Desi Porn Kahani अनोखा सफर
09-20-2019, 01:48 PM,
#1
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अनोखा सफर


चेहरे पे पड़ते लहरो के थपेड़े ने मेरी आंखे खोली तो मैंने खुद को रेत पे पड़ा हुआ पाया। चारो तरफ नज़रे दौड़ाई तो लगा जैसे मैं किसी छोटे से द्वीप पर हु। मैं जहाँ पे खड़ा था रेत थी जो की थोड़ी दूर पे घने जंगलों में जाके ख़त्म हो रही थी। मैंने खुद पे नज़र दौड़ाई तो मेरे कपडे पानी में भीगे हुए थे मेरे सारा सामान गायब था और प्यास के मारे मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा था। प्यास से तड़पते हुए मैंने सोचा की सामने के जंगलों में पानी की तलाश में जाया जाये ।
सामने कदम बढ़ाते हुए मैं सोचने लगा की मैं यहाँ पर कैसे पंहुचा । दिमाग पर बहुत जोर देने पे आखरी बात जो मुझे याद आया वो ये था कि मैं अपनी रेजिमेंट के कुछ जवानों के साथ अंडमान निकोबार द्वीप के पास एक खुफिया मिशन पे था जब हमारी बोट तूफ़ान में फस गयी। तेज बारिश के कारण हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था कि अचानक हमारी नाव पलट गयी । बहुत देर तक तूफ़ान में खुद को डूबने से बचाने की कोशिश करना ही आखरी चीज़ थी जो मुझे याद थी।
प्यास थी जो ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थी अब तो थकान के कारण ऐसा लग रहा था कि अब आगे बढ़ना मुमकिन नहीं है पर शायद आर्मी की कड़ी ट्रेनिंग का ही नतीजा था कि मैं बढ़ा चला जा रहा था । तभी अचानक मुझे सामने छोटी सी झील दिखाई दी प्यासे को और क्या चाहिए था मैं भी झील की तरफ लपक पड़ा । झील का पानी काफी साफ़ था और आस पास के पेड़ो से पक्षिओं की आवाज आ रही थी । मैंने भी पहले जी भर के पानी पिया फिर बदन और बाल में चिपकी रेत धुलने के लिए कपडे उतार कर झील में नहाने उतर गया। जी भर नाहने के बाद मैं झील से निकल किनारे पर सुस्ताने के लिए लेट गया।
नींद की झपकी लेते हुए मेरी आँख किसी की आवाज से खुली सामने देखा तो आदिवासी मेरे ऊपर भाला ताने खड़े थे। उनकी भाषा अंडमान के सामान्यतः
आदिवासियों से अलग थी जो की संस्कृत का टूटा फूटा स्वरुप लग रही थी चूँकि मैं भारत के उत्तरी भाग के ब्राह्मण परिवार से था तो बचपन से ही संस्कृत पढ़ी थी तो उनकी भाषा थोड़ा समझ में आ रही थी वो जानना चाहते थे की मैं किस समूह से हु। मैंने भी उनका जवाब नहीं दिया बस हाँथ ऊपर उठा के खड़ा हो गया। थोड़ी देर तक वो मुझसे चिल्लाते हुए यही पूछते रहे फिर आपस में कुछ सलाह की और मुझे धकेलते हुए आगे बढ़ने को कहा। मैं भी हो लिया उनके साथ । दोनों काफी हुष्ट पुष्ट थे दोनों ने कानो और नाक में हड्डियों का श्रृंगार किया हुआ था बाल काफी बड़े थे जो की सर के ऊपर बंधे हुए थे शरीर पर टैटू या की गुदना कहु गूदे हुए थे शारीर का सिर्फ पेट के नीचे के हिस्सा ही किसी जानवर के चमड़े से ढंका था । काफी देर तक उनके साथ चलते हुए एक छोटे से कबीले में दाखिल हुए वहां पर उन दोनों की तरह ही दिखने वाले और काबिले वाले दिखाई दिए कबीले की महिलाओं का पहनावा भी पुरुषो जैसा ही था बस उनके शरीर पर कोई टैटू नहीं थे। कुछ देर में ही मेरे चारो ओर काबिले वालो का झुण्ड इकठ्ठा हो गया वो आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगे । कुछ देर बाद उन्होंने मुझे एक लकड़ी के पिजरे में बंदकर दिया।
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09-20-2019, 01:48 PM,
#2
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
पिंजरे में पड़े पड़े रात और फिर सुबह हो गयी पर कोई मेरी तरफ नहीं आया भूख के मारे मेरा बुरा हाल हो गया था पर मैंने भी यहीं रहकर आगे के बारे में सोचने की ठानी ।
काफी इंतज़ार के बाद कल के दोनों आदिवासी फिर लौटे और मुझे लेके एक जगह पर पहुचे जहाँ पे पहले से ही कुछ लोग मौजूद थे उसमे से एक देखने में कबीले का सरदार तथा बाकी सब कबीले केअन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति लग रहे थे । मेरे वहां पहुचते ही सब मुझे घूर घूर के देखने लगे मेरे शरीर पर कपडे नहीं थे मेरे शरीर पर कोई टैटू भी नहीं था तथा मेरे बाल भी आर्मी कट छोटे छोटे थे उन्हें ये सब अजीब लगा। उनमे से एक बुजुर्ग व्यक्ति जिसकी लंबी सफ़ेद दाढ़ी थी संस्कृत में बोलना शुरू किया उसने पूछा
सफ़ेद दाढ़ी मेरा नाम चरक है तुम्हारा क्यानाम है वत्स?
मैंने भी टूटी फूटी संस्कृत में जवाब दिया "मेरा नाम अक्षय है "
मेरे मुंह से संस्कृत सुनके वे चौंके पर चरक ने पूछना चालू रखा "तुम किस कबीले से हो ?"
मैंने जवाब दिया "मैं किसी कबीले से नहीं भारतीय सेना से हु ।"
सेना का नाम सुनते ही सरदार आग बबूला हो गया उसने चिल्लाते हुए सैनिको को मुझे मारने का आदेश सुना दिया वो दोनों आदिवासी सैनिक जो मुझे लेके आये थे मेरी तरफ लपके तभी चरक ने आदेश देके उन्हें रोका। चरक ने सरदार से कहा "महाराज ये युद्ध नहीं है आप किसी सैनिक को बिना युद्ध के किसी सैनिक को मारने का हुक्म नहीं दे सकते ये कबीलो के तय नियमो के खिलाफ है"
सरदार ने कहा "ये सैनिक गुप्तचर है इसे मृत्युदंड मिलना ही चाइये मंत्री चरक"
चरक " फिर महाराज आप इससे शस्त्र युद्ध में चुनौती दे सकते है "
सरदार चरक की बात सुनके खुश हो गया और मेरी तरफ कुटिल मुस्कान से देखते हुए बोला " सैनिक मैं तुम्हे शस्त्र युद्ध की चुनौती देता हूं बोलो स्वीकार है "
अब सैनिक होने के नाते मेरे सामने कोई चारा नहीं था मैंने भी कहा " स्वीकार है"
सरदार बोला " तो फिर आज साँझ ये शास्त्र युद्ध होगा सभा खत्म होती है "

खैर सरदार के जाने के बाद आदिवासी सैनिको ने मुझे वापस उसी लकड़ी के पिजरे में बंद कर दिया मैं भी शाम का इंतज़ार करने लगा ।
शाम को मुझे फिर ले जाके एक अखाड़े नुमा जगह खड़ा कर दियागया जिसके चारों तरफ ऊँचे मुंडेर बने हुए थे जहाँ पर काबिले के सभी स्त्री पुरुष बच्चे इकठ्ठा हुए थे । कुछ देर बाद केबीले का सरदार भी अखाड़े में पहुच गया उसके आते ही सारे काबिले वाले जोर जोर से वज्राराज वज्राराज का नारा लगाने लगे । कुछ देर बाद चरक भी अखाड़े में अनेको शस्त्र के साथ प्रवेश करते है और कहते है
"आज शाम हम सब यहाँ शस्त्र युद्ध के लिए उपस्थित हुए है जो की सैनिक अक्षय और हमारे महाराज वज्राराज के बीच किसी एक की मृत्यु तक लड़ा जायेगा "
मृत्यु तक की बात सुन कर अब मुझे सरदार की कुटिल मुस्कान की याद आ गयी की वो मुझे इस तरीके सें मुझे ख़त्मकरने का सोच रहा था। खैर अब मेरा ध्यान बस इस शस्त्र युद्ध पर था । चरक ने फिर हमसे कहा "अब आप दोनों युद्ध के लिए एक शस्त्र चुनेंगे बस शर्त ये है कि दोनों अलग अलग शस्त्र चुनेंगे तो पहले महाराज आप चुने "
सरदार ने एक छोटी तलवार चुनी मैंने आर्मी की ट्रेनिंग में चक्कू से लड़ाई सीखी थी तो मैंने एक चक्कू चुना ।
हम दोनों को अखाड़े मे छोड़ कर चरक ने युद्ध शुरू करने का आव्हान किया।
सबसे पहले सरदार ने युद्ध की पहल की वो दौड़ते हुए मेरी तरफ लपका और तेज़ी से मेरी गर्दन पर तलवार का प्रहार किया वो तो आर्मी की ट्रैनिंग का नतीजा था कि मैं तेजी से अपने बचाव के लिए बैठ गया और मेरी गर्दन बच गयी लेकिन मुझे ये समझ में आ गया कि इस युद्ध में मैं सरदार का तब तक कुछ नहीं कर पाउँगा जब तक सरदार मेरे नजदीक न आये इसी लिए मैं भी सरदारको मुझ पर और वार करने का मौका देने लगा। सरदार देखने में तो मोटा था पर काफी फुर्तीला था वो मेरे ऊपर एक और वार करने के लिए कूदा मैंने पहले की तरह अपने बचाव में खुद को तलवार के काट से दूर किया पर इस बार सरदार ने मेरे बचाव भांप लिया उसने तुरंत फुर्ती से घूम कर वार किया और तलवार मेरा पेट में घाव करते हुए निकल गयी । वार के कारण मुझे ऐसा लगा की मेरी साँस ही रुक गयी हो मैं पैरो के बल गिर पड़ा और अपनी साँस बटोरने लगा इसी बीच सरदार ने मौका पाके मेरी पीठ पर एक वार कर दिया इस बार घाव और गहरा था मेरा शरीर तेजी से लहू छोड़ रहा था और मेरा साथ भी ।
मुझे अब अपना अंत नज़र आ रहा था खैर कहते है जब आदमी के जीवन की लौ बुझने को जोति है तो अंतिम बार खूब जोर से फड़फड़ाती है । मेरे जीवन की लौ ने भी लगता है आखरी साहस किया सरदार मेरा काम तमाम करने के लिए आगे बढ़ा मैं भी लपककर आगे बढ़ा औरउसके वार को बचाते हुए झुकते हुए उसकी पैर की एड़ी की नस काट दी जिसके कारण भारी भरकम सरदार अपने पैरों पे गिर पड़ा मौका देख मैंने भी चाकू सरदार की गर्दन में घोंप दिया जो की शायद उसकी जीवन लीला समाप्त करने के लिए काफी था । सरदार का बोझिल शरीर जमीन पर गिर गया।
अचानक सारे अखाड़े में सन्नटा छा गया मैंने देखा की सारे लोग अचानक अपने घुटनों पे हो कर सर झुकाने लगे । मेरा शरीर मेरे घावों से रिस्ते खून के कारण शिथिल पद रहा था अचानक मेरी बोझिल आँखों ने देखा की एक लड़का मेरी तरफ एक हथोड़े जैसा हथियार लेके दौड़ रहा है । पास आके उसने मेरे सर के ऊपर प्रहार किया जिसे बचाने के लिए मैंने अपनी कुहनी में हथौडे का प्रहार ले लिया पर उस चोट की असहनीय पीड़ा ने मेरे होश गायब कर दिए और मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया ।
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09-20-2019, 01:49 PM,
#3
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
आँखों खोली तो खुद को एक झोपड़ी में पाया जहाँ पे सिरहाने फलो का ढेर लगा हुआ था मेरे शरीर के घावों को जड़ी बूटियों के लेप से भरकर उनपे चमड़े की पट्टी बांध दिया गया था पूरा कमरा चन्दन की खुशबु से महक रहा था । मैं अपने पैरों पे खड़ा होने की कोशिश करने लगा तो जैसे लगा की पैर जवाब दे गए हो । तभी दरवाजे से आवाज आई की " आपको आराम करना चाहिए राजन "
ये चरक महाराज थे मैंने उनसे पूछा की मैं कहाँ हु तो उन्होंने जवाब दिया की " राजन आप इस गरीब वैद्य की कुटिया में है "
मैंने पूछा " आप मुझे राजन क्यों कह रहे है ?"
चरक " राजन हमारे कबीलो का नियम है कि जब कोई काबिले के राजा को युद्ध में हरा देता है तो वो केबीले का राजा हो जाता है इस प्रकार आप केबीले के राजा है"
मैंने पूछा इसका क्या मतलब है
चरक " इसका मतलब है कि अब ये कबीला आप की जिम्मेदारी पर है "
ये सारी बाते मेरा सर घुमा रही थी की तभी कुटिया के दरवाजे पे दरबान ने आवाज दी की रानी विशाखा पधारी हैं ।
चरक " उन्हें अंदर भेजो"
तभी अंदर एक 40 45 साल की महिला प्रवेश करती है चरक " रानी प्रणाम "
विशाखा " अब मैं रानी नहीं रही नए महाराज को दासी का प्रणाम "
मैंने भी प्रणाम किया
विशाखा " महाराज आपसे वज्राराज और हमारे अंतिम संस्कार के लिए क्या आदेश है "
मैंने पूछा " मतलब "
चरक " राजन हमारी परंपरा के अनुसार राजा की मृत्यु के पश्चात उनके आश्रितों को अगर कही आश्रय नहीं मिलता तो उन्हें राजा के साथ ही मृत्यु को वरन करना होता है "
मैंने चौकते हुए पूछा " इसका मतलब रानी विशाखा .."
मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी रानी बोल पड़ी " हां मैं और मेरी बेटी विशाला दोनों मृत्यु का वरन करेंगी "
मैंने फिर चौंकते हुए पूछा " दोनों ??"
विशाखा " जी महाराज"
मैंने पूछा " तो आप किसी से आश्रय क्यों नहीं ले लेती "
विशाखा " ये इतना आसान नहीं है महाराज एक राज परिवार को एक राजा ही आश्रय दे सकता है ।"
मैंने पूछा " क्या मैं आपको आश्रय दे सकता हु ??"
अब चौंकने की बारी विशाखा और चरक की थी । कुछ देर के लिए दोनों चुप हो गए फिर चरक के चेहरे पे एक कुटिल मुस्कान तैर गयी उसने मुझसे पूछा "राजन क्या आप रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला को आश्रय देना चाहते हैं ?"
मैंने कहा हाँ
मेरे ऐसा कहते ही महारानी विशाला ने मेरे चरण स्पर्श किये और शरमाते हुए कुटिया से बाहर चली गयी ।
मैंने अचंभित होते हुए चरक से पुछा" इसका मतलब "
चरक " महाराज हमारे काबिले में आश्रय देने का मतलब है कि आज से रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला आपकी हुई आप उन्हें पत्नी से लेके दासी किसी भी तरह रख सकते है "
ये सोचना मेरे लिए काफी चौकाने वाली थी मैंने चरक से पुछा "तो क्या अब रानी विशाखा मेरी पत्नी है ?"
चरक ने जवाब दिया " नहीं पर आप पत्नी की जरूरतें उनसे पूरी कर सकते है "
अब मेरे दिमाग में रानी विशाखा का शरीर घूम गया सफ़ेद रंग उभरी हुई छाती मोटे चौड़े कूल्हे भरा हुआ बदन बस फिर था दिमाग की चीज़ लंड ने भी भांप ली और लगा हिलौरे मारने ।
चरक जी ने मेरी अवस्था को भांपते हुए कहा " राजन अभी आप स्वस्थ हो जाइये कल आपका अभिषेक है उसके बाद आप रानी को आश्रय दे सकते है ।"
फिर चरक जी ने मुझे एक काढ़ा पीने को दिया जिसको पीने के बाद मुझे नींद आ गयी ।
मेरी आँखें खुलती है तो मैं खुद को फिर उसी कुटिया में पाता हूं मेरे सामने चरक जी बैठे होते है । मेरे आंखे खोलते ही वो मुझसे कहते हैं कि महाराज आज आपका अभिषेक होगा कृपा करके मेरे साथ आये और नित्यक्रिया की तैयारी करे । नित्यक्रिया पूरी करने के बाद चरक जी मुझे स्नान गृह में ले जाते गई जहाँ एक बड़े से गढ्डे ने फूलों वाला पानी था चरक जी ने फिर ताली बजाईं और चार दासियो ने प्रवेश किया चरक जी ने कहा कि ये आपकी व्यक्तिगत परिचारिकाये है आगे का काम ये संपन्न करेंगी ये कहकर चरक चले गए। मैंने चारो की तरफ देखा उनकी उम्र 20 से 21 साल की होगी । मैंने पूछा की तुम्हारा नाम तो उनमें से एक ने जवाब दिया जी परिचारिकाओं के नाम नहीं होते।
अचंभित होते हुए मैं पानी में उतर गया परिचारिकाओं ने भी अपने वस्त्र और आभुषण उतारे और मेरे साथ पानी में आ गयी । दो ने मेरा हाथ पकड़ा और धीरे धीरे मालिश करते हुए मुझे नहलाने लगी । शायद उनके नंगे बदन का असर था जी मेरा लंड फड़फड़ाने लगा। एक ने यह देखा तो धीरे से मेरे लंड की भी मालिश शुरू कर दी फिर क्या था मेरा लंड भी अपने रौद्र रूप में आने लगा । तो फिर उसने मेरे लंड को अपने मुंह में लेके चुसाई शुरू कर दी मैं तो जैसे जन्नत की सैर करने लगा । उसकी चुसाई से लग रहा था कि वो पहले भी ऐसा कर चुकी है । खैर कुछ देर की चुसाई के बाद वो अपनी चूत को सेट करके मेरे लंड पे बैठ गयी और सवारी करने लगी और मुझे असीम आनंद की अनुभूति करवाने लगी । कुछ देर की चुदाई के बाद मुझे भी जोश आने लगा मैंने भी उसके कानों के पास गर्दन पे चुम्मिया लेना शुरू कर दिया जिसके कारण उसकी भी सिसकारियां निकलने लगी मैंने दोनों हाथों सो उसके नितंबो को दबाना शुरू किया और एक उंगली उसकी गांड के छेद में दाल दी अब उसकी सिसकारियां हलकी आहों में बदल गयी अब मैं भी चरमोत्कर्ष के निकट आ रहा था तो मैंने उसके नितंबो को छोड़ उसके वक्ष को मसलना शुरू किया फिर उसके एक चूचक को मुह में लेके चूसा तो वो चीखती हुई झड़ गयी और साथ ही मैं भी। हमारी सांसे जब थमी तो हमने देखा की बाक़ी हमे अचंभित होके देखे जा रही थी जैसे की क्या देख लिया हो मेरी गोद में बैठी का तो गाल टमाटर जैसे लाल हो गया था। किसी तरह नहाने का कार्यक्रम ख़त्म हुआ तो पहनने जे लिए मुझे सभी की तरह एक चमड़े का टुकड़ा मिला जिसे मैंने भी अपने कमर पे लपेट लिया ।
स्नान गृह से बाहर निकला तो देखा चरक जी दरवाजे पे खड़े है उन्होंने कहा कि महाराज आपसे मिलने पुजारन देवसेना आयी है। मैंने पूछा की ये कौन है तो चरक ने बताया कि ये द्वीप के कुल देवता की प्रमुख पुजारन है और इस द्वीप के सारे काबिले इनकी बात मानते है और उनको साथ लेने में हि भलाई है । मैं वापस अपनी कुटिया में पंहुचा मैंने देझा की वहां एक अत्यंत खूबसूरत 30 साल की औरत बैठी है जिसके शारीर पे न कोई वस्त्र है न आभूषण बस पूरे शरीर पर भस्म का लेपन किया हुआ था । उसके वक्ष सुडौल और कमर सुराहीदार ऐसा लग रहा था जैसे कोई अप्सरा हो ।
मैंने उन्हें प्रणाम किया जिसका उसने कोई जवाब नहीं दिया तथा चरक से कहा कि अभिषेक की तैयारी की जाये जिससे वो जल्द से जल्द यहाँ से जा सके। फिर वो कुटिया से निकल गयी।
मैंने चरक की तरफ देखा उसने मुझसे कहा " राजन इन्हें मनाना इतना आसान नहीं लेकिन अगर आप ने मना लिया तो पूरे द्वीप पे आपका राज होगा "
मैंने दिमाग से सारी बातें निकालते हुए चरक से तयारी करने को कहा।
शाम को चरक फिर से कुटिया में प्रवेश किया उन्होंने मुझसे कहा " रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला आपसे मिलने की अनुमति चाहती है "
मैंने कहा "उन्हें अंदर लाईये "
कुछ देर बाद रानी विशाला अंदर आती हैं उनके साथ वही युवक था जिसने वज्राराज के साथ युद्ध के बाद मुझपे हुमला किया था । रानी विशाखा ने परिचय कराया " महाराज ये मेरी पुत्री है विशाला "
मेरा सर चकरा गया अभी तक मैं जिसे लड़का समझ रहा था वो तो लड़की थी पर उसके वक्ष न के बराबर कमर बहुत ही पतली तथा बदन वर्जिश के कारण काफी कसा हुआ तथा टैटू से ढका हुआ था जैसा इस कबीले के पुरुष आदिवासियों के होते है इसलिए मेरा धोखा खा जाना लाजमी था ।
रानी विशाखा बोली " महाराज मेरी पुत्री उस दिन आपके ऊपर वार करने को लेके शर्मिंदा है तथा आपसे माफ़ी माँगना चाहती है ।"
मैंने विशाला को देखा तो उसकी आँखे अभी भी मुझे गुस्से से घूर रही थी तथा उसके हाथ कमर में बंधी तलवार के ऊपर थे उसे देख कर नहीं लग रहा था कि वो माफ़ी माँगना चाह रही हो । मैंने अभी बात और न बढ़ाने की सोचते हुए कहा " महारानी विशाखा मैं विशाखा की मनः स्थिति समझ सकता हु अतः मैंने उसे माफ़ किया "
महारानी विशाखा प्रसन्न हो जाती है " महाराज अब हम बाहर जाने की इज़ाज़त चाहते है "
मैंने कहा " ठीक है "
फिर मैं चरक के तरफ मुड़ा मैंने उनसे पूछा " तो आज इस अभिषेक समारोह में क्या क्या होगा और मुझे क्या करना होगा "
चरक " समारोह में आस पास के कबीलो के सरदार भी आये है पहले आपको इन सब से मिलना होगा फिर पुजारिन महादेवी जी आपको कबीले का सरदार घोषित करते हुए आपका अभिषेक करेंगी और उसके बाद नृत्य संगीत तथा मदिरा का सेवन रात तक चलेगा "
मैंने कहा " और कुछ"
चरक " हाँ महाराज आपको अपने सलाहकार सेनापति और संगिनी का चुनाव भी करना होगा "
मैंने पूछा " ये कैसे होगा ?"
चरक " महाराज आप जिसके सर पर हाथ रख देंगे वो आपका सलाहकार होगा जिसके कंधे पे हाथ रख देंगे वो आपका सेनापति तथा जिसको अपनी जांघ पे बिठा लेंगे वो आपकी संगिनी "
मैंने फिर पूछा " इन तीनो का दायित्व "
चरक " सलाहकार आपको क़बीलों के नियमो राजनीति तथा कूटनीति में सहायता प्रदान करेगा सेनापति आपकी सेना तथा कबीले की सुरक्षा में सहायता प्रदान करेगा तथा वो आपका व्यक्तिगत अंगरक्षक भी होगा तथा जब तक महाराज अपना कोई जीवनसाथी नहीं चुन लेते महाराज के घर का जिम्मा संगिनी का दायित्व होगा "
मैंने पूछा " क्या सेनापति पुरुष होना आवश्यक है ?"
चरक " महाराज आवश्यक तो नहीं पर अभी तक किसी कबीले ने महिला सेनापति का चुनाव नहीं किया है "
मैंने चरक ऐ कहा " ठीक है फिर चले "
चरक " चलिये महाराज "
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09-20-2019, 01:49 PM,
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RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
चरक मुझे लेके एक खुले मैदान में पहुचते है जहाँ कबीले के सारे महिला पुरूष बच्चे इकठ्ठा थे । चरक ने पहले मुझे आसपास से आये कबीले के सरदारों से मिलवाया फिर वो मुझे लेके एक ऊँचे चबूतरे पे ले गए जहाँ पर एक बड़ा सा पत्थर नुमा सिंहासन था । मेरे वहां पहुचते ही पुजारिन देवसेना भी प्रकट हुई आज उसने भस्म से शरीर का लेप नहीं किया था अर्थात आज उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था मेरी नज़रे उसके शरीर पर रुक सी गई। देवसेना ने मेरी नज़रे भांपते हुए मुझसे कहा कि "सिहासन ग्रहण करे महाराज"
मैं सिहासन पे जाके बैठ गया फिर देवसेना ने कहा " कुलदेवता दधातु को शाक्षी मान कर मैं महाराज अक्षय को कबीले का सरदार घोषित करती हूं "
यह कहते हुए उसने मेरे सर पर भैसे के सींग का मुकुट पहना दिया । वहां उपस्थित सभी लोगो ने मेरे नाम की जयघोष शुरू कर दी ।
थोड़ी देर बाद जब शोर शांत हुआ तो देवसेना ने कहा अब महाराज अक्षय अपने सहयोगियों का चुनाव करेंगे। सारी सभा में सन्नाटा पसर गया ।
मैं खड़ा हुआ और चबूतरे से नीचे उतरा अपने सलाहकार के रूप में मैंने चरक को चुना और उनके सिर पे हाथ रख दिया चरक ने भी स्वीकारोक्ति स्वरुप मेरे चरण स्पर्श किए । पूरी सभा ने चरक के नाम का जयघोष किया । फिर मैं रानी विशाखा और विशाला की तरफ बढ़ चला । वो दोनों विस्मित नज़रो से मेरी तरफ देखने लगी मैंने विशाला के कंधों पे हाथ रख कर उसे अपना सेनापति बना दिया। सारे कबीले वाले शांत पड़ गए और विशाला जो कुछ देर तक जड़ व्रत मुझे देखने लगी । इसी बीच किसी ने विशाला के नाम की जयकार की मैंने घूम के देखा तो ये चरक जी थे कुछ देर में बाकि कबीले वाले भी विशाला के नाम की जयकार करने लगे । अब आखरी में संगिनी स्वरुप मैंने रानी विशाखा को चुना मैंने उनका हाथ पकड़कर अपने साथ चबूतरे पे ले गया और उन्हें अपने जांघ पे बिठा लिया। महारानी विशाखा के ख़ुशी के मारे आंसू निकलने लगे।
कुछ देर चरक जी ने नृत्य और मदिरा शुरू करने आव्हान किया। कुछ ही देर में सामने अर्धनग्न नृत्यांग्नायो का झुण्ड उपस्थित हुआ तथा सभी को मदिरा परोसी जाने लगी। धीरे धीरे रात घिरने लगी मदिरा और सामने होता उत्तेजक नृत्य मेरे लंड में भी हलचल मचाने लगा जिसका आभास मेरी जांघ पे बैठी रानी विशाखा को भी हो गया उन्होंने मुझसे कहा " राजन आपका यहाँ बैठा रहना जरूरी नहीं है आइये आप अपनी कुटिया में चलिये ।"
मैं अपनी जगह से उठ गया तो चरक जी मेरे पास आये और मुझे एक प्याला दिया और मुझे कुटिल मुस्कान से देखते हुए कहा " राजन ये काढ़ा पी लीजिये आपको आज रात आराम मिलेगा " मैंने भी बिना कुछ सोचे पी लिया और आगे बढ़ा रानी विशाखा और विशाला भी मेरे साथ हो ली । वो मुझे लेके एक बड़ी सी कुटिया तक ले गयी जिनके चारो तरफ छोटे छोटे झोपड़े बने हुए थे । मैं अंदर घुस गया मेरे साथ रानी विशाखा भी आ गयी विशाला दरवाजे पर सुरक्षा हेतु खड़ी हो गयी ।

अंदर आते ही रानी विशाखा ने मुझसे पूछा "महाराज क्या लेना पसंद करेंगे "
मैंने चौकते हुए पूछा " क्या मतलब "
रानी विशाखा ने मेरे खड़े लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा " पहले इसका इलाज किया जाए या आप भोजन करेंगे ? "
रानी के इस प्रश्न ने मुझे असहज कर दिया मैंने रानी से कहा रानी " विशाखा आप सच में ऐसा करना चाहती है ?"
रानी विशाखा ने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया " महाराज आपकी संगिनी के कारण मेरा ये दायित्व है कि आप की भौतिक और शारीरिक जरूरतों का मैं ख्याल रखु "
इसी के साथ रानी घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी मेरे चमड़े का वस्त्र उतार दिया और मेरे लंड को सहलाते हुए बड़े प्यार से अपने मुह में ले लिया और चूसने लगी । रानी धीरे धीरे अपने चूसने की रफ़्तार बढ़ा रही थी और मैं अत्यंत मजे की तरंगें अपने शरीर में उठती महसूस कर रहा था। चूसते चूसते रानी ने मेरा लंड पूरा अपनेमुह में ले लिया था और पूरे अपने गले तक निगलते हुए अंदर बाहर कर रही थी । कुछ देर बाद मुझे महसूस होने लगा की अब मेरा वीर्य शीघ्र ही निकलने वाला है तो मैबे अपना लंड बाहर खींचने को कोशिश की पर रानी ने दिनों हाथो से मेरा नितम्ब पकड़ लिया और जोर से लंड अपने मुह में अंदर बाहर करने लगी । कुछ ही देर में मैंने सारा वीर्य रानी के मुह में ही छोड़ दिया ।
मैंने साँसे सँभालते हुए रानी विशाखा की तरफ देखा तो वो बड़े अचंभे से मेरे लंड की तरफ देख रही थी जो झड़ने के बाद भी पूरी तरह से ढीला नहीं पड़ा था तभी मुझे याद आया की चरक जी ने कुटिया में आने से पहले मुझे कुछ पिलाया था हो न हो ये उसी का असर है जो अभी भी मेरा लंड ढीला नहीं पड़ा है । मैंने सोचा की रानी को अब थोड़ा आराम देते है तो मैंने उन्हें खाना लाने की बोल दिया । वो खाने का इंतज़ाम करने कुटिया से बाहर चली गयी । उनके जाते ही विशाला अंदर आ गयी और मेरे नग्न शरीर और खड़े लंड को देख कर चौंक गयी और इधर उधर देखने लगी ।
मैं भी अपनी नग्नता छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया और पास ही पड़े बिस्तर पर लेट गया ।
कुछ देर में रानी विशाखा भोजन लेके वापस आ गयीं और विशाला फिरसे बाहर चली गयी ।
रानी के साथ भोजन ख़त्म करते करते मुझे आभास हुआ की समारोह भी ख़त्म हो गया है तथा हमारे अगल बगल के झोपड़े में चहल पहल बढ़ गयी है मैंने या बारे में महारानी विशाखा से पूछा उन्होंने बताया कि मेरी कुटिया के बगल की एक कुटिया मेरे सलाहकार की तथा बाकि कुटिया मेरे मेहमान जैसे पुजारिन और अन्य सरदारों के लिए है वो सब समारोह से वापस अपनी झोपड़ियो में लौट आये हैं।
मैंने पूछा " और मेरी सेनापति जी कहाँ रहेंगी?"
रानी ने हँसते हुए कहा कि " वो सेनापति के साथ साथ आपकी अंगरक्षक भी है इसलिए वो आपके साथ ही रहेगी "
मैंने पूछा " और रानी विशाखा आप ?"
रानी विशाखा ने जवाब दिया " जैसा आप चाहे "
मैंने रानी विशाखा को अपने पास आने का इशारा किया उनके पास आते ही मैंने उनके कमर पे बांध चमड़े का वस्त्र खोल दिया और उन्हें बिस्तर पर धकेल दिया फिर उनके ऊपर आते हुए अपने लंड को उनकी चूत पे सेट करते हुए कमर को झटका दिया तो पूरा का पूरा लंड रानी की चूत में घुसता चला गया रानी विशाखा के मुह से सिसकिया निकलने लगी और मैंने भी लंड बहार निकल कर उनकी चूत ने धक्के मारने शुरू कर दिए रानी ने भी अपनी टाँगे चौड़ी करते हुए मेरी कमर के उपर चढ़ा ली जिससे मेरा लंड चूत की और गहराइयों में भी गोते लगाने लगा । धीरे धीरे मेरे धक्कों की गति बढ़ती रही और रानी की सिसकिया भी अब आहों में बदल गयी थी । मैंने धक्कों को और तेज कर दिया और रानी के चुचको को मुह में लेके चूसने लगा । मेरा ऐसे करते हु रानी जैसे पागल हो गयी और चीखते हुए झड़ गयी। चीख तेज़ थी शायद बगल के झोपडी के मेहमानों ने भी सुनी होगी । फिलहाल मेरा लंड शायद चरक के काढ़े के कारण झड़ने का नाम नहीं ले रहा था तो मैंने रानी को घोड़ी बना दिया और उसकी गांड के छेद पे अपना लंड लगाया और एक जोर का धक्का दिया रानी ने शायद अपनी तैयारी की थी क्योंकि गांड में चिकना कुछ लगा था कि मेरा लंड फिसलता हुआ अंदर पूरा घुस गया मैंने भी रानी के दोनों चौड़े कूल्हों पे अपने हाथ टिकाये और जोर जोर से चुदाई करने लगा रानी भी हर धक्के के साथ सुधबुध भूलकर चीखने लगी उसकी चीखो ने मुझे और उत्तेजित कर दिया और मैं और जोर से उसकी गांड चोदने लगा इस ताबड़तोड़ चुदाई से हम दोनों ही जल्दी चीखते हुए झड़ गए। उसके बाद मुझे तुरंत नींद आ गयी ।

सुबह मेरी नींद खुली तो मैंने देखा रानी विशाला बगल में अभी भी नींद में है तो मैंने नित्यक्रिया निपटाने का सोचा और चमड़े का वस्त्र अपने कमर पे लपेट कुटिया से बाहर निकला। बाहर विशाखा जाग चुकी थी और मुस्तैद खड़ी थी वो भी मेरे साथ हो ली । मैंने उससे कहा कि " मैं नित्यक्रिया के लिए जा रहा हु "
विशाला ने जवाब दिया की " ठीक है मैं यहीं हु "
मैं आगे बढ़ा कबीले के पुरुष मुझे अजीब नज़रो से देख रहे थे तथा स्त्रियां मुझे देखते ही शरमाते हुए आपस में खुसुर पुसुर करने लगी । मैंने भी ज्यादा ध्यान इस ओर नहीं दिया और आगे बढ़ा ।
नित्यक्रिया निपटा कर मैं वापस लौटा तो मेरी कुटिया के बाहर विशाला और चरक महाराज मौजूद थे। मुझे देख कर चरक जी ने नमन किया मैंने भी जवाब दिया और स्नान के लिए अंदर चला गया।
अंदर रानी विशाखा मेरा इंतज़ार कर रही थी मुझे देख कर वो शर्मा गयी मैंने उनसे पूछा " क्या हुआ रानी विशाखा ?"
विशाखा ने जवाब दिया " मेरे इतने साल के वैवाहिक जीवन में मैंने इतना सुख कभी नहीं प्राप्त किया जितना मुझे कल मिला "
मैंने कहा " ही सकता है क्योंकि शायद आपने अपने पति के अलावा किसी और से सम्भोग न किया हो इस लिए आपको ऐसा लग रहा हो ।"
विशाखा " ऐसा नहीं है कि मैंने अपने वैवाहिक जीवन में सिर्फ अपने पति से ही सम्बन्ध बनाये हो "
मैंने चौकते हुए पूछा " मतलब ??"
विशाखा " महाराज सम्भोग के मामले में हमारे काबिले की स्त्री और पुरुष काफी स्वछंद है ।"
मैंने पूछा " मैं समझा नहीं ?"
विशाखा " महाराज आप धीरे धीरे समझ जाएंगे अभी आप स्नान कर ले "
फिर वो अपनी कुटिया से सटे एक स्नानगृह में लेके मुझे आयी वहां भी एक कुंड में सुगन्धित फूलो की खुशबू वाला पानी एकत्रित था मैं भी अपना चमड़े का वस्त्र उतार कर पानी में उतर गया मेरे पीछे रानी विशाखा भी अपने वस्त्र और आभूषण उतार पानी में उतर गयी और मुझे स्नान कराने लगी ।
मैंने रानी से पुछा " इस द्वीप पे और भी कबीले हैं क्या ?"
रानी ने जवाब दिया " हाँ इस द्वीप पे अनेको कबीले है "
मैंने फिर पूछा " तो फिर ये कबीले आपस में लड़ते नहीं ?"
रानी " पहले कबीलो में बहुत आपसी लड़ाईया होती थी पर पिछली बारिश के बाद पुजारिन देवसेना की पहल के बाद लगभग सभी कबीलो ने एक आपसी सन्धि की और फैसला किया कि सब कबीले का एक सरदार चुना जाएगा जो की कबीलों के आपसी विवादों को सुलझाएगा ।"
मैंने पूछा " तो अब कबीलों का सरदार कौन है ? "
रानी " ये चुनाव करना पुजारन देवसेना को करना है अभी तक उनकी पसंद महाराज वज्राराज थे पर उनकी मृत्यु के पश्चात अब मुझे लगता है कि वो दुष्ट कपाला का चुनाव करेंगी ।"
मैंने रानी से पुछा " ये कपाला कौन है "
रानी " कपाला आदमखोर कबीले का सरदार है वो बहुत ही खतरनाक जालिम और धूर्त किस्म का इंसान है "
मैंने पूछा " तो फिर पुजारन उसे क्यों क़बीलों का सरदार बनाना चाहती हैं ?"
रानी " महाराज मुझे भी इस बारे में ठीक से नहीं पता पर मुझे ऐसा लगता है "
तभी दरवाजे से विशाला की आवाज आई " महाराज पुजारन देवसेना की दासी देवमाला आपसे मिलने चाहती है ।"
मैंने कहा " ठीक है मैं तैयार होके आता हूं "
मैं स्नानगृह से बाहर आया तो देखा की देवमाला मेरा इंतज़ार कर रही थी । देवमाला भी कोई 24 25 साल की महिला थी उसने भी शारीर पर भस्म का लेपन किया था देखने में वो भी देवसेना से कम न थी । मेरे प्रवेश करते ही उसने झुक कर मुझे प्रणाम किया और मुझसे कहा " महाराज पुजारन देवसेना आपसे अपनी कुटिया मे मिलना चाहती हैं "।
मैंने कहा "चलिये "
पुजारन देवसेना की कुटिया में पहुचने पर मैंने देखा की पुजारन देवसेना कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं । मैंने देवमाला की तरफ देखा तो उसने मुझे एक चमड़े के परदे की तरफ इशारा किया । परदे के पास पहुचते ही देवमाला ने कहा कि " पुजारन देवसेना महाराज पधार चुके हैं "
परदे के पीछे से देवसेना की आवाज आई " महाराज मैं आपके सामने नहीं आ सकती क्योंकि मैं रजोधर्म का पालन कर रही हु "
मैंने कहा " कोई बात नहीं मैं समझ सकता हु बताइये मेरे लिए क्या आदेश है ?"
देवसेना " आदेश नहीं महाराज चुकी मेरा मासिक आपके काबिले में आया है अतः हमारी परंपरा के अनुसार आपको आज से एक सप्ताह बाद मेरे मंदिर पर कालरात्रि की पूजा हेतु आना होगा इसलिए मैं आपको अपने मंदिर पे आने का निमंत्रण देना चाहती हु ।"
मैंने कहा " ठीक है पुजारन देवसेना जैसी आपकी इच्छा एक सप्ताह बाद आपसे मुलाक़ात होगी अब मैं चलता हूं "
फिर मैं देवसेना की कुटिया से निकल गया।
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09-20-2019, 01:49 PM,
#5
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
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देव सेना की कुटिया का दृश्य मेरे जाने के बाद
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देवसेना परदे की आड़ से बाहर आती है आज उसने कोई भस्म श्रृंगार नहीं किया हुआ है और उसके बाल भी नहीं धुले हुए है।
देवमाला " देवी क्या आपने ये सही किया "
देवसेना " शायद प्रभु की भी यही इच्छा है जो मेरा मासिक समय से पहले आ गया नहीं तो मेरी गड़ना के अनुसार कपाला के कबीले तक पहुचने से पहले ये नहीं आना था "
देवमाला " हो सकता है इस बार आप सफल हो जाये"
देवसेना " तुझे ऐसा क्यु लगता है "
देवमाला " रानी विशाखा की चीखें आपने नहीं सुनी क्या "
देवसेना " सुनी तो पर मुझे विश्वास नहीं होता की कोई स्त्री इतनी भी उत्तेजित हो सकती है "
देवमाला " मेरी एक परिचारिका से भी बात हुई जिसने प्रथम दिन महाराज को स्नान कराया था वो भी बता रही थी की महाराज कोई जादू कर देते है कि कोई स्त्री अपने वश में नहीं रहती "
देवसेना " देखते हैं अब तुम प्रस्थान की तैयारी करो "
पुजारन देवसेना से मिलके मैं अपनी कुटिया की तरफ बढ़ा तो रास्ते में चरक जी मिल गये। मैने उनसे मुझे कबीला घुमाने की लिए कहा वो मुझे लेके निकल पड़े। रास्ते में मैंने फिर गौर किया कि कबीले की महिलाये मुझे देख के शर्मा रही हैं । मैंने चरक जी से इस बारे में पूछा उन्होंने कहा " कल रात रानी देवसेना की चीखें पूरे काबिले ने सुनी इसी लिए वो आपको देख के शर्मा रही हैं।"
मैंने चरक जी से कहा " उसमे आपका भी हाथ है आपने कल मुझे क्या पिला दिया था ?"
चरक जी ने हँसते हुए कहा " महाराज बस शिलाजीत का काढ़ा था "
इसी तरह बात करते हुए हमने पूरे कबीले को देखा की कबीले के बाकी लोग कहाँ रहते है, खेती कहाँ होती है , जानवर कहाँ रखे जाते हैं , पीने का पानी कहाँ से आता है , अनाज कहाँ रखा जाता है वगैरह वगैरह ।
शाम को चरक जी के साथ मैं अपनी कुटिया पे पंहुचा । कुटिया में रानी विशाखा और विशाला पहले से मौजूद थी ।
रानी विशाखा ने पुछा " कहाँ थे अब तक महाराज ?"
मैंने कहा " कबीले के भ्रमण पर था "
रानी विशाखा ने पुछा " कैसा लगा हमारा कबीला ?"
मैंने कहा " कबीला तो ठीक है पर सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर है ?"
चरक जी ने पुछा " मतलब "
मैंने समझाना शुरू किया " देखिये कबीले में कोई भी बाहरी आसानी से आ जा सकता है दूसरा कबीले का पानी का स्त्रोत और अनाज के भण्डार बिना किसी सुरक्षा के है तीसरा कबीले में अचानक आक्रमण से निपटने के कोई इंतज़ाम नहीं है "
चरक जी ने पुछा " महाराज आप क्या चाहते हैं "
मैंने कहा कि "कबीले के चारो ओर लकड़ी की दिवार बनायीं जाए और काबिले में घुसने के बस दो या तीन द्वार हो जिसपे हमेशा पहरा रहे दूसरा पानी के स्त्रोत और अनाज के भण्डार की हर प्रहर निगरानी हो और तीसरा हमे काबिले की सीमा से कुछ दूर पेड़ो पर छुपी मचाने बनानी होंगी जिसपर हर प्रहर कोई प्रहरी रहे जो की किसी अचानक आक्रमण की सूचना हम तक पंहुचा सके । "
चरक जी ने कहा " उच्च विचार है महाराज मैं और सेनापति विशाला अभी से इसी काम पे लग जाते हैं अब हमें आज्ञा दे "
उन दोनों के जाने के बाद मैं रानी विशाखा से भोजन का प्रबंध करने को कहता हूं।
भोजन करने के पश्चात मैं अपने बिस्तर पे आके लेट जाता हूँ और रानी विशाखा भी आके मेरे समीप लेट जाती हैं। मैं रानी विशाखा से पूछता हूं " रानी आप कह रही थीं के कबीले के महिला और पुरुष सम्भोग के मामले में स्वछंद हैं इसका क्या मतलब है "
रानी विशाखा " महाराज हमारे कबीले की पुरानी मान्यता है कि सम्भोग परमात्मा तक पहुचने का जरिया है या ये कहे सम्भोग की क्रिया एक समाधी की तरह है जो हमे परमात्मा तक पहुचाती है और हम कभी भी किसी के साथ कहीं भी सम्भोग करने को स्वछंद है "
मैंने पूछा की " इसका कोई पुरुष किसी भी महिला के साथ सम्भोग कर सकता है ? "
रानी विशाखा " हाँ अगर उस महिला की भी सहमति है तो "
मैंने फिर पूछा " मैं भी कबीले की किसी भी महिला के साथ सम्भोग कर सकता हु अगर वो सहमत हो तो ?"
रानी विशाखा " कबीले के सरदार होने के नाते आपको सहमति की आवश्यकता नहीं है आप अगर किसी महिला से सम्भोग करना चाहते हैं तो उसे आपकी बात माननी पड़ेगी इसी तरह अगर कबीले की कोई महिला आपके साथ सम्भोग करना चाहती है तो उसे आपकी सहमति की आवश्यकता नहीं एक सरदार होने के कारण आपको उसे संतुष्ट करना पड़ेगा ।"
मैंने रानी विशाखा से पुछा " अच्छा आपने कहा कि आपने और भी पुरुषों के साथ सम्भोग कियाहै उसका क्या मतलब "
रानी विशाखा " महाराज वज्राराज हर रात किसी न किसी कबीले की औरत के साथ सोते थे तो मुझे भी अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए और पुरुषों का सहारा लेना पड़ा "
मैंने कहा " तो फिर महारानी आओ मेरा सहारा कब लेंगी ?"
रानी विशाखा हँसते हुए मेरे ऊपर आ गयी और मेरे लंड पर अपनी चूत को रगड़ने लगी कुछ ही देर में मेरा लंड रौद्र रूप लेने लगा उन्होंने मेरे लंड को अपनी चूत पे लगाया और उसपर बैठना चालू किया । मेरा लंड भी फिसलता हुआ उनकी चूत में जड़ तक घुस गया अब रानी मेरे लंड पर ऊपर नीचे होने लगी और मुझे स्वर्ग की सैर कराने लगी । धीरे धीरे रानी ने अपनी गति बढ़ाना शुरू किया तो मुझे और आनंद आने लगा रानी को भी अब इस चुदाई में मजा आने लगा । मैंने रानी के चूतड़ को धीरे धीरे दबाना शुरू किया रानी की सिसकारियां बढ़ गयी और रानी और तेजी से धक्के लगाने लगी । मैंने अपनी एक उंगली रानी की गांड में घुसा दी और उसी के साथ रानी झड़ती हुई मेरे ऊपर गिर पड़ी।
मैंने रानी की पीठ के बल किया और उनके ऊपर आ के चूत में धक्के लगाने लगा। कुछ देर बाद मैंने रानी की दोनों टाँगे उठाके अपने कंधे पे रख ली और उनकी चूत में लंबे लंबे धक्के लगाने लगा रानी की सिसकियाँ फिर चालू हो गयी थी और मुझे भी लग रहा था कि मेरा भी जल्दी ई निकल जाएगा तो मैंने रानी के चुचको को अपनी उंगलियों से मसलना शुरू किया तो रानी चीखने लगी। मैंने भी और जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए । कुछ देर बाद मैंने अपना पूरा का पूरा वीर्य रानी की चूत में भर दिया मेरे साथ ही रानी भी खूब जोर से चीखते हुए झड़ गयी।
सुबह नित्यक्रिया और स्नान निपटाने के बाद मैंने विशाला को अपने साथ चलने को कहा। कबीले की सीमा पर पर मेरे कहे अनुसार चरक ने दीवार बनाने का काम शुरू करवा दिया था । मैंने घूम कर काम की प्रगति देखी। फिर मैं विशाला को कबीले की सीमा से और आगे ले गया और उससे पूछा " क्या मैं तुमपे विश्वास कर सकता हु विशाला "
विशाला ने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया " जी महाराज "
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09-20-2019, 01:51 PM,
#6
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
मैंने उससे कहा " तो फिर मैं तुमसे जो कहना चाह रहा हु वो बात हम दोनों के बीच रहनी चाहिए ठीक है ?"
विशाला " ठीक है महाराज "
मैंने उससे कहा " मैं तुमसे चाहता हु की कबीले के चारो तरफ तुम्हे कुछ छुपे गड्ढे बनाओ जिनमे शत्रु के आक्रमण के समय हमारे सैनिक छुप के रह सके और उनपे घात लगा के आक्रमण कर सके इन गड्ढो को सुरंग से जोड़ो जिसका मुह कबीले की दीवार के अंदर खुले जिससे इन गड्ढो में आसानी से आया जा सके। "
विशाला " ठीक है महाराज हो जाएगा "
मैंने विशाला से कहा " पर ये बात मेरे और तुम्हारे अलावा किसी और को नहीं पता चलनी चाहिए । "
विशाला " ऐसा ही होगा "
फिर हम वापस अपनी कुटिया पे आ जाते हैं जहाँ रानी विशाखा हमारा इंतज़ार कर रही होती हैं।
मेरे पहुचते ही वो मुझसे कहती हैं " महाराज तैयार हो जाइये आपको विवाह समारोह में चलना है "
मैंने कहा " विवाह समारोह में मैं क्या करूँगा ?"
रानी विशाला " महाराज कबीले के सरदार होने के नाते वर वधु को आशीर्वाद देने आपका कर्त्तव्य है "
मैंने कहा "ठीक है चलो ।"
विवाह समारोह में पहले से कबीले के सभी स्त्री पुरुष इकठ्ठा थे चरक जी भी वहां मौजूद थे। हमारे वहां पहुचते ही मदिरा और नृत्य का कार्यक्रम शुरू हो जाता है । धीरे धीरे खान पान मदिरा के साथ रात घिर आती है । फिर वर वधु को मेरे समछ प्रस्तुत किया जाता है । वर तो कोई 80 85 साल का बूढ़ा था और वधु 20 21 साल की कमसिन लड़की थी । दोनों ने पुष्प की माला गले में पहनी हुई थी ।
चरक जी ने मुझसे कहा कि महाराज वर वधू को आशीर्वाद दे। मुझे ये जोड़ी कोई ख़ास सही तो नहीं लग रही थी पर मैंने भी अनमने मन से आशीर्वाद दे दिया।
अब मेरा जी इस समारोह में नहीं लग रहा था तो मैं वापस अपनी कुटिया की तरफ चल पड़ा । मैं कुटिया पे पंहुचा ही था कि बाहर से किसी लड़की की आवाज आई " क्या मैं अंदर आ जाऊ महाराज ?"
मैंने कहा " आ जाओ "
अंदर वही दुल्हन जिसे अभी मैं अशीर्वाद देके आया था दाखिल होती है। मैं चौंक जाता हूं और उससे पूछता हूं " तुम यहाँ क्या कर रही हो तुम्हारी तो आज शादी की पहली रात है "
वो लड़की बोलती है " वही तो मानाने आयी हु "
मैंने आश्चर्य से पुछा "मतलब "
लड़की बोलती है " महाराज आपने मेरे पतिकी उम्र तो देखी ही है इस उम्र में वो कहाँ ये सब कर पाएंगे इसीलिए हमने आपका आशीर्वाद माँगा था और आपने हमे अपना आशीर्वाद दिया उसके लिये मैं बहुत आभारी हूं "
मेरी समझ में अब आ चुका था कि ये सब मुझे अँधेरे में रख कर किया गया है और मैंने उस लड़की को अनजाने में ही सही आशीर्वाद दे दिया है।
मैंने उस लड़की से पुछा " तुम्हारा नाम क्या है "
उसने जवाब दिया " अनारा "
मैंने फिर पूछा " तो तुमने उससे विवाह क्यों किया "
अनारा "महाराज मेरे पिता ने उसे वचन दिया था और मुझे वो वचन पूरा करना था अन्यथा मेरे पिता को कबीले के कानून के हिसाब से वचन तोड़ने के लिए मृत्युदंड दिया जाता ।"

मैंने फिर उससे पूछा " अगर मैं वैसा न करूं जैसा तुम चाहती हो तो ? "
अनारा " महाराज आप भी अपना वचन भंग करेंगे "
मैंने पूछा " क्या तुम मेरे साथ सम्भोग करना चाहती हो ?"
अनारा " महाराज पिछले दो दिनों से महारानी विशाखा की चीखें सुनके मैं क्या कबीले की ज्यादातर स्त्रियां ऐसा चाहती हैं।
मैंने कहा " तो फिर ठीक है तैयार हो जाओ "
अनारा ने अपने चमड़े का वस्त्र उतार दिया बाल खोल दिए और धीरे धीरे मादक अदा से चलते हुये मेरे समीप आ गयी। मैने भी खींच के उसे अपने से सटा लिया हमारे कमर के नीचे का हिस्सा एक दूसरे सट गए । मैंने उसके सर को पकड़ के उसके होठो को चूमना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद वो भी मेरी तरह ही चूमने लगी । अब मेरा लंड बेकाबू होके अनारा की चूत पे रगड़ मारना लगा । मैंने चूमते हुए ही अनारा को बिस्तर पे लिटा दिया और उसके होठो को छोड़ शरीर के बाकी अंगों पे ध्यान देना शुरू किया। मैंने उसकी गर्दन पे हलके हलके चूमना शुरू किया तो अनारा की सिसकिया छूटनी शुरू हो गयी । धीरे धीरे चूमते हुए मैं नीचे की तरफ बढ़ा तो अनारा की सिसकियाँ तेज हो गयी, उसके उरोजों पे पहुच कर मैंने उसके चुचको को मुह में लिया तो अनारा का बदन धनुष की तरह अकड़ गया । मैंने एक चूचक मुह मे लेके तेज तेज चूसने लगा तथा दूसरा अपनी उंगलियों में मसलने लगा तो अनारा छटपटाने लगी मैंने फिर दुसरे चूचक के साथ भी यही किया। अब अनारा से शायद रहा नहीं जा रहा था उसने मुझे धक्का दिया और मेरे ऊपर आ गयी। उसने मेरा लंड अपनी चूत के मुह पे लगाया तो वो एकदम गीली हो चुकी थी अनारा ने हल्का सा झटका दिया तो पूरा का पूरा लंड फिसलता हुआ उसकी चूत में चला गया । अनारा ने फिर द्रुत गति से चुदाई करनी शुरू कर दिया ऐसा लग रहा था कि वो शीघ्र ही झड़ने वाली हो कुछ ही देर में वो चीखते हुई झड़ गयी । मेरा लंड अभी भी तना हुआ मैंने अनारा को घोड़ी बना दिया। फिर मैंने पीछे से अपना लंड अनारा की चूत में घुसाया और उसके बाल पकड़कर उसकी सवारी करने लगा अब अनारा की चीखों लगातार हर धक्के पे आनी लगी । मैंने भी धक्के की गति बढ़ा दी थोड़ी ही देर में मुझे लगा की मैं झड़ने वाला हु तो मैंने अनारा के बालों को छोड़ पीछे से की उसके चुचको को पकड़कर कर मसलना शुरू कर दिया जिसका नतीजा ये हुआ की मेरे साथ ही अनारा भी एक बार फिर झड़ गयी । हम दोनों ही निढाल होके बिस्तरों पे गिर पड़े और थकान के कारण हम जल्द ही सो गए।
सुबह नींद खुली तो देखा अनारा जा चुकी थी । अपनी नित्यक्रिया और स्नान से मुक्ति पाके मैंने विशाला को भेज चरक और रानी विशाखा को बुलवाया ।
दोनों कुछ ही देर में उपस्थित हो गए तो मैंने उनसे पूछा " रानी विशाला और चरक जी मैं आप दोनों से पूछना चाहता हु की आपके कबीले में सरदार को पूरी बात न बताना और अँधेरे में रखने की सजा क्या है ?"
मेरी बात सुनके दोनों के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगी उनके मुह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी । मैंने फिर कड़क आवाज ने पुछा " बताइये आप दोनों नहीं तो आपको भूखे शेर के आगे फिकवा दिया जाएगा "
दोनों घुटनो पे गिर पड़े और रो रो के माफ़ी मांगने लगे। मैंने विशाला को आवाज देके अंदर बुलाया और दोनों को 50 कोड़े लगाने का हुक्म दिया। दोनों अब मेरे पैरो से लिपट के माफी मांगने लगे । मैंने दोनों से कहा "आप दोनों की ये पहली गलती थी इस लिए माफ़ किया आगे से ऐसा कभी न हो "
दोनों ने सहमति में सर हिलाया ।
मैंने कहा " फिर स्थान ग्रहण करिये आप दोनों से जरूरी बात करनी है "
चरक जी कुछ सामान्य हुए और उन्होंने पूछा "क्या बात राजन?"
मैंने चरक से पुछा " यहाँ से पुजारन देवसेना के मंदिर जाने में कितना वक़्त लगेगा ?"
चरक ने जवाब दिया " महाराज पुजारन देवसेना का मंदिर यहाँ से 20 कोस पे है और वहां जाने में 2 दिन लगेंगे पर आप ये क्यू पूछ रहे हैं ?"
मैंने जवाब दिया " मुझे देवसेना जी ने अपने यहाँ आमंत्रित किया है इसलिये मैं कल सुबह वहां के लिए प्रस्थान करूँगा "
विशाला जो अब तक चुपचाप कड़ी हमारी बाते सुन रही थी उसने कहा " महाराज मैं भी आपकी सुरक्षा के लिये आपके साथ चलना चाहती हु "
चरक जी ने भी उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा " जी राजन आपको अपने साथ सेनापति विशाला को ले जाना चाहिए "
मैंने कुछ सोचते हुए पूछा " फिर कबीले की सुरक्षा का इंतज़ाम कौन देखेगा ?"
चरक जी बोले " राजन उसकी चिंता न करे आप दोनों के वापस न आने तक कबीले की सुरक्षा मेरे जिम्मीदरी है।"
मैंने कहा " ठीक है तो कल सुबह ही मैं और विशाला पुजारन देवसेना के मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे अब आपलोग जा सकते हैं मैं एकांत चाहता हु ।"
तीनो के जाने के बाद मैं वापस बिस्तर पे लेट जाता हूं और मेरी आँख लग जाती है ।
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09-20-2019, 01:52 PM,
#7
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
मेरी नींद तब खुलती है जब मुझे एहसास होता है कि कोई मेरा लंड चूस रहा है मैं आँख खोलके देखता हूं रानी विशाला मेरा लंड चूस रही थी । मैंने भी उसे रोका नहीं और मजे लेने लगा। आज लग रहा था रानी सुबह की डांट का बदला मेरे लंड से लेने पे उतारू हो वो खूब जोर जोर से चूसे जा रहा थी। कुछ देर के बाद मुझसे रहा नहीं गया मैंने उसका सर अपने लंड से हटाया और उसे बिस्तर पर लिटा के उसके दोनों पैर मोड़ दिए जिससे उसकी गांड और चूत दोनों मुझे एक साथ नज़र आने लगी । मैंने अब अपना लंड उसकी चूत में एक झटके में उतार दिया और जोर जोर से उसकी चूत चोदने लगा । रानी विशाला भी उत्तेजित हो कर मेरा साथ देने लगी । कुछ देर की चूत चुदाई के बाद जब मेरा लंड उसके कामरस से सन गया तो मैंने अपना लंड उसकी गांड में उतार दिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा । रानी विशाखा अब और भी उन्मुक्त हो कर चुदने लगी और चीखने लगी । मैंने भी रफ़्तार बढ़ाई और जोर से उसकी गांड में धक्के लगाने लगा । कुछ ही देर में हम दोनों अपने चरमोत्कर्ष पे पहुँच चीख मारते हुए झड़ गए।
कुछ देर तक अपनी सांसे स्थिर करने के बाद रानी विशाखा बिना कुछ बोले कुटिया से चली गयी। मैंने बाहर देखा तो शाम ढल चुकी थी मैंने सुबह जल्दी निकलने की सोचा था सो मैं वापस बिस्तर पे लेट आराम करने की कोशिश करने लगा।
सुबह भोर में ही मैं और विशाला खाने पीने का सामान लेके पैदल ही देवसेना के मंदिर की ओर निकल पड़े। हम दिन चढ़ने से पहले ही ज्यादा से ज्यादा रास्ता पार करना चाहते थे । तेज कदमो के साथ मैं विशाला के पीछे पीछे चल रहा था वो अभी तक के सफर में चुप थी तो मैंने बात शुरू करने की सोची मैंने उससे कहा " सेनापति विशाला मैंने सुना है कि एक दूसरे से बात करने से रास्ता जल्दी कट जाता है "
वो ठिठककर रुक गयी और मेरी ओर देखते हुए बोली " मैं समझी नही महाराज "
मैंने कहा " रास्ते काटने के लिये कुछ बात करते हैं "
उसने फिर पूछा " क्या बात महाराज "
मैंने कहा कि " कुछ आओ अपने बारे में बताइये कुछ मैं आपको अपने बारे में बताऊंगा "
उसने कहा " महाराज मेरे बारे में बताने के लिये कुछ नहीं है मैं महाराज वज्राराज और रानी विशाखा की एकमात्र संतान हु । मेरे पिता हमेशा से एक बेटा चाहते थे पर अनेको कोशिशों के बावजूद उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई । फिर पिताजी ने थक हार कर मेरी परवरिश ही बेटो की तरह करनी शुरू कर दी । वो मुझे शस्त्र विद्या की शिक्षा देने लगे साथ ही वो मुझे औ इ साथ युद्ध और आखेट पर भी ले जाते थे। मैं भी पिताजी को बेटे की कमी महसूस नहीं होने देना चाहती थी इसलिए मैंने भी खूब मेहनत करनी शुरू कर दी । धीरे धीरे मैं सिर्फ तन से ही स्त्री रह गयी मन से मैं इस कबीले की योद्धा बन गयी । बस यही है मेरी कहानी । "
बातो बातो में सूर्य सर वे चढ़ आया था और गर्मी और उमस से मेरा बुरा हाल हो गया था तो हमने एक नदी के किनारे विश्राम करने की सोची ।
विशाला वही किनारे पे बैठ कर भोजन करने लगी और मैं नहाने के लिए झरने में उतर गया। मैंने अपना चमड़े का वस्त्र उतार किनारे पे फेंक दिया ।और नदी में नहाने लगा। नहाते वक़्त मैंने महसूस किया कि विशाला की निगाहें मेरे शरीर पे टिकी हुई है । कुछ देर नहाने के बाद मैं किनारे पे लौट आया और बिना कपडे के ही विशाला से कुछ दूर लेट कर आराम करने लगा। विशाला कि नजरे अब मेरे लंड पे टिकी हुई थी मैंने भी थोड़ा उसे अंगप्रर्दशन करने की सोची और उसकी तरफ करवट कर ली अब मेरा लंड उसे और अच्छे से दिखने लगा। वो भी बड़े ध्यान से उसे निहारने लगी ।
थोड़ी देर बाद उसने मुझेसे कहा " महाराज अब हमें चलना चाहिए "
मैंने भी कहा " चलो "
फिर हम चल पड़े । कुछ देर बाद विशाला ने मुझसे कहा " अब वचनानुसार आपको अपने बारे में बताना चाहिए "
मैंने कहा "ठीक है मेरा नाम अक्षय है मैं भारतीय सेना में हूं । सेना में सभी सैनिको की तरह मेरा काम भी शत्रुओं को ख़त्म करना का है। एक रात हमे पता चला की कुछ समुद्री डाकू एक द्वीप पर छुपे हुए हैं । मुझे जिम्मेदारी मिली की कुछ सैनिको के साथ उन पर रात के अँधेरे में हमला कर उन्हें ख़त्म कर दू। हम सब इसी काम से जा रहे थे की हमारी नाव तूफान में फंस गयी और पलट गयी । उसके बाद जो आखिरी चीज मुझे याद है वो ये कि मैं डूब रहा हु। इसके बाद मैं इस द्वीप पे कैसे पंहुचा ये मुझे पता नहीं और बाकि तो सब तुम जानती ही हो ।"
ऐसे ही हम बात करते हुए आगे अपबे रास्ते पे बढ़ रहे थे की अचानक बादल घिर आये और बारिश होने लगी । चूँकि अभी काफी लंबा रास्ता तय करना था तो बारिश की परवाह किये बगैर हम आगे बढ़ते रहे । धीरे धीरे शाम भी ढल आई और रोशिनी भी कम ही चली तो हम रात रुकने के लिए ठिकाना खोजना शुरू किया बहुत खोजबीन के बाद हमे एक बड़े पत्थरो की ओट में थोड़ी सी जगह सर छुपाने को मिली हम वही आराम करने के लिये रुक गए। बारिश अब और परवान चढ़ चुकी थी और थमने का नाम नहीं ले रही थी। हमारे भीगे शरीरों ने हमारे शरीर में ठिठुरन पैदा कर दी थी। किसी तरह हम दोनों अपने अपने शरीर को गर्म रखने की कोशिश कर रहे थे पर सब नाकाम था। कुछ देर बाद बारिश आखिर बंद हुयी तो हूँ दोनों सूखी लकड़ियों की तलाश करने लगे भगवान् की दया से कुछ लकड़िया हमे मिल गयी जो रात काटने के लिए काफी थी। फिर विशाला ने आग जलायी और हम दोनों अपना बदन सेंकने लगे । ऐसे ही बैठे बैठे जब मेरा शरीर अकड़ने लगा तो मैं पत्थर पे लेट गया ।
जलती आग की गर्मी भी मेरे शरीर की ठिठुरन को कम नहीं कर पा रही थी । अपनी जगह पे लेटे लेटे मैंने विशाला पे नज़र डाली तो उसका भी वही हाल था । मैंने अपनी दोनों टाँगे सिकोड़ के अपने सीने से लगा ली और सोने की कोशिश करने लगा। थकान अधिक होने के कारण धीरे धीरे नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया।
मेरी नींद तब खुलती है जब मुझे अपने सीने पे कुछ रगड़ता हुआ महसूस होता है आँखे खोलता हु तो देखता हूं कि विशाला अपनी देह को मेरी देह से रगड़ रही थी जिससे हमारे शरीर में गर्मी उत्पन्न हो रही थी । मुझे ऐसा लग रहा था की मेरा पूरा शरीर ठण्ड से अकड़ गया है और विशाला की अपने शरीर को मेरे शरीर से रगड़ने की गर्मी से मेरा शरीर धीरे धीरे सामान्य हो रहा था। पर विशाला का शरीर मेरे अंदर कुछ और ख्याल उत्पन्न कर रहा था जिसके कारण मेरा लंड धीरे धीरे खड़ा होने लगा और विशाला की चूत पे रगड़ खाने लगा। शायद कुछ देर में उसकी चूत में भी आग लग गयी क्योकि उसका कामरस बहकर मेरे लंड और जांघों पे लगने लगा। अब हम दोनों ही उत्तेजना में सराबोर थे पर आपसी झिझक के कारण कोई पहल नहीं कर रहे थे। विशाला अभी भी अपने शारीर को मेरे शरीर से रगड़े जा रही थी बस अब उसने अपनी टाँगे मेरी कमर के साइड में कर ली थी जिसके कारण मेरा लैंड उसकी चूत की सिधाई में आ गया । उसने अपनी कमर को एक बार फिर मेरे शरीर पर रगड़ने के लिए उठाया और जैसे ही अपनी कमर मेरे पेट से रगड़ती हुई पीछे ले गयी मेरा खड़ा लंड फिसलते हुये उसकी गीली चूत में घुस गया । वो भी एकबार को चौंक के रुक गयी और मैंने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । फिर न जाने उसे क्या सूझा की वो अपनी चूत को मेरे लंड पे दबाती चली गयी जिससे मेरा लंड और अंदर तक घुस गया। उसकी चूत अभी तक की मेरी चखी कबीले की सभी चूतो से कसी थी पर वो कुँवारी भी नहीं थी । विशाला भी खूब रफ़्तार में मेरे सीने पे अपने नींबू जैसे छोटे वक्षो को रगड़ते हुए चुदाई कर रही थी कुछ देर में ही मुझे लगा की अब मैं झड़ने के नजदीक हु तो मुझसे रहा न गया मैंने भी उसके नितम्ब को अपने हाथों में लिया और दबाना शुरू किया तो वो पागल सी हो गयी और खूब जोर जोर से अपनी चूत को मेरे लंड पे ऊपर नीचे करने लगी । जल्द ही हम दोनों झड़ गए और एक दूसरे से चिपके हुए ही सो गए।
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#8
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सुबह मेरी नींद खुली तो विशाला जाग चुकी थी और सामान बाँध रही थी । मैं उठा तो वो मुझे चोर नज़रो से देख रही थी मैंने उससे पूछा " आगे के सफर की तरफ बढ़ जाए "
तो उसने जवाब दिया "जी"
हम दोनों निकल पड़े रास्ते में विशाला तेज कदमो से आगे बढ़ रही थी जैसे की वो मुझसे बात नहीं करना चाहती हो फिर भी मैंने उससे कहा " विशाला कल रात को जो कुछ भी हुआ वो ....."
मेरी बात पूरी भी नहीं हो पायी थी की वो बोल पड़ी " क्षमा करे महाराज पर कल जो भी कुछ हुआ वो नहीं होना चाहिए था । कल रात ठण्ड के कारण आपका शरीर अकड़ गया था मैंने आपको गर्मी प्रदान करने के लिये वैसा किया पर अंत में मैं बहक गयी आगे से ऐसा नहीं होगा। "
मैंने भी बात आगे बढ़ाने की नहीं सोची और उसे आगे बढ़ने का इशारा किया । चलते चलते दुपहर हो गयी और फिर खूब उमस बढ़ गयी । हम छांव की तलाश करते हुए एक तालाब के पास पहुच गए। मैं एक पेड़ के नीचे लेट के आराम करने लगा और विशाला भी मुझसे थोड़ी दूर पे बैठ गयी। मैं अपनी आँखे बंद कर आराम कर रहा था कि पानी की छप छप से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने देखा के विशाल बिना चमड़े के कपडे के तालाब में उतर के स्नान कर रही है । मैंने भी लेटे लेटे उसे निहारना शुरू कर दिया वो भी कनखियों से मुझे देख रही थी । कुछ बात थी उसके भीगे बदन में की मेरे लंड में कामोत्तेजना हिलोरे मारने लगी। मैंने भी अपना चमड़े का वस्त्र उतारा और तालाब में उतर गया । पानी ज्यादा नहीं था कमर तक ही था। मैंने भी अपनी उत्तेजना को विशाला से छुपाने की कोशिश नहीं की और अपने खड़े लंड का उसे खूब दर्शन करवाया।
शायद मेरे खड़े लंड ने उसे रात की बातें याद करवा दी वो पलट के जल्दी से पानी के बाहर जाने लगी की उसका पैर फिसल गया और वो पूरे पानी के अंदर चली गयी । मैं उसे पानी से निकालने के लिये उसका हाथ पकड़के बाहर खीचा। जैसे ही उसका शरीर पानी से ऊपर आया ही था के मेरा भी एक पैर फिसल गया और मेरी कमर उसकी कमर से सट गयी । उसने खुद को सँभालने के लिए मेरी कमर पकड़ ली । मेरा लंड उसकी चूत से सटा हुआ था मैंने उसकी आँखों देखा तो वो वासना से लाल हो गयी थीं। फिर भी मैंने अपने को अलग करने की कोशिश की तो उसने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। मैंने फिर उसकी आँखों में देखा तो उसने आगे बढ़कर मेरे होठों को अपने होठों में भर लिया और पागलो की तरह मुझे चूमने लगी। मैं भी उसे प्यार से चूमने लगा । कुछ देर की चूमा चाटी के बाद मैंने उसे अपनी गोद में उठा के किनारे पर ले आया। तालाब के किनारे घांस पे उसे लिटा दिया और उसके ऊपर आ के एक बार फिर उसे चूमने लगा। वो काफी उत्तेजित हो गयी थी उसने अपनी टाँगे उठा के मेरी कमर पे रख दी और मेरा लंड को अपनी चूत पे लगा दिया। मैंने भी कमर को झटका दिया और मेरा लंड सरसराकर उसकी चूत में समा गया। मैंने भी खूब जोर जोर से उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। कुछ देर तक ऐसे चुदने केबाद वो पलट के मेरे ऊपर आ गयी और मेरे लंड पे जोरो से ऊपर नीचे होने लगी । मेरी उत्तेजना ने मुझे जल्द ही अपने चरम पे पंहुचा दिया मैंने भी उसके नींबू जैसे वक्षो के चुचको को मुह में भर के काट लिया। शायद मेरे ऐसा करने से वो भी अपने चरम पे पहुँच गयी और चीख मारते हुए झड़ गयी।

कुछ देर बाद जब हम दोनों की साँसे नियंत्रित हुई तो विशाला ने मुझसे कहा " अब मुझे पता चला की आपके साथ सम्भोग करने वाली औरते इतना चिल्लाती क्यों थी "
मैंने उसकी बात पे ध्यान न देते हुए उससे पूछा " अभी पुजारन देवसेना का मंदिर कितनी दूर है ?"
तो उसने कहा कि "शाम तक पहुँच जाएंगे "
मैंने उससे कहा " मुझे वहां पहुचाने के बाद तुम वापस काबिले चली जाना "
उसने चौंकते हुए पूछा " क्यों?"
मैंने कहा " कबीले को उसके सेनापति की जरुरत कभी भी पड़ सकती है "
तो उसने कहा " आप की सुरक्षा का क्या होगा और आप वापस कैसे आएंगे ?"
मैंने उससे कहा " मैं अपनी सुरक्षा खुद कर सकता हु और वापस आने का रास्ता मैंने देख लिया है "
उसने फिर कहा " पर ...."
मैंने उसकी बात काटते हुए जवाब दिया " ये मेरा आदेश है ।"
वो चुप हो गयी और अनमने ढंग से चलने की तैयारी करने लगी। शाम को हम देवसेना के मंदिर पे पहुच गए। हमने बाहर पहरेदारों को अपना परिचय दिया तो वो हमें अपनी कुटिया पे विश्राम करने के लिएले गए। कुछ देर बाद पुजारन देवसेना हमारे स्वागत के लिए हमारी कुटिया पे आई । आज भी उन्होंने भस्म का ही श्रृंगार अपने शरीर पे किया था।
मैंने उन्हें प्रणाम किया तो उन्होंने कहा " महाराज आपका मेरे मंदिर पर स्वागत है आपको रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई "
मैंने कहा "नहीं पुजारन जी "
कुछ देर उन्हीने इधर उधर की बाते की फिर उन्होंने कहा कि " महाराज अब आप आराम करे आपकी सेवा के लिए मैं अपनी दासी देवबाला को आपके पास छोड़े जा रही हु ये आपकी सब सुविधाओं का ध्यान रखेंगी। मैं चलती हु।"
मैंने उन्हें फिर प्रणाम किया और वो चली गयी।
कुछ देर बाद हमारे खाने के लिए कन्द मूल फल आये मैंने और विशाला ने भोजन किया और मैं आराम करने के लिए लेट गया। विशाला मेरे पास आई और बोली " महाराज अब मुझे चलने की आज्ञा दीजिये।"
मैंने चौंकते हुए पूछा " अभी इतनी रात गए सुबह चली जाना "
उसने गंभीर होते हुए जवाब दिया " महाराज मेरा कार्य सम्पूर्ण हुआ अब कबीले को उसके सेनापति की जरुरत है मैं वापस जाना चाहती हु "
मैं समझ गया कि अब वो मानने वाली नहीं है तो मैंने उससे कहा " आज्ञा है "
वो कुटिया से बाहर चली गयी और मैं अपने बिस्तर पे वापस लेट अपनी थकान मिटाने लगा।
विशाला के चले जाने के बाद दासी देवमाला कुटिया में आ जाती है और थोड़ी दूर पे खड़ी हो जाती है। उसने भी भस्म का श्रृंगार किया हुआ था पर उसका शरीर काफी भरा हुआ और मादक था । मैं उसे देख रहा था कि उसने भी मुझे देख लिया और पूछा " कुछ चाहिए महाराज ?"
मैंने कहा " शायद "
उसने कहा " क्या चाहिए महाराज ?"
मैंने कहा कि " मुझे जो चाहिये वो शायद तुम नहीं दे सकती ?"
उसने भी शायद मेरी बात का अर्थ समझ कर के मेरे लंड की तरफ देखते हुए कहा " आप मांग के तो देखिये महाराज "
मैं उसके पास जाके उसकी चूत के ऊपर हाथ रख के कहा " मुझे ये चाहिए "
उसके चेहरे पे प्रसन्नता के भाव आ गए जैसे वो भी यही चाहती हो वो मुझसे कहती है " मुझे कुछ वक़्त दीजिये महाराज "
वो कुछ देर के लिए चली जाती है और जब वापस आती है तो उसके शरीर से सारी भस्म धुली जा चुकी थी और उसका सौंदर्य निखर के मेरे सामने आ रहा था । वो बड़े ही मादक अंदाज में चलके मेरे पास आती है और मेरे लंड अपने मुह में लेके चूसने लगती है। मुझे असीम आनन्द की अनुभूति होने लगती है और मैं अपना लंड उसके मुह में अंदर बाहर करने लगता हूँ । कुछ देर बाद वो मुझे लिटा के मेरे ऊपर आ जाती है और मेरे लंड को अपनी चूत में लेके ऊपर नीचे होने लगती है। मैं भी ऊपर होके उसके चुचको को बारी बारी मुह में लेके चूसने लगता हूँ तो वो उत्तेजित हो कर और जोर से अपनी चूत को मेरे लंड पे पटकने लगती है। जल्दी ही हम दोनों अपने चरमोत्कर्ष पे पहुच जाते हैं।
कुछ देर बाद वो मेरी साथ ही बिस्तर पे लेट अपनी सांसे संभालती है फिर मेरे तरफ होके बोटी है " मैं
न जाने कब से ऐसा करना चाहती थी।"
मैंने खींच के उसे अपने सीने से चिपका लिया और वो खिलखिलाकर हँसने लगा। मैंने उससे पूछा " क्या इस मंदिर में काम करने वाली सभी दासियां तुम्हारे जैसी ही खूबसूरत हैं?"
उसने कहा " हाँ क्योंकि हर कबीले की सबसे खूबसूरत लड़की को ही मंदिर भेजा जाता है "
मैंने कहा " अच्छा तभी पुजारन देवसेना भी बहुत सुंदर हैं"
उसने चहकते हुए पूछा " क्या आपको वो बहुत सुंदर लगती हैं "
मैंने कहा " हाँ क्यों??"
उसने कहा " नहीं तब आपको पुजारन देवसेना जी ने जिस उद्देश्य के लिये बुलाया है उसमें सरलता होगी।"
मैंने कहा कि " मैं समझा नहीं उन्होंने तो मुझे किसी पूजा के किये बुलाया है "
उसने कहा " वही कालरात्रि की पूजा "
मैंने उससे पूछा " ये क्या पूजा है "
उसने कहा " क़बीलों की परंपरा के अनुसार पुजारन को हर माह उस काबिले के सरदार के साथ इस पूजा को करना होता है जिसके कबीले में उसे मासिक धर्म आये। इस पूजा के अनुसार पुजारन को उस सरदार के साथ सम्भोग कर संतान उत्पत्ति की कोशिश करनी होती है। पुजारन देवसेना पिछले एक वर्ष से सरदार कपाला के साथ काल रात्रि की पूजा कर रही हैं पर अबतक उन्हें सफलता नहीं मिली।"
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09-20-2019, 01:52 PM,
#9
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मैंने उत्सुकतावश पुछा " अभी तक पुजारन देवसेना माँ क्यों नहीं बन पायीं ?"
उसने जवाब दिया " महाराज पुजारन बनने की प्रक्रियाओं में से एक प्रक्रिया के तहत हमे एक ऐसे फल का सेवन करना होता है जिससे हमारी माँ बनने की संभावनाये नगण्य हो जाती हैं।"
मैंने फिर पूछा " तो मां बनना इतना जरुरी क्यों है ?"
वो जवाब देती है " महाराज आजतक कोई भी पुजारन माँ नहीं बन पाई है जो कोई पुजारन कालरात्रि की पूजा से माँ बन जायेगी उसकी पूजा देवी की तरह हर काबिले में की जायेगी।"
अब मुझे सब कुछ समझ में आ गया था कि मुझे यहां किस लिये बुलाया गया है । मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा " अच्छा अगर देवसेना देवी बन जाएँगी तो पुजारन कौन होगा ?"
उसने हँसते हुये जवाब दिया "मैं "
मैंने कहा " देवसेना देवी बन जाएँगी और तुम पुजारन तो मुझे क्या मिलेगा ??"
उसने पूछा " मैं समझी नहीं ?? आपको क्या चाहिए "
मैंने कहा " एक वचन आप दोनों से । अगर देवसेना मेरी संतान की माँ बन जाती हैं तो उन्हें मुझे सारे क़बीलों का सरदार घोषित करना होगा और जब तुम पुजारन बन जाओगी तो तुम्हे भी हमेशा मेरी मदद करनी होगी ।"
उसने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " महाराज मैं पुजारन देवसेना से अभी इस विषय में बात करती हूं। "
वो जैसे जाने के लिये उठी मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया और फिर एक बार हम दोनो एक दूसरे में फिरसे समा गए।

अगली सुबह मैं पुजारन देवसेना से मिलने उनके मंदिर में गया। वो मुझे देख के अति प्रसन्न हुईं और बोली " महाराज मैंने आपकी शर्ते सुनी और वो मुझे मंज़ूर हैं "
मैंने पास ही खड़ी देवबाला की तरफ देखा " उसने कहा " मुझे भी मंजूर है"
मैंने कहा कि " तो फ़िर मैं भी तैयार हूं आपकी पूजा के लिये बताइये कब से शुरू करनी है ये पूजा ?"
पुजारन देवसेना ने जवाब दिया " आज रात को ही शुरू करेंगे आप आज रात को यहाँ मंदिर में आ जाइयेगा मैं सारी तयारी कर के रखूंगी ।"
मैंने कहा कि " फिर ठीक है मैं अब चलता हूँ "
फिर मैं अपनी कुटिया में वापस आ गया और भोजन करके विश्राम करने लगा क्योंकि आज रात लंबी होनी वाली थी।
रात को मैं भी स्नान करके मंदिर पंहुचा तो गर्भ गृह में पुजारन देवसेना मेरा इंतज़ार कर रही थी। उन्होंने आज अपने शरीर पे भस्म भी नहीं लगाई थी अर्थात वो एकदम नग्न अवस्था में थी। कमरे में चारो ओर खुशबू फैली हुई थी बीच में जानवरों की खाल का बिस्तर था जिसे पुष्प से सजाया गया था। सामने फल और मदिरा का ढेर लगा हुआ था।
मेरे वहां पहुचते ही सारी दासियां वहाँ से चली जाती हैं और हमे वहाँ अकेला छोड़ देती हैं। पुजारन देवसेना मेरा हाथ पकड़कर मुझे बिस्तर तक ले जाती है और मेरे हाथ में मदिरा का एक प्याला दे देती हैं। मैं एक ही घूँट में उसे पी जाता हूं। पुजारन देवसेना का सौंदर्य पास से देखने पे और सम्मोहित करने वाला था। मैंने मदिरा के दो चार और प्याले अपने हलक से नीचे उतार लेता हूं।
थोड़ी देर बाद पुजारन देवसेना ने मुझसे कहा " महाराज इस पूजा के नियम आप को समझाना चाहती हु इस पूजा में आप को मेरे शरीर को अपने हाथ से स्पर्श नहीं करना होगा बाकी आप जो चाहे कर सकते हैं।"
मैंने कहा " ठीक है "
फिर वो मेरा लंड पकड़कर ऊपर नीचे करने लगती है उसने अपने हाथ पे कुछ लगाया था जिससे मेरे लंड पे चिकनाई लग जाती है और उसका हाथ मेरे लंड पे तेजी से फिसलने लगता है । मुझे लगा की मैं तुरंत ही झड़ जाऊंगा पर किसी तरह खुद को संतामित किया। मेरे लिए अजीब विडंबना की स्थिति थी की वो मुझे उत्तेजित कर रहे थी पर मैं उसे उत्तेजित नहीं कर पा रहा था। तभी मेरी नज़र पास ही पड़े मोर पंख पे पड़ती है जो की शायद किसी पूजन कार्य के लिए वहां रखा हुआ था मैंने वो अपने हाथ में ले लिया और उसके चुचको के ऊपर फिराने लगा। उसे शायद गुदगुदी महसूस हुई और वो मचल उठी। मैंने फिर वो मोर पंख उसकी गर्दन पे हलके से फिराया तो उसकी आँखे बंद हो गयी तो मैंने अपने होठ उसके होठों पे रख दिए। कुछ देर तक हम एक दूसरे को चूमते रहे फिर पुजारन देवसेना अपनी पीठ के बल बिस्तर पे लेट गयी। मैंने भी अब उन्हें उत्तेजित करने का तरीका खोज निकाला था मैं भी वो मोर पंख धीरे धीरे उसके शरीर पे फिराने लगा तो वो मचलने लगी । फिर मैंने वो मोर पंख उसकी चूत के ऊपर फिरना शुरू किया तो उसकी टाँगे खुल गयी और उसकी चूत मुझे नजर आने लगी। मैंने भी वो मोर पंख उसकी चूत के दाने पे फिरना शुरू किया तो वो एकदम से तड़पने लगी और झड़ गयी। मेरा लंड अब एकदम कड़क हो गया था पर उसे न छूने की शर्त भी मेरे आड़े आ रही थी तो मैंने उसे घोड़ी बनने को कहा तो वो मेरे आगे घोड़ी बन गयी। मैं उसके पीछे घुटनो के बल खड़ा हो गया तो उसने मेरा लंड अपनी चूत के द्वार पे लगा लिया । मैंने भी अपनी कमर को झटका दिया तो चिकना होने के कारण मेरा लंड सरक कर उसकी चूत में जड़ तक समा गया। मैं फिर अपना लंड हल्का सा बाहर खींच के ताबड़तोड़ कमर हिलाना शुरू किया । कुछ पकड़ने को न होने के कारण मुझे दिक्कत तो हो रही थी फिर भी मैंने ऐसे ही उसकी चुदाई जारी रखी । कुछ देर बाद देवसेना फिर से उत्तेजित होने लगी तो मैंने उसकी उत्तेजना बढ़ाने के लिए फिर उसे मोर पंख से छेड़ना शुरू कर दिया तो नतीजा ये हुआ की वो अपने चरम पे पहुँच गयी और उसके थोड़ी देर बाद मैं भी।

सुबह मैं उठा तो देखा पुजारन देवसेना अभी भी मेरे बगल में लेटी हुई थी। मैं उसके मादक बदन को देख के एक बार फिर उत्तेजित हो गया। मैंने धीरे से उसकी टाँगे फैलाई और उसकी चूत की फांको को हल्का सा फैलाया तो उसकी चूत का दाना दिख गया। अब मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने उसकी चूत के दाने को मुंह में ले लिया । पुजारन देवसेना की आँखे खुली तो उसने मुझे धकेलने की कोशिश की तो मैंने भी और जोरो से उसकी चूत के दाने को जीभ से छेड़ने लगा । पुजारन देवसेना की सिसकारियां छूटने लगी । मैंने उसके चूत के दाने को छेड़ते हुए मैंने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत में घुसा दी और जोर जोर से अंदर बाहर करने लगा। पुजारन देवसेना मजे से दोहरी हो गयी और अपनी कमर को उठा कर अपनी चूत मेरे मुह में घुसाने लगी। मैंने भी देखा की पुजारन देवसेना गर्म हो गयी है तो मैंने अपना लंड उसकी चूत पे रख कर धक्का दिया तो मेरा लंड उसकी चूत में घुस गया । अब मैंने धक्के पे धक्के लगाने शुरू कर दिए । देवसेना भी मेरे धक्कों के साथ अपनी कमर हिला के मेरा साथ देने लगी । कुछ देर तक ऐसे ही मैं उसकी चूत चोदता रहा फिर मैंने उसे पलट कर घोडी बना दिया और पीछे से चुदाई करने लगा। देवसेना की चीखो से पूरा गर्भगृह गूंजने लगा । अब मेरा भी लंड झड़ने के करीब आ गया था मैंने अपने धक्के की गति को बढ़ा दिया और उसके वक्षो को पीछे से मसलने लगा। कुछ देर बाद देवसेना और मैं दोनों झड़ गए।

कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे फिर पुजारन देवसेना ने मुझसे कहा " महाराज मैंने सोचा था कि कल रात मुझे सम्भोग में अपने जीवन का सबसे मजा आया पर आज सुबह आपने मुझे कल रात से दुगना मजा दे दिया।"
मैंने पुजारन देवसेना से कहा " देवसेना जी आपने अभी कुछ देखा ही नहीं है कुछ दिन और मेरे साथ रहिये मैं आपको मजा देने के साथ गर्भवती भी बनाऊंगा "
देवसेना कहा " भगवन करे ऐसा ही हो "

अब रोज का यही क्रम हो गया था कि रात में पुजारन देवसेना की चूत की पूजा होती थी । इसी प्रकार एक माह बीत गए और इस माह पुजारन देवसेना को मासिक नहीं आया। पूरे मंदिर में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी पुजारन देवेसेना ने मुझे बुलाया और कहा " महाराज मैं आपकी आभारी हूं कि आप की वजह से मेरा वर्षों का सपना पूर्ण हो गया । "
मैंने उत्तर दिया " अब आपको अपने वचन को पूर्ण करने का समय भी आ गया है।"
देवसेना " महाराज मैं आज ही सारे कबीलों में ये संदेश भिजवा देती हूं कि मैंने आपको कबीलों का सरदार चुन लिया है "
मैंने कहा " धन्यवाद पुजारन देवसेना अब मैं वापस जाने की अनुमति चाहता हूं "
देवसेना " महाराज कुछ दिन और रुकिए न "
मैंने कहा " नहीं पुजारन जी मुझे यहाँ आये हुए कई दिन ही गए पता नहीं मेरे कबीले का क्या हाल होगा अब मुझे अपने कबीले के सरदार होने का कर्त्तव्य भी निभाना होगा अतः मैं अब जाना चाहता हु "
पुजारन देवसेना ने भारी मन से मुझे जाने की अनुमति दे दी।
मैंने भी अपना सामान बांधा और निकल पड़ा वापस अपने क़ाबिले की तरफ। ऐसे ही आगे बढ़ते बढ़ते सुबह से शाम हो गयी मैं भी तेजी से कदम बढ़ाने लगाकि अचानक मेरा पैर एक सूखी दाल पे पड़ा जो मेरे वजन से टूट गयी और मेरे पैर किसी फंदे में फंस गया जिसके कारण मैं उल्टा होता हुआ ऊपर की और उठता चला गया। मेरे शरीर का पूरा वजन मेरे एक ही पैर पे पड़ रहा था जिसके कारण मेरे पैर में बहुत जोरों का दर्द उठना शुरू हो गया और उल्टा लटके होने के कारण मेरा सर घूमने लगा। थोड़ी ही देर में एक औरत हाथ में तीर धनुष ताने मेरी दृष्टि के सामने प्रकट हुई। उसने पुरे शरीर को चमड़े के वस्त्र से ढँक रखा था उसके लंबे बाल सर के ऊपर बंधे हुए थे ।
उसने तेज आवाज में मुझसे पूछा " कौन हो तुम और यहाँ हमारे कबीले में क्या कर रहे हो ?"
मैं नहीं जानता था कि ये दोस्त है या दुश्मन सो मैंने भी अपनी पहचान छुपाते हुए जवाब दिया " मैं एक मुसाफिर हु और रास्ता भटक गया हूं "
उसने कहा " कहाँ से आ रहे हो ? "
मैंने जवाब दिया " पुजारन देवसेना के मंदिर से आ रहा हु "
उसने फिर कड़े लहजे में पूछा " देवसेना के मंदिर में कोई बिना अनुमति नहीं जा सकता सच बताओ कौन हो तुम "
मैंने फिर वही बात दोहराई ।
उसे ये बात पसंद नहीं आयी और उसने आगे बढ़ते हुए मेरे सर पे किसी भारी चीज से वार किया और मैं बेहोश ही गया।
आँखे खोलते ही तीव्र पीड़ा मुझे महसूस हुई और मेरी एक आँख पूरी तरह से नहीं खुल पायी थी । लग रहा था कि जब उस औरत ने मेरे सर पे वार किया तो कुछ चोट मेरी आँखों पे भी लग गयी थी जिसके कारण मेरी एक पलक सूज गयी थी। मैंने अपनी दूसरी बची हुई आँख से देखा तो मेरे हाथ पैर बंधे हुए थे और मेरे चारो ओर औरतों का झुण्ड खड़ा था। सब के शरीर चमड़े के वस्त्र से ढंके थे और बाल जटाओं की तरह सर के ऊपर बंधे हुए थी।
मेरी आँखे खोलते ही एक औरत ने मुझसे कड़क आवाज में पूछा " कौन हो तुम और हमारे कबीले में क्या कर रहे हो ?"
मैंने फिर वही जवाब दिया " मैं एक मुसाफिर हु और रास्ता भटक के आपके कबीले में आ गया हूं "
उसने फिर कहा " तुम्हे ये नहीं पता की हमारे कबीले में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है ?"
मैंने कहा " जी नहीं मुझे नहीं पता "
उसने फिर कहा " तब तो तुम्हे ये भी नहीं पता होगा की हमारे कबीले में अनाधिकृत प्रवेश करने पर मृत्यु दंड की सजा है "
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09-20-2019, 01:52 PM,
#10
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
मैंने सोचा अजीब परंपराएं हैं इस कबीले की अब शायद मुझे अपनी सच्चाई इन्हें बता देनी चाहिए नहीं तो मेरा मृत्युदंड पक्का है। मैंने कहा " देखिये मैं माफ़ी चाहता हु की मैं गलती से आपके कबीले में प्रवेश कर गया और मैंने आ सब से झूठ बोला अब मैं आपको सच्चाई बताना चाहता हु । "
उस औरत ने कहा " जो भी बोलना पुरूष सोच समझ के बोलना क्योंकि अब तुम झूठ बोलेने के अपराध को मान चुके हो "
मैंने कहा " जी मैं मानता हूं कि मैंने झूठ बोला पर उसका कारण ये है कि मैं जमजम कबीले का सरदार हु और मैं नहीं जानता था कि आपका कबीला उस कबीले का शत्रु है या मित्र । इस लिए मुझे झूठ बोलना पड़ा।"
मेरी बात सुन कर पास खड़ी सभी औरते हँसने लगी । अभी तक जो औरत बात कर रही थी उसने कहा " अच्छा तो तुम जमजम कबीले के सरदार हो पर हमने तो सुना है कि वो इतना ताकतवर है कि उसने एक ही वार में वज्राराज को मौत के घाट उतार दिया और उसका लिंग इतना बड़ा है कि उसके साथ सोने वाली सारी औरते रात भर चीखती रहती हैं। पर तुम्हे देख कर तो ऐसा नहीं लगता।"
मैंने कहा " देखिये सुनी हुई बाते हमेशा सत्य नहीं होती।"
उसने कहा " अभी पता चल जायेगा जरा तुम्हारा लिंग देखे "
ऐसा कहकर उसने मेरी कमर पर लपेटा चमड़े का वस्र उतार दिया अब मेरा लंड अपनी सामान्य अवस्था में था तो उसे देख के सारी औरते फिर जोरो से हँसने लगी।
फिर उस औरत ने सबको चुप होने का इशारा किया और मुझसे बोली " पुरुष तुमने बिना अनुमति हमारे कबीले में प्रवेश किया और हम सब से झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो इसकी तुम्हे सजा मिलेगी । सैनिको इसे मृत्यु दंड दिया जाता है।"
उसके इतना कहते ही आसपास की सभी औरतो ने अपने धनुष पे बाण चढ़ा लिए और मेरे ऊपर तान दिया। मुझे अपना अंत समीप नज़र आ रहा था इसलिए मैंने भी मृत्यु को वरण करने हेतु अपना सीना आगे कर दिया।
तभी एक सैनिक औरत दौड़ती हुयी आती है और कहती है " महाराज जमजम कबीले ने हमारे कबीले पे आक्रमण कर दिया है "
अभी तक जो औरत बोले जा रही थी उसने कहा " क्यों?"
सैनिक औरत " रानी वो कह रहे हैं की हमने उनके सरदार का अपहरण कर लिया है।"
सरदार औरत मेरी तरफ विस्मित नजरों से देखने लगती है। मैं उससे कहता हूं " देखिये शायद हम दोनों लोगो से ग़लतफ़हमी हो गयी है इसलिए आप मुझे बंधन मुक्त कर दे मैं अपने कबीले वालो को समझाता हु अन्यथा व्यर्थ में निर्दोष लोग मारे जायेंगे।"
सरदार ने मेरे हाथ खुलवाये और मैं उनके साथ उस तरफ चला जहाँ युद्ध हो रहा था। वहां मैं देखता हूं कि विशाला कुछ सैनिको के साथ इस कबीले के सैनिको से लड़ रही है। मैं आवाज देके उन्हें रुकने का आदेश देता हूं तो वो सब रुक जाते है साथ ही बाकी दूसरे कबीले के सैनिक भी उनके सरदार के इशारे पे रुक जाते हैं।
मैं विशाला के पास पहुचता हु तो वो मुझे देख कर ख़ुशी से मुझसे लिपट जाती है। थोड़ी देर बाद मेरी अवस्था देख फिर गुस्से से कबीले के सरदार से बोलती है " रानी नंदिनी आपने हमारे महाराज का अपहरण कर उनके ऊपर हमला किया उनका अपमान किया है और कबीले के संधि के नियमो की अवहेलना की है साथ ही आपने कबीलों के सरदार का भी अपमान किया है आपको बंदी बनाया जाता है ताकि आप अपने गुनाहों का दंड आप महाराज से पा सके "
मैं विशाला को समझाने की कोशिश करता हु " सेनापति विशाला इसमें रानी नंदिनी की कोई गलती नहीं है मैं ही भटक के इनके कबीले में आ गया था इन्हें नहीं पता था कि मैं कौन हूं इसलिए इन्होंने अज्ञानतावश ऐसा किया ।"
विशाला मुझसे कहती है "जैसा आप कहे महाराज "
तबतक रानी नंदिनी अपने पैरों में गिर जाती है और बोलती " महाराज मुझे माफ़ कर दीजिए "
मैंने कहा " रानी नंदिनी आपसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है अतः मैंने आपको माफ़ कर दिया ।"
नंदिनी " महाराज ये आपका बड़प्पन है कृपा करके हमारे कबीले में पधारे ताकि आपकी चोट का इलाज कराया जा सके "
मैंने कहा " चलिये रानी "

रानी नंदिनी के कबीले में मैंने गौर किया कि सारी स्त्रियां ही थी यहाँ तक छोटी बच्चे भी किशोरियां ही थी। मैंने उत्सुकता वश पुछा " रानी नंदिनी आप के कबीले के सभी पुरुष कहाँ है?"
रानी नंदिनी ने कहा " महाराज हमारे हमारा ये कबीला सिर्फ स्त्रियों है हमारे यहाँ कोई पुरुष नहीं है "
मैंने चौंकते हुए पूछा " ऐसा कैसे हो सकता है कुछ कामों के लिए तो पुरुष की जरुरत पड़ती है जैसे बच्चे पैदा करने में ?"
रानी नंदिनी ने हँसते हुए जवाब दिया " महाराज हमारे कबीले की स्त्रियां किसी पुरुष का वरण कर सकती है और उसके साथ रहकर संतान उत्पन्न करने की कोशिश कर सकती हैं अगर संतान लड़की हुयी तो वो कबीले में बच्ची के साथ वापस आ सकती है पर अगर लड़का हुआ तो कबीले की स्त्री को कबीले में वापस आने के लिए अपने बच्चे को उसके पिता के पास छोड़ना होता है ।"
अब हम रानी के साथ एक कुटिया में आ गए थे रानी ने मुझसे कहा " महाराज आप और सेनापति विशाला यहाँ विश्राम करे मैं आपके भोजन का प्रबंध करती हूं।"
रानी के जाने के बाद मैंने विशाला से पूछा " तुम्हे कैसे पता चला की मैं यहाँ बंदी हु ?"
विशाला ने बताया " पुजारन देवसेना के मंदिर से वापस आने के बाद मैंने एक गुप्तचर आपके वहां से वापस लौटने की जानकारी के लिए वहां भेजा था। जब आप वहां से वापस कबीले के लिए चले तो वो आपका छुप के पीछा कर रहा था। जब आपको रानी नंदिनी के कबीले वालो ने बंदी बना लिया तो उसने आके मुझे सूचना दे दी।"
मैंने विशाला की तारीफ करते हुए कहा " वाह विशाला आज मुझे विश्वास ही गया कि मैंने तुम्हे सेनापति बना के कोई गलती नहीं की। बताओ तुम्हे क्या इनाम चाहिए।"
विशाला ने मेरी तरफ देखते हुए " महाराज मुझे आपसे एक ही इनाम चाहिए " फिर उसने अपनी कमर पे बंधा कपडा उतार दिया और मेरे सामने घोड़ी बन गयी।
मैंने भी अपना कमर पे बांध वस्त्र उतार दिया और अपने लंड को आगे पीछे करके खड़ा करने लगा। कुछ देर बाद जब मेरा लंड खड़ा ही गया तो मैंने उसपर थूक लगा के विशाला की चूत पे लगाके जोरक धक्का मारा तो मेरा लंड थोड़ा सा उसकी चूत में गुस गया। उसकी चूत अभी पूरी तरह से गीली नहीं थी तो मैं आगे से हाथ डालकर उसकी चूत के दाने को मसलने लगा। विशाला मजे से अपनी चूत आगे पीछे करने लगी। थोड़ी देर बाद जब उसकी चूत कुछ चिकनी हुयी तो मैंने फिर जोर का झटका मार के अपना पूरा लंड उसकी चूत में उतार दिया। और उसकी कमर पकड़ के उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। विशाला भी मजे से चिल्लाने लगी जिसके कारण मुझे और उत्तेजना होनी लगी। मैंने अपने धक्कों की गति को तेज कर दिया और कुछ देर बाद उसकी चूत में ही झड़ गया।
कुछ देर बाद हम दोनों संयमित हुए तो हमे अंदाजा हुआ की हम किसी दूसरे के क़बीले में हैं अतः हम वापस अपने स्वाभाविक अवस्था में आ गये। कुछ देर बाद रानी नंदिनी ने कुटिया में प्रवेश किया उनके साथ एक अत्यंत रूपवान स्त्री भी थी। रानी ने परिचय कराते हुए कहा " महाराज ये मेरी पुत्री त्रिशाला है ।"
उसने मुझे प्रणाम किया पर मैं तो उसके सौंदर्य में खोया हुआ था। रानी ने फिर मुझसे कहा " महाराज ये मेरी पुत्री त्रिशाला है ये आपसे मिलने चाहती थी।"
। रानी की बात सुनकर मेरी तन्द्रा टूटी। मैंने कहा " रानी नंदिनी आप की तरह ही आपकी पुत्री भी बहुत सुंदर हैं । "
मेरी बात सुनकर दोनों शर्म से लाल हो गयी। मैंने फिर आगे बात बढ़ाते हुए कहा " रानी अब शायद हमें चलना चाहिए हमने बहुत देर आपसे अतिथिभगत करवाई ।"
रानी नंदिनी " महाराज आप थोड़े दिन हमे भी सेवा का मौका दे "
मैंने कहा " रानी मैं बहुत दिन से अपने कबीले से दूर हु अब मुझे वहां जाके वहां की भी व्यवस्था देखनी चाहिये अतः आप हमें जाने की आज्ञा दे। "
रानी नंदिनी " जैसा आप चाहे महाराज पर मैं आपसे कुछ कहना चाहती हु ।"
मैंने कहा " बिलकुल महारानी संकोच न करे "
रानी नंदिनी " महाराज मेरी बेटी त्रिशाला आपका वरण करना चाहती है "
मैंने चौंकते हुए त्रिशाला की तरफ देखा तो वो सर झुकाये हुए शर्म से दोहरी हो रही थी। मैंने रानी नंदिनी से पूछा " पर रानी मेरी आपकी पुत्री से ये पहली भेंट है वो एक ही भेंट में ऐसा फैसला कैसे ले सकती है ?"
मेरी बात पे रानी नंदिनी ने कहा " महाराज पिछले एक माह से हम आपके बारे में बहुत सी बातें सुन रहे हैं चाहे हम आपसे कभी न भी मिलते फिर भी हमे आपके बारे में काफी कुछ मालूम है ।"
रानी की बात ये मैंने हँसते हुए जवाब दिया " हाँ वो तो मैं देख ही चूका हूँ की आपको क्या बाते पता चली हैं । चूँकि हमारे क़बीले का नियम है कि मैं किसी स्त्री को संभोग के लिए मना नहीं कर सकता इसलिए मैं आपके इस प्रस्ताव के लिए भी मना नहीं करूँगा, पर मैं ये चाहता हु की राजकुमारी त्रिशाला मेरे साथ मेरे क़बीले चले वहां मेरे साथ रहे और तब अपना फैसला करे , न की सुनी सुनाई बातो पे।"
रानी नंदिनी ने त्रिशाला की तरफ देखा तो उसने भी सहमति में सर हिलाया तो रानी ने मुझसे कहा "जैसी महाराज की इच्छा "
मैंने कहा "फिर हमें प्रस्थान की अनुमति दीजिये "
रानी नंदिनी ने कहा " देवता आपकी यात्रा सुगम करे महाराज "
क़बीले में पहुचने पर सभी क़बीले वासी, चरक और रानी विशाखा ने मेरा स्वागत किया । मैं भी उनसे बहुत ही गर्मजोशी से मिला । अपनी कुटिया पे आके मैंने चरक ,रानी विशाखा, सेनापति विशाला तथा राजकुमारी त्रिशाला की मंत्रणा के किये बुलाया।
मैंने सब से राजकुमारी त्रिशला का परिचय कराया फिर पूछा " मेरी गैर हाजिरी में क़बीले का क्या हाल था ??"
सबसे पहले चरक महाराज बोले " महाराज सब ठीक ही था "
ये सुनकर विशाला घूर के चरक को देखने लगी।
मैंने सेनापति विशाला से पुछा " आपको कुछ कहना है सेनापति "
विशाला बोली " महाराज आपकी गैर हाजिरी में कपाला ने दी बार हमारे क़बीले पे हमला किया जिसे हमने विफल कर दिया।"
मैंने पूछा " कपाला आखिर चाहता क्या है ?"
अब रानी विशाखा ने कहा " महाराज वो कबीलो का सरदार बनना चाहता था पर पुजारन देवसेना ने आपको कबीलो का सरदार बना दिया है इसलिये बौखलाहट में वो क़बीले पर हमला कर रहा है।"
मैंने कुछ सोचते हुए चरक से पुछा " क़बीले की दिवार का काम कहाँ तक पंहुचा "
चरक " महाराज दिवार पूर्ण हो चुकी है।"
मैंने उन सबसे कहा " अब सभा पूर्ण होती है । "
मैंने रानी विशाखा से कहा " महारानी राजकुमारी त्रिशाला के रहने का प्रबंध किया जाए ।"
फिर मैंने विशाला से कहा " सेनापति विशाला आप मेरे साथ चले आपसे कुछ बात करनी है।"
मैं और विशाला कुटिया से बाहर निकलकर क़बीले से बाहर आ जाते हैं। मैं विशाला से कहता हूं " सेनापति मैं चाहता हु की आप अपना विश्वस्त गुप्तचर चरक महाराज के पीछे लगा दे वो कुछ छुपा रहे हैं हम सब से। "
विशाला ने कहा " जो आज्ञा महाराज "
फिर मैंने कहा " इस क़बीले की दीवार से आगे गड्ढा खुदवा दो और उसमें नुकीले भाले जैसे लकड़िया गढ़वा दो और उन्हें घांस फूंस से ढकवा दो। "
उसने कहा " जी मगराज"
फिर मैंने कहा " तुम्हे एक और काम करना होगा । एक गुलेल जैसे बड़े बड़े यंत्र बनवाने होंगे जिससे हम क़बीले की दीवार के अंदर सही शत्रु पे हमला कर सके।"
विशाला ने मुझसे पूछा " ये गुलेल क्या होती है महाराज ?"
मैं पास में पड़ी हुई लकड़ियों से उसे गुलेल बनाना सिखाने लगा। कुछ देर बाद वो समझ गयी और बोली " महाराज ये बन जायेगा पर आपको ये बनाना कैसे आता है ?"
मैंने कहा " पुराने ज़माने में रोमन योद्धा युद्ध में इस तरह के हथियारों से अपने शत्रुयों पे बड़े बड़े पत्थरों से हमला करते थे। मैंने उनकी युद्ध कला के बारे में पढ़ा है।"
फिर मैंने विशाला से कहा " अपनी सेना को सतर्क और तैयार रहने को बोल दो और प्रहरियों की गश्त बढ़ा दो मुझे लगता है जल्द ही कपाला बड़ा हमला करने वाला है ।"
विशाला ने विस्मित नजरों से देखते हुये पूछा " आपको ऐसा क्यों लगता है महाराज? "
मैंने कहा " मुझे लगता है कि अभी तक जो दो हमले हमारे क़बीले पे हुए वो टोह लेने के लिए हुए थे अब जो हमला होगा वो हमारी कमजोरियों का आंकलन करने के बाद किया जाएगा इसलिए हमें सावधान हो जाना चाहिए।"
विशाला ने कहा " जैसी आपकी आज्ञा महाराज"
फिर हम वापस क़बीले में आ गए।
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