Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
03-29-2019, 11:25 AM,
#21
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मैंने उसे छेड़ने के लिए अनजान बनते हुए पूछा,"ऐसा क्या दिख गया तुमको जो तुम्हें रात भर नींद नहीं आई । वैसे मुझे पता है कि तुम असली बात छुपा रही हो, असल में तुम राजेश का इंतज़ार कर रही थी और …...." मैं आगे कुछ कहूँ इससे पहले ही वह बोल उठी।

"बच्चू, मैंने कल रात सब देख लिया था...तुम और प्रिया मिलकर जो रासलीला रचा रहे थे वो मेरी आँखों से बच नहीं सका। तुम्हें क्या लगता है...वो सब खेल देख कर मुझे नींद आ जाएगी...वैसे कब से चल रहा है ये सब..." रिंकी ने मुझे लाजवाब कर दिया और मुझसे पूरी तरह खुलकर बातें करने लगी... 

"वो मैं...मम्म..." मेरे मुँह से कोई शब्द ही नहीं निकल रहा था... 

"अब शरमाना छोड़ भी दो, मैं सारा राज़ जानती हूँ तो बेहतर है कि एक अच्छे दोस्त की एक तरह अपनें दिल की सारी बातें शरमानें के बजाय हम एक दूसरे से बेबाकी से शेयर किया करें!" रिंकी ने बड़ी सहजता से कह दिया। 

मैं बस एक टक उसे देखता रहा और सोचता रहा कि क्या बोलूं...आज मैं रिंकी की बेबाकी से हैरान हो गया। दोनों बहनें कमाल की थीं। इतने दिनों से उनके साथ एक ही छत के नीचे रह रहा था लेकिन कभी यह नहीं सोचा था कि वो इतनी बोल्ड और इतने खुले विचारों की होंगी।

मैनें राजेश की थोड़ी तारीफ करते हुये उससे कहा, "मुझे नाज है अपने काबिल दोस्त पर जिसे तुम जैसी अप्सरा मिली।" 

मेरी बात सुनकर रिंकी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान बिखर गई......लेकिन तुरन्त फिर से उसके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई। मैंने सोचा कि वो शायद राजेश के न आ पाने की वजह से दुखी है। लेकिन इसके आगे उसने जो कुछ कहा उसने भूचाल ला दिया। 

आवेश में वह बोल उठी “कोई काबिल-वाबिल नहीं है वो, उसमें है क्या जो उसे अप्सरा मिलेगी। ये तो बस अन्धे के हाथ बटेर लग गई, बिल्ली के भाग से छींका टूटा।” उसके शब्दो में दुख पीड़ा ओर क्रोध का मिश्रण साफ झलक रहा था। मुझे अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। मैं आवाक था। सोच रहा था कि कहाँ मै राजेश की तारीफ इस लिये करनें निकला था कि उसको अच्छा लगेगा और कहाँ वह ज्वालामुखी सी फट पड़ी थी। मै समझ ही नहीं पा रहा था कि जो कुछ अब तक हुआ उसे मै सच मानू या फिर जो कुछ अब सुन रहा था उसे। मै सोच रहा था कि या तो यह लड़की पूरी तरह से पागल है या फिर बहुत चालाक, सच जाननें की मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी।

उसके थोड़ा शान्त हो जाने के बाद मैंनें धीरे से उससे पूछा “तो फिर अब तक जो हुआ वह सब क्या था? अगर राजेश तुमको पसंद नहीं था तो यह सब करने की क्या मजबूरी थी।” 

और वह बोल उठी “इन सबकी वजह सिर्फ और सिर्फ तुम हो” अब उसने काली और दुर्गा का रूप ले लिया था।

मैनें धीरे से चौक कर पूछा “मैं?” अपने उपर इतना बड़ा इल्जाम लगते देख कर मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम थी। ये कहानी कभी ऐसा भी मोड़ ले सकती है इसकी तो मैनें कभी कल्पना भी नहीं की थी। मेरे मुह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था। कमरे में चारो ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसे मे बस टीवी की हल्की हल्की सी आवाज आ रही थी।

वह फिर से बोल उठी “हाँ, इन सबकी वजह सिर्फ और सिर्फ तुम हो” इस बार उसकी आवाज में गुस्सा कम और शिकायत का भाव अधिक था। वह बोलती चली गई “ओह सोनू! मैं तो तुम पर मरती थी लेकिन तुमने कभी दाद ही नहीं दी” इतना कह कर उसने अपना हाथ मेरे हाथों पर रख दिया। जो कुछ हो रहा था वह मेरी समझ से परे था।

“अगर ऐसा सब था तो तुमने मुझसे कभी कुछ कहा क्यों नहीं?” मैनें धीरे से उससे पूछा। उसके जवाब में उसने जो कुछ कहा उसे सुन कर मैं दंग रह गया। 

वह बोली “मैनें तो बहुत संकेत दिये, बहुत इशारे किये। तुमको अगर मेरी भाव-भंगिमाओ, मेरी चाहत भरी निगाहों से कुछ पता नहीं चला तो मैं क्या करू?” 

वह बोलती चली गई “मै लड़की हूँ और मुझमें उतनी ही शर्म और हयाँ है जितनी किसी भी भले घर की लड़की में होती है तु्म्ही बताओ मै और क्या करती? मैं अपनें सारे कपड़े उतार का नंगी हो कर तुम्हारे सामनें नाचती तब जा कर तुमको पता चलता? लगातार काफी कोशिशों के बाद भी जब तुम्हारी ओर से कोई रिस्पोन्स नही मिला तो मैनें सोचा या तो तुम नासमझ हो या फिर तुमकों मुझमें इनंटरेस्ट नहीं है”। अब वह मेरे हाथों को अपने कोमल हाथों से हल्के हल्के सहलाने लगी।

“इसी बीच मैं देख रही थी कि तुम्हारे और प्रिया के बीच नजदीकियाँ बढ़ती जा रही थी किसी न किसी बहानें वह तुम्हारे चारो ओर मँडराती रहती और तुम दोनों के बीच हमेशा कोई न कोई शरारत, कोई न कोई हँसी मजाक और ठिठोली चलती रहती तो मैने सोचा तुमको मैं नहीं बल्कि शायद प्रिया पसंद है”। मेरी जांघ पर उसने अपने हाथ से एक हल्की सी थपकी लगाते हुए कहा और फिर अपने हाथ को वहाँ से हटाया नहीं। 

“प्रिया की तरफ तुम्हारा झुकाव देख कर मुझे जलन भी होती थी। लेकिन बचपन से आज तक हमेशा ऐसा हुआ है कि अगर कभी उसको मेरी कोई चीज पसंद आ गई तो मैं वह वस्तु उसके लिये खुशी खुशी छोड़ देती थी। तो आज तो परीक्षा की असली घड़ी थी और मै अपने मन को इस त्याग के लिये तैयार करने लगी और मैं तुम्हारी ओर से अपना ध्यान हटाने की कोशिश कर ही रही थी कि इसी बीच राजेश नें मुझ पर डोरे डालने शुरू कर दिये और मै बहक गई”।

मैनें उसके सामने प्रिया और अपना खुलासा करते हुए सफाई दी कि “तुमको मेरी बात पर शायद यकीन नहीं होगा पर पिछली सुबह तक मेरे और प्रिया के बीच ऐसा कुछ भी नहीं था। प्रिया का मुझे नहीं पता पर मेरा यकीन करो कम से कम मेरे दिल मे तो सच मे ही कुछ नहीं था और कल की पहल भी मेरी ओर से नहीं थी” । लेकिन मैं उससे यह नहीं कह सका कि जिस तरह राजेश ने उस पर डोरे डाल कर उसे बहका दिया था ठीक वैसा ही प्रिया ने मेरे साथ किया था। 

फिर मैंने उससे एक कठिन सवाल किया “लेकिन क्या मेरा नहीं मिल पाना ही तुम्हारे जैसी भले घर की लड़की के राजेश के बहकावे में आ जाने के लिये काफी था?” 


“तुम नहीं समझोगे सोनू, क्या लड़को जैसी आजादी हम लड़कियों के पास है? कुछ शर्म, कुछ संकोच और कुछ गलत समझ लिये जाने का डर हम लड़कियों के विकल्पो को बहुत सीमित कर देते हैं। बस नजरों, हाँवो-भावों और इशारों से ही काम चलाना पड़ता है। फिर सब कुछ करके भी, दिखावा यही करना पड़ता है कि जो कुछ हो रहा है उन सबके पीछे हमारा कोई इरादा या मकसद नहीं है। जब तक हमारे संकेतो का कोई ठोस जवाब न मिले तब तक इस बात का पूरा ख्याल रख कर ही आगे बढ़ना पड़ता है कि दाव उल्टा पड़ जाने या रंगे हाथो पकड़े जानें की स्थिति में अपनी ओर से किये गये सारे संकेतो से साफ मुकर जाते हुये, अपनी सारी पहल को पूरी तरह से फिर से समेट कर बड़ी ही मासुमियत से बेदाग निकला जा सके। हमारे लिये तो यह लकड़ी की तलवार से लड़ा जाने वाला युद्ध है”। 


मैंने उस वक़्त काटन का एक ढीला सा शाँर्टस पहन रखा था। रिंकी के हाँथो ने थोड़ी थोड़ी हरकत करनी शुरू कर दी और मेरे जांघों को शाँर्टस के उपर से ही धीरे धीरे सहलाने लगी थी।


उसनें आगे कहा “इन्ही मजबूरियों के चलते ज्यादातर लड़कियाँ खुद किसी भी तरह का कोई पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं ऐसी स्थिति में जो भी विकल्प हमारे पास होते हैं उसमें से ही सबसे अच्छा चुन लेने या फिर इन्तजार करनें के अलावा हमारे पास और चारा क्या है?”। 


“मैंने तुम्हारा इन्तजार किया और फिर जब तुम्हारे और प्रिया के बीच नजदीकियाँ बढ़ती देखी तो तुम्हारी उम्मीद छोड़ दी। लेकिन जब भी तुम्हें देखती मेरे अन्दर की वासना जाग उठती, मेरे शरीर की जरूरतें सर उठानें लगती। इसी बीच राजेश ने पहल कर दी और फिर जो विकल्प उस समय नजरो के सामनें था मेरे मन ने शायद उसे बिना अधिक सोचे समझे चुन लिया और मै राजेश के बहकावे में आ गई। राजेश मेरे शरीर की जरूरतों और तुम्हारी कमी को पूरा करने का जरिया बन गया। अब फिर तुम इसे चाहे जैसा भी समझो”।

“तो जो कुछ हुआ उसमें सारा दोष सिर्फ राजेश का ही है?”

“नहीं नहीं, जो कुछ भी हुआ वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी, लेकिन वह राजेश की जीत नहीं मेरी हार थी और मुझसे भी बड़ी हार तुम्हारी थी”। 

मै चौक गया और बोल उठा “मेरी हार, मेरी हार कैसे?” 

“अगर मैं तुम्हारी थी जो कि थी और अगर मैं तुम्हारी हूँ जो कि हूँ तो जो कुछ हुआ क्या वह सब तुम्हारे लिये गर्व की बात है? मुझे तो तुमको पाक साफ हालत में मिलना चाहिये था लेकिन तुम्हारी अपनी ही नादानियों की वजह से आज मै मैली और आधी जूठी मिल रही हूँ” उसकी आँखों से आत्म-ग्लानि, क्षोभ और गहरी पीड़ा के आँसू बह चले थे”। 

उसनें फिर से तेज आवाज में कहा “इसमें सब गलती तुम्हारी ही है। तुमको खुद आगे आना चाहिये था और मेरा हाथ पकड़ना चाहिये था। मुझे गिरने से बचाना चाहिये था। लेकिन यह सब करने के बजाय तुमने खुद ही मुझे अपने दोस्त के हवाले कर दिया”। यह कहते हुये उसने अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ मींच ली और अपने मुक्को से मेरे सीनें पर धड़ा धड़ वार करने लगी और फिर मेरे उसी सीनें पर अपना सर रख फूट फूट कर रो पड़ी।

“ये तो मेरे पिछले जनम के कुछ पुण्य बाकी थे जो काफी कुछ लुट जाने के बाद भी वह बच गया जो बचना चाहिये था। मुझे माफ कर दो सोनू, मुझे माफ कर दो” मेरे सीनें पर अपना सिर रखे हुये ही वह बोल उठी। 

मैंने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उपर उठाया। उसकी आँखें आंसुओं से भरी हुई थी। फिर उसके होंठों पे अपना हाथ रखते हुये मैने कहा “माफी तो मुझे माँगनी चाहिये। तुमको पा कर तो इन्द्र भी धन्य हो जायेगा।"

“ओह सोनू, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। बहुत प्यार करती हूँ। मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी हूँ।” और उसने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ के पीछे ले जाकर मुझे जोर से जकड़ लिया और मुझसे चिपक गई।
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03-29-2019, 11:25 AM,
#22
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अब कहने सुनने को कुछ भी बाकी नहीं रह गया था। धीरे से मैंने उसकी आँखों पे अपने होंठ रख दिए और दोनों आँखों को चूम लिया। मेरी इस हरकत से रिंकी जैसे सिहर सी गई। उसने एक लम्बी सांस लेते हुए मेरे दोनों हाथों को पकड़ लिया और अपनी आँखें बंद किये हुए ही उसी अवस्था में बैठी रही। उसके सुर्ख गुलाबी होंठ थरथरा रहे थे। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने होंठ उसके होंठों पे रख दिए।

अथश्री रासलीला

हम दोनों के होंठ एक दूसरे के ऊपर बिल्कुल स्थिर थे...न तो मैंने अपने होंठों से कोई हरकत की न ही रिंकी ने। हम दोनों बस एक दूसरे की साँसों की गर्मी को महसूस कर रहे थे। 

रिंकी ने अब अपने होंठों को थोड़ी सी हरकत दी और मेरे होंठों से रगड़ने लगी। मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई और मैंने भी अपने होंठों को खोलकर उसके नर्म नाज़ुक अधरों को अपने अधरों में कैद कर लिया और बड़े प्यार से उन्हें चूमने लगा। 

मेरे हाथ अपने आप हरकत में आ गए और उसके गालों को छोड़ कर उसकी गर्दन को सहलाने लगे। उसके कन्धों पे मेरे हाथ ऐसे फिसल रहे थे जैसे कोई नर्म मुलायम रेशम हो। मैंने अपनी उंगलियों को उसके गले के चारों तरफ घुमा घुमा कर उसे उत्तेजित करने की कोशिश की लेकिन वो तो पहले से ही जोश में थी। 

रिंकी ने अपने हाथों को मेरी कमर के चारों तरफ कर लिया और मुझे अपने और करीब खींचने लगी। हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुए बिल्कुल करीब हो गए। रिंकी के हाथ मेरी पीठ पर घूमने लगे और मुझे अजीब सी फीलिंग होने लगी। मेरी पकड़ और भी मजबूत हो गई। 

अब मैंने अपना एक हाथ धीरे से सामने लाकर रिंकी के टॉप के ऊपर से उसके मुलायम अनारों पे रखा। जैसे ही मैंने उसकी चूचियों को पकड़ा...रिंकी ने मेरे होंठों को अपने दांतों से काट लिया...

"हम्मम्मम्म..."...एक हल्की सी सिसकारी के साथ रिंकी ने अपने हाथों से मेरी पीठ को और भी जकड़ लिया। 

मैंने अब धीरे धीरे उसकी चूचियों को सहलाना शुरू किया और साथ ही साथ उसके होंठों को भी चूसता रहा। मैंने अपना दूसरा हाथ भी सामने कर दिया और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ लिया। इतनी नर्म और मुलायम चूचियाँ थी कि बस पूछो मत। मेरे दिमाग में प्रिया की चूचियों का ख्याल आ गया। उसकी चूचियाँ इतनी नर्म नहीं थीं। जैसे जैसे मैं रिंकी की चूचियाँ दबा रहा था रिंकी जोश से भरती चली जा रही थी। उसने अपने होंठ मेरे होंठों से छुड़ा लिए और सहसा मेरे सर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे झुका दिया। ऐसा करने से मेरा सर अब रिंकी के गले और चूचियों के बीच की खाली जगह पे आ गया। रिंकी ने वी शेप का टॉप पहना था जिसकी वजह से उसकी चूचियों की घाटी मेरी आँखों के ठीक सामने नज़र आ रही थी। मैंने देरी न करते हुए अपने गीले होंठ उसकी घाटी के ऊपर रख दिए और एक प्यारा सा चुम्बन किया। 

"ईसस...ह्म्म्मम्म...ओ सोनू...हम्म्म्म..." रिंकी के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं। 

मैंने अपना काम जारी रखा और अपने दबाव को थोड़ा और बढ़ाया। मेरे हाथ अब सख्त हो चुके थे और बेरहमी पे उतर आये थे। साथ ही साथ मेरी जीभ उसकी चूचियों की दरारों को ऊपर से नीचे तक चाट रही थी। रिंकी बड़े मज़े से अपनी आँखें बंद किये हुए मेरे सर पर अपना हाथ फेरती रही और मादक सिसकारियाँ निकालती रही। अब और ज्यादा बर्दाश्त करना मुश्किल था, मैंने रिंकी की चूचियों को छोड़ कर उसे खुद से थोड़ा सा अलग किया और अपने हाथों से उसके टॉप को उठा कर ऊपर करने लगा। जैसे ही मैंने उसके टॉप को थोड़ा ऊपर उठाया उसकी नाभि नज़र आ गई। इतनी खूबसूरत नाभि जैसे कि सपाट चिकने पेट के ऊपर एक छोटा सा छेद बना दिया गया हो। मैंने अपनी एक उंगली उसकी नाभि में डाल दी और धीरे से सहला दिया। रिंकी सिहर गई और उसका कोमल सा पेट थरथराने लगा। उसकी थरथराहट देख कर मुझे यह एहसास होने लगा कि उसे जबर्दस्त सिहरन हो रही है। मैं मुस्कुरा उठा और उसकी आँखों में देखने लगा। 

रिंकी की आँखों में एक मौन आमंत्रण था। उसके होंठ तो खामोश थे लेकिन आँखें कह रही थी कि आओ मुझे मसल डालो। उसके आमंत्रण को मैंने स्वीकार किया और उसके होंठों पे एक बार फिर से अपने होंठ रख दिए। इस बार मैंने अपनी जीभ उसके होंठों पर चलाई और धीरे से उसके मुँह में डाल दी। रिंकी ने मेरी जीभ का स्वागत किया और एक मंझे हुए खिलाड़ी कि तरह मेरी जीभ को अपने होंठों से चूसने लगी। जीभ के चूसने से मेरा जोश और भी बढ़ गया और मैंने अब उसके टॉप को और भी ऊपर तक उठा दिया। जैसे ही उसका टॉप और ऊपर आया उसकी काली ब्रा ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया। मैंने अपने हाथ उसके ब्रा के ऊपर रख दिए और प्यार से सहला दिया दोनों कबूतरों को! उधर रिंकी मेरी जीभ चूसने में व्यस्त थी। मैंने अब उसके टॉप को उसके शरीर से अलग कर देना उचित समझा और यह सोच कर मैंने उसकी टॉप को उतरने की कोशिश शुरू कर दी। 

अचानक से रिंकी ने अपना मुँह मेरे मुँह से छुड़ाया और मेरे हाथों को रोक दिया। 

मैं चौंक कर उसकी तरफ देखने लगा,"क्या हुआ??? अब इसकी क्या जरूरत है, इसे निकाल दो न प्लीज।" मैंने विनती भरे शब्दों में कहा। 

"निकाल दूंगी मेरे राजा, लेकिन यहाँ नहीं...अन्दर चलते हैं। यहाँ कोई भी देख सकता है।" रिंकी ने अपने टॉप को नीचे करते हुए एक नशीली आवाज़ में कहा। 

"अरे यार, यहाँ कौन है? वैसे भी हम घर में अकेले हैं। कोई नहीं देखेगा।" मैंने तड़पते हुए कहा और वापस उसकी चूचियों को दबाने लगा। 

"अरे तुम्हें तो किसी का ख्याल ही नहीं रहता है, तुम बस अपनी धुन में मस्त रहते हो और यह भी नहीं देखते कि कहीं कोई और तुम्हारे खेल का मज़ा तो नहीं ले रहा। भूल गए कल रात की बात!! वो तो शुक्र है भगवान का, जो मैंने देखा, अगर मम्मी ने या नेहा ने देख लिया होता तो आज तुम्हारी खैर नहीं थी बच्चू।" रिंकी ने मेरे हाथों के ऊपर अपने हाथ रख कर अपनी चूचियों को दबवाते हुए कहा। 

"जाओ पहले नीचे का गेट बंद करके आओ और फिर सारी खिड़कियाँ दरवाज़े भी बंद कर देना। मैं अपने बेडरूम में तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ।" रिंकी ने सोफे से उठते हुए कहा और अचानक से मेरे सख्त होकर निकर के अन्दर से झाँक रहे लंड पर प्यार भरी हल्की सी चपत लगा दी। 

लंड पर हाथ जाते ही लंड ने ठुनक कर सलामी दी और अकड़ गया। मैंने भी देरी नहीं की, सोफे से उठ गया और अचानक से उसकी एक चूची को जोर से खींचते हुये नीचे की तरफ गेट बंद करने के लिए भागा। 

"उईईइ...शैतान, उखाड़ ही डालोगे क्या?" रिंकी ने चीखते हुए कहा और मुझे जाते हुए देख कर मुस्कुराते हुए अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। 

पता नहीं मेरे अन्दर इतनी फुर्ती कहाँ से आ गई, मैं पलक झपकते ही गेट बंद करके सीधा ऊपर रिंकी के कमरे के दरवाज़े पर पहुँच गया। दरवाज़े से अन्दर देखा तो रिंकी अपने कमरे में रखे बड़े से आईने के सामने खड़ी है और अपने खुद के हाथों से अपनी चूचियों को सहला रही है।

मैं उसे देख कर एकदम मस्त हो गया। मैं दबे पाँव उसके पीछे पहुँच कर रुक गया और अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसके टॉप को पीछे से ऊपर करने लगा। रिंकी का ध्यान मेरी तरफ गया और उसने मुझे देख कर एक मादक सी स्माइल दी लेकिन अपनी चूचियों को वैसे ही सहलाती रही। मैंने उसके टॉप को ऊपर करते हुए थोड़ा नीचे झुक कर उसकी चिकनी और गोरी गोरी कमर पर अपने होंठों से हल्की हल्की सी पप्पी देने लगा। 

मैंने सुना था कि औरतों के बदन के कुछ ऐसे हिस्से होते हैं जहाँ मर्द का ध्यान ज्यादा नहीं जाता और वो जगह अनछुई सी रह जाती है। जब उन जगहों पे उँगलियों से या होंठों से हरकत करो तो उन्हें बहुत मज़ा आता है और यहाँ तक कि चूत तक झड़ जाती है। 

खैर, मेरे होंठों उसके कमर से होते हुए ऊपर की तरफ बढ़ने लगे और मैं उसकी पीठ को भी चूमने लगा। उसकी मदहोशी का ठिकाना नहीं था। रिंकी से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो सीधे मुड़ गई। उसने अपनी चूचियों को छोड़ कर मेरा सर अपने हाथों से थाम लिया और अब मेरे होंठ उसके पेट पे चलने लगे। मेरी नज़र उसकी नाभि पर गई तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी नाभि के अन्दर घुमाने लगा। रिंकी ने मेरे बालों को अपनी उँगलियों में पूरा जकड़ लिया था। मैं मज़े से उसकी जवानी का रसपान करने में लगा हुआ था। मैंने अपने हाथों से उसका टॉप उठा रखा था जिसे मैं बाहर निकल देना चाहता था। मैंने अपने हाथों को थोड़ा सा और ऊपर करके रिंकी को एक इशारा किया। रिंकी काफी समझदार निकली और उसने मेरे हाथों से अपना टॉप छुड़ा कर खुद ही पूरा बाहर निकाल दिया। 

अब तक मैं अपने घुटने पर बैठ चुका था ताकि आराम से उसके हुस्न का दीदार कर सकूँ। रिंकी ने अपनी चूचियों को ब्रा में कैद कर रखा था और ब्रा ऐसी थी कि उसकी आधी चूचियाँ बाहर आने को तड़प रही थी। मैंने अपना हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाया और उसकी ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को दबाने लगा। रिंकी ने मेरा सर ऊपर की तरफ खींचना शुरू किया जैसे कि वो कुछ इशारा करना चाह रही हो। मैं उसका इशारा समझ गया और खड़ा होने लगा और अब मेरा सर उसकी चूचियों के बिल्कुल सामने आ गया। मैं एक बार फिर से उसकी चूचियों पे टूट पड़ा। अब मुझ में और सब्र नहीं बचा था, मैंने जोर जोर से उसकी चूचियाँ दबानी शुरू कर दी... 

"उह्ह्ह्ह......आऐईईइ... धीरे सोनू, मार डालोगे क्या...?" रिंकी पूरे उत्तेजना में थी और अपना सर इधर उधर कर रही थी। 

मैंने धीरे से अपना एक हाथ पीछे ले जा कर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और अब मेरे सामने दो आज़ाद कबूतर उछल रहे थे। मैंने उसकी ब्रा को उसके बाँहों से निकाल कर नीचे फेंक दिया और उसकी नंगी चूचियों को अपनी हथेलियों में पूरा भर लिया। 32 इन्च की रही होगी उसकी उस वक़्त। मैंने अपना मुँह उसकी एक नंगी चूची के निप्पल पे रखा और किशमिश के दाने जैसे निप्पल को मुँह में भर लिया। 

मुँह में डालते ही रिंकी ने एक जोर की सिसकारी भरी, "उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...ह्म्म्मम्म।" 

मैंने पूरे जोश में आकर उसकी चूचियों को इस तरह चूसना शुरू कर दिया मानो आज ही उसका सारा रस निचोड़ कर पी जाऊँगा। मेरा दूसरा हाथ उसकी दूसरी चूची पर था। रिंकी ने अपनी उस चूची को जो मेरे मुँह में थी, अपने हाथों से पकड़ लिया और मेरे मुँह में ठूसनें लगी। रिंकी के मुँह से निरंतर मादक आवाजें निकल रही थीं जो मेरा जोश बढ़ाये जा रही थीं.. मैंने अब चूची बदल ली और दूसरी चूची को मुँह में भरा और उसी तरह से चूसने लगा। पहली चूची मेरे चूसने की वजह से पूरी लाल हो गई थी। उस पर मेरे होंठों के निशाँ साफ़ दिख रहे थे। मैंने एक परिवर्तन देखा, थोड़ी देर पहले जो चूची मुलायम लग रही थी वो अब कड़ी हो गई थी और फूल गई थी। अब उसकी चूची और भी ज्यादा गोल हो गई थी और निप्पलतो मानो सुपारी की तरह से कठोर हो गए थे। मैंने उसकी चूची को चूसते हुए अपने दोनों हाथ नीचे किये और स्कर्ट के ऊपर से ही उसके पिछवाड़े को सहलाने लगा। मेरे हाथ उसके बड़े और गोल गोल पिछवाड़े को अपनी हथेली में भर कर धीरे धीरे सहलाने लगे। मुझे कुछ अजीब सा लगा, मैंने अपने हाथों को और अच्छी तरह से दबा कर सहलाया तो पाया कि रिंकी ने अन्दर कुछ नहीं पहना है। मुझे बीती रात की प्रिया की कहानी याद आ गई और मैं मुस्कुरा उठा।
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03-29-2019, 11:25 AM,
#23
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
"दोनों बहनें बिल्कुल समझदार हैं...समय गँवाने का चांस ही नहीं रखतीं।" मैंने मन ही मन सोचा और अपने हाथों को उसकी स्कर्ट के अन्दर डालने लगा। मैंने उसकी जांघों को सहलाते हुए अन्दर से उसके पिछवाड़े पे अपना हाथ रखा...उफ्फ्फ्फ़... कितनी चिकनी थी उसकी स्किन ! मानो मेरा हाथ मक्खन पर फिसल रहा हो। मेरे हाथ अब उसके कूल्हों तक आ गए थे, मैंने उसकी नंगी गाण्ड को अपनी हथेली में मे भर कर दबा दिया और उसकी चूची के निप्पल को अपने दाँतों से हल्के हल्के काटने लगा। रिंकी अपने पूरे शबाब पे थी और मेरा भरपूर साथ दे रही थी। मैं अपने दोनो हाथो को सामने की तरफ ले आया और जैसा कि मुझे उम्मीद थी वैसा ही पाया, उसने अपनी चूत को थोड़ी देर पहले ही चिकना किया था। मेरे हाथ की उंगलियाँ उसके चूत पे जाते ही फिसल सी गईं और उस छुवन ने रिंकी को सिहरा सा दिया, उसने मेरे कंधे पे अपने दांत गड़ा दिए।

मैंने उसकी चूत को अपने हाथों की मुट्ठी में कैद कर लिया और उसे स्पंज की तरह मसलने लगा लेकिन प्यार से। इतने देर से चूमने चाटने और चूसने का खेल खेलते खेलते रिंकी की पिंकी रानी अपना काम रस छोड़ चुकी थी और बहुत ही गीली हो गई थी। मैं ठहरा चूत चूसने और चाटने का दीवाना। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने झट से उसकी चूची को अपने मुँह से बाहर निकाल लिया। रिंकी ने भी झट से मेरा सिर पकड़ा और अपनी जीभ मेरे मुँह में ठेल दी। कुछ देर ऐसे ही जीभ चूसने और चुसवाने के बाद मैंने उसकी स्कर्ट का बटन अपने हाथों से खोलना चाहा। उसकी स्कर्ट में कहीं भी बटन नहीं मिल रहे थे, मैं कोशिश किये जा रहा था। 

रिंकी को शायद मेरी इस कोशिश में मज़ा आ रहा था। उसने अचानक से मुझे खुद से अलग किया और मुझे धक्का देकर बिस्तर पे लिटा दिया... अपनी कोहनियों के बल मैं बिस्तर पे आधा लेट गया। मेरे दोनों पैर नीचे लटक रहे थे और अपनी कोहनियों के बल मैं आधा उठा हुआ था । रिंकी मेरे सामने खड़ी थी और अपनी लाल हो चुकी चूचियों को प्यार से सहला रही थी। 

"जानवर कहीं के.. यह देखो क्या हाल किया है तुमने इनका..." रिंकी मेरी तरफ सेक्सी सी स्माइल देते हुए कहने लगी... 

मैं अपने होंठों पर अपनी जीभ फिरा रहा था, मेरा गला सूख गया था। तभी अपनी चूचियाँ छोड़ अपने हाथ अपनी स्कर्ट के पीछे ले जा कर रिंकी ने अपनी स्कर्ट का जिप खोला। स्कर्ट धीरे से उसके पैरों से होता हुआ नीचे फर्श पर गिर गया। कमरे में दिन का उजाला था और उस उजाले में रिंकी का बदन किसी संगमरमर की मूर्ति की तरह चमक रहा था। बिल्कुल चिकना बदन...एक रोयाँ तक नहीं था उसके बदन पे...वो मेरे सामने खड़ी होकर अपना बदन लहरा रही थी। मैं सब्र नहीं रख पा रहा था। मैं उठ गया और बिस्तर पे बैठे बैठे ही मैंने उसे अपनी तरफ खींच लिया। वो लहराती हुई मेरे सीने से चिपक गई। रिंकी को तो मैंने बिल्कुल नंगा कर दिया था लेकिन अब तक मेरे बदन पे सारे कपड़े वैसे ही थे। रिंकी ने मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं और मेरे कानों के लोम को अपने होंठों से चुभलाने लगी। मुझे बहुत तेज़ गुदगुदी हुई। मैंने अपने कान छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उसने छोड़ा नहीं। 

"शैतान, मुझे तो पूरी नंगी कर दिया...सब कुछ देख लिया मेरा और खुद...??" रिंकी ने मेरे कान में धीरे से कहा। 

"तुमने भी तो मेरा सब कुछ देख लिया है..." मैंने भी सेक्सी आवाज़ निकलते हुए कहा। 

"मैंने कब देखा...?" रिंकी ने चौंकते हुए पूछा। 

"तुम ही तो कह रही थी कि तुमने कल रात को सब देख लिया है...फिर बचा क्या!"...मैंने उसे छेड़ते हुए जवाब दिया... 

"ओहो...उस वक़्त तो तुम्हारा वो उसके मुँह में कैद था...मैंने ठीक से देखा ही कहाँ!"...रिंकी ने थोड़ा शरमाते हुए कहा। 

"क्या किसके मुँह में था...ठीक से बताओ न..."मैंने जानबूझकर ऐसा कहा ताकि रिंकी पूरी तरह से खुलकर मेरे साथ मज़े ले सके। मुझे सेक्स के समय देसी भाषा का इस्तेमाल करना बहुत पसंद है, और दोस्तों शायद आप सब ने भी इसका तजुर्बा लिया होगा। अगर आपने अब तक इस्तेमाल नहीं किया तो एक बार करके देखना...लंड और भी तन जायेगा और चूत और भी गीली हो जायेगी। खैर मैंने रिंकी को अपने गले से लगा रखा था और उससे ठिठोली कर रहा था। जब मैंने उससे खुलकर बात करने का इशारा किया तो वो जैसे छुई मुई सी शरमा गई। 

"धत, तुम बड़े शैतान हो...मुझे नहीं पता उसे क्या कहते हैं।" रिंकी ने अपनी आँखें मेरी आँखों में डालकर शरमाते हुए कहा। 

"प्लीज रिंकी...ऐसा मत करो...बोलो ना...मैं जानता हूँ, तुम्हें सब पता है।" मैंने आँख मारते हुए उससे विनती करी। रिंकी धीरे से मेरे कानों के पास आकर फुसफुसा कर बोल पड़ी," तुम्हारा लंड प्रिया के मुँह में था इसलिए मैं तुम्हारे लंड को नहीं देख सकी थी।" यह कह कर उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया। 

मैंने रिंकी को अपनी गोद में बिठा लिया और अपने हाथों से उसका चेहरा ऊपर उठा दिया। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। मैंने उसकी चूची को अपने मुँह से फिर से पकड़ लिया और चूसने लगा। उसने मुझे फिर से धक्का दिया और बिस्तर पे उसी तरह से लिटा दिया। मैं फिर वैसे ही अपनी कोहनियों पे आधा लेट सा गया। रिंकी ने बिना कुछ कहे फुर्ती से मेरे निक्कर के ऊपर से मेरे लंड पे हाथ रखा और उसकी लम्बाई-मोटाई का जायजा लेने लगी। 

जैसे जैसे वो मेरे लंड का आकार महसूस कर रही थी, वैसे वैसे उसके मुँह पे चमक सी आ रही थी। उसने अब मेरा लंड अच्छी तरह से पकड़ लिया और दबा दिया। फिर उसने निकर के ऊपर से ही मेरी गोलियों को पकड़ा जो कि उत्तेजना में आकर सख्त और गोल हो गये थे और उनको अपनी मुट्ठी में पकड़ कर दबा दिया। 

"उह्ह्हह्ह......रिंकी, जान ही ले लोगी तुम तो!"...मैं दर्द से तड़प उठा और सिसकारते हुए उससे कहने लगा। 

रिंकी ने हँसते हुए मेरे गोलों को एक बार फिर दबा दिया और फिर मेरा हाथ अपनी तरफ माँगा। मैंने अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए। उसने मुझे मेरे हाथों से खींच कर बिठा दिया और फिर एक ही झटके में मेरे बदन से मेरा टी-शर्ट अलग कर दिया। मेरे सीने पे ढेर सारे बाल थे। रिंकी ने अपनी उंगलियाँ मेरे सीने पे फिरानी शुरू कर दी और अपना मुँह मेरे सीने के करीब लाकर मेरे निप्पल को चूम लिया। मैं सिहर गया और अपने हाथों से उसका सर पकड़ लिया। लेकिन रिंकी ने मेरी हरकतों को दरकिनार करते हुए मुझे फिर से वापस धकेल कर लिटा दिया और अब उसके हाथ मेरे निक्कर पर चलने लगे। लंड ने तो पता नहीं कब से टेंट बना रखा था। उसने एक बार और मेरे लंड को अपनी हथेली से पकड़ा और सहला कर उसे अपने होंठों से चूम लिया। 

मैं खुश हो गया, मुझे समझ में आ गया कि इन दोनों बहनों को किसी भी मर्द को दीवाना बनाना आता है। मैं अपनी किस्मत पर फ़ख्र महसूस कर रहा था। मैं इन्हीं ख्यालों में खुश था कि तभी रिंकी ने मेरी निक्कर को खींचना शुरू करा। और फिर वही हुआ जो कल रात प्रिया के साथ हुआ था, यानि मेरा लंड अकड़ कर इतना टाइट हो गया था कि कि निक्कर में वह अटक गया। निकर उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। रिंकी निक्कर को लगातार खींच रही थी लेकिन वो नीचे नहीं सरक रही थी। वो झुंझला सी उठी लेकिन कोशिश उसने बंद नहीं की। मुझे उस पर दया आ गई और मैंने अपने हाथों से अपने लंड को नीचे की तरफ झुका दिया। ऐसा करने से निक्कर सरक कर नीचे आ गई जिसे रिंकी ने बेरहमी से फेंक दिया मानो वो उसकी सबसे बड़ी दुश्मन हो। निक्कर फेंकने के बाद अब मैं भी उसकी तरह पूरा नंगा हो गया और मेरा भीमकाय लंड तनकर छत की तरफ देखते हुए रिंकी को सलामी देने लगा। रिंकी का ध्यान जब मेरे लंड पर गया तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं... 

"हे भगवन...ये तो...लेकिन राजेश का तो...हाय राम !" रिंकी के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आये थे। 

मैंने उसकी मनो स्थिति भांप ली और चुपचाप यह देखने लगा कि अब वो क्या करेगी। रिंकी थोड़ी देर तक मेरे लंड महाराज को ऐसे ही निहारती रही और अपने मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ निकलती रही। फिर उसने धीरे से अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और मेरे लंड को पकड़ लिया। मेरे लंड का घेरा इतना मोटा था कि उसके हाथों में पूरी तरह समा नहीं पाया। उसने लंड को बड़े प्यार से सहलाया और अपने होंठों को दाँतों से चबाने लगी। उसकी आँखें ऐसे चमक रही थीं जैसे किसी बच्चे को कई दिनों के बाद उसकी सबसे मनपसंद चोकलेट मिल गई हो। रिंकी ने अब मेरे लंड को धीरे धीरे ऊपर नीचे करना शुरू किया। उसकी हरकत यह बताने के लिए काफी थी कि उसे लंड के साथ खेलना आता है। मैं इस सोच में डूब गया कि कहीं इसने पहले भी तो ये खेल नहीं खेल रखा है।


खैर जो भी हो, अभी तो मुझे बस वो काम की देवी रति नज़र आ रही थी जो मुझे ज़न्नत का मज़ा दे रही थी। उसने मेरे लंड के चमड़े को खींच कर सुपारा बाहर निकल लिया। सुपारा एकदम लाल होकर चमक रहा था। इतनी देर से यह सब चल रहा था तो ज़ाहिर है कि लंड ने अपना काम रस निकाला था जिसकी वजह से वो और भी चिकना और चमकीला हो गया था। रिंकी धीरे धीरे एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मेरा लंड हिला रही थी। वो अपने घुटनों पर बैठ गई थी जिसकी वजह से उसका मुँह ठीक मेरे लंड के आगे हो गया था। लंड अपने पूरे जोश में था और ठनक ठनक कर उसे धन्यवाद कह रहा था। मेरा मन कर रहा था कि अभी तुरंत रिंकी का मुँह पकड़ कर अपना लंड जड़ तक पेल दूँ और उसके मुँह को चूत की तरह चोद दूँ। लेकिन मैंने सब्र करना ही ठीक समझा, मैं समझ गया था कि जब प्रिया मुझे इतना मज़ा दे सकती है तो रिंकी तो शायद खेली खाई है और हो सकता है वो मुझे कुछ अलग ही मज़ा दे। कहते हैं कि दिल से कुछ सोचो तो वो होता जरुर है। ऐसा ही हुआ... रिंकी अचानक से उठ गई और बाहर की ओर चली गई। 

मैं चौंक कर उठने लगा तो बाहर से उसकी आवाज़ आई,"उठाना मत सोनू, वैसे ही लेटे रहो, मैं अभी आती हूँ।" उसकी आवाज़ में एक आदेश था। 

मैं हैरान भी था और उत्तेजित भी था। रिंकी का अगला कदम जानने की उत्सुकता थी मन में। तभी वो तेज़ क़दमों से कमरे के अन्दर दाखिल हुई, अपने हाथों में एक हल्का पीला सा पैकेट लेकर। सामने पहुँची तो देखा कि वो बटर का पैकेट था। शायद रिंकी किचन में गई थी बटर लाने... लेकिन उसका इरादा क्या था...आखिर वो इस बटर का करेगी क्या? मेरे दिमाग में एक साथ कई सवाल कौंध गए। 

तभी रिंकी वापस उसी अवस्था में मेरे पैरों के पास बैठ गई और उपनी हथेली में बटर लेकर उसे मेरे लंड पे अच्छी तरह से मल दिया। हथेली में बचे हुए बाकी के बटर को उसने दोनों हाथों की हथेलियों में ऐसे लपेट लिया जैसे कोई क्रीम लगाते वक़्त करते हैं। मेरा लंड अब भी पूरी तरह से तना हुआ था और यह तो आप सब जानते ही हैं कि लंड जब खड़ा होता है तो गर्म भी हो जाता है। मेरा लंड भी गर्म था और इस वजह से उस पर लगा बटर थोड़ा थोड़ा पिघलने लगा था। रिंकी ने देरी न करते हुए अपने दोनों हथेलियों से मेरे लंड को पकड़ लिया और ऊपर नीचे करने लगी। एक तो लंड का जोश ऊपर से उस पर लगा बटर और सबसे ज्यादा आनन्द देने वाली रिंकी की मुलायम हथेलियाँ। मेरा लंड तो फूले नहीं समा रहा था।

"ह्म्म्मम्म...ओह्ह्ह्ह...रिंकी, यह क्या? जादू जानती हो तुम?" मैंने मज़े में अपने मुँह से यह सिसकारी भरी आवाज़ निकाली। 

रिंकी की हल्की सी हंसी सुनाई दी, वो मेरे सामने पैरों के पास बैठी थी और मैं आधा लेटे लेटे उसे अपने लंड से खेलते हुए देख रहा था। रिंकी ने अपने होंठों पे जीभ फेरनी शुरू कर दी और अब लंड को थोड़ा तेज़ी से हिलाने लगी। उसने दोनों हाथों से लंड को थाम रखा था। उसने लम्बे लम्बे स्ट्रोक देने शुरू किये। लंड को पूरी तरह से खोलकर सुपारे को भी अपनी हथेली में लगे बटर से सराबोर कर दिया। मैंने अपने लंड को देखा तो मुझे खुद उस पर प्यार आ गया। बटर की वजह से मेरा लंड बिल्कुल चमक सा रहा था और रिंकी के हाथों में मस्ती से खेल रहा था। सच कहता हूँ दोस्तों...कभी ऐसा करके देखना...मुझे दुआएं दोगे।
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03-29-2019, 11:25 AM,
#24
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
रिंकी की यह करामात मुझे अन्दर तक सिहरा गई। मैं अब बर्दाश्त करने की हालत में नहीं रह गया। मैंने रिंकी की आँखों में देखा और बिना कुछ बोले यह विनती करने लगा कि अब कुछ करो...वरना मैं मर ही जाऊँगा। रिंकी ने मेरी आँखों में देखा और मुस्कुरा कर अपनी जीभ पूरी बाहर निकाल ली और मेरी आँखों में देखते हुए मेरे सुपारे पे अपनी जीभ से छुआ। उसकी वो नज़र आज भी मेरी निगाहों में कैद है। उन आँखों में ऐसी कशिश थी कि बस पूछो मत। रिंकी ने देरी नहीं की और उठ कर मेरे दोनों पैरों के बीच आकर मुझ पर लेट गई। उसका नंगा बदन मेरे नंगे बदन से चिपक गया। मेरा लंड अब भी सख्त था और ठुनक रहा था। रिंकी ने मेरे लंड को अपने हाथों से नीचे की तरफ एडजस्ट किया और अपनी चूत की दीवार को मेरे लंड पे रख कर उसे अपनी चूत से दबा दिया। लंड तो दबने का नाम ही नहीं ले रहा था लेकिन रिंकी ने उसे जबरदस्ती दबाये रखा और मेरे सीने पे अपनी चूचियों को रगड़ने लगी। मैं अब भी अपनी आँखें बंद किये हुए मज़े ले रहा था। तभी मेरे होंठों से कुछ लगा और मैंने अपनी आँखें खोल लीं। सामने देखा तो रिंकी अपने एक हाथ से अपनी एक चूची के निप्पल को मेरे होंठों पे रगड़ रही थी। मैंने उसकी निप्पल का स्वागत किया और अपने होंठ खोल कर उसे अन्दर कर लिया और जोर से चूस लिया। 

"उह्ह्ह्ह...धीरे जान...अभी भी दुःख रहा है।" रिंकी ने एक सिसकारी लेकर मेरे बालों में उँगलियाँ फिराते हुए कहा।

मैंने उसे मुस्कुरा कर देखा और उसे पकड़ कर अपने बगल में पलट दिया। अब रिंकी बिल्कुल नंगी मेरी बाहों में बिस्तर पे लेटी हुई थी और मेरा मुँह उसकी चूची को चूस रहा था। मैंने अपने हाथ को हरकत दी और उसके चिकने बदन को ऊपर से नीचे तक सहलाने लगा। रिंकी मज़े से तड़पने लगी और मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ भरने लगी। मैंने अपने हाथों को उसकी जाँघों पे ले जाकर उसकी चिकनी जाँघों को हल्के हल्के मुट्ठी में भर कर दबाना शुरू किया। रिंकी के पैर खुद बा खुद अलग होने लगे। यह इस बात का इशारा था कि अब उसकी चूत कुछ मांग रही थी। मैंने अपने हाथ को उसकी जाँघों के बीच सरका दिया और धीरे धीरे ज़न्नत के दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। जैसे जैसे मेरे हाथ उसकी चूत की तरफ बढ़ रहे थे, मुझे कुछ गीलापन और गर्मी महसूस होने लगी। मैं समझ गया था कि इतने देर से चल रहे इस चुदाई क्रीड़ा का असर था कि उसकी चूत ने अपना रस बाहर निकाल दिया था। मैंने सहसा अपना हाथ सीधे उसकी चूत पे रख दिया और उसकी छोटी सी नर्म मुलायम चिकनी चूत मेरी हथेली में खो गई। उफ्फ्फ्फ़......क्या गर्म चूत थी, मानो किसी आग की भट्टी पे हाथ रख दिया हो मैंने... 

"उफ्फ्फ्फ़......सोनू..." रिंकी ने मेरे बालों को जोर से पकड़ लिया और अपनी कमर को ऊपर उठा लिया।

उसे एक झटका सा लगा और उसने अपनी अवस्था का ज्ञान अपनी कमर हिलाकर करवाया। मैंने उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में हल्के से भर कर धीरे धीरे ऐसे दबाना चालू किया जैसे कॉस्को की गेंद हो। उसकी चूत पूरी तरह से गीली थी और और उसने मेरी हथेली को रस से भर दिया था। मैं मज़े से उसकी चूचियों को पीते पीते उसकी चूत को सहलाता रहा और अपनी उँगलियों से चूत की दीवारों को छेड़ता रहा। रिंकी लगातार मेरे बालों में अपनी उँगलियों से खेलते हुए अपनी कमर उठा उठा कर मज़े लेती रही। उसकी रस से भरी चूत ने मुझे ज्यादा देर तक खुद से दूर नहीं रहने दिया। रस से भरी चूत मेरी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो रही थी। मैंने उसकी चूचियों को मुँह से निकाल कर उसके होंठों को एक बार फिर से चूमा और सीधे नीचे उसकी चूत की तरफ बढ़ गया। उसकी चूत कमरे की रोशनी में चमक रही थी। चूत की दीवारें रस से भरी हुई थीं। लेकिन उसकी चूत का उपरी हिस्सा जो कि पाव रोटी की तरह फूल चुका था वो थोड़ा खुश्क लग रहा था। शायद बालों को साफ़ करने के लिए क्रीम लगाने कि वजह से वो जगह थोड़ी ज्यादा खुश्क हो गई थी। मैंने उस फूली हुई जगह पे अपने हाथ फेरे और अपना मुँह नीचे करके चूम लिया। जैसे ही मैंने चूमा, रिंकी ने एक जोर की सांस ली। मैंने लगातार कई चुम्बन उसकी चूत के ऊपरी भाग पे किये और अपने दांतों से थोड़ा सा काट लिया। 

"उईईइ...हम्म्म्म...क्या कर रहे हो मेरे राजा जी...दुखता है ना।" रिंकी ने इतने प्यार से और इतनी अदा के साथ कहा कि मेरा दिल बाग बाग हो गया। 

तभी मेरी नज़र बिस्तर पे पास में रखे हुए उस पैकेट पे गई जो रिंकी किचन से लेकर आई थी। मैंने झट से वो पैकेट उठाया और अपनी दो उँगलियों से ढेर सारा मक्खन निकल कर उसकी चूत के ऊपर रख दिया। रिंकी को शायद इस बात का एहसास हो गया, उसने मेरी तरफ देखा और शरमाकर मुस्कुराने लगी। हमारे बीच ज्यादा बातचीत तो नहीं हो रही थी लेकिन हम दोनों अपनी अपनी हरकतों और अदाओं से एक दूसरे को घायल किये जा रहे थे और अपनी हर बात एक दूसरे को समझा रहे थे। मैंने मक्खन को अच्छी तरह से उसकी चूत पे फैला दिया और अपनी हथेली में भी थोड़ा सा लगा कर उसकी चूत को धीरे धीरे मसलने लगा। मक्खन की चिकनाई ने रिंकी की चूत को और भी ज्यादा चिकना और मुलायम कर दिया। मेरे हाथ अब अपने आप उसकी चूत पे फिसलने लगे। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और मैं बिल्कुल मन लगा कर उसकी चूत को सहलाता रहा। रिंकी की चूत से निकल रहे रस ने मक्खन के साथ मिलकर ऐसा संगम बना दिया था कि देख कर किसी के भी मुँह में पानी आ जाता। मेरा गला सूख गया और मैंने अपनी जीभ अपने होंठों पे फेरनी शुरू कर दी। अपनी जीभ होंठों पे फेरते फेरते मैंने रिंकी की तरफ एक बार देखा तो उसे अपनी धुन में गर्दन इधर उधर करते हुए पाया। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और झुक कर अपनी जीभ सीधे उसकी चूत के मुँह पे रख दी। मेरे जीभ की गर्मी ने रिंकी को इसका एहसास दिलाया और उसने अपनी टाँगें और भी खोल दी। मैंने अपनी जीभ को पूरी तरह से बाहर निकाल कर उसकी चूत की दरारों पे ऊपर से नीचे की तरफ सहलाया। मेरे नाक में उसकी चूत की एक मादक सी सुगंध समां गई। चूत से एक और भी भीनी भीनी खुशबू आ रही थी। मुझे समझते देर नहीं लगी कि वो उस क्रीम की खुशबू थी जिससे रिंकी ने अपनी झांटों को साफ़ किया था। मैंने अपनी दो उँगलियों से उसकी चूत को थोड़ा खोला तो एक सुर्ख गुलाबी रस से सराबोर बिल्कुल बंद सा सुराख दिखाई दिया। उसके ठीक ऊपर किशमिश के दाने के समान उसकी चूत का दाना दिखा जो कि धीरे धीरे हिल रहा था। मैंने अपनी जीभ थोड़ी लम्बी करके उसके दाने को जीभ की नोक से छुआ। 

"उम्म्मम्म......उफफ्फ्फ्फ़...सोनू...चाट लो इसे...ये तुम्हारी है ...सिर्फ तुम्हारी..." रिंकी ने जोर से सिसकते हुए कहा और मेरे बालों को खींचने लगी।

मैंने मंद मंद उसकी चूत को वैसे ही खोलकर अपनी जीभ से चाटना शुरू किया और धीरे से अपने हाथों को ऊपर लेजाकर उसकी दोनों चूचियों को थाम लिया। रिंकी ने अब मेरा सर पकड़ लिया और अपनी चूत पे घिसने लगी। साथ ही साथ वो अपनी कमर को भी ऊपर नीचे करने लगी। मैंने अब तेज़ी से उसकी चूत को अन्दर तक चाटना और चूसना शुरू किया और साथ साथ उसकी चूचियों को भी मसलता रहा। 

"उम्म्म्म...ह्म्म्मम्म...ओह सोनू...खा जाओ ...चबा जाओ इसे... न जाने कब से तुम्हारे इस शेर के लिए तड़प रही है।" रिंकी ने जोश से भर कर मुझसे कहा और मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया। मैंने रिंकी की बात सुनी तो अपना सर उसकी चूत से हटा लिया और उसकी तरफ देखकर घूरते हुए पूछा, "मेरे शेर के लिए तड़प रही थी या राजेश के शेर के लिए?।" 

तड़प तो मैं तुम्हारे ही इस शेर के लिए रही थी लेकिन बीच में राजेश आ गया...राजेश का शेर तो तुम्हारे शेर सामने कुछ भी नहीं मेरे राजा...बस मेरी प्यास बुझा दो..." रिंकी ने कातर नजरों से कहा और फिर मदहोश होकर मेरे सर को अपनी चूत पे दबा दिया।

मैंने भी एक लम्बी सी सांस अन्दर खींची और तेज़ी से अपनी पूरी जीभ उसकी चूत में डाल कर अन्दर बाहर करने लगा। रिंकी की चूत ने मचल कर ढेर सारा पानी छोड़ दिया और अब मेरे जीभ और चूत के मिलन का स्वर कमरे में रिंकी की सिसकारियों के साथ गूंजने लगा। चपर चपर करके मैंने उसके चूत से निकलते हुए काम रस को गटक लिया और चूत की चुसाई जारी रखी... 

"उफ्फ्फ... जानू... अब बर्दाश्त नहीं होता...प्लीज कुछ करो......प्लीज...अब और नहीं सहा जाता।" रिंकी ने मेरे बालों को जोर से खींच कर मेरा मुँह अपनी चूत से अलग कर दिया और अपनी एक उंगली चूत पर ले जाकर चूत को तेज़ी से सहलाने लगी। 

मैंने रिंकी को हाथ से पकड़ कर उठाया और उसे अपने सीने से लगा लिया। उसने मुझसे लिपट कर न जाने कितने चुम्बन मेरे गले और गालों पर जड़ दिए। इन सब के बीच रिंकी का हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया जो कि चूत की रासलीला से एक बार फिर तन कर अकड़ गया था और अब अपनी असली जगह ढूंढ रहा था। रिंकी ने मेरे लंड को पकड़ कर हिलाया और उसे खींचने लगी अपनी चूत की तरफ। मैं उसकी इस बेताबी पर बहुत खुश हुआ और उसे वापस धीरे से बिस्तर पे लिटा दिया। अब मैं उठ कर उसकी टांगों के बीच में आ गया। मैंने एक भरपूर निगाह उसकी चूत पर डाली जो कि मेरे मुँह के लार और उसके खुद के रस से सराबोर होकर चमक रही थी। मैंने थोड़ा गौर से देखा तो पाया कि उसकी चूत की फांकें धीरे धीरे हिल रही हैं...जैसे कि वो मेरे लंड को बुला रही हों। मैंने देरी नहीं की ...बर्दाश्त तो मुझसे भी नहीं हो रहा था। मैंने अपने लंड की चमड़ी हटाई और अपने सुपारे को बाहर निकाल कर थोड़ा सा झुक गया और उसकी चूत की दरार पर रख दिया। रिंकी ने एक आह भरी और अपनी टांगों को अच्छी तरह से एडजस्ट कर लिया। शायद उसे पता था कि अब वो चुदने वाली है। मैंने अपने सुपाड़े को उसकी चूत की दरार पे धीरे धीरे रगड़ा और वैसे ही थोड़ी देर उसकी चूत को अपने लंड से सहलाता रहा। रिंकी ने अपने हाथ नीचे किये और अपनी दो उँगलियों से चूत की दरार को फैला दिया। इससे उसकी चूत का मुँह थोड़ा खुला और मैंने सुपारे को और अन्दर करके रगड़ना शुरू कर दिया। रिंकी ने अपनी साँसें रोक लीं, वो अब धक्के खाने के लिए पूरी तरह से तैयार थी। मैंने कई बार ब्लू फिल्मों में देखा था कि मर्द एक ही झटके में लंड पूरा अन्दर डाल देते हैं और लड़की की चूत को फाड़ डालते हैं। मैंने भी ऐसा ही करने का सोचा लेकिन तभी मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि कहीं मेरी इस हरकत से रिंकी को ज्यादा तकलीफ न हो जाए और हमारा भाण्डा न फूट जाए। मैंने प्यार से काम लेना ही उचित समझा। अब मैंने अपने लंड को धीरे से रिंकी की चूत में धकेला। सुपारा फिसला और धक्का उसके चूत के दाने पे लगा। 

"उह्ह्ह्ह...क्या कर रहे हो?" रिंकी ने तड़प कर कहा।
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03-29-2019, 11:25 AM,
#25
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मैंने फिर से अपने लंड को ठीक जगह पे रखकर सख्ती से धक्का दिया। सुपारा चूत के छोटे से दरवाज़े में अटक गया और रिंकी ने एक जोर की सांस लेकर अपने शरीर को कड़ा कर लिया। मैंने थोड़ा सा रुक कर एक हल्का सा धक्का और दिया। इस बार मेरा सुपारा थोड़ा और अन्दर गया। 

"उह्ह्ह...जान, थोड़ा धीरे डालो...तुम्हारा लंड सच में बहुत बेरहम है, मेरी हालत ख़राब कर देगा।" रिंकी ने डरते हुए अपना सर उठा कर मुझसे कहा और अपने दांत भींच लिए। 

उसकी चूत सच में बहुत कसी थी। अब तक जैसा कि मैं सोच रहा था कि उसने पहले भी लंड खाए होंगे वैसा लग नहीं रहा था। उसकी चूत की दीवारों ने मेरे लंड के सुपारे को पूरी तरह से जकड़ लिया था। मेरे सुपारे पे एक खुजली सी होने लगी और ऐसा लगा मानो चूत लंड को अपनी ओर खींच रही हो।

मैंने अब थोड़ा जोर का झटका देने की सोची, मुझे पता था कि जिस तरह से उसकी चूत ने सुपारे को जकड़ा था उस अवस्था में धीरे धीरे लंड को अन्दर करना कठिन था। मैंने अपनी सांस रोकी और एक जोरदार धक्का उसकी चूत पे दे मारा। 

"आई ईई ईईई ईईईई ईईईग......मर गई......सोनू, मुझे छोड़ दो...मुझसे नहीं होगा......" रिंकी के मुँह से एक तेज़ चीख निकल गई। 

“आह.. मैं....मर.. ग....ईईई… ऊ..आह….सोनू…निकाआआ..लोअ प्लीज…आ…ह……” | रिंकी चिल्ला उठी।

उसकी चीख ने मुझे थोड़ा डरा दिया और मैं रुक गया। मैंने उसकी तरफ देखा और अपने एक हाथ से उसके चेहरे पे अपनी उंगलियाँ बिखेर कर उसके होंठों को छुआ। मैंने झुक कर देखा तो मेरा आधा लंड रिंकी की चूत में समा चुका था। मेरे चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई।

"अब बस अगली बार में तो किला फ़तह ही समझो।" मैंने अपने आप से कहा और आगे झुक कर रिंकी की चूचियों को अपने मुँह में भर लिया। मैंने धीरे धीरे उसकी एक चूची को चुभलाना शुरू किया और दूसरी चूची को अपने हाथों से हल्के हल्के दबाने लगा। मैंने कई कहानियों में पढ़ा था कि जब लड़की या औरत की चूत में लंड अटक जाए या दर्द देने लगे तो उसका ध्यान उसकी चूचियों को चूस कर बाँट देना चाहिए ताकि वो अपना दर्द भूल जाए। कहानियों से सीखी हुईं बातों को ध्यान में रख कर मैंने उसे प्यार से सहलाते हुए उलझाये रखा और धीरे धीरे अपने लंड को उतना ही अन्दर रखते हुए रगड़ता रहा। रिंकी अब शांत हो गई थी और मेरे लंड का स्वागत अपनी कमर हिला कर करने लगी। उसने अपनी गांड नीचे से उठा कर मेरे लंड को चूत में खींचा। 

मैं समझ गया कि अब असली खेल खेलने का सही वक़्त आ चुका है। मैंने फिर से एक लम्बी सांस खींची और अपने हाथों के सहारे अपनी कमर के ऊपर के हिस्से को उठा लिया। अब मैं तैयार था रिंकी को ज़न्नत दिखाने के लिए। मैंने सांस रोक कर एक जबरदस्त धक्का मारा और मेरा पूरा लंड रिंकी की कोमल चिकनी चूत को चीरता हुआ अन्दर घुस गया। 

"आईईई ईईईई ईई ईईईई......ओह माँ......बचाओ मुझे..." रिंकी ने इतनी जोर से चीख मारी कि उसकी आवाज़ कमरे में गूंजने लगी और उसने अपना सर उठा कर अपने दांत मेरे सीने पे जोर से गड़ा दिए। 

मैं तड़प उठा...लेकिन बिना रुके अपना लंड पूरा बाहर खींचकर एक और जोर का झटका दिया। इस बार भी मेरा पूरा लंड उसकी चूत में उतर गया पर इस बार कुछ और भी हुआ...रिंकी की चूत से 'फचाक' की एक आवाज़ आई और खून की एक धार बाहर निकलने लगी। 
"ओह...ये तो बिल्कुल कुंवारी है।" मैंने अपने मन में सोचा और मेरी आँखें इस बात से चमक उठीं। मैं और जोश में आ गया और तेज़ी से एक धक्का लगाया। 

"आअह्ह्ह्ह...ममम्मम्म...मैं गई।" इतना बोलकर रिंकी ने अपन सर बिस्तर पर गिरा दिया। 

मेरा ध्यान बरबस ही उस पर चला गया। मैंने देखा कि रिंकी की आँखें सफ़ेद हो गईं थीं और वो बेहोश होने लगी थी। मैं थोड़ा डर गया। मैं रुक गया और उसके गालों पे अपने हाथ से थपकी देने लगा...थपकी देने से रिंकी ने अपनी आँखों को धीरे से खोला और मेरी तरफ देख कर ऐसा करने लगी जैसे उसे असहनीय पीड़ा हो रही हो... 

"प...प्लीज सोनू...मैं मर जाऊँगी..." रिंकी ने टूटे हुए शब्दों में मुझसे कहा। मुझे उस पर दया आ गई। मैंने उसे पुचकारते हुए उसके होंठों को चूमा और कहा, 

"बस मेरी जान, जो होना था वो हो चुका है। अब तकलीफ नहीं होगी।" 

"ओह माँ... मुझसे भूल हो गई जो मैं तुम्हारा लंड लेने के लिए तड़प उठी। प्लीज इसे बाहर निकाल लो...प्लीज सोनू...फिर किसी दिन कर लेना।" रिंकी ने रोनी सी सूरत बनाकर मुझे कहा।

एक बार तो मैंने सोचा कि उसकी बात मान लूँ और उसे छोड़ दूँ...फिर मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि अगर आज इसे छोड़ दिया तो फिर यह पट्ठी कभी भी मेरा लंड लेने को तैयार नहीं होगी, इसलिए आज इसे लंड का असली मज़ा देना ही होगा ताकि यह मेरी गुलाम बन जाए और दिन रात मेरे लंड को अपनी चूत में डाल कर रखे। मैंने रिंकी के होंठों को अपने होंठों में भरा और प्यार से चुभलाने लगा और अपने हाथों को उसकी चूचियों पे रख कर मसलता रहा। साथ ही साथ मैंने अपने लंड को बिल्कुल धीरे धीरे उसकी चूत में वैसे ही फंसा कर आगे पीछे करना शुरू किया। चूत को मैंने चाट चाट कर भरपूर गीला कर दिया था और साथ ही उसकी चूत ने पानी छोड़ कर चिकनाई और भी बढ़ा दी थी लेकिन इतनी चिकनाई के बावजूद मेरा लंड ऐसे फंस गया था जैसे बिना तेल लगे बालों में कंघी फंस जाती है। मैंने अपनी कोशिश जारी रखी और लंड से उसकी चूत को रगड़ता रहा। थोड़ी देर बीतने के बाद रिंकी ने मेरे होंठों को अपने होंठों से चूसना शुरू किया और अपनी जीभ को मेरे मुँह में ठेलने लगी। अब वो अपने दर्द को भूल कर चूचियों की मसलाई और चूत में लंड की रगड़ का मज़ा लेने लगी। 

मैंने भी महसूस किया कि अब उसकी चूत ने अपना मुँह खोलना शुरू किया है। धीरे धीरे उसकी गांड हिलने लगी और उसने मस्त होकर मुझे अपनी बाहीं में लपेट लिया। मैंने उसका इशारा समझ लिया और उसी अवस्था में अपने लंड को बाहर निकाल निकाल कर धक्के मारने लगा। मैंने अपनी गति धीमी ही रखी थी ताकि उसे दुबारा दर्द का एहसास न हो। मैं मंद गति से चोद रहा था और वो मेरे पीठ पे अपने हाथ फेर रही थी। थोड़ी देर के बाद मैंने अपना मुँह उसके मुँह से अलग किया और थोड़ा सा उठ कर एक तेज़ धक्का पेल दिया। 

"उम्म्म्म...हाँ...सोनू अब ठीक है...अब करते जाओ...करते जाओ..." रिंकी ने मेरी कमर पे अपने हाथ रख दिए और अपनी गांड थोड़ा थोड़ा ऊपर उठा कर लंड का स्वागत करने लगी। 

"क्या करूँ मेरी जान...खुलकर बोलो ना?" मैंने उसे और भी मस्ती में लाने के लिए उससे खुल कर मज़े लेने के लिए कहा और अपने लंड का प्रहार जारी रखा। 

"बड़े वो हो तुम...मुझे अपनी तरह गन्दी और बेशरम ही बना दोगे क्या?" रिंकी ने मुझे प्यार भरी नज़रों से देखते हुए लंड खाते खाते कहा।

"तुम एक बार खुल कर मज़े लेने की कोशिश तो करो रिंकी रानी...देखना तुम अपना सारा दर्द भूल कर मुझे अपनी चूत में घुसा लोगी।" मैंने भी उसे चोदते हुए सेक्सी अंदाज़ में उसे जवाब दिया।

“उफ्फ्फ्फ़...मेरे राजा जी...तुम तो जादूगर हो...अपनी बातों में फंसा कर तुमने मुझे चोद ही डाला...अब और मत तड़पाओ, मैं कल से तड़प रही हूँ...मेरी प्यास बुझा दो।" रिंकी अब मदहोश हो चुकी थी और खुलने भी लगी थी। 

"उम्म्म्म...हूँन्न......ऐसे ही मेरे सोनू......आज इस कमीनी चूत की सारी गर्मी निकाल दो...चोदो... आआह्ह्ह्ह...और चोदो..."
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03-29-2019, 11:25 AM,
#26
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
रिंकी के शब्दों ने जैसे आग में पेट्रोल का काम किया और मैंने ताबड़तोड़ अपने लंड को उसकी चूत में पेलना शुरू कर दिया। अब तक रिंकी और मैं चुदाई के सबसे साधारण आसन से चुदाई किये जा रहे थे लेकिन मैंने अब उसे दूसरे तरीके से चोदने का मन बनाया। मैंने एक ही झटके में अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकल लिया। लंड बाहर निकलते ही रिंकी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा और मुझसे पूछने लगी,"क्या हुआ...? बाहर क्यूँ निकाला... इसे जल्दी से अन्दर डालो ना !" इतना कहकर रिंकी ने अपने हाथ बढ़ाये और मेरे लंड को पकड़ कर खींचने लगी। लंड चूत के रस से बिल्कुल गीला था तो रिंकी के हाथों से फिसल गया। लंड हाथों से फिसलते ही रिंकी उठ कर बैठ गई और पागलों कि तरह मुझसे लिपट कर मेरे ऊपर चढ़ने लगी। मैं सोच रहा था कि उसे घोड़ी बनाकर उसके पीछे से उसकी चूत को चोदूँगा लेकिन उसने मुझे धकेल कर लिटा दिया और खुद बैठ कर मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ लिया और मुठ मारने लगी।

"हम्म्म्म...आज मैं तुझे नहीं छोडूंगी...कच्चा चबा जाऊँगी तुझे...हुन्न्न..." रिंकी मेरे लंड से खेलते हुए कह रही थी और अचानक से झुक कर उसने मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया। 

मैंने कई बार ब्लू फिल्मों में ऐसा देखा था कि लड़की चुदवाते चुदवाते लंड बाहर निकाल कर फिर से चूसने लगती है और फिर चूत में डालकर चुदवाती है। रिंकी की इस हरकत ने मुझे यह सोचने पे मजबूर कर दिया और मुझे यकीन हो चला था कि उसने जरुर ब्लू फ़िल्में देखीं हैं और वहीं से यह सब सीखा है। 

खैर मेरे लिए तो उसकी हर हरकत मज़े का एक नया रूप दिखा रही थी। मैं मस्त होकर अपना लंड चुसवाने लगा। थोड़ी देर मज़े से लंड को चूसने के बाद रिंकी उठी और मेरे दोनों तरफ पैर करके मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ा और अपनी चूत के मुँहाने पे रख कर उस पर बैठने लगी। चूत तो पहले से ही गीली और खुली हुई थी तो मेरा सुपारा आसानी से उसकी चूत के अन्दर प्रवेश कर गया। सुपाड़ा घुसने के बाद रिंकी ने लंड को हाथों से छोड़ दिया और दोनों हाथ मेरे सीने पे रख कर धीरे धीरे लंड को चूत के अन्दर डालते हुए बैठने लगी। जैसे जैसे लंड अन्दर जा रहा था, रिंकी के चेहरे के भाव बदल रहे थे। आधा लंड अन्दर हो चुका था...रिंकी ने मेरी आँखों में देखा और अपने होंठों को दांतों से दबा कर एकदम से बैठ गई।

"आअह्ह्ह्ह...माँ......बड़ा ही बेरहम है ये... मेरे अन्दर की पूरी दीवार छील के रख दी तुम्हारे लंड ने...उफ्फ्फ..." रिंकी ने मादक अदा के साथ पूरा लंड अपनी चूत में उतार लिया और थोड़ी देर रुक गई। 

मैं उसे प्यार से देखता रहा और फिर अपने हाथ बढ़ा कर उसकी कोमल चूचियों को थाम लिया। जैसे ही मैंने उसकी चूचियाँ पकड़ीं, रिंकी ने अपनी कमर को थोड़ी गति दी और हिलने लगी। मैं मज़े से उसकी चूचियाँ दबाने लगा और मज़े लेने लगा। रिंकी बड़े प्यार से अपनी कमर हिला हिला कर लंड को अपनी चूत से चूस रही थी। मैं बयाँ नहीं कर सकता कि कुदरत के बनाये इस खेल में कितना आनंद भरा है। ये तो उस वक़्त या मैं समझ रहा था या रिंकी...। 

"उम्म्मम्म...आह्ह्ह्ह...रिंकी मेरी जान...मैं दीवाना हो गया तुम्हारा......ऐसे ही खेलती रहो..." मैं मज़े से उसकी चूचियाँ दबाते हुए उसे जोश दिलाता रहा और वो उच्चल उछल कर चुदवाने लगी। 

"हाँ...सोनू, तुमने तो मुझे ज़न्नत दिखा दिया...मैं तुम्हारी गुलाम हो गई राजा...उफ्फ्फ...उम्म्म्म..." रिंकी अपने मुँह से तरह तरह की आवाजें निकलती रही और लगातार कूद कूद कर लंड लेती रही। 

मैं थोड़ा सा उठ गया और मैंने उसकी चूचियों को अपने मुँह में भर लिया। उसकी चूचियों को चूसते हुए मैंने अपने हाथों को पीछे ले जाकर उसके कूल्हों को पकड़ लिया और उसे अपनी ओर खींच कर खुद से और भी सटा लिया। अब उसकी चूत और मेरा लंड और भी चिपक गए थे और एक दूसरे की चमड़ी को घिस घिस कर चुदाई का मज़ा ले रहे थे। रिंकी ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल ली थीं और मैं उसकी चूचियों का रस पान करते हुए अपनी तरफ से भी धक्के लगा रहा था। 

काफी देर तक इसी अवस्था में चोदने के बाद मैंने रिंकी को पकड़ कर पलट दिया और अब मैं उसके ऊपर था और वो मेरे नीचे। मैंने अब फिर से पोजीशन बदलने की सोची और रिंकी के ऊपर से उठ गया। 

रिंकी ने फिर से सवालों भरे अंदाजा में मेरी तरफ देखा। मैंने मुस्कुरा कर रिंकी का हाथ थमा और उसे बिस्तर से नीचे उतार दिया। हम दोनों खड़े हो चुके थे। मैं रिंकी के पीछे हो गया और उसे दीवार के उस तरफ घुमा दिया जिस तरफ आदमकद आइना लगा था। अब स्थिति यह थी कि मैं रिंकी के पीछे और रिंकी की पीठ मेरी तरफ थी और हमारे सामने बड़ा सा आइना था जिसमे हम दोनों मादरजात नंगे दिखाई दे रहे थे। रिंकी ने एक नज़र आईने पे डाली और उस दृश्य को देखकर एक बार के लिए शरमा सी गई। मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसकी चूचियों को फिर से थामा और उसकी गर्दन पर चुम्बनों की बरसात कर दी। रिंकी ने भी मेरे चुम्बनों का जवाब दिया और अपने हाथ पीछे करके मेरे लंड को पकड़ लिया और अपने चूतड़ों की दरार के बीच में रगड़ने लगी। मैंने धीरे धीरे उसे आगे की तरफ सरका कर आईने के एकदम सामने कर दिया और अपने हाथों से उसके हाथों को आगे ले जाकर शीशे पर रखवा दिया और उसे थोड़ा सा झुकने का इशारा किया। रिंकी ने आईने में मेरी तरफ देख कर एक मुस्कान के साथ अपनी कमर को झुका लिया और अपनी गांड को मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने उसके चिकने पिछवाड़े पे अपने हाथ रखे और सहला कर एक जोर का चांटा मारा।

"आऔच...हम्म्म्म...बदमाश...क्या कर रहे हो...?" रिंकी ने एक सेक्सी आवाज़ में मुझे देखते हुए कहा। 

मैंने भी मुस्कुरा कर उसकी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और अपने लंड को उसकी गांड की दरार में सरकाते हुए चूत के मुँहाने पे रख दिया। चूत पूरी चिकनाई के साथ लंड का स्वागत करने के लिए तैयार थी। मैंने अपना अंदाजा लगाया और एक जोर का झटका दिया। गच्च...की आवाज़ के साथ मेरा आधा लंड उसकी चूत में समां गया और रिंकी ने एक मादक सिसकारी भरी और आईने में अपनी चूत के अन्दर लंड घुसते हुए देखने लगी। मैंने बिना किसी देरी के एक और करारा झटका मारा और पूरे लंड को उसकी चूत की गहराई में उतार दिया।

"ओह्ह्ह्ह...मेरे राजा...चोद डालो मुझे...फाड़ डालो आज इस हरामजादी को...रात भर लंड के लिए टेसुए बहा रही थी..." रिंकी ने मज़े में आकर गन्दे गन्दे शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू किया और मैं जोश में आकर उसकी जबरदस्त चुदाई करने लगा। 

"फच्च...फच्च...फच्च...फच्च उह्ह्ह...आअह्ह्ह्ह...उम्म्मम्म..." बस ऐसी ही आवाजें गूंजने लगी कमरे में।

हम दोनों दुनिया से बेखबर होकर अपने काम क्रीड़ा में मगन थे और एक दूसरे को आईने में देख कर लंड और चूत को मज़े दे रहे थे... मैंने अब अपनी स्पीड बढ़ाई और राजधानी एक्सप्रेस की तरह अपने लंड को उसकी चूत में ठोकने लगा। मैं अपने आप में नहीं रह गया था और कोशिश कर रहा था कि पूरा का पूरा उसकी चूत में समां जाऊं... मैंने उसकी कमर थाम रखी थी और उसने आईने पे अपने हाथों को जमा रखा था। मैंने आईने में देखा तो उसकी चूचियों को बड़े प्यार से हिलते हुए पाया, मुझसे रहा नहीं गया, मैंने हाथ आगे बढ़ा कर उसकी चूचियाँ पकड़ लीं और उसकी पीठ से साथ लाकर लम्बे लम्बे स्ट्रोक लगाने लगा। 
"आह्ह्ह्हह......सोनू...चोदो...चोदो ...चोद......मुझे..आअज चोद चोद कर मेरी चूत फाड़ डालो...हम्म्म्म... ऊम्म्मम्म...... और तेज़... और तेज़..." रिंकी बिल्कुल हांफ़ने लगी और उसके पैरों में कम्पन आने लगी। 

उसने अपनी गांड को पीछे धकेलना शुरू किया और मुझे बोल बोल कर उकसाने लगी... मैंने भी अपना कमाल दिखाना चालू किया और जितना हो सके उतना तेजी से चोदने लगा। 

"ये लो मेरी रानी...आज खा जाओ अपनी चूत से मेरा पूरा लंड...पता नहीं कब से तुम्हारी चूत में जाने को तड़प रहा था...उम्म्म्म...और लो ...और लो..." 

मैंने भी उत्तेजना में उसकी चूचियों को बेदर्दी से मसलते हुए उसकी चूत का बैंड बजाना चालू किया। अब हम दोनों का वक़्त करीब आ चुका था, हम दोनों ही अपनी पूरी ताक़त से एक दूसरे को चोद रहे थे। मैं आगे से और रिंकी आप को पीछे धकेल धकेल कर मज़े ले रही थी। तभी रिंकी ने अपने मुँह से गुर्राने जैसे आवाज़ निकलनी शुरू की और तेज़ी से हिलने लगी... 

"गुऊंन्न......गुण...हाँ...और और और और... चोदो... आआआ...ऊम्म्मम... और तेज़ मेरे राजा...चोदो... चोदो... चोदो... उफ्फ्फ... मैं गईईई...." रिंकी ने 
तेज़ी से हिलते हुए अपनी कमर को झटके दिए और शांत पड़ गई... उसकी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया था जो मेरे लंड से होते हुए उसकी जाँघों पर फ़ैल गया था, आईने में साफ़ दिखाई दे रहा था। मैं अब भी अपनी उसी गति से उसे चोदे जा रहा था... 

"हम्म्म...मेरी रानी...मेरी जान...ये ले... मैं भी आया... क्या गर्मी है तुम्हारी चूत में... मैं पागल हो गया रिंकी... हम्म्म्म..." मैं अब अपनी चरम सीमा पे था। 

रिंकी थोड़ी सी निढाल हो गई थी इसलिए उसकी पकड़ आईने से ढीली हो रही थी। मैंने एक झटके के साथ उसे पकड़ कर उसी पोजीसन में बिस्तर की तरफ पलट दिया। अब रिंकी की टाँगे बिस्तर से नीचे थी और वो पेट के बल आधी बिस्तर पे थी। मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में था। मैंने एक जोर की सांस ली और सांस रोक कर दनादन उसकी चूत के परखच्चे उड़ाने लगा। 

फच्च...फच्च...फ्च... फ्च्च...की आवाज़ के साथ मैंने तेज़ी से उसकी चूत में अपना लंड अन्दर बाहर करना शुरू किया और उसे बेदर्दी से चोदने लगा। 

"ओह्ह्ह...सोनू... बस करो... मर जाऊँगी... अब और कितना चोदोगे जान... हम्म्म्म..." रिंकी इतनी देर से लंड के धक्के खा खा कर थक गई थी और झड़ने के बाद उसे लंड को झेलने में परेशानी हो रही थी। उसने अपना सर बिस्तर पे रख कर अपने दोनों हाथों से चादर को भींच लिया और मेरे लंड के प्रहार को झेलने लगी। 

"बस हो गया मेरी जान...मैं आया, मैं आया...ओह्ह्ह्ह...ये लो... ले लो मेरे लंड का सारा रस..." मैंने तेज़ी से चोदते हुए अपने आखिरी के स्ट्रोक मारने शुरू किये...
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03-29-2019, 11:25 AM,
#27
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
तभी मेरे दिमाग में आया कि अब मैं झड़ जाऊँगा और ऐसे ही रहा तो सारा पानी उसकी चूत में ही झड़ जाएगा...चाहता तो मैं यही था कि उसकी चूत में ही झाड़ूं लेकिन बाद में कोई परेशानी न हो यह सोच कर मैंने रिंकी का मत जानने की सोची और तेज़ चलती साँसों के साथ चोदते हुए उससे पूछा,"रिंकी मेरी जान...कहाँ लोगी मेरे लंड का रस...? मैं आ रहा हूँ।" मेरी आशा के विपरीत रिंकी ने वो जवाब दिया जिसे सुनकर मैं जड़ से खुश हो गया। 

"अन्दर ही डाल दो मेरे रजा जी... इस चूत को अपने पानी से सींच दो... मुझे तुम्हारे लंड का गरम गरम पानी अपनी चूत में फील करना है।" रिंकी ने हांफते हुए कहा। मैं ख़ुशी के मारे उसकी कमर को अपने हाथों से थाम कर जोरदार झटके मारने लगा... 

"आअह्ह...आह्ह्ह्ह......ऊओह्ह......रिन्कीईईइ..." एक तेज़ आवाज़ के साथ मैंने एक जबरदस्त धक्का मारा और अपने लंड को पूरा जड़ तक उसकी चूत में ठेल कर झड़ने लगा।

न जाने कितनी पिचकारियाँ मारी होंगी, इसका हिसाब नहीं है लेकिन मैं एकदम से स्थिर होकर लंड को ठेले हुए उसकी चूत को अपने काम रस से भरता रहा। हम दोनों ऐसे हांफ रहे थे मानो कई किलोमीटर दौड़ कर आये हों। मैं निढाल होकर उसकी पीठ पर पसर गया। रिंकी ने भी अपने दोनों हाथों को बिस्तर पर फैला दिया और मुझे अपने ऊपर फील करके लम्बी लम्बी साँसे लेने लगी। हम दोनों ने अपनी अपनी आँखें बंद कर लीं थीं और उस अद्भुत क्षण का आनन्द ले रहे थे। चुदाई के उस आखिरी पल का एहसास इतना सुखद होता है यह मुझे उसी वक़्त महसूस हुआ। हम दोनों उसी हालत में लगभग 15 मिनट तक लेटे रहे। 

मैं धीरे से रिंकी के ऊपर से उठा और उसकी नंगी पीठ को अपने होंठों से चूम लिया। रिंकी की आँखें बंद थी और जब मैंने उसकी पीठ को चूमा तो उसने धीरे से अपनी गर्दन हिलाई और पीछे मुड़ कर मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी। मेरा लंड अब तक थोड़ा सा मुरझा कर उसकी चूत के मुँह पे फँसा हुआ था। मैंने खड़े होकर अपने लंड को उसकी चूत से बाहर खींचा तो एक तेज़ धार निकली चूत से जो हम दोनों के रस और रिंकी की चूत का सील टूटने की वजह से निकले खून का मिश्रण दिख रहा था। रिंकी वैसे ही उलटी लेती हुई थी और उसकी चूत से वो मिश्रण निकल निकल कर बिस्तर पर फैलने लगा। मैंने रिंकी की पीठ पर हाथ फेरा और उसे सीधे होने का इशारा किया। रिंकी सीधे होकर लेट गई और अपने पैरों को फैला कर मेरे कमर को पैरों से जकड़ लिया और अपने पास खींचा। ऐसा करने से मेरा मुरझाया लंड फिर से उसकी चूत के दरवाज़े पर रगड़ खाने लगा। चूत की चिकनाहट मेरे लंड के टोपे को रगड़ रही थी। अगर थोड़ी देर और वैसा ही रहता तो शायद मेरा लंड फिर से खड़ा होकर उसकी चूत में घुस जाता। 

मैंने वैसे ही खड़े खड़े रिंकी की आँखों में देखा और अपने हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिए। रिंकी ने मेरे हाथों में अपने हाथ दिए और मैंने उसे खींच कर उठा दिया। उठते ही रिंकी मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे कोई लता किसी पेड़ से लिपट जाती है। हम दोनों एक दूसरे को हाथों से सहलाते रहे। तभी रिंकी को बिस्तर से उठाते हुए मैं अलग हो गया और हम दोनों खड़े हो गए। खड़े होते ही रिंकी की टाँगें लड़खड़ा गई और उसने मेरे कन्धों को पकड़ लिया। मैंने उसे सहारा देकर अपने सीने से लगा लिया। रिंकी मेरे सीने पे अपना सर रख कर एकदम चिपक सी गई और ठंडी ठण्डी साँसे लेने लगी। मैंने झुक कर उसके चेहरे को देखा, एक परम तृप्ति के भाव उस वक़्त उसके चेहरे पे नज़र आ रहे थे। रिंकी ने अपना सर उठाया और मुझसे लिपटे लिपटे ही बिस्तर की तरफ मुड़ गई... 

"हे भगवन......यह क्या किया तुमने..." रिंकी ने बिस्तर पर खून के धब्बे देख कर चौंकते हुए पूछा। 

"यह हमारी रास लीला की निशानी है मेरी जान... आज तुम कली से फूल बन गई हो।" मैंने फ़िल्मी अंदाज़ में रिंकी को कहा। 

"धत...शैतान कहीं के !" रिंकी ने मेरे सीने पे एक मुक्का मारा और मेरे गालों को चूम लिया। हम दोनों हंस पड़े। 

तभी हमारा ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया तो हमारा माथा ठनका। घड़ी में 3 बज रहे थे...यानि हम पिछले 3 घंटे से यह खेल खेल रहे थे। हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और एक बिना बोले समझने वाली बात एक दूसरे को आँखों से समझाई। रिंकी ने मेरे होंठों को चूम लिया और मुझसे अलग होकर अपने कपड़े झुक कर उठाने लगी। उसके झुकते ही मेरी नज़र उसके बड़े से चूतड़ों और कूल्हों पर गई और एक सुर्ख गुलाबी छोटा सा छेद मेरी आँखों में बस गया। वो नज़ारा इतना हसीन था कि दिल में आया कि अभी उसे पकड़ कर उसकी गांड में अपना लंड ठोक दूँ। लेकिन फिर मैंने सोचा कि जब रिंकी को मैंने अपने लंड का स्वाद चखा ही दिया है तो चूत रानी की पड़ोसन भी मुझे जल्दी ही मिल जायेगी। यह सोच कर मैं मुस्कुरा उठा और अपनी निक्कर और टी-शर्ट उठाकर पहन ली। रिंकी ने भी अपनी स्कर्ट पहन ली थी और अपनी ब्रा पहन रही थी। मैंने आगे बढ़ कर उसकी ब्रा हुक को अपने हाथों से बंद किया और ब्रा के ऊपर से जोर से चूचियों को खींच कर मसल दिया। 

"ऊह्ह्ह...क्या करते हो सोनू... आज ही उखाड़ डालोगे क्या...अब तो ये तुम्हारी हैं, आराम से खाते रहना।" रिंकी ने एक मादक सिसकारी के साथ अपनी चूचियों को मेरे हाथों से छुड़ा कर कहा और फिर बाहर निकलने लगी क्यूंकि उसका टॉप बाहर सोफे पे था। 

रिंकी मेरे आगे आगे चलने लगी, उसकी टाँगें लड़खड़ा रही थीं। मैं देख कर खुश हो रहा था कि आज मेरे भीमकाय लंड ने उसकी चूत को इतना फैला दिया था कि उससे चला नहीं जा रहा था... खैर धीरे धीरे रिंकी बाहर आई और अपना टॉप उठाकर पहन लिया। मैं भी अपने कपड़े पहन कर बाहर हॉल में आ चुका था। मैंने रिंकी को एक बार फिर से अपनी बाहीं में भर लिया और उसके गालों को चूमने लगा। 

"अब बस भी करो राजा जी, वरना अगर मैं जोश में आ गई तो अपने आप को रोक नहीं पाऊँगी...हम्म्म्म..." रिंकी ने मुझे अपनी बाँहों में दबाते हुए कहा। 

"तो आ जाओ न जोश में... मेरा मन नहीं कर रहा तुम्हें छोड़ के जाने को।" मैंने उसके होंठों को चूमते हुए मनुहार भरे शब्दों में अपनी इच्छा जताई। 

“दिल तो मेरा भी नहीं कर रहा है जान, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है और सबके वापस आने का वक़्त हो चुका है। अब आप जाओ और मैं भी जाकर अपने प्रेम की निशानियों को साफ़ कर देती हूँ वरना किसी की नज़र पड़ गई तो आफत आ जाएगी।"...रिंकी ने मुझे समझाते हुए कहा। 

मैंने भी उसकी बात मान ली और एक आखिरी बार उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी स्कर्ट के ऊपर से उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में दबा दिया। 

"उफ्फ्फ...दुखता है न... मत दबाओ न जान... पहले ही तुम्हारे लंड ने उसकी हालत ख़राब कर दी है...अब जाने दो।" रिंकी ने तड़प कर मेरा हाथ हटाया और मुझे प्यार से धकेल कर उपर भेज दिया। मैं ख़ुशी ख़ुशी सीढ़ियाँ चढ़ कर उपर आने लगा।

तभी मेन गेट पर आवाज़ आई और गेट खुलने लगा। मैं तेज़ी से उपर की तरफ भागा। दूसरी मंजिल के हाँल की बालकनी से नीचे से बाहर झाँका तो देखा कि प्रिया गेट से अन्दर दाखिल हुई है। मैं अपने कमरे में घुस गया... मैंने चैन की सांस ली कि सही वक़्त पर हमारी चुदाई ख़त्म हो गई... मैं अपने बिस्तर में लेट गया और थोड़ी देर पहले बीते सारे लम्हों को याद करते करते अपनी आँखें बंद कर लीं... 

मुझे याद है राजेश हमेशा कहा करता था कि किसी भी लड़की को अपना गुलाम बना लेने की सबसे बड़ी चाभी है पहला मौका मिलते ही उसे अच्छे से चोदो, अपने मजे की परवाह छोड़ कर सिर्फ उसके मजे के लिये उसे चोदो, आईएयस और पीसीयस का कम्पटीशन दे रहे हो ऐसा सोच कर उसे चोदो, बड़ी ही बेरहमी से चोदो, वो क्या कहती है इसकी परवाह छोड़ कर उसे चोदो, वो चिल्लाये, रोके, मना करे तब भी तब तक उसे चोदो जब तक उसे मजा आ रहा है, चोद चोद कर उसे बेहाल कर दो, ऐसा और इतना चोदो कि वो हाथ जोड़ दे, तुम्हारे पैर पकड़ ले और फिर देखो वो जिन्दगी भर के लिये तुम्हारे लंड की गुलाम बन जायेगी। फिर तुमको उसके पीछे नहीं भागना पड़ेगा, वह तुम्हारे पीछे भागेगी।

इन्ही ख्यालों में खोये खोये कब नींद आ गई पता ही नहीं चला...
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03-29-2019, 11:26 AM,
#28
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
औरतों की गपशप और छत पे प्रिया की चुहलबाजी

सोनू...सोनू...उठ भी जा भाई...तबियत कैसी है?" नेहा दीदी की आवाज़ ने मेरी नींद तोड़ी और मैं उठकर बिस्तर पर बैठ गया और सामने देखा तो नेहा दीदी और स्मिता आंटी हाथों में ढेर सारा सामान लेकर मेरे कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थीं...मैंने मुस्कुरा कर उनका अभिवादन किया और बिस्तर से उठ कर नेहा दीदी के हाथों से सामन लेकर अपने ही कमरे में रख दिया। स्मिता आंटी ने मेरी तरफ देखकर अपनी वही कातिल मुस्कान दी और सीढ़ियों की तरफ चल पड़ी। नेहा दीदी भी उनके साथ ऊपर चली गईं और मैं अपने बाथरूम में घुस गया।

बाथरूम से निकल कर मैं अपने कमरे में आया और कपड़े बदल कर बाहर अपने अड्डे पे जाने की सोचने लगा। तभी मुझे याद आया कि मेरा यार राजेश तो शहर में है ही नहीं। मैं थोड़ा सा चिंतित हुआ और फिर ऐसे ही अपने टेबल के सामने कुर्सी पे बैठ गया। कुर्सी पर बैठते ही मेरा ध्यान बरबस ही रिंकी और राजेश और फिर रिंकी और मेरे बीच जो कुछ भी कल और आज में घटा उस ओर चला गया। 

मैं समझ गया था कि अगर मैंने रिंकी के इशारों को ठीक से समझ लिया होता और अगर मैंने हिम्मत से आगे बढ़ कर खुद पहल की होती तो जो कुछ रिंकी और राजेश के बीच हुआ वह नहीं हुआ होता और रिंकी मुझे पूरी तरह से बेदाग मिली होती। आज पहली बार मुझे यह रहस्य समझ आया था कि लड़कियाँ ज्यादा से ज्यादा सिर्फ इशारें कर सकती हैं पर पहल तो आखिर उन इशारों को समझते हुये खुद आगे बढ़ कर मर्दों को ही करनीं पड़ती है और जो मर्द इशारे नहीं समझ पाते या फिर इशारों को समझ कर भी पहल करने की हिम्मत नहीं दिखा पाते उनकी जिन्दगी का सूनापन आसानी से खत्म नहीं होता जब तक कि भाग्य की देवी अपनें आप ही सब कुछ थाली में ला कर खुद न परोस दे जैसा कि मेरे साथ हुआ।

दूसरी बात जो समझ आई वो यह थी कि अगर मैं रिंकी और प्रिया के इशारों को समझ लेता और अगर मुझमें पहल करनें की हिम्मत होती तो राजेश का मुझसे कोई मुकाबला नहीं था। आज पहली बार मुझे अपनें मर्द होनें का एहसास हो रहा था।

शाम हो चली थी और सूरज ढलने को बेताब था। मैंने कुछ सोचा और फिर उठ कर अपने घर कि छत पे जाने का इरादा किया। मुझे यही ठीक लगा और मैं कमरे से निकल कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।

छत पे जाने के लिए मैं सीढ़ियाँ अभी चढ़ ही रहा था और जैसे ही मैं मकान के आखरी तल्ले पे पहुँचा मुझे स्मिता आंटी के घर से सारे लोगों की हंसने की आवाज़ आने लगी। शायद आंटी और नेहा दीदी सब के साथ मिलकर बाज़ार से लाये हुए सामान दिखा रही थीं और आपस में हँसी मजाक चल रहा था। 

एक बार के लिए मैंने भी उनके साथ बैठने का मन बनाया लेकिन फिर सोचा कि औरतों के बीच मैं अकेला मर्द बेकार में ही बोर हो जाऊँगा। यह सोचते हुए मैं ऊपर चढ़ने लगा और छत पर पहुँच गया। हमारे घर की छत बहुत लम्बी चौड़ी है और छत के पीछे की ओर सीढ़ी घर बना हुआ था। मैं अपने छत के किनारे पर पहुँच गया और रेलिंग पर बैठ कर डूबते हुए सूरज को निहारने लगा।

मेरा मन बहुत खुश था, हो भी क्यूँ न… इतनी मस्त और हसीन बदन को भोगा था मैंने।

मैं अब तक उसी खुमारी में खोया हुआ था। मैं अपने साथ अपना आई पॉड लेकर आया था, मैंने अपने कानों में इयर फ़ोन लगाया और अपने मनपसंद गाने चला दिए।

मुझे संगीत का बहुत शौक था और आज भी है। मैं अपनी धुन में गाने सुन रहा था और छत के चारों तरफ नज़रें दौड़ा रहा था कि तभी मेरे कंधे पर किसी के हाथ पड़े और मैंने चौंक कर पीछे मुड़ कर देखा।

मेरी आँखें चमक उठीं….मैंने प्रिया को अपने पीछे प्लेट में कुछ लिए खड़े पाया। वो मेरे पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी। मैंने अपने कानों से इअर फ़ोन बाहर निकाल लिए और उसे देख कर मुस्कुराने लगा।

“तो जनाब यहाँ बैठ कर गाने सुन रहे हैं और मैं सारा घर ढूंढ रही हूँ।” प्रिया ने एक प्यारी सी अदा के साथ मुझसे कहा।

“अरे बस थोड़ा थक सा गया था, और आज राजेश भी शहर में नहीं है तो मैं कहीं घूमने नहीं गया और यहाँ आ गया।” मैंने प्रिया का हाथ थाम कर कहा।

“यह लो, मम्मी हम सब के लिए आपकी फेवरेट गुलाब जामुन लेकर आई हैं। जल्दी से खा लो।” प्रिया ने प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी।

मैंने प्रिया के हाथों से प्लेट ले ली और गरमागरम गुलाब जामुन को देखकर मेरे मुँह में पानी भर आया।

तभी मेरे दिमाग में एक शैतानी का प्लान आया और मैंने प्लेट प्रिया को वापस देते हुए कहा,” प्रिया, यह प्लेट तुम ले जाकर नीचे रख दो…आज इस गुलाब जामुन को कुछ नए तरीके से खाऊँगा।”

प्रिया ने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा और प्लेट को वापस ले लिया और वहीं रेलिंग पे रख दिया।

“आप और आपके अलग अलग अंदाज़!” प्रिया ने बच्चों जैसी शकल बनाकर मेरी ओर देखा और मेरे हाथों से आई-पॉड लेकर उसका इयरफ़ोन अपने कानों में डाल लिया।

मैं प्रिया के पीछे हो गया और उसकी कमर को अपनी बाँहों में जकड़ लिया। प्रिया ने भी किसी रोमांटिक फ़िल्मी सीन की तरह अपना सर मेरे सीने पर रख दिया और हम दोनों ढलती हुई शाम के धुंधले सूरज को देखते रहे। बड़ा ही रोमांटिक और फ़िल्मी सीन था।

थोड़ी देर में घर के सारे लोग छत पर आ गए। यह सब का रोज़ का काम था, घर की सारी औरतें शाम को छत पे टहलने आ जाती थीं। अब छत पे मैं, प्रिया, नेहा दीदी और स्मिता आंटी थे। रिंकी कहीं नज़र नहीं आ रही थी तो मैंने आंटी से पूछा “रिंकी कहाँ है।” आंटी ने बताया - उसके पेट में थोड़ा दर्द है, वो लेटी हुई है।

मेरे होठों पे एक हल्की सी मुस्कान आ गई, मैं जानता था कि उसके पेट मे नहीं कहीं और ही दर्द हो रहा है।

हम सब थोड़ी देर टहलने के बाद नीचे आ गए और अपने अपने काम में जुट गए। नेहा दीदी ऊपर आंटी के साथ खाना बनाने में लग गई और प्रिया अपनी पढ़ाई में। रिंकी पहले ही अपने रूम में लेटी हुई थी।

मैं अपने कमरे में आ गया और अपने कंप्यूटर पे बैठ गया। मेज पर वही प्लेट रखी थी जो प्रिया छत पर लेकर गई थी। मैंने सोच लिया था कि आज रात इस गुलाब जामुन का सारा रस प्रिया की चूत में डालकर चाट जाऊँगा। मैं यही सोच कर ही उत्तेजित हो गया था।

आँखें थी तो कंप्यूटर की स्क्रीन पर लेकिन उनमें तो बस एक ही चेहरा समाया हुआ था। मैं जानता था कि आज प्रिया फिर से मेरे पास आएगी नोट्स के बहाने और कल रात का अधूरा काम आज पूरा करेगी। रिंकी के आने का कोई सीन नहीं था। जैसी जबरदस्त चुदाई उसकी हुई थी, उसके बाद कम से कम अगले दो दिनों तक तो अपने उपर वो मुझे हाथ भी नहीं रखने देगी।

खैर, मुझे तो आज मेरी प्रिया के साथ ज़न्नत की सैर करनी थी। मैं इंतज़ार करने लगा। काफी वक़्त हो गया था या यूँ कहें कि वक़्त कट नहीं रहा था। बार बार घड़ी पे नज़र जा रही थी और दरवाज़े की तरफ भी नजरे जा रही थीं।

तभी प्रिया दौड़ती हुई नीचे आई और मेरे कमरे में घुस गई। मैं कुर्सी पे बैठा नेट पे सेक्सी तस्वीरें देख रहा था जिसमे लड़के लड़कियों की नंगी चुदाई के सीन थे। प्रिया के आने पर भी मैंने जानबूझ कर वो बंद नहीं किया क्यूंकि मैं उसे उत्तेजित करना चाहता था।

उसने आते ही कुर्सी के पीछे से मेरे गले में अपनी बाहें डाल दीं और मेरे गालों पे अपने गाल रगड़ने लगी और कंप्यूटर की स्क्रीन पर नज़र डाली। स्क्रीन पर एक तस्वीर थी जिसमें एक लड़का लड़की की चूत चाट रहा था।

“ओहो….तो जनाब ये सब देख रहे हैं….बड़े शरारती हैं आप !” प्रिया ने ये कह कर मेरे गालों पे दांत गड़ा दिए।

जवाब में मैंने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उसकी एक चूची को दबा दिया।

“आउच….क्या तुम भी, जब देखो मस्ती….चलो जल्दी से खाना खा लो….फिर मेरे नोट्स भी तो बनाने हैं।” प्रिया ने मुझसे अलग होते हुए कहा और मेरी तरफ देख कर हंसने लगी…

मैं कुर्सी से खड़ा हुआ और उसे अपनी तरफ खींच कर गले से लगा लिया। वो कसमसा कर मुझसे छूटने लगी और इस खींचातानी में मेरे हाथों में फिर से उसकी चूचियाँ आ गई और मैं उन्हें दबाने लगा। उसने ब्रा पहन रखी थी इसलिए चूचियाँ सख्त लग रही थीं। मैं मज़े से दबा रहा था और वो मेरे हाथ हटा रही थी….

“छोड़ो ना, सब ऊपर इंतज़ार कर रहे हैं….जल्दी चलो….पहले खाना खा लो फिर लगे रहना अपने इन दोनों कबूतरों के साथ। मैं कहाँ भागी जा रही हूँ….” प्रिया ने मुझे खुद से अलग किया और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर ले आई।

प्रिया मेरे आगे आगे सीढ़ियों पे चढ़ने लगी और मैं उसके पीछे पीछे। मैंने एक और शरारत करी और उसके पिछवाड़े के एक चिमटी काट ली।

“धत्त, शैतान कहीं के….” प्रिया ने डाँटते हुए कहा और आँखें दिखने लगी, लेकिन उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं और उनमे ये साफ़ साफ़ दिख रहा था कि उसे भी मेरी छेड़ छाड़ में मज़ा आ रहा है। 

हम ऐसे ही मस्ती करते करते ऊपर खाने की मेज तक पहुँच गए और खाने के लिए बैठ गए। सभी लोग वहीं थे। नेहा दीदी और रिंकी एक साथ मेरी तरफ और प्रिया मेरे ठीक सामने। प्रिया के बगल में एक कुर्सी खाली थी जिस पर आंटी बैठने वाली थी। आंटी भी आ गईं और हम सब एक दूसरे से बातें करते करते खाना खाने लगे।

सब नार्मल ही थे लेकिन रिंकी चुपचाप थी। पता नहीं क्यूँ….मैंने सोचा शायद उसे अभी भी दर्द हो रहा होगा और वो तकलीफ में होगी इसीलिए शांत है।

प्रिया ने रिंकी से पूछ ही लिया…. “क्या बात है रिंकी जी, आप इतनी चुप क्यूँ हैं?” प्रिया ने अपने शरारती अंदाज़ में रिंकी से पूछा।

“कुछ नहीं यार, बस तबियत ठीक नहीं है और पूरे बदन में तेज़ दर्द है।” रिंकी ने मुस्कुराते हुए प्रिया से कहा।

“ओहो….तो चल मैं आज तुझे एक बढ़िया सी मसाज़ दे देती हूँ….तेरी सारी तकलीफें दूर हो जाएँगी।” प्रिया ने जोर से हंसते हुए कहा और उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे।

धीरे धीरे हम सब ने अपना अपना खाना ख़त्म किया और रोज़ की तरह अपने अपने कमरे में चले गए। जब मैं सीढ़ियों से उतर रहा था तो पीछे से स्मिता आंटी ने आवाज़ लगाई - सोनू बेटा, यह लेकर जाओ….आंटी मेरे पीछे एक प्लेट लेकर आई और खड़ी हो गईं। 

उनके हाथों में एक प्लेट में चार गुलाब जामुन थे और ढेर सारा रस था। मैंने वो देख कर हल्के से मुस्कुरा दिया और आंटी से कहा - आंटी मैंने तो खा लिया है….प्रिया ने लाकर दिया था छत पे !

मैंने जानबूझ कर यह नहीं बताया कि वो गुलाब जामुन नीचे मेरे कमरे में रखे हुए हैं और मैं उन्हें कुछ अलग तरीके से खाना चाहता था।

“कोई बात नहीं बेटा, मैं जानती हूँ कि गुलाब जामुन तुम्हें बहुत पसंद हैं… ज्यादा खा लोगे तो कोई प्रॉब्लम नहीं हो जाएगी…” आंटी ने हंसते हुए वो प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी।

मैंने भी मुस्कुराते हुए प्लेट ले ली और नीचे उतर गया। अपने कमरे में जाकर मैंने सारी मिठाइयों को अलग करके एक प्लेट में रख दिया और सारा रस एक अलग कटोरी में डाल दिया।

शायद आप लोगों को यह एहसास हो रहा होगा कि मेरे दिमाग में क्या शैतानी चल रही होगी उस वक़्त।

खैर मैं मुस्कुराते हुए सारा सामान बेड के साइड टेबल पर रख दिया और बाथरूम में घुस गया। वैसे तो मैं अपने सारे अनचाहे बालों को हमेशा साफ़ रखता हूँ लेकिन आज फिर से रेजर लेकर अपने लंड के आसपास के बालों को साफ़ किया और बढ़िया सा आफ्टर शेव लोशन लगा दिया ताकि मेरी प्रिया रानी को अच्छी खुशबू मिले जब वो मेरे लंड से खेले।

मैंने बाहर आकर अपने बिस्तर को ठीक किया और बैठ कर प्रिया का इंतज़ार करने लगा। कंप्यूटर पर अपने सेक्सी फिल्मों के खजाने से मैंने ढूंढ कर एक फिल्म निकाली जिसमें चूत और लंड की चुसाई के ढेर सारे अलग अलग तरीके दिखाए गये थे। उनमें से एक में लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरे बदन पे कुछ टेस्टी लिक्विड डालकर एक दूसरे को चाट रहे थे और मज़े ले रहे थे। मैं यह देख कर काफी उत्तेजित हो गया था और ऐसा ही करने का मन बना लिया।

नीचे आये हुए काफी देर हो चुकी थी और किसी की आवाज़ भी नहीं आ रही थी यानि सब लोग अपने अपने कमरे में सो चुके थे।

तभी किसी के सीढ़ियों से उतरने की आवाज़ सुनाई दी और मेरा दिल धड़कने लगा। मुझे पता था कि यह मेरी प्रिया ही है और मेरा सोचना सही था।

प्रिया अपने हाथों में किताबें लेकर मेरे दरवाज़े पर खड़ी हो गई और मुझे देखकर एक कातिल अदा के साथ मुस्कुराने लगी।

मैंने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर दिया, मैं नहीं चाहता था कि प्रिया वो फिल्म देख ले क्यूंकि आज मैं उसे सरप्राइज देना चाहता था।
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03-29-2019, 11:26 AM,
#29
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
प्रिया और उसकी दूसरी असली पढ़ाई

मैंने कुर्सी से उठ कर अपनी बाहें फैला कर उसका स्वागत किया और उसने इधर उधर देख कर यह सुनिश्चित किया कि कहीं कोई देख न रहा हो और वो भाग कर मेरी बाहों में समां गई, उसके हाथों से किताबें छूट कर नीचे गिर गईं और हम दोनों एक दूसरे से ऐसे लिपट गए जैसे कई जन्मों के बिछड़े प्रेमी हों। 

हम वैसे ही थोड़ी देर तक एक दूसरे की बाहों में चिपके हुए खड़े रहे फिर मेरी नज़र दरवाज़े और खिड़कियों पर गई। मुझे रिंकी की याद आ गई और मैं मुस्कुराकर प्रिया से अलग हो गया। मैंने बढ़ कर दरवाज़ा और खिड़की बंद कर दिया। वापस घूम कर मैंने प्रिया का हाथ थाम कर उसे अपने साथ बिस्तर पर बिठा दिया। हम दोनों बिस्तर पे एक दूसरे के सामने बैठ गए और मैं प्रिया को गौर से देखने लगा।

आज प्रिया ने एक ढीली सी सफ़ेद रंग टी-शर्ट पहनी हुई थी और नीचे लाल रंग का ढीला सा शलवार के जैसा पजामा पहना हुआ था जैसा कि लड़कियाँ अक्सर पहनती हैं। मुझे यकीन था कि उसने अन्दर कुछ नहीं पहना होगा लेकिन आज उसकी चूचियाँ बिल्कुल खड़ी खड़ी सी दिख रही थीं। शायद मेरे पास होने की वजह से प्रिया उत्तेजना में आ गई थी और इस वजह से उसकी चूचियाँ फूल गई थीं।

मैं वैसे ही उसे घूरे जा रहा था और उसके रूप का रसपान कर रहा था। प्रिया मेरी तरफ देख कर मुस्कुराये जा रही थी। हम दोनों में से कोई भी कुछ नहीं कह रहा था। तभी प्रिया की नज़र साइड टेबल पर रखे हुए गुलाब जामुन और रस की कटोरी पर गई और उसने तुरंत मेरी तरफ देख कर पूछा- अरे ! ये अभी तक ऐसे ही पड़े हैं…आपने खाए क्यूँ नहीं?

“जानेमन आपका इंतज़ार कर रहा था ताकि आप आओ और अपने हाथों से हमें खिलाओ !” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“आले ले…मेला बच्चा….मेरे हाथों से खानी है मिठाई….पहले बता देते तो छत पे ही अपने हाथों से खिला देती।” प्रिया ने बड़े प्यार से एक तोतली आवाज़ में मेरे सर पे हाथ फेरते हुए मुझे अपने पास खींच कर अपने गले से लगा लिया।

ह्म्म्म…..इतना हसीन पल था कि आज भी उस पल को याद करके मैं सिहर उठता हूँ।

खैर, प्रिया ने प्लेट उठाई और चमचे से काट कर आधा गुलाब जामुन मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने भी अपना मुँह खोल कर खा लिया और फिर उसके हाथों से लेकर आधा बचा हुआ गुलाब जामुन उसे खिला दिया। प्रिया खाना नहीं चाहती थी लेकिन मैंने प्यार से उसे देखा तो वो मना नहीं कर पाई। जब मैंने प्रिया को मिठाई खिलाई तो थोड़ा सा रस उसके होठों से बाहर आ गया और उसके निचले होठों से होता हुआ नीचे आने लगा। मैंने झट से अपने होंठ लगा दिए और उस रस की बूँद को अपने होठों से चूस कर पी गया।

प्रिया ने मेरी इस हरकत पे मुझे प्यार से देखा और आगे बढ़ कर मेरे होठों पे एक पप्पी ले ली।

हम दोनों ने ऐसा करके तीन गुलाबजामुन खा लिए और जब प्रिया अगली गुलाबजामुन उठाने जा रही थी तो मैंने उसे रोक दिया और प्लेट उसके हाथों से लेकर वापस मेज पर रख दिया।

“क्या हुआ, मन भर गया मिठाई से…..तुम्हें तो बहुत पसंद है ये !” प्रिया ने मुझे देख कर पूछा।

“खाऊँगा बाबा, लेकिन अभी नहीं और ऐसे नहीं…..” मैंने प्रिया को आँख मारी और उसे लेकर धीरे से बिस्तर पे लेट गया।

लेट कर मैंने उसे अपने से बिल्कुल सटा लिया और अपना एक पैर उठाकर उसके ऊपर रख दिया और उसे और भी करीब कर लिया। अब पहले मैंने उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फिराईं और फिर धीरे धीरे अपनी उँगलियों को उसके चेहरे पे फिराने लगा…

उसकी आँखों, उसके नाक… उसके गाल… फिर उसके होठों पे मेरी उँगलियों ने सिरकन करनी शुरू कर दी। प्रिया चुपचाप उस लम्हे को महसूस करके मुझसे लिपट कर लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी… 

मैं काफी देर तक वैसा ही करता रहा और प्रिया के चेहरे को निहारता रहा। प्रिया ने अपनी आँखें खोलकर मुझे प्यार भरी नज़रों से देखा और पूछा- ऐसे क्या देख रहे हो इतनी देर से…आज पहली बार देख रहे हो क्या?

“तुम्हें नहीं पता मैंने सारा दिन इंतज़ार किया है इस पल का…तुम्हारा यह हसीन चेहरा देखने के लिए मेरी आँखें तरस रही थीं… अब जाकर मेरे सामने आई हो तो जी भर के देखने दो मुझे !” मैंने थोड़ा सा गंभीर होकर उसे देखते हुए कहा।


उसे क्या पता था कि मैंने आज दिन भर क्या किया है… लेकिन एक बात थी दोस्तो, प्रिया के लिए मेरे दिल में एक अलग खिंचाव था जिस वजह से उसके पास होने पर मुझे किसी का ख्याल नहीं आता था।

खैर, मेरी बात सुनकर प्रिया ने मेरे गालों पे एक साथ कई चुम्बन ले लिए और उठकर बैठ गई और मुझे भी बिठा दिया।

“इतना प्यार करते हो मुझसे?” प्रिया ने मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा।

मैंने कुछ न कहते हुए उसके होठों को अपने होठों से पकड़ कर एक जोरदार और लम्बी किस्सी देनी शुरू कर दी। मैंने अपनी जीभ को उसके होठों के रास्ते उसके मुँह में डाल दिया और उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दीं।

अब मैंने उसके होठों को चूमते हुए धीरे से अपने हाथों को उसकी कमर पे रखा और सहलाने लगा। मेरे हाथ जितना उसे सहलाते वो उतने ही जोर से मेरे होठों को चूसती और मुझे अपनी तरफ खींचती। उसकी साँसें सीधे मेरी साँसों से मिल रही थीं और एक नायाब महक मुझे मदहोश किये जा रही थी। हम जन्म जन्मान्तर के प्रेमियों की तरह एक दूसरे से प्रेम कर रहे थे।

अब हम दोनों के शरीर गर्म हो चुके थे, हम अब अपने प्रेम के अगले पड़ाव पे बढ़ने लगे। मैंने प्रिया को थोड़ा सा अलग करते हुए अपने हाथों के लिए थोड़ी सी जगह बनाई और अपने हाथ उसकी चूचियों पे रख दिए…उफ्फ्फ्फ़…प्रिया की चूचियाँ रिंकी की चूचियों से कहीं ज्यादा सख्त और प्यारी थी, पकड़ते ही दिल करता था कि उन्हें उखाड़ कर अपने पास ही रख लूँ!

जब मैंने अपने हाथ रखे तो मुझे एहसास हुआ कि आज उसने ब्रा पहन रखी है। लेकिन वो ब्रा भी बहुत नर्म थी और शायद सिल्की थी क्यूंकि मेरे हाथ टी-शर्ट के ऊपर से भी फिसल रहे थे। मैं मंत्रमुग्ध होकर उसकी चूचियों में खोया हुआ था। धीरे धीरे उसकी चूचियों पे मेरे हाथों का दबाव बढ़ने लगा और प्रिया के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी।

प्रिया ने अपना मुँह मेरे मुँह से छुड़ा लिया और अपनी गर्दन इधर उधर करके अपनी चूचियों की हो रही मालिश का मज़ा लेने लगी। थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद प्रिया ने मेरी आँखों में देखा और धीरे से मेरे कान के पास आकर कहा, “आज आपके लिए एक सरप्राइज है मेरे पास।”

मैं चौंका, सरप्राइज तो मैं प्रिया को देने वाला था फिर यह क्या सरप्राइज देना चाहती है??

मैं सोच ही रहा था कि प्रिया ने बिस्तर से उठ कर खड़े होकर मुझे अपनी आँखें बंद करने को कहा। मैं उत्तेजित हो गया, पता नहीं वो क्या करने वाली थी।

मैंने अपनी आँखें बंद करने का नाटक किया पर कनखियों से देख रहा था…

“ओये…शैतान, चलो बंद करो अपनी आँखें…वरना सोच लो !” प्रिया ने धमकाते हुए कहा।

मैंने सॉरी कहा और सच में अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने सरप्राइज का इंतज़ार करने लगा। मुझे थोड़ी थोड़ी आहट सुनाई दे रही थी जैसे कोई कपड़े उतारते वक़्त आती है…

मैंने एक बार आँखें खोलने की सोची लेकिन तभी फिर से प्रिया की आवाज़ आई…”अभी नहीं… जब मैं बोलूँ तब खोलना अपनी आँखें !”

मेरी बेताबी बढ़ती जा रही थी,”जल्दी करो न बाबा…तुम तो जान ही ले लोगी ऐसे तड़पा तड़पा कर !”

“हम्म्म्म…अब खोलो…” प्रिया ने एक मादक आवाज़ में कहा…

मैंने धीरे धीरे अपनी आँखें खोलीं…मेरा मुँह खुला का खुला रह गया और आँखें तो बस पत्थर की हो गई…पलकों ने झपकना ही बंद कर दिया उस वक़्त…

सामने प्रिया सुर्ख मैरून रंग के टू पीस बिकनी में खड़ी थी…बाल खुले, होठों पे मेरे होठों का रस जो उन्हें चमकीला बना रहा था… उसकी 34 साइज़ की बड़ी बड़ी चूचियाँ जो कि उस खूबसूरत से बिकनी में संभाले नहीं संभल रही थीं और लगभग 75 प्रतिशत बाहर ही थीं… उसका चिकना पेट… पेट के ठीक नीचे प्यारी सी नाभि… और वी शेप की डोरियों वाली छोटी सी पैंटी जिसने सिर्फ उसकी हसीन चूत को सामने से ढक रखा था.. उसकी चिकनी सुडौल जांघें…

“ओह माई गॉड… प्रिया… मेरी परी…” मेरे मुँह से बस ये दो तीन शब्द ही निकल सके वो भी रुक रुक कर…

मैं अपनी साँसें रोक कर उसे देखता रहा और प्रिया किसी मॉडल की तरह अपने बदन को घुमा घुमा कर मुझे दिखा रही थी।

कसम से दोस्तो, उस वक़्त मैं ऐसा महसूस कर रहा था जैसे मेरे सपनों की रानी सीधा आसमान से उतर कर मेरे सामने खड़ी हो गई हो। मैं कब बिस्तर से उतरा और कब प्रिया के पास पहुँच गया पता ही नहीं चला। मैं प्रिया के सामने खुद भी एक मूरत की तरह खड़ा हो गया और उसे एकटक निहारने लगा। मेरे मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अजंता की गुफाओं में हूँ और एक सुन्दर सी मूर्ति मेरे सामने है।

मैंने धीरे से अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसके बदन को छूने की कोशिश की लेकिन डरते डरते कि कहीं मैली न हो जाये। मैंने अपनी उँगलियों से उसके माथे से लेकर उसके पूरे चेहरे को छुआ और फिर धीरे धीरे नीचे उसके गर्दन और सीने पे आ गया…

उफ्फ्फ़… मानो संगेमरमर की तराशी हुई बेहतरीन कलाकृति को छू रहा हूँ। मैं मंत्रमुग्ध सा बस उसके बदन के हर हिस्से को इंच इंच करके नाप रहा था।

प्रिया के मुँह से हल्की हल्की सिहरन भरी सिसकारियाँ निकल रही थीं और उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे। मैं उसके बदन को निहारते हुए नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया और अपनी उँगलियों को उसके पेट से होते हुए उसकी नाभि तक ले आया। जैसे ही उसकी नाभि में अपनी उंगली रखी, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी तरफ ऐसे देखने लगी जैसे वो बिल्कुल असहनीय उत्तेजना से भर गई हो।

मैं भी कहाँ रुकने वाला था, मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसकी नाभि में घुसा दी।

“सीईईइ… उम्म्म्म… क्या कर रहे हो सोनू… मुझे अजीब सा लग रहा है !” प्रिया ने एक सिसकारी के साथ मेरे सर पे अपना हाथ रखा और मेरे बालों में उँगलियाँ फिराईं।

मैं मज़े से उसकी नाभि और उसके आस पास अपनी जीभ फिराने लगा। एक अजब सी महक आ रही थी उसके बदन से जो कि दीवाना बनाने के लिए काफी थी। मैं अपनी जीभ को थोड़ा नीचे करके उसकी नाभि और चूत के बीच वाले हिस्से पे यहाँ वहाँ चाटने लगा। बिल्कुल मक्खन के जैसी चिकनी थी वो जगह। मैं बड़े मज़े में था और इस अद्भुत पल का आनन्द ले रहा था। प्रिया भी मेरा साथ दे रही थी और हम दोनों पूरी दुनिया से बेखबर अपनी प्रेम क्रीडा में लगे हुए थे।

काफी देर तक ऐसे ही खड़े खड़े प्रिया मज़े लेती रही और मैं अठखेलियाँ करता रहा। फिर मुझे याद आया कि मैंने आज की रात को खास बनाने के लिए कुछ सोच रखा था। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ और प्रिया को अपने गले से लगा कर एक प्यारी सी किस्सी देते हुए उसे बिस्तर पर बिठा दिया।

प्रिया मेरी तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगी और मैं अपने कमरे के एक कोने की तरफ बढ़ा। प्रिया मुझे गौर से देख रही थी और यह जानने की कोशिश कर रही थी कि आखिर मैं कर क्या रहा हूँ।

मैंने कोने से एक चटाई निकाली और बिस्तर के बगल में नीचे फर्श पे बिछा दी। फिर एक मोटी सी चादर लेकर चटाई के ऊपर डाल दी और उस पर बैठ गया।

प्रिया ने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा,”ये क्यूँ…नीचे क्यूँ बिछाया है ये बिस्तर…इरादा क्या है??” प्रिया ने आँख मारते हुए पूछा।

प्रिया शायद यह सोच रही थी कि मैंने बस इसलिए बिस्तर नीचे लगाया है ताकि जब हम चुदाई करें तो बिस्तर की चरमराहट से कहीं कोई जाग न जाये। लेकिन उसे नहीं पता था कि मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। मैं जानता था कि आज जो मैं करने वाला था उसकी वजह से बिस्तर ख़राब हो सकता था। यही सोच कर मैंने यह इन्तजाम किया था।

मैंने प्रिया को अपने पास बुलाया अपनी बाहें फैला कर और प्रिया भी देरी न करते हुए नीचे मेरे पास आकर मुझसे लिपट गई। हम दोनों बैठे हुए थे और एक दूसरे को गले लगाये हुए चूमे जा रहे थे। चूमते चूमते मैंने प्रिया को धीरे से अपनी बाहों का सहारा देकर लिटा दिया।

अब प्रिया मेरे सामने उस मैरून रंग की बिकनीनुमा ब्रा और पैंटी में सीधी लेटी हुई थी और अपने हाथों को अपने सर के पीछे सीधा करके अपने सीने को उभार कर मुझे रिझा रही थी। मैं तो पहले ही उसपे लट्टू हो चुका था.

मैं उसे उसी अवस्था में छोड़ कर उसके पैरों की तरफ मुड़ गया और अपने होंठों से उसके दोनों पैरों को चूमते हुए ऊपर की तरफ बढ़ने लगा। जैसे जैसे मैं उसके पैरों से ऊपर बढ़ रहा था उसकी सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थीं और उसकी गर्दन इधर उधर होकर उसकी बेचैनी का सबूत दे रही थी।

मैंने उसके पूरे बदन को नीचे से लेकर ऊपर की तरफ चूमा और फिर उसकी जांघों के पास आकर रुक गया। मेरी नज़र उसकी छोटी सी वी शेप की पैंटी पर गई तो देखा कि एक बड़ा सा हिस्सा गीला हो चुका था। शायद यह मेरे होंठों का कमाल था जिसने प्रिया को मदमस्त कर दिया था और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया था।

ऐसा होना लाज़मी भी था, आखिर जवानी का जोश था… जो संभाले नहीं संभलता।

मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ठीक उसकी चूत के मुँह पर अपने होंठ रखे और दो तीन बार चूम लिया।

“हम्म्म्म…ओह मेरे बलमा जी…कितना तड़पाओगे…” प्रिया ने चूत पे होंठों को महसूस करते ही कहा।

“अभी तो बस शुरुआत है जान…अभी तो बहुत कुछ बाकी है।” मैंने भी अपना मुँह उठाकर उसकी तरफ देखते हुए कहा।

“आज सारी रात यहीं रखने का इरादा है क्या…?” प्रिया ने मदहोशी भरे शब्दों में मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा।

प्रिया की बात सुनकर मैं मुस्कुराया और फिर से उसके चूत पे एक पप्पी दे दी और उसका हाथ पकड़ कर बिठा दिया।

प्रिया के बैठते ही मैंने देरी किये बिना अपने हाथ उसकी पीठ पे लेजाकर उसके ब्रा की डोरी खोल दी। डोरी खुलते ही उसकी चूचियों ने जैसे चैन की सांस ली हो… वो एकदम से थिरक कर हिलने लगी। ब्रा का एक छोर उसके गले में बंधा था, मैंने उसे भी खोल डाला और उतार कर साइड में रख दिया।

यूँ तो प्रिया मुझसे कभी भी शर्माती नहीं थी लेकिन आज पता नहीं क्यूँ जैसे ही मैंने उसे नंगा किया उसने अपने हाथों से अपनी चूचियों को छुपा लिया और किसी नई नवेली दुल्हन की तरह अपना सर नीचे कर लिया।

कसम से कहता हूँ यारो उसकी इस अदा को देखकर मेरा प्यार और भी बढ़ गया। मैंने भी एक नए नवेले पति की तरह उसके चेहरे को अपने हाथों से ऊपर उठाया और उसके लरजते होंठों पर अपने होठों से प्यार का प्रमाण रख दिया।

प्रिया शरमा कर मुझसे लिपट गई। मैंने उसे अलग किया और अपनी बाहों का सहारा देकर वापस बिस्तर पर लिटा दिया…

कमरे में अच्छी रोशनी थी और ऊपर से उसका चमकीला बदन… मेरी नज़रें टिक ही नहीं पा रही थीं। मैंने एक नज़र उसे जी भर के देखा और फिर अपने हाथ बढ़ा कर साइड टेबल के ऊपर से गुलाबजामुन वाली प्लेट उठा ली।

प्रिया की नज़र जब उस प्लेट पर गई तो उसने बड़े ही अजीब से अंदाज़ में मुझे देखा और चौंक कर मेरे अगले कदम का इंतज़ार करने लगी।

मैंने प्लेट में रखे चम्मच से गुलाब जामुन को बिल्कुल आधा आधा काटा और प्रिया की तरफ देखते हुए आधे हिस्से को उसकी एक चूची के नोक पर रख दिया। उसकी चूचियाँ वैसे ही बिल्कुल खड़ी खड़ी थीं इसलिए उसकी नोक्क पे गुलाब जामुन बिल्कुल ऐसे स्थिर हो गया जैसे कोई चुम्बक हो। फिर मैंने दूसरा हिस्सा भी दूसरी चूची पर रख दिया।

प्रिया को बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि मैं ऐसा भी कर सकता हूँ। उसे छत पर कही हुई मेरी बात याद आ गई और उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा,” तो जनाब छत अपने इसी अंदाज का जिक्र कर रहे थे?”

मैंने बिना कोई जवाब दिए बस उसको देख कर मुस्कुराया और फिर से अपने काम में लग गया। प्लेट में अब दो और गुलाब जामुन बचे थे। मैंने एक नज़र उन पर डाली और फिर प्लेट को बगल में रख दिया। अब बारी थी उस कटोरी की जिसमे मैंने सारा रस इकठ्ठा किया था। मैंने वो कटोरी उठाई और अपनी जगह को बदल कर इस बार प्रिया के जांघों के दोनों तरफ अपने पैरों को फैला कर ऐसे बैठ गया जैसे मैं किसी घोड़ी पर बैठा हूँ।
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03-29-2019, 11:26 AM,
#30
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
प्रिया अब और भी ज्यादा चौंक कर मुझे देख रही थी। मैंने उसे आँख मारी और आराम से उसकी जाँघों पे अपने आप को सेट करके बैठ गया। मेरा तनतनाया हुआ लंड मेरे निकर के अन्दर से निकलने को बेचैन हो रहा था और इस अवस्था में सीधे उसकी चूत पर दस्तक देने लगा। प्रिया ने अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को एक बार सहला दिया। मैं खुश हो गया और मुझसे ज्यादा मेरा ज़ालिम लंड खुश हो गया और ठुनक कर प्रिया को धन्यवाद कहा।

प्रिया ने मेरे लंड को थाम रखा था और अगर वो ऐसे ही थामे रहती तो मैं आगे का कार्यक्रम नहीं कर पाता। मैंने उसकी ओर देखा और उसे अपने हाथ ऊपर करने का इशारा किया।

प्रिया मेरा इशारा समझी नहीं या फिर समझ कर भी न समझने का नाटक कर रही थी, वो लंड छोड़ ही नहीं रही थी।

“प्लीज जान…अपने हाथ ऊपर करो और मैं जो करने जा रहा हूँ उसका मज़ा लो…” मैंने उसे समझाते हुए कहा।

“हाय राम…पता नहीं तुम क्या क्या करोगे…मुझ से रहा नहीं जा रहा है…” प्रिया ने अपनी हालत व्यक्त करते हुए कहा और फिर अपने हाथों को अंगड़ाई लेते हुए ऊपर हटा लिया। 

अब मैंने उसे मुस्कुरा कर देखा और कटोरी से धीरे धीरे उसकी नाभि में रस की बूँदें गिराने लगा… जैसे ही रस की बूँदें उसकी नाभि में गिरीं, प्रिया ने एक सिसकारी भरी और उसका पेट थरथराने लगा।

मैंने एक साथ कुछ 10-12 बूँदें गिराई होंगी कि उसकी छोटी सी नाभि पूरी तरह से भर गई और थोड़ा सा रस नाभि से होकर नीचे की तरफ बहने लगा। मैंने फट से कटोरी को साइड में रखा और झुक कर बह रहे रस को अपनी जीभ से चाट लिया और अपनी जीभ को उसकी त्वचा पे रखे हुए ही ऊपर की तरफ चाटते हुए उसकी नाभि तक पहुँचा और अपनी जीभ की नोक उसकी नाभि में डाल दी।

“उम्म… सोनू… तुम तो पागल ही कर दोगे…!” प्रिया ने एक जोरदार आह भरी और अपनी आँखें बंद कर लीं।

अपनी जीभ को निरंतर उसकी नाभि में घुमाते हुए मैंने उसे जी भर कर चूमा और चाटा और प्रिया को आहें भरने पर मजबूर कर दिया। प्रिया मेरी इस हरकत से तड़प रही थी और लगातार हिल रही थी। मैं उसकी जाँघों पर बैठ था इस वजह से वो बस कमर से ऊपर ही हिल पा रही थी। उसकी गर्दन इधर से उधर हिल हिल कर उसकी बेताबी का सबूत दे रहे थे।

मैंने फिर से रस की कटोरी उठाई और इस बार उसके पूरे पेट पर थोड़ी थोड़ी बूँदें गिरा दी और वापस झुक कर उसके पूरे पेट को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया।

प्रिया कुछ ज्यादा ही हिल रही थी… उसकी गलती नहीं थी, असल में मैं समझ रहा था कि उसे कितनी बेचैने और सिहरन हो रही थी। मुझे डर था कि उसके ज्यादा हिलने की वजह से उसकी चूचियों पे रखे गुलाबजामुन कहीं गिर न जाएँ। मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसके दोनों हाथों को थाम लिया और उसे हिलने से रोका।

अब प्रिया बस तड़प रही थी और मुँह से अजीब अजीब सिसकारियाँ निकाले जा रही थी। मैंने रस की कटोरी से थोड़ा सा रस दोनों चूचियों पे रखे हुए गुलाब जामुनों पे गिराया और एक गुलाब जामुन को अपने होठों में दबा लिया, होठों से गुलाब जामुन को पकड़ कर मैंने उसे उसकी चूचियों की निप्पल पर रगड़ा और फिर अपना मुँह उसके मुँह के पास ले जा कर आधा गुलाब जामुन खुद खाया और आधा उसके मुँह में डाल दिया। प्रिया ने भी उत्सुकतावश अपना मुँह खोलकर गुलाबजामुन खा लिया और फिर मेरे होठों को अपने होठों से पकड़ कर जोर से चूसने लगी। मैंने अपने होंठ छुड़ाये और दूसरी चूची के ऊपर रखे गुलाब जामुन के साथ भी ऐसा ही किया।

गुलाबजामुन के हटने से उसके खड़े खड़े निप्पल बिल्कुल सख्त होकर मुझे आमंत्रण दे रहे थे। उसके निप्पल पे गुलाब जामुन का ढेर सारा रस लगा हुआ था, मैं रुक नहीं सका और अपने होठों के बीच निप्पलों को जकड़ लिया और सारा रस चूसने लगा।

“हम्म्म्म…मेरे सजना ……मैं मर जाऊँगी…!” प्रिया की बहकी हुई आवाज़ मेरा जोश और बढ़ा रही थी और मैं मस्त होकर उसकी चूचियों का रसपान रहा था। एक चूची को चूस चूस कर लाल करने के बाद मैंने दूसरी चूची को मुँह में भरा और वैसे ही चूस चूस कर लाल कर दिया।

उसकी चूचियों को मैंने सूखने नहीं दिया और फिर से रस डाल-डाल कर दोनों चूचियों को चूसता रहा। प्रिया मेरे सर को पकड़ कर आहें भरते हुए इस अद्भुत खेल का मज़ा ले रही थी।

काफी देर तक उसकी चूचियों की चुसाई के बाद मैंने अपनी जगह बदली और इस बार उसकी जांघों से नीचे खिसक कर उसके घुटनों के ऊपर बैठ गया। मेरे हाथ अब उसकी बिकनी के दूसरे और बचे हुए हिस्से पे थे यानि कि उसकी पैंटी पर। मैंने अपनी हथेली को एक बार उसकी चूत पर फिराया और धीरे से चूत को अपनी मुट्ठी में भर लिया।

“हाय…सोनू…ऐसे ना करो…उफ्फ्फफ्फ्फ़…” प्रिया ने चूत को अचानक से मुट्ठी में भरने से कहा।

मैंने बिना कुछ कहे उसकी कमर पर बन्धी पैंटी की डोरियों को खोल दिया और उसकी पैंटी केले के छिलके के सामान उतर गई। मैं उसके पैरों पर बैठा हुआ था इस वजह से उसकी टाँगें पूरी तरह से सटी हुई थीं और उसकी जांघों ने उसकी मुनिया को दबा रखा था। मैंने स्थिति को समझते हुए उसके घुटनों के ऊपर से उठ कर उसकी टांगों को चौड़ा किया और अब उसकी जांघों के बीच घुस कर बैठ गया। सबसे पहले मैंने उसके पैंटी को अपने हाथों से निकाल कर फेंक दिया और फिर उसकी हसीन गुलाबी चूत का दीदार करने लगा। 

क्या चमक थी यारों… बिल्कुल रोम विहीन… चिकनी और फूली हुई चूत… खैर, मैंने उसकी चूत को झुक कर चूम लिया। जैसे ही मैं झुक कर उसकी चूत के पास पहुँचा मेरी नाक में उसकी चूत की खुशबू ने अपना घर कर लिया। अब तक की मेरी हरकतों ने न जाने कितनी बार उसकी चूत का पानी निकाल दिया था और शायद उसकी वजह से ही वो मदहोश करने वाली खुशबू निकल रही थी और मुझे और भी दीवाना बना रही थी।

मैंने अब देरी नहीं की और रस की कटोरी को अपने हाथों में लेकर पहले चूत के उपरी हिस्से को भिगो दिया और अपनी जीभ को वहाँ रख कर चाटने लगा। मेरी खुरदुरी जीभ का स्पर्श पाकर प्रिया की चूत मचल उठी और फड़कने लगी… मैंने उस हिस्से को अपने मुँह में भर लिया और चूचियों की तरह चूसने लगा। मैं इतने जोर से चूस रहा था कि प्रिया को मेरा सर पकड़ना पड़ा और उसने मेरा सर पूरी ताकत से हटा दिया। मैंने अपना सर उठाया तो देखा कि वो जगह थोड़ी सी काली पड़ गई थी…और वहाँ ढेर सारा खून इकट्ठा हो गया था।

अब मैंने थोड़ा सा रस उसकी चूत की दरार पे डाला, उसकी चूत की दरार से होता हुआ वो रस उसकी चूत के पूरे मुँहाने पे लग गया और थोड़ा सा चूत से होता हुआ उसकी पड़ोसन तक भी पहुँच गया। मैंने अपनी जीभ को पूरी तरह से बाहर निकला और उसकी चूत के सबसे नीचे रख कर ऊपर की तरफ एक सुर में चाट लिया।

“उफ्फ्फ़…ओह सोनू, इतना मज़ा… कहाँ से सीखा ये सब… ओह्ह्ह… तुम सच में जादूगर हो !”…प्रिया ने अपनी चूत की दरारों पर मेरी जीभ की छुअन महसूस करते ही मेरे सर पे अपना हाथ रखते हुए कहा।

एक तो उसकी चूत से निकला रस और ऊपर से मेरे पसंदीदा गुलाबजामुन का रस, दोनों ने मिलकर वो स्वाद पैदा किया कि मैं अपनी सांस रोक कर अपनी जीभ को धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगा और उस हसीन मुनिया का स्वाद लेने लगा।

जितना मज़ा प्रिया को आ रहा था उससे दोगुना मज़ा मुझे आ रहा था। जी कर रहा था कि यह वक़्त यहीं रुक जाए और मैं जीवन भर उसकी चूत को ऐसे ही चाटता रहूँ…

प्रिया तड़प तड़प कर अपनी कमर उठा रही थी और चूत की चुसाई का भरपूर आनंद ले रही थी। अब मैंने फिर से रस का कटोरा लिया और अपने एक हाथ की दो उँगलियों से उसकी चूत का मुँह खोलकर उसके गुलाबी छेद में ढेर सारा रस भर दिया। उसकी चूत का मुँह छोटा सा था इसलिए ज्यादा रस अन्दर नहीं जा सका और बाहर की तरफ बह निकला।

मैंने झट से कटोरी को नीचे रखा और अपनी जीभ से बाहर बहते हुए रस को सुड़क करके चाट लिया और फिर जीभ को थोड़ा नुकीला करके उसकी चूत के अन्दर डाल दिया।

“हुम्म्मम… बस करो जान… बर्दाश्त नहीं हो रहा है… ओह माँ… बस करो… आअह्ह्ह…” प्रिया ने आह भरी और मेरे बालों को जोर से पकड़ कर खींच लिया।

मैं उसकी किसी भी बात पर ध्यान न देकर बस चूत की चुसाई में लगा रहा और अब दोनों हाथों से उसकी चूत को चौड़ा करके अपनी जीभ को जितना हो सके अन्दर तक डाल-डाल कर चूसने लगा। मैं अपने होश में नहीं था और उसकी हसीन चूत को पूरा खा जाना चाहता था। मैं भरपूर आनंद के साथ अपने काम में लगा रहा और चूस चूस कर उसकी चूत को मस्त कर दिया…

चूचियों की तरह ही मैंने चूत को भी सूखने नहीं दिया और बार बार रस डाल कर चूत को चाटता रहा।

बीच बीच में प्रिया की चूत ने पानी छोड़ा जिसकी वजह से कभी मीठा और कभी नमकीन दोनों स्वाद का मजा मिलता रहा। मेरा मुँह दुखने लगा था लेकिन छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था। 

लगभग आधे घंटे तक तक उसके चूत को चूसते चूसते मैंने उसे चरम पर पहुँचा दिया और प्रिया ने एक जोरदार सिसकारी के साथ ढेर सारा पानी अपनी चूत से बाहर धकेला। मेरा पूरा मुँह उसके काम रस से भर गया। मैंने बड़े स्वाद लेकर उस सारे रस को अपने गले से नीचे उतार लिया। प्रिया के साथ साथ मेरे मुख पर भी तृप्ति का भाव उभर आया। प्रिया तो मानो बिल्कुल निस्तेज और ढीली सी होकर अपने हाथ पैर पसर कर वैसे ही लेटी रही। बस उसकी चूचियाँ उसके तेज़ साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रही थी।

मैंने हाथ बढ़ा कर उसकी चूचियों को थामा और उन्हें प्यार से मसलने लगा। प्रिया ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और मेरी तरफ ऐसे देखने लगी जैसे मुझे हजारों धन्यवाद दे रही हो, उसके होठों पे एक बड़ी ही प्यारी सी मुस्कान थी जैसा कि अक्सर उस वक़्त आता है जब कोई बहुत खुश होता है। शायद मेरे होठों ने उसके चूत को इतना सुख दिया था कि वो अंतर्मन से खुशियों से भर चुकी थी।

फिर प्रिया ने जबरदस्ती मुझे अपनी चूत से उठा दिया और मुझे अपने ऊपर खींच लिया। मैं उसके ऊपर लेट गया और उसे अपनी बाहों में भर कर अपने बदन से रगड़ने लगा। इन सबके बीच मेरा मस्त लंड और भी ज्यादा अकड़ गया था और मेरी निकर फाड़ने को पूरी तरह तैयार था। प्रिया को मेरे लंड का एहसास अपनी चूत पर होने लगा और वो अपनी चूत को लेटे लेटे ही लंड के साथ रगड़ने लगी।

लंड का वो हाल था कि अगर उसके बस में होता तो निकर के साथ ही उसकी चूत में घुस जाता, लेकिन यह संभव नहीं था।

अब प्रिया ने मेरे गालों को अपने हाथों से पकड़ कर एक प्यारी सी पप्पी दी और मुझे उठने का इशारा किया। मैं धीरे से उसके ऊपर से हट गया और उसके बगल में लेट गया।

प्रिया बिजली की फुर्ती से उठी और मेरे कमर पर ठीक वैसे ही बैठ गई जैसे मैं उसके ऊपर बैठा था। प्रिया पूरी नंगी मेरे ऊपर बैठी थी और उसकी हसीन गोल गोल चूचियाँ मेरे ठीक सामने थीं। मैंने फिर से उसकी चूचियों को पकड़ा लेकिन उसने मेरे हाथ हटा दिए और मेरी तरफ देख कर आँख मार दी।

“अब मेरी बारी है जान…अब आप देखो मैं क्या करती हूँ…बहुत तड़पाया है आपने !”…प्रिया ने बड़े ही कातिलाना अंदाज़ में कहा और मेरी कमर से थोड़ा नीचे सरक गई।

नीचे सरक कर उसने अपने हाथ मेरी तरफ बढ़ाये और मेरे हाथों को पकड़ कर मुझे थोड़ा सा उठा कर बिठा दिया और बिना किसी देरी के मेरी टी-शर्ट एक झटके में निकाल दी। उसने वापस मुझे धक्का देकर लिटा दिया और फिर अपनी नाज़ुक नाज़ुक उँगलियों से मेरे सीने के बालों से खेलने लगी। उसने गर्दन घुमाकर कुछ ढूँढने जैसा किया और फिर पीछे की तरफ मुड़कर कुछ उठाया। वो और कुछ नहीं वही रस वाली कटोरी थी।

कटोरी को देख कर मैं मुस्कुरा उठा और प्रिया भी मुस्कुराने लगी। उसने कटोरी से थोड़ा सा रस मेरे सीने पे और मेरे दोनों निप्पलों पे डाल दिया और झुक कर एक ही सांस में मेरे निप्पल को अपने होठों में भर लिया। वो भी बिल्कुल मेरे ही अंदाज़ में उन्हें जोर जोर से चूसने लगी और फिर धीरे धीरे अपनी जीभ को मेरे पूरे सीने पे जहाँ जहाँ रस गिरा था वहाँ वहाँ चाटने लगी।

मुझे नहीं पता था कि जब मैं उसकी चूचियों और सीने को चाट रहा था तो उसे कैसा फील हो रहा था लेकिन जब उसने वही हरकतें मेरे साथ की तो मैं ख़ुशी से सिहर गया। अब मुझे एहसास हो रहा था कि उसकी चूत से इतना पानी क्यों निकला था। मेरे लंड ने भी प्री कम की कुछ बूँदें छोड़ीं जिसका एहसास मुझे हो रहा था। मेरा लंड बार बार झटके खा रहा था।

प्रिया झुक कर मेरे सीने और बदन के बाकी हिस्सो को भी चाट और चूम रही थी और मैं अपने हाथ को उसके नितम्बों के ऊपर ले जा कर सहला रहा था। उसके पिछवाड़े की दरार में मैंने अपनी उँगलियों को ऊपर नीचे फिराना शुरू किया और तभी मेरी उँगलियों ने उसकी गोल गुलाबी छोटी सी गांड के छेद को छुआ। मैंने एक दो बार उस छेड़ को उंगली से सहलाया और धीरे से अपनी एक उंगली को उस छेड़ में थोड़ा अन्दर डालने की कोशिश की।

“आउच… यह क्या करे रहे हो… बड़े शैतान हो तुम…”प्रिया ने अचानक से अपना मुँह उठा कर मुझे देखा और बनावटी गुस्से से मुझे कहा।

मैंने बस उसकी तरफ देखकर एक स्माइल दी और फिर अपनी उंगली उसकी गांड के छेद से हटा कर वापस से उसके बड़े से पिछवाड़े को सहलाने लगा।


अब प्रिया मेरे पैरों के ऊपर से नीचे उतर गई और मेरे निक्कर को अपने हाथों से पकड़ कर उसने नीचे खींच दिया। फिर वही हुआ जैसा पिछली रात को हुआ था। निक्कर की वजह से लंड फिर से अटक गया। मैं नहीं चाहता था कि ज्यादा देर अपने लंड को प्रिया के हाथों से दूर रखूं, इसलिए मैंने खुद ही अपनी कमर उठा कर लंड को दबा कर निक्कर को निकाल दिया।

निक्कर निकलते ही मेरा मुन्ना बिल्कुल अकड़ कर फुफकारने लगा। प्रिया की आँखें फ़ैल गईं और फिर उनमें वही चमक दिखने लगी जो कि पिछली रात को नज़र आई थी। उसने झट से मेरे लंड को अपने हाथों में जकड़ लिया और झुक कर लंड के सुपारे पर एक किस्सी कर दी। किस करते ही मेरे लंड ने उसे ठुनक कर सलाम किया जिसे देख कर प्रिया के मुँह से हंसी निकल गई।
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