Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
03-29-2019, 11:21 AM,
#1
Star  Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
करिश्मा किस्मत का 



मेरा नाम सुनील श्रीवास्तव है और मैं इलाहाबाद का रहने वाला हूँ। प्यार से सब मुझे सोनू बुलाते है। इलाहाबाद उत्तर प्रदेश का एक खूबसूरत सा शहर है जो कुम्भ मेले की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है। लेकिन उत्तर प्रदेश से बाहर के बहुत कम लोग ही जानते है कि इलाहाबाद अपनें उच्च शैक्षणिक माहौल के लिये भी काफी जाना जाता है, आज भी आईएयस और पीसीयस के कम्पटीशन को क्लीयर करने वाले सबसे ज्यादा केन्डीडेट इलाहाबाद के ही होते हैं। अब जो घटना मैं आपको बताने जा रहा हूँ उसकी शुरूआत आज से करीब डेढ़ साल पहले य़ानि कि मई 2017 में हुई।

दोस्तो किस्मत का खेल भी बहुत निराला है। जिन्दगी में जिस चीज की हमने कभी कल्पना भी नही की होती, जिसके होनें की कभी दूर दूर तक भी कोई गुन्जाईश नजर नहीं आती, अपनी लाख कोशिशो के बावजूद जिसे पानें का ख्वाब तक भी हम कभी देख नही पाते उसी असम्भव को करवटें बदल बदल कर किस्मत थोड़े ही समय में इस तरह सम्भव कर दिखाती है कि विश्वास करना तक कठिन हो जाता है। कई बार तोहफे परेशानीयों में बदल जाते हैं और कभी इसके ठीक उलट बड़ी से बड़ी परेशानीयाँ भी पलक झपकते ही तोहफों में तब्दील हो जाती हैं। 

वैसे मेरा जन्म उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ था, लोकिन हम मूलतः रहने वाले इलाहाबाद के ही है। मेरे पापा सरकारी नौकरी (इन्डियन सीविल सर्वीस) में एक बहुत ऊँचे ओहदे पर अफसर हैं। मुश्किल कामों को हल करनें की अपनी काबिलियत की वजह से अपने डिपार्टमेन्ट में उनकी बहुत इज्जत थी। लेकिन पापा का काबिल अफसर होने का यह वरदान हम सबके लिये अभिश्राप बन चुका था। अपनी इसी काबिलियत की वजह से उनका हर 2-3 साल में किसी न किसी न मुश्किल काम को सुलझानें की जिम्मेदारी सौंप कर तबादला कर दिया जाता था। पापा की नौकरी की वजह से हम कई शहरों में रह चुके थे, जिसका आखिरी पड़ाव हमारा अपना मूल निवास इलाहाबाद था। 

पापा के तबादलों से हम सब तंग आ चुके थे और यह पहली बार था कि पिछले सात सालो से हम एक ही जगह रह रहे थे। इन सात सालो में एक दो बार पापा के तबादले की कोशिशे भी हुईं पर पापा नें अपनें ऊँचे रसूख का इस्तेमाल कर उसे हर बार रूकवा दिया था। दरअसल इलाहाबाद हम सब को बेहद पसन्द था। एक तो यह हमारा अपना मूल निवास था और दूसरे यहाँ का कम भीड़-भाड़ वाला शान्त वातावरण हम सब के मन को भा गया था। यहाँ आने के बाद हमने तय कर लिया था कि अब हम हमेशा के लिए यहीं रहेंगे। पापा के रिटायरमेन्ट को कुछ ही साल और रह गये थे और पिछले साल ही हमनें अपना एक अलीशान तीन मंजिला मकान भी बनवा लिया था और वहीं रहने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे।

हमारे परिवार में कुल 4 लोग हैं, मेरे मम्मी-पापा, मैं और मेरी बड़ी बहन नेहा। अपने नये घर में शिफ्ट हुए हमें कुछ ही दिन हुए थे कि अचानक पापा का ट्रान्सफर लखनऊ हो गया जिसकी हमें बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, यह समाचार हमारे लिए काफी दुखद था । हर बार की तरह इस बार भी पापा ने अपने तबादले को रूकवाने की पूरी कोशिशे की, लेकिन लखनऊ का काम इतना कठिन था कि सारे बड़े अफसर एक मत से यही मानते थे कि यह काम पापा के अलावा और कोई नही कर सकता था और आखिर में न चाहते हुये भी भारी मन से पापा को जाना ही पड़ा। 

अब हमारे लिए बहुत बड़ी मुश्किल आ खड़ी हुई थी। इधर पापा का जाना भी जरुरी था और उधर अभी पिछले साल ही हमनें अपना नया मकान भी बनवा लिया था। तबादलों की वजह से मेरी और दीदी की पढ़ाई का भी नुकसान होता था। पापा को डायबीटीस का प्राब्लम था इसलिये उनके खाने पीने की देखभाल के लिये मम्मी का उनके साथ रहना जरूरी था। तो हम लोगों ने यह फैसला किया कि मम्मी पापा के साथ लखनऊ जाएँगी और हम दोनों भाई बहन इलाहाबाद में ही रहेंगे। लेकिन हमें यूँ अकेला भी नहीं छोड़ा जा सकता था। 

हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। हमारी इस परेशानी का कोई हल नहीं मिल पा रहा था, तभी अचानक इसी बीच एक दिन सिन्हा अंकल जो चित्रकूट में डीएम थे और पापा के कोलेज के दिनों के दोस्त थे पापा से मिलने आये। 

बातों ही बातों में दुखी मन से जब पापा ने सिन्हा अंकल से अपनीं परेशानी का जिक्र किया तो सिन्हा अंकल ने तपाक से जवाब दिया कि भाई मै तो अपनी परेशानी का हल ढूंढ़नें तुम्हारे पास आया था लेकिन मै अपनी समस्या की चर्चा करू उससे पहले तुम्हारी समस्या सुन कर तो लगता है तुम्हारी समस्या मेरी वाली से भी ज्यादा बड़ी और गम्भीर है। फिर मुस्कुराते हुये बोले कि अब तो ऐसा लगता है कि अगर हम दोनों अपनी अपनी समस्याओं को इकठ्ठी कर दें तो हमारे पास कोई समस्या ही न रह जायेगी। पापा ने तुरन्त पूछ लिया “वो कैसै?” अब पहले के मुकाबले पापा के चेहरे पर तनाव कम और उत्सुकता ज्यादा झलक रही थी। 

फिर सिन्हा अंकल ने बताया कि उनके अपने बच्चे भी बड़े हो गये है और चित्रकूट में इलाहाबाद जैसे अच्छे कालेज नहीं होने की वजह से वो खुद भी काफी दिनो से सोच रहे थे कि इलाहाबाद में कोई अच्छा सा मकान किराये पर ले कर परिवार को यहाँ शिफ्ट कर दें जिससे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई अच्छे से हो सके। पर फिर वो भी यही सोच सोच कर रूक जाते थे कि जवान बेटियों और पत्नी को एक अनजान किरायेदार के मकान मे अकेले कैसे छोडा जा सकता है? लेकिन जब पापा नें अपना नया मकान बना लिया तो उनकी चिन्ता जाती रही और उन्होने पापा से बात करनें की ठान ली बस इन्तजार कर रहे थे बेटियों की पढ़ाई के साल के पूरा होने का। 

सिन्हा अंकल ने पापा को जो हल सुझाया वह प्यासे को पानी नही अमृत जैसा था। हम सब को यह उपाय बहुत पसंद आया, इसी बहाने हमारी देखभाल के लिए एक भरा पूरा परिवार हमारे साथ हो जाता और मम्मी पापा आराम से बिना किसी फ़िक्र के जा सकते थे। तो यह तय हो गया कि सिन्हा अंकल का परिवार हमारे मकान के ऊपर की तीसरी मंजिल पर जो कि फिलहाल पूरी तरह से खाली ही पड़ा था आकर हमारे साथ ही रहेंगा। लखनऊ और चित्रकूट दोनों ही इलाहाबाद से ज्यादा दूर नहीं हैं, चित्रकूट तो मात्र दो ढ़ाई घण्टे का रास्ता है, इसलिए तय हुआ कि एक शनिवार को मम्मी-पापा और फिर उसके बाद वाले शनिवार को सिन्हा अंकल बारी बारी से इलाहाबाद आते जाते रहेगें और फिर अगली सोमवार की सुबह फिर से वापस लखनऊ या चित्रकूट वापस चले जाया करेगें। 

आज इतवार था और पापा को कल के बाद वाले सोमवार को, आज से ठीक नौवें दिन लखनऊ में अपना चार्ज लेना था, समय ज्यादा नही था इसलिये सिन्हा अंकल अगले शनिवार को ही शिफ्ट होने का कह कर लौट गये। प्लान के मुताबिक सिन्हा अंकल का परिवार अगले शनिवार को हमारे घर में शिफ्ट हो गया ओर उसके अगले ही दिन पापा और मम्मी लखनऊ चले गए। अब घर पर रह गए बस मैं और मेरी दीदी। मैंने नेहा दीदी के बारे में तो बताया ही नहीं, उस वक्त उनकी उम्र 23 साल थी। दीदी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी और घर पर रह कर सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रही थी। उनका रिश्ता भी तय हो चुका था और दिसम्बर में उनकी शादी होनी थी।
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03-29-2019, 11:22 AM,
#2
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सिन्हा अंकल के परिवार का शिफ्ट होना

सिन्हा अंकल के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनकी दो बेटियाँ थी, बड़ी बेटी का नाम रिंकी और छोटी का नाम प्रिया था। रिंकी मेरी हम उम्र थी और प्रिया तीन साल छोटी थी। रिंकी 21 साल की थी और प्रिया 18 साल की। बड़ी रिंकी गम्भीर, समझदार और बेहद स्मार्ट थी और तौल तौल कर बातें करती थी जब कि छोटी प्रिया थोड़ी चुलबुली नटखट और शरारती थी। बोलनें से पहले ज्यादा सोचती नही थी, जो कुछ भी उसके दिल में होता था वही उसकी जुबान पर। रिंकी की हाईट नेहा दीदी की तरह ही लम्बी थी। दोनों करीबन 5 फीट 7 इन्च के आस-पास होगी। जब कि प्रिया कुछ छोटी थी करीबन 5 फीट 5 इन्च के आस-पास।

आंटी यानि सिन्हा अंकल की पत्नी का नाम स्मिता था और सिन्हा अंकल उनको प्यार से स्मित कह कर बुलाते थे। स्मिता आंटी की उम्र यही करीब 40 के आसपास थी लेकिन उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वो 30 साल से ज्यादा की हों। उन्होंने अपने आपको बहुत अच्छे से मेंटेन कर रखा था। स्मिता आंटी की मुस्कान बहुत दिलकश थी। खैर उनके बारे में बाद में बात करूगाँ।

रिंकी, और प्रिया ने आते ही नेहा दीदी से दोस्ती कर ली थी और उनकी खूब जमने लगी थी, आंटी भी बहुत अच्छी थीं और हमारा बहुत ख्याल रखती थीं, यहाँ तक कि उन्होंने हमें खाना बनाने के लिए भी मना कर दिया था और हम सबका खाना एक ही जगह यानि उनके किचन में ही बनता था। 

हमारे दिन बहुत मज़े में कट रहे थे। रिंकी ने हमारे ही कॉलेज में दाखिला ले लिया था जो कि हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं था। मैं और रिंकी एक ही क्लास में थे और हम अपने अपने फ़ाइनल इयर की तैयारी कर रहे थे, हमारे सब्जेक्ट्स भी एक जैसे ही थे। प्रिया का इन्टर कॉलेज थोड़ा दूर था। 

हमारे क्लास एक होने की वजह से रिंकी के साथ मेरी अक्सर बात चीत होती रहती थी हाँलाकि कालेज वह अकेली और अलग से ही जाती थी। प्रिया भी मुझसे बात कर लिया करती थी। प्रिया मुझे भैया कहती थी और रिंकी मुझे नाम से बुलाया करती थी। मैं भी उसे उसके नाम से ही बुलाता था।

हमारे घर की बनावट ऐसी थी जिसमे कम्पाउन्ड वाले मेन गेट से घुसते ही सबसे नीचे वाले आगे के हिस्से में कार पार्किग थी और जिसके पिछले हिस्से से उपर की मंजिलों के लिये अलग से सीढियाँ जाती थीं। उपर की पहली मंजिल पर, मंजिल के ठीक बीचो बीच एक बड़ा सा हॉल और हॉल के दाहिने ओर, एक दूसरे से सटे हुये दो बड़े बड़े मास्टर-बेड थे और साथ ही हॉल के बाईं ओर पीछे की तरफ एक किचन तथा किचन से लग कर ही आगे सड़क की ओर एक अतिरिक्त टायलेट और बाथरूम भी था। हॉल में आगे सड़क की ओर एक बड़ी सी बाल्कनी थी जिससे सड़क का पूरा नजारा दिखाई देता था। इसी तरह दाहिने ओर के दोनों मास्टर-बेडो में भी बगल की ओर एक एक बाल्कनीयाँ थीं। उपर के बाकी दोनों मंजिलों की डीजाईन भी ठीक वैसी ही थी। 

पहली मंजिल पर पीछे की तरफ सीढ़ियों की ओर वाला बेडरूम हमारे मम्मी पापा का और दूसरा आगे सड़क की ओर वाला बेडरूम नेहा दीदी का था। इसी तरह बीच वाली दूसरी मंजिल पर मम्मी पापा के ठीक उपर सीढ़ियों की तरफ वाला कमरा मेरा और नेहा दीदी के उपर आगे सड़क की ओर वाला कमरा मेहमानों के लिए सुरक्षित था। 

सीढ़ियों को लग कर पीछे की तरफ जो कमरे थे उन में एक एक अतिरिक्त खिड़की लगी थीं जो सीढ़ियों की तरफ खुलती थीं जिनको गर्मियों में रात में खोल देनें पर ये तीनों कमरे बाकी तीनों कमरों के मुकाबले अधिक ठंढ़े और हवादार हो जाते थे। पूरे मकान को इस तरह बनवाया गया था कि जरूरत पड़ने पर अलग अलग तीन परिवार रह सकें या फिर हर मंजिल अलग अलग किरायेदारों को दी जा सके। आप कह सकते है कि हमारा मकान असल में दो बेडरूम किचन हाँल के तीन फ्लैटों वाला तीन मंजिला ऐसा अपार्टमेंन्ट था जिसमें हर मंजिल पर एक एक स्वतंत्र फ्लैट था।

पहली और दूसरी मंजिल के दोनों ही हॉलों में पीछे सीढ़ियों की दीवाल को लग कर बयालीस इन्च के बड़े बड़े एलसीडी टीवी लगे थे और आगे बाल्कनी की दीवाल को लग कर सोफे रखे थे। इसके साथ ही दूसरी मंजिल पर किचन की ओर एक बड़ा सा डाँइनिंग टेबल भी था जो अब उपर की तीसरी मंजिल पर शिफ्ट कर दिया गया था क्योकि खाना अब सबका वहीं बनता था।

नेहा दीदी से घुल-मिल जाने के कारण रिंकी उनके साथ उनके कमरे में ही सोती थी और मैं अपने कमरे में अकेला सोता था। बाकी लोग यानि सिन्हा अंकल (जब भी यहाँ होते तब) अपनी पत्नी और प्रिया के साथ सबसे ऊपर वाले हिस्से में रहते थे। जिसमें से मेरे उपर वाले पीछे की तरफ के कमरे में अंकल-आंटी और मेहमानों के कमरे के उपर, आगे सड़क की ओर वाले कमरे में प्रिया अकेले सोती थी। चुकि स्मिता आंटी ने हमें खाना बनाने से सख्त मना कर दिया था और हम सबका खाना एक ही जगह यानि तीसरी मंजिल पर उनके अपनें किचन में ही बनता था इसलिये दूसरी मंजिल का हमारा अपना किचन अब बन्द ही रहता था।

उपर की तीसरी मंजिल पर फिलहाल टीवी नहीं था, शायद उसकी जरूरत भी नहीं थी क्योंकि शुरूआती चार महीनों के गर्मियों के दिनों के समय उपर की छत तपनें लगती थी सो प्रिया और स्मिता आंटी दिन के वक्त का अपना ज्यादातर खाली समय मेरी वाली दूसरी मंजिल के हॉल में या फिर मेरे बगल के मेहमानों वाले कमरे में ही बिताते थे और अब शायद उनको उसकी आदत सी पड़ गई थी। दीपावली के वक्त इस बार घर की रौनक कुछ अलग ही थी, 18 अक्टूबर की शाम को ही मम्मी पापा और सिन्हा अंकल सारे आ गये थे और फिर तीनों सोमवार की सुबह यानि कि 23 अक्टूबर को गये। इस दीपावली पूरे घऱ में खूब चहल-पहल और बहुत धूम थी।

मम्मी-पापा को गये छ महीने से कुछ उपर हो चले थे। मई से नवम्बर आ चुका था। दिन मजे में कट रहे थे। इस बीच सिन्हा अंकल करीब दस-बारह और मम्मी-पापा करीब सात-आठ बार आ चुके थे। सिन्हा अंकल बहुत हँसमुख मिलनसार और मजाकिया किस्म के इंन्सान थे और मेरी उनसे अच्छी पटने लगी थी। छोटी प्रिया उनकी लाडली थी। प्रिया अपनें पापा पर गई थी। वह अक्सर किसी न किसी बहानें मेरे चारो ओर मँडराती रहती और हमेशा कोई न कोई शरारत, हँसी मजाक और ठिठोली करती रहती और मैं भी उसके इस चुलबुलेपन का बूरा नहीं मानता था। 

सिन्हा अंकल जब होते तब टीवी देखने हर शाम को नीचे ही आ जाते और फिर मै और वो एक साथ घण्टों गप्प मारते और हमारे बीच बैठ कर प्रिया भी अपनी चुहलबाजियाँ जारी रखती। वह हर दूसरी शाम किसी न किसी टॉपिक को समझनें या फिर किसी सवाल को हल करनें के लिये मेरे कमरे में चली आती। 

एक दिन जब मैनें पूछा कि “तुम रिंकी के पास क्यों नहीं जाती मेरे पास ही क्यों आ जाती हो” तो जवाब मिला “भैया जब आप रिंकी से ज्यादा नजदीक हो तो मै उतनी दूर क्यों जाऊँ?” मै कुछ और कहूं इससे पहले ही वह बोल उठी “असल में मैं निकलती तो हूँ रिंकी के यहाँ जानें के लिये ही पर दूसरी मंजिल आते ही मेरे पैर जवाब दे देते है और अपने आप ही आपकी तरफ मुड़ जाते है। कह बैठते है जब अगले ही स्टेशन पर ज्ञान का इतना बड़ा भण्डार है तो एक स्टेशन और आगे क्यों जाना?” और मैं मुस्करा दिया, बातें बनानें में वह सच में उस्ताद थी।

रिंकी अलग थी, शायद वह अपनी माँ पर गई थी। वह शान्त लेकिन तेज थी, मेधावी, प्रज्ञावान, बुद्धिमान विचारशील और विवेकशील थी, अपनें आस-पास की चीजो को टाड़ने, तौलने और भापनें की प्रतिभा उसमें गजब की थी, अच्छे-बूरे और सही-गलत की उसे गहरी समझ थी। वो एक ही वाक्य में बहुत कुछ कह जाती थी। गलतियाँ हर इन्सान करता है और वो भी करती थी पर अपनी गलतियों का एहसास उसे बहुत तेजी से हो जाता था और फिर उन गलतियों से उपर उठने और उन्हे सुधार लेने का उसमे अथाह आत्मबल था।
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03-29-2019, 11:22 AM,
#3
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
उम्र की यह नाजुक दहलीज़ 

दोस्तो, कुदरत का खेल ही ऐसा है कि मर्द हर जवान औरत को व्यक्ति कम और वस्तु ज्यादा समझता है। इसमें मर्दों की गलती कुछ नहीं है। औरतों को कुदरत नें बनाया ही कुछ ऐसा है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि दुनियाँ की हर औरत में हर मर्द को दिलचस्पी हो, दरअसल मर्द कुदरतन अपनी पहली नजर से ही हर औरत को दो हिस्सों में छाँटता चलता है एक वो जो औसत से बेहतर है और दूसरी वो जो औसत से नीचे है। औसत से नीचे मतलब कि बूढ़ी, बदसूरत, बेडौल और बदहाल को, मर्द औरतों मे गिनते ही नहीं। ये सब उनकी नजर में रिजेक्टेड लॉट है। बूढ़ी, बदसूरत, बेडौल और बदहाल औरतों की हजारों की भीड़ में भी किसी मर्द को दूर दूर तक कोई औरत नजर नहीं आयेगी लेकिन सड़क पर चलते जैसे ही कोई औसत से बेहतर औरत नजर आई कि नजरें अपनें आप उपर उठ जाती हैं। मर्दों की इस सोच का औरतों को भी अच्छे से पता है। हर औरत अच्छी तरह से जानती है कि समाज में और खास करके मर्दों की जमात में उनकी पूछ उनकी श्रेणी पर निर्भर करती है। औसत से बेहतर और औसत से नीचे के दोनों दो बड़े बड़े हिस्सों में भी ए बी सी डी ऐसी कई छोटी छोटी केटेगरियाँ हैं और अपनी रेटिंग और अधिक से अधिक बेहतर करनें की औरतो में आपस में होड़ सी लगी रहती है। सुन्दर और आकर्षक दिखने का बीज लड़कियों के डीएनऐ में ही होता है। 


न्याय की दृष्टी से मर्दों की औरतों के बारे में यह सोच गलत है पर क्या यह सोच कभी बदल सकती है? हर मर्द अच्छी तहर जानता है कि वह जिस किसी औरत को भी वासना भरी नजरों से देख रहा है वह किसी न किसी की बहन, बेटी और बीबी है और दूसरे सभी मर्द जिन औरतों को वासना भरी नजरों से देख रहें है उनमें उसकी अपनीं बहन, बेटी और बीबी भी शामिल है। लेकिन यह खेल सदियों से चलता आ रहा है और शायद तब तक चलता रहेगा जब तक हम, आदमी के अन्दर की हैवानियत का इलाज नहीं ढ़ूढ़ लेते। 


दोस्तो, उम्र की जिस दहलीज़ पर मैं था, वहाँ सेक्स की भूख लाज़मी होती है, लेकिन मुझे कभी किसी के साथ सम्भोग का मौका नहीं मिला था, बल्कि सच तो यह है कि कभी किसी के साथ पहल करनें की हिम्मत ही नहीं हुई। अपने दोस्तों और इन्टरनेट की मेहरबानी से मैंने यह तो सीख ही लिया था कि भगवान की बनाई हुई इस अदभुत क्रिया को जिसे हम शुद्ध और सभ्य भाषा में सम्भोग, चालू भाषा में चुदाई और हम दोस्तों की मजाक मस्ती वाली गूढ़ भाषा में योनि-छेदन कहते हैं, को किया कैसे जाता है। रोज की अपनी पढ़ाई के पूरी कर लेनें बाद या फिर दिल हो तो कभी कभार बीच में भी कुछ समय इन्टरनेट पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ना और ब्लू फिल्में देखना मेरा रोजमर्रा का काम हो गया था। मैं रोज नई नई कहानियाँ पढ़ता और अपने 7 इंच के मोटे तगड़े नटवरलाल को सहलाया करता। सहलाते सहलाते अब मैंने हस्तमैथुन करना, जिसे आम बोलचाल की भाषा में मुठ मारना कहते हैं वह भी सीख लिया था और जिसमें मुझे ज़न्नत का मज़ा मिलनें लगा था। अपनी कल्पनाओं में मैं हमेशा अपनी कॉलेज की एक प्रोफ्फेसर के बारे में सोचता रहता था जिसकी उम्र करीब पैतीस चालीस के आस पास रही होगी पर वो थी बला की खुबसुरत, उसकी नजाकत भरी जादुई अदाओ को देख मेरे होश उड़ जाते। जरूरत पड़नें पर उसी को याद कर कर के मैं अपने रामलला को हिला-हिला कर अपना आवेग शान्त कर लेता था। घर का माहौल ऐसा था कि कभी किसी के साथ कुछ कहने करने का ख्याल ही नहीं आया। बस अपना हाथ ही जगन्नाथ था। जब भी मौका मिलता अपने हाथों ही अपने आप को खुश कर लिया करता।

रिंकी या प्रिया के बारे में कभी कोई बुरा ख्याल नहीं आया था, या यूँ कह लो कि मैंने कभी उनको उस नजर से देखा ही नहीं था। मैं तो बस अपनी ही धुन में मस्त रहता था। वैसे कई बार मैंने रिंकी को अपनी तरफ नजरें गड़ाये पाया था लेकिन इस पर मेरे ज्यादा ध्यान नहीं देनें से बात आई गई हो जाती थी। एक तो पापा के दोस्त की बेटी, दूसरे हमारे अपनें घर में मेहमान और उससे भी अधिक मम्मी पापा की डाँट और परिवार की बदनामी का डर ऐसा कोई ख्याल तक भी आनें से रोक लेता था।
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उम्र की यह नाजुक दहलीज़

दोस्तो, कुदरत का खेल ही ऐसा है कि मर्द हर जवान औरत को व्यक्ति कम और वस्तु ज्यादा समझता है। इसमें मर्दों की गलती कुछ नहीं है। औरतों को कुदरत नें बनाया ही कुछ ऐसा है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि दुनियाँ की हर औरत में हर मर्द को दिलचस्पी हो, दरअसल मर्द कुदरतन अपनी पहली नजर से ही हर औरत को दो हिस्सों में छाँटता चलता है एक वो जो औसत से बेहतर है और दूसरी वो जो औसत से नीचे है। औसत से नीचे मतलब कि बूढ़ी, बदसूरत, बेडौल और बदहाल को, मर्द औरतों मे गिनते ही नहीं। ये सब उनकी नजर में रिजेक्टेड लॉट है। बूढ़ी, बदसूरत, बेडौल और बदहाल औरतों की हजारों की भीड़ में भी किसी मर्द को दूर दूर तक कोई औरत नजर नहीं आयेगी लेकिन सड़क पर चलते जैसे ही कोई औसत से बेहतर औरत नजर आई कि नजरें अपनें आप उपर उठ जाती हैं। मर्दों की इस सोच का औरतों को भी अच्छे से पता है। हर औरत अच्छी तरह से जानती है कि समाज में और खास करके मर्दों की जमात में उनकी पूछ उनकी श्रेणी पर निर्भर करती है। औसत से बेहतर और औसत से नीचे के दोनों दो बड़े बड़े हिस्सों में भी ए बी सी डी ऐसी कई छोटी छोटी केटेगरियाँ हैं और अपनी रेटिंग और अधिक से अधिक बेहतर करनें की औरतो में आपस में होड़ सी लगी रहती है। सुन्दर और आकर्षक दिखने का बीज लड़कियों के डीएनऐ में ही होता है।


न्याय की दृष्टी से मर्दों की औरतों के बारे में यह सोच गलत है पर क्या यह सोच कभी बदल सकती है? हर मर्द अच्छी तहर जानता है कि वह जिस किसी औरत को भी वासना भरी नजरों से देख रहा है वह किसी न किसी की बहन, बेटी और बीबी है और दूसरे सभी मर्द जिन औरतों को वासना भरी नजरों से देख रहें है उनमें उसकी अपनीं बहन, बेटी और बीबी भी शामिल है। लेकिन यह खेल सदियों से चलता आ रहा है और शायद तब तक चलता रहेगा जब तक हम, आदमी के अन्दर की हैवानियत का इलाज नहीं ढ़ूढ़ लेते।


दोस्तो, उम्र की जिस दहलीज़ पर मैं था, वहाँ सेक्स की भूख लाज़मी होती है, लेकिन मुझे कभी किसी के साथ सम्भोग का मौका नहीं मिला था, बल्कि सच तो यह है कि कभी किसी के साथ पहल करनें की हिम्मत ही नहीं हुई। अपने दोस्तों और इन्टरनेट की मेहरबानी से मैंने यह तो सीख ही लिया था कि भगवान की बनाई हुई इस अदभुत क्रिया को जिसे हम शुद्ध और सभ्य भाषा में सम्भोग, चालू भाषा में चुदाई और हम दोस्तों की मजाक मस्ती वाली गूढ़ भाषा में योनि-छेदन कहते हैं, को किया कैसे जाता है। रोज की अपनी पढ़ाई के पूरी कर लेनें बाद या फिर दिल हो तो कभी कभार बीच में भी कुछ समय इन्टरनेट पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ना और ब्लू फिल्में देखना मेरा रोजमर्रा का काम हो गया था। मैं रोज नई नई कहानियाँ पढ़ता और अपने 7 इंच के मोटे तगड़े नटवरलाल को सहलाया करता। सहलाते सहलाते अब मैंने हस्तमैथुन करना, जिसे आम बोलचाल की भाषा में मुठ मारना कहते हैं वह भी सीख लिया था और जिसमें मुझे ज़न्नत का मज़ा मिलनें लगा था। अपनी कल्पनाओं में मैं हमेशा अपनी कॉलेज की एक प्रोफ्फेसर के बारे में सोचता रहता था जिसकी उम्र करीब पैतीस चालीस के आस पास रही होगी पर वो थी बला की खुबसुरत, उसकी नजाकत भरी जादुई अदाओ को देख मेरे होश उड़ जाते। जरूरत पड़नें पर उसी को याद कर कर के मैं अपने रामलला को हिला-हिला कर अपना आवेग शान्त कर लेता था। घर का माहौल ऐसा था कि कभी किसी के साथ कुछ कहने करने का ख्याल ही नहीं आया। बस अपना हाथ ही जगन्नाथ था। जब भी मौका मिलता अपने हाथों ही अपने आप को खुश कर लिया करता।

रिंकी या प्रिया के बारे में कभी कोई बुरा ख्याल नहीं आया था, या यूँ कह लो कि मैंने कभी उनको उस नजर से देखा ही नहीं था। मैं तो बस अपनी ही धुन में मस्त रहता था। वैसे कई बार मैंने रिंकी को अपनी तरफ नजरें गड़ाये पाया था लेकिन इस पर मेरे ज्यादा ध्यान नहीं देनें से बात आई गई हो जाती थी। एक तो पापा के दोस्त की बेटी, दूसरे हमारे अपनें घर में मेहमान और उससे भी अधिक मम्मी पापा की डाँट और परिवार की बदनामी का डर ऐसा कोई ख्याल तक भी आनें से रोक लेता था।
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RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मै और मेरा दोस्त राजेश

अपनें नये मकान में शिफ्ट हुये हमें करीब एक साल हो चला था। हम पिछले जुलाई की शुरूआत में यहाँ आये थे और मेरी दोस्ती अपनी कॉलोनी के कई लड़कों के साथ हो गई थी। उनमें से एक लड़का था राजेश जो एक अच्छे परिवार से था और पढ़ने लिखने में भी अच्छा था। उससे मेरी दोस्ती थोड़ी ज्यादा हो गई थी। हाँलाकि हम दोनों में बहुत अच्छी पटती थी लेकिन राजेश और मेरा नेचर बिल्कुल अलग था। लड़कियों के मामले में राजेश खिलन्दड़ा और दिलेर था और मै बिल्कुल दब्बू। रूप-रंग से तो वह औसत ही था लेकिन लड़कियाँ पटाने की कला में उसे महारथ हासिल थी। वह जब चाहे तब, जिस किसी भी अनजान लड़की से चाहे उससे, अपनी इच्छा और मर्जी से बिना किसी झिझक के बात करनें की हिम्मत रखता था और ऐसा शायद ही कभी होता था कि वह खुद पहल करे और लड़की उसे दाद न दे। लड़कियाँ उसके लिये इन्सान कम और मौज मस्ती का सामान ज्यादा थीं।

पता नहीं उसमें ऐसा क्या जादू था कि कालेज और कालोनी की ज्यादातर लड़कियाँ उस पर लट्टू थीं और उसके इशारों पर नाचती थीं। एक ओर जहाँ बाकी सारे लड़के सिर्फ एक लड़की पाने की चाह में पूरी जवानी खराब कर देते हैं और आखिर में सोचते हैं कि अगर गोरी और सुन्दर नहीं तो साँवली और औसत ही सही पर कोई तो मिले, वहीं दूसरी ओर लड़कियों में राजेश से बात करनें की होड़ लगी रहती थी और सब की सब उसका साथ पानें को तरसती थी। पता नहीं राजेश में ऐसा क्या था कि इलाहाबाद में ही गंगा उल्टी बह रही थी।

रंग-रूप, कद-काठी, डील-डौल और सुन्दरता में मेरे मुकाबले वह कहीं नहीं ठहरता था। लेकिन वह लड़कीबाज नम्बर एक था। जो एक काम मै चाह और सोच कर भी करनें की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाता था वह काम वह चुटकी बजा के कर दिखाता था। लड़कियाँ उसे थोक में मिलती थी इसलिये लड़कियाँ वह बदलता रहता था। प्यार, मुहब्बत और ईश्क में उसे ज्यादा भरोसा नहीं था। वह तो बस जवानी का मजा लूटना जानता था। वह अक्सर कहता था कि बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहिये, डूबकी नहीं लगानी चाहिये, डूबकी लगानें से डूब जानें का डर बना रहता है। उसकी ये सब बातें मेरी समझ से परे थी लेकिन उसकी लड़कियाँ पटाने की कला की मै दिल से कद्र करता था। दोस्तो मैं और राजेश दोनों गंगा के किनारे रह रहे थे लेकिन उसके चारो ओर हमेशा बाढ़ आई रहती और मेरे चारो ओर हमेशा सूखा पड़ा रहता था।

वो हमेशा बिना किसी लाग-लपेट के खुल कर कहता था, मर्द मुठ नहीं मारते चूत मारते हैं। मुठ वो मारते हैं जिनको चूत नहीं मिलती। असली मर्द कंप्यूटर स्क्रीन पर ब्लू फिल्में नहीं देखा करते रियल लाईफ में खुद बनाते हैं। उसकी ये बातें मुझे अन्दर तक चुभती और भीतर तक गहरा घाव कर जाती थीं। मुझे अपने मर्द होनें पर शक भी होनें लगता था और शर्म भी आती थी। वो जो कुछ भी कहता था वह बहुत कड़वा था पर शायद सच भी था। उसके मुँह से इन नग्न सच्चाईयों को सुन कर मै बार बार प्रतिज्ञा करता कि अब आज के बाद कभी मुठ नहीं मारूंगा और कभी ब्लू फिल्में नहीं देखूगाँ लेकिन ये प्रतिज्ञा कुछ घण्टे भी नहीं टिक पाती थी। कंप्यूटर की स्क्रीन के सामने आते ही सारा ब्रह्मचर्य उड़न छू हो जाता और रात होते होते तो सारी की सारी प्रतिज्ञा कपूर की तरह उड़ जाती थी।

राजेश हमारे बगल वाले मकान में ही रहता था। राजेश का मकान दो मंजिला था और उसके बेडरूम की और हमारे बेडरूम की बाल्कनीयाँ आमनें सामने थीं। हालांकि हम दोनों पड़ोसी थे लेकिन दीवाली और होली जैसे त्योहारों को छोड़ हम बहुत कम ही एक दूसरे के घर आते जाते थे। मेरे पापा का रौब एसा था कि राजेश को पापा से बहुत डर लगता था। इसलिये मैं और वो अक्सर घर के बाहर ही मिला करते थे। हम दोनों करीब करीब हर शाम को साथ घूमने निकले थे और अपनी अपनी बाल्कनीयों में से एक दूसरे को निकलने का इशारे कर लिया करते थे।

पिछले कुछ दिनों से राजेश हमारे घर कुछ ज्यादा ही आने जाने लगा था। अब वो करीब सप्ताह में एकाध बार तो आ ही जाता था। मुझे लगा कि शायद पापा का न होना इसकी वजह है। यह तो मुझे बाद में पता चला कि वो तो रिंकी के साथ अपना चक्कर फिट करनें में लगा हुआ है लेकिन अब तक उसने कभी मुझसे इस बारे में कोई ज़िक्र नहीं किया था। वो तो एक दिन गलती से मैंने उन दोनों को पहली मंजिल की अपनी अपनी बाल्कनीयों में से एक दूसरे की तरफ इशारे करते हुए अपनी उपर की दूसरी मंजिल की अपनी बाल्कनी से देख लिया और मुझे दाल में कुछ काला नज़र आया। पर मुझे अभी भी अपनी नजरों पर भरोसा नहीं आ पा रहा था। यही एक बार अगर नादान प्रिया होती तो मैं मान भी लेता। लेकिन मेरा दिल अब भी यह मानने को तैयार ही नहीं था कि रिंकी जैसी समझदार लड़की इसके झाँसे में आ सकती है। माना कि राजेश बहुत बड़ा खिलन्दड़ा था पर रिंकी बहुत अलग थी। अगर जो मैं अपनी नजरों से देख रहा था वह सच था तो यह माउन्ट एवरेस्ट को भी फतह कर लेनें से बड़ा एचीवमेन्ट था। और मैनें इसको पक्का कर लेनें की ठान ली।

उसी दिन शाम को जब मैं और राजेश घूमने निकले तो मैंने उससे पूछ ही लिया “क्या बात है बेटा, आज कल तू बाल्कनी में कुछ ज्यादा ही दिखाई देनें लगा है?”

मेरी बात सुनकर राजेश अचानक चौंक गया और अपनी आँखें नीचे करके इधर उधर देखने लगा। मैं जोर से हंसने लगा और उसकी पीठ पर एक जोर का धौल लगा कर बोला “साले, तुझे क्या लगा, तू चोरी चोरी अपने मस्ती का इन्तजाम करेगा और मुझे पता भी नहीं चलेगा?”

“अरे यार, ऐसी कोई बात नहीं है।” राजेश मुस्कुराते हुए बोला।

“अबे चूतिये, इसमें डरने की क्या बात है। अगर आग दोनों तरफ लगी है तो हर्ज क्या है?” मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

राजेश की जान में जान आ गई और वो मुझसे लिपट गया, राजेश की हालत ऐसी थी जैसे मानो उसे कोई खज़ाना मिल गया हो वो बोला “यार सोनू, मैं खुद ही तुझे सब कुछ बताने वाला था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था कि पता नहीं तू क्या समझेगा।”

“अरे वो सब छोड़ ये बता कि बात कहाँ तक पहुँची?” मैनें पूछा।

“कुछ नहीं यार, वो लाइन तो पूरा दे रही है पर मिलने का सही मौका नही मिल पा रहा है इसलिये बस अभी तक इशारों इशारों में ही बातें हो रही हैं। आगे कैसे बढ़ूँ समझ में नहीं आ रहा है।”

“क्यों तेरे पास उसका नम्बर नहीं है?” मैंने पूछा।

तो वो बोला “यार आज तक कभी उससे बात ही नहीं हो पाई तो नम्बर किससे लेता तुझसे माँगनें की कभी हिम्मत नहीं हुई।”

“हम्म्म्म ..., अगर तू चाहे तो मैं तेरी मदद कर सकता हूँ।” मैंने एक मुस्कान के साथ कहा।

“सोनू मेरे यार, अगर तूने ऐसा कर दिया तो मैं तेरी दोस्ती का यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगा।” राजेश मुझसे लिपट कर कहने लगा “यार कुछ कर न!”

“अबे गधे, दोस्ती में एहसान नहीं होता। रुक, मुझे कुछ सोचने दे शायद कोई सूरत निकल निकल आये।” इतना कह कर मैं थोड़ी गंभीर मुद्रा में कुछ सोचने लगा और फिर अचानक मैंने उसकी तरफ देखकर मुस्कान दी।

राजेश ने मेरी आँखों में देखा और उसकी खुद की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई।

मैंने राजेश की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए पूछा "बेटा, मेरे दिमाग में एक प्लान तो है लेकिन थोड़ा खतरा है, अगर तू चाहे तो मेरे कमरे में तुम दोनों को मौका मिल सकता है और तुम अपनी बात आगे बढ़ा सकते हो।"

"पर यार तेरे घर पर सबके सामने मिलेंगे कैसे हम?” राजेश थोड़ा घबराते हुए बोला।

"तू उसकी चिंता मत कर, मैं सब सम्हाल लूंगा! तू बस कल दोपहर को मेरे घर आ जाना।"

"ठीक है, लेकिन ख्याल रखना कि तू किसी मुसीबत में न पड़ जाये।” राजेश ने चिंतित होकर कहा।

इतनी सारी बातें करने के बाद हम अपने अपने घर लौट आये। राजेश को तो पिछले एक साल से भी ज्यादा वक्त से मै यही सब करता हुआ देख रहा था और जब रिंकी को कोई आपत्ति नहीं थी तो उन दोनों को मिलानें में भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी? घर आकर मैं अपने कमरे में गया और बिस्तर पर थोड़ा लेट गया और रिंकी और राजेश को मिलानें के बाद जो कुछ हो सकता था उसकी कल्पना में खो गया। आज से पहले या अब तक भी कभी मेरे अपने मन में रिंकी या प्रिया के लिये किसी तरह का कोई खिँचाव या कोई गलत ख्याल नहीं आया था। लेकिन आज मैं जैसे जैसे रिंकी और राजेश को मिलाने की कल्पना और उसके बाद की सम्भावनाओ के बारे में सोचता जाता वैसे वैसे मेरी नजरों के सामने एक नई रिंकी का उदय होनें लगा था।

रिंकी दरअसल बला की खुबसुरत थी। वह देवलोक की परी थी। कुदरत का अद्भूत करिश्मा थी। सही मायने में कामदेवी थी। उसकी साँचें मे ढ़ली तेजाबी और बारूदी जवानी तपस्वीयों के भी होश उड़ा दे ऐसी थी। उसकी अदाओ में नजाकत थी। उसमें गजब का तिलस्म और जादू था। उसके उन्नत उरोज, उसकी पतली कमर, उसके उभरे हुये गोल गोल नितम्ब और कूल्हे, बनावट के जादुई अनुपात का अदभुत संगम थे। वह ऐसा आग का गोला थी कि जो उसे दूर से देखता चकाचौंध हो जाता और जो नजदीक आकर छू लेता वह जल जाता। उसके कमर तक लम्बे बालों और उसकी संगमरमर सी दुधिया और चिकनी त्वचा का कोई मुकाबला नही था। अब मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि ऐसे ही नहीं राजेश उसके पीछे दीवाना हुआ जा रहा।
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03-29-2019, 11:22 AM,
#6
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
कथा आरम्भ - चुलबुली और मादक प्रिया

रात के खाने का वक्त हो चला था सो थोड़ी देर में प्रिया आई और मुझे उठाया और बोली “ सोनू भैया, चलो माँ बुला रही है खाने के लिए!”

मैंने अपनी आँखें खोली और सामने प्रिया को मीनी येलो स्कीन टाइट शाँर्टस और छोटे ढ़ीले ढ़ाले खुले गले के पतले पिंक टाँप में देखकर मै अचानक से हड़बड़ा गया और फिर से बिस्तर पर गिर पड़ा।

“सम्भल कर भैया, आप तो ऐसे कर रहे हो जैसे कोई भूत देख लिया हो। जल्दी चलो, सब लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं खाने पर!” इतना बोल प्रिया दौड़ कर वापिस चली गई।

मैं देख रहा था कि जैसै जैसै दिन गुजरते जा रहे थे प्रिया के घर पर पहनें जाने वाले कपड़े तंग, छोटे, भड़कीले और उत्तेजक होते जा रहे थे। यूँ तो प्रिया को घर पर पिछले दो तीन महीनों से मैं रोज ही तंग कपड़ो में देख रहा था लेकिन आज उसने कपड़े रोज के मुकाबले कुछ ज्यादा ही तंग भड़काऊ और उत्तेजक पहन रखे थे। अचानक मेरी नज़र उसकी गोरी गोरी नंगी जांघो और उसके छोटे छोटे अनारों पर पड़ गई थी और झीने से टॉप के अंदर से मुस्कुराते हुए उसके टकोरों को देखने के बाद से तो अनचाहे ही मेरा मन बेकाबू हुआ जा रहा था। फिर अचानक ही मेरे मुरलीधर ने सलामी दे दी, यानि कि मेरा वो एकदम से खड़ा हो गया। प्रिया को देख कर आज ऐसा पहली बार हआ था। मुझे अजीब सा लगा, लेकिन फिर यह सोचने लगा कि शायद रिंकी और राजेश के बारे में कल्पना कर मेरी हालत ऐसी हो रही थी कि मैं प्रिया को देखकर भी अनायास उत्तेजित हो रहा था।

खैर, मैंने अपने पप्पू को अपने हाथ से मसला और उसे शांत रहने की हिदायत दी। फिर मैंने हाथ-मुँह धोए और उपरी मंजिल पर पहुँच गया जहाँ सब लोग खाने की मेज पर बैठे मेरा इन्तजार कर रहे थे।

सब लोग पहले से ही खाने की टेबल पर बैठे थे और मैं भी जाकर प्रिया की बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया, मेरे ठीक सामने वाली कुर्सी पर रिंकी बैठी थी। आज पहली बार मैंने उसे गौर से देखा और उसके बदन का मुआयना करने लगा। उसने लाल रंग का एक पतला सा टॉप पहना था और अपने बालों का जूड़ा बना रखा था। सच कहूँ तो उसकी तरफ देखता ही रहा मैं। उसके सुन्दर से चेहरे से मेरी नज़र ही नहीं हट रही थी। उसकी तनी हुई बड़ी बड़ी गोल गोल चूचियों की तरफ जब मेरी नज़र गई तो मेरे गले से खाना ही नीचे नहीं उतर रहा था। इतने दिनों मे आज यह पहली बार था कि इन दोनों बहनों ने मेरे मन में तुफान मचा दिया था।

इन सबके बीच मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे दो आँखें मुझे बहुत गौर से घूर रही हैं और यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि मैं क्या और किसे देख रहा हूँ।

मैंने अपनी गर्दन थोड़ी मोड़ी तो देखा कि रिंकी की मम्मी यानी स्मिता आंटी मुझे घूर रही थीं। मैंने अपनी गर्दन नीचे की और जैसे तैसे चुपचाप खाना खाकर नीचे चला आया।

वापस आ कर मैंने अपने कपड़े बदले और एक छोटा सा पैंट पहन लिया जिसके नीचे कुछ भी नहीं था। मै अपने कमरे में रात में कभी अंडरवियर नहीं पहनता था। एक तो मुझे अपने रामलला का खुलापन अच्छा लगता था और दूसरे पोर्न देखते समय उसे सहलाना और मसलना आसान हो जाता था। मैं अपना दरवाज़ा बंद ही कर रहा था कि फिर से प्रिया अपने हाथों में एक बर्तन लेकर आई और बोली “सोनू भैया, यह लो मम्मी ने आपके लिए मिठाई भेजी है”।

मैं सोच में पड़ गया कि आज अचानक आंटी ने मुझे मिठाई क्यूँ भेजी। खैर मैंने प्रिया के हाथों से मिठाई ले ली और अपने कंप्यूटर टेबल पर बैठ गया। मेरे दिमाग में अभी तक उथल पुथल चल रही थी। कभी प्रिया के छोटे छोटे अनार तो कभी रिंकी की बड़ी-बड़ी गोल-गोल तनी और भरी हुई चूचियाँ मेरी आँखों के सामने घूम रही थी। मैंने कंप्यूटर चालू किया और इन्टरनेट पर अपनी फेवरेट पोर्न साईट खोलकर देखने लगा।
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03-29-2019, 11:23 AM,
#7
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स्मिता आंटी द्वारा मेरी चोरी का पकड़ा जाना

अचानक मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कोई मेरे पीछे आकार खड़ा हो गया। मेरी तो जान ही सूख गई, ये स्मिता आंटी थीं। मैंने झट से अपना मॉनीटर बंद कर दिया। आंटी ने मेरी तरफ देखा और अपने चेहरे पर ऐसे भाव ले आईं जैसे उन्होंने मेरा बहुत बड़ा अपराध पकड़ लिया हो। मेरी तो शर्म से गर्दन ही झुक गई और मैं पसीना पसीना हो गया था। आंटी ने कुछ कहा नहीं और मिठाई की खाली प्लेट लेकर चली गईं। 

अब तक मैं पसीने से पूरी तरह नहा चुका था, चुपचाप उठा और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया और सोचने लगा कि इस नये परिवार के आने से जहाँ एक ओर मेरी आजादी खत्म हो रही थी वहीं दूसरी ओर बदनामी का खतरा भी मडँराने लगा था। ऐसा सब मेरी जिन्दगी में पहली बार हो रहा था। आज तक कभी मेरी कोई चोरी पकड़ी नही गई थी। इस परिवार के आने से पहले इस तरह अचानक मेरे कमरे में कभी कोई नही घुस आता था यहाँ तक कि नेहा दीदी और मम्मी-पापा भी नही। अब तक अपने जिस मकान के इतने बड़े होनें का मुझे गर्व होता था वही मकान आज बहुत छोटा नजर आ रहा था। इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

सुबह जब मुझे नाश्ते के लिए बुलाया गया तो मैंने मना कर दिया और कह दिया कि मेरी तबियत ठीक नहीं है और मेरा मन भी नहीं है। मैं ऐसे ही बिस्तर पर पड़ा था कि थोड़ी देर में ही मुझे अपने कमरे में किसी के आने की आहट सुनाई दी, मैनें नजर उठा कर देखा तो आंटी अपने हाथों में नाश्ते की ट्रे लेकर सामने खड़ी थीं। उन्हें देखकर मेरी घबराहट फिर से बढ़ गई और मैं सोचने लगा कि नाश्ता तो शायद बहाना है, हो न हो आंटी रात वाले टॉपिक पर ही बात करनें आई हैं। मैं चुपचाप अपने बिस्तर पर कोहनियों के सहारे बैठ गया। आंटी आईं और मेरे सर पर अपना हाथ रखकर बुखार चेक करने लगी “बुखार तो नहीं है, फिर तुम खा क्यूँ नहीं रहे हो। चलो जल्दी से फ्रेश हो जाओ और नाश्ता कर लो”। 

हाँलाकि आंटी का बर्ताव बिल्कुल सामान्य था, लेकिन मेरे मन में तो अब भी उथल पुथल थी और आंटी कुछ बोलें उसके पहले मैनें ही माफी माँग लेना ज्यादा ठीक समझा। मैंने अचानक से आंटी का हाथ पकड़ा और उनकी तरफ विनती भरी नजरों से देखकर कहा, "आंटी, मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ। आप गुस्सा तो नहीं हो न। मैं वादा करता हूँ कि दुबारा ऐसा नहीं होगा।" मैंने अपनी सूरत ऐसी बना ली जैसे अभी रो पड़ूँगा। 

आंटी ने मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़ा और मेरी आँखों में देखा। उनकी आँखें में कुछ अजीब से भाव थे। लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग कुछ भी सोचने समझने की हालत में नहीं था। आंटी ने मेरे माथे को दुलारते हुये चूमा और कहा, “मैं तुमसे नाराज़ या गुस्सा नहीं हूँ लेकिन अगर तुमने नाश्ता नहीं किया तो मैं सच में नाराज़ हो जाऊँगी।” 

मेरे लिए यह विश्वास से परे था, मैंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी। लेकिन जो भी हुआ उससे मेरे अंदर का डर जाता रहा और मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। आंटी के इस वर्ताव से मेरे मन मे उनके लिये इज्जत बहुत बढ़ गई और अपनापन महसूस होने लगा। पता नहीं मुझे क्या हुआ और मैंने भी एक नटखट नन्हे बच्चे की तरह आंटी के गाल पर एक चुम्मी दे दी और मेरे मुँह से अपने आप निकल पड़ा “आंटी आप बहुत अच्छी हो” और फिर भाग कर मैं बाथरूम में फ्रेश होनें चला गया। मैं फ्रेश होकर बाहर आया, तब तक आंटी जा चुकी थीं। मैंने फटाफट अपना नाश्ता खत्म किया और बिल्कुल तरोताज़ा हो गया।
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03-29-2019, 11:23 AM,
#8
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
दीदी और आंटी का शॉपिंग को जाना और राजेश और रिंकी की मुलाकात

अचानक मुझे राजेश और रिंकी की मुलाकात की बात याद आ गई, मैंने राजेश को कह तो दिया था कि मैं इन्तजाम कर लूँगा लेकिन अब मुझे सच में कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा था। 

अब जब कि मै वापस अपने आपे में लौटने लगा तो तभी मेरे दिमाग में बिजली कौंधी और मुझे एक ख्याल आया। मैंने फिर से अपने आप को अपने बिस्तर पर गिरा लिया और अपने कोचिंग इन्सटिट्यूट में भी फोन करके कह दिया कि मैं आज नहीं आ सकता। मैं वापस बिस्तर पर इस तरह गिर गया जैसे मुझे बहुत तकलीफ हो रही हो। थोड़ी ही देर में मेरी दीदी मेरे कमरे में आई। उसने मुझे बिस्तर पर देखा तो घबरा गई और पूछने लगी कि मुझे क्या हुआ। मैंने बहाना बना दिया कि मेरे सर में बहुत दर्द है इसलिए मैं आराम करना चाहता हूँ। 

दीदी मेरी हालत देखकर थोड़ा परेशान हो गई। असल में आज मुझे दीदी को शॉपिंग के लिए लेकर जाना था लेकिन अब शायद उनका यह प्रोग्राम खराब होने वाला था। दीदी मेरे कमरे से निकल कर सीधे आंटी के पास गई और उनको मेरे बारे में बताया। आंटी और सारे लोग मेरे कमरे में आ गए और ऐसे करने लगे जैसे मुझे कोई बहुत बड़ी तकलीफ हो रही हो। 

उन लोगों का प्यार और उनकी इतनी परवाह देखकर मुझे अपने झूठ बोलने पर बुरा भी लग रहा था लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था। दीदी को उदास देखकर आंटी ने उनको हौंसला दिया और कहा कि सब ठीक हो जायेगा, तुम चिंता मत करो। 

दीदी ने उन्हें बताया कि आज मुझे उनके साथ शोपिंग के लिए जाना था लेकिन अब वो शॉपिंग के लिए नहीं जा सकेगी। मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और मांगने लगा कि आंटी दीदी के साथ शॉपिंग के लिए चली जायें। भगवान ने मेरी सुन ली। आंटी ने दीदी को कहा कि उन्हें भी काफी कुछ खरीदारी करनी है तो वो भी उनके साथ में चलेंगी। जाते जाते आंटी ने रिंकी को कालेज जाने से मना कर दिया और मेरा ख्याल रखने के लिए कह दिया। रिंकी ने भी कहा कि वो नहा कर उपर ही आ जायेगी और अगर मुझे कुछ जरुरत हुई तो वो ख्याल रखेगी। अब दीदी और मेरे दोनों के चेहरे पर मुस्कान खिल गई। दीदी क्यूँ खुश थी ये तो आप समझ ही सकते हैं लेकिन मैं सबसे ज्यादा खुश था क्यूंकि दीदी और आंटी के जाने से घर में सिर्फ मैं और रिंकी ही बचते थे। प्रिया तो पहले ही कालेज जा चुकी थी।

करीब एक घंटे के बाद दीदी और आंटी शॉपिंग के लिए निकल गईं। मैं खुश हो गया और राजेश को फोन करके सारी बात बता दी। दीदी और आंटी को गए हुए आधा घंटा हुआ था कि राजेश मेरे घर आ गया और हम दोनों ने एक दूसरे को देखकर आँख मारी। 

“सोनू मेरे भाई, तेरी दोस्ती का यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूँगा।” राजेश बहुत भावुक हो गया और उसनें फिर से वही कल शाम वाली बात दोहरा दी। 

“अबे यार, मैंने पहले भी कहा था न कि दोस्ती में एहसान नहीं होता। और रही बात आगे की तो ऐसे कई मौके आयेंगे जब तुझे मेरी हेल्प करनी पड़ेगी।” मैंने मुस्कुरा कर कहा। 

“तू जो कहे मेरे भाई!” राजेश ने उछल कर कहा। 

राजेश की बेसब्री पर मुझे आश्चर्य हो रहा था, किसी और लड़की के लिये इतना आतुर उसे आज से पहले मैनें और कभी नहीं देखा था। इसका कारण शायद रिंकी की बला की खुबसूरती थी और उसका जादू राजेश के सर चढ़ कर बोल रहा था। ऐसा लगता था जैसे शिकारी आज खुद शिकार बन गया है।

हम बैठ कर इधर उधर की बातें करने लगे लेकिन राजेश की नजरें तो कहीं और थीं, तभी हम दोनों को किसी के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ सुनाई दी। हम समझ गए कि यह रिंकी ही है। मैं जल्दी से वापस बिस्तर पर लेट गया और राजेश मेरे बिस्तर के पास कुर्सी लेकर बैठ गया। 

रिंकी अचानक कमरे में घुसी और वहाँ राजेश को देखकर चौंक गई। वो अभी अभी नहाकर आई थी और उसके बाल भीगे हुए थे। रिंकी के बाल बहुत लंबे थे और लंबे बालों वाली लड़कियाँ और औरतें मुझे हमेशा से आकर्षित करती हैं। उसने एक झीना सा टॉप पहन रखा था जिसके अंदर से उसकी काली ब्रा नज़र आ रही थी जिनमें उसने अपने गोल और उन्नत उभारों को छुपा रखा था। मेरी नज़र तो वहीं टिक सी गई थी लेकिन फिर मुझे राजेश के होने का एहसास हुआ और मैंने अपनी नज़रें उसके उभारों से हटा दी। 

रिंकी थोड़ा सामान्य होकर मेरे पास पहुँची और मेरे माथे पर अपना हाथ रखा और मेरी तबीयत देखने लगी। उसके नर्म और मुलायम हाथ जब मेरे माथे पर आये तो मैं सच में गर्म हो गया और उसके बदन से आ रही खुशबू ने मुझे मदहोश कर दिया था। अगर थोड़ा देर और उसका हाथ मेरे सर पर होता तो मुझे सच में बुखार आ जाता। मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दिया और उसे बैठने को कहा। 

रिंकी ने एक कुर्सी खींची और मेरे सिरहाने बैठ गई। राजेश ठीक मेरे सामने था और रिंकी मेरे पीछे इसलिए मैं उसे देख नहीं पा रहा था। मैंने ध्यान से राजेश की आँखों में देखा और यह पाया कि उसकी आँखें चमक रही थीं और वो आँखों ही आँखों में इशारे कर रहा था, शायद रिंकी भी उसकी तरफ इशारे कर रही थी। राजेश बीच बीच में मुझे देख कर मुस्कुरा भी रहा था और तभी मैंने उसकी आँखों में एक आग्रह देखा जैसे वो मुझ से यह कह रहा हो कि हमें अकेला छोड़ दो।

उसकी तड़प मैं समझ सकता था, मैंने अपने बिस्तर से उठने की कोशिश की तो राजेश भाग कर मेरे पास आया और मुझे सहारा देने लगा। हम दोनों ही बढ़िया एक्टिंग कर रहे थे। 

मैंने धीरे से अपने पाँव बिस्तर से नीचे किये और उठ कर बाथरूम की तरफ चल पड़ा, “तुम लोग बैठ कर बातें करो, मैं अभी आता हूँ।” इतना कह कर मैं अपने बाथरूम के दरवाज़े पर पहुँचा और धीरे से पलट कर राजेश को आँख मारी। राजेश ने एक कुटिल मुस्कान के साथ मुझे वापस आँख मारी। मैं बाथरूम में घुस गया और उन दोनों को मौका दे दिया अकेले रहने का। 

मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और कमोड पर बैठ गया। पाँच मिनट ही हुए थे कि मुझे रिंकी की सिसकारी सुनाई दी। मेरा दिमाग झन्ना उठा। मैं जल्दी से बाथरूम के दरवाज़े पर पहुँचा और दरवाजे के उपरी हिस्से में लगे काँच के लोअर में से कमरे में देखने की कोशिश करने लगा। 

“हे भगवान !!” मेरे मुँह से निकल पड़ा। मैंने जब ठीक से अपनी आँखें कमरे में दौड़ाई तो मेरे होश उड़ गए। राजेश ने रिंकी को अपनी बाहों में भर रखा था और दोनों एक दूसरे को इस तरह चूम रहे थे जैसे बरसों के बिछड़े हुए प्रेमी मिले हों। मेरी आँखे फटी रह गईं। मैंने चुपचाप अपना कार्यक्रम जारी रखा और उन दोनो ने अपना। 

राजेश ने रिंकी को अपने आगोश में बिल्कुल जकड़ लिया था। उन दोनों के बीच से हवा के गुजरने की भी जगह नहीं बची थी। रिंकी की पीठ मेरी तरफ थी और राजेश उसके सामने की तरफ। दोनों एक दूसरे के बदन को अपने अपने हाथों से सहला रहे थे। 

तभी दोनों धीरे धीरे मेरे बिस्तर की तरफ बढ़े और एक दूसरे की बाहों में ही बिस्तर पर लेट गए। दोनों एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे। उनके बिस्तर पर जाने से मुझे देखने में आसानी हो गई थी क्यूंकि बिस्तर ठीक मेरे बाथरूम के सामने था। 

राजेश ने धीरे धीरे रिंकी के सर पर हाथ फेरा और उसके लंबे लंबे बालों को उसके गर्दन से हटाया और उसके गर्दन के पिछले हिस्से पर चूमने लगा। रिंकी की हालत खराब हो रही थी, इसका पता उसके पैरों को देख कर लगा, उसके पैर उत्तेजना में काँप रहे थे। रिंकी अपने हाथों से राजेश के बालों में उँगलियाँ फेरने लगी। राजेश धीरे धीरे उसके गले पर चूमते हुए गर्दन के नीचे बढ़ने लगा। मज़े वो दोनों ले रहे थे और यहाँ मेरा हाल बुरा था। उन दोनों की रासलीला देख देख कर मेरा हाथ न जाने कब मेरे पैंट के ऊपर से मेरे पप्पू पर चला गया पता ही नहीं चला। मेरे पप्पू ने अपना फन फैला कर फूफकारें मारना शुरू कर दिया था और इतना अकड़ गया था मानो अभी बाहर आ जायेगा। मैंने उसे सहलाना शुरू कर दिया।

उधर राजेश और रिंकी अपने काम में लगे हुए थे। राजेश का हाथ अब नीचे की तरफ बढ़ने लगा था और रिंकी के झीने से टॉप के ऊपर उसकी गोल बड़ी बड़ी चूचियों तक पहुँच गया। जैसे ही राजेश ने अपनी हथेली को उसकी चूचियों पर रखा, रिंकी में मुँह से एक जोर की सिसकारी निकली और उसने झट से राजेश का हाथ पकड़ लिया। दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा और फ़ुसफ़ुसा कर कुछ बातें की। दोनों अचानक उठ गए और अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ गए। 

मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि अचानक उन दोनों ने यह सब रोक क्यों दिया। कितनी अच्छी फिल्म चल रही थी और मेरा लावा भी निकलने ही वाला था। 

“खड़े लंड पर धोखा!” मेरे मुँह से निकल पड़ा।

मैं थोड़ी देर में बाथरूम से निकल पड़ा और राजेश की तरफ देखकर आँखों ही आँखों में पूछा कि क्या हुआ। 

उसने मायूस होकर मेरी तरफ देखा और यह बोलने की कोशिश की कि शायद मेरी मौजूदगी में आगे कुछ नहीं हो सकता था। मैं समझ गया और खुद भी मायूस हो गया। 

मैं वापस अपने बिस्तर पर आ गया और इधर उधर की बातें होने लगी। तभी मैंने रिंकी की तरफ देखा और कहा, “रिंकी, अगर तुम्हें तकलीफ न हो तो क्या हमें चाय मिल सकती है?” 

“क्यूँ नहीं, इसमें तकलीफ की क्या बात है। आप लोग बैठो, मैं अभी चाय बनाकर लती हूँ।” इतना कह कर रिंकी ऊपर चली गई और चाय बनाने लगी। जैसे ही रिंकी गई, मैंने उठ कर राजेश को गले से लगाया और उसे बधाई देने लगा। राजेश ने भी मुझे गले से लगाकर मुझे धन्यवाद दिया और फिर से मायूस सा चेहरा बना लिया।

“क्या हुआ साले, ऐसा मुँह क्यूँ बना लिया?”

"कुछ नहीं यार, बस खड़े लंड पर धोखा।” उसने कहा और हमने एक दूसरी की आँखों में देखा और हम दोनों के मुँह से हंसी छूट गई। 

“अरे नासमझ, तू बिल्कुल बुद्धू ही रहेगा। मैंने तेरी तड़प देख ली थी इसीलिए तो रिंकी को ऊपर भेज दिया। आज घर में कोई नहीं है, तू जल्दी से ऊपर जा और मज़े ले ले।” मैंने आँख मारते हुए कहा।
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03-29-2019, 11:23 AM,
#9
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
राजेश और रिंकी की प्रेमलीला

मेरी बात सुनकर राजेश की आँखों में दुबारा चमक लौट आई थी और उसने मुझे एक बार और गले से लगा लिया। मैंने उसे हिम्मत दी और उसे ऊपर भेज दिया। राजेश दौड़ कर रिंकी तीसरी मंजिल वाली रसोई में पहुँच गया। मेरी अपनी उत्तेजना राजेश से कहीं ज्यादा बढ़ गई थी यह देखने के लिए कि दोनों क्या क्या करेंगे। राजेश के जाते ही मैं भी उनकी तरफ दौड़ा और जाकर ऊपर रसोई के सामने वाले बेडरूम में छिप गया। हमारे घर कि बनावट ऐसी थी कि बेडरूम के ठीक सामने ही रसोई बनी हुई थी। मैं बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुप कर बैठ गया। रिंकी उस वक्त रसोई में चाय बना रही थी और राजेश धीरे धीरे उसके पीछे पहुँच गया। उसने पीछे से जाकर रिंकी को अपनी बाहों में भर लिया। 

रिंकी इसके लिए तैयार नहीं थी और वो चौंक गई, उसने तुरंत मुड़कर पीछे देखा और राजेश को देखकर हैरान रह गई, “यह क्या कर रहे हो, जाओ यहाँ से वरना सोनू को हम पर शक हो जायेगा।” यह कहते हुए रिंकी ने अपने आपको छुड़ाने की कोशिश की। 

राजेश ने उसकी बात को अनसुना करते हुए उसे और जोर से अपनी बाहों में भर लिया और उसके गर्दन पर चूमने लगा। रिंकी बार बार उसे मना करती रही और कहती रही कि सोनू आ जायेगा, सोनू आ जायेगा। 

राजेश ने धीरे से अपनी गर्दन उठाई और उसको बोला," टेंशन मत लो मेरी जान, सोनू ने ही तो सब प्लान किया है। उसे हमारे बारे में सब पता है और उसने हम दोनों को मिलाने के लिए ही यह नाटक रचा है।”

“क्या आअ्अ!?! सोनू सब्ब् जानता है। हे भगवान !!!” इतना कहकर उसकी आँखें झुक गईं और मैंने देखा कि उसके चेहरे पर पहले कुछ चिन्ता का भाव आया और फिर अगले ही पल उसके होठों पर एक अजीब और हल्की सी निश्चन्तता भरी मुस्कान आ गई थी।

“जान, हमारे हाथ में ज्यादा समय नहीं है इन सब बातों में अपना वक्त मत बर्बाद करो”। यह बोलते बोलते राजेश ने रिंकी को अपनी तरफ घुमाया और उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उसके रसीले होठों को अपने होठों में भर लिया। रिंकी ने भी निश्चिंत होकर उसके होठों का रसपान करना शुरू कर दिया। रिंकी के हाथ राजेश के पीठ पर घूम रहे थे और वो पूरे जोश में उसे अपने बदन से चिपकाये जा रही थी। 

राजेश के हाथ अब धीरे धीरे रिंकी की चूचियों पर आ गए और उसने एक हल्का सा दबाव डाला। राजेश की इस हरकत से रिंकी ने अचानक अपने होठों को छुडाया और एक मस्त सी सिसकारी भरी। शायद पहली बार किसी ने उसकी चूचियों को छुआ था, उसके माथे पर पसीने की बूँदें झलक आई। 

राजेश उसके बदन से थोड़ा अलग हुआ ताकि वो आराम से उसकी चूचियों का मज़ा ले सके। रिंकी ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिए और राजेश के बालों में अपनी उँगलियाँ फेरने लगी। राजेश ने अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें प्यार से सहलाने लगा। रिंकी के मुँह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थीं। 

राजेश ने धीरे धीरे उसके गले को चूमते हुए उसकी चूचियों की तरफ अपने होंठ बढ़ाये और रिंकी के टॉप के ऊपर से उसकी चूचियों को चूम लिया। जैसे ही राजेश ने अपने होंठ रखे, रिंकी ने उसके बालों को जोर से पकड़ कर खींचा। रिंकी का टॉप गोल गले का था जिसकी वजह से वो उसकी चूचियों की घाटी को देख नहीं पा रहा था। उसने अपना हाथ नीचे बढ़ाकर टॉप को धीरे धीरे ऊपर करना शुरू किया और साथ ही साथ उसे चूम भी रहा था। रिंकी अपनी धुन में मस्त थी और इस पल का पूरा पूरा मज़ा ले रही थी। 

राजेश ने अब उसका टॉप उसकी चूचियों के ऊपर कर दिया। रिंकी को शायद इसका एहसास नहीं था, उसे पता ही नहीं था कि क्या हो रहा है, वो तो मानो जन्नत में सैर कर रही थी। 

“हम्मम्मम.....उम्म्म्म्म्म....ओह राजेश मत करो......”

राजेश ने उसकी तरफ देखा और अपने हाथ उसकी पीठ की तरफ बढ़ाकर रिंकी की काली ब्रा के हुक खोल दिए। रिंकी को इस बात का कोई पता नहीं था कि राजेश ने उसके उभारों को नंगा करने का पूरा इन्तजाम कर लिया है। राजेश ने अपने हाथों को सामने की तरफ किया और ब्रा के कप्स को ऊपर कर दिया जिससे रिंकी कि गोल मदहोश कर देने वाली बड़ी बड़ी बिल्कुल गोरी गोरी चूचियाँ बाहर आ गईं। 

“हे भगवान!" मेरे मुँह से धीरे से निकल पड़ा। 

सच कहता हूँ दोस्तो, इन्टरनेट पर तो बहुत सारी ब्लू फिल्में देखी थीं और नेट पर कई रंडियों और आम लड़कियों की चूचियों का दीदार किया था लेकिन जो चीज़ अभी मेरे सामने थी उसकी बात ही कुछ और थी। हलाकि मैं थोड़ी दूर खड़ा था लेकिन मैं साफ साफ उन दो प्रेम कलशों को देख सकता था। 
34 इंच की बिल्कुल गोरी और गोल चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी और उनका आकार ऐसा था मानो किसी ने किसी मशीन से उन्हें गोलाकार रूप दे दिया है। उन दोनों कलशों के ऊपर ठीक बीच में बिल्कुल गुलाबी रंग के किशमिश जितने बड़े बड़े दाने थे जो कि उनकी खूबसूरती में चार नहीं आठ आठ चांद लगा रहे थे। 

मेरे लंड ने तो मुझे तड़पा दिया और कहने लगा कि राजेश को हटा कर अभी तुरंत रिंकी को पटक कर चोद डालो। मैंने अपने लंड को समझाया कि यह दोस्त की महबूबा है और मुझे सिर्फ देख कर ही मजे लेना चाहिए। मैंने अपने मन से इस विचार को जबरजस्ती निकाल बाहर किया और आगे का खेल देखने लगा। रिंकी की चूचियों को आजाद करने के बाद राजेश रिंकी से थोड़ा अलग होकर खड़ा हो गया ताकि वो उसकी चूचियों का ठीक से दीदार कर सके। अचानक अलग होने से रिंकी को होश आया और उसने जब अपनी हालत देखी तो उसके मुँह से चीख निकल गई, “हे भगवान, तुमने यह क्या किया?” और रिंकी ने अपने हाथों से अपनी चूचियाँ छिपा ली। 


राजेश ने कहा, “मेरी जान, मुझे मत तड़पाओ, मैं इन्हें जी भर के देखना चाहता हूँ। अपने हाथ हटा लो ना!”

रिंकी ने अपना सर नीचे कर लिया था और अपनी आँखों को एक मस्त सी अदा के साथ उठा कर राजेश को देखा और शरमा कर उसके गले से लिपट गई गई। राजेश ने उसे अलग किया और अपने घुटनों के बल नीचे बैठ गया। नीचे बैठ कर राजेश ने रिंकी के दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर की तरफ रखने का इशारा किया। 

रिंकी ने शरमाते हुए अपने हाथ ऊपर अपने गर्दन के पीछे रख लिए। क्या बताऊँ यारो, उस वक्त रिंकी को देखकर ऐसा लग रहा था मानो कोई अप्सरा उतर आई हो ज़मीन पर। मेरे होठ सूख गए थे उसे इस हालत में देखकर। मैंने अपने होटों पर अपनी जीभ फिराई और अपनी आँखें फाड़ फाड़ कर उन दोनों को देखने लगा। राजेश ने नीचे बैठे बैठे अपने हाथ ऊपर किये और रिंकी की चूचियों के दो किसमिस के दानों को अपनी उँगलियों में पकड़ लिया। दानों को छेड़ते ही रिंकी के पाँव कांपने लगे और उसकी साँसें तेज हो गईं। आती–जाती साँसों की वजह से उसकी चूचियाँ ऊपर-नीचे हो रही थी। 

राजेश ने उसके दानों को जोर से मसल दिया और लाल कर दिया। रिंकी ने अपने होठों को गोल कर लिया और सिसकारियों की झड़ी लगा दी। रिंकी ने नीचे एक स्कर्ट पहन रखी थी जो उसकी नाभि से बहुत नीचे थी। राजेश ने अब अपने हाथो की हथेली खोल ली और उसकी चूचियों को अपने पूरे हाथों में भर लिया और दबाने लगा। रिंकी के हाथ अब भी ऊपर ही थे और वो मज़े ले रही थी। राजेश ने अपना काम जारी रखा था और धीरे से अपनी नाक को रिंकी की नाभि के पास ले जाकर उसे गुदगुदी करने लगा। 

अपने नाक से उसकी नाभि को छेदने के बाद राजेश ने अपनी जीभ बाहर निकाली और धीरे से नाभि के अंदर डाल दिया।

“उम्म्म्म......ओह राजेश, ओह राजेश” रिंकी ने सिसकारी भरते हुए कहा और अपने हाथ नीचे करके राजेश के बालों को पकड़ लिया। 

राजेश आराम से उसकी नाभि को अपने जीभ से चाटने लगा और धीरे धीरे नाभि के नीचे की तरफ बढ़ने लगा। उधर रिंकी इस एहसास का मज़ा ले रही थी और इधर मेरी हालत तो ऐसी हो रही थी मानो मैं अपनी आँखों के सामने कोई जीती जागती असली ब्लू फिल्म देख रहा हूँ।


मैंने कब अपने लंड को बाहर निकाल लिया था, मुझे खुद पता नहीं चला। मेरे हाथ मेरे लंड की हल्की हल्की मालिश कर रहे थे। 

सच कहूँ तो बार-बार मेरा दिल कर रहा था कि अभी उनके सामने चला जाऊँ और राजेश को हटा कर खुद रिंकी के बेमिसाल बदन का मजा लूँ। पर मैनें फिर से खुद को यह याद दिलाया कि यह दोस्त की महबूबा है और मुझे इसे सिर्फ देख कर ही मजे लेना चाहिए, मैंने अपने आप को सम्भाला और अपनी आँखें उनके ऊपर जमा दी। 

अब मैंने देखा कि राजेश अपने दाँतों से रिंकी की स्कर्ट को नीचे खींचने की कोशिश कर रहा है और थोड़ा सा नीचे कर भी दिया था। ऐसा करने से रिंकी की पैंटी दिखने लगी थी। पता नहीं रिंकी को इन सब का होश भी था या नहीं, शायद नहीं क्यूंकि उसके चेहरे पर भाव हर पल बदल रहे थे और एक अजीब सी चहक उसकी आँखों में नज़र आ रही थी। 

अब राजेश ने उसकी चूचियों को अपने हाथों से आजाद कर दिया था और अपने हाथों को नीचे लाकर स्कर्ट के अंदर से रिंकी की पिंडलियों को सहलाना शरू कर दिया।धीरे धीरे उसके पैरों को सहलाते–सहलाते उसकी स्कर्ट को भी साथ ही साथ ऊपर करने लगा था। रिंकी की गोरी–गोरी टाँगे अब सामने आ रही थीं। कसम से यारो, उसके पैरों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कभी भी उनके ऊपर कोई बाल उगे ही नहीं होंगे। इतनी चिकनी टाँगे कि ट्यूब लाईट की रोशनी में वो चमक रही थीं।

धीरे धीरे राजेश ने उसकी स्कर्ट को जांघों तक उठा दिया और बस यह देखते ही मानो राजेश बावला हो गया और अपने होठों से पूरी जांघों को पागलों की तरह चूमने और चाटने लगा। रिंकी की हालत अब भी खराब थी, वो बस अपनी आँखें बंद करके राजेश के बालों को सहला रही थी और अपने कांपते हुए पैरों को सम्भालने की कोशिश कर रही थी। 

राजेश ने रिंकी की स्कर्ट को थोड़ा और ऊपर किया और अब हमारी आँखों के सामने वो था जिसकी कल्पना हर मर्द करता है। काली छोटी सी वी शेप की पैंटी जो कि रिंकी की चूत पर बिल्कुल फिट थी और ऐसा लग रहा था मानो उसने अपनी उस पैंटी को बिल्कुल अपनी त्वचा की तरह चढ़ा रखा हो। 

पैंटी के आगे का भाग पूरी तरह से गीला था और हो भी क्यूँ ना, इतनी देर से राजेश उसे मस्त कर रहा था। इतने सब के बाद तो एक 80 साल की बुढ़िया की चूत भी पानी पानी हो जाये। राजेश ने अब वो किया जिसकी कल्पना शायद रिंकी ने भी कभी नहीं की थी, उसने रिंकी की रस से भरी चूत को पैंटी के ऊपर से चूम लिया। 

“हाय..... राजेश, यह क्या कर रहे हो? प्लीज़ वहाँ नहीं, वहाँ नहीं प्लीज़।” रिंकी के मुँह से बस इतना ही निकल पाया। 

राजेश बिना कुछ सुने उसकी चूत को मज़े से चूमता रहा और इसी बीच उसने अपने होठों से रिंकी की पैंटी के एलास्टिक को पकड़ कर अपने दाँतों से खींचना शुरू किया। रिंकी बिल्कुल एक मजबूर लड़की की तरह खड़े खड़े अपनी पैंटी को नीचे खिसकते हुए महसूस कर रही थी। 

राजेश की इस हरकत की कल्पना मैंने भी नहीं की थी। “साला, पूरा उस्ताद है।” मेरे मुँह से निकला। 

जैसे जैसे पैंटी नीचे आ रही थी, मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थी, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो मेरा दिल उछल कर बाहर आ जायेगा। मैंने सोचा कि जब अभी यह हाल है तो पता नहीं जब पूरी पैंटी उतर जाएगी और उसकी चूत सामने आएगी तो क्या होगा। खैर मैंने सोचना बंद किया और फ़िर से देखना शुरू कर दिया। 

अब तक राजेश ने अपने दांतों का कमाल कर दिया था और पैंटी लगभग उसकी चूत से नीचे आ चुकी थी, काली-काली रेशमी मुलायम झांटों से भरी चूत को देखकर मेरा सर चकराने लगा। राजेश भी अपना सर थोड़ा अलग करके रिंकी की हसीन जन्नत के दर्शन करने लगा। रिंकी को जब इसका एहसास हुआ तो उसने अपने हाथों से अपनी चूत को छिपा लिया और एक हाथ से अपनी पैंटी को ऊपर करने लगी। 

राजेश ने मौका नहीं गंवाया और उसकी पैंटी को खींच कर पूरी तरह उसके पैरों से अलग कर दिया। 

"हे भगवान”, अगर मैंने अपने आपको सम्भाला नहीं होता तो मेरे मुँह से जोर की आवाज़ निकल जाती। मैंने बहुत मुश्किल से अपने आपको रोका और अपने लंड को और जोर से सहलाने लगा। राजेश ने जल्दी से अपने होंठ रिंकी की चूत पर रख दिया और एक ज़ोरदार चुम्बन लिया। 

"उम्म्म्म...आआहह्ह्ह, नहीं राजेश नहीं, प्लीज़ मुझे छोड़ दो।" यह कहते हुए रिंकी ने उसका सर हटाने की कोशिश की लेकिन राजेश भी खिलाड़ी था, उसने अपने सर के ऊपर से रिंकी का हाथ हटाया और अपनी जीभ बाहर निकाल कर पूरी चूत को चाटना शुरू कर दिया। 

"ओह्ह मां, यह क्या कर रहे हो तुम...प्लीज़ ऐसा मत करो...मुझे कुछ हो रहा है...प्लीज़ ...प्लीज़ राजेश रूको प्लीज़, राजेश रूक जाओ प्लीज़। ह्म्म्म्म्..." रिंकी की सिसकारियाँ और तेज हो गईं।
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03-29-2019, 11:23 AM,
#10
RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
राजेश ने अब अपने हाथो को रिंकी के हाथों से छुड़ाया और अपनी दो उँगलियों से चूत के होठों को फैलाया और देखने लगा। बिल्कुल गुलाबी और रस से सराबोर चूत की छोटी सी गली को देखकर राजेश भी अपना आप खो बैठा और अपनी पूरी जीभ अंदर डाल कर उसकी जीभ चुदाई चालू कर दी। ऐसा लग रहा था मानो राजेश की जीभ कोई लंड हो और वो एक कुंवारी कमसिन चूत को चोद रही हो। 

"ह्म्म्म्म...ओह राजेश, यह क्या हो रहा है मुझे...??? ऊउम्म... छोड़ो मुझे, प्लीज़ मुझे छोड़ दो, अब बस, अब और नहीं प्लीज़ । अब बस करो प्लीज़...... अब बस, राजेश अब रूक जाओ" रिंकी के पाँव अचानक से तेजी से कांपने लगे और उसका बदन अकड़ने लगा।

मैं समझ गया कि अब रिंकी की चूत का पानी छूटने वाला है। 

"आःह्ह्ह...आआह्ह्ह...आःह्ह्ह...ऊम्म्म्म.... अब बस……अब बस……..अब बस करो प्लीज़...आऐईईई... उई" और रिंकी ने अपना पानी छोड़ दिया और पसीने से लथपथ हो गई। उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो उसने कई कोस की दौड़ लगाई हो। 

राजेश अब भी उसकी चूत चाट रहा था। इन सबके बीच मेरी हालत अब बर्दाश्त करने की नहीं रही और इस लाइव ब्लू फिल्म को देखकर मेरा लावा बाहर निकल पड़ा। 

"आःह्ह्ह्ह्ह...उम्म्म...” एक जोर की सिसकारी मेरे मुँह से बाहर निकली और मेरे लंड ने ढेर सारा लावा निकाल दिया। 

मेरी आवाज़ ने उन दोनों को चौंका दिया और दोनों बिल्कुल रुक से गए। रिंकी ने तुरंत अपना शर्ट नीचे करके अपनी चूचियों को ढका और अपनी स्कर्ट नीचे कर ली। राजेश इधर उधर देखने लगा और यह जानने की कोशिश करने लगा कि वो आवाज़ कहाँ से आई। 

मुझे अपने ऊपर गुस्सा आया लेकिन मैं मजबूर था, आप ही बताइए दोस्तो, अगर आपके सामने इतनी खूबसूरत लड़की अपनी चूचियों को बाहर निकाल कर अपनी स्कर्ट उठाये और अपनी चूत चटवाए तो आप कैसे बर्दास्त करेंगे। मैंने भी जानबूझ कर कुछ नहीं किया था, सब अपने आप हो गया। मै कुछ पीछे हट कर छुप गया।

रिंकी थोड़ी डर सी गई, दौड़ कर और रसोई की बगल वाले बाथरूम में चली गई और बाथरूम में घुसकर अपनी साँसों पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी। राजेश भी तड़पता हुआ उसके पीछे दौड़ा। फिर मैंने देखा कि राजेश कलाईयों से उसका हाथ पकड़ कर करीब करीब खींचते हुये उसे बाहर ले आ रहा था। 

एक बार फिर से उसने रिंकी को अपनी बाहों में भर लिया। रिंकी अब भी उस खुमार से बाहर नहीं आई थी। वो भी राजेश से लिपट गई। मैं अब तक थोड़ा सामान्य हो चुका था लेकिन आगे का दृश्य देखने की उत्तेजना में मेरा लंड सोने का नाम ही नहीं ले रहा था। 

"नहीं राजेश, प्लीज़ अब तुम चले जाओ। शायद सोनू हमें छुप कर देख रहा था। मुझे बहुत शर्म आ रही है। हाय राम, वो क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में!” 

“ऊईईई... छोड़ो ना... !!" रिंकी ने राजेश की बाहों में कसमसाते हुये कहा। रिंकी का काम तो पूरा हो चुका था लेकिन राजेश का अभी बाकी था और मै जानता था कि राजेश उसे इस तरह छोड़नें वाला नहीं है।


“अरे मेरी जान, मैंने तो पहले ही तुम्हे बताया था कि हमारे मिलन का इन्तेजाम सोनू ने ही किया है, लेकिन वो नीचे अपने कमरे में है...। अब तुम मुझे और मत तड़पाओ" राजेश ने याचना भरी आवाज़ में रिंकी से कहा। 

"ओह्ह्ह्ह...राजेश, अब तुम्हे जाना चाहिए...उम्म्मम...बस करो...आऐईई…उई!!!!" रिंकी की एक मदहोश करने वाली सिसकारी सुनाई दी और मैंने फिर से अपनी नजरें उन दोनों पर गड़ा ली थीं । मेरा एक हाथ लंड पर ही था। 

राजेश ने फिर से रिंकी की चूचियों को बाहर निकाल रखा था और उन्हें अपने मुँह में भर कर चूस रहा था। राजेश ने अपना एक हाथ रिंकी की चूचियों से हटाया और अपने पैंट के बटन खोलने लगा। उसने अपने पैंट को ढीला कर के अपने लंड को बाहर निकाल लिया। बाथरूम की हल्की रोशनी में उसका काला लंड बहुत ही खूंखार लग रहा था। राजेश ने अपने हाथों से रिंकी का एक हाथ पकड़ा और उसे सीधा अपने लंड पर रख दिया। जैसे ही रिंकी का हाथ राजेश के लंड पर पड़ा उसकी आँखें खुल गईं और उसने अपनी गर्दन नीचे करके यह देखने की कोशिश की कि आखिर वो चीज़ थी क्या। 

"हाय राम..." बस इतना ही कह पाई वो और आँखों को और फैला कर लंड को देखा और उस पर से इस तरह अपना हाथ हटा लिया जैसे उसके हाथों में बिजली की करन्ट लग गई हो । 

राजेश पिछले एक घंटे से उसके खूबसूरत बदन को भोग रहा था इस वजह से उसका लंड अपनी चरम सीमा पर था और अकड़ कर लोहे की सलाख के जैसा हो गया था। 

राजेश ने एक बार फिर से रिंकी का एक हाथ पकड़ा और उसे अपने लंड पर रख दिया। राजेश ने रिंकी की तरफ देखा और उसकी आँखों में देखकर उसे कुछ इशारों में कहा और उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर आगे पीछे करने लगा। रिंकी को उसने अपने लंड को सहलाने का तरीका बताया और फिर वापस अपने हाथों को उसकी चूचियों पर ले जाकर उनसे खेलने लगा। 

रिंकी के लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था, उसने राजेश के लंड को ऐसे पकड़ रखा था जैसे उसे कोई बिलकुल अजीब सा नया नया खिलौना मिल गया हो और उसके हाथ अब तेजी से आगे-पीछे होने लगे। 

राजेश ने अब रिंकी की चूचियों को छोड़ दिया और उत्तेजना में अपने मुँह से आवाजें निकलने लगा, "हाँ मेरी जान, ऐसे ही करती रहो... मेरे लंड को खुशी से पागल कर दो...और हिलाओ... और जोर से हिलाओ... बस हिलाती जाओ”। 

“हम्मम...ऊम्म्म्म" 

रिंकी ने अचानक अपने घुटनों को मोड़ा और नीचे बैठ गई। नीचे बैठने से राजेश का लंड अब रिंकी के मुँह के बिलकुल सामने था और उसने लंड को हिलाना छोड़ कर उसे ठीक तरीके से देखने लगी। शायद रिंकी का पहला मौका था किसी जवान लंड को देखने का। 

रिंकी ने अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करना शुरू किया और एक हाथ से राजेश के लटक रहे दोनों अण्डों को पकड़ लिया। अण्डों को अपने हाथों में लेकर दबा दबा कर देखने लगी। रिंकी का हाथ राजेश के लंड को जन्नत का मज़ा दे रहा था, उसने अपनी रफ़्तार और तेज कर दी। 

"हाँ रिंकी...मेरी जान...उम्म्मम...ऐसे ही, ऐसे ही करो, बस करती जाओ ...बस अब मैं रिसनें ही वाला हूँ...उम्म्म." 

राजेश अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था और किसी भी वक्त अपने लंड की धार छोड़ने वाला था। राजेश का बदन पूरी तरह से तन गया था। 

"ओह्ह्ह्ह...ह्हान्न्न...बस... म्म् म्म् मैं गया, ओह मैं, मैं गया..." 

रिंकी अपने नशे में थी और मज़े से उसका लंड पूरी रफ़्तार से हिला रही थी। रिंकी की साँसें बहुत तेज़ थीं और उसकी खुली हुई चूचियाँ हाथों की थिरकन के साथ-साथ हिल रहीं थीं। 

मेरा हाल फिर से वैसा ही हो चुका था जैसा थोड़ी देर पहले हुआ था। मेरा लंड भी अपनी चरमसीमा पर था और कभी भी अपनी प्रेम रस की धार छोड़ सकता था। मैं इस बार के लिए पहले से तैयार था और अपने मुँह को अच्छी तरह से बंद कर रखा था ताकि फिर से मेरी आवाज़ न निकल जाए। 

"आआअह्ह्ह...हाँऽऽऽऽ ऊउम्म्म्म... हाँऽऽऽ..." इतना कहते ही राजेश ने अपने लंड से एक गाढ़ा और ढेर सारा लावा सीधा रिंकी के मुँह पर छोड़ दिया।

रिंकी इस अप्रत्याशित पल से बिल्कुल अनजान थी और जैसे ही उसके मुँह के ऊपर राजेश का लावा गिरा, अपनें आप उसकी आँखें बंद हो गईं लेकिन उसने लंड को नहीं छोड़ा और उसे हिलाती रही।

लगभग तीन बार राजेश के लंड ने लावा छोड़ा और रिंकी के गुलाबी गालों और उसके मस्त मस्त होठों को अपने वीर्य से सराबोर दिया। 

जब राजेश का लंड थोड़ा शांत हुआ तब रिंकी अपनी आँखें ऊपर करके राजेश को देखने लगी। फिर दोनों खड़े हो कर फिर से बाथरूम में चले गये। रिंकी दूसरी तरफ करके अपन मुँह धो रही थी और राजेश पीछे से शायद उसकी चूचियाँ दबा रहा था। उनके दुबारा बाथरूम में जाते ही मैं बेडरूम से निकल कर सीढ़ियों पर आ गया और वहाँ से छिप कर उनको देखने लगा।

"अब हटो भी... सोनू कहीं हमें ढूंढता ढूंढता ऊपर न आ जाये। तुम जल्दी से नीचे जाओ मैं चाय लेकर आती हूँ।" रिंकी ने राजेश को खुद से अलग किया और अपने टॉप को नीचे करके अपनी ब्रा का हुक लगाया और अपनी पैंटी को भी अपने पैरों में डाल कर अपने बाल ठीक किये। 

"रिंकी, मेरी जान...अब यह सुख दुबारा कब मिलेगा??" राजेश ने वापस रिंकी को अपनी बाहों में भरने की कोशिश करते हुए पूछा और उसे चूम लिया। । 

"पता नहीं, आगे की आगे सोचेंगे...जब हम यहाँ तक पहुँचे हैं तो आगे भी कभी न कभी पहुँच ही जायेंगे..." उसने राजेश की बात का उत्तर देते हुये कहा।
मैं रिंकी का यह जवाब सुनकर मैं सोच में पड़ गया कि हो न हो, रिंकी ने इन पलों का शायद बहुत मज़ा लिया था और वो आगे भी बढ़ना चाहती है... यानि अगली बार वो लंड अंदर लेने के लिए भी पूरी तरह से तैयार थी। सच कहते हैं लोग...औरत अपने चेहरे के भावों को अच्छी तरह से मैनेज करने में हम मर्दों से बहुत ज्यादा सक्षम होती है। 

रिंकी ने अपने चेहरे से कभी यह महसूस नहीं होने दिया था कि वो अन्दर से इतनी गरम और इतनी सेक्सी हो सकती है। मैं तो यह सब देख कर दंग रह गया था और मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैंने अभी अभी एक मस्त ब्लू फिल्म देखी हो। 

खैर मैंने जल्दी से अपने आप को सम्भाला और सीधा नीचे भागा। मैं इतनी तेजी से नीचे भागा कि एक बार तो मेरे पैर फिसलते–फिसलते रह गए। मैं सीधा अपने बिस्तर पर गया और लेट गया, मैंने अपने हाथों में एक किताब ले ली और ऐसा नाटक करने लगा जैसे मैं कुछ बहुत जरुरी चीज़ पढ़ रहा हूँ। 

राजेश दौड़ कर नीचे आया और सीधा मेरे कमरे में घुस गया। उसने मेरी तरफ देखा और सीधा मुझसे लिपट गया। लिपटे-लिपटे ही उसने मेरे कानों में थैंक्स कहा और यह पूछा कि कहीं वो मैं ही तो नहीं था जिसकी आवाज़ ऊपर आई थी। 

अनजान और नासमझ बनते हुये मैं खुद ही राजेश पूछने लगा कि क्या हुआ...? 

राजेश ने कहा कुछ नहीं और वापस जाकर सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया जहाँ वो पहले बैठा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी विजयी मुस्कान थी। मैं भी अपने दोस्त की खुशी में बहुत खुश था। रिंकी के पैरो की आहट ने हमें सावधान किया और हम चुप होकर बैठ गए और रिंकी अपने हाथों में चाय की प्यालियाँ लेकर कमरे में दाखिल हुई। 

रिंकी बिल्कुल सामान्य थी और ऐसा लग रहा था मानो कुछ हुआ ही नहीं था। वो अपने चेहरे पर वापस अपनी वही रोज वाली मुस्कान के साथ मेरी तरफ बढ़ी और मुझे चाय देने लगी। मैंने उसकी आँखों में देखा और वापस चाय की तरफ ध्यान देते हुए एक हल्की सी मुस्कान दे दी जो मैं हमेशा ही देता था। 

उसने राजेश को भी चाय दी और अपनी चाय लेने के लिए वापिस मुड़ी। रिंकी जैसे ही मुड़ी, उसके विशाल नितंबों ने मेरा मुँह खोल दिया। आज मैंने पहली बार रिंकी को इस तरह देखा था। उसके मोटे और गोल विशाल कूल्हों को मैं देखता ही रह गया। 

मेरी इस हरकत पर राजेश की नज़र चली गई और वो मेरी तरफ देखने लगा...रिंकी के जाते ही राजेश ने मुझसे दोबारा वही सवाल किया," सोनू, मैं जानता हूँ मेरे भाई कि वहाँ ऊपर तू ही था, तू ही था न?" मैंने राजेश के आँखों में देखा और धीरे से आँख मार दी। 

"साले...मुझे पता था..." राजेश बोलकर हंस पड़ा और मुझे भी हंसी आ गई... 

हम दोनों ने एक दूसरे को गले से लगा लिया और जोर से हंसने लगे...तभी रिंकी हमारे सामने आ गई अपने हाथों में चाय का कप लेकर और हमें शक भरी निगाहों से देखने लगी। अब तक तो रिंकी को यह नहीं पता था कि मैंने सब कुछ देख लिया था लेकिन हमें इतना खुश देखकर उसे थोड़ी थोड़ी भनक जरूर आ रही थी कि हो न हो यह मेरी ही आवाज़ थी जो ऊपर सुनाई दी थी... 

इस बात का एहसास होते ही रिंकी का चेहरा शर्म से इतना लाल हो गया कि बस पूछो मत। इतना तो वो उस वक्त भी नहीं शरमाई थी जब राजेश ने उसकी चूत को अपने जीभ से चोदा था... 

रिंकी की नज़र अचानक मुझसे लड़ गई और वो शरमाकर वापस जाने लगी...
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