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Chudai Story समाज सेविका
समाज सेविका (भाग-1)
(लेखक – गुलफाम ख़ान)
मेरी पत्नी चूँकि पेशे से एक वकील है, इसलिए उसे
काफ़ी लोगों से मिलना जुलना है पड़ता है. खास तौर
से उन लोगों से जो समाज सेवी संस्थाओं से संबंध
रखते है. कयि लोग तो घर पर भी आ जाते है और
मेरी पत्नी धैर्य के साथ उनकी बाते, उनकी
समस्याए सुनती है. ऐसे ही लोगों मे एक है उर्मिला.
उर्मिला एक समाज सेविका है.
जब भी उर्मिला हमारे घर पर आती, मेरे मूह मे पानी
आ जाता. मैं अख़बार या कोई पत्रिका पढ़ने के
बहाने उसे चोर नज़रों से देखता. वो मेरी पत्नी से
काफ़ी बाते करती और कभी कभी नज़रे बचा कर मेरी
तरफ भी देख लेती. उसकी उमर लगभग 24 या 25 साल
होगी. उसकी आँखे मे अजीब सा नशा था. या यू कहिए
सेक्स की चाहत थी. ये मुझे क्यूँ महसूस हुआ, वो मैं
बता नही सकता, मगर मुझे हमेशा ऐसे ही लगता कि
वो मुझे देख कर नजरो ही नजरो मे सेक्स की दावत दे
रही है. मेरी उससे कम ही बातचीत होती थी. मगर
जब भी वो बात करती, उसके शब्दों मे दोहरा अर्थ
होता. मिसाल के तौर पर एक दिन जब वो आई तो मेरी
पत्नी बाथरूम मे थी. वो उसका इंतेजार करते सोफे मे
बैठ गयी. मैने निगाहों ही निगाहों मे उसे खा जाने
वाले भाव से देखा तो वो मुस्कुरा उठी. उसने बातों
का सिलसिला शुरू करने की गरज से पूछा... "मेडम
कहाँ है.. बेडरूम मे है क्या?"
मैने कहा...'नही बाथरूम मे'.
'अकेले ही!' उसने शरारती महजे मे कहा और हंस पड़ी.
मैं बोला, 'बाथरूम मे तो सभी अकेले होते है.'
वो फिर हंस पड़ी और बोली...'कमाल करते है आप,
बाथरूम और बेडरूम ही तो वो जगहे है, जहाँ किसी को
अकेला नही होना चाहिए.'
मैं कोई जवाब नही दे सका. वो भी चुप चुप हो गयी.
कुछ पल बाद मैने उससे पूछा...'आप करती क्या है?'
वो दो तीन सेकेंड तो मेरी तरफ देखती रही, फिर
बोली...'समाज सेवा.'
'कभी हमारी भी सेवा करदो...' मेरे मूह से निकल गया.
वो हल्के से मुस्कुराइ और बोली...'आपको क्या प्राब्लम
है?'
'बहुत ही खास प्राब्लम है...' मैने कहा
'तो बताइए'
'बताउन्गा...फिर कभी...'
'अकेले मे??' वो मेरी आँखे मे आँखे डालती हुई बोली.
मैं समझ गया कि इस औरत को पटाना कोई मुश्किल काम
नही. लगता है उसे भी मुझमे दिलचस्पी है. मगर
समाज सेवा के बहाने कयि लोगों के बिस्तर गर्म कर चुकी
होगी...ऐसी औरत से संबंध रखना ठीक भी होगा या
नही. मैं सोचने लगा. इतने मे मेरी पत्नी आ गयी और
वो दोनों घर से ही संग संग ऑफीस मे चले गये.
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RE: Chudai Story समाज सेविका
हमारा आपस मे एक अंजाना सा रिश्ता जुड़ गया था,
जिससे मेरी पत्नी नावाकिफ़ थी.
जब भी मेरा और उसका सामना होता, वो चोर नज़रों से
मुझे बार बार देखती. मेरा मन कभी हाँ करता और
कभी ना...देखने मे वो बहुत अच्छी थी. सेक्सी थी
कहना चाहिए. जिस्म बड़ा सी गुदाज सा था. पाँच फुट
पाँच इंच की होगी, लेकिन वजन 50 किलो से अधिक ना
होगा. अक्सर साड़ी पहनती थी और साड़ी से ब्लाउज का
फासला काफ़ी होता था. जिससे उसका नंगा गोरा पेट सॉफ
नज़र आता था. साड़ी वो नाभि के नीचे ही बाँधती
थी. उसकी नाभि का छेद बहुत सुहावना था. ऐसा
लगता था जैसे पेट पर कोई डिंपल हो. हमेशा सीना
ताने रखती थी. सीने का उभार गजब का था. मेरा
हमेशा दिल चाहता था कि अपना मूह दोनों उभारों के
बीच मे रख दूं और आँखे बंद करके गुम सूम हो
जाउ. कभी कभी वो जींस और टी-शर्ट भी पहनती थी.
उस वक्त उसके खूबसूरत कुल्हों और मेहनत से तराशे
हुए चुतडो (बम्स) का नज़ारा किसी जन्नत से कम नही
होता था. जब वो घूमती थी, तो क्या मज़ाल किसी की
नज़रे उसके मस्त चुतडो से हट जाए. और जब वो
सामने होती, तो कमर के नीचे, उसके ट्राउज़र की जिप
पर निगाहे रहती. जिप का भाग थोड़ा अंदर की तरफ
घुसा हुआ सा लगता था. इससे मालूम पड़ता कि उसके
पेट के नीचे का भाग कितना स्लिम है. मैं अपनी
कल्पना मे उसकी चूत का नज़ारा करता और ऐसा लगता
कि उसकी खूबसूरत चूत मेरे लंड तक पहुँचने के
मिए बेकरार है.
कुछ दिन वो नही दिखाई दी. मैं ऑफीस से शाम 6 बजे
घर आ जाता हू. रविवार को घर पर ही रहता हू.
मुझे पता चला कि वो अपने किसी ख़ास काम मे बहुत
व्यस्त है. मैने सोचा कि आख़िर मैं उसके बारे मे
इतना क्यों सोच रहा हू, या मेरे दिल ने कहा कि, बेटे,
तू उसकी चूत का दीदार करना चाहता है... तू उसे
घोड़ी बना कर उसे पीछे से चोदना चाहता है... तू
उसे इतना चोदना चाहता है कि फिर सारी उमर किसी
और को चोदने की चाहत बाकी ना रहे.
मैने अपने दिमाग़ को झटका और सोचने लगा कि क्या
वकाई मैं उसे चोदना चाहता हू... दिल ने कहा हां,
दिमाग़ ने कहा.. नही... क्यों नही?
इसलिए कि वो हर रोज पचासों लोगों से मिलती है...बड़े
बड़े लोगों से भी...पता नही कितनों के साथ सो चुकी
होगी.
तो क्या हुआ? सोई होगी तो सोई होगी...इसमे क्या? तू भी
सो जा एक बार...चूस लो उसकी जवानी. चढ़ जा उस पर.
घुसा दे अपना लंड उसकी चूत मे. मार
धक्के...लगातार...उस वक्त तक, जब तक कि वो ना
बोले...बस करो अभी.
क्या हर्ज है यार?
हां...हर्ज तो कुछ नही... चलो देखते है...अबकी
बार मिली तो...तो...तो...कैसे कहूँगा उससे अपने दिल
की बात?
और मेरी ये उलझन भी ख़तम हो गयी. बात अपने आप ही
बन गयी...
उस दिन रविवार था. मेरी पत्नी अपनी मा के यहाँ गयी
थी. उर्मिला को मालूम नही था शायद. वो कोई दो बजे
दोपहर को आ गयी. आते ही यहाँ वहाँ देखा और फिर
मुझे देख कर मुस्कुराइ और बोली... 'मेडम? बाथरूम
मे...???'
मैं भी मुस्कुराया और बोला... 'हाँ बाथरूम मे...और
अब भी अकेले ही.'
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RE: Chudai Story समाज सेविका
'क्या...क्या कहा....? मतलब?' वो हैरानी से बोली.
'चुदास नही समझती हो?'
'कुछ कुछ..क्या यही मतलब है सेडक्षन का?'
'हा, शायद... यानी अगर....मेरा मतलब है...कि ...
अगर कोई... अब कैसे समझाऊ तुम्हे?' मैं उलझा कर
बोला.
वो हँसने लगी और बोली...'कही चुदास का
मतलब...सेक्स करने की चाह तो नही?'
मैं उसे एक टक देखने मगा. उसके होंठों पर चंचल
मुस्कान थी.
मैने कहा...'ठीक समझी तुम.'
वो मेरी आँखों मे आँखे डालती हुई बोली... 'किस शब्द
से बना है...ये चुदास?' मैं उसकी आवाज़ मे कंप-कंपी
सी महसूस की.
मेरे दिल ने कहा...'गधे, इतना चान्स दे रही है...
तू भी बन जा बेशरम... वारना पछताएगा.'
मैं बोला...'चुदास...चोदना, इस शब्द से बना है?'
वो खिलखिला कर हँसने लगी और फिर जल्दी से चुप हो
कर बाथरूम की ओर देखने लगी कि कही मेडम ना आ
जाए.
वो फिर मेगज़िन की पन्ने पलटने लगी. मैं सोचने
लगा कि अब क्या करूँ. अचानक उसने फिर पूछा...'ये
वेजाइना का क्या मतलब होता है?'
मैने दिल ही दिल मे कहा...साली तू जान बूझ कर ऐसे
सवाल पूछ रही है...
मैने बिंदास हो कर कहा...'वाजीना, या वेजाइना...योनि को
कहते है...'
'व्हाट? योनि? योनि क्या?'
'योनि नही जानती हो...?'
'नही'
'चूत समझती हो?'
उसने झट से अपने मूह पर हाथ रख लिया और फिर
बाथरूम की तरफ देखने लगी.
'चूत समझती हो कि नही?' मैने पूछा.
वो मेगज़िन के पन्ने पलटते हुए धीरे से बोली...
'हाँ!'
'और फक्किंग ?'
वो फिर बाथरूम के दरवाजे की तरफ देखने लगी.
मैने कहा... 'मेडम नही है... अपनी मा के यहाँ गयी
है.'
उसने एक गहरी साँस ली और मुस्कुराती हुई मेरी तरफ
देखने लगी. मेरे दिल ने कहा...मछली फँसी.
'तो मैं कल आती हू...' वो उठने लगी.
'ठहरो, आ जाएगी अभी... कहा था चार बजे शाम
तक आ जाएगी.'
'अभी तो दो ही बजे है.'
'तो क्या हुआ.. थोड़ा इंतेजार कर लो.'
'थोड़ा?.. पूरे दो घंटे बाकी है'
'हा तो क्या हुआ... मुझसे बाते करो....'
'क्या बात करूँ?'
'कुछ भी...ये बताओ तुम क्या करती हो?'
'कहा तो था, समाज सेवा करती हू.'
'किस किसाम की सेवा?'
'ज़रूरतमंद लोगों की ज़रूरते पूरी करना, उनकी
समस्याए सुलझाना...वग़ैराह.'
'मैं भी ज़रूरतमंद हू....मेरी ज़रूरत पूरी कर
सकती हो?'
'क्या ज़रूरत है आपकी?'
मैने उसके चेहरे पर नजरे गाढ दी और धीरे से
बोला...'तुम हो मेरी ज़रूरत.'
वो बिना कुछ कहे मेरी तरफ देखने लगी. फिर
बोली...'क्या करेंगे मेरे साथ?'
'वही जो एक आदमी एक औरत के साथ करता है....'
वो खामोश हो गयी....मैने हिम्मत करके बात आगे
बढ़ाई.... 'बड़ी चुदास महसूस हो रही है...'
उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गयी और वो
बोली...'चुदास की प्यास?'
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