न नुकुर के बाद प्रिया ने भी लम्बी लम्बी साँसें लेनी शुरू कर दी और चिपके हुए ही पलट कर सीधी हो गई। अब मैं उसके माथे पे एक प्यार भरा चुम्बन देकर उसकी आँखों में देखने लगा।

मेरे हाथ सहसा ही उसकी गोल कठोर चूचियों पे चले गए और मैंने उसकी एक चूची को अपने हथेली में भर लिया…

“उफ्फ्… ऐसा मत करो… प्लीज, कल रात भर में तुमने इन्हें इतना बेहाल कर दिया है कि हल्का सा स्पर्श भी बहुत दर्द दे रहा है… छोड़ो न !!” प्रिया ने अपने चेहरे का भाव बदलते हुए दर्द भरी सिसकारी ली और मेरे हाथों पे अपना हाथ रख दिया।

प्रिया की जगह कोई और होती तो मैं शायद बिना कुछ सुने उन मखमली चूचियों को मसल देता… लेकिन पता नहीं क्यूँ उसके चेहरे पे दर्द की लकीरें देखकर मैंने अपना हाथ हटा लिया और उसके गालों पर एक चुम्मी लेकर उसे फिर से बाहों में भर लिया। उसने भी मेरे होंठों पे अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और उठ कर बैठ गई।

“इतने प्यार से तुम्हारे लिए चाय बनाई है, पीकर तो देखो!” प्रिया ने मेरा ध्यान चाय की तरफ खींचा।

मैंने भी हाथ बढ़ाकर चाय की प्याली उठा ली और एक घूंट पीकर उसकी तरफ ऐसे देखा मानो चाय बहुत ही बुरी बनी हो… वास्तव में बहुत अच्छी चाय थी। प्रिया ने मेरा चेहरा देखकर महसूस किया कि शायद चाय ठीक नहीं है…

“क्या हुआ, अच्छी नहीं है?” प्रिया ने अजीब सी शकल बनाकर पूछा..

मैं हंस पड़ा और उसके गालों पे एक पप्पी लेकर कहा, “इतनी अच्छी चाय कभी पी नहीं न, इसलिए।”

“बदमाश….हर वक़्त डराते ही रहते हो।” प्रिया ने जोर से मेरे कंधे पे चिकोटी काट ली।
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03-29-2019, 11:30 AM,
#39
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मैं हक्का बक्का बस अगले पल का इंतज़ार कर रहा था… मुझमें इतनी हिम्मत नहीं आ रही थी कि मैं कुछ कर पाता। मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व ने मुझे मूर्तिवत कर दिया था। मैंने सब कुछ भगवन के ऊपर छोड़ दिया और जो कुछ भी हो रहा था उसे बस होने दे रहा था। 

थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी थी… पर तभी आंटी का एक पैर उसी अवस्था में खुलने सा लगा और पूरी तरह खुलकर मेरे कूल्हों तक पहुँच गया। अब तक मेरे दोनों पैर उनकी गोद में थे लेकिन आंटी ने अपने एक पैर फ़ैलाने के साथ साथ मेरा भी एक पैर अपनी दोनों जांघों के बीच में कर दिया था और एक पाँव को सीट की ओर रख दिया था। कुल मिलाकर यह स्थिति थी कि आंटी की नंगी जांघों के बीच उनकी मखमली चूत पे मेरे दाहिने पैर का पंजा था और आंटी का दाहिना पैर मेरे कूल्हों को छू रहा था। कूल्हों से नीचे मेरे लंड ने उनके घुटनों को अपने होने का एहसास करवाया और आंटी के घुटनों ने भी उन्हें हल्का सा दबाकर उन्हें सलाम किया। 

भाई साहब, मैं तो अब प्यास से मारा जा रहा था… सूख कर मेरे गले का बुरा हाल था । अभी कल ही मैंने उनकी दोनों बेटियों को जम कर चोदा था और अपने लंड का गुलाम बनाया था, और आज उनकी माँ अपनी चूत में मेरा लंड लेने के लिए खेल खेल रही थी… एक पल को तो मुझे कुछ शक सा हुआ कि कहीं ये पूरा परिवार ही तो ऐसा नहीं … लेकिन कल ही मैंने रिंकी और प्रिया दोनों की सील तोड़ी थी तो यह तो पक्का था कि ऐसा नहीं हो सकता। स्मिता आंटी को मैंने हमेशा अकेला ही देखा था। मेरा मतलब है कि सिन्हा अंकल को आंटी के साथ कभी देखा ही नहीं था। 

शायद आंटी की तड़प की वजह उन दोनों की आपस की ये दूरियाँ ही थीं… बहरहाल आंटी अपनी कमर को थोड़ा हिला कर मेरे अंगूठे से रगड़ रहीं थीं, अपनी चूत को और अपने घुटने से मेरे लंड को दबाये जा रही थीं.. मेरा बुरा हाल था, आंटी के इतना सब करने के बाद भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ करने की। मैं बस उनकी चूत को अपने पैरों से सहला कर और अपने लंड को उनके घुटने पर रगड़ कर मज़े ले रहा था। ट्रेन अपनी पूरी स्पीड से दौड़ रही थी और गाड़ी के हिचकोले हम दोनों को अपने अपने काम में मदद कर रहे थे।

थोड़ी देर में ही मुझे अपने अंगूठे पे ढेर सारे गर्म पानी का एहसास हुआ…

“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…

“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैं अपने लंड को यही समझाकर सो गया। लेकिन दोस्तों आज मेरा शक पूरी तरह से यकीन में बदल चुका था कि आंटी भी अपनीं दोनों बेटियों की तरह ही मेरे लंड की प्यासी हैं। बस उनकी पहल करनें की हिम्मत नहीं हो पा रही थी।

एक जोर के झटके ने मेरी नींद खोल दी। आँखें खोलीं तो देखा कि दिलदारनगर जंक्शन स्टेशन आ गया था और घड़ी में करीब ढ़ाई बज रहे थे। पूरा डब्बा नींद की आगोश में था और जरा सी भी आवाज़ नहीं आ रही थी। स्टेशन पर कोई भी हमारे डब्बे में नहीं चढ़ा। ट्रेन थोड़ी देर रुक कर फिर से चलने लगी, मैं अपने बर्थ से उठ कर खड़ा हो गया और अपने सामने सोये हुए घर के सभी लोगों का मुआयना करने लगा, सामान भी चेक किया। सब कुछ ठीक पाकर मैंने अपने ऊपर एक हल्की सी शॉल डाल ली जिसे कि मैंने अपना तकिया बना रखा था और बाथरूम की तरफ चल पड़ा।

आंटी की वजह से मेरा लंड बेचारा अब भी तड़प रहा था। मैंने सोचा कि टॉयलेट में मूत्रविसर्जन करके उसे थोड़ा आराम दे दूँ। मैंने बाथरूम में घुस कर अपना लोअर और अपना इनर नीचे किया और अपने लंड को अपने हाथों में लेकर पुचकारने लगा।

ये क्या, यह तो पुचकारने मात्र से ही फिर से खड़ा हो गया… अब तो मुझे लगा कि मुठ मारे बिना कोई उपाय नहीं है आज। यही सोचकर मैंने अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और धीरे धीरे से मुठ मारने लगा।

“ठक-ठक ! ठक-ठक…! ठक-ठक-ठक…!” अचानक से किसी ने दरवाज़े को लगातार ठोकना शुरू किया…
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03-29-2019, 11:30 AM,
#40
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
रिंकी की आतुरता

मैंने झट से अपने लंड को अपने इनर मे डाल कर अपने लोअर को उपर किया और दरवाज़ा खोलने लगा.. सच बताऊँ तो मैं वासना की आग में इतना वशीभूत था कि मेरे दिमाग में सहसा ही यह ख्याल आ गया कि यह आंटी होंगी… और यही सोच कर मैंने दरवाज़ा जल्दी से खोल दिया…

लेकिन दरवाज़े पे जिसे पाया उसे देख कर चौंक गया।

सामने रिंकी खड़ी थी और वो बिना कोई मौका दिए मुझे अन्दर ठेल कर बाथरूम में घुस गई और उसने दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया। दरवाज़ा बंद करते ही पलट कर मेरे सीने से लिपट गई।

अचानक से हुए इस हमले से मैं थोड़ा हड़बड़ा गया और उसे अलग कर दिया…

“तुम कब जागी…और तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ…कोई जग तो नहीं रहा?” एक के बाद एक मैंने कई सवाल पूछ डाले रिंकी से…

“हे भगवन, तुम तो लड़कियों की तरह डर रहे हो और सवाल किये जा रहे हो… ये लाइन्स तो सिर्फ हम लड़कियों के पास हैं..” इतना कहकर वो हंसने लगी।

मुझे सच में एहसास हुआ कि वो सही कह रही है… मैं सच में डरा हुआ था… लेकिन मुझे डर यह था कि स्मिता आंटी अभी थोड़ी देर पहले तक मेरे साथ जग रही थीं, कहीं वो इधर आ गईं तो सब गड़बड़ हो जाएगा … रिंकी या प्रिया… इन दोनों को चोद कर तो मैंने पहले ही अपने लंड का स्वाद चखा दिया था और उनकी कुंवारी चूतों का रस पी लिया था और उन्हें जब चाहता, तब चोद सकता था… लेकिन अगर आंटी ने हमें देख लिया तो मेरे हाथों से तीन तीन चूत दूर हो जायेगी … हाँ दोस्तों, मुझे यकीन हो चला था कि मुझे रिंकी और प्रिया के साथ उनकी माँ की चूत भी मिलने वाली है.. मैं कोई गड़बड़ नहीं चाहता था इसलिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं कर रहा था रिंकी की तरफ।

रिंकी एक बार फिर से मुझसे लिपट गई और मेरे खड़े लंड के ऊपर अपनी चूत को दबाने लगी। मैंने भी उसे अपनी ओर खींच कर दबा दिया और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरा लंड तो पहले से ही तड़प रहा था किसी चूत के अन्दर समाने के लिए।

रिंकी ने झट से अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को थाम लिया और उसे मसलने लगी… एक ही चुदाई में बहुत खुल गई थी वो। मैंने भी अपना हाथ उसकी चूचियों पर रख कर दबाया…

“आह्ह…” उसने भी ठीक वैसी ही आह भरी जैसी मेरी प्रिया रानी ने सुबह भरी थी… यानि कि उसकी चूचियों को भी शायद मैंने ज्यादा ही मसल दिया था और वो अब भी दुःख रही थीं।

क्या करूँ, मैं चूचियों का दीवाना था… था नहीं, आज भी हूँ !!

खैर, अब मेरे दिमाग में सीधा यह सवाल आया कि कहीं प्रिया रानी की तरह रिंकी ने भी अपनी चूत पर हाथ नहीं रखने दिया तो मेरा लंड फिर से प्यासा रह जायेगा। इसी लिए मैंने जांचने के लिए अपना एक हाथ बढ़ाकर उसकी चूत को उसके स्कर्ट के ऊपर से सहलाया तो उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और रोक दिया… उसने अपनी आँखों से एक अजीब सी विनती भरी नज़र दी जैसे कह रही हो कि तकलीफ है… मैं समझ तो गया था लेकिन फिर भी उसे इशारे से पूछने लगा कि क्या हुआ है.. 

रिंकी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर अपनी चूत पे रख दिया… यहाँ भी वही बात थी, यानि अन्दर कोई वस्त्र नहीं था, चूत बिल्कुल नंगी थी। लेकिन मेरे हाथों को कुछ और ही महसूस हुआ…मेरी हथेली में उसकी चूत बिल्कुल भर सी गई, मानो फूल कर कुप्पा हो गई हो। चूत उतनी ही ज्यादा गर्म थी…

“देख लो क्या हाल किया है तुमने… बेचारी सूज कर लाल हो गई है और गरम हो गई है… भांप निकल रही है।” रिंकी ने मेरे हाथ को अपनी चूत पे दबाते हुए कहा।

मैं तुरंत ही उसकी बात का जवाब दिए बिना नीचे बैठ गया और उसकी लेग्गीन्स को नीचे कर दिया। बाथरूम की दुधिया रोशनी में उसकी सूजी हुई चूत को देखता ही रह गया… सच में उसकी चूत का बुरा हाल था। दोनों होंठ और दाना बिल्कुल लाल हो गया था। एक बार को मुझे भी बुरा लगने लगा.. लेकिन फिर अपने लंड पे नाज़ करते हुए मैं मुस्कुरा पड़ा और आगे बढ़ कर उसकी चूत पे अपने होंठों से एक हल्की सी पप्पी ले ली।

“उह्ह्हह… ऐसे मत करो ना.. मैं मर जाऊँगी… कल तक रुक जाओ, फिर मैं इसे वापस तुम्हारे लायक बना दूंगी… बस आज रुक जाओ !” रिंकी ने मुझसे गुहार लगते हुए कहा।

मैं उसके कहने से पहले ही यह फैसला कर चुका था कि आज इस चूत को परेशान नहीं करूँगा, अब तो ये मेरी ही है और आराम से इसका रस चखूँगा… लेकिन फिर भी मैंने अपने चेहरे पे एक दुखी सा भाव लाते हुए कहा, “उफ्फ्फ..। ये अदा ! जब प्यासा ही रखना था तो समुन्दर के दर्शन क्यूँ करवाए?”

मैंने उसके हाथों से अपने लंड को छुड़ाने का नाटक किया।

“ओहो…मेरे रज्जा जी… मैं तो बस आपके उनसे मिलने आई थी जिन्होंने मुझे जन्नत दिखाई थी।” रिंकी ने इतना कहते हुए मेरे लोअर के इनर में हाथ डाल दिया और मेरे लंड को एकदम से बाहर निकाल लिया।

मेरा बांका छोरा तो पहले ही पूरी तरह से अकड़ा हुआ था और उसके हाथों में जाते ही ठनकना शुरू हो गया उसका। रिंकी ने एक बार मेरी तरफ प्यार से देखा और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए…

उसने इस बार एक मार्गदर्शक की तरह मेरे होंठों और फिर मेरी जीभ को रास्ता दिखाया और एक लम्बा प्रगाढ़ चुम्बन का आदान प्रदान हुआ हमारे बीच। मैं अपने आप में नहीं रह सका और खुद को रिंकी के हवाले कर दिया। रिंकी ने कुछ देर मेरे होंठों से खेलने के बाद धीरे से नीचे बैठने लगी और अपना मुँह सीधा मेरे लंड के पास ले गई। मैं बस चुपचाप खड़ा होकर मज़े ले रहा था।

थोड़ी देर पहले मैं डरा हुआ था और अब मैं यह चाहता था कि वो जल्दी से जल्दी अपने मुँह में मेरा लंड भर ले और इसकी सारी अकड़ निकाल दे…

रिंकी ने लंड को एक हाथ से थाम रखा था और दूसरे हाथ से मेरे अन्डकोषों से खेलने लगी। उसने धीरे से मेरे लंड का शीर्ष भाग चमड़े से बाहर निकाला और अपने होंठों को उस पर रख कर चूम लिया।

‘उम्म…’ मेरे मुँह से मज़े से भरी एक आह निकली और मैंने अपना लंड उसके होंठों पे दबा दिया।

रिंकी ने एक बार मेरी तरफ अपनी नज़रें उठाकर देखा और मुस्कुराते हुए अपने होंठों को पूरा खोलकर मेरे लंड के अग्र भाग को सरलता से अन्दर खींच लिया। थोड़ी देर उसी अवस्था में रखकर उसने अपने जीभ की नोक सुपारे के चारों ओर घुमाई और उसे पूरी तरह से गीला करके धीरे धीरे अन्दर तक ले लिया… इतना कि लंड की जड़ तक अब रिंकी के होंठ थे और ऐसा लग रहा था मानो मेरा नवाब कहीं खो गया हो…

मैं मज़े से बस उसके अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था… जिस तरह धीरे-धीरे उसने मेरा लंड पूरा अन्दर कर लिया था ठीक वैसे ही धीरे-धीरे उसने उसने पूरे लंड को बाहर निकाला लेकिन सुपारे को अपने होंठों से आजाद नहीं किया और फिर से वैसे ही मस्त अंदाज़ में पूरे लंड को अन्दर कर लिया…

यह इतना आरामदायक और मजेदार था कि अगर हम ट्रेन में न होते तो शायद मैं रिंकी को घंटों वैसे ही खेलते रहने को कहता मगर मुझे इस बात का एहसास था कि हम ज्यादा देर टॉयलेट में नहीं रह सकते और किसी के भी आ जाने का पूरा पूरा डर था। मैंने यह सोचकर ही रिंकी का सर अपने हाथों से पकड़ा और अपने लंड को एक झटके के साथ उसके मुँह में घुसेड़ कर जल्दी जल्दी आगे पीछे करने लगा…

“ग्गूऊऊउ… ऊउन्न… ग्गूऊउ…” रिंकी के मुँह से निकलती आवाज़ों को मैं सुन पा रहा था…मैंने कुछ ज्यादा ही तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे..

लंड उसके थूक से पूरा गीला हो गया था और चमक रहा था… कुछ थूक उसके होंठों से बहकर नीचे गिर रहा था। कुल मिलकर बड़ा मनमोहक दृश्य था… एक तो मैं पहले ही आंटी की चूत के स्पर्श के कारण जोश में था दूसरा रिंकी के मदमस्त होंठों और मुँह ने मेरे लंड को और भी उतावला कर दिया था। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और धका-धक पेलने लगा। मेरी आँखें मज़े से बंद हो गईं और रिंकी की आवाजें बढ़ गईं…

कसम से अगर चलती ट्रेन नहीं होती तो आस पड़ोस के सरे लोग इकट्ठा हो जाते।

“उफ्फ्फ… हाँ मेरी जान, और चूसो… और तेज़… और तेज़… ह्म्म…” उत्तेजना में मैंने ये बोलते हुए बड़ी ही बेरहमी से रिंकी का मुख चोदन जारी रखा और जब मुझे ऐसा लगा कि अब मैं झड़ने वाला हूँ तो रिंकी का चेहरा थोड़ा सा उठा कर उसे इशारे से ये समझाया।

मेरा इशारा मिलते ही रिंकी की आँखों में एक चमक सी आ गई और उसने अपने एक हाथ से मेरे अण्डों को जोर से मसल दिया…

“आअह्ह्ह… ऊओह्ह्ह… रिंकी…” मैंने एक जोरदार आह के साथ उसका मुँह मजबूती से पकड़ कर अपना पूरा लंड ठूंस दिया और न जाने कितनी ही पिचकारियाँ उसके गले में उतार दी…

एक पल के लिए तो रिंकी की साँसें ही रुक सी गईं थीं, इसका एहसास तब हुआ जब रिंकी ने झटके से अपना मुँह हटा कर जोर-जोर से साँस लेना शुरू किया। मुझे थोड़ा बुरा लगा लेकिन लंड के झड़ने के वक़्त कहाँ ये ख्याल रहता है कि किसे क्या तकलीफ हो रही है.

खैर… मैं इतना सुस्त सा हो गया कि लंड के झड़ने के बाद मेरी टाँगें कांपने सी लगीं और मैं वहीं कमोड पे बैठ गया। मेरा लंड अब भी रिंकी के मुँह के रस से भीगा चमक रहा था और लंड का पानी बूंदों में टपक रहा था।

वहीं दूसरी तरफ रिंकी बिल्कुल बैठ गई थी और अपनी कातिल निगाहों से कभी मुझे तो कभी मेरे लंड को निहार रही थी। मैं तो पहले ही अपने होशोहवास में नहीं था, तभी रिंकी ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को फिर से अपने हाथों में लिया और एक बार फिर से उसे मुँह में लेकर जोर से चूस लिया..

मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने प्यार से उसके गालों को सहला कर उसके मुँह से अपना लंड छुड़ाया और उसे अपने साथ खड़ा किया। मैंने अपना लोअर ऊपर कर लिया और रिंकी को अपनी बाहों में लेकर उसके पूरे मुँह पर प्यार से चुम्बनों की बारिश कर दी। रिंकी भी मुझसे लिपट कर असीम आनन्द की अनुभूति कर रही थी।

तभी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई बाथरूम की तरफ आया हो…
मैंने जल्दी से रिंकी को खुद से अलग किया और फिर उसे बाथरूम के दरवाज़े के पीछे छिपा कर दरवाज़ा खोला…बाहर कोई नहीं था। मैंने रिंकी को जल्दी से जाने को कहा और खुद अन्दर ही रहा।

रिंकी ने जाते जाते भी शरारत नहीं छोड़ी और मेरे लंड को लोअर के ऊपर से पकड़ कर लिया- घबराओ मत बच्चू… तुम्हें तो मैं कल देख लूँगी!

इतना बोलकर उसने लंड को मसल दिया और जल्दी से बाहर निकल कर अपनी सीट पर चली गई।

मैंने राहत की सांस ली और थोड़ी देर के बाद मैं भी बाथरूम से निकल कर अपनी साइड वाली सीट पर जाकर सो गया। वहाँ कोई भी हलचल नहीं थी, यानि शायद किसी ने भी हमें कुछ करते हुए नहीं देखा था। मैं निश्चिन्त होकर सो गया और ट्रेन अपनी रफ़्तार से चलती रही…


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