Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
03-29-2019, 11:23 AM,
#11
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
प्रिया और मेरे पप्पू की आँख मिचौली

तभी बाहर से घंटी कि आवाज़ आई और हम तीनों चौंक गए... 

"रिंकी...रिंकीऽऽऽऽऽ...दरवाज़ा खोलो!" यह प्रिया की आवाज़ थी..

हम लोग सामान्य हो गए और अपनी अपनी जगह पर बैठ गए... और रिंकी नीचे दरवाज़ा खोलनें चली गई, जब वह उपर आई तो उसके साथ प्रिया थी ... उपर आते हुए प्रिया की नज़र मेरे कमरे में पड़ी और उसने मेरी तरफ देखकर एक प्यारी सी मुस्कराहट बिखेरी...और मुझे हाथ हिलाकर हाय किया और ऊपर चली गई... यह प्रिया और मेरा रोज का काम था, हम जब भी एक दूसरे को देखते तो प्रिया मुस्कराते हुये मेरी तरफ हाथ दिखाकर हाय कह देती थी। 

अब सब कुछ सामान्य हो चुका था और राजेश भी अपने घर वापस चला गया था। 
मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था। मैंने एक छोटी सी निक्कर पहन रखी थी और थोड़ी देर पहले की घटना को याद करके अपने हाथों से अपने नंदलाल को सहला रहा था। कल की स्मिता आंटी द्वारा मेरी चोरी पकड़ी जाने की घटना भी मुझे अच्छे से याद थी। लेकिन दरवाजे को मै लाँक लगा नही सकता था क्योकि इससे तो दूसरो का शक और बढ़ जाता और इसलिये दरवाजे को लाँक लगानें या फिर निक्कर को नीचे करने के बजाय, मैनें उसके एक साइड से अपने छोटे-मियाँ को बाहर निकाल लिया था। जिससे किसी तरह की कोई आहट आते ही उसे तुरन्त अन्दर किया जा सके।

मैं रिंकी की हसीन चूचियों और चूत को याद करके मज़े ले रहा था और उनकी याद में मेरी आँखें कब बंद हो गईं पता ही नही चला। मैं अपने ही ख्यालों में डूबा अपने बनवारीलाल की हल्के हल्के मालिश किए जा रहा था कि तभी... 

"ओह माई गॉड!!!! "...यह क्या है??" 

एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में आई और मैंने झट से अपनी आँखे खोल लीं...मेरी नज़र जब सामने खड़े शख्स पर गई तो मैं चौंक पड़ा... 

"तुम...यहाँ क्या कर रही हो...?? " मेरे मुँह से बस इतना ही निकला और मैं खड़ा हो गया...
मेरे सामने और कोई नहीं बल्कि प्रिया खड़ी थी जो अभी थोड़ी देर पहले ही घर वापस लौटी थी, उसके हाथों में एक प्लेट थी जिसमें वो मेरे लिए कुछ खाने को लेकर आई थी। 

यह उसकी पुरानी आदत थी, जब भी वो कहीं बाहर से आती तो सबके लिए कुछ न कुछ खाने को लेकर आती थी। 

खैर छोड़ो, मैं हड़बड़ा कर बिस्तर से उठ गया और उसके ठीक सामने खड़ा हो गया। मुझे काटो तो खून नहीं, कुछ सोचने समझने की ताक़त ही नहीं रही, सारा बदन पसीने से भर गया। 

मैंने जब प्रिया की तरफ देखा तो पता चला कि उसकी आँखें मेरे पप्पू पर टिकी हुई हैं और वो अपना मुँह और आँखें फाड़ फाड़ कर बिना पलके झपकाए उसे देखे जा रही थी। हम दोनों में से किसी की भी जुबान से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे। 

तभी मेरे तन्नाये हुए नन्दकिशोर ने एक ठुमका मारा और प्रिया की तन्द्रा टूटी। उसने बिना देरी किये प्लेट सामने की मेज़ पर रखा और मेरी आँखों में एक बार देखा। उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था मानो उसने कोई भूत देख लिया हो। 

वो सीधा सीढ़ियों की तरफ दौड़ पड़ी लेकिन वहीं जाकर रुक गई। मेरी तो हालत ही ख़राब थी, मैं उसी हालत में अपने कमरे से यह देखने के लिए बाहर निकला कि वो रुक क्यूँ गई। पता नहीं मुझे क्या हो गया था, वो उत्सुकता थी या पकड़े जाने का डर... पर जो भी था मैं अपने तन्नाये नन्हे सोनू के साथ ही बाहर की तरफ आ गया और मैंने प्रिया को सीढ़ियों के पास दीवार से टेक लगाकर खड़ा पाया। 

उसकी आँखें बंद थी और साँसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया था और माथे पर हल्की हल्की पसीने की बूँदें उभर आई थीं। उसका सीना तेज़ चलती साँसों की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था और ज़ाहिर है कि सीने के उभार भी उसी तरह थिरक रहे थे।

पर मुझे उसकी चूचियों का ख्याल कम और यह डर ज्यादा था कि कहीं वो यह बात सब को बता न दे। सच बताऊँ तो मेरे हाथ पैर ठंडे होने लगे थे। मैंने थोड़ी सी हिम्मत जुटाई और उसकी तरफ यह बोलने के लिए बढ़ा कि वो यह बात किसी से न कहे। मैंने डरते डरते उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे थोड़ा सा हिलाया- प्रिया...प्रिया...! 

"हाँआँ...!" 

उसने फिर से हड़बड़ा कर अपनी आँखें खोली और हम दोनों की आँखें फिर से एक दूसरे में अटक गईं। उसकी आँखों में एक अजीब सा सवाल था मानो वो मुझसे पूछना चाह रही हो कि यह सब क्या था... 

"प्रिया...तुमने जो अभी देखा वो प्लीज किसी से मत बताना, वरना मेरी बदनामी हो जाएगी और मुझे सजा मिलेगी..." मैंने एक सांस में डरते डरते अपनी बात प्रिया से कह दी। 

प्रिया ने हल्का सा सिर हिला कर एक मौन स्वीकृति दी और शरमा कर अपनी नज़र नीचे कर ली...

"हे भगवन...!!" 

प्रिया के मुँह से फिर से एक चौंकाने वाली आवाज़ आई और वो मुड़कर सीढ़ियों से ऊपर की तरफ भाग गई। 

मैं भाग कर अपने कमरे में घुस गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं उसी हालत में अपने बिस्तर पर लेट गया और छत को निहारने लगा। मेरे मन में अजीब सी उथल-पुथल चल रही थी। 

अभी कल रात की छोटी बहन के तंग और उत्तेजक कपड़ों से झलकनें वाली उसकी गोरी गोरी नंगी जांघो तथा छोटे छोटे अनारों की दिवानगी से मै बाहर ही नहीं निकल पाया था कि आज दिन में बड़ी वाली के मदहोश कर देने वाले बिल्कुल नग्न हुस्न नें बिजली ही गिरा दी थी। आज मैं अपनें आप को बहुत ही लाचार मजबूर और बेसहारा महसूस कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इस दुनियाँ में मेरा कोई नही है। मै सोच रहा था कि इसमें मेरी गलती क्या है? कल तक जो कुछ मैं अपने कंप्यूटर की स्क्रीन पर देख कर खुश होता रहता था आज वही सब कुछ अपनें आप ही मेरी असली जिन्दगी में घटित हो रहा था। अगर मैं कंप्यूटर की स्क्रीन पर यह सब देखते हुये अपना होश खो बैठता था तो असली जिन्दगी में भी वही सब कुछ देख कर होश खो बैठना कुदरती था।

एक तरफ मेरे पप्पू की बेलगाम इच्छायें और माँगें थीं जो कभी भी किसी भी वक्त बिना सोचे समझे एक बिगड़ैल घोड़े की तरह अपनें अस्तबत में उछल कूद मचानें लगती थीं और दूसरी ओर सारी पोल के खुल जाने का डर था। अब से पहले तो रामलला को खुश करनें में कभी कोई बाधा नही आई। एक नवजात शिशु की तरह जब कभी उसे भुख लगती तो थोड़ा आगे पीछे ही सही पर बिना किसी डर और झिझक के पूरी आजादी से उसको उसकी खुराक मिल ही जाती थी लेकिन अब परिस्थियाँ बिल्कुल बदल गईं थीं। जाने अनजाने में अब उसके पीछे तीन तीन चौकीदार लग गये थे जिनकी नजरों से बचना मुश्किल हो रहा था। जो लोग इस परेशानी का सबब थे, खुद को बचाना और छुपाना भी उन्ही से था। जो लोग चोरी करने को उकसा रहे थे, वही फिर चोरी पकड़ने निकल रहे थे। अजीब कशमकश थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए। 

आज जो हुआ उसका परिणाम पता नहीं क्या होगा। कहीं प्रिया इस बात को सबसे कह तो नहीं देगी या फिर मेरी बात मानकर चुप रहेगी... 

यह सोचते सोचते मैंने अपनी आँखें बंद कर ली... तभी मेरी आँखों के सामने प्रिया की ऊपर नीचे होती चूचियाँ आ गईं...और मेरा हाथ अपने आप मेरे खड़े मिट्ठू मियां पर चला गया। 

और यह क्या, मेरा पप्पू तो पहले से ज्यादा अकड़ गया था। मेरे होठों पर एक कुटिल मुस्कान आ गई और मैंने अपने आप को ही एक गाली दी, “साले चोदू...तू नहीं सुधरेगा!” और मैंने अपना अधूरा काम पूरा करने में ही भलाई समझी क्यूंकि इस खड़े बदमाश को चुप कराना जरूरी था। मैंने अपने बन्सीधर को प्यार से सहलाया और मुठ मारने लगा। मज़े की बात यह थी कि अब मेरी आँखों में दो दो दृश्य आ रहे थे, एक रिंकी की हसीन झांटों भरी चूत और दूसरा प्रिया की चूचियाँ...मेरा जोश दोगुना हो गया और फिर हमारे साहबजादे ने एक जोरदार पिचकारी मार कर अपना लावा बाहर निकाल दिया। 

मैं बिल्कुल थक सा गया था मानो कोई लम्बी सी रेस दौड़ कर आया हूँ। और यूँ ही मेरी आँख लग गईं।
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03-29-2019, 11:24 AM,
#12
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
दीदी और आंटी की शॉपिंग से वापसी

"सोनू...सोनू...कब तक सोते रहोगे??" अचानक किसी की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी और मेरी नींद टूट गई। घड़ी पर नज़र गई तो पाया कि 7 बज चुके थे, मतलब कि मैं 2 घंटे सोता रहा। 

मेरी दीदी हाथों में ढेर सारे बैग लिए खड़ी थी। उसे देखकर मुझे याद आया कि वो स्मिता आंटी के साथ बाज़ार गई थी। मैंने मुस्कुरा कर उनके हाथों से सामान लिया और उनसे कहा," वो, मेरी तबियत ठीक नहीं थी न इसलिए बिस्तर पर पड़े पड़े नींद आ गई। आप लोगों की शॉपिंग कैसी हुई?" 

"बस पूछो मत, स्मिता आंटी ने पूरे साल भर का सामान खरीदवा दिया है।" दीदी ने अन्दर आते हुए कहा। 

"चलो अच्छा है, अब कुछ दिनों तक आपको बाज़ार जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी।" मैंने हंसते हुए कहा। 

"ज्यादा खुश मत हो, हमें कल भी बाज़ार जाना है, कुछ चीज़ें आज मिली नहीं इसलिए मैं और आंटी कल फिर से सुबह सुबह बाज़ार चले जायेंगे और शायद आने में लेट भी हो जाएँ। आंटी की तो शॉपिंग ही ख़त्म नहीं होने वाली!" दीदी ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा और हम दोनों भाई बहन उसकी बात पर हंसने लगे। 

शाम हो चली थी और हमारे यानि मेरे और राजेश के घूमने का वक़्त हो गया था। मैंने अपने कपड़े बदले और बाहर जाने लगा। 

"अरे, तुम्हारी तो तबीयत ठीक नहीं थी न? फिर कहाँ जा रहे हो?" यह स्मिता आंटी की आवाज़ थी जो सीढ़ियों से नीचे आ रही थी। 

मैंने पीछे मुड़ कर देखा और एक हल्की सी स्माइल दी,"कहीं नहीं आंटी, बस घर में बैठे बैठे बोर हो गया हूँ इसलिए बाहर टहलने जा रहा हूँ।" 

आंटी तब तक मेरे पास आ चुकी थी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर बुखार देखने की तरह किया और मेरी आँखों में देखा। 

"बुखार तो नहीं है, लेकिन प्रिया बता रही थी कि तुम अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे थोड़ी देर पहले। इसीलिए मैं तुमसे तुम्हारा हाल चाल पूछने आ गई।" आंटी ने चिंता भरी आवाज़ में कहा। 

पर दोस्तो, मैंने जैसे ही प्रिया का नाम सुना तो मेरी जान ही निकल गई। मुझे लगा जैसे प्रिया ने वो सब कुछ अपनी माँ को बता दिया होगा जो उसने कुछ ही समय पहले देखा था। मेरा सर शर्म और डर की वजह से झुक गया और मैं कुछ बोल ही नहीं पाया। आंटी ने मेरा सर एक बार फिर से अपनी हथेली से छुआ किया और एक गहरी सांस ली। 

"अगर तुम्हारा दिल कर रहा है तो जाओ जाकर टहल आओ, लेकिन जल्दी से वापस आ जाना।" आंटी ने अपनी वही हमेशा वाली कातिल मुस्कान के साथ मुझसे कहा।
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03-29-2019, 11:24 AM,
#13
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
राजेश के साथ शाम की सैर

मैं बिना कुछ बोले बाहर निकल गया और अपने अड्डे पर पहुँच गया। मेरा यार राजेश वहाँ पहले से ही खड़ा था। मुझे देखकर वो दौड़ कर मेरे पास आया।

“भोसड़ी के, कहाँ था अभी तक? मैं कब से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ।" राजेश ने थोड़ी नाराज़गी के साथ मुझसे पूछा। 

उसका नाराज़ होना जायज था, हम हमेशा 6 बजे तक अपने चौराहे पर मिलते थे और फिर घूमने जाया करते थे। पर उसे क्या पता था कि उसके जाने के बाद मेरे साथ क्या हुआ और मैं किस स्थिति से गुजरा था। 

"कुछ नहीं यार, बस थोड़ी आँख लग गई थी इसलिए देर हो गई।" मैंने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और फिर हम दोनों राजेश की बाइक पर बैठ कर निकल पड़े।

आज राजेश की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। इतना खुश मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था। हो भी क्यूँ ना, इतनी मस्त माल जो हाथ लगी थी उसके। हम दोनों सिविल लाईन्स चौक (इलाहाबाद का एक मशहूर बाज़ार) पहुँचे और अपने पसंद की दूकान पर जाकर चाय का मज़ा लेने लगे। राजेश बार बार मुझे थैंक्स कह रहा था और मेरी खातिरदारी में लगा हुआ था। उसकी आँखों में एक अजीब सी विनती थी मानो वो कह रहा हो कि आगे का कार्यक्रम भी तय करवा दो। 

मैंने उसकी आँखों में वो सब पढ़ लिया था, आखिर दोस्त हूँ उसका और उसके बोले बिना भी उसके दिल की बात जान सकता हूँ। 

हम काफी देर तक वहीं घूमते रहे और बातें करते रहे और फिर वापस अपने अपने घर की तरफ चल पड़े। रास्ते में मैंने राजेश को यह खुशखबरी दी कि कल फिर से घर पर कोई नहीं होगा और वो अपन अधूरा काम पूरा कर सकता है। 

राजेश ने जब यह सुना तो जोर से ब्रेक मार दी और बाइक खड़ी करके मुझसे लिपट गया,"सोनू मेरे भाई, मैं तेरा एहसान ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगा। तू मेरा सच्चा यार है।" राजेश मानो बावला हो गया था। 

"रहने दे साले, चूत मिल रही है तो दोस्त भी बहुत प्यारा लगने लगा है, है न?" मैंने मस्ती के मूड में राजेश से कहा।

हम दोनों जोर जोर से हंस पड़े और बाइक स्टार्ट करके फिर से चल पड़े और अपने अपने घर पहुँच गए। अपने कमरे में पहुँचा और कपड़े बदलकर एक हल्की सी टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया। घड़ी पर नज़र गई तो देखा 9 बज रहे थे। दीदी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। तभी किसी के चलने की आहट सुनाई दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो रोज़ की तरह प्रिया मुझे खाने के लिए बुलाने आई थी।
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03-29-2019, 11:24 AM,
#14
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
प्रिया और उसकी पहली असली पढ़ाई

"चलो भैया, खाना तैयार है। सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।" प्रिया ने मेरी तरफ देख कर कहा। मैं उससे नज़रें मिलाना नहीं चाहता था लेकिन जब उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र अटक गई। 

प्रिया ने आज एक बड़े गले का टॉप और एक छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी। उसकी चिकनी जांघें कमरे की रोशनी में चमक रही थी। मेरा मन डोल गया। उसके सीने की तरफ मेरी नज़र गई तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। बड़े से गले वाले टॉप में उसकी चूचियों की घाटी का हल्का सा नज़ारा दिख रहा था। सच कहूँ तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी चूचियाँ अचानक से दो इन्च और बड़ी हो गई हों। मेरी तो आँखें ही अटक गई थीं उन पर। मैंने सोचा था कि जब प्रिया मेरे सामने आएगी तो मैं उससे पूछूँगा कि उसने कहीं दोपहर वाली बात अपनी माँ से तो नहीं बता दी। लेकिन मैं तो किसी और ही दुनिया में था। 

"क्या हुआ, खाना नहीं खाना है क्या? तबीयत तो ठीक है ना?" 

प्रिया की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैंने उसे अन्दर आने को कहा। प्रिया ने मेरी तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देखा, शायद उसे मेरा अन्दर बुलाना अजीब सा लगा हो या फिर हो सकता है उसे दोपहर वाली घटना याद आ गई हो। 

वो दरवाज़े पर ही खड़ी रही। मैंने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा और उसे अन्दर खींचा। उसका हाथ बिल्कुल ठंडा था, शायद डर की वजह से। 

उसने डरते डरते पूछा, "क.. क.. क्या बात है सोनू भैया??" 

"एक बात बताओ, जब मैंने तुम्हें मना किया था तो फिर भी तुमने आंटी को सब कुछ बता क्यूँ दिया?" मैंने रोनी सी सूरत बनाकर पूछा। 

"आपको ऐसा लगता है कि मैंने माँ से कुछ कहा होगा?" प्रिया ने एक चिढ़ाने वाली हंसी के साथ मेरी आँखों में देखते हुए मुझसे ही सवाल कर दिया। 

"मुझे नहीं पता, लेकिन जिस तरह से आंटी ने मुझसे मेरी तबीयत के बारे में पूछा तो मुझे लगा जैसे तुमने सब बता दिया है।"...मैंने असमंजस की स्थिति व्यक्त करते हुए कहा। 

"ये सब बातें सबसे नहीं की जातीं मेरे बुद्धू भैया...और हाँ, आगे से जब तुम्हें ऐसा कुछ करना हो तो कम से कम दरवाज़ा तो बंद कर लिया करो।" 

प्रिया की बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गए और आश्चर्य से मेरी आँखें बड़ी हो गई। यह क्या कह रही है...इसका मतलब इसे सब पता है इन सबके बारे में...हे भगवन!! 

मैं एकटक उसकी तरफ देखता रह गया...

"अब उठो और चलो, वरना खाना ठंडा हो जायेगा। खाना गर्म हो तो ही खाने का मज़ा है।" प्रिया ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे उठाने की कोशिश की। 

मैं आश्चर्यचकित हो गया था उसकी बातें सुनकर। मैंने सोचा भी नहीं था कि जिसे मैं छोटी बच्ची समझता था वो तो पूरी गुरु है। 

"वैसे आपको अपना राज छुपाने के लिए मुझे थोड़ी रिश्वत देनी पड़ेगी।" प्रिया ने चहकते हुए धीरे से मुझसे कहा।

मैं डर गया, पता नहीं वो क्या मांग ले। फिर मैंने सोचा ज्यादा से ज्यादा क्या मांगेगी...मेरा लंड ही न, मैं तो पहले से ही किसी चूत में घुसने के लिए तड़प रहा था। 

मैंने जोश में आकर उसका हाथ जोर से पकड़ लिया और पूछा,"क्या चाहिए, तू जो कहेगी मैं देने को तैयार हूँ।" 

"अरे डरो मत, मैं ज्यादा कुछ नहीं मांगूगी, बस मेरी थोड़ी सी हेल्प कर देना, मुझे कुछ नोट्स तैयार करने हैं। तुम मेरी मदद कर देना।" उसने शरारत से मेरी ओर देखते हुए कहा। 

"ये ले, सोचा चूत और मिली पढाई!" मैंने अपने मन में सोचा...मेरा मूड थोड़ा ख़राब हो गया लेकिन इस बात की तसल्ली हो गई कि वो मेरे मुठ मारने की बात को किसी से नहीं कहेगी। प्रिया को मेरी हालत का अंदाज़ा हो गया था शायद। उसने मुझे फिर से पकड़ा और मुझे लेकर ऊपर जाने लगी। 

उसने मेरी बाह पकड़ ली और मुझसे सट कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। उसने इस तरह से मेरा बाजू पकड़ा था कि उसकी एक चूची मेरे बाजू से हल्के हल्के रगड़ खा रही थी और हम चुपचाप ऊपर खाने की मेज की तरफ बढ़ चले। ऊपर पहुँचते ही उसने मेरा बाजू छोड़ दिया। 

खाने की मेज पर सभी मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मेरी दीदी भी वहीं थी। मैंने माहौल को हल्का करने के लिए अपनी दीदी की तरफ देखा और पूछने लगा,"अरे दीदी तुम ऊपर हो और मैं तुम्हे नीचे पूरे घर में खोज रहा था।" 

"मैं जल्दी ही ऊपर आ गई थी भाई, नीचे कोई नहीं था इसलिए मैंने ऊपर आना ही सही समझा।" दीदी ने मेरी तरफ देखकर कहा। 

मैं जाकर अपनी जगह पर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेरी दीदी थी। मेरे सामने एक तरफ रिंकी थी और मेरे ठीक सामने प्रिया बैठ गई। आंटी हम सबको खाना परोस रही थी। हमने खाना शुरू किया। 

मैं अपना सर नीचे करके खाए जा रहा था, तभी किसी ने मेरे पैरों में ठोकर मारी। मैंने अपना सर उठाया तो सामने देखा की प्रिया मुस्कुरा रही है और जान बूझकर झुक झुक कर अपनी प्लेट से खाना खा रही थी। उसके टॉप के बड़े गले से उसकी आधी चूचियाँ झांक रही थीं। मेरा खाना मेरे गले में ही अटक गया। मैंने एकटक उसकी चूचियों को देखना शुरू किया और वो मुस्कुरा मुस्कुरा कर मुझे अपने स्तनों के दर्शन करवाए जा रही थी। 

"क्या हुआ बेटा, रुक क्यूँ गए...खाना अच्छा नहीं है क्या?" आंटी की आवाज़ ने मुझे झकझोरा। 

"नहीं आंटी, खाना तो बहुत टेस्टी है...जी कर रहा है खाता ही चला जाऊं...!" 

मैंने दोहरे मतलब वाली भाषा में कहते हुए प्रिया की तरफ देखा। उसका चेहरा चमक रहा था मानो मैंने खाने की नहीं उसकी चूचियों की तारीफ की हो। बात सच भी थी, मैंने तो उसकी चूचियों को ही टेस्टी कहा था...लेकिन सहारा खाने का लिया था।

रिंकी जो प्रिया के बगल में बैठी थी, उसकी नज़र अचानक मेरी आँखों की दिशा तलाशने लगे। मेरा ध्यान तब गया जब उसने मुझे प्रिया के सीने पर टकटकी लगाये पाया। मेरी नज़र जब रिंकी के ऊपर गई तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ ज्यादा ही कर रहा हूँ और मेरी इस हरकत से बनती हुई बात बिगड़ सकती थी। लेकिन कहीं न कहीं मुझे यह पता था कि अगर रिंकी मुझे प्रिया को चोदते हुए भी देख ले तो कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी। आखिर उसे भी पता था कि उसके लिए लंड की व्यवस्था मेरी वजह से ही हुई थी। 

मैंने फिर भी अपने आप को सम्हाला और चुपचाप खाना ख़त्म करने लगा। खाना खाते खाते बीच में ही प्रिया बोल पड़ी,"माँ, मुझे आज अपने नोट्स तैयार करने हैं, बहुत जरूरी हैं इसलिए मैंने सोनू भैया से कह दिया है वो मेरी मदद करेंगे। मैं अभी नीचे उनके कमरे में जाकर अपने नोट्स बनाऊँगी।" 

प्रिया ने एक ही सांस में अपनी बात कह दी। 

"बेटा, तुम्हारे सोनू भैया की तबीयत ठीक नहीं है उसे परेशान मत करो। तुम रिंकी के साथ बैठ कर अपना काम पूरा कर लो।" आंटी ने प्रिया को रोकते हुए कहा। 

मैं एक बार प्रिया की तरफ देख रहा था तो दूसरी तरफ आंटी को। समझ में नहीं आ रहा था कि किसे रोकूँ और किसे हाँ करूँ...एक तरफ प्रिया थी जिसने मुझे अपनी बातों और अपनी हरकतों से झकझोर कर रख दिया था और दूसरी तरफ आंटी थी जिन्हें मेरी तबीयत की फ़िक्र हो रही थी। मैं खुद भी थका थका सा महसूस कर रहा था और यह सोच रहा था कि खाना खाकर सीधा अपने बिस्तर पर गिर पडूंगा और सो जाऊँगा...। 

मेरे दिमाग में आने वाले कल की प्लानिंग चल रही थी जहाँ मुझे रिंकी और राजेश की चुदाई का सीधा प्रसारण देखना था। लेकिन प्रिया के बारे में ख्याल आया तो दोपहर का वो वाक्य याद आ गया जब प्रिया ने मेरे खड़े नन्दगोपाल को देखा था और मैंने उसकी चूचियों की गोलाइयाँ नापी थीं। 

मेरे बदन में एक झुझुरी सी हुई और मेरा मन यह सोच कर उत्साह से भर गया कि आज हो न हो, मुझे प्रिया की अनछुई चूत का स्वाद चखने को मिल सकता है...

यह ख्याल आते ही मैंने अपनी चुप्पी तोड़ी,"आंटी, आप चिंता न करें, मेरी तबीयत ठीक है और मैं प्रिया की मदद कर दूँगा... मैं ठीक हूँ, आप खामख्वाह ही चिंता कर रही हैं।" मैंने बड़े ही इत्मीनान से अपनी बात कही। 

मैं नहीं चाहता था कि मेरी उत्सुकता किसी को दिखे और मुझ पर किसी को शक हो। 

"ठीक है बेटा, जैसा तुम ठीक समझो!" आंटी ने मुस्कुरा कर कहा। 

"और प्रिया, तुम भैया को ज्यादा परेशान मत करना। जल्दी ही अपना काम ख़त्म कर लेना और ऊपर आकर सो जाना।" आंटी ने प्रिया को हिदायत दी। 

"ठीक है माँ, आप चिंता न करें। मैं आपके सोनू बेटे का ख्याल रखूँगी और उन्हें ज्यादा नहीं सताऊँगी।" प्रिया ने ठिठोली करते हुए कहा और उसकी बात पर हम सब हंस पड़े।

हम सबने अपना अपना खाना खत्म किया और अपने अपने कमरे की तरफ चल पड़े। रिंकी और नेहा दीदी उनके कमरे में चले गए। आंटी किचन का बिखरा हुआ सामान समेटने में लग गईं। प्रिया भी अपने कमरे में चली गई अपने नोट्स और किताबें लेने के लिए। मैं नीचे अपने कमरे में आ गया और कंप्यूटर पर बैठ कर मेल चेक करने लगा। 

मेल चेक करने के साथ साथ मैंने एक दूसरी विंडो में अपनी फेवरेट पोर्न साईट खोल ली। मैं कुछ चुनिन्दा पोर्न साइट्स का दीवाना था और आज भी हूँ। जब तक एक बार उन साइट्स को चेक न कर लूँ मुझे नींद ही नहीं आती। 

थोड़ी देर के बाद मुझे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। मैंने कंप्यूटर पर विंडो बदल दिया और फ़िर से मेल देखने लगा। मुझे लगा था कि प्रिया अपनी किताबें लेकर आई होगी लेकिन मुझे पायल के छनकने की आवाज़ सुनाई दी। 

मेरे दिमाग ने झटका खाया और मुझे याद आया कि ये स्मिता आंटी हैं, क्यूंकि एक वो ही थीं जो पायल पहनती थीं। वैसा ही हुआ और आंटी मेरे कमरे में दूध के दो गिलास लेकर दाखिल हुई। उन्होंने मेरी तरफ प्यार भरी नज़रों से देखा और मेरे मेज पर ग्लास रख दिया। फिर उन्होंने मेरे माथे पर हाथ रखते हुए कहा,"ये तुम दोनों के लिए है, पी लेना और आराम करना, तुम्हारी तबीयत ठीक हो जाएगी। तुम्हारे वाले दूध में हल्दी भी मिला दी है, तुम्हें पिछले कुछ दिनों से कमजोरी सी महसूस हो रही है न, इसे पीकर तुम्हारे अन्दर ताक़त आ जाएगी और तुम्हें अच्छा लगेगा।" आंटी के जाते ही मैनें राहत की सांस ली और अपने आप से कहा इस बार बच गये बच्चू वर्ना पता नहीं क्या होता। 

सच कहूँ तो मैं पूरी तरह से असमंजस में था, क्या करूँ क्या न करूँ। मैंने एक गहरी सांस ली और अपने कंप्यूटर पर वापस पोर्न साईट देखने लगा। मैं अपनी धुन में पोर्न विडियो देख रहा था और अपने लंड को पैंट के ऊपर से ही सहला रहा था। मैं इतना ध्यान मग्न था कि मुझे पता ही नहीं चला की कब प्रिया मेरे कमरे में आ चुकी थी और मेरे बगल में खड़े होकर कंप्यूटर पर अपनी आँखें गड़ाए हुए चुदाई की फिल्म देख रही थी। 

उसकी तेज़ सांस की आवाज़ ने मेरी तन्द्रा तोड़ी और मैंने बगल में देखा तो प्रिया फिर से उसी हालत में थी जैसे उसकी हालत दोपहर में मुझे मुठ मारते हुए देख कर हुई थी।
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03-29-2019, 11:24 AM,
#15
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मैंने झट से कंप्यूटर की स्क्रीन बंद कर दी। दिन भर में यह दूसरी चोरी थी जो प्रिया ने पकड़ी थी। मैं सच में समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूँ। मैं अपने कमरे के बाथरूम में भाग गया। मैंने बाथरूम में घुस कर नल खोल दिया और कमोड पर बैठकर अपने आप को सम्हालने लगा। फिर खानें से ठीक पहले और खानें के समय के प्रिया के व्यवहार को याद कर के यह लगा कि शायद प्रिया भी यही चाहती है और फिर मैंने थोड़ी सी हिम्मत जुटाई और बाथरूम से बाहर निकल आया। 

जब मेरी नज़र कमरे में पड़ी तो मैंने प्रिया को बिस्तर पर अपनी किताबों और नोट्स के साथ पाया। मैंने चुपचाप अपनी कुर्सी खींची और उसके सामने बैठ गया। प्रिया बिस्तर पर अपने दोनों पैर मोड़ कर बैठी थी और झुक कर अपने नोट्स लिख रही थी। मैंने उसकी एक किताब उठाई और देखने लगा। किताबों में लिखे शब्द मुझे दिख ही नहीं रहे थे। मैं परेशान था और थोड़ा डरा हुआ भी, पता नहीं प्रिया अब क्या कहेगी।

मैंने धीरे से अपनी नज़र उठाई और उसकी तरफ देखा, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी और और वो थोड़ा झुकी हुई थी। उसके टॉप का गला पूरा खुला हुआ था और जब उसके अन्दर से झांकती हुई चूचियों पर मेरी नज़र गई तो मैं एक बार फिर से सिहर उठा। मुझे एहसास हुआ कि शायद उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी, तभी तो उसकी साँसों के साथ साथ उसके अनार ऊपर नीचे हो रहे थे और पूरे स्वछंद होकर हिल रहे थे। अब मुझे पूरा यकीन हो चला था कि शायद वह भी वही चाहती है जो मैं चाहता हूँ । 

मेरे कृष्णमुरारी नें फिर से अपनी शरारतें शुरू कर दी थी और अपना सर उठाने लगा। मैं इस तरह से बैठा था कि चाह कर भी अपने कन्हैयालाल को हाथों से छिपा नहीं सकता था। मैंने मज़बूरी में अपने हाथ को नीचे किया और अपने कन्हैया को छिपाने की नाकाम कोशिश की। लेकिन हमारे कन्हैयालाल कुछ सुनने मानने को तैयार ही नहीं थे। । मेरी इस हरकत पर प्रिया की नज़र पड़ गई और उसने मेरी आँखों में देखा। हम दोनों की आँखें मिलीं और मैंने जल्दी ही अपनी नज़र हटा ली। 

"बताओ, तुम्हें कैसी मदद चाहिए थी प्रिया? क्या नोट्स बनाने हैं तुम्हें?" मैंने किताब हाथों में पकड़े हुए उससे पूछा। 

"बताती हूँ बाबा, इतनी जल्दी क्या है। अगर आपको नींद आ रही है तो मैं जाती हूँ।" प्रिया ने थोड़ा सा बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा। 

"अरे ऐसी बात नहीं है, तुम्हीं तो कह रही थी न कि तुम्हें जरूरी नोट्स बनाने हैं। मुझे नींद नहीं आ रही है अगर तुम चाहो तो मैं रात भर जागकर तुम्हारे नोट्स बना दूंगा।" मैंने उसको खुश करने के लिए कहा। 

"अच्छा जी, इतनी परवाह है मेरी?" उसने बड़ी अदा के साथ कहा और अपने हाथों से नोट्स नीचे रखकर अपनी टाँगें सीधी कर लीं और अपने कोहनी के बल बिस्तर पर आधी लेट सी गई।

क्या बताऊँ यार, उसकी छोटी सी स्कर्ट ने उसकी चिकनी टांगों को मेरे सामने परोस दिया। उसकी टाँगे और जांघें मेरे सामने चमकने लगीं। मेरे हाथों से किताब नीचे गिर पड़ीं और मेरा मस्त लंड पैंट में खड़े हो कर टनटनाने लगा। लंड ठनक रहा था मानो उसे अपनी ओर आने का निमंत्रण दे रहा हो। प्रिया की आँखों से यह बचना नामुमकिन था और उसकी नज़र मेरे लंड पर चली गई। और उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने एकटक मेरी पैंट में उभरे हुए लंड पर अपनी आँखें गड़ा लीं। 

मैंने अपने पैरों को थोड़ा सा हिलाया और प्रिया का ध्यान तोड़ा। उसने झट से अपनी आँखें हटा लीं और दूसरी तरफ देखने लगी। 

"अरे, माँ ने हमारे लिए दूध रखा है...चलो पहले ये पी लेते हैं फिर बातें करेंगे।" प्रिया ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

"अच्छा जी, तो आप यहाँ बातें करने आई हैं?" मैंने उससे पूछा। तभी प्रिया ने आगे बढ़कर दूध का गिलास उठाया और मुझे भी दिया। 

"अरे, आपके गिलास का दूध पीला क्यूँ है?" प्रिया ने चौंक कर पूछा।

"आंटी ने इसमें हल्दी मिला दी है। वो कह रही थीं की इसे पीने से मुझे थोड़ी ताक़त मिलेगी और मेरी तबीयत ठीक हो जाएगी।" मैंने इतना कहते हुए गिलास हाथ में लिया और मुँह से लगाकर पीने लगा। 

"हाँ पी लो हल्दी वाला दूध, तुम्हें जरुरत पड़ेगी।" प्रिया ने फुसफुसाकर कहा लेकिन मैंने उसकी बात सुन ली। मेरे कान खड़े हो गए और मैं सोचने लगा कि आखिर यह लड़की क्या सोचकर आई है...कहीं आज यह सच में ही मुझसे योनि-छेदन को तो नहीं कहेगी...

शायद इसीलिए उसने अपनी चूचियों को ब्रा में कैद नहीं किया था। 

"हे भगवन, कहीं सच में तो ऐसा नहीं है..." मैंने अपने मन में सोचा और थोड़ा बेचैन सा होने लगा। चोदना तो मैं भी चाहता था पर समझ नहीं पा रहा था कि प्रिया खुद क्या चाहती है। मैंने एक बात सोची कि देखता हूँ प्रिया ने नीचे कुछ पहना है या नहीं। अगर उसने नीचे भी कुछ नहीं पहना होगा तो पक्का वो आज मुझ से चुदवायेगी। 

मैं रोमांच से भर गया और उसके स्कर्ट के नीचे देखने की जुगाड़ लगाने लगा। प्रिया वापस उसी हालत में अपनी कोहनियों के बल लेट कर दूध पीने लगी। उसने सहसा ही अपनी एक टांग मोड़ ली जिसकी वजह से उसका स्कर्ट थोड़ा सा खुल गया और ऊपर हो गया।लेकिन मुश्किल यह थी कि उसकी टाँगे बिस्तर पर मेज की तरफ थीं और मैं बगल में बैठा था। मैं उसकी स्कर्ट के अन्दर नहीं देख सकता था। 

मेरे दिमाग में एक तरकीब आई और मैं कुर्सी से उठ गया- अरे, मैंने दवाई तो ली ही नहीं!

मैंने दवाई लेने के लिए मेज की तरफ अपने कदम बढ़ाये और टेबल की दराज़ से क्रोसिन की एक गोली निकाली। मेरा पीठ इस वक़्त प्रिया की तरफ था। मैंने सोचा कि अगर मैं खड़े खड़े ही वापस मुड़ा तो मुझे उसके स्कर्ट के नीचे का कुछ भी नज़र नहीं आएगा। तभी मैंने अपने हाथ से दवाई की गोली नीचे गिरा दी और प्रिया की तरफ मुड़ कर नीचे झुक गया उठाने के लिए। यह तो मेरी एक चाल थी और यह कामयाब भी हो गई। 

जैसे ही मैंने झुक कर गोली उठाई और ऊपर उठने लगा मेरी नज़र सीधे प्रिया की स्कर्ट के अन्दर गई और मेरे हाथ से दुबारा दवाई गिर पड़ी। इस बार वो सचमुच मेरे हाथों से अपने आप गिर गई क्यूंकि मेरी आँखों ने जो देखा वो किसी को भी विचलित करने के लिए काफी था। 

प्रिया ने अन्दर कुछ नहीं पहना था। स्कर्ट से आधी ढकी हुई हल्की रोशनी उसकी नंगी चूत को और भी हसीन बना रही थी...उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं था, बिल्कुल चिकनी थी उसकी जवान चूत। 

मेरे दिमाग में रिंकी की चूत का नज़ारा आ गया। लेकिन रिंकी की चूत पर बाल थे और प्रिया ने अपनी चूत शेव कर रखी थी। मेरा गला सूख गया और मैं वैसे ही झुका हुआ उसके चूत के दर्शन करने लगा। मेरी जुबान खुद ब खुद बाहर आ गई और मेरे होठों पर चलने लगी। प्रिया ने यह देखा और अपनी टाँगें सीधी कर लीं और अपनी स्कर्ट को ठीक कर लिया। मैं उठ गया और वापस आकर कुर्सी पर बैठ गया। अब मैं पक्का समझ चुका था कि आज मुझे प्रिया की गुलाबी चिकनी चूत का स्वाद जरुर मिलेगा। मैं कुर्सी पर बैठ गया और एकटक प्रिया की तरफ देखने लगा।

"क्या हुआ भैया, तुम अचानक से चुप क्यूँ हो गए?" प्रिया ने अपनी आँखों में शरारत भर के मेरी तरफ देखा। मैंने भी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा और अपने गिलास को वापस अपने होठों से लगा कर दूध पीने लगा। हम दोनों बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे और मुस्कुरा रहे थे मानो एक दूसरे को यह बताने की कोशिश कर रहे हों कि हम दोनों एक ही चीज़ चाहते हैं। 

"भैया एक बात पूछूं?" प्रिया ने अचानक से पूछा। 

मैं हड़बड़ा गया,"हाँ बोलो...क्या हुआ?" 

"क्या आप मुझे इंटरनेट से सर्च करके नोट्स बनाना सिखायेंगे?" बड़े भोलेपन से प्रिया ने कहा। मुझे लगा था कि वो कुछ और ही कहेगी। 

"इसमें कौन सी बड़ी बात है?" मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा और अपनी कुर्सी को खींचकर मेज के पास चला गया। कुर्सी के बगल में एक स्टूल था। मैंने प्रिया की तरफ देखा और उसे अपने पास बुलाया। प्रिया बिस्तर से उतरकर मेरे दाहिनी तरफ स्टूल पर बैठ गई। वो मुझसे बिल्कुल सट कर बैठ गई जिस वजह से उसकी एक चूची मेरे दाहिने हाथ की कोहनी से छू गई। मुझे तो मज़ा आ गया। मैं मुस्कुराने लगा और माउस से बन्द कंप्यूटर स्क्रीन पर इधर उधर करने लगा। लेकिन मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही कंप्यूटर की स्क्रीन को ऑफ किया था इसलिए स्क्रीन फिर भी आन नहीं हुई। मैंने हाथ बढ़ाकर स्क्रीन को फिर से ऑन किया। 

और यह क्या, स्क्रीन पर अब भी वही पोर्न साईट चल रही थी। मेरे हाथ बिल्कुल रुक से गए। स्क्रीन पर एक वीडियो आ रही थी जिसमें एक लड़की एक लड़के का मोटा काला लंड अपने हाथों में लेकर सहला रही थी। बड़ा ही मस्त सा दृश्य था। अगर मैं अकेला होता तो अपना लंड बाहर निकल कर मुठ मारना शुरू कर देता लेकिन मेरे साथ प्रिया थी और वो भी मुझसे चिपकी हुई। 

मैंने तुरंत ही उस विंडो को बंद कर दिया और प्रिया की तरफ देखकर उससे सॉरी बोला। प्रिया मेरी आँखों में देख रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे मेरा विंडो बंद करना उसे अच्छा नहीं लगा। उसकी शक्ल थोड़ी रुआंसी सी हो गई थी। मैंने उसकी आँखों में एक रिक्वेस्ट देखी जैसे वो कह रही हो कि जो चल रहा था उसे चलने दो।

हम दोनों ने एक दूसरे को मौन स्वीकृति दी और मैंने फिर से वो पोर्न साईट लगा दी।

उफफ्फ्फ्फ़..." एक हल्की सी मादक सिसकारी प्रिया के मुँह से निकली। 

साईट पर कई छोटे छोटे विंडोज में सेक्सी वीडियो लगे हुए थे जिसमें चुदाई के अलग अलग सीन थे। किसी में लड़का लड़की की चूत चाट रहा था तो किसी में लड़की की चूत में अपना मोटा लंड डाल रहा था। 

मैंने एक विंडो पर क्लिक किया जिसमे एक कमसिन लड़की एक बड़े लड़के का विशाल लंड अपने हाथों में सहला रही थी। मैंने कंप्यूटर का साउंड थोड़ा सा बढ़ा दिया। अब हमें उस सेक्सी विडियो से आ रही लड़की और लड़के की सिसकारियाँ सुनाई दे रही थीं। 

हम दोनों बिना एक दूसरे से कुछ कहे और बिना एक दूसरे को देखे कंप्यूटर स्क्रीन की तरफ देखने लगे। स्क्रीन पर लंड और चूत का खेल चालू था और इधर हम दोनों की साँसें अनियंत्रित तरीके से चल रही थीं। मेरी तो मानो सोचने समझने की शक्ति ही नहीं रह गई थी, सच कहो तो मुझे स्क्रीन पर चल रही फिल्म दिखाई ही नहीं दे रही थी। मैं बस इस उहा पोह में था कि अब आगे क्या करूँ। 

मुझसे रहा नहीं जा रहा था। आप लोग सोच रहे होंगे कि कैसा चूतिया है, मस्त जवान लड़की बगल में बैठ कर ब्लू फिल्म देख रही है और मैं चुपचाप बैठा हुआ हूँ। लेकिन दोस्तो, यकीन मानो अगर कभी आप ऐसी स्थिति में आओगे तब पता चलेगा कि क्या हालत होती है उस वक़्त! 

जो भी हो, पर प्रिया के पास होने के ख़याल से और थोड़ी देर पहले उसकी चूचियों और चूत के दर्शन करने की वजह से मेरा लंड अपने पूरे शबाब पर था और मेरा पैंट फाड़ कर बाहर आने को बेताब हो रहा था। मेरा एक हाथ की बोर्ड और दूसरा हाथ माउस पर था। मैं चाहता था कि अपने लंड को बाहर निकालूँ और उसके सामने ही मुठ मारना शुरू कर दूँ। लेकिन पता नहीं क्यूँ एक अजीब सी हिचकिचाहट थी जो मुझे हिलने भी नहीं दे रही थी।
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03-29-2019, 11:24 AM,
#16
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मेज के ठीक सामने दीवार पर बिजली का स्विच बोर्ड लगा था। मुझे पता ही नहीं चला और प्रिया ने धीरे से अपना हाथ बढ़ा कर लाइट बंद कर दी। अचानक हुए अँधेरे से मेरा ध्यान भंग हुआ और मैंने प्रिया की तरफ देखा। वो मेरी तरफ देख रही थी और उसकी आँखें चमक रही थीं।

कंप्यूटर स्क्रीन से आ रही हल्की रोशनी में मुझे उसकी आँखें लाल लाल सी प्रतीत हुई। मेरा ध्यान उसके सीने की तरफ गया तो देखा कि थोड़ा सा झुकने की वजह से उसके बड़े से गले से उसकी चूचियों की घाटी दिखाई दे रही है। मेरा लंड उसे देखकर ठनकने लगा। मैंने एक नज़र भर कर उसे देखा और वापस स्क्रीन पर देखने लगा। 

थोड़ी देर के बाद मैंने अपने पैंट के ऊपर कुछ महसूस किया जैसे कोई चीज़ मेरे जांघों पर चल रही हो और धीरे धीरे मेरे लंड की तरफ बढ़ रही हो। 
दिल कह रहा था कि यह प्रिया का हाथ है, लेकिन दिमाग यह मानने को तैयार नहीं था। मुझे यकीन था कि चाहे प्रिया कितनी भी बेबाकी करे लेकिन मेरा लंड पकड़ने की हिम्मत नहीं करेगी।

"ओह्ह्ह...ये क्या?"...मेरे मुँह से अनायास ही एक हल्की सी आवाज़ निकल गई। 

ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि प्रिया ने अपना हाथ सीधा मेरे लंड पर रख दिया... 

मेरी आँखें मज़े में बंद हो गईं और मैंने अपन एक हाथ नीचे करके प्रिया के जांघ पर रख दिया। मेरी हथेली उसकी चिकनी जांघ पर टिक गई... 

प्रिया ने अपने हथेली को मेरे लंड पर कस लिया और बड़े ही प्यार से सहलाने लगी। मैं मज़े से अपनी आँखें बंद करके उसकी जांघ को दबाने लगा, जितनी जोर से मैं उसकी जांघ दबा रहा था उतनी ही जोर से वो मेरा लंड दबा रही थी। 

ज़िन्दगी में पहली बार किसी लड़की का हाथ मेरे लंड पर पड़ा था, आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि मेरी हालत कैसी होगी उस वक़्त। 

आँखें पहले ही बंद थी और उन बंद आँखों ने उस वक़्त मुझे पूरी जन्नत दिखा दी...मैंने अब अपनी हथेली को उसकी जांघों पर ऊपर नीचे सहलाना शुरू कर दिया मानो मैं प्रिया को ये सिखाना चाहता था कि वो भी मेरे लंड को ऐसे ही सहलाये... 

और ऐसा ही हुआ, शायद वो मेरा इशारा समझ गई थी...उसने मेरे लंड को अपनी पूरी हथेली में पकड़ लिया और ऊपर नीचे करने लगी जैसे मैं मुठ मारता था। 

जिन दोस्तों को कभी इस एहसास का मज़ा मिला हो वो मेरी फीलिंग समझ सकते हैं...उस मज़े को शब्दों में बयाँ करना बहुत मुश्किल है। मैंने अपनी हथेली को उसके जांघों से ऊपर सरका दिया और धीरे धीरे ज़न्नत के दरवाज़े तक पहुँचा दिया। 

उफ्फ्फ्फ़...इतनी गर्मी जैसे किसी धधकती हुई भट्टी पर हाथ रख दिया हो मैंने...मेरे हाथ उस जगह पर ठहर गए और मैंने उसकी चिकनी चूत को सहला दिया। 

"ह्म्म्मम्म...उफ्फ्फफ्फ्फ़"...प्रिया के मुँह से एक सिसकारी निकली और उसने अपने दूसरे हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया। 

मैंने तुरंत उसकी तरफ गर्दन घुमाई और उसकी आँखों में देखने लगा। मैंने अपनी आँखों में एक विनती भरे भाव दर्शाए और उससे एक मौन स्वीकृति मांगी। उसने मदहोश होकर मेरी आँखों में देखा और अपनी जांघें बैठे बैठे थोड़ी सी फैला दी।

अब मेरी हथेली ने उसकी कमसिन चूत को पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में भर लिया और दबा दिया।

“धीरे भैया"...और ये शब्द उसके मुँह से निकले जो कि उसने मुझसे सीधे सीधे कहे थे। मैंने अपनी हथेली को उसके जांघों से ऊपर सरका दिया और धीरे धीरे ज़न्नत के दरवाज़े तक पहुँचा दिया।

अब मेरे बर्दाश्त की सीमा खत्म हो गई थी। मैंने अपनी गर्दन उसकी तरफ घुमाई और उसके चेहरे के बिल्कुल करीब आ गया। उसकी साँसें मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए धीरे से कहा,"अब भी भैया ही कहोगी?" 

एक हल्की सी मुस्कान वह अपने होठों पर ले आई और अपने सुर्ख गुलाबी होठों को मेरे होठों पर रख दिया। हम दोनों ने अपनी आँखें बंद कर लीं और एक दूसरे के होठों का रसपान करने लगे। हमने अपनी पूरी तन्मयता से एक दूसरे को चूमना शुरू किया और सब कुछ भूल गए। 

मैंने अपनी जुबान धीरे से उसके होठों से होते हुए उसके मुँह के अन्दर डाल दी। चुम्बन का कोई तजुर्बा तो था नहीं पर ब्लू फिल्मों में कई बार इस तरह से चुदाई की शुरुआत करते हुए देखा था। अपने उन्ही अनुभवों को याद करके मैं आगे बढ़ने लगा। 

हमारे हाथ अब भी अपनी अपनी जगह पर थे, यानि मैं प्रिया की चूत को सहला रहा था और वो मेरे लंड को! स्क्रीन पर अब लंड की चुसाई चालू हो गई थी और लड़के तथा लड़की की मुँह से तेज़ आवाजें आने लगी थीं। उस आवाज़ को सुनकर हम दोनों का जोश और बढ़ गया और हम और भी उत्तेजना में आ गए। 

तभी एक ज़ोरदार चीख निकली स्क्रीन पर चल रही फिल्म से। हम दोनों का ध्यान उस आवाज़ पर गया और हम एक दूसरे को चूमना छोड़ कर स्क्रीन की तरफ देखने लगे। हमने देखा कि उस लड़के ने अपना मोटा सा लंड उस कमसिन सी लड़की के मुँह में पूरा का पूरा डाल दिया और उसका सर अपने हाथों से पकड़ लिया था जिसकी वजह से कुछ पलों के लिये उस बेचारी लड़की की साँस अटक गई थी।

प्रिया ने जब यह देखा तो उसकी आँखें फटी रह गईं उसने जोर से मेरा लंड दबा दिया। मेरे मुँह से चीख निकलते निकलते रह गई। 

अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मैं अपनी कुर्सी से उठ गया। मेरे उठने से प्रिया के हाथों से मेरा लंड छूट गया और मेरा हाथ भी उसकी चूत से हट गया। 

मैंने कुर्सी को अपने पैरों से पीछे धकेला और प्रिया के दोनों बाजुओं को पकड़ कर उठाया। प्रिया बिल्कुल किसी लता की तरह उठकर मुझसे लिपट गई। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया। प्रिया ने भी अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी।अब हम खड़े होकर एक दूसरे को अपनी बाहों में लेकर एक दूसरे के शरीर को मसलने लगे। 

प्रिया की अब सख्त हो चुकी कोमल चूचियाँ मेरे सीने में गड़ सी गईं और मुझे बहुत मज़ा आने लगा। मैं अपने सीने को और भी ज्यादा चिपका कर उसकी चूचियों को रगड़ने लगा और अपने होंठ मैंने उसकी गर्दन पर टिका दिए। 

मैंने कहानियों में पढ़ा था कि लड़कियों के गर्दन और गले पर चुम्बन करने से उनकी चूत और भी गीली हो जाती है और उन्हें बहुत मज़ा आता है। मैंने अपने होठों को उसकी गर्दन पर धीरे धीरे फिराना शुरू किया। प्रिया की साँसें और भी तेज़ हो गईं और वो मचलने सी लगी। मैंने तभी अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर ऊपर नीचे करना शुरू किया और मुझे अब यकीन हो गया की उसने सचमुच ब्रा नहीं पहनी थी। 

मैं यह महसूस कर जोश में आ गया और अपना हाथ आगे ले जाकर उसकी चूचियों को पकड़ लिया। जैसे ही मैंने उसकी चूचियों को दबाया उसने मेरे होठों पर अपने होठों से काट लिया। मैं मस्त होकर उसकी चूचियों का मर्दन करने लगा। क्या चूचियाँ थीं। जैसा मैं सोच रहा था उससे भी कहीं ज्यादा मस्त और अमरुद की तरह कड़ी। मैं धीरे से अपना एक हाथ नीचे करके उसके टॉप को ऊपर उठाने लगा। प्रिया को एहसास हुआ तो उसने अपने हाथ मेरे उस हाथ पर रख दिया जैसे वो नहीं चाहती हो कि मैं उसको नंगी करूँ। 

"रोको मत प्रिया, मैं पागल हो रहा हूँ...प्लीज मुझे देखने दो। मैं अब बर्दाश्त नहीं कर सकता!" मैंने उसको चूमते हुए कहा और अपने हाथों को ऊपर सरकाने लगा। प्रिया ने अपना हाथ हटा लिया और वापस मेरे होठों को चूमने लगी।

मैंने उसकी एक चूची को बाहर निकाल लिया, कंप्यूटर की हल्की रोशनी में उसकी दुधिया चूची और उस पर किशमिश के दाने के जैसी निप्पल को देखते ही मैं बेचैन हो गया। मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर लाइट जला दी। कमरे में पूरी रोशनी फ़ैल गई...प्रिया ने झट से मुझे खुद से अलग कर लिया और अपने टॉप को नीचे कर लिया। 


"प्लीज सोनू, लाइट बंद कर दो ...मुझे शर्म आएगी...प्लीज बंद कर दो!" प्रिया जोर जोर से सांस लेते हुए मुझसे कहने लगी। 

"नहीं मेरी जान, प्लीज ऐसा मत करो...मुझे तुम्हारी पूरी खूबसूरती देखनी है...मैं तुम्हारे जवान जिस्म को जी भर के देखना चाहता हूँ।" मैंने प्रिया को वापस अपनी तरफ खींचते हुए कहा। 

प्रिया मेरी बाहों में फिर से समा गई। तभी उसकी नज़र सामने दरवाज़े पर गई...दरवाज़ा पूरा खुला हुआ था। कोई भी हमें उस हालत में देख सकता था। प्रिया ने मुझे धक्का दिया और मैं अलग हो गया। मैं समझ नहीं पाया कि क्या हुआ और उसकी तरफ देखने लगा। उसने दरवाज़े की तरफ इशारा किया तो मुझे होश आया कि मैं कितना बेवक़ूफ़ हूँ जो हर वक़्त दरवाज़ा खुला ही छोड़ देता हूँ। 

मैं भाग कर गया और दरवाज़ा बंद करके आया। 

अब तक हमें काफी देर हो चुकी थी और घड़ी में साढ़े ग्यारह बज चुके थे। मेरे मन में एक डर आया कि कहीं स्मिता आंटी प्रिया को बुलाने न चली आयें। लेकिन उस वक़्त मुझे प्रिया की चूचियों और चूत के अलावा कुछ और नहीं सूझ रहा था। मैंने मन में सोचा कि भाड़ में गया सब कुछ, फिलहाल इन हसीन पलों का लुत्फ़ उठाया जाये। 

मैं भागकर वापस प्रिया की तरफ लपका और उसको अपनी बाहों में भर कर चूम लिया। मैंने उसे दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और उसकी आँखों में देखते हुए उसके टॉप को अपने दोनों हाथों से ऊपर करने लगा। जैसे जैसे उसका टॉप ऊपर हो रहा था उसके बदन की चिकनाहट मेरे आँखों के सामने चमकने लगी थी।

उसने अपना स्कर्ट अपनी नाभि से बहुत नीचे पहन रखा था इसलिए उसकी गोल हसीन नाभि दिखाई दे रही थी। मैंने उसका टॉप अब उसकी चूचियों से ऊपर तक उठा दिया और उसे पूरा उतारने लगा। 

"पूरा मत उतारो... कोई आ जायेगा तो मुश्किल हो जाएगी।" प्रिया ने मुझे रोकते हुए कहा।

दोस्तो मर्द सेक्स के वक्त अपना सारा होश खो बैठता है पर औरतों का होश फिर भी कायम रहता है।

मैंने भी प्रिया की बात को ठीक समझा और उसके टॉप को चूचियों के ऊपर तक रहने दिया। मैंने उसको देखकर एक कातिल मुस्कान दी और अपनी नज़रें उसकी चूचियों पर लगा दी। 

"हम्म्म्म...क्या मस्त हैं!"...मेरे मुँह से बस इतना ही निकल पाया और मैं आँखें फाड़ फाड़ कर उसकी चूचियों का दर्शन करने लगा। 

"देख लो जी भर के...तुम्हारे लिए ही इन्हें आज ब्रा में कैद नहीं किया है।” ...प्रिया ने एक मादक अदा के साथ अपनी दोनों चूचियों को अपने हाथों से उठा कर मुझे दिखाते हुए कहा। 

मैं उसकी हरकतों से हैरान था। मैं अब तक उसे नादान ही समझता था। लेकिन अब पता चल रहा था कि वो पूरी तैयार माल है और उसे लड़कों को पागल बनाना आता है।

उसकी चूचियाँ मेरे दबाने की वजह से लाल हो गईं थीं और उसके निप्पल एकदम तन से गए थे। मेरी जुबान अपने आप बाहर आ गई और मैंने अपनी जुबान उसकी निप्पल पर रख दिया। उसके निप्पल का स्वाद अजीब सा था, जैसा भी था मुझे मदहोश कर रहा था। मैंने अपनी जुबान बारी बारी से उसके दोनों निप्पल पर फिराई और फिर उसे अपने होठों के बीच ले लिया और किसी चॉकलेट की तरह चूसने लगा। 

प्रिया को इतना मज़ा आ रहा था कि बस पूछो मत। उसकी सिसकारियाँ तेज़ होती जा रही थीं और वो मेरा सर अपने हाथों से पकड़ कर मेरे बालों में अपनी उंगलियाँ फिराने लगी। मैं अपने पूरे जोश में भर कर उसकी एक चूची को अपने हाथों से मसलने लगा और एक हाथ नीचे ले गया। मैंने सोचा की उसे दोहरा मज़ा देते हैं जैसा मैं कई ब्लू फिल्मों में देख चुका था। 

मैंने अपनी एक हथेली से उसकी चूत को स्कर्ट के अन्दर से ही सहलाना शुरू किया। उसने मज़े में अपनी टाँगें थोड़ी चौड़ी कर लीं ताकि मैं अच्छे से उसकी चूत को सहला सकूँ। अब मेरे दोनों हाथों में मज़े ही मज़े थे। एक हाथ उसकी चूचियों को सहला रहा था तो दूसरा उसकी योनि के गीलेपन को महसूस कर रहा था। और मुँह में तो उसका चुचूक था ही। कुल मिलाकर मैं अपने होश खोकर पूरा मज़ा ले रहा था। अब मैंने उसकी दूसरी चूची को अपने मुँह में लिया और चूसने लगा। पहले वाली चूची को अब हाथों से मसल रहा था। उसकी चूचियाँ अब अपना रंग बदल रही थीं। मतलब और भी ज्यादा लाल हो गई थीं। मैंने इतनी जोर जोर से चूसा था कि प्रिया अब दर्द से कराहने लगी थी। 

मैंने अब अपना ध्यान पूरी तरह से उसकी चूत पर लगाया और अपने दोनों हाथों से उसकी स्कर्ट को ऊपर उठाया। कमरे की दूधिया रोशनी ने उसकी चूत को और भी हसीन बना दिया था। चूस चूस कर चूचियों का जो रस मैंने पीया था वो सब उसकी चूत देखकर सूख गया। मैंने अपने होठों पर अपनी जुबान फिराई और अपने होठों को उसकी चूत के दाने के ऊपर रख दिया। 

"आऊऊऊऊ...हम्मम्मम्म...सोनू...ये क्या कर रहे हो, मैं मर जाऊँगी...प्लीज ऐसा मत करो...ह्म्म्मम्म..." प्रिया की हालत एक बिन पानी की मछली की तरह हो गई और उसके पाँव कांपने लगे। उसने अपना हाथ मेरे सर पर रखा और मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया मानो वो मुझे पूरा अन्दर घुसा लेना चाहती हो। 

जिन लड़कियों या औरतों ने अपनी चूत पहली बार चटवाई होगी उन्हें पता होगा वो एहसास। 

खैर, मैंने अपनी जुबान निकाल कर ऊपर से नीचे तक उसकी चूत को चाटना शुरू किया। उसकी चूत की दरार बंद थी, मतलब वो अब तक चुदी नहीं थी...या फिर चुद भी गई होगी...क्यूंकि उसकी हरकतें और अदाएं उस पर शक करने के लिए काफी थी।

मैंने उसका स्कर्ट छोड़ कर उसके चूत को अपनी दो उँगलियों से फैला दिया और अन्दर के गुलाबी भाग को अपनी जुबान से चाटने लगा... 

प्रिया ने अपना स्कर्ट अब अपने हाथों से ऊपर कर दिया और सिसकारियाँ लेकर मज़े लेने लगी। 

"हाँ...बस ऐसे ही सोनू... ह्म्म तुमने मुझे पागल कर दिया है...हाँ...ऐसे ही चाटो...उफफ्फ्फ्फ़...और अन्दर तक चाटो...घुस जाओ पूरा मेरी चूत में...ह्म्म्म मेरे मालिक...आज मुझे ज़न्नत दिखा दो..." 

प्रिया के मुँह से अचानक 'चूत' शब्द सुनकर मैं सन्न रह गया। मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि वो इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करेगी या वो जानती भी होगी...कसम से दोस्तों, ये लड़कियाँ सब जानती हैं...जरुरत है तो बस एक बार उन्हें छेड़ देने की! फिर देखो... 

"ओह्ह्ह्हह...मां...मुझे कुछ हो रहा है सोनू...प्लीज कुछ करो...मैं मर जाऊँगी।" प्रिया ने मेरे बाल जोर से खींचते हुए मेरा मुँह अपनी योनि से हटा दिया और मेरी आँखों में देखने लगी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कोई भूखी शेरनी हो। 

मैंने उसका हाथ पकड़ा और वापस अपना मुँह उसकी चूत से लगा दिया और उसकी चूत की खुशबू लेते हुए अपना काम चालू कर दिया। उसकी आवाजें बढ़ने लगी थीं... मुझे डर लगने लगा कि कहीं कोई सुन न ले। लेकिन मैं रुका नहीं और चूत की चुसाई जारी रखी। 

"ह्म्म...ह्म्म... ह्ह्मम्म्म्म...और और और चाटो ...हाँ......" प्रिया की आवाज़ तेज़ हो गई और उसके पाँव और ज्यादा कांपने लगे। उसने अपना हाथ मेरे हाथों से छुड़ा कर मेरा सर पकड़ लिया और जोर जोर से अपनी चूत पर रगड़ने लगी...

"आआअह्ह ह्ह...हम्मम्मम्म...बस सोनू...अब बस..." इतना कहते कहते उसने अपनी चूत से ढेर सारा पानी मेरे मुँह में छोड़ दिया। 

मैंने उसका हाथ पकड़ा और वापस अपना मुँह उसकी चूत से लगा दिया और उसकी चूत की खुशबू लेते हुए अपना काम चालू कर दिया। उसकी आवाजें बढ़ने लगी थीं... मुझे डर लगने लगा कि कहीं कोई सुन न ले। लेकिन मैं रुका नहीं और चूत की चुसाई जारी रखी। 

"ह्म्म...ह्म्म... ह्ह्मम्म्म्म...और और और...हाँ...चाटो..." प्रिया की आवाज़ तेज़ हो गई और उसके पाँव और ज्यादा कांपने लगे। उसने अपना हाथ मेरे हाथों से छुड़ा कर मेरा सर पकड़ लिया और जोर जोर से अपनी चूत पर रगड़ने लगी...

"आआअह्ह ह्ह...हम्मम्मम्म...बस सोनू...अब बस..." इतना कहते कहते उसने अपनी चूत से ढेर सारा पानी मेरे मुँह में छोड़ दिया। 

जिंदगी में पहली बार किसी चूत का स्वाद चखा मैंने, थोड़ा नमकीन, थोड़ा खट्टा...एक मस्त सा स्वाद था...मैंने एक एक बूँद अपनी जुबान से चाट कर पी लिया। लेकिन मैंने अब भी उसकी चूत को चाटना छोड़ा नहीं था। प्रिया ने मेरा मुँह हटा कर अपने हाथों से अपनी चूत को ढक लिया और अचानक से नीचे बैठ गई। 

उसके माथे पर पसीने की बूँदें साफ झलक रही थीं... उसने मेरी तरफ और मेरे होठों पर लगे अपनी चूत के कामरस को देखा और शर्म से अपनी आँखें नीचे कर लीं। मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उसके गालों पर पप्पी करने लगा। वो अब भी जोर जोर से साँसे लेते हुए मुझे अपनी तरफ खींच रही थी। मैं अचानक उसे बैठा हुआ छोड़ कर खड़ा हो गया। मेरे खड़े होते ही मेरा विकराल लंड जिसने कि मेरे पैंट में तम्बू बना रखा था, उसके सामने ठीक उसके मुँह के पास आ गया।
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#17
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
प्रिया ने देरी न करते हुए उसे पैंट के ऊपर से ही पकड़ लिया और दबाने लगी। उसने एक बार अपनी नज़र उठा कर ऊपर देखा और मेरी आँखों में देखकर एक मुस्कान दी। उसकी वो मुस्कान मैं आज तक नहीं भूला। उसने मेरा लंड छोड़ कर अपने हाथों से मेरा शॉर्ट्स नीचे खींच दिया। लंड पूरा अकड़ा हुआ था इसलिए उसकी इलास्टिक लंड पर अटक गई और नीचे नहीं आ पाई। प्रिया ने शॉर्ट्स के ऊपर से हाथ डाल कर मेरे लंड को पकड़ा और फिर धीरे से उसे आजाद कर दिया।

"ऊफ्फ...!" प्रिया के मुँह से फिर से वैसे ही आवाज़ बाहर आई जैसे उसने दोपहर में मेरा लंड देखकर कहा था। 

मेरा लंड लोहे की तरह कड़क हो चुका था और उसकी नसें साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थीं...प्रिया ने उसे अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और गौर से देखने लगी। लंड का सुपारा अपनी चमड़ी के अन्दर बंद था लेकिन आधा खुला हुआ था और उसके छेद पर कामरस की कुछ बूँदें उभर आईं थी। प्रिया गौर से उस रस को देख रही थी। 

मेरा जी कर रहा था कि पूरा लंड उसके मुँह में उतार दूँ, लेकिन मैं कोई जबरदस्ती या जल्दबाजी नहीं करना चाहता था वरना हाथ में आई हुई चिड़िया उड़ सकती थी। 

तभी मेरी कल्पना के परे प्रिया ने अपने होठों से मेरे लंड के सुपारे पर आई बूँद को चूम लिया और दनादन उस पर पप्पियाँ देने लगी। उसकी इस अदा से मैं इतने जोश में आ गया कि मेरे लंड ने कामरस की दो तीन और बूँदें और बाहर निकाल दी जिसे उसने प्यार से फिर से चाट लिया। 

प्रिया ने अपनी जीभ बाहर निकली और मेरे लंड के ठीक छेद पर रख दिया... 

"ओह्ह्ह्हह...प्रिया!" 

मेरे मुँह से बस इतना ही निकल सका और मैंने अपना एक हाथ उसके सर पर रख दिया। प्रिया ने अपनी जुबान से मेरे लंड की लम्बाई नापनी शुरू कर दी। कसम से कहता हूँ दोस्तो, जो हरकतें वो कर रही थी वो बस एक खेली खाई लड़की या औरत ही कर सकती थी। मैं उसकी इस अदा पर हैरान था। उसने धीरे धीरे मेरा लंड अपने होठों पर रगड़ना शुरू किया और कभी कभी अपना मुँह खोलकर अन्दर लेने की कोशिश भी करने लगी। लंड का आकार बड़ा था इसलिए उसे थोड़ी परेशानी हो रही थी लेकिन उसने अपना काम जरी रखा और चाटते सहलाते हुए लंड थोड़ा सा अपने मुँह के अन्दर डाल लिया। मेरा सुपारा अब उसके मुँह में था और वो हल्की हल्की ह्म्म की आवाज़ के साथ आगे पीछे करने लगी। 

मैं जितना हो सके बर्दाश्त करते हुए अपना लंड चुसवा रहा था और यह कोशिश कर रहा था कि वो मेरा पूरा लंड अपने मुँह में भर ले। मैंने इसी कोशिश में अपने लंड को एक झटका दिया और मेरा आधा लंड अन्दर चला गया। 

"गूं...गूं...हम्म्म्म..." ऐसा कहकर उसने लंड चूसना छोड़ कर मेरी तरफ देखा और झटके से लंड को बाहर निकाल दिया... उसकी आँखें बड़ी बड़ी हो गईं थीं...। 

"जान ही निकाल दोगे क्या...एक तो इतना बड़ा लंड पाल रखा है और ..." उसने बड़ी अदा के साथ लंड को हिलाते हुए मुझसे कहा। 

"नहीं मेरी रानी, तुम तो मेरी जान हो, मैं तुम्हारी जान कैसे ले सकता हूँ। प्लीज थोड़ा और चूसो ना..." इतना कहते हुए मैंने अपना लंड उसके मुँह के पास किया।

“घबराओ मत, इसे तो आज मैं चूस चूस कर खा ही जाऊँगी। बहुत दिन से तड़प रही थी तुम्हारा लंड खाने के लिए...लेकिन तुम तो बुद्धू हो, इशारा ही नहीं समझते और अपने हाथों से ही इस बेचारे को मरोड़ते रहते हो। आज के बाद तुम इसे हाथ भी मत लगाना, जब भी यह खड़ा हो तो मुझे बता देना मैं इसे चूस चूस कर शांत कर दूँगी...!" प्रिया ने यह कहते हुए अपने होठों को गोल कर एक हवाई पप्पी दी। 

मैं उसकी बातें सुन कर हैरान हो रहा था, पता नहीं वो कब से यह करना चाहती थी और मैं बेवक़ूफ़ ब्लू फ़िल्में और कहानियाँ पढ़ पढ़ कर मुठ मार रहा था। मुझे अब समझ आ रहा था कि हम जब भी एक दूसरे को देखते तो उसका मेरी तरफ हाथ हिलाकर हाय कहने का असली मकसद क्या था। मैं उसकी इस आदत को बहुत साधारण तरीके से लेता रहा था लेकिन अब जा कर पता चला कि उसकी ये हाय...कुछ और ही इशारा किया करती थी...मैंने उससे अब खुलकर बात करने की सोची और झुक कर उसके होठों को चूम लिया और हँसते हुये पूछा “तो तुम्हारी नीयत मुझ पर शुरू से खराब थी?” और उसने अपने दाहिने हाथ के अंगुठे और तर्जनी के बीच मेरी नाक को हल्के से पकड़ कर हिलाते हुये अपने हमेशा के सदाबहार शरारती अंदाज में जवाब दिया “लेकिन ऐसे भोले-भाले बुद्धू बँलमा से पाला पड़ा था जो लड़कियों के इशारे ही नहीं समझता था और जिसनें अपनी बात समझवानें के लिये मुझ जैसी सीधी साधी लड़की से कैसे कैसे पापड़ बेलवा डाले”

मैनें उससे फिर पूछा “तो तुम मुझे भैया क्यों बुलाती थी?” इस बार उसकी नाक पकड़ कर हिलाने की बारी मेरी थी। 

उसने कोई जवाब देनें की बजाय शरमाते हुये मुझसे ही सवाल कर लिया “तो और क्या बुलाती?”

मैनें उससे फिर पूछा “तो अब क्या बुलाओगी?” उसने नीची नजरों और सुर्ख गालों से कहा “पता नहीं” और जब इस बार फिर से मैनें उसकी नाक को पहले से कहीं अधिक जोर से पकड़ कर दबाया और कहा “अच्छा जी! तो अब पता नहीं?” तो उसकी चींख निकल गई और फिर उसने अपने चिर परिचित शरारती अंदाज में जवाब दिया “एजी ओजी लोजी सुनोजी” और मैनें तपाक से उसमे जोड़ दिया “और मेरे सईयाँ मनमौजी” और हम दोनों एक साथ जोर से हँस पड़े।

"मेरी जान, मेरी प्रिया रानी अगर पहले बता दिया होता तो मैं इतना परेशान नहीं होता ना और अब तक तो तुम्हारी चूत का कचुमर बना दिया होता।" मैंने उसका सर सहलाते हुए कहा। 

मेरे ऐसा बोलने से प्रिया ने एक जोर की सांस ली और मुझे देखकर मुस्कुराते हुए मेरे लंड पर पप्पी करी और कहने लगी,"कोई बात नहीं अब तो मैं तुम्हारी हूँ...जब जी करे इसमे डाल लिया करना " 

और फिर उसने बड़े ही मासूमियत से कहा “लेकिन मुझे डर लग रहा है, तुम्हारा यह मोटा लम्बा लंड मेरी छोटी सी मुनिया को फाड़ ही डालेगा...कैसे झेल पाऊँगी इसको...?" 

"अरे मेरी जान, तू एक बार इसे चूस चूस कर चिकना तो कर फिर देखना तेरी चूत कैसे इसे निगल जाती है।" मैंने अपना लंड उसके मुँह में फ़िर से ठूंस दिया और धक्के मारने लगा।

वो किसी अनुभवी रंडी की तरह मज़े से मेरा लंड चूसने लगी और साथ साथ मेरे गोलों से भी खेलने लगी। उसने मेरे गोलों को दबाना शुरू किया और धीरे धीरे मेरा पूरा लंड अपने गले तक उतार लिया। 

लंड चुसवाने में कितना मज़ा है, यह बस वो जानते हैं जिनका लंड कभी किसी ने प्यार से चूसा हो। प्रिया पूरी तन्मयता से मेरा लंड चूस रही थी और मैं अपनी आँखें बंद करके मज़े ले रहा था। मैंने अपने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी और बिल्कुल चूत की तरह उसका मुँह चोदने लगा। मैं अब अपने चरम सीमा पर था। काफी देर से उसकी चूचियों और चूत का मज़ा लेते लेते मेरा लंड अपना रस बाहर निकालने के लिए तड़प रहा था।

"हाँ मेरी जान...हाँ...ऊह्ह ...हह्मम्म...और चूसो...और चूसो...मैं आ रहा हूँ...हम्म्म्म." मैंने उसका सर अपने लंड पर दबाते हुए कहा। जैसे ही प्रिया ने यह सुना कि मैं झड़नें वाला हूँ तो उसने लंड अपने मुँह से निकाल लिया। मैं अचानक से हुई इस अनहोनी से तड़प उठा। मैं उसके मुँह में ही झाड़ना चाहता था, पर शायद उसे यह पसंद नहीं था तो उसने अपने दोनों हाथों से मेरा लंड जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया और मेरे लंड को चूमने लगी। 

"आःह्ह्ह...ह्म्म्मम्म...आःह्ह्ह..." और मैंने ढेर सारा लावा एक जोरदार पिचकारी के साथ उसके पूरे मुँह पर छोड़ दिया... 

प्रिया ने अपनी आँखें बंद कर लीं और तब तक लंड हिलाती रही जब तक उसमें से एक एक बूँद बाहर नहीं आ गई। मैं पूरी तरह से निढाल हो गया और धम्म से पीठ के बल बिस्तर पर गिर पड़ा। मेरी आँखें उस चरम आनन्द की वजह से बंद हो गई थीं और मेरा लंड अपना सर उठाये छत को निहार रहा था और थोड़ा थोड़ा ठुनक रहा था जैसे लावा निकलने के बाद होता है। 

प्रिया अब भी वहीं बैठी मेरे लंड रस का मज़ा ले रही थी। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोल कर देखा तो पाया कि उसने अपने हाथों में चेहरे पर लगे रस को लेकर अपनी चूचियों पर मलना शुरू कर दिया है।

हे भगवन, यह लड़की तो सच में पूरी रंडी है...मैंने सोचते हुए फिर से अपनी नज़रें फेर लीं और अपनी गर्दन घुमा ली। प्रिया वहाँ से उठी और उसी हालत में सीधे बाथरूम में चली गई।

मैंने भी उठकर अपन लंड अपने पैंट में डाला और घडी की तरफ देखा तो साढ़े बारह बज चुके थे। मेरे मन में यह ख्याल आने लगा कि अभी तक स्मिता आंटी ने प्रिया को आवाज़ क्यूँ नहीं लगाईं। शायद वो सो गई होंगी। लेकिन मेरा सोचना गलत था यारों... 

मैंने अपनी खिड़की के परदे के पीछे कुछ हलचल महसूस करी। जैसे कोई चुप कर अन्दर का सारा हाल देख रहा हो। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी। हम दोनों अपने चूमा चाटी के खेल में इतने खोये हुए थे कि हमें पता ही नहीं चला कि हमने खिड़की तो बंद ही नहीं की थी। 

मैं डर कर सहम गया कि पता नहीं कौन हो सकता है। घर पर सब लोग हैं। नेहा दीदी और रिंकी नीचे वाले कमरे में सोई हुई थी...कहीं उनमें से किसी ने तो नहीं देख लिया...या फिर स्मिता आंटी!! 

मैं इस सोच में था कि तभी प्रिया बाथरूम से बाहर आई और आकर धड़ाम से बिस्तर पर गिर गई। उसने अपने कपड़े ठीक कर लिए थे और मुँह धो लिया था। मैंने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर दरवाज़े की तरफ बढ़ा।

जैसे ही मैंने दरवाज़े की कुण्डी खोलनी चाही तो कुण्डी की आवाज़ सुनकर किसी के तेज़ क़दमों की आहट सुनाई दी, मानो कोई भाग रहा हो। और फिर आई एक आवाज़ जिसे सुनकर मैं चौंक पड़ा। 

पायल की झंकार थी उस क़दमों की आहट में और सीढ़ियों पर तेजी से भागने की आवाज़। अब मेरा शक यकीन में बदल गया, वो और कोई नहीं स्मिता आंटी ही थीं। मेरा सारा जोश एक ही बार में पूरा ठंडा हो गया। अब तो मेरी खैर नहीं...

मैंने प्रिया का हाथ पकड़कर उठाया और उसे अपनी बाँहों में लेकर एक पप्पी दी और कहा,"अब तुम्हें जाना चाहिए, बहुत रात हो गई है कहीं आंटी न आ जाएँ।" 

प्रिया ने भी मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए और चूमते हुए कहा,"ठीक है मेरे स्वामी, अब मैं जाती हूँ। लेकिन हम अपना अधूरा काम कल पूरा करेंगे और उसने अपने नाजुक होठों से मेरे गालो को चूम लिया।" फिर उसने अपनी किताबें और नोट्स उठा लीं और जाने लगी। जाते जाते वो मुड़ कर मेरे पास वापस आई और बिना कुछ बोले झुक कर मेरे लंड पर पैंट के ऊपर से एक पप्पी ली और हंसते हुए भाग गई।
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03-29-2019, 11:24 AM,
#18
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उसकी इस हरकत पर मैं हस पड़ा और अपन दरवाज़ा बंद कर लिया। इस जोश भरे खेल के बाद मैं थक चुका था और आंटी के देखने वाली बात से थोड़ा डर भी गया था। 

मैंने लाइट बंद की और कंप्यूटर भी बंद करके अपने बिस्तर पर गिर पड़ा। डर की वजह से नींद तो आ नहीं रही थी लेकिन फिर भी मैंने अपनी आँखें बंद की और सुबह होने वाले ड्रामे के बारे में सोचते सोचते सो गया...।

मेरी प्रातः पूजा और मेरे मन का चोर

सुबह जल्दी ही मेरी आँख खुल गई। बहुत फ्रेश फील कर रहा था मैं। शायद कल रात के हुए उस हसीन खेल का असर था जिसका अनुभव अपने जीवन में, भले अभी अधूरा ही सही पर इतना भी मैंने पहली बार किया था। बिस्तर पे लेटे-लेटे ही मेरी आँखों के सामने वो हर एक पल नज़र आने लगा। मैं मुस्कुरा उठा और फिर अपने बाथरूम की तरफ चल पड़ा। 

घर में सब कुछ सामान्य था। सब लोग अपने अपने काम में लगे हुए थे। मैं नहा धोकर अपने रूटीन के अनुसार छत पर पूजा करने और सूरज देवता को जल अर्पित करने गया। यह मेरा रोज़ का काम था। छत पर स्मिता आंटी कपड़े डालने आई हुईं थीं। उन्हें देखते ही मेरी साँसे रूक गई और मुझे वो दृश्य याद आ गया जब मेरे और प्रिया के खेल को किसी ने मेरे कमरे की सीढ़ियों वाली खिड़की से देखा था। 

मुझे पूरी पूरी आशंका इसी बात की थी कि वो आंटी ही थीं क्यूंकि मुझे पायल की आवाज़ सुनाई दी थी और सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने की आवाज़ भी आई थी। 

मेरे अन्दर का डर जो अब तक कहीं गुम था अचानक से सामने आ गया और मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा, मुझे लगा कि अब तो मैं गया और आंटी मेरी अच्छी खबर लेंगी। 

मैं डरते डरते आगे बढ़ा और अपने हाथ के लोटे से सूरज को जल अर्पित करने लगा, यकीन मानिए कि मेरे हाथ इतने काँप रहे थे कि मेरे लोटे से जल गिर ही नहीं रहा था। जैसे तैसे मैंने पूजा पूरी की और वापस मुड़ कर जाने लगा। तब तक आंटी ने सारे कपड़े सूखने के लिए डाल दिए थे। 

कपड़े धोने और सुखाने के क्रम में स्मिता आंटी की साड़ी नीचे से थोड़ी गीली हो गई थी जिसे उन्होंने अपने हाथों से निचोड़ने के लिए हल्का सा ऊपर उठाया और अपने हाथों में लेकर निचोड़ने लगी। मेरा ध्यान सीधे उनके पैरों पर गया। और यह क्या? 

मैं तो जैसे स्तब्ध रह गया। स्मिता आंटी के पैर तो बिल्कुल खाली पड़े थे। मतलब उनके पैरों में तो पायल थी ही नहीं। मैं चौंक कर एकटक उनकी तरफ देखने लगा। मेरा दिमाग जल्दी जल्दी न जाने क्या क्या कयास लगाने लगा। मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। तभी आंटी ने मेरी ओर देख कर एक हल्की सी स्माइल दी जैसा कि वो हमेशा करती थीं और अपनी साड़ी ठीक करके नीचे उतर गईं। मैं उसी अवस्था में छत की रेलिंग पर बैठ गया और सोचने लगा कि अगर रात को आंटी नहीं थीं तो और कौन हो सकता है? वो भी पायल पहने हुए! 

मैं चाह कर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था। हार कर मैं नीचे उतर गया और अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर के लिए टेबल पे बैठकर अनमने ढंग से कंप्यूटर ऑन करके सोच में पड़ गया। 

एक तरफ मैं खुश था कि चलो आंटी से बच गया पर फिर सवाल था कि आखिर वो कौन हो सकती थी। तभी नेहा दीदी ने मुझे आवाज़ लगाई और सुबह के नाश्ते के लिए ऊपर चलने को कहा। मैंने अपना कंप्यूटर बंद किया और उनके साथ ऊपर चला गया। आंटी किचन में थीं और रिंकी उनके साथ उनकी मदद में लगी हुई थी। मैं और नेहा दीदी खाने की मेज पर बैठ गए। मेरी नज़रें प्रिया को ढूंढ रही थीं। पता चला कि वो बाथरूम में है और नहा रही है। 

मैं वापस अपनी उलझन में खो गया और उसी बात के बारे में सोचने लगा। अचानक से मेरे कानों में वही आवाज़ पड़ी... वही पायल की आवाज़ जो कल रात सुनी थी। मैंने हड़बड़ा कर अपना ध्यान उस आवाज़ की तरफ लगाया और मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। रिंकी अपने हाथों में नाश्ते का प्लेट लेकर हमारी तरफ आ रही थी और उसके कदमों की हर आहट के साथ उसी पायल की आवाज़ आ रही थी। मेरी नज़र सीधे उसके पैरों की तरफ चली गई और मेरी आँखों के सामने उसके पैरों में बल खाते पायल नज़र आने लगे । 

थोड़ी देर के लिए तो मैं बिल्कुल जम सा गया...तो वो आंटी नहीं रिंकी थी जिसने कल हमारा खेल देखा था। 

हे भगवन...यह क्या खेल खेल रहा था ऊपर वाला मेरे साथ...!!! रिंकी की आँखें मेरी आँखों में ही थीं और उसकी आँखों में एक चमक थी और कुछ चुहलपन भी था। कुछ न कहते हुए भी उसकी आँखों ने मुझसे सब कुछ कह दिया था। मैंने अपनी नज़रे घुमा लीं और सहसा मेरे अधरों पे एक मुस्कान उभर आई। मैंने फिर से अपनी नज़र उठाई तो पाया कि रिंकी नेहा दीदी के बगल में बैठ कर मुझे देखकर मुस्कुराये जा रही थी।
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03-29-2019, 11:24 AM,
#19
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मेरी उलझन की सुलझन और प्रिया की कॉलेज रवानगी

मैंने राहत भरी सांस ली, मेरी उलझन दूर हो गई थी। मैं इस बात से खुश था कि मुझे डरने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि अब रिंकी और मैं दोनों एक दूसरे का राज़ जान गए थे।

तभी प्रिया अपने कमरे से नहाकर बाहर आई और दरवाज़े के पास से ही मुझे आँख मार दी। आज उसके चेहरे पे एक अलग ही ख़ुशी झलक रही थी और आँखे चमक रही थीं। उसके बाल गीले थे और उनसे पानी की बूँदें टपक टपक कर उसके टॉप को भिगो रही थी। 

क़यामत लग रही थी वो लाल रंग के टॉप और काले रंग की शलवार में! दिल में आया कि अभी जाकर उसको अपनी बाहों में ले लूँ और उसके होंठों को चूम लूँ। पर मैंने अपने जज्बातों पे काबू किया और चुपचाप उसे एक प्यारी सी स्माइल देकर नाश्ता करने लगा। अब तक सारे जने खाने की मेज पे आ गए थे और हम सब एक दूसरे से बातें करते हुए अपना अपना नाश्ता ख़त्म करने लगे। नाश्ते के बीच में हम सबने अपन अपना प्रोग्राम शेयर किया। 

नेहा दीदी और आंटी अपने पहले से बनाये हुए प्लान के अनुसार थोड़ी देर में बाज़ार जा रही थीं, प्रिया अपने कॉलेज और रिंकी ने कहा कि वो अपनी सहेली के घर जाएगी कुछ काम से और थोड़ी देर में वापस आ जाएगी। मैंने यह बताया कि राजेश अभी थोड़ी देर में आएगा और हम दोनों को यूनिवर्सिटी की तरफ जाना है कुछ किताबें खरीदने के लिए। हम सब अपने अपने प्रोग्राम की तैयारी में लग गए। नेहा दीदी और आंटी सबसे पहले तैयार होकर बाज़ार के लिए निकलने लगीं। उनके जाने के बाद प्रिया नीचे उतर आई और मेरे कमरे में आकर मुझसे पीछे से लिपट गई। मैं अचानक से इस तरह से लिपटने से चौंक पड़ा पर जब प्रिया ने पीछे से मेरे गालों को चूमा तो मैं खुश हो गया और उसे अपनी तरफ मोड़ कर उसको जोर से अपनी बाहों में भर लिया। 

उसने वही लाल टॉप पहना हुआ था, लेकिन नीचे शलवार की जगह डेनिम की एक स्कर्ट पहन ली थी। बालों को खुला छोड़ रखा था और होंठों पे सुर्ख लाल लिपस्टिक लगा ली थी। चेहरे पे हल्का सा मेकअप।

कुल मिलकर पूरी कामदेवी लग रही थी। चूचियों को ब्रा में कैद किया था उसने जिसकी वजह से उसकी चूचियाँ हिमालय की तरह खड़ी हो गईं थीं। जब उसे मैंने अपने सीने से लगाया तो उसकी प्यारी चूचियों ने मेरे सीने को प्यार भरा चुम्बन दिया और मुझे अन्दर तक सिहरन से भर दिया। 

मैंने अपने हाथ बढ़ा कर उसकी चूचियों पे रखा और प्यार से सहला दिया। उसने मस्ती में आकर अपनी आँखें बंद कर लीं और लम्बी लम्बी साँसें भरने लगी। 

मेरे दिमाग में यह ख्याल था कि उसे कॉलेज जाना है इसलिए मैंने उसकी चूचियों को दबाया नहीं वरना उसके टॉप पे निशान पड़ जाते और उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ती। इस बात का एहसास उसे भी था और मेरी इस बात पे उसे प्यार आ गया और उसने एक बार फिर से अपने होंठों को मेरे होंठों पे रख दिया और लम्बा सा चुम्बन देकर मुझसे विदा लेकर निकल गई। 

मैं उसे बाहर तक जाते हुए देखता रहा और हाथ हिलाकर उसे टाटा किया। मेरा मन बहुत खुश था, मैं अपनी किस्मत पे फख्र महसूस कर रहा था कि प्रिया जैसी चंचल और शोख हसीना मेरी बाहों में आ चुकी थी और वो मेरी छोटी छोटी बातों से मुझसे बहुत प्रभावित रहती थी।

प्रिया के जाने के बाद मैं अपने कमरे में बैठ कर अपने दोस्त राजेश का इंतज़ार करने लगा। मैं जानता था कि आज तो वो दुनिया की हर दीवार तोड़ कर जल्दी से जल्दी मेरे घर पहुँचेगा और अपनी अधूरी प्यास पूरी करेगा। 

मैं मन ही मन कभी प्रिया कभी रिंकी के बारे में सोच सोच कर मुस्कुरा रहा था और कंप्यूटर पे अपनी मनपसंद साइट्स चेक कर रहा था। अभी थोड़ी देर ही बीता था कि मेरे मोबाइल पे राजेश की कॉल आई। मैंने उठाकर हेलो किया तो दूसरी तरफ से राजेश बोला। 

"सोनू, मेरे भाई...एक हादसा हो गया है।"...राजेश ने हड़बड़ाते हुए कहा। 

"क्या हुआ राजेश?"...मैंने भी हड़बड़ा कर पूछा। 

"यार, मेरे मामा जी का एक्सीडेंट हो गया है और मुझे अभी तुरंत अपने मम्मी पापा के साथ आजमगढ़ जाना पड़ेगा। मैं आज नहीं आ सकूँगा। तू अकेले ही किताबें लेने चले जाना।" राजेश ने एक सांस में ही सब कुछ कह दिया। 

उसकी आवाज़ में मुझे एक दर्द और चिंता का आभास हुआ। मैंने उसे हिम्मत देते हुए कहा,"कोई बात नहीं मेरे दोस्त, तू घबरा मत, मामा जी को कुछ नहीं होगा। तू आराम से जा और वहाँ पहुँच कर मुझे फिर से फोन करना।" मैंने इतना कहा और राजेश ने फ़ोन रख दिया। मैं थोड़ी देर के लिए उसके मामा जी के बारे में सोचने लगा और भगवान् से प्रार्थना करने लगा की सब कुछ अच्छा हो।

अपनी इसी सोच में बैठे बैठे थोड़ी देर के बाद मुझे एक आहट सुनाई दी। मैंने नजर उठा कर देखा तो रिंकी मुस्कराते हुये हुए मेरी तरफ देख रही थी। वो अभी अभी सीढ़ियाँ चढ़ कर मेरे कमरे के सामने पहुँची थी। उसने सफ़ेद रंग का सलवार सूट पहना हुआ था और लाल रंग का दुपट्टा लिया हुआ था। बिल्कुल अप्सरा लग रही थी। मैंने नज़र भर कर उसकी ओर देखा और एक ठण्डी आह भरी।
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03-29-2019, 11:25 AM,
#20
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
रिंकी और मेरी रासलीला की भूमिका

वो मेरे कमरे के दरवाज़े तक आई और धीरे से मुझसे कहने लगी, "मैं बस थोड़ी देर में चली आऊँगी। तुम कब तक वापस आओगे?" मुझे पता था कि वो मेरे बारे में नहीं बल्कि राजेश के बारे में जानना चाहती थी। उसे पता था कि मैं राजेश के साथ बाज़ार जा रहा हूँ और फिर उसके साथ ही वापस आऊँगा...और फिर उन दोनों की अधूरी कहानी पूरी हो जायेगी। पता नहीं मुझे क्या हुआ लेकिन मैंने उसे यह नहीं बताया कि राजेश के मामा जी का एक्सीडेंट हुआ है और वो आजमगढ़ चला गया है। मैंने बस मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा,"हम भी जल्दी ही वापस आ जायेंगे।" 

मेरी कुटिल मुस्कान के जवाब में उसने भी एक स्माइल दी और अपना सर झुका कर तेज़ क़दमों से चल कर बाहर निकल गई। 

मैं अपने कमरे में अकेला यह सोचने लगा कि अब मैं क्या करूँ। राजेश था नहीं इसलिए बाहर जाने का दिल नहीं था। मैंने अपना कंप्यूटर चालू किया और लगा सेक्सी फ़िल्में देखने। लेकिन न जाने क्यों हमेशा से अलग आज सेक्सी फ़िल्में देखने में मेरा मन नहीं लग रहा था, बार बार रिंकी का चेहरा नजरों के सामनें से घुम जाता था, जैसे उसके लौट आनें का मुझे बेसब्री से इन्तजार हो। मैने कंप्यूटर बन्द किया और पहली मंजिल पर नीचे उतर आया और हाँल में सोफे पर बैठ कर टीवी आन कर लिया। अब मुझे समझ में आ रहा था कि क्यो राजेश को मुठ मारने और कंप्यूटर पर ब्लू फिल्में देखने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नही थी। ये सब तो नकली मजा था। ये तो असली की परछाईं बराबर भी नही था तो राजेश को इसमें भला कैसै रूचि आती? 

लगभग एक घंटे के बाद नीचे गेट पे किसी के आने की आहट हुई। मैंने बाहर निकल कर हाँल की बालकनी से नीचे झाँका तो पाया कि रिंकी अपने हाथों में कुछ किताबें और एक हाथ में एक छोटी सी पोलीथिन लटकाए घर के अन्दर दाखिल हुई। मैं तुरन्त वापस लौट कर फिर से सोफे पर बैठ गया और उसके उपर आनें का इन्तजार करनें लगा। जैसे ही उसनें हाँल का दरवाजा खोला सामनें मुझे वहाँ सोफे पर बैठा देख कर वह चौक गई और हड़बड़ाहट में उसके हाथों मे से पोलीथिन और किताबें छूट कर नीचे गिर पड़ी और पोलीथिन में रखी एक बड़ी सी ट्यूब छिटक कर बाहर आ गई। और इससे पहले कि वह नीचे झूक कर ट्यूब पोलीथिन के अन्दर डालती मेरी पैनी नजर उस पर पड़ चुकी थी और उसे देख कर मैं आवाक रह गया, ट्यूब थी हेयर रिमूवर क्रीम की! टी वी पे कई बार इस क्रीम का एड मैनें देखा था। 

मेरी आँखों में एक चमक आ गई, मैं समझ गया कि आज रिंकी रानी अपनी हरी भरी चूत को चिकनी करने वाली है। मैं इस ख्याल से ही सिहर गया और उसकी झांटों भरी चूत को याद करके यह कल्पना करने लगा कि जब उसकी चूत चिकनी होकर सामने आएगी तो क्या नज़ारा होगा। वह कितनी स्मार्ट थी इस बात का पता इससे ही चलता है कि उसे अच्छी तरह याद था कि कल राजेश के उसकी चूत को चूसते समय उसकी चूत के बाल राजेश के मुह में जा रहे थे जिससे आज उसकी सफाई करना उसनें जरूरी समझा। 

रिंकी ने मुझे अपनी ओर घूरते देख कर सवालिया निगाहों से कुछ पूछना चाहा पर कोई शब्द उसके मुँह से बाहर नहीं आये और वो मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ गई। शायद वो सोच रही थी कि यहाँ बैठा मैं राजेश का ही इन्तजार कर रहा हूँ और राजेश बस आने ही वाला है। और बस थोड़ी देर में उसकी रास लीला चालू हो जाएगी। लेकिन उसे क्या पता था कि आज तो उसका यार शहर में था ही नहीं। 

कल रात के पहले वाले सोनू में और कल रात के बाद वाले सोनू में जमीन आसमान का अन्तर आ चुका था। एक तो कल रात पहली बार भूखे शेर के मुँह को आदमी का खुन लग चुका था और दूसरे मैं और रिंकी दोनों एक दूसरे का राज़ जानते थे। सो मेरे मन में न आज कोई डर था और न ही कोई झिझक।

तभी अचानक मेरे दिमाग में एक शैतानी भरा ख्याल आने लगा और मैंने पूरी प्लानिंग तैयार ली। मैंने ठान लिया कि आज राजेश की कमी मैं पूरी करूँगा और फिर जो होगा देखा जायेगा। जब मन में कोई डर न हो तो दिमाग भी तेजी से काम करने लगता है। मैं अभी इसी ख्याल में डूबा हुआ था कि न जाने कब से मेरे मिठ्ठू मियाँ अपना सर उठाने लगे थे। 

मुझे पता था कि रिंकी सीधा अपने बाथरूम में घुसेगी और अपनी चूत की सफाई करेगी। इन सब में उसे कम से कम आधा घंटा तो लगना ही था। मैंने भी जल्दी नहीं की। आराम से वक़्त बीतने का इंतज़ार करता रहा और हाँल की बालकनी में आ कर टहलने लगा। थोड़ी देर में रिंकी अपने बेडरूम की बालकनी के किनारे पर आई जो हाँल की बालकनी से साफ़ नजर आता था। अब तक उसने अपने कपड़े बदल लिए थे और एक हल्के गुलाबी रंग का टॉप पहन लिया था। बालकनी की दीवार की वजह से नीचे का कुछ दिख नहीं रहा था इसलिए समझ में नहीं आया कि नीचे क्या पहना है। 

खैर, उसे देखकर मैं समझ गया कि उसने अपना काम पूरा कर लिया है और अब वो अपने प्रीतम का इंतज़ार कर रही है। थोड़ी देर वहाँ खड़े रहने के बाद वो अन्दर चली गई। अब मैंने अपने धड़कते दिल को संभाला और हिम्मत जुटा कर फिर से सोफे पर आकर बैठ गया और टीवी पर चल रही फिल्म देखने लगा। मेरे मन में ये ख्याल चल रहे थे कि किस तरह से इस मौके का फायदा उठाया जाए। मुझे इतना तो विश्वास था कि आज रिंकी पूरी तरह से मानसिक रूप से चुदाई के लिए तैयार है। बस उसे थोड़ा सा उत्तेजित करने की जरुरत है, फिर तो वो अपनी टाँगें फैला कर अपने दीवाने खास का गुप्त द्वार खोल, मेरे नवाब का स्वागत करने को खुद ब खुद उतावली हो जायेगी । 

थोड़ी देर में रिंकी अपने कमरे से बाहर निकली और मै अभी भी वहीं सोफे पर बैठा टी वी पर फिल्म देख रहा था। मुझे देख कर उसने स्माइल दी और हाँल में चारो ओर देखने लगी। उसे लगा राजेश शायद आ गया होगा। लेकिन किसी को न देख कर उसका चेहरा थोड़ा सा उदास हो गया।

“आओ, रिंकी...बैठो” मैनें उसे पास बुलाते हुये कहा। 

“कुछ काम था क्या?" बनते हुये बड़े भोलेपन से उसनें मुझ से पूछा। 

"हाँ, तुमको एक सन्देश देना था" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और वह प्रश्न भरी निगाहों से सोफे पे आकर बैठ गई। हम दोनों बड़े से सोफे के अलग अलग किनारों पर एक दूसरे की तरफ मुँह कर बैठ गए। मैं गौर से रिंकी की आँखों में देख रहा था और मुस्कुरा रहा था। रिंकी भी एकटक मुझे देखे जा रही थी फिर उसने चुप्पी तोड़ी,"हाँ बोलो, कुछ बोलने वाले थे न तुम...?" 

"हाँ, असल में तुम्हारे लिए अच्छी खबर नहीं है। राजेश का अभी थोड़ी देर पहले ही फोन आया है कि उसको अचानक किसी जरुरी काम से आजमगढ़ जाना पड़ रहा है इसलिए वो आज नहीं आ सकता।" मैंने राजेश के नाम पर थोड़ा जोर देकर उसे छेड़ते हुये कहा। रिंकी मेरी इस हरकत से थोड़ा शरमा गई और राजेश के बाहर जाने की बात सुन कर उदास हो गई। उसका उदास चेहरा देख कर साफ लग रहा था कि इस समाचार नें मानों उसकी कल की अधूरी प्यास पर तुषारापात कर दिया हो, उसकी कामाग्नि पर एक साथ सैकड़ों घड़े पानी डाल दिया हो।

"अरे चिंता मत करो, मैं हूँ ना!! तुम्हें बोर नहीं होने दूँगा।" इतना कह उसे ढाढ़स बंधाते हुए मैं थोड़ा सा सरक कर उसके करीब चला गया। अब हमारे बीच महज कुछ इंच का ही फासला रह गया था। 

कुछ रूक कर फिर मैंने उसे दुबारा छेड़ने के अंदाज में कहा "वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।" 

"क्यूँ, आज से पहले कभी नहीं लगी क्या?" रिंकी ने अपनी तारीफ सुनकर थोड़ा सा लजाते हुए मुझे उलाहना देने के अंदाज में पूछा। 

"ऐसी बात नहीं है, असल में आज से पहले कभी तुम्हें इतने गौर से देखा ही नहीं था लेकिन आज तो तुम्हारे ऊपर से नज़र ही नहीं हट रही है।" मैंने एक लम्बी सांस लेते हुए उसकी आँखों में बिना पलकें झपकाए झाँकने लगा। 

"हाँ जी...आपको फुर्सत ही कहाँ है जो आप हमारी तरफ देखोगे। तुम्हारी आँखें तो आजकल किसी और को देखती रहती हैं।" रिंकी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा। 

"यह क्या बात हुई, मैंने कभी किसी को नहीं देखा यार...मेरे पास इतना वक़्त ही कहाँ है।" मैंने जवाब दिया।

"अब बनो मत...मेरे पास भी आँखें हैं और मुझे भी सब दिखता है कि आजकल साहब कहाँ बिजी रहते हैं..." रिंकी ने शिकायत भरे अंदाज में कहा। मैं समझ गया कि वो बीती रात की बात कर रही है। थोड़ी देर के लिए मैं चुप सा हो गया लेकिन उसकी तरफ देखता ही रहा। 

"बड़े थके थके से लग रहे हो, रात भर सोये नहीं क्या?" रिंकी ने मेरी आँखों में घूरते हुए पूछा। 

"मेरी छोड़ो, तुम अपनी बताओ...लगता है तुम्हें रात भर नींद नहीं आई...शायद किसी का इंतज़ार करते करते बेचैन हो रही होगी रात भर, है न?" मैंने उल्टा उसके ऊपर ही सवाल दाग दिया।

उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए एक ठण्डी सांस भरी..."अपनी आँखों के सामने वो सब होता देख कर किसे नींद आएगी।"
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