Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:28 PM,
#11
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--11

गतान्क से आगे.

"थॅंक्स.",उसने इंटरकॉम बंद किया & ठीक उसी वक़्त उसके दिमाग़ मे उसकी परेशानी का हाल कौंधा.तजुर्बे & क्वालिफिकेशन्स की बिना पे बस सोनम ही उसकी सेक्रेटरी बन सकती थी.आज तक उसने अपने बिज़्नेस के साथ समझौता नही किया था & आज भी नही करेगा.उसने इंटरकम का बटन दबाया,"मिस.सोनम रौत & मिस.रंभा वेर्मा के अलावा बाकी लड़कियो को जाने को कहो & फिर मिस.रौत को मेरे पास भेजो."

"मिस.रौत,कंग्रॅजुलेशन्स!",विजयंत ने उस से हाथ मिलाया तो सोनम के बदन मे झुरजुरी दौड़ गयी.उसके कॅबिन मे घुसने पे विजयंत ने खड़े होके उसका स्वागत किया था,"आप इस पोस्ट के लिए चुन ली गयी हैं."

"थॅंक्स,सर."

"उमीद है हमारे साथ काम करके आपको अच्छा लगेगा.आप बाहर जाएँगी तो आपको मिस्टर.कुमार मिलेंगे जोकि आपको ऑफर लेटर देंगे अगर उसमे लिखी बातें आपको मंज़ूर होंगी तो आपका अपायंटमेंट लेटर आपको थमा दिया जाएगा."

"थॅंक यू,सर.",सोनम बाहर आई & कुमार नाम के शख्स के साथ बैठ अपनी सॅलरी & बाकी बातें समझने लगी.

"आइए मिस.रंभा.",विजयंत खड़ा मुस्कुरा रहा था,अब कॅबिन मे रोशनी भी ज़्यादा थी.उसके लंबे-चौड़े डील-डौल & हॅंडसम चेहरे को देख रंभा के दिल मे 1 कसक उठी.उसका दिल किया कि अपने हाथ से उसकी सुनेहरी दाढ़ी मे हाथ फिरा दे.उसने रंभा को बैठने को इशारा किया तो रंभा डेस्क के सामने की 1 कुर्सी पे बैठ गयी.विजयंत उसके करीब आया & डेस्क पे बैठ गया.1 पल को उसकी निगाहे रंभा की मक्खनी जाँघो पे पड़ी फिर उसने अपनी नज़रे उसकी नज़रो से मिला दी.

"मिस.रंभा,मैं आपको अपनी सेक्रेटरी की जगह नही दे सकता.",मायूस रंभा ने सर झुका लिया,"..लेकिन मैं आपको 1 दूसरी पोस्ट ऑफर कर सकता हू.",रंभा ने हैरत से सर उठाया.

"क्या आप मेरे बेटे की सेक्रेटरी बनाना पसंद करेंगी?"

"सर!",रंभा इस नये ऑफर से चौंक गयी थी.

"जी,देखिए कोई और उमीदवार था जोकि आपसे बेहतर था लेकिन इसका ये मतलब नही कि आप काबिल नही हैं.आप काबिल हैं & इसलिए मैं आपको खोना नही चाहता..",खोना लफ्ज़ पे विजयंत ने ज़ोर दिया था,"..तो क्या आपको ये ऑफर मंज़ूर है?"

"ज़रूर,सर..",रंभा खुशी & रहट से मुस्कुराइ,"..आपके ग्रूप मे काम करने का मौका मैं गँवाने की सोच भी नही सकती."

"तो ठीक है.कंग्रॅजुलेशन्स!",उसने उसकी ओर हाथ बढ़ाया & उसके कोमल,नाज़ुक से हाथ के एहसास से वो फिर पागल हो गया.उसका दिल किया कि उसे खींच बाहो मे भर उसके चेहरे को अपने बेकरार होंठो के निशानो से ढँक दे!

"आप बाहर जाइए,आपको सभी बातें समझा दी जाएँगी.",ना चाहते हुए भी उसने उसका हाथ छ्चोड़ा & उसे विदा किया.रंभा तो हवा मे उड़ रही थी.इतना बड़ा इंसान खुद उसका इंटरव्यू ले & फिर खुद उसे बेटे की सेक्रेटरी बनाने को कहे.ये काम तो वो अपने किसी आदमी से भी करवा सकता था लेकिन उसने खुद उसे बुला के जॉब की ऑफर दी,ये सब उसके बड़प्पन की निशानी थी!

विजयंत के असली मंसूबो से अंजान रंभा खुशी मे चूर बाहर आके अपनी नयी नौकरी के बारे मे जानने-समझने लगी.

जब नयी नौकरी की सारी बातें पक्की कर रंभा ट्रस्ट ग्रूप के ऑफीस से निकली तो उसकी खुशी का ठिकाना नही था.वो बेकरार हो रही थी अपनी खुशी किसी से बाँटने के लिए लेकिन कौन था इस शहर मे जिसके साथ वो अपनी खुशी बाँटती?..& तब उसे विनोद का ख़याल आया जिसकी मदद के बिना ये होना नामुमकिन था.उसने फ़ौरन उसे फोन लगाया.

"हेलो,डार्लिंग!कैसा रहा इंटरव्यू?"

"बढ़िया."

"तो क्या नौकरी मिल गयी तुम्हे?"

"नही & हां."

"क्या पहेलियाँ बुझा रही हो?",रंभा हंस पड़ी.

"आज शाम को मिलो.इस पहेली का हल भी बताउन्गि & ट्रीट भी दूँगी.चलो ना,कही बाहर खाना खाएँगे!"

"आज तो मुश्किल है,जानेमन.बहुत काम है."

"ओह.",रंभा मायूस हो गयी.

"ऐसा क्यू नही करती कि सीधा मेरे घर पहुँचो.वही जश्न मनाते हैं.",रंभा उसके जश्न का मतलब समझ मुस्कुराइ.

"ओके."

"ठीक है,मैं फोन करूँगा & बताउन्गा की कितने बजे तक तुम घर आ जाओ."

"बाइ."

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"हेलो,डार्लिंग.",कामया ने होटेल वाय्लेट मे विजयंत के प्राइवेट सूयीट मे कदम रखा.1 लिफ्ट सीधा सूयीट मे खुलती थी & विजयंत ने उसका 1 कार्ड कामया को दे रखा था.विजयंत केवल 1 ड्रेसिंग गाउन पहने बिस्तर पे अढ़लेटा वाइन पी रहा था.गाउन के गले मे से उसका सुनहरे बालो से भरा सीना & नीचे मज़बूत टांगे नुमाया हो रहे थे.कामया समझ गयी थी की गाउन के नीचे उसका प्रेमी नंगा है & उसने 1 वासना भरी मुस्कान फेंकी.उसने 1 पीले रंग का कसा हुआ स्लीवेलसस टॉप & स्किन टाइट जीन्स पहनी हुई थी.वो विजयंत के करीब आई & उसके सामने बाई बाँह पे अढ़लेटी हो गयी & उसके हाथ से वाइन का ग्लास ले 1 घूँट भरा & फिर उसके होंठ चूम लिए.

अगले ही पल दोनो 1 दूसरे को बाहो मे भरे अपने जिस्मो को आपस मे रगड़ते हुए बड़ी शिद्दत के साथ किस्सिंग कर रहे थे.विजयंत का बाया हाथ कामया की गंद से लेके पीठ को मसल रहा था.कामया ने मस्त हो अपनी दाई टांग उसकी टाँगो के उपर चढ़ा दी.उसके हाथ विजयंत के सर & सीने के बालो मे घूम रहे थे & ज़ुबान विजयंत के मुँह मे.

"तुम्हे मेरा 1 काम करना होगा.",कामया ने विजयंत का गाउन खोल दिया था & उसके सीने को चूमने & उसके निपल्स को चूसने के बाद नीचे जा रही थी.कुच्छ ही लम्हो बाद विजयंत का सख़्त लंड उसके मुँह मे अंदर-बाहर हो रहा था.विजयंत ने हाथ बढ़ा उसकी शर्ट को उपर किया & उसकी गोरी पीठ को सहलाते हुए अपना हाथ नीचे कर उसकी चूचियो को दबाने लगा.

"कैसा काम?",लंड ने हमेशा की तरह कामया को तुरंत मदहोश कर दिया था.वो उठी & 1 ही झटके मे अपना टॉप & ब्रा निकाल दिए & विजयंत को धकेल बिस्तर पे सुला उसके उपर आई & अपनी बाई चूची को पकड़ उसके मुँह मे दे दिया & जैसे ही विजयंत ने उसे चूसने शुरू किया वो च्चटपटाते हुए आहें भरने लगी.

"तुम्हे मुझे सोनिया कोठारी से मिलवाना होगा लेकिन इस तरह की उसे लगे कि ये 1 इत्तेफ़ाक़ है कि हम दोनो 1 ही जगह पे हैं.",उसने कामया को पलटा & फिर उसकी दूधिया चूचियो को चूसने लगा.कामया आहे भरते हुए हाथ नीचे ले जाके उसके लंड से खेलने लगी.

"ओह..विजयंत लेकिन ये कैसे मुमकिन होगा..ऊहह..मेरी पॅंट उतारो..",उसने विजयंत की जीन्स उतारने मे मदद की,"..पहले की बात और थी वो पार्टीस ऑर्गनाइज़ करने का ही काम करती थी तो मुलाकात हो जाती थी लेकिन अब वो कोठारी की बीवी है,मैं किस तरह से उसकी & तुम्हारी मुलाकात कर्वाऊं?!..ओईईईईईईईईईईईईई..!",विजयंत ने उसे नगी कर उसकी चूत मे उंगली करते हुए उसके दाने को चूम लिया था.

"वो सोचना तुम्हारा काम है,डार्लिंग.",विजयंत ने उसकी चूत मे 2 उंगलिया घुसा दी थी,"..मुझे बस सोनिया से मिलना है."

"हूँ.",कामया ने विजयंत का सर पकड़ उसके मुँह को अपनी चूत पे दबा उसे खामोश कर दिया & दोनो जिस्मो का मस्ती भरा खेल खेलने लगे.

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"उउम्म्म्म..विनोद..ऊव्व..!",विनोद के घर मे कदम रखते ही उसने रंभा को दबोच लिया था & उसके चेहरे पे किस्सस की बौछार करते हुए उसकी गंद पे चिकोटी काट ली थी.रंभा ने 1 दिला-ढाला टॉप & लंबी,ढीली स्कर्ट पहनी हुई थी जिसे उठा के विनोद उसकी मोटी गंद को दबाए जा रहा था.

"नयी नौकरी की बधाई कबूल करो जानेमन!",उसने उसे गोद मे उठा लिया & अपने बेडरूम मे ला बिस्तर पे लिटा उसे बाहो मे भर उसके जिस्म के साथ खेलने लगा.

"बड़े बेसब्र हो तुम!....उउम्म्म्मम..!",विनोद ने उसकी स्कर्ट को कमर तक उपर कर दिया था & उसकी जाँघो को सहलाते हुए उसकी गर्दन चूम रहा था.

"अब बताओ दिन मे क्या पहेली बुझा रही थी.",उसने उसका टॉप उपर किया & उसके चिकने पेट को चूमने लगा.

"उउन्न्ञन्..मुझे ट्रस्ट मे नौकरी मिल गयी मगर वो नही जिसके लिए मैने अर्ज़ी दी थी..आहह..!",विनोद उसकी नाभि चाट रहा था.

"तो फिर कौन सी नौकरी मिली?",रंभा ने उसके बाल पकड़ उसे उपर खींचा & बाहो मे भर उसे पलट के उसके उपर सवार हो गयी & उसकी टी-शर्ट को निकाल उसके सीने को चूमने लगी.उसकी गर्म सांसो के साथ जब उसने विनोद के सीने पे पहले बहुत हल्की किस्सस दी & फिर दांतो से धीरे-2 काटा तो विनोद आहे भरने पे मजबूर हो गया.

"मुझे विजयंत मेहरा के बेटे समीर की सेक्रेटरी की नौकरी मिली है.",रंभा विनोद के जिस्म के दोनो ओर घुटने जमा के उसके उपर बैठी थी & उसके हाफ-पॅंट मे से उसका लंड उसकी गंद मे चुभ रहा था.उसने झट से विनोद की पॅंट सर्काई & उसके तने लंड को पकड़ के अपने मुँह के हवाले किया.

"आहह..ये तो कमाल हो गया!",विनोद ने उसके बाल पकड़ उसके सर को अपने लंड पे दबा दिया.

"हूँ..",उसका मुँह विनोद के लंड से भरा हुआ था जिसके नीचे लटके आंडो को वो दबाए जा रही थी.विनोद को लगा की अगर रंभा इसी तरह उसके लंड को चुस्ती रही तो वो फ़ौरन झाड़ जाएगा.उसने उसके बाल पकड़ उसे उपर खींचा तो वो उसके उपर आ गयी & उसे चूमने लगी.दोनो पागलो की तरह 1 दूसरे को चूम रहे थे.विनोद के हाथ तो उसकी गंद से जैसे चिपक ही गये थे & उसकी पॅंटी की बगलो से अंदर घुस उसकी कसी फांको को दबोचे हुए थे.

"तुम्हारी बीवी अभी भी मयके मे है?",विनोद ने उसे लिटा दिया था & जल्दी-2 उसके कपड़े उतार रहा था.

"हां.",उसने उसकी पॅंटी निकाली & उसकी टाँगे फैला झुक के अपना मुँह उसकी गीली चूत से लगा दिया.

"कब लौटेगी?...ऊऊओह..!"

"कल.",उसने जवाब दिया & वापस उसकी चूत से बहते रस को पीने लगा.

"यही है वो....आन्न्न्नह.....हाआंन्‍णणन्..!",उसने दीवार पे लगी विनोद & उसकी बीवी की तस्वीर की ओर इशारा किया & ठीक उसी वक़्त विनोद ने उसके दाने को मुँह मे भर के उसपे जीभ फिराई & वो झाड़ गयी.

"हां.",विनोद उसकी फैली टाँगे थम घुटनो पे बैठा अपना लंड उसकी चूत मे घुसा रहा था.रंभा ने गौर किया कि विनोद अपनी बीवी के बारे मे बात करने से कतरा रहा था.उसने विनोद को अपने उपर गिराया & बाहो मे भर उसे चूमने लगी.उसका लंड चूत मे उसे बहुत भला लग रहा था & जिस्म मे वोही जाना-पहचाना मज़ेदार एहसास अपनी शिद्दत की ओर पहुँच रहा था.विनोद उसे चूमते,उसकी गर्दन को चूमते हुए बहुत ज़ोरदार धक्के लगा रहा था.रंभा ने अपनी बाहें & टाँगे उसके जिस्म के गिर्द लपेट दी थी & अपनी कमर जोश मे उचका रही थी.

"विनोद,तुम मेरे सवालो से परेशान हो गये थे ना?",उसने उसे पलटा & उसके उपर आ गयी.उसकी मस्त चूचियाँ विनोद के सीने पे दबी हुई थी & उसने उसके चेहरे को हाथो मे थामा हुआ था.विनोद ने जवाब नही दिया & अपना मुँह फेर लिया.

"उउम्म्म्म..डार्लिंग..घबराते क्यू हो?",कमर हिलाते हुए रंभा उसके चेहरे को चूम रही थी,"..तुम्हे क्या लगता है कि मैं तुम्हारे पीछे पड़ जाऊंगी?..तुम शादीशुदा हो इस बात का फयडा उठा तुम्हे धमकाऊँगी..हूँ?",विनोद उसकी आँखो मे देखने लगा.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:28 PM,
#12
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--12

गतान्क से आगे.

"विनोद,मुझे कुच्छ चाहिए था.तुमने उसकी कीमत माँगी & मैने वो अदा की..",रंभा अब उसके सीने से उठ गयी थी & उसके सीने से लेके पेट तक हाथ चलाती,अपनी चूचिया उछालती कमर हिला रही थी,"..तुमने अपना वादा निभाया & मुझे मेरी चीज़ दे दी.कल को मेरी शादी हो जाएगी तब क्या मैं तुमसे डरती फिरुन्गि कि कही तुम मेरे पति को कुच्छ ना कह दो?..नही,विनोद..ये जो हो रहा है दो इंसानो की मर्ज़ी से हो रहा है.इसमे तुम्हारी बीवी या मेरा होने वाला बाय्फ्रेंड या पति का क्या काम!"

"..इसलिए मेरी जान,इन बेकार की बातो को दिल से निकालो & ये बताओ कि कल जब तुम्हारी बीवी वापस आ जाएगी तो हम कैसे मिलेंगे?",विनोद अब मुस्कुरा रहा था.रंभा ने जैसे उसके ज़हन को पढ़ लिया था & उसकी सारी उलझन को दूर कर दिया था.उसने उसकी चूचिया थाम ली & उन्हे दबाया.

"जब भी फ़ुर्सत मिलेगी मैं आपकी खिदमत मे हाज़िर हो जाऊँगा,हुज़ूर!",उसकी मटकिया अंदाज़ मे कही बात से रंभा हंस पड़ी.विनोद ने उसकी चूचिया पकड़ उसे नीचे खींचा,"..पर पहले तुम उस हॉस्टिल को छोड़ दो & कोई किराए का घर ले लो.",उसने उसे पलट के खुद के नीचे किया & अब बहुत ही गहरे धक्के लगाने लगा.

"उउन्न्ञणनह..सोच तो मैं भी कुच्छ ऐसा रही थी..हाईईईईईईईई....!",देर से हो रही चुदाई रंग लाई & रंभा झाड़ गयी.

"..लेकिन कैसे मिलेगा घर?",कुच्छ पलो बाद जब खुमारी थोड़ी कम हुई तो उसने अपनी चूचियो से चिपके विनोद का सर उपर उठाया.

"मैं तुम्हे 1 एजेंट का पता बताउन्गा,उस से मिल लेना.",अब उसकी बारी थी.वो उसके सीने से उठा & अपना वज़न अपने हाथो पे रख बहुत ज़ोर से अपनी कमर हिलाने लगा.रंभा अब जोश से चीख रही थी & विनोद भी उसकी चूत की सिकुड़ने-फैलने की मस्तानी हरकत से आहत हो आहें भर रहा था.रंभा ने अपने नाख़ून विनोद की बाहो मे धंसा दिए & कमर उचकाती हुई बदन को मोड़ अपना सर पीछे झटका.वो झाड़ गयी थी & झाड़ते ही उसकी चूत ने विनोद के लंड को और कस लिया.

"आहह..!",विनोद के मुँह से आह निकली & उसका जिस्म झटके खाने लगा.उसका गाढ़ा वीर्य रंभा की चूत मे भर रहा था.वो हांफता उसके सीने पे लेट गया & सुकून से मुस्कुराती रंभा ने उसे बाहो मे भर लिया.

पॅरिस के फोर सीज़न्स जॉर्ज व होटेल के हनिमून सूयीट के बिस्तर पे सोनिया पेट के बल नंगी पड़ी थी.उसके हाथो ने बिस्तर की चादर को ज़ोर से भींच रखा था & होटो पे मस्ती भरी मुस्कान खेल रही थी.उसके पीछे ब्रिज कोठारी उसकी सुडोल दाई तंग के पिच्छले गुदाज़ हिस्से को चूम नही बल्कि धीमे-2 चूस रहा था.सोनिया ने हल्की सी आह भारी & अपना मुँह बिस्तर मे च्छूपा लिया & फिर अपने सीने को देखा,उसके जिस्म पे कयि जगह छ्होटे-2 निशान पड़े हुए थे जोकि सब ब्रिज के होटो की मेहेरबानी थी.

"आन्न्ह्ह्ह्ह..!",सोनिया ने बिस्तर से सर उठा के झटका,ब्रिज उसकी मोटी गंद को मसल्ते हुए उसकी चूत मे अपनी लपलपाति जीभ फिरा रहा था.सोनिया की आँखे मस्ती के नशे से भर गयी & उसने बेसब्री से कमरे मे नज़र घुमाई,चारो तरफ वो तोहफे पड़े थे जो ब्रिज ने हनिमून के पहले दिन से उसके लिए खरीदने शुरू कर दिए थे.अब तो उसे किसी चीज़ की तारीफ करने मे भी डर लगने लगा था.इधर वो तारीफ करती उधर ब्रिज उसकी कीमत अदा करता नज़र आता.सोनिया ज़िंदगी मे इतनी खुश पहले कभी नही थी.

उसके बदन मे बिजली दौड़ रही थी & वो काँप रही थी,ब्रिज की जीभ ने उसकी मस्ती को अंजाम तक पहुँचा ही दिया था.उसने 1 लंबी आह भरी,अब ब्रिज उसकी गंद को हवा मे उठा उसकी चूत मे लंड घुसा रहा था.सोनिया फ़ौरन अपने घुटनो & हाथो पे हो गयी.ब्रिज के साथ चुदाई मे उसे जो मज़ा आया था वो आजतक उसने कभी महसूस नही किया था.ब्रिज धक्के लगाने लगा & वो चादर भिंचे अपने सर को हिलाती,ज़ूलफे झटकाती मदहोश हो आसमान मे उड़ने लगी.

तभी ब्रिज का फोन बजा,बिस्तर पे लेटते हुए अपने सीने को उसपे दबाते हुए उसने फोन उठा के नंबर देखा,"ये सोनम कौन है..ऊन्नह..?",ब्रिज ने लंड पूरा बाहर खींच फिर 1 ही झटके मे ज़ोर से अंदर घुसेड दिया था.

"रानी है."

"क्या?!",जलन,गुस्से,हैरत से भरी आवाज़ के साथ उसने सर घुमा के बाए कंधे के उपर से उसे देखा.ब्रिज बीवी की इस अदा पे हंस दिया.

"अभी समझाता हू.",उसने उसके हाथ से मोबाइल लेके अपने कान से लगाया,"हेलो."

"मुझे विजयंत मेहरा के सेक्रेटरी की नौकरी मिल गयी है."

"वेरी गुड.",ब्रिज ने चुदाई रोक दी तो परेशान हो सोनिया ने खुद ही गंद आगे- पीछे करते हुए खुद ही अपनी चुदाई शुरू कर दी,"..अब तुम अगले 3 महीनो तक मुझे उसके ग्रूप के बारे मे कोई खबर नही दोगि."

"क्या?!"

"हां,मैं चाहता हू कि मेहरा को पूरा यकीन हो जाए कि तुम 1 वफ़ादार इंसान हो.तुम्हारे इस फोन नंबर के बारे मे किसी को भी नही पता चलना चाहिए.इसे हर वक़्त ऑन रखना ताकि मुझे तुमसे कॉंटॅक्ट करने मे कोई परेशानी ना हो लेकिन इसे साइलेंट मोड पे रखना.बस जैसा कहा है करती जाओ तो जीत अपनी ही होगी."

"ओके & आपका हनिमून कैसा चल रहा है?..अपनी बीवी की चूत का तो बॅंड बजा दिया होगा आपने अब तक!",उसने चुहल की.ब्रिज ज़ोर से हंसा & फोन बंद कर दिया.सोनिया अब बहुत ज़ोर से कमर हिलाते हुए आहें भर आयी थी.ब्रिज उसके उपर झुका & उसे बिस्तर & अपने जिस्म के बीच दबा दिया.अपने हाथ उसने सोनिया के जिस्म के नीचे घुसा के उसकी गोल छातियो को दबोच लिया & तेज़ी से उसकी चुदाई करने लगा.

"कौन थी....चुड़ैल?!",ब्रिज ने उसके दाए कंधे के उपर से सर झुकाते हुए उसके होंठ चूमने की कोशिश की तो उसने मुँह फेर लिया.ब्रिज उसकी जलन देख हंसा.

"अरे मेरी जान,वो मेरी बिच्छाई शतरंज की बाज़ी का वो प्यादा है जो दुश्मन के खेमे मे घुस बिसात की आख़िरी पाले तक पहुच अब रानी मे तब्दील हो गयी है & मुझे ये बाज़ी मेरा यही मोहरा जितवायेगा."

"क्या कह रहे हो मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा..उउम्म्म्मम..!",पति की बातो से उसका गुस्सा थोड़ा कम तो हुआ था & इस बार उसने उसे अपने लब चूमने की इजाज़त दे दी थी.

"तुम छ्चोड़ो ये बातें,मेरी जान..वो मेरी नौकर है & इस वक़्त मेरे 1 बहुत अहम काम को अंजाम देने मे जुटी है.मेरे दिल की रानी तो सिर्फ़ तुम हो मेरी बेगम सिर्फ़ तुम!",सोनिया थोड़ी देर खफा हो ब्रिज को थोड़ा तड़पाना चाहती थी मगर उसने ऐसे लहजे मे बात कही थी कि वो मुस्कुराए बिना नही रह सकी.ब्रिज ने होंठ उसकी गर्दन के थोड़ा नीचे उसकी पीठ पे चिपका दिए & बड़े गहरे धक्के लगाने लगा.पूरा सूयीट सोनिया की आहो से गुलज़ार हो गया.अपने पति की क़ातिल चुदाई से बहाल वो फ़ौरन झाड़ गयी & उसके पीछे उस से सटा उसका पति भी झटके ख़ाता झाड़ गया.

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अगले 4 दिन रंभा के लिए काफ़ी भाग-दौड़ से भरे थे.नये दफ़्तर मे 3 दिन उसकी ट्रैनिंग हुई & फिर चौथे दिन से उसकी नौकरी शुरू हो गयी.पहली मुलाकात मे ही उसे समीर बड़ा अच्छा लगा था.बाप ही की तरह हॅंडसम & बहुत शालीन इंसान लगा था उसे वो लेकिन जहा विजयंत को देख वो थोड़ा असहज हो जाती थी वही समीर के साथ उसे ज़रा भी घबराहट नही होती थी.

अब इसका कारण क्या था ये उसकी समझ मे नही आया था,उसकी रोबिली शख्सियत,उसका रुतबा या फिर उसकी नज़रें.विजयंत को देख उसके दिल मे 1-2 बार गुस्ताख ख्याल भी आए थे,अब वो क्या करती वो था ही इतना हॅंडसम!

अगले दिन सभी लोग गुजरात जा रहे थे जहा समीर की निगरानी मे पूरे हुए प्रॉजेक्ट का उद्घाटन करने खुद PM आ रहे थे मगर उस से पहले रंभा को 1 बहुत ज़रूरी काम निपटाना था.विनोद के बताए एजेंट ने उसे काई मकान दिखाए थे मगर उसे कोई पसंद नही आया & जो आया उसका मकान मालिक म्यूज़्ज़ मकान देने को तैयार नही था.वो विनोद का जान-पहचान वाला था लेकिन फिर भी वो मकान देने को राज़ी नही हो रहा था.

रंभा को वो घर बहुत पसंद आ गया था & उसने ठान लिया था कि जो भी हो उसे किराए पे यही मकान चाहिए.मकान मालिक विनोद की उम्र का ही था बस थोड़ा मोटा था,वो विदेश मे रहता था डेवाले मे उसका 4 कमरो का फ्लॅट था जिसके 2 कमरे वो किराए पे देना चाहता था.बाकी 2 कमरो को वो अपने समान के साथ बंद अपने क़ब्ज़े मे रखना चाहता था.

रंभा ब्यूटी पार्लर मे थी,गुजरात के फंक्षन के लिए उसने लाल बॉर्डर की सफेद सारी & लाल ब्लाउस लिया था.पार्लर मे वो उस लिबास को ट्राइ करते हुए अपना साज़-सिंगर करवा रही थी.वो फंक्षन के पहले 1 बार खुद को उस लिबास मे देख लेना चाहती थी ताकि उस दिन उसे तैय्यार होने मे ना परेशानी हो ना वक़्त लगे.

वो पार्लर मे बैठी थी कि विनोद का फोन आया की वो फ़ौरन उसके पहचान वाले के मकान पे पहुँचे,दोनो ने तय किया था की 1 आख़िरी बार मकान मालिक से बात करके देखेंगे.रंभा तुरंत पार्लर से निकल गयी & उस बिल्डिंग के नीचे खड़ी हो विनोद का इंतेज़ार करने लगी जिस इमारत मे वो फ्लॅट था.सजी-सँवरी रंभा को आने-जाने वाले घूर रहे थे मगर विनोद का कही पता नही था,उपर से वो फोन भी नही उठा रहा था.रंभा खिज उठी & तय किया कि वो उपर फ्लॅट मे जाके सीधा मकान मालिक से बात कर ले.

"हेलो.",मकान मालिक परेश ने दरवाज़ा खोला,"..विनोद ने कहा था कि आप दोनो आने वाले हैं.",रंभा अंदर आई.जो हॉल & कमरा किराए पे देना था वो खाली था,बाकी 2 कमरो मे परेश का समान था.परेश ने उसे 1 कमरे मे बिस्तर पे बिठाया.

"परेश जी,आप मुझे मकान क्यू नही देना चाहते?",रंभा सीधा मुद्दे पे आई.परेश उसके सजे-सँवरे रूप को देखे जा रहा था.रंभा के सवाल से जैसे वो होश मे आया.

"ज-जी..हां..वो बात ये है कि..",रंभा ने भी उसकी निगाहो की गुस्ताख़ी देख ली थी & उसके दिमाग़ मे ख़याल कौंधा कि शायद उसके जिस्म का जादू यहा भी चल जाए & उसने सारी ठीक करने के बहाने पल्लू थोड़ा किनारे कर अपना गोरा पेट उसकी निगाहो के सामने कर दिया,"..मैं किसी अकेली लड़की को घर देने मे डरता हू.बुरा मत मानीएगा..",उसकी निगाहें रंभा के पेट & चेरे के बीच ही घूम रही थी,"..मगर कल कही कुच्छ उल्टा-सीधा हो जाए तो मेरे घर का तो नाम खराब होगा ना."

"आपको मैं ऐसी-वैसी लड़की लगती हू?",रंभा ने भोलेपन से कहा & अपना बाया हाथ अपने पेट पे फिराया.ऐसा करने से पल्लू थोड़ा सा सरका & परेश को उसका हल्का सा क्लीवेज दिखाई दे गया.

"मेरा वो मतलब नही था..",वो बिस्तर मे उसके बगल मे ही बैठा था,"..लेकिन आप मेरी बात समझने की कोशिश तो कीजिए.आप अकेली रहेंगी यहा &.."

"& क्या?",रंभा थोड़ा सर्की & अपना दाया घुटना उसके बाए से सटाते हुए उसका हाथ पकड़ लिया,"..अब आप जैसा शरीफ इंसान मुझे घर नही देगा तो कौन देगा!..आप मेरे नज़रिए से भी तो देखिए कही मुझे किसी ऐसे-वैसे आदमी ने घर दे दिया तो..&..कही..",रंभा ने उसके हाथ पे हाथ रखे नज़रे नीची कर ली.

"कही ..क्या रंभा जी?",परेश था तो मर्द ही,उसने रंभा का हाथ थाम लिया.अब इतनी खूबसूरत लड़की खुद हाथ पकड़े तो वो मौका क्यू छ्चोड़े!

"कही उसने मेरे साथ कुच्छ कर दिया तो?",रंभा ने सर झुकाए शर्म से कहा.

"कुच्छ क्या?",परेश को ऐसी बात करने मे मज़ा आने लगा था.

"कही मेरे अकेलेपन का फ़ायदा उठा लिया तो."

"मैं समझा नही."

"बानिए मत!",रंभा ने शर्म से मुस्कुराते हुए उसे देखा,"..प्लीज़ परेश जी,दे दीजिए ना..प्लीज़!",वो मचलते हुए उसके & करीब हुई तो परेश थोड़ा पीछे हुआ & लड़खड़ा बिस्तर पे गिर गया.रंभा उसके उपर सवार हो गयी.

"परेश जी,मुझे आपका मकान पसंद है & आप भी.",उसका आँचल खिसक गया था & झुके होने की वजह से सीने को उभर ब्लाउस से बाहर छलक्ने को तैय्यार थे.परेश के माथे पे पसीना च्छच्छला आया,"..मैं अभी सेक्यूरिटी डेपॉज़िट देने को तैयार हू.",अपना चेहरा परेश के बिल्कुल करीब ला अपने होंठ उसके होंठो से बस 2 इंच की दूरी पे रोक लिए.उसकी गर्म साँसे,मदमाती खुसबु से परेश का दिमाग़ घूम गया.

"म-मगर..र-रंभा जी..-"

"-..सिर्फ़ रंभा.",रंभा ने उसके होंठ चूम लिए,"..आप मुझे ही मकान देंगे.",उसने उसका बाया गाल चूमा,"बोलिए?",& फिर दाया गाल चूमा & उसकी आँखो से आँखे मिला दी.

"ल-लेकिन.."

"परेश जी,मुझे किराए पे घर दीजिए & जब भी आप यहा आएँगे,किराए के अलावा किरायेदार भी आपकी बाहो मे होगा.कहिए इतनी बढ़िया डील दे सकता है कोई आपको?"

परेश ने अपने हाथ उसकी नगी पीठ पे जमा दिए & उचक के उसे चूमने को हुआ पर रंभा ने अपना सर पीछे खींच लिया,"ना पहले कहिए कि घर मुझे देंगे."

"तुम्हे ही दूँगा मेरी जान!",परेश ने उसे बाहो मे कस बिस्तर पे पलट दिया & चूमने लगा.वो उस हुसनपरी को बाहो मे पा दीवाना हो गया था.रंभा ने उसे परे धकेला & खड़ी हो गयी.

"मेरी सारी खराब हो जाएगी.",वो शोखी से मुस्कुराइ & अपनी सारी उतारने लगी.परेश की साँसे तेज़ हो गयी & वो भी अपनी कमीज़ के बटन खोलने लगा.मुस्कुराती रंभा ने बेझिझक अपने सारे कपड़े उतार दिए.उसके नंगे,गोरे जिस्म को देख परेश का मुँह हैरत से खुला रह गया.उसकी नज़रे ये तय नही कर पा रही थी कि कहा देखे-रंभा के ऊँचे सीने को,उसके गोल पेट को या फिर सुडोल टाँगो & कसी जाँघो के बीच उसकी गुलाबी चूत को!

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:29 PM,
#13
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--13

गतान्क से आगे.

रंभा अपने मेहंदी से सजे हाथो से कान के झुमके उतारने लगी & उन्हे मेज़ पे रखने के लिए घूमी तो परेश के सामने उसकी चौड़ी गंद आ गयी.अब तो परेश से रहा नही गया & उसने उसे पीछे से अपनी बाहो मे जाकड़ लिया & उसके कंधो को चूमने लगा.

"ऊव्व..क्या करते हो?आराम से करो....हाईईईई..!",परेश अपना लंड उसकी गंद की दरार मे फँसाए उसकी मोटी चूचियो को मसलता हुआ उसके होंठ बहुत ज़ोर से चूम रहा था.रंभा को एहसास हो गया था कि परेश का लंड भी उसके दोस्त जितना ही बड़ा है.वो बाए हाथ से उसके बाल & दाए को पीछे ले जा उसकी दाई जाँघ सहलाने लगी.

थोड़ी देर बाद बेसबरे परेश ने उसे बिस्तर पे पटक दिया & उसके उपर चढ़ उसकी मोटी चूचियो को चूमने लगा.बीच-2 मे वो उसकी चूचियो को हौले-2 काट भी लेता था.उसके दीवानेपन ने रंभा को भी मस्त कर दिया था.परेश उसकी जाँघो के बीच अपना दाया हाथ घुसा के उसकी चूत को रगड़ते हुए उसकी चूचिया चूस रहा था.मस्ती मे डूबती रंभा को खुद पे गुमान हो रहा था,आज उसने 1 और मर्द को अपने जिस्म के जादू से अपनी बात मानने पे मजबूर कर दिया था.

परेश बिल्कुल पागल हो चुका था.रंभा का सीना ,उसका पेट,उसकी मोटी जंघें & उसकी नाज़ुक चूत-हर अंग उसके हाथो & होटो से अछूता नही रहा था.उसकी तेज़ी से घूमती जीभ ने रंभा को 1 बार मस्ती की मंज़िल तक पहुँचा दिया था & अब वो बिस्तर पे जिस्म को ढीला छ्चोड़े ऐसी और मंज़िलो की राह देख रही थी.परेश ने उसकी जंघे फैलाई & अपना लंड उसकी चूत मे घुसा दिया फिर उसके उपर लेटा & आहे भरता उसकी चुदाई करने लगा.

परेश थोडा मोटा था लेकिन ये बात चुदाई के आड़े नही आ रही थी.रंभा को अब बहुत मज़ा आ रहा था & वो उसका नाम ले लेके मस्त बातें करते हुए उसकी पीठ नोच रही थी,"..उउन्न्ञणणन्..परेश जानेमन..क्या मस्त चोद रहे हो तुम..डार्लिंग..ऊव्ववव....& अंदर घुसाओ ना इसे..!"

"किसे मेरी जान?",परेश ने उसके बाए गुलाबी निपल को काट लिया.

"अपने लंड को,डार्लिंग.",परेश ने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी.रंभा बहुत मस्त हो गयी थी & अपनी कमर उचका रही थी.उसने परेश की उपरी बाहें पकड़ी & उसे पलटने लगी.उसका इशारा समझ परेश ने फ़ौरन खुद को नीचे किया & रंभा को अपने उपर ले लिया.रंभा उठ बैठी & उसके लंड पे उच्छलती हुई अपने बालो से मस्ती मे खेलते हुए आँखे बंद कर आहें भरने लगी.उसके पर्स मे उसका मोबाइल बज रहा था मगर उसे इस वक़्त उसकी कोई परवाह नही थी.

"सॉरी,मुझ देर..-",घर का मेन डोर खुला रह गया था & विनोद सीधा कमरे तक आ पहुँचा था.दोनो उसकी आवाज़ से चौंक गये मगर जहा परेश रंभा के नीचे से निकलने की कोशिश करने लगा वही रंभा ने मुस्कुराते हुए दाई बाँह अपने प्रेमी की तरफ बढ़ा दी.

"परेश जी,मुझे घर देने को राज़ी हो गये हैं..",वो मुस्कुराते हुए कमर हिलाने लगी,"..हम अग्रीमेंट पक्का कर रहे थे!",उसने विनोद की कमीज़ पकड़ उसे खींचा & अपनी जीभ उसके मुँह मे घुसाते हुए 1 लंबी,मस्त किस दी.

"तो अग्रीमेंट पे किसी गवाह की भी ज़रूरत होगी,वो मैं बन जाता हू.",& विनोद ने फटाफट अपने कपड़े उतार दिए & बिस्तर के बगल मे खड़ा हो अपने दोस्त के लंड पे कुद्ति अपनी महबूबा को बाहो मे भर चूमने लगा.दोनो बड़ी देर तक 1 दूसरे को चूमते रहे & विनोद उसकी चूचियाँ & गंद को दबाता रहा.रंभा के नीचे पड़ा परेश आश्चर्य से सब देख रहा था लेकिन उसने महसूस किया कि उसकी मस्ती मे कोई कमी नही हुई थी.जब विनोद रंभा की पीठ सहलाते हुए उसे चूम रहा था तब उसने रंभा की मस्त गंद अपने हाथो के क़ब्ज़े मे ले ली & नीचे से कमर उचकाने लगा.

रंभा ने किस तोड़ी & परेश के सीने पे अपनी चूचियाँ दबाते हुए उसके होंठ चूमने लगी.विनोद झुक के उसकी गोरी,चिकनी पीठ से लेके उसकी गंद को चूमने लगा & अपनी जीभ से रंभा के गंद के छेद को छेड़ने लगा.रंभा उसकी इस हरकत से पागल हो गयी & उसके जिस्म मे 1 बिल्कुल नया,अंजना,अनोखा एहसास पैदा हो गया.पहली बार इस खेल मे उसने खुद को काबू मे नही पाया & झाड़ गयी.

विनोद ने फ़ौरन उसका सर परेश के सीने से उठाया & अपना लंड उसके मुँह मे दे दिया.रंभा आँखे बंद किए मस्ती मे उसके आंडो को दबाती लंड को चूसने लगी.जब लंड पूरा गीला हो गया तो विनोद ने लंड बाहर निकाला & इंतेज़ार कर रहे परेश ने रंभा को फिर से अपने उपर खींच लिया & उसके रसीले होटो का रस पीने लगा.

आईईयईीई..नही...विनोद..वाहा नही..!",विनोद कब उसके पीछे उसकी गंद मे अपना लंड घुसाने लगा था,उसे पता ही नही चला था.वो उस से बचने के लिए परेश के उपर से उठने लगी मगर उसने उसकी कमर को अपनी बाहो मे जाकड़ उसे रोक लिया.

"घबराओ मत मेरी जान,मैं तुम्हे ज़्यादा तकलीफ़ नही पहुचाऊँगा.",रंभा चीखने लगी लेकिन विनोद लंड का सूपड़ा गंद के छेद मे घुसाने के बाद ही रुका फिर वो आगे झुका & रंभा के दर्द की लकीरो से भरे चेहरे को चूमने लगा,"..बस थोड़ी देर ये दर्द सहो फिर जन्नत नज़र आएगी तुम्हे.",रंभा ने गुस्से से मुँह फेरा मगर विनोद ने उसके चेहरे को थाम उसे चूमना जारी रखा.नीचे परेश उसकी चूचियाँ पी रहा था.

थोड़ी देर बाद परेश ने फिर से कमर हिलानी शुरू की & उसी के साथ विनोद ने लंड थोड़ा & अंदर डाल उसकी गंद मारना शुरू किया.रंभा को सच मे इस बार बहुत मज़ा आया.वो अब दूसरी ही दुनिया मे पहुँच चुकी थी.दोनो मर्द बारी-2 से उसकी चूचिया दबाते हुए उसके चेहरे & होंठो को चूमते हुए उसके दोनो छेदो को चोद रहे थे.रंभा बहुत जल्दी-2 2 बार झाड़ गयी & इस बार परेश भी खुद पे काबू नही रख पाया & अपना वीर्य उसकी गीली चूत मे छ्चोड़ दिया.

विनोद ने उसकी कमर पकड़ उसे खींचते हुए बाई करवट ली तो रंभा परेश के जिस्म से उतर अपनी बाई करवट पे आ गयी.अब दोनो कोहनियो पे उच्के थे & विनोद दाए हाथ से उसकी चूत के दाने को रगड़ते हुए उसके सर & चेहरे को चूमता हुआ उसकी गंद मार रहा था.रंभा ने दाई टांग हवा मे उठा रखी थी & बस मस्ती की 1 ऊँची लहर से दूसरी ऊँची लहर पे सवार उस समंदर को पार कर रही थी.

परेश उठा & घुटनो पे बैठ अपना सिकुदा,गीला लंड रंभा के मुँह मे भर दिया.रंभा अपने हाथो से अपनी चूचियो को दबाते हुए वो उसके लंड को चूसने लगी,परेश मस्ती मे आहे भरने लगा,"विनोद भाई,तुमने पहले क्यू नही ऐसे मिलवाया था इस से.अब जब मैं जा रहा हू तब ये सब जो रहा है.कितने दिन बर्बाद कर दिए मैने!इस हसीना के कमाल के जिस्म का कम लुत्फ़ उठा पाउन्गा इस बात का अफ़सोस रहेगा मुझे मगर इसे चोदा इस बात की खुशी उस अफ़सोस की तासीर को कम करती रहेगी!"

अपनी तारीफ सुन रंभा खुशी से मुस्कुराइ & कुच्छ ही पलो मे परेश के लंड को फिर से खड़ा कर दिया.रंभा विनोद की उंगली से इस दौरान 1 बार झाड़ चुकी थी.आहत हो उसने उसे धकेल गंद से लंड को निकाला & बिस्तर पे उल्टी लेट गयी.विनोद ने उसे पलट बाहो मे भरा & उसकी छातियो को चूसने लगा.परेश उसके कदमो मे बैठा उसकी टाँगो को चूमता उसकी चूत की ओर बढ़ रहा था.दो मर्दो के साथ इस तरह से पूरे जिस्म को प्यार करवाने मे रंभा को बहुत मज़ा आ रहा था.

दोनो मर्दो ने अपनी ज़ुबान के कमाल से उसकी चूचियो & चूत को छेड़ते हुए उसे फिर से झाड़वा दिया.अब वो थकान महसूस कर रही थी लेकिन उसके उपर च्छाई खुमारी अभी कम नही हुई थी.इस बार विनोद ने उसे सीधा लिटाया & उसके उपर आ अपना लंड उसकी चूत मे घुसा दिया.रंभा ने उसे बाहो मे भर लिया & मस्ती मे मुस्कुराती आहे भरती उसकी चुदाई का मज़ा उठाने लगी.उसने बिस्तर के किनारे से सर पीछे लटका कर आह भारी तो विनोद उसकी गर्दन चूमने लगा.

तभी परेश उसके सर के पीछे आ खड़ा हुआ & अपना लंड उसके मुँह मे घुसा दिया.रंभा ने हाथ पीछे ले जा उसकी गंद को पकड़ लिया तो परेश उसका मुँह चोदने लगा.जब उसे लगा कि वो झाड़ जाएगा उसने लंड बाहर खींचा & विनोद ने रंभा को बाहो मे भर करवट ली & उसे अपने उपर कर लिया.रंभा समझ गयी कि अब उसकी गंद परेश के लंड का स्वाद चखेगी.कहा तो अब तक उसकी गंद कुँवारी थी & जब कुँवारापन टूटा तो 1 ही शाम मे 2-2 लंड उसे मार रहे थे!

"ओईईईईईईईई..!",वो दर्द से कराही मगर फिर वही अनोखा मज़ा उसके दिलोदिमाग पे च्छा गया.विनोद सर उठा उसकी दाई चूची को दबोचे उसके गुलाबी निपल को चूस रहा था & परेश उसकी कमर थामे उसके बालो को चूमता उसकी गंद मार रहा था.तीनो अब मस्ती के सफ़र के आख़िरी दौर मे थे.दोनो मर्द रंभा के जिस्म को पकड़े उसके नाज़ुक अंगो को चखते अब बहुत ज़ोर से धक्के लगा रहे थे.

दर्द,मस्ती & ढेर से मज़े की अनगिनत लहरें बदन मे दौड़ती रंभा का दिल अब पूरी तरह से मदहोश था.उसके दोनो छेदो मे 1 अजीब सी कसक हो रही थी & अगले ही पल उसने गंद मे कुच्छ गरम सा महसूस किया,उसके उपर झुका परेश आहे भरता हुआ झटके कहा रहा था.वो झाड़ गया था & उसके गर्म वीर्य के एहसास ने उसके अंदर मस्ती की 1 नयी शदीद लहर दौड़ा दी & उसने भी बहुत ज़ोर से चीख मारी & उसकी चूत ने विनोद के लंड को अपनी क़ातिल जाकड़ मे कस लिया.1 पल को वो उसे छ्चोड़ती & फिर जाकड़ लेती.ये एहसास विनोद के भी सब्र को तोड़ने को काफ़ी था & वो भी बिस्तर से उठने की कोशिश करता झटके ख़ाता हुआ अपनी महबूबा की चूत मे झाड़ गया.

बिस्तर पे तीन थके मगर सुकून & खुशी से भरे जिस्म 1 दूसरे के आगोश मे पड़े अपनी साँसे संभाल रहे थे.

रंभा पहली बार प्लेन मे बैठी थी.इस नयी नौकरी मे आते ही उसे कयि नये तजुर्बे हुए थे.सबसे पहले तो इस नयी नौकरी के चलते उसकी तनख़ाह बढ़ गयी थी & ज़िंदगी मे पहली बार वो थोड़ा बेफिक्री से पैसे खर्च पा रही थी.दूसरे,विनोद के रूप मे उसे 1 ऐसा शख्स मिल गया था जो ना केवल उसकी जिस्मानी ज़रूरतो को पूरा करता था बल्कि कयि & बातो मे उसकी मदद भी करता था.

गुजरात के प्रॉजेक्ट के ईनेग्रेशन के लिए ट्रस्ट ग्रूप के सभी बड़े अफ़सर वाहा जा रहे थे.विजयंत मेहरा ने उनमे से कुच्छ को अपनी सेक्रेटरीस को ले जाने की भी इजाज़त दी थी.सभी 1 चार्टर्ड प्लेन से पहले प्रॉजेक्ट के नज़दीकी एरपोर्ट पहुँचे & वाहा से सड़क के 2 घंटे के सफ़र के बाद उस जगह पहुँचे.

खुद PM इनएग्रेशन करने वाले थे & इस चलते उनके साथ कयि बड़े मिनिस्टर & अफ़सर भी वाहा आए थे.रंभा ने पहली बार इतनी बड़ी-2 हस्तियो को देखा था & ये सब उसके लिए बड़ा रोमांचकारी था.पूरे जलसे के दौरान सोनम के साथ उसकी & बाकी सेक्रेटरीस की ड्यूटी मेहमानो का ख़याल रखने के लिए लगाई गयी थी.इतने से दिनो मे ही उसकी सोनम से अच्छी छनने लगी थी.

"कहा जा रही है?",जलसा ख़त्म होने के बाद सारे मेहमान & ग्रूप के अफ़सर विजयंत & समीर के साथ 1 बड़े से हॉल मे खाने के लिए चले गये थे.PM की हिफ़ाज़त के नज़रिए से सेक्यूरिटी बड़ी कड़ी थी & बाकी लोग 1 दूसरे हॉल मे खाना खा रहे त.रंभा खाना लेने के बजे हॉल से बाहर जाने लगितो सोनम ने उसे टोका.

"बाथरूम से आती हू,यार.इस सेक्यूरिटी के चक्कर मे जा ही नही पा रही थी."

"अच्छा!की अपने बॉस से मिलने जा रही है?दोनो ने बाथरूम मे मिलने का प्लान बनाया हुआ है क्या?",उसने सहेली को छेड़ा.

"चुप!तू मिलती होगी अपने बॉस से बाथरूम मे!"

"अरे,यार!वो बुलाए तो मैं खुली सड़क पे मिल लू!बुड्ढ़ा इस उम्र मे भी 10 जवानो पे भारी पड़ेगा!"

"तू तो ऐसे कह रही है जैसे उसका वजन संभाल चुकी है!",रंभा ने भी चुहल की & हंसते हुए वाहा से चली गयी.सोनम की बातो से उसे ध्यान आया की पूरे जलसे के दौरान उसने कयि बार समीर को खुद को देखते पाया था.जब उनकी नज़र मिलती तो वो अपनी वही नेक्दिल मुस्कान होंठो पे ले आता & जवाब मे वो भी मुस्कुरा देती....क्या उसका बॉस उसपे फिदा हो गया था?..हुंग! हो भी जाए तो क्या?..कुच्छ दिन खेलेगा & फिर किनारे कर देगा..अगर उसका फ़ायदा हुआ तो सब ठीक वरना वो समीर से कभी नज़दीकी नही बढ़ाएगी.

"हेलो,रंभा!खाना खाया तुमने?",दोनो बाथरूम के बाहर हाथ धोने के लिए 1 कामन वाशवेशन था & समीर वाहा हाथ धो रहा था.

"हेलो,सर.बस जा रही हू?",वो साथ वाले बेसिन पे हाथ धोने लगी.

"ये कोई नया मेकप का तरीका है क्या?"

"जी?!",उसने हैरत से समीर को देखा.

"हां,ये बालो मे क्या लगा रखा है?",रंभा ने शीशे मे देखा तो उसकी हँसी छूट गयी.उसके बालो मे 1 लाल रंग का बड़ा सा धागा लगा हुआ था.वो उसे निकालने लगी मगर ना जाने कैसे वो बालो मे उलझ गया था.

"लाओ,मैं निकाल देता हू."

"नही,सर.हो जाएगा.आप बेकार परेशान हो रहे हैं.",मगर समीर ने उसकी अनसुनी करते हुए धागे को निकालना शुरू कर दिया.रंभा को थोड़ी शर्म आने लगी.उसने आँखो के कोने से शीशे मे देखा,सारी मे सजी-धजी वो & बढ़िया सूट मे तैयार हॅंडसम समीर उसके बाल ठीक करता हुआ,1 पल को उसके दिल ने दोनो को 1 जोड़े की निगाह से देखा मगर अगले ही पल उसके दिमाग़ ने उसे ख्वाब के आसमान से हक़ीक़त की ज़मीन पे ला खड़ा किया.

"वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.",धागा बस अब निकलने ही वाला था.

"थॅंक यू,सर.",रंभा के गाल थोड़े & गुलाबी हो गये.

"वैसे मुझे तुमसे 1 बात कहनी थी.",रंभा का दिल धड़क उठा,"..उस सेमेंट प्राइसिंग वाली बात जो तुमने मुझे बताई थी उसके बाद मुझे लगता है कि तुम मेरी मदद कर सकती हो,रंभा."..ओह!इसे तो काम की बात करनी है..रंभा को थोड़ी मायूसी हुई.

"मैं चाहता हू कि तुम मेरी उस नये मानपुर प्रोज़कट की तैयारी करने मे मदद करो.इसके लिए रोज़ 6 बजे के बाद तुम्हे रुकना होगा लेकिन मेरे कहने का मतलब ये नही है कि तुम्हे हां ही करनी है अगर कोई परेशानी हो तो मना कर दो."

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:29 PM,
#14
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--14

गतान्क से आगे.

"नही,सर.परेशानी कैसी लेकिन..मैं आपकी क्या मदद कर सकती हू?"

"वो मैं तुम्हे दफ़्तर मे ही बताउन्गा.ओके!अब जाओ खाना खा लो."

"ओके,सर.",रंभा का काम तो बस डिक्टेशन लेना,लेटर्स लिखना,समीर कहे तो उसकी मेल्स का जवाब देना,उसके सारे अपायंट्मेंट्स का हिसाब रखना यानी कि 1 सेक्रेटरी का सारा काम करना होता था लेकिन नौकरी के दूसरे ही दिन कुच्छ पेपर्स हॅंडल करते हुए उसने सेमेंट का दाम देखा जिसपे ट्रस्ट उसे खरीद रहा था.रंभा इस से पहले जहा काम करती वो भी 1 छ्होटी बिल्डिंग कन्स्ट्रक्षन फर्म थी.वाहा भी वही कंपनी सेमेंट सप्लाइ करती थी जो ट्रस्ट को कर रही थी लेकिन उस छ्होटी फर्म को जहा वो हर सेमेंट की बोरी का दाम बाज़ार से रुपये .20 कम लगा रही थी,ट्रस्ट को वो बस रुपये.10 कम लगा रही थी जबकि ट्रस्ट की सेमेंट की खपत कयि हज़ार बोरियो की थी.

रंभा ने काफ़ी झिझकते हुए ये बात समीर को बताई.ये उसका काम नही था,इसके लिए तो कंपनी ने आदमी रखे थे जिनका काम ही था कंपनी के लिए खरीद-फ़रोख़्त करना.समीर ने फ़ौरन खुद इस बात की जाँच की & रंभा की बात सही साबित हुई.कंपनी को कुच्छ लाख रुपयो का नुकसान हो रहा था & ट्रस्ट जैसे ग्रूप के लिए बहुत ज़्यादा बड़ी बात नही थी लेकिन समीर 1 पक्का बिज़्नेसमॅन था & इस बात के लिए वो रंभा का शुक्रगुज़ार था.

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"मान गये,मेहरा साहब!समय से पहले आपने प्रॉजेक्ट पूरा कर दिया.",1 मंत्री दोनो बाप-बेटे & प्रणव से बात कर रहा था.

"मैने नही,मंत्री जी ये सब समीर ने अकेले किया है."

"मुबारक हो बर्खुरदार!",मंत्री जी आइस क्रीम काफ़ी स्वाद लेके खा रहे थे,"मेहरा साहब ग्रूप अच्छे हाथो मे रहेगा."

"जी,मंत्री जी.मेरे बाद तो सब इसी का है.",पीछे खड़े प्रणव को ये बात थोड़ी पसंद नही आई,"..प्रणव की मदद से समीर कंपनी को मुझसे भी आगे ले जाएगा."

"हां-2 क्यू नही?",मंत्री जी ने आइस क्रीम सॉफ कर दी,"..जमाई बाबू जैसे ससुर की मदद करते हैं वैसे ही साले की करेंगे!",उन्होने ज़ोर का ठहाका लगाया तो विजयंत ने खाली आइस क्रीम कप लेके 1 वेटर को थमाया.

"मंत्री जी,मानपुर वाली ज़मीन का टेंडर निकलने वाला है..",मंत्री जी अब थोड़े संजीदा हो गये,"..हमे मिल जाए ठेका तो आप जानते ही हैं कि कामकितनी तेज़ी से होता है & सभी खुश रहते हैं.",मंत्री जी खुश रहने का मतलब समझ गये थे.

"अरे मेहरा साहब जब निकलेगा तो टेंडर भारिएगा,आपकी रकम कम रही तो आप ही को मिलेगा.",& वो वाहा से आगे बढ़ गये.ये इशारा था कि वो विजयंत से अकेले मे बात करना चाहते हैं & विजयंत भी उनके साथ आगे चला गया.समीर किसी और से बात करने लगा लेकिन प्रणव वही खड़ा रहा.उसका चेहरा सख़्त हो गया था.

"कितनी अच्छी जगह है ना,प्रणव?",कमरे की खड़की पे खड़ी शिप्रा के बाल बाहर से आती ठंडी हवा के झोंके से लहरा रहे थे.पति ने कोई जवाब नही दिया तो शिप्रा ने गर्दन घुमाके उसे देखा,प्रणव थोड़ा परेशान सा लग रहा था.शिप्रा ने खिड़की के पर्दे बराबर किए & अपने पति को देख शोखी से मुस्कुराइ,"क्या परेशानी है जनाब?मुझसे कहिए.",प्रणव अभी भी चुप वैसे ही बिस्तर पे बैठा रहा.

शिप्रा ने घुटनो तक की ढीली नाइटी पहनी थी.उसने पति की तरफ पीठ की & हल्के से बदन को लहराते हुए अपनी नाइटी के स्ट्रॅप्स कंधे से सरकाने लगी.उसने दोनो हाथ अपने कंधो पे ऐसे रखे हुए थे कि देखने से ये धोखा होता था कि किसी ने उसे बाहो मे भर रखा है.स्ट्रॅप सरकते ही बीवी की नंगी पीठ परणव के सामने थी.शिप्रा ने ब्रा नही पहना था & अब उसकी छ्होटी सी गंद 1 गुलाबी पॅंटी मे प्रणव की नज़रो के सामने लहरा रही थी.

अपने सीने पे हाथ बाँधे अपनी चूचिओ को च्छुपाए वो वैसे ही शोखी से मुस्कुराते हुए आगे बढ़ी & घुटनो के बल बिस्तर पे चढ़ गयी.अपने घुटने प्रणव की फैली टाँगो के दोनो तरफ जमाते हुए वो अब बिल्कुल उसके करीब आ गयी,"मैं कौन हू,शिप्रा?"

"मेरी जान हो तुम.",उसके सवाल से शिप्रा चौंकी ज़रूर मगर वैसे ही मुस्कुराते हुए उसने उसके दाए कान मे फुसफुसाया & फिर उसे हल्के से काट लिया.वो उसके चहेरे को चूमने लगी.

"मैं कौन हू,शिपा?",प्रणव के सवाल दोहराने पे शिप्रा संजीदा हो गयी & उसने उसके चेहरे को हाथो मे भर लिया.

"प्रणव,क्या बात है सॉफ-2 कहो?"

"मैं कौन हू,शिप्रा?"

"प्लीज़ डार्लिंग,मुझे डर लग रहा है तुम्हारी बातों से!",वो रूवन्सी हो गयी थी.

"शिप्रा,मेरे सवाल का जवाब दो.",प्रणव के चेहरे के भाव वो समझ नही पा रही थी.

"तुम प्रणव हो मेरे पति,मेरी जान,मेरे सब कुच्छ!",शिप्रा रोक नही पाई खुद को & रोते हुए अपनी बाहें अपने पति के गले मे डाल दी.

"वो तो हू,शिपा लेकिन आज तुम्हारी ये ग़लतफहमी दूर करनी है कि मैं तुम्हारे पिता का दूसरा बेटा हू.",शिपा की रुलाई रुक गयी & उसने उसके कंधे से सर उठाया.

"प्रणव,क्या बात है?"

"तुम कहती थी ना की डॅड मुझे अपना बेटा मानते हैं,तुम ग़लत थी.मैं बस 1 नौकर हू..1 रखवाला..जो अभी उनकी खिदमत कर रहा है &आगे उनके बेटे यानी तुम्हारे भाई खिदमत करेगा!",प्रणव की आवाज़ मे तख़ही थी & दर्द भी & शिप्रा उस से आहत हुए बिना नही रह सकी.

"प्रणव,ये क्या बोल रहे हो?..क्या हुआ है तुम्हे..मुझे सब कुच्छ ठीक से बताओ..चलो.",शिप्र पति के चेहरे को हाथो मे भरे उस से सवाल करने लगी.बात पूरी होने पे उसने प्रणव को समझाया कि उसके पिता का वो मतलब नही रहा होगा & उसे दिलासा दिया.प्रणव भी अपनी प्यारी बीवी के नंगे जिस्म की गर्माहट & उसके प्यार भरे बोल सुन उसके आगोश मे डूब गया.काफ़ी देर बाद दिल की टीस को जिस्म के खेल मे मिलने वाले सुकून से शांत होकर कर वो सो गया लेकिन शिप्रा जागी हुई थी.उसके डॅडी ने उसके पति को ठेस पहुँचाई थी & इस बात का मलाल उसे भी था.वो सोए हुए प्रणव से लिपट गयी & उसके सीने मे मुँह च्छूपा सोने लगी.उस रात विजयंत के सुखी घर की 1 दीवार मे 1 हल्की सी दरार पड़ गयी थी.

सुबह 4 बजे के कुच्छ बाद रंभा धीरे से बिस्तर से उठी,वो साथ के पलंग पे सोई सोनम की नींद नही तोड़ना चाहती थी.जलसे मे आए सभी मेहमान तो जलसे के फ़ौरन बाद ही चले गये थे लेकिन कंपनी के सभी मुलाज़िम & विजयंत मेहरा अपने पूरे परिवार के साथ 1 रात के लिए वही रुके थे.सभी बड़े अफ़सर & विजयंत का पूरा परिवार तो कंपनी के गेस्ट हाउस मे रुके थे लेकिन रंभा & कुच्छ और मुलाज़िमो को कंपनी के कुच्छ खाली पड़े रेसिडेन्षियल क्वॉर्टर्स मे ठहराया गया था.

क्वॉर्टर्स के अहाते की चारदीवारी के पार पेड़ो का झुर्मुट था & फिर सुनहरी,चमकती रेत से भरा समंदर का किनारा.ये जगह अभी तक सैलानियो की निगाहो से अछूती थी & इसलिए बड़ी सॉफ-सुथरी थी.रंभा तो समंदर का पानी देखते ही उसमे नहाने को मचलने लगी थी.बचपन मे उसने तैराकी सीखी थी & स्कूल मे उसने 1-2 मुक़ाबले भी जीते थे लेकिन बड़ी होने पे उसकी मा ने उसके छ्होटे कपड़े पहन तैरने पे पाबंदी लगा दी थी.

वो दबे पाँव कमरे से निकली & कुच्छ ही पॅलो मे पेड़ो के झुर्मुट को पार कर रेत पे खड़ी थी.अभी भी अंधेरा था & पूरा बीच सुनसान था.रंभा ने अपनी टी-शर्ट & ट्रॅक पॅंट उतारी,उसके पास कोई स्विमस्यूट तो था नही तो उसने अपनी सफेद ब्रा-पॅंटी मे ही तैरने का फ़ैसला किया था.उसने अपने कपड़े उतार के साथ लाए 1 पॅकेट जिसमे तौलिया भी था,उसमे डाले & उन्हे 1 झाड़ी के पास रख 1 पत्थर से पॅकेट को दबा दिया,फिर वो भागती हुई पानी मे उतर गयी & तैरने लगी.काफ़ी देर तक वो पानी मे अठखेलिया करती रही.उसे बहुत मज़ा आ रहा था.धीरे-2 अंधेरा छेंट रहा था & आसमान पे लाली च्छा रही थी.अब कोई भी वाहा आ सकता था,वो पानी से निकली & मुस्कुराते हुए अपने कपड़ो की ओर जाने लगी कि सामने खड़े शख्स को देख उसकी मुस्कुराहट गायब हो गयी.

सामने उसका पॅकेट पकड़े विजयंत खड़ा उसे देख रहा था.विजयंत भी सवेरे की ताज़ी हवा का मज़ा लेने वाहा आया था & उसकी निगाह समंदर मे तैरती रंभा पे पड़ी.पानी से निकलती रंभा को देख उसका दिल ज़ोरो से धड़क उठा.पूरा जिस्म नमकीन पानी से गीला चमक रहा था.ब्रा के गले मे से झाँकते बड़े से क्लीवेज पे पानी की बूंदे हीरो सी चमक रही थी.रंभा ने पानी से निकलते ही अपने बाल झटके थे & उस वक़्त उसके सीने के उभार छलाछला उठे थे & लगता था ब्रा की क़ैद तोड़ आज़ाद होना चाहते थे.उसके चिकने पेट से पानी बहता हुआ उसकी भारी जाँघो के रास्ते उसकी टाँगो को चूमता नीचे रेत पे गिर रहा था.

रंभा का शर्म के मारे बुरा हाल था.नज़रे झुकाए उसने अपने बाल आगे कर अपने सीने पे कर अपनी छातियो के नंगे हिस्से को ढँका & धीमे कदमो से आगे जाने लगी.विजयंत का हाल भी बुरा था मगर जोश से.उसका दिल कर रहा था कि इस जलपरी को बाहो मे भर वही चमकीली रेत पे लिटा अपना बना ले.उसके जिस्म के कटाव पूरी तरह से नुमाया थे & ब्रा के कपड़े मे से उसके कड़े निपल्स का उभार भी.गीली पॅंटी भी थोड़ी छ्होटी थी & उसकी मक्खनी जाँघो के बीच जन्नत के रास्ते की कल्पना से ही उसका लंड उसकी हाफ-पॅंट मे कुलबुलाने लगा था.

विजयंत की तेज़ निगाहो ने रंभा के पॅकेट को भी फ़ौरन ही देख लिया था & अब वो उसके तौलिए को उसमे से निकाल खड़ा उसके करीब आने का इंतेज़ार कर रहा था.

"गुड मॉर्निंग!",रंभा के करीब आते ही उसने उसके पीछे जा तौलिया उसके कंधो पे डाला,"उधर कपड़े बदल लो.",उसने झुर्मुट की ओर इशारा किया & उसका पॅकेट उसे थमाया.पीछे आने पे उसकी नज़रे उसकी चिकनी पीठ & कमर पे पड़ी,पॅंटी के ठीक उपर उसकी रीढ़ के दोनो तरफ 2 डिंपल्स उसे लुभाते नज़र आए.उसके नीचे उसकी मोटी गंद उभरी हुई उसके लंड से बस 2-3 इंच की दूरी पे थी.उसने देखा की पॅंटी के बाहर माँस का 1 फालतू टुकड़ा भी नही लटका हुआ है.ऐसी कसी गंद देख उसका लंड तो अब पॅंट से निकलने को उतावला होने लगा मगर विजयंत ने उसे काबू मे रखा.

"आइ'म सॉरी!",रंभा गीले ब्रा & पॅंटी को उतार बदन सूखा रही थी.उसने गर्दन घुमाई तो देखा विजयंत की पीठ उसकी ओर है,"..मुझे शायद इस तरह तुम्हे चौंकाना नही चाहिए था.",रंभा ने जल्दी से शर्ट पहनी & फिर पॅंट चढ़ाने लगी.

विजयंत के दिल मे उसके गीले जिस्म को देख उसे पाने की ख्वाहिश अब और मज़बूत हो गयी थी.कपड़े बदलते वक़्त उसके नंगे जिस्म को देखने का मौका वो कभी नही छ्चोड़ता लेकिन वो रंभा को और नही घबराना चाहता था.वो उस हसीन लड़की को उसकी पूरी मर्ज़ी के साथ अपनी बाहो मे लाना चाहता था क्यूकी वो जानता था कि उसकी मर्ज़ी के साथ हमबिस्तर होने पे मज़ा भी दोगुना होगा.

"प्लीज़,सर.मुझे शर्मिंदा मत कीजिए..",रंभा झुर्मुट से बाहर आई,"..आपको क्या पता था कि मैं यहा हू.",दोनो वापस क्वॉर्टर्स की ओर बढ़ चले.बिना ब्रा के पहनी शर्ट मे से उसके निपल्स के उभार फिर से नुमाया थे & विजयंत ने उन्हे फिर से आँखो से ही च्छुने की कोशिश की.

"मुझे तुम्हारा शुक्रिया अदा भी करना था."

"जी?"

"हां,सेमेंट के दामो वाली बात बता तुमने कंपनी का बहुत फ़ायदा किया है."

"सर,मैं तो बस अपना काम कर रही थी.",रंभा सर झुका के मुस्कुराइ.विजयंत ने उसे उसके क्वॉर्टर तक छ्चोड़ा & फिर चला गया.रंभा अपने कमरे मे आई,सोनम अभी तक सो रही थी.वो बाथरूम मे गयी & नंगी हो शवर के नीचे खड़ी हो गयी & बदन से समंदर के नमक को धोने लगी.उसने आँखे बंद की & उसे विजयंत की आँखे नज़र आई खुद को देखते हुए.उन नज़रो से बीच पे वो घबरा गयी थी,उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़कने लगा था मगर साथ ही 1 अजीब सा रोमांच भर गया था उसके जिस्म मे.उसकी चूत मे कसक उठने लगी थी.आजतक ऐसा तभी होता था जब वो किसी मर्द के साथ या तो चुदाई कर रही होती थी या चुदाई के पहले का मस्ताना खेल खेल रही होती थी लेकिन आज विजयंत ने बिना च्छुए उसे मस्त कर दिया था.

उसने पानी की धार के नीचे खड़े-2 बाए हाथ से अपनी छातियाँ दबाई,उसका दिल गुस्ताख ख़यालो से भर गया था,उसका दाया हाथ टाँगो के बीच उसकी चूत से लग गया था & वाहा का गीलापन पल-2 बढ़ रहा था,ख़याल और गुस्ताख हुए & उन ख़यालो मे उसके साथ उसकी कंपनी का मालिक विजयंत मेहरा था.

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"ओह..विजयंत डार्लिंग..उउम्म्म्ममम..!",कामया की पीठ दीवार से लगी थी & उसकी छ्होटी सी ड्रेस मे हाथ डाल बाई जाँघ को थाम अपने पॅंट मे क़ैद लंड को उसकी चूत पे रगड़ता वो उसकी ठुड्डी पे जीभ फिरा रहा था,"..ओह्ह..तुम्हारे लिए मैने ये पार्टी अरेंज करने का काम सोनिया कोठारी को दिया..वाउ!",उसने ज़िप खोल अपने आशिक़ का लंड निकाल लिया था & उसे हिलाने लगी थी.

"कहा है वो?",विजयंत ने उसकी पॅंटी सर्काई तो कामया ने खुद उसका लंड अपनी चूत की दरार पे रख दिया.

"पार्टी जिस हॉल मे हो रही है,उसके साथ 1 कमरा है वाहा वो अकेली बैठी है,उसकी पार्ट्नर नही आई है आज..आहह..!",विजयंत ने उसकी जंघे थाम लंड को अंदर धकेला तो वो उसके कंधो को पकड़ उचकी & दर्द से आहत हो उसके बाए कंधे पे उसकी कमीज़ के उपर से ही काट लिया.

"थॅंक्स,कामया!",विजयंत उसके खूबसूरत चेहरे को चूमते हुए धक्के लगाने लगा.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:29 PM,
#15
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--15

गतान्क से आगे.

"सर,मैने प्रिंट-आउट्स निकाल के सारे पेपर्स सीरियल मे लगा दिए हैं.",रंभा समीर के कहे मुताबिक ऑफीस अवर्स के बाद उसकी मानपुर वाले प्रॉजेक्ट पे मदद करने लगी थी.

"थॅंक्स,रंभा.",समीर कुच्छ लिख रहा था.

"सर,ये सारी फाइल्स इस कंप्यूटर मे स्टोर्ड है,इनकी कोई बॅक-अप नही रखनी है?"

"वो मैं कर लूँगा.",समीर ने लिखना बंद किया,"9.30 बज गये,अब चलना चाहिए."उसने अपने डेस्क का कंप्यूटर बंद किया.कॅबिन मे लगे सोफे पे बैठी रंभा ने भी लॅपटॉप ऑफ कर उसे बॅग मे डाल दिया.वो लॅपटॉप भी समीर का था.समीर कोट पहन रहा था तो रंभा ने उसकी मदद की & फिर उसका बॅग उसे थमाया & दोनो कॅबिन से निकल गये.

"सर,अभी तक टेंडर निकला भी नही है,ये भी नही मालूम कि कब निकलेगा फिर भी आप इतनी तैयारी कर रहे हैं?"

"रंभा,दुनिया को नही पता मगर डॅड & मुझे पता है कि आज से ठीक 5 महीने बाद टेंडर निकलेगा."

"ओके,सर लेकिन आप मेटीरियल्स का जो कॉस्ट अभी सोच रहे हैं,उस वक़्त वो घट या बढ़ गया तो?"

"वो मैं तुम्हे कल बताउन्गा,मैं दोनो तरफ का मार्जिन लेके चल रहा हू.",दोनो नीचे आ गये थे & समीर का ड्राइवर उसकी कार का दरवाज़ा खोले खड़ा था,"..अब ये सब चिंता छ्चोड़ो & घर जाओ.",उसकी कार के पीछे खड़ी 1 कार का दरवाज़ा उसने खुद खोला & रंभा को बैठने का इशारा किया.जब से उसने देर तक रुकना शुरू किया था,समीर ने उसके घर जाने के लिए ऑफीस की 1 कार का इंतेज़ाम कर दिया था,"..वैसे मुझे तुम्हारे मम्मी-पापा से माफी माँगनी पड़ेगी तुम्हे रोज़ इतनी देर करवा रहा हू."

"वो नाराज़ नही होते हैं,सर.",रंभा फीके ढंग से मुस्कुराते हुए कार की पिच्छली सीट पे बैठ गयी.

"अच्छा!ऐसा कमाल कैसे हो गया?..तुम्हारी मम्मी तो ज़रूर चिंता करती होंगी?"

"जी नही सर.कोई चिंता नही करता क्यूकी वो इस दुनिया मे हैं ही नही."

"क्या?!आइ'म सॉरी,रंभा.मुझे पता नही था नही..-"

"इट'स ओके,सर!मुझे बुरा नही लगा."

"फिर भी मैं माफी चाहता हू,रंभा.",उसने कार की खिड़की मे से बढ़के उसके कंधे पे हाथ रखा तो वो मुस्कुरा दी,"ओके..गुड नाइट!"

"गुड नाइट,सर!",रंभा समीर की शराफ़त की मुरीद हो गयी थी.दोनो बाप-बेटे उसे बड़े भले इंसान लगे थे & ट्रस्ट ग्रूप मे काम करना उसे बहुत भा रहा था.विजयंत के ख़याल से उसे फिर से बीच वाली घटना याद आ गयी & 1 बार फिर उसकी चूत मे कसक उठी.आज उसने पॅंट सूट पहना था.उसने दाई टांग उठा बाई पे चढ़ाई & अपनी जाँघो मे चूत को दबा दिया लेकिन वो जानती थी कि जब तक घर जाके वो अपनी उंगली का सहारा नही लेगी या फिर अगर विनोद को फ़ुर्सत हुई & उसका लंड उसकी चूत मे उतरा, तो ही उसकी कसक शांत होगी.

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"हेलो,मिसेज़.कोठारी!",अपने मुलाज़िमो को कुच्छ हिदायत देती सोनिया चौंकी,उसके सामने विजयंत खड़ा था & उसे सर से पाँव तक देख रहा था.उसने 1 सफेद कमीज़ & क्रीम कलर की पतलून पहनी थी.

"हाई!",अफ..वो आँखें!..क्यू आया था वो यहा?..कितनी मुश्किल से उसने हनिमून पे उसे भूलके खुद को ब्रिज के प्यार मे डूबा दिया था!

विजयंत ने हाथ बढ़ा उसका हाथ थामा & उसकी निगाहो मे झँकते हुए हाथ को चूम लिया.सोनिया के जिस्म मे बिजली दौड़ गयी & उसने हाथ खींच लिया मगर दिल का कोई कोना उसके हाथ को विजयंत की पकड़ मे ही रहने देना चाहता था,"आप आज बहुत खूबसूरत लग रही हैं."

"थॅंक्स!",उसने उसकी तरफ पीठ कर ली & पास की मेज़ पे पढ़ी 1 फाइल उठा पार्टी के शेड्यूल को देखने का नाटक करने लगी.

"सोनिया जी.."

"जी.",उसने बिना घूमे जवाब दिया..ये जाता क्यू नही?..उसका दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था & उसे उसका कारण समझ नही आ रहा था.

"मैं आपको पार्टी जाय्न करने की दावत देने आया था.हम वाहा जश्न मनाएँ & आप यू यहा अकेली बैठी रहें,ये मुझे कुच्छ ठीक नही लगा."

"थॅंक्स पर मैं नही आ सकती.आप एंजाय कीजिए.",वो घूम के हल्के से मुस्कुराइ.

"सोनिया जी..",विजयंत उसके बिल्कुल करीब आ गया & सोनिया की धड़कने और तेज़ हो गयी,"..आपके इनकार की वजह कही आपके पति & मेरे बीच की सो-कॉल्ड दुश्मनी तो नही?"

"आप ग़लत समझ रहे हैं,मिस्टर.मेहरा..",सोनिया ने चेहरे पे दिल की बेकली को आने नही दिया,"..ये मेरे पेशे के उसूलो के खिलाफ है.अपनी ऑर्गनाइज़ की हुई पार्टी मे मैं खुद नही जा सकती."

"मैं कद्र करता हू आपकी बात की.",विजयंत थोड़ा सा झुका & अपने हाथ मे पकड़े 2 वाइन ग्लास मे से 1 सोनिया की ओर बढ़ाया,"..तो ठीक है आप यही 1 जाम कबूल कीजिए.इस तरह आपका उसूल भी बरकरार रहेगा & मुझे कुच्छ देर के लिए आपका साथ भी मिल जाएगा.",अब विजयंत की गुज़ारिश ठुकराना सोनिया को बदतमीज़ी लगा & उसने ग्लास ले लिया.

"मिसेज़.कोठारी,आपको लग रहा होगा कि मैं क्यू आपके करीब आने की कोशिश कर रहा हू?",सोनिया चौंक गयी & ड्रिंक गिरते-2 बची.

"जी,आपको कैसे मालूम?"

"आपकी ये खूबसूरत आँखे आपसे बहुत धोखा करती हैं.आपको खबर भी नही होती & ये आपके दिल का हाल हमे बयान कर देती हैं.",ना चाहते हुए भी सोनिया को हँसी आ गयी.विजयंत भी हंसा,"..सोनिया जी,आप मुझे अच्छी लगी & बस आपसे दोस्ती करने को जी चाहा.अब कोठारी साहब & मैं तो दोस्त बनाने से रहे तो मैने सोचा कि आप ही की दोस्ती से काम चला लू.",उसकी नाटकिया ढंग से कही बात पे उसे फिर से हँसी आ गयी.

"लेकिन मेरे पति को ये बात शायद पसंद ना आए?"

"बिल्कुल,मैं समझ सकता हू.उनकी जगह मैं होता तो मेरी भी भावनाए कुच्छ वैसी ही होती बल्कि उनकी जगह मैं होता तो मुझे तो आपका किसी भी मर्द से बात या दोस्ती नागवार गुज़रती."

"अच्छा!क्यू?",सोनिया की वो अंजानी घबराहट अब दूर हो रही थी & विजयंत से बात करना उसे अच्छा लग रहा था.वो फ्लर्ट करने की कोशिश नही कर रहा था लेकिन उसकी तारीफ का मौका भी नही छ्चोड़ रहा था.

"सोनिया जी,आपके जैसी हसीन बीवी हो तो कोई भी मर्द उसे किसी गैर मर्द से बाते करते देख जलन से मर जाएगा!",दोनो फिर से हँसे.

"अगर आपको ऐतराज़ है तो आइन्दा मैं कभी आपको यू परेशान नही करूँगा."

"प्लीज़,मिस्टर.मेहरा मेरी बात का बुरा मत मानिए लेकिन आप मेरी पोज़िशन समझने की कोशिश कीजिए."

"ज़रूर,सोनिया जी.आप बेफ़िक्र रहें मैं कभी भी आपके पति की मौजूदगी मे आपसे बात नही करूँगा लेकिन उनकी गैर मौजूदगी मे आपसे बात करने का कोई मौका छ्चोड़ूँगा भी नही!"

"ओके,मिस्टर.मेहरा.",सोनिया फिर हँसी.

"ओके तो अबसे मैं विजयंत हू मिस्टर.मेहरा नही.",विजयंत ने हाथ आगे बढ़ाया.सोनिया का दिल फिर से धड़क उठा.उसके गर्म हाथ के एहसास के आभास से फिर वोही घबराहट उसे घेरने लगी.उसका दिल उसे हाथ बढ़ने से रोक रहा था लेकिन दिल के 1 कोने से आती आवाज़ जोकि उसे हाथ थामने को कह रही थी,अब तेज़ हो रही थी.सोनिया ने उसी कोने की आवाज़ सुनी & विजयंत का हाथ थाम लिया.

"ओके,विजयंत.",उसके जिस्म मे फिर से बिजली दौड़ गयी थी & दिल मे घबराहट के साथ बहुत रोमांच होने लगा था.

"ओके.",विजयंत मुस्कुराया & वापस पार्टी मे चला गया.

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ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी सोनिया बालो मे ब्रश फिरा रही थी & विजयंत मेहरा से हुई मुलाकात के बारे मे सोच रही थी.उसकी बातो को याद करते ही उसके होंठो पे मुस्कुराहट खेलने लगी.

"क्या सोच रही हो?"

"हूँ..!",ब्रिज कोठारी कब उसके पीछे आ खड़ा हुआ था उसे पता ही नही चला था,"..क-कुच्छ नही.",वो ब्रश रख खड़ी हुई तो ब्रिज ने उसे बाहो मे भर लिया,"..आज कितनी देर से लौटे तुम..उउम्म्म्म..!",ब्रिज का उसकी गर्दन चूमना उसे बहुत भला लग रहा था.

"हां,आज बहुत देर हो गयी.तुम्हारी पार्टी कैसी रही?",वो धीरे-2 उसकी नाइटी उपर उठाते हुए उसके क्लीवेज को चूम रहा था.

"ठीक से निपट गयी....उफफफफ्फ़..ज़रा सब्र नही तुम्हे तो!",ब्रिज का दाया हाथ उसकी पॅंटी मे घुस उसकी गंद को दबा रहा था.

"क्या ज़रूरत है सोनिया डार्लिंग तुम्हे अब ये काम करने की?",सोनिया उसकी शर्ट के बटन खोल उसके सीने को चूम रही थी & वो उसकी नाइटी के स्ट्रॅप्स उसके कंधो से सरका रहा था,"..बेकार परेशान होती हो."

"जानू,अपने शौक के लिए करती हू ये काम.नही तो बोरियत से मर ही जाऊंगी..ऊव्ववव..!",ब्रिज ने उसके सीने पे हल्के से काटा & उसकी जाँघो को पकड़ उसे उठाया तो सोनिया ने भी अपनी जंघे उसकी कमर पे & बाहे गर्दन पे लपेट दी & उसकी गोद मे बिस्तर की ओर चली गयी.

"मरे तुम्हारे दुश्मन!",ब्रिज उसे लिए-दिए बिस्तर पे लेट गया & दोनो पति-पत्नी 1 दूसरे से गुत्थम-गुथ्हा 1 दूसरे को शिद्दत से चूमने लगे.दोनो कमर हिलाते हुए अपने नाज़ुक अंगो को आपस मे रगड़ रहे थे.ब्रिज ने सोनिया की नाइटी को नीचे कर उसकी गोरी चूचियाँ नंगी कर दी थी & उन्हे चूस रहा था.सोनिया भी आहे भरते हुए उसकी शर्ट उपर कर उसकी पीठ सहलाते हुए अपनी कमर उचका रही थी.

"जान,आज मेरी मौसी का फोन आया था,बता रही थी कि मम्मी की तबीयत कुच्छ ठीक नही चल रही आजकल.",ब्रिज उठ के अपने कपड़े निकाल रहा था तो सोनिया भी उठ बैठी थी.ब्रिज ने नगे हो उसकी नाइटी को थामा तो उसने हाथ उपर कर दिए ताकि उसके पति को उसे नग्न करने मे ज़्यादा परेशानी ना हो,"..मैं सोच रही थी कि बॅंगलुर जाके उन्हे देख आऊँ.",ब्रिज ने उसे बाहो मे भरा तो दोनो 1 बार फिर पहले की तरह लेट गये & चूमने लगे .

"वो तुम्हारे मा-बाप हैं..",ब्रिज अपने दाए हाथ को उसकी पॅंटी मे घुसा उसकी चूत रग़ाद रहा था,"..उनसे मिलने,ना मिलने का फ़ैसला भी तुम्हारा ही होना चाहिए मगर सोनिया,मुझे तुम्हारी तौहीन बर्दाश्त नही फिर चाहे तौहीन करने वाले तुम्हारे मा-बाप ही क्यू ना हों.",सोनिया की पलके मस्ती मे मूंद गयी थी & वो अब जोश मे कमर उचका रही थी.

"ओह्ह..ब्रिज मेरी जान..",पति के लिए उसके दिल मे बेपनाह मोहब्बत उमड़ आई & उसने उसके बाल पकड़ उसे नीचे खींचा & उसे दीवानगी के साथ चूमने लगी.ब्रिज ने उसके झाड़ते ही उसकी पॅंटी उतारी & सोनिया ने टाँगे फैलाते हुए अपने पति को उपर आ अपनी चुदाई करने का न्योता दिया,"..अब वो मेरे साथ जो सलूक करें,ब्रिज हैं तो वो मेरे मम्मी-पापा ना..ऊउउईईईईईईई.....उफफफफफ्फ़..कितना बड़ा है तुम्हारा..अभी तक दर्द होता है.....हाईईईईईईईईई....!",ब्रिज ने लंड पूरा का पूरा अंदर डाल दिया था.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:29 PM,
#16
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--16

गतान्क से आगे.

"कब जाना चाहती हो?",अपनी प्यारी बीवी के उपर लेट ब्रिज ने उसके रसीले होंठो को चूमते हुए धक्के लगाना शुरू कर दिया.सोनिया ने अपनी टाँगे उसके घुटनो के पिच्छले हिस्से के उपर फँसाई & उनके सहारे उचकते हुए अपने शदीद जोश की गवाही देने लगी.

"कल..उउन्न्ह..!",उसने ब्रिज की पीठ को खरोंचा & उसके कान पे काटा.

"& लौट के कब आओगी?",ब्रिज ने उसकी छातियो पे सजे कड़े निपल्स को जीभ से छेड़ा तो वो तड़प उठी.

"पता नही..ऊन्नह..उनका रुख़ देखूँगी.....आहह..!",सोनिया झाड़ गयी मगर ब्रिज का काम अभी पूरा नही हुआ था.वो वैसे ही धक्के लगाता रहा.सोनिया मस्ती मे उड़े जा रही थी.उसी वक़्त उसे विजयंत का ख़याल आया.अब इंसान का अपने मन पे तो काबू है नही & उसी वक़्त उसके मन मे भी ख़याल आया कि विजयंत नंगा कैसा दिखता होगा & उसके नीचे दब के उस से चुदवाने मे भी क्या ऐसा ही मज़ा आएगा.सोनिया ने खुद को मन ही मन झिड़का,पति के अलावा वो किसी & मर्द के बारे मे ऐसा सोच भी कैसे सकती थी लेकिन उसके दिल का 1 कोना तो जैसे ऐसी गुस्ताखियों पे आमादा था!

ब्रिज ने अपनी ज़ुबान उसकी ज़ुबान से लड़ाई तो उसने फिर से कल्पना की कि विजयंत की ज़ुबान का स्वाद कैसा होगा!सोनिया ने किस तोड़ी & चेहरा बाई तरफ कर लिया.ब्रिज इसे अपनी बीवी के जोश मे होने की निशानी समझ रहा था & खुशी मे चूर हो उसके गाल पे जीभ फिरा रहा था.जब उसके दिल के उस कोने ये सोचना शुरू किया कि इस वक़्त ब्रिज नही विजयंत उसकी चुदाई कर रहा है तब सोनिया 1 अजीब रोमांच,मज़े के साथ-2 चिढ़ से भर उठी.उसे खुद पे गुस्सा आ रहा था लेकिन इस ख़याल से उसके अंदर 1 नया जोश भर गया था & वो पागलो की तरह कमर उचका रही थी.

ब्रिज उसकी मस्तानी हर्कतो से खुशी से पागल हो गया था & उसका जोश भी दुगुना हो गया था.सोनिया उसकी गंद पे नाख़ून धंसाए मस्ती मे आहे भरती हुई अपना सर पीछे कर अपनी कमर उचकाते हुए बदन को मोड़ रही थी.उसके जिस्म मे चुदाई & विजयंत के ख़याल ने अजीब सा सुरूर पैदा कर दिया था & अब वो बिल्कुल बेक़ाबू हो गयी थी.

विजयंत का 1 धक्का सीधा उसकी कोख पे पड़ा & वो हिल गयी,उसकी चूत ने हथियार डाल दिए & झाड़ते हुए रस बहाने लगी.ब्रिज के लंड ने भी उसी वक़्त अपनी पिचकारी छ्चोड़ी & चूत को अपने गाढ़े वीर्य से भरने लगा.

सोनिया मुँह फेरे आँखे बंद किए पड़ी थी.उसके दिल मे उथल-पुथल मची थी.उसे लग रहा था कि उसने अभी-2 अपने पति से बेवफ़ाई की है लेकिन उसे आज जैसा मज़ा पहले नही आया था & उसके मन का वो कोना हंस रहा था.उसकी बंद पॅल्को के कोने से आँसुओ की 2 बूंदे निकल उसके गुलाबी गालो पे ढालक पड़ी तो ब्रिज ने उन्हे चूम लिया.औरत कभी-2 जब जिस्मानी मस्ती की इंतेहा बर्दाश्त नही कर पाती तो उसकी खुशी कुच्छ इसी तरह उसकी आँखो के रास्ते छलक पड़ती है.ब्रिज ने भी यही समझा.

"आज तो बड़े रंग मे थी तुम!",उसने बीवी का माथा चूमा तो सोनिया ने उसके चेहरे को थाम लिया & उसे पागलो की तरह चूमने लगी.ब्रिज खुश था कि उसकी बीवी उसे इतना चाहती है जबकि सोनिया तो ऐसी हरकत से खुद को ये भरोसा दिला रही थी कि वो केवल ब्रिज से प्यार करती है और किसी से नही.

तभी ब्रिज का मोबाइल बजा.सोनिया ने हाथ बढ़ा के उसे उठाया,सोनम का फोन था,"लो तुम्हारी रानी का फोन है.",उसने उसे फोन दिया & उसे हटा उसकी ओर पीठ कर करवट से लेट गयी.मस्ती का सुरूर उतरने पे उसे खुद पे बहुत गुस्सा आ रहा था..अच्छा था कि कल वो बॅंगलुर चली जाएगी..जगह बदलेगी तो ये परेशानी भी ख़त्म हो जाएगी..तभी ब्रिज ने फोन पे बात करते हुए उसे पीछे से दाई बाँह मे भर लिया.

"मैने तुम्हे अभी फोन करने से मना किया था ना.",ब्रिज सोनिया के पेट को सहला रहा था.

"हां,पता है मगर बात ही कुच्छ ऐसी है.वैसे फोन उठाने मे देर हुई..बीवी की चुदाई कर रहे थे क्या?"

"हां मगर बात क्या है?",ब्रिज अभी मज़ाक के मूड मे नही था.

"मानपुर वाली ज़मीन जिसपे आपकी भी नज़र है,उसके टेंडर के सिलसिले मे मंत्री जी से भी बात हुई है."

"अच्छा."

"मैने बाप-बेटे को लंच मे बात करने सुना था,मुझे बाहर भेज दिया गया था मगर दरवाज़ा बंद करते-2 मैने सुन ही लिया कि मंत्री को टेंडर पास करने के 2 करोड़ मिलेंगे & शायदा उस ज़मीन से होने वाले फ़ायदे का कुच्छ हिस्सा भी."

"हूँ."

"उस ज़मीन पे फिल्म सिटी बनाना चाहते हैं ये लोग."

"ओके.",ब्रिज का हाथ अभी भी सोनिया के पेट पे घूम रहा था.

"बस यही बात थी & अब सबसे ज़रूरी बात."

"वो क्या?"

"अपनी बीवी को तो रोज़ चोद्ते हैनमेरे बारे मे भी कुच्छ सोचा है!जब से यहा आई हू किसी साध्वी का जीवन जी रही हू.पागल हो गयी हू मैं!प्लीज़,1 दिन तो मिल लीजिए & मेरी प्यासी चूत का भी उद्धार कीजिए!",ब्रिज ने प्रेमिका की बात पे ठहाका लगाया.

"तुम्हे तो कहा था कि अपने बॉस से ये काम करवाओ."

"हां,आपने कहा था कि वो ज़रूर मुझपे हाथ डालेगा मगर वो तो मेरी ओर देखता तक नही!"

"तो उसे अपनी ओर देखने पे मजबूर करो.ठीक है?"

"ठीक है.",ब्रिज ने मोबाइल किनारे फेंका & सोनिया का चेहरा अपनी ओर घुमा उसके गुलाबी होंठो से होठ सटा दिए.

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रंभा ने महसूस किया था कि उसका बॉस इधर उसे कुच्छ ज़्यादा ही देखता था.काई बार उसने उसे खुद को देखते हुए पाया था लेकिन जब नज़रे मिलती तो वो सकपका के नज़रे फेरता नही था बस अपनी वही शराफ़त भरी मुस्कान फेंक देता था.उस रोज़ सवेरे दोनो बाप-बेटे उसे लिफ्ट मे मिल गये.विजयंत को देख उसका दिल धड़क उठा क्यूकी उसे बीच वाली बात याद आ गयी थी.

विजयंत ने भी रंभा को देखा तो उसे चोदने के ख़याल से पागल हो उठा.रंभा ने घुटनो से कुच्छ उपर जाँघो का थोडा हिस्सा दिखाती काली स्कर्ट & सफेद शर्ट पे कोट पहना था & पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे.विजयंत समीर के साथ लिफ्टे मे उसके पीछे खड़ा था & उसकी निगाह बार-2 उसकी गोरी टाँगो & उभरी गंद पे चली जाती थी.

वो 1 मसरूफ़ इंसान था & इधर जो भी खाली वक़्त मिलता था वो उसे सोनिया को फँसाने मे लगा रहा था.रंभा को अपने बिस्तर तक लाने का वक़्त उसे मिल ही नही रहा था.उसने लिफ्ट से निकलते हुए मन ही मन फ़ैसला किया कि वो जल्द ही इस बारे मे कुच्छ करेगा.

इधर समीर अपने मोबाइल पे बात करते हुए अपने कॅबिन मे घुसा & उसे कुच्छ याद आया तो बिना देखे पीछे मुड़ा & पीछे से आ रही रंभा से टकरा गया.हाइ हील्स की वजह से वो लड़खड़ा गयी & गिरने लगी मगर खाली हाथ आगे बढ़ा समीर ने उसकी कमर थाम ली & उसे खींचा.ऐसा करने से रंभा की मोटी छातिया समीर के सीने से दब गयी.उस लम्हे रंभा ने पहली बार समीर की आँखो मे वही मर्दाना प्यास देखी जोकि किसी लड़की के हुस्न को पाने की ख्वाहिश से पैदा होती है.1 पल बाद ही समीर ने उसकी पतली कमर से अपना हाथ हटा लिया मगर उतनी सी देर मे ही रंभा का हाल बुरा हो गया था.

दोनो 1 दूसरे से नज़रे चुराते काम मे जुट गये मगर लंच तक दोनो पहले की तरह ही बाते करने लगे थे लेकिन लंच के फ़ौरन बाद फिर कुच्छ हुआ जिसने दोनो के जिस्मो को करीब लाया & 1 बार फिर दोनो नज़रे चुराने लगे.समीर के पास 1 फाउंटन पेन था जिसे वो केवल बहुत ज़रूरी काग़ज़ो पे दस्तख़त करने के लिए रखता था.उसकी स्याही ख़त्म हो गयी तो वो खुद ही भरने लगा.तभी रंभा वाहा आई & उसके हाथो से स्याही की बॉटल & पेन ले लिया.

समीर के कॅबिन मे रखे सोफे पे बैठ के उसने स्याही भरने के लिए ज्यो ही बॉटल की कॅप खोली स्याही छलक उसकी जाँघो पे गिर गयी,"अरे ये क्या किया!",समीर फ़ौरन अपना रुमाल लेके उसके पास आया & उसके सामने बैठ उसकी जाँघो से स्याही साफ करने लगा.स्याही बह के उसकी जाँघो के अन्द्रुनि हिस्से को भी गीला कर रही थी & जब समीर का हाथ वाहा गया तो रंभा सिहर उठी.समीर का इरादा शुरू मे तो बस अपनी सेक्रेटरी की मदद करने के था मगर अब उसकी नर्म जाँघो के एहसास से उसके मर्दाना जज़्बात जाग उठे थे.उसने पास रखे ग्लास के पानी मे रुमाल का दूसरा कोना भिगोया & स्याही के दाग को रगड़ा-2 के सॉफ करने लगा.रंभा का अब बुरा हाल था,गाल शर्म से & सुर्ख हो गये थे & जिस्म मे बिजली दौड़ रही थी.समीर ने पोंच्छने के बहाने अपने हाथ को उसकी स्कर्ट के अंदर बस 1 इंच तक घुसाया मगर उसकी ये हरकत दोनो जवान दिलो मे आग भड़काने को काफ़ी थी.दोनो ने उस पल अपने उपर कैसे काबू रखा ये तो वही जानते थे.उसकी जाँघो को साफ करने के बाद समीर उठा & अपने डेस्क पे चला गया.

"थॅंक यू.",रंभा की कोमल आवाज़ उसके कानो मे पड़ी तो उसने बस सर हिला दिया.रंभा बाथरूम मे गयी & जल्दी-2 अपना चेहरा धोने लगी.अपने बॉस की हरकत से वो मस्त हो गयी थी लेकिन बस पानी उसके जिस्म मे लगी आग को थोड़े ही बुझा सकता था.उसने टाय्लेट सीट का कवर गिराया & जल्दी से अपनी स्कर्ट & पॅंटी उतार उसपे बैठ गयी & अपनी उंगली से खुद को शांत करने लगी.उसके दिल मे जज़्बातो का अजब घालमेल चल रहा था.अपनी चूत को उंगली से रगड़ती वो अभी अपनी जाँघो पे हाथ चलाते अपने बॉस का तस्साउर कर रही थी मगर ना जाने कहा से उसके जिस्म से खेलते मर्द की शक्ल बीच-2 मे उसके बॉस के बाप मे तब्दील हो जाती थी.2-3 मिनिट तक लगातार उंगली करने के बाद उसकी चूत शांत हुई तो वो बाहर आई & अपने काम मे लग गयी.उसने तय कर लिया की आज जो भी हो विनोद को रात उसी के साथ गुज़ारनी होगी.इतनी मस्ती केवल उंगली से नही संभाली जा सकती थी.

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"रंभा,मैं चाहता हू कि आज डिन्नर तुम मेरे साथ करो.तुम्हारा कोई पहले से बना प्रोग्राम तो नही?",शाम को अपने लॅपटॉप पे टाइप करते हुए समीर ने रंभा से पुछा.दोनो इस वक़्त हर शाम की तरह मानपुर वाले टेंडर की तैय्यारि मे लगे थे.

"नही,सर लेकिन.."

"लेकिन क्या?"

"सर,ग़लत मत समझिएगा लेकिन अगर ऑफीस मे किसी को पता चला तो सब बेकार मे बातें बनाएँगे &..-"

"-..वो सब छ्चोड़ो.अगर वो बातें ना हो तो तुम्हे मेरे साथ खाना खाने मे कोई ऐतराज़ है?",उसने लॅपटॉप से नज़रे नही हटाई थी.

"नही."

"आज तुम्हारा कोई & प्रोग्राम है?"

"नही."

"तो ठीक है.ये काम ख़त्म कर मेरे साथ चलो."

"ओके.",रंभा दिल ही दिल मे खुश तो बहुत थी कि बॉस उसे डिन्नर पे ले जा रहा है.इतनी जल्दी वो उसकी चहेती बन जाएगी ये उसने सपने मे भी नही सोचा था लेकिन उसे 1 बात का डर भी था.वो इन बातो के चक्कर मे अपना करियर नही बर्बाद कर सकती थी.हां,अगर इस सब से उसकी तरक्की का रास्ता आसान होता था तब ठीक था.उसे कोई फ़िक्र नही थी कि कौन उसके बारे मे क्या बोलता है.वैसे भी इस बात का डर तो तो उसने समीर पे ज़ाहिर किया था ताकि वो ये ना सोचे कि वो असानी से जाल मे फँसने वाली चिड़िया है.

ट्रस्ट ग्रूप ने डेवाले मे 1 नये तरह का शॉपिंग कॉंप्लेक्स बनाया था.ये कॉंप्लेक्स 1 इमारत ना होके 1 खुले इलाक़े मे इस तरह बना था कि लोगो को 1 बाज़ार मे घूमने का आभास होता मगर यहा आम बाज़ार की तरह ट्रॅफिक की चिल-पोन नही थी & ना ही कोई गंदगी.इस कॉंप्लेक्स के 1 किनारे 1 आर्टिफिशियल झील बनी थी.ये झील देखने मे तो बड़ी गहरी थी मगर असल मे उसकी गहराई कुच्छ खास नही थी.उसके फर्श पे ऐसी टाइल्स लगाई गयी थी कि पानी भरने के बाद वो बड़ी गहरी दिखती थी.उस झील की पूरी गोलाई मे रेल्स लगी थी जिनपे नावे चलती थी.

ये नावे आगे,पीछे & दोनो बगलो से बिल्कुल ढँकी हुई थी & बस सामने से खुली थी.विजयंत मेहरा अच्छी तरह से जानता था कि ऐसी जगहो पे सबसे ज़्यादा जवान लोग आते थे.अब जहा जवान होंगे वाहा रोमांस भी होगा & रोमांस होगा तो तन्हाई की हसरत भी होगी.ऐसी नाओ का आइडिया उसी का था.ये नावें 1 कंट्रोल रूम से ऑपरेट होती थी & फिर उन्हे खेने वाले की भी कोई ज़रूरत नही थी.

ये कॉंप्लेक्स बस 2 दिनो बाद खुलने वाला था & यही समीर रंभा को ले आया था.झील के किनारे लगी रेलिंग्स के इस तरफ कॉंप्लेक्स मे उसने खुले आसमान के नीचे 1 मेज़ & 2 कुर्सियाँ लगवाई & उनके बैठते ही 1 वेटर उन्हे खाना परोसने लगा.रंभा समझ गयी थी कि इस खास इंतेज़ाम के पीछे उसके बॉस की उसके करीब आने की हसरत च्छूपी है.खाते हुए समीर ने उस से उसके परिवार के बारे मे & अब तक की ज़िंदगी के बारे मे पुछा,उसने अपने बारे मे भी उसे काफ़ी बताया.

बात-चीत के दौरान उसने घुमा-फिरा के रंभा के किसी बाय्फ्रेंड के होने की बात भी पुछि मगर होशियार रंभा ने ऐसे जताया कि उसे सवाल समझ ही ना आया हो.समीर ने भी सवाल दोहराया नही बस मुस्कुराते हुए खाना ख़ाता रहा.

"थॅंक्स,सर.खाना बहुत अच्छा था."

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:29 PM,
#17
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--17

गतान्क से आगे.

"अब इस से भी अच्छी चीज़ दिखाता हू तुम्हे.आओ.",वो रंभा को लेके रेलिंग के साथ आगे बढ़ा.थोड़ा आगे जाने पे 1 टिकेट बूथ था & उसके बाद कुच्छ सीढ़िया जिनसे नीचे जाने पे उन्हे झील मे 1 नाव खड़ी दिखी.विजयंत बहुत पहुँचा हुआ बिज़्नेसमॅन था.ये सभी नावे कोई 20 मिनिट मे पूरी झील का 1 चक्कर लगाती थी & उन 20 मिनिट्स के लिए .100 रुपये देने वाले जोड़ो की कमी तो थी नही!

वाहा खड़े 1 आदमी ने समीर को वॉकी-टॉकी जैसा कुच्छ थमाया & वाहा से चला गया.समीर नाव पे चढ़ गया & रंभा का हाथ थाम उसे भी नाव मे चढ़ने मे मदद की.रंभा हाइ हील्स की वजह से थोड़ा लड़खड़ाई तो समीर ने उसे थाम लिया & उसके साथ सीट पे बैठ गया.नाव की सीट भी प्रेमी जोड़ो को ध्यान मे रख के बनाई गयी थी & इसलिए छ्होटी थी.रंभा समीर से बिल्कुल सॅट के बैठी थी.

वो वॉकी-टॉकी दरअसल उस नाव का एमर्जेन्सी रिमोट था.समीर ने उसे दबाया तो नाव चल पड़ी.सामने झील के पार बहुत दूर शहर की रोशनीया झिलमिला रही थी.कुच्छ दूर जाने के बाद समीर ने नाव रोक दी,"रंभा,आज मैं तुम्हे यहा 1 बहुत ज़रूरी बात कहने के लिए लाया हू.",रंभा जानती थी कि उसका बॉस अब उसके नज़दीक आने की कोशिश करेगा लेकिन उसने मन के भाव चेहरे पे नही आने दिए.

"रंभा,तुम पहली मुलाकात से ही मुझे बहुत अच्छी लगी & तुम्हारे साथ काम करने मे भी मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन इधर कुच्छ दिनो से कुच्छ अजब हाल हो गया है मेरा..शाम को जब दफ़्तर से घर जाने लगता हू तो 1 अजीब सी मायूसी मुझे घेर लेती है & रात भर रहती है पर जब सवेरे उठता हू तो दिल उमंग से भरा रहता है.जानती हो मेरे इस हाल के लिए कौन ज़िम्मेदार है?",रंभा ने इनकार मे सर हिलाया.

"तुम..तुमसे बिच्छाड़ता हू तो मायूसी मे डूब जाता हू & सवेरे तुमसे मिलने के ख़याल से दिल उमंग से भर जाता है.",उसने हाथ से सामने देखने का इशारा किया.झील के किनारे 1 बड़े से बोर्ड पे लेड्स लगे थे.समीर ने अपने मोबाइल को कान से लगाया,"ऑन करो.",& रख दिया.

सामने लेड्स 1-1 करके जल उठे..आइ लव यू.

रंभा को ये तो पता था कि समीर उसके करीब आने की कोशिश करेगा मगर यू मोहब्बत का इज़हार कर देगा ये उसने सोचा भी ना था & वो चौंक गयी & मुँह पे हाथ रख लिया.

"रंभा,बोलो क्या तुम्हे मेरी मोहब्बत कबूल है?",समीर ने उसके दोनो हाथ थाम उसकी काली,गहरी आँखो मे झाँका.रंभा ने मुँह घुमा लिया.उसके चेहरे पे ऐसा भाव था मानो वो बड़े पशोपेश मे हो जबकि उसका दिमाग़ बहुत तेज़ी से दौड़ रहा था..अगर उसने अपने पत्ते सही तरीके से खेले तो वो बहुत फ़ायदे मे रह सकती है लेकिन 1-1 कदम उसे फूँक-2 के उठाना होगा.

"क्या बात है रंभा कोई और है तुम्हारी ज़िंदगी मे?"

"नही.",रंभा ने फ़ौरन सर घुमाया मगर वैसे ही परेशान बनी रही.

"तो फिर मैं पसंद नही तुम्हे?"

"नही ये बात नही है."

"तो फिर क्या बात है रंभा?",वो खामोश रही,"..देखो,रंभा.मुझे तुम्हारी खामोशी की वजह नही पता.मेरी जगह कोई और होता यहा तो कहता कि तुम जितना मर्ज़ी वक़्त लो,मैं पूरी ज़िंदगी तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा मगर मैं तुम्हारा पूरी ज़िंदगी इंतेज़ार नही कर सकता..",रंभा ने 1 बार फिर चेहरा उसकी ओर किया & सवालिया निगाहो से उसे देखा,"..क्यूकी मैं तुम्हारे इंतेज़ार मे नही बल्कि तुम्हारे साथ अपनी बाकी ज़िंदगी गुज़ारना चाहता हू.रंभा,तुम सोचती रहोगी & मैं इंतेज़ार करता रहूँगा & ये कीमती वक़्त हम खो देंगे.प्लीज़,रंभा मुझे बताओ कि आख़िर क्या परेशानी है तुम्हे मेरी मोहब्बत कबूल करने मे?"

"देखिए,मैं इस दुनिया मे बिल्कुल अकेली हू लेकिन फिर भी मुझे दुनिया की तकलीफो से ना डर लगता है ना घबराहट होती है लेकिन अगर कल को आपका दिल मुझसे भर गया & आपने मुझे छ्चोड़ दिया तो मैं शायद ये दर्द बर्दाश्त ना कर पाऊँ."

"रंभा,अगर मुझे ज़रा भी शक़ होता कि मैं तुम्हारे साथ अपनी बाकी उम्र नही गुज़ार सकता तो मैं तुमसे आज अपने इश्क़ का इज़हार ही नही करता,इतना भरोसा है मुझे खुद पे.तुम कल को मुझसे भले ही ऊब जाओ लेकिन मैं तुम्हारा साथ कभी नही छ्चोड़ूँगा.",रंभा के नाज़ुक हाथो पे उसकी पकड़ मज़बूत हो गयी थी.

"& हमारे बीच का फासला कैसे दूर करेंगे आप?"

"कैसा फासला?"

"आप सबसे ऊँचे तबके से हैं जबकि मैं 1 आम,मामूली लड़की.आपका परिवार भी तो है..उन्हे ये रिश्ता मंज़ूर ना हुआ तो?"

"रंभा,चाहे कुच्छ भी हो जाए मैं तुम्हारा साथ नही छ्चोड़ूँगा.देखो,तुम घबराती रहोगी & सवाल करती रहोगी.मैं जवाब देता रहूँगा लेकिन तुम्हारी घबराहट सवाल पैदा करना बंद नही करेगी.मैं बस इतना कहूँगा कि मेरा वादा है ये कि मैं आज से लेके मरते दम तक तुम्हारे साथ रहूँगा.बोलो,अब तुम्हे कबूल है मेरी मोहब्बत?",रंभा ने सर झुका लिया & बहुत धीरे से इकरार मे हिलाया.

"ओह्ह..रंभा..आइ लव यू..!..आइ लव यू..!",खुशी से पागलो हो समीर ने उसे बाहो मे भर लिया & दिल ही दिल मे हँसती रंभा ने उसके सीने मे चेहरा च्छूपा लिया.उसे अपनी किस्मत पे यकीन ही नही हो रहा था..मेहरा खानदान का एकलौता वारिस उसके इश्क़ मे पागल हो गया था!

"रंभा,तुम्हे पता नही कि मेरी मोहब्बत कबूल के तुमने मुझे कितनी खुशी दी है!",उसने रंभा का चेहरा हाथो मे भर लिया,"..इस वक़्त मैं इतना खुस हू..इतना खुश हू कि जी करता है कि चिल्ला-2 के पूरी दुनिया को बताऊं की रंभा मेरी है सिर्फ़ मेरी!"

"पागल हो गये हैं क्या,सर!",रंभा शरमाते हुए हंसते हुए बोली.

"क्या यार!सारे रोमॅंटिक मूड का सत्यानाश कर दिया!..इतना अच्छा नाम दिया है मा-बाप ने मुझे.उस से पुकारो ना!",रंभा ने शरमाने का नाटक करते हुए अपना चेहरा घुमा लिया तो समीर ने उसकी ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया,बोलो ना,रंभा!"

"समीर.."रंभा ने आँखे बंद कर बहुत धीमी आवाज़ मे अपने प्रेमी का नाम लिया.

इश्क़ 1 दिली जज़्बात है मगर कब ये जज़्बात जिस्मानी एहसास मे बदल जाता है इसका पता कभी किसी आशिक़ को नही चलता.यही हाल इन दोनो का भी था.रंभा की ठुड्डी पकड़ समीर उसके गुलाबी,रसीले होंठो को चूमना चाह रहा था मगर लजाने का ढोंग करती रंभा उसे उसके इरादे मे नाकाम कर रही थी.थोड़ी मान-मनुहार के बाद उसने उसके होंठो को अपने लबो से मिलवा ही दिया लेकिन जब उसने उनपे जीभ फेरी तो रंभा ने फिर से उन्हे पीछे खींच लिया.मर्द का दिल तो ऐसा ही होता है,महबूबा को बस छुने की ख्वाहिश रखने वाला दिल उसके बाहो मे समाते ही बस उसके जिस्म को अपने जिस्म से जोड़ने के फिराक़ मे लग जाता है.

समीर फिर से उसे बाहो मे भर बस होंठो से उसे चूमने लगा.अब रंभा भी उसका साथ दे रही थी.दिन मे दफ़्तर मे हुई घटना अभी भी उसके ज़हन मे ताज़ा थी & उसका दिल तो कर रहा था कि समीर उसके फूल जैसे जिस्म के हसीन अंगो से भी खिलवाड़ करे लेकिन वो उसे ज़रा भी शक़ नही होने देना चाहती थी कि वो 1 भोली,नादान लड़की नही है"ओहो!कितनी देर हो गयी है.चलिए ना!",समीर के गले मे डाली बाँह की कलाई पे बँधी घड़ी पे उसकी नज़र पड़ गयी तो वो उस से अलग हो गयी.

"अरे हमारा तो इरादा पूरी उम्र यही यू ही तुम्हारी बाहो मे गुज़ारने का था!"

"ओफ्फो!बहुत हो गया रोमॅन्स.अब चलिए!",उसने प्यार से उसे झिड़का.

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"उउम्म्म्मम..समीर...उउन्न्ञनणणन्...प्लीज़......उउन्न्ह..!",ड्राइवर को दफ़ा कर समीर खुद रंभा को छ्चोड़ने आया था & इस वक़्त उसकी बिल्डिंग के नीचे गाड़ी खड़ी कर वो अपनी महबूबा को बाहो मे भर उसे शिद्दत से चूम रहा था,कुच्छ ही पॅलो मे उसने आखिकार रंभा से उसके गुलाबी होंठो के पार जाने की इजाज़त ले ही ली थी & अब उसकी ज़ुबान से अपनी ज़ुबान लड़ा रहा था.रंभा का जोश से बुरा हाल था मगर वो उसे जता नही सकती थी.उसका दिल तो कर रहा था की समीर को चूमते हुए उसके लंड को दबोच ले मगर वो मजबूर थी.

"अब बहुत हो गया..",उसने लंबी साँसे लेते हुए उसे अलग किया,"..अब घर जाइए."

"तुम भी चलो ना वही.",समीर ने उसे फिर से बाहो मे खींचना चाहा.

"धात!खुद भी पागल हैं & मुझे भी बना देंगे.",उसनेशोखी से मुस्कुराते हुए उसे प्यार से झिड़का & गाड़ी से उतर गयी.

अपने फ्लॅट मे घुस खुशी से गुनगुनाते हुए वो कपड़े उतारने लगी.आज उसकी खुशी का ठिकाना नही था..अगर सब कुछ ठीक रहा तो बहुत जल्द वो मेहरा खानदान की एकलौती बहू बन जाएगी!कपड़े उतारते हुए उसकी निगाह ड्रेसिंग टेबल के शीशे मे दिख रहे अपने अक्स पे पड़ी तो वो नंगी हो मुस्कुराती हुई शीशे के सामने आ गयी.उसे अपनी खूबसूरती पे गुमान हो आया..आख़िरकार उसका हुस्न ही उसे उसकी मंज़िल की ओर ले जा रहा था.

उसने अपनी भारी-भरकम चूचियाँ अपने दोनो हाथो मे भरके दबाई.उसके बदन मे आग लगी हुई थी & उसे शांत करने के रास्ता उसे नज़र नही आ रहा था.समीर के साथ जाने की वजह से उसने विनोद को भी फोन नही किया था & इस वक़्त तो उसके यहा आने का सवाल हुई नही उठता था.

"ट्र्र्र्रररननगगगगगगगग..!",दरवाज़े की घंटी ने उसके ख्यालो को तोड़ा..इस वक़्त कौन हो सकता है..उसने पास पड़ी चादर जिस्म पे डाली & दरवाज़े पे गयी & इहोल से देखा,सामने परेश खड़ा था.

"अरे आप अभी इस वक़्त!",उसने चैन लगाके दरवाज़े को खोल उसके किनारे से उसे देखा.

"सॉरी,अभी आपको तकलीफ़ दे रहा हू..",परेश की आँखो मे रंभा के जिस्म की भूख सॉफ दिख रही थी,"..मगर कल मुझे जाना है & मैं अपने कुच्छ ज़रूरी काग़ज़ात यही भूल गया हू.",रंभा जानती थी कि ये सब 1 बहाना है.असल मे वो बस उसे चोदना चाहता था लेकिन उसे भी तो अभी 1 मर्दाने जिस्म की ज़रूरत थी.

"अच्छा,मैं ज़रा कपड़े पहन लू."

"अरे,बस 2 मिनिट लगेंगे!",रंभा मन ही मन मुस्कुराइ & चैन खोल दी.परेश अंदर घुसा & रंभा को ललचाई नज़रो से सर से पाँव तक देखने लगा.

"जाइए ले लीजिए.",रंभा घूम के कमरे मे जाने लगी तो परेश ने उसे पकड़ लिया,"अरे क्या कर रहे हैं!छ्चोड़िए!!छ्चोड़िए!!",वो छॅट्पाटेने लगी.

"प्लीज़,रंभा..बस 1 बार मुझे चोद लेने दो..फिर तो मैं जा रहा हू..फिर पता नही कब नसीब हो ये नशीला जिस्म!",परेश चादर के उपर से ही उसकी चूचियाँ दबाते हुए उसकी गर्दन चूम रहा था.रंभा को बहुता अच्छा लग रहा था लेकिन उसने उसे थोड़ा तड़पाने की सोची.

"प्लीज़..परेश जी..उस रोज़ मैं बहक गयी थी..ऊव्ववव..काटिए मत..दर्द होता है..प्लीज़..मैं वैसी लड़की नही हू..हाईईइ..ना..ना..चादर नही....हटाइए....प्लीज़..!",उसके बाए कान पे काटने के बाद परेश ने उसकी चादर खीच उस नंगा कर दया था.रम्भा ने पहले तो हाथो से अपनी छातिया ढँकने की कोशिश की लेकिन जब देखा कि परेश की निगाह उसकी गुलाबी चूत से चिपक गयी है तो उसने हाथो से चूत को ढँक लिया मगर ऐसा करने से परेश के सामने उसकी चूचिया नुमाया हो गयी.

"रंभा.जानेमन..बस आज की रात फिर तो पता नही किस्मत मे मिलना हो या नही.",परेश उसे बाहो मे भर उसके चेहरे को चूमने लगा तो वो ना-नुकर करती मुँह फेरने लगी.परेश के होंठ उसे फिर से मस्त कर रहे थे.दिन भर का उबलता जोश अब उसके जिस्म से फूटने को तैयार था.परेश उसे बाहो मे भरे उसके कमरे मे ले गया.रंभा वैसे ही ना-नुकर का ढोंग करती रही.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:30 PM,
#18
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--18

गतान्क से आगे.

उसे बिस्तर पे लिटा वो उसकी चूचियो से खेलने लगा.उन्हे दबाते हुए उनके निपल्स को चूस्ता फिर उन्हे चूमते हुए निपल्स को उंगलियो मे भर मसल देता.रंभा के जिस्म मे अब मस्ती का सैलाब दौड़ रहा था,"..आन्ह्ह्ह्ह..नही..परेश..जाओ..चोद दो..!"उसकी ये ना-नुकर परेश के जोश को और बढ़ा रही थी.उसने उसकी चूत मे उंगली घुसा दी & उसकी बगल मे लेट उसकी चाहती चूस्ते हुए ज़ोर-2 से रगड़ने लगा.कुछ ही देर मे दिन भर की प्यासी रंभा झाड़ गयी & फिर करवट बदल परेश की ओर पीठ कर तकिये मे मुँह छुपा सुबकने लगी.

परेश ने फ़ौरन कपड़े उतारे & उसे पीछे से बाहो मे भर उसके चेहरे को अपनी ओर किया,"ओफ्फो!क्या बात है?..आज तुम इतनी झिझक क्यू रही हो..जबकि तुम्हारे जिस्म को तो ये सब भा रहा है.",उसने उसकी गीली चूत मे 2 उंगलिया घुसा के बाहर निकाल उनपे लगा बहुत सा रस दिखाया & फिर उसे चाट लिया.

"मैं कोई ऐसी-वैसी लड़की नही हू..उस रोज़ मेरी कमज़ोरी का फयडा. उठाया आपने & आज ज़बरदस्ती कर रहे हैं मेरे साथ.",अब वो मेहरा खानदान की बहू बनने वाली थी & नही चाहती थी कि आगे कभी भी कोई मर्द उसके चरित्र पे उंगली उठा सके.वो ये पक्का कर लेना चाहती थी की आगे कभी भी अगर उसके पुराने आशिक़ो मे से कोई उसकी राह मे रोड़ा अटकाए तो वो ये साबित कर दे कि उन्होने उसके साथ मनमानी की थी,वो अपनी मर्ज़ी से उनके साथ नही सोई थी.

"मेरी जान..तुम्हारे जिस्म को तो ये ज़बरदस्ती नही लग रही..रूको अभी तुम्हारी शिकायत दूर करता हू.",परेश ने उसे सीधा किया & तेज़ी से उसकी जंघे फैला उनके बीच आ उसकी चूत से अपना मुँह लगा दिया.रंभा फिर से हवा मे उड़ने लगी.वो आहे भर रही थी & परेश उसकी चूत से बहते रस को चाते जा रहा था.रंभा उसके बालो को भींचती उसके मुँह को अपनी चूत पे दबाने लगी & अपनी कमर उचकाने लगी.परेश भी उसके दाएँ को उंगली से छेड़ता उसकी चूत मे जीभ घुमा रहा था.

जैसे ही रंभा झड़ी परेश उसके उपर आया & अपना मोटा लंड उसकी चूत मे घुसा दिया.गीली चूत मे लंड 1 झटके मे ही अंदर सरक गया,"..आहह..नही..प्लीज़..मुझे मत चोदो...आन्न्न्नह..दर्द होता है..निकाल लो उसे..!",रंभा आँखे बंद किए सर को झटक रही थी & परेश के सीने पे हाथ रख उसे धकेल रही थी.परेश ने ऐसी चुदाई पहले कभी नही की थी & उसका जोश अब बहुत बढ़ गया था.उसने अपना भारी-भरकम शरीर रंभा के उपर लिटा दिया & उसके सीने के उभारो को बेदर्दी से मसलता हुआ उसके गाल चाटने लगा.

"जानेमन,क्या निकाल लू मैं?..ज़रा नाम तो लो उसका!",उसने उसके होंठो को चाटते हुए उसकी चूचियो को मसला तो रंभा ने आँहे भरते हुए फिर से मुँह फेरा.

"अपने लंड को निकाल लो..ऊऊव्ववववववव..!",बहुत इसरार के बाद उसने परेश के अंग का नाम लिया.इस बात ने आग मे घी का काम किया & परेश के धक्के और तेज़ हो गये.

"कहा से निकालु?..रंभा डार्लिंग ये भी तो बताओ!",वो उसकी चूचियो को चूस रहा था.

"मेरी चूत से निकालो..मत चोदो मुझे .....आआआआहह..!",रंभा के मुँह से अंगो का नाम सुन वो पागल हो गया था & बहुत शदीद धक्के लगा रहा था.रंभा ने भी उसकी कमर को टाँगो मे जाकड़ लिया था & उसके सीने को नोच रही थी.परेश के मोटे लंड ने उसे कुच्छ ही देर मे जन्नत मे पहुँचा दिया & वो झाड़ गयी.उसके पीछे-2 परेश भी अपनी मंज़िल पे पहुँचा & अपना वीर्य उसकी चूत मे भरने लगा.

"छ्चोड़ो मुझे..!",परेश ने सिकुदा लंड रंभा की चूत से खींच उसे बाहो मे भरना चाहा तो उसने रुवन्सि शक्ल बनाके उसे परे धकेल दिया,"..तुमने ज़बरदस्ती की है मेरे साथ!..कोई काग़ज़-वागज़ लेने नही आए थे तुम बस अपनी हवस मिटानी थी तुम्हे!",चीखती रंभा को देख परेश की हालत ख़स्ता हो गयी.रंभा ने सच कहा था,वो शाम से 3-4 चक्कर लगा चुका था मगर हर बार घर बंद मिलता था.

"न-नही..ऐसा कुच्छ नही है..उस दिन विनोद..-"

"मैं विनोद को बुलाती हू..वही ठीक करेगा तुम्हे!",रंभा चीखी तो परेश गिड़गिदने लगा.

"अरे,रंभा मुझसे ग़लती हो गयी..",रंभा समझ गयी कि वो डरपोक किस्म का इंसान है.कोई और होता तो कभी नही झुकता ऐसे,"..मैं जा रहा हू.अब नही परेशान करूँगा तुम्हे..",परेश सर पे पाँव रख के भागा वाहा से.रंभा ने दरवाज़ा बंद किया & ज़ोर से ठहाका लगाया.ये सब उसने केवल इसीलिए किया था ताकि परेश उसे अपनी जागीर समझने की ग़लती ना करे.रंभा चाहे किसी के साथ भी सोए,कोई मर्द उसे अपने हिसाब से चलाने की सोचे ऐसा उसे बर्दाश्त नही था.

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विजयंत मेहरा सोनिया के करीब आना चाहता था & इसके लिए मौको की तलाश मे रहता था लेकिन जिस रोज़ उसने सोनिया की ज़िंदगी मे तूफान ला दिया उस दिन उसने तो उस से मिलने की सोची भी नही थी.वो बॅंगलुर काम से गया था & वाहा तबीयत थोड़ी नसाज़ हो गयी.ठीक तो वो 1 ही दिन मे हो गया लेकिन डॉक्टर ने उसे चेकप के लिए अगले रोज़ भी बुलाया था.वही हॉस्पिटल मे चेकप करवा के निकलते हुए लिफ्ट मे वो सोनिया से टकरा गया,"अरे सोनिया जी,व्हाट ए प्लेज़ेंट सर्प्राइज़!आप यहा..सब ख़ैरियत तो है?"

"हाई!मिस्टर.मेहरा..मेरी मा बीमार थी,उन्ही की कुच्छ रिपोर्ट्स दिखाने आई थी.",सोनिया ने 1 स्लीव्ले टॉप & ढीला-ढाला लोंग स्कर्ट पहना था.इत्तेफ़ाक़ की बात है कि लिफ्ट मे उनके सिवा कोई नही था.उस तन्हाई से सोनिया असहज हो गयी.उसका दिल उन गुस्ताख ख्यालो को याद करने लगा जो वो हमेशा विजयंत को लेके सोचता था.तभी लिफ्ट रुक गयी & अंदर की बत्ती बुझ गयी,"अरे ये क्या हुआ?लिफ्ट क्यू रुक गयी?",सोनिया घबरा गयी थी.

"डॉन'ट वरी!",विजयंत ने मोबाइल ऑन कर लिफ्ट मे लगा एमर्जेन्सी बटन दबा के स्पीकर मे लिफ्ट रुकने की बात बताई.

"सर,कुच्छ ही देर मे लिफ्ट चालू हो जाएगी.आप घबराईए मत.हमारे आदमी उसे चालू करने चले गये हैं."

"मुझे घुटन हो रही है..कब चालू होगी ये?",सोनिया बेचैन हो रही थी.विजयंत ने बाई बाँह के घेरे मे उसे थाम लिया.

"घबराईए मत..",उसने मोबाइल ऑन किया & उसकी रोशनी मे सोनिया ने उसके चेहरे को देखा.जिस्मो की नज़दीकी,डर का माहौल & तन्हाई,शायद सभी का असर 1 साथ हुआ.सोनिया भी विजयंत को देखे जा रही थी.विजयंत मोबाइल की रोशनी बंद नही होने दे रहा था & सोनिया की आँखो मे आँखे डाले खड़ा था.दोनो को ही पता नही चला कि कब विजयंत के होंठ नीचे झुके & सोनिया के उपर होते हुए खुल गये.

विजयंत ने उसे आगोश मे कस उसके गुलाबी लबो से अपने लब चिपका दिए.सोनिया ने भी खुद को उसकी बाहो मे ढीला छ्चोड़ दिया था.दोनो पूरी शिद्दत से 1 दूसरे को चूम रहे थे & जब विजयंत ने अपनी जीभ उसके मुँह मे घुसाइ तो सोनिया ने उसे नही रोका.

"पिंगगगगग..!",आवाज़ के साथ बत्ती जली & लिफ्ट चल पड़ी.सोनिया होश मे आई & विजयंत से छितक गयी.विजयंत भी अचानक हुई इस बात से थोड़ा असहज हुआ था & चुप-चाप खड़ा था.सोनिया को एहसास हुआ कि उसने अभी-2 क्या किया था & उसकी आँखो से आँसू छलक पड़े.वो दसवे फ्लोर से चले थे & लिफ्ट नवी & आठवी मंज़िल के बीच फँस गयी थी.दोबारा चलने के बाद अगली मंज़िल पे कुच्छ लोग चढ़े & सोनिया ने अपने आँसुओ को छिपाने के लिए अपने बॅग से चश्मा निकाल के पहन लिया.

लोगो की मौजूदगी के चलते विजयंत उस से बात नही कर पा रहा था.ग्राउंड फ्लोर पे पहुँचते ही सोनिया तेज़ी से निकली & आगे बढ़ गयी.विजयंत जानता था कि यहा बात करने से वो लोगो की नज़रो मे आ सकते हैं & उसका खेल शुरू होने से पहले ही बिगड़ सकता था.सोनिया तेज़ी से हॉस्पिटल के मेन गेट से पैदल ही बाहर जा रही थी.विजयंत ने अपने ड्राइवर से कार की चाभी ली & सोनिया के पीछे निकल गया.

"सोनिया,प्लीज़ मेरी बात सुनो!",सोनिया हॉस्पिटल से निकल कुच्छ दूरी पे उसे पैदल जाती दिख गयी थी.

"मुझे अकेला छ्चोड़ दो & मेरा पीछा मत करो!",वो गुस्से से बोल वैसे ही चलती रही.सड़क पे उतना ट्रॅफिक नही थी मगर वो पूरी सुनसान भी नही थी.विजयंत ने सोनिया की बाँह पकड़ी & उसे खीच के गाड़ी मे बिठा दिया & दरवाज़ा लॉक कर दिया,"ये क्या बदतमीज़ी है!",सोनिया ने चश्मा उतारा तो उसके आँसुओ से गीले गाल & लाल आँखे विजयंत को दिखाई दी.उसने बिना कुच्छ बोले कार आगे बधाई & 1थोड़ी देर बाद 1 सुनसान रास्ते पे रोक दी.

सोनिया मुँह फेरे बैठी थी.विजयंत ने उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया & उसके आँसुओ को अपने होंठो से साफ करने लगा,"मुझे छ्चोड़ो..हटो..विजयंत..!",वो चीखी लेकिन विजयंत ने उसे बाहो मे कस लिया & उसके बाल पकड़ उसके चेहरे को अपने चेहरे के सामने उसे खुद से नज़रे मिलाने पे मजबूरा कर दिया.

"कब तक भगोगी,सोनिया?..& क्या खुद से भाग सकती हो?..जो भी हुआ क्या उसमे तुम्हारी मर्ज़ी नही थी..?",विजयंत की बात सही थी & सोनिया की आँखो से 1 बार फिर आँसू बह निकले.

"नही..डार्लिंग..",उसने उसके आँसू पी लिए,"..प्लीज़ रोओ मत..क्यू रो रही हो?..",वो उसके चेहरे को चूमे जा रहा था.

"प्लीज़,विजयंत ये सही नही है..!",सोनिया ने महसूस किया कि इस हालत मे भी उसका जिस्म विजयंत की हर्कतो से मस्त हो रहा था.

"क्या सही नही है..कि हम दोनो 1 दूसरे को इतना चाहते हैं कि कायनात भी हमे मिलाना चाहती है?..नही तो आज हम यू क्यू टकराए?..या फिर ये सही नही है कि हम दोनो 1 दूसरे की तरफ पहले दिन से खींचते रहे हैं..नही तो अपने दुश्मन की बीवी से करीबी क्या मेरा शौक है?!",विजयंत ने उसे झींझोड़ा.

"सोनिया,इस हक़ीक़त से मत भागो की हम दोनो 1 दूसरे को चाहते हैं..क्यू..कैसे..ये हमे नही पता & मैं परवाह भी नही करता इन सवालो की!..& क्या ग़लत है कि हम दोनो शादीशुदा हैं & अपने-2 साथियो से बेवफ़ाई कर रहे हैं?..हां,ये सही है..हम कर रहे हैं ग़लती..लेकिन हम उन्हे सब बता के & दर्द ही देंगे ना.अभी वो अंजान हैं & खुश हैं..हम क्यू उन्हे दुखी करें?"

"तो आज के बाद हम नही मिलेंगे,विजयंत..-"

"-..& अंदर ही अंदर घुलते रहेंगे.नही,मुझे मंज़ूर नही ये..मैं नही रह सकता तुम्हारे बिना!मैं तुम्हे ब्रिज को छ्चोड़ने को नही कह रहा ना ही मैं रीता से अलग होऊँगा लेकिन मैं तुमसे दूर भी नही रह सकता.",विजयंत ने अपने होंठ सोनिया के होंठो से सटा दिए & सोनिया भी उसे चूमने लगी.वो किस तोड़ उसे रोकने की कोशिश करती लेकिन विजयंत उसकी अनसुनी कर उसे फिर चूमने लगता & थोड़ी ही देर मे सोनिया मदहोश होने लगी.विजयंत ने मौका देखा उसकी सीट का लीवर खींच सीट को नीचे गिराया & सोनिया को बाहो मे भर उसके उपर चढ़ उसे चूमने लगा.

उसका हाथ उसके टॉप मे घुस उसके चिकने पेट को सहला रहा था.सोनिया और मदहोश जो गयी,"..नही..विजयंत प्लीज़..आहह....!",सोनिया के टॉप मे हाथ घुसा उसकी गर्दन चूमते विजयंत ने उसकी चूचियो को दबोच लिया था.सोनिया के दिल का वो कोना अब खुशी से उसे & बढ़ावा दे रहा था..हां लेने दो उसे चूचियो को अपने हाथो मे..बहुत मज़ा आएगा..जब उसकी दाढ़ी तुम अपने सीने पे महसूस करोगी..तुम्हारे निपल्स उसके मुँह मे होंगे..

& जैसे उसके दिल की आवाज़ विजयंत ने सुन ली.वो अब सच मे उसकी चूचियो से खेल रहा था.टॉप & ब्रा उपर कर वो उन्हे अपने मुँह मे भर चूस रहा था.सोनिया की चूत गीली हो गयी थी.विजयंत का दाया हाथ उसकी स्कर्ट मे घुस उसकी जाँघो को सहलाए जा रहा था.उसके दिल का वो शैतान कोना अब उसे और उकसा रहा था..पाकड़ो उसका लंड..देखो उसकी सख्ती तुम अपने जिस्म पे महसूस कर नही रही क्या?..पॅंट के बावजूद वो तुम्हारे तन को जलाए जा रहा है अपनी गर्मी से..पाकड़ो..पाकड़ो..!

सोनिया ने हाथ नीचे ले जा विजयंत के लंड को दबोचते हुए अपने होंठ उसके सर को उपर कर उसके गर्म लबो से लगा दिए.विजयंत समझ गया कि चिड़िया अब पूरी तरह से उसके जाल मे फँस चुकी है.उसने फ़ौरन ज़िप खोल लंड बाहर निकाल उसके हाथ मे दे दिया & खुद दाए हाथ को उसकी पॅंटी मे घुसा उसकी गीली चूत को & गीला करने मे जुट गया.

कुच्छ ही पॅलो मे कार की सीट पे छट-पटाती सोनिया झाड़ रही थी.विजयंत ने 1 हाथ से ही अपनी पॅंट ढीली की तो सोनिया ने उसे नीचे सरका दिया.विजयंत ने उसकी पॅंटी उतारी & उसके उपर आ गया.विजयंत का लंड ब्रिज के लंड से केवल आधा इंच ही बड़ा था लेकिन उसकी मोटाई उसके मुक़ाबले कही ज़्यादा थी & जब उसने सर उठाके नीचे अपनी चूत मे पहली बार विजयंत के लंड को घुसते देखती सोनिया की चूत मे लंड को अंदर धकेला तो वो दर्द के मारे चीख पड़ी.

विजयनत उसके उपर लेट गया & उसके होंठो को चूमते हुए उसकी आहो को दफ़्न कर धक्के लगाने लगा.सोनिया उसकी पीठ & गंद को बेचैनी से सहलाती,खरोंछती बहुत मज़े का एहसास कर रही थी.ये मज़ा इस तरह सड़क के किनारे खड़ी कार मे चुदने के रोमांच का था, या फिर पति से छुप बेवफ़ाई करने का जिसमे पकड़े जाने का भी डर था,उसका था उसे पता नही था.उसे तो अब बस इस बात से मतलब था कि उसके जिस्म मे भरपूर मस्ती च्छाई थी & उसे अभी ही बहुत सुकून का एहसास हो रहा था.

"आन्न्‍नणणनह..!",उसने अपने होंठ विजयंत के होंठो की गिरफ़्त से छुड़ाते हुए सीट से सर उठा उसे चूमते हुए लंबी आह भरी & झाड़ गयी.विजयंत ने भी मौका देखा अपना वीर्य उसकी चूत मे छ्चोड़ दिया.दोनो लंबी-2 साँसे लेते 1 दूसरे को चूमते वैसे ही पड़े रहे.सोनिया के चेहरे पे बहुत सुकून था.खुमारी उतरने के बाद भी उसके दिल का वो कोना उसे लंड को बाहर ना निकालने देने की बात कर रहा था मगर ये मुमकिन तो था नही.

विजयंत ने लंड खींचा & फिर डॅशबोर्ड पे पड़े बॉक्स से नॅपकिन निकाल सोनिया की चूत & जाँघो से उसके & अपने मिले-जुले रस को साफ किया & उसकी पॅंटी उसे पहना दी & सीट उपर कर दी.सोनिया के दिल मे प्यार का सैलाब उमड़ पड़ा & वो सुबक्ते हुए विजयंत से लिपट गयी & उसके चेहरे को चूमने लगी.वो उसे गले से लगाए हुए उसके ब्रा को टॉप को ठीक करने लगा फिर उसे चूम के खुद से लगा किया & अपनी पॅंट बंद कर गाड़ी आगे बढ़ा दी.उसने उसे उसके घर पे इस वादे के साथ छ्चोड़ा कि जब तक वो बॅंगलुर मे है यानी अगले 2 दिनो तक,तब तक सोनिया हर रोज़ कुच्छ वक़्त उसके साथ ज़रूर गुज़ारेगी.

उसके घर से कार आगे बढ़ाते हुए वो बहुत खुश था,उसकी चालाकी भरी बातो के जाल मे ये चिड़िया आख़िर फँस ही गयी थी.अब बस मौका देख वो ब्रिज की शादीशुदा ज़िंदगी मे आग लगा देगा.उसे उमीद थी कि इस बात का असर ब्रिज के बिज़्नेस पे भी ज़रूर पड़ेगा.जहा ब्रिज विजयंत से केवल हर सौदे पे लड़ के जीतना चाहता था वही विजयंत उसके & उसकी कंपनी के वजूद को ही पूरी तरह से मिटा देना चाहता था.

विजयंत 1 चिड़िया को फाँस के तो बहुत खुश था लेकिन उसे पता नही था कि उधर डेवाले मे दूसरी चिड़िया उसके हाथो से निकल चुकी है.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:30 PM,
#19
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--19

गतान्क से आगे.

"क्या बात है!",जैसे ही रंभा सोनम के पास आके बैठी & अपना लंच-बॉक्स खोला,उसने उसे छेड़ा,"..आजकल लंच करने देर से आने लगी है,छ्चोड़ता नही क्या तेरा बॉस?",उसने उसे कोहनी मारी,"..उपर से सुना है कि आजकल शाम को अकेली रहती है उसके साथ.कही आजकल उसके दफ़्तर के साथ-2 उसके दिल का भी ख़याल तो नही रखने लगी?",बात तो सच थी & रंभा के गाल शर्म से लाल भी हो गये.

"चुप कर!",उसने सोनम का डब्बा अपनी ओर खींच लिया & उसकी सब्ज़ी खाने लगी,"..तुझे तो बस यही सूझता रहता है.काम बहुत है आजकल,कोई नये प्रॉजेक्ट की शुरुआत के चलते."

"कौन सा प्रॉजेक्ट है?"

"अभी शुरू नही हो रहा,अभी तो बस उसके टेंडर के फिगर्स तैय्यरी हो रही है."

"अच्छा,तो टेंडर के साथ-2 कही तेरा फिगर तो नही नापने लगता वो?",उसने उसे फिर छेड़ा.बात फिर सही थी.समीर मौका पाते ही उसे दबोच लेता था & प्यार करने लगता था.रंभा का दिल भी मदहोश हो जाता लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से खुद को रोका हुआ था.वो अभी समीर को और तड़पाना चाहती थी.

"अच्छा!तेरा बॉस नपता है क्या तेरा फिगर?",उसने सहेली को वापस छेड़ा.

"अरे यार,कहा!हम तो चाहते हैं कि हुज़ूर ऐसा कुच्छ करें लेकिन वो तो साला देखता ही नही मेरी तरफ.अब सोचा की चलो वो नही सोचता तो उसे सोचने पे मजबूर करो तो साला बॅंगलुर भाग गया!वैसे टेंडर की रकम फाइनल हो गयी क्या?"

"नही यार अभी कहा & वैसे भी वो काम तो तेरे बॉस का है.",काम तो विजयंत का था लेकिन सोनम को डर था कि कही विजयंत रकम वाले काग़ज़ को उसकी आँखो तक पहुचने ही ना दे क्यूकी ऐसे मामलो मे वो कुच्छ ज़्यादा ही सावधान रहता था & इसीलिए वो रंभा से ये बात जानना चाह रही थी,"..अच्छा ये बता सोनम,कैसे सोचने पे मजबूर करती उसे?",उसने शरारत से पुछा.

"अरे यार! बस ये 2 बटन खोल के..",उसने अपनी शर्ट की ओर इशारा किया,"..उसके सामने थोड़ा झुक के कॉफी सर्व कर देती बस अपनेआप मेरा फिगर नापने लगता..आँखो से!",दोनो सहेलिया हंसते हुए खाना खाने मे मशगूल हो गयी.

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"उफफफफ्फ़..छ्चोड़ो ना!तुम्हे तो बस हर वक़्त यही सब सूझता रहता है!",शाम का काम ख़त्म हो चुका था & ऑफीस के सोफे पे समीर & रंभा साथ-2 बैठे थे.समीर ने बाई तरफ बैठी रंभा को बाहो मे कसा हुआ था & उसे चूम रहा था.उसका दाया हाथ रंभा की शर्ट के उपर से ही उसकी कमर को सहला रहा था.

"तुम्हे देख & कुच्छ सूझ सकता है भला!",आज रंभा को समीर के इरादे और दिनो से ज़्यादा बुरे लग रहे थे.आज उसके हाथ उसकी कमर & पीठ पे कुच्छ ज़्यादा ही फिसल रहे थे.उसने उसकी कमर को जकड़ा & फिर से चूम लिया.उसके होंठ रंभा के चेहरे से घूमते हुए उसके गालो पे आए & वाहा से उसकी गर्दन पे.रंभा को बहुत अच्छा लग रहा था यू अपने महबूब से प्यार करवाना कि तभी उसने महसूस किया की समेर के होंठ उसकी गर्दन से नीचे पहुँच गये हैं & उसकी शर्ट के बंद बटन के उपर पहुचने वाले ही हैं.ठीक उसी वक़्त समीर का हाथ भी उसकी पीठ से आगे आने लगा.रंभा उसका इरादा समझ गयी & उसे धकेल के उठ खड़ी हुई.

"आइ'म सॉरी,डार्लिंग!",समीर फ़ौरन उसके पास आ गया & उसका चेहरा थाम लिया.

"समीर,मुझे ये सब पसंद नही.",रंभा ने सफाई से झूठ बोला.

"आइ'म सॉरी,रंभा.मैं बहक गया था पर क्या करू प्यार करता हू तुमसे!"

"मैं जानती हू..",रंभा ने मुँह उसकी तरफ किया & उसके चेहरे को अपने कोमल हाथो मे भर लिया,"..मैं भी तुम्हे बहुत चाहती हू..तुमसे दूर जाना मुझे भी अच्छा नही लगता..दिल करता है बस यू ही तुम्हारी बाहो मे बैठी रहू..मगर डर लगता है..",उसने संजीदा शक्ल बना के मुँह 1 तरफ घुमा लिया,"..शादी से पहले मुझे ये सब ठीक नही लगता समीर.तुम्हारे लिए शायद बहुत बड़ी बात नही मगर मैं तो 1 लड़की हू,मुझे तो सोचना पड़ता है.",उसने सर झुका लिया.

"ओके!मेडम..",उसने उसकी कमर मे हाथ थाम आगे खींचा & बाँहो मे भर लिया तो रंभा ने उसके सीने पे सर रख दिया,"..अब इस सब से आगे सुहागरात को ही बढ़ुंगा.तो बोलो कब करनी है शादी?"

"क्या?!",रंभा चौंक पड़ी & अपना सर सीने से उठाया.

"हां..कब करनी है शादी?"

"देखो,मज़ाक मत करो."

"अच्छा भाई!",उसने उसे बाहो से आज़ाद किया & कमरे के 1 कोने मे रखे कोट हॅंगर पे टाँगे अपने कोट की अंदर की जेब से कुच्छ निकाला & रंभा के करीब आया,उसका बाया हाथ अपने हाथ मे लिया & उसकी रिंग फिंगर पे हीरे की 1 बड़ी सी अंगूठी पहना दी,"..अब बोलो कब करनी है शादी?"

"समीर..",रंभा ने चौंक के मुँह पे हाथ रख दिया,"..ये..मैं..मेरी समझ मे नही आता..ये तो बहुत कीमती है.."

"तुमसे ज़्यादा नही मेरी जान..जल्दी जवाब दो कब करनी है शादी?"

"समीर,मैं इसे कैसे लू?"

"ले तो ली..तुम मेरी मगेतर हो अभी से इस वक़्त से समझी & ये अंगूठी तुम्हारा हक़ है..अब जल्दी जवाब दो यार ..कब करनी है शादी?"

"समीर..",रंभा की आँखे भर आई थी.समीर की हरकत से वो हैरान तो सच मे हुई थी लेकिन ये आँसू तो बस उसकी अदाकरी का कमाल थे.समीर ने उसे सीने से लगा लिया & कुच्छ पलो बाद जब उसे लगा कि वो संभाल गयी है तो अपना सवाल दोहराया.

"जब तुम्हारे मम्मी-डॅडी चाहें.",रांभ मुस्कुराइ & अपने होंठ उपर कर दिए.समीर ने अपनी मंगेतर के होंठो को अपने होंठो से भिगोना शुरू किया & दोनो प्रेमी 1 दूसरे के आगोश मे बँधे अपनी दुनिया मे खो गये.

"नही!हरगिज़ नही..तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है!",विजयंत मेहरा 1 शांत स्वाभाव का इंसान था & शायद ही उसे किसी ने आपा खोते देखा था लेकिन समीर की बात ने आज उसके सब्र को तोड़ दिया था,"..वो 1 मामूली सेक्रेटरी है,उसे इस घर की बहू बनाओगे तुम!"

"प्लीज़,विजयंत.शांत हो जाओ.",रीता उसके कंधे को थाम उसे समझाने लगी,"..हम सब समझाएँगे इसे.",शिप्रा & प्रणव खामोशी से सब देख रहे थे,"समीर बेटा,ये क्या बच्पना है?"

"मोम,मैने सब सोच-समझ के ये फ़ैसला लिया है.",समीर बिल्कुल शांत था.

"कुच्छ सोचा-समझा नही है तुमने!",विजयंत फिर चीखा.उसे यकीन नही हो रहा था कि समीर जैसा समझदार लड़का ऐसा काम कर रहा था मगर क्या उसके गुस्से का कारण सिर्फ़ समीर का 1 मामूली हैसियत की लड़की से शादी करने का फिसला था?..नही.वो बौखला गया था कि जिस लड़की पे उसकी निगाह थी उसे उसका अपना बेटा उड़ा ले जा रहा था.

"डॅड,मुझे समझ नही आ रहा कि आख़िर रंभा मे ऐसी क्या कमी है जो आप इतना नाराज़ हो रहे हैं!"

"समीर,अब मैं और बहस नही करूँगा.हम सब इस शादी के खिलाफ हैं.क्या अब भी तुम्हारा फ़ैसला वही है?",विजयंत अब खुद पे काबू पाता दिख रहा था.

"जी हां."

"तो फिर इस घर मे तुम्हारे लिए कोई जगह नही है."

"ओके."

"और ट्रस्ट के दरवाज़े भी तुम्हारे लिए बंद हो जाते हैं."

"डॅडी,प्लीज़ ये क्या कह रहे हैं आप?",देर से खामोश बैठा प्रणव विजयंत के पास आ गया."

"हां,डॅड.समीर मान जाएगा.प्लीज़ ऐसे मत कहिए!",शिप्रा भी अपने पिता को समझाने लगी.

"प्लीज़ शिप्रा,मेरी वकालत मत करो.मुझे इनका हर फ़ैसला मंज़ूर है."

"पर भाई,तुम..तुम क्या करोगे?..कहा जाओगे?",उसी वक़्त रीता रोने लगी & शिप्रा मा को समझाने चली गयी.

"मुझे आप दादाजी के पंचमहल वाले अग्री बिज़्नेस के काग़ज़ात दे दीजिए,मैं यहा से चला जाऊँगा."

"तो सब सोचा हुआ है तुमने.",विजयंत के अंदर जैसे कुच्छ टूट गया.

"समीर,पागल हो गये हो क्या!",प्रणव ने साले को समझाने की कोशिश की.

"ठीक है.कल सारे काग़ज़ात तुम्हे दे दिए जाएँगे."

"डॅडी,प्लीज़..समीर समझ जाएगा..& अभी ये कैसे जा सकता है..मानपुर वाले टेंडर की तैयारी करनी है इसे..अब वक़्त ही कितना बचा है..प्लीज़ तब तक का वक़्त दीजिए इसे!"

"वो टेंडर अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है,प्रणव.कल मिस्टर.समीर मेहरा ग्रूप को छ्चोड़ेंगे & अब पंचमहल का अग्री बिज़्नेस संभालेंगे.उनकी सारी ज़िम्मेदारिया अब तुम उठाओगे.",विजयंत की भारी आवज़ मे फौलाद की खनक थी & सभी जानते थे की अब उसका फ़ैसला बदलना नामुमकिन है.

"थॅंक्स.",समीर वाहा से चला गया.शिप्रा रोती हुई मा को गले से लगाए खड़ी थी,विजयंत घुमा & अपने कमरे मे चला गया.उस तनाव भरे माहौल मे प्रणव ने अपनी बीवी को देखा & शिप्रा ने प्रणव को & दोनो 1 साथ मुस्कुरा दिए.

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"समीर,ये क्या कर आए हो तुम!",रंभा बहुत परेशान हो गयी,"..इस तरह से घर नही छ्चोड़ सकते तुम!"

"क्यू नही छ्चोड़ सकता?जहा तुम्हारी कद्र नही वो जगह मेरा घर नही है रंभा!",अजीब मुसीबत आ गयी थी रंभा के सर पे.कहा तो वो मेहरा खानदान की बहू बनने के ख्वाब देख रही थी & कहा अब उनका बेटा ही घर छ्चोड़ आया था!

"देखो,समीर.तुम नही समझ सकते मगर मैं समझती हू परिवार की मा-बाप की अहमियत.मुझे जानते हुए तुम्हे बस 4 दिन हुए हैं & 4 दिन के इस रिश्ते के लिए तुम उन्हे छ्चोड़ रहे हो!..नही..मैं तुम्हारे परिवार के टूटने का कारण नही बनना चाहती."

"प्लीज़,रंभा.अब तुम तो मेरा साथ ना छ्चोड़ो.तुम्हारे बिना मैं जी नही सकता.",उसने उसे बाहो मे भर लिया,"..& तुम्हारे लिए ही उन्हे छ्चोड़ आया हू."

"मगर अब करोगे क्या?..हू जाएँगे कहा?"

"पंचमहल. मेमेरे दादाजी का 1 अग्री-बिज़्नेस था जो उन्होने अपनी वसीयत मे मेरे नाम कर दिया था.अब उसी को संभालूँगा.उस धंधे का ट्रस्ट के कारोबार से कोई सरोकार नही है & हम वाहा चैन से रहेंगे.",उसने उसके चेहरे को हाथो मे भरा,"..वादा है मेरा,तुम्हे कोई तकलीफ़ नही होने दूँगा.",इस बात से रंभा को थोड़ा चैन पड़ा,यानी उसके सपने अभी भी पूरे हो सकते थे.

"तकलीफो से नही डरती लेकिन यू तुम्हारा घर छ्चोड़ना..-",समीर ने उसके होंठो पे उंगली रख दी.

"मेरे साथ पंचमहल चलने को तैय्यार हो?",रंभा ने हां मे सर हिलाया.

"तो फ़ैसला हो गया.हम कल ही वाहा चले जाएँगे."

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"ये मीटिंग अचानक बुलाई गयी है क्यूकी मुझे 1 एलान करना है.",विजयंत ट्रस्ट के दफ़्तर के कान्फररन्स हॉल मे ग्रूप के सभी आला अफसरो से मुखातिब था,"..आज से मिस्टर.समीर मेहरा हमारे ग्रूप को छ्चोड़ के जा रहे हैं..",हॉल मे सवालो & हैरत का शोर गूँज उठा.

"वो पंचमहल जा रहे हैं अग्री-बिज़्नेस संभालने.",उसने हाथ उठाके संबको शांत रहने का इशारा किया,"..आप सभी को ये चिंता है कि उनकी जगह लेगा कौन..है कोई इतना काबिल..तो मेरा जवाब है कि है 1 ऐसा इंसान उस से ज़्यादा काबिल जो पिच्छले कुच्छ सालो से हमारे साथ काम कर रहा है.लॅडीस & गेंटल्मन,आज से मिस्टर.मेहरा की जगह मिस्टर.प्रणव कपूर लेंगे.",विजयंत ने ताली बजाई तो इशारा समझ सभी ने उसका साथ दिया.

"मिस्टर.कपूर..",प्रणव खड़ा हुआ & ससुर के पास आया,"..ये सारे प्रॉजेक्ट्स अब आपकी ज़िम्मेदारी हैं..",उसने अपने सामने टेबल पे रखे फाइल्स & पेन ड्राइव्स की ओर इशारा किया,"..& मानपुर के टेंडर की तैय्यारि भी अब आप ही करेंगे."

रंभा ने . को फोन कर सब बता दिया था & कुच्छ ही देर मे पूरे ऑफीस & फिर शहर मे ये बात जंगल की आग की तरह फैल गयी थी कि समीर मेहरा ने 1 सेक्रेटरी के लिए ग्रूप को लात मार दी.

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क्रमशः.......
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12-19-2017, 10:30 PM,
#20
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--20

गतान्क से आगे.

"आख़िरकार..",समीर ने रंभा को बाहो मे भर के चूम लिया.पंचमहल पहुँचते ही समीर ने रंभा से 1 मंदिर मे शादी कर ली थी & उसके बाद कुच्छ करीबी दोस्तो को दावत दी.दावत ख़त्म होते ही वो अपनी नयी-नवेली दुल्हन को ले उसके लिए खास फूलो से सजे होटेल के कमरे मे पहुँच गया था,"..तुम मेरी हो ही गयी."

रंभा ने गुलाबी रंग की नीले बॉर्डर की झीनी सारी & नीला ब्लाउस पहना था.उसके जिस्म पे पति के तोहफे मे दिए गये गहने थे.समीर ने उसकी नंगी कमर को बाहो मे कस लिया & उसे चूमने लगा.

"उम्म्म्म..समीर..कितने उतावले हो रहे हो!..कही भागी जा रही हूँ मैं?",उसने उसे खुद से अलग किया & मुस्कुराइ.

"शादी से पहले भी यही कहती थी & अभी भी यही राग अलाप रही हो!",समीर ने उसे फिर से बाहो मे भर लिया & उसके गुलाबी होंठ चूमने लगा.रंभा उसकी गिरफ़्त मे कसमसाती फिर से अलग होने के लिए उसके अपने जिस्म पे घूमते गर्म हाथो को पकड़ने लगी तो समीर ने उसकी उंगलयो मे अपनी उंगलिया फँसा दी & कुपोबोर्ड के शीसे से उसकी पीठ लगा दी.कपबोर्ड बहुत बड़ा था & उसपे लगा शीशा भी.

समीर ने उसके हाथो को पकड़ उसके चेहरे के दोनो तरफ शीशे पे जमाते हुए उसे चूमना शुरू कर दिया.कुच्छ देर चूमने के बाद रंभा ने होंठ खींच चेहरा दाई तरफ घूमाते हुए अपना बाया गाल शीशे से सटा सिया तो समीर उसके बाए गाल को चूमने लगा.रंभा उसकी किस्सस से आहत हो अपने सर को दाए-बाए घुमाने लगी & समीर उसके चेहरे & होंठो को चूम उसे मस्त करता रहा.रंभा ने फिर से अलग होने की कोशिस की & अपने हाथ छुड़ाने की भी तो समीर ने अपने होंठो का रुख़ उसके दाए हाथ मे फँसे बाए हाथ की तरफ किया & उसे चूमने लगा.

रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली थी.समीर उसके बाए हाथ से होता हुआ उसकी चूड़ियो भरी कलाई से होता हुआ उसकी गुदाज़ बाँह पे आ गया था.उसके गर्म होंठ रंभा के तन की आग को & भड़का रहे थे.समीर ने उसकी चूड़िया निकाली & वही फर्श के गलिचे पे गिरा दी.उसके होंठ रंभा की मांसल उपरी बाँह से होते उसके कंधे & फिर गोरी गर्दन तक आ पहुँचे थे.रंभा ने सर उपर उठा अपनी गर्दन अपने पति को पेश कर दी.उसकी आतुर किस्सस उसे बहुत भली लग रही थी.समीर उसकी गर्दन को चूमते हुए उसकी ठुड्डी & फिर उसके रसीले होंठो तक आ पहुँचा.इस बार रंभा ने खुद ही अपनी जीभ उसके मुँह मे घुसा दी & वो खुशी से उसे चूसने लगा.

इतनी गर्मजोशी भरी किस ने नये-नवेले शादीशुदा जोड़े को जोश से पागल कर दिया.समीर अब अपने पाजामे मे क़ैद लंड को अपनी दुल्हन की चूत पे दबाने लगा.रंभा को उसकी इस हरकत ने बिल्कुल पागल कर दिया & उसकी चूत तो समीर के लंड के आभास से रस छ्चोड़ने लगी.अफ़रा-तफ़री मे सारी का पल्लू रंभा के सीने से ढालक गया था & ब्लाउस के गले मे से उसका बड़ा क्लीवेज उसकी तेज़ धड़कानो के साथ उपर-नीचे होते दिखाई देने लगा था.समीर अब रंभा के दाए कंधे से होता हुआ उसकी नर्म बाँह से फिसलता उसके दाए हाथ तक आ गया था & उसकी चूड़ियाँ उतार रहा था.रंभा की गोरी,गुदाज़ बाँह को चूमते हुए उसकी निगाह उसके क्लीवेज पे पड़ी & उसके होंठ उसी ओर बढ़ चले.उसके हाथो की पकड़ थोड़ी ढीली हुई & मौका पाते ही रंभा ने उसे परे धकेला & शीशे से हाथ दूसरी तरफ आ गयी.

समीर मुस्कुराता हुआ उसकी ओर बढ़ा तो उसने कदम पीछे बढ़ाए.रंभा का आँचल ढालाक जाने से उसके बड़े क्लीवेज के अलावा उसका सपाट पेट & गोल नाभि भी समीर को सॉफ दिख रहे थे & अपनी हसीन बीवी को इस दिलकश अंदाज़ मे देख उसके पाजामे मे खड़ा उसका लंड प्रेकुं बहाने लगा.उसने 1 कदम & आगे बढ़ाया तो रंभा ने भी 1 कदम & पीछे किया.उसे पता ही ना चला कि पीछे बिस्तर है & वो उस से टकरा गयी & लड़खड़ा गयी.खुद को संभालते हुए वो उसपे बैठ गयी.समीर उसके करीब आया & नीचे बैठ उसके दाए पाँव को हाथ मे पकड़ लिया.रंभा ने पाँव पीछे खींचा & दोनो पाँव बिस्तर पे चढ़ा लिए.समीर ने बाया घुटना बिस्तर पे रखा तो रंभा ने दोनो हाथ पीछे बिस्तर पे जमाए & पीछे खिसकी.दोनो 1 दूसरे को मुस्कुराते हुए देखे जा रहे थे.

समीर उसकी नज़रो से नज़रे मिलाए हुए नीचे झुका & रंभा के दाए पाँव को चूम लिया.रंभा के जिस्म मे बिजली दौड़ गयी & उसने पाँव पीछे खींचना चाहे लेकिन समीर ने उसके पाँव को मज़बूती से बिस्तर पे दबा दिया & उसे चूमता रहा.अपने हाथ पीच्चे जमाए आँखे बंद किए रंभा धीमी-2 आहें भरने लगी.उसके घुटने उपर उठे हुए थे & समीर उनपे हाथ रख उसके दोनो पाँवो को बारी-2 चूम रहा था.उसने दोनो हाथ घुटनो से हटाए & उसके पायलो से सजे पाँवो को सहलाते हुए चूमता रहा.

थोड़ी देर बाद रंभा ने महसूस किया कि समीर के हाथ उसके टख़नो के गिर्द घूम रहे हैं & उसके होंठ भी उपर भर रहे हैं.उसे अब बहुत मज़ा आ रहा था.उसकी चूत मे अब कसक उठने लगी थी.समीर के हाथ उसकी सारी मे घुस रहे थे & उसके होंठ उसकी टाँगो पे उपर बढ़ रहे थे.रंभा ने अपनी जंघे आपस मे भींच टाँगो को बिल्कुल सटा रखा था & समीर उनके बीच हाथ घुसा नही पा रहा था लेकिन उसे इस बात से उसे कोई फ़र्क नही पड़ा & उसके हाथ उसकी टाँगो की बाहरी बगलो पे फिरने लगे.अपनी हसीन बीवी की सारी को उपर उठता हुआ वो उसकी गोरी टाँगो को चूमते हुए उसके घुटनो तक आ पहुँचा.

"आननह..!",समीर उसके घुटनो को बड़ी शिद्दत से चूम रहा था & रंभा अब अपनी भारी जंघे आपस मे हौले-2 रगड़ने लगी थी.इस बार समीर ने सारी को उसके घुटनो के पार नीचे उसकी जाँघो पे से हटाना शुरू किया & अपने हाथो से उसकी जाँघो की बगलो को रगड़ने लगा.रंभा के सीने के उभार उसकी तेज़ सांसो के साथ उपर-नीचे हो रहे थे.उसके चेहरे पे अब सिर्फ़ मस्ती दिख रही थी.समीर ने उसके घुटनो से उपर बढ़ते हुए उसकी दाई जाँघ पे 1 जगह इतनी ज़ोर से चूमा कि उसने मस्ती मे अपनी गंद बिस्तर से उठा दी.समीर ने खुश होके उसकी मक्खनी जंगो पे अपने गर्म होंठो के निशान छ्चोड़ने शुरू कर दिए & वो बेसब्री से अपनी कमर हिलाती रही.सारी अब कमर तक आ गयी थी & समीर को अब अपनी प्यारी बीवी की गुलाबी पॅंटी नज़र आ रही थी.समीर के होंठ उसी ओर बढ़ चले.रंभा की आहें & तेज़ हो गयी 7 साथ ही समीर के होंठो की हरकतें भी.वो अब उसकी जाँघो को चूस रहा था.रंभा अब गंद बिस्तर से उठाके & बेचैनी से हिला रही थी.उसकी चूत का बुरा हाल था.समीर उसकी पॅंटी से बस 2 इंच की दूरी पे उसकी कोमल जाँघो को चूमे,चूसे जा रहा था & अब बात बर्दाश्त के बाहर थी.उसने सर पीछे झुकाते हुए अपनी चूचियो को छत की तरफ उठाते हुए बेचैनी से बाल झटके & अपनी गंद बिस्तर से कुच्छ ज़्यादा उठा दी & झाड़ गयी.

समीर ने उसकी जाँघो से मुँह को उठाया & उसके काँपते लबो पे अपने होंठ रख दिए.वो उसकी दाई तरफ से उसपे झुका उसकी कमर के मांसल हिस्सो को दबाए जा रहा था.काफ़ी देर तक उसकी ज़ुबान से ज़ुबान लड़ाने के बाद वो नीचे झुका & पहली बार अपनी बीवी के क्लीवेज को चूमा.रंभा ने खुशी से आह भारी.समीर के हाथ उसकी कमर की बगल से उपर सरकते हुए उसके ब्लाउस तक पहुँचे & पीछे जाके पीठ पे लगे हुक्स खोल दिए.रंभा ने जोश मे भर उसके सर को चूम लिया तो समीर ने उसके सीने से सर उठा फिर से उसके होंठो को चूमना शुरू कर दिया.उसके हाथ रंभा के ब्लाउस को आगे खींच रहे थे.रंभा ने आगे होते हुए बिस्तर से हाथ उठाए ताकि उसका पति उसके ब्लाउस को आसानी से उतार सके तो समीर झट से किस तोड़ उसके पीछे आ गया & उसकी टाँगो के दोनो तरफ अपनी टाँगे फैलाते हुए उसे पीछे से बाहो मे भर लिया.

उसने उसकी बाहो से उसके ब्लाउस को सरकाया & गुलाबी लेस ब्रा मे क़ैद रंभा की चूचियाँ अब नुमाया थी.लेस के कपड़े मे से उसके कड़े निपल्स उभरते हुए उसकी मस्ती की दास्तान बयान कर रहे थे.रंभा ने अपनी बाहे पीछे ले जा अपने पति के गले मे डाल दी.समीर ने उसके पेट को सहलाते हुए उसके गालो को चूमना शुरू कर दिया.रंभा अब उसका पूरा साथ दे रही थी.वो जिधर चाहता वो गर्दन घुमा उधर का गाल उसकी तरफ कर उसे चूमने मे पूरी मदद कर रही थी.समीर की 1 उंगली अब उसकी नाभि की गहराई नापने की कोशिश कर रही थी.समीर उसके चिकने पेट से मानो हाथ हटा ही नही पा रहा था.रंभा पीछे अपनी गंद पे उसके लंड को महसूस कर दीवानी हुए जा रही थी.समीर के हाथ उसके पेट से हटे तो फिर उसकी जाँघो से लग गये & इस बार उनके अन्द्रुनी हिस्से को सहलाने लगे.उसकी जाँघो से खलेते हुए समीर उसके कानो को हल्के से काट रहा था.

रंभा अब बहुत मस्त हो गयी थी,उसने अपनी बाहे समीर के गले से निकाली & अपना दाया कंधा उसके सीने से सटा उसकी तरफ घूमी तो समीर ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके माथे को चूम लिया.रंभा अपने हाथ उसके कुर्ते पे फिराने लगी तो समीर के दिल मे हसरत पैदा हुई कि वो उस मखमली एहसास को अपने सीने पे महसूस करे.उसने अपनी बीवी को कुर्ता उतारने का इशारा किया तो वो शर्मा गयी & उसके सीने मे मुँह च्छूपा लिया.समीर उसकी इस अदा पे और जोश से भर गया & उसकी ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा उपर किया & अपनी गुज़ारिश दोहराई.इस बार रंभा ने धीरे-2 उसके कुर्ते को निकाल दिया.समीर ने उसे फिर अपने सीने से लगा लिया.

रंभा को अपने पति के सीने को देख थोड़ी सी मायूसी हुई,उसे बालो भरे चौड़े मर्दाने सीने पसंद थे जबकि समीर का सीना बहुत ज़्यादा चौड़ा नही था & बिल्कुल चिकना था लेकिन था तो वो 1 जोशीला मर्द ही.रंभा ने अपने नाज़ुक हाथ जब उसके नंगे सीने पे चलाए तो वो और जोश मे आ गया & उसके सुर्ख गालो पे किस्सस की बौछार कर दी.रंभा भी जवाब मे उसके चेहरे को चूमने लगी.समीर की हसरतें पल-2 बढ़ती जा रही थी & अब उसकी ख्वाहिश अपने सीने पे अपनी नयी-नवेली दुल्हन के होंठो के नर्म एहसास को महसूस करने की थी.उसने रंभा कसर पकड़ के अपने सीने पे झुकाया तो पहले तो रंभा थोड़ी देर बस उसके सीने मे मुँह च्छुपाए बैठी रही फिर बहुत ही हल्की-2 किस्स उसकी छाती पे छ्चोड़नी शुरू की.अब आहें भरने की बारी समीर की थी.रंभा जान के थोड़ी शर्मोहाया मे डूबी होने का नाटक कर रही थी.वो अपने पति को इस बात का ज़रा भी एहसास नही होने देना चाहती थी कि वो जिस्मानी ताल्लुक़ात के मामलो मे कितने अज़ीम तजुर्बे की मालकिन थी!

रंभा की गरम सांसो & नर्म होंठो ने समीर की मदहोशी को बहुत बढ़ा दिया था.वो अब बेचैनी से खुद पे झुकी रंभा की नंगी पीठ पे हाथ चला रहा था.रंभा उसके निपल्स को धीरे-2 चूमते हुए बीच-2 मे चूस भी रही थी.समीर के फिसलते हाथ उसके ब्रा स्ट्रॅप से उलझे & उन्हे ये बता बड़ी नागवार गुज़री & उन्होने उसकी मुलायम पीठ की सैर मे अड़चन बनते ब्रा के हुक्स को खोल दिया.रंभा फ़ौरन उसके सीने से उठ गयी.समीर ने उसकी मरमरी बाहो से ब्रा को खींच के निकाला तो रंभा उसकी पकड़ से निकलने के लिए अपने घुटनो पे हुई मगर समीर भी तेज़ी से अपने घुटनो पे हुआ & उसके उपरी बाज़ू पकड़ उसकी नंगी चूचियाँ निहारने लगा.कड़े गुलाबी निपल्स से सजी तेज़ी से उपर-नीचे होती दूधिया रंग की चूचियों को देख उसका हलक सुख गया था & समीर को उसे तर करने का अब 1 ही रास्ता दिखाई पड़ रहा था-अपनी बीवी की चूचियो को अपने मुँह मे भर लेना.

उसने रंभा को अपनी ओर खींचा & बाहो मे भर उसके सीने को अपने सीने से भींच लिया.दोनो घुटनो पे खड़े 1 दूसरे से लिपटे 1 दूसरे को चूमने लगे.दोनो के हाथ अपने-2 साथी की पीठ & कमर पे चल रहे थे.समीर ने किस तोड़ी & नज़रे नीची की,उसकी छाती से भींची रंभा की गोरी चूचियाँ और फूली दिख रही थी.रंभा की भी अब यही आस थी कि उसका महबूब उसकी छातियो से खेलना शुरू कर दे.समीर नीचे झुका & पहले दोनो चूचियो को 1-1 बार हल्के से चूमा.रंभा आँखे बंद कर सर पीछे झटकते हुए मुस्कुराइ.

तभी समीर ने उसकी बाई चूची को दाए हाथ मे मसल्ते हुए बाई को मुँह मे भर लिया & चूसने लगा.रंभा मस्ती मे आहें भरने लगी.उसका बदन झटके कह रहा था.समीर की हरकत ने उसके जिस्म मे सनसनी फैला दी थी.समीर तो वैसी खूबसूरत चूचियाँ देख पागल हो गया था.काफ़ी देर तक वो उन मस्ताने उभारो से अपने हाथो & अपने होंठो से खेलता रहा.रंभा की चूत तो बावली हो रस पे रस बहाए जा रही थी.जब रंभा की चूचियो से खेलते हुए उसका मन थोड़ा भर गया तो उसने उन्हे छ्चोड़ा & झुक के घुटनो पे खड़ी रंभा के नर्म पेट को चूमते हुए उसकी नाभि को अपनी जीभ से छेड़ने लगा.रंभा मस्ती मे बहाल हो कभी अपने पति के बालो & पीठ को पकड़ती तो कभी अपने ही बालो मे उंगलिया फिराते हुए अपनी बेसब्री से निकलने का रास्ता ढूँढने लगती.

समीर ने उसकी कमर मे अटकी सारी को देखा & अपने हाथ से उसे निकाल दिया.उसका दिल रंभा के दिलकश जिस्म को पूरा नंगा देखना चाहता था.सारी निकलते ही उसने पेटिकोट के हुक को खोला & फिर जोश मे भर उसकी कमर को जकड़ते हुए उसके पेट पे ज़ोर से चूमा & फिर घूमते हुए पीछे उसकी कमर पे आ गया.रंभा अपने बालो मे उंगलिया फँसाए सर उठाए ज़ोर-2 से आहे भरे जा रही थी & समीर उसकी कमर पकड़ के उसकी कमर के मांसल हिस्से को चूमे जा रहा था.रंभा के लिए अब यू खड़ा रहना नामुमकिन था & वो आगे हो लेट गयी.समीर ने उसके घुटनो के पास फँसा उसका पेटिकोट खींचा & उसकी आँखो के सामने लेस पॅंटी मे च्छूपी उसकी मोटी गंद आ गयी.पॅंटी बहुत छ्होटी थी & गंद की बड़ी फांको को ढकने की नाकाम कोशिश कर रही थी.

समीर उसकी जाँघो के पिच्छले हिस्सो को चूमते हुए गंद तक पहुँचा & फिर उसकी गंद की दरार मे अटकी पॅंटी की बगलो मे उंगलिया फँसा के नीचे खींचने लगा.पॅंटी उतरते ही रंभा की मोटी गंद उसके पति की नज़रो के सामने चमक उठी.समीर झुक गया & उसपे हसरत से हाथ फिराने लगा.उसके बाद उसने अपने होंठ उस से सटा दिया & वाहा चूमने लगा.पेट के बल लेटी रंभा बिस्तर से मुँह उठा फिर से सर को झटके देने लगी.मस्ती से उसका बुरा हाल था.समीर ने उसकी पॅंटी उच्छाली थी जोकि उसके चेहरे के पास ही पड़ी थी.रंभा ने देखा कि वो रस से बिल्कुल गीली थी.उसे अपने जिस्म की मस्ती का ये सबूत देख और जोश चढ़ आया.

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क्रमशः.......
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